कहते हैं, सच्चा इश्क़ कभी मरता नहीं—वह जन्मों की दहलीज़ लांघकर भी लौट आता है। कुशाग्र और कृषिका की मोहब्बत भी ऐसी ही थी—बेहद गहरी, बेहद पाक, मगर अधूरी... एक ऐसी प्रेम कहानी, जो पिछले जन्म में ज़माने की साजिशों का शिकार हो गई थी। लेकिन मोहब्बत इतनी कम... कहते हैं, सच्चा इश्क़ कभी मरता नहीं—वह जन्मों की दहलीज़ लांघकर भी लौट आता है। कुशाग्र और कृषिका की मोहब्बत भी ऐसी ही थी—बेहद गहरी, बेहद पाक, मगर अधूरी... एक ऐसी प्रेम कहानी, जो पिछले जन्म में ज़माने की साजिशों का शिकार हो गई थी। लेकिन मोहब्बत इतनी कमजोर नहीं होती कि मौत की मुहर उसे ख़त्म कर सके। कई सालों बाद, दो अजनबी—अलहदा ज़िंदगियों में, अलग पहचान के साथ—इस जन्म में फिर मिलते हैं। उनकी आँखें टकराते ही जैसे वक्त ठहर जाता है, दिलों में अजीब-सा सुकून और हल्की-सी बेचैनी जाग उठती है। लेकिन यह सिर्फ़ इत्तेफाक़ नहीं था। यह उनके प्यार की अधूरी कसम थी, जो क़ब्र के सन्नाटों से लौटकर, दोबारा पूरी होने आई थी। धीरे-धीरे, सपनों में आने वाले अजनबी चेहरे, अनकहे एहसास, और अतीत की धुंधली परछाइयाँ उन्हें संकेत देने लगती हैं। जब उन्हें अपनी पिछली ज़िंदगी का सच पता चलता है, तो सवाल खड़ा होता है—क्या इस बार तक़दीर उनके प्यार की दुश्मन बनेगी या यह जन्म उनकी अधूरी कहानी का आख़िरी अध्यास होगा? "इश्क़ बेपनाह" सिर्फ़ एक प्रेम कहानी नहीं, यह उस मोहब्बत की दस्तान है, जो मौत के बाद भी हार मानने से इनकार कर देती है। एक जुनून, जो जन्मों की जंजीरें तोड़कर लौटता है। एक कसमें, जो इस बार किसी भी साजिश से नहीं टूटेंगी। क्योंकि इस बार इश्क़ ने खुद अपनी तक़दीर लिखी है… खून से, आँसुओं से और बेपनाह वफ़ाओं से।
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मुंबई (मल्होत्रा निवास)
मुंबई के जाने-माने उद्योगपति श्री मानव मल्होत्रा, जिनका निर्माण जगत में बहुत नाम है, अपने दो बच्चों, बड़े बेटे सिद्धार्थ और बेटी कृषिका के साथ मल्होत्रा निवास में रहते थे। मुंबई के पॉश इलाके में बना मल्होत्रा निवास पुराने जमाने के किसी महल से कम नहीं था। मेंशन के बाहर बड़ा सा काला गेट था, जिसके किनारे मल्होत्रा निवास का नाम-पट्टिका लगा था। गेट से अंदर आते ही एक गलियारा था जो अंदर के गेट पर जाकर ख़त्म होता था। गलियारे के दोनों तरफ़ खूबसूरत बाग़ थे जहाँ अनेक पेड़-पौधे लगे थे, जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। एक तरफ़ पार्किंग थी, पीछे की ओर स्वीमिंग पूल था।
अब ज़रा मल्होत्रा निवास के अंदर चलते हैं। गेट के अंदर जाते ही एक बड़ा सा हॉल था जो झूमरों की रोशनी से जगमगा रहा था। झूमरों के ठीक नीचे सेंटर टेबल और किंग साइज़ सोफ़े लगे थे। सामने की दीवार पर बड़ी एलसीडी लगी हुई थी। एक तरफ़ खुला रसोईघर बना था, तो दूसरी तरफ़ डाइनिंग एरिया। वहाँ एक से एक खूबसूरत और एंटीक चीजें सजी थीं। महँगी पेंटिंग्स दीवारों की शोभा बढ़ा रही थीं। उसी मेंशन की पहली मंज़िल पर बने एक बड़े से कमरे में उस वक़्त अंधेरा छाया हुआ था, जबकि घड़ी सुबह साढ़े सात बजने का इशारा कर रही थी। आकाश में सूरज अपनी जगह ले चुका था और उसकी सुनहरी किरणों ने रात के अंधकार को दूर भगा दिया था।
दुनिया के लिए सुबह हो चुकी थी, आकाश में पंछी चहचहाते हुए दाने की खोज में निकल चुके थे, पर उस कमरे में अब तक सुबह नहीं हुई थी। कमरे की सभी लाइटें बंद थीं, पर्दे लगे हुए थे और कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
उसी कमरे के बगल वाले कमरे में एक लड़का उस वक़्त व्यायाम कर रहा था। वह कमरा कम और जिम ज़्यादा लग रहा था, जिसमें वह हट्टा-कट्ठा लड़का पसीना बहाते हुए अपनी बॉडी बना रहा था। यह सिद्धार्थ मल्होत्रा था। लगभग छः फुट लंबा, दमदार व्यक्तित्व, हीरो जैसी बॉडी, जिसे बनाने में उसे काफी मेहनत लगी थी। उम्र लगभग चौबीस-पच्चीस साल के आसपास, हैंडसम चेहरा और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वह।
सिद्धार्थ पुश-अप्स कर रहा था, तभी एक पचास-साठ साल की बुज़ुर्ग महिला वहाँ आ गई और बड़े ही स्नेह से उसे पुकारा।
"सिद्धार्थ बेटा, आपका प्रोटीन शेक।"
उनकी आवाज़ कानों में पड़ते ही सिद्धार्थ ने सर घुमाकर उन्हें देखा और मुस्कुराकर बोला,
"वही रख दीजिये काकी।"
"जी अच्छा।" काकी ने हामी भरी और प्रोटीन शेक टेबल पर रख दिया। इतने में सिद्धार्थ उठकर खड़ा हो गया और हैगर पर लटके तौलिए से चेहरे और शरीर पर लगे पसीने की बूँदों को पोंछने लगा।
"काकी, कृषिका उठी?"
"नहीं बेटा। दो बार उठा आया हूँ बच्ची को, पर वो उठती ही नहीं।" काकी के माथे पर बल पड़ गए और उन्होंने निराशा से अपना सर झुका लिया।
"कोई बात नहीं काकी। आप परेशान मत होइये। मैं अभी जाकर उसे जगा देता हूँ। मेरे अलावा किसी से उठती ही नहीं है वो, इसमें आपकी कोई गलती नहीं।" सिद्धार्थ ने सहजता से कहा और प्रोटीन शेक पीते हुए उस जिम से बाहर निकल गया।
कुछ ही सेकंड बाद वह उस बंद कमरे के बाहर खड़ा था, जिसके दरवाज़े पर एक बोर्ड लगा था जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में बड़ी ही खूबसूरती से लिखा था 'नो एंट्री'।
सिद्धार्थ उन शब्दों को देखकर अपनी छोटी बहन की इन बचकानी हरकतों पर मुस्कुराया, फिर धीरे से दरवाज़े को अंदर की ओर धक्का दिया और दरवाज़ा खुल गया। पूरे कमरे में फैले अंधकार को देखकर सिद्धार्थ की मुस्कान मुरझा गई। उसने बेबसी से सर हिलाया और कमरे की दीवार पर लगी लाइट्स के स्विच की ओर कदम बढ़ा दिए। उसके बटन दबाते ही कमरे के बीचों-बीच छत पर लगा झूमर जगमगा उठा और उसकी सुनहरी रोशनी पूरे कमरे में फैल गई। किसी राजमहल जैसा बड़ा और आलीशान कमरा था वह, जहाँ सुख-सुविधाओं की सभी चीज़ें मौजूद थीं। महँगी और एंटीक चीज़ें पूरे कमरे में सजी हुई थीं और हर चीज़ सलीके से अपनी जगह पर रखी हुई थी।
सिद्धार्थ ने नज़र घुमाकर पूरे कमरे को देखा और उसकी निगाहें उस आलीशान मखमली बिस्तर पर जाकर ठहर गईं जहाँ इस वक़्त एक लड़की कम्बल में लिपटी गहरी नींद में सोई हुई थी। एसी का तापमान इतना कम था कि कुछ ही मिनटों में सिद्धार्थ के रोंगटे खड़े हो गए। उसने तुरंत सेंटर टेबल पर रखा रिमोट उठाया और तापमान सामान्य किया, फिर बिस्तर की ओर कदम बढ़ा दिए।
कमरे का तापमान सामान्य होते ही उस कम्बल से गोरी-गोरी पतली-पतली टाँगें और बाँहें बाहर निकलीं और अगले ही पल उस कम्बल के अंदर से एक चेहरा बाहर आया। दूध सा गोरा, बेदाग, छोटा सा, क्यूट सा, हसीन चेहरा। घने बादलों सी झुकी पलकें, छोटी सी खड़ी नाक और हल्के चेरी रेड रंग में रंगे पतले-पतले मुलायम होंठ। उस हसीन दिलकश चेहरे पर अलग ही कशिश बिखरी हुई थी और माथे पर बिखरे बैंग्स उसे क्यूट लुक दे रहे थे।
यह सिद्धार्थ की छोटी बहन कृषिका थी, जो देखने में बिलकुल किसी गुड़िया जैसी क्यूट और हसीन लगती थी। सिद्धार्थ की नज़रें जैसे ही अपनी बहन के चेहरे पर पड़ीं, उसकी मुस्कान एक बार फिर उसके होंठों पर आ गई और उसके कदम कृषिका की ओर बढ़ गए, जो अब भी बेसुध पड़ी गहरी नींद में सो रही थी।
"कृषिका, उठो कृषिका बेटा, अब उठ भी जाओ। देखो सूरज सर पर आ गया है और आज तो तुम्हारा कॉलेज का पहला दिन है। अगर यूँ ही सोती रही तो कॉलेज के पहले दिन ही लेट हो जाओगी। उठ जाओ बच्चे, और कितना सोओगी?"
सिद्धार्थ कृषिका के सिर के पास बैठकर लगातार उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे जगाने की कोशिश कर रहा था। पर कृषिका मैडम के कान पर जुं तक नहीं रेंग रही थी। वह तो बेफ़िक्र सोने में लगी हुई थी। पर जब इन आवाज़ों से उसकी नींद में खलल पड़ने लगा, तो वह नींद में ही कुड़कुड़ाते हुए और अटपटा मुँह बनाते हुए उसके गोद में सिर रखकर वापस सो गई। उसकी यह अदा देखकर सिद्धार्थ मुस्कुराए बिना नहीं रह सका।
"तुम आज भी बिलकुल वही चार साल की कृषिका हो, जिसे अपनी नींद से इतना प्यार था कि सुबह उठने का नाम नहीं लेती थी और जब जबरदस्ती जगाओ तो यूँ ही मेरी गोद को तकिया बनाकर मुझसे लिपटकर सो जाया करती थी। इतने सालों में बहुत कुछ बदल गया, पर तुम्हारी यह आदत आज भी वैसी की वैसी ही है।"
बीते वक़्त का ज़िक्र करते हुए सिद्धार्थ के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे, पर अगले ही पल अपनी गोद में सिर रखे सिमटकर सो रही उस छोटी सी क्यूट बच्ची पर उसकी नज़र पड़ी और उसके होंठ बरबस ही मुस्कुरा उठे। वह एक बार फिर उसे जगाने की कोशिशों में लग गया।
"कृषिका बेटा उठो, देखो कितनी देर हो गई है तुमने। अगर अब भी तुम नहीं उठी तो कॉलेज के पहले ही दिन लेट हो जाओगी और मैं तुम्हें छोड़ने भी नहीं जाऊँगा क्योंकि मेरी एक ज़रूरी मीटिंग है। फिर तुम्हें आज के दिन अकेले ही कॉलेज जाना होगा।"
उसके यह कहने की देर थी कि कृषिका मैडम नींद में ज़रा कसमसाईं, फिर अपनी आँखों पर लगी पलकों को हटाया और गहरी नीली नींद से भरी आँखें सिद्धार्थ के चेहरे पर जाकर ठहर गईं और साथ ही एक मिश्री सी मीठी नाराज़गी भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"भैया, आप ऐसा करेंगे अपनी इतनी प्यारी सी, छोटी सी, क्यूट सी बहन के साथ?"
"मेरी यह क्यूट सी छोटी सी बहन भी तो अपने भैया की बात नहीं सुन रही। देखो कितनी देर हो गई, ऑफिस भी जाना होता है मुझे, पर तुम तो उठने को ही तैयार नहीं थी।" सिद्धार्थ ने भी उसे उसी लहज़े में जवाब दिया और गुब्बारे जैसे फुले उसके गालों को धीरे से सहला दिया।
कृषिका ने ऑफिस का ज़िक्र सुनकर बुरा सा मुँह बनाया, फिर अपने बालों को खुजलाते हुए उठकर बैठ गई। अपनी दोनों बाँहों को हवा में फैलाते हुए ज़ोर से अंगड़ाई ली और फिर सिद्धार्थ की ओर निगाहें घुमाते हुए मुस्कुरा दी।
"गुड मॉर्निंग भैया।"
सिद्धार्थ उसकी मोहक मुस्कान देखकर मुस्कुरा उठा और प्यार से उसके बिखरे बालों को समेटते हुए बोला,
"गुड मॉर्निंग बेटा, पर सिर्फ़ आपकी ही गुड मॉर्निंग अब हो रही है। मेरी तो कब की हो गई।"
"मॉर्निंग तो हुई होगी, पर मॉर्निंग गुड तो अब हुई है न आपकी।"
कृषिका के होंठों पर दिलकश मुस्कान बिखर गई। सिद्धार्थ उसकी बात का मतलब समझते हुए मुस्कुरा उठा, फिर प्यार से उसके माथे को चूमते हुए बोला,
"हम्म, मेरी मॉर्निंग गुड तुमसे ही होती है। चल अब जल्दी से नहाकर तैयार हो जा। आज मेरी बहन का इतना स्पेशल दिन है तो ब्रेकफ़ास्ट मैं खुद बनाऊँगा तेरे लिए और तुम्हें कॉलेज ड्रॉप करने भी चलूँगा।"
सिद्धार्थ की बात सुनकर कृषिका का छोटा सा चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने झट से हामी भरी और चहकते हुए उसके सीने से लिपट गई।
"लव यू भैया।"
"लव यू टू मेरी जान।"
इसके बाद उसने कृषिका को खुद से दूर करते हुए कहा,
"अब अब जल्दी से नहाकर तैयार होकर नीचे आना, मैं भी जाता हूँ फ्रेश होने।"
कृषिका ने सहमति में सर हिलाया और झट से बिस्तर से उतरकर फुदकते हुए बाथरूम में घुस गई।
सिद्धार्थ उसका बचपना देखकर मुस्कुराया, फिर अपने कमरे में चला गया।
कुछ देर बाद कृषिका डाइनिंग एरिया में पहुँची। सिद्धार्थ पहले से वहाँ मौजूद था और सूट-बूट पहनकर ऑफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार नज़र आ रहा था। सामने से आती कृषिका को देखते ही उसके होंठों पर प्यारी सी मुस्कान बिखर गई।
काली ढीली शर्ट जो बाएँ कंधे से नीचे सरक रही थी, उसके नीचे काली पैंट, और शर्ट एक तरफ़ से अंदर टकी हुई थी तो दूसरी तरफ़ से खुली हुई थी। बालों को ऊँचे पोनीटेल में बाँधा हुआ था, बैंग्स अब भी उसके माथे पर बिखरे हुए थे। मेकअप के नाम पर सिर्फ़ लिपग्लॉस लगाया हुआ था जिससे उसके चेरी रेड होंठ बेहद आकर्षक लग रहे थे। बाएँ हाथ की कलाई में बढ़िया सी काले पट्टे वाली ब्रांडेड घड़ी पहनी हुई थी और पैरों में बूट्स थे।
सादगी में भी बेहद प्यारी लग रही थी वह। दूध से गोरे बदन पर काला रंग खूब खिल रहा था और उस पर उसकी गहरी नीली आँखें कयामत ढा रही थीं। पीठ पर बैग टाँगा हुआ था उसने।
"आइये मलिकाए हुस्न, आज आपकी खिदमत में आपकी फेवरेट डिश पेश की जाएगी।" सिद्धार्थ ने उसके कंधों को थामते हुए उसे चेयर पर बिठा दिया। सिद्धार्थ से उसे हमेशा ऐसा ही स्पेशल ट्रीटमेंट मिलता था, इसलिए वह बस मुस्कुराकर रह गई और बड़ी ही उत्सुकता से नाश्ते के परोसे जाने का इंतज़ार करने लगी।
सिद्धार्थ ने उसकी प्लेट में जैसे ही व्हाइट सॉस पास्ता डाला, कृषिका के चेहरे की चमक दुगुनी हो गई और वह हैरानी और खुशी के मिले-जुले भाव से चीख पड़ी।
"वू हू! व्हाइट सॉस पास्ता, वो भी आपके हाथों का बना!"
"हम्म, चल अब खाकर बता कैसा बना है?" सिद्धार्थ ने मुस्कुराकर एक चम्मच उसकी ओर बढ़ाया तो कृषिका ने झट से मुँह खोल दिया और अगले ही पल अपनी आँखें मूंदते हुए बोली,
"इट्स डिलिशियस, आई जस्ट लव इट! आपसे बेहतर पास्ता कोई नहीं बना सकता।"
कृषिका ने प्रशंसा भरी नज़रों से उसे देखा, जिसपर सिद्धार्थ बस मुस्कुराकर रह गया। सिद्धार्थ ने एक और निवाला उसकी ओर बढ़ाया। कृषिका उसे खाने ही वाली थी कि अचानक उसे कुछ याद आया और उसकी बेचैन निगाहें इधर-उधर घूमने लगीं।
"क्या हुआ कृषिका? किसे ढूंढ रही है तू?" सिद्धार्थ को उसका यह रवैया कुछ अजीब लगा और उसने तुरंत ही सवाल किया। उसका सवाल सुनकर कृषिका के चेहरे पर अजीब सी मायूसी के भाव उभर आए।
"डैड आज भी नहीं आए न?"
उफ्फ! कितना दर्द था इन चंद शब्दों में कि सिद्धार्थ की आँखें नम हो गईं। खुद कृषिका भी भावुक हो गई। सिद्धार्थ ने खुद को संभाला और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोला,
"ऐसे मायूस नहीं होते कृषिका। क्या हुआ जो डैड यहाँ नहीं हैं, मैं तो अपनी बहन के पास हूँ ना, और देखना बहुत जल्द वह दिन भी आएगा जब हम तीनों साथ बैठकर नाश्ता किया करेंगे।"
सिद्धार्थ की बात सुनकर कृषिका के होंठ कुछ इस प्रकार मुस्कुराए मानो उसकी कही बात का मज़ाक उड़ा रहे हों। सिद्धार्थ भी समझ रहा था कि शायद यह एक झूठी ही उम्मीद है जो वह अपनी छोटी बहन को सालों से देता आ रहा है, पर उम्मीद के अलावा और कुछ था भी नहीं उसके पास।
कृषिका ने आगे कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप नाश्ता करने लगी। कुछ देर पहले तक उसके चेहरे पर जो खुशी, उत्सुकता और रौनक थी, वहाँ अजीब सी उदासी और मायूसी बिखरी हुई थी। सिद्धार्थ चाहकर भी उसका मूड ठीक करने के लिए कुछ नहीं कर सका और अपनी इस बेबसी पर उसे खीझ होने लगी। खैर, नाश्ता ख़त्म हुआ तो बैग अपनी पीठ पर टाँगे कृषिका बाहर निकल गई। सिद्धार्थ भी अपना ऑफिस बैग लेकर बाहर आया, फिर कृषिका को पैसेंजर सीट पर बिठाकर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गई।
कृषिका की उदासी के पीछे कैसे राज़ छुपे हैं और मानव मल्होत्रा क्यों उनके साथ नहीं थे, जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरे साथ "इश्क़ बेपनाह"।
"दीपु… दीपु… दीपु… दीपु की बच्ची कहाँ है तू…?"
चारों ओर से हरियाली भरे गार्डन से घिरा, सफेद संगमरमर का बना खूबसूरत सा घर था। घर के बाहर सहगल मेंशन की नेम प्लेट लगी थी। उस आलीशान घर में एक गुस्से भरी आवाज़ गूंज रही थी। घर में काम करने वाले सभी नौकर-चाकर आँखों की पुतलियाँ फैलाए, घबराए हुए ऊपर की ओर देख रहे थे। वह आवाज़ किसी लड़के की लग रही थी और वह आवाज़ प्रथम तल पर बने कमरे से आ रही थी।
अगले ही पल, "दीपु! दीपु!" चिल्लाता हुआ एक लड़का उस कमरे से बाहर निकला। करीब छः फुट लंबा, बेहतरीन फेशियल कट और फीचर्स, उस पर ओलिव ग्रीन रंग की बेहद आकर्षक आँखें थीं। बिल्कुल क्लीन शेव्ड चेहरा जो गुस्से से लाल हो गया था। माथे पर बिखरे सिल्की-सिल्की भीगे बाल थे, जिनसे टपकती पानी की बुँदे उसके हैंडसम, चार्मिंग चेहरे को चूमती और उस पर फिसलती नज़र आ रही थीं। जिम में बनाई बढ़िया सख्त बॉडी, सिक्स पैक एब्स, बाइसेप्स। उसका व्यक्तित्व इतना आकर्षक था और देखने में इतना क्यूट था कि कोई भी लड़की पहली नज़र में ही उस पर अपना दिल हार जाए, पर गुस्से का तेज़ लग रहा था और जाने इस वक़्त उसके गुस्से की धधकती ज्वाला में किसकी आहुति जाने वाली थी।
"दीपु की बच्ची… चमगादड़ की वंशज कहाँ छुपकर बैठी है तू?… अभी के अभी मेरे सामने आ… आज मैं छोडूँगा नहीं तुझे…"
वह क्यूट सा लड़का गुस्से में चिल्लाते हुए अपने कमरे से बाहर निकला। उसके गठीले बदन पर घुटनों तक आता बाथरोब पड़ा था। देखकर लग रहा था जैसे अभी-अभी नहाकर निकला हो क्योंकि उसकी गोरी रंगत हल्की गुलाबी हो रखी थी। वह अभी गुस्से में फर्श को अपने पैरों तले रौंदते हुए आगे बढ़ ही रहा था कि एक औरत उसके सामने आकर खड़ी हो गई।
खूबसूरत सी बनारसी साड़ी पहने और सुहागन औरत जैसे सोलह श्रृंगार करे हुए। चेहरे पर ही सौम्यता और सादगी झलक रही थी और उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। चेहरे पर चिंता के भाव लिए उन्होंने अपने सामने खड़े, गुस्से से तमतमाए लड़के को देखा और ममता भरी मीठे स्वर में उससे सवाल पूछ बैठी, "कुश, क्या हुआ बेटे? क्यों सुबह-सुबह ऐसे दीपु का नाम लेकर चिल्ला रहे हो?"
"क्यों चिल्लाएगा बेचारा, आज फिर आपकी शहज़ादी ने हमारे राजकुमार को परेशान किया होगा। वरना हमारा बेटा इतनी जल्दी गुस्सा करता नहीं है।"
उन औरत के सवाल पर एक भारी-भरकम, रौबदार आवाज़ वहाँ गूंज उठी, पर आवाज़ में सख्ती नहीं थी। उस औरत और लड़के दोनों ने पलटकर देखा तो कुश उर्फ कुशाग्र सहगल के ठीक पीछे एक ५० साल के आस-पास के आदमी खड़े थे। रौबदार शख्सियत और आकर्षक पर्सनैलिटी, इस उम्र में भी काफी हैंडसम लग रहे थे। ये हैं कुशाग्र के डैड, मिस्टर देवेश सहगल और वो औरत है उनकी धर्मपत्नी, श्रीमती जानवी सहगल। उनके इस छोटे से परिवार में एक और शख्स शामिल है और वो है सबकी प्यार और राजदुलारी दीपु उर्फ दीपिका सहगल।
देवेश जी की उलाहना और तंज सुनकर जानवी जी ने भौंह सिकोड़कर उन्हें घुरा और नाराज़गी से बोली, "आप तो रहने ही दीजिए, कुछ बोलिए ही मत, वरना अभी आपसे लड़ाई हो जाएगी। जब देखो तब हमारी बेचारी मासूम सी बच्ची पर बरसते रहते हैं और हमारे बेटे को भी उसके खिलाफ भड़काते रहते हैं।"
जानवी जी तो उन पर ही बरस पड़ीं। जहाँ ये देखकर देवेश जी ठगे से खड़े रह गए, वहीं कुश तुरंत ही खीझते हुए बोल पड़ा, "Oh come on mom. डैड को कुछ मत कहिए। आपके इसी लाड़-प्यार ने आपकी राजकुमारी को सर चढ़ाया हुआ है, देखिए आज उस दीपु चुड़ैल ने मेरे पूरे कमरे का क्या सत्यानाश किया है।"
"क्या किया है दीपु ने आज?"
जानवी जी ने आँखें तरेरकर उसे घुरा। बदले में कुश ने अपने कमरे की ओर चलने का इशारा कर दिया। कुछ ही सेकंड बाद तीनों शख्स कुश के कमरे में मौजूद थे। जो इस वक़्त कमरा कम और कबाड़खाना ज़्यादा लग रहा था। अलमारी खुला था और कमरे के फर्श पर कपड़े बिखरे हुए थे, ड्रेसिंग टेबल पर रखा समान भी अस्त-व्यस्त हो रखा था। कुछ कपड़े सोफे पर पसरे हुए थे, कुछ बेड पर खामोश लेटे हुए थे और कुछ सोफे के सामने लगे टेबल से कूदकर आत्महत्या करने की फिराक में थे। जानवी जी और देवेश जी दोनों यह नज़ारा देखकर स्तब्ध रह गए थे और अब उन्हें कुश के गुस्से से भड़काने की वजह पता चली थी। कुश, जिसे साफ़-सफ़ाई से बेहद प्यार था और जो अपने कमरे में धूल के एक कण को भी आने नहीं देता था, हर चीज़ सलीके से उसकी जगह पर रखी मिलती थी और कुछ गड़बड़ न हो जाए, कोई चीज़ यहाँ से वहाँ न हो जाए इसलिए उसने ख़ास ऑर्डर दिए थे कि उसके रूम की सफ़ाई उसकी निगरानी में ही की जाएगी, पर यहाँ तो उसका साफ़-सुथरा, हर पल चमकने वाले कमरे का बुरा हाल हो रखा था और उसका गुस्सा लाज़मी ही था और अब भी वो काफी गुस्से में लग रहा था।
अभी वो तीनों उस बिखरे कमरे को देख ही रहे थे कि एक कोयल सी मीठी-सी, सहमी हुई, धीमी आवाज़ उन तीनों के कानों से टकराई, "I am sorry…"
तीनों ने चौंकते हुए पलटकर देखा तो उनके ठीक पीछे एक क्यूट सी लड़की सर झुकाए खड़ी थी। देखने में न तो ज़्यादा पतली थी और न ही ज़्यादा मोटी, हाइट भले कुश से कम थी पर पाँच फुट के आस-पास हाइट थी उसकी। अगर कुश हैंडसम था तो वो भी कुछ कम हसीन और क्यूट नहीं थी। प्यारा सा चेहरा था उसका और उस पर गहरी कत्थई आँखें थीं। मुँह लटकाए वो उन तीनों के सामने खड़ी यूँ खड़ी थी जैसे कोई गुनाहगार अपनी सज़ा का इंतज़ार कर रहा हो। कुश की भौंहें तन गई उसे देखकर, पर वो कुछ कह पाता उससे पहले ही जानवी जी उसके पास चली आई और प्यार से उसके गाल को छूकर बोली, "बेटा दीपु, ये आपने भाई के कमरे का क्या हाल किया है?"
"मम्मा, मैंने जानबूझकर ये सब नहीं किया। मेरी वो ब्लैक वाली टीशर्ट नहीं मिल रही थी। वही ढूँढने में मैं यहाँ आई थी। मैंने दो-तीन बार पूरा कबर्ड चेक किया और कपड़े देखते-देखते सारे कपड़े बिखर गए। मैं उन्हें समेटने वाली थी पर फर्श पर पड़े जीन्स में मेरा पैर फँसा और मैं ड्रेसिंग टेबल से टकरा गई और वहाँ भी सब बिखर गया। इतने में मेरे कानों में दरवाज़े के खुलने की आवाज़ पड़ी तो मैं डर के मारे तुरंत भाग गई।"
दीपु ने इतनी मासूमियत से सफ़ाई पेश की और खुद को इनोसेंट साबित किया कि किसी का भी दिल पिघल जाए उस पर, पर कुश तो उसकी बात सुनकर सीधे उस पर बरस पड़ा, "चलता फिरता तूफ़ान है तू, जहाँ जाती है तबाही साथ लेकर जाती है, कितनी बार मैंने कहा है तुझे कि मेरे कमरे में कदम मत रखा कर, पर तुझे मेरी कोई बात सुनाई ही नहीं देती है। हर बार मेरी गैर-मौजूदगी में मेरे कमरे में घुस आती है और पूरे कमरे को कचरे के ढेर में तबदील कर देती है और अब मम्मा के सामने कैसे मासूम बनकर दिखा रही है।"
"भैया बोल मुझे और तमीज़ से बात कर, भूल मत कि बड़ा हूँ मैं तुझसे।"
कुश ने उसके लहजे पर नाराज़गी जताते हुए हल्की फटकार लगाई। जिस पर दीपु तुनकते हुए बोल पड़ी, "मैं नहीं बोलती तुझे भैया और तमीज़ की उम्मीद तो तुम मुझसे करो ही मत।"
दीपु के बदलते तेवर देखकर कुश ने आँखें छोटी-छोटी करके उसे घुरा, फिर सीधे अपनी फ़रियाद लेकर जानवी जी के पास पहुँच गया, "देखिए मम्मा, ये बिट्टे भर की लड़की कैसे बदतमीज़ी से और तू तड़ाक से बात करती है अपने बड़े भाई से।"
इस बार उसकी शिकायत पर जानवी जी ने तुरंत ही कार्यवाही की और दीपु को बड़े ही प्यार से समझाते हुए बोली, "दीपु बेटा, ये क्या बदतमीज़ी है? बड़ा है न वो तुमसे? भैया कहा करो बेटा।"
"मैं नहीं कहूँगी इस छुछुंदर को कोई भैया-वैया। वैसे भी बस दो मिनट ही बड़ा है मुझसे और आप हो तो कहती हैं कि इंसान उम्र से नहीं कामों से बड़ा बनता है। इज़्ज़त व सम्मान खैरात में नहीं मिलता, उसे अपनी मेहनत से कमाना पड़ता है। फिर मैं सिर्फ़ इसलिए इसकी आरती क्यों उतारूँ कि ये मुझसे दो मिनट बड़ा है जबकि ये ऐसा कोई काम नहीं करता कि मैं उसे अपना बड़ा भाई समझकर उसकी इज़्ज़त करूँ। आप देखती हैं ये कैसे बात करता है मुझसे? हर वक़्त बस मुझ पर धौंस जमाता रहता है। इतनी बेरुखी से बात करता है, कभी प्यार से मीठे दो बोल भी नहीं बोलता, बस चिल्लाता रहता है। ऐसे होते हैं क्या बड़े भाई जिन्हें अपनी छोटी बहन से ज़रा भी प्यार नहीं, उसकी ज़रा भी फ़िक्र और परवाह नहीं। मुझे नहीं चाहिए ऐसा बड़ा भाई।"
दीपु काफी नाराज़ थी। उसने अपनी पूरी भड़ास निकाली, उसके बाद हथेली की मुट्ठी बाँधकर आँखों पर रगड़ते हुए अपने आँसुओं को साफ़ किया और पलटकर गुस्से में वहाँ से जाने के लिए एक कदम बढ़ाया ही था कि उसके कानों में कुश की चिंता भरी सॉफ्ट सी आवाज़ पड़ी, "दीपु, ये हाथ में क्या हुआ तेरे?"
दीपु के क़दम एक पल को ठिठके, फिर उसने अपनी कोहनी को दूसरे हाथ की हथेली से छुपा लिया और रुँधे स्वर में बोली, "मुझे कुछ भी तो तुम्हें उससे क्या?… तुम्हें बस अपने कमरे और इन बेजान चीज़ों से प्यार है तो उन्हीं की परवाह करो तुम।"
वो काफी नाराज़ थी कुश से और उसकी नाराज़गी, उसका दुःख, उसकी आवाज़ में झलक रहा था जबकि कुश का सारा गुस्सा और नाराज़गी तो दीपु की लाल कोहनी देखते ही ग़ायब हो गई थी। अब तो उस चेहरे पर सिर्फ़ और सिर्फ़ चिंता और फ़िक्र के भाव झलक रहे थे। बेरुखी से जवाब देने के बाद दीपु ने फिर अपने क़दम आगे बढ़ाए ही थे कि कुश तेज़ क़दमों से चलते हुए उसके पास आया और उसकी बाँह पकड़कर बेड की ओर बढ़ गया। दीपु इतनी नाराज़ थी कि उसने नज़रें उठाकर उसे देखा तक नहीं, पर उससे अपनी बाँह छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की। चुपचाप सर झुकाए उसके पीछे-पीछे चलती रही। कुश ने उसे बेड पर एक खाली जगह देखकर बिठाया, फिर साइड टेबल की द्रॉवर से फ़र्स्ट एड किट निकालकर उसके सामने फर्श पर ही बैठ गया।
"इत्तू सी है पर गुस्सा देखो महारानी का। एक तो गलती भी खुद करती है, ऊपर से चिल्ला भी मुझी पर रही है। मैं क्या अपने लिए डाँटता हूँ? तेरी हरकतें ही ऐसी होती हैं, हर वक़्त अपनी लापरवाही से सब काम बिगाड़ती रहती है और उतना भी कम पड़ता है तो खुद को चोट पहुँचा लेती है, ये नहीं कि ध्यान से काम करे। खुद भी चैन से जिए और मुझे भी सुकून से रहने दे, पर नहीं, तुझे तो हमेशा मुझे गुस्सा दिलाने और परेशान करने में बहुत मज़ा आता है, ऊपर से मुझ पर ही इल्ज़ाम भी लगा रही है कि मैं प्यार नहीं करता, बड़े भाई का फ़र्ज़ नहीं निभाता।"
कुश उसकी कोहनी पर ऑइलमेंट लगाते हुए उसको डाँट रहा था, पर बड़े ही प्यार से? इस वक़्त वो एक लविंग केयरिंग भाई लग रहा था, जिसे अपनी बहन की बहुत चिंता थी और उसके लिए ही वो उस पर नाराज़ हो रहा था। दीपु गुब्बारे जैसे मुँह फुलाए नाराज़गी से उसे घूर रही थी।
कुश ने उसकी कोहनी पर ऑइलमेंट लगाने के बाद निगाहें उठाकर उसे देखा और उसकी घूरती निगाहों को खुद पर टिके देखकर खीझते हुए बोला, "अब घूर क्या रही है मुझे? चल निकल मेरे कमरे से और ख़बरदार जो दोबारा यहाँ क़दम रखा, अगली बार अगर तूने ऐसा कुछ किया तो टाँगें ही तोड़ दूँगा तेरी, सारी मुसीबत की जड़ यही टाँगें हैं।"
कुश की बात सुनकर दीपु ने मुँह निसोरते हुए उसे घुरा, फिर गुस्से में पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई। देवेश जी और जानवी जी अफ़सोस और बेबसी अपने बच्चों को देखते रहे। हर दिन उनकी किसी न किसी नई बात पर बहस या लड़ाई होती थी। ऐसा नहीं था कि उनके बीच प्यार नहीं, पर जुड़वाँ थे और उनके नेचर में ज़मीन-आसमान का अंतर था, साथ ही दोनों बहुत ज़िद्दी थे और रोज़ किसी न किसी बात पर एक-दूसरे से भिड़ ही जाते थे।
दीपु के वहाँ से जाते ही जानवी जी ने ज़रा नाराज़गी से कहा, "कुश, क्यों उसे परेशान करता रहता है? थोड़ा प्यार से बात किया कर उससे, छोटी है तुझसे।"
"पर लगती तो नहीं? ज़ुबान तो दादी-अम्मा जैसे लड़ाती है, बहस करने में तो चार क़दम आगे रहती है और लड़ती तो ऐसे है जैसे वो बड़ी और मैं छोटा हूँ। भैया तक तो कहती नहीं मुझे और कितनी बदतमीज़ी करती है।"
कुश ने भी दीपु की शिकायत लगाई और बुरा सा मुँह बना लिया। बचपन से उसे यही शिकायत थी। दीपु उसे कभी भैया नहीं कहती थी इसलिए वो उससे चिढ़ा रहता था और वो बचपना अब भी जारी था। जानवी जी उसका जवाब सुनकर कुछ कह न सकी, जबकि देवेश जी जो तब से ख़ामोशी से सब सुन रहे थे उन्होंने बेहद गंभीरता से कहा, "बस चिढ़ते रहने से वो तुम्हें अपना बड़ा भाई नहीं मानने लगेगी। पहले बड़े भाई होने का फ़र्ज़ निभाओ, उसे वो प्यार, लगाव और अपनापन दो जो वो तुमसे चाहती है, उसका बड़ा भाई बनो, तब वो खुद अपने दिल से तुम्हें सिर्फ़ भैया कहेगी नहीं, बल्कि मानेगी भी।"
देवेश जी की बात सुनकर कुश ने सर झुका लिया, जबकि देवेश जी जानवी जी के साथ वहाँ से चले गए।
DMC कॉलेज (काल्पनिक नाम), मुंबई के जाने-माने कॉलेजों में से एक था, जहाँ अमीर और रहीस परिवारों के बच्चे पढ़ने आते थे। यह काफी प्रसिद्ध और महँगा कॉलेज था, जहाँ से हर साल हज़ारों बच्चे अपनी ज़िंदगियाँ संवारते थे। खैर, अमीर घरों से आने वाले छात्रों के लिए ज़िंदगी संवारना इतना मुश्किल भी नहीं था।
नया सत्र आज से शुरू हुआ था। पिछला बैच कॉलेज छोड़कर जा चुका था और आज एक नया बैच कॉलेज में कदम रखने को तैयार था। कॉलेज भी उनके स्वागत में दोनों बाहों को फैलाए खड़ा था। उस बड़े गेट से छात्र लगातार अंदर आ रहे थे। छुट्टियों के बाद दोबारा मिलने की खुशी में दोस्तों की मंडली हर जगह दिख रही थी। यह सह-शिक्षा कॉलेज था और जहाँ भी नज़र जाती, लड़के-लड़कियों के समूह गप्पे हाँक रहे थे। हँसी-मज़ाक चल रहा था, पुरानी बातें याद आ रही थीं, और इसी बीच नए बैच के छात्र भी कॉलेज में प्रवेश करने लगे थे।
स्कूल की छोटी सी दुनिया से निकलकर कॉलेज में कदम रखने का उत्साह उनके चेहरों पर साफ़ झलक रहा था। कुछ अकेले आ रहे थे तो कुछ दोस्तों के साथ। फ़्रेशर्स की भीड़ नोटिस बोर्ड के पास जमा थी जहाँ उनके लिए कुछ ज़रूरी नोटिस लगे हुए थे। बड़ा कॉलेज होने के कारण कई गाड़ियाँ बाहर खड़ी थीं, जिनसे छात्र निकल रहे थे। पहला दिन था, कई छात्र ऐसे थे जिनके साथ कोई उन्हें छोड़ने आया था।
कृषिका सिद्धार्थ के साथ कॉलेज पहुँची थी। सिद्धार्थ की कार कॉलेज के सामने, दूसरी तरफ़ रुक गई थी। कृषिका सारा समय खिड़की से बाहर देखती रही और उसके चेहरे पर अजीब सी मायूसी छा गई थी।
सिद्धार्थ के माथे पर भी बल पड़ गए थे और चेहरे पर चिंता और दुख के भाव साफ़ दिख रहे थे। उसने कई बार कृषिका से बात करने की कोशिश की, पर वह दो-टूक जवाब देकर चुप हो गई। उसने उसे सहज करने की पूरी कोशिश की, पर वह सारा समय अनमनी सी रही। इससे सिद्धार्थ काफी परेशान था।
कार रुकने पर गुमसुम, उदास कृषिका गेट खोलने लगी, तभी सिद्धार्थ की आवाज़ आई,
"कृषिका, अपने भाई के किस गुनाह की सज़ा दे रही है तू उसे?"
कृषिका ने उसके शब्द सुनकर चौंकते हुए सिर घुमाकर उसे देखा।
"मेरी क्या गलती है कृषिका? मुझसे क्यों इतनी खफ़ा है तू? जिन्हें तुझसे रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता, उनकी इतनी अहमियत है तेरी नज़रों में, पर मेरी ज़रा भी अहमियत नहीं? तेरी यह ख़ामोशी और उदासी मुझे कितनी तकलीफ़ देती है, जानती है न? फिर क्यों तड़पा रही है मुझे? इसलिए तो तुझे अपने पास वापिस नहीं बुलाया था मैंने।"
सिद्धार्थ के बेचैनी, पीड़ा, दुख और अफ़सोस से भरे शब्द कृषिका की आँखों में नमी ला दिए। सिद्धार्थ के शब्दों में तड़प थी और कृषिका के चेहरे पर बेबसी और मायूसी के भाव उभर आए।
"मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं भैया। मैं आपको तकलीफ़ नहीं पहुँचाना चाहती, और यही वजह थी कि मैं वापिस नहीं आना चाहती थी। मैं अपने लिए डैड की नफ़रत और बेरुखी से पूरी तरह वाक़िफ़ थी और आपकी मुझ पर मोहब्बत और परवाह से भी वाक़िफ़ थी। जानती थी कि मेरा आना उन्हें अच्छा नहीं लगेगा, उनकी बेरुखी से मुझे तकलीफ़ होगी और मेरी तकलीफ़ आपके दुख की वजह बनेगी। इसलिए मैंने आपको भी कहा था कि मुझे वहीं रहने दे और अब भी यही कह रही हूँ भैया, मुझे होस्टल में डाल दे।"
बोलते हुए कृषिका की आँखें छलक आईं और उसके आँसू देखकर सिद्धार्थ तड़प उठा। उसने तुरंत ऐतराज जताया,
"नहीं, मैं तुझे अब खुद से दूर कहीं नहीं जाने दूँगा। अब चाहे कोई चाहे या न चाहे, पर मेरी बहन मेरे साथ ही रहेगी। डैड की ज़िद में मैं अब तुझे और खुद को और तकलीफ़ नहीं पहुँचाने दूँगा। वो भले तुझसे कोई रिश्ता न रखे, पर मेरे लिए तू मेरी एकलौती बहन है, जिससे मैं अब दोबारा दूर नहीं होने दूँगा। और यह मेरा आखिरी फैसला है, जो किसी कीमत पर नहीं बदलेगा। वैसे भी, तुझे फ़र्क मुझसे पड़ना चाहिए और मैं तेरे आने से बहुत खुश हूँ।"
कृषिका कुछ कह नहीं सकी। ग़म के महीन रेशे उसके चेहरे पर बिखरे थे। वह एक अजीब सी कशमकश में फँसी हुई थी। एक तरफ़ उसके डैड थे, जिनकी बेरुखी और बेगानापन उसके दर्द की वजह था, जिनके कारण वह अपने घर को छोड़कर हॉस्टल जाने को तैयार थी। दूसरी तरफ़ उसका भाई था, जो बहन नहीं, अपनी बेटी जैसे उससे मोहब्बत करता था, उसकी परवाह करता था और उसे अपने साथ रखना चाहता था। यहाँ ठहरने का उसका मन नहीं था, पर सिद्धार्थ के ख़िलाफ़ जाकर यहाँ से जाने का फैसला भी वह नहीं ले पा रही थी। कृषिका के चेहरे पर उसकी लाचारी साफ़ दिख रही थी।
सिद्धार्थ कुछ पल ख़ामोशी से उसे देखता रहा, शायद उसके कुछ कहने का इंतज़ार कर रहा था। पर जब कृषिका की ख़ामोशी नहीं टूटी, तो सिद्धार्थ ने गहरी साँस ली और प्यार से बोला,
"कृषिका, एक बात सच-सच बता, तेरे लिए मैं ज़्यादा अहमियत रखता हूँ या डैड?"
सिद्धार्थ के सवाल पर कृषिका ने तुरंत जवाब दिया,
"आप भैया, मैंने अपने हर रिश्ते को आप में ही तो जिया है। एक बड़े भाई के साथ-साथ आपने एक पिता का फ़र्ज़ भी निभाया है और एक माँ की तरह मुझे संभाला है। मैं दुनिया में सबसे ज़्यादा मोहब्बत आपसे करती हूँ, पर मुझे अच्छा नहीं लगता कि मेरे कारण डैड आपसे भी दूर रहें, घर आना छोड़ दें। मैं उनकी तकलीफ़ की वजह नहीं बनना चाहती भैया।"
कृषिका ने अपनी उलझन, अपनी बेबसी उसके सामने रख दी और लाचारी से उसे देखने लगी। सिद्धार्थ उसकी बात समझ रहा था। आखिर वह भी सब जानता था। उसने आगे बढ़कर प्यार से उसके गाल को छुआ और नर्मि से समझाते हुए बोला,
"कृषिका, मैं समझता हूँ तेरी बात और तू अपनी जगह ठीक है, पर तू खुद सोच कि कब तक रिश्तों में दूरियाँ बनी रहेंगी और अपना घर, अपना परिवार होते हुए तू अनाथों की तरह अकेले हॉस्टल में दिन गुज़ारती रहेगी? कब तक बचती रहेगी इन हालातों का सामना करने से? और क्या इससे कुछ ठीक होगा? इतने सालों में कुछ ठीक हुआ है? अब वक़्त आ गया है कृषिका, तेरे बनवास को ख़त्म करके घर वापिस लौटने का और हालातों का सामना करने का। जब तू आँखों के सामने रहेगी, तो शायद डैड का दिल भी तेरे लिए पिघल जाए। शायद उनकी नफ़रत कुछ कम हो। वक़्त लगेगा, पर तेरे और डैड के बीच की दूरियाँ शायद कम हो जाएंगी। इसलिए मेरे लिए इन बातों के बारे में मत सोच। सर कुछ वक़्त पर छोड़ दे, आगे जो भी होगा अच्छा ही होगा। और तू बस खुश रहे, क्योंकि तेरा भाई तेरे साथ है और हमेशा अपनी गुड़िया को हँसते-मुस्कुराते देखना चाहता है… समझी कुछ?"
"हूँ।"
कृषिका ने सहमति में सिर हिलाया और अपने आँसुओं को पोंछते हुए हौले से मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान सिद्धार्थ के चेहरे पर सुकून बनकर बिखर गई।
"अब लग रही है तू मेरी क्यूट सी प्यारी सी बहन। चल अब अंदर जा, आज तेरा कॉलेज का पहला दिन है, तो घबराना नहीं, अपना ख़्याल रखना, बेवजह किसी से लड़ना-भिड़ना भी मत, कोई भी प्रॉब्लम हो तो सीधे मुझे कॉल करना और फ़्री होने से पहले मुझे इंफ़ॉर्म कर देना, मैं आऊँगा तुझे लेने।"
"Okay भैया।"
उसकी परवाह महसूस करते हुए कृषिका एक बार फिर मुस्कुरा दी। यह एक ऐसा रिश्ता था उसकी ज़िंदगी में जो उसकी खुशी और दिल के सुकून की वजह था।
"Bye भैया।"
"Bye बच्चे।"
सिद्धार्थ ने प्यार से उसके माथे को चूमा और उसके आत्मीय स्पर्श को अपने माथे पर महसूस करते हुए कृषिका का मन प्रसन्न हो गया।
कृषिका ने दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गई। रोड क्रॉस करने के बाद उसने फिर से पलटकर सिद्धार्थ को देखा, जो अब भी वहीं मौजूद था और खिड़की से उसे ही देख रहा था। एक-दूसरे से निगाहें मिलते ही दोनों मुस्कुरा दिए। कृषिका ने हाथ हिलाकर उसे अलविदा कहा तो सिद्धार्थ ने भी हाथ हिलाकर उसे अलविदा कहा और इशारे से उसे अंदर जाने को कहा।
कृषिका मुस्कुराकर अंदर जाने लगी थी, तभी उसके कानों में एक भारी-भरकम चिंता भरी आवाज़ पड़ी,
"बेटा अपना ख़्याल रखना, ज़रा भी नहीं घबराना, भाई से लड़ाई मत करना, उसके साथ रहना और खुद को चोट मत पहुँचाना।"
यह किसी आदमी की आवाज़ थी, जिसने कृषिका का ध्यान अपनी ओर खींचा था। उसने आवाज़ की दिशा में निगाहें घुमाईं, तो उसके बगल में ही एक सफ़ेद बड़ी सी कार खड़ी थी और उसके सामने एक आदमी और एक लड़की खड़ी थीं, जो कोई और नहीं, बल्कि देवेश जी और दीपु थीं। देवेश जी उसे समझा रहे थे और दीपु उनका प्यार और परवाह देखकर मुस्कुराते हुए हर बात में हामी भर रही थी। आख़िर में देवेश जी ने उसे अपने सीने से लगाते हुए प्यार से उसके माथे को चूमा। लबों पर दिलकश मुस्कान बिखेरे दीपु ने भी उनके गाल को चूमकर उन्हें अलविदा कहा।
ठीक इसी वक़्त कॉलेज के बाहर दो स्पोर्ट बाइक एक साथ आकर रुकीं और दोनों पर सवार लड़कों का ध्यान शायद दीपु पर ही था। दीपु देवेश जी को अलविदा कहकर जाने लगी और उन बाइक्स पर नज़र पड़ते ही वह किलकिला उठी। बुरा सा मुँह बनाए वह खीझते हुए अंदर जाने लगी।
कृषिका ने उन बाप-बेटी के रिश्ते में नज़दीकियाँ, मोहब्बत, अपनापन जैसे कई भाव महसूस किए और जाने क्यों पर उसके दिल में एक टीस सी उठी और आँखें न चाहते हुए भी नम हो गईं। जिसे छुपाते हुए उसने एक बार फिर पलटकर पीछे मौजूद सिद्धार्थ को देखा और लबों पर झूठी मुस्कान सजाए अंदर जाने के लिए पलट गई। सिद्धार्थ से तो उसने अपने आँसुओं को छुपा लिया था, पर कोई था जिसकी नज़रों से न उसके आँसू छुपे थे और न ही उसके चेहरे पर झलकता दर्द और बेबसी। जाने क्यों पर चेहरे पर गंभीर भाव लिए एक जोड़ी ओलिव ग्रीन आँखें गहराई से कृषिका को देख रही थीं, जिससे वह अभी पूरी तरह से अंजान थी और अंदर की ओर बढ़ चुकी थी।
क्रिशु पीछे से किसी लड़के की लगातार आती अंजानी सी आवाज़ों को अनसुना करते हुए आगे बढ़ रही थी। या शायद उस समय वह अपने ख्यालों और जज़्बातों में इस कदर उलझी हुई थी कि उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। पर जैसे ही उसके कानों में वो आखिरी के शब्द पड़े, उसकी निगाहें अनायास ही अपनी शर्ट पर चली गईं। उसने भी तो आज काली शर्ट ही पहनी थी, तो क्या कोई उसे ही पुकार रहा था? यह सवाल ज़हन में आते ही उसके आगे बढ़ते कदम रुक गए।
उसने पलटकर देखा तो इतने में एक लड़का उसके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया।
कृषिका ने सरसरी निगाह उस लड़के पर डाली, या यूँ कहें कि चंद सेकंड में उसे ऊपर से नीचे तक देखने के बाद उसकी नज़रें उसके चेहरे पर आकर ठहर गईं। यकीनन वह उस लड़के को नहीं जानती थी। क्या वह अभी यहाँ किसी को भी नहीं जानती थी? क्योंकि वह तो चंद दिन पहले ही यहाँ आई थी और आज पहली बार घर से बाहर निकली थी।
कृषिका ने उस अजनबी लड़के को गहरी निगाहों से देखा, फिर भौंह उचकाते हुए सवाल किया,
"क्या तुम मुझे आवाज़ दे रहे थे?"
"बिल्कुल, मैं तब से तुम्हें ही आवाज़ देकर बुला रहा हूँ।"
लड़के का जवाब सुनकर कृषिका की भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं। चेहरे पर सख्त भाव उभर आए, पर उसकी घुंघराली नीली आँखों में अब भी आँसू की बुँदे हिलोरे मार रही थीं।
"क्यों?"
कृषिका ने भौंह सिकोड़ उस लड़के को अजीब नज़रों से घुरा। वह उसके ये तेवर देखकर उस लड़के के लबों पर दिलकश मुस्कान बिखर गई।
"First Day of college"
कृषिका के सवाल को लगभग अनसुना करते हुए उसने सवाल किया। जिसे सुनकर कृषिका के भाव कुछ बदले। शायद उसे लगा कि सामने खड़ा यह लड़का उसका सीनियर होगा। सुना था उसने कॉलेज में रैगिंग के बारे में। उसके चेहरे पर उलझन भरे भाव उभर आए और उसने खोए-खोए अंदाज़ में सर हिलाकर हामी भर दी,
"Yes"
"Nervous?"
उस लड़के का अगला सवाल आया। जिसे सुनते ही कृषिका ने तेज़ी से इंकार में सर हिलाया और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ जवाब दिया,
"Not at all"
शायद वह खुद को कॉन्फिडेंस दिखा रही थी ताकि उसे कमज़ोर समझकर उसके सामने खड़ा यह सीनियर उसके साथ कोई उल्टा-सीधा प्रैंक वगैरह न करे। वह उसके सामने खड़ा लड़का उसके एक कदम करीब आया तो कृषिका के माथे पर बल पड़ गए।
वह भौंह सिकोड़ उसे घूरने लगी, जबकि उस लड़के ने अब उसकी गहरी आँखों में झांकते हुए आगे कहा,
"पर तुम्हारी आँखों की नमी तो कुछ और ही बयाँ कर रही है।"
"What nonsense is this"
कृषिका बुरी तरह सकपकाई थी। उसने हड़बड़ाहट में अपने कदमों को पीछे घसीटा और अपनी हथेलियों से अपनी आँखों को पोंछने लगी। उसकी यह अदा देखकर उस लड़के की मुस्कान गहरी हो गई और उसकी ओलिव ग्रीन आँखें समुद्र सी गहरी हो गईं।
"इन खूबसूरत आँखों में आँसुओं की वजह?"
उसने कृषिका की झील सी गहरी नीली आँखों में झांकते हुए संजीदगी से सवाल किया। पर कृषिका अब संभल चुकी थी, उसने बुरी तरह उसे घुरा और तल्खी भरे लहज़े में बोली,
"तुमसे मतलब?"
"इतना एटीट्यूड"
लड़के की मुस्कान भी अब सिमट गई और चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए। जबकि कृषिका ने उसकी निगाहों से बराबर निगाहें मिलाते हुए करारे तेवर के साथ जवाब दिया था,
"है तो"
"पर मैडम इतना एटीट्यूड लेकर जाओगी कहाँ?"
बदले में उस लड़के ने भी एक सवाल फेंका था, पर कृषिका कहाँ कम थी। उसने भी उसी के अंदाज़ में जवाब पेश किया था,
"जहन्नुम में जाऊँगी, तुम्हें क्या?"
उसके इस जवाब पर वह लड़का एक पल को उसे अचरज भरी निगाहों से तकता रहा, फिर बड़े ही गंभीर लहज़े में बोला,
"अच्छा एक बात बताओ इतना भड़क क्यों रही हो तुम मुझ पर?"
"तुम बताओ बेमतलब में बिना किसी जान-पहचान के इतना चिपक क्यों रहे हो मुझसे?"
कृषिका ने भी सीना तानते हुए उसे इत्मिनान से घुरा था। जबकि उसकी बात, या यूँ कहें कि उसके लगाए इल्ज़ाम सुनकर वह लड़का बुरी तरह से चौंक गया था।
"चिपक और मैं seriously?"
वह आँखों की पुतलियाँ फैलाए अचंभित सा उसे देखने लगा था। जबकि उसके इस सवाल पर कृषिका ने आँखें तरेरकर उसे घुरा और कर्कश स्वर में बोली,
"येस, तुम बेवजह चिपक रहे हो मुझसे और मुझे ऐसे लोगों से सख्त नफ़रत है इसलिए दूर रहो मुझसे।"
अपनी बात कहकर कृषिका फ़ौरन पलटी और कंधे पर से सरकते पिट्ठू बैग को वापिस कंधे पर सरकाते हुए आगे बढ़ गई। जबकि पीछे खड़ा, वह लड़का आँखों की पुतलियाँ फैलाए हैरान-परेशान सा उसे देखता ही रह गया था।
वह अब भी जाती हुई कृषिका को ही देख रहा था, तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और इसके साथ ही एक हैरत भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई,
"ओये कुश यहाँ क्या कर रहा है तू? और इतनी हड़बड़ी में बाइक से उतरकर अंदर क्यों भागा था तू?"
जी हाँ, बिल्कुल सही सुना था आपने। यह ओलिव ग्रीन आँखों वाला शख्स कोई और नहीं, कुशाग्र ही था। वह अभी तक हैरान-परेशान सा जाती हुई कृषिका को ही देख रहा था, पर उस आवाज़ को सुनकर उसने चौंकते हुए अपने होश संभाले और सर घुमाकर देखा तो उसके बगल में उसकी ही उम्र का एक लड़का खड़ा था जिसकी सवालिया निगाहें उस पर ही टिकी थीं।
"कुछ नहीं"
कुशाग्र ने बात टालते हुए कहा और तुरंत ही पलटकर बाहर की ओर बढ़ गया। उसके बगल में खड़े समीर ने नासमझी में सर हिलाया और उसके पीछे-पीछे चल दिया।
कृषिका आज पहली बार कॉलेज नहीं आई थी। एडमिशन के लिए भी आई थी और तब सिद्धार्थ ने उसे पूरा कॉलेज दिखाया था क्योंकि उसने भी इसी कॉलेज से पढ़ाई की थी और कॉलेज दिखाने के साथ उसने अपने कॉलेज टाइम के कई मज़ेदार किस्से भी उसे सुनाए थे, जिसे उसने भी बड़ी ही दिलचस्पी से सुना था।
वह पास निगाहें घुमाते हुए आगे बढ़ रही थी तभी अचानक उसके कंधे किसी से ज़ोर की टकराई जिससे वह बुरी तरह लड़खड़ा गई। कंधे से बैग सरककर नीचे गिर गया। उसके साथ वह भी गिरती अगर उसने खुद को संभाला न होता। उसने किसी तरह खुद को तो गिरने से बचा लिया पर जिससे वह टकराई वह खुद को नहीं बचा सकी और फर्श पर गिर गई।
क्रिशु जो अचानक हुई इस टक्कर से स्तब्ध थी, उसने जल्दी ही खुद को संभाला और नीचे गिरी उस लड़की को उठाने लगी।
"तुम ठीक हो?" क्रिशु ने शब्दों में चिंता ज़ाहिर की।
उसका सवाल सुनकर उस लड़की ने चेहरे पर बिखरे अपने बालों को समेटा और सर हिला दिया।
"हाँ मैं ठीक हूँ।"
क्रिशु का ध्यान अब उसके चेहरे पर गया और अगले ही पल बाहर एंट्रेंस वाला वाक्या उसकी आँखों के सामने से गुज़र गया। यही तो लड़की थी, जिसे बाहर देखकर मन ही मन उसे जलन और दुख का एहसास हुआ था। कुछ ऐसी भावना उसके मन में पनपी थी जैसे उसके पास कुछ ऐसा हो जिसकी चाहत उसे कब से थी पर कभी मिली नहीं। वह आज भी उसके लिए तरसती है पर उसके सामने खड़ी इस लड़की के पास वह भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, शायद पिता का प्यार वह चीज है।
जहाँ क्रिशु इसी सोच में गुम थी, जबकि उसके सामने खड़ी दीपिका ने फ़ौरन ही सर पीछे की ओर घुमाया था और उसकी आँखों में इस वक्त अजीब सा खौफ समाया था। बेचैनी और घबराहट से भरी आँखों की पुतलियाँ पल भर में चारों दिशाओं का निरीक्षण कर गई थीं और अगले ही पल एक सुकून की साँस फेफड़ों में भरते हुए कुछ शांत हुई थी वह।
जैसे किसी बला से पीछा छूट गया हो।
दीपिका ने अब सर एक बार फिर कृषिका की ओर घुमाया और नीचे गिरा उसका बैग उठाकर उसकी ओर बढ़ाते हुए हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली,
"सॉरी.....तुम्हारा बैग गिर गया मेरे कारण।"
उसकी आवाज़ कानों में पड़ते ही कृषिका चौंकते हुए होश में लौटी, वह अपनी उलझनों में इस कदर खोई थी कि नीचे गिरे अपने बैग तक का होश नहीं रहा था उसे।
क्रिशु पहले तो सकपकाई फिर जल्दी ही संभलते हुए बोली,
"It's okay"
क्रिशु ने उसके हाथ से बैग लेने के लिए हाथ बढ़ाया तभी उसकी नज़र दीपिका की कोहनी पर चली गई जहाँ से खून रिस रहा था।
"तुम्हें तो चोट लग गई।" क्रिशु ने चौंकते हुए चिंता भरे स्वर में कहा।
उसकी निगाहों का पीछा करते हुए दीपिका ने भी अपनी कोहनी को देखा फिर वहाँ से रिसते खून को देखकर बेफिक्री से बोली,
"अरे कोई बात नहीं। यह चोट मुझे अभी नहीं लगी। सुबह ही लगी थी और मेरा और चोटों का बहुत गहरा और पुराना रिश्ता है। चलते फिरते मैं खुद को घायल करती ही रहती हूँ। That's not a big deal"
"चोट लगी है तुम्हें, रुको इधर आओ मेरे साथ।" क्रिशु उसकी चोट देखकर परेशान हो गई थी।
उसने दीपिका को कुछ कहने का मौका नहीं दिया और उसकी बाँह पकड़कर गार्डन की ओर बढ़ गई जहाँ बेंच लगा था।
क्रिशु ने उसे वहीं बिठाया और अपने पिट्ठू बैग को उसके बगल में रखकर उसमें से पानी की छोटी सी बोतल और अपना रुमाल निकाल लिया। साथ ही आगे की चैन से थोड़ा खोजने के बाद उसे एक बैंडेड भी मिल ही गया।
"चोट लगी है तुम्हें, रुको, इधर आओ मेरे साथ।" क्रिशु उसकी चोट देखकर परेशान हो गई थी।
उसने दीपिका को कुछ कहने का मौका नहीं दिया और उसकी बाँह पकड़कर गार्डन की ओर बढ़ गई जहाँ एक बेंच लगा था।
क्रिशु ने उसे वहीं बिठाया और अपने पिट्ठू बैग को उसके बगल में रखकर उसमें से पानी की छोटी सी बोतल और अपना रुमाल निकाल लिया। साथ ही, आगे की चैन से थोड़ा खोजने के बाद उसे एक बैंड-एड भी मिल गया।
उसने दीपिका का हाथ आगे करके पानी से उसके ज़ख्म को धोया, फिर रुमाल से उसके ज़ख्म को साफ किया और फिर बड़े ही ध्यान से वहाँ बैंड-एड लगा दिया। दीपिका, सौम्य सी मुस्कान लबों पर सजाए, उसे ही देख रही थी।
"अभी मैंने काम चलाऊ कर दिया है। तुम एक बार मेडिकल रूम में जाकर बैंडेज करवा लेना।" क्रिशु ने अपने हाथ को छोटा करते हुए कहा, जिस पर दीपिका ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
"तुम बहुत स्वीट हो, क्या नाम है तुम्हारा?" दीपिका के सवाल पर क्रिशु ने पलटकर उसे देखा, फिर हौले से मुस्कुरा दी।
"कृषिका.....कृषिका मल्होत्रा।"
"हाय......मैं दीपिका सहगल हूँ।" दीपिका ने अपनी पहचान बताई, फिर अपनी हथेली उसकी ओर बढ़ाते हुए बोली। "फ्रेंड्स?"
"फर्स्ट ईयर?" कृषिका ने ज़रा चौंकते हुए सवाल किया, जिस पर दीपिका ने मुस्कुराकर सहमति में सिर हिला दिया।
कृषिका ने अब उसके आगे बढ़े हाथ को थाम लिया। वैसे भी यहाँ उसका कोई जानकार नहीं था; अकेले भटकने से बेहतर था कि किसी का साथ मिल जाए। और जाने क्यों, पर दीपिका उसे बड़ी क्यूट और इनोसेंट सी लगी। शायद तभी उसने पहली ही मुलाकात में उसके आगे बढ़े हाथ को थाम लिया था।
"वैसे तुम किस फील्ड से हो?"
"बीबीए। और तुम?"
"सेम।" दीपिका ने तुरंत ही जवाब दिया और चहकते हुए आगे बोली। "अब तो बड़ा मज़ा आएगा। मैं तो बड़ी परेशान थी कि क्लास में अकेली बोर हो जाऊँगी, पर अब तो मुझे तुम मिल गई हो। हम एक ही क्लास में हैं, तो हमेशा साथ-साथ ही रहेंगे। साथ में पढ़ाई करेंगे, साथ में मस्ती करेंगे, बड़ा मज़ा आएगा।"
कृषिका उसकी मासूमियत भरी बातें और खुशी से चमकता चेहरा देखकर मुस्कुरा दी।
यहाँ दोनों बातों में लगी थीं और दूर से दो जोड़ी आँखें उन दोनों को देख रही थीं, जिससे वे अभी पूरे तरह से अंजान थीं।
इसके अलावा कोई और भी था जिसकी निगाहें अजीब तरह से दीपिका को घूर रही थीं, और इस बात से पूरी तरह अंजान दीपिका, कम बोलने वाली क्रिशु से बातें करने में मगन थी।
कुछ देर बाद सब ऑडिटोरियम में मौजूद थे जहाँ ओरिएंटेशन प्रोग्राम चल रहा था। सभी फर्स्ट ईयर के सभी स्टूडेंट्स वहाँ मौजूद थे। इनके साथ सेकंड और थर्ड ईयर के कुछ स्टूडेंट्स भी वहाँ मौजूद थे।
कॉलेज के डायरेक्टर ने अपनी स्पीच दी, जिसे कुछ स्टूडेंट्स ने खासी दिलचस्पी से सुना, तो कुछ नए दोस्त बनाते या पुराने दोस्तों से गप्पे लड़ाते नज़र आए, और कुछ बैठे-बैठे उबासीयाँ लेते हुए किसी तरह वक़्त गुज़ार रहे थे।
ओरिएंटेशन के बाद स्टूडेंट्स को उनके सेक्शन बताए गए।
दीपिका तब फिंगर्स क्रॉस किए खड़ी थी और जैसे ही उसे पता चला कि वह और कृषिका एक ही सेक्शन में हैं, वह खुशी से उछल पड़ी थी; जबकि उसकी खुशी और एक्साइटमेंट का लेवल देखकर कृषिका खासी हैरान थी।
उन्हें उनके डिपार्टमेंट के लेक्चरर और प्रोफ़ेसर से भी इंट्रोड्यूस करवाया गया। उन्हें उनका टाइम टेबल दिया गया था।
उसके बाद सबको क्लासेस में भेज दिया गया।
दीपिका कृषिका के साथ क्लास में पहुँची, तो कुछ स्टूडेंट्स पहले से ही वहाँ मौजूद थे और ग्रुप बनाकर बैठे बातों में लगे थे।
कृषिका और दीपिका भी एक बेंच पर जाकर बैठ गईं और प्रोफ़ेसर के आने का इंतज़ार करने लगीं।
प्रोफ़ेसर तो नहीं आए, पर अलबत्ता उस शख्स ने इस क्लास में कदम रख दिया, जिसे देखकर कृषिका और दीपिका दोनों के चेहरे के भाव बदल गए।
वजह दोनों की अलग-अलग थी, पर शख्स वही था जिसे देखकर जहाँ दीपिका अचंभित रह गई थी और आँखों की पुतलियाँ फैलाए, मुँह खोले हैरान-परेशान सी उसे देखने लगी थी।
वहीं कृषिका की भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गई थीं और चेहरे पर गुस्से और चिढ़ के मिले-जुले भाव उभर आए थे।
जबकि उस शख्स ने उड़ती नज़र उन दोनों पर ही डाली थी, फिर उन्हें लगभग नज़रअंदाज़ करते हुए आगे की ओर बढ़ गया था।
सिर्फ़ दीपिका और कृषिका ही नहीं, बल्कि क्लास में मौजूद सभी स्टूडेंट्स की नज़रें उस ऑलिव ग्रीन आँखों वाले हैंडसम और क्यूट से लड़के पर ठहर गई थीं। ब्लैक टीशर्ट और ब्लैक रफ़ जीन्स उसके दूध से गोरे, गठीले बदन पर खूब जँच रही थीं। माथे पर बिखरे सिल्की-सिल्की अखरोटी बाल कई लड़कियों के होश उड़ाए हुए थे। उस पर उसकी ऑलिव ग्रीन चमकती आँखें, दिलकश मुस्कराहट समेटे लब; कयामत ढा रहा था वह। उसकी शख़्सियत ही ऐसी थी कि सबकी निगाहों को उसने खुद पर बाँध लिया था, पर जिस पर उसकी निगाहें पल भर को ठहरी थीं, वह तो इस बात से पूरी तरह से अंजान थी।
क्लास में एंट्री के साथ ही उसके बारे में बातें शुरू हो चुकी थीं। खासा इम्प्रेशन डाल चुका था वह, और लगभग सबको नज़रअंदाज़ करते हुए कृषिका के साइड वाले बेंच पर बैठ चुका था।
उसके बगल में बैठा था समीर, और दोनों आपस में कुछ बात कर रहे थे।
दीपिका ने दोनों को यहाँ देखकर बुरा सा मुँह बना लिया, वहीं कृषिका ने पल भर कुशाग्र को घूरा, जिसका नाम तक नहीं जानती थी वह, फिर बेरुखी से उस पर से निगाहें फेर ली।
इतने में क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए और स्टूडेंट्स का इंट्रो शुरू हुआ। कृषिका और दीपिका दोनों का नंबर पहले ही आ चुका था।
जब कृषिका ने अपना इंट्रो दिया, तो जाने क्यों पर कुशाग्र के लब दिलकशी से मुस्कुराए थे; जबकि कुशाग्र की बारी आई और जब उसने अपना इंट्रो दिया, तो एक पल को उसके सरनेम पर कृषिका का ध्यान अटका, अगले ही पल उसने मुँह बनाते हुए सिर झटक दिया। धीरे-धीरे सबने अपना इंट्रो दिया।
उसके बाद थोड़ी पढ़ाई हुई, पर क्योंकि आज फर्स्ट डे था, तो आधे लेक्चर के बाद ही प्रोफ़ेसर चले गए थे; और उनके जाते ही जहाँ लड़कियाँ कुशाग्र के डेस्क के इर्द-गिर्द मंडराने लगी थीं, वहीं लड़कों का निशाना कृषिका पर सधा था; पर इससे पहले कि कोई उसके पास आता, उसने एक नज़र घूरकर उन रंगीन तितलियों से घिरे कुशाग्र को देखा था, फिर अपना पिट्ठू बैग पीठ पर टांगते हुए क्लास से बाहर निकल गई थी।
"अरे रुको न, मैं भी आ रही हूँ..." चिल्लाते हुए दीपिका भी उसके पीछे भागी थी; जल्दबाज़ी में उसका पैर डेस्क से अड़ा गया और उसके मुँह से हल्की दर्द भरी सिसकी निकल गई।
अपना पैर पकड़े वह उसी बेंच पर पल भर में बैठ चुकी थी जिस पर आगे जाती कृषिका का तो ध्यान नहीं गया था, क्योंकि तब तक वह क्लास से बाहर निकल चुकी थी।
पर समीर, जिसकी निगाहें सारे वक़्त दीपिका पर ही ठहरी थीं, उसके चेहरे पर अजीब सी कैफियत झलकने लगी थी, आँखों में फिक्र झलकने लगी थी और चेहरे पर नाराज़गी के भाव उभर आए थे।
जबकि कुशाग्र, जो जाती हुई कृषिका को देख रहा था, वह तुरंत ही उन तितलियों को झटकते हुए उसकी ओर बढ़ चुका था।
अपनी आँखें भींचे बैठी दीपिका अपने पैर को अपनी हथेली से सहला रही थी, तभी किसी ने उसके पैर को पकड़ लिया और उसकी सैंडल उतारकर उसके पैर को देखने लगा।
दीपिका ने चौंकते हुए आँखें खोलीं, तो सामने कुशाग्र बैठा था।
दीपिका ने निगाहें घुमाईं, तो सभी स्टूडेंट्स अजीब निगाहों से उन्हें ही देख रहे थे।
"मैं......मैं ठीक हूँ।" सबकी नज़रों को खुद पर टिके देखकर दीपिका ने हड़बड़ी में अपना पैर पीछे खींचा था और उठने ही लगी थी, जब कुशाग्र की गुस्से से गुलाबी आँखें उसकी ओर उठी थीं।
"तुम ध्यान से एक काम नहीं कर सकती न? जब तक अपनी बेवकूफी से खुद को तकलीफ ना पहुँचा लो, तुम्हें सुकून नहीं आता न?" कुशाग्र ने धीमे और साधे हुए शब्दों में उसे फटकारा था।
उसकी डाँट सुनकर दीपिका की बड़ी-बड़ी भूरी आँखों में मोटे-मोटे आँसू की बुँदे उभरने लगी थीं।
कुशाग्र खासे नाराज़ लग रहा था। उसके आँसू देखकर वह फिर कुछ कहने ही वाला था कि सबका ध्यान उन दोनों पर देखकर समीर तुरंत उठकर उनके पास चला आया और कुशाग्र के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला।
"कुश, इतना भी सेंसिटिव होने की ज़रूरत नहीं है यार। चल, आजा, ज़रा कैंटीन का चक्कर लगाकर आते हैं।"
कुशाग्र, जो अभी खासे गुस्से में था, उसकी घूरती निगाहें समीर की ओर घूम गईं। उसने तुरंत ही धीमे शब्दों में आगे कहा।
"कुश, भूल गया दीपिका ने क्या शर्त रखी थी तेरे साथ इस कॉलेज में पढ़ने की? यहाँ कोई तमाशा मत कर, सब तुम्हें ही देख रहे हैं, इससे पहले कि किसी को तुम्हारे रिश्ते पर शक हो, चल यहाँ से।"
समीर की बात सुनकर कुशाग्र ने बेबसी से अपनी आँखें भींच लीं। अपने गुस्से पर काबू पाते हुए वह तुरंत ही उठा और तेज कदमों से सीधे क्लास के बाहर निकल गया।
समीर ने एक नज़र वहाँ सर झुकाए बैठी दीपिका को देखा, फिर अपना और कुश का बैग लेकर क्लास से निकल गया।
दीपिका ने भी खुद को संभाला, दर्द अब कुछ कम था, तो सैंडल पहनकर क्लास से बाहर निकल गई।
"कुश भूल गया कि दीपिका ने क्या शर्त रखी थी तेरे साथ इस कॉलेज में पढ़ने की? यहाँ कोई तमाशा मत कर, सब तुम्हें ही देख रहे हैं, इससे पहले कि किसी को तुम्हारे रिश्ते पर शक हो, चल यहाँ से।"
समीर की बात सुनकर कुशाग्र ने बेबसी से अपनी आँखें मूँद लीं। अपने गुस्से पर काबू पाते हुए, वह तुरंत ही उठा और तेज कदमों से सीधे क्लास के बाहर निकल गया। समीर ने एक नज़र वहाँ सर झुकाए बैठी दीपिका को देखा, फिर अपना और कुश का बैग लेकर क्लास से निकल गया। दीपिका ने भी खुद को संभाला; दर्द अब कुछ कम था, तो सैंडल पहनकर क्लास से बाहर निकल गई।
दीपिका यहाँ से निकलकर पीछे के लॉन की ओर बढ़ गई जहाँ इस वक्त कोई भी नहीं था। चोट लगी थी उसे, हालाँकि दर्द अब कम था, पर कुशाग्र ने जैसे उसे सबके सामने डाँट लगाई, उससे दीपिका का नाज़ुक दिल आहत हो गया था। अब उसकी आँखों में भरे आँसू छलकने को बेताब थे, इसलिए वह तन्हा जगह ढूँढ़ते हुए यहाँ पहुँच गई थी और अब उसका सब्र जवाब दे गया था। उसकी आँखों में भरे आँसू पलकों के बाँध को तोड़कर बह निकले थे।
वह अभी तन्हाई में कुछ आँसू बहा ही पाई थी कि अचानक ही एक जानी-पहचानी सी आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"बस करो, और कितना रोओगी? इतना तो कुश ने डाँटा भी नहीं जितने मोटे-मोटे आँसू तुम बहा रही हो।"
दीपिका ने तुरंत ही चौंकते हुए अपनी मुँदी आँखों पर से भीगी पलकों का पर्दा हटाया और आँसू तैरती बड़ी-बड़ी सुनहरी आँखें आश्चर्य से बड़ी-बड़ी करके सामने देखा। उसके ठीक सामने समीर खड़ा था, चेहरे पर नर्म भाव लिए और अपना एक हाथ उसकी ओर बढ़ाया था, जिसमें उसने रुमाल थामा हुआ था।
"तुम तो चुप ही रहो, अपने यार के चमचे हो और हमेशा बस उसी की तरफ़दारी करते हो।"
दीपिका बुरी तरह खीझते हुए उस पर बरस पड़ी और अपनी हथेलियों को आँखों पर रगड़ते हुए अपने आँसुओं को खुद से ही साफ़ कर लिया। उसके तेवर एकदम से बदल गए थे। समीर के चेहरे के भाव भी कुछ बदले और वह गहरी निगाहों से उसे देखने लगा।
"उसकी तरफ़दारी नहीं करता और न ही उसका चमचा हूँ। अगर ऐसा होता तो इस वक्त यहाँ तुम्हारे सामने न खड़ा होता, उसके पास होता।"
"हाँ तो जाओ न उसके पास, क्यों आए हो यहाँ? किसी ने बुलाया तो नहीं था तुम्हें और न ही मैंने तुम्हें कोई इनविटेशन कार्ड भेजा था।" दीपिका तैश में बोली और अपनी भूरी-भूरी आँखों से उसे घूरने लगी।
"दीपू," समीर ने ज़रा खफ़ा-खफ़ा अंदाज़ में उसे पुकारा। पर बदले में दीपिका आँखें तरेरकर उसे घूरने लगी। समीर अब बेहद परेशान हो गया और खीझते हुए बोला,
"इतना क्यों चिढ़ती हो यार तुम मुझसे? एक तो तुम दोनों भाई-बहन चौबीसों घंटे चूहे-बिल्ली जैसे लड़ते रहते हो और बीच में मैं बेवजह पिसता रहता हूँ। एक तुम हो जो कुछ समझना नहीं चाहती और बस बेवजह उसके गुस्से को भड़काती रहती हो और दूसरी तरफ़ वह महाशय है जिसका प्यार भी गुस्से के रूप में झलकता है… फ़िक्र करता है तो डाँटता है और फिर तुम्हारी आँखों से ये मोटे-मोटे आँसू बहते हैं, मैं बस दोनों को संभालने में ही लगा रह जाता हूँ पर क़दर न मेरी यहाँ है और न वहाँ। तुम दोनों भाई-बहनों ने मिलकर मुझे ढोल बना दिया है, जब जिसका मन करता है बजा जाता है।"
समीर चिढ़ा हुआ सा एक साँस में बोलता ही चला गया और दीपिका आँखों की पुतलियाँ फैलाए उसे देखती ही रह गई। समीर का यह रूप नया था उसके लिए, वह कभी इस लहज़े में उससे बात नहीं करता था, इसलिए वह हैरान थी। अब तो उसका गुस्सा भी जाने कहाँ काफ़ूर हो चुका था। समीर ने पूरी बात बोलने के बाद गहरी साँस ली, मानो इस दौरान उसने अपनी साँसों तक को चलने की इजाज़त न दी हो और फिर दीपिका की ओर निगाहें उठाईं तो उसे खुद को ही देखता पाया।
दीपिका की हैरान-परेशान निगाहों को खुद पर टिके देखकर उसने एक गहरी साँस अपने अंदर भरी, फिर ज़रा नर्म अंदाज़ में बोला,
"दीपू, क्या हुआ है? क्या परेशानी है तुम्हें कुश से? जानती हो न कितना चाहता है वह तुम्हें, फिर क्यों अपनी लापरवाही के कारण खुद को चोट पहुँचाकर उसे तकलीफ़ पहुँचाती हो, गुस्सा करने पर मजबूर करती हो?"
"कह तो तुम ऐसे रहे हो जैसे मुझे शौक है चोट लगाने का और जानबूझकर ही मैं खुद को घायल करती रहती हूँ… इंसान हूँ, हो जाती है गलती, लग जाती है तो क्या मार दोगे मुझे? और क्या कह रहे थे मुझे कि मुझे उससे प्रॉब्लम नहीं… तो सुनो, मुझे नहीं, तुम्हारे दोस्त को मुझसे जाने किस जन्म की दुश्मनी है कि अपनी छोटी बहन के साथ ऐसा सुलूक करता है, कभी प्यार से दो बोल नहीं बोलता, बड़े भाई जैसे परवाह नहीं करता, जब देखो तब मुझ पर बस गुस्सा करता रहता है, चिल्लाता रहता है, पर सबको गलत मैं ही लगती हूँ।"
दीपिका इस बार बुरी तरह बिफर पड़ी। एक बार फिर उन सुनहरी आँखों में पानी भरने लगा था। यह देखकर समीर विचलित हो गया और तुरंत ही उसे संभालते हुए बोला,
"अरे… अरे तुम रोने क्यों लगी… मैं डाँट तो नहीं रहा तुम्हें, उल्टा तुम ही मुझ पर गुस्सा कर रही हो और अब रोने भी लगी… चलो शाबाश, चुप हो जाओ, ऐसे बात-बात पर रोते नहीं, कुछ नहीं कह रहा मैं तुम्हें, चलो आँसू पोछो और शांति से मेरी बात सुनो।"
समीर ने किसी तरह उसे संभाला। दीपिका ने अपने आँसू तो पोछ लिए पर अब भी वह कुछ खफ़ा-खफ़ा सी लग रही थी। पर शायद अब वह समीर की बात सुनने को तैयार थी।
"दीपू, कृषु को मैं बचपन से जानता हूँ, चाहे तुम पर कितना ही गुस्सा करे, चिल्लाए, पर प्यार भी बहुत करता है तुमसे और उतनी ही परवाह भी करता है और यह बात मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह बात तुम मुझसे भी बेहतर जानती हो कि वह ज़्यादातर तुम पर गुस्सा तभी करता है जब तुम खुद को चोट पहुँचाती हो।
हाँ, मैं मानता हूँ कि गुस्से का थोड़ा तेज़ है वह, पर ध्यान से देखोगी तो उस गुस्से में भी तुम्हें उसका प्यार और तुम्हारी फ़िक्र ही नज़र आएगी। रही बात प्यार से बात करने की तो गुस्सा तो तुम ही दिलाती हो उसे अपनी हरकतों और बातों से। भैया कहने कहता है तो कहती नहीं हो, उससे बदतमीज़ी से बात करती हो, और अब तक तुमने हद ही कर दी है, कॉलेज में एडमिशन करवाने के लिए उसके सामने यह शर्त रख दी कि तुमसे बेगाने जैसे व्यवहार करे, अजनबी बनकर मिले, किसी को तुम्हारे रिश्ते के बारे में पता न लगे। जिसकी वजह मैं खुद नहीं समझ पाता पर तुम्हारे इस शर्त ने उसके गुस्से को बढ़ा दिया है और ऐसे में उसे क्या, मुझे भी गुस्सा आ जाए।"
दीपिका बड़े ही ध्यान से उसकी बात सुन रही थी और काफ़ी हद तक शांत हो चुकी थी। उसने गौर से समीर की पूरी बात सुनी, फिर संजीदगी से बोली,
"मैं मानती हूँ कि गलती मेरी होती है, पर मैं जानबूझकर तो खुद को तकलीफ़ नहीं पहुँचाती जो बदले में मुझे डाँट मिले और जब बंदा गुस्सा करता है तो कभी-कभी प्यार भी करना होता है। बचपन से वह या तो मुझे चिढ़ाकर परेशान करता है या फिर गुस्सा करता है। मजबूर करता है मुझे बदतमीज़ी से बात करने पर। बड़े भाइयों जैसी कोई हरकत नहीं उसकी, तो क्यों कहूँ उसे भैया?
और जो तुम कॉलेज वाली शर्त की बात कर रहे हो न, तो उसकी वजह भी वह खुद है। स्कूल टाइम में मेरी क्लास की सारी लड़कियाँ उसकी दीवानी थीं, उसके लुक्स पर फ़िदा थीं और उसके नज़दीक जाने के लिए मुझे सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करती थीं, उसके कारण मेरी एक भी सच्ची दोस्त नहीं बनी। रोज़ उन लड़कियों के हज़ारों सवालों के जवाब देने पड़ते थे मुझे, कभी कोई कुछ देने कहता, कभी कोई कुछ देने को कहता, तो कभी कुछ और, बदले में मुझे उसका गुस्सा झेलना पड़ता। मैं एक मिडिल मैन बनकर रह गई थी और मुझे वही ज़िंदगी दोबारा नहीं जीनी है, कुशाग्र सहगल की बहन बनकर नहीं रहना है, अपनी पहचान बनानी है, इसलिए मैं नहीं चाहती कि किसी को हमारे रिश्ते के बारे में पता चले और मेरी कॉलेज लाइफ़ भी स्कूल लाइफ़ जैसे बर्बाद हो जाए।
अब बताओ क्या गलत किया मैंने जो वह इतना भड़क रहा है? उसने कहा तो सेम कॉलेज में आ गई न, सेम क्लास में भी है, अब क्या फिर क्या परेशानी है उसे मुझसे? अब क्या मुझे अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने का भी अधिकार नहीं है?"
"उसकी परेशानी तुम नहीं समझ पाओगी और तुम दोनों भाई-बहनों के बीच जो खाई बन चुकी है वह जाने कब और कैसे भरेगी।" समीर ने बेहद संजीदगी से अपनी बात कही और ठंडी आह्ह भरते हुए आगे बोला,
"तुम यह सब बात छोड़ो। बस अपना ध्यान रखा करो। कुश को बिल्कुल नहीं पसंद तुम्हें घायल देखना। चोट तुम्हें लगती है, तकलीफ़ उसे होती है और वह तकलीफ़ गुस्से का रूप लेकर बाहर आती है। अगर तुम अपना ध्यान रखोगी तो उसका गुस्सा भी शांत रहेगा और तब शायद तुम्हें उसका वह साइड दिख सके जो तुम देखना नहीं चाहती।"
समीर ने अपनी बात कही और जाने के लिए कदम बढ़ा दिए। कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद वह अचानक ही ठहरा और दीपिका की ओर पलट गया।
"मेरे जाने के बाद वापिस रोने मत लगना तुम।"
इतना कहकर वह वहाँ से चला गया। गलियारे के पास पहुँचा तो रेलिंग से टेक लगाए खड़े कुश पर उसकी नज़र पड़ गई और उसके चेहरे के गंभीर भाव यह बताने को काफ़ी थे कि वह सब सुन चुका है। समीर ने उसे देखकर मन ही मन कहा,
"चल बेटा समीर, अब तैयार हो जाए। अभी बहन को संभाला है और अब भाई को समझाना है।"
समीर ने मन ही मन खुद को हिम्मत दी और कुश के बगल में आकर खड़ा हो गया, पर कुश ने न तो नज़रें उठाकर उसे देखा और न ही कुछ बोला। उसकी यह खामोशी और चेहरे पर मौजूद गंभीर भाव यह बताने को काफ़ी थे कि वह गहन सोच में डूबा है। समीर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसका ध्यान अपनी ओर खींचा और गंभीरता से बोला,
"सब सुन ही चुका है तो समझ ही गया होगा कि पूरी तरह से गलत वह भी नहीं है। तेरा रवैया उसकी नाराज़गी की वजह है और शुरुआत तुझे ही करनी होगी। जानता है न कितनी इमोशनल और ज़िद्दी है वह। सामने से कभी नहीं झुकेगी, अब अगर तू अपना और उसका रिश्ता बचाना चाहता है और वाकई तुझे उसमें अपनी छोटी बहन को देखना है तो तुझे ही झुकना होगा।
सालों से जो नाराज़गी उसके मन में पनपती आ रही है उसे अब तुझे ही दूर करना होगा, वरना वह दिन दूर नहीं जब तू अपनी बहन को खुद से हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर देगा।"
समीर बेहद गंभीर लग रहा था। कुश ने खामोशी से उसकी पूरी बात सुनी, फिर बिना कुछ कहे चुपचाप वहाँ से चला गया। मूड खराब था उसका और तेज कदमों से कैंटीन की ओर बढ़ रहा था, तभी अचानक ही उसकी नज़र सामने वाले लॉन में पेड़ के नीचे अकेली बैठी कृषिका पर पड़ी और उसकी रफ़्तार में आगे बढ़ते कदम बरबस ही ठिठक गए थे। निगाहें एक पल को उस हसीना पर ठहर गई जो अपने दोनों पैरों को मोड़कर अपने सीने से लगाए बैठी थी और अपने घुटनों पर अपनी ठोड़ी टिकाए, बाहों को पैर के इर्द-गिर्द लपेटे, घास में कौन सा ख़ज़ाना ढूँढ़ने में लगी थी। पर उसके चेहरे पर इस वक्त गंभीर भाव मौजूद थे। जाने क्या था उसमें कि कुशाग्र को वह उसकी तरफ़ खींचता हुआ महसूस हो रहा था।
समीर बेहद गंभीर लग रहा था। कुश ने खामोशी से उसकी पूरी बात सुनी, फिर बिना कुछ कहे चुपचाप वहाँ से चला गया। उसका मूड खराब था और वह तेज कदमों से कैंटीन की ओर बढ़ रहा था। तभी अचानक ही उसकी नज़र सामने वाले लॉन में पेड़ के नीचे अकेली बैठी कृषिका पर पड़ी और आगे बढ़ते उसके कदम बरबस ही ठिठक गए। निगाहें एक पल के लिए उस हसीना पर ठहर गईं। वह अपने दोनों पैरों को मोड़कर अपने सीने से लगाए बैठी थी, अपनी ठोड़ी अपने घुटनों पर टिकाए हुए थी और बाहों को पैरों के इर्द-गिर्द लपेटे, घास में कौन सा ख़ज़ाना ढूँढ़ने में लगी हुई थी। पर उसके चेहरे पर इस वक्त गंभीर भाव मौजूद थे। जाने क्या था उसमें कि कुशाग्र को वह उसकी तरफ़ खींचता हुआ महसूस हो रहा था।
"अब यहाँ रुककर क्या देखने लगा तू?" समीर की आवाज़ कानों में पड़ते ही कुश चौंककर होश में आया और हड़बड़ी में कृषिका पर से निगाहें हटाते हुए तुरंत ही आगे बढ़ गया। समीर ने नासमझी से अपना सर खुजलाया, फिर उसके पीछे-पीछे चला गया।
कृषिका हर बात से अनजान, अब भी खामोश सी वहाँ बैठी हुई थी। तभी दीपिका उसे ढूँढती हुई वहाँ पहुँची और बैग साइड में रखकर उसके बगल में बैठते हुए बोली,
"तुम यहाँ अकेले बैठकर क्या कर रही हो? मैंने कहाँ-कहाँ ढूँढा तुम्हें, और मेरे लिए रुकी क्यों नहीं? मैं पुकार रही थी तुम्हें। पता है, जल्दबाज़ी में तुम्हारे पास आने के चक्कर में मेरे पैर में चोट भी लग गई।"
दीपिका ने बैठते ही सवालों की झड़ी लगा दी थी और साथ ही अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर कर दी थी। उसके आने से कृषिका सीधी होकर बैठ गई थी। उसके सवालों पर भी वह सामान्य बनी हुई थी और आँखों के सामने अनायास ही वह दृश्य उभर आया था जब उसने कुशाग्र को उन हसीन मॉडर्न तितलियों से घिरे देखा था, जिस नज़ारे को देखकर उसका मन जाने क्यों सुलग उठा था। पर दीपिका की आखिरी बात सुनते ही उसके चेहरे के भाव कुछ बदल गए। ध्यान कुशाग्र से हटकर दीपिका पर चला गया और माथे पर सिलवटें पड़ गईं।
"तुमने फिर से खुद को चोट लगा ली?"
कृषिका हैरान-परेशान निगाहों से उसे देखने लगी। वहीँ, उसका सवाल सुनकर दीपिका ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
"हाँ, वह जल्दबाज़ी में मेरा पैर बेंच से लग गया था, पर चोट ज़्यादा गहरी नहीं थी। इंफैक्ट, अब तो दर्द भी ठीक हो गया। देखो, कहीं कोई निशान भी नहीं।" दीपिका ने तुरंत ही अपना पैर उसके सामने कर दिया। वाकई में उसका पैर बिल्कुल ठीक था। यह देखकर कृषिका ने गहरी साँस छोड़ी और गंभीरता से बोली,
"दीपिका, तुम अपना ख़ास ध्यान रखा करो। इतनी लापरवाही ठीक नहीं है, कभी ज़्यादा चोट लग गई तो परेशानी हो जाएगी।"
"मैं कोशिश करती हूँ यार, पर लगता है मेरे सिस्टम में ही कोई बहुत पुराना डिफ़ॉल्ट है, इसलिए हमेशा मुझसे कोई न कोई गड़बड़ हो ही जाती है।"
कृषिका ने अब बेबसी और अफ़सोस से अपना सिर हिला दिया। दीपिका ने मासूम सी शक्ल बनाई, फिर सोचते हुए बोली,
"अच्छा कृषिका, एक सवाल का जवाब तो दो।"
"कैसा सवाल?" कृषिका सवालिया निगाहों से उसे देखने लगी। दीपिका ने अब समीर की कही बात याद करते हुए सवाल किया,
"अगर कोई हमसे प्यार करे, तो क्या ऐसा हो सकता है कि हमारी लापरवाही की वजह से हमें तकलीफ़ हो, तो वह हम पर गुस्सा करे? बहुत नाराज़ हो हम पर?"
"बिल्कुल हो सकता है। असल में इस दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग होते हैं। सबका प्यार और फ़िक्र दिखाने का अलग-अलग तरीका होता है। जैसे मेरे भैया को देखा जाए, तो वह शांत, संजीदा रहते हैं और मेरी गलतियों पर भी बेहद प्यार से समझाते हैं, कभी-कभी नाराज़ भी होते हैं, पर वह भी उनका प्यार दिखाने का तरीका है। हाँ, कभी मुझ पर चिल्लाते नहीं और ज़्यादा गुस्सा भी नहीं करते। यह उनका नेचर है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हमसे इतनी मोहब्बत करते हैं कि हमें तकलीफ़ में नहीं देख सकते। अगर हमारी लापरवाही के कारण हमें कुछ तकलीफ़ या दुख होता है, तो उन्हें भी तकलीफ़ होती है और तब वह गुस्सा हो सकते हैं, हमें डाँट सकते हैं और यह भी उनका प्यार दिखाने का एक अलग तरीका है। पर तुम यह सवाल क्यों पूछ रही हो?"
कृषिका ने सवालिया निगाहों से उसे देखा। दीपिका, जो बड़े ही ध्यान से उसकी पूरी बात सुन रही थी, उसने तुरंत ही सौम्य सी मुस्कान लबों पर सजाते हुए इंकार में सिर हिला दिया। कृषिका ने भी ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला और सिर झटकते हुए उठकर खड़ी हो गई क्योंकि अगले लेक्चर का समय हो गया था। दीपिका भी उसके साथ चल पड़ी।
इस क्लास में कुश और समीर थोड़ी देर से पहुँचे थे, जिसके कारण सबकी निगाहें उनकी ओर घूम गई थीं, पर कुश की नज़रें उस बेंच पर ठहरी हुई थीं जहाँ दीपिका के साथ कृषिका बैठी हुई थी। जबकि कृषिका ने उसे पूरी तरह अनदेखा कर दिया था और नज़रें अपनी नोटबुक पर गड़ाए हुए थीं। दीपिका भी सिर झुकाए बैठी हुई थी।
समीर और कुशाग्र भी अंदर आकर खाली बेंच पर बैठ गए और लेक्चर एक बार फिर शुरू हो गया। दीपिका और कृषिका दोनों अपना बैग संभालते हुए वहाँ से निकल गई थीं। इन तीन घंटों में पूरी क्लास को इतना तो समझ आ गया था कि कृषिका 'ब्यूटी विथ ब्रेन' है क्योंकि 12वीं में काफ़ी अच्छा स्कोर किया था उसने। अपने काम से काम रखती है, लोगों से ज़्यादा लेना-देना नहीं है, बातचीत में भी कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं है, शांत स्वभाव की, कम बोलने वाली लड़की है। उसके चेहरे के गंभीर भाव और गहरी नीली आँखों के कारण उसकी ख़ूबसूरती का कायल होते हुए किसी ने उसकी ओर क़दम बढ़ाने की हिम्मत नहीं की थी।
जबकि कुश के इर्द-गिर्द लड़कियों का मेला लगा रहता था। ऐसा नहीं था कि वह उनमें कुछ ख़ास दिलचस्पी ले रहा था। वह तो बस उनके सवालों के जवाब दे देता था, वह भी मुस्कुराकर और इतने में ही लड़कियाँ उस पर अपना दिल-दिमाग़ सब हार जाती थीं। अभी भी दीपिका और कृषिका को जाते देखकर वह बड़ी मुश्किल से उन लड़कियों से जान छुड़ाकर भागा था और समीर खुद में ही उलझा हुआ सा उसके साथ चल पड़ा था।
सुबह से तीन लेक्चर हो चुके थे, पर अब लंच ब्रेक शुरू हो चुका था और कृषिका के साथ दीपिका कैंटीन पहुँच गई थी, जहाँ दोनों ने अपने-अपने लिए लंच ऑर्डर किया। दीपिका बातों में लग गई, जबकि कृषिका आस-पास निगाहें घुमाते हुए उसकी बातें सुन रही थी।
कुश और समीर जब यहाँ आए, तो अनायास ही उनका ध्यान भी इन दोनों पर चला गया। जहाँ समीर की निगाहें हँसती-खिलखिलाती और बातों में मगन दीपिका पर ठहरीं, वहीँ कुश की नज़रों को कृषिका ने अपनी ओर आकर्षित किया, जो हल्की मुस्कान लबों पर सजाए उसकी बातें सुन रही थी। एक पल के लिए उनके क़दम ठिठके, फिर कुश ने कुछ सोचते हुए क़दम उसकी ओर बढ़ा दिए।
"Can we sit here?"
एक जानी-पहचानी सी आवाज़ पर दीपिका और कृषिका दोनों ने सिर घुमाकर देखा, तो उनकी टेबल के पास ही कुश और समीर दोनों खड़े थे। जहाँ समीर की उलझन भरी निगाहें कुश पर टिकी थीं, वहीँ कुश की नज़रें कृषिका पर ठहरी थीं और अधरों पर दिलकश मुस्कान सजी थी, जिसे देखकर कृषिका बुरी तरह खीझ उठी और तुनकते हुए तैश में बोली,
"बिल्कुल नहीं।"
"क्यों?" कुश की मुस्कान अब सिमट गई और गहरी निगाहें अब भी कृषिका पर टिकी थीं। दीपिका, जो कुश को वहाँ देखकर हैरान थी, पल भर में कृषिका के बिगड़ते तेवर देखकर हैरत में पड़ गई और ऐसा ही कुछ हाल समीर का भी था।
कृषिका ने जबड़े भींचे और आँखें तरेरकर उसे घूरने लगी।
"क्योंकि पहले मैं यहाँ आकर बैठी हूँ और मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे आस-पास भी कहीं नज़र आओ, इसलिए अपनी ग्यारह नंबर की बस पकड़ो और चलते बनो यहाँ से, बहुत से टेबल और चेयर्स खाली पड़े हैं, किसी पर भी जाकर अपनी तशरीफ़ रख दो, बस यहाँ से चलते बनो।"
यहाँ कृषिका ने अपनी बात ख़त्म की और उनका ऑर्डर भी आ गया। पल भर के लिए कृषिका ने उसे घूरा, फिर मुँह फेरते हुए अपना ध्यान अपने सैंडविच में लगा लिया, जबकि कुशाग्र उसका मुँह तकता रह गया। दीपिका, जो अब तक आँखों की पुतलियाँ फैलाए हैरान-परेशान सी कृषिका और कुशाग्र को देख रही थी, उसने समीर को आँखों से ही कुछ इशारा किया, जिसे समझते हुए समीर ने सिर हिला दिया।
"कुश, चल यार, कहीं और चलकर बैठते हैं।" समीर ने कुश के कान में फुसफुसाते हुए कहा और उसे लेकर बगल वाली चेयर पर चला गया।
कुशाग्र पहले तो कुछ पल टकटकी लगाए कृषिका को देखता रहा, जो अजीब-अजीब से मुँह बनाते हुए सैंडविच खा रही थी और साथ में कोक पी रही थी, फिर गहरी साँस छोड़ी और मायूसी से अपना ध्यान सामने लगा लिया।
कुश से हुई इस छोटी सी बहस के कारण कृषिका का मूड बिगड़ गया था। वहीं कुश का भी मूड ख़राब हो गया था। दीपिका और समीर उनसे बात करने में लगे थे, पर उनका ध्यान तो वहाँ था ही नहीं।
खैर, लंच ब्रेक ख़त्म हो गया और एक बार फिर सब अपनी-अपनी क्लास में चले गए।
" क्रिशु चल ना , सिनियर्स नाराज हो गए तो प्रॉब्लम हो जाएगी यार " दीपिका पिछ्ले दस मिनट से कृषिका को साथ चलने के लिए कन्वेंस करने मे लगी थी । असल मे सुबह नोटिस बोर्ड पर लगे नोटिस मे यही लिखा था कि दोपहर 3 बजे सभी फ्रेशर् को ऑडिटोरियम मे आना है । तीन बजने मे बस पांच मिनट रह गए थे । घबराहट और डर के मारे दीपिका की जान हलक मे अटकी थी जबकि कृषिका पर तो जैसे कोई असर ही नही हुआ था । वो तो एकदम बेफिक्र थी जैसे किसी का न तो डर और न ही किसी से कुछ लेना देना । इस बार भी उसने दीपिका के फोर्स करने पर चिढ़ते हुए जवाब दिया " मैं नही जाती कही और वो मेरे बाप नही जो मैं उनके ऑर्डर फॉलो करती फिरूँ ....... अरे मैं तो अपने डेड कि नही सुनती , मैं नही डरती किसी से । करके दिखाए कोई मेरे साथ कुछ गलत , एक कॉल लगाउँगी भैया को और एक बार मे वो सबको ठिकाने लगा देंगे । " कृषिका ने बड़े ही तैश मे कहा और एक बार फिर कानों मे हेड फोन लगाकर बैठ गयी । दीपिका कुछ पल परेशान सी उसको तकती रही फिर उसने उसके कानों से हेड फोन निकाले और क्यूट सी शक्ल बनाकर बोली " मेरे लिए मेरे साथ चल लो न । तुम तो जानती हो , चलते फिरते खुदको चोट लगवा लेती हूँ तुम रहोगी साथ तो सेफ्टी भी रहेगी और मोरल सपोर्ट भी । फिर सिनियर्स से मिल भी लेंगे आगे काम भी तो पड़ेंगे उनसे । " दीपिका ने इस बार अनुरोध करने पर कृषिका बुझे मन से उसके साथ जाने को राजी हो गयी । उसने हेड फोन गर्दन पर लटकाए और पिट्ठू बैग पीछे टाँगे कपड़े झाड़ती हुई उठ खड़ी हुई । " चलो अब ज़रा सिनियर्स की खबर ले ही लेते है , देखे तो सही कौनसे तीस मार खान है जो जुनियर्स पर अपनी हुकूमत चलाने को बेताब है । " " तुम और तुम्हारी बातें , किसी से तो डरा करो । सबसे भिड़ना ज़रूरी नही । तुम तो हमेशा लड़ाई और टकराने के मूड मे रहती हो । " " ज़िंदगी से अब तक यही सीखा है जानेमन , लड़ो खुदके लिए खुदसे आवाज़ उठाओ अगर डरोगे तो लोग डराएंगे , तुम्हे अपने नीचे दबाएंगे । इसलिए अपने लिए हिम्मत से डंटकर खड़े होना और बेखौफ होकर लड़ना सीखो तभी इस मतलबी मौन परस्त दुनिया मे सुकून से अपनी ज़िंदगी जी सकोगी । " कृषिका के अल्फाज़ों से ज्यादा इस वक़्त उसकी आँखे बोल रही थी । वो समुद्र सी गहरी नींद आँखे जिनमें अजीब सा सुनापन झलक रहा था , चेहरे पर बर्फ से ठंडे भाव थे और शब्दों मे अजीब सा दर्द मे लिपटा जुनून जैसे ज़िंदगी की बहुत आज़माइशो के बाद ये सीख मिली हो उसे । दीपिका आँखे फाड़े और मुह खोले उसे देखती ही रह गयी जबकि कृषिका के लबों पर व्यंग्य भरी मुस्कान खेल गयी और सर झटकते हुए वो आगे बढ़ गयी । दीपिका भी उसके पीछे दौड़ गयी । दोनों ने जैसे ही ऑडिटोरियम मे एंट्री ली सबकी निगाहें उन्ही पर आकर ठहर गयी । वहाँ काफी स्टूडेंट्स मौजूद थे और सिनियर्स की एक टीम स्टेज पर चढ़ी हुई थी । यहाँ सब उनकी ब्रांच के ही स्टूडेंट्स मौजूद थे । " Oh miss beauties you are little bit late . But you are most welcome to this get together " स्टेज पर खड़े सिनियर्स में से एक ने कृषिका और दीपिका दोनों को प्यारी सी स्माइल पास की और हाथों से इशारा उन्हें अंदर आने को कह दिया । उसका ये अंदाज़ देखकर जहाँ दीपिका बेसाख्ता मुस्कुरा उठी वही कृषिका ने कुछ खास रिएक्ट नही किया । बिना किसी भाव के कंधे पर एक तरफ को टँगा बैग संभालते हुए दीपिका के साथ अंदर चली आई । अभी वो बैठे ही थे कि दो और शक्स वहाँ एंटर हुए जिससे सबका ध्यान एक बार फिर एंट्री गेट पर चला गया । जहाँ कृषिका ने आने पर लड़कों कि निगाहें उसपर ठहर गयी थी । वही अबकी बार एंटर करते लड़के पर नजर पड़ते ही लडकियों कि दिल की धड़कने थम गयी । " A warm welcome to these two handsome boys . Come sit " उन दोनों का भी बड़े ही उत्साह और गर्मजोशी से स्वागत किया गया । जहाँ उन लड़को को देखकर दीपिका का मुह बन गया था वही कृषिका ने एक नजर उन्हें देखने के बाद उनपर ने निगाहें कुछ इस प्रकार फेरि मानो किस अप्रिय शक्स को देख लिया हो जिसे देखकर उसका मूड बिगड़ गया हो । खैर उन दोनों के एंट्री के साथ ही सब लड़कियों की निगाहें और दिल उस ओलिव ग्रीन आइज़ वाले चार्मिंग परस्नैलिटि एंड दिलफ़रेब लुक के मालिक कुशाग्र पर ठहर चुकी थी जबकि कृषिका ने उसे रत्ती भर भी भाव नही दिया था । उसने तो उसे पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया था लेकिन कुशाग्र कि गहरी निगाहें उसपर पड़ चुकी थी और इसके साथ ही उसके लबों पर दिल फरेब मुस्कान फैल गयी थी । " आप सभी जुनियर्स के इस कॉलेज मे और हमारे डिपार्टमेंट मे तहे दिल से स्वागत है । हमारे डिपार्टमेंट की ये परंपरा रही है कि हर साल जो फ्रेशर्स आते है उन्हें कॉलेज के पहले दिन अपने हिडन टैलेंट को सबके सामने पेश करना होता है । वो टैलेंट कुछ भी हो सकता है , सिंगिंग , डांसिंग , कोई इंट्रूमेंट बजाना , पोयट्री .... Anything जो भी आपकी खूबी हो और जिसे आप यहाँ स्टेज पर आकर पेश कर सके । पर कुछ न कुछ करना ज़रूर है ,किसी को भी बैक आउट करने का चांस नही दिया जाएगा और अपने जुनियर्स के हिडन टैलेंट को देखने के लिए आज ये गेट together अरेंज किया गया है । आज के परफॉर्मांस के हिसाब से ही आने वाले फ्रेशर् में आप सबको एक्विटीज दी जाएंगे जिनमें आपको पार्ट लेना होगा । अभी सबको एक पेपर दिया जाएगा जिसमे आप सबको अपने नाम की एंट्री के साथ , फोन नंबर, सेक्शन और आप क्या करने वाले है ये लिखना होगा । उसके बाद उन स्लिप्स को कलेक्ट किया जाएगा और जिसका नाम लिया जाएगा उसे स्टेज पर आकर अपना टैलेंट सबको दिखाना होगा । चलिए अपना काम शुरू कीजिये और आज की महफ़िल का आग़ाज़ कीजिये । " अनाउंसमेंट के बाद सबने खूब ज़ोर शोर से तालियां बजाई । फिर सबको एक एक पेपर दिया गया जिसमे सबको अपने नाम , कुछ बेसिक इंफोर्मेशन के साथ अपना टैलेंट भी लिखना था । सबके बीच खुसुर फुसुर होने लगी । Coming soon..........
अभी सबको एक पेपर दिया जाएगा जिसमे आप सबको अपने नाम की एंट्री के साथ , फोन नंबर, सेक्शन और आप क्या करने वाले है ये लिखना होगा । उसके बाद उन स्लिप्स को कलेक्ट किया जाएगा और जिसका नाम लिया जाएगा उसे स्टेज पर आकर अपना टैलेंट सबको दिखाना होगा । चलिए अपना काम शुरू कीजिये और आज की महफ़िल का आग़ाज़ कीजिये । " अनाउंसमेंट के बाद सबने खूब ज़ोर शोर से तालियां बजाई । फिर सबको एक एक पेपर दिया गया जिसमे सबको अपने नाम , कुछ बेसिक इंफोर्मेशन के साथ अपना टैलेंट भी लिखना था । सबके बीच खुसुर फुसुर होने लगी । सभी अपने नए नए बने दोस्तों और साथियों से पूछ रहे थे कि ' वो क्या करेंगे ? ' ' क्या करना ठीक होगा ? ' ' किसमे कौनसा टैलेंट है ? ' और साथ ही एक दूसरे के टैलेंट के बारे मे सुनकर हैरान भी हो रहे थे तो उन्ही मे कुछ ऐसे भी थे जो रोतलु सी शक्ल बनाकर अपना दुखड़ा सुना रहे थे कि उनमे तो ऐसा कोई टैलेंट नही तो वो क्या करेंगे ? साथ ही आस पास वालो से कुछ आईडिया भी ले रहे थे क्योंकि ये तो पहले ही तय हो चुका था की कुछ भी करना है पर पार्ट सभी को लेना है । एक तरफ कुशाग्र और समीर दोनों ही बिल्कुल शांत खड़े थे जैसे उन्हें पहले से पता हो कि उन्हें क्या लिखना है जबकि दीपिका कृषिका का दिमाग खा रही थी " क्रिशू बता न यार तु क्या लिख रही है ? " " यार मैं तो बुरा फसी , मुझे तो कुछ आता ही नही । अब मैं क्या करूँगी ? " " क्रिशू तू ही कोई आईडिया दे न । " " देख बड़ी इंसल्ट होगी मेरी अगर मैं कुछ ढंग का नही कर सकी तो । " " क्रिशू मेरी इज़्ज़त अब तेरे हाथ मे है । " " यार तु ही तो एकलौती दोस्त है मेरी मदद कर दे न please " " क्रिशू कुछ तो बोल यार । तूने ये मौन व्रत क्यों धर लिया है । " " अरे ये क्या लिख रही है तु ? तुझे सिंगिंग आती है ? " अंत मे जब कृषिका ने उस पेपर पर सिंगिंग लिखा तो दीपिका एकदम से चौँक गयी । कृषिका जो तबसे खामोशी से उस पेपर को घूरते हुए उसकी बकवास सुने जा रही थी । उसने अब निगाहें उसकी ओर घुमाई और बेहद ठंडे लहज़े मे बोली " ऐसा कोई काम नही जो कृषिका मल्होत्रा को न आता हो । और तुम्हे इतनी चिंता करने की ज़रूरत नही । अपने पेपर पर सिंगिंग लिखो हम दोनों साथ मे कोई फ्रेंडशिप सोंग गाएंगे और मैं सब संभाल लुंगी , तुम बस साथ रहना । " दीपिका पहले तो उसका आईडिया सुनकर चौँक गयी पर जब कृषिका ने इतने विश्वास के साथ कहा कि वो सब संभाल लेगी तो अपनी नई नई दोस्त पर विश्वास करते हुए उसने भी उसके सुझाव पर अमल करते हुए उस पेपर पर अपने टैलेंट के जगह डांसिंग लिख दिया । कुछ देर मे सबसे पेपर्स वापिस लिए गए । उन्हें एक बाउल मे डालकर अच्छे से मिक्स किया गया फिर बारी बारी एक एक पर्ची निकाली जाने लगी और जिसका नाम बोला जाता वो स्टेज पर आकर अपना टैलेंट दिखाता । एक्टिंग , मिमिकरी , ग़ज़लें , कविता , सिंगिंग डांसिंग सब देखने को मिल रहा था । कुछ बेहतरीन परफॉर्म कर रहे थे तो कुछ एवरेज तो कुछ कोशिश अच्छी कर रहे थी । चुटकुले भी खूब सुनाए गए थे । कॉमेडी भी खूब हुई जिससे वहाँ हंसी ठहाकों की आवाज़ें गूंज उठी । इसी बीच नंबर आया कृषिका का तो वो अपना बैग दीपिका को थमाते हुए स्टेज पर चली आई । पहले अपना छोटा सा इंट्रो देते हुए उसने सबको बताया कि वो सिंगिंग करने वाली है और तुरंत ही माइक पेश हो गया । कृषिका ने एक पल के लिए अपनी आँखों को मुंदते हुए गहरी सांस छोड़ी फिर आँखों को खोला । अपनी सुनी विरान समुद्र सी गहगहरी नीली आँखों से एक नज़र सबको देखा और माइक को अपने लबों के पास लाते हुए गाना शुरू कर दिया I’m so lonely, broken angel I’m so lonely, listen to my heart You, you are the one I miss you so much, now that you’re gone Don’t, don’t be afraid I’ll be by your side, leading the way ........... परफेक्ट लिरिक्स , बीट के साथ साथ कमाल के एक्सप्रेशन , पिच और डीप वॉइस जैसे अल्फ़ाज़ लबों से नही दिल से निकल रहे हो । कृषिका खुदमे ही गुम गाती चली गयी और सबकी नज़रें उसपर आकर ठहर गयी । वो गा ही इतने अच्छे से रही थी जैसे कोई प्रोफेशनल सिंगर हो । बिना किसी बैकग्राउंड इंस्ट्रूमेंट के भी आवाज़ एकदम परफेक्ट लग रही थी । उसकी आवाज़ मे वो बात थी कि सब उससे जुड़ गए थे और गाने मे इतने खो गए थे कि उन्हें एहसास तक नही हुआ की कब गाना शुरू हुआ और कब खतम हुआ । गाना खत्म हुआ तो कृषिका चुपचाप माइक पकड़ाकर स्टेज से नीचे उतर आई और पूरा स्टेडियम तालियों कि गूंज और सिटियों की आवाज़ से गूंज उठा । पर कृषिका के चेहरे पर अब भी कोई भाव नही थे । कुशाग्र सारे वक़्त बस एकटक उसे देखता रहा था । यकीनन उसके गाने से वो इंप्रेस हो गया था पर कुछ तो था जो उसकी आँखों ने देखा और उसके दिल ने महसूस जिसके कारण न तो बाकी सबके तरफ वो तालियां बजाकर उसकी प्रशंसा कर सका और न ही उसके लबों पर मुस्कान ही आ सकी । कुशाग्र अब भी कृषिका को ही देखने मे गुम था जिसके कारण स्टेज पर पुकारे जाने वाला अपना नाम तक उसे सुनाई न दिया । " अरे मजनू कि औलाद कहाँ खोया है , जा भाग स्टेज पर , कबसे तेरा नाम पुकार रहे है । " कुशाग्र को एकटक कृषिका को देखते पाकर आखिर मे समीर ने उसके पेट को कोहनी मारते हुए उसका ध्यान भटकाना और ज़रा खींझते हुए उसे स्टेज पर जाने को कहा। कुशाग्र के मुह से हल्की सिसकी निकल गयी और वो चौँकते हुए होश मे लौटा । इतने मे एक बार फिर उसका नाम स्टेज पर पुकारा गया तो एक नजर समीर को घूरते हुए वो स्टेज कि ओर बढ़ गया " किसके ख्यालों मे खोये थे यार ? तुम्हारा नाम पुकारते पुकारते मेरा गला बैठ गया । " उस सीनियर ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए उसे छेड़ा । कुशाग्र ने सॉर्री कहा और उसके हाथ से माइक ले लिया । उसने एक नजर कृषिका को देखा जो अपने फोन मे कुछ कर रही थी और इसके साथ ही हल्की मुस्कान उसके लबों पर बिखर गयी " I saw you standing there Sandy blonde hair, the way it came tumbling down Just like a waterfall And if you need a light I'll be the match to your candle My darling, I'm ready, to burst into flames for you I was just coasting till we met You remind me just how good it can get Well I've been on fire, dreaming of you Tell me you don't It feels like you do Looking like that, you'll open some wounds How does it start? And when does it end? Only been here for a moment, but I know I want you But is it too soon? To know that I'm with you There's nothing I can do ........ " पूरे वक़्त कुशाग्र की नज़रें कृषिका पर टिकी थी और ऐसा लग रहा था मानो ये गाना उसके सोंग के बदले मे दिया जवाब था । कही न कही इसका एहसास कृषिका को भी था तभी तो वो अपनी नीली आँखों को छोटा छोटा किये उसे घूरने लगी थी जबकि कुशाग्र सारे वक़्त अधरों पर हल्की मुस्कान सजाए एकटक उसे ही निहारते हुए गाने के हर बोल को दिल से गा रहा था । उसके गाने खत्म होते ही वहाँ तालियों सिटियों के साथ हूटिंग भी शुरू हो चुकी थी । कुशाग्र ने सर झुकाते हुए बड़ी ही विनम्रता से सबका अभिवादन किया और स्टेज से नीचे उतर गया । Coming soon............
पूरे वक़्त कुशाग्र की नज़रें कृषिका पर टिकी थी और ऐसा लग रहा था मानो ये गाना उसके सोंग के बदले मे दिया जवाब था । कही न कही इसका एहसास कृषिका को भी था तभी तो वो अपनी नीली आँखों को छोटा छोटा किये उसे घूरने लगी थी जबकि कुशाग्र सारे वक़्त अधरों पर हल्की मुस्कान सजाए एकटक उसे ही निहारते हुए गाने के हर बोल को दिल से गा रहा था । उसके गाने खत्म होते ही वहाँ तालियों सिटियों के साथ हूटिंग भी शुरू हो चुकी थी । कुशाग्र ने सर झुकाते हुए बड़ी ही विनम्रता से सबका अभिवादन किया और स्टेज से नीचे उतर गया । कुछ और स्टूडेंट्स के बाद दीपिका का नंबर आया तो उसने नर्वस्नेस ने कृषिका की बाँह को थाम लिया । कृषिका ने आँखों से उसे शांत रहने को कहा और उसके साथ स्टेज पर चढ़ गयी । " हम साथ मे परफॉर्म करेंगे । " उसने सपाट लहज़े मे कहा और स्टेज पर खड़े सीनियर ने भी कोई एतराज नही जताया । गहरी निगाहों से कृषिका को देखने के बाद वहाँ से हट गया । कृषिका ने माइक लिया और दोनों के बीच मे कर लिया । दोनों पहले ही गाना सिलेक्ट कर चुके थे । कृषिका ने दीपिका कि ओर निगाहें घुमाते हुए कुछ इशारा किया जिसे समझते हुए उसने अपनी पलकों को झपकाते हुए अपनी सहमति ज़ाहिर कर दी । अगले ही पल वहाँ गाने के बोल गूंज उठे ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे ये दोस्ती हम नहीं... मेरी जीत, तेरी जीत तेरी हार, मेरी हार सुन ऐ मेरे यार तेरा ग़म, मेरा ग़म मेरी जान, तेरी जान ऐसा अपना प्यार ज़ान पे भी खेलेंगे तेरे लिये ले लेंगे सबसे दुश्मनी ये दोस्ती हम नहीं... दोनों मे कमाल का कॉर्डिनेशन और चेमिस्टी नज़र आ रही थी । उन शब्दों मे उनकी फीलिंग्स घुली थी । नई नई हुई दोस्ती का असर उन दोनों पर ही बहुत गहरा हुआ था जो उनके चेहरे के हाव भाव और आँखों को देखकर साफ ज़ाहिर भी हो रहा था । कृषिका कि आवाज़ तो कमाल कि थी ही पर दीपिका कि आवाज़ भी काफी अच्छी थी बस उस आवाज़ मे एक झिझक थी । शायद पहली बार ऐसे सबके सामने गाने के कारण नर्वस थी । साथ ही लिरिक्स मे भी कही कही अटक जाती पर जैसा कि कृषिका ने कहा था , उसने संभाल लिया था और एक बढ़िया परफॉर्मांस देने के बाद दोनों स्टेज से नीचे उतर गए थे । कुशाग्र कि निगाहें अब भी कृषिका पर ही ठहरी थी । जिस तरह से उसने दीपिका को एम्बेरेस् होने से बचाया था , उसका साथ निभा रही थी । कुशाग्र को वो अपने दिल मे कही गहराई मे उतरती नज़र आ रही थी । जाने क्या खास बात थी उसमे कि कुशाग्र जो जल्दी से किसी लड़की को भाव नही देता था खुदको उसकी ओर खींचने से रोक नही पा रहा था । कुछ और स्टूडेंट्स के बाद समीर कि बारी आई । उसने नज़र भर दीपिका को देखा फिर माइक हाथों मे थामते हुए उसे अपने लबों के करीब ले आया " लफ़्ज़ों मे बयाँ क्या उनकी खुबसुरती करे जो हमारे दिल की गहराइयों मे बसती है । कयामत ढाती है वो जब मासूम सी सूरत मे खिलखिलाकर हंसती है । एक समां बनता है वो जब अपने सुनहरे ज़ुल्फ़ों को यूँ हवाओं मे झटकती है । एक तूफान सा आता है वो जब बेपरवाह से लहराकर चलती है । सियाह रात मे भी उजाला होता है जब उसकी आँखे जुगनू सी चमकती है । डर लगता है कही उन निगाहों मे खो न जाए उन इन मासूम अदाओं के हम दिवाने हो न जाए । " एक ठीक ठाक शायरी के साथ शायद समीर ने अपने दिल के ज़ज़्बातों को ज़ाहिर किया था पर वो ज़ज़्बात शायद जिसके लिए थे वो अब भी इससे बेखबर ही थी जबकि समीर पल भर उसके मासूम से चेहरे का दीवार करके मुस्कुराकर स्टेज से नीचे उतर गया था और उसके लिए भी खूब हूटिंग की गयी थी । साथ ही नीचे से सवाल भी आ रहे थे कि कौन है वो खास जिसके लिए उसने अपने ज़ज़्बातों को शब्दों मे उतारा था । समीर उन सवालों पर मुस्कुराते हुए चुपचाप नीचे चला आया पर यहाँ आते ही कुशाग्र ने उसे धर दबोचा " क्या बात है आज कल बड़ी शेरों शायरी की जा रही है । कौन है वो मासुम सी लड़की जो तेरे दिल मे आ बसी है और तेरी ज़िंदगी मे तूफान लाने को तैयार है ज़रा हमें भी तो पता चले । " कुशाग्र ने उसकी गर्दन पर अपनी बाँह लपेटते हुए सवाल किया जिसपर समीर ने उसकी बाँह को हटाते हुए सहजता से जवाब दिया " कोई होगी तब तो पता चले । कुछ करना था और कुछ दिमाग मे आया नही तो जो मुह मे आया बोल दिया । " " बस बस बेटे बेवकूफ जाकर किसी और को बनाना । अपने बाप के साथ माइंड गेम्स खेलने की कोशिश भी करने की ज़रूरत नही । " कुशाग्र ने आँखे छोटी छोटी करके ओलिव ग्रीन आँखों से उसे घुरा । समीर एक पल को उसके यूँ घूरने से सकपका गया पर जल्दी ही संभलते हुए बोला " मैं कोई माइंड गेम्स नही खेल रहा , सच बोल रहा हूँ । कोई भी नही है , अगर होती तो तुझसे थोड़े छुपाता । " " छुपा तो तु रहा है ,अब क्यों छुपा रहा है तु जाने पर बचपन से साथ हूँ तेरे । तेरे चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर सच और झूठ मे फर्क बहुत अच्छे से पहचानता हूँ मैं इसलिए तेरे इस झूठ को ये लोग भले सच मान ले पर तु मुझे तो कम से कम इस झूठ पर विश्वास नही दिलवा सकता इसलिए कोशिश भी मत कर । " कुशाग्र ने बेहद संजीदगी से कहा और रुख फेरकर खड़ा हो गया । " अब तु मुह घुमाकर क्यों खड़ा हो गया यार । नाराज हो गया क्या मुझसे ? " समीर ने उसे अपनी ओर घुमाते हुए सवाल किया जिसे सुनकर कुशाग्र ने भौंह सिकोड़कर उसे घुरा " नही होना चाहिए क्या ? " " अच्छा नही बोलता झूठ । कोई है मेरी ज़िंदगी मे पर अभी ये एहसास एकतरफा है इसलिए तुझे उसके बारे मे कुछ नही बताऊंगा पर वादा करता हूँ कि जब भी मेरी एकतरफा मोहब्बत मुकम्मल होगी मैं सबसे पहले तुझे ही बताऊंगा । अब तो मान जा । " कुशाग्र ने अब भी थोड़ी नौटंकी कि पर फिर मान गया । कुछ और परफॉर्मांस हुई उसके बाद सिनियर्स के तरफ से उसे उन्हें रिफ्रेशमेंट दी गयी । इन सबका एक फ़ायदा ज़रूर हुआ था जुनियर्स तो एक दूसरे से मिल ही लिए थे । साथ ही जुनियर्स और सिनियर्स के बीच भी एक बाँडिंग बन गयी थी जो आगे फ्यूचर मे उनके लिए हेल्पफुल साबित होगी । साथ ही एक दूसरे के बारे मे कुछ बातें भी जान गए थे और जुनियर्स ने अपना टैलेंट भी दिखा दिया था जिससे आगे फंक्शन मे पार्टिसिपेशन के लिए कैंडिडेट ढूँढने मे भी आसानी रहेगी । कुल मिलाकर आज का गैट together काफी अच्छे से निपट गया था । कृषिका दीपिका के साथ बैठी बर्गर खा रही थी और साथ मे बातें भी कर रही थी " यार हमारे सिनियर्स तो बड़े मस्त है । मुझे तो लगा था रैगिंग के नाम पर जाने कौनसे ऊट पटांग काम करवाएंगे हमसे पर ये तो बड़े कूल है । कितने अच्छे से ट्रीट कर रहे है । " दीपिका ने कोल्ड ड्रिंक पीते हुए सिनियर्स के व्यवहार को याद करते हुए तारीफ की जिसपर कृषिका ने बस सर हिला दिया । वो अभी बात कर ही रहे थे कि तभी सिनियर्स में से एक लड़का उनके पास चला आया " हैलो ब्यूटीफुल गर्ल्स " उसने दोनों से रूबरू हौले से उनकी खुबसुरती की ज़रा तारीफ भी कर दी जिसे सुनकर दीपिका तो मुस्कुरा दी पर कृषिका के चेहरे के भाव ज़रा न बदले । " हैलो सर " दोनों ने एक साथ ही जवाब दिया । दीपिका ने तो बड़ी ही गर्म जोशी से उसे ग्रीट किया पर कृषिका का रिस्पोंस ज़रा ठण्डा ही रहा । उस लड़के ने तिरछी नज़रों से कृषिका को देखा फिर दीपिका से मुखातिब हुआ " Come on सर कहकर फॉर्मिलिटि करने की ज़रूरत नही है । Call me Rahul " " Call दोस्त लगते है हमारे जो हम आपको नाम से बुलाए ? सिनियर है तो सर ही कहेंगे और अगर इतना ही नाम से बुलवाने के शौक है तो फेल होकर हमारी क्लास मे आ जाइयेगा फिर शौक से आपको नाम से बुलाया करेंगे । " कृषिका ने तीखे लहज़े मे सपाट चेहरा के साथ जवाब दिया और उठकर खड़ी हो गयी । खड़े खड़े उसने राहुल को जो करारा जवाब दिया था राहुल बस उसे देखता ही रह गया जबकि दीपिका खुद कृषिका का ये रवैया और उसकी बातें सुनकर बुरी तरह चौँक गयी थी । कृषिका ने अपना बैग संभाला और बिना आगे एक शब्द कहे वहाँ से चल दी । जाते जाते उसने राहुल को पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया ये देखकर वो और ज्यादा चौँक गया जबकि दीपिका ने उसे जाते देखा तो तुरंत ही राहुल कि ओर नज़रें घुमाई और घबराकर बोली " सॉर्री सर एकचूली उसके मूड स्विंग्स होते रहते है , उसकी बात का बुरा मत मानियेगा । " दीपिका कि बात सुनकर राहुल हौले से मुस्कुरा दिया " It's okay मिस दीपिका । आप जाइये आपकी फ्रेंड का मूड कुछ ठीक नही लग रहा । " दीपिका ने तुरंत सर हिलाया और कृषिका के पीछे दौड़ गयी । राहुल अब भी वही खड़ा उसी दिशा मे देख रहा था जहाँ से अभी अभी कृषिका गयी थी तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और साथ ही एक जानी पहचानी सी आवाज़ उसके कानों से टकराई " राहुल इस बार तु गलत लड़की पर ट्राय कर रहा है । she is not your type man . " आवाज़ सुनकर राहुल ने पलटकर देखा तो उसके बगल मे ही उसका दोस्त अजय खड़ा था । " But she is dam beautiful and very interesting character I want to know her desperately " आँखों मे दिलचस्पी लिए उसने दिलकश मुस्कान लबों पर सजाते हुए उस दिशा मे एक बार फिर देखा जहाँ से कृषिका गयी थी फिर बालों म हाथ घुमाते हुए अपने बाकी बैच मेट्स की तरफ बढ़ गया । अजय ने बेबसी और अफसोस से सर हिलाया और उसके पीछे चला गया । उनसे कुछ दूरी पर खड़ा कुशाग्र पूरा नज़ारा शांति से देखता रहा फिर कोल्ड ड्रिंक पीते हुए बाहर की ओर बढ़ गया जिसके साथ समीर भी चला गया । " यार क्रिशु क्या हो गया था तुझे ? वो सर तो कितने अच्छे से बात कर रहे थे और तु उनसे इतनी बदतमीज़ी से बात करके आई । कितना बुरा लगा होगा और क्या सोच रहे होंगे कि कैसी मैनरलेस लड़की है सिनियर्स से बात तक करने कि तमीज नही है । " दीपिका उसके बगल मे चलती हुई उसको पूरे हक से डाँट रही थी पर कृषिका को देखकर लग नही रहा था की उसे इन बातों से रत्ती भर भी फर्क पड़ा हो उल्टा उसकी बातें सुनकर वो खींझते हुए बोल पड़ी " हाँ नही है तमीज़ मुझमें , हूँ मैं मैनरलेस और ऐसी ही हूँ मैं । बेफिज़ूल मे किसी की चमचा गिरी करना मेरे बस की नही इसलिए जिसे जो सोचना है सोचता रहे मेरे तरफ से उसे पूरी आज़ादी है क्योंकि मुझे किसी के सोचने से घंटा फर्क नही पड़ता और न ही कोई मेरा कुछ बिगाड़ सकता है । रही बात बुरा लगने की तो लगना ही चाहिए बुरा । मैंने जानमुचकर ऐसी बातें कही ताकि बुरा लगे उसे क्योंकि वो यही डिज़र्व करता है । तुम तो बड़ी भोलि हो , तुम्हे तो वो बड़ा अच्छा लगा पर ये नज़र नही आया की चैप होने की कोशिश कर रहा था वो और ऐसे लोगों को मैं भाव देकर सर पर चढ़ाकर अपनी मुसीबतों को बढ़ाने मे कोई विश्वास नही रखती । " दीपिका आँखों कि पुतलियाँ फैलाए अचंभित सी उसे देखती ही रह गयी जबकि कृषिका एक सांस मे सब बोल गयी और अपनी पूरी भड़ास और फ़्रस्टेशन निकालने के बाद उसने गहरी सांस छोड़ी । " यार तुम तो बहुत स्मार्ट हो । " दीपिका ने बड़ी ही मासूमियत से कहा जिसपर कृषिका ने अफसोस से सर हिलाया और उसके सर पर हल्की चपत लगाते हुए बोली " और तुम बड़ी भोलि हो और उतनी ही बड़ी बेवकूफ भी पर याद रखना ये दुनिया भोले लोगों के लिए नही । यहाँ सर्वाइव करना है तो थोड़ी चालाकी सीखनी ही पड़ती है । " " तुम हो न तुम सिखा देना मुझे। " दीपिका उससे लिपट गयी । कृषिका के लब अनायास ही मुस्कुरा उठे " तुमसे न हो पाएगा । चलो बाहर चले । " बातों बातों मे दोनों वहाँ से निकल गए । Coming soon..............
कृषिका दीपिका के साथ कॉलेज से बाहर निकली ही थी कि गेट पर ही उसे अपनी कार से टेक लगाए और आँखों को गोगल्स से ढके सिद्धार्थ खड़ा नजर आया जिसपर नज़रें पड़ते ही कृषिका के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी । " दिपु चलो तुम्हे अपने बड़े भाई से मिलवाती हूँ । " कृषिका ने दीपिका के तरफ पलटते हुए मुस्कुराकर कहा फिर उसकी हथेली थामे सिद्धार्थ कि ओर बढ़ गयी । सिद्धार्थ ने भी कृषिका पर नजर पड़ते ही अपने गोगल्स उतार दिया और अपनी बाहों को फैलाया कि कृषिका किसी छोटी बच्ची जैसे उसके सीने से आ लगी । सिद्धार्थ ने भी उसे अपनी बाहों मे भरते हुए प्यार से उसके सर को चूम लिया । कृषिका के पास खड़ी दीपिका उन भाई बहन के प्यार को महसूस करते हुए कुछ उदास हो गयी । उसे भी तो हमेशा से ऐसे ही लविंग केयरिंग और स्वीट से भाई कि ख्वाहिश थी और तभी वो कुशाग्र से इतना चिढ़ती थी क्योंकि वो उसकी उम्मीदों पर खरा नही उतर सका था । " कैसी है मेरी गुड़िया और कॉलेज का पहला दिन कैसा गया तुम्हारा ? " कुछ देर बाद सिद्धार्थ ने उसे खुदसे अलग करते हुए सवाल किया । उसका सवाल सुनकर कृषिका ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रखा और आँखे छोटी छोटी किये उसे घूरते हुए बोली " भैया आधे दिन मे मुझे क्या हो सकता है ? " " होने को तो कुछ भी हो सकता है , खासकर तब जब बात तेरी हो । हाथ पैर जो तेरे काबू मे नही रहते । पता चले पहले ही किसी से भिड़कर उसके तो हाथ पैर तोड़े ही पर खुदकी भी पसलियां तुड़वा आए । " सिद्धार्थ ने बड़ी ही गंभीरता से जवाब दिया पर उसका ये जवाब सुनकर कृषिका ने अपने मोटे मोटे गालों को गुब्बारे सा फुला लिया और खींझते हुए बोली " भैया अब आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे है । सबसे पहली बात तो ये कि मेरे सर पर दो दो सींग नही निकले है जो बेवजह किसी से भी लड़ती भिड़ती फिरूँ । जब कोई सामने से मुझसे पंगे लेता है बस तभी अपने हाथ पैरों का इस्तेमाल करती हूँ वरना मेरी ज़ुबान ही काफी है सामने वाले को उसकी औकात याद दिलाने के लिए । और दूसरी और सबसे इंपोर्टेंट बात ये कि आपकी बहन लड़ाका है और कोमल कली जैसी नाज़ुक गुड़िया नही की किसी को एक चांटा मारे और उसकी कलाई मे मोच आ जाए । मैं सिर्फ मारना जानती हूँ पिटना नही इसलिए मेरी पसलियां नही टूटेंगी बल्कि जो बेवजह मुझसे टकराएगा और मुझे गुस्सा दिलाएगा मैं उसके हाथ पैर , सर और पूरा शरीर तोड़कर कर दूँगी इसलिए मेरी पावर को अंडस एस्टिमेट मत किया कीजिये । " आखिरी की बात कृषिका ने तैश मे आकर ज़रा गुस्से से कही । जिसे सुनकर सिद्धार्थ ने नाटकीय अंदाज़ मे उसके आगे अपने दोनों हाथ जोड़ लिया " हाँ देवी जी आप शाक्षात् माता चंडी है और आपसे कोई नही बच सकता । मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी जो मैंने तुम्हे एक नाज़ुक लड़की समझने की गलती की । अब मुझे माफ करो और अपने चेहरे पर से ये गुस्सा साफ करो । " उसकी नौटंकी देखकर कृषिका ने बुरा सा मुह बनाया फिर अचानक ही उसका ध्यान दीपिका पर गया जो तबसे वहां खड़ी खामोशी से दोनों को देखकर खुद ही खुद मे मुस्कुरा रही थी । " देखा आपकी बातों मे उलझकर मैं भूल गयी न कि अपनी फ्रेंड को आपसे मिलवाने लाई थी । " कृषिका तुनकते हुए बोली और सारा ब्लेम सिद्धार्थ पर डालकर नाराज़गी से उसे घूरने के बाद दीपिका को सामने करते हुए बोली " भैया इससे मिलिए , ये है दीपिका पर मैं उसे प्यार से दिपु कहती हूँ । बहुत प्यारी है और उतनी ही इनोसेंट और क्यूट भी है बस दिमाग का सर्किट थोड़ा हिला है इसलिए अपनी बेवकूफियों और लापरवाहियो के कारण खुदको ही चोट पहुँचाती रहती है । पर दिल की बहुत साफ है । पहले ही दिन मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी है इससे । " कृषिका ने दीपिका की तारीफ के साथ उसकी टांग भी खींच ली जिसपर दीपिका जहाँ थोड़ा चिढ़ गयी वही सिद्धार्थ हंस पड़ा । उसने कृषिका के सर पर चपत लगाई और हल्की फटकार भी लगाई " शैतान लड़की । इतनी प्यारी बच्ची है और तुम उसकी बुराई करके उसे परेशान कर रही हो ? " " बुराई नही कर रही भैया । सच मे गिरती पड़ती खुदको चोट लगवाती रहती है ये । " कृषिका ने अपना सर सहलाते हुए सफाई पेश कि और मुह बिचका लिया । वही उसकी बात सुनकर दीपिका क्यूट सी शक्ल बनाकर मासूमियत से बोली " पर मैं जानमुचकर थोड़े न करती हूँ , वो तो मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट है । " दीपिका कि बात सुनकर सिद्धार्थ पहले तो चौँक गया फिर उसने बेबसी और अफसोस से सर हिला दिया कि दोनों एक सी है , किसी को कुछ कहने का कोई फ़ायदा नही । फिर उसकी मासूमियत देखकर मुस्कुरा उठा । " अच्छा अच्छा ठीक है अब इस बात को यही खत्म करते है और मैं तुम्हे अपने भैया से मिलवाती हूँ । ये है मेरे प्यारे से भैया सिद्धार्थ मल्होत्रा जिसने मैं सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ । " कृषिका ने उस बात को यही खत्म किया और सिद्धार्थ के सीने से लगते हुए दीपिका को उसका परिचय दिया । सिद्धार्थ के साथ वो एक अलग ही कृषिका लग रही थी और काफी खुश नजर आ रही थी इसपर दीपिका का भी ध्यान गया । " नमस्ते भैया " दीपिका ने उसके आगे हाथ जोड़ दिया । बदले मे सिद्धार्थ ने भी अपना स्नेह भरा हाथ उसके सर पर रख दिया " खुश रहो । बहुत प्यारी हो तुम । मुझे ये देखकर खुशी हुई कि मेरी बहन ने अपने लिए इतनी अच्छी और प्यारी दोस्त को चुना । " " इसने मुझे नही मैंने इसे चुना है । " दीपिका ने फट्ट से कहा और उसकी मासूमियत देखकर इस बार सिद्धार्थ के साथ साथ कृषिका भी मुस्कुरा दी । " ये तो और भी अच्छी बात है की तुमने मेरी क्रिशू को अपनी दोस्त बनाने के लिए चुना । तुम्हे पता है क्रिशू जल्दी से दोस्त नही बनाती , ऐसा भी हो सकता था कि वो पुरी कॉलेज लाइफ अकेले ही बिता देती और इसी बात की मुझे सबसे ज्यादा टेंशन भी थी पर अब तुम्हे देखकर लगता है कि मुझे टेंशन लेने की ज़रूरत नही क्योंकि उसने पहले ही इतनी प्यारी दोस्त बना ली। .... अच्छा ये बताओ तुमने क्रिशू को ही अपनी दोस्त बनाने के लिए क्यों चुना ? " " क्योंकि उसने मेरी हेल्प की और मेरी फिक्र भी की और जो लोग किसी अंजान कि परवाह करे वो दिल के बहुत अच्छे होते है और ऐसे लोगों को अपने पास रखना चाहिए । फिर मैं भी कॉलेज मे अकेली थी और अकेले रहना मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं झट से दोस्ती कर ली । " दीपिका ने बड़ी ही उत्सुकता से जवाब दिया । सच मे बच्चों जैसी थी वो । उतनी ही इनोसेंट , क्यूट । पल मे नाराज हो जाती तो अगले ही पल खुशी से चमक उठती । कुछ देर तीनों की बातें होती रही फिर सिद्धार्थ ने प्यार से उसके गाल को छुआ और मुस्कुराकर बोला " तुम बहुत प्यारी है । मुझे तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा । आजसे तुम भी मुझे अपना बड़ा भाई ही समझना । और अपने भाई की इस एडवाइस को ज़रूर मानना । खुदको चोट पहुँचाना ठीक नही है । अपना ध्यान रखा करो , हल्की फुलकी चोट तो चल जाएगा पर कभी खुदको ज्यादा नुकसान पहुँचा बैठी तो दिक्कत हो जाएगी । ठीक ? " " हूँ " दीपिका ने तुरंत हामी भर दी । सिद्धार्थ कि केयर उसे बहुत अच्छी लग रही थी । " चलो अब हम चलते है , वैसे तुम भी हमारे साथ चल सकती हो । एड्रेस बता देना मैं ड्रॉप कर दूँगा । " " नही भैया । डेड को मैंने बोल दिया था । वो आते होंगे मुझे लेने । " " ठीक है फिर अपना ध्यान रखना , जल्दी ही फिर मिलेंगे । " दीपिका ने मुस्कुराकर हामी भरी और हाथ हिलाकर दोनों को बाय कर दिया । कृषिका सिद्धार्थ के साथ कार मे बैठकर जैसे ही आगे बढ़ी दीपिका के सामने ब्लैक स्पोर्ट बाइक आकर रुकी । पर उसने नजर उठाकर उस शक्स को देखने मे ज़रा भी दिलचस्पी न दिखाई और मुह बनाकर आगे बढ़ गयी । ये देखकर उस बाइक पर बैठे शक्स की भौंहें सिकुड़ गयी । उसने बाइक आगे बढ़ाई और अबकी बार बाइक टेढ़ी होकर उसका रास्ता रोककर खड़ी हो गयी । " क्या है तुम्हे ? " इस बार दीपिका बुरी तरह खींझते हुए उस शक्स पर भड़क उठी । बाइक पर बैठे शक्स ने अब अपने हेलमेट के शीशे से ऊपर किया और अंदर से एक जोड़ी ओलिव ग्रीन आँखे दीपिका पर ठहर गयी । " ये तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए की तुम्हे क्या हुआ है ? बैठने के जगह मुझे इग्नोर करके आगे क्यों बढ़ गयी ? " कुशाग्र ने भौंहों को सिकोड़ाते हुए सवाल किया जिसे सुनकर बदले मे दीपिका ने भी उसे घूरा और खींझते हुए बोली " क्योंकि मैं तुम्हारे साथ नही जाना चाहती । अभी मेरा मूड बहुत अच्छा है और मैं तुम्हारे साथ जाकर उसे खराब नही करना चाहती । " " दिपु अब तेरा ज्यादा हो रहा है। ज्यादा फुटेज खाने की ज़रूरत नही , चुपचाप आकर बैठ पीछे । " कुशाग्र ने ज़रा चिढ़ते हुए आँखे दिखाई और सख्त लहज़े मे उसे ऑर्डर दिया पर दीपिका को भला उससे किस बात का डर था । उसने भी उसको घूरते हुए उसी लहज़े मे जवाब दिया " मैंने एक बार कह दिया की नही बैठूंगी , नही बैठूंगी तो नही बैठूंगी , जाओ कर लो जो करना है । " " अच्छा बाबा सॉर्री।प्यार से बोल रहा हूँ । अब बैठ भी जा वरना मोम गुस्सा करेंगी कि तुझे छोड़ आया । फिर मुझे कुछ ज़रूरी बात भी करनी है । आजा बैठ जा । समीर भी इंतज़ार कर रहा है । " कुशाग्र ने अपने रूड बिहेवियर की माफी मांगते हुए अबकी बार प्यार से उसे मनाया तो थोड़ा भाव खाने के बाद आखिर मे वो मान गयी । कुशाग्र ने उसे हैलमेट पकड़ाया तो उसने मुह बनाते हुए हैलमेट पहना और उसके पीछे बैठकर अपनी बाँहों को उसके पेट पर लपेटते हुए बोली " ध्यान से चलाना । अगर मुझे पीछे बिठाकर हवा से बातें की और तुम्हारे वजह से मै गिर गिरा गयी तो मैं छोड़ूंगी नही तुम्हे । " दीपिका की धमकी प्लस चेतावनी सुनकर कुशाग्र ने बस सर हिला दिया और बाइक स्टार्ट कर दी । कुछ आगे चलकर समीर ने भी उन्हे जॉइन कर लिया । Coming Soon.........
" कैसा रहा तेरा आज का दिन ? " कार ड्राइव करते हुए सिद्धार्थ ने कृषिका से सवाल किया । कृषिका जो कार के म्युज़िक प्लेयर पर अपनी पसंद का गाना लगाने मे व्यस्त थी । उसने उसका सवाल सुनकर सर घुमाकर उसे देखा " ओवर ऑल ठीक ठाक ही था । " " बस ठीक ठाक ? पहले दिन इतनी अच्छी दोस्त मिल गयी तुम्हे फिर भी दिन बस ठीक ठाक ही गया ? " सिद्धार्थ ने उसके फीका और ठण्डा रिएक्शन देखकर ज़रा हैरानी ज़ाहिर की क्योंकि जिस तरह से कृषिका और दीपिका एक दूसरे से घुल मिल गए थे उसे लगा था की कृषिका का दिन अच्छा गया होगा । सिद्धार्थ का सवाल सुनकर कृषिका ने बुरा सा मुह बनाया और मायूसी से बोली " दिपु तो बहुत अच्छी है , बहुत प्यारी प्यारी बातें करती है । मुझे तो बहुत अच्छा लगा उसके साथ पर उसके साथ के अलावा भी आज कॉलेज मे बहुत कुछ हुआ जिससे मेरा मूड बिगड़ गया । आपको तो पता है मेरा नेचर कैसा है ? मैं जल्दी से लोगों से घुलती मिलती नही । दूरी बनाकर रखती हूँ सबसे पर मेरा ये खूबसूरत चेहरा और नीली नीली आँखे हमेशा मुझे प्रॉब्लम मे डाल देती है । इन्हे देखकर लोग मेरे तरह आकर्षित होते है और फिर मुझे गुस्सा आता है । आज भी मुझे ऐसे दो नमूने मिल गए जो चेप होने मे लगे थे बस उन्ही के कारण मेरा मूड बिगड़ गया और क्लास के बाकी लड़के जैसे मुझे ताड़ रहे थे मुझे वो भी रत्ती भर भी पसंद नही आया । कुल मिलाकर आज मैं कॉलेज मे बहुत इरिटेट् हुई । वो तो दीपिका साथ थी इसलिए दिन बकवास नही गया । " कृषिका की भौंहें इस वक़्त तनी हुई थी और चेहरे पर चिढ़ व फ़्रस्टेशन के भाव उभर आए थे । उसका जवाब सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए और चिंता भरी निगाहों से कृषिका को देखते हुए उसने फ़िक्रमंद होते हुए सवाल किया " किसी ने ज्यादा परेशान किया तुझे ? मुझे बता कौन है मैं एक बार मे अच्छे से समझा दूंगा उसे फिर दोबारा भूलकर भी मेरी बहन को परेशान नही करेगा । " सिद्धार्थ को इतना सीरियस और परेशान देखकर कृषिका मुस्कुरा उठा " रिलेक्स भैया इतनी भी बड़ी बात नही । मैंने डील कर लिया है और आप तो जानते है आपकी बहन कितनी स्मार्ट और स्ट्रांग है । कोई मेरा कुछ नही बिगाड़ सकता । मैं अच्छे अच्छे को ठिकाने लगा सकती हूँ इन्हे भी अपने तरीके से संभाल लूंगा । आप परेशान मत होइये । " " Hmm मैं तो भूल ही गया था । मेरी क्रिशु अब बड़ी हो गयी है और हालातों से डील करना , उनके हिसाब से ढलना और उन्हे अपने हिसाब से ढालना सीख गयी है । " सिद्धार्थ ने मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा तो कृषिका भी मुस्कुरा दी । गाने सुनते और बातें करते हुए दोनों घर पहुँचे । अपने बैग को हवा मे लहराते हुए कृषिका उछलते कुदते हॉल मे दाखिल हुई ही थी की वहां लगे सोफे पर बैठे मानव जी पर उसकी नजर पड़ी । बुलंद शख़्सियत के मालिक थे वो और चेहरे पर कठोर भाव जिसे देखकर कोई भी डर जाए । उनपर नजर पड़ते ही कृषिका के कदम जहा थे वही ठहर गया । हवा मे लहराता हाथ बैग समेत सीधा हो गया । मुस्कुराते होंठ सिमट गए और उसने अपना सर झुका लिया । उसके पीछे से सिद्धार्थ हॉल मे दाखिल हुआ और वहाँ खड़ी कृषिका को देखकर उसके सर पर हल्की चपत लगाते हुए बोला " ओये तु अंदर जाने के जगह यहाँ खड़ी होकर क्या कर रही है ? चल आजा अंदर । " उसने कृषिका की हथेली थामी और उसे लेकर अंदर चला आया । मानव जी को उसने पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया और कृषिका के साथ सीढ़ियां चढ़ने लगा । उसके कदम सीधे कृषिका के कमरे मे आकर ठहरे । देखा तो कृषिका अब भी सर झुकाए खामोश सी खड़ी थी । सिद्धार्थ ने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों मे भर लिया और बड़े ही प्यार से बोला " इतना क्यों घबराती है तु डेड से ? डेड है वो तेरे , इस घर पर जितना मेरा हक है उतना तेरा भी है । तुझे किसी से भी घबराने या डरने की ज़रूरत नही है । " " हक छीना नही जाता भैया बल्कि दिया जाता है और उन्होंने तो बचपन से आज तक मुझे कभी अपनी बेटी तक नही माना फिर भला उनके घर पर मेरा कैसा अधिकार ? " कृषिका ने पलकें उठाकर उसे देखते हुए गंभीरता से जवाब दिया । सिद्धार्थ को उसने अपने जवाब से निरुत्तर कर दिया था । कुछ पल वो खामोशी से उसे देखता रहा फिर सनेह भरा हाथ उसके सर पर फेरते हुए बोला " मत सोच ये सब बातें । Jaa जाकर चेंज करके फ्रेश हो जा मैं तेरे लिए कुछ खाने को भेजता हूँ । " " नही भैया मुझे भूख नही है । मैं बस कुछ देर आराम करना चाहती हूँ । " " ठीक है तु फ्रेश होकर आराम कर , मैं आता हूँ थोड़े देर मे । " सिद्धार्थ ने उसपर दबाव न डालते हुए उसकी बात मान ली और कमरे से बाहर चला गया । कृषिका उसके कमरे मे लगी बड़ी सी पोट्रेट के पास आ गयी । उसने एक खुबसुरती सी लड़की नजर आ रही थी जिसकी आँखे भी बिल्कुल कृषिका जैसी ही थी । " मम्मा आप क्यों हमें छोड़कर चली गयी ? अगर आप हमारे साथ होती तो सब ठीक होता । डेड मुझसे प्यार करते , हम हैप्पी फैमिली बनकर साथ रहते । पर आप नही है तो कुछ भी ठीक नही है। डेड मेरे तरफ देखते भी नही , मुझसे प्यार भी नही करते । वो तो मुझसे नफरत करते है । आपके जाने के लिए वो मन ज़िम्मेदार ठहराते है इसलिए मुझसे हमेशा नाराज रहते है । आपको पता है उन्हें तो मेरा यहाँ आना और रहना भी पसंद नही है इसलिए तो मैं यहाँ आना नही चाहती थी और भैया की ज़िद के आगे मुझे झुकना पड़ा । " कृषिका ने मुह लटकाया फिर अपनी आँखों की नमी को पोंछते हुए बाथरून में चली गयी । सिद्धार्थ नीचे पहुँचा तो अब मानव जी उसे कही नजर ही नही आए । उसने सर झटका फिर अपने रूम मे चला गया । दूसरे तरह कुशाग्र के साथ दीपिका घर पहुची । कुशाग्र बाइक स्टैंड पर लगाकर नीचे उतरा और इसके साथ ही दीपिका की आवाज़ उसके कानों से टकराई " बोलो क्या बात करनी है तुम्हे मुझसे ? " Coming soon........
दूसरे तरह कुशाग्र के साथ दीपिका घर पहुची । कुशाग्र बाइक स्टैंड पर लगाकर नीचे उतरा और इसके साथ ही दीपिका की आवाज़ उसके कानों से टकराई " बोलो क्या बात करनी है तुम्हे मुझसे ? " कुशाग्र ने पलटकर उसे देखा और गंभीरता से बोला " रूम मे आ मेरे । " " क्यों ? " अभी उसने जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था की दीपिका ने झट से सवाल किया । जिससे कुशाग्र के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए । वो वापिस दीपिका कि ओर पलटा और एक बार फिर चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए बोला " कहा था न कुछ ज़रूरी बात करनी है तुझसे । रूम मे आ जल्दी । " इतना कहकर वो तेज़ कदमों से चलते हुए अंदर चला गया । मुह बनाते हुए उसकी नकल उड़ाती दीपिका भी नाराज़गी मे पैर पटकती हुई उसके पीछे चली गयी । दोनों ने आगे पीछे ड्राविंग रूम मे कदम रखा ही था कि वहाँ पहले से मौजूद जानवी जी उन्हे देखते ही उठकर खड़ी हो गयी और सौम्य सी मुस्कान लबों पर सजाते हुए मोहब्बत से बोली " आ गए आप दोनों । हम आपका ही इंतज़ार कर रहे है । कैसा गया आप दोनों का पहला दिन ? " " मोम वो हम आकर बताएंगे अभी मुझे दिपु से कुछ ज़रूरी बात करनी है । उसके बाद फ्रेश होकर आते है फिर सब बताएंगे आपको । " कुशाग्र ने सपाट लहज़े मे जवाब दिया और एक नजर पीछे आती दीपिका को देखते हुए सीढ़ियों कि ओर बढ़ गया । कुशाग्र के हाव भाव देखकर जानवी जी कि मुस्कान सिमट गयी और माथे पर चिंता कि लकीरें उभर आई । वो तुरंत दीपिका के पास चली आई और विचलित निगाहों से उसे देखते हुए परेशान सी बोली " दिपु क्या हुआ बेटा ? कुश इतने गुस्से मे क्यों लग रहा है और तुम्हे क्यों बुला रहा है ? फिरसे तुमने कुछ कर दिया क्या ? " " No मम्मा इस बारे मैंने कुछ नही किया । इंफेक्ट् मैं तो कॉलेज मे उनके आस पास भी नही गयी , उनसे बात भी नही की । " दिपु ने मासूमियत बिखेरते हुए सफाई पेश कि और खुदको उनकी अदालत मे इनोसेंट प्रूफ कर लिया पर अब भी उनकी चिंता और फिक्र कम नही हुई थी । " जाइये बेटा । देखिये क्या बात करनी है उन्हें आपसे और उनके सामने ज़ुबान मत लड़ाईयेगा , उनसे बहस भी मत कीजियेगा और आराम से उनकी बात सुनियेगा। " जानवी जी ने उसे प्यार से समझाया क्योंकि वो दोनों के रिश्ते मे खिंचाव और कुश के गुस्से से भली प्रकार वाक़िफ़ थी । दोनों ही गर्म मिजाज़ के थे तभी हर बात पर एक दूसरे से भिड़ पड़ते और ज़िद्दी इतने कि कोई भी पीछे हटने को तैयार नही होता था । दीपिका ने उनकी बात सुनकर मुह बनाते हुए हामी भरी और बैग वही सोफे पर पटकते हुए सीढ़ियों कि ओर बढ़ गयी । जानवी जी किचन मे चली गयी । " आ जाऊँ मैं ? " दीपिका ने कुश के दरवाजे पर दस्तक दी और अगले ही पल अंदर की कुश की आवाज़ आई " आजा । " दीपिका ने मुह बनाया और दरवाजा खोलकर अंदर चली । " आजा बैठ यहाँ " कुश ने सोफे कि ओर इशारा किया तो दीपिका आकर चुपचाप सोफे पर बैठ गयी । उसके सामने लगे टेबल को कुश ने थोड़ा आगे सरकाया और उसके ठीक सामने बैठ गया । दीपिका जो अब तक उससे चिड़ि हुई सी मुह बनाने मे लगी थी अब उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए । कुशाग्र इस वक़्त ज़रूरत से ज्यादा सीरियस लग रहा था मतलब साफ था की बात बड़ी है । " मेरे सवाल का सच सच जवाब देना क्योंकि मैं इस वक़्त झूठ सुनने के मूड मे बिल्कुल भी नही हूँ । " कुशाग्र ने चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए सख्त अंदाज़ मे कहा मानो उसे वार्निंग दे रहा हो । दीपिका मन ही मन घबरा गयी की जाने वो क्या पूछने वाला है पर ऊपर से सहज बनी रही और सहमति में सर हिला दिया । कुश ने अपनी ओलिव ग्रीन निगाहों को उसपर टिकाया और गंभीरता से सवाल किया " आज सुबह कॉलेज मे किसे देखकर घबरा गयी थी तुम ? किससे इतना डर गयी थी कि कृषिका से टकरा गयी थी पर तुम्हे तब भी अपनी चोट और दर्द की परवाह नही थी । तुम सहमी हुई सी पीछे देख रही थी । .... झूठ मत बोलना क्योंकि किसी पर शक मुझे पहले से है और मैं बस कन्फर्म करना चाहता हूँ । " जैसे जैसे कुश बोल रहा था दीपिका के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे । उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया था और भय के कारण चेहरा फक्क सफेद पड़ गया था । फटी आँखों से उसने कुश को देखा और घबराकर बोली " तुम ....... तुम्हे कैसे पता चला ?..... तुमने मेरे पीछे जासूस लगाए है क्या ? " " अब तक तो नही लगाए पर लग रहा है की लगाने पड़ेंगे वो भी जासूस नही बॉडीगार्ड । " कुश ने बेहद गंभीरता से कहा । वही उसकी बात सुनकर पहले ही दीपिका चौँक गयी फिर अगले ही पल उसने तुरंत ही हड़बड़ी मे इंकार मे सर हिला दिया " नही , बॉडी गार्ड नही । फिर मैं अपनी कॉलेज लाइफ कैसे एंजॉय कर सकूँगी ? " " तो बताओ मुझे कि कौन था ? " कुश ने भौंह उचकाते हुए सवाल किया । दीपिका के पास अब कोई रास्ता नही था । उसने मुह लटका लिया और धीमे स्वर मे बोली " वो मैंने कॉलेज मे जयेश को देखा था इसलिए मैं घबरा गयी थी । " शायद कुश पहले से इस सच से वाक़िफ़ था पर जैसे ही दीपिका ने उसके शक की पुष्टि की उसकी भौंहें तन गयी , बाज़ुओं की नसें और माथे की नसें उभर आई गुस्से, आँखों के महीन रेशे गुलाबी हो उठे , गुस्से मे उसने अपने जबड़ों को भींच लिया " क्या किया अब उसने कमीने ने ? " कुश का गुस्सा देखकर एक पल को दीपिका भी सहम गयी और जल्दी से जवाब दिया " कुछ नही किया । शायद उसने मुझे देखा भी नही था। बस मैं ही उसे देखकर घबरा गयी कि अगर उसने मुझे देख लिया तो परेशान करने के बहाने ढूँढने लगेगा और मैं अपनी कॉलेज लाइफ सुकून से बिताना चाहती हूँ । " " और कब तक तू उससे यूँ डरती और छुपती रहेगी ? ऐसे रह पाएगी सुकून से ? " कुश के चेहरे के भाव अब भी ज़रा भी नॉर्मल नही हुए थे । वो अब भी उतने ही गुस्से मे लग रहा था जबकि उसका सवाल सुनकर दीपिका के चेहरे पर अजीब सी बेबसी और लाचारी झलकने लगी थी " तो क्या लडूं उससे ये जानते हुए कि वो कितना घटिया और गिरा हुआ इंसान है ? अपनी ज़िद और इगो को सैटिस्फाइ करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। ....... मैं डरती हूँ क्योंकि नही चाहती की वो कुछ गलत करे मेरे साथ और मैं उससे उलझना ही नही चाहती इसलिए दूर रहती हूँ और आगे भी रहूँगी । " " डेड को कुछ क्यों नही बताती , या मुझे बोल मैं उसे अपने तरीके से हैंडल कर लूंगा । " " डेड को नही बता सकती और तुमको मैं इन सब मे उलझाना नही चाहती । वैसे भी अभी न तो उसने मुझे देखा है और न ही कुछ किया है । फिर अब तो मेरी दोस्त भी है और वो बहुत स्ट्रांग है । उसके रहते कोई मुझे नुकसान नही पहुँचा सकता तुम निश्चित रहो । " Coming soon
" डेड को कुछ क्यों नही बताती , या मुझे बोल मैं उसे अपने तरीके से हैंडल कर लूंगा । " " डेड को नही बता सकती और तुमको मैं इन सब मे उलझाना नही चाहती । वैसे भी अभी न तो उसने मुझे देखा है और न ही कुछ किया है । फिर अब तो मेरी दोस्त भी है और वो बहुत स्ट्रांग है । उसके रहते कोई मुझे नुकसान नही पहुँचा सकता तुम निश्चित रहो । " " इतना विश्वास है तुम्हे उसपर जबकि उससे तुम आज ही मिली हो । " कुशाग्र ने ज़रा हैरानी ज़ाहिर की जिसपर दीपिका के लबों पर सौम्य सी मुस्कान फैल गयी । " वो बहुत अच्छी है , एक दिन मे ही मेरी उससे इतनी अच्छी बाँडिंग हो गयी है और आपको पता है वो बहुत स्ट्रांग है और बहुत अच्छे से हर सिचुएशन हैंडल कर लेती है । उसे तो हाथ भी नही चलाना पड़ता , तीखी ज़ुबान मे ऐसा करारा जवाब देती है की सामने वाले की सिट्टी बिट्टी गुम हो जाए । " दीपिका बड़ी हि उत्सुकता से कृषिका के बारे मे उसे बता रही थी और कुशाग्र की आँखों मे ऑडिटोरियम वाला दृश्य घूम गया जब उसने कृषिका को सीनियर राहुल के संग देखा था । " कुश तुम्हारी बात हो गयी तो मैं जाऊँ अब , मुझे भूख लगी है । " दीपिका कि आवाज़ कुश के कानों में पड़ी तब कही जाकर वो होश में लौटी और दीपिका की ओर नज़रें घुमाई तो निचले होंठ को बाहर निकाले क्यूट सी शक्ल बनाए वो अपनी पलकों को झपकाते हुए उसे ही देख रही थी, मानो मस्का लगा रही हो । " नही एक बात और करनी है मुझे तुमसे । " " क्या ? " दीपिका ने तुरंत ही आँखों को बड़ा बड़ा करते हुए सवाल किया । " तु जानती है न हममें ज्यादा डिफ्रेंस नही है , चंद मिनटों का फ़ासला है ? " " हाँ " दीपिका ने नासमझी से सर हिलाया और उसके चेहरे पर निगाहें टिकाए बैठ गयी मानो उसकी बात समझने की कोशिश कर रही हो " तु ये भी जानती है कि बचपन से हमारा रिश्ता ऐसा ही रहा है , एक दूसरे से चिढना , लड़ाई झगड़ा , रूठना मनाना , एक दूसरे को तंग करना । " " हाँ पर तुम मुझे ज्यादा परेशान करते हो । " दीपिका ने हामी भरते हुए नाराज़गी से उसे देखा और उसकी शिकायत लगा दी । दीपिका की बात सुनकर कुशाग्र के चेहरे के भाव भी कुछ बदल गए और उसने तुरंत ही नाराज़गी ज़ाहिर की " तो तुम्हारी हरकतें भी होती है ऐसी जिससे मुझे गुस्सा आए । हमेशा काम बिगाड़ाती और फैलाती रहती हो और खुदको ही चोट पहुँचाती हो इन दोनों ही चीजों से चिढ़ है मुझे । " " पर मैं कुछ भी जानमुचकर तो नही करती हूँ । वो मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है । कितना भी ध्यान रखूं , संभलकर रहूँ गड़बड़ हो ही जाती है , इसमें मेरा दोष तो नही पर तुम मुझपर चिल्लाते हो , गुस्सा करते हो और नाराज़ भी होते हो ये तो ठीक नही । " दीपिका ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए सफाई पेश कि और साथ ही मासूम सी सूरत बनाए नाराज़गी से उसे देखने लगी । कुशाग्र को अब एहसास हुआ कि वो मुद्दे से भटक रहा है । उसने अपनी आँखों को भींचते हुए गहरी सांस छोड़ी फिर आँखों खोलकर दीपिका को देखा और शांत लहज़े मे बोला " मैं नाराज़ होता हूँ, गुस्सा करता हूँ पर सिर्फ तेरे लिए क्योंकि तु खुदको चोट पहुँचाती है जो मुझे नही पसंद है । परवाह करता हूँ तेरी और प्यार भी करता हूँ तुझसे । " " पर प्यार दिखाना नही आता तुम्हे । पता है आज कृषिका के भैया से मिली मैं । इतने अच्छे है वो । थोड़ी सी देर में मैंने बहुत से रूप देखे उनके । कृषिका के साथ हँसी मज़ाक करके उसे चिढ़ाया भी , उसको सताया भी , प्यार और परवाह भी ज़ाहिर की और नाराज़गी से डाँट भी लगाई पर उनके हर एक्शन में कृषिका के लिए प्यार झलक रहा था । अगर उन्होंने उसे गलती पर डाँटा तो प्यार भी किया था पर तुम सिर्फ मुझपर रौब जमाते हो मुझे डांटते हो । कभी बड़े भाई जैसे प्यार से सर पर हाथ नही फेरते । हँसी मज़ाक नही करते । प्यार और परवाह ज़ाहिर नही करते । मोहब्बत से बैठकर समझाते भी नही । ऐसे नही होते है बड़े भाई , वो तो अपनी छोटी बहन को बिल्कुल प्रिंसेस जैसे रखते है । पिता के तरह स्नेह और प्यार लुटाते है तो माँ के जैसे संभालते है , बड़े भाई जैसे मोहब्बत से समझाते है ,तो कभी कभी डाँट भी लगाते है । " दीपिका ने एक बार फिर शिकायतों का पुल बना दिया और नाराज़गी से उसे देखने लगी । उसकी बातें सुनकर कुशाग्र ने बेबसी और अफसोस से सर हिला दिया । " बहुत डिमांडिंग है तु पर कोशिश करूँगा एक भाई के तौर पर तेरी उम्मीदों पर खरा उतर सकूँ । बड़े भाई के होते हुए तुझे उसकी कमी न सताए और हमारा रिश्ता जो वक़्त के साथ बिगड़ता जा रहा है वो कुछ हद तक सुधर जाए । .... चल अब जा जाकर फ्रेश हो जा फिर साथ मे नीचे चलेंगे । " कुशाग्र ने मोहब्बत से कहा । दीपिका पहले तो उसकी बात सुनकर चौँक गयी फिर उसकी बातों का मतलब समझते हुए खिलखिलाकर मुस्कुरा उठी और सर हिलाते हुए झट से उठकर जाने लगी पर फिर अचानक ही उसके मन मे कुछ आया और पलटकर उसके गले से लग गयी जिससे कुशाग्र चौँक गया । " मै भी बहुत प्यार करती हूँ तुमसे और इसलिए तुम्हारे गुस्से , नाराज़गी और डाँट से ज्यादा तकलीफ होती है मुझे । " इन सभी शिकायतों के बीच दीपिका ने बड़ी ही मासूमियत से अपने दिल की बात कही फिर झट से कमरे से बाहर निकल गयी । कुशाग्र उसकी बात याद करते हुए मुस्कुराया फिर बालों मे हाथ घुमाते हुए बाथरूम मे चला गया । कुछ देर बाद कमरे से बाहर निकला तो दीपिका उसके कमरे कि ओर आती नजर आई । शॉर्ट और क्रॉप टॉप पहले । खुले कंधे तक लहराते बाल और होंठो पर प्यारी सी मुस्कान सजाए बहुत प्यारी लग रही थी वो । आज भी बिल्कुल बच्चों जैसे मासूम और इनोसेट थी और उतना ही कोमल दिल था उसका । उसे देखकर कुशाग्र भी मुस्कुरा दिया । जानवी जी कि नजर जब सीढ़ियों से साथ मे उतरते दीपिका और कुशाग्र पर गयी जो किसी बात पर मुस्कुरा रहे थे तो उनकी आँखों की पुतलियाँ आश्चर्य से फैल गयी । उन्हें अपनी आँखों पर भरोसा ही नही हुआ क्योंकि दोनों का साथ आना वो भी मुस्कुराते हुए किसी अजूबे से कम नही था । वो दोनों जब साथ होते तो या तो दो दुश्मन देशों जैसे एक दूसरे से लड़ते भिड़ते रहते या पाकिस्तान के नक्शे जैसी शक्ल बनाए मन ही मन एक दूसरे को कोसते रहते , खींझटे रहते । इसलिए आज इस अद्भुत नज़ारे तो देखकर वो इतनी अचंभित थी कि कई बार उन्होंने अपनी आँखों को बंद करके खोला पर हर बात वही नज़ारा आँखों के सामने था । कुछ देर मे उन्हें इस हकीकत पर विश्वास हुआ और उनके लब मुस्कुरा उठे । दोनों नीचे आए तो उन्होंने सबसे पहले दोनों की नजर उतारते हुए उन्हें ढेरों आशीर्वाद दिये फिर उनको नाश्ता देते हुए कॉलेज के पहले दिन के बारे मे पूछने लगी । कभी कुशाग्र उन्हें कुछ बताया तो कभी दीपिका चाहकते हुए अपने और कृषिका के किससे सुनाती । घर का माहौल आज अरसे बाद सुहावना था और अपने दोनों बच्चों को साथ हँसते मुस्कुराते देखकर जानवी जी बेहद खुश नजर आ रही थी । Coming Soon
कॉलेज शुरू हुए कुछ दिन बीत गए थे । सभी नए माहौल मे लगभग एडजस्ट हो चुके थे । दोस्तों का अलग अलग ग्रुप बन चुका था तो कुछ स्टूडेंट्स ऐसे भी थे जो तन्हा रहने के शौकीन थी । एक दूसरे को कुछ कुछ जानने समझने भी लगे थे । पढ़ाई धीमी रफ्तार पर ही सही पर शुरू हो चुकी थी । कृशिका और दीपिका की दोस्ती और भी गहरी हो गयी थी । कॉलेज मे दोनों सारा वक़्त साथ रहती थी । जहाँ दीपिका की मासूमियत से भरी बातें कभी खत्म ही नही होती थी । वही कृषिका जो कम बोलने और चुप रहने की शौकीन थी दिलचस्पी के साथ उसकी बातें सुना करती थी । दोनों की जोड़ी भी जबरदस्त थी । दीपिका सीधी सादी तो कृशिका तेज़ तरार , दीपिका जल्दी से किसी से बहस करने से घबराती तो कृषिका मुह तोड़ जवाब देने मे ज़रा न कतराती । दबंग परस्नैलिटि की मालकिन थी वो जिसके मन मे किसी का कोई डर नही था और आत्मविश्वास तो कूट कूटकर भरा था । खुबसुरती , इंटेलिजेंट दिमाग तीखे तेवरों का बेमिसाल जोड़ थी वो जो उसको औरों से अलग बनाती थी। उसका एक अलग ही ऑरा था जिसे मैच करना हर किसी के बस की बात न थी । उसकी खुबसुरती के चर्चे पूरे कॉलेज मे फैल चुके थे । उसकी वो गहरी नीली आँखे आकर्षण का केंद्र था पर उसके सर्द एक्सप्रेशन और तीखी ज़ुबान सबके मन मे भय पैदा करती थी और जो उस डर पर जीत पाकर भी उसके पास आकर उससे बात करने की हिम्मत दिखाता कृषिका ऐसा करारा जवाब देती कि उल्टे पाओ वापिस लौट जाता । वो एक ऐसा फूल थी जो जिसे अपने आस पास भवरों के फटकने से सख्त नफरत थी और कई लड़के उसके तीखी ज़ुबान का स्वाद चख चुके थे जिसके कारण उसपर घमंडी , मगरूर होने का टैग लग चुका था पर कृषिका को इन बातों से कुछ खास फर्क नही पड़ता था उसे बस खुदसे मतलब था और खुदमे ही गुम रहती थी वो । कृषिका के सख्त नेचर और तीखे तेवरों का फ़ायदा दीपिका को भी होता कि कोई उसके आस पास आने या उसे तंग करने की हिम्मत नही करता था । दीपिका का साथ उसके लिए ऐसा था मानो तपती धूप मे पेड़ की छाया , सुखे मरुस्थल मे जल की बुँदे , सुनसान तन्हा रास्तों पर एक अंजान साथी । क्लास से लेकर कॉलेज के कई लड़कों से इन दिनों मे कृषिका भिड़ चुकी थी और उनमे से दो तो ऐसे थे जो लाख लताड़ाने पर भी अपनी हरकतों से बाज़ नही आते थे । जिनमें से सबसे पहले नंबर पर था वो सीनियर राहुल जो जब मौका मिलता कृषिका के पास टपक पड़ता । कभी बिन मांगी हेल्प देता तो कभी उससे बात करने की कोशिश करता । कभी उसकी तारीफ करता शायद उसे रिझाने कि कोशिश करता था पर कृषिका हर बार उसके मुह पर टका सा जवाब देकर उसका मुह बंद करवा देती पर बेशर्मो जैसे हर बार मुह उठाए उसके पास चला आता जिससे कृषिका बहुत परेशान थी । दूसरा शक्स था कुशाग्र । असल मे वो कृषिका को परेशान नही करता था । आते जाते हाए हैलो करना , बात करने की कोशिश करना यही करता था पर कृषिका फिर भी उससे चिढ़ जाती । कभी बुरा सा मुह बनाकर उसे पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर देती तो कभी अपने तीखे तेवरों और कड़वी ज़ुबान से उसे लाजवाब कर देती । कुशाग्र का हैंडसम चेहरा, डैशिंग परस्नैलिटि लड़कियों को अपनी और आकर्षित करती थी । क्लास की लड़कियां तो उस हॉट लड़के , उसकी ओलिव ग्रीन आँखों पर मर मिटी थी बाकीकॉलेज मे भी लड़कियों के बीच वो अपने लूक्स , एटीट्यूड , परस्नैलिटि और नेचर के कारण काफी फेमस हो चुका था पर एक कृषिका ही थी जो उसे रत्ती भर भी भाव नही देती थी । कॉलेज की लड़कियाँ कुशाग्र की ओलिव ग्रीन आँखों की दिवानी थी और कुशाग्र कृषिका की समुद्र सी गहरी नीली आँखों की गहराइयों मे डूब चुका था । उसकी घनघोर बेज़्ज़ती दीपिका और समीर दोनों फटी आँखों से देखते थे । दाल मे कुछ काला था इसका अनुमान दोनों को ही दो गया था पर वो कालिख अभी उनके पकड़ मे नही आई थी । कुशाग्र और दीपिका का रिश्ता कुछ सुधर रहा था । कुशाग्र उसके लिए सॉफ्ट पड़ने लगा था और यही दीपिका चाहती थी । आते दोनों अलग अलग थे पर जाते साथ थे । जहाँ दीपिका को अपने मोम डेड के साथ भाई का पूरा प्यार मिलने लगा था इसलिए वो खुशी से चहकती रहती । वही कृषिका के लिए सिद्धार्थ ही सब कुछ था । मानव जी एक नजर उसे देखते तक नही थे । जाने अपनी ही औलाद से किस बात की दुश्मनी थी उन्हें और क्यों उससे इतनी नफरत करते थे कि नाश्ते की टेबल पर उसके साथ बैठना तक उन्हें गँवारा न था पर सिद्धार्थ था कृषिका के लिए । जो उसपर माँ की ममता भी न्यौछावर करता तो ,बाप सा लाड लड़ाता गलती पर फटकारता , संरक्षण करता । बड़े भाई के तरह उसकी हर ख्वाहिश सर आँखों पर रखता , हंसती मज़ाक और छेड़छाड़ करता । आज भी रोज़ सा ही दिन था पर कुछ अलग । दीपिका आज कॉलेज नही आई थी तो कृषिका अकेली ही थी । सुबह समीर और कुशाग्र दोनों ने उसे मॉर्निंग विश किया पर जवाब सिर्फ समीर को मिला । समीर एक सीधा सादा शरीफ सा लड़का था । इतना कृषिका समझ गयी थी इसलिए उससे हल्की फुलकी बातें कर लेती थी । जहाँ समीर उसका जवाब सुनकर मुस्कुराकर पीछे की सीट पर बैठ गया । वही कुशाग्र ने बुरा सा मुह बना लिया पर कृषिका को कोई फर्क न पड़ा । प्रोफेसर के आते ही लैकचर् शुरू हो गया जो पूरे एक घंटा चला । अगली क्लास फ्री थी तो लैकचर् खत्म होते ही सब वहाँ से निकल गए । कृषिका उठकर सीढ़ियों के पास वाले लोन मे आकर पेड़ की छाया मे हरि भरी घास पर बैठ गयी । असल मे आज मौसम सुहावना था । आकाश मे बादल घिर आए थे ,सूरज उन नीचे संतरी बादलों के साथ लुका छुपी खेलते हुए खिलखिला रहा था । उमड़ घुमड़ करते बादलो की शरारत देखकर ठंडी ठंडी हवाएं आनंदित होकर बलखाने लगी थी जिससे पेड़ की शाखाएं भी उसकी खुशी मे शामिल होकर झूम उठी थी । लुभावना मौसम था इसलिए कृषिका लोन मे ही बैठ गयी थी । उसने अपना रजिस्टर निकाला और रफ नोटस को फेयर करने लगी थी । अभी उसे बैठे पांच मिनट भी नही हुए थे की जाने कहाँ से उस घामड़ इंसान राहुल को उसके यहाँ होने की खबर कहाँ से मिल गयी थी कि वो उड़ता उड़ता वहाँ पर आ धमका था । " हैलो कृषिका " आवाज़ सुनकर कृषिका ने अपने जबड़े भींचे । इस लड़के की आवाज़ से ही अब खींझ होने लगी थी उसे और सर गर्म हो जाता था । उसने जबरन अपने गुस्से को दबाया और तीखी निगाहें उसकी ओर घुमाते हुए सपाट लहजे मे बोली " हैलो सर । " फॉर्मेलिटि निभाते हुए कृषिका ने छोटा सा रिप्लाय दिया फिर रुख फेरकर एक बार फिर अपना पूरा ध्यान अपने काम पर लगा दिया । पर राहुल को ये मंज़ूर नही था । उसने फिर मुस्कुराकर बात की शुरुआत की " क्या कर रही हो यहाँ अकेले बैठकर ? " " तारे गिन रही हूँ नजर नही आ रहा आपको ? " कृषिका ने उस बकवास सवाल पर किलसते हुए जवाब दिया जिसे सुनकर राहुल हंस पड़ा " दिन मे तारे सेंस ऑफ ह्युमर् बहुत जबरदस्त है तुम्हारा । " " हाँ शायद पर अफसोस की आप कॉमन सेंस के मामले मे बड़े कमज़ोर निकले । वैसे दिन मे जब चमगादड़ दिख सकते है तो तारे क्यों नही ? " कृषिका ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए तल्ख लहज़े मे कहा और एक तीखी सी मुस्कान उसके लबों पर आ ठहरी । राहुल शायद उसकी बात का मतलब न समझ गया और फिज़ूल मे अपनी बत्तीसी चमका दी " दिन मे चमगादड़ कहाँ देख लिया तुमने ? " " सामने ही बैठा है । कभी गौर से आईने मे अपनी शक्ल देखियेगा तो मतलब समझ आए पर एक फर्क है। मैंने सुना है चमगादड़ो की सुनने की शक्ति बहुत तेज़ होती है पर आपकी तो सूंघने की शक्ति जबरदस्त है बिल्कुल कुत्ते जैसी । जहाँ जाती हूँ सुंघते हुए वहाँ पहुँच जाते है । " कुछ लोग मखमल मे लपेटकर जूते मारते है कि सामने वाले को इंसल्ट न फील हो पर ये तो कृषिका था उसने शबदों के जूते सीधे उसके मुह पर बरसाए थे । उसको बेज़्ज़ती का स्वाद चखाने के बाद कृषिका ने अपनी नीली नीली आँखों को मटकाते हुए तिरछी मुस्कान लबों पर सजाई जैसे खुदपर ही इतरा रही हो । कृषिका का जवाब सुनकर एक काला साया सा राहुल के चेहरे से होकर गुजरा अगले ही पल वो अजीब तरफ से मुस्कुराया और चेहरा कृषिका के करीब कर गहरी सांस खींची " वैसे खुशबु है कमाल तुम्हारी , किसी को भी बहकने पर मजबूर कर दे । " उसकी इस ओछी हरकत और घटिया बात सुनकर गुस्से से कृषिका का चेहरा गुस्से से तप गया और भौंहें सिकुड़ गयी । उसकी ये हरकत कृषिका को नागवार गुजरी थी और वो जबड़े भींचते हुए एक करारा तमाचा उसके गाल पर रसीदाते हुए गुस्से मे वहाँ से उठ खड़ी हुई " Mind your language and stay in your limits . मैं अब तक जगह का लिहाज़ करके चुप हूँ इसका मतलब ये नही की तुम कुछ भी करोगे और मैं खामोशी से सब सहती रहूँगी । ये मेरे तरफ से तुम्हे पहली और आखिरी वार्निंग है , अपनी ये छिछोरी हरकतें और घटिया ट्रिक्स मुझपर इस्तेमाल करना बंद करो । मुझे तुम जैसे लड़कों मे कोई दिलचस्पी नही इसलिए अपनी ये सड़ी हुई शक्ल लेकर दोबारा मेरे सामने मत आना वरना आज तो बस एक तमाचा मारा है अगली बार पूरे मुह को पाकिस्तान का नक्शा बना दूँगी । " उंगली दिखाते हुए कर्कश स्वर मे कृषिका ने उसको एक आखिरी चेतावनी दी और अपना समान समेटने लगी । राहुल को ज़रा भी उम्मीद नही थी कि कृषिका यहाँ कॉलेज मे ऐसा कुछ करेगी इसलिए कुछ पल तो वो सुन्न सा बैठा रहा । फिर गाल पर हाथ धरे आस पास नज़रें घुमाई तो लोन के आस पास मौजूद स्टूडेंट्स कॉरिडोर मे मौजूद स्टूडेंट्स सब उन्हें ही देख रहे थे । इतने स्टूडेंट्स के बीच अपनी ये इंसल्ट उससे बर्दाश्त न हुई । चेहरा गुस्से से भर उठा । कृषिका समान समेटकर जाने के लिए पलटी ही थी कि गुस्से से भटका राहुल एकदम से उठकर खड़ा हो गया और जाती हुई कृषिका की कलाई पकड़ ली और यही उससे सबसे बड़ी गलती हो गयी । राहुल का छूना कृषिका के अंग अंग को गुस्से और नफरत से भर गया । उसे बिल्कुल पसंद नही था कि कोई उसे उसकी मर्ज़ी के बिना एक उंगली भी लगाए और यहाँ राहुल ने उसकी कलाई पकड़कर खुद मौत को आमंत्रण दिया था । कृषिका ने आव देखा न ताव और झटके से उसकी ओर पलटते हुए अपनी दूसरी बाँह उसकी गर्दनपर लपेटे हुए उसको घुमाकर पीठ के बल ज़मीन पर ला पटका । राहुल की रीढ़ की हड्डी पर दबाब पड़ा और मुह से दर्द भरीचीख निकल गयी । सब स्टूडेंट्स फटी आँखो से ये नज़ारा देख रहे थे । एक नाज़ुक सी लड़की का एक मुस्टडें को यूँ घुमाकर ज़मीन पर दे मारना कोई आम बात नही थी इसलिए सभी दंग रह गए थे । " कहा था मैंने की दूर रहो मुझसे । हिम्मत कैसे कि तूने मुझे हाथ लगाने की ? क्या लगा तुम्हे की मैं बर्दाश्त कर जाऊंगी तुम्हारी ये हरकत ? मैं लड़की नही जलता अंगारा हूँ अगर छुआ तो राख बन जाओगे । मुझे नाज़ुक कली समझने की भूल दोबारा मत करना । वरना आज तो बस ट्रेलर दिखाया है तुम्हे । अगली बार अगर मेरी इज़ाज़त के बिना मुझपर उंगली भी उठाई तो पूरी पिक्चर दिखाऊंगी वो भी थ्री डी एक्शन के साथ और कसम से अगर दोबारा मेरे हत्थे चढ़े तो ज़िंदगी भर अपने शरीर के टूटी हड्डियों को जोड़ते ही रह जाओगे वो हश्र करूँगी मैं तुम्हारा । " कृषिका गुस्से मे दहाड़ी और जैसे ही जाने की पलटी उसकी नजर सामने खड़े कुशाग्र पर चली गयी । कृषिका का गोरा मुखड़ा गुस्से से जल उठा था , साँसें ज़रूरत से ज्यादा तेज़ चल रही थी और उसकी उन नीली आँखों मे गुलाबी डोरे उभर आए थे । कृषिका ने जलती निगाहों से उसे घुरा मानो आँखों से ही चेतावनी दे रही हो की अभी भी वक़्त है संभल जाए वरना अगला नंबर उसी का होगा और फिर गुस्से मे धरती को अपने कदमों तले रौंदते हुए वहाँ से चली गयी । Coming Soon
कृषिका गुस्से मे दहाड़ी और जैसे ही जाने की पलटी उसकी नजर सामने खड़े कुशाग्र पर चली गयी । कृषिका का गोरा मुखड़ा गुस्से से जल उठा था , साँसें ज़रूरत से ज्यादा तेज़ चल रही थी और उसकी उन नीली आँखों मे गुलाबी डोरे उभर आए थे । कृषिका ने जलती निगाहों से उसे घुरा मानो आँखों से ही चेतावनी दे रही हो की अभी भी वक़्त है संभल जाए वरना अगला नंबर उसी का होगा और फिर गुस्से मे धरती को अपने कदमों तले रौंदते हुए वहाँ से चली गयी । " oh my गॉड । यार ये लड़की है या आइटम बॉम्ब ? देखने मे तो नाज़ुक सी लगती है पर है बहुत खतरनाक । ऐसे लड़कों से ऐसी ही लड़कियां डील कर सकती है । I am impressed " कुशाग्र के बगल मे खड़ा समीर कृषिका का ये रूप देखकर पहले तो हैरान हुआ था पर अब उसके लबों पर ऐसी मुस्कान थी मानो उसके जज़्बे और हिम्मत की सराहना कर रहा हो । " Mind blowing " कुशाग्र के लब धीमे से फुसफुसाए और एक दिलकश मुस्कान उसके लबों पर बिखर गयी । " मैं अभी आया । " इतना कहकर वो जैसे ही जाने को पलटा समीर ने तुरंत ही उसे टोका " तु इतनी हड़बड़ी मे कहाँ भाग रहा है ? " " उस चलते फिरते वोल्कैनों को देखने । " कुशाग्र ने पलटते हुए बेपरवाही से जवाब दिया पर समीर की आँखे बाहर आने को हो गयी । उसने चौँकते हुए हैरानी से कहा " पागल हो गया है क्या ? देखा नही कितने गुस्से मे निकली है यहां से । कच्चा चबा जाएगी तुझे । " " कोई बात नही हड्डियाँ तु संभाल लियो । " कुशाग्र ने मुस्कुराते हुए बेफिक्री से जवाब दिया और उस दिशा मे बढ़ गया जहाँ कुछ मिनट पहले कृषिका गयी थी । पीछे खड़ा समीर कुछ पल हैरान परेशान सा उसे देखता रहा फिर अफसोस से सर हिलाते हुए मन ही मन भगवान् से अपने एकलौते दोस्त की सलामती की दुआ मांगने लगा । कृषिका ने इतनी ज़ोर से राहुल को पटका था की उसकी रीढ़ की हड्डी मे तेज़ दर्द हो रहा था और जिल्लत से उसका चेहरा काला पड़ गया था। आँखो मे खून उतर आया था । वो तो ज़मीन पर ही पड़ा था पर वही आस पास मौजूद उसके दोस्त अजय ने आकर उसे उठाया। " कहा था मैंने वो तेरे टाइप की लड़की नही है । फिर भी बार बार उससे उलझ रहा था देख क्या हुआ ? सारे कॉलेज के सामने इंसल्ट हो गयी । " अजय उसे सहारा देकर वहाँ से लेकर जाते हुए उसपर नाराज हो रहा था पर राहुल जो अपनी इतनी इंसल्ट देखकर गुस्से से पागल हो गया था उसके दिलों दिमाग मे सिर्फ और सिर्फ कृषिका घूम रही थी । उसने गुस्से मे जबड़े भींच लिए " छोडूंगा नही मैं उस लड़की को । बहुत गुरुर है इसमें , इसे तो मैं इसकी औकात दिखाऊँगा । सारे कॉलेज के सामने उसने मेरी इंसल्ट की है न तो मैं भी पूरे कॉलेज के सामने उसकी इज़्ज़त उतारूँगा । अपनी हर बेज़्ज़ती का बदला सूद समेत लूंगा उससे , तब एहसास होगा उसे की मुझसे पन्गा लेकर कितनी बड़ी गलती की है उसने । " राहुल अब भी हार मानने को तैयार नही था । उल्टा अब उसके मन मे बदले की आग भड़क चुकी थी और अजय बस अफसोस से सर हिलाया रह गया था । दूसरे तरफ कृषिका पहले वॉशरूम गयी जहाँ उसने कई बार अपने मुह पर पानी के छींटे मारे । गुस्सा कुछ शांत हुआ तो एक नजर अपनी कलाई पर डाली । उसकी गोरी कलाई पर राहुल की उंगलियों के लाल निशान उभर आए थे । जिसे देखकर कृषिका का मन कड़वाहट से भर गया । उसने गहरी सांस ली और म्युज़िक रूम कि ओर बढ़ गयी । वही एक ऐसी जगह थी जहाँ उसे शांति मिलती थी । उसके पीछे आते कुशाग्र ने जब उसे म्युज़िक रूम कि ओर बढ़ते देखा और लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई । उसने इन दिनों मे कई बार उसे वहाँ अकेले बैठकर कानों मे हैड फोन लगाए गाना सुनते देखा था । आज भी कृषिका अपने मन को शांत करने म्युज़िक रूम मे चली आई । बैग साइड मे रखकर टेबल पर चढ़कर बैठ गया और साइड मे रखा गिटार उठाकर उसपर उंगलियाँ चलाने लगी । आज वो गाना नही सुन रही थी , बस गिटार पर सॉफ्ट सी धुन बजा रही थी जो मन को एकदम शांत कर दे । दरवाजे के पास खड़ा कुशाग्र कुछ देर तल उसकी मधुर धुन को आँखे मूंदे सुनता रहा फिर उसने दरवाजा खोला और मुस्कुराकर अंदर की ओर बढ़ गया । कृषिका जो आँखे मूंदे बैठी गिटार बजा रही थी किसी के आने की आहट पाकर उसकी गिटार की तारों पर थिरकती उंगलियाँ एकदम से रुक गयी । आँखे खुलते ही नजर सामने से चले आ रहे कुशाग्र पर पड़ी और उसके शांत चेहरे पर एक बार फिर गुस्सा अपना आधिपत्य जमाने लगा । वो आँखे छोटी छोटी किये गुस्से से उसे घूरने लगी " गिटार तो बहुत अच्छा बजा लेती हो तुम । " " उसका हाल देखकर भी अक्ल नही आई तुम्हे ? अपनी हड्डी पसलियां तोड़वाकर ही मानोगे ? " कृषिका तीखी निगाहों से उसे घुरति रही । वही उसकी बात सुनकर कुशाग्र की मुस्कान और गहरी हो गयी और आँखों मे गर्व के भाव उभर आए " कमाल कर दिया तुमने । क्या थप्पड़ मारा था यार उंगलियों के निशान उसके गालों पर छप गए थे और उसके बाद जो उसको 360 डिग्री मे घुमाकर पटका ..... बेचारे की रीढ़ की हड्डियों ने जवाब दे दिया होगा । बिल्कुल सही सबक सिखाया तुमने उसे , उस जैसे लड़कों के साथ ऐसा ही करना चाहिए था । मुझे गर्व है तुमपर , हर लड़की को तुम्हारे जैसा होना चाहिए फिर कोई राहुल उनके साथ कोई बदतमीज़ी करने से पहले एक नही हज़ार बार सोचेगा । " " Oh अच्छा पर लगता है की तुम सुअर की मोटी खाल के बने हो । तभी उसका हश्र देखकर भी बेशर्मो जैसे यहाँ चले आए । कही तुम्हारे शरीर मे भी तो खुजली नही हो रही मेरे हाथों का प्रसाद चखने की ? " कृषिका ने तल्खी भरे लहज़े मे कहा और चेतावनी भरी निगाहों से उसे घूरने लगी । जबकि उसकी बात पर कुशाग्र ने बेफिक्री से जवाब दिया " ऐसा तो कुछ नही और मैं कौनसा तुम्हारे साथ कोई बदतमीज़ी कर रहा हूँ जो मुझे अपने एक्शंस मुझपर आज़माओ । वैसे भी मेरी खुदकी एक बहन है तो लड़कियों के साथ कैसे रहना चाहिए उनकी कैसे रिस्पेक्ट करनी चाहिए ये मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ । राहुल जैसे घटिया हरकत मैं कभी नही कर सकता तो तुम्हे मुझपर हाथ उठाने की भी कभी ज़रूरत नही पड़ेगी । " कुशाग्र का जवाब सुनकर कृषिका के लबों पर व्यंग्य भरी मुस्कान बिखर गयी , निगाहें अब भी बदस्तुर् उसे घूरने मे लगी थी । उसने तन्जिया लहज़े मे कहा " Ohh तभी कॉलेज के पहले दिन से मुझे परेशान कर रहे हो । " " करेक्शन । मैं तुम्हे परेशान नही कर रहा तुम खुद मुझसे परेशान होती हो । मै तो बस नॉर्मल हाय हैलो करता हूँ पर तुम भड़क जाती हो । मैंने तुम्हारे साथ किसी तरह की कोई बदतमीज़ी नही की है ये तुम भी जानती हो । रही बात तुमसे बात करने की कोशिश करने की तो तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ पर तुम्हे वो भी मंज़ूर नही । तुम्हे पता है सारे कॉलेज की लड़कियां दीवानी है मेरी । अगर मैं इसी तरह का लड़का होता तो लड़कियों की कोई कमी नही मेरे पास पर मुझे पता है कि लड़कियों की इज़्ज़त कितनी मायने रखती है । इसलिए उनके साथ टाइम पास करना मुझे पसंद नही । उनकी कोशिशो के बावजूद मैं उनसे दूर ही रहता हूँ । हाँ तुममे दिलचस्पी है मुझे क्योंकि तुम ओरो से बिल्कुल अलग हो । पर तुम्हारे साथ भी किसी तरह की कोई जबरदस्ती या गलत हरकत नही की है मैंने । बस बात करने की कोशिश करता हूँ और तुम्हारे इंकार पर कदम पीछे हटा लेता हूँ इससे मेरी शराफत झलकती है। खैर तुम मुझसे इस कदर चिढ़ती हो कि तुम्हे मेरी अच्छाइयाँ नजर ही नही आएंगी । तुमने मुझे गलत मान लिया है तो मैं तुम्हे गलत हूँ लगूँगा पर मिस कृषिका मल्होत्रा जैसे हर उंगली बराबर नही होती वैसे ही हर लड़का छिछोरा भी नही होता । मैं भी गलत नही और बहुत जल्द तुम्हे इसका एहसास होगा । " कुशाग्र बेहद संजीदा था जबकि कृषिका भावहीन सी उसकी बात सुन रही थी । वो जैसे ही चुप हुआ कृषिका ने उकताते हुए उखड़े स्वर मे कहा " हो गया तुम्हारा भाषण खत्म तो निकालो यहाँ से । मुफ्त के ज्ञान मे मुझे कोई दिलचस्पी नही । " " मैं मुफ्त का ज्ञान देने आया भी नही हूँ , इतना फालतू वक़्त नही है मेरे पास । जिस काम से आया हूँ वो कर लूँ फिर चला जाऊंगा तुम्हे और तुम्हारी तन्हाई को अकेला छोड़कर । " कुशाग्र ने भी उसी लहजे मे पलटवार किया और कृषिका के सामने आ खड़ा हुआ । कृषिका भौंह सिकोड़े उसे यूँ घूरने लगी मानो जानना चाह रही हो कि आखिर वो यहाँ करने क्या आया है ? " हाथ दिखाओ अपना । " " हँ " कृषिका ने चौँकते हुए आँखे बड़ी बड़ी की । उसका रिएक्शन देखकर कुशाग्र ने अपनी बात दोहराई " तुम्हारी कलाई पर निशान पड़ गया है । हाथ दिखाओ अपना । " कृषिका को अब उसकी बात का मतलब समझ आया और निगाहें अनायास की कलाई पर बने निशान पर चली गयी पर अगले ही पल वो तुनकते हुए बोल पड़ी " क्यों तुम क्या डॉक्टर हो ? " " फिल्हाल तुम्हारे लिए तो डॉक्टर ही हूँ । " कुशाग्र हौले से मुस्कुराया फिर अपने बैग की फर्स्ट चैन से एक क्रीम निकाल दी । ये देखकर कृषिका चौँक गयी । " तुम क्या अपने बैग मे पूरा फर्स्ट ऐड कीट लेकर घूमते हो ? " " कुछ ऐसा ही समझ लो । वो पता नही न की कब किस चीज़ की ज़रूरत पड़ जाए जैसे आज इस क्रीम की ज़रूरत पड़ गयी । " कुशाग्र ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया फिर जैसे ही उसके ओर हाथ बढ़ाया कृषिका तुरंत पीछे को खिसकते हुए उसपर गरज उठी " खबरदार जो आगे आए या मुझे छूने की कोशिश की । जान से मार दूँगी तुम्हे । " " शौक से मार देना पर पहले क्रीम लगा दूँ वरना अभी निशान लाल है कुछ देर मे नीला पड़ जाएगा । " कुशाग्र ने उसकी आँखों मे आँखे डालते हुए संजीदगी से जवाब दिया और जैसे ही उसकी कलाई थामी एक पल के लिए दोनों को ऐसा लगा मानो वो लम्हा वही ठहर गया और बिजली की लहर सी उनके बदन मे दौड़ गयी । दिमाग एकदम से ब्लैंक हो गया पर अगले ही पल सब सामान्य हो गया । कुशाग्र बड़े ही प्यार से ओइलमेंट उसकी कलाई पर लगाने लगा । जबकि कृषिका उलझी हुई निगाहों से एकटक उसे देखने लगी । कुशाग्र का स्पर्श कुछ जाना पहचाना सा लगा उसे और सीने मे मौजूद दिल की धड़कनें बढ़ सी गयी । ऐसा लगा जैसे ऐसा पहले भी कभी हुआ है पर दिमाग पर बहुत ज़ोर देने पर भी उसे कुछ याद न आया । " वैसे तुम जितनी स्ट्रांग और बहादुर हो तुम्हारी स्किन उतनी ही सॉफ्ट और कोमल है । " कुशाग्र की आवाज़ उसके कानों मे टकराई तब कही जाकर वो चौँकते हुए हहोश मे लौटी और हड़बड़ी मे अपनी बाँह पीछे खींचते हुए झल्ला उठी " बकवास बंद करो अपनी वरना मुह तोड़ दूँगी और निकलो अब यहाँ से । " कुशाग्र पीछे हटने के जगह उसके ज़रा करीब आ गया और उसकी निगाहों मे निगाहें डालते हुए गंभीरता से बोला " ये काम तुम्हे उस राहुल के साथ तब करना चाहिए था जब तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ वो करीब आया था । उसकी वो हरकत थप्पड़ नही मुह तोड़ना डिज़र्व करती थी । " इतना कहकर वो पीछे हट गया जबकि कृषिका आँखों कि पुतलियाँ फैलाए आश्चर्य से उसे देखती ही रह गयी । उसकी वो नज़दीकी उसके मन मे खलबली मचा गयी थी । कुशाग्र ने स्माइल पास की और वहाँ से चला गया । पीछे कृषिका अपने ही व्यवहार को देखकर सोच मे पड़ गयी की कुशाग्र ने उसे छुआ , उसके करीब आआया फिर उसने उसे कुछ क्यों नही किया ? उसपर उसे गुस्सा क्यों नही आया और वो कैसा एहसास था जो उसने पल भर के लिए महसूस किया था ? सवाल कई थे पर जवाब एक भी नही । अपने सवालों मे उलझी कृषिका खामोश सी वहाँ बैठी रह गयी । Coming Soon
रात के दस बज रहे थे । कृषिका अपने रूम मे अपने उस आलीशान मखमली बेड पर आलती पालती लगाए बैठी थी और एकटक अपनी उस कलाई को देख रही थी जिसे पहले राहुल ने पकड़ा था और बादमे कुशाग्र ने उसपर क्रीम लगाई थी । हालांकि क्रीम असरदार थी । अब निशान पूरी तरह से मिट चुका था पर वो एहसास उसके मन ही गहराइयों मे बस चुका था । म्युज़िक रूम से निकलकर वो कैब लेकर सीधे घर चली आई थी । आकर दो तीन घंटे जमकर सोई । सिद्धार्थ ने आकर उसे उठाया और तब तक मूड बिल्कुल ठीक हो चुका था । कुछ देर पहले तक सिद्धार्थ के ही पास थी । दोनों भाई बहन आइसक्रीम खाते हुए मूवी देख रहे थे और साथ ही बातें हंसी मज़ाक और मस्ती भी जारी थी पर तन्हाई आते ही वो ख्याल फिर उसके दिलो दिमाग पर हावी होने लगे थे । कृषिका कुछ पल अपनी कलाई को घूरती रही फिर सर झटकते हुए बुरा सा मुह बनाया और पेट के बल बेड पर पड़ गयी । कुछ ही देर मे वो नींद की आगोश मे समा गयी और बंद पलकों के बीच कुछ धुँधली तस्वीरें उभरने लगी । कोई राजसी महल , एक लड़की , एक लड़का , बिल्कुल आज जैसा सीन । उस लड़की की कलाई पर वो लड़का कुछ लगा रहा था । किसी फिल्म की रील जैसे कुछ धुंधली तस्वीरें उसकी आँखों के सामने से गुज़र रही थी , कुछ आवाज़ें भी आ रही थी , कुछ लोग की आँखों के सामने नाच रहे थे पर कृषिका कुछ भी समझ नही पा रही थी । सब कुछ धुंधला होने के कारण कुछ ठीक से नजर भी नही आ रहा था । आवाज़ें जैसे आपस मे घुलती जा रही थी इसलिए क्या कहा जा रहा था कुछ भी समझ नही आ रहा था । नींद मे ही कृषिका के माथे पर सिलवटें पड़ने लगी । मानो दिमाग पर ज़ोर डाल रही हो । अगले ही पल आँखों के सामने किसी की खून से सनी लाश आ गयी और वो चौँकते हुए झटके से उठकर बैठ गयी । भय से आँखों की पुतलियाँ फैल गयी थी और घबराहट के मारे पूरा चेहरा पसीने से भीग गया । साँसें उखड़ने लगी थी । उसने सीने पर अपनी हथेलियों को रखते हुए अपनी थमती साँसों को बहाल किया । फिर अपनी हथेली से चेहरे के पसीने को पोंछते हुए बोली " क्या था ये ? अचानक ऐसा अजीब सा सपना क्यों आया मुझे ? इतनी घबराहट क्यों हो रही है ? ऐसा तो पहले कभी नही हुआ । " कृषिका खुदमे ही उलझी हुई थी । कुछ देर तक वो परेशान सी खुदमे ही उलझी हुई थी अपने सपने को याद करने लगी पर अब बस चंद लम्हें ही याद थे उसे । वो खून से सनी लाश उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और घबराहट सर पर सवार थी । उसने जल्दी से साइड मे रखे जग से ग्लास मे पानी डालते हुए उसे अपने लबों से लगा लिया । एक सांस मे पूरा पानी पीने के बाद उसने खुदको शांत किया । सोने के लिए हिम्मत करके दोबारा लेटी पर अगले ही पल घबराकर उठकर बैठ गयी । वो खून से सनी लाश उसके ज़हन से जा ही नही रही थी । उसने जल्दी से अपने पैरों को बेड से नीचे उतारा और स्लीपर्स पैर मे घुसाते हुए कमरे से बाहर निकल गयी । इस अंधेरी रात मे ड्राविंग रूम की सिलिंग पर लगे बड़े से झूमर की झिलमिलाती रोशनी चहु ओर बिखरी हुई थी । उसी रोशनी के सहारे कृषिका ने कदम सिद्धार्थ के कमरे कि ओर बढ़ा दिये । सिद्धार्थ अपने रूम मे बैड पर बैठा सामने रखे लैपटॉप मे प्रेज़ेनटेशन तैयार कर रहा था जब अचानक ही उसका दरवाजा खुला और साथ ही कृषिका की धीमी सी आवाज़ भी आई " भैया " रात की उस पहर से , आस पास फैले सन्नाटे मे उसकी वो धीमी सी आवाज़ गूंज उठी और सिद्धार्थ के कीबोर्ड पर तेज़ी से चलती उंगलियाँ ठहर गयी । उसने बिना एक पल गंवाए झट से लैपटॉप सामने रखा और स्लीपर्स पैर मे घुसाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ गया । उसने जैसे ही दरवाजा खोला कृषिका किसी छोटी बच्ची जैसे उसके सीने स लिपट गयी जिससे सिद्धार्थ जो इस वक़्त उसे यहाँ देखकर हैरान परेशान था , उसके माथे पर बल पड़ गए और चेहरे पर चिंता व् फिक्र के बादल घिर आए । उसने तुरंत ही कृषिका को अपनी बाहों मे थाम लिया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए चिंतित स्वर मे बोला " क्रिशु क्या हुआ बेटा ? तु इतनी रात को यहाँ ऐसे क्या कर रही है ?....... सब ठीक तो है गुड़िया ?......... बता अपने भाई को क्या हुआ है ?......... " क्रिशु जो उसके सीने मे अपना सर छुपाए खड़ी थी । उसने उसकी आवाज़ मे अपने लिए चिंता और फिक्र महसूस की तो खुदको संभालते हुए उसके सीने से सर निकालकर उसे देखा और निचला होंठ बाहर निकाले , क्यूट सी शक्ल बनाकर टिमटिमाती आँखों से उसे देखते हुए उदास और मायूस लहज़े मे बोली " मैंने एक बैड ड्रीम देखा भैया और मुझे फिर नींद नही आई । उसमे एक लाश थी भैया और चारों तरफ खून फैला हुआ था । मैं बहुत डर गयी थी भैया और बचपन मे जब मैं नाइटमेयर से डर जाती थी तो आप मुझे संभाल लेते थे और आपने कहा था की जब भी मुझे कोई बुरा सपना आए मैं बेझिझक आपके पास आ जाऊँ इसलिए मैं आपके पास आ गयी । " " अच्छा किया तु मेरे पास आ गयी । चल आता मैं तुझे सुला दूँ । तेरे भाई के होते तुझे कोई बुरा सपना नही आएगा । आजा । " सिद्धार्थ ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसको शांत किया और उसे अंदर लाकर दरवाजा बंद कर दिया । उसने कृषिका को बेड पर बिठाकर उसे पानी दिया , फिर अपना लैपटॉप बंद करके साइड मे रख दिया । खुद उसके पास आलती पालती मारकर बैठ गया और क्रिशु भी बेझिझक जैसे बचपन मे उसकी गोद मे सर रखकर सुकून की नींद ले लिया करती थी । वैसे ही आज भी उसने सिद्धार्थ की गोद मे सर रखा और सिमटकर लेट गयी । इस वक़्त वो बिल्कुल छोटे से बिल्ली के बच्चे जैसी लग रही थी जो ठंड से सिकुड़कर खुदमे सिमटकर लेटा हुआ था । सिद्धार्थ प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगा । उसके स्नेह भरे आत्मीय स्पर्श को महसूस करते हुए धीरे धीरे कृषिका का दिल और दिमाग दोनों ही एकदम से शांत हो गए । बाकी सब बातें उसके ज़हन से मिटती चली गयी और मन सुकून से भर उठा । जल्दी ही वो वापिस नींद की आगोश में समा गयी । सिद्धार्थ को जब विश्वास हो गया की कृषिका सो गयी है तो उसने धीरे से उसके सर को अपनी गोद से हटाकर पिलो पर रखा । उसे ब्लैंकेट से ठीक से कवर किया फिर नॉर्मल लाइट ऑफ करके नाइट बल्ब जला दिया । अपना लैपटॉप उठाया और सोफे के पास वाले लैंप को जलाकर अपने काम मे लग गया । कुछ देर बाद फ्री हुआ तो जाकर कृषिका के बगल मे लेट गया । अभी कुछ लम्हें ही बीते थे की कृषिका नींद मे उससे कुछ इस प्रकार लिपटी जैसे छोटी बच्ची अपनी मां के आँचल से लिपटती है । सिद्धार्थ ने भी अपनी छोटी बहन को अपने सीने से लगा लिया और प्यार से उसके सर को चूमते हुए अपनी आँखों को मूंद लिया । दूसरे तरफ कुशाग्र भी अपने रूम मे बेड पर लेटा हुआ था । हल्के म्युज़िक की आवाज़ कमरे मे गूंज रही थी और दिलों दिमाग पर कृषिका को हावी किये वो सिलिंग को तक रहा था । कृषिका उसके लिए एक पहेली सी बन गयी थी। .... पहेली ....... हाँ पहेली ही तो थी वो । बोल्ड थी , कॉन्फिडेंट थी , निडर थी , स्ट्रांग थी , एक अलग ही औरा था उसका जो उसके व्यक्तित्व पर सूट ककरता था । किसी से नही डरती थथी वो और जैसे को तैसा जवाब देती थी । चाहे वो उसकी तीखी ज़ुबान हो या लड़ाका वाला अवतार । पर ये उसका एक रूप था जो वो दुनिया को दिखाती थी । उसके अलावा भी उसका एक रूप था जो कुशाग्र ने उस पहली मुलाकात मे देखा था । वो कोमल व्यक्तित्व । वो उदास दर्द से सना चेहरा , वो सुनी नम आँखे जिसमे एक शिकायत थी, एक खलिश थी , एक विरानी थी और एक दबी घुटी सी चाहत थी । एक और रूप था उसका जो बाकी दोनों से बिल्कुल उलट था । वो रूप जो उसने कई बार तब देखा था जब सिद्धार्थ उसे लेने या छोड़ने आया था । देखा था उसने कि कैसे वो अपने भाई के साथ एक अलग ही कृषिका बन गयी थी । वो स्वीट सी इनोसेंट , क्यूट सी लड़की । जो हंसती है जो जैसे फ़िज़ा महकती है , जिसके लब जब मुस्कुराते है तो हज़ारों फूल खिल उठते है । जिसकी आँखों शरारत से चमकती है और भावहीन चेहरे पर भावनाओं के कई रंग बिखरते है । कभी वो खुश होती है तो भरे भरे गाल गुलाबी हो उठते है , नाराज होती है तो नाक सिकोड़ाती है , गुस्सा करती है तो नीली नीली आँखो को छोटा छोटा करके घूरती है । ये उसका सबसे अलग और मनमोहक रूप था जो सिर्फ सिद्धार्थ के सामने ही दिखता था मानो उसके सामने वो अपने सख्ती के खोल से बाहर निकलती थी । तब वो कृषिका मल्होत्रा नही अपने भाई की छोटी बहन बन जाती थी जिसे बस अपने भाई का प्यार चाहिए होता था । कुशाग्र कृषिका के बारे मे सोचते हुए आज ही हुआ उन सबके बारे मे सोचने लगा । ज़हन मे वो लम्हा कौंध गया जब उसने कृषिका की कलाई को थामा था । वो स्पर्श अलग सा था । वो एहसास जो उसने जस वक़्त महसूस किया था उसे अब तक याद था । एक अलग ही एहसास था जो उसने पहले कभी किसी के लिए महसूस नही किया था । वक़्त जैसे उस लम्हे मे ठहर गया था । " क्या हो तुम मिस कृषिका मल्होत्रा ? तुम्हारा कौनसा रूप असली है ? मैंने तुम्हारी जैसी लड़की आज तक नही देखी । ऐसा लगता है जैसे जगह और लोगों के हिसाब से तुम अपना रूप रंग , व्यवहार बदलती हो और तुम्हारा हर रूप मुझे तुम्हारी और आकर्षित करता है । उस दिन हुई पहली मुलाकात से तुम गहरा असर छोड़ती हो मुझपर । इनटैंशनली हो या फिर अनइनटैंशनली पर तुम मेरे दिलो दिमाग पर हावी रहती हो । तुम मुझे अपने करीब आने नही देती और तुम्हारा ख्याल ज़हन से जाता नही । तुम जाने क्यों मुझसे पहली मुलाकात से इतना चिढ़ती हो और एक मैं हूँ की पहली मुलाकात से खुदको तुम्हारी ओर खिंचता महसूस करता हूँ और चाहकर भी तुम्हारी ओर बढ़ने से खुदको रोक नही पाता । तुम हर बार अपने तीखे शब्दों और एक्शंस से सिर्फ मेरी इंसल्ट करती हो पर जाने क्यों लेकिन मुझे बुरा नही लगता और हर बार दिल तुम्हारी ओर झुकने लगता है । तुम्हारी जगह अगर कोई और होती तो एक पल मे उसको उसकी जगह दिखा देती । कभी पलटकर देखता तक नही उसे पर ये निगाहें तुम पर से हटती ही नही है । तुम्हारे लाख रुस्वाई के बावजूद ये दिल तुम्हे ही पुकारता है , निगाहें तुम्हे ही पुकारती है । जाने ये कैसी अनदेखी डोर है जो मुझे तुमसे जोड़ती है । पता नही क्यों पर तुमहारा बहुत गहरा असर होता है मुझपर । तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे लबो पर मुस्कान ले आती है , तुम्हारा गुस्सा मेरा दिल जलाता है , तुम्हारी हंसी मेरे दिल को सुकून पहुँचाती है , जब कोई तुम्हे परेशान करता है तुम्हारे आस पास घूमता है तो दिमाग गुस्से से भर जाता है । जब कोई तुम्हे छूता है तो खून खौलता है मेरा , मन करता है कि जान से मार दूँ उसे , तुम्हारी उदासी मेरे दिल को तड़पाती है , तुम्हारे आँसू मुझे बेकरार कर जाते है , तुम्हारी चुहलबाजियाँ अनजानी सी खुशी दे जाती है । तुम्हारा मुझसे चिढना भी पसंद है मुझे । गुस्से मे मुझे अपनी नीली नीली आँखों से घूरना ,तुनकर जवाब देना , धमकाना , एटिट्युड दिखाना , बेधड़क मुझसे टकराना सब पसंद है मुझे । तुम्हारी हर अदा पर फ़िदा हूँ मैं । दिल मचलता है मेरा तुमसे बात करने को , तुम्हारे आस पास रहने की चाहत होती है पर तुम मुझे बिल्कुल पसंद नही करती । तुम्हे अपने दिल के हाल से रूबरू भी नही कर सकता वर्ना तुम्हे लगेगा की लाइन मार रहा हूँ तुमपर । उफ्फ सच कहते है लोग ये इश्क़ नही आसान बस इतना समझ लीजिये एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है । ....... ये इश्क़ मोहब्बत प्यार अच्छे से अच्छे इंसान को भी दीवाना बना देता है । ... " आँखों मे जज़्बे और लबों पर दिलकश मुस्कान समेटे कुशाग्र काफी देर तक कृषिका के बारे मे सोचता रहा फिर उसने अपनी बाँह को मोड़कर अपनी आँखो को ढक लिया और सोने की कोशिश करने लगा । कुछ वक़्त गुज़रा और वो नींद की आगोश मे समा गया । जैसे जैसे नींद गहरी होती जा रही थी । उसके ज़हन पर कुछ धुंधली तस्वीरें हावी होने लगी । कुछ वैसी ही जगह , वैसी ही धुंधली यादें , वैसी ही अजीब अजीब आवाज़ें पर शायद कुशाग्र को इन सबकी आदत थी इसलिए वो आराम से सोता रहा । Coming Soon
" दीपु जल्दी कर यार लेट हो रहा है । " डाइनिंग टेबल पर बैठा कुशाग्र ने सीढ़ियों कि ओर देखते हुए तेज़ आवाज़ में उसे पुकारा । पिछले दस मिनट से वो नाश्ते के इंतज़ार मे ड्राविंग रूम के सोफे पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था । आज देवेश जी काम से जल्दी ऑफिस चले गए थे और अब दिपु को कॉलेज लेकर जाने की ज़िम्मेदारी कुशाग्र के कंधों पर आ चुकी थी । बस इसलिए साहबज़ादे इंतज़ार मे बैठे थे पर दिपु मैडम तो आने को तैयार ही नही थी मानो उसके सब्र का इंतेहान ले रही हो । " बस आ गयी " हर बार कि तरह दिपु के जगह बस उसकी आवाज़ आई और खींझते हुए कुशाग्र ने अपनी भौंहों को मसल डाला । अफसोस मे सर हिलाते हुए उसने अब खुदसे जाकर उसे लाने का फैसला किया क्योंकि और इंतज़ार करना उसके बस मे नही था । पर जैसे ही पलटा जल्दी जल्दी सीढ़ियों को फांदते हुए नीचे आती नजर आई । सामने खड़े कुशाग्र से नज़रें मिलते ही दीपिका मुस्कुराई और ध्यान सीढ़ियों पर से हट गया । अगले ही लम्हा मेंढकों जैसे फुदकते हुए उससे अंजाने तौर पर उससे एक सीधी स्किप हो गयी और ये देखते ही कुशाग्र हवा की रफ्तार से उसकी ओर दौड़ गया । पहले तो दीपिका भी डर गयी थी पर जल्दी ही उसने रेलिंग का सहारा लेते हुए खुदको संभाल लिया । जिससे गिरने के जगह वो धम्म दिनी सीढ़ी पर जा बैठी । गिरने के भय से दीपिका की साँसे थम गयी थी और सीने मे मौजूद दिल ज़ोरों से धड़क उठा था । अभी उसकी अटकी साँसे बहाल भी नही हुई थी की दौड़ता हुआ कुशाग्र उस तक पहुँच गया " तु ठीक तो है ? कहीं लगी तो नही तुझे ? " कुशाग्र ने उसके कंधों को थामते हुए उसको सीधा किया । उसकी आवाज़ मे दीपिका के लिए उसकी चिंता फिक्र , परवाह , प्यार और डर झलक रहा था । दीपिका जो गहरी गहरी साँसें ले रही थी । उसने सर उठाकर कुशाग्र को देखा और सर हिला दिया " न....... नही .... कही नही लगी । बच गयी मैं । " गिरने दीपिका वाली थी पर साँसे कुशाग्र की थम चुकी थी । दीपिका को सही सलामत देखकर उसने चैन की सांस अपने सिकुड़ते फेफड़ों मे भरी और अगले ही पल नाराज़गी से उसपर भड़क उठा " दिपु क्या चाहती है तु मुझसे ? ध्यान कहाँ रहता है तेरा ? देखकर क्यों नही चलती ? एक दिन भी यू बिना अपनी तोड़ फोड़ किये इंसानों जैसे नही रह सकती ? हर बार अपनी इन लापरवाह हरकतों से खुदको चोट पहुँचाना और मुझे तकलीफ पहुँचाना क्या ज़रूरी है ? " एक तो गिरने का डर उसपर कुशाग्र की नाराज़गी । दीपिका की बड़ी बड़ी आँखों मे मोटे मोटे आँसू भर गए ।उसने अपनी आँखों को पलको को पहरा लगा लिया और मुह बिचकाते हुए धीमे स्वर मे बोली " Sorry ...... मेरा ध्यान तुझकर चला गया था । " " तेरे सॉर्री का क्या मुरब्बा बनाऊँ मैं ? मालूम भी है तुझे गिरते देखकर साँसें अटक गयी थी मेरी , इतना घबरा गया था , अगर तु अभी गिर जाती और तुझे चोट लग जाती तो क्या तेरे इस सॉर्री से वो ठीक हो जाती ? " कुशाग्र उसे लेकर कुछ ज्यादा ही पोजेसिव और प्रोटेक्टिव था । गुस्से और नाराज़गी मे वो एक बार फिर उसपर भड़क उठा । इस बार दीपिका ने पलटकर कोई जवाब नही दिया । बस सर झुकाए बैठी रही । कुश के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर किचन से जानवी जी निकलकर वहाँ चली आई थी । कुश को दीपिका पर चिल्लाते देखकर उनके माथे पर बल पड़ गए और उन्होंने चिंता भरे स्वर मे सवाल किया " कुश क्या हुआ बेटा ? दिपु को सुबह सुबह क्यों डांटने लगे तुम ? " उनका सवाल सुनकर कुश जो नाराज़गी भरी निगाहों से से दीपिका को घूर रहा था । वो आवाज़ की दिशा मे पलटा और पीछे खड़ी जानवी जी को देखकर नाराज़गी और गुस्से से मिले जुले भाव से सवाल दिया " मुझसे क्या पूछ रही है मोम ? अपनी लाडली बेटी से पूछिये कि क्यों सुबह सुबह इसको डाँट कर मुझे अपना खून जलाने की ज़रूरत पड़ रही है । " " दिपु क्या हुआ बेटा ? कुश इतना नाराज क्यों हो रहा है और तुम सीढ़ियों पर ऐसे क्यों बैठी हो ? " जानवी जी ने अब दीपिका का रुख किया और प्यार मोहब्बत से उससे सवाल किया क्योंकि उसे और डराना नही चाहती थी । दीपिका ने सर उठाकर उन्हे देखा और रुँधे स्वर मे बोली " जल्दी मे सी.......... सीढ़ी उतर र ....... रही थी ...... त ......... तो ....... एक सीढ़ी ..... छू ....... छुट गयी ........ चोट ...... चोट नही लगी पर कुश नाराज हो गया । " दीपिका ने सुबकते हुए टूटे फूटे शब्दों मे पूरी बात जानवी जी को बता दी । जब उन्होंने वजह जानी तो अफसोस से अपना सर थाम लिया फिर दीपिका के पास चली आई और उसके आँसुओं को पोंछते हुए परेशान सी बोली " ओफ्फो बेटा ध्यान क्यों नही रखती आप अपना और अब इतनी रो रोकर अपनी जान आफत मे डाली हुई है । कुछ नही हुआ , चलो शाब्बास् चुप हो जाओ । ऐसे ज़रा ज़रा सी बात पर रोते नही और आगे से ध्यान रखना । " उन्होंने दीपिका को बड़े ही प्यार से संभाला और उसे अपने सीने से लगा लिया । दीपिका संभली तो उन्होंने उसको उठाकर खड़ा किया और कुश कि तरफ निगाहें घुमाते हुए नाराज़गी से बोली " तुम भी हद करते हो कुश । जानमुचकर थोड़े न गिरी थी । हो जाती है गलती उससे और तुम हमेशा डांटते रहते हो उसे । कभी प्यार से भी समझा लिया करो । जानते हो कितनी इमोशनल है ये । एक तो गिर गयी ऊपर से तुमने सुबह सुबह इतना रूला दिया इसे । " कुश जो पहले दीपिका की लापरवाही और फिर उसका रोना धोना देखकर बुरी तरह फ्रस्टेट हो चुका था । जानवी जी की बात सुनकर वो खींझते हुए बोल पड़ा " गिरने पड़ने , खुदको हार्म करने , चीजों का नुकसान करने और रोने के अलावा कुछ आता है आपकी लाडली को ? हज़ार बार कहा है की संभलकर रहा करे , भगवान् ने जो दो दो आँखे और एक दिमाग दिया है उसको खुला रखा करे । अंधी बनकर खुदको हार्म न करती फिरा करे पर इसे कभी कुछ समझ आता है ? हर आर वही गलती , वही लापरवाही और जो मैडम को कुछ कह दो तो बस रोना शुरू । इमोशनल नही इमोशनल फूल है ये लड़की । इतना नाज़ुक दिल लेकर इस दुनिया मे सर्वाइव नही कर सकेगी ये । खुदसे खुदको नही बचा पाती तो किसी और की तो बात ही छोड़ दीजिये । " " कुश " जानवी जी ने उसे टोका । कुश ने अब घुरकर दीपिका को देखा और हल्के गुस्से से बोला " नही कहता मैं कुछ और आगे भी कुछ नही कहूंगा पर अपनी इस नाज़ुक कली को ज़रा समझाइये कि अपना ध्यान रखा करे , थोड़ा स्ट्रांग बने । ... नाज़ुक कलियों को कोई भी बने आसानी से तोड़कर मसल देता है । और कुछ नही तो अपनी दोस्त से ही कुछ सीख ले । " कुश ने अपनी बात कही और गुस्से मे दनदनाते हुए वहाँ से चला गया । जानवी जी और दीपिका बस उसे देखते ही रह गए । " इस लड़के के टैम्परमेंट से तो मैं बहुत परेशान हूँ। नाक पर गुस्सा रहता है इसके। " जानवी जी ने जाते हुए कुश को देखते हुए मन ही मन कहा फिर दीपिका को देखते हुए बोली " बेटा ध्यान रखा करो थोड़ा । गलत तो नही कहता वो । " " सॉर्री मम्मा । " दीपिका ने मुह बिचकाते हुए मायूसी से अपनी गलती की माफी मांग ली । उसका उदास मुरझाया हुआ चेहरा देखकर जानवी जी ने अब प्यार से उसके गाल को छुआ और मुस्कुराकर बोली " बहुत प्यार करता है तुमको । अभी गुस्सा होकर गया है और थोड़ी देर बाद ही मान जाएगा । तुम उदास मत हो । " " हूँ " दीपिका ने हूँकारी भर दी । जानवी जि ने अब कुश की कही बात याद करते हुए सवाल किया " दिपु कुश कृषिका की बात कर रहा था ? " " हूँ । एक वही तो दोस्त है मेरी। वो बहुत स्ट्रांग है , सुपर कूल है और बोल्ड भी बहुत है । किसी से भी नही डरती , बेधड़क किसी से भी टकरा जाती है , ज़ुबान तो इतनी तीखी है की एक बार मे सामने वाले का मुह बंद कर दे । किसी की हिम्मत नही होती उससे टकराने या कुछ कहने की । सुंदर भी बहुत है पर ज़रा भी घमण्ड नही उसमे । मेरे साथ तो बहुत अच्छे से रहती है पर किसी लड़के को अपने इर्द गिर्द भटकने भी नही देती । ज्यादा बोलती भी नही है और मेरे अलावा किसी से उसकी दोस्ती भी नही । मेरी तो बेस्ट फ़्रेड बन गयी है वो । " कृषिका का ज़िक्र करते हुए दीपिका की खुशी देखने लायक थी। अपनी सारी उदासी भूल गयी थी वो और उसकी बातों से उनके रिश्ते की गहराई का अंदाज़ा लगाया जा सकता था । कृषिका के कई कारनामे तो उसने जानवी जी को भी बताए थे । उसकी बातें सुनकर जानवी जी मुस्कुरा उठी और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली " आप भी कुछ सीख लीजिये उनसे । आज के ज़माने मे अपने लिए खड़ा होना , आवाज़ उठाना और लड़ना आना बहुत ज़रूरी है । कोई और आपकी जंग नही लड़ सकता और जो कमज़ोर होता है उसे सब दबाने की कोशिश करते है । इतनी मासूमियत के साथ इस दुनिया मे जीना बहुत मुश्किल है । " दीपिका ने बस खामोशी से उनकी बात सुनी। पलटकर कोई जवाब नही दिया । दोनों डाइनिंग एरिया मे पहुँचे तो कुश अपना टोस्ट खा रहा था और पास ही उसका जूस का ग्लास भी रखा हुआ था । जानवी जी ने आँखों से उसे कुछ इशारा किया तो दीपिका सर हिलाते हुए उसके बगल में जाकर खड़ी हो गयी और अपने कान पकड़ लिया " Sorry भाई , मैं आगे से ध्यान रखूंगी । " बस इतनी मोहब्बत से उसके मुह से भाई सुनकर कुश का दिल मोम जैसे पिघल गया । चाहकर भी वो उससे और नाराज न रह सका। उसने दीपिका की ओर निगाहें घुमाई और मुह बनाते हुए बनाते हुए बोला " तेरी चालाकियाँ खूब समझता हूँ मैं । चल जजा माफ किया तुझे पर आगे से ध्यान रखना और ये बात बात पर आँसू बहाना ज़रा कम कर दे । वरना किसी दिन तेरे आँसुओं से हमारे घर मे बाढ़ आ जाएगी और हम सब उसमे बह जाएंगे । " कुश ने ताना मारते हुए उसका मज़ाक उड़ाया जो दीपिका को ज़रा भी पसंद न आया वो दोनों गालों को गुब्बारे जैसे फुलाए नाराज़गी से उसको घूरने लगी " सीरियसली कह रहा हूँ पगली । इंसान को इतना भी लापरवाह और इमोशनल नही होना चाहिए । थोड़ा स्ट्रांग बन , खुदको बेहतर बना । समझी ....चल आजा बैठकर नाश्ता कर वरना कॉलेज के लिए लेट हो जाएंगे । " अबकी बार कुश ने गंभीरता से उसे समझाया फिर उसे अपने बगल वाली चेयर पर बिठा लिया। जानवी जी उसके लिए चीज़ सैंडविच ले आई । दोनों ने साथ बैठकर नाश्ता किया फिर कॉलेज के लिए निकल गए । दूसरे तरफ कृषिका भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी । आज उसने ब्लैक रफ जीन्स पहनी थी जो घुटने पर से रफ्फु थी , साथ मे वाइट Bardot क्रॉप टॉप पहना था जिसकी कमर पर टाई बंधी थी । थ्री फोर्थ पफ स्लीव थी । उसके दूधिया बदन पर ब्लैक और वाइट का वोम्बिनेशन बहुत प्यारा लग रहा था । सुनहरे बालों को हाई पोनि में बांधा हुआ था , चेहरे पर कोई मेकअप नही , बस गुलाबी लब पर सेम कलर का लिपग्लोस लगाया था । बाकी बिल्कुल सिंपल थी फिर भी बहुत खूबसूरत लग रही थी कमी थी तो उन गुलाबी लबों पर मुस्कान की और उन समुद्र सी गहरी नीली आँखों मे खुशी के उमंग की। हमेशा जैसा सपाट चेहरा , सुनी आँखे और सिमटे लब । शीशे में एक नजर खुदको देखने के बाद उसने अपनी वॉच कलाई के हवाले की और शूज़ पहनते हुए अपना बैग कंधे पर टाँग लिया । आगे बढ़ते हुए उसके कदम ठिठके और निगाहें उस कलाई पर चली गयी जिसे कल पहले राहुल ने पकड़ा था और बादमे कुशाग्र ने दवाई लगाई थी । पल भर को उसकी आँखों के सामने वो दृश्य आ गया जब कुशाग्र ने उसे दवाई लगाई थी पर अगले ही पल वो सर झटकते हुए आगे बढ़ गयी । सीढ़ियां उतरते हुए उसने लगभग पूरे हॉल मे निगाहें घुमाई फिर भटकती निगाहें ग्राउंड फ्लोर पर बने उस कमरे के तरफ चली गयी जहाँ जाने की इज़ाज़त नही थी उसे । उदासी की एक रेखा उसके चेहरे पर आई पर अगले ही पल बेफिक्री से आगे बढ़ गयी । आज फिर उम्मीद टूटी थी उसकी पर उसने खुदको संभाल लिया था । हॉल से गुजरते हुए वो डाइनिंग एरिया मे पहुँची तो सिद्धार्थ पहले से वहाँ मौजूद उसका इंतज़ार करते हुए न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था । कृषिका ने एक नजर उसे देखा फिर अपनी चेयर पीछे खींचकर उसपर बैठते हुए मज़ाकिया लहज़े मे बोली " अब बेचारे न्यूज़ पेपर को रिहाई दे दीजिये भैया वरना आपके अत्याचारों से उकताकर बेचारा दहाड़े लगा लगाकर रोने लगेगा और हमारे घर मे सुनामी आ जाएगी । " कृषिका की बात सुनकर सिद्धार्थ ने न्यूज़ पेपर को मोड़कर साइड मे रखा और उसे देखकर मुस्कान दिया " लो आपका आदेश सर आँखों पर । हमारी गुड़िया ने न्यूज़ पेपर पर दया दिखाई और हमने उसे आज़ाद कर दिया । चलो अब जल्दी से नाश्ता करे फिर तुम्हें कॉलेज छोड़ना है , उसके बाद मेरी एक मीटिंग भी है । " मीटिंग का सुनकर कृषिका ने बुरा सा मुह बनाया जिसे देखकर सिद्धार्थ हँस पड़ा । सर्वेंट ने दोनों का नाश्ता सर्व किया और बातों के बीच नाश्ता करने के बाद दोनों घर से निकल गए । Coming soon
" भैया मैं सोच रही थी की एक स्पोर्ट बाइक ले लूँ अपने लिए। " फोन मे गेम खेलने मे मगन कृषिका ने जैसे ही ये कहा । कार ड्राइव करते सिद्धार्थ ने तुरंत ही निगाहें उसकी ओर घुमाई " वो क्यों भला ? " " मुझे अच्छा नही लगता कि आप रोज़ रोज़ मुझे छोड़ने जाते है और वापसी मे ड्राइवर को फोन लगाकर बुलाना पड़ता है । मुझे आती तो है इतने अच्छे से बाइक चलानी तो मुझे एक बाइक दिला दीजिये ताकि मैं खुदसे कॉलेज आ जा सकूँ । फिर आपको रोज़ रोज़ परेशान नही होना पड़ेगा । " " मुझे तो तब भी तुम्हे रोज़ कॉलेज ड्रॉप करने की ज़हमत नही उठानी पड़ेगी अगर मैं ड्राइवर के साथ तुम्हे भेजा करूँ पर मुझे अच्छा लगता है तुम्हे ड्रॉप करने आना । वैसे भी तुम भूल गयी हो पर अब तक मैं नही भूला हूँ की पिछली बार क्या कांड किया था तुमने इसलिए चुपचाप मेरी बात मानो । " इस बार सिद्धार्थ ने पहले संजीदगी और अंत तक आये आते सख्ती इख़्तेयार की । उसकी बात सुनकर कृषिका के चेहरे पर लम्हे भर के लिए एक काला सांया आकर गुज़र गया । अगले ही पल उसने निगाहें चुराते हुए बेचारगी से कहा " भैया वो एक हादसा था जो उस सुअर की औलाद के कारण हुआ था , वरना मैं बहुत ध्यान से चलाती हूँ । अब कोई अचानक सामने आ जाए तो ऐसी गड़बड़ हो ही जाती है । " " यही तो मैं तुझे समझाना चाह रहा हूँ कि बात तुझे छोड़ने या लेने आने की नही तेरी सेफ्टी की है जिसमे मैं कोई कंप्रोमाइज् नही कर सकता । याद है तुझे उस वक़्त तेरी बाइक डिवाइडर से टकरा गयी थी और कितनी चोट आई थी तुझे , क्या गॅरेंटि है की वैसा हादसा दोबारा नही होगा ? इसलिए मैं अलर्ट रहना चाहता हूँ ताकि दोबारा ऐसी नौबत ही न आए । अब इस बात पर हमारी और कोई बात नही होगी । मैं तुम्हे छोड़ने आऊंगा और ड्राइवर लेने ये बात तय रही । " पहले तो सिद्धार्थ ने उसको प्यार से समझाया फिर अंत मे सख्ती इख़्तियार करते हुए अपना फैसला सुना दिया । कृषिका मुह बनाकर रह गयी । एक बार की गलती के बाद से उसपर ये पाबंदी लग गयी तो जो दो साल बाद भी खत्म नही हुई थी और सिद्धार्थ की बात मानने के अलावा उसके पास कोई और रास्ता तक नही था । उसने नाराज़गी से मुह फुलाते हुए उस शक्स को मन ही मन सौ गालियाँ सुनाई फिर अपना ध्यान वापिस गेम मे लगा दिया । दीपिका कॉलेज से कुछ दूर पर ही बाइक से उतर गयी थी क्योंकि नही चाहती थी की किसी को भी उसके और कुशाग्र के रिश्ते पर किसी तरह का कोई शक हो या किसी को उनके रिश्ते की हकीकत पता चले । दीपिका आगे बढ़ गयी जबकि कुशाग्र समीर के साथ उसके कॉलेज मे एंट्री करने का इंतज़ार करने लगा । अपनी धुन मे मगन दीपिका चहकते हुए कॉरिडोर से गुजरते हुए अपनी क्लास के तरफ बढ़ रही थी तभी कुछ आवाज़ें उसके कानों से टकराई " यार तु कल नही आई थी न तूने कितना मज़ेदार सीन मिस कर दीया । " " ऐसा क्या हुआ कल ? " " पूछ मत यार कल क्या हुआ । बताने मे वो मज़ा नही जो लाइव देखने मे था पर मैंने रिकॉर्ड किया था । रुक मै दिखाती हूँ तुझे । " दीपिका ने सर घुमाया तो उसके बगल मे दो लड़कियां चल रही थी । पहली वाली लड़की ने अपना फोन निकालकर उसके तरफ बढ़ा दिया तो वो गौर स उसमे चलती वीडियो देखने लगी । उस वीडियो से आती जानी पहचानी आवाज़ ने दीपिका का ध्यान भी अपने तरफ खींचा । पूरी वीडियो देखने के बाद उस लड़की ने बड़ी ही दिलचस्पी और एक्साइटमेंट के साथ आगे कहा " देखा कृषिका का ये बुलंद अंदाज़ । क्या सबक सिखाया उसने उस सीनियर को । एक बार मे क्लीन बोल्ड कर दिया था । तु देखती न तो कसम से फ़िदा हो जाती उसपर । क्या सबक सिखाया उसने उस सीनियर को , ज़िंदगी भर ये शिकस्त नही भूलेगा और दोबारा किसी लड़की के साथ ऐसी घटिया हरकत करने की ज़ुर्रत नही करेगा । " उस लड़की की बात पर दूसरी लड़की ने नाराज़गी ज़ाहिर की " क्या बकवास कर रही है ? तु कृषिका कि इस हरकत को बढ़ावा कैसे दे सकती है ? देख कितनी बुरी तरह ट्रीट किया है उसने उस सीनियर को । " " तो उसने हरकत की थी ऐसी । पहले तो मुझे कृषिका बिल्कुल पसंद नही थी । घमंडी लगती थी , जाने किस चीज़ का गुरुर था उसे पर कल जो उसने किया उसके बाद तो मैं उसकी फैन हो गयी हूँ । क्या मज़ा चखाया उसने । अब हफ्ते भर तक बेड से उठ भी नही पाएगा , बड़ा आया था सीनियर गिरी दिखाकर बदतमीज़ी करने । " राहुल का ज़िक्र करते ही उसके चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ के भाव उभर आए । उसके बगल वाली ने एक बार फिर उसकी बात पर एतराज जताया " वो इतनी भी शरीफ नही है । देखा नही था कैसे उस सीनियर के आस पास रहती थी , बढ़ावा उसी ने दिया था और अब सारे कॉलेज के सामने उनकी इतनी बेज़्ज़ती करके खुद हीरो बन गयी । " " गलत बोल रही है तु । ध्यान से देखती तो तुझे पता चलता की वो उसे भाव नही देती थी बल्कि वो जबरदस्ती उससे चेप होता था । मैंने अपनी आँखों से देखा है कि हर बार कृषिका कैसे बेज़्ज़ती करते हुए उसको खुदसे दूर करती थी । वो उस सीनियर तो क्या पूरे कॉलेज मे किसी लड़के को भाव नही देती । उसकी कोई प्रॉब्लम है या उसे अपनी खुबसुरती पर कुछ ज्यादा ही गुरुर है इसलिए किसी से सीधे मुह बात तक नही करती ये तो मैं नही जानती पर कल जो उसने किया बिल्कुल सही किया । शुरू उस सीनियर ने ही किया था और उसे अंजाम से वाक़िफ़ करवाना ज़रूरी था । वरना अगर कृषिका चुप रह जाती तो उसकी हिम्मत और बढ़ जाती । कल हाथ पकड़ा था अगली बार बदतमीज़ी करता । ऐसे लोगों को मुह लगाना ही नही चाहिए और ऐसा ही करना चाहिए उनके साथ ताकि उन्हे समसमझ आए की हम कमज़ोर नही है और बदतमीजियाँ खामोशी से बर्दाश्त नही करेंगी । उसने तो एक मिसाल कायम की है । हमें उससे सीखना चाहिए कि कैसे अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए चट्टान के तरह मजबूत बनकर खड़ा होना है । " उन दोनों मे बहस अब भी जारी थी पर दीपिका तेज़ कदमों से वहाँ से जा चुकी थी । क्लास मे पहुँचते ही वो कृषिका के पास आकर बैठ गयी और बैग बैंच पर रखते हुए हल्की नाराज़गी से बोली " मैं एक दिन क्या नही आई , इतना बड़ा कांड कर दिया तुमने । " कृषिका जो शांति से बैठी नोवेल पढ़ रही थी । दीपिका की बात सुनकर उसने नजर घुमाकर उसे देखा और भौंह उचकाते हुए सवाल किया " ऐसा भी क्या कांड कर दिया मैंने जो तुम इतनी हाईपर् हो रही हो ? " " राहुल सर के साथ क्या किया है तुमने ? " दीपिका ने आँखे तरेरकर उसे घूरते हुए सवाल किया । अब कृषिका को बात कुछ हद तक समझ आने लगी थी । उसने बड़ी ही बेफिक्री से जवाब दिया " Oo तो तुम उस कमीने की बात कर रही हो ? उसने काम ही ऐसे किये थे , मेरे साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश की तो अंजाम तो भुगतना ही था । " " पर क्या ज़रूरत थी तुम्हे उससे पन्गा लेने की । अगर उसने तुम्हारी कंप्लेन कर दी तो और अगर आगे चलकर अपनी इस बेज़्ज़ती का बदला लेने के लिए उसने और बदतमीज़ी की तो क्या करोगी तुम ? " अपने नेचर के हिसाब से सीधी साधी दीपिका बड़ी परेशान हो गयी थी और उसे कृषिका की चिंता सताने लगी थी । पर कृषिका पूरी तरह से बेपरवाह थी । उसने उसकी बात हवा मे उड़ाते हुए हल्के फुल्के अंदाज़ मे जवाब दिया " मैं इतनी टेंशन नही लेते बैठती । उस वक़्त मुझे जो सही लगा मैंने किया । अब मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे छूने का गुनाह किया था तो सज़ा तो भुगतनी ही थी । अगर कल मैं उसको सबक नही सिखाती तो उसकी हिम्मत और बढ़ जाती , उसकी बढ़ती बदतमीजियो पर लगाम लगाना बहुत ज़रूरी हो गया था । अब वो दोबारा मुझसे टकराने से पहले एक नही हज़ार बार सोचेगा और मुझे नाज़ुक कली समझने की भूल तो मरते दम तक नही करेगा। " " क्रिशु तु इतनी बेफिक्र कैसे हो सकती है ? तुझे बिल्कुल टेंशन नही हो रही और यहाँ घबराहट और डर के मारे मेरे हाथ पैर फूलने लगे है । " दीपिका ने हैरानी से सवाल किया और घबराई हुई सी उसे देखने लगी । कृषिका ने अब गहरी सांस छोड़ी और गंभीरता से बोली " तुम्हारी प्रॉब्लम ही ये है की तुम बहुत जल्दी घबरा जाती हो और ज़रा ज़रा सी बात पर डर जाती हो । इतनी टेंशन क्यों लेती हो तुम ? मैं हूँ न , मैं सब संभाल लुंगी । वैसे तो कल मैंने जो सबक सिखाया है उसे उसके बाद वो मुझसे दोबारा टकराने की ज़ुर्रत नही करेगा । फिर भी अगर उसने मेरी शिकायत लगाई तो मैं भी मैनेजमेंट को उसकी सारी हरकतें बता दूँगी फिर उसे कॉलेज से रस्टिगेट होने से कोई नही रोक सकता और अगर उसने दोबारा मेरे साथ किसी तरह की कोई बदतमीज़ी करने की या मुझसे बदला लेने की कोशिश की तो अबकी बार वो हाल करूँगी उसका कि दोबारा भूलकर भी मुझसे टकराने की हिम्मत नही करेगा । उसे भी तो पता चले कि उसने किसी ऐरी गैरी लड़की से नही बल्कि कृषिका मल्होत्रा से पंगे लिए है और कृषिका मल्होत्रा किसी से नही डरती । " कृषिका ने आत्मविश्वास से भरे अंदाज़ मे दृढ़ता से जवाब दिया और तिरछी मुस्कान लबों पर सजाते हुए वापिस नोवेल पर अपना ध्यान लगा दिया । दीपिका कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही फिर हैरानी से बोली " क्रिशु तुम इतनी कूल कैसे हो ? तुम वाकई किसी से डर नही लगता ? " कृषिका ने एक बार फिर निगाहें उसकी ओर घुमाई और हौले से मुस्कुरा दी " यहाँ तक पहुँचने के लिए एक लंबा और मुश्किलों भरा सफर तय किया है मैंने । कभी मैं भी तुम्हारे तरह ही थी , मासूम सी , ज़रा ज़रा सी बात पर घबराने वाली पर वक़्त और हालात ने मुझे बदलने पर मजबूर कर दिया । मैंने बहुत छोटी उम्र मे ये सीख लिया था कि अपनी लड़ाई हमें खुद लड़नी होती है , जब तक हम खुद अपनी मदद नही करते भगवान् भी हमारी मदद नही करते फिर इंसानों से क्या ही उम्मीद रखे ? समझ गयी थी मैं की जो जितना डरता है लोग उसपर उतना ही ज्यादा हावी होते जाते है , जो दबता है उसे हर कोई दबाता ही है और कमज़ोरों के लिए इस दुनिया मे कोई ज़रूरत नही है । अपने डर के वजह से बहुत कुछ सहा है मैंने इसलिए ठान लिया की अब कमज़ोर नही पड़ूँगी , अपने हर डर पर जीत हासिल करूँगी ,कभी किसी से नही घबराउंगी , किसी को मौका नही दूँगी मुझे दबाने या मुझपर हावी होने का , इतनी स्ट्रांग बनूँगी की कभी किसी के सहारे की ज़रूरत ही नही पड़ेगी । तुम भी धीरे धीरे सीख जाओगी । " सारे वक़्त कृषिका के लबों पर मुस्कान सजी रही थी पर उन समुद्र ही गहरी नीली आँखों मे बहुत से भाव झलकने लगे थे जिन्हे दीपिका चाहकर भी समझ न सकी । अभी दोनों बात कर ही रहे थे की समीर के साथ कुशाग्र ने क्लास मे एंट्री ली और उसके क्लास मे कदम रखते के साथ ही लड़कियों के बीच उसकी बातें शुरू हो गयी । उसे देखकर वो आहें भरने लगी जिससे दीपिका के साथ साथ कृषिका का ध्यान भी उस तरफ चला गया । कुशाग्र ने क्लास मे एंट्री लेते ही बाकी सबको नज़रंदाज़ करते हुए निगाहें उस ओर घुमाई जहाँ रोज़ कृषिका बैठा करती थी । दोनों की निगाहें पल भर को टकराई । अगले ही पल कृषिका ने निगाहें फेर ली और उसकी हड़बड़ाहट देखकर कुश मुस्कुरा उठा । उनके पीछे ही प्रोफेसर ने क्लास मे एंट्री ली और सब नोटबुक और बुक खोलकर बैठ गए । कृषिका तिरछी निगाहों से कुशाग्र को एक बार फिर देखा तो वो अपने नोटबुक मे कुछ लिख रहा था । होंठों पर कातिलाना मुस्कान सजी हुई थी जिसपर पल भर को कृषिका की निगाहें ठहर गयी पर अगले ही पल खुदसे फटकारते हुए उसने कुशाग्र पर से ध्यान हटाया और पढ़ाई पर ध्यान लगाने लगी । उसके निगाहें फेरते ही कुशाग्र की ओलिव ग्रीन आँखे उसकी ओर घूम गयी और उसकी मुस्कुराहट और भी ज्यादा गहरी हो गयी । Coming soon.............
लगातार दो लैक्चर अटेंड करने के बाद एक फ्री लैक्चर मिला था । क्लास खत्म होते ही कुछ स्टूडेंट को छोड़कर बाकी सब वहाँ से चले गए । कृषिका ने भी अपना समान पैक किया और बैठ अपने कंधे के हवाले करते हुए दीपिका का रुख किया " दिपु मैं लाइब्रेरी जा रही हूँ । ये लैकचर् फ्री है और मुझे बुक्स इशु करवानी है । तुम चलोगी साथ ? " लाइब्रेरी का नाम सुनते ही दीपिका के चेहरे की हवाइयाँ कुछ यूँ उड़ी मानो लाइब्रेरी नही भूत के पास जाने की बात कर दी हो उसने । उसने फटी आँखों से कृषिका को देखा और तुरंत ही हड़बड़ी मे ज़ोर से इंकार मे सर हिला दिया " नही ....नही ..... मैं नही जाती कोई लाइब्रेरी वायब्रेरि । मुझसे इतनी शांति हजम नही होती । किताबें देखते ही मेरा सर घूमने लगता है , तबियत बिगड़ने लगती है । तुम जाओ मैं यही ठीक हूँ । " दीपिका का पीला पड़ता चेहरा और उस चेहरे पर थकान के भाव देखकर कृषिका ने आँखे चढ़ाते हुए नाराज़गी ज़ाहिर की " बस तूम दिखती ही सीधी साधी हो वरना असल मे हो इन नंबर की शातिर और नौटंकी बाज़ । लाइब्रेरी जाने के नाम से तुम्हारी तबियत बिगड़ने लगती है और अगर यही मैंने कैंटीन जाने की बात कही होती तो तुम्हारे पैरों मे टायर लग जाते । चलते हुए नही उड़ते हुए वहाँ लैंड होती । " कृषिका ने दीपिका की हरकतों पर खींझते हुए उसे टोंड मारी जिसे समझते हुए दीपिका ने इनोसेंट सी शक्ल बना ली " कैंटीन मे तो खाने पीने की इतनी चीज़े मिलती है । लाइब्रेरी मे जाकर बूको को थोड़े खा सकती हूँ । " " लाइब्रेरी खाने नही पढ़ने जाते है । " कृषिका ने फिर उसे घूरते हुए ताना कसा और अबकी बार बेचारी भोलि भाली दीपिका अपना दुखड़ा उसे सुनाने लगी " यार देखो वैसे भी पढ़ाई की जंजाल को मैं बड़ी मुसीबत मे झेल रही हूँ । वरना मुझे इन मोटी तगड़ी किताबों मे सर लड़ाने का कोई शौक नही है । उसपर लाइब्रेरी का सन्नाटा मुझे खाने को दौड़ता है और वहाँ इतनी सारी बुक्स देखकर मुझे वाकई चक्कर आने लगते है । " दीपिका का जवाब सुनकर कृषिका ने अफसोस से सर हिला दिया " तुम और तुम्हारे बहाने ... सलाम है तुम्हे मेरा पर ज़रा ये तो बताओ कि जब पढ़ाई मे दिलचस्पी ही नही तो इस कॉलेज मे क्या कर रही हो और अगर तुम्हे पढ़ना नही है तो करना क्या है ? " कृषिका ने भौंह उचकाते हुए उससे फ्यूचर प्लानिंग पूछी और बदले मे दीपिका ने बेंच पर पसरते हुए बेफिक्री से जवाब दिया " कुछ करने की ज़रूरत ही क्या है ? मेरे डेड के पास इतना पैसा है । दिन रात इतनी मेहनत करते है वो हमारे लिए ही तो करते है और वो सब हमारा है । मैं तो आराम से घर बैठकर ऐश मौज की ज़िंदगी जिउँगी । " " वाकई तुम्हारी दिलचस्पी किसी भी चीज़ मे नही ? " कृषिका उसकी प्लाइनिंग सुनकर बुरी तरह चौँक गयी । जबकि उसका सवाल सुनकर दीपिका निचला होंठ बाहर निकाले अपनी थोड़ी को उंगली से खुजाते huer सोच मे पड़ गयी । कुछ देर सोचने के बाद उसने कातर नज़रों से कृषिका को देखा और क्यूट सी शक्ल बनाकर बोली " पता नही । मैंने कभी ध्यान ही नही दिया । " " तो अब तक क्या करती आई हो ? " " कुछ भी नही " दीपिका ने कंधे उचकाते हुए बड़ी ही बेफिक्री और लापरवाही से जवाब दिया । जिसे सुनकर कृषिका के माथे पर बल पड़ गए । " तुमने सच मे कभी नही सोचा की आगे अपनी लाइफ के साथ क्या करोगी ? कैसे इंडिपेंडेंट बनोगी ? इस फील्ड मे क्या सोचकर उतरी हो तुम जब तुम्हे कुछ करना ही नही है । " कृषिका का सवाल सुनकर दीपिका अबकी बार कुछ गंभीर हो गयी " डेड चाहते है की मैं अपनी स्टेडी कंप्लीट करने के बाद उनका ऑफिस जॉइन करूँ । वो कहते है अगर उनका बिजनेस उनके बच्चे नही संभालेंगे तो कौन संभालेगा । " " बच्चे " कृषिका ने चौँकते हुए बच्चे शब्द पर खासा ज़ोर दिया । बदले मे दीपिका ने सर हिलाते हुए कहा " हाँ मैं और मेरा भाई । " " Ooo " कुछ सोचते हुए कृषिका ने होंठो को गोल किया फिर दीपिका को गंभीर निगाहों स देखते हुए बोली " तुम अपनी लाइफ के साथ क्या करना चाहती हो ? कुछ तो करना अच्छा लगता होगा तुम्हे । कही तो इंटरस्ट होगा तुम्हारा । " " मेरा इंटरस्ट बस खाने मे है । " दीपिका का जवाब सुनकर कृषिका कुछ पल परेशान सी उसे देखती रही फिर सर झटकते हुए बोली " ठीक है तो जाओ तुम खाओ मैं कुछ देर मे तुम्हे जॉइन करती हूँ । " दीपिका ने झट से सर हिलाया तो कृषिका वहाँ से चली गयी । उसके पीछे कुशाग्र भी निकल गया और जाते जाते समीर को कुछ इशारा कर गया जिसपर उसने पलकें झपकाते हुए सहमति मे सर हिला दिया । दीपिका ने भी अपना बैग पैक किया और कानों मे इयरफोन ठूँसते हुए खुदमे झुलती हुई , हाथ पैर थिरकाते हुए क्लास से बाबाहर निकल गयी । गाने मे गुम दीपिका किसी और ही दुनिया मे खोई झूमते हुए और धीरे धीरे गुनगुनाते हुए कैंटीन के तरफ बढ़ गयी । अपने मे गुम दीपिका ने सामने ध्यान ही नही दिया और बेध्यानी मे कैंटीन के बंद दरवाजे से भिड़ने ही वाली थी कि किसी ने उसकी बाँह पकड़ते हुए उसे आगे बढ़ते से रोक दिया । दीपिका अपने गाने की धुन से बाहर आई और चौँकते हुए निगाहें घुमाई तो समीर उसके बगल मे आ खड़ा हुआ । " कितनी बार कहा है तुम्हे । ध्यान से देखकर चला करो । अंधो के तरह अभी अपना सर फड़वा लेटी । " समीर ने नाराज़गी भरी निगाहों से उसे देखते हुए उसकी इस लापरवाही पर उसको हल्की सी डाँट लगाई । जिसपर दीपिका ने अपना मुह बिगाड़ते हुए सवाल किया " अब मैंने क्या किया है और तुम्हारे अंदर कुश की आत्मा कैसे घुस गयी ? " " मेरे अंदर फिल्हाल तक तो मेरी ही आत्मा है पर लगता है तुम अपनी आँखे किसी को दान कर आई हो । तभी बिना दरवाजा खोले अंदर जाने लगी थी । या कही खुदको मिस्टर इंडिया तो नही समझने लगी कि इन्विजिब्ल् होकर चीजों के आर पार निकल जाओगी । " एक बार फिर तन्जिया लहज़े मे समीर ने उसको टोंट मारा। दीपिका ने अब चौँकते हुए सामने के तरफ निगाहें घुमाई फिर अपनी जीभ को दांतों तले दबाते हुए कातर नज़रों से उसे देखा " सॉर्री, मैंने ध्यान नही दिया था । " " यही तो सारे प्रॉब्लम की जड है की तुम ध्यान ही नही देती । " एक बार फिर समीर ने खफ़ा खफ़ा से अंदाज़ मे उसे ताना मारा । गलती तो इन मोहतरमा की ही थी इसलिए पहले तो वो नज़रें चुरा गयी पर अगले ही पल अपने बचाव मे तुरंत ही तुनकते हुए बोल पड़ी " अब ऐसी भी कोई बात नही है । हमेशा ऐसा नही होता बस कभी कभी गड़बड़ हो जाती है । वैसे भी इंसान हूँ और इंसान गलतियों का पुतला होता है । इसलिए अब मुझे घुरो नही और तुम ये कुश के तरह मुझे सुनाना बंद करो । मुझे ऐसी हरकतें ज़रा भी पसंद नही । " समीर ने अबकी बार पलटकर कोई जवाब नही दिया फिर बेबसी और अफसोस से सर हिलाते हुए दूसरे हाथ से दरवाजा खोल दिया । " कुश कहाँ है ? " दीपिका ने सैंडविच उठाकर खाते हुए समीर से सवाल किया जो उसके ही टेबल पर उसके सामने बैठा था और कोल्ड ड्रिंक पीते हुए फोन मे कुछ कर रहा था । समीर के कानों मे जैसे ही दीपिका की आवाज़ पड़ी उसकी निगाहें सामने की ओर उठ गयी । दीपिका मुह मे सैंडविच भरे आँखे बड़ी बड़ी करके उसे ही देख रही थी । पल भर की समीर की नज़रें उसके क्यूट से चेहरे पर ठहरी फिर उसने नज़रें वापिस फोन की ओर घुमाते हुए रूखे अंदाज़ मे जवाब दिया " भाई कहा करो , तुम्हारा उसका नाम लेना उसे ज़रा भी नही पसंद । इसलिए इतना नाराज होता है तुमपर। " दीपिका ने जल्दी जल्दी अपना मुह खाली किया और खींझते हुए बोली " भाई कहूँ या कसाई ये मेरी मर्ज़ी है । तुम बस इतना बताओ कि वो है कहाँ ? तुम्हारे साथ क्यों नही ? " " क्योंकि न तो मैं उसकी पुंछ हूँ और न ही वो मेरी जो जहाँ मैं जाऊँ वही वो मिले । हमारी अपनी अपनी प्राइवेट लाइफ है , हमेशा साथ नही रहते हम । " एक बार फिर वही रूखा अंदाज़ जिसे सुनकर दीपिका चिढ़ गयी और आँखे छोटी छोटी करके उसे घूरते हुए बोली " ज्यादा बनो मत तुम । सब जानती हूँ मैं । वो खुद कही बीज़ी है इसलिए तुम्हे मेरे पीछे लगा दिया है वरना तुम और वो बस चले तो बाथरूम मे साथ ही घुस जाओ । एक ही थाली के चट्टे बट्टे जो हो और अब तो तुम उसकी ज़ुबान भी बोलने लगे हो । " " दिपु लड़ाई करने का अभी मेरा बिल्कुल मूड नही है । " समीर ने उकताते हुए कहा और वापिस खुदको फोन मे व्यस्त कर लिया। दीपिका कुछ पल उसको खामोशी से घुरति रही फिर झल्लाते हुए बोली " जब तुम्हे अपने फोन मे ही घुसना था तो मेरे साथ बैठे ही क्यों और इतना भाव किस खुशी मे खा रहे हो तुम ? हो गयी न गलती अब क्या एक गलती पर बच्चे की जान लोगे तुम जो मुह सड़ाए बैठो हो और खडूस सास जैसे तंज पर तंज कसे जा रहे हो । " समीर की निगाहें एक बार फिर दीपिका कि ओर उठ गयी जो मुह बिचकाए नाराज़गी से उसे ही देख रही थी । " तुम्हारी यही छोटी मोटी गलतियां हर बार तुम्हारी तकलीफ और दर्द की वजह बनती है । " " हाँ तो क्या करूँ हो जाती है न मुझसे गलतियां अब क्या उसके लिए मुझे ताने ही मारते रहोगे ? " दीपिका ने क्यूट सी शक्ल बनाते हुए अपनी पलकों को झपकाया । समीर की नाराज़गी और इस क्यूट सी अदा से हार गयी और उसने गहरी साँस छोड़ते हुए बोला " नही मारता कोई ताना चलो अपना सैंडविच खत्म करो । " " नाराज नही न अब तुम मुझसे ? " दीपिका ने आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देखा । समीर पल भर को ठहरा फिर उसने मुस्कुराकर इंकार मे सर हिला दिया । उसे मुस्कुराते देखकर दीपिका का चेहरा भी खुशी से खिल उठा । " समीर इधर आओ मैं तुम्हे एक मस्त गाना सुनाती हूँ । देखना तुम भी उस गाने मे इतना खो जाओगे कि तुम्हे अपना ही होश नही रहेगा । " सैंडविच खत्म करने के बाद दीपिका ने टिशु से हाथ साफ करते हुए समीर को अपने पास बुलाया तो वो उठकर उसके बगल वाली चेयर पर बैठ गया । दीपिका ने एक लीड निकालकर उसके कान मे घुसा दी और गाना प्ले कर दिया । कुछ ही पल मे दीपिका पूरी तरह से सोंग मे खो गयी और बैठे बैठे ही थिरकने लगी । उसके हिलते लब धीमी आवाज़ मे सोंग गुनगुना रहे थे और लिरिक्स के साथ उसके फेशियल एक्सप्रेशन भी बदलते जा रहे थे । दीपिका का पूरा ध्यान अपने सोंग पर था और समीर का उसपर । उसके बगल मे बैठा वो एकटक दीपिका के चेहरे को निहार रहा था । लबों पर मंद मुस्कान सजी थी और दीपिका की नज़दीकियों से उसके सीने मे मौजूद दिल ज़ोरों से धड़कने लगा था । दीपिका के बदन से आती भीनी भीनी सी खुशबु उसकी साँसों को महकाने लगी थी । ये लम्हा जो अंजाने मे उसके हिस्से आया उसे समीर दिल खोलकर जी रहा था और हर बार से बेखबर दीपिका खुदमे ही मग्न थी । Coming soon .......