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खाई ए डीप एनिमिटी-1

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Kusum Sharma

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प्रेस कांफ्रेंस के बाद हॉल से देश के प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति आर डी जयवर्धन और उनका बड़ा बेटा बॉडीगार्ड से घिरे हुए बाहर निकल रहे थे फिर भी मीडिया के सवाल खतम नहीं हो रहे थे। वो उन दोनों के पीछे अपने माइक और कैमरा लिए आ रहे थे। एक तरफ उनके फोटो खाचाखच...

Total Chapters (67)

Page 1 of 4

  • 1. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 1

    Words: 1430

    Estimated Reading Time: 9 min

    प्रेस कांफ्रेंस के बाद, देश के प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति आर.डी. जयवर्धन और उनके बड़े बेटे, बॉडीगार्ड्स से घिरे हुए, हॉल से बाहर निकले। फिर भी, मीडिया के सवाल खत्म नहीं हो रहे थे। वे दोनों के पीछे, अपने माइक और कैमरे लिए, आ रहे थे। एक तरफ, उनके फोटो खींचे जा रहे थे, तो दूसरी तरफ मीडिया के सवाल जारी थे।

    "सर... सर... मिस्टर श्वेत आपके बड़े बेटे आपसे अलग रहे हैं, इसकी कोई खास वजह?" रिपोर्टर ने सवाल किया।

    "सर, प्लीज एक लास्ट सवाल! अब आपका एम्पायर दो हिस्सों में बंट जाएगा या मिस्टर श्वेत के लिए कुछ अलग सोचा है?" एक संवाददाता ने पूछा।

    "मैंने सुना है मिस्टर श्वेत ने किसी फॉरेनर के साथ रिलेशनशिप में है।" दूसरे ने पूछा।

    "सर, अर्थ सर ने हाल ही में एक डील साइन की है जिसमें श्वेत शामिल नहीं थे। इसका मतलब यह है कि वो अलग होने की कोशिश में है।" तीसरे ने मिसाइल की तरह सवाल छोड़ा।

    "अग्रता जी की हिस्सेदारी रहेगी क्या?" चौथे की जुबान से निकला।

    मीडिया के सवालों की बौछार उन पर लगातार जारी थी, लेकिन आर.डी. जयवर्धन ने किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझा और इग्नोर करके आगे बढ़ गए। आर.डी. जयवर्धन अपनी गाड़ी में बैठ गए, जबकि श्वेत अपनी गाड़ी में बैठ गया। बॉडीगार्ड्स ने अपनी पोजिशन संभाल ली थी और दोनों की गाड़ियों को प्रोटेक्ट करते हुए बाहर निकालने का प्रयास कर रहे थे।

    आर.डी. जयवर्धन की गाड़ी आगे निकल गई, फिर उसके पीछे बॉडीगार्ड्स की एक गाड़ी, उसके बाद श्वेत की गाड़ी।

    श्वेत जयवर्धन की गाड़ी धीरे-धीरे निकल ही रही थी कि एक बॉडीगार्ड ने श्वेत की गाड़ी का गेट खोलकर कुछ कहा। जैसे ही एक गाड़ी का गेट बंद होने लगा, वैसे ही एक लड़की, चेहरा ढके हुए, उसकी गाड़ी में आ बैठी। अब श्वेत की गाड़ी को रोकना मीडिया के चक्कर में फँसना था। तिल का ताड़ बनाना कोई इनसे सीखे, इसलिए गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गई।

    श्वेत फॉरेन से पढ़ाई करके आया था। वह बचपन से बाहर ही था। मीडिया ने जानने की कोशिश की थी, लेकिन श्वेत की कोई इन्फॉर्मेशन नहीं मिली। जेडी ग्रुप का दूसरा वारिस आने वाले समय में इसे ऊंचाई पर ले जाएगा या नहीं, और उसकी पॉलिसी, एथिक्स को किस तरह लागू करेगा? एम्पलाइज के साथ रिलेशनशिप, डील्स में श्वेत की क्या भूमिका रहेगी? बस मीडिया यही जानने के लिए उतावली थी।

    मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत का छोटा सा परिचय देकर संक्षेप में बता दिया था कि रियल एस्टेट इंडस्ट्रीज में श्वेत आ चुका है, किंतु श्वेत का नेचर उन्हें डरा रहा था। मिस्टर जयवर्धन एक छोटी कमी के कारण अपने ऊपर उंगली नहीं उठने देना चाहते थे।

    मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत को यहाँ बुला तो लिया था, लेकिन क्या दादाजी की तबीयत के ठीक होते ही वह चला जाएगा?

    खाई दरार का ही दूसरा रूप है। खाई गहरी होती है, जिसे पाट पाना मुश्किल होता है। चाहे धरातलीय हो या मानवीय... खाई... सबको दो हिस्सों में बाँट देती है। श्वेत और रक्तिमा के परिवार के बीच बनी पुरानी खाई भर पाएगी या दोनों को दुश्मनी की खाई लील जाएगी?

    श्वेत की गाड़ी सड़कों पर दौड़ रही थी। श्वेत के पास कोई लड़की बैठी है, उसे कोई मतलब नहीं था। वह मौत सी ठंडी नजर लिए, भारत की सड़कों और भीड़ को पहली बार देख रहा था। श्वेत को पता था कि उसके पास कोई आकर बैठ गया है, लेकिन जब तक उसे कोई नुकसान न पहुँचाए, तब तक वह उस पर ध्यान नहीं देता था। उसके लिए सब नगण्य... शून्य... था। बस वहाँ कोई था, तो उसके लिए अपना वजूद...

    कुछ देर बाद, उसकी गाड़ी एक बहुत बड़े घर के आगे रुकी, जिस पर "जयवर्धन शांति कुंज" लिखा था। श्वेत गाड़ी से बाहर निकला और कुछ पल उसके आगे खड़ा रहा, और फिर व्यंग्य से मुस्कुराकर उस पर हाथ फेरा और अंदर जाने लगा। ड्राइवर ने गाड़ी में बैठने का आग्रह किया, लेकिन वह इग्नोर करके आगे बढ़ा और हर एक चीज़ को गहराई से देखते हुए अंदर जा रहा था।

    घर के बाहर की साइड बना बड़ा सा लॉन एरिया, जिसमें बड़े-बड़े पेड़ लगे थे और अलग-अलग वैरायटी के फूल थे। चैक्स में घास की कटिंग की गई थी। लॉन एरिया में एक साइड टेबल-चेयर लगी थी, तो दूसरी साइड झूला लगा हुआ था। लॉन एरिया के चारों कोनों पर पत्थरों पर डिज़ाइन किए गए वाटर फाउंटेन लगे हुए थे। उनके अंदर से आती रोशनी पानी में चमक पैदा कर रही थी।

    श्वेत अभी देख ही रहा था कि मिस्टर जयवर्धन की आवाज़ सुनाई दी।

    "अरे तुम अभी तक यहीं पहुँचे हो! ड्राइवर भी ना कोई काम ढंग से नहीं कर सकते।" मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत के कंधे पर हाथ रखा, तो उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत के चेहरे के हाव-भाव देखकर तुरंत अपना हाथ हटा लिया और उसके साथ चलने लगे। कुछ देर बाद, दोनों बात करते हुए मेन गेट तक पहुँचे। दोनों में से मतलब मिस्टर जयवर्धन ही बात कर रहे थे, जबकि श्वेत चुपचाप सुनता हुआ चल रहा था।

    मेन गेट पर एक औरत, लगभग पैंतालीस साल की होगी, जो मिस्टर जयवर्धन से दिखने में छोटी थी। अरुणा, हाथ में कांस्य की थाल लिए खड़ी थी, जिसमें पूजा का सामान रखा हुआ था। सामने का दृश्य देखकर श्वेत के जबड़े कस गए।

    "चलो श्वेत, तुम्हारी माँ..." श्वेत की लाल आँखें देखकर मिस्टर जयवर्धन की बात गले में अटक गई।

    श्वेत ने गुस्से में उस थाल के नीचे की साइड से हाथ मारा, तो वह उछलकर दूर जा गिरी और मेन गेट के एरिया में सामान बिखर गया। श्वेत गुस्से में आगे बढ़ा, तो अग्रता काउच पर बैठी मैग्जीन पढ़ रही थी।

    "वाह! दैट्स ग्रेट एंट्री बिग ब्रो!" अग्रता ने मैग्जीन टेबल पर एक साइड छोड़कर ताली बजाते हुए कहा।

    "मॉम, खुशी में चार चाँद लगा दिए ना बिग ब्रो ने।" अग्रता चिढ़कर बोली।

    "अग्रता, तुम चुप रहोगी!" मिस्टर जयवर्धन नाराजगी से बोले।

    "हाँ, आपका जोर मुझ पर ही चलेगा ना! आपने उन्हें तो कुछ नहीं कहा। मॉम के साथ जो किया है! सुबह से उन्हें हर्टली विश करने के लिए सब प्रीपरेशन में लगी है, लेकिन नहीं, आप उनकी बजाय मुझे ही चुप करवा रहे हैं।" अग्रता गुस्से में बोली, जबकि श्वेत इधर-उधर देख रहा था।

    मिसेज़ जयवर्धन ने अग्रता को आँखों से ही शांत रहने को कहा। मिस्टर जयवर्धन श्वेत के पास आए।

    "इधर से लिफ्ट, तुम जाकर डैड से मिलो।" मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत को लिफ्ट की ओर इशारा करके बताया।

    श्वेत चुपचाप लिफ्ट की ओर बढ़ गया। श्वेत लिफ्ट में खड़ा हुआ, तो उसी का हमउम्र लड़का आया और उसके बराबर खड़ा हो गया। श्वेत ने सवालिया नज़रों से देखा, तो उसने हल्का सा हँसकर कहा, "सर, आई एम विशेष गुप्ता! आपका पी.ए. मिस्टर जयवर्धन सर ने अपॉइंट किया है।"

    श्वेत ने टेढ़ा मुस्कुराकर गर्दन हिला दी।

    विशेष ने आँखें बंद कर मन में सोचा, "चलो एक भगवान ने बहुत अच्छा किया, ये बाकी तरह बोलते नहीं हैं। (यह सोचकर विशेष मन में चौंककर) कहीं गूँगे तो नहीं। ये भी अच्छा है।"

    "दादाजी का रूम!" कड़क आवाज़ सुनकर विशेष का सपना चकनाचूर हो गया।

    विशेष ने दो उंगली उठाकर इशारा किया, तो श्वेत ने लिफ्ट के कॉल बटन की ओर इशारा किया। विशेष ने सर पीट लिया। लिफ्ट फोर्थ फ्लोर पर पहुँच चुकी थी। विशेष ने फटाफट बटन दबाकर सेकेंड फ्लोर सेट किया और चुपचाप खड़ा हो गया।

    दोनों सेकेंड फ्लोर पर आए और विशेष आगे चलकर दादाजी के रूम की ओर बढ़ गया। श्वेत रूम में आया, तो दादाजी कुछ मशीनों के सहारे लेटे थे। उनके रूम में एक नर्स थी, जो इस वक्त यूरिन बैग खाली कर रही थी।

    विशेष ने डोर नॉक कर नर्स से अंदर आने के लिए कहा, तो उसने गर्दन हिलाई और वॉशरूम की तरफ़ चली गई।

    श्वेत शांत सा उनके पास बैठ गया और उन्हें देखने लगा। वे दवा के नशे में सो रहे थे। करीब दस मिनट बैठने के बाद श्वेत बाहर निकल गया।

    "सर, नीचे डिनर..." विशेष आगे कुछ बोलता, श्वेत ने मुड़कर उसे देखा, तो वह चुप हो गया।

    "तुम्हें लगता है कि मुझे यहाँ डिनर करना चाहिए?" श्वेत ने शांत सी आवाज़ में कहा।

    "बार किधर है?" श्वेत ने पूछा।

    "व्हाट?" विशेष ने कहा।

    "कल ओटोलरींगोलॉजिस्ट, या ईएनटी के पास हो आना। जितना खर्च हो, मुझसे ले लेना।" श्वेत यहाँ आने के बाद पहली बार इतना बोला था।

    विशेष झेंप कर बोला, "सर, इसी फ्लोर पर है।"

    विशेष ने दादाजी के कमरे के अपोजिट साइड में लिफ्ट का क्रॉस कर बार एरिया में आ गया। बार एरिया बड़ा था, शायद यहाँ पार्टियाँ होती हों।

    विशेष थोड़ा दूर खड़ा हो गया। श्वेत आगे बढ़कर टेबल के पास रखी चेयर पर बैठ गया और वाइन रैक को घूरने लगा।

    क्रमशः

  • 2. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 2

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    विशेष थोड़ा दूर खड़ा हो गया। श्वेत आगे बढ़कर टेबल के पास चेयर पर बैठ गया और वाइन रैक को घूरने लगा।

    "पापा, आप कैसे इतना टॉलरेट कर सकते हैं? उसने मॉम की इंसल्ट की और आप चुपचाप देखते रहे। हाऊ कुड यू?" अग्रता नीचे मिस्टर जयवर्धन पर चिल्ला रही थी। मिस्टर जयवर्धन अग्रता की बात चुपचाप सुन रहे थे।

    "डैड, इस तरह से मैं अपनी मॉम की इंसल्ट नहीं होने दूँगी। उसको मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी। वह समझता क्या है अपने आप को?" अग्रता का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था।

    "मॉम, आप भी चुपचाप उसकी मनमानी बर्दाश्त करती रहीं। आप भी कुछ नहीं बोलीं। शेम ऑन यू। कम से कम अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए तो बोल लेतीं।" अग्रता ने अब अरुणा की ओर रुख किया।

    "अरुणा, तुम अपनी बेटी को चुप करवा रही हो या नहीं? बिना सोचे समझे कुछ भी बोले जा रही है। अरे, उसे कुछ समझो! मैं किस लिए उसको टॉलरेट कर रहा हूँ, यह बात इसके समझ में नहीं आएगी।" कितनी देर से अग्रता की बात सुनते हुए मिस्टर जयवर्धन ने अग्रता से नाराजगी से कहा।

    "अरे, हो क्या गया है? एक वसीयत ही तो है। उसके लिए क्या वह हमें अपनी उंगलियों पर नचाएगा? पेपर बनवाकर दादाजी का अंगूठा लगवा लीजिए, बात खत्म। और वसीयत मेरे और अर्थ के नाम हो जाएगी।" अग्रता ने अपनी भड़ास निकाली।

    "अरुणा, भगवान के लिए इसे चुप करवा लो! मैं कुछ सोच रहा हूँ। यह अपनी बकवास बंद करे, तब मेरा दिमाग काम करेगा ना।" मिस्टर जयवर्धन झुंझला कर बोले।

    "बेटा, चुप हो जाओ। मैं तुम्हें पूरी बात क्लियर करती हूँ। अभी तुम्हारे पापा कुछ सोच रहे हैं, उन्हें सोचने दो।" अरुणा ने प्यार से अग्रता के सिर पर हाथ फेरा और मिस्टर जयवर्धन की तरफ रुख किया। इस पर अग्रता ने मुँह बना लिया और गुस्से में अपने रूम की तरफ चली गई। अग्रता रुखे व्यवहार की लड़की थी; अहंकार उसके सर चढ़कर बोलता था। उसकी सोच पैसे पर निर्भर थी। जिसके पास जितना ज़्यादा पैसा, वह इंसान उतना ही बेहतर होता था।

    "क्या हुआ? इतने परेशान क्यों हो?" अरुणा ने पूछा।

    "कुछ नहीं, डैड ने अपनी वसीयत लॉकर में रखी है। बस वही देखना था। हमें क्या मिला है? कहीं सब कुछ श्वेत के नाम तो नहीं कर दिया है?" मिस्टर जयवर्धन चिंतित स्वर में बोले।

    "जब मैं हूँ तो आप टेंशन मत लीजिए। आप देखते जाइए मैं क्या करती हूँ। सब कुछ अपने हाथ में होगा।" अरुणा ने फिश एक्वेरियम में रंगीन फिश को देखते हुए कहा।

    "क्या करने वाली हो? श्वेत को कुछ मत करना। प्लीज।" आश्चर्य और परेशानी से मिस्टर जयवर्धन ने हाथ जोड़कर कहा।

    "अरे पति परमेश्वर, आप ऐसे मत कीजिए। मोह माया त्याग दीजिए।" अरुणा ने मिस्टर जयवर्धन के हाथ पकड़कर कहा। अरुणा ने मिस्टर जयवर्धन को गले से लगा लिया और सार्कैस्टिक वे में मुस्कुराने लगी।


    "हैलो सर...वो श्वेत सर ने खाना खाने से मना कर दिया।" विशेष ने मिस्टर जयवर्धन को कॉल पर सूचना दी।

    "सर, चलिए आपने बहुत पी ली है।" विशेष श्वेत के पास आया और उससे कहा।

    श्वेत ने गर्दन हिलाई और विशेष को गौर से देखते हुए कहा, "आर्थर (फिर गर्दन हिलाकर) सैमुअल.....नो....नो....जेवियर।"

    श्वेत सोचने लगा। तब विशेष ने कहा, "सर, आप नशे में हैं। आपको रूम तक छोड़ देता हूँ।"

    "अभी गिलास में एक घूंट पड़ी है।" इतना बोलकर श्वेत ने गिलास मुँह से लगा लिया और खत्म करने लगा। विशेष उसकी अजीबोगरीब हरकत देख रहा था।

    "अरे ये निकल क्यों नहीं रही।" कहते हुए श्वेत नशे में गिलास को हथेली पर उल्टा करके मारने लगा।

    "सर, वो गिलास में डिज़ाइन है।" विशेष ने गिलास लेकर वेटर को पकड़ा दिया।

    "अच्छा! चलो।" श्वेत की आँखें बंद हो रही थीं। विशेष ने श्वेत को सहारा देकर खड़ा किया।

    "क्विन, आज हम कहाँ हैं?" श्वेत विशेष के साथ बातें करता हुआ चल रहा था।

    "सर, आप इंडिया में मिस्टर जयवर्धन के घर पर।" विशेष ने बताया।

    "जैक, तुम्हें पता है मिस्टर जयवर्धन एक नंबर के.......(सोचते हुए) बास्केट (बास्टर्ड)मैन है और वो मिसेज जयवर्धन वो....वो..... क्या हो सकती हैं विच (बिच), चलेगा ना आर्थर।" श्वेत विशेष के सहारे से लड़खड़ाते हुए चल रहा था। विशेष उसकी बात सुन रहा था।

    "तुम्हें पता है क्या?....अरे कैसी बात करते हो यार। तुम्हें कैसे पता होगा। उस टाइम नन्हे से मुन्ने से गोलू मोलू थे। (कुछ सोचकर) गोलू मोलू नहीं होता...यार ढोलू भोलू होता है। तुम करेक्शन नहीं करते हो इसलिए मेरे साथ कोई टिक नहीं पाता है। फिर हाँ तो मैं कौन सी कहानी सुना रहा था।" श्वेत बहकी-बहकी बातें कर रहा था।

    "सर, आपका रूम आ गया।" विशेष ने कहा।

    "इतनी जल्दी ट्रेन आकर रुक गई, बीच में कोई प्लेटफार्म आया ही नहीं।" श्वेत नशे में पूछ रहा था।

    "सर, बहुत सारे प्लेटफार्म आए थे लेकिन आपकी बातों में पता नहीं चला।" विशेष का दिमाग गरम होने लगा था क्योंकि श्वेत की ऊटपटांग बातों से वह झुंझला रहा था।

    "तुम जाओ, मैं अपने आप घर चला जाऊँगा।" श्वेत ने विशेष से दूर होने का प्रयास किया।

    विशेष का फोन रिंग होने लगा। फोन पर मिस्टर जयवर्धन का नाम देखकर श्वेत को रूम के बाहर ही छोड़कर लिफ्ट की ओर मुड़ गया।


    "श्वेत, ओपन द डोर।" सुबह-सुबह श्वेत के रूम के बाहर अरुणा गेट बजा रही थी।

    श्वेत गहरी नींद में था या उसका नशा उतरा नहीं था। अरुणा की आवाज उसे ऐसे सुनाई दे रही थी जैसे वह किसी गहरी खाई में गिरा हुआ हो और उसे कोई आवाज लग रहा हो। श्वेत नींद में ही लड़खड़ाते हुए उठा और दरवाजा खोलकर अरुणा को गुस्से से देखने लगा। अरुणा ने उसे साइड हटाने के लिए कहा और रूम की सफाई के लिए मेड को अंदर जाने का इशारा किया।

    श्वेत ने गर्दन हिलाई और साइड हट गया। उसके साइड हटते ही अरुणा और मेड दोनों अंदर आईं। अंदर का दृश्य देखकर वे चौंक गईं, जबकि श्वेत सब इन सब से अनजान था।

    अरुणा श्वेत की तरफ देखकर बोली, "ये सब क्या है?"

    श्वेत ने अरुणा की नजरों का पीछा किया और सामने देखकर उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। श्वेत कभी सामने देखता, तो कभी मेड और अरुणा की तरफ।

    क्रमशः

  • 3. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 3

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    श्वेत ने अरुणा की नज़रों का पीछा किया और सामने देखकर उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। श्वेत कभी सामने देखता, कभी मेड और अरुणा की तरफ।

    आधुनिक साज-सज्जा से युक्त कमरे में सब सामान उच्च गुणवत्ता का था और वह भी उच्च धन लगाकर तैयार किया गया था।

    "ये क्या है? श्वेत बेटा! ऐसे काम बड़े घरों के अंदर नहीं होते। इन सबको जयवर्धन खानदान से दूर रखो तो ही बेहतर है। इसको किसी ने यहां से जाते देख लिया तो गले की हड्डी बन जाएगी। मीडिया तो वैसे ही पीछे पड़ी है, तो बात फंसकर रह जाएगी।"

    अरुणा बोली। श्वेत शॉक्ड सा था; कभी अरुणा को देख रहा था, कभी उस लड़की को जो घुटनों के चारों तरफ बाजू लपेटकर, उसमें अपना मुँह गाड़े, बेड पर बैठी रो रही थी।

    "ये लड़की अब रोने-धोने का नाटक बंद कर, अपना रुपया ले और चलती बन। इन सबको भूल जा जैसे तुम दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो।"

    अरुणा ने रौबदार आवाज़ में कहा। उस लड़की ने उठकर अरुणा के पैर पकड़ लिए।

    "ऐसा मत कीजिए। मैं कहाँ जाऊँगी? इस आदमी ने मेरे साथ खिलवाड़ किया है।"

    लड़की ने रोते हुए अरुणा के कदमों में सिर रख दिया।

    "चल हट! तुम जैसी रोज़ रात बिताती हैं, तू अनोखी है क्या? इज्जत का ढिंढोरा पीटने वाली, अपनी कीमत बोल और फिर कभी अपनी शक्ल मत दिखाना।"

    अरुणा ने उस लड़की को ठोकर मार दी। टेबल का कोना उसके माथे पर जा लगा जिससे उसके खून निकलने लगा।

    उन दोनों की बातें सुनकर श्वेत का माथा गर्म हो गया और वह जोर से चिल्लाया, "स्टॉप इट दिस नॉनसेंस ड्रामा...और आप यहां से चली जाइए। अपने मैटर मैं खुद संभाल सकता हूँ।"

    "श्वेत बेटा, तू शांत रह। ऐसी लड़कियों को कैसे हैंडल करना है, मुझे अच्छी तरह से आता है।"

    अरुणा श्वेत के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखने लगी, तो वह पीछे हट गया।

    "आप अपने अहसान की कीमत इस तरह वसूलेंगी तो मेरी हेल्प मत करतीं। चलती कार से धकेल देते। उन दरिदों के हाथों से बचकर आपका आश्रय लिया था, लेकिन आप रक्षक बनकर भक्षक निकलीं।"

    वह लड़की रोते हुए बोली। श्वेत मौन खड़ा उन सबको सुन रहा था और अपने ऊपर लग रहे इल्ज़ामों के वार झेल रहा था।

    "ओ माई गॉड! यहां क्या हो रहा है?"

    अग्रता हैरानी के साथ जोर से बोली। सब उसकी ओर देखने लगे।

    "बिग बी इस घर में लड़की लाना और अय्याशियां करना अलाउड नहीं है।"

    अग्रता ने बेशर्मी से कहा। श्वेत की भौंहें सिकुड़ गईं। वह लड़की रो रही थी।

    "अग्रता, चुप रहो। तुम इस तरह से ब्लेम नहीं कर सकती। बड़े घरों के लड़कों से इस तरह की नादानियाँ अक्सर हो जाती हैं। श्वेत ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया? जवानी का जोश और फ़ॉरेन से पढ़कर आया है, तो सब चलता है। बस इसे घर के रूल पता नहीं हैं।"

    अरुणा ने उसकी साइड ली। वह लड़की चौंककर सामने खड़ी औरत को देख रही थी कि किस तरह से अपने बेटे को बचा रही थी या उसकी गलतियों पर पर्दा डाल रही थी। उस लड़की के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

    "सॉरी बिग बी, आपको बुरा लगा तो, लेकिन ज़िंदा मक्खी निगलना मेरी आदत नहीं है। डैड....डैड....आपके रूल्स एंड रेगूलेशन हमारे लिए ही बने हैं क्या?"

    जोर से बोलकर अग्रता जयवर्धन को बुलाने चली गई। उसकी बात सबको सुनाई दी थी।

    "श्वेत, तुम जाकर फ़्रेश होकर नीचे आओ। तब तक इस मैटर का सॉल्यूशन्स निकालते हैं।"

    (श्वेत के साथ प्रेम से बोलकर अरुणा लड़की की तरफ मुड़कर गुस्से में बोली थी। अरुणा के व्यवहार में पल में बदलाव आया था।) "ये लड़की, तुम नीचे चलो।"

    अरुणा ने तीखी नज़रों से देखते हुए कहा।

    "आप सबका ड्रामा हो गया, तो आप जाइए। इस लड़की से मुझे कुछ बात करनी है।"

    श्वेत ने बिना किसी भाव के कहा।

    "यहाँ क्या हो रहा है?"

    जयवर्धन की तेज आवाज़ गूँजी। उनके पीछे अग्रता और अर्थ खड़े थे।

    श्वेत को पता था कि सब उसका तमाशा बनाने पर तुले हैं; कोई उसका नहीं है, जो दिख रहा है उसे ही सच बनाकर सबके सामने पेश करेंगे।

    "कुछ नहीं, आप यहाँ चलिए। जवानी का जोश और गर्म खून है, कभी-कभी बच्चों से गलती हो जाती है।"

    अरुणा जयवर्धन के पास आकर गेट से ही वापस मोड़कर बाहर ले गई।

    "हुआ क्या है? तुम मुझे बताओगी या नहीं?"

    जयवर्धन नाराज़गी से बोला।

    "आप इतना गुस्सा मत कीजिए, आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है।"

    अरुणा जाते हुए बोल रही थी।

    "बिग बी, एक चांस और मिल रहा है। सीज़ द ऑपर्चूनिटी। बेस्ट ऑफ़ लक।"

    अर्थ ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।

    "आप यहाँ से निकलेंगे, तभी बिग बी कुछ कर पाएँगे ना..."

    अग्रता अर्थ की तरफ आई, विंक करके कुटिलता से मुस्कुराकर आधी-अधूरी बात बोली और इठलाकर चली गई।

    श्वेत को पता था कि वह नागों के बीच आ घिर गया है। इंडिया में आज उसका पहला ही दिन था कि उसके साथ यह खेल रच दिया गया था, या नियति ही कुछ अलग करना चाहती थी।

    "हाँ तो बोलो, तुम्हें किसने और क्यों भेजा है?"

    श्वेत ने दरवाज़ा बंद करते हुए उस लड़की के पास आकर कहा।

    "तुम बड़े लोगों की यही ख़ासियत होती है ना, अय्याशी करके किसी दुश्मन की चाल ठहरा दो।"

    वह रोते हुए बोली।

    "बकवास करने की कोशिश मत करना। तुम नहीं जानती हो मैं कितना बुरा हो सकता हूँ।"

    श्वेत ने गुस्से में उस लड़की के बालों को कसकर पकड़ते हुए कहा।

    "बुरा बनने की बजाय मेरा गला ही दबा दीजिए। सबके लिए सही रहेगा और सबसे ज़्यादा मेरे लिए...."

    वह लड़की बोली, तो श्वेत ने झटके से छोड़ दिया।

    "छोड़ क्यों दिया? अपनी प्रॉब्लम मुझे मारकर ख़त्म कर दीजिए। आपको सामने से मौका दे रही हूँ। वैसे भी पुलिस को पैसे देकर मुँह बंद करवाना आप लोगों के बाएँ हाथ का खेल है।"

    उस लड़की ने श्वेत के दोनों हाथ पकड़कर अपने गले पर रख दिए, जहाँ ख़रोचों के निशान थे।

    वह लड़की बालकनी की तरफ भागी। श्वेत उसके मूवमेंट को देखकर उसके पीछे गया। उस लड़की ने जितनी जल्दी हो सका दरवाज़ा ओपन किया और दीवार के पास आकर छलांग लगा दी। श्वेत उसकी हरकत पर स्तब्ध हुआ था।

    क्रमशः

  • 4. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 4

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    वह लड़की बालकनी की तरफ भागी। श्वेत उसके मोमेंट को देखकर उसके पीछे गया। उस लड़की ने जितनी जल्दी हो सके डोर ओपन किया और दीवार के पास आकर छलांग लगा दी। श्वेत उसकी हरकत पर स्तब्ध हुआ था। वह लड़की नीचे गिरती उसके पहले श्वेत ने अपनी मजबूत बाजुओं से उसके हाथ को थाम लिया। उसे काफी मेहनत करनी पड़ रही थी। उसके मन में एक सन से यह भी था कि लड़की अपने प्लान में कामयाब ने होने के कारण आत्महत्या कर रही हो शायद इसके लिए इस पैसे मिले हो। वह अपनी सोच को एक ठोस जगह पर नहीं ठहरा सकता था। "छोड़ो मुझे मर जाने दो।" वह लड़की रोते हुए दूसरे हाथ से श्वेत के हाथ पर मार रही थी। श्वेत ने उसे बचाने के लिए लड़की के दूसरे हाथ को भी पकड़ लिया किंतु अब भी उस लड़की को काबू में नहीं कर पा रहा था क्योंकि वह अपनी पूरी बॉडी पैरों को हिला रही थी जिस कारण श्वेत का बैलेंस बिगड़े और वह उसे छोड़ दे। श्वेत तो श्वेत था उसने भी उसका हाथ नहीं छोड़ा और उसके हिलने के बावजूद भी वह उसे ऊपर खींचने लगा। "ऐसे कैसे मर जाने दूं। तुम किसका मोहरा हो यह जाने बिना।" श्वेत ने गुस्से में कहा। "पवित्रा नाम है मेरा। कल रात को इंटरव्यू देने के लिए गई थी। कंपनी के मालिक की मर्जी के मुताबिक काम न करने पर उसने मेंरे पीछे अपने आदमी भेजे थे। भीड़तंत्र में मेरी फाइल गिर गई। कहीं मिले तो उस फाइल और उसमें जो भी डीग्री है उन्हे मेरी लाश के साथ जला देना।" उस लड़की ने एक सांस में अपने बारे में सब कुछ बता दिया। श्वेत उसे लड़की को ऊपर खींचने की जद्दोजहद में लगा। ""यह इंट्रो तो तुम्हारा दिया हुआ है इसके पीछे असलियत क्या है वह भी तो मुझे जाननी होगी।"" "प्लीज मुझे छोड़ दो। मर जाने दो। एक मेरे मरने के बाद असलियत ढूंढते रहना और एक मेरे जाने से दुनिया खाली नहीं हो जाएगी।" वह लड़की रोते हुए चिल्लाई। श्वेत ने जोर लगाकर उसे ऊपर खींच लिया लेकिन बालकनी की दीवार तक ले आया, वह बालकनी के अंदर धकेलता मगर उससे पहले उस लड़की ने उसके हाथ को काट लिया जिससे श्वेत का हाथ वापस फिसल गया। श्वेत को गुस्सा आने लगा था मगर गुस्सा करने का समय नहीं था। "मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं ऊपर आ जाओ।" श्वेत ने गुस्सा कंट्रोल करते हुए आराम से कहा। "मुझे कोई एहसान नहीं चाहिए। तुम मेरा हाथ छोड़ो।" वह लड़की ढीठ होकर बोली। "तुम्हे कुछ और चाहिए?" श्वेत अपनी दोनों मजबूत बाहों से पवित्रा को ऊपर की ओर खींचते हुए "आ गए ना सौदेबाजी पर, मुझे पता ही था तुम सब पैसे वाले एक जैसे होते हैं कमीनापन दिखाए बिना नहीं रह सकते। मेरे हाथ छोड़ दो।" पवित्रा ने गुस्से में दांत पीसकर कहा। श्वेत ने इस बार जोर लगाकर सावधानी से उसे ऊपर खींचा और बालकनी में ला पटका, पवित्रा की कमर में चोट लग गई जिससे उसे उठने में तकलीफ हुई। पवित्रा संभल पाती उसके पहले श्वेत ने गोद में उठाया और बैड पर लाकर गिरा दिया। श्वेत ने बालकनी लॉक की और पवित्रा के पास आकर उसके बाल पकड़कर " ज्यादा होशियारी दिखाई ना तो कान खोल कर सुन और समझ लेना। मौत की भीख मांगोगी तो भी नहीं मिलेगी और जीने मैं नहीं दूंगा।" श्वेत की आंखे गुस्से में लाल थी जैसे आंखो से ही भस्म कर देगा। पवित्रा उसे ऐसे देख कर डर गई और उसकी आंखो से पानी बहने लगा। "विशेष! अब तक कहां हो? तुम्हे नौ बजे मेरे कमरे में होना चाहिए था। तुम इस तरह असिस्ट करोगे।" श्वेत फोन पर झल्लाहट में बोला। पवित्रा ने देखा कि श्वेत की गुस्से से हर नस बाहर निकलने को तैयार थी। उसका चेहरा देखकर कोई भी बता सकता था कि वह कितने गुस्से में है। पवित्रा सहमकर बेड की एक कोने में दुबक गई। "कल कहां इंटरव्यू था?" श्वेत गरजा। "गुलमोहर इंडस्ट्रीज" पवित्रा धीरे से आंसू साफ करते हुए " गुलमोहर इंडस्ट्रीज की पूरी रिपोर्ट चाहिए वहां पर कल जो भी हुआ था। चार घंटे है तुम्हारे पास " श्वेत ने ऑर्डर दिया। "सर चार घंटे कम है।" विशेष "दो घंटे में हर हाल में सब कुछ मेरे सामने होना चाहिए। बाय हुक ओर बाय क्रुक" श्वेत ने फरमान सुनाया। "और तुम अगर यहां से हिली तो देख लेना, जमीन आसमान से भी खोद कर ढूंढ निकालूंगा।" श्वेत ने वार्निंग दी और वार्डरोब से कपड़े निकालकर वॉशरूम में घुस गया। सुबह से हो रहे इस तमाशे से उसका दिमाग खराब हो गया। वह शॉवर के नीचे खड़ा कल से लेकर अब तक हुए हादसे के बारे में सोच रहा था। पवित्रा के बारे में सोच वह जल्दी से तैयार होकर बाहर निकल आया। ***** "मै कहती हूं लगे हाथ मेहता की लड़की को अपने घर की बहू बना लेते हैं श्वेत की लगाम अपने हाथों में रखेगी तो वह भी ज्यादा नहीं उड़ेगा।" अरुणा अपने कमरे में डोलते हुए दिमाग लगा रही थी। "और वह तुम्हारे कहने से बात मान लेगा है ना श्रवणकुमार। मेहता की लड़की हाफ माइंड है।" जयवर्धन ने ताना कसा। "आप समझ नहीं रहे हो। बाबूजी की जायदाद श्वेत के बाद उसकी होने वाली पत्नी की होगी। हम मेहता की लड़की के साथ डील कर लेंगे और न मानेगी तो उसे पागल करार कर देगें।" अरुणा ने कहा। "तुम्हें लगता है वह मानेगी।" जयवर्धन ने शक जाहिर किया। "न मानेगी तो भी हम उसके नाम प्रॉपर्टी करने वाले कागज के बीच में वो कागज डालकर साइन करवा लेंगे जिसमें सबकुछ हमारे नाम होगा। फिर बचकर कहां जाएगी।" अरुणा कुटिलता से "इतना आसान नहीं है।" जयवर्धन सोचते हुए " श्वेत कहीं इस लड़की पर पिघल जाए उससे पहले एक कोशिश करके देखते हैं।" अरुणा "जो अंदर है उसे लड़की का क्या करेंगे?" जयवर्धन "खल्लास, वैसे भी इसे कौन जानता है। दुश्मन का भेजा हथियार है तो कोई खोजबीन न होगी। गरीब है तो उसके घरवालों का मुंह बंद करदो।" अरुणा कुटिलता से हंसी। जयवर्धन एक पैर हिलाते हुए सोचने लगा। ***** श्वेत पवित्रा की निगरानी के लिए वहीं सोफे पर बैठा रहा। दो घंटे बाद विशेष ने डरते हुए डोर नोक किया तो श्वेत ने आने के लिए कहा। विशेष के हाथ में कुछ सामान था वह श्वेत की ओर बढ़ा दिया। क्रमशः*****

  • 5. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 5

    Words: 1017

    Estimated Reading Time: 7 min

    श्वेत पवित्रा की निगरानी के लिए वहीं सोफे पर बैठा रहा। दो घंटे बाद विशेष ने डरते हुए डोर नॉक किया। श्वेत ने आने के लिए कहा। विशेष के हाथ में कुछ सामान था, जिसे उसने श्वेत की ओर बढ़ा दिया।

    श्वेत ने कैरी बैग पवित्रा की तरफ, बेड पर उछाल दिया और उसे चेंज करने के लिए इशारा किया।

    "यू शुड चेक इफ यू हैव मेड ए मिस्टेक," श्वेत ने विशेष के सामने ही उसे धमकी दी। वह कुछ नहीं बोली, खुद को दुपट्टे में लपेटे हुए वॉशरूम में चली गई।

    श्वेत अब वही फाइल देखने लगा जो कल रात पवित्रा से खुद को बचाने के चक्कर में गिर गई थी। उस पर मिट्टी और कीचड़ लग चुका था, जाने कितने साधन उस पर गुजरे होंगे। श्वेत ने एक-एक पेपर को ध्यान से चेक किया। सब कुछ देखने के बाद उसने उस फाइल को संभाल कर रखने को कहा और बालकनी के ग्लास डोर के पास आ खड़ा हुआ। विशेष वहीं खड़ा रहा। ग्लास डोर में उसकी परछाई देखकर श्वेत अचंभित हुआ।

    "व्हाट?" श्वेत ने अचंभित होकर पूछा।

    "सर, आपको ताई जी और बड़े पापा ने नीचे बुलाया है। अभी-अभी उनका मैसेज आया है।" श्वेत के हाव-भाव देखकर विशेष ने एक ही साँस में कहा।

    "तुम चलो, मैं आता हूँ।" श्वेत ने विशेष से कहा और अपनी वॉर्डरोब की तरफ मुड़ गया।

    कुछ देर बाद श्वेत नीचे आया तो सब एकदम से तैयार बैठे थे, जैसे कोई जरूरी मीटिंग हो। श्वेत को पता था कि यहाँ आने पर उसे हर रोज अलग-अलग झटकों का सामना करना पड़ेगा।

    "आओ बेटा, बैठो यहाँ," अरुणा ने कहा।

    "नहीं, मैं यहाँ ठीक हूँ।" अपने लॉवर में हाथ डालकर खड़े होते हुए श्वेत ने बिना नज़रें मिलाए जवाब दिया। वह अरुणा से अच्छी तरह वाकिफ था।

    "मुझे यहाँ क्यों बुलाया गया?" श्वेत ने पूछा।

    "मुज़रा देखने के लिए," अर्थ ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, और अग्रता भी साथ-साथ हँस दी। सबके व्यवहार से साफ़-साफ़ जाहिर था कि श्वेत उन सबको बर्दाश्त नहीं था। विशेष ने कुछ रिएक्ट नहीं किया, अरुण कुटिलता से मुस्कुराए।

    "जिसे तुम करने वाले हो, और करोगे भी, क्यों नहीं? रगों में खून भी वही दौड़ रहा है। जैसी माँ वैसा बेटा।" श्वेत ने ठंडे लहजे में कहा, तो सबके जैसे करंट लग गया। अर्थ और अग्रता अभी-अभी जिस बात पर हँस रहे थे, उसका जवाब सुनकर लाल पीले हो गए थे, वहीं अरुणा का खून जलकर राख हो गया।

    "श्वेत..." जयवर्धन जोर से चिल्लाए। अरुणा के साथ-साथ अर्थ और अग्रता का खून भी जलकर रह गया।

    "क्यों? सच बात कड़वी लगी ना मिस्टर जयवर्धन? जब आपने मुझे यहाँ बुला ही लिया है तो इन सब बातों की आदत डाल लीजिये। हर रोज शब्दबाणों की डोज मिलेगी।" श्वेत ने कहा।

    "श्वेत, अपनी हद में रहो।" जयवर्धन श्वेत को गुस्से में बोले।

    "बेहद रहने वाला इंसान मुझे हद सिखा रहा है।" श्वेत ने मुस्कुराकर व्यंग्य बाण मारा।

    "पापा! मैं आपकी इंसल्ट सहन नहीं कर सकता।" अर्थ बीच में बोला तो श्वेत वापस सीढ़ियों की ओर मुड़ गया।

    "श्वेत बेटा, एक बार हमारी बात सुन लो, फिर चले जाना। यह सब ऐसे ही करते रहेंगे।" अरुणा ने शांत होकर बात करते हुए कहा, तो अर्थ और अग्रता हैरानी से उसे देखने लगे।

    "मुझे आपकी मीटिंग में कोई इंट्रेस्ट नहीं है।" श्वेत ने बिना मुड़े ही कहा।

    "मिस्टर मेहता की बेटी, अकीरा मेहता से तुम्हारा रिश्ता जुड़ने वाला है और उन्होंने सामने से चलकर अपनी बेटी के साथ तुम्हारी शादी की बात की है। मिस्टर मेहता का खानदान बहुत ही अच्छा और पैसे वाला है। हमारे बिज़नेस में भी बहुत काम आएंगे और उनकी बेटी भी इकलौती है, उनके जाने के बाद सब तुम्हारा ही है।" अरुणा ने कहा।

    "मुझे सेल करने की बजाय आप अपने बेटे को सेल क्यों नहीं कर देती? मैं ऐसी सौदेबाजी में कोई इंट्रेस्ट नहीं रखता।" चार सीढ़ियों पर खड़ा श्वेत वहीं से मुड़ा और अरुणा को देखते हुए कहा।

    "श्वेत, तुम अपनी हरकतों से बाज आ जाओ, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" मिस्टर जयवर्धन ने श्वेत को धमकाया।

    "आपने अपनी हरकतें देखी हैं जो मुझे पाठ पढ़ा रहे हो? सोचो एक बार के लिए, मर भी गए तो यमराज भी हाथ लगाने से डरेगा आपको देखकर, आपने इतने घटिया कर्म... नो...नो...नो कर्म नहीं कांड किये हैं।" श्वेत गुस्से में बोला।

    "डैड, ये संस्कार हैं बिग बी के, जो कब से आपके और मॉम के सामने बोल रहे हैं।" अग्रता फ्रस्ट्रेशन में बोली।

    "और रही बात मेरी शादी की, तो ऊपर मेरे साथ जो लड़की है, मैं उससे शादी करूँगा।" श्वेत ने फैसला सुनाया और वापस सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए मुड़ गया।

    "लेकिन बेटा, वो लड़की... उस लड़की के बारे में हम कुछ नहीं जानते हैं, कहीं वो राइवल्स निकली तो... मैं नहीं चाहती कि तुम किसी संकट से घिर जाओ।" अरुणा पीछे से बोली, किन्तु उसने न किसी की बात का जवाब दिया और न ही मुड़कर देखा। अरुणा गुस्से में भर गई।


    श्वेत के जाने के बाद अर्थ, अग्रता और अरुणा गुस्से में अपने-अपने कमरे में चले गए। हॉल में विशेष और जयवर्धन रह गए।

    "विशेष, तुम उसके असिस्टेंट और भाई हो ना? तुम दो दिन से उसके साथ हो, तुम कर क्या रहे हो?" विशेष की ओर देखकर जयवर्धन गुस्से में बोला।

    "जी...वो....मैं.....सर को समझा रहा हूँ।" विशेष ने नज़रें झुकाकर कहा।

    "जाओ और अनामिका को कहो कि पुरुषोत्तम की दवा ले जाए।" जयवर्धन ने कहा।

    "लाइए, मुझे दे दीजिए, मैं उनको दे दूँगा।" विशेष ने कहा।

    "पहली बात, तुम पुरुषोत्तम का ध्यान नहीं रखते, दवाई यह कैसे और किस तरह देनी है, वह मैं अनामिका को बता दूँगा।" जयवर्धन ने बार की ओर बढ़ते हुए कहा।

    जयवर्धन वापस मुड़कर बोला, "लाओ, तुम्हारा फ़ोन दो।"

    विशेष ने अपना फोन निकाला और लॉक खोलकर जयवर्धन की ओर बढ़ा दिया। जयवर्धन ने अनामिका को फोन लगा दिया।

    "हैलो, विशेष बेटा, घर आते हुए तुम्हारे पापा की दवा ले आना।" अनामिका ने फ़ोन उठाकर फ़टाफ़ट अपनी बात रख दी।

    "अनामिका, डॉक्टर ने दो दवा बदलकर दी हैं। तुम आ जाओ, मैं तुम्हें समझा देता हूँ।" जयवर्धन ने कहा।

    जयवर्धन की आवाज सुनकर अनामिका थर-थर काँपने लगी। उसकी आँखों में नमी उतर आई और बेबस सी बिस्तर पर पड़े अपने पति को देखने लगी।

    क्रमशः

  • 6. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 6

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    जयवर्धन की आवाज सुनकर अनामिका कांपने लगी। उसकी आंखो में नमी उतर आई और बेबस सी बिस्तर पर पड़े अपने पति को देखने लगी। "विशेष मेरे बच्चे तुम ऑफिस जाओ और सब चैक करके आओ और हां आराम से खाना खाकर सब चैक करके आना। तुम्हे तो अर्थ का पता ही है एक तुम ही तो हो जो भरोसे लायक हो।" जयवर्धन ने उसकी पॉकेट में दस हजार रुपए रख दिए। "मगर बड़े पापा इनकी जरूरत नहीं है।" विशेष ने रुपए वापस देने चाहे "शरमाओ मत! तुम अर्थ के जैसे ही हो। मुझे पता है पुरुषोत्तम कुछ नहीं कर सकता तो अब मेरी जिम्मेदारी है कि तुम्हें अपना बेटा मानकर तुम्हारी जरूरत को पूरा करूं। अब बड़े हो गए हो,तुम्हारे भी कुछ पर्सनल खर्च हैं,उसके लिए है।" जयवर्धन ने विशेष का हाथ पकड़कर उसे रोका। जयवर्धन की पीठ थपथपाने पर विशेष चला गया। "हैलो विशेष ऑफिस जा रहा है,नजर रखना।" जयवर्धन वहां से निकल कर अपने सीक्रेट रूम में आया और ऑफिस में विशेष के काम देखने के लिए लैपटॉप ऑन कर लिया। कुछ देर बाद उसका फोन बजा तो अनामिका की मिसकॉल थी। जयवर्धन कुटिलता से हंसा और रूम का पीछे का गेट खोल कर अनामिका को अंदर खींच लिया। ***** श्वेत रूम में आया तो पवित्रा उसी पोजिशन में थी जिसमें वो छोड़कर गया था। वह चुपचाप पवित्र के ताई से बंधे हाथ पैर खोल रहा था और उसके मुंह से टेप हटा दी। पवित्रा ने गहरी सांस ली और श्वेत को घूरने लगी। "कभी आगरा नहीं गए ना" पवित्रा अपने दोनों हाथों की कलाइयों को मसलकर ठीक करते हुए बोली तो श्वेत ने ना में गर्दन हिला दी। "इस बार मैं तुम्हे ले चलूंगी। वहां के पागल खाने के दर्शन कर लेना और वहां के पुजारी जो कि प्रसाद में शॉक देते वो भी दिलवा कर लाऊंगी।" पवित्रा गुस्से में बोली तो श्वेत ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखो से देखा तो वह चुप हो गई। श्वेत ने फोन पर खाना ऑर्डर किया और चारों तरफ नजर मार कर " कल हमारी शादी है सो बी रेड्डी" पवित्रा मुंह खोले श्वेत को देख रही थी। श्वेत उसके रिएक्शन पर भंवे सिकोड़कर देखने लगा। उसने आगे बढ़कर पवित्रा का मुंह बंद किया। "तुम कल से मेरे साथ बधंन में बंध जाओगी लेकिन हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना।" श्वेत पवित्रा से थोड़ी दूरी पर बैठते हुए रिलेक्स मूड में समझाने की कोशिश की। "तुम वीरप्पन के भाई हो, छोटा राजन के चेले हो? या दाउद के अंडर में काम सीखा है। पहले तो तुम ये बताओ गुंडो की श्रेणी में आते हो। इंटरनेशनल, नेशनल या स्टेट लेवल पर। सुना है एक छोरा लॉरेंस उसकी भी बड़ी धाक है कहीं उसकी गैंग के तो नहीं हो ना।" पवित्रा श्वेत को देखती हुई एक सांस में बोल गई। "बस इसलिए तुम लड़कियों से बात नहीं करना चाहता। रिपोर्टर भी तुम्हारे आगे फेल है। तुम मेरा दिमाग और खराब करो उसके पहले टेप चिपका देता हूं।" श्वेत ने गुस्से में आकर उसका मुंह बंद करते हुए कहा। पवित्रा ने ना में गर्दन हिलाई। "अब तुम्हारे मुंह से एक भी फालतू का वर्ड निकला तो उसी तरह बांध कर रखूगां।" श्वेत ने पवित्रा को धमकाया तो वह उससे पीछे सरक गई और सोफे के कोने पर दुबक गई। श्वेत ने खड़े होकर माथे पर हाथ लगाकर " श्वेत खुद पर कंट्रोल कर लड़कियां ऐसे ही करती हैं और तुझे इसकी आदत डालनी होगी वरना मिस्टर जयवर्धन को कमजोर नस दबाने में कोई दिक्कत न होगी।" श्वेत का फोन बजा तो नबंर देखकर बात की और आंखो से ही वार्निंग लुक देकर नीचे चला गया। श्वेत ने अपने पैकेट्स लिए और अंदर की तरफ आने लगा तो हल्के अंधेरे में अनामिका से टकराते बचा। अनामिका उसे देखकर हड़बड़ा गई। "चाची आप इधर कैसे?" श्वेत ने हैरानी के साथ उनके पैरों की ओर झुक कर बोला। "वो...वो...तुम्हारे चाचाजी की दवा भाईसाहब लेकर आए थे बस वही लेने आई थी।" अनामिका ने बताया। "और तुम कैसे हो? कब आए?" अनामिका ने बात का रुख मोड़ा। "मैं ठीक हूं आप जाइए चाचा जी को देख लीजिए वैसे विशेष बड़ा और स्मार्ट हो गया है।" श्वेत हल्का सा मुस्कुराया। "हां, वक्त के साथ सब बदल जाता है तुम भी तो इतने बड़े हो गए हो।" अनामिका "चाची कल आप सबसे आकर मिलता हूं।" श्वेत ने कहा और अंदर चला आया। श्वेत रूम में आया तो पवित्रा कहीं न दिखी। वह अचरज में पड़ गया। श्वेत उसे दबे पांव इधर-उधर खोजने लगा तो सोफे के पीछे उंघते पाया। "ए लड़की उठो।" श्वेत जोर से बोला तो पवित्रा हड़बड़ाहट में उठी और इधर-उधर देखते हुए सैल्यूट मार कर "यस सर।" "चलो खाना खाओ।" श्वेत बिना को भाव दिए आगे चलकर आया और सोफे पर बैठ गया। "उफ्फ्फ पवित्रा तेरे सपने" अपने ही सर पर चपत मार कर पवित्रा सोफे के नजदीक आई तो खाना देखकर मुंह में पानी आ गया और जैसे ही सोफे पर बैठने लगी, श्वेत "स्टॉप! वहीं रुक जाओ।" "आप मुझे पहले ही कह देते खड़े होकर खाना है।" पवित्रा कमर पर हाथ लगाकर "तुम खुद से ही हर चीज एज्यूम कर लेती हो कितनी इंटेलिजेंट हो।" श्वेत ने ऑनलाइन मंगाए खाने की प्लेट खोल रहा था और उसके साथ-साथ कुछ अलग से ऑर्डर किया था उन्हे चैक कर रहा था। "आप मेरे साथ रहेंगे तो पता चलेगा, मैं कितनी काबिल हूं।" पवित्रा ने ढीले ढाले सूट की कॉलर ऊंची की तो हल्का सा कुर्ता ऊपर उठ गया और झेंप कर हाथ नीचे कर लिए। "आपकी सजावट हो गई तो खा सकती हूं।" पवित्रा ने झुक कर कहा। "नहीं" श्वेत ने छोटा सा उत्तर दिया। "क्यों? मैने ऐसा क्या गुनाह कर दिया।" पवित्रा सीधी खड़ी होकर "हे भगवान मुझे चक्कर आ रहे हैं उठा लो।" पवित्रा बड़बड़ाई। "जिसने खुद तंग आकर तुम्हे नीचे पटका है वह इतनी जल्दी बुलायेगा। नहीं ऐसा मुझे नहीं लगता।" श्वेत ने कहा तो पवित्रा ने मुंह बनाया। "आपको खाना नहीं खिलाना था तो क्यों उठाया।" पवित्रा वापस मुड़कर सोफे के पीछे जाते हुए बोली। "चुपचाप हाथ धोकर खाना खा लो।" श्वेत "बस इतनी सी बात कहने में इतना टाइम लगा दिया।" श्वेत ने पवित्रा को घूरा तो वह वॉशरूम की ओर भाग गई। क्रमशः*****

  • 7. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 7

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    पवित्रा को भूख लगी थी, इसलिए उसने फटाफट अपनी प्लेट सरकाकर खाना शुरू कर दिया। श्वेत ने खाना खाया और वॉशरूम की ओर जाते हुए कहा, "खाना खाकर ये सब रूम के बाहर डस्टबीन में डाल देना।"

    "ऊंहहह जैसे नौकर लगी हूँ।" पवित्रा मन में बोली; उसके सामने तो वह बोल नहीं सकती थी।

    "नौकर नहीं, मेरी होने वाली पत्नी हो इसलिए पत्नी धर्म निभाओ।" श्वेत कहकर वॉशरूम में चला गया, और पीछे खांसती पवित्रा रह गई।

    "अघोरी होगा जो शमशान साधना करके आया है, झट से मन की बात जान गया। हे भगवान! इस व्यक्ति के साथ जीवन यापन कैसे होगा?" पवित्रा खुद में बड़बड़ा रही थी। वह सब डिस्पोज़ेबल रूम के बाहर डस्टबीन में डालने गई तो उसने देखा कि सब ओर अंधेरा था। पवित्रा को वहाँ कुछ अजीब लगा। उसने दो कदम आगे बढ़ाए ही थे कि किसी ने उसकी बाजू पकड़कर खींच लिया। वह घबरा गई और उसकी धड़कन... उसकी स्पीड... इतनी तेज हो गई कि कलेजा मुँह को आ गया।

    "इस घर में बारूद बिछा है, तुम्हारा एक कदम तुम्हारी जान ले सकता है।" पवित्रा के मुँह पर हाथ रखकर श्वेत बोला। पवित्रा उसके इस तरह के व्यवहार से घबरा गई थी। उसकी आँखें बंद होने के साथ ही आवाज़ सुनकर खुल गईं। श्वेत को देखकर उसे राहत भी मिली, साथ में गुस्सा भी आया कि अभी उसकी जान निकल जाती।

    पवित्रा श्वेत की बात सुनकर घबरा गई और श्वेत का हाथ छुड़ाकर रूम की ओर भाग गई। श्वेत चुपचाप रूम में आया और रूम की लाइट्स ऑफ करके बेड पर सो गया। पवित्रा उसे हैरानी से देखती रह गई। अब वह सोने की जगह कहाँ ढूँढे? इसके साथ... नहीं... नहीं... इस इंसान के साथ सोना? मतलब बारिश के कारण ठंड हो रखी थी, कम्बल उसे भी चाहिए था।


    अनामिका काँपते हाथों से दवाई चेक कर रही थी। सब दवाइयाँ तो वही थीं। जयवर्धन ने विशेष के सामने झूठ बोला था। अनामिका की आँखों से आँसू बह चले, क्योंकि जब वह उसकी बात का विरोध करती, तो विशेष को ही मोहरा बना लेता, और उसके सामने वह कुछ बोल नहीं सकती थी। वह उस पल को कोस रही थी जब जमीन-जायदाद के बँटवारे को लेकर पुरुषोत्तम और उसने जयवर्धन का विरोध किया था। आज पुरुषोत्तम इस हालत में न पड़ा होता।

    अनामिका को अपने हाथ पर स्पर्श महसूस हुआ। उसने नज़रें उठाकर बेड पर लेटे पुरुषोत्तम की ओर देखा, तो उसने पास आने का इशारा किया। अनामिका को लगा कि वह कुछ कहना चाहता है।

    "ज़हर दे दो इन दवाइयों के बदले और विशेष को लेकर दूर चली जाओ। क्यों मेरे लिए अपनी ज़िंदगी नरक बना रखी है?" पुरुषोत्तम के मुँह में फ़ूड पाइप लगी थी, जिसके कारण वह धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपनी बात कह सका। यह सुनकर अनामिका का रोम-रोम काँप उठा, और दवाइयाँ हाथ से गिर गईं।

    "आप ऐसा मत कहिए। आप हैं तो मैं और विशेष बचे हैं। उस राक्षस का पता नहीं, वह मेरे विशेष को कुछ कर देगा तो... और मुझे अपनी गुलाम बनाकर रख लेगा।" अनामिका ने रोते हुए उसकी बात का जवाब दिया। अनामिका के साथ-साथ पुरुषोत्तम की आँखों से भी बेबसी बरस रही थी।

    "क्यों ना हम दोनों ही ज़हर खा लें?" अनामिका आँसुओं को साफ़ करके हिम्मत से बोली।

    पुरुषोत्तम ने बोलने की बजाय उसकी हथेली दबाई।

    "नहीं, तुम नहीं। हमारे विशेष का क्या होगा? उस राक्षस का भरोसा नहीं है।" पुरुषोत्तम भावुक होकर बोल गया, लेकिन उसकी साँसें अटकने लगी थीं। वह साँस लेने की कोशिश कर रहा था।

    अनामिका ने देखा कि पुरुषोत्तम को साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है, तो उसने बाहर के रूम में रह रहे मेल नर्स को आवाज़ लगाई और पुरुषोत्तम की कंडीशन चेक करने को कहा। वह डर गई कि कहीं टेंशन में पुरुषोत्तम को कुछ हो ना जाए।

    कुछ देर बाद मेल नर्स ने पुरुषोत्तम को चेक किया, उसकी फ़ूड पाइप में फँसे कफ़ को बाहर निकाला और वापस सेट कर दिया। पुरुषोत्तम के गले में दर्द और जलन हो रही थी, क्योंकि फ़ूड पाइप चेंज की गई थी, जिसमें यह सब होना लाज़मी था। मेल नर्स ने अनामिका से उसके लिए पतला सा दलिया बनाने के लिए कहा, जिससे उसे फ़ूड पाइप में डाला जा सके। कुछ देर में अनामिका यह भोजन ले आई। मेल नर्स ने भोजन खिलाकर उसे पेनकिलर की दवा दे दी, और वह सो गया।

    अनामिका तो कब की अपनी किस्मत के आगे हार मान चुकी थी।


    "विशेष, आओ बैठो, चाय पियो।" जयवर्धन ने चाय कप में डालते हुए कहा।

    विशेष उनके पास बैठ गया और बातें करने लगा।

    "डैड को इस दो कोड़ी के लड़के में क्या नज़र आता है?" अग्रता ग्रीन टी का टी बैग कप से निकालकर ट्रे में रखते हुए बोली।

    "तुम नहीं समझोगी। यह हमारे बड़े काम का आदमी है।" अरूणा ग्रीन टी का सिप लेते हुए बोली।

    "पज़ल्स सॉल्व करने में आपका इंट्रेस्ट होगा, मेरा नहीं।" अग्रता निराशा में बोली।

    "वक़्त आने पर विशेष और श्वेत आमने-सामने होंगे और दोनों आपस में ख़त्म।" अरूणा कुटिलता से बोली।

    "मॉम!" अग्रता ने हैरानी से आँखें फाड़कर देखा। अरूणा शांत सी अपने कप में ध्यान लगाए रही। वह अरूणा का इशारा समझ चुकी थी।


    श्वेत अचानक से सीने में दर्द से उठा, जैसे किसी ने सीने पर पत्थर मारा हो। श्वेत ने अपने सीने से पत्थर हटाया और उठ बैठा। कम्बल हटाकर उसने साइड लैंप जलाया और सीने को मसलने लगा। फिर उसने इधर-उधर देखा, तो गुस्से में उसका चेहरा तन गया। पवित्रा का पैर किसी पत्थर की मानिंद लग रहा था। श्वेत उसके अपोजिट आकर कम्बल में लिपटी पवित्रा को बेड से नीचे धक्का दे दिया, और वह नीचे गिर गई। नीचे बिछे मोटे कालीन और कम्बल में लिपटे होने से उसे चोट नहीं लगी और ना ही उसकी नींद में खलल पड़ा। यह देखकर श्वेत को गुस्सा आया।

    श्वेत बालकनी की ओर आकर किसी से फ़ोन पर बात करने लगा। कुछ देर बात करने के बाद वह अपने कपड़े लेकर वॉशरूम की ओर चला गया।

    पवित्रा हड़बड़ाहट में उठी, तो देखा कि वह पूरी गीली हो चुकी थी। वह अभी देखने की कोशिश ही कर रही थी कि एक छोटी बाल्टी का पानी उस पर आकर गिर गया। उसकी साँसें अटक गईं और अपेक्षित रूप से शरीर सिकुड़ गया। पवित्रा ने मुँह पर बालों से टपक रहे पानी को पोछा और सामने श्वेत को देखकर उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं।

    दोनों एक-दूसरे को दो दुश्मनों की तरह देख रहे थे, जैसे अभी टूट पड़ेंगे और खा जाएँगे।

    क्रमशः

  • 8. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 8

    Words: 1041

    Estimated Reading Time: 7 min

    दोनों एक-दूसरे को दो दुश्मनों की तरह देख रहे थे, जैसे अभी टूट पड़ेंगे और खा जाएँगे। दूर से देखने पर, दोनों कुत्ते-बिल्ली सा बिहेव कर रहे थे।

    "जल्दी से चेंज करो।" श्वेत, बाल्टी लिए मुड़ा और पवित्रा से धीरे से बोला।

    "मेरी मर्जी!" पवित्रा गुस्से में बोली। श्वेत ने आँखें दिखाईं और बाहर निकल गया।

    पवित्रा दांत पीसकर उसे कोसने लगी।

    कुछ देर बाद श्वेत कमरे में आया तो पवित्रा बालकनी की ओर वाले ग्लास डोर के पास खड़ी थी। पर्दे के बीच से छनकर आ रही रोशनी में, आँखें बंद किए, वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। श्वेत ने नज़र हटाई और अलमारी में से कुछ निकालने लगा। पवित्रा वैसे ही आँखें बंद किए खड़ी रही, जैसे उसके अलावा वहाँ कोई और हो ही न।

    पवित्रा ब्लैक ड्रेस पहने, बिखरे बालों में, बालकनी में खड़ी होकर आँखें बंद किए, जाने क्या सोच रही थी। श्वेत के आने पर भी उसकी आँखें नहीं खुलीं, या उसे श्वेत के आने का पता ही नहीं चला। वह न जाने किस जंजाल में उलझी हुई थी।

    "पाँच मिनट... पाँच मिनट के अंदर पार्किंग में गाड़ी के पास आ जाना।" श्वेत ने आदेश दिया। वह खुद भी कशमकश में था।

    "चलिए, आप! मैं पुष्पक विमान लेकर पहुँच रही हूँ।" पवित्रा श्वेत की बात पर चौंकते हुए बोली।

    "पहले क्यों नहीं बताया? ऐसे ही गाड़ी की सर्विस करवा ली मैंने।" श्वेत ने टोना मारा।

    "ओह! अब कुछ नहीं हो सकता, विमान सिंगल सीटर है। मुझे नहीं पता था कि मेरी ज़िंदगी में इतना बड़ा सस्पेंस आने वाला है और उसके साथ तुम टपकोगे नहीं, तो मैं डबल सीटर ऑर्डर कर देती।" पवित्रा चिढ़कर बोली।

    "चलो फिर, दो मिनट में आ जाना।" श्वेत कहकर दरवाज़े की ओर बढ़ गया।

    "ओये जयवर्धन! मैं जिन्न की तरह हाज़िर हो रही हूँ। पुष्पक विमान का इरादा छोड़ दिया है।" पवित्रा जोर से बोली, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, वह जा चुका था। पवित्रा, श्वेत का रिस्पॉन्स न देख, सिर पर पैर रखकर दौड़ी।


    जयवर्धन अपने सीक्रेट रूम में विशेष को बिज़नेस से रिलेटेड बातें समझाकर हटा और विशेष से अपने घर की बात करते हुए पूछा, "पुरुषोत्तम का बॉडी चेकअप कब है?"

    "इसी महीने के अंत में। डॉक्टर ने अपॉइंटमेंट फिक्स की है।" विशेष ने कहा।

    "जब डॉक्टर से मिलो तो मेरी बात करवा देना और हाँ, याद से मेरा कार्ड ले जाना। पुरुषोत्तम के इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। मैं नहीं चाहता कि मेरा छोटा भाई और उसका परिवार किसी के आगे हाथ फैलाए।" जयवर्धन ने विशेष का कंधा थपथपाया।

    "बड़े पापा, कार्ड की ज़रूरत नहीं है। मेरे पास अभी रुपये हैं।" विशेष कृतज्ञता से नज़रें झुकाकर बोला।

    "विशेष, मेरे बच्चे, वो पैसा तुम्हारे फ्यूचर में काम आएगा और जब मैं हूँ तो तुम्हें चिंता करने की कोई बात ही नहीं है। आराम से तुम उसका इलाज करवाना। मैं नहीं चाहता कि मेरे छोटे भाई के इलाज में कोई कमी हो और उस छोटी सी कमी के चलते उसका ट्रीटमेंट अधूरा रह जाए।" विशेष ने हाँ में गर्दन हिलाई तो जयवर्धन इतना कहकर चला गया।

    वह जयवर्धन के अहसानों तले खुद को दबा हुआ महसूस कर रहा था, लेकिन जयवर्धन ने कभी इसका एहसास नहीं होने दिया।


    "माँ, बड़े पापा न होते तो आज हमारा क्या होता?" विशेष के बोलने पर अनामिका के हाथ काम करते हुए रुक गए।

    "कैसे बताऊँ तुम्हें कि उसके जैसा राक्षस इस दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा।" अनामिका मन में सोचते हुए...

    "माँ, कहाँ खोई हो? आपकी तबीयत ठीक है?" विशेष ने कंधे पर हाथ रखकर पूछा।

    "कहीं नहीं।" अनामिका होश में आई।

    "देखो, प्याज़ ज़्यादा लाल हो गए हैं।" विशेष ने गैस बंद कर दी।

    "तुम तैयार होकर आओ। इतने में नाश्ता तैयार हो जाएगा।" अनामिका अब ध्यान लगाकर काम में जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगी।

    "पापा को नारियल पानी दे दिया?" विशेष ने पूछा।

    "नहीं दिया। आज सब काम में लेट हो गई।" अनामिका ने कहा।

    "माँ, तबीयत ठीक नहीं है क्या?" विशेष ने फिर से पूछा।

    "हाँ, ठीक। कभी-कभी हो जाता है।" अनामिका साफ़ झूठ बोली तो विशेष पुरुषोत्तम को नारियल पानी पिलाने लगा।

    "केयरटेकर रख देता हूँ, आपको भी आराम मिलेगा।" विशेष ने नारियल पानी पिलाकर पुरुषोत्तम का हाथ अपने हाथ में ले लिया। पुरुषोत्तम उसे नज़र भरकर देखने लगा। विशेष पुरुषोत्तम के करीब होकर गले लगते हुए बोला, "पापा, विल पॉवर कमज़ोर मत होने देना। एक दिन आप ज़रूर ठीक होंगे।"


    "चलो, बाहर आओ।" श्वेत ने पवित्रा की ओर वाले दरवाज़े को खोलकर कहा।

    "ये कहाँ आ गए हैं हम?" पवित्रा अचंभित होकर चारों तरफ़ देखते हुए बोली।

    "लंका में, वो भी तुम्हारे पुष्पक विमान में..." कहकर श्वेत आगे बढ़ गया।

    "इस लंका के दशानन तुम हो।" पवित्रा मुँह बनाकर बोली।

    "ऑफकोर्स!" श्वेत के कदम तेज थे, तो वहीं पवित्रा की उससे कदमताल मिलाने की कोशिश जारी थी।


    "वो दोनों सुबह-सुबह कहाँ गए हैं?" नाश्ते के लिए डाइनिंग चेयर पर बैठे जयवर्धन ने पूछा।

    "मैं क्या जानूँ? तुम जानो और तुम्हारा बेटा! मुझे कभी उसने अपनी माँ माना है?" अरुणा नाराज़गी से बोली।

    "अब वह भी कंफ्यूज़न में है, तुम्हें माँ कहे या अपनी बड़ी बहन।" जयवर्धन ने कहा।

    "देखो, तुम इस तरह की बात करके मेरा बीपी मत बढ़ाओ।" अरुणा ने जयवर्धन को आँखें दिखाकर कहा।

    "गलत कहाँ हूँ?" जयवर्धन जूस पीते हुए बोला।

    "मेरी सौतेली बहन थी और इसके नाना ने मुझे कभी अपनी बेटी माना ही नहीं। ना मुझे और ना मेरी माँ को एक फूटी कोड़ी तक नहीं दी।" अरुणा गुस्से से भर गई।

    "नाना भी बेचारा अपनी पहली पत्नी का गुलाम था। वो उसे देता, तभी तो वो तुम माँ-बेटी को देती। सब कुछ तो वो श्वेत के होने से पहले ही उसके नाम करके चली गई।" जयवर्धन हँसा, या फिर उसने अरुणा का मज़ाक उड़ाया था।

    "जैसा अय्याश ससुर, वैसा ही दामाद।" अरुणा ने जयवर्धन की नब्ज़ दबाई।

    "आप दोनों फिर से शुरू हो गए।" अग्रता अलसाई सी सोफ़े पर बैठते हुए बोली।

    "तुम्हारे बाप को तुम्हारे बिग बी पर बड़ा प्यार आ रहा है।" अरुणा का गुस्सा ख़त्म नहीं हुआ था।

    "डैड, ये आपका राम-दशरथ वाला प्रेम ठीक है, लेकिन प्रॉपर्टीज़ में से एक रुपया उसे नहीं देने देंगे। समझे आप?" अग्रता ने कहा।

    "डोंट वरी। माई प्रिंसेस।" जयवर्धन ने उसकी बात का समर्थन किया।

    जयवर्धन का फ़ोन रिंग हुआ। कुछ ही मिनटों की बातचीत के बाद, जयवर्धन ने विशेष को फ़ोन मिला दिया।

    क्रमशः

  • 9. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 9

    Words: 1018

    Estimated Reading Time: 7 min

    श्वेत ने एक होटल के आगे गाड़ी रोकी और पवित्रा को बाहर निकालकर उसे अंदर ले गया। श्वेत बिना चेकिंग के अंदर गया, तो पवित्रा की हैरानी का ठिकाना न रहा।

    पवित्रा चुपचाप उसका व्यवहार नोट कर रही थी। पवित्रा को पता नहीं था कि लिफ़्ट किस फ्लोर पर रूकी। श्वेत पवित्रा का हाथ पकड़कर उसे कमरे की ओर ले जा रहा था। तभी पवित्रा होश में आई और उसने देखा कि उस फ्लोर पर कोई नहीं था। पवित्रा घबराहट में खुद को बचाने के लिए इधर-उधर नज़र घुमाई। वहाँ लगे फ्लोर स्टैंडिंग वास की आर्टिफिशियल लीफ़ को पकड़कर खींचने लगी। ऐसा उसने अपने बचाव के लिए किया था।

    पवित्रा जब उसके साथ-साथ खींची हुई चल रही थी, तो वास स्टील का होने के कारण उसके घसीटने की आवाज़ भी आने लगी। पवित्रा की इस प्रतिक्रिया पर श्वेत उसको घूर कर देखने लगा।

    "क्या है ये सब?" श्वेत खासी नाराजगी से बोला।

    "तुम कहाँ ले जा रहे हो और यहाँ सब ओर शांति क्यों है?" पवित्रा घबराहट से बोली।

    "यहाँ शांति है इसीलिए तुम्हें मारने के लिए ले जा रहा हूँ।" श्वेत चिढ़कर बोला।

    "ऐसे ही क्यों मरूँ? एक योद्धा की भाँति मरूँ।" पवित्रा ने श्वेत के घूरने पर कहा।

    "ओ महान योद्धा! जाकर कमरे में तैयार हो जा। जो लड़ने-मरने के लिए बहुत टाइम पड़ा है।" श्वेत ने कमरा दिखाया।

    "तो तुम यहाँ क्यों लाए हो?" पवित्रा असमंजस में उस वास को वहीं एक कोने से लगाकर खड़ा करते हुए बोली।

    श्वेत ने उसे कमरे के अंदर जाने के लिए कहा। पवित्रा धीरे-धीरे कदमों से आगे बढ़ी। सामने का नज़ारा देखकर वह हैरान रह गई।


    "विशेष, जब तुम्हें उसका असिस्टेंट बनाया गया है, तब तुम्हें जानकारी होनी चाहिए थी कि वह कहाँ गया है?" जयवर्धन परेशान होकर बोले। कुछ देर पहले श्वेत का फ़ोन आने के बाद उन्होंने विशेष को पूछताछ के लिए बुलाया था।

    "बड़े पापा, उसका रात तक ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं था।" विशेष ने साफ़-साफ़ बात कही।

    "डफर को कहाँ असिस्टेंट बनाया है?" अर्थ के पास खड़ी अग्रता भुनभुनाई। अर्थ ने भी अपनी मुट्ठियाँ कस लीं। उन दोनों ने अरुणा के कहने पर मौन साध रखा था।

    "अब क्या किया जाए?" जयवर्धन दोनों हाथ कमर पर लगाकर खड़े हो गए।

    "उसकी गाड़ी की लोकेशन सेट की है मैंने अपने मोबाइल में, मैं अभी देखकर बताता हूँ।" विशेष ने अपना मोबाइल निकाला और लोकेशन चेक करने लगा। विशेष के इतना बोलने पर सबने उस पर नज़र गड़ा ली।

    "बड़े पापा, होटल यूनिवर्सल ट्रुथ में गया है।" विशेष ने आश्चर्यचकित होकर कहा।

    "ये तो संग्राम सिंह का है ना?" जयवर्धन बोले।

    "हाँ, उन्हीं की ब्रांच है।" विशेष ने जयवर्धन को बताया। जयवर्धन सोचने लगा।

    "मैं अभी श्वेत के पास जाकर उससे पूछ लेता हूँ।" विशेष ने मोबाइल पॉकेट में डालते हुए कहा।

    "रहने दो, कुछ देर में उसने सबको मंदिर में बुलाया है और तुम जाकर तैयार हो जाओ।" जयवर्धन की बात पर सब अचरज से देखने लगे।


    श्वेत पवित्रा को कमरे में छोड़कर लिफ़्ट में ऊपर की ओर बढ़ गया, जो किसी का प्राइवेट एरिया था। श्वेत लिविंग रूम में पहुँचा तो वहाँ कोई उसका बेहिसाब बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। उसने श्वेत को गले से लगाया और बैठने के लिए कहा।

    "तुम शादी कर रहे हो?" वह व्यक्ति आश्चर्यचकित होकर बोला।

    "ह्म्म्म्म।" श्वेत उलझा सा बोला।

    "क्या बात है? तुम खुश नहीं हो?" उस व्यक्ति ने श्वेत की बात पर संशय जाहिर किया।

    "पता नहीं, यहाँ आने के बाद यह तीसरा दिन है जब मेरी लाइफ़ में धमाका होने जा रहा है। मिस्टर जयवर्धन की पहले दिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस और उसी रात इस लड़की का मेरी लाइफ़ में आना। दूसरे दिन उन नमूनों का हंगामा, किंतु उनकी पसंद से शादी करने से बेहतर यह लड़की है।" श्वेत बोला।

    "सोच लो।" उस इंसान ने श्वेत के फ़ैसले पर फिर से श्वेत को आगाह किया।

    "सोच लिया है। वैसे इससे छुटकारा पाने में विशेष को जालसाजी नहीं आती, वरन् वह खुद जयवर्धन के बटरिंग वाले बिहेव में फँसा है। उसने ही इस लड़की के बारे में खोजबीन की है।" श्वेत बोला।

    "श्वेत, ऑल द बेस्ट। एन्जॉय योर लाइफ़। मुझे नहीं पता तुम क्या करने वाले हो, लेकिन उसे बुलाना सही रहेगा क्या?" वह व्यक्ति सोफ़े पर पीठ टिकाकर बोला।

    "हाँ, उसका आना ही मेरे लिए बेहतर है। और रही बात लाइफ़ की एन्जॉय करने की, तो सस्पेंस एक्शन ड्रामा होने वाला है।" श्वेत मुस्कुराकर बोला।

    "तू अपना ध्यान रखना।" वह व्यक्ति बोला।

    "ह्म्म्म्म! तेरा इवेंट कब है, जिसकी मेगा स्टार्टिंग तू और भाभी करने वाले हो?" श्वेत पूछा।

    "परसों, तुम्हारी भाभी की जिद है। जब इंडिया में इसकी एक्सेसरीज़ खुल रही हैं, तो हम दोनों ही धमाकेदार एंट्री के साथ वहाँ मौजूद रहें।" उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी की इच्छा श्वेत को बताई।

    "अरे, तुमने रूप कंवर भाभी को ऐसे ही समझा है क्या? वह जो भी काम करेंगी, दिमाग लगाकर करेंगी। और वैसे भी, यथा नाम तथा गुण वाली कहावत रूप कंवर भाभी पर लागू होती है। जब वह ऑडियन्स के सामने आएंगी, तो ऑडियन्स हीरोइन्स को भूल जाएगी।" श्वेत ने अपनी भाभी की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

    "बस कर, इतना मस्का ठीक नहीं है। फिर वह मुझे उंगलियों पर नचाएगी।" श्वेत और वह व्यक्ति दोनों एक साथ हँसे।

    "चल जा, तुझे तैयार भी होना है। और सुन, तेरा नाश्ता और कॉफ़ी तेरे रूम में आ रहा है।" उस व्यक्ति की बात सुनकर श्वेत गर्दन हिलाकर चला गया। श्वेत जाते हुए उसके गले लगना नहीं भूला।


    "सब तैयार हो गए हो? तो चलो मंदिर चलना है।" जयवर्धन घड़ी में टाइम देखते हुए बोले।

    "डिसगस्टिंग।" अग्रता उखड़े हुए मिजाज़ के साथ बोली।

    "तुम ऐसे ही रूड होती रहो। अब हमें करना तो वही पड़ेगा जो वह करवाएगा। उसे आए हुए दो दिन हुए नहीं हैं, सबको गुलाम बना लिया है। पापा को एक फ़ोन करके ऑर्डर दे रहा है कि मंदिर आ जाओ। उसके ऑर्डर सुनकर ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में हम उसकी जगह न खड़े हो जाएँ।" अर्थ ने काम करते हुए नौकर की तरफ़ इशारा करके कहा। वह गुस्से में भरकर अग्रता से बातें करते हुए सीढ़ियों से नीचे आया।

    "विशेष, तुम अपनी गाड़ी से जाओ।" जयवर्धन ने कहा। विशेष ने हाँ में गर्दन हिलाई और चला गया।

    क्रमशः

  • 10. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 10

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    सीमा ने फोन उठाया। "सीमा, पवित्रा तैयार हो गई क्या?" श्वेत ने पूछा।

    "यस सर," सीमा ने उत्तर दिया।

    "उसे पीछे की साइड से नीचे गाड़ी तक ले आओ। बी केयरफुली," श्वेत ने आदेश दिया और फोन काट दिया।

    "यस सर," सीमा ने कहा, जब तक फ़ोन दूसरी तरफ से साइलेंट हो गया था। सीमा ने श्वेत के आदेश का पालन करते हुए पवित्रा को ध्यान से नीचे ले आई। पवित्रा श्वेत के पास पैसेंजर सीट पर ध्यान से बैठ गई। उसने नोटिस किया कि श्वेत ने उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा था।


    विशेष की गाड़ी के आगे एक स्कूटी जा रही थी। वह उस स्कूटी के साइड से कट कर गाड़ी आगे निकालना चाहता था, मगर स्कूटी वाली उसे आगे निकलने ही नहीं दे रही थी। विशेष उसकी हरकत पर झुंझला गया था। उसे गुस्सा आने लगा था।

    कुछ देर बाद, अचानक स्कूटी रुकी। विशेष ने ब्रेक मारे, मगर गाड़ी स्कूटी से टकरा गई। लड़की और स्कूटी दोनों नीचे गिर गए। स्कूटी में रखी सब्जियाँ, फल और एक फाइल नीचे गिर गई। विशेष गाड़ी से निकलकर उसकी ओर भागा। वह लड़की कुछ पल अपने बिखरे सामान को देखती रही और फिर उठी।

    "सत्यानाश हो," वो लड़की संभलते ही बोली।

    "व्हाट?" विशेष ने हैरानी से पूछा, स्कूटी को संभालते हुए। उसे लगा कि वो लड़की उसे कह रही है।

    "आपका नहीं, नगर निगम वालों का," वह लड़की अपने मुंह से दुपट्टा हटाते हुए बोली और एक गहरी सांस लेकर अपना सामान उठाने लगी। वह म्यूनिसिपैलिटी वालों को कोस रही थी।

    विशेष ने फाइल उठाई। पेपर्स पिन अप नहीं थे, इसलिए वे पूरी सड़क पर बिखर गए। विशेष को मंदिर जाने की जल्दी थी, लेकिन वह लेट हो रहा था। उसने सड़क पर एक-एक कागज उठाना शुरू किया। एक कागज पर उसकी नज़र ठहरी। कुछ पल कागज में झाँका, फिर उस लड़की को देखा। उसने उस कागज को वापस फाइल में डाल दिया।

    "ये आपकी फाइल लीजिए और स्कूटी को साइड कीजिए। मुझे जल्दी जाना है," विशेष ने फाइल लड़की को देते हुए कहा।

    "इतना बड़ा कांड होते-होते बचा है, यानी कि मैं मरते-मरते बची हूँ, फिर भी आपकी आँखें नहीं खुली हैं? तो जाइए शौक से," उस लड़की ने इशारा किया जहाँ बीच सड़क गड्ढा था, जो एक दिन पहले हुई बारिश से बना था। विशेष ने गर्दन हिलाई और अपनी गाड़ी की ओर मुड़ गया।

    "ओ बाबू! ये स्कूटी की डैमेज का रोकड़ा कौन देगा रे?" वह जोर से बोली।

    लड़की के इस तरह बोलने पर विशेष ने उसे देखा। विशेष का फ़ोन बजा। जयवर्धन का नाम देखकर उसने जल्दी में अपनी पॉकेट से कुछ रुपये निकाले और फ़ोन पर बात करते हुए निकल गया। उस लड़की ने इतने सारे रुपये देखे, तो गिनने के लिए खोले। उसमें एक कार्ड भी था। उस लड़की ने आवाज लगाई, मगर विशेष कहाँ सुनने वाला था? जयवर्धन का फ़ोन आने पर वह कहीं भी होता, दौड़ा चला आता था। विशेष की नज़र में जयवर्धन का कद बहुत ऊँचा था।


    "जयवर्धन, ये क्या ड्रामा है? हमें यहाँ बुलाकर खुद गायब है," अरुणा झुंझलाहट से बोली। वह इंतज़ार करते हुए थक चुकी थी।

    "यहाँ एक ऐसी नहीं लगवाया जा सकता क्या, जब इतनी सजावट की है? और सजावट भी देखो, कैसी रईसों वाली की है! मॉम, इसके पास इतना पैसा कहाँ से आया? कहीं डैड तो नहीं पिघल गए अपने लाडले बेटे पर?" अग्रता ने जयवर्धन पर शक किया। वह अरुणा से दो कदम आगे थी। वह इन रीति-रिवाजों को ढकोसला मानती थी, इसलिए उसका यहाँ खड़ा रहना दूभर हो रहा था।

    "तुम दोनों माँ-बेटी अपने मुँह पर लगाम लगाओगी क्या?" उन दोनों की बात सुनकर जयवर्धन को गुस्सा आ गया था। उसने उन्हें झिड़का।

    अर्थ दूर खड़ा किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। विशेष भागते हुए मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ा, तो वहाँ मंडप देखकर हैरान हुआ। विशेष कुछ बोलने को हुआ, तभी अग्रता चिढ़कर बोली, "विशेष, अब तुम अपने सवालों की झड़ी मत लगा देना, यहाँ कोई बात करने के मूड में नहीं है। ऊफ्फ़! ये गर्मी। मॉम, आई फील लाइक डेजर्ट एटमॉसफेयर।"

    विशेष मौन रह गया। उसे पता था कि अग्रता मुँहफट और बिगड़ैल थी। वह बोलने से पहले सोचती भी नहीं थी; उसे बोलने की तमीज़ नहीं थी। विशेष उससे उम्र में बड़ा था, फिर भी वह उसे भाई कहने की बजाय नाम लेकर पुकारती थी।


    "इतना तैयार करने की क्या ज़रूरत थी? सीधा चिता में ही बिठा देते," पवित्रा गाड़ी में बैठे श्वेत पर गुस्सा निकाल रही थी।

    "ऊपर एंट्री भी स्टैंडर्ड से होनी चाहिए," श्वेत गाड़ी चलाते हुए उसे कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था।

    "ऊपर ही जाना था, तो मुझसे आइडियाज़ ले लेते। कहीं कोई रिस्क नहीं रहता," पवित्रा झुंझलाहट से बोली।

    "मैंने कल रात को ही कहा था, मेरे साथ बारूद के ढेर पर चल रही हो," श्वेत ने कहा।

    "मुझे नहीं पता था इस तरह के टुचे से बारूद बिछा रखे हैं," पवित्रा खिड़की की तरफ़ मुँह करके बैठ गई और एडवेंचर का मज़ा लेने लगी, मगर अंदर ही अंदर घबरा उठी थी।

    "मौत के मुँह में खड़ी है और इसको सब कुछ टुचा लग रहा है," श्वेत ने एक पल उसे घूरा और गाड़ी पर ध्यान दे दिया, जो आते-जाते साधनों से बचकर निकल रही थी।


    "अभी तक मेरे पास न्यूज़ क्यों नहीं पहुँची है?" अरुणा दांत पीसते हुए बोली।

    "मैम, मैंने अपना काम ढंग से किया था, लेकिन पता नहीं गाड़ी कहाँ अटक गई। लोकेशन के हिसाब से सड़क पर चल रही है," सामने से एक आदमी बोला।

    "अब ऐसे करो, लोकेशन ट्रेस करके वहीं उसकी गाड़ी को उड़ा दो," अरुणा ने गुस्से में ऑर्डर दिया।

    अरुणा बेचैनी से चक्कर काटने लगी। कुछ देर में एक गाड़ी तेज हॉर्न के साथ मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ती हुई नज़र आई, मगर वह वापस पीछे की ओर फिसलते हुए पलट गई। सब यह देख उस ओर भागे।

    क्रमशः

  • 11. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 11

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    गाड़ी के बैक फिसलते ही सब उसकी ओर भागे। कुछ दूरी पर खड़े होकर सब गाड़ी से निकलता हुआ धुआँ देख रहे थे। विशेष मंदिर की सीढ़ियों के पास ऊंची बनी उस चौकी से ही सीधे गाड़ी की साइड में नीचे छलांग लगा दी। सब उसे देखते रह गए।

    "आप देख रही हैं ना, ये दोनों आपस में लड़ पाएँगे क्या? आज जिस तरह से वह उसके लिए नीचे जम्प कर गया, इस कंडीशन को देखकर तो मैं मान नहीं सकती आपकी बात," अग्रता ने अरुणा से किसी भी संभावना को लेकर मुँह बनाकर अपनी गर्दन ना में हिलाई।

    "अरुणा गुस्से में मंदिर के अंदर चली गई।"

    जयवर्धन नीचे की ओर जाने लगे तो अग्रता व्यंग्यात्मक तरीके से बोली, "आखिरकार एक पिता का प्रेम जाग गया ना!"

    जयवर्धन का इस तरह जाना अखर गया और अग्रता थोड़ा जोर से बोली, जो जयवर्धन को सुन गया था। जयवर्धन के कदम रुके और उसने उन दोनों माँ-बेटी को चेतावनी देते हुए कहा, "तुम दोनों पब्लिक प्लेस में शांति रखो। मैं किसी भी तरह से मीडिया में नहीं आना चाहता।"

    जयवर्धन मुड़ा, लेकिन एक नज़र अग्रता को घूरकर वापस सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। अग्रता गुस्से में पैर पटकते हुए वहाँ से अंदर की ओर चली गई।


    विशेष नीचे कूदते ही फटाफट गाड़ी की ओर दौड़ा और एक साइड का गेट खोल दिया। उधर से पवित्रा ने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए। संभालकर विशेष ने उसे बाहर निकाल लिया, फिर श्वेत का हाथ थामा। इस वक्त दोनों में कोई भाव था तो भाईचारे का था, या अपना खून था जो एक-दूसरे की मददगार साबित हुआ।

    "कहीं लगी तो नहीं?" विशेष ने श्वेत से आत्मीयता से पूछा।

    "इट्स ओके," विशेष की तरफ देखकर श्वेत ने खुद की ड्रेस को ठीक किया।

    "तुम ठीक हो?" श्वेत पवित्रा की ओर मुड़ते हुए पूछा।

    "आप चलिए, पंडित जी आपका इंतज़ार कर रहे हैं। मैं अभी मैकेनिक को कॉल करके आता हूँ," विशेष ने कहा और साइड में चल गया।

    "श्वेत ठीक है?" जयवर्धन ने परेशानी से पूछा, उन्हें बीच सीढ़ियों में मिल गए थे।

    "ह्म्म्म्म," श्वेत ने बिना नज़र मिलाए ही हौले से जवाब दिया, जैसे वह पूछने का दिखावा कर रहे हों। और पवित्रा का हाथ उन्हें मंदिर परिसर की ओर बढ़ गया। जयवर्धन भी पीछे-पीछे चल दिए।


    पवित्रा को देखकर अर्थ के हाथ से फ़ोन छूट गया। वह उसकी सुंदरता से मुग्ध हुआ था और साथ ही उसे श्वेत से जलन महसूस हुई।


    श्वेत और पवित्रा को पंडित जी ने वेदी के पास अपने सामने पूर्वाभिमुख बैठा दिया। सभी देवी-देवताओं का आवाहन करने के बाद, सप्तपदी के मंत्रोच्चार, पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर, एक-दूसरे के साथ सात जन्मों के लिए बंध गए। इस अनुष्ठान के दौरान पवित्रा की पलकें जाने कितनी बार भीग गईं। वह अपने में खोई, पंडित जी के कहे अनुसार सब विधि-विधान कर रही थी। श्वेत निस्तेज सा चेहरा लिए, बिना भाव के सब विधि-विधान पूरे कर चुका था। तभी उसके फ़ोन पर नोटिफिकेशन की बीप सुनाई दी। उस बीप को सुनकर बीच में ही उसने फ़ोन चेक किया और उसने चारों ओर एक नज़र दौड़ाई। श्वेत और पवित्रा हवन वेदी के आगे खड़े, सभी देवताओं का आवाहन कर पुष्पांजलि अर्पित कर रहे थे, लेकिन श्वेत के कान और आँख खुली थीं।

    श्वेत को कुछ नज़र नहीं आया, कि तभी पवित्रा के लहंगे में छेद हो गया जिससे पवित्रा डर गई और श्वेत की बाजू पकड़ ली। श्वेत उसे लेकर नीचे लेट गया। वहीं विवाह सम्पन्न की बात कही जा रही थी और नए-नए जोड़े को आशीर्वाद देने ही रहे थे कि गोली की आवाज़ सुनाई दी। पंडित जी डरकर गर्भगृह में जाकर छिप गए। वहीं जयवर्धन ने अरुणा और दोनों बच्चों को मंदिर परिसर के स्तंभ के पीछे छिपने के लिए कहा। जबकि विशेष तो उन दोनों की शादी का सामान पंडित जी से लेकर गर्भगृह के पास खड़ा होकर उनकी फ़ोटो खींच रहा था। श्वेत ने विशेष को नीचे लेटने के लिए कहा।

    "मिस्टर जयवर्धन, आपकी सिक्योरिटीज़ कमाल की हैं। मेरी शादी के उपलक्ष में उन्हें बोनस दिया जाए तो कितना बढ़िया रहेगा," श्वेत ने जयवर्धन पर टोंट मारा।

    जयवर्धन ने सिक्योरिटीज़ हेड को फ़ोन लगाकर चारों ओर तलाशी के लिए लगा दिया। श्वेत ने पवित्रा को संभालकर खड़ा किया और उसके दोनों हाथों में लेकर उसकी कंडीशन का जायज़ा लेने लगा।

    "पवित्रा, कहीं लगी तो नहीं?" श्वेत ने पूछा।

    "न...नहीं," श्वेत के इस तरह हाथ थामने से पवित्रा अंदर तक सिहर गई।

    "बेटा, तुम ठीक हो ना? और श्वेता, तुम्हें कहीं लगी तो नहीं?" अरुणा के भीतर की माँ की आत्मा जाग उठी थी, किंतु उसकी बात का जवाब किसी ने नहीं दिया।

    विशेष एक चेयर लेकर आया और पवित्रा को बैठने के लिए कहा।

    "विशेष, तुम्हारी गाड़ी ले आओ। घर चलते हैं। यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है और मिस्टर जयवर्धन की प्लस सिक्योरिटी का तो तुम्हें पता ही चल गया होगा आज," श्वेत ने कहा।

    कुछ देर में विशेष गाड़ी ले आया। श्वेत पवित्रा का हाथ पकड़कर चलने लगा। श्वेत विशेष के बराबर वाली सीट पर बैठा था, जबकि पवित्रा पीछे की सीट पर। पवित्रा ने गाड़ी में बैठकर हल्का सा लहंगा ऊपर किया तो उसके पैर से खून निकल रहा था। उसने अपनी रुमाल ली और घाव की जगह को बाँध लिया।

    पवित्रा ने अपनी चोट की भनक किसी को भी नहीं होने दी।

    "और घूमो उसके आगे-पीछे! श्वेत बेटा ये, श्वेत बेटा वो... कर रही थी ना! इतनी बड़ी इंसल्ट करके गया है। एक बार पैरों की तरफ़ झुकना भी ज़रूरी नहीं समझा," अग्रता गुस्से में बोली।

    "शांत रहो, सब ठीक होगा," अरुणा उस रास्ते को घूर रही थी जिससे वे तीनों गए थे।

    "अब घर चलो। यहीं खड़े रहोगे?" जयवर्धन आगे बढ़कर बोला।

    "हाँ भई, चलो घर। चलकर इनके ड्रामे और भी होंगे, जिनका संचालन मेरी मॉम करने वाली है," अग्रता जयवर्धन के पीछे चल पड़ी।

    "इनकी लाश पर भी न थूकने जाऊँ," अरुणा खुद से ही बोली और साड़ी के पल्लू को फटकार कर तेज कदमों से चली गई। जबकि अर्थ वहीं खड़ा फ़ोन में लगा हुआ था।

    "विशेष, पहले चाचा जी और चाची के पास चलेंगे," श्वेत ने कहा तो विशेष हैरानी से देखने लगा।

    क्रमशः

  • 12. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 12

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    विशेष पहले चाचा जी और चाची के पास चलेंगे," श्वेत ने कहा। विशेष हैरानी से देखने लगा।

    "लेकिन बड़ी मां और बड़े पापा के पास पहले जाना आपका फर्ज है और घर की रस्में...." विशेष ने हैरानी से देखते हुए कहा।

    "विशेष, वो तुम्हारे लिए सब कुछ हो सकते हैं, लेकिन मेरे लिए नहीं।" श्वेत ने ठंडे स्वर में कहा। विशेष के पास मौन के अलावा कुछ नहीं था।

    "क्यों? कोई नई बात है क्या? शायद तुम नहीं जानते हो, चाचा जी से और चाची से मेरी बात होती रहती थी। उन्होंने मुझे सब बताया है—कब तुम बोर्डिंग से कॉलेज गए और उसके बाद मिस्टर जयवर्धन ने तुम्हें अपने पास बुला लिया।" विशेष का मौन देखकर श्वेत ने बात स्पष्ट की।

    पवित्रा आँखें मूँदकर सीट पर पीछे सर टिकाकर लेटी हुई थी। कुछ ही देर में गाड़ी जयवर्धन विला के आगे रुकी। श्वेत ने विशेष को अपने चाचा जी के घर के मेन डोर की ओर गाड़ी ले जाने के लिए कहा।

    विशेष चौंका, मगर बिना कोई भाव प्रकट किए गाड़ी अपने घर के आगे ले गया। क्योंकि वह जिस तरह से इन सबके स्वभाव जानता था, उसे यही लगा था कि श्वेत विला के अंदर से ही उसके घर जाएगा। श्वेत को जाने भी तो कैसे जाना था? वह जाने कितने सालों बाद उससे मिला था। वह उसका बड़ा भाई जरूर था, लेकिन कभी उसने व्यक्तिगत रूप से न तो फोन किया, न ही उससे मिलने की बात की।

    विशेष अनामिका को बताने के लिए गाड़ी रोककर आगे चल गया। श्वेत बाहर निकला और गाड़ी की पिछली सीट का गेट खोलकर पवित्रा को बाहर आने के लिए कहा। पवित्रा ने पहला कदम रखा और सीधा खड़ा होने के प्रयास में दूसरा पैर रखने लगी, तो दर्द के कारण वह लड़खड़ा गई। श्वेत ने उसे संभाल लिया।

    "कहा था ना, मेरे साथ हर जगह बारूद मिलेगा। अभी तो शुरुआत ही हुई है, और अभी से लड़खड़ा गई।" श्वेत ने पवित्रा को सीधा खड़ा करते हुए कहा। पवित्रा ने उसकी आँखों में कुछ इस तरह झाँका कि वह उसके चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार दिखी।

    "मुझसे साथ की उम्मीद मत रखना।" श्वेत ने उसे सीधा खड़ा किया और आगे चल दिया। पवित्रा को श्वेत पर गुस्सा आ रहा था, किंतु वह कुछ कर नहीं सकती थी। पवित्रा धीरे-धीरे चलकर अंदर आई। सामने एक जवान सी औरत आँखों में नमी लिए, हाथ में आरती का थाल लेकर खड़ी थी।

    अनामिका ने श्वेत और पवित्रा को बराबर में खड़ा करके उनकी आरती उतारी और ताँबे के कलश का जल दोनों की ओर थोड़ा-थोड़ा डाल दिया। फिर हाथ में नमक और राई लेकर, उन दोनों के सिर पर से वार करके बाहर की ओर फेंक दिया।

    "श्वेत, अब आ और दुल्हन को भी ले आ। कुछ खा-पीकर जाना।" अनामिका आँखों में चमक लिए बोली। वह ऐसे खुश हो रही थी, जैसे श्वेत की शादी न होकर विशेष की शादी हुई हो।

    वो दोनों अंदर आए और अनामिका के पैर छू दिए। अनामिका ने आशीर्वाद दिया और विशेष से रुपये माँगे। श्वेत ने मना किया, लेकिन अनामिका ने जबरदस्ती हाथ में थमा दिए। उसने भी आशीर्वाद समझकर रख लिए।

    "खाना-पीना चाची फिर कभी, आपको पता है ना जयवर्धन का..." श्वेत ने कहा।

    "ऐसे मत बोलो।" अनामिका ने कहा।

    "अच्छा, ठीक है। चाचा जी से आशीर्वाद ले लूँ।" श्वेत मुस्कुराकर बोला।

    फिर विशेष उन्हें अपने पापा के कमरे की ओर ले गया। वो आँखें बंद किए लेटे हुए थे। विशेष ने उन्हें पुकारा, तब उन्होंने आँखें खोलीं।

    श्वेत को सामने देखकर पुरुषोत्तम की आँखों में चमक आ गई। उन्हें देखकर लग रहा था कि जैसे उठकर अभी उसे अपने गले लगा लेंगे। श्वेत और पवित्रा ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उन्होंने सिर्फ़ उंगलियाँ उठाकर आशीर्वाद दिया। श्वेत पुरुषोत्तम के पास बैठ गया, जबकि पवित्रा अनामिका के पास चली गई।

    श्वेत पुरुषोत्तम के पास बैठकर बातें करने लगा। पुरुषोत्तम का दिमाग सारा दिन बिस्तर में पड़े रहने से थोड़ा बहकने लगा था।


    अरुणा घर के अंदर आई। हाल की लाइट जल रही थी और नौकर अपने काम में लगे हुए थे। अरुणा ने एक बार ऊपर की ओर देखा, फिर नौकर को बुलाकर विशेष, श्वेत और पवित्रा के बारे में पूछा। उन सब ने उन तीनों के विला में होने से इनकार कर दिया। अरुणा गुस्से में जयवर्धन की ओर पलटी। तब तक वह विशेष से बात करते हुए आ रहा था। आते ही अग्रता सोफे पर पसर गई, जैसे दुनिया भर का काम करके लौटी हो।

    "कोई पानी नहीं लाएगा?" अग्रता चिल्लाई।

    अरुणा चावल का कलश दहलीज पर रखते हुए बोली, "यहाँ से कोई नहीं आएगा और जाएगा।"

    अरुणा कलश रखने ही वाली थी कि जूतों की जोड़ी नज़र आई और उसने कलश उठा लिया।

    "तुम कहाँ थे?" अरुणा ने अर्थ से पूछा।

    "आप सास बनने की कोशिश कर रही हैं।" अर्थ ने अरुणा को अनदेखा किया और अग्रता के बराबर आकर सोफे पर बैठ गया।

    "अब सास बनना ही पड़ेगा, कोशिश करने से क्या होगा?" अरुणा ने कहा।

    "बेस्ट ऑफ़ लक।" अर्थ ने कहा। अग्रता ने हाई-फाई किया।

    अरुणा ने उनको घूरा और बाहर की ओर देखते हुए कुछ देर इंतज़ार किया। वहीं जयवर्धन कुछ स्नैक्स खा रहा था।

    अरुणा ने श्वेत को कुछ रीत-रिवाज के नाम पर घर आने के लिए कहा। श्वेत और पवित्रा ने अनामिका और पुरुषोत्तम का आशीर्वाद लिया और जयवर्धन विला की ओर आ गए। पवित्रा ने चलते हुए अब इस विला को गौर से देखा। यह चारों तरफ से गार्डन से घिरा हुआ था। उनके अंदर महंगे-महंगे शोपीस और स्टाइलिश वाटर गार्डन्स, फाउंटेन लगे हुए थे। गार्डन की भव्यता देखते ही बन रही थी।

    कुछ देर बाद दोनों विला के मेन डोर पर पहुँचे। अरुणा ने उनको वहीं रोक दिया और आरती का थाल लेकर उनकी आरती उतरने लगी। फिर अरुणा ने पवित्रा से कलश को ठोकर मारकर अंदर आने के लिए कहा।

    पवित्रा ने अपने पूरे घर को देखा और फिर कलश की ओर देखा। कुछ देर सोचने के बाद उसने अरुणा की ओर देखा, जो नज़रों से उसे कलश को मारने के लिए कह रही थी।

    क्रमशः

  • 13. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 13

    Words: 1085

    Estimated Reading Time: 7 min

    पवित्रा अपने पूरे घर को स्कैन किया और फिर कलश की तरफ देखा कुछ देर सोचने के बाद उसने अरुणा की तरफ देखा जो नजरों से उस कलश को मारने के लिए इंसिस्ट कर रही थी। पवित्रा ने अपने लहंगे को हल्का सा उठाया और एक बार सामने गहरी नजरों से देख कर कलश को जोर से किक मार दी। सब हैरानी से देखते रह गए। कलश जाकर सीधा जयवर्धन की पीठ पर लगा जिससे उसकी आह निकल गई। "पागल हो क्या? इस तरह कलश को ठोकर कौन मारता है?"अरुणा फट पड़ी। वह जयवर्धन की ओर पलट गई। श्वेत के चेहरे पर मुस्कान की रेखा खिंचकर चली गई ठीक वैसे ही जैसे लहर पर बनी लाइन चली जाती है। "सासु बाई आपने ही ठोकर मारने को कहा था।" पवित्रा मासूमियत से बोली। "ड्रामा मूवी में नहीं देखा क्या हौले गिराते है।" अरुणा चिल्लाई और दौड़कर जयवर्धन के पास बैठी और पीठ मसलने लगी। "मेरी लाइफ ड्रामा ही है इसलिए स्पेशल देखने की जरूरत नहीं पड़ी।" पवित्रा बोली तो श्वेत गहरी नजरों से देखने लगा। "ए लड़की मत भूल की यहां तुम्हारा ससुराल और ये घर" अग्रता ने जयवर्धन की ओर कदम बढ़ाकर कहा। "जस्ट शट योर माउथ तुम भी मत भूलो कि तुम भी चार दिन की मेहमान हो और तुम्हारे लिए यह मायका है। सो कूल रहो तो ठीक वरना मुझे कूल और आइस दोनों बनाना आता है।" पवित्रा अग्रता पर नज़रें गड़ाकर बीच में ही बोली। पवित्रा का रवैया देखकर अर्थ मन ही मन "वावो स्पाइसी" "यू..." अग्रता की झल्लाहट बाहर निकली। "बस सब अपने-अपने रूम में जाओ।" जयवर्धन जोर से बोले तो अग्रता गुस्से में अपने रूम की ओर बढ गई। अर्थ वहीं पसरा रहा जबकि जयवर्धन अपने सीक्रेट रूम की ओर चल दिए। श्वेत सबका ड्रामा देखकर ऊपर जाने लगा तो अरुणा ने आवाज लगाई। "श्वेत पवित्रा की पहली रसोई की रस्म है।" अरुणा ने कहा। "आई एम नॉट इंट्रेस्ट योर पहली दूसरी तीसरी रसोई की रस्म में।" श्वेत सीढ़ियां छलांग कर अपने रूम तक पहुंचा। पवित्रा श्वेत को हैरानी से देखती रही। न अपनी पत्नी का साथ दिया तो न विरोध किया......एकदम तटस्थ...... दिमाग में लोचा है। वरना ऐसे कौन करता है?" पवित्रा श्वेत को देखती रही। "पवित्रा किचन में जाओ और हलवा बना हुआ है उसे चम्मच से हिला दो।" अरुणा ने रौब से कहा। "सास बनते ही तेवर....कल से एक-एक को सीधा करना है पहले मेरे टेढे-मेढे पास्ता  को... मोड ऑन सासू मां.." पवित्रा मन में सोच कर किचन की ओर जाने लगी तो अर्थ सामने आकर खड़ा हो गया पवित्र उसे हैरानी से देखने लगी। अर्थ उसकी तरफ कदम बढ़ने लगा तो वह पीछे कदम लेते हुए मुड़कर किचन के अंदर की ओर चली गई अंत में जाकर स्लैब के पास उसके हाथ टिक गए वहां खड़ा कुक पीठ दिखा कर अपना काम करने लगा। पवित्रा कुछ समझ पाती उसके पहले ही अर्थ उसके गले लग कर "वेलकम होम भाभी" पवित्रा को अर्थ के गले लगने से शॉक लगा और घिन्न आने लगी। उससे भी ज्यादा घिन्न उसे अर्थ के गले लगने के बाद के रवैये से आई। अर्थ ने चुनरी के ऊपर से पवित्रा के गले में अपना चेहरा छुपा लिया। पवित्रा की सांसे अटकी थी जब उसने चुनरी के ऊपर से होठ पवित्रा के कंधे पर रखे। पवित्रा का रोम-रोम जल उठा। वह खुद को उससे दूर करने की कोशिश करने लगी तो उसका हाथ किसी चीज लगा और एक बर्तन गिर गया। पवित्रा ने वहां से हाथ हटाकर अर्थ के एक हाथ को अपने हाथों में लेते हुए स्लैब की साइड ले गई तो अर्थ चीख पड़ा और वह पवित्रा से बिजली के झटके के जैसे दूर हुआ। पवित्रा ने जोर लगाकर उसका हाथ अभी भी कुकवेयर में पड़ी लबावदार पनीर की गर्म सब्जी में डुबो रखा था। अर्थ ने पवित्रा को झटका देकर दूर किया और हाथ को निकाला, हाथ अभी भी जल रहा था क्योंकि गर्म पनीर का मसाला उसके हाथ के ही चिपटा हुआ था। उसके चिल्लाने पर कुक ने अर्थ की तरफ देखा और साइड हट गया। अर्थ ने फटाफट अपने हाथ को धोया और दर्द के मारे किचन से बाहर निकल गया। पवित्रा ने गुस्से में हलवे की चम्मच को थोड़ा सा हिला दिया और वहीं खड़े नौकर से दिमाग ठंडा करने के लिए नारियल पानी मांगा फिर अपने रूम की ओर चली गई। पवित्रा को रूम में कोई दिखाई न दिया तो मौका और एकांत पाकर बेड पर पसर गई, अर्थ ने उसका दिमाग खराब कर दिया था और सुबह से शादी के कार्यक्रम में थक गई थी, लेटते ही उसे नींद आ गई। ***** अर्थ जलन से तड़पता रूम में आया और फर्स्ट एड बॉक्स निकाल कर बैड पर रखा,वह फूंक मारते हुए जैल लगाने लगा किंतु जलन कम होने का नाम नहीं ले रही थी। अर्थ को पवित्रा पर गुस्सा आ रहा था। ***** श्वेत  बालकनी में बैठा अपना काम करके आया तो पवित्रा बेफिक्र सोया देखकर उस पर कम्बल डालकर वापस मुड़ गया। पवित्रा कुछ देर बाद हड़बड़ाहट में उठी तो अपने चारों ओर अंधेरा नजर आया तो कानों में कुछ गूंजा फिर उसने अपना सर झटका और फटाफट अपनी साइड का लैंप जला लिया। वहीं पास रखे जग से पानी मुंह ऊपर करके पानी पीने लगी, गिलास को कष्ट देना जरूरी नहीं समझा। "आज तो ये पानी पी लिया है,आगे से ध्यान रखना।" श्वेत ने चेतावनी दी। पवित्रा के मुंह का पानी श्वेत के घुटनों से लेकर नीचे शूज पर गिरा। श्वेत स्तब्ध रह गया और पवित्रा को घूरने लगा लेकिन पवित्रा को कब ही फर्क पड़ा था वह जग को चेक करने लगी और उसके पानी के अंदर देखने लगी। "इसमें कुछ मिलाया है क्या?" पवित्रा जग साइड में रखकर "जहर" श्वेत दांत पीसकर कबर्ड की ओर जाते हुए "कौनसा?" पवित्रा खड़ी हुई तो उसके पैर में दर्द हो गया। "सुपर्ब क्वॉलिटी का" श्वेत "मुझे मिलावट नहीं लग रही है इतनी देर भी कोई लगता है क्या?" पवित्रा अपने पैर को देखते हुए बोली। "नागिन हो, तुम पर कहां असर करेगा?" श्वेत श्वेत की बात सुनकर पवित्रा चिढ़कर " और तुम किंग कोबरा, ब्लैक माम्बा, सॉ-स्केल्ड वाइपर, कॉमन क्रेट और पफ एडर...... " "बस करो! अब प्रूफ हो गया है तुम इनकी रिश्तेदार हो।" श्वेत ने चेंजिंग रूम को डोर जोर से बंद करते हुए कहा। पवित्रा खुन्नस से भर गई। श्वेत के रूम का डोर नोक हुआ तो एक नौकर उसे बुलाने के लिए आया। "नीचे खाने पर बुलाया है आप भी नीचे आ जाना।" पवित्रा जोर से बोलकर नीचे जल्दी जबकि श्वेत अपने चेंजिंग रूम में फोन पर किसी से बात करने में लगा था तो उसे सुनाई नहीं दिया। क्रमशः*****

  • 14. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 14

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    "हैलो, कैसे है तू?" फ़ोन पर आवाज़ आई, उसमें स्नेह झलक रहा था।

    "फ़ाइन," श्वेत हौले से बोला।

    "कल आ रहा है ना?" उस इंसान ने पूछा।

    "तू बुलाए और मैं ना आऊँ? ह्म्म्म्म!" श्वेत ने श्योर किया।

    "पवित्रा को लेकर आना, और वह भी टाइम से पहले। सीमा और उसकी असिस्टेंट तुम्हें उत्सव रिसोर्ट में मिल जाएँगी। मैंने सब एडजस्टमेंट कर दी है। तुम दोनों वीवीआईपी रूम में बैठोगे, जहाँ कोई डिस्टरबेंस नहीं होगा, सिर्फ़ तुम दोनों ही रहोगे।" फ़ोन पर मस्ती भरी आवाज़ गूँजी।

    "तू फिर से शुरू हो गया।" श्वेत खीजकर बोला।

    "मैं शुरू कहाँ हुआ था? मैं शुरू होता तो हम दोनों ने एक साथ फ़ेरे लिए होते ना।" उसने अपनी इच्छा जताई।

    "मैं इस झमेले में पड़ना ही नहीं चाहता था, तू तो जानता है ना।" श्वेत ने मन खोला।

    "तो फिर अब ये सब क्यों? उसकी आशाएँ तोड़ रहा है ना।" वह श्वेत को गलत करने से रोक रहा था।

    "चल, वो सब छोड़। मैं कल आ रहा हूँ। पूरा दिन से दादाजी से नहीं मिला, तो फिर ठीक है, कल मिलते हैं। अभी फिलहाल दादा जी के पास जाकर आ रहा हूँ।" श्वेत ने बात टाल दी।

    "मैं नहीं, हम बोल रहे हैं। मेल पर कुछ भेज रहा हूँ, उनको चेक कर लेना। और दादाजी का ख्याल रखना। ठीक है, बाय। सी यू सून।"

    श्वेत ने फ़ोन रख दिया और मेल चेक करने लगा।


    "तुमने चेंज नहीं किया है?" अरुणा पवित्रा को देखकर एक चेयर की ओर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोली।

    "नहीं, नींद आ गई थी।" पवित्रा ने चेयर पर बैठते हुए कहा।

    अग्रता तो पवित्रा के चेयर पर बैठने के साथ ही उठकर अपने रूम में चली गई। सबने एक नज़र अग्रता को देखा और सब खाने में लग गए; किसी ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की। पवित्रा ने देखा जयवर्धन भी कुछ पल में घास-फूस खाकर चले गए। उसने हैरानी से देखा और मन में सोचा, "ऐसे तो बड़ा बॉडी बिल्डर लगता है! खाया क्या?.....घास-फूस...ऊंहहह!"


    डायनिंग एरिया में अरुणा, अर्थ और पवित्रा बैठे थे। अर्थ पवित्रा को देखते हुए अपने बाउल में चम्मच घुमा रहा था, और उसकी इस हरकत पर पवित्रा को गुस्सा आ रहा था। अरुणा खाना खत्म करके पवित्रा की ओर मुँह करके बोली,

    "कहाँ तक पढ़ी हो और तुम्हारे मम्मी-पापा?" अरुणा ने पवित्रा को देखते हुए पूछा। वह उसका इंट्रो ले रही थी।

    "एमबीए किया है। दुनिया में कोई नहीं है। अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी हूँ।" पवित्रा खाना खाते हुए सीढ़ियों की ओर देखने लगी, शायद श्वेत आ जाए तो अर्थ अपनी हरकतें बंद कर दे।

    पवित्रा के मन में एक आवाज़ गूँजी, "अरे यार, इस तरह झूठ मत बोला कर, यह झूठ बोला हुआ कभी ना कभी सच हो जाता है।"

    "कौन से अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी हो?" अरुणा ने पूछा।

    "उजाला। श्रीमती मानदेवी जी चलाती हैं, लेकिन अब लगभग बंद सा हो चुका है। शायद रुद्रांश या आर्या कुछ करके इसे आगे बढ़ाएँ तो कुछ बात बन सकती है।" पवित्रा ने जानकारी दी। अरुणा इच्छुक नहीं थी, परन्तु आश्रम का नाम इतना उछला था कि सबके जहन में नाम लेते ही केस ताज़ा हो जाता था।

    "ओह, अच्छा। सुना-सुना सा लग रहा है। कई साल पहले इस पर आरोप लगे थे, वही है ना जहाँ लड़कियों की तस्करी की जाती थी।" अरुणा ने कुछ सोचते हुए कहा।

    "ईश्वर ने सच्चाई को बेड़ियों में बाँधा है, जबकि अफ़वाहों को उड़ने के लिए पर दे दिए हैं।" पवित्रा ने दो-टूक बात कही और खाना खत्म करके उठने लगी।

    "कुछ देर बैठो तो सही, तुम्हारे साथ बात करके अच्छा लग रहा है।" अरुणा ने कहा, तो वहीं अर्थ की हरकत बदस्तूर जारी थी।

    कुछ देर तक अरुणा उसे घर के बारे में बताती रही और तौर-तरीका समझाती रही।

    "चलो! तुम जाओ और चेंज करके रेस्ट करो।" अरुणा ने हाथ पर बंधी स्टाइलिस्ट घड़ी में टाइम देखकर कहा।

    पवित्रा को अरुणा के बिहेवियर पर आश्चर्य हुआ, लेकिन वह इग्नोर करके चल दी। वह आधी सीढ़ियों तक पहुँची ही थी कि उसका सर चक्कर आने लगा। उसने पीछे मुड़कर देखा तो अरुणा डाइनिंग चेयर पर बैठी अपना मोबाइल चला रही थी और अर्थ हौले कदमों से सीढ़ियों की ओर बढ़ रहा था।

    पवित्रा ने ऊपर की ओर गर्दन घुमाई तो उसका सर फिर से चकरा गया।

    "क्या हुआ भाभी? आप कहें तो आपके कमरे तक मैं छोड़ दूँ।" अर्थ कुटिलता से पहली सीढ़ी पर कदम रखते हुए पूछा।

    पवित्रा को अब एहसास हुआ कि उसके खाने में कुछ मिलाया गया है, इसलिए वह ताकत लगाकर सीढ़ियों की ओर बढ़ गई, जबकि अर्थ भी तेज कदमों से उसके पीछे आने लगा।

    पवित्रा उसके इरादे भांपकर जल्द से जल्द गैलरी पार करके अपने रूम में जाना चाहती थी, किन्तु गैलरी के आधे रास्ते में ही अर्थ ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "आओ, तुम्हें तुम्हारे रूम तक छोड़ दूँ।" अर्थ पवित्रा का हाथ पकड़े हुए उसके करीब जाने लगा। पवित्रा ने प्रिटेंड किया कि उसने हार मान ली है।

    अर्थ जैसे ही उसके नज़दीक आया, तो पवित्रा ने हाथ की मुट्ठी बनाकर उसकी नाक पर मारा, जिससे अर्थ की नाजुक नाक में दर्द के कारण आँखें बंद हो गईं और पवित्रा का हाथ छोड़कर उसने अपना हाथ मुँह पर रख लिया। पवित्रा ने मौका देखा और उसका सर गैलरी की दीवार पर भिड़ा दिया। अर्थ दर्द से बौखला गया था, मगर वह कुछ कर नहीं सका। गैलरी में वह जोर से बोलता तो श्वेत का आना तय था और पवित्रा की साइड लेकर अर्थ को ही गलत ठहरा देता, जबकि अर्थ ने कुछ और ही सोचा था।

    पवित्रा ने मौका देखा और अपने रूम की तरफ़ भाग गई। उसका सर चकरा रहा था, लेकिन उसने एक बार रूम को चेक किया कि वह श्वेत का रूम है या नहीं। रूम की पहचान होते ही उसने जोर से गेट बंद किया और गेट से लगकर खड़ी हो गई।

    श्वेत सोफ़े पर बैठा उसे नोटिस कर रहा था। वह खाना खत्म करके उठ ही वाला था कि पवित्रा की हालत देखकर उसकी ओर बढ़ा।

    "पवित्रा, क्या हुआ? इतनी घबराई हुई क्यों हो?" श्वेत उसके सामने खड़ा होकर पूछने लगा, तो पवित्रा आँखें लाल किए उसे देखने लगी। श्वेत पवित्रा के व्यवहार को लेकर असमंजस में पड़ गया।

    क्रमशः

  • 15. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 15

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    पवित्रा घबराई हुई थी। "श्वेत, क्या हुआ? इतनी घबराई हुई क्यों हो?" श्वेत ने उसके सामने खड़ा होकर पूछा। पवित्रा ने आँखें लाल किए हुए उसे देखा। श्वेत उसके व्यवहार को देखकर असमंजस में पड़ गया।

    "बोलो ना।" श्वेत पवित्रा के पास गया और उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। पवित्रा ने उसके हाथ देखे।

    "दूर हटो।" पवित्रा ने श्वेत को धक्का दिया, पर वह केवल दो कदम पीछे हटा।

    "अधर्मी जयवर्धन का खून तुम्हारी रगों में भी दौड़ रहा है ना, तो तुम पीछे क्यों रहने लगे? बस छूने का, पास आने का बहाना चाहिए।" पवित्रा चिल्लाई। श्वेत को इतना बोलना पसंद नहीं था।

    "मेरे रूम में, मेरे बेड पर तुम आई थीं।" श्वेत ने ठंडे स्वर में कहा और पवित्रा के चेहरे को पढ़ने लगा।

    "स्टॉप इट! मैं चलकर आई थी और तुम्हारे सामने गिड़गिड़ाई थी क्या? सिर्फ़ एक हेल्प मांगी थी और तुमसे… तुम तो तुम और वो जयवर्धन का पिल्ला।" पवित्रा जोर से बोलते-बोलते धीमी पड़ने लगी। वह बालकनी की ओर गई, जिसका ग्लास डोर लॉक था। वह बाहर की ओर से आ रही रोशनी में देखने लगी। एक पल के लिए उसकी आँखों में नमी आ गई और वह उस धारे को भरपूर रोकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पानी के जलजले को कौन रोक पाया था?

    "डाउट क्लियर कर सकती हो?" श्वेत को उसकी बात सुनकर गुस्सा आया था, किंतु उसने पवित्रा को नोटिस किया तो कुछ अलग लगा, इसलिए वह शांत होकर उसकी बात सुनने लगा।

    "उसका… सिर… नारियल… की… तरह… खोलकर उसके… हाथ… में… थमा… कर… भीख… न… मंगवाई…" आँसू साफ़ करते हुए पवित्रा की आँखें बंद होने लगीं और जबान साथ नहीं दे रही थी। श्वेत ने आगे बढ़कर उसे संभाला। उसे आभास न होता तो पवित्रा नीचे गिर सकती थी। श्वेत उसके नज़दीक, मगर कुछ दूरी पर ही खड़ा था।

    "पवित्रा, अर्थ ने तुम्हारे साथ क्या किया?" श्वेत ने पवित्रा को थामकर उसे हिलाते हुए पूछा। उसने आँखें खोलीं।

    "तुम रोलर कोस्टर की तरह क्यों घूम रहे हो?" पवित्रा ने आँखें फड़फड़ाकर पूछा।

    "क्योंकि हम मिस्टर जयवर्धन के रोलर कोस्टर पर बैठे हैं, तो इसी तरह ही घूमेंगे।" श्वेत ने बाजू थामे पवित्रा से कहा।

    "अच्छा, तो इसे रोको। देखो, कितना तेज़ घूम रहा है। मेरा सर चकराने लगा है।" पवित्रा आँखें गोल-गोल घुमाकर बोली।

    "चलो बेड पर बैठो।" श्वेत उसे पकड़कर बेड पर ले आया।

    "मेरे कदम सही हैं ना?" पवित्रा डरते हुए धीरे-धीरे कदम रख रही थी। उसे रोलर कोस्टर से गिरने से डर लग रहा था।

    "हाँ, तुम्हारे कदमों की क्या तारीफ़ करूँ।" श्वेत खीझकर बोला।

    "अच्छा, इतने सुंदर हैं क्या?" पवित्रा चहककर बोली।

    "मन कर रहा है काटकर शो पीस में रखवा दूँ।" श्वेत किसी तरह गुस्से को शांत करते हुए बोला।

    "हंअआ! सच्ची?" पवित्रा खुशी से झूम उठी।

    श्वेत ने उसे बेड पर बिठाया तो वह अस्त-व्यस्त सी गिर पड़ी।

    "ये कोस्टर बंद कर दो, मेरा सर घूम रहा है।" पवित्रा सिर पर हाथ लगाते हुए बात दोहरा रही थी।

    "बस एक राउंड और।" श्वेत उसे छूना नहीं चाहता था, फिर भी उसने उसके सर को छूकर कहा।

    "मैं उसे छोड़ूंगी नहीं, याद रखना।" पवित्रा ने श्वेत के हाथ को झटका और दोनों हाथों से अपने सर को जोर से पकड़ लिया।

    श्वेत पानी लाने के लिए मेज़ की ओर गया। जब तक वह आया, तब तक पवित्रा की आँखें बंद हो चुकी थीं। पवित्रा कुछ कसमसा सी रही थी, शायद अपनी ड्रेस और बन की वजह से।

    श्वेत कुछ देर असमंजस में रूम के चक्कर काटता रहा और फिर उसके सिरहाने बैठकर बन खोलने लगा। पहेली कह दो, जिसे श्वेत को सुलझानी थी। आख़िर में झुंझलाकर वह बेड से उठा और सोफ़े पर लेट गया, क्योंकि कल रात का पवित्रा का वार श्वेत को अच्छे से याद था।


    पवित्रा सुबह उठी तो सर भारी था। उसने अपने आसपास का वातावरण चेक किया। खुद को बेड पर देखकर वह हैरान हुई। फिर उसने श्वेत को खोजा, लेकिन वह नहीं था। वह बेड से उठी तो उसका ध्यान अपने पैरों पर गया और साथ ही नाइट सूट के डिज़ाइन पर, जहाँ एक लड़का-लड़की एक-दूसरे को किस कर रहे थे। पवित्रा की भौंहें सिकुड़ गईं। उसने तो शायद चेंज भी नहीं किया था… फिर कैसे हुआ?

    पवित्रा मुश्किल से उठकर श्वेत को बालकनी में ढूँढने लगी, लेकिन श्वेत वहाँ भी नहीं मिला। पवित्रा का सर दर्द गुस्से से और बढ़ गया।

    "अनट्रस्टवर्थी पर्सन…" पवित्रा बोलते हुए आगे बढ़ी तो एकदम सामने श्वेत आ गया।

    "सुबह-सुबह लोग मॉर्निंग वॉक में जाते हैं और तुम मरने जा रही थी?" श्वेत ने भौंहें उठाकर पूछा।

    "दिमाग खराब मत करो अपना, मैं कहीं नहीं जा रही हूँ। मेरी ड्रेस चेंज किसने की?" चिढ़ी सी पवित्रा श्वेत को देखकर बोली।

    "किसने की का क्या मतलब है?" श्वेत ने जवाब देते हुए पवित्रा को करीब किया।

    "जो पूछा है उसका सही जवाब दो।" पवित्रा ने दाँत पीसकर पूछा।

    "परसों रात हमारे बीच की सब दीवारें ढह चुकी हैं, तो कल रात चेंज करने में क्या प्रॉब्लम थी?" श्वेत ने पवित्रा को झटक कर मिरर के सामने आ गया। पवित्रा उसे गुस्से से घूर रही थी।

    "इस तरह नज़र लग जाएगी। मैं बेचारा टोने-टोटके नहीं जानता हूँ।" श्वेत बोला।

    "नज़र… ऊंहहह! तुम्हारा गला दबाऊँगी।" इतना कहकर वह वॉशरूम की ओर जाने लगी।

    "मेरा पहला इश्क़ मौत है और इश्क़ में वफ़ाई-बेवफ़ाई चलती रहती है। जब-जब उसके करीब जाता हूँ, तो वह मुझे दगा देकर भाग जाती है। वह भी दुनियादारी की रंगत में बड़ी जालिम हो गई।" श्वेत परफ़्यूम लगाते हुए बोला।

    पवित्रा के सर दर्द होने के कारण उसकी बात ऊपर से निकली थी। वह भी तो उसके साथ ढंग से पेश नहीं आ रहा था। पवित्रा ड्रेस चेंज करने वाली बात पर झेंप गई थी और शर्म महसूस कर रही थी।

    पवित्रा उसकी बातों को समझने की कोशिश करने लगी। मगर श्वेत ने खुद को पूरी तरह इग्नोर करके वापस वॉशरूम की ओर मुड़ने लगा, तो उसकी चौखट से पवित्रा का सिर भिड़ गया। सर के भिड़ने की आवाज़ इतनी जोर से थी कि श्वेत के कानों तक भी पहुँची। उसने मिरर से नज़र उठाकर देखा और वापस से अपने काम में लग गया।

    क्रमशः

  • 16. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 16

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    पवित्रा अपने सिर पर हाथ रखे खड़ी थी।

    "कर्मा लौटकर आता है, ये सुना था, लेकिन इतनी जल्दी?" श्वेत ने मुस्कुराकर कहा। वह दर्द में थी, और श्वेत को उसकी परवाह बिल्कुल नहीं थी।

    पवित्रा ने उसे मुड़कर देखा। श्वेत की मुस्कुराहट चुभ गई। तभी श्वेत ने वार्निंग लुक से उंगली उठाकर कहा, "आंआंआं... कुछ सोचने और बोलने से पहले सोच लेना कि अभी परिणाम भुगत चुकी हो।"

    "कमीना... वाहियात इंसान!" पवित्रा ने जाते हुए उसे गाली दी।

    "संभलकर, अंदर हादसा हो सकता है।" श्वेत ने कहा ही था कि वॉशरूम के अंदर से जोर से गिरने की आवाज आई, और उसके साथ पवित्रा के चीखने की।

    "मैंने कहा था, फिर भी नहीं मानी। भुगतो।" श्वेत ने वॉशबेसिन के पास गिरी पवित्रा को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया।

    "और तुम सोचते हो कि मैं गलत हूँ?" पवित्रा ने श्वेत का हाथ थामा और उसे भी जोर लगाकर खींच लिया। श्वेत उसके बिल्कुल ऊपर गिर गया। पवित्रा ने अपने दूसरे हाथ से वॉशबेसिन के निचले हिस्से को पकड़ रखा था, जिससे उसे जोर लगाने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ी।

    "अपना हक ही लेना था तो सीधा कह देती। फूलों से रूम सजा देता। नहीं, तुम्हें... तो वॉशरूम रोमांस पसंद है... है ना... मैं गलत तो नहीं हूँ ना..." श्वेत ने खुद को देखा, फिर पवित्रा की ओर देखकर आँख मार दी।

    "चुप! बिल्कुल चुप, डोमिनेटिंग प्राणी!" पवित्रा ने श्वेत को दूर करने के लिए उसके सीने पर हाथ रख दिए।

    श्वेत सीधा होकर अपनी शर्ट खोलने लगा। पवित्रा चौंककर बोली, "ऐऐऐ... ये सब क्लोजेट में जाकर करो।"

    "अब गुनाह किया है तो सजा भी मिलनी चाहिए।" श्वेत पर पवित्रा की बात का असर नहीं था; वह अपने काम में लगा रहा।

    "वहीं रुक जाओ, वरना बाथटब में डुबोकर मार डालूंगी।" पवित्रा जल्दी से उससे दूर हटी।

    श्वेत नजदीक आया। पवित्रा पीछे हुई और बाथटब से लगकर रुक गई। वह कुछ नहीं बोली और श्वेत को घूरती रही। तभी बाहर से आवाज आई। श्वेत ने पवित्रा को बाथटब में धक्का देकर वॉशरूम का दरवाजा खोला और बाहर देखा। सर्वेंट खड़ा था।

    "क्या काम है?" श्वेत खीझ कर बोला।

    "आप दोनों को मैडम ने नीचे बुलाया है।" सर्वेंट सिर झुकाकर बोला।

    "मैडम को कहो हम दोनों वॉशरूम में हैं और शॉवर ले रहे हैं।" श्वेत ने जोर से वॉशरूम का दरवाजा बंद किया।

    "तुम्हें तो मैं छोड़ूंगी।" गुस्से में पवित्रा खुद को संभालते हुए बाथटब में खड़ी होकर बोली। श्वेत ने उसे देखकर सारकास्टिकली मुस्कुराया।

    "ये क्या वाहियात हरकत थी? सर्वेंट को क्या कहा तुमने?" पवित्रा आग उगलती हुई सी बोली।

    "हाँ, तो क्या गलत था? हम दोनों का रूम, हम दोनों कुछ भी करें।" श्वेत वॉशरूम से बाहर निकलते हुए बोला।

    पवित्रा ने हाथ में आई शैंपू की बोतल श्वेत की ओर फेंक मारी, लेकिन निशाना चूका। गेट से टकराकर शैंपू की बोतल नीचे गिरते ही टूट गई।

    श्वेत को फिर से कपड़े बदलने पड़े।


    अर्थ का खून खौल गया जब नौकर ने बताया कि वे दोनों एक साथ शॉवर ले रहे हैं। उसके सिर में रात में पवित्रा की दी हुई चोट से पहले से ही दर्द था; नौकर की बात सुनकर और बढ़ गया।

    "आप एक लड़की को कंट्रोल नहीं कर सकती।" अर्थ तीखे लहजे में बोला।

    "तुमने क्या उखाड़ लिया? रात को तुम्हारे कहने पर खाने में उसे ड्रग्स दी थी। उसके बाद तुमने क्या किया? कौन सा तीर मार लिया? एक लड़की काबू में नहीं हो सकी। वह काबू में हो नहीं सकी, वह बात तो अलग थी, उल्टा उसे मार खाकर आ गए, शर्म आनी चाहिए।" अरुणा ने टोंक मारते हुए कहा।

    "वो मैं... मैं..." अर्थ के शब्द गले में अटक गए।

    "रहने दो, कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। कुछ सोचती हूँ।" अरुणा ने ग्रीन टी खत्म करते हुए कहा। अर्थ का चेहरा चमक गया।


    पवित्रा वॉशरूम से बाहर आई तो कोई नहीं दिखा। वह क्लोजेट में जाकर फटाफट सूट पहनकर बाहर आई। उसे मेज पर प्लेट के ऊपर एक स्लिप मिली। जिसे पढ़कर भूखी पवित्रा ने प्लेट हटाई, तो उसके नीचे नाश्ता था।

    बाउल में से संतरे का एक टुकड़ा उठाकर देखते हुए, "दूध के अंदर संतरा?" फिर कीवी को उठाकर देखने लगी।

    पवित्रा मन मारकर उस बाउल से बड़ी चीजों को अलग कर रही थी कि तभी टेबल पर रखा हुआ फोन बजा। उसने फटाफट उठाया।

    "इस नाश्ते के अलावा कोई नाश्ता नहीं मिलेगा। इस पर गुस्सा मत निकालना, वरना पूरा दिन भूखा रहना पड़ सकता है।" श्वेत

    "वैसे तुम्हें कौन से एंगल से यह नाश्ता दिखाई दे रहा है? दूध में संतरा? कौन सा फ्रूट खाता है ऐसे?" पवित्रा खीझकर बोली।

    "वैसे इसे फ्रूट कस्टर्ड बोलते हैं, लेकिन तुम क्या जानो।" श्वेत

    "हाँ, देख रखी हैं तुम जैसे रईसों की चोंचलेबाजी।" पवित्रा ने चिढ़कर फोन काट दिया।

    उसने मन मारकर कुछ खाया और कुछ छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद पवित्रा के पास रखे फोन पर मैसेज आया।

    "ये फोन तुम्हारा है, फिंगर लॉक से ओपन होगा।" पवित्रा फोन को देखकर ही सदमे में चली गई।

    वह फोन पर मैसेज की बीप से होश में आई। उसने वापस से श्वेत का मैसेज देखा, जिस पर लिखा था, "शाम को तैयार रहना, बाहर जाना है।"


    पवित्रा आलीशान जगह को देखकर वैसे ही परेशान थी, और ऊपर से चप्पे-चप्पे पर सिक्योरिटीज को देखकर डर गई। सिक्योरिटीज वाले एक से बढ़कर एक पहलवान थे।

    "ऐ सुनो ना, यह हम कहाँ आ गए हैं?" होटल जैसी आलीशान जगह को देखकर पवित्रा बोली। जहाँ इतनी रोशनी थी कि देखने वाले की आँखें चौंधिया जाएँ।

    "ये पहलवान इतने सारे यहाँ क्या कर रहे हैं? कोई कुश्ती का खेल होगा क्या?" पवित्रा चलते हुए सबको देखकर बोली।

    "इट्स सिक्योरिटी गार्ड्स।" श्वेत

    "एक तो तुम ठीक से बोलते नहीं हो, और बोलते हो तो झटका देते हो। इतने सिक्योरिटी गार्ड..." पवित्रा श्वेत के साथ चलते हुए बोली।

    "ऐ रुको ना!" पवित्रा ने फिर से आवाज लगाई, पर श्वेत ने नहीं सुना। उसकी आँखें चमक गईं, और उसकी मुस्कुराहट बता रही थी कि शायद उसके दिमाग की बत्ती जल गई। वह चलते-चलते रुक गई।

    क्रमशः

  • 17. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 17

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    "ऐ रुको ना!" पवित्रा की आँखों में चमक आ गई। उसके चेहरे की मुस्कराहट बता रही थी कि शायद उसके दिमाग की बत्ती जली, और वह चलते-चलते रुक गई।

    श्वेत ने उसे चार कदम जबरन घसीटा; वह उसकी बकबक से परेशान हो चुका था। दोनों एक कमरे के सामने खड़े थे। श्वेत ने दरवाज़े पर दस्तक दी, तो सामने सीमा खड़ी थी, या श्वेत जानबूझकर रुका था।

    "ऐ सुनो ना..." पवित्रा कब से श्वेत को पुकार रही थी।

    "दो घंटे में बिल्कुल परफेक्ट पर्सनालिटी मिलनी चाहिए, बाकी के इंस्ट्रक्शन फोन पर हैं, चेक आउट।" श्वेत ने पवित्रा को अंदर धकेलते हुए कहा।

    "ऐ हेलोडर्मा मॉनस्टर!" पवित्रा श्वेत को बुला रही थी, परन्तु वह कहाँ सुनने वाला था? दरवाज़ा बंद करके वह चला गया।

    पवित्रा सीमा की ओर मुड़कर, खीझकर बोली, "तुम उनकी फैमिली पार्लर वाली हो क्या?"

    पवित्रा को श्वेत के न सुनने की आदत से खीझ हुई थी।

    सीमा पवित्रा की बात सुनकर मुस्कुराई, लेकिन जवाब कुछ नहीं दिया।

    "इस आदमी ने सबको बोलने के लिए मना किया है क्या? बाहर वह पहलवान भी बुत से बने खड़े हैं और यहाँ तुम भी मुस्कुराकर अपना काम चला रही हो। पता नहीं तुम लोग उसे बर्दाश्त कैसे करते हो?" पवित्रा वहीं से खड़ी, कमरे का मुआयना करते हुए बोली।

    "मैडम, जल्दी से आप अंदर लीजिए। सर ने सिर्फ़ 2 घंटे दिए हैं आपको तैयार करने के लिए।" सीमा उसकी बात को इग्नोर करते हुए बोली।

    "तैयार?" पवित्रा ने हैरानी से पूछा।

    "मैडम, जल्दी कीजिए। सर आज आपको किसी से मिलवाने वाले हैं।" सीमा ने पवित्रा का हाथ पकड़कर उसे चेयर पर बैठाया और तैयार करने में लग गई।

    "कौन है?" पवित्रा की जिज्ञासा बढ़ गई।

    "हमें नहीं पता, लेकिन सर ने जो कहा है, वो हमें करना है।" सीमा शान्तिपूर्ण तरीके से बोली। उसके बोलने का तरीका बेहद सरल और साधारण था।


    "माँ, मेरा कार्ड देखा है क्या?" विशेष ने अपनी पैंट की पॉकेट को टटोलते हुए कहा।

    "नहीं, मैंने कोई कार्ड नहीं देखा और न ही कल वाली ड्रेस में कुछ था।" अनामिका पुरुषोत्तम जी को मिक्स वेजिटेबल सूप पिला रही थी।

    विशेष अपना एटीएम कार्ड ढूँढ रहा था। उसे नहीं मिला, पर उसे तब नहीं मिलना चाहिए था।

    "कहाँ गिराकर आया है?" अनामिका पूछ बैठी।

    "माँ, यूज़ ही नहीं किया तो कहाँ गिराऊँगा?" विशेष परेशान सा था।

    "किसी को कुछ दिया हो, उसके साथ चला गया हो।" अनामिका ने याद दिलाने की कोशिश की।

    "नहीं, माँ, आजकल सब कुछ ऑनलाइन होता है। किसी को भी ऑफलाइन नहीं दिया।" विशेष अपनी ही धुन में बोला। वह उस लड़की को दिए रुपये भूल गया था।

    विशेष अपना अकाउंट चेक कर रहा था, कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं हुई। उसे कुछ नहीं मिला, सब ठीक था।


    श्वेत सिक्योरिटीज के साथ वहीं खड़ा बात कर रहा था, जबकि सब ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे। कुछ देर में उसके फ़ोन पर मैसेज आया, तो सबको सतर्क रहने को बोलकर वह अंदर की ओर चला आया। तो सामने पवित्रा साड़ी में उलझी हुई सी आती दिखी। श्वेत ने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया और लिफ़्ट की ओर चला आया।

    "ऐ सुनो! इतना तामझाम शादी में नहीं किया था, फिर आज क्यों?" पवित्रा साड़ी की उधेड़बुन में बोली।

    "तुम ही बता दो, आज कौन सा दिन-रात है।" श्वेत ने कहा।

    "बस यही अच्छा नहीं लगता मुझे, तुम बात को घुमा देते हो।" पवित्रा नाराज़गी से बोली, तो श्वेत ने हैरानी से उसे देखा।

    "रविवार है, दिन में भी और रात में भी..." पवित्रा लिफ़्ट में जोर से चीखकर बोली।

    श्वेत ने पवित्रा के कान में धीरे से कुछ कहा, तो वह उतनी ही तेज़ी से उछलकर उससे दूर हुई।

    "क्या हुआ? भूल गई थी, इसलिए याद दिलाया कि आज अपनी फ़र्स्ट नाइट है।" श्वेत ने फ़ोन निकाला और उसमें कुछ लिखने लगा। पवित्रा उसे खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी।

    "ऐ तुम ऐसी वाहियात बातें ही करते हो क्या?" पवित्रा दूर से ही बोली। अब दोनों की स्थिति उत्तर और दक्षिण वाली थी।

    श्वेत और पवित्रा जब तक दोनों लिफ़्ट में थे, तब तक घनघोर शान्ति छाई रही। श्वेत को और क्या चाहिए था, उसने एक बात बोलकर पवित्रा को चुप करवा दिया।

    कुछ देर बाद श्वेत ने हाथ पकड़कर पवित्रा को बाहर निकाला और एक लम्बी गैलरी पार करते हुए एक कमरे में ले आया। स्पेशल कमरे में चारों तरफ़ नेट के कर्टन्स लगे हुए थे और कमरे के बीचों-बीच एक टेबल पर सेंटेड कैंडल जल रही थी। बालकनी की ओर एक रॉयल टेबल और दो चेयर लगी थीं। पवित्रा नज़ारा देखकर स्तब्ध रह गई।

    "डिनर डेट?" पवित्रा ने श्वेत को सवालिया नज़रों से देखा।

    श्वेत ने हाथ लम्बा कर उसे आगे चलने को कहा। श्वेत ने पीछे मुड़कर गार्ड से बाहर खड़े रहने का इशारा किया। सिक्योरिटी गार्ड को देखकर पवित्रा ने मुँह बिचकाया।

    श्वेत लम्बे कदम लेकर उसके पास आया और पवित्रा को बैठाकर कर्टन्स हटा दिया; उस बालकनी के सामने एक स्टेज था।

    "मुझे पता ही था, इतने मुँहस्टैश इकट्ठे कर रखे हैं, ज़रूर कोई कुश्ती का ही मैच होगा।" पवित्रा मुँह बनाकर बोली।

    "शट योर माउथ!" श्वेत सामने की चेयर पर बैठते हुए उसकी बकबक को बंद करने के इरादे से बोला।

    "तुम्हारे सामने बैठकर किसी के मुँह का शटर खुल सकता है क्या?" पवित्रा बोली, तो श्वेत ने घूरा।

    पवित्रा को तालियों की आवाज़ सुनाई दी, तो वह चौंक गई।

    "युनिवर्सल ट्रुथ की ऐक्सेसरीज़ का इंटीग्रेशन है।" श्वेत ने सामने देखते हुए कहा। पवित्रा आश्चर्यजनक रूप से कभी उस स्टेज को देख रही थी, कभी श्वेत को।

    स्टेज पर एक लड़की आई और युनिवर्सल ट्रुथ के गुणगान करने लगी और उसकी अलग-अलग ब्रांच के स्थान, और हैड ऑफ़िस की जानकारी दी, फिर उसके प्रोडक्ट की विशेषता बताने लगी। एंकर ने सबसे पहले संग्राम सिंह और रूपकंवर को स्टेज पर आने का निमंत्रण दिया।

    कुछ देर में बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ एक कपल राजस्थानी परिधान पहने स्टेज पर आया, तो तालियों की गड़गड़ाहट जोर के साथ हुई। संग्राम सिंह ने जोधपुरी सूट के ऊपर साफ़ा पहन रखा था, तो वहीं रूपकंवर राजस्थानी वेशभूषा में गहनों से ऊपर से नीचे सजी हुई थी।

    पवित्रा उन दोनों को देखकर चौंक गई और ध्यान से देखने के लिए बालकनी के किनारे तक आ गई। श्वेत ने उसे पकड़ लिया और नीचे की ओर इशारा किया, तो वह नज़ारा और भी चौंकाने वाला था।

    क्रमशः

  • 18. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 18

    Words: 892

    Estimated Reading Time: 6 min

    "रुको ना," पवित्रा के दिमाग की बत्ती जली और वह चलते-चलते रुक गई।

    श्वेत ने उसे चार कदम जबरन घसीटा; वह उसकी बकबक से परेशान हो चुका था। अभी दोनों एक कमरे के सामने खड़े थे। श्वेत ने डोर नॉक किया तो सामने सीमा खड़ी थी।

    "ऐ सुनो ना..." पवित्रा श्वेत को पुकार रही थी।

    श्वेत ने पवित्रा को अंदर धकेल कर कहा, "दो घंटे में बिल्कुल परफेक्ट पर्सनालिटी मिलनी चाहिए। बाकी के इंस्ट्रक्शन फोन पर हैं, देख लेना।"

    "ऐ हेलोडर्मा मॉनस्टर," पवित्रा श्वेत को बुला रही थी, परन्तु वह कहाँ सुनने वाला था? डोर बंद करके वह चला गया।

    पवित्रा सीमा की ओर मुड़कर बोली, "तुम उनकी फैमिली पार्लर वाली हो क्या?"

    सीमा पवित्रा की बात सुनकर मुस्कुराई, लेकिन जवाब कुछ नहीं दिया।

    "इस आदमी ने सबको बोलने के लिए मना किया है क्या? बाहर वह पहलवान बुत से बने खड़े थे और यहाँ तुम भी मुस्कुरा कर अपना काम चला रही हो।" पवित्रा वहीं से खड़ी, कमरे का मुआयना करते हुए बोली।

    "मैडम, जल्दी से आप अंदर लीजिये। सर ने सिर्फ 2 घंटे दिये हैं आपको तैयार करने के लिए।" सीमा उसकी बात को इग्नोर करके बोली।

    "तैयार?" पवित्रा ने हैरानी से पूछा।

    "मैडम, जल्दी कीजिये। सर आज आपको किसी से मिलवाने वाले हैं।" सीमा ने पवित्रा का हाथ पकड़कर उसे चेयर पर बैठाया और तैयार करने में लग गई।


    "माँ, मेरा कार्ड देखा है क्या?" विशेष ने अपनी पैंट की पॉकेट को टटोलते हुए कहा।

    "नहीं, मैंने कोई कार्ड नहीं देखा और न ही कल वाली ड्रेस में कुछ था।" अनामिका पुरुषोत्तम जी को मिक्स वेजिटेबल सूप पिला रही थी।

    विशेष अपना वीज़ा कार्ड ढूँढ रहा था, पर वह नहीं मिला।

    "कहाँ गिराकर आया है?" अनामिका पूछ बैठी।

    "माँ, यूज़ ही नहीं किया तो कहाँ गिराऊँगा?" विशेष परेशान सा बोला।

    "किसी को कुछ दिया हो, उसके साथ चला गया हो।" अनामिका ने याद दिलाने की कोशिश की।

    "नहीं माँ, आजकल सब कुछ ऑनलाइन होता है। किसी को भी ऑफलाइन नहीं दिया।" विशेष अपनी ही धुन में बोला।

    विशेष अपना अकाउंट चेक कर रहा था; कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं हुई।


    श्वेत सिक्योरिटीज़ के साथ वहीं खड़ा बात कर रहा था, जबकि सब ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे। कुछ देर में उसके फ़ोन पर मैसेज आया। तो सबको सर्तक रहने को बोलकर वह अंदर की ओर चला आया। तो सामने पवित्रा साड़ी में उलझी हुई सी आती दिखी।

    श्वेत ने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया और लिफ़्ट की तरफ़ चला आया।

    "ऐ सुनो! इतना तामझाम शादी में नहीं किया था, फिर आज क्यों?" पवित्रा उत्सुकता से बोली।

    "तुम ही बता दो आज कौन सा दिन-रात है।" श्वेत ने कहा।

    "बस यही अच्छा नहीं लगता मुझे।" पवित्रा खीजकर बोली तो श्वेत ने हैरानी से उसे देखा।

    "रविवार है, दिन में भी और रात में भी!" पवित्रा लिफ़्ट में जोर से चीखकर बोली।

    श्वेत ने पवित्रा के कान में धीरे से कुछ कहा तो वह उतनी ही तेज़ी से उछलकर उससे दूर हो गई।

    "क्या हुआ? भूल गई थी इसलिए याद दिलाया कि आज अपनी फ़र्स्ट नाइट है।" श्वेत ने फ़ोन निकाला और उसमें कुछ लिखने लगा।

    "ऐ तुम ऐसी वाहियात बातें ही करते हो क्या?" पवित्रा दूर से ही बोली। अब दोनों की स्थिति उत्तर और दक्षिण वाली थी।

    श्वेत और पवित्रा जब तक दोनों लिफ़्ट में थे, तब तक घनघोर शांति छाई रही। श्वेत को और क्या चाहिए था? उसने एक बात बोलकर पवित्रा को चुप करवा दिया।

    कुछ देर बाद श्वेत ने हाथ पकड़कर पवित्रा को बाहर निकाला और एक लंबी गैलरी पार करते हुए एक कमरे में ले आया। स्पेशल कमरे में चारों तरफ़ नेट के पर्दे लगे हुए थे और बीचों-बीच एक टेबल पर सेंटेड कैंडल जल रही थी। बालकनी की ओर एक रॉयल टेबल और दो चेयर लगी थीं। पवित्रा नज़ारा देखकर स्तब्ध रह गई।

    "डिनर डेट?" पवित्रा ने श्वेत को सवालिया नज़रों से देखा।

    श्वेत ने हाथ बढ़ाकर उसे आगे चलने को कहा। श्वेत ने पीछे मुड़कर गार्ड से बाहर खड़े रहने का इशारा किया। सिक्योरिटी गार्ड को देखकर पवित्रा ने मुँह बिचकाया।

    श्वेत लंबे कदम लेकर उसके पास आया और पवित्रा को बैठाकर पर्दे हटा दिये। सामने एक स्टेज था।

    "मुझे पता ही था, इतने मूंछ वाले इकट्ठे कर रखे हैं, ज़रूर कोई कुश्ती का ही मैच होगा।" पवित्रा मुँह बनाकर बोली।

    "शट योर माउथ," श्वेत सामने की चेयर पर बैठते हुए बोला।

    "तुम्हारे सामने बैठकर किसी के मुँह का शटर खुल सकता है क्या?" पवित्रा बोली तो श्वेत ने घूरा।

    पवित्रा को तालियों की आवाज़ सुनाई दी तो वह चौंक गई।

    "यूनिवर्सल ट्रुथ की ऐक्सेसरीज़ का इंटीग्रेशन है।" श्वेत ने सामने देखते हुए कहा।

    स्टेज पर एक लड़की आई और यूनिवर्सल ट्रुथ के गुणगान करने लगी और उसकी अलग-अलग ब्रांच के स्थान, और हेड ऑफ़िस की जानकारी दी। फिर उसके प्रोडक्ट की विशेषता बताने लगी। एंकर ने सबसे पहले संग्राम सिंह और रूपकंवर को स्टेज पर आने का निमंत्रण दिया।

    कुछ देर में बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ एक कपल राजस्थानी परिधान पहने स्टेज पर आया तो तालियों की गड़गड़ाहट जोर के साथ हुई। संग्राम सिंह ने जोधपुरी सूट के ऊपर साफ़ा पहन रखा था, तो वहीं रूपकंवर राजस्थानी वेशभूषा में गहनों से ऊपर से नीचे सजी हुई थी।

    पवित्रा उन दोनों को देखकर चौंक गई और ध्यान से देखने के लिए बालकनी के किनारे तक आ गई। श्वेत ने उसे पकड़ा और नीचे की तरफ़ इशारा किया तो वह नज़ारा और भी चौंकाने वाला था।

    क्रमशः

  • 19. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 19

    Words: 843

    Estimated Reading Time: 6 min

    पवित्रा ने नीचे देखा; वहाँ अत्यधिक भीड़ थी। एक हुजूम जो सामने स्टेज पर आए दोनों शख्सियतों को देखकर हूटिंग कर रहा था। दोनों ही हाथ हिलाकर सबका अभिवादन कर रहे थे। उनके चेहरों पर एक ऐसा ओज था जिससे सामने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। पवित्रा भी उन दोनों को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई।


    "इतनी भीड़!" पवित्रा आश्चर्यचकित होकर बोली।


    श्वेत ने गर्दन हिलाई और उसे एक बार फिर इशारा किया। नीचे सबसे आगे की वीआईपी लाइन में जयवर्धन और उनकी फैमिली थी, बस अर्थ को छोड़कर।


    "ये अलग क्यों बैठे हैं? इन्हें भी यहीं बुला लेते।" पवित्रा ने कहा ही था कि श्वेत उसका हाथ पकड़कर टेबल की तरफ़ ले आया और चेयर पर बैठते हुए बोला, "तुम यह बात किसी से नहीं कहोगी कि हम यहां आए थे।"


    पवित्रा ने सवालिया नज़रों से देखा। उसका संशय दूर करने के लिए श्वेत ने घूरते हुए कहा, "समझ रही हो ना बात? तुम सिर्फ़ इतना कहोगी कि डिनर डेट पर गए थे। वैसे, क्लेरिफिकेशन की ज़रूरत नहीं है।"


    पवित्रा और श्वेत सामने स्टेज पर संग्राम सिंह और रूप कंवर के जाने के बाद, दूसरी मॉडल को कैटवॉक करती और अपनी विभिन्न अदाएँ बिखेरकर परिधान का प्रदर्शन करती देख रहे थे।


    श्वेत संग्राम सिंह और रूप कंवर के आने का इंतज़ार कर रहा था। एक गार्ड ने आकर उनसे कुछ पूछा, तो श्वेत ने मना कर दिया।


    "एक बात पूछूँ।" गार्ड को देखकर पवित्रा बोली। श्वेत ने कुछ नहीं कहा, तो वह उसकी हाँ समझकर अपनी आगे की बात जारी रखी।


    "कहीं तुम माफ़िया या अंडरवर्ल्ड में काम तो नहीं करते हो?" पवित्रा ने धीरे से पूछा।


    "तुम्हें क्या लगता है?" श्वेत ने पवित्रा के मन को टटोलने की कोशिश की।


    "शानदार शक्ल के हो तुम, अच्छे लगते हो, किंतु जहरीली जुबान सुनकर प्राण ही चले जाएँ।" पवित्रा ने श्वेत का चेहरा गौर से देखा। श्वेत उसकी बात सुनकर घूरने लगा।


    "इतने पहलवानों को देखकर यही लगता है कि तुम कुछ ऐसा-वैसा काम करते हो, जैसा फिल्मों में दिखाते हैं; उनके आगे-पीछे आठ-दस भाई लोग घूमते रहते हैं।" पवित्रा ने श्वेत के बारे में अपना निष्कर्ष निकाला।


    "तुम न जानो तो अच्छा है।" श्वेत ने गर्दन हिलाकर कहा।


    "कैसे हो श्वेत?" संग्राम सिंह कमरे के अंदर आते हुए बोला। श्वेत का ध्यान भंग हुआ और वह संग्राम सिंह के स्वागत में खड़ा हो गया, जबकि पवित्रा हैरानी से आँखें फाड़े उन दोनों को देख रही थी।


    "मैं ठीक हूँ। तुम बताओ, तुम्हारा कैसा रहा?" श्वेत ने गले लगकर पूछा।


    "हमारा कार्यक्रम अच्छा था। आप बताइए।" रूप कंवर ने जवाब दिया।


    "कार्यक्रम अच्छा ही होना चाहिए। भाभी! आपने इतनी मेहनत की है।" श्वेत ने कहा।


    "ये क्या बात हुई? पूरा क्रेडिट मुझे दे दिया। आपने बैकग्राउंड में जो काम किया है उसका क्या?" रूप कंवर ने पूछा।


    "अरे भाभी, ऐसा कुछ भी नहीं किया है मैंने।" श्वेत मुस्कुराकर बोला।


    "अब ये सब छोड़ो, नई दुल्हन से मिलो।" संग्राम सिंह ने कहा।


    "अरे ये क्या? आपने कुछ ऑर्डर नहीं किया? दुल्हन कब से बिना कुछ खाए-पिए बैठी है।" रूप कंवर ने टेबल की ओर नज़र मारकर कहा।


    "पवित्रा, संग्राम सिंह मेरे दोस्त, रूप कंवर भाभी से मिलो।" श्वेत ने कहा तो पवित्रा होश में आई। श्वेत ने पैर छूने का इशारा किया, तो वह उन दोनों के पैरों की ओर झुक गई।


    पवित्रा को आशीर्वाद देकर रूप कंवर ने बैठने के लिए कहा और फिर गार्ड से डिनर सर्व करने के लिए कहा। उन दोनों ने संग्राम सिंह और रूप कंवर के साथ डिनर किया और बातें कीं। श्वेत ने जाने की इजाजत ली, तो संग्राम सिंह ने उसे वापस आने के लिए कहा। श्वेत गर्दन हिलाकर पवित्रा का हाथ थामे चल दिया।


    श्वेत और पवित्रा के बीच कोई बात नहीं हुई और पूरा सफ़र उनका शांति से गुज़रा। श्वेत ने गाड़ी मेन गेट पर ही खड़ी करके पवित्रा को अंदर जाने के लिए कहा। पवित्रा एक बार के लिए श्वेत को धन्यवाद कहना चाहती थी, लेकिन कुछ भी कहे बिना अंदर चली गई।


    पवित्रा अपनी मस्ती में सीढ़ियाँ चढ़ ही रही थी कि पीछे से आवाज़ आई, "लुकिंग सो ब्यूटीफुल।"


    पवित्रा अर्थ को इग्नोर करते हुए आगे बढ़ ही रही थी कि उसे अपने पीछे अर्थ के कदमों की आवाज़ सुनाई दी। पवित्रा घबराई, मगर आगे बढ़ती गई।


    "आज घर पर कोई नहीं है, सो बचने की कोशिश नाकाम है और रही बात डोर बंद की, तो सबकी कीज़ मेरे पास हैं।" अर्थ ने गहरी सी आवाज़ में कहा।


    "तुम्हें नहीं लगता कि तुम गलतफ़हमी में ज़्यादा रहते हो?" पवित्रा अर्थ की ओर बिना देखे बोली।


    "वो सब मुझे नहीं मालूम, पर मुझे जो चाहिए मैं उसे हर हाल में ले लेता हूँ।" अर्थ का इशारा पवित्रा की तरफ़ था, जिसे वह भली-भाँति समझ रही थी। वह दबे पांव पवित्रा के नज़दीक आ गया।


    पवित्रा को सरसराहट महसूस हुई, तो पीछे मुड़कर देखा; अर्थ उसका पल्लू हाथ में लेकर सूँघ रहा था। पवित्रा घबराई सी अपना पल्लू छुड़ाकर गैलरी को पार करते हुए अपने कमरे की तरफ़ भागने लगी, जिससे उसकी हील की आवाज़ से पूरी गैलरी गुंज उठी।


    अर्थ हँसते हुए उसके पीछे आया और सीटी बजाने लगा।

    क्रमशः

  • 20. खाई ए डीप एनिमिटी-1 - Chapter 20

    Words: 913

    Estimated Reading Time: 6 min

    अर्थ ने पवित्रा की घबराहट का फायदा उठाया और कुटिलता के साथ सीटी बजाकर मदमस्त सा पवित्रा के पीछे चला गया। तेज कदमों से चलते हुए, हाई हील में पवित्रा का पैर मुड़ गया और वह दर्द से आँखें बंद किए, दीवार से टेक लगाकर खड़ी हो गई।

    वह हार नहीं मान सकती थी। उसे खुद को बचाना था, वरना अर्थ को ऐसा सबक सिखाना था कि वह दोबारा ऐसी हरकत करने की हिम्मत ही न करे। अर्थ की सीटी की आवाज नज़दीक आई। जाने कहाँ से हिम्मत आई कि उसने पैर का दर्द भूलकर अपने कमरे की ओर दौड़ लगा दी।

    "चार चीटियाँ उनके लिए शेर की गुफा बना दी।" पवित्रा जयवर्धन विला को कोस रही थी।

    वह अपने कमरे के सामने आई और फटाफट कमरा खोला। सामने अंधेरा था। वह एक बार के लिए घबरा गई, परंतु उसने अंधेरे का फायदा उठाने का सोचा। कदम आगे बढ़ा ही था कि सामने किसी से टकरा गई। अंधेरा इतना था, या किया गया था, यह बात समझ से बाहर थी।

    शायद जो भी हुआ, वह उसके पक्ष में हुआ था। वह जिससे टकराई थी, वह श्वेत था। अकस्मात्, या विलक्षण बात, विस्मय या मिरेकल, जो भी कहें, उसने पवित्रा को बचा लिया था।

    अर्थ सीटी बजाते हुए कमरे के अंदर आया तो उसे आवाज़ सुनाई दी।

    "पवित्रा, क्या हुआ? तुम ठीक हो?" श्वेत ने पूछा। पवित्रा खामोश रही, किंतु अर्थ श्वेत की आवाज़ सुनकर पीछे खिसक गया और कमरे के बाहर की ओर खड़ा हो गया।

    "पवित्रा, कुछ पूछ रहा हूँ?" श्वेत ने बोलते हुए मोबाइल की टॉर्च ऑन की। उसने चारों तरफ़ देखा, तो कुछ दिखाई नहीं दिया।

    "ऐ सुनो ना!" पवित्रा हौले से बोली।

    "ह्म्म्म्म," श्वेत ने टॉर्च ऑफ कर दी।

    "आई लव यू," पवित्रा थोड़ा जोर से बोली।

    "लव यू टू," श्वेत ने उसी टोन में कहा।

    श्वेत ने पवित्रा को गोद में उठाया। उसने गले में हाथ डालने की बजाय उसके ब्लेज़र की कॉलर पकड़ ली, जो श्वेत को नागवार गुज़रा। श्वेत ने पहले कमरे का दरवाज़ा बंद किया और अंधेरे में पवित्रा को बेड पर ले आया।

    "ऐ दूर…," पवित्रा के शब्द गले में अटक गए थे। श्वेत ने उसका मुँह बंद कर दिया था। दोनों एक-दूसरे को महसूस कर सकते थे।

    "ऐसा वैसा कुछ मत बोलना।" श्वेत कान में बिलकुल धीरे से बोला।

    पवित्रा ने श्वेत को धक्का दिया और खुद को सहज करने में लगी रही। श्वेत पवित्रा के बराबर बैठकर उसके हाथ पर हाथ रखा तो उसकी उंगलियाँ कांप गईं।

    "छोड़ो।" पवित्रा ने हाथ छुड़ाने का प्रयास किया।

    "रिलेक्स, कुछ नहीं होगा।" श्वेत ने मज़बूती से हाथ थामा हुआ था।

    "ह्म्म्म्म," पवित्रा ने हील निकाली और अंधेरे में पैर को हाथ लगाकर देख रही थी।

    श्वेत ने नीचे उसके पैर के पास बैठकर उसके पैर को पकड़ लिया। पवित्रा कुछ बोलने को हुई, किंतु श्वेत की बात ध्यान आते ही वह चुप हो गई। वह श्वेत की बात का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी कि श्वेत ने पवित्रा के पैर को झटका दिया। दर्द से वह चीख पड़ी।

    "पागल हो! ऐसे कौन करता है?" पवित्रा दर्द से पैर को पकड़े बोली।

    "मैं, कुछ ही देर में ठीक हो जाएगा।" श्वेत वापस बेड पर बैठ गया।

    "तुम क्या जानो।" पवित्रा ने कुछ कहना चाहा तो श्वेत ने मुँह पर उंगली रख दी। पवित्रा के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी कि श्वेत इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहा है।

    कुछ देर बाद श्वेत ने पवित्रा को सैंडल पहनने को कहा। अंधेरे में ही बेड के गद्दे के नीचे से उसने एक फाइल निकाली और पवित्रा का हाथ पकड़कर उसके साथ गाड़ी में बैठकर निकल गया।

    अर्थ कमरे की सीसीटीवी फ़ुटेज देखकर माथा पीट लिया। श्वेत और पवित्रा के बीच जो भी हुआ, उसे सिर्फ़ सुन सकता था। उसी वार्तालाप से उसने कुछ और ही समझ लिया और गुस्से का घूंट पीकर रह गया।


    "ऐ सुनो! तुमने मुझे चुप रहने के लिए क्यों कहा?" पवित्रा ने अपना संशय दूर करने के लिए पूछा।

    "कमरे में सीसीटीवी लगा दिया गया है।" श्वेत ने गाड़ी घुमाई।

    "हँअअअ…," पवित्रा श्वेत का चेहरा देखकर बोली।

    "पर ऐसे कैसे? तुम्हारा कमरा लॉक था ना?" पवित्रा ने पूछा।

    "तुम्हें क्या लगता है? मेरे कमरे को लॉक करने से उनके पास डुप्लीकेट की या उसकी सेकंड की नहीं होगी?" श्वेत ने गाड़ी के ब्रेक लगाए।

    पवित्रा के कंधे और साड़ी से गुलाब की पत्तियाँ हटाते हुए श्वेत बोला, "वैसे कमरे की डेकोरेशन बहुत सुंदर थी।"

    "ये फूल?" पवित्रा असमंजस में बोली। वह लॉन एरिया से आई तो लग गई होगी। वह सोच ही रही थी कि श्वेत की बात ने उसकी सोच पर लगाम लगा दी।

    "वेडिंग नाइट के लिए कमरा तैयार करवाया गया है।" श्वेत ने साड़ी पर लगी कुछ पत्तियाँ एकत्र कीं और पवित्रा की तरफ़ फूँक मारकर उछाल दीं। पवित्रा ने मुँह बनाकर फेर लिया।

    श्वेत ने उसका हाथ थामकर गियर पर रख लिया।

    पवित्रा उसकी हरकत नोटिस करके बोली, "मुझे यह बताओ, तुम बाहर गए थे तो कमरे के अंदर कैसे आए?"

    "तुम डरकर कमरे में भागते हुए क्यों आई थी?" श्वेत ने गाड़ी स्टार्ट की।

    "पहल मेरी थी।" पवित्रा ने कहा।

    "क्या फर्क पड़ता है?" श्वेत ने कहा।

    पवित्रा ने आगे बात करना ज़रूरी नहीं समझा और बाहर देखने लगी। अर्थ का व्यवहार और उसकी हरकत दिमाग में चल रही थी। अर्थ को सबक सिखाने का मन में ठान चुकी थी।

    कुछ समय बाद दोनों वापस उसी जगह पर थे। श्वेत ने पवित्रा को रेस्ट रूम में भेज दिया और खुद संग्राम सिंह और रूप कंवर के साथ मीटिंग में चला गया।

    क्रमशः