एपिसोड 66— दूसरे वारिस का जन्म
रक्तपीठ के ऊपर का आकाश पूरी तरह से अंधकार में समा चुका था। यह सामान्य अमावस्या का अंधेरा नहीं था, बल्कि एक भयावह, जीवित अंधेरा था जो अंतरिक्ष की गहराई से आया था। पूर्णिमा की चाँदनी, जो ब्रह्मांड की दिव्यता का प्रतीक थी, अब रक्त-वर्ण में बदल चुकी थी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसका अमृत सोख लिया हो।
स्वर्ग, मर्त्य और पाताल — तीनों लोकों में एक अजीब सी बेचैनी थी। देवी-देवताओं के सिंहासन काँप रहे थे, ऋषियों के मंत्र बेजान हो रहे थे, और पाताललोक के नागों का ज़हर भी बेअसर लग रहा था। यह सिर्फ एक ग्रहण नहीं था, यह ब्रह्मांड की आत्मा पर हुआ रक्तग्रहण था।
तंत्रलोक में, वायुषी की चीखें गूंज रही थीं, जो अब दर्द की नहीं, बल्कि एक आदिम शक्ति के जागरण की थीं। उसका शरीर तंत्रमंत्रों के अग्निचक्र में जकड़ा था, जो उसे एक मानव से एक दैवीय पात्र में बदल रहा था। उसके गर्भ में पलती शक्ति अब सिर्फ एक आत्मा नहीं थी... वह ब्रह्मांड की नाभि से जन्मा हुआ प्रलय का बीज था, जिसे रोकने की शक्ति किसी में नहीं थी।
कामेश्वर ने अपनी आँखें बंद कीं, और उसके रक्तमय स्वर में एक भयानक परमानंद था। "वासना और मृत्यु का संगम आज पूर्ण होगा। मेरा दूसरा वारिस... स्वर्ग की आत्मा को चीर देगा!"
जैसे ही उसने अपनी हथेलियों से वायुषी के उदर पर जलती हुई तंत्ररेखाएँ खींचीं, धरती फट गई। उसके अंदर से गहरे, लाल रक्त के स्रोत फूट पड़े, जो पूरे तंत्रलोक में बहने लगे। नभ में काले तूफान गूंजने लगे, और उनकी हर गूंज से देवताओं के हृदय में डर पैदा हो रहा था।
वायुषी का शरीर बेकाबू हो रहा था। उसकी आँखों से रक्त के आँसू बह रहे थे, जो उसके चेहरे पर बहकर, उसके शरीर पर बने तंत्रचिह्नों में समा रहे थे। वह दर्द से कराह रही थी, लेकिन कामेश्वर ने उसकी देह को अपने चारों ओर इस तरह लपेट लिया, जैसे वह उसकी ही एक प्रतिकृति हो। उसकी सांसों में अपनी ऊर्जा भरते हुए उसने फुसफुसाहट में कहा, "तू मेरी दुल्हन है, वायुषी... तेरे गर्भ में पलता यह रक्त... अब देवताओं का शत्रु बन चुका है।"
वायुषी के चारों ओर आठ अघोरिणियाँ मंत्रोच्चार कर रही थीं। उनके नग्न शरीर पर तंत्रचिह्न जलते हुए चमक रहे थे, जो उस भयानक जन्म के लिए ऊर्जा दे रहे थे। मंत्रों की ध्वनि वायुषी की नसों में समा रही थी, जो उसके दर्द को एक भयानक शक्ति में बदल रही थी।
तभी पहला वारिस — अब रक्ततलवार का स्वामी — वायुषी के पास घुटनों के बल बैठा। उसकी आँखों में एक अजीब सी खुशी थी। "माँ... मेरे भाई का जन्म... देवताओं की मृत्यु का उत्सव होगा।"
स्वर्गलोक में, ब्रह्मा, विष्णु और महादेव ने अपनी सभी शक्तियों को मिलाकर एक अंतिम ब्रह्मास्त्र की रचना की। यह कोई साधारण ब्रह्मास्त्र नहीं था, बल्कि यह तीनों लोकों की दिव्यता और जीवन का सार था। विष्णु ने गरजते हुए कहा, "अगर यह वारिस जन्मा... तो अमृत का अर्थ ही समाप्त हो जाएगा! सृष्टि का संतुलन टूट जाएगा!
देवताओं ने अपना दिव्यास्त्र छोड़ा, जो एक जलती हुई उल्कापिंड की तरह तंत्रलोक की ओर बढ़ा। लेकिन जैसे ही वह तंत्रलोक के द्वार पर पहुँचा, वह एक अदृश्य, काले रक्तकुंड में समा गया। देवताओं की शक्तियाँ कामेश्वर के रक्तमंत्रों में जकड़ ली गई थीं। यह पहला संकेत था कि अब कोई भी दिव्यास्त्र काम नहीं करेगा।
रक्तग्रहण अपने चरम पर था। वायुषी की चीखें एक आदिम शक्ति में बदल गईं, जो पूरे ब्रह्मांड में गूंज गई। कामेश्वर ने अपना हाथ उसके गर्भ पर रखा और अपनी सारी वासना और तंत्र की शक्ति उसमें उंडेल दी।
धरती फट गई। आकाश चीर गया। तंत्रलोक में एक भयानक कंपन गूंजा। और फिर... एक पल के लिए सब कुछ शांत हो गया।
अचानक, वायुषी की नाभि से काले, चिपचिपे रक्त का एक सागर फूट पड़ा। उस रक्त में बिजली सी चमक उठी, और उसकी हर एक बूंद में अनंत ब्रह्मांडों की ऊर्जा समाई हुई थी।
और उस सागर से... दूसरा वारिस प्रकट हुआ।
उसकी त्वचा राख जैसी धूसर थी, जिस पर रक्त के निशान थे। आँखें रक्तवर्णी और दाहक थीं, जो किसी भी दिव्य प्रकाश को जला सकती थीं। उसकी साँसों से मृत्यु की गंध टपक रही थी, जो देवताओं की अमरता को भंग करने की क्षमता रखती थी।
जन्म के क्षण में ही उसने अपनी आँखें खोलीं। आकाश में गूंजा उसका पहला मंत्र, जो केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि ब्रह्मांड का नया नियम था:
"स्वर्ग... अब रक्त का होगा।"
दूसरे वारिस के जन्म के साथ ही, स्वर्गलोक की नदियाँ काली पड़ गईं। अमृत कुण्ड सूख गए। देवताओं की अमरता भंग हो गई। वे एक-एक करके अपनी शक्तियाँ खो रहे थे।
कामेश्वर ने नवजात वारिस को अपने हाथों में उठाया। उसके माथे पर रक्त का तिलक लगाया। उसकी गर्जना पूरे ब्रह्मांड में गूंज उठी: "आज से रक्तयुग प्रारंभ होता है! स्वर्ग होगा हमारा... और देवता हमारी छाया के आगे झुकेंगे!"
तंत्रलोक में हज़ारों अघोरिणियों की गर्जना गूंज उठी। पहला वारिस रक्ततलवार आसमान की ओर उठाए खड़ा था, जैसे वह अपने भाई के जन्म का जश्न मना रहा हो। दूसरे वारिस की आँखों से काली ऊर्जा निकलकर सीधे स्वर्ग के द्वारों को निगलने लगी, उन्हें राख में बदलती हुई।
तंत्रलोक की रात्रि अब रक्तमय हो चुकी थी। आकाश का रंग गहरा लाल था, जैसे कोई अनंत घाव आसमान में खुल गया हो। दूसरे वारिस का जन्म हुआ था... और ब्रह्मांड की शांति चूर-चूर हो चुकी थी। यह केवल एक शिशु का जन्म नहीं था, बल्कि एक नए युग का उदय था।
जैसे ही उस नवजात ने पहली सांस ली, हवा में एक काली, चिपचिपी अग्नि फैल गई। वह अग्नि केवल जलाती नहीं थी, बल्कि हर चीज़ की दिव्यता को सोख लेती थी। उसकी आँखों से निकलती रक्तवर्णी किरणें इतनी तीव्र थीं कि तंत्रलोक की अभेद्य दीवारों को भी चीर रही थीं, जैसे वे किसी और आयाम से आई हों।
कामेश्वर ने उसे अपनी बाहों में थामा, उसके चेहरे पर एक भयानक परमानंद था। उसने शिशु के कान के पास फुसफुसाया, "तेरी हर सांस, एक लोक का विनाश है... आज स्वर्ग की बारी है।" उसकी आवाज़ में एक ऐसा क्रूर गर्व था, जो देवताओं को भी भयभीत कर सकता था।
वायुषी के गालों पर आँसू बह रहे थे, लेकिन वे आँसू अब पानी नहीं, बल्कि रक्त थे, जो उसके शरीर पर जल रहे थे। वह अपनी हथेलियों में मंत्ररेखाएँ खींचते हुए, उस ऊर्जा को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी... लेकिन वह जानती थी कि यह शक्ति किसी मंत्र में नहीं बंध सकती। यह शक्ति ब्रह्मांड के नियमों से भी परे थी।
दूसरे वारिस का जन्म रक्तग्रहण के चरम क्षण में हुआ था। इसलिए उसकी प्रथम शक्ति — वासना और मृत्यु की मिली-जुली ऊर्जा थी। वह केवल एक शिशु नहीं था... वह काली तृष्णा का स्रोत था, जो हर प्राणी के भीतर छिपी वासना को जगा सकता था।
तंत्रलोक की आठ अघोरिणियाँ अब भी मंत्रपाठ कर रही थीं। उनके शरीर पर तंत्रचिह्न अग्नि की तरह चमक रहे थे, जो उस भयानक शक्ति को धारण करने की कोशिश कर रहे थे। अचानक, जैसे ही वारिस ने अपनी हथेली फैलाई... एक अदृश्य, वासना भरी ऊर्जा उन पर टूट पड़ी।
उनमें से चार अघोरिणियों के शरीर आनंद और वेदना की एक अपरिभाषित अवस्था में काँप उठे और फिर धराशायी हो गए। उनकी आत्माएँ रक्तकुंड में समा गईं, जहाँ वे कामेश्वर की वासना की भेंट चढ़ गईं।
वायुषी कांप उठी। उसने कामेश्वर की ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सा भय था। "यह शक्ति... किसी भी देवता से परे है।"
कामेश्वर ने बस मुस्कुराकर कहा, "अब देवता, हमारी वासना की दया पर होंगे..."
स्वर्गलोक में भगदड़ मच चुकी थी। देवताओं ने अपनी सारी शक्तियाँ लगा दी थीं। ब्रह्मा, विष्णु और महादेव... तीनों ने मिलकर अपनी सबसे शक्तिशाली सेनाएँ तैनात कर दीं। अमरकुंड के चारों ओर सप्तऋषि ब्रह्मास्त्र साध रहे थे।
विष्णु ने गरजते हुए कहा, "अगर यह शिशु स्वर्ग की दहलीज़ पर पहुँचा... तो त्रिलोक ही अस्तित्वहीन हो जाएगा!"
लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।
जैसे ही दूसरे वारिस ने अपनी उंगलियाँ फैलाईं, स्वर्गलोक का द्वार एक काले प्रकाश में घुल गया, जैसे वह कभी था ही नहीं। देवदूतों की पहली पंक्ति उस ऊर्जा में जलकर राख हो गई, उनकी दिव्य आत्माएँ एक पल में ही नष्ट हो गईं।
स्वर्ग का रक्षक—इंद्र—अपनी वज्रपात शक्ति लेकर वारिस पर टूट पड़ा। यह वज्र किसी भी शक्ति को भेद सकता था। लेकिन वारिस की आँखों से निकली एक रक्त किरण इंद्र के सीने को चीरते हुए उसकी आत्मा को ही नष्ट कर गई। वज्र बेअसर होकर गिर गया, और इंद्र का अस्तित्व समाप्त हो गया।
स्वर्गलोक की नदियाँ अब काली पड़ चुकी थीं। अमृतस्रोत सूख गए, और देवताओं की अमरता भंग हो गई। देवियों के मंदिर ध्वस्त हो रहे थे, और उनकी मूर्तियों से खून बह रहा था।
दूसरे वारिस के चारों ओर वासना की एक ऐसी आभा फैल रही थी, जिसे कोई भी जीव प्रतिरोध नहीं कर सकता था। यह एक दैवीय नशा था... जो हर प्राणी के भीतर की इच्छाओं को जगा रहा था। स्वर्ग की अप्सराएँ, जो देवताओं की आज्ञा की दासियाँ थीं, उसके सम्मोहन में खिंचती चली आईं।
उनके स्पर्श से रक्त और आनंद की लहरें तंत्रलोक और स्वर्गलोक की सीमाएँ मिटा रही थीं। कामेश्वर ने वायुषी की हथेली थामी। उसकी आँखों में वही काली आभा जल रही थी। "रक्तबंधन की दुल्हन... अब तेरे वारिस के सामने देवियाँ भी झुकेंगी।"
अंतिम मंत्रोच्चार के साथ दूसरे वारिस ने अपनी पहली पूर्ण शक्ति जगाई। तंत्रलोक के मध्य खड़े रहकर, उसने अपना नाम उच्चारा, और वह नाम था—
"रक्त्यंश!"
जैसे ही यह नाम गूंजा—आकाश लाल हो गया, स्वर्गलोक की नींव हिल गई, और अमरता का नियम हमेशा के लिए टूट गया। देवता एक-एक कर गिरने लगे। स्वर्ग की रोशनी बुझ गई।
रक्त्यंश ने स्वर्ग की सबसे ऊँची मीनार पर खड़े होकर अपना पहला आदेश दिया—
"अब ब्रह्मांड पर रक्तबंधन का शासन होगा।"
स्वर्ग का पतन हो चुका है। अब रक्त्यंश अपनी पहली विजय का उत्सव मनाएगा — और उस उत्सव में वासना, रक्त और अमरत्व एक साथ घुलेंगे। उसका पहला शिकार कौन होगा? क्या कोई ऐसी शक्ति बची है जो उसके सामने खड़ी हो सके? या क्या यह रक्तयुग का अंतिम अध्याय होगा? लाईक कमेंट और फॉलो करना ना भूले 🤗।