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Arrange marriage

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Ishqi

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ये कहानी है माहिर ओब्रोय की जो ओब्रोय ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज का सीईओ है। 5 साल की उम्र में जब माहिर की माँ का देहांत तब हुआ उसके पिता तुषार ओब्रोय ने दूसरी शादी करली। जिससे उनके एक बेटा और बेटी हुए। लेकिन माहिर कभी उन सब की हैप्पी फॅमिली में घुल मिल नही...

Characters

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MAHIR OBEROY 🖤

Hero

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" PARUL BHARDWAAJ 🌷 "

Heroine

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ध्रुविका भारद्वाज

Healer

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कबीर ओबेरॉय

Side Hero

Total Chapters (78)

Page 1 of 4

  • 1. Arrange marriage - Chapter 1

    Words: 1164

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली शहर, रात के 12 बजे।

    एक लड़का कार ड्राइव कर रहा था। कार में लाउड म्यूज़िक बज रहा था। उसने कार एक घर के सामने रोकी। जिस पर बहुत खूबसूरत अक्षरों में लिखा था, "ओब्रोय मेन्शन"।

    माहिर ओब्रोय, उम्र 26 साल, कद 6.2 इंच, गोरा चेहरा, तीखे फ़ीचर्स, भूरी आँखें, बाएँ भौंह पर एक कट जो उसे एक डैशिंग लुक देता था।

    माहिर के बाल बिखरे हुए थे। वह लड़खड़ाते कदमों से घर के दरवाज़े पर पहुँचा और मास्टर की से दरवाज़ा खोला।

    हॉल में 48 साल की एक औरत बैठी थी। गेहुँआ रंग, कद 5.7 इंच। यह थी कौशल्या ओब्रोय, माहिर ओब्रोय की सौतेली माँ।

    कौशल्या ने माहिर को देखकर कहा, "हो गया जनाब, घर आने का टाइम?"

    माहिर हँसते हुए बोला, "अरे अरे... कौशल्या जी... आ... आपने जागने की तकलीफ क्यों की? जाइए... जाइए... बहुत रात हो गई है। आपके पति देव आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"

    इतने में एक कड़क आवाज़ आई, "माहिर! यह क्या तरीका है बात करने का? मॉम हैं वो तुम्हारी।"

    यह था तुषार ओब्रोय, माहिर के पिता। गोरा रंग, 6.1 इंच कद, भूरी आँखें।

    माहिर तुषार जी की बात सुनकर हँसने लगा। वह आगे चला और थोड़ा लड़खड़ा गया। तुषार जी और कौशल्या जी ने जल्दी-जल्दी एक-एक कदम माहिर की ओर बढ़ाया।

    माहिर ने उन्हें हाथ दिखाते हुए कहा, "I am fine. I am fine!"

    फिर तुषार को देखकर बोला, "तुषार ओब्रोय... आपको अपनी वाइफ को मेरी नज़रों से दूर रखना चाहिए। ताकि मैं उनसे बदतमीज़ी ना करूँ। और अभी मुझे बहुत नींद आ रही है। सो प्लीज़। गुड नाईट।"

    इतना बोलकर माहिर लड़खड़ाते हुए सीढ़ियों से अपने कमरे में चला गया। कौशल्या उसे देखती ही रह गई।

    वह अपनी नम आँखों से माहिर जिस तरफ गया था, उस तरफ देखकर बोली, "मैं एक अच्छी माँ नहीं बन पाई।"

    तो तुषार ने उसके कंधों पर हाथ रखकर कहा, "ऐसा नहीं है कौशल्या। माहिर बचपन से ही ऐसा है। वह तुमसे नफ़रत नहीं करता। तुम्हारी इज़्ज़त भी करता है। बस प्यार जताना नहीं आता उसे।"

    कौशल्या बोली, "प्यार जताना नहीं आता... क्योंकि उसे किसी ने सिखाया नहीं। और यही हमारी सबसे बड़ी गलती है।"

    और वे दोनों अपने कमरे में चले गए। माहिर अपने बिस्तर पर मुँह छिपाए पड़ा था और बड़बड़ा रहा था, "नो वन कैन अंडरस्टैंड मी। नो वन!"


    अगली सुबह

    भरद्वाज मेन्शन

    कौशल्या, दशरथ के नंदन
    राम ललाट पे शोभित चन्दन।
    रघुपति की जय बोले लक्ष्मण
    राम सिया का हो अभिनन्दन।।

    एक प्यारी आवाज़ पूरे मेन्शन के हॉल में गूंज रही थी। एक छोटा सा, प्यारा सा मंदिर जिसमें राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी की मूर्तियाँ रखी थीं। पूरा मंदिर लाइट्स से जगमगा रहा था। एक लड़की सफ़ेद रंग का शूट-सलवार पहने मंदिर के आगे खड़ी थी।

    यह थी पारुल भारद्वाज, भारद्वाज घर की बड़ी बेटी। गोरा रंग, काली बड़ी-बड़ी आँखें, उन पर बड़ी-बड़ी पलकें, गोल चेहरा, मुस्कान के साथ दोनों गालों पर पड़ने वाले डिम्पल उसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाते थे। लंबे, कमर तक आते काले बाल, 5.6 इंच कद।


    पारुल के पास ही हाथ जोड़े उसकी छोटी बहन ध्रुविका खड़ी थी। उसके बगल में उनका भाई अभिनव। उनके पीछे सुप्रिया भारद्वाज और उनके पति नवदीप भारद्वाज। यह था भारद्वाज परिवार।

    माहिर सुबह तैयार होकर ओब्रोय मेन्शन से निकल गया। नाश्ते के लिए सब डाइनिंग टेबल पर आ गए।

    कबीर ओब्रोय (उम्र 21 साल, गोरा रंग, काली आँखें, 6.1 इंच कद)

    प्रियंका ओब्रोय (उम्र 19 साल, गोल चेहरा, घुँघराले बाल, गोरा रंग, काली आँखें, कद 5.3 इंच)

    ये दोनों माहिर के छोटे भाई-बहन हैं। सब नाश्ता कर रहे थे।

    प्रियंका बोली, "मॉम, भाई ने आज भी नाश्ता नहीं किया?"

    कौशल्या जी ने ना में सिर हिला दिया। जिससे प्रियंका उर्फ़ परी का चेहरा उतर गया। कबीर अपनी ही सोच में गुम था।

    तुषार जी बोले, "कबीर, क्या हुआ?"

    कबीर हड़बड़ा कर बोला, "क... कुछ नहीं। आप लोग कुछ कह रहे थे?"

    परी बोली, "हाँ भाई, नाश्ता नहीं करके गए। और रात को भी हमारे साथ डिनर नहीं किया।"

    तुषार बोले, "डोंट वरी, मैं विवेक को कॉल कर दूँगा, वह खिला देगा उसे खाना, ओके।"

    (विवेक सक्सेना... माहिर का सबसे अच्छा दोस्त)

    कबीर और परी अपने कॉलेज के लिए निकल गए। कबीर अंतिम वर्ष में था और परी प्रथम वर्ष में।


    माहिर का ऑफिस

    विवेक सिटी बजाते हुए माहिर के केबिन में दाखिल हुआ। माहिर के केबिन में माहिर का निजी सहायक राम और माहिर का सबसे भरोसेमंद बॉडीगार्ड राघव था।

    विवेक ने माहिर को देखकर कहा, "तू आज फिर से नाश्ता नहीं करके आया।"

    माहिर बेफ़िक्री से बोला, "नहीं, मैं सीधा लंच ही कर लूँगा।"

    विवेक झुँझलाते हुए बोला, "इतने नखरे तो नई-नवेली दुल्हन भी नहीं करती, जितने मेरे यार करता है।"

    माहिर ने विवेक को एक नज़र देखकर कहा, "हो गई बकवास।"

    विवेक बोला, "ओह यार, मैं तेरे लिए इतने प्यार से टिफिन लेकर आया हूँ।"

    माहिर बोला, "इतनी फ़िक्र तो नई-नवेली दुल्हन भी नहीं करती अपने पति की।"

    विवेक बोला, "हाँ, हाँ पता है मुझे। तेरा सेंस ऑफ़ ह्यूमर ज़्यादा है मुझसे। मेरे डायलॉग की धज्जियाँ उड़ा सकता है तू। लेकिन पेट खाने से भरेगा, सेंस ऑफ़ ह्यूमर से नहीं। तो ज़्यादा नखरे मत कर।"

    माहिर छोटी सी मुस्कान करता है और फिर दोनों नाश्ता करते हैं।

    माहिर का असिस्टेंट राम हिचकिचाते हुए बोला, "स... सर... वो कबीर सर..."

    माहिर ने राम को एक नज़र देखकर गुस्से से कहा, "अब आगे बोलने का मुहूर्त निकलवाऊँ क्या?"

    राम बोला, "नहीं सर... आई एम सॉरी। वो आपको बताया था ना, कबीर सर कॉलेज के बाद कहीं गए थे। तो वो अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गए थे।"

    माहिर शांत लहजे में बोला, "तो उसमें क्या प्रॉब्लम है?"

    राम ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर कहा, "सर, वो लड़की प्रेग्नेंट है और कबीर सर अभी उससे शादी नहीं कर सकते, इसलिए उस लड़की ने खुदकुशी की कोशिश की है।"

    यह सुनकर माहिर के चेहरे पर गुस्सा झलकने लगा।

    वह राम से बोला, "उस लड़की की जानकारी?"

    "सर, उसका नाम ध्रुविका भारद्वाज है। वो अभी दूसरे वर्ष में कबीर सर के कॉलेज में पढ़ती है।" राम ने कहा।

    माहिर कुछ सोचते हुए हाँ में सिर हिला देता है। राम केबिन से बाहर निकल जाता है।

    विवेक घबराते हुए बोला, "अब क्या करेगा तू?"

    माहिर बोला, "उसकी शादी।"


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "बाम फॉर ब्लीडिंग हार्ट"

  • 2. Arrange marriage - Chapter 2

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    शाम का समय था।

    "ओब्रोय मेंशन"

    माहिर उस शाम घर लौटा था। प्रियंका बहुत खुश हुई।

    "भाई! चलिए ना, साथ में मूवी देखते हैं।"

    "कितने दिन हो गए, आप हमारे साथ थोड़ा समय बिताइए ना भाई..."

    माहिर ने कहा, "परी! व्हेयर इज़ कबीर?"

    कौशल्या जी किचन से आते हुए बोलीं, "बेटा, इतने गुस्से में क्यों हो? कबीर अपने कमरे में ही है।"

    माहिर ने जोर से कबीर को आवाज़ लगाई, "कबीर.. नीचे आओ..."

    थोड़ी देर में कबीर सीढ़ियों से धीरे-धीरे नीचे आने लगा।

    कबीर की आँखें हल्की लाल थीं, जैसे वह अभी रो कर आया हो।

    माहिर ने कबीर के आते ही उसके गाल पर एक तमाचा मार दिया।

    तुषार जी अपने रूम से आते हुए बोले,

    "आर यू क्रेज़ी, माहिर!"

    "तुमने अपने जवान भाई पर हाथ उठाया..."

    कबीर थप्पड़ लगते ही रोने लगा और फिर माहिर को गले लगा लिया।

    यह देखकर तुषार, परी और कौशल्या जी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।

    कबीर, माहिर के गले लगे, रोते-रोते बोला,

    "भाई, आई एम सॉरी।"

    "मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।"

    माहिर ने अभी तक अपने हाथ कबीर की पीठ पर नहीं रखे थे।

    माहिर ने कड़क आवाज में कहा, "तुमने गलती की और अब उसे सुधारने की बजाय यहाँ छुपकर रो रहे हो।"

    कबीर माहिर से अलग होते हुए, कन्फ्यूज़न से उसे देखने लगा।

    कौशल्या जी बोलीं, "कोई हमें बताएगा आखिर हुआ क्या है?"

    तुषार जी भी बोले, "हाँ बेटा, कौन सी गलती की है कबीर ने और छुपकर क्यों रो रहा था?"

    माहिर ने तुषार जी को देखते हुए कहा, "मिस्टर तुषार ओब्रोय जी, अगर आप अपने बिज़नेस से निकलकर थोड़ा अपने लाडले पर ध्यान देते, तो आपको जरूर पता होता कि कबीर ने क्या किया है।"

    "परी ने बेसब्री से पूछा, "बट हुआ क्या, भाई?"

    माहिर ने कबीर से कहा, "तू खुद बताएगा तूने क्या किया..."

    कबीर ने अपनी नज़रें झुका लीं।

    कौशल्या जी बोलीं, "आखिर बात क्या है?"

    "मिसेज़ ओब्रोय, आपका लाडला एक लड़की की ज़िंदगी बर्बाद करने पर तुला है।"

    "पहले उस लड़की से जन्मों-जन्मों के साथ के वादे किए।"

    "अब जब उसे ज़रूरत है, इसने उसे अकेले मरने के लिए छोड़कर आया है।"

    "कबीर ओब्रोय, क्या तुम्हें पता है वो लड़की दो बार सुसाइड करने की कोशिश कर चुकी है?"

    कबीर ने हाँ में गर्दन हिलाकर बोला,

    "सॉरी भाई... मैंने उससे कहा ये सब बचपन में हुआ है... हमें इसका वजूद मिटा देना चाहिए... लेकिन वो ज़िद्द पर अड़ गई..."

    कौशल्या जी, "ये सब क्या बोल रहे हो तुम दोनों? कौन सी लड़की? कैसे बर्बाद कर सकता है कबीर उसकी ज़िंदगी...?"

    कबीर ने भरे गले से कहा, "वो... वो... प्रेग्नेंट है।"

    "मैंने उसे अबॉर्शन के लिए बोला, लेकिन..."

    कबीर इससे आगे कुछ बोलता, उससे पहले कौशल्या जी ने उसके गाल पर एक थप्पड़ मार दिया।

    "तू सोच भी कैसे सकता है? एक माँ अपने बच्चे को मार देगी।"

    "तुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता तेरा बच्चा है वो। कैसा बाप है तू? उस नन्ही सी जान को दुनिया में आने से पहले मार देना चाहता है।"


    भारद्वाज मेंशन...

    ध्रुविका ने खुद को कमरे में बंद कर रखा था।

    पारुल दरवाज़ा पीट रही थी।

    "ध्रुवी, दरवाज़ा खोल। क्या हुआ है?"

    अपनी दीदी को नहीं बताएगी।

    तभी नवदीप जी की आवाज़ आई,

    "ये क्या बचपना है ध्रुवी बेटा... आपने खुद को ऐसे क्यों बंद किया है...?"

    ध्रुवी ने अपने पापा की आवाज़ सुनकर दरवाज़ा खोल दिया।

    उसकी आँखें रोने की वजह से लाल और सूज गई थीं।

    पारुल ने ध्रुविका को गले लगाते हुए कहा,

    "क्या हुआ बच्चा? आपने खुद को ऐसे क्यों बंद किया? हमारी तो जान ही निकल गई थी।"

    सुप्रिया जी ध्रुविका के पास आईं और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं,

    "बेटा, क्या परेशानी है? हमें नहीं बताएगी तो किसे बताएगी..."

    ध्रुविका रोते हुए बोली,

    "दीदी... वो... हम प्रेग्नेंट हैं..."

    यह सुनकर पारुल की पकड़ ध्रुविका से ढीली हो गई।

    सुप्रिया जी ने ध्रुविका के कंधे पकड़कर कहा,

    "ये... ये क्या बोल रही है आप...! पागल हो गई है..."

    ध्रुविका रोते हुए बोली, "नहीं माँ, हम सच बोल रहे हैं। यही सच है। हमें माफ़ कर दीजिए..."

    तभी पारुल का ध्यान नवदीप जी पर गया, जिन्हें चक्कर आ रहे थे।

    पारुल भागकर उनके पास गई, "पापा! पापा! क्या हुआ आपको..."

    ध्रुविका और पारुल ने नवदीप जी को कंधों से पकड़कर सोफ़े पर बैठाया।

    सुप्रिया जी किचन से पानी लेकर आईं।


    "पापा, संभालिए खुद को।" नवदीप जी ने पानी पिया और भरी आँखों से ध्रुविका को देखा। ध्रुविका की नज़रें झुकी हुई थीं।

    नवदीप जी ने कहा,

    "कौन है वो लड़का?"

    ध्रुविका ने नज़रें झुकाए हुए कहा, "हमारे कॉलेज में पढ़ता है।"

    "तो क्या वो आपसे शादी करेगा?"

    तो ध्रुविका ने ना में गर्दन हिला दी और उसके आँसू बहने लगे।

    नवदीप जी ने कहा, "हमारी सालों की बनाई इज़्ज़त को उछालने में आपने कोई कसर नहीं छोड़ी।"

    "हम कैसे समाज में अपना मुँह दिखाएँगे? आपने एक बार भी अपने पापा के बारे में नहीं सोचा..."

    ध्रुविका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो बस रोए जा रही थी। सुप्रिया जी ने नवदीप जी के पास बैठते हुए कहा, "अब गलती हो गई है। आपके डाँटने से नहीं सुधर सकती। इससे ज़्यादा हमारी गलती है, हमने ही इसे ज़्यादा छूट दे दी।"

    "लेकिन बेटा, हम इतने भी मॉडर्न नहीं हुए अभी कि शादी के बिना आपके बच्चे को पाल सकें।"

    पारुल ने ध्रुविका को अपने गले से लगा लिया और उसका सर सहलाने लगी।

    नवदीप जी ने कहा, "कौन करेगा अब आपसे शादी? आपकी बड़ी बहन से कौन शादी करेगा? जब समाज में पता चलेगा छोटी बेटी की करतूतें ऐसी हैं, तो इनसे शादी कौन करेगा?"

    तभी दरवाज़े से आवाज़ आई,

    "जिसने गलती की है, वही इस गलती को सुधारेगा!"

    पारुल ने सामने देखा।

    छह फुट लंबा, गोरा-चिट्टा लड़का खड़ा था।

    पारुल गुस्से से उसके पास गई और कॉलर पकड़कर बोली,

    "तो आप हो जिसने मेरी बहन की ज़िंदगी बर्बाद कर दी..."

    माहिर ने गुस्से से पारुल से अपना कॉलर छुड़वाया और कहा, "तुम्हारी बहन इतनी भी छोटी नहीं है। उसे समझ है।"

    पारुल ने गुस्से से माहिर को एक थप्पड़ मार दिया।

    माहिर ने अपनी मुट्ठियाँ कसकर बंद कर लीं।

    ध्रुविका की आवाज़ आई,

    "दीदी...! ये वो नहीं हैं!"

    अब पारुल की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।

    क्या होगा इस थप्पड़ का नतीजा?

    क्या हो जाएगी ध्रुविका और कबीर की शादी?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए।

  • 3. Arrange marriage - Chapter 3

    Words: 1159

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक.....

    “आपकी बड़ी बहन से कौन शादी करेगा? जब समाज में पता चलेगा छोटी बेटी की करतूतें ऐसी हैं तो इनसे शादी कौन करेगा?”

    तभी दरवाजे से आवाज़ आई, “जिसने गलती की है, वही इस गलती को सुधारेगा!”

    पारुल ने सामने देखा। छह फुट लम्बा, गोरा-चिटा लड़का खड़ा था।

    पारुल गुस्से से उसके पास गई और कॉलर पकड़कर बोली, “तो आप हो जिसने मेरी बहन की ज़िंदगी बर्बाद कर दी?”

    माहिर ने गुस्से से पारुल से अपना कॉलर छुड़वाया और कहा, “तुम्हारी बहन इतनी भी छोटी नहीं है। उसे समझ है।”

    पारुल ने गुस्से से माहिर को एक थप्पड़ मार दिया।

    माहिर ने अपनी मुट्ठियाँ कस के बंद कर लीं।

    ध्रुविका की आवाज़ आई, “दिदु...! ये वो नहीं हैं!”

    अब पारुल की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।


    अब आगे...

    वहीं माहिर की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। माहिर ने खुद को शांत करते हुए कहा, “कल सुबह मेरी फैमिली पूरी इज़्ज़त से आपके घर रिश्ता लेकर आएगी।”

    फिर माहिर ने एक नज़र गुस्से से पारुल को देखा और अगले ही पल घर से निकल गया।

    माहिर के निकलते ही अभिनव घर में इंटर हुआ। “दिदु, माहिर ओबेरॉय हमारे घर क्या करने आए थे?”

    “आपको पता है दिदु, मेरी ड्रीम जॉब है उनकी कंपनी में काम करना।”

    अभिनव की बात सुनकर नवदीप जी ने भी माहिर का चेहरा याद किया।

    पारुल ने अभिनव को सारी बात बताई। तो अभिनव भी लाचारी से ध्रुविका को देखने लगा, जो अब भी रो रही थी।


    अगले दिन...

    भारद्वाज हाउस में सुबह की आरती हो रही थी, जो पारुल गा रही थी।

    तभी डोर नॉक हुआ। अभिनव दरवाजा खोलता है तो सामने पूरा ओबेरॉय परिवार खड़ा था। अभिनव दरवाजे से साइड हो गया।

    कौशल्या जी और तुषार जी ने जब आरती की आवाज़ सुनी तो बस सुनते ही रह गए। पारुल की आवाज़ बहुत प्यारी लग रही थी।

    थोड़ी देर में पारुल ने आरती कर ली और सब को आरती देने लगी। जब उसने पीछे अजनबी चेहरे देखे तो उसे थोड़ी हैरानी हुई, लेकिन फिर सबसे अलग खड़े माहिर को देखकर उसे सब समझ आ गया कि ये लोग यहाँ ध्रुविका के रिश्ते की बात करने आए हैं।

    कबीर ने चोर नज़रों से एक बार ध्रुविका को देखा, जो उसे बिलकुल इग्नोर कर रही थी। और करे भी क्यों ना, कबीर ने उसे अबॉर्शन के लिए जो बोला था...

    सुप्रिया जी सबको सोफे पर बैठने को बोलकर किचन में चली जाती हैं।

    नवदीप जी गुस्से से भरी लाल आँखों से कबीर को ऊपर से नीचे तक घूर रहे थे। फिर वे तुषार जी की तरफ देखकर बोले, “हम आपकी तरह इतने अमीर तो नहीं हैं, लेकिन हमारी भी समाज में एक इज़्ज़त है, जिससे हम सर उठाकर समाज का सामना करते हैं। लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि हम हमारी लाड़ो से पाली बच्ची को नर्क की ज़िंदगी जीने देंगे। आपके सैहज़ादे को अगर आप ज़बरदस्ती यहाँ लाए हैं ताकि उसकी गलती पर पर्दा डाल सकें तो आप अभी यहाँ से जा सकते हैं, क्योंकि हमारी बेटी हम पर बोझ बिलकुल नहीं है। हम नहीं चाहते वह शादी के बाद ज़िंदगी भर दुख झेले और हमें कोसती रहे कि हमने अपनी इज़्ज़त रखने के लिए उसकी खुशियाँ दाव पर लगा दीं।”

    नवदीप जी की बात सुनकर पूरे हॉल में कुछ देर शांति फैल गई।

    तुषार जी और कौशल्या जी एक-दूसरे को देखते हैं और फिर कबीर को!

    कबीर नवदीप जी को देखकर हिचकिचाते हुए बोलता है, “अंकल... शायद मेरी गलती इतनी बड़ी है कि मैं माफ़ी जैसा शब्द बहुत छोटा पड़ जाएगा। लेकिन मैं आपकी बेटी से बहुत प्यार करता हूँ। उसे ज़िंदगी भर खुश रखूँगा, और शायद आपकी बेटी भी मेरे साथ ही खुश रहेगी। हम दोनों ने ज़िंदगी भर साथ रहने के वादे किए हैं और क़समें खाई हैं। और फिर कबीर नवदीप जी के सामने घुटनों के बल बैठकर हाथ जोड़ते हुए बोलता है, “मुझे पता है आपको कितना बुरा लगा होगा यह जानकर, लेकिन मुझे बुरा लगने से ज़्यादा खुशी हुई थी जब पता चला था मुझे पापा कहने वाला कोई इस दुनिया में आएगा। लेकिन आपकी और अपनी फैमिली की इज़्ज़त रखने के लिए मैंने आपकी बेटी को अबॉर्शन के लिए बोला। मुझे डर था मेरी फैमिली कहीं हमारे रिश्ते को ठुकरा ना दे। हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा।”

    तुषार जी बोलते हैं, “हम आपकी बेटी को अपनी बेटी की तरह रखेंगे। कभी किसी चीज़ की कोई कमी महसूस नहीं होने देंगे!”

    कौशल्या जी तुषार जी का साथ देते हुए बोलीं, “जी भाई साहब..!! आपकी बेटी की खुशियाँ कभी कम नहीं होंगी।”

    कबीर नवदीप जी के सामने अब भी सर झुकाए बैठा था।

    नवदीप जी कबीर को कंधों से पकड़कर बोलते हैं, “चलो दिया तुम्हें एक मौका! गलती सुधारने का!”

    सुप्रिया जी ने जैसे ही नवदीप जी की हाँ सुनी, खुशी से उनकी आँखों में आँसू आ गए। आखिर कौन माँ नहीं चाहेगी उसकी बेटी की शादी वहाँ हो जहाँ वो बहू नहीं, बेटी बनकर रहे।

    सुप्रिया जी किचन से कुछ स्नैक्स और कॉफ़ी लाकर सबको सर्व करने लगती हैं, और पारुल उनकी हेल्प करती है। सब कॉफ़ी पीने लगते हैं।

    तो सुप्रिया जी हिचकिचाते हुए नवदीप जी से कहती हैं, “एक मिनट, जरा आप साइड में आएंगे?”

    नवदीप जी भी हाँ में गर्दन हिलाकर साइड में चले जाते हैं।

    सुप्रिया जी कहती हैं, “हम छोटी बेटी की शादी पहले कैसे कर सकते हैं? हमें पहले पारुल से एक बार बात करनी चाहिए। फिर दोनों की शादी साथ में कर देंगे।”

    नवदीप जी हाँ में गर्दन हिलाते हुए बोलते हैं, “हम्म बात तो आप सही कह रही हैं। हम एक बार बात कर लेंगे।”


    नवदीप जी तुषार जी से कहते हैं, “हमें रिश्ते से कोई एतराज नहीं है।” यह सुनकर कबीर के चेहरे पर खुशी साफ़-साफ़ झलकने लगती है। कौशल्या जी भी खुश हो जाती हैं।

    नवदीप जी आगे बोलते हैं, “पर एक परेशानी है।”

    यह सुनकर सब नवदीप जी को हैरानी से देखने लगते हैं। माहिर को लगा अब रिश्ता पक्का हो गया तो वह ऑफ़िस चला जाएगा। लेकिन अब नवदीप जी की आखिरी लाइन सुनकर वह भी थोड़ा कन्फ़्यूज़ हो गया।

    नवदीप जी ने आगे कहा, “हम बड़ी बेटी से पहले छोटी बेटी की शादी नहीं कर सकते हैं।”

    यह सुनकर तुषार जी का ध्यान भी माहिर की तरफ़ जाता है। वह भी बड़े बेटे को कुंवारा रखकर छोटे बेटे की शादी पहले कैसे कर सकते हैं?

    “हाँ-हाँ भाई साहब... आप को जितना वक़्त चाहिए ले लीजिए... हमें भी अपने बड़े बेटे से पहले छोटे बेटे की शादी नहीं करना।”

    सुप्रिया जी बीच में बोलीं, “तो क्या हम माहिर और पारुल की शादी करवा दें? आपकी परेशानी भी ख़त्म और हमारी भी...”

    आगे क्या होगा? क्या माहिर और पारुल मानेंगे शादी के लिए? जानने के लिए पढ़ते रहिए।

  • 4. Arrange marriage - Chapter 4

    Words: 1154

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक…

    नवदीप ने आगे कहा, "हम बड़ी बेटी से पहले छोटी बेटी की शादी नहीं कर सकते हैं।"

    यह सुनकर तुषार जी का ध्यान भी माहिर की ओर गया।

    वह भी बड़े बेटे को कुंवारा रखकर छोटे बेटे की शादी पहले कैसे कर सकते हैं?

    "हाँ हाँ भाई साहब, आपको जितना वक्त चाहिए ले लीजिए। हमें भी अपने बड़े बेटे से पहले छोटे बेटे की शादी नहीं करनी।"

    सुप्रिया जी बीच में बोलीं, "तो क्या हम माहिर और पारुल की शादी करवा दें? आपकी परेशानी भी खत्म और हमारी भी।"

    सुप्रिया जी ने यह इसलिए कहा क्योंकि उन्हें माहिर बहुत समझदार लग रहा था। अब तक आने के बाद से माहिर ने अपने घरवालों का एक शब्द भी नहीं काटा और उनकी हाँ में हाँ मिला रहा था। और कल माहिर ही पहले आया था। मतलब कहीं न कहीं यह रिश्ता माहिर की वजह से हो रहा है।


    सुप्रिया जी की बात सुनकर पारुल और माहिर को जैसे झटका लग गया। माहिर ऑलरेडी इतना परेशान था, एक और नई मुसीबत! तभी माहिर पारुल की ओर देखता है। उसे देखते ही उस पर गुस्सा आने लगता है क्योंकि कल पारुल ने माहिर पर हाथ उठाया था, जिससे माहिर के मेल ईगो को बहुत हर्ट हुआ था।

    एक बार माहिर को ख्याल आता है, क्यों न वह शादी करके तुरंत तलाक दे देगा, ताकि उसका बदला भी पूरा और कबीर की शादी भी पक्की। लेकिन फिर खुद ही अपने ख्यालों को झटक देता है। वह एक थप्पड़ की वजह से किसी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकता।

    तुषार जी और कौशल्या जी एक नज़र एक दूसरे को देखकर बोलते हैं, "हम कल माहिर से बात करेंगे। अभी हमें चलना चाहिए।"

    नवदीप जी और सुप्रिया जी भी उन्हें मुस्कुराते हुए मेन डोर तक छोड़ने जाते हैं।

    उनके जाने के बाद सुप्रिया जी पारुल को अपने पास बैठाकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "बेटा, आपको कोई ऐतराज़ है माहिर ओब्राय से शादी करने में?"

    पारुल बोली, "नहीं माँ। पापा और आप जैसा चाहेंगे हम वैसा ही करेंगे। आप हमारे लिए सब अच्छा ही सोचेंगे।"

    पारुल की हाँ सुनकर सुप्रिया जी बहुत खुश हो जाती हैं।

    ओब्राय मेंशन…

    माहिर सोफे पर बैठा था। सामने तुषार जी और कौशल्या जी बैठे थे और परी उनके बगल में खड़ी थी। कबीर अपने कमरे में था।

    तुषार जी गहरी साँस छोड़कर बोलते हैं, "देखो बेटा, हमें वह बच्ची बहुत पसंद आई है। लेकिन तुम्हारे ऊपर कोई प्रेशर नहीं है। अगर तुम्हारी लाइफ में पहले से कोई है, तो तुम हमें उससे मिलवा सकते हो। और अगर कोई नहीं है और नवदीप जी की बड़ी बेटी भी पसंद नहीं, तो अगले दो दिनों में अपने लिए लड़की ढूँढ़ लेना।"

    इतना बोलकर तुषार जी अपने कमरे में जाने लगते हैं।

    माहिर बोलता है, "मिस्टर तुषार ओब्राय, लड़की कोई बाज़ार में बिकती चीज़ नहीं है जो मैं दो दिन में पसंद करके ले आऊँगा। और आप जो यह दो दिन की टाइमलाइन मुझे दे रहे हैं, किस हक़ से दे रहे हैं? माहिर ओब्राय की लाइफ के डिसीजन सिर्फ़ माहिर ओब्राय ही ले सकता है।"

    तुषार जी थोड़े गुस्से में बोलते हैं, "एक बाप के हक़ से बोल रहा हूँ। कभी न कभी तो शादी करनी पड़ेगी वरना…"

    तुषार जी बोलते-बोलते रुक जाते हैं। तो माहिर हँसते हुए बोलता है, "वरना प्रॉपर्टी से बेदखल कर देंगे क्या मुझे?"

    कौशल्या जी उसे टोकते हुए बोलती हैं, "माहिर बेटा, कैसे बात कर रहे हो अपने पापा से?"

    माहिर बोलता है, "जैसे करना चाहिए बिल्कुल वैसे। संभालिए अपने पतिदेव को, गुस्से में लाल हो गए हैं।"

    इतना बोल माहिर स्टडी रूम में चला जाता है। तुषार जी और कौशल्या जी बस भीगी आँखों से उसे देखते रह जाते हैं। परी तो पहले से ही माहिर से इतना डरती थी कि उसकी कुछ बोलने की हिम्मत भी नहीं हुई।


    माहिर स्टडी रूम में आकर एक झटके से दरवाज़ा बंद करता है, जिससे उसके गुस्से का अंदाज़ा हॉल में खड़े तुषार जी, कौशल्या जी और परी को हो गया। परी तो अगले सेकंड ही भागते हुए अपने कमरे में चली गई।

    परी ने कमरे में आकर दरवाज़ा बंद किया और सीने पर हाथ रखकर तेज़-तेज़ साँस लेते हुए बोली, "हे भगवान, क्या ख़तरनाक भाई दिया है आपने! गुस्सा एकदम नाक के नीचे रहता है। कभी मैं न हो जाऊँ उनके गुस्से का शिकार!"

    स्टडी रूम…

    माहिर अपने पर्सनल असिस्टेंट राम को कॉल करता है।

    राम: "येस सर।"

    माहिर: "मुझे ध्रुविका की बड़ी बहन की जानकारी चाहिए, उसके बचपन से लेकर अब तक की। समझ गए?"

    राम: "येस सर। अगले पंद्रह मिनट में आपको ईमेल करता हूँ।"

    भारद्वाज हाउस…

    पारुल अपने कमरे में अपने बेड पर पेट के बल लेटी थी और पैरों को हिला रही थी, जिससे उसकी पायल शोर कर रही थी। पारुल माहिर के ख्यालों में गुम थी। माहिर का यह चुप-चुप रहना उसे खटक रहा था, लेकिन वह अपने मम्मी-पापा की बात बिल्कुल नहीं टालना चाहती थी। और कहीं न कहीं माहिर के चार्म का जादू उस पर भी हो ही गया था। माहिर की पर्सनालिटी बहुत अट्रैक्टिव थी। अक्सर बिज़नेस मैगज़ीन कवर पर उसकी पिक लगी रहती थी। जब माहिर पहली बार आया था तो पारुल ने बिना उसे ध्यान से देखे उस पर गुस्सा निकाल दिया था, वरना वह भी बिज़नेस मैनेजमेंट की स्टूडेंट है और माहिर उसके लिए उसके आदर्श के समान है।


    ध्रुविका अपने कमरे की बालकनी में लगे एक झूले पर बैठी थी और खाली आँखों से आसमान की तरफ़ देख रही थी। उसकी आँखों में हल्की नमी थी। कहीं न कहीं उसे इस बात की खुशी थी कि अब उसकी शादी कबीर से होने वाली है, पर कबीर की कहीं एक-एक बात उसके दिल पर लगी थी जिसकी वजह से उसने सुसाइड जैसा कदम उठाया था। ना चाहकर भी ध्रुविका को वो सब याद आ रहा था।


    ध्रुविका का फ़ोन बहुत देर से बज रहा था। उसे कबीर कॉल कर रहा था। ध्रुविका बस फ़्लैश हो रहे नाम को एकटक घूर रही थी। ना उससे फ़ोन उठाया जा रहा था और ना डिस्कनेक्ट किया जा रहा था।


    कबीर अपने कमरे में इधर से उधर चक्कर काटते हुए ध्रुविका को कॉल कर रहा था।

    "प्लीज़ पिक अप द कॉल।"

    ये कुछ शब्द जो कबीर बड़बड़ा रहा था।

    थक-हारकर कबीर फ़ोन सोफ़े पर पटक देता है और बेचैनी से अपने दोनों हाथों से अपने बालों को पीछे धकेलता है। फिर गहरी साँस छोड़कर बोलता है, "हम्म… मैडम नाराज़ है! डोंट वरी, बहुत जल्दी मना लूँगा। वेट एंड वॉच। माय फ़्यूचर वाइफ़ी ❤️"


    क्या माहिर शादी के लिए हाँ करेगा? क्या कबीर और ध्रुविका की नाराज़गी ख़त्म होगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए।

  • 5. Arrange marriage - Chapter 5

    Words: 1160

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक कबीर अपने कमरे में इधर-उधर चक्कर काटते हुए ध्रुविका को कॉल कर रहा था।

    "प्लीज़ पिक अप द कॉल,"

    ये कुछ शब्द जो कबीर बड़बड़ा रहा था। थक-हार कर कबीर फ़ोन सोफ़े पर पटक देता है और बेचैनी से अपने दोनों हाथों से अपने बालों को पीछे धकेलता है। फिर गहरी साँस छोड़कर बोलता है,

    "हम्म्म... मैडम नाराज़ है।!"

    "डोंट वरी, बहुत जल्दी मना लूँगा। वेट एंड वॉच। माई फ़्यूचर वाइफ़ी ❤️"


    अब आगे...

    माहिर के पास राम का ईमेल आ चुका था। माहिर बड़े ध्यान से एक-एक डिटेल पढ़ रहा था।

    ... नाम... पारुल भारद्वाज...

    उम्र.... 23 वर्ष...

    ... पिछले साल बिज़नेस मैनेजमेंट में पढ़ाई पूरी की...

    .... यूनिवर्सिटी टॉपर...

    .... स्थिति... सिंगल...

    माहिर डिटेल पढ़ ही रहा था कि स्टडी रूम का दरवाज़ा खुलता है और विवेक अंदर आता है। माहिर एक नज़र विवेक को देखकर इग्नोर कर देता है और फिर से पारुल का बायोडाटा पढ़ने लगता है। विवेक उसका लैपटॉप बंद करते हुए बोला,

    "छमक-छलो, मैंने सुना... तुम्हारा रिश्ता तय होने वाला है।"

    माहिर टेबल पर रखा पेपरवेट घुमाते हुए बोला,

    "मिस्टर एंड मिसेज़ ओबेरॉय ने भेजा है तुझे... मेरी चापलूसी करने के लिए... ताकि मैं इस रिश्ते के लिए हाँ कर दूँ।"

    विवेक थोड़ा सीरियस होते हुए बोला,

    "वो ये सब तेरी भलाई के लिए चाहते हैं... ताकि तेरा घर बस जाए... तू वैसे भी एक बार प्यार में धोखा खा चुका है... क्या पता ये अरेंज मैरिज ही सक्सेसफुल रह जाए... और इसमें तेरा भी भला है।"

    तो माहिर आइब्रो उठाकर बोला, "मेरा भला? व्हाट यू मीन...?"

    तो विवेक हँसते हुए बोला, "आई मीन... तेरा उन समायरा जैसी छिपकलियों से पीछा छूट जाएगा।"


    माहिर ने जैसे ही समायरा का नाम सुना, इरिटेशन वाला लुक देकर विवेक से बोला,

    "ओह, प्लीज़ यार! ऑलरेडी मूड खराब है और मत कर।"

    विवेक बोला, "खैर, छोड़... तूने क्या सोचा?" तो माहिर कुछ सोचते हुए बोला,

    "हम्म्म... मैंने पारुल भारद्वाज के साथ एक मीटिंग करने की सोची है... जिसमें उसकी लॉयल्टी, कैरेक्टर, थिंकिंग... सब पढ़ने की कोशिश करूँगा... और वो मीटिंग आज शाम को ही होगी... तेरे कैफ़े में।"

    विवेक ने एक्साइटेड होकर माहिर को गले लगाते हुए बोला,

    "ये हुई ना मेरी छमक-छलो वाली बात!"

    और फिर माहिर के गाल पर एक छोटी सी किस कर देता है। माहिर झल्लाते हुए बोलता है,

    "मैं तेरी छमिया नहीं हूँ! बेशर्म इंसान! हर कभी किस कर लेता है! इडियट!"


    माहिर ने पारुल को कॉल किया। कॉल पिक होते ही पारुल की प्यारी सी आवाज़ आई,

    "हेलो..."

    माहिर ने एक बार आँखें बंद की और फिर अपनी आवाज़ में फुल कॉन्फिडेंस लाते हुए बोला,

    "कैन वी मीट टुडे?"

    पारुल को कुछ समझ नहीं आया तो वो बोली,

    "आई थिंक आपने रॉन्ग नंबर डायल कर लिया है।"

    इतना बोलकर पारुल ने कॉल कट कर दिया। पारुल कॉल कट करने के बाद खुद से बोली,

    "ऐसे कौन पूछता है अपनी गर्लफ्रेंड से इतना अकड़ के? खैर, मुझे क्या? वो जाने और उसकी गर्लफ्रेंड जाने।"


    माहिर ने जब देखा उसने कॉल कट कर दिया, उसे पारुल पर हद से ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। वो झुंझलाते हुए बोला, "इसकी तो मैं!"

    "मेरा फ़ोन काटने की हिम्मत! माहिर ओबेरॉय का फ़ोन काट दिया! हाउ डेयर शी!"


    माहिर ने गहरी साँस लेकर खुद को शांत किया और खुद से बोला,

    "ओके, कूल डाउन। मुझे कैसे भी करके आज ये मीटिंग करनी ही है।"

    माहिर ने फिर से कॉल किया तो पारुल बोली,

    "अरे भाई साहब, बताया ना... रॉन्ग नंबर..."

    माहिर ने दाँत पीसते हुए अपने मन में कहा,

    "भाई साहब... माई फ़ुट..."

    माहिर ने थोड़ा रूड वे में कहा,

    "कॉल कट मत करना... पहले मेरी बात सुनो..."

    पारुल कंफ़्यूज़ होकर बोली, "आप हैं कौन जो मैं आपकी बात सुनूँ?"

    "आई एम माहिर ओबेरॉय।"

    पारुल ने एकदम नॉर्मल वे में कहा, "ओह, अच्छा... माहिर... ओ... ब... रॉय..."

    इतना बोलने के साथ ही पारुल के हाथ से फ़ोन गिरने लगा। उसने जैसे-तैसे उछलते फ़ोन को कैच किया और हड़बड़ाकर बोली,

    "ओह, आप हो? सॉरी, सॉरी... मुझे लगा..."

    माहिर दाँत पीसते हुए बोला, "भाई साहब हूँ, है ना? यही लगा ना, मिस भारद्वाज?"

    पारुल ने रोनी सी शक्ल बनाकर खुद से कहा,

    "कितनी झल्ली हूँ! अपने होने वाले पति को... भाई साहब... ओह गॉड!"

    पारुल धीरे-धीरे खुद से बात कर रही थी और फ़ोन वाली बात भूल गई। माहिर उसका बड़बड़ाना सुन रहा था।

    माहिर फिर से बोला,

    "ओह, मैडम खुद से बात हो गई हो तो मैं अपनी बात करूँ... जिसके लिए मैंने कॉल किया है।"

    पारुल ने फिर से हड़बड़ाकर कहा, "ओह, सॉरी, सॉरी... बोलिए आप।"

    माहिर ने जवाब दिया,

    "मुझे तुमसे मिलना है। शाम 5 बजे वहाँ पहुँच जाना। मैं तुम्हें एड्रेस भेज रहा हूँ।"

    पारुल ने कहा, "ओके... मैं पहुँच जाऊँगी।"


    पारुल माहिर से मिलने के ख्याल से ही बहुत नर्वस फील कर रही थी। पारुल अपनी सारी ड्रेसेज़ ट्राई करके-करके ध्रुविका को बोल रही थी,

    "ध्रुवी... मैं पिंक सूट पहनकर जाऊँ या येलो?"

    ध्रुविका स्माइल करते हुए बोली,

    "मेरी प्यारी दीदी, आप जो पहनोगी वो ऑटोमेटिक ब्यूटीफुल बन जाता है... बिकॉज़ यू आर ब्यूटीफुल... तो आप ज़्यादा मत सोचिए... वरना लेट हो जाएगा।"


    शाम 5 बजे...

    कैफ़े... रियल स्टार...

    माहिर एक कोने की टेबल पर बैठकर अपनी घड़ी देख रहा था।

    "कहाँ रह गई ये लड़की?"

    "सच अ शेमलेस फ़ेलो! टाइम की बिल्कुल वैल्यू नहीं है।"


    थोड़ी देर बाद पारुल कैफ़े में पहुँच जाती है। पारुल ने ब्लैक सलवार सूट पहना था, साथ में वाइट दुपट्टा और बालों को एक साइड करके खजूर की चोटी बनाई थी। कुल मिलाकर बेहद खूबसूरत लग रही थी पारुल। इधर-उधर नज़र दौड़ाकर माहिर को ढूँढती है। उसे जैसे ही माहिर दिखता है, उसकी हार्टबीट बढ़ जाती है और वो खुद को शांत करते हुए धीरे-धीरे माहिर की टेबल तक पहुँचती है।

    माहिर झुंझलाकर बोलता है,

    "थोड़ी और धीरे चलती... कल तक तो पहुँच ही जाती इस टेबल तक।"

    पारुल मासूम सी शक्ल बनाकर बोलती है,

    "बस 8 मिनट ही तो लेट हुई हूँ... इसमें इतना रूड होने वाली कौन सी बात है?"

    माहिर बोलता है,

    "सीरियसली! तुम्हें 8 मिनट ऐसे ही लगते हैं?"

    पारुल कुछ नहीं बोलती और नज़रें झुकाकर बैठ जाती है। माहिर वेटर को बुलाकर कॉफ़ी ऑर्डर करता है।

    "वन ब्लैक कॉफ़ी... एंड..."

    फिर पारुल को देखता है तो पारुल बोलती है,

    "नॉर्मल कॉफ़ी..."

    वेटर ऑर्डर लेकर चला जाता है। पारुल खुद से बोलती है, "ब्लैक कॉफ़ी पी-पीकर ही कड़वे हो गए हैं।"


    माहिर उसके बनते-बिगड़ते एक्सप्रेशन देखकर बोला,

    "कुछ कहना है तो मुँह पर कहो... मन ही मन बड़बड़ाना बंद करो... चलो, छोड़ो। सीधे मुद्दे पर आते हैं... तुम्हें मुझसे शादी क्यों करनी है?"


    आखिर क्या जवाब देगी पारुल?

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।

  • 6. Arrange marriage - Chapter 6

    Words: 1083

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक...

    वेटर आर्डर लेकर चला गया।

    पारुल खुद से बोली, "ब्लैक कॉफ़ी पी-पी कर ही कड़वे हो गए हैं..."


    माहिर उसके बनते-बिगड़ते एक्सप्रेशन देखकर बोला,
    "कुछ कहना है तो मुँह पर कहो।"
    "मन ही मन बड़-बड़ा ना बंद करो।"
    "चलो, छोड़ो, सीधे मुद्दे पर आते हैं..."
    "तुम्हें मुझसे शादी क्यों करनी है?"


    माहिर का सवाल सुनकर पारुल खुद में बड़बड़ाई, "कैसे अजीब इंसान है! जैसे कंडीशन का इन्हें कुछ पता ही नहीं है?"

    पारुल ने अपना गला साफ करते हुए कहा,
    "मुझे लगता है यह सवाल मुझे आपसे पूछना चाहिए था क्योंकि आपने मुझे यहां बुलाया है, ना कि मैंने आपको?"


    माहिर ने दाँत पीसते हुए कहा,
    "Just set up..."
    "मेरे घर वाले चाहते हैं मेरी शादी तुमसे हो जाए..."
    "और वो इसलिए क्योंकि तुमने हाँ बोल दी।"
    "वरना वो कभी फ़ोर्स नहीं करते मुझे। अगर तुम पहले ही बोल देती कि तुम्हें मुझसे नहीं, किसी और से शादी करनी है, तो ऐसा कुछ नहीं होता।"

    फिर माहिर शक भरी नज़रों से देखते हुए बोला,
    "कहीं तुम्हें ये तो नहीं लगता... माहिर ओब्रोय से शादी करके तुम ऐशो-आराम की ज़िंदगी जियोगी... मेरे पैसों पर ऐश करोगी?"
    "तुम्हें डिस्काउंट पर नहीं, बल्कि लिमिटेड एडिशन जैसे ड्रेसेज़ पहनने को मिलेंगे... बड़ी गाड़ी में घूमोगी..."
    "मिसेज़ माहिर ओब्रोय बनकर... यही सब ख्वाहिशें होती हैं ना तुम मिडिल क्लास गर्ल्स की?"
    "हम्म्म्म!"

    इतने में वेटर कॉफ़ी लेकर आया और कॉफ़ी मग रखकर चला गया।

    माहिर फिर से बोला,
    "Tell me the truth..."
    "यही प्लानिंग है ना तुम्हारी... बोलो!"

    पारुल बस एकटक माहिर को देख रही थी, या यूँ कहो घूर रही थी।

    माहिर उसका ऐसा रिएक्शन देखकर चिढ़ते हुए बोला,
    "मैंने कुछ पूछा है।"
    "Give me the answer।"
    "मेरे पास फ़ालतू टाइम नहीं है और..."


    पारुल बोली,
    "मिस्टर ओब्रोय, आपको पैसों का कुछ ज़्यादा ही घमंड है..."
    "कहीं ये आपके लिए भारी ना पड़ जाए..."
    "मुझे आपके पैसों में रती भर भी इंट्रेस्ट नहीं है..."
    "और रही शादी के लिए हाँ करने की बात... वो मैंने अपने परिवार की ख़ुशी के लिए की..."
    "ऑलरेडी उन्हें बहुत शर्मिंदा होना पड़ा है। अब मैं उनके खिलाफ़ जाकर उन्हें और ज़्यादा हर्ट नहीं करनी चाहती।"
    "अगर आपको मुझसे शादी नहीं करनी तो आप बेझिझक अपनी फ़ैमिली से बोलिए।"
    "क्योंकि मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पापा और मम्मी को मेरी एक ना की वजह से निराश होते हुए देखूँ।"
    "और अगर आपको इतना डर है अपने पैसे जाने का, तो मैं पहले ही बोल देती हूँ..."
    "शादी अगर हो भी गयी, तो भी मैं आपके पैसे बिलकुल खर्च नहीं करूंगी।"


    माहिर गौर से पारुल की हर एक बात सुन रहा था और उसके हर मूव को ऑब्ज़र्व कर रहा था।

    माहिर लम्बी साँस छोड़कर बोला,
    "Ok... कॉफ़ी पी लो, ठंडी हो रही है।"


    पारुल और माहिर ने कॉफ़ी पी। तब तक वेटर बिल लेकर आ गया।

    माहिर ने बिल लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तब तक पारुल ने बिल ले लिया और अपनी कॉफ़ी का पेमेंट करके माहिर के हाथ में बिल थमा दिया।

    माहिर ने अपना बिल पे किया और फिर पारुल से बोला, "तुम ऑटो से आई थी या..."

    तो पारुल ने माहिर को बीच में टोकते हुए बोला,
    "Don't worry."
    "मैं आपकी महंगी और बड़ी गाड़ी में नहीं जाऊंगी। ऑलरेडी टैक्सी बुक कर ली है। अगले 5 मिनट में आ जाएगी।"

    माहिर ने कुछ नहीं कहा और कैफ़े से बाहर निकल गया।

    पारुल बाहर खड़ी होकर टैक्सी का वेट कर रही थी, तो माहिर ने कहा,
    "चलो, मैं ड्रॉप कर देता हूँ तुम्हें?"

    पारुल ने माहिर की तरफ़ से मुँह फेरते हुए कहा,
    "No thanks। मैं खुद चली जाऊंगी।"
    "कहीं आपको ये ना लगे कि मैं आपकी महंगी और बड़ी गाड़ी को गन्दा कर रही हूँ... उसकी शोभा नहीं घट जाएगी मुझ जैसी मिडिल क्लास लड़की को बैठाकर..."

    माहिर भी अब ज़्यादा कुछ नहीं बोला और वहाँ से चला गया।

    थोड़ी देर में टैक्सी आई और पारुल भी अपने घर चली गई।

    ओब्रोय हाउस...

    हॉल में बैठकर सब माहिर के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।

    रात के करीब 10 बजे माहिर घर आया।

    जब माहिर घर में इंटर हुआ तो सामने विवेक, तुषार जी, कौशल्या जी, कबीर और परी सब सोफ़े पर बैठे थे।

    माहिर ने सबको शक भरी निगाहों से देखा तो विवेक ने बतिया दी।

    जिसे देखकर माहिर को समझने में देर नहीं लगी कि विवेक ने ज़रूर सबको बोल दिया होगा कि आज वो पारुल से मिलने कैफ़े गया था।

    कौशल्या जी खुश होते हुए बोलीं,
    "बेटा, तुम्हें पारुल पसंद आई क्या?"

    विवेक भी बोला, "Yes yes... जल्दी बोल... ये सब" विवेक फ़ुल एक्साइटमेंट में बोल रहा था।

    माहिर ने गहरी साँस लेकर कहा,
    "हाँ... मैं मिला उससे... I am ready for marry to her।"

    ये सुनकर सबके चेहरे पर बड़ी वाली स्माइल आ गई।

    तुषार जी खुश होते हुए बोले, "कौशल्या जी, मिठाई खिलाइए... आपके दोनों बेटों की शादी होगी... घर में दो-दो बहुएँ आएंगी।"

    कौशल्या जी भी खुश होते हुए बोलीं, "हाँ हाँ, क्यों नहीं! बस 5 मिनट, अभी लाई।"

    इतना बोलकर कौशल्या जी किचन की तरफ़ चली गईं। माहिर ने एक नज़र सबको देखा और फिर अपने रूम की तरफ़ चला गया।

    विवेक और कबीर मिलकर कपल डांस करने लगे।

    विवेक गाना गाते हुए बोला,
    "ढ़ोल बजेगा... शहरा बँदेगा... दूल्हा बनके यार हमारा घोड़ी चढ़ेगा... भाभी आवेगी रे, म्हारी भाभी आवेगी..."

    कबीर हँसते हुए बोला, "यार विवेक, ऐसे गाने कहाँ से सुनता है?"

    तो विवेक हँसते हुए बोला,
    "हम देशी स भाई देशी।"

    कौशल्या जी मिठाई लेकर आईं और सब मुँह मीठा करते हैं।

    और फिर सब अपने-अपने रूम में सोने चले जाते हैं।

    विवेक माहिर का बेस्ट फ़्रेंड है, तो ओब्रोय हाउस में उसके लिए अलग से कमरा बनाया गया है। या यूँ कहें माहिर ने हमेशा विवेक को अपने भाई से बढ़कर माना है और वो उसे अपने घर का ही हिस्सा समझता है।

    Next morning...

    सुबह-सुबह ये न्यूज़ भारद्वाज हाउस भी पहुँच गई कि माहिर ने शादी के लिए हाँ बोल दी और वहाँ भी एक खुशी वाला माहौल बना हुआ था।

    पारुल को हैरानी हुई... उसके ऐसे बिहेवियर के बाद भी माहिर ने शादी के लिए हाँ बोल दी।

    लेकिन उसने ठान लिया था वो माहिर का एक भी पैसा खर्च नहीं करेगी, चाहे उनका शादी का ही रिश्ता क्यों ना बनने वाला हो।

  • 7. Arrange marriage - Chapter 7

    Words: 1153

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक

    अगली सुबह...

    सुबह-सुबह यह ख़बर भारद्वाज हाउस भी पहुँच गई कि माहिर ने शादी के लिए हाँ कह दी और वहाँ भी एक खुशी का माहौल बना हुआ था।

    पारुल को हैरानी हुई। उसके ऐसे व्यवहार के बाद भी माहिर ने शादी के लिए हाँ कह दी।

    लेकिन उसने ठान लिया था कि वह माहिर का एक भी पैसा खर्च नहीं करेगी, चाहे उनका शादी का ही रिश्ता क्यों न बनने वाला हो।

    आगे...


    भारद्वाज हाउस में चहल-पहल थी क्योंकि आज ही सगाई की रस्म होनी थी।

    पारुल ने लाइट पर्पल रंग का फ्लोरल लहंगा पहना था और ध्रुविका ने लाइट पिंक रंग का। ये दोनों ड्रेस ओब्रोय खानदान की तरफ से ही अपनी होने वाली बहुओं के लिए आई थीं।

    लाइट मेकअप में भी दोनों ही एक से बढ़कर एक लग रही थीं। लेकिन शादी होने की खुशी वाली चमक दोनों के ही चेहरे पर नहीं थी, और दोनों की अलग-अलग वजह थी। उनके साथ कमरे में पारुल की बेस्ट फ्रेंड निशा थी।

    निशा आईने में पारुल को देखकर बोली,
    "हाय! मेरे चाँद को किसी की बुरी नज़र का ग्रहण न लग जाए।"

    पारुल ने एक फीकी सी मुस्कान दी।


    नवदीप जी ने व्हाइट रंग का चोला-पजामा पहना था और वह पंडित जी के साथ मिलकर पूजा की तैयारियाँ कर रहे थे।

    सुप्रिया जी ने गहरे लाल रंग की बनारसी साड़ी पहनी थी और वह सब लोगों को बोल-बोलकर सगाई की डेकोरेशन करवाने में लगी हुई थीं।


    ओब्रोय मेंशन...


    कौशल्या जी की खुशी के मारे एक जगह पैर नहीं टिक रहे थे। वह इधर-उधर घूमते हुए नौकरों से बोल रही थीं,
    "सगुन के सामान में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। ओब्रोय खानदान के बेटों की इंगेजमेंट है।"

    तुषार जी हँसते हुए बोले,
    "अरे भाग्यवान! आपके होते हुए कमी नामुमकिन है!"


    माहिर का कमरा...

    माहिर ब्लैक कलर के बिज़नेस सूट में कहर ढा रहा था। लेकिन माहिर के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे; न खुशी, न ग़म।

    परी ने सुबह से इतनी सेल्फ़ी ले-लेकर सोशल मीडिया पर डाल दी थीं कि उसकी सेल्फ़ी लेने की स्पीड देखकर लग रहा था कि बहुत जल्द उसके फ़ोन का स्टोरेज ही ख़त्म हो जाएगा।


    कबीर के चेहरे पर अलग चमक थी। वह अपनी शादी से बहुत खुश था।

    विवेक रेडी होकर माहिर के कमरे में पहुँचा और बोला,
    "देख! लग रहा हूँ ना एकदम हीरो।"

    माहिर ने उसे एक नज़र देखकर कहा,
    "लाल नाक और कर ले। फिर परफ़ेक्ट सर्कस का जोकर लगेगा।"

    विवेक हँसते हुए बोला,
    "अरे मेरी माहि! मेरी झमक छलो! इतना गुस्सा भी सेहत के लिए अच्छा नहीं।"

    माहिर ने आँखें दिखाकर विवेक से कहा,
    "और इतनी खुशी और एक्साइटमेंट भी सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है!"

    विवेक मुँह बनाकर बोला,
    "कर दिया ना मेरे डायलॉग का गुड़-गोबर।"

    माहिर तिरछी मुस्कान करते हुए बोला,
    "तेरी शक्ल ही गोबर जैसी है। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?"

    विवेक बोला,
    "और तू कहीं का प्रिंस चार्मिंग है।"

    माहिर बोला,
    "चलो कुछ तो सही बोला तूने अपने सड़े से मुँह से।"

    विवेक ज़ोर से बोला,
    "माहिर मैं तुझे..."

    कौशल्या जी कमरे में आते हुए बोलीं,
    "चलो बच्चों! अब देर हो रही है। सगाई का मुहूर्त निकल जाएगा वरना।"


    सब कार में बैठकर भारद्वाज मेंशन के लिए निकल गए।


    भारद्वाज मेंशन के सामने तीन कारें आकर रुकीं।

    कार रुकने की आवाज़ सुनकर सुप्रिया जी बहुत खुश हो गईं और खुश होते हुए बोलीं,
    "अभिनव के पापा... वो लोग आ गए। चलिए उन्हें दरवाज़े तक लेने चलते हैं।"

    नवदीप जी और सुप्रिया जी एक बड़ी सी मुस्कान के साथ दरवाज़े पर खड़े थे। तुषार जी और कौशल्या जी भी वैसी ही बड़ी मुस्कान के साथ।

    वे दरवाज़े से अंदर हुए और उनके पीछे माहिर, परी, कबीर और विवेक अंदर हुए। उनके पीछे दस से बारह नौकर जिन्होंने लाल कपड़े से ढके बड़े-बड़े थाल हाथ में ले रखे थे।


    थोड़ी देर में पूजा शुरू हो गई। शादी की सारी रस्मों को सिर्फ़ भारद्वाज और ओब्रोय फ़ैमिली मेंबर अटेंड करने वाले थे। माहिर के कहने पर इस इंगेजमेंट सेरेमनी में सिर्फ़ ये दो फ़ैमिली ही थीं और इनके अलावा पारुल की बेस्ट फ्रेंड निशा थी।

    देखते ही देखते पूजा पूरी हो गई और दोनों जोड़ों ने एक-दूसरे को अंगूठी पहना दी।


    रिंग एक्सचेंज करने के बाद सबने साथ बैठकर लंच किया। विवेक कब से निशा को नोटिस कर रहा था। निशा ने ब्लू कलर का अनारकली सूट पहना था और वह इस नॉर्मल लुक में भी बहुत ब्यूटीफुल लग रही थी।

    पारुल भी माहिर को इग्नोर कर रही थी और माहिर भी पारुल को इग्नोर कर रहा था। कबीर की नज़र तो ध्रुविका से हट ही नहीं रही थी। वैसा ही हाल ध्रुविका का भी था, लेकिन वह रिएक्ट ऐसे कर रही थी जैसे वह कबीर में रत्ती भर भी इंटरेस्टेड नहीं है। और यह सब कुछ कबीर भी बखूबी समझ रहा था और धीरे-धीरे मुस्कुरा रहा था।

    कबीर को मुस्कुराते देख विवेक उसे कोहनी मारते हुए बोला,
    "हाँ मिस्टर कबीर ओब्रोय! तो आँख मिचौली चल रही है मिया-बीबी के बीच।"

    कबीर हँसकर बोला,
    "और हमारी आँख मिचौली से किसी सिंगल के दिल पर खंजर चल रहे हैं।"

    विवेक बोला,
    "हँस ले बेटा, हँस ले! तेरे भी दिन हैं। देखना एक दिन मेरी दुल्हनिया भी मुझे किसी न किसी मोड़ पर तो मिल ही जाएगी।"


    लंच के बाद माहिर और माहिर की पूरी फ़ैमिली ओब्रोय मेंशन के लिए निकल गई। निशा थोड़ी देर पारुल के साथ रुकी और फिर वह भी अपने घर चली गई।


    रात का वक़्त...

    ध्रुविका अपने कमरे में नहाकर बाल सुखा रही थी, तभी उसने देखा उसकी बालकनी में कुछ हलचल हुई। उसने वहाँ जाकर देखा तो उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं। बालकनी में और कोई नहीं बल्कि कबीर था।

    ध्रुविका ने जैसे ही बोलने के लिए अपना मुँह खोला, कबीर ने उसके मुँह को अपने हाथों से बंद करते हुए कहा,
    "पहले बोलो, चिल्लाओगी नहीं, तभी मैं अपना हाथ हटाऊँगा।"

    ध्रुविका ने हाँ में अपनी पलकें दो बार झपका दीं।

    कबीर ने धीरे से उसके मुँह से हाथ हटा लिया और अपने लिप्स को ध्रुविका के सॉफ्ट लिप्स पर रखकर ब्लॉक कर दिया। दोनों किस नहीं कर रहे थे, बस एक-दूसरे की उपस्थिति फील कर रहे थे।

    ध्रुविका की आँखों से एक बूँद आँसू की निकलकर कबीर के गाल पर गिर गई। कबीर ध्रुविका से अलग हो गया और उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर बोला,
    "आई एम रियली सॉरी बेबी।"


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए। Balm for bleeding heart

  • 8. Arrange marriage - Chapter 8

    Words: 1239

    Estimated Reading Time: 8 min

    माहिर, पारुल, और कबीर, ध्रुविका की सगाई हो चुकी थी। भारद्वाज हाउस और ओब्रॉय हाउस, दोनों घरों का माहौल बहुत खुशनुमा था। एक हफ़्ते बाद शादी की तारीख़ तय की गई। शादी की तैयारियों में कब एक हफ़्ता बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला।

    शादी का दिन आ गया। भारद्वाज हाउस में सुप्रिया जी की आवाज़ गूँज रही थी। वो कभी किसी को डाँट रही थीं, तो कभी किसी को। निशा भी भारद्वाज हाउस पहुँच चुकी थी। उसने घर का माहौल और खुशनुमा बनाने के लिए म्यूज़िक प्लेयर ऑन कर दिया।

    तभी उसे सुप्रिया जी की आवाज़ आई, "सबसे पहले गणेश जी के स्वागत का गाना बजना चाहिए। वरना इस म्यूज़िक प्लेयर को उठा के घर के बाहर फेक दूँगी।"

    निशा ने भी सुप्रिया जी के गुस्से को देखते हुए उनकी बात मानना सही समझा और गाना प्ले हुआ।

    "घर में पधारो गजानन जी मेरे घर में पधारो, रिद्धि सिद्धि लेके आओ गणराजा मेरे घर में पधारो।"

    "राम जी आना लक्ष्मण जी आना, संग में लाना सीता मैया, मेरे घर में पधारो घर में पधारो गजानन जी।"

    "ब्रह्मा जी आना विष्णु जी आना, भोले शंकर जी को ले आना, मेरे घर में पधारो घर में पधारो गजानन जी।"

    "लक्ष्मी जी आना गौरी जी आना, सरस्वती मैया को ले आना, मेरे घर में पधारो घर में पधारो गजानन जी।"

    "विघ्न को हरना मंगल करना, कारज शुभ कर जाना, मेरे घर में पधारो घर में पधारो गजानन जी।"


    पारुल और ध्रुविका को एक ही कमरे में ब्यूटीशियन तैयार कर रही थीं। निशा उनके पास पहुँची और पारुल को देखकर बोली,

    "हाय! आज तो जीजा जी से जलन हो रही है मुझे। काश मैं लड़का होती और तुमसे शादी कर पाती।"

    ध्रुविका ने मुँह बनाते हुए कहा,

    "हमारी दीदी को आप में कोई इंटरेस्ट नहीं है।"

    निशा ने उसे छेड़ते हुए कहा,

    "अरे मेरी मशक्कली! तुम्ह भी बहुत ब्यूटीफुल लग रही हो।"

    ध्रुविका ने कहा,

    "अच्छा? आपको हम भी दिखाई देते हैं। मुझे लगा जब हम और दीदी साथ में रहते हैं तब हम आपके लिए मिस्टर इंडिया की तरह गायब हो जाते हैं।"

    ध्रुविका ने मुँह बनाते हुए कहा, "यार ये लड़कियाँ लड़कों से ज़्यादा तो अपनी बेस्टी से फ़्लर्ट करती हैं? ऐसा क्यों है...?"

    पारुल ने उन्हें चुप कराते हुए कहा,

    "हमारा सर वैसे ही दर्द की वजह से फटा जा रहा है। प्लीज़ आप दोनों लड़ाई करना बंद करिए।"

    थोड़ी देर में बैंड-बाजे की आवाज़ आनी शुरू हो गई। निशा एक्साइटेड होकर बोली,

    "बारात आ गई! सबसे पहले मैं देखूँगी जीजा जी को।"

    और भागते हुए नीचे चली गई। निशा को देखकर पारुल के मुँह से सिर्फ़ एक ही लाइन निकली,

    "पागल लड़की!"

    ध्रुविका भी थोड़ी एक्साइटेड थी कबीर को देखने के लिए। इसलिए वो भी बालकनी में जाकर बारात को देखने लगी। पारुल को कोई एक्साइटमेंट नहीं था। अगर उसकी और माहिर की एक मीटिंग नहीं होती और माहिर उसे मिडिल क्लास, लालची, ऐसे वर्ड्स नहीं बोलता तो शायद पारुल भी बहुत एक्साइटेड होती। पर अब उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था इस शादी से। ना कोई एक्सपेक्टेशन थी, ना कोई नाराज़गी। क्योंकि कभी ना कभी किसी ना किसी से तो शादी करनी ही थी। और पारुल को इस बात की तसल्ली थी कि कम से कम वो शादी के बाद भी अपनी बहन के साथ ही रहेगी।

    बारात का जोर-शोर से स्वागत किया गया। माहिर ने गोल्डन कलर की शेरवानी पहन रखी थी जिसमें वो बहुत ज़्यादा हैंडसम लग रहा था। माहिर बहुत कम इंडियन ड्रेस अप करता है, इसलिए आज के दिन वो न्यू लुक में कमाल कर रहा था।

    कबीर ने भी महरून कलर की शेरवानी पहन रखी थी। लेकिन वो माहिर से बहुत अलग दिख रहा था क्योंकि उसके चेहरे पर बहुत प्यारी स्माइल थी जो ज़ाहिर कर रही थी कि कबीर इस शादी से कितना खुश है।

    सुप्रिया जी और नवजीत जी ने बहुत आदर-सत्कार के साथ पूरी ओब्रॉय फैमिली का स्वागत किया। माहिर और कबीर को स्टेज पर चेयर्स पर बैठाया गया, जिसके बगल में एक-एक चेयर पारुल और ध्रुविका के लिए भी लगाई गई थी। निशा पारुल को लेकर और सुप्रिया जी ध्रुविका को लेकर स्टेज पर आईं। कबीर ने आगे बढ़कर सुप्रिया जी के हाथों से ध्रुविका का हाथ अपने हाथ में ले लिया और खुद उसे चेयर तक लाने लगा। निशा ने पारुल को माहिर के बगल में बैठा दिया। माहिर चोर नज़रों से पारुल को देखने की कोशिश कर रहा था। और कबीर सरेआम बेशर्मों की तरह ध्रुविका का घूँघट उठा-उठाकर उसका चेहरा देख रहा था और शर्माता हुआ मुस्कुरा रहा था। और विवेक चुपके-चुपके कबीर की शर्माते हुए मुस्कुराते हुए फोटो क्लिक कर रहा था।

    परी भी घूम-घूमकर पूरी पार्टी एन्जॉय कर रही थी कि अचानक ही वो किसी से टकरा गई और दोनों धड़ाम से नीचे गिर गए।

    अभिनव ने गुस्सा करते हुए कहा,

    "अरे कौन अंधा है?"

    और फिर उठकर पीछे घुमा तो आँखें छोटी करके बोला,

    "ओह! अंधा नहीं, अंधी हो?"

    परी गुस्सा करते हुए बोली,

    "मैं क्यों हूँ अंधी? तुम हो अंधे! बिना आँख वाले बन्दे! हम्मम्म!"

    अभिनव ने कहा,

    "सॉरी बोलो मुझे।"

    परी ने अपने हाथ सीने पर बाँधकर एटीट्यूड से कहा,

    "हम लड़के वालों की तरफ़ से हैं! हम नहीं माँगेंगे माफ़ी!"

    अभिनव ने आइब्रो चढ़ाते हुए कहा, "ओह! अच्छा? तभी इतना घमंड आ रखा है? वैसे ये घर हमारा है तो एक्चुअल में हमें एटीट्यूड दिखाना चाहिए ना कि तुम लोगों को। आई! बड़ी लड़के वालों की तरफ़ से... भैंस कहीं की!"

    परी ने रोती हुई सूरत बनाकर कहा,

    "भैंस!!!! भैंस बोला तुमने मुझे! छोड़ूँगी नहीं गेंडे में तुझे!"

    अभिनव उसे जीभ दिखाते हुए वहाँ से भाग गया।

    और देखते ही देखते वो समय भी आ गया जब माहिर, पारुल और कबीर, ध्रुविका की जोड़ी को मंडप में बुलाया गया। माहिर और पारुल के बीच अब तक कोई बात नहीं हुई थी। वहीं कबीर अकेले ही ध्रुविका से बात किए जा रहा था। ध्रुविका कभी गुस्से में, कभी हँसकर बस हाँ या ना बोल रही थी। विवेक कबीर और माहिर की पिक्चर लेते-लेते उनके बगल में खड़ी निशा की पिक्चर भी लेने लगा। निशा बहुत खूबसूरत लग रही थी। विवेक का मन कर रहा था वो अभी जाकर निशा को प्रपोज़ कर दे। फिर वो खुद के ख्यालों को झटककर बोलता है,

    "अरे दोस्त की शादी में आया है तू विवेक... और खुद के लिए माशूका ढूँढ रहा है। कितनी बेशर्मी वाली बात है!"

    फिर वो एक नज़र निशा को देखकर बोलता है,

    "यार... ये बेशर्मी... है ही इतनी खूबसूरत कि करने को मन कर रहा है।"

    और फिर वो खुद के ख्यालों पर ही हँस दिया। और शादी के मंत्र पूरे हाल में गूँजने लगे। और भारद्वाज हाउस तो वैसे भी ब्राह्मणों का घर था तो पंडित जी पूरे रीति-रिवाज से एक-एक मंत्र का सही उच्चारण कर रहे थे।

    पंडित जी ने कहा,

    "गठबंधन के लिए आगे आइए।"

    तो नवजीत जी ने पारुल और माहिर का गठबंधन कर दिया और अभिनव ने ध्रुविका और कबीर का। देखते ही देखते शादी की सारी रस्में पूरी हो गईं। और अंत में पंडित जी ने कहा,

    "शादी संपन्न हुई। आज से आप पति-पत्नी हो। अब बड़ों का आशीर्वाद ले लो।"

    चारों ने सबका आशीर्वाद लिया। और फिर ध्रुविका और पारुल की विदाई का समय आया। इनकी शादी के सफ़र के बारे में आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।

  • 9. Arrange marriage - Chapter 9

    Words: 1109

    Estimated Reading Time: 7 min

    विदाई का समय आ गया था।

    पृष्ठभूमि में हल्का-हल्का संगीत बज रहा था।


    "बन्नो रे बन्नो मेरी चली ससुराल को, अखियों में पानी दे गयी, दुआ में मीठी गुड़ धानी ले गई, दुआ में मीठी गुड़ धानी ले गई।"


    पारुल सुप्रिया जी के गले लगकर फूट-फूट कर रो रही थी, और ध्रुविका नवजीत जी को गले लगाकर रो रही थी।

    अभिनव ने प्यार से पहले ध्रुविका को नवजीत जी से अलग किया और फिर खुद से गले लगाकर कबीर की गाड़ी की ओर ले गया।

    कबीर ने भी प्यार से ध्रुविका का हाथ पकड़ लिया।

    निशा ने भी पारुल को सुप्रिया जी से अलग करते हुए, उसके कंधों से पकड़कर उसे माहिर के पास ले जाने लगी।


    "गुडिया री गुडिया तेरा गुड्डा परदेशिया, जोड़ी आसमानी हो गई, सगुन पे देखो सादमानी हो गई रे, कबीरा मान जा रे फकीर यूँ ना जा, आजा तुझको पुकारे तेरी परछाइयाँ।"


    निशा ने फुसफुसाते हुए कहा,
    "रोते हुए तेरी नाक बहुत फूल रही है। नई-नवेली दुल्हन को यह शोभा नहीं देता।"

    और फिर मुँह दबाकर हँसने लगी।

    निशा ने पारुल का हाथ माहिर के हाथ में दे दिया।

    दोनों दुल्हन अलग-अलग गाड़ी में थीं और बाकी ओबरॉय परिवार अलग कार में ओबरॉय हाउस जाने के लिए चल पड़े।

    गाड़ी में माहिर और पारुल के बीच एक खामोशी छा गई थी, और पारुल के रोने की सिसकियाँ उस खामोशी को तोड़ने का काम बखूबी कर रही थीं।

    पारुल बार-बार अपने आँसू पोंछ रही थी।

    तभी उसके चेहरे के सामने एक हाथ आया, जिसने रुमाल पकड़ रखा था।

    पारुल ने नज़रें घुमाकर माहिर को देखा, जो एक्सप्रेशनलेस चेहरे के साथ बिल्कुल खामोश बैठा था।

    पारुल ने भी बिना कोई बहस किए वह रुमाल ले लिया और उससे अपने आँसू और अपनी नाक पोंछने लगी।

    कबीर की गाड़ी में कबीर ने ध्रुविका को अपनी गोद में बैठा रखा था और अपने दोनों हाथ उसकी कमर के इर्द-गिर्द लपेट रखे थे।

    और ध्रुविका मुँह फुलाए बैठी थी। ना वह कबीर को रोक रही थी, ना ही वह उसका साथ दे रही थी।

    कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा,
    "गुस्से में यह लाल चेहरा कश्मीरी सेब लग रहा है। मन कर रहा है अभी चख लूँ।"

    ध्रुविका ने गुस्से से कबीर की आँखों में देखते हुए कहा,
    "कहना क्या चाहते हैं आप?"

    कबीर ने गुनगुनाकर कहा,
    "तेरे नैना ऐसे काफिर, क्या छुपाऊँ तुझसे आखिर, तू तो जाने मेरी सारी चोरियाँ, तेरे पीछे तेरे पीछे, चल दूँ मैं आँखें मीचे, तेरे हाथों में है मेरी डोरियाँ।"

    ध्रुविका ने और भी ज़्यादा गुस्से में देखा और अगले ही पल अपनी नज़रें फेर लीं।

    थोड़ी देर बाद गाड़ी ओबरॉय मेंशन जाकर रुकी।

    कोशल्या जी और तुषार जी के कहने पर, उनके घर की एक मेड, जो थोड़ी उम्रदराज थी, उन्होंने नई बहुओं के स्वागत के लिए सारी तैयारियाँ कर रखी थीं।

    कोशल्या जी ने गाड़ी से उतरते हुए कहा,
    "जानकी, सारी तैयारियाँ हो गई ना?"

    जानकी ने स्माइल करते हुए कहा, "जी, मालकिन। आइए, आप बहुओं का इस पूजा की थाल से स्वागत कीजिए।"

    तुषार जी, परी और विवेक भी कार से उतरकर कोशल्या जी के पीछे जाकर खड़े हो गए।

    दरवाज़े पर दो चावल से भरे कलश रखे थे और उसके आगे एक थाल जिसमें लाल घोल था।

    कोशल्या जी ने बारी-बारी से सबका तिलक किया और फिर कहा,
    "आप दोनों इन कलशों को दाएँ पैर से गिराकर अंदर आइए।"

    पारुल और ध्रुविका ने बिल्कुल वैसा ही किया। माहिर और कबीर भी उनके साथ ही उनका हाथ पकड़कर अंदर आ गए।

    फिर कोशल्या जी ने पारुल और ध्रुविका से थाल में पैर रखवाए और फिर उनके पैरों की लाल छाप उनके आँगन में दिखने लगी।

    कोशल्या जी ने कहा,
    "अभी रात बहुत हो गई है। आप लोग आराम कीजिए। बाकी रस्में कल करेंगे।"

    माहिर ने विवेक को कुछ इशारा किया और दोनों ऊपर जाकर टेरेस की तरफ बढ़ गए।

    कबीर ने ध्रुविका का हाथ पकड़ा और अपने रूम में ले जाने लगा।

    परी, पारुल, कोशल्या जी और तुषार जी बस यह हॉल में बच गए थे।

    परी एक्साइटेड होकर बोली,
    "चलिए भाभी, आपको मैं रूम में छोड़कर आती हूँ!"

    पारुल ने प्यारी सी स्माइल के साथ हाँ में गर्दन हिलाई और उसे ऊपर माहिर के रूम में ले जाने लगी।

    कोशल्या जी को माहिर का पारुल को अकेले हॉल में छोड़कर जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह कर भी क्या सकती थीं?

    तुषार जी उनके कंधे पर हाथ रखकर बोले,
    "आप चिंता मत करिए। माहिर बहु को बहुत जल्दी अपना लेगा।"

    कोशल्या जी ने चिंता भरी टोन में कहा,
    "मुझे डर है कहीं हमारी वजह से इस हँसती-खेलती बच्ची की ज़िन्दगी भी माहिर की तरह बेरंग ना हो जाए।"

    तुषार जी ने कहा,
    "ज़्यादा मत सोचिए। बहुत जल्दी सब ठीक हो जाएगा।"

    और वे भी अपने रूम की तरफ़ चले गए।

    परी पारुल को दरवाज़े के सामने छोड़ते हुए बोली,
    "सॉरी भाभी, भाई को डेकोरेशन ज़्यादा पसंद नहीं है और हमें ऐसे परमिशन भी नहीं है अंदर जाने की। बस विवेक भाई जाते हैं इस रूम के अंदर। अब आप जाइए और आराम कर लीजिए।"

    पारुल ने कन्फ्यूज होकर कहा,
    "ऐसा क्यों है? आप अंदर क्यों नहीं जा सकती?"

    परी ने स्माइल करते हुए कहा,
    "वो क्या है, भाई को डर है मैं उनके महंगे सामान को तोड़-फोड़ ना दूँ। आप जाइए, भाई का फेस ही सख्त है, दिल नहीं।"

    इतना बोलकर परी वहाँ से चली गई, और पारुल ने भी कन्फ्यूज़न में ही अपने कदम रूम के अंदर बढ़ा दिए।

    पारुल ने जैसे ही पूरे रूम का इंटीरियर डिज़ाइन देखा, वह बस देखती ही रह गई। पूरा रूम व्हाइट और ब्लैक थीम से सजा था, जो काफ़ी डिसेंट लग रहा था। ब्लैक बेडशीट, व्हाइट चादर, आधे ब्लैक और आधे व्हाइट पर्दे लगे थे।

    फिर पारुल की नज़र वॉल पर लगी माहिर की तस्वीर पर गई। माहिर की फ़ोटो शर्टलेस थी। उसके शोल्डर पर ख़तरनाक शेर का टैटू था, जिसमें शेर घुर रहा था। उस टैटू से माहिर का लगभग आधा सीना कवर था। कमर के पास इटैलियन लैंग्वेज में कुछ लिखा हुआ था, जो समझ नहीं आ रहा था। उसके हाथ में एक वाइन की बोतल थी। माहिर का हाथ ऊपर की तरफ़ था, आँखें बंद थीं और वह वाइन माहिर के एट-पैक एब्स पर गिर रही थी।

    पारुल ने आँखें बड़ी करके कहा,
    "ओह माय गॉड! मेरा हसबैंड तो कितना हॉट है!"

    फिर मुँह बिगाड़ते हुए बोली,
    "सिर्फ़ लुक्स में होना था हॉट्टी-हॉट्टी, बट यह तो नेचर से भी जलते हुए अंगारे की तरह है। मुझे बचकर रहना चाहिए।"

  • 10. Arrange marriage - Chapter 10

    Words: 1235

    Estimated Reading Time: 8 min

    टैरिस पर माहिर और विवेक दोनों ड्रिंक कर रहे थे।

    माहिर ने बहुत ज़्यादा ड्रिंक कर ली थी और वह अब भी रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

    विवेक ने लिमिट की ही पी थी और वह माहिर को भी रोकने की कोशिश कर रहा था।

    लेकिन सारी कोशिशें बेकार थीं।

    माहिर को बस पारूल की मांग में सिंदूर भरना याद आ रहा था।

    अचानक ही उसके जेहन में किसी और लड़की की धुंधली तस्वीरें उभरने लगीं।

    वह लड़की बेहद खूबसूरत थी, ऊपर से उसका हेवी मेकअप उसे और भी ज़्यादा हॉट लुक दे रहा था।

    होठों पर डार्क लिपस्टिक,

    लंबे, कंधे तक के बाल...

    माहिर और वह दोनों किसी पब में डांस कर रहे थे।

    माहिर के दोनों हाथ उसकी कमर पर थे।

    माहिर उस लड़की को याद करते-करते पूरी वाइन की बोतल हाथ में लेकर पीने लगा।

    विवेक उसे रोकते हुए बोला,
    "अरे छमक छलो! आज तेरी सुहागरात है, इतना नशा अच्छा नहीं है।"

    "बक्श दे बेचारी वाइन को!"

    माहिर ने लड़खड़ाती जुबान से कहा,
    "मुझे... मुझे... उसकी बहुत याद आ रही है! मैं उसे क्यों नहीं भूल पा रहा हूँ... सब... सब लड़कियाँ एक जैसी होती हैं ना... bloody gold diggers!"

    विवेक ने कहा,
    "नहीं यार, ऐसा नहीं है। भाभी के चेहरे पर एक सच्चाई और मासूमियत थी!"

    "तू उन्हें हर्ट मत करना, बिल्कुल भी!"

    माहिर ने खुद पर हँसते हुए कहा,
    "वो किसी को क्या ही हर्ट करेगा जिसके खुद के हर्ट होने की कोई सीमा नहीं है!"

    विवेक ने कहा,
    "अब जा, भाभी वेट कर रही होंगी तेरा..."

    इतना बोलते हुए वह माहिर को उठाता है और लगभग धक्के देते हुए टैरिस से नीचे की तरफ भेजता है।

    माहिर भी लड़खड़ाते कदमों से कमरे में पहुँचता है।

    सामने देखता है तो बस उसकी आँखें पारूल पर टिक ही जाती हैं।

    पारूल को हेवी लहंगे में और हेवी दुपट्टे में थोड़ा अनकम्फ़र्टेबल फील हो रहा था। इसलिए उसने दुपट्टा उतार कर साइड में रख दिया था और साथ ही टाइट जूड़ा किया हुआ था उसे ओपन कर लिया था जिससे उसकी पूरी बैक कवर हो रही थी। वह इस वक्त सोफे पर बैठी थी। उसकी गोरी कमर पूरी तरह विजिबल हो रही थी, जो माहिर को अनकम्फ़र्टेबल कर रही थी।

    माहिर जैसे ही कमरे में एंटर हुआ, पारूल की नज़र भी उस पर चली गई।

    पारूल जल्दी से सोफे से उठकर माहिर की तरफ बढ़ जाती है ताकि वह गिर ना पाए।

    माहिर एक नज़र पारूल के बढ़े हुए हाथ को देखता है।

    पारूल जबरदस्ती माहिर का हाथ पकड़ते हुए कहती है,
    "लोग फ़र्स्ट नाइट वाइफ़ के साथ सेलिब्रेट करते हैं, ये महाशय देखो अकेले-अकेले ही पेग लगाकर आ गए। पेग ना सही, कोल्ड ड्रिंक्स के शॉट तो मैं भी लगा ही लेती!"

    माहिर पारूल की अजीबोगरीब बातें सुनकर अपनी आँखें छोटी कर लेता है।

    पारूल जैसे-तैसे माहिर को बेड तक लेकर आती है और बेड पर बैठाते हुए कहती है,
    "खा-खाकर सांड जैसे हो गए हैं आप! इतने में ही थक गई मैं तो!" इतना बोलते हुए पारूल धड़ाम से सोफे पर जा बैठती है।

    उसकी पायल, उसके कंगन और ज्वैलरी सब शोर कर रहे थे, जिससे माहिर की नज़र ना चाहते हुए भी उसके हर मूव पर जा रही थी।

    पारूल ने इरिटेटिंग टोन में कहा,
    "मुझे चेंज करना था, पर देखो ना मुझे कपड़े ही नहीं मिले! क्या आपने पहले से कोई अरेंजमेंट नहीं की थी? सिर्फ़ खुद के लिए ही दारू रखी थी क्या, जिसे पीकर एकदम झूमते हुए यहाँ तक आए हैं!"

    माहिर कोल्ड वॉइस में बोलता है,
    "मैं तुम्हारा नौकर नहीं हूँ जो तुम्हारे लिए अरेंजमेंट्स करूँ!"

    ये सुनकर पारूल आँखें झुकाते हुए बोलती है,
    "हम्म्... बात तो सही है आपकी! चलिए छोड़िए इसे, अब बहुत रात हो चुकी है। आप सो जाइए, मैं देख लूँगी, अपना कुछ तो मिलेगा ही यहाँ..."

    माहिर पारूल के केल्म टोन से परेशान हो चुका था। एक्चुअल में वो उसे परेशान करना चाहता था, लेकिन ऐसा हो ही नहीं रहा था। पारूल सब कुछ बहुत नॉर्मल होकर बोल रही थी, जैसे उसे कोई फ़र्क ही ना पड़ रहा हो!

    माहिर शर्ट के ऊपर के बटन खोलते हुए एक लंबी साँस लेता है, उसके बाद शूज़ निकालता है और स्लीपर पहनते हुए बाथरूम की तरफ चला जाता है।

    पारूल बस उसे जाते हुए देखती रह जाती है।

    पारूल ऊपर की तरफ देखते हुए बोलती है,
    "क्या इसके लिए सोलह सोमवार किए थे मैंने? ये चीटिंग है राम जी! माना वो सब भोलेनाथ से माँगना था, पर मैं क्या करूँ? आप ही का नाम आता है मेरे मुँह पर! मेरा दिल भी बस राम जी राम जी बोलता रहता है..."

    "खैर, ज़िंदगी में चीटिंग चलती रहती है। कभी आप करोगे और कभी मैं..."

    कुछ देर में माहिर अपनी वेस्ट पर तौलिया लपेटकर बाहर आता है। उसकी मस्कुलर बॉडी देखकर पारूल आँखें बंद कर लेती है। माहिर पारूल की इस अजीब हरकत को नज़रअंदाज़ करते हुए कपबोर्ड की तरफ बढ़ जाता है।

    पारूल ने अपनी आँखें धीरे से खोलकर एक बार फिर माहिर को देखा।

    जो टैटू पिक्चर में उसने देखे थे, वो रियल में और भी ज़्यादा डेंजरस लग रहे थे।

    पारूल अपना स्लाइवा गटकते हुए बोलती है,
    "यार, ये कहाँ फँस गई तू पारूल... कहीं ये कोई माफ़िया-वाफ़िया तो नहीं? इतने ख़तरनाक और इतने सारे टैटू..."

    माहिर कपबोर्ड में से एक हूडी पारूल की तरफ़ फेंकते हुए बोलता है,
    "इसे पहन लो, फ़्रेश हो जाओ!"

    पारूल तो वैसे भी ज़्यादा देर माहिर के इस लुक को देख नहीं पा रही थी, वह लगभग भागते हुए बाथरूम में घुस जाती है।

    माहिर का नशा अब काफ़ी हद तक उतर चुका था, कुछ पारूल की बातें सुनकर तो कुछ बाथ लेकर...

    माहिर सिंपल वी-नेक की व्हाइट टीशर्ट पहनता है, ब्लैक लोअर के साथ, और बेड पर जाकर लेट जाता है। उसकी आँखों से नींद को कोसों दूर था।

    पारूल थोड़ी देर बाद बाथरूम से बाहर आती है। माहिर की नज़र भी आहट से अपने आप पारूल पर चली जाती है।

    माहिर की हूडी पारूल को थाइज़ तक आ रही थी, जिसमें उसके फ़्लफ़ी, सॉफ़्ट लेग साफ़-साफ़ दिख रहे थे। पारूल बाल झटकते हुए मिरर में आकर ऊपर से नीचे तक खुद को देखती है। जैसे ही उसकी नज़र मिरर से होते हुए माहिर के फ़ेस पर जाती है, तो शर्म से उसका चेहरा लाल हो जाता है और वह अपनी पलकें नीची कर लेती है, जिससे माहिर के दिल में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी।

    पारूल धीमे कदमों से चलकर बेड तक आती है और फिर दूसरी तरफ़ मुँह करके लेट जाती है।

    माहिर अब एकटक उसकी बैक को देख रहा था।

    पता नहीं क्यों, पर उसका मन कर रहा था वो उसे पीछे से होल्ड कर ले।

    कुछ देर बाद माहिर के कंट्रोल ने उसका साथ छोड़ दिया और उसने पारूल की कमर को पकड़कर खुद से चिपका लिया और उसके गीले बालों में अपना चेहरा छुपाकर उसे स्निफ़ करने लगा।

    वहीं माहिर की इस हरकत से पारूल का दिल रोलर कोस्टर की तरह धड़कने लगा। उसकी आँखें इस वक्त बड़ी-बड़ी होकर एकदम गोल हो गई थीं, जिससे वह एकदम बिल्ली जैसी लग रही थी।

    "...आप... आ... आप क्या कर रहे हैं...?"

    माहिर हस्की वॉइस में बोलता है,
    "टुडे इज़ आवर वेडिंग नाइट स्वीटहार्ट।"

    क्या रंग लाएगी माहिर और पारूल की करीबी?

  • 11. Arrange marriage - Chapter 11

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    दूसरी तरफ ध्रुविका और कबीर का कमरा।

    ध्रुविका बेड पर बैठी थी। उसने अब तक कपड़े बदल लिए थे और एक कम्फ़र्टेबल नी-लेंथ नाइटी पहनी थी जो उस पर बहुत खूबसूरत लग रही थी।

    कबीर बाथरूम से फ्रेश होकर आया और अपनी क्यूट सी बीवी का फूला हुआ मुँह देखकर उसके होठों पर मुस्कान आ गई। वह अपने बाल झाड़ते हुए ध्रुविका के पास पहुँचा।
    "मेरा बच्चा नाराज़ है मुझसे! hmm"
    कबीर ध्रुविका के सामने बैठते हुए बोला।

    तो ध्रुविका ने नज़रें फेरते हुए कहा,
    "ज़्यादा चिपकू बनने की कोशिश मत करो। और चुपचाप सोफ़े पर सो जाओ।"

    कबीर ने ध्रुविका का चेहरा अपने हाथों में भरते हुए कहा,
    "आई एम सॉरी ना बच्चा!"
    "मैं भी हमारे बेबी से प्यार करता हूँ।"

    ध्रुविका ने कबीर के हाथ झटकते हुए कहा,
    "अगर ऐसा होता तो तुम मुझे अबॉर्शन के लिए बिलकुल नहीं बोलते। खुद अपनी मर्ज़ी से शादी करते ना कि फ़ैमिली वालों के प्रेशर में आकर।"

    कबीर ने ध्रुविका के दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा,
    "मैं उनके प्रेशर में आकर किसी से शादी नहीं कर सकता। इसमें मेरी भी मर्ज़ी शामिल थी और मेरे बड़े भाई से पहले मैं शादी की सोच भी नहीं सकता था।"
    "फ़ैमिली में ऑलरेडी बहुत मनमुटाव है। एक और गलती मैं नहीं करना चाहता था।"

    "तुम्हें हमारा प्यार गलती लगता है?" ध्रुविका ने कहा।

    कबीर एकदम से उसे अपने करीब करते हुए बोला,
    "ट्राई टू अंडरस्टैंड ना जाना!"
    "मुझे फ़ैमिली और तुम में से किसी को हर्ट नहीं करना था। आई एम सॉरी, आई एम रियली सॉरी!"
    "अब स्माइल भी कर दो hmm"

    ध्रुविका की पलकें अब भी झुकी हुई थीं। तो कबीर ने बड़े दिलकश अंदाज़ में उसका चेहरा अपनी तरफ़ करते हुए कहा,
    "तुम कहो तो रोज़ हज़ार बार सॉरी कहूँगा। और तुम कहो ना बोलने के लिए तो पूरे दिन मुँह तक ना खोलूँगा।"
    "अब से तुम रूठ जाओ और मैं मनाऊँ, ये ही ज़िंदगी का वसूल रखूँगा। क्योंकि अपने दिल का हर दबा पन्ना भी तो सिर्फ़ तुम्हारे सामने खोलूँगा।"
    "मैंने दिल दुखाया है तो ये नाराज़गी वाला दर्द भी झेलूँगा।"

    ध्रुविका के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान खिली, जिसे देखकर कबीर के जलते दिल पर ठंडी ओस की बूंदों सा असर हो रहा था। और उसने आगे बढ़कर ध्रुविका के माथे को अपने ठंडे होठों से छू लिया।

    दोनों के चेहरों पर सुकून बिखर गया।


    अगली सुबह।
    माहिर का कमरा।

    माहिर की आँखें चेहरे पर धूप पड़ने के कारण खुलीं। वह जैसे ही आँखें खोला, देखा वह बेड पर अजीबोगरीब पोज़िशन में लेटा हुआ था।

    वह जल्दी से उठकर बैठ गया और चारों तरफ अपनी नज़रें घुमाईं। उसकी नई-नवेली दुल्हन कहाँ है, बस यह जानने के लिए। पर पूरे कमरे में सन्नाटा पसरा था।

    माहिर जल्दी से उठा और फिर फ्रेश होने चला गया।

    कुछ देर बाद जब वह नीचे पहुँचा, तो पूरे घर में चहल-पहल मची हुई थी।

    कुछ आदमियों को कौशल्या जी जल्दी-जल्दी कुछ करने को बोल रही थीं। माहिर के चेहरे पर कन्फ़्यूज़न साफ़-साफ़ झलक रहा था।
    तभी कबीर भी अपने रूम से बाहर आया और फिर कौशल्या जी के पास जाकर बोला,
    "ये सुबह-सुबह क्या हो रहा है मॉम? कुछ स्पेशल है क्या?"

    कौशल्या जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
    "तुम्हारी भाभी को सुबह पूजा करने की आदत है और घर में राम जी का मंदिर नहीं था, बस इसलिए यहाँ हम मूर्ति स्थापना करवा रहे हैं।"

    ये सुन कबीर जहाँ खुश हुआ, माहिर की भौंहें तन गई थीं।

    उसकी बीवी तो बड़ी ड्रामाबाज़ निकली! पहले ही दिन सारा घर सर पर उठा लिया है।

    कुछ ही देर में मूर्ति स्थापना हो गई।

    माहिर बस अब निकलने ही वाला था क्योंकि यहाँ बैठकर तो वह कभी ब्रेकफ़ास्ट करता नहीं, तो उसका कोई काम नहीं था यहाँ।

    पर अचानक ही उसके कानों में पारूल की मीठी सी आवाज़ आई,

    "मेरी चौखट पे चल के आज, चारों धाम आये हैं, बजाओ ढोल स्वागत में, मेरे घर राम आये हैं।"

    ये आवाज़ सुनकर माहिर के कदम अपने आप मंदिर की तरफ़ बढ़ गए।

    "कथा शबरी की जैसे, जुड़ गयी मेरी कहानी से,
    ना रोको आज धोने दो चरण, आँखों के पानी से,
    बहुत खुश हैं मेरे आँसू, के प्रभु के काम आये हैं।
    बजाओ ढोल स्वागत में, मेरे घर राम आये हैं।"

    जैसे ही भजन खत्म हुआ, पारूल ने आरती की थाली लेकर पीछे मुड़कर सबको देखा। सामने पूरा ओबेरॉय परिवार खड़ा था और साथ में बड़ी सी मुस्कान लिए ध्रुविका।

    आज पारूल ने पिंक साड़ी पहनी हुई थी, जिससे उसका दूधिया रंग और ज़्यादा खिल रहा था। उसकी ख़ूबसूरती माहिर की आँखों में बसती चली जा रही थी।

    माहिर को पता भी नहीं चला कब वह चलकर बिल्कुल उसके करीब आ गई।

    पारूल ने जैसे ही उसे प्रसाद हाथ में दिया, माहिर एकदम से अपने होश में वापस आया।

    और फिर नज़रें चुराते हुए जल्दी से वह प्रसाद हाथ में लिया और जाने के लिए मुड़ गया।

    पारूल तो बस उसे देखती रह गई। अजीब इंसान है! सुबह-सुबह मुँह फुला के रखता है।

    वहीँ माहिर के लिए यह एम्बेरैसिंग था। वह जल्दी से प्रसाद खाते हुए मेन डोर से बाहर चला गया।

    कौशल्या जी आँखों में पानी लिए माहिर को देख रही थीं। वहीँ तुषार जी ने भी गहरी साँस छोड़ते हुए ना-में सर हिला दिया।

    उन दोनों के लिए अपने बेटे का यूँ मुँह मोड़ना बहुत दुखद था। पर कहीं ना कहीं उन्हें अपनी ही गलती लगती है, इसलिए वे माहिर को कुछ कहना भी नहीं चाहते हैं।

    कुछ देर बाद सब ब्रेकफ़ास्ट करने बैठ चुके थे। कबीर बहुत खुश था। फ़ाइनली ध्रुविका उससे आराम से बात कर रही थी और उसके साथ बैठकर खाना भी खा रही थी। वहीँ पारूल माहिर के बिहेवियर को याद कर रही थी और सोच रही थी आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए इस कहानी को।

  • 12. Arrange marriage - Chapter 12

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    अचानक पारुल के दिमाग में क्लिक हुआ। उसने शादी के समय कहा था कि वह उस पर निर्भर नहीं रहेगी और अपना काम करेगी। क्या माहिर इसलिए नाराज़ है?

    पता नहीं, और क्या-क्या पारुल सोच रही थी।

    तभी कौशल्या जी ने कहा,
    "बेटा, किस सोच में गुम हो? खाना क्यों नहीं खा रही हो? कोई परेशानी है तो बेझिझक हमसे शेयर कर सकती हो।"

    परी ने भी चहकते हुए कहा,
    "हाँ भाभी, कुछ भी प्रॉब्लम हो, बस एक आवाज आपकी, नंद हमेशा तैयार रहती है।"

    तुषार जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
    "इसे भी अपना ही घर समझो। हम तुम्हारे माँ-बाप की ही तरह तुम्हारा ख्याल रखेंगे।"


    पारुल ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा,
    "एक्चुअली, हमें जॉब करनी है! तो आप..."

    कौशल्या जी ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा,
    "तो इसमें पूछने वाली कौन सी बात है बेटा? हमारी ही कंपनी में जॉब करो ना।"

    पारुल जो निवाला खाने ही वाली थी, उसके हाथ रुक गए। वह हैरानी से कौशल्या जी की तरफ देखने लगी। वह तो माहिर से दो गज़ की दूरी रखना चाहती है और ये उसे उसी के पास भेज रहे हैं।

    पारुल ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा,
    "मम्मी जी, मुझे वीआईपी ट्रीटमेंट्स नहीं चाहिए। मुझे एक्सपीरियंस गेन करना है। पहले वहाँ मैं सीईओ की वाइफ हूँ, तो मुझे एम्प्लॉय अलग नज़र से देखेंगे, जो मुझे मंज़ूर नहीं। इसलिए मैं कहीं और जॉब कर लूँगी।"

    तुषार जी ने एकदम से कहा,
    "कोई बात नहीं बेटा। हम किसी को इन्फॉर्म नहीं करेंगे कि तुम माहिर की बीवी हो।"

    "और तुम्हें एक्सपीरियंस भी मिल जाएगा।"

    "और हमें शांति भी रहेगी कि तुम सेफ हो, क्योंकि बाहर कहीं जाओगी तो सेफ्टी की चिंता लगी रहेगी।"

    पारुल के पास अब बोलने को कुछ नहीं बचा था। वह बेमन से खाना खा रही थी।

    और मन ही मन खुद को कोस रही थी। क्या ज़रूरत थी यह बोलने की? अब तो माहिर नाम के बम से रोज़ सामना करना पड़ सकता है उसे।


    आज का दिन ऐसे ही गुज़र गया था। पारुल काफी हद तक परी और कौशल्या जी में घुल-मिल चुकी थी। वहीं ध्रुविका ने जैसे सोचा था, खड़ूस सास-ससुर, वे वैसे नहीं थे। और उसका हसबैंड भी कितना लविंग है! तो उसे भी उन सब के साथ रहने में घर वाली फीलिंग आ रही थी।

    आज शाम को अभिनव, पारुल और ध्रुविका को पैगफेर की रस्म के लिए घर लेकर जाने वाला था, जिसके लिए पारुल और ध्रुविका दोनों रेडी हो रही थीं।

    पारुल ने एक पिसता ग्रीन कलर की साड़ी पहनी थी, जिसमें उसका दूधिया रंग निखर कर बाहर आ रहा था।

    पर अफ़सोस, उसका पति इतना खड़ूस है, देखता तो भी उससे तारीफ़ की उम्मीद करना गलत है।


    ध्रुविका का रूम...

    ध्रुविका मिरर में देखते हुए अपनी रेड साड़ी की प्लीट्स सही कर रही थी। वहीं कबीर का चेहरा उतरा हुआ था।

    वह बेड पर बैठा था।

    उसकी नज़रें बार-बार अपनी बीवी की तरफ़ उठ रही थीं। जो जब-जब साड़ी को उठा रही थी, उसकी दूधिया कमर दिख रही थी।

    और प्रेगनेंसी की वजह से वह बहुत ज़्यादा साइन भी कर रही थी।

    कबीर की यह क्यूट सी बीवी अब उसे छोड़कर जा रही थी। तो बेचारा सोच रहा था क्या करे और क्या ना करे।

    उससे सब्र नहीं हुआ, तो वह उठा और ध्रुविका के पास जाकर उसे पीछे से हग कर लिया।

    और उसके बालों को स्निफ करते हुए धीमी आवाज़ में बोला,
    "प्लीज़ मत जाओ। बच्चा मैं कैसे रहूँगा? मुझे तो रात को बेबी से कितनी सारी बातें करनी होती हैं।"

    ध्रुविका ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,
    "बोल तो ऐसे रहे हो जैसे तुम्हारा बेबी सब कुछ ही समझता है तुम्हारे बारे में।"

    "एंड अभी तो मेरा बेबी बम्प भी नहीं आया। अभी तो वह अच्छे से बना भी नहीं, कैसे समझेगा तुम्हारी बातें?"

    "अब छोड़ो मुझे, दीदी वेट कर रही है मेरा..."

    ध्रुविका आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही कबीर ने उसे अपनी तरफ़ मोड़ते हुए उसके होठों को अपने कब्ज़े में कर लिया।

    और इतनी बेसब्री से उसे चूमने लगा, जैसे आज के बाद उसे कभी मौका ही नहीं मिलेगा।


    अभिनव हॉल में सोफ़े पर बैठा था। उसके सामने ही तुषार जी बैठे थे।

    "परी बेटा, अभिनव के लिए कुछ लेकर आओ, स्नैक्स वगैरह! बताओ पहले बेटा, क्या लोगे, ठंडा-गर्म?"

    अभिनव को थोड़ा अकवर्ड लग रहा था। इतने बड़े आदमी के घर वह पहली बार मेहमान बनकर आया था। ऊपर से ये उसकी बहनों के ससुराल वाले।

    उसने हिचकते हुए कहा,
    "नथिंग अंकल, मैं बस खाकर ही आया हूँ!"

    परी ख़ुन्नस लिए उसे देख रही थी। क्योंकि वह जब बारात वाले दिन उनके घर गई थी, अभिनव और उन दोनों की लड़ाई हो गई थी।

    और अभिनव ने बड़ा रौब दिखाया था कि यह उसका घर है। पर अब जब वह परी के घर आया है, तो बेचारी को उसकी खातिरदारी करनी पड़ रही है।

    कुछ देर बाद पारुल, ध्रुविका और अभिनव वहाँ से भारद्वाज हाउस के लिए निकल चुके थे।


    रात का समय...

    आज माहिर जल्दी ऑफ़िस से आया था। और इसका रीज़न शायद उसे खुद नहीं पता था। जब से उसने पारुल को देखा था, बस बार-बार उसे देखने का मन कर रहा था।

    पूरे दिन ऑफ़िस में वह उसी के बारे में सोच रहा था और पूरे रास्ते उस पर गुस्सा निकालते हुए आया।

    "घर जाके पता नहीं उसे क्या-क्या सुनाऊँगा, ये करूँगा, वो करूँगा।"

    पर जब वह घर आया, तो उसे पारुल कहीं नज़र नहीं आई।

    और अगर किसी से पूछ ले, तो जनाब की इज़्ज़त कम हो जाए।

    इसलिए बार-बार किसी न किसी बहाने से कभी किचन में जा रहा था, तो कभी कबीर के रूम में, कभी पारुल के रूम में।


    वहीं कबीर की अलग प्लानिंग चल रही थी। आखिर वह अपने ससुराल में एंट्री कैसे ले?

    और आखिर में उसे खिड़की तोड़ दामाद बनने वाला आइडिया सबसे अच्छा लगा।

    और वह निकल पड़ा भारद्वाज हाउस के लिए।

  • 13. Arrange marriage - Chapter 13

    Words: 1001

    Estimated Reading Time: 7 min

    माहिर को ऐसे परेशान होकर घर में घूमते देख परी ने कन्फ्यूज़न में कहा,

    "भाई, आपका कुछ खो गया है?"

    की तभी किसी ने घर में एंट्री ली और यह था विवेक। विवेक ने धीरे से कहा,

    "आज घर का माहौल शांत कैसे है?"

    माहिर ने कुछ नहीं कहा, अभी भी कहीं गुम था।

    परी ने कहा,
    "देखिए ना विवेक भाई, माहिर भाई कब से इधर-उधर चक्कर लगा रहे हैं। अब समझ नहीं आ रहा क्या खो गया है।"

    परी की बात सुनकर विवेक को हँसी आ गई। फिर उसने एक नज़र माहिर को देखकर, उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "क्या हुआ जनाब? लगता है बीवी खो गई है ना?"

    माहिर, जिसकी नज़रें पारुल को तलाश रही थीं, उसने हाँ में सर हिलाते हुए कहा,

    "सुबह तो यही थी...!!!"

    और अचानक ही उसे ख्याल आया वो क्या कर रहा है और उसने झटके से विवेक का हाथ अपने कंधे से झटकते हुए कहा,

    "हट!!! मैं चाह रहा था घर का भी रिनोवेशन करवा लूँ, जैसे मंदिर का हुआ है। मैं किसी को ढूँढ नहीं रहा था..."

    विवेक ने अपनी हँसी कंट्रोल करते हुए, आँखें छोटी करके कहा,

    "Are you sure?"

    माहिर ने इस बार थोड़े गुस्से में कहा,

    "तभी तो मैं घर को घूम-घूम कर देख रहा था।"

    विवेक की हँसी अब रोक नहीं रुक रही थी।

    "भाई, फिर तू इतनी सफ़ाई क्यों दे रहा है? आज से पहले तो नहीं दी।"

    इतना बोलकर विवेक ने परी को एक हाई-फाइव दिया और दोनों मुँह दबाकर हँसने लगे।


    माहिर गुस्से में मुट्ठियाँ कसते हुए जाने को मूड गया और परी ने एकदम से कहा,

    "भाभी अपने घर गई हैं। सुबह आपको ही लेके आना है उनको।"

    माहिर के जाते कदम रुक गए और उसने जाड़ भींचते हुए कहा,

    "क्यों? वो छोटी बच्ची है जो गोद में लेकर आऊँगा? अपने आप आ सकती है वो। जिन पैरों से गई थी उन्हीं पैरों से।"

    की कौशल्या जी ने कहा,

    "तुम कहाँ जा रहे हो? तो खाना तो खाओ। और ये रस्म होती है, दुल्हन अपने भाई के साथ अपने मायके जाती है और पति के साथ वापस आती है!"

    "तुम्हें और कबीर दोनों को जाना है!"

    परी ने कहा,
    "पर कबीर भाई तो बोल रहे थे आज वो आउट ऑफ टाउन गए हैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए..."

    कौशल्या जी ने सर पर हाथ रखते हुए कहा,

    "क्या करूँ मैं इन दोनों का!! अब उन बच्चियों को लाने क्या मैं और तेरे पापा जाएँगे!! पत्नियाँ तो इनकी हैं ना वो!"

    माहिर अब तक इनकी बातें सुनकर थक गया था। वो तेज़ी से अपने रूम में चला गया।


    रूम में आते ही उसने एक मुक्का दीवार पर मारते हुए, गुस्से से गुर्राकर कहा,

    "ये लड़की अपने इशारों पर नचाना चाहती है माहिर ओबरॉय को, पर मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगा...!!!"


    रात का वक़्त।
    भारद्वाज हाउस।
    मुंबई।

    ध्रुविका आराम से अपने बेड पर लेटी थी कि अचानक एक साया उसकी गैलरी से होते हुए रूम के अंदर इंटर हुआ।

    और ध्रुविका एकदम से डर गई। उसकी आँखें खुल गईं।
    पर हिम्मत नहीं हो रही थी पीछे मुड़कर देखने की, कौन है।

    डर के मारे उसके चेहरे पर पसीना आ गया।

    वो साया लगातार उसकी तरफ़ बढ़ता जा रहा था और एक पल बाद वो उसके बिल्कुल करीब था।

    और ध्रुविका ने डर के मारे अपनी आँखें भींच लीं।


    उस साये ने अपना हाथ ध्रुविका को टच करने के लिए उठाया और ध्रुविका की डर के मारे चीख निकल गई।

    पर अगले ही पल कबीर ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा,

    "चीखो मत, प्लीज़!"

    कबीर की आवाज़ सुनकर ध्रुविका ने झट से अपनी आँखें खोल दीं और गुस्से से कबीर को घूरने लगी।

    कबीर ने झट से मासूमियत से अपने दोनों कान पकड़ते हुए कहा,

    "सॉरी बच्चा, पर मुझसे रहा नहीं जा रहा था तुमसे मिले बिना।
    कसम से मैंने ट्राई किया था कि मैं ना आऊँ और खाना खाकर सो जाऊँ, पर ऐसा नहीं हो पाया।

    I am really sorry."

    ध्रुविका ने गुस्से में कहा,

    "तो फिर भूत की तरह आने की क्या ज़रूरत थी? रास्ता नहीं है या आपके पास फ़ोन नहीं है जनाब, जो मुझे कॉल नहीं कर सकते थे?
    पता है कितना ज़्यादा डर गई थी मैं?"

    कबीर ने कहा,
    "कान पकड़ ले, सॉरी बोल रहा हूँ ना, प्लीज़ माफ़ कर दो।"

    इतना बोलकर उसने धीरे से साइड लैंप ऑन किया, जिससे उसकी खूबसूरत बीवी का चेहरा बिलकुल सोने की तरह चमकता हुआ उसकी बेसब्र आँखों के सामने आ गया।

    और उसके होठों पर सुकून भरी मुस्कान बिखर गई।


    कबीर ने धीरे से ध्रुविका के माथे पर किस किया और उसके बाल सहलाते हुए बोला,

    "मुझे तुम्हारी आदत हो गई है।"

    और उसके बाद उसके बेबी बम्प को छूते हुए बोला,
    "और इस नन्हे शैतान की भी।"

    ये बोलते वक़्त कबीर के चेहरे पर अलग ही चमक नज़र आ रही थी।

    ध्रुविका ने भी हल्की सी मुस्कराहट के साथ थोड़ा सा खिसककर कबीर के लिए बेड पर जगह बना दी।

    और कबीर की खुशी का तो ठिकाना नहीं था। वो जल्दी से उसके पास लेटते हुए उसे अपनी बाहों में भर लेता है।


    अगली सुबह।

    पारुल जल्दी-जल्दी रेडी हो रही थी। उसने आज वाइन कलर की नेट की साड़ी पहनी थी और मैचिंग प्लेन ब्लाउज़, हाथों में भर के चूड़ियाँ, माथे पर बिंदी, माँग में सिंदूर, होठों पर लाली, आँखों में काजल, एकदम नई-नवेली दुल्हन की तरह तैयार हुई थी वो।

    वो जल्दी से नीचे जाकर सबसे पहले आरती करती है, जिसमें नवदीप जी, सुप्रिया जी और अभिनव तीनों मौजूद थे।

    इतने दिनों बाद पारुल की मीठी आवाज़ सुनकर उनके चेहरों पर सुकून बिखरा हुआ था।

  • 14. Arrange marriage - Chapter 14

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    भारद्वाज हाउस। सुबह।

    पारुल वहाँ पहुँचकर आरती कर रही थी। कुछ ही देर में आरती पूरी हुई और पारुल सुप्रिया जी के साथ मिलकर नाश्ता बनाने लगी।

    सुप्रिया जी ने खाना बनाते हुए पूछा,
    "बेटा, दामाद जी कितने बजे आयेंगे? कुछ पता है तुम्हें?"

    पारुल के चलते हाथ एकदम से रुक गए और उसकी आँखों के सामने माहिर का गुस्से से भरा चेहरा घूम गया। वह उसके आने की उम्मीद भी कैसे कर सकती है?

    उसके चेहरे पर चिंता देखकर सुप्रिया जी के हाथ भी रुक गए।
    "कोई परेशानी है बेटा?"

    उन्होंने अपनी बेटी को यूँ शांत रहता देख पूछा। पारुल ने हल्की मुस्कान के साथ ना में सर हिलाते हुए कहा,
    "नहीं माँ, ऐसी कोई बात नहीं है। बस उनकी इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है, तो पता नहीं वो आ पाएँगे या नहीं।"

    सुप्रिया जी ने कहा,
    "कोई बात नहीं। वो नहीं तो कबीर आ जाएँगे, वो भी घर के दामाद हैं ना।"

    पारुल ने हल्के से हाँ में सर हिला दिया। उनका किचन एक ओपन किचन था जो हॉल से बिलकुल अटैच्ड था।

    हॉल में नवदीप जी अखबार पढ़ रहे थे। पारुल की बातें सुनकर उन्हें अजीब लग रहा था और शक हो रहा था माहिर पर। कहीं जैसे अमीर घर के लड़के अपनी पत्नियों को धोखा देते हैं, उन्हें परेशान करते हैं, उनका दामाद भी तो कहीं वैसा नहीं? क्योंकि पारुल बेहद परेशान नज़र आ रही थी। सुप्रिया जी पारुल से ज़्यादा ध्रुविका से कनेक्टेड थीं और नवदीप जी पारुल से। उन्हें अपनी बेटी की आँखों में आ रही उदासी पढ़ना बखूबी आता था।

    वह कुछ सोच ही रहे थे कि अचानक ही किसी की नींद भरी आवाज़ आई,
    "मॉम, मेरी कॉफी क्यों नहीं आई अभी तक?"

    और यह और कोई नहीं, बल्कि कबीर था। जनाब भूल चुका था कि वह अपने घर नहीं, बल्कि ससुराल आया हुआ था।

    नवदीप जी ने ऊपर की तरफ़ देखा और कबीर को यूँ देखकर उनकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। आखिर कबीर कब आया होगा यहाँ? ऐसा ही कुछ हाल पारुल और सुप्रिया जी का था। उन दोनों ने एक बार एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर कबीर की तरफ़।

    कबीर को जब कोई जवाब नहीं मिला तो उसने आँखें उठाते हुए देखा और अगले ही पल उसके मुँह से चीख निकल गई। उसने लगभग उछलते हुए सीढ़ियों की रेलिंग को पकड़ लिया। उसे चीखता देखकर तो नवदीप जी और ज़्यादा डर गए। पर कबीर अगले ही पल ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए बोला,
    "G.. good morning father-in-law... Hihihi... Good.. good morning mother-in-law! Good morning भाभीजी! मैं वो... मैं..."

    इसके आगे उसके पास बताने के लिए कुछ नहीं था।

    अभिनव अपने रूम में था। वह भी कबीर की चीख सुन चुका था, इसलिए तेज़ी से चलते हुए सीढ़ियों की तरफ़ आया और कबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,
    "जीजू…!"

    कबीर की डर के मारे फिर से चीख निकल गई। उसने मुड़ते हुए अभिनव को देखा और फिर अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोला,
    "डरे हुए इंसान के कंधे पर पीछे से हाथ नहीं रखना चाहिए, उसे हार्ट अटैक आ सकता है।"

    अभिनव ने धीरे से कहा,
    "ये आपने नहीं सोचा यहाँ आने से पहले? भूत की तरह सीधा दीदी के बेडरूम से निकलकर आ रहे हो। मेरे घरवालों को भी हार्ट अटैक आ सकता है।"

    कबीर ने बत्तीसी दिखाते हुए सबको देखा और ध्रुविका भी अब तक वहाँ आ चुकी थी। उसकी शक्ल पर बारह बज रहे थे। उसका पति किसी काम का नहीं है, हर बार गलत जगह पर गलत एंट्री ले लेता है। उसने रोती हुई शक्ल बनाकर कबीर की तरफ़ देखा और फिर अपने पापा की तरफ़। उसका चेहरा शर्म से झुक गया था।

    कि अचानक सुप्रिया जी को हँसी आ गई और उन्होंने हँसते हुए कहा,
    "कोई बात नहीं दामाद जी, इतनी शर्मिंदगी रखना बुरी बात है, वो भी अपने ही ससुराल आकर। ये भी घर ही है और मैं आपकी मॉम जैसी ही हूँ। अभी आपके लिए कॉफी लेकर आती हूँ, आप फ़्रेश हो जाइए। अभिनव के कपड़े आ जाएँगे आपको।"

    कबीर सर खुजाता हुआ हाँ में सर हिलाकर चला गया। वहीं पारुल किसी सोच में गुम हो चुकी थी। कितना अंतर था दोनों भाइयों में! उसने सब्जियाँ काटते हुए कहा,
    "एक का स्वभाव बिल्कुल बर्फ की तरह ठंडा है और मेरे वाले आग का गोला है। हूँ… मेरी किस्मत ही फूटी है…"

    ओबेरॉय मेंशन…

    ओबेरॉय मेंशन में अलग जंग छिड़ी थी: माहिर v/s कौशल्या जी।

    कौशल्या जी ने गुस्से भरी आवाज़ में कहा,
    "माहिर, हम नहीं चाहते मिस्टर और मिसेज़ भारद्वाज को लगे कि उनकी बेटी यहाँ खुश नहीं है। तो तुम्हें उन दोनों को लेके आना ही पड़ेगा।"

    माहिर ने जवाब दिया,
    "मिसेज़ ओबेरॉय… सामने कौन खड़ा है, आपको ये भी पता होना चाहिए। माहिर ओबेरॉय ऑर्डर देता है, ऑर्डर फ़ॉलो नहीं करता। और जो करना है कर लीजिए, मैं उसे लेने बिल्कुल नहीं जाऊँगा।"

    तुषार जी ने गुस्से से गरजते हुए कहा,
    "माहिर, दिन ब दिन और बदतमीज़ होते जा रहे हो। माँ है वो तुम्हारी।"

    माहिर सीढ़ियों की तरफ़ जा चुका था, पर तुषार जी की बात सुनकर वो मुड़ा और रेलिंग पर कसकर हाथ मारते हुए बोला,
    "माँ नहीं हैं ये मेरी… सिर्फ़ आपकी पत्नी हैं। ये बात मैं हज़ार बार बोल चुका हूँ, समझे आप?"

    इतना बोलकर वो तेज़ी से अपने रूम की तरफ़ चला गया और कौशल्या जी की आँखों में आँसू आ गए। तुषार जी ने उन्हें अपने सीने से लगाते हुए कहा,
    "शायद उसे और ज़्यादा टाइम चाहिए…"

    कौशल्या जी सिसकते हुए बोलीं,
    "अब पारुल और ध्रुविका…"

    तुषार जी ने कहा,
    "हम कोई बहाना बना देंगे माहिर के न जाने का और हम खुद उन दोनों को लेकर आएँगे। अब आप गंगा-जमुना बहाना बंद कीजिए।"

  • 15. Arrange marriage - Chapter 15

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    भारद्वाज मेंशन

    अभिनव के कपड़ों में कबीर काफी कूल लग रहा था, जिससे अभिनव को हल्की जलन हो रही थी। उसके जीजू उससे ज़्यादा good looking थे।

    वह उस वक्त अपना ब्रेकफ़ास्ट एन्जॉय कर रहे थे। पारुल और ध्रुविका भी उनके साथ बैठी थीं। सुप्रिया जी सबको डिनर सर्व कर रही थीं।

    सुप्रिया जी ने सबको खाना परोस दिया। तो पारुल ने कहा,

    "माँ, अब आप भी हमारे साथ ही खाना खा लीजिए।"

    कबीर गर्दन झुकाए, चुपचाप खाना खा रहा था। उसे शर्म आ रही थी। वह अपनी एक गलती से ही नहीं उबर पाया था कि एक बार फिर stupid सा behave कर चुका था।

    पर नवजीत और सुप्रिया जी के मन में अब कबीर के लिए कोई खटास नहीं थी।

    उन्होंने उसकी बचपने की गलती समझकर उसे माफ़ कर दिया था।

    कुछ देर बाद, कबीर घर जाने के लिए तैयार था, और उसके साथ पारुल और ध्रुविका भी।

    वे तीनों आशीर्वाद लेते हुए वहाँ से ओबेरॉय मेंशन के लिए निकल गए।

    वहीं ओबेरॉय मेंशन में कौशल्या जी और तुषार जी बिल्कुल तैयार थे अपने संबंधियों के घर जाने के लिए।

    वे सब जल्दी-जल्दी कर रहे थे ताकि लंच के वक्त तक वहाँ पहुँच सकें।

    करीब बीस मिनट में उन्होंने अपने संबंधियों के लिए गिफ्ट तैयार कर लिए थे और खुद भी तैयार हो गए थे।

    वे बस मेन गेट से निकल ही रहे थे कि उन्हें मुस्कुराते हुए कबीर, ध्रुविका और पारुल दिखाई दिए। वे आँखें फाड़े उन्हें देखने लगे।

    पारुल और ध्रुविका ने आगे आकर उनके पैर छुए। तुषार जी और कौशल्या जी ने मुस्कुराकर उन्हें आशीर्वाद दिया। फिर कौशल्या जी कबीर का कान मरोड़ते हुए बोलीं,

    "मेरे लाल, तू तो आउट ऑफ़ टाउन गया था ना? ये ससुराल कैसे पहुँच गया?"

    "आ...आउच, मम्मा...बस...बस ऐसे ही घूमते-फिरते।"
    "सॉरी, सॉरी...आह..."

    कौशल्या जी ने हँसते हुए उसके कान को छोड़ दिया और फिर मुस्कुराते हुए अंदर ले आईं।


    अंदर आते ही उन्होंने देखा, माहिर ऑफ़िस जाने के लिए तैयार था।

    तुषार जी ने उसे रोकते हुए कहा,

    "माहिर, हमें तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

    माहिर की तिरछी नज़रें पारुल पर टिकी थीं क्योंकि वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। हमारे माहिर को, पर वह उसे यह महसूस नहीं करवाना चाहता था कि बस एक दिन में वह उसके दीदार के लिए तरस गया है।


    माहिर ने जेब में हाथ डालते हुए कहा,

    "हाँ, बोलिए डैड।" और फिर एक नज़र बोरियत से बाकी सबको देखा।

    वहीं कबीर ने चुपके से ध्रुविका का हाथ पकड़ा और साइड से उसे वहाँ से सीढ़ियों की तरफ़ ले जाने लगा।

    क्योंकि उसे सिर्फ़ अपनी वाली से मतलब है, बाकी दुनिया जाए भाड़ में। ना इम्पॉर्टेन्ट बात, ना इम्पॉर्टेन्ट काम।


    तुषार जी ने एक नज़र पारुल को देखते हुए कहा,

    "आज से पारुल भी तुम्हारे साथ ऑफ़िस जाएगी। उसे तुम चाहे जो जॉब दे सकते हो। उसकी आइडेंटिटी छिपाना चाहो तो छिपाना, otherwise वो तुम दोनों के बीच का मैटर है। And I think तुम्हारी पर्सनल असिस्टेंट तो बन ही सकती है वो?"

    माहिर ने एक नज़र पारुल को देखते हुए कहा,

    "मुझे नहीं लगता यह मेरी पी.ए. बनने जितनी काबिलियत रखती है।"

    उसके कड़वे शब्द पारुल को सीधे दिल पर लग रहे थे, पर वह कुछ नहीं बोली। वह सर झुकाए ही खड़ी थी।

    तुषार जी ने आँखें छोटी करते हुए कहा,

    "किसी का काम देखे बिना तुम कैसे उसकी काबिलियत जज कर सकते हो, माहिर?"

    माहिर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,

    "Because I have a businessman's eyes."

    पारुल ने तुषार जी को बीच में रोकते हुए कहा,

    "इट्स ओके, पापा जी। अगर पी.ए. की पोस्ट ना मिले तो भी कोई बात नहीं। बस मुझे तो जॉब करनी है। और यह सही तो बोल रहे हैं, मुझे ज़्यादा एक्सपीरियंस नहीं है, तो शायद मैं एक बड़ी पोस्ट के काबिल नहीं हूँ।"

    पारुल की समझदारी से कौशल्या जी और तुषार जी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।

    वहीं माहिर की मुट्ठियाँ गुस्से में कस गईं। वह चाहे कितनी कोशिशें कर ले, पर इस लड़की को नीचा नहीं दिखा पा रहा था।

    कुछ देर बाद, माहिर का ड्राइवर कार ड्राइव कर रहा था। बैक सीट पर माहिर और पारुल बैठे थे।

    पारुल ने अब भी वही डार्क वाइन कलर की साड़ी पहनी थी जो वह घर से पहनकर आई थी।

    बीच रास्ते में ही माहिर ने एक तेज आवाज के साथ कहा,

    "स्टॉप द कार!"

    माहिर की ऐसी आवाज सुनकर ड्राइवर ने डरते हुए कार रोक दी।

    और माहिर ने पारुल की साइड का दरवाजा खोलते हुए कहा,

    "जाइए मोहतरमा...आप एक नॉर्मल एम्प्लॉयी की हैसियत से ही ऑफिस में आना समझी!!!"

    पारुल ने हैरानी से माहिर को देखा। कितना बदतमीज़ पति है उसका!

    उसकी आँखों में नमी तैर गई, पर फिर उसने हल्की मुस्कराहट के साथ कहा,

    "अब मेरे पतिदेव ने कहा है तो मानना ही पड़ेगा। उनका कहना मानिए। आप फैल के बैठिए अपनी लंबी-चौड़ी गाड़ी में, मैं आ जाऊँगी एक नॉर्मल एम्प्लॉयी की हैसियत से।"

    इतना बोलकर पारुल गाड़ी से उतरी और एक झटके से गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया।

    और माहिर के गुस्से में जबड़े कस गए।

    ड्राइवर को भी माहिर की हालत पर हँसी आ गई। तो माहिर ने गुर्राती आवाज में कहा,

    "स्टार्ट द कार, इडियट!"

    और ड्राइवर ने हड़बड़ाते हुए कार स्टार्ट कर ली।

    माहिर की कार वहाँ से जा चुकी थी। आस-पास लगी शॉप्स वाले और आते-जाते लोग पारुल को अजीब नज़रों से देख रहे थे।

    पारुल ने मन ही मन माहिर को कोसा और फिर पैर पटकते हुए आगे बढ़ गई।

    वह आगे ज़रूर बढ़ रही थी, पर उस मंज़िल का एड्रेस उसके पास नहीं था।

    उसका दिल भी धड़क-धड़क कर रहा था। क्या पता माहिर का ऑफिस यहाँ से कितनी दूर हो? वह पैदल चलकर पूरे दिन में तो ऑफिस पहुँच जाएगी क्या?

    कई सवाल उसके दिमाग में घूम रहे थे।

  • 16. Arrange marriage - Chapter 16

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब समस्या यह थी कि उसे ओबेरॉय इंडस्ट्रीज का रास्ता नहीं मालूम था। ना यह पता था कि वह यहां से कितनी दूर है, उसे वहां जाने में कितना समय लग सकता है!

    पर पारुल ने हिम्मत करके किसी से पूछा,

    "सुनिए भाई साहब, यहां से ओबेरॉय ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज कितनी दूर है?"

    उस आदमी ने पहले तो पारुल को अजीब नजरों से देखा, फिर कहा,

    "मैडम, यहां से पैदल जाने में करीब चालीस मिनट लग जाएंगे।"

    पारुल की आंखें फटी रह गईं यह सुनकर, पर उसने फिर हल्की मुस्कान के साथ कहा,

    "आपका शुक्रिया। अब रास्ता यह सीधा वाला ही जाता है, क्या?"

    उस आदमी ने कहा,

    "हाँ, आप बस इस सड़क के किनारे-किनारे जाइए। आपको बिल्डिंग पर चमकती लाइट्स दिख जाएंगी। वह यहां की सबसे ऊंची बिल्डिंग है।"

    पारुल हाँ में सर हिलाते हुए आगे बढ़ गई और माहिर को फिर से कोसते हुए बोली,

    "शहर की सबसे बड़ी बिल्डिंग बनाने का क्या फायदा, जब आपका दिल चूहे के बिल से भी छोटा हो?"

    "हूं, मेरी ही फूटी किस्मत है राम जी, जो मैंने उनसे शादी कर ली… पर अब कर ही ली है तो भुगतनी तो पड़ेगी…"

    वहीं माहिर बड़ी शान से अपने केबिन की चेयर पर बैठा था। उसकी नज़रें बस एकटक सीसीटीवी फुटेज को घूर रही थीं, जो बिल्डिंग के प्रवेश द्वार का था। वह पारुल के आने का इंतज़ार पिछले आधे घंटे से कर रहा था। यहां आकर ना उसने कोई काम किया था, ना कोई मीटिंग अटेंड की थी। वह बस उस लैपटॉप को ही घूर रहा था। और उसे देख-देखकर उसका पी.ए., राम, अपना सर पकड़कर अफ़सोस कर रहा था कि उनकी कितनी महत्वपूर्ण मीटिंग छूट चुकी थी। पर उसके बॉस को हवा लगने जितना भी फर्क नहीं पड़ा था।

    और कुछ ही देर में माहिर का इंतज़ार खत्म हो चुका था, क्योंकि अपने साड़ी के पल्लू से पसीना पोंछते हुए पारुल मेन गेट के सामने खड़ी थी। उसकी साँसें फूल रही थीं।

    उसने जैसे ही अंदर आना चाहा, वहाँ खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोकते हुए कहा,

    "ओह मैडम! कहाँ चली अंदर? आज कोई इंटरव्यू नहीं हो रहा है और बिना पास के आप अंदर नहीं जा सकतीं।"

    पारुल का चेहरा और ज़्यादा उतर गया। वह धूप में इतनी दूर चलकर आई थी और अब उसे अंदर भी नहीं जाने दिया जा रहा था। उसने खुद में बड़बड़ाते हुए कहा,

    "क्या मुसीबत हो गया यार! यह पास-वापस भी लेना होता है क्या? मैं कहाँ से लाऊँ पास?"

    पारुल कन्फ्यूज़न के मारे अपने होंठ चबा रही थी। वहीं वह सिक्योरिटी गार्ड उसे ऊपर से नीचे तक गंदे तरीके से देख रहा था, क्योंकि पारुल की साड़ी पसीने से भीगकर उसके सीने और कमर पर चिपक चुकी थी, जिससे उसके कर्व्स इन्हैंस होकर दिख रहे थे। उसने एक गंदी मुस्कान करते हुए कहा,

    "क्या मैडम, सर ने पर्सनली बुलाया है आपको?"

    पारुल ने एक पल तो उसे घूरकर देखा, लेकिन फिर उसे लगा, क्या पता सच में माहिर ने उसका ज़िक्र किया हो। क्या पता उसके खड़ूस पति देव को उसकी हालत पर तरस आ जाए। उसने जल्दी से कहा,

    "हाँ-हाँ, पर्सनली ही बुलाया है। तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

    उस सिक्योरिटी गार्ड ने अपनी गर्दन पर हाथ घुमाते हुए कहा,

    "नहीं मैडम, सर ने कहा है, जिसे भी पर्सनली मैं बुलाऊँ, उस पर हमारा भी बराबर हक़ है।"

    पारुल की आँखों में हैरानी आ गई, क्योंकि उसे अब बखूबी समझ आ गया था, सामने वाले की नियत क्या है और क्या मतलब है उसके शब्दों का। साथ में उसे माहिर के बारे में सुनकर और भी ज़्यादा शोक लग रहा था।

    वह कुछ बोल पाती, उससे पहले ही एक जोरदार आवाज़ आई, जिसके साथ ही उस बॉडीगार्ड की एक चीख निकल गई थी। उसकी पीठ पर इतना तेज़ बेल्ट आकर लगा था कि उसकी शर्ट के साथ उसकी पूरी स्किन छिल गई थी।

    पारुल ने डर के मारे अपने कानों पर हाथ रख लिए। उसने नज़रें घुमाकर देखा, तो यह माहिर था, जिसकी आँखों में गुस्से का लावा दहक रहा था। उसके हाथ में उसका खुद का बेल्ट था, जिसे वह अपने हाथ पर लपेटते हुए उस सिक्योरिटी गार्ड को देख रहा था।

    उसने एक और बार उसे खींचकर बेल्ट से मारा और वह सिक्योरिटी गार्ड कुछ इस तरह चिल्लाया कि सारे एम्प्लॉयीज़ को उसकी आवाज़ सुन गई। उसकी आवाज़ में बेहिसाब दर्द झलक रहा था।

    माहिर की साँसें फूली हुई थीं। उसे देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह कितना आउट ऑफ़ कंट्रोल हो चुका है। सबको उसके करीब जाने से डर लग रहा था। यहाँ तक कि पारुल उससे इतनी दूरी पर खड़ी थी, फिर भी डर के मारे उसके पूरे बदन में कंपकंपी दौड़ चुकी थी।

    माहिर का चेहरा इस वक्त गुस्से से तमतमा रहा था। उसने जाँ घुमाते हुए कहा,

    "तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसे शब्द उससे कहने की?"

    और इसी के साथ उसने एक बार और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड की पीठ पर वह बेल्ट मारा। इसके अगले ही पल वह गार्ड घुटनों के बल ज़मीन पर गिर गया। दर्द से उसकी हालत ख़राब हो रही थी। अब धीरे-धीरे कुछ एम्प्लॉयीज़ उनको देखने के लिए चारों तरफ़ भीड़ सी बनने लगे थे, जिसे देखकर अब पारुल को डर लग रहा था। उसने धीरे से आगे बढ़कर माहिर के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा,

    "आप क्यों सबके सामने इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं? उसने सिर्फ़ बोला है, कुछ किया नहीं है।"

    माहिर ने अपनी जलती निगाहों से पारुल को देखा। पारुल को पता था माहिर उस पर भी चिल्लाने वाला है, इसलिए वह पहले ही दो कदम दूर हटकर आँखें टिमटिमाते हुए उसे देखने लगी, जैसे यह बताने की कोशिश कर रही हो कि उसकी कोई गलती नहीं है, सब गलती माहिर की है; क्यों वह उसे रास्ते पर अकेले छोड़कर गया था। ना वह उसे छोड़कर जाता, ना उसे ऐसे यहाँ आना पड़ता और ना ही इस सिक्योरिटी गार्ड की इतनी हिम्मत होती कि वह पारुल को कुछ बोल सके।

    क्रमशः

  • 17. Arrange marriage - Chapter 17

    Words: 787

    Estimated Reading Time: 5 min

    माहिर ने गहरी-गहरी साँसें भरते हुए कहा,

    "भरत!!!"

    अगले ही पल, एक आदमी बॉडीगार्ड की ड्रेस में आया और डरते हुए बोला,

    "जी... यस सर।"

    माहिर ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,

    "लेकर जाओ इसे। और अगर इसको एक पल का भी सुकून मिला, तो तुम्हारी ज़िंदगी से सुकून का नामो-निशान मिट जाएगा।"

    भरत ने डरते हुए जल्दी से उस सिक्योरिटी गार्ड की तरफ बढ़ते हुए कहा,

    "जी सर, समझ गया मैं।"

    अगले ही पल वह उस सिक्योरिटी गार्ड को वहाँ से उठाते हुए ले गया। माहिर ने चिल्लाते हुए कहा,

    "बैक टू योर वर्क, एवरीवन।"

    सब चुपचाप वहाँ से किसी हवा की तरह गायब हो गए और अपने काम में लग गए।

    उसके बाद, माहिर ने पारुल को घूरते हुए कहा,

    "एंड यू, कम टू माई केबिन।"

    पारुल धीमे कदमों से माहिर का पीछा करने लगी। कुछ ही देर में वे दोनों एक लिफ्ट में थे।

    लिफ्ट का दरवाज़ा बंद होते ही, माहिर ने पारुल को लिफ्ट के दरवाज़े से लगाते हुए उसकी दोनों बाज़ुओं को कसकर पकड़ते हुए, जाड़कर कहा,

    "तुम्हें ख़्याल नहीं है तुम किस हालत में, किस इंसान से, किस तरह से बातें कर रही हो?"

    पारुल के हाथों में तेज दर्द होने लगा था। पर उसने भी पूरे गुस्से में कहा,

    "क्या बकवास कर रहे हैं आप? मुझे नहीं लगता मेरी हालत ख़राब है और ना ही मेरा लहजा ख़राब था। ख़राब थी उस शख़्स की नज़रें, समझे आप?"

    माहिर ने फिर से गुस्से में कहा,

    "तो ये तुम्हें दिखाई दे रहा था, फिर भी उससे बातें कर रही थी? तुम्हें पता नहीं था तुम्हारी साड़ी पसीने से भीगी हुई है?"

    पारुल की आँखों में दर्द के कारण आँसू आ गए थे। उसने भरे गले से कहा,

    "इसमें... इसमें मेरी क्या गलती है? आप... आप मुझे हर्ट करके जो हो गया उसे चेंज कर सकते हैं? और ये मौका भी तो आप ही ने दिया था उस सिक्योरिटी गार्ड को। फिर भी आपके गुस्से को मैं झेलूँ?"

    "गुस्सा तो मुझे करना चाहिए था। आपकी वजह से उस आदमी ने मुझे ऐसे शब्द बोले।"


    माहिर उससे कुछ कह पाता, उससे पहले ही लिफ्ट रुक गई और वे दोनों लिफ्ट से बाहर आ गए।

    पारुल अब भी रो रही थी। उसने कभी माहिर से अपना हक़ नहीं माँगा, पर जब बात एक लड़की की इज़्ज़त पर और चरित्र पर आती है, तो उसे सबसे ज़्यादा अपने पार्टनर की ज़रूरत होती है।

    उसका विश्वास होना, उसके लिए सबसे बड़ा सपोर्ट होता है। पर पारुल के साथ उल्टा हो रहा था।

    उसका पति उसी पर ब्लेम डाल रहा था, उसे हर्ट कर रहा था।

    माहिर ने पारुल का हाथ पकड़ा और उसे अपने केबिन की तरफ़ ले गया।

    केबिन में जाते ही उसने पारुल का हाथ झटकते हुए कहा,

    "मैं तुम पर ब्लेम नहीं डाल सकता, तो तुम भी नहीं। समझी? मैंने नहीं कहा था ऑफ़िस ज्वाइन करो।"

    पारुल ने रोते हुए माहिर को देखा और फिर अपने आँसू पोछते हुए बोली,

    "ठीक... ठीक है। नहीं कर रही आपसे कोई शिकायत। पर अब आप मुझ पर गुस्सा करके क्या साबित करना चाह रहे हैं? मैं समझ नहीं पा रही हूँ। आपको क्यों गुस्सा आ रहा है? आपको फ़र्क़ भी नहीं पड़ना चाहिए था, कोई इंसान चाहे मेरे बारे में कुछ भी क्यों ना बोले।"

    "और ये मैं थी... आपने मुझे उसकी गंदी नज़रों से बचा लिया। पर रोज़ ना जाने कितनी लड़कियाँ यहाँ जॉब के लिए आती होंगी और आपका वो सिक्योरिटी गार्ड कितनी ही लड़कियों के साथ ऐसा बर्ताव करता होगा?"

    माहिर के मुँह में शब्द नहीं थे पारुल को बोलने के लिए। क्योंकि उसे खुद नहीं पता था उसे इतना तेज गुस्सा क्यों आया जब उस गार्ड ने पारुल को घूरा।

    माहिर का मन कर रहा था उस गार्ड की आँखें नोच ले।

    पर क्यों? इसका जवाब उसके पास नहीं था। और अब तो उसे पारुल के आँसू भी तकलीफ़ देने लगे थे।


    ओबेरॉय मेंशन।

    ध्रुविका और कबीर आज ध्रुविका के चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाने वाले थे, जिसके लिए वे दोनों एकदम रेडी थे।

    कौशल्या जी उनके लिए बहुत ज़्यादा खुश थीं। ध्रुविका का उस समय दूसरा महीने का लास्ट वीक चल रहा था।

    कौशल्या जी ने जाने से पहले उन दोनों को राम जी के आगे प्रार्थना करते हुए प्रसाद खिलाया और फिर वे दोनों हॉस्पिटल के लिए निकल गए।

    कहते हैं प्रेग्नेंसी में एक लड़की के चेहरे का ग्लो बढ़ जाता है। पर हमारे इस कपल के केस में उल्टा हो रहा था।

    ध्रुविका से ज़्यादा कबीर के चेहरे पर बाप बनने का ग्लो नज़र आ रहा था।

  • 18. Arrange marriage - Chapter 18

    Words: 626

    Estimated Reading Time: 4 min

    डॉक्टर ने ध्रुविका को चेक किया और उसे उसी कमरे में लेटा हुआ छोड़कर बाहर आई।

    "कबीर, जो ध्रुविका के सामने मुस्कुरा रहा था, उसकी मुस्कान इस वक्त कहीं गायब थी। उसके चेहरे पर एक गंभीरता साफ-साफ झलक रही थी।"

    "क्या अब उसकी स्थिति में कोई सुधार है?"

    कबीर ने गंभीरता से पूछा तो डॉक्टर ने मायूसी से कहा,
    "बहुत ही मामूली है, पर आप उन्हें समय पर दवा देते रहना। बाकी, मैं स्थिति आपको पहले ही बता चुकी हूँ, कितनी ज्यादा क्रिटिकल है, इसलिए आपको गर्भपात का सुझाव दिया था मैंने।"

    "अब तो हम गर्भपात भी नहीं कर सकते। बच्चा बढ़ चुका है। अब वह मैडम के लिए घातक हो सकता है।"

    कबीर ने गहरी साँस छोड़ते हुए सिर हिलाया और डॉक्टर वहाँ से चली गई।

    कबीर वो समय याद करता है जब उसने ध्रुविका की रिपोर्ट्स देखी थीं। उसने उन्हें देखते ही ध्रुविका को गर्भपात के लिए कहा था।

    पर इसका नतीजा यह निकला कि ध्रुविका ने आत्महत्या का प्रयास किया।

    और कबीर कभी ध्रुविका को यह नहीं बताना चाहता था कि उसका गर्भाशय एक बच्चे को अपने अंदर रखने के लिए काफी छोटा है, क्योंकि एक लड़की के लिए यह एक बहुत बड़ी बात होती है और कबीर कभी भी ध्रुविका का दिल नहीं दुखाना चाहता था इस मामले में। और उसके बाद तो उसकी शादी ही हो गई, तो अब तो सवाल ही नहीं उठता कि ध्रुविका गर्भपात के लिए तैयार हो जाए।

    कबीर अपने ख्यालों को झटकते हुए अंदर जाता है जहाँ ध्रुविका मुस्कुराते हुए अपने पेट पर हाथ फेर रही थी।

    कबीर अंदर गया और मुस्कुराते हुए बोला,
    "मुझे तो बोलती हो, 'वो अभी अच्छे से बना नहीं है, मेरी बातें नहीं सुनता।' और खुद अकेले-अकेले बच्चे से बातें कर रही हो। Hmm, चालाक औरत!"

    ध्रुविका ने मुँह बनाते हुए कबीर को देखा।

    कुछ देर बाद डॉक्टर ने दवा दे दी और कबीर ध्रुविका को लेकर ओबेरॉय मेंशन के लिए निकल गया।


    ओबेरॉय कॉरपोरेशन

    माहिर ने पारुल को नौकरी दे दी थी और पारुल अब अपनी सीट पर बैठकर भगवान जी को याद करते हुए काम शुरू करती है।

    उसको देखकर उसके आस-पास बैठी लड़कियाँ बातें बना रही थीं, जो शायद कुछ ज्यादा ही तेज आवाज में हो रही थीं ताकि पारुल उन तानों को सुन सके।

    "आई! बड़ी हमारे बॉस को फँसाने वाली। इसे क्या लगता है? भीगी हुई साड़ी में यह हमारे बॉस को इम्प्रेस करेगी और वह इस पर फिदा हो जाएँगे? Never! He is an alpha male; कोई अपनी खूबसूरती के जाल में नहीं फँसा सकता।"

    एक लड़का, जो उनमें से एक था, वह तेज आवाज में बोला,
    "यहाँ गॉसिप करने के पैसे मिलते हैं तुम सब को?"

    वह लड़का बिल्कुल पारुल के बगल में बैठा था।

    उसकी तेज आवाज सुनकर सबकी ख़ुशफ़ुसाहट बंद हो चुकी थी।

    उन्हें डाँटने के बाद उस लड़के ने पारुल की तरफ देखकर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा,
    "I am Yuvraj. You can call me Yuvi in short."

    पारुल ने हल्की सी मुस्कान के साथ उससे हाथ मिलाते हुए कहा,
    "Myself Parul, and you can call me Parul also."

    युवी ने हँसते हुए कहा,
    "Yup... I call you Parul. By the way, beautiful name, as you are."

    पारुल ने हँसते हुए सिर हिलाकर कहा,
    "अब काम कर ले।"

    युवी ने भी सिर हिलाते हुए अपना काम शुरू कर दिया।

    वे दोनों इस बात से अनजान थे कि कोई इंसान उन्हें देखकर जल-भूनकर कोयला हो चुका है, और वह और कोई नहीं, बल्कि माहिर था। ऐसा लग रहा था कि जलन के कारण उसके कानों से धुआँ निकल रहा हो।

  • 19. Arrange marriage - Chapter 19

    Words: 512

    Estimated Reading Time: 4 min

    ओबेरॉय कॉरपोरेशन

    माहिर अपने केबिन में बैठा था। राम को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस दीवार पर जाकर अपना सिर मारे, क्योंकि अपने बॉस को कुछ कह नहीं सकता था।

    माहिर ने आने के बाद एक भी काम नहीं किया था। बस चेयर पर बैठकर लैपटॉप को घूर रहा था। बेचारे राम को पता नहीं था कि उसके बॉस की शादी हो गई है और उसे अब काम से ज़्यादा अपनी बीवी को घूरना ज़रूरी लग रहा था।

    पारुल और युवराज की काफी अच्छी बनने लगी थी। कुछ देर में लंच ब्रेक हुआ।

    सब एम्प्लॉई एक ग्रुप बनाकर बैठने लगे। कोई उठकर बाहर जाने लगा।

    पारुल आज ही आई थी, उसे कुछ पता नहीं था। उसकी आँखें अब भी लैपटॉप पर टिकी थीं। युवराज ने उसकी आँखों के सामने चुटकी बजाते हुए कहा,

    "हेलो मिस ब्यूटीफुल पारुल, खाना नहीं खाना है आपको?"

    पारुल ने चारों तरफ नज़रें घुमाकर देखा और फिर ऐसा माहौल देखकर कहा,

    "ओह! लंच ब्रेक हो गया है, लेकिन मैं कुछ लेकर नहीं आई तो..."

    युवराज ने उसकी बात काटते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,

    "मैं भी नहीं लेकर आया। चलो, पास ही में कैंटीन है जो पर्सनली हम जैसे आलसी लोगों के लिए है, जिनसे सुबह उठकर टिफिन रेडी नहीं किया जाता है।"

    पारुल ने एक नज़र उसके हाथ को देखा। युवराज ने अगले ही पल उसका हाथ छोड़ दिया। पारुल को हँसी आ गई।

    उसे हँसता देखकर युवराज ने हल्के से हँसते हुए कहा,

    "हँसते हुए तो और प्यारी लगती हो। चलो अब, बॉस बड़े स्ट्रिक्ट हैं टाइम के लिए।"

    पारुल ने मुँह बिगाड़ते हुए कहा,

    "उनको याद करके मूड खराब मत करो। चलो चलते हैं।"

    युवराज सिर हिलाते हुए पारुल के साथ वहाँ से जाने लगा।

    अंदर, माहिर गुस्से से अपने हाथ में पकड़े एक ग्लास को कसता जा रहा था। कुछ ही पलों में वह ग्लास उसके हाथ में ही टूट गया।

    उसने कसकर अपनी आँखें भींचते हुए कहा,

    "राम!!!"

    अगले ही पल राम हड़बड़ाते हुए उसके सामने खड़ा था।

    "इस युवराज के बच्चे की सीट चेंज करो। इस लड़की के आसपास किसी लड़के की सीट नहीं होनी चाहिए।"

    राम की आँखों में एक पल के लिए हैरानी आ गई। उसका जवाब ना सुनकर माहिर ने चिल्लाते हुए कहा,

    "सुनाई नहीं दिया? मैंने क्या कहा?"

    राम ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा,

    "जी...जी सर, अभी करता हूँ।"

    माहिर ने ड्रॉवर से एक रुमाल निकालते हुए अपने हाथ पर लपेटा और कसकर गाँठ बाँध ली ताकि और खून ना निकले।

    फिर तेज कदमों से चलते हुए केबिन से बाहर निकल गया और सीधा उस कैंटीन में गया जहाँ सब एम्प्लॉई अपना लंच करते थे। कोई घर से बनाकर लाता था, तो कोई कैंटीन से ही लेकर खाता था।

  • 20. Arrange marriage - Chapter 20

    Words: 604

    Estimated Reading Time: 4 min

    माहिर को वहाँ देखकर सब हैरान हो गए थे और आपस में कानाफूसी कर रहे थे।

    "माहिर सर आज से पहले तो कभी कैंटीन में नहीं आए, तो आज?"

    वहीँ, माहिर की नज़रें युवी और पारुल को ढूँढ़ रही थीं और कुछ ही देर में उसकी तलाश ख़त्म हो चुकी थी क्योंकि वे दोनों एक कोने की चेयर पर बैठे थे और हँसते हुए एक-दूसरे से बातें करते हुए लंच एन्जॉय कर रहे थे।

    पारुल ने हँसते हुए कहा,
    "मैं आलसी नहीं हूँ, बस आज जल्दबाजी में आई हूँ ना, इसलिए लंच नहीं लेकर आई। कल से मैं अपना और तुम्हारा दोनों का लंच ले आऊँगी।"

    युवराज ने हँसते हुए कहा,
    "ये तो कमाल हो गया! वैसे, अक्सर ऐसे काम एक गर्लफ्रेंड करती है अपने बॉयफ्रेंड के लिए। तो क्या मैं आपका ये एक इशारा समझूँ?"

    पारुल ने आँखें छोटी करते हुए कहा,
    "अरे, मैं शादीशुदा हूँ!"

    युवी ने छोटा सा मुँह बनाते हुए कहा,
    "ओह, दैट्स माय बैड लक... पर फ्रेंड तो हूँ ना आपका?"

    इतना बोलकर वह फिर हँस दिया, तो पारुल को भी हँसी आ गई।

    माहिर दूर से उन्हें देख रहा था। उसे उनकी बातें नहीं सुनाई दे रही थीं, पर उनके हँसते चेहरे आराम से दिखाई दे रहे थे और उसकी मुट्ठियाँ एक बार फिर गुस्से में कस गईं।

    वहीँ, पारुल ने उसे नहीं देखा था, पर अचानक आई इस शांति की वजह से उसकी नज़र भी ऊपर की तरफ उठी और माहिर को खुद को घूरता देखकर उसकी आँखें छोटी हो गईं।

    वह पहले से ही माहिर से सुबह की वजह से गुस्सा थी, अब उसको यहाँ देखकर उसे और ज़्यादा गुस्सा आ रहा था।

    वहीँ, जैसे ही माहिर ने देखा कि सब लंच करने की बजाय उसे ही देख रहे हैं, उसने गुस्से से लगभग चिल्लाते हुए कहा,
    "भूख नहीं लगी है तुम सब को जो मुझे देख रहे हो? एलियन नज़र आ रहा हूँ क्या मैं तुम सब को?"

    सबने डरते हुए उससे नज़रें हटा लीं और चुपचाप अपना खाना खाने लगे।

    माहिर वहाँ रखी एक खाली टेबल पर बैठते हुए बोला,
    "वन कोल्ड ड्रिंक ग्लास।"

    वहाँ खड़े सैफ़ ने जल्दी से हाँ में सर हिलाया और फिर माहिर के लिए एक chilled Coca-Cola का ग्लास लेकर आया।

    क्योंकि यहाँ ड्रिंक अलाउड नहीं थी।

    वहीँ, युवी ने डरते हुए धीरे से पारुल से कहा,
    "आज बॉस कुछ ज़्यादा ही आग-बबूला है।"

    और अचानक ही पारुल के दिमाग की घंटी बजी। "मतलब उसका हसबैंड उसे किसी और के साथ देखकर जल रहा है।" और अचानक ही उसके होठों पर एक smirk आ गई।

    ईवनिंग 7 PM

    ओबेरॉय कॉर्पोरेशन का वर्किंग आवर ख़त्म हो गया था। सब एम्प्लॉयी अपने घर जाने के लिए निकल चुके थे और जिसे भी एक्स्ट्रा टाइम देना था, वह अपनी सीट पर बैठे थे।

    वहीँ, पारुल ऑफिस से बाहर तो आ गई थी, पर उसमें हिम्मत नहीं थी कि वह माहिर के सामने जाकर बोले कि वह रात को अकेली किसके साथ घर जाएगी। सुबह तो वह आ गई थी, पर अब वापस जाना उसके बस की बात नहीं थी।

    ऊपर से वह घर से पैसे भी नहीं लेके आई थी।

    वह बुरी तरह परेशान हो चुकी थी कि तभी अचानक किसी ने उसके कंधे पर टैप करते हुए कहा,
    "अरे मिस पारुल, आप अभी तक यहीं खड़ी हैं? आपके हसबैंड आए नहीं लेने?"

    पारुल को माहिर का ख्याल आया और उसका चेहरा गुस्से से भर गया। और उसने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,
    "नहीं, नहीं, वो थोड़े बिज़ी हैं!"