एक साल की शादी... एक अंजान रिश्ता... और एक ऐसा सच जो सबकुछ बदल सकता है! अन्विका राठौड़ के लिए अपने भाई की जान से बढ़कर कुछ नहीं था, और उसे बचाने के लिए उसने एक समझौता किया—एक साल की कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। उसे अपनी सौतेली बहन की जगह एक अमीर खानदान के... एक साल की शादी... एक अंजान रिश्ता... और एक ऐसा सच जो सबकुछ बदल सकता है! अन्विका राठौड़ के लिए अपने भाई की जान से बढ़कर कुछ नहीं था, और उसे बचाने के लिए उसने एक समझौता किया—एक साल की कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। उसे अपनी सौतेली बहन की जगह एक अमीर खानदान के गोद लिए बेटे से शादी करनी थी। लेकिन भाग्य ने एक अनोखा खेल खेला! जिससे शादी होनी थी, वह नहीं... बल्कि रुद्रांश मारवा, खानदान का असली वारिस उसका पति बन गया। रुद्रांश को एक खास लड़की की तलाश थी, और इसी तलाश में उसने अपने भाई से डील कर ली—लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसकी दुल्हन कोई और नहीं, बल्कि वही लड़की है जिसे वह ढूंढ रहा था! शर्त ये थी कि वे कभी एक-दूसरे से नहीं मिलेंगे। लेकिन नियति के पास और भी बड़े खेल थे। एक-दूसरे से अनजान रहते हुए भी रुद्रांश को अन्विका से प्यार हो जाता है। पर जब सच सामने आएगा, तो क्या प्यार के इस बंधन को समझौते की बेड़ियाँ तोड़ देंगी? क्या रुद्रांश को पता चलेगा कि उसकी तलाश की मंज़िल अन्विका ही है? और जब सच्चाई सामने आएगी, तो क्या एक साल का यह समझौता हमेशा के लिए टूट जाएगा... या फिर यह रिश्ता उम्रभर के लिए बंध जाएगा?
रुद्रांश मारवा
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अन्विका राठौड़
Heroine
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एक सात-सितारा लग्ज़ीरियस होटल के कमरे में सन्नाटा पसरा था। थोड़ी-बहुत आवाज़ केवल वहाँ मौजूद लड़की की हील्स की थी, जो उसकी चहलकदमी से पैदा हो रही थी। अन्विका राठौर, एक पर्सनल स्टाइलिस्ट, मुंबई के शीर्ष बिज़नेसमैन, रुद्रांश मारवा को ग्रूम कर रही थी। वह एक अवार्ड फ़ंक्शन में जाने वाले थे। अन्विका लगभग बाईस वर्ष की थी; दुबली-पतली, गोरी, दिखने में मासूम और खूबसूरत। उसके कमर को छूते भूरे लहराते बाल थे, जिन्हें उसने बेतरतीब ढंग से सेट किया था। वह खोई-खोई और उदास लग रही थी। अचानक, काम करते हुए उसके हाथ काँप उठे, जब उसने रुद्रांश की ठंडी आवाज़ सुनी। “ये क्या तुमने किया? मेरी शर्ट... तुमने इसे खराब कर दिया? ध्यान कहाँ है तुम्हारा?” वह बहुत गुस्से में था। रुद्रांश की आवाज़ सुनकर उसे होश आया। वह हड़बड़ाकर बोली, “मुझे... मुझे बहुत माफ़ करना सर। मैंने... मैंने यह जानबूझकर नहीं किया।” अन्विका ने देखा कि उसने गलती से रुद्रांश की शर्ट पर हेयरस्प्रे कर दिया था, जिससे उसके महंगे सफ़ेद शर्ट पर पीले-काले रंग के धब्बे पड़ गए थे। रुद्रांश की शर्ट देखने के बाद अन्विका की नज़र उसके चेहरे पर गई। उसकी खूबसूरत गहरी काली आँखों में असीम गुस्सा था, मानो वह अभी उसकी जान ले लेगा। ग़लती भी तो उसकी ही थी। कोई इंटर्न भी ध्यान से काम करता, जबकि उसे तो यह काम करते हुए काफी समय हो गया था। रुद्रांश कुछ कहता, उससे पहले उसकी नज़र अचानक अन्विका के गले पर गई, और उसकी आँखें छोटी हो गईं। अन्विका के कॉलरबोन पर एक छोटा सा लाल-भूरा तिल था; जो आग की आकृति में था। पहली नज़र में वह किसी टैटू जैसा लग रहा था। रुद्रांश का ध्यान अन्विका के तिल पर लगा था, तभी अन्विका ने हल्की, काँपती आवाज़ में कहा, “मुझे पता है मैंने यह दूसरी बार किया है। पर एक्स्ट्रा शर्ट मौजूद है, कृपया आप बदल लीजिये।” “तो तुम्हें एहसास है कि तुमने मेरी दूसरी शर्ट भी बर्बाद कर दी है।” रुद्रांश ने सिर हिलाकर कहा और फिर वहाँ रखी दूसरी शर्ट की ओर देखा। पहले वह उस पेस्टल पिंक शर्ट को पहनने वाला था, पर अन्विका ने अपनी हड़बड़ाहट में उसे नीचे गिरा दिया था और वह उसकी हील्स के नीचे आकर खराब हो चुकी थी। “मुझे बहुत माफ़ करना।” अन्विका ने फिर कहा। इतनी देर में वह न जाने कितनी बार रुद्रांश से माफ़ी माँग चुकी थी, जबकि वह अच्छे से जानती थी कि उसने जो नुकसान किया है, उसके लिए "माफ़ करना" जैसा शब्द बहुत छोटा था। अन्विका ने रुद्रांश की ओर देखा, तो वह अपने क़दम उसकी ओर बढ़ा रहा था। अन्विका घबरा गई थी। तभी रुद्रांश ने उसके कान के पास आकर धीमी आवाज़ में कहा, “तो तुम चाहती हो कि मैं आज पूरी रात तुम्हारे साथ इस कमरे में बिताऊँ? इसलिए तुम ये उल्टी-सीधी हरकतें कर रही हो?” बोलते हुए उसकी गर्म साँसें अन्विका को अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थीं, जिससे उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा था। इससे पहले कि रुद्रांश अन्विका के और करीब आता, अन्विका ने अपना हाथ उसकी छाती पर रखा और उसे खुद से थोड़ा दूर कर दिया। अपनी हड़बड़ाहट में अन्विका ने फिर ग़लती कर दी थी। उसने रुद्रांश को जिस तरह से धक्का दिया था, उसके बाद तो ऐसा लग रहा था कि उसकी ज़िंदगी और प्रोफ़ेशन का आखिरी दिन होने वाला है। वह घबराकर पीछे हटने लगी, कि उसका सिर पीछे की दीवार से टकरा गया। अन्विका ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं। तभी रुद्रांश ने उसके पास आकर कहा, “शांत हो, मैं तुम्हें एक और मौका दे रहा हूँ, पर यह तुम्हारा आखिरी मौका होगा। अगर तुमने इसके बाद कोई गड़बड़ की, तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।” रुद्रांश ने उसे एक और मौका दिया था। यह सुनते ही अन्विका की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं, मानो वह किसी तरह का सपना देख रही हो। उसके सामने मौजूद शख्स रुद्रांश मारवा था; सब जानते थे कि उसके सामने एक ग़लती किसी भी इंसान की आखिरी ग़लती होती थी; उसके बाद वह उसे कहीं काम करने के लायक नहीं छोड़ता था। उसने आज किसी की दो ग़लतियों को माफ़ कर दिया था; यह किसी करिश्मे से कम नहीं था। रुद्रांश दूसरी ओर पलटकर शर्ट बदल रहा था, तो अन्विका खोई हुई आँखों से उसे देख रही थी। वह दिखने में बिल्कुल फ़िट था: लगभग 6 फ़ीट 1 इंच लंबा, मस्कुलर बॉडी, हल्का गोरा रंग, खूबसूरत गहरी काली आँखें और शानदार चेहरे के लक्षण। ऐसा लग रहा था कि उसे ऊपर वाले ने फ़ुर्सत से बनाया था। अन्विका को देखते हुए रुद्रांश ने गहरी साँस ली और तेज आवाज़ में कहा, “मैडम, आपके पास सिर्फ़ 20 मिनट का समय है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सच में तुम मुझे यहाँ रोकना चाहती हो?” “न...नहीं।” अन्विका ने हड़बड़ाकर कहा और जल्दी से दौड़कर रुद्रांश की स्टाइलिंग के लिए लग गई। इस बार अन्विका काफी सतर्कता से काम कर रही थी; उसके पास ग़लती करने का कोई मौका नहीं था। लगभग 15 मिनट में उसने रुद्रांश को पूरी तरह तैयार कर दिया था। रेडी होने के बाद रुद्रांश खुद को आईने में देख रहा था, तो अन्विका की नज़रें उन दो शर्ट्स पर थीं, जो उसने बर्बाद कर दी थीं। रुद्रांश जाने ही वाला था, तभी अचानक अन्विका ने धीमी आवाज़ में पूछा, “इन शर्ट्स की कीमत कितनी होगी? मुझसे ग़लती हुई है, तो मैं भुगतान करना चाहती हूँ।” उसकी बात सुनकर रुद्रांश के चेहरे पर तिरछी मुस्कराहट आ गई। वह उसकी ओर पलटा और सिर हिलाकर बोला, “रोचक, तो तुमने ईमानदारी दिखाई और अपनी ग़लती को मान लिया। ख़ैर, अच्छा है। मुझे वे लोग ईमानदार लगते हैं जो बिना झूठ बोले अपनी ग़लती को मान लेते हैं। तो तुम इन शर्ट्स के पैसे देना चाहती हो?” अन्विका ने हाँ में गर्दन हिलाई, तो रुद्रांश बोला, “ठीक है, तो फिर पाँच लाख भेज देना।” जैसे ही अन्विका ने पैसे सुने, उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। दो शर्ट्स की कीमत इतनी ज़्यादा? उसके बिगड़े हुए भाव देखकर रुद्रांश ने कहा, “क्या हुआ? कुछ ज़्यादा ही पैसे हैं और तुम इतने नहीं दे पाओगी? देखकर लग ही रहा था। चलो ऐसा करते हैं कि तुम पैसों के बदले किसी और चीज़ से भुगतान कर दो।” बोलते हुए रुद्रांश अन्विका को चेक आउट कर रहा था। रुद्रांश किस बारे में बात कर रहा था, अन्विका अच्छे से समझ रही थी। उसने गुस्से से अपना मुँह ढँक लिया; उसकी नज़रें नीचे थीं, तो रुद्रांश ने उसे देखकर व्यंग्यात्मक मुस्कान दी और वहाँ से चला गया। रुद्रांश की बातों से अन्विका अभी भी उबरी नहीं थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर "माय लव" नाम फ़्लैश हो रहा था, जिसे देखकर अन्विका ने जल्दी से कॉल रिसीव किया, हालाँकि उसका दिल इस वक्त तेज़ी से धड़क रहा था। अन्विका ने खुद को मज़बूत किया और कहा, “हेलो सम्यक, तुम ठीक हो ना? कब से कॉल ट्राई कर रही थी। तुम्हें बिना बताए नहीं जाना चाहिए था।” सम्यक की ही चिंता के चलते आज वह ठीक से काम नहीं कर पा रही थी, वरना ऐसा नहीं था, अन्विका लापरवाह थी। “यह मैं बोल रही हूँ, अन्वी, सम्यक की माँ।” उसकी ओर से एक औरत की भारी आवाज़ आई। वह कुछ पल रुककर बोली, “पुलिस को उसका मोबाइल मिला है। वह पिछले चार दिन से उसे ढूँढ रहे थे... उन्हें... उन्हें लगता है कि अब वह नहीं रहा।” इतना कहकर वह औरत जोर-जोर से रोने लगी। यह सब सुनकर अन्विका वहीं पर घुटनों के बल गिर गई। अन्विका की आँखों में आँसू थे; उसकी तो दुनिया ही ख़त्म हो गई थी। जिस इंसान से उसने बेइंतेहा प्यार किया था, जिसके साथ उसने उम्र बिताने का वादा किया था, वह उसे छोड़कर कैसे जा सकता था? अन्विका अपने होश खो बैठी थी। कुछ ही देर में वह रोते हुए बेसुध हो चुकी थी और उसने इस हालत में खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, “तुम...तुम झूठे हो सम्यक मेहता! तुमने वादा किया था कि हम दोनों पूरी ज़िंदगी साथ बिताएँगे, तो तुम ऐसे मुझे बीच में छोड़कर कैसे जा सकते हो? तुमने कहा था कि हम जल्दी ही शादी करने वाले हैं...नहीं, सब झूठ बोल रहे हैं, उन्हें ग़लतफ़हमी हुई है, तुम्हें कुछ नहीं हुआ। वे झूठ बोल रहे हैं। मेरे सम्यक को कुछ नहीं हो सकता।” उसी बेसुध हालत में अन्विका चलती हुई होटल के बाहर आ गई थी। बाहर तेज बारिश हो रही थी। उसे कुछ होश नहीं था; ऐसा लग रहा था कि आज आसमान भी उसके साथ, उसके दुख में शामिल होते हुए रो रहा था। अन्विका बस एक ही बात बड़बड़ा रही थी कि उसका सम्यक उसे छोड़कर नहीं जा सकता। अन्विका अपनी खोई हुई हालत में चल रही थी कि अचानक एक गाड़ी तेज़ गति से उसकी ओर बढ़ रही थी। उसे तो इतना भी होश नहीं था कि वह वहाँ से हट जाए। अन्विका को होश तब आया जब गाड़ी की लाइट उसकी आँखों पर पड़ी, और तब तक वह गाड़ी उसके बहुत करीब आ चुकी थी। अन्विका चाहती तो हट सकती थी, पर लगता था कि सम्यक के जाने के बाद उसकी जीने की उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी। वह वहीं पर खड़ी रही और गाड़ी के उसे टक्कर मारने का इंतज़ार करने लगी। जब गाड़ी उसके बिल्कुल करीब आई, वह उससे टकराने ही वाली थी कि अन्विका जोर से चिल्लाई। °°°°°°°°°°°°°°°°
"सम्यक…" चीखते हुए अन्विका ने अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया था। कार उसके बेहद करीब आकर एक झटके से रुकी थी। उस कार में बैठे शख्स की आँखें यह नज़ारा देखकर खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गई थीं।
अन्विका भले ही अंदर बैठे शख्स को न देख सकी हो, पर कार की फ्लैश लाइट जैसे ही उसके चेहरे से टकराई थी, अंदर बैठे शख्स के चेहरे के बदलते एक्सप्रेशन यह ज़ाहिर कर रहे थे कि वह उसे पहचान चुका था।
इस बात से अनजान कि कार रुक चुकी थी, अन्विका अब भी अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए खड़ी थी और उसकी आँखों से बहते आँसू बारिश की बूंदों में घुलती जा रही थीं।
कार का दरवाज़ा खुला और ब्लैक बूट्स पहने एक शानदार शख़्सियत का हैंडसम लड़का उससे बाहर निकला था। बारिश की परवाह न करते हुए वह अन्विका की ओर बढ़ गया था।
"क्या कर रही हो तुम, इस वक्त यहां?" हल्के गुस्से भरी कठोर आवाज़ वहाँ गूँजी थी जिससे बारिश की बूंदें भी थरथरा गई थीं। जानी-पहचानी सी आवाज़ सुनकर अन्विका ने चौंकते हुए अपने चेहरे पर से अपनी हथेलियों को हटाया था, भीगी पलकें उठाईं थीं तो नज़र सीधे सामने खड़े उस हैंडसम लड़के पर पड़ी थी जो कोई और नहीं, रुद्रांश था। भीगे बाल उसके माथे पर बिखर गए थे और इस वक्त वह पहले से भी कहीं गुना ज़्यादा आकर्षक लग रहा था।
अपने सामने रुद्रांश को देखकर अन्विका स्तब्ध थी।
"गाड़ी में बैठो।" एक बार फिर रुद्रांश की आवाज़ उसके कानों से टकराई थी और वह चौंकते हुए होश में लौटी थी, नज़र अब भी रुद्रांश के सर्द चेहरे पर टिकी थी। इस लम्हे में इस दुनिया में खुद को कितना तन्हा और अकेला महसूस कर रही थी, वह पर अचानक ही रुद्रांश उसके सामने आकर खड़ा हो गया था और उसे देखते ही, अन्विका की आँखों में रुके हुए आँसू उसके गालों पर फिसलने लगे थे।
"वो मर चुका है… अब कभी वापस नहीं आएगा…"
उसके कानों में ये शब्द गूँज रहे थे और उसका पूरा शरीर काँप रहा था, आँखों से आँसू बह रहे थे। उसके आँसू देखकर रुद्रांश के दिल में अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ था, चेहरे के कोल्ड एक्सप्रेशन भी कुछ बदले थे और लहज़े में नर्मी झलकने लगी थी।
"गाड़ी में बैठो अन्विका।"
अन्विका के लिए इस वक्त रुद्रांश का उसके पास होना ऐसा था जैसे तूफान से अकेले लड़ते किसी इंसान को किसी का सहारा मिल गया हो। इस वक्त उसके मन में भी भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था, जो उसे अपने साथ बहाकर ले जाता, पर रुद्रांश उसका सेवियर बनकर उसे बचाने आ गया था।
अन्विका बिना कुछ कहे, बोझिल कदमों से घसीटते हुए जाकर कार में बैठ गई थी। उसने अपने घुटनों में सिर छुपाया था और दर्द से आँखों से आँसू बनकर बह निकले थे।
रुद्रांश के कानों में उसकी सिसकियों की आवाज़ गूँज रही थी, जो उसे बेचैन कर रही थी। उसने हल्के से आँखें बंद की थीं, जैसे अपनी भावनाओं को कंट्रोल कर रहा हो और ड्राइवर से कहा था, "मेंशन चलो।"
उसकी बात सुनकर ड्राइवर एक पल के लिए चौंका था, फिर चुपचाप गाड़ी आगे बढ़ा दी थी। रुद्रांश ने अपनी बैक सीट से लगाते हुए अपनी आँखों को बंद कर लिया था। इस वक्त उसके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ वो पल घूम रहा था जब कार अन्विका के बेहद करीब पहुँच गई थी, पर वह हटने के बजाय वहीं खड़ी थी, उसके वह आँसुओं से भीगी आँखें, सिसकियाँ… प्रभावित कर रही थीं, पर क्यों, इससे वह खुद अनजान था।
कुछ ही देर बाद, अचानक ही उसे अपनी गोद में किसी भारी चीज़ के गिरने का एहसास हुआ था तो उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोली थीं। अन्विका का सर उसके गोद में था और बाँह नीचे लटक रही थी। उसका पूरा चेहरा लगातार रोने से लाल हो गया था और गालों पर आँसुओं के निशान मौजूद थे। उस हसीन, दिलकश चेहरे पर अजीब सी उदासी और दुख झलक रहा था।
रुद्रांश कुछ देर खामोशी से उसके चेहरे को देखता रहा था, फिर उसके चेहरे पर बिखरे बालों को अपनी उंगलियों से समेटकर कान के पीछे खोंस दिया था। उसे थामते हुए उसने वापस सीट से सर लगाते हुए अपनी आँखों को बंद कर लिया था।
जब अन्विका को होश आया था, तो उसने खुद को एक शानदार विला के खूबसूरत से कमरे में पाया था। वह तुरंत झटके से उठकर बैठ गई थी। आँखें बड़ी-बड़ी करके उसने चारों तरफ नज़रें घुमाई थीं, पर यह जगह उसके लिए बिल्कुल ही अनजान थी। उसका सर अब भी भारी हो रहा था, रुद्रांश से मिलने वाली बात उसके दिमाग से बिल्कुल ही स्किप हो गई थी।
"यह कौन सी जगह है?… किसका कमरा है और मैं यहां कैसे आई?"
खुद से सवाल करते हुए अन्विका बेड से नीचे उतर गई थी। नज़रें झुकाकर खुद को देखा था, फिर सर हिलाते हुए गेट की ओर बढ़ गई थी।
कमरे से बाहर निकलते ही उसके सामने बड़ा सा लिविंग एरिया आ गया था। अभी वह नज़रें घुमाकर गेट ढूंढ ही रही थी कि पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई थी।
"भागने के लिए रास्ता ढूंढ रही हो?"
आवाज़ सुनकर अन्विका की आँखों की पुतलियाँ आश्चर्य से फैल गई थीं। पहचान गई थी वह इस आवाज़ को। अचानक ही उसकी आँखों के आगे वह सीन आ गया था जब बारिश में भीगते रुद्रांश को उसने अपने सामने देखा था।
"तो क्या रुद्रांश मुझे अपने घर ले आए हैं?" अन्विका मन ही मन बड़बड़ाते हुए पलटी थी। सामने ही रुद्रांश खड़ा था।
वी-नेक ग्रे टी-शर्ट, जो उसकी फिट बॉडी को परफेक्टली हग कर रही थी, हल्की भीगी हुई थी, जिससे उसकी मस्क्युलर बॉडी की आउटलाइन और भी उभर आई थी। सफेद लोअर उसकी लंबी, एथलेटिक टांगों पर ढीले-ढाले अंदाज़ में टिका था, लेकिन उसकी चाल में जो कॉन्फिडेंस था, उसने उस कैजुअल लुक को भी बेहद चार्मिंग बना दिया था।
भीगे बाल उसके माथे पर कुछ लटों की तरह बिखरे हुए थे, जिनमें से पानी की कुछ बूंदें उसके जबड़े की शार्प लाइन से होकर नीचे गिर रही थीं। उसकी गहरी, इंटेंस आँखें जैसे किसी अनकहे राज़ को छुपाए हुए थीं, और होंठों पर हल्की-सी स्माइल थी, जो उसे और भी आकर्षक बना रही थी।
वह लापरवाही से अपनी हथेली से बालों को झटकता हुआ उसकी ओर बढ़ रहा था, दूसरा हाथ लोअर की पॉकेट में था। उसकी मूवमेंट में एक नेचुरल ग्रेस थी। उसकी बॉडी लैंग्वेज में एक ऐसा मैगनेटिक चार्म था, जो सामने खड़े किसी को भी बेसाख्ता उसकी तरफ देखने पर मजबूर कर देता था।
अन्विका की नज़र जब उस पर पड़ी थी तो वह अपनी पलकें तक झपकाना भूल गई थी। यह नज़ारा देखते ही रुद्रांश के होंठों पर एक शैतानी मुस्कान खेल गई थी।
"व्हाट आर यू लूकिंग एट?"
अन्विका के शब्द कानों में पड़ते ही चौंकते हुए होश में लौटी थी और हड़बड़ाते हुए कुछ कदम पीछे हट गई थी क्योंकि रुद्रांश उसके बेहद करीब था। रुद्रांश उसके चेहरे का उड़ा हुआ रंग देखकर हल्के से हँसा था, फिर दोनों हाथ अपने पॉकेट में डालते हुए इंटेंस निगाहों से उसे देखने लगा था।
"पहले तुमने मेरी दो-दो शर्ट खराब की, फिर अचानक मेरी कार के सामने आकर खड़ी हो गई। तुम्हारे बेहोश होने पर मैं तुम्हें अपने मेंशन में लेकर आया, तुम्हारे लिए डॉक्टर को बुलाया और होश में आते ही तुम छुपकर यहां से भागने लगी… एक दिन में तुम्हारे वजह से कितनी प्रॉब्लम्स हुई हैं मुझे, इसके बावजूद मैंने तुम्हारी हेल्प की… डोन्ट यू थिंक कि तुम्हें पहले मुझे थैंक्यू एंड सॉरी कहना चाहिए।"
रुद्रांश की बात सुनकर अन्विका को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने हड़बड़ाते हुए कहा था,
"मैं भाग नहीं रही थी और मेरा आपको परेशान करने का कोई इंटेंशन भी नहीं था।… आई एम वेरी वेरी सॉरी एंड थैंक्स अ लॉट. नाउ आई हैव टू गो…"
"जाना है तुम्हें?" रुद्रांश ने उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए सवाल किया था। उसके चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर अन्विका ने घबराते हुए सर हिला दिया था।
उसका जवाब सुनकर रुद्रांश के होंठों पर कुटिल मुस्कान फैल गई थी।
"इतनी भी क्या जल्दी है जाने की?… याद नहीं तुमने आज तुमने मेरी दो-दो शर्ट खराब की है, तुम्हें मुझे उसके पैसे देने थे। उससे पहले तो तुम यहां से नहीं जा सकती।"
रुद्रांश के चेहरे पर मिस्टिरियस लुक्स मौजूद थे, शायद उसके शैतानी दिमाग में कुछ चल रहा था। उसकी बात सुनकर अन्विका कुछ परेशान हो गई थी, पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया था और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ जवाब दिया था,
"सॉरी सर, पर अभी मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं, पर मैं बहुत जल्द आपकी शर्ट का कॉम्पेन्सेशन पे कर दूंगी। बस मुझे थोड़ा सा टाइम चाहिए।"
उसका लहजा आत्मविश्वास से भरा था। रुद्रांश ने पलटकर कुछ जवाब नहीं दिया था, बस इंटेंस नज़रों से उसे देखते हुए धीरे-धीरे अन्विका की ओर बढ़ने लगा था। उसे यूँ अपनी ओर आता देखकर अन्विका घबरा गई थी। उसके कोल्ड एक्सप्रेशन और डरावनी आँखें…
अन्विका का दिल जोरों से धड़क उठा था। वह अपने कदमों को पीछे की ओर घसीटने लगी थी और अचानक ही पीछे रखे सोफे पर गिर पड़ी थी। रुद्रांश के होंठों पर तिरछी मुस्कान फैल गई थी। अन्विका हड़बड़ाते हुए उठने लगी थी, पर रुद्रांश उसके बेहद करीब पहुँच गया था और अचानक ही अन्विका की ओर झुक गया था, जिससे घबराकर अन्विका ने पीछे हटते हुए उनके दरमियान दूरी बनाई थी।
अगले ही पल रुद्रांश ने कुछ ऐसा किया था जिससे अन्विका बुरी तरह चौंक गई थी और उसने घबराकर अपनी आँखों को कसके बाँध लिया था।
अन्विका का दिल जोरों से धड़क उठा। उसने अपने कदम पीछे की ओर घसीटे और अचानक पीछे रखे सोफे पर गिर पड़ी। रुद्रांश के होंठों पर तिरछी मुस्कान फैल गई। अन्विका हड़बड़ाकर उठने लगी, पर रुद्रांश उसके बेहद करीब पहुँच गया था और अचानक उसकी ओर झुक गया। घबराकर अन्विका ने पीछे हटने की कोशिश की, पर नाकामयाब रही क्योंकि रुद्रांश ने उसकी ओर झुकते हुए, उनके बीच की दूरी और कम कर दी थी।
अन्विका ने हिम्मत करके उसे धक्का देने के लिए हाथ बढ़ाना चाहा, पर झिझक और शर्म के कारण ऐसा नहीं कर सकी। अगर वो हाथ बढ़ाती, तो उसकी हथेली रुद्रांश के चौड़े, मजबूत सीने को छू जाती। सोचकर ही उसके दिल में अजीब सी हलचल होने लगी।
रुद्रांश ने अपनी हथेली सोफे पर टिकाते हुए उसके और करीब आ गया। पीछे होते-होते अन्विका सोफे पर लगभग लेट चुकी थी, और पीछे हटने की कोई जगह नहीं बची थी। उसकी साँस थम सी गई थी। आँखें बड़ी-बड़ी किए, वो सहमी निगाहों से घबराई हुई उसे देख रही थी। उनके बीच इंच भर की दूरी रह गई थी; शुक्र था कि रुद्रांश वहीं रुक गया। उसने उनके बीच की दूरी कम करने की कोशिश नहीं की और गहन निगाहों से उसे देखने लगा।
बारिश की वजह से अन्विका के कपड़े उसके शरीर से चिपक गए थे, जिससे उसके कोमल शरीर की खूबसूरती और आकर्षक फिगर पूरी तरह से उभर कर सामने आ रहे थे। उसकी हिरनी जैसी आँखें और तितली के पंखुड़ियों जैसे फड़फड़ाती पलकें; डरी-सहमी बार्बी डॉल जैसी क्यूट लग रही थी वो।
रुद्रांश की नज़रें उसके खूबसूरत वजूद पर से फिसलते हुए, उसके कॉलरबोन पर आकर ठहर गईं। वो बर्थ मार्क उसे आकर्षित कर रहा था। उसके चेहरे के बदलते भाव और आँखों में झलकते एहसास कुछ अलग से थे, जिन्हें समझना मुश्किल था। जिस अंदाज़ से वो उस बर्थ मार्क को देख रहा था, उससे साफ़ ज़ाहिर था कि उसका मन उसे छूने को मचल रहा है।
रुद्रांश ने अपनी आँखें बंद करते हुए गहरी साँस ली, शायद अपने ज़ज़्बातों को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था।
रुद्रांश की निगाहें खुद पर टिके देखकर अन्विका नर्वस होने लगी और अपनी बाँहों को खुद पर लपेटा, जैसे उसकी आगोश में खुद को छुपा लेने को बेताब थी। इन करीबियों से उसका दिल घबराहट के मारे ज़ोरों से धड़कने लगा, दिमाग सुन्न हो गया। इस लम्हे में वो समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए।
रुद्रांश के होंठों पर शरारती मुस्कान फैल गई। अन्विका को यूँ सताने और परेशान करने में उसे मज़ा आने लगा था। वो अन्विका के थोड़ा और नज़दीक आया, तो अन्विका ने घबराकर अपनी आँखें भींच लीं। उसे लगा जैसे आँखें बंद करने से वो यहाँ से गायब हो जाएगी, या शायद रुद्रांश की नज़रें उसे नर्वस कर रही थीं, इसलिए उसने अपनी आँखें भींच ली थीं ताकि खुद को संभाल सके।
रुद्रांश उसकी इस बचकानी हरकत पर हल्का-सा हँसते हुए सीधे होकर उसके बगल में बैठ गया। पर अन्विका को अब भी इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं था। वो यूँ ही साँसें थामे खुद में लिपटी हुई, सहमी हुई सी लेटी रही।
एक नौकर तुरंत आया और तौलिए से उसके बाल सुखाने लगा। रुद्रांश ने आँखें दिखाकर उसे रोक दिया। उसने उससे तौलिया लेकर उसे जाने का इशारा किया, और वो तुरंत ही सर झुकाता हुआ वहाँ से चला गया। रुद्रांश ने तौलिए से अपने भीगे चेहरे और गर्दन को पोंछा, फिर बाल पोंछते हुए अचानक ही उसके मन में एक शरारत ने जन्म लिया। उसने बेपरवाही से भीगे तौलिए को फेंका, जो सीधे अन्विका के मुँह पर जाकर गिरा। अन्विका ने एकदम से चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं।
आँखों के आगे कुछ सफ़ेद-सफ़ेद सा आया। उसने हाथ बढ़ाकर मुँह पर से तौलिया हटाया, तो खुद के ऊपर से रुद्रांश को गायब पाया। अन्विका हड़बड़ाकर उठकर बैठने लगी, तो नज़र बगल में बैठे रुद्रांश पर गई, जो होंठों पर मंद मुस्कान सजाए, बड़ी ही दिलचस्पी से उसे देख रहा था।
अन्विका कुछ देर पहले की अपनी हरकत पर हैरान थी, वहीं रुद्रांश की हरकतों से बेचैन भी थी। उससे नज़रें चुराते हुए वो सोफे के दूसरे कोने से चिपक गई और नर्वसनेस में अपनी उंगलियों को आपस में उलझाने लगी।
"तुम मेरी कार के सामने से हट क्यों नहीं रही थी और इतना रो क्यों रही थी?" रुद्रांश ने अचानक ही सवाल किया। इसे सुनकर अन्विका ने चौंकते हुए नज़रें घुमाकर उसे देखा।
रुद्रांश चेहरे पर गंभीर भाव लिए, आँखें चढ़ाए, सवालिया निगाहों से उसे देख रहा था। अन्विका को वो लम्हा याद आ गया जब उसे सम्यक के बारे में खबर मिली थी और वह अपने होश खो बैठी थी। एक बार फिर वो भावनाओं में बहने लगी, पर जल्दी ही उसने खुद को संभाला।
रुद्रांश उसके लिए अंजान था, तो अपनी ज़िंदगी से जुड़ी पर्सनल बातें उसे बताकर न तो वो उसकी सहानुभूति चाहती थी और न ही उसे कुछ बताने का कोई फ़ायदा था।
"टेल मी… तुम इस तरह बीच रोड पर खड़ी होकर रो क्यों रही थी और जब सामने से आती कार तुम्हें नज़र आ रही थी, तो हट क्यों नहीं रही थी?"
रुद्रांश ने एक बार फिर सवाल किया। अन्विका के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे। क्या बताती उसे कि किस्मत ने उससे जीने की वजह ही छीन ली इसलिए मरना चाहती थी वो? नहीं, वो ऐसे अपनी पर्सनल लाइफ़ अपने क्लाइंट के सामने नहीं ला सकती थी।
अन्विका ने गहरी साँस ली और बिना किसी भाव के जवाब दिया, "मैं जल्दी ही आपको आपकी शर्ट का पूरा कॉम्पेन्सेशन पे कर दूंगी… मेरी इतनी हेल्प करने के लिए थैंक यू… थैंक यू सो मच। अब मुझे यहाँ से जाना चाहिए।"
इस वक़्त उसके दिल की जो हालत थी और जितनी तकलीफ में वो थी, वो किसी से ये शेयर करना चाहती थी, लेकिन वो ये खतरनाक और रहस्यमय शख्स तो बिल्कुल नहीं था, जिसे वो ठीक से जानती तक नहीं थी। उस वक़्त वो कमज़ोर पड़ गई थी, पता नहीं क्या हुआ था उसे कि उसके सामने ऐसे रो पड़ी, पर अब उसने खुद को संभाल लिया था।
अन्विका ने उसे थैंक्स कहा और उठकर चली गई। रुद्रांश ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की। जाती हुई अन्विका की पीठ को देखते हुए, रुद्रांश की आँखों में कुछ अजीब से भाव नज़र आ रहे थे, जिन्हें समझना मुश्किल था। उसने टेबल पर रखे मोबाइल को उठाकर किसी को फोन पर ऑर्डर दिया और जैसे ही अन्विका ने गेट से बाहर क़दम रखा, एक नई चमचमाती कार उसके सामने आकर खड़ी हो गई।
"बारिश अब भी काफ़ी तेज हो रही है और मुझे तुम पर कोई भरोसा नहीं, कहीं फिर से किसी चलती कार के सामने जाकर न खड़ी हो जाओ। बैठ जाओ अंदर, ड्राइवर तुम्हें छोड़ देगा।"
अन्विका जो सामने खड़ी कार को हैरानी से घूर रही थी, अचानक आई रुद्रांश की आवाज़ सुनकर उसने चौंकते हुए मुड़कर देखा। उससे कुछ क़दमों की दूरी पर रुद्रांश खड़ा था; चेहरे पर गंभीर भाव, दोनों हाथ जेब में डाले, माथे पर बिखरे भीगे बाल; अपनी आकर्षक पर्सनैलिटी के साथ रहस्यमय आँखों से उसे ही घूर रहा था।
रुद्रांश ने आँखें घुमाकर अन्विका को कार में बैठने का इशारा किया। पहले तो झिझक के कारण अन्विका उलझन में पड़ गई, फिर कुछ सोचते हुए वो अंदर बैठ गई और रुद्रांश तब तक वहीं खड़ा रहा जब तक कि वो कार मेन गेट से बाहर न निकल गई, फिर अपने भीगे बालों में उंगलियाँ घुमाते हुए वह अंदर आ गया। उसके होंठों पर अजीब सी मुस्कान फैली थी और उसके शैतानी दिमाग में इस वक़्त क्या चल रहा था, ये बस वही जानता था।
कार अन्विका के घर के बाहर आकर रुकी। ड्राइवर को धन्यवाद कहते हुए वह बोझिल कदमों से अंदर जाने लगी। बारिश अब भी पूरे ज़ोर पर थी और चंद मिनटों में अन्विका को पूरी तरह से भीगा चुकी थी।
अन्विका के कदम घर के गेट पर ही ठिठक गए। उसने गहरी साँस ली, खुद को संभाला, दिल को अपनी ज़िंदगी की सबसे कड़वी हकीकत का सामना करने के लिए मजबूत किया और जैसे ही अंदर क़दम रखा, एक साथ कई निगाहें उस पर जम गईं। इन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए उसने अभी कुछ कदम बढ़ाए ही थे कि एक सख्त, रौबदार आवाज़ उसके कानों से टकराई और उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। चेहरे का रंग उड़ गया और घबराहट के मारे माथे पर पसीने की बूँदे झिलमिलाने लगीं।
"रुको!"
एक तेज, रौबदार, मर्दाना आवाज़ वहाँ गूँजी। अन्विका के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए; उसने चौंकते हुए आवाज़ की दिशा में नज़रें घुमायीं।
उससे कुछ दूरी पर लगे सोफ़े पर एक आदमी, पैर पर पैर चढ़ाए बैठा था, अपनी स्टील-ग्रे आँखों से उसे घूर रहा था। शार्प जॉलाइन, रग्ड स्टबल और हमेशा एक सख्त एक्सप्रेशन। उनकी मौजूदगी वहाँ अजीब सा टेंशन क्रिएट कर रही थी। ब्लैक टेलर्ड सूट्स, एक्सपेंसिव वॉच और एक भारी, ऑथोरिटेटिव वॉइस—ये विकास राठौड़ थे।
उनकी खतरनाक आँखें और ऑरा देखकर कोई भी सहम जाता। अन्विका भी थोड़ा घबरा गई, पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया और चेहरे पर कॉन्फ़िडेन्स लाते हुए कहा,
"मैं बहुत थकी हुई हूँ, डैड, रेस्ट करना चाहती हूँ।"
साफ़ ज़ाहिर था कि वह यहाँ रुकना नहीं चाहती थी। उसने जैसे ही जाने के लिए कदम बढ़ाया, एक बार फिर वही कठोर, रौबदार, गुस्से भरी आवाज़ गूँजी,
"जहाँ हो वहीं रुक जाओ अन्विका, अभी मैंने तुम्हें यहाँ से जाने की परमिशन नहीं दी है।"
अन्विका चाहकर भी आगे नहीं बढ़ सकी। उनके कठोर चेहरे और गुस्से से लाल आँखें देखकर मन ही मन थोड़ा सहम भी गई।
"कहाँ थी तुम अब तक? किससे पूछकर बाहर गई थी? ये वक़्त होता है घर आने का और ये किस कंडीशन में वापिस आई हो तुम? इस घर को क्या तुमने अपने बाप का घर समझा हुआ है कि जब जो चाहोगी वही करोगी? हमारे खानदान की इज़्ज़त और रिपुटेशन का कोई ख्याल है तुम्हें या नहीं? अब जवाब क्यों नहीं देती, कहाँ थी अब तक?"
विकास गुस्से से चिल्लाए; अन्विका सहमकर खुद में सिमट गई। उसके होंठ थोड़े से हिले, लेकिन चाहकर भी वह इन सवालों का जवाब नहीं दे सकी, और उसकी खामोशी विकास के गुस्से की आग में पेट्रोल छिड़कने का काम कर रही थी।
अन्विका जानती थी कि वे इतने पावरफुल थे कि वे सम्यक के साथ हुए हादसे के बारे में पहले से जानते होंगे। उसके काम के बारे में भी पूरी खबर रखते थे। फिर जब जवाब पता था, तो ये सवाल पूछने का क्या मतलब था? और इतना गुस्सा क्यों हो रहे थे वे? अन्विका समझ नहीं सकी।
"अन्विका, तुम हमेशा अपने डैड को गुस्सा क्यों दिलाती हो? उनके एजेंस्ट जाकर उन्हें नाराज़ क्यों करती हो? चलो जल्दी से उनसे माफ़ी माँगो!"
विकास के बगल में बैठी महिला, जो देखने में काफी मॉडर्न लग रही थी, उनकी वाइफ़ थी—काजल राठौड़। उसने अन्विका को चुप देखकर गुस्से से उसे डाँट लगाई, तो अन्विका विकास को छोड़कर उन्हें देखने लगी।
वह खामोश निगाहों से उन्हें देखे जा रही थी। अब भी न तो उसकी खामोशी टूटी, न उसने कोई जवाब दिया और न ही माफ़ी माँगी। यह देखकर विकास गुस्से से बौखला गए,
"देखो, यही तुम्हारी बेटी है! जिसने कसम खाई है कि कभी मेरी कोई बात नहीं सुनेगी, अपनी मनमानी करके सालों की मेहनत से बनाई हमारी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला देगी। ज़रा भी शर्म नहीं इस लड़की में, माफ़ी तक नहीं मांग रही।"
विकास गुस्से भरी नज़रों से अन्विका को घूर रहे थे। मिसेज़ राठौड़ ने जल्दी से विकास को शांत किया, फिर अन्विका की ओर मुड़ते हुए गुस्से से चिल्लाई,
"अन्विका माफ़ी माँगो अपने डैड से।"
यह उनका ऑर्डर था और उनकी घूरती आँखें बहुत कुछ ज़ाहिर कर रही थीं, जिसे समझते हुए अन्विका ने अपनी नज़रों को झुका लिया और धीमी सी आवाज़ उसके होंठों से बाहर आई,
"आई एम सॉरी डैड।"
गलती क्या थी? वह नहीं जानती, पर माफ़ी मांग ली थी उसने। क्योंकि यह माफी मांगना शायद उसके लिए बहुत ज़रूरी था। विकास ने उसे घूरते हुए अपना चेहरा फेर लिया; वे उसकी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते थे।
"अन्विका, इधर आकर हमारे पास बैठो, हमें तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"
काजल की आवाज़ पहले से नर्म थी। अन्विका ने नज़र उठाकर देखा तो आँखों से उन्होंने वहाँ आने का इशारा कर दिया।
अन्विका ने कुछ देर सोचा कि उन्हें भला उससे ऐसी क्या बात करनी होगी कि उसे अपने पास बुला रही हैं? खुद को भी एक नज़र देखा कि क्या उन्हें नज़र नहीं आ रहा कि वह किस कंडीशन में है? अचानक ही उसके दिमाग ने इस सवाल का जवाब दिया कि यहाँ किसी को उससे फ़र्क ही कहाँ पड़ता है? बेबसी भरी मुस्कान अन्विका के होंठों पर बिखर गई।
"अन्विका, सुना नहीं तुमने? मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया है। कुछ बहुत इम्पॉर्टेन्ट बात करनी है हमें तुमसे।"
काजल के आवाज़ में गुस्सा झलक रहा था और उन्होंने एक बार फिर ऑर्डर दिया था, जिसे टालना अन्विका के लिए इम्पॉसिबल था। वह बिना कपड़े बदले, पूरी तरह भीगी हुई उनके सामने बैठ गई। कहीं न कहीं उसे अंदाज़ा हो गया था कि आगे जो भी होने वाला था, उसके लिए बुरा ही होगा।
"कहिये मॉम, क्या बात करनी है आपको मुझसे?"
उसके लहज़े में कॉन्फ़िडेन्स झलक रहा था। उसने खुद को मेंटली रेडी कर लिया था।
मिसेज़ राठौड़ ने विकास की ओर नज़रें घुमायीं। इशारों-इशारों में उनकी कुछ बातें हुईं, जिन्हें अन्विका समझ नहीं सकी पर कोशिश पूरी की थी उसने और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन से तो यही लग रहा था कि कोई सीरियस ही बात है और उनकी सीरियस बात यही उसके लिए कोई नई मुसीबत। सोचते हुए अन्विका ने ठंडी आह्ह् भरी, इस घर में उसका हर दिन एक नए चैलेंज के साथ शुरू होता था और अब उसे इन सब की आदत लग चुकी थी।
कुछ देर बाद काजल ने नज़रें घुमाकर अन्विका को देखते हुए कहना शुरू किया,
"अन्विका, क्या तुम्हें याद है कि राठौड़ फैमिली यहाँ तक कैसे पहुँची है? इस मुकाम तक आने के लिए हमने कितना स्ट्रगल किया है? जानती हो तुम कि पहले हमारी कंडीशन क्या थी और आज यह मेंशन, इम्पॉर्टेन्ट कार्स, यह लग्ज़ूरियस लाइफ़स्टाइल हमें कैसे मिल रहा है?"
अन्विका उनकी बातें सुनकर कुछ कन्फ़्यूज़ हो गई। उनके इन सवालों का वह कोई जवाब दे पाती, उससे पहले ही, मिसेज़ राठौड़ ने खुद ही आगे कहा, "मारवा फैमिली ने हम पर ट्रस्ट करके उस वक़्त हमारी हेल्प ली, हमारे बिज़नेस में इन्वेस्ट किया, हमें लोन दिया। उनके फ़ाइनेंस करने की वजह से राठौड़ फैमिली उस मुश्किल वक़्त को फ़ेस करके आगे बढ़ सकी, हमारा बिज़नेस एक बार फिर से खड़ा हुआ। मारवा फैमिली ने हम पर ट्रस्ट किया और हमें एक मौका दिया। बस एक कंडीशन थी—अगर हम मारवा खानदान को एक heir (वारिस) दे दें, तो हमें वह लोन नहीं चुकाना पड़ेगा।"
अन्विका इस बारे में पहले से जानती थी। पहले कई बार सुन भी चुकी थी। बस वह समझ नहीं पा रही थी कि आज ये सब बातें उसे क्यों बताई जा रही हैं, इसके पीछे उनका मोटिव क्या है?
अन्विका ने उनकी पूरी बात सुनी, फिर आइब्रो चढ़ाते हुए कहा, "आई नो, पर आप मुझे आज ये सब बातें क्यों बता रही हैं? उस कंडीशन के अकार्डिंग परिधि की शादी तो पहले ही तय हो चुकी थी कि वह मारवा खानदान की बहू बनेगी, है ना?"
अन्विका के सवाल सुनकर मिसेज़ राठौड़ ने एक झूठी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "हाँ, परिधि का रिश्ता तय किया था हमने और यही डिसाइड हुआ था कि वह मारवा खानदान की बहू बनेगी, पर अब परिधि की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह उनकी उस कंडीशन को पूरा नहीं कर सकेगी, वह यह शादी नहीं कर सकती।"
"तो अब आप क्या चाहती हैं? और मुझे ये सब बातें बताने का क्या मतलब हुआ? इन सब में मैं क्या कर सकती हूँ?"
अन्विका आइब्रो चढ़ाए, शक भरी नज़रों से उन्हें देख रही थी, शायद जानने की कोशिश कर रही थी कि आख़िर वे चाहती क्या है उससे?
मिसेज़ राठौड़ सर घुमाकर अपने साथ बैठे विकास को देखने लगी। एक बार फिर उनके बीच आँखों ही आँखों में कुछ बातें हुईं, जिसके दौरान कई बार उनके चेहरे के एक्सप्रेशन बदले, जिन्हें अन्विका बहुत गौर से देख रही थी। कहीं न कहीं वह समझ रही थी कि वे कहने वाले हैं, फिर भी खामोश बैठे उनके जवाब का इंतज़ार कर रही थी।
"तुम्हें परिधि की जगह यह शादी करनी होगी!"
कुछ देर की खामोशी के बाद विकास ने बिना कोई भूमिका बांधे साफ़ शब्दों में जवाब दिया और उन्होंने सिर्फ़ कहा; या उससे कुछ पूछा नहीं था, बल्कि सीधे ऑर्डर दिया था जिसका मतलब साफ़ था कि उसे यह करना ही था। वह शादी से इंकार करने का हक़ नहीं रखती थी।
अन्विका का अंदाज़ा सही निकला था। पहले तो वह बेयक़िनी से अपने सामने बैठे अपने मॉम-डैड को देखती रही, फिर गहरी साँस छोड़ते हुए वहाँ से उठ खड़ी हुई।
"मैं यह शादी नहीं करूँगी।" अन्विका ने पूरे कॉन्फ़िडेन्स के साथ, उनकी नज़रों से नज़रें मिलाते हुए उनके ऑर्डर को मानने से मना कर दिया। उसका जवाब सुनकर विकास के चेहरे पर कोल्ड एक्सप्रेशन आ गए। अगले ही पल उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि अन्विका ने सर झुकाकर उनके ऑर्डर को मान लिया।
"तुम्हें परिधि की जगह यह शादी करनी होगी!"
कुछ देर की खामोशी के बाद, विकास ने बिना कोई भूमिका बांधे, साफ़ शब्दों में जवाब दिया। उन्होंने सिर्फ़ कहा; या उससे कुछ पूछा नहीं था, बल्कि सीधे आदेश दिया था, जिसका मतलब साफ़ था कि उसे यह करना ही था। वह शादी से इंकार करने का हक़ नहीं रखती थी।
उनकी बात सुनकर अन्विका हैरान हुई और उसे बहुत गुस्सा आया। वह सब कुछ जानते हुए उसके साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?
"डैड, इसका क्या मतलब हुआ? रिश्ता परिधि के लिए आया था, उसका रिश्ता तय हुआ था तो मैं यह शादी कैसे कर सकती हूँ? आप सब कुछ जानते हुए भी ऐसा फैसला कैसे ले सकते हैं?"
अन्विका का चेहरा सख्त था, और आँखों में दुःख के साथ अजीब सी नाराज़गी भी झलक रही थी।
उसका यह लहजा और उनके फैसले पर निडर होकर सवाल उठाना मिस्टर राठौड़ को कुछ खास पसंद नहीं आया। उनका चेहरा और गहरा हो गया; त्योरियाँ चढ़ाए, वे गुस्से से उसे घूरने लगे।
"अन्विका, भूलो मत कि राठौड़ खानदान ने तुम्हें यह नाम और पहचान दी है। आज तुम जो हो, जहाँ हो, मेरे कारण हो। अगर उस वक़्त मैंने तुम्हें अपने घर में जगह नहीं दी होती, अपना नाम नहीं दिया होता, तो आज तुम किसी अनाथालय में पड़ी होती। राठौड़ खानदान ने तुम्हें 18 साल तक पाला है। बहुत एहसान है हमारे तुम पर, और अब वक़्त आ गया है कि तुम इन एहसानों का बदला चुकाओ!"
मिस्टर राठौड़ ने आज गुस्से में ऐसी बात कह दी थी कि अन्विका अवाक सी उन्हें देखती ही रह गई। उनका चेहरा कठोर था और आँखें गुस्से से लाल।
मिस्टर राठौड़ को इतने गुस्से में देखकर मिसेस राठौड़ घबरा गईं। अपने अतीत को सामने आते देखकर उनके चेहरे का रंग उड़ गया। मिसेस राठौड़ तुरंत अन्विका की ओर मुड़ीं और अपनी बेबसी ज़ाहिर करते हुए उसके आगे गिड़गिड़ाने लगीं,
"अन्विका, अगर राठौड़ खानदान से कोई भी मारवा खानदान में शादी नहीं करेगा, तो उन्होंने हमें पहले जो पैसे उधार दिए थे, वह वापस ले लेंगे।... तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं कि उन्होंने कितना निवेश किया था। अगर हम सारा ऋण चुकाने बैठे, तो हम तब सचमुच बर्बाद हो जाएँगे।... यह विला, कार, प्रॉपर्टी और शेयर—सब कुछ चला जाएगा! राठौड़ साम्राज्य का नामोनिशान मिट जाएगा, हमारी फैमिली सड़क पर आ जाएगी। हमसे हमारा सब कुछ छिन जाएगा, फिर अंश का इलाज करवाने के लिए पैसे कौन देगा?"
अन्विका की कमज़ोर नस को काजल ने बड़ी ही बेरहमी से दबा दिया था। उसकी माँ थी, शायद इसलिए जानती थी कि उसे कैसे मजबूर किया जा सकता है? अन्विका के चेहरे के बदलते भाव बता रहे थे कि उनकी बातों का असर हो रहा है उस पर।
अन्विका को ऐसा लगा जैसे किसी ने बड़ी ही बेरहमी से उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली है, उसके दिल को पकड़कर मुट्ठी में भींच लिया है। घुटन सी महसूस होने लगी उसे।
वह जानती थी कि राठौड़ फैमिली पर मारवा खानदान के कितने एहसान हैं और कितना कर्ज़ लिया है उन्होंने उनसे। अगर शादी नहीं हुई, तो पैसे देने होंगे और उस कर्ज़ को चुकाते-चुकाते वे लोग सड़क पर आ जाएँगे। फिर क्या होगा?... इस पूरी दुनिया में अगर उसका अपना कोई था, तो वह था उसका भाई अंश, उसकी कमज़ोरी। जिसके लिए वह कुछ भी कर सकती थी, पर उसकी सगी माँ उसकी कमज़ोरी का फ़ायदा कैसे उठा सकती थी? वह कैसे उसे ऐसे ही किसी से भी शादी करने कह सकती थी, जबकि वह जानती थी कि उसने सिर्फ़ सम्यक को चाहा था और उसके साथ ज़िंदगी बिताने की कसमें खाई थी!
अन्विका का मन भारी हो गया। दिल दुःख-निराशा के गहरे समुद्र में डूबने लगा। अपनी सगी माँ से तो यह उम्मीद नहीं थी उसे, पर खुलकर शिकायत तक नहीं कर सकी। बोझिल कदमों को घसीटते हुए, अनमने मन से सीढ़ियों की ओर बढ़ गई।
अन्विका के यूँ बिना जवाब दिए वहाँ से जाने से मिस्टर एंड मिसेस राठौड़ के चेहरे पर तनाव झलकने लगा था।
जैसे ही अन्विका वहाँ से गई, दूसरी लड़की ने वहाँ कदम रखा।
वह खूबसूरत थी, लम्बे रेशमी बाल, गहरी मोहक आँखें, और एक शरारती मुस्कान जो हर किसी को मोह लेती। दिखने में मासूम, लेकिन दिमाग तेज—हर स्थिति में अपना फ़ायदा उठाना जानती थी। उसकी चार्म और चतुराई उसे सबसे अलग बनाते थे—सुन्दरता और बुद्धिमत्ता का एक उत्तम मिश्रण, थोड़ी सी चालाकी के साथ! यह परिधि थी, अन्विका की सौतेली बहन।
"मॉम, मैं मारवा फैमिली के उस लड़के से शादी नहीं करना चाहती। उन लोगों ने उसे गोद लिया है, वह उस फैमिली से संबंधित नहीं है। मारवा साम्राज्य से उसे कुछ नहीं मिलने वाला। उनकी प्रॉपर्टी, बिज़नेस पर उसका कोई अधिकार भी नहीं है अब। उससे शादी करके मुझे पूरी लाइफ उस घर की नौकरानी बनकर गुज़ारनी पड़ेगी और उस अपंग आदमी की देखभाल करनी पड़ेगी... मैं यह नहीं कर सकती... मुझे ऐसी लाइफ़ नहीं चाहिए।"
परिधि ने अपनी बाँहों को मिसेस राठौड़ की गर्दन पर लपेट दिया। उसके चेहरे पर उदासी और बेचैनी देखकर उन्होंने उसे गले लगा लिया।
"डोंट वरी, डार्लिंग, तुम्हारी शादी पार्थ से नहीं होगी। तुम इतनी खूबसूरत हो, हमने इतने लाड़-प्यार से पाला है तुम्हें, ऐसे ही तुम्हारी शादी किसी से भी थोड़े कर देंगे। हमारी राजकुमारी के लिए तो कोई सुन्दर राजकुमार आएगा। मैं और तुम्हारे डैड इस समस्या को सुलझा लेंगे। अगर तुम शादी नहीं करना चाहती, तो तुम्हारी बहन कर लेगी। तुम बिल्कुल भी चिंता मत लो।"
मिसेस राठौड़ बहुत प्यार से उसे समझा रही थीं। अजीब बात थी, एक बेटी से इतना प्यार और दूसरी पर तरस तक नहीं आया उन्हें। एक की इतनी चिंता और दूसरी की कोई परवाह ही नहीं। अपनी एक बेटी की ज़िंदगी बचाने के लिए दूसरी की ज़िंदगी तबाह करते हुए उनके माथे पर एक शिकन तक नहीं थी।
"वह मेरी बहन नहीं है, उसके शरीर में राठौड़ खानदान का खून नहीं है।" परिधि ने घृणा से कहा; उसे अन्विका को उसकी बहन कहकर बुलाना बिल्कुल पसंद नहीं आया था, और चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। फिर उसने स्वर बदलते हुए कहा,
"अगर मैं शादी करूँगी, तो रुद्रांश मारवा से करूँगी, क्योंकि वह ही मारवा खानदान का भावी उत्तराधिकारी है। मारवा खानदान की सारी प्रॉपर्टी, उनका इतना बड़ा साम्राज्य, सब कुछ उसका होगा।"
परिधि की अलग ही योजना चल रही थी। उसके लिए शादी कोई रिश्ता नहीं, एक मौका था; मौका अपने भविष्य को सुरक्षित करने का, एक आलीशान जीवनशैली जीने का। वह शादी सिर्फ़ धन और संपत्ति के लिए करना चाहती थी। इधर परिधि रुद्रांश से शादी के सपने सजा रही थी, तो वहीं अन्विका इस अचानक आई शादी नाम की मुसीबत से बुरी तरह परेशान थी।
अन्विका के कानों में मिसेस राठौड़ की कही बातें गूंज रही थीं; दिमाग में कभी अंश का ख्याल आता, तो कभी दिल सम्यक को याद करके तड़प उठता। कमरे में आते ही उसने दरवाज़ा बंद किया और उससे अपने सिर को टिकाते हुए उसने अपनी आँखों को मूंद लिया। धीरे-धीरे फिसलती हुई वह कालीन पर बैठ गई। अपने पैरों को मोड़कर अपने सीने से लगा लिया, अपनी बाज़ुओं को घुटनों के इर्द-गिर्द कसते हुए उसने अपना चेहरा उनके बीच छुपा लिया, और उसकी आँखों से बहते आँसू उसके पैर को भीगोंगे लगे।
दिल और दिमाग अजीब कशमकश में उलझा था। सम्यक का अभी तक कुछ पता नहीं चल रहा था। पता नहीं वह कहाँ था? किस हाल में था? ज़िंदा था भी या नहीं? अपनी मोहब्बत को खोने के डर से वह उभरी भी नहीं थी, और उसकी फैमिली उसे परिधि के स्थान पर मारवा खानदान के बड़े बेटे से शादी करने को मजबूर करने लगी थी।
अगर उसने शादी नहीं की, तो मिस्टर राठौड़ उसके भाई के इलाज का खर्चा बंद कर देंगे। लेकिन अगर उसने शादी कर ली... तो सम्यक का क्या होगा? उसके प्यार का क्या होगा? वह तो सम्यक से मोहब्बत करती है, फिर किसी और से शादी कैसे कर सकती है?
उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब उसके साथ ही क्यों हो रहा था? वह क्या करेगी? कैसे इन समस्याओं से बाहर निकलेगी? सोचते-सोचते उसका सिर दर्द से फटने लगा। उसे खुद को एहसास नहीं हुआ कि उसे ऐसे बैठे-बैठे कितना वक़्त गुज़र गया।
अचानक ही दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी, और अन्विका चौंकते हुए अपने ख्यालों से बाहर आयी। होश में आने पर, उसे एहसास हुआ कि वह अब भी भीगे कपड़ों में ही बैठी है।
बाहर से किसी की आवाज़ आयी, और अन्विका के चेहरे के भाव बिगड़ गए। वह झटके से उठकर खड़ी हो गई। बड़ी ही बेरहमी से उसने अपने आँसुओं को अपनी हथेली से रगड़कर पोंछ दिया। कुछ देर पहले तक वह एकदम निराश लग रही थी, पर अब उसका चेहरा सख्त था और आँखें गुस्से से जल रही थीं।
"अन्विका, मुझे पता है कि तुम अंदर हो। क्या तुम्हारी मॉम तुमसे बात कर सकती है?"
बाहर से आवाज़ आई, और अन्विका के चेहरे के भाव बिगड़ गए। वह झटके से उठकर खड़ी हो गई। बड़ी ही बेरहमी से उसने अपने आँसुओं को अपनी हथेली से रगड़कर पोंछ दिया। कुछ देर पहले तक वह एकदम मायूस और निराश लग रही थी, पर अब उसका चेहरा सख्त था और आँखें गुस्से से जल रही थीं।
पहचान गई थी वह इस आवाज़ को। नीचे जो हुआ था, उसके बाद उनसे कोई बात नहीं करना चाहती थी। कुछ देर वह बंद दरवाज़े को गुस्से से घूरती रही, फिर लगातार बाहर से आती आवाज़ों से मजबूर होकर उसे दरवाज़ा खोलना ही पड़ा।
सामने मिसेज़ राठौड़ खड़ी थीं। उन्होंने एक नज़र अन्विका को देखा और अंदर आ गईं। उन्होंने इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं की कि उनकी बेटी अभी भी गीले कपड़ों में थी; उसकी आँखें रोने के कारण लाल हो चुकी थीं। उन्हें बस काम से मतलब था। उन्होंने दुखी चेहरा बनाया और ऐसे दिखाया जैसे खुद कितनी बेबस और लाचार हैं।
"अन्विका, मुझे पता है कि तुम्हें मेरी बातें अच्छी नहीं लग रही हैं। इस वक़्त तुम दुखी हो और शायद तुम्हें मुझसे नफ़रत हो रही होगी कि मैं कैसे तुम्हें परिधि के जगह पार्थ से शादी करने के लिए कह सकती हूँ?...... मैं भी ऐसा नहीं चाहती, समझती हूँ कि तुम पर इस वक़्त क्या बीत रही है, लेकिन मैं क्या कर सकती हूँ? मैं भी मजबूर हूँ।"
जब मैं तुम्हें और अंश को लेकर इस घर में आई थी, तब मैंने कितनी तकलीफ़ें सही थीं, तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है। राठौड़ परिवार ने तुम्हें अपना नाम दिया, तुम्हारी पढ़ाई करवाई, और तुम्हारे भाई का ट्रीटमेंट करवाया। तुम जानती हो कि तुम्हारा भाई इस ज़िन्दगी में कभी ठीक नहीं हो सकता। अगर उसे अच्छे हॉस्पिटल में नहीं रखा गया, तो वह ज़्यादा टाइम तक ज़िंदा भी नहीं रहेगा।
अपने भाई के लिए ऐसी बातें सुनकर अन्विका के चेहरे पर दर्द झलकने लगा और आँखों में नमी तैर गई। मिसेज़ राठौड़ की आँखों में भी आँसू थे।
"अगर हमने मारवा खानदान की शर्त पूरी नहीं की, यह शादी नहीं की, तो तुम्हारे डैड को कंपनी, घर सब बेचकर उनके पैसे चुकाने होंगे। हम बैंकरप्ट हो जाएँगे, यह सब कुछ छिन जाएगा हमसे। अभी तो मेरे वजह से विकास तुम्हें और अंश को यहाँ रहने देते हैं, पर अगर इस मुश्किल वक़्त में तुम उनके काम नहीं आईं और हम ही घर से बेघर हो गए, तो वह भी तुम्हें और अंश को अपनी फैमिली से अलग कर देंगे। तुमसे तुम्हारा नाम, पहचान, सब छिन जाएगा। तो तुम और अंश क्या करोगे? कहाँ जाओगे?"
मिसेज़ राठौड़ ऐसा दिखाने की कोशिश कर रही थीं कि उन्हें उन दोनों की बहुत चिंता है। उन्होंने अपने आँसू पोंछते हुए आगे कहा, "मैं यह सब तुम्हारी भलाई के लिए कर रही हूँ। मैं जानती हूँ कि पार्थ को मारवा खानदान ने अडॉप्ट किया है, लेकिन वह मारवा खानदान का सबसे बड़ा बेटा है। जब तुम उससे शादी करोगी, तो तुम उनकी सबसे बड़ी बहू बनोगी! भले ही वह मारवा खानदान का बिज़नेस और प्रॉपर्टी में से अपना पार्ट नहीं लेना चाहता, पर रुद्रांश अपने बड़े भाई की बहुत इज़्ज़त करता है, उससे बहुत प्यार करता है। तुम्हें वहाँ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी। मारवा खानदान की बड़ी बहू कहलाओगी तुम, रिस्पेक्ट के साथ तुम्हें हर तरह की सुख-सुविधा मिलेगी वहाँ।"
मिसेज़ राठौड़ ने उसे पहले इमोशनल बातों में फँसाने, बहलाने की कोशिश की, फिर उसके मन में लालच जगाया, उसने फ्यूचर के सपने दिखाते हुए इस रिश्ते के लिए राज़ी करने की कोशिश की, पर अन्विका की ओर से कोई रिस्पॉन्स नहीं आया। वह अब भी सर झुकाए एकदम खामोश खड़ी थी।
अपने सभी प्लान्स फ़ेल होते देखकर मिसेज़ राठौड़ ने अपना आखिरी दांव चला और जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।
"ओह गॉड! मेरी लाइफ़ कितनी ट्रैजिक है! कितना स्ट्रगल करना लिखा है मेरी किस्मत में?.... इतनी प्रॉब्लम्स को फ़ेस करके मैंने तीन बच्चों को जन्म दिया—एक फ़ूल निकला जिसके इलाज पर सालों से पैसा पानी जैसे बह रहा है, दूसरी इतनी क्रुएल है कि अपनी ही माँ को मारने पर तुली है! इतनी सेल्फ़िश हो गई है कि उसे अपने अलावा कोई नज़र ही नहीं आता। उसे सिर्फ़ अपनी फ़िक्र है, और मेरी प्यारी परिधि… वह तो अभी कितनी छोटी और नासमझ है! उसे अपनी माँ के बिना ही रहना पड़ेगा… कितनी नाइंसाफ़ी हो रही है उसके साथ!
मैंने इन बच्चों के लिए कितना कुछ किया, विकास ने कभी तुम दोनों और परिधि में कोई फ़र्क नहीं किया। कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी, और आज जब उन्हें तुम्हारी ज़रूरत है, तो तुम सिर्फ़ अपने बारे में सोच रही हो। कैसे फ़ेस करूँगी अब मैं उन्हें? क्या कहूँगी परिधि को कि उसकी बड़ी बहन कितनी सेल्फ़िश है जो उसकी लाइफ़ स्पॉइल करना चाहती है? कैसे मैं अपनी फैमिली को इस प्रॉब्लम से बाहर निकालूँगी? कैसे बचाऊँगी अपनी बेटी की ज़िन्दगी और अपनी फैमिली को बर्बाद होने से?..... मुझे तो अब अपनी जान देने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं नज़र आता।"
हर बार जब मिसेज़ राठौड़ ऐसा नाटक करती थीं, तो अन्विका झुक जाती थी। राठौड़ खानदान के एहसानों तले दबी हुई वह मजबूरी में उनकी हर बात मान लिया करती थी। इस बार भी मिसेज़ राठौड़ को लगा कि उनका यह दाव ज़रूर काम करेगा, इसलिए उन्होंने अन्विका को इमोशनल ब्लैकमेल, या यूँ कहें कि इमोशनल टॉर्चर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, पर इस बार, अन्विका उनकी बातों में नहीं आई और उसने कोल्ड वॉइस में उनसे सवाल किया।
"माँ, सम्यक हमेशा आपकी रिस्पेक्ट करता था, आपको अपनी फैमिली मानता था। हर फ़ेस्टिवल पर आपको गिफ़्ट्स लाकर देता था। आप तो उससे मेरी शादी भी करवाने वाली थीं। उसे बेटा कहती थीं। अब कहाँ गया आपका प्यार?..... तब तो आप मुझसे हमेशा उसके बारे में पूछती रहती थीं, पर अब तो आप उसका ज़िक्र भी नहीं करतीं?..... क्यों मॉम? क्यों अब आपको उससे फ़र्क नहीं पड़ता? क्यों आपने मुझसे एक बार भी उसके बारे में कुछ नहीं पूछा? कैसे आप मुझे किसी और से शादी करने के लिए कह सकती हैं?"
अन्विका की आँखें लाल हो गई थीं, चेहरे पर दुख, बेबसी, शिकायत, तड़प जैसे कई भाव मौजूद थे। उसने खुद को बहुत मुश्किल से रोने से रोका था क्योंकि वह अभी कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी।
"वह तो मर चुका है, एक मरे हुए आदमी के बारे में पूछकर क्या करना? जब वह अब इस दुनिया में ही नहीं है, तो कैसा रिश्ता और कैसी शादी? अगर सम्यक अमीर और पावरफ़ुल फैमिली से बिलॉन्ग नहीं करता, तो मैं तुम्हारे रिश्ते को कभी मंज़ूरी नहीं देती। मैंने तो सोचा था शादी के बाद उसकी सारी प्रॉपर्टी तुम्हारी हो जाएगी और तुम्हारा फ़्यूचर सिक्योर हो जाएगा, इसलिए मैंने तुम्हें उसे डेट करने दिया, पर अब तो वह मर गया, अब क्या उसके पीछे तुम अपनी लाइफ़ स्पॉइल कर दोगी?
प्रैक्टिकल होकर सोचो अन्विका। सम्यक अब नहीं रहा, तो तुम्हें उसे भुलाकर अपनी लाइफ़ में आगे बढ़ना होगा, अपनी फैमिली के लिए तुम्हें यह शादी करनी होगी। मारवा फैमिली का बहुत नाम है। तुम्हारे लिए यह एक बेहतर रिश्ता है। मारवा खानदान के आगे मेहरा खानदान तो कुछ भी नहीं है। तुम्हारी लाइफ़ सेट हो जाएगी। अपनी मॉम की बात मानो, जो हुआ उसे भूल जाओ। सम्यक को अपने दिल से निकाल दो। अब तुम्हारी शादी पार्थ से होगी और तुम मारवा खानदान की बड़ी बहू बनोगी, बस इसके बारे में सोचो। अगर तुम इस रिश्ते के लिए नहीं मानीं, तो अंश का ट्रीटमेंट बंद हो जाएगा और उसके बाद अगर उसे कुछ हुआ, तो उसकी ज़िम्मेदार सिर्फ़ तुम होगी।"
सम्यक के बारे में कही बातें अन्विका के दिल को ज़ख्मी कर गईं। अपनी माँ की बेरुखी देखकर उसे तकलीफ़ हो रही थी। उन्होंने रिश्तों को एक सौदा बना दिया था, उनकी सोच पर अन्विका को हैरानी थी। मिसेज़ राठौड़ उसे धमकी देकर गुस्से में वहाँ से चली गईं और जाते-जाते दरवाज़ा इतनी ज़ोर से बंद किया कि अन्विका काँप गई। उसने भीगी पलकें उठाकर उस बंद दरवाज़े को देखा, मिसेज़ राठौड़ की कही बातें उसके कानों में गूँजने लगीं। अब उसमें हिम्मत नहीं बची थी।
अन्विका की आँखों के आगे अंधेरा छा गया और अगले ही पल वह बेसुध सी फ़र्श पर जा गिरी।
मिसेज़ राठौड़ की कही बातें उसके कानों में गूंज रही थीं। अब उसमें हिम्मत नहीं बची थी। अन्विका की आँखों के आगे अंधेरा छा गया, और अगले ही पल वह बेसुध सी फ़र्श पर गिर पड़ी और अपनी किस्मत पर फूट-फूट कर रोने लगी। इतना दर्द कैद था उसके सीने में, पर बताती किसे? ज़ख्म अपनों ने दिए थे, तो दिखाती किसे?
अन्विका को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले जो औरत यहाँ खड़ी थी, वह उसकी अपनी माँ थी। वह सब बातें उसकी माँ ने कही थीं, जिनके लिए सब कुछ सिर्फ़ पैसा और प्रॉपर्टी ही था। उसकी माँ को सिर्फ़ अपनी और परिधि की चिंता थी। परिधि की ज़िंदगी की फ़िक्र थी, पर उसका क्या? क्या वह उनकी बेटी नहीं थी? क्या उन्हें परिधि जैसी उसकी चिंता नहीं होनी चाहिए थी? उसकी न सही, अपने बेटे के बारे में तो सोचा होता? कैसे वह उसके बारे में ऐसी बातें कह गई? क्या अंश उनका खुद का बेटा नहीं था? वह कैसे उसको धमकाने के लिए अंश की बीमारी का इस्तेमाल कर रही थी!
सवाल बहुत थे, पर जवाब सिर्फ़ एक, जो वह पहले से जानती थी। अन्विका ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं; झुकी पलकों के नीचे से दर्द आँसू बनकर बहने लगा।
अचानक ही अन्विका को अपने गालों पर किसी के कोमल स्पर्श का एहसास हुआ, जिसमें अपनापन और प्यार झलक रहा था, और साथ ही चिंता भरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
"अन्वी, तुम ऐसे रो क्यों रही हो? देखो तो, तुम्हारे कपड़े गीले हो गए हैं। बीमार पड़ जाओगी तुम।"
अन्विका ने धीरे-धीरे अपनी भीगी पलकों को उठाया, और अंश का खूबसूरत मासूम चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ गया। अंश को अपने सामने देखकर अन्विका ने किसी तरह अपने बिखरे हुए वजूद को समेटा, उठकर खड़ी हुई और अपने भाई को कसकर गले लगा लिया। कहने को तो माँ-बाप, भाई-बहन सब थे उसके पास, पर इस पूरे परिवार में सिर्फ़ एक उसका भाई ही था जिसे उसकी परवाह थी; जिसे उसके दर्द, उसके आँसुओं से फ़र्क पड़ता था; जो उसे तकलीफ़ में नहीं देख सकता था।
"भाई…" अन्विका ने सिसकते हुए धीरे से उसे पुकारा, शायद अपना दर्द बाँटना चाहती थी, पर आगे शब्द ही नहीं निकले। गला चोक हो गया, और आँखें एक बार फिर बरसने लगीं।
"रो मत, अन्वी।" अंश को खुद सहारे की ज़रूरत थी, पर आज जब उसकी बहन कमज़ोर पड़ी, तो वह उसका सहारा बनने को तैयार था। हमेशा अन्विका उसे संभालती थी, और आज जब उसे ज़रूरत थी, तो अंश उसे संभाल रहा था। धीरे-धीरे उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे शांत कर रहा था, और अपने भाई का प्यार पाकर अन्विका धीरे-धीरे शांत होने लगी।
अन्विका ने खुद को संभाला, फिर अंश को बिस्तर पर बिठा दिया। खुद जाकर कपड़े बदले, और उसके बाद दोनों भाई-बहन एक-दूसरे की हथेली थामे साथ ही लेट गए। कुछ ही देर में अंश सो गया, पर अन्विका की आँखों में नींद नहीं थी; उसके दिल में अब भी भावनाओं का तूफ़ान उठ रहा था।
अंश को सुलाने के बाद अन्विका उठकर बैठ गई, और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए सूनी निगाहों से उसे देखने लगी।
जब से उसने होश संभाला था, थोड़ी समझदार हुई थी, अपने भाई की देखभाल करना उसकी ज़िम्मेदारी बन गई थी; जिसे वह आज तक बिना किसी शिकायत के निभाती आ रही थी। आसान नहीं था यह, पर उसके अलावा उसका अपना कहने के लिए था ही कौन? एक वही तो था उसका सब कुछ, पर यह साथ भी यूँ ही नहीं मिला था उसे।
अंश बीमार था। डॉक्टरों का कहना था कि अगर इलाज चलता रहा, तो कुछ समय बाद वह शायद सामान्य लोगों की तरह बातचीत कर सकेगा; उनके तरह एक सामान्य लाइफ़ जी सकेगा। लेकिन अगर इलाज रुक गया…
अन्विका एकदम से ठहर गई। उसमें इसके आगे सोचने की भी हिम्मत नहीं थी। अंश के लिए जी रही थी वह, उसे किसी कीमत पर खो नहीं सकती थी।
मारवा मेंशन के टॉप फ़्लोर पर बना बार, जो उस विला का सबसे आलीशान कमरा था और रहस्यमयी माहौल से भरा हुआ था। हल्की सुनहरी रोशनी में डूबे इस कमरे में महंगे क्रिस्टल चांडेलियर्स झिलमिला रहे थे, जिनकी रोशनी दीवारों पर लगी डार्क वुडन पैनलिंग पर गहरी छाया डाल रही थी।
कमरे के एक कोने में बना लंबा और खूबसूरत बार काउंटर काले संगमरमर से बना था, जिस पर अलग-अलग तरह और ब्रैंड की शराब की बोतलें करीने से सजी हुई थीं। बैकग्राउंड में हल्की जैज़ म्यूज़िक बज रही थी, जो इस जगह के शाहीपन को और गहराई दे रही थी।
बार के पीछे एक स्मार्ट और प्रोफ़ेशनल बारटेंडर खड़ा था, जो एफ़िशिएंसी से ड्रिंक्स तैयार कर रहा था। उसके ठीक पीछे दीवार पर ग्लास शेल्वस थीं, जिनमें एक्सपेंसिव एंड रेयर वाइन, व्हिस्की, और अन्य ड्रिंक्स रखे गए थे।
वहीं लगे एक किंग साइज़ सोफ़े पर एक लड़का बैठा हुआ था: लम्बा, तगड़ा और खतरनाक रूप से आकर्षक। उसकी नुकीली जबड़े की रेखा और गहरी भूरी आँखें उसे और भी रहस्यमय बना रही थीं। परफेक्टली टेलर्ड डार्क सूट्स में उसकी पर्सनालिटी और भी आकर्षक लग रही थी। उसके हल्के रफ़ स्टबल और चिकने पर गहन भाव उसके चेहरे को और अधिक आकर्षक बना रहे थे। उसकी आँखों में एक अजीब सी ठंडक और घमंड था, और नज़रें हाथ में मौजूद गिलास पर टिकी हुई थीं। यह था पार्थ मारवा… मारवा खानदान का बड़ा बेटा।
पार्थ ने नज़रें उठाकर बारटेंडर को देखा, तो उसकी आँखों का इशारा समझते हुए वह सिर झुकाते हुए वहाँ से चला गया। काउंटर के पास ही रुद्रांश खड़ा था, और अब वहाँ सिर्फ़ वही दोनों थे।
रुद्रांश ने अपने हाथ में पकड़े क्रिस्टल के गिलास को हल्के-हल्के घुमाया; एंबर लिक्विड उसकी हलचल के साथ थरथराया। कमरे में मद्धम रौशनी थी, और व्हिस्की की तीखी खुशबू हवा में घुली हुई थी। रुद्रांश, जो काफी देर से उस गिलास को हिलाते हुए कुछ सोच रहा था, अब उसकी नज़र सोफ़े पर बैठे पार्थ की ओर घूम गई—वह बड़ा भाई था उसका, और हमेशा की तरह आज भी उसके चेहरे पर वही ठंडा भाव मौजूद था।
रुद्रांश ने एक भौंह उठाई, और गंभीर स्वर में सवाल किया, "तो, तुम चाहते हो कि जिस लड़की से तुम्हारी शादी फ़िक्स है, उससे तुम्हारे जगह मैं शादी कर लूँ?"
पार्थ के चेहरे पर भी गंभीर भाव थे। उसने विस्की की एक घूंट लेते हुए जवाब दिया,
"हाँ।"
"क्यों?… जब रिश्ता तुम्हारा फ़िक्स हुआ, वह भी काफी सालों पहले, और तब तुमने कुछ नहीं कहा, तो अब तुम्हें इस शादी से क्या प्रॉब्लम है? उस लड़की को तुम्हारे लिए चुना गया था, तो मुझे उससे शादी करने क्यों कह रहे हो?"
रुद्रांश ने आइब्रो चढ़ाते हुए तीव्र निगाहों से उसे देखा, शायद उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था। पर इतना आसान नहीं था वह बात जानना, जो पार्थ बताना नहीं चाहता था।
"मैं शादी नहीं करना चाहता; अपनी यह स्वतंत्रता पसंद है मुझे। शादी के बाद ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, जिसके लिए मैं तैयार नहीं हूँ, और कोई ख़ास वजह नहीं।"
"और तुम्हें लगता है कि मैं तैयार हूँ शादी के लिए? तुम्हारे लिए मैं अपनी स्वतंत्रता के साथ समझौता कर लूँगा; अपनी कुंवारी ज़िंदगी कुर्बान कर दूँगा। जिस लड़की को हमारी फैमिली ने तुम्हारे लिए चुना था, उससे सिर्फ़ इसलिए शादी कर लूँगा क्योंकि तुम्हें शादी नहीं करनी?"
विस्की का घूँट अपने गले से नीचे उतारते हुए, रुद्रांश अब भी आँखें चढ़ाए उसे घूर रहा था।
"तुम्हें यह शादी करनी होगी, मेरे लिए।" पार्थ ने गंभीर अंदाज़ में जवाब दिया। उसकी बात सुनकर रुद्रांश ने हल्के से हँसते हुए सवाल किया, "पर मैं यह शादी नहीं करना चाहता; अब मुझे शादी के लिए कैसे मनाओगे?" उसकी आवाज़ में चुनौती थी, लेकिन आँखों में संघर्ष। वह लाख कोशिशों के बावजूद पार्थ के इस फ़ैसले की असली वजह नहीं जान पा रहा था।
पार्थ ने एक लंबी साँस ली; माथे पर कुछ सिलवटें उभरीं, जो उसकी उलझन को ज़ाहिर कर रही थीं। फिर उसने शांत लेकिन सख्त लहजे में कहा, "मैंने आधिकारिक तौर पर उत्तराधिकारी की दौड़ छोड़ दी है। अब मारवा खानदान का मुखिया तुम हो। कानूनी तौर पर, अब सारी प्रॉपर्टी, बिज़नेस और हर एक संपत्ति सिर्फ़ तुम्हारी है। मुझे इनमें से कुछ भी नहीं चाहिए, और न ही मैं कभी भविष्य में अपना हिस्सा माँगने की कोशिश करूँगा। मैंने अपनी वसीयत से यह सब तुम्हें हस्तांतरित कर दिया है।
अब बदले में, मैं बस इतना चाहता हूँ कि तुम यह शादी कर लो। और ईमानदारी से, मुझे नहीं लगता कि यह तुम्हारे लिए किसी भी तरह से कोई नुकसान का सौदा होगा।"
रुद्रांश के होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई; शायद उसके इरादे समझ गया था वह, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोलता, पार्थ ने अगला वार किया। उसने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर रुद्रांश चौंक गया और खुद को इस सौदे को स्वीकार करने से रोक नहीं सका।
रुद्रांश के होंठों पर एक हल्की स्मिर्क आई। शायद उसने उसके इरादे समझ लिए थे। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोलता, पार्थ ने आगे कहना शुरू कर दिया।
"अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हें उस लड़की के बारे में बता सकता हूँ, जिसे तुम सालों से ढूँढ़ रहे हो? अब क्या डिसीज़न होगा तुम्हारा? करोगे ये शादी या अब भी तुम्हें मेरी डील एक्सेप्ट करने में कोई प्रॉब्लम है?"
पार्थ के शब्द उसके कानों तक पहुँचे, और उसने गिलास को और कसकर पकड़ लिया। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आई—एक ऐसी चमक जो बेहद दुर्लभ थी।
"क्या तुम सच कह रहे हो?"
रुद्रांश को यकीन नहीं हो रहा था। यह उसके लिए आसान नहीं था, और शायद पार्थ इस बात को समझ रहा था। उसके चेहरे का गंभीर भाव काफी था यह बताने के लिए कि उसकी हर बात सच है।
पार्थ ने उसकी नज़रों में नज़रें मिलाते हुए, सिर्फ़ सिर हिलाया।
कुछ सेकंड तक वहाँ अजीब सा सन्नाटा छाया रहा। रुद्रांश की आँखों में भावनाओं का तूफान था—लालसा, अविश्वास, और जिज्ञासा का खतरनाक मिश्रण। फिर, उसने गहरी साँस लेते हुए गिलास काउंटर पर रख दिया और हल्की लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा,
"ठीक है, मैं शादी के लिए तैयार हूँ।"
इसमें उसकी खुशी नहीं थी; बल्कि यह शादी अब उसकी ज़रूरत और ज़रिया बन गई थी। ज़रिया उस शख्स तक पहुँचने का, जिसका इंतज़ार उसकी निगाहें जाने कब से कर रही थीं।
पार्थ को जैसे यही सुनना था। वह अब काफी रिलैक्स लग रहा था। उसने एक नज़र रुद्रांश को देखा, फिर ड्रिंक का गिलास होंठों से लगाते हुए आगे कहा,
"अगर वह एक साल के अंदर प्रेग्नेंट नहीं हुई, तो दादी उसे घर से निकाल देंगी। उन्हें अपना पोता-पोती अगले एक साल के अंदर चाहिए; अगर परिधि उनकी यह इच्छा पूरी नहीं कर पाएगी, तो यह रिश्ता वहीं खत्म हो जाएगा, इसके लिए तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ेगा। तुम्हें बस एक साल की आज़ादी कॉम्प्रोमाइज़ करनी होगी और ख़ास ध्यान रखना होगा कि परिधि यह शर्त पूरी न कर सके, और एक साल बाद तुम बिना किसी समस्या के इस रिश्ते को खत्म करके वापिस अपनी पुरानी ज़िंदगी में लौट सको।"
रुद्रांश के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खेली—एक ऐसी मुस्कान जिसमें दर्द और व्यंग्य दोनों थे।
उसने व्हिस्की का आखिरी घूँट लिया, फिर पार्थ की आँखों में सीधा देखते हुए कहा,
"एक साल, हुह? लेट द गेम बिगिन।"
पार्थ ने कुछ कागज़ात उसकी ओर बढ़ाए।
"इन पर साइन कर दो, आगे सब मैं संभाल लूँगा।"
रुद्रांश ने पहले पार्थ को देखा, फिर कागज़ात पर साइन किए।
दरवाज़ा खटखटाया गया। अन्विका उस वक्त गहरी नींद में सो रही थी; शायद अर्ध-बेहोशी की अवस्था में थी। बाहर से आती आवाज़ों ने उसकी नींद में खलल डाला। उसने पलकें हिलाईं, पर अपनी आँखें खोलने में उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा। उसका सिर दर्द से फट रहा था; सिर के साथ-साथ उसका पूरा शरीर बहुत दर्द कर रहा था, आँखें भारी लग रही थीं। शरीर में इतनी कमज़ोरी महसूस हो रही थी कि उसके अंदर अपनी उंगलियाँ हिलाने की भी हिम्मत नहीं बची थी।
दरवाज़ा कौन खटखटा रहा था? वह नहीं जानती थी, पर लगातार आती आवाज़ों से वह परेशान हो गई थी। उसे शांति चाहिए थी, आराम करना था, पर यहाँ एक पल के लिए भी उसे सुकून नहीं मिल रहा था।
अन्विका को ऐसा महसूस हुआ जैसे वह अपने बिस्तर पर सोने के बजाय किसी गहरे गड्ढे में गिर गई थी और अब उससे वापिस बाहर निकलने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। किसी तरह बिस्तर का सहारा लेकर वह उठकर बैठी, तो उसका सिर घूमने लगा, और आँखों के आगे अंधेरा छा गया। ऐसा लगा जैसे शरीर में जान ही नहीं बची हो।
अन्विका ने अपनी हथेली से अपने माथे को स्पर्श किया; उसका सिर भट्टी जैसे तप रहा था।
"उफ़्फ़… ये क्या कर दिया मैंने? एक तो कल बारिश में इतनी देर तक भीगती रही, और उसके बाद कपड़े भी कितनी देर से बदले। रात को भी सिर गर्म लग रहा था, अब तो बुखार हो गया।"
अन्विका ने बेहद अफ़सोस से मन ही मन खुद से कहा। अपनी लापरवाही के लिए खुद पर नाराज़ भी हुई, फिर किसी तरह बिस्तर से नीचे उतरी। दीवार और चीज़ों का सहारा लेते हुए गेट तक पहुँची, पर गेट भी नहीं खुल रहा था उससे। हाथ काम नहीं कर रहे थे; बड़ी मुश्किल से और काफी कोशिशों के बाद जाकर दरवाज़ा खुला। उसने ज़बरदस्ती अपनी आँखें खोलते हुए सामने देखा, तो दरवाज़े पर मिसेज़ राठौड़ के साथ परिधि वहाँ खड़ी नज़र आईं।
अन्विका दोनों को अपने कमरे के बाहर देखकर चौंक गई, और आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरत से उन्हें देखने लगी, जबकि उसकी पलकें बार-बार झपक रही थीं। तो वही परिधि तो बस मौके की तलाश में ही रहती थी; उसे मौका मिला, और उसने अन्विका पर चिल्लाना शुरू कर दिया।
"क्या कर रही थी तुम इतनी देर से अंदर? गेट खोलने में इतना टाइम लगता है? हम कब से यहाँ खड़े होकर गेट नॉक कर रहे हैं, सुनाई नहीं देता तुम्हें? आखिर तुम इतनी देर से खुद को कमरे में बंद करके क्या कर रही थी?"
अन्विका ने सरसरी नज़र उस पर डाली; जैसे उसमें और उसकी बातों में उसे कोई रूचि ही नहीं थी। परिधि ने उसे जी भरकर सुनाया, पर अन्विका ने परिधि के तानों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया और मिसेज़ राठौड़ की ओर देखने लगी।
"मॉम, आज आप सुबह-सुबह यहाँ मेरे कमरे के बाहर, क्या कोई समस्या थी या आपको मुझसे कोई काम था?"
अन्विका को इतनी बातें कहने में भी बहुत परेशानी हुई थी, पर वह खुद को संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी। उसकी आवाज़ भी उसकी तबियत जैसे ही बिगड़ गई थी, पर किसी ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया।
परिधि ने खुद को नज़रअंदाज़ होते देखकर मुँह बनाते हुए अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया; शायद जता रही थी कि वह उसका चेहरा भी नहीं देखना चाहती। मिसेज़ राठौड़ ने अन्विका को देखा, जिसका पूरा चेहरा लाल था, आँखें सूजी हुई लग रही थीं, और दरवाज़े का सहारा लेकर वह बहुत मुश्किल से इस वक़्त उनके सामने खड़ी थी।
उसे देखकर तो साफ़ पता चल रहा था कि वह ठीक नहीं है, पर मिसेज़ राठौड़ ने इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, या शायद देखकर भी अनदेखा कर दिया क्योंकि वह अन्विका थी, परिधि नहीं, और उससे उन्हें कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता था। उन्होंने सब नज़रअंदाज़ कर दिया, और ठंडी आवाज़ में कहा,
"हम तुम्हें यह बताने आए थे कि मिसेज़ मेहता ने कॉल किया था। उन्होंने कहा कि सम्यक की लाश मिल गई है…"
उन्होंने तो बड़ी ही लापरवाही से यह बात बता दी थी, पर अन्विका का दिमाग बिल्कुल खाली हो गया, और सिर्फ़ आखिरी की लाइन उसे बार-बार सुनाई दे रही थी, "सम्यक की लाश मिल गई है…"
उसे लगा जैसे अब उसके शरीर में बिल्कुल जान ही नहीं बची। साँसें बोझिल हो गईं, दिल की धड़कनें भी धीमी हो गईं, आँखों के आगे अंधेरा छा गया, क़दम उसके शरीर का बोझ नहीं सह सके, क़दम लड़खड़ाए, वह बेहोश होने लगी थी। खुद को संभालने की कोशिश में उसने गेट का सहारा लेने के लिए हाथ बढ़ाया। पर उसकी यह कोशिश भी नाकाम रही, और वह होश गँवाकर बेसुध सी कालीन पर गिर गई।
"आह्ह्ह… कितना सुकून मिला आज मुझे। सच तुम्हें इस हालत में देखकर मुझे तो बहुत खुशी हो रही है।"
चेहरे पर कड़वाहट और आँखों में नफ़रत लिए परिधि उसके दुःख में बेहद खुश नज़र आ रही थी। बहन थी उसकी, पर इस वक़्त दुश्मन से कम नहीं लग रही थी। यहाँ तक कि मिसेज़ राठौड़ ने भी उसे कुछ नहीं कहा; अन्विका की हालत पर तरस तक नहीं आया उन्हें, और न ही उन्होंने उसे उठाने की कोई कोशिश की; बस खड़ी होकर ख़ामोशी से तमाशा देखती रहीं।
अन्विका के होंठ काँप रहे थे; शरीर में इतनी भी जान नहीं थी कि अपने बिखरे हुए वजूद को समेट सके। अपने दर्द का उसे एहसास तक नहीं था। दिल और दिमाग़ सब सुन्न हो गया था; कानों में मिसेज़ राठौड़ के कहे शब्द गूंज रहे थे, और दिल में तेज दर्द उठ रहा था। उसे इस बेबस हालत में दर्द से तड़पते देखकर परिधि मुस्कुराई और मिसेज़ राठौड़ को लेकर चली गई। जाते हुए एक बार उनकी नज़र अन्विका पर पड़ी पर वे नहीं रुकीं। अन्विका वहाँ अपने दर्द के साथ बिल्कुल अकेली रह गई।
अन्विका नम आँखों से उन्हें वहाँ से जाते देखती रही, फिर अपनी हथेलियों से अपनी आँखों को रगड़कर आँसू साफ़ किए। किसी तरह हिम्मत करके खुद को घसीटते हुए बिस्तर के पास पहुँची, सहारा लेकर बैठी, दराज से दवा निकाली, और काँपते हाथों से उसे मुँह में डाला, और अगले ही पल वापिस फर्श पर जा गिरी।
अन्विका अब पहले से कुछ बेहतर थी। हालाँकि बुखार अब भी पूरी तरह से उतरा नहीं था, शरीर काफी कमज़ोर था; खुद को संभालना उसके लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। पर इस वक़्त उसे अपनी कोई परवाह नहीं थी। उसे बस एक आखिरी बार सम्यक से मिलना था, उसे देखना था। वह उसकी मोहब्बत था, ऐसे कैसे उसे खुद से दूर जाने दे सकती थी वह?
अन्विका ने अपने बिखरे वजूद को समेटा, बेचैन, बोझिल धड़कनों और थमती साँसों के बीच सम्यक की माँ को फोन करके उसका पता पूछा। खुद की बिल्कुल परवाह न करते हुए वह बाहर आई और टैक्सी लेकर सम्यक से एक आखिरी बार मिलने के लिए निकल गई।
उसके दिल पर उस वक़्त क्या गुज़र रहा था, बस वही जानती थी। उसे चारों ओर बस अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था। लग रहा था जैसे किसी ने बड़ी बेरहमी से उससे उसकी ज़िन्दगी छीन ली थी; अब उसकी साँसें तो चल रही थीं, पर जीने की कोई वजह नहीं बची थी; धड़कनें तो धड़क रही थीं, पर वे बस बोझ बन गई थीं। सब कुछ खत्म हो गया था। रह-रहकर सम्यक के साथ बिताए पल उसकी आँखों के सामने घूमने लगते, अगले ही पल उसका सामना उसकी ज़िन्दगी की सबसे कड़वी हक़ीक़त से होता और वह खुद को रोने से रोक नहीं पाती थी।
टूटी-बिखरी हालत में खुद को संभालते हुए वह वहाँ पहुँची। जब तक वह अंदर गई, सम्यक को दफ़नाया जा चुका था। सम्यक के माता-पिता चुपचाप एक तरफ़ खड़े होकर रो रहे थे; उनके साथ कुछ लोग भी थे, शायद दोस्त-रिश्तेदार थे। वह एक आखिरी बार उसे देख तक नहीं सकी, यह सोचते ही उसकी आँखें बरसने लगीं। कब्र के पत्थर पर चमकते दिलकश चेहरे और उन गुलाबी होंठों पर ठहरी कातिलाना मुस्कान को देखकर, अन्विका को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिल को किसी ने बड़ी ही बेदर्दी से चाकुओं के वार से बुरी तरह घायल कर दिया है। उसके लिए साँस लेना मुश्किल हो गया था।
अन्विका लड़खड़ाते कदमों के साथ किसी तरह खुद को बिखरने से संभालते हुए कब्र के पास आई। उसके सामने खड़ी, कुछ पल सुनी निगाहों से उस चेहरे को निहारती रही, जिससे कभी उसके दिन की शुरुआत हुआ करती थी; जिसे देखे बिना उसे रातों को नींद नहीं आया करती थी, पर अब वह इस चेहरे को दोबारा कभी नहीं देख सकेगी।
अन्विका की आँखें छलक गईं; दिल में तेज दर्द सा उठा। वह कब्र के सामने घुटनों के बल बैठ गई; कांपती हथेली से उसने कब्र को छुआ; उसकी आँख से फिसलते हुए आँसू की एक बूँद सीधे उस कब्र पर गिरी। अपने दर्द को अपने सीने में छुपाकर सम्यक को निहारते हुए वह मुस्कुराई। उसकी इस मुस्कराहट पर सम्यक जान देना चाहता था, पर आज उस मुस्कराहट में दर्द घुला था। आँखें खामोशी से बह रही थीं और उनकी रवानी उसके दर्द की कहानी बयाँ कर रही थी।
"सम्यक... तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो? क्या तुमने नहीं कहा था कि इस बार लौटने के बाद तुम दोबारा मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाओगे? दोबारा कभी मुझे खुद से दूर नहीं करोगे?... फिर अब मुझसे इतने दूर क्यों चले गए तुम? साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी हमने, फिर तुम मुझे ऐसे तन्हा छोड़कर कैसे जा सकते हो? तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो... कैसे कर सकते हो?"
"तुम बहुत बड़े फ्रॉड और लायर हो; तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम लाइफटाइम मुझे प्रोटेक्ट करोगे, हमेशा मेरा साथ निभाओगे, मुझे प्यार करोगे, कभी मेरा हाथ नहीं छोड़ोगे... तुमने कहा था कि जब तुम वापस आओगे तो हमारी सगाई होगी, तुम शादी करोगे मुझसे... मैं कितनी बेसब्री से तुम्हारे वापस आने का इंतज़ार कर रही थी। कितने सपने सजाए थे मैंने हमारे फ्यूचर के, पर सब कुछ बर्बाद हो गया, सारे सपने टूटकर बिखर गए। तुम्हारे सारे वादे, सारी कसमें तुम्हारी तरह झूठी निकलीं। तुमने मुझे धोखा दिया......"
"तुम ऐसा कैसे कर सकते हो मेरे साथ? ऐसे कैसे मुझे अकेला छोड़कर जा सकते हो? नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते। तुम तो बहुत प्यार करते थे मुझसे, फिर मुझे छोड़कर कैसे जा सकते हो?"
अपने सर को कब्र के पत्थर से टिकाए वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। वह बदहवास सी बड़बड़ाए जा रही थी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। कितनी ही शिकवे-शिकायतें थीं, नाराज़गी थी, पर जिससे थीं, वही आज उसके पास नहीं था। उसके बहते आँसुओं को प्यार से पोंछने वाला शख़्स अब उसके साथ नहीं था और अब कभी लौटकर भी नहीं आने वाला था। अन्विका दर्द से तड़प रही थी, टूटकर बिखर रही थी। उसकी हालत देखकर सबको उस पर तरस आ रहा था।
सम्यक की माँ से जब यह सब और देखा नहीं गया, तो वह आगे बढ़ी और अन्विका के कंधों को थपथपाया। अन्विका ने सर उठाकर उन्हें देखा। उसका पूरा चेहरा आँसुओं से भीगा था; आँखों में दर्द का सैलाब आँसू बनकर उमड़ रहा था; नाक-आँख सब बुरी तरह से लाल हो गया था और रोते-रोते उसकी साँसें फूलने लगी थीं।
सम्यक की माँ की आँखें भी नम थीं। उन्होंने अन्विका को अपने गले से लगा लिया और अपना स्नेह भरा हाथ उसके सर पर फेरने लगीं।
"खुद को संभालो अन्विका। सम्यक अब हमें छोड़कर जा चुका है और जाने वाले कभी लौटकर नहीं आते। वह तुमसे बेहद प्यार करता था और हमेशा बस तुम्हें खुश देखना चाहता था। कितनी प्लानिंग कर रखी थी उसने सगाई और शादी की, पर किस्मत ने उसे वक़्त ही नहीं दिया। शायद इतनी ही ज़िन्दगी लिखी थी उसकी, पर अगर वह तुम्हें इस हालत में देखेगा तो उसे बहुत तकलीफ होगी। सम्यक तो चला गया, पर अब हमें उसके लिए ज़िन्दगी जीनी होगी, खुद को संभालना होगा, इस दर्द को भुलाकर आगे बढ़ना होगा।"
मिसेज़ मेहता बहुत प्यार से उसे समझा और संभाल रही थी; उसे सांत्वना दे रही थी। वह खुद तकलीफ़ में थी, अपने बेटे को खोया था उन्होंने, पर अब ज़िन्दगी की इस कड़वी और दुखद हक़ीक़त को स्वीकार करके उन्हें आगे बढ़ना ही था।
धीरे-धीरे अन्विका कुछ शांत हुई। उसने खुद को संभाला और उनसे अलग हो गई।
"चलो बेटा, अब यहाँ से जाने का वक़्त हो गया है।" मिसेज़ मेहता ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए दुखी स्वर में कहा।
"आंटी, मैं यहाँ सम्यक के साथ रहना चाहती हूँ।" अन्विका ने अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर की। उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी; उसकी आँखें एकदम सूनी और वीरान थीं; चेहरे पर दर्द छलक रहा था। उसकी हालत पर किसी को भी तरस आना लाज़मी था।
छोटी सी इच्छा थी उसकी; कुछ वक़्त अकेले सम्यक के साथ बिताना चाहती थी, उसके पास रहना चाहती थी।
"पर बेटा, हम सब चले गए, तो तुम यहाँ अकेली रह जाओगी।" मिसेज़ मेहता उसकी बात सुनकर परेशान हो गईं; उसे समझाने की भी बहुत कोशिश की, पर उसने एक नहीं सुनी; अपनी ज़िद पर अड़ी रही। आख़िर में मिसेज़ मेहता ने उसे रुकने की इज़ाज़त दे दी।
अन्विका चुपचाप अपने घुटनों को गले लगाकर, उनके बीच अपना चेहरा छुपाए, सम्यक की कब्र के सामने बैठ गई। होंठ खामोश थे, पर आँखें बरस रही थीं। दर्द इतना था कि आज तो आँसू भी कम पड़ने लगे थे। उसे देखकर मिसेज़ मेहता की आँखें भी नम हो गईं।
कुछ वक़्त बीता। अब जाने का वक़्त हो गया था। मिसेज़ मेहता ने एक बार फिर अन्विका को समझाने की कोशिश की, पर वह नहीं मानी। मिस्टर और मिसेज़ मेहता दोनों ही परेशान थे। जाने से पहले उन्होंने कई बार पलट-पलटकर सम्यक की कब्र के सामने बैठी अन्विका को देखा और अंत में बेबस-लाचार से वहाँ से चले गए।
अन्विका वहीं बैठी रही; ना उसके शरीर में कोई हलचल हुई और ना ही उसने दोबारा अपना सर उठाकर सम्यक को देखा। सब वहाँ से जा चुके थे और अन्विका वहाँ बिल्कुल अकेली रह गई थी।
कब शाम हुई और कब शाम से रात, अन्विका को इसका एहसास ही नहीं हुआ। उसका दर्द इतना गहरा था कि कम ही नहीं हो रहा था और वह पूरी तरह से उस दर्द में डूबी हुई थी और किसी चीज़ का अब उसे होश ही नहीं था। आँखों से बहते आँसू थम गए थे। शरीर बुखार से तप रहा था; इतना गर्म था कि छूने वाले का हाथ जल जाए; आँखें बंद होने लगी थीं, पर वह वहाँ से नहीं हिली। उसे अब अपनी कोई परवाह ही नहीं थी; ज़िन्दगी से मुँह मोड़ लिया था उसने और अब मौत को गले लगाने के लिए तैयार थी।
अगली सुबह, कब्रिस्तान में काम कर रहे मज़दूरों ने एक लड़की को वहाँ अकेले बैठे देखा तो चौंक गए। वे अन्विका के पास आए और जैसे ही उसे छुआ, अन्विका सीधे ज़मीन पर गिर गई, जिससे सभी मज़दूर डरकर पीछे हट गए। अन्विका का चेहरा काला पड़ गया था और शायद अब वह इस दुनिया से जा चुकी थी।
अगली सुबह कब्रिस्तान में काम कर रहे मजदूरों ने एक लड़की को वहाँ अकेली बैठी देखा। वे चौंक गए। वह लड़की अन्विका थी, जो घर नहीं गई थी। मजदूर अन्विका के पास आए। जैसे ही उन्होंने उसे छुआ, अन्विका सीधे जमीन पर गिर गई। सभी मजदूर डरकर पीछे हट गए।
डरते-डरते एक मजदूर ने आगे बढ़कर अन्विका को जांचा। उसका शरीर आग जैसे तप रहा था। उसने उसकी नाक के आगे उंगली लगाकर देखा; धीमी ही सही, पर साँसें चल रही थीं। उस मजदूर ने अपनी आँखें बंद करते हुए राहत की साँस ली। वह मरी नहीं थी, शायद बुखार के कारण बेहोश हो गई थी।
दोपहर के लगभग दो बज रहे थे जब अस्पताल के बेड पर लेटी अन्विका की उंगलियों में हलचल शुरू हुई। उसकी पलकें हिलने लगीं। शायद उसे होश आ रहा था।
कुछ देर बाद अन्विका ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। उसकी नजर सीधे सीलिंग पर गई। अन्विका के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। उसने घबराकर नजरें आस-पास घुमाईं। उसके सिर के ऊपर ड्रिप लगी हुई थी जो उसके हाथ से जुड़ी हुई थी।
"क्या वह कब्रिस्तान में नहीं थी? फिर वह अस्पताल में कैसे आ गई?" सोचते हुए अन्विका के चेहरे पर भ्रम के भाव थे। अगले ही पल उसके मन में ख्याल आया,
"क्या वह वहाँ बैठे-बैठे ही बेहोश हो गई थी? कल इतना बुखार था, उसे शायद इसलिए ऐसा हुआ, पर वह चाहकर भी सम्यक के साथ नहीं रह सकी?" इस बात का उसे दुख हुआ। आँसू की दो बूँदें उसकी आँखों से बहकर उसके गालों से होते हुए तकिये में समा गईं।
अन्विका के जागने पर नर्स ने उसका तापमान जांचा जो अब सामान्य था। यह देखकर वह काफी रिलैक्स नजर आई। "आप तीन दिन से बेहोश थीं। बुखार कम ही नहीं हो रहा था। डॉक्टर भी बहुत परेशान हो गए थे क्योंकि कोई इलाज आप पर असर ही नहीं कर रहा था और आपकी जान खतरे में थी। लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में है। आखिरकार, आपका बुखार उतर गया। मुझे कहना होगा, आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको समय पर अस्पताल पहुँचा दिया गया और आपका इलाज शुरू हो गया, वरना निमोनिया भी हो सकता था।"
नर्स बोलती जा रही थी पर अन्विका के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसे जीवन में अब कोई रूचि नहीं रह गई थी। वह चुप्पी साधे, सूनी निगाहों से एकटक छत को घूरती रही, कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
नर्स ने उसे थोड़ी देर देखा और फिर उसकी ड्रिप एडजस्ट करने लगी। उसे बताया गया था कि यह मरीज कब्रिस्तान से लाई गई थी। उसे देखकर उसे एहसास हो रहा था कि वह बाहर से भले ही शांत है पर उसके अंदर भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा है। वह पूरी तरह से टूटकर बिखर चुकी है। शायद उसने अपने दिल के करीब, किसी बेहद खास व्यक्ति को खोया है जिसके सदमे से वह अब तक बाहर नहीं निकल सकी है।
"आप ठीक हैं?" नर्स ने बेहद अपनेपन से सवाल किया। अन्विका की हालत देखकर उन्हें भी दुख हो रहा था।
अन्विका की छत को घूरती निगाहें अब उस नर्स की ओर घूम गईं।
"हाँ, मैं ठीक हूँ... कृपया आप मेरे डिस्चार्ज की जो भी औपचारिकताएँ हैं उन्हें पूरी करवा दीजिए। मुझे जाना है।" अन्विका ने रूखे होंठ फड़फड़ाते हुए धीमी, कमज़ोर सी आवाज़ में कहा। होंठ सूखकर फट चुके थे जिससे बोलने में दर्द हो रहा था, पर उससे ज़्यादा दर्द उसके दिल में हो रहा था, जिसे वह किसी को बता या जता भी नहीं पा रही थी।
अन्विका की बात सुनकर नर्स चौंक गई और हैरान-परेशान निगाहों से उसे देखने लगी। "अभी आप पूरी तरह ठीक नहीं हुई हैं। आप काफी कमज़ोर हैं, आपको उचित इलाज और देखभाल की ज़रूरत है। आपको अभी डिस्चार्ज नहीं मिल सकता।"
"मैं अब ठीक हूँ। मेरे पास अस्पताल का बिल चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। मुझे यहाँ से जाना ही होगा।" अन्विका ने काँपती आवाज़ में कहा। उसके चेहरे पर ठंडक थी और आँखों में अनकहा सा दर्द और बेबसी झलक रही थी। उसकी हालत ठीक नहीं थी, वह जानती थी। घर पर कोई उसकी देखभाल नहीं करेगा, उसे उचित इलाज भी नहीं मिलेगा, इसका भी एहसास था उसे, पर उसके पास आज अपने ही इलाज के लिए पैसे नहीं थे और न ही यहाँ रुकने का मन था।
नर्स कुछ देर तक अन्विका को देखती रही, फिर मजबूर होकर जाकर उसके डिस्चार्ज की औपचारिकताएँ पूरी कर दी।
अन्विका ने अस्पताल का बिल चुकाया। उसके पास जितने पैसे थे लगभग सब अस्पताल के बिल में ही चले गए। अब उसके पास सिर्फ़ इतने ही पैसे थे कि टिकट लेकर घर वापस जा सके। वह घर, जहाँ किसी को उसकी कोई परवाह नहीं। वह तीन दिन से यहाँ है पर कोई उसे देखने तक नहीं आया, किसी ने उसे ढूँढने की कोशिश नहीं की। जहाँ सब बस उसका उपयोग करते हैं अपने लाभ के लिए।
अन्विका का वहाँ जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था, उन स्वार्थी लोगों के चेहरे तक नहीं देखना चाहती थी वह, पर उसी घर में उसका भाई भी था जिसे उसकी ज़रूरत थी। सोचते हुए वह अनिच्छा से घर जाने के लिए निकल गई।
अन्विका किसी तरह खुद को संभालते हुए स्टेशन पहुँची। घर जाने के लिए टिकट लेने गई तो पैसे कम पड़ गए। उसने सबसे सस्ती ट्रेन की टिकट ली और ट्रेन के गलियारे में उसकी दीवार से टिककर खड़े-खड़े पूरा सफ़र तय किया। पूरी यात्रा में वह एक सेकंड के लिए भी नहीं बैठी जिससे उसके पैरों में दर्द भी होने लगा। वह अभी काफी कमज़ोर थी पर अन्विका ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
ट्रेन में भीड़ भी इतनी थी कि ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं थी। कई बार उसका सिर ट्रेन की दीवार से टकराया जिससे सिर में भी हल्का दर्द शुरू हो गया था और अजीब सा महसूस होने लगा था उसे। वह अब बस जल्दी से इस ट्रेन से नीचे उतर जाना चाहती थी।
ट्रेन से नीचे उतरी तब तक उसके पैर सुन्न पड़ गए थे, सिर दर्द हो रहा था और उल्टी जैसा भी लग रहा था। कुछ देर वह वहीं प्लेटफॉर्म पर बैठ गई। फिर उठकर बाहर निकली। स्टेशन से बाहर चारों तरफ़ भीड़-भाड़ थी, बहुत शोर हो रहा था, लेकिन अन्विका को तो ख़ामोशी और तन्हाई चाहिए थी। इस शोर-शराबे से उसे चिढ़ हो रही थी। लोगों को हँसते और मुस्कुराते देखती तो अपने दर्द का शिद्दत से एहसास होता और आँखें नम हो जातीं। भीड़ को पीछे छोड़ते हुए वह लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने लगी।
बुखार थोड़ा कम हुआ था पर अब एक बार फिर तेज बुखार से उसका पूरा शरीर तप रहा था। तीन दिन में बड़ी मुश्किल से उतरा बुखार फिर से तेज हो गया था। शरीर में कमज़ोरी और बुखार, पूरा बदन दर्द कर रहा था, सिर तो जैसे फटने लगा था और पलकें बार-बार बंद हो रही थीं, आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था। न तो अब उसे ठीक से कुछ दिखाई दे रहा था और न ही समझ आ रहा था। वह तो खुद को संभाल भी नहीं पा रही थी।
चलते हुए अचानक ही अन्विका का पैर किसी चीज़ से टकराया और दर्द से उसके मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई। उसने नज़रें झुकाकर देखा, सामने एक पत्थर रखा था जो उसे नज़र नहीं आया और उसके पैर को घायल कर गया। अन्विका के होंठों पर कड़वी, दर्द भरी मुस्कान उभरी। आगे बढ़ने लगी तो फिर उसकी नज़रें धुंधलाने लगीं, ठंडी हवाएँ उसके शरीर को छूकर गुज़रीं जिससे वह हल्का काँप गई।
उसने अपनी बाज़ुओं को खुद पर शॉल जैसे लपेट लिया और अपनी हथेली से अपनी बाँह सहलाते हुए खुद को संभालने की कोशिश करने लगी। "आगे बढ़ो, अन्विका, खुद को संभालो, बस थोड़ी देर और... अंश के लिए तुझे घर जाना है। तीन दिन हो गए तुझे, पता नहीं वह कैसा होगा, किसी ने उसकी देखभाल भी की होगी या नहीं?"
खुद की हालत ख़राब थी पर उसे अंश की चिंता थी। उसने गहरी साँस छोड़ी और जैसे ही एक कदम आगे बढ़ाया, उसे फिर वही चक्कर महसूस हुआ—मानो ज़मीन हिल रही हो या शायद उसका ही वजूद डगमगा रहा था। उसने ज़बरदस्ती अपनी आँखों को खोलकर चारों तरफ़ देखा। घर जाने का रास्ता पहचानने की कोशिश करने लगी पर सब कुछ धुँधला नज़र आ रहा था। कभी वह लड़खड़ाते कदमों से इधर जाती, रास्ता देखती, फिर इनकार में सर हिलाते हुए दूसरे तरफ़ बढ़ जाती।
ऐसे ही कुछ देर बीत गई। वह फिर गलत रास्ते पर आ गई थी, इसका एहसास होते ही वह जाने के लिए पलटने वाली थी कि पीछे से किसी कार के हॉर्न की, कान फाड़ देने वाली आवाज़ आई। आवाज़ इतनी तेज थी कि उसकी दिल की धड़कन एक पल को रुक गई। अन्विका चौंकते हुए पीछे पलटी, तब तक कार उसके बेहद करीब पहुँच चुकी थी और लगातार उसके हटने के लिए हॉर्न बजा रही थी। अन्विका ने घबराकर हटने के लिए कदम बढ़ाए तो कदम लड़खड़ा गए, तेज दर्द से उसका सिर घूमने लगा, आँखों के आगे अंधेरा छा गया। वह खुद को संभाल नहीं पाई, उसका संतुलन बिगड़ा।
खुद को बचाने के लिए कोशिश पूरी की, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। अगले ही पल तेज आवाज़ के साथ वह बीच सड़क पर गिर गई और आस-पास मौजूद लोग घबराकर उसकी ओर दौड़े, पर अगले ही पल उनकी चीख निकल गई।
अन्विका ने हॉर्न की आवाज़ सुनकर जैसे ही मुड़ा, उसका सिर घूम गया; सब कुछ धुंधला नज़र आने लगा। उसने अपनी हथेली से सिर को थामते हुए, जबरदस्ती अपनी आँखें खोलने की कोशिश की। आँखों के आगे किसी का धुंधला चेहरा आ गया। अगले ही पल उसकी आँखें बंद हो गईं, और बेहोशी की हालत में वह ज़मीन पर गिरने लगी।
"चिर्र्र्र" की आवाज़ के साथ एक तेज़ झटका खाते हुए, कार ठीक अन्विका के सामने आकर रुकी। अंदर बैठे शख्स की आइब्रो सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं; चेहरे के एक्सप्रेशन भी बदल गए। जैसे ही अन्विका गिरी, कार का दरवाज़ा खोलते हुए वह शख्स तेज़ी से बाहर निकला, और लंबे-लंबे कदम बढ़ाते हुए पल भर में अन्विका के पास पहुँच गया।
"अन्विका," एक जानी-पहचानी सी कोल्ड वॉइस अन्विका के कानों से टकराई। उसकी पलकें हिलीं; अधखुली आँखों से उसे एक परिचित सा चेहरा नज़र आया; उसके लब फड़फड़ाए।
"रुद्रांश।"
आवाज़ इतनी धीमी थी कि कोई सुन न सका, और अन्विका एक बार फिर बेहोश हो गई।
उसके पास मौजूद रुद्रांश के चेहरे पर हैरानी और टेंशन के मिले-जुले भाव उभरे। वह अन्विका को ऐसे अचानक अपने सामने देखकर हैरान था, और उसका यूँ बेहोश होना उसकी परेशानी की वजह था।
यह कोई संयोग था या किस्मत की साज़िश? अन्विका का ऐसे बार-बार उससे टकराना, रुद्रांश को उलझन में डाल गया था।
रुद्रांश ने उसे जगाने की कोशिश में उसके गाल को थपथपाने के लिए जैसे ही अपनी हथेली से उसके गाल को छुआ, हड़बड़ाते हुए उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और चौंकते हुए, हैरानी से अन्विका को देखा।
अन्विका का चेहरा पूरी तरह लाल हो गया था, और उसका शरीर बुखार से जल रहा था।
"क्या है यह लड़की? इतने बुखार में भी रोड पर निकल गई। इसे अपनी जान की कोई परवाह भी है या नहीं, और हर बार ऐसी ज़िद्दी हालत में यह मुझसे ही क्यों टकराती है? आखिर चाहती क्या है यह लड़की मुझसे?"
अन्विका को तीखी निगाहों से घूरते हुए, रुद्रांश खुद में बड़बड़ाता रहा। वह काफी चिढ़ा हुआ लग रहा था, और इस चिढ़चिढ़ाहट में गुस्सा भी झलक रहा था।
रुद्रांश ने सिर उठाकर देखा; आस-पास काफी लोग इकट्ठा हो चुके थे। कुछ लोग हैरान और परेशान लग रहे थे, तो कुछ चुपके से फ़ोटोज़ लेने की कोशिश कर रहे थे। अजीब बात है, आजकल लोग मदद करने के बजाय या तो खड़े होकर तमाशा देखते हैं या फ़ोटोज़ और वीडियो के ज़रिये अपने सोशल मीडिया अकाउंट के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ कैप्चर करने लगते हैं।
सोचते हुए, रुद्रांश की आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं, और चेहरे पर फ़्रस्टेशन भरी नाराज़गी झलकने लगी।
रुद्रांश ने उन्हें अनदेखा किया, आगे बढ़कर तुरंत बेहोश अन्विका को बाँहों में उठाया, और उसे कार की आगे वाली सीट पर बैठा दिया। फिर उसके सिर को सीट की बैक से सहारा देते हुए, उसकी सीट बेल्ट बाँधी।
वह वापिस उस भीड़ के पास आया। उसके चेहरे पर कोल्ड एक्सप्रेशन थे, और भौंहें सिकोड़े वह खतरनाक अंदाज़ में उन्हें घूर रहा था। इस वक़्त वह किसी डेमन से कम नहीं लग रहा था। उसकी सर्द घूरती निगाहें किसी को भी डराने के लिए काफी थीं। चोरी-छिपे तस्वीरें लेते लोगों की हालत खराब हो गई, और वे तुरंत ही उससे बचने की कोशिश में हड़बड़ी में वहाँ से निकल गए।
भीड़ के रफ़ा-दफ़ा होते ही, रुद्रांश ने कार स्टार्ट की, और अपने मेंशन की ओर बढ़ गया। ड्राइविंग करते हुए, बार-बार उसकी नज़रें अन्विका की ओर जा रही थीं। बेहोशी में उसका सिर एक तरफ़ को लुढ़का हुआ था, जिससे उसकी गर्दन पर मौजूद वह बर्थमार्क दिखने लगा था।
रुद्र कोल्ड एक्सप्रेशन के साथ उसे घूर रहा था, पर उसकी उन सख्त आँखों में कुछ अजीब से एहसास झलक रहे थे। जिस तरह से वह अन्विका को घूर रहा था, गुस्से और नाराज़गी में घुली उसकी फ़िक्र भी छुप नहीं सकी थी।
रास्ते में ही, रुद्रांश ने अपने फैमिली डॉक्टर को कॉल करके, एमरजेंसी में मेंशन में बुला लिया, ताकि बाद में समय नष्ट न हो, और जल्दी से जल्दी अन्विका को इलाज मिल जाए।
तेज़ रफ़्तार कार सीधे मेंशन के पोर्च में आकर रुकी। रुद्रांश सीट बेल्ट खोलते हुए तेज़ी से बाहर निकला, घूमकर अन्विका की तरफ़ आया, और उसकी सीट बेल्ट खोलकर उसे एक बार फिर अपनी बाँहों में उठा लिया। उसके बुखार से जलने शरीर के स्पर्श से उसका शरीर भी झुलसने लगा, पर रुद्रांश ने इस ओर कुछ खास ध्यान नहीं दिया। उसका पूरा ध्यान इस वक़्त सिर्फ़ अन्विका पर था। आस-पास खड़े गार्ड्स आँखें फाड़े अपने बॉस को देख रहे थे।
अन्विका को अपनी बाँहों में उठाते ही, उसके लम्बे पैर तेज़ी से आगे बढ़े, और वह सबको अनदेखा करता हुआ, बिजली की रफ़्तार से मेंशन के अंदर चला गया।
डॉक्टर और नर्स पहले से ही वहाँ बैठे, उसका इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही उनकी नज़र उनकी ओर आते रुद्रांश पर पड़ी, दोनों चौंकते हुए उठकर खड़े हो गए।
रुद्रांश मारवा को एक जवान लड़की को अपनी बाहों में उठाए देखकर, डॉक्टर और नर्स ने पहले हैरानी से एक-दूसरे को देखा, फिर तुरंत आगे बढ़ गए। उन्हें अपनी ओर बढ़ते देखकर, पल भर को रुद्रांश के कदम ठिठके। फिर उनकी मौजूदगी को अनदेखा करते हुए, वह तेज़ी से आगे बढ़ गया।
डॉक्टर और नर्स ने एक बार फिर चौंकते हुए एक-दूसरे को देखा। उनकी आँखों में हैरानी के साथ कई सवाल भी झलक रहे थे। फिर दोनों सर हिलाते हुए, रुद्रांश के पीछे चले गए।
कमरे में एक अजीब-सी खामोशी थी। रुद्रांश ने अपनी बाँहों में मौजूद अन्विका को आराम से बिस्तर पर लिटा दिया। उसका शरीर अब भी तप रहा था; बेहोशी में वह कराह रही थी, शायद तकलीफ़ में थी।
रुद्रांश साइड हटा, तो डॉक्टर कुमार आगे बढ़कर अन्विका के पास आकर उसका चेकअप करने लगे; फिर रुद्रांश की ओर नज़रें घुमाते हुए, गंभीर लहज़े में कहा,
"डायरेक्टर मारवा, यह ठंड और तेज़ बुखार का असर है। वह काफी कमज़ोर भी है; शायद पिछले कुछ दिनों से उसने ठीक से कुछ खाया नहीं है। मैंने इंजेक्शन लगा दिया है। जैसे ही कुछ घंटों में बुखार कम होगा, तो उसे होश आ जाएगा। कुछ दवाइयाँ भी दे देता हूँ। होश आने पर उसे कुछ खिलाने के बाद दवाइयाँ दे दीजिएगा।"
उन्होंने डिटेल में सारी बातें उन्हें बताईं, फिर कुछ सेकंड रुकने के बाद सवाल किया,
"क्या आपको इनकी देखभाल के लिए नर्स की ज़रूरत है?" डॉक्टर ने पूछा। वह आगे भी कुछ कहने वाले थे, पर रुद्रांश ने उन्हें मौक़ा ही नहीं दिया।
"कोई ज़रूरत नहीं, डॉक्टर कुमार," रुद्रांश ने सपाट लहज़े में इंकार कर दिया। उसके भावहीन चेहरे को देखकर, डॉक्टर कुमार की आगे कुछ भी कहने की हिम्मत ही नहीं हुई।
रुद्रांश ने उन्हें परिस्थिति पहले ही बता दी थी, इसलिए वे पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने सर हिलाया, कुछ ज़रूरी दवाइयाँ दीं, और कैसे खानी है समझाने के बाद चुपचाप कमरे से निकल गए।
अब उस कमरे में सिर्फ़ रुद्रांश और अन्विका ही थे।
अन्विका बेहोश थी, और किसी खरगोश के बच्चे जैसे कंबल में दुबकी हुई थी। उसकी पलकें काँप रही थीं; आँखों के कोनों पर नमी झिलमिला रही थी; चेहरे पर अजीब सा दर्द और बेचैनी दिख रही थी। शायद वह कोई सपना देख रही थी—एक ऐसा सपना जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।
रुद्रांश के चेहरे पर कोल्ड एक्सप्रेशन मौजूद थे। गहन निगाहें अन्विका पर टिकी थीं। क्यों उसकी आँखों में आँसू थे? कौन-सा दर्द था जो उसके दिल में बस गया था? इस हालत में कैसे पहुँची वह, और वहाँ क्या कर रही थी?
कई सवाल थे उसके मन में, और आँखों में अजीब सी बेचैनी। अचानक ही अन्विका के चेहरे से फिसलते हुए, उसकी नज़र उसके कॉलरबोन पर गई।
वहाँ मौजूद वह छोटा-सा बर्थमार्क हमेशा जैसे उसे अपनी तरफ़ आकर्षित कर रहा था। उसके दिल में अजीब सी हलचल मच गई।
एक पुरानी छवि, एक भुली हुई याद… वह मार्क उसके लिए अनजान नहीं था। इस बर्थमार्क में कुछ था ख़ास, कि हर बार उसकी नज़रें वहीं आकर ठहरती थीं।
रुद्रांश कुछ देर तक उस बर्थमार्क को देखता रहा, फिर अचानक ही उसकी ओर कदम बढ़ाए, उसके करीब आया, हल्का सा उसकी ओर झुका। उसका हाथ अनायास ही आगे बढ़ा, और उंगलियाँ उसकी शर्ट के ऊपरी बटन पर घूमने लगीं।
धीरे-धीरे, उसने पहला बटन खोला… फिर दूसरा… अब वह पूरे बर्थमार्क को साफ़-साफ़ देख पा रहा था।
उसकी उंगलियों ने उस बर्थमार्क को छूने की कोशिश की, पर तभी अचानक अन्विका ने उसका हाथ पकड़ लिया!
रुद्रांश खुद अपने होश में नहीं था। उस बर्थमार्क को देखते ही पता नहीं उसे हमेशा क्या हो जाता था कि वह अनजाने में अन्विका के करीब चला जाता था, और दिल बस उस बर्थमार्क को छूने के लिए मचल उठता था। आज भी उसके साथ वही हुआ, पर जैसे ही अन्विका की गरम हथेली ने उसके हाथ को छुआ, रुद्रांश चौंकते हुए होश में लौटा, और ज़िन्दगी में शायद पहली बार घबराहट में उसका दिल ज़ोर से धड़का।
रुद्रांश की उंगलियाँ उस जन्मचिह्न को छूने की कोशिश कर रही थीं, पर तभी अचानक अन्विका ने उसका हाथ पकड़ लिया!
रुद्रांश चौंककर होश में आया और शायद जीवन में पहली बार घबराहट में उसका दिल जोर से धड़का। उसकी निगाहें अन्विका के चेहरे पर उठीं।
वह हमेशा ही उसके जन्मचिह्न की ओर आकर्षित होता रहा था। बस उसे एक बार छूकर देखना चाहता था। वह अपने होश में नहीं था, उस जन्मचिह्न को देखने में इतना खो गया था कि कब अन्विका के करीब आकर यह हरकत कर दी, उसे खुद को इसका एहसास नहीं हुआ, पर अब अन्विका ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था। अगर उसने सवाल किए तो वह क्या जवाब देगा? यह सोचकर ही वह घबरा गया था।
रुद्रांश की नज़र अन्विका के चेहरे पर पड़ी तो वह एक बार फिर चौंक गया। उसके हाथ को अन्विका की उंगलियों ने जकड़ा हुआ था, लेकिन उसकी आँखें अब भी बंद थीं।
वह अब भी बेहोश थी और बेहोशी में भी उसके स्पर्श को महसूस कर पा रही थी। सोचते हुए रुद्रांश के माथे पर शिकन पड़ी।
यह क्या था? वह समझ नहीं पाया। यह कोई सामान्य बात नहीं थी। अन्विका पूरी तरह से बेहोश थी, फिर भी उसकी पकड़ काफी कसी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह बहुत डरी हुई है और उसे खुद से दूर जाने से रोकने की कोशिश कर रही है, जो उसके लिए बेहद खास और महत्वपूर्ण था।
रुद्रांश ने गौर किया। अन्विका की उंगलियाँ हल्की-हल्की काँप रही थीं, उसने रुद्रांश की हथेली को अपने चेहरे से लगा लिया। रुद्रांश चौंक गया, खुद में अजीब-सी हलचल महसूस करते हुए उलझन में पड़ गया।
अन्विका की त्वचा अब भी गर्म थी, और उसकी साँसें हल्की-हल्की काँप रही थीं। और तभी, अन्विका के काँपते होंठों से एक नाम फिसला—
"सम्यक..."
रुद्रांश की हैरानी भरी निगाहें अन्विका के चेहरे की ओर उठ गईं। बेहोशी में उसके मुँह से किसी और लड़के का नाम सुनकर उसके दिल में एक अजीब सी चुभन का एहसास हुआ। उसका चेहरा कठोर हो गया।
"सम्यक?"
रुद्रांश ने नाम दोहराते हुए तीखी निगाहों से अन्विका को घूरा। वह उसके पास थी, पर बेहोशी की हालत में उसका नहीं… किसी और का नाम ले रही थी। पता नहीं क्यों, पर रुद्रांश को यह पसंद नहीं आया। नाराज़गी चेहरे पर झलकने लगी। उसकी आँखों में अजीब-सी तल्खी आ गई। वह नाम उसके ज़ेहन में गूँजने लगा।
रुद्रांश ने अपना हाथ झटकते हुए अन्विका से छुड़ाया और उठकर खड़ा हो गया। उसकी मुट्ठियाँ अनजाने में भींच गईं। अन्विका को अनदेखा करते हुए वह वहाँ से जाने लगा।
सपने में, अन्विका को महसूस हुआ कि कोई उसका हाथ छोड़ रहा है, उसे छोड़कर उससे बहुत दूर जा रहा था। बेहोशी में भी उसे अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी। उसके आँसू और तेज़ी से बहने लगे, और थरथराते लबों से धीमी हुई, बिखरी हुई आवाज़ निकली, "कहाँ जा रहे हो तुम?... मत जाओ मुझे छोड़कर.... मुझे ज़रूरत है तुम्हारी... मुझे खुद से दूर मत करो... अगर तुम ऐसे ही चले जाओगे... और मुझे अकेला छोड़ दोगे... तो मैं क्या करूँगी?... मैं नहीं रह सकती तुमसे दूर.....मैं मर जाऊँगी तुम्हारे बिना.... मैं मर जाऊँगी।"
रुद्रांश के कदम वहीं ठहर गए। शरीर अकड़ गया। वह यह बातें सुनकर स्तब्ध था और समझ नहीं पा रहा था कि ये बातें अन्विका ने उसके लिए कही हैं? या उस सम्यक के लिए, जिसे वह बेहोशी में भी याद कर रही थी।
उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर अन्विका की ओर देखा, जो एक छोटे बच्चे की तरह रो रही थी और रोते हुए भी इतनी मासूम, इतनी नाज़ुक, इतनी प्यारी लग रही थी।
उसने गहरी साँस ली और सरसरी तौर पर अन्विका को देखा और बाहर निकल गया।
जब अन्विका को होश आया, तो उसने खुद को एक अनजान जगह पर पाया। इन कुछ दिनों में, वह हमेशा भ्रमित और खोया हुआ महसूस कर रही थी। हर बार जब उसे होश आता, वह किसी और जगह पर होती थी। इस बार भी यही हो रहा था उसके साथ।
उसने अपनी बाँह पर लगी ड्रिप की ओर देखा। किसी तरह संभलकर सीधी बैठ गई और धीरे से सुई निकाल दी। उसने अपने माथे को छुआ—बुखार अब नहीं था। पहले से काफी बेहतर महसूस कर रही थी अब वह।
पता नहीं वह कहाँ थी और कौन उसे यहाँ लेकर आया था? उसके पास तो कुछ भी नहीं था। अस्पताल का बिल और ट्रेन के किराये के बाद अब वह बिल्कुल खाली थी।
यही सोचते हुए अन्विका ने यहाँ से जाने का फैसला लिया। धीरे से बेड से नीचे उतरी और लड़खड़ाते हुए गेट खोलकर बाहर निकल गई।
रूम से बाहर निकलते ही अन्विका के सामने वह लग्ज़ूरियस विला खड़ा था, जिसकी भव्यता किसी शाही महल से कम नहीं थी। हर चीज़ इतनी परफेक्ट और महँगी थी कि ऐसा लग रहा था मानो यह वास्तविकता में नहीं, बल्कि किसी काल्पनिक दुनिया का हिस्सा हो—लाखों रुपये के क्रिस्टल झूमर, सुंदर वॉलपेपर, दीवारों पर लगी कीमती तेल चित्रकारी, और फर्श पर बिछा हाथ से बुना हुआ काला हंस डिज़ाइन वाला गलीचा, जो पूरे माहौल को और भी रहस्यमय बना रहा था।
पर जितनी खूबसूरत यह जगह थी, उतनी ही डरावनी भी लग रही थी। एक अजीब सा घुटन भरा अहसास अन्विका के दिल में घर करने लगा।
"यहाँ कुछ गड़बड़ है… इससे पहले कि मैं फिर से किसी नई मुसीबत में फँस जाऊँ, मुझे जल्दी से यहाँ से निकलना चाहिए।"
खुद में बड़बड़ाते हुए अन्विका ने अपनी निगाहें चारों तरफ घुमाईं। नज़र जैसे ही गेट पर पड़ी, उसने तुरंत उस तरफ कदम बढ़ा दिए। बाहर निकलने के लिए उसने गेट खोलने की कोशिश की, पर दरवाज़ा बंद था।
एक… दो… तीन…!
वहाँ दिखते सभी दरवाज़ों को उसने खोलने की कोशिश की, पर कोई भी बाहर जाने का रास्ता नहीं था। सारे दरवाज़े बंद थे। अब तो घबराहट के मारे उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। यह विला एक भ्रम जैसा था—एक बार जो इसमें फँस गया, उसका बाहर निकलना लगभग असंभव था। अन्विका भी बाहर निकलने की सभी कोशिशें करके थक गई थी। दरवाज़े तो कई थे, पर कोई भी इस विला से बाहर की ओर नहीं खुल रहा था।
और फिर…
चऱरररर…
पीछे एक दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। अन्विका ने झटके से पीछे मुड़कर देखा—
खिड़की के पास एक शख्स बेहद आराम से खड़ा था, चाँदी के रंग की शर्ट और गहरे भूरे रंग की पैंट पहने। वह थोड़ी लापरवाही भरी शालीनता के साथ खिड़की से टेक लगाए खड़ा था, जैसे यह पूरी दुनिया उसी की मुट्ठी में हो। उसके हाथ में उत्तम चीनी मिट्टी का कप था, जिससे वह धीरे-धीरे काली चाय की चुस्कियाँ ले रहा था।
खिड़की से छनकर आती सुनहरी धूप जब उसके चेहरे और शरीर पर पड़ रही थी, तो ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई यूनानी देवता हो—किसी इंसान की तुलना में ज़्यादा परफेक्ट, ज़्यादा प्रभावशाली। उसकी लंबी, आकर्षक शख्सियत, तीखी आँखें, और कोमल, पर रहस्यमय निगाहें। अन्विका भी खुद को उसके आकर्षण में उलझने से रोक न सकी और पल भर के लिए मंत्रमुग्ध होकर उसे देखने लगी।
जैसे ही अन्विका को इसका एहसास हुआ, उसने तुरंत ही खुद को संभाला, लेकिन एक हल्की बेचैनी अभी भी वह खुद में महसूस कर रही थी।
"तुम जाग गई?"
उसकी गहरी, मगर थोड़ी चंचल आवाज़ कमरे में गूंज उठी।
अन्विका को अब एहसास हुआ कि जिसने उसे बचाया था, वह कोई और नहीं बल्कि रुद्रांश था। बेहोशी से पहले दिखी धुंधली छवि ने एकदम से साफ होकर रुद्रांश का रूप ले लिया। यह दूसरी बार था जब रुद्रांश ने ऐसी स्थिति में उसकी मदद की थी। अन्विका के भाव कुछ बदल गए और उसने निगाहें झुकाते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
"आपने मेरी मदद की, मुझे याद ही नहीं था कि मैं आज फिर आपकी कार से टकराने वाली थी। मैंने जानबूझकर कुछ भी नहीं किया था। बस मुझे बुखार था और उस वक्त बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी मुझे, मैं सामने से हटना चाहती थी, पर हट नहीं सकी और मेरे कारण एक बार फिर आपको परेशानी हुई। मैं बहुत क्षमाप्रार्थी हूँ और बहुत-बहुत धन्यवाद।"
अन्विका दिल से उसके लिए आभारी महसूस कर रही थी, लेकिन इससे पहले कि उसकी कृतज्ञता ज़्यादा देर टिकती, रुद्रांश ने अपनी शरारती निगाहें उसकी ओर उठाईं और दुष्ट मुस्कान होंठों पर सजाते हुए कहा,
"इट्स ओके... तुम्हें मुझे धन्यवाद या माफ़ी कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैंने दान के तौर पर तुम्हारी मदद की है।"
रुद्रांश की बात सुनकर अन्विका भ्रमित हो गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।
"व्हाट डू यू मीन?"
अन्विका के सवाल का जब रुद्रांश ने कुछ इस अंदाज़ में जवाब दिया कि उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं और वह मुँह खोले स्तब्ध सी उसे देखती ही रह गई।
रुद्रांश के हाथ जेब में थे। अन्विका के सवाल पर वह अकड़ कर खड़ा हो गया और तल्ख लहजे में बोला,
"लगता है तुम्हें समझ नहीं आया। कोई बात नहीं, मैं समझा देता हूँ। मिस अन्विका, मैं एक व्यापारी हूँ। मैं लाभ और सौदों में विश्वास रखता हूँ। दान-पुण्य मेरा तरीका नहीं है। मैं बिना वजह कुछ नहीं करता। पहले मैं होने वाले लाभ और हानि का आकलन करता हूँ, फिर फैसला लेता हूँ। तुम्हारी मदद करना, तुम्हें सड़क से उठाकर घर लाना, तुम्हारा इलाज करवाना... सब व्यापार था, डार्लिंग। इसमें कोई भावना शामिल नहीं थी। तुम्हारी मदद की है, तो अब कीमत चुकानी होगी। तुम्हें भुगतान करना होगा।"
रुद्रांश का रवैया और बातें अन्विका के लिए सदमे से कम नहीं थे। उसके माथे पर शिकनें उभर आईं और आँखें हैरानी से फटी रह गईं।
"क्या?" अन्विका ने हैरानी से पूछा। उसके चेहरे के भाव देखकर रुद्रांश ने चाय का घूँट लिया और बेपरवाह अंदाज़ में कहा—
"तुम्हारी वजह से मुझे दो बार समस्याओं का सामना करना पड़ा। मैंने तुम्हारी मदद की, तुम्हारी जान बचाई। इसके अलावा, तुमने मेरी दो शर्ट ख़राब कर दी थीं... कुल मिलाकर अब तुम्हें जो राशि चुकानी है, वह दोगुनी हो गई है। अब तुम्हें पाँच लाख नहीं, बल्कि दस लाख देने होंगे।"
उसका अंदाज़ सामान्य था, पर अन्विका सदमे में थी।
"क्या?... दस लाख?"
रुद्रांश ने मुस्कराते हुए सिर हिलाया। अन्विका की हालत खराब हो गई; उसने सिर पकड़ लिया और चौंकते हुए उसे देखती रही।
उसे अपनी आँखों और कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यह आदमी उसे बचाने नहीं आया था; उसने तो सिर्फ़ अपना लाभ देखा था। उसने मानवता नहीं दिखाई, बल्कि व्यापारिक सौदा किया था। उसने उसकी ज़िन्दगी की कीमत लगाई थी।
"यह कोई वीरतापूर्ण कार्य नहीं था। यह एक व्यापारिक लेनदेन था!" रुद्रांश ने कहा, और अन्विका का चेहरा और भी बिगड़ गया। सबसे निराशाजनक बात यह थी कि पाँच लाख का कर्ज़ दस लाख हो गया था। दोगुना! पाँच लाख चुकाना ही मुश्किल था, दस लाख कहाँ से लाएगी?
यह सोचकर ही अन्विका का सिर दर्द से फटने लगा।
"तुम मज़ाक कर रहे हो, है ना?" अन्विका की आवाज़ थोड़ी ऊँची हुई, और आँखों में एक उम्मीद लिए वह रुद्रांश को देख रही थी। पर उसकी यह आखिरी उम्मीद भी टूट गई।
रुद्रांश ने हल्की मुस्कान के साथ अपना कप रखा और आइब्रो चढ़ाते हुए तीव्र निगाहों से उसे देखने लगा।
"क्या मैं मज़ाक कर रहा हूँ, ऐसा लग रहा है?"
रुद्रांश का जवाब सुनकर अन्विका की आखिरी उम्मीद भी टूट गई, और गुस्से और निराशा से उसका चेहरा लाल हो गया।
"ओह, यह आदमी तो भेड़िये के भेष में भेड़िया है!" रुद्रांश को घूरते हुए उसने मन ही मन कहा। अगर उसे पता होता कि रुद्रांश ऐसा करेगा, उसकी ज़िन्दगी की कीमत लगाएगा, तो वह खुद को सड़क पर ही मरने देती, पर रुद्रांश की मदद कभी नहीं लेती; उसे खुद को बचाकर इस तरह प्रताड़ित करने का मौका नहीं देती।
रुद्रांश की बातें सुनकर अन्विका को इतना गुस्सा आया कि उसे मन हुआ कि वह पैसे उसके मुँह पर दे मारे, हमेशा के लिए उसका मुँह बंद कर दे, पर वह ऐसा नहीं कर सकती थी।
पहला, उसके पास इतने पैसे नहीं थे। दूसरा, अगर उसने ऐसा किया, तो अगर उसका एक बाल भी हिला, तो वह और भी ज़्यादा कर्ज़ में डूब जाती। क्योंकि उसके सामने खड़ा यह शख्स कोई आम इंसान नहीं था; वह शैतान था, जो कब क्या कर जाए, कोई नहीं जानता था।
अन्विका ने गहरी साँसें लेते हुए, खुद को शांत किया, अपना गुस्सा दबाया और कहा, "मैं... मैं चुका दूँगी।"
रुद्रांश उसके चेहरे के भाव गौर से देख रहा था, और उसे चिढ़ाने में मज़ा आ रहा था। अन्विका की बात सुनकर वह हल्के से हँसा, जैसे उसकी बात का मज़ाक उड़ा रहा हो। अन्विका आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।
रुद्रांश ने चाय का कप नीचे रखा और अन्विका की ओर बढ़ गया। अन्विका घबराने लगी। अनजाने में ही वह पीछे हटने लगी; उसकी नज़रें रुद्रांश पर टिकी थीं, जो धीरे-धीरे उसके करीब आ रहा था।
अन्विका की पीठ दीवार से टकरा गई। उसने घबराकर पीछे देखा। अब उसके पास पीछे जाने की कोई जगह नहीं बची थी। रुद्रांश उसके पास पहुँच चुका था। उनके बीच बस एक कदम की दूरी थी।
अन्विका ने तुरंत ही किनारे हटने की कोशिश की, पर रुद्रांश उससे चार कदम आगे था; वह चालाक खिलाड़ी था, जिससे बचना असंभव था।
रुद्रांश ने अचानक झुककर अपने बाएँ हाथ को दीवार पर टिका दिया, जिससे अन्विका उसके और दीवार के बीच फँस गई।
रुद्रांश ने हल्के से सिर झुकाया और डरी हुई अन्विका को देखा। कुछ देर वह यूँ ही अन्विका को गहरी, तीव्र निगाहों से देखता रहा; फिर आइब्रो चढ़ाते हुए उसने ठंडे स्वर में सवाल किया,
"ओह? तो तुम चुका दोगी? पर यह बात तुम पहले भी कई बार कह चुकी हो, अभी तक चुकाया नहीं, तो बताओ कब चुकाने वाली हो तुम?"
रुद्रांश अन्विका पर हावी हो रहा था। दीवार के दोनों तरफ अपनी हथेली टिकाए वह उसके चेहरे की ओर झुका हुआ था। अन्विका उस शेर के पिंजरे में कैद हिरणी जैसी लग रही थी, जिसका शिकार करने के लिए शेर तैयार था, और हिरणी के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था।
अन्विका आँखें बड़ी-बड़ी किए, खुद में सिमटी, सहमी हुई सी उसे देख रही थी। वह डर के मारे हिलने की भी हिम्मत नहीं कर पाई।
रुद्रांश जानबूझकर उसके और करीब आ गया। अन्विका के घबराए हुए चेहरे को देखकर वह हल्के से हँसा। फिर सिर झुकाते हुए उसके कान में फुसफुसाया, "मेरे पैसे चुकाना तुम्हारे लिए मुमकिन नहीं है तो ऐसा करते हैं, तुम अपने शरीर से इसे चुका दो?"
अन्विका साँसें रोके दीवार से चिपककर खड़ी थी। रुद्रांश की बातों का मतलब समझते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया; गुस्से और हैरानी के मिले-जुले भाव उसके चेहरे पर उभरे।
"असंभव! ऐसा कभी नहीं होगा, मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी। मैं आपके इस घटिया और बेतुके प्रस्ताव को मानकर, थोड़े से पैसों के लिए खुद को नहीं बेचूँगी, समझें आप?"
गुस्से में अन्विका की छोटी सी नाक लाल हो गई, और उसकी साँसें भी तेज हो गईं। उसने रुद्रांश के सीने पर अपनी हथेलियाँ रखते हुए उसे जोर से धक्का दिया।
यह प्रतिक्रिया अचानक आई थी। जब तक अन्विका को अपनी हरकत का एहसास हुआ, तब तक वह उसे दूर धकेल चुकी थी।
रुद्रांश कुछ कदमों की दूरी पर खड़ा, हाथ कमर पर बांधे, हल्की मुस्कान के साथ उसे देख रहा था। अन्विका को और ज़्यादा घबराहट होने लगी। उसने खुद को संभाला और उसकी नज़रों से नज़रें मिलाते हुए आत्मविश्वास से जवाब दिया,
"मुझ पर तुम्हारे जितने भी कर्ज़ हैं, मैं सब चुका दूँगी। मेरे कारण तुम्हारी शर्ट ख़राब हुईं, तुमने दो बार मेरी मदद भी की... सबकी कीमत तुम्हें मिल जाएगी, पर इस तरीके से नहीं!"
अन्विका गंभीर थी, पर रुद्रांश की मुस्कराहट और गहरी हो गई। अचानक ही उसे उसकी आँखों में शरारत नज़र आई, और वह चौंक गई। वह घबरा गई थी कि रुद्रांश गंभीर है, पर वह तो बस उसके साथ खेल रहा था।
अन्विका को अब खुद पर ही गुस्सा आने लगा। रुद्रांश मारवा था, मारवा कॉरपोरेशन का मालिक, व्यापारिक साम्राज्य का राजा, और दुनिया की हज़ारों लड़कियों का सपना... आखिर किस चीज़ की कमी थी उसके पास, जो उसे एक मामूली सी लड़की को इस तरह धमकाने की ज़रूरत पड़े?
अन्विका इन्हीं विचारों में खोई थी कि रुद्रांश की ठहरी हुई गंभीर आवाज़ उसके कानों तक पहुँची, और उसकी आँखें अविश्वास से फैल गईं।
"आई नो कि तुम्हारे पास मेरे हुए लॉस को कंपेन्सेट करने के लिए पैसे नहीं हैं, दस लाख तो शायद अपनी इस ज़िंदगी में तुम कभी मुझे दे नहीं पाओगी, और तुम पैसे के बदले खुद को भी मुझे देने के लिए तैयार नहीं हो। तो चलो, ऐसा करते हैं। तुम मेरी स्टाइलिस्ट बनो, और तुम्हारी तनख़्वाह से धीरे-धीरे किश्तों में तुम्हारा कर्ज़ काट लिया जाएगा। तुम मेरी आँखों के सामने रहोगी तो मुझे भी कोई दिक्क़त नहीं होगी, और तुम्हें भी काम के साथ-साथ मेरे कर्ज़ चुकाने का मौक़ा मिल जाएगा। जिससे एक साथ तुम्हारे ऊपर बोझ नहीं पड़ेगा और न ही मुझे तुम्हारे भागने से नुकसान होने और अपने पैसे डूबने का डर रहेगा।"
रुद्रांश ने मज़ाक करना बंद कर दिया। उस वक़्त वह काफी गंभीर लग रहा था, और निगाहें अन्विका के चेहरे पर टिकी थीं। जो एक बार फिर हैरान सी आँखें बड़ी-बड़ी किए उसे देख रही थी।
अन्विका भ्रमित थी। वह अपने सामने खड़े इस आदमी को समझ नहीं पा रही थी; जो कभी उसके साथ रूखे व्यवहार करता था, कभी उसकी परवाह को एहसान मानकर उस पर कर्ज़ चढ़ा देता था, कभी अपनी शरारतों और बातों से उसे छेड़ता था, तो कभी ऐसी बातें कह जाता कि अन्विका बस उसे देखती ही रह जाती।
रहस्यमय सा आदमी था वह। कभी कोमल तो कभी कठोर। कभी रूखा व्यवहार करता, कभी उसकी मदद करता।
अन्विका चाहकर भी न तो उसे समझ पा रही थी और न ही उससे घृणा कर पा रही थी।
अन्विका बिना जवाब दिए वहाँ से चली गई। रुद्रांश ने इस बार भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की। ड्राइवर को साथ भेजा, ताकि वह सुरक्षित घर पहुँच जाए। उसके इस व्यवहार ने अन्विका को एक बार फिर भ्रमित कर दिया।
घर पहुँची तो एक बार फिर सभी उससे सवाल-जवाब करने के लिए तैयार और काफी गुस्से में नज़र आए, पर अन्विका सबको अनदेखा करते हुए सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे को अंदर से बंद कर लिया।
देखते ही देखते एक हफ़्ता बीत गया। अन्विका अपने कमरे में बंद रही, पूरे एक हफ़्ते तक बिस्तर पर पड़ी रही, जब तक कि वह पूरी तरह ठीक नहीं हो गई। शादी का दबाव अब भी उस पर था। मिसेज़ राठौड़ हर तरीक़ा अपना चुकी थीं, और अब अन्विका भी फैसला कर चुकी थी।
इन दिनों में, जब वह अपने कमरे में अकेली बंद रही, बिस्तर पर लेटी रही, उसने अनगिनत आँसू बहाए, बार-बार सम्यक के साथ बिताए गए पलों को याद किया, और फिर उन यादों को हमेशा के लिए दफ़ना दिया। फैसला कर लिया अपने अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने का।
ठीक होते ही उसने सम्यक का दिया हुआ हर एक चीज़, उपहार और उससे जुड़ी यादों को एक बड़े से डिब्बे में बंद कर दिया और एक छोटा अपार्टमेंट किराए पर लिया। फिर, उसने उन सभी यादों को उस छोटे अपार्टमेंट में कैद कर दिया।
अब सम्यक इस दुनिया में नहीं था, और उसके साथ ही उसका प्यार भी मर चुका था। अब वह किससे शादी कर रही है, इस बात की कोई ज़रूरत नहीं थी। अगर उसकी शादी से उसके भाई के इलाज के लिए पैसे मिल सकते हैं, तो यह सौदा उसे मंज़ूर था। वह अपने भाई के लिए अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर देगी। वैसे भी अब इस दुनिया में अंश के अलावा उसका है ही कौन?
अंश के लिए उसने यह फैसला लिया था। जब वह पूरी तरह से ठीक हो गई, तो वह खुद जाकर मिसेज़ राठौड़ से मिली, उनसे बात की और उन्हें अपना निर्णय बता दिया कि वह परिधि की जगह मारवा खानदान में शादी करने के लिए तैयार है।
मिसेज़ राठौड़ यही तो चाहती थीं। इतने दिनों से यही कोशिश तो कर रही थीं, और अब आख़िरकार उनकी समस्या सुलझ गई थी। अन्विका सम्यक को भुलाकर इस शादी के लिए तैयार हो गई थी। मिसेज़ राठौड़ के साथ-साथ मिस्टर राठौड़ और परिधि भी बहुत खुश थे।
इसके बाद अन्विका पर लगाए गए प्रतिबंध और रोक-टोक थोड़े कम हो गए; मिसेज़ राठौड़ अब उस पर नज़र भी नहीं रखती थीं। अन्विका ने खुद से आगे बढ़कर इस रिश्ते के लिए हाँ कही थी, इसलिए उन्होंने भी थोड़ी नरमी दिखाते हुए, बिना किसी आपत्ति के उसे सम्यक की कब्र पर कुछ बार जाने की अनुमति दे दी। शायद उन्हें डर था कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो कहीं अन्विका फिर से शादी से मना न कर दे।
तीन महीने बाद—
अन्विका आज एक बार फिर अपनी गोद में लिली के फूलों का गुलदस्ता लेकर सम्यक की कब्र के सामने बैठी थी।
"सम्यक, यह आखिरी बार है जब मैं तुमसे मिलने आई हूँ। इसके बाद मैं दोबारा यहाँ कभी नहीं आऊँगी, क्योंकि अब मैं शादी करने जा रही हूँ। जानती हूँ, शादी का वादा मैंने तुमसे किया था, और अगर तुम इस वक़्त मेरे साथ, मेरे पास होते, तो मुझे कभी यह कदम नहीं उठाना पड़ता। लेकिन तुम मुझे अकेला छोड़कर चले गए, और अब मेरी मजबूरी है कि मुझे भी तुम्हें छोड़कर जाना होगा।"
अन्विका ने हाथ में पकड़ा लिली के फूलों का गुलदस्ता उसकी कब्र पर रखा और अपनी हथेली से उसे सहलाते हुए वहाँ लगी सम्यक की फ़ोटो को देखने लगी।
"तुम कृपया यह मत सोचना कि मैंने तुम्हें धोखा दिया है। मैं आज भी सिर्फ़ तुमसे प्यार करती हूँ। मैं तुम्हारे अलावा कभी किसी और से प्यार नहीं कर सकती, और मैं यह शादी भी अपनी मर्ज़ी और खुशी से नहीं कर रही। मैं सिर्फ़ परिधि की जगह शादी कर रही हूँ।
राठौड़ खानदान चाहता था कि उनकी बेटी एक धनी परिवार में शादी करे; परिधि का रिश्ता तय हुआ था, पर अब वह यह शादी नहीं करना चाहती। मारवा खानदान ने हमारे मुश्किल समय में बहुत मदद की थी हमारी। राठौड़ परिवार के बहुत एहसान हैं मुझ पर, और अंश की ज़िंदगी की बात है, इसलिए परिधि की जगह अब यह शादी मैं कर रही हूँ।
लेकिन प्यार मैं आज भी सिर्फ़ तुमसे करती हूँ, और तुम्हारे बिना, किसी से भी शादी करने का कोई मतलब नहीं है। यह शादी सिर्फ़ एक औपचारिकता है। परिधि ने शादी से इंकार किया क्योंकि पार्थ मारवा खानदान का एक दत्तक पुत्र है, और उसने अपने परिवार के व्यापार, संपत्ति, शेयर सब कुछ अपने छोटे भाई के नाम कर दिया। पर मुझे यह शादी करनी होगी। मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि वह आदमी धनी है या गरीब, असली बेटा है या दत्तक पुत्र। वह बस मेरे लिए एक ज़रिया है अपने भाई की जान बचाने का।"
अपने दिल की जो बातें उसने किसी से नहीं कही थीं, वह आज सम्यक से साझा करते हुए वह काफी भावुक हो गई थी। उसने हमेशा से सम्यक से शादी के सपने देखे थे, और आज उसे ही बताने आई थी कि वह किसी और से शादी करने जा रही है।
अन्विका को एहसास ही नहीं हुआ कि कब उसकी आँखों से बहते आँसू उसके चेहरे को भीगाने लगे। उसने अपने चेहरे से आँसू पोंछने की कोशिश की, लेकिन वे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
"जब मैं शादी कर लूँगी, तो तुम स्वर्ग में खुश रहना। अगर वहाँ कोई अच्छी लड़की मिले, तो..."
बोलते-बोलते अचानक ही वह चुप हो गई। उसका गला भर आया था। उसने खुद को संभाला और दर्द भरी निगाहों से उसे देखते हुए मुस्कुराने लगी।
"सम्यक, इस ज़िंदगी में तो तुमने अपने सारे वादे तोड़ दिए, पर अगर अगले जन्म में हम फिर मिलें, तो मुझे फिर से इस तरह अकेला छोड़कर मत जाना।" अन्विका ने अपने आँसू बेरहमी से पोंछे और अपने होठों से उस कब्र को चूमा।
"अब मैं जा रही हूँ। सच में इस बार हमेशा के लिए जा रही हूँ! अब मैं कभी लौटकर यहाँ नहीं आऊँगी। तुम मुझे ज़्यादा याद मत करना और ऊपर मेरा इंतज़ार करना।"
एक आख़िरी बार अन्विका ने उसकी कब्र को अपनी हथेली से सहलाया, शायद सम्यक से जुड़े एहसास को खुद में समेट रही थी, और उसके बाद वह तेज़ी से वहाँ से भाग निकली। न उसके कदम रुके और न ही आँसू। वह दर्द में थी, पर अगर अभी रुक जाती तो कमज़ोर पड़ जाती। कितनी मुश्किल से यह निर्णय लिया था उसने, अब पीछे नहीं हट सकती थी वह।
सम्यक से दूर जाते हुए उसका दिल टूट रहा था, और वह बड़ी ही बेरहमी से अपने आँसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछती जा रही थी। पर न उसका दर्द कम हो रहा था और न ही आँसू थम रहे थे।
अगले दिन ही शादी थी। जो राठौड़ मेंशन में सादगी से होनी थी। बस परिवार के सदस्यों के बीच विवाह पंजीकरण के कागज़ात पर हस्ताक्षर किया जाना था। अन्विका को भी इससे कोई समस्या नहीं थी। उसके लिए तो यह शादी वैसे भी बस एक मजबूरी और औपचारिकता ही थी। सब कुछ तय था, पर अचानक ही कुछ ऐसा हुआ जिसने सबको हैरानी में डाल दिया और मिस्टर राठौड़ गुस्से से बौखला गए।
अगले दिन ही शादी थी, जो राठौड़ मेंशन में सादगी से होनी थी। बस परिवार के सदस्यों के बीच विवाह पंजीकरण के कागज़ों पर हस्ताक्षर किए जाने थे। अन्विका को भी इससे कोई समस्या नहीं थी। उसके लिए तो यह शादी वैसे भी बस एक मजबूरी और औपचारिकता ही थी। सब कुछ तय था, पर आनन-फानन में पता चला कि न परिवार आ रहा है और न ही वर। मिस्टर राठौड़ को यह अपनी बेइज़्ज़ती लगी, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
इन सबसे अनजान अन्विका अपने कमरे में अंश के साथ बैठी थी। गहरे लाल रंग के जोड़े में सजी अन्विका किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। हर गहरे लाल लहंगा सोने की कढ़ाई से खूबसूरती से जगमगा रहा था। उसकी काजल भरी आँखें और हल्की मुस्कान जैसे चाँदनी बिखेर रही थीं।
हर चूड़ियों की कोमल झनकार और उसके गजरे की खुशबू उसके मनमोहक आकर्षण में और इजाफा कर रहे थे। लाल रंग में वह सिर्फ़ खूबसूरत नहीं, बल्कि एक चलती-फिरती कयामत लग रही थी—ठाठ और लाजवाब अंदाज़ की एक पूर्ण मिसाल!
"अन्वी, तुम खुश...खुश हो?" अंश को अपनी बहन की चिंता थी। उसके ऐसे अचानक शादी करने के फैसले से वह खुश नहीं था।
अन्विका ने उसका सवाल सुनकर मुस्कुराया, शायद उसे एहसास दिला रही थी कि वह खुश है।
"हाँ, मैं बहुत खुश हूँ, भाई।"
अंश पता नहीं कितनी बार यह सवाल कर चुका था, और अन्विका का जवाब हर बार यही आता, जिससे वह निराश हो जाता। अन्विका ने उसे अपने गले से लगा लिया।
"मैं जानती हूँ कि आप मेरे लिए टेंशन में हैं, आपको मेरी चिंता है। पर मैं जो कर रही हूँ, आपके लिए ही कर रही हूँ, और मैं सच में खुश हूँ।"
अन्विका ने मन ही मन सोचा। दोनों भाई-बहन बात ही कर रहे थे कि मुँह बिचकाती हुई परिधि वहाँ आ गई।
"तुम्हारा भावुक नाटक हो गया हो तो अपने भाई को छोड़ो और नीचे आओ, माँ बुला रही है तुम्हें।"
परिधि हमेशा जैसी रूखी थी। उसे अंश और अन्विका दोनों ही पसंद नहीं थे, इसलिए हमेशा उनसे चिढ़ती रहती थी। पर अन्विका को कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसने हमेशा की तरह परिधि को अनसुना कर दिया। अंश के हाथों को थामते हुए उसे यहीं रहने के लिए समझाया। फिर खुद अपने भारी लहंगे को संभालते हुए कमरे से बाहर निकल गई।
लिविंग रूम में पहुँची तो वहाँ सिर्फ़ एक जवान और आकर्षक लड़का खड़ा था। उम्र कोई २८-२९ रही होगी, और काले फॉर्मल सूट में वह काफी आकर्षक लग रहा था।
"क्या यही पार्थ है? पर यह अकेले क्यों आया है? क्या इनका परिवार इनके साथ नहीं आया?"
उसे देखते हुए अन्विका के मन में कई सवाल आए। पार्थ को उसने पहले कभी देखा ही नहीं था। वह उसे जानती भी नहीं थी, इसलिए सामने खड़ा शख्स पार्थ था या कोई और, उसे नहीं पता था।
"तू तो बहुत भाग्यशाली निकली, अन्विका! कितनी अनोखी शादी होगी न तेरी, जिसमें न कोई मेहमान है, न बारात आई, न बाराती, और अब तो वर भी नहीं आया। अपने स्थान पर अपने सहायक को भेज दिया है। मुझे कहना होगा, ऐसी शादी तो मैंने पहले कभी नहीं देखी। लगता है पार्थ को भी पता चल गया कि उसकी शादी मुझसे नहीं, बल्कि तुझसे हो रही है, इसलिए बेचारा खुद आया तक नहीं।"
उसके साथ चलती परिधि की व्यंग्यात्मक आवाज़ अन्विका के कानों में पड़ी, और उसने चौंकते हुए सिर घुमाकर उसे देखा। आँखों से उसका मज़ाक उड़ाते हुए परिधि दुष्ट मुस्कान होंठों पर बिखेरते हुए उसे छोड़कर आगे निकल गई।
अन्विका पहले तो स्तब्ध सी उसे देखती रही, फिर निगाहें एक बार फिर वहाँ खड़े शख्स पर डाली। अब वह जानती थी कि वह पार्थ नहीं है। उसने अपने माता-पिता के चेहरे देखे। मिस्टर राठौड़ गुस्से में थे, तो मिसेज़ राठौड़ खुशी का दिखावा कर रही थीं। दोनों को ही यह बात पसंद नहीं आई थी, पर अन्विका को इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। उसे बस शादी करनी थी, चाहे जैसे भी हो, इससे उसे कोई मतलब नहीं था।
वह नीचे आई तो मिसेज़ राठौड़ ने उसे सोफे पर बिठा दिया। पार्थ के सहायक ने आदर के साथ उसे अभिवादन किया, फिर कागज़ उसके सामने रख दिए।
"मैडम, व्यस्त होने की वजह से सर नहीं आ पाएँगे, तो उन्होंने विवाह पंजीकरण के कागज़ों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और मुझे आपको मेंशन ले जाने का आदेश दिया है। आप भी इन कागज़ों को पढ़कर हस्ताक्षर कर दीजिए, तो मैं आपको मेंशन छोड़ दूँगा।"
अन्विका ने उन कागज़ों को पढ़ने की भी ज़रूरत नहीं समझी। यहाँ तक कि उसके साथ किसका नाम जुड़ने जा रहा था, किसके हस्ताक्षर के बगल में वह हस्ताक्षर करने वाली थी, उसने इस पर भी ध्यान नहीं दिया। पेन उठाया, जहाँ-जहाँ सहायक ने कहा, वहाँ-वहाँ हस्ताक्षर करती चली गई। यह देखकर सहायक हैरान था।
उसने कागज़ों पर हस्ताक्षर किए और उठकर खड़ी हो गई। अपना सामान पहले ही पैक कर चुकी थी, अंश से जाकर मिली। उससे दूर जाते हुए उसकी आँखें नम हो गई थीं, पर उसने सोच लिया था कि पहले खुद बस जाए, फिर जल्दी ही अपने भाई को भी यहाँ से ले जाएगी।
अन्विका, जिसे राठौड़ हाउस में कभी प्यार और अपनापन नहीं मिला, आज एक औपचारिक रिश्ते में बंधकर उसने हमेशा-हमेशा के लिए वह घर छोड़ दिया। वहाँ बाकी सब खुश थे, सिर्फ़ अंश था जो आँखों में आँसू लिए अपनी बहन को खुद से दूर जाते देख रहा था।
सारे रास्ते अन्विका के दिमाग में कई बातें घूमती रहीं। वह नहीं जानती थी कि वह कहाँ जा रही थी? इस रिश्ते का क्या अंजाम होगा? पार्थ कैसा होगा और वह उसके साथ कैसे रहेगी? नहीं जानती थी कि आगे उसके साथ क्या होगा और भाग्य उसे कहाँ ले जाएगा? लेकिन उसे क्या करना था, शायद वह जानती थी।
कार एक खूबसूरत मेंशन के बाहर आकर रुकी, तब जाकर अन्विका अपने ख्यालों से बाहर आई और नज़रें सीधे उस मेंशन पर चली गईं जो जितना बड़ा था, उतना ही खूबसूरत भी लग रहा था। पर अन्विका के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। सहायक ने कार का दरवाज़ा खोलते हुए आदर के साथ उसे बाहर निकलने को कहा, तो अन्विका अपने लहंगे को संभालते हुए बाहर आ गई।
"बधाई हो, मैडम। मारवाज़ की ओर से मैं आपका इस मेंशन और उनकी फैमिली में स्वागत करता हूँ। पार्थ सर ने यहाँ आपके रहने की सारी व्यवस्था करवा दी है, तो आपको कोई समस्या नहीं होगी। आपने कागज़ नहीं पढ़े, तो मैं आपको बताना चाहूँगा कि अब से आपको यहीं रहना होगा। बड़ी मैडम की शर्त के अनुसार अगर आप अगले एक साल में गर्भवती हो जाती हैं और मारवा खानदान को उनका अगला वारिस दे देती हैं, तो आप हमेशा के लिए इस परिवार का हिस्सा बन जाएँगी, पर अगर आप ऐसा नहीं कर पाती, तो एक साल बाद यह रिश्ता टूट जाएगा और आप पार्थ सर से अलग हो सकती हैं। तब आपको यह विला भी छोड़ना होगा, पर आपको एलिमनी मिलेगी।"
शादी की नींव ही इस शर्त पर रखी गई थी, और अन्विका यह बात बहुत अच्छे से जानती थी। उसने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी। पार्थ ने शादी के लिए घर नहीं आया और न ही यहाँ मौजूद था। शादी भी उसने इस शर्त पर की थी, जिससे साफ़ ज़ाहिर था कि वह इस रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं है। उसने अपनी पत्नी को एक बार देखने में भी रुचि नहीं दिखाई, मतलब बच्चा होना तो ऐसे में संभव ही नहीं था। और यह अन्विका के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं थी।
उसे बस किसी तरह एक साल निकालना है। इस एक साल में जितना हो सके उतना पैसा कमाकर, मज़बूत स्थिति में आना है, ताकि अंश का इलाज खुद करवा सके, फिर इस शादी के खत्म होते ही वह अपने भाई को अपने पास ले आएगी और उसके बाद वह यहाँ से बहुत दूर चली जाएगी। राठौड़ खुद देखेंगे कि वे अपने कर्ज़ कैसे चुकाएँगे। वह उनसे कोई रिश्ता नहीं रखेगी।
अन्विका ने खड़े-खड़े अपने भविष्य की पूरी योजना बना ली थी। जब उसके तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया, तो कुछ देर रुकने के बाद सहायक ने उलझन भरी निगाहों से उसे देखते हुए सवाल किया,
"मैडम, आप सुन रही हैं न मैं क्या कह रहा हूँ? मेरी बताई बातें समझ में आ गई न आपको? अगर कोई शंका हो तो अभी पूछ लीजिए।"
अन्विका अपने ख्यालों से बाहर आई और हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया। फिर उसने सहायक की तरफ़ देखा और एक ऐसा सवाल किया कि सहायक का दिमाग एक सेकंड के लिए अटक गया। उसकी आँखें अविश्वास में चौड़ी हो गईं, जैसे उसने कुछ गलत सुन लिया हो।
"क्षमा करें, मैडम?" उसने हकलाते हुए कहा, लेकिन अन्विका के आत्मविश्वास और शांत भाव ने उसे और भी ज़्यादा घबरा दिया।
अन्विका अपने ख्यालों से बाहर आई और हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया। फिर उसने पीए की ओर देखा।
"मैंने तो पेपर्स पढ़े नहीं, तो क्या आप मुझे बता सकते हैं कि उसमें ऐसा तो कोई रूल नहीं लिखा था कि मुझे अगला एक साल इस विला में कैद होकर बिताना है?"
"एक्सक्यूज़ मी, मैम?" पीए ने चौंकते हुए उसे देखा। शायद अन्विका के सवाल को ठीक से समझ नहीं पाया था। उसे कंफ्यूज़ देखकर अन्विका ने बात आगे बढ़ाई।
"आई मीन टू से कि इस एक साल की शादी के कॉन्ट्रैक्ट के दौरान मुझे काम करने की आज़ादी तो होगी ना? मैं अपनी मर्ज़ी से, अपने तरीके से तो रह सकती हूँ ना? अपने करियर पर फोकस करने का अधिकार तो होगा मेरे पास?"
अन्विका ने आत्मविश्वास और संयम से सवाल किए। अब जाकर पीए को उसकी बात समझ आई और उसने सहजता से हामी भरी।
"ऑफकोर्स, मैम। आप जैसे चाहे रह सकती हैं, जो चाहे कर सकती हैं। अपने वर्क को कंटिन्यू रख सकती हैं, अपने करियर पर ध्यान दे सकती हैं। उस पर कोई रिस्ट्रिक्शन्स नहीं लगाई गई हैं। बस आपको यहाँ रहना होगा और मारवा खानदान की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा का ख्याल रखना होगा। कुछ भी करने से पहले यह देख लीजियेगा कि अब आप मिस्टर पार्थ मारवा की पत्नी हैं।"
पीए ने अपनी जेब से चाबी निकालकर उसकी ओर बढ़ाई।
"थैंक्यू।" अन्विका ने चाबी पकड़ी और फिर अपनी वेडिंग ड्रेस पहने हुए ही वहाँ से चली गई।
पीए कुछ देर वहीं खड़ा अन्विका को देखता रहा। उसने उसका सामान भी कार से बाहर निकालकर रख दिया, फिर खुद वहाँ से निकल गया।
"सर, पार्थ सर का पीए आया था और ये पेपर्स आपके लिए देकर गया है।"
वरुण ने एक भूरे रंग का सीलबंद लिफाफ़ा रुद्रांश की ओर बढ़ाया। रुद्रांश इस वक़्त अपनी कुर्सी पर बैठा किसी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट देखने में व्यस्त था। उसने स्क्रीन पर नज़रें टिकाते हुए पूछा।
"कैसे पेपर्स हैं?"
"आपकी विवाह पंजीकरण के पेपर्स हैं।"
ये शब्द रुद्रांश के कानों में पड़े और कीबोर्ड पर चलती उसकी उंगलियाँ रुक गईं, नज़रें सामने खड़े वरुण की ओर उठ गईं।
वरुण ने लिफाफ़ा थोड़ा आगे बढ़ाया, रुद्रांश ने उसे पकड़ा और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया।
"सर, पीए कह रहा था कि आपकी पत्नी काफी दिलचस्प हैं। आप अपनी शादी में भी नहीं गए, तो क्या आप एक बार उस लड़की को देखना और उससे मिलना नहीं चाहेंगे जो कानूनी तौर पर आपकी पत्नी बन गई है?"
"मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, पर तुम काफी उत्सुक लग रहे हो। लगता है मेरी अनुबंधित पत्नी से मिलने के लिए काफी उत्साहित हो तुम। जाओ, जाकर मिल लो और अगर तुम्हें पसंद आ जाए, तो उसे तुम ही रख लेना। मैं उसे तुम्हें दे दूँगा।"
रुद्रांश ने लापरवाही भरे अंदाज़ में जवाब दिया, जैसे यह उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं। पर आँखें चढ़ाए वह उसे घूर रहा था। उसकी बात सुनकर वरुण पहले तो चौंक गया, फिर घबराते हुए बोला।
"नहीं सर, मेरा वह मतलब नहीं था। मैं तो बस थोड़ा उत्सुक हो गया था। अगर आप उनसे नहीं मिलना चाहते, तो यह बिलकुल ठीक है।"
"मैं गंभीर हूँ, वरुण, मुझे उस लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं, तुम चाहो तो उसे रख सकते हो।"
रुद्रांश का मूड अब पहले से हल्का लग रहा था। फिर भी उसकी बात मानने लायक तो नहीं थी। वरुण ने हँसते हुए उसे टाल दिया।
"नहीं सर, मैं अपनी आज़ाद ज़िन्दगी जीना पसंद करता हूँ। शादी करने का अभी मेरा कोई इरादा नहीं है। वैसे भी वह कुछ वक़्त के लिए ही सही, पर आपकी पत्नी हैं तो मेरी लेडी बॉस हुईं, उनके बारे में मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।"
रुद्रांश ने तिरछी मुस्कान के साथ उसे देखा, फिर अपने तिजोरी की ओर कदम बढ़ा दिए।
"तुमने उससे पूछा? उस लड़की को विला की चाबी दे दी ना उसने?"
"हाँ सर।"
"ठीक है, नियमों के अनुसार उसे वहाँ रहने दो। मैंने सिर्फ़ अपने बड़े भाई से की डील के लिए यह शादी की है, पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया है। यह रिश्ता मेरे लिए सिर्फ़ एक डील है। एक साल तक वह आराम से वहाँ रहेगी, जब हमारे बीच कोई संबंध ही नहीं बनेगा तो बच्चा भी नहीं होगा। उसके बाद हम अनुबंध के अनुसार अलग हो जाएँगे।"
रुद्रांश ने पूरी योजना बना रखी थी। उसकी बात सुनकर वरुण ने हिचकिचाते हुए पूछा।
"सर, आप बिना पढ़े ही पेपर्स रख रहे हैं। आप उनसे मिलना नहीं चाहते, पर एक बार विवाह के पेपर्स तो पढ़ लीजिए।"
"इसकी ज़रूरत नहीं।" रुद्रांश ने पेपर्स को तिजोरी में रखते हुए जवाब दिया।
"सर, पार्थ सर का पीए कह रहा था कि मैडम ने भी पेपर्स पढ़े बिना ही उन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और दूल्हे के न आने पर भी उन्होंने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी और अब आप भी पेपर्स नहीं पढ़ रहे।"
वरुण के शब्द रुद्रांश के कानों में पड़े और विवाह पंजीकरण के पेपर्स रखते हुए उसके हाथ रुक गए। अगले ही पल मन में कुछ आया और होंठों पर एक शरारती मुस्कान फैल गई।
"यह बहुत अच्छा है, मतलब उस लड़की को भी इस रिश्ते से कुछ खास उम्मीद नहीं है और न ही अपने पति में कोई दिलचस्पी है। आगे चलकर तलाक में समस्या नहीं होगी।"
रुद्रांश की इस बात पर वरुण कुछ कहने ही वाला था, पर कुछ सोचते हुए वह चुप रह गया। बार-बार अपनी एक साल के अनुबंध वाली पत्नी के ज़िक्र से रुद्रांश की आँखों के आगे अचानक ही अन्विका का चेहरा उभर आया। उसने तुरंत वरुण की ओर मुड़ते हुए पूछा, "आज के लिए कोई खास योजना है?"
"हाँ, आज रात आपकी रायचंद इंडस्ट्रीज की मिस के साथ मीटिंग तय है।"
वरुण ने तुरंत ही जवाब दिया। रुद्रांश की आँखें एक अलग अंदाज़ में चमकीं और होंठों पर शरारती मुस्कान फैल गई।
"पिछली बार जो स्टाइलिस्ट आई थी, जाओ उसे बुलाकर लाओ। वह आज मेरा स्टाइलिंग करेगी।"
रुद्रांश की बात सुनकर वरुण चौंक गया, "पर आपके पास पहले से एक एक्सक्लूसिव स्टाइलिस्ट है?"
"पिछली बार उस स्टाइलिस्ट के स्थान पर जो अस्थायी स्टाइलिस्ट मेरे लिए आई थी, वह काफी दिलचस्प थी। मुझे उसका काम पसंद आया था और अब मैं चाहता हूँ कि उसी स्टाइलिस्ट को बुलाया जाए।"
रुद्रांश ने तिरछी मुस्कान के साथ वह आदेश दिया। अब भी उसके मन में सिर्फ़ अन्विका का ही ख्याल था। वरुण हैरान था।
वह जानता था अपने बॉस को, वह पूर्णतावादी था, गलतियों के लिए उसके पास सिर्फ़ सज़ा थी, माफ़ी नहीं।
तीन महीने पहले, सीईओ की एक्सक्लूसिव स्टाइलिस्ट को अचानक ज़रूरी काम से छुट्टी लेनी पड़ी थी, और उसने अस्थायी रूप से एक महिला स्टाइलिस्ट को अपनी जगह भेजा था। वह स्टाइलिस्ट ही थी जिसने सीईओ, मतलब रुद्रांश की दो शर्ट्स बर्बाद कर दी थीं... उसके बावजूद रुद्रांश ने उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की और अब उसे वापिस बुलाना चाहता था।
रुद्रांश का ऐसा करना अप्रत्याशित था। वरुण को यह अजीब लग रहा था। पर वह सालों से रुद्रांश के साथ काम कर रहा था। वह एक अनुभवी सहायक था और जानता था कि कब क्या करना चाहिए? इसलिए वह कोई तर्क और सवाल-जवाब न करते हुए उसके आदेश का पालन करते हुए वहाँ से चला गया।
दूसरी तरफ़—
अन्विका अब तक अंदर नहीं गई थी। ताला खोलने के बाद भी बाहर खड़ी निराश निगाहों से उस वीरान तीन मंज़िला विला को देख रही थी। शायद यही वह जगह थी, जहाँ वह अगले एक साल तक रहने वाली थी, लेकिन यह भी अच्छा था।
शादी करते हुए उसे यही चिंता थी कि कैसे उस आदमी का सामना करेगी जो पहले परिधि का पति बनने वाला था? कैसे निभाएगी इस रिश्ते को और कैसे उस अजनबी के साथ रहेगी जिसे वह जानती तक नहीं, पर वह उसका पति होगा। अगर उसने कुछ करने की कोशिश की, तब क्या करेगी? कैसे इस स्थिति के साथ निपटेगी?
अब जब वह सामने आया ही नहीं, तो उसे किसी अजीब स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। वह शख्स भी इस शादी में दिलचस्पी नहीं रखता, तो उसे ज़्यादा कुछ सोचने की भी ज़रूरत नहीं है। बस, एक साल तक यहाँ रहना था, पैसा इकट्ठा करना था और फिर अपने भाई को लेकर कहीं दूर चले जाना था।
यह फैसला करके, अन्विका ने अपना बैग उठाया और जल्दी से दरवाज़ा खोला।
विला के पहले तल में एक बड़ा लिविंग रूम, एक गेम रूम, एक रसोई और एक डाइनिंग रूम था।
दूसरे तल में एक बेडरूम और एक अध्ययन कक्ष था। तीसरे तल में कई अतिथि कक्ष और एक खाली भंडारण कक्ष था।
घर खाली था, लेकिन ज़रूरी सुविधाएँ मौजूद थीं।
अन्विका ने कुछ ही देर में विला देख लिया था और अब उसे विश्वास था कि वह यहाँ एक साल आराम से बिता सकती है।
अन्विका अपने बैग को घसीटते हुए मास्टर बेडरूम में आई। घूमकर पूरे कमरे को देखा, फिर अलमारी की ओर बढ़ गई। अब यहाँ रहना था तो अपना सामान भी तो सेट करना था। यही सोचते हुए उसने अलमारी के दरवाज़े को खिसकाया और अंदर का नज़ारा देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
अन्विका अपने बैग को घसीटते हुए मास्टर बेडरूम में आई। उसने घूमकर पूरे कमरे को देखा, फिर अलमारी की ओर बढ़ गई। अब यहाँ रहना था, तो अपना सामान भी तो सेट करना था। यही सोचते हुए उसने अलमारी के दरवाज़े को स्लाइड किया और अंदर का नज़ारा देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
कबर्ड पहले से ही डिज़ाइनर कपड़ों, स्टाइलिश जूतों और ब्रैंडेड मैचिंग बैग्स से भरा हुआ था। पार्थ तो उसे अपना चेहरा तक दिखाने नहीं आया था, पर उसकी ज़रूरत की सारी चीजें यहाँ अरेंज करवा चुका था।
अन्विका सार्कैस्टिक ढंग से मुस्कुराई। यह रिश्वत थी या मुआवज़ा? क्या पार्थ उसे यह जताना चाह रहा था कि वह उसे सारी भौतिक चीजें देगा, पर वह उसे नहीं मिल सकता? पति होने का फ़र्ज़ इस तरह निभा रहा था या अपनी दौलत-शौहरत का ज़ोर दिखा रहा था?
अन्विका एक आत्मनिर्भर लड़की थी; दूसरों से एहसान लेना उसे पसंद नहीं था। उसके लिए उसकी आत्मसम्मान और गरिमा ही सब कुछ थी। उसने सरसरी नज़र उन चीजों पर डाली। इनमें से किसी भी चीज़ को हाथ नहीं लगाना चाहती थी, ताकि भविष्य में यहाँ से जाने पर उस पर कोई सवाल न उठे।
उसने इन महँगे ब्रांड्स के कपड़ों को एक तरफ़ किया और अपने कुछ पुराने, धुले हुए कपड़े टांग दिए।
जैसे ही अन्विका दूसरे कमरे में जाने लगी, उसका फ़ोन बज उठा। उसने पर्स से मोबाइल निकालकर देखा, तो स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर चमक रहा था। यह उसका वर्क नंबर था, इसलिए उसने बिना किसी हिचकिचाहट के कॉल रिसीव कर ली।
"हैलो, मैं स्टाइलिस्ट अन्विका बोल रही हूँ।"
फ़ोन के दूसरी तरफ़ से एक अनजान आदमी की आवाज़ आई,
"हैलो, मिस अन्विका। मैं मारवा इंडस्ट्रीज़ के CEO, मिस्टर रुद्रांश मारवा के असिस्टेंट, वरुण हूँ। CEO आपको अपनी पर्सनल स्टाइलिस्ट के तौर पर नियुक्त करना चाहते हैं। उन्होंने आपको अभी इसी वक़्त यहाँ आने का आदेश दिया है, ताकि आप काम शुरू करें।"
वरुण की बात सुनकर अन्विका कुछ पलों के लिए चौंक गई। उसे रुद्रांश की कही बात याद आई और आँखें हैरत से फैल गईं। क्या रुद्रांश मारवा सच में उसे अपने लिए काम करवाकर पैसे लौटाने का इरादा रखता था? क्या वह उस वक़्त गम्भीर था? हाँ, निश्चित रूप से गम्भीर था, तभी तो उसे बुला रहा है।
अपने सवाल का अन्विका ने खुद ही जवाब दिया और मन ही मन सोचने लगी कि एक लम्हे में कितनी उलझ गई है उसकी ज़िंदगी। वह अब मारवा खानदान की बहू थी, नाम के लिए इस आदमी की भाभी थी... मगर मारवा परिवार के लोग उसे कभी परिवार का हिस्सा नहीं मानते थे। रुद्रांश को तो शायद यह भी पता नहीं होगा कि वह उसके बड़े भाई की पत्नी है।
यह शादी शायद अब तक की सबसे अनोखी शादी रही होगी, जो बस एक औपचारिकता बनकर रह गई है; जहाँ पति और पत्नी एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे।
खैर, यह भी अच्छा था। किसी का किसी से कोई लेना-देना नहीं। रिश्तों की उलझन में फँसने से वह बच जाएगी। वैसे भी उसका लक्ष्य कुछ और ही था। मंज़िल तय थी और रास्ता सामने था। वह जल्दी से पैसे कमाएगी और इस अनचाहे रिश्ते को ख़त्म करके, सबसे दूर जाकर अपनी शर्तों पर अपनी ज़िंदगी जिएगी। अपने भाई के साथ अपनी एक अलग छोटी सी दुनिया बसाएगी। सोचते हुए हल्की मुस्कान उसके होंठों पर उभरी।
"ओके, मैं आ जाऊँगी, आप मुझे पता भेज दीजिये।" अन्विका ने तुरंत हामी भर दी। वरुण ने कॉल काटने के बाद उसे पता भेज दिया।
अन्विका ने जल्दी से अपने कपड़े बदले, मेकअप हटाया, झटपट नहाई और अलमारी से एक सफ़ेद शर्ट और नीली जींस निकाल ली।
आधे घंटे से भी कम समय में, अन्विका अपने मेकअप बैग के साथ रुद्रांश के सामने मौजूद थी।
"मिस्टर रुद्रांश, क्या आप किसी विशेष ब्रांड के उत्पाद इस्तेमाल करना चाहेंगे या मैं अपने ब्रांड्स ही इस्तेमाल कर लूँ?"
अन्विका ने अपना मेकअप बैग खोलते हुए व्यवसायिक अंदाज़ में पूछा, जैसे बाकियों से पूछती थी। क्योंकि उसके अधिकांश ग्राहक उच्च समाज और धनी पृष्ठभूमि से आते थे, इसलिए अन्विका के मेकअप बैग में शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स के ही उत्पाद थे। अगर ग्राहक ने पहले से कुछ तैयार नहीं किया हो और किसी विशेष ब्रांड की मांग न हो, तो वह उनके हिसाब से सबसे बेहतरीन उत्पाद ही चुनती थी।
"नहीं, कोई विशेष मांग नहीं है, तुम अपने उत्पाद इस्तेमाल कर सकती हो।"
रुद्रांश ने लापरवाही से आईने के सामने बैठते हुए अन्विका को दिलचस्पी से देखा। उनकी आखिरी मुलाक़ात को तीन महीने बीत गए थे। उस वक़्त और आज जो अन्विका उसके सामने खड़ी थी, दोनों में काफ़ी अंतर नज़र आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह सदमे से बाहर निकल आई थी; अब वह आत्मविश्वास से भरपूर लग रही थी।
लेकिन उसे तो अन्विका को असहज देखना पसंद था। उसके चिढ़ाने पर उसका खुद में सिमटना और घबराना पसंद था। सोचते हुए रुद्रांश के होंठ हल्के से खिंच गए।
अन्विका हर बात से बेख़बर अपने काम में लगी थी। उसने ध्यान से रुद्रांश की त्वचा देखी। वह पुरुष था, लेकिन उसकी त्वचा इतनी गोरी, मुलायम और चमकदार थी कि उससे पुरुष ही नहीं, महिलाएँ भी ईर्ष्या करने पर मजबूर हो जाएँ।
अन्विका अब तक कई पुरुषों का स्टाइलिंग कर चुकी थी, मगर उनमें से कोई भी रुद्रांश जितना परफेक्ट नहीं था। एक स्टाइलिस्ट के रूप में, वह तुरंत पहचान सकती थी कि कोई स्वाभाविक रूप से सुंदर है या प्लास्टिक सर्जरी करवाई गई है। इसमें कोई शक नहीं था कि रुद्रांश ने कोई प्लास्टिक सर्जरी नहीं करवाई थी; जो था, स्वाभाविक था।
अन्विका जल्दी से काम के मोड में आ गई। उसने थोड़ा झुककर काम शुरू किया, जिससे उसकी कॉलरबोन और तिल ठीक रुद्रांश की आँखों के सामने आ गए, जिसने एक बार फिर उसका ध्यान अपनी ओर खींचा और अनजाने में रुद्रांश की नज़रें वहाँ ठहर गईं।
अचानक ही रुद्रांश को महसूस हुआ कि अन्विका की हल्की ठंडी उंगलियाँ उसके चेहरे पर फिसल रही थीं। उसका ध्यान अब तिल से हटकर अन्विका पर चला गया। जिस जगह वह उसे छू रही थी, वहाँ एक अजीब सी गुदगुदी जैसा एहसास हो रहा था।
अन्विका ने रुद्रांश की त्वचा का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर अपने बैग से एक नया न्यूटमेग नरिशिंग क्रीम निकालते हुए लापरवाही से पूछा,
"कुछ देर में आप किस तरह के कार्यक्रम में जा रहे हैं? अगर आप बता देंगे, तो मैं उसके अनुसार ही आपकी स्टाइलिंग करूँगी।"
"डेट पर जा रहा हूँ।"
रुद्रांश ने आँखें हल्का छोटा करते हुए गहरी निगाहें अन्विका के चेहरे पर टिका दीं। वह यह जानना चाहता था कि उसने यह सवाल व्यवसायिक होकर पूछा था या फिर व्यक्तिगत दिलचस्पी के कारण?
अगले ही पल उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए। अन्विका बिलकुल सामान्य थी। उसे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा था कि रुद्रांश डेट पर जा रहा था, और कहीं न कहीं यह बात रुद्रांश को पसंद नहीं आई थी।
रुद्रांश के इरादों से अनजान अन्विका तुरंत समझ गई कि उसे क्या और कैसे करना है; उसने तुरंत सिर हिलाकर सहमति जताई और इस डेट के कार्यक्रम के हिसाब से उसे तैयार करने लगी।
अन्विका ने जल्दी से उसके बालों को ठीक किया और एक बहुत ही आकर्षक हेयरस्टाइल बना दिया। रुद्रांश पहले से ही बेहद हैंडसम और आकर्षक था और सही हेयरस्टाइल के बाद वह और भी ज़्यादा मनमोहक और आकर्षक लगने लगा था।
पहले रुद्रांश बस हल्का-फुल्का स्टाइल करना ही पसंद करता था। लेकिन अन्विका… वह सिर्फ़ एक स्टाइलिस्ट नहीं थी, परफ़ेक्शनिस्ट थी। पूरी समर्पण के साथ अपना काम करती थी। उसकी आँखें बारीकियों को पकड़ने में माहिर थीं।
अन्विका ने गहरी निगाहों से रुद्रांश को देखा और उसकी नज़रें रुद्रांश की भौंह पर ठहर गईं। उसने हल्के से सिर हिलाया और अपने बैग से आईब्रो ट्रिमर निकाल लिया।
"हिलिएगा नहीं।" अन्विका ने नज़रें उठाकर उसे देखा और उसकी ओर कदम बढ़ा दिए। अन्विका का चेहरा अचानक रुद्रांश के चेहरे के करीब आ गया; नज़दीकी इतनी बढ़ी कि उसकी साँसों की गर्माहट रुद्रांश के गाल को छूने लगी।
रुद्रांश, जो आमतौर पर लड़कियों से दूरी बनाकर रखता था, अन्विका की इन नज़दीकियों से उसे एक अजीब सा एहसास हुआ और अनजाने में उसकी बाँहों ने अन्विका की कमर को थामते हुए उसे अपनी ओर खींच लिया, जिससे अन्विका चौंक गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरानी से उसे देखने लगी।
अन्विका ने धीरे-धीरे रुद्रांश की दाईं भौं को ट्रिमर से संवारना शुरू किया। अन्विका का पूरा ध्यान अपने काम पर था, किंतु रुद्रांश की नज़रें उसके चेहरे पर टिकी रहीं।
कितनी अजीब बात थी कि रुद्रांश, जो आमतौर पर लड़कियों से दूरी बनाए रखता था, आज अनजाने में अन्विका उसके इतने करीब आ गई थी और उसे इससे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी... वास्तव में, अन्विका की यह निकटता उसे एक अनोखा एहसास दे रही थी।
"क्या यह उसके जन्मचिह्न की समानता के कारण था, जो उसे पसंद था? जिससे उसका गहरा और पुराना रिश्ता था, जो उसे अपनी ओर आकर्षित करता था? जो उसे किसी बेहद खास शख्स की याद दिलाता था?"
रुद्रांश ने मन ही मन सवाल किया। उलझन भरी नज़रें अन्विका पर पड़ीं, जो पूरे ध्यान से अपना काम कर रही थी। उसके गंभीर चेहरे पर बालों की कुछ लटें बिखरी हुई थीं, जो उसकी खूबसूरती को बढ़ा रही थीं। पर साथ ही उसे परेशान भी कर रही थीं। रुद्रांश के मन में विचार आया और उसका हाथ अन्विका के चेहरे की ओर बढ़ा।
इसी समय, रुद्रांश का सहायक वरुण वहाँ पहुँचा। वह गेट खटखटाकर अंदर आने ही वाला था, किंतु जैसे ही उसने सिर उठाया और अंदर का दृश्य देखा, वह बुरी तरह चौंक गया।
अन्विका का शरीर लगभग रुद्रांश की बाहों में समा गया था, परन्तु उसके बॉस को इन निकटताओं से कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि, वह उसकी आँखों में खोया हुआ लग रहा था। दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब दिख रहे थे, रुद्रांश का हाथ बस अन्विका के चेहरे को छूने ही वाला था।
अपनी आँखों के सामने ऐसा दृश्य देखकर वरुण का मुँह खुला का खुला रह गया। क्या यह सब उसकी कल्पना थी? क्या उसने किसी असंभव दृश्य को देख लिया था? यह जो भी था, सामान्य तो नहीं था।
वरुण के लिए अपनी आँखों पर विश्वास करना मुश्किल था। उसने रुद्रांश और अन्विका को देखा, फिर अपने आगे बढ़े हाथ को झट से पीछे खींच लिया।
"नहीं! अगर अभी मैंने इस क्षण में हस्तक्षेप किया, इस समय रुद्रांश को परेशान किया तो निश्चित ही आज सर का सारा गुस्सा मुझ पर उतरेगा। वे बहुत नाराज़ होंगे और शायद गुस्से में मुझे नौकरी से ही निकाल दें... नहीं, ऐसा नहीं होगा। मैं उनके इस खास पल को बर्बाद नहीं कर सकता... मुझे यहाँ से जाना होगा। बाद में सर से बात कर लूँगा।"
वरुण सभी संभावनाओं के बारे में सोचते हुए पहले खुद से बड़बड़ाया, खुद को डराया भी। फिर बिना कोई आवाज़ किए, समझदारी दिखाते हुए चुपचाप वापस मुड़ गया और बाहर खड़ा होकर पहरेदारी करने लगा ताकि कोई और उन्हें परेशान न करे और रुद्रांश को ऐसे न देख ले।
रुद्रांश की उंगली अन्विका के चेहरे को छूने ही वाली थी कि अचानक रुक गई। आखिरी ट्रिम पूरा करने के बाद, अन्विका ने राहत की साँस ली। जैसे ही उसने नज़रें झुकाईं, वह सीधे रुद्रांश की गहन, चमकदार आँखों से टकरा गईं।
उनकी आँखों में कुछ अजीब सा था... कुछ ऐसा जिसने अन्विका के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं। नज़रें चुराते हुए अन्विका तुरंत एक कदम पीछे हट गई। खुद को अपने असहजता में उलझाते हुए उसने अपनी बेचैनी छुपाने की कोशिश की।
"अब आप अपनी डेट के लिए तैयार हैं, आप देख सकते हैं। अगर कोई कमी लगे तो बता दीजियेगा।"
रुद्रांश की नज़रें अन्विका से हटकर शीशे में दिखते अपने प्रतिबिम्ब की ओर चली गईं। उसकी नज़र दाईं ओर अच्छी तरह संवारी हुई भौं पर टिकी, और होंठों पर हल्की मुस्कान उभर आई। बिलकुल परफेक्ट आकार था उसका और यह कमाल अन्विका ने किया था।
उसका आकर्षण पहले से ही काफी प्रभावशाली और रहस्यमय था, और आज अन्विका के स्पर्श ने जैसे उसे और निखार दिया था। सुंदर और आकर्षक तो वह पहले ही था, अब इतना आकर्षक लग रहा था कि कोई भी उस पर से नज़रें नहीं हटा सकता था। उसके आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व में अन्विका ने और भी खासियत जोड़ दी थी।
रुद्रांश ने हल्का सा सिर घुमाया और अन्विका को देखा, जिसके चेहरे का रंग हल्का गुलाबी हो गया था और वह अब भी उससे नज़रें चुराते हुए शर्माई हुई सी खुद में सिमटती जा रही थी।
"क्या मैं अच्छा दिख रहा हूँ? इतना आकर्षक लग रहा हूँ कि जिस लड़की से मिलने जा रहा हूँ वह पहली नज़र में ही मुझ पर मोहित हो जाए?"
उसका सवाल सुनकर अन्विका ने घबराते हुए नज़रें उसकी ओर उठाईं। उसके चेहरे पर भ्रम साफ़ झलक रहा था, वह समझ नहीं पा रही थी कि रुद्रांश ने अचानक उससे यह सवाल क्यों पूछा? उसने अपनी पलकें कई बार झपकाते हुए उसे देखा, फिर अपनी उलझन को अपनी मुस्कान के पीछे छुपाते हुए कोमलता से जवाब दिया, "बिलकुल, बहुत अच्छे लग रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आप जिनसे मिलने जा रहे हैं, वे भी आपके आकर्षक चेहरे और मनमोहक व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित होने से खुद को रोक नहीं पाएँगी।"
"सच में... क्या तुम्हें ऐसा लगता है?" रुद्रांश अचानक खड़ा हो गया और अन्विका के सामने आ गया। अन्विका ने घबराते हुए वहाँ से हटना चाहा, पर रुद्रांश ने एक झटके में अपने हाथ को बढ़ाकर अन्विका का रास्ता रोक दिया। अन्विका ने चौंकते हुए नज़र उठाकर उसे देखा।
रुद्रांश ने उसे दीवार और अपनी बाहों के बीच कैद कर लिया और भौंहें चढ़ाते हुए गहन निगाहों से उसे देखने लगा।
"क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है कि कोई भी लड़की मेरे आकर्षक, सुंदर चेहरे पर, मनमोहक व्यक्तित्व के प्रभाव से खुद को बचा नहीं पाएगी और मेरी ओर आकर्षित हो जाएगी?"
रुद्रांश का सवाल सुनकर अन्विका और ज़्यादा भ्रमित हो गई। आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखते हुए उसने धीरे से सिर हिला दिया। रुद्रांश के होंठों के कोने हल्के से मुड़ गए और वह एक कदम और उसके करीब आ गया।
"तुम भी?" रुद्रांश ने गहरी निगाहों से उसे देखते हुए सवाल किया। अन्विका बुरी तरह से चौंक गई और घबराकर बोली,
"ये... ये क्या कह रहे हैं आप?"
"मैं सिर्फ़ एक सवाल पूछ रहा हूँ, क्या मेरे आकर्षण का प्रभाव तुम पर भी होता है? क्या मैं इतना आकर्षक हूँ कि तुम खुद को मेरी ओर आकर्षित होने से रोक न सको? तुम्हारी नज़र में मैं ज़्यादा आकर्षक हूँ या सम्यक? ... क्या मैं उससे भी बेहतर दिखता हूँ? क्या मेरे सामने तुम उसे भी भूल जाती हो?"
रुद्रांश खुद नहीं जानता था कि उसने ये सवाल कैसे और क्यों पूछ लिए? रुद्रांश के मुँह से सम्यक का नाम सुनकर और दोनों के बीच तुलना करते देखकर अन्विका स्तब्ध रह गई थी। उसे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि रुद्रांश अचानक सम्यक का नाम ले लेगा। उसका चेहरा पल भर में पीला पड़ गया।
रुद्रांश को भी यह अंदाज़ा नहीं था कि उसके इस सवाल के बाद अन्विका का चेहरा इतना पीला पड़ जाएगा। उसी पल उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि शायद उसने गलत सवाल कर लिया और अब उसे और सवाल नहीं पूछने चाहिएँ। इस बात को यहीं खत्म करना बेहतर होगा।
रुद्रांश अब उस नाम को गलती से भी दोबारा अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहता था, पर अन्विका के इस प्रतिक्रिया ने उसके मन में कई सवालों को जन्म दे दिया था।
"आखिर यह शख्स कौन था? अन्विका से क्या रिश्ता था उसका? क्या कहानी थी उनकी? अन्विका बेहोशी में भी उसे क्यों याद कर रही थी? उसके कारण दर्द में क्यों थी? क्यों आज भी उसका नाम सुनते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया और आँखों में अजीब सा सूनापन झलकने लगा? आखिर क्या राज़ छुपा है यहाँ? कैसे वह अन्विका के पास न होकर भी उसके भावनाओं को इतनी गहराई से प्रभावित कर सकता था?"
अपने सवालों में उलझा रुद्रांश कुछ पल गहरी निगाहों से अन्विका को घूरते हुए उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करता रहा, फिर अपनी नज़रें फेरते हुए उसने अपने हाथ हटा लिए, शीशे में एक नज़र खुद को देखा, और अपनी टाई ठीक करने लगा।
"तुम मेरे साथ चल रही हो।"
रुद्रांश ने लगभग आदेश दिया, उसका लहजा कठोर था और चेहरे पर गंभीर भाव थे।
"अ... हाँ?" अन्विका अभी भी उसके पिछले शब्दों से उबर नहीं पाई थी और अब यह। वह अवाक होकर उसे फटी आँखों से देखने लगी।
"इसका क्या मतलब था? वह उसके साथ डेट क्यों जाएगी? यह कैसी बेतुकी बात थी जिसका कोई मतलब ही नहीं बन रहा था? रुद्रांश उसे अपने साथ डेट पर ले जाने के बारे में सोच भी कैसे सकता है? आखिर चल क्या रहा है उसके दिमाग में?"
अन्विका हैरान-परेशान में, खुद में उलझी खड़ी रही, फिर अचानक ही उसके मन में कुछ आया और उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं।
"क्या वह उसे ही डेट पर ले जा रहे थे? यह सारी तैयारी क्या उसने उसको अपने साथ डेट पर ले जाने के लिए की थी? क्या स्टाइलिंग बस एक बहाना था, असल में रुद्रांश को उसे अपने साथ डेट पर लेकर जाना था? क्या यही वजह थी कि उसने वह सवाल किए थे? क्या वह उसे पसंद करता है?"
सोचते हुए अन्विका का दिल ज़ोर से धड़का और वह डरते हुए पीछे हटने लगी कि रुद्रांश ने उसकी कमर में बाँह डालते हुए उसे अपनी ओर खींच लिया, अन्विका उसके चौड़े सीने से जा टकराई।
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" अगले ही पल वह आँखें मूँदते हुए चीखी।
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" अगले ही पल वह आँखें मूँदते हुए चीखी।
"क्या हुआ तुम्हें? ऐसे चिल्ला क्यों रही हो तुम? और ये अपनी आँखें क्यों बंद की हुई हैं तुमने?"
अन्विका के कानों में रुद्रांश की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोलीं और रुद्रांश को खुद से दूर खड़े देखकर एक बार फिर चौंक गई।
"अब ऐसे आँखें बड़ी-बड़ी करके मुझे क्या देख रही हो? जवाब दो, ऐसे चिल्लाई क्यों तुम? और क्या नहीं हो सकता?"
रुद्रांश ने आँखें चढ़ाते हुए कड़क अंदाज़ में सवाल किया। अन्विका फटी आँखों से हैरान-परेशान सी उसे देख रही थी। उसने हड़बड़ाते हुए इंकार में सिर हिला दिया।
"नहीं... कुछ नहीं। वो बस मैं कुछ सोचने लगी थी।"
"तुम मेरे साथ चल रही हो, okay?"
रुद्रांश वहाँ से हट गया, पर अन्विका एक बार फिर अपने ही ख्यालों में उलझ गई।
"ये क्यों मुझे बार-बार अपने साथ डेट पर चलने कह रहे हैं? दुनिया में कौन सा स्टाइलिस्ट अपने क्लाइंट के साथ उसकी डेट पर जाता है? अगर कोई बड़े लेवल का प्रोग्राम होता, तो उनकी इमेज बनाए रखने के लिए स्टाइलिस्ट का उनके साथ रहना ज़रूरी होता। लेकिन ये तो सिर्फ़ एक डेट है...
क्या इसका मतलब ये था कि जिससे वो मिलने जा रहे हैं, वो उसके लिए इतनी इम्पॉर्टेंट है कि वो अपनी स्टाइलिंग को परफेक्ट बनाए रखने के लिए स्टाइलिस्ट को साथ ले जाना चाहते हैं?"
इस पॉसिबिलिटी के मन में आते ही अन्विका काफी रिलैक्स हो गई और बाकी सभी उल्टी-सीधी बातें उसके दिमाग से निकल गईं। पर अभी भी रुद्रांश की मौजूदगी उसे प्रभावित कर रही थी।
वह सच में चाहती थी कि रुद्रांश का ध्यान किसी और पर चला जाए, ताकि वह कुछ देर आराम से अकेले में इस बारे में सोच सके। शायद रुद्रांश यह बात समझ गया था। उसने सरसरी सी नज़र अन्विका पर डाली, फिर मुड़कर बाहर निकल गया।
अन्विका अभी भी थोड़ी कन्फ़्यूज़ और परेशान थी कि रुद्रांश के साथ उसका जाना ठीक होगा या नहीं?
"मिस अन्विका, आपको बॉस ने बुलाया है। कैन यू प्लीज़ कम विथ मी?"
अचानक आई वरुण की आवाज़ सुनकर अन्विका चौंकते हुए अपने ख्यालों से बाहर आई। नज़र सीधे वरुण पर गई जो एंट्रेंस के पास खड़ा उसे साथ चलने कह रहा था।
अन्विका ने सिर हिलाया और जल्दी से अपना सामान समेटने लगी। फटाफट सब रखने के बाद, बैग उठाकर उनके पीछे चल दी।
नीचे पहुँचते ही, उसकी नज़र सीधे सामने गई। जहाँ ब्राइट ब्लू कलर की Lamborghini Aventador खड़ी थी।
एक बॉडीगार्ड, जिसने कस्टम-मेड आर्मी सूट पहना था, उसने रिस्पेक्ट के साथ कार का दरवाज़ा खोला और रुद्रांश आराम से अंदर बैठ गया।
अन्विका, जिसकी नज़रें अब तक रुद्रांश पर टिकी थीं, अब उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे कोई दूसरी कार नज़र नहीं आई।
"यहाँ तो कोई दूसरी कार ही नहीं थी, तो मैं इनके साथ कैसे जाऊँगी? क्या मुझे पैदल ही उनके पीछे-पीछे जाना है?"
अन्विका ने आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए खुद से ही कहा, फिर खुद ही अपने सिर पर चपत लगा दी। "कितनी बेवकूफ़ियाना बात सोचती है तू? पैदल कैसे जा सकती है तू?"
रुद्रांश ने देखा कि अन्विका अंदर बैठने के बजाय सड़क के किनारे खड़ी पागलों जैसे खुद में बड़बड़ाते हुए अजीब सी शक्लें बना रही है। उसने आइब्रो हल्के से उठाते हुए अजीब नज़रों से उसे घूरा।
उसकी केयरफुल्ली शेप्ड आइब्रो जब हल्की सी उठी, तो वह और भी ज़्यादा अट्रैक्टिव लगने लगा।
"वहाँ खड़ी-खड़ी क्या सोच रही हो? कार में बैठो!" रुद्रांश ने पैसेंजर सीट की ओर इशारा किया। अन्विका ने चौंकते हुए आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा। अचानक ही उसे एहसास हुआ कि उसे भी उसी कार में बैठना था, जिसमें रुद्रांश था और वह उसके बैठने का इंतज़ार कर रहा है, पर अब भी उसे विश्वास नहीं हुआ।
अन्विका ने उंगली से अपनी ओर इशारा करते हुए, आँखें बड़ी-बड़ी करके रुद्रांश से सवाल किया, "मैं?"
वह हैरान थी और इस वक़्त बेहद क्यूट और मासूम लग रही थी। उसकी इस अदा पर अनजाने ही रुद्रांश के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई।
शायद यही वजह थी कि उसे अन्विका को चिढ़ाने और सताने में मज़ा आता था—वह हमेशा घबराए हुए छोटे खरगोश की तरह क्यूट और स्वीट लगती थी। जब शक्लें बनाती या आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखती, तब तो और भी प्यारी लगती थी।
"येस, तुम। अंदर बैठो। वी आर गेटिंग लेट।"
रुद्रांश ने मुस्कान छुपाते हुए सीरियस अंदाज़ में जवाब दिया और अपनी कलाई पर बंधी वॉच की तरफ़ इशारा करते हुए अन्विका को हल्के से घूरा, जिससे अन्विका हड़बड़ा गई।
वरुण ने अन्विका के लिए कार का दरवाज़ा खोला। खुद को इतना स्पेशल ट्रीटमेंट मिलते देखकर अन्विका को लगा जैसे वह हवा में उड़ रही हो, यह सब उसके लिए किसी हसीन ख़्वाब से कम नहीं था। कब वह अंदर बैठी और कार स्टार्ट हुई, अन्विका को कुछ एहसास ही नहीं हुआ। वह तो अभी भी उन एहसासों में खोई थी।
"इतने सालों से मैं इस फ़ील्ड में काम कर रही हूँ, स्टाइलिस्ट के रूप में कितने लोगों के साथ काम कर चुकी थी। पर इन सालों के एक्सपीरियंस में यह पहली बार है जब कोई कस्टमर मुझे अपनी डेट पर लेकर जा रहा है, मुझे इतना स्पेशल ट्रीटमेंट मिल रहा है और पहली बार मैं किसी क्लाइंट के साथ उसकी कार में उसके साथ जा रही हूँ। क्या मैं सच में सपना देख रही हूँ?"
खुद में बड़बड़ाती अन्विका खुद को रोक नहीं पाई और चोरी-छिपे रुद्रांश को देखने लगी। रुद्रांश ने ध्यान नहीं दिया कि अन्विका उसे घूर रही थी। उसका पूरा कॉन्संट्रेशन ड्राइविंग पर था।
उसके फ़ाइनली कार्व्ड फ़ीचर्स और वह सेल्फ़-अश्योर्ड बॉडी लैंग्वेज... उसे और भी ज़्यादा इरेसिस्टिबल बना रहे थे। किसी की भी नज़र उस पर ठहर जाती और उसके इस चार्म से अन्विका भी बच नहीं सकी थी।
ड्राइविंग करते हुए वह ज़्यादा अट्रैक्टिव लग रहा था कि अन्विका कुछ देर के लिए अपनी नज़रें उस पर से हटा ही नहीं पाई।
"आज रात हम 'रायचंद इंडस्ट्रीज़' की मिस अनाहिता रायचंद से मिलने जा रहे हैं। वहाँ जाकर थोड़ा अलर्ट रहना और जो कहा जाए, वही करना।"
रुद्रांश की गहरी और नरम आवाज़ किसी वायलिन की तरह मीठी लग रही थी।
"आह..." अन्विका चौंकते हुए होश में आई और महसूस किया कि वह काफी देर से उसे घूर रही थी। उसने सकपकाते हुए उस पर से नज़रें हटा लीं।
"थैंक गॉड कि मिस्टर रुद्रांश ने मुझे उन्हें ऐसे घूरते हुए नहीं देखा, वरना क्या इम्प्रेशन पड़ता मेरा उन पर? क्या सोचते कि कितनी अनप्रोफ़ेशनल और मैनेरलेस लड़की हूँ मैं। कैसे बेशर्मी से उन्हें घूर रही थी, अगर देख लेते तो ज़रूर गुस्सा करते, आज तो ख़ैर नहीं थी तेरी। पर किस्मत से बच गई, लेकिन हर बार ऐसा नहीं होगा इसलिए अपनी आँखों पर ज़रा कंट्रोल रख और अपनी लिमिट्स में रह।"
अन्विका ने खुद को डाँट लगाई। इतने में रुद्रांश की घूरती निगाहें उसकी ओर घूम गईं।
"यह बार-बार कहाँ खो जाती हो तुम? खुद में क्या बड़बड़ाती रहती हो? और ये कैसे एक्सप्रेशन दे रही हो?"
इस बार डाँट रुद्रांश से पड़ी थी, जो इरिटेटेड लग रहा था। अन्विका ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा और हड़बड़ाते हुए सिर हिला दिया।
"क...कहीं नहीं... कहीं नहीं खोई हूँ। बस कुछ सोच रही थी।"
रुद्रांश कुछ पल आँखें छोटी-छोटी किए शक भरी नज़रों से उसे घूरता रहा, फिर दाईं आइब्रो उठाते हुए सवाल किया।
"सुनाई दिया तुम्हें, कुछ कहा था मैंने?"
"जी, समझ गई।" अन्विका ने अपनी घबराहट छुपाते हुए जल्दी से जवाब दिया। हालाँकि उसने कह तो दिया, लेकिन असल में वह कुछ नहीं समझी। उल्टा कन्फ़्यूज़ हो गई।
एक स्टाइलिस्ट को वहाँ अलर्ट रहने की क्या ज़रूरत थी? उसे तो सिर्फ़ उसका लुक ठीक करना था, अगर कुछ बिगड़ गया तो? वह कौन सा किसी जंग के मैदान में जा रही थी जो अलर्ट रहती?
रुद्रांश ने अन्विका की तरफ़ देखा, उसके एक्सप्रेशन चीख-चीख कर कह रहे थे कि उसे कुछ भी समझ नहीं आया है। लेकिन फिर भी उसने उसको कुछ भी समझाने की जहमत नहीं उठाई।
"डोंट वरी, कुछ देर में तुम खुद ही समझ जाओगी कि मेरी बातों का मतलब क्या था।" रुद्रांश ने होंठों पर किलर मुस्कान सजाते हुए खुद से कहा और ध्यान ड्राइविंग पर लगा दिया।
अभी कुछ देर ही हुई थी कि अचानक ही रुद्रांश के कानों में कुछ अजीब सी आवाज़ पड़ी और उसकी हैरानी भरी नज़रें अन्विका की ओर घूम गईं, जो खिड़की से सिर टिकाए बाहर की तरफ़ देखते हुए कुछ सोच रही थी। होंठों को भींचे अजीब-अजीब सी शक्लें बना रही थी। गाल पर बिखरी लटें, हाथ पेट पर था और माथे पर पड़ी सिलवटें उसकी परेशानी ज़ाहिर कर रही थीं।
रुद्रांश की भौंहें ख़तरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं और झटके से उसने ब्रेक लगा दिया, अन्विका संभल न सकी और आगे की तरफ़ लुढ़क गई।
अभी कुछ देर ही हुई थी कि अचानक रुद्रांश के कानों में कुछ अजीब सी आवाज़ पड़ी। उसकी हैरानी भरी निगाहें अन्विका की ओर घूम गईं। अन्विका खिड़की से सर टिकाए बाहर की तरफ़ देख रही थी। होंठों को भींचे, वह अजीब-अजीब सी शक्लें बना रही थी। गाल पर बिखरी लटें थीं, हाथ पेट पर था, और माथे पर पड़ी सिलवटें उसकी परेशानी ज़ाहिर कर रही थीं।
रुद्रांश कुछ देर उसे देखता रहा, फिर निगाहें फेर लीं। डेस्टिनेशन पर पहुँचने के बाद कार रुकी, और रुद्रांश बाहर निकल गया। अन्विका की निगाहें उसी पर टिकी रहीं।
"ये मेरे तरफ़ क्यों आ रहे हैं? कहीं मुझे अपने साथ अंदर तो नहीं लेकर जाने वाले? लेकिन अपनी डेट पर भला मुझे क्यों लेकर जाएँगे? पर यहाँ तक भी तो लाए हैं, और मेरे ही तरफ़ आ रहे हैं, लगता है कबाब में हड्डी बनाकर मुझे अपनी टेबल पर अपने साथ ही बिठाने वाले हैं?"
रुद्रांश को घूमकर अपनी तरफ़ बढ़ते देख अन्विका खुद में बड़बड़ाना शुरू कर चुकी थी।
"नीचे उतरो।" रुद्रांश ने उसके तरफ़ का डोर खोलते हुए बाहर आने का इशारा किया। अन्विका आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।
"आप जाइए ना, मैं यहीं ठीक हूँ। आपकी डेट है, मैं वहाँ आप दोनों के बीच बैठकर क्या करूँगी? आक्वर्ड हो जाएगा मेरे लिए, एंड आई एम श्योर कि मिस रायचंद को भी मेरा आपके साथ आना पसंद नहीं आएगा। मेरी मौजूदगी में शायद आप दोनों ठीक से एक दूसरे से बात भी नहीं कर सकेंगे।"
अन्विका ने झिझकते हुए उसके साथ जाने से मना कर दिया। उसकी बातें लॉजिकल थीं, पर उसका इंकार सुनकर रुद्रांश की भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं, और आँखें छोटी-छोटी करके वह उसे घूरने लगा।
"आई एम योर बॉस एंड दिस इज़ माय ऑर्डर। नो मैटर व्हाट, बट इफ़ यू आर विथ मी, देन यू हैव टू फॉलो माय ईच एंड एवरी ऑर्डर..... गॉट इट?"
उसका यह एटीट्यूड से भरा कड़क अंदाज़ देखकर अन्विका थोड़ा घबरा गई, और उसने हड़बड़ाते हुए सर हिला दिया।
"अब बाहर आओ। मुझे तो लगता है कि तुमने आज कुछ खाया भी नहीं, मैंने तुम्हारा पेट आवाज़ें आती सुनी हैं। आई गैस तुम्हें भूख लगी है, और आर्गुमेंट से ज़्यादा खाने की ज़रूरत है।"
हैरानी से अन्विका की आँखें फटी की फटी रह गईं। पल भर में उसका पूरा चेहरा टमाटर जैसे लाल हो गया। रुद्रांश ने उसके पेट से आती आवाज़ सुनी थी, यह उसके लिए कितनी एम्बेरेसमेंट की बात थी।
सच तो यही था कि उसने आज सुबह से कुछ नहीं खाया था। सुबह-सुबह, वह शादी के नाटक में उलझी थी, और इतनी स्ट्रेस्ड थी कि न तो खाने का मन किया और न ही मौका मिला। शादी के बाद, वह उसके एक साल के कॉन्ट्रैक्ट हसबैंड के दिए विला में चली गई। लेकिन वह वहाँ आराम भी नहीं कर पाई थी कि उसे काम के लिए अर्जेंटली बुला लिया गया...
रुद्रांश आँखों से इशारे करते हुए तिरछा मुस्कुराया, तो अन्विका ने झेंपते हुए उस पर से नज़रें हटा लीं।
"लेट्स गो, अन्विका।" रुद्रांश ने अपनी हथेली उसकी तरफ़ बढ़ा दी। अन्विका ने पहले अपनी हथेली से अपने पेट को छुआ, फिर नज़रें उठाकर रुद्रांश को देखा, जो आँखों से उसे हथेली थामकर बाहर आने का इशारा कर रहा था।
झिझकते हुए उसने उसके हाथ को अपने सामने से हटाया और बाहर आ गई। रुद्रांश के चेहरे के भाव कुछ बिगड़े, फिर उसने सर झटक दिया।
रुद्रांश ने बड़े ही स्टाइल के साथ अपनी कार की चाबियाँ पीछे खड़े बॉडीगार्ड को फेंक दीं। बॉडीगार्ड ने चाबियाँ कैच कर लीं, और कार लेकर वहाँ से चला गया। अन्विका आँखें बड़ी-बड़ी करके यह सब देखते हुए सिचुएशन को पूरी तरह से समझने की कोशिश कर रही थी।
"लेट्स गो, वी आर गेटिंग लेट।" रुद्रांश की फीनिक्स जैसी आँखों में हल्की मुस्कान झलकी, और वह मुड़कर दरवाज़े की ओर बढ़ गया।
अन्विका ने जल्दी से अपना सिर खुजलाया। उलझन भरी नज़रों से रुद्रांश को देखा। वह आगे बढ़ चुका था, पर अन्विका उसके साथ जाने में झिझक रही थी। उसने सर झटका, और मजबूरी में छोटे-छोटे कदमों से रुद्रांश के पीछे चल पड़ी।
रुद्रांश की स्पीड ज़्यादा नहीं थी, जिससे साफ़ ज़ाहिर था कि वह अन्विका का इंतज़ार कर रहा है, और उसके लिए ही धीरे-धीरे चल रहा है; लेकिन अन्विका को यह एहसास नहीं हुआ, और खुद में उलझी वह उसके पीछे-पीछे चल रही थी।
रायचंद इंडस्ट्रीज़ की सबसे बड़ी बेटी, अनाहिता, टॉप फाइव फेमस और सक्सेसफुल वुमेन्स में गिनी जाती थी। करोड़ों की मालकिन थी, जिसका गुरुर उसकी पर्सनैलिटी में झलकता था।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि रुद्रांश उससे मिलने इतनी प्रिपरेशन के साथ आया था, और इतना सीरियस लग रहा था।
अनाहिता एक यंग एंड ब्यूटीफुल लड़की थी, जो काफी अट्रैक्टिव पर्सनैलिटी रखती थी। वह पियानो भी बहुत अच्छा बजाती थी। करोड़ों लड़के उसके दीवाने थे, और उसकी एक झलक देखने के लिए तड़पते थे; लेकिन अफ़सोस, अनाहिता को किसी में कोई इंटरेस्ट नहीं था, उसकी पूरी दुनिया बस रुद्रांश मारवा के इर्द-गिर्द घूमती थी।
अन्विका, जो एंटरटेनमेंट की दुनिया में ज़्यादा इंटरेस्ट नहीं रखती थी, अक्सर न्यूज़पेपर में अनाहिता रायचंद की ख़बरें देखती थी, जहाँ वह रुद्रांश के चारों ओर घूमती दिखती थी।
अन्विका यही सब सोचते हुए रुद्रांश के साथ होटल में एंटर कर चुकी थी, जिसका एहसास खुद उसको नहीं था।
होटल का मैनेजर खुद उनके वेलकम के लिए होटल एंट्रेंस पर खड़ा था।
"मिस्टर मारवा, मिस अनाहिता आपका अपने रूम में वेट कर रही हैं।"
मैनेजर ने रुद्रांश को ग्रीट करते हुए बताया। उसने सिर हिलाया और आगे बढ़ गया। उसे देखती अन्विका एक पल के लिए ठहर गई, लेकिन फिर वह भी उसके पीछे चलने लगी।
उसके पास ऑप्शन ही नहीं था। रुद्रांश उसका क्लाइंट था, उसके ऑर्डर्स थे। उसकी पर्सनल स्टाइलिस्ट के तौर पर उसकी ड्यूटी थी कि जब उसे ज़रूरत हो, वह उसके पास मौजूद हो, और उसके ऑर्डर्स को फॉलो करे।
मैनेजर उनके साथ ही चल रहा था, और उन्हें गाइड भी कर रहा था।
"मिस रायचंद, मिस्टर मारवा आ चुके हैं।" मैनेजर ने गेट खोलते हुए कहा। उसके साथ रुद्रांश और अन्विका भी उस रूम में एंटर कर चुके थे।
अन्विका ने धीरे से झुकी पलकों को उठाकर ऊपर देखा। नज़र सीधे रूम में लगे किंग साइज़ सोफ़े पर एक पैर पर दूसरे पैर को चढ़ाए बैठी लड़की पर गई। लड़की ने डिज़ाइनर ड्रेस पहनी हुई थी, देखने में बेहद खूबसूरत थी, और बड़ी ही अदा से बैठी फैशन मैगज़ीन पढ़ रही थी।
मैनेजर की आवाज़ सुनकर, मिस अनाहिता मुस्कुराईं। मैगज़ीन हटाकर उसने नज़र उस तरफ़ घुमाई। रुद्रांश की निगाहों से निगाहें मिलते हुए उसकी मुस्कराहट गहरी हो गई; लेकिन जैसे ही उसने रुद्रांश के पीछे खड़ी अन्विका को देखा, उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए, और मुस्कुराते लब भी सिमट गए।
रुद्रांश ने अनाहिता के एक्सप्रेशन को देखकर भी पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया, और मुस्कुराते हुए अंदर चला आया। "मिस रायचंद, आई एम रियली सॉरी, मुझे आने में थोड़ा वक़्त लग गया, और आपको मेरा वेट करना पड़ा। आई होप कि आप माइंड नहीं करेंगी।"
अनाहिता की निगाहें अन्विका पर टिकी रहीं। उसने नज़रें घुमाकर रुद्रांश को देखा, और हल्के से मुस्कुरा दी। "मिस्टर मारवा, इस फ़ॉर्मेलिटी की कोई ज़रूरत नहीं है। आप ज़्यादा ही पोलाइट हो रहे हैं। मैं भी बस कुछ देर पहले ही आई हूँ, तो ज़्यादा वेट नहीं करना पड़ा मुझे।"
इसके बाद पल भर ठहरते हुए अनाहिता ने अन्विका की ओर इशारा करते हुए सवाल किया, "ये कौन हैं? मैंने कभी इन्हें आपके साथ नहीं देखा?"
अनाहिता ने अन्विका को ऐसे घूरा जैसे वह उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हो। ज़ाहिर सी बात थी कि रुद्रांश के साथ किसी लड़की को देखना उसे पसंद नहीं आया था। बेचारी अन्विका तो बेवजह ही इन दोनों के बीच फंस गई थी, जबकि उसकी तो कोई गलती ही नहीं थी।
उसने तुरंत ही वहाँ से जाने के लिए कदम बढ़ाया, पर रुद्रांश ने उसकी कलाई थामते हुए उसे रोक लिया। अन्विका ने चौंकते हुए पलटकर उसे देखा, और अनाहिता आँखें छोटी-छोटी करके दोनों को घूरने लगी।