अंशिका और रिध्यान की शादी एक साज़िश के तहत हुई और यह साजिश रचने वाला उनका खुद का परिवार था । रिध्यान अपनी वाइफ से बेइंतहा प्यार करता हैं लेकिन अंशिका जिंदल तो हमेशा अपने मासुम पति के लिए हार्टलेस ही रहती हैं और इस तरह बन गयी वो रिध्यान के लिए एक ह... अंशिका और रिध्यान की शादी एक साज़िश के तहत हुई और यह साजिश रचने वाला उनका खुद का परिवार था । रिध्यान अपनी वाइफ से बेइंतहा प्यार करता हैं लेकिन अंशिका जिंदल तो हमेशा अपने मासुम पति के लिए हार्टलेस ही रहती हैं और इस तरह बन गयी वो रिध्यान के लिए एक हार्टलेस वाइफ लेकिन अंशिका को हो जाता हैं , रिध्यान से प्यार और वो रिध्यान के सामने अपने प्यार का इजहार करनाचाहती हैं लेकिन तभी उनकी जिंदगी मे आया एक तुफान ! वर्षों पुराना राज जो सब कुछ तबाह कर लें जायेगा तो क्या वो दोनों हमेशा के लिए अलग हो जायेंगे या फिर उनकी मोहब्बत अटूट बन जायेगी । कैसा होगा इस रिश्ते का अंत जिसकी नींव ही धोखा हैं ?
Anshika Jindal Prtap
Heroine
Ridhyan Prtap
Hero
Page 1 of 6
एक प्यारा-सा, मासूम-सा दिखने वाला शख्स किचन में खड़ा गाजर का हलवा बना रहा था। उसके साथ लगभग पचास साल की एक महिला खड़ी थी, जो बस उसे काम करते हुए देख रही थी।
वह मुस्कुराते हुए बोला, "आपको क्या लगता है, मां? क्या उसे यह पसंद आएगा?"
वह महिला उसके मासूम से वजूद को निहारते हुए बोली, "क्यों नहीं? आखिर इतने प्यार से जो बना रहे हो। और कुछ भी कहो, अगर दिया लेकर भी ढूँढती, तो मुझे इतना अच्छा दामाद नहीं मिलने वाला था।"
अपनी तारीफ सुनकर उस लड़के के कान शर्म से लाल हो गए। उसने गर्दन झुकाते हुए, शर्म भरे गालों के साथ कहा, "क्या मां, अब आप भी मुझे चिढ़ा रही हैं?"
वह महिला मुस्कराते हुए बोली, "वैसे और कौन चिढ़ाता है तुम्हें?"
वह कढ़ाई में करछी चलाते हुए बोला, "और कौन? वही आपकी खड़ूस बेटी... मजाल हो जो एक शब्द भी मुँह से निकाल दे... आपको पता है, आज तक उसने मुझे कितना परेशान किया है... अरे, आपको कैसे पता होगा? मैं बताता हूँ ना आपको..."
वह लगातार बोलता ही जा रहा था और वह महिला मुस्कुराते हुए उसकी बातें सुन रही थी। उसकी नज़र अचानक ही उसके पीछे किचन के दरवाजे की तरफ़ गई, जहाँ एक लड़की काले बिज़नेस सूट में खड़ी थी। उसकी आँखें स्थिर भाव से बस उन्हें ही देख रही थीं, और इतना काफी था उस महिला के चेहरे पर घबराहट लाने के लिए।
लेकिन उस लड़के की पीठ दरवाजे की तरफ़ होने के कारण उसे देख नहीं पाया, और वह बस बोलता ही जा रहा था। वह महिला उसे रोकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह अपनी ही धुन में था।
"आपको पता है, कल मैंने अपने इन कोमल हाथों से उसकी हेड मसाज की, लेकिन उसने एक थैंक्यू भी नहीं कहा... आपकी बेटी ना बहुत खुश है... और शब्द... उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलता... कभी-कभी तो महीना हो जाता है उसकी आवाज़ सुने हुए।"
वह महिला मन में सोच रही थी, "आज तो इसने खुद के साथ मेरा भी ऊपर का टिकट कटवाने की कसम खा रखी है। हे भगवान! ऐसा भोला दामाद मेरी किस्मत में लिखा है आपने... एक दिन ज़रूर यह मुझे भी अपने साथ फँसाएगा... इसे किसी भी तरह से चुप करना पड़ेगा।"
इतना सोचकर वह महिला गुस्से में बोली, "बस, एक शब्द और नहीं..."
"आपको क्या हुआ, मां?"
वह गुस्से से बोली, "तुम्हें ज़्यादा बोलने के लिए नहीं कहा है... अब एक और शब्द, मैं अपनी बेटी के खिलाफ़ नहीं सुनूँगी। बहुत बोल चुके हो तुम..."
"पर मां..."
वह बोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल रहा था।
"चुप, बिल्कुल चुप!" उसने अपनी अंगुली को अपने होंठों पर रखते हुए कहा। "अब एक और शब्द नहीं, वरना..."
"वरना क्या?"
"मैं तुम्हें किचन से बाहर निकाल दूँगी!"
बस उस मासूम की आँखों में आँसू आ गए। वह रुआँसी आवाज़ में बोला, "आप मुझे किचन से बाहर निकालेंगी? अरे, कैसी सास हैं आप? आपको तो खुश होना चाहिए कि मैं आपकी बेटी को खुश करने के लिए कितनी कोशिश करता हूँ, और आप तो हमेशा से मेरी साइड थीं। फिर अपनी उस बेटी की साइड ले रही हैं।"
फिर क्या? वह महिला, जो इतनी देर से उसे पीछे देखने का इशारा कर रही थी, जो उस मासूम के समझ के बाहर था, ना में गर्दन हिलाते हुए अपना सिर पीट लेती है।
वह लड़की, जिसकी आँखों से आँसू टपकने ही वाले थे, बोली, "आपने मुझे रोका नहीं... आप बस..."
वह महिला दाँत पिसते हुए बोली, "कितनी कोशिश की, लेकिन तुम्हारा पत्नी की बुराई वाला चैप्टर ही खत्म नहीं हो रहा था।"
वह लड़का बोला, "इसका मतलब, मनाना पड़ेगा।"
वह महिला बोली, "शायद हाँ।"
वह लड़का बोला, "आप मदद करेंगी?"
वह महिला मुस्कुराते हुए बोली, "बिल्कुल नहीं!"
जारी है...
सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे। रिध्यान लगातार अपने हाथ डाइनिंग टेबल पर रखे, उनके ऊपर अपना चेहरा टिकाए, एकटक मुस्कराते हुए अंशिका को देख रहा था। अंशिका शांति से अपना नाश्ता कर रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। सभी लोग शांति से रिध्यान और अंशिका को देख रहे थे। रिध्यान के चेहरे पर जो मुस्कराहट थी, वह धीरे-धीरे उदासी में बदल रही थी। उसने कितने प्यार से अंशिका के लिए गाजर का हलवा बनाया था, इतनी जल्दी उठकर! लेकिन उसे खाने के बाद भी अंशिका ने कोई तारीफ़ नहीं की। यही कारण था कि रिध्यान के चेहरे पर सुबह से जो मुस्कराहट थी, वह अब उदासी में बदल गई। पर जैसे ही उसने देखा कि... वह हल्के से बोला, "अंशिका, क्या मैं आपके लिए और हलवा लाऊँ?" अंशिका, जो खाना खाते हुए अपने फ़ोन में ईमेल चेक कर रही थी, ने बिना नज़रें उठाये कहा, "हम्म..." रिध्यान ने अभी तक एक निवाला भी नहीं खाया था। वह सुबह से बहुत उत्साहित था, अंशिका से अपनी तारीफ़ सुनने के लिए। लेकिन अब भी अंशिका का उस पर ध्यान न देना उसे फिर से उदास कर गया। लेकिन अपनी पत्नी को खुश करने के लिए वह बिना देरी किए किचन में चला गया, उसके लिए हलवा लाने। अंशिका, जिसका ध्यान अभी भी खाने पर था, को एक मैसेज आया। उसने बिना किसी पर ध्यान दिए अपना बैग उठाकर जल्दीबाजी में निकल गई। उसके जाने के कुछ पल बाद ही रिध्यान कटोरी में हलवा लिए खुशी से बाहर आया। लेकिन बाहर डाइनिंग टेबल पर अंशिका को न देखकर, उसकी आँखों में पानी जमा होने लगा। जिसे वह आँखों में रोकने की कोशिश कर रहा था। उसको उदास देख अंशिका की माँ, रत्ना जी, खड़े होते हुए बोलीं, "वो चली गई... बहुत जल्दबाजी में निकली थी। लगता है ज़रूरी मीटिंग होगी।" उनकी बात सुनकर रिध्यान अपने आँसुओं को पीते हुए बोला, "मुझे कुछ काम है, मैं रूम में जा रहा हूँ।" इतना कहकर वह तेज़ी से अपने रूम में चला गया, जो कि दूसरे फ़्लोर पर था। उसके जाने के बाद रत्ना जी गहरी साँस लेते हुए बोलीं, "मुझे लगा था रिध्यान के साथ रहकर अंशी में थोड़ी मासूमियत और नर्मदिली आ जाएगी और वह रिश्तों को खूबसूरती के साथ निभाना सीख जाएगी..." अंशिका की चाची, नमिता जी बोलीं, "लेकिन हुआ उसका उल्टा। जो रिध्यान हमेशा मुस्कुराता रहता है, वो ही धीरे-धीरे अंशिका जैसा बनता जा रहा है।" अंशिका के चाचा, मनोज जी, उदासी से बोले, "हमारी अंशी भी तो हमेशा से ऐसी नहीं थी। वक़्त और हालात ने आज उसे किस कदर कठोर बना दिया... हम सोच भी नहीं सकते हैं, भाभी..." रत्ना जी बोलीं, "कहीं इन सब में रिध्यान के साथ तो कोई अन्याय नहीं हो गया... हमारे हाथों। आख़िर उसे अंशिका की ज़िन्दगी में लाने वाले भी तो हम ही थे।" नमिता जी डरते हुए बोलीं, "जीजी, मुझे तो इस बात की टेंशन हो रही है कि अगर उसे पता चल गया कि यह सब हमारी साज़िश थी तो वह हम सब को कच्चा चबा जाएगी।" मनोज जी बोले, "नमिता सही कह रही है भाभी... आज के बाद यह बात आपके ज़बान पर भी नहीं आनी चाहिए। वरना हम जो अब तक अंशी के गुस्से से बचे हुए हैं, उसके रोद्र रूप का सामना करने से कोई नहीं बच पाएगा, हमें..." रत्ना जी गहरी मुस्कान के साथ बोलीं, "अपने ज़माने में टॉप बिज़नेस वुमन थी मैं... मनोज... तुम्हें लगता है कोई हमारी चाल को बेनकाब कर पाएगा? अंशी को कभी पता नहीं लगेगा। सब कुछ इतनी सफ़ाई से किया है ना कि वह कभी हम तीनों पर इल्ज़ाम भी नहीं लगा पाएगी। तो इस बात के लिए टेंशन फ्री रहो। लेकिन मुझे दुःख रिध्यान के लिए हो रहा है। हमेशा मुस्कुराते रहने वाला मेरा मासूम सा बच्चा अब उदास रहने लगा है। अंशी की ज़िन्दगी में फैला अंधेरा धीरे-धीरे रिध्यान को भी निगलने की कोशिश कर रहा है।" नमिता उदासी से बोली, "यह तो ठीक कहा आपने भाभी... रिध्यान के लिए डर लगता है कभी-कभी तो... उसकी आँखों में अंशी के लिए ज़ज़्बात साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं।" वो सब हाल में बैठे इसी तरह बातें कर रहे थे। इधर ऊपर रूम में... रिध्यान लगातार अपनी शर्ट की बाजू से अपने आँसुओं को पोछने की कोशिश कर रहा था, लेकिन आँसू थे कि रुक ही नहीं रहे थे। वह मन में बड़बड़ाते हुए बोला, "रिध्यान, तुम कितने मासूम हो और वो कितनी खड़ूस... एक शब्द भी मेरी तारीफ़ में नहीं कहा... इतनी सुबह उठकर इतनी मेहनत से गाजर का हलवा बनाया... उनके अलावा किसी और को भी नहीं खाने दिया और मेरा हलवा लाने तक भी वेट नहीं किया... बिना बताए ही निकल गई। मैं भी ना कितना पागल हूँ जो यह सोच रहा हूँ कि वो मेरी तारीफ़ करेगी... अरे वो सिर्फ़ गुस्सा कर सकती है, अपनी प्यारी-प्यारी आँखों को बढ़ाकर डरा सकती है। तारीफ़ जैसा शब्द तो उनकी डिक्शनरी में ही नहीं है और फिर अपना मुँह फुलाकर नाक सिकोड़ते हुए...... अब मैं भी गुस्सा रहूँगा। उनसे बात भी नहीं करूँगा... उनको देखूँगा भी नहीं... फिर कुछ सोचते हुए... नहीं... नहीं... उनको देखे बिना कैसे रहूँगा मैं... नहीं नहीं देखूँगा... फिर कुछ सोचते हुए- ज़्यादा नहीं बस थोड़ा सा देखूँगा।" फिर सिर के बाल नोचते हुए चिल्लाकर बोला, "आह... एक दिन पागल हो जाओगे रिध्यान तुम... समझ नहीं आ रहा है मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। उनका बर्ताव हमेशा से मेरे साथ ऐसा ही था तो फिर मुझे बुरा क्यों लग रहा है?" फिर कुछ सोचते हुए बोला, "शी इज़ माई वाइफ़... नहीं... शी इज़ माई हार्टलेस वाइफ़... अब सही है... वाइफ़ से हसबैंड को फ़र्क तो पड़ता ही है। इसलिए मुझे भी फ़र्क पड़ रहा है।" "वाइफ़... वाइफ़..." खुशी से चिल्लाते हुए बोला, "मेरी वाइफ़... अब कोई ऐसा है जो मेरा अपना है... ऑफ़कोर्स शी इज़ माइन... ओनली माइन... आई एम वैरी हैप्पी।" वह बहुत देर से दुःखी हो रहा था, लेकिन अब उसके चेहरे पर एक गहरी मुस्कराहट थी, जो काफी थी यह बताने के लिए कि इनोसेंट बॉय को उसकी हार्टलेस वाइफ़ से प्यार हो गया है, लेकिन अभी उसका एहसास होना बाकी है। अब देखना यह है कि इनका यह बेमेल सफ़र, किस तरह आने वाले उतार-चढ़ाव पार कर अपनी मंज़िल तक पहुँचेगा? क्या इसी तरह बरक़रार रहेगी रिध्यान की मासूमियत या फिर कुछ और ही होगा? जारी है......
एक पंद्रह मंजिला इमारत के आगे एक काली मर्सिडीज रुकी। उसके आगे और पीछे दस और कारें रुकीं। कार रुकते ही अंशिका की पर्सनल सेक्रेटरी, मारिया—लगभग तेईस साल की एक खूबसूरत, पतली और लम्बी लड़की—जो गेट पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी, भागते हुए जाकर गेट खोला। उसमें से पच्चीस साल की अंशिका, आँखों पर काले चश्मे और काले बिज़नेस सूट में, बाहर निकली। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह बिना किसी पर ध्यान दिए, अपने अहंकारी अंगरक्षकों के साथ आगे चल दी। उस वक्त उसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव दिखाई नहीं दे रहे थे। उसके दरवाज़े पर पहुँचते ही कंपनी में सन्नाटा छा गया। सभी लोग शांति से अपना काम कर रहे थे। वह सभी पर एक सरसरी सी नज़र डालते हुए आगे चल दी। उसकी चलने की गति इतनी तेज थी कि मारिया को उसके पीछे भागना पड़ रहा था। कुछ देर बाद वह ऑफिस के सभी एम्प्लॉइज़ के लिए इस्तेमाल होने वाली लिफ्ट से पंद्रहवें माले पर चली गई जहाँ उसका केबिन बना हुआ था। खैर, अंशिका हमेशा अपनी पर्सनल लिफ्ट का इस्तेमाल करती थी जो सीधे उसके केबिन में ही रुकती थी, लेकिन कभी-कभी सभी एम्प्लॉइज़ के काम का जायज़ा लेने के लिए एम्प्लॉइज़ की लिफ्ट का इस्तेमाल करती थी। अभी उसकी कंपनी इंडिया की बेस्ट और नंबर वन डिज़ाइनिंग कंपनी थी जहाँ ड्रेसेज़ के साथ ज्वैलरी भी डिज़ाइन की जाती थी। आगे बढ़ते रहने की चाह ने उसके और उसके परिवार के बीच दूरियाँ ला दी थीं। उसे हार्टलेस कहना कुछ भी गलत नहीं था क्योंकि उसे किसी के इमोशन्स से कोई फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन एक बात थी जो उसमें सबसे बड़ी खूबी भी थी: चाहे वह दिखावा न करती हो, लेकिन वह अपने से जुड़े किसी भी इंसान की भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुँचा सकती थी। वह अपने केबिन में बैठी गुस्से से उबल रही थी और उसके सामने चार लोग सिर झुकाए खड़े थे। उसकी गुस्से भरी खामोश नज़रें ही काफी थीं उन सब को डराने के लिए। उनमें से एक बोला, "सॉरी बॉस... हम सब को पता नहीं चल पा रहा है कि सारा डेटा डिलीट कैसे हुआ। मैंने खुद से सेव किया था।" दूसरा बोला, "बॉस, वी आर एक्सट्रीमली सॉरी, सब कुछ कैसे हुआ हम नहीं जानते हैं, लेकिन आगे क्या करें हम नहीं जानते।" तीसरा बोला, "हमने सारी तहकीकात की है बॉस... किसी ने सारा डेटा हैक करके डिलीट कर दिया।" चौथा बोला, "स्ट्रांग सिक्योरिटी सिस्टम के चलते डेटा कंपनी के बाहर से हैक नहीं हो सकता है। इसका मतलब है कि डेटा अंदर रहकर ही किसी ने हैक किया है।" अंशिका गुस्से से बोली, "फ़ॉरेन कंपनी वीट्स के साथ हमारी मीटिंग कब है?" उनके साथ खड़ी मारिया सहमी सी बोली, "बॉस, तीन दिन बाद..." अंशिका गुस्से से, मगर शांत आवाज़ में बोली—सब उसकी कोशिश देख पा रहे थे कि वह किस हद तक अपने गुस्से को कम करने की कोशिश कर रही है—"...और इस प्रोजेक्ट पर कितने वक्त से काम हो रहा है?" मारिया बोली, "बॉस, दो महीने से..." अंशिका गुस्से से बोली, "सारे एम्प्लॉइज़ को लगाओ... लेकिन तीन दिन बाद मुझे एक परफेक्ट प्रेजेंटेशन चाहिए, वरना तुम चारों अपने रेज़िग्नेशन लेटर टाइप करके तैयार रखना। अगर मैंने निकाला तो कहीं जॉब भी नहीं मिल पाएगी। वैसे भी यह तुम लोगों की लापरवाही का नतीजा है। अब जा सकते हो।" वो चारों मुँह लटकाए बाहर चले गए—वैसे भी इस बार गलती उनकी थी। उन्होंने प्रोजेक्ट की एक कॉपी खुद के पास रखी ही नहीं थी, जिसे रखना कंपनी का एक नियम था। अंशिका खुद एक कंप्यूटर साइंस इंजीनियर थी, जिसका पता किसी को नहीं था। उसने खुद से एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया था कि अगर कोई उसके ऑफिस कंप्यूटर से डेटा चुराने की कोशिश करे तो वह डेटा सामने वाले के पास जाने के बजाय अपने आप डिलीट हो जाएगा। अंशिका अपने आइब्रो को अंगुली से घिसते हुए बोली, "मारिया..." मारिया सिर झुकाए बोली, "जी बॉस..." अंशिका बोली, "सभी हिडन कैमरों की फ़ुटेज, सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में भेज दो और उस हैकर का पता लगाओ। कोई तो है जो गद्दारी करने की कोशिश कर रहा है। ही विल हैव टू फेस द रियल फेस ऑफ़ अंशिका जिंदल एंड आफ्टर दिस ही विल नॉट बी एबल टू फेस एनीवन।" मारिया बोली, "जी बॉस, सब कुछ हो जाएगा... कुछ देर बाद मैं आपको अपडेट देती हूँ।" इतना कहकर वह उसके केबिन से बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद अंशिका, आँखें बंद करके अपनी चेयर से सिर टिकाते हुए बोली, "ऐसा करके तुमने मौत को बुलावा दिया है। सब कुछ बर्दाश्त, लेकिन अंशिका जिंदल से गद्दारी करने वालों की सिर्फ़ एक ही सज़ा है... और वह है बर्बादी... अच्छा नहीं किया मुझसे पंगा लेकर... जिंदगी के सबसे भयानक मंज़र का सामना करना होगा। इतनी आसानी से बचकर निकल जाने की गलतफ़हमी से जल्द ही बाहर आ जाओगे। जब अपने सामने साक्षात् अपनी बर्बादी को अंशिका जिंदल के रूप में खड़ा पाओगे। तुम जो कोई भी हो... आई डोंट केयर... लेकिन तुमने जो खेल शुरू किया है, उसे ख़त्म मैं खुद करूँगी और इतने भयानक तरीके से कि तुम्हारी रूह तक काँपेगी।" कुछ तो भयानक होने वाला था, लेकिन यह तो वक्त ही बताएगा कि क्या होगा। अंशिका का गुस्सा, आज लगातार हर किसी पर फूट रहा था। पूरे ऑफिस में दहशत फैली हुई थी। अपनी नौकरी के चले जाने के डर से आज किसी की भी नज़रें अपने काम से ऊपर नहीं उठ रही थीं और जबसे उन्हें पता चला था कि तीन दिन तक ओवरटाइम करना है, उन सबकी तो जान ही निकलने वाली थी। शाम तक सबकी हालत खस्ता हो चुकी थी, लेकिन अंशिका को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। जब तक सभी एम्प्लॉइज़ को मारिया ने फ़रमान सुना दिया था कि एक घंटे के लिए उनका रेस्ट टाइम है, इसके बाद उन्हें फिर से काम पर लगना है। मारिया को भी अब तक फ़ुरसत नहीं मिली थी। वह सुबह से लगातार सिक्योरिटी की टीम के साथ उस हैकर का पता लगाने की कोशिश में लगी थी, लेकिन अब तक कुछ भी पता नहीं लग पा रहा था... इधर अंशिका किसी को कॉल कर बोली, "आई वांट हिज़ हेल्प, तो क्या आप उसे ऑफिस भेज देंगे?" अंशिका फ़ोन पर बोली, "आप सुन रहे हो...?" सामने से बोला, "सुनाई दे रहा है, पर विश्वास नहीं हो रहा है कि ऐसा तुम कह रही हो।" अंशिका शांति से बोली, "आप उसे कब तक भेजेंगे?" सामने से बोला, "अब तुम इतना कह रही हो तो मैं उसे भेज दूँगा..." इतना कहकर वह फ़ोन रखने ही वाले थे कि अंशिका अपने हाथ की अंगुली से आइब्रो मसलते हुए, कुछ हिचकिचाहट के साथ बोली, "ड्राइवर के साथ भेजिएगा, साथ में सिक्योरिटी भी... और कुछ भी गलत अंदेशा होने पर डायरेक्ट मुझे कॉल करने के लिए कह दीजिएगा।" सामने से हँसते हुए बोला, "इतनी फ़िक्र... यह सब तुम उसे बताओगी तो वो अच्छा महसूस करेगा।" अंशिका बोली, "हम्म..." इतना कहकर वह कॉल काट देती है। इधर मनोज जी कॉल काटने के बाद हँसते हुए बोले, "लगता है शर्मा गई।" नमिता जी बोलीं, "इम्पॉसिबल... अंशिका जिंदल और शर्माना... कयामत नहीं आ जाएगी इस दुनिया में..." रत्ना जी गंभीरता से बोलीं, "क्या कह रही थी वो...?" मनोज जी गंभीरता से बोले, "रिध्यान की हेल्प चाहिए उसे..." रत्ना जी कुछ सोचते हुए बोलीं, "मतलब, ऑफिस में कुछ गलत हुआ है।" मनोज जी बोले, "ऐसा हो सकता है।" नमिता जी खुशी से बोलीं, "मैं रिध्यान को बताकर आती हूँ।" रत्ना जी उठते हुए बोलीं, "तुम रहने दो... मैं जा रही हूँ।" इतना कहकर रत्ना जी वहाँ से रिध्यान के कमरे में चली गईं। इधर रिध्यान सब कुछ भूलकर, शांति से अपने कपड़ों के अलमारी में कपड़े जमा रहा था और साथ ही गुनगुना रहा था... तभी उसके कमरे पर नॉक की आवाज़ आती है। वह अंदर से ही चिल्लाते हुए बोला, "आप आ सकती हैं।" रत्ना जी अंदर आकर हैरानी से बोलीं, "तुम यह सब क्या कर रहे हो और इतने कपड़े क्यों फैला रखे हो?... फिर कुछ सोचते हुए... एक मिनट... तुम अंशिका से गुस्सा हो।" रिध्यान मुड़कर उनकी तरफ़ देखते हुए बोला, "आप यह सोच सकती हैं।" रत्ना जी, उसके सामने आकर हैरानी से उसका सिर छूते हुए बोलीं, "मतलब... तुम अंशी से नाराज़ हो... फिर दोनों हाथ अपने मुँह पर रखते हुए चारों तरफ़ घूमकर फिर अपने हाथ फैलाते हुए बोलीं, "ओह गॉड... तुम अंशी से नाराज़ हो।" रिध्यान उनकी हरकतों से खिझते हुए बोला, "मतलब था, पर अब नहीं हूँ।" रत्ना जी चिल्लाते हुए बोलीं, "क्या...?" रिध्यान मासूमियत से बोला, "मतलब... उन्हें इतना काम होता है और फिर मैं तो एक अच्छा पति हूँ ना..." रत्ना जी की हालत बिलकुल कटे हुए पेड़ की तरह हो गई थी। वह सोच रही थी कि खुश हो कि उनका दामाद इतना अच्छा है या रोए कि उसे नाराज़ होना भी नहीं आता है... कहाँ वह इस बात का फ़ायदा अंशी को परेशान करने के लिए उठाना चाहती थी कि रिध्यान अंशी से नाराज़ है और कहाँ उनका भोला सा दामाद अपनी पत्नी से एक पल के लिए भी नाराज़ नहीं रह सकता है। खैर, अब वह कर भी क्या सकती थी जब उन्होंने ही उसे अपनी बेटी के लिए चुना था। वह किसी तरह खुद की भावनाओं को कंट्रोल करते हुए बोलीं, "तुम्हें जिंदल कॉर्पोरेशन जाना है।" रिध्यान बेख़याली में बोला, "ठीक है..." और फिर एकदम से बात समझ आने पर बोला, "क्या कहा आपने?... फिर जबरदस्ती हँसते हुए बोला, "बिल्कुल नहीं... मैं कहीं नहीं जाने वाला हूँ। आप क्या चाहती हो कि मुझे अपनी ख़डूस लेडी मोगेंबो का गुस्सा सहन करना पड़े... बिल्कुल नहीं... पिछली बार जब मैं उनके ऑफिस गया था ना, तब कितना भयानक डाँटा था उन्होंने... लास्ट तक आते-आते उसकी आवाज़ बिलकुल रुआँसी हो गई थी।" रत्ना जी उसको पैनिक करते देख, उसके दोनों हाथों को पकड़कर बोलीं, "रिलैक्स और बिल्कुल चुप... अब जो मैं कह रही हूँ उसे ध्यान से सुनना।" रिध्यान गहरी साँस लेते हुए बोला, "अच्छा ठीक है, अब बताइए..." रत्ना जी खुशी से बोलीं, "उसने खुद तुम्हें बुलाया है और कहा है उसे तुम्हारी हेल्प चाहिए।" रिध्यान खुशी से बोला, "क्या कहा?... फिर खुशी से रत्ना जी के दोनों हाथ पकड़ कूदते हुए बोला, "दुबारा कहना..." रत्ना जी, उसकी खुशी समझते हुए बोलीं, "मैंने कहा... उसने तुम्हें खुद बुलाया है।" रिध्यान खुशी से रत्ना जी को गोद में उठाए, उन्हें गोल-गोल घुमाते हुए बोला, "मुझे लग रहा है मैं खुशी से पागल हो जाऊँगा। उन्होंने खुद मुझे बुलाया, मतलब..." तभी सामने दरवाज़े से नमिता की खुशी भरी आवाज़ आती है, "मतलब यह कि पत्थर दिल सनम पिघल रहा है।" रत्ना जी चिल्लाते हुए बोलीं, "मुझे नीचे उतारो... सिर घूमने लगा है।" रिध्यान एकदम से अपनी स्थिति का आभास करते हुए बोला, "सॉरी माँ..." फिर उनको कसकर गले लगाते हुए बोला, "आप इस दुनिया की बेस्ट माँ हो।" नमिता जी अंदर आते हुए बोलीं, "कोई हमें भी गले से लगाकर प्यार जता ले..." रिध्यान खुशी से उनके पास आते हुए बोला, "आप भी इस दुनिया की बेस्ट छोटी माँ हैं।" इतना कहकर वह उनके गले लग जाता है। रत्ना जी उनके साथ शामिल होते हुए बोलीं, "और तुम इस दुनिया के बेस्ट बेटे..." रिध्यान दोनों के गले में अपने हाथ डालते हुए बोला, "वो तो मैं हूँ।" मनोज जी—जिन्होंने रत्ना जी के बहुत देर तक भी नीचे ना आने पर नमिता जी को ऊपर भेजा था और जब वो भी नीचे नहीं आई तो वो खुद ऊपर चले आए थे यह देखने कि ऐसा क्या हो रहा है जो कोई भी नीचे नहीं आ रहा है—यह देखकर कि सभी खुशी से गले लगे हुए हैं, उनका दिल भर आया। वह मन में सोचते हुए बोले, "सच में इस आलीशान मेंशन में लोग तो रह रहे थे, लेकिन यह वीरान मेंशन अब सच में घर लगने लगा है जहाँ सबकी आवाज़ें गुंजती रहती हैं। कभी सोचा ना था रिध्यान का इस तरह हम सब की ज़िंदगी में आना सब कुछ बदलकर रख देगा और आज हम सब इतना खुश होंगे। सच में रिध्यान के साफ़ और मासूम दिल ने कब हमें उसके इतना करीब कर दिया कि वह साँसों की तरह ज़रूरी लगने लगा है। अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि कभी भी हमारी खुशियों को किसी की नज़र ना लगे।" सच में कुछ लोगों की कुछ अच्छाइयों से उनके आसपास का माहौल अपने आप खुशबुओं सा महक उठता है। रिध्यान की नज़र जब उन पर पड़ती है, वो उन्हें अपनी सोच में खोया देखकर बोला, "आप भी आ जाइए छोटे पा... आज हम सब बहुत खुश हैं।" मनोज जी खुशी से आगे आकर रिध्यान को गले लगाते हुए बोले, "तुम हमेशा ऐसे ही हँसते मुस्कुराते रहो।" जारी है..... रिध्यान तो बहुत खुश है... आज मैं भी खुश हूँ। सच में अपनों के साथ खुशियाँ बाँटने में जो सुकून मिलता है, वो इस जहाँ में कहीं और मिलना मुश्किल सा लगता है। अंशिका ने किसे कॉल किया है? कौन है वह हैकर? क्या पता चल पाएगा उसका? जानने के लिए कहानी को पढ़ते रहिए और यह ज़रूर बताना कि आपको कहानी कैसी लगी।
रिध्यान की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी आँखें मोती सी चमक रही थीं, और दिल में एक अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। पिछले आधे घंटे से वह सारा अलमारी का सामान बिस्तर पर खाली कर चुका था। रत्ना जी हाथ बाँधे, हैरानी से मुँह खोले, उसकी हरकतें लगातार देख रही थीं। "यह तुम क्या कर रहे हो, रिध्यान?" रत्ना जी ने पूछा। "माँ, मैं बहुत परेशान हो गया हूँ। पिछले आधे घंटे से एक ढंग की ड्रेस ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन कुछ ऐसा मिल ही नहीं रहा है जो पहनकर मैं जा सकूँ," रिध्यान ने उदासी से कहा। रत्ना जी ने हाथ बाँधे, बिस्तर पर कपड़ों के ढेर को देखते हुए कहा, "तुम्हें नहीं लगता..." "क्या... माँ?" रिध्यान ने अपने अलमारी को खंगालते हुए पूछा। "यही कि तुम्हारी हरकतें लड़कियों से मिलती हैं। अंशिका को जो हाथ लगता है, वो पहन लेती है। पाँच मिनट से ज़्यादा समय नहीं लगता उसे तैयार होने में..." रत्ना जी ने कहा। "माँ... आआआआआ..." रिध्यान ने अपने शब्दों को लंबा खींचते हुए कहा। "ऐसा ही है... तुम पिछले आधे घंटे में एक ड्रेस तक सिलेक्ट नहीं कर पाए। इन सब में तुम्हें यह तक याद नहीं है कि तुम लेट भी हो रहे हो," रत्ना जी ने उसी लहजे में कहा। रिध्यान ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा, "प्लीज, आप मेरी हेल्प कर दीजिये। प्लीज... अच्छा... आई प्रॉमिस, मैं आपके लिए कल आलू के पराठे बनाऊँगा, वो भी एक्स्ट्रा मक्खन के साथ।" रत्ना जी को मुँह फेरते देख रिध्यान ने यह कहा। आलू पराठे का नाम सुनकर रत्ना जी के मुँह में पानी आ गया। "सच में...?" रत्ना जी ने खुशी से पूछा। "सच्ची," रिध्यान ने अपने हाथ को गले से लगाते हुए कहा। "फिर ठीक है। मैं तुम्हें आज एक राजकुमार ही बनाकर रहूँगी," रत्ना जी ने कहा। "मेरी स्वीट सी माँ। यू आर द बेस्ट मदर," रिध्यान ने उनके गाल खींचते हुए कहा। दोपहर के दो बज चुके थे। सभी कर्मचारी राहत की साँस ले रहे थे कि शाम को उन्हें कम से कम एक घंटे का ब्रेक मिलने वाला था। मारिया अलग ही परेशानी से जूझ रही थी। बहुत कोशिश के बाद भी सिक्योरिटी टीम को कोई सुराग नहीं मिल पाया था, और यही बात उसे लगातार बेचैन कर रही थी। उसे लग रहा था कि अब पूरे ऑफिस को बॉस के कहर से कोई नहीं बचा सकता। पता नहीं आज कितनों के इस्तीफे टाइप होने वाले थे। पिछले दो घंटे से वह बस उसके आने का इंतजार कर रही थी, लेकिन वह अभी तक नहीं आया था। इससे अंशिका का गुस्सा और बढ़ गया था। वह लगातार अपने केबिन में चहलकदमी करते हुए, अपने आप को शांत रखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अब कुछ तो गलत होने वाला था। इधर, रिध्यान ब्राउन बिज़नेस सूट में, अपने चेहरे पर मुस्कान लिए, लगातार उस पंद्रह मंजिला इमारत को देख रहा था जो बाहर से हीरे की तरह चमक रही थी। कुछ देर पहले ड्राइवर ने उसे यहाँ छोड़कर, गाड़ी ऑफिस पार्किंग में पार्क करने चला गया था, लेकिन वह अंदर जाने की बजाय पिछले दस मिनट से बाहर खड़ा, उस इमारत को एकटक देखे जा रहा था। सामने देखते वक्त उसके चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान देखी जा सकती थी। उसकी यह मुस्कराहट आसपास के सभी लोगों को उसकी ओर आकर्षित कर रही थी। कुछ देर बाद गहरी साँस लेते हुए वह अंदर चला गया। जहाँ से वह गुजर रहा था, वहाँ काम कर रहे लोग, और उसके पास से गुज़र रहे लोग उसे आँखें फाड़कर देख रहे थे। सच में वह इतना आकर्षक लग रहा था कि लड़कियों के साथ-साथ लड़के भी अपने दिल को धड़कता हुआ महसूस कर रहे थे, लेकिन वह किसी पर भी ध्यान दिए बिना अपनी ही मस्ती में चला जा रहा था। वह रिसेप्शन पर जाकर रुका, जहाँ एक लड़की बैठी अपना मेकअप करने में व्यस्त थी। वह जाकर उसकी डेस्क के सामने खड़ा हो गया। रिसेप्शनिस्ट, जो अपना मेकअप करने में व्यस्त थी, अपने सामने इतने हैंडसम लड़के को देखकर हड़बड़ाकर अपना मेकअप किट अपनी डेस्क के नीचे रख दिया। "जी, मुझे अंशिका जी से मिलना था, तो क्या आप मुझे उनका केबिन बता सकती हैं?" रिध्यान ने मुस्कुराते हुए कहा। रिसेप्शनिस्ट ने मुँह फाड़कर रिध्यान को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए मन में सोचा, "भई, यह अजूबा कौन है जो बॉस को अंशिका जी बुला रहा है। अंशिका जी तो उनके बिज़नेस पार्टनर को भी मिस जिंदल बुलाती हैं... वैसे, बहुत हैंडसम है। काश यह बंदा मेरी किस्मत में होता।" रिध्यान उसे अपनी तरफ एकटक देखता देख असहज हो गया और वह भी अपने आप को ऊपर से नीचे तक देखने लगा। जिससे रिसेप्शनिस्ट होश में आते हुए बोली, "आपके पास अपॉइंटमेंट है?" "वो तो नहीं है, लेकिन..." रिध्यान ने मासूमियत से कहा। "सॉरी सर, लेकिन बिना अपॉइंटमेंट के आप बॉस से नहीं मिल सकते हैं," रिसेप्शनिस्ट ने गुस्से से कहा। "अरे! उन्होंने खुद मुझे बुलाया है। प्लीज, आप मुझे उनसे मिलने दीजिये," रिध्यान ने कहा। रिसेप्शनिस्ट को तो एक के ऊपर एक झटके लग रहे थे। वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि अंशिका जिंदल किसी को सामने से बुलाएगी। "सॉरी... मैं बॉस के साथ गद्दारी नहीं कर सकती हूँ। अब आप जा सकते हैं, वरना गार्ड्स से कहकर मैं आपको बाहर निकलवा दूँगी," रिसेप्शनिस्ट ने कहा। रिध्यान के चेहरे पर परेशानी की लकीरें खिंच गईं। वह परेशानी से मन में सोचने लगा, "यह रिसेप्शनिस्ट तो मुझे जाने नहीं देगी, और ज़्यादा जिद की तो... फिर..." साइड में खड़े कट्टे-कट्टे गार्ड्स को देखकर उसने मन ही मन सोचा, "नहीं... नहीं... इनसे मैं नहीं पिट सकता हूँ।" वह कुछ सोचते हुए रिसेप्शन से अलग होकर रत्ना जी को कॉल लगा दिया। रत्ना जी ने कॉल उठाते हुए पूछा, "क्या हुआ रिध्यान? अब तक ऑफिस नहीं पहुँचे?" "माँ...." रिध्यान ने रुआंसी सी आवाज़ में कहा। रत्ना जी ने उसकी आवाज़ में उदासी भाँपते हुए परेशानी से पूछा, "क्या हुआ बेटा? और इतने परेशान क्यों हो?" "माँ, यह रिसेप्शनिस्ट मुझे अंदर नहीं जाने दे रही है। कह रही है अगर उनसे मिलना है तो अपॉइंटमेंट लानी पड़ेगी, लेकिन वह तो मेरे पास है ही नहीं," रिध्यान ने कहा। रत्ना जी ने उसकी बात सुनकर अपना सिर पीट लिया। उनका मन एक बार तो उसकी मासूमियत पर हँसने का किया, लेकिन फिर गंभीरता से बोलीं, "तो तुम्हें अंशी को फोन करना चाहिए।" "माँ... मुझे उनके गुस्से से डर लगता है। और मैंने कॉल किया और उन्होंने डाँटा तो...." रिध्यान ने कहा। "अच्छा, तो ऐसा करो, साइड में बैठो। मैं अंशी को कॉल करती हूँ, वह किसी को भेज देगी," रत्ना जी ने गंभीरता से कहा। "थैंक्यू माँ," रिध्यान ने खुशी से कहा। रत्ना जी ने कॉल काटने के बाद गुस्से से अंशिका को कॉल लगा दिया। जारी है......
रिध्यान रिसेप्शन के किनारे रखी एक कुर्सी पर बैठ गया। रत्ना जी से बात करने के बाद वह आराम से फोन में गेम खेल रहा था। उसे यह तक पता नहीं था कि सभी लड़कियाँ उसे मदहोश नज़रों से देख रही थीं। इधर, अंशिका गुस्से से इधर-उधर घूम रही थी, तभी उसके पास रत्ना जी का कॉल आया। वह झट से कॉल उठाते हुए बोली, "वह अभी तक नहीं आया...माँ..." रत्ना जी गुस्से से, एक-एक शब्द को चबाते हुए बोलीं, "तुम्हें पता भी है तुम्हारे ऑफिस में क्या हो रहा है? रही बात रिध्यान की, तो वह पिछले आधे घंटे से अंदर जाने के लिए रिसेप्शनिस्ट से बहस कर रहा है। तुमने उसे भेजने के लिए तो कह दिया, लेकिन रिसेप्शन पर इन्फॉर्म करना भी ज़रूरी नहीं समझा। और वह तुम्हारे गुस्से के डर से तुम्हें कॉल करने से भी डर रहा है।" अंशिका को अचानक अपनी गलती का एहसास हुआ। अपने गुस्से में वह यह भी भूल चुकी थी कि यहाँ पर कोई रिध्यान को नहीं जानता। जिसके चलते बिना अपॉइंटमेंट लेटर के रिध्यान का सिक्योरिटी के बीच से उसके केबिन तक पहुँचना नामुमकिन था। अब उसे खुद पर भी गुस्सा आ रहा था। वह किसी तरह बोली, "सॉरी..." वैसे कुछ ही लोग थे, जिन्हें अंशिका के मुँह से सॉरी सुनने का मौका मिलता था। एक उसकी माँ और दूसरा कौन... रत्ना जी गुस्से से सर्द आवाज़ में बोलीं, "तुम जानती हो ना, रिध्यान हमारे लिए कितना इम्पॉर्टेंट है? उस पर एक खरोच भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हम...और तुम्हारी एक गलती की वजह से हमारे बच्चे का स्टैंडर्ड ही नहीं बचा। रत्ना जिंदल का दामाद कम, बेटा ज़्यादा है वह...ऐसे में अगर उसे तुम्हारी वजह से भी तकलीफ हुई, तो सज़ा हम तुम्हें भी देंगे। इसलिए आगे से उसका ख्याल रखना..." रत्ना जिंदल, जो अपने जमाने की महान फैशन डिज़ाइनर और बिज़नेस वुमन थीं। अब उनकी उम्र हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने अपना सारा बिज़नेस अंशिका को हैंडओवर कर दिया था और अब घर पर आराम करती थीं। लेकिन उनका गुस्सा, आज भी सबको ख़ामोश कर देता था। जो अंशिका के गुस्से की तरह ही खतरनाक था। और उनकी एक आदत और थी; जब भी वह गुस्सा करती थीं, वह खुद को 'हम' ही बोलती थीं। उनका गुस्सा कभी बेवजह नहीं होता था और अंशिका को अब भरोसा हो चुका था कि गलती उसकी ही है। वह दुबारा सॉरी बोलती, तब तक तो फ़ोन डिस्कनेक्ट हो चुका था। वह गहरी साँस लेकर नीचे चली गई। रिसेप्शन पर, रिध्यान मज़े से गेम खेल रहा था और लड़कियाँ उसे घूर रही थीं। एक लड़की, अट्टिट्यूड से बोली, "देखना, अभी पटाती हूँ इसे तो...मेरे चार्म से बचना इम्पॉसिबल है।" इतना कहकर वह कुछ फाइल्स उठाकर, इठलाते हुए रिध्यान की तरफ़ जाने लगी और गलती से फिसलने का नाटक करते हुए उसकी गोद में ही गिर गई। सभी एम्प्लॉयी मुँह फाड़कर उसी लड़की को देखने लगे, जो नाटक करते हुए रिध्यान की गोद में गिरी थी। रिध्यान, जो अपने गेम में मग्न था, वह डरकर उसे दूर हटा देता है जिससे वह लड़की, जिसका नाम रिद्धिमा था, वह जोर से फ़र्श पर गिर जाती है और उसके मुँह से एक जोरदार चीख निकल जाती है। "हाय...मेरी कमर...तोड़ ही दी!" सभी लोग उस पर हँसने लगे। उसकी शक्ल देखकर रिध्यान को भी हँसी आ गई। वह हँसते हुए बोला, "सॉरी..." सभी को अपने ऊपर हँसता देख रिद्धिमा को गुस्सा आ गया और ऊपर से रिध्यान की हँसी ने आग में घी का काम कर दिया। वह गुस्से से रिध्यान को अँगुली दिखाते हुए बोली, "हाउ डेयर यू...हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी...रिद्धिमा साहू को धक्का देने की! अभी के अभी निकलो यहाँ से, वरना धक्के मारकर बाहर निकलवा दूँगी।" रिध्यान मासूम से चेहरे के साथ बोला, "सॉरी, पर तुम अचानक से मेरे ऊपर गिरी तो मैं डर गया और तुम्हें धक्का दे दिया। और वैसे भी गलती तुम्हारी है, देखकर तुम्हें चलना चाहिए था..." अब तक बहुत सा स्टाफ़ इकट्ठा हो गया था और सब तमाशा देख रहे थे। रिद्धिमा, रिध्यान की कॉलर पकड़ते हुए बोली, "तुम्हें तो मैं..." रिध्यान ने कभी ऐसी सिचुएशन फेस नहीं की थी। वह कभी नहीं चाहता था कि उसकी वाइफ के अलावा कोई उसे छुए। इसलिए वह अब परेशान हो गया था। वह किसी तरह रिद्धिमा को दूर करते हुए बोला, "तुम दूर होकर भी बात कर सकती हो।" रिद्धिमा गुस्से से बोली, "एक तो मुझे गिराया और ऊपर से एटिट्यूड दिखा रहे हो।" तब तक एक सख्त आवाज़ आती है, "क्या हो रहा है यहाँ..." अब तक तमाशा देखने में सब भूल चुके थे कि वे लोग ऑफिस में हैं, लेकिन इस सख्त आवाज़ ने सभी के होश फाख़्ता कर दिए। यह आवाज़ थी अंशिका की, जो अब तक ख़ामोशी से सब देख रही थी, लेकिन दूर होने के कारण किसी को वह दिखाई नहीं दी थी। रिद्धिमा तो डर से काँपने लगी थी। उसकी सख्त आवाज़ जहाँ सभी को डरा रही थी, वहीं रिध्यान भागकर अंशिका के पीछे छिप गया। अंशिका के पास उसे हमेशा सुकून सा फील होता था, जो उसे हर डर से सुरक्षित कर देता था। अंशिका एक बार फिर सभी पर दहाड़ते हुए बोली, "क्या हो रहा था यहाँ...?" रिसेप्शनिस्ट किसी तरह डरते हुए बोली, "वो मैम...यह आदमी...आपसे मिलने के लिए कह रहा था, लेकिन इसके पास कोई अपॉइंटमेंट नहीं थी।" इतना कहकर वह धीरे-धीरे सब कुछ बता देती है। अंशिका ने जब सुना कि रिद्धिमा जाकर रिध्यान की गोद में गिरी है, तो उसे अपने अंदर एक अजीब सी आग महसूस हुई। वह गुस्से से बोली, "मिस साहू...आप अपना काम छोड़कर यहाँ हर किसी पर गिर पड़ रही हैं। एक घंटे बाद मेरे केबिन में मिलो।" उसकी गुस्से से भरी आवाज़ सुनकर रिध्यान सहमते हुए अंशिका के ब्लेज़र को कसकर पकड़ लेता है। अपने ब्लेज़र पर रिध्यान की पकड़ कसते देख उसे उसके डरने, सहमे से अस्तित्व का एहसास होता है। वह किसी तरह अपने गुस्से को शांत रखने की बेबुनियाद कोशिश करते हुए बोली, "रघू..." रघू, जो कि सिक्योरिटी डिपार्टमेंट का हेड गार्ड और हमेशा रिसेप्शन के किनारे खड़ा रहता है, आगे आकर गर्दन झुकाते हुए बोला, "जी बॉस।" अंशिका रिध्यान को अपने पीछे से बराबर में करते हुए...उसने रिध्यान का हाथ पकड़ रखा था, जिससे अब रिध्यान के चेहरे पर वापिस मुस्कराहट आ जाती है...बोली, "ही इज़ रिध्यान प्रताप...यह जब भी ऑफिस आए...तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि बिना पूछताछ किए तुम इन्हें मेरे केबिन तक सही-सलामत छोड़कर आओगे।" वहाँ खड़े सभी लोग अंशिका को इतने सॉफ्ट तरीके से बात करते देख सबके होश उड़ गए थे। आज सभी को एक से बड़े एक झटके मिल रहे थे, जो अब बर्दाश्त के बाहर होते जा रहे थे। रघू गर्दन झुकाए हुए बोला, "जी बॉस..." अंशिका सभी पर एक सरसरी नज़र डालते हुए बोली, "तमाशा ख़त्म हो गया है, तो जाकर अपना काम कीजिए।" सभी लोग उसकी आवाज़ में एक वार्निंग महसूस कर फटाफट अपनी डेस्क पर चले जाते हैं और अंशिका, रिध्यान का हाथ पकड़े, लिफ्ट की तरफ़ चल देती है। इस पूरे समय में रिध्यान की आँखें तो अपने हाथ पर टिकी थीं, जिसे अंशिका ने कसकर थाम रखा था। ....... अंशिका अपना केबिन का गेट बंद करते हुए बाहर "डोंट डिस्टर्ब" का बोर्ड लगा देती है। केबिन के अंदर आते ही रिध्यान, अंशिका को कसकर गले लगा लेता है। उसकी आँखें बंद थीं। अगर आँखें खुली होतीं, तो शायद अंशिका उसकी आँखों में एक अनकहा डर महसूस कर पाती... सुकून तो अंशिका के दिल को मिला था, लेकिन वह महसूस ही नहीं करना चाहती थी और ना ही उसे एहसास था। वक्त के साथ रिध्यान की पकड़ उसके चारों तरफ कसने लगी थी। वह अपने सिर को उसके सीने से लगाए उसकी बढ़ती धड़कनों का शोर सुन रहा था। लेकिन अंशिका के हाथों ने उसे अपने हिसार में नहीं समेटा था। अंशिका शांति से बोली, "क्या हुआ रिध्यान...तुम इतना डर क्यों रहे हो?" रिध्यान उसके गले लगे हुए ही बोला, "आप हर बार वक़्त लगाती हैं...मुझ पर क्या बीतती है, आप नहीं समझ सकती हो। वो लड़की मेरे करीब आने की कोशिश कर रही थी। आई हेट हर...मुझे बर्दाश्त नहीं कि आपके अलावा कोई और मेरे करीब भी आए।" अंशिका को रिध्यान का हर शब्द अपने दिल में उतरता महसूस हो रहा था। उसका पति इतना भी मासूम नहीं था कि वह लोगों की नियत ना पहचान सके। रिध्यान के हिलते होंठ उसे अपने सीने पर महसूस हो रहे थे, लेकिन अंशिका का अपने ऊपर बहुत हार्ड कंट्रोल था, जो इतनी आसानी से छूट जाए, ऐसा नामुमकिन था। लेकिन उसने रिध्यान को अपने से दूर नहीं किया। वह शिद्दत से उसके डर को महसूस कर पा रही थी। उसका यह रूप सिर्फ़ अंशिका के लिए था और यही सोचकर उसको अपने दिल की एक बीट मिस होती महसूस हुई। अब देखना यह है कि रिध्यान की मासूमियत किस तरह पत्थर दिल अंशिका को पिघलाएगी। जारी है......
रिध्यान अभी भी उसके गले लगा हुआ था। कुछ देर बाद अंशिका थककर बोली, "मैं और खड़ी नहीं रह सकती हूँ।" उसके इतना कहते ही रिध्यान उससे दूर हटकर, नजरें झुकाए हुए बोला, "सॉरी...मैं बस डर गया था।" अंशिका सामान्य लहजे में बोली, "इट्स ओके...वैसे भी तुम्हारा हक है।" उसके मुँह से यह बात सुनकर रिध्यान एकटक उसे ही देखता रहा। रिध्यान का उसकी तरफ एकटक, गहन नज़रों से देखने से अंशिका को एक पल के लिए अपने अंदर अजीब सी गुदगुदी हुई और वह असहजता से इधर-उधर नज़रें फेरने लगी। रिध्यान, अंशिका की असहजता से अनजान, पूछा, "आप कौन-सा परफ्यूम यूज़ करती हैं?" अंशिका हैरानी से बोली, "क्या...?" रिध्यान अपनी मासूमियत से बोला, "वो आपके अंदर बहुत अच्छी स्मेल आ रही थी और इसकी खुशबू मुझे अच्छी लगी, तो मैं आपसे इतनी देर तक गले लगा रहा...अब बताइए, कौन-सा परफ्यूम लगाती हैं?" अंशिका उसे सर्द निगाहों से देखते हुए बोली, "तुम्हें नहीं लगता, तुम आजकल कुछ ज़्यादा ही बोलने लगे हो?" रिध्यान मासूमियत से गर्दन हिलाते हुए बोला, "नहीं, बिल्कुल नहीं...मैं कब बोलता हूँ...मैं तो हमेशा चुप ही रहता हूँ और आपसे तो मुझे डर लगता है।" फिर खड़े होकर चारों तरफ घूमते हुए बोला, "वैसे आपका केबिन तो कितना खूबसूरत है! और सामने एक पेंटिंग को देखते हुए—यह पेंटिंग तो और भी खूबसूरत है।" अंशिका समझ रही थी कि उसने अपने आप को फँसता पाकर किस तरह आसानी से बात बदल दी, लेकिन वह तो उसकी हर हरकत से अच्छी तरह वाकिफ थी, इसलिए वह उसे बेवकूफ़ नहीं बना सकती थी। इसलिए अभी के लिए उसने अपने आपको इन सब चीजों से बचाने के लिए कहा, "यह सब बातें बाद में करेंगे। अभी के लिए मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है और तुम्हें यह करना पड़ेगा।" रिध्यान, जिसे आज अंशिका ने कोई काम नहीं दिया था, खुशी से बोला, "आप मुझे काम करने के लिए कह रही हैं!" अंशिका के गर्दन हिलाकर हामी भर देने पर वह खुशी से उत्साहित होकर बोला, "बताइए, क्या काम करना है? आपके लिए तो कुछ भी..." अंशिका बोली, "थोड़ी देर में मारिया आ जाएगी, उसके बाद मैं तुम्हें डिटेल में बता दूँगी कि तुम्हें करना क्या है। तब तक के लिए इसी केबिन में बैठे रहो।" कुछ देर बाद... मारिया अभी तक नहीं आई थी और उसके इंतज़ार में अंशिका और रिध्यान आमने-सामने बैठे थे। जहाँ अंशिका लैपटॉप पर अपना काम करने में व्यस्त थी, वहीं रिध्यान उसके सामने बैठा, उसे ही देख रहा था। जिस तरह वह अंशिका को देख रहा था, उसका अहसास अंशिका को भी था, लेकिन उसने रिध्यान पर यह जाहिर नहीं होने दिया। कुछ देर बाद, रिध्यान के लगातार देखने से अंशिका चिढ़कर रिध्यान को घूरने लगी। इससे वह सकपकाकर उससे नज़रें हटाते हुए मन में सोचने लगा, "मेरी बीवी खूबसूरत है, इसमें कोई शक नहीं कि उस पर से नज़रें हटाना मुश्किल है, लेकिन अपने आप को कण्ट्रोल करो रिध्यान...इतने बेसब्र मत बनो कि तुम्हें वह गेहूँ की तरह पीस दे। जो ये प्यार भरे पलों के ख्वाब बुन रहे हो ना, इन ख्यालों का कचूमर बनने में देर नहीं लगाएगी, अगर उन्हें जरा सी भनक भी हुई।" वह इसी तरह अपनी सोच में गुम था, तभी गेट खटखटाने की आवाज़ आई। अंशिका बिना किसी भाव के बोली, "कमिन।" मारिया अंदर आते हुए बोली, "सॉरी मैम, थोड़ा लेट हो गया...मैंने सारी डिटेल इस फ़ाइल में डाल दी है और बाकी आपको मेल कर दी हैं।" इतना कहकर वह फ़ाइल टेबल पर रखकर चली जाती है। रिध्यान तो मुँह फाड़े उसके बोलने की स्पीड देख रहा था, जो आँधी की तरह आई और तूफ़ान की तरह चली गई। अंशिका तेज आवाज़ में बोली, "मि. प्रताप!" उसकी तेज आवाज़ से रिध्यान होश में आया। वह हड़बड़ाते हुए बोला, "हाँ..." अंशिका एक-एक शब्द चबाकर बोली, "काम की बात करें..." रिध्यान फिर बिना किसी डर के बोला, "अरे! करिए, किसने रोका है? और आपको रोकने की हिम्मत भला कौन कर सकता है? आपके पति होकर भी हम आपसे डरते हैं, तो भला और कौन आपके प्रकोप से बच सकता है? आप तो साक्षात काली हैं..." अब तक बेख़याली में बोल रहे रिध्यान को अपने ऊपर किसी की घूरती नज़रों का अहसास हुआ, तो और सारे शब्द उसके मुँह में ही रह गए। वह मन में रोते हुए सोचने लगा, "तुम आज बड़ा तीसमार खां समझ रहे हो खुद को...लगता है आज अंशिका जी हाथ से नहीं बचने वाले...तभी तो कुछ भी उटपटांग बोल रहे हैं।" वह किसी तरह बोला, "जी..." अंशिका उसे गुस्से से देखते हुए बोली, "तुम अब शांति से सुनो...कुछ दिनों पहले मैंने एक फ़ैसला लिया था, जिंदल कार्पोरेशन को इंटरनेशनल मार्केट में उतारने का। इसी सिलसिले में मैंने अमेरिका की एक कंपनी, वीट्स के साथ काम करने का फ़ैसला किया और तीन दिन बाद उसके साथ मीटिंग है। इस प्रोजेक्ट के लिए चार लोगों की टीम बनाई गई, जो पिछले दो महीनों से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। सारा डाटा ऑफ़िस के सॉफ्टवेयर सिस्टम में स्टोर था, लेकिन किसी ने उस प्रोजेक्ट की फ़ाइल चुराने के लिए ऑफ़िस के सॉफ्टवेयर सिस्टम को हैक करने की कोशिश की...जिससे सारा डाटा डिलीट हो गया, क्योंकि सॉफ्टवेयर को इस तरह बनाया गया है कि अगर कोई सिस्टम को हैक कर डाटा चुराने की कोशिश करे, तो डाटा उसके पास जाने की बजाय अपने आप डिलीट हो जाएगा। सारे डाटा की एक कॉपी हमेशा मेरे पास सुरक्षित रहती है, तो मुझे उन सब की टेंशन नहीं है, लेकिन लापरवाही की वजह से उन चारों ने एक कॉपी अपने पास नहीं रखी और सारा डाटा डिलीट।...तो क्या तुम इसमें हम सब की कुछ मदद कर सकते हो?" रिध्यान मासूम से चेहरे के साथ बोला, "इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?" अंशिका गहराई से बोली, "मेरे आस-पास रहने वाले हर इंसान का बायोडाटा मेरे पास रहता है। मुझे सब पता है तुम्हारे काम के बारे में...देखो, मैं तुम्हारी नियत पर शक नहीं कर रही, पर तुम्हारे बारे में कुछ-कुछ तो पता है और उसके हिसाब से तुम मेरा यह काम कर दो..." जारी है.......
अंशिका की बात सुनकर भी रिध्यान के चेहरे पर स्थिर भाव थे। उसके चेहरे को देखकर उसके दिल का हाल बता पाना मुश्किल था। अद्विका गौर से उसे देख रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर कुछ भी भाव नहीं थे। वह बस खामोश नज़रों से अंशिका की नज़रों में देखते हुए कुछ समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंशिका इतनी आसानी से समझ आ जाये, कोई फिल्म का सीन तो नहीं थी। बड़े-बड़े धुरंधर बिज़नेसमैन उसे समझ ना सके, तो वह तो फिर भी उसका भोला-सा मासूम पति था। लेकिन क्या वह सच में मासूम था या बनने की कोशिश कर रहा था, यह तो वक़्त ही बतायेगा। क्योंकि अंशिका की उस पर शक की शुरुआत तो हो चुकी थी। रिध्यान किसी तरह खुद को संयमित करते हुए बोला, "आपको कैसे पता कि मुझे हैकिंग आती है?" अंशिका शांति से बोली, "मैंने तीन-चार दिन पहले तुम्हारा लैपटॉप चेक किया।" यह बताते हुए वह तीन दिन पहले जो हुआ था, उसे सोचने लगी कि कैसे वह ज़रूरी फ़ाइल घर पर ही भूल गई थी और उसे ही लेने के लिए उसे जल्दबाजी में घर आना पड़ा। वह जब कमरे में आई, तो रिध्यान वाशरूम में था और उसका लैपटॉप खुला हुआ बिस्तर पर पड़ा था और उस पर कुछ डिटेल्स शो हो रही थीं, जिसे पढ़कर वह शॉक रह गई। लेकिन जैसे ही वह कुछ और देखती, तब तक रिध्यान वाशरूम से बाहर आ चुका था और अंशिका ने उसके सामने ऐसे किया जैसे वह अभी-अभी आई हो। लेकिन उसे अभी सब कुछ क्लियर करने के बारे में सोचा ताकि आगे चलकर उनके बीच कोई गलतफ़हमी ना आए। रिध्यान, जो बड़ा बेचैन था, वह शांत होकर बोला, "दरअसल, यह सब मैंने सीखा था। मैंने स्कॉलरशिप के बलबूते पर अमेरिका के स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से साइबर सिक्योरिटी में एमटेक किया है, तो मुझे हैकिंग की अच्छी नॉलेज है और यह बात तो माँ को भी पता है। इवन घर में सबको पता है। बस आपको नहीं पता क्योंकि..." अंशिका जो उसे मासूमियत से अपने पक्ष में सफ़ाई देता देख रही थी, बोलते वक़्त वह अजीबोगरीब मुँह बना रहा था और उसके हाथ सामान्य से ज़्यादा ही हिल-डुल रहे थे, लेकिन वह बहुत प्यारा और मासूम लग रहा था। उसकी वह भूरी आँखें टिमटिमाते हुए खूबसूरत लग रही थीं और अंशिका बस उसे एकटक देखते हुए अपनी रूह में उतरता महसूस कर रही थी। उसने उसके आगे की बातें मन ही मन पूरी कर लीं, क्योंकि मैंने कभी जानने की ही कोशिश नहीं की। लेकिन वह अंशिका थी... द ग्रेट बिज़नेस वूमन, जिसके सीने में किसी के लिए ऐसे ही तो सॉफ्ट कॉर्नर नहीं आ सकता है। देखते हैं रिध्यान की मासूमियत और प्यार भरे जुनून के आगे अंशिका का दिल कब तक कठोर रहता है। अंशिका को इस वक़्त इस बात को यहीं छोड़ना सही लगा। वैसे भी उसकी दिलचस्पी हमेशा से बातों को जल्दी खत्म करने में ही रहती थी। किसी बात को ज़्यादा लम्बा खींचना और फिर उस पर बहस करना अक्सर उसे समय की बर्बादी लगती थी। वह बातों का रुख मोड़ते हुए बोली, "हम्म... सही कह रहे हो तुम। फ़िलहाल इस बात पर हम फिर कभी डिस्कस करेंगे, अभी काम की बात कर लें।" उसके चेहरे पर गंभीरता भरे भाव देखकर वह भी गंभीरता से बोला, "जी, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?" अंशिका बोली, "तुम्हारे पास कुछ ऐसा है जिससे तुम वह फ़ाइल रिकवर कर पाओ, क्योंकि और डाटा की कॉपी हमारे पास है।" रिध्यान उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "आप जानती हैं आपके और मेरे स्टैंडर्ड में कितना फ़र्क है। आपके पास सब कुछ है और आप मेरी हर ख्वाहिश पूरी कर सकती हैं, लेकिन मेरी इतनी हैसियत नहीं है कि मैं आपकी हर इच्छा को पूरी करूँ। ऐसे में अगर मुझे मौका मिलता है कि मैं आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ, एंड आई प्रॉमिस, मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आपकी यह इच्छा पूरी कर पाऊँ और वैसे भी आपके सिवा कौन है मेरा इस दुनिया में... आप ही तो एकलौती वजह हैं जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। आपको खुश देखना ही मेरी लाइफ की एकमात्र खुशी है।" इतना सब कहते हुए उसकी आँखों में अंशिका को अपने लिए प्यार के सिवा कुछ नहीं दिख रहा था। सच में उसे पता था कि वह उससे लिमिटलेस प्यार करता है, लेकिन फिर भी उसने खुद को उससे दूर रखा... कभी भी वह उसकी बिना मर्ज़ी के उसे छूता तक ना था। इतना मर्यादित प्यार आज के ज़माने में मुश्किल से ही मिलता है, लेकिन फिर भी अंशिका ने उसे खुद से दूर रखा... हमेशा अपने गुस्से से उसे डराने की कोशिश की... क्योंकि जानती है वह... कि उससे जुड़कर उसे सिवा तकलीफ़ और दर्द के कुछ नहीं मिलने वाला। जिसके खुद के सीने में दर्द के सिवा कुछ नहीं, वह क्या किसी को प्यार दे सकती है? और अपने अनकहे एहसास वो हमेशा ही रिध्यान से छुपा कर रखना चाहती है, क्योंकि जानती है वह अगर गलती से भी उसके दर्द का एक कतरा भी उसके मासूम वजूद को छू गया तो उस मासूमियत को ज़माने से कहीं गुम होने में एक पल का वक़्त भी नहीं लगेगा। इन चार महीनों में वह उसके वजूद को उससे भी ज़्यादा समझने लगी और रिध्यान की मासूमियत को छीनकर वह कभी भी खुश नहीं रह पाएगी और फिर इससे दुबारा रिध्यान को ही तकलीफ़ होगी। आख़िर वह भी तो उससे प्यार करती है। सही में वह लोग बहुत खुशनसीब होते हैं जिन्हें किसी से प्यार का इज़हार करने का मौका मिलता है, फिर चाहे सामने वाला मना ही कर दे, लेकिन दिल में अफ़सोस नहीं रहता कि काश हमने कहा होता तो वह आज हमारे पास होता। लेकिन कभी सोचा है आपने कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने प्यार को अपने सीने में ही कहीं गहराइयों में दफ़न कर लेते हैं। ज़िम्मेदारियों, डर, मर्यादा, इज़्ज़त, दर्द के चलते उनका प्यार हमेशा के लिए अनकहा ही रह जाता है जिसकी कसक सीने में हमेशा महसूस होती हो और इस गिल्ट के साथ हमें हमेशा ज़िन्दगी बोझ लगती है और बस एक प्रश्न बचता है जिसका जवाब हम सारी ज़िन्दगी ढूंढ़ते रहते हैं कि काश हमने भी कहा होता कि हमें उनसे बेहद प्यार है। तो खुश हो जाइए और खुद को खुशनसीब समझिए कि आपको अपने प्यार को खुलकर ज़ाहिर करने का मौका मिला है, क्योंकि मैंने अक्सर मोहब्बत के कई किस्सों को बिना उजागर हुए ही बस अपना वजूद खोते देखा है। जारी है... तो मिलते हैं अगले भाग में... जल्द ही हमारी दुबारा मुलाक़ात होगी। आख़िर क्या है ऐसा राज जो अंशिका अपने प्यार को ज़ाहिर करने से डरती है? क्यों कर रही है वह रिध्यान को अपने से दूर रखने की कोशिश? सब सवालों के जवाब मिलेंगे आने वाले वक़्त में... तब तक के लिए अपनी कीमती वक़्त मेरी कहानी को देने के लिए आपका दिल से शुक्रिया।
रात के आठ बज चुके थे और रिध्यान अब भी लैपटॉप पर अपने हाथ चलाते जा रहा था । इस वक्त उसके चेहरे पर छायी वह गंभीरता उसे और भी मासुम और अट्रैक्टिव बना रही थी दोपहर से अब तक उसने लैपटाप स्क्रीन से नजरें तक ना हटायी थी ।
अपने स्वभाव के विपरित वह उसे कितनी ही बार लंच , काॅफी , चाय के लिए टोक चुकी थी लेकिन वह था कि थोड़ी देर और ...और इस चक्कर में रात हो चुकी थी । आज अंशिका खुद मजबूर हो चुकी थी । ख़ुदको रिध्यान के साथ ही कम्पेयर करने के लिए कि रिध्यान में काम को लेकर जो डेडिकेशन थे , वो तो शायद उसमें भी नहीं थे ।
उसकी नजरें लगातार रिध्यान के चेहरे को निहार रही थी क्योंकि उसे कभी यह मौका ही नहीं मिला रिध्यान के चलते....... .. जो हमेशा उसे निहारता रहता था और उसके सामने खुदका यूं रिध्यान की तरह रिध्यान को ही एकटक देखना .. उसे अपने किरदार के साथ नाइंसाफी सी लगती थी । लेकिन आज बात कुछ अलग थी .. रिध्यान का ध्यान कहीं और तो अंशिका का ध्यान रिध्यान पर था । आज वह उसे खुलकर निहार भी सकती थी ।
वह जो एकटक रिध्यान को ही देख रही थी । उसकी निगाहें उसको टकटकी लगाये देख रही थी कि काम करते रिध्यान की नजरें एकदम से ऊपर उठती हैं । वह अंशिका को अपनी तरफ देखते देख _ आगे पीछे देखने लगता हैं क्योंकि उसे विश्वास नहीं था कि अद्विका उसे निहार सकती हैं लेकिन जब अंशिका ने उसका ध्यान अपनी और देखा तो वह अब तक खुद को संभाल चुकी थी ।
वह संभलकर खड़े होते हुए - अब तुम्हें कुछ देर रेस्ट करना चाहिए ।
रिध्यान शांति से अपना ध्यान फिर लैपटॉप पर लगाते हुए - बस कुछ देर और ... फिर मुझे रेस्ट ही करना हैं ।
अंशिका , उसका ध्यान फिर लैपटॉप पर देख गंभीरता से - तुम्हें नहीं लगता हैं कि तुम अब हद से ज्यादा काम कर चुके हो और यह काम इतना भी जरूरी नहीं हैं तो पहले खुद पर ध्यान दो क्योंकि यहां आने की जल्दी में तुम अपना लंच स्कीप कर चुके हो और अब जब आठ बज गये हैं तब भी तुम्हें काम करना हैं ।
रिध्यान , जो उसे अपनी फिक्र करते पहली बार देख रहा था वो अ को एक टक देखते हुए - आप बातों को जयादा घूमाने की बजाय ... यह भी कह सकती हैं कि आपको , मेरी फिक्र हो रही हैं और रही बात इस काम कि .... तो अगर यह काम जरूरी ना होता तो द ग्रेट बिजनेस वूमन अंशिका
ने मुझे , ऑफिस ना बुलाया होता । वैसे आप पर इतना स्वीट नेचर सूट नहीं करता हैं और मेरे मामले में तो मुझे बस आपका रफ टफ नेचर ही सही लगता हैं । यह आपका स्वीट नेचर , मुझसे अब हजम ही नहीं होता । वह बस बोले जा रहा था ।उसे यह तक एहसास नहीं था कि वह बस मुंह में जो आ रहा था बीना सोचे समझे बोलने जा रहा था और
.......
अंशिका अपनी कठोर आवाज में - सही कहां तुमने , तो बताइए मि. रिध्यान , आपका काम कितना हो चुका हैं क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं कि मैं आपके आंसर का वेट करूं । मेरा एक एक मीनट , अरबों रूपयों का हैं ।
रिध्यान मासुमियत से - अरे ! आप तो फिर ऐसे बात करने लगी और आप अब मुझे डरा रही हैं । फिर अपनी कुर्सी से खड़ा होकर , हैरानी से खुले अपने मुंह पर हाथ रखते हुए - क्या सच्ची में आपके पास इतने पैसे हैं । क्या आप सच में एक मीनट में एक अरब से भी ज्यादा कमाती हैं । फिर अपनी अंगुलियों पर हिसाब करते हुए _ एक मीनट , मैं तो यह भी नहीं समझ पा रहा हूं कि कितने जीरों होते हैं । वैसे आप इतने पैसों का हिसाब कैसे रखती हैं । फिर अपना सिर झटकते हुए - यह सब छोड़िए , आप तो मुझे कुछ और बताइए ।
अंशिका तो बस हैरानी से उसके पल पल बदलते भाव देख रही थी और अब वह खुद हैरान थी कि हमेशा उससे डरने वाला रिध्यान किस तरह बेफिक्र होकर उससे बात कर रहा था इवन शिकायतें भी कर रहा था । वह इतनी जल्दी उसके साथ सहज हो रहा था जबकि वह तो उससे अच्छे से और नर्मी से बात भी नहीं कर पाती थी ।
और अभी वह मुंह फुलाते हुए अपने दोनों हाथ कमर पर रखे , उसे ही देख रहा था ।
अंशिका , उसे अपनी तरफ देखते देख अपनी भंवे उचकाती हैं ।
तो बस अब रिध्यान का नाॅनस्टाॅप बोलना शुरू हो गया था ।
- आप बहुत कंजूस हैं । आपके पास इतने पैसे हैं फिर भी ---
इतना बोलते ही वह रूक गया ।
अंशिका बस उसे हैरानी से देख रही थी जो उसके मुंह पर उसे कंजूस बोल रहा था ।
वह आगे बोला - आप सच में मुझे हमेशा परेशान करती हैं । आपसे एक आईसक्रीम ही तो दिलवाने के लिए कहां था मैंने लेकिन आपने वो भी मुझे नहीं दिलवायी _____मेरे पास पैसे नहीं थे तभी तो आपसे कहां था लेकिन नहीं --- आपको तो बस मुझे परेशान करना रहता हैं । अरे अपने लिए थोड़ी मांगी थी मां को पसंद थी और मैं बस उनको देना चाहता था लेकिन आपकी वजह से वो उदास हो गयी क्योंकि मैं उन्हें , उनकी पसंदीदा आईसक्रीम नहीं ला कर दे पाया । इसलिए मुझे आप पर गुस्सा भी आया लेकिन मैं तो आपसे गुस्सा भी नहीं हो सकता हूं ...... मुझे तो गुस्सा करना भी नहीं आता हैं । मुझे तो लगा कि आपके पास पैसे नहीं हैं लेकिन आप तो कंजूस हैं ..... अरे इतने पैसे हैं । वह लगातार बोले जा रहा था लेकिन
अंशिका तो कुछ और ही सोच में गुम थी - मेरे पास पैसे नहीं थे तभी तो आपसे कहां था ।
पहली बार अंशिका को खुद पर अफसोस हो रहा था । हमेशा से अपने गुस्से और गुरूर के चलते वह रिध्यान को हर्ट करती आयी थी । यह बात तो एक महिने पहले की थी । तब रिध्यान ने उससे जिद्द की थी । वह भी आईसक्रीम दिलवाने की ... लेकिन अपने गुस्से के चलते , उसने साफ इंकार कर दिया । किस तरह वह उदासी से अपनी आंखों में मोटे मोटे आंसु लिए कार में दुबक कर बैठा था ।
घर आते ही ,उसकी मां ने दरवाजा खोला था और रिध्यान - साॅरी बोलकर अपने कमरे में चला गया और रत्ना जी के चेहरे पर उदासी छा गयी थी । तब उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया लेकिन अब उसे समझ आ रहा था । उसके साॅरी और उदासी का कारण । कितने दिन तक उदास रहा था और उससे जीद्द करता था बाहर काम करने की । पूछने पर किस तरह कहां था उसने कि - उसे भी पैसे कमाने हैं ।
आज उसे समझ आ रहा था कि उसने गलती से ही सही लेकिन उस दिन रिध्यान को बहुत गहराई से हर्ट किया था ।
जारी हैं.....
अंशिका, रिध्यान के सामने बैठी, उसकी सारी शिकायतें सुन रही थी। आज पहली बार उसे अफ़सोस हुआ। उसने रिध्यान से शादी अपनी माँ के कहने पर की थी, बट कहीं हद तक वह खुद भी सही थी। वह कभी शादी करना ही नहीं चाहती थी क्योंकि वह अपने स्वभाव को शांत, चिंतनशील, और आत्मनिरीक्षण करने वाला मानती थी। वह हमेशा अपने भीतर के विचारों और भावनाओं में इतनी डूबी रहती थी कि बाहरी दुनिया से ज़्यादा जुड़ाव महसूस नहीं कर पाती थी। उसे भीड़-भाड़ या सामाजिक मेलजोल में अधिक समय बिताना थकाने वाला लगता था। इसके, उसके अपने कारण थे। इसलिए रत्ना जी को हमेशा डर लगता था कि वह रिध्यान की मासूमियत को नहीं संभाल पाएगी तो ______
वक्त के साथ पता चलेगा कि ऐसा क्या कारण था कि अंशिका हमेशा रिश्तों से नफ़रत करती आई थी। अंशिका हमेशा गहरी सोचने वाली और अपने गोल्स पर ध्यान केंद्रित करने वाली इंसान थी। उसे दूसरों के साथ साझा करने से पहले अपने विचारों और भावनाओं पर गंभीरता से विचार करना पसंद होता था।
वक्त के साथ यह सब उसकी आदतों में शामिल होता गया। आज उसने सक्सेस तो हासिल कर ली, लेकिन इन सब में वह अपने परिवार से बहुत दूर जा चुकी थी। अपनी मंज़िल पर चलते-चलते, उसका बहुत से लोगों से सामना हुआ। शायद दुनिया की सच्चाई ने उसे इस कदर तोड़ा कि वह आज भी किरचों में बिखरी हुई थी। वह नहीं चाहती थी कि उसका दर्द किसी के सामने उजागर हो। इसलिए उसकी हमेशा कोशिश रही कि रिध्यान उससे दूर रहे। लेकिन ऐसा क्या मुमकिन था? वह खुद धीरे-धीरे उसके मोहपाश में बँध रही थी। लेकिन इतनी आसानी से अंशिका जिंदल प्रताप अपनी भावनाओं को स्वीकार ले? ______ कयामत नहीं आ जाएगी।
चलो, यह बातें तो होती रहेंगी, लेकिन ______
अंशिका यही सब कुछ अपने मन में सोचने में गुम थी। वह नहीं समझ पा रही थी। उसे गिल्ट क्यों महसूस हो रहा था? लेकिन उसने अपने मन को समझा लिया कि ऐसा इसलिए क्योंकि रत्ना जी, उसकी वजह से उदास हुई हैं।
वहीं रिध्यान, अब मुँह फुलाते हुए बोला, "अब क्या, आप मेरी बात भी नहीं सुनेंगी?"
उसकी आवाज़ से अंशिका को होश आया और उसने सामने देखा। रिध्यान मासूमियत से अपना मुँह फुलाए खड़ा था। उसकी बड़ी, भोली आँखों में थोड़ी नाराज़गी और निराशा साफ़ दिख रही थी, जैसे वह अपनी सच्चाई बयाँ नहीं कर पा रहा हो। उसके गोल, गुलाबी गाल और हल्के से थुलथुलाए होंठ उसे और भी मासूम बना रहे थे, मानो कोई बच्चा अपनी बात न समझे जाने पर गुस्सा हो रहा हो। सामने अंशिका अपने एरोगेंट लुक के साथ बैठी थी। उसके चेहरे पर तेज़, आत्मविश्वास झलक रहा था। रिध्यान को लग रहा था कि वह उसकी मासूमियत को हल्के में ले रही है। रिध्यान को लग रहा था कि अंशिका की नज़रों में उसकी उन बेसिर-पैर की शिकायतों की कोई जगह नहीं है। वह अपनी मासूमियत के सहारे ही अपने पक्ष की रक्षा कर रहा था।
पहली बार अंशिका के चेहरे पर उसके उन फुले गालों को देखकर हल्की मुस्कान थिरकी। आज से पहले वह कभी रिध्यान की उस मासूमियत को देख ही नहीं पाई थी।
खैर, उसके होंठों पर थिरकी वह मुस्कराहट रिध्यान को किसी और ही जहाँ में ले गई। वह अपना गुस्सा, नाराज़गी, शिकायतें सब भूलकर उसकी उस मुस्कराहट में खो गया। उसे लग रहा था कि सामने बैठी, उसकी वह ख़डूस पत्नी, जो कि सिर्फ़ उसकी है। वह सच में मुस्कराते हुए स्वर्ग से उतरी अप्सरा लगती है।
रिध्यान अपने मन में सोच रहा था-
"माई डियर वाइफी, आज पहली बार आपके चेहरे पर यह छोटी सी मुस्कराहट देखी है मैंने। आपके चेहरे पर छाई छोटी सी मुस्कराहट इतनी हल्की है कि मानो वह अनजाने में हो गई हो। लेकिन आपकी इन आँखों में कठोरता अभी भी बनी हुई है। पर सच में आपके होंठ के एक कोने पर आई मुस्कान आपकी इस सख्त छवि को थोड़ी देर के लिए नरम बना रही है। आपका चेहरा अभी भी गंभीर है, लेकिन यह छोटी सी मुस्कराहट आपकी भावनाओं की परतों में छिपी हल्की सी नर्मी को उजागर कर रही है, जो शायद आप खुद भी नहीं देखना चाहती। पता नहीं वह दिन कब होगा जब आप खुलकर मुस्कुराएँगी। दिमाग कहता है कि आपके लिए समझदार बन जाऊँ और दिल कहता है कि वह प्यार ही क्या जो आपका किरदार और स्वभाव ही बदल दे। पहली बार लग रहा है कि आपके लिए समझदारी अपने आप आ जाती है। कभी-कभी तो खुद पर हैरानी होती है कि मैं इतना समझदार कब से बन गया।"
अंशिका फिर उसको अपनी तरह एकटक देखते देख झेंपते हुए खड़ी हो गई।
फिर वह खड़े होने के बाद अपनी सख्त आवाज़ में बोली, "मि. प्रताप, अगर आपकी सारी शिकायतें हो गई हों तो हम घर चल सकते हैं। ऑलरेडी, रात के 10 बजने वाले हैं। सारा ऑफिस बंद हो गया है और मैं नहीं चाहती कि माँ को मेरी वजह से कोई टेंशन हो।"
रिध्यान शिकायती लहजे में बोला, "आप कितनी आसानी से मेरे मासूम से दिल के मासूम से सपनों को तोड़ देती हैं। आज तो मैं पक्का माँ से आपकी शिकायत करूँगा और आपसे बात भी नहीं करूँगा।" इतना कहकर वह मुँह सिकोड़ते हुए अपनी नज़रें अंशिका से फेर लेता है।
अंशिका की जगह अगर कोई और होता तो अब तक उसकी मासूमियत पर पिघल गया होता, लेकिन अंशिका उसकी रग-रग से वाकिफ़ थी। इसलिए सख्ती से बोली, "अपना सामान समेटो। मुझमें अब ताक़त नहीं है तुमसे बहस करने की।"
रिध्यान बोला, "इसका मतलब? मैं हमेशा आपसे लड़ने के लिए तैयार रहता हूँ।"
अंशिका खीझते हुए बोली, "रिध्यान, मेरा मूड वैसे ही सही नहीं है और खराब मत करो।"
रिध्यान मुँह फुलाते हुए बोला, "आपका मतलब, मैं आपका मूड खराब करता हूँ?"
छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने वाली अंशिका का दिमाग अब उसके कंट्रोल के बाहर हो चुका था। वह गुस्से से बोली, "तुम कोई छोटे बच्चे नहीं हो जिससे हर बात समझानी पड़े और कितनी बार कहना पड़ेगा कि शांत रहो। कितनी देर से नॉनस्टॉप बोले जा रहे हो।"
अंशिका के गुस्से में तेज आवाज़ में बोलने से रिध्यान एक पल के लिए सहमत हो गया। उसका दिल गहरी उदासी और दर्द से भर आया। आज सच में उसकी आत्मा को ठेस पहुँची थी और उसका वह दर्द उसकी आँखों में मोटे-मोटे आँसुओं के रूप में उभर आया। वह ज़बरदस्ती अपने आँसुओं को अपनी शर्ट की आस्तीन से पोंछने लगा। उसका पूरा शरीर काँपने लगा और होंठों से बस एक शब्द निकला, "सॉरी..."
इतना बोलकर वह अंशिका के केबिन से बाहर निकल गया। बाहर ऑफिस में सन्नाटा छाया था। कोई भी ना होने के कारण आज उसकी स्थिति पर सवाल करने वाला कोई नहीं था।
उसके केबिन से बाहर जाते ही अंशिका अफ़सोस से अपने हाथों की मुट्ठी वहीं टेबल पर मार देती है। आज एक बार फिर उसने उसे हर्ट कर दिया।
अंशिका ने रिध्यान के बाहर जाते ही अपने दिल में एक भारीपन महसूस किया। वह खुद को दोषी समझने लगी। उसकी सख्त बातें, उसके दर्द को समझने में असफल हो गई थीं। क्या वह सच में इतनी कठोर हो गई थी कि रिध्यान की मासूमियत और उसकी भावनाओं को नजरअंदाज कर दिया?
"क्यों मैंने उसे और दुख दिया?" उसने अपने आप से सवाल किया। उसके मन में रिध्यान के लिए गिल्ट भर गया। वह खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि रिध्यान की मासूमियत उसे कमजोर बनाती है, लेकिन कहीं न कहीं, उसका दिल यह भी जानता था कि रिध्यान उसे सिर्फ उसके लिए प्यार करता है।
वह अपने कुर्सी पर बैठी रही, सोचते-सोचते। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरीं। उसे यह भी पता था कि रिध्यान उसके लिए कितना प्रयास करता है, फिर भी वह अपने आप को उसकी भावनाओं से दूर रख रही थी। लेकिन क्यों? क्या उसकी आत्मनिर्भरता उसे भावनाओं से दूर कर रही थी या बात कुछ और थी?
आज सभी घरवाले बाहर गए हुए थे, जिस कारण घर पर कोई नहीं था।
मेंशन आते ही वह सीधे अपने कमरे में चला गया। कुछ पल के लिए वह हर्ट जरूर हुआ था, लेकिन वह जानता था कि अंशिका की जिंदगी अकेलेपन से भरी थी जहाँ वह किसी का प्रवेश मात्र भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। ऐसे में वह उसके ऊपर चिल्ला उठती थी, लेकिन दिल यह नहीं समझना चाहता था। वह किसी तरह खुद को शांत करता है और अब उसका दिल सब कुछ भूलकर अंशिका के साथ बिताए लम्हों की यादों में उलझ गया था। उसके चेहरे पर छाई मुस्कुराहट उसे याद आ रही थी, लेकिन फिर अचानक उसकी तन्हाई उसे घेरने लगी।
"क्या मैं आपको सच में समझ पाऊंगा? क्या आप कभी मुझसे खुलकर बात करेगी?" उसने खुद से कहा।
वह अपने कमरे में जाकर दीवार पर टंगे फोटो फ्रेम को देखता है, जिसमें उनकी शादी की एक तस्वीर है। तस्वीर में अंशिका के चेहरे पर वह मुस्कान है, जो उसे हमेशा से मोहित करती थी।
रात के ग्यारह बज चुके थे, लेकिन अंशिका अब भी घर नहीं लौटी थी। वह अकेली एक पहाड़ी पर बैठी थी... वहाँ से उस जगमगाते शहर को देख रही थी... रात के अंधेरे ने पूरे आकाश को अपने आगोश में ले लिया था। ठंडी हवा उसके बालों को हल्के-हल्के उड़ा रही थी, और उसकी सांसों में ताजगी की महक घुली थी। नीचे, दूर-दूर तक फैला शहर रात की चुप्पी में जगमगा रहा था—हजारों बत्तियाँ टिमटिमा रही थीं, जैसे आसमान के तारे ज़मीन पर उतर आए हों।
शहर की रौशनी उसे किसी सपने जैसी लग रही थी, दूर से देखने पर सब कुछ शांत और खूबसूरत लग रहा था। लेकिन वह जानती थी, उन रौशनी के पीछे की भागदौड़ और संघर्ष को। यहाँ पहाड़ी पर बैठे हुए उसे हमेशा से एक अलग ही सुकून मिलता था, लेकिन आज इस शहर की शांति भी उसके बेचैन दिल को सुकून नहीं पहुँचा पा रही थी—वह उस भीड़ से दूर थी, जहाँ दिनभर शोर और हड़बड़ाहट रहती थी। अब, केवल वह थी, अंधेरा था, और शहर की टिमटिमाती रोशनी...और आज कुछ और भी था उसके साथ.... उसकी बेचैनी से धड़कती धड़कने...चारों तरफ शांति फैली थी, लेकिन उसके दिल में तो अलग ही तुफान हिलोरें मार रहा था।
उसकी आँखें कभी-कभी उन छोटे-छोटे घरों की ओर टिक जाती थीं, जहाँ लोग अपने जीवन की छोटी-छोटी कहानियाँ जी रहे होंगे। वह सोचने लगी, शायद कोई बच्चा अपनी माँ की गोद में सो रहा हो, या कोई अकेला इंसान खिड़की से बाहर इसी रौशनी को देख रहा हो, जैसे वह सुकून की तलाश में यहाँ शहर से दूर पहाड़ी पर बैठी, उन जगमगाती रौशनियों की बत्तियों को देख रही थी। उसे ऐसा लग रहा था मानो शहर की ये रौशनियाँ किसी अनकही कहानी का हिस्सा हों—हर एक बत्ती के पीछे एक अनजाना जीवन, एक अनसुनी कहानी, जैसे उसके सख्त किरदार के पीछे छिपी थी एक अनकही कहानी....जिस तक, आज तक कोई नहीं पहुँच पाया, लेकिन रिध्यान, शायद उन परतों को उकेरने की कोशिश में लगा था और यही थी उसकी चिढ़न की वजह.......
रात की ठंडक उसके चारों ओर गहराती जा रही थी, पर उस सन्नाटे में, उन नजारों में वह आज कुछ भी ऐसा महसूस नहीं कर पा रही थी जो उसे भीतर से गर्माहट दे सके......
उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उसके दिल में भी कोई दर्द की हलचल होगी, लेकिन आज कुछ बदला हुआ था। उसके सामने लगातार रिध्यान का मासूम और आँसुओं से भरा चेहरा आ रहा था—निराश और चुप, उसकी आँखों में ऐसा कुछ था जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था। पहली बार उसने महसूस किया कि उसने किसी का दिल तोड़ा है, और वह दिल वही था जो उसे बेशर्त प्यार करता था। इतनी भी बेवकूफ नहीं थी वह कि उन आँखों में अपने लिए निस्वार्थ प्रेम ना देख सके, लेकिन आज भी वह अपनी किस्मत से डरती थी...जिसने, उससे हमेशा सब कुछ छीना ही है।
लेकिन अपने आपको लाख बार समझाने के बावजूद भी उसके मन में अजीब सी हलचल हो रही थी। एक ठंडापन, जो हमेशा से उसकी पहचान थी, अब पिघलने लगा था। उसके कठोर शब्द और बेरुखी भरे व्यवहार ने रिध्यान के मासूम दिल को आज गहरी चोट पहुँचाई थी, और यह सोचकर उसकी आत्मा में कुछ चुभने लगा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे पछतावा होगा, लेकिन अब यह दर्द, जिसे वह नकार नहीं सकती थी, उसकी आँखों में आँसू बनकर उभरने लगा था, लेकिन सी इज हार्टलेस अंशिका जिंदल....जिसका ठंडा बर्ताव ही, उसकी पहचान थी। शायद बहुत वक्त लगेगा, जब वह यह सब कुछ दिल के साथ दिमाग से भी स्वीकारेगी।
वह अकेले बैठी, अपनी पुरानी बेरुखी को याद कर रही थी। कैसे वह उसके भोलेपन का मज़ाक उड़ाती थी, उसकी भावनाओं को नज़रअंदाज करती थी, और खुद को सही ठहराती थी। पर आज, जब उसने उसके चेहरे पर निराशा देखी, उसे समझ में आया कि उसने केवल उसका दिल ही नहीं तोड़ा, बल्कि उसकी मासूमियत और विश्वास को भी।
उसके मन में सवाल गूंजने लगे—क्या वह सचमुच ऐसी है? क्या उसने जानबूझकर उसकी कोमल भावनाओं को कुचल दिया? यह सवाल उसे अंदर से झकझोरने लगा, और उसकी कठोरता पिघलने लगी। अब वह उस दर्द को समझ रही थी, जो उसने कभी महसूस नहीं किया था, और उसे पहली बार खुद पर अफ़सोस हो रहा था और आज फिर इन सब से वशीभूत होकर उसने गलत फ़ैसला ले ही लिया, जो आगे पता चलेगा।
अंशिका ने अपने दिल में चल रहे तूफान को एक ठोस रूप दे दिया था। उसने तय कर लिया था कि वह रिध्यान से दूर रहने की कोशिश करेगी, ताकि उसके मासूम दिल को और चोट न पहुँचे। लेकिन क्या वह सच में ऐसा कर पाएगी? क्या वह अपने दिल की आवाज़ को अनसुना कर पाएगी? उसने अपनी आँखें बंद कीं और खुद से कहा, "यह सबसे सही फैसला है। अगर मैं रिध्यान को और दुखी करूँगी, तो यह और भी बुरा होगा।" लेकिन उसके मन में एक छिपी हुई आशंका थी। क्या वह सच में रिध्यान के बिना रह सकेगी?
रिध्यान अपने कमरे में अंशिका के साथ बिताए गए समय में उन लम्हों को याद करता रहा, जब अंशिका की मुस्कान ने उसके दिल को भर दिया था। लेकिन अब वह उसकी दूरी का सामना कर रहा था। उसकी तन्हाई और गहरी हो गई थी। उसे समझ में आ रहा था कि अंशिका के कठोर शब्दों के पीछे उसकी अपनी लड़ाई थी—एक ऐसी लड़ाई जो उसने कभी खुलकर नहीं बताई। शायद वह हर दिन अपने आप से ही लड़ती थी।
"क्या अंशिका सच में मुझसे दूर जाना चाहती है?" उसने खुद से सवाल किया। उसके मन में एक उलझन थी। एक ओर, उसे अंशिका की भावनाओं का सम्मान करना था, लेकिन दूसरी ओर, वह उसके प्यार को खोने के डर से भी भरा हुआ था। रिध्यान ने खुद को समझाया कि शायद अंशिका को अकेले रहने की ज़रूरत थी, लेकिन क्या वह इस स्थिति को संभालने के लिए तैयार था? शायद नहीं… लेकिन मासूम रिध्यान का दिल फिर टूटने वाला था।
अंशिका ने दरवाज़ा खोला और धीरे-धीरे घर में दाखिल हुई। रात की ठंडी हवा उसके चेहरे को छूते हुए उसके अंदर की बेचैनी को और बढ़ा रही थी। जैसे ही वह अपने कमरे की ओर बढ़ी, उसने देखा कि दरवाज़ा खुला था। वहाँ से आ रही हलकी-सी आवाज़ ने उसके कदमों को रोक दिया। वह हवा की वजह से खिड़की के टकराने की आवाज़ थी।
"क्या वह सो गया?" उसने खुद से पूछा।
अंशिका ने हल्के से दरवाज़ा खोला। अंदर उसने रिध्यान को सोते हुए देखा, उसकी आँखों में आँसू थे, जो अब सूख चुके थे। वह उसे देखकर भी खामोश रही। उसके भीतर कोई हलचल नहीं थी, सिर्फ एक ठंडी सोच थी कि उसे रिध्यान से दूर रहना है। उसने खुद को यह समझाने की कोशिश की कि यही सबसे सही फैसला है।
उसका दिल कुछ महसूस नहीं कर रहा था, बस एक ठंडापन था। जैसे रिध्यान की मासूमियत और दर्द उसके दिल पर कोई असर नहीं डाल रहे थे। वह जानती थी कि उसे अपने इरादे पर कायम रहना है। लेकिन फिर भी, वह खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि रिध्यान का दुख उसके लिए कोई मायने नहीं रखता।
"अगर मैं उसे और दुख पहुँचाऊँगी, तो यह और भी बुरा होगा।" उसने अपनी आँखें बंद कीं, अपने विचारों को नियंत्रित करने की कोशिश की। वह जानती थी कि रिध्यान की मासूमियत उसे कमज़ोर बनाती है, लेकिन वह अपनी भावनाओं को और भी नकारने की कोशिश कर रही थी।
अंशिका ने अपने दिल के भीतर जो भी ज़ज़्बात थे, उन्हें दबाने की कोशिश की। वह जानती थी कि यह निर्णय उसके लिए आसान नहीं है, लेकिन वह खुद को बार-बार याद दिला रही थी कि उसे रिध्यान से दूर रहना है। रिध्यान की मासूमियत, उसकी मुस्कान, सब कुछ उसके लिए एक तड़क-भड़क से कम था। उसकी आँखों में खामोशी थी, और उसके दिल में कोई हलचल नहीं। वह सिर्फ़ एक ही चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर रही थी—रिध्यान से दूर रहना।
अंशिका धीरे-धीरे कमरे के भीतर कदम रखती है, उसकी हर साँस अब भारी हो चली थी। रिध्यान का चेहरा देख, उसका दिल एक पल के लिए धड़क उठा, लेकिन उसने उसे तुरंत काबू में कर लिया। वह जानती थी कि उसकी एक झलक ही उसे कमज़ोर कर सकती है, और वह अपने इस निर्णय से पीछे हट सकती है। लेकिन उसने खुद से वादा किया था—रिध्यान के लिए वह अब सिर्फ़ एक अजनबी बनेगी।
रिध्यान सोते हुए भी बेचैन लग रहा था। उसके चेहरे पर जो मासूमियत थी, वही मासूमियत जो कभी अंशिका को उसकी ओर खींचती थी, अब अंशिका के लिए एक मुश्किल का कारण बन गई थी। अंशिका जानती थी कि रिध्यान का दिल टूट रहा था, और उसका भी। लेकिन वह मान चुकी थी कि इस दूरी में ही उनकी भलाई है।
अंशिका ने कमरे में एक अंतिम नज़र डाली, फिर धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया। वह जानती थी कि हर पल रिध्यान से दूर होना उसके लिए एक चुनौती थी, पर वह इस कठिनाई का सामना करने के लिए खुद को मजबूर कर रही थी। वह खुद को यह यकीन दिलाना चाहती थी कि रिध्यान के बिना वह अपनी ज़िन्दगी बना सकती है।
जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया, उसकी आँखों में कुछ चमकता हुआ महसूस हुआ—आँसू, जो उसने अब तक रोक रखे थे। पर वह अपने आँसुओं को बहने नहीं देना चाहती थी। उसने खुद को शांत किया, और बिस्तर पर बैठकर गहरी साँस ली। "यह सही है," उसने फिर से खुद को कहा, "मुझे यह करना ही होगा, अपने और उसके भले के लिए।"
लेकिन कहीं गहरे में, अंशिका जानती थी कि उसके इस फैसले ने उसके दिल को बेजान कर दिया है। रिध्यान की यादें उसे चैन नहीं लेने देंगी, पर वह इस दर्द को अपने अंदर दबाए रहेगी, क्योंकि यही उसने चुना था।
अंशिका बिस्तर पर लेट गई, पर नींद उससे कोसों दूर थी। हर बार जब वह अपनी आँखें बंद करती, रिध्यान का चेहरा उसकी आँखों के सामने तैरने लगता। उसकी मुस्कुराहट, उसके मासूम सवाल, सब कुछ जैसे उसकी आत्मा में गूँजने लगा था। वह खुद को समझाने की कोशिश करती, "मैंने सही किया। यह हमारे लिए बेहतर है।" लेकिन उसके दिल के किसी कोने में वह जानती थी कि वह खुद को धोखा दे रही थी।
रात की खामोशी उसके भीतर की बेचैनी को और बढ़ा रही थी। बाहर हवा के झोंके से खिड़कियाँ टकरा रहीं थीं, लेकिन अंशिका का मन इन आवाज़ों से कहीं और उलझा हुआ था। उसकी आँखों के कोनों में फिर से आँसू चमकने लगे, जिन्हें उसने ज़बरदस्ती रोक रखा था। उसकी हर साँस अब उसे भारी लग रही थी, जैसे उसकी आत्मा पर एक बोझ हो।
रिध्यान के साथ बिताए गए वो छोटे-छोटे पल, उसकी बातें, उसकी मासूमियत अब उसे तड़पा रहे थे। वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उन यादों से दूर भागे। उसका मन उसे बार-बार उस पल में ले जाता, जब उसने रिध्यान से दूरी बनाने का फैसला किया था। क्या वह सही थी? क्या इस दर्द से बचने का यही एकमात्र रास्ता था?
किसी तरह अपने जज्बातों पर काबू कर, वह अंदर आकर वाशरूम में चेंज करने चली गई। कुछ देर बाद वह बाहर आकर, बेड पर ही रिध्यान के बगल में लेट गई।
पर कहते हैं ना, दिल बेचैन हो तो दिमाग कहाँ शांत रहता है, और दिमाग ही शांत ना हो तो नींद कैसे आ सकती है? और बस इसलिए, लाख कोशिश के बाद भी वह सिर्फ़ करवटें बदलती रही, लेकिन नींद एक पल के लिए भी उसकी पलकों को बोझिल करने में समर्थ नहीं हो पाई। अंत में वह झुंझलाकर उठ गई। लेकिन रिध्यान पर नज़र पड़ते ही... उसका वह झुंझलाया हुआ चेहरा धीरे-धीरे शांत पड़ गया।
उस चांदनी रात में हल्की रोशनी कमरे के भीतर छलक रही थी। जब अंशिका की नज़र रिध्यान के मासूम चेहरे पर पड़ी, तो वह ठिठक सी गई। चांद की शीतल रोशनी उसकी निर्दोष मुस्कान पर पड़ रही थी, मानो रात ने अपने दामन में उसकी मासूमियत को संजो रखा हो। रिध्यान की आँखें बंद थीं, पर उसके चेहरे की शांत और कोमल भावनाएँ जैसे हर बात कह रही थीं। उसकी साँसें धीमी थीं, और चेहरा इतनी सरलता से झलक रहा था कि जैसे वह किसी गहरी नींद में कोई सुखद सपना देख रहा हो।
उसके बाल हल्के से बिखरे हुए थे, और होंठों पर एक अजीब-सी मासूमियत थी जो अंशिका के दिल को छू रही थी। वह खुद को उस पल से हटाना चाहती थी, लेकिन उस मासूम चेहरे पर इतनी सुकून और प्यारी सी सरलता थी कि उसका मन वहाँ से हटने को तैयार नहीं था। हर साँस जैसे एक मधुर धुन सी उसकी आत्मा को छू रही थी।
रिध्यान के मासूम चेहरे पर बसी उस निश्चलता में अंशिका को अपना दिल अनायास ही अलग ही लय में धड़कते महसूस हुआ। वह समझ नहीं पा रही थी कि इस मासूमियत को कैसे नज़रअंदाज़ करे। उसने धीरे-से उसके माथे को छुआ और मन ही मन उसकी खुशियों की दुआ की। पल भर में जैसे उसे एहसास हुआ कि ये दूरियाँ चाहे जितनी भी बना लें, रिध्यान के दिल की मासूमियत हमेशा उसे इस तरह बुलाती रहेगी, और शायद इस प्यार से खुद को बचाना अब उसके लिए और भी मुश्किल हो गया था।
रात के अंतिम पहर में, रिध्यान को देखते हुए न जाने कब अंशिका नींद के आगोश में समा गई थी। उसकी साँसें अब गहरी और शांत थीं, जैसे मन का सारा उथल-पुथल थम चुका हो। कमरे में चारों ओर खामोशी का राज था, केवल उसकी और रिध्यान की धीमी-धीमी साँसों की आवाज़ें उस मौन में गूंज रही थीं।
सुबह का सूरज अपनी लालिमा बिखेर चुका था। कमरे में बिखरी हल्की सुनहरी रोशनी पर्दों से छनकर भीतर आ रही थी। इस नर्म उजाले ने धीरे-धीरे कमरे के ठंडेपन को अपने आँचल में भर लिया। तभी रिध्यान की पलकों पर हल्की-सी धूप की रेखा पड़ी, जिसने उसकी नींद में खलल डाला।
वह धीरे-धीरे आँखें मलते हुए उठा और उसकी नज़र सामने अंशिका पर पड़ी, जो अभी भी गहरी नींद में थी। सुबह की ताजगी में अंशिका का चेहरा और भी मासूम दिख रहा था। उसके बाल थोड़े से बिखरे थे, लेकिन चेहरे पर शांति और सुकून की एक चमक थी। रिध्यान की निगाहें उस पर थम गईं; वह देखता रहा, जैसे यह पल कैद कर लेना चाहता हो। उसकी आँखों में हल्की मुस्कान उभर आई, और उसने महसूस किया कि सुबह की यह पहली नज़र सबसे प्यारी थी—अंशिका की मासूमियत से भरी हुई।
रिध्यान बहुत देर तक अंशिका को निहारते हुए खुद से बातें करता रहा। उसकी आँखों में एक खास चमक थी, और चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कान। अंशिका के मासूम चेहरे को देखते हुए, उसने मानो अपने सारे दर्द और शिकवे भुला दिए थे। उसके मन के किसी कोने में, ऑफिस में अंशिका के कठोर बर्ताव की खटास तो थी, लेकिन इस शांत सुबह में उसे जैसे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह हर छोटी-छोटी बात को, हर गुज़रे लम्हे को याद करते हुए मुस्कुराता, कभी हल्की-सी हँसी निकालता, और कभी खुद से ही अजीबो-गरीब चेहरे बनाता।
उसकी आँखों की कोमलता और चेहरे की मुस्कान में अजीब-सी मिठास थी, जैसे वह उस प्यारे पल को हमेशा के लिए अपनी यादों में बसा लेना चाहता हो। कभी वह अपनी भौहें चढ़ाकर अंशिका को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में देखता, तो कभी उसका मासूम चेहरा देखकर धीमी मुस्कान बिखेरता। उसने अनजाने में ही अपनी नाराज़गी और दुःख को अपनी आत्मा के किसी कोने में छुपा दिया था, मानो ये प्यारे पल उसकी सारी शिकायतों का जवाब हों।
रिध्यान ने धीरे-धीरे अपना सिर तकिये पर टिका लिया और खुद से अंशिका के बारे में बातें करने लगा। उसकी आवाज़ में प्यार की एक गहरी मिठास थी, मानो वह उसे सुन सकती हो। उसने फुसफुसाते हुए कहा, "पता है, अंशिका, आप जितनी भी कठोर बनने की कोशिश करें, आपकी आँखें आपके दिल का सच बता देती हैं। मैं जानता हूँ कि आपके दिल में मेरे लिए प्यार है। बस, आपने उसे छिपा रखा है—क्योंकि शायद आपको डर है कि कहीं ये एहसास आपको कमज़ोर न बना दे।"
वह उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराया और बोला, "आपकी वो छोटी-सी मुस्कान, जो आप खुद पर काबू करने के बाद भी नहीं रोक पातीं… वही तो मुझे सबसे प्यारी लगती है। जैसे सब कुछ थम जाता है, बस आपकी वो हल्की मुस्कान ही रह जाती है।" उसकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास घुली हुई थी। रिध्यान, आज अंशिका को सुकून से सोते देख उससे अपनी भावनाएँ कह रहा था। शायद ही वह कभी खुलकर उससे अपने प्यार का इज़हार कर पाए।
अंशिका की आँखें हमेशा ही उसे डर का अहसास करा देती थीं, क्योंकि उसने तो हमेशा से रिध्यान की भावनाओं को ठुकराया ही था।
वह बुदबुदाया, "आप जितनी भी दूर जाओ, अंशिका, मैं जानता हूँ कि आप मुझसे कभी दूर नहीं हो सकतीं। आपकी वो आँखें, आपके वो अनकहे शब्द… सब कुछ कह देते हैं, बस आप मान नहीं पातीं।" उसकी आँखों में हल्की-सी नमी आ गई, लेकिन चेहरे पर वही प्यारी मुस्कान थी, मानो उसे अपनी बातों पर पूरा यकीन हो।
वह आगे बोला, "मैं हमेशा से सोचता हूँ कि जब मुँह पर इनकार लेकर, आप मेरी इतनी फ़िक्र करती हैं। चाहे आप जताएँ ना, सच में उस दिन तो क़यामत होगी जब आपके होठों पर इकरार होगा।"
रिध्यान, खुद से ही अंशिका के बारे में बातें करते हुए, पूरी तरह खो सा गया था। उसकी आवाज़ में एक अनकही मिठास और दिल में हलचल थी। उसने धीरे-से कहा, "अंशिका, आप जानती भी हैं, आपके बिना इस घर की दीवारें कितनी सूनी लगती हैं? आपकी हँसी की खनक हर कोने को रोशन कर देती है। और वो आपकी बातें… जैसे हर शब्द में कोई नया रंग होता है। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ, ऐसा तो मुझे माँ ने बताया, आपके लिए कि बचपन में आप कितनी शरारती थीं, तो फिर आप अब ऐसी कैसे बन गईं?
जानता हूँ कि आपके दिल में गहरा दर्द है, लेकिन आप मुझसे भी बाँटने की कोशिश नहीं करती हैं। मैंने तो आपका वह शरारत भरा और मुस्कराहट से भरपूर, सुकून भरा चेहरा कभी देखा नहीं, पर माँ कहती हैं जब आप मुस्कराती थीं तो सारा घर मुस्करा उठता था, तो फिर आप अब क्यों नहीं मुस्कराती हैं? शायद कभी, मैं भी आपका यह मोहक रूप देख पाऊँ। आप न जाने क्यों मुझसे दूर रहने की कोशिश करती हैं, पर आपकी हर बात में मैं सिर्फ़ अपने लिए ही प्यार देखता हूँ।"
वह हल्के से मुस्कुराते हुए बुदबुदाया, "आपका वो चुपचाप मुझे देखना, और फिर नज़रें झुका लेना… मैं जानता हूँ कि इसमें भी कितना प्यार है, भले ही आप खुद इसे मानने से इनकार करें। और वो आपकी खामोशी से मेरी बातों को सुनना, मेरी ख्वाहिशों को अपना लेना… अंशिका, आप जो भी कहें, आपके दिल का सच मुझसे छुपा नहीं है।"
उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी, जैसे अंशिका का हर लम्हा उसके सामने तैर रहा हो। उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "आप जितना मुझसे दूर भागने की कोशिश करती हैं, अंशिका, मैं उतना ही आपके करीब आता हूँ। आप मेरे लिए सिर्फ़ एक नाम नहीं, एक एहसास हैं। आपसे बात करना, आपको देखना, ये सब मेरे लिए ज़िन्दगी का सबसे प्यारा हिस्सा बन गया है। आपके बिना ये ज़िन्दगी जैसे अधूरी-सी लगती है।"
वह फिर मुस्कुराते हुए धीरे से कहने लगा, "अंशिका, एक दिन आप खुद इस बात को मानेंगी कि आपके इस दिल में मेरे लिए जगह है। बस, मैं उस दिन का इंतज़ार करूँगा।"
वह फिर मुस्कुराते हुए धीरे से कहने लगा, "अंशिका, एक दिन आप खुद इस बात को मानेंगी कि आपके इस दिल में मेरे लिए जगह है। बस, मैं उस दिन का इंतज़ार करूँगा।"
रिध्यान की नज़र जैसे ही घड़ी पर पड़ी, उसने देखा कि सात बज चुके थे। उसे याद आया कि अब अंशिका भी कभी भी उठ सकती है। यह सोचकर वह तुरंत वॉशरूम की तरफ भागा ताकि उसके उठने से पहले तैयार हो सके।
उधर, अंशिका की आँख खुली तो उसने वॉशरूम से आती पानी की आवाज़ सुनी। उसे समझ आ गया कि रिध्यान अंदर है। उसने बिना कुछ कहे, धीरे से बिस्तर छोड़ा और सीधे जिम रूम में चली गई।
जिम रूम में पहुँचकर अंशिका ने ट्रेडमिल चालू किया और उस पर दौड़ने लगी। उसके कदमों में एक अजीब सी तेज़ी थी, मानो वह खुद को उन उलझनों से दूर करना चाहती हो। हर कदम के साथ उसे थोड़ी राहत महसूस हो रही थी, जैसे वह अपनी भावनाओं से भाग रही हो। पर बीच-बीच में उसका ध्यान रिध्यान की तरफ जा रहा था, भले ही वह खुद को उससे दूर रखने की पूरी कोशिश कर रही थी।
अंशिका को आज पहली बार सुकून नहीं मिल रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह बार-बार अपने आपको अपने ही फ़ैसले से डगमगाते हुए महसूस कर रही हो।
अभी तो उसे इस बात का भी डर था कि जब वह रिध्यान से इस बारे में बात करेगी तो उसके ऊपर इसका किस तरह का प्रभाव पड़ेगा। बहुत मुश्किल से वह अपने मन को शांत रखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार-बार कुछ न कुछ उसके दिमाग में घर कर रहा था।
ट्रेडमिल की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी, लेकिन उसकी भावनाएँ लगातार उलझती जा रही थीं और अंत में उसने ट्रेडमिल बंद कर दिया। गुस्से से खीझते हुए अपने सिर को पकड़कर वहीं बैठ गई।
"आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? इतना बदलाव, ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं बदलने लगी हूँ? ऐसा क्या है जो मुझे हर बार, उसके साथ ग़लत करने या उसकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे, ऐसे फ़ैसले लेने से रोकता है? अंशिका जिंदल ने आज तक अपने फ़ैसले नहीं बदले, लेकिन उसके वजूद के सामने मुझे, मेरा हर फ़ैसला डगमगाता हुआ क्यों लगता है? ऐसा क्या है जो मुझे, उसके लिए इतना बुरा लग रहा है? बड़ी से बड़ी बिज़नेस डील्स, मैंने बिना किसी कॉम्प्लिकेशन के सॉल्व कीं। आज तक कभी बुरा नहीं लगा, इवन तब भी नहीं जब मैंने बहुत से लोगों की बर्बादी लिखी हो, पर आज जो महसूस हो रहा है, ऐसा कभी फ़ील नहीं हुआ। तो फिर आज सब कुछ उलझा हुआ क्यों लग रहा है?" अंत तक आते-आते उसके चेहरे पर उलझन और बढ़ गई थी।
अचानक उसका फ़ोन घनघना उठा, जिससे उसकी सारी उलझी हुई सोच टूट गई और ध्यान फ़ोन की ओर चला गया। उसने फ़ोन उठाकर स्क्रीन पर नज़र डाली—यह एक अनजान नंबर था। कुछ पल वह बस स्क्रीन को देखती रही, मन में थोड़ी उलझन और थोड़ी झुंझलाहट के साथ।
"कौन हो सकता है इतनी सुबह?" उसने बुदबुदाते हुए फ़ोन रिसीव किया। दूसरी ओर से एक धीमी और सौम्य आवाज़ आई, जिसने उसकी भावनाओं को थोड़ी राहत दी।
यह उसकी सेक्रेटरी मारिया थी। उधर से आवाज़ आई—"गुड मार्निंग मैम, एक्चुअली मेरा फ़ोन ख़राब हो गया इसलिए माँ के फ़ोन से कॉल करना पड़ा—आपकी नौ बजे मि. माथुर के साथ होटल रियाज़ में मीटिंग है और इसकी फ़ाइल आपके पास ही है तो आप सीधे वहीं आ जाइएगा।"
"हम्म," इतना कहकर अंशिका ने, मारिया की आवाज़ सुने बिना, कॉल कट कर दिया।
मारिया का मुँह बन गया था। वह गुस्से से—ख़डूस।
इधर, अंशिका का ध्यान मीटिंग पर चला गया था और वह शाम से लेकर सुबह तक की सभी बातों को भूलकर फ़्रेश होने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फ़्रेश होकर रिध्यान नहा-धोकर नीचे आ गया। सीढ़ियों से उतरते हुए उसके चेहरे पर हल्की-सी प्यारी मुस्कराहट झलक रही थी। जैसे ही उसने हॉल में कदम रखा, उसकी नज़र रत्ना जी, मनोज जी और नमिता पर पड़ी, जो आपस में मुस्कुराते हुए चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। इस नज़ारे ने रिध्यान के चेहरे पर एक अनोखा सुकून ला दिया।
रिध्यान सबको मुस्कुराते देख खुद चहकते हुए हल्के से चिल्लाया, "माँ, आई मिस यू सो मच!"
रत्ना जी ने उसकी आवाज़ सुनकर खुशी से चाय का कप टेबल पर रखा और मुस्कुराते हुए बोलीं, "आज कुछ ज़्यादा ही नहीं चहक रहे हो बेटा।"
मनोज जी भी मुस्कुराए और बोले, "लगता है ये खुशी, अंशी के साथ रहने से है।"
नमिता जी ने हल्के से हँसते हुए मनोज जी की बात में जोड़ते हुए कहा, "आप भी ना मनोज जी, हमारे रिध्यान की खुशी का अकेला कारण तो बस अंशिका ही हो सकती है।" फिर रिध्यान की ओर देखकर बोलीं, "लगता है इस बार कुछ बात तो बनी है।"
रिध्यान ने उनकी बात सुनकर मुँह सिकोड़ लिया और पास में बैठकर अपने हाथ नमिता जी के कंधों पर रखते हुए बोला, "बात कहाँ बनी छोटी माँ! आपकी बेटी तो मुँह से अंगारे बरसाती है। वह बात बिगाड़ सकती है, बनाना तो उसके बस की बात नहीं है।"
रत्ना जी ने उसकी इस तरह की बात पर थोड़ा हँसते हुए कहा, "लगता है फिर से उसने तुम्हें डाँट दिया। पर इस बार तो उसने खुद तुम्हें बुलाया था, फिर क्यों?"
रिध्यान ने सिर झुकाते हुए थोड़ा मुस्कुराकर कहा, "अरे माँ, अंशिका के बुलाने का मतलब ये थोड़ी कि वो बात अच्छे से करेगी। उसके लिए तो बस डाँटने का एक और बहाना मिल गया।"
रिध्यान की बातों से सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। रत्ना जी ने प्यार से उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, तुम उसकी बातों को क्यों इतना दिल पर लेते हो? हो सकता है कि उसके गुस्से में भी तुम्हारे लिए फ़िक्र छिपी हो। हर कोई प्यार का इज़हार एक ही तरीके से तो नहीं करता।"
रिध्यान मुस्कुराते हुए बोला, "माँ, प्यार का इज़हार ना करना तो समझ में आता है, लेकिन गुस्से का इज़हार इतने ठाठ से करना तो बस अंशिका ही जानती है। उसकी हर बात में जैसे एक चुनौती छिपी होती है कि मैं हिम्मत करूँ और उसे समझ पाऊँ।"
मनोज जी ने हँसते हुए चुटकी ली, "बेटा, लगता है ये चैलेंज तुम बड़े दिल से ले रहे हो। आखिर तुम्हें भी तो अपने मिजाज़ के हिसाब से कोई मिली है। वैसे सच कहूँ तो एक अंशिका ही है जो तुम्हारी हर बात का जवाब कड़क अंदाज़ में देती है। बाकी तो सब तुम्हारे जैसे सीधे-साधे नहीं हैं।"
रिध्यान ने हँसते हुए जवाब दिया, "सीधे-साधे! अरे पापा, आप इसे सीधे-साधे कह रहे हैं? अंशिका की हर बात में इतनी उलझन होती है कि मुझे समझ ही नहीं आता, वो क्या चाहती है। और सच कहूँ तो, इस उलझन में फँसे रहना भी अब मुझे अच्छा लगने लगा है।"
नमिता जी ने हल्के से हँसते हुए कहा, "देखा रत्ना दीदी, बेटा इशारों में सब मान गया। वैसे रिध्यान, अंशिका तुम्हें पसंद करती है, बस शायद उसे यह एहसास करने में वक़्त लगेगा।"
रिध्यान ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "छोटी माँ, शायद आप सही कह रही हैं। उसके ठंडे और कठोर रवैये के पीछे भी कहीं न कहीं मेरी परवाह है। कभी-कभी मुझे लगता है, वो खुद से ही लड़ रही है और शायद इसी वजह से मुझसे दूर भागने की कोशिश करती है।"
रत्ना जी ने प्यार से कहा, "बेटा, हर इंसान को वक़्त लगता है अपने जज़्बातों को समझने में। तुम्हें भी सब्र रखना होगा। हो सकता है, एक दिन वो खुद अपनी भावनाओं को स्वीकार कर ले।"
रिध्यान ने मुस्कुराते हुए कहा, "माँ, मैं सब्र कर रहा हूँ। बस दिल में एक उम्मीद है कि वो एक दिन मान जाएगी। इसी उम्मीद के साथ तो हर दिन खुद को हिम्मत देनी पड़ती है। पर भगवान ना करे कि जब तक उनको एहसास हो तब तक यह दिल बेजान हो जाए। कभी-कभी उनकी बातें बहुत उदास कर जाती हैं, लेकिन फिर भी मुस्कुराता रहता हूँ कि वो फिर गिल्ट में पड़ जाएगी। उनको लगता है कि वे चेहरा स्थिर रखेगी तो कोई उनके मन में क्या चल रहा है, यह समझ नहीं पाएगा, लेकिन मैं तो उनकी आँखें देखकर उनके दिल का हाल जान लेता हूँ। मुझे पता नहीं चलेगी उनके दिल की उलझन। सच में वो मुझे मासूम समझती है, लेकिन उनके मामले में शायद मेरी मासूमियत, समझदारी में बदल जाती है।" बोलते-बोलते वह रत्ना जी की गोद में सिर रख चुका था और रत्ना जी प्यार से उसके बालों में हाथ फेर रही थीं।
जारी है......
रिध्यान की बातों में गहराई और सच्चाई दोनों थी। उसकी आँखों में एक अजीब सा दर्द था, और मुस्कान के पीछे छिपी उम्मीद। वह धीरे-धीरे रत्ना जी की गोद में सिर रखकर बोला, "माँ, बस यह उम्मीद ही तो है, जो मुझे हर दिन हिम्मत देती है। डरता हूँ कहीं ऐसा न हो कि जब तक उन्हें एहसास हो, तब तक मेरा दिल बेजान हो चुका हो। वो खुद को बहुत मज़बूत समझती हैं, सोचती हैं कि उनके चेहरे की स्थिरता से कोई उनके मन की उलझनों को नहीं समझ पाएगा। पर माँ, मैं उनकी आँखों में झाँककर सब जान लेता हूँ। शायद वो मुझे मासूम समझती हैं, पर उनके सामने मेरी यही मासूमियत समझदारी में बदल जाती है।"
रत्ना जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, प्यार और सब्र में यही ख़ासियत है कि ये हमें सहनशील बनाते हैं। देखना, तुम्हारा प्यार उसे मजबूर कर देगा एक दिन।"
रिध्यान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "माँ, मैं तो चाहता हूँ कि जिस दिन उन्हें एहसास हो, वो सच्ची खुशी महसूस करे, न कि किसी तरह का गिल्ट। मैं चाहता हूँ कि वो मुझे अपनाए, बिना किसी झिझक के, पूरे दिल से। उस वक़्त उनके मन में कोई उलझन या फिर डर बिल्कुल न हो।"
रत्ना जी के चेहरे पर भी एक सुकून भरी मुस्कान थी। उन्होंने रिध्यान को दिलासा देते हुए कहा, "बेटा, सच्चा प्यार कभी भी किसी को मजबूर नहीं करता। यह केवल इंतज़ार करना जानता है और सही वक़्त पर खुद ही अपनी मंज़िल तक पहुँच जाता है। तुम भी बस यही यकीन बनाए रखो।"
मनोज जी, जो अब तक दोनों की बातें सुन रहे थे, ने मुस्कुराते हुए कहा, "रिध्यान, याद रख बेटा, इस तरह के रिश्तों में धैर्य की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। और जहाँ तक मैं अंशिका को जानता हूँ, उसके दिल में कोमलता है। बस, उसे अपनी ही उलझनों में उलझने की आदत है।"
नमिता जी ने भी हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "और हाँ, रिध्यान, अंशिका जितनी सख़्त बाहर से नज़र आती है, अंदर से वो उतनी ही नरम और प्यारी है। थोड़ा वक़्त दे उसे। मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन वो खुद ही तेरी भावनाओं को समझ जाएगी।"
रिध्यान ने सबकी बातों को ध्यान से सुना और फिर एक बार सभी की तरफ़ देखते हुए बोला, "आप सब मेरे लिए कितना सोचते हैं, मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानता हूँ कि मुझे ऐसा परिवार मिला है।"
रत्ना जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "और हम भी खुद को बहुत खुशनसीब समझते हैं कि हमें इतना प्यार, स्वीट और मासूम दामाद, बेटे के रूप में मिला।"
रिध्यान कुछ याद करते हुए रत्ना जी की गोद से सिर उठाते हुए बोला, "ओह नो!"
रत्ना जी ने पूछा, "क्या हुआ बेटा?"
रिध्यान खड़े होते हुए बोला, "माँ, मैं तो भूल ही गया कि मुझे नाश्ता भी बनाना है अंशिका जी के लिए।" इतना कहकर वह बिना किसी की बात सुने किचन की तरफ़ चला गया।
रत्ना जी को तो ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा, लेकिन नमिता जी और मनोज जी मुँह फाड़कर हैरानी से रिध्यान को इतनी स्पीड में जाते देखते ही रह गए।
नमिता जी ने मुँह खोले हुए कहा, "यह क्या था?"
मनोज जी ने भी कहा, "इतनी जल्दी और इतनी एक्साइटेड तो औरतें भी नहीं होती हैं अपने पति के लिए खाना बनाते हुए।"
नमिता जी ने भी गर्दन हिलाते हुए कहा, "यह इतना चमत्कार कब हुआ? रिध्यान तो अंशिका के सामने जाने से भी डरता था।"
रत्ना जी अपना अखबार पढ़ते हुए बोलीं, "वही जब तुम दोनों मुझसे झूठ बोलकर बुढ़ापे में हनीमून मनाने पेरिस गए थे। वो भी एक महीने के लिए।"
उनकी बात सिर्फ़ मनोज जी ने ही सुनी थी। नमिता जी...
जैसे ही मनोज जी ने रत्ना जी की बात सुनी, उनकी चाय का घूँट गले में अटक गया। अचानक वो चाय का फव्वारा छोड़ बैठे और सीधा नमिता जी की साड़ी के पल्लू पर निशाना लग गया। नमिता जी का चेहरा पहले हैरानी और फिर गुस्से से लाल हो गया।
उन्होंने फ़ौरन साड़ी के पल्लू को उठाते हुए कहा, "अरे ये क्या कर दिया आपने, ये मेरी फ़ेवरेट साड़ी थी! आप चाय पी रहे थे या मेरे पल्लू को नहलाने की तैयारी में थे?"
मनोज जी खुद को संभालते हुए बोले, "अरे, वो भाभी ने कुछ ऐसा कहा कि चाय भी इमोशनल हो गई। खुद-ब-खुद छलक पड़ी!"
नमिता जी ने चिढ़कर कहा, "ओह! मतलब अब चाय भी आपके इमोशंस की गुलाम हो गई है? कभी आपने मुझे इतने प्यार से नहीं देखा जितना उस चाय को देख रहे थे! सुबह से चार कप चाय पी चुके हैं और अब मेरी साड़ी भी ख़राब कर दी।"
मनोज जी ने थोड़ी हिम्मत जुटाते हुए कहा, "अरे, वो क्या है न… मैं भी चाय के साथ इतना इमोशनल हो गया कि रोकना भूल गया।"
नमिता जी ने घूरते हुए जवाब दिया, "इमोशनल? चलिए, फिर अपनी इसी प्यारी चाय के साथ रहें। अब मैं जा रही हूँ!"
इतना कहकर वो पैर पटकते हुए जाने लगीं। लेकिन मनोज जी ने जल्दी से उनका हाथ पकड़ लिया और हँसते हुए बोले, "अरे साड़ी पर चाय गिर गई तो क्या हुआ? तुम्हारी ख़ूबसूरती पर कोई असर थोड़ी पड़ा है!"
नमिता जी ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, "मत फुसलाइए, समझे? जाइए, पहले रिध्यान से कुछ सीखिए। देखो, कैसे अपनी पत्नी के लिए मेहनत कर रहा है। आपके जैसे नहीं हैं!"
मनोज जी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा, "हाँ हाँ, पता है! पर जो भी हो, इतनी मेहनत करने वाले बेटे के ससुर हम ही हैं!"
इस पर नमिता जी ने उसे फिर से घूरते हुए कहा, "ससुर तो आप हो, लेकिन बेटा आपसे तो कई क़दम आगे है! आपने कभी एक कप चाय भी उबाली है मेरे लिए? यह सब छोड़िए, इतना बताइए कि कभी मेरे लिए एक गिलास पानी लाने के लिए भी किचन में घुसे हैं?"
मनोज जी ने जब देखा कि नमिता जी सच में नाराज़ हो गई हैं, तो उन्होंने बड़े प्यार से उन्हें मनाने की ठानी। वो धीरे-धीरे पास आए और हल्की मुस्कान के साथ बोले, "अरे, जानू! इतनी सी बात पर गुस्सा हो रही हो? ये देखो, मेरे प्यार से भरी चाय का एक ख़ास तोहफ़ा तुम्हारे पल्लू के लिए!"
नमिता जी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "हाँ, बड़ा प्यारा तोहफ़ा दिया है आपने! इसे गिफ़्ट समझूँ या हादसा?"
मनोज जी ने दिलासा देते हुए कहा, "अरे, हादसा-वाडसा कुछ नहीं, देखो, ये तो मेरी ओर से तुम्हारी साड़ी पर एक आर्टवर्क है। अब तो लोग पूछेंगे कि ये 'चाय-स्प्लैश डिज़ाइन' कहाँ से करवाया!"
नमिता जी ने घूरते हुए कहा, "वाह! अब आप इसको आर्ट कह रहे हो? ये बात किसी और को सुनाएँगे, तो हँसी का पिटारा ही खुल जाएगा!"
मनोज जी ने और मीठी बातों में फुसलाते हुए कहा, "सुनो ना, तुम जो भी पहनती हो, उसमें चार चाँद लग जाते हैं। ये साड़ी तो फिर भी मामूली चीज़ है।"
वह गिड़गिड़ाते हुए आगे बढ़े, "चलो, मैं तुम्हें बाहर ले चलता हूँ, इस चाय के दाग को भूल जाने के लिए।"
इतना सुनते ही रत्ना जी ने खांसते हुए कहा, "हे भगवान! क्या तुम दोनों कभी बड़े नहीं हो सकते? ये सब बातें ठीक हैं, लेकिन तुम मेरी उम्र का लिहाज भी तो कर सकते हो।"
मनोज जी और नमिता जी दोनों एक साथ सकपकाए। नमिता जी ने मनोज जी को घूरते हुए कहा, "अरे नहीं, भाभी, हम तो बस मस्ती कर रहे थे।"
मनोज जी ने हड़बड़ाते हुए कहा, "हाँ भाभी, बस थोड़ा हँसी-मज़ाक। और क्या? हमारी उम्र तो बढ़ती जा रही है, लेकिन प्यार तो हमेशा जवान रहता है।"
रत्ना जी ने चश्मा ठीक करते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "प्यार जवान है, लेकिन तुम्हारी बातें तो अब बचकानी लगने लगी हैं!"
नमिता जी ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "हाँ, भाभी, देखिए, मैं तो जवान हूँ, लेकिन इनका तो वेटेज बढ़ता जा रहा है।"
मनोज जी अब मस्त होकर बोले, "तो क्या हुआ? क्या मैं अब भी तुम्हारे लिए उतना ही प्यारा नहीं हूँ?"
रत्ना जी ने एक और खांसते हुए कहा, "तुम्हारा प्यार तो सही है, लेकिन कभी-कभी बड़ों की बातें भी सुन लिया करो।"
मनोज जी और नमिता जी अब गुस्से में नहीं, बल्कि हँसते हुए अपनी स्थिति को भाँपते हुए एक-दूसरे की ओर देख रहे थे।
इस बीच, रत्ना जी ने कहा, "तुम दोनों में से कोई तो चाय का कप ले लो, वरना इस कप का क्या होगा?"
सभी हँसने लगे।
जैसे ही रिध्यान ने किचन में कदम रखा, वहाँ खड़े सभी नौकर धीरे-धीरे सिर झुकाए हुए बाहर निकल गए, जैसे किसी बड़े शेफ की किचन में एंट्री हो गई हो। रिध्यान को यह देखकर हँसी आई, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए किचन का माहौल एकदम प्रोफेशनल बनाने का मन बना लिया।
सबसे पहले उसने अपना एप्रन पहना और बड़ी मासूमियत से अपने बालों को पीछे किया, ताकि कहीं से भी उसकी परफेक्शन में कोई कमी न रह जाए। उसने बड़े ध्यान से अपने हाथ धोए और फिर अपने इर्द-गिर्द पड़े मसालों को एक बार परखते हुए, एक शेफ के अंदाज में हल्के से सिर हिलाया, जैसे खुद को मन ही मन प्रोत्साहित कर रहा हो। "आज का दिन है कुछ खास।"
रिध्यान ने सबसे पहले एक फ्रेश सलाद बनाने का फैसला किया। बड़े नाजुक हाथों से सब्जियों को काटा, जैसे वह किसी कांच की मूर्ति को छू रहा हो। हर टमाटर, खीरे की स्लाइस एकदम परफेक्ट आकार में कटी हुई थी। उसने हर बार हल्का मुस्कराते हुए कटिंग बोर्ड की तरफ देखा, जैसे खुद से कह रहा हो। "वाह, रिध्यान, तुम सच में कमाल के शेफ हो।"
उसकी मासूमियत भरी मुस्कान और ध्यान से हर कदम पर एकदम प्रोफेशनल तरीके से काम करना, मानो वह किसी बड़ी रसोई प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहा हो, देखते ही बन रहा था। इसके बाद उसने ताजे फलों का चुनाव किया, हर फल को अपने अनोखे अंदाज में छीलते हुए उसने उनके रस को निकाला।
फिर बारी आई ओट्स की। रिध्यान ने अपने अंदाज में उन्हें एकदम सही तरीके से पकाया, न ज्यादा पतला, न ज्यादा गाढ़ा। वह इतनी तल्लीनता से बना रहा था, मानो उसकी पूरी रसोई कला इसी नाश्ते में झलक रही हो। नाश्ता बनाते वक्त वह इतनी सावधानी बरत रहा था कि कोई भी प्रोफेशनल शेफ देखे तो वाहवाही किए बिना न रह सके।
सब कुछ तैयार करने के बाद रिध्यान ने गहरी सांस ली और खुश होते हुए कहा, "अब बस यह सब कुछ अंशिका जी को पसंद आ जाए।" इस वक्त उसकी आँखों में मासूमियत के साथ एक चमक भी थी, जो अंशिका के लिए उसके बेइंतहा प्यार साफ जाहिर कर रही थी।
रत्ना जी, मनोज जी और नमिता जी हॉल में बैठे टकटकी लगाए किचन की तरफ देख रहे थे। आज लजीज नाश्ते का सोच-सोचकर ही उनके मुँह में पानी आ रहा था।
मनोज जी खुशी से बोले, "आज का नाश्ता तो बहुत लजीज होने वाला है। मेरे तो सोचकर ही मुँह में पानी आ रहा है।"
नमिता जी बोलीं, "मेरी तो अभी से भूख बढ़ गई है। मैं तो बहुत ही ज्यादा एक्साइटेड हूँ आज के नाश्ते के लिए।"
रत्ना जी परेशानी से बोलीं, "मुझे तो अभी तक नाश्ते की खुशबू नहीं आ रही है। रिध्यान ऐसा बना क्या रहा है?"
वह सभी ऐसे ही किचन की तरफ टकटकी लगाए, खाने के बाहर आने के इंतज़ार में थे।
जैसे ही रिध्यान ने नाश्ता ट्रॉली में सजाकर बाहर लाना शुरू किया, उसकी एक झलक पाकर रत्ना जी, मनोज जी और नमिता जी तीनों बच्चों की तरह डायनिंग टेबल पर भागकर बैठ गए।
मनोज जी अपनी उत्सुकता छिपाते हुए बोले, "रिध्यान बेटा, आज नाश्ते में क्या खास बनाया है? देख, मुझे तो इतनी भूख लग रही है कि सब अकेले ही चट कर जाऊँगा!"
नमिता जी भी थोड़ी नाटकीय अंदाज में बोलीं, "हाँ भई, इतनी भूख लगी है कि मैं तो दो प्लेट एक्स्ट्रा ले लूँगी!"
रत्ना जी ने हल्की चिंता से कहा, "पर मुझे अभी तक नाश्ते की खुशबू तो नहीं आ रही है...रिध्यान बना क्या रहा है आखिर?"
रिध्यान ने मुस्कराते हुए ट्रॉली को डायनिंग टेबल पर लाकर रखा और धीरे से ढक्कन हटाया। सभी उम्मीदों की नज़र से उसे देखने लगे, लेकिन जैसे ही नाश्ते में ओट्स, ताजा जूस, और सलाद देखा, तीनों का चेहरा एकदम रोनी सूरत में बदल गया।
"नो-ओ-ओ-ओ!" तीनों ने एक साथ ऐसी आवाज में चिल्लाया मानो किसी ने उनका पसंदीदा पकवान छीन लिया हो।
इसी समय अंशिका ने सीढ़ियों से नीचे आते हुए उनकी आवाज सुनी और सख्त अंदाज में बोली, "क्या हो रहा है यहाँ?"
अंशिका की आवाज सुनते ही सबके मुँह पर अचानक ताला लग गया, जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो। सभी मिमियाते हुए शांत हो गए, पर अंशिका की पीठ उनकी तरफ होने से उसने उनकी रोनी सूरतें नहीं देखीं। वहीं, रिध्यान उनकी पल-पल बदलती शक्लें देखकर समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर ये सब नाश्ता देखकर इतने दुखी क्यों हैं।
मनोज जी ने धीरे से फुसफुसाते हुए नमिता जी से कहा, "अरे, सलाद और जूस? भई हमें तो पराठे और पकौड़े चाहिए थे।"
नमिता जी ने भी अपनी भूख का गम जाहिर किया, "हाँ, और ये ओट्स खाकर कोई कैसे खुश रह सकता है?"
अंशिका के सामने कुछ बोलने की हिम्मत तो किसी में थी नहीं, लेकिन तीनों ने मिलकर धीरे-धीरे अपनी दर्दभरी भूख की चर्चा शुरू कर दी।
मनोज जी ने धीमी आवाज़ में कहा, "अरे, बेटा रिध्यान को तो शायद ये एहसास ही नहीं है कि हम पुराने जमाने के लोग हैं। हमारे पेट का पेट्रोल तो पराठे और पकौड़े ही हैं। ये ओट्स और जूस से तो हमारी बैटरी डाउन हो जाएगी।"
नमिता जी ने सिर हिलाते हुए दुखी होकर कहा, "अरे, भाईसाहब, यही हाल रहा तो हमारा वजन घटने के साथ-साथ हौसला भी घट जाएगा! मैं तो सोच रही हूँ कि अब छुपाकर एक डिब्बा बिस्किट का रख लूँ।"
रत्ना जी ने गहरी साँस भरते हुए कहा, "सच में, ये ओट्स और जूस खाकर हमारी जवानी का जोश कहाँ रहेगा? आज तो मुझे आलू के पराठों की तस्वीरें याद कर-करके रोना आ रहा है।"
अंशिका ने पीछे मुड़कर तीनों की फुसफुसाहट सुन ली और सख्त अंदाज में बोली, "कोई प्रॉब्लम है क्या?"
तीनों ने एक साथ सिर हिला दिया, "न-नहीं। बिल्कुल भी नहीं।"
अंशिका सिर हिलाकर डायनिंग टेबल पर अपनी चेयर पर बैठ गई जो रत्ना जी के ठीक सामने थी। अभी वह कॉल पर अपनी HR से आज होने वाले इंटरव्यूज़ के बारे में बात कर रही थी इसलिए उसका ध्यान उन तीनों पर नहीं था।
मनोज जी ने नमिता जी को ठंडी आवाज़ में कहा, "देखो, अब किसी ने जोर से खांसना तो मना है, नहीं तो अगली बार ब्रेकफास्ट में कच्चे पालक और गाजर का रस ही मिलेगा क्योंकि अंशिका ने हमें इस तरह देख लिया या फिर उसे पता चल गया कि हम उसके पीछे से ऑयली फ़ूड खाते हैं तो हमें घास-फूस पर ही ज़िंदगी बितानी पड़ेगी।"
नमिता जी ने घबराकर जवाब दिया, "भगवान बचाए! मुझे तो यही ओट्स ठीक लग रहे हैं।"
रत्ना जी ने चुटकी लेते हुए कहा, "अरे, कम से कम हम सब को अपनी सेहत का ख्याल ना रखने की सज़ा मिल ही गई है। मुझे तो लग रहा है कि अब से हर दिन की शुरुआत ही ओट्स और जूस से होगी। रिध्यान को किचन से दूर रखना पड़ेगा।"
नमिता जी बोलीं, "आप सही कह रही हैं भाभी, अंशिका को इम्प्रेस करने के चक्कर में रिध्यान हमारी वाट लगायेगा।"
मनोज जी, रिध्यान को खुशी से अंशिका को नाश्ता परोसते देख, बोले, "इतनी खुशी से नाश्ता परोस रहा है। इसे तो पता भी नहीं है कि अपनी कूकिंग से आज इसने हमारे अरमानों का बेरहमी से खून कर दिया।"
उन तीनों की तरफ़ आते हुए रिध्यान, उनके लिए भी नाश्ता परोसने लगा।
उन तीनों ने ही उसको अपनी तरफ़ आते हुए देख अब तक सीधे और चुपचाप बैठ गए थे।
रिध्यान, अंशिका का ध्यान मोबाइल में लगे देख, उन तीनों की तरफ़ झुकते हुए धीरे से बोला, "आप सब इतनी देर से धीरे-धीरे क्या बात कर रहे हैं?"
मनोज जी जबरदस्ती एक-एक शब्द चबाकर बोले, "यही कि आज का नाश्ता बहुत हेल्दी और टेस्टी होने वाला है।"
रिध्यान मासूमियत से बोला, "अच्छा, ठीक है। मैं आपको डिस्टर्ब नहीं करता। आप सब नाश्ता कीजिए, आराम से और स्वाद लेकर।" इतना कहकर वह भी अपनी चेयर पर बैठ नाश्ता करने लगा।
तीनों ने एक-दूसरे को देखकर रोनी सूरत बनाई और प्लेट उठाकर जैसे ही पहला निवाला लिया, अंदर ही अंदर सोच रहे थे, "काश! कल सुबह नाश्ते में पराठे हों।"
सभी भारी मन से नाश्ता कर रहे थे। रिध्यान नाश्ता कर रहा था। उसका ध्यान इस समय किसी पर नहीं था। वह केवल अपनी प्लेट में नजरें गड़ाए बैठा था।
अंशिका अपने एचआर डिपार्टमेंट हेड, मखीजा से बात कर रही थी।
"मि. मखीजा, इंटरव्यूज़ लेने में क्या प्रॉब्लम आ गई हैं?" अंशिका ने मि. मखीजा से फ़ोन पर पूछा।
"बाॅस, मिसेज़ शर्मा तीन दिन की लीव पर हैं और इंटरव्यूज़ को अभी कंडक्ट करवाना ज़रूरी हैं। कंपनी पॉलिसिज के अनुसार मिसेज़ शर्मा की एब्सेंस में आपको ही इंटरव्यूज़ लेकर फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट हेड सिलेक्ट करना होगा। लेकिन मारिया से पता चला हैं कि आप डाइरेक्ट ही मि. माथुर से मीटिंग के लिए जा रही हैं, इसलिए आपको कॉल किया हैं। अगर हम आज की जगह कोई और डेट फ़ाइनल कर सकते हैं इंटरव्यूज़ के लिए," मि. मखीजा ने कहा।
"नो, इससे जिंदल ग्रुप की रेपुटेशन पर इफ़ेक्ट पड़ेगा। वैसे इंटरव्यू कब से स्टार्ट हैं?" अंशिका ने पूछा।
"बाॅस, अभी एक घंटे बाद ही हैं," मि. मखीजा ने बताया।
"मैं अपने बिहाफ़ पर किसी को भेजती हूँ और बाकी डिटेल्स मारिया मेल कर देगी," अंशिका ने कहा।
इतना कहकर उसने कॉल काट दिया। अब तक उसका नाश्ता खत्म हो गया था, लेकिन जिंदल फैमिली के वो तीनों शख़्स अभी भी रूनी सूरत लिए खाने को घूरते हुए बस चुग रहे थे।
रिध्यान नाश्ता करते हुए अपनी ही सोच में गुम था। पता नहीं क्यों, पर उसे अंशिका का बिहेवियर कुछ अजीब लगा। जैसे आज उसके चेहरे पर कठोरता के साथ हल्की सी नर्मी भी थी और साथ ही उसकी आँखों में एक अजीब सी उलझन दिखाई दे रही थी, जैसे वह अपने आप से ही एक जंग लड़ रही हो। वह मन में सोच रहा था, "यह सब कुछ कल रात की वजह से तो नहीं? क्या मुझे अंशिका से बात करनी चाहिए या सब कुछ वक़्त पर छोड़ देना चाहिए?" रिध्यान भले ही मासूम था, वह जमाने के छल-कपट से दूर बस मुस्कुराता रहता था, लेकिन रिश्तों के मामले में उसकी समझदारी कहीं अधिक थी जो उसे सबसे अलग और ख़ास बनाती थी। वह हर रिश्ता बखूबी निभाना जानता था और निभाता भी था।
वह अपनी ही सोच में गुम प्लेट में चम्मच घुमाने लगा। तब तक अंशिका टिश्यू से अपने हाथ साफ़ करते हुए बोली, "रिध्यान।"
उसके इतना बोलते ही सबका ध्यान उस पर चला गया, लेकिन रिध्यान अपनी सोच में इतना गुम था कि वह उसकी आवाज़ सुन ही नहीं पाया।
"रिध्यान," अंशिका ने एक बार फिर तेज आवाज़ में कहा।
तब तक रिध्यान के बगल में बैठी रत्ना जी ने अपने पैर को रिध्यान के पैर पर मारा क्योंकि वह जानती थी कि अब अंशिका को कभी भी गुस्सा आ सकता है।
रिध्यान उनके अचानक मारने से दर्द के कारण तेज़ी से चिल्लाया, "आ….....आ.........आ!"
"क्या हुआ? इतना तेज क्यों चिल्लाए तुम?" अंशिका ने सख़्त आवाज़ में पूछा।
"कुछ नहीं," इतना कहते हुए वह रत्ना जी की तरफ़ देखकर भौंहें उचकाता है।
तब तक अंशिका वापिस बिना किसी भाव के बोली, "रिध्यान।"
उसकी आवाज़ सुनकर रिध्यान का ध्यान रत्ना जी से हटकर अंशिका पर चला गया जिससे रत्ना जी गहरी साँस लेती हैं।
"जी," रिध्यान ने अंशिका की तरफ़ देखते हुए मासूमियत से कहा।
अंशिका फ़ोन में टाइम देखते हुए बोली, "तुम्हें मेरा एक काम करना हैं। ऑफ़िस जाकर एचआर डिपार्टमेंट हेड मखीजा से मिलो और वो जो काम तुम्हें बताए वो काम तुम्हें करना हैं। एंड जो काम मैंने तुम्हें कल दिया था उसकी डिटेल्स मुझे शाम तक चाहिए तो प्लीज उसे भी करने की कोशिश करना।"
"ठीक हैं, पर क्या आप ऑफ़िस नहीं जा रही हैं आज?" रिध्यान ने गर्दन हिलाते हुए पूछा।
"हम्म, एक मीटिंग हैं होटेल रियाज़ में मि. माथुर के साथ। ऑफ़िस पहुँचते-पहुँचते देर हो जाएगी," अंशिका ने मारिया को कुछ डिटेल्स भेजते हुए कहा।
रिध्यान कुछ सोचते हुए बोला, "अच्छा," फिर रत्ना जी की तरफ़ देखते हुए आँखें टिमटिमाता है।
"ऐसा क्यों लग रहा हैं कि यह अब मुझे फँसायेगा?" रत्ना जी ने उसे अपनी तरफ़ देखते हुए नमिता से पूछा।
"मुझे तो पक्का विश्वास हैं भाभी। आपके सिर पर बम फूटने वाला हैं," नमिता ने जासूसी से अपना दिमाग लगाते हुए कहा।
तब तक रिध्यान उन सब पर बम फोड़ चुका था। वह मासूम बनते हुए बोला, "अंशिका जी।"
"हाँ," अंशिका ने कहा।
"क्या हम माँ को भी साथ ले जाएँ?" रिध्यान ने पूछा।
"ठीक हैं, लेकिन एक घंटा हैं तुम्हारे पास, दस बजे से पहले पहुँच जाना," अंशिका ने कुछ सोचकर कहा। फिर रत्ना जी की तरफ़ देखते हुए बोली, "माँ, आप रिध्यान के साथ चली जाइएगा, उसकी हेल्प हो जाएगी।"
रत्ना जी जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोलीं, "ओके," लेकिन मन से तो उन्हें रोना आ रहा था। एक तो पेट भूखा था और दूसरा आज उन्हें किटी पार्टी में जाना था, पड़ोस में ही रहने वाली मिसेज़ सुजाता के यहाँ। अंशिका को ऑफ़िस की ज़िम्मेदारियाँ देने के बाद वह खुलकर जीने लगी थी और अब तो उनकी ऑफ़िस जाने की आदत भी छूट चुकी थी। कहाँ वह किटी में जाकर अपनी कॉलोनी (जिसमें सिर्फ़ वीआईपी लोगों के घर थे) की बहुओं की चुगली मसाले के साथ चटकारे लेकर सुनने के ख़्वाब देख रही थी और कहाँ अब उनका दिन फ़ाइलों के बीच गुज़रने वाला था।
उनके दिल का हाल जानते हुए नमिता उनके कान में फुसफुसाते हुए बोली, "दुःखी मत होइए भाभी। मैं आपको सब कुछ डिट्टो कॉपी करके शाम को बताऊँगी, वो भी फ़ुल एक्सप्रेशन के साथ।"
"हम्म, अब तो बस तुम्हारा ही सहारा हैं," रत्ना जी ने दुःखी मन के साथ कहा।
मनोज जी, जो उनके मन का हाल जानते थे, वो मन ही मन हँस रहे थे।
"अब मैं चलती हूँ," इतना कहकर अंशिका चली गई।
इसके बाद रत्ना जी खड़े होते हुए बोलीं, "अच्छा, ठीक हैं, मैं तैयार होकर आती हूँ," और फिर रिध्यान की तरफ़ देखते हुए बोलीं, "तुम भी तैयार होकर आ जाओ।"
इतना कहकर वह भारी कदमों से अपने कमरे में चली जाती हैं और रिध्यान भी चला जाता है।
रत्ना जी खड़े होकर बोलीं, "अच्छा, ठीक है। मैं तैयार होकर आती हूँ।" फिर उन्होंने रिध्यान की तरफ देखते हुए कहा, "तुम भी तैयार होकर आ जाना।"
इतना कहकर वे भारी कदमों से अपने कमरे में चली गईं और रिध्यान भी चला गया।
जिंदल ग्रुप
मखिजा ने अपनी टीम से कहा, "इंटरव्यूज़ की सारी तैयारी कर लीजिए। बॉस की जगह इंटरव्यूज़ लेने कोई आ रहा है, और उनकी डिटेल्स मारिया से मिलेगी। इसलिए दस बजे तक सब कुछ रेडी हो जाना चाहिए।"
सभी टीम मेम्बर्स ने गर्दन हिलाते हुए कहा, "यस सर।"
जिंदल ग्रुप में आज रोज़ के मुकाबले अधिक चहल-पहल थी क्योंकि अंशिका जिंदल ऑफिस में नहीं थीं। इस आजादी का सभी लोग खुलकर मज़ा ले रहे थे, हालाँकि वे अपने काम को लेकर भी उतने ही सीरियस दिखाई दे रहे थे।
होटल रियाज के सामने कारों का काफिला धीरे-धीरे आकर रुका। गाड़ियों के इस शाही काफिले को देखकर होटल के गार्ड और स्टाफ सतर्क हो गए। एक-एक करके सभी कारों के दरवाज़े खुले, और ठीक उसी वक्त होटल के मैनेजर और उनका स्टाफ दौड़ते हुए एंट्रेंस पर पहुँच गया, मानो किसी खास मेहमान का इंतज़ार कर रहे हों।
चारों तरफ बॉडीगार्ड्स की लम्बी कतार फैल चुकी थी। बीच वाली कार के दरवाज़े से जैसे ही अंशिका बाहर निकलीं, हर किसी की निगाहें उन पर टिक गईं। काले ब्लेज़र और सिग्नेचर हील्स के साथ, उनकी मौजूदगी में एक अलग ही गरिमा और शान झलक रही थी। उनकी चाल में एक आत्म-विश्वास भरा ओज था जो साफ़ बता रहा था कि वे केवल एक बिज़नेस वूमन नहीं, बल्कि एक पावरफुल लीडर हैं। उनके चेहरे पर स्थिरता और आँखों में एक स्थायी चमक थी जो उनकी बुद्धिमत्ता और कठोरता को साफ़ जाहिर कर रही थी।
एंट्रेंस पर बढ़ती हलचल को देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग आपस में फुसफुसाने लगे।
"अरे! अंशिका जिंदल हैं। वह एक कठोर महिला है। लोग कहते हैं कि उसके सीने में दिल नहीं, पत्थर है।"
"लेकिन कितने बड़े बिज़नेस की मालकिन हैं।"
"परिस्थितियाँ हर किसी को कठोर बना ही देती हैं।"
अंशिका ने हल्के से अपने बालों को ठीक किया और अपने फ़ोन पर नज़र डाली, जैसे एक-एक मिनट का हिसाब उनके पास हो। उनके पीछे उनकी फ़ीमेल बॉडीगार्ड, लियोना, डायरी और फ़ाइल्स के साथ हर कदम पर उनकी छाया की तरह चल रही थीं। एंट्रेंस के पास खड़ा हर स्टाफ़ मेम्बर सिर झुकाए हुए उनका स्वागत कर रहा था, जबकि मैनेजर ने विनम्रता से झुककर कहा, "वेलकम, मैम। आपके स्वागत के लिए होटल रियाज में सब तैयार है।"
अंशिका ने एक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आँखों में गहराई से देखा जा सकता था कि वे यहाँ सिर्फ़ अपने काम के लिए आई हैं। अपनी चाल को बनाए रखते हुए वे होटल के अंदर कदम रखती हैं। चारों ओर की फुसफुसाहटें और नज़रों का उनके ऊपर टिकना अब आम बात थी; हर कोई उनकी प्रेजेंस से प्रभावित हो रहा था।
जैसे ही वे लिफ़्ट की ओर बढ़ीं, वहाँ खड़े लोग एक किनारे हटते गए, मानो उन्हें एक रास्ता दे रहे हों। वे चारों ओर खामोशी से अपनी छवि छोड़ चुकी थीं। उनके चारों तरफ बॉडीगार्ड्स की एक लम्बी कतार चल रही थी। सबकी नज़रें अपने पर महसूस करने के बाद भी अंशिका के चेहरे के भाव नहीं बदले थे।
जैसे ही अंशिका होटल के रिसेप्शन एरिया में पहुँची, वहाँ उनकी असिस्टेंट मारिया पहले से उनका इंतज़ार कर रही थी। मारिया ने मुस्कराते हुए अंशिका का अभिवादन किया, "गुड मॉर्निंग, मैम। मिस्टर माथुर प्राइवेट केबिन में आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
अंशिका ने हल्के से सिर हिलाकर जवाब दिया, और दोनों एक साथ मि. माथुर के केबिन की ओर चल पड़ीं। रास्ते में मारिया ने उन्हें कुछ मीटिंग डिटेल्स दीं, जबकि अंशिका गंभीरता से सब सुन रही थीं। उनकी चाल में एक अलग ही ठंडापन और कड़कपन दिख रहा था।
कुछ ही देर में वे उस प्राइवेट केबिन के सामने पहुँच गईं, जहाँ मिस्टर माथुर अपने असिस्टेंट के साथ अंशिका का इंतज़ार कर रहे थे। मारिया ने दरवाज़ा हल्के से खटखटाया, फिर उसे खोलकर अंशिका को अंदर चलने के लिए कहा।
अंशिका, मारिया के साथ अंदर चली गईं और लियोना के साथ सभी बॉडीगार्ड्स बाहर ही खड़े हो गए।
मिस्टर माथुर, जो पहले से ही मीटिंग के लिए तैयार बैठे थे, ने अंशिका को देखते ही मुस्कराकर उनका स्वागत किया, "गुड मॉर्निंग, मिस जिंदल।"
जिंदल मेंशन
जैसे ही रत्ना जी और रिध्यान सीढ़ियों से नीचे आए, पूरे हॉल का माहौल कुछ अलग ही हो गया। रत्ना जी ने हल्के पेस्टल रंग की फॉर्मल साड़ी पहन रखी थी, जो उनकी सादगी से भरी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। उनके बाल करीने से जूड़े में बंधे थे, और गले में हल्की-सी चैन उनकी सादगी को बनाए रखते हुए भी एक अलग ही शान दे रही थी। उनके चेहरे पर गंभीरता के साथ-साथ एक आत्मीय मुस्कान थी।
दूसरी तरफ़, रिध्यान ने थ्री-पीस सूट पहना हुआ था, जो उस पर एकदम फॉर्मल लुक दे रहा था। सूट का गहरा रंग, उसके प्रोफ़ेशनल लुक को और आकर्षक बना रहा था। बालों को पीछे की तरफ़ हल्के से सेट किया हुआ था, और उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, जैसे उसे अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास हो।
नमिता जी और मनोज जी दोनों आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे। मनोज जी ने हँसते हुए कहा, "भई, लग रहा है जैसे फैशन शो के लिए तैयार होकर आ रहे हों!"
नमिता जी ने चुटकी लेते हुए कहा, "आप दोनों तो आज कंपनी के सारे लोगों का ध्यान खींच लेंगे। ऐसा लग रहा है भाभी कि आप रिध्यान की छोटी बहन हैं।"
रत्ना जी ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "अरे नहीं, हम तो बस अपने काम के लिए जा रहे हैं और फिर सबको पता चलना चाहिए कि जिंदल्स किसी से कम नहीं हैं। हर ओर सिर्फ़ हमारे ही चर्चे रहते हैं क्योंकि हम अपने आपको इस उम्र में भी मेंटेन रखे हैं।"
रिध्यान और रत्ना जी कार में बैठकर ऑफिस के लिए निकले थे। उनके आगे-पीछे सुरक्षा में बॉडीगार्ड्स से भरी गाड़ियों का एक लंबा काफिला चल रहा था। रत्ना जी रिध्यान से गुस्से से मुँह फुलाकर बैठी थीं।
रिध्यान ने मासूमियत से कहा, "मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप मुझसे नाराज़ हैं।"
रत्ना जी बाहर देखते हुए बोलीं, "हम्म, क्या नहीं होना चाहिए।"
रिध्यान ने कहा, "नहीं, मैंने ऐसा तो नहीं कहा, लेकिन मेरे पास आपके लिए कुछ है।"
रत्ना जी ने कहा, "मुझे नहीं चाहिए। और जिसके पास तुम जैसा दामाद हो, उसे बहू की ज़रूरत ही नहीं हो सकती है वाट लगाने के लिए।"
रिध्यान ने अपने बैग से एक डिब्बा निकालते हुए कहा, "मेरे पास आलू के पराठे थे। मैंने सोचा कि आपको पसंद आएंगे, लेकिन कोई नहीं, मैं ही लंच में खा लूँगा।" उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रत्ना जी ने उसके हाथ से वह डिब्बा छीनकर खोलना शुरू कर दिया।
रत्ना जी खुशी से डिब्बा खोलते हुए बोलीं, "तुम्हें अपना वादा याद था।"
रिध्यान ने कहा, "हाँ, लेकिन अगर अंशिका जी के सामने देता तो वो आपको खाने नहीं देतीं, और सिर्फ एक ही पराठा है। मैं आपकी हेल्थ के साथ कॉम्प्रोमाइज़ नहीं कर सकता हूँ।"
रत्ना जी खुशी से बोलीं, "थैंक्यू।"
रिध्यान ने कहा, "खाने के मामले में आप बच्ची बन जाती हैं।" वैसे आपसे एक बात पूछूँ।
रत्ना जी मुँह पूरा भरे हुए गर्दन हिला देती हैं।
रिध्यान ने पूछा, "अंशिका जी को खाने में सबसे ज़्यादा क्या पसंद है?"
रत्ना जी मन में सोचती हैं, अब आएगा मज़ा...थोड़ा तो अंशी भी झेले। उन्होंने कहा, "करेले, सबसे ज़्यादा करेले पसंद हैं उसको।"
रिध्यान कुछ बोलता, इससे पहले ही कार ऑफिस के एंट्रेंस पर रुक गई।
एंट्रेंस पर रघु के साथ बॉडीगार्ड्स की एक लंबी फौज खड़ी थी और बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रही थी। सारे बॉडीगार्ड्स एक कतार में फैलते हुए सिर झुकाए खड़े हो गए। रघु ने कार का गेट खोला और वहीं साइड में खड़ा हो गया। पहले रिध्यान कार से बाहर निकला और फिर मुस्कराते हुए दूसरी तरफ जाकर गेट खोला और उधर से रत्ना जी चेहरे पर बिना किसी भाव के बाहर निकलीं।
सभी लोग सिर झुकाए उनका स्वागत कर रहे थे। रिध्यान ने रत्ना जी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "यह कुछ ज़्यादा नहीं हो रहा माँ, इतना ग्रैंड वेलकम।"
रत्ना जी ने वैसे ही कहा, "हम्म, बिज़नेस वर्ल्ड में यह आम बात है। अब चलें क्योंकि तुम्हारी पत्नी ने तो सिर पर बम फोड़ने की तैयारी बहुत अच्छे तरीके से की है और यह सब कुछ उसकी ही तैयारी है।"
रिध्यान ने सिर झुकाते हुए कहा, "तो अब चलें।"
जैसे ही रत्ना जी और रिध्यान ने ऑफिस के विशाल गलियारों में प्रवेश किया, उनके चारों ओर का माहौल उनके कदमों की आहट से गूंज उठा। दोनों के आगे-पीछे स्टाफ और सुरक्षा गार्ड्स सावधानी से चल रहे थे। ऑफिस का यह हाई-प्रोफाइल सीन, बड़ी-बड़ी खिड़कियों से छनती हुई सुबह की रोशनी और संगमरमर का चिकना फर्श एक शाही एहसास दिला रहा था। हर कोई उनकी तरफ देखता ही रह गया। सब कुछ बिल्कुल रॉयल लग रहा था, रिध्यान की मासूमियत हो या रत्ना जी की इस उम्र में इतनी खूबसूरती। सब मुँह फाड़े बस उन्हें ही निहार रहे थे। लड़कियाँ तो बस आँखें फाड़े और मुँह खोले रिध्यान को देख रही थीं, जो सबसे बेखबर रत्ना जी से मुस्कराकर बात करते हुए चल रहा था।
रिसेप्शन पर मिस्टर मखीजा इंतज़ार में खड़े थे। जैसे ही उन्होंने रत्ना जी को देखा, वो आदर से सिर झुकाते हुए बोले, "वेलकम, चेयरमैन मैम। आपको फिर से ऑफिस में देखकर बहुत खुशी हुई।" और फिर रिध्यान की तरफ देखते हुए बोले, "वेलकम सर।"
इसके बाद मि. मखीजा उनके साथ ही मीटिंग रूम की तरफ चल दिए।
आगे बढ़ते हुए उन्होंने उन्हें आने वाले काम की जानकारी दी। वह गंभीर और पेशेवर अंदाज में बोले, "चेयरमैन मैम और सर, आज आपको फाइनेंस डिपार्टमेंट के लिए नए हेड का चयन करना है। कुछ चुनिंदा कैंडिडेट्स अंदर प्राइवेट काउंसलिंग रूम में इंतज़ार कर रहे हैं। वो सभी दो स्टेज पार करके थर्ड स्टेज पर पहुँचे हैं। वैसे तो हमेशा की तरह मिसेज शर्मा ही यह इंटरव्यू लेती हैं, लेकिन उनकी एब्सेंस में यह इंटरव्यू आप ही लेंगे। बॉस ने कहा है कि आपको सभी कैंडिडेट्स की सभी रिपोर्ट्स प्रोवाइड करवाई जाएँ, और इसलिए हमारे तीन लोगों की स्पेशल टीम आपके साथ इंटरव्यू रूम में रहेगी। इंटरव्यू आधे घंटे बाद शुरू होंगे। जब तक मीटिंग रूम में आप कुछ फाइल्स को एक्सप्लोर कर सकते हैं, साथ ही सर को एक बार बॉस से बात करने के लिए भी कहा है।"
रत्ना जी ने एक हल्का सिर हिलाते हुए अपनी सख्त आवाज में कहा, "ठीक है।" इतना कहकर वो आगे बोलीं, "मि. मखीजा, आप तब तक बाकी तैयारीयों की जाँच कीजिए, तब तक हम मीटिंग रूम में हैं।"
जिस पर मि. मखीजा गर्दन हिलाते हुए "ओके मैम" बोल दिए।
रिध्यान के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई, जैसे उसने इस तरह का सीन पहली बार देखा हो। वह रत्ना जी के गंभीर और खड़ूस व्यक्तित्व से पहली बार रूबरू हुआ था। वरना वह हमेशा ही मुस्कराते हुए या उसे छेड़ते हुए ही नज़र आती थीं।
तब तक वो सभी मीटिंग रूम तक पहुँच चुके थे। रिध्यान और रत्ना जी को वहीं छोड़ बाकी स्टाफ जा चुका था।
अंदर आते ही रत्ना जी कुर्सी पर पसरते हुए गहरी साँस लेकर बोलीं, "सच में कितना बोरिंग था सब कुछ।"
रिध्यान कुछ सोचते हुए बोला, "माँ, एक बात कहूँ! कितना मुश्किल होता होगा ना अपने असली स्वभाव के विपरीत बर्ताव करना। आप हमेशा मुस्कराती रहती हैं, लेकिन आज मैंने आपका एक अलग ही रूप देखा - सख्त और भावहीन चेहरा। सही में अंशिका जी आप पर ही गई हैं।"
रत्ना जी अपने में गुम बोलीं, "यह दुनिया सब कुछ सिखा देती है रिध्यान। वक्त अच्छे-भले नर्मदिल इंसान को कठोर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। जब मैंने इस कंपनी में कदम रखा था ना, तब मैं खुद डरी-सहमी सी थी, लेकिन मनोज, नमिता और अंशी के दादाजी ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। वो हमेशा मेरे साथ ढाल की तरह खड़े रहते थे, और अपने पति का साया उठते ही पता चला कि यह दुनिया कितनी बेरहमी होती है। पैसा ना हो तो ज़िल्लत के सिवा यहाँ कुछ नहीं मिलता, और अंशिका ने यह सब कुछ शुरू से सहन किया है, इसलिए वह इतनी कठोर है। कुछ घाव वक्त के साथ भर जाते हैं, लेकिन कुछ घाव ज़िन्दगी भर बस चुभन का एहसास करवाते हैं।"
रिध्यान कहीं खोये हुए बोला, "सही कहा आपने माँ, कुछ घाव ज़िन्दगी भर चुभते हैं।" इस वक्त उसके चेहरे पर भी एक अजीब सी चुभन थी।
रत्ना जी बोलीं, "यह सब छोड़ो और पहले अंशी से बात करो।"
रिध्यान कुछ सोचते हुए बोला, "यह तो मैं भूल ही गया।" यह कहकर वह मीटिंग रूम के एक वॉल पर लगे पर्दों को खींच देता है।
जैसे ही रिध्यान ने मीटिंग रूम के भारी पर्दे हटाए, पूरे कमरे का माहौल एकदम बदल गया। पर्दों के हटते ही सामने दीवार भर की ऊँचाई तक लगे बड़े-बड़े काँच के शीशों से बाहर का शहर नज़र आने लगा, जैसे पूरी दुनिया उनके सामने बिछी हो। शहर की ऊँची-ऊँची इमारतें, व्यस्त सड़कें, और खूबसूरत नज़ारे किसी तस्वीर की तरह सामने थे।
काँच के शीशों से छनकर आती धूप में अंदर का सारा नज़ारा आराम से देखा जा सकता था। मीटिंग रूम के बीचों-बीच एक लंबी, चमचमाती महोगनी लकड़ी की मेज थी, जिसका हर हिस्सा बारीकी से पॉलिश किया हुआ था। टेबल पर एक आलीशान, नर्म रौशनी वाला झूमर लटक रहा था, जिसकी सुनहरी रौशनी पूरे कमरे में एक गरिमामय वातावरण बना रही थी। मेज के चारों ओर सुंदर, आरामदायक लेदर की कुर्सियाँ रखी थीं, जो अपने आप में ही एक शाही अंदाज़ बिखेर रही थीं। हर कुर्सी के सामने एक लेदर कवर की हुई नोटबुक और एक सजीली पेन रखी थी। दीवारों पर लकड़ी के सुंदर पैनल लगे थे, जिनमें हल्का-सा सुनहरा रंग झलकता था। टेबल के एक ओर एक बड़ी स्क्रीन लगी थी।
उस वॉल के सहारे खड़े होकर बाहर के नज़ारे देखते हुए उसने धड़कते दिल के साथ अंशिका को कॉल मिला दिया।
होटल रियाज़
मि. माथुर खड़े होते हुए बोले, "वेलकम मिस जिंदल, मैं आप ही का इंतज़ार कर रहा था।"
तब तक अंशिका की सख्त आवाज आई, "मिस जिंदल नहीं माथुर साहब, मिसेज़ प्रताप…" इसके बाद वो आगे कुछ और कहती, तब तक मारिया के हाथ में रखे हैंडबैग में रखा अंशिका का मोबाइल बज उठा।
अंशिका की घूरती नज़रों का अहसास होते ही मारिया सकपकाते हुए बोली, "सॉरी मैम, मैं साइलेंट करना भूल गई।"
इतना कहते ही वो फोन निकालने लगी। तब तक कॉल कट हो चुका था।
रिध्यान, अंशिका के कॉल ना उठाने पर निराशा से फोन को देखते हुए बोला, "लगता है बिजी हैं।"
जारी है…
मारिया ने बैग से फोन बाहर निकाला, लेकिन तब तक फोन कट चुका था। इधर रिध्यान, अंशिका के फोन न उठाने से निराश हो चुका था।
इधर मि. माथुर और उनका असिस्टेंट हैरानी से अंशिका को देख रहे थे। लेकिन मारिया का ध्यान उनकी बातों पर न होने के कारण, उसने यह नहीं सुना कि अंशिका ने मि. माथुर से क्या कहा।
अंशिका मारिया की तरफ देखती है, तो मारिया फोन अंशिका के हाथ में पकड़ा देती है। अंशिका जब फोन पर रिध्यान की मिसकॉल देखती है, तो उसके चेहरे पर परेशानी की एक लकीर खिंच जाती है।
वह मीटिंग रूम में बैठे सभी का रुख करते हुए, "मुझे एक अर्जेंट कॉल करना है, तो मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"
इतना कहकर वह सबको हैरान-परेशान छोड़कर बाहर निकल जाती है। सभी हैरानी से उसकी पीठ को निहार रहे थे क्योंकि काम के प्रति उसके जुनून और सख्ती से सब वाकिफ थे। और आज पहली बार वह अपनी मीटिंग छोड़कर किसी से बात करने के लिए बाहर जा रही थी। आज पहली बार वह कुछ ऐसा कर रही थी जो उसने आज तक नहीं किया था।
अंशिका बाहर निकलते हुए उसी के ओपन एरिया की तरफ चली जाती है जहाँ उस वक्त कोई नहीं था। कुछ दूर पर ही उसके सिक्योरिटी गार्ड खड़े थे। इसके बाद अंशिका रिध्यान को फोन मिला देती है।
इधर रिध्यान कुछ देर तक फोन को एकटक देखता रहता है और फिर निराशा से फोन को अपने पेंट के पाॅकिट में रखने ही वाला था कि तब तक उसका फोन बज उठता है।
कॉलर आईडी पर "माई हार्टलेस वाइफ" शो हो रहा था। उस नाम को देखते ही रिध्यान की आँखों में सौ गुना चमक आ चुकी थी। उसे अपनी धड़कनें रुकती सी महसूस हो रही थीं। अजीब से एहसास से चेहरा लाल हो चुका था। वह अपनी भावनाओं को संभालते हुए फोन उठा लेता है।
फोन उठाते ही दूसरी तरफ़ से अंशिका की सख्त आवाज़ आती है, "हेलो।" और इस एक पल में ही रिध्यान के दिल को सुकून मिल गया। उसका बर्ताव ऐसा था जैसे वह अपनी वाइफ से पहली बार बात कर रहा हो और दिल में घबराहट के साथ खुशी भी हो।
रिध्यान के मुँह से शब्द ही नहीं निकलते।
सामने से आवाज़ न आने पर अंशिका परेशानी से, "रिध्यान, क्या तुम मेरी आवाज़ सुन पा रहे हो?"
रिध्यान अपने होश में आता है, "हम्म, कैसी हैं आप?" और अब वह अपना सिर पकड़ लेता है कि इतना बेवकूफी भरा सवाल कैसे पूछ सकता है वह।
अंशिका एक बार तो रिध्यान के सवाल पर अपने फोन को देखती है और फिर, "तुम्हें क्या लगता है? अभी एक घंटे पहले ही मैं घर से ठीक-ठाक ही निकली थी।"
रिध्यान मासूम बनते हुए, "अच्छा, सॉरी। वैसे क्या कर रही हैं आप?" और फिर वह अपना सिर पीट लेता है।
अंशिका उसी तरह, "वही जिसके लिए घर पर कहकर निकली थी मैं। वैसे तुम्हारी याददाश्त कमज़ोर होती जा रही है।"
रिध्यान मासूमियत से, "अच्छा, सॉरी। मारिया भी आपके साथ हैं?" फिर वह अपना सिर पीट लेता है और मन में सोचता है, "रिध्यान, आज हो क्या रहा है तुम्हें?"
अंशिका के गुस्से के पाले का लेवल अब बढ़ चुका था। अब तक वह खुद को नर्म दिखाने की कोशिश में थी, लेकिन अब उसकी आवाज़ सख्त हो गई थी। वह अपने दाँत पीसते हुए, "रिध्यान, वह मेरी असिस्टेंट है।"
रिध्यान फिर से बोलने की कोशिश करते हुए, "अच्छा, सॉरी वो..."
वो आगे कुछ बोलता, तब तक अंशिका अपने दाँत पीसते हुए, "तुम आगे कुछ मत बोलना रिध्यान, बस मेरी बात सुनो और जवाब देना।"
रिध्यान जोर से अपनी गर्दन हिलाते हुए, "हाँ।"
अंशिका, "अच्छा, यह बताओ कि माँ भी तुम्हारे साथ आई हैं।"
रिध्यान उसके सवाल पर रत्ना जी की तरफ़ देखता है, जो चेयर पर बैठी तल्लीनता से कोई मैगज़ीन पढ़ रही हैं, "हाँ, लेकिन आपको कैसे पता कि मैं ऑफ़िस आ गया हूँ?" और बस वो फिर अपना सिर पीट लेता है और मन में सोचता है, "बेवकूफी भरा सवाल कर दिया। उन्हें तो पता ही होगा ना कि मैं ऑफ़िस आ गया हूँ, आखिर उन्होंने ही तो कहा था ऑफ़िस आने पर बात करने के लिए।"
बस अंशिका की गुस्से भरी आवाज़ आती है, "रिध्यान, बिल्कुल चुप। मुझे अभी मीटिंग भी अटेंड करनी है और मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम्हें ऑफ़िस में काम करना है ना?"
उसकी यह बात सुनकर तो रिध्यान को विश्वास ही नहीं होता कि वह खुद आगे से उसे ऑफ़िस आने के लिए कह रही थी। वह खुशी से, "हाँ।"
अंशिका, "हम्म, आज के इंटरव्यूज़ की सारी ज़िम्मेदारी तुम पर ही है। अपनी सूझ-बूझ और विवेक से जिंदल ग्रुप के लिए एक अच्छा फाइनेंस डिपार्टमेंट हेड चुनो। अगर तुमने एक सही कैंडिडेट चुना, तो आई प्रॉमिस मैं तुम्हें ऑफ़िस आने की परमिशन दे दूँगी।"
रिध्यान मासूमियत से, "बस इतनी सी बात? वैसे आप मुझे इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी दे रही हैं। इसका मतलब आपको मुझ पर भरोसा है।"
अंशिका कुछ सोचकर, "मैं जिस पर आँखें बंद कर भरोसा करती हूँ, उन्हें तुम पर भरोसा है। मुझे अपने विश्वास पर पूरा विश्वास है और जहाँ विश्वास होता है वहाँ शक नहीं होता। आज के लिए बेस्ट ऑफ़ लक...घबराने की ज़रूरत नहीं है और नर्वस तो बिल्कुल मत होना क्योंकि वहाँ तुम बॉस की हैसियत से हो ना कि एम्प्लॉई की हैसियत से। और हाँ, मुझे भरोसा है तुम पर।"
इतना बोलकर वह कॉल कट कर चुकी थी, लेकिन रिध्यान के कानों में तो वही शब्द गुंज रहे थे, "मुझे भरोसा है तुम पर।" वह अपने इन अनकहे अहसासों से बाहर ही निकलना नहीं चाहता था। अंशिका के मुँह से निकले वो शब्द रिध्यान को जिंदगी भर का सुकून दे चुके थे और वह उन शब्दों में खोया पागलों की तरह मुस्कुरा रहा था।
रिध्यान अंशिका के शब्दों में खोया हुआ था कि तभी रत्ना जी की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा। वह अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आया, लेकिन चेहरे पर अभी भी अंशिका के लिए एक हल्की मुस्कान थी।
रत्ना जी ने उसे देखा और हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "क्या हुआ, बेटा? अंशिका से बात की तो ऐसा लग रहा है जैसे कहीं और खो गए हो?"
रिध्यान थोड़ा झेंपता हुआ, "जी...वो बस...उन्होंने कहा कि मुझे आज के इंटरव्यूज़ संभालने हैं और पता है यह मेरा टेस्ट है और अगर मैंने इसे पास कर लिया तो वो मुझे ऑफ़िस आने की परमिशन देगी। एंड शी ट्रस्ट ऑन मी।"
रत्ना जी ने उसकी तरफ़ देखा। "तो फिर, आज तुम्हारे पास अपने आपको प्रूव करने का मौका है।" और मन में, "ऐसा लग रहा है जैसे खुशियाँ अब हमारे घर आने वाली हैं।"
अभी दोनों इस बारे में बात ही कर रहे थे कि मि. मखिजा, सीनियर मैनेजर, उन्हें बुलाने के लिए अंदर आए।
मि. मखिजा ने रत्ना जी को इशारा किया और आदरपूर्वक कहा, "मैडम, सभी कैंडिडेट्स वेट कर रहे हैं। इंटरव्यू का समय हो गया है।"
रत्ना जी ने रिध्यान की ओर देखा, "चलो, देखते हैं कि तुम अपनी इस पहली ज़िम्मेदारी में कैसे खुद को साबित करते हो। ईश्वर तुम्हें सफल बनाए।"
रिध्यान ने एक गहरी साँस ली, खुद को थोड़ा सा और तैयार करते हुए वह रत्ना जी और मि. मखिजा के साथ मीटिंग रूम की तरफ़ बढ़ गया। मि. मखिजा आगे चल रहे थे और रत्ना जी और रिध्यान उनके पीछे बात करते हुए आ रहे थे।
रत्ना जी धीमे से फुसफुसाते हुए, "रिध्यान, एक बात याद रखना हमेशा कि इंसान है तो अक्सर गलतियाँ हो जाती हैं और कभी-कभी हम गलत फ़ैसले ले लेते हैं, लेकिन उस गलती को स्वीकार करना आना चाहिए। एक अच्छा लीडर वही होता है जो अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे और निभाए और जो अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं वो हर काम के लिए सबसे योग्य होते हैं।"
उनकी बातें ध्यान से सुन रहे रिध्यान ने, "आप हमेशा अपनी बातों को आड़ी-तिरछी करते हुए छुपाकर हर बार मेरी मदद कर जाती हैं ना, सब समझता हूँ मैं। इतना भी भोला और मासूम नहीं हूँ।"
जारी है...
रिध्यान और रत्ना जी ने जब काउंसलिंग रूम में कदम रखा, वहाँ का माहौल अत्यंत प्राइवेट और आलीशान था। गहरे वुडन टेबल पर आरामदायक चेयर रखी हुई थीं। कमरे में रोशनी मद्धम थी और एक गंभीरता का एहसास होता था। रत्ना जी ने अपनी सीट संभाली और एक गहरी साँस लेते हुए सभी टीम मेम्बर्स की तरफ देखा। उनकी आँखों में एक कड़ाई थी।
रिध्यान भी रत्ना जी के बगल में आकर बैठ गया था। उसके सामने ही टेबल पर सभी कैंडिडेट्स की प्रोफाइल रखी हुई थीं। रिध्यान ने गहरी साँस लेते हुए रत्ना जी की तरफ ओके का साइन किया।
रत्ना जी ने मि. मखिजा और उनकी टीम की तरफ देखते हुए कहा, "आप इंटरव्यूज़ स्टार्ट करवाएँ।"
सभी पाँचों कैंडिडेट्स बाहर घबराए से बैठे थे और परेशानी से बस उसी तरफ देख रहे थे। मन ही मन अपने सिलेक्ट होने की कामना कर रहे थे क्योंकि जिंदल ग्रुप में जॉब पाना इतना भी आसान नहीं था। वहाँ तक पहुँचने के लिए हर किसी को बहुत सारे इंटरव्यू राउंड से होकर गुज़रना पड़ता था। लेकिन एक बार यहाँ पर जॉब मिल जाए, तो ज़िन्दगी बस आराम से ऐशो-आराम में ही गुज़रती थी। लेकिन अभी तो सबके लिए उस इंटरव्यू को पास करना ज़रूरी था।
तभी बाहर से आकर मि. मखिजा की ही टीम के एक मेम्बर ने कहा, "फर्स्ट मेम्बर को अंदर आना है।"
"फर्स्ट मेम्बर सागर सिन्हा था, जो देखने में ही कॉन्फिडेंट जान पड़ रहा था।"
रिध्यान के सामने उसकी प्रोफाइल पड़ी हुई थी और वह गौर से उसमें देख रहा था। साइड में बैठी रत्ना जी उसके कान में फुसफुसाते हुए बोलीं, "हम्म, तुमने इस कैंडिडेट सागर के रिपोर्ट कार्ड्स देखे?"
रिध्यान सब कुछ देखते हुए बोला, "हम्म, देखे और सोच रहा हूँ कि इसने जिन्दगी में पढ़ने के अलावा भी कुछ किया होगा।"
रत्ना जी बोलीं, "हम्म, मैंने भी यही सोचा।"
होटेल रियाज़ में, अंशिका अपनी चेयर पर बैठते हुए बोली, "तो मि. माथुर, मीटिंग स्टार्ट करें।"
मि. माथुर जो अभी तक अंशिका के इस तरह के बर्ताव से शॉक में थे, उनकी नर्म आवाज़ से तो उनके होश ही उड़ गए। क्योंकि पहली बार उन्होंने उस अकड़ की दुकान को नरमी के खोल में देखा था और अब यही उनकी परेशानी का कारण भी था।
मि. माथुर के असिस्टेंट ने मि. माथुर के हाथ को जोर से हिलाया। वो होश में आए और बोले, "जी, मीटिंग शुरू करते हैं।"
अंशिका ने मारिया को इशारा किया। मारिया ने कहना शुरू किया, "देखिए मि. माथुर, हमारे पास आपके लिए तीन प्रश्न हैं। और अगर आप इन तीन प्रश्नों के सोचकर ऐसे जवाब दिये कि हम संतुष्ट हो जाएँ, तो यह डील जिंदल ग्रुप आपको देने के लिए तैयार है।"
मि. माथुर ने खुद को कॉन्फिडेंट दिखाते हुए कहा, "जी," लेकिन घबराहट उनके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।
मारिया बोली, "ओके, तो चेयरमैन का आपके लिए पहला प्रश्न यह है कि सब जानते हैं कि माथुर फैब्रिकेशन अभी घाटे में चल रही है। जिंदल ग्रुप कभी घाटे का सौदा नहीं करती। पर अगर हम आपके साथ डील करते हैं, तो क्या इसकी संभावना ज़्यादा नहीं कि इससे जिंदल्स को नुकसान हो? तो इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? क्योंकि आप तो बैंकक्रप्ट हो गए होंगे, ऐसे में इस लॉस से कैसे उभरेगा जिंदल ग्रुप? क्या आप हमें इस प्रश्न का जवाब दे सकते हैं?"
मि. माथुर कुछ सोचकर घबराए, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोले, "हम्म, आपने सही कहा कि कोई बिज़नेसमैन किसी ऐसे के साथ कभी डील नहीं करेगा, जिसका बिज़नेस पहले ही घाटे में चल रहा हो। और आपकी चेयरमैन तो पहले से ही यह बात जानती हैं कि माथुर फैब्रिकेशन पहले से ही घाटे में चल रहा है। फिर भी आप उनके साथ बैठकर यहाँ हमारे साथ डील के इस ऑप्शन पर डिस्कस कर रही हैं। इसका मतलब आप जानती हैं ना कि कुछ तो बात है माथुर फैब्रिकेशन में। फिर भी मैं आपको बताना चाहूँगा कि मेरा बिज़नेस इस वक्त घाटे में चल रहा है क्योंकि पास्ट में हमने बहुत सी गलतियाँ की हैं। लेकिन अब उन्हें सुधार भी तो रहे हैं। फिर मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपके लिए यह डील कभी घाटे का सौदा होगी ही नहीं।"
इस पूरे वक्त में अंशिका की पैनी निगाहें सिर्फ़ और सिर्फ़ मि. माथुर के चेहरे पर जमी हुई थीं।
मारिया सहमति से सिर हिलाते हुए बोली, "दूसरा प्रश्न कि आपके फैब्रिक में ऐसा क्या है जो यह डील हम आपके साथ ही करें?"
मि. माथुर कुछ बोलते, उससे पहले ही मि. माथुर का असिस्टेंट बोला, "आपने सही कहा मारिया जी कि इस वक्त टेक्सटाइल वर्ल्ड में बहुत तरीके के फैब्रिक चल रहे हैं। ऐसे में आप क्यों हमारे साथ ही डील करें? इसका जवाब यह है कि हम यह फैब्रिक उन लोगों से बनवाते हैं जो छोटे-छोटे कुटीर उद्योग चलाते हैं और अच्छी क्वालिटी का फैब्रिक बनाते भी हैं। आप तो यह बात जानती हैं ना कि ग्रामीण लोगों के पास कला की कमी नहीं होती है। कमी होती है इस बात की कि या तो उन्हें अच्छे स्टेज नहीं मिल पाते अपनी कला के लिए या फिर अच्छी किस्मत नहीं मिल पाती है। ऐसे में हमारा यह न्यू प्रोजेक्ट इस बेस पर ही है कि हम उन्हें उनकी आर्ट की असली वैल्यू भी देंगे और उनकी आर्ट को अच्छा स्टेज भी प्रोवाइड करेंगे आगे बढ़ने के लिए। इससे यह होगा कि उन लोगों को एम्प्लॉयमेंट तो मिलेगा ही, साथ ही हमें एक अच्छी क्वालिटी का रॉ मैटेरियल एक अच्छी कीमत पर मिल जाएगा। और इससे आपको यह फायदा होगा कि आपको जिस कीमत पर अच्छी क्वालिटी का फैब्रिक मिलेगा, वह किसी और कंपनी से नहीं मिलेगा।" इतना कहकर उनका असिस्टेंट रुक गया।
सामने बैठा वह लड़का, यही कहीं पच्चीस साल का होगा और दिखने में कॉन्फिडेंट नज़र आ रहा था। पहली बार अंशिका की आँखों में किसी को देखकर इम्प्रेस होने के भाव आए थे, वो भी रिध्यान को छोड़कर। और उसे उसका कॉन्फिडेंट लेवल बहुत अच्छा लगा। मारिया की आँखों में भी तारीफ़ के भाव थे।
अंशिका अपनी घड़ी में टाइम देखते हुए बोली, "मि. माथुर, तीन दिन का टाइम है आपके पास सारे प्लान के साथ जिंदल ग्रुप में मिलिए। अगर आपका आईडिया हमें पसंद आया तो आपके साथ हम इस डील को कंटिन्यू करेंगे।"
इतना कहकर वह मारिया के साथ बाहर निकल गईं। उनके जाने के बाद मि. माथुर गहरी साँस लेते हुए अपने असिस्टेंट से बोले, "बहुत ग़लत फ़ैसला लिया तुम्हें जॉब पर रखकर और फिर तुम्हारी बात मानकर यहाँ उस अंशिका जिंदल को यहाँ डील के लिए बुलाकर। साँसें कम पड़ने लगी थीं उसके सामने, ऐसे तो उम्र में मुझसे दस साल तो छोटी होगी लेकिन फिर भी उसकी घूरती आँखें मुझे अब भी डरा रही हैं।"
उनका असिस्टेंट रुद्र सारा सामान समेटते हुए बेपरवाही से बोला, "हम्म, लेकिन उन्होंने हमें मिलने बुलाया है, वो भी खुद के ऑफ़िस में। जानते भी हैं कि इसका मतलब क्या है।"
मि. माथुर परेशानी से बोले, "नहीं जानता, तुम ही बताओ दो।"
रुद्र बोला, "यही कि उन्हें हमारे आईडिया पर पूरा भरोसा है।"