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Dil hai tumhaara

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Muskan Gupta

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"ये कहानी है दो ऐसे अजनबियों की, जिनकी ज़िंदगियाँ अलग रास्तों पर चल रही थीं — न कोई मेल था, न कोई मंज़िल एक जैसी। पर किस्मत का खेल भी अजीब होता है। कभी वो आपको वहाँ ले जाती है जहाँ आप जाना ही नहीं चाहते, और कभी ऐसे लोगों से मिला देती है जिन्हें आपने...

Total Chapters (50)

Page 1 of 3

  • 1. Dil hai tumhaara - Chapter 1

    Words: 650

    Estimated Reading Time: 4 min

    घड़ी में सुबह के पाँच बज रहे थे। रीत सोकर उठी। रीत बिस्तर पर उठकर बैठी और अपने तीन साल के बेटे, आर्थिक को देखने लगी। आर्थिक सोते हुए बहुत प्यारा लग रहा था। प्यारी सी सूरत, गोरा रंग और गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, भूरे बाल; एक बार देखे कोई तो मन ना भरे, बार-बार देखने का मन करे, आँखें ना हटे, इतना प्यारा था आर्थिक। पच्चीस साल की रीत उसके बालों पर अपना हाथ फेरते हुए अपने बीते समय को याद कर रही थी। कैसे बीस साल की उम्र में ही उसके माता-पिता उसकी शादी के लिए लड़का देख रहे थे। रीत शादी नहीं करना चाहती थी।

    वह तो पढ़ना चाहती थी। कितना कहा उसने कि मुझे शादी नहीं करनी, मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ। पर उसके माता-पिता कहते कि शादी के बाद ससुराल वाले पढ़ाएँगे तुम्हें।

    रीत अपने घर में दूसरी नंबर पर थी। उससे बड़ा उसका भाई था। रीत के भाई की भी अभी शादी नहीं हुई थी। उसने भी अपनी बहन का साथ दिया था कि रीत तो अभी बीकॉम द्वितीय वर्ष में है, कम से कम उसकी पढ़ाई पूरी हो जाने दो। पर उसके माता-पिता कहाँ मानने वाले थे।

    रीत के पिता ने रीत की शादी अपने ऑफिस के दोस्त के बेटे, कर्ण से करा दी। कर्ण रीत को बचपन से जानता था और उसे पसंद भी करता था। रीत के ससुराल में सिर्फ़ कर्ण और उसके पिता थे। कर्ण ने रीत को आगे पढ़ने दिया। एक साल में रीत की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी। रीत अपने छोटे से परिवार में खुश थी।

    "मम्मा, आप उठ गईं?" आर्थिक ने आँखें अपने छोटे-छोटे हाथों से मलते हुए कहा।

    रीत आर्थिक की बात सुनकर जैसे होश में आई हो।

    "गुड मॉर्निंग, स्वीटहार्ट," रीत बोली।

    "गुड मॉर्निंग, मम्मा," आर्थिक बोला।

    "चलो बेबी, उठ जाओ," रीत मुस्कुराते हुए बोली।

    "मम्मा, आप इतनी जल्दी क्यों उठ गईं?" आर्थिक बोला।

    "बेबी, आप सोते हुए बहुत प्यारे लगते हो," रीत बोली।

    "चलो बेबी, जल्दी-जल्दी उठो, स्कूल के लिए देर हो जाएगी। जल्दी उठो, तैयार हो ना?"

    "ओके, मम्मा," आर्थिक बोला।

    रीत ने जल्दी से घर का काम खत्म किया और फिर आर्थिक को तैयार करने लगी।

    "मम्मा, मेरे पापा कहाँ हैं? मेरे सारे दोस्तों के पापा हैं," आर्थिक बोला।

    रीत उदास होती हुई बोली, "बेबी, आपके पापा बहुत दूर रहते हैं, इसलिए वे यहाँ नहीं आते हैं।"

    आर्थिक उदास होता हुआ बोला, "मम्मा, तो वे कब आएंगे? मैं कब पापा से मिल पाऊँगा?"

    रीत झूठी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए आर्थिक की तरफ़ देखते हुए बोली, "बहुत जल्द मिलोगे बेबी।"

    रीत आर्थिक को स्कूल वैन में बिठाकर उसे बाय बोलकर घर आ गई। घर पर उसने अपने लिए कॉफी बनाकर बालकनी में जाकर खड़ी होकर फिर से अपने बीते कल में चली गई।

    जब वह और कर्ण अपनी छोटी सी ज़िंदगी में खुश थे, उसे अभी भी याद है जब कर्ण को पता चला था कि रीत प्रेग्नेंट है। कर्ण कितना खुश था! उसने रीत को अपनी गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमा।

    "तुम देखना रीत, मैं अपने बच्चे को इस दुनिया की सारी खुशी दूँगा। उसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होगी," कर्ण रीत से बोला।

    कर्ण ने रीत के पेट पर हाथ रखकर बोला, "बेबी, आपके पापा आपसे प्रॉमिस करते हैं, जब आप इस दुनिया में आओगे ना, मैं हर वो चीज़ दूँगा जो आपको चाहिए होगी। आपको किसी चीज़ की कभी कमी नहीं होगी। आई प्रॉमिस बेबी।"

  • 2. Dil hai tumhaara - Chapter 2

    Words: 1507

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह के दस बज रहे थे। सभी कर्मचारी आ चुके थे, और पूरी बिल्डिंग में अफरा-तफरी मची हुई थी, जैसे कोई निरीक्षण दल आने वाला हो। सब तेजी से अपना काम निपटाने में लगे हुए थे। सब अपना सौ प्रतिशत कार्य पूरा करने में जुटे हुए थे। कई टेबलों पर कर्मचारियों का समूह लगा हुआ था। ये वे थे जिनका काम लगभग पूरा हो चुका था। सभी के चेहरों पर खुशी के भाव थे। पिछले कुछ दिनों से कंपनी के शेयर भाव आसमान छू रहे थे; यह जाहिर तौर पर खुशी की बात थी।

    तभी बिल्डिंग के सामने एक चमचमाती हुई काली गाड़ी आकर खड़ी हुई। गाड़ी का गेट खुलने से पहले ही ऑफिस में लगा अलार्म जोर-जोर से बजने लगा, जो सभी कर्मचारियों को यह बताने के लिए काफी था कि कंपनी के मालिक आ रहे हैं। अलार्म सुनते ही सारे कर्मचारी तेजी से अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए। सबके हाथों में बधाई कार्ड और एक फूल था, जिसे उन्होंने अपनी-अपनी डेस्क के आगे रख दिया था।

    गाड़ी के ऑफिस के आगे रुकते ही गार्ड ने तेजी से कार का दरवाजा खोला और कार से पैंतीस या सैंतीस वर्षीय एक युवक निकला। वह छह फीट से अधिक लंबा, मस्कुलर बॉडी वाला, थोड़ी हल्की बढ़ी हुई दाढ़ी वाला और चेहरे पर दुनिया भर की कठोरता लिए हुए था। सिर से पैर तक उसने काले रंग का ही कॉम्बिनेशन पहना हुआ था। बस हाथ में चमचमाती हुई सोने की चेन वाली राडो घड़ी और काले सूट पर लगा सोने का कलम, जिसमें हीरे जड़े हुए थे, और उन हीरों से ही उस पर 'R' लिखा हुआ था।

    युवक ने एक नज़र सामने खड़ी दस मंजिला इमारत पर डाली और सीधे ऑफिस गेट की ओर चला गया। ऑफिस तक पहुँचने के लिए उसने पर्सनल लिफ्ट का उपयोग किया। यह था मिस्टर रणविजय सिंह राणावत, रॉयल राजपूताना के एमडी। पिछले लगभग पाँच वर्षों से वे रॉयल राजपूताना के एमडी के पद पर निर्विरोध चुने जा रहे थे। पहले तो उनकी कंपनी केवल भारत की शीर्ष दस कंपनियों में आती थी, लेकिन जब से उन्होंने इस कंपनी का कार्यभार संभाला है, तब से लेकर आज तक कंपनी ने सिर्फ़ सफलता के ऊँचे मुकाम को ही छुआ है; जिसका परिणाम है कि आज यह विश्व की प्रमुख कंपनियों में से एक है। पिछले एक सप्ताह से वे विश्व दौरे पर निकले हुए थे और इसी दौरान उन्होंने लगभग चार कंपनियों को ओवरटेक किया था और कई कंपनियों के साथ अच्छे व्यावसायिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे इस पूरे उद्योग समूह को काफी फायदा होने वाला था। इस कारण इस समय बाजार में उनकी कंपनी के शेयर इतनी तेजी से उछले थे कि उन्होंने पिछले बीस वर्षों से लगातार शीर्ष स्थान पर रहने वाली कंपनी को पीछे छोड़ दिया था।

    सातवें फ्लोर पर उनका ऑफिस था। लिफ्ट सीधे सातवें फ्लोर पर रुकी। गेट के खुलते ही दरवाज़े के ठीक सामने उनकी सचिव, मिस आर्या (उम्र 26 वर्ष), खड़ी थी। उसने गुड मॉर्निंग विश किया और कंपनी के नए मुकाम के लिए बधाई दी। मिस्टर रणावत ने उनकी बधाई का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा और तेजी से अपने केबिन की ओर बढ़ चले। आर्या उनके पीछे भागती हुई, उनसे आज का शेड्यूल बता रही थी। केबिन पर पहुँचकर मिस्टर रणावत ने आर्या को देखा। आर्या ने उनकी आँखों के इशारे को समझ लिया और उसने तेजी से सिर हिलाकर कहा,

    "ओके सर, मैं लाती हूँ।"

    मिस आर्या ने एक गहरी साँस छोड़ी और मिस्टर रणावत के लिए कॉफ़ी बनाने के लिए चली गई।

    "हाय मिस आर्या।" कॉफ़ी लेकर जैसे ही वह मुड़ी, उसके पीछे सार्थक खड़ा था।

    "अरे! हेलो! तुमने तो मुझे डरा दिया!" आर्या घबराते हुए बोली। किसी तरह उसने मग से कॉफ़ी छलकाने से बचाया।

    सार्थक: क्या हुआ मिस आर्या? सब ठीक तो है ना?

    आर्या: "जब कोई बात करेगा तो कुछ सामने वाले को पता चलेगा कि उस इंसान को चाहिए क्या; आँखों के इशारों से कैसे पता चलेगा?" आर्या मुँह बनाते हुए बोली।

    सार्थक: "अच्छा, आप चाचू की बात कर रही हैं? वो ऐसे ही हैं। पता नहीं चाचू को क्या हो गया है। पहले वो ऐसे नहीं थे। बहुत ही हँसमुख और प्यारे थे वो। पर पता नहीं क्यों अचानक से वो यहाँ अमेरिका आ गए। इसलिए मैं भी पढ़ाई के लिए अमेरिका आ गया चाचू के पास, पर यह तो चाचू का अलग रूप देखा।"

    आर्या: "तो अब वो ऐसे क्यों हो गए हैं सार्थक सर?"

    सार्थक: "मुझे नहीं पता। मैं छोटे से जानता हूँ, वो ऐसे तो नहीं थे।"

    सार्थक रणविजय के दोस्त आदित्य के बड़े भाई का बेटा था, पर वह अपने चाचा से ज़्यादा रणविजय से बहुत करीब था।

    आर्या: "मिस्टर रणावत की कोई गर्लफ्रेंड है?"

    सार्थक हँसते हुए बोला: "आपको लगता है मिस आर्या कि चाचू के गुस्से को देखकर कोई लड़की उनकी गर्लफ्रेंड बनेगी? अच्छा, तो आप ही हमारे चाचू की गर्लफ्रेंड बन जाइए।"

    आर्या सार्थक को हाथ मारते हुए बोली: "क्या आप भी सर! मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी। अच्छा सर, आप यहाँ आए, कोई काम था क्या?"

    सार्थक: "क्यों? मैं ऐसे नहीं आ सकता हूँ क्या मिस आर्या?"

    आर्या: "नहीं सर, आप आ सकते हैं। मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था।"

    सार्थक हँसते हुए बोला: "मैं मज़ाक कर रहा था मिस आर्या। वो मैं चाचू को पार्टी का कार्ड देने आया था।"

    आर्या: "पर सर तो ज़्यादा पार्टियों में जाते ही नहीं हैं। बल्कि वो तो बिज़नेस पार्टी में भी कुछ देर ही रुकते हैं।"

    सार्थक: "मिस आर्या, आप तो चाचू को बहुत अच्छे से जानती हैं।"

    आर्या: "ऐसा नहीं है सर। बस उनके साथ रहती हूँ तो उनके बारे में कुछ बातें पता चल जाती हैं। मिस्टर रणावत को देखकर ऐसा लगता है कि वो अपने दिल में बहुत दर्द लिए हैं।"

    सार्थक: "क्या आप चाचू को पसंद करती हैं?"

    आर्या झिझकते हुए बोली: "अरे नहीं सर! ऐसा कुछ नहीं है।"

    रणविजय अपने लैपटॉप पर अपनी कंपनी के शेयर देख रहा था। आर्या ने दरवाज़े पर खटखटाया।

    रणविजय लैपटॉप में ही देखते हुए बोला: "यस, कम इन।"

    आर्या अंदर आते हुए टेबल पर कॉफ़ी रख दी और बोली: "सर, सार्थक सर आए हैं।"

    रणविजय लैपटॉप में देखते हुए ही बोला: "हाँ, तो अंदर भेज दीजिए। और ये भी कोई पूछने की बात है? आपको पता नहीं है सार्थक और आदित्य, इन दोनों में से कोई भी बिना परमिशन के मेरे ऑफिस आ सकते हैं।"

    आर्या डरते हुए बोली: "सर, मैंने उनसे कहा था, पर वो नहीं माने।"

    सार्थक अंदर आते हुए बोला: "हेलो चाचू, कैसे हैं आप?"

    रणविजय मुस्कुराते हुए बोला: "हेलो सार्थक। और आपको बाहर इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत थी?"

    सार्थक हँसते हुए बोला: "ओके चाचू। ये लीजिए।"

    रणविजय उस कार्ड की ओर देखते हुए बोले: "ये क्या है?"

    सार्थक: "चाचू, घर पर पार्टी है और चाचू ने कहा है कि आपको आना ही होगा।"

    रणविजय थोड़ा नाराज़ होते हुए बोला: "ये बताइए कि आप ये देने के लिए यहाँ आए थे? ये आप मुझे घर पर भी तो दे सकते थे।"

    सार्थक: "चाचू, मेरा होस्टल आपके घर से दूसरी तरफ़ है, तो मुझे उल्टा पड़ता। इसलिए मैंने सोचा कॉलेज जाते वक़्त आपको देते हुए जाऊँ।"

    रणविजय अपनी फ़ाइल में देखते हुए बोला: "आप होस्टल में क्यों गए? हमारा घर छोटा पड़ गया क्या? आपको जब हमारा घर है, तो आप होस्टल में क्यों गए?"

    सार्थक मुँह बनाते हुए बोला: "तो मैं क्या करता चाचू? मैं यहाँ आपके पास रहने आया था, पर आप तो एक महीने के लिए बाहर चले गए थे। तो मैं अकेले उस घर में क्या करता? इसलिए मैं होस्टल में रहने लगा।"

    रणविजय मुस्कुराते हुए बोला: "ठीक है, लेकिन मैं अब आ गया हूँ, तो आज ही आप अपना सामान लेकर हमारे घर में शिफ्ट हो जाइए और अब मैं कुछ नहीं सुनूँगा, ओके।"

    सार्थक हँसते हुए बोला: "ओके चाचू, मैं आज ही अपना सारा सामान लेकर आपके घर में शिफ्ट हो जाऊँगा।"

    सार्थक उठते हुए बोला: "ओके चाचू, मैं चलता हूँ। कॉलेज के लिए लेट हो रहा हूँ।"

    रणविजय सार्थक को अपनी कार की चाबी देते हुए बोला: "ये मेरी नई कार की चाबी।"

    सार्थक खुश होते हुए रणविजय को धन्यवाद बोला और जाते हुए आर्या को फ़्लाइंग किस देते हुए उछलते हुए वहाँ से चला गया। आर्या यह देखकर मुस्कुरा दी।

    रणविजय फिर से अपने लैपटॉप में देखते हुए आर्या से बोला: "मिस आर्या, मैं आपको यहाँ काम की सैलरी देता हूँ, ये सब करने की। और सार्थक अभी नादान है और यहाँ पढ़ने आया है। और आप उससे दूर रहिएगा और अपने काम पर ध्यान दीजिए, ओके।"

    आर्या हाँ में सिर हिलाते हुए बोली: "सॉरी सर।"

    ये बोलकर आर्या वहाँ से चली गईं।

    रणविजय गुस्से में अपने लैपटॉप में देखा और फिर चिल्लाते हुए बोला: "तुम्हें पैसा चाहिए था ना? इस पैसे के लिए ही तुमने मेरे प्यार को ठुकराया था ना? आ रहा हूँ मैं, मुझे मेरा प्यार लौटा देना।"

  • 3. Dil hai tumhaara - Chapter 3

    Words: 988

    Estimated Reading Time: 6 min

    साक्षी ने रीत की फ़ोन पर बातचीत सुनी। रीत परेशान थी।

    "साक्षी, मुझे नौकरी की ज़रूरत है... तुम मुझे कोई नौकरी दिलवा सकती हो?" रीत ने बेचैनी से कहा।

    साक्षी (उम्र २५), रीत की बचपन की दोस्त, उसकी परिवार का हिस्सा थी। वे स्कूल की दोस्त थीं।

    "क्यों जी? तुम्हारी उस नौकरी में क्या हुआ? फिर से वही प्रॉब्लम आ गई क्या?" साक्षी ने मज़ाकिया लहजे में पूछा।

    रीत चुप रही। साक्षी गंभीर स्वर में बोली, "क्या हुआ रीत? कोई ज़्यादा बड़ी प्रॉब्लम है क्या?"

    कुछ देर चुप रहने के बाद रीत ने कहा, "हाँ साक्षी, वही प्रॉब्लम है। जहाँ भी मैं नौकरी के लिए जाती हूँ, वे मेरी योग्यता नहीं देखते, बल्कि मुझे एक अकेली औरत देखकर अपनी हवस मिटाने का सोचते हैं। उनकी आँखों में जब मैं अपने लिए गलत नज़र देखती हूँ, तो मन करता है कि मैं खुद की जान ले लूँ। पर आर्थिक स्थिति के कारण जीना है मुझे। अपने बच्चे को उसके पिता की कमी नहीं महसूस होने देना चाहती हूँ। पर मैं क्या करूँ साक्षी?"

    रीत रोने लगी।

    रीत बहुत सुंदर थी। गुलाबी गाल, बड़ी भूरी आँखें, गुलाब के पत्तों जैसे होंठ। उसके होंठों पर हँसी आती तो वो और भी प्यारी लगती थी। लंबे बाल जो उसकी कमर तक आते थे। रीत एक बच्चे की माँ थी, पर उसे देखकर कहा नहीं जा सकता था कि उसका कोई बच्चा है। पर उसकी आँखों में एक उदासी हमेशा रहती थी। उसके होंठों पर पता नहीं कब से मुस्कान नहीं आई थी।

    साक्षी रीत के दुःख को समझती थी।

    "रीत, चुप हो जाओ, रो मत। मैं जिस रीत को जानती हूँ, वो इतनी कमज़ोर नहीं है कि इतनी जल्दी हार मान जाए। तुमको इस दुनिया को दिखाना है रीत, कि एक सिंगल मदर अपने बच्चे का बिना किसी की हमदर्दी के ख्याल रख सकती है। वरना तुम्हारे माँ-बाप जीत जाएँगे, कि तू अकेले अपने बच्चे का ख्याल नहीं रख सकती और तुझे किसी और से शादी के लिए बोलेंगे, या तेरा आर्थिक तुझसे छीन लेंगे। तू ऐसे हार नहीं सकती रीत, मेरी रीत नहीं हार सकती, समझी तू?" साक्षी ने हिम्मत बंधाया।

    "हाँ! साक्षी, तुम सही कह रही हो। मैं ऐसे हार नहीं मान सकती। मैं अपने माता-पिता और पूरी दुनिया को दिखा दूँगी कि मैं अकेले अपने बच्चे का ख्याल रख सकती हूँ।" रीत ने अपने आँसू पोछते हुए कहा।

    "ये हुई ना मेरी रीत वाली बात! तू टेंशन मत ले, मैं तेरे लिए नौकरी देखती हूँ। पर तुझे थोड़ा इंतज़ार करना होगा।" साक्षी मुस्कुराई।

    रीत ने फ़ोन रख दिया।


    सिमरन (रणविजय की माँ) ने रणविजय से फ़ोन पर बात की।

    "बेटा, आप कब मुंबई आ रहे हो? आपको देखे हुए मुझे कितने साल हो गए हैं।" सिमरन ने कहा।

    "माँ, मैं जल्दी ही आ रहा हूँ। अब जब आपने इतने साल मेरा इंतज़ार किया है, तो थोड़े दिन और लीजिए।" रणविजय ने कहा।

    "ठीक है बेटा। अब मैं और क्या बोलूँ? जैसा आप ठीक समझो। लीजिए, अपने पापा से बात कर लीजिए।" सिमरन ने रणधीर जी (रणविजय के पिता) को फ़ोन दिया।

    "हेलो! बेटा, कैसे हो आप?" रणधीर जी ने कहा।

    "मैं ठीक हूँ पापा। आप कैसे हैं? और हमारा बिज़नेस कैसा चल रहा है?" रणविजय ने पूछा।

    "बेटा, मैं ठीक हूँ, और बिज़नेस भी अच्छा चल रहा है। वैसे बेटा, आप कब आ रहे हो? देखो बेटा, हमने आपको पाँच साल दिए थे, अब आप वापस आ जाइए। आखिर कब तक आप उसे ढूँढ़ेंगे?" रणधीर जी ने हँसते हुए कहा।

    "पापा, जहाँ आपने मुझे पाँच साल दिए थे, तो बस एक महीना और दे दीजिए। मैं एक बार और कोशिश करना चाहता हूँ। बस एक बार और उसे ढूँढ़ने की कोशिश करना चाहता हूँ, बस उसे एक बार मिलना चाहता हूँ। बस एक पापा, अगर वो मुझे इस बार नहीं मिली, तो आप जहाँ बोलोगे, मैं वहाँ शादी कर लूँगा। ये वादा रहा मेरा।" रणविजय ने कहा।

    रणधीर जी ने फ़ोन स्पीकर पर रखा था। सिमरन जी ने ये सुनकर कहा, "ठीक है बेटा, हम आपको एक और महीना देते हैं। और अब वो नहीं मिली तो आपको हमारी पसंद की लड़की से शादी करनी होगी।"

    "ठीक है माँ, अब मैं फ़ोन रखता हूँ।" रणविजय ने कहा और फ़ोन रख दिया।

    रणविजय के फ़ोन रखने के बाद सिमरन जी ने रणधीर जी से कहा, "आप एक बार फिर से ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए ना। हमारा बेटा अभी भी उसी से प्यार करता है।"

    रणधीर जी गंभीर स्वर में बोले, "आपको क्या लगता है? मैंने उसे बहुत ढूँढ़ा है। कोई शहर, कोई गाँव नहीं होगा जहाँ मैंने उसे ढूँढ़ा ना हो। पर पता नहीं उसे आसमान निगल गया या ज़मीन खा गई। कहीं उसकी कोई ख़बर नहीं मिली।"

    "पता नहीं क्यों वो रणविजय को छोड़कर चली गई। रणविजय उसे बहुत प्यार करता है।" सिमरन जी उदास स्वर में बोलीं।

    रणधीर जी कुछ कहा नहीं, बस हाँ में सर हिला दिया।


    "रणविजय, तुम मुझे कितना प्यार करते हो?" आशियां ने पूछा।

    रणविजय ने उसे अपनी बाहों में पकड़ते हुए कहा, "बहुत प्यार करता हूँ। क्यों, कोई शक है? क्यों?"

    आशियां ने रणविजय की बाहों को खोलते हुए कहा, "हाँ है शक। मुझे पकड़ के दिखाओ तो मानूँ।"

    वह हँसते हुए आगे भाग रही थी और रणविजय उसके पीछे भाग रहा था।

    "अगर पकड़ लिया तो क्या दोगी तुम मुझे?" रणविजय ने पूछा।

    "इतनी कीमती चीज़ तो तुमको दे ही दी है, अपना दिल तो दे दिया है। और क्या लोगे रणविजय?" आशियां हँसते हुए बोली।

    उसकी हँसी रणविजय के कानों में गूंज रही थी। उसने अचानक आँखें खोलीं और कहा, "मैं तुमको ढूँढ़ के रहूँगा आशियां, क्योंकि ये दिल है तुम्हारा।"

  • 4. Dil hai tumhaara - Chapter 4

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक महीने बाद

    आर्थिक, आप जल्दी क्यों नहीं उठते? मैंने आपको कितनी बार कहा है...कि रात में फ़ोन मत चलाओ, पर आप मेरी बात मानते ही नहीं हो!

    रीत गुस्से में आर्थिक को पकड़कर चलते हुए बोल रही थी।

    आर्थिक अपने छोटे-छोटे पैरों से रीत के कदम से कदम मिलाने की कोशिश करते हुए चल रहा था और मायूस आवाज़ में बोला, "सॉरी मम्मा, अब से ये गलती नहीं होगी।"

    रीत रूकी और नीचे बैठ गई। मुस्कुराते हुए बोली, "सॉरी स्वीटहार्ट, आपसे मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था...पर मैं क्या करूँ, बेटा? बहुत मुश्किल से मुझे ये जॉब मिली है और आज पहला दिन है...इसलिए मैं टाइम पर पहुँचना चाहती हूँ...इसलिए थोड़ा परेशान हूँ। सॉरी बेटा..."

    आर्थिक मुस्कुराते हुए बोला, "सॉरी मम्मा, आप परेशान मत हो, सब अच्छा होगा।"

    रीत मुस्कुराई और उठती हुई बोली, "यस स्वीटहार्ट, सब अच्छा होगा। चलें जल्दी, आपको स्कूल छोड़कर मुझे ऑफिस पहुँचना है।"


    रीत बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार कर रही थी।

    तभी बहुत तेज कार रीत के बगल से निकली और जमीन में पड़ा कीचड़ रीत के ऊपर जा उछला। रीत पूरी की पूरी कीचड़ से लथपथ हो गई।

    रीत को बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया। पहले से ही वो लेट हो रही थीं और उसके ऊपर से कीचड़ में लथपथ हो गईं।

    वो गुस्से में चिल्लाई, "ओए! अंधे हो क्या? दिखाई नहीं देता क्या? अगर कार चला नहीं पाते हो तो बैलगाड़ी ले लो! पैदल चलने वालों को तुम सब इंसान नहीं समझते हो क्या?!"

    वो कार थोड़ी दूर पर रूकी और फिर पीछे रीत के बगल में आकर खड़ी हो गई।

    ड्राइविंग सीट की तरफ़ से गेट खुला और एक 22-23 साल का युवक निकला। रीत को देखते हुए बोला, "ओह सॉरी मैडम, गलती मेरी थी। मुझे जल्दी से कॉलेज पहुँचना था। रुकिए, मैं पानी लाता हूँ।"

    वो युवक अपनी कार से पानी की बोतल निकाली और रीत को बोतल दे दी।

    रीत गुस्से में उसे खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी।

    वो युवक मन में बोला, "ओह गॉड! शी इज़ किलिंग मी!"

    रीत ने पानी से अपना चेहरा साफ़ करने लगा और वो युवक उसे देखता ही रह गया।

    वो युवक मन में बोला, "ओह गॉड! शी इज़ वेरी ब्यूटीफुल गर्ल...हाँ यार! भारत में ही इतनी सुंदर लड़कियाँ होती हैं! इतनी सुंदर लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। ना कोई मेकअप, बस आँखों में काजल के सिवा कुछ नहीं है। कितना मासूम चेहरा है!"

    रीत उसे अपनी तरफ़ घूरते देखकर हाथ हिलाती हुई बोली, "ओह हेलो मिस्टर! कहाँ खो गए?"

    वो युवक रीत की आवाज़ से होश में आया और अपनी नज़र उस पर से हटाते हुए बोला, "सॉरी मैडम। वैसे आप चाहें तो मैं आपको छोड़ सकता हूँ।"

    रीत उसकी तरफ़ देखते हुए बोली, "नहीं, मैं खुद चली जाऊँगी। धन्यवाद।"

    उस युवक ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला, "वैसे मेरा नाम सार्थक है और मैं अभी कुछ दिन पहले ही इंडिया आया हूँ। इससे पहले मैं अमेरिका में रहता था और अभी मुझे यहाँ ज़्यादा कुछ पता नहीं है। इसलिए सॉरी।"

    रीत उसे घूरते हुए आराम से बोली, "मिस्टर सार्थक, ये इंडिया है, ना कि आपका अमेरिका। यहाँ अमेरिका से ज़्यादा पब्लिक है...तो जरा कार धीरे चलाइएगा। नमस्ते।"

    इतना बोलते ही रीत बस पर चढ़ गई और सार्थक रीत को जाते हुए देखने लगा और मन में बोला, "खुद तो गई ही, साथ में मेरा दिल भी ले गई...हाय! क्या लड़की थी! भगवान जी! प्लीज़ इस लड़की से आप मुझे फिर से मिलवा देना।"


    मिस्टर सक्सेना, क्या हुआ? कुछ पता चला?

    मिस्टर सक्सेना रणविजय के मैनेजर थे और वो रणविजय के बहुत ही भरोसेमंदों में से एक थे। इसलिए उसने मिस्टर सक्सेना से आशिया का पता लगाने को कहा था।

    रणविजय ऑफिस में जाते हुए बोला, "क्या कुछ पता चला मिस्टर सक्सेना, उसके बारे में?"

    मिस्टर सक्सेना रणविजय के कदमों से कदम मिलाते हुए बोले, "जी! कुछ नहीं पता चला सर। मैंने हर जगह पता लगवाया सर, पर उनका कहीं पता नहीं चला। यहाँ तक कि मैं खुद इंडिया गया था। जहाँ वो रेंट पर रहती थीं, वहाँ के मकान मालिक से पूछा तो उन्होंने बताया था कि वो पाँच साल पहले ही यहाँ से चली गई थी...सर, मैंने उनके दोस्तों से भी बात की थी पर उनको भी कुछ नहीं पता था...पर सर..."

    रणविजय उनकी बात काटते हुए बोला, "पर क्या मिस्टर सक्सेना...?"

    मिस्टर सक्सेना बोले, "उनके एक दोस्त का बर्ताव बहुत ही अलग था। वो उनकी स्कूल की दोस्त थी...और जब मैंने उनके कॉलेज के दोस्तों से बात की तो वो नॉर्मल तरीके से बात की थी, पर उनके स्कूल के दोस्त बहुत ही अलग बर्ताव कर रही थी। उनको देखकर लग रहा था जैसे वो कुछ छिपा रही थी।"

    रणविजय उनकी तरफ़ देखते हुए बोले, "तो उसने कुछ बताया...?"

    मिस्टर सक्सेना ना में सर हिलाते हुए बोले, "नहीं सर, उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया। बल्कि उन्होंने तो मुझसे बात करने साफ़-साफ़ मना कर दिया और मेरे मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया।"

    "मिस्टर सक्सेना, मुझे उस लड़की के बारे में पूरी की पूरी जानकारी चाहिए।"

    मिस्टर सक्सेना ने हाँ में सर हिला दिया।

    रणविजय अपना लैपटॉप ऑन करते हुए बोले, "ठीक है, आप जा सकते हैं। पर याद रखिएगा ये बात आप के सिवा किसी और को ना पता चले।"

    मिस्टर सक्सेना हाँ में सर हिलाते हुए बोले, "ओके सर।"

    मिस्टर सक्सेना गेट खोलने वाले थे, तभी रणविजय पीछे से बोला, "मिस्टर सक्सेना..."

    मिस्टर सक्सेना रणविजय की तरफ़ देखते हुए बोले, "जी सर..."

    रणविजय लैपटॉप में देखते हुए बोला, "मेरे लिए मुम्बई की एक टिकट बुक करा दीजिएगा।"

    मिस्टर सक्सेना हाँ में सर हिलाते हुए बोले, "ओके सर, मैं आज ही आपके लिए मुम्बई की टिकट बुक करा देता हूँ।"

  • 5. Dil hai tumhaara - Chapter 5

    Words: 2128

    Estimated Reading Time: 13 min

    रीत ने नींद में अपना सिर इधर-उधर हिलाया और कुछ बड़बड़ाया। वह अचानक उठी और चिल्लाई, "आशू... आशू! मैं अपना वादा पूरा करूँगी आशू... मैं तुम्हारी आत्मा को मुक्ति दिलाऊँगी आशू..."

    रीत पूरी तरह पसीने से लथपथ थी। उसकी दिल की धड़कन तेज़ थी। रीत ने दीवार पर लगी घड़ी देखी; सुबह के दो बज रहे थे।

    रीत बहुत घबराई हुई थी। उसने अपना पसीना पोंछते हुए धीरे से कहा, "सपना था... मुझे कुछ भी करके उसे ढूँढ़ना होगा...वरना कभी भी मैं चैन से नहीं जी पाऊँगी..."

    रीत ने बेड के पास रखे टेबल पर पानी का गिलास उठाकर जल्दी-जल्दी पानी पिया। अब रीत सामान्य हो गई थी। उसने गिलास टेबल पर रख दिया और अपने सिर को दीवार से लगाकर ऊपर छत की तरफ देखा।

    रीत मन ही मन बोली, "कैसे उसको ढूँढ़ूँ? मैं क्या करूँ? मैंने आशू से जो वादा किया है... उसको कैसे पूरा करूँ?" रीत यही सब सोच रही थी। बहुत देर तक रीत ऐसे ही सोचती रही।

    रीत ने अपने बगल में सो रहे आर्थिक के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "आशू, मैंने जो तुमसे वादा किया था, वो मैं हर हाल में पूरा करूँगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, मैं करूँगी।"

    रीत ने आर्थिक को अच्छे से कंबल ओढ़ाया और बेड से उतरकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। खिड़की से आती ठंडी हवा सीधा उसके चेहरे पर लग रही थी। खिड़की से बाहर सिर्फ़ अँधेरा ही दिख रहा था; अँधेरे के कारण बाहर की सड़क भी नहीं दिख रही थी। उस अँधेरे ने उस सड़क को पूरी तरह ढँक रखा था।

    रीत धीरे से बड़बड़ाती हुई बोली, "जैसे इस अँधेरे ने इस सड़क को अपने कब्ज़े में कर रखा है... वैसे ही मेरा जीवन भी इस अँधेरे में आ चुका है। बस फ़र्क इतना है कि यह अँधेरा इस सड़क को ज़्यादा देर तक अपने चंगुल में नहीं रख सकता है, क्योंकि कुछ देर में सूरज की किरणें इस अँधेरे को दूर कर देंगी। पर मेरे जीवन में जो अँधेरा है... उसे कोई सूरज की किरण दूर नहीं कर सकती।"

    रीत ने एक लंबी साँस छोड़ी और आँखें बंद करके बाहर से आती ठंडी हवा को महसूस करते हुए अपनी पुरानी यादों को याद करने लगी।

    जब उसका सातवाँ महीना चल रहा था, वह कर्ण से ज़िद करने लगी कि उसे अभी आइसक्रीम खानी है।

    कर्ण रीत से इतना प्यार करता था कि वह उसकी कोई बात नहीं रोक सकता था।

    कर्ण ने रीत से कहा कि वह आइसक्रीम लेकर आता है, पर रीत ज़िद करने लगी कि उसे भी उसके साथ चलना है। कर्ण ने बहुत समझाया कि इस हालत में उसे इतनी रात को बाहर नहीं निकलना चाहिए, पर रीत कहाँ किसी की सुनने वाली थी।

    कर्ण को रीत के आगे हारना पड़ा और यही रीत की सबसे बड़ी गलती थी। उसने अपने जीवन को अपनी ज़िद के कारण बर्बाद कर दिया था।

    रीत ने ये सब याद करते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह मन ही मन बोली, "उस रात को मैं कभी नहीं भूल सकती। वो काली रात मेरे जीवन को काला करके चली गई। उस रात ने मेरा परिवार मुझसे छीन लिया, मुझे बर्बाद कर दिया।"

    "ऐसे क्या देख रहे हो तुम रणवीर?"

    रणविजय जो आशियां की आँखों को प्यार से देख रहा था, आशियां के बालों को अपने हाथों से उसके कान के पीछे करते हुए प्यार से बोला, "तुम्हारी बड़ी-बड़ी आँखों को देखकर एक शायरी याद आ गई।"

    आशियां रणविजय के हाथ को अपने बालों से हटाते हुए उछलती हुई उसके हाथ को पकड़ते हुए बोली, "तो सुनाओ ना रणवीर, मेरी आँखों में ऐसी क्या बात है? मुझे भी जानना है। अब सुनाओ भी ना।"

    रणविजय उसे अपनी बाहों में भरते हुए बोला, "ठीक है बाबा, सुनाता हूँ।" उसने आशियां को अपनी तरफ़ खींच लिया और उसकी आँखों में खोता हुआ बोला:

    "ये जो निगाहों से हमारे दिल को
    हलाल करते हों,
    करते तो वैसे जुर्म हों लेकिन...
    कमाल करते हों..."

    आशियां बहुत सुंदर थी; बड़ी-बड़ी पलकों वाली कत्थई रंग की आँखें, गोल चेहरा, रंग बिल्कुल दूध जैसा सफ़ेद, नाक छोटी सी पर उसके चेहरे पर फ़िट, होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे पतले और उस पर गालों के डिम्पल, जो उसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देते थे। बहुत सुंदर थी वह। इसलिए पहली नज़र में ही रणविजय का दिल उस पर आ गया था। वह अनाथ थी; इस दुनिया में उसका रणविजय के सिवा कोई और नहीं था।

    आशियां रणविजय की शायरी सुनते ही उछलते हुए बोली, "वाह रणवीर! तुम कितनी अच्छी शायरी बोलते हो! तुमको तो शायर होना चाहिए था! कहाँ तुम मेरे प्यार में पड़ गए!" आशियां मुँह बनाते हुए वहाँ से उठकर भागते हुए बोली।

    रणविजय अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रखते हुए उसे घूरते हुए बोला, "अच्छा जी, रुको, बताता हूँ मुझे क्या होना चाहिए।"

    आशियां अपना अँगूठा रणविजय को दिखाते हुए बोली, "पहले पकड़ के दिखाओ, तब देखूँगी कि तुम्हें क्या होना चाहिए।" इतना बोलते ही वह जोर-जोर से हँसने लगी और रणविजय ने अपने हाथों से आशियां की कमर को पकड़कर उसे अपनी गोद में उठा लिया और दोनों हँसने लगे।

    "सर, हम लैंड हो गए हैं।"

    रणविजय ने झटके से अपनी आँखें खोली तो देखा कि सामने मिस्टर सक्सेना उसके पास खड़े थे और उससे बोल रहे थे, "सर, हम मुंबई लैंड हो गए हैं।"

    रणविजय ने हाँ में सर हिला दिया और उठते हुए बोला, "मिस्टर सक्सेना, आपने मेरे घर पर फ़ोन कर दिया है कि मैं आ रहा हूँ?"

    मिस्टर सक्सेना ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "जी सर, मैंने आपके घर पर फ़ोन कर दिया है कि आप आ रहे हैं।"

    रणविजय कार में बैठते हुए बोला, "और जो मैंने आपको काम दिया था, वो हुआ कि नहीं?"

    मिस्टर सक्सेना कार की आगे वाली सीट पर बैठे हुए बोले, "यस सर, आपने जो कहा, मैंने पूरा पता लगा लिया है सर।"

    रणविजय मोबाइल चलाते हुए बोला, "गुड, मिस्टर सक्सेना! तो बताइए कि क्या पता चला है उस लड़की के बारे में? उसका नाम, पता, सब कुछ बताइए आप हमें।"

    मिस्टर सक्सेना अपना सर पीछे करते हुए बोले, "सर, उसका नाम रीत शर्मा है।"

    रणविजय का ध्यान मोबाइल से हट गया और वह हैरान होते हुए बोला, "क्या नाम बताया आपने?"

    मिस्टर सक्सेना आगे देखते हुए बोले, "सर, रीत शर्मा। क्यों सर, आप जानते हैं क्या?" मिस्टर सक्सेना पीछे बैठे रणविजय को देखते हुए बोले।

    रणविजय फिर से अपने मोबाइल को चलाते हुए रूखी आवाज़ में बोला, "नहीं, मैं नहीं जानता किसी रीत शर्मा को।"

    रणविजय सख्त आवाज़ में बोला, "और क्या पता है इसके बारे में मिस्टर सक्सेना?"

    मिस्टर सक्सेना एक फ़ाइल रणविजय के हाथ में देते हुए बोले, "सर, इसमें मिस रीत की सारी जानकारी है। आप घर पर आराम से पढ़ लीजिएगा, क्योंकि आपका घर आने वाला है, तो मैं अभी आपको इसके बारे में सब कुछ नहीं बता पाऊँगा।"

    रणविजय ने मिस्टर सक्सेना से वह फ़ाइल लेते हुए हाँ में सर हिला दिया।

    "अरे रामू काका, जल्दी से पूजा की थाली लेकर आओ ये..."

    सिमरन जी गेट के पास जाते हुए चिल्ला रही थीं।

    सिमरन जी गेट के पास आते हुए बोलीं, "रुक जा बेटा ज़रा, तेरी आरती तो उतार लूँ। कितने सालों बाद देख रही हूँ तुझे मैं।" सिमरन जी अपने आँसू पोंछते हुए बोलीं।

    रणविजय चिढ़ते हुए बोला, "माँ, ये सब क्या है? मैं अपने बिज़नेस के लिए तीन सालों के लिए बाहर गया था, कोई जंग जीतकर नहीं आ रहा हूँ माँ।"

    सिमरन जी आरती उतारते हुए बोलीं, "चुप कर तू! मुझे अपना काम करने दे, समझा तू! इतने सालों बाद तो तू घर आया है और अब नखरे दिखा रहा है। देख रणविजय, तू होगा रॉयल राजपूताना का एमडी, पर ये याद रख, इस घर की एमडी मैं हूँ और यहाँ सबको मेरी मर्ज़ी से चलना होगा, समझा कि नहीं?" सिमरन जी रणविजय की आरती करते हुए उसे घूरते हुए बोलीं।

    रणविजय बिचारा सा मुँह बनाते हुए रणधीर जी की तरफ़ देखने लगा। तो रणधीर जी अपने दोनों हाथों को ऊपर कर दिया और ना में सर हिलाते हुए बोले, "ना बाबा, ना, मैं कुछ नहीं बोलूँगा। रणविजय मेरी तरफ़ ऐसे मत देखो, तेरी माँ ने सही कहा है, वो इस घर की एमडी, मिनिस्टर सब कुछ है। भाई तेरा क्या है? तू तो अपने कमरे में चला जाएगा, बल्कि सब अपने-अपने कमरे में चले जाएँगे, पर मुझे तो तेरी मम्मी के साथ एक कमरे में सोना है। मैं कुछ नहीं बोलूँगा।" रणधीर जी के ऐसे बोलने पर वहाँ के सारे लोग जोर-जोर से हँसने लगे और सिमरन जी रणधीर जी को खा जाने वाली नज़रों से देखने लगीं। सिमरन जी को अपनी तरफ़ ऐसे देखते हुए रणधीर जी बात पलटते हुए बोले, "अरे अब यही सारी बातें करो क्या सब लोग? चलो रणविजय को अंदर ले चलो।"

    रणविजय के परिवार में रणविजय के पिता (रणधीर सिंह राणावत), रणविजय की माँ (सिमरन सिंह राणावत) और एक छोटी बहन (रिया सिंह राणावत) (उम्र 20) थी, जो बाहर विदेश में पढ़ाई कर रही थी और जिनकी जान बसती थी रणविजय में। इस घर की सबसे बड़ी सदस्य रणधीर जी की माँ और रणविजय की दादी (कुंती सिंह राणावत) जो अभी यहाँ नहीं हैं, वह अपने पोते रणविजय के जीवन के लिए प्रार्थना करने हरिद्वार गई हैं।

    रणविजय कुछ देर अपने माता-पिता के पास बैठा रहा, फिर थकान का बहाना करके अपने कमरे में आ गया।

    सिमरन जी अपने कमरे में बैठी कहीं खोई हुई थीं। रणधीर जी कमरे में आते हैं और उन्हें कहीं खोया हुआ देखते हुए बोलते हैं, पर सिमरन जी रणधीर के सवाल का कोई जवाब नहीं देती हैं। वह वैसे ही अपने ख्यालों में खोई हुई होती हैं।

    रणधीर जी सिमरन जी के पास बैठते हुए बहुत ही नर्म स्वर में फिर से बोले, "कहाँ खोई हो आप?"

    सिमरन जी अचानक से चौंकते हुए रणधीर जी की तरफ़ देखते हुए बोलीं, "जी, आपने कुछ कहा क्या?"

    रणधीर जी अपना सर हिलाते हुए बोले, "हाँ, मैं बोल रहा था कि क्या सोच रही हैं आप?"

    सिमरन जी लंबी साँस छोड़ते हुए बोलीं, "कुछ नहीं, बस रणविजय के बारे में सोच रही थीं... कि हमारा बेटा कैसा हो गया है। पहले कितना हँसमुख और बातूनी था, हमेशा खुश रहने वाला लड़का, आज कैसा हो गया है। इन सब की वजह वो लड़की है... कौन से मनहूस वक़्त में वो मेरे बेटे के जीवन में आई थी। जबसे उसने मेरे बेटे के जीवन में कदम रखा था, तबसे उसने मेरे बेटे का जीवन बर्बाद कर दिया है। क्या हाल कर दिया है उसने मेरे बच्चे का? वो तो चली गई, साथ में मेरे बेटे के चेहरे की मुस्कान भी ले गई।" इतना बोलते ही सिमरन जी रणधीर जी के कंधे पर सर रखकर रोने लगीं।

    रणधीर जी सिमरन जी के कंधे को सहलाते हुए बोले, "आप रणविजय की चिंता मत कीजिए, कोई ना कोई होगा हमारे बेटे के लिए। हमारे भगवान इतने भी निर्दयी नहीं हैं। भगवान ने हमारे बेटे के लिए किसी को तो बनाया होगा।"

    सिमरन जी अपने आँसू पोंछते हुए बोलीं, "आप सही कह रहे हैं... भगवान इतना भी पत्थर दिल का नहीं हो सकता है... उसे मेरे बच्चे के जीवन में खुशियाँ भेजनी होंगी।"

    रणविजय अपने कमरे में खिड़की के पास आँखें बंद किए खड़ा था। वह बाहर से आती ठंडी हवा को महसूस कर रहा था। तभी उसे याद आया कि मिस्टर सक्सेना ने उसे आशियां के दोस्त की पूरी जानकारी एक फ़ाइल दी थी। वह जल्दी से अपने बैग को खोलता है और उसमें से वह फ़ाइल निकालकर देखने लगा।

    रणविजय ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बड़बड़ाते हुए बोला, "रीत... रीत शर्मा! पता नहीं क्यों ये नाम सुना-सुना लग रहा है। कहाँ सुना है? याद क्यों नहीं आ रहा है?" कुछ देर सोचने के बाद रणविजय चौंकते हुए बोला, "हाँ... आशियां हमेशा इसके बारे में ही तो बात करती रहती थी। मुझे याद है, आशियां बोलती थी कि यह ही सिर्फ़ एक अकेली उसकी कॉलेज में दोस्त थी। पर पता नहीं क्यों इसका नाम मैंने कहीं और भी सुना है, पर मुझे याद नहीं आ रहा है।" रणविजय यही सब सोच में खोया था कि उसके कमरे के दरवाज़े पर किसी की दस्तक हुई।

    क्रमशः

  • 6. Dil hai tumhaara - Chapter 6

    Words: 1495

    Estimated Reading Time: 9 min

    मिस्टर सक्सेना ने सर झुकाकर कहा, "पर सर, वो तो हमारी ही कंपनी की दूसरी ब्रांच में काम करती हैं।"

    रणविजय मिस्टर सक्सेना पर चिल्लाए, "तो ये बात मुझे अब बता रहे हैं? पहले क्यों नहीं बताई?"

    मिस्टर सक्सेना ने सर झुकाकर कहा, "सॉरी सर, पर मैंने आपको वो फाइल दी थी। क्या आपने वो फाइल पढ़ी नहीं?"

    रणविजय को फाइल के बारे में याद आते ही वो मिस्टर सक्सेना से चिढ़ते हुए बोले, "हाँ, वो कल मैं किसी काम में बिजी था, इसलिए उस फ़ाइल के बारे में भूल गया था। ठीक है, मैं वो फाइल से सब जान लूँगा। और अब आप जा सकते हैं।"

    "ओके सर," कहकर मिस्टर सक्सेना चले गए।

    उस फ़ाइल के बारे में याद आते ही उसे कल रात की बात भी याद आ गई। रणविजय ने लैपटॉप बंद कर दिया और चेयर से टेक लगाकर ऊपर छत की तरफ देखने लगा, आँखें बंद कर लीं। उसे कल रात की बातें याद आने लगी थीं, जब वो फाइल पढ़ने वाला ही था। तभी उसके कमरे के दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया था।

    जब उसने दरवाज़ा खोला, तो बाहर रणविजय के पिता, रणधीर जी, खड़े थे। उनके हाथ में दो कॉफी के कप थे।

    रणविजय ने हैरानी से पूछा, "पापा, आप अभी तक सोए नहीं? और इतनी रात को यहाँ?"

    रणधीर जी मुस्कुराते हुए बोले, "हाँ, वो मुझे नींद नहीं आ रही थी। तेरी माँ है ना, वो इतनी जोर से खराटे लेती है कि उसकी वजह से मेरी नींद उड़ गई थी। और मैंने सोचा कि जब नींद नहीं आ रही है, तो कॉफ़ी पी लेता हूँ। पर जब मैंने तेरे रूम की लाइट जलती हुई देखी, तो तेरे लिए भी बना लिया। सोचा कि दोनों बाप-बेटा मिलकर कॉफ़ी पीएँगे और बहुत सारी बातें करेंगे।"

    रणविजय ने कॉफी ले ली और एक घूंट पिया।

    "कैसी बनी है कॉफ़ी?" रणधीर जी ने पूछा।

    "बहुत अच्छी बनी है," रणविजय ने कॉफ़ी पीते हुए कहा।

    कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा। दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बात करें। दोनों बाप-बेटे इतने सालों बाद मिले थे, फिर भी कोई टॉपिक नहीं था बात करने को।

    फिर रणधीर जी कुछ सोचते हुए बोले, "तो बेटा, आगे का क्या सोचा है आपने?"

    रणविजय कॉफ़ी की एक घूंट पीकर बोला, "आगे का क्या? मतलब?"

    रणधीर जी बोले, "मतलब बेटा, अब आपने अपने बिज़नेस में बहुत नाम कमा लिया है। तो अब आपको अपने जीवन में आगे बढ़ जाना चाहिए। कब तक आप उसका इंतज़ार करते रहेंगे?"

    रणविजय ने रणधीर जी की बात का कोई जवाब नहीं दिया।

    रणधीर जी फिर से बोले, "मैं जानता हूँ बेटा, आप उससे बहुत प्यार करते हैं, पर..."

    रणविजय रणधीर जी की बात काटते हुए बोला, "पापा, आप साफ़-साफ़ बोलिए कि आपको कहना क्या चाहते हैं?"

    रणधीर जी ने एक लंबी साँस छोड़ते हुए कहा, "मैं बस ये बोलना चाहता हूँ कि आपने हमसे जितना वक़्त माँगा था, हमने आपको दिया, पर अब वो वक़्त ख़त्म हो गया है। तो..."

    रणविजय फिर रणधीर जी की बात काटते हुए बोला, "तो क्या पापा?"

    रणधीर जी ने रणविजय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "देखो रणविजय, मुझे बात को घुमाकर बोलना नहीं आता है। तो मैं आपसे साफ़-साफ़ बोल रहा हूँ। अब आप उस लड़की को ढूँढना बंद कर दीजिए। और हाँ, आपके वादे के अनुसार आपको हमारी पसंद की लड़की से शादी करनी पड़ेगी। आपने जितना वक़्त माँगा, हमने दिया, पर अब और नहीं, आपको वक़्त दे सकते हैं, समझें आप?"

    रणविजय कुछ सोचते हुए बोला, "ठीक है पापा, आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही करूँगा, पर मुझे आखिरी बार उसे ढूँढ लेने दीजिए।"

    रणधीर जी गुस्से में बोले, "और कितनी बार उसे ढूँढेंगे आप? उसे पहले भी आपने ऐसे ही बोला था, और मैंने और आपकी माँ ने आपको वक़्त दिया था, और अब आप फिर वक़्त माँग रहे हैं?"

    रणधीर जी कुछ सोचकर बोले, "बस एक महीना और, रणविजय। उससे ज़्यादा वक़्त अब हम आपको नहीं दे सकते हैं। और हाँ, हम आपके लिए कल से ही लड़कियाँ देखना शुरू कर देंगे। क्योंकि आपके पागलपन के कारण हमने पहले ही बहुत वक़्त बर्बाद कर दिया है, पर अब और नहीं। समझें आप?"

    ये सब बोलकर रणधीर जी वहाँ से चले गए। रणविजय वहीं पर बैठे ये सब बातें सोच रहा था। रणधीर जी की बातों की वजह से रणविजय रात भर ठीक से सो नहीं पाया था।

    रणविजय ने अपनी आँखें खोलीं और दराज से वो फाइल निकाली। उसने फाइल खोली तो पहले पन्ने पर रीत का पूरा नाम लिखा था, और उसका जन्म कब हुआ, उसके माता-पिता का नाम, सब कुछ लिखा था।

    रणविजय ने रीत का पूरा नाम धीरे से बोला, "रीत शर्मा। पता नहीं क्यों ये नाम मैंने आशियाना के सिवा और कहीं भी सुना है, पर मुझे याद क्यों नहीं आ रहा है?"

    रणविजय अपने इस ख्याल को हटाते हुए दूसरा पन्ना पलटने वाला था कि तभी उसके दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया।

    "आ जाओ," रणविजय ने फाइल में ही देखते हुए कहा।

    "कैसे हो मेरे यार?" रणविजय के कानों में एक जानी-पहचानी आवाज़ पहुँची।

    रणविजय ने फाइल से नज़रें हटाते हुए दरवाज़े पर देखा। दरवाज़े पर रणविजय का दोस्त आदित्य खड़ा था। रणविजय ने फाइल को टेबल पर बंद करके रख दिया। वो खुशी से खड़ा होता हुआ आदित्य के गले लग गया।

    "तू कब आया यहाँ? और मुझे बताया भी नहीं," रणविजय हँसते हुए बोला।

    "सब बताता हूँ। पहले बैठने को नहीं बोलेगा, या सब बातें यहीं करेगा?" आदित्य रणविजय से अलग होते हुए बोला।

    "ओ सॉरी यार, आओ बैठो आके," रणविजय ने अपने हाथ से चेयर की तरफ इशारा करते हुए कहा।

    आदित्य चेयर पर बैठ गया। रणविजय अपनी चेयर पर बैठते हुए बोला, "अगर तुझे इंडिया आना था तो कल मेरे साथ आ जाता। और तूने बताया भी नहीं कि तू आ रहा है, मैं लेने आ जाता तुझे।"

    "अरे यार, अचानक से प्लान बन गया। वो साहबज़ादा है, सार्थक, उसने अपना कॉलेज यहाँ ट्रांसफर करवा लिया है," आदित्य हँसते हुए बोला।

    "पर क्यों? अमेरिका के इतने अच्छे कॉलेज छोड़कर उसने यहाँ क्यों करवा लिया?" रणविजय हैरानी से बोला।

    "मुझे क्या पता यार, कुछ दिन पहले आया था इंडिया, भाईया-भाभी से मिलने। और उसके बाद मुझसे कहने लगा कि मुझे अब इंडिया में पढ़ना है, मेरा वहाँ मन नहीं लगता। क्योंकि ना मेरे पास उसके लिए वक़्त है, और ना तेरे पास, जिसके लिए वो वहाँ गया था," आदित्य अपने कंधे ऊँचे करते हुए बोला।

    "तो तूने उसे समझाया क्यों नहीं?" रणविजय बोला।

    "तुझे क्या लगता है...? मैंने उसे बहुत समझाया, यहाँ तक कि भाईया-भाभी ने भी समझाया, पर वो नहीं माना। तो मुझे मजबूरी में उसके एडमिशन के लिए मानना पड़ा। वैसे भी यहाँ रहेगा तो ज़्यादा ठीक है। अब तू बता, कैसा चल रहा है यहाँ सब?" आदित्य ने अपनी आँखों की आइब्रो ऊपर करते हुए कहा।

    रणविजय कुछ बोलने जा ही रहा था कि तब तक किसी ने दरवाज़े पर नॉक किया।

    "यस, कमिंग," रणविजय दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए बोला।

    मिस आर्या अंदर आई और रणविजय की तरफ़ देखते हुए बोली, "सर, वो आपकी मीटिंग का वक़्त हो गया है। सारे क्लाइंट आ गए हैं, वो सब आपका वेट कर रहे हैं।"

    "ओके, मैं बस आ रहा हूँ। आप चलिए," रणविजय ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा।

    आर्या ने हाँ में सर हिला दिया और वहाँ से चली गईं।

    "मैं बस थोड़ी देर में आता हूँ। तब तक तुम नाश्ता करो, ओके," रणविजय आदित्य की तरफ़ देखते हुए बोला।

    "हाँ हाँ, ज़रूर, मैं यहाँ पर तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ," आदित्य ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा।

    रणविजय मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया।

    आदित्य रणविजय का एक अकेला दोस्त है। आदित्य के सिवा उसका कोई दोस्त नहीं है। आदित्य और रणविजय की दोस्ती श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी है। आदित्य रणविजय को अपने भाई से भी बढ़कर मानता है, और वही हाल रणविजय का भी है।

    आदित्य कुछ देर तक मोबाइल चलाता रहा। उसके बाद वो रणविजय के ऑफिस में जो फाइल रखी थीं, वो देखने लगा। तभी उसकी नज़र टेबल पर रखी फाइल पर चली गई। आदित्य ने उस फ़ाइल को उठाया और जैसे ही उसने फाइल के पहले पन्ने पर नाम पढ़ा, उसके चेहरे पर पसीना और घबराहट साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसने धीरे से वो नाम बुदबुदाया, "रीत शर्मा..." जैसे-जैसे वो फाइल को पढ़ता गया, वैसे-वैसे उसकी हालत बिगड़ रही थी...

  • 7. Dil hai tumhaara - Chapter 7

    Words: 1528

    Estimated Reading Time: 10 min

    रणविजय ने कार्यालय के अंदर कदम रखा। उसने देखा कि आदित्य वहाँ नहीं था। उसने कार्यालय में हर जगह देखा, पर आदित्य कहीं नहीं मिला।

    रणविजय हैरानी से बोला, "अरे, ये कहाँ चला गया? मुझे बिना बताए घर तो नहीं चला गया ना? फ़ोन करके देखता हूँ।"

    रणविजय ने आदित्य को कॉल किया। उस तरफ़ से आदित्य की आवाज़ आई।

    रणविजय बोला, "तूँ तो चला गया, यार!"

    आदित्य हँसते हुए बोला, "और मैं वहाँ क्या करता बैठे-बैठे? तूँ तो अपने काम में बिज़ी है। इसलिए मैंने सोचा कि बैठे रहने से अच्छा है कि तेरे माँ-बाप से मिल लेता हूँ।"

    रणविजय बोला, "अरे, तो साथ में चलते ना! अच्छा, तूँ बता, कहाँ है? मैं अभी तुझे लेने आता हूँ और फिर साथ में घर चलेंगे।"

    आदित्य बोला, "अरे नहीं-नहीं, रहने दे। मैं बस तेरे घर के पास ही हूँ। यार, तूँ आराम से आना, अपना सारा काम ख़त्म करके। ठीक है ना? चल, अब मैं रखता हूँ।"

    रणविजय बोला, "चल, ठीक है। फिर रात में मिलता हूँ घर पर। ओके, बाय।"

    आदित्य बोला, "हाँ! बाय-बाय।"

    आदित्य ने जैसे ही फ़ोन रखा, उसके चेहरे की मुस्कराहट गायब हो गई। उसके चेहरे पर डर और घबराहट साफ़ दिख रही थी।

    उसने अपनी नज़र अपने हाथ में ली हुई फ़ाइल पर डाली। वह धीरे से बुदबुदाया, "मुझे कुछ भी करके इस फ़ाइल और उस राज को छुपाकर रखना होगा। क्योंकि अगर इस फ़ाइल का राज रणविजय को पता चला, तो उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा और मेरे रहते रणविजय को कुछ नहीं हो सकता है।"

    आदित्य हैरानी से सोचता हुआ बोला, "पर मुझे ये नहीं समझ में आ रहा है कि रणविजय को इस रीत के बारे में क्यों जानना है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि रणविजय को उस रात का सब कुछ याद आ गया हो, इसलिए वह रीत के बारे में सब जानना चाहता हो? नहीं-नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है, डॉक्टर ने कहा था कि रणविजय को उस रात के बारे में याद आना बहुत मुश्किल है। मुझे पता लगाना होगा कि आख़िर क्यों रणविजय रीत के बारे में जानना चाहता है। और अगर मेरा शक सही है, तो मुझे कुछ तो करना होगा। मुझे इन दोनों को किसी भी हालत में मिलने नहीं देना है।"


    पंडित जी ने कुन्ती जी को उनकी पूजा की थाली देते हुए कहा, "जी, ये यहीं पास में रहती हैं। रोज आती हैं पूजा करने। बहुत ही प्यारी बच्ची हैं।"

    कुन्ती जी उस लड़की की तरफ़ देखते हुए मुस्कुराते हुए पंडित जी से बोलीं, "क्या नाम है इस लड़की का?"

    पंडित जी बोले, "इस बच्ची का नाम रीत है। आप मिलना चाहती हैं? रुकीए, मैं अभी बुलाता हूँ।"

    पंडित जी ने रीत को आवाज़ दी। रीत पंडित जी की तरफ़ देखते हुए बोली, "आयीं पंडित जी।"

    रीत उन दोनों के पास जाकर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए बोली, "आपने बुलाया मुझे पंडित जी?"

    पंडित जी हाँ में सर हिलाते हुए बोले, "हाँ, बेटा, तुमसे किसी से मिलवाना था।"

    पंडित जी कुन्ती जी की तरफ़ देखते हुए बोले, "इनसे मिलो। ये हैं कुन्ती सिंह राणावत। मुम्बई की जानी-मानी हस्तियों में इनका नाम शामिल होता है।"

    रीत ने पंडित जी की बातें सुनकर अपनी नज़र उनकी तरफ़ डाली। उसके सामने आधी उम्र की एक बुज़ुर्ग औरत खड़ी थी। गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चन्दन का टीका, हल्के घेरवाले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और सर पर पल्लू डाला हुआ था। दुनिया का तजुर्बा उनके सफ़ेद बालों से साफ़ पता चल रहा था। आँखों में एक अलग सी तेज़ थी। चेहरा ऐसा कि एक बार कोई देख ले तो बिना बात किए रह न पाए। होंठों पर मुस्कान लिए वह रीत को देख रही थीं।

    रीत अपने हाथ जोड़ते हुए बोली, "नमस्ते।"

    कुन्ती जी रीत को बेसुध होकर देख रही थीं। भोली सी सूरत, मासूम सा चेहरा, आँखों में एक अलग सी उदासी, होंठों पर मुस्कान लिए वह कुन्ती जी की तरफ़ बहुत प्यार से देख रही थी।

    कुन्ती जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "नमस्ते बेटा। बहुत अच्छा भजन गाया आपने। क्या नाम है आपका?"

    रीत शर्माते हुए बोली, "जी, रीत शर्मा। और धन्यवाद।" तभी रीत अपने हाथ में बंधी घड़ी की तरफ़ देखते हुए बोली, "अच्छा, पंडित जी, अब मैं चलती हूँ। ऑफ़िस के लिए मुझे देर हो रही है।" रीत उन दोनों को नमस्ते करके चली गई।

    कुन्ती जी रीत को जाते हुए देख रही थीं। वह मन ही मन में बोलीं, "कितनी प्यारी लड़की है! हे कान्हा, मेरे रणविजय के लिए एक ऐसी लड़की भेज दो।"

    कुन्ती जी को ख्यालों में खोया देखकर पंडित जी बोले, "कहाँ खो गईं?"

    पंडित जी की आवाज़ सुनकर कुन्ती जी होश में आते हुए बोलीं, "कुछ नहीं पंडित जी, बस उस लड़की को देख रही थीं। कितनी प्यारी और संस्कारी लड़की है! मैं भी अपने रणविजय के लिए ऐसी ही लड़की चाहती हूँ।"

    पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले, "आप बिलकुल सही बोल रही हैं कुन्ती जी। ये लड़की बहुत संस्कारी है। पर भगवान भी ऐसे ही लोगों की परीक्षा लेते हैं। बिचारी ने इतनी कम उम्र में बहुत दुःख झेले हैं।"

    कुन्ती जी हैरानी से पंडित जी की तरफ़ देखते हुए बोलीं, "कैसे दुःख पंडित जी?"

    पंडित जी कुछ बोलने ही जा रहे थे कि कुन्ती जी के बॉडीगार्ड ने उनके पास आकर कुछ कहा।

    कुन्ती जी गंभीर स्वर में बॉडीगार्ड से बोलीं, "ठीक है, तुम गाड़ी निकालो, मैं आती हूँ।"

    कुन्ती जी पंडित जी से बोलीं, "ठीक है पंडित जी, मैं चलती हूँ।"

    पंडित जी ने हाँ में सर हिला दिया।


    "सर, मुझे वापस अमेरिका जाना है।"

    रणविजय अपने लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था। आर्या की बात सुनकर हैरानी से उसकी तरफ़ देखा। आर्या डरी हुई, सर झुकाए खड़ी थी।

    आर्या को ऐसे देखकर रणविजय फिर अपने लैपटॉप में काम करते हुए गंभीर स्वर में बोला, "मिस आर्या, क्या मैं जान सकता हूँ कि आप अमेरिका क्यों जाना चाहती हैं? जबकि आपके बॉस, यानी मैं, इंडिया में हूँ और आप मेरी सेक्रेटरी हैं। तो आपको मेरे साथ रहना है।"

    आर्या बहुत मुश्किल से हिम्मत करके बोली, "आई एम सॉरी सर, पर मेरी मजबूरी है वापस अमेरिका जाने की।"

    रणविजय गुस्से में बोला, "वहीँ तो मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि ऐसी क्या मजबूरी है कि आप अपनी जॉब छोड़ने को भी तैयार हैं?"

    आर्या वैसे ही सर झुकाए बोली, "सर, मेरा घर अमेरिका में है और मैं अपने घर में एक अकेली कमाने वाली हूँ। मेरे पिता नहीं हैं। मेरे ऊपर मेरी माँ और दो छोटे भाइयों की जिम्मेदारी है। और सर, इस वक़्त मेरी माँ की तबीयत ठीक नहीं है। उनको मेरी ज़रूरत है।" इतना बोलते ही आर्या रोने लगी।

    ये सब सुनकर रणविजय का गुस्सा शांत हो गया। वह नर्म स्वर में बोला, "तो आपको मुझे ये पहले बताना चाहिए था। मैं आपको अपने साथ इंडिया लाता ही नहीं।"

    आर्या अपने आँसू पोछते हुए बोली, "सर, मुझे लगा था कि आप इंडिया दो-तीन दिन के लिए आ रहे हैं। पर यहाँ पता चला कि अब आप यहाँ का काम संभालेंगे और आदित्य सर अब से अमेरिका का संभालेंगे।"

    रणविजय कुछ देर सोचने के बाद बोला, "ठीक है, आप अमेरिका जाइए। मैं अभी मिस्टर सक्सेना से आपके लिए अमेरिका की टिकट बुक करवाता हूँ। और अब से आप आदित्य की सेक्रेटरी हैं। ओके, अब आप जा सकती हैं।"

    आर्या खुश होती हुई बोली, "थैंक्यू सर, थैंक्यू सो मच सर।" इतना बोलकर आर्या ऑफिस से बाहर आ गई।

    बाहर आकर आर्या मन ही मन बोली, "थैंक गॉड, सर मान गए। मुझे नहीं पता था कि इस पत्थर के दिल के पास भी दिल है। वैसे इतना खड़ूस नहीं है। पर यार, मुझे उस इंसान पर तरस आ रहा है जो अब इस हिटलर की सेक्रेटरी बनेगा। भगवान ही भला करे उसका।"

    रणविजय बहुत देर तक कुछ सोचता रहा और फिर उसने मिस्टर सक्सेना को फोन किया और बोला, "मिस्टर सक्सेना, मैं जो बोल रहा हूँ, उसको ध्यान से सुनिएगा।"

    रणविजय ने मिस्टर सक्सेना से बात करने के बाद अपनी कुर्सी पर टेक लगाकर ऊपर की तरफ़ देखते हुए धीरे से बोला, "मैं अपनी मंज़िल के बहुत करीब हूँ।" इतना बोलते ही रणविजय के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई।

    क्रमशः

  • 8. Dil hai tumhaara - Chapter 8

    Words: 1116

    Estimated Reading Time: 7 min

    पंडित जी ने मेरे रणविजय के लिए एक अच्छी लड़की ढूँढ़ने की जिम्मेदारी आपकी है।

    सिमरन जी मुस्कुराते हुए पंडित जी से बोलीं,
    "जी जी, ज़रूर। मैं आपके बेटे के लिए एक अच्छी कन्या की खोज करता हूँ।"

    रणधीर जी गम्भीर स्वर में पंडित जी से बोले,
    "पर पंडित जी, ये याद रखिएगा कि रणविजय की शादी हम इसी साल के अंत तक कराना चाहते हैं। इसलिए आपको जल्द से जल्द कोई अच्छी लड़की ढूँढ़कर हमें बताना है।"

    पंडित जी हाँ में सर हिलाते हुए बोले,
    "जी ज़रूर, मैं आज ही से इस काम पर लग जाता हूँ।"

    ये ही सब बातें चल ही रही थीं कि वहाँ रणविजय आ गया और एक गम्भीर स्वर में बोला,
    "ये सब क्या चल रहा है माँ? और पंडित जी यहाँ क्या कर रहे हैं?"

    सिमरन जी रणविजय की तरफ़ देखते हुए बोलीं,
    "बेटा, पंडित जी को हमने आपकी शादी के लिए बुलाया है।"

    सिमरन जी की यह बात सुनकर रणविजय गुस्से से बोला,
    "मेरी शादी किससे पूछकर आप यह सब कर रही हैं? क्या आपने मुझसे पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा? मैं शादी नहीं करूँगा। आप पंडित जी को वापस भेज दीजिए।"

    रणविजय की ऐसी बातें सुनकर सब हैरान हो गए।

    रणधीर जी अपनी जगह से उठते हुए रणविजय से गम्भीर स्वर में बोले,
    "हमें आपसे पूछने की ज़रूरत नहीं है, रणविजय।"

    रणविजय रणधीर जी की तरफ़ देखता हुआ बोला,
    "पर यह मेरे जीवन का सवाल है पापा, आप ऐसे अपनी मनमानी नहीं कर सकते हैं। मैंने आपसे कुछ वक़्त माँगा था ना?"

    रणधीर जी गम्भीर स्वर में रणविजय की तरफ़ देखते हुए बोले,
    "तो हमने आपको वक़्त दिया था, वो भी तीन साल का, और अब वो तीन साल पूरे हो गए हैं। और हम मनमानी नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप कर रहे हैं। रणविजय, हमारे सब्र का इतना इम्तिहान मत लीजिए।"

    रणविजय के पास कुछ भी बोलने को नहीं था। वह चुपचाप रणधीर जी की बात को सुन रहा था।

    सिमरन जी रणविजय को समझाते हुए बोलीं,
    "बेटा, मैं और आपके पापा आपकी भलाई चाहते हैं। हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं रणविजय, इसलिए आपको शादी के लिए फ़ोर्स कर रहे हैं। हम सब चाहते हैं कि आप अपने जीवन में आगे बढ़ें। बेटा, आप यह तो जानते हैं ना कि आपकी दादी की अब उम्र हो गई है, पर फिर भी वो आपके खातिर कोई भी ऐसा मंदिर नहीं छोड़ा होगा जहाँ उन्होंने आपकी खुशी के लिए प्रार्थना ना की हों। रणविजय, हमारे बारे में ना सही, अपनी दादी के लिए हाँ बोल दीजिए।"

    रणविजय कुछ देर चुप रहा, फिर कुछ सोचने के बाद बोला,
    "पर माँ..."

    रणधीर जी रणविजय की बात को बीच में ही काटते हुए बोले,
    "परन्तु कुछ नहीं रणविजय, हमने फ़ैसला कर लिया है। आपकी शादी इसी साल होगी।" इतना बोलकर रणधीर जी वहाँ से चले गए।

    सिमरन जी रणविजय के कंधे को थपथपाकर रणधीर जी के पीछे-पीछे चली गईं।

    रणविजय उन दोनों को जाते हुए देख रहा था और धीरे से बुदबुदाते हुए बोला,
    "अच्छी जबरदस्ती है यार! कौन कहता है कि सिर्फ़ लड़कियों की जबरन शादी करवाई जाती है? यार, यहाँ तो लड़कों तक को नहीं छोड़ा जाता है। अब मैं क्या करूँ यार? मैं तो बुरी तरह फँस गया हूँ। मुझे कैसे भी करके उस लड़की से आशियाना का पता लगवाना होगा।"


    रणविजय कार में बैठा था और उसके दिमाग में यही सब चल रहा था कि उसने अपने मन ही मन में बोला,
    "अब क्या करूँगा मैं? मैं अगर अब शादी से पीछे हटा तो मेरे माता-पिता मुझे माफ़ नहीं करेंगे। अरे यार, मुझे आज उस लड़की से मिलकर सब कुछ साफ़-साफ़ पूछना होगा और आशियाना को जल्दी से जल्दी घर ले आना होगा। वरना यह मेरा परिवार मेरी शादी कहीं और करवा देगा। पर यार, क्या वो लड़की मुझे कुछ बताएंगी या नहीं?"

    रणविजय यही सब ख्यालों में खोया था कि उसकी कार ट्रैफ़िक लाइट रेड होने के कारण रुक गई। रणविजय की नज़र कार की खिड़की से बाहर चली गई। उसने देखा, रोड के किनारे कुछ कुत्ते के पिल्ले भूख के कारण प्लास्टिक की थैली को चबा रहे हैं। उनके पास से हर कोई निकल रहा था, पर कोई भी उन छोटे से पिल्लों को ना रोक रहा था, ना ही कुछ खाने को डाल रहा था।

    हर कोई अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास किसी बेजुबान जानवर के लिए भी थोड़ा सा वक़्त नहीं है। इंसान खुद के लिए महँगे से महँगे होटल में जाकर खाना खा सकता है, पर एक रुपये का बिस्कुट किसी बेजुबान जानवर को नहीं खिला सकता है। यह प्लास्टिक की गन्दगी फैलाता इंसान है, और मरते कौन हैं? ये बेजुबान जानवर। रणविजय के दिमाग में यही सब चल रहा था। एक बार तो रणविजय का दिल किया कि वह जाकर उन छोटे-छोटे पिल्लों को कुछ खिला दे जाए, जिससे वे प्लास्टिक की थैली ना खाएँ, पर रणविजय अपनी कार से उतरकर वहाँ नहीं जा सकता था, क्योंकि बीच में बहुत सी गाड़ियाँ खड़ी थीं और ग्रीन लाइट भी होने वाली थी।

    रणविजय बहुत उदासी से उन पिल्लों को देख रहा था कि तभी एक लड़की वहाँ आई और उसने एक पिल्ले को अपनी गोद में उठाकर प्यार करने लगी। फिर उसने उसे कुछ बिस्कुट खाने को दिया। वह लड़की बहुत प्यार और दुलार से उन पिल्लों को खाना खिला रही थी और एक माँ की तरह डाँट रही थी। रणविजय की तो नज़र ही नहीं हट रही थी उस लड़की से।

    जहाँ वह यह सोच रहा था कि इस दुनिया में किसी के पास किसी के लिए वक़्त नहीं है, वहाँ क्या ऐसे भी लोग होते हैं क्या? उस लड़की ने एक पिल्ले को अपने चेहरे के सामने लिया और उस पिल्ले को हल्का हाथ करके थप्पड़ मारने का नाटक करने लगी। उसे ऐसा करते देखकर रणविजय के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई।

    रणविजय उस लड़की को बहुत ध्यान से देख रहा था। कितना प्यारा चेहरा है उसका, प्यारी उसकी मुस्कान, और उस पर उसके बालों की लटें जो बार-बार उसके चेहरे को छूने की कोशिश करती हैं। गुलाबी रंग का सलवार-सूट उसकी सुंदरता को और भी ज़्यादा निखार रहा था।

    तभी ग्रीन लाइट हो गई और रणविजय की कार आगे निकल गई। रणविजय उस लड़की को पीछे छोड़कर आगे निकल गया, पर दिल में कहीं ना कहीं वह लड़की अपनी जगह बना चुकी थी।

    क्रमशः

  • 9. Dil hai tumhaara - Chapter 9

    Words: 589

    Estimated Reading Time: 4 min

    वो फाइल खो जाने के कारण रणविजय ने रीत को देखा ही नहीं था। आज वो दिन आ गया जब रीत रणविजय के सामने थी। रणविजय की सेक्रेटरी के तौर पर, क्योंकि आर्या तो वापस अमेरिका चली गई थीं, और रणविजय का काम बिना सेक्रेटरी के नहीं हो सकता था। और इसका फायदा रणविजय ने बहुत अच्छे से उठाया था। रणविजय ने मिस्टर सक्सेना से कहकर रीत को अपनी दूसरी कंपनी से ट्रांसफर करवाकर उसे इस कंपनी में अपनी सेक्रेटरी के तौर पर रखा था। जिससे वो रीत पर नजर रख सकें और उससे आशिया का पता लगवा सकें।


    "मैं अंदर आ सकती हूँ सर?" रीत ने दरवाजे के पास से पूछा।

    "यस, कमिंग।" रणविजय ने कहा।

    रीत रणविजय की टेबल के पास आकर खड़ी हो गई। रणविजय रीत की तरफ पीठ किए हुए अपनी कुर्सी पर बैठा था।

    रणविजय ने रीत से कहा, "यस, बोलिए।"

    रीत घबराती हुई बोली, "सर, मेरा नाम रीत रीत शर्मा है। आज से मैं आपकी नई सेक्रेटरी हूँ। ये रहा मेरा जॉइनिंग लेटर और ये रहीं मेरी फाइल जिसमें मेरे सारे सर्टिफिकेट हैं।"

    रीत ने अपनी फाइल रणविजय की टेबल पर रख दी।

    रणविजय वैसे ही कुर्सी पर बैठे-बैठे रीत की फाइल को टेबल पर से उठा लिया और पढ़ने लगा। कुछ देर बाद रणविजय बोला, "हूँ…! रीत शर्मा।"

    रीत ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी।"

    रणविजय उसकी तरफ मुड़ा और फाइल में देखते हुए बोला, "तो आपने ग्रेजुएशन होने के बाद आगे क्यों नहीं पढ़ी?"

    रीत अपना सिर झुकाए हुए बोली, "सर, कुछ फैमिली प्रॉब्लम थीं। इसलिए मैं अपनी पढ़ाई आगे नहीं जारी रख पाई।"

    रणविजय ने फाइल बंद करते हुए रीत की तरफ देखा और उसकी नज़रें उसकी झुकी हुई आँखों पर रुक गईं। वो बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे पतले होंठ, लंबे बाल, गुलाबी गाल, पतली सी कमर, गुलाबी रंग का सलवार सूट पहने उसकी तरफ देख रही थीं।

    रणविजय तो उसकी आँखों में खो सा गया था। बहुत उदास और शांत थीं उसकी आँखें, जैसे बहुत सा दर्द था उन आँखों में।

    रणविजय मन ही मन में बोला, "ये तो वही लड़की है जिसे मैंने अभी कुछ देर पहले रोड के किनारे उन पिल्लों को बिस्किट खिलाते देखा था। अच्छा, तो यही रीत शर्मा है।"

    रणविजय को कहीं खोया हुआ देखकर रीत धीरे से बोली, "सर, आप ठीक तो हैं ना?"

    रीत की आवाज सुनकर रणविजय होश में आ गया।

    रणविजय अपनी नज़रें फाइल पर डालते हुए बोला, "जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। तो मिस शर्मा, आप हमारी दूसरी कंपनी में किस पोस्ट पर थीं?"

    रीत हैरानी से रणविजय को देख रही थी और मन में बोली, "ऐसे पूछ रहा है जैसे जानता ही नहीं है।"

    रीत बोली, "सर, मैं दूसरी कंपनी में अकाउंट मैनेजमेंट ग्रुप में थी।"

    रणविजय फाइल बंद करते हुए बोला, "कॉन्ग्रैचुलेशन मिस शर्मा, आपको ये जॉब मिल गई है। और आप कल से ही मेरी सेक्रेटरी के तौर पर ऑफिस आ सकती हैं।"

    रीत चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाते हुए बोली, "थैंक्यू सर।" इतना बोलकर रीत वहाँ से चली गई।

  • 10. Dil hai tumhaara - Chapter 10

    Words: 1870

    Estimated Reading Time: 12 min

    आर्थिक जल्दी से खाना खा लो। रीत आर्थिक के पीछे-पीछे भागती हुई बोली।

    आर्थिक रीत के आगे भागता हुआ बोला, "नहीं मम्मा, मुझको खाना नहीं खाना है।"

    रीत आर्थिक को पकड़ते हुए बोली, "चुपचाप खाना खा लो आर्थिक।"

    आर्थिक ना में सर हिलाते हुए बोला, "नहीं मम्मा, मुझको आइसक्रीम खानी है।"

    "नहीं, बिल्कुल नहीं। कुछ दिन पहले ही तुम्हारी तबियत ठीक हुई है और अब तुम्हें आइसक्रीम खानी है?" रीत खाने की थाली को लेते हुए बोली।

    आर्थिक तेज़-तेज़ से ना में सर हिला दिया।

    रीत अपने हाथों से खाना खिलाते हुए बोली, "अच्छा ठीक है। अगर तुमने पूरा खाना खा लिया तो मैं सोचूँगी आइसक्रीम के लिए।"

    आर्थिक रीत की तरफ़ मुस्कुराते हुए बोला, "सच्ची मम्मा?"

    रीत हाँ में सर हिलाते हुए बोली, "सच्ची बेटा। अब तो खाना खा लो।"

    आर्थिक बोला, "ओके मम्मा।"

    रीत आर्थिक को देखते हुए मन ही मन बोली, "इसका चेहरा किसी से तो मिलता है... पर किससे? याद क्यों नहीं आ रहा है?"

    रीत अपने दिमाग पर जोर डालते हुए याद करने की कोशिश कर रही थी कि अचानक से वो बोली, "हाँ, आर्थिक का चेहरा रणविजय सर से मिलता है... पर ये कैसे हो सकता है?"

    वैसा ही चेहरा, मनमोहन आकर्षक और बातें भी वैसी ही करता है। एक महीना हो गया है मिस्टर रणावत के साथ काम करते हुए। इतना तो जान गई हूँ उनके बारे में... और सबसे बड़ी बात इन दोनों की आँखें बिल्कुल एक जैसी हैं। ये दोनों तो एक-दूसरे की कार्बन कॉपी हैं।

    क्या ऐसा हो सकता है? मिस्टर रणावत तो कभी आर्थिक से मिले भी नहीं हैं, तो ये कैसे हो सकता है?

    रीत अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी कि उसको आर्थिक की आवाज़ तक नहीं सुनाई दे रही थी जो कितनी देर से उसे पुकार रहा था।

    आर्थिक रीत को हिलाते हुए बोला, "मम्मा, मम्मा कहाँ खो गई? उठो मम्मा... मम्मा!"

    आर्थिक के ऐसे हिलाने से रीत होश में आते हुए बोली, "हाँ...! हाँ बेटा, क्या हुआ?"

    आर्थिक बोला, "मम्मा आपको क्या हो गया था? मैं कब से आपको पुकार रहा था।"

    रीत आर्थिक के गालों पर हाथ रखते हुए प्यार से उससे बोली, "अपनी मम्मा को माफ़ कर दो बेटा, मैं कुछ सोचने लगी थी। अच्छा बताओ क्या हुआ आपको?"

    आर्थिक अपने हाथ की एक उंगली को दरवाज़े की तरफ़ करते हुए बोला, "मम्मा कोई बाहर आया है। बहुत देर से कोई दरवाज़े की घंटी बजा रहा है।"

    आर्थिक की बात सुनकर रीत हैरानी से दीवाल पर लगी घड़ी की तरफ़ देखा और धीरे से बोली, "इस वक़्त कौन होगा? अच्छा, चलो देखते हैं।"

    रीत आर्थिक का हाथ पकड़ते हुए दरवाज़े तक गई और डरते हुए दरवाज़ा खोला। उसकी नज़र सामने खड़े 29-30 की उम्र के एक मस्कुलर बॉडी वाला स्मार्ट लड़के पर गई।

    उस लड़के को देखते ही रीत खुशी से खिलखिलाते हुए बोली, "भैया!"

    रीत खुशी से अपने भाई के गले लग गई।

    प्रवीण आर्थिक को गोदी में उठाकर बोला, "कैसे हो तुम दोनों?"

    आर्थिक प्यारा सा मुँह बनाकर बोला, "मामा जी, मम्मा मुझको आइसक्रीम नहीं खाने दे रही है।"

    रीत आर्थिक को आँखें दिखाते हुए बोली, "अच्छा बच्चू, मामा के आते ही मम्मा की कंप्लेंट करने लगे?"

    प्रवीण आर्थिक के गाल पर किस करते हुए बोला, "अच्छा क्यों? रीत, मेरे आर्थिक को आइसक्रीम क्यों नहीं खाने दे रही हो?"

    रीत बोली, "अरे कुछ नहीं भैया। इन महाराज को कुछ दिन पहले ही बुखार आया था और जुकाम भी था। अभी कल ही ठीक हुए हैं। और डॉक्टर ने मुझसे साफ़-साफ़ कहा था कि कुछ दिन तक इसे ठंडा कुछ भी ना देना। और इन्हें आइसक्रीम चाहिए आज।"

    प्रवीण आर्थिक की तरफ़ देखता हुआ बोला, "ये तो गलत बात है। आपको अपनी मम्मी की बात माननी चाहिए। पहले आप ठीक हो जाओ, फिर मैं आपको आइसक्रीम खिलाने ले जाऊँगा। ओके? तब तक आप ये चॉकलेट खाओ।"

    आर्थिक खुश होता हुआ बोला, "ओके मामू, आप बहुत अच्छे हो। और मम्मा, मैं आपसे बात नहीं करूँगा। आप बहुत बुरी हो! कथी... कथ कथ..." आर्थिक अपने हाथ के अंगूठे को अपने चेहरे की ठुड्डी तक लाकर बोला।

    प्रवीण आर्थिक को ऐसा करते देखकर जोर-जोर से हँसने लगा।

    रीत गुस्से में बोली, "भैया, ये बहुत शैतान हो गया है। इससे तो मैं बताती हूँ... इधर आओ तुम जरा..."

    आर्थिक प्रवीण की गोदी से उतरकर अपने रूम में भाग गया।

    रीत: "कहाँ भाग रहे हो? यहाँ आओ, बताती हूँ तुम्हें..."

    रीत प्रवीण की तरफ़ मुस्कुराते हुए बोली, "आईये भैया, बैठिये। मैं कुछ बनाकर लाती हूँ।"

    प्रवीण रीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, "अरे बेटू, तू परेशान मत हो। मुझे कुछ नहीं खाना है। मैं तो तुझसे मिलने आया हूँ। बस मेरे पास बैठो।"

    रीत मुस्कुराते हुए बोली, "ऐसे कैसे? कुछ नहीं खाओगे भैया? अपनी बहन के घर आए हो, भूखा थोड़ी रहने दूँगी। मैं बस अभी आई, आप बैठिये।"

    रीत नाश्ता लेने किचन में चली गई थी।

    प्रवीण की नज़र दीवाल पर लगी तस्वीरों पर गई। कुछ फ़ोटो आर्थिक के बचपन की थीं, कुछ रीत और आर्थिक की साथ में थीं और कुछ अभी की थीं।

    रीत किचन से नाश्ता टेबल पर रखते हुए बोली, "क्या देख रहे हो भाई?"

    प्रवीण रीत की आवाज़ सुनकर होश में आता हुआ बोला, "हूँ...! कुछ नहीं, बस फ़ोटो देख रहा था।"

    रीत प्रवीण को चाय देते हुए बोली, "भैया, आपका काम कैसा चल रहा है?"

    प्रवीण चाय का घूँट लेते हुए बोला, "मैं ठीक हूँ बेटू। और काम भी अच्छा चल रहा है।"

    प्रवीण चाय का घूँट टेबल पर रखते हुए बोला, "तू ठीक तो है बेटू?"

    रीत प्रवीण के सवाल से हैरान होते हुए बोली, "हाँ...! हाँ भैया, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और आपको पता है मुझे तो नई कंपनी में जॉब भी मिल गई है।"

    प्रवीण: "अच्छा, कौन सी कंपनी में जॉब मिली है?"

    रीत: "वो रॉयल राजपूताना के एमडी, रणविजय सिंह राणावत की सेक्रेटरी के तौर पर मुझे जॉब मिली है।"

    प्रवीण: "बेटू, मैंने सुना है वो रणविजय सिंह राणावत बहुत गुस्सेल किस्म का इंसान हैं। बेटू, तू कैसे उसके साथ काम कर पाएगी?"

    रीत: "भाई, मैं कर भी क्या सकती हूँ? मैं यहाँ जिस मकसद से वापस आई हूँ, उसके लिए मुझे कहीं तो कुछ ना कुछ करना होगा।"

    प्रवीण ने रीत से ज़्यादा कुछ पूछना ज़रूरी नहीं समझा। वो जानता है उसकी बहन बहुत समझदार है, वो जो करेंगी सोच-समझकर करेंगी।

    कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा। फिर प्रवीण ने ही बात शुरू की।

    प्रवीण: "बेटू, तुझसे एक बात पूछनी थी।"

    रीत प्रवीण की तरफ़ देखते हुए बोली, "हाँ...! भाई, पूछो।"

    प्रवीण: "इन दीवाल पर तेरी और आर्थिक की ही तस्वीरें लगी हैं। कहीं भी कर्ण की नहीं लगी है और ना ही उसकी..."

    रीत समझ गई थी कि प्रवीण किसकी बात कर रहा है।

    रीत उदास स्वर में बोली, "वो इसलिए भाई क्योंकि मैं कर्ण को भुलाकर आगे बढ़ना चाहती हूँ। मैं जब भी उस रात को याद करती हूँ ना, तो ऐसा लगता है कि वो बस कल की ही बात हो, जब मुझसे मेरा सब कुछ छिन गया था।"

    प्रवीण रीत के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए बोला, "तुझे अभी वो सब याद आता है? बेटू, पर उस हादसे को हुए तीन साल हो गए हैं। भूल क्यों नहीं जाती वो सब तू?"

    रीत प्रवीण की तरफ़ हैरानी से बोली, "भूल जाऊँ? कैसे भूल जाऊँ भैया?"

    रीत खड़ी हो गई और खिड़की के पास आकर बोली, "मैं कभी वो एक्सीडेंट नहीं भूल सकती भैया। उस हादसे ने मुझे बर्बाद कर दिया था। मेरा पति, मेरा बच्चा, सब कुछ छीन लिया मुझसे। मेरे जीवन की सारी खुशियाँ छीन ली उस रात के एक्सीडेंट ने।" इतना बोलकर रीत जोर-जोर से रोने लगी।

    प्रवीण के भी आँसू निकल आए थे। वो अपने आँसू पोछकर बोला, "भगवान ने तेरा सब कुछ छीन लिया, उसके बदले तुझे आर्थिक दे दिया।"

    रीत अपने आँसू पोछते हुए बोली, "हाँ...! भैया, मेरे साथ इतना अन्याय करने के बाद भगवान को मुझ पर शायद तरस आ गया था, इसलिए उसने मेरी गोद में आर्थिक को डाल दिया। पर भैया, आप भूल रहे हैं, आर्थिक भी किसी और की अमानत है। उसी को तो वापस देने मैं फिर से इस शहर में आई हूँ जहाँ मैंने और कर्ण ने साथ मिलकर कितने सपने सजाए थे।"

    प्रवीण कुछ याद करते हुए बोला, "पापा तो हमें तेरी शादी के कुछ महीने बाद ही छोड़कर चले गए थे। और जब तेरे साथ वो हादसा हुआ और कर्ण और तेरे बच्चे की मौत की खबर आई तो उस ग़म ने हमसे हमारी माँ को भी छीन लिया।"

    रीत बाहर की तरफ़ देखते हुए बोली, "भगवान का इतने में भी मन नहीं भरा तो उन्होंने मेरे पिता समान ससुर को भी मुझसे छीन लिया।"

    रीत कुछ देर वैसे ही बाहर देखती रही। फिर वो अपने आँसू पोछते हुए प्रवीण के पास आकर बैठती हुई बोली, "अच्छा, बहुत हुई पुरानी बातें। भैया, अब ये आँसू पोछ लो, वरना उस शैतान ने आपकी आँखों में आँसू देख लिया तो मुझसे कहेगा कि आपने मेरे मामू को कैसे रुलाया। आपका लाडला जो है, मुझे ही डाँटेगा।"

    रीत की बात सुनकर प्रवीण के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

    रीत मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा ये बताओ भाई, आप शादी कब करोगे? आखिर कब तक आप अकेले रहोगे?"

    प्रवीण रीत की बात को काटते हुए बोला, "बेटू, तू फिर शुरू हो गई। मैंने कहा था ना कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहता हूँ।"

    रीत हैरानी से बोली, "तो फिर कब करना चाहते हो भाई आप?"

    प्रवीण गम्भीर स्वर में बोला, "जब तक मैं उस इंसान का पता नहीं लगा लेता जिसने मेरी बहन का जीवन बर्बाद किया है, तब तक मैं शादी नहीं करूँगा।"



    राणावत मेंशन

    "मिस्टर सक्सेना, ऐसी कौन सी बात है जो आप कल सुबह तक का भी इंतज़ार नहीं कर पाए और इतनी रात को आपको मुझे फ़ोन करना पड़ रहा है?" रणविजय गुस्से में मिस्टर सक्सेना से फ़ोन पर बोला।

    मिस्टर सक्सेना: "मैं माफ़ी चाहता हूँ सर, पर बहुत ज़रूरी बात है जो मुझे आपको अभी बताना ज़रूरी था।"

    रणविजय गम्भीर स्वर में बोला, "ठीक है, बोलिए।"

    मिस्टर सक्सेना हिचकिचाते हुए बोले, "सर, मुझे आपसे वो बोलना था... सर, मुझे समझ नहीं आ रहा है कैसे बोलूँ।"

    रणविजय गुस्से में बोला, "मिस्टर सक्सेना, जो बात है साफ़-साफ़ बोलिए। ये वोह-वोह मत करिए मुझसे।"

    मिस्टर सक्सेना हकलाते हुए बोले, "सर, वो मिस आशियां..."

    आशियां का नाम सुनते ही रणविजय उत्साहित होते हुए बोला, "आशियां? क्या मिस्टर सक्सेना?"

    मिस्टर सक्सेना डरते-डरते बोले, "सर, वो मिस आशियां ने कुछ साल पहले ही किसी फ़ॉरेनर के साथ शादी करके विदेश चली गई थी।"

    मिस्टर सक्सेना की बात सुनकर रणविजय के तो पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई हो।

    रणविजय दीवाल पर फ़ोन पटक दिया और चिल्लाते हुए बोला, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तुम मुझे धोखा नहीं दे सकती हो आशियां।"


  • 11. Dil hai tumhaara - Chapter 11

    Words: 889

    Estimated Reading Time: 6 min

    माँ, मैं शादी के लिए तैयार हूँ। रणविजय नाश्ता करते हुए सिमरन जी से बोला।

    रणविजय की बात सुनकर सिमरन जी और रणधीर जी हैरानी से उसकी तरफ देख रहे थे।

    सिमरन जी रणविजय की तरफ हैरानी से देखती हुई बोलीं, "पर अचानक से आपको क्या हो गया रणविजय? कल तक तो आप शादी करने से मना कर रहे थे।"

    रणविजय अपने सर को नीचे की तरफ झुकाकर नाश्ता करते हुए बोला, "मुझे क्या होगा माँ? आप सब चाहते हैं कि मैं शादी कर लूँ और अपने जीवन में आगे बढ़ जाऊँ, तो मैं आप सबके लिए शादी करने के लिए तैयार हूँ।"

    रणविजय की बातें सुनकर सब बहुत खुश थे। सिमरन जी खुशी से रणविजय को गले लगाते हुए बोलीं, "मैं आपके लिए दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की ढूँढ कर लाऊँगी, जो आपको बहुत प्यार करे और आपको खुश रखे।" सिमरन जी हँसती हुई रणधीर जी से बोलीं, "देखा जी, मैं कहती थी ना, भगवान हमारे साथ इतना कठोर नहीं हो सकता है। उसने हमारी आखिरकार सुन ही ली।"

    कुंती जी, जो मंदिर से पूजा करके आ रही थीं, वे उनके पास आते हुए बोलीं, "क्या हुआ बहु? इतनी खुश क्यों हो? क्या हमारे रणविजय ने शादी के लिए हाँ बोल दी क्या?"

    सिमरन जी खुशी से झूमती हुई उनके गले लगते हुए बोलीं, "जी हाँ मम्मी जी, आपने सही सोचा है। आपके पोते ने शादी के लिए हाँ बोल दी है। मम्मी जी, आज मैं बहुत खुश हूँ। मेरा दिल कर रहा है कि मैं चिल्ला-चिल्लाकर पूरी दुनिया को बताऊँ कि मेरी बहू आने वाली है।"

    रणधीर जी रणविजय के पास आकर बोले, "थैंक्यू बेटा।"

    रणविजय हैरानी से बोला, "थैंक्यू क्यों पापा?"

    रणधीर जी रणविजय के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, "आपने आज हमें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दी है रणविजय।" वे सिमरन जी की तरफ देखते हुए बोले, "आज आपकी माँ बहुत खुश हैं बेटा। थैंक्यू सो मच रणविजय।" रणधीर जी उसके कंधे को थपथपाकर चले गए।

    रणविजय से अब यह नौटंकी देखी नहीं जा रही थी, इसलिए वह अपने ऑफिस के लिए निकल गया।

    कार में बैठकर रणविजय खिड़की से आसमान की तरफ देख रहा था। उसने मन ही मन में कहा, "मैं अपने जीवन में आगे बढ़ तो रहा हूँ, पर मैं अपने दिल से हारा हूँ। आशियाना जिसमें सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखा हुआ है, वहाँ कैसे आगे बढ़ूँगा मैं? मैं अपने गुस्से के कारण यह शादी करने को तैयार हुआ हूँ, पर यह दिल तो अभी तुम्हीं से प्यार करता है। आखिर मैं कर भी क्या सकता हूँ आशियाना? मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा और अब से मैं तुम्हें नहीं ढूँढूँगा। तुम जहाँ रहो खुश रहो, पर मैं तुमसे चाहे जितनी कोशिश कर लूँ नफ़रत करने की, पर यह मेरा दिल ही जानता है कि यह दिल सिर्फ़ तुम्हारा है।"


    "सर, आपने मुझे बुलाया?" रीत रणविजय के सामने खड़ी होती हुई बोली।

    रणविजय सर झुकाए अपनी फाइल को पढ़ते हुए बोला, "हाँ! मिस शर्मा, मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।"

    रीत सर झुकाए ही बोली, "जी सर, बोलिए।"

    रणविजय गम्भीर आवाज़ में बोला, "हमें कुछ दिनों के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना होगा। वहाँ हमें अपने नए रेस्टोरेंट के लिए शेयरहोल्डर की मीटिंग रखनी है। वहाँ हम अपना नया रेस्टोरेंट खोल रहे हैं, इसी कारण हमें आज रात को ही ऑस्ट्रेलिया के लिए फ्लाइट लेनी होगी। तो आप अपनी और मेरी ऑस्ट्रेलिया की टिकट बुक करा लीजिए।"

    रीत हैरानी से बोली, "क्या आज रात को ही जाना ज़रूरी है सर? हम कल सुबह भी तो जा सकते हैं।"

    रणविजय गुस्से से रीत की तरफ देखते हुए बोला, "आपसे जितना काम कहा जाए, आप उतना काम कीजिए। आपको मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि मुझे कब क्या करना है और क्या नहीं। Are you understand?"

    रीत डरते हुए सर हाँ में हिलाते हुए बोली, "सॉरी सर, मैं अभी करती हूँ।"

    रणविजय फिर से फाइल पर ध्यान लगाते हुए बोला, "Ok now, go do the work."

    रीत जाने लगी तो पीछे से रणविजय ने आवाज़ देते हुए बोला, "मिस शर्मा..."

    रीत रणविजय की आवाज़ सुनकर उसकी तरफ़ मुड़ती हुई बोली, "यस सर..."

    रणविजय फाइल्स में सिग्नेचर करते हुए बोला, "मिस शर्मा, मैंने अपने घर पर कॉल कर दिया है। वे मेरा लगेज तैयार कर देंगे। आपको बस मेरे घर जाकर मेरा लगेज ले कर डायरेक्ट एयरपोर्ट ले कर आना है। और हाँ, जब आप मेरे घर जा ही रही हैं तो रास्ते से अपना भी लगेज ले लीजिएगा। Ok, that's all clear. I hope you understand. Ok now go."

    रीत डरते हुए बोली, "सर, मुझे आपसे एक कुछ पूछना था।"

    रणविजय रीत की तरफ़ घूरते हुए बोला, "पूछिए मिस शर्मा।"

    रीत घबराती हुई बोली, "सर, वो हम ऑस्ट्रेलिया कितने दिनों के लिए जा रहे हैं? वो मेरा मतलब है कि मुझे घर पर भी तो बताना होगा, इसलिए पूछा।"

    रणविजय अपना काम करते हुए बोला, "I think miss Sharma, one week."

    रीत हैरानी से बोली, "What? One week?"

    रणविजय घूरते हुए बोला, "Why are you having any problem miss Sharma?"

    रीत ना में सर हिलाते हुए बोली, "नहीं सर, कोई problem नहीं है।"

    रणविजय अपना काम करते हुए बोला, "Good. Ok, go do your work."

    क्रमशः

  • 12. Dil hai tumhaara - Chapter 12

    Words: 1052

    Estimated Reading Time: 7 min

    राणावत मेंशन

    रीत राणावत मेंशन को आँखें फाड़-फाड़ कर बाहर से देख रही थी। वह धीरे से कुछ बुदबुदाई और मेंशन के अंदर चली गई।

    रीत ने घर की डोर बेल बजाई। डोर खोलते ही सामने कुछ साठ साल के बुज़ुर्ग आदमी खड़े थे। कपड़ों से वे घर के कर्मचारी लग रहे थे; सफ़ेद बाल, गालों पर झुर्रियाँ, धोती-कुर्ता और कंधे पर अंगोछा डाले हुए थे। वे रीत को देख रहे थे।

    रीत मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर बोली, "जी, नमस्ते!"

    वह कर्मचारी, जिनका नाम रामू था और घर पर सब उन्हें रामू काका बुलाते थे, मुस्कुराते हुए बोले, "नमस्ते बिटिया। आपको किससे मिलना है?"

    रीत: "वह... मैं रणविजय सर की सेक्रेटरी हूँ। मुझे रणविजय सर ने भेजा है, उनका लगेज लेने के लिए।"

    रामू काका कुछ बोलने जा रहे थे, तभी उनके पीछे से किसी ने उन्हें आवाज़ दी, "कौन है रामू काका?"

    रामू काका पीछे मुड़ते हुए बोले, "छोटे मालिक के ऑफ़िस से कोई लड़की आई है।"

    कुन्ती जी हैरान होती हुई बोलीं, "रणविजय के ऑफ़िस से लड़की आई है? वह भी घर पर?..." वह कुछ सोचने के बाद बोलीं, "तो क्या आप उसे बाहर खड़ा रखेंगे? अंदर ले आओ।"

    रामू काका ने हाँ में सर हिला दिया और रीत को अंदर ले आए।

    रीत पूरे घर को अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से हैरानी से देख रही थी। सामने सीढ़ियाँ थीं जो कुछ इस तरह से थीं कि ऊपर से दाएँ तरफ़ से सीढ़ियाँ निकली थीं, फिर उसी के सामने बाएँ तरफ़ से भी सीढ़ियाँ निकली थीं, फिर वे दोनों सीढ़ियाँ एक में मिलकर सीधे नीचे की तरफ़ आती थीं। उसी के सामने बड़ा सा हाल था, जिसके बीचों-बीच तुलसी जी लगी हुई थीं और किनारे से कमरे निकले हुए थे। उसके आगे एक और हाल था जहाँ सोफ़े पड़े हुए थे। वहीं पर कुन्ती जी बैठी अख़बार पढ़ रही थीं। रीत दरवाज़े के पास खड़ी होकर पूरे घर को देख रही थी।

    रामू काका ने उसे ऐसे खोए हुए देखते हुए बोले, "कहाँ खो गई बिटिया? आओ..."

    रीत उनकी बात सुनकर होश में आते हुए हाँ में सर हिला दिया और उनके पीछे-पीछे चलने लगी।

    रामू काका रीत को कुन्ती जी के पास लाकर खांसी करते हुए बोले, "बड़ी मालकिन, ये बिटिया छोटे मालिक के ऑफ़िस से आई हैं। बोल रही हैं कि इनको छोटे मालिक ने भेजा है।"

    कुन्ती जी अख़बार पढ़ते हुए गम्भीर आवाज़ में बोलीं, "हाँ, मुझे पता है। रणविजय ने बहू को फ़ोन करके बताया था कि उसकी सेक्रेटरी आने वाली है, उसका लगेज लेने। रामू काका, आप जाकर बहू सिमरन से बोल दीजिए कि वह रणविजय का लगेज तैयार कर दे और इनके लिए नाश्ते-पानी का इंतज़ाम कीजिए।"

    रामू काका ने हाँ में सर हिला दिया और वहाँ से चले गए।

    कुन्ती जी अख़बार रखते हुए बोलीं, "बैठ जाओ बेटा।"

    रीत घबराती हुई बोली, "जी, धन्यवाद।"

    कुन्ती जी गम्भीर आवाज़ में बोलीं, "आपका नाम क्या है?"

    रीत बैठते हुए बोली, "जी, रीत... रीत शर्मा।"

    कुन्ती जी रीत का नाम सुनते ही उसकी तरफ़ देखने लगीं और मुस्कुराते हुए बोलीं, "आप तो वही हैं ना जो कुछ महीने पहले मुझे मंदिर में मिली थीं? क्या आप मुझे भूल गईं?"

    रीत कुछ याद करते हुए बोली, "जी नहीं, मैं नहीं भूली हूँ। याद है मुझे। हमें नहीं पता था कि आप रणविजय सर की दादी होंगी।"

    कुन्ती जी हँसते हुए बोलीं, "हमें भी कहाँ पता था कि आप रणविजय की सेक्रेटरी होंगी।"

    कुछ देर बाद सिमरन जी रणविजय का लगेज लेकर आती हैं।

    रीत उन दोनों को नमस्ते करती है और फिर लगेज लेकर चली जाती है।

    कुन्ती जी सिमरन जी से बोलीं, "कितनी अच्छी लड़की है ना।"

    सिमरन जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "हाँ, बहुत अच्छी लड़की है।"

    कुन्ती जी कुछ बोलने जा रही थीं कि तभी सिमरन जी हँसते हुए बोलीं, "आपको पता है मांजी, हमने रणविजय के लिए लड़की ढूँढ ली है।"

    कुन्ती जी हैरान होती हुई बोलीं, "क्या...! कौन है?"

    सिमरन जी खिलखिलाते हुए बोलीं, "हमारी दोस्त की लड़की है।"

    कुन्ती जी सिमरन जी को हैरानी से देखते हुए बोलीं, "दोस्त की लड़की? कौन से दोस्त की लड़की है?"

    सिमरन जी बोलीं, "अरे, हमारी दिल्ली वाली सहेली नहीं है... उसकी बेटी टिया। आप तो उसे जानती भी हैं। पिछली बार घर पर पार्टी थी तब आई भी थी। मुझे तो वह पहले से ही पसंद थी, पर रणविजय की जिद के कारण मैं कुछ बोली नहीं। पर अब जब रणविजय ने शादी के लिए हाँ बोल दी है, तो मैं टिया को ही अपनी बहू बनाऊँगी।"

    इतना बोलकर सिमरन जी खिलखिलाते हुए वहाँ से चली गईं।

    कुन्ती जी मुँह बनाते हुए बोलीं, "क्या मेरे रणविजय के लिए वो असंस्कारी लड़की? जिसको ना कपड़े पहनने का ढंग है ना ही बात करने का... ये बहू को उसमें पता नहीं क्या अच्छा लग गया है।"

    ........................

    रीत रिक्शे में बैठी अपनी दोस्त साक्षी से फ़ोन पर बात करते हुए बोली, "यार साक्षी, मुझे तेरी मदद चाहिए।"

    साक्षी बोली, "हाँ बोल मेरी जान, तुझे कैसी मदद चाहिए मुझसे?"

    रीत परेशान होती हुई बोली, "यार, मैं एक हफ़्ते के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रही हूँ, बिज़नेस मीटिंग के लिए। तब तक तू आर्थिक का ख्याल रख सकती है?"

    साक्षी हँसते हुए बोली, "बस इतनी सी बात? कोई परेशानी नहीं है। तू बेफ़िक्र होकर जा। मैं आर्थिक का अच्छे से ख्याल रखूँगी।"

    रीत मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक्यू यार।"

    साक्षी झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोली, "यार, दोस्त भी बोलती हो और थैंक्यू भी बोलती हो। जाओ, मैं बात नहीं करूँगी।"

    रीत हँसते हुए बोली, "अच्छा बाबा, अब नहीं बोलूँगी। खुश? अच्छा सुन, आज रात को ही निकल रही हूँ, तो तू आर्थिक को लेने स्कूल चली जाना।"

    साक्षी हैरान होती हुई बोली, "तो तू आर्थिक से मिलकर नहीं जाएगी?"

    रीत उदास होते हुए बोली, "नहीं यार, अगर मैं आर्थिक से मिली तो मैं जा नहीं पाऊँगी। इसलिए उससे बिना मिले जाना होगा मुझे।"

    रीत बोली, "चल यार, मैं फ़ोन रखती हूँ क्योंकि एयरपोर्ट आ गया है।"

    साक्षी हँसते हुए बोली, "ओके, बाय। हैप्पी जर्नी मेरी जान।"

    रीत हँसते हुए बोली, "चल, बाय बाय।"

    ........................

    क्रमशः

  • 13. Dil hai tumhaara - Chapter 13

    Words: 900

    Estimated Reading Time: 6 min

    मुम्बई

    मिस्टर सक्सेना ने रणविजय सर से कहा कि मिस आशियां ने किसी विदेशी से शादी करके यहाँ से चली गई हैं। मिस्टर सक्सेना किसी से फ़ोन पर बात करते हुए बोले।

    फ़ोन के उस तरफ़ से उस व्यक्ति ने कुछ कहा। मिस्टर सक्सेना बोले, "आप बिल्कुल परेशान मत होइए। ये रणविजय सर को कुछ नहीं पता चलेगा कि मैंने उनसे झूठ बोला था।"

    फ़ोन के उस तरफ़ से उस व्यक्ति ने कुछ कहा और फ़ोन रख दिया। मिस्टर सक्सेना ने फ़ोन अपनी जेब में रख लिया और अपने काम पर चले गए।


    ऑस्ट्रेलिया

    रणविजय और रीत को दो दिन हो गए थे। वे दोनों शेयरहोल्डर्स से मीटिंग कर रहे थे।

    रणविजय का होटल प्रोजेक्ट देखकर सभी शेयरहोल्डर्स प्रभावित हुए थे। अब रणविजय को इन सभी शेयरहोल्डर्स के बॉस को अपना प्रोजेक्ट दिखाकर होटल के कॉन्ट्रैक्ट पेपर्स पर हस्ताक्षर करवाने थे।

    शेयरहोल्डर्स के मुख्य बॉस से रणविजय की मीटिंग दो दिन बाद रखी गई थी। रणविजय को ये दो दिन दो जन्मों के बराबर लग रहे थे। उसे किसी भी हालत में ऑस्ट्रेलिया में रॉयल राजपूताना होटल खोलने का सपना पूरा करना था।

    रणविजय की मीटिंग में अभी दो दिन बाकी थे। प्रेजेंटेशन तैयार था, इसलिए रणविजय ने ऑस्ट्रेलिया घूमने का सोचा। रणविजय अपने कमरे से निकला ही था कि पीछे से रीत बोली, "सर, आप कहीं जा रहे हैं क्या?"

    "हाँ, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ। कमरे में बैठे-बैठे बोर हो रहा था, सोचा कुछ देर बाहर घूम आऊँ," रणविजय ने कहा।

    "सर, क्या मैं भी चल सकती हूँ? मैं भी बहुत बोर हो रही थी," रीत डरते-डरते बोली।

    "हाँ, क्यों नहीं? इसमें मुझे क्या हर्ज है? चलो, साथ में," रणविजय इतना बोलकर आगे निकल गया।

    रीत के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वह जल्दी-जल्दी रणविजय के पीछे-पीछे चलने लगी।

    कुछ देर बाद दोनों खाना खाने एक रेस्टोरेंट में पहुँचे। दोनों ने अपना ऑर्डर दिया और चुपचाप बैठे रहे। ना रणविजय कुछ बोल रहा था, ना ही रीत। कुछ देर बाद वेटर दोनों का ऑर्डर लेकर आ गया।

    वे दोनों चुपचाप खाना खाने लगे। पर रीत को ऐसे चुपचाप खाना खाना अजीब लग रहा था। इसलिए उसने हिम्मत करके रणविजय से बात करने की कोशिश की।

    "सर, अगर हमारी डील उसी दिन हो गई, तो हम जल्दी घर चल जाएँगे ना?" रीत घबराती हुई बोली।

    "जी, मिस शर्मा, बस आप प्रार्थना कीजिए कि ये डील अच्छे से हो जाए," रणविजय फ़ोन चलाते हुए बोला।

    "सर, आपसे एक बात पूछूँ," रीत डरते हुए बोली।

    "जी, मिस शर्मा, पूछिए," रणविजय खाना खाते हुए बोला।

    "सर, आपके घर में कौन-कौन है?" रीत घबराती हुई बोली।

    रणविजय सर उठकर रीत को घूरने लगे।

    रणविजय को अपनी ओर ऐसे घूरता देख रीत मन ही मन घबराते हुए सोची, "अब तो तू गई रीत! तू भी पागल है। तुझे क्या करना था? उनके घर में कोई भी हो, तुझें फालतू में सोए हुए शेर को जगा दिया है।"

    रणविजय खाना खाने लगा। आज रणविजय का मूड अच्छा था, इसलिए वह बहुत नर्म स्वर में बोला, "मेरे घर में मेरे माता-पिता हैं, दादी हैं और एक छोटी बहन है जो बाहर पढ़ाई कर रही है।" रणविजय को ऐसे सहजता से बात करते हुए देखकर आज रीत हैरान थी। इन एक महीने में रणविजय ने कभी रीत से ऐसे बात नहीं की थी; हमेशा गुस्से में ही बात की थी।

    रणविजय रीत की तरफ़ देखते हुए बोला, "मिस शर्मा, आपकी फैमिली में कौन-कौन है?"

    रणविजय का यह सवाल सुनते ही रीत के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। वह उदास हो गई।

    रीत को ऐसे उदास देखकर रणविजय हैरान होते हुए बोला, "क्या हुआ मिस शर्मा? मैंने कुछ गलत पूछ दिया?"

    रीत ना में सर हिलाते हुए बोली, "नहीं सर, आपने कुछ भी गलत नहीं पूछा है। सर, मेरी फैमिली में मेरे भाई और बच्चे के सिवा और कोई नहीं है।"

    "क्या? बच्चा? इसका मतलब आपकी शादी हो चुकी है? इसका मतलब आप शादीशुदा हैं?" रणविजय रीत को हैरानी से देखते हुए बोला।

    "जी सर, मेरी शादी हो गई थी और मैं एक बच्चे की माँ हूँ, पर मैं शादीशुदा नहीं हूँ। बल्कि मैं विधवा हूँ।"

    "क्या...? आप इतनी कम उम्र में विधवा हो गई हैं? मिस शर्मा, क्या आप मुझे बता सकती हैं कि आप इतनी कम उम्र में विधवा कैसे हुईं?" रणविजय सवालिया निगाहों से रीत से बोला।

    रीत की आँखों में आँसू आ गए। वह बहुत सावधानी से अपने आँसू पोछते हुए अपनी पूरी कहानी रणविजय को सुनाने लगी, पर इस बात को छोड़कर कि आर्थिक रूप से उसका बेटा निर्भर नहीं है। यह बात उसने रणविजय को नहीं बताई।

    "आप परेशान मत होइए, मिस शर्मा। मैं पता लगाऊँगा कि किसने वह एक्सीडेंट किया था," रणविजय रीत को दिलासा देते हुए बोला।

    क्रमशः

  • 14. Dil hai tumhaara - Chapter 14

    Words: 1065

    Estimated Reading Time: 7 min

    हद करती हो! रीत, इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग के पेपर्स तुम कमरे में कैसे भूल गईं? अच्छा हुआ रणविजय सर को कुछ पता नहीं चला, वरना...

    तेरी आज खैर नहीं रहती, रीत! रीत जल्दी-जल्दी चलते हुए खुद से बड़बड़ा रही थीं।

    उसने आज सुबह से नाश्ता भी नहीं किया था, जिस कारण उसके सिर में दर्द हो रहा था। इसलिए उसने अपने लिए एक कप कॉफ़ी ले ली थी। जल्दी में वह एक हाथ में पेपर्स की फाइल पकड़े और दूसरे हाथ में कॉफ़ी का कप पकड़े, जल्दी से होटल के अंदर चली गईं।

    रीत अपने हाथ में बंधी घड़ी में वक्त देखती हैं और जल्दी में चलते हुए बड़बड़ाते हुए बोली, "यार, कहीं देर न हो जाए! अगर मीटिंग शुरू हो गई होगी और वक्त पर फाइल रणविजय सर के पास नहीं पहुँची तो रणविजय सर मुझे खा जाएँगे। अभी जो रणविजय सिंह राणावत अच्छे से बात कर रहे थे, फिर वो अपना असली रूप दिखाएँगे। हैं...! कान्हा...! मुझे आज बचा लेना...रणविजय सर के गुस्से से..."

    रीत अपने ही इतनी परेशान थीं कि उसने अपने बगल में चल रहे इंसान पर ध्यान ही नहीं दिया। रीत तेज़ चल रही थी; इस कारण अचानक से उसका पैर मुड़ गया और वह अपने बगल में चल रहे इंसान से जा टकराई और उस इंसान पर पूरी कॉफ़ी गिर गई। और जो पेपर्स उसके हाथ में थे, वे जाकर जमीन पर गिर गए।


    "व्हाट द हेल...!" वह इंसान अपने कोट की तरफ देखते हुए गुस्से में चिल्लाते हुए बोला।

    "ये क्या बदतमीज़ी है? देखकर नहीं चल सकती हो? सर के पूरे कपड़े खराब कर दिए। अंधी होकर चल रही थी!" दूसरा आदमी उस आदमी का कोट साफ़ करते हुए बोला।

    रीत ने हैरानी से उस इंसान के कपड़ों की तरफ एक नज़र डाली, फिर नीचे जमीन पर पड़े पेपर्स को देखने लगी और जल्दी से नीचे बैठकर पेपर्स उठाने लगी।

    वह इंसान, जिसके कपड़ों पर कॉफ़ी गिरी थी, वह रीत का ऐसा बर्ताव देखकर गुस्से में अपने आदमी की तरफ खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा।

    वह आदमी घबराते हुए हाँ में सर हिलाते हुए रीत की तरफ देखते हुए बोला, "अरे, बड़ी बदतमीज़ लड़की हो! ऊपर से गलती भी करती हो और माफ़ी भी नहीं मांगी जाती है!"

    रीत ने जल्दी-जल्दी सारे पेपर्स को फाइल में रख लिया और खड़ी होती हुई उस इंसान की तरफ देखने लगी।

    वह आदमी बहुत गुस्से में था। वह रीत पर चिल्लाने वाला था, पर जैसे उसने वो हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी घबराई हुई आँखों में देखा, तो जैसे वह उनमें खो गया हो। वह आदमी रीत को देख ही जा रहा था। वो बड़ी खूबसूरत आँखें, गुलाबी होंठ और ऊपर से वो लहराते बालों की एक लट जो रीत के गाल को छू रहे थे।

    रीत अपने फाइल को सही करते हुए उस इंसान की तरफ देखा।

    वह इंसान कुछ उनतीस-तीस साल का हैंडसम गबरू जवान आदमी था। सिक्स पैक्स वाली बॉडी, चौड़ी छाती और कद छह सात इंच था। ब्लैक कलर का वन-पीस कोट पहने वो रीत को देख रहा था।

    वह घबराती हुई बोली, "सॉरी सर, मैं थोड़ी जल्दी में थी, इसलिए ध्यान नहीं दिया। मैं माफ़ी चाहती हूँ।"

    उस इंसान ने कुछ नहीं कहा, वह वैसे ही रीत को देख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह यहाँ है ही नहीं, कहीं और ही हो वह।

    "मुझे माफ़ कर दीजिए," रीत अपना सर झुकाते हुए बोली।

    पर...! उस दूसरे आदमी ने कुछ कहना चाहा, लेकिन उस पहले आदमी ने उसे हाथ दिखाते हुए रोक दिया, तो वह आदमी चुप होकर पीछे खड़ा हो गया।

    "इट्स ओके... कोई बात नहीं, आप जा सकती हैं।" वह आदमी बहुत नॉर्मल होकर बोला।

    "थैंक्स सर एंड सॉरी वन्स अगेन," इतना बोलकर रीत जल्दी से वहाँ से चली गईं।

    वह आदमी वैसे ही चेहरे पर मुस्कान लाते हुए रीत को जाते देख रहा था।

    वह दूसरा आदमी, जो इतनी देर से यह सब देख रहा था, वह हैरानी से उस आदमी से बोला, "सर, आपने ऐसे ही इस लड़की को जाने क्यों दिया? और सर, आप ऐसी हालत में मीटिंग कैसे करेंगे?" वह आदमी घबराते हुए बोला।

    "तुम फ़ोन करके बता दो कि मुझे देर हो जाएगी आने में और मेरे लिए नए कपड़ों का इंतज़ाम करो जल्दी से जल्दी।" वह बिना अपने सेक्रेटरी की तरफ देखे बोला।

    "यस सर, मैं अभी करता हूँ।"


    ये मिस शर्मा मुझे बिन बताए इस वक्त कहाँ चली गई हैं? रणविजय गुस्सा होते हुए बोला।

    "सॉरी सर," रीत अंदर आते हुए बोली।

    "कहाँ चली गई थीं मिस शर्मा? मुझे ऐसे बिन बताए जाने वाले लोग बिलकुल पसंद नहीं हैं। कम से कम बताकर जातीं।" रणविजय गुस्सा होते हुए बोला।

    "सॉरी सर, मुझे कुछ काम याद आ गया था।"

    "यहाँ कैसा काम आपको याद आ गया? आप भूल क्यों जाती हैं मिस शर्मा? हम मुंबई में नहीं हैं, हम ऑस्ट्रेलिया में हैं और आपको यहाँ भी काम है। It's really disgusting मिस शर्मा।"

    "मैं माफ़ी चाहती हूँ सर। अब से ऐसा नहीं होगा।" रीत इधर-उधर देखते हुए बोलती हैं, "सर, अभी तक मीटिंग शुरू नहीं हुई है।"

    "आपको क्या दिख रहा है मिस शर्मा? अगर मीटिंग शुरू हो जाती, तो आप यहाँ सही-सलामत खड़ी होती क्या? रणविजय ताने देने के लहजे में बोला।

    ये इंसान सही से जवाब भी नहीं दे सकता है। हद है इस इंसान के लिए! मैं भागती हुई आई हूँ और इन्हीं सब चक्करों में मेरे पैर में छाला भी लग गया, पर ये तो अपने खड़ूस वाले मूड में ही रहेगा। हैं...! भगवान क्या होगा इसका? कान्हा, या तो इसको बात करना सिखा दो या तो मुझे इससे छुट्टी दिला दो। कुछ भी करो कान्हा... रीत मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोली।

    "कुछ कहा आपने मिस शर्मा?" रणविजय उसकी तरफ देखते हुए बोला।

    "क्या आपने कुछ सुना क्या सर?" रीत अनजान बनते हुए बोली।

    "नहीं, बिलकुल नहीं।" रणविजय फिर से अपने मोबाइल में देखते हुए बोला।

    "अच्छा सर, मीटिंग कब शुरू होगी?"

    "बस वो लोग आ जाएँ मिस शर्मा।" रणविजय खड़ा होते हुए बोला।

    "हेलो मिस्टर रणविजय सिंह राणावत..." उस आदमी ने रूम के अंदर आते हुए बोला।

    रणविजय और रीत दोनों उसकी तरफ देखने के लिए मुड़े।

    जहाँ रणविजय खुश होते हुए आगे बढ़कर उस आदमी से हाथ मिलाने लगा...

    वहीं रीत की तो आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। वह घबराते हुए धीरे से बोली, "ये... ये तो वही है..."

    क्रमशः

  • 15. Dil hai tumhaara - Chapter 15

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    ये तो वही हैं... रीत घबराती हुई धीरे से खुद से बोली।

    "अरे, ये तो वही हैं जिनके ऊपर मैंने अभी थोड़ी देर पहले कॉफ़ी गिराई थी..."

    "तो क्या आज इन्हीं के साथ हमारी मीटिंग है...?" रीत अपने सर पर हाथ मारते हुए बोली। "ये तुमने क्या कर दिया, रीत! अगर तेरी वजह से मीटिंग में कुछ भी हुआ..."

    "तो ये जो इंसान हैं... रणविजय सिंह राणावत तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा... अब तू क्या करेगी, रीत? तू तो आज गई..." रीत डरते हुए अपने नाखून को दाँत से दबाते हुए मन ही मन बड़बड़ा रही थी।


    "हैलो मिस्टर रणविजय... मैं माफ़ी चाहता हूँ... मुझे थोड़ी देर हो गई आने में..." वो आदमी रणविजय से हाथ मिलाते हुए बोला।

    "कोई बात नहीं... इट्स ओके..." रणविजय हाथ मिलाते हुए बोला।

    "इनसे मिलिए, ये मेरी सेक्रेटरी मिस रीत शर्मा..." रणविजय रीत की तरफ़ हाथ दिखाते हुए बोला।

    "मिस शर्मा, ये हैं धनुष कपूर। ये ही हमारे बिज़नेस में इन्वेस्ट करेंगे..." रणविजय रीत की तरफ़ देखते हुए बोला।

    "हैलो सर, आपसे मिलकर अच्छा लगा..." रीत घबराती हुई हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली।

    "हैलो मिस रीत, नाइस टू मीट यू..." धनुष मुस्कुराते हुए हाथ मिलाते हुए बोला।

    "मिस्टर राणावत, आपकी सेक्रेटरी तो बहुत सुंदर है..." धनुष मुस्कुराते हुए रीत की तरफ़ देखते हुए बोला।

    "थैंक्यू सर..." रीत नज़रें झुकाते हुए बोली। उसे धनुष का उसे ऐसे देखना अच्छा नहीं लग रहा था।

    "मिस्टर कपूर, अब हम मीटिंग शुरू करें..." रणविजय बात को बदलते हुए बोला, क्योंकि उसको भी धनुष को यूँ रीत पर ही नज़र टिकते देखना ठीक नहीं लग रहा था।

    "हाँ!... हाँ, चलिए मीटिंग शुरू करते हैं..." धनुष हाथ का इशारा करते हुए बोला।

    रणविजय रीत की तरफ़ देखकर प्रेज़ेंटेशन शुरू करने का इशारा किया।

    रीत हाँ में सर हिलाते हुए प्रेज़ेंटेशन शुरू करती हैं।

    रीत बहुत अच्छी तरह से प्रेज़ेंटेशन समझा रही थीं। पूरे वक़्त धनुष की नज़रें रीत पर ही टिकी हुई थीं। वो रीत को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। और ये सब रणविजय बहुत गौर से नोटिस कर रहा था। धनुष का यूँ रीत को देखना उसे अच्छा नहीं लग रहा था।

    कुछ देर बाद मीटिंग ख़त्म हो गई।

    "बहुत अच्छी प्रेज़ेंटेशन थी मिस्टर राणावत, बहुत खूब..." धनुष रणविजय से हाथ मिलाते हुए बोला।

    "थैंक्यू मिस्टर कपूर। तो आपने क्या सोचा है? आप हमारे बिज़नेस में इन्वेस्ट करेंगे?" रणविजय गम्भीर आवाज़ में बोला।

    धनुष मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ, बिल्कुल करेंगे मिस्टर राणावत। क्योंकि हमें आपकी प्रेज़ेंटेशन बहुत अच्छी लगी... और प्रेज़ेंटेशन देने वाली भी..." धनुष ने रीत की तरफ़ देखते हुए ये बात अपने मन में बोली।

    "थैंक्यू मिस्टर कपूर। ओके, तो अब हम चलते हैं... कल हमारी मुंबई के लिए फ़्लाइट है..." रणविजय गम्भीर आवाज़ में बोला।

    "पर जाने से पहले आप दोनों आज हमारी पार्टी में ज़रूर आना होगा..." धनुष हँसते हुए बोला।

    "जी, ज़रूर आयेंगे। अच्छा, तो अब हम चलते हैं मिस्टर कपूर..."

    रणविजय और रीत रूम से निकल गए।

    धनुष रीत को जाते हुए देखकर मुस्कुरा रहा था। धनुष को ऐसे रीत की तरफ़ मुस्कुराते देखकर उसका सेक्रेटरी राहुल देख रहा था।

    "मुझे मिस रीत के बारे में सब कुछ जानकारी चाहिए; कि उनके घर में कौन-कौन है... उनके दोस्त कौन हैं, सब कुछ... मतलब सब कुछ... पूरी जन्मकुंडली निकाल के जल्द से जल्द मुझे दो। आके समझें तुमने क्या कहा?" धनुष राहुल से बोला।

    राहुल हिचकिचाते हुए बोला, "पर आप इस मामूली सी लड़की के बारे में क्यों जानना चाहते हैं?"

    धनुष गुस्से में राहुल से बोला, "जितना तुमसे कहा जाए उतना किया करो, समझें! और वो मामूली लड़की नहीं है! मुझे जल्द से जल्द मिस रीत के बारे में सब कुछ जानना है। अब बकवास खत्म करो, तो चलें।"


    मुंबई
    रणावत मेंशन

    "मम्मी जी! रणविजय के पापा कहाँ हैं? सब जल्दी से यहाँ आइए ना..." सिमरन खुशी से चिल्लाते हुए बोली।

    रणधीर जी अपने कमरे से बाहर आते हुए बोले, "क्या हो गया सिमरन जी? ऐसे क्यों चिल्ला रही है?"

    कुंती जी भी कमरे से बाहर आ गईं और सिमरन को इतना खुश देखकर हँसते हुए बोलीं, "क्या हुआ बहू? किस बात पर इतना चिल्ला रही हो?"

    सिमरन कुंती जी के पास आते हुए बोली, "मम्मी जी, खुशी की ही बात है। आप सुनेंगी तो आप झूमने लगेंगी।"

    कुंती जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "अच्छा, तो ज़रा हमें भी बताइए कि क्या खुशी की बात है जो हम भी झूमने लगेंगे।"

    "हाँ, सिमरन जी, बताइए..." रणधीर जी हैरानी से बोले।

    "हमने रणविजय के लिए लड़की पसंद कर ली है..." सिमरन जी खुशी से झूमती हुई बोली।

    "क्या? पर आपने हमसे पूछा तक नहीं?" रणधीर हैरान होते हुए बोले।

    "लो! इसमें आपसे क्या पूछना..." सिमरन जी मुँह बनाते हुए बोली।

    कुंती जी सिमरन को समझाते हुए बोलीं, "पर बहू, लड़की पसंद करने से पहले हमें भी बताना चाहिए था ना।"

    "अरे मम्मी जी, मैंने सिर्फ़ लड़की पसंद की है, शादी थोड़ी तय करी है! मेरी जो दिल्ली वाली दोस्त है... मिनाक्षी... उसकी एकलौती लड़की है, टिया... मम्मी जी को तो बताया भी था... क्यों मम्मी जी?"

    रणधीर कुंती जी की तरफ़ सवालिया निगाहों से देख रहे थे।

    कुंती जी हाँ में सर हिलाते हुए बोलीं, "हाँ बहू, सही बोल रही है... पर बहू, मुझे लगा था तुम ऐसे ही बोल रही हो।"

    "अरे मम्मी जी, मैं ऐसे क्यों बोलूँगी? मैंने तो मिनाक्षी से बात भी कर ली है... और उनको हमारा रणविजय बहुत पसंद है... अगले रविवार को वो लोग आ रहे हैं हमसे मिलने के लिए।"

    "सिमरन जी, आप कुछ जल्दी नहीं कर रही हैं? अरे, रणविजय से तो पूछ लीजिए कि उसको ये रिश्ता मंज़ूर है कि नहीं..." रणधीर जी थोड़ा गुस्से में बोले।

    "ये लो! अरे, आप भूल गए हैं क्या? रणविजय ने खुद कहा था कि वो हमारी पसंद की लड़की से शादी करने के लिए तैयार है... तो इसमें रणविजय से क्या पूछूँ? और अगले रविवार तक रणविजय वापस आ जाएगा... तो मैं रणविजय से पूछ लूँगी... ठीक है... अब मुझे परेशान मत करिए... मुझे बहुत तैयारी करनी है... मैं जा रही हूँ..." सिमरन जी ये सब बोलकर वहाँ से चली गईं।

    रणधीर जी कुंती जी से बोले, "माँ, आप कुछ कहती क्यों नहीं है? सिमरन जी बहुत जल्दबाज़ी कर रही है।"

    कुंती जी उदास होते हुए बोलीं, "बेटा, मैं क्या बोल सकती हूँ? आखिर बहू रणविजय की माँ है और उसका पूरा हक़ है... अपने पसंद की बहू लाने का।" इतना बोलकर कुंती जी वहाँ से चली गईं।

    "अगर अब इस बार भी रणविजय के साथ ग़लत हुआ... तो मैं इस बार कुछ नहीं कर पाऊँगा... उस लड़की आशियां से बहुत मुश्किल से रणविजय का पिछा छुड़ा पाया हूँ..." रणधीर जी मन ही मन में बोले।

    क्रमशः

  • 16. Dil hai tumhaara - Chapter 16

    Words: 1572

    Estimated Reading Time: 10 min

    मिस्टर सक्सेना ने गंभीर आवाज़ में फ़ोन पर कहा, "मुझे आपको एक काम देना है, रणविजय।"

    "यस सर, बोलिए, मुझे क्या करना है?"

    "मुझे मिस रीत शर्मा की पूरी जानकारी चाहिए। उनके माता-पिता से लेकर उनके पति के एक्सीडेंट तक, हर बात पता करके मुझे बताएँगे।" मिस्टर सक्सेना ने स्पष्ट रूप से कहा।

    "यस सर, मैं समझ गया। मुझे कुछ वक़्त चाहिए, मैं आपको जल्दी सब पता लगाकर बताता हूँ।"

    "जल्द से जल्द यह काम हो जाना चाहिए, मिस्टर सक्सेना।"

    "ओके सर।" मिस्टर सक्सेना ने इतना बोलकर फ़ोन रख दिया।


    ये मिस शर्मा कहाँ रह गईं? पार्टी के लिए वैसे भी देर हो रही है। रणविजय घड़ी में वक़्त देखते हुए गुस्से में बोला।

    रणविजय कार के पास खड़ा हो गया और फ़ोन चलाते हुए बोला, "अगर अब मिस शर्मा नहीं आईं, तो मैं उनको छोड़कर पार्टी में चला जाऊँगा।"

    रीत जल्दबाजी में आते हुए बोली, "सॉरी सर, मुझे थोड़ी देर हो गई।"

    रणविजय फ़ोन में देखते हुए गुस्से में बोला, "बहुत जल्दी आ रही हैं मिस शर्मा!"

    रीत सर झुकाए घबराती हुई बोली, "सॉरी सर।"

    "मिस शर्मा..." वो रीत की तरफ़ नज़र करते हुए कुछ बोलने वाला था, पर रीत को देखते ही वो वहाँ ठगा सा महसूस कर रहा था। वो बस रीत को ही देखे जा रहा था।

    उसने लाल रंग का अनारकली सूट पहना हुआ था और अपने लम्बे बाल खुले रखे थे। हल्का सा मेकअप किया था, उसने अपनी बड़ी और घनी पलकों वाली आँखों पर आईलाइनर लगाया था और होंठों पर हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई थी।

    रणविजय तो बेसुध होकर उसे देखे जा रहा था। रीत के गालों पर उसके बालों की लट आ रही थी। रणविजय के दिल में एक अलग सा एहसास हो रहा था, पर रणविजय उस एहसास को समझना नहीं चाहता था।

    रीत अपनी बालों की एक लट को कान के पीछे करते हुए बोली, "सर, अब हमें चलना चाहिए।" रीत की आवाज़ सुनकर रणविजय होश में आ गया और रीत से अपनी नज़रें हटाते हुए इधर-उधर देखते हुए हाँ में सर हिलाते हुए कार के अंदर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

    रीत भी पीछे वाली सीट पर बैठने के लिए दरवाज़ा खोला था कि रणविजय अपनी गंभीर आवाज़ में बोला, "मैं आपका ड्राइवर नहीं हूँ, मिस शर्मा। जो आप पीछे बैठ रही हैं।"

    रीत ने कार का दरवाज़ा बंद कर दिया और आगे रणविजय के बगल में बैठते हुए धीरे से बोली, "सॉरी सर।"

    रणविजय सामने देखते हुए बोला, "मिस शर्मा, आपके पास कुछ और नहीं था पहनने के लिए?"

    रीत ने वैसे ही जवाब दिया, "क्यों सर? इसमें क्या बुराई है? और वैसे भी हम यहाँ मीटिंग के लिए आए थे, ना कि पार्टी करने।"

    रणविजय रीत की तरफ़ घूरते हुए बोला, "हाँ, मैं जानता हूँ हम यहाँ मीटिंग के लिए आए थे। और वैसे भी मेरा वो मतलब नहीं है।"

    रीत खिड़की से बाहर देखते हुए बोली, "मैं सब समझती हूँ सर, आपका क्या मतलब है। आपका यह मतलब था कि मैंने वो छोटे-छोटे कपड़े क्यों नहीं पहने।"

    "मिस शर्मा, मुझसे इस टोन में आज के बाद बात मत कीजिएगा, समझी?"

    "व्हाई सर? आपको मेरे कपड़ों के बारे में नहीं बोलना चाहिए था सर! अरे, मेरी मर्ज़ी, मैं चाहे कुछ भी पहनूँ, आप या कोई और कौन होता है मेरे बारे में बोलने वाला?"

    रणविजय एक नज़र घूरते हुए रीत की तरफ़ डाली और फिर सामने देखने लगा। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसने यह क्यों बोला। उसने आज तक कभी किसी लड़की को उसके कपड़ों के लिए नहीं कहा। उसने आज तक अपनी बहन को तो कहाँ नहीं, तो और किसी को वो क्यों कहेगा?

    रणविजय ने रीत से इसलिए उसके कपड़ों के बारे में कहा था क्योंकि वो समझ चुका था कि धनुष कपूर की नज़रें रीत की तरफ़ अच्छी नहीं हैं और रीत ने जो अनारकली सूट पहन रखा था, वो कुछ इस हिसाब से बना हुआ था कि वो स्लीवलेस था, जिस कारण रीत के दोनों कंधे साफ़-साफ़ दिख रहे थे और आगे से दो पट्टियाँ थीं जो सूट से लगी हुई थीं और उन दोनों पट्टियों को गले के किनारे से ले जाकर पीछे बाँधा गया था और पीछे पीठ खुली हुई थी। रीत का बॉडी फिगर उस अनारकली सूट में निखर रहा था।

    "आज पता नहीं इसको क्या हो गया है। एक-दो महीने से हम साथ में काम कर रहे हैं, पर कभी भी इसने मुझसे ऐसे बात नहीं की थी।" रणविजय रीत को घूरते हुए मन में बोला।

    "ये तुझे क्या हो गया था, रीत? तूने रणविजय सर से कैसे बात की है? यार, सॉरी बोल दे। तूने बहुत गलत तरीके से बात की है आज सर से। रीत, तूने किसी और चीज की टेंशन कहीं और उतारी है। ये तुझे बाहर ना पड़ जाए यार।" रीत मन में घबराती हुई बोली।

    "अरे काहे की सॉरी? तू भूल रही है, रीत? ये टेंशन देने वाला इंसान भी तो यही है ना! चलो माना ये मेरे बॉस हैं, पर इन्होंने किसने हक़ दिया बताने का कि मैं क्या पहनूँ और क्या ना पहनूँ? हुंह... बॉस से इसका यह मतलब थोड़ी ना कि मुझे खरीद लिया। तू माफ़ी नहीं मांगेगी, रीत। तेरी कोई गलती नहीं है।" रीत मुँह बनाते हुए खुद में बड़बड़ा रही थी।

    रणविजय अपनी सीट बेल्ट खोलते हुए बोला, "उतरिए।"

    रीत रणविजय को देखते हुए बोली, "क्यों सर? आप क्या हमारी बातों का बुरा मान गए क्या?"

    रणविजय आगे कुछ बोलने वाला था कि रीत उसकी बात काटते हुए बोली, "व्हाट? बकवास बंद कीजिए और उतरिए हम।"

    "सर, देखिए, हम आपके भरोसे इस अनजान शहर में आए हैं। आप हमें ऐसे बीच रास्ते में छोड़कर नहीं जा सकते हैं।" रीत रणविजय का हाथ पकड़ते हुए रोना सा मुँह बनाते हुए बोली जा रही थी।

    रणविजय रीत का मुँह अपने हाथ से दबाते हुए गुस्से में बोला, "चुप! बिल्कुल चुप! पूरी बात सुनती नहीं है। कितनी देर से देख रहा हूँ, बक-बक करे जा रही है। मेरी बात तो सुन लिया कीजिए।"

    रीत बिना पलकें झपकाए उसे अपनी आँसू भरी आँखों से देखे जा रही थीं।

    रणविजय उसकी आँखों में खो रहा था जैसे... रणविजय खुद पर कंट्रोल करते हुए उसके मुँह पर से अपना हाथ हटाते हुए बोला, "मैं यह बोल रहा था कि हम पार्टी वाली जगह पर आ गए हैं, पर आपकी बकवास ही नहीं बंद होती है।"

    रीत सीट बेल्ट खोलते हुए बोल रही थी, "तो ऐसे बोलना चाहिए था ना सर, आप भी ना! सच में आपने तो मुझे डरा दिया। मुझे लगा आप मुझसे गुस्सा हो गए इसलिए आप मुझे बीच रास्ते पर उतार रहे हैं।"

    पर अचानक से रीत के मुँह से लफ़्ज़ ही नहीं निकल पा रहे थे क्योंकि रणविजय उसके पास आ रहा था और रीत के दिल की धड़कन बढ़ रही थी। धड़कते दिल के साथ रीत ने अपनी आँखें जल्दी से बंद कर लीं।

    रणविजय की आवाज़ सुनकर रीत ने जल्दी से अपनी आँखें खोली और देखा कि रणविजय तो उसकी सीट बेल्ट खोलकर बाहर खड़ा था। "अब उतरने का कष्ट करेंगी मिस शर्मा?"

    "तू भी ना रीत, क्या-क्या सोच लेती है।" रीत अपने सर पर हाथ मारते हुए मन में बोली।


    "मैंने जो काम दिया था, वो हुआ।" धनुष मोबाइल में देखते हुए बोला।

    राहुल ड्राइव करते हुए एक नज़र मिरर में धनुष को देखते हुए बोला, "यस सर, आपका काम हो गया।"

    "ग्रेट! तो बताओ क्या पता चला मिस रीत शर्मा के बारे में?"

    राहुल सामने देखते हुए बोला, "सर, उसका पूरा नाम रीत शर्मा है।"

    धनुष गुस्से में पीछे सीट से बोला, "इडियट! यह तो मैं भी जानता हूँ।"

    राहुल ने मिरर से धनुष की तरफ़ देखते हुए बोला, "सॉरी सर। उसके परिवार में उसके माता-पिता और एक बड़ा भाई है। माता-पिता की डेथ हो गई है और भाई मुंबई में ही एक कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर हैं।"

    "और... कुछ? कोई खास बात?"

    "यस सर, मोस्ट इम्पोर्टेंट बात।"

    "बताओ।"

    "सर, वह शादीशुदा है।"

    धनुष हैरानी से बोला, "व्हाट? बट उसकी उम्र से तो नहीं लगता कि उसकी शादी हो गई है।"

    "सर, उसकी शादी 20 साल की उम्र में हो गई थी और वह अभी सिर्फ 25 साल की है।"

    धनुष चुप होकर राहुल की बात सुन रहा था।

    राहुल ने अपनी बात जारी रखी, "पर सर, तीन साल पहले एक कार एक्सीडेंट में उसके पति और उसके अजन्मे बच्चे की मौत हो गई थी।"

    धनुष राहुल को सुनाने के लिए बोल रहा था, पर उसका दिल खुशी से झूम रहा था, "क्या...! यह तो बहुत बुरा हुआ उसके साथ। इतनी कम उम्र में विधवा हो गई बिचारी। अब तो मेरा काम और आसान हो गया है।" धनुष अपने ही ख्यालों में था।

    धनुष कुछ सोचते हुए बोला, "तो अब कौन-कौन है उसके परिवार में?"

    "सर, उसका तीन साल का बेटा है सिर्फ।"

    धनुष हैरान होते हुए बोला, "क्या...? पर तुमने तो कहा था कि एक्सीडेंट में उसका अजन्मा बच्चा भी मर गया था, तो यह किसका बच्चा है?"

    "सर, बहुत बड़ा झोल चल रहा है। मिस रीत और मिस्टर रणविजय का एक-दूसरे से बहुत बड़ा नाता है इन सब में।"

    धनुष बोला, "मिस्टर रणविजय का क्या हाथ है इन सब में, राहुल?"

    "सर, बहुत बड़ा हाथ है। उस एक्सीडेंट से भी और उस बच्चे से भी जिसे मिस रीत अपना बच्चा बताकर पाल रही है।"

  • 17. Dil hai tumhaara - Chapter 17

    Words: 861

    Estimated Reading Time: 6 min

    कल रात को मिस शर्मा क्या बोलना चाहती थीं, यह सोचकर रणविजय जहाज़ में अपनी सीट पर बैठा, आँखें बंद किए धीरे से बुदबुदाया।

    "क्या सर? आपने कुछ बोला क्या?" उसके बगल में बैठी रीत ने रणविजय की ओर देखते हुए पूछा।

    "हाँ... नहीं, क्या आपने कुछ सुना मिस शर्मा?" रणविजय घबराते हुए रीत को देखकर बोला।

    "जी सर, मैंने सुना है।" रीत ने रणविजय को देखते हुए कहा।

    "क्या?"

    "आप बोल रहे थे कि काश मैं कुछ देर और होश में रह जाती..." रीत ने रणविजय की ओर सवालिया नज़रों से देखते हुए कहा।

    "क्या...?" रणविजय घबराते हुए बोला।

    "सर, क्या मैंने कल रात पार्टी में कुछ गड़बड़ कर दी थी? पता नहीं क्यों सर, मुझे कल रात का कुछ भी याद नहीं है। मैं आज सुबह से कोशिश कर रही हूँ कल रात का याद करने की, पर मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है। और ऊपर से ये सर दर्द... पता नहीं क्यों हो रहा है।" रीत ने अपने सर पर हाथ रखते हुए कहा।

    "कॉम डाउन मिस शर्मा। ऐसा कुछ नहीं हुआ था कल जो आप इतनी हाइपर हो रही हैं। और ये सर दर्द ज़्यादा काम करने की वजह से हो रहा होगा। अब आप आराम कीजिए मिस शर्मा।" रणविजय ने उसके कंधे को थपथपाते हुए कहा।

    रणविजय की बातें सुनकर रीत को तसल्ली हुई और वह आराम से बैठकर आँखें बंद कर ली।

    रीत को आँखें बंद करके आराम करते देख रणविजय ने राहत की साँस ली और वह भी आराम से बैठकर सर ऊपर छत की ओर करके आँखें बंद कर ली।

    रणविजय मन ही मन में बोला, "यार, ये मेरे साथ क्या हो रहा है? मैं अपने बीते हुए कल को भूलना चाहता हूँ, पर वह फिर से मेरे सामने एक पहेली बनकर आ गया है। जिसको बस मिस शर्मा ही सुलझा सकती है, पर उनको तो कल रात का कुछ भी याद ही नहीं है।" रणविजय ने आँखें खोलकर एक नज़र रीत को देखा और फिर वैसे ही सर करके आँखें बंद कर ली। उसके दिमाग में कल रात पार्टी की बातें याद आ रही थीं।

    कल रात...

    पार्टी शुरू हो गई थी। वहाँ पर ऑस्ट्रेलिया के बहुत से जाने-माने बिज़नेस मैन आए हुए थे, जिनका स्वागत धनुष और उसका सेक्रेटरी कर रहे थे। धनुष की नज़र अंदर आते रणविजय पर गई तो वह मुस्कुराते हुए उसके पास पहुँचे और हाथ मिलाते हुए गर्मजोशी से स्वागत किया।

    धनुष की नज़र इधर-उधर जा रही थी। रणविजय समझ रहा था कि उसकी नज़रें किसको ढूँढ रही हैं। उसका मन कर रहा था कि वह वहीं धनुष के दांत तोड़ दें, पर वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे उसके होटल बनाने के सपने में रुकावटें आएँ। रणविजय शांत स्वर में बोला, "आप किसी को ढूँढ रहे हैं क्या मिस्टर कपूर?"

    "क्या आपने कुछ कहाँ मिस्टर रणविजय?" धनुष उसकी ओर देखते हुए बोला।

    "जी, मैंने पूछा कि आप किसी को ढूँढ रहे हैं क्या?" रणविजय शांत स्वर में बोला।

    "जी! मैं मिस रीत को ढूँढ रहा हूँ। आप उनको साथ में नहीं लाए? बल्कि मैंने कहा था कि आप दोनों को आना है।" धनुष यह सब बोलकर हँसने लगा।

    धनुष के मुँह से रीत का नाम सुनकर रणविजय के गुस्से के कारण मुट्ठी बंद हो गई थी। वह अपने गुस्से को कण्ट्रोल करते हुए बोला, "जी, वह आई है।"

    "अच्छा, तो कहाँ है वह?" धनुष हैरानी से रणविजय को देखते हुए बोला।

    "वह देखिए..." रणविजय हाथ से इशारा करते हुए बोला।

    रणविजय धनुष को ही देख रहा था और उसकी आँखों की चमक को वह अच्छे से समझ रहा था। उसकी वह हवस से भरी आँखें देखकर रणविजय को बहुत गुस्सा आ रहा था।

    रणविजय धनुष से कभी मिला नहीं था, पर उसने धनुष के बारे में बहुत सुन रखा था। धनुष को दो चीजों का बहुत शौक था- एक था कार का। जैसे ही मार्केट में कोई नई कार लॉन्च होती थी, तो धनुष कपूर के सिवा उस कार को पहले कोई ले नहीं सकता था, चाहे फिर धनुष सिर्फ़ एक बार वह कार यूज़ करें, पर नई कार धनुष कपूर के नाम होती थी। दूसरा शौक था सुन्दर लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फँसाकर उनके साथ हमबिस्तर होना। धनुष की एक आदत थी कि वह बस एक ही बार उस लड़की के साथ हमबिस्तर होता था और उसके बाद वह उसे छोड़ देता था। कोई मामूली लड़की हो या कोई हीरोइन हो, सब धनुष की इस आदत को जानते हुए भी उसके पास आ जाती थीं। एक तो वह इतना हैंडसम था कि उसके आगे हीरो भी फ़ेल थे और दूसरा कि वह इतना पॉपुलर था कि कोई भी लड़की अगर उसके साथ रिलेशनशिप में आती थी तो फिर उस लड़की का करियर बन जाता था। लेकिन यह सिर्फ़ वह उन लचीली लड़कियों के साथ कर सकता था। रीत जैसी सिंपल लड़की पर उसके ये सब फंडे नहीं चलेंगे, यह बात वह रीत से पहली बार मिलने पर ही समझ गया था, इसलिए उसके दिल में रीत के लिए कुछ और ही है।

    क्रमशः

  • 18. Dil hai tumhaara - Chapter 18

    Words: 1349

    Estimated Reading Time: 9 min

    रणावत मेंशन...

    तो ये है रणावत मेंशन... एक दिन में इस रणावत मेंशन और रणविजय दोनों पर राज करूँगी... इसलिए तो मैं यहां आई हूँ...

    "टिया, बेटा, अच्छे से देख लो इस रणावत मेंशन को। बहुत जल्द तुमको इस घर की बहू, यानी कि रणविजय की पत्नी बनकर आना है। समझी मेरी बात?" मिनाक्षी रणावत मेंशन को बाहर से देखते हुए अपनी बेटी टिया से बोली।

    "यस मॉम, मैं अच्छे से जानती हूँ कि मुझे क्या करना है। आप बिल्कुल टेंशन मत लीजिए।" टिया मेंशन की तरफ देखते हुए अपने हाथों को मोड़ लिया और एक शैतानी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए बोली।


    ऑस्ट्रेलिया...

    जैसे-जैसे रात अपने चरम पर थी, वैसे-वैसे पार्टी में लोगों का आना-जाना लगा हुआ था।

    रणविजय को तो ये पार्टियाँ बिल्कुल नहीं पसंद थीं। वह हमेशा से इन पार्टियों से बचता आ रहा था, चाहे वो बिज़नेस पार्टियाँ हों या फैमिली पार्टियाँ। वह वहाँ से जल्दी ही निकल जाता था।

    रणविजय पहले ऐसा नहीं था। पहले तो उसे ये पार्टियाँ बहुत अच्छी लगती थीं; लोगों से मिलना, पार्टी में मिलना... पर जब से आशियां रणविजय को छोड़कर गई थी, तब से रणविजय पूरी तरह से बदल गया था। ना अब उसे लोगों से मिलना अच्छा लगता था, ना ही किसी पार्टी में जाना। रणविजय को इन सब पार्टियों में अजीब अकेलापन महसूस होता था। पर यहाँ रणविजय के सिवा भी कोई और भी था, जो खुद को भी उसकी तरह अकेला महसूस कर रही थी, और वो थी रीत। रीत को इन पार्टियों में आना बिल्कुल पसंद नहीं था। वह तो आज भी नहीं आना चाहती थी, पर रणविजय के लिए उसे आना पड़ा।

    रीत एक किनारे खड़ी कुछ कपल्स को डांस करते हुए देख रही थी। उसे ये भीड़-भाड़ पसंद नहीं आ रही थी।

    "मिस रीत, आप यहां अकेली क्यों खड़ी हैं?" धनुष अपनी ड्रिंक को पीता हुआ रीत से बोला।

    "जी, बस ऐसे ही..." रीत खुद में सिमटते हुए बोली।

    "ऐसे ही मतलब? और ये क्या, आपके हाथ क्यों खाली हैं? आपने ड्रिंक नहीं ली?"

    "मैं ड्रिंक नहीं करती हूँ, मिस्टर कपूर।"

    "अरे, ड्रिंक का मतलब सिर्फ बीयर या अल्कोहल ही नहीं होता है। मेरा मतलब था कि आपने जूस नहीं लिया।" धनुष अपने सारे दांत बाहर दिखाते हुए हँसने लगा।

    "ओह, अच्छा! जी नहीं, मेरा मन नहीं है कुछ भी पीने का।" रीत मुस्कुराते हुए बोली।

    "धनुष, तुम यहां क्या कर रहे हो? मैं तुम्हें कब से ढूँढ रही थी।" एक लड़की धनुष के हाथों को पकड़ते हुए बोली।

    "वो, मैं मिस रीत यहां अकेली खड़ी थीं, तो मैंने सोचा कि चलो, इनसे बात कर ली जाए।" धनुष उस लड़की की तरफ देखते हुए बोला।

    उस लड़की ने एक नज़र ऊपर से नीचे तक रीत को देखा और फिर सवालिया निगाहों से धनुष को इशारा करने लगी कि कौन हैं ये।

    "ये हैं मेरी सेक्रेटरी, मिस रीत शर्मा।" रणविजय की आवाज सुनकर रीत पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखने लगी।

    रणविजय रीत के पास खड़ा हो गया।

    "ये हैं रणविजय सिंह राणावत। इन्हीं के होटल, रॉयल राजपूताना में मैंने इन्वेस्ट किया है।" धनुष उस लड़की की तरफ देखते हुए बोला।

    "और ये हैं इनकी सेक्रेटरी, मिस रीत शर्मा।" धनुष रीत की तरफ प्यार भरी नज़रों से मुस्कुराते हुए बोला।

    उस लड़की को धनुष का यूँ रीत की तरफ इतने प्यार से देखना शायद अच्छा नहीं लगा और वह धनुष के हाथ पर चुटकी लेते हुए बोली, "कहाँ खो गए? मेरा भी इंट्रोडक्शन करोगे कि नहीं?"

    "हाँ! हाँ, कराता हूँ। तो ये हैं मेरी बचपन की दोस्त और मेरी बिज़नेस पार्टनर, मिस नैना मन्होत्रा।"

    "हैलो!" नैना मुस्कुराते हुए बोली।

    रणविजय और रीत ने भी नैना को हैलो कहा।

    "यार, चलो ना डांस करते हैं।" नैना धनुष का हाथ पकड़ते हुए बोली।

    "यार, तू जानती है ना कि मैं डांस नहीं कर पाता हूँ।" धनुष उसके हाथ को हटाते हुए बोला।

    "यार, एक बार, plz, बस एक बार..." नैना एक छोटी बच्ची की तरह जिद करते हुए बोली।

    "ओके, ओके, फाइन, बट मेरी एक शर्त है।" धनुष हाथ हिलाते हुए बोला।

    "कैसी शर्त?"

    "हमारे साथ मिस्टर रणविजय और मिस रीत को भी डांस करना होगा।" धनुष उन दोनों की तरफ देखते हुए बोला।

    "है! क्या?" रणविजय और रीत हैरान होते हुए एक साथ बोले।

    "नहीं, बिल्कुल नहीं, मुझे डांस नहीं आता है।" रणविजय अपना हाथ हिलाते हुए बोला।

    "और मुझे भी नहीं आता है।" रीत भी मुँह बनाते हुए बोली।

    "यार, plz ऐसा मत करो। Plz मान जाओ, वरना ये डांस नहीं करेगा। यार, एक बार हाँ कर दो, plz।" नैना उन दोनों के सामने हाथ जोड़ते हुए बोली।

    नैना का धनुष के साथ डांस करने के लिए पॉजेसिव होना साफ-साफ बता रहा था कि वह धनुष से बहुत प्यार करती है। पर धनुष को देखकर कहीं से नहीं कहा जा सकता था कि वह भी नैना को पसंद करता है। धनुष की बातों से सिर्फ इतना ही पता चलता था कि नैना उसकी एक अच्छी दोस्त है, बस उससे ज़्यादा उसने उसे कुछ नहीं समझा है। नैना के इतना कहने पर रणविजय मान गया था।

    "मिस रीत, plz आप भी मान जाइए।" नैना उसकी तरफ देखते हुए बोली।

    "पर मैं कैसे..." रीत रणविजय की तरफ देखते हुए बोली।

    "ये मेरा ऑर्डर है, मिस शर्मा।"

    वो चारों डांस फ्लोर पर डांस करने के लिए चले गए। नैना धनुष के साथ, रणविजय रीत के साथ डांस कर रहा था।

    रणविजय का एक हाथ रीत के हाथों में था और दूसरा हाथ उसकी कमर पर था। वो दोनों डांस तो एक साथ कर रहे थे, रणविजय अपनी लिमिट में रहकर उसके करीब था। कहीं से भी रणविजय की बॉडी रीत से छू नहीं सकती थी। वो ये सब देखकर रीत को बहुत अच्छा लग रहा था कि डांस के बहाने रणविजय ने उसे छूने की कोशिश भी नहीं की है।

    धनुष का तो पूरा ध्यान रीत पर था। वह डांस तो नैना के साथ कर रहा था, पर उसकी आँखें रीत पर टिकी हुई थीं। और ये सब देखकर नैना को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसे अब रीत से जलन होने लगी थी।

    ऐसा नहीं है कि नैना सुंदर नहीं है, पर रीत के मुकाबले उसकी सुंदरता कुछ नहीं है। नैना का भी नैन-नक्श अच्छा है, पर रीत की मासूमियत ही उसकी सुंदरता को चार चाँद लगा देती है।

    अब डांस करते हुए अपने कपल को बदलना था। रणविजय ने रीत के हाथ की एक उंगली को अपने हाथ में पकड़ा और ऊपर उठाते हुए रीत को घुमा दिया। धनुष ने भी ऐसा ही नैना के साथ किया, जिससे दोनों की जगह बदल गई। नैना रणविजय के पास आ गई थी और रीत धनुष के पास।

    धनुष ने रीत के हाथ को कसकर पकड़ लिया और उसकी कमर को भी। रीत ने हैरानी से धनुष को देखा, पर धनुष के चेहरे पर मुस्कान थी। रीत को धनुष का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा था। वह कोई मौका नहीं छोड़ रहा था रीत को छूने से। रीत को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर वह कुछ कर नहीं सकती थी।

    धनुष के चेहरे पर से तो खुशी गायब ही नहीं हो रही थीं, और ये सब नैना और रणविजय अच्छे से नोटिस कर रहे थे। जहाँ रणविजय को धनुष का यूँ रीत के साथ डांस करना और उसे ऐसे छूना अच्छा नहीं लग रहा था, वहीं नैना का तो दिल कर रहा था कि वह रीत की जान ले ले। धनुष का मन कर रहा था कि वह ऐसे ही रीत के साथ डांस करता रहे, और रीत... रीत तो बस जल्दी से यहाँ से जाना चाहती थी।

    डांस खत्म हो गया था और पूरे हाल में तालियों की गूंज गूंज रही थी। रीत जल्दी से धनुष से दूर हो गई। उसने एक नज़र धनुष को देखा, जो उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। रीत ने उसे घृणा की नज़रों से देखा और वहाँ से भाग गई।

    धनुष को कुछ भी समझ नहीं आया कि वह उसे ऐसे क्यों देख रही थी। आज तक धनुष ने ऑस्ट्रेलिया की लड़कियों को ही डेट किया है। वो ऐसी हरकतें करने पर धनुष की बाहों में आ जाती थीं, पर रीत ऐसी नहीं थी। वह अब इस बात को अच्छे से समझ गया था।

    क्रमशः...

  • 19. Dil hai tumhaara - Chapter 19

    Words: 993

    Estimated Reading Time: 6 min

    रीत जल्दी से डांस फ्लोर से उतर गई और एक किनारे पर जाकर खड़ी हो गई। घबराहट के कारण उसका गला सूख रहा था। वह इधर-उधर देखने लगी कि कहीं कोई वेटर दिख जाए। तभी एक वेटर उसके पास आया।

    रीत ने देखा कि उस वेटर के पास पानी नहीं था, पर उसका गला प्यास से सूख रहा था। इसलिए उसने कोल्डड्रिंक का गिलास उठा लिया और पीने लगी। रीत को बहुत अजीब स्वाद आ रहा था! वह हैरानी से उस गिलास की तरफ देखने लगी और धीरे से बुदबुदाते हुए बोली, "ये कैसा स्वाद है... बहुत ही बेकार है, पर अब ले लिया है तो पी लेती हूँ!" और फिर वह जल्दी-जल्दी उस कोल्डड्रिंक को पीने लगी।

    "मैम, हो गया आपका काम," वेटर मुस्कुराते हुए बोला।

    "गुड! ये तुम्हारे पैसे," नैना उस वेटर को पैसे देते हुए बोली।

    "अब आएगा मज़ा! बहुत देर से इस दो-कोड़ी की सेक्रेटरी की नौटंकी देख रही हूँ। मेरे धनुष पर डोरे डाल रही है।"

    "ये मिस शर्मा कहाँ चली गई? अजीब लड़की है, जब देखो गायब हो जाती है!" रणविजय पार्टी में इधर-उधर देखते हुए बोला।

    उसने देखा रीत कुछ दूर पर खड़ी थी। वह जल्दी से उसके पास पहुँचा।

    "आप यहाँ क्या कर रही हैं, मिस शर्मा?" रणविजय रीत को घूरते हुए बोला।

    "हूँ! आप मुझसे बोल रहे हैं?" रीत रणविजय की तरफ देखते हुए बोली।

    "तो क्या आपको यहाँ हम दोनों के अलावा और कोई दिख रहा है?" रणविजय उसे घूरते हुए बोला।

    "हूँ! ये मुझे क्या हो रहा है? ये क्या मुसीबत है! एक रणविजय सिंह राणावत तो संभाल नहीं जाता, और अब तो तीन-तीन हो गए हैं।" रीत जल्दी-जल्दी अपनी पलकें झपकते हुए बोली।

    "मिस शर्मा, आर यू ओके?" रणविजय अपने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए बोला।

    "हाँ, मुझे क्या हुआ है?" रीत हँसते हुए बोली।

    "ये अचानक से मिस शर्मा को क्या हो गया है? अभी तक तो ठीक थी!" रणविजय मन ही मन में सोचते हुए बोला।

    "सर!" रीत रणविजय के बहुत ही पास आते हुए बोली।

    "मिस शर्मा! बिहेव योरसेल्फ!" रणविजय रीत के कंधों को पकड़ते हुए उसे होश में लाते हुए बोला।

    "हूँ! सर, मैं होश में हूँ! आप भी ना, बस डाँटने का बहाना ढूँढते हैं मुझे!" रीत मुँह बनाते हुए उसके पास आते हुए बोली।

    रीत के करीब आने के कारण रणविजय को उसकी साँसों से आती अल्कोहल की महक साफ-साफ आ रही थी। वह समझ गया था कि रीत ने ड्रिंक की है, पर मिस शर्मा तो ऐसी नहीं हैं जो ड्रिंक करती हों। तो फिर क्या? किसने जबरदस्ती पिलाई है क्या? रणविजय अपने मन में सोचते हुए बोला।

    "मिस शर्मा, मेरी तरफ देखिए," रणविजय उसकी बाँहों से हिलाते हुए बोला।

    "हूँ!" रीत रणविजय की तरफ देखते हुए बोली।

    "क्या आपने कुछ पिया था? या आपको किसने कुछ जबरदस्ती पिलाया था? सच-सच बताइए मुझे!" रणविजय गुस्सा करते हुए बोला।

    "सर, मुझे किसी ने भी जबरदस्ती नहीं की थी। मैंने तो बस एक गिलास कोल्डड्रिंक पी थी। मुझे बहुत तेज प्यास लगी तो मैंने बस कोल्डड्रिंक पी है सर, सच्ची!" रीत मासूम सा चेहरा बनाते हुए बोली।

    रणविजय को उसका यूँ मासूमियत से बोलने से हँसी आ गई।

    रीत रणविजय को आँखें फाड़-फाड़ कर देख रही थी।

    "ऐसे क्या देख रही हैं?" रणविजय गंभीर आवाज़ में बोला।

    "सर, आप हँसते हुए कितने प्यारे और हैंडसम लगते हैं!" रीत उसे वैसे ही देखते हुए बोली।

    "क्या? इस लड़की का कुछ नहीं हो सकता है। नशे में होने के बावजूद मस्ती ज़रूर करेगी!" रणविजय अपने सर को इधर-उधर हिलाते हुए बोला।

    "सर!"

    "हाँ! बोलो," रणविजय उसकी तरफ देखते हुए बोला।

    "वो मुझे..."

    "हाँ! तुम्हें क्या?"

    "सर, मुझे वाशरूम जाना है!" रीत नशे में बोली।

    "ठीक है, जाइए! जल्दी आइएगा क्योंकि मैं अब बहुत थक गया हूँ, तो मुझे बस जल्दी से होटल पहुँचना है।"

    "ओके।" यह बोलकर रीत वहाँ से चली गई। वह नशे में होने के बावजूद उसे होश था कि वह कहाँ जा रही है और क्या कर रही है।

    "जब तक मिस शर्मा आती हैं, तब तक मैं मिस्टर कपूर से बात कर लेता हूँ।" रणविजय धनुष को ढूँढते हुए बोला।

    "मिस्टर कपूर, आप कहीं जा रहे हैं?" रणविजय धनुष को रोकते हुए बोला।

    "जी, मिस्टर रणविजय! मुझे एक मीटिंग में जाना है! इसलिए मुझे यह पार्टी छोड़कर जाना पड़ेगा।" धनुष उदास मुस्कराहट के साथ बोला।

    "ओके! हम भी कुछ देर में यहाँ से निकल जाएँगे।" रणविजय धनुष से हाथ मिलाते हुए बोला।

    "ओके, फिर मिलते हैं मिस्टर रणविजय।" धनुष मुस्कुराते हुए बोला और वहाँ से चला गया।

    "ये मिस शर्मा कहाँ रह गई हैं? इतनी देर लगती है क्या?" रणविजय घड़ी में वक्त देखते हुए बोला।

    रणविजय बहुत देर तक रीत का इंतज़ार करता रहा, पर रीत का तो कोई अता-पता ही नहीं था। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था। अब उसे रीत की टेंशन होने लगी थी। वह बहुत हिम्मत करके लेडीज़ टॉयलेट के पास पहुँचा, पर उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी अंदर जाने की। वह टॉयलेट के बाहर खड़ा था। सब लड़कियाँ उसे वहाँ देखकर हैरान थीं और सबकी नज़रें उसे देखना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। रणविजय ने बहुत हिम्मत करके टॉयलेट से बाहर आती एक लड़की से बोला, "एक्सक्यूज़ मी, मैडम, क्या अंदर कोई लड़की अनारकली सूट पहने हुए है वहाँ?"

    "जी नहीं, अंदर तो अब कोई नहीं है। वाशरूम पूरा खाली है!" वह लड़की रणविजय को देखते हुए बोली।

    "आर यू श्योर, मैडम?" रणविजय हैरान होते हुए बोला।

    "यस, आई एम श्योर!" उस लड़की ने कहा और वहाँ से चली गई।

    "तो मिस शर्मा कहाँ चली गई? वैसे भी उन्होंने ड्रिंक किया है, ऐसे में कुछ अनहोनी ना हो जाए। अब मैं उनको कहाँ ढूँढूँ!"

    "चल, रीत, जल्दी से सर के पास पहुँचना है, वरना सर तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। पर मैं हूँ कहाँ? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। और मेरा सर इतना क्यों घूम रहा है?" रीत चलते हुए अपने में बड़बड़ा रही थी।

    क्रमशः

  • 20. Dil hai tumhaara - Chapter 20

    Words: 1409

    Estimated Reading Time: 9 min

    बाहर हल्की-हल्की बुंदाबांदी होने लगी थी। रणविजय पूरे होटल में रीत को ढूँढ रहा था।

    रीत का कुछ पता नहीं चल रहा था। रणविजय बहुत परेशान हो गया था।

    अचानक उसे याद आया कि उसने सब जगह देख लिया है, लेकिन टैरेस पर नहीं। रणविजय को टैरेस पर एक उम्मीद दिखी और वह जल्दी से सीढ़ियों की ओर भागा।

    रणविजय जल्दी से टैरेस पर पहुँचा और देखा कि रीत बारिश में भीग रही है।

    "मिस शर्मा, आप यहाँ क्या कर रही हैं? जल्दी से नीचे चलिए।" रणविजय रीत का हाथ पकड़ते हुए बोला।

    "आ गया खड़ूस।" रीत रणविजय से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली।

    "क्या! बोला आपने?" रणविजय रीत को घूरते हुए बोला।

    "और क्या, एक नंबर के खड़ूस हैं आप। हँसना तो आता ही नहीं है, और किसी और को हँसता हुआ देख नहीं सकते।" रीत मुँह बनाते हुए बोली।

    "मिस शर्मा, मेरे साथ नीचे चलिए।" रणविजय गुस्सा होते हुए बोला।

    "नहीं, मुझे नीचे नहीं जाना। मैं तो यहीं रहूँगी। कितना अच्छा लग रहा है! आज कितने सालों बाद मैं बारिश में भीग रही हूँ।" रीत खुश होते हुए घूमती हुई बोली।

    रणविजय ने कुछ नहीं कहा, वह वैसे ही रीत को घूर रहा था।

    "सर, आप ऐसे क्यों रहते हो? मुझसे बुरी किस्मत तो नहीं है आपकी, फिर भी... सर, हँसते-मुस्कुराते रहिए। पता नहीं जीवन में कब क्या हो जाए, और फिर आप पछताने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।" रीत बारिश की बूँदों से खेलते हुए बोली।

    "क्यों? आपकी किस्मत क्यों बुरी है?"

    रणविजय की बात सुनकर रीत का हँसना रुक गया और वह चुपचाप खड़ी हो गई।

    "बस हो गया! बस ये बड़ी-बड़ी बातें करना आसान होता है। मिस शर्मा, आप क्या जानें, मैंने अपने जीवन में अपनी सबसे प्यारी चीज़ खोई है।" रणविजय मुँह मोड़ते हुए बोला।

    "मुझसे अच्छा कौन जानता है? सर, मैंने तो अपने जीवन में बस खोया ही है।"

    रीत के शब्दों में बहुत दर्द था। उसके दर्द को रणविजय अच्छे से समझ रहा था।

    "सर, आपको तो मेरे बारे में सब कुछ पता है ना? माँ-बाप तो खोए ही, साथ में पति खोया, और आप मुझे बता रहे हैं कि खोना क्या होता है?" रीत रोते हुए बोली।

    "मिस शर्मा, हम ये बातें नीचे जाकर भी कर सकते हैं। आप यहाँ बीमार हो जाएँगी।" रणविजय अपना कोट उतारकर रीत को पहनाते हुए बोला।

    "नहीं, मुझे नहीं जाना सर। Please, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है यहाँ।" रीत खुश होते हुए बोली।

    "एस यू विश मिस शर्मा, मैं जा रहा हूँ, because I don't mind being sick." रणविजय जाते हुए बोला।

    "सर, मत जाइए ना।" रीत मुँह बनाते हुए बोली।

    "नो थैंक्स, आई एम नॉट इंटरेस्टेड। एन्जॉय यू ओनली।" ये बोलकर रणविजय वहाँ से कुछ दूर पर दरवाजे के पास खड़ा हो गया।

    रीत को पूरी तरह से नशा चढ़ चुका था। उसे बिल्कुल भी होश नहीं था कि वह क्या कर रही है।

    रीत बारिश के पूरे मज़े ले रही थी। वह कभी खुशी से झूमती तो कभी बारिश की बूँदों के साथ खेलती।

    ये सब दूर से रणविजय देख रहा था और उसके चेहरे पर रीत की मासूमियत देखकर अनजाने में ही सही मुस्कान आ जा रही थी।

    "मिस शर्मा, अब बहुत हुआ, चलिए यहाँ से। अब बहुत देर हो गई है। मुझे लगता है पार्टी भी खत्म हो गई होगी।" रणविजय रीत का हाथ पकड़ते हुए बोला।

    "नहीं, मुझे नहीं जाना है। यार, आप कितने खड़ूस हैं! क्या आप हमेशा से ऐसे ही थे क्या सर? आपको तो हँसना भी नहीं आता है।" रीत रणविजय का चेहरा अपने हाथ में लेते हुए बोली।

    "मिस शर्मा, ये आप क्या कर रही हैं? अब चलिए यहाँ से, बहुत ये तमाशा।" रणविजय झल्लाते हुए बोला।

    "नहीं, मैं तभी यहाँ से जाऊँगी जब आप मुझे हँसकर दिखाओगे।" रीत बच्चों की तरह जिद करते हुए बोली।

    "यार, अब ये कौन सी नई मुसीबत गले पड़ गई है! मिस शर्मा, अब आप मुझे गुस्सा दिला रही हैं!"

    "नहीं-नहीं, मुझे कुछ नहीं सुनना है। आप मुझे हँसकर दिखा दो तो मैं चुपचाप आपके साथ चली जाऊँगी।" रीत एक मासूम बच्चे की तरह बोली।

    "यार, आप मानोगी नहीं ना।" रणविजय अपना सर आसमान की ओर करते हुए बोला।

    रीत ने जल्दी से ना में सर हिला दिया।

    "ओके, फाइन।" ये बोलकर रणविजय हँसते हुए रीत की तरफ देखने लगा।

    रणविजय ने तो ऐसे हँसकर दिखाया जैसे उसके सर पर किसी ने बंदूक रख दी हो और बोल रहा हो कि हँस, वरना तू गया।

    "छी! ऐसे हँसते हैं? कितनी गंदी तरह से हँसते हैं आप! आपसे तो अच्छा मुकेश हँसता है।" रीत मुँह बनाते हुए बोली।

    रीत की बात सुनकर रणविजय झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।

    "वो कैसे हँसता है? हाँ..." रीत सोचते हुए बोली। "मुकेश खुश हुआ... हाँ हहहहहह..." रीत को मुकेश की एक्टिंग करते हुए देखकर रणविजय को हँसी आ गई।

    रणविजय इतना हैंडसम था कि उसकी कोई मिलान नहीं थी। हँसते हुए रणविजय का चेहरा किसी विरासत के राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। इतना मनमोहक लग रहा था वह हँसते हुए कि रीत इतने नशे में होने के बावजूद उसके चेहरे पर अपनी नज़रें रोक गई थी।

    रणविजय को लगा कि दो आँखें उसी पर टिकी हैं, तो वह अपने आपको साधारण करते हुए बोला, "अब आपका हो गया हो तो चलें।"

    "पर सर, मुझे बारिश बहुत पसंद है।" रीत को अब ठंड लग रही थी। वह काँपते हुए बोली।

    "हाँ, वो तो दिख ही रहा है। But now it's too much." रणविजय गम्भीर होकर बोला।

    रणविजय रीत को लेकर कार में बैठ गया। तभी रणविजय को लगा कि रीत के लिए कुछ कपड़े लेकर आना चाहिए। रणविजय ने यह सोचकर कार को एक शॉपिंग मॉल के सामने रोकी।

    "मिस शर्मा, मैं अभी आता हूँ, और आप कार से बाहर नहीं निकलेगी, ओके? आर यू अंडरस्टैंड?" रणविजय अपनी सीट बेल्ट खोलते हुए बोला।

    "हूँ!" रीत मुँह बनाते हुए बोली।

    कुछ देर बाद रणविजय कुछ सामान लेकर कार में आया और रीत को पकड़ा दिया।

    रणविजय जल्दी में आया था, इसलिए उसका वॉलेट उसके हाथ में था। उसने अपने वॉलेट को वहीं पास में रख दिया और कार चलाने लगा।

    रीत एक बच्चे की तरह खुश होते हुए रणविजय का लाया हुआ सामान देख रही थी कि अचानक उसकी नज़र रणविजय के वॉलेट पर चली गई और उसने घबराते हुए उसे उठाया।

    "ये! इसको आप जानते हैं सर!" रीत रोती हुई आवाज़ में बोली।

    रीत की बात सुनकर रणविजय ने एक नज़र अपने वॉलेट पर डाली, जिसमें अभी भी उसने आशिया की फोटो रखी थी।

    "हूँ!" रणविजय उदास होते हुए बोला।

    "क्यों? मिस शर्मा, आप जानती हैं इसको?" रणविजय उत्साहित होते हुए बोला। उसे लगा कि वह शायद आशिया के बारे में कुछ बताए।

    "हाँ, ये मेरी दोस्त है।" रीत एक उदास मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाते हुए आशिया की फोटो पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली।

    "तो अब कहाँ है ये आपकी दोस्त?" रणविजय बहुत उत्साहित होते हुए बोला।

    "आपने नहीं बताया कि आप कैसे जानते हैं इसको?" रीत हैरान होते हुए बोली।

    "वो मैं... आप मेरी छोड़िए, आप ये बताइए कि आपकी ये दोस्त अब है कहाँ!"

    "वो सर, ये वो वहाँ है..."

    "हाँ! आप बताइए ना कि वो कहाँ है, क्या हुआ? आप चुप क्यों हो गई?" रणविजय रीत की तरफ देखते हुए कुछ बोलने वाला था कि उसने देखा कि रीत तो सो गई थी।


    ड्रिंक के कारण रीत अब नशे की वजह से सो गई थी। रणविजय उदास मुस्कराहट के साथ मन में बोला, "लगता है भगवान चाहते ही नहीं हैं कि आशिया से मैं तुमसे कभी मिलूँ! मगर मैं इतना तो समझ गया हूँ कि मिस शर्मा को आपके बारे में बहुत कुछ पता है।"


    राणावत मेंशन...

    "हाँ, मैं राणावत मेंशन में आ गई हूँ। अरे, तुम परेशान मत हो, मुझे पता है मुझे क्या करना है!" टिया किसी से फ़ोन पर बात करते हुए बोली।


    "हाँ! रणविजय अभी नहीं आया है। पर तुम टेंशन मत लो, मैं उसको अपने प्यार के जाल में ऐसा फँसाऊँगी कि वो सोएगा तो भी टिया बोलेगा और उठेगा-बैठेगा तभी टिया बोलेगा।

    तुम बस इंतज़ार करो! मैं यहाँ जिस काम के लिए आई हूँ, वो तो मैं पूरा करके ही रहूँगी, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान देनी ही क्यों ना पड़े!"

    आखिर कौन थी ये टिया और ये किस मकसद के साथ राणावत मेंशन में आई है और ये किससे बात कर रही थी? ये सब जानने के लिए पढ़ते रहिए... दिल है तुम्हारा...

    क्रमशः