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His Displaced Bride

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Ishqi

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when strangers became your beautiful journey... ये कहानी शुरू होती है एक अनचाही शादी से! जानवी मल्होत्रा जिसके माता पिता बचपन मै ही उसे छोड़ कर भगवान के पास चले गए, उसकी शादी उसकी बहन के भाग जाने की वजह से हो गई उसके होने वाले ब्रदर इन लो अमर रावत...

Total Chapters (38)

Page 1 of 2

  • 1. His Displaced bride - Chapter 1

    Words: 1103

    Estimated Reading Time: 7 min

    दीदी, क्या आपने बिल्कुल अच्छा नहीं किया? अपनी ही शादी से कोई कैसे, एन वक्त पर, भाग सकता है? एक उन्नीस साल की लड़की, जिसने इस वक्त एक गहरे लाल रंग का शादी का जोड़ा पहना था, वह शीशे में खुद को देखकर रोते हुए अपनी बहन से शिकायत कर रही थी। जिसकी आज शादी होने वाली थी, पर वह एन वक्त पर शादी से भाग चुकी थी। और अब जानवी को अपने होने वाले ब्रदर इन लॉ से शादी करनी थी, जो उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल काम था। उसके आँसू रुक नहीं रहे थे।

    वह अपनी बहन से लगातार शिकायतें कर ही रही थी कि अचानक ही दरवाजा खुला और एक औरत तेजी से चलती हुई अंदर आई।

    "जानवी, तूने अब तक बाल नहीं बनाए? चल, मैं तेरे बाल बना देती हूँ। लड़के वाले आ चुके हैं।"

    जानवी ने तुरंत अपने आँसू पोंछ लिए और एक नज़र उस औरत को देखते हुए बोली,
    "जी जी, ताई जी, बस बना ही रही थी।"

    जानवी की ताई जी, मीनाक्षी मल्होत्रा, हल्के गुस्से में नज़र आ रही थीं। उन्होंने जल्दी-जल्दी जानवी के बाल बनाने शुरू कर दिए, जिससे जानवी के बालों में दर्द भी हो रहा था। पर अब उसके मुँह से एक उफ्फ तक नहीं निकल रही थी।

    वह बिल्कुल किसी काँच की गुड़िया की तरह बैठी थी, मीनाक्षी जो कर रही थी, उसे करने दे रही थी।

    जल्दी ही मीनाक्षी जी ने जानवी को तैयार कर दिया था। और अब उसके सर पर एक लंबा सा घूंघट निकालते हुए, वह उसे कमरे से बाहर लेकर जाने लगी।

    बाहर, वह बड़ा सा हाल बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था; जैसे आसमान के सारे सितारे ही तोड़कर उस हाल में लगा दिए हों।

    मंडप में बैठा दूल्हा, जिसके नाम से पूरी मुंबई काँपती है, वह दुल्हन के इतने लेट होने पर काफी गुस्से में नज़र आ रहा था।

    "अमर रावत को किसी का इंतज़ार करना बिल्कुल पसंद नहीं है।" उसने अपनी गहरी आवाज में कहा।

    जानवी के ताऊ जी, महेश मल्होत्रा ने एक फीकी सी मुस्कान के साथ कहा,
    "माफ़ करना रावत साहब, पर दुल्हन की शादी एक ही बार होती है, तो उसे सारे श्रृंगार करने होते हैं। बस इसी चक्कर में थोड़ा लेट हो गया है।"

    इतना बोलकर उन्होंने जैसे ही मंडप की तरफ़ देखा, तो उन्हें जानवी और मीनाक्षी आती हुई दिख गईं। तो वह एक बड़ी सी मुस्कान लिए बोले,
    "लो, दुल्हन को याद किया और वह आ गई।"

    अमर ने तिरछी नज़रों से ऊपर की तरफ़ देखा; लेकिन दुल्हन के चेहरे पर घूँघट देखकर उसके चेहरे पर अजीब से भाव आ गए। उसने सोचा था कि वह अपनी दुल्हन को कम से कम शादी से पहले एक बार तो देख लेगा, पर इस घूंघट की वजह से वह यह भी नहीं कर पाया। जिसका फ्रस्ट्रेशन उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ दिख रहा था।

    कुछ ही देर बाद, पूरे रीति-रिवाजों के साथ जानवी और अमर की शादी हो चुकी थी।

    अमर और जानवी ने सब बड़ों के पाँव छुए: अमर के दादा, कल्याण सिंह रावत; अमर के पिता, रजत रावत; अमर का छोटा भाई, समर्थ रावत; और अमर का दोस्त, दीक्षांत आर्य। अमर के परिवार में बस यही लोग थे।

    विदाई के समय जानवी की आँखों में आँसू थे और उसकी नज़रें किसी को ढूँढ़ रही थीं। तभी उसे कोने में खड़ी उसकी माँ दिखी और वह भागते हुए उनके पास जाकर उनके गले लगते हुए फूट-फूट कर रोने लगी।

    उसकी माँ, यशोदा ने भरे गले से कहा,
    "अब तुझे कोई दुख नहीं मिलेगा मेरी बच्ची। अब तू इस नरक से बहुत दूर, अपने पति के साथ एक सुखी संसार बसाना।"

    उनकी ऐसी बातें सुनकर जानवी को और ज़्यादा रोना आ रहा था।

    वहीं मीनाक्षी जी गुस्से में लाल हो गई थीं। अब बाकी खड़े लोग क्या सोच रहे होंगे? यह लड़की मीनाक्षी जी को छोड़कर घर की एक नौकरानी के गले लगकर रो रही है। पर वह सबके सामने ज़बरदस्ती की मुस्कान सजाए हुए जानवी को देख रही थी।

    कुछ देर बाद, अमर और जानवी एक कार में थे। जानवी सिसक रही थी, जिससे अमर को अजीब सा फील हो रहा था। उसने थोड़ा खुद को मेंटेन रखने के लिए जानवी के सामने कोई हमदर्दी न दिखाने का फ़ैसला किया था। पर जानवी की बढ़ती सिसकियाँ उसके दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर रही थीं।

    वहीं जानवी का यह सोच-सोचकर बुरा हाल था कि उस नए घर में उसके साथ क्या होगा? जब उसके अपनों के बीच उसे जिल्लत भरी ज़िंदगी मिली है, तो परायों से तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। की तभी उसकी आँखों के सामने एक रुमाल आया। वह नज़रें उठाकर देखती है, अमर बिना किसी भाव के वह रुमाल उसे दे रहा था ताकि वह अपने आँसू पोंछ सके।

    अमर ने चेहरा फेरते हुए कहा,
    "मुझे यह मेलो-ड्रामा बिल्कुल पसंद नहीं है। तो चुपचाप अपने आँसू पोंछो। ऐसे भी तुम्हारा काजल फैल चुका है, तुम बिल्कुल डायन लग रही हो।"

    जानवी ने तुरंत वह रुमाल ले लिया और अपने आँसू पोंछने लगी।

    कुछ ही देर बाद वह लोग रावत मेंशन पहुँच जाते हैं। रावत फैमिली में कोई फीमेल नहीं थी, जिस वजह से कल्याण सिंह रावत खुद आरती की थाल लेकर दरवाज़े पर खड़े हो गए थे। समर्थ और दीक्षांत भी उनके बगल में खड़े, फ़ुल एक्साइटमेंट में, अमर और जानवी का इंतज़ार कर रहे थे। रजत जी भी एक मुस्कान लिए अपने बड़े बेटे की दुल्हन का वेलकम करने के लिए खड़े थे।

    अमर और जानवी दोनों घर की दहलीज़ पर आकर खड़े हो जाते हैं और कल्याण सिंह बड़े ही चाव से उनकी आरती उतारते हैं।

    और फिर प्यार से बोलते हैं,
    "तृषा बेटा, इस कलश को पैर से गिराते हुए अंदर आओ।"

    अपनी जगह, "तृषा" नाम सुनकर जानवी अपनी जगह बिल्कुल जम सी गई। उसके घरवालों ने उसके साथ फिर से एक धोखा किया था। उसकी आँखों में आँसू उतर आए और उसकी पकड़ अपने लहंगे पर कस गई। उसने कदम घर के अंदर रखे और समर्थ ने एक तरफ़ इशारा करते हुए कहा,
    "Have a seat, bhabhi।"

    जहाँ एक खूबसूरती से डेकोरेटेड चेयर रखी थी। जानवी का दिल भारी हो चुका था, उसके आँसू लगातार बह रहे थे। आखिर क्या होगा जब इन सब को उसकी सच्चाई पता चलेगी?

    क्या होगा यह जानकर कि दुल्हन बदल दी गई है? क्या इस धोखे की सज़ा जानवी को मिलेगी?

  • 2. His Displaced bride - Chapter 2

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    समर्थ ने संगीत बजाया और फिर कहा,

    "देखो भाभी जान, आपको इस घर में हर रिश्ता मिलेगा—पापा, भाई, दादा, और मैं, आपका प्यारा सा देवर। पर सास, ननद, भाभी, बहन; ऐसा कोई रिश्ता नहीं है जिसकी कमी हम ही पूरी न कर सकें।"

    इसलिए हमें यह नहीं पता कौन सी रस्म पहले होती है और कौन सी बाद में।

    इसलिए सबसे पहले तो हम आपके दर्शन करना चाहते हैं; मीन्स, पहले भी हम मिल चुके हैं, पर बेचारा आपका पति, उसने आपको एक बार भी नहीं देखा। तो सबसे पहले हम मुँह-दिखाई की रस्म करेंगे।

    इतना बोलकर समर्थ, एक बड़ी सी मुस्कान होठों पर सजाए, जानवी का घूँघट उठाने लगा।

    जानवी का दिल कर रहा था कि वह यहाँ से भाग जाए। ये लोग उसे धोखेबाज़ तो नहीं समझेंगे?

    समर्थ घूँघट उठा पाता, उससे पहले ही रजत जी की तेज आवाज़ आई,

    "रुक, बे नालायक!"

    उनकी आवाज़ सुनकर समर्थ ने झट से वह घूँघट छोड़ दिया और जानवी ने एक चैन की साँस ली।

    पर अगले ही पल रजत जी ने मुस्कुराते हुए कहा,

    "अमर बेटा, तुम नहीं, तुम बहू का घूँघट उठाओगे। क्योंकि दुल्हन का घूँघट सबसे पहले उसका पति ही हटाता है।"

    अमर ने ई रोल करते हुए गहरी साँस छोड़ी। पता नहीं उसके पापा से क्या-क्या ड्रामा करने वाले हैं। वह घूँघट उठाए या समर्थ, क्या ही फर्क पड़ता है?

    यह सुनकर जानवी की आँखें हैरानी से फैल गईं और उसकी पकड़ अपने लहँगे पर बुरी तरह कस गई, क्योंकि अमर बहुत गुस्सैल है, यह उसे पता था। उसने अपनी बहन से सुना था।

    अमर तेज कदमों से गया और एक ही झटके में जानवी का घूँघट हटा दिया। पर जैसे ही उसकी नज़र जानवी के छोटे से चेहरे पर पड़ी, उसके दिल की धड़कन ने अचानक ही बेतहाशा रफ़्तार पकड़ ली।

    भूरी आँखें, जिन पर लम्बी पलकें, छोटी सी प्यारी नाक और हार्ट शेप लिप्स; निचले होंठ के नीचे उसका काला तिल; वह किसी खूबसूरत गुड़िया जैसी लग रही थी। और ऊपर से उसके माथे पर हैवी माँग टीका और नाक में बड़ी सी नथ, जो उसके होठों को बार-बार छू रही थी।

    जानवी के होंठ डर के मारे थरथरा रहे थे और उसकी पलकें भी झुकी हुई थीं। उसमें हिम्मत नहीं थी कि वह अमर को आँख उठाकर देख भी सके।

    वहीं समर्थ, जैसे ही जानवी को देखा, उसने हैरानी से तेज आवाज़ में कहा, "मिस ब्यूटीफुल! तुम यहाँ?"

    अमर, जो जानवी की मासूमियत में कहीं खो गया था, वह समर्थ की इतनी तेज आवाज़ सुनकर होश में आया।

    और हैरानी से पीछे मुड़कर देखा तो समर्थ आँखें फाड़े और मुँह खोले जानवी को देख रहा था।

    और अगले ही पल समर्थ ने रोती सूरत बनाकर कहा,

    "यार! तुम तो मेरा क्रश थीं! तो मेरी भाभी कैसे बन गईं?"

    यह सुनकर तो अमर का मन कर रहा था कि वह समर्थ का मुँह तोड़ दे। कैसी बातें कर रहा है वह?

    अचानक ही अमर को याद आया जब उसके घर वाले लड़की को देखने गए थे, तो उन्हें उनके घर की छोटी लड़की समर्थ के लिए बहुत ही प्यारी लगी थी और समर्थ का भी देखते ही उसे पर दिल आ गया था। इसका मतलब क्या यह उनके घर की छोटी बेटी है? तो उसकी दुल्हन कहाँ गई?

    उसने फिर से जानवी की तरफ़ देखा, जो डर के मारे अब बुरी तरह काँप रही थी।

    उसे डरते देख कल्याण जी ने शांति से कहा,

    "डरो मत बेटा, हम तुम्हारे घरवालों से अभी बात कर लेंगे। आखिर उन्होंने हमारे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया है?"

    यह बोलते वक़्त कल्याण जी की आवाज़ में महेश मल्होत्रा और मीनाक्षी मल्होत्रा दोनों के लिए बेतहाशा गुस्सा झलक रहा था।

    दीक्षांत ने तुरंत अमर की तरफ़ देखा; कहीं वह इस लड़की को गलत न समझ ले। पर अमर तो अभी भी आँखें फाड़े उसे ही देख रहा था, जैसे पता नहीं उसे फिर कभी देखने का मौका मिलेगा या नहीं। और उसे ऐसे देखकर दीक्षांत को हँसी आ गई। चलो कम से कम उसका दोस्त तो उसकी भाभी पर पहले ही नज़र में फ्लैट हो गया है। मतलब वह उसे छोड़ेगा नहीं, क्योंकि कहते हैं शादी के बाद इस पवित्र बंधन को कभी नहीं तोड़ना चाहिए और अब जैसे भी हुई हो, जिससे भी हुई हो, उसकी शादी हो चुकी है, तो अब यही उसकी पत्नी रहने वाली है।

    रजत जी ने तुरंत महेश जी को कॉल किया, पर उधर सिर्फ़ रिंग जा रही थी; कोई फोन उठा नहीं रहा था।

    कल्याण जी ने अमर की तरफ़ देखते हुए कहा, "जो तुम बहू को ऊपर कमरे में ले जाओ। वह बहुत ज़्यादा थकी हुई है। हम इस मुद्दे पर कल बात करेंगे। अभी बहुत ज़्यादा रात हो चुकी है। जो तुम..."

    अमर, जो कहीं फिर से खो गया था, अपने दादाजी की बात सुनकर फिर से होश में आया और अपना सर झटकते हुए घूर कर जानवी को देखने लगा और अपने मन ही मन बोला,

    "शायद काला जादू आता है इसे। पता नहीं कौन सा टोना-टोटका कर रही है, जो एक बार जब इसकी तरफ़ नज़र उठ रही है, तो बस वहीं ठहर जा रही है।"

    बेचारे समर्थ का तो मुँह लटक चुका था। दीक्षांत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "चल, तेरे टूटे दिल का जश्न मनाते हैं।"

    कि तभी कल्याण जी ने अपने हाथ में पड़ी छड़ी दीक्षांत के टांग पर मारते हुए कहा,

    "खबरदार! जो आज के दिन नशा किया! बिल्कुल बिगड़ चुके हो!"

    और फिर रजत जी की तरफ़ देखते हुए कहा,

    "तुम इन बच्चों का ध्यान अच्छे से नहीं रखते हो, इसीलिए ये इतने बिगड़ चुके हैं।"

    रजत जी ने दीक्षांत और समर्थ को गुस्से से घूरा, क्योंकि उनकी वजह से वह बिना बात ही रोज डाँट खाते रहते हैं।

    वहीं जानवी को समझ नहीं आ रहा था उसे क्या करना चाहिए। पर अचानक ही...

    उसने अपने हाथ पर एक ठंडा और मज़बूत हाथ महसूस किया; और कोई नहीं, बल्कि अमर था,

    जिसने उसे बुत बनी देखकर खुद ही आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया था ताकि उसे रूम में ले जा सके।

  • 3. His Displaced bride - Chapter 3

    Words: 1079

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमर ने महसूस किया कि जानवी की हथेली में पसीना आया हुआ था। इसका साफ मतलब था कि वह बहुत डरी हुई थी।

    कुछ ही देर बाद जानवी अमर के कमरे में पहुँच चुकी थी।

    यह एक मास्टर बेडरूम था जिसके लिए 'लग्ज़ीरियस' शब्द भी शर्मा जाए। कोई चीज़ इतनी ज्यादा एंटीक कैसे हो सकती है?

    यह जानवी को समझ नहीं आ रहा था। वह आँखें फाड़े उसे कमरा देख रही थी।

    अमर ने उसका ऐसा रिएक्शन देखकर अपना सेहरा उतार कर साइड में रखते हुए कहा,

    "आँखें फाड़े क्या देख रही हो? अब तुम्हें इसी कमरे में रहना है, चाहे पसंद आया हो या ना आया हो।"

    जानवी ने तुरंत अपनी पलकें झुका लीं।

    और अमर वाशरूम में चला गया।

    अमर जब वाशरूम से बाहर निकला, तो उसने देखा जानवी अभी भी वहीं खड़ी थी जहाँ वह उसे छोड़कर गया था।

    अमर ने उस वक्त प्लेन ब्लू टी-शर्ट पहनी हुई थी और उसके नीचे ब्लैक ट्राउज़र्स थे। उसके गले में एक तौलिया लिपटा था। अमर ने वह तौलिया साइड में रखते हुए कहा, "क्या किसी ने तुम्हें वहाँ स्टैचू कर दिया है जो वहाँ से हिल ही नहीं रही हो? यह जो हैवी-हैवी पहना है, रहना-ड्रेस एंड ऑल, इन्हें चेंज नहीं करना है तुम्हें। ऑलरेडी तुम्हारे लिए कपड़े वार्डरोब में रखे हैं। जो कम्फ़र्टेबल लगे, वह पहन लो।"

    जानवी जो डर के मारे कहाँ पर आई थी, अमर की यह आवाज़ सुनकर जल्दी से हाथ हिलाते हुए इधर-उधर देखने लगी। अमर ने कहा, "इधर है।"

    "वार्डरोब।"

    अमर ने अपने मन में कहा, "या तो यह लड़की ड्रामेबाज़ है या यह पागल है। जब इसे किसी चीज़ का नहीं पता है, तो यह पूछ नहीं सकती है?"

    जानवी ने जल्दी से वह वार्डरोब खोला तो उसमें एक से बढ़कर एक खूबसूरत ड्रेस रखी थीं; वेस्टर्न से लेकर इंडियन तक।

    जानवी ने जल्दी से अपने लिए एक साड़ी निकाली और फिर वाशरूम में चली गई।

    अमर ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा,

    "जरूर लड़की पागल है। गहना तो निकाल कर गई नहीं। क्या बाथरूम में निकालेगी? दिमाग खराब है इसका। पता नहीं दादाजी ने भी इसे घर में मेरा रिश्ता क्यों किया? फर्स्ट ऑफ़ ऑल, उन्हें मेरी शादी ही नहीं करनी चाहिए थी। शादी मतलब बर्बादी। जो अमर रावत को बिल्कुल नहीं चाहिए थी।"

    कुछ ही देर में जानवी हल्के येलो कलर की नेट की साड़ी पहनकर बाहर आ चुकी थी। उसके बाल गीले थे जिन्हें वह झटकते हुए आगे बढ़ रही थी।

    अमर ने अपने मन में कहा, "जो भी कहो, खूबसूरत तो है।" और फिर अमर को जब एहसास हुआ कि वह अभी भी क्या सोच रहा है, उसने अपनी नज़रें फिरते हुए बड़बड़ा कर कहा, "क्या मुसीबत है? क्या अभी मेरी सोच पर भी कंट्रोल कर रही है?"

    जानवी एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ी हो चुकी थी। अमर बेड पर लेटा था। जब कुछ समय बीत गया और जानवी वहाँ से हिली भी नहीं, तो अमर ने कहा, "क्या बेड पर आने के लिए इनविटेशन देना पड़ता है? नींद नहीं आ रही है तुम्हें?"

    जानवी ने नज़रें उठाकर अमर को देखा और फिर अपने मन में कहा, "क्या मेरी शादी हुई है तो मेरा रिश्ता आगे नहीं बढ़ेगा? क्या आज हमारी फ़र्स्ट नाइट नहीं सेलिब्रेट होगी?" शायद वह अमर के लिए भी एक बोझ है, जैसे अपनी फैमिली के लिए थी। इसलिए उसकी आँखों में तुरंत नमी आ गई।

    और इसे देखकर तो अमर का मन कर रहा था उठकर उसे एक थप्पड़ लगाकर पूछे कि उसने ऐसा क्या बोल दिया कि वह रोने लगी है।

    अमर तुरंत बेड से उठ गया और उसके करीब बढ़ते हुए बोला, "क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी? अब यह आँसू क्यों आए हैं तुम्हारी आँखों में?"

    जानवी हड़बड़ा कर पीछे हटते हुए बोली,

    "वो...वो...मैं बोलना चाहती हूँ कि...कि अगर आप इस शादी को नहीं निभाना चाहते हैं तो कोई ज़बरदस्ती नहीं है। आप मेरे साथ ऐसा भी मत कीजिए जैसे मैं आप पर बोझ हूँ। यहाँ से चली जाऊँगी।"

    अमर ने एक आइब्रो उठाते हुए कहा,

    "और कहाँ जाओगे तुम मुझसे बचकर?"

    अब तो जानवी की डर के मारे हालत खराब हो रही थी। वह पीछे खिसकते हुए वॉल से लग चुकी थी और फिर अपने थर-थर्राते होठों से बोली,

    "कहीं भी जाऊँगी पर आप पर बोझ बनकर नहीं रहूँगी। और जैसे ही दीदी वापस आ जाएँगी, आप उनसे शादी कर लेना।"

    अमर ने वॉल पर जानवी के दोनों तरफ़ हाथ रखे और अपना चेहरा झुकते हुए उसके चेहरे के करीब किया। जानवी ने तुरंत अपना चेहरा फेर लिया जिससे अब जानवी की गोरी, सुंदर गर्दन अमर की लालच भरी नज़रों के सामने थी। अमर ने एक बार अपने होठों पर जीभ फेरी और फिर उसके गर्दन में अपना चेहरा छुपाते हुए कहा,

    ""और अगर मैं कहूँ कि मुझे तुम्हारी दीदी से शादी नहीं करनी तो...?"

    अमर के होठों का अहसास होते ही जानवी की मुट्ठियाँ उसकी साड़ी पर कस चुकी थीं। वही उसके अल्फ़ाज़ भी उसे अंदर तक सिहरने पर मजबूर कर रहे थे। उसने मुश्किल से अपने होठों को खोलते हुए कहा,

    ""मेरा मतलब है कि मैं अनचाहि दुल्हन नहीं बनना चाहती हूँ किसी की। मुझे मेरे रिश्ते में धोखे की नींव नहीं चाहिए।""

    ये सब जानवी पूरी तरह से काँपते हुए बोल रही थी कि अचानक ही अमर ने उसकी गर्दन में अपना हाथ फँसाते हुए उसके चेहरे को अपने एकदम सामने कर लिया और अगले ही पल उसके गुलाब जैसे मुलायम लबों को अपने मुँह में भर लिया।

    जिससे जानवी की सारी बातें, सारा गुस्सा कहीं दब सा गया। उसकी बॉडी में करंट फ्लो हो रहा था क्योंकि यह उसकी ज़िन्दगी का पहला किस था। उसे पूरे शरीर में गूज़बम्प्स फील हो रहे थे।

    जानवी ने पूरी हिम्मत जुटाते हुए अपने दोनों हाथ अमर के कंधों पर रखकर उसे खुद से दूर करने की कोशिश की, पर अमर की हड्डी-कट्टी बॉडी को वह टच से मस भी नहीं कर पा रही थी। और अमर की बढ़ती हरकतें उसे पसीने से तर-बतर कर रही थीं।

    पर जानवी से यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और बेबसी के कारण उसकी आँखों में आँसू आ चुके थे। उसने रोते हुए कहा,

    "प्लीज़ मत करो।"

    और अमर एकदम से रुक गया। उसने अपना चेहरा उसकी गर्दन से निकालते हुए उसकी आँखों में देखा जो अब आँसुओं से पूरी भर चुकी थीं। अमर ने उसका चेहरा अपने हाथों में भरते हुए उसके आँसू पोछे और फिर उसके माथे पर एक लाइट किस करते हुए कहा,

    ""रो क्यों रही हो?""

  • 4. His Displaced bride - Chapter 4

    Words: 1082

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमर के लहजे में इस बार नरमी थी, जो जानवी को अच्छी, अपनी सी लग रही थी।

    वह तुरंत ही बच्चों की तरह शिकायत करते हुए बोली,
    "आप यह जो कर रहे हो, उससे कुछ हो रहा है। बहुत अजीब सा हो रहा है।"

    जानवी की ऐसी बचकानी बात सुनकर अमर के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आ गई। उसने उसके गालों को पिंच करते हुए कहा,
    "ठीक है, समझ गया। क्या हो रहा है?"
    "पर क्या तुमने नहीं सोचा था? तुम्हारी शादी हो जाएगी तो तुम्हारी फर्स्ट नाइट भी सेलिब्रेट होगी।"

    जानवी ने पलकें झुकाते हुए कहा,
    "हाँ, ऐसा सोचा था। पर जब मुझे पता चला है कि आप मेरी जगह दीदी से शादी करने वाले थे, और आपको यह इतना बड़ा धोखा दिया गया है, तो मैं जबर्दस्ती यह सब नहीं करना चाहती हूँ, और ना ही आपको करने की कोई ज़रूरत है। मुझे अपनी दीदी पर विश्वास है, वह कभी किसी का बुरा नहीं चाहती। वह ज़रूर लौट आएंगी।"

    अमर ने जानवी के बाल सहलाते हुए कहा, "पर हमारे घर में सिर्फ़ एक ही बार शादी होती है, और उसी रिश्ते को निभाना भी पड़ता है। और अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो कल्याण सिंह नाराज़ हो जाते हैं।"

    अमर की बात सुनकर जानवी ने तुरंत आँखें बड़ी करते हुए कहा,
    "अपने ही दादा जी को कोई नाम से बुलाता है भला? वह आपसे बड़े हैं। आपको उन्हें इज़्ज़त से बुलाना चाहिए। अगर वो खुद सुनेंगे तो उनको कितना बुरा लगेगा।"

    जानवी की बात सुनकर अमर के चेहरे पर एक लंबी मुस्कान आ गई। वह अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर रखते हुए बोला,
    "नहीं, हमारे कल्याण सिंह को बुरा नहीं लगता। उन्हें सब कल्याण सिंह बोलते हैं। तुम भी बोलोगी तो चलेगा।"

    जानवी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,
    "कभी नहीं! भगवान जी मेरे पाप चढ़ाएंगे। मैं कभी बड़ों का अनादर नहीं करती हूँ।"

    अमर तुरंत ही हँसते हुए बोला,
    "इतनी संस्कारी हो!"

    और जानवी ने अपनी मुँडि दो-तीन बार हाँ में हिला दी। और अगले ही पल अमर ने उसे ब्राइडल स्टाइल में अपनी गोद में उठा लिया। जानवी ने चिहुँकते हुए अपने हाथ अमर के कंधों पर कस दिए।

    अमर बहुत खुश था। कहते हैं ना, कभी-कभी भगवान हमें वह दे देते हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं करते। वैसे ही अमर को बिना ढूँढ़े ही अपने लिए एक हीरा मिल गया था, जो शायद अगर वह ढूँढने निकलता तो उसे नहीं मिलता। इस धोखेबाज़ी की दुनिया में कोई इतना मासूम साथी मिल पाना बहुत बड़ी बात थी। जिस वजह से अमर बहुत खुश था। उसके इस बेजान मकान को घर बनाने के लिए उसे ऐसी ही किसी लड़की की ज़रूरत थी। उसे नहीं पता था, जिससे उसकी शादी होने वाली थी, वह ऐसी थी या नहीं।

    पर जानवी, वह सच में ऐसी है। उसमें वह ताकत है कि वह इस घर में जान डाल सकती है, और उसके इस बेरंग घर को रंगों से भर सकती है।

    वहीं जानवी की धड़कनों ने एक बार फिर शोर पकड़ लिया था। कैसे संभालेगी वह अमर को? अभी तो उसने मना कर दिया, पर अब जब अमर सामने से बोल रहा है कि उसके घर में सिर्फ़ एक ही बार शादी होती है, जिसका साफ़ मतलब था कि वह अब पूरी ज़िन्दगी अमर के साथ ही रहने वाली है, और उसे एक न एक दिन खुद को अमर को सौंपना ही पड़ेगा।

    और उसके दिल में कहीं एक अनकहा सा दर्द उमड़ रहा था। उसे हमेशा ही उसे घर में अपनी बहन की यूज़ की हुई चीज़ ही मिली है। कभी कोई नई चीज़ उसके लिए नहीं आई है। और अब अमर का उसकी बहन को छोड़कर उसे चुनना बहुत ही अलग फील करवा रहा था उसे, शायद कुछ स्पेशल।

    अमर ने आहिस्ता से जानवी को बेड पर लेटा दिया और खुद उसके बगल में लेट गया। उसके ऐसा करते ही जानवी ने तुरंत साइड में पड़ी चादर उठाई और खुद को कवर करने लगी।

    जिसे देखकर अमर को एक बार फिर हँसी आ गई, और वह उसे अपनी बाहों में भरते हुए बोला,
    "डरो मत बच्चा, तुम्हारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ तुम्हें कोई रिश्ता निभाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। सो जाओ, अभी बहुत ज़्यादा थकी हुई हो ना, शादी की वजह से।"

    जानवी, जो दो बोल प्यार के लिए तरसती थी, अपने लिए अमर के मुँह से इतने मीठे शब्द सुनकर उसके दिल को बहुत सुकून मिल रहा था। और वह तुरंत ही अमर के सीने में अपना सर दफ़नाते हुए एक छोटी सी मुस्कान करके भगवान का शुक्रिया करने लगी। शाम तक जिस शादी को वह कोस रही थी, आज वह उसे खुशी दे रही थी। तभी कहते हैं, कभी-कभी भगवान के किए कामों पर हमें विश्वास करना चाहिए। वह हमारे लिए बहुत अच्छे होते हैं, जिसका हमें कोई अंदाज़ा नहीं रहता है।

    अगली सुबह अमर की आँखें कानों में चूड़ियों के शोर से खुलीं। उसने तुरंत ही नज़रें घुमाकर ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ देखा, तो जानवी अपने गीले बाल सुलझा रही थी। अमर के कल तक सुनसान रहने वाले इस कमरे में आज हर तरफ़ जानवी की पायल की छन-छन, तो कभी चूड़ियों की खन-खन सुनाई दे रही थी। जानवी के बदन से आती खुशबू उसके पूरे बेड को महका रही थी। यह सब अमर को बहुत अच्छा लग रहा था।

    वह तुरंत ही उठा और ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर जानवी के पीछे खड़ा हो गया। उसे देखते ही जानवी भी तुरंत उठते हुए बोली,
    "सॉरी, मेरी वजह से आपकी नींद टूट गई। मैं वह बस जा ही रही थी यहाँ से।"

    अमर ने माथे पर बल डालते हुए कहा,
    "सॉरी किस लिए? तुम अपना काम कर रही थी, इसमें सॉरी बोलने की क्या ज़रूरत है?"

    अब अमर को कौन समझाए कि उस घर में जानवी को बिना किसी गलती के भी रोज़ डाँट पड़ती थी, और उसे रोज़ सॉरी बोलना पड़ता था? तो अब तो सच में जानवी को लग रहा था कि उसकी कोई गलती है। तो बस वह सॉरी बोल दिया। पर अमर की बात सुनकर जानवी को यह एहसास हो रहा था कि अब वह उसे कैद से आजाद हो चुकी है, और इस घर में शायद उसके अपने हैं, जो उसकी फ़िक्र करते हैं, और बिना गलती के उसे डाँटेंगे भी नहीं।

    जानवी के चेहरे पर तुरंत ही बड़ी सी मुस्कान आ गई, और वह झट से अमर के सीने से लगाते हुए बोली,
    "थैंक यू!"

    "कैसा लगेगा जानवी के हाथों का खाना?"

    रायजादा मेंशन वासियों को और क्या टिक पाएगी ये शादी?

  • 5. His Displaced bride - Chapter 5

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमर उसके सीने से लगने से अपने पेट में तितलियां उड़ती हुई महसूस कर पा रहा था 

    पर जानवी का थैंक यू सुन कर उसे अजीब लग रहा था कुछ पल यूं ही रहने के बाद अमर ने उसे खुद से अलग करते हुए कहा 

    अब यह थैंक यू किस लिए

    तुम्हें दौरे पड़ते हैं कभी सॉरी तो कभी थैंक यू बोलने के



    जानवी तुरंत ही बड़ी सी नाम है गर्दन हिलाते हुए बोली 

    नहीं कुछ नहीं आप नहीं समझेंगे



    अमर कुछ कहने को हुआ उससे पहले ही उसके कानों में एक गाने की आवाज पड़ी 

    " हसीनो को आते है क्या क्या बहाने खुदा भी न जाने तो हम कैसे जाने "

    यह दीक्षांत था जो जानवी की बात सुन चुका था 

    और फिर हंसते हुए बोला भाई आज तक भगवान खुद नहीं जान पाया और ना ही समझ पाया कि एक औरत क्या बोलते हैं और क्या करती है तो तुम कैसे समझ सकते हो और वह भी इतने कम समय में बस एक ही रात तो गुजर रही है अभी तो कहानी में ट्विस्ट आने बाकी हैं गुड मॉर्निंग  ब्यूटीफुल भाभी 
    जानवी ने शर्मा कर अपनी पलके झुका ली थी और फिर दीक्षांत के गुड मॉर्निंग का जवाब देते हुए तुरंत ही कमरे से बाहर चली गई 

    और अमर दीक्षांत को आंखें दिखाते हुए बाथरूम के अंदर चला गया 

    दीक्षांत जानवी के पीछे-पीछे जाते हुए बोला 

    भाभी जान जल्दी-जल्दी बता दो आज क्या-क्या तैयारी करनी है

    क्योंकि इन घर के मर्दों को कुछ नहीं पता है की शादी के बाद क्या-क्या करना होता है 

    मेरा मतलब है कि कौन-कौन सी रश्में होती हैं 

    आज के दिन भी कोई रसम होती है क्या 



    दीक्षांत के इतने सारे सवाल एक साथ सुन कर तो जानवी घबरा ही चुकी थी 

    और फिर खुद को शांत करते हुए बोली

    ज्यादा तो मुझे भी नहीं पता है पर आज मैं आप सबके लिए अपने हाथों से खाना बनाऊंगी यह सबसे पहली रस्म होती है और इससे ज्यादा मैं नहीं बता सकती 

    क्योंकि मुझे पता ही नहीं है 



    दीक्षांत ने छोटा सा मुंह बनाते हुए कहा 

    अब मुझे फिर से उस कल्याण सिंह के पास जाना पड़ेगा यह पूछने के लिए 



    जानवी ने घूरते हुए दीक्षांत को देखा 

    अमर तो अमर अब दीक्षांत भी दादाजी को सीधे नाम से बुला रहे हैं यह जानवी को हजम नहीं हो रहा था



    वही कल्याण सिंह जी के कमरे में 

    रजत जी और कल्याण सिंह जी दोनों परेशान बैठे थे रजत जी के चेहरे पर तो दुनिया जहां का गुस्सा था वह आज मल्होत्रा हाउस जाने वाले थे यह जो उनके बेटे के साथ कल धोखा हुआ है इन सब के बारे में पूछने के लिए

    मल्होत्रा हाउस 



    मीनाक्षी और महेश दोनों हॉल मै बैठे थे और कॉफी पी रहे थे 

    महेश ने चिंता भरे लहजे में कहा 

    अब तक तो उन्हें पता चल गया होगा हमने जानवी को भेजा है तृषा की जगह 

    मीनाक्षी ने कहा 

    हम सारा ब्लेम जानवी पर ही डाल देंगे उसी ने अपनी बहन के कपड़े पहन लिए हम क्या कर सकते हैं 

    मीनाक्षी ने शातिर स्माइल करते हुए कहा 

    महेश ने कहा

    पर जानवी मना कर देगी 

    मीनाक्षी ने कॉफी का एक शिप लेते हुए कहा " उसके मना करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है उससे ज्यादा हमें जानता है रावत परिवार "



    महेश के चेहरे पर अब भी चिंता की लकीरें झलक रही थी 



    पर तृषा शादी से क्यों मना कर रही थी उन्होंने अपना माथा पकड़ते हुए कहा 



    मीनाक्षी जी ने तुरंत कहा 

    अगर उसने मना किया है तो जरूर उसकी कोई वजह होगी 

    हमे उसके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए उसका मन जिससे शादी करने का होगा मै उससे उसकी शादी करवाऊंगी वो हमारी अपनी इकलौती बेटी है अगर उसकी ख्वाहिशें पूरी ना कर पाए तो क्या फायदा हमारा उसके साथ भी होने का 



    यशोदा जो उन दोनो के लिए कॉफी लेकर आई थी वो उनकी बाते सुनते हुए बहुत ज्यादा दुखी हो गई थी 

    उसने अपने मन मै कहा 

    " जबरदस्ती तो उसके साथ भी की गई है ना पर जैसे वो तो लोहे की बनी है उसे कुछ महसूस नहीं होता है"



    पर यशोदा यहां सिर्फ एक मेड थी वो इन के बीच कुछ बोल भी नहीं सकती थी सिवाय मन ही मन उन लोगों को कोशने के  
    मीनाक्षी जी ने एक शिप कॉफी की ली ही थी घर की डोर बेल बज उठी 



    यशोदा ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोला तो उसके सामने कल्याण सिंह जी और रजत सिंह जी खड़े थे और उनके साथ उनके कुछ बॉडीगार्ड 



    यशोदा तुरंत ही दरवाजे के सामने से हट गई 

    वही उन्हें अंदर आता देख मीनाक्षी जी और महेश जी दोनों ने अपने कॉफी कप टेबल पर रख दिए और अपनी जगह से खड़े हो गए



    कल्याण सिंह बहुत गुस्से में अंदर आ रहे थे वह अंदर आए और सोफे पर बैठते हुए बोले 

    तो कैसा लग रहा है कल्याण सिंह रावत को धोखा देकर महेश मल्होत्रा 



    महेश जी के चेहरे का रंग उड़ चुका था उन्होंने अपना सलाइवा गटकते हुए कहा 

    हमने आपको कोई धोखा नहीं दिया है 

    मीनाक्षी ने भी उसका साथ देते हुए कहा 

    हां बिल्कुल आप किस धोखे की बात कर रहे हैं हमें नहीं समझ आ रहा है 

    आप तो हमारे संबंधी हैं 
    हम आपको कैसे धोखा दे सकते हैं 



    कल्याण सिंह जी ने एक तिरछी मुस्कुराहट लिए कहा

    बातें काफी अच्छी बना लेते हो दोनों मियां बीवी

    पर यह बातें कल्याण सिंह के सामने नहीं चलने वाली है

    जब हमारे पोते की शादी तुम्हारी बेटी के साथ तय हुई थी तो तुमने अपने छोटे भाई की बेटी के साथ कैसे उसकी शादी करवा दी वह भी बिना हमें बताएं 



    मीनाक्षी जी ने झूठा नाटक करते हुए कहा 

    क्या तृषा नहीं थी दुल्हन के जोड़े में पर

    पर हमने तो तृषा को ही वह कपड़े दिए थे तो फिर वहां जानवी कैसे पहुंच गई 
    मीनाक्षी ने जान बुझ कर भोले भाले बनने का नाटक करते हुए कहा

    उसके चेहरे पर आए एक्सप्रेशन देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था वो एक्टिंग मै कितनी माहिर है अगर एक बार ट्राई करती तो अब तक अच्छी खासी एक्ट्रेस बन जाती और विलन का रोल बहुत अच्छे से निभाती

  • 6. His Displaced bride - Chapter 6

    Words: 1016

    Estimated Reading Time: 7 min

    मीनाक्षी जी ने दुःखी और हैरानी से भरी आवाज़ में कहा,

    "यह नहीं हो सकता! आप झूठ बोल रहे हैं!"

    महेश जी ने भी डरते हुए, मीनाक्षी जी के नाटक का साथ देते हुए कहा,

    "और अगर शादी के जोड़े में जानवी थी तो तृषा कहाँ है? वह घर पर भी नहीं है।"

    कल्याण सिंह जी ने तेज आवाज़ में कहा,

    "हमारे चेहरे पर बेवकूफ़ लिखा है क्या, जो तुम दोनों का इतना बड़ा ड्रामा भी ना पकड़ पाएँ हम?"

    रजत जी, जो इतनी देर से चुप खड़े थे, उन्होंने भी तेज आवाज़ में कहा,

    "अगर आपकी बेटी यह शादी नहीं करना चाहती थी, तो आप हमें साफ़-साफ़ भी बोल सकते थे। हमें इतना बड़ा धोखा देने की कहाँ ज़रूरत थी? हमने जबरदस्ती तो नहीं कहा था रिश्ता करने को।"


    मीनाक्षी जी और महेश जी दोनों ने डर के मारे अपना पसीना पोंछ लिया और एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। लेकिन फिर भी कल्याण सिंह का डर इतना था कि वे कभी यह मानना नहीं चाहते थे कि उन्होंने और रावत खानदान को धोखा दिया है।


    मीनाक्षी जी ने एक आखिरी बार कोशिश करते हुए, धीमी आवाज़ में डरते हुए कहा,

    "आपने देखा होगा, हम बस दुल्हन को लाने गए थे ऊपर। इसके अलावा हम तृषा के कमरे में गए ही नहीं, तो हम कैसे आपको धोखा दे सकते हैं? मुझे नहीं लगा था जानवी भी वहाँ हो सकती है। हमें माफ़ कर दीजिए, हमारी इस गलती के लिए।"


    कल्याण सिंह जी ने एक भौं चढ़ाते हुए कहा,

    "तो अगर शादी में जानवी भी नहीं थी, तो आप लोगों ने उसे ढूँढने की कोशिश क्यों नहीं की?"


    कल्याण सिंह जी की इस बात पर मीनाक्षी जी और महेश जी दोनों के चेहरे का रंग उड़ चुका था और वे डर के मारे काँपने लगे थे। वह आखिर भूल कैसे गए? उनके सामने कल्याण सिंह रावत थे, जो कभी सीबीआई में थे। वे उन्हें कैसे झूठ बोल सकते हैं? उनका एक छोटा सा झूठ भी वे सिर्फ़ उनका चेहरा देखकर पकड़ सकते हैं। तो अब तो बात उनके पोते की शादी की थी, उसकी पूरी ज़िन्दगी की थी।


    महेश जी अब बहुत ज्यादा डर चुके थे। वे तुरंत ही कल्याण सिंह जी के सामने घुटनों के बल बैठते हुए, दोनों हाथ जोड़कर बोले,

    "हमें माफ़ कर दीजिए। हमारी बेटी इस शादी से भाग गई और हम ना आपकी नाक कटवाना चाहते थे सबके सामने, ना अपनी। बस इसलिए हमने जानवी को इस शादी के लिए तैयार कर लिया।"


    महेश जी ने बिना अपना सच बताए एक बार फिर झूठ बोल दिया था, पर शायद इस बार झूठ में सफाई ज़्यादा थी। कल्याण सिंह तुरंत ही सोफ़े से उठते हुए बोले,

    "ठीक है। आप ना सही, पर हम आपकी बेटी को ढूँढ लेंगे। आखिर उन्होंने कैसे हमें इतना बड़ा धोखा दिया है?"


    महेश जी ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा,

    "हाँ, हम भी बस उसे ढूँढ ही रहे हैं। वह जैसे ही मिलेगी, हम आप सब लोगों को भी इन्फ़ॉर्म कर देंगे।"


    रजत जी ने महेश जी को आँखें दिखाते हुए कहा,

    "उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आप लोगों से पहले हम ही उसे ढूँढ लेंगे।"


    इतना बोलकर वे दोनों बाहर की तरफ़ चले गए। मीनाक्षी जी तुरंत ही एक गहरी साँस लेते हुए सोफ़े पर बैठीं और अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोलीं,

    "यह क्या था? वे लोग आँधी की तरह आए और तूफ़ान की तरह वापस भी चले गए।"

    महेश जी ने गुस्से से कहा, "सिर्फ़ चले नहीं गए, हमें कितना कुछ सुनाकर गए हैं! मैं आज तक किसी के सामने इस तरह नहीं झुका हूँ, जितना उनके सामने झुका हूँ। और ये सब हुआ है तृषा की वजह से! एक बार घर आने दो उसे!"


    मीनाक्षी जी ने तुरंत कहा,

    "खबरदार! अगर मेरी बेटी को कुछ कहा तो!"


    रावत मेंशन


    जानवी जल्दी-जल्दी किचन में हाथ चला रही थी। एक्चुअल में उसे खाना बनाना तो आता था, पर वह कुछ ज़्यादा ही नर्वस थी अपनी पहली रसोई को लेकर। एक तो इस घर में कोई भी फ़ीमेल मेड नहीं थी, सब मेल्स थे। उनके बीच से खाना बनाना थोड़ा अजीब भी लग रहा था।


    दीक्षांत उसे पूरी तरह कम्फ़र्ट करने की कोशिश कर रहा था। वहीँ समर्थ तो पता ही नहीं कहाँ उलझा था। वह तो नई मुसीबत ढूँढ रहा था। उसके हाथ में किसी की फ़ोटो थी और यह और कोई नहीं, बल्कि तृषा थी। वह इसे ही ढूँढ रहा था। उसने किसी को कॉल लगाते हुए कहा,

    "मैं तुम्हें कल तक का टाइम देता हूँ। मेरे घरवालों से पहले मुझे पता चलना चाहिए यह लड़की कहाँ है। इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे भाई को धोखा देने की?"

    तो सामने वाले ने कहा,

    "जी बॉस, हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। हमने उनके घर के आस-पास के सभी इलाकों की फ़ुटेज देखने की भी कोशिश की है। जैसे ही हमको पता चलता है, हम सबसे पहले आप ही को इन्फ़ॉर्म करेंगे।"

    समर्थ ने गुस्से में कहा,

    "आखिर में तो देखूँ, इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे भाई को रिजेक्ट करने की यह?"


    ऊपर से समर्थ का अलग दुःख था। उसकी वजह से उसका क्रश उसकी भाभी बन चुकी थी। वहीँ अमर भी नहाकर रेडी हो चुका था। उसने इस वक़्त व्हाइट शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी थी और ऊपर से ब्लैक जैकेट, और इस लुक में काफी ज़्यादा कूल लग रहा था।


    वह अपनी रिस्ट वॉच बाँधते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था कि उसकी नज़र जानवी पर गई, जो दीक्षांत को कुछ समझा रही थी।

    "दीक्षांत जी, मैंने पूछा मीठे में क्या बनाऊँ, ना कि मिठाई में क्या बनाऊँ। मुझे मिठाई बनाना नहीं आता है, पर मैं खीर बना सकती हूँ, हलवा बना सकती हूँ। मीठे में क्या बनाऊँ और मिठाई में क्या बनाऊँ, में बहुत ज़्यादा फर्क होता है।"


    दीक्षांत ने सर खुजाते हुए कहा, "पर भाभी जान, क्या मिठाई मीठी नहीं होती है?"

    जानवी ने फ्रस्ट्रेशन में अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "जी, देवर की होती है, पर मैं मिठाई नहीं बन सकती हूँ। उसके लिए तो बहुत ज़्यादा टाइम लगता है। आप यह बताओ, आपको किस चीज़ का हलवा पसंद है?"

  • 7. His Displaced bride - Chapter 7

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    दीक्षांत ने छोटा सा मुँह बनाते हुए कहा,

    "पर मुझे तो गुलाब जामुन पसंद हैं।"


    तभी अमर ने तेज आवाज़ में कहा,

    "जब वह बोल रही है उसे नहीं बनाना आता तो तुम मार्केट से मँगवा लो।"


    अमर की आवाज़ सुनकर जानवी का दिल जोरों से धड़क उठा था। उसने धीरे से नज़र उठाते हुए अमर की तरफ़ देखा। और वह इतना ज्यादा हैंडसम लग रहा था कि जानवी अपनी शर्म भूलते हुए बस उसे एकटक घूरने लगी। उसकी नज़र खुद पर ऐसे महसूस करके अमर के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान आ चुकी थी। आखिर कोई भी पति खुश होगा अगर उसकी पत्नी उसे इस तरह देखे।


    दीक्षांत ने कहा,

    "ठीक है, फिर तुम सब बता दो क्या पसंद है तुम्हें। मैं जा रहा हूँ। मुझे तो गुलाब जामुन नहीं खाने थे। मीठे में फ़र्क़ होता है, मिठाई में फ़र्क़ होता है। मेरा दिमाग खराब हो चुका है।"


    समर्थ भी अपने कमरे की तरफ़ से आते हुए बोला,

    "तेरा दिमाग सही कब था जो खराब हो रहा है?"


    दीक्षांत ने आँखें छोटी करते हुए कहा,

    "तुम कहाँ थे इतनी देर से? कब से भाभी अकेली बोर हो रही है, पर नहीं जनाब, तो बिज़ी हैं। तुमसे तो ज़्यादा ही सही है मेरा दिमाग।"


    जानवी ने जब देखा कि यह तीनों ही आपस में उलझ पड़ेंगे, उसने उनके बीच में बोलते हुए कहा,

    "ठीक है, आप तीनों अपनी पसंद की मिठाई बता दीजिये। मैं सब बना लूँगी।"


    समर्थ ने तुरंत कहा,

    "मिस ब्यूटीफुल, मुझे गाजर का हलवा पसंद है।"


    दीक्षांत ने उसकी बात काटते हुए कहा,

    "नहीं, भाभीजान, मुझे मूँग दाल का हलवा पसंद है।"


    अब जानवी ने अमर की तरफ़ देखते हुए धीमी आवाज़ में कहा,

    "अब आप ही बता दीजिये, आपको कौन सा हलवा पसंद है?"


    अमर ने शरारती मुस्कराहट लिए कहा,

    "मुझे वह वाला पसंद है जो मेरी पत्नी अपने हाथों से बनाएगी।"


    जानवी की पलकें शर्म से झुक गईं। वहीं अमर ने समर्थ को घूरते हुए कहा,

    "यह 'मिस ब्यूटीफुल' कहना बंद करो। तुम्हारी भाभी है ये अब।"


    उसकी इस चेतावनी को देखकर दीक्षांत को हँसी आ रही थी, तो वहीं समर्थ का मुँह उतर गया। उसने धीरे से कहा,

    "पर भाई, यह ब्यूटीफुल तो है ही ना। अब भाभी बन गई है तो क्या ब्यूटीफुल नहीं है?"


    अमर ने दाँत पीसते हुए कहा,

    "ब्यूटीफुल नहीं, बहुत ज़्यादा ब्यूटीफुल है, पर तुम इसे भाभी ही बुलाओगे।"


    समर्थ ने अमर से नज़रें फिरते हुए कहा,

    "भाई, यह तो जुल्म कर रहे हो आप मेरे साथ।"


    अमर ने दोनों हाथ अपने सीने पर बांधते हुए कहा,

    "पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे ऊपर रहने वाला हूँ। कहो इसे भाभी, अभी के अभी कहो।"


    समर्थ ने धीरे से कहा,

    "हाँ, भाभी, मेरे लिए गाजर का हलवा बना दो।"


    समर्थ के चेहरे पर खुशी साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी। वहीं यह सुनकर अमर के चेहरे पर प्राउड वाली मुस्कान आ गई, पता नहीं उसने कितना ही बड़ा काम कर दिया हो। वहीं समर्थ ने धीरे से कहा,

    "ठीक है, मिस ब्यूटीफुल, अब मैं चलता हूँ।"


    इतना बोलकर समर्थ तेज कदमों से घर के बाहर चला गया। वहीं अमर तो पीछे से बस आँखें निकालते हुए उसे देखा ही रह गया। और दीक्षांत ने जानवी की तरफ़ हाई-फ़ाइव देते हुए कहा,

    "भाभी, बहुत मज़ा आएगा आप देखना, इन दोनों भाइयों की लड़ाई देखने में। हम दोनों देवर-भाभी बस एन्जॉय करेंगे।"


    अमर ने दीक्षांत से पूछा,

    "आज कल्याण जी नहीं दिख रहे? क्या उनकी हुकूमत नई बहू आते ही ख़त्म हो गई?"


    यह सुनकर दीक्षांत के चेहरे पर सीरियस एक्सप्रेशन आ गए और उसने कहा,

    "हाँ, बता दूँ। मैं तुम्हें थोड़ी देर में कुछ ज़रूरी काम से गया हूँ।"


    वहीं जानवी के सर पर काम और ज़्यादा बढ़ चुका था, तो वह बिना टाइम गँवाए तुरंत ही वहाँ से किचन की तरफ़ चली गई। और दीक्षांत ने उसके जाते ही कहा,

    "मल्होत्रा हाउस गए हैं, तृषा के बारे में पूछने।"


    अमर ने गहरी आवाज़ में कहा,

    "मिस तृषा मल्होत्रा! वह इतना बड़ा प्रपोज़ल ठुकरा के कैसे भाग सकती है? कुछ तो गड़बड़ है।"


    दीक्षांत ने कहा,

    "हाँ, मुझे भी कुछ सही नहीं लग रहा है। मैंने अपने आदमी लगा दिए हैं। बहुत जल्दी पता चल जाएगा कि आखिर वह गई कहाँ है, क्योंकि अभी रजत अंकल को कॉल आया था, वह अपने घर पर तो नहीं है।"


    अमर ने एक नज़र किचन की तरफ़ देखते हुए कहा,

    "हाँ, ठीक है। तुम जाओ अपने गुलाब जामुन खरीदने और मैं जाता हूँ अपनी गुलाब जामुन के पास, उसकी हेल्प करने।"


    दीक्षांत के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गई और वह मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया। और अमर किचन में गया जहाँ उसकी पत्नी अब गाजर काट रही थी।


    अमर ने उसकी साड़ी से झाँकते हुए, पतली सी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए कहा,

    "तो कैसी रही पहली सुबह बीवी, तुम्हारे नए घर में?"


    अमर के ठंडे हाथ अपनी कमर पर महसूस करके जानवी एकदम से सँकची और फिर हिचकिचाते हुए बोली,

    "अमर जी, मैं खाना बना रही हूँ अभी। आप मुझे छेड़ना बंद कीजिये।"


    अमर ने अपने ठंडे होंठ उसकी गर्दन पर रखते हुए कहा,

    "क्यों? अच्छा नहीं लगता मेरा टच तुम्हें?"


    जानवी की आँखें बंद हो चुकी थीं। वहीं अमर के हाथ उसकी कमर पर फिसल रहे थे और उसके गीले होंठ उसकी गर्दन पर थे। जानवी खुद की सिसकियों को रोकने की कोशिश कर रही थी कि अचानक किसी के खांसने की आवाज़ आई। और जानवी एकदम से होश में आते हुए अमर की पकड़ से निकलने की कोशिश करने लगी। अमर जो उसकी लैवेंडर खुशबू में कहीं खो सा गया था, एकदम से होश में आते हुए पीछे मुड़कर देखा, उसकी आँखें फैल गईं क्योंकि सामने रजत जी खड़े थे।


    रजत जी अब भी आँखें छोटी करते हुए अमर को घूर रहे थे। जिससे अमर बिल्कुल हड़बड़ा चुका था। रजत जी ने देखा जानवी को अनकम्फ़र्टेबल फील हो रहा है, तो उन्होंने किचन से मुड़ते हुए कहा,

    "मुझे बाहर आकर मिलो, जल्दी से। बहुत ज़रूरी काम है।"


    अमर ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा,

    "जी, डैड।" और फिर एक नज़र जानवी की तरफ़ देखते हुए रजत जी के पीछे-पीछे किचन से चला गया।

  • 8. His Displaced bride - Chapter 8

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    वही जानवी अब सीने पर हाथ रख, खुद की साँसों को कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रही थी। पहले ही दिन उसे इतनी एम्बेरेसिंग सिचुएशन का सामना करना पड़ा, उसने कभी सोचा नहीं था।

    ऊपर से अमर का यह एहसास उसके दिल में हलचल मचा रहा था। उसने तो दिल में ठाना था कि वह तृषा का इंतज़ार करेगी और वह अमर और खुद के रिश्ते को आगे नहीं बढ़ने देगी। पर अमर की ये कोशिशें शायद उसके दिल में चल रहे इस ख्याल को ख़त्म कर रही थीं। अमर का हर टच उसे अपने पेट में तितलियाँ उड़ते हुए महसूस करवा रहा था।

    वह अभी सोच में गुम थी कि फिर से किसी के खांसने की आवाज़ आई। उसने पीछे मुड़कर देखा। पर थैंक गॉड, इस बार रजत जी नहीं, बल्कि समर्थ था।

    समर्थ ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा,
    "मिस ब्यूटीफुल, ऐसे अगर तुम सपनों की दुनिया में खोती रहोगी तो क्या हम आज हलवा खा पाएँगे? अभी तो तुमने शुरू भी नहीं किया है उसे बनाना।"

    जानवी ने हाथ बढ़ाते हुए फिर से गाजर को लेकर छीलते हुए कहा,
    "सॉरी, बस हम वह कर ही रहे थे। आप चिंता मत कीजिए, हम टाइम पर हलवा बना देंगे आपके लिए।"

    समर्थ ने पैंट की जेब में दोनों हाथ डालते हुए कहा,
    "नो सॉरी। और हम चिंता कर भी नहीं रहे हैं। अगर हमारी मिस ब्यूटीफुल लेट खाना बनाएगी, तब भी चलेगा। आज तो हर हाल में तुम्हारे हाथ का खाना खाना है मुझे।"

    जानवी समर्थ की बात सुनकर अब रजत जी के सामने हुई उस सिचुएशन को भूल चुकी थी। जिस वजह से वह मुस्कुराते हुए अब खाना बनाने में लग गई।

    समर्थ और कुछ कह पाता, उससे पहले ही उसके फ़ोन पर एक नोटिफ़िकेशन आया। जिसे देखकर समर्थ के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई और वह तेज कदमों से किचन से बाहर चला गया।

    समर्थ ने उसे नोटिफ़िकेशन में आए मैसेज को पढ़ते हुए कहा,
    "बहुत जल्दी तुम्हारा पता भी मेरे हाथ में होगा, जैसे यह फ़ोटो है।"

    समर्थ ने एकटक तृषा को देखते हुए कहा, "यह तृषा की तब की पिक्चर थी जब वह अपनी शादी से भागी थी।" समर्थ को यह पता लग चुका था कि सबसे पहले तृषा शादी से भागकर कौन सी ट्रेन में बैठी थी। अब बस जहाँ-जहाँ वह ट्रेन रुकी थी, वहाँ-वहाँ समर्थ के आदमी तृषा को ढूँढने में लगे थे।

    वहीँ हॉल में रजत जी दोनों हाथ बाँधे अमर के सामने खड़े थे और अमर भी छोटा सा मुँह बनाए उनके सामने खड़ा था।

    रजत जी ने तेज आवाज़ में कहा,
    "क्या वह आज से ही तुम्हारे साथ कम्फ़र्टेबल हो गई है जो तुम उसे इस तरह छेड़ रहे थे? और वैसे भी तुम्हारी शादी उससे नहीं होने वाली थी, तो वह बेचारी इस शादी के लिए तैयार भी नहीं थी। ज़बरदस्ती उसे दुल्हन बना दिया गया और उसके गले बाँध दिया तुम्हें।"

    अमर ने माथे पर बल डालते हुए कहा,
    "मैं कोई जानवर हूँ जो उसके गले बाँध दिया? मैं एक इंसान हूँ और वह मेरी बीवी है। आप मेरा हक़ लेने से मुझे कैसे रोक सकते हैं? आपको जो करना है करिए और उसे कैसे कम्फ़र्टेबल करना है ये मुझे पता है। बस मैं भी मानता हूँ कि उसके साथ यह जो हुआ है वह गलत हुआ है, पर एक बार जो हो चुका है वह तो नहीं बदला जा सकता है।"

    कल्याण सिंह जी ने रजत जी के कंधे पर हाथ रखते हुए गंभीर लहजे में कहा,
    "रजत, अमर बिलकुल सही बोल रहा है। अब तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो, तुम्हारी बहू तृषा तो नहीं बन पाएगी।"

    रजत जी ने कल्याण सिंह जी की तरफ़ देखते हुए कहा,
    "पर पापा, मैं कब कह रहा हूँ मुझे तृषा ही अपनी बहू चाहिए थी? मैं बोल रहा हूँ उस बच्ची को थोड़ा टाइम दो, घुलने-मिलने का। वैसे ही इस घर में कोई लेडी नहीं है जो उसे कुछ समझा पाए या जिससे वह अपने दिल में चल रहे ज़ज़्बाते बता पाए। और ना ही अमर की माँ उसे समझाने के लिए है कि लड़कियों के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिए। तो मुझे एक माँ और बाप दोनों की तरह अमर को समझाना पड़ेगा। पास्ट में और जानवी के साथ क्या-क्या हुआ है यह आप बखूबी समझ सकते हैं। मल्होत्राज़ को आप बहुत अच्छे से जानते हैं, उन्होंने उस बच्ची की ज़िन्दगी जीना हराम कर रखा था, एक तरीके से नर्क।"

    कल्याण सिंह जी ने आँखें दिखाते हुए रजत जी को ना बोलने का इशारा किया क्योंकि अमर की भौंहें तन चुकी थीं। जानवी की ज़िन्दगी नर्क कैसे बना सकता है कोई?

    अमर तुरंत ही वहाँ से वापस आ गया। उसके दिमाग में अब बहुत कुछ चल रहा था। क्या वाकई में मल्होत्राज़ ने जानवी की ज़िन्दगी नर्क बना रखी थी या सिर्फ़ यह एक अफ़वाह थी? पर अगर इस अफ़वाह में जरा सी भी सच्चाई है, तो अमर अब मल्होत्राज़ की ज़िन्दगी ज़रूर नर्क में बदल देगा।

    क्योंकि अमर को शायद जानवी से फ़र्स्ट साइट वाला लव हो गया था, वह भी उसकी मासूमियत देखकर। पहले तो उसे भी लग रहा था शायद जानवी ने उसके साथ धोखा किया है, पर जब उसने जानवी की बातें सुनीं, उसका रोना सुना, तो उसे बिलकुल समझ आ गया कि उसकी जानवी में कितनी मासूमियत है। वह किसी को धोखा कैसे दे सकती है?

    वहीं जानवी बहुत ज़्यादा खुश थी क्योंकि फ़ाइनली उसने सब कुछ रेडी कर लिया था। हलवा बनाने के लिए उसने जल्दी से एक कढ़ाई चढ़ाई और उसमें घी डालते हुए अपने मन में बोली,
    "हे कान्हा जी, मैं अपने ससुराल में पहली रसोई बना रही हूँ। बस आज कोई गलती मत करवाना मुझे।"

    इतना बोलते हुए वह फिर से अपने काम में जुट गई। वहीँ अमर अब स्टडी रूम में चला गया था जहाँ दीक्षांत पहले से लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। अमर उसके बगल में बैठते हुए बोला,
    "क्या मेरे ससुराल वालों के बारे में जानकारी मिल सकती है? मुझे उनके बारे में हर छोटी से छोटी चीज़ जाननी है।"

  • 9. His Displaced bride - Chapter 9

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    जानवी किसकी बेटी थी और क्यों वह अपने अंकल-आंटी के घर ऐसे रह रही थी, यह जानने के लिए दीक्षांत सोच में डूबा हुआ था।

    दीक्षांत ने कहा,
    "हाँ, मैं भी सोच ही रहा था इस बारे में। मैंने तुम्हारे असिस्टेंट को भी बोल दिया है। वह जल्दी तुम्हें इस सब के बारे में अपडेट दे देगा।"

    और तृषा के बारे में समर्थ पता लगवा रहा था, इसलिए चिंता करने की ज़रूरत नहीं थी। समर्थ जैसा पागल इंसान जिसके पीछे पड़ जाए, उसका पता निकले बिना वह उसका पीछा बिलकुल नहीं छोड़ेगा।

    अमर ने सिर हिलाया और अपना लैपटॉप ऑन करते हुए उसमें कुछ काम करने लगा।

    देखते-देखते सुबह के 11:00 बज चुके थे। जानवी जल्दी-जल्दी ब्रेकफास्ट डाइनिंग टेबल पर लगा रही थी। उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वह यह सब बनाकर कितनी खुश है। पहली बार उसे लग रहा था कि वह अपनों के लिए कुछ कर रही है। वरना, घर में उसके साथ जैसा बर्ताव होता था, उसे हमेशा लगता था कि यह उसका घर नहीं, बल्कि उसके अंकल-आंटी का घर है और वह सिर्फ़ एक नौकर की तरह काम करती है; वह उन पर बोझ है। पर यहाँ आकर उसे ऐसा बिलकुल भी महसूस नहीं हुआ था।

    समर्थ ने खाने की खुशबू लेते हुए कहा,
    "वाह! मिस ब्यूटीफुल, लगता है खाना भी बहुत लाजवाब बना लेती हो। बहुत अच्छी खुशबू आ रही है।"

    यह सुनकर जानवी का दिल झूम उठा। इतने समय की मेहनत रंग लाई थी। रजत जी और कल्याण सिंह जी भी वहाँ चेयर पर बैठते हुए बोले,
    "हमारे मुँह में तो पानी आ गया है। अब और इंतज़ार नहीं हो रहा है, जल्दी से परोसो खाना।"

    समर्थ ने कहा,
    "मैं भाई को और दीक्षांत को बुलाकर लाता हूँ। इस बीच तुम प्लेट लगाओ।"

    कल्याण सिंह जी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,
    "जानवी तुम्हारी भाभी है, तुम कैसे 'तू-तड़के' से बात कर रहे हो इसके साथ?"

    समर्थ ने छोटा सा मुँह बनाते हुए कहा,
    "अरे कल्याण सिंह जी, यह मेरी क्रश है और मुझे आगे भी तो छोटी ही लगती है।"

    कल्याण सिंह जी ने आँखें छोटी करते हुए कहा,
    "बेशर्म! अपनी भाभी को क्रश बोलते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें? और उम्र में छोटी हुई तो क्या हुआ? रिश्ते में तो बड़ी है ना तुमसे। तेरे बड़े भाई की बीवी है यह।"

    समर्थ ने कहा,
    "तो कल्याण सिंह जी, इसमें मेरी क्या गलती? भाई को मेरी क्रश ही मिली थी शादी करने के लिए। और वैसे भी यह मेरी क्रश पहले बनी थी और भाभी बाद में। तो मैं 'मिस ब्यूटीफुल' ही बुलाऊँगा, चाहे जो हो जाए।"

    इतना बोलकर समर्थ मुँह बनाते हुए दीक्षांत की तरफ़ चला गया। वहीं जानवी को कल्याण सिंह जी का नाम बार-बार सुनकर हँसी आ रही थी।

    पहले उसे बुरा लगता था कि समर्थ, अमर और दीक्षांत अपने दादू की रिस्पेक्ट नहीं करते हैं। पर अब उसे समझ आ रहा था कि यह कोई डिसरेस्पेक्ट वाली बात नहीं थी; बस वे प्यार से कल्याण सिंह जी को उनके नाम से बुलाते हैं और शायद कल्याण सिंह जी को इसमें कोई प्रॉब्लम भी नहीं है।

    वहीँ अमर और दीक्षांत भी अब नीचे आ गए थे। अमर को देखकर जानवी के गाल शर्म से लाल हो गए थे और उसकी पलकें झुक गई थीं, जिन्हें देखकर अमर का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।

    वह पाँचों खाना खाने बैठे तो जानवी टकटकी लगाकर उन्हें देख रही थी। उसके चेहरे पर बिलकुल वैसे एक्सप्रेशन थे जैसे कोई एग्ज़ाम के बाद रिजल्ट का इंतज़ार करता है।

    कल्याण सिंह जी ने एक बाइट लेते ही आँखें बंद करते हुए कहा,
    "वाह बेटा जी! क्या खाना बनाया है!"

    रजत जी ने भी मुस्कुराते हुए कहा,
    "हाँ, बहुत अच्छा खाना बना लेती हो बेटा।"

    दीक्षांत को तो खाने से फुर्सत नहीं थी; बहुत तेज़ी से खा रहा था।

    समर्थ ने कहा,
    "मिस ब्यूटीफुल, तुम्हारे हाथ के खाने ने लोगों के मैनर्स तक छुड़वा दिए! क्या लाजवाब खाना है!"

    दीक्षांत ने घूरते हुए समर्थ को देखा, जिससे समर्थ को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। पर दूसरी तरफ़ से अमर की जलती नज़रें उसे खुद पर महसूस हो रही थीं। उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ रहे थे। उसने जल्दी से कहा,
    "भाभी, ज़रा हलवा और डालना।"

    अमर ने गहरी आवाज़ में धीरे से कहा,
    "भाभी नाम ही निकलना चाहिए तेरे मुँह से, वरना बोलने के लिए ज़ुबान नहीं बचेगी।"

    समर्थ ने जल्दी-जल्दी खाना खाते हुए कहा,
    "नहीं-नहीं, मेरी इकलौती ज़ुबान से बहुत प्यार है मुझे।"

    सब लोगों ने जानवी के खाने की तारीफ़ कर दी थी, बस अमर ने नहीं, जिससे जानवी का खूबसूरत चेहरा उतर गया था। उसे देखकर लग रहा था वह किसी भी पल रो देगी।

    सब लोग, खाना टेस्टी होने की वजह से, जल्दी-जल्दी खा रहे थे, पर अमर ने अब तक सिर्फ़ दो-तीन चम्मच हलवा खाया था। अब तो जानवी को पक्का यकीन हो गया था कि अमर को उसके हाथ का खाना बिलकुल भी पसंद नहीं आया होगा। पर अमर के दिल और दिमाग में क्या चल रहा था, यह सिर्फ़ अमर ही जानता था।

    सब एक-एक करके खाना खाकर वहाँ से जा चुके थे। डाइनिंग टेबल पर सिर्फ़ अमर ही रह गया था और साइड में सिर झुकाए जानवी खड़ी थी। जानवी कुछ सोच या समझ पाती, उससे पहले ही अमर ने उसका हाथ पकड़ते हुए उसे अपनी गोद में बिठा लिया। जानवी एकदम से चौंकते हुए आँखें बड़ी करके अमर की आँखों में एकटक देखने लगी। अमर की गहरी आँखें भी जानवी को बड़ी बेसब्री से देख रही थीं। पर उसकी आँखों की तपिश जानवी के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया था। उसने झट से अपनी घनी पलकें झुका लीं। उसकी इस हरकत पर अमर का दिल बहुत तेज़ी से धड़कने लगा। शायद उसकी लाइफ़ में जानवी पहली लड़की थी जिसके लिए उसे इस कदर फील हो रहा था।

    कहानी आगे बढ़ेगी... जानने के लिए अगला भाग पढ़ना बिलकुल ना भूलें!

  • 10. His Displaced bride - Chapter 10

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमर ने जानवी की झुकी पलकों को एकटक देखते हुए कहा,

    "ऐसे मुँह क्यों लटकाया है?"

    जानवी ने धीरे से पूछा,

    "आपको खाना पसंद नहीं आया? मैंने बहुत दिल से बनाया था। सबको पसंद आया, पर आपको नहीं?"


    अमर ने उसके चेहरे पर आते बालों को उसके कान के पीछे करते हुए कहा,

    "पर मैंने तो ऐसा नहीं कहा कि मुझे खाना पसंद आया या नहीं आया।"


    जानवी ने उसकी प्लेट की तरफ़ एक नज़र देखते हुए कहा,

    "पर आप ऐसे मन मार खा रहे थे, जैसे कोई ज़बरदस्ती खिला रहा हो। तो इसका यही मतलब हुआ कि आपको खाना पसंद नहीं आया और आपने बस एक-दो बाइट ही लिया है।"


    इतना बोलते-बोलते जानवी की आवाज़ रुआँसी हो गई थी, जैसे किसी भी पल वह रो देगी।


    अमर ने उसका चेहरा ऊपर की तरफ़ किया और उसके माथे पर हल्के से किस करते हुए कहा,

    "बीवी, इतना इमोशनल नहीं होना चाहिए। Just because किसी को तुम्हारा खाना नहीं पसंद आया और तुम्हारी इन खूबसूरत आँखों में आँसू आ गए, thats not fair।"


    जानवी की पकड़ अमर की शर्ट पर कस गई थी। उसने फिर से उसी उदास आवाज़ में कहा,

    "बात किसी की होती तो मैं कभी उदास नहीं होती, पर आप... आपको नहीं पसंद आया तो मैं..."


    इतना बोलकर जानवी रुक गई। तो अमर ने आईब्रो उठाते हुए पूछा, "तो तुम?"


    जानवी एकदम से उसके सीने से लगते हुए बोली,

    "तो मैं रोने लग जाऊँगी।"


    इतना बोलते ही, इतनी देर जो आँसू उसने कण्ट्रोल कर रखे थे, बिना उसकी मर्ज़ी के ही बह उठे।


    अमर को जैसे ही अपने शर्ट पर कुछ गीला महसूस हुआ, उसने तुरंत ही जानवी का चेहरा अपने सीने से निकालते हुए अपने हाथों में भर लिया और फिर उसकी भीगी पलकों को चूमते हुए बोला,

    "अरे तुम तो रोने लग गई! मैं तो मज़ाक कर रहा था। भला तुम्हारा, तुम्हारे हाथ का बनाया खाना मुझे कैसे पसंद नहीं आता? मैं तो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था। एक पत्नीव्रत पति बनने की कोशिश कर रहा था। जैसे कोई भी पत्नी अपने पति से पहले खाना नहीं खाती है, मैं वैसा पति बनना चाहता हूँ जो अपनी पत्नी से पहले खाना ना खाए, और तुम रोने ही लग गई।"


    जानवी ने हिचकी लेते हुए उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? पत्नीव्रत पति? और सच-सच बोल रहे हैं ना कि आपको खाना पसंद आया?"


    अमर ने उसके गालों पर आए आँसू अपने हाथों से पोंछते हुए कहा,

    "हाँ बेबी, शत-प्रतिशत सच बोल रहा हूँ। एकदम सत्यवादी हरिश्चंद्र के जैसे। चलो अब रोना-धोना बंद करो और यह टेस्टी हलवा टेस्ट करके देखो। सच में सब रेस्टोरेंट फ़ेल हैं इसके आगे।"


    इतना सुनते ही जानवी के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। पर जैसे ही वह मुड़ी, उसे महसूस हुआ वह अभी भी अमर की गोद में बैठी है। जिससे उसने डरते हुए इधर-उधर देखकर कहा,

    "कोई देख लेगा। आपको शर्म नहीं आती है? पर मुझे बहुत शर्म आती है। मैं आपकी गोद में बैठकर खाना नहीं खा सकती हूँ।"


    यह सब जानवी ने पलकें झुकते हुए बोला था, जिससे अमर के दिल में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। पर अपनी प्यारी सी बीवी का दिल रखने के लिए उसने फिर से उसे बाहों में भरते हुए कहा,

    "ठीक है। अगर मेरी बीवी को शर्म आती है तो हम रूम में बैठकर खाना खाया करेंगे। फिर कोई नहीं देखेगा।"


    जानवी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,

    "मतलब यह ज़रूरी थोड़ी है कि आप मुझे गोद में बिठाकर ही खाना खिलाएँ? मैं कोई छोटी बच्ची थोड़ी हूँ? मैं साइड में बैठकर भी खा सकती हूँ।"

    "और मुझे अब आपसे कोई बहस नहीं करनी है।"


    जानवी ने मुँह फुलाते हुए कहा।


    तो अमर ने मुस्कुराते हुए उसकी कमर पकड़ कर उठाते हुए उसे साइड चेयर पर बिठा दिया। और बिलकुल ऐसे उठाकर बैठाया था जैसे वह कोई गुड़िया हो।


    जानवी हैरानी से अमर को देख रही थी, पर दिल ही दिल शुक्र मना रही थी। उसने छोड़ तो दिया उसे, वरना अमर उसे इतना ज़िद्दी इंसान लग रहा था जो किसी भी हाल में अपनी बात मनवा के रहता है।


    रजत जी थोड़ी दूरी से उन दोनों को देख रहे थे और अपने बेटे को इस तरह से खुश देखकर वह बहुत ही ज़्यादा खुश थे। उनकी आँखों में हल्की नमी थी। उन्होंने आँखें बंद करते हुए कहा,

    "शैली, अगर आज तुम ज़िंदा होती तो देखती, तुम्हारा बेटा कितना खुश है। उसने बचपन में जितना झेला है, अब उसके बदले भगवान ने झोली भर के उसे खुशियाँ दे दी हैं, वह भी जानवी के रूप में।"


    दूसरी तरफ़ समर्थ खाना खाते ही घर से निकल चुका था। वह बहुत तेज़ी से गाड़ी ड्राइव कर रहा था। उसके कान में एक ब्लूटूथ लगा था, जिससे वह किसी से बार-बार बातें कर रहा था।


    उसने फिर से ब्लूटूथ को ऑन करते हुए कहा,

    "सुकेश, मुझे अभी के अभी उसकी करंट लोकेशन चाहिए। मैं कल तक का वेट नहीं कर सकता हूँ। मुझे जल्द से जल्द उससे मिलना है।"


    यह सब समर्थ ने थोड़ा गुस्से में कहा था।


    जिससे सामने वाले ने जल्दी से कहा,

    "यस सर, मैं आपको लोकेशन भेज रहा हूँ। पर आपको यहाँ आते-आते शाम हो जाएगी। मैं बस इसीलिए बोल रहा था कि आप उसे कल मिल लेना। कल हम उसे खुद आपके पास लेकर आएंगे।"


    समर्थ ने कार की स्पीड और ज़्यादा बढ़ाते हुए कहा,

    "तुम मुझे मत सिखाओ कि मुझे क्या करना चाहिए। तुम बस उसकी लोकेशन भेजो और उस पर निगरानी रखो। मैं बस कुछ ही देर में पहुँच रहा हूँ।"


    इतना बोलकर समर्थ ने बिलकुल किसी तूफ़ान की तरह अपनी गाड़ी को सड़क पर दौड़ाना शुरू कर दिया।


    उसने अपना टैब ऑन करते हुए सुकेश ने जो लोकेशन भेजी थी उसे ट्रेस किया और बस उसी दिशा में बढ़ गया।


    मल्होत्रा हाउस का हॉल।


    मीनाक्षी जी ने महेश जी से परेशान होते हुए कहा,

    "ये तृषा का फोन क्यों नहीं लग रहा है? हमने तो बहाना बनाने के लिए कल्याण सिंह से कहा था कि हमारी बेटी नहीं मिल रही, पर वो तो सच में कहीं चली गई है।"

  • 11. His Displaced bride - Chapter 11

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    महेश जी ने अपने कुछ जानकारों को तृषा के पीछे लगा रखा था, पर तृषा का उन्हें कोई पता नहीं चल रहा था।


    मीनाक्षी जी ने चिंता जताते हुए कहा,
    "अगर हमसे पहले तृषा रावत खानदान को मिल गई तो क्या होगा उसके साथ?"


    महेश जी ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,
    "वो उसके साथ कुछ बुरा नहीं करेंगे, बस हमें अपनी खैर मनानी चाहिए क्योंकि अगर तृषा ने सच बोला तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।"


    शाम का वक्त था।


    अमर सुबह नाश्ते के बाद ऑफिस आ चुका था, लेकिन फिलहाल उसका केबिन एक CEO के केबिन की बजाय एक सीक्रेट माफिया के केबिन जैसा लग रहा था। क्योंकि उसके सामने एक आदमी घुटनों के बल बैठा था। उसके मुँह से खून निकल रहा था, सर पर भी गहरी चोटों के निशान नज़र आ रहे थे।


    अमर ने अपनी चेयर पर झुकते हुए कहा,
    "तो वो लिफाफ़ा तुम रिसेप्शनिस्ट को देकर गए थे, hmm?"


    उस आदमी ने डरते हुए धीरे से हाँ में सर हिलाया और फिर अगले ही पल अपनी काँपती, डरी हुई आवाज़ में बोला,
    "पर मुझे नहीं पता था सर, उसके अंदर क्या है? मुझे बस ये कहा गया था कि ये लिफाफ़ा आप तक कैसे भी पहुँचा दिया जाए।"


    दीक्षांत भी पास ही चेयर पर एक पाँव पर दूसरा पाँव रखे स्टाइल से बैठा था। उसने एक तिरछी मुस्कराहट के साथ पूछा,
    "और कौन से बाबा जी ने दिया था ये पर्चा जिसमें अमर की शादी की भविष्यवाणी की गई है और सच भी हो गई? मतलब कमाल!"
    "हमें दर्शन करने चाहिए ऐसे बाबा जी के, कहाँ मिलेंगे ये धन्य महाराज हमें?"


    दीक्षांत ज़रूर ये सब हँसते हुए बोल रहा था, पर सामने बैठे इंसान को पता था कि दीक्षांत कितना सनकी इंसान है, उसकी जान लेने में उसे एक पल नहीं लगेगा।


    उस आदमी ने डर के मारे अपना लार गटकते हुए कहा,
    "मुझे नहीं पता ये कौन है?"


    दीक्षांत ने गर्दन टेढ़ी करते हुए कहा,
    "तो क्या कबूतर ये चिट्ठी तुझे देके गया था? वो भी इस मॉडर्न जमाने में?"


    उस आदमी की अब डर से हालत खराब हो रही थी। अब तक वो पूरी तरह से पसीने से तर-बतर हो चुका था।


    उसने हाथ जोड़ते हुए कहा,
    "उसने मुझे मेरे बच्चे को मारने की धमकी दी थी और जो आदमी ये लिफ़ाफ़ा देके गया था, उसने मास्क पहन रखा था। मैं उसका चेहरा नहीं देख पाया साहब, प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिए।"


    अमर ने गुस्से से अपनी गर्दन रगड़ते हुए अपनी क्रिस्टल ब्राउन आँखों से उस आदमी को घूर कर देखा और अगले ही पल एक खंजर अपनी जेब से निकालते हुए उसकी जाँघ में धँसा दिया। इसी के साथ उसकी एक दर्दनाक चीख पूरे केबिन में गूँज गई।


    आस-पास खड़े अमर के बॉडीगार्ड्स भी एकदम से काँप उठे थे। उसकी चीख बिलकुल दिल दहला देने वाली थी।


    अमर ने दाँत पीसते हुए कहा,
    "बिना बीवी तेरा बच्चा कहाँ से आया बे?"


    उस आदमी की डर के मारे आँखें फैल गईं क्योंकि उसका झूठ पकड़ा गया था।


    दीक्षांत ने हँसते हुए कहा,
    "तेरे सामने जो बैठा है, उसके पास तेरी जन्म-कुंडली से लेकर मरण-कुंडली तक है, तो ज़्यादा होशियारी नहीं दिखा।"


    अमर ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा,
    "ये मुझे भी पता है। तू अपने मालिक को नहीं जानता, पर बड़ा वफ़ादार कुत्ता है। उसके पीछे से उसकी बुराई तू नहीं करता, ना तू उसका नाम लेगा क्योंकि नाम तो तुझे खुद नहीं पता, क्योंकि तेरे मालिक जितना बेईमान इंसान तो इस पूरी दुनिया में नहीं है, छोड़कर मुझे। तो मेरे सामने होशियारी नहीं चलने वाली है।"


    यह सब अमर बहुत ख़तरनाक लहजे में बोल रहा था और बोलते हुए उस खंजर को उस आदमी की जाँघ पर अंदर की तरफ़ घुमा रहा था, जिससे उस इंसान की चीखें लगातार तेज़ी से निकल रही थीं और अमर का खौफ़ बढ़ते पल के साथ लगातार बढ़ रहा था।


    कुछ ही देर में उसकी काफ़ी ज़्यादा स्किन उसकी जींस से बाहर दिखने लगी और उसने रोते हुए कहा,
    "ब-बताता हूँ, मुझे किसने कहा, प्लीज़ अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता।"


    ये सुनकर अमर के पतले, गुलाबी होंठ ऊपर की तरफ़ मुड़ गए और उसने वो खंजर उसकी जाँघ पर ही छोड़ते हुए आराम से चेयर पर झुकते हुए बोला,
    "बस पाँच मिनट हैं, जो बकना है जल्दी बक, आराम की मौत मरेगा, वरना इतना तड़पेगा जिसकी तू कल्पना भी नहीं कर पाएगा।"


    उस आदमी ने लगभग काँपते हुए कहा,
    "पुलिस इंस्पेक्टर हरिवंश यादव ने मुझे वो लिफ़ाफ़ा दिया था।"


    उसके चुप होते ही एक गोली सीधा उसके माथे के बीचों-बीच लगी और अगले ही पल उस आदमी ने दम तोड़ दिया।


    अमर ने आँखें बंद करते हुए अपना सर चेयर पर टिका लिया और हल्की मुस्कराहट के साथ बोला,
    "प्यादा हाथ लगने पर खुशी मनानी चाहिए या उसके मालिक की इस बेवकूफी का जश्न?"


    दीक्षांत एक चिकनी मुस्कराहट लिए अपनी चेयर से उठा और पास की अलमारी से एक वाइन की बोतल निकालते हुए उन बॉडीगार्ड्स को कुछ इशारा किया तो वो तुरंत ही उस इंसान की लाश को वहाँ से ले गए।


    अब केबिन में सिर्फ़ अमर और दीक्षांत रह गए थे।


    दीक्षांत ने वाइन खोलते हुए दो ग्लास में डाला और मुस्कुराते हुए बोला,
    "नेकी और पूछ-पूछ? हम दोनों मनाएँगे, खुशी भी और जश्न भी। मेरे जैसे स्मार्ट दोस्त और एक वाइन की बोतल के होते हुए अमर रावत को सोचने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए।"


    अमर ने एक वाइन का ग्लास उठाया और उठकर ग्लास खिड़की के पास चला गया जहाँ से मुंबई शहर का अच्छा-खासा नज़ारा दिखाई दे रहा था।


    दूसरी तरफ, समर्थ की कार एक पुराने से घर के सामने जाकर रुकी और समर्थ लगभग हाँफते हुए कार से बाहर निकला। उसके मैसी बाल पसीने से भीग कर उसके माथे पर चिपके थे। उसकी गहरी काली आँखें अब भी गुस्से से लाल थीं।


    वो कार से निकल कर तेज कदमों से उस पुराने घर के अंदर जाता है।

  • 12. His Displaced bride - Chapter 12

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    समर्थ अंदर गया जहाँ एक कुर्सी पर एक लड़की बंधी हुई थी। वह लड़की तृषा थी। उसका पूरा चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था; कुछ जगह उसे चोटें भी लगी थीं। किसी के कदमों की आहट सुनकर उसने डरते हुए अपनी निगाहें ऊपर उठाईं। बेहद गुस्से से भरकर समर्थ आ रहा था।

    समर्थ उसके सामने गया और उसके बाल पकड़कर उसका चेहरा ऊपर उठाया। उसकी आँखों में देखते हुए बोला,

    "आखिर तुम मुझे मिल ही गई! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे भाई को धोखा देने की हाँ?!"

    तृषा की हल्की चीख निकली। उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं क्योंकि समर्थ ने उसके बाल काफी कसकर पकड़ रखे थे।

    समर्थ ने एक तिरछी मुस्कान के साथ उसके बाल छोड़ दिए और उस कुर्सी पर झुककर दोनों तरफ हाथ रखते हुए बोला,

    "तुमने रावत फैमिली को धोखा देकर अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की है। जिसकी सजा कितनी भयानक हो सकती है, तुम सोच भी नहीं सकती।"

    तृषा डरी हुई थी। समर्थ की बातें सुनकर वह अंदर तक काँप गई। उसने रोते हुए कुछ बोलने की कोशिश की, पर उसके मुँह पर पट्टी बंधी होने के कारण उसकी आवाज दब गई।

    समर्थ ने दाँत पीसते हुए कहा,

    "अब तुम फड़फड़ाओ मेरी कैद में। तुम्हें मैं ऐसा सबक सिखाऊँगा कि पूरी जिंदगी किसी को धोखा देने का ख्याल भी नहीं आएगा।"

    तृषा की आँखों से आँसू निकलकर उसके गालों को भीगाने लगे। उसने बेबसी से अपना सिर नीचे झुका लिया।


    मुंबई, रावत मेंशन। रात के लगभग ग्यारह बजे। अमर ऑफिस से घर आया। वह बहुत धीमे कदमों से अंदर आ रहा था ताकि कोई न जाग जाए। उसके कमरे की लाइट जल रही थी। उसकी आँखें छोटी हो गईं। क्या उसकी प्यारी बीवी अब तक सोई नहीं थी?

    जैसे ही अमर कमरे में पहुँचा, उसकी निगाहें सोफे पर सोई जानवी पर गईं। सोते वक्त वह बेहद मासूम लग रही थी।

    अमर उसके सामने रखी टेबल पर धीरे से बैठ गया और उसके गालों पर आए बालों को उसके कान के पीछे करते हुए बोला,

    "बीवी, तुम्हारी ये मासूमियत कुछ कर रही है। कैसे रोकूँ खुद को?"

    इतना बोलकर उसने एक नज़र जानवी के होठों पर डाली जो सोने की वजह से हल्के खुले हुए थे। अगले ही पल अमर झुककर उसके नर्म होठों को अपने मुँह में भर लिया। इसी अहसास के साथ उसकी आँखें सुकून से बंद हो गईं।

    वह धीरे-धीरे उसे किस करता हुआ उस पर बिल्कुल झुक चुका था। उसका हाथ कभी उसके बालों में घूम रहा था, तो कभी उसकी गर्दन पर। वह बेसब्र होते हुए कुछ ज्यादा ही गहराई से उसे किस कर रहा था। कुछ ही पलों में जानवी की साँसें उखड़ने लगीं। उसने कसकर अपनी आँखें खोलीं और अमर को खुद पर इस तरह हावी देखकर उसकी आँखें फैल गईं।

    उसने धीरे से अमर के सीने पर हाथ रखते हुए उसे खुद से दूर धकेलने की कोशिश की। अमर जो किसी दूसरी दुनिया में खोया हुआ था, जानवी के हाथ को अपने सीने पर महसूस कर आँखें खोलीं और जानवी की आँखों में देखा। हैरानी और कन्फ्यूजन में जानवी की आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं और वह और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।

    जानवी की साँस फूल रही थी। उसे महसूस करके अमर को ना चाहते हुए भी उसके होठों को आजाद करना पड़ा।

    जानवी ने दो-तीन लंबी साँसें लीं और फिर काँपती आवाज़ में बोली,

    "आप... आप... कब आए और..."

    अमर ने उसके माथे पर किस करते हुए कहा,

    "पहले साँस तो ले लो बीवी।"

    "उसके बाद पूछ लेना जो पूछना है तुम्हें..."

    जानवी ने कुछ पल अपनी बिखरती साँसों को काबू में किया और फिर सोफे पर उठकर बैठते हुए बोली, "मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।" यह सुनकर अमर ने आँखें छोटी करते हुए कहा, "पर मुझे इतनी रात को खाना खाने की आदत नहीं है। मैं हमेशा ही लेट आता हूँ और उसके बाद डायरेक्ट ब्रेकफास्ट ही करता हूँ। तुमने खाना खाया?"

    जानवी ने ना में सर हिलाते हुए कहा,

    "नहीं, मैं आपका इंतज़ार कर रही थी। मुझे लगता है खाना खाने के बाद मुझे जल्दी नींद आ जाती है और मुझे आपके लिए जगना था, इसलिए मैंने खाना नहीं खाया।"

    और फिर जानवी ने मायूसी से सर झुकाते हुए कहा,

    "लेकिन फिर भी मुझे नींद आ गई।"

    उसका इस तरह बना हुआ मुँह देखकर अमर को हँसी आ गई और उसने कहा,

    "कोई बात नहीं, तुम यहाँ आराम करो। मैं लेकर आता हूँ खाना।"

    जानवी ने उसे रोकते हुए कहा, "अरे नहीं, मैं खुद ले आऊँगी।"

    अमर ने आँखें छोटी करते हुए कहा,

    "नींद में हो, कहीं जल जाओगी या फिर पूरा किचन ही जल जाएगा। इसलिए मैं गरम करके लेकर आता हूँ। तुम यहीं रुको।"

    जानवी को यह सुनकर बहुत अजीब लग रहा था। आज तक तो किसी ने उसके लिए कुछ नहीं किया था। वह हमेशा सबकी नौकरानी बनकर रही है, इसलिए इतनी जल्दी यह 'पृंसेस ट्रीटमेंट' उससे हजम नहीं हो रहा था। करीब नौ साल की उम्र में उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद से उसे ऐसी देखभाल कभी नसीब नहीं हुई थी।

    जाने-अनजाने में ही ऐसे दो लोगों की शादी हो चुकी थी जो एक-दूसरे की कमी को बखूबी पूरी करते हैं।

    कुछ देर बाद अमर जानवी को बाहों में भरे सो रहा था। दोनों की आँखों से नींद तो कोसों दूर थी। जानवी का दिल उसकी करीबी से धड़क रहा था, तो अमर का दिल भी जानवी की करीबी से बेतहाशा धड़क रहा था। जानवी ने अपना सिर अमर के सीने में छुपा रखा था और अमर धीरे-धीरे उसके बालों को सहला रहा था।

    ना जाने रात के कौन से पहर दोनों नींद के आगोश में चले गए।


    अगली सुबह, पाँच बजे। तृषा की हालत पानी ना मिलने की वजह से इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि उसे लग रहा था वह किसी भी पल मर जाएगी। तभी उस कमरे का दरवाजा खुला और एक लंबी-चौड़ी परछाई अंदर आई।

  • 13. His Displaced bride - Chapter 13

    Words: 1138

    Estimated Reading Time: 7 min

    तृषा ने मुश्किल से आँखें उठाकर ऊपर देखा।

    सुबह का समय कुछ-कुछ अंधेरा ही था इस कमरे में क्योंकि इसमें एक भी खिड़की नहीं थी। इस वजह से तृषा देख नहीं पा रही थी कि उसके सामने कौन है।

    पर जल्द ही वह शख्स उसके बिल्कुल करीब आ गया। उसके चेहरे को देखकर तृषा के चेहरे पर दहशत साफ नज़र आने लगी।

    क्योंकि यह और कोई नहीं, बल्कि समर्थ ही था। उसकी आँखों का गुस्सा अब भी कम नहीं हुआ था।

    समर्थ ने उसके चेहरे से पट्टी उतारी और तिरछी मुस्कराहट के साथ बोला,
    "How are you sweetheart? I hope you will enjoy this night and the punishment."

    तृषा के लाल होंठ बिल्कुल सूख चुके थे और कुछ जगहों से फट भी गए थे। उसने मुश्किल से टूटती जुबान में कहा,
    "प...पानी।"

    और समर्थ ने साइड में रखे जग से एक गिलास में पानी डालकर तृषा के होंठों से लगा दिया।

    समर्थ ने तृषा के हाथ खोले और उसे उस खंडहर जैसे घर से जबरदस्ती, लगभग घसीटते हुए बाहर ले आया।

    तृषा रोती जा रही थी और खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोल रही थी,
    "प्लीज़ मत करो मुझे टॉर्चर।"

    समर्थ ने एक झटके से उसे कार के पास लाकर फ्रंट सीट का दरवाज़ा खोला और उसे अंदर धक्का देते हुए कहा,
    "ये तो पहले सोचना था। अब तो तुम अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती कर चुकी हो और समर्थ की नज़रों में किसी गलती की माफ़ी नहीं होती, बस सज़ा होती है। समझी?"

    तृषा के हाथ में जोर से लगा और उसकी हल्की चीख निकल गई। उसने रोते हुए कहा,
    "Please try to understand."

    पर समर्थ के सर पर तो जैसे उसे तड़पाने का भूत सवार था। उसने दरवाज़ा जोर से बंद किया और खुद ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।

    सुबह 7 बजे।

    मुंबई, रावत मेंशन।

    अमर का कमरा।

    अमर बिस्तर पर पीठ के बल लेटा था। उसके मैसी बाल उसके फोरहेड पर बिखरे थे। वहीं जानवी जल्दी-जल्दी तैयार हो रही थी क्योंकि सुबह के 7 बज चुके थे।

    आज उसकी थोड़ी देर से नींद खुली थी। वरना अपने घर में तो वह बहुत जल्दी उठ जाती थी, वरना मीनाक्षी हमेशा उस पर चिल्लाती रहती थी।

    अभी जानवी को डर लग रहा था। क्या पता यहाँ के घरवालों को भी उसका लेट उठना पसंद न आए और वह किसी भी कीमत पर इन घरवालों को नाराज़ नहीं करना चाहती थी। क्योंकि इनका यह अपनापन उसे सुकून दे रहा था, जिसे वह ज़िन्दगी भर अपने पास रखना चाहती थी।

    और इसी जल्दबाजी में उसकी चूड़ियाँ बहुत ज़्यादा शोर कर रही थीं जिससे बहुत जल्दी ही अमर की आँखें भी खुल गईं। और शायद यह उसकी सबसे खूबसूरत मॉर्निंग थी क्योंकि आँखें खुलती ही उसका चेहरा शीशे की तरफ़ ही था जिससे उसका जानवी का चेहरा दिख रहा था, जो हड़बड़ाहट के मारे एक पाउट में बदला हुआ था और काफी क्यूट लग रहा था।

    जानवी जल्दी-जल्दी अपने बालों को झटक रही थी क्योंकि उसे ड्रायर करना पसंद नहीं था। उसने जल्दी से बीच की माँग निकालते हुए सिंदूर लगाया और माथे पर बिंदी लगाते हुए खुद से ही बोली,
    "परफेक्ट! अब मैं जल्दी से सबके लिए कॉफ़ी बनाऊँगी।"

    तभी अमर ने धीरे से कहा,
    "और मेरे लिए, बीवी?"

    जानवी जो अपने आप में ही गम थी, अमर की आवाज़ सुनकर उसने वैसे ही खोए हुए कहा,
    "क्यों? आपको कॉफ़ी नहीं पीते हो? आपको भी वही पिला दूँगी।"

    इतना बोलने के साथ ही जानवी की आँखें थोड़ी बड़ी-बड़ी हो गईं क्योंकि उसे रियलाइज़ हुआ कि अमर जाग चुका है। उसने मुड़ते हुए धीरे से कहा,
    "गुड मॉर्निंग। मैं बस सबके बारे में सोच रही थी इसलिए बोल दिया। मैं आपके लिए वही बना दूँगी जो आपको पसंद है। आप मुझे बता दीजिये।"

    अमर के होंठों पर छोटी सी मुस्कान आ गई। उसने कहा,
    "वेरी गुड मॉर्निंग बीवी। वैसे मुझे सबसे ज़्यादा तुम पसंद हो।"

    जानवी कन्फ़्यूज़न में बोली,
    "पर मैं आपके लिए पीने के लिए क्या बनाऊँ, उसकी बात कर रही हूँ।"

    अमर बेड से उठा और जानवी के करीब जाकर उसकी कमर पकड़ते हुए बोला,
    "तो मैं भी पीने की बात कर रहा था बीवी।"

    इतना बोलकर उसने झुकते हुए धीरे से जानवी के होंठों पर किस कर लिया। जिससे जानवी को बिल्कुल 440 वॉट का झटका लगा और शर्म के मारे उसके गाल लाल हो गए। उसने अपने मन में कहा,
    "भगवान जी! कितना ठरकी है मेरा पति! सुबह उठते ही मुझे पीने की बातें कर रहा है! राम राम!"

    अमर ने गर्दन टेढ़ी करते हुए जानवी के नर्वसनेस से भरे चेहरे को देखते हुए कहा,
    "मन ही मन गाली देना गंदी बात होती है। मेरे सामने बोलो जो बोलना है, सब मंज़ूर है। और उससे भी इम्पॉर्टेन्ट बात..."

    अमर ने अपनी बात बीच में काटते हुए उसके कान के करीब जाकर धीरे से कहा,
    "सिर्फ़ ठरकी नहीं हूँ, अल्ट्रा प्रो लेवल ठरकी! But just for you बीवी।"

    इतना बोलकर अमर ने धीरे से उसके ईयर लोब को अपने होंठों से छू लिया और जानवी की पूरी बॉडी में सिहरन दौड़ गई। और उसकी आँखें अपने आप बंद हो गईं।

    अमर की हरकतें और बढ़तीं, उससे पहले ही किसी ने दरवाज़ा खटखटाया और अमर ने दाँत भींचते हुए कहा,
    "ये लोग ना, चैन से मॉर्निंग रोमांस भी नहीं करने देते।"

    जानवी उसे खुद से थोड़ा दूर होते हुए बोली,
    "प्...प्लीज़ देख लीजिये। क्या पता कुछ इम्पॉर्टेन्ट हो?"

    अमर ने गहरी साँस छोड़ते हुए एक नज़र जानवी के मासूम चेहरे को देखा और फिर हल्के से उसके फोरहेड को चूमते हुए उससे दूर हो गया।

    दरवाज़ा पीटने की आवाज़ बढ़ती जा रही थी जिससे अमर ने चिल्लाते हुए कहा,
    "दरवाज़ा तोड़ने का इरादा है क्या?"

    और उसने दरवाज़ा खोला तो सामने दीक्षांत खड़ा था। उसने बत्तीसी दिखाते हुए कहा,
    "Good morning! चल, तुझे कुछ बताना है।"

    फिर उसने झुककर जानवी को देखते हुए कहा,
    "Good morning भाभीजान।"

    जानवी ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा,
    "Good morning।"

    अमर ने कहा,
    "आ रहा हूँ, फ्रेश होकर।"

    दीक्षांत ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
    "नहीं, अभी चल! I said important, समझा?"

    अमर ने मुड़ते हुए जानवी को देखा और फिर दीक्षांत के साथ चला गया।

    जानवी ने हल्की सी मुस्कराहट के साथ एक बार खुद को मिरर में देखा और फिर जल्दी से रूम से निकल गई।

    वह नीचे गई, सबसे पहले रजत जी और कल्याण सिंह जी के पैर छुए, फिर मंदिर में दिया जलाकर वह किचन में चली गई।

    रजत जी और कल्याण सिंह जी काफी खुश थे। उनके घर में जानवी के आने से जैसे अलग रौनक आ चुकी थी। यह घर अब घर जैसा लगने लगा था।

  • 14. His Displaced bride - Chapter 14

    Words: 1382

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह लगभग दस बजे जानवी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता सजा रही थी। अमर और दीक्षांत नहाकर तैयार हो चुके थे। उन्हें कहीं जरूरी जाना था, इसलिए वे जल्दी में थे।


    रजत जी और कल्याण सिंह जी हॉल में आते हुए बोले,
    "ख़ुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है।"


    उनके यह कहते ही जानवी का चेहरा खिल उठा। अमर और दीक्षांत जैसे ही सीढ़ियों से उतरे, रजत जी ने कहा,
    "नाश्ता करके जाओ, जहाँ जाना है।"


    अमर आगे बढ़ते हुए बोला,
    "इम्पॉर्टेन्ट है, डैड। आकर करता हूँ मैं आपके साथ डिनर।"


    कल्याण सिंह जी ने आँखें छोटी करते हुए कहा,
    "बहू ने बड़े चाव से बनाया है तुम सबके लिए।"


    अमर ने हल्की सी मुस्कान के साथ एक नज़र जानवी को देखकर कहा,
    "कल्याण सिंह जी, उसने चाव से बनाया है तो आप चाव से खा लीजिए।"
    "मैं तो आकर ही खाऊँगा..."


    दीक्षांत ने एक नज़र जानवी को देखकर कहा,
    "सॉरी भाभी, इट्स अर्जेंट।"


    जानवी ने धीरे से हाँ में सर हिला दिया। पर उसे दिल से बहुत बुरा लग रहा था। अमर उसके हाथ का बना हुआ खाना छोड़कर जा रहा था।


    दूसरी ओर, समर्थ की कार मुम्बई आ चुकी थी, पर वह घर आने की बजाय अपने प्राइवेट बंगले पर गया जहाँ वह तृषा को लेकर गया था। वह लगभग घसीटते हुए उसे अंदर ले जा रहा था। उसे किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं थी कि तृषा को कितना दुख हो रहा है। उसने पाँव में कुछ नहीं पहना था; उसके पैरों से खून निकल रहा था।


    समर्थ ने अंदर आते हुए उसका हाथ एक झटके से छोड़ दिया, जिससे तृषा फ़र्श पर गिर गई और उसकी एक चीख निकल गई। उसने रोते हुए कहा,
    "यू आर अ ब्लडी डेविल।"


    समर्थ घुटनों के बल उसके सामने बैठते हुए बोला,
    "येस, आई एम... सो..."
    "और तुम मुझे इस नाम से भी बुला सकती हो। मेरी पर्सनैलिटी पर काफ़ी सूट करता है। और तुम्हें पता है तुम्हारी पर्सनैलिटी पर क्या सूट करता है..."
    "यू आर जस्ट लाइक अ टाइनी डॉल... जिसे अब मैं अपने इशारों पर नचाना चाहता हूँ।"


    तृषा का चेहरा अब रोते-रोते सूजने लगा था। उसके आँसू भी सूखने लगे थे, और वह हैरानी से समर्थ को देख रही थी। कोई इतना हृदयहीन, रूड़ इंसान कैसे हो सकता है?


    समर्थ उठते हुए बोला,
    "आज से तुम इस ख़ूबसूरत जेल में कैद रहोगी। समझी? अगर यहाँ से भागने की कोशिश की, तो तुम सोच नहीं सकती मैं तुम्हें कितनी भयानक सज़ा देने वाला हूँ। समझी? और तुम यहाँ सफ़ाई करोगी, खाना बनाओगी। गॉट इट?"


    तृषा के कान जैसे सुन्न पड़ चुके थे। वह कैसे इस डेविल की कैद में रह पाएगी?
    "टाइनी डॉल, मैंने कुछ कहा है तुमसे?"


    समर्थ की ख़तरनाक आवाज़ सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो रहे थे। उसने डरते हुए हकलाकर कहा,
    "स...स...समझ गई डेविल।"
    "गुड गर्ल..."


    इतना कहते हुए समर्थ सिटी बजाते हुए सीढ़ियों से होते हुए ऊपर बने कमरे में चला गया।


    कुछ देर बाद, तृषा रोकर थक चुकी थी। इसलिए खुद को संभालते हुए फ़र्श से उठी और लड़खड़ाते कदमों से इधर-उधर चलते हुए उसने पूरे बंगले को देखना शुरू किया। कुछ ही देर में उसे किचन दिखाई दिया। उसने दो दिन से कुछ नहीं खाया था, और उसके लिए खाना बहुत ज़रूरी था—क्यों, यह आपको बाद में पता चलेगा।


    तृषा कुछ ही देर में किचन के सामने खड़ी थी। उसने इधर-उधर देखते हुए फ़्रिज ढूँढ़ा और फिर उसे खोलकर देखने लगी कि उसमें कुछ खाने के लिए है या नहीं। पर उसमें फल, सब्ज़ियाँ और कुछ सामान के अलावा खाने के लिए कोई चीज़ नहीं थी।


    तृषा को याद आया समर्थ ने उससे कहा था कि उसे यहाँ का खाना भी बनाना है। तृषा ने प्यास से सूखते अपने होठों पर एक बार जीभ फिराई और फिर एक गिलास पानी लेकर उसे एक साँस में पूरा पी गई। क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था कि उसका पेट अंदर से बिल्कुल खाली हो चुका है। कुछ न कुछ खाना बहुत ज़रूरी था, और उसने कुछ सब्ज़ियाँ निकाल लीं ताकि सब्ज़ी बना सके।


    वह अपनी पूरी कोशिश कर रही थी सब कुछ जल्दी-जल्दी करने की। कुछ ही देर में उसने सब्ज़ी काटकर गैस पर चढ़ा दी और फिर आटा लगाते हुए रोटी बनाने लगी। पर एक-दो ही रोटियाँ बनाई थीं कि उसे गैस की स्मेल से उल्टी जैसा महसूस होने लगा, और वह जल्दी से गैस बंद करते हुए वाशबेसिन के सामने जाकर उल्टी करने लगी। कुछ न खाए होने की वजह से उसे लग रहा था हर उल्टी के साथ उसकी आँतें बाहर आ जाएँगी।


    उसकी आँखों में एक बार फिर आँसू आ चुके थे। उसने रोते हुए धीरे से कहा,
    "म...मम्मा।"


    और अचानक ही उसका सर चकराने लगा, और वह अगले ही पल निढाल होते हुए फ़र्श पर गिर गई। उसके सर पर हल्की सी चोट लग गई, जिससे खून निकलने लगा, पर वह पूरी तरह से बेहोश हो चुकी थी।


    ० ० ० ० ० ० रावत मेंशन ० ० ० ० ० ०


    जानवी अकेले रहकर आज बुरी तरह बोर हो चुकी थी। रजत जी को ऑफ़िस का कुछ काम था; वे उसमें बिज़ी हो चुके थे। और कल्याण सिंह जी को चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाना था, इसलिए वे भी घर से बाहर थे।


    कुछ देर बैठे रहने के बाद जानवी की नज़र अमर के लैपटॉप पर गई, और उसके मासूम होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वह लैपटॉप के पास गई और अमर की चेयर पर बैठते हुए उस लैपटॉप को ऑन कर लिया। उसके लैपटॉप के वॉलपेपर पर एक लेडी की फ़ोटो लगी थी, और वह और कोई नहीं, बल्कि अमर की माँ थीं।


    जानवी ने उसका लॉक खोलने की कोशिश की, पर वह नहीं खुला, और उसके होठों की मुस्कान ग़ायब हो गई। उसने तीन-चार बार ट्राई किया, लेकिन वह नहीं खुला। कुछ सोचते हुए उसने खुद से कहा,
    "शायद पापा जी को पता हो?"


    इतना सोचकर वह लैपटॉप को हाथ में लेते हुए उठी, और अचानक ही उसका पैर उसकी साड़ी में उलझ गया, और उसके हाथ से लैपटॉप छूटकर गिर गया। जिसके अगले ही पल उसकी स्क्रीन टूट गई, और जानवी ने डर के मारे अपने मुँह पर हाथ रख लिया। जानवी को साड़ी की आदत नहीं थी, जिस वजह से उसका पैर उलझ गया था। पर अब वह अमर का लैपटॉप तोड़ चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे। डर के मारे उसके चेहरे पर पसीना आने लगा। कुछ बुरी यादें उसके दिमाग में घूमने लगीं।


    वह करीब तेरह साल की थी जब मीनाक्षी ने तृषा को एक आईपैड लाकर दिया था, जिसमें तृषा एनिमेशन के ज़रिए पढ़ाई करती थी। जानवी को भी पढ़ने का शौक था, इसलिए वह भी एक दिन चोरी से तृषा का आईपैड यूज़ करने की कोशिश करने लगी।


    फ्लैशबैक:


    "आज दीदी की तरह मैं भी पढ़ूंगी।" एक व्हाइट फ़्रॉक पहने जानवी काफ़ी खुश नज़र आ रही थी। उसने अपने बाल एक पोनीटेल में बाँधे थे। उसने लॉक कई बार टाइप किया, जिससे आईपैड में अजीब सा सायरन बजने लगा, और जानवी बिल्कुल डर गई। और उसके हाथ से आईपैड छूटकर गिर गया। ठीक उसी वक़्त मीनाक्षी कमरे में आई, और जानवी पर चिल्लाते हुए बोली,
    "ये क्या किया है बेवकूफ़ लड़की?"


    और उसके अगले ही पल उसने एक जोरदार थप्पड़ जानवी के गाल पर जड़ दिया। और छोटी सी जानवी फ़र्श पर गिर गई और बुरी तरह रोते हुए बोली,
    "जान...जानबूझकर नहीं किया।"


    मीनाक्षी ने उसकी पोनीटेल को अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा,
    "अब तू मुझसे जुबान लड़ाएगी?"
    "आह...आह...आगे...आगे से नहीं करूँगी...ताई जी, प्लीज़ छोड़ दो।"


    मासूम जानवी रो रही थी, पर मीनाक्षी को उस पर दया नहीं आ रही थी।


    फ्लैशबैक एंड


    प्रेजेंट टाइम:


    जानवी बिस्तर से तेज़ी से उठकर घुटनों में मुँह छुपाए लंबी-लंबी साँसें ले रही थी और बड़बड़ा रही थी,
    "प्लीज़ छोड़ दो...आगे से...आ...आगे से नहीं हाथ लगाऊँगी।"

  • 15. His Displaced bride - Chapter 15

    Words: 1172

    Estimated Reading Time: 8 min

    दोपहर से शाम होने को आई, पर जानवी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी। वह घुटनों में मुँह छुपाए, बस लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी। उसकी पूरी बॉडी पसीने से भीगी हुई थी।

    वहीं दूसरी तरफ, अमर कार ड्राइव कर रहा था। दीक्षांत उसके बगल में बैठा था। अमर के होठों पर एक अलग मुस्कराहट थी क्योंकि वह जानवी के लिए पहली बार एक गिफ्ट लेकर जा रहा था। सुबह जानवी का जो उदास चेहरा था, शायद यह गिफ्ट और अमर को जल्दी अपने पास देखकर वह खिल उठेगी।

    कल्याण सिंह जी भी चेकअप करवाकर वापस आ चुके थे, पर उन्होंने जानवी को डिस्टर्ब नहीं किया। आजकल की जनरेशन में बच्चों को उनका पर्सनल स्पेस चाहिए होता है, बस यही सोचकर वह मैड से ही अपने लिए चाय बनवा लेते हैं।

    वहीं समर्थ का प्राइवेट बंगला था। समर्थ तेज कदमों से सीढ़ियों से उतर रहा था। अचानक ही उसे तृषा का ख्याल आया। उसकी निगाहें पूरे हॉल में घूम गईं, पर उसे तृषा कहीं नज़र नहीं आई। उसकी मुट्ठियाँ गुस्से से कस गईं। वह लम्बे कदम भरते हुए, इधर-उधर देखते हुए आगे बढ़ा और अचानक ही उसका ध्यान किचन से आती खून की धारा पर गया। उसने तेजी से किचन में दाखिल होते हुए, जैसे ही तृषा को देखा, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वह अगले ही पल उसके पास घुटनों के बल बैठते हुए बोला,

    "हे भगवान! क्या हुआ है तुम्हें? उठो।"

    इतना बोलकर उसने तृषा को हिलाया, उसका गाल थपथपाया, पर तृषा की पूरी बॉडी पूरी तरह ठंडी पड़ चुकी थी। उसने तुरंत ही फ़ोन निकाला और डॉक्टर को कॉल कर दिया।

    और फिर तृषा को अपनी गोद में उठाते हुए, रूम की तरफ़ बढ़ गया। रूम में जाकर उसने तृषा को आहिस्ता से बेड पर लेटा दिया। अब उसका ध्यान मासूम से चेहरे पर पड़ा, जिस पर अब आँसुओं के निशान सूख चुके थे। जैसे ही समर्थ को कुछ फील होना शुरू हुआ, उसने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और डॉक्टर का इंतज़ार करने लगा।

    रावत मेंशन में, अमर ने जैसे ही फ़ुल एक्साइटमेंट में दरवाज़ा खोला, उसकी नज़र जानवी पर पड़ी जो बेड से टेक लगाकर बैठी थी और उसकी पूरी बॉडी डर से काँप रही थी। अमर के हाथ में जो गिफ्ट बॉक्स था, उसने जल्दी से लगभग फेंकते हुए टेबल पर रखा और दरवाज़ा वापस बंद करते हुए, तुरंत ही जानवी के सामने घुटनों के बल बैठ गया।

    जानवी के सिसकने की आवाज़ अब भी आ रही थी। अमर ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "बीवी..."

    जानवी डर के मारे एकदम से चिहुँक उठी और अमर का हाथ झटकते हुए दूर खिसकने लगी।

    अमर के माथे पर एकदम से बल पड़ गए। जानवी का ऐसा बिहेवियर देखकर, ऊपर से जानवी का पूरा चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था। अमर खुद हल्का सा पीछे हटते हुए बोला,

    "Okay alright, नहीं कर रहा तुम्हें टच। पर बताओ तो सही, रो क्यों रही हो? Hmm, किसी ने कुछ कहा तुमसे?"

    ये बोलते वक्त अमर के चेहरे पर दुनियाँ-जहाँ की बेचैनी दिख रही थी। अमर की आवाज़ सुनकर भी जानवी अपने उस अंधेरे अतीत से बाहर नहीं आ पा रही थी। डर के मारे उसके होठ सूख चुके थे।

    अमर को भी घुटन हो रही थी जानवी को परेशान देखकर। उसने इस बार थोड़े गुस्से में कहा,

    "बीवी, कुछ पूछ रहा हूँ तुमसे? क्या किसी ने कुछ कहा है तुमसे? बस एक बार नाम बताओ?"

    जानवी उसकी तेज आवाज़ से और ज़्यादा सहम गई और घुटनों में मुँह छुपाए बस एक ही लाइन बोलने लगी,

    "फिर से नहीं करूँगी?"

    अमर ने गुस्से से अपनी गर्दन पर एक बार हाथ फेरा, क्योंकि उसका पेशेंस लेवल अब जवाब दे चुका था। उसने एकदम से जानवी के कंधों को पकड़कर उसे झकझोरते हुए गुस्से में कहा,

    "आई सेड स्टॉप क्राइंग।"

    और जानवी एकदम से चिहुँक उठी और अपने अतीत से रियल जिंदगी में आ गई। पर उसकी साँसें बहुत रफ़्तार से चल रही थीं। वह नॉर्मल साँस लेने की कोशिश कर रही थी, पर उससे नहीं हो पा रहा था।

    अमर ने यह देखा तो अपने गुस्से को साइड में करते हुए उसे अपने सीने से लगाकर, धीरे-धीरे उसकी पीठ रब करते हुए कहा,

    "कैल्म डाउन बीवी, टेक अ लॉन्ग ब्रीथ, hmm।"

    जानवी ने उसके शर्ट पर अपनी पकड़ कसते हुए एक लम्बी साँस खींची और अमर ने उसके बालों में अपना हाथ उलझाते हुए कहा,

    "रिलैक्स, कुछ नहीं हुआ है, hmm।"

    कुछ ही मिनटों में जानवी नॉर्मल हो चुकी थी। जिसे देखकर अमर ने उसे अपनी बाहों में उठाया और उसे आहिस्ता से बेड पर लेटाकर कहा,

    "तुम्हें फीवर है... hmm, मैं इंजेक्शन रेडी करके लाता हूँ।"

    इंजेक्शन के नाम से ही जानवी की डर से आँखें फैल गईं और उसने अमर का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा,

    "नहीं, नहीं प्लीज़... मैंने... मैंने पहले कभी फीवर का इंजेक्शन नहीं लिया है। ऐसे ही ठीक हो जाएगा।"

    अमर ने आँखें छोटी करते हुए कहा,

    "नहीं लिया तो अब लेना पड़ेगा। बुखार से तप रहा है पूरा शरीर।"

    इतना बोलकर वह, बिना जानवी की बात सुने, उससे अपना हाथ छुड़वाता है और अपने रूम में ही बने छोटे से मेडिकल कॉर्नर में जाकर एक इंजेक्शन रेडी करने लग जाता है। अमर को मेडिसिन का भी पूरा-पूरा नॉलेज है क्योंकि उसे बहुत बार ज़रूरत पड़ जाती है और उसे डॉक्टर्स कुछ ख़ास पसंद नहीं हैं। बस इसी के चलते उसने बहुत कुछ सीख लिया था।

    जानवी की तो डर से हालत ख़राब हो रही थी। क्योंकि बचपन से लेकर आज तक मीनाक्षी ने कभी उसकी फीवर के लिए उसे इंजेक्शन नहीं दिया। वह अपने आप ही ठीक हो जाती थी। पर जब-जब तृषा को फीवर आता था तो उसे इंजेक्शन दिया जाता था और वह इतना ज़्यादा रोती थी कि जिसे देखकर जानवी को इंजेक्शन के नाम से भी डर लगने लगा।

    अमर इंजेक्शन हाथ में लेकर जानवी के पास बैठ जाता है और जानवी डरते हुए धीरे-धीरे उससे दूर होने की कोशिश करती है। अमर को पता था बस कुछ सेकंड होगा और... इसलिए उसने ज़बरदस्ती उसकी बाजू पकड़ते हुए इंजेक्शन लगा दिया। जिसके अगले ही पल जानवी बुरी तरह चीखते हुए रोने लगी। शायद उसने ज़िन्दगी में पहली बार यह इंजेक्शन लिया था, तो उसे ज़्यादा दर्द हो रहा था।

    अमर ने अगले ही पल उसके चेहरे को हाथों में भरते हुए प्यार से कहा,

    "..शशश... नहीं बेबी, रोते नहीं हैं। देखो, अब नहीं हो रहा दर्द, हो गया बस... इतनी ही देर के लिए था।"

    जानवी की आँखों के कोनों से आँसुओं की बूँदें लुढ़क रही थीं। अमर ने उसकी पलकों को प्यार से चूमते हुए कहा,

    "बस, कितना रोना है जाना?"

    जानवी को उसकी ये प्यारी बातें दिल में गुदगुदी कर रही थीं। अमर ने शिद्दत से उसके माथे को चूमते हुए कहा,

    "चलो, उठो, कुछ खाओ hmm।"

  • 16. His Displaced bride - Chapter 16

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    जानवी ने रोते हुए कहा, "नहीं, नहीं, मुझे नहीं खाना। प्लीज़, खाने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं।"


    अमर ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
    "अच्छा बाबा, कोई जिद्द नहीं। हम्म… अब बताओगी, बात क्या थी? हम्म?"


    जानवी के चेहरे पर फिर से डर उभर आया। जिसे देखकर अमर परेशान होते हुए बोला,
    "ऐसा भी क्या हुआ है जाना, जो इतना घबरा रही हो? हम्म?"


    जानवी ने एक नज़र उस लैपटॉप की तरफ़ देखा जो अब भी वहीं पड़ा था, जहाँ जानवी के हाथों से छूटा था।


    और उसकी आँखें फिर से भर आईं।


    अमर ने उसकी आँखों का पीछा करते हुए उस लैपटॉप को देखा। एक पल के लिए उसके माथे पर बल पड़ गए, पर अगले ही पल उसे समझ आ गया कि जानवी क्यों घबरा रही है।


    उसने धीरे से जानवी के होठों को अपनी उंगली से रगड़ते हुए कहा,
    "वो… तुमसे टूट गया।"


    जानवी ने डरते हुए, धीरे से हाँ में सिर हिलाकर कहा,
    "ले… लेकिन… ज… जान… जानबूझकर नहीं किया… ग… गलती से हो गया, सच्ची।"


    इतना बोलने के साथ ही वो बिलकुल बच्चों की तरह रोने लगी।


    और अमर ने उसे अपने सीने से लगाते हुए कहा,
    "हम्म, कोई बात नहीं। मैं नया ला दूँगा। तुम्हें रोने वाली कौन सी बात है? ऐसा तो है नहीं कि वो एक ही लैपटॉप था और अब नया नहीं आ सकता। बट रिमेंबर वन थिंग, यू आर स्पेशल। क्योंकि तुम टूटी तो नई नहीं मिलेगी। मुझे एक और प्यारी सी जानवी…"


    फिर मैं बीवी किसे बोलूँगा? हम्म?


    रोते नहीं हैं बेबी… तुम्हें पता है, तुम्हें रोते हुए देखकर ऐसा फील हो रहा है जैसे तुम मुझे रोकर टॉर्चर कर रही हो। सो प्लीज़ डोंट डू दैट…


    मैं तुम्हारे लिए ठंडे पानी की पट्टी लेकर आता हूँ, एंड रिक्वेस्ट कर रहा हूँ जाना, रोना नहीं। हम्म।"


    जानवी ने धीरे से हाँ में पलकें झुका दीं और अमर उसके गाल पर हल्की सी किस करते हुए वहाँ से उठकर बाहर की तरफ़ चला गया।


    ° ° ° ° ° ° ° ° ° समर्थ का प्राइवेट बंगला ° ° ° ° ° ° ° ° °


    वह डॉक्टर जैसे ही बाहर आई, दरवाजे के पास ही समर्थ खड़ा था। उसने जल्दी से पूछा, "क्या हुआ है उसे?"


    डॉक्टर ने एक नज़र अंदर की तरफ़ देखा और फिर गहरी साँस छोड़ते हुए बोली,
    "वो… उन्होंने खाना नहीं खाया है, दो-तीन दिन से। इसलिए उन्हें चक्कर आने लगे हैं। उन्हें खाने की ज़रूरत है। अगर नहीं खाया तो ज़िंदा रहना मुश्किल है इनका। इसलिए इनकी तबियत का थोड़ा ध्यान रखना चाहिए आपको।"


    डॉक्टर ने सब एक साँस में बोल दिया था।


    समर्थ ने उसे जाने का इशारा किया और खुद वहाँ से किचन की तरफ़ बढ़ गया, जहाँ सब्ज़ी बनी हुई थी। बस रोटी बनानी की देरी थी।


    उसने गैस ऑन करते हुए रोटियों को बेलना शुरू किया।


    दूसरी तरफ़…


    _ _ _ _ _ रावत मेंशन _ _ _ _ _


    अमर जल्दबाजी में सीढ़ियों से उतर रहा था। हॉल में रजत जी और कल्याण सिंह जी डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। उन्होंने उसे इतनी जल्दबाजी में आते देखकर पूछा,
    "क्या हुआ अमर?"


    अमर ने किचन की तरफ़ जाते हुए कहा,
    "आपकी बहू की तबियत खराब है।"


    इतना बोलकर वो किचन के अंदर चला गया।


    उसके जाते ही रजत जी और कल्याण सिंह जी ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर जल्दी से उठते हुए अमर के कमरे की तरफ़ चले गए। वहाँ जाते ही रजत जी ने दरवाज़े पर नॉक करते हुए कहा,
    "बेटा, क्या हम अंदर आ जाएँ?"


    जानवी, जो लेटी हुई थी, वह जल्दी से बेड से टेक लगाकर बैठते हुए बोली,
    "जी पापा जी, आप अंदर आ सकते हैं।"


    अंदर जाते ही दोनों बाप-बेटे ने एक बार फिर एक-दूसरे को देखा और फिर जानवी के पास जाते हुए बोले,
    "क्या बेटा, हमको खुशखबरी देने वाली हो तुम?"


    रजत जी ने बेसब्री से कहा,
    "हाँ, मेरे तो कान तरस गए हैं सुनने के लिए।"


    जानवी ने कन्फ़्यूज़न से दोनों को देखा क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि उन दोनों के कहने का मतलब क्या है? खुशखबरी? आखिर बीमार होने पर कौन सी खुशखबरी दी जाती है? पर अगले ही पल उसके सारे सवालों के जवाब मिल गए…


    जब कल्याण सिंह जी ने एक लम्बी सी स्माइल के साथ कहा,
    "आखिर अमर पोता किसका है? तो अब तुझे भी इतनी जल्दी एक पोता तो दे ही सकता है।"


    कल्याण सिंह जी की बात सुनकर जानवी को समझ आया कि उनके कहने का क्या मतलब था और उसका पूरा चेहरा शर्म से लाल हो गया। साथ ही उसे हँसी भी आ रही थी। ये दोनों कैसे बच्चों की तरह खुश होते हुए आए हैं!


    रजत जी ने आँखें छोटी करके कहा,
    "आपका पोता हुआ तो क्या हुआ कल्याण सिंह, मेरा तो बेटा है ना।"


    वो दोनों आपस में ही बहस करने लगे थे।


    कल्याण सिंह जी ने फ़ुल ऐटिट्यूड में कहा,
    "तू क्यों आया था इस दुनिया में?"


    रजत जी ने जवाब दिया,
    "क्योंकि आप और माँ चाहते थे!"


    कल्याण सिंह जी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा,
    "तो बस तू आया, तभी अमर आया। अमर है, तभी मेरा परपोता आएगा। मतलब पीढ़ी में सबसे बड़ा मैं हूँ ना, तो ये बोलने का हक़ सिर्फ़ मुझे है, तुम्हें नहीं। समझे?"


    रजत जी को अपने पिता की बात सुनकर चिढ़ मच रही थी। उन्होंने मुँह फेरते हुए कहा,
    "बिल्कुल नहीं! मुझे भी सारे हक़ हैं। मैं भी ये बोल सकता हूँ। समझे आप? बस आपकी उम्र का लिहाज़ कर रहा हूँ, तो ज़्यादा बोल नहीं रहा हूँ। समझे आप?"


    उन्हें आपस में ही बहस करते देख जानवी ने धीरे से कहा,
    "वह आप सोच रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है। बस बुखार है, हल्का सा।"

  • 17. His Displaced bride - Chapter 17

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    ऐसा बोलते हुए उसे बहुत ज्यादा अजीब लग रहा था, पर वह किसी तरह की गलतफहमी इन लोगों के बीच पैदा नहीं करना चाहती थी।


    वहीं अमर, हाथ में एक पानी का कटोरा लिए, जल्दी से अंदर आते हुए बोला,
    "आप दोनों बाप-बेटे को शर्म नहीं आती? मेरी बीवी के कमरे में ऐसे आते हुए, वह भी मेरी गैरमौजूदगी में? क्यों परेशान कर रहे हो उसको?"


    कल्याण सिंह जी ने मुड़ते हुए कहा,
    "क्या हम इसे परेशान कर रहे हैं?"


    अमर जानवी के पास बैठते हुए, हल्के गुस्से से कहा,
    "और नहीं तो क्या? जाकर आप अपना खाना खाओ, कल्याण सिंह।"


    रजत जी ने मुँह बिगाड़ते हुए कहा,
    "हमें लगा बहु हमें खुशखबरी देने वाली है, इसलिए हम यहां आए थे। वरना कोई शौक नहीं है तुम्हारे कमरे में आने का। चलो, कल्याण सिंह।"


    कल्याण सिंह जी ने रजत जी की तरफ घूरते हुए देखा और फिर अपना गला सही करते हुए बोले,
    "वैसे अमर, तुम्हारा क्या ख्याल है इस बारे में? कितनी जल्दी हम एक-पर-पोता देने वाले हो?"


    अमर ने इस बार और गुस्से से झल्लाते हुए कहा,
    "मैंने कहाँ? निकल जाओ यहां से! यह बीमार है और आपको पर-पोता चाहिए!"


    इसका इतना गुस्सा देखकर रजत सिंह जी और कल्याण सिंह जी मुँह लटकाते हुए वहाँ से चले गए। और जानवी को हँसी आ गई। उसे हँसता देखकर अमर के दिल को भी सुकून मिल रहा था। चलो, इतनी देर से रो रही थी, कम से कम हँसी तो सही।


    °°°°°°°°°°°°°° समर्थ का प्राइवेट बंगला °°°°°°°°°°°°°°


    समर्थ, हाथों में खाने की प्लेट लिए, उस कमरे में एंटर किया जिसमें तृषा थी।


    समर्थ को देखते ही तृषा की पूरी बॉडी में करंट दौड़ गया था। उसके मन में समर्थ के लिए जो डर था, वह दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था।


    समर्थ ने उसे डरते हुए देखकर भी कुछ नहीं कहा और वह प्लेट उसके सामने रखते हुए, उसके ऊपर झुकते हुए, उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला,
    "तुम्हें अपना ख्याल रखना चाहिए, babydoll। वरना कैसे झेल पाओगी समर्थ रावत की सजा को? Hmm?"


    समर्थ जिस लहजे में यह बात कह रहा था, तृषा ने डरते हुए कसकर अपनी आँखें मूँद ली थीं और उसके होंठ डर के मारे काँप रहे थे।


    समर्थ ने एक नज़र उसके होंठों को देखा और फिर उसके ऊपर से उठते हुए बाहर चला गया।


    तृषा को जब महसूस हुआ कि वह चला गया है, उसने एक गहरी साँस लेते हुए धीरे से आँखें खोलकर इधर-उधर देखा और फिर प्लेट की तरफ देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।


    रोटियाँ कम और वर्ल्ड मैप ज़्यादा लग रहा था।


    फिर उसने एक बार समर्थ का चेहरा याद किया—गुस्से में कैसे लाल रहता है—और फिर सर झटकते हुए जल्दी से खाने लगी, क्योंकि उसे बिलकुल पंगा नहीं लेना था समर्थ से।


    _ _ _ _ _ रावत मेंशन _ _ _ _ _


    जानवी की हालत सुधर गई तो अमर उसे अपनी बाहों में लिए सो रहा था और अपने पापा और कल्याण सिंह जी की बातें याद करके उसके होंठों पर मुस्कान खिल गई।


    उसने जानवी का चेहरा अपने बिल्कुल करीब करते हुए, गहरी आवाज में कहा,
    "वैसे बीवी, क्या प्लान है? कल्याण सिंह और पापा की बात पूरी होनी चाहिए?"


    जानवी के होंठों पर अमर की गरम साँसें पड़ रही थीं, जिससे उसकी घबराहट बढ़ रही थी। वह अमर की जुनूनी आँखों में एक मिनट से ज्यादा नहीं देख पा रही थी। वह जल्दी से पलकें झुकाते हुए बोली,
    "Umm... मुझे शर्म आ रही है।"


    अमर ने उसके फोरहेड को चूमते हुए कहा,
    "अ...प...ने...प...ति...से...श...र...मा...ओ...गी...तो...बच्चे...कैसे...पैदा...होंगे?"


    जानवी ने जल्दी से अपना सर अमर के सीने में दफन करते हुए अपनी मुट्ठियाँ उसकी शर्ट पर कस ली। उसका मन कर रहा था वह अमर की नज़रों के सामने से कहीं दूर भाग जाए ताकि उसे अमर के इन बेशर्म सवालों का सामना न करना पड़े।


    अमर ने उसके बालों में हाथ घुमाते हुए कहा,
    "पर मुझे एक प्यारी सी बेटी चाहिए, बिल्कुल तुम्हारी तरह खूबसूरत और pure।"


    अमर की बात सुनकर जानवी के दिल में गुदगुदी हो रही थी।


    अमर ने आगे थोड़ा ड्रामा करते हुए कहा,
    "क्योंकि यह घर कम और बॉयज़ हॉस्टल ज़्यादा लगता है। सब मर्द जात हैं। तुम्हें भी अजीब लगता होगा ना?"


    जानवी को यह सुनकर हँसी आ गई और उसने अपना सर उसके सीने से निकालते हुए अमर की आँखों में देखकर कहा,
    "नहीं, मुझे अजीब नहीं लगता।"


    अमर ने उसकी आँखों में देखते हुए एक smirk के साथ कहा,
    "Really?"


    जैसे ही जानवी ने हाँ में सर हिलाया, अमर ने उसके होंठों को अपने मुँह में भरते हुए उसे खुद में उतारने की नाकाम कोशिशें करना लगा। और जानवी का दिल बिल्कुल बुलेट ट्रेन की स्पीड से धड़कने लगा। अमर उसके होंठों को चाटते हुए, हल्के-हल्के से बाइट भी कर रहा था, जिससे जानवी की हल्की-हल्की सीसकियों की आवाज पूरे रूम में गूंज रही थी।
    "Umm....mmm..."


    अगली सुबह


    आज समर्थ, अमर और दीक्षांत तीनों घर पर मौजूद थे। कल्याण सिंह जी और रजत जी भी।


    सब डाइनिंग टेबल पर बैठकर ब्रेकफास्ट एन्जॉय कर रहे थे और जानवी उनको सर्व कर रही थी।


    उनको जानवी ने जैसे ही सर्व कर दिया, अमर ने उसका हाथ पकड़ते हुए उसे अपने करीब बैठा लिया और फिर उसके सामने एक प्लेट लगाते हुए, खुद उसे सर्व करके बोला,
    "बीवी, अगर ऐसे ही सबकी सेवा करती जाओगी तो तुम खुद दुबली हो जाओगी। पहले से ही एक मुट्ठी हड्डियों वाली हो।"


    जानवी ने शर्म के मारे अपना चेहरा झुका लिया। वह मन ही मन बोल रही थी,
    "क्यों उसका पति इतना बेशर्म है? कोई भी बात बोलने से पहले सोचता नहीं है कि आसपास कितने लोग बैठे हैं और उसे कितने बड़े हैं वह।"

  • 18. His Displaced bride - Chapter 18

    Words: 1449

    Estimated Reading Time: 9 min

    रावत मेंशन

    अगली सुबह

    “बीवी, अगर ऐसे ही सबकी सेवा करती जाओगी तो तुम खुद दुबली हो जाओगी। पहले से ही एक मुट्ठी हड्डियों वाली हो।”

    जानवी ने शर्म से अपना चेहरा झुका लिया। वह मन ही मन बोल रही थी,

    “क्यों उसका पति इतना बेशर्म है? कोई भी बात बोलने से पहले सोचता नहीं है कि आसपास कितने लोग बैठे हैं और वह कितना बड़ा है।”

    जो मन में आया, बस बोल देता है। जानवी को इस पैंपरिंग की आदत अभी नहीं थी, इसलिए भी उसे कुछ ज्यादा ही अजीब लगता था जब भी अमर उसे इस तरह पैंपर करता था।

    रजत जी ने थोड़े गंभीर लहजे में कहा,

    “हमें अब तक वह लड़की नहीं मिली जिसकी हम तलाश कर रहे हैं।”

    जानवी ने पलकें उठाकर रजत जी की तरफ देखा। वहीं समर्थ के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए, पर उसने अपना खाना एंजॉय करते हुए कहा,

    “वाह! मिस ब्यूटीफुल, खाना तो बहुत ही अच्छा बना है। सच में मज़ा आ गया। कल मैं इस खाने को बहुत ज्यादा मिस किया।”

    और कल तो समर्थ ने अपने हाथ की बनाई हुई रोटियाँ खाई थीं, और उन्हें खाने से अच्छा इंसान भूखा रह जाए, इसलिए भी उसे आज यह खाना कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था।

    रजत जी ने घूरते हुए उसे देखा और फिर थोड़ा तेज आवाज़ में कहा,

    “मैं सीरियस टॉपिक पर बात कर रहा हूँ और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है।”

    समर्थ ने एक और बाइट लेते हुए कहा,

    “मुझे नहीं लगता किसी और के बारे में सोचा इतना सीरियस हो सकता है कि मैं अपना खाना एंजॉय ना करूँ।”

    वहीं अमर ने जॉ पीसते हुए कहा,

    “ऑफ़कोर्स! और तुम्हारा खाना इतना भी एंजॉय करना ज़रूरी नहीं है कि तुम यह भूल जाओ कि तुम किससे बातें कर रहे हो।”

    समर्थ ने अपने दाँतों तले अपनी जीभ दबा ली और फिर धीरे से बोला,

    “सॉरी भाई, भाभी। आपने खाना बहुत अच्छा बनाया है। अब ठीक है।”

    अमर ने गुस्से से उसे देखते हुए कहा, “परफेक्ट! और ध्यान रखो, हर बार मैं तुम्हें याद नहीं दिलाऊँगा। इस बार पूरा मुँह लाल कर दूँगा एक ही थप्पड़ में।”

    समर्थ ने अपने गालों पर हाथ रखते हुए कहा,

    “सच्ची भाई, आगे से नहीं होगा।”

    वहीं तृषा ने जब इतने बड़े घर में खुद को अकेले देखा, वह बहुत ज्यादा डर गई। पर शायद यहाँ रहकर वह बिलकुल सेफ है, यह सोचकर वह खुद को शांत करने की कोशिश कर रही थी।

    वहीं मुम्बई की एक बिल्डिंग में एक आदमी सिगरेट पीते हुए अपने सामने बैठे आदमी को देख रहा था।

    ये दोनों जिगरी यार थे: जसवंत कुकरेजा और संयम सिंघानिया।

    संयम ने अपनी सिगरेट का कस भरते हुए कहा,

    “ये गेम कुछ ज्यादा ही बोरिंग हो गया है।”

    जसवंत ने एक मुस्कराहट के साथ कहा, “कल के लिए बहुत स्पेशल प्लान है। देखना, तुम क्या होता है कल। धमाका!”

    अमर और दीक्षांत खाना खाकर ऑफिस के लिए निकल चुके थे और आज जानवी, रजत जी और कल्याण सिंह जी के साथ बाहर गार्डन देखने आई थी।

    बाहर कुछ आदमी काम कर रहे थे।

    जानवी ने अचानक ही कहा,

    “पापा जी, मुझे ना पेंटिंग का बहुत शौक है। क्या मैं यहाँ पेंटिंग कर सकती हूँ?”

    रजत ने आँखें छोटी करते हुए कहा, “बच्चे, ये भी कोई पूछने की बात है? जो आपकी मर्ज़ी, वो आप करो।”

    वहीं कल्याण सिंह ने जल्दी से एक नौकर को आवाज़ देकर बुलाया और उससे पेंटिंग का सामान मंगवाने लगे।

    जिसे देखकर जानवी एकदम हैरान हो गई। उसने तो बस ऐसे ही बोल दिया था। उसके एक बार कहने पर तो आज तक कोई चीज उसे नहीं मिली थी।

    करीब 15 मिनट में वह नौकर वापस आ चुका था।

    कल्याण सिंह जी बेंच पर बैठते हुए बोले,

    “बेटा, शुरुआत हमेशा घर के मुखिया से होनी चाहिए। हमारी पेंटिंग बनाओ।”

    रजत जी ने आँखें छोटी करके उन्हें घूरा और जल्दी से उनके बगल में बैठते हुए बोले,

    “नहीं बेटा, सबसे पहले अपने पापा जी को बनाओ। और कल्याण सिंह जी, अब आपकी उम्र हो गई। घर के मुखिया की गद्दी छोड़ दीजिए और अपने इकलौते बेटे को दे दीजिए।”

    कल्याण सिंह जी ने गुस्से से रजत जी को घूरते हुए कहा,

    “अभी तो मेरी बाजुओं में बहुत ताकत है। एक थप्पड़ में तुम्हें पूरे ब्रह्मांड घुमा सकता हूँ।”

    रजत जी ने भी उन्हें घूरते हुए कहा,

    “अच्छा, ये अब ज़्यादा नहीं फेंक दिया? आपने कैच करना मुश्किल हो रहा है। ऐसा कुछ बोलो जो सब से हज़म हो जाए। श्मशान जाने की उम्र में अपने बेटे से बहस-बाजी कर रहे हैं।”

    कल्याण सिंह जी रजत जी का मज़ाक उड़ाने के लहजे में कहा,

    “ऐसे बोलने वाले कई श्मशान पहुँच चुके हैं।” फिर कल्याण सिंह जी अपनी मूँछों को ताव देते हुए बोले,

    “ये कल्याण सिंह आज भी मज़बूत लोहे की तरह खड़ा है।”

    रजत ने भी उनका मज़ाक उड़ाने के लहजे में कहा,

    “फिर क्यों हर हफ़्ते अस्पताल के चक्कर काटे जाते हैं? वहाँ उसके दर्शन करने जाते हैं अगर लोहे की तरह मज़बूत हैं।”

    जानवी हँसते हुए उनकी उसी एंगल में पेंटिंग बना रही थी। उसे इस लड़ाई को देखकर बड़ा मज़ा आ रहा था। उसे लगा था वह अमर को मिस करेगी, पर यहाँ तो उसे अमर की बिलकुल याद नहीं आ रही थी।

    वहीं अमर ऑफिस ज़रूर चला गया था, पर उसका दिल-दिमाग तो जानवी में अटका था।

    जानवी ने पेंटिंग खत्म करते हुए कहा,

    “दादा जी, पापा जी, आप लड़ना बंद कीजिए। देखिए, हमने पेंटिंग बना दी।”

    कल्याण सिंह जी और रजत जी ने हैरानी से जानवी को देखा। इतनी जल्दी बना दी?

    पर पेंटिंग को देखकर तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उन दोनों की बिलकुल रियल जैसी पेंटिंग बनाई थी जानवी ने, जैसे वे अपने सामने किसी शीशे को देख रहे हों।

    जानवी खुश थी, उनको एक्साइटेड देखकर।

    अचानक ही उन दोनों को जोर से हँसी आ गई। वे लड़ते हुए बड़े ही फनी लग रहे थे।

    देखते ही देखते कब दिन ढल गया, पता ही नहीं चला।

    जानवी को यहाँ आकर पता चल रहा था परिवार का प्यार क्या होता है।

    शाम 8 बजे

    समर्थ की मीटिंग आज एक क्लब में थी। उसने वहाँ से निकलकर जैसे ही कार में बैठकर लैपटॉप ओपन किया, अचानक ही उसका सिर भारी होने लगा।

    और उसने ड्राइवर से कहा,

    “कार फार्म हाउस ले चलो।”

    उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था और वह कल्याण सिंह जी और रजत जी को परेशान नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे पता है उसके दुश्मन किसी भी हद तक गिर सकते हैं।

    और जैसी उसे उम्मीद थी, उसे कुछ ही मिनटों में बेहिसाब गर्मी लगने लगी।

    उसने जल्दी से अपनी शर्ट के बटन खोले और जॉ पीसते हुए बड़बड़ाया, “जिस भी कमिने ने ये किया है, ज़िंदा नहीं बचेगा।”

    उसे पता चल चुका था उसे ड्रग्स दिया गया था।

    कुछ ही देर में उसकी गाड़ी फार्म हाउस के सामने जाकर रुकती है और वह लड़खड़ाते कदमों से फार्म हाउस के अंदर पहुँचता है।

    वह सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अपने कमरे में जाने लगता है जहाँ तृषा सुकून से सोई हुई थी।

    समर्थ का प्राइवेट बंगला

    समर्थ अंदर पहुँचकर एक नज़र तृषा को देखता है। उसे देखकर ही उसकी बॉडी में रिएक्शन बढ़ रहा था। वह सर झटकते हुए जल्दी से अपनी शर्ट उतारते हुए जल्दी से बाथरूम के अंदर चला जाता है।

    और कोल्ड शॉवर ऑन करते हुए आँखें बंद कर लेता है। उसके शरीर पर बर्फ जैसा ठंडा पानी गिरने के बावजूद उसका पूरा शरीर किसी जलती भट्टी की तरह तप रहा था।

    उसकी बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। उसका पूरा चेहरा लाल पड़ चुका था। उसने अपने काँपते हाथ को वॉल पर रखा और लंबी-लंबी साँसें लेने की कोशिश करने लगा।

    उसकी लोअर बॉडी में अजीब सी सेंसेशन पैदा हो रही थी।

    और जब उसकी बर्दाश्त की हद पार होने लगी, वह अपने अंदर की गर्मी निकालने के लिए जोर से चिल्लाया,

    “Aahhhhhh.... Huh...”

    उसने एक जोरदार मुक्का वॉल पर मारते हुए अपनी आँखें झट से खोल लीं जो खून की तरह लाल थीं।

    वहीं तृषा एकदम से चौंकते हुए उठ गई और अपने सीने पर हाथ रखते हुए इधर-उधर देखने लगी।

    अचानक ही एक बार फिर समर्थ के चिल्लाने की आवाज़ आई और तृषा डर गई।

    उसने डरते हुए बेड से नीचे कदम रखे। उसने इस वक्त एक शर्ट, जो शायद समर्थ की ही थी, वह पहन रखी थी जिसमें उसके पैर दिख रहे थे।

  • 19. His Displaced bride - Chapter 19

    Words: 1438

    Estimated Reading Time: 9 min

    वो डरते हुए बोली,

    "क...कौन है?"

    पर समर्थ कुछ नहीं सुन रहा था। उसकी बॉडी उसके नियंत्रण से बाहर हो रही थी, जैसे उसके अंदर सोया कोई जानवर बाहर आने की कोशिश कर रहा हो।

    तृषा थोड़ा आगे बढ़ी और उसकी नज़र जैसे ही समर्थ पर गई, उसकी चीख निकल गई।

    उसकी आवाज़ सुनकर समर्थ ने अपनी नशीली लाल आँखें उसकी ओर घुमाईं।

    तृषा आँखें फाड़े उसे ही देख रही थी। समर्थ के हाथ से खून निकल रहा था जो शॉवर के पानी के साथ बह रहा था।

    तृषा खून देखकर बुरी तरह डर गई और तेज कदमों से चलते हुए समर्थ के पास गई। उसने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,

    "ख..खून इतना ज़्यादा!"

    समर्थ ने गर्दन टेढ़ी करते हुए उसे ऊपर से नीचे तक देखा। शॉवर का पानी अब उस पर भी गिर रहा था। उसका शर्ट भीग कर उसके सीने पर चिपक चुका था।

    वहीं तृषा हाथ को अच्छे से देखकर समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर समर्थ को कितनी चोट लगी है।

    समर्थ ने एकदम से उसका हाथ छोड़ते हुए उसकी कमर पकड़ ली और उसे खुद से सटा लिया।

    तृषा की साँसें एकदम से अटक गईं और कुछ पल बाद वह बुरी तरह झटपटाने लगी।

    समर्थ की नज़र उसके गुलाबी होंठों पर थी, जिन पर पानी की बूँदें गिर रही थीं।

    एकदम से समर्थ ने उसे कमर से पकड़ते हुए हल्का सा उठाया और उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबाते हुए कसकर काट लिया। तृषा की आँखों में पानी आ गया जो शॉवर के पानी में कहीं गुम सा हो रहा था।

    तृषा ने उसके कंधे पर मारते हुए कहा,

    "छ...छोड़ो मुझे, डेविल!"

    पर समर्थ ने अगले ही पल फिर से उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और अब बहुत सॉफ्टली उसके होंठों को चाटने लगा।

    जिससे तृषा की पूरी बॉडी पर रोंगटे खड़े हो गए।

    अगले ही पल समर्थ ने खींचते हुए उसके बदन से उसकी शर्ट उतारकर फेंक दी और उसकी गर्दन पकड़ते हुए उसे गहरे किस करने लगा।

    उसका एक हाथ लगातार तृषा की खुली कमर पर चल रहा था और एक गर्दन पर कसा हुआ था।

    तृषा की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। उसके नाज़ुक हाथों का समर्थ जैसे मस्कुलर आदमी पर कोई असर नहीं हो रहा था।

    उसने कुछ पल उसे छोड़ा और तृषा लंबी-लंबी साँसें लेने लगी।

    समर्थ ने अपनी पैंट उतारकर फेंक दी, जिसके साथ ही तृषा बाथरूम से बाहर आ गई।

    उसका दिल डर के मारे जोर-जोर से धड़क रहा था।

    वह आगे जा पाती, उससे पहले ही समर्थ ने उसे पकड़ते हुए अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर उसे पटकते हुए बोला,

    "You want it playful babydoll, hmm? शुरू तुमने किया था मेरे करीब आके, अब पूरा करने का हक मेरा है।"

    इतना बोलकर वह उसके ऊपर आ गया और उसके दोनों हाथों पर हाथ फँसाते हुए उसकी गर्दन में अपना चेहरा छिपा लिया।

    "प...प्लीज, डेविल! ऐसा मत करो मेरे साथ। मैं आपकी हर सज़ा मानने के लिए तैयार हूँ।"

    तृषा ने रोते हुए कहा, पर समर्थ का इस पर कोई रिएक्शन नहीं था।

    त्रिशा ने फिर से कुछ बोलना चाहा, उससे पहले समर्थ ने उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया।

    कुछ देर बाद उस कमरे में तृषा की एक जोरदार चीख गूँजी और उसके बाद सिसकियाँ और रोने की आवाज़। पता नहीं रात के कौन से पहर समर्थ ने अपनी मनमानी बंद की और उसकी बगल में थककर लेट गया।

    अगली सुबह

    रावत मेंशन

    अमर जानवी के भरोसे पिलो को कसकर बाहों में भरे सो रहा था। वहीं जानवी नहाकर तैयार हो रही थी।

    अमर के कानों में जैसे ही खनखन की आवाज़ आई, उसने आँखें खोलकर देखा और पिलो को देखकर उसका मुँह बन गया। उसने जल्दी से मिरर की तरफ देखा।

    जानवी नेवी ब्लू कलर की नेट की साड़ी पहने खड़ी थी, फुल स्लीव व्हाइट ब्लाउज़ जिसका बैक नेक डीप था।

    वो मांग भरते हुए जल्दी से अपने कानों में झुमके पहन रही थी। अचानक ही उसकी कमर पर ठंडे हाथ लगे और वह एकदम से चीखते हुए पीछे मुड़ी।


    अमर जानवी के गीले बालों को सूँघते हुए गहरी आवाज़ में बोला,

    "तुम्हें पता है तुम्हारी खुली कमर, भीगे बाल, गीले नर्म होंठ मुझे क्या याद दिलाते हैं?"

    जानवी का दिल एक पल के लिए धड़कना भूल गया। "क्या कभी अमर ने किसी और से प्यार किया था जो अब उसे किसी की याद आती है?"

    जानवी का दिल एकदम भारी-भारी महसूस करने लगा।

    अचानक ही अमर उसके होंठों पर अपना अँगूठा रखकर उन्हें रगड़ते हुए बोला,

    "कि हमने अभी तक हनीमून सेलिब्रेट नहीं किया, बीवी।"

    जानवी के चेहरे पर कुछ देर पहले जो परेशानी थी, अब उसकी जगह शर्म ने ले ली थी। अचानक ही उसके गाल जलने लगे थे। उसने आँखें बंद करते हुए अमर के हाथ को अपने चेहरे से हटाने की कोशिश करते हुए कहा,

    "आपकी बेशर्मी सुबह ही शुरू हो जाती है। मुझे नीचे जाना है।"


    अमर ने उसका हाथ पकड़कर उसकी पीठ से लगाते हुए कहा,

    "जितना मुझे तड़पाओगी, उससे सौ गुना ज़्यादा तुम्हें तड़पना पड़ेगा। यह हमेशा याद रखना, बेबी।"

    अमर की आवाज़ में एक अलग सी सनक महसूस हो रही थी जो जानवी की रूह तक काँपने पर मजबूर कर रही थी।

    अमर ने उसके फोरहेड पर हल्का सा किस किया और बाथरूम में चला गया।

    जानवी कुछ पल वहीं खड़ी रही क्योंकि उसके ज़हन में अमर की बातें गूंज रही थीं।

    फिर कुछ देर बाद एक गहरी साँस लेते हुए वह नीचे चली गई।

    समर्थ का प्राइवेट बंगला

    आँखों पर धूप पड़ने के कारण समर्थ की आँखें खुलीं। वह माथे पर बल डालते हुए धीरे से अपनी पलकें खोली और फिर अपने सर पर हाथ रख लिया।

    क्योंकि उसका सर दर्द के मारे फट रहा था।

    वह उठकर बैठते हुए इधर-उधर देखता है तो अचानक ही उसकी आँखें फैल जाती हैं क्योंकि तृषा इस वक़्त कुछ इस हालत में थी जिसे देख पाना समर्थ के बस की बात नहीं थी।

    उसने जल्दी से अपनी नज़रें फेर लीं, लेकिन फिर अचानक ही उसकी नज़र बेडशीट पर लगे खून के धब्बों पर पड़ी और उसने जल्दी से तृषा को हिलाते हुए उठाने की कोशिश की।

    "ए, उठो! तुम्हें क्या हुआ है?"

    उसने घबराते हुए कहा, पर तृषा की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। उसका शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ने लगा था, चेहरा भी सफ़ेद पड़ चुका था।

    समर्थ जल्दी से उसके शरीर पर कंबल डालते हुए उठ जाता है और अपनी पैंट पहनते हुए अपना फ़ोन ढूँढता है।

    फ़ोन मिलते ही वह डॉक्टर को कॉल करता है जो कल भी तृषा को चेक करके गई थी।

    और कुछ ही देर बाद डॉक्टर तृषा को देखने आ जाती है। समर्थ अब भी बिना शर्ट के घूम रहा था। उसकी पीठ पर तृषा के दिए नाखूनों के निशान चमक रहे थे जो डॉक्टर को भी दिखाई दे रहे थे। डॉक्टर ने उसे अपनी नज़रें फेरते हुए जल्दी से तृषा को चेक करना शुरू किया और जैसे ही उसने हल्की सी कंबल हटाई, उन बाइट मार्क्स को देखकर समर्थ की तरफ देखते हुए बोली,

    "सर, क्या आप कुछ देर बाहर जा सकते हैं?"

    और समर्थ जल्दी से हाँ में सर हिलाते हुए बाहर चला जाता है। उसका दिल किसी मेट्रो की स्पीड से धड़क रहा था, जैसे कुछ अनहोनी होने वाली हो।

    उसे कल रात का याद था कि किसी ने उसे ड्रग्स दे दिए थे।

    पर उसे यह लग नहीं रहा था कि वह तृषा के साथ ऐसा कुछ कर देगा। वह अपने सर पर ही मुक्का मारते हुए रात की बातें याद करने की कोशिश कर रहा था।

    पर उसे सब कुछ धुंधला याद आ रहा था, जैसे तृषा ही उसके पास आई थी।

    वहीं डॉक्टर तृषा को चेक करती है तो अचानक ही हैरानी से उसकी आँखें फैल जाती हैं क्योंकि बेड पर पड़े खून को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि यह नॉर्मल ब्लीडिंग नहीं थी और इसका साफ़ मतलब था कि तृषा का मिस्केरेज हो चुका है।

    डॉक्टर के हाथ भी काँपने लगे थे। उसकी आँखों में हल्की नमी आने लगी थी। उसे याद आ रहा था कल तृषा अपने बच्चे की सेफ़्टी के लिए कैसे उसके सामने गिड़गिड़ा रही थी कि वह समर्थ को कुछ ना बताए।

    पर शायद उसकी औलाद के नसीब में मरना ही लिखा था। वह चाहकर भी उसे नहीं बचा पाई।

  • 20. His Displaced bride - Chapter 20

    Words: 1422

    Estimated Reading Time: 9 min

    समर्थ का प्राइवेट बंगला

    समर्थ अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए अपनी बेचैनी को काबू करने की कोशिश कर रहा था।

    तृषा वह लड़की थी जिसे समर्थ ने स्पर्श किया था; अन्यथा अब तक समर्थ ने किसी लड़की को गले तक नहीं लगाया था।

    हाँ, जानवी उसे बेहद पसंद आई थी क्योंकि उसकी सादगी से भरी खूबसूरती और आँखों में बसी मासूमियत किसी का भी दिल ले सकती थी, पर उसके बारे में भी समर्थ ने इस हद तक नहीं सोचा था।

    और यहाँ वह तृषा के साथ जबरदस्ती कर चुका था।

    वहीं डॉक्टर ने तृषा को साफ़ करते हुए सबसे पहले उसके ज़ख्मों पर ऑइंटमेंट लगाया और फिर खुद की वार्डरोब से समर्थ की एक लॉन्ग ब्लैक शर्ट निकालकर तृषा को पहना दी।

    उसके बाद तृषा को इंजेक्शन लगाकर रूम से बाहर चली गई।

    समर्थ जो उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, उसने तुरंत अधीर होते हुए कहा,

    "क्या वह ठीक है?"

    डॉक्टर को समर्थ पर हद से ज़्यादा गुस्सा आ रहा था; उसका मन कर रहा था कि वह समर्थ को जेल भिजवा दे, पर अफ़सोस वह ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी।

    उसने धीरे से कहा,

    "वह बिल्कुल सही है पर....."

    इतना बोलकर वह रुक गई क्योंकि वह खुद एक औरत थी, एक माँ थी; उन्हें इस बात का इतना ज़्यादा बुरा लग रहा था कि उनके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे।

    पर वह बिल्कुल नहीं चाहती थी कि इतने दर्द में एक बार फिर समर्थ उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।

    समर्थ ने अधीर होते हुए कहा,

    "पर क्या डॉक्टर....."

    डॉक्टर ने एक नज़र कमरे की तरफ़ देखते हुए कहा,

    "उनके पेट में एक-डेढ़ महीने का बच्चा था, वह नहीं रहा; उनका गर्भपात हो गया।"

    यह सुनकर समर्थ पर मानो बिजली टूट पड़ी हो; वह एकदम से शोकग्रस्त होते हुए बोला,

    "What 😳😳"

    डॉक्टर ने हाँ में सिर हिलाया और बोली,

    "जल्द ही उनको होश आ जाएगा।"

    पर इतना बोलकर डॉक्टर बाहर चली गई।

    और समर्थ भारी कदमों से रूम के अंदर जाने लगा, जहाँ तृषा आँखें मूँद कर लेटी थी।

    समर्थ ने सोफ़े पर धम्म से बैठते हुए अपना सिर पकड़ लिया।

    आखिर यह इतना बड़ा पाप कैसे कर दिया उसने? उसने ज़िंदगी में जो चाहे दुष्कर्म किए हों, पर एक बच्चे पर आज तक हाथ नहीं उठाया था और आज उसने एक नन्ही जान को इस दुनिया में आने से पहले मार डाला।

    एकदम से उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, जिसका एहसास भी उसे नहीं था; उसका गला दर्द करने लगा, जैसे वह फूट-फूट कर रोना चाहता हो; उसका दिल बहुत भारी हो गया। आखिर क्या जवाब देगा वह तृषा को जब वह अपने बच्चे के बारे में उससे पूछेगी?

    रावत मेंशन

    जानवी खाना टेबल पर लगा रही थी कि अचानक घर का मेन डोर ओपन होता है और एक लड़की अंदर आती है, जिसकी हालत थोड़ी खराब थी। जानवी जल्दी से खाना छोड़कर लगभग दौड़कर उसके पास जाती है।

    "माही! क्या हुआ तुझे?"

    जानवी घबराई हुई आवाज़ में कहती है। माही जानवी की दोस्त थी; जानवी और माही एक ही कंपनी में काम करती थीं।

    माही एक-दो कदम लड़खड़ाते हुए बढ़ती है, पर जल्दी ही फर्श पर गिर जाती है।

    दो बॉडीगार्ड भागते हुए अंदर आते हैं और माही की तरफ़ बढ़ जाते हैं।

    "यह लड़की मना करने के बावजूद यहाँ तक आ गई। तीन बार हमने इसे दरवाज़े से भगा दिया, पर इस बार यह छुपते हुए पता नहीं किधर से अंदर आ गई।"

    उनमें से एक बॉडीगार्ड ने गुस्से और निराशा में कहा।

    जानवी जल्दी से नीचे बैठकर माही को कंधों से पकड़ लेती है और फिर बॉडीगार्ड की तरफ़ देखते हुए बोलती है, "इसे बाहर निकालने की ज़रूरत नहीं है; यह मेरी दोस्त है।"

    यह सुनकर दोनों बॉडीगार्ड सर झुकाते हुए बाहर चले गए और माही ने भी एक चैन की साँस ली; वह जल्दी से जानवी के गले लगकर रोने लगी।

    जानवी को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर माही के साथ क्या हुआ है।

    उसने माही को खड़ा किया और फिर संभालते हुए उसे हाल में ले गई और सोफ़े पर बिठाकर एक पानी का गिलास उसकी तरफ़ करते हुए बोली, "पहले तू थोड़ा साँस ले और आराम से बता; क्या हुआ है?"

    दूसरी तरफ़

    तृषा की आँखें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं। उसकी आँखें खुलते ही उसे छत नज़र आती है; वह कुछ और महसूस कर पाती, उससे पहले ही उसके पेट में इतना भयंकर दर्द उसे महसूस होता है और वह वापस आँखें बंद करते हुए कराह उठती है।

    उसकी आवाज़ सुनकर समर्थ अपनी लाल आँखें उठाकर उसकी तरफ़ देखता है।

    अचानक ही उसका पूरा चेहरा डर से भर जाता है; उसका मन कर रहा था कि वह यहाँ से कहीं भाग जाए जहाँ उसे तृषा की उन उदास नज़रों का सामना न करना पड़े जिनमें ढेरों सवाल भरे पड़े हैं।

    तृषा ने फिर से अपनी आँखें खोलकर समर्थ की तरफ़ देखा और अचानक ही उसकी आँखें फैल गईं। उसने जल्दी से अपने पेट पर हाथ रखकर डर से कहा,

    "मेरा बच्चा!"

    और उसके हाथ रखते ही उसे इतना तेज दर्द हुआ कि उसकी चीख निकल गई।

    "आह.... मम्मा..."

    तृषा धीरे-धीरे सिसकने लगी तो समर्थ जल्दी से उठकर उसके पास जाता है और उसके चेहरे पर हल्का सा हाथ रखते हुए बोलता है,

    "रिलेक्स, रोना बंद करो; ज़्यादा दर्द हो रहा है क्या? मैं डॉक्टर को बुलाऊँ?"

    तृषा के होंठ काँप रहे थे; उसने आँसू भरी आँखों से समर्थ को देखकर कहा,

    "मेरा बच्चा!"

    अमर का ऑफिस

    दीक्षांत गुस्से में आग बबूला होकर घूम रहा था। आखिर वह लड़की कैसे इतना बड़ा घोटाला कर सकती है? मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!

    उसने दाँत पीसते हुए कहा।

    उसने जल्दी से किसी को एक लड़की की फ़ोटो भेजते हुए मैसेज किया,

    "यह जल्द से जल्द मेरी आँखों के सामने होनी चाहिए।"

    और यह किसी और की नहीं, बल्कि माही की फ़ोटो थी।

    रावत मेंशन

    जानवी माही को शांत करवा रही थी कि कल्याण सिंह जी हाल में आते हुए बोले,

    "यह कौन है जानवी बेटा? और इन्हें इतनी चोट कैसे लगी?"

    माही की आँखें अब भी रोने के कारण लाल थीं। जानवी ने हल्की घबराहट के साथ कहा,

    "वह दादा जी, यह मेरी दोस्त है।"

    जानवी को अंदर ही अंदर बहुत डर लग रहा था; अगर कल्याण सिंह जी गुस्सा हो गए तो वह क्या करेगी? क्योंकि मीनाक्षी और महेश उसके दोस्तों को कभी घर के अंदर नहीं आने देते थे।

    और यह तो उसका ससुराल था.....

    पर कल्याण सिंह जी ने उस पर गुस्सा करने की बजाय चिंता करते हुए कहा,

    "आप मेडिकल किट ले आओ बेटा; इतनी चोट पर दवा लगाओ, वरना खून ज़्यादा बह जाएगा।"

    माही के घुटने पर सड़क पर गिरने के कारण चोट आ गई थी जिससे खून बहने लगा था।

    जानवी जल्दी से मेडिकल किट लेने जाती है; इतने में ही अमर भी कान से फ़ोन लगाए सीढ़ियों से नीचे आ रहा था।

    उसने माही को देखा तो उसकी आँखें छोटी हो गईं। उसने जल्दी से दीक्षांत का चैट ओपन किया जिसमें माही की फ़ोटो थी, क्योंकि दीक्षांत को किसी ने बताया था कि माही ने उनके टेंडर की खबर चुराकर लीक कर दी है।

    वह दूसरी कंपनी की तरफ़ से एक ऑफ़र लेकर आई थी, एज़ ए पर्सनल असिस्टेंट, पर उसने पता नहीं कैसे उनकी कॉन्फ़िडेंशियल इन्फ़ॉर्मेशन को भी निकाल लिया और प्रतिस्पर्धी कंपनी को दे दिया।

    जानवी जल्दी से माही के पास आई और घुटनों के बल उसके सामने बैठकर उसकी चोट पर मरहम लगाने लगी।

    जानवी को उससे इतना करीब देखकर अमर ने उसे कुछ नहीं कहा और दीक्षांत को कॉल लगाकर वापस स्टडी रूम की तरफ़ चला गया।

    समर्थ का प्राइवेट बंगला

    तृषा सुबकते हुए एक डर के साथ समर्थ को देख रही थी जो उसे छूने के लिए आगे बढ़ रहा था।

    उसने एकदम से चिल्लाते हुए कहा,

    "दूर रहो मुझसे!"

    समर्थ ने अपने हाथ की मुट्ठी भींचते हुए कहा, "देखो, अब तुम्हारा बच्चा इस दुनिया में नहीं है।"

    तृषा ने रोते हुए, डर के मारे आँखें बड़ी करके कहा,

    "न...नहीं! ऐसा नहीं हो सकता! आप...आप झूठ बोल रहे हैं!"

    समर्थ को समझ नहीं आ रहा था कि वह तृषा को क्या कहे; वह बिल्कुल पागलों की तरह व्यवहार कर रही थी जब से उसे एहसास हुआ था कि उसका बच्चा उसके पेट में नहीं है।