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"लव्स अंडरकरेंट"(व्हेयर डार्कनेस मीट्स सेरेनिटी)

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Mira Sharma🦋...!!

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Description

जब नाम हो — आध्यात्म सूर्यवंशी, तो पूरी दुनिया झुकती है… कांपती है… डरती है। वो डेंजरस है, अनस्टॉपेबल है, और जिस चीज़ को चाहता है — उसे हर हाल में हासिल करता है। लेकिन अब उसकी नज़रों में है मंशा — एक इंडिपेंडेंट, फायर्स...

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अध्यात्म सूर्यवंशी

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Total Chapters (50)

Page 1 of 3

  • 1. "लव्स अंडरकरेंट"-1

    Words: 2424

    Estimated Reading Time: 15 min

    "ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ"...
    "निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा"...

    (महाराष्ट्र)

    यहाँ की हवा में समुद्र की नमी थी, और मिट्टी में सहनशीलता की खूशबू… यहाँ ऊँची-ऊँची बिल्डिंग्स के बीच भी, कहीं न कहीं एक पुरानी दीवार पर सपने टंगे हुए मिलते थे। यहाँ मुंबई की तेज़ रफ्तार भी थी…और कोंकण की शांत हवाओं का ठहराव भी। पश्चिमी घाट की हरियाली हो या सह्याद्रि की चोटियाँ… यहाँ हर मोड़ पर कोई न कोई कहानी गुम थी।

    (मुंबई) की बारिशों में… नीचे भागते-भीगते लोग… वो लोकल ट्रेन की भीड़, जिसमें हर चेहरा कोई अधूरी दास्तान लिए बैठा होता था…

    यह वो ज़मीन थी जहाँ शिवाजी महाराज की तलवारें चली थीं। यहाँ मंदिर भी थे…दरगाहें भी…क्लब्स भी… और खंडहर भी।

    मुंबई शहर में ही, हाई क्लास एरिया में बसा लाइफकेयर हॉस्पिटल काफी जाना माना था, वहाँ इलाज कराने का सपना हर कोई देखता था।
    (लाइफकेयर हॉस्पिटल)

    एक लड़की, जो अपने ड्रेसिंग से एक डॉक्टर थी, पर उसकी प्रेसेंस किसी क्वीन से कम नहीं थी।

    व्हाइट कोट में लिपटी, पिच कलर की सिल्क शर्ट और स्लीक बेज ट्राउजर्स ने उसे एक एलीट चार्म दिया था। लेकिन उसकी पर्सनेलिटी सिर्फ उसके कपड़ों से नहीं, उसकी आँखों से डिफाइन होती थी। हल्की ग्रीनीश हेज़ल आंखें, जिस पर कोई भी आराम से फिदा हो जाता था।

    उसकी ब्यूटी लाउड नहीं थी… पर इतनी इंटेंस थी कि एक बार अगर कोई देख ले, तो उस गेज से वापस लौटना, किसी हिप्नोसिस से बाहर आने जैसा था। मुश्किल ही नहीं, ऑलमोस्ट इंपॉसिबल।

    उसका फिगर… बिल्कुल स्कल्पटेड… स्लिम वेस्ट, लॉन्ग लेग्स और ग्रेसफुल मूवमेंट। उसका नाम था… "डॉ. मंशा श्रीवास्तव"। उसका नाम सुनकर ही हर पेशेंट के चेहरे पर एक रिलीफ की स्माइल झलकने लगती थी।

    इस वक़्त वह अपने पर्सनल केबिन में बैठी थी। कमरे में हल्की लैवेंडर फ्रेगरेंस फैली हुई थी, और मंशा अपनी चेयर पर आँखें बंद करके रेस्ट कर रही थी। उसके बाल लूस बन में थे, लेकिन कुछ लटें उसके माथे पर गिरी हुई थीं।

    उसके चेहरे पर हल्की थकान थी, शायद अभी-अभी किसी क्रिटिकल ऑपरेशन से लौटी हो। कलाई पर अब भी सर्जिकल ग्लव्स के हल्के निशान थे। तभी दरवाज़ा हल्के से खटखटाया गया।

    “मैम…?”

    एक नर्स थोड़ी परेशान सी केबिन के अंदर आई।

    “कोई पेशेंट आया है… और वो साफ कह रहा है कि वो सिर्फ आपसे ही कंसल्ट करना चाहता है!”

    मंशा ने हल्के से आँखें खोलीं, एक गहरी साँस ली, उसकी पलकें धीरे से ऊपर उठीं… एक टायर्ड एलिगेंस के साथ।

    “नाम क्या है उसका?”
    उसने सीधे पूछा, अपनी काल्म वॉयस में।

    नर्स थोड़ी कन्फ्यूज़ होकर बोली,
    “सर… अपना नाम नहीं बता रहे हैं… पर कह रहे हैं, वो अपॉइंटमेंट के बिना ही आए हैं… और बहुत इन्सीस्ट कर रहे हैं, आपसे इलाज करवाने के लिए…”

    मंशा ने अपनी भौंहें थोड़ी सी सिकुड़ लीं।

    “क्या वो कोई वीआईपी केस है?”

    “मुझे तो नहीं पता मैम…”
    नर्स ने कहा।

    मंशा ने थोड़ी देर सोचा… फिर अपनी आँखें बंद करके एक सेकंड का पॉज लिया।

    “ठीक है!”

    फिर थकी हुई पलकों से अपनी फाइल्स समेटी, हालांकि वह बिल्कुल भी तैयार नहीं थी अभी किसी नए केस को देखने के लिए, लेकिन क्यूरियोसिटी कुछ ऐसी थी… जिसने उसे थकावट से उठा खड़ा किया।

    "हू इस दिस मिस्टीरियस पेशेंट?"
    उसने मन ही मन सोचा… और नर्स के पीछे-पीछे चल दी।

    वीआईपी कॉरिडोर की तरफ जैसे ही कदम बढ़े, वहाँ गार्ड्स की प्रेसेंस और ओवरऑल औरा ही कुछ अलग था।

    वार्ड का ऑटोमैटिक ग्लास डोर जैसे ही खुला, सामने देखकर मंशा का पहला सवाल यही था,
    "इतना सिक्योरिटी किसी बच्चे के लिए?"

    कमरे में साइलेंस था, लेकिन किसी की प्रेसेंस जरूर थी… जो बेहद लाउड थी। वो था, वो पाँच साल का बच्चा… जिसने किसी सीरियस प्रॉब्लम के बजाय, अपनी इनोसेंस से पूरा सीन ऑक्युपाई कर लिया था।

    उसका चेहरा देखकर मंशा के कदम वहीं रुक गए।

    "ये… ये तो वही बच्चा है… जो कल पार्किंग में मुझे टकराया था…"
    उसके ज़हन में वही पल फ्लैश हुआ… जब इस नन्हे चेहरे ने एक सेकंड में उसके दिल को कोई अजीब सी शांति दी थी।

    उसकी नेवी ब्लू आंखें किसी समंदर जैसी लग रही थीं… शांत, गहरी, और डेंजरसली ब्यूटीफुल।

    बच्चा बेड से जैसे ही उतरा, एकदम से भागता हुआ मंशा की ओर आया।

    "डॉक्टर आंटी, डॉक्टर आंटी!"
    उसने एक्साइटमेंट से कहा।
    "मुझे ना बहुत ज़ोर का जुकाम हो गया है… और छींक भी बहुत आ रही है!!"

    इतना कहकर उसने अपनी नाक को दोनों उंगलियों से दबाया, और जैसे ही उसने सच में ज़ोर की छींक मारी, मंशा की हँसी छूटते-छूटते रह गई।

    "औ… यू रियली स्नीज़्ड!"
    उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, और अपने घुटनों के बल बैठकर उस बच्चे की आँखों में देखा।

    "और ये कौन सी बीमारी है बेटा, जो सिर्फ मुझे दिखानी थी?"

    बच्चा अपनी मासूम आवाज़ में बोला,
    "क्योंकि आप सबसे प्यारी डॉक्टर हो… और मुझे सिर्फ आप ही पसंद हो…"

    उसका जवाब इतना सच्चा और मासूम था कि मंशा के चेहरे की थकान जैसे तुरंत उड़ गई। उसके दिल के किसी कोने ने एकदम से धड़कना शुरू कर दिया।

    पास खड़े बॉडीगार्ड्स अब भी सतर्क खड़े थे, पर उनकी आँखों में भी हल्की मुस्कान थी।

    मंशा ने हल्के से बच्चे का माथा छुआ, जो थोड़ी वार्म थी। नाक लाल थी, और उसकी आँखों के नीचे हल्की सी स्वेलिंग… जैसे वह रात भर ठीक से सोया ना हो।

    "ओके लिटिल स्वीटी… लेट्स चेक यू नाओ!"
    उसने प्लेफुल अंदाज़ में कहा और अपने बैग से स्टेथोस्कोप निकाला।

    बच्चा तुरंत अपनी टीशर्ट ऊपर करके पेट दिखाने लगा, और बोला,
    "ये वाला… ये वाला चेक करो… पिछली बार डॉक्टर अंकल ने यहीं लगाया था!"

    मंशा की हँसी रुक नहीं रही थी। उसने बहुत बच्चों को देखा था, लेकिन इतना एक्सप्रेसिव, स्मार्ट और इनोसेंट बच्चा पहली बार देख रही थी।

    वह उसे चेक करने लगी… और धीरे-धीरे उसके बर्ताव से कनेक्शन फील करने लगी।

    "आपका नाम क्या है, बेटा?"
    उसने उसे चेक करते हुए पूछा।

    बच्चा थोड़ी देर उसे देखता रहा, फिर बोला,
    "मेरा नाम… अस्तित्व है, अस्तित्व सूर्यवंशी!"
    "सब मुझे आशु कहकर बुलाते हैं, आप भी बुला सकते हो!"

    मंशा की आँखों में हल्की सी चमक आई, वह थोड़ी देर तक उसकी बड़ी-बड़ी आँखों को निहारती रही, फिर धीरे से मुस्कराते हुए बोली,

    "अस्तित्व…"
    "वॉव… तुम्हारा नाम तो बहुत खूबसूरत है, बिल्कुल तुम्हारी तरह…"

    अस्तित्व शर्माते हुए मुस्कुराया, उसकी मासूमियत मंशा को कुछ पल के लिए एक दूसरी दुनिया में ले गई।

    तभी एक बॉडीगार्ड ने माहौल की उस शांत लय को तोड़ा।

    "डॉक्टर… लिटिल मास्टर को ज्यादा कुछ हुआ तो नहीं न?"

    मंशा की नज़र बॉडीगार्ड की तरफ गई, जो प्रोफेशनल था, लेकिन उसकी आँखों में कहीं ना कहीं एंजाइटी थी। शायद अपने बॉस की स्ट्रिक्टनेस का डर।

    "नहीं, ज्यादा कुछ नहीं, बस हल्का कोल्ड है!"
    उसने काल्म अंदाज़ में कहा।

    "मैं दवा लिख रही हूँ, वही टाइम से दे दीजिएगा… और हाँ, ठंडी चीज़ें कुछ दिन अवॉइड कीजिए!"

    बॉडीगार्ड ने सिर झुकाकर सहमति जताई। मंशा ने प्रिस्क्रिप्शन लिखा, फिर उसे सौंप दिया। लेकिन जैसे ही बॉडीगार्ड अस्तित्व को लेकर जाने लगा, आशु की आँखों में एक अजीब सी बेचैनी आ गई।

    "नो… आई डोंट वांट टू गो!"
    उसने मंशा की सफेद कोट को पकड़ लिया।

    "आई वांट टू स्टे विद डॉक्टर आंटी…"

    मंशा चौंक गई। इतना स्ट्रॉन्ग अटैचमेंट इतने कम वक्त में? अस्तित्व की वो जिद, मंशा के दिल को कहीं अंदर तक छू गया। उसे पहली बार उस बच्चे की लोनलीनेस महसूस हुई… जैसे वह किसी लग्जरीयसली डेकोरेटेड गोल्डन केज में कैद हो।

    "कहीं ये बच्चा अकेलापन जी रहा है?"
    उसने सोचा।
    "कहीं ये… इमोशनली नेगलेक्ट का शिकार तो नहीं?"

    मंशा ने हल्के से अस्तित्व को अपनी गोद में खींच लिया।
    "ठीक है आशु… तुम थोड़ी देर यहीं रह सकते हो…"

    फिर उसने बॉडीगार्ड से कहा,
    "प्लीज… एलाऊ हिम टू स्टे… ही नीड्स सम वार्म्थ…"

    बॉडीगार्ड थोड़ा घबरा गया।
    "बट डॉक्टर… अगर लिटिल मास्टर टाइम से मैंशन नहीं पहुँचे… तो बॉस बहुत नाराज़ होंगे, हमें सज़ा मिल सकती है… प्लीज लेट अस टेक हिम…"

    मंशा ने अब उसे गहरी, ऑलमोस्ट अजीब निगाहों से देखा।

    "मैंने बस थोड़ी देर के लिए कहा है… जन्मों के लिए नहीं बांध रही हूँ आपके 'लिटिल मास्टर' को!"
    उसकी आवाज़ में काल्म सर्कॉसम् था।

    "अगर बच्चा दस मिनट यहाँ रुक जाएगा… तो क्या आपके बॉस आपकी जान ले लेंगे? नहीं न? तो फिर इतनी जल्दी क्यों?"

    बॉडीगार्ड चुप हो गया… शायद वह पहली बार किसी डॉक्टर से ऐसी असर्टिव बात सुन रहा था।

    मंशा ने अस्तित्व को अपनी गोद में लेकर सॉफ्टली उसके बालों में हाथ फेरा।

    "आप मेरे साथ रहना चाहते हो?"
    उसने सॉफ्टली पूछा।

    अस्तित्व ने अपना सिर उसके सीने से लगते हुए बस धीरे से 'हाँ' में गर्दन हिला दी।

    उस एक छोटे से गेस्चर ने मंशा का दिल पिघला दिया।

    "स्टे देन… जस्ट फॉर अ वाइल, ओके?"

    और उस वार्ड में एक टेंपररी साइलेंस छा गया।

    "जो आपने अभी कहा… वही हो सकता है… हम सब के साथ… अगर हम लिटिल मास्टर को टाइम से मैंशन नहीं ले गए तो…"
    "...प्लीज़ डॉक्टर, मेहरबानी करके जाने दीजिए उनको हमारे साथ…"

    बॉडीगार्ड की आवाज़ में अब गिड़गिड़ाहट साफ थी, उसके शब्दों के नीचे एक डर छुपा था… जो किसी आम नौकरीपेशा आदमी का नहीं था… यह किसी ऐसे इंसान का डर था जो किसी सिस्टम में काम कर रहा हो… किसी ऐसे ‘बॉस’ के नीचे, जिसकी एक नाराज़गी जानलेवा सज़ा में बदल सकती थी।

    मंशा बस उसे देखती रही… उसका मन जैसे दो हिस्सों में बंट गया था। एक तरफ वह मासूम बच्चा था, जिसने उसे पहली बार बिना किसी कैलकुलेशन के “अपना” कहा था… और दूसरी तरफ… एक सिस्टम था… जहाँ इंसानियत सिर्फ प्रोटोकॉल बन चुकी थी… जहाँ बच्चों को भी रॉयल शेड्यूल के हिसाब से बांधा जाता है।

    मगर मंशा डॉक्टर थी… और एक डॉक्टर के सामने अगर किसी की जान पर रिस्क आए… तो उसे अपने इमोशंस को होल्ड करना पड़ता है, वह चुप रही कुछ पल… उसके अंदर एक वॉर चल रही थी, दिल और दिमाग के बीच… और फिर, हार हमेशा की तरह दिमाग की हुई।

    "ठीक है…"
    उसने बहुत धीमे से कहा।

    "ले जाइए उसे…"

    बॉडीगार्ड ने राहत की साँस ली… मगर कुछ कहे बिना ही चला गया। मगर जाते-जाते… मंशा से कह गया,

    "डॉक्टर… बॉस को थोड़ी भी लापरवाही पसंद नहीं आती… वो बहुत रूड और स्ट्रिक्ट हैं…"

    एक क्षण के लिए ऐसा लगा जैसे कमरे का तापमान एकदम गिर गया हो… उसका लहजा डरावना था, जैसे कोई वार्निंग छोड़ गया हो… किसी इनविजिबल एंटिटी की।

    वह चला गया… और वार्ड फिर से शांत हो गया…

    मंशा ने एक लंबी साँस ली… और वहीं खड़े-खड़े खुद से बुदबुदाई,

    "कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है… ? अपने ही बच्चे को थोड़ी सी आज़ादी नहीं दे सकता?"

    उसके लहजे में कोई जजमेंट नहीं था… वह फिर खुद से ही बोली,

    "छोड़ो… बड़े लोगों के बड़े चोचले होते हैं… मुझे क्या…"

    और वह तेज़ क़दमों से अपने केबिन की ओर बढ़ गई।

    (नाइट शिफ्ट का अंत)

    जब उसकी शिफ्ट खत्म हुई, वह हमेशा की तरह अपने फ्लैट के लिए निकल गई।

    फ्लैट का दरवाज़ा खोलते ही एक जानी-पहचानी महक उसके भीतर उतर आई… लकड़ी की अलमारियाँ, ग्रे टोन की दीवारें, सफेद पर्दे, एक छोटा बुकशेल्फ, और कोने में रखा इनडोर प्लांट… सब कुछ काल्म और मिनिमलिस्ट।

    मंशा अकेली रहती थी, ऐसा नहीं था कि उसके पेरेंट्स नहीं थे। थे तो दोनों जिंदा ही… बस एक-दूसरे से और मंशा से बहुत दूर।

    (फ्लैशबैक)

    वह सिर्फ तीन साल की थी… जब उसके माता-पिता का तलाक हुआ। उनकी लड़ाइयाँ, चीखें, डिवीजन ऑफ थिंग्स… वो सब आज भी उसे कभी-कभी सपनों में सुनाई देता था। कभी माँ के आँसू… कभी पिता की कोल्ड चुप्पी…

    कस्टडी उसके पिता को मिली थी। वह एक डिसिप्लिन्ड आदमी थे… एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन… पंक्चुअल और काफी परफेक्ट थे।

    वह सारे बिल्स देते थे, मंशा के लिए बेस्ट स्कूल चुना, बेस्ट ट्यूटर्स, बेस्ट क्लोथ्स…

    लेकिन "बेस्ट" और "बिलॉन्गिंग" दो अलग बातें थीं।

    मंशा बचपन से ही अपनी चीज़ें खुद संभालती थी… यूनिफॉर्म प्रेस करना, होमवर्क टाइम से पूरा करना, खुद को सुलाना… सब कुछ… कभी-कभी माँ के पास जाती थी, वहाँ थोड़ी वार्म्थ होती थी… पर अब वो अपनापन नहीं रहा था।

    हायर स्टडीज के बाद, उसने मेडिकल फील्ड को चुना… स्कॉलरशिप पर एम.बी.बी.एस किया… फिर एक-एक रुपया जोड़कर, इस छोटा सा फ्लैट खुद के पैसों से खरीदा।

    (प्रेजेंट टाइम)

    आज… जब वह अपने बेडरूम में पहुँची, फ्रेश होकर, बेड पर लेट गई और अपनी आँखें बंद कीं… और गहरी नींद में सो गई।


    साउथ मुंबई के सबसे महंगे इलाके में, साइलेंस के बीच एक विशाल मैंशन था… व्हाइट और मिडनाइट ब्ल्यू की रंग का वो महल, रात के अंधेरे में भी शान से चमक रहा था।

    उसी मैंशन की दूसरी मंज़िल पर एक रूम था, जो बाहर से बेहद ख़ूबसूरत था… मगर अंदर काफी अंधेरा था… सिर्फ़ कुछ महंगे, एंटीक कैंडल की धीमी लौ जल रही थी…

    सेंटर में एक ग्रैंड वेलवेट सोफा था… और उसी पर एक व्यक्ति पैर पर पैर चढ़ा कर बैठा हुआ था… "आध्यात्म सूर्यवंशी"।

    उसके एक हाथ में वाइन का क्रिस्टल ग्लास था… जिससे वह कुछ-कुछ देर में एक सिप ले रहा था… उसकी हर सिप के साथ रूम की टेंशन और डेंस होती जा रही थी।

    उसका चेहरा अब तक अंधेरे में था… बस उसकी शार्प जॉलाईन और कैंडललाइट की हल्की झलक उसकी आँखें छू रही थी।

    आशु, उसके सामने सिर झुकाये हुए खड़ा था। वह डर से कांप रहा था…

    काफी देर तक वहाँ गहरी शांति रही… फिर अचानक से आध्यात्म ने एक उंगलियों के इशारे से आशु को अपने पास बुलाया।

    अस्तित्व आगे आया तो आध्यात्म ने… बिना किसी सॉफ्टनेस के उसे अपनी गोद में बिठा लिया।

    उसके चेहरे को पकड़ कर, उसकी आँखों में झांकते हुए… बर्फ़ जैसी ठंडी आवाज़ में उससे पूछा,

    "किसके बेटे हो तुम?"

    आशु ने कांपती हुई आवाज़ में कहा…

    "मैं… आध्यात्म सूर्यवंशी का बेटा हूँ…"

    आध्यात्म ने अपने एक्सप्रेशन को नहीं बदला… बस अपनी आवाज़ को और कड़क कर लिया।

    "ह्म्म… जब पता है किसके बेटे हो, तो उसकी बात भी माननी चाहिए ना तुम्हें?"
    "और जब मैं बात करूँ, नज़रें मुझसे मिलाकर बात किया करो…"

    आशु ने उसकी बात सुनकर धीरे से अपनी नज़रें उठाईं… और अपने पिता की आँखों में देखा।

    तभी रूम के बाहर से बॉडीगार्ड की एक धीमी सी आवाज़ आई,

    "सर… में आई कम इन?"

    उसे देखकर आध्यात्म ने बिना पलकें झपकाए, एक इशारा करके उसे अंदर बुलाया।

    वह बॉडीगार्ड अंदर आया… वह वही बॉडीगार्ड था जो दिनभर आशु के साथ रहता था। वह आध्यात्म के सामने झुककर खड़ा हो गया।

    आध्यात्म ने काफी कोल्ड एक्सप्रेशंस से उसके चेहरे को देखा…

    "कौन है वो?"

    बॉडीगार्ड कुछ पल समझ नहीं पाया, कि उसका बॉस किसके बारे में बात कर रहा है…

    …!!जय महाकाल!!…

  • 2. "लव्स अंडरकरेंट"-2

    Words: 2026

    Estimated Reading Time: 13 min

    बॉडीगार्ड ने धीमे से अपनी आँखें झुका लीं। फिर थोड़ा झुकते हुए, हिचकिचाहट से बोला,
    "बॉस.. आप किसके बारे में पूछ रहे हैं?"

    कमरे में कुछ देर खामोशी छाई रही। आध्यात्म ने कोई जवाब नहीं दिया। बस अपनी सीधी, स्थिर, लेकिन तीखी नज़रें उस पर टिका दीं।

    बॉडीगार्ड का हलक सूखने लगा। उसके गले से एकबारगी आवाज़ नहीं निकली। हाथों की उंगलियाँ हल्की-हल्की काँपने लगी थीं। एसी की हवा के बावजूद, गर्दन के पास पसीने की नमी सी लग रही थी।

    आध्यात्म अब भी उसी मुद्रा में बैठा था; पैर पर पैर चढ़ाए, पीठ सीधी, और एक अजीब-सी ठंडी शांति उसके चेहरे पर थी। फिर उसने धीरे से अपनी निगाहें हटाईं और वाइन ग्लास को टेबल पर रख दिया।

    ग्लास टेबल पर रखते वक्त जो हल्की आवाज़ आई, उसने कमरे की खामोशी को तोड़ा। आध्यात्म ने अपने बेटे आशु, जो उसकी गोद में बैठा हुआ था, की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,
    "इसकी डॉक्टर, जिसके लिए ये इतना बेकाबू हो रहा है, कौन है वो?"

    इसकी आवाज़ बहुत धीमी थी, लेकिन उसकी टोन ऐसी थी जिससे किसी के भी पसीने छूट जाएँ।

    बॉडीगार्ड ने हल्के से सिर हिलाया।
    "डॉक्टर मंशा... नाम शायद यही बताया था... और हॉस्पिटल की सीनियर डॉक्टर हैं, नर्स ने इतना ही कहा था, सर..."

    वह आध्यात्म की तरफ़ देख भी नहीं पा रहा था। उसकी आवाज़ काफी कंपकपा रही थी।

    आध्यात्म ने कुछ नहीं कहा। कुछ सेकंड तक सोचने के बाद, वह सोफे से धीरे से उठ खड़ा हुआ। आशु को अपनी गोद में उठाए हुए, वह सीधे खिड़की की ओर बढ़ गया। वहाँ से मुंबई की मेट्रो सिटी की रोशनी, दूर तक फैले टावर, हाइवे की तेज लाइट्स, और अंधेरे में डूबे समंदर का धुंधला अक्स, सब कुछ दिखाई देता था।

    कुछ सेकंड वह बस देखता रहा। फिर बिना बॉडीगार्ड की ओर देखे, बोला:

    "उसका पूरा प्रोफाइल चाहिए मुझे!"
    "उसके बचपन से लेकर... उसकी सारी हॉस्पिटल रिकॉर्ड्स, सोशल सर्कल, फाइनेंशियल ट्रेल, और वह कहाँ रहती है... उसका हर एक छोटी से छोटी डिटेल मुझे चाहिए!"

    बॉडीगार्ड ने तुरंत कहा,
    "येस, बॉस। आई विल अरेंज एवरीथिंग टूनाइट।"

    आध्यात्म की नज़रें अब भी बाहर ही थीं। उसने एक बेहद ठंडी साँस भरी और फिर खुद से बहुत धीमे में कहा,
    "मंशा..."

    उसका नाम आध्यात्म को कहीं ना कहीं खुद से मिलने पर उत्सुक कर रहा था। आध्यात्म ने खिड़की की ओर से अपनी नज़रें हटाईं और वापस मुड़कर आशु को देखा।

    कमरे की हल्की, नीली रोशनी में, उसका चेहरा एकदम शांत दिख रहा था। आशु अब भी उसके सामने मासूम और भोला सा बना हुआ, उसकी गोद में बैठा हुआ था।

    आध्यात्म ने थोड़ी देर उसे यूँ ही देखा। फिर शांति से पूछा,
    "तुम्हें उसे अपनी माँ बनाना है?"
    "ऐसा क्या है उसमें... जो तुम्हें इतना पसंद आ गई वो?"

    आशु ने बिना हिचकिचाए अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से पापा को देखा और बहुत सीरियस होकर, लेकिन मासूमियत भरी आवाज़ में बोला,
    "वो बहुत अच्छी है। मुझसे बहुत अच्छे से बात करती है। वो बहुत सुंदर है और बहुत सॉफ्ट भी!"

    एक पल को उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, जैसे मंशा को याद करके ही उसे सुकून मिला हो।

    "पापा प्लीज़..." उसने धीरे से कहा, "आप उनसे बोल दो ना... मेरी मम्मा बन जाए वो..."

    आध्यात्म एक सेकंड के लिए चुप रहा। फिर उसकी आँखों में अजीब सा एक्सप्रेशन आ गया।
    "तुम्हें काफी आसान लग रहा है ये सब, है ना?"
    "जाकर खुद उससे ये बात बोलकर देखो। कैसे तुम्हें अपने पास से भगा देगी, तुम्हारा चेहरा भी देखना पसंद नहीं करेगी।"

    आशु थोड़ा चुप हुआ, पर फिर जल्दी से बोला,
    "नहीं पापा। वो वैसी नहीं है। वो बहुत अलग है।"
    "जब भी मैं हॉस्पिटल में होता हूँ, वो मुझसे हँसकर बात करती है। मेरी पूरी बात सुनती है।"
    "जब कोई और नहीं होता, वो मेरे साथ होती है..."

    आध्यात्म ने उसका चेहरा अपनी ठंडी उंगलियों से उठाया, फिर उसे अपने बेहद करीब खींचा। उसकी आँखों में अब मंशा के लिए शायद दिलचस्पी दिखने लगी।

    "इतनी तारीफ के काबिल है सच में है क्या वो?" उसने ठंडी आवाज़ में कहा।
    "तो फिर मुझे भी देखना पड़ेगा तुम्हारी पसंद को।"

    आध्यात्म ने हल्का सा झुककर बोला,
    "कल मेरे साथ चलना, अगर मुझे पसंद आई..."
    "तो तुम्हारी माँ बना दूँगा उसे!"

    फिर एक ठंडी हँसी के साथ कहा,
    "प्यार से ना मानी तो... जबरदस्ती ही सही।"
    "पहली बार मेरे बेटे ने कुछ माँगा है मुझसे, तो वह किसी भी कीमत पर उसे मिलेगा।"

    कहकर उसने आशु को धीरे से अपने सीने से लगा लिया। आध्यात्म ने टेबल पर रखी वाइन ग्लास उठाई और एक ही बार में पूरी खाली कर दी। फिर बिना कोई और शब्द कहे, आशु के साथ सीधे मास्टर बेडरूम की ओर चल पड़ा।

    बेडरूम में धीमी रोशनी थी। आध्यात्म, आशु को अपनी बाँहों में समेटे, उसे एकटक देख रहा था। आशु की साँसें धीमे-धीमे चल रही थीं, जैसे काफी सुकून में हो। उसकी छोटी उंगलियाँ आध्यात्म के सीने पर ठहरी हुई थीं।

    उसे अपने कमरे के उस बड़े से मास्टर बेड पर सुलाने के बाद, आध्यात्म वाशरूम की तरफ़ बढ़ गया। कुछ ही देर बाद वह लौटा, तो वह शर्टलेस था। उसकी बॉडी पर अब भी पानी की बूँदें ठहरी हुई थीं, उस पर से लिपटी बस एक सफ़ेद तौलिया, और चेहरा, जिसमें दर्द और क्रूरता का सम्मिलन, उसे और ज़्यादा रहस्यमयी बना रहा था।

    वह कोई आम इंसान नहीं था। आध्यात्म सूर्यवंशी था, जिसके नाम से सबकी आँखें डर से भर जाया करती थीं।

    बचपन से ही वह शांत था, इंट्रोवर्ट टाइप का। उसका परिवार, उत्तर प्रदेश का सबसे प्रतिष्ठित और रईस घराना था।

    उसकी माँ, "अपर्णा सूर्यवंशी", जो उसे दुनिया की हर खुशी देना चाहती थीं, लेकिन परिवार के अंदर की राजनीति, झूठी प्रतिस्पर्धाएँ और संपत्ति की छीना-झपटी ने वह सब छीन लिया, जो शायद उसे किसी के बेहद करीब ला सकती थी। जिस कारण उसने अपना ही घर छोड़ दिया, या यूँ कहें, अपने ही घर से निकाल दिया गया। तब से लेकर वह अभी तक मुंबई ही रहता आया था।

    आज वह जितना भी बड़ा बिज़नेसमैन हो गया था, जितनी भी ऊँचाइयाँ उसने छू ली हों, एक सच्चाई उसके भीतर हमेशा ज़िंदा रहेगी, उसके अपनों ने ही उसका साथ नहीं दिया।

    उसी चुभन ने उसे एक कोल्ड-हार्टेड पर्सन बना दिया था, जिसे किसी का दर्द, किसी का टूटना... किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता था। परिवार से दूर जाने के बाद, उसने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा।

    हाँ, उसकी माँ कभी-कभी मिलने आ जाती थीं। उनके साथ अक्सर उनके देवरानी के बच्चे भी आ जाते, जिनमें कुछ बच्चे आध्यात्म के अपने भाई-बहन थे। उन सबसे वह उतना बात नहीं करता था, जितना अपनी बहन से बात करता था। वह उसके दिल का एक टुकड़ा थी।

    उसने नाइट सूट पहना और सीधे अपने स्टडी रूम की तरफ़ बढ़ गया। वह रूम कम एक महल की तरह ज़्यादा दिख रहा था। दीवारों पर डार्क ब्लैक वुडन पैनलिंग, गोल्डन लाइट्स की सॉफ्ट चमक... स्टडी रूम को भी काफी आलीशान बना रहे थे।

    रूम के कोने में एक बार था, जिसमें दुनिया की सबसे महंगी वाइन, व्हिस्की, वोदका और रम की बोतलें सलीके से सजी हुई थीं।

    उसने एक सिगरेट जलाई और फिर बार से बियर की एक बोतल उठाई। उसके एक हाथ में सिगरेट, दूसरे में बियर।

    वह कोई शौक नहीं था; यह उसकी एडिक्शन बन चुकी थी, जो अब कभी नहीं छूट सकती थी।

    लेकिन आशु के सामने वह कभी भी सिगरेट नहीं पीता था, क्योंकि आशु को सिगरेट के धुएँ से एलर्जी थी। इसलिए जब तक वह जागा रहता, आध्यात्म खुद को रोककर रखता था।

    उसका बिज़नेस देश-विदेश में फैला था। इंटरनेशनल डील्स, ट्रैवल्स, पार्टनरशिप्स... लेकिन अब वह अकेला नहीं था। अब उसके पास आशु था, उसका बच्चा, और उसका सबसे बड़ा डर।

    क्योंकि उसके दुश्मनों की निगाहें अब उसके एम्पायर पर नहीं... आशु पर थीं। इसलिए वह चाहता था कि आशु उसके जैसा बने; सख्त, खामोश, कंट्रोल में। लेकिन आशु, वह उस मासूमियत से भरा हुआ था, जो आध्यात्म कभी नहीं चाहता था। शायद वह अपनी माँ पर गया था।

    आध्यात्म सोफे की बैक पर सिर टिकाकर, अपनी आँखें बंद किए हुए था, लेकिन उसका माइंड पूरी तरह अलर्ट मोड में था।

    घड़ी ने रात के 9 बजाए ही थे, तभी उसके ट्रस्टेड हेड बॉडीगार्ड ने स्टडी रूम का दरवाज़ा हल्के से नॉक किया। उसकी दस्तक से आध्यात्म की नींद अचानक से खुली और उसने हल्की सी आवाज़ में कहा,
    "कम इन।"

    बॉडीगार्ड अंदर आया और चार फाइल्स को टेबल पर रखकर सीधा बोला,
    "सर, इन सब में आपके सिग्नेचर चाहिए... और यह रही डॉक्टर की इन्फॉर्मेशन..."
    (उसने एक नीले रंग की फाइल उसकी ओर बढ़ाई।)

    आध्यात्म की नज़रें कुछ सेकंड्स के लिए उसकी आँखों में टिक गईं। फिर हल्के इशारे से उसे जाने को कहा। उसने वह नीली फाइल उठाई, तो उसकी उंगलियों की पकड़ फाइल पर थोड़ी टाइट हो गई।

    उसने फाइल का फ्रंट पेज खोला। "मंशा श्रीवास्तव" की एक ए-फाइव साइज़ फोटो थी। उसकी उंगलियाँ उस फोटो पर धीरे से घूमने लगीं, जैसे वह उस फोटो को नहीं, डायरेक्ट उसे ही छू रहा हो।

    उसने धीमे से खुद से कहा,
    "कितनी अलग हो तुम, तुम्हें सिर्फ एक तस्वीर में देखकर, मेरी हार्टबीट अनकंट्रोल हो रही है..."
    "जो भी हो मंशा, तुम सिर्फ आशु की ख्वाहिश नहीं... अब मेरी ऑब्सेशन भी बन चुकी हो!"

    आध्यात्म ने कभी किसी लड़की के लिए अपना दिल नहीं खोला था। मीटिंग्स में ग्लैमरस लड़कियाँ, सेडक्टिव वाइब्स, डायरेक्ट प्रपोजल्स... सब उसने देखा था, लेकिन उसने कभी किसी पर नज़र तक नहीं डाली थी।

    उसने फाइल के पन्ने पलटे। मंशा की उम्र, उसकी जॉब प्रोफाइल, उसकी हॉबीज़... सब कुछ उसकी आँखों में उतरता गया। लेकिन हर लाइन पढ़ते हुए उसकी निगाहें बार-बार उन अटैच्ड तस्वीरों पर ठहर जातीं, जिनमें मंशा कभी किसी केस को हैंडल कर रही थी, कभी बच्चों के साथ मुस्कुरा रही थी, कभी सर्जिकल ग्लव्स में बेहद प्रोफेशनल दिख रही थी, और कभी किसी मेडिकल अवॉर्ड सेरेमनी में स्टेज पर खड़ी होकर तारीफें बटोर रही थी।

    "इतनी परफेक्ट?" आध्यात्म ने खुद से पूछा।
    "जो चीज़ परफेक्ट होती है, उस पर दुनिया की नज़र होती है... और जो चीज़ इस आध्यात्म सूर्यवंशी की नज़र में आ जाए, वह फिर दुनिया के लिए नहीं बचती!"

    उसके अंदर की मर्दानगी धीरे-धीरे बेकाबू हो रही थी। वह अपनी सीमाओं को तोड़ने के कगार पर खड़ा था। वह नहीं चाहता था कि यह सिर्फ एक ख्वाहिश बनकर रह जाए। वह मंशा को हर हाल में अपनी दुनिया में लाना चाहता था, अपने बेटे के लिए... और अब, खुद के लिए भी।

    लेकिन मंशा, सबसे अलग थी। आध्यात्म की ब्रीदिंग थोड़ी अनईवन हो रही थी। उसने खुद से कहा,
    "बस एक बार, एक चांस, अगर तुमने मना किया... तो फिर भी मैं तुम्हें मना लूँगा... इन माय वे!"
    "क्योंकि नो इज़ नेवर अ फाइनल आंसर फॉर मी!"

    वह उसकी जानकारी देखकर इतना तो समझ गया था कि मंशा किसी भी आर्डिनरी प्रपोजल के लिए "हाँ" नहीं कहेगी।

    बीकॉज़ शी वाज़ स्ट्रॉन्ग एंड इंडिपेंडेंट।

    लेकिन आध्यात्म सूर्यवंशी को रिजेक्शन सहना नहीं आता था। वह फाइल को धीरे से वापस टेबल पर रखता है, लेकिन उसकी नज़रें अब भी उस फोटो को स्कैन कर रही थीं। हर बार जब उसकी नज़र उस फोटो पर जाती, उसका कंट्रोल थोड़ा और लूज़ होता।

    बाकी फाइल्स उसने मैकेनिकली रीड कीं, लेकिन मंशा की तस्वीर उसके दिमाग से हट ही नहीं रही थी। फ्रस्ट्रेशन में उसने पेन को टेबल पर जोर से फेंका। उसकी आँखें अब इंटेंस रेड हो चुकी थीं।

    उसने अपने आप से संभालते हुए कहा,
    "तुम जस्ट एक बार मेरे सामने आ जाओ... आई स्वेयर, तुम्हें भी इतना ही तरपाऊँगा..."
    "तुम्हें नींद सिर्फ आज आएगी... कल तुम्हारी ज़िंदगी की सबसे डार्क नाइट होगी... जब तुम मुझसे मिलोगी!"
    "लेट्स सी, मिस मंशा श्रीवास्तव, कितना खुद को बचा पाती हो तुम मुझसे..."

    वह बाकी फाइल्स भी जल्दी से कंप्लीट करता है, साइन करके लॉकर में रख देता है।

    फिर वह अपने बेडरूम में आकर, जहाँ उसका बेटा आशु ऑलरेडी सो चुका होता है, उसे गले लगाया। लेकिन उसकी सोल अब भी रेस्टलेस थी।

    धीरे-धीरे ही, लेकिन मंशा अब उसकी ऑब्सेशन बन रही थी।

  • 3. "लव्स अंडरकरेंट"- 3

    Words: 1348

    Estimated Reading Time: 9 min

    सूर्यवंशी मैंशन में आध्यात्म सुबह जल्दी उठा था क्योंकि वह ज़्यादा नहीं सोता था। उसे सोना टाइम वेस्ट लगता था। अस्तित्व को अब तक सोया देखकर उसने उसे अच्छे से सुला दिया था। आध्यात्म खुद पर चाहे जितने भी रूल्स लगा ले, आशु के सामने उसके सारे रूल्स डिस्ट्रॉय हो जाते थे।

    आध्यात्म ज़्यादा नहीं सोता था, लेकिन अस्तित्व उसका ऑपोजिट था। उसे जितना टाइम मिले सोने के लिए, वह उतना सोता था। जिस पर आध्यात्म भी कुछ नहीं बोलता था। उसे लगा कि वह अभी बच्चा है, इसलिए उसे प्रॉपर रेस्ट की ज़रूरत होगी।

    अस्तित्व को सोया छोड़कर वह जिम में चला गया था। एक्सरसाइज करते वक्त वह सिर्फ़ मंशा के बारे में सोच रहा था। उसे कैसे भी करके आज, आज ही मंशा को अपने घर लाना था।

    वह जिम करके वापस आया था। तब तक अस्तित्व उठ गया था और अपनी आँखें मसलकर इधर-उधर देखने की कोशिश कर रहा था। आध्यात्म उसके पास आकर उसे अपनी गोद में उठाकर वाशरूम ले गया था। अस्तित्व को आध्यात्म ही नहलाता था और अगर उसने उसे किसी दिन नहीं नहलाया या फिर उसे खाना अपने हाथों से नहीं खिलाया, उस दिन आध्यात्म का पीछा नहीं छोड़ता था अस्तित्व।

    अस्तित्व को सिर्फ़ एक माँ की चाहत थी, जो आध्यात्म भी अच्छे से जानता था, लेकिन वह इसमें क्या ही कर सकता था? आध्यात्म उसे नहलाकर लाया था और कपड़े भी पहना दिए थे। इन सब के बीच अस्तित्व ने कोई बदमाशी नहीं की थी क्योंकि वह आध्यात्म के गुस्से को अच्छे से जानता था। उससे थोड़ी भी चू-चा हुई, अब उसे आध्यात्म के गुस्से का सामना करना पड़ सकता था, जो उसके बस की बात नहीं थी।

    आध्यात्म आज काफी अच्छे मूड में था। जिस पर अगर अस्तित्व कुछ बदमाशी करता भी, तो आध्यात्म कुछ नहीं बोलता। इस बात का अंदाज़ा अस्तित्व को पहले से ही हो गया था।

    आध्यात्म उसके ड्रेस अप करके खुद रेडी होने लगा था। उसने एक ब्लैक बिज़नेस सूट पहना था जिसमें वह कतई ज़हर जैसा लग रहा था। आध्यात्म बहुत सुंदर था, इतना कि हर कोई, यहाँ तक लड़के भी उस पर फ़िदा होना चाहें। उसकी आँखें प्योर नेवी ब्लू थीं, जो अस्तित्व, उसी का बेटा है, उसी का प्रमाण है।

    अस्तित्व पूरा आध्यात्म पर गया था। उसका चेहरा पूरा आध्यात्म से मिलता था। अगर आशु थोड़ा स्ट्रिक्ट बिहेव करे, तो वह पूरा आध्यात्म लगेगा। आध्यात्म तैयार होकर अस्तित्व को अपनी गोद में उठाकर अपने साथ डाइनिंग हॉल में लेकर आया था। उनके आते ही सर्वेंट्स अलर्ट हो गए थे और अपना काम बेहद बारीकी और साइलेंट मोड में करने लगे थे। आध्यात्म को जरा सी भी आवाज़ पसंद नहीं आती थी।

    आध्यात्म आशु को ब्रेकफास्ट करा रहा था, तभी वहाँ हेड बॉडीगार्ड आकर उससे बोला: "बॉस, डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट फ़िक्स हो चुका है। आपका और लिटिल मास्टर का फुल बॉडी चेक अप होगा। डॉक्टर अपने टाइम टेबल के अनुसार आपका चेक अप करेंगी।"

    आध्यात्म को उसकी लास्ट की लाइन कुछ रास नहीं आई थी। वह डॉक्टर के अनुसार चलेगा? क्या उसे नहीं पता कि वह किसका चेक अप करने वाली है? वह बॉडीगार्ड से गुस्से में अपनी दबी हुई और ठंडी आवाज़ में बोला: "क्यों...उसके टाइम पर क्यों? मेरा कोई शेड्यूल नहीं है जो मुझे उसके अकॉर्डिंग जाना होगा।"

    बॉडीगार्ड थोड़ा डर गया था। वह हिचकिचाते हुए बोला: "बॉस, वो उस हॉस्पिटल की बेस्ट डॉक्टर में से है। उनका अपॉइंटमेंट जल्दी किसी को भी नहीं मिलता। उनसे ट्रीटमेंट के लिए लोग हफ़्तों पहले से ही अपनी अपॉइंटमेंट फ़िक्स करवाते हैं और आपने तो कल ही कहा था अपॉइंटमेंट लेने के लिए। फिर भी कितनी कोशिश कर के ये अपॉइंटमेंट मिल सका है।"

    आध्यात्म और गुस्से में आ गया था। वह बेहद आक्रोश में था। वह फिर अपनी ठंडी आवाज़ में बोला: "तो...मैं क्या तुम्हें कोई नॉर्मल पर्सन नज़र आता हूँ जो मैं किसी का वेट करूँगा?"

    बॉडीगार्ड अब सर झुकाकर साइड में खड़ा हो गया था। उसके पास अब कोई शब्द नहीं बचे थे आध्यात्म से कहने के लिए। आध्यात्म शॉर्ट टेंपर्ड इंसान था। उसको गुस्सा बहुत जल्दी आता था। इसलिए बॉडीगार्ड ने चुप रहना ही सही समझा था क्योंकि नौकरी तो जाती ही जाती, साथ में जान भी चली जाती, जो उसने अपने सपने में भी नहीं सोचा था।

    अस्तित्व हॉस्पिटल जाने के नाम से ही बहुत खुश हो गया था। उसे डॉक्टर आंटी से मिलना था। उसका बस चलता तो वह अभी के अभी डॉक्टर आंटी को अपनी माँ बना लेता, लेकिन खैर वह ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि सबसे बड़ा काल तो उसका पिता ही था जो उसके सपने के बीच आड़े आ रहा था।

    आध्यात्म ने उसे ब्रेकफास्ट कराया था और उसे अपने साथ लेकर बाहर आ गया था। आध्यात्म को उसे हॉस्पिटल ले जाकर उसका मंथली चेक अप करवाना था, जो अभी तक पेंडिंग पड़ा था। उसने कई महीनों से उसका चेक अप नहीं करवाया था। रीज़न यह कि उसके पास बिज़नेस के बाद टाइम ही नहीं होता था।

    लेकिन आज उसे अपना सबसे बड़ा काम करना था: अस्तित्व के लिए उसकी माँ को अपने पास लाना, जो वह आज तो करके ही रहेगा। उसने अस्तित्व को पहले गाड़ी में बैठाया, फिर खुद भी बैठ गया। ड्राइवर ने गाड़ी हॉस्पिटल की ओर बढ़ा दी थी। रास्ते में आध्यात्म ने कितने ही प्लान्स रेडी कर लिए थे मंशा को प्रोपोज़ करने के, लेकिन लास्ट में उसका दिमाग इन सब सोच को यह कहकर दुत्कार दिया कि अगर वह मानी ही नहीं, तब...

    तो आध्यात्म को भी जबरदस्ती करनी ऑलरेडी आती है। ऐसे ही वह इतना बड़ा बिज़नेसमैन नहीं था। उसने बहुत कुछ सहा था, तब जाकर वह आज इस पोजीशन पर था कि कोई उससे नज़रें मिलाकर तक बात नहीं करता।

    आध्यात्म की गाड़ी हॉस्पिटल के पार्किंग एरिया में आकर रुकी थी। उसके पीछे उसके बॉडीगार्ड्स की गाड़ी भी लाइन से पार्क हो गई थी। वह हॉस्पिटल उस स्टेट का सबसे बड़ा हॉस्पिटल था जहाँ सिर्फ़ रहीसज़ादे ही अपना ट्रीटमेंट अफोर्ड कर सकते थे।

    वह अस्तित्व को अपनी गोदी में लिए उतरा और एक गहरी नज़र पूरे हॉस्पिटल को देखकर अंदर चला गया था। पीछे-पीछे उसके बॉडीगार्ड्स भी चल रहे थे। इस बात का कोई ठिकाना नहीं था कि उसके दुश्मन कब उस पर अटैक कर दें, इसलिए चौबीसों घंटे उसके साथ बॉडीगार्ड्स तैनात रहते थे।

    आध्यात्म अपने बुक किए डॉक्टर के केबिन के बाहर बैठा वेट करने लगा था। केबिन का डोर ग्लास का बना हुआ था जिससे मंशा की थोड़ी-थोड़ी झलक नज़र आ रही थी।

    मंशा को लाइव देखकर उसका शरीर फिर से बेचैनी से भर गया था और उसे कंट्रोल करने में उसे दिक्कत महसूस होने लगी थी क्योंकि आशु उसके गोद में ही बैठा हुआ था और आशु उससे दूर जाएगा भी नहीं क्योंकि पब्लिक प्लेस पर आशु आध्यात्म का पीछा नहीं छोड़ता।

    मंशा अपने डॉक्टर के कोट में थी और उसका लुक बहुत सिंपल सा था। न कुछ भारी सा ड्रेस और न ही कुछ एक्स्ट्रा ज्वैलरी उसने कैरी की हुई थी। फिर भी इस सिंपल से लुक में सबको कायल करने के लिए वह काफी थी। लेकिन मंशा का मूड आज कुछ सही नहीं था। वह अपने पेशेंट को चेक तो कर रही थी लेकिन उसका मन आज बहुत डिस्टर्ब था। यह आध्यात्म भी अच्छे से ऑब्जर्व कर पा रहा था।

    हुआ यूँ था कि मंशा जब कल रात सोई हुई थी, तभी उसके फ़ोन पर उसकी माँ का कॉल आया था। उन्होंने उसके लिए एक ब्लाइंड डेट फ़िक्स की थी, लेकिन मंशा को इन सब में कभी इंटरेस्ट नहीं रहा। वह अपनी ज़िंदगी अकेले जीना चाहती थी। उसकी माँ ने बहुत फ़ोर्स किया जिस कारण लास्ट में उसे मानना ही पड़ा था। इसलिए उसका मूड उखड़ा-उखड़ा सा हो गया था।

    कुछ हाफ़ एन आवर के बाद आध्यात्म की टर्न आई थी। वह शालीनता से उसके केबिन के अंदर चला गया था। मंशा बैठी किसी की रिपोर्ट पढ़ रही थी। उसने आध्यात्म को अपनी नज़रें उठाकर देखा था। आध्यात्म का चार्म था ही ऐसा कि किसी की भी नज़रें उस पर ठहर जाएँ। लेकिन मंशा ने कुछ देर उसे देखा, फिर उसकी शिकायत क्या है, उससे पूछी। आध्यात्म जो कि तड़प रहा था उससे मिलने के लिए, वह उससे बोला: "मेरा और मेरे बेटे का मंथली चेक अप करवाना है।"

    मंशा हाँ में सिर हिलाकर आध्यात्म के बेटे को देखा तो उसे लगा कि यह आदमी ही इसका पिता है, लेकिन यह तो अभी इतने यंग लग रहे हैं, तो इनका बेटा कैसे हो सकता है? लेकिन अपने ख़यालों को बीच में रोककर वह अपना काम करने लगी।

    मंशा ने आध्यात्म और अस्तित्व के कुछ टेस्ट करवाए थे जिसके रिपोर्ट आने में कुछ वक्त था। मंशा ने नोटिस किया कि आज आशु बहुत शांत है जबकि उसके सामने यह बच्चा काफी उछल-कूद कर रहा था। उसने आशु से पूछा: "आज आप इतने शांत क्यों हो? कुछ हुआ है क्या?"

    आशु ने अपना सर ना में हिला दिया, फिर अपने फादर की तरफ़ इशारा कर दिया जो अभी अपने फ़ोन में कुछ मेल्स चेक कर रहा था। उसके इशारे पर मंशा को बॉडीगार्ड की कही बात भी याद आ गई जिसने बताया था कि उसका बॉस बहुत स्ट्रिक्ट है।

  • 4. "लव्स अंडरकरेंट"-4

    Words: 1328

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा को आशु की किस्मत पर तरस आया। कैसे इतने छोटे बच्चों को भगवान ऐसे माता-पिता दे देते हैं जो इनका ख्याल न रखकर इन्हें डरा-धमकाकर रखते हैं? मंशा फिर अपना काम करने लगी।

    आध्यात्म, मेल्स चेक करने के बहाने अपने इमोशन्स छिपा रहा था, उसने दोनों के एक्शन को अच्छे से नोटिस कर लिया था। उसने एक बार मंशा के चेहरे को देखा; उसके चेहरे के रिएक्शन्स कुछ खास नहीं थे।

    आध्यात्म को लगा कि इसका मतलब यह था कि अस्तित्व ने उसके बारे में मंशा से कुछ गलत ही कहा है। यह सोचकर आध्यात्म आशु को घूरने लगा कि उसका बेटा उसके पूरे प्लान पर पानी फेरने का काम कर रहा है।

    कुछ देर बाद दोनों की रिपोर्ट आ गईं। जिसमें अस्तित्व का ऑलमोस्ट सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन आध्यात्म की रिपोर्ट के अनुसार उसे भयानक सिर दर्द, इनसोम्निया (नींद न आने की बीमारी), स्ट्रेस से होने वाली परेशानियाँ जैसी समस्याएँ थीं।

    मंशा को यह बात दुखी कर गई। इतनी भयानक स्थिति में इंसान कैसे सरवाइव कर सकता है? इस इंसान को कितना स्ट्रेस है या फिर यह इंसान ही नहीं है? ऐसे-ऐसे ख्याल उसके मन में आ रहे थे।

    आध्यात्म को जब उसने यह बात बताई तो आध्यात्म को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा, जैसे उसे पहले से मालूम हो कि उसे यह सब है। मंशा ने उसे कुछ मेडिसिन्स लिखकर दिए और उसे प्रॉपर रेस्ट करने को कहा। अस्तित्व को उसने ज़्यादा से ज़्यादा फ्रूट्स खाने को कहा और साथ ही एक्सरसाइज करने को भी कहा।

    मंशा ने जब आध्यात्म को रेस्ट करने को कहा, तब आध्यात्म उसे देखते हुए अपने मन में सोचा, "रेस्ट तो अब तुम्हारे साथ ही होगा!!"

    आध्यात्म बाहर की तरफ जाने के लिए मुड़ ही रहा था कि अस्तित्व बाहर जाने से मना करने लगा। आध्यात्म ने एक नज़र उसे देखा; आशु डरा तो बहुत था, लेकिन वह वहाँ से हिला भी नहीं।

    मंशा ने उन दोनों के बीच बिना किसी आवाज़ के हो रहे वार को देखा। उसे लगा उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए क्योंकि बाहर भी काफी पेशेंट अपनी ट्रीटमेंट के लिए इंतज़ार में हैं।

    मंशा ने दोनों के बीच आकर आध्यात्म से कहा, "आप अस्तित्व को यहाँ कुछ देर रुकने क्यों नहीं देते? वह काफी इंटरेस्टेड लग रहा है यहाँ रुकने में।"

    आध्यात्म अस्तित्व को छोड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं था। वह अगर कहीं भी अननोन जगह पर रहता तो सबसे ज़्यादा डर आध्यात्म को ही लगता था, जबकि अस्तित्व के खोने के 0.00% के भी चांसेज नहीं थे। अस्तित्व के पीछे सुबह-शाम बॉडीगार्ड्स लगे रहते थे।

    आध्यात्म कुछ बोलने लगा, तब मंशा ने ही कहा, "देखिए मिस्टर सूर्यवंशी, अस्तित्व एक छोटा बच्चा है, महज़ पाँच साल का। अगर आप उसे हमेशा चार दीवारी के बीच रखेंगे तो यह इसके मेंटल और फिजिकल ग्रोथ के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है।"

    लेकिन आध्यात्म कुछ समझने के मूड में नहीं था। जिसे समझते हुए मंशा फिर बोली, "ठीक है, मैं शाम को खुद अस्तित्व को ड्रॉप कर दूँगी आपके मैन्शन पर। अब इस बच्चे को यहाँ रहने दीजिए। मैं वादा करती हूँ, इसका अच्छे से ख्याल रखूँगी।"

    आध्यात्म ने जब उसके घर आने की बात सुनी तो एकदम से उसे अपने प्लान को वॉन घोषित करने का मन करने लगा। अगर मंशा उसके घर खुद चलकर आई तो इससे ज़्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है?

    आध्यात्म कुछ देर सोचने का नाटक कर हाँ में सिर हिलाकर वहाँ से चला गया। अस्तित्व उसके हाँ पर बहुत खुश हो गया। उसे यह मालूम था कि बॉडीगार्ड्स से उसका पीछे कभी नहीं छूट सकता, लेकिन आध्यात्म के हमेशा बिज़ी रहने के कारण उसे बहुत छूट मिलती थी और एक आज मिल गई।

    अस्तित्व का बस चलता तो वह अभी मंशा को जोर से गले लगा लेता और उसे छोड़ता भी नहीं, लेकिन आध्यात्म ने उसे ऐसा करना नहीं सिखाया था। वह बहुत मैनर्स के साथ रहता था।

    मंशा बैठकर उसके गाल को सहलाते हुए बोली, "कुछ खाना है आपको?"

    अस्तित्व हाँ में सर हिला दिया, जबकि उसे बिल्कुल भूख नहीं लगी थी क्योंकि उसे आध्यात्म ने नाश्ता करवा दिया था, लेकिन वह मंशा के साथ कुछ खाने की इच्छा रखता था।

    मंशा अपनी असिस्टेंट से कुछ स्नैक्स लेकर आने को बोली और थोड़ी देर अस्तित्व को वहीं सोफे पर बैठा दिया और अपने बाकी के पेशेंट्स को देखने लगी।

    अस्तित्व सोफे पर बैठकर मंशा के हर मूवमेंट और एक्शन्स को ऑब्जर्व कर रहा था। उसे मंशा का प्रोफ़ेशन बहुत अच्छा लगा था। वह सोचने लगा, "डॉक्टर आंटी ने आज तक कितने सारे इंसानों की लाइफ़ को रीस्टार्ट किया होगा और डैड सिर्फ़ बिज़नेस में अपने लिए प्रॉफिट फाइंड करते रहते हैं। मैं भी बड़ा होकर एक डॉक्टर बनूँगा। द लाइफ़ सेवियर का टैग मुझे भी मिलेगा।"

    वहीं आध्यात्म अपनी रॉयल कार में बैठा सोच रहा था, "जब मंशा उसके घर आएगी तो उसे अपने पास लाइफ़टाइम रखना कितना आसान होने वाला है। आज मंशा इस राक्षस की होगी और फिर उसी की होकर रह जाएगी।"

    वह यही सब सोचकर अंदर से काफी खुश था, लेकिन उसके फ़ेशियल एक्सप्रेशन्स बिल्कुल ज़ीरो थे, जैसे उसके मन में कुछ चल ही ना रहा हो। तभी उसकी कार एक लंबे और बड़े ही आकर्षक पाँच मंजिले बिल्डिंग के सामने रुकी, जिसके ऊपर बड़े-बड़े और डिज़ाइनर शब्दों में सूर्यवंशी कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड लिखा हुआ था।

    वह बिल्डिंग उस एरिया की सबसे बड़ी बिल्डिंग थी। उसका डिज़ाइन सबसे यूनीक और स्टाइलिश था जो उसे एक रॉयल लुक दे रहा था।

    आध्यात्म की रोल्स रॉयस उस बिल्डिंग के पार्किंग एरिया में पार्क हुई। उसके पीछे चल रही उसके बॉडीगार्ड्स की चार गाड़ियाँ भी रुकीं। हेड बॉडीगार्ड ने आकर आध्यात्म के साइड का गेट खोला तो आध्यात्म काफी एटीट्यूड से अपने कोट के बटन बंद करते हुए आगे चल दिया। उसके पीछे-पीछे उसके बॉडीगार्ड उसे घेरे हुए थे।

    आध्यात्म को देखकर ऑफ़िस की सारी लड़कियाँ उसे बेशर्मी से घूरने लगीं, जो उनका हमेशा का काम था। वे अपने काम अच्छे से करती थीं, लेकिन आध्यात्म के मामले में सबकी नियत बिगड़ ही जाती थी। सब सपने देखने लगतीं कि किसी दिन आध्यात्म उन्हें अपनी वाइफ़ इंट्रोड्यूस करेगा पूरी दुनिया के सामने।

    ऑफ़िस के सारे एम्प्लॉयीज़ उसे देख गुड मॉर्निंग विश कर रहे थे, लेकिन आध्यात्म ने किसी को रिप्लाई बैक नहीं किया। उसका हमेशा ऐसा ही था।

    वह अपने प्राइवेट लिफ्ट में चढ़ गया और सबसे लास्ट फ़्लोर पर क्लिक कर दिया। वह उस लिफ्ट में अकेले जाता था। किसी को उसके साथ उसमें एंटर करने की इजाज़त नहीं थी।

    लास्ट फ़्लोर पर सिर्फ़ एक केबिन था जो बहुत बड़ा था। बाकी जगह खाली थी, पर वहाँ डेकोरेशन ही वहाँ के माहौल को खुशनुमा बना रहे थे। वह अपने केबिन, जिसके वॉल पर खूबसूरती से उसका नाम डिज़ाइन किया गया था, में चला गया। उसके ऑफ़िस का सिस्टम ऑटोमेटिक था।

    वह अपने आलीशान सीईओ चेयर पर बैठ गया और अपना सर उसके हेड से टिका लिया। वह आँखें बंद करके रेस्ट कर रहा था।

    कुछ देर बाद उसका असिस्टेंट ध्रुव आया और डोर पर नॉक किया। तो अपनी भारी आवाज़ में आध्यात्म बोला, "कम इन।"

    ध्रुव को इसी आवाज़ से बहुत डर लगता था। वह अंदर आया और उसके आज का शेड्यूल बताना शुरू किया। आध्यात्म ने उसे बीच में टोककर कहा, "आज इवनिंग के सारे मीटिंग्स कैंसिल कर दो।"

    ध्रुव अपने पसीने को साफ़ करते हुए बोला, "बट सर, आज तो नेक्स्ट प्रोजेक्ट से रिलेटेड बहुत इम्पॉर्टेंट मीटिंग होनी है और क्लाइंट्स सिर्फ़ आज के लिए राज़ी हुए हैं।"

    उसके इतना बोलने पर आध्यात्म उसे बहुत ठंडी और गहरी नज़रों से घूरने लगा, जो काफी थी उसे उसके पोज़िशन की याद दिलाने के लिए। वह बार-बार यह भूल जाता था कि आध्यात्म को अपने खिलाफ़ कोई भी शब्द बर्दाश्त नहीं।

    वह चुप हो गया। अब उसके पास आध्यात्म की बात मानने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं बचा था। इसलिए वह उसके शेड्यूल बताकर कुछ फ़ाइल्स वहाँ रख दिया।

    और फिर आध्यात्म से बोला, "सर ये कुछ फ़ाइल्स हैं जो आपको चेक करके वेरिफ़ाई करने होंगे और इनमें आपके सिग्नेचर चाहिए।"

    आध्यात्म अपना सर हिला दिया और ध्रुव वहाँ से चला गया। आध्यात्म अपनी टाई की नॉट ढीली कर मंशा के ख्यालों में खो गया। उसने अपने दिमाग में इस बात को बिठा लिया था कि आज ही उसे अपना बनाकर रहना है।

    वरना वह खुद को पनिशमेंट देगा जो उसे एक गहरा घाव अपने शरीर पर करके पूरा होगा। वह जब भी मंशा के बारे में सोचता उसकी धड़कनें सिमिलर से काफी तेज हो जातीं, जो उसे बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि वह उससे कंट्रोल नहीं होता था।

  • 5. "लव्स अंडरकरेंट"-5

    Words: 1397

    Estimated Reading Time: 9 min

    मंशा और अस्तित्व बैठकर स्नैक्स खा रहे थे।

    आशु, मंशा के सैंडविच को देखते हुए बोला, "ये क्या है? ... डॉक्टर आंटी...इसे खाते हैं क्या? ...!!"

    मंशा को ठसका लगा; यह कैसा सवाल था!

    उसने आशु को हैरानी से देखते हुए कहा, "ये सैंडविच है बेटा तुम्हें नहीं पता था!"

    आशु ना में सर हिलाकर सैंडविच खाने लगा।

    मंशा का अभी लंच ब्रेक था, और उसे खुद से खाना बनाना पसंद नहीं था। ऐसा नहीं था कि उसे आता नहीं था; खाना वह बहुत अच्छा बनाती थी, बस उसे खुद से खाना बनाना पसंद नहीं था। उसकी सर्वेंट आज अपने किसी काम से नहीं आई थी, वरना वह घर का खाना ही लाती, तो आशु उससे ऐसी कोई क्वेश्चन भी नहीं पूछता, जो इतना वियर्ड था।

    अस्तित्व उसके देखते हुए बोला, "डॉक्टर आंटी...आपका नाम क्या है? ...!!"

    मंशा मुस्कुराते हुए उसके गालों पर पिंच करती हुई बोली, "मेरा नाम मंशा श्रीवास्तव है...!!"

    आशु उससे बात करने में बहुत इंटरस्टेड था; इसलिए वह यहीं पर बात खत्म नहीं करना चाहता था। वह आगे बोला, "आप डॉक्टर ही क्यों बनीं...मंशा आंटी...!!"

    मंशा बोली, "मुझे ना बचपन से ही काफी शौक था...डॉक्टर बनने का...लोगों की हेल्प करने का...उनकी लाइफ को सेफ रखना मुझे बहुत पसंद था...इसके अलावा मुझे कोई और प्रोफेशन अच्छा ही नहीं लगा...अच्छा आप बताओ...क्या बनना है आपको बड़े होकर...!!"

    आशु चमकती हुई आँखों के साथ बोला, "मुझे भी आपके तरह बड़े होकर डॉक्टर बनना है...दूसरों की लाइफ सेव करनी है...!!"

    उसकी बात पर मंशा ने कहा, "लेकिन आपके डैड तो बिजनेसमैन लगते हैं...और उनके बेटे होने के अनुसार...तुम्हें उनकी कंपनी को ओवरटेक करना होगा...और अगर तुम ये नहीं करोगे...तो फिर कौन करेगा...उनकी कंपनी तो बर्बाद हो जाएगी...!!"

    आशु फिर मायूस हो गया। वह मासूमियत से बोला, "तो मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगा...और डैड मुझे सच में नहीं बनने देंगे...लेकिन मुझे अच्छा लगा डॉक्टर का प्रोफेशन...!!"

    मंशा उसकी मासूमियत पर पूरी पिघल गई और पुचकारते हुए बोली, "कोई बात नहीं...ये बात बड़े होकर डैड के साथ डिस्कस कर लेना...अभी मेरे साथ मस्ती करो...क्योंकि जीने के हैं चार दिन, बाकी हैं बेकार दिन...ह्म्म्म...चलो मेरे साथ...!!"

    तब तक उन दोनों ने ब्रेकफास्ट कर लिया था। मंशा उसे हॉस्पिटल से बाहर के ग्राउंड में ले गई, जहाँ ऑलरेडी बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे। यह माहौल आशु के लिए बहुत नया था; वह आज तक ऐसे किसी भी बच्चे को खेलते हुए देखा तक नहीं था।

    आशु असमंजस से दूसरे बच्चों को खेलता हुआ देखकर मंशा से बोला, "हम यहां क्या करने आए हैं...मंशा आंटी...!!"

    मंशा उस जगह को देख खुश होते हुए बोली, "अरे हम खेलने आए हैं...तुम तो ऐसे बोल रहे हो...जैसे खेले ही नहीं आज तक...!!"

    आशु उसके हाथ को झुलाते हुए बोला, "आंटी...खेलना क्या होता है?...मुझे नहीं पता...!!"

    मंशा उसे अजीब नजरों से देखने लगी। फिर बोली, "तुम्हें सच में नहीं पता...कि खेलना क्या होता है...!!"

    आशु अपना सर हिला दिया।

    मंशा को अब आशु के पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था। कितना बेरहम इंसान है वह आदमी! कैसे इतने छोटे से बच्चे को कैद करके रख सकता है! मंशा के दिमाग में आध्यात्म के लिए गलत चित्र जो पहले से बना हुआ था, वह बहुत विकसित हो रहा था।

    मंशा आशु को बताया कि बच्चे जब साथ होते हैं, नए-नए गेम्स को खेलते हैं, और उसे ही खेलना कहते हैं।

    आशु उसके एक्सप्लेनेशन पर बहुत खुश हो गया और कूदते हुए बोला, "तो मुझे भी खेलना है...आंटी मुझे भी उन बच्चों के साथ खेलना है...लेकर चलो ना उनके पास...मुझे...!!"

    मंशा उसे लेकर उन बच्चों के पास गई; वे सब एक साथ खेलने लग गए थे। मंशा पूरी तरह बच्ची बन गई थी; उसके चेहरे पर पूरी तरह से मासूमियत छा गई थी।

    ऐसे ही दोपहर शाम में बदल गई, और मंशा अब आशु को उसके घर छोड़ने अपनी गाड़ी से जा रही थी। आशु मंशा के फोन में मैप देखते हुए उसे इंस्ट्रक्शन दे रहा था कि कौन सा टर्न कब लेना है। मंशा आशु को देखकर हैरान थी कि इतना छोटा सा बच्चा कैसे इतनी अच्छी तरह मैप रीड कर सकता है।

    करीब एक घंटे के बाद मंशा अपनी कार से एक घर के सामने आई; यह आध्यात्म का ही मैंशन था। मंशा की आँखें इतने बड़े घर को देखकर चौड़ी हो गईं। वह सोच रही थी, "इतने बड़े घर में कौन-कौन रहता होगा...नहीं...मैं नहीं जाऊँगी अंदर...मुझे डर लग रहा है...!!"

    तभी सामने बॉडीगार्ड ने वह बड़ा सा और शानदार दरवाजा खोल दिया। उसे आध्यात्म से पहले ही इंस्ट्रक्शंस मिल गए थे कि "मंशा और आशु के लिए गेट खोल देना है...उनसे पूछना भी नहीं है...कि कौन है..."

    मंशा अंदर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन आशु के लिए मजबूरन उसे गाड़ी से उतरकर जाना पड़ा। तभी रास्ते में उसे याद आया कि आज तो उसे माँ के द्वारा फिक्स किए ब्लाइंड डेट पर जाना है। मंशा ने जल्दी से टाइम देखा; तो साढ़े छह बजे थे।

    उसे याद आया कि उसे आठ बजे तक डेट के लिए पहुँचना है। अगर वह अभी यहाँ से नहीं निकलती, तो उसे जाने में बहुत देरी हो सकती थी।

    इसलिए उसने अस्तित्व को मेन डोर के पास तक छोड़ा, उसे बाय बोलकर वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठकर अपने अपार्टमेंट की तरफ चल दी।

    अस्तित्व अपने घर के लिविंग रूम में आया, तो सामने आध्यात्म अपने हाथ में वाइन की ग्लास पकड़े, उसकी सिप ले रहा था, और उसके दूसरे हाथ में फाइल थी, जो वह रीड कर रहा था। उसका पूरा फोकस अपने फाइल पर था, लेकिन आशु के शूज के आवाज़ से उसका ध्यान उस पर शिफ्ट हो गया।

    उसे देखकर आध्यात्म की नज़रें पीछे की तरफ चली गईं, जैसे वह काफी देर से किसी और का वेट कर रहा हो, और वह उसे ही ढूँढ रहा है अब, लेकिन किसी के ना दिखने पर वह बहुत नाराज सा दिखने लगा।

    आशु उसके पास आया और उसे देखते हुए बोला, "डैड आप जानते हैं...मैंने और मंशा आंटी ने आज बहुत मस्ती की...हम मिलकर प्लेग्राउंड में खेले...आप भी मुझे स्कूल में डालो ना...फिर मेरे भी बहुत सारे फ्रेंड्स होंगे...प्लीज डैड...प्लीज...!!"

    आध्यात्म जिसका मूड मंशा को ना देखकर पहले ही खराब हो गया था, वह अस्तित्व की बात पर और गुस्से में आ गया; उसकी आँखें लाल हो गईं।

    आध्यात्म अपने बेटे को घूरते हुए शख्त आवाज़ में बोला, "मैं तुम्हें किसी भी स्कूल में नहीं देने वाला...तुम सिर्फ ऑनलाइन स्टडीज़ ही करोगे...और ये काफी है तुम्हारे लिए...एंड अभी मेरा मूड बहुत खराब है...सो गेट आउट फ्रॉम हेयर...नहीं तो...मेरे हाथों से पड़ जाएगी तुम्हें...आज अच्छी खासी...!!"

    आशु उसके साउंड पर बहुत डर गया; उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे।

    जिसे देख आध्यात्म उस पर चिल्लाया, "रोना मत...मैंने कहा रोना मत...मुझे तुम्हारा रोना बिल्कुल नहीं पसंद...कितनी बार कहा...तुम मेरे बेटे हो...!!"

    आशु उसके चिल्लाने पर रोते हुए वहाँ से भाग गया और आध्यात्म के रूम में ना जाकर किसी दूसरे रूम में जाकर बेड पर रखे तकिए में अपना मुँह घुसाकर रोने लगा। बेड पर जाने से पहले उसने डोर को अंदर से लॉक कर लिया था।

    वह रोते हुए बोला, "डैड मुझसे प्यार नहीं करते...डैड ऑलवेज हर्ट्स आशु...वो सच में मुझसे प्यार नहीं करते...!!"

    रोते-रोते आशु को हिचकियाँ आने लगी थीं, लेकिन फिर भी वह रोते रह गया। काफी देर तक रोने के बाद वह सो गया, लेकिन उसकी पूरी आँखें सूज गई थीं रोने के कारण।

    आध्यात्म सोफे पर बैठा अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। उसने अपने हाथ में पकड़ी फाइल जमीन पर पटक दी थी; यही उसकी सबसे बुरी आदत थी; उसे गुस्सा बहुत आता था, हद से ज़्यादा।

    वह अपने मिनी बार में गया और फिर एक भरी हुई हार्ड ड्रिंक की बोतल निकालकर अपने होठों से लगा लिया और एक बार में ही आधी खाली कर दिया। उसका गुस्सा उसके सर चढ़ गया था।

    इतना ड्रिंक करने के बाद भी उसे अच्छी फील नहीं आई, जिससे उसे बहुत इरिटेशन सी हो रही थी; वह अपने कंट्रोल में नहीं था। काफी देर तक सिगरेट और ड्रिंक करने के बाद वह कुछ हद तक शांत हुआ।

    तब उसे याद आया कि उसने कैसे अपने बेटे को धमकाकर भगा दिया था।

    ये याद करते ही वह जल्दी से अपने रूम की तरफ भागा। जब उसने अपने रूम में आशु को नहीं देखा, तब उसे अंदर से एक डर लगने लगा; वह पहले अपने कंट्रोल किए गए गुस्से में और पागल होने लगा।

    वह दूसरे रूम में जाकर आशु को ढूँढने लगा। जब वह उसे कहीं नहीं मिला, तब वह टेरेस पर गया। तब उसने जो देखा, वह उसने एक्सपेक्ट नहीं किया था...

  • 6. "लव्स अंडरकरेंट"-6

    Words: 1340

    Estimated Reading Time: 9 min

    टेरेस पर आध्यात्म ने देखा कि उसका बेटा रेलिंग के पास खड़ा होकर उस पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। उसे देखकर आध्यात्म के दिल में डर की लहर दौड़ गई। वह जल्दी से उसके पास गया और उसे अपनी गोद में उठाकर गले से लगा लिया।


    आध्यात्म चाहे कितना भी आशु को डाँट ले, लेकिन यह सच नहीं बदलने वाला था कि सबसे ज़्यादा प्यार वह अपने बेटे से ही करता है। उसे ऐसा करते देख आध्यात्म की सोल कुछ समय के लिए उसकी बॉडी छोड़ चुकी थी; वह डर से कांपने लगा था।


    कुछ देर बाद, जब आध्यात्म कुछ शांत हुआ, तो उसने आशु को घूरते हुए कहा, "ये क्या करने जा रहे थे तुम? इसके लिए मैं तुम्हें अभी दो थप्पड़ लगा सकता हूँ!!"


    उसकी धमकी पर आशु फिर रोने लगा और रोते-रोते बोला, "आप सिर्फ मुझे मारते रहते हो। आप कभी मुझसे प्यार नहीं करते। आप सिर्फ अपने बिज़नेस में बिजी रहते हो। मैं अकेला घर में रहता हूँ। आप घर आकर मुझे डाँटकर चले जाते हो!!" (इतना कहकर वह और ज़ोर से रोने लगा।)


    आध्यात्म को अब जाकर रियलाइज़ हो रहा था कि बिज़नेस के सामने उसने सच में अपने बच्चे को कभी समय नहीं दिया, यहाँ तक कि वह आजादी भी नहीं दे पाया जो दूसरे बच्चों को मिलती है। आशु को आज तक वैसी आजादी नहीं मिली। आध्यात्म को अब बहुत गिल्ट हो रहा था, अपने बेटे के लिए।


    आध्यात्म अब पूरी तरह से मंशा को भूल चुका था। अब उसे सिर्फ अपना बेटा नज़र आ रहा था। उसने उसे शांत करवाया और अपने बेड पर सुलाकर खुद भी उसे गले लगा लिया। लेकिन आशु सो नहीं रहा था क्योंकि वह कुछ देर पहले ही सोकर उठा था।


    आशु आध्यात्म से बोला, "पापा, आप मंशा आंटी को मेरी मम्मा कब बनाओगे?" (ये कुछ शब्द उसने दुनियाँ-जहाँ की मासूमियत को अपने चेहरे पर ओढ़कर कहे थे।)


    आध्यात्म, जो मंशा के बारे में भूल गया था, उसके दिमाग में फिर आया कि वह घर के अंदर क्यों नहीं आई। वह उसके लिए ही आज घर में था और वह नहीं आई।


    उसने आशु के सर को सहलाते हुए कहा, "कुछ दिनों में, वह ज़रूर तुम्हारी माँ बनकर इस घर में हमारे साथ रहेगी।"


    आशु की आँखें चमक गईं उसकी बात सुनकर। उसने फिर कोई सवाल नहीं किया।


    यहाँ मंशा अपने ब्लाइंड डेट के लिए एक मशहूर होटल में आई हुई थी। वह अपने टेबल पर बैठी हुई थी। सामने एक सुंदर दिखने वाला नौजवान आदमी बैठा हुआ था। वह आदमी मंशा में काफी इंटरेस्टेड था।


    मंशा ने एक ब्लैक कलर की वन पीस, जो घुटनों तक थी, पहनी हुई थी। उसने नेचुरल मेकअप किया हुआ था, जो उसे बेहद खूबसूरत बना रहा था। वह पहले से ही इतनी सुंदर थी कि जहाँ भी जाती, लोगों की भीड़ लग जाती, लेकिन वह किसी को थोड़ा-सा भी भाव नहीं देती। उसकी इसी अदा पर सब कायल होते थे।


    मंशा काफी एटीट्यूड में थी। वह किसी रहीस बाप की बिगड़ी हुई औलाद से कम नहीं लग रही थी। उसने अपने सामने बैठे आदमी में ज़्यादा कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया, जिससे वह आदमी कहीं न कहीं समझ गया कि मंशा उसमें बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं है।


    मंशा का पब्लिक प्रोफाइल कुछ खास अच्छा नहीं था। वह सबके सामने बिगड़ी हुई औलाद की तरह ही बनना पसंद करती थी। लोगों के बारे में क्या सोचते हैं, इससे उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उसके इसी एटीट्यूड पर सब उसकी बहुत बुराई करते थे, लेकिन जैसा कि उसे फ़र्क नहीं पड़ता था, वह सबको इग्नोर करती थी।


    वह आज भी यहाँ आने में बिल्कुल इंटरेस्टेड नहीं थी। वह तो उसकी माँ ने उसे बहुत फ़ोर्स किया था, जिस कारण उसे यह डेट करनी पड़ रही थी, वरना वह इस "चिलगोज़े" को देखना भी पसंद नहीं करती।


    वह आदमी उससे बहुत बात करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मंशा उसे ऐसे-ऐसे जवाब दे रही थी जिससे उसका मुँह हमेशा बंद हो जाता। वह आदमी उसके ईगो से तंग आकर डेट खत्म होने के बाद जल्दी से उठकर चला गया।


    उसे ऐसे जाते देख मंशा के चेहरे पर एविल स्माइल आ गई। वह तो यही चाहती थी। वह उठकर होटल के बार में गई और एक हार्ड ड्रिंक ऑर्डर करके पीने लगी। वह धीरे-धीरे उसे खत्म करने लगी।


    तभी सामने उसे उसकी स्टेप सिस्टर दिखी, जो छोटे से कपड़े में अपने बॉयफ्रेंड के साथ चलते हुए उस बार की तरफ ही आ रही थी।


    वह उन दोनों को इग्नोर करके वापस से अपने ड्रिंक को एन्जॉय करने लगी।


    उसकी स्टेप सिस्टर आकर उसके सामने खड़ी हो गई और मंशा को देखते हुए बोली, "दी, आप मुझे इग्नोर कर रही हो।"


    मंशा ने सीधा जवाब दिया, "हाँ।"


    उसके जवाब से उसकी बहन बहुत गुस्से में नज़र आने लगी। वह फिर भी अपने गुस्से पर कंट्रोल करती हुई बोली, "आप मुझसे ऐसे बात नहीं कर सकती। अच्छा छोड़ो, कल ना मेरा और अमित का इंगेजमेंट है, ज़रूर आना।"


    मंशा अपनी नज़रें घुमाकर बोली, "आने में बिल्कुल इंटरेस्टेड नहीं हूँ, सॉरी स्टेप सीस।"


    इतना बोलकर मंशा एविल स्माइल देते हुए वहाँ से एटीट्यूड में चली गई।


    मंशा को किसी से दबकर रहना पसंद नहीं था। वह अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीती थी। वह रूल्स और रेगुलेशन खुद बनाती थी। उसे किसी का मोहताज होना अच्छा नहीं लगता था और उसकी यह स्टेप सिस्टर हमेशा उसे नीचा दिखाने आती थी, जिसे मंशा हमेशा बेइज़्ज़त करती थी। लेकिन वह थी कि सुधरने का नाम ही नहीं लेती थी।


    मंशा के ऐसे एटीट्यूड में जाने से एक बार फिर उसकी बहन जल भुन गई। उसने अपना हाथ बार काउंटर पर मार दिया जिसके कारण सभी उसे ही देखने लगे।


    उसका बॉयफ्रेंड, अमित, उसे कमर में हाथ डालकर उसे शांत कराने लगा, लेकिन वह शांत नहीं हो रही थी।


    वह उसके शर्ट को कसकर पकड़ते हुए बोली, "अमित, वो आज फिर मुझे बेइज़्ज़त करके चली गई। कैसे-कैसे-कैसे वो मुझे इतना उल्टा जवाब दे सकती है? मुझे गुस्सा आ रहा है, अमित।"


    अमित उससे परेशान होकर बोला, "शिखा बेबी, प्लीज़ काल्म डाउन। और तुम जानती हो उसे, तब भी तुम उससे हमेशा झगड़ा करने चली जाती हो। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, उससे मत भिड़ाओ, लेकिन तुम भी अपनी बेइज़्ज़ती करवाने पर तुली हुई रहती हो।"


    उसके इतना कहने पर शिखा थोड़ी शांत हुई और दोनों अपने-अपने ड्रिंक्स को एन्जॉय करने लगे।


    वहाँ से मंशा बीच में आ गई। वह इस भागती हुई दुनिया से तंग आ चुकी थी। उसे कुछ पल के लिए खुद के साथ समय बिताना था। अपनी कार के बोनट से टिककर वह उन लहरों को देख रही थी।


    काफी देर तक ऐसा ही रहा। थोड़ी देर बाद उसका फ़ोन बजा, जो कि कार के अंदर था। उसने देखा उसकी माँ उसे कॉल कर रही थी। वह अभी उनसे बात नहीं करना चाहती थी।


    लेकिन वह उनका कॉल कट भी नहीं कर सकती थी। इसलिए कुछ देर बाद, जब ऑलमोस्ट कॉल कटने ही वाला था,


    तब उसने कॉल रिसीव किया और नींद से भरी आवाज़ में नाटक करते हुए बोली, "ह्म्म्म...कौन?"


    सामने से उसकी माँ श्वेता अपनी प्यारी आवाज़ में बोली, "बेटा, मैं...तुम्हारी माँ।"


    मंशा बोली, "हाँ माँ, क्या काम था आपको? अगर नहीं है तो मैं फ़ोन रख रही हूँ।"


    श्वेता जल्दी से बोली, "बेटा, मैं पूछ रही थी, डेट कैसी रही आज की तुम्हारी?"


    मंशा जम्हाई लेते हुए बोली, "ठीक ही थी, लेकिन मुझे वो चोमू पसंद नहीं आया।"


    श्वेता थोड़ी मायूस होकर बोली, "ओह...ऐसा क्या? अच्छा, ठीक है। अब तुम आराम करो बेटा, दिन भर के काम से तुम काफी थकी हुई लग रही हो।"


    मंशा फ़ोन कट करके श्वेता के नंबर को देख रही थी। कुछ ही सेकंड्स में उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं। वह भी हमेशा से अपने मम्मी-पापा के साथ रहना चाहती थी, लेकिन उन दोनों के डाइवोर्स के बाद वह पूरी अकेली सी हो गई, किसी को उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।


    इसलिए उसने अपने आप को भी कठोर बना लिया था, लेकिन यह कठोरता ज़्यादा देर तक नहीं टिकती। जब भी वह अकेली होती, खूब रोती।


    उसके फादर और मदर उसे बहुत प्यार करते, लेकिन अकेली ज़िन्दगी में वह यह सब नहीं चाहती। अगर मिले तो पूरा मिले और ना मिले तो कुछ ना मिले, ऐसा वह चाहती थी, लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सकता था।


    मंशा अपने आप को एक हारी हुई इंसान समझती थी, कि उसके पास सब होते हुए कुछ भी नहीं था। वह खुद की फैमिली चाहती थी अब, जहाँ वह, उसका हसबैंड और उसके बच्चे हों और कोई नहीं।


    काफी देर वह रोती रही, फिर उठकर आसमान को देखते हुए अपनी कार से अपार्टमेंट चली आई। वह डोर खोलकर अंदर आई तो देखा सामने कोई बैठा है, जिसको देख वह हैरान हो गई।

  • 7. "लव्स अंडरकरेंट"-7

    Words: 1337

    Estimated Reading Time: 9 min

    मंशा के सामने एक पैंतालीस साल की औरत सोफे पर बैठी थी। चेहरे पर एक रौब साफ झलक रहा था। उसके साथ ही एक बीस साल का लड़का भी था, जो चेहरे से काफी शांत और सौम्य नजर आ रहा था।

    मंशा उनको देखकर कुछ पल दरवाजे पर ही खड़ी रही। फिर कुछ सोचते हुए अंदर आ गई।

    वह औरत उसकी माँ श्वेता थी। वह उसे कमरे में जाता देखकर, उसे रोकने के मकसद से प्यार से बोली, "मंशा बेटा...तुम इतनी रात को कहाँ से आ रही हो? तुम्हारा यूँ ही कहीं भी घूमते-फिरते रहना सही नहीं होगा।"

    मंशा उसकी बात पर थोड़ी देर चुप रहकर बोली, "माँ, मैं बीच पर गई थी। मुझे शांति चाहिए, ना कि इतना शोर-शराबा जो आप कर रही हो।"

    श्वेता को मंशा का यह व्यवहार हमेशा से पता था, इसलिए वह उसे ज्यादा कुछ नहीं बोली और चुप हो गई।

    मंशा अपने कमरे में जाकर फ्रेश होकर वापस आई तो अभी भी उसकी माँ सोफे पर बैठी, उसी के इंतज़ार में थी।

    मंशा उनके पास आकर बैठ गई और उनके बोलने का इंतज़ार करने लगी क्योंकि उसे पता था कि बिना किसी काम के उसकी माँ उसके घर नहीं आ सकती।

    श्वेता उसे देखकर प्यार से बोली, "बेटा, अब तुम्हारी उम्र हो गई है। तुम्हें अब शादी के बारे में सोचना चाहिए। कब तक कुंवारी रहोगी?"

    मंशा उनके बस इसी बात पर सबसे ज्यादा चिढ़ जाती थी। उसे अभी शादी से दूर रहना था, ना कि शादी जैसे जंजाल में फँसकर रह जाना था।

    मंशा उन्हें देखकर बोली, "माँ, आप जानती हैं, मुझे ना अभी शादी करनी है और ना बच्चे। एक बार नहीं, हज़ार बार कह चुकी हूँ आपसे, लेकिन आप हैं कि समझने का नाम ही नहीं ले रही हैं। माँ, आई डोंट वांट टू बी मैरिड। अंडरस्टैंड ना, प्लीज़।"

    श्वेता अब चुप हो गई। वह बस उसे देखती रही। वह अपनी बेटी के चेहरे पर एक मुस्कान देखना चाहती थी, लेकिन मंशा पूरी इमोशनलेस हो गई थी या खुद को दिखा रही थी, यह उसे नहीं पता। श्वेता बस उसे ग्रहस्त जीवन का सुख देना चाहती थी और कुछ नहीं। उसने बस आज तक उसकी भलाई ही सोची थी।

    यह बात श्वेता को भी पता था कि उसके और उसके एक्स-हसबैंड के अलग होने के बाद से ही मंशा पर वह खास ध्यान नहीं दे पाई थी क्योंकि उसे भी अपना घर संभालना था। जिसकी वजह से मासूम सी मंशा आज एक इमोशनलेस पर्सन बनकर रह गई थी। उसकी ज़िन्दगी में खुशी नाम की कोई चीज़ अब जैसे एक्ज़िस्ट ही नहीं करती।

    मंशा ने उस लड़के को अपने पास बैठने को कहा, "श्लोक, आओ बैठो। खड़े क्यों हो तब से?"

    श्लोक श्वेता के प्रेजेंट हसबैंड के साथ का बेटा था। वह बहुत टैलेंटेड और जिम्मेदार टाइप का लड़का था। वह मंशा को अपनी सगी बहन से भी ज़्यादा प्यार करता था। उसके अंदर कभी भी मंशा के लिए बुरे ख्याल डेवेलप नहीं हुए थे। वह हमेशा से उसके लिए केयरिंग था।

    श्लोक उसके पास बैठकर, उससे कुछ हालचाल पूछने के बाद उससे पूछा, "दी, आपकी स्टेप सिस्टर की सगाई है। जाओगी नहीं?"

    शिखा की बात आने पर मंशा का पूरा मूड किरकिरा हो गया था। वह मुँह बनाते हुए बोली, "भाड़ में जाए वह और उसकी सगाई। मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है उसमें। डैड बुलाएँगे तो जाना पड़ेगा।"

    श्लोक उसकी बात पर हँसने लगा। उसे भी शिखा कुछ खास पसंद नहीं थी। उसके नज़र में शिखा एक बदतमीज़ लड़की थी जो बस सबको बेइज़्ज़त करना जानती है। इसके अलावा वह और कुछ नहीं कर सकती।

    ऐसे ही तीनों बात करने लगे। थोड़ी देर बाद श्वेता और श्लोक अपने घर वापस चले गए तो मंशा अपने कमरे में जाकर सो गई।


    अगले दिन, सूर्यवंशी मैंशन में, आध्यात्म आध्यात्मिक अस्तित्व को नहलाकर उसके ऑनलाइन स्टडीज़ करवाने लगा। आज वह अपने ऑफिस नहीं जाना चाहता था। आज वह कुछ ज़्यादा स्ट्रेस में था जिसके वजह से उसने घर में रहना पसंद किया।

    सुबह के करीब 9 बज रहे होंगे। मैंशन में एक अड़तालीस साल की औरत इंटर की। वह बहुत खूबसूरत और वेल-मेंटेंड थी। अपने चेहरे से वह अभी भी काफी यंग नजर आ रही थी।

    सर्वेंट्स उसका सामान लेकर एक कमरे में रखवा दिए। वह औरत आध्यात्म की माँ अपर्णा सूर्यवंशी थी। वह सर्वेंट्स से पूछी, "मेरा बेटा और पोता कहाँ है? दोनों कहीं दिखे नहीं मुझे अब तक।"

    हेड सर्वेंट अपना सर झुकाकर उससे बोला, "मैम, लिटिल मास्टर और बॉस अभी अपने रूम में होंगे।"

    अपर्णा डाउट से बोली, "होंगे? तुम्हें नहीं पता वह दोनों कहाँ हैं?"

    सर्वेंट, "मैम, मैं सुबह उनके जिम में एनर्जी ड्रिंक देने गया था। उसके बाद से अभी तक सर बाहर आए ही नहीं।"

    अपर्णा बस सर हिलाकर सबसे ऊपर के फ्लोर पर चली गई जहाँ आध्यात्म का रूम था। उस फ्लोर पर जाने की इजाजत हेड सर्वेंट के अलावा किसी को नहीं थी। अपर्णा उसकी माँ थी जिस कारण आध्यात्म उसे कुछ नहीं बोलता था।

    आध्यात्म अपने सोफे पर बैठा था और लैपटॉप में कुछ टाइप कर रहा था। उसकी टाइपिंग बहुत फास्ट थी। आशु बेड पर बैठा, कानों पर हेडफ़ोन्स लगाकर अपने ऑनलाइन क्लास में बिजी था।

    तभी अपर्णा रूम में आई। आध्यात्म की हियरिंग पावर बहुत अच्छी थी, इसलिए वह कदमों के आवाज़ से ही समझ गया कि कोई अंदर आ रहा है और यह भी कि वह कौन है।

    आध्यात्म ने अपनी निगाहें उठाकर उसे ऐसे देखा जैसे पूछ रहा हो कि "क्यों आईं हैं आप?"

    अपर्णा उसके नज़रों को समझते हुए बोली, "मैं अपने पोते और बेटे से मिलने आई हूँ और इसमें तुम मुझे कुछ नहीं बोल सकते।"

    उसकी बात सुनकर आध्यात्म बहुत कोल्ड वॉयस में बोला, "बाद में मिल लीजिएगा। अभी आशु अपने क्लासेस में है।" (इतना बोलकर उसने अपनी नज़र वापस से लैपटॉप पर गड़ा दिया)

    अपर्णा उसके इस बिहेवियर से काफी चिढ़ जाती थी, लेकिन उसे उसके बरताव की आदत भी हो चुकी थी। इसलिए एक नज़र आशु को देखकर वह वापस नीचे चली आई।


    मंशा के अपार्टमेंट में, मंशा अपने बेड पर बड़े बेढंगे तरीके से सो रही थी। पूरे कमरे में अंधेरा छाया हुआ था। तभी उसका फ़ोन, जो बेड के साइड टेबल पर रखा हुआ था, बजा।

    जिसके बजने के थोड़ी देर बाद मंशा कसमसाने लगी। फिर करवट बदलकर फ़ोन के पास आकर उठाकर रिसीव करते हुए कान पर लगा ली और नींद भरी आवाज़ में बोली, "हेलो, कौन?"

    सामने से एक आदमी की प्यार से भरी आवाज़ आई, "बेटा, तुम अभी तक उठी नहीं?"

    मंशा स्क्रीन देखकर वापस अपने कान पर लगा ली और बोली, "कल लेट शिफ्ट थी डैड, इसलिए थक गई थी। आँख खुली ही नहीं।"

    उसके डैड, सहितेश श्रीवास्तव बोले, "अच्छा, तुम ठीक तो हो? मेरा मतलब तुम्हारी तबियत सही है ना?"

    मंशा अब उठकर बैठ गई थी। बोली, "हाँ, हेल्थ सही है मेरी। और मुझे क्या ही होगा?"

    सहितेश बोले, "हम्म...आज तुम्हारी बहन की इंगेजमेंट है बेटा। आओगी नहीं?"

    मंशा थोड़े व्यंग्य से बोली, "आपने भी तो मुझे अभी बताया डैड। सच में आप सब के लिए पराई हो चुकी हूँ मैं। सब भूल गए हैं मुझे। रहने दीजिये। और मेरी आज एक इम्पॉर्टेन्ट सर्जरी है। नहीं आ पाऊँगी मैं आपकी बेटी की इंगेजमेंट में। वैसे भी मेरा वहाँ क्या ही काम है?"

    सहितेश उसे समझाते हुए बोले, "नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है। तुम मेरी पहली औलाद हो। मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ? और रही बात अब बताने की तो थोड़ा बिज़ी हो गया था मैं। प्लीज़ आ जाओ बेटा। तुम नहीं आओगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।"

    मंशा कुछ सोचकर गहरी साँस भरकर बोली, "ठीक है। देखती हूँ। अगर पेशेंट मान जाएँगे तो आ सकती हूँ।"

    सहितेश उस पर थोड़ा जोर डालते हुए बोले, "प्लीज़ बेटा, आ जाओ। तुम्हारी इकलौती बहन है वह। उसे भी अच्छा लगेगा तुम आओगी तो।"

    मंशा उनके इतना रिक्वेस्ट करने पर एविल स्माइल करते हुए बोली, "ओके डैड, आप इतना बोल रहे हो तो आऊँगी मैं।"

    सहितेश मुस्कुराकर बोले, "ठीक है। तो ताज होटल के हॉल में आ जाना बेटा। वहीं इंगेजमेंट सेरेमनी है।"

    मंशा ओके कहकर फ़ोन काट दिया और एकदम से हँसते हुए बेड पर वापस गिर गई। उसे काफी खुशी हो रही थी। अब किस चीज़ की खुशी, वह तो वही जाने।

    सहितेश श्रीवास्तव अपनी पहली बेटी मंशा से बहुत प्यार करते थे। मंशा के बिना वह कुछ नहीं करते थे। उसका अलग अपार्टमेंट में रहना सहितेश को बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, लेकिन वह मंशा को उसकी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने से नहीं रोकते थे।

    थोड़ी देर बाद उसके फ़ोन की नोटिफ़िकेशन रिंग बजी। उसने देखा उसके डैड ने ऑनलाइन वीआईपी कार्ड उसे भेजा था जो होटल में इंटर करने के लिए था। उस कार्ड को देखकर उसके चेहरे पर फिर एक एविल स्माइल आ गई।

  • 8. "लव्स अंडरकरेंट"-8

    Words: 1323

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा के दिमाग में कुछ चल रहा था, जो बहुत खतरनाक हो सकता था। वह उठी और फ्रेश होने चली गई।

    सूर्यवंशी मैंशन के लिविंग रूम में आशु अपर्णा के साथ खेल रहा था। अपर्णा उससे कुछ ना कुछ पूछ रही थी; आशु कभी जवाब देता, कभी नहीं।

    आध्यात्म स्टडी रूम में अपने लैपटॉप और फाइल्स में उलझा हुआ था। तभी उसका असिस्टेंट ध्रुव दरवाजा खटखटाया। आध्यात्म ने उसे एक नज़र देखकर कमरे में आने का इशारा किया।

    ध्रुव अंदर आकर बोला, "सर, मिस्टर श्रीवास्तव ने अपनी बेटी की इंगेजमेंट पर आपको स्पेशली इनवाइट किया है। आप जाना चाहेंगे?"

    आध्यात्म कुछ सोचकर ना में सर हिला दिया। ध्रुव अटकते हुए बोला, "स, सर, उस पार्टी में शायद मिस मंशा भी आ सकती है।"

    उसके इतना बोलने पर आध्यात्म कुछ पल शांत रहा और बोला, "और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि वह वहाँ जाएगी?"

    ध्रुव झट से बोला, "क्योंकि वह मिस्टर श्रीवास्तव की बेटी है। उन्हें तो आना ही है।"

    उसकी बात सुनकर आध्यात्म के दिमाग में क्लिक हुआ। मंशा की जानकारी में यह बात स्पष्ट रूप से उल्लिखित थी कि वह सहितेश श्रीवास्तव की बेटी है। वह यह बात कैसे भूल सकता था? उसने कितनी बार यह बात पढ़ी थी! तभी उसने गौर किया कि वह सिर्फ़ मंशा के फ़ोटो को देखते-देखते अपना समय बिता लेता था; उसने कभी उसके पर्सनल डिटेल्स पर ज़्यादा ध्यान ही नहीं दिया था।

    आध्यात्म ने मंशा के आने की बात पर जाने के लिए हामी भर दी। ध्रुव भी अपना सिर हिलाकर उसके साथ कुछ बिज़नेस से संबंधित बातें करने लगा।

    तभी दौड़ते हुए आशु स्टडी रूम में आया। आध्यात्म उसे बड़े गुस्से से घूरने लगा। आशु उसकी नज़रों को अपने ऊपर महसूस करके डरते हुए बोला, "डैड, दादी और मैं एम्यूजमेंट पार्क जाना चाहते हैं।"

    आध्यात्म उसे और घूरने लगा, फिर एक-एक शब्द चबाते हुए बोला, "चुपचाप अपने रूम में जाकर होमवर्क करो। कहीं नहीं जाना है तुम्हें।"

    आशु अपना मुँह लटकाए अपने रूम में चला गया और होमवर्क करने लगा। तभी अपर्णा उसके पास आई और प्यार से बोली, "क्या हुआ लल्ला? मुँह क्यों लटका रहे हो?"

    आशु मासूमियत से उदास होकर बोला, "दादी माँ, पापा ने कहीं भी जाने से मना किया है।"

    अपर्णा उसे प्यार से पुचकारते हुए बोली, "कोई नहीं मेरा लल्ला, मैं हूँ ना। मैं लेकर जाऊँगी मेरे लल्ला को। उदास मत हो। अभी तेरे पापा को डाँट कर आती हूँ, फिर साथ में चलेंगे घूमने।"

    आशु अपना सर ना में हिलाकर बोला, "नहीं, पापा नहीं मानेंगे दादी।"

    अपर्णा उसके व्यवहार से समझ पा रही थी कि आध्यात्म का डर उसके नस-नस में बैठा हुआ था। उसने आशु को ज़्यादा इन्सिस्ट नहीं किया।

    लेकिन वह गुस्से में स्टडी रूम में गई और चिल्लाते हुए आध्यात्म से बोली, "तुमने मेरे पोते को इतना डराकर क्यों रखा है?"

    आध्यात्म ने एक नज़र उसे देखा, फिर वापस अपने काम में लग गया। उसके इग्नोर करने पर अपर्णा और गुस्से में आ गई और सीधा उसके पास जाकर बोली, "तुम मुझे इग्नोर कैसे कर सकते हो? बताओ, मेरे पोते को इतना डराकर क्यों रखा है तुमने?"

    इस बार आध्यात्म ने उसे एक डेथ स्टेयर देते हुए बोला, "चली जाइए यहाँ से। और रही बात मेरे बेटे की, तो मैं उसका बाप हूँ, उसे जैसे होगा वैसे रखूँगा। आपको इससे मतलब नहीं होना चाहिए, मिसेज़ सूर्यवंशी।"

    अपर्णा कुछ बोलती, इससे पहले आध्यात्म ने बाहर का इशारा कर उसे जाने को कहा। वह गुस्से से दनादन वहाँ से चली गई।

    शाम का समय था। सूर्यवंशी मैंशन में आध्यात्म आईने के सामने खड़ा होकर खुद को आखिरी बार देखकर बाहर आ गया। लिविंग रूम में सोफे पर आशु टीवी देख रहा था। जूतों की आवाज़ पर आशु ने मुड़कर देखा तो आध्यात्म तैयार होकर कहीं जा रहा था।

    आशु दौड़कर उसके पास आया और उसके पैंट को पकड़कर खींचते हुए बोला, "डैड, आप कहाँ जा रहे हो? मुझे भी लेकर चलो ना, प्लीज़ डैड!"

    आध्यात्म ने अपनी आवाज़ में हल्की नरमी लाकर उसे गोद में उठाकर बोला, "आशु, मेरी एक बिज़नेस मीटिंग है, जिसमें तुम्हें अपने साथ लेकर नहीं जा सकता मैं। काफ़ी लेट हो जाएगा मुझे आते टाइम।"

    आशु के हल्के से सिर हिलाने पर आध्यात्म ने उसके माथे को चूमकर उसे सोफे पर बिठा दिया, फिर उसे बाय करते हुए चला गया।

    ताज होटल के वीआईपी हॉल में इंगेजमेंट सेरेमनी में बड़े-बड़े रईस लोग आए हुए थे: पॉलिटिशियंस, बिज़नेसमैन और ऐसे कई लोग जिनकी पहचान काफी हाई प्रोफ़ाइल थी। सब अपने-अपने बिज़नेस को डेवलप करने के लिए बड़े-बड़े बिज़नेसमैन से बात करने की कोशिश में लगे हुए थे।

    तभी उस हॉल में सबकी नज़र एंट्री डोर पर चली गई, जहाँ से एक खूबसूरत, मेंटेंड फिगर की लड़की एटीट्यूड से चलती हुई आ रही थी। मंशा को देखकर पहले से खड़ी लड़कियाँ उससे जल रही थीं, और लड़के मंशा के हुस्न के जाल में एक बार फिर फँसते हुए नज़र आ रहे थे।

    मंशा ने रेड कलर का स्टाइलिश लॉन्ग वन पीस पहना हुआ था। उसके ऊपर से एक शॉल को डिजाइन से गले में लपेटे हुए था। हाथ में एक महँगा पर्स था। वह हल्के बोल्ड मेकअप में हुस्न की मल्लिका लग रही थी। चेहरे पर बरकरार एटीट्यूड के चलते वह सारी घूरती हुई निगाहों को इग्नोर करते हुए अपने डैड के पास पहुँची।

    उसके डैड सहितेश ने एक स्माइल के साथ उसे हग कर लिया। मंशा ने भी उन्हें बैक हग दिया। फिर मंशा ने अपनी सौतेली बहन से कहा, "कहना तो नहीं चाहती, लेकिन कांग्रेचुलेशंस फॉर योर इंगेजमेंट!"

    शिखा घमंड से मुस्कुराती हुई बोली, "थैंक्स दी। वैसे आप आ गईं, लेकिन आप तो आने में इंटरेस्टेड नहीं थीं ना? तो फिर कैसे आईं?"

    मंशा एक इगोइस्टिक मुस्कान के साथ अपने पिता को साइड हग करते हुए उससे बोली, "वो क्या है ना शिखा, डैड ने मुझे काफ़ी इन्सिस्ट किया आने के लिए, क्योंकि मैं उनकी पहली औलाद हूँ ना। इसलिए मेरे बिना डैड को अच्छा नहीं लगता, हैं ना डैड?"

    सहितेश ने मुस्कान के साथ हाँ में सर हिला दिया। शिखा का चेहरा देखने लायक था। तभी शिखा की असली माँ और सहितेश की मौजूदा पत्नी मोहिनी मंशा से बोली, "मंशा, तुम अपनी ही बहन से इस तरह कैसे बात कर सकती हो? वह तुमसे कितने अच्छे से बात कर रही है और तुम हो कि उसे बेइज़्ज़त करने का कोई मौका नहीं छोड़ती।"

    मंशा भी उसके ही टोन में बोली, "तो उसे मुझसे बात करने के लिए कह कौन रहा है? ना करे, मैं भी मरी नहीं जा रही उससे बात करने के लिए।"

    मोहिनी अब उससे कुछ नहीं बोली। उसे भी पता था कि शिखा ही हमेशा से मंशा को टीज़ करती हुई आई है।

    मंशा वहाँ से बार काउंटर पर जाकर सॉफ्ट ड्रिंक पीने लगी। मोहिनी को भी उसका यही एटीट्यूड बिल्कुल पसंद नहीं था।

    तभी दरवाज़े पर एक सन्नाटा छा गया। सिर्फ़ कुछ जूतों की आवाज़ें आ रही थीं, जिसके चलने के ढंग से ही समझ आ रहा था कि उस आदमी का व्यक्तित्व काफ़ी ठंडा है।

    हॉल में खड़ी लड़कियाँ उस शख्स को देख अपनी सारी शर्म छोड़ दिया। उस आदमी की हैंडसमनेस काफ़ी ज़्यादा थी; उस पर से नज़र हटाना भी मुश्किल था।

    मंशा ने जब आध्यात्म को देखा तो कुछ देर देखती ही रह गई। आध्यात्म ने प्योर ब्लैक बिज़नेस सूट पहना हुआ था। उसने लेफ्ट ईयर में एक डायमंड का टॉप्स पहना हुआ था। आध्यात्म इस लुक में काफ़ी ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था। लड़कियाँ तो उसके आगे-पीछे मँडराने लगीं, जिसे उसने फुल इग्नोर किया।

    मंशा ने कुछ देर उसे देखकर अपनी नज़रें वापस हटा लीं और शिखा पर चली गईं, जो घूर-घूरकर आध्यात्म को देख रही थी। उसे देखकर मंशा के चेहरे पर एक एविल स्माइल आ गई।

    वहीं सहितेश ने जब आध्यात्म को देखा तो वे फूले नहीं समाए। उन्हें लगा था कि आध्यात्म उनके इनविटेशन भेजने पर भी कभी नहीं आएगा, लेकिन उसे अपनी बेटी की इंगेजमेंट में देख वे काफ़ी खुश हुए। वे जल्दी से जाकर आध्यात्म से बिज़नेस से रिलेटेड बातें करने लगे, जिसका जवाब आध्यात्म सिर्फ़ हाँ में ही दे रहा था।

    आध्यात्म का पूरा फ़ोकस मंशा पर था। मंशा को इतने सेक्सी लुक में देखकर उसकी हालत ख़राब हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि अभी जाकर मंशा को किस कर दे, सबके सामने। उससे कंट्रोल नहीं हो रहा था।

  • 9. "लव्स अंडरकरेंट"-9

    Words: 1336

    Estimated Reading Time: 9 min

    मंशा बार के पास खड़ी होकर अपनी ड्रिंक एन्जॉय कर रही थी। उसे अब वहाँ से जाना था। दूर खड़ा आध्यात्म भी यह बात अच्छे से समझ रहा था।

    शिखा मंशा के पास आई और उसका हाथ पकड़कर अपने साथ स्टेज पर ले जाते हुए बोली, "चलो दी, साथ में डांस करते हैं। अब यह मत भूलना कि तुम्हें आता नहीं है। अगर नहीं आता तो सिर्फ थोड़ा कमर ही हिला देना।"

    मंशा ने उससे अपना हाथ छुड़ाकर घमंड से कहा, "मैंने कब कहा कि मैं डांस नहीं कर सकती? डेफिनेटली मैं तुमसे ज़्यादा अच्छा डांस कर सकती हूँ।"

    फिर डीजे की तरफ़ इशारा किया। तो एक यंग जेनरेशन का सॉन्ग बज गया। शिखा उसके साथ ही डांस करने लगी। बेशक मंशा के डांसिंग स्किल्स लाजवाब थे। थोड़ी देर में कुछ और लोगों ने उन्हें ज्वाइन कर लिया। सबसे अच्छा डांस वहाँ सिर्फ़ मंशा का था। यह कोई भी देखकर कह सकता था।

    मंशा के मूव्स इतने हसीन और कातिल थे कि हर लड़का उसे देखने से चूक नहीं रहा था। कुछ देर बाद सॉन्ग खत्म हुआ, तो सब तालियाँ बजाने लगे।

    आध्यात्म के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। वह उसे इतने सेक्सी लुक में देख रेस्टलेस हो रहा था। वह अब उससे कोई दूरी कंट्रोल करने के इरादे में नहीं था। मंशा जैसे ही वहाँ से निकलेगी, वह उसे किडनैप करने वाला था। वह अपने बॉडीगार्ड्स को अलर्ट करना चाहता था, लेकिन सहितेश उसके पास से हट नहीं रहे थे। इसलिए वह इरिटेट भी हो रहा था।

    सहितेश उससे बात करते हुए खड़ा हुआ था। वह उससे बोले, "क्या आपको कोई प्रॉब्लम हो रही है, मिस्टर सूर्यवंशी?"

    मंशा अब बोर हो गई। वह जाने के लिए अपने पिता से पूछने के लिए उन्हें अपनी नज़रें घुमाकर ही ढूँढीं, तो वह आध्यात्म के साथ खड़े कुछ बातें करते हुए दिखे।

    वह उनके पास आई। सहितेश उसे अपने पास देखकर उससे बोले, "क्या हुआ बेटा? कुछ चाहिए तुम्हें?"

    मंशा बोरियत से उबाऊ टोन में बोली, "डैड, मुझे अब और यहाँ नहीं रहना। जाने दीजिए मुझे।"

    सहितेश उससे जाने का रीज़न जानने की कोशिश करते हुए पूछे, "लेकिन बेटा, अभी तो टाइम है। तुम जाना क्यों चाहती हो?"

    मंशा उन्हें इरिटेशन से देखते हुए बोली, "क्योंकि अच्छा नहीं लग रहा है मुझे। तबियत ख़राब सी लग रही है। या तो आप जल्दी से अपनी बेटी की इंगेजमेंट करा दीजिए, या तो मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"

    सहितेश को भी अब इंगेजमेंट की सेरेमनी स्टार्ट करना सही लगा क्योंकि टाइम हो चुका था। वह जाकर शिखा और उसके फ़िआंसे की इंगेजमेंट करवाने लगे।

    आध्यात्म को अब मौका मिल गया था, मंशा से बात करने का। मंशा भी वहीं खड़ी होकर इंगेजमेंट देख रही थी।

    लेकिन तभी आध्यात्म का फ़ोन रिंग किया, जिससे उसका मन किरकिरा सा हो गया। उसने देखा उसका बेटा उसे कॉल कर रहा था। आशु के कॉल से आध्यात्म को लगा कि वह मंशा को उससे बात करने के लिए कहेगा। यह सोचकर वह कॉल पिक किया।

    सामने से आशु की मुरझाई हुई सी आवाज़ आई, "डैड, आई एम मिसिंग यू। आप जल्दी आइए ना।"

    आध्यात्म थोड़ा लो वॉयस में बोला, "अपनी डॉक्टर आंटी से बात करोगे।"

    आशु एकदम से खुश होकर बोला, "डैड, क्या आप उनके पास हो? मुझे बात करना है उनसे। फ़ोन उन्हें दीजिए जल्दी।"

    आध्यात्म उसकी खिलखिलाती आवाज़ पर कुछ रिलैक्स महसूस किया। वह मंशा को आवाज़ दिया, "मिस डॉक्टर, क्या आप मेरे बेटे से बात करने में इंटरेस्टेड हैं? वह आपसे बात करना चाहता है।"

    उसकी बात पर आशु चिल्लाते हुए बोला, "वह मुझसे बात करने में इंटरेस्टेड ना भी हों, तब भी आप उनसे मेरी बात करवाओ।"

    मंशा कुछ पल उसे घूरी, फिर उसके हाथ से फ़ोन लेकर अपने कान पर लगाते हुए बोली, "हेलो आशु, आपको अब तक याद हूँ मैं।"

    आशु खुशी से झूमते हुए बोला, "हाँ, और आपको मैं कभी भूल भी नहीं सकता।"

    मंशा हल्का स्माइल करके बोली, "अच्छा, ऐसी बात है।"

    आशु बोला, "मंशा आंटी, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। क्या मैं कहूँ? और फ़ोन स्पीकर में तो नहीं है ना?"

    मंशा उससे बोली, "हाँ, ज़रूर कहो। और नहीं है।"

    आशु बोला, "क्या आप मुझसे मिलने मेरे घर नहीं आ सकती? आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो। आप डैड के तरह खड़ूस नहीं हो।"

    मंशा एक नज़र आध्यात्म को देखकर उससे बोली, "हाँ, क्यों नहीं। लेकिन बेटा, अभी मैं नहीं आ सकती। कल ज़रूर आऊँगी।"

    आशु कुछ देर और उससे बात करके कॉल काट दिया। मंशा भी उससे बात करके खुश लग रही थी। उसने आध्यात्म को उसका फ़ोन वापस कर दिया। लेकिन तब तक आध्यात्म का मूड चेंज हो गया था। वह अब उससे बात नहीं करना चाहता था। उसने सोच लिया था कि अब वह उसे सीधा किडनैप करेगा, क्योंकि मंशा का बिहेवियर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

    शिखा और अमित की इंगेजमेंट हो रही थी, जिसे थोड़े बोरिंग एक्सप्रेशन के साथ देखते हुए मंशा उन्हें देख रही थी।

    आध्यात्म उसके हर एक मूव को बड़ी बारीकी से नोट कर रहा था। वह उसके बिहेवियर को समझने की पूरी कोशिश में था, लेकिन मंशा उसकी समझ से परे थी। उसे खुद पर गुस्सा आने लगा। वह एक लड़की के मन में क्या चल रहा है, यह नहीं जान पा रहा था, जबकि वह किसी के हल्के मूव से भी उसके इरादे को पहचान जाता था।

    कुछ देर में इंगेजमेंट ख़त्म हुई और मंशा अपने फ़ादर से परमिशन लेकर जाने लगी। सहितेश का इरादा उसे जाने देने का बिल्कुल भी नहीं था, लेकिन वह उसकी ज़िद के सामने हार गए थे।

    आध्यात्म ने जब मंशा को एग्ज़िट की तरफ़ जाते देखा, वह अपना फ़ोन पॉकेट से निकालकर एक नंबर पर कॉल किया। कुछ रिंग में ही कॉल पिक हो गई, तो वह बोला, "अभी वह बाहर निकलेगी। कैच हर।"

    इतना कहकर वह बड़े स्टाइल से वापस फ़ोन अपने जेब में रख लिया। उसके चेहरे पर बेहद ख़तरनाक मुस्कान थी। उसके साथ खड़ा उसका असिस्टेंट ध्रुव भी अब डरा हुआ था, कहीं उसका बॉस कुछ ज़्यादा ही मामला बिगाड़ ना दे। मंशा उसे सहमी सी रहने वाली लड़की बिल्कुल नहीं लगी थी।

    बाहर जैसे ही मंशा अपने कार के पास आई, किसी ने पीछे से आकर उसके चेहरे पर रुमाल रख दिया, जिससे वह कुछ पल में ही बेहोश हो गई।

    मंशा ने काफ़ी कोशिश की, वह उनके चंगुल से बच जाए, लेकिन क्लोरोफॉर्म बहुत ज़्यादा था, जिससे वह अपने आप को संभालने में नाकामयाब रही।

    जिस आदमी ने उसे पकड़ा हुआ था, वह शायद आध्यात्म का कोई ख़ास आदमी था। उसका यूनिफ़ॉर्म काफ़ी यूनिक और स्टाइलिश था। उसके शर्ट के पॉकेट पर एक लोगो लगा हुआ था, जिसपर ख़ूबसूरती से एक स्नेक से लिपटा हुआ भेड़िया बना हुआ था। उस पर A.S. बहुत सुंदर से लिखा हुआ था।

    वह सारे आदमी काफ़ी वेल-ट्रेन्ड थे। उनकी संख्या बहुत ज़्यादा भी थी। वह फटाफट से मंशा को बिना किसी दिक्कत के गाड़ी में बैठाए और ड्राइवर ने गाड़ी फ़ुल स्पीड में वहाँ से निकाल दी। यह सब मात्र लगभग आधे मिनट के अंदर हुआ।

    इस बीच वहाँ कोई नहीं था और सीसीटीवी कैमरा भी आध्यात्म ने हैक करवा लिया था, जिससे किडनैपिंग का कोई भी सबूत नहीं बचा था।

    वह आदमी आध्यात्म को कॉल किया और थोड़ा सीरियस भाव से बोला, "बॉस, आपका काम हो गया। इन्हें कहाँ लेकर आना है? एड्रेस सेंड कर दीजिए।"

    आध्यात्म भी अपने ठंडे लहजे से बोला, "रिशान, तुमने उसे कोई चोट तो नहीं पहुँचाई?"

    रिशान बोला, "नो बॉस, मैडम को हमने ज़्यादा टच भी नहीं किया। वह काफ़ी फुर्तीली है, जिस वजह से हमें थोड़ी दिक्कत हुई उन्हें पकड़ने में, लेकिन उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।"

    आध्यात्म बोला, "वेल डन। उसे मेरे प्राइवेट एरिया के रूम में सुला दो।"

    रिशान बोला, "ओके बॉस।"

    आध्यात्म के पैर अब खुशी से ज़मीन पर नहीं रहे थे। उसने अपने फ़ेस पर कोई इमोशंस बयाँ नहीं किए। वह कुछ देर रुका, फिर सहितेश से इजाज़त लेकर चला गया।

    आध्यात्म अपनी कार खुद से ड्राइव करते हुए जा रहा था। ड्राइवर को उसने बॉडीगार्ड्स के साथ बैठने को कह दिया था।

    जंगल के विदाउट परमिशन के इलाके में, बीचोंबीच एक शानदार सा मैंशन, जो काफ़ी ख़ूबसूरत था। उस मैंशन के चारों तरफ़ गोलाकार में एक प्रोटेक्टिव शील्ड था, जो नज़र नहीं आ रहा था, क्योंकि उस पर आर्टिफिशियल पेड़-पौधे लगे हुए थे। वह एक गुफ़ानुमा जगह था, जिसके बारे में सिर्फ़ आध्यात्म और उसके ख़ास लोगों को पता था।

    उसकी गाड़ी गुफ़ा के अंदर से होते हुए उस मैंशन के गेट को क्रॉस करते हुए अंदर चली गई। वह जगह अंडर हाई सिक्योरिटी थी, जैसे कोई सीक्रेटली वहाँ रहता हो।

  • 10. "लव्स अंडरकरेंट"-10

    Words: 1308

    Estimated Reading Time: 8 min

    आध्यात्म ने उस आलीशान घर के गैरेज में अपनी गाड़ी पार्क की। फिर स्टाइल से उतरकर बंगले के अंदर चला गया। जिस कमरे में मंशा थी, वहाँ वह गया, लेकिन कमरे के अंदर प्रवेश नहीं किया। वह खिड़की के बाहर से ही उसे एकटक देख रहा था।

    आध्यात्म कभी भी किसी भी लड़की के लिए ऐसा फील नहीं करता था, जैसा वह आज मंशा को देखकर कर रहा था। वह उससे अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था। उसकी निगाहें जैसे मंशा पर थम सी गई थीं। वह उसे देखकर फिर से बेचैन हो रहा था। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं।

    वह अपनी टाई की गाँठ ढीली करते हुए उसे देखने लगा। उसकी नज़रें न तो उस पर से हट रही थीं और न ही उसकी बेचैनी कम हो रही थी।

    वह खुद से परेशान होकर वहाँ से अपने पर्सनल रूम में चला गया। कमरा बहुत बड़ा और सारी सुविधाओं से लैस था। उसका इंटीरियर डिजाइन भी काफी अच्छा था, लेकिन वह डेंजरस की कैटेगरी से था।

    आध्यात्म ने अपनी शर्ट उतारकर बिस्तर पर फेंकते हुए कहा, "इतना बेचैन आज से पहले मैं कभी नहीं हुआ। मंशा श्रीवास्तव...बस एक बार तुम होश में आओ!!"

    वह सीधा वाशरूम में चला गया। शावर ऑन करके उसके नीचे खड़ा हो गया। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। काफी देर तक वह ऐसे ही शावर के नीचे खड़ा रहा।

    फिर अपने शरीर को तौलिये से पोंछते हुए बाहर आया। उसकी आँखें भी अब लाल हो गई थीं। वह इस तरह काफी डेंजरस लग रहा था। उसके सामने अगर अभी कोई होता, तो उसका डरना तय था।

    आध्यात्म ने अलमारी के एक लॉकर से एक पिल्स निकालकर पानी के साथ निगल लिया। पिल्स लेने के कुछ देर बाद ही उसकी आँखें नींद से भर गईं। वह सीधा बिस्तर पर मुँह के बल लेटा। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई।

    आध्यात्म ने स्लीपिंग पिल्स ली थीं, जो काफी हाई पावर की थीं। उसकी बेचैनी उसके नियंत्रण से बाहर हो गई थी, इसलिए उसने यह किया।

    आध्यात्म हमेशा अपने पास पिल्स रखता था क्योंकि वह कभी ज़्यादा स्ट्रेस लेता था। तब भी उसे ऐसा ही होता था। और उसे इनसोम्निया भी था, जिससे वह ठीक से नींद लेने में असमर्थ था। इसलिए भी वह पिल्स रखता था।


    अगले दिन, सुबह का समय था। मंशा अपना सिर पकड़ते हुए नींद से जगी। उसने आँखें खोली तो यह उसके घर जैसी सीलिंग नहीं थी। वह चौंककर एकदम से उठकर बैठ गई। वह अपने दिमाग पर बहुत प्रेशर दे रही थी, यह याद करने के लिए कि लास्ट नाइट उसके साथ क्या हुआ।

    बहुत कोशिश करने पर भी उसे कुछ याद नहीं आया। तब वह उठकर कमरे के चक्कर लगाने लगी। बालकनी में जाकर बाहर का नज़ारा देखा तो उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। यह सब बहुत खूबसूरत था। रॉयल्टी और एलिगेंस साफ नज़र आ रहा था। गार्डन में उगे हुए पेड़-पौधे मंशा को काफी आकर्षित कर रहे थे।

    मंशा अपने मन में सोच रही थी कि, "आखिर कौन है वो इंसान? जो इतना अमीर है और उसने उसे किडनैप करने की कोशिश भी कैसे की? वह अगर उसे कहीं भी दिख जाए, तो वह उसे बिल्कुल नहीं छोड़ेगी!!"

    मंशा चुपचाप अपने कमरे से बाहर आई। सब कुछ बहुत शांत था। कहीं कोई आवाज नहीं थी। मंशा को अपने कदमों की आवाज भी बहुत ज़्यादा आ रही थी। वह धीरे-धीरे नीचे लिविंग हॉल में आई। मंशा बहुत हैरान थी इतने बड़े और शानदार घर को देखकर।

    "नहीं...यह घर नहीं है...यह तो बंगले से भी ज़्यादा खूबसूरत और बड़ा है...काश यह मेरा होता! वैसे इतने बड़े बंगले का मालिक कौन है? जो भी हो, होगा तो अमीर ही...जो मेरे औकात के बाहर है। नहीं, मैं अपने औकात के बाहर का ही सोचूंगी...सपने देखने के लिए ही होते हैं..." मंशा ऐसे ही कुछ भी सोचती हुई जैसे-तैसे बिना आवाज के मेन डोर तक पहुँच गई।

    वह निकल ही रही थी कि आध्यात्म के बॉडीगार्ड्स उसके सामने अचानक से आकर खड़े हो गए। मंशा एकदम से उन्हें देखकर थोड़ी सदमे में जाने वाली थी। उसके हाथ उसके हार्ट के पोजीशन पर चला गया था।

    मंशा डरते हुए बोली, "तुम लोग आराम से नहीं आ सकते? जो ऐसे अचानक से भूतों की तरह आकर खड़े हो गए। अगर अभी मुझे हार्ट अटैक आ जाता, तब क्या होता?!"

    बॉडीगार्ड्स अपना सर झुकाकर बोले, "सॉरी मैम...हमारा इंटेंशन आपको डराना बिल्कुल नहीं था...हम बस आपसे यह कहना चाहते हैं कि आप यहाँ से बाहर नहीं जा सकती...यह हमारे बॉस ने हमें सख्त हिदायत दी है!!"

    बॉडीगार्ड्स उसकी बात बिना सुने वहाँ से चले गए।

    मंशा को उन सब की बात पर बहुत गुस्सा आया। वह चिल्लाते हुए बोली, "मुझे जाना है यहाँ से और मैं जाकर रहूंगी! तुम सब होते कौन हो? मुझे रोकने वाले?!"

    मंशा गेट से बाहर निकली। सामने देखकर वह पूरी तरह चौंक गई। हर जगह सिर्फ बॉडीगार्ड्स थे। कहीं भी उसे कोई ऐसी जगह नहीं दिखी जहाँ से वह भाग सकती।

    मंशा उन सब को देखकर कह सकती थी कि ये सारे बॉडीगार्ड्स काफी डेंजरस थे। अगर मंशा का उनसे ज़्यादा पंगा हो गया, तब तो वह सीधा स्वर्ग में ही मिलती। मंशा के दिल में कहीं न कहीं इन सब के बॉस के लिए गुस्सा काफी बढ़ गया था।

    मंशा वापस उस कमरे में आ गई। बालकनी से भागने की जगहें ढूँढने लगी, लेकिन वह सब तरफ से नाकामयाब ही निकली।


    आध्यात्म का कमरा था। आध्यात्म अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ था। जब उसने किसी के चिल्लाने की आवाज़ें सुनीं, तो उसकी नींद टूट गई। उसके चेहरे पर उस आवाज़ को सुनकर एक गहरी एविल स्माइल आ गई। वह समझ गया था कि मंशा उठ गई थी और वह यहाँ से बाहर जाना चाहती है।

    लेकिन जैसा कि उसे कोई तरीका नहीं मिलेगा भागने का, आध्यात्म बेफ़िक्र होकर उठा और वाशरूम में जाकर फ़्रेश होकर बाहर आया। अपने आप को आईने में देखकर...

    आध्यात्म सीधा मंशा के कमरे में गया। दरवाज़ा खुला था। वह अंदर आया तो कोई नहीं था। बालकनी से उसे कुछ आवाज़ें आती हुई सुनाई दीं। वह बालकनी में आया तो मंशा इधर-उधर देखते हुए अपने आप में कुछ बड़बड़ाए जा रही थी।

    आध्यात्म बहुत देर तक उसे देखता रहा। मंशा जैसे-जैसे मूव कर रही थी, वह बस उसके मूवमेंट को अपनी आँखों में कैप्चर कर रहा था।

    यहाँ मंशा थक-हारकर जब उसे कुछ नहीं मिला, तब वह पीछे मुड़ी। सामने उस आदमी को देखकर उसका खून जैसे उबलने लगा था। मंशा अपने आप में बोली, "तो क्या यह है? जिसने मुझे किडनैप करवाया? नहीं, यह नहीं हो सकता। यह शायद हेड का कोई आदमी होगा!!"

    आध्यात्म ने उसे अपने आपको देखकर सोचता हुआ देखा तो उसकी एविल स्माइल और बड़ी हो गई। वह उससे काफी कोल्ड और भारी आवाज़ में बोला, "हाँ...मैं ही हूँ वह...जिसने तुम्हें किडनैप करवाया...यह बंगला, वो बॉडीगार्ड्स सब मेरे हैं!!"

    मंशा उसके पास आकर उससे दो कदम की दूरी पर खड़ी हो गई और अपनी आँखें उसके चेहरे पर टिकाकर बोली, "क्यों किडनैप करवाया मुझे? मेरी आपसे कोई दुश्मनी है? ऐसा मुझे नहीं लगता...सो, लेट मी गो फ्रॉम हेयर!!"

    आध्यात्म उसे देखकर और थोड़ा अनसुलझे भाव से बोला, "क्या तुम्हें यहाँ से जाने देने के लिए ही मैंने तुम्हें किडनैप करवाया? मुझे ऐसा नहीं लगता...मुझे तुमसे कुछ कहना है..." (Last mein apne lahje ko نرم रखते hue)

    मंशा उसे इरिटेशन से देखते हुए बोली, "मुझे नहीं सुनना...मुझे बस यहाँ से जाना है!!"

    आध्यात्म थोड़ा और नरमी से बोला, "पहले तुम मेरी बात सुन लो!!"

    मंशा उसके नरमी पर थोड़ा सोचकर बोली, "ठीक है...कहिए जो कहना है!!"

    आध्यात्म अब ऑड फील करने लगा। वह मंशा को शादी की बात कैसे बोले, यह उसे समझ नहीं आ रहा था। किसी को डराना-धमकाना जैसा काम उसके लिए बहुत ईज़ी था। आज किसी को प्रपोज़ करना उसे काफी अजीब लगा।

    मंशा उसकी चुप्पी देखकर अब गुस्से में आ रही थी। वह बोली, "देखिए मेरे पास सारा दिन नहीं है...आपको जो कहना है क्लियरली कहिए!!"

    आध्यात्म तब अपने चेहरे के सारे एक्सप्रेशन्स को इरेज़ करके उससे बोला, "क्या तुम मुझसे शादी करोगी? बिकॉज़ आई वांट यू!!"

    आध्यात्म ने अब कह तो दिया था, लेकिन उसने यह बात अपने मेल ईगो को साइड करके उससे कहा था। मंशा अगर उसे रिजेक्ट करती तो यह बात सीधा उसके ईगो पर लगता। क्योंकि आध्यात्म पर काफी लड़कियाँ मरती थीं। उन सब को छोड़कर आध्यात्म को सिर्फ एक मंशा ही अच्छी लगी थी।

  • 11. "लव्स अंडरकरेंट"-11

    Words: 1287

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा उसकी बात सुनकर गहरी सोच में चली गई। क्या उसने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया? वह कुछ देर तक इस बात को गहराई से सोचती रही।

    कुछ देर बाद मंशा अध्यात्म को देखकर बिना किसी भाव से बोली, "बट...यू आर अ फादर ऑफ वन चाइल्ड...तो मैं आपसे कैसे शादी कर सकती हूँ? इसका तो यह मतलब होगा कि मैं आपकी सेकंड वाइफ में काउंट की जाऊँगी। और यह बात मेरे सेल्फ-रिस्पेक्ट को हर्ट करेगा। जो मैं कभी नहीं करूँगी। सॉरी फॉर दिस...बट ये मुझसे नहीं होगा!!"

    आध्यात्म की आँखें उसकी बात सुनकर खून के तरह लाल हो गईं थीं। वह अपने गुस्से को कंट्रोल करने में सक्षम नहीं था। उसका पूरा शरीर काँप रहा था।

    मंशा ने जब उसे ऐसे देखा तो कुछ देर तक वह भी डर गई। अध्यात्म अभी एक राक्षस से भी ज़्यादा खतरनाक महसूस हो रहा था। उसके आस-पास का माहौल काफी ठंडा हो गया था।

    आध्यात्म एकदम से उसके पास आकर बोला, "तुम्हें क्या लगता है? तुम मुझे रिजेक्ट करोगी और मैं यह बर्दाश्त करूँगा? तो तुम बिल्कुल गलत हो। मिस मंशा, तुम्हें अब इसकी काफी बड़ी कीमत चुकानी होगी!!"

    आध्यात्म अपने पॉकेट में हाथ डालकर फोन निकालकर किसी को कॉल किया। कॉल रिसीव होने पर वह अपनी बेहद खतरनाक आवाज में बोला, "खत्म कर दो सबको!!"

    मंशा को कुछ अनहोनी होने का आभास हुआ। उसने अध्यात्म के हाथ से फोन छीन लिया। उसके इस तरह के एक्शन पर अध्यात्म उसे बेहद खौफनाक तरीके से घूरने लगा।

    आध्यात्म उसके ओर गुर्राते हुए बोला, "मेरा फोन वापस दो! तुमने मुझे रिजेक्ट किया है, तुमने! इसकी कीमत तो तुम्हें चुकानी पड़ेगी!!"

    मंशा एक पल को उसके बोलने के टोन से घबरा गई। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके शरीर से आत्मा को बाहर खींच रहा हो। अध्यात्म की आवाज इतनी डरावनी थी। अभी उसका ओरा भी भयंकर हो गया था।

    मंशा उससे थोड़ा डरते हुए, लेकिन अपनी आवाज को संभालते हुए अटक कर बोली, "ले...लेकिन आ...आप किसको कॉल कर रहे हैं?"

    आध्यात्म उसके हाथ से फोन लेकर बोला, "तुमने रिजेक्ट किया। अब मैं तुम्हें बताता हूँ...आध्यात्म सूर्यवंशी को रिजेक्ट करने से क्या होता है...मिस मंशा श्रीवास्तव...जस्ट वेट एंड वॉच!!"

    वह फिर से किसी को कॉल लगाने लगा। लेकिन इस बार मंशा उससे थोड़ी हल्की आवाज में बोली, "आप क्या कर रहे हैं?"

    उसके बात पर अध्यात्म कुछ सोचकर उसके चेहरे पर एक एविल स्माइल आई। उसने अपने फोन में एक वीडियो प्ले कर दिया जो लाइव था। उसने मंशा को फोन दे दिया।

    मंशा ने जब चल रहे वीडियो को देखा तो उसकी आँखें हैरानी से बाहर आने को उतारू हो गईं। उस वीडियो में उसकी माँ श्वेता, उसका सौतेला भाई श्लोक, और श्वेता के पति, तीनों गार्डन की चेयर पर बैठे हँसी-खुशी बात कर रहे थे। लेकिन उन पर गन की टारगेट सेट की हुई थी।

    मंशा यह सब देख बहुत बेचैन हो गई। भले ही उसकी माँ उसके साथ नहीं रहती थी, लेकिन प्यार श्वेता ने उससे कभी कम नहीं किया था। वह श्लोक के बराबर ही मंशा को मानती थी।

    अगर आज मंशा ने अध्यात्म की बात नहीं मानी तो वह उसकी माँ सहित सबको खत्म कर देगा। जो मंशा को बर्दाश्त नहीं होता था।

    मंशा अगर अध्यात्म को ना कहती तो वह उन सबको मार देता। लेकिन उसे जबरदस्ती करके शादी भी कर लेता। इतना मंशा अध्यात्म को देखकर समझ चुकी थी।

    मंशा के पास अब उसे हाँ कहने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था। वह आज पूरी तरह फँस चुकी थी, उसके ट्रैप में। उसका इस महल से बाहर निकलना अब नामुमकिन ही था।

    मंशा को वीडियो देखते हुए देखकर आध्यात्म ने उसके हाथ से फोन ले लिया। उसने अपनी कोल्ड आवाज में ही उससे कहा, "टू आवर्स हैं तुम्हारे पास। जितना सोचना समझना है सोच लो। लेकिन उसके बाद या तो तुम्हारे माँ-बाप बचेंगे या तो मरेंगे। ओके, कीप थिंकिंग, बट तुम्हारा आंसर यस ही होना चाहिए!!"

    आध्यात्म इतना बोलकर अपने रूम में चला गया।

    मंशा के आँखों में आँसू आ गए थे। वह एक ज़िंदा लाश की तरह सोफे पर बैठ गई। वह कुछ भी सोचने-समझने की हालत में नहीं थी।

    "आज फिर मेरे साथ नाइंसाफी हो रही है। अगर मैं ना बोलूँगी तो मेरी माँ और सब मारे जाएँगे। और मैं इस इंसान के साथ नहीं रहना चाहती। क्यों भगवान, क्यों मेरे साथ ही ऐसा क्यों? मैंने क्या बिगाड़ा है आपका?!" (काफी देर तक मंशा ऐसे ही रोती रही)

    आध्यात्म अपने रूम में मंशा के कमरे का सीसीटीवी फुटेज देख रहा था। वह इस समय पूरा एक्सप्रेशनलेस था। मंशा को रोता हुआ देखकर भी उसका दिल नहीं पसीजा। वाइन पीते हुए वह पूरा एविल लग रहा था।

    "चाहे तुम कितना भी रो लो...मैं तुम्हें अपना बनाकर ही रहूँगा। आध्यात्म सूर्यवंशी नाम है मेरा...जो उसे पसंद आता है वह सिर्फ उसका ही है!!"

    इसी तरह दो घंटे खत्म हो गए। मंशा के आँसू भी अब तक सूख गए थे। तभी अध्यात्म वहाँ आया। मंशा ने उसे देखा, लेकिन उसके चेहरे पर अब कोई भाव समझ नहीं आ रहे थे। वह पूरी तरह मौन थी।

    आध्यात्म उसके सामने आकर बोला, "तो मिस मंशा...क्या जवाब है आपका? ऑफ़कोर्स ना तो नहीं ही होगा!!"

    मंशा की आँख से एक और बूँद गिरी। उसने अपना सर हाँ में हिलाकर कहा, "हाँ...मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन शादी के बाद मुझे मेरी फ़्रीडम मिलेगी। ऐसा आपको श्योर करना होगा!!"

    आध्यात्म अपने सर को हिलाकर बोला, "ओके...तो अब तुम्हारे माँ और उनके फैमिली को छोड़ देते हैं!!"

    वह अपना फोन निकाला और किसी को कॉल करके बोला, "छोड़ दो उन्हें...तुम्हारा काम हो गया...तुम्हें तुम्हारी पेमेंट मिल जाएगी!!"

    कॉल काटकर मंशा को देखते हुए बोला, "अभी पाँच मिनट में तुम्हें रेडी करने के लिए आर्टिस्ट आ जाएँगे। तो बिना किसी नखरे के रेडी हो जाना!!"

    मंशा उसकी बात पर हैरान नज़रों से देखते हुए उसे बोली, "शादी आज होगी?"

    आध्यात्म अपना सर हिलाकर बोला, "मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता। अभी तुम हाँ कह रही हो। बाद में तुम्हारा मूड बदल गया तब...तब क्या होगा!!"

    इतना बोलकर अध्यात्म उसे देखते हुए वहाँ से चला गया।

    जैसा कि आध्यात्म ने कहा, कुछ देर बाद मंशा को रेडी करने के लिए दो मेकअप आर्टिस्ट्स आ गईं और उसे रेडी करने लगीं।

    एक घंटे तक उन दोनों ने मंशा को बेहद खूबसूरती से तैयार कर दिया था। मंशा को एक बहुत कीमती और भारी एम्ब्रॉयडरी वाली लाल रंग की साड़ी पहनाई गई थी। एक भारी सी चुनरी...वह उसमें बहुत सुंदर लग रही थी।

    उसका मेकअप बहुत अच्छा था, लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। साफ दिख रहा था कि वह इस शादी से बिल्कुल भी खुश नहीं थी। मेकअप आर्टिस्ट भी उसकी उदासी समझ पा रही थीं।

    तभी आध्यात्म वहाँ आया। उसने आर्टिस्ट्स को वहाँ से जाने का इशारा किया तो दोनों वहाँ से चली गईं।

    आध्यात्म मंशा के पास आकर उसके हाथ को पकड़कर अपने साथ नीचे हॉल में ले आया जहाँ एक खूबसूरत मंडप बना हुआ था। पंडित जी बैठे हुए शादी की तैयारी कर रहे थे।

    मंशा जब नीचे आई थी तब ऐसा कुछ नहीं था। अचानक और इतनी जल्दी इतनी तैयारी और साज-सजावट कैसे हुई? वह पूरी तरह हैरान हो गई थी। लेकिन हैरानी उसने दिखाई नहीं। वह पूरी भावहीन हो गई थी।

    आध्यात्म उसे ले जाकर मंडप में लगे दुल्हन के स्थान पर बैठा दिया। जैसा-जैसा पंडित जी उन्हें बोल रहे थे वैसा-वैसा दोनों करने लगे।

    एक-एक कर सारी रस्में हुईं। पहले वरमाला की रस्म फिर फेरे हुए। उन सात फेरों में दोनों क्या वचन एक-दूसरे को दे रहे थे, दोनों को ही नहीं पता था।

    पंडित जी ने आध्यात्म को मंशा की मांग में सिंदूर भरने को कहा और सिंदूर की थाली आगे बढ़ा दी।

    सिंदूर देखकर मंशा अपना सर थोड़ा हटा रही थी कि आध्यात्म सिंदूर लेकर मंशा की मांग में भर दिया। मंशा के सर हिलाने से कुछ सिंदूर उसके नाक पर भी गिर गया। आध्यात्म ने जैसे ही उसकी मांग भरी, मंशा की आँखों से एक आँसू की बूँद फिर छलक पड़ी। लेकिन अब वह जल्दी ही अपने आँसू रोक ली।

    पंडित जी ने फिर मंगलसूत्र की थाली भी आगे बढ़ा दी। आध्यात्म ने मंगलसूत्र उठाकर मंशा के गले में बाँध दिया।

  • 12. "लव्स अंडरकरेंट"-12

    Words: 1302

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंगलसूत्र बांधकर आध्यात्म ने आध्यात्मिक मंशा के चेहरे को देखा, जिस पर अब कोई भाव नहीं थे।

    पंडित जी ने दोनों की शादी पूर्ण की और बोले, "अब से आप दोनों पति-पत्नी हुए।"

    आध्यात्म उनकी बात सुनकर मंशा का हाथ पकड़कर वहाँ ले गया जहाँ उसका वकील खड़ा हुआ था। वकील ने उन दोनों के सामने एक डॉक्यूमेंट खोलकर रख दिया और आध्यात्म को पेन दिया।

    आध्यात्म ने उस पर अपने सुंदर लेख में अपना पूरा नाम लिख दिया और मंशा को पेन देकर उसे भी साइन करने को कहा।

    मंशा को अब समझ आया कि आध्यात्म उन दोनों की मैरेज को लीगली रजिस्टर करवाना चाहता है। उसने अपने हाथ को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथों में जैसे जान ही नहीं थी। फिर भी डगमगाते हाथों से उसने अपना नाम लिख दिया।

    गवाह के तौर पर वहाँ उपस्थित लोगों ने अपने-अपने सिग्नेचर कर दिए। आध्यात्म ने मंशा के हाथ को मजबूती से पकड़ा, फिर उसे आराम से ले जाकर अपनी ब्रांडेड और इम्पोर्टेड कार में बिठा दिया।

    आगे-पीछे उसके बॉडीगार्ड्स की गाड़ियों की भी लाइन लग गई। मंशा ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया; वह चुपचाप अपनी जगह पर बैठी रही, सोच रही थी कि, "कहाँ थी वह और कहाँ चली आई थी। आज तक किसी के सामने नहीं झुकी थी, लेकिन आज उसे झुकना पड़ा था।"

    आध्यात्म उसके बगल में बैठ गया। मंशा अपने सोच से निकलकर उससे पूछी, "ये आपका ही घर है ना, तो आप यहाँ से जा क्यों रहे हैं?"

    आध्यात्म अपने चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान सजाए हुए बोला, "वाइफी, तुम्हारा पति बहुत अमीर है। ये बंगला तो सिर्फ एक नमूना था; ऐसे कई सारे बंगले हैं मेरे पास। तुम बस देखती जाओ।"

    आध्यात्म आज मंशा को पाकर बेहद खुश था। हो भी क्यों ना, उसे जो चाहिए था, वह उसने ले लिया था। आध्यात्म का टोन हमेशा डॉमिनेटिंग होता था, या ज़्यादातर वह सब से गुस्से से ही बात करता था। आज पहली बार मंशा के सवाल का जवाब देते हुए वह मुस्कुरा रहा था।

    उनकी गाड़ी लाइन से अपनी मंज़िल की ओर चल दी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी राजा की महफ़िल जा रही हो।

    मंशा खिड़की से बाहर का नज़ारा देखकर हैरान थी। अभी वह जिस बंगले में थी, क्या वह एक पहाड़ के नीचे बना हुआ था? ऐसा कैसे हो सकता है? अब उसे आध्यात्म सच में कोई अनसुलझा इंसान लग रहा था।

    यही वह इंसान है जो आशु का पिता है, और अब वह उसकी पत्नी है, तो वह आशु की माँ हुई। "माँ" यह शब्द दिमाग में आते ही मंशा को लगा जैसे वह एक अलग ही दुनिया में उतर आई हो। क्या वह माँ बन गई? उसने यह महसूस किया कि अब वह अकेली नहीं रही थी; उसकी ज़िंदगी का खालीपन अब मिट जाएगा।

    उसका एक बेटा है और एक पति जो जबरदस्ती बना था, लेकिन था तो वह उसका पति ही। लेकिन मंशा इस बात को किसी-किसी पहलू पर नकार रही थी। आध्यात्म के लिए नाराज़गी उसके अंदर बहुत ज़्यादा थी।

    पब्लिक एरिया में आते ही बॉडीगार्ड्स की गाड़ियों ने उन्हें साइड से कवर कर लिया। मंशा को एक वीवीआईपी जैसा फील हो रहा था। आज तक उसने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि वह इतने बड़े इंसान की पत्नी बनेगी, वह भी जबरदस्ती।

    कुछ समय बाद सारी गाड़ियाँ रिहायशी इलाके से गुज़रते हुए एक आलीशान बंगले के सामने रुकीं। सिक्योरिटी ने जल्दी से आकर सामने बड़े से दरवाजे को खोला।

    गाड़ियाँ जाकर सीधा बंगले के गैरेज में खड़ी हुईं। मंशा ने वहाँ पहले से रखी कार्स, जो वेल मेंटेंड थीं, देखकर और हैरान हो गई। इतने सारे ब्रांडेड कार्स! लेकिन अपनी हैरानी उसने अपने चेहरे से बिल्कुल ज़ाहिर नहीं की।

    कार के रुकते ही वह अपने साइड का गेट खोलकर बाहर आई। आध्यात्म उसे बाहर निकलते देखकर उसके पास आकर उसके हाथ को पकड़कर मेंशन के अंदर ले गया।

    आध्यात्म दरवाज़ा क्रॉस करता उससे पहले ही उसे कुछ याद आया। उसने अपना फ़ोन निकालकर किसी को कॉल किया और उसे वहाँ आने के लिए कहा।

    कुछ देर बाद एक औरत, जो थोड़ी बूढ़ी थी, वह अपने रूम से निकलकर दरवाज़े पर आई। आध्यात्म को किसी लड़की के साथ देखकर वह पूरी तरह हैरान हुई।

    वह आध्यात्म से पूछी, "आध्यात्म बेटा, ये कौन है?"

    आध्यात्म मंशा के हाथ को और ज़ोर से पकड़ उन्हें दिखाते हुए बोला, "अम्मा, ये हमारी पत्नी हैं, मंशा आध्यात्म सूर्यवंशी। जैसे आप हमें अपना बेटा मानती हैं, आज से ये आपकी बहू हैं।"

    वह औरत आध्यात्म की दाई माँ, अन्नपूर्णा थीं। आध्यात्म जब से अकेला रहता था, हमेशा वह उसका ख्याल रखती थीं। आध्यात्म और अपने बेटे में उसने कभी भी फ़र्क नहीं किया। दाई माँ के पति की मृत्यु हो गई थी; वह आध्यात्म के घर में ही रहती थी।

    दाई माँ अपना सर हिलाकर जल्दी से आरती की थाल सजाकर मंशा के गृह प्रवेश की तैयारी करने लगी। सब कुछ हो जाने के बाद उसने दोनों की आरती उतारी, फिर मंशा को उसका सामने रखा कलश अपने पैर से गिराकर घर में आने को बोली।

    मंशा ने वही किया जो दाई माँ ने कहा। फिर पहला कदम उसने आध्यात्म के घर में रखा। दाई माँ ने दोनों को मंदिर में ले जाकर उनसे भगवान की पूजा करवाई।

    मंशा और आध्यात्म जब मंदिर से बाहर आए, तब मंशा को आशु सोफ़े पर बैठा दिखा। आशु ने पीछे मुड़कर अपने पिता को देखा तो उसकी नज़र मंशा पर चली गई। वह उसे अपने घर में देखकर बहुत खुश हो गया।

    आशु भागते हुए उसके पास आया और जल्दी से उसके गले लग गया। मंशा को जब आशु ने गले लगाया, तब ऐसा लगा कि वह सच में अब आशु की माँ थी। उसका भी एक बेटा है। मंशा ने अब तक आशु के लिए कोई भी गलत थिंकिंग को अपने मन में कोई जगह नहीं दी थी। आज उसे एक अपनेपन की फीलिंग आ रही थी।

    मंशा ने भी आशु को जल्दी से गले लगा लिया। थोड़ी देर बाद अलग होकर मंशा खुद नीचे बैठकर आशु के चेहरे को देखते हुए बोली, "आप मुझसे मिलना चाहते थे ना? देखो मैं खुद यहाँ आ गई।"

    आध्यात्म दोनों को देखकर कुछ अजीब फील कर रहा था; उसका मन उदास हो रहा था। आध्यात्म जब से सोचने-समझने की हालत में आया था, तब से उसे किसी ने इतना प्यार नहीं किया था। उसकी माँ अपर्णा के अलावा उसे आज तक किसी ने प्यार से पूछा तक नहीं, उसके बारे में जानने तक की कोशिश भी नहीं की, कि उसका बेटा किस हालत में है, कहीं मर तो नहीं गया। आध्यात्म ने अपने इमोशन्स को कंट्रोल किया और उन दोनों को देखने लगा।

    आशु उसे पकड़कर उछलते हुए बोला, "आपको यहाँ डैड लाए ना। मैंने उनसे कहा था वो आपको लाएँ। अब हम तीनों साथ में रहेंगे ना, हैप्पी फैमिली बनकर। हैं ना मंशा आंटी?"

    आध्यात्म को एक नज़र देखने के बाद मंशा अपना सर हाँ में हिला दी और बोली, "हम्म… अब हम आप और आपके डैड एक साथ रहेंगे।"

    आशु खुशी से उसके हाथ को पकड़कर उसे ले जाकर सोफ़े पर बिठा दिया, और दोनों आपस में बात करने लगे। आध्यात्म उन दोनों को एक-दूसरे में बिज़ी देखकर वहाँ से अपने स्टडी रूम चला गया।

    दाई माँ कुछ देर बाद मंशा के पास आकर बोली, "बेटा, आप अपने कपड़े चेंज कर लीजिए; ये साड़ी बहुत भारी है।"

    मंशा उससे बोली, "लेकिन मेरे पास तो पहनने के लिए कुछ नहीं है; मैं क्या पहनूँगी?"

    दाई माँ मुस्कुराकर बोली, "देखिए बेटा, आध्यात्म बाबा आपको लेकर आए हैं; उन्होंने पहले ही आप के हिसाब से सारी तैयारी कर दी होगी। आप जाकर सिर्फ़ रूम के कबर्ड में देखिए।"

    मंशा अपना सर हिलाकर उसके पीछे-पीछे चल दी। आशु वहीं बैठकर फिर से टीवी देखने लगा।

    मंशा को दाई माँ आध्यात्म के रूम में लेकर आई और उसे अंदर जाने को बोल दिया। मंशा अंदर गई तो रूम काफ़ी वेल मेंटेंड और साफ़-सुथरा था। कहीं भी कोई मैसीनेस नहीं था। शायद आध्यात्म को बिखरा हुआ नहीं पसंद; लेकिन मंशा इससे ऑपोज़िट थी; वह जहाँ रहती थी, वहाँ का कबाड़ा कर देती थी।

    मंशा ने हर जगह अपनी नज़र घुमाई तो उसे लाइन से लगे अलमारी दिखे। वो उन्हें खोलने की कोशिश की, तो वो नहीं खुले।

  • 13. "लव्स अंडरकरेंट"-13

    Words: 1310

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा ने थोड़ी देर तक उन अलमारियों को खोलने की बहुत कोशिश की। जब वे नहीं खुलीं, तो वह उनसे दूर हटकर उस अलमारी को घूरने लगी, जैसे वह उसका दुश्मन हो।

    तभी पीछे से आध्यात्म की दबदबाती आवाज आई: "उसे घूरने से कुछ नहीं होगा। मेरी तरफ देखो, डियर वाइफी!"

    मंशा ने उसे देखा, लेकिन उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे। अपनी तरफ उसे देखता पाकर आध्यात्म उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए बोला: "तुम उसे ऐसे क्यों देख रही हो?"

    मंशा ने भी ठंडे स्वर में कहा: "मुझे पहनने के लिए कुछ चाहिए। यह साड़ी बहुत भारी है। मैं ज्यादा देर तक इसे पहनकर नहीं रह सकती।"

    आध्यात्म उसके बदन को देखते हुए बोला: "चलो, मैं ही उतार देता हूँ। वैसे भी अभी हमारी सुहागरात भी बाकी है, राइट? वो भी पूरी हो जाएगी।"

    मंशा उसकी बेरुखी पर उसे गुस्से से घूरने लगी, लेकिन फिर कुछ सोचकर बोली: "मुझे बस आप मेरे पहनने के लिए कपड़े दे दीजिए।"

    आध्यात्म उसे निहारते हुए बोला: "चेंजिंग रूम में जाकर अलमारी चेक करो।"

    मंशा उसकी बात सुनकर जल्दी से चेंजिंग रूम में गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। आध्यात्म बेरुखी से अभी भी बंद दरवाजे को घूर रहा था। उसका इरादा बस मंशा को परेशान करने का था; वह सच में मंशा के साथ ऐसा करना नहीं चाहता था। वह वहीं रखे सोफे पर लैपटॉप लेकर बैठ गया और तेज रफ्तार से उसमें कुछ टाइप करने लगा।

    मंशा ने गेट बंद किया और दरवाजे से कान लगाकर खड़ी हो गई। वह गहरी-गहरी साँसें ले रही थी। उसका शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था। उसने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा: "इतनी बेचैनी उस इंसान से ऐसी बातें सुनने के बाद क्यों हो रही है मुझे? मंशा, तुम यह क्यों भूल रही हो कि तुम कौन हो? तुम्हारा व्यक्तित्व कैसा है? यह ऐसे शर्माना तुम्हें शोभा नहीं देता। तुम आज तक कॉन्फिडेंट से जीती हुई आई हो; किसी के पीछे घूमना नहीं, उसे अपने पीछे घुमाना तुम्हारा काम है!"

    वह बोलते-बोलते अपना प्रतिबिम्ब शीशे में देख रही थी। मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र देखकर उसके हाथ अपने आप अपने सिंदूर और मंगलसूत्र को छूने लगे। फिर अचानक अपने आँसू पोंछकर उसने अलमारी खोली, तो वह खुल गई। उसमें कई सारे वैरायटी की साड़ियाँ थीं, जो अलग-अलग ब्रांड की थीं। मंशा की आँखें चौड़ी हो गईं। उस पूरे अलमारी में सिर्फ साड़ियाँ ही थीं।

    मंशा अलमारी बंद करके खुद से बोली: "यहाँ तो सिर्फ साड़ियाँ ही रखी हुई हैं। मैं दुबारा साड़ी नहीं पहनूँगी!" (बोलते-बोलते उसे साइड में उस अलमारी से लगे हुए ही एक और अलमारी दिखी।)

    वह उसे खोलकर देखी तो उसमें कैजुअल कपड़े थे, जो उसके कम्फर्ट जोन में थे। उसने उसमें से एक लाल रंग की कुर्ती और लाल रंग का ही प्लाज़ो निकाल लिया।

    मंशा जब कपड़े बदलकर बाहर आई, सामने आध्यात्म लैपटॉप में काम कर रहा था। उसने उसे अनदेखा करके अपने पहने हुए गहने, जो उसने उतार लिए थे, ड्रेसिंग टेबल के ऊपर रख दिए।

    आध्यात्म का फ़ोन बजा। तब जाकर उसने सामने मंशा को देखा। उसकी नज़र उस पर पड़ी, लेकिन जल्द ही वह अपना फ़ोन उठाकर अपनी नज़रें उस पर से हटाकर वहाँ से चला गया। मंशा उसे पीछे से जाता देखती रही, फिर अपने आप में ही बड़बड़ाने लगी: "हूँह... क्या समझते हैं खुद को? कहीं के बादशाह हैं क्या?"

    आध्यात्म टेरेस पर आते हुए कॉल पिक किया और अपने ठंडे स्वर में बोला: "हेलो!"

    सामने से रिशान बोला: "बॉस, मैडम के बारे में कुछ पता चला है। आप एरिया में आइए, मैं आता हूँ!"

    आध्यात्म बोला: "ठीक है।"

    इसके बाद वह अपने रूम में जाकर सीधा चेंजिंग रूम में घुस गया। मंशा उसे देखकर कुछ नहीं बोली। वह वहाँ से निकलकर आशु के पास चली गई। आशु उसे बहुत अच्छा लगा था। एक माँ की भावना उसके अंदर आशु के लिए ही पनपी थी, जो अब शायद ही कभी खत्म हो सकती थी।

    आध्यात्म चेंजिंग रूम में पूरे काले कपड़ों में खड़ा हुआ खुद को शीशे में निहार रहा था। उसने एक मास्क पहना हुआ था, जिस पर एक सफ़ेद बाघ का निशान बना हुआ था। वह इस वक़्त काफी खतरनाक लग रहा था। उसके भाव खतरनाक होते जा रहे थे समय के साथ, लेकिन उसके चेहरे पर ये भाव बहुत जँच रहे थे।

    आध्यात्म वहाँ से निकलकर अपने कमरे के एक दरवाजे पर गया, जो बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि वह दरवाजा है। उस पर आध्यात्म ने अपने फिंगरप्रिंट्स दिए, तो वह दरवाजा खुला। दरवाजे के अंदर बहुत अंधेरा था। साइड के एक लाइट को उसने जलाया, फिर सीढ़ियों से होते हुए अंदर चला गया। गेट अपने आप बंद हो गया।

    वह कमरा एक सीक्रेट रूम था। उसके आखिरी दरवाजे से आध्यात्म बाहर निकलकर अपनी गाड़ी लेकर कहीं चला गया।

    रात के समय, आशु को मंशा सुला रही थी। आशु सो भी गया था। मंशा उसे देखती रही; आशु सोते हुए बहुत प्यारा लग रहा था।

    "आशु, आज से आपसे एक वादा करती हूँ मैं, चाहे किसी भी हालत में क्यों ना हूँ मैं, आप मेरे लिए सबसे पहले रहोगे। आज एक माँ की ममता का एहसास मुझे हुआ है, जो आज से पहले मैंने कभी भी महसूस नहीं किया। थैंक यू मेरे जिंदगी में आने के लिए, लेकिन जिसके कारण आप मेरी जिंदगी में आए, वो मुझे बिल्कुल नहीं पसंद है और उन्हें कभी पसंद करूँगी भी नहीं!" (मंशा अपने ख्यालों में खोई हुई थी।)

    मंशा उठकर अपने आप को शीशे में देखी। वह अपने जीवन के उन पलों में खो गई जब वह छोटी सी थी और उसके माँ-बाप का तलाक हो गया था; तब कैसे वह अकेले अपना ध्यान रखती थी, अपने अकेलेपन को ही अपनी साथी बनाती थी। यह सब याद कर उसकी आँखें फिर भर आईं।

    मंशा हर बात पर रोने वालों में से नहीं थी, लेकिन आज वह अपने इमोशन्स को संभाल नहीं पा रही थी। इतने दिनों से दिल में अटका दर्द आज बाहर आने को बेकरार हो गया था। मंशा अपने आँसुओं को कभी भी बार-बार आने नहीं देना चाहती थी, क्योंकि उसे यह कमजोरी की निशानी लगती थी, जो वह नहीं थी।

    आध्यात्म कमरे में आया। वह कैजुअल कपड़े पहने हुए था। आशु को सोया देखकर उसके माथे को चूमकर उसे कुछ पल देखा; फिर उसने मंशा की तरफ़ नज़र उठाई, तो वह उसे ही देख रही थी।

    आध्यात्म उससे पूछा: "आशु ने खाना खा लिया क्या?"

    मंशा ने हाँ में सिर हिलाया।

    आध्यात्म फिर से पूछा: "और तुमने?"

    मंशा ने फिर सिर हिला दिया। आध्यात्म ने नोटिस किया कि मंशा अब शांत थी; अपने स्वभाव के अनुसार कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। आध्यात्म उससे फिर कुछ नहीं बोला।

    आध्यात्म मंशा का हाथ पकड़ अपने साथ अपने कमरे में ले आया, तो मंशा ने खींचते हुए अपना हाथ उससे छुड़ाया, जो आध्यात्म को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। उसने अपने हाथ को देखा, जिससे उसने अभी मंशा को थामा हुआ था।

    आध्यात्म उसके नजदीक आ रहा था; जितना वह खुद को उससे दूर करती, वह उतना ही उसके पास आ रहा था। कुछ देर बाद आध्यात्म ने उसे उसकी कमर से पकड़कर अपने करीब खींच लिया।

    उसके हरकत पर मंशा पूरी तरह से स्तब्ध हो गई कि अभी क्या हुआ। वह अपने आप को उसके पकड़ से छुड़ाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर दी, लेकिन आध्यात्म की शक्ति उससे कई गुना ज्यादा थी, जिससे वह उसे हिला तक ना पाई।

    आध्यात्म उसके करीब आ रहा था; जैसे ही वह उसके होठों को छू पाता, मंशा ने अपना सिर पीछे खींच लिया। आध्यात्म को ना जाने क्यों उसके इस तरह से दूर होने पर गुस्सा आ रहा था। उसने उसे अपने से दूर धकेल दिया। मंशा उसे काफी बुरी तरह घूरने लगी।

    आध्यात्म उसकी नज़रों को अनदेखा करके अपने बिस्तर पर जाकर साइड होकर सो गया। उसने मंशा के लिए जगह बना दी थी। मंशा ने उसके बनाई जगह को अनदेखा करते हुए वहाँ से एक तकिया उठाया और सोफे पर सोने के लिए जाने लगी।

    तो आध्यात्म उसे पीछे से टोकते हुए बोला: "अब कुछ नहीं करूँगा मैं, और सोफे पर तुम कम्फ़र्टेबल नहीं रह पाओगी। सो जाओ यहीं।"

    मंशा थोड़ी देर तक सोफे को और खुद को देखकर सोच रही थी कि "सच में यह कितना छोटा सा सोफा है! इसमें तो मेरा आधा शरीर भी कम्फ़र्टेबल नहीं रहेगा। क्या इनके साथ सोना सही होगा? ये मेरा कोई गलत फायदा तो नहीं उठाएँगे ना?"

  • 14. "लव्स अंडरकरेंट"-14

    Words: 1290

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा कुछ देर सोचने के बाद बेड पर अपनी तरफ़ लेट गई। तभी उसे कुछ याद आया, और उसने एक तकिया बीच में रख दिया। फिर आध्यात्म से बोली, "ये आपकी बाउंड्री लाइन है। इधर आने की सोचिएगा भी मत!!"

    आध्यात्म के चेहरे पर एक खूबसूरत सी मुस्कान छा गई। मंशा के ऐसा करने पर, वह काफी देर तक उसकी पीठ निहारता रहा, जैसे सदियों से उसका आशिक बना बैठा हो।

    सुबह का समय था। आध्यात्म के कमरे में, मंशा की आँख खुली तो उसे अपने ऊपर कुछ भारी सा महसूस हुआ। वह आध्यात्म के सीने से लगी हुई थी। यह महसूस कर वह जल्दी से उठकर बैठ गई। आध्यात्म उसके ऊपर चढ़ा हुआ था। उसके मूवमेंट्स से आध्यात्म की भी नींद टूट गई, और वह उसे देखने लगा।

    मंशा उसे देखकर एकदम से चिल्लाई, "आप मेरे इतने करीब क्या कर रहे हैं? दूर रहिए मुझसे!!"

    आध्यात्म उसे देखकर आराम से अपनी गहरी आवाज में बोला, "मुझे नींद नहीं आती जल्दी, लेकिन तुम मेरे इतने करीब थीं तो मुझे काफी गहरी नींद आई। तुमने मेरे रिपोर्ट्स भी तो देखे थे, कि मुझे इन्सोम्निया है।"

    मंशा उसकी बात पर कुछ नहीं बोली। आध्यात्म उठकर कमरे से बाहर जाने लगा। मंशा उसे जाते देखकर बोली, "कहाँ जा रहे हैं आप?"

    आध्यात्म "जिम" बोलकर चला गया। मंशा वहाँ से सीधा चेंजिंग रूम में गई, अपने लिए एक साड़ी लेकर वाशरूम में चली गई। मंशा फ्रेश होकर बाहर आई। उसने डार्क रेड कलर की साड़ी पहनी थी, जिस पर काफी खूबसूरत वर्क्स किए हुए थे।

    शीशे में खुद को निहारते हुए मंशा बोली, "चाहे जो भी हो, ये अमीर तो बहुत हैं, वरना इस ब्रांड के कपड़े तो मैं भी अफोर्ड नहीं कर सकती।"

    तैयार होने के बाद सिंदूर लगाते हुए उसकी आँखें थोड़ी नम हो गईं। मंशा वहाँ से आशु के कमरे में आई। आशु की केयरटेकर उसे जगा रही थी, लेकिन आशु हिल भी नहीं रहा था।

    मंशा ने केयरटेकर को आशु के लिए हेल्थी नाश्ता बनाने को कहा। केयरटेकर उसके ऑर्डर को सुनकर सर हिलाकर चली गई।

    मंशा प्यार से आशु के पास गई और उसके सर को सहलाते हुए पुकारा। आशु थोड़ा कसमसा कर आँखें खोलकर मंशा को देखा। मंशा को देखकर वह जल्दी से उठकर बैठ गया।

    आशु अपनी आँखें मसलते हुए नींद से भरी आवाज में बोला, "आप इतनी जल्दी उठ गईं? कितना बज रहा है? (घड़ी की तरफ देखकर) अभी तो सिर्फ 8 ही बजे हैं, और सोने दो ना प्लीज।" (लास्ट में बहुत क्यूट एक्सप्रेशन के साथ)

    मंशा उसके तरफ उससे भी ज़्यादा क्यूट चेहरा बनाकर देखते हुए बोली, "बेटा, मैं भी तो सुबह ही उठी, और आपसे बहुत पहले उठी। उठ जाओ।"

    आशु उसके चेहरे को अपने हाथों से छूते हुए बोला, "आप बहुत सुंदर हो डॉक्टर आंटी। आपके चीक्स कितने सॉफ्ट सॉफ्ट हैं, और कितने लाल भी।"

    मंशा उसकी तारीफ पर थोड़ा मुस्कुराई और फिर बोली, "तो चलिए अब उठ जाएं। हम्म।"

    आशु अपना सर हिलाकर जल्दी से बिस्तर से उतर गया। मंशा उसे अपने साथ वाशरूम में ले जाकर नहलाने लगी। आशु उसे अपना पूरा कपड़ा उतारने नहीं दे रहा था। उसे मंशा से काफी शर्म आ रही थी क्योंकि आज तक उसने पिता के अलावा किसी से नहीं नहाया था।

    मंशा उसकी असहजता अच्छे से समझ पा रही थी, इसलिए उसने भी कपड़े उतारने के लिए उसे ज्यादा फ़ोर्स नहीं किया। मंशा अलमारी में उसके यूनिफॉर्म ढूँढ़ रही थी, उसे लगा आशु स्कूल जाएगा। जब उसे कहीं भी उसका यूनिफॉर्म नहीं मिला, तो उसने आशु से पूछा, "आशु बेटा, आपके यूनिफॉर्म कहाँ रखे हैं?"

    आशु उसे कुछ ढूँढ़ते देखकर बोला, "यूनिफॉर्म लेकिन क्यों?"

    मंशा को ऐसा लगा जैसे उसने कुछ गलत कहा हो। इसलिए उसने फिर से अपने शब्दों को अपने दिमाग में दोहराया। जब उसे कुछ गलत समझ नहीं आया, तब उसने आशु से कहा, "बेटा, स्कूल नहीं जाना आपको।"

    आशु का मुँह स्कूल शब्द सुनते ही लटक गया और बोला, "मैं स्कूल नहीं जाता। डैड ने मेरी बहुत सारी ऑनलाइन क्लासेज़ रखी हुई हैं।"

    मंशा को इस बात पर आध्यात्म पर बहुत गुस्सा आया। एक छोटे बच्चे के ऊपर उसने इतनी सारी ऑनलाइन क्लासेज़ रखकर कितना जुल्म किया है। इसीलिए शायद इसे खेलना तक नहीं पता कि खेलना क्या होता है।

    मंशा ने नॉर्मल क्लोथ्स पहनाकर आशु को काफी प्यार से तैयार किया। उन दोनों को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि दोनों कुछ ही दिन पहले मिले हैं।

    मंशा भी आशु के अपनी ज़िंदगी में आने से बहुत खुश थी। उसके अंदर एक चाहत जगी थी कि आशु उसे "माँ" कहकर पुकारेगा, लेकिन आशु छोटा है और उसे इस बारे में ज़्यादा पता भी नहीं है, इसलिए मंशा ने इस बारे में उसे कुछ नहीं बोला।

    आशु मंशा का हाथ पकड़े नीचे लिविंग हॉल में आया। सामने अपर्णा सोफ़े पर चाय पीते हुए बैठी हुई थी। एक अनजान लड़की को अपने सामने और आध्यात्म के घर में देख वह एकदम से कंफ़्यूज़ हो गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे बिजली का झटका दिया है।

    आशु अपर्णा के पास दौड़कर आया और उसे अपनी बाहों में भरकर बोला, "दादी मां, ये मेरी डॉक्टर आंटी हैं, और बहुत अच्छी हैं।"

    अपर्णा मंशा को देख आशु को पकड़ते हुए अपने जगह से उठकर खड़ी हो गई। फिर अपनी हैरानी कम करके उससे पूछी, "कौन हो तुम? और आध्यात्म के घर में क्या कर रही हो?"

    मंशा उसके सवाल पर बहुत नर्वस हो गई थी। आज तक उसने कभी ऐसा फील नहीं किया था। आशु उसे दादी मां कहकर पुकार रहा है, इसका मतलब वह उसकी सास थी। वह उसके सवाल का क्या जवाब देती, उसे खुद समझ नहीं आ रहा था।

    मंशा थोड़ी देर चुप रहकर कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी सेकंड फ़्लोर की रेलिंग को पकड़कर खड़ा आध्यात्म उसका जवाब दिया, "बीवी है मेरी।"

    अपर्णा और ज़्यादा हैरानी से मंशा को ताकने लगी। फिर से उसे आध्यात्म की कोल्ड आवाज़ सुनाई दी, "उसे परेशान करने के बारे में सोचिएगा भी मत। अंडरस्टैंड माते श्री।"

    इतना कहकर वह अपने कमरे में चला गया। मंशा को आध्यात्म का अपर्णा से ऐसे बात करना अच्छा नहीं लगा। अपर्णा जैसी भी है, वह आखिर उसकी माँ है, वह उससे ऐसे कैसे बात कर सकता है?

    अपर्णा मंशा को देखकर अपने कमरे में चली गई। मंशा को अपर्णा का यह व्यवहार बहुत अजीब लगा। आशु मंशा को किचन में ले जाते हुए बोला, "चलिए डॉक्टर आंटी, ब्रेकफ़ास्ट नहीं करेंगी क्या?"

    मंशा उसे देखते हुए मुस्कुरा रही थी। आशु ने उसे डाइनिंग टेबल के चेयर पर बिठा दिया और खुद भी बैठ गया। तभी आध्यात्म भी वहाँ आया। आशु को पहले से बैठा देख वह उसे घूरने लगा।

    आज तक आशु बिना अपने पिता के डाइनिंग टेबल पर नहीं बैठा था, लेकिन आज वह पहले से ही मंशा के साथ वहाँ बैठा दिख रहा था। आशु ने अपनी टीम बदल ली थी।

    आध्यात्म अपनी स्टाइलिश अदा के साथ हेड चेयर पर बैठ गया। मंशा उसकी तरफ़ देखी तक नहीं, जिससे आध्यात्म की आँखें लाल होने लगीं। वह चाहता था कि मंशा उसे देखे, लेकिन उसने बेहद बुरे तरीके से उसे इग्नोर किया था, जो उसे कभी मंज़ूर नहीं था।

    आध्यात्म धीरे से उसके हाथ पकड़ा, तब जाकर मंशा ने उसे देखा। वह उसे देख कम घूर ज़्यादा रही थी। उसे ऐसे देखकर आध्यात्म के चेहरे पर एक कातिल मुस्कान आ गई। वह आशु से बोला, "तुम्हारी डॉक्टर आंटी अब मेरी वाइफ़ है, तो वह तुम्हारी माँ हुई। इसलिए अब से उसे माँ कहकर बुलाओगे। समझे?"

    मंशा आध्यात्म की बात पर उसे हैरानी से देखने लगी। आशु अपना सर हिलाकर उससे बोला, "ओके डैड। (फिर मंशा को प्यार से देखते हुए) माँ।"

    ये शब्द मंशा को भावुक कर गया। उसे एक पल को जन्नत सा महसूस हुआ। उसकी आँखों में एक पतली आँसू की धार बन गई।

    अपर्णा अपने कमरे में इधर से उधर टहल रही थी। वह अपने आप में बड़बड़ाते हुए कुछ कह रही थी, "आध्यात्म ने शादी कर ली, लेकिन वह ऐसा कैसे कर सकता है? अगर वह लड़की मेरे पोते के साथ पराए जैसा व्यवहार करेगी तब... तब क्या होगा? मेरा आशु कैसे रहेगा? नहीं, मुझे कुछ करना होगा। नहीं तो यह लड़की मेरे पोते को बर्बाद कर देगी। मुझे कुछ करना होगा। हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती मैं।"

  • 15. "लव्स अंडरकरेंट"-15

    Words: 1309

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा ने आशु के ‘माँ’ कहने पर प्यार से उसके गाल खींच लिए। आशु ने अपना चेहरा पीछे खींच लिया और गाल सहलाते हुए बोला, "आपने तो मेरे पूरे गाल लाल कर दिए माँ!!"

    उसके फिर से ‘माँ’ बोलने पर मंशा और खुश होकर उसे एक ओर से गले लगा लिया और बोली, "आप जानते हो, ये 'माँ' शब्द कहकर आज आपने मुझे एक बहुत बड़ी पोजीशन दे दी है, जिसे मैं निभाने की पूरी कोशिश करूँगी।"

    वह लोग आपस में बातें कर रहे थे। तभी अपर्णा वहाँ आकर तीनों को साथ देखती है। उसे एक पल एहसास हुआ कि वह शायद मंशा के बारे में गलत चित्र अपने दिमाग में बना रही है। लेकिन फिर उसने सोचा कि शायद यह उसका आशु से घुलने-मिलने का कोई नाटक होगा।

    "इतनी तेजी से फैसले लेना सही नहीं होगा अपर्णा। तुम्हें इस लड़की पर अपना पूरा फोकस देना होगा। अगर कहीं कुछ गलत कर दे तब…!!" अपर्णा खुद के मन में ही तर्क-वितर्क कर रही थी।

    अपर्णा डाइनिंग टेबल के पास जाकर अपनी चेयर खींचकर बैठ गई। मंशा ने उसे देखा। पता नहीं क्यों, लेकिन वह ऐसी पहली औरत थी जिसके सामने मंशा थोड़ी नर्वस हो जाया करती थी। अपर्णा और बाकी सब अपना खाना खा रहे थे। अपर्णा बीच-बीच में मंशा और आशु को देख रही थी।

    मंशा आशु को अपने हाथों से खाना खिला रही थी। आशु हँसते-खेलते उसके हाथों से खाना खा रहा था। अपर्णा के दिल में यह देखकर काफी खुशी हुई। मंशा के चेहरे पर झलक रही माँ की ममता उससे अब छुपी नहीं थी।

    वह अपने बनाए विचारों पर खुद ही अफ़सोस कर रही थी। वह हमेशा से ही आशु के लिए ऐसी ही लड़की चाहती थी जो आशु से बहुत प्यार करे। आशु की माँ के लिए अपर्णा के दिल में बहुत रोष था। उसने अपने खुद के बच्चे को ऐसे छोड़ दिया था जो दर-दर प्यार के लिए भटक रहा था, और अब जाकर उसे प्यार मिला था जो वह कब से तलाश रहा था।

    आध्यात्म भी कभी-कभी अपर्णा को देख रहा था। शायद वह उसके मन में चल रहे विचारों को अच्छे से समझ पा रहा था। सभी खाना खाकर लिविंग हॉल के सोफे पर बैठे हुए थे।

    तभी कोई बहुत जोर से चिल्लाने की आवाज आई, मानो किसी ने अपना पूरा दम निकाल दिया हो आवाज निकालने में। सामने दरवाज़े पर एक चौबीस साल की लड़की खड़ी थी, दिखने में काफी खूबसूरत। उसने एक जीन्स और टॉप पहना हुआ था।

    अपर्णा उसे देखकर बहुत खुश हो गई। आध्यात्म के चेहरे पर उसे देखकर एक हल्की खुशी थी जो कि कोई गौर करने पर ही पहचान सकता था। शायद वह भी उसे देखकर खुश था।

    आशना अपर्णा की सबसे छोटी बेटी थी जिससे आध्यात्म बहुत प्यार करता था, लेकिन जाहिर बहुत कम ही करता था। आशना सीधे आकर आध्यात्म के गले से लग गई। आध्यात्म ने भी उसे अपने गले लगा लिया।

    आशना उससे बोलते हुए अलग हुई, "भाई, आपने शादी कर ली? मुझे बताया भी नहीं? क्या इतनी पराई हो गई हूँ मैं आपके लिए? बोलिए ना!!" (लास्ट में उसने मुँह फूला लिया)

    आध्यात्म हल्की स्माइल, जो शायद ही किसी को दिखती, लाकर बोला, "क्यों? शादी करने के लिए मुझे तुम्हारी इजाज़त की ज़रूरत है? आई थिंक नहीं है राइट। तो फिर बेवजह की बातें मत करो।" (उसकी आवाज में हल्की नरमी थी)

    उसे इतने नर्म लहजे में बात करता देख मंशा अपने मन में सोची, "इनके जबान ने सॉफ्टनेस से बात करना कब सिखा?!"

    आशु जल्दी से आशना के पास गया और उसके गले लगते हुए बोला, "बुआ, मैं आपसे मिलकर बहुत हैप्पी हूँ, सच में। इस बार आप थोड़े दिन रुककर ही जाना।"

    आशना उसके सॉफ्ट गालों को खींचते हुए बोली, "ऑफकोर्स मेरा बच्चा। मैं तो सोचकर ही आई इस बार कि अपने आशु के साथ बहुत मस्ती करूँगी। और जानते हो आशु, मैंने सोचा मैं तुम्हें सरप्राइज़ दूँगी, बिना बताए आने का। लेकिन यहाँ पर तो मैं खुद ही सरप्राइज़ हो गई। अच्छा-खासा पोपट हो गया मेरा।"

    आशु क्यूट सी आवाज में बोला, "लेकिन आपका पोपट किसने किया? बताओ मुझे। मैं अभी उसकी खटिया खड़ी करूँगा। किसके पास इतनी हिम्मत है कि वह मेरी बुआ का पोपट कर सके।"

    आशना उसकी तरफ़ उसके तरह ही क्यूटली बोली, "आपके डैड ने। सबक सिखाओगे ना उन्हें।"

    आशु का चेहरा देखने लायक हो गया। वह डरते हुए धीरे से बोला, "बुआ, मैं अपने डैड से कैसे लड़ूँगा? आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि डैड ने आपका पोपट किया।"

    आशना उसे देखते हुए ही बोली, "क्यों? अब आपकी सारी उस्तादी हवा हो गई? अब लड़कर दिखाओ अपने डैड से। हाँ, जाओ।"

    आशु डर के मारे आशना से चिपक गया क्योंकि अब तक आध्यात्म की घूरती हुई नज़र उसने खुद पर महसूस कर ली थी। आशना के करीब रहकर ही वह अभी अपने आप को सेफ रख सकता था क्योंकि आशना से आज तक कभी आध्यात्म को ऊँची आवाज में बात करते हुए आशु ने नहीं देखा था।

    आशना जल्दी से मंशा के पास आई और उसे देखते हुए बोली, "भाभी, आप तो बहुत खूबसूरत हो। चेहरे पर क्या लगाती हैं? मुझे भी बताएँ। जरा मैं भी तो इसके पीछे का राज जानने की हकदार हूँ।"

    मंशा उसकी नादानी पर बड़ी सी मुस्कराहट लिए उसे देखते हुए बोली, "मैं कुछ नहीं लगाती क्योंकि ब्यूटी कॉस्मेटिक्स में कई प्रकार के केमिकल्स का उपयोग होता है जो हमारे चेहरे को कुछ समय के लिए सुंदर बनाता है, फिर बाद में हमारे चेहरे पर उसका बुरा असर पड़ता है। लेकिन आप चाहती हैं कि आपका चेहरा और ज्यादा सुंदर लगे तो मैं आपको ज़रूर कुछ प्रोडक्ट्स बता सकती हूँ जिससे आपके चेहरे पर ग्लो आएगा। लेकिन आप तो इतनी ज्यादा खूबसूरत हैं पहले से, आपको किसी भी प्रोडक्ट की क्या ही ज़रूरत।"

    आशना उसके मुँह से अपनी तारीफ़ सुनकर थोड़ी इतराने का नाटक करने लगी, फिर बोली, "हाँ भाभी, बिल्कुल सही कह रही हैं आप। मैं हूँ ही इतनी सुंदर।" (अपने बाल झटकते हुए)

    मंशा उसकी बात पर मुस्कुरा दी। उसे आशना काफी अच्छी लगी थी। उसका सबसे हँसमुख व्यवहार रखना मंशा को काफी भा गया। आशना ने कुछ देर उसे बात की। थोड़ी देर बाद आध्यात्म ने रेस्ट करने के लिए आशना को उसके रूम में भेज दिया।

    आध्यात्म आज ऑफिस जाने के मूड में नहीं था। वह घर से ही अपने सारे मीटिंग्स अटेंड कर रहा था। अभी भी वह अपने रूम में सोफे पर बैठकर एक ऑनलाइन मीटिंग में ही बिजी था। तभी उसकी नज़र सामने बाथरूम से आ रही मंशा पर चली गई।

    सुबह से मंशा ने उसे एक बार भी नहीं टोका था और उसका यही बिहेवियर आध्यात्म के गुस्से को काफी हद तक बढ़ाए भी जा रहा था।

    लेकिन इस बार मंशा उसके सामने खड़ी होकर उससे बोली, "मैं अपने हॉस्पिटल जा रही हूँ। बाय।"

    उसका यूँ ऐसे बोलकर जाना आध्यात्म को और ज्यादा गुस्सा दिला गया। उसने अपना लैपटॉप पर अपनी लाइव इमेज को ऑफ किया और जल्दी से लंबे-लंबे कदम लेकर उसके कलाई पकड़ कर अपने सीने से झटके के साथ चिपका लिया।

    उसकी मूवमेंट से मंशा पूरी तरह अनजान थी। वह थोड़ी देर तक उसके शरीर से लगी रही, फिर जल्दी से उसे अलग होने के लिए कसमसाने लगी। लेकिन आध्यात्म के सामने उसकी स्टैमिना कोई काम की नहीं थी। वह जितनी ज्यादा कोशिश करती, आध्यात्म उसे और ज्यादा कसाव से पकड़ लेता।

    उसके इतने जोर से पकड़ने पर अब मंशा को दर्द भी होने लगा था, लेकिन उसने दर्द की कोई भी झलक अपने चेहरे से बयां नहीं की। आध्यात्म का चेहरा गुस्से से तप रहा था। आसपास का वातावरण एकदम कोल्ड हो गया।

    मंशा के दिल के कहीं कोने में एक डर की चिंगारी जल गई, लेकिन फिर भी उसने अपने आप को कमजोर होने नहीं दिया। वह भी उसकी आँखों में घूरने लगी।

    मंशा बोली, "आपने मुझे पकड़कर क्यों रखा हुआ है? छोड़िए मुझे।"

    आध्यात्म उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए बोला, "सच में तुम्हें नहीं पता कि मैंने किस लिए तुम्हें पकड़ा है।" (उसके बोलने का अंदाज़ काफी डरावना था)

    मंशा नहीं में सर हिला दी। आध्यात्म उसके और ज्यादा करीब होकर अपने से चिपका लिया। मंशा उसे घूर रही थी।

    आध्यात्म बेहद ठंडी आवाज में गहराई से बोला, "तुम मुझे इग्नोर क्यों कर रही हो? या फिर यह भूल गई कि मैं क्या लगता हूँ तुम्हारा।"

    मंशा दृढ़ आवाज में बोली, "क्यों? मैं आपको इग्नोर क्यों ना करूँ? पति जबरदस्ती बने हैं आप मेरे। मैंने आपसे कोई गुहार नहीं लगाई कि आइए मुझसे शादी करिए।"

  • 16. "लव्स अंडरकरेंट"-16

    Words: 1292

    Estimated Reading Time: 8 min

    ...!!जय महाकाल!!...

    अब आगे...!!

    मंशा का इस तरह बात करना...आध्यात्म के गुस्से के ज्वाला को और ज्यादा बढ़ाने का काम कर रही थी...आध्यात्म उसकी बात पर उसके आंखों के घूरते हुए बोला:लेकिन इस बात को मानो या ना मानो...तुम बीवी हो मेरी...तो तुम मुझे इग्नोर नहीं कर सकती...!!

    मंशा बेझिझक बोली:मेरा मन नहीं रहता...कभी आपसे बात करने का...या आप इतने हैंडसम है नहीं...जो मैं आपको तारु...अब छोड़िए मुझे...लेट हो रहा है मुझे बहुत...!!

    आध्यात्म उसकी बात पर एक पल को...ये सोचने पर मजबूर हो गया था...की पूरी दुनिया की सारी लड़कियां उसपर कायल थीं...और एक उसकी खुद की बीवी आज उसे बोल रही थी...की वो हैंडसम नहीं है...इस बात ने थोड़ी देर के लिए ही सही...आध्यात्म सोच में पड़ गया...

    आध्यात्म उस पर अपने दबाव को और ज्यादा कसते हुए...और ठंडी आवाज में बोला:व्हाट मैं हैंडसम नहीं हूं...सीरियसली पागल हो गई हो क्या?...जानती भी हो जहां भी जाता हूं...लड़कियों की लाइन लग जाती है मेरे पीछे...लेकिन ये आदमी तुम्हारे पीछे पागल है...ये बात तुम्हारे ब्रेन में फिक्स नहीं हो रही क्या?...!!

    मंशा उसके खुद के तारीफ करने पर बोली:खुद की तारीफ सब करते हैं...आप अकेले नहीं है...जिसे इस बात का भ्रम हो...और आप मेरे पीछे कितना ही भाग ले...मैं आपको कभी अपने लाइफ पार्टनर के तौर पर स्वीकार नहीं करूंगी...!!

    आध्यात्म उसकी बात पर कुछ देर चुप रहा...फिर एकदम से मंशा के कोमल और सॉफ्ट होठों पर...अपने कठोर और ठंडे होठ रख दिया...मंशा को उसके इस एक्शन पर कुछ समझ ही नहीं आया...वो एक जगह स्तब्ध खड़ी रही...

    आध्यात्म धीरे धीरे उसके होठों को चूम रहा था...उसने बिल्कुल भी जोर नहीं लगाया...थोड़ी देर बाद मंशा ने खुद को संभाला...फिर आध्यात्म को एक धक्के के साथ खुद से अलग कर दी...और भागते हुए रूम से बाहर चली गई...

    आध्यात्म को अब लगा...की शायद उसने बेहद गलत किया था...एक लड़की के साथ...उसकी बिना मर्जी के उसे किस करना...उसने अपनी मुट्ठियों को भींच लिया...लेकिन कहीं न कहीं उसे इस बात का गुस्सा भी आ रहा था...की उसने एक लड़की जो उसी की बीवी है...उसे किस किया और वो ऐसे उसे धक्का देकर चली गई...

    वो वापस से अपने सोफे पर जाकर बैठ गया...अपनी आंखों को बंद कर कुछ शांत सा हो गया...लेकिन इसके आसपास का वातावरण बेहद ठंडा हो गया...जिससे उसके गुस्से का पता साफ लगाया जा सकता था...

    मंशा भागते हुए सीधे बंगलो के गार्डन में बाहर ही रुकी...वो कांप रही थी...वो सर को पकड़ कर वहीं लगे एक बेंच पर बैठ गई...उसकी आँखें पूरी तरह लाल थी...वो बहुत डर रही थी...उसकी आंखों के सामने कुछ धुंधला सा दृश्य बार बार आ रहा था...जिससे वो काफी पैनिक हो रही थी...वो लगातार अपने बालों को खींच रही थी...

    (फ्लैशबैक...!!)

    "अंकल मुझे छोड़िए ना...ये आप क्या कर रहे हैं...ये सब बहुत गंदा है...प्लीज छोड़ दीजिए मुझे...!!"

    एक छोटी बच्ची जो बहुत सुन्दर थी...एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से खुद को छोड़ने के लिए...गुहार लगा रही थी...लेकिन वो आदमी सुनने का नाम ही नहीं ले रहा था...

    "चुप(बच्ची को थप्पड़ लगा कर...उसके बाल को जोर से पकड़ खींचते हुए)एकदम चुप...ज्यादा चू चपर करेगी ना और तरपाऊंगा तुझे...समझी(झटकते हुए उसके बालों को छोड़ दिया)...!!"

    वो आदमी बच्ची के साथ जोर जबरदस्ती...के सारी हदें पार करने पर तुला हुआ था...उसके अंदर दया नाम की कोई चीज नहीं थी...ये सब करते समय...

    (फ्लैशबैक ऐंड...!!)

    मंशा वहीं बेंच पर बैठी बिलख बिलख कर रोने लगी...वो रोना नहीं चाहती थी...लेकिन अपने हालत को देख उसे रोना आ ही जा रहा था...वो करीब आधे घंटे तक रोते रही...अब उसका रोना सिसकियों में बदल गया था...उसे बहुत हिचकियां आ रहीं थीं...लेकिन वो वहीं बैठी किसी गहरे खयाल में खोई हुई थी...

    तभी आशना जो टहलते हुए वहां आई थी...वो अपना फोन स्क्रोल कर रही थी...इसलिए उसने अभी तक मंशा पर कोई ध्यान नहीं दिया था...और मंशा को तो होश ही नहीं था...

    लेकिन जब आशना ने अपनी नजरे उठा कर सामने देखा...तो मंशा को ऐसे हालत में देखकर...वो जल्दी से उसके पास आई...

    आशना मंशा को देखते हुए परेशानी से बोली:भाभी ये क्या हालत बना रखी है आपने अपनी...भाभी आप सुन रहीं हैं ना(मंशा को हिलाते हुए)...भाभी होश में आइए क्या हुआ है आपको?...!!

    मंशा को अपना शरीर हिलता हुआ महसूस हुआ...तब जाकर उसे आशना नजर आई...जो परेशानी से उसे देख रही थी...उसे अपने लिए परेशान देखकर मंशा की आँखें फिर भर आई...वो आशना के गले लगकर रोने लगी...

    मंशा को रोता हुआ देखकर...आशना को कुछ समझ नहीं आया...वो परेशानी सी बोली:भाभी कुछ हुआ है क्या?...भैया ने कुछ बोला है क्या आपको?...आप उनकी बातों पर ध्यान मत दीजिए...वो ऐसे ही सबको बोलते है(मंशा को खुद से अलग कर उसके चेहरे को अपने हाथों में भर कर)...आप उनकी बात को इग्नोर करिए...!!

    मंशा अपने आप को शांत करती है...फिर कुछ गहरी सांस लेकर...अपना सर ना में हिलाकर बोली:नहीं उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा...मुझे बस अपनी मां की याद आ रही थी...बहुत दिनों से उन्हें देखा नहीं है...आप परेशान मत हो मेरे लिए...!!

    आशना उसकी बात पर विश्वास ना करते हुए बोली:नहीं भाभी कुछ तो हुआ है...आप बहुत दुखी लग रही हैं...!!

    मंशा उसे आश्वाशन देकर बोली:नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ...मैं कभी भी अपनी मां से दूर नहीं रही ना...इसलिए रोना आ गया...!!

    आशना सर हिलाकर बोली:ठीक है आप इतना बोल रही हैं...इसलिए विश्वास करती हूं आप पर...लेकिन कोई प्रॉब्लम हो तो बेझिझक मुझसे शेयर कर सकती हैं आप...कर आपका नाम क्या है भाभी?...इतनी देर से बातें कर रहे हैं हम दोनों...लेकिन एक दूसरे का नाम ही नहीं जानते...!!

    मंशा मुस्कुराते हुए बोली:मेरा नाम मंशा श्रीवास्तव...उम्म नहीं...मंशा सूर्यवंशी...!!

    आशना अपना सर ना में हिलाकर बोली:नहीं भाभी आप अभी भी सही नहीं हैं...आपका पूरा नाम मंशा आध्यात्म सूर्यवंशी है...और मेरा नाम आशना सूर्यवंशी...!!

    आशना का मंशा और आध्यात्म...के नाम साथ जोड़ने पर मंशा मुस्कुरा दी...वो जब भी आध्यात्म के साथ अपना नाम जोड़ती थी...उसे कुछ अलग एहसास होता था...लेकिन आध्यात्म के हरकतों के कारण...अपने इस एहसास को मंशा ने दबाना ही चुना...

    ऐसे ही कुछ देर मंशा और आशना बात करती रहीं...फिर मंशा को अचानक से याद आया कि...वो तो अपने हॉस्पिटल जा रही थी...और आध्यात्म के उसके पुराने जख्म कुरेदने के वजह से...वो अभी तक यहीं है...

    वो आशना से बोली:आशना मैं अपने हॉस्पिटल जा रही थी...अब तो बहुत लेट हो गया है...मेरे सारे पेशेंट्स मेरा इंतेज़ार कर रहे होंगे...मुझे जाना होगा...!!

    आशना हैरानी से बोली:आप डॉक्टर हैं?...!!

    मंशा अपना सर हिला दी...तो आशना उसे जाने बोल दी...मंशा वहां से उठ कर गैरेज में आकर...एक कार में बैठ कर खुद ही ड्राइव करते हुए वहां से चली गई...उसके पास पहले से ही उस कार की चाबी थी...जो उसने आशु के थ्रू हासिल किया था...

    उसकी कार जब तक बंगलो से बाहर नहीं निकल गई...तब तक अपने रूम के बाल्कनी में खड़ा आध्यात्म उसे निहारते रहा...उसकी आंखों में लालीपन थी...जैसे अभी उसके आंखों से खून बह जाएगा...

    लाइफकेयर हॉस्पिटल...!!

    मंशा की कार आकर हॉस्पिटल के पार्किंग लौट में रुकी...वो अपने आप को अच्छे से कंट्रोल करके...गाड़ी से बाहर निकली...सारे मेल्स जो अपने चेकअप के लिए वहां आए थे...उसे ही निहारने लगे...

    मंशा सबकी नजरों को इग्नोर करते हुए...अपने केबिन की तरफ चल दी...मंशा सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हमेशा से बनते आ रही थी...इसलिए उसे इन सब की अब एक आदत सी हो गई थी...वो कभी भी किसी पर कोई ध्यान नहीं देती थी...लेकिन फिर भी सारे मर्द उसे हैवानों की तरह घूरते...और औरते उसे देख कर जलती...

    मंशा अपने केबिन के पास आई...तो वहां पहले से ही काफी पेशेंट्स उसका वेट कर रहे थे...वो उन्हें एक नजर देखकर...अपने केबिन में चली गई...एक एक कर सारे पेशेंट्स अपना चेकअप कराने लगे...

    मंशा काफी अच्छे से उनका चेकअप कर रही थी...तभी एक नौजवान आदमी ने मंशा को आवाज लगाई:डॉक्टर मंशा...आप कल नहीं आई थी...!!

    मंशा उसे देखकर कुछ पल हैरान रह गई...

    ...!!जय महाकाल!!...

    आज के लिए इतना ही.....मिलते है अगले भाग में.....
    इस कहानी को सपोर्ट करे.....मुझे आप सभी के सपोर्ट की बहुत जरूरत है.....मुझे फॉलो अवश्य करें.....और आज का पार्ट अच्छा लगा हो तो.....कमेंट्स और रेटिंग जरूर दें.....

  • 17. "लव्स अंडरकरेंट"-17

    Words: 1285

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंशा ने उस डॉक्टर को देखने की उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी। उसे देखकर एक पल को मंशा का मुँह बन गया, लेकिन जल्द ही उसने अपने चेहरे के एक्सप्रेशन को ठीक करते हुए कहा, "डॉक्टर सार्थक आप यहाँ? क्या आपके पेशेंट्स आपके पास नहीं पहुँचे कि आप यहाँ पहुँच गए?"

    डॉ. सार्थक को उसके लहजे पर थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर उसने अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए मंशा से कहा, "डॉ. मंशा आप सच में काफी मज़ाक करती हैं। मैंने आपको पेशेंट्स को चेक करते हुए देखा, तो बस आपके हालचाल पूछने आ गया।"

    मंशा ने कहा, "मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ डॉ. सार्थक, और रही बात हालचाल की, तो मैं बिल्कुल तंदुरुस्त हूँ। कुछ भी नहीं हुआ मुझे। अब आप अपने केबिन जाइए। आपके पेशेंट आपका वेट कर रहे होंगे। सो प्लीज़।"

    मंशा के ऐसे बात करने पर सार्थक का मुँह देखने लायक हो गया था। मंशा हमेशा से उससे ऐसे ही बात करती थी, लेकिन वह खुद ही था जो हमेशा मुँह उठाकर अपनी बेइज़्ज़ती करवाने मंशा के पास आ जाता था।

    सार्थक सीक्रेटली मंशा को लाइक करता था और यह बात मंशा को भी अच्छे से पता थी। इसलिए वह उससे दूर-दूर रहती थी, लेकिन फिर भी सार्थक चिपकू की तरह उससे चिपक जाता। सार्थक अपने प्रोफ़ेशन में एकदम फ़र्स्ट क्लास था। सारे डॉक्टर्स उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे।

    वह जाने लगा, तभी फिर से मुड़कर मंशा से बोला, "डॉ. मंशा, आपको डॉक्टर मेहता बुला रहे हैं। मैं आपको यही बताने आया था।"

    मंशा ने उसके बात पर अपना सिर हिला दिया और फिर से पेशेंट्स को चेक करने लगी। जब उसका काम ख़त्म हो गया, तब उसकी ही उम्र की एक लड़की जल्दी से आकर उसे अपने गले लगा ली।

    मंशा उसे देखकर चौंक गई। फिर उसे अपने से दूर करते हुए उस लड़की से बोली, "ये क्या हरकत है नैना? तुम दूर से भी मुझसे बात कर सकती हो। ये चिपकना मुझे बिल्कुल नहीं पसंद।"

    नैना उससे दूर होकर अपना मुँह एक बच्चे की तरह फुलाते हुए बोली, "क्या यार तू भी! (फिर उसके माँग में भरे सिंदूर को देखते हुए) तूने शादी कर ली? किससे और कब? और कौन है वो बदकिस्मत इंसान जिसे तुझ जैसी आइटम बम को झेलना है?"

    मंशा ने बालों से अपना सिंदूर छिपाया हुआ था, लेकिन फिर भी नैना के इतने करीब से देखने से उसे उसका सिंदूर दिख गया। मंशा ने एक नज़र उसे देखकर केबिन का दरवाज़ा बंद करने को कहा।

    नैना जल्दी से दरवाज़ा बंद करके वापस आकर सामने रखी चेयर पर पसर कर बैठ गई और एक्साइटमेंट से बोली, "तेरी शादी हो गई? अगर ये बात किसी दिन तेरे आशिकों को पता चलेगा तो बेचारों उनके दिल की तो धज्जियाँ ही उड़ जाएँगी। बता ना कब हुआ इतना बड़ा चमत्कार? और कौन है मेरे जीजा जी?"

    मंशा उसकी बात पर उसे घूरते हुए बोली, "क्यों? मैं तो किसी के लिए बदकिस्मती हूँ ना, तो मेरे बारे में जानने की जल्दबाजी क्यों दिखा रही है?"

    नैना बच्चों सी शक्ल बनाकर बोली, "मंशा तू तो बड़ी जल्दी गुस्सा हो जाती है। बता ना, प्लीज़।"

    मंशा ने गहरी साँस भरकर उसे सब कुछ बता दिया जो बीते दिनों उसके साथ गुज़रा था। नैना उसकी बात बहुत गौर से सुन रही थी। उसकी सारी बातें सुनकर उसके तो जैसे होश ही उड़ गए। वह उसे हैरानी से देखते हुए बोली, "क्या सच में? इतना सब कुछ हो गया और तू मुझे अभी बता रही है, वो भी पूछने पर? कैसी दोस्त बनेगी रे तू? और ये सब छोड़, इस शादी में सच में तेरी कोई मर्ज़ी नहीं है?"

    मंशा ने अपना सिर ना में हिला दिया। वह एक गहरी साँस लेकर बोली, "अब मैंने अपना सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया है। वो जो करेंगे सही ही करेंगे। वैसे भी इतनी ख़ास नहीं है मेरी ज़िन्दगी। वो मुझसे अच्छे से ही बात करते हैं, लेकिन मैं ही हूँ जो उनकी हर बात का टेढ़ा जवाब देती हूँ क्योंकि मुझे उनकी ज़बरदस्ती की गई मुझसे शादी याद आ जाती है।"

    नैना उसे आश्वासन देते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर बोली, "सब ठीक हो जाएगा मंशा। ऐसे निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं है। भूल मत, तू एक इंडिपेंडेंट लड़की है जो सिर्फ़ अपने खुद के रूल्स पर जीती है। एक बार कोशिश कर कि अपने रिश्ते को स्वीकारने की। (धीरे से उसके हाथ को सहलाते हुए उसकी आँखों में देखते हुए) मंशा, तूने रिश्ते होते हुए कई रिश्ते को खोया है। अब ईश्वर ने तुझे एक चांस दिया है तो उसे हाथ से जाने मत दे। एक बार ट्राई कर, ह्म्म... क्या पता उनके साथ अभी तेरी ज़िन्दगी जुड़ी है, बाद में उनके साथ तुम्हारे दिल भी जुड़ जाएँ।"

    मंशा थोड़ी उदास होकर बोली, "डर लगता है मुझे कि कहीं इस रिश्ते को भी ना खो दूँ। मैं तो हमेशा से बस एक सिंपल लाइफ़ चाहती थी, वो भी मुझे नहीं मिल रही। अगर मैंने इस रिश्ते को खो दिया तो मैं पूरी टूट जाऊँगी। भले ही ये रिश्ता नाम का हो, लेकिन बन तो चुका है और आशु से तो मेरी एक अलग ही बॉन्डिंग बन चुकी है। मुझे जब उसने माँ कहा था ना, एक अलग एहसास ने मेरे दिल को घेर लिया था। मैं नहीं चाहती कि आशु के साथ मेरा रिश्ता खत्म हो जाए और इसके लिए मुझे इस रिश्ते में रहना ही होगा। मैं पूरी कोशिश करूँगी कि उनके साथ अपने इस ज़बरदस्ती के रिश्ते में आगे बढ़ूँ।"

    नैना ने अपना सिर हिला दिया और उसे उदास देखकर उसका मूड लाइट करने के लिए मज़ाकिया लहजे में बोली, "वैसे अगर उनके साथ नहीं रहना चाहती तो तेरे पास तो बहुत सारे ऑप्शन्स हैं और उनमें सबसे अच्छा ऑप्शन तो खुद डॉक्टर सार्थक हैं। देखती नहीं कैसे तेरे पीछे पागलों की तरह घूमते रहते हैं।"

    मंशा उसकी बात पर उसे बड़े गुस्से से घूरने लगी और बोली, "क्यों? तुझे इतना ही उनमें इंटरेस्ट है तो जा खुद ही उनकी बीवी बन जा। मुझे उनसे जोड़ने की कोशिश गलती से ही मत करना।"

    नैना ने अपना सिर हिला दिया और वापस दोनों अपना काम करने लगीं। तभी मंशा को याद आया कि डॉक्टर मेहता ने उसे बुलाया था। वह उठकर उनके केबिन की तरफ़ चल दी।

    जब मंशा वहाँ पहुँची तो पहले से ही वहाँ सार्थक और डॉक्टर मेहता बैठे हुए किसी बारे में डिस्कशन कर रहे थे। मंशा ने केबिन में नॉक की तो डॉक्टर मेहता ने उसे अंदर आने को कहा।

    वह अंदर आकर उनके सामने खड़ी होकर बोली, "डॉक्टर आपने मुझे बुलाया था। माफ़ी चाहती हूँ लेट होने के लिए।"

    डॉक्टर मेहता ने अपना सिर हिलाकर बोला, "कोई बात नहीं डॉक्टर मंशा, लेकिन आजकल आप काफी लेट होने लगी हैं। लगता है अब आपको आपके काम में दिलचस्पी नहीं है। खैर छोड़िए, मैंने आपको ये कहने के लिए बुलाया था कि आपको और डॉक्टर सार्थक को एक साथ मिलकर कैसे हैंडल करना होगा क्योंकि उसमें आप दोनों जैसे ही काबिल डॉक्टर्स की ज़रूरत है। क्या आप रेडी हैं?"

    मंशा ने अपना सिर हिलाकर बोला, "मैं एक डॉक्टर होने के नाते हमेशा रेडी हूँ। मैं अपने फ़र्ज़ के प्रति हमेशा तत्पर रही हूँ तो आज मैं कैसे पीछे हट सकती हूँ? लेकिन कुछ दिनों से मेरी पर्सनल लाइफ़ में बहुत दिक्क़त हो रही है, इसलिए मेरा मन स्टेबल नहीं है, लेकिन मैं पूरी कोशिश करूँगी कि मैं अपने आप को स्टेबल रख सकूँ।"

    डॉक्टर मेहता ने उससे पूछा, "क्या कोई ज़्यादा परेशानी की बात है डॉक्टर मंशा? अगर ऐसा है तो आप कुछ दिनों की लीव ले सकती हैं।"

    मंशा ने ना में सिर हिलाकर बोला, "नो डॉक्टर, इसकी ज़रूरत नहीं है और मैं आपको ये बताना चाहती हूँ कि मेरी शादी हो गई है।"

    डॉक्टर मेहता सरप्राइज़ होकर बोले, "ओह कांग्रेचुलेशन डॉक्टर मंशा और आप अब बता रही हैं।"

    मंशा बस मुस्कुरा दी और बोली, "वो समय ही नहीं मिल पाया। ओके, तो अब मैं चलती हूँ।"

    सार्थक की हैरानी हद पार कर चुकी थी। उसकी बात सुनकर, उसने कितने सालों से उसके साथ रहने का सपना देख रखा था और आज बिना किसी इन्फ़ॉर्मेशन के उसकी शादी हो चुकी थी। उसका दिल बुरी तरह घायल हो गया था।

    सार्थक का बस चलता तो वह अभी वहीं बैठकर रोने लगता, लेकिन उसने अपने इमोशंस को कंट्रोल किया और डॉक्टर मेहता से परमिशन लेकर जल्दी से बाहर आकर मंशा के पीछे आने लगा। उसने उसे आवाज़ लगाया तो मंशा रुक गई और मुड़कर उसे देखने लगी।

    सार्थक उसके पास आया तो मंशा उसे देखते हुए बोली, "क्या हुआ डॉक्टर सार्थक? आपका मुझे ऐसे रोकने का कोई रीज़न?"

    सार्थक उसके हाथ को एकदम से पकड़ते हुए बोला, "डॉक्टर मंशा, आप ऐसे कैसे किसी से भी शादी कर सकती हैं?"

    मंशा उससे अपना हाथ छुड़ाकर बोली, "क्यों? मैं किसी से भी शादी करूँ? आपको उससे क्या मतलब?"

  • 18. "लव्स अंडरकरेंट"-18

    Words: 1355

    Estimated Reading Time: 9 min

    सार्थक ने जब मंशा को हाथ पीछे खींचते हुए देखा, उसका दिल बुरी तरह चकनाचूर हो गया। उसने कहा, "क्या...आप शादी से बहुत खुश हैं डॉक्टर मंशा?!!"

    मंशा ने हाँ में सर हिलाकर वहाँ से चली गई क्योंकि वह सार्थक से बात करने में जरा सी भी इंटरेस्टेड नहीं थी।

    सार्थक वहाँ से अपने केबिन में चला गया। उसकी आँखें पूरी लाल हो गई थीं। वह अपने चेयर पर बैठकर सिसकते हुए रोने लगा।

    मंशा अपने केबिन में आई तो उसका फ़ोन पहले से बज रहा था। वह अपना फ़ोन ले जाना भूल गई थी। उसने देखा कि उसे किसी अननोन नंबर से कॉल आ रहा था। उसने एक बार उसे इग्नोर कर दिया, लेकिन बार-बार किसी का कॉल आ रहा था। इसलिए वह परेशान होकर कॉल पिक कर ली।

    सामने से आध्यात्म की बेहद ठंडी और गहरी आवाज आई, "क्या तुम बहरी हो गई हो जो इतनी देर बाद तुमने कॉल पिक किया?!!"

    मंशा ने जब आध्यात्म की गहरी आवाज सुनी, तो एक बार फिर सुबह की हुई वारदात उसे याद आ गई। वह कुछ पल चुप रहकर बोली, "हाँ मैं बहरी हो गई थी। अब जिस काम के लिए आपने फोन किया, बताइए।!!"

    आध्यात्म उसके जवाब को सुनकर बोला, "तुम हमेशा टेढ़ा जवाब क्यों देती हो? सीधी मुँह बात करना किसी ने सिखाया नहीं तुम्हें?!!"

    मंशा ने भी उसी टोन में कहा, "नहीं, जैसे आपको किसी ने नहीं सिखाया, मुझे भी किसी ने नहीं सिखाया। तो अब सीधे पॉइंट पर आइए।!!"

    आध्यात्म ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "चलो आज कहीं चलते हैं, साथ में।!!"

    मंशा ने सीधे इनकार करते हुए कहा, "सॉरी फॉर दैट, लेकिन मुझे आपके साथ कहीं जाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है।!!"

    मंशा इतना कहकर फ़ोन काट दिया।

    मंशा के फ़ोन काट देने पर, अपने स्टडी रूम में बैठा आध्यात्म एकदम से गुस्से से लाल हो गया। उसने सोचा था कि इस बहाने वह अपनी सुबह की गई हरकत के लिए माफ़ी मांगेगा, लेकिन मंशा के रिएक्शन पर उसका पूरा बना-बनाया मूड खराब हो गया था।

    उसने अपना फ़ोन गुस्से में दीवार पर दे मारा। उसका फ़ोन टूटकर चकनाचूर हो गया। वह अपने गुस्से को कंट्रोल करने में सक्षम नहीं था। उसने सामने रखे सिगरेट के पैकेट को उठाकर एक-एक कर सारी सिगरेट पी डाली।

    लेकिन तब भी वह शांत नहीं हुआ था। वह गुस्से से अपनी मुट्ठियों को भींचते हुए बोला, "तुम्हें तो मैं छोड़ूँगा नहीं वाइफ़ी। बस एक बार तुम आओ यहाँ, तब तुम्हें समझ आएगा आध्यात्म सूर्यवंशी क्या चीज़ है।!!"

    रात का समय था।

    मंशा की शिफ़्ट ख़त्म हो चुकी थी। वह कोट को अपने हाथ में लटकाकर, अपना बैग उठाकर बाहर निकल कर जाने लगी। तभी बीच में नैना ने उसे रोककर कहा, "मंशा चल ना, क्लब चलते हैं। प्लीज।!!"

    मंशा ने उसे मना करते हुए कहा, "नहीं नैना, फिर कभी चलेंगे, लेकिन आज नहीं।!!"

    नैना ने उसे खींचते हुए ले जाकर अपनी कार में बिठा दिया। मंशा उसे लगातार मना कर रही थी, लेकिन नैना ने उसकी एक नहीं सुनी। नैना कार ड्राइव करते हुए बोली, "सो कौन से क्लब चलें?!!"

    मंशा उसे गुस्से से घूरने लगी। नैना ने उसे खुद को ऐसे देखते हुए एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, "देख मंशा, तेरी शादी हो गई, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि तू अपनी लाइफ को एन्जॉय करना भूल जाएगी।!!"

    मंशा ने उसे देखते हुए कहा, "जल्दी ड्राइव करो, मुझे वहाँ से घर भी जाना है।!!"

    नैना ने सर हिलाते हुए कार की स्पीड बढ़ा दी। कुछ देर में दोनों उस शहर के सबसे नामी क्लब के सामने खड़े हुए थे। नैना गाड़ी पार्क करके आई और उसे देखते हुए बोली, "अब यहीं खड़े रहने का मन है या अंदर भी जाएगी?!!"

    यह बोलते हुए उसने मंशा का हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे अंदर ले गई। अंदर काफ़ी शोर-शराबा था जिसमें ठीक से कुछ भी सुनाई भी नहीं दे रहा था।

    कुछ यंगस्टर्स स्टेज पर जमकर डांस कर रहे थे। मंशा और नैना वहीं बार में बैठकर हार्ड ड्रिंक पी रही थीं। यंगस्टर्स को गाने के बोल पर थिरकते हुए देख मंशा उनके बीच जाकर डांस करने लगी। उसके पीछे-पीछे नैना भी चली आई।

    मुश्किल में है जीना
    तूने दिल यह छीना
    हो गए पागल देखो
    प्यार में ये है सीना (X2)

    मंशा काफ़ी मदहोशी से अपने कमर थिरका रही थी क्योंकि उसे अब ड्रिंक का नशा चढ़ने लगा था।

    दर्द-ए-दिल की राहत तू
    धड़कनों की मन्नत तू
    हुसन का दरिया हूँ मैं
    और मेरा साहिल तू

    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु सुकु सुकु नहीं मेरा
    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु नहीं मेरा (X2)

    मंशा के मूव्स इतने हसीन थे कि वहाँ पहले से डांस कर रहे यंगस्टर्स उसे ही ताकने लगे। लड़के तो उसे हवसी निगाहों से घूर रहे थे, लेकिन मंशा ने सबको इग्नोर किया।

    तू ही मेरी मोहब्बत और तू ही है नशा
    तू नहीं तो मेरी ये ज़िन्दगी सज़ा
    नाम लेके मेरा पास आइये हुज़ूर
    इश्क़ में हमको भी कर दीजिये मशहूर

    है इबादत मेरी तू
    जान की आफ़त भी तू
    तू सफ़र है हमसफ़र है
    सफ़र की मंज़िल तू

    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु सुकु सुकु नहीं मेरा
    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु नहीं मेरा (X2)

    उसका पूरा बदन पसीने से भीग चुका था जिससे उसका बदन और तराशा हुआ महसूस हो रहा था।

    नज़रों से वार करे
    एक ना हज़ार करे
    गलियों में यार तेरी
    लोग बेशुमार मरे

    कुछ तो बदल गए
    कुछ तो संभल गए
    और कई ऐसे भी थे
    जान से फिसल गए

    तेज़ ज़हर तेरा
    जलवा केहर तेरा
    कम कभी होगा नहीं
    उफ़ ये असर तेरा

    तुझ जैसा झूठा लगे
    मुझको ये वादा तेरा
    एक धोखा तू

    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु सुकु सुकु नहीं मेरा
    कुसु कुसु कुसु कुसु कुसु तेरा
    सुकु सुकु नहीं मेरा (X2)

    सारे लड़के डांस करते हुए अब मंशा पर चढ़े जा रहे थे। इसे महसूस करते हुए मंशा स्टेज से उतरने लगी तो एक लड़का, जो शकल से ठीक-ठाक था, उसकी कमर पकड़कर उसे अपने से चिपका लिया।

    मंशा ने जब उसे खुद से चिपका हुआ देखा, तो उसने उसे झटके से पीछे धकेल दिया। वह लड़का फिर भी उसके करीब आकर बोला, "अरे छमक छल्लों कहाँ चली? आज की रात हमें भी जन्नत की सैर करा दो। माँ कसम पैसों की बारिश कर दूँगा तुम्हारे ऊपर!.." (उसका टोन बहुत घिनौना था)

    वह लड़का मंशा के बदन को बड़ी बेशर्मी से घूर रहा था। मंशा उसे घूरते हुए बोली, "अच्छा इतने अमीर हो तुम? तो चलो मुझे भी जन्नत की सैर करा दो।!!" (मंशा का टोन बहुत डार्क था)

    लड़का मंशा के बदन को घूरते हुए अपने से फिर चिपका लिया और उसके कमर को मसलते हुए बोला, "तुम तो हमारी ही केटेगरी की लगती हो।!!" (उसने मंशा के बालों की लटों को पीछे करते हुए कहा)

    नैना उस लड़के को देखकर एविल स्माइल करते हुए बोली, "बड़ी गलत इंसान से पंगा लिया तूने। अब देख क्या होगा तेरे साथ।!!"

    उसका इतना कहना ही था कि उस लड़के की चीखती हुई आवाज आई। नैना की स्माइल और गहरी हो गई।

    मंशा उस लड़के को घूरते हुए बोली, "आइन्दा अगर किसी लड़की के साथ बदतमीजी करने की कोशिश की, तो इसे ज़रूर याद रखना।!!"

    वह लड़का अपने सबसे कोमल स्थान पर हाथ रखकर कराह रहा था। उसकी साँसें बहुत तेज हो गई थीं।

    मंशा उसे देखते हुए अपने कदम फिर से बार की तरफ़ बढ़ा दी, लेकिन तभी उसकी नज़र सबसे ऊपरी फ़्लोर पर खड़े आध्यात्म पर पड़ी। उसे देखते ही अचानक से मंशा के रोएँ एक साथ खड़े हो गए।

    आध्यात्म उसे गहरी निगाहों से घूर रहा था। उसकी नज़रें आग के तरह मंशा को महसूस हो रही थीं। आध्यात्म की नज़रें बढ़ते समय के साथ और ज़्यादा पैनी होती जा रही थीं। वह मंशा को एक नज़र देख वहाँ से अंदर चला गया।

    मंशा अपने धड़कनों को सामान्य करते हुए जल्दी से बार की ओर बढ़ गई। तभी नैना ने उसे रोकते हुए कहा, "मंशा चल ना, यहीं के रेस्टोरेंट में डिनर कर लेते हैं।!!"

    मंशा उसे मना ही कर रही थी कि तभी एक मज़बूत हाथ ने उसे अपनी ओर खींच लिया। मंशा उसके सीने से टकरा गई। उस शख्स के बॉडी से आती हुई स्ट्रांग फ़्रेगरेंस की स्मेल से मंशा समझ चुकी थी कि कौन हो सकता है यह आदमी।

    उसका शरीर आध्यात्म की मौजूदगी को महसूस करके पूरी तरह अकड़ गया। मंशा के हाथ आध्यात्म के सीने पर थे। वह उसे खुद से दूर करने लगी, लेकिन आध्यात्म ने उसके हाथ को झटक दिया और मंशा को खुद के और करीब कर लिया।

    मंशा के माथे पर पसीने की बूँदें झलकने लगीं। ना जाने क्यों उसे आज आध्यात्म से बहुत डर लग रहा था।

  • 19. "लव्स अंडरकरेंट"-19

    Words: 1312

    Estimated Reading Time: 8 min

    नैना एक कोल्ड और शख्त औरे के व्यक्ति को देख सहम गई। मंशा को उस आदमी के इतने करीब देखकर मानो उसकी साँसें अटक गई थीं। उसे लगा अब मंशा इस आदमी का भी वही हाल करेगी जो अभी कुछ देर पहले उसने उस लड़के का किया था।

    लेकिन उससे उलट, मंशा आध्यात्म के बदन से चिपकी हुई, अब पूरी तरह ब्लैंक हो गई थी। उसने अब तक अपने फ़ोटो पर हार चढ़ता हुआ भी महसूस कर लिया था।

    आध्यात्म ने उसे अपने साथ जाने के लिए कहा था, तो उसने रिजेक्ट कर दिया था, और अब वह खुद किसी के साथ यहाँ आई हुई थी। यह बात आध्यात्म के गुस्से को और भड़का रही थी।

    आध्यात्म की पकड़ उस पर समय के साथ कसती जा रही थी। नैना को उसने देखा तक नहीं था, और मंशा को अपने गोद में उठाकर वहाँ से ले जाने को मुड़ा था। तो नैना, जो कब से मंशा के एक्शन का वेट कर रही थी, वह आध्यात्म से बोली:

    "अरे आप मेरी दोस्त को कहाँ ले जा रहे हैं? उसे छोड़िए यहीं!!"

    आध्यात्म ने अपनी जलती निगाहों से उसे घूरा। जिसे देखकर नैना के मुँह से अब एक शब्द नहीं फूटा। वह चुपचाप उसे मंशा को ले जाता हुआ देखने लगी।

    नैना को अब तक यह मालूम पड़ गया था कि वह कोई नॉर्मल पर्सन नहीं था। क्योंकि यह हरकत किसी और ने की होती, तो वह अब तक यहाँ के सिक्योरिटी गार्ड्स से बच नहीं सकता था। लेकिन आध्यात्म को देखकर गार्ड्स अपनी जगह से हिले तक नहीं।

    नैना अपने सर पर चपत लगाते हुए खुद से बोली: "नैना क्यों लेकर आई तू मंशा को यहाँ? वह कितना मना कर रही थी तुझे, लेकिन तू नहीं मानी। अब क्या करूँ मैं? लेकिन एक सेकंड... मंशा भी तो उस आदमी को देखकर कुछ रिएक्ट नहीं की... मतलब वह उसे जानती है... हाँ, वह उसे जानती है!!" (ऐसा कहकर वह खुद को तसल्ली देने लगी कि मंशा के साथ कुछ गलत नहीं होगा।)

    वह वहाँ के बॉडीगार्ड्स से जाकर उस आदमी के मंशा को जबरदस्ती ले जाने के बारे में बोली। तो बॉडीगार्ड्स ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं है। नैना उन सब को देखकर परेशान हो गई।

    वहीं क्लब के सबसे टॉप फ़्लोर पर कई सारे वीवीआईपी रूम्स थे, जहाँ केवल रईस आदमी ही रहना अफ़ोर्ड कर सकते थे। यह क्लब सूर्यवंशी कॉरपोरेशन के अंडर था, यानी कि इसका मालिक कोई और नहीं बल्कि आध्यात्म ही था।

    आध्यात्म मंशा को अपने पर्सनल रूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया। मंशा उसे इतने गुस्से में देखकर अपने में ही सिमटी जा रही थी। उसे आज आध्यात्म के इस रूप से काफ़ी डर लग रहा था। और लगता भी क्यों नहीं? आध्यात्म सच में किसी दानव से कम नहीं लग रहा था।

    आध्यात्म लंबे-लंबे कदम लेकर डोर को अंदर से लॉक करके मंशा के पास जाकर उसे अपने करीब खींच लिया और उसके चेहरे को अपने हाथ से मज़बूती से पकड़ लिया। उसके इतने मज़बूत कसाव से मंशा का चेहरा दर्द करने लगा था।

    मंशा उसे खुद से दूर करने के लिए उसे अपने हाथों से धक्का दिया। तो आध्यात्म ने उसके हाथों को भी कसकर अपने दूसरे हाथ से जकड़ लिया। अब मंशा पूरी तरह उसकी कैद में आ चुकी थी। उसने बहुत कोशिशें की उससे छूटने की, लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई।

    आध्यात्म अपने गुस्से से तमतमाते चेहरे के साथ उसकी जद्दोजहद को देखते हुए बोला:

    "जब मैंने तुम्हें अपने साथ चलने को कहा, तो तुमने मुझे मना कर दिया, और अब खुद किसी के साथ यहाँ आकर डांस करती फिर रही हो। हाँ, बोलो, चुप क्यों हो?!" (उसका गुस्सा वक्त के साथ और अधिक बढ़ गया था।)

    मंशा उससे इस भयानक रूप से काफ़ी डर गई थी, इसलिए बस अपनी नज़रें झुकाए उसकी बातें सुन रही थी क्योंकि वह अभी कुछ भी बोल ही नहीं पा रही थी।

    आध्यात्म ने उसे बेड पर धक्का दे दिया, जिससे वह बेड पर गिरते हुए लेट गई थी। आध्यात्म अपनी शर्ट के बटन्स को खोलने लगा। उसे ऐसा करते देख मंशा अपनी सारी हिम्मत जुटाते हुए बोली:

    "ये...ये...क्या कर रहे हैं आप? देखिए मैं बस यहाँ अपना मूड सही करने आई थी, और आपको इन सब से कोई मतलब नहीं होना चाहिए!!" (उसकी आवाज़ बहुत कांप रही थी।)

    आध्यात्म जो अब तक अपने सारे बटन्स खोल चुका था, वह अपनी शर्ट को सोफ़े पर फेंकते हुए बोला:

    "क्यों? जब मैंने तुम्हें अपने साथ चलने को कहा, तब तो तुमने मुझे मना कर दिया। अब मैं अपने पति होने का अधिकार लेना चाहता हूँ, तब तुम मुझे रोक रही हो!!"

    मंशा हिचकिचाते हुए बोली:

    "देखिए आपने... जबरदस्ती मुझे अपने साथ इस रिश्ते में बाँधा है। मैं इस रिश्ते को नहीं मानती। दूर रहिए मुझसे!!"

    आध्यात्म उसकी ये कुछ शब्द सुनकर कुछ पल रुक गया। फिर उसे एक गुस्से की नज़र से देखते हुए वाशरूम में चला गया। मंशा उसे वाशरूम जाता देखकर थोड़ी शांत हुई। ड्रिंक करने के वजह से उसे वहीं नींद आ गई।

    आध्यात्म वाशरूम में शावर ऑन करके उसके नीचे काफ़ी देर तक खड़ा रहा। वह कुछ हद तक अपने गुस्से पर कंट्रोल करके वाशरूम से सिर्फ़ टॉवेल में बाहर आया। मंशा को सोया हुआ देखकर उसका आधा गुस्सा ऐसे ही गायब हो गया। क्योंकि उस समय मंशा कोई मासूम सी, भोली-भाली सी बच्ची लग रही थी।

    आध्यात्म उसके करीब बेड के सिरहाने बैठ गया और एकटक उसके खूबसूरत चेहरे को ताकने लगा। ना जाने कब उसके हाथ उसके बालों पर चलने लगे। धीरे-धीरे वह उसके और करीब आता गया। फिर उसे ऐसा लगा जैसे मंशा नींद में ही कुछ बड़बड़ा रही हो।

    आध्यात्म उसका बड़बड़ाना सुनकर अपने कान को उसके होंठों के सामने ले गया। तब भी उसे उसके शब्द सुनने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

    "अंकल ये क्या कर रहे हैं आप? ये सब गंदा है। मुझे अच्छा नहीं लग रहा है अंकल। छोड़ दीजिए मुझे अंकल!!" (मंशा के चेहरे पर अब घबराहट साफ़ दिख रही थी।)

    आध्यात्म ने जब ये सब उसके मुँह से सुना, उसका चेहरा शख्त हो गया। उसने धीरे-धीरे मंशा को शांत करने के लिए उसके माथे को प्यार और बेहद नरमी से सहलाना शुरू कर दिया। लेकिन मंशा वक्त के साथ और ज़्यादा डर रही थी। शायद उसे कोई भयानक सपना याद आ रहा हो।

    तभी अचानक से मंशा एक चीख के साथ उठकर बैठ गई। सामने आध्यात्म उसके इस बिहेवियर को देख शौक हो गया। लेकिन फिर मंशा जो अब खुद में सिमट रही थी, उसके कंधे को प्यार से सहलाने लगा।

    मंशा अपने सर को उठाकर उसे देखने लगी। फिर एकदम से आध्यात्म के गले से लग गई। आध्यात्म उसे इतना डरा हुआ देखकर उसके पीठ को सहलाने लगा।

    कुछ देर बाद मंशा का रोना अब सिसकियों में बदल गया था। धीरे से मंशा उससे दूर हुई, लेकिन वह उससे अभी भी चिपकी हुई थी। उसने आहिस्ता से अपनी नज़रें उठाकर आध्यात्म की निगाहों में झाँका। तो आध्यात्म भी बेहद प्यार और नरमी से उसे देख रहा था।

    उन दोनों की निगाहें आपस में बात कर रही थीं। मंशा आध्यात्म की आँखों में देखते हुए ही उसके होंठों से अपने होंठों को छू ली। आध्यात्म उसके इस एक्शन पर हैरानगी से भर गया। आखिर अचानक से ऐसा क्या हो गया मंशा को कि वह उसे किस कर रही थी?

    मंशा ने जब आध्यात्म के तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं महसूस की, तब वह उससे अलग होने लगी। लेकिन तभी आध्यात्म उसके होंठों को धीमे से और प्यार से चूमने लगा। मंशा उन एहसासों में खो सी गई।

    थोड़ी देर पहले जितनी वह उससे दूर भाग रही थी, अभी वह उतनी ही ज़्यादा उसके करीब आ रही थी। कुछ देर बाद अलग होकर दोनों एक-दूसरे की निगाहों में फिर से खो गए।

    मंशा धीरे से उससे बोली:

    "सॉरी... मुझे ये नहीं करना चाहिए था!!"

    आध्यात्म भी काफ़ी शांत लहजे से बोला:

    "मुझ पर तो तुम्हारा पूरा अधिकार है। इसके लिए तुम्हें सॉरी कहने की कोई ज़रूरत नहीं!!"

    फिर थोड़ी देर उनके बीच खामोशी छाई रही। फिर एकाएक आध्यात्म ने उसे पूछा:

    "तुम नींद में किसे खुद से दूर होने के लिए बोल रही थी?"

    मंशा भीगी पलकों से उसे देखते हुए थोड़ा हिचक कर धीमे स्वर में बोली:

    "वो मेरे बचपन का एक ऐसा अतीत है जिसे मैं चाहकर भी कभी नहीं भूल सकती। जब भी कोई मेरे करीब आने की कोशिश करता है, तब मेरे सामने वो यादें ताज़ा हो जाती हैं जिनका जिक्र अभी नहीं करना चाहती मैं!!"

  • 20. "लव्स अंडरकरेंट"-20

    Words: 1333

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    आध्यात्म के जवाब पर उसने कुछ नहीं कहा। मंशा को सुलाने के बाद, वह स्वयं बाल्कनी में आकर खड़ा हो गया और जेब से सिगरेट निकालकर उसे जलाया। उसने लंबे-लंबे कश लेने शुरू कर दिए।

    वह गहरी सोच में था। उसने अपना फ़ोन निकालकर किसी को कॉल लगाया। सामने से कॉल पिक हुआ, तो आध्यात्म ने गहरी और ठंडी आवाज़ में कहा, "मंशा के पास्ट के बारे में मुझे पूरी इंफॉर्मेशन चाहिए। तुम इसके लिए जितना चार्ज करोगे, मैं तुम्हें उसका डबल दूँगा। बस मेरा यह काम होना चाहिए।"

    रिशान ने उसकी बात पर एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "क्यों बॉस, ज़रूरत पड़ ही गई ना मेरी? कहा था मैंने कि मैम के पास्ट से रिलेटेड इंफॉर्मेशन की ज़रूरत आपको बाद में पड़ेगी ही।"

    आध्यात्म ने और गहरे टोन में कहा, "हम्म… लेकिन मुझे जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी उसकी इंफॉर्मेशन चाहिए।"

    रिशान बोला, "ओके बॉस… सो फ़िफ़्टी लैक्स रेडी रखिए। वन वीक में आपके सामने उनकी सारी जानकारी हाज़िर रहेगी।"

    आध्यात्म ने "हम्म" में जवाब देकर कॉल रख दिया और सोचने लगा कि आखिर मंशा के साथ ऐसा क्या हुआ होगा, जो वह उस बात से अभी तक पैनिक होती है।

    कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद, वह वापस कमरे में आया। बेड पर मंशा किसी छोटी बच्ची की तरह मासूमियत ओढ़े सोई हुई थी। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह जागने पर सबसे झगड़ती फिरती है।

    आध्यात्म हमेशा उसकी इस क्यूटनेस पर कायल हो जाता था। आज भी वही हाल हुआ। वह बेड पर आकर बड़े ही प्यार और जुनूनी निगाहों से उसे घूरने लगा। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो मंशा के लिए खास था। आध्यात्म ने मंशा के चेहरे पर आई कुछ लटें, जो उसे नींद में परेशान कर रही थीं, अपने हाथों से हल्के से उसके कान के पीछे कर दीं।

    काफी देर बिताने के बाद, वह स्वयं नींद की दुनिया में खो गया, जहाँ भी वह मंशा के साथ ही था।

    अगली सुबह मंशा सोकर उठी और अपने बगल में लेटे आध्यात्म को देख रही थी।

    "सोते हुए ये कितने अच्छे लगते हैं… लेकिन इनका गुस्सा तौबा-तौबा… मैं तो काफ़ी डर गई थी कल… नहीं, मैं डरती किसी से नहीं… बस इनसे डर लग रहा है मुझे।" मंशा इन ही ख्यालों में खोई हुई थी कि तभी उसके कान में एक भारी और ठंडी आवाज़ आई जिससे वह हैरानी से आध्यात्म को देखने लगी।

    "क्या सोच रही हो जाना मुझे घूर-घूर कर? नज़र मत लगाओ… मुझे इतना भी हैंडसम नहीं हूँ मैं।" आध्यात्म ने उसकी ओर पलटते हुए कहा।

    मंशा ने उसकी ओर घूरते हुए कहा, "आप जाग रहे हैं तो ऐसे लेटे रहने का क्या मतलब है?"

    आध्यात्म ने अपने चेहरे पर एक एविल स्माइल लाते हुए कहा, "मुझे अपनी वाइफ़ी के एक्सप्रेशंस नोट करने थे… कि कितना प्यार करती हो मुझसे।"

    मंशा चिढ़ कर बोली, "प्यार? वो भी आप जैसे दरिंदे से? सपने में मत सोचना कि ऐसा भी होगा।"

    आध्यात्म ने उसकी कमर से पकड़कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके कान में अपनी गहरी साँसें छोड़ते हुए उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए बोला, "दरिंदा… काफ़ी अच्छा निकनेम दिया है तुमने मुझे… लेकिन मुझे कुछ खास पसंद नहीं आया… क्योंकि काफ़ी लोग मुझे इसी नाम से बुलाते हैं… तुम स्पेशल हो मेरे लिए… तो कुछ और निकनेम दे सकती हो मुझे।"

    मंशा उसकी करीबी से पूरी तरह फ़्रिज हो चुकी थी। वह खुद को उससे दूर करना चाहती थी, लेकिन कर नहीं पा रही थी। इसलिए चुपचाप उसकी बात का जवाब देते हुए बोली, "लेकिन आप मेरे लिए स्पेशल नहीं हैं और आपको निकनेम देने में मैं बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं हूँ।"

    आध्यात्म ने उसे अजीब तरीके से घूरते हुए उसके गुलाबी होंठों को देखना शुरू कर दिया। मंशा ने उसे खुद से दूर करने की कोशिश की, लेकिन आध्यात्म ने उसे और मज़बूती से पकड़ लिया।

    फिर धीरे-धीरे वह उसके होठों के करीब जाने लगा। मंशा ने अपना चेहरा इधर-उधर घुमाना शुरू कर दिया, लेकिन आध्यात्म को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसने एकदम धीमे से उसके होठों को छू लिया जिस पर मंशा पूरी शांत हो गई। वह भी उसके एहसास में धीरे-धीरे खोने लगी।

    लेकिन थोड़ी देर बाद उसे होश आया कि वह क्या कर रही है। इसलिए उसने धीरे से उसके होठों से खुद को दूर कर लिया और उठकर बैठ गई। वह अब कुछ भी नहीं बोल रही थी।

    आध्यात्म ने उसे देखकर भी उठकर बैठ गया और उसके चेहरे को निहारने लगा। लेकिन मंशा के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। आध्यात्म को लगा शायद उसे फिर से वही याद आ रहा है, इसलिए उसने आगे कुछ नहीं किया।

    कुछ देर मंशा शांत रही और फिर नज़रें घुमाकर आध्यात्म को निहारने लगी जो अभी भी उसे ही देख रहा था। उसे देखने के बाद वह कुछ सोचकर मुस्कुरा दी, जिसका मतलब आध्यात्म को समझ नहीं आया। इसलिए उसने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, "क्या हुआ जाना? कुछ सोच रही हो?"

    मंशा ने उसे मुस्कुराते हुए देखते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा, "आप भी मेरा इस्तेमाल करके मुझे छोड़ देंगे, हैं ना?"

    आध्यात्म उसकी बात पर एकदम से गुस्से से भर गया। उसके शरीर में कंपन शुरू हो गया, जिसे देखकर मंशा ने अपनी नज़रें सामने कर लीं। फिर एकदम धीमी आवाज़ में बोली, "सब ऐसा ही करते हैं मेरे साथ… क्या मैं कोई सामान हूँ जो सब बस मेरा इस्तेमाल करना जानते हैं? कोई मेरे अंदर क्यों नहीं झाँकता कि कितनी बेबस हो चुकी हूँ मैं अपनी इस ज़िंदगी से।"

    आध्यात्म उसके शब्दों पर स्तब्ध हो गया। उसे समझ नहीं आया कि मंशा इतनी उलझी हुई बातें क्यों कर रही है। वैसे तो उसके दिमाग की बुद्धिमत्ता में कोई तोड़ नहीं, लेकिन आज मंशा ने उसे पूरा उलझा कर रख दिया। उसने थोड़ी गहराई से सोचा तो उसे ऐसा लगा जैसे मंशा अंदर से काफ़ी अकेली है।

    आध्यात्म उसके करीब आकर उसे अपने सीने से लगा लिया। मंशा ने उसकी शर्ट को मज़बूती से पकड़कर सिसकने लगी। आध्यात्म ने उसके पीठ को हल्के हाथों से सहलाने लगा। काफ़ी देर तक मंशा ऐसे ही अपने ग़मों को कम करती रही।

    फिर उससे अलग होकर बिना उससे कुछ बात किए वह वाशरूम में चली गई। वाशरूम के मिरर में अपने आप को निहारने लगी, फिर खुद में ही बड़बड़ाने लगी, "क्या हो रहा है मुझे? मैं उनके साथ कम्फ़र्टेबल फ़ील करती हूँ… क्यों?"

    फिर अपने चेहरे को पानी से धोकर वह बेडरूम में वापस आई। आध्यात्म रेडी खड़ा हुआ था। उसे देखकर मंशा सोफ़े पर बैठ गई। आध्यात्म ने उसे अपने साथ चलने को कहा, तो बिना किसी जवाब के वह उसके साथ चल दी।

    दोनों बाहर आए तो सबकी नज़रें उन पर ही अटक गईं। आध्यात्म को किसी लड़की के साथ देखकर सब अचंभे से भर गए। उन दोनों को देखकर सबके बीच गॉसिप्स होने लगीं, जिसे आध्यात्म ने बुरी तरह इग्नोर किया। मंशा ने तो किसी पर ध्यान ही नहीं दिया।

    बॉडीगार्ड्स ने दोनों को घेर लिया। आध्यात्म की गाड़ी बाहर ही पार्क की हुई थी जिसके दरवाज़े बॉडीगार्ड ने उनके लिए ओपन कर दिए। आध्यात्म ने मंशा को बैठने का इशारा किया, तो वह बैठ गई। उसके साथ ही आध्यात्म भी बैठ गया।

    उनकी गाड़ी अपनी डेस्टिनेशन के लिए चल पड़ी। रास्ते में आध्यात्म फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था। उसका औरा पूर्णतः कोल्ड था जिससे गाड़ी में पिन ड्रॉप साइलेंस था। बस आध्यात्म की कोल्ड आवाज़ ही आ रही थी।

    मंशा खिड़की से बाहर देख रही थी। एकदम से वह चिल्लाते हुए बोली, "ड्राइवर गाड़ी रोको!"

    ड्राइवर ने उसकी बात पर जल्दी से कार रोक दी। मंशा कार से निकलकर जल्दी से वहाँ खड़े गोलगप्पे वाले के पास चली गई। आध्यात्म ने उसे बाहर जाते देखा, कॉल कट करके वह भी उसके पीछे आ गया। लेकिन जब उसने मंशा को गोलगप्पे खाते हुए देखा, तो उसके पास आकर उसके हाथ से गोलगप्पे छीन लिए।

    आध्यात्म गुस्से से बोला, "ये क्या अनहाइजेनिक फ़ूड खा रही हो तुम? तुम्हें पता भी है इससे कितनी बीमारियाँ होती हैं?"

    मंशा ने उसके हाथ से वापस गोलगप्पे लेने की कोशिश करते हुए कहा, "मुझे आपको ये बताने की कोई ज़रूरत नहीं। मैं खुद एक डॉक्टर हूँ, मैं अपना ख्याल खुद रख लूँगी। लेकिन अभी आप मुझे इसे खाने से नहीं रोक सकते।"

    मंशा ने आध्यात्म से अपने गोलगप्पे छीन लिए और फिर से उसे मज़े से खाने लगी। बार-बार वह गोलगप्पे वाले को और तीखा बनाने के लिए बोल रही थी। आध्यात्म उसे इतना तीखा खाता देख अचंभे में चला गया। कोई इतना तीखा कैसे खा सकता है?