Novel Cover Image

बंधन ( एक मर्यादा )

User Avatar

Shalini Chaudhary

Comments

40

Views

25030

Ratings

203

Read Now

Description

आज के दौड़ भाग वाले ज़माने में जहां सब लग्जरी और पैसे के पीछे भाग रहें हैं, वहीं इन भागमभाग से दूर बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाली बंधन जब दिल्ली जैसे बड़े शहर में आएगी अपने सपनों के साथ.... तो क्या होगा ? क्या वो इस भीड़ में गुम हो जाएगी या मिलेग...

Characters

Character Image

बंधन चौधरी

Heroine

Character Image

करण भार्गव

Hero

Total Chapters (95)

Page 1 of 5

  • 1. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 1

    Words: 899

    Estimated Reading Time: 6 min

    बिहार, एक ऐसा राज्य जिसने सदियों से अपने अंदर इतिहास और संस्कृति का खजाना समेट रखा था। यही वह भूमि थी जिसने दुनिया को पहला गणराज्य दिया, शून्य जैसी अद्भुत खोज देने वाले आर्यभट्ट को जन्म दिया, और अपनी अद्भुत भाषा शैली से पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधा था। यह एक ऐसा राज्य था, जहाँ सबसे अधिक आईएएस अधिकारी और आईटी प्रोफेशनल्स निकलते थे, और वहीं लिट्टी-चोखा खाते हुए एक अनपढ़ मजदूर भी दिखाई देता था।


    यही वह जगह थी, जहाँ के लोग भले ही अंग्रेजी को कम समझते थे, लेकिन गणित उनके खून में दौड़ता था। इसी बिहार का एक जिला था मधुबनी, जो अपनी मधुबनी चित्रकला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध था। मधुबनी में एक कॉलेज था, जे.एन. कॉलेज। इसके पिछली गली में एक घर था, जिसका नाम था 'चौधरी निवास'।


    सुबह का समय था। गली में इक्का-दुक्का लोग ही नज़र आ रहे थे। चौधरी निवास में हॉल के सोफे पर नारायण चौधरी बैठे हुए थे। उनके हाथ में टीवी का रिमोट था, और दीवार पर लगे टीवी पर 'आज तक' चैनल चल रहा था। एंकर अंजना ओम कश्यप मध्य प्रदेश और राजस्थान के आगामी चुनावों पर चर्चा कर रही थीं। हॉल के एक कोने में स्थित मंदिर में सुधीरा चौधरी पूजा कर रही थीं।


    वहीं, एक लड़की बंधन चौधरी झाड़ू लगा रही थी। नारायण चौधरी ने उसे देखा और बोले,

    "बंधन, ओ निकम्मा! उठली की नई?"

    बंधन ने जवाब दिया, "हाँ उठ गई हूँ।"

    जल्दी-जल्दी झाड़ू खत्म करके बंधन अपने भाई के कमरे की ओर गई। जैसे ही उसने दरवाजा खोला, उसका पैर एक बैट से टकरा गया। हल्की चीख निकलते ही उसने नीचे देखा और बैट को एक ओर सरकाते हुए कमरे की खिड़की खोलने लगी।

    बंधन बड़बड़ाते हुए बोली, "इतनी गर्मी में भी खिड़की बंद करके सोता है। नींद कैसे आती है?"

    फिर वह अपने भाई केशव के पास गई और उसे जगाते हुए बोली, "केशव, उठ जा। जल्दी से! पिताजी गुस्सा कर रहे हैं।"

    केशव ने कुनमुनाते हुए कहा, "दीदी, उठ रहा हूँ ना। तुम जाओ। पाँच मिनट में आता हूँ।"

    बंधन ने हिलाते हुए कहा, "ना रे बाबा ना। जब तक तू उठेगा नहीं, मैं कहीं नहीं जाने वाली। वरना फिर पिछली बार की तरह पिताजी से बोलेगा कि मैंने उठाया ही नहीं। अब चल, जल्दी से उठ वरना..."

    केशव ने नींद में ही कहा, "वरना क्या?"

    बंधन ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "पिताजी! केशव नहीं उठ रहा है!"

    यह सुनकर केशव फौरन उठ गया और बड़बड़ाते हुए बोला, "उठ गया! पापा को क्यों बुला रही है? पापा की चमची!"

    बंधन मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चली गई।


    यह चौधरी परिवार था, जो मधुबनी में रहता था। परिवार के चार सदस्य थे—नारायण चौधरी, उनकी पत्नी सुधीरा चौधरी, उनकी बेटी बंधन और बेटा केशव। यह एक मध्यमवर्गीय परिवार था, जिसकी सीमित आय थी, लेकिन उनके बच्चों के सपने बड़े थे।


    थोड़ी देर बाद, केशव फ्रेश होकर हॉल में आया। वहाँ नारायण चौधरी और सुधीरा बैठी थीं। बंधन चाय लेकर आई और सबको चाय देते हुए हल्के झिझक के साथ बोली,

    "पिताजी, मेरा ग्रेजुएशन अब खत्म हो चुका है, और मैं आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना चाहती हूँ।"

    बंधन की बात सुनकर नारायण चौधरी खामोश हो गए। सुधीरा ने बंधन को बैठने का इशारा किया। केशव ने कहा,

    "हाँ पापा, दीदी को जाने दीजिए। वैसे भी यहाँ आगे पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है। और दीदी पीआर (पब्लिक रिलेशन) की पढ़ाई करना चाहती हैं, जो दिल्ली में ही संभव है।"

    नारायण चौधरी ने केशव को डाँटते हुए कहा, "तू पहले अपना दसवाँ पास कर। इसी बार तेरा बोर्ड है, और तेरे पढ़ने के रूटीन से तो अगले चार साल में भी पास नहीं हो पाएगा!"

    सुधीरा गुस्से से बोलीं, "ये कोई तरीका है बोलने का? कौन जानता है कि कब बच्चे की जुबान पर सरस्वती जी बैठ जाएँ? हमेशा अच्छा बोलना चाहिए। और आप तो बस केशव की पढ़ाई पर ज्ञान मत दीजिए। कभी देखा है कि ये पढ़ाई में क्या कर रहा है?"

    नारायण चौधरी ने जवाब दिया, "अरे भाग्यवान! पढ़ने वाला बच्चा होना चाहिए। बंधन को देख लो। इसे भी तो मैंने नहीं पढ़ाया। इसके टाइम पर तो पैसे के अभाव में कोई सुविधा भी नहीं थी। लेकिन फिर भी हर बार डिस्टिंक्शन लाती रही। और इसे तो ट्यूशन भी लगवाया है।"

    सुधीरा चिढ़कर बोलीं, "यौ भाग्यवान! हमार कहब नई किए कि अहाँ सने जहिया हमर बियाह भेल, तखने हमर भाग्य फुटि गेल।"

    उनकी बात सुनकर बंधन और केशव हँसने लगे।

    बंधन ने गंभीर होकर कहा, "पिताजी, आप क्या कहते हैं?"

    नारायण थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले, "देखो बेटिया, बाहर जाना थोड़ा रिस्की हो जाता है। पहली बात तो आर्थिक स्थिति की है। तुम ही बताओ, क्या हम सक्षम हैं? बाहर जाने का मतलब है 20-30 हजार महीने का खर्चा। अगर थोड़ी भी सुविधा चाहिए तो ये खर्च 50-60 हजार तक पहुँच जाएगा। देखो, अगर कोई ऑनलाइन कोर्स है तो उसे ट्राई करो।"

    बंधन निराश हो गई। क्या वह दिल्ली जाकर पढ़ाई कर पाएगी?

    आगे क्या होगा इस कहानी में? जानने के लिए जुड़े रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 2. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 2

    Words: 1322

    Estimated Reading Time: 8 min

    बिहार (मधुबनी)

    चौधरी निवास,

    नारायण जी अपनी बात कहकर खामोश हो गए। सब खामोश होकर बैठे थे। सुधीरा जी भी शांति से बैठी थीं; उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में वे क्या बोलें। बंधन भी शांति से बैठी हुई अपनी ही सोच में गुम थी। लेकिन कोई था जिसे यह शांति काटने को दौड़ रही थी, और वह था हमारा प्यारा सा केशव, जिसे शांति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।

    केशव (खामोशी तोड़ते हुए) "पापा, दीदी को जाने दो ना। हम सब कैसे भी पैसे का इंतज़ाम कर ही लेंगे। और दीदी वहाँ पर रहेंगी तो जब मेरा बोर्ड हो जाएगा तो मैं भी आगे की पढ़ाई के लिए दीदी के पास ही चला जाऊँगा।"

    सुधीरा जी (चिढ़ते हुए) "तू तो हर जगह पर खुद को फिट करता रहता है। पहले दसवीं तो कर ले।"

    बंधन उदासी में बैठी थी। जिसे देखते हुए नारायण जी बोले।

    नारायण जी (बंधन से) "देखो ना, कोई ऑनलाइन कोर्स हुआ तो ऑनलाइन ही कर लेना।"

    बंधन (नारायण जी की तरफ़ देखते हुए) "पिता जी, ऑनलाइन कोर्स तो मिल जाएगा, लेकिन मैं रियल लाइफ़ को भी देखना चाहती हूँ। मैं भी देखना चाहती हूँ कि बड़े शहर में लोग कैसे रहते हैं? कैसे ऑफिस जाकर काम करते हैं? कैसे लाइफ़ को और बेहतर बना सकते हैं। मैं लाइफ़ के हर फेज़ को जीना चाहती हूँ, रियल लाइफ़ की प्रॉब्लम खुद से हैंडल करना चाहती हूँ।"

    सुधीरा जी (बंधन से) "इतनी बड़ी भी नहीं हुई है कि ये सब खुद करेगी। और वैसे भी लड़की जाती है, ऐसे कैसे अकेले दिल्ली जाने दे? वैसे भी माहौल कुछ ठीक नहीं है। गाँव घर में, या मधुबनी जैसे शहर में ही ये हाल है, कहीं कोई घटना होती है तो कहीं कोई, और दिल्ली तो महानगर है, कि वहाँ तो पता नहीं क्या हाल होगा?"

    बंधन (शांति से) "माँ, आप जो कह रही हैं सब ठीक है अपनी जगह, लेकिन ज़माना आगे और भी खराब हो होगा, ये अब ठीक होने वाला नहीं है, इसलिए इसका तो कोई इलाज नहीं है। लेकिन इस डर से कि क्या होगा? हम आगे बढ़ना तो नहीं छोड़ सकते हैं ना? हम इन सिचुएशन्स से लड़ सकते हैं, और लड़कर ही आगे बढ़ सकते हैं। मैं भी लड़ना चाहती हूँ, ज़माने के साथ आगे बढ़ना चाहती हूँ।"

    बंधन इतना बोलकर शांत हो गई। नारायण जी थोड़ी देर तक बंधन को खामोशी से देखते रहे, फिर सुधीरा जी को देखकर बोले।

    नारायण जी (सुधीरा जी से) "आप गाड़ी की चाबी ले आइए, मुझे दुकान के लिए जाना है।"

    सुधीरा जी (नारायण जी से) "पहले आप नहा लीजिए और पूजा पाठ से निवृत हो जाइए, इसके बाद दुकान जाइएगा। क्योंकि बंधन अपने कंप्यूटर क्लास के लिए चली जाएगी और केशव को आज जल्दी स्कूल में बुलाया है। दुकान पर बैठने के लिए कोई नहीं रहेगा, इसलिए पहले आप अपने काम ख़त्म करके ही जाइए।"

    नारायण जी उठकर नहाने के लिए चले गए।

    सुधीरा जी (बंधन और केशव से) "तुम दोनों भी अपने क्लास की तैयारी करो। केशव, अपना बैग सेट कर लो और जैसे ही पापा नहाकर निकलें, तुम भी नहा लो। बंधन, घर की सफ़ाई ख़त्म करके जल्दी से नहा लो, ठीक है? तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूँ, वरना तुम्हारा बाप बिना खाए निकल जाएँगे।"

    सुधीरा जी उठकर किचन की तरफ़ चली गईं, और केशव भी अपना बैग ठीक करने चला गया। बंधन कुछ देर तक वैसे ही बैठने के बाद उठकर काम पर लग गई। सबसे पहले अपने मम्मी-पापा का कमरा साफ़ करती है, फिर अपना और लास्ट में केशव का। इसके बाद वह जाकर नहा लेती है, और मंदिर में जाकर पूजा करती है।

    बंधन (मंदिर में) "हे बंसीधर, मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु, मैं कभी भी किसी पर निर्भर नहीं होना चाहती हूँ। मैं जीवन के हर समय के लिए तैयार होना चाहती हूँ। मुझे आजादी चाहिए प्रभु, स्वतंत्रता चाहिए विचारों का, निर्णयों का। मैं चाहती हूँ कि अपने जीवन रथ की सारथी मैं खुद रहूँ, और आप मेरे मार्गदर्शक। हे मोहन, मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु, मेरे जीवन को एक नवीन रंग प्रदान करो।"

    वह पूजा ख़त्म करके चली जाती है। उसके जाते ही मंदिर में जो दीप जल रहा था, जिसे बंधन ने जलाया था, उसमें रोशनी एकदम से तेज हो जाती है, जैसे प्रभु ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो और यह उसका संकेत हो। सब एक साथ बैठकर नाश्ता करते हैं। नाश्ते में रोटी और आलू का भुजिया बना था। सब नाश्ता करते हैं। नारायण जी दुकान के लिए निकल जाते हैं। केशव और बंधन एक साथ ही अपने क्लास के लिए निकलते हैं। रास्ते में बंधन बिल्कुल खामोश थी।

    केशव (बंधन को देखकर) "क्या सोच रही हो?"

    बंधन (केशव को देखकर उदास होते हुए) "लगता है मेरा आगे अच्छे कॉलेज में पढ़ने का सपना, सपना ही रह जाएगा।"

    केशव (बंधन से) "उल्टा क्यों सोचती हो? देखो, पापा फ़ाइनेंशियल इश्यू दिखा रहे हैं। अगर इसी से निपट लिया जाए तो... मतलब तब कोई बहाना नहीं बचेगा ना।"

    बंधन (कन्फ़्यूज़ होते हुए) "मतलब क्या है तेरा? हम क्या कर सकते हैं?"

    केशव (चहकते हुए) "और दीदी, ये बोलो कि हम क्या नहीं कर सकते हैं। मतलब समझ रही हो? (बंधन धीरे से ना में सर हिला देती है) अरे, मैं समझाता हूँ। पापा ने कहा कि पैसे की दिक्क़त है इसलिए ऑनलाइन देखो। अब आपका ग्रेजुएशन कम्पलीट है, इसलिए आप किसी भी कंपनी में एक पी.ए. की तौर पर काम कर सकती हो। आप बड़ी कंपनी में देखो, वहाँ अच्छे सैलरी के साथ जॉब मिल जाएगा और कौन सा रोज-रोज क्लास करना पड़ेगा आपको? और तो और कॉर्पोरेट का माहौल भी पता लग जाएगा।"

    बंधन (खुश होते हुए) "क्या सही दिमाग लगाया है! ये बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं। वैसे मेरे संगत में रहकर तेरा दिमाग भी तेज हो गया है। वेल डन।"

    इसके बाद वह केशव की पीठ को जोर से थपथपा देती है।

    केशव (चिढ़ते हुए) "और दीदी, मारो मत, चोट लगती है।"

    बंधन (रुकते हुए) "सुन तो, आज पक्का रहा, शाम को हम दोनों ही कंपनी सर्च करेंगे जिसकी हमें रिक्वायरमेंट है। और हाँ, आज घर पर ही रुकना, दोस्तों के साथ मत निकल जाना, वरना पिताजी को बोल दूँगी कि तू जयनगर गया था घूमने के लिए, उस आवारा मोहित के साथ उसकी बाइक पर।"

    केशव (हाथ जोड़ते हुए) "हाँ देवी, समझ गया।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या केशव का आइडिया काम करेगा? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)!

  • 3. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 3

    Words: 894

    Estimated Reading Time: 6 min

    बंधन ने केशव को डाँटते हुए कहा, जिस पर केशव ने अपने दोस्तों के साथ न जाने की बात मान ली। कुछ देर चलने के बाद बंधन अपनी कक्षा के लिए चली गई। केशव का स्कूल वहीं से थोड़ी ही दूरी पर था, और वह भी अपने स्कूल के लिए निकल गया।


    दिल्ली (गुड़गाँव)

    एक आकर्षक बहुमंजिला इमारत थी, जिसकी दीवारों पर बड़े अक्षरों में "भार्गव्स कॉर्पोरेट" लिखा था। यह इमारत इस इलाके की शान थी और अपने अनोखे ढाँचे के कारण अलग पहचान रखती थी। इस इमारत के सातवें तल पर कंपनी के मालिक का कार्यालय था। इस पूरे तल पर केवल चार केबिन थे—पहला मालिक का, दूसरा उनके सहायक का, तीसरा उनके दाहिने हाथ का और चौथा उनके बाएँ हाथ का।

    बीच वाला केबिन मालिक का था। उस केबिन में छब्बीस वर्षीय एक आकर्षक युवक हेड चेयर पर बैठा था। उसके ठीक सामने दो कुर्सियाँ लगी थीं, जिन पर उसी उम्र के दो अन्य युवक बैठे थे। दाहिनी ओर बैठा युवक अज्ञेय ठाकुर था, और बायीं ओर बैठा युवक राजवीर ओबेरॉय। तीनों दोस्त थे।

    अज्ञेय (हेड चेयर पर बैठे युवक से):
    "यार करण, मैं अकेला इतना काम कैसे संभालूँगा? मतलब, समझ नहीं आ रहा है यार! प्रोजेक्ट्स भी देखने हैं और ऊपर से तेरा यह सहायक का काम। अरे, अब एक सहायक रख ले। बेचारा वह चौथा केबिन भी खाली पड़ा हुआ है, उसे थोड़ा उपयोग में तो ला।"

    करण (सीधा होकर बैठते हुए):
    "अबे यार, तू जानता है ना कि मुझे कामचोर कर्मचारी पसंद नहीं हैं। इसलिए मेरी ज़रूरतें पूरी करने वाला कोई हो, तो बता।"

    राजवीर (पानी का घूँट लेते हुए):
    "ऑनलाइन आवेदन कर देते हैं, और सुविधाएँ भी दे देते हैं। कोई न कोई तो तेरे हिसाब का होगा ही।"

    करण (फाइल पलटते हुए):
    "जो तुम दोनों को ठीक लगे! लेकिन हाँ, एक बात और है—उम्मीदवारों का इंटरव्यू तुम दोनों ही लोगे।"

    अज्ञेय और राजवीर ने हाँ में सिर हिलाया। तभी केबिन का दरवाज़ा खुला, और बाहर से एक बेहद खूबसूरत लड़की अंदर आई। उसने लाल रंग का ऑफ-शोल्डर वन-पीस पहना हुआ था, जिसकी लंबाई उसकी जाँघों तक थी। उसके गोरे बदन पर लाल रंग का वह परिधान बेहद खूबसूरत लग रहा था। उसने ऊँची एड़ी के जूते पहने हुए थे। उसका चेहरा बहुत खूबसूरत था—पतले होंठ, लंबी नाक और खूबसूरत आँखें। वह परी जैसी लग रही थी। बड़े नखरे से चलते हुए वह करण के बगल में आकर खड़ी हो गई।

    यह थी निया भार्गव, करण भार्गव की छोटी बहन, जो बिलकुल बिगड़ी हुई थी।

    निया (अपने बाल पीछे झटकते हुए):
    "भाई, मुझे आपका कार्ड चाहिए, क्योंकि मुझे खरीदारी के लिए जाना है।"

    करण (निया को एक नज़र देखकर):
    "पर तुम तो परसों ही खरीदारी करके आई हो।"

    निया (राजवीर को ताड़ते हुए):
    "हाँ, लेकिन आज कपड़ों के कुछ नए कलेक्शन आए हैं। तो वे भी तो मेरे वॉर्डरोब में होने चाहिए ना।"

    करण (निया को देखकर):
    "निया, तुम बच्ची नहीं हो कि जो भी बाजार में आएगा, वह तुम्हारे पास होना ही चाहिए। थोड़ी सी तो परिपक्व बनो।"

    निया (आँखें गोल-गोल घुमाते हुए):
    "ठीक है, अगली बार आपकी बात ध्यान में रखूँगी। पर अभी तो दे दीजिये।"

    करण ने ना में सिर हिलाते हुए अपना कार्ड निकालकर उसे दे दिया।

    करण (राजवीर को देखते हुए):
    "तुम दोनों के बीच में कुछ हुआ है क्या?"

    करण के इस सवाल पर राजवीर को रात की बात याद आई।


    ---

    फ्लैशबैक

    दिल्ली के एक महँगे बार, स्काई हेवेन बार, जो अपनी लग्ज़री के लिए प्रसिद्ध था, में एक लड़का और लड़की नशे में धुत एक-दूसरे की बाहों में बाहें डाले डांस फ्लोर पर नाच रहे थे। वहीं, बार काउंटर पर बैठा राजवीर अपनी आँखों में गुस्सा लिए बस उन दोनों को घूर रहा था। वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि निया ही थी।

    निया और राजवीर रिलेशनशिप में थे, और यह बात दोनों के परिवार को पता थी। अपनी आँखों के सामने अपनी प्रेमिका को किसी और की बाहों में देखकर, राजवीर का खून खौल रहा था। उसका मन कर रहा था कि उस लड़के की हत्या कर दे।

    कुछ देर नाचने के बाद निया उस लड़के के साथ ऊपर जाने लगी। बार के ऊपर का क्षेत्र विश्राम क्षेत्र था, लेकिन वहाँ किस तरह से विश्राम किया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं था।


    ---

  • 4. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 4

    Words: 1233

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    भार्गव्स कॉर्पोरेट

    करण ने राजवीर को खोया हुआ देखकर उसके सामने हाथ हिलाते हुए कहा,

    "ओ भाई, कहाँ खो गया?"

    अज्ञेय हँसते हुए बोला, "भाभी के यादों में खो गया क्या? लेकिन कितना भी खो ले, वो मिलेंगी शादी के बाद ही।"

    करण भी अज्ञेय की बात पर हँस पड़ा।

    राजवीर खोए हुए स्वर में बोला, "नहीं, बंधन के याद में खोया हूँ।"

    राजवीर की बात सुनकर करण और अज्ञेय दोनों हैरान रह गए, क्योंकि आज से पहले राजवीर के मुँह से किसी और लड़की का नाम नहीं सुना था।

    करण सीरियस होकर बोला, "राज! कौन है ये बंधन?"

    राज ने लंबी साँस लेते हुए कहा, "मेरी बहन।"

    राज के जवाब से करण की साँसें अटक गईं। वह परेशान हो गया था क्योंकि राज उसकी बहन के साथ रिलेशन में था।

    अज्ञेय ने राज से पूछा, "पर तेरी तो कोई बहन नहीं है!"

    राज ने अज्ञेय को समझाते हुए कहा, "छोटी बुआ की बेटी है, कभी यहाँ नहीं आई है इसलिए तुम लोग नहीं जानते हो! मेरी बस फोन से ही बात होती है।"

    अज्ञेय ने फाइल का पेज पलटते हुए पूछा, "कोई परेशानी है क्या उसे? जो तू इतना परेशान है।"

    करण भी बड़े गौर से राज को देख रहा था।

    राज ने दोनों को देखते हुए कहा, "नहीं, एक्चुअली मेरी और उसकी किसी बात पर लड़ाई हो गई थी, तो मैंने उसे बोल दिया था कि मेरा और उसका रिश्ता खत्म! लेकिन एक वीक पहले ही मुझे पता चला कि वो सही थी, अब उससे बात कैसे करूँ? ये परेशानी है।"

    अज्ञेय ने राज से कहा, "हाँ तो बुआ की बेटी है ना, तो छोड़ ना।"

    राज ने अज्ञेय से कहा, "उससे अगर एक दिन बात न करूँ तो मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाता है! और मैं तो कई महीनों से उससे बात नहीं कर रहा। और हाँ, है तो बुआ की ही बेटी, वो भी ऐसी जिससे फेस टू फेस मिले कई साल हो गए, लेकिन फिर भी वो लड़की इतनी प्यारी है कि क्या बताऊँ?"

    करण हँसते हुए बोला, "बहन होती ही प्यारी है! और तू इतना मत सोच, सीधा फोन कर ले।"

    करण के कहने पर राज ने अपना फोन निकालकर बंधन को कॉल किया। पहली रिंग पूरी होने पर कॉल डिस्कनेक्ट हो गया। ऐसे ही वो कई बार कॉल करता रहा, लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ।

    अज्ञेय ने अपना फोन देते हुए कहा, "इस नंबर से कॉल कर, उठा लेगी।"

    राजवीर ने अज्ञेय का फोन लेकर कॉल किया, लेकिन इस बार भी कॉल डिस्कनेक्ट हो गया। राजवीर उदास हो गया।

    करण ने पानी देते हुए कहा, "पहले पानी पी! और थोड़ी देर रुककर कॉल कर, फिर उठा लेगी अनोन नंबर देखकर।"

    राजवीर ने पानी पी लिया, लेकिन उससे रुका नहीं जा रहा था। बड़ी मुश्किल से पाँच मिनट ही बीते होंगे कि राज जल्दी से फोन उठाकर फिर से बंधन के नंबर पर कॉल किया। दो से तीन रिंग में ही कॉल रिसीव हो गई। अज्ञेय ने राज से कॉल स्पीकर पर करने के लिए कहा। राज ने कॉल स्पीकर पर किया। तो फोन के दूसरे तरफ से बड़ी प्यारी सी आवाज आई।

    "हैलो, हैलो कौन है?"

    राज ने काँपते हुए आवाज में कहा, "बच्चा।"

    बंधन एक्साइटिंग टोन में बोली, "भाई......शश्श्....."

    राज ने परेशानी से पूछा, "क्या हुआ?"

    बंधन ने डाँटते हुए कहा, "जो हुआ आपकी वजह से हुआ, आपकी आवाज सुनकर मैं इतनी खुश हो गई और इतना जोर से बोली कि आस-पास के सारे लोग अब मुझे घूर-घूर कर देख रहे हैं जैसे मैं कोई एलियन हूँ।"

    राज परेशान होते हुए बोला, "बच्चा, तू घर से बाहर है, अकेले? केशव कहाँ है?"

    बंधन ने शांत कराते हुए कहा, "भाई..भाई पहले आप रिलैक्स हो जाओ। मैं ना क्लास खत्म करके घर जा रही हूँ, और केशव स्कूल गया हुआ है। और वैसे भी आपकी बहन कोई हुस्न परी नहीं है जो सारा जमाना मुझे ही किडनैप करने के लिए बैठा है।"

    सब शांति से बंधन की बात सुन रहे थे। सबके चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई थी।

    राज हँसते हुए बोला, "वैसे भी जो तुझे किडनैप करेगा वो वापस वहीं छोड़ जाएगा जहाँ से ले गया होगा।"

    बंधन ने जोड़ते हुए कहा, "करेक्ट!"

    राज कुछ बोलने को हुआ कि तभी बंधन की आवाज आई जो उधर बात कर रही थी।

    "भैया जरा एक प्लेट फुचका दीजिए, और हाँ बिल्कुल वैसी ही तीखी बनाना जैसी आपकी एक्स थी।"

    गोलगप्पे वाले की आवाज आई, "पर मेरी तो कोई एक्स ही नहीं है।"

    बंधन ने आँखें घुमाते हुए कहा, "अरे एक्स नहीं है तो वाई जैसी बना दो।"

    गोलगप्पे वाले ने बंधन से कहा, "अरे बिटिया लो तुम खाओ और मुझे परेशान मत करो।"

    बंधन ने गोलगप्पे वाले से शरारती अंदाज में कहा, "अरे ठीक है, आज आपको परेशान नहीं करूँगी क्योंकि आज मैं अपने भाई को परेशान करूँगी।"

    गोलगप्पे वाले ने लंबी साँस लेते हुए कहा, "चलो आज तो जान बची मेरी।"

    बंधन ने फोन पर राज की नकल करते हुए कहा, "वैसे भाई आपको पता है कोई था जिसने मुझे कहा था कि मैं तुझसे सारे रिश्ते खत्म करता हूँ, आज के बाद कभी फोन नहीं करूँगा, ब्ला ब्ला ब्ला!"

    राज ने करण और अज्ञेय का मुँह देखते हुए कहा, "सॉरी।"

    बंधन मुँह बनाते हुए बोली, "वैसे आपने कॉल किया मतलब मैं चैलेंज जीत गई।"

    राज कुछ बोलता उससे पहले ही फिर से बंधन की आवाज आई।

    "अरे भैया तब से बोल तो रही हूँ कि पाँच दे दो। (थोड़ी देर रुक कर) मैं ही खाऊँगी पाँचों, पाँच आइसक्रीम खाना कोई बड़ी बात है क्या?"

    राज ने गुस्से से कहा, "दाँत में कीड़े लग जाएँगे इतना मीठा खाएगी तो।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या बंधन की चुलबुलाहट कर पाएगी राज के मूड को हल्का? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 5. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 5

    Words: 1232

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    भार्गव कॉर्पोरेट

    कैबिन में राजवीर बंधन से बात करने में व्यस्त था। बंधन की प्यारी-प्यारी और बच्चों जैसी बातें, उसके बोलने का अंदाज़, आइसक्रीम वाले और गोलगप्पे वाले से बात करने का उसका तरीका—सब बहुत प्यारा था। इसे सुनकर वहाँ बैठे सबके चेहरों पर एक प्यारी सी मुस्कान छा गई थी। यह बहुत दुर्लभ था कि करण भी मुस्कुरा रहा हो। काम के दबाव के कारण वह मुस्कुराना जैसे भूल ही गया था। उसके चेहरे पर मुस्कान सिर्फ़ निया को देखकर ही आती थी, और आज बंधन की बातों से उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे।

    राज (डांटते हुए): इतना मीठा खाएगी तो दांत में कीड़े लग जाएँगे।

    बंधन (हँसते हुए): अरे भाई, कीड़ों को भी पता है कि मैं कितनी बड़ी आफत हूँ, इसलिए कीड़े मुझसे दूर ही रहते हैं।

    राज (सीरियस होकर): तूने मुझे माफ़ तो कर दिया ना?

    बंधन (मुँह में आइसक्रीम भरते हुए): हाँ, कर दिया। आप भी क्या याद करोगे?

    राज (मुस्कुराते हुए): अच्छा, अब ये बता, तेरा ग्रेजुएशन तो हो गया है, अब आगे का क्या सीन है?

    बंधन (उदास होते हुए): मैंने पिताजी से कहा तो है कि मुझे आगे पढ़ने के लिए दिल्ली जाना है, लेकिन...

    बंधन बोलते-बोलते चुप हो जाती है।

    राज (बात पूरी करते हुए): तो फूफा जी ने मना कर दिया है ना?

    बंधन (उदासी से): नहीं, मना भी नहीं किया है और परमिशन भी नहीं दिया है। बात बीच में अटकी हुई है।

    राज (लम्बी साँस खींचते हुए): तो अब आगे क्या?

    बंधन (हँसते हुए): देखिए क्या होता है? अब जो पिताजी बोलेंगे, वो तो मानना पड़ेगा ना? पैरेंट्स से बाहर होकर अगर कुछ कर भी लिया, अच्छी जॉब, अच्छा एजुकेशन ले भी लिया, तो क्या फायदा? जो कहेंगे पिताजी, वही करेंगे।

    राज (सीरियस होकर): और अगर उन्होंने मना कर दिया तो?

    बंधन (सीरियस होकर): भाई देखिए, अगर पिताजी ने मना कर दिया तो आगे कुछ भी नहीं हो सकता है, क्योंकि माता सीता ने कहा है कि जिस कार्य में माता-पिता और गुरुजन का आशीर्वाद ना हो, वो कार्य करना अधर्म है। मैं उनसे रिक्वेस्ट कर सकती हूँ, लेकिन उनके आशीर्वाद के बिना आगे नहीं बढ़ सकती हूँ।

    राज (मुस्कुराते हुए): हाँ, मेरी पंडित बहन, मुझे पता है कि तू कोई गलत कदम नहीं उठाएगी। लेकिन याद रख, करियर भी ज़रूरी है और इसके लिए भी काम करना है।

    बंधन (बेफ़िक्र अंदाज़ में मज़ाक करते हुए): अरे भाई, वो तो सीन पूरा सेट है। एक मस्त पैसे वाले लड़के के साथ शादी करूँगी और लाइफ़ सेट है।

    राज (हँसते हुए): और तुझसे शादी करेगा कौन? किसका टेस्ट इतना खराब होगा?

    बंधन (चिढ़ते हुए): अरे भाई, जब आपके शक्ल पर भी कोई लड़की मर सकती है, तो मैं तो फिर भी ठीक हूँ। वैसे जो भी बोलिए, लेकिन उसका टेस्ट है बहुत खराब, छीः...

    राज (हल्के गुस्से से): हाँ चल, चल, बड़ी आई चुड़ैल!

    बंधन (मज़ाकिया लहजे में): वैसे उस इंग्लिश मैडम को खाना-वाना बनाना आता भी है कि वो भी आपके माथे पर आएगा?

    राज से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। बंधन बार-बार उसका और निया का नाम एक साथ जोड़ रही थी, जो उसे तकलीफ दे रहा था।

    राज (हल्के गुस्से से): हाँ, चल, रखता हूँ। अभी शाम में बात करूँगा।

    बंधन (मुस्कुराते हुए): ठीक है भाई, बाय, टेक केयर।

    राज (बड़े प्यार से): टेक केयर बच्चा।

    इसके बाद कॉल कट हो गया।

    करण (मुस्कुराते हुए): लगता है तू हमसे भी ज़्यादा इस लड़की के करीब है।

    राज (हल्के से मुस्कुराते हुए): हम्म, मेरी छुटकी है ही ऐसी।

    इसके बाद तीनों ही मुस्कुरा उठे।

    बंधन ने फ़ोन अपने पर्स में रख लिया और अब वह काफी सीरियस हो गई थी।

    बंधन कृष्ण जी से प्रार्थना करते हुए: हे केशव, मेरी उड़ान को पंख दीजिएगा, इसे रोकना मत। मैं भी दूसरी लड़कियों की तरह अपने सपने पूरे कर पाऊँ। प्रार्थना स्वीकार करो परमेश्वर।

    ऐसे ही भगवान को मनाते हुए, उनसे बात करते हुए, वह घर पहुँचती है।

    सुधीरा जी बंधन को देखकर: आ गई अब तुम? जल्दी से हाथ धोकर पहले खा लो, फिर कुछ कपड़े हैं, उन्हें सिलना भी है और तुम्हारे पापा के कुछ कपड़े हैं जिन्हें प्रेस करना है।

    बंधन मुँह बनाते हुए: क्या माँ? आपका काम है या कुबेर का भंडार जो कभी ख़त्म ही नहीं होता? आते ही इतना काम दे दिया कि अब तो खाने का भी मन नहीं कर रहा।

    सुधीरा जी थप्पड़ दिखाते हुए: अगर खाना नहीं खाएगी तो ये खाएगी, और हाँ, जल्दी खाओ और काम पर लगो। फिर शाम को अपना बैठकर पढ़ना। तुम्हारा ग्रेजुएशन क्या ख़त्म हुआ? किताब-कॉपी से रिश्ता ही तोड़ ली हो।

    बंधन दोनों हाथ जोड़ते हुए: जो हुक्म मेरे आका।

    सुधीरा जी चली जाती हैं। बंधन भी फ़्रेश होकर खाना लेकर हॉल में बैठ जाती है। तभी सुधीरा जी उसके बगल में बैठते हुए:

    सुधीरा जी बंधन से: वो जो तेरी बुआ दादी हैं ना, उनके बहू और पोते का तलाक होने वाला है।

    बंधन चौंकते हुए: हैं...? कौन? वो जो मुंबई वाली हैं, उनका?

    सुधीरा जी हाँ में सर हिला देती हैं।

    बंधन: लेकिन उनकी तो लव मैरिज थी, फिर ये तलाक क्यों हो रहा है?

    सुधीरा जी मुँह बनाते हुए: तो कौन सा कृष्ण और रुक्मिणी जैसा प्रेम था जो ऐसे टिकता? मैंने तो पहले ही तुझसे कहा था ना कि ये प्रेम विवाह टिकेगा नहीं।

    बंधन चाव से बात सुनते हुए: हाँ, लेकिन ये आपने कैसे कहा था?

    सुधीरा जी एडजस्ट होकर बैठते हुए: पहली बात तो लड़की हमेशा से दिल्ली में रही है, तो इंग्लिशिया लड़की के लिए हमारे बिहारी रंग-ढंग में आना पहाड़ चढ़ने जैसा है। कहाँ वो हमेशा छोटे परिवार में रही है और कहाँ गाँव-घर का बड़ा परिवार? किसी दिल्ली वाली से नहीं संभलने वाला है। उसके लिए तो बिहारी ही चाहिए।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या रंग लाता है समय बंधन की ज़िन्दगी में? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 6. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 6

    Words: 1252

    Estimated Reading Time: 8 min

    बिहार (मधुबनी)

    बंधन बंधन हॉल के सोफ़े पर बैठी खाना खा रही थी। उसके ठीक बगल वाले सोफ़े पर सुधीरा जी बैठी हुई उससे बात कर रही थीं। सुधीरा जी जितने चाव से अपनी बातें बंधन को बता रही थीं, बंधन भी उतने ही चाव से सुन रही थी।

    सुधीरा जी (मूँह बनाते हुए) "मैंने तो पहले ही पता था कि यह प्रेम विवाह नहीं टिकने वाला है।"

    बंधन (मूँह में निवाला डालते हुए) "और आपको कैसे पता था यह कि इनकी शादी नहीं टिकेगी? लव मैरिज कोई गलत बात है क्या?"

    सुधीरा जी (एडजस्ट होते हुए) "अरे लव मैरिज कोई गलत बात नहीं है, लेकिन शादी-ब्याह के लिए परंपरागत, चालू लड़की देखनी चाहिए, जिसके पास कागजी ज्ञान भी हो और काम भी फुर्ती से करे। लेकिन यह पढ़ी-लिखी तो है इंग्लिश स्कूल में! और हर बात में इंग्लिश तो ऐसे छोड़ती है जैसे इंग्लिस्तान से आई हो, भारत की है ही नहीं। और वैसे भी हमेशा से छोटे परिवार में रही है, यह बिहारी त्योहारों के काम-धंधे में सकेगी थोड़ी? वहाँ पर इंग्लिश भाषण नहीं काम आता है, वहाँ पर हाथ का कला ही काम आता है। अरे, जब छठ का प्रसाद एक ही बैसार में करना पड़ता है ना, तब समझ में आता है कि कौन कितना पानी में है। और ब्याह-शादी में आई-माई जो गीत गाती है ना, उस गीत का राग साधना आसान काम है क्या? जब एक-एक समदाउन और सोहर का राग चढ़ता है ना, तो अच्छे-अच्छे का पसीना छूट जाता है।"

    बंधन (पानी पीते हुए) "मतलब यह कि बिहारी परिवार में बिहारी बहू ही अच्छे से संभाल सकती है, यह पापा की परी के बस की बात नहीं है।"

    सुधीरा जी (वहाँ से उठते हुए) "हाँ, और नहीं तो क्या? और तू भी जल्दी से खा और सारे काम निपटा क्योंकि कपड़े भी सिलने हैं, समझी ना?"

    बंधन बस हाँ में मुँड हिला देती है और जल्दी-जल्दी खाने लगती है क्योंकि फिर उसे काम भी करना था, कपड़े भी सिलने थे। ये काम होने के बाद ही वह कोई और काम कर सकती थी। खाना खत्म हो चुका था।

    बंधन (खुद से ही) "खाना तो खा लिया, अब जल्दी से पहले सारे काम निपटा लेती हूँ ताकि शाम में फ्री होकर कंपनियाँ भी सर्च करूँ।"

    इतना बोलकर वह जल्दी से किचन में जाकर बर्तन सिंक में डालती है और जल्दी से किचन में फैले सारे धोने वाले बर्तन को सिंक में डालकर उन्हें धोने लगती है। उसके हाथ बहुत स्पीड में काम कर रहे थे, इससे यह पता चल रहा था कि यह उसका रोज का काम है।


    दिल्ली (गुड़गाँव)

    Bhargav's corporate

    कैबिन में करण अकेला बैठा काम कर रहा था। अज्ञेय और राजवीर भी अपने कैबिन में जा चुके थे। व्हाइट शर्ट, ब्लैक पैंट पहने करण हेड चेयर पर बैठा था। उसके दोनों हाथ सामने रखे टेबल पर थे, जिसमें एक हाथ को उसने लैपटॉप के कीज पर रखा था और दूसरे हाथ से टेबल पर टैप कर रहा था। इस वक्त वह बेहद सीरियस लग रहा था। उसके बाल उसके माथे पर बिखरे हुए थे और हल्के-हल्के बियर्ड उसके लुक को परफेक्ट कर रहे थे। वह इस वक्त बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। वैसे भी एक कहावत है कि मर्द काम करते हुए ज़्यादा अट्रैक्टिव लगते हैं। तभी उस कैबिन का दरवाज़ा खुलता है और एक लड़की शॉर्ट ब्लू बॉडीकॉन में बला की खूबसूरत लग रही थी। उसने ब्लू कलर का ही हाई हील डाला हुआ था। चेहरे पर लाइट मेकअप ही था, लेकिन डार्क रेड लिपस्टिक ने उसके मेकअप को हैवी लुक दे दिया था। उसके हाथ में एक ब्लू कलर का ही मैचिंग हैंड बैग था। वह लड़की बड़े ही स्टाइल में चलते हुए कैबिन में एंटर करती है। करण नज़र उठाकर देखता है, तो वह मुस्कुरा उठता है।

    करण (मुस्कुराते हुए) "हे बेबी, यू लुकिंग सो सेक्सी।"

    लड़की (हँसते हुए) "वो तो मैं हूँ ही, और वैसे भी मन्नत खुराना को सेक्सी लगना भी चाहिए क्योंकि बहुत जल्द मुझे मन्नत करण भार्गव बनना है।"

    यह है मन्नत खुराना, एक जानी-मानी मॉडल जो बेहद ही खूबसूरत है, और उतनी ही ज़्यादा फैशनेबल। अपने फैशन के चलते ही यह मीडिया में छाई रहती है। अपनी लग्ज़री लाइफ़ और बेहतरीन टूर की वजह से ही यह ज्यादातर सुर्खियों में रहती है। मन्नत खुराना एक ऐसा नाम जो हर लड़के के दिल की आवाज़ है। बड़े से बड़ा आदमी मन्नत के ख्वाब देखता है, पर जैसा कि इनका नाम है मन्नत, तो इतनी आसानी से कैसे किसी को मिलेगी? मन्नत और करण कपल्स हैं। वो कॉलेज टाइम से इनका प्यार लगभग छः साल पुराना रिलेशन है इनका। मन्नत सीधे जाकर करण के गोद में बैठ जाती है और उसके चेहरे पर अपनी उंगली चलाते हुए बड़े ही इनोसेंट वॉइस में बोलती है।

    मन्नत (रोनी सी सूरत बनाकर) "क्या मेरी याद नहीं आई? एक फ़ोन तक नहीं किया तुमने!"

    करण (सोचते हुए) "याद तो आई, लेकिन मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था।"

    मन्नत (क्यूट बनते हुए) "ओ... हाउ रोमांटिक।"

    ऐसे ही वो दोनों बातें कर रहे होते हैं, लेकिन कोई था जो कैबिन की खिड़की से उन्हें देख रहा था और गुस्से से पागल होता जा रहा था। और यह कोई नहीं, बल्कि अज्ञेय था जिसे मन्नत बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। तभी पीछे से राजवीर आता है।

    राजवीर (अज्ञेय को देखकर) "क्या हुआ? तू इतना गुस्सा क्यों है?"

    अज्ञेय (राजवीर को खिड़की से कैबिन के अंदर दिखाते हुए) "मेरे समझ में यह नहीं आ रहा है कि करण जैसा ब्रिलियंट माइंड वाला लड़का इसके जैसे शोपीस के चक्कर में कैसे पड़ गया?"

    राज (अज्ञेय के कंधे पर हाथ रखते हुए) "प्यार इसी को तो कहते हैं जो कहीं भी किसी से भी हो जाए।"

    अज्ञेय (चिढ़ते हुए) "ओ सीरियसली, तुझे लगता है कि यह प्यार है? मतलब इस लड़की के ड्रामे देखकर मुझे तो ऐसा लगता है जैसे रटे-रटाए लाइन्स बोल रही है, जैसे एक ही लाइन कितनों को चिपकाकर प्रैक्टिस की हो।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या होगी बंधन कामयाब? और कौन है यह मन्नत? और क्या अज्ञेय की बात सही है? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 7. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 7

    Words: 1219

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    मन्नत और करण को ऐसे देखकर, कैबिन के बाहर खड़ी खिड़की से दोनों को देख रहा अज्ञेय गुस्से से लाल-पीला हो रहा था। तभी राजवीर अपने केबिन से बाहर निकला। उसकी नज़र अज्ञेय पर पड़ी। उसे इतने गुस्से में देखकर उसे कुछ भी समझ नहीं आया। वह उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा।

    राजवीर (अज्ञेय के कंधे पर हाथ रखते हुए) "क्या हुआ भाई? इतने गुस्से में क्यों हो?"

    अज्ञेय (उसे कैबिन के अंदर इशारा करते हुए) "ये देखकर। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि यह करण जैसा ब्रिलियंट माइंड का इंसान इस जैसी शोपीस के चक्कर में कैसे आ गया?"

    राज (मजाक में हँसते हुए) "इसे ही तो प्यार कहते हैं! जो कहीं भी किसी से भी हो जाए।"

    अज्ञेय (चिढ़ते हुए) "क्या सच में? तुझे भी लगता है कि यह प्यार है? मतलब, इस लड़की के ड्रामे देखकर और उसकी टिपिकल लाइन्स सुनकर मुझे ऐसा लगता है जैसे कितने लोगों पर एक ही लाइन की प्रैक्टिस की है। ओह गॉड! ये कोई बात हुई। हर बात पर ऐसे चिपकना जैसे गम हो। भाई, सच में बोल रहा हूँ, अगर करण ने इससे शादी की तो उसकी पूरी ज़िंदगी ही ड्रामा बनकर रह जाएगी, सच बोल रहा हूँ।"

    राज (सामने देखते हुए) "देख, करण के साथ यह मन्नत पसंद तो मुझे भी नहीं है, लेकिन हम कुछ कर नहीं सकते हैं। क्योंकि करण उससे प्यार करता है, और यह ही काफी है। अब इस मामले में हमारी दखलंदाज़ी अच्छी नहीं रहेगी ना।"

    अज्ञेय (लम्बी साँस खींचते हुए) "हम्म, यह भी है। हम इस बीच में बोलें यह सही तो नहीं होगा, लेकिन उसे इस तरह ज़िंदगी बर्बाद नहीं करने दे सकते हैं। कुछ तो करना पड़ेगा।"

    राज (अज्ञेय को ले जाते हुए) "हम्म, इसके लिए पहले हमें उसके लिए एक पी.ए. ढूँढना है जो उसका काम करे और तू फ़्री हो सके। तब हम ज़्यादा से ज़्यादा प्रोजेक्ट्स में उसे उलझा सकते हैं। क्योंकि चाहे वह मन्नत से कितना भी प्यार करे, लेकिन उसका पहला प्यार उसका काम है। इसलिए मन्नत से दूर करना आसान है।"


    करण के कैबिन में,

    मन्नत अभी भी करण की गोद में बैठी थी और अब उसके हाथ करण के चेहरे से होते हुए उसके सीने पर आ गए थे। वह जैसे ही शर्ट के बटन खोलना चाहती है, करण तुरंत ही उसका हाथ पकड़ लेता है।

    करण (मन्नत को देखते हुए) "बेबी, उकसाओ मत क्योंकि बहुत काम है आज। ठीक है?"

    मन्नत (करण के करीब जाते हुए) "वी आर कपल्स बेबी, एक किस तो बनता है ना।"

    करण (उसे दूर करते हुए) "बहुत काम है मन्नत, अभी के लिए जाओ। तुम भी शाम में मिलते हैं।"

    जैसे-तैसे करके करण मन्नत को वापस भेज देता है। करण अपने टेबल के पास आकर खड़ा हो जाता है और दो मिनट तक वैसे ही खड़े रहने के बाद टेबल पर रखा हुआ पानी का गिलास उठाता है और एक ही साँस में खाली कर देता है। बालों में हाथ फेरते हुए, चेयर पर बैठ जाता है।

    करण (फ़्रस्ट्रेट होकर खुद से) "मैं मन्नत से प्यार करता हूँ, लेकिन जब भी वह मेरे करीब आती है, मुझे इतनी बेचैनी क्यों होने लगती है? ऐसा क्यों मन करता है कि बस अभी ही दूर हो जाऊँ? कभी भी उसके लिए कुछ स्पेशल फ़ील क्यों नहीं होता है? आज तक मैंने कभी भी उसके लिए वह तड़प महसूस नहीं की है, जो तड़प मैंने राज के अंदर निया के लिए देखी है। क्यों होता है ऐसा? क्यों ऐसा लगता है जैसे मैं आज भी उतना ही अकेला हूँ, उतना ही अधूरा जितना कि पहले था? मन्नत के साथ बॉन्डिंग क्यों नहीं बन पा रही है?"

    यही सब सोचते हुए वह फ़्रस्ट्रेट हो रहा था।


    बिहार (मधुबनी)

    बंधन अपना घर का सारा काम निपटाकर फ़्री हो चुकी थी और अब वह सिलाई के लिए जो कपड़े आए थे, उसे काट रही थी। उसने दो सूट और दो सलवार काट लिए थे। अब वह ब्लाउज़ काट रही थी। तभी केशव आता है।

    केशव (घर में आते हुए) "आप भी क्या सब करती रहती हो? यह थोड़ी काम आएगा। इससे अच्छा कुछ पढ़ लेतीं, वह काम आता।"

    सुधीरा जी (आते हुए) "बेटा, वह लड़की जात है और लड़की जात को हर काम आना चाहिए क्योंकि उसका परफ़ेक्ट होना बहुत ज़रूरी होता है, घर चलाने के लिए। इसलिए उसके जीवन में यह भी काम ही आएगा और उसको क्या बोलता है... अब लड़के भी काम सीखते हैं, उन्हें भी तो बाहर जाकर अकेले रहना होता है, तो उन्हें भी घर का काम तो आना चाहिए। क्योंकि बेटा, जहाँ जाओगे ना, यह पेट साथ में ही रहेगा। कहावत सुनी है ना, अगर यह पेट नहीं होता तो मेरा तेरा भेट नहीं होता।"

    केशव (मुस्कुराते हुए) "यह बात तो सही कही आपने।"

    बंधन (केशव से) "जल्दी से जाकर पहले फ़्रेश हो जा, ड्रेस बदलकर कुछ खा ले। इसके बाद होमवर्क भी करना होगा तेरे को। आज थोड़ा जल्दी फ़्री हो जा, काम है कुछ मुझे।"

    केशव बंधन का इशारा समझ चुका था कि वह किस काम की बात कर रही है। वह तुरंत ही अपने कमरे में भागता है।

    बंधन (सुधीरा जी से) "माँ, आज सारे कपड़े काटकर रख देती हूँ। कटा रहेगा तो सिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा। कल सिलूँगी, आज बहुत थक गई हूँ।"

    सुधीरा जी (रिमोट लेते हुए) "ठीक है, कल ही सिलना। सच में थक गई होगी। जा, थोड़ा सा आराम कर ले। आज रात का खाना मैं ही बना लूँगी।"

    बंधन का भी ब्लाउज़ काटना हो गया था। अब वह सब कुछ समेटकर रख रही थी।

    बंधन (उठते हुए) "अरे नहीं, खाना तो मैं बना लूँगी, लेकिन पहले आराम करूँगी।"

    इतना बोलकर वह सब कुछ मशीन के पास रखकर अपने कमरे में चली जाती है।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या सच में यह करण का प्यार है या भ्रम? और क्या बंधन कामयाब होगी? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 8. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 8

    Words: 1197

    Estimated Reading Time: 8 min

    बिहार (मधुबनी)

    बंधन ने सारे कटे हुए कपड़े समेटकर एक थैले में रख दिए। उसमें वह सिलाई के लिए आए कपड़े रखती थी। उसने वह बैग मशीन के पास रखकर अपने कमरे में चली गई। उसका कमरा बहुत बड़ा या फैशनेबल नहीं था; एक छोटा सा कमरा जिसमें एक बिस्तर, एक अलमारी, एक स्टडी टेबल और एक कुर्सी रखी थी, और कुछ नहीं। कमरा ज़्यादा बड़ा नहीं था, न ही बहुत ज़्यादा फैशनेबल, लेकिन बहुत अच्छे से मैनेज था। कमरे की दीवारों पर खुद से बनाई पेंटिंग्स टंगी थीं। पेंटिंग्स के नीचे बड़े ही सुंदर और बोल्ड लेटर्स में लिखा था, ‘बंधन चौधरी’ जो बड़े ही खूबसूरत लग रहे थे। सारी पेंटिंग्स अपने आप में बहुत सुंदर थीं। ज्यादातर पेंटिंग्स देवी-देवताओं के अवतारों से संबंधित थीं; ज्यादातर कृष्ण और काली माँ की पेंटिंग्स थीं। एक-दो जगह पर कपल की पेंटिंग भी लगी हुई थीं, जो बेहद खूबसूरत थीं। बंधन अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गई। वह सच में बहुत थक गई थी, लेकिन क्या करे, पढ़ाई और काम दोनों ज़रूरी हैं। क्योंकि उसकी माँ ज्यादातर बीमार रहती थी, इसलिए वे उसे ज़्यादा काम नहीं करा सकती थीं। वह छत को एकटक घूर रही थी। उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था।

    बंधन (मन में): "कान्हा, केशव, क्या होगा मेरा भविष्य? क्या मैं ऐसे ही हमेशा दूसरों पर निर्भर रहूँगी? कृष्ण, कुछ तो करो! मुझे भी मेरे करियर में ग्रोथ चाहिए। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे कोई लड़की पढ़ने के बाद सिर्फ़ शादी करके रह जाती है। क्योंकि मेरा मानना है कि आप परिवार संभालो, लेकिन अपने करियर को, अपने शौक को मत छोड़ो। केशव, मुझे मेरे करियर में ग्रोथ चाहिए, प्रभु।"

    अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी कमरे में केशव आया। उसने अपने कपड़े बदल लिए थे, और अब वह घर के कपड़ों में था। उसने लोअर और टी-शर्ट पहनी हुई थी, और काफी आकर्षक लग रहा था।

    केशव (बंधन के बगल में बैठते हुए): "दीदी, उठो ना! चलो सर्च करते हैं कि कोई कंपनी है भी या नहीं आपके लायक।"

    बंधन (आँख दिखाते हुए): "खाना खाया या फिर नहीं?"

    केशव (पप्पी फेस बनाते हुए): "दीदी, मन नहीं हो रहा है। बाद में खा लूँगा।"

    बंधन (गुस्सा करते हुए): "तू फिर बाहर से कुछ खाकर आया है? कितनी बार कहा है कि बाहर का खाना अच्छा नहीं होता, लेकिन तुझे बीमार पड़ना ज़्यादा अच्छा लगता है। पहले तू खाकर आ, नहीं तो वही खाना रात में दूँगी। आज नहीं खाऊँगी मैं दिन का खाना।"

    बंधन के गुस्सा करने पर केशव चुपचाप उठकर चला गया।

    केशव हॉल में आया। वहाँ सुधीरा जी बैठी अपनी सीरियल देख रही थीं।

    केशव (उनके बगल में बैठते हुए): "माँ, खाना दे दो, मुझे बहुत ज़रूरी काम है।"

    सुधीरा जी (टी.वी. देखते हुए): "जा, निकालकर खा ले, और हाँ, खाने के बाद अपना बर्तन धो भी लेना, क्योंकि वो सारा बर्तन धो चुकी हूँ।"

    केशव हाँ में सर हिलाते हुए किचन में चला गया।

    केशव (किचन में खाना निकालते हुए): "माँ को कोई और काम है ही नहीं, बस सीरियल देखते रहो! कैसे ये इतना सारा सीरियल एक साथ देखती हैं, और तो और सबको कहानी भी याद रहती है! क्या ये सब बोर नहीं होती हैं? और जब तक सीरियल चलता है, तब तक घर में कुछ और नहीं चलता है।"

    वह अपना खाना लेकर हॉल में वापस आकर बैठ गया, और जल्दी-जल्दी अपना खाना खत्म करने लगा, क्योंकि उसका दिमाग तो अभी भी बंधन के लिए जॉब ढूँढने पर टिका हुआ था।

    केशव (खाना खाते हुए मन में): "दीदी को जॉब मिलना बहुत ज़रूरी है। पहली बात तो वो सेल्फ डिपेंडेंट हो जाएँगी, और दूसरी बात कि अगर वो शिफ्ट हो गई तो मेरे शिफ्ट होने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।"

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    Bhargav's corporate

    करण बेचैनी से उस केबिन में घूम रहा था।

    करण (परेशानी से): "कुछ समझ नहीं आ रहा है! क्या चाहिए मुझे, समझ ही नहीं आ रहा है?"

    अज्ञेय का केबिन

    केबिन के सोफे पर आमने-सामने अज्ञेय और राजवीर बैठे थे। राज बिल्कुल शांत था, वहीं अज्ञेय गुस्से में था।

    राज (अज्ञेय को शांत करते हुए): "तू शांत हो जा। देख, इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह करण के लाइफ का एक पर्सनल मैटर है।"

    अज्ञेय (राज को देखते हुए): "हमारी दोस्ती में क्या पर्सनल, यार! सब ग्रुप का मैटर होता है।"

    राज (हाँ में सर हिलाते हुए): "देख, मैं तेरी बात समझ रहा हूँ। हाँ, हमारी दोस्ती में कुछ भी पर्सनल नहीं है, लेकिन सबका एक पर्सनल स्पेस होता है, उस स्पेस में कोई दूसरा नहीं आ सकता है, उसमें हम भी नहीं जा सकते हैं।"

    अज्ञेय (गुस्से से): "तो क्या करें? ऐसे ही बैठे रहें? उस लड़की को अपने यार की ज़िंदगी बर्बाद करने दें?"

    राज (मुस्कुराते हुए): "नहीं, उसके लिए सबसे पहले करण के पी.ए. के लिए अप्लाई जारी करो, ऑनली फॉर गर्ल्स।"

    राज की बात सुनकर अज्ञेय भी मुस्कुरा उठा।

    अज्ञेय (मुस्कुराते हुए): "ठीक है, मैं अप्लाई जारी करता हूँ। तू इस मॉडल को काम के ज़रिए कहीं और भेज, और इतना बिजी कर दे कि करण को फोन करने का भी टाइम ना मिले इसे।"

    राज (हँसते हुए): "ठीक है, ऐसा ही होगा।"

    बिहार (मधुबनी)

    केशव खाकर वापस से बंधन के कमरे में गया, तो देखा कि वह पहले से ही लैपटॉप खोले काम सर्च कर रही थी। केशव भी उसके बगल में जाकर बैठ गया।

    केशव (लैपटॉप स्क्रीन को देखते हुए): "कोई ढंग का मिला क्या?"

    बंधन ने ना में सर हिला दिया।

    बंधन (शांति से बोलती है): "सर्च में है।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या बंधन को मिलेगा उसके मन के मुताबिक जॉब? जानने के लिए बने रहें, बंधन (एक मर्यादा)।

  • 9. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 9

    Words: 1302

    Estimated Reading Time: 8 min

    बिहार (मधुबनी)

    केशव खाना खाकर बंधन के कमरे में वापस आया। उसने देखा कि बंधन बिस्तर पर बैठी थी, उसके सामने लैपटॉप खुला हुआ था और स्क्रीन पर जॉब सर्च चल रही थी। केशव उसके बगल में बैठ गया।

    केशव (लैपटॉप स्क्रीन देखते हुए) "कुछ ढंग का मिला क्या?"

    बंधन (स्क्रीन में आँखें गड़ाए हुए) "नहीं, अभी तक तो नहीं, लेकिन सर्चिंग में हूँ।"

    केशव (सजेशन देते हुए) "एक काम करते हैं, जितनी भी छोटी कंपनी से लेकर बड़ी कंपनी हैं, सबके वेबसाइट चेक करते हैं, शायद कुछ मिल जाए जो हमारे काम का हो।"

    बंधन (आँखें बड़ी करती हुई केशव को देखती है) "तू तो समझदार होता जा रहा है! आइडिया अच्छा है वैसे।"

    केशव (कॉलर ऊँचा करते हुए) "जलवा है अपना।"

    बंधन (कान मरोड़ते हुए) "क्या है ना कि ज़्यादा मत उछल, वरना मार-मार कर तेरे जलवे का हलवा बना दूँगी।"

    केशव (कान छुड़ाते हुए) "ओह दीदी! कान मत पकड़ो, और काम करो पहले।"

    बंधन और केशव मिलकर कई सारी कंपनी चेक करते रहे, लेकिन किसी में प्यून की जॉब थी तो किसी में मैनेजर पोस्ट।

    केशव (थकते हुए) "क्या दीदी? मैनेजर पोस्ट है तो क्या हुआ? कर दो ना अप्लाई।"

    बंधन (चिढ़ते हुए) "तू सच में पागल है! मैनेजर पोस्ट की ड्यूटी पता भी है? और डिपार्टमेंट मैनेजर होते हैं। मैनेजर के पास उस डिपार्टमेंट की नॉलेज तो होनी चाहिए, जो कि मेरे पास तो नहीं है।"

    केशव (सोचते हुए) "अच्छा, मैनेजर पोस्ट नहीं हो सकता है तो पी.ए. के लिए तो ट्राय कर सकती हो ना।"

    बंधन (केशव को देखते हुए) "भाई, एक पर्सनल असिस्टेंट का काम मैनेजर से भी ज़्यादा ज़िम्मेदारी वाला होता है क्योंकि उसमें बॉस के शिड्यूलिंग, टाइम मैनेजमेंट, मीटिंग प्लानिंग, प्रोजेक्ट हैंडलिंग, केयर टेकिंग और भी बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। और तो और, एक पर्सनल असिस्टेंट को अपने बॉस के लेवल का ही आॅरा, इंटेलिजेंस और पर्सनैलिटी मेंटेन करनी होती है क्योंकि किसी भी मीटिंग में आप अपने बॉस के साथ जा रहे हो तो उनके लेवल को मैच करना होता है, और कई बार आप बॉस की जगह भी कई सारे प्रोजेक्ट और मीटिंग अटेंड करोगे, इसलिए भी ये ज़रूरी है। (लंबी साँस खींचते हुए) और तुझे लगता है कि मैं इसके लिए फ़िट हूँ? अरे, मुझसे मेरी पर्सनैलिटी मेंटेन नहीं होती, किसी और की पर्सनैलिटी क्या ही मैच कर पाऊँगी?"

    इतना बोलकर वो केशव की तरफ़ देखती है जो मुँह फाड़े उसे ही देख रहा था।

    केशव (अपना थूक गटकते हुए) "जब आपको इतना पता है इस जॉब के बारे में, तो आपसे ज़्यादा परफेक्ट कौन हो सकता है? इस जॉब प्रोफ़ाइल के लिए।"

    बंधन (सोचते हुए) "लेकिन..."

    केशव (बंधन को बीच में ही रोकते हुए) "लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। अब आप इसी प्रोफ़ाइल के लिए जॉब ढूँढेंगी।"

    तभी सुधीरा जी की आवाज़ आती है बाहर से।

    सुधीरा जी (तेज़ आवाज़ में) "बंधन.. बंधन! साँझ ढल गई। साँझ पढ़ लो।"

    बंधन (जवाब में) "जी, आ रही हूँ, पढ़ लेती हूँ।"

    इसके बाद वो लैपटॉप बंद करके बाहर चली जाती है और हाथ-पैर धोकर शाम की आरती के लिए चली जाती है। आरती करके वापस हॉल में आती है।

    बंधन (सुधीरा जी से) "माँ, खाना में क्या बनाऊँ?"

    सुधीरा जी (सीरियल देखते हुए) "सैजमन का सब्ज़ी बना लो और रोटी रहेगा।"

    ऑर्डर सुनते ही बंधन किचन में जाने लगती है, तभी सुधीरा जी की नज़र केशव पर पड़ती है, जो अपने कमरे की तरफ़ जा रहा था।

    सुधीरा जी (तेज़ आवाज़ में) "बंधन, इसको भी ले जा और खाना बनाना सिखा। अरे, दिन भर फालतू इधर-उधर डोलता रहता है।"

    केशव (चिढ़ते हुए) "माँ, मेरे बोर्ड्स हैं! मुझे पढ़ना भी है, और किचन तो दीदी संभालेगी ना।"

    सुधीरा जी (शांत लेकिन गुस्से भरी आवाज़ में) "बेटा, पूरे दिन पढ़ाई होती नहीं है। खाना बना ले, फिर पढ़ लेना। क्योंकि ये तेरे भी काम आएगा। जब तेरी दीदी दिल्ली चली जाएगी तो घर का काम भी तुझे ही संभालना है, जैसे वो तेरे हिस्से का काम संभाल रही है।"

    सुधीरा जी की बात पर बंधन और केशव हैरानी से उन्हें देखते हैं। केशव दौड़ते हुए आता है और सोफ़े पर बैठ जाता है, बंधन भी बैठ जाती है।

    बंधन (हैरानी से) "सच में! पिताजी ने कहा है?"

    सुधीरा जी (मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ फेरते हुए) "बेटा, यही तो खासियत है तेरे बाप की, कि अगर तुम दोनों पढ़ना चाहो, लड़कपन में ना रहो, तो वो खुद को बेचकर भी तुम दोनों को पढ़ा देंगे। लेकिन अगर कोई भी शिकायत आई, खासकर केशव तेरे ओर से, तो ज़िन्दगी नर्क भी बना सकते हैं।"

    केशव (सुधीरा जी की बात को इग्नोर करते हुए) "लेकिन पापा माने कैसे? सुबह में तो कुछ और ही बोल रहे थे।"

    सुधीरा जी (दोनों को देखते हुए) "वो ऐसे ही बोल रहे थे, लेकिन उन्होंने तभी सोच लिया था, अपनी बुआ से बात करने के बाद ही वो आगे कुछ बोलेंगे। अब तुम दोनों जाओ और खाना बनाओ पहले।"

    दोनों उठकर किचन की तरफ़ चले जाते हैं। सुधीरा जी मुस्कुरा देती हैं।

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    Bhargav's Corporate

    राज हँसते हुए केबिन से बाहर निकल गया और वहीं अज्ञेय पी.ए. के लिए वैकेंसी जारी कर देता है। क्राइटेरिया और शर्तों के साथ ही, सुविधाओं के बारे में भी ब्रीफ़ली सब कुछ मेंशन था।

    अज्ञेय (मुस्कुराते हुए) "हे भगवान! अब कोई चमत्कार कर, कोई ऐसा भेज जो करण के लिए, मेरे भाई के लिए बनी हो, जो उसके लिए हो, ना कि इस मॉडल की तरह सबके लिए।"

    अज्ञेय जब भी मन्नत को याद करता, उसे बहुत गुस्सा आने लगता था। उसके हिसाब से मॉडलिंग गलत नहीं है, लेकिन काम के बाद भी, नॉर्मल डेज में भी पूरी तरह से मॉडल बनकर घूमना, जैसे कि जस्ट अभी ही फ़ोटोशूट करवाकर आ रही हो, ये उसे पसंद नहीं था। ऊपर उसका बोलने का स्टाइल, जो वो ज़्यादातर हिंदी को भी इंग्लिश एक्सेंट में बोलने की कोशिश करती थी, और उसका इतना ज़्यादा करण से चिपकना, ये सब वजह थी अज्ञेय के पास मन्नत को नफ़रत करने की, लेकिन वो चाहकर भी करण से ये बोल नहीं सकता था क्योंकि करण के दिमाग में ये बैठा दिया गया था कि वो मन्नत से प्यार करता है।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या सच में बंधन जा पाएगी दिल्ली? और क्या अज्ञेय और राजवीर का प्लान कामयाब होगा? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 10. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 10

    Words: 1191

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    अज्ञेय मन्नत से नफ़रत करता था। इसका कारण था उसका दिखावा, जो सभी को बुरा लगता था। पर उसके पास पैसा था, और उसके पिता के पास सत्ता, जिससे कोई उसे कुछ नहीं कह सकता था। इसी वजह से मन्नत के अंदर घमंड भर गया था। वह चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, अच्छा बनने की, पर उसकी मीठी-मीठी बातें भी कई बार काँटों जैसी लगती थीं क्योंकि हर बात में पैसा घुसाना उसकी आदत बन चुका था। वह चाहकर भी खुद को सामान्य नहीं दिखा पाती थी क्योंकि उसके अंदर पैसे का घमंड ऐसे बैठा था जैसे वह अकेली ऐसी हो जिसके पास पैसा हो। लेकिन करण के आगे मन्नत दुनिया की सबसे मासूम लड़की बन जाती थी ताकि उसे करण का अधिक से अधिक ध्यान मिले, और उसे मिल भी जाता था। अज्ञेय यही सब सोचकर फिर से गुस्से से उबल रहा था।

    अज्ञेय (गुस्से से): "पता नहीं यह लड़की कब करण का पीछा छोड़ेगी। इसकी वजह से कहीं वह अपने लक्ष्य से न भटक जाए। उसके जीवन में एक ऐसी लड़की होनी चाहिए जो उसे उसके मकसद तक, उसके मुक़ाम तक पहुँचाए, लेकिन यह तो करण को सहारा बनाकर अपनी कामयाबी की सीढ़ी चढ़ना चाहती है। यह बात सबको दिखाई देती है, लेकिन इस करण को नहीं दिख रहा है।"

    राज केबिन में आया। उसकी नज़र अज्ञेय पर पड़ी जो किसी सोच में डूबा हुआ था।

    राज (सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए): "क्या सोच रहा है भाई? अभी भी तेरा दिमाग मन्नत में ही लगा हुआ है। अबे छोड़ ना, इतना क्या सोचना है? वैसे भी हम कुछ नहीं कर सकते हैं। क्योंकि उसके दिमाग में मन्नत का ही फ़ितूर बैठा हुआ है।"

    अज्ञेय (गुस्से से): "यह सब उस निया की वजह से हुआ है। एक बहन होती है जो अपने भाई के लिए सही लड़की ढूँढकर लाती है और एक है जो पता नहीं कहाँ से ऐसी शोपीस लेकर आ गई।"

    तभी अज्ञेय का ध्यान राज पर गया और उसे ध्यान आया कि जिस निया की वह बात कर रहा है, उसका प्रेमी उसके सामने बैठा हुआ है।

    अज्ञेय (बात संभालते हुए): "मेरे कहने का मतलब है कि भाभी मन्नत की दोस्त हैं। उन्हें तो उसकी अच्छी-बुरी सारी बातें पता हैं, लेकिन वह फिर भी मन्नत को करण के जीवन में शामिल कर रही हैं।"

    राज (दर्द में मुस्कुराते हुए): "भाभी... वैसे तुमने जो कहा है वह सब सही ही बोला है, इसलिए बात संभालने की ज़रूरत नहीं है। और हाँ, उसे भाभी मत बोलो, वह मेरी कोई नहीं है।"

    अज्ञेय (सीरियस होते हुए): "कुछ हुआ है क्या भाई? मतलब तुम दोनों के बीच में कुछ हुआ है? क्यों इतना नाराज़ है?"

    राज (नम आँखों से): "कुछ ख़ास नहीं हुआ है, छोड़ ना, बस उसे मेरे साथ मत जोड़ यार।"

    अज्ञेय (गुस्से से): "बताएगा या मैं अपने तरीक़े से पता लगाऊँ?"

    राज (शांति से): "शायद मैं निया को खुश नहीं रख पाऊँगा, इसलिए वह मुझे..."

    अभी वह कुछ बोलता कि उसकी नज़र गेट पर खड़े करण पर गई, जो उन दोनों की बातें सुन रहा था।

    करण (अंदर आते हुए): "क्या बात है राज? तुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू निया को खुश नहीं रख पाएगा? बोलते-बोलते रुक क्यों गया?"

    राज (मन में): "करण, तू निया से बहुत प्यार करता है। और उसके प्यार में तू इतना अंधा है कि तुझे कुछ भी बताना मतलब तेरे गुस्से को बढ़ाना होगा। तू बिना प्रमाण के मानेगा नहीं। जो मैं बोलूँगा उस पर विश्वास नहीं होगा, इसलिए अभी कुछ भी बोलना शायद हमारी दोस्ती ख़त्म कर दे।"

    करण (राज को हिलाते हुए): "कहाँ खोया हुआ है यार? कुछ पूछा मैंने।"

    राज (बात टालते हुए): "अरे मैं हमेशा काम में बिज़ी रहता हूँ, निया को समय ही नहीं दे पाता इसलिए बोल रहा था। और मुझे डाउट है कि क्या मैं यह रिश्ता निभा पाऊँगा, मैं इस लायक हूँ?"

    करण (मुस्कुराते हुए): "मेरी बहन को तुझसे बेहतर तरीके से कोई और नहीं संभाल सकता है। वह बहुत ही मासूम है, उसे दुनिया की कोई खबर ही नहीं है। इसलिए तुझसे बेहतर उसके लिए कोई और नहीं है। तू ज़्यादा मत सोच, ठीक है।"

    करण की बात पर राज मुस्कुरा दिया, लेकिन उसके दिमाग में अभी भी होटल वाली बात ही घूम रही थी। वह चाहकर भी वह दृश्य नहीं भूल पा रहा था।

    राज (मन में): "काश मैंने बंधन की बात मानी होती तो आज इस कशमकश में न होता।"

    उसके चेहरे पर दर्द उभर आया। अज्ञेय बड़े ध्यान से राज को देख रहा था।

    अज्ञेय (मन में राज को देखते हुए): "नहीं राज, तुम जो बोल रहे हो वह बात नहीं है। बात कुछ और ही है जो शायद तुम बोल नहीं पा रहे हो, लेकिन मैं पता लगाकर रहूँगा। क्योंकि बात हमारी दोस्ती की है।"

    करण (राज और अज्ञेय से): "बहुत दिन से सिर्फ़ काम-काम ही हो रहा है। क्यों न कहीं घूमने चलें? मतलब कुछ दिनों के लिए ताज़गी के बाद काम और भी ज़्यादा अच्छा होगा।"

    राज (सुझाव देते हुए): "ठीक है, मनाली चलें।"

    अज्ञेय (शांति से): "हाँ, अच्छी जगह है मनाली, चलो चलते हैं।"

    करण (खुश होते हुए): "ठीक है, फिर मन्नत और निया को भी साथ ले लेते हैं।"

    अज्ञेय का तो मुँह बन गया, वहीं राज का भी यही हाल था। वह भी खुश नहीं था क्योंकि वह निया से छुटकारा पाने के लिए ही वहाँ जा रहा था।

    अज्ञेय (मुँह बनाते हुए): "बॉयज़ ट्रिप रखते हैं यार, फिर कभी उनके साथ ट्रिप कर लेंगे।"

    करण (सोचते हुए): "यह भी ठीक रहेगा।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या मोड़ लाएगा यह ट्रिप इनके जीवन में? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 11. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 11

    Words: 1312

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    करण के ट्रिप प्लान पर अज्ञेय और राजवीर भी तैयार हो गए थे। क्योंकि वे दोनों भी काम करके थक गए थे और मन को थोड़ा तरोताजा करना चाहते थे। राजवीर निया के धोखे से बाहर निकलने के लिए जाना चाहता था, लेकिन राज का मूड थोड़ा बदल गया था।

    राज (सोचते हुए): "एक हफ़्ते बाद हम सब मनाली चलेंगे। क्योंकि मैं पहले अपनी बहन से मिलने जाना चाहता हूँ। बहुत दिन हो गए हैं और ऊपर से बिना बात के मैंने उससे झगड़ा भी कर लिया था, इसलिए मैं कल बिहार जा रहा हूँ और वहाँ से सीधे मनाली आ जाऊँगा।"

    करण (सोचते हुए): "ठीक है, जैसा तेरा मन करे।"

    अज्ञेय को कुछ याद आया और वह एकदम से बोला।

    अज्ञेय (कुछ याद करते हुए): "अरे हाँ! वो मैंने तेरे पी.ए. के लिए वैकेंसी निकाल दी है। जब तक हम सब मनाली से लौटेंगे, तब तक तेरी पी.ए. भी हायर हो चुकी होगी।"

    करण कुछ नहीं बोला।


    बिहार (गुड़गाँव)

    सुधीरा जी सोफ़े पर बैठी हुई थीं और उन्होंने अभी एक इशारा दिया था कि नारायण जी बंधन के दिल्ली जाने के लिए मान गए थे। लेकिन यह बात अभी पक्की नहीं थी।

    सुधीरा जी (बंधन से): "तेरे पापा जब तक आ रहे हैं, तुम खाना बना लो। मैं फिर से पूछकर देखूँगी। और हाँ, इसको भी ले जा किचन में कुछ करवा इससे, खाना बनाना इसके लिए भी ज़रूरी है।"

    केशव (चिढ़ते हुए): "माँ... मुझे पढ़ना है। मैं अभी किचन में जाऊँगा, तब पढूँगा कब?"

    सुधीरा जी (केशव को आँख दिखाते हुए): "रात में पढ़ लेना। कल वैसे भी छुट्टी है। तुम्हारी मुझे पता है।"

    केशव बिना कुछ बोले किचन में चला गया।


    किचन में,

    बंधन सब्ज़ी काट रही थी और गाने सुन रही थी।

    केशव (बंधन के बगल में खड़े होते हुए): "दीदी मुझे क्या करना है?"

    बंधन (बिना देखे ही): "हाँ, आटा वाले बर्तन में कटोरी है, उस कटोरी से तीन कटोरी आटा गूँध ले।"

    केशव (मुँह बनाते हुए): "हाँ, मेरे लाइफ़ में अब यही आटा गूँधना बच गया है।"

    बंधन (हँसते हुए): "तेरी लाइफ़ ही कितनी बड़ी है जो तू ऐसे बोल रहा है।"

    केशव (आटा नापते हुए): "बक दीदी! आप तो बस मज़ाक के मूड में ही रहती हो।"

    बंधन हँसने लगी, तब केशव भी हँस पड़ा।

    केशव (आटा ले कर बंधन के बगल में खड़े होते हुए): "वैसे दीदी, अगर पापा मान ही गए हैं, तब जॉब ढूँढना ज़रूरी तो नहीं, क्योंकि खर्चा तो पापा देंगे ही।"

    बंधन (सीरियस होते हुए): "नहीं केशव! अगर पिताजी मान भी जाते हैं, फिर भी जॉब मेरे लिए उतना ही ज़रूरी है, क्योंकि मैं पिताजी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूँ। मेरी पढ़ाई पिताजी के लिए परेशानी की वजह बन जाए, यह नहीं चाहती हूँ। इसलिए जो खर्चा मैं निकाल सकती हूँ, वह ज़रूर निकालूँगी।"

    केशव (गहरी साँस लेते हुए): "ठीक है, फिर यह सब निपटाकर हम दोनों फिर से जॉब सर्च करेंगे।"

    बंधन (मुस्कुराते हुए): "हम्म!"

    केशव (बंधन को देखते हुए मन में): "आप बहुत ही स्वाभिमानी हो दीदी, मतलब अगर पापा मान जाते हैं, तो वह खुद ही सारे खर्चे उठाएँगे, वह भी आप के बिना बोले क्योंकि वह भी जानते हैं कि आप कभी भी फ़िज़ूलखर्ची नहीं करती हो। लेकिन फिर भी आप फैमिली पर बोझ नहीं बनना चाहती। दीदी, मैं भी आपकी तरह ही बनूँगा। यू आर सच अ इंस्पायरिंग पर्सनेलिटी। मेरे लाइफ़ की रियल इन्फ्लुएंसर आप हो।"

    सुधीरा जी किचन के गेट से दोनों को देख रही थीं। वे मुस्कुराते हुए वहाँ से वापस हॉल में आ गईं।

    सुधीरा जी (भगवान को थैंक्स कहते हुए): "कन्हैया, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो इतने अच्छे बच्चे दिए हैं। आपसे एक विनती है कि इन दोनों का प्यार ऐसे ही बनाए रखें।"

    तभी नारायण जी गेट से अंदर आते हुए दिखे।

    नारायण जी (अंदर आते हुए): "हरिओम, हरिओम।"


    किचन में,

    केशव आटा गूँध चुका था और बंधन ने एक तरफ़ सब्ज़ी भी चढ़ा दी थी।

    बंधन (केशव से): "भाई, जा अब तू जाकर पढ़ ले, मैं रोटी बना लेती हूँ।"

    केशव हाथ धोकर पढ़ने के लिए चला गया। तभी बंधन का फ़ोन रिंग करता है। बंधन देखती है तो कॉलर आईडी पर राज भाई शो कर रहा था। बंधन ईयरफ़ोन कान में लगाती है और कॉल रिसीव करके-

    बंधन (कॉल पर मुस्कुराते हुए): "हाँ भाई, बोलिए, कैसे हैं आप? ठीक हैं ना?"

    राज (मुस्कुराते हुए): "हम्म, ठीक ही हूँ। तू बता कैसी है? और क्या कर रही है?"

    बंधन (मुस्कुराते हुए): "मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ और अभी रोटी बना रही हूँ। आप खाओगे तो आ जाओ।"

    राज (मुस्कुराते हुए): "फिर तो सच्ची में मेरे लिए रख, क्योंकि मैं सच्ची में बिहार आ रहा हूँ।"

    बंधन (हँसते हुए): "वो तो आप दिन में चालीस बार आते हो, बातों से।"

    राज (मुस्कुराते हुए): "पर कल सच में आ रहा हूँ। वो माँ भी आ रही है, बुआ से मिलने के लिए।"

    बंधन (सीरियस होते हुए): "सच में? मतलब आप सीरियस हो या मज़ाक कर रहे हो? मामी भी आ रही है?"

    राज (कन्फ़र्म करते हुए): "हाँ भाई, सच में आ रहा हूँ, मैं और माँ भी, बुआ से बोल दे।"

    बंधन (खुश होते हुए): "फिर ठीक है। अब तो मुझसे रात भी नहीं कटेगी। भाई, आप जल्दी से आ जाओ, फिर ढेर सारी मस्ती करेंगे।"

    राज (मुस्कुराते हुए, लेकिन कैज़ुअली): "ठीक है।"

    बंधन (सीरियस होकर): "भाई, आप परेशान लग रहे हो। कोई बात है क्या?"

    राज (लम्बी साँस लेते हुए): "कल आकर बात करते हैं। अभी रखता हूँ, घर भी जाना है, अभी ऑफ़िस में ही हूँ।"

    बंधन (खुशी से): "ठीक है भाई, आप आओ पहले। बाय, टेक केयर।"

    इसके बाद कॉल कट हो जाता है। बंधन हॉल में आते हुए-

    बंधन (सुधीरा जी से): "माँ, राजवीर भाई का फ़ोन था। वह कह रहे थे कि कल वह और मामी मिलने आ रहे हैं।"

    सुधीरा जी (चौंकते हुए): "क्या? कल आ रहे हैं? हे भगवान! वो तो बड़े लोग हैं और उनके नाश्ते, खाने के लिए भी कुछ ढंग का नहीं है।"

    नारायण जी (सुधीरा जी को शांत करते हुए): "अरे नहीं है तो आ जाएगा। आप इतना पैनिक मत हो।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? राज का बिहार आना क्या मोड़ लेगा? और क्या राज निकल पाएगा निया के धोखे से? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 12. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 12

    Words: 1349

    Estimated Reading Time: 9 min

    बिहार (मधुबनी)

    राज ने फोन काट दिया और बंधन खुशी से उछल पड़ी। अभी दो-तीन रोटियाँ सेंकनी बाकी थीं, लेकिन बंधन अब और इंतज़ार नहीं कर पा रही थी। बंधन ने गैस की फ़्लेम कम करके दौड़ते हुए हॉल में आकर देखा कि सुधीरा जी और नारायण जी पहले से ही बैठे थे और दोनों के बीच बहस छिड़ी हुई थी।

    सुधीरा जी (नारायण जी से): "यौ आहाँ ई न्यूज हटैब की नई।"

    नारायण जी (सुधीरा जी से): "न्यूज सुननाई त नीक बात होई छै, अहि स देश दुनिया के खबर मिलइ छै।"

    सुधीरा जी (चिढ़ते हुए): "अगर हमर सीरियल छूटल तहन आहाँ बुझबई की देश दुनिया के खबर केहन होई छई।"

    बंधन ने दोनों को इस तरह लड़ते देख ऊपर की ओर देखकर एक लंबी साँस खींची।

    बंधन (भगवान से): "क्या कोई ऐसा शो नहीं है जो पापा-मम्मी साथ में देख सकें बिना लड़े?"

    अपनी सोच को झटकते हुए, वह हॉल में आई और खुशी से चहकते हुए बोली:

    बंधन (खुशी से उछलते हुए): "माँ, पापा! राज भाई का फ़ोन आया था। वो बोल रहे थे कि कल वो और मामी यहाँ आ रहे हैं, हम सब से मिलने।"

    सुधीरा जी (चौंकते हुए): "क्या? कल आ रहे हैं? और बता अब रहे हैं।"

    बंधन (मुँह बनाते हुए): "तो क्या हो गया?"

    सुधीरा जी (घबराते हुए): "अरे क्या होगा? यही हुआ कि घर तो खाली है। वो सब बड़े लोग हैं, और उनके नाश्ते, खाने का इंतज़ाम करना होगा न।"

    नारायण जी (बेफ़िक्र होते हुए): "करना होगा तो हो जाएगा, उसमें इतना घबराने वाली क्या बात है?"

    सुधीरा जी (चिढ़ते हुए): "आप तो कुछ बोलिए ही मत! जब सामान बताती थी तब क्या बोलते थे, ये सब फ़ालतू खर्चा है। अब हो जाएगा, अब आप अभी जाइए और लिस्ट दे रही हूँ, सारा सामान ले कर आइए।"

    नारायण जी (चौंकते हुए): "अभी? कल सुबह-सुबह ही का दूँगा, पर अभी नहीं। सारा दुकान बंद हो गया है।"

    सुधीरा जी (गुस्से से): "कोई दुकान बंद नहीं हुआ है, अब जल्दी से जाइए।"

    नारायण जी ने बिचारा सा मुँह बनाकर बंधन को देखा।

    बंधन (मुस्कुराते हुए): "माँ, पहले लिस्ट बना लीजिए, फिर सुबह में पिता जी ले आयेंगे सामान। मैं भी बची रोटियाँ सेंक लेती हूँ।"

    इतना बोलते ही उसे याद आया कि वह तो रोटी तवे पर रखकर आई थी। वह दौड़ते हुए किचन में गई। जल्दी से रोटी को देखा तो वह पूरी जल चुकी थी। बंधन ने बिचारा सा मुँह बनाकर उस रोटी को देखा। फिर उस रोटी को रखते हुए, उसने दूसरी रोटी सेंकी और जल्दी ही सारे किचन का काम निपटा लिया। सारा खाना ढँककर हाथ साफ़ करते हुए वह किचन से बाहर आई। हॉल में आते ही उसे कुछ याद आया और वह अपने रूम में गई। थोड़ी ही देर में हाथ में पेन और कॉपी लिए बाहर आई और सुधीरा जी के बगल में बैठ गई।

    बंधन (कॉपी का पेज पलटते हुए): "माँ, आप सामान बोलो, मैं लिस्ट तैयार कर दूँगी। पिता जी सुबह में ले आयेंगे, लिस्ट बनाने का झंझट खत्म रहेगा।"

    सुधीरा जी (बंधन से): "हाँ, लिखो! एक नमकीन का पैकेट, बिस्कुट, कुछ कुरकुरे और चिप्स भी ले लेंगे, और हाँ चॉकलेट भी। राज को यही सब तो पसंद है। इसके बाद सूजी, मैदा, बेसन, पनीर, चार पैकेट दूध, चीनी भी और चायपत्ती भी, और हाँ वो राज क्या पिता है, कॉफ़ी भी, और सब्ज़ी ले लेंगे। मिठाई में, रसगुल्ले, गुलाबजामुन, पेड़ा, लड्डू (बेसन के), काजूकतली, बर्फी, और…"

    वह आगे और भी कुछ बोलती, तभी नारायण जी बीच में टोकते हुए बोले:

    नारायण जी (हैरानी से बड़ी-बड़ी आँख करके): "अरे बस भाग्यवान! ये दो मेहमानों के लिए है या पूरे देश के लिए? इतना काफ़ी है।"

    सुधीरा जी (गुस्से से): "वाह! जब आपका मेहमान आता है तब तो बड़ा नीक लगता रहता है, हम्म! सुधीरा खीर बना दो, घर में ही खोआ फाड़कर पेड़ा बना दो, खोआ वाला गुलाबजामुन बना दो, पनीर का सब्ज़ी बना दो, ये बना दो, वो बना दो। और जब मेरे नैहर से कोई आए तो बहुत हो गया, इतने में पूरा देश और ब्रह्मांड खा लेगा। बुझा रहे हैं, जब हम लिस्ट बनवाएँ तो मुँह में ताला लगाकर बैठे रहिए।"

    नारायण जी (मन में): "जब से ब्याह किए हैं, मुँह में तो ताला ही लगा है। वो जमाना गया जब हम भी हीरो हुआ करते थे।"

    बंधन वहाँ चुपचाप बैठी थी क्योंकि उसे पता था कि अगर वह जरा सा भी बोली तो सुधीरा जी के कोप का भाजन उसे ही बनना पड़ेगा। तभी केशव वहाँ आया, केशव साफ़ कपड़ों में।

    केशव (बंधन से): "ये किस चीज़ की तैयारी चल रही है? कौनो त्योहार है?"

    बंधन (खुश होते हुए): "नहीं, त्योहार नहीं है। कल राज भाई आ रहे हैं, उसी की तैयारी है।"

    केशव (खुशी से): "है, सच में? फिर कल मैं कोचिंग और स्कूल कहीं नहीं जाऊँगा।"

    नारायण जी (गुस्से से): "तो मेरे लात का दर्शन अभी ही कर लो। वो सब आयेंगे तब मिल लेना, और स्कूल-कोचिंग छोड़ा तो बोरिया-बिस्तर लेकर निकल जाना घर से।"

    केशव का मुँह बन गया।


    दिल्ली (गुड़गाँव)

    द ब्लू डायमंड होटल,

    एक बड़ा ही आलीशान होटल था, जो Bhargav's corporate के अंदर ही आता था। उस होटल के रूम नंबर 213 में एक लड़का बेड पर आधा लेटा हुआ था, और उसके गोद में एक बड़ी ही खूबसूरत सी लड़की बैठी हुई थी। उसने रेड कलर की शॉर्ट नाइट गाउन पहना हुआ था, और उसके स्ट्रिप्स उसके शोल्डर पर बिल्कुल फिट थे, जिससे उसका शोल्डर वाला हिस्सा बहुत ही अच्छा लग रहा था। उस लड़की के हाथ उस लड़के के शर्ट के बटन खोल रहे थे, और बार-बार उसके सीने को टच कर रहे थे। वो लड़का बड़े ही आराम से लेटा हुआ एन्जॉय कर रहा था, उसके लब मुस्कुरा रहे थे। ये दोनों कोई और नहीं, बल्कि मन्नत और करण थे।

    करण (मुस्कुराते हुए): "क्या बात है? तो मुझे इसलिए बुलाया था? वैसे जो भी कर रही हो, भारी पड़ेगा तुम पर ही।"

    मन्नत (मुस्कुराते हुए, सेडक्टिव वॉइस में): "अब तुम इतना काम करते हो, किसके लिए? मेरे लिए ही, ताकि हमारा फ़्यूचर अच्छा हो, तो इसलिए मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी तुम्हें कभी-कभी आराम दे दूँ।"

    करण (मन्नत के बाल पीछे करते हुए): "कितना ख्याल रखती हो मेरा! आई लव यू सो मच।"

    मन्नत (मुस्कुराते हुए): "लव यू टू।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? राज के आने के बाद क्या होगा? और क्या सच में करण और मन्नत का रिश्ता जैसा दिख रहा है, उतना ही अच्छा है? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 13. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 13

    Words: 1323

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    द ब्लू डायमंड होटल (रूम नंबर 213)

    करण और मन्नत अपने आधे कपड़ों में बिस्तर पर बैठे थे। मन्नत करण की गोद में थी, और दोनों ही बड़े आराम से बैठे थे। उन्हें देखकर यह बिल्कुल नहीं लग रहा था कि ये दोनों पहली बार इतने करीब आए थे। कमरे में लाइट्स ऑफ थीं, और मोमबत्तियाँ जल रही थीं। मोमबत्ती की पीली रोशनी में मन्नत का शरीर मानो चमक रहा था। ऊपर से उसके आधे-अधूरे कपड़ों में होना किसी भी पुरुष को बहकाने के लिए काफी था, और वह और करण तो रिश्ते में भी थे। लेकिन हैरानी की बात थी कि मन्नत, जो एक वर्ल्ड क्लास मॉडल है, जिसे विदेशों में भी मॉडलिंग के कई मौके मिले हैं और वह कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में भी इंडियन मॉडल्स की सूची में हमेशा टॉप पर रहती है, उसकी आँखें किसी गहरे समंदर की तरह थीं, जिसमें किसी का भी डूबने का मन करता है। उसका हर अंग इतना खूबसूरत और परफेक्ट था मानो कामदेव ने खुद ही उसे बनाया हो। उसकी त्वचा मक्खन जैसी मुलायम थी; उसके सामने तो शायद मक्खन भी खुद पर शक करने लगे। आसमान में चमकते चाँद पर भी धब्बा है, लेकिन मन्नत के चाँद से चेहरे पर एक भी दाग नहीं था। इतनी खूबसूरती को खुद में समेटे हुए, वह नेट की नी लेंथ की नाइटगाउन पहने हुए किसी कामुक अप्सरा की तरह लग रही थी, जो अपने प्रेमी की गोद में बैठी हुई थी। लेकिन हैरानी की बात थी कि मन्नत की खूबसूरती जहाँ किसी को भी पिघला दे, वहीं करण उसे गोद में लेकर बैठा था, लेकिन उस पर कोई असर ही नहीं हो रहा था। बल्कि उल्टा मन्नत ही उसे रिझाने की कोशिश कर रही थी, और करण शांति से बैठा आनंद ले रहा था, जो काफी हैरान करने वाली बात थी। मन्नत उसके खुले सीने पर उंगली चलाते हुए, उसके होंठों की ओर बढ़ रही थी, लेकिन अभी भी करण बड़े ही शांति से बैठा था। मन्नत करण के इतने करीब आ चुकी थी कि दोनों ही एक-दूसरे की साँसों को महसूस कर सकते थे। अभी मन्नत करण के होंठों तक पहुँच पाती कि तभी करण का फ़ोन बज उठा।

    करण (मन्नत को खुद से दूर करते हुए)
    "एक मिनट, पहले कॉल देख लेता हूँ, कुछ महत्वपूर्ण कॉल भी आने वाले थे।"

    मन्नत क्या ही कर सकती थी? करण फ़ोन साइड टेबल से उठाता है, तो एक संदेश था, जो राज की ओर से था जिसमें उसने बताया था कि वह बिहार जा रहा है कल ही, इसलिए उसने अपने सारे फाइल अज्ञेय को दे दिए हैं, और अभी जो कॉल आई थी वह मिस्ड कॉल हो गया था। करण कॉल पर टैप करता है तो, उस पर बड़े पापा फ़्लैश हो रहे थे, मतलब कॉल घर से था। करण बिस्तर से उठकर बालकनी में चला जाता है और उस नंबर पर कॉल बैक करता है।

    करण (फ़ोन कान में लगाए हुए)
    "हाँ पापा, आपने फ़ोन किया था! कुछ काम था क्या?"

    बड़े पापा (कड़कते हुए)
    "आप कहना क्या चाहते हैं? कि जब मेरे पास कोई काम होगा तभी हम अपने बेटे को फ़ोन कर सकते हैं।"

    करण (मुस्कुराते हुए)
    "नहीं, ऐसा कोई मतलब नहीं था, मैं तो बस यह पूछना चाहता था कि आपने फ़ोन किया तो कोई काम है क्या? या बस ऐसे ही।"

    बड़े पापा (हल्के तनाव में)
    "फिर से माँ की तबियत खराब हो गई थी, अभी तो ठीक है, वो आपसे मिलना चाहती है, घर आ जाइए।"

    करण (परेशान होते हुए)
    "क्या हुआ दादी को? मैं...मैं अभी घर पर आता हूँ।"

    करण फ़ोन रखते हुए कमरे में आता है, जहाँ बिस्तर पर बैठी मन्नत फ़ोन चला रही थी। करण जल्दी से अपने शर्ट का बटन बंद करता है, और कोट लेकर निकलने लगता है।

    करण (कमरे से निकलते हुए)
    "तुम आराम करो, दादी की तबियत ठीक नहीं, मैं जा रहा हूँ! सॉरी।"

    कहते हुए वह कमरे से बाहर निकल जाता है।

    मन्नत (फ़ोन पटकते हुए)
    "इस बूढ़ी को भी अभी ही बीमार पड़ना था, इतना तो जी लिया इसने, अब मरती क्यों नहीं।"

    अब चलिए थोड़ा करण के परिवार से भी मिल लेते हैं, क्योंकि बंधन का परिवार छोटा है, लेकिन करण का परिवार बड़ा है इसलिए इनसे मिलना ज़रूरी है।

    शंभु भार्गव, भार्गव परिवार के मुखिया थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। उमा भार्गव! शंभु भार्गव की पत्नी और इस घर की सबसे बुज़ुर्ग हैं, बहुत ही नेकदिल हैं, और आज भी इनकी बात पत्थर की लकीर है। लेकिन आजकल थोड़ी बीमार चल रही हैं। इनके दो बेटे हैं: बड़ा बेटा राकेश भार्गव, और छोटा बेटा राजेश भार्गव। और दो बेटियाँ हैं: बड़ी बेटी शकुंतला शर्मा, और छोटी बेटी कामिनी आहूजा।

    राकेश भार्गव जिन्होंने यह सारा बिज़नेस शुरू किया था। पिता की मृत्यु के बाद इन्होंने ही घर की ज़िम्मेदारी संभाली, दोनों बहनों की शादी और छोटे भाई की अच्छी पढ़ाई सब इनकी ही मेहनत से हुआ है। इनकी पत्नी सुनंदा भार्गव जो अच्छी महिला हैं। इनके दो बच्चे हैं: बड़ा बेटा जिसका नाम निकुंज है, जो रॉ का एजेंट है, और बेटी निया जो पता नहीं क्या है? क्योंकि कभी इन्हें कुछ करना होता है तो कभी कुछ।

    राजेश भार्गव एक अच्छे दिल के इंसान हैं और अपने बड़े भाई को पिता मानते हैं और उनकी बहुत इज़्ज़त करते हैं। इनकी पत्नी हैं सरला जी, वह भी काफी अच्छी हैं। इनके तीन बच्चे हैं: दो बेटे और सबसे छोटी बेटी। बड़े बेटे का नाम अमितेश है जो बड़े ही होनहार हैं। इनकी ही वजह से इनका बिज़नेस विदेशों में जगह बनाने लगा और उनकी पत्नी जिनका नाम प्रार्थना है, जो स्वभाव से बड़ी ही अच्छी है, लेकिन थोड़ी सी बड़बोली है। ये भी अमितेश के साथ उनके ही ब्रांच में काम करती है। इनके दो बच्चे भी हैं, वंश और वंशिका। वंशिका छोटी है। अमितेश के बाद करण है जो बड़ा ही स्ट्राँग पर्सनेलिटी का आदमी है। ये जब से बिज़नेस में आए हैं अपनी कंपनी को उन देशों में भी एस्टेब्लिश कर दिया है जहाँ पहले से ही टॉप लिस्टेड कंपनियाँ हैं। और इनकी गर्लफ्रेंड का नाम है मन्नत जिनसे आप सब मिल ही चुके हैं। करण के बाद घर में सबसे छोटी है पार्थवी जो अभी दसवीं की छात्रा है। और ये सबसे अलग अपने में ही मस्त रहती है। इसके अलावा इस घर में एक और सदस्य है तरुण जो कामिनी जी का बेटा है, लेकिन ज्यादातर यहीं रहता है, लेकिन अभी अफ़्रीका में है, प्रोजेक्ट के सिलसिले में।

    तो यह है पूरा भार्गव परिवार। इनमें कई के किरदार तो जैसा लिखा है वैसा ही है, लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो दिखते कुछ और हैं और होते कुछ और हैं।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? और क्या सियापे होंगे इस परिवार में, जानने के लिए बने रहें।

    बंधन (एक मर्यादा)

  • 14. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 14

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    करण मन्नत को होटल में ही छोड़कर घर के लिए निकल गया। मन्नत चिढ़ने और गाली देने के अलावा कुछ और नहीं कर सकती थी, इसलिए वह बड़े ही शांति से बैठ गई और अपने फ़ोन को स्क्रॉल करने लगी। उसे जरा सा भी फ़िक्र नहीं था कि करण की दादी को आखिर क्या हुआ था? वह मस्त मूवी लगाकर एन्जॉय कर रही थी।

    दिल्ली, जो काफी भीड़भाड़ वाली और व्यस्त जगहों में से एक है, हर दिन हजारों लोग इस शहर में एक नए सपने के साथ आते हैं; आगे बढ़ने के सपने, दौलत के सपने, शोहरत, नाम और इज़्ज़त के सपने, पंख लगाकर आकाश में उड़ने की चाहत यहां आने वाले हर इंसान के दिल में होती है। यहां आने वालों की आँखों में एक सपना, एक डर और खुशी, सब मिले-जुले भाव होते हैं! लेकिन यह शहर सबको नहीं अपनाता है। जो लोग लड़ना जानते हैं अपने किस्मत से, खुद से और अपने हालातों से; जिनके अंदर खुद के लिए प्यार, इज़्ज़त और ईमानदारी होती है, यह शहर उन्हें ही अपनाता है। वरना हर रोज़ इस शहर में ना जाने कितने सपने देखे जाते हैं, लेकिन सब पूरे नहीं होते। कुछ होते हैं और कुछ टूटकर बिखर जाते हैं, तो कुछ सपने ऐसे जिद्दी भी होते हैं जो बिखरने के बाद भी संभलने की हिम्मत रखते हैं, और कुछ सिसकियों में दबकर रह जाते हैं। यह है दिल्ली! कहते हैं दिल्ली दिल वालों का शहर है। और यहां हर रोज़ दिल जुड़ना और टूटना बड़ी बात नहीं है।

    इसी दिल्ली में एक बिल्डिंग, जो हर तरह के लग्ज़री से लैस है, उसकी फ्रंट दीवार पर बड़े-बड़े बोल्ड लेटर्स में "Bhargav's House" लिखा है। उस बिल्डिंग का मेन गेट खुला हुआ था और एक बीएमडब्ल्यू धड़धड़ाहते हुए बिल्डिंग में एंटर करती है। गाड़ी के अंदर जाते ही गेट बंद हो जाता है। गाड़ी सीधे पार्किंग एरिया की ओर जाती है। गाड़ी के रुकने के दो सेकंड के बाद ही करण ड्राइविंग सीट से उतरकर बाहर आता है। वैसे तो करण ड्राइवर रखता है, लेकिन जब मन्नत के साथ कहीं जाना हो तो वह गाड़ी खुद ड्राइव करना पसंद करता है, और इसलिए ही वह होटल आज ड्राइवर के बिना गया था। गाड़ी से निकलते ही करण दौड़ता हुआ घर के अंदर जाता है। उसके एंटर करते ही सारे सर्वेंट साइड हो जाते हैं। करण भागता हुआ हॉल को पार करके दादी के कमरे में जाता है; उनका कमरा ग्राउंड फ़्लोर पर ही था। करण जल्दी से कमरे में जाता है, सब लोग वहीं बैठे थे। करण दादी के बगल में बैठता है।

    करण (दादी से परेशान होकर): "क्या हुआ था आपको? अब ठीक है?"

    सरला जी (करण की मम्मी): "होगा क्या? बेहोश हो गई थीं। सुबह में इन्होंने दूध स्किप किया और मेडिसिन भी छोड़ दिया, तो बेहोश हो गई होंगी ना! क्या होगा? कितना भी समझा लो, लेकिन इन्हें करना खुद के मन का ही है।"

    दादी (मूँह बनाते हुए): "हाँ बहू, तुम ज़्यादा डॉक्टर मत बनो! (करण को देखकर बिचारा सा मुँह बनाकर) देख बेटा, प्रार्थना बहू तो कामकाजी है, ऑफ़िस भी जाती है और फिर भी घर का भी काम देख लेती है। लेकिन इन दोनों (सरला जी और सुनंदा जी की तरफ़ इशारा करते हुए) इन दोनों के पास क्या काम है? कुछ भी तो नहीं, बस बैठकर सोफ़ा तुड़वा लो इनसे! अगर ये दोनों मेरा ख्याल नहीं रखेंगी तो मुझे तो ऐसे ही बेहोश होना है। इसलिए बोल रही हूँ, अब तू ही शादी कर ले और बहू घर ले आ। अब तो तेरी बीवी ही मेरा ख्याल रखेगी तो शायद मैं बच पाऊँ, वरना तो तेरी माँओं ने मुझे मारने का पूरा प्लान तैयार कर लिया है। प्रार्थना घर संभाल लेगी और तेरी बीवी मेरा ख्याल रख लेगी।"

    करण कुछ बोलता उससे पहले ही पार्थवी बोल पड़ती है।

    पार्थवी (हँसते हुए): "फिर तो आप ठीक होने से रह जाएँगी दादी, क्योंकि भाई की गर्लफ्रेंड तो खुद से पानी का गिलास भी नहीं उठाएगी।"

    पार्थवी की बात पर प्रार्थना की भी हँसी निकल जाती है।

    सरला जी (गुस्सा करते हुए): "पार्थवी! आपको बात करने का तमीज़ है या नहीं?"

    सरला जी का डाँट सुनने के बाद पार्थवी बिल्कुल चुप हो जाती है। वहीं करण के चेहरे पर स्माइल आ जाती है। तभी दादी सबको बाहर जाने का इशारा करती हैं; सब बाहर चले जाते हैं। अब कमरे में बस दादी और करण थे।

    दादी (करण से): "देख बेटा, मैं बस इतना चाहती हूँ कि तुम शादी कर लो, एक ऐसी लड़की से जो घरेलू भी हो, जो घर-परिवार और संस्कार को समझती हो, जो सास-ससुर, जेठ की मर्यादा जानती हो, जो जीवन के हर मोड़ पर तुम्हारे साथ डटकर खड़ी रहे, तुम्हें प्यार और इज़्ज़त दे। और उनमें से एक भी गुण उस ड्रामा कंपनी में नहीं है। इसलिए सुन ले, तेरा और इस लड़की का क्या रिश्ता है, वह मैं नहीं जानती। लेकिन शादी उसी से होगी जो मेरी शर्तों को पूरा करे।"

    करण (मुस्कुराते हुए): "यह बाद की बात है। आप अभी रेस्ट करो। यह बार में सोचना ठीक है।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या करेगा करण? क्या टूट जाएगा करण और मन्नत का रिश्ता? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 15. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 15

    Words: 1481

    Estimated Reading Time: 9 min

    दिल्ली (गुड़गाँव)

    करण को दादी ने साफ़ हिदायत दी थी कि इस घर की बहू मन्नत नहीं बन सकती। कारण यह था कि पत्नी वही बनेगी जो उनकी शर्तों को पूरा कर सके।

    करण (मुस्कुराते हुए)
    "दादी, ये सब बाद में सोचने वाली बात है। बाद में सोचिएगा, अभी रेस्ट कीजिए।"

    इतना बोलकर उसने उन्हें बिस्तर पर आराम से लिटा दिया और फिर खुद कमरे से बाहर आ गया। बाहर निकलते ही उसके दिमाग में दादी की कही बात याद आई।

    करण (खुद से ही)
    "ये मुझे क्या हुआ? मतलब दादी ने मुझे मन्नत से शादी करने से मना किया है। उन्होंने मेरे और मन्नत के किसी भी रिश्ते को नहीं माना, लेकिन उनकी कही बातों का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा? मुझे डर क्यों नहीं लग रहा है कि मेरा और उसका रिश्ता टूट सकता है? जैसे मैं माँ के लिए, निया के लिए, अपने परिवार के लिए डरता हूँ, वैसे उसके लिए डर क्यों नहीं लग रहा है?"

    करण खुद से ही उलझा हुआ था। जब भी मन्नत की बात आती, वह एक कश्मकश में फँस जाता था। उसे समझ नहीं आता था कि क्या सही है और क्या गलत? करण अभी खुद में ही उलझा था कि सरला जी उसके पास आईं।

    सरला जी (करण के कंधे पर हाथ रखते हुए)
    "माँ ने मन्नत के लिए मना किया इसलिए परेशान है? बेटा, वो मान जाएँगी। थोड़ा वक्त दो उन्हें। उनकी सोच पुरानी है, मॉडलिंग उन्हें पसंद नहीं आती, बस यही बात है। मैं उन्हें समझाऊँगी। वैसे एक बात बोलूँ (करण उनकी तरफ देखता है) मुझे मेरे बेटे के पसंद पर गर्व है। बड़ी ही अच्छी पसंद है तेरी।"

    करण मुस्कुरा दिया।

    करण (मुस्कुराते हुए)
    "माँ, मैं परेशान नहीं हूँ। आप मुझे लेकर परेशान मत होइए। ठीक है।"

    इतना बोलकर वह लिफ़्ट की तरफ़ चला गया। करण का कमरा सेकंड फ़्लोर पर था, और इस पूरे बिल्डिंग में किसी भी फ़्लोर पर जाने के लिए सीढ़ियों के साथ लिफ़्ट की भी व्यवस्था थी। करण लिफ़्ट में जाकर सेकंड फ़्लोर का बटन दबाया। कुछ ही सेकंड में लिफ़्ट का दरवाज़ा सेकंड फ़्लोर पर खुला। करण बाहर निकला। इस पूरे फ़्लोर पर कुल छः कमरे थे। सबसे पहले वाला कमरा अमितेश और प्रार्थना का था, दूसरा पार्थवी का था, तीसरा करण का था, चौथा निया का था, पाँचवाँ निकुंज का था, जो ज़्यादा समय बंद रहता था। जब उसे छुट्टी होती, तब ही वह घर आता था, वरना ज़्यादा समय उसे मिशन के चलते बाहर ही रहना पड़ता था। छठा कमरा तरुण का था, जो आजकल बंद था क्योंकि वह अभी अफ़्रीका में था। करण चलते हुए तीसरे कमरे के दरवाज़े के पास आया, जो उसी का कमरा था। दरवाज़े के ऊपर ही एक स्कैनर लगा हुआ था। करण ने उस पर अपनी बाएँ हथेली रखी। हाथ स्कैन करने के बाद उसने पासवर्ड डाला और दरवाज़ा खुल गया। करण के कमरे का पासवर्ड निया और मन्नत ही जानती थीं, और स्कैनर पर भी उन्हीं के हाथ इंस्टॉल थे। दरवाज़ा खुलते ही करण कमरे में दाखिल हुआ। यह कमरा बेहद खूबसूरत था, लेकिन कमरे का इंटीरियर काफी बोल्ड था। यह इंटीरियर मन्नत के पसंद का था, जो काफी बोल्ड रेड एंड ब्लैक का कॉम्बिनेशन था, जो वाकई एक खूबसूरत लुक दे रहा था। लेकिन कमरे में लाइट कलर ही माइंड हीलिंग लगता है, और करण को खुद भी बेसिक कलर्स ही पसंद आते थे। लेकिन मन्नत ने कहा था कि वह उसकी होने वाली वाइफ़ है इसलिए कमरे का इंटीरियर और डेकोरेशन उसके पसंद के होने चाहिए। हर तरफ़ बोल्ड रेड और ब्लैक के कॉम्बिनेशन में सारी चीज़ें थीं। करण ने एक नज़र कमरे को देखा। बेड के ठीक आगे वाली दीवार पर दो बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स लगी हुई थीं, एक निया की थी जिसमें वह मुस्कुरा रही थी, और एक तस्वीर में वह और मन्नत थे जो काफी क्लोज़ बैठे हुए थे। करण ने एक नज़र उन तस्वीरों पर डालते हुए, वॉशरूम में चला गया। कुछ ही मिनट के बाद कमर पर तौलिया लपेटे हुए वह वॉशरूम से बाहर आया। उसके कमर से लिपटा वह तौलिया देखने से ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी ही खुल जाएगा। उसके बदन से पानी टपक रहा था, उसके बालों से पानी की बूँदें टपक कर उसके गर्दन से होते हुए बदन तक आ रही थीं और उसके कमर तक पहुँच कर तौलिये में जाकर अटक रही थीं। करण के हल्के लाल होंठों पर भी पानी की कुछ बूँदें अटकी हुई थीं जो किसी भी लड़की को आकर्षित कर सकती थीं। उसने जल्दी से अलमारी से अपने लिए कैज़ुअल टी-शर्ट और लोअर निकालकर पहन लिए। और बिस्तर पर लेटते हुए अपने कान में ब्लूटूथ लगाकर लेट गया और अपने फ़ोन में पॉकेट नॉवेल पर टैप किया, और अपनी पसंदीदा कहानी मोहिनी (प्यास खून की) पढ़ने लगा, जिसे लिखा है शालिनी चौधरी ने।

    करण (कहानी पढ़ते हुए खुद से)
    "क्या सच में पुनर्जन्म होता है या बस यह भी एक कहानी ही है? वैसे जो भी हो, लेकिन यह कहानी मेरे लिए एडिक्शन होती जा रही है, लेकिन मैं ज़रूर पढ़ूँगा। वैसे यह ऐश्वर्या का किरदार बड़ा ही स्ट्राँग बनाया है राइटर ने। अगर देश की सारी लड़कियाँ ऐसी ही हो जाएँ तो देश फिर से विश्वगुरु बनने की राह पर चल पड़ेगा।"

    कहते हुए वह मुस्कुरा उठा। करीब दस अध्याय एक साथ पढ़ने के बाद ही उसका मन कहीं जाकर शांत होता था। उसे अब फ़्रेश महसूस होने लगा। वह उठकर कमरे से बाहर आया। अब खाने का भी समय हो गया था, और सब टेबल पर बैठे थे। करण भी जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

    करण (बैठते हुए)
    "निकुंज, तुम कब आए? और काम हुआ पूरा जिसके लिए गए थे?"

    निकुंज (निवाला मुँह में डालते हुए)
    "हम्म, हो गया काम और बस दस मिनट पहले ही आया हूँ।"

    करण निकुंज के बगल में ही बैठा था, तभी करण का ध्यान कहीं गया।

    करण (पूरे हाल में नज़र दौड़ाते हुए)
    "निया कहाँ है? दिख नहीं रही है। उसे नहीं खाना है?"

    सुनंदा जी (हँसते हुए)
    "वह आज अपने दोस्तों के साथ है, किसी पार्टी में गई है, और आज अपने फ्रेंड के घर ही रुकेगी।"

    निकुंज (लम्बी साँस लेते हुए)
    "इतनी पार्टी और फ्रेंड्स भी नहीं होने चाहिए। रात को बाहर रहना ठीक नहीं है।"

    सुनंदा जी (गुस्से से)
    "निकुंज, निया अब बड़ी हो चुकी है, वह कोई बच्ची नहीं है, और तुम तो प्लीज़ चुप ही रहो क्योंकि तुम्हारी सोच बहुत छोटी है। इतना संकीर्ण मानसिकता मैंने आज तक नहीं देखा है। तुम आज के बच्चों जैसे लगते ही नहीं हो। अरे अभी तो आगे है बाकी। अगर वह अब थोड़ा खुश रहने लगी है तो क्या मैं उससे उसकी खुशियाँ छीन लूँ क्या? पहले ही मेरी बच्ची ने बहुत कुछ सहन किया है। इसलिए तुम अपनी जुबान उसके मामले में बंद ही रखो तो ज़्यादा अच्छा है। और जितनी तुम्हारी हैसियत है ना उससे ज़्यादा का मेरी बेटी मेकअप में उड़ाती है, उसके खुद के कंपनी का पहुँच अब अंतर्राष्ट्रीय हो चुका है। इसलिए उसके मामले में ज्ञान मत दो। वह मालिक है तुम्हारी तरह नौकर नहीं।"

    निकुंज गुस्से में खाने की प्लेट उलटते हुए वहाँ से चला गया।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्यों खुद से ही कन्फ़्यूज़ है करण? क्या हुआ था निया के साथ? और क्यों सुनंदा जी ने अपने ही बेटे के साथ ऐसा व्यवहार किया? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 16. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 16

    Words: 1045

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली (भार्गव का घर)

    सुनंदा जी ने बस एक सुझाव देने के लिए ही निकुंज को खरी-खोटी सुना दी थी जिससे गुस्से में निकुंज खाने की प्लेट फेंककर अपने कमरे में चला गया। डाइनिंग एरिया में, सबकी नज़र उस फेंकी हुई प्लेट पर टिकी थी क्योंकि निकुंज ने पहला निवाला मुँह में डाला ही था और सुनंदा जी उसे डाँटने लगी थीं, और अब वह प्लेट जमीन पर पड़ी थी।

    राकेश जी (गुस्से से) "सुनंदा जी, यह आपने क्या किया? ज़रा सा भी दिमाग है आप में? निकुंज अब कोई बच्चा नहीं है कि आप उससे ऐसे बर्ताव करें! और क्या गलत कहा उसने? क्या आपको नहीं लगता कि निया आजकल ज़्यादा ही बाहर रहने लगी है? और भूलिए मत, जिस कंपनी की आप बात कर रही हैं, वह अकेले निया की मेहनत नहीं है। उस कंपनी के स्टार्टअप से लेकर कंपनी और कंपनी से ब्रांड बनने तक में निया से ज़्यादा प्रार्थना की मेहनत रही है। कंपनी में किस इन्वेस्टर को लाना है, किस तरह के क्लाइंट लाने हैं, उन्हें कैसे परमानेंट करना है? कैसे नए ब्रांच खोलने हैं और कैसे कंपनी की पहुँच बढ़ाकर इंटरनेशनल मार्केट में ले जाना है, यह सब प्रार्थना की मेहनत है, ना कि निया की। यहाँ बैठे सब जानते हैं कि निया बस कंपनी के चेयर पर बैठने जाती है, और कुछ नहीं। तो कृपया इस कंपनी की धमकी मेरे बेटे को ना दें तो अच्छा है। क्योंकि निकुंज ने अपने करियर के लिए खुद मेहनत की है। आज वह रॉ का सबसे टॉप लिस्टेड ऑफिसर है तो खुद के बल पर। इसलिए मेरे हीरे की बराबरी किसी से ना करें तो अच्छा है।"

    वहाँ का पूरा माहौल बिगड़ चुका था। सुनंदा जी रोने लगीं। तब करण ने स्थिति संभालने की कोशिश की।

    करण (राकेश जी से) "पापा, आप गुस्सा मत करिए। छोड़िए इस सब बात को। आप खाना खाइए। मैं निकुंज को बुलाकर लाता हूँ।"

    करण उठने लगा तो पार्थवी बोली।

    पार्थवी (करण से) "भाई, आप मत जाओ। जाने का कोई फायदा नहीं है। भाई नहीं आएगा। वह इस वक्त बहुत गुस्से में होगा और गुस्से में कुछ बोल दे तो इससे अच्छा है कि आप मत जाओ। मैं चली जाती हूँ। भाई का खाना लेकर वहीं कमरे में खिला दूँगी।"

    करण बैठ गया और पार्थवी एक प्लेट में खाना लेकर निकुंज के कमरे की ओर चली गई।

    इधर सब चुपचाप खाना खा रहे थे।

    करण (मन में) "वैसे निकुंज ने सही ही बोला है। समय खराब है। ऐसे में रात भर बाहर रहना सुरक्षित नहीं है, ख़ासकर मेरी निया तो इतनी मासूम है कि उसे कोई भी बेवकूफ बना सकता है। बस एक बार राज और निया की शादी हो जाए, उसके बाद मेरी टेंशन खत्म हो जाएगी।"


    बिहार (मधुबनी)

    चौधरी निवास

    सब खाना खा चुके थे और बंधन ने सारा काम समेट लिया था। वह खाना खाए हुए बर्तन धो रही थी। लगभग दस मिनट बाद वह काम से फ्री होकर घर की सारी लाइटें बंद करके अपने कमरे में गई और लैपटॉप ऑन किया। तभी केशव भी आ गया और वेबसाइट विजिट कर रहा था। लगभग एक घंटा बीत गया लेकिन कोई कंडीशन बंधन को पसंद नहीं आ रही थी और वह रिजेक्ट कर रही थी।

    केशव (चिढ़ते हुए) "दीदी, आपको करना क्या है? मतलब आपके पास एक्सपीरियंस नहीं है, इसलिए आपको इंटर्नशिप ही करनी होगी और इंटर्न के लिए इससे ज़्यादा स्टाइपेंड नहीं मिलता है। आप किसी एक को सेलेक्ट तो करो।"

    बंधन (केशव से) "हाँ, मैं भी जानती हूँ कि मुझे एक इंटर्न के तौर पर इससे ज़्यादा नहीं मिल सकता, लेकिन सोचो, इस दस हज़ार रुपये से क्या होगा दिल्ली जैसे शहर में? रूम रेंट ही इससे ज़्यादा है, और वैसे भी पापा जिससे भी बात कर रहे हैं, उन्हें भी रेंट तो देना होगा ना।"

    केशव ने हाँ में सिर हिलाया और फिर से अपने काम पर लग गया। थोड़ी देर बाद उसे भार्गव कॉरपोरेट की तरफ से पी.ए. पोस्ट के लिए वैकेंसी दिखी।

    केशव (खुश होते हुए) "दीदी, यह देखो! यह तो भार्गव कंपनी की तरफ से वैकेंसी है, पी.ए. पोस्ट के लिए। और क्राइटेरिया यह है कि उसे इंग्लिश लैंग्वेज की नॉलेज होनी चाहिए, और मैनेजमेंट की नॉलेज होनी चाहिए, और कोई भी डिग्री मेंशन नहीं है। और तो और, सैलरी शुरुआत ही है पचास हज़ार से।"

    बंधन (बिचारा सा मुँह बनाते हुए) "लेकिन यह कंपनी तो बहुत बड़ी है, और मैं इसके लिए फ़िट थोड़ी हूँ? तू ही सोच, मतलब इसकी सैलरी स्टार्टिंग में ही पचास हज़ार है, तो मुझे क्यों लेंगे? क्योंकि मैं तो इंटर्न हूँ, और इस काम के लिए किसी अच्छे एजुकेटेड को लेना चाहिए। मुझे क्यों लेंगे?"

    केशव (चिढ़ते हुए) "आप सोचते बहुत हो, सोचो काम करो और काम ज़्यादा करो। अब इसमें अप्लाई कर दो, जो होगा देखा जाएगा।"

    इसके बाद केशव ने अप्लाई कर दिया। बंधन अब बस इंतज़ार कर सकती थी।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या मिलेगी यह नौकरी बंधन को? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 17. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 17

    Words: 1386

    Estimated Reading Time: 9 min

    बिहार (मधुबनी)

    केशव काफी देर तक लैपटॉप पर अलग-अलग वेबसाइट पर विजिट करता रहा और उसके जॉब वैकेंसी चेक करता रहा, लेकिन उसे कोई भी उपयुक्त नौकरी नहीं मिल रही थी। किन्तु अचानक केशव की नज़र Bhargav's Corporate की वेबसाइट पर गई जहाँ उसे कुछ जॉब ऑप्शन दिखाई दिए। वह जल्दी से लिंक पर क्लिक करके वेबसाइट पर गया जहाँ कई सारे जॉब्स के लिए वैकेंसी थीं, लेकिन सब में कुछ न कुछ क्राइटेरिया थे जो बंधन से मैच नहीं कर रहे थे। फिर अचानक ही केशव की नज़र P.A. पोस्ट के लिए वैकेंसी पर गई। केशव ने उसे चेक किया तो क्राइटेरिया में था कि कैंडिडेट का किसी भी स्ट्रीम से ग्रेजुएट होना अनिवार्य है। इसके बाद उसका हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर अच्छा कमांड होना चाहिए, उसे कंप्यूटर की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए और इंटरव्यू में उनके स्पीकिंग स्टाइल और पर्सनालिटी टेस्ट होगा। इसी के साथ इस पोस्ट के लिए शुरुआती सैलरी पचास हज़ार थी जिसमें एम्प्लॉय को कंपनी की तरफ़ से एक फ्लैट दिया जाएगा और उसके ट्रांसपोर्ट का खर्च भी कंपनी ही उठाएगी। यह देखकर केशव एकदम से उछल पड़ा।

    केशव (खुशी से उछलते हुए): "दीदी ये देखो कितना अच्छा जॉब ऑफर है! और इसका तो पैसा भी ज़्यादा है, प्लस घर और ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा कंपनी दे रही है।"

    बंधन, जिसकी आँख नींद के कारण बंद हो रही थी, एकदम से खुल गईं। वह आँखें बड़ी-बड़ी करके डिटेल्स पढ़ने लगी।

    बंधन (उदास होते हुए): "ऑफर तो अच्छा है, लेकिन कितने लोग ही जाएँगे? मेरा सिलेक्शन थोड़ी होगा।"

    केशव (गुस्सा करते हुए): "हाँ! आप पहले से जानती हो कि आपका सिलेक्शन नहीं होगा, और अगर नहीं होगा तो नहीं होगा। कौन सा वो आपसे आपकी प्रॉपर्टी छीन लेंगे?"

    इतना बोलते हुए केशव ने वह फॉर्म भर दिया और बंधन बस बेचारा सा मुँह बनाए बैठी रही।

    बंधन (केशव से): "ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है?"

    केशव (मुस्कुराते हुए): "सब बढ़िया होगा। अब सो जाओ, मुझे भी नींद आ रही है, और कल राज भाई भी आने वाला है। चलो गुड नाईट।"

    बंधन (मुस्कुराते हुए): "शुभ रात्रि।"

    इसके बाद केशव अपने कमरे में चला गया और बंधन बिस्तर से उतरकर पहले बाहर वाशरूम गई, फिर वापस आकर कमरा लॉक करके और सुबह का अलार्म सेट करके सो गई।


    दिल्ली (Bhargav's house)

    पार्थवी प्लेट में खाना लेकर निकुंज के कमरे के बाहर खड़ी थी और बार-बार कमरे के दरवाज़े पर लगे बेल को बजा रही थी, पर अंदर से कोई भी दरवाज़ा नहीं खोल रहा था। अंत में पार्थवी ने खुद ही प्लेट संभालते हुए पासवर्ड टाइप किया और पासवर्ड डालते ही कमरा अनलॉक हो गया। वह अंदर गई, लेकिन निकुंज कमरे में नहीं था। पार्थवी ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई तब उसे निकुंज बालकनी में दिखा जो बड़ी ही शांति से आसमान को देख रहा था। पार्थवी खाना की प्लेट लिए बालकनी में गई और प्लेट टेबल पर रखते हुए बोली-

    पार्थवी (निकुंज से): "भाई आओ खाना खा लो। आपको तो पता है ना घर में सबने निया को कितना सर पर चढ़ा रखा है, तो इस बात को लेकर क्यों इतना अपसेट होना?"

    निकुंज (गुस्से से): "लेकिन हर बार उसका और मेरा कंपेयर करना भी तो ज़रूरी नहीं है। करियर के मामले में उसे जो मन हुआ उसने किया और मेरा जो मन हुआ मैंने किया, इसमें मुझे ही इतना बेइज़्ज़त क्यों किया जाता है?"

    पार्थवी (निकुंज के बगल में खड़े होते हुए): "छोड़ो ना भाई, वैसे भी इन सब बातों से क्या हो जाएगा? लेकिन अगर आप खाओगे नहीं तो यह आपके सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। समझे ना।"

    निकुंज (ख़ुद को कंट्रोल करते हुए): "क्या गलत कहा था मैंने? अच्छा ही सोचा था ना, फिर क्यों माँ हमेशा मुझे सुनाती रहती है? अगर मैं अपना चॉइस छोड़कर बिज़नेस में आ जाता तो उन्हें बड़ा अच्छा लगता, ये कैसी सोच है?"

    पार्थवी (निकुंज को टेबल के पास लाते हुए): "छोड़ो ये सब और आप खा लो क्योंकि नीचे मैंने सबको चैलेंज करके आई हूँ कि आप मेरे हाथ से खा लोगे, तो इज़्ज़त रख दो प्लीज़।"

    पार्थवी क्यूट सा फेस बनाकर बोली तो निकुंज मुस्कुरा दिया। पार्थवी भी मुस्कुराने लगी और प्लेट में से रोटी का एक टुकड़ा तोड़कर उसे सब्ज़ी में डिप करके निवाला बनाते हुए ख़ुद के हाथ से निकुंज को खिलाया। निकुंज थोड़ा सा इमोशनल हो गया और उसकी आँखें नम हो गईं। वह चुपचाप खाने लगा क्योंकि वह चाहकर भी पार्थवी को मना नहीं कर पाया था।

    निकुंज (मन में): "जिसमें मैच्योरिटी होनी चाहिए वो आज भी बच्ची बनी फिरती है और जिसमें बचपना होना चाहिए वो इतनी मैच्योर हो गई। सब इन घरवालों की वजह से ही हो रहा है।"

    पार्थवी (निवाला मुँह में डालकर): "भाई वैसे आप कब तक हो? मतलब ड्यूटी पर वापस कब जाना है?"

    निकुंज (सोचते हुए): "दो वीक बाद जाना है, क्यों?"

    पार्थवी (हिचकिचाते हुए): "भाई एक्चुअली न, मुझे आपसे कुछ कहना था। लेकिन शायद आप डाँटोगे क्योंकि अगर ये बात मैंने घर में किसी और से कही तो शायद मुझे घर से ही उठाकर फेंक दें।"

    निकुंज (सीरियस होकर): "हाँ बोलो! क्या बोलना है? मैं सुन रहा हूँ।"

    पार्थवी (लम्बी साँस खींचकर): "भाई मैंने कुछ दिन पहले निया को किसी से कुछ बात करते सुना है। वो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे निया राजवीर भाई को धोखा दे रही है और तो और एक दिन मैंने उन्हें मॉल में किसी दूसरे लड़के के बहुत क्लोज देखा था।"

    निकुंज (लम्बी साँस खींचते हुए): "देख पार्थवी मुझे तो बोल दिया लेकिन ये बात कहीं और मत बोलना ठीक है क्योंकि घर में कोई भी भरोसा नहीं करेगा ऊपर से हालत मेरी जैसी हो जाएगी जहाँ कोई इज़्ज़त नहीं रहेगी इसलिए तू इन सब से दिमाग निकालकर पढ़ाई कर और जो कर रही है वो लड़की उसे करने दे क्योंकि भुगतना उसे ही है किसी और को नहीं।"

    इसके बाद पार्थवी शांत हो गई और चुपचाप खाने लगी। लगभग पन्द्रह मिनट में उनका खाना हो गया और वह सारे प्लेट समेटकर ले गई। इधर निकुंज के दिमाग में कुछ चल रहा था, वह गहरे सोच में डूबा हुआ था।

    वहीं दिल्ली के एक बड़े ही आलीशान होटल, "द ड्रीम नाईट" में डीजे पर गाने अपने जोश पर बज रहे थे और डांस फ्लोर पर सब अपने में रमे हुए झूम रहे थे। शराब की नदियाँ बह रही थीं, सब अपने में ही झूम रहे थे। यह पार्टी थी बिज़नेस मैन रियांश ठाकुर की और पार्टी अब पीक पर चल रही थी। वहीं उसी होटल के रूम नंबर 154 में एक लड़का और एक लड़की शराब के नशे में धुत अपनी सारी सीमाएँ लाँघ चुके थे।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या बंधन को मिलेगी जॉब? क्या सोच रहा है निकुंज? और कौन है रूम नंबर 154 में? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 18. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 18

    Words: 1407

    Estimated Reading Time: 9 min

    दिल्ली में स्थित ‘द ड्रीम नाइट’ नामक एक आलीशान होटल था, जो भार्गव कॉर्पोरेट के अंतर्गत आता था। इस होटल में भार्गव कॉर्पोरेट के प्रतिद्वंद्वी, रियांश ठाकुर ने अपनी जन्मदिन की पार्टी आयोजित की थी जो पहले तल पर चल रही थी। करण के बिज़नेस में आने से पहले रियांश कभी-कभी प्रथम स्थान पर आ जाता था, लेकिन करण के आगमन ने बिज़नेस जगत के इतिहास को ही बदल दिया था। भार्गव परिवार समेत अधिकांश कंपनियां एक ही क्षेत्र में कार्यरत थीं, परन्तु करण ने लगभग हर क्षेत्र में अपनी पकड़ बना ली थी। यही कारण था कि करण शीर्ष पर पहुँच गया था और उसका नाम हर क्षेत्र में जाना जाने लगा। रियांश को करण की इस सफलता से जलन होती थी। केक काटने के बाद भी पार्टी पूरी रात चलने वाली थी। निया अपने गुप्त प्रेमी तुषार ठाकुर के साथ इस पार्टी में आई थी। तुषार रियांश का छोटा भाई था, और वही युवक जिसके साथ मिलकर निया राजवीर को धोखा दे रही थी। निया डांस फ्लोर पर तुषार के साथ नाच रही थी।

    किन्तु उसी होटल के कमरा नंबर 154 में एक युवक और एक युवती शराब के नशे में धुत अपनी सीमाएँ लांघ चुके थे। कमरे के फर्श पर उनके कपड़े बिखरे पड़े थे और कमरे का सामान भी अव्यवस्थित था। तभी वह युवक सीधा होकर लेटा, जिससे उसका चेहरा दिखाई दिया। वह रियांश ठाकुर था और उसके बगल में सोई युवती भी दूसरी ओर घूमकर सो गई, जिससे उसका चेहरा दिखाई दिया- वह मन्नत खुराना थी।


    रियांश (थके हुए स्वर में): "अगर दुबारा से करण के बिस्तर तक पहुँचने की कोशिश भी की तो इससे भी बड़ा दर्द दूँगा। अगले टाइम पर।"

    मन्नत (दर्द भरी आवाज़ में): "तुम्हारा ही काम करने गई थी, इसमें मेरी क्या गलती है?"


    रियांश झटके से मन्नत के ऊपर आ गया और गुस्से से काँपते हुए बोला:

    रियांश (गुस्से से): "मेरा काम! मेरा काम कर रही थी, तुम ऐसे? मैंने उसे बर्बाद करने को कहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम उसके बिस्तर पर चली जाओ। एक बात अपने दिमाग में बिठा लो, मैं जूठी चीजों को हाथ नहीं लगाता हूँ, उन्हें उठाकर डस्टबिन में डाल देता हूँ, और करण का जूठा तो बिलकुल भी नहीं।"

    मन्नत (काँपती हुई आवाज़ में): "ठीक ठीक है, मैं आगे से ध्यान रखूँगी।"

    रियांश (शैतानी मुस्कान के साथ): "ये हुई ना मेरी माशूका वाली बात, ऐसे ही रहा करो, अच्छी लगती हो मेरी बात मानते हुए, बहुत खुश रहोगी।"


    तभी रियांश का फ़ोन बजने लगा और उसने जल्दी से फ़ोन उठाया। कॉलर आईडी पर 'वाइफ़' दिख रहा था, जिसे पढ़कर रियांश के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई। रियांश ने एक नज़र मन्नत को देखा, फिर अपने फ़ोन पर।

    रियांश (मुस्कुराते हुए): "मेरी जान का कॉल आ रहा है, अब फ़ोन वाइफ़ का है तो रिसीव तो करना पड़ेगा।"


    उसने कॉल रिसीव करके स्पीकर पर डाल दिया। दूसरी तरफ़ से एक लड़की की आवाज़ आई।

    लड़की (हल्के गुस्से से): "मैं आपसे बहुत नाराज़ हूँ रियांश, आज आपका बर्थडे है लेकिन फिर भी आप मेरे साथ नहीं हैं, और पार्टी में आने से भी मना कर दिया। दिस इज़ नॉट फेयर। मैं आपके लिए कुछ हूँ ही नहीं।"

    रियांश (बड़े प्यार से): "जान, मैं घर वापस आ रहा हूँ, और वैसे भी आज की रात तुम्हारे बिना स्पेशल थोड़ी ना हो सकती है। मुझे काम था इसलिए आया, पार्टी देनी भी ज़रूरी थी, और हाँ सिमरन एक बात दिमाग में डाल लो, तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज हो और दुबारा ऐसा कुछ बोला तो मैं नाराज़ हो जाऊँगा, और इस बार नहीं मानूँगा।"

    सिमरन (बड़े ही प्यार से): "आप बाद में नाराज़ होना, पहले नाराज़ बीवी को तो मना लीजिये। एक बात बताइए, कहीं ये बाहर किसी लड़की का चक्कर तो नहीं है ना?"


    सिमरन की बात पर रियांश घबरा गया, पर डर चेहरे पर नहीं आने दिया।

    रियांश (बात संभालते हुए मज़ाकिया लहजे में): "और अगर हुआ तो क्या करोगी?"

    सिमरन (गुस्से से): "याद रखिए, घर से निकाल दूँगी, घुसने नहीं दूँगी घर में, और तो और बंदूक ले कर पहले आपको शूट करूँगी फिर खुद को।"

    रियांश (बेड से उठते हुए): "अरे मेरी झाँसी की रानी, कुछ करने की ज़रूरत नहीं है, आ रहा हूँ मैं समझी, अब आकर ही मनाऊँगा अपनी प्यारी सी वाइफ़ को।"


    उसने कॉल काटकर अपने कपड़े पहनने शुरू कर दिए। मन्नत बेड पर लेटी हुई रियांश को देख रही थी।

    मन्नत (रियांश से): "इतना प्यार करते हो अपनी सिमरन से? अगर उसे हमारे बारे में पता चल गया तो?"


    रियांश जो अभी भी सिमरन की बातों में खोया हुआ था, उसका ध्यान बेड पर सोई मन्नत पर गया।

    रियांश (गुस्से से): "वो क्या है ना मिस खुराना, प्यार उससे किया जाता है जो लायक हो, तुमसे तो कोई करेगा नहीं क्योंकि तुम आज यहाँ हो, कल कहाँ होगी किसी को पता ही नहीं होगा। और पता है, आज ज़िंदगी में पहली बार मुझसे एक गलती हुई है, और वो है तुम्हारे साथ फिजिकल होना। मुझे पता है कि मैंने अपनी पत्नी को आज धोखा दिया है, लेकिन उसे किसी भी कीमत पर खो नहीं सकता हूँ। और हाँ, वो मेरी वाइफ़ है इसलिए उसे मिसेज़ ठाकुर बोलो, नाम लेने की हैसियत नहीं है तुम्हारी। और एक बात, अगर तुम सोच रही हो कि तुम ये बात उसे बता देगी और अपनी मनमर्ज़ी करोगी तो याद रखो, अगर तुम्हारी वजह से मेरी वाइफ़ ने एक दिन भी मुझसे बात नहीं की तो यू विल फिनिश।"


    वह पलटकर जाने लगा।

    मन्नत (पूरे आत्मविश्वास से): "और अगर तुम्हें मुझसे प्यार हो गया तो? क्योंकि एक बार जो मुझे छू ले उसे दुनिया की दूसरी लड़की फीकी लगने लगती है, और फिर चाहे वो बीवी ही क्यों ना हो!"

    रियांश (गुस्से से पलटते हुए): "प्यार और तुमसे कभी नहीं, और हाँ बात रही मेरी बीवी की तो वो ही हमेशा मेरे ज़िंदगी में रहेगी। क्या है ना मिस मॉडल, तुम्हें लगता है कि तुम हुस्न परी हो, पर एक्चुअल में ये साड़ी में ढँकी हुई बीवियाँ होती हैं ना एक हसबैंड के लिए, उसके छुअन को कोई भी बीट नहीं कर सकता, क्योंकि बीवी तो बीवी है, और तुमसे मैं क्या, कोई भी समझदार इंसान प्यार नहीं कर सकता है। देखना, करण भी लास्ट में तुम्हें छोड़ेगा।"


    इतना कहकर वह आँखों में नफ़रत लिए कमरे से निकल गया।


    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? रियांश का क्या काम करने गई है मन्नत करण के पास? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा) के साथ।

  • 19. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 19

    Words: 1263

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली ( द ड्रीम नाइट )

    रियांश गुस्से से कमरे से निकल गया। रियांश की बात सुनकर मन्नत को बहुत गुस्सा आया। वह जैसे-तैसे उठकर बैठ गई। मन्नत का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था, और वह गुस्से से चादर मसल रही थी।

    मन्नत (गुस्से से): "ऐसा कुछ नहीं होगा मिस्टर रियांश, कभी नहीं। क्योंकि करण मेरा है और मेरा ही रहेगा। फिर मैं कुछ भी करूँ, उसे कभी पता नहीं चलेगा, क्योंकि उसे अपनी बहन निया पर बहुत भरोसा है और वह निया मेरे इशारे पर नाचती है। इसलिए करण की पास्ट भी मैं हूँ, प्रेजेंट भी मैं हूँ, और फ्यूचर भी मैं ही हूँ।"

    मन्नत पूरे आत्मविश्वास से बोल रही थी, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी खूबसूरती किसी को भी उसका बना सकती है, वह जिसे चाहे उसे अपना बना सकती है। वहीं रियांश होटल से निकलकर पार्किंग एरिया में आ चुका था, और गाड़ी में बैठ गया। स्टीयरिंग संभालते हुए, वह खुद में बड़बड़ाया।

    रियांश (गुस्से से चिढ़ते हुए): "पता नहीं कैसे हुआ मुझसे? गुस्से में इतना आगे कैसे बढ़ गया? लेकिन जो भी हो, मैं सिमरन को नहीं खो सकता हूँ, इसलिए मुझे यह सुनिश्चित करना होगा कि यह लड़की कोई चाल न चल सके। एक बात और नहीं समझ आती है, करण भले ही मेरा प्रतिद्वंद्वी है, लेकिन एक बात तो मानने वाली है कि वह बहुत तेज दिमाग वाला है, तो फिर वह कैसे इस नाटकबाज के चक्कर में पड़ गया? उसे इसकी ओवरएक्टिंग दिखती नहीं है क्या? (ऊपर देखते हुए) ओह गॉड! इस लड़की को करण के जीवन में मत आने देना, नहीं तो मेरा प्रतिद्वंद्वी पागल हो जाएगा, और पागलों को हराने में मज़ा नहीं आता, इसलिए दुश्मन को हमेशा बराबरी का होना चाहिए।"

    यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसका फ़ोन फिर से बजने लगा। रियांश फ़ोन उठाकर देखता है तो स्क्रीन पर "wifey" दिख रहा था। जिसे देखते ही रियांश के होंठ मुस्कुरा उठे।

    रियांश (कॉल रिसीव करते हुए): "जान, आ रहा हूँ। रास्ते में ही हूँ।"

    सिमरन (चिढ़ते हुए): "रियांश जी, मैं आपसे सच में नाराज़ हूँ। आप आज कितना भी मना लें, मैं फिर भी नहीं मानूंगी। इसलिए आने की कोई ज़रूरत नहीं है। वहीं अपने दोस्तों के साथ रहिए, क्योंकि वे सब ज़्यादा ज़रूरी हैं। मैं क्या हूँ? इसलिए आने की ज़रूरत ही नहीं है।"

    रियांश (मुस्कुराते हुए): "चलो फिर ठीक है, मैं यहीं एन्जॉय कर लेता हूँ। मैं तो बेकार में सोच रहा था कि शायद तुम्हें बुरा लगेगा, इसलिए चला आता हूँ, लेकिन... चलो ठीक है, बाय।"

    कहकर कॉल काट देता है, और मुस्कुराते हुए कार चलाने लगता है।


    भार्गव हाउस

    करण अपने कमरे में था और उसके दिमाग में अभी भी डाइनिंग टेबल पर हुई बात ही चल रही थी। निकुंज के साथ सुनंदा जी का व्यवहार करण को भी बिल्कुल पसंद नहीं आया था।

    करण (ख़ुद से): "निकुंज सही बोल रहा था। बेकार में बड़ी माँ ने डाँट दिया। वह दिन-रात केसेज़ देखता है, उसे पता रहता है कि माहौल कितना ख़राब चल रहा है, वह भी लड़कियों के लिए, और निया तो इतनी मासूम है कि क्या ही कहूँ।"

    करण यह सोच-सोचकर परेशान हो रहा था कि उसकी बहन कितनी मासूम है, कैसे वह यहाँ सरवाइव करेगी। लेकिन वह इस बात से अनजान था कि उसकी बहन इस दुनिया की कोई मासूम लड़की नहीं है, बल्कि एक चतुर, चालाक लोमड़ी है।


    ओबेरॉय मैंशन

    राजवीर अपने कमरे में पैकिंग कर रहा था, क्योंकि कल उसे और रचना जी (माँ) को बिहार जाना था। राज ने लगभग सारी पैकिंग कर ली थी, और वह सुस्ताने के लिए बेड पर बैठ गया। बेड के ठीक सामने वाली दीवार पर निया और उसके साथ एक बड़ी सी तस्वीर टंगी हुई थी, जिसमें राज एक कुर्सी पर बैठा था, और उसकी गोद में निया बैठी थी। उसने मिनी फ्रॉक पहना था, बालों का हाई पोनीटेल कर रखा था, और पाउट बनाकर पिक्चर क्लिक करवाई थी। उसमें वह बेहद मासूम लग रही थी। वही राज उसी को देख रहा था। वह बेड से उतरकर उस तस्वीर के सामने गया, और खड़े होकर एकटक देख रहा था। उसकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।

    राज (गुस्से और नफ़रत से): "ठीक ही बोल रही थी बंधन कि किसी को दिल देने से पहले, उसे अपनी ज़िन्दगी मानने से पहले, छानबीन अच्छे से करो, वरना तुम्हें धोखा मिलेगा। और मैंने उससे झगड़ा कर लिया था, लेकिन वह सही थी। छोटी होकर भी उसने मैच्योरिटी की बात की थी। वह मानसिक रूप से कितनी स्थिर है, यह दिखाती है। अगर मैंने उस दिन उसकी बात पर ध्यान दिया होता, तो आज मुझे प्यार की जगह धोखा नहीं मिलता। समझी? धोखा नहीं मिलता।"

    राज के दिल का दर्द इतना बढ़ चुका था कि अब वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और उसके आँसू निकलने लगे। वह काफी ज़्यादा इमोशनल हो गया था। उसे इतना छला हुआ महसूस हो रहा था, जैसे वह कोई खिलौना हो और उसे इस्तेमाल करने के बाद उसे ऐसे भुला दिया जाता है जैसे वह कभी था ही नहीं। तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला, जिसे महसूस करते हुए राज ने अपने आँसू साफ़ कर लिए, और मुस्कुराते हुए पलटा तो रचना जी खड़ी थीं।

    रचना जी (राज के पास आते हुए): "बेटा, सारी पैकिंग हो गई ना? और एक बात बता, बंधन और केशव के लिए तूने कुछ रखा कि नहीं? देख, जो मेरे तरफ़ से दूंगी वह तो मेरे तरफ़ से हुआ, लेकिन बंधन और केशव का तू बड़ा भाई है और ऊपर से कमाता भी है, तो तेरा कुछ गिफ़्ट देना बनता है।"

    राज (मुस्कुराते हुए): "कल सुबह मार्केट जाकर कुछ ले लूँगा केशव के लिए, क्योंकि बंधन तो बस किताबों से ही खुश हो जाती है, इसलिए उसके लिए कुछ कंप्यूटर से संबंधित और कुछ बिज़नेस से संबंधित किताबें ले लिया है।"

    रचना जी (कन्फ़्यूज़ होते हुए): "बिज़नेस की किताबें? लेकिन वह तो पी.आर. की तैयारी करना चाहती है, तो यह उसके क्या काम आएंगी?"

    राज (बचे कपड़े बैग में डालते हुए): "ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता और वह तो है भी प्रतिभाशाली।"

    रचना जी भी मुस्कुरा देती हैं।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या करण अपने भ्रम से बाहर निकल पाएगा? और क्या होगा राज को धोखा देने का अंजाम? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।

  • 20. बंधन ( एक मर्यादा ) - Chapter 20

    Words: 1197

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली (ओबेरॉय मैंशन)

    राजवीर की पैकिंग हो चुकी थी। रचना जी वहीं खड़ी थीं।

    रचना जी (कुछ सोचते हुए): "राज एक काम कर, निया को भी बोल दे कि वह भी पैकिंग कर ले। मैं उसे भी सुधीरा से मिलवाना चाहती हूँ। वह भी होने वाली बहू को देख लेगी, है ना? उसे भी बोल दे।"

    रचना जी की ओर राज की पीठ थी। वह उनके चेहरे को नहीं देख पा रही थीं। परन्तु रचना जी की बातों ने अनजाने में ही राज के दिल में खंजर उतार दिया था। उसकी आँखें एक बार फिर आँसुओं से भर गईं। लेकिन खुद को संभालते हुए, बिना पलटे ही उसने रचना जी को कहा:

    राज (रचना जी से): "माँ, निया अभी बिजी है, इसलिए फिर कभी मासी से मिलवा देंगे। अभी के लिए छोड़ देते हैं। और कौन सा अभी शादी हो रहा है? अभी बहुत टाइम है, मिल लेंगी।"

    रचना जी (हाँ में सिर हिलाते हुए): "हाँ, यह भी है कि कौन सा अभी शादी हो रहा है। लेकिन अगर अभी वह बिजी है तो कोई नहीं। लेकिन उसे बोलना कि बहुत दिन हो गए, एक बार आकर मुझसे मिल ले। क्योंकि घर में सिर्फ़ पति नहीं, सास भी मिलेगी।"

    यह बोलकर वे हँसते हुए वहाँ से चली गईं। राज की आँखें एक बार फिर नम हो गईं।

    राज (खुद से): "मैंने खुद तो झूठा सपना देखा ही, साथ में माँ को भी दिखाया है। इनकी अपनी बहू से आशा और लगाव समय के साथ बढ़ती जा रही है। लेकिन मैं अपनी ज़िन्दगी में रिश्तों के मामले में अब उसी रफ़्तार से पीछे खींचा जा रहा हूँ। कैसे आपको बताऊँ कि निया एक धोखा है?"

    इसके बाद वह जाकर एक नींद की गोली ले कर सो गया। क्योंकि जब से उसने निया की असलियत जानी थी, तब से उसे नींद नहीं आती थी। लेकिन किसी को कुछ पता न चले, इसलिए वह नींद की गोली ले कर सोता था ताकि बीमार न पड़े और उसका दर्द कुछ देर के लिए कम हो जाए।


    ठाकुर विला

    यह बहुत बड़ा विला था। हॉल के बीचों-बीच सोफ़ा लगा हुआ था। अज्ञेय वहाँ घर के सामान्य कपड़ों में बैठा हुआ था। तभी एक औरत हाथ में कॉफ़ी मग लिए हुए आई। उसने अज्ञेय की ओर मग बढ़ाया, लेकिन उसका ध्यान मेन गेट पर टिका हुआ था। उसकी नज़र गेट की ओर ही टिकी हुई थी।

    अज्ञेय (औरत को देखते हुए): "भाभी, कोई आने वाला है क्या? किसका इंतज़ार कर रही हैं आप?"

    औरत (अज्ञेय को एक नज़र देखकर): "देखिए ना बउआ जी, आपके भैया आज अपने बर्थडे के दिन भी गायब हैं। मैं आज उनसे बात नहीं करूँगी।"

    अज्ञेय (हँसते हुए): "ओह! तो रियांश भाई का इंतज़ार कर रही हैं। लेकिन यह तो उसका हमेशा का है कि बर्थडे उसका बाहर ही मनाता है। घर के लोगों को अक्सर भूल जाता है।"

    अभी वे दोनों बात ही कर रहे थे कि मेन गेट की तरफ़ से आवाज़ आई: "हाँ भाई, मेरी ही बीवी को भड़का रहा है, लेकिन वह बहुत समझदार है।"

    जी हाँ, यह कोई और नहीं, बल्कि रियांश ही था। रियांश चलते हुए आया और सोफ़े पर अज्ञेय के बगल में बैठ गया।

    अज्ञेय (सिमरन को देखते हुए): "हम्म, मुझे क्या कॉफ़ी नहीं मिलेगा!"

    सिमरन गुस्से से किचन की ओर बढ़ गई। उसके गुस्से को देखकर रियांश मुस्कुरा उठा।

    अज्ञेय (मुस्कुराते हुए): "आज भाभी सच में गुस्सा है। आज तो मनाने में मस्त वाला टाइम लगेगा।"

    रियांश (मुस्कुराते हुए): "नहीं, बस कुछ देर में मान जाएगी। इसकी नाराज़गी ज़्यादा देर की नहीं होती है। इसलिए तू टेंशन मत ले।"

    अज्ञेय (हँसते हुए): "वह तो तेरा काम है, तेरी बीवी है। तू जान, कौन सा मेरी भाभी नाराज़ है।"

    यह कहते हुए वह एक बार फिर हँस पड़ा और उठकर अपने कमरे की ओर चल पड़ा। उसके जाते ही रियांश भी उठकर कमरे में चला गया। सबसे पहले वह वॉशरूम में जाकर नहाकर बाहर निकला। तभी सिमरन भी कॉफ़ी लेकर कमरे में आई। रियांश को नहाए हुए देखकर उसने उसके कपड़े निकालकर दिए। रियांश कपड़े पहनकर आया और टेबल पर रखे कॉफ़ी मग को उठाकर बेड पर आ गया जहाँ सिमरन मुँह फुलाए अपना फ़ोन चला रही थी। रियांश बिना कुछ बोले सिमरन को एकटक देखे जा रहा था।

    रियांश (सिमरन को देखते हुए मन में): "आज मैंने तुम्हें धोखा दिया है। पता नहीं कैसे खुद के गुस्से पर काबू नहीं रख पाया। लेकिन सच बोल रहा हूँ, आगे से फिर कभी भी कोई नहीं आ सकती है मेरे और तुम्हारे बीच। मैं किसी को आने ही नहीं दूँगा। आज जो भी हुआ वह बस एक गलती थी, और एक गलती के लिए मैं तुम्हें नहीं खो सकता। इसलिए यह बात तुम्हें कभी पता नहीं लगने दूँगा।"

    रियांश का कॉफ़ी ख़त्म हो गया। साइड टेबल पर मग रखते हुए वह सिमरन की ओर पलटा।

    रियांश (सिमरन से): "सिमी, कितने देर तक गुस्सा रहोगी? अब तो आ गया हूँ ना, माफ़ कर दो। आज के बाद कोई भी सेलिब्रेशन मैं तुम्हारे बगैर नहीं मनाऊँगा, सच में जान। अब तो मान जाओ।"

    सिमरन (गुस्से से): "यह डायलॉग बहुत पुराना है। कोई नया डायलॉग सुनाइए। क्योंकि आपकी यह बातें सुन-सुनकर मैं और मेरे कान दोनों पक चुके हैं।"

    रियांश (उसे उठाकर अपनी गोद में बिठाते हुए): "अब माफ़ भी कर दो जान। अगली बार से सच में मैं कभी नहीं ऐसे किसी सेलिब्रेशन में तुम्हें छोड़ूँगा, खुश!"

    सिमरन (मुँह बनाते हुए): "नहीं, एक और बात। हमेशा मुझे लेकर तो जायेंगे ही जहाँ भी जाएँ। और यह भी बात कि मैं अब से ऑफ़िस ज्वाइन कर रही हूँ।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? कैसे निकलेगा राज इतने बड़े धोखे से बाहर? और क्या रियांश मानेगा सिमरन की बात? जानने के लिए बने रहें बंधन (एक मर्यादा)।