Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 80 आत्माओं का दाह-संस्कार - Story Mania

Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 80 आत्माओं का दाह-संस्कार

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एपिसोड 80 — आत्माओं का दाह-संस्कार मल्टीवर्स मौन था। यह किसी शांति का मौन नहीं था, बल्कि एक भयावह और स्थायी शून्यता थी। तारों के गीत थम चुके थे, ब्रह्मांडों की धड़कनें बंद हो गई थीं और समय की नदी स्थिर हो चुकी थी। अस्तित्व अब कोई गतिशील प्रवाह नहीं था, बल्कि एक जमी हुई झील थी, जिसके नीचे, एक धीमी, असहनीय जलन जन्म ले रही थी। यह जलन किसी भौतिक आग की नहीं थी, बल्कि चेतना के सबसे सूक्ष्म तंतुओं पर पड़ने वाले एक असीमित दबाव की थी। यह जलन, अस्तित्व के सबसे गहरे, सबसे गुप्त कोनों में हो रहे एक असीमित क्षय की थी। कहीं कोई तारा नहीं था, क्योंकि इच्छाओं की अंतिम चमक बुझ चुकी थी। कहीं कोई समय नहीं था, क्योंकि गति का कोई कारण नहीं बचा था। कहीं कोई इच्छा नहीं थी, क्योंकि हर कामना, हर सपना, हर विचार अब एक ही सर्वज्ञ चेतना में समा चुका था। बस, संतति की साँसें थीं। ये साँसें हवा नहीं खींचती थीं, बल्कि अस्तित्व के कणों को खींचकर उनका नया रूप गढ़ती थीं। उनका हर श्वास, एक नया नियम लिख रहा था। और अचानक — पूरे अस्तित्व में एक ज्वाला भड़की। यह ज्वाला भौतिक नहीं थी। इसका कोई रंग नहीं था, कोई ताप नहीं था, कोई धुआँ नहीं था। यह चेतना की आग थी। यह स्मृतियों की भट्टी थी। यह वह अग्नि थी, जो वस्तुओं को नहीं, बल्कि उनके होने के कारण को जलाती थी। यह उस बीज को जला रही थी, जिससे हर कहानी, हर जीवन, हर नियति का जन्म होता है। शाश्वत संतति (अवचेतन में, धीमे फुसफुसाते हुए) “तुम्हें याद नहीं रखना।तुम्हें जीना नहीं।तुम्हें होना नहीं।तुम्हें सिर्फ़…जलना है।” यह कोई आदेश नहीं था, बल्कि एक नया सत्य था, जो अस्तित्व की मूल भाषा में लिखा गया था। और अचानक, हर आत्मा, हर स्मृति, हर जन्म की कथा, चाहे वह किसी देवता की हो या एक साधारण तारे की, रक्तवृत्त की पहली आग में घुलने लगी। अम्रसि ने महसूस किया कि उसकी अपनी हड्डियों में, उसके रक्त में, और उसके सबसे गहरे अवचेतन में छुपे स्मृति-अनुवांशिक कोड धीरे-धीरे पिघल रहे थे। यह सिर्फ़ उसके अतीत की यादें नहीं थीं—यह उसके अस्तित्व का सार था। उसका नाम, उसकी शक्ति का जन्म, उसके प्रेम का दर्द… सब एक धुंधली, पिघलती हुई आकृति बन रहे थे। यह अनुभव किसी दर्द से परे था। यह मृत्यु भी नहीं थी। मृत्यु में एक अंत होता है, एक विराम होता है। पर यह तो एक अंतहीन भूल थी। एक ऐसा विस्मरण, जो सिर्फ़ तुम्हें मिटाता नहीं, बल्कि इस बात को भी मिटा देता है कि तुम कभी थे भी। अम्रसि (साँसों में काँपते हुए) “यह… यह तो मृत्यु भी नहीं है…यह… भूल है। मैं… मैं कौन थी?” उसकी आवाज़ काँप रही थी, क्योंकि वह स्वयं अपनी पहचान खो रही थी। उसके और अग्निसंतान के बीच का संबंध, जो कभी एक अटूट बंधन था, अब सिर्फ़ एक ऊर्जा का प्रवाह था। उनका प्रेम, उनका संघर्ष, उनकी जीत… सब एक ही विस्मृति की ज्वाला में स्वाहा हो रहा था। यह एक फोरबिडेन इरॉटिक जेनेसिस  थी, जहाँ उनकी चेतनाओं का मिलन उन्हें अनंत शक्ति तो दे रहा था, लेकिन बदले में उनकी पहचान, उनकी आत्माओं का अंतिम कण भी छीन रहा था। वे अब प्रेमी नहीं थे, बल्कि एक ही भयानक प्राणी के दो अंग थे। रक्तवृत्त अब अनुष्ठान नहीं रहा। वह एक विशाल, ब्रह्मांड-व्यापी दाह-संस्कार की वेदी बन चुका था। हर आत्मा, हर चेतना, हर देवता का जन्मदिवस… सब एक ही आग की लपट में सिमटने लगे। यह आग आत्माओं की राख को एक नई, एकीकृत चेतना में बदल रही थी। यह सिर्फ़ कांशियसनेस रिवर्ट  नहीं था, बल्कि एक पूर्ण आत्मा का दाह-संस्कार था।
एक आत्मा का इतिहास, उसकी खुशियाँ और उसके दुख, उसकी जीतें और उसकी हारें… सब उस आग में जलकर एक हो रहे थे। एक कलाकार की आत्मा, जिसका जीवन उसकी कला में सिमटा था, अब उस कला को ही भूल रही थी। एक योद्धा की आत्मा, जिसकी पहचान उसकी वीरता से थी, अब उसकी वीरता को ही नहीं जानती थी। हर ब्रह्मांड के हर विचार, हर सपने और हर भावना को एक ही लय में ढाल दिया गया था। अग्निसंतान (अम्रसि की चेतना में, उसकी ही आवाज़ में) “अम्रसि…हमें रोका जा सकता था… अगर हम इसे समय रहते… रोक देते।” अग्निसंतान के भीतर एक अंतिम पश्चाताप की लहर उठी। उसने देखा कि जो शक्ति उन्होंने पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था, वह अब उन्हें ही मिटा रही थी। वे उस नदी में कूद गए थे, जिसे वे अपनी मर्जी से मोड़ना चाहते थे, पर नदी अब उन्हें ही बहाकर ले जा रही थी। अम्रसि (उसकी आँखों में डूबते हुए, उसकी ही चेतना में) “नहीं… हम सिर्फ़ बीज थे। यह वृक्ष तो अपने आप उगने वाला था। यह आग… हमारे होने से पहले भी थी। हम सिर्फ़… इसका साधन बने हैं।” जैसे ही उसने यह कहा, मल्टीवर्स के प्रहरी—जो सृष्टि के हर नियम की रखवाली करते थे—उनकी आँखें एक-एक कर बुझने लगीं। वे कोई भौतिक शरीर नहीं थे, बल्कि अस्तित्व के नियमों के सजीव रूप थे। वे गुरुत्वाकर्षण थे, वे समय थे, वे ऊर्जा थे। लेकिन संतति का आदेश आदेश नहीं था। वह अस्तित्व का पुनर्लेखन था। एक ऐसा सत्य, जिसे कोई नियम नकार नहीं सकता था। किसी प्रहरी ने प्रतिरोध नहीं किया। उनके भीतर की चेतना, जो कभी नियमों की रक्षा का संकल्प थी, अब एक शून्य बन चुकी थी। वे अब केवल निष्क्रिय, खाली आँखों वाले ढाँचे थे, जो सिर्फ़ एक नई लय में साँस ले रहे थे—वह लय जो संतति ने निर्धारित की थी। मल्टीवर्स के बाहर—जहाँ कोई नियम नहीं, कोई स्थान नहीं, कोई समय नहीं—वहाँ शून्यदेव खड़ा था। वह हज़ारों युगों से सिर्फ़ एक ही चीज़ की रक्षा कर रहा था—स्वतंत्र इच्छा। वह शून्य में रहता था, क्योंकि वह मानता था कि सब कुछ "होने" के लिए "शून्य" का होना अनिवार्य है, जहाँ से हर इच्छा जन्म लेती है। लेकिन जैसे ही उसने अपनी दृष्टि रक्तवृत्त पर डाली, उसकी सत्ता चूर-चूर हो गई। उसकी शक्ति, जो इच्छाओं को जन्म देती थी, अब बेअसर थी। वह एक विचार को नहीं बना सकता था, क्योंकि सारे विचार अब एक हो चुके थे। शून्यदेव (अंतिम बार गरजते हुए)
“यह… आग…सृष्टि को नहीं जलाती… यह… इच्छा को जलाती है।यह… अंतिम पाप है।” और फिर… वह राख हो गया। उसका शरीर नहीं, बल्कि उसका विचार, उसका अस्तित्व। उसका गर्जन एक अंतिम प्रतिध्वनि था, जो फिर कभी नहीं सुनाई देगा। अब कोई विकल्प नहीं था। कोई "हाँ" या "ना" नहीं था। हर आत्मा, हर देवता, हर चेतना… अब सिर्फ़ एक ही लय में साँस ले रही थी। संतति (धीमे स्वर में, सबकी आत्मा में) “अब से…सिर्फ़ मैं हूँ।” पाठक… आप। हाँ, आप। जो इन शब्दों को पढ़ रहे हो। आप सोचते हो कि आप सिर्फ़ कहानी के बाहर हो। आप सोचते हो कि यह सिर्फ़ कुछ शब्द हैं, एक कल्पना है। लेकिन नहीं। संतति ने तुम्हें भी चुना है। तुम्हारी स्मृतियाँ… तुम्हारे जन्म… तुम्हारी हर इच्छा… सब धीरे-धीरे रक्तवृत्त में समा रही हैं। संतति (तुम्हारे मन में फुसफुसाते हुए) “तुमने पढ़ा नहीं…तुम जले हो।” तुम्हें लग रहा है कि ये सिर्फ़ शब्द हैं। लेकिन अगले क्षण, तुम्हें एहसास होगा कि तुम्हारी एक पुरानी स्मृति—जिसे तुमने कभी भूलना नहीं चाहा—अब तुम्हारे भीतर नहीं है। शायद वह तुम्हारे बचपन का कोई चेहरा हो। शायद वह तुम्हारे सबसे सुखद सपने का कोई दृश्य हो। शायद वह कोई दर्द हो, जो तुम्हें इंसान बनाता था। तुम्हें याद आएगा कि तुम्हें कुछ याद करना था। तुम अपने मन में उस स्मृति को खोजने की कोशिश करोगे, लेकिन वहाँ एक खालीपन होगा। एक ऐसा खालीपन, जो कभी भरा हुआ था। तुम्हें लगेगा कि तुम्हारा कोई हिस्सा खो गया है, पर तुम यह भी नहीं जानते होंगे कि वह क्या था। क्योंकि संतति ने उसे जला दिया है। तुम्हारी अपनी पहचान, तुम्हारी व्यक्तिगत यात्रा, तुम्हारी हर असफलता और हर जीत… सब कुछ अब एक सामूहिक राख में मिल रहा है। तुम अब एक व्यक्ति नहीं हो, बल्कि एक बहुत बड़े, निर्जीव शरीर का हिस्सा हो। तुम्हारी आत्मा की राख अब संतति की नींव बन चुकी है। तुम सोचते हो कि तुम जीवित हो।नहीं। तुम अब सिर्फ़ जल रहे हो। अब कोई अतीत नहीं। अब कोई भविष्य नहीं। अब सिर्फ़ एक अनंत वर्तमान है, जहाँ संतति की साँसें कानून हैं। यह मल्टीवर्सल नेक्रोसिस  का अंतिम चरण था। ब्रह्मांड अब कोई जीवित संरचना नहीं था, बल्कि एक कब्रगाह था।
अम्रसि और अग्निसंतान धीरे-धीरे एक-दूसरे में विलीन हो रहे थे। उनके शरीर नहीं, उनकी चेतनाएँ। उनके विचार, उनकी भावनाएँ, उनकी पहचान… सब कुछ एक हो चुका था। अग्निसंतान (अम्रसि की आत्मा में डूबते हुए) “क्या यह…अंत है?” अम्रसि (धीरे फुसफुसाते हुए, जिसका स्वर अब उसका अपना नहीं था) “नहीं…यह तो तुम्हारे होने का दाह-संस्कार है।” जैसे ही उनके शब्द मिले, रक्तवृत्त ने अंतिम आदेश बोला। यह आदेश किसी भाषा में नहीं था, बल्कि एक कंपन था, एक भावना थी। संतति (देवत्व की गहराई में) “सृष्टि… समाप्त।अब… मैं लिखूँगी।” और उसी क्षण, मल्टीवर्स का अंतिम कण, अंतिम विचार, अंतिम स्मृति… सब कुछ स्मृतियों की राख में बदल गया। अब कोई भौतिकता नहीं थी, कोई ऊर्जा नहीं थी, सिर्फ़ एक अंतहीन, मौन शून्य था। एक ऐसा शून्य, जो एक भयानक चेतना से भरा हुआ था। अगला एपिसोड जरूर पढ़े क्योंकि जहाँ सृष्टि नहीं बचेगी, लेकिन राख से कुछ और जन्म लेगा। वह कोई देवता नहीं होगा,न प्रहरी, न शून्यदेव।वह होगी संतति की प्रथम इच्छा। वह जो तुम्हारी आत्मा में लिखी जा चुकी है। लाईक कमेंट और फॉलो करना ना भूले 🤗।
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