मिलिए राजकुमार विक्रमादित्य से , एक कुशल धनुर्धर, जो अपने लोगों के दिलों में बसता है, और न्याय का रक्षक, जो इंद्रप्रस्थ की गद्दी पर बैठने के लिए नियत है। किंतु, भाग्य ने उसके साथ अन्य योजनाएं बनाईं। एक रहस्यमय घटना घटी, जिसने उसे राजा बनने से वंचित क... मिलिए राजकुमार विक्रमादित्य से , एक कुशल धनुर्धर, जो अपने लोगों के दिलों में बसता है, और न्याय का रक्षक, जो इंद्रप्रस्थ की गद्दी पर बैठने के लिए नियत है। किंतु, भाग्य ने उसके साथ अन्य योजनाएं बनाईं। एक रहस्यमय घटना घटी, जिसने उसे राजा बनने से वंचित कर दिया। इसके अलावा, उसे अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ राज्य से निर्वासित कर दिया गया। ऐसे नाट्य पूर्ण मोड़ के पीछे क्या कारण हो सकता है? और कौन सुना रहा है ये कहानी? जानने के लिए 'इंद्रवंशी' की रोमांचक कहानी में डुबकी लगाएं, स्टोरी मेनिया पर। । । । । ।
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यह कहानी है उत्तर भारत के समृद्ध राज्य इंद्रप्रस्थ की जहां के हर इंद्रवंशी के रोम- रोम में जीतने का साहस भरा हुआ है। वही आज महाराज अमरेंद्र सिंह ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है जिसमें भारत के अनेकों राज्यों के राजकुमार भाग लेने के लिए उपस्थित हुए हैं, वहीं दूसरी ओर तो कईं भारत के बाहर के भी राजकुमार भी प्रतियोगिता में शामिल हुए हैं। सारे राज्यों के राजकुमारों का शामिल होने का पहला कारण यह है कि इंद्रप्रस्थ एक प्रगतिशील और महान राज्य है जो कि अपने आप में एक बहुत ही विशाल है, जिस पर आक्रमण करने से पूर्व हर एक राजा सौ बार सोचता है अथवा शांति प्रस्ताव ही रखता है। यहां पर अपना साहस दिखाना अपने आप में बहुत बडी बात है, और दूसरा कारण यह है कि इस प्रतियोगिता का पुरस्कार एक अद्भुत श्वेत रंग का अश्व है जो कि विश्व का सबसे साहसी और तीव्र घोडा है, जो चीते की तरह तेज दौडता है और ऊंची ऊंची छलांग लगाने में पारङ्गत है।
यह प्रतियोगिता इंद्रप्रस्थ की सबसे बडे क्षेत्र अजय क्षेत्र में रखी गई है, जहां पर उत्तर की ओर महाराज अमरेंद्र सिंह अपने सिंहासन पर विराजमान है जो की जमीन की सबसे ऊंची सतही पर लगाया गया है। उनकी बाई ओर महामंत्री शिवराय विराजमान है वहीं उनकी दाएं ओर कुलगुरु विराजमान है,
वहीं कुछ दूरी पर सेनापति मानसिंह खडे हुए हैं और प्रतियोगिता की तैयारी का जायजा ले रहे हैं। वहीं पूर्व की ओर राजवंशी महिलाओं के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था की गई है, वहीं दक्षिण की ओर प्रजा विराजमान है और पश्चिम की ओर सारे राजकुमारों की बैठने की व्यवस्था की गई है। प्रतियोगिता यह है कि राजकुमार को घोडे पर सवार रहते हुए ही सामने लाल झंडे पर निशाना साधना होगा और तीन तीर एक साथ निशाने पर तीन बार लगाने होंगे।
महाराज अमरेंद्र सिंह अपनी रोबधार आवाज में कहते हैं, हम आप सभी राजकुमारों का हृदय सहित स्वागत करते हैं आशा करते हैं कि यहां उपस्थित हर एक राजकुमार में योग्यता होगी जो इस प्रतियोगिता के चरण को पार कर सके।
महामंत्री ने शंख बजा के प्रतियोगिता का आरंभ किया, उसी समय ढोल- नगाडे बजने लगे।
तो सबसे पहले राजकुमार उदय सिंह, जो की प्रतापगढ राज्य से है, महाराज के आगे आते हैं। उनका अभिवादन करते हैं और पूरे उत्साह के साथ तूणीर में से तीर निकालते है और निशाना साधते हैं। किंतु दूर्भाग्य से उनका एक ही बाण झंडे पर लग पाता है और वो यह प्रतियोगिता हार जाते हैं।
फिर राजकुमार जय प्रताप राजसमंद राज्य से, महाराज के सामने आते हैं और अभिवादन करते हैं और अपना निशाना साधते हैं, परंतु दुर्भाग्य से उनका एक भी तीर झंडे को छू भी नहीं पता है।
फिर अवंतीपुर के राजकुमार राघव सिंह प्रतियोगिता क्षेत्र में आते हैं और महाराज के सामने sir झुकाकर अभिवादन करते हैं और निशाना साधते हैं पर दुर्भाग्य से उनके केवल दो निशाने सही लग पाते हैं और एक तीर गलत दिशा में चला जाता है।
ऐसे करते- करते कई राजकुमार अपना साहस दिखाते हैं, पर एक भी प्रतियोगिता को पार नहीं कर पाता। दिन का तीसरा पहर शुरू होने वाला था, पर प्रतियोगिता को किसी ने भी पार नहीं किया था।
अब बारी थी राजकुमार वीरेंद्र की, जो कि स्वयं महाराज के पुत्र हैं। महाराज के सामने आते हैं। उम्र चौबीस साल, लंबाई सात फुट है, तीखे नैन- नक्श गेहूंवा रंग, दिखने में किसी देवता से काम नहीं है।
वह प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति लेते हैं और वही दूर से अपनी माँ यानी महारानी सुनैना को प्रणाम करते हैं। फिर वह अपना निशाना साधते हैं और उनके तीनों बाण सटीक निशाने पर लगते हैं जिसके कारण प्रजा में रोमांच उमड आता है और महाराज गर्व से भर जाते हैं वही महारानी सुनैना अपने पुत्र की दूर से ही बलाईयां लेती है, तभी राजकुमार वीरेंद्र अपना दूसरा निशान लगाते हैं और सटीक निशाना लगता है अब तो महाराज को भी लगने लगा था कि राजकुमार वीरेंद्र हि प्रतियोगिता जीतेंगे। परंतु जब राजकुमार वीरेंद्र तीसरी बार निशाना लगाते हैं तब तीर झंडे के बगल से निकल जाते हैं। जिसके कारण राजकुमार वीरेंद्र प्रतियोगिता हार जाते हैं।
उनके अंदर प्रतियोगिता हार जाने का क्रोध पल्लवित हो जाता है और वह हार और पश्चाताप के मिले झूले भावों को लेकर अपने स्थान पर बैठ जाते हैं। फिर राजकुमार विक्रमादित्य जो की महाराज के छोटे भाई महेंद्र सिंह के पुत्र हैं और राजकुमार वीरेंद्र से बडे हैं आयु पच्चीस साल, लंबाई सात फुट, एक बार अगर कोई ने देख ले तो इन पर पहली बार में ही मोहित हो जाए, गहरी काली आंखें, तीखी नाक, सांवला रंग, इनको देखकर तो कामदेव भी शर्मा जाए। वो महाराज के सामने आते हैं और प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति लेते हैं। कूल गुरु, महारानी सुनैना और अपने पिता को भी दूर से प्रणाम करते हैं, और भगवान भोलेनाथ को अपने मन में प्रणाम करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। भगवान भोलेनाथ को ध्यान में रखते हुए वह अपना पहला निशाना साधते हैं और उनका निशाना इतना। तीव्र और सटीक था की एक बार को तो सभी को समझ ही नहीं आता कि क्या हो गया, पर फिर सब ने देखा कि तीनों तीर झंडे पर है तो, प्रजा ने तालियों की बौछार कर दी और राजकुमार विक्रमादित्य के नारे लगने लगे, महाराज और महारानी भी जो राजकुमार वीरेंद्र के हारने के कारण दुखी हो चुके थे वह भी अब बहुत प्रसन्न लग रहे थे।
जैसे ही राजकुमार विक्रमादित्य प्रतियोगिता जीतते हैं तो डोल नगाडे बजने लगते हैं और नारे लगने लगते हैं: राजकुमार विक्रमादित्य की जय हो! राजकुमार विक्रमादित्य की जय हो!
राजकुमार विक्रमादित्य ने मन ही मन भगवान भोलेनाथ का धन्यवाद किया।
महाराज अमरेंद्र सिंह, हम राजकुमार विक्रमादित्य की तीव्रता और प्रतियोगिता से बहुत खुश हैं हम राजकुमार विक्रमादित्य को प्रतियोगिता जीतने की बधाई देते हैं।
राजकुमार विक्रमादित्य महाराज के चरण स्पर्श करते हैं महाराज उनके सिर पर हाथ रखते हैं और आशीर्वाद देते हैं, सदा चेतना से भरपूर रहो।
फिर राजकुमार विक्रमादित्य कुलगुरु के चरण स्पर्श करते हैं तो कुलगुर उन्हें आशीर्वाद देते हैं, आयुष्मान
फिर महारानी सुनैना के चरण स्पर्श करते हैं। महारानी सुनैना उनके गालों पर अपने दोनों हाथ रखती है और कहती है- पुत्र हमें तुम पर बहुत गर्व है तुमने हमारे पूरे राज्य को गोरवाकित। मातारानी हमेशा तुम्हारे ऊपर कृपा बरसाती रहे।
राजकुमार वीरेंद्र नाखुश थे अपनी हार से और राजकुमार विक्रमादित्य की जीत जाने से तो वह जल्दी से प्रतियोगिता स्थल से चले जाते हैं।
कुछ समय बाद राजकुमार विक्रमादित्य, राजकुमार वीरेंद्र को तलाशते हैं पर उन्हें वह कहीं दिखाई नहीं देते।
फिर राजकुमार विक्रमादित्य को इनाम दिया जाता है जो की एक श्वेत रंग का घोडा था पर इस घोडे की खास बात थी कि यह अपने स्वामी को खुद चुनता था और आसानी से किसी के काबू में नहीं आता था। जैसे ही राजकुमार विक्रमादित्य घोडे के पास जाते हैं तो जोर से हिनहिनाता है और ऊंची ऊंची छलांग लगाने लगता है। एक बार को तो विक्रमादित्य भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि कोई घोडा भी इतनी ऊंची छलांगे लगा सकता है। अब तो राजकुमार विक्रमादित्य को भी घोडे को देखकर धुन सवार हो चुकी थी, कि वह इस घोडे को काबू में करके ही रहेंगे। वह बडी तीव्रता से घोडे के ऊपर चढ जाते हैं जब घोडे को एहसास होता है कि उसके ऊपर कोई चढ चुका है तो वह बहुत तेज दौडने लगता है और बेकाबू हो जाता है। अचानक हुए इस हादसे से घोडा अपनी दिशा बदल देता है और राजसी महारानियों के हिस्से में चल जाता है। अचानक राजकुमार घोडे की लगाम खींचते हैं और घोडे को दूसरी तरफ कर लेते हैं। घोडा बहुत ऊंची ऊंची छलांगे लगाता है ताकि राजकुमार उसके ऊपर से हट जाए पर राजकुमार टस से मश नहीं होते, अब तो थक कर घोडा भी अब अपने रफ्तार कम कर लेता है। जैसे राजकुमार को लगता है कि घोडा थक चुका है तो वह राजकुमार के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हैं। तो घोडा अपना sir झुका लेता है मतलब वह कहना चाहता है कि राजकुमार विक्रमादित्य को उसने अपना मालिक मान लिया है।
राजकुमार विक्रमादित्य: घोडे को प्यार से कहते हैं कि तुम आसमांन को छूने कि चाह रखते हो, इसलिए तो तुम इतनी ऊंची- ऊंची छलांग लगाते हो। इसलिए आज से तुम्हारा नाम अंबर है। घोडा नाम सुनकर खुशी से हिनहिनाता है जब सबको यह लगता है कि घोडे को राजकुमार ने काबू कर लिया है तो सब की जान में जान आई है और महाराज प्रतियोगिता समाप्त करने का आदेश देते हैं।
महामंत्री कुछ सैनिकों को, जो घोडे ने तबाही मचाई थी उसको वापस व्यवस्थित करने के लिए कहते हैं।
महारानी सुनैना राजकुमार वीरेंद्र को ढूंढ रही थी तभी राजकुमार विक्रमादित्य आते हैं और महारानी से घोडे के साथ सैर पर जाने की आज्ञा मांगते हैं।
तो चलिए देखते हैं आगे क्या होगा? कहाँ गए हैं राजकुमार वीरेंद्र? क्या राजकुमार वीरेंद्र का क्रोध शांत हो पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी ""स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
Upcoming story.
सन् 1925। जब हर सड़कों पर अंग्रेज़ों की निगाहें कड़ी थीं, पाँच अनजान चेहरे, पाँच हिंदुस्तानी, छुपकर अपनी चाल सोचते हैं । उनका उद्देश्य साफ था—देश के लिए, अंग्रेजों के खिलाफ। लेकिन क्या उनके इरादे सुरक्षित रह पाएंगे? कौन उनका साथ देगा, और कौन उन्हें धोखा देगा? हर कदम पर खतरा, हर निर्णय में रहस्य। यह कहानी है साहस, देशभक्ति और उन गुप्त योजनाओं की, जो इतिहास की परतों में छुपी रह गईं। ऑन pocket fm
राजकुमार वीरेंद्र क्रोध में अपने घोडे पर सवार होकर अपने अभ्यास स्तल पर चले जाते हैं और लगातार एक वृक्ष पर बाण चलाते हैं। अगर कोई इस वक्त उनको देख ले तो एक जगह पर डर के मारे स्तब्ध रह जाए क्योंकि क्रोध के कारण उनकी आंखों में खून उतर आया है, चेहरा अग्नि के भाती तप रहा है। लगातार अभ्यास करने की वजह से उनके हाथ छिल चुके हैं, पर फिर भी उनका क्रोध शांत नहीं होता है। अभ्यास की आड मे वो अपने हार जाने का क्रोध को कम कर रहे हैं।
अजय क्षेत्र
राजकुमार विक्रमादित्य जो कि महारानी से सैर पर जाने की आज्ञा मांगने आये थे, अपनी बडी मां को चिंता में देखकर पूछते हैं_ क्या हुआ बडी मां आप इतनी चिंतित क्यों हैं?
महारानी सुनैना- पुत्र कंवर वीरेंद्र प्रतियोगिता समाप्ति के पश्चात से ही हमें नहीं दिखाई दे रहे हैं। वह प्रतियोगिता में हार जाने के कारण दुखी ना हो जाए। राजकुमार विक्रमादित्य- बडी मां आप चिंता ना करें अभी हम उन्हें ढूंढ के लाते हैं। वह कहीं ना कहीं अपनी धनुर्विद्या का प्रयास कर रहे होंगे।
प्रयास स्थल राजकुमार वीरेंद्र का क्रोध अब कुछ हद तक शांत हो चुका है और वह सोचते हैं कि अभी भी उन्हें और प्रयास करने की आवश्यकता है।
राजमहल में राजकुमार विक्रमादित्य अपने घोडे पर सवार होकर राजकुमार वीरेंद्र को ढूंढने जाते हैं और कहते हैं- आज न जाने राजकुमार वीरेंद्र स्वयं को कितना को प्रताडित कर रहे होंगे उनको मैंने आखिरी बार बहुत ही क्रोध में देखा था।
प्रयास स्थल राजकुमार वीरेंद्र अपने घोडे पर संवार होते हैं और राजमहल की तरफ चल देते हैं तभी रास्ते में उन्हें राजकुमार विक्रमादित्य मिलते हैं।
राजकुमार वीरेंद्र- भ्राता विक्रम! आपने क्यों कष्ट उठाया हम आ ही रहे थे।
राजकुमार विक्रमादित्य- बडी मां आपकी वजह से कितनी परेशान थी आप उन्हें क्यों परेशान करते हैं?
राजकुमार वीरेंद्र: भ्राता विक्रम हम मां से क्षमा मांग लेंगे और आप भी हमें क्षमा कीजिएगा हमारी वजह से आपको आना पडा।
राजकुमार विक्रमादित्य उनके अंदर की उदासी और क्रोध को भाप गए, और उन्हें सामान्य करने के लिए कहते हैं- चलिए चलते हैं वैसे आप हमें बताइए की राजकुमारी सुकन्या का आपको कोई पत्र मिला? राजकुमार वीरेंद्र, अपनी होने वाली पत्नी/मंगेतर, सुकन्या का नाम सुनकर थोडा झेंप जाते हैं- भाईसा आप हमें छेड रहे हैं।
राजकुमार विक्रमादित्य: हां तो?
राजकुमार वीरेंद्र- जब आपका रिश्ता तय होगा तब हम भी आपको बहुत परेशान करेंगे और वैसे भी जब तक आपका विवाह तय नहीं हो जाता तब तक हम कैसे विवाह की बातें कर सकते हैं।
ऐसे ही हंसते- ठीठौली करते हुए राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमार वीरेंद्र राजमहल की तरफ प्रस्थान कर लेते हैं। राजमहल पहुंचकर राजकुमार वीरेंद्र अपनी मां के कक्ष में जाते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं।
राजकुमार वीरेंद्र- मां हमें क्षमा कीजिएगा हमारी वजह से आपको चिंता उठानी पडी।
महारानी सुकन्या- पुत्र वीर हम जानते हैं कि आप अपनी हार से बहुत दुखी हैं पर यह तो सिर्फ एक प्रतियोगिता थी। आपको इससे भी शिक्षा लेनी है कि अभी भी आपको और प्रयास करने की आवश्यकता है और अपना क्रोध को व्यर्थ न जाने दीजिए आप इसे अपनी धनुर्विद्या के प्रयास में लगाइए।
राजकुमार वीरेंद्र- ठीक है मां हम ऐसा ही करेंगे।
महारानी सुकन्या- पुत्र जाओ भोजन ग्रहण करो और विश्राम करो रात बहुत हो चुकी है।
राजकुमार वीरेंद्र- जी मां प्रणाम।
राजकुमार वीरेंद्र के जाने के बाद एक सेविका महारानी के कक्ष में आती है और कहती है कि, महारानी जी महाराज आपके कक्ष में पधार रहे हैं। तभी महाराज के आने की धूनी सुनाई देती है: महाराज पधार रहे हैं!
महारानी सुनैना- आईये महाराज बिराजिये।
महाराज- महारानी आज प्रतियोगिता में हमें ऐसा लगा कि हमारे पुत्र बडे हो चुके हैं और इंद्रप्रस्थ को भी एक नया उत्तराधिकारी देने का वक्त आ चुका है।
महारानी- किंतु महाराज आपको तो ज्ञात ही है हमारे कुल में उत्तराधिकारी घोषित करने से पूर्व उनका विवाहित होना जरूरी है।
महाराज- हमें ज्ञात है और राजकुमार वीरेंद्र का तो रिश्ता पहले से ही तय हो चुका है राजकुमारी सुकन्या के साथ परंतु राजकुमार विक्रम आदित्य के विवाह के लिए हमें कुछ सोचना होगा।
महारानी- किंतु महाराज हमें एक उलझन है। महाराज- कैसी उलझन महारानी?
महारानी- महाराज हमारे दोनों पुत्र सर्वश्रेष्ठ योद्धा है दोनों राजा बनने के योग्य है तो यह कैसे तय होगा कि दोनों में से भावी राजा कौन बनेगा? महाराज- सब्र रखिए महारानी समय के साथ इंद्रप्रस्थ अपना राजा स्वयं चुन लेगा, की कौन उस पर शासन करने योग्य है।
अस्तबल में राजकुमार विक्रमादित्य अपने घोडे अंबर को कहते हैं- अब तुम विश्राम करो तुमने आज बहुत परिश्रम किया है और हम से भी बहुत श्रम करवाया है, चलिए अब कल मिलते हैं।
राजकुमार वीरेंद्र के कक्ष में
राजकुमार वीरेंद्र भी अपने कक्ष में जाकर शाही बिस्तर पर लेट जाते हैं और आज जो हुआ उसके बारे में सोचते हैं और एक प्रण लेते हैं कि आज के बाद हम ऐसी किसी प्रतियोगिता में नहीं हारेंगे और अपनी धनुर्विद्या को और बेहतर बनाएंगे। यह सब सोचते हुए उनको पता ही नहीं चलता कब उनकी आंख लग जाती है और वह गहरी नींद में चले जाते हैं
प्रातः काल पक्षी चहचहा रहे हैं आसमान में मेघ अपनी अपने- अपने स्थान पर जा रहे हैं
राजकुमार विक्रमादित्य का कक्ष
राजकुमार विक्रमादित्य की नींद जल्दी खुल जाती है। वह सर्वप्रथम उठते ही भगवान भोलेनाथ को प्रणाम करते हैं और अपनी नीत्य क्रिया खत्म करके भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। फिर वह महारानी सुनैना की कक्ष में जाते हैं
महारानी सुनैना का कक्ष
राजकुमार विक्रमादित्य अपनी बडी मां के पास आते हैं और उनके चरण स्पर्श करते हैं। महारानी सुनैना- चिरंजीवी भवः पुत्र! तभी एक सेवक अंदर आता है और कहता है, महारानी की जय हो! जोधाणा से एक दूत आया है और महाराज ने सभी को राजसभा में आने का आदेश दिया है।
तो चलिए देखते हैं दूत क्या संदेश लेकर आया है? और जोधाणा का ये संदेश क्या मोड लायेगा हमारी कहानी मे? जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी नोवेल" इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
Upcoming story.
सन् 1925। जब हर सड़कों पर अंग्रेज़ों की निगाहें कड़ी थीं, पाँच अनजान चेहरे, पाँच हिंदुस्तानी, छुपकर अपनी चाल सोचते हैं । उनका उद्देश्य साफ था—देश के लिए, अंग्रेजों के खिलाफ। लेकिन क्या उनके इरादे सुरक्षित रह पाएंगे? कौन उनका साथ देगा, और कौन उन्हें धोखा देगा? हर कदम पर खतरा, हर निर्णय में रहस्य। यह कहानी है साहस, देशभक्ति और उन गुप्त योजनाओं की, जो इतिहास की परतों में छुपी रह गईं। on pocket fm
अब तक हमने देखा कि राजकुमार विक्रमादित्य राजकुमार वीरेंद्र को ढूंढने जाते हैं और वो इसमें सफल भी हो जाते हैं। फिर राजमहल में पहुंचने के बाद राजकुमार वीरेंद्र अपनी माता श्री से क्षमा मांगते हैं और दृढ निश्चय करते हैं कि वह आज के बाद ऐसी किसी प्रतियोगिता में नहीं हारेंगे। अगले दिन राजकुमार विक्रमादित्य प्रातःकाल अपनी बडी माँ का आशीर्वाद लेने जाते हे तभी उनके कक्ष में एक सेविका आती है और जोधाणा से आए दूत के बारे में उन्हें बताती है।
अब आगे
राज दरबार
राज दरबार में सभी उपस्थित हैं। महाराज अमरेंद्र सिंह अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके दाईं ओर महामंत्री शिवराय और कुलगुरु बैठे हैं। कुछ दूरी पर सारे मंत्रीगण विराजमान हैं, उनके सामने राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमार वीरेंद्र भी उपस्थित हैं। इसी बीच, जोधाणा से आया हुआ दूत सभा के बीचों- बीच सम्मानपूर्वक महाराज के सामने खडा है।
दूत: इंद्रप्रस्थ के महाराज अमरेंद्र सिंह को हमारा प्रणाम! जोधाणा के महाराज ने आपका अभिवादन किया है और यह पत्र भिजवाया है।
महाराज अमरेंद्र सिंह( दूत से) आप पत्र पढना आरंभ कीजिए। हम भी जानना चाहते हैं कि महाराज भवानी सिंह कौन सा शुभ समाचार हमें सुनाना चाहते हैं।
दूत( पत्र पढते हुए)
इंद्रप्रस्थ के महाराज अमरेंद्र सिंह को हमारा प्रणाम। आज से पंद्रह दिन पश्चात, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, हमारी सुपुत्री, राजकुमारी चंद्राक्षी का स्वयंवर रचाया जा रहा है। आपका राज्य सादर आमंत्रित है। कृपया इस शुभ अवसर पर हमें आपकी सेवा का अवसर प्रदान करें।
महाराज अमरेंद्र सिंह( हर्षित होकर)
बहुत खूब! राजकुमारी चंद्राक्षी का स्वयंवर रचाया जा रहा है, यह तो अत्यंत खुशी की बात है! दूत से) महाराज भवानी सिंह से जाकर हमारा अभिवादन कीजिएगा और कहिएगा कि इस शुभ अवसर पर हमारा इंद्रप्रस्थ राज्य अवश्य शामिल होगा।
दूत:
जो आज्ञा, महाराज!
महाराज अमरेंद्र सिंह( विचार करते हुए)
हम पहले ही राजकुमार वीरेंद्र के विवाह के विषय में निश्चय कर चुके हैं, अतः हम इस अवसर पर राजकुमार विक्रमादित्य को जोधाणा भेजने का अवसर प्रदान करते हैं।
महाराज: राजकुमार विक्रमादित्य हम चाहते हैं कि इस स्वयंवर में हमारे राज्य कि ओर से आप शामिल हो। क्या आपको कोई आपत्ति है?
राजकुमार विक्रमादित्य( सम्मानपूर्वक)
नहीं महाराज! हमें कोई आपत्ति नहीं है। आपने जो भी हमारे लिए किया है, वह सदैव हमारे लिए कल्याण ही रहा है। हम अगले दो दिनों में जोधाणा के लिए प्रस्थान करने को तैयार हैं।
महाराज अमरेंद्र सिंह:
तो तय रहा! राजकुमार विक्रमादित्य ही जोधाणा में राजकुमारी चंद्राक्षी के स्वयंवर में भाग लेंगे।
अब सभा में राज्य के दैनिक विषयों पर चर्चा शुरू हो जाती है। कुछ समय बाद महामंत्री शिवराय कहते हैं,
महाराज, कई दिनों से राजवंशी हाथी बीमार पड रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि एक साथ पचास हाथी बीमार हो चुके हैं, जिनमें से पच्चीस तो नए हाथी हैं। उनमें कुछ हाथी तो गंभीर स्थिति में हैं और अपना अंतिम समय गिन रहे हैं। कृपया करके महाराज इसका कोई समाधान निकालिए।
महाराज अमरेंद्र सिंह( चिंतित होकर)
यह कैसे संभव है कि राजवंशी हाथी एक साथ बीमार हो गए, वह भी केवल राजवंशी हाथी ही? राजकुमार विक्रमादित्य की ओर देखते हुए) यह कार्य हम आपको सौंपते हैं। इस बीमारी की जड तक पहुंचिए और सुनिश्चित कीजिए कि आगे से कोई हाथी बीमार न हो।
राजकुमार विक्रमादित्य:
जो आज्ञा, महाराज!
महामंत्री शिवराय कुछ और जानकारी देते हुए कहते हैं,
महाराज, छह महीने पहले आपने जो भव्य मंदिर निर्माण का आदेश दिया था, वह कार्य अब समाप्ति पर है।
महाराज अमरेंद्र सिंह( प्रसन्न होकर)
यह तो बहुत ही खुशी की बात है, महामंत्री शिवराय( राजकुमार वीरेंद्र से) आप इस भव्य मंदिर का जायजा लीजिए और अगर कोई कमी हो, तो उसे पूरा करवाइए।
राजकुमार वीरेंद्र:
जो आज्ञा, महाराज!
सभा में बचे हुए अन्य दैनिक विषयों पर विचार- विमर्श होता है। कुछ समय बाद महाराज अमरेंद्र सिंह अपने सिंहासन से उठते हुए कहते हैं,
आज की सभा यहीं स्थगित की जाती है।
फिर वह दरबार से बाहर चले जाते हैं। महाराज के जाने के बाद सभी मंत्रीगण और राजकुमार भी सभा से चले जाते हैं।
तभी उप सेनापति अमर सिंह, जो कि राजकुमार विक्रमादित्य के बचपन के मित्र हैं और इन्होंने उनके साथ ही शिक्षा प्राप्त की थी, राजकुमार के पास आते हैं।
अमर सिंह( मुस्कुराते हुए)
राजकुमार, आज आप सभा में बहुत ही विचारमग्न दिख रहे थे। कहीं आपको राजकुमारी चंद्राक्षी स्वप्न में तो नहीं दिखाई दे रही थी?
राजकुमार विक्रमादित्य( हंसते हुए)
आप कैसी बातें कर रहे हैं, अमर? जिन्हें भला हमने देखा ही नहीं, वे हमारे ख्यालो में कैसे आ सकती हैं? आप भी न, कहीं की भी बातें जोड लेते हैं।
अमर सिंह( आश्वस्त होकर)
राजकुमार, हम जो कह रहे हैं, वह सच कह रहे हैं। देखना, यह सच होकर रहेगा!
राजकुमार विक्रमादित्य( गंभीर होते हुए)
हां, देख लेंगे। लेकिन पहले हमें हाथियों कि गजशाला में जाकर उनकी बीमारी का पता लगाना है। अगर आप हमारे साथ चलना चाहते हैं, तो चलिए।
अमर सिंह:
हम तो चलना चाहते हैं, पर हमें कुछ नए सैनिकों को प्रशिक्षण कराना है।
राजकुमार विक्रमादित्य:
ठीक है, हम चलते हैं।
वहीं दूसरी ओर, राजकुमार वीरेंद्र मंदिर के लिए प्रस्थान कर लेते हैं।
जोधाणा
महाराज भवानी सिंह अपनी तीनों रानियों के साथ विराजमान हैं।
महाराज भवानी सिंह( भावुक होकर)
पता ही नहीं चला हमर पुत्री राजकुमारी चंद्राक्षी कब इतनी बडी हो गईं! देखिए, अब तो उनकी विदाई के दिन नजदीक आ रहे हैं।
महारानी अमरावती( जो कि महाराज की पहली रानी हैं और स्वभाव से बहुत शांत हैं)
महाराज, हमें भी यह जानकर बडा दुःख हो रहा है कि हमारे आंगन का फूल किसी और के आंगन में खिलने जा रहा है।
महाराज भवानी सिंह:
अब देखते हैं, राजकुमारी चंद्राक्षी अपने लिए कौन सा योग्य वर चुनती हैं।
महारानी अंबा( जो दूसरी रानी हैं और स्वभाव से बहुत चंचल हैं)
महाराज, आप निश्चिंत रहिए! हमारी राजकुमारी बहुत ही होशियार हैं और मां जगदंबा ने भी उनके लिए कोई सर्वश्रेष्ठ वर चुन रखा होगा।
महाराज भवानी सिंह( आशावादी स्वर में)
हम भी यही चाहते हैं, महारानी अंबा, कि हमारी राजकुमारी को एक शूरवीर और महान पुरुष वर के रूप में मिले।
महारानी दुर्गावती( जो सबसे छोटी रानी हैं और स्वभाव से बहुत विनम्र हैं)
महाराज, क्या आपने भारत के सभी राज्यों को निमंत्रण पत्र भिजवा दिए हैं? कहीं कोई राज्य छूट न जाए।
महाराज भवानी सिंह:
धीरज रखिए, महारानी दुर्गावती। हमने कल तक भारत के सभी राज्यों में निमंत्रण पत्र भिजवाने की व्यवस्था कर दी थी। कल तक यह कार्य संपन्न हो जाएगा।
थोडा सोचते हुए) वैसे, आप तीनों हमें यह बताइए, राजकुमारी चंद्राक्षी कहां हैं? आज सुबह से उनके दर्शन नहीं हुए।
महारानी अमरावती( हंसते हुए)
महाराज, वह वहीं हैं जहां उन्हें होना चाहिए—अपने बगीचे में, अपने प्रिय पशुओं के साथ।
महाराज भी हंसते हुए कहते हैं,
हमारी राजकुमारी कितनी कोमल हृदय की हैं!
बगीचे का दृश्य:
बगीचे में हर रंग के फूल खिल हुए हैं। श्याम हो रही है और सूर्यदेव ढल रहे है। सूर्यदेव की लालिमा पूरे बगीचे में फैल रही है। तभी एक सुनहरा हिरण दौडता हुआ आता है, और उसके पीछे राजकुमारी चंद्राक्षी दौड रही हैं। राजकुमारी चंद्राक्षी, सूरज की लालिमा में ऐसी प्रतीत हो रही हैं, जैसे कोई स्वर्ग की अप्सरा हो! चांद जैसी चमकदार आंखें, सांवला रंग, लंबाई छः फुट, कमर तक लहराते काले घने बाल, गालों पर हल्की लालिमा, सुर्ख गुलाबी होंठ, तीखे नैन- नक्श और चेहरे पर मासूमियत का अनूठा भाव।
राजकुमारी चंद्राक्षी( हंसते हुए)
रुको, नटखट! अभी हम तुम्हें पकडते हैं। तुमने हमें बहुत परेशान किया है।
तभी उनकी सखी मधुमाला हंसते हुए कहती हैं,
चंद्रा, आप आज भी इनके पीछे भाग रही हैं? अब तो इनके पीछे भागना बंद कीजिए!
राजकुमारी चंद्राक्षी:
कैसे बंद कर दें, मधु? जब भी हम इन्हें आहार खिलाने की कोशिश करते हैं, ये हमें यूं ही अपने पीछे भगाते हैं।
मधुमाला( मुस्कुराते हुए)
वैसे, चंद्रा, क्या आपने इंद्रप्रस्थ की प्रतियोगिता के बारे में सुना?
राजकुमारी चंद्राक्षी( आश्चर्य से)
कैसी प्रतियोगिता?
मधुमाला:
हमें ज्ञात था कि आपको इस बारे में नहीं पता होगा। चलिए, हम आपको बताते हैं। इंद्रप्रस्थ के महाराज अमरेंद्र सिंह ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसमें राजकुमारों को घोडे पर सवार होकर लाल झंडे पर तीन तीर एक साथ लगाने थे, और वह भी तीन बार!
राजकुमारी चंद्राक्षी( आश्चर्य से)
फिर क्या हुआ? किसने इस प्रतियोगिता को जीता?
मधुमाला( गर्व से)
इंद्रप्रस्थ के ज्येष्ठ राजकुमार, विक्रमादित्य ने इसे बडी तीव्रता से पार कर लिया। उनके बारे में कहा जाता है कि वे भारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं।
राजकुमारी चंद्राक्षी मन ही मन कहती हैं,
राजकुमार विक्रमादित्य!
क्या अचानक बीमार हुए हाथियों की बीमारी का पता चल पाएगा? और अचानक इतने सारे हाथियों की बीमारी के पीछे किसी का कोई षडयंत्र तो नहीं? क्या राजकुमारी चंद्राक्षी, राजकुमार विक्रमादित्य के बारे में जानने की दिलचस्पी दिखाएगी? आगे जानने के लिए पढ़ते
रहिए हमारा रोमांचक उपन्यास इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
upcoming story
सन् 1915। जब हर सड़कों पर अंग्रेज़ों की निगाहें कड़ी थीं, पाँच अनजान चेहरे, पाँच हिंदुस्तानी, छुपकर अपनी चाल सोचते हैं । उनका उद्देश्य साफ था—देश के लिए, अंग्रेजों के खिलाफ। लेकिन क्या उनके इरादे सुरक्षित रह पाएंगे? कौन उनका साथ देगा, और कौन उन्हें धोखा देगा? हर कदम पर खतरा, हर निर्णय में रहस्य। यह कहानी है साहस, देशभक्ति और उन गुप्त योजनाओं की, जो इतिहास की परतों में छुपी रह गईं। on pocket fm
अब तक हमने देखा कि जोधाणा के राजा भवानी सिंह दूत के माध्यम से इंद्रप्रस्थ को, अपनी पुत्री के स्वयंवर में आमंत्रित करते हैं जिसे महाराज अमरेंद्र सिंह स्वीकार कर लेते हैं। और राजकुमार विक्रमादित्य को इस स्वयंमर में भाग लेने का आदेश दते हैं। वहीं दूसरी ओर राजवंशी हाथी अचानक बीमार पड जाते हैं जिसका कारण पता लगाने के लिए महाराज, राजकुमार विक्रमादित्य को कहते हैं। वही महाराज, जो नया भव्य मंदिर बना है उसका जायजा लेने के लिए राजकुमार वीरेंद्र को कहते हैं।
अब आगे
राजकुमारी चंद्राक्षी( अपनी सखी मधुमाला से) अच्छा, तो हम उन्हें परखना चाहते हैं।
मधुमाला: हाँ क्यों नहीं! जल्द ही आपकी उनसे मुलाकात होगी। हो सकता है इस स्वयंवर में वह भी आएँ।
तभी एक सेविका आकर कहती है, राजकुमारी, आपको महाराज ने बुलाया है।
गजशाला में
राजकुमार विक्रमादित्य गजशाला में प्रवेश करते हैं। वहां कि परिस्थिति देखकर उनके चेहरे पर गंभीरता छा जाती है, क्योंकि कई हाथी बीमार दिखते हैं। वह हाथियों के रखवाले को बुलाते हैं।
विक्रमादित्य: स्वस्थ हाथियों को बीमार हाथियों से अलग रखो।
रखवाला: जी, राजकुमार।
इसके बाद, राजकुमार विक्रमादित्य हाथियों के खाने- पीने कि वस्तुओं का निरीक्षण करते हैं। तभी उन्हें कुछ गडबड लगती है। वे रखवाले से पूछते हैं, यह गन्ने कब के हैं?
रखवाला: राजकुमार, यह तो आज ही आए हैं।
विक्रमादित्य( आश्चर्य से) अगर यह आज ही आए हैं, तो इनमें से सुगंध की स्थान पर दुर्गंध क्यों आ रही है?
राजकुमार विक्रमादित्य रखवाले से पूछते हैं, यह गन्ने कहां से लाए जाते हैं और कौन इन्हें लेकर आता है?
रखवाला: यह गन्ने सेठ रतन के यहां से लाए जाते हैं, राजकुमार।
विक्रमादित्य( सख्त स्वर में) अच्छा, अब हमें सेठ रतन से मिलना होगा।
राजकुमार सेठ रतन के पास जाते हैं और कहते हैं, तुम्हारे दिए गन्नों में जहर मिलाया गया है, जिसके कारण हमारे हाथी बीमार हो रहे हैं।
सेठ रतन( हैरान होकर) राजकुमार, हमने तो ऐसा कुछ नहीं किया। हमारे यहां से वर्षों से गन्ने राजमहल में पहुंचाए जाते हैं, आज तक ऐसी कोई समस्या नहीं हुई।
विक्रमादित्य: अगर तुम सच कह रहे हो, तो कल हम स्वयं यहां आएंगे और यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। हम खुद देखेंगे कि यह विष गन्नों में कौन और कब मिलाता है।
सेठ रतन( श्रद्धा से) जैसी आपकी आज्ञा, राजकुमार।
मंदिर में
राजकुमार वीरेंद्र शिव मंदिर में जाते हैं। यह मंदिर बहुत ही भव्य और विशाल है, जिसके भीतर इक्कीस स्तंभ हैं और सात गुंबद। बीच वाले गुंबद में कमल का फूल विराजमान है, और हर एक स्तंभ पर अद्वितीय कला उकेरी गई है।
राजकुमार वीरेंद्र मंदिर का निरीक्षण करते हैं और उन्हें आभास होता है कि भगवान शिव को अर्पित करने के लिए जल का कोई स्रोत नहीं है। साथ ही बेलपत्र और पुष्प की भी व्यवस्था नहीं की गई है। वे तुरंत एक सैनिक को बुलाते हैं।
वीरेंद्र: एक महीने के भीतर यहां पर एक जलाशय बनवा दिया जाए।
फिर वह एक माली को बुलाते हैं और कहते हैं, यहां बेलपत्र और भगवान शिव को चढाने वाले पुष्पों के वृक्ष लगाए जाएं।
जोधाणा
जहां महाराज और महारानियां एक महत्वपूर्ण वार्ता कर रहे हैं)
राजकुमारी चंद्राक्षी( महाराज के पास आकर) बाबा सा, आपने हमें बुलाया?
महाराज भवानी सिंह: हाँ, राजकुमारी। हमने और आपकी मासाओं ने मिलकर आपके स्वयंवर के लिए एक दिन बाद, एक भव्य पूजा का आयोजन किया है। उसके बाद राज्य के सभी ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा दी जाएगी। आप इसके लिए तैयार रहियेगा।
चंद्राक्षी: जी, बाबासा।
महाराज भवानी सिंह: और तुम्हारे भाई सा की कोई खबर आई? वह कब तक आएंगे?
चंद्राक्षी: हमें उनका पत्र मिला था। वह अगले दो दिनों में यहाँ पहुंच जाएंगे।
महाराज भवानी सिंह: अच्छा।
महारानी अमरावती( जो राजकुमारी की सगी माता हैं) राजकुमारी, हमें आपका वीणा वादन सुनाइए।
चंद्राक्षी: जी, मासा।
राजकुमारी एक सेविका को वीणा लाने का आदेश देती है। वीणा बजाने से पहले, वह माता रानी को नमन करती हैं और फिर वीणा बजाती हैं।
महाराज भवानी सिंह( वीणा की मधुर ध्वनि सुनते हुए) राजकुमारी, आपकी जैसी वीणा तो संपूर्ण भारत में कोई नहीं बजा सकता।
महारानी अंबा: तुम्हारी वीणा की ध्वनि सुनकर ऐसा लगता है जैसे हमें स्वर्ग के दर्शन हो रहे हैं।
महारानी दुर्गावती: तुम्हारी वीणा की ध्वनि सुनकर हमारे भीतर अद्भुत शांति का संचार होता है।
चंद्राक्षी( मुस्कुराते हुए) आप सभी का धन्यवाद।
अगली सुबह( इंद्रप्रस्थ)
राजकुमार विक्रमादित्य सुबह सेठ रतन के घर जाते हैं और वहां गन्नों का निरीक्षण करते हैं। वह छिपकर देखते हैं कि राजमहल का एक सैनिक बैलगाडी में गन्ने लेकर जा रहा है। वे उसका पीछा करते हैं।
कुछ समय पश्चात, बैलगाडी रुकती है और एक आदमी गन्नों में कुछ मिलाता है। राजकुमार तुरंत उसकी गर्दन पर तलवार रखते हुए कहते हैं, हमें सब सच बताओ। हमें पता है कि तुम गन्नों में विष मिला रहे हो, जिसके कारण हमारे हाथी बीमार हो रहे हैं।
वह आदमी( गिडगिडाते हुए) क्षमा कीजिए, राजकुमार! हमने ऐसा एक मुखावरण धारण किए व्यक्ति ने करने के लिए कहा था। उसने मेरे परिवार को बंदी बनाया हुआ है।
विक्रमादित्य- कौन हो सकता है ये मुखावरण धारण किया व्यक्ति और इसकी हमारे हाथियों से क्या शत्रुता हो सकती है? या फिर इसकी शत्रुता हमारे राज्य से है।
राजकुमार उस आदमी से उसका नाम और पता पूछते हैं।
आदमी: मेरा नाम मणिकांत है।
विक्रमादित्य: हम्म. हम तुम्हारे परिवार को ढूंढने मे तुम्हारी सहायता करेंगे, अब तुम जा सकते हो।
मणिकांत: जी, राजकुमार।
इंद्रप्रस्थ का राजदरबार
महाराज अमरेंद्र सिंह( राजकुमार विक्रमादित्य से) राजकुमार विक्रमादित्य आपको कुछ पता चला कि हाथी बीमार क्यों हो रहे हैं?
विक्रमादित्य: महाराज, जाँच जारी है। कल तक संपूर्ण सत्य सामने आ जाएगा।
महाराज फिर राजकुमार वीरेंद्र से मंदिर निर्माण का हाल पूछते हैं।
वीरेंद्र: महाराज, अगले माह भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी। आप निश्चिंत रहें।
महाराज: अच्छा।
तभी खाद्य मंत्री महिपाल आकर कहते हैं, महाराज, अन्न भंडार में कुछ जगहों पर अत्यधिक वर्षा के कारण पानी रिस रहा है।
महाराज महामंत्री शिवराय को आदेश देते हैं, जल्द ही अन्न भंडार की मरम्मत करवाई जाए। यह अन्न हमारे सैनिकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
महामंत्री: जी महाराज। आज सभा के पश्चात कार्य शुरू करवा देंगे।
सभा कुछ समय पश्चात स्थगित हो जाती है।
जोधाणा
राजकुमारी चंद्राक्षी धनुर्विद्या का अभ्यास कर रही होती हैं, तभी उनके छोटे भाई, राजकुमार चंद्रभान( जिनकी आयु अभी केवल अठारह वर्ष है, और वे थोडे शरारती और नटखट हैं) दौडते हुए आते हैं और उनसे टकरा जाते हैं।
चंद्राक्षी( गुस्से में) क्या किया आपने चंद्रभान? आपकी वजह से हमारा निशाना चूक गया।
राजकुमार चंद्रभान ने शर्मिंदा होकर कहा: क्षमा कीजिएगा, बाईसा! हमसे यह खुशी नहीं संभाली जा रही थी।
राजकुमारी ने हैरान होकर पूछा, Kiss बात की खुशी चंद्रभान?
चंद्रभान: बाईसा, हमें पता चला है कि सूर्यभान भाई सा दो दिनों में आ रहे हैं।
राजकुमारी चंद्राक्षी मुस्कराते हुए बोलीं, हाँ, हमें उनका पत्र मिला था।
चंद्रभान ने उत्सुकता से कहा, बाईसा, हमसे तो इंतजार नहीं हो रहा है! उनसे मिले बहुत दिन हो गए हैं। अब तो हमें भाभीसा और छोटे शैतान( कुमार परीक्षित) की भी याद आ रही है।
राजकुमारी चंद्राक्षी ने भावुक होते हुए कहा, हाँ, हमें भी बहुत याद आ रही है। जब से कुमार परीक्षित का जन्म हुआ है, तब से हम उनसे बस एक- दो बार ही मिले हैं।
चंद्रभान ने थोडे उदास स्वर में कहा, वैसे बाईसा, आप भी तो कुछ दिनों बाद चली जाएंगी। फिर हम अकेले रह जाएंगे। कभी- कभी तो सोचते हैं कि हम भी आपके साथ चलें।
चंद्राक्षी ने प्यार से कहा, यह कैसे हो सकता है चंद्रभान? अगर आप हमारे साथ चले जाओगे तो यहाँ बाबा सा और मासा का ध्यान कौन रखेगा? और बाबासा के बाद राज्य का भार कौन संभालेगा?
चंद्रभान ने हंसते हुए कहा, इसलिए तो हम रुके हुए हैं, वरना अब तक हम आपके साथ जाने की तैयारी कर चुके होते।
चंद्राक्षी मुस्कराते हुए बोलीं, आपका लड़कपन फिर शुरू हो गया।
दोनों भाई- बहन हंसते हैं और कुछ और बातों में खो जाते हैं।
तो चलिए, अब देखते हैं कि राजकुमार विक्रमादित्य हाथियों के बीमार करने वाले को पकड पाते है या नहीं? और क्या राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी चंद्राक्षी का मिलन हो पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी रोमांचक और रहस्यमयी कहानी इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
इंद्रप्रस्थ
जैसा कि राजकुमार को मणिकांत पर शंका थी तो रात के दूसरे पहर में वह उस जगह जाते हैं जहां मणिकांत से मुखावरण धारण किया व्यक्ति मिलने आता है।
वह थोडी देर उनकी छुप से बातें सुनते हैं और उनका शक यकीन में बदल जाता है कि वही उन्मत्त( सनकी) वेद्य है जो सभा में आया था।
करीब बीस दिन पहले एक उन्मत्त वैद्य सभा में आया था और वह कह रहा था कि उसने एक ऐसी औषधि बनाई है जिसकी वजह से हाथी भी तीव्र गति से दौड पाएंगे और हमें एक ताकत और तीव्रता का अद्भुत संगम मिलेगा।
महाराज: उस व्यक्ति से कहते हैं की बहुत खूब यह तो बहुत ही अच्छी बात है क्या आपने इस औषधि का परीक्षण किया?
वैध: हां महाराज मैंने एक नवजात हाथी( अभी सिर्फ एक महीने का है) पर इसका परीक्षण किया है और परीक्षण सफल रहा।
महाराज: तो उस नवजात हाथी को हमारे सामने प्रस्तुत किया जाए।
कुछ समय बाद हाथी का रखवाला हाथी को लेकर आता है महाराज के सामने प्रस्तुत करता है महाराज उससे पूछते हैं कि क्या औषधि खाने के बाद यह हाथी तीव्र गति से दौडने लगा है?
रखवाला: हां महाराज हाथी तीव्र गति से दौड रहा है परंतु इसका वजन पहले से कम हो गया है और जब से इसने औषधि को खाया है तब से यह कम खाना खाने लगा है, कमजोर भी हो चुका है।
महाराज: तो यह औषधि भले ही हाथी की गति तीव्र करने मे सहायता करती है पर उसे आंतरिक रूप से कमजोर कर देती फिर वह वैद्य से कहते हैं कि आपकी सोच सराहने योग्य है परन्तु आपकी औषधि के लाभ से अधिक हानि है इसलिए कृपया करके आप आगे से किसी भी हाथी पर अपनी औषधि का प्रयोग मत कीजिए और अपनी औषधि को और बेहतर बनाने का प्रयास कीजिए, प्रयास कीजिए कि अगली औषधि की दुष्परिणाम ना हो।
वेद: इस बात से बहुत ही आघात पहुंचा कि उनकी औषधि का कोई कार्य नहीं है और उन्हें महाराज पर बहुत ही क्रोध आया किंतु उन्होंने अपना क्रोध न दिखा कर महाराज को यह कह दिया कि जो आज्ञा महाराज और मन में प्रतिशोध की भावना लिए हुए राजसभा से चले गए)
वर्तमान समय
राजकुमार उस मुखावरण धारण किए हुए व्यक्ति के सामने जाते है और उसे अपना मुखावर हटाने के लिए कहते हैं जैसे वह आदमी अपने मुख से मुखावर हटाता है तो राजकुमार उससे कहते हैं कि हमें तुम्हें देखकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि हमें ज्ञात था कि तुम ही हो सकते हो।
वैद्य: हंसते हुए) हां राजकुमार, उस दिन हमें बहुत ही अपमान का घूंट पीना पडा था। इसलिए हम उस अपमान के प्रतिशोध में चाहते थे कि इस राज्य की सेना का मनोबल कम हो जाए तो इसलिए हमने उस औषधि का आपके राजसी हाथियों पर प्रयोग किया। क्यों! बनावटी चेहरा बनाते हुए) हमने अच्छा किया ना राजकुमार?
राजकुमार: तुमने बहुत ही अनुचित किया एक वैद्य बहुत ही शुद्ध हृदय के व्यक्ति होते हैं वह सदैव दूसरों की सहायता करते हैं पर तुमने तो उन असहाय हाथियों पर अत्याचार किया है। तुम्हें कल सभा में दंड दिया जाएगा और इसके जिम्मेदार तुम ही होंगे।
राजकुमार( सैनिकों को आदेश देते हुए) बंदी बना लो इन दोनों को।
अब रात्रि तीसरा पहर शुरू हो चुका है
फिर राजकुमार राजमहल में जाते हैं और उन दोनों को कारावास में बंद करने का आदेश देते हैं।
प्रातः काल में
राज सभा लगती है और राज सभा में सभी उपस्थित थे तभी दो अपराधी राज सभा मे लाए जाते हे।
महाराज( उन दोनो को देख ते हुए) पूछते हैं कि दोनों यहां किसलिए लाए गए हैं?
राजकुमार विक्रमादित्य: हम बताते हैं
महाराज आपको ज्ञात ही होगा कि इनमें से एक वही वैद्य है जो करीब बीस दिन पहले राज सभा में आया था। और इसी ने राजसी हाथियों पर औषधि का परीक्षण किया है, जिसके कारण हाथी बीमार हो चुके हैं और इसके माध्यम से यह हमारी सेना का मनोबल कम करना चाहता था।
महाराजा: क्रोधित होकर) हम तुम दोनों को आजीवन कारावास का दण्ड सुनाते हैं क्योंकि तुमने हमारी सेना का मनोबल कम करने का दुस्साहस किया है।
फिर वह सैनिकों से कहते हैं कि ले जाओ इन दोनों को हमारी आंखों के सामने से और कारावास में बंद कर दो।
कुछ समय बाद कुछ सैनिक एक और अपराधी को पकड कर लाते हैं और महाराज के सामने प्रस्तुत करते हैं
राजकुमार विक्रमादित्य उस व्यक्ति को संकेत करते हुए कहते हैं कि- महाराज यह वही व्यक्ति है जो हमारे हाथियों के लिए प्रातः सेठ रतन के यहां से गन्ने लेकर आता है और यह भी इस अपराध में उनका साथी है।
महाराज उस व्यक्ति को घूरते हुए- तुमने यह जानते हुए की इस कार्य का परिणाम बहुत ही भयानक हो सकता है तब भी तुमने किसी को सूचित नहीं किया। हम तुम्हें पाँच वर्ष कारावास का दण्ड देते हैं
कुछ और दैनिक विषय पर विचार विमर्ष करके सभा समाप्त हो जाती है।
जोधाणा
स्वयंवर की तैयारियां अपने चरम पर है और राजकुमारी अपने बडे भाई सा सूर्यभान का इंतजार कर रही थी तभी उनकी सखी और मुख्य सेविका मयूरी आती है( आनंदित होकर) कहती है की- राजकुमारी आपके बडे भाईसा आ चुके हैं वह महाराज के कक्ष में है।
यह सुनना था कि राजकुमारी महाराज के कक्ष की ओर दौडी चली जाती हैं।
महाराज का कक्ष
राजा सूर्यभान( वह अब सुजानगढ के राजा हैं महाराज ने उन्हें पाँच वर्ष पूर्व यह राज्य सोपा था और उन्हें उस राज्य का राजा घोषित कर दिया था यह राज्य जोधाणा के दक्षिण में स्थित है)
राजा सूर्यभान महाराज और महारानियो के चरण छूते हैं उनसे आशीर्वाद लेते हैं और उनकी धर्मपत्नी अहिल्या भी( मंदसौर की राजकुमारी है जो की बहुत ही विन्रम स्वभाव की है) महाराज और महारानियो के चरण छूती है और कुंवर परीक्षित( राजा सूर्यभान और रानी अहिल्या के पुत्र हैं थोडे नटखट है और अभी केवल तीन वर्ष के हैं) से भी महाराज और महारानी से आशीर्वाद लेने के लिए कहती है।
तभी राजकुमारी आती है और अपने बडे भाई सा के चरण छूती है और फिर अपनी भाभी सा के गले मिलती है और छोटे कुंवर को अपने गोद में उठा लेती है।
उसी समय राजकुमार चंद्रभान वहां आते हैं और अपने बडे भाई सा के गले लगते हैं भाभीसा की चरण छूते है और छोटे कुंवर को अपने पास लेने की कोशिश करते हैं।
राजकुमार चंद्रभान: जीजी सा आप हमें कुंवर परीक्षित को दीजिए।
राजकुमारी: नहीं हम नहीं देंगे पहले हम आए थे तो हमें ही इन्हें लेंगे।
और दोनों इसी बात पर झगडने लग जाते हैं।
महाराज: आप दोनों शांत हो जाइए आपको पता नहीं कि आपके भाई सा और भाभीसा यात्रा करके आए हैं थके आए हैं उन्हें विश्राम करने दीजिए।
कुंवर परीक्षित- नहीं हमें बुआसा के साथ खेलना है।
राजकुमारी: राजकुमार चंद्रभान को चिडाते हुए) की- चंद्रभान अब तो कुंवर परीक्षित भी हमारे साथ खेलना चाहते है। और वह यह कह कर महाराज के कक्ष बाहर निकल जाती है।
यह सुनने के बाद राजकुमार चंद्रभान अपना मुंह फुला लेते हैं और उनके पीछे चल देते हैं।
महाराज राजा सूर्यभान से कहते हैं कि- अब आप दोनों विश्राम कर लीजिए। बाकी की बातें हम कल करेंगे।
राजा सूर्यवान- जैसा आप कहे बाबा सा।
इंद्रप्रस्थ
महाराज के कक्ष में
राजकुमार विक्रमादित्य: महाराज के पास जाते हैं) ज्येष्ट पिताश्री हम अब कल सुबह जोधाणा के लिए प्रस्थान करेंगे कृपया करके हमें आज्ञा दीजिए।
महाराज: आपके पिताश्री आपके ननिहाल पक्ष से आ चुके हैं और आप खुशी- खुशी उनसे मिल लीजिए और फिर जोधाणा के लिए प्रस्थान कीजिये।
राजकुमार- ठीक है ज्येष्ठ पिताश्री अब हम चलते हैं।
फिर वह महराज से आज्ञा लेते हैं और अपने पिताश्री के पास चले जाते हैं।
पिताश्री( महेंद्र जी) के कक्ष में
वह अपने पिता श्री के चरण छूते हैं और उनसे पूछते हैं कि मामा श्री और मामी श्री वहाँ सब कुशल मंगल तो है?
पिताश्री( महेंद्र सिंह) हां सब कुशल मंगल है आप कैसे हैं?
राजकुमार: हम ठीक हैं पिता श्री।
पिताश्री: हमें पता चला है कि आप कहीं जाने वाले हैं?
विक्रम- हां पिताश्री हम कल सुबह ही जोधाणा के लिए प्रस्थान करेंगे वहां की राजकुमारी का स्वयंवर रचाया जा रहा है जिसमें हमें भी आमंत्रित किया है और महाराज ने हमें जाने का आदेश दिया है।
महेंद्र सिंह: ठीक है पुत्र यह तो बहुत ही अच्छी बात है हम जानते हैं कि आप भी स्वयंवर में अवश्य जीतेंगे।
राजकुमार: पिताश्री आप लंबी यात्रा करके यहां पर आए हैं कृपया करके थोडा विश्राम कर लीजिए।
महेंद्र सिंह- हां आपको भी कल सुबह जल्दी ही प्रस्थान करना है तो आप भी अपने कक्ष में जाकर विश्राम कर लीजिए।
फिर राजकुमार अपने पिता श्री से आगे लेते हैं और अपने कक्ष में चले जाते हैं)
जोधाणा
राजकुमारी कुंवर परीक्षित से बातें कर रही है कि आपकी यात्रा कैसी रही कर कुंवर परीक्षित?
कुंवर परीक्षित( मासूमियत से) बुआ सा हमारी यात्रा सुखद रही आप बताइए आप कैसी हैं हमें आपकी बहुत याद आती है।
राजकुमारी: याद तो हमें भी आपकी आती है।
तबी राजकुमार चंद्रबान बीच में ही बोल पडते हैं
राजकुमार: कभी हमें भी याद कर लिया कीजिए।
कुंवर परीक्षित( थोडा नखरे दिखाते हुए) हमें आपकी याद नहीं आती है।
राजकुमार चंद्रभान( नकली गुस्सा दिखाते हुए) तो अच्छा देख लीजिए कुछ दिनों मे जीजीसा जाने वाली फिर आपको हम हीं मिलेंगे यहां पर।
कुंवर परीक्षित( बनावटी हंसी हंसते हुए) अरे नहीं नहीं हम तो ऐसे ही कह रहें थे हमे आपकी भी याद आती है।
चंद्रभान- यह हुई ना बात"
सारे ऐसी हंसी हंसते हंसते मुस्कुराते बातें करते हैं।
इंद्रप्रस्थ
राजकुमार विक्रमादित्य के कक्ष में
राजकुमार अपनी माता श्री की चित्र के समक्ष खडे हैं
उनकी माता श्री जब वह दस वर्ष के थे तभी इस संसार से विदा ले चुकी थी इसलिए राजकुमार उन्हें याद कर रहे हैं)
राजकुमार: माँ हमें आपकी बहुत याद आती है, कल सुबह हम जोधाणा के लिए प्रस्थान करने वाले हैं वहां पर राजकुमारी का स्वयंवर रचाया जा रहा है। अगर आज आप होती तो बहुत ही खुश होती, ऐसा कहते हुए वे जाकर अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं और उनके यादों में खो जाते हैं उनको पता ही नहीं चलता कब उनकी आंख लग जाती है।
प्रातः काल
रात्रि का चौथा पहर खत्म होने को है और राजकुमार विक्रमादित्य और उपसेनापति अमर सिंह जोधाणा के लिए प्रस्थान करते हैं।
तो चलिए देखते हैं राजकुमार की जोधाणा का यात्रा कैसी रहेगी? क्या राजकुमार विक्रमादित्य स्वयंवर जीत पाएगें? जानने के लिए पढ़ते रहिए इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य हाथियों के बीमार करने वालों को ढूंढ लेते हैं, फिर उन्हें महाराज से भी दंड दिलवा चुके हैं। और हमें पता चलता है कि विक्रमादित्य की माता श्री इस दुनिया में नहीं हैं, जिस समय उनकी माता श्री उन्हें छोडकर गई थी तब वह केवल दस वर्ष के थे। फिर अगले दिन रात्रि के चौथे पहर में विक्रमादित्य, अमर सिंह के साथ जोधाणा के लिए प्रस्थान कर लेते हैं।
जोधाणा
राजकुमारी चंद्राक्षी प्रातः जल्दी उठ जाती है फिर तैयार हो जाती है और वह नन्हे कर परीक्षित( रात में कुंवर परीक्षित ने हठ की थी कि वह अपनी बुआ सा के पास ही सोएंगे इसलिए राजकुमारी ने अपनी भाभीसा को बता दिया था की कुंवर परीक्षित उनके साथ ही सो रहे हैं।
वह कवर परीक्षित को उठाती है और उन्हें भी तैयार करती है। फिर अपनी सखियों के साथ मंदिर चली जाती है।
मंदिर में
राजकुमारी अपने सखियों के साथ मंदिर के आंगन में जाती है और माता रानी की मूर्ति को देखकर मन में प्रार्थना करती है कि है माता रानी मुझे ऐसा वीर वर मिले जो की बहुत ही दयालु और शील हो।
फिर वह अपनी सखियों के साथ माता रानी की परिक्रमा लगाती है और राजमहल में लौट आती हैं।
राज महल में लौटने के बाद वह सारे राज्य के ब्राह्मणों को खाना परोसती है इस समय कुंवर परीक्षित उनकी सहायता करते हैं।
उन्हें ऐसा करते देखा राजकुमार चंद्रभान दूर से ही मुस्कुरा रहे हैं और विचार करते हैं कि हम अभी इन्हें मजा चखा ते
हैं
राजकुमार चंद्रभान जी वहां पहुंच जाते हैं जहां पर खाना परोसा जा रहा था)
राजकुमार चंद्रभान: कुंवर परीक्षित आप जरा ब्राह्मणों को दाल तो परोसीए है?
फिर कुंवर परीक्षित उनके पास आते हैं और दाल के बर्तन को देखते हैं दाल का बर्तन उनके क्षमता मुकाबले बहुत बडा था।
तभी महाराज के आने के ध्वनी सुनाई देती है
सावधान महाराज पधार रहे हैं!
महाराज: ब्राह्मणों की तरफ देखते हुए) आप सब अच्छे से भोजन कीजिए, कुछ कमी रह गई हो तो बताइए और राजकुमारी को आशीर्वाद दीजिए कि वह जैसा वर चाहती है स्वयंवर में उन्हें वैसा वर मिले।
सभी ब्राह्मण राजकुमारी को आशीर्वाद देते हैं)
तभी कुंवर परीक्षित को शरारत सूझती है।
कवर परीक्षित: मासूम बनते हुए) काका सा आप जरा दाल का बर्तन तो उठाइए हमें ब्राह्मणों को दाल परोसनी हैं।
राजकुमार चंद्रभान: सोचते हुए)
महाराज को भी अभी आना था हमने हमारे पैर पर ही कुल्हाडी मार दी है हमने सोचा था कि यह बर्तन कुंवर परीक्षित नहीं उठा पाएंगे और हमें उनका मजाक उडाने का अवसर मिल जाएगा और कुंवर परीक्षित देखने में तो बडे छोटे हैं पर बहुत ही चालाक हैं।
राजकुमार चंद्रभान( नकली हंसी हंसते हुए) कुंवर परीक्षित से कहते हैं कि- हां हां क्यों नहीं।
राजकुमारी और कुंवर परीक्षित यह सब देखते हुए मंद मंद मुस्कुराते हैं।
राजकुमार की यात्रा
अब दिन का तीसरा प्रहर चल रहा है
राजकुमार विक्रमादित्य: अमर हमें लगता है कि हमें अब विश्राम कर लेना चाहिए क्योंकि अब घोडे भी थक चुके हैं।
अमर सिंह: हां राजकुमार हमें भी ऐसा ही लगता है।
फिर राजकुमार और अमर सिंह अपने घोडे को पास के सरोवर से जल पिलाते हैं और खुद भी जल ग्रहण करते हैं फिर वह अपने घोडे को पेड के तने के पास बांधकर भोजन करने बैठ जाते हैं( जब राजकुमार और अमर सिंह इंद्रप्रस्थ से प्रस्थान करते है तो तब वह अपने साथ एक रथ भी लेकर आए थे जिसमें कुछ बिस्तर, तंबू और खाने पीने की चीजे थी।
राजकुमार विक्रमादित्य: अमर हमें बताइए कि जो दूत हमने पाटलिपुत्र में लगा रहे रखे हैं उनका कोई संदेश आया।
अमर सिंह- राजकुमार अभी तो सब कुछ ठीक ही है पाटलिपुत्र में हमारे खिलाफ कोई षड्यंत्र नहीं रचाया जा रहा। पाटलिपुत्र और इंद्रप्रस्थ की पुराने दुश्मनी है वहां के राजा अश्वत सिंह है और यह दुश्मनी कई वर्षों से ऐसे ही निभाई जा रही है)
अमर सिंह बात को बदलते हुए और राजकुमार चिढाते हुए- वैसे राजकुमार हमने सुना है की राजकुमारी चंद्राक्षी अत्यंत सुंदर और गुणी कन्या हैं।
राजकुमार- तो चलिए फिर हम भी देख लेंगे कि आपने जो सुना है वह सत्य है या नहीं।
अमर सिंह सोचते हुए आप भले ही अपने विवाह के बारे में चिंतित ना हो पर हमें आपके विवाह की बहुत ही चिंता है हम आपका विवाह राजकुमारी चंद्राक्षी से करवा कर ही रहेंगे यह हमारा प्रण है।
अमरसिंह: राजकुमार हम सोच रहे थे कि हमें जाने में चार दिन लगेंगे तो फिर हम इतने शीघ्र ही क्यों जा रहे हैं?
राजकुमार हमने हमारे पिताश्री से सुना है कि जोधाणा एक बहुत ही सुंदर राज्य है और वहां की वेशभूषा और खानपान भी हमारे राज्य से बहुत ही अलग है तो हम इसी बहाने जोधाणा की सेर करना चाहते हैं।
अमर सिंह( सोचते हुए) आप सेर कीजिएग और हम राजकुमारी और आपको मिलाने का एक भी मौका नहीं छोडेंगे।
राजकुमार: अब हमें लगता है कि हमें चलना चाहिए।
अमर सिंह- ठीक है राजकुमार।
रात में विश्राम करके फिर अगले दिन प्रस्थान करते हैं फिर रात को विश्राम करते हैं फिर प्रस्थान करते हैं ऐसे करते चार दिन हो जाते हैं और राजकुमार और अमर सिंह जोधाणा पहुंच जाते हैं।
इंद्रप्रस्थ
महाराज अपने छोटे भाई महेंद्र सिंह के कक्ष में जाते हैं
महेंद्र सिंह उन्हें देखते हुए- भ्राता श्री आपने क्यों कष्ट किया हमें ही बुला लिया होता।
महाराज खुश होते हुए- ऐसी कोई बात नहीं हम आए और आप एक ही बात है वैसे हम आपसे राजकुमार विक्रमादित्य के विषय में बात करने आए हैं।
महेंद्र सिंह- जी कहिए भ्राता श्री।
महाराज- हम जाते हैं कि अब राजकुमार विक्रमादित्य का विवाह हो जाए क्योंकि वह अब विवाह की योग्य हो चुके हैं। और हमें लगता है कि राजकुमार चंद्राक्षी से बेहतर जीवनसाथी उन्हें कोई नहीं मिल सकता।
महेंद्र सिंह- हम भी यही चाहते हैं भ्राता श्री।
महाराज: अब तो बस हमें जोधाणा से शुभ समाचार की प्रतीक्षा रहेगी।
क्या अमर सिंह अपना प्रण पूरा कर पाएंगे? क्या क्या देखने को मिलेगा राजकुमार विक्रमादित्य को जोधाणा में? जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवल इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य और अमर सिंह जोधाणा के लिए प्रस्थान कर चुके हैं, वही हमें पता लगता हे कि पाटलिपुत्र कि इंद्रप्रस्थ से कई पीढियों से दुश्मनी है। महाराज अमरेंद्र सिंह और महेंद्र सिंह जी विक्रमादित्य के विवाह के विषय के बारे में चर्चा कर रहे हे, वही अमर विक्रमादित्य और चंद्राक्षी के विवाह का परण ले चुके हैं, जोधाणा में चंद्राक्षी मंदिर में पूजा करती हे और ब्राह्मणों को भोजन करवाती हैं, चंद्रभान कुंवर परीक्षित को मजा चखा ना चाहते थे, चार दिन बाद यात्रा करने के बाद विक्रमादित्य और अमर सिंह जोधाणा पहुंचते हैं।
जोधाणा जैसे ही राजकुमार विक्रमादित्य और अमर सिंह जोधाणा पहुंचते हैं तो वहां जोधाणा के सेनापति उनका भव्य स्वागत करते हैं और उन्हें एक महल में लेकर जाते हैं( यहाँ विशेष तौर पर स्वयंवर में आए हुए राजकुमारों के ठहरने की व्यवस्था की गयी है) फिर राजकुमार, अमर सिंह और उनके साथी सभी भोजन ग्रहण करते हैं। अलग तरह का भजन देखकर राजकुमार और अमर सिंह की भूख और बढ जाती है। फिर भोजन कर वे थोडी देर विश्राम करते हैं।
राजमहल राजकुमारी चंद्राक्षी- मधु क्यों ना हम एक अश्वारोहण( घुडसवारी) की प्रतियोगिता करें वैसे भी हमें अश्वारोहण किए हुए बहुत समय हो चुका हैं। मधुबाला- लेकिन राजकुमारी हमें इस समय राजमहल से बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा। राजकुमारी- आप उसकी चिंता ना करें हमें हमारे पास इसके लिए योजना है। मधुमला- कैसी योजना राज कुमारी? राजकुमारी- हम सब पुरुष के वेश में जाएंगे ताकि हमें कोई पहचान नहीं पाए। मधुबाला खुश होते हुए- यह ठीक रहेगा राजकुमारी। फिर राजकुमारी, मधुमाला, उनकी साखियां और कुछ दासियां पुरुष के वेश धरती हैं, राजकुमारी अपने मुख पर मुखवार लगा लेती है ताकि उन्हें कोई गलती से भी पहचान ना पाए और घोडे पर सवार होकर राज महल से बाहर जंगल की ओर निकल जाती हैं।
जंगल राजकुमारी अपनी सखियों से कहती है कि- प्रतियोगिता यह है कि हमें जंगल के बीचो- बीच जो वन देवी का मंदिर है वहां पर एक पुष्प अर्पित करके उस पुष्प को यहां लाना होगा। फिर राजकुमारी उनकी सखियां घोडे के साथ जंगल की ओर दौड लगा देती है।
राजकुमारों के महल मेंअमर सिंह: राजकुमार अब हमें लगता है कि हमें अब जोधाणा का पहला भ्रमण कर लेना चाहिए। विक्रमादित्य: अमर आप ठीक कर रहे हैं।
राजकुमार और अमर सिंह जोधाणा के बाजार में जाते हैं वहां का दृश्य अद्भुत था सभी वासियों ने अलग तरीके की वेशभूषा पहन रही थी और वहां की दुकानों पर ऐसी वस्तुएं थी जो इंद्रप्रस्थ में राजकुमार और अमर सिंह ने कभी नहीं देखी थी। सभी राजकुमार और अमर सिंह के आगे जाने पर कुछ व्यक्तियों की आवाज उनके कानों मे पडती है। चार- पांच व्यक्ति आपस में कह रहे थे कि कुछ जंगली भैंसे बडा आतंक मचा रहे हैं और खेतों का विनाश कर रहे हैं। हमें शीघ्र ही महाराज के पास जाना होगा उनमें से एक व्यक्ति कहता है कि अभी मैंने उनको जंगल की ओर जाते देखा है। इतना सुना ही था राजकुमार और अमर सिंह के चेहरे पर गंभीरता और प्रसन्नता के मिले- जुले भाव आ जाते हैं। अमर सिंह: राजकुमार हमारे आज का दिन के मनोरंजन का प्रबंध हो गया, हो जाए एक प्रतियोगिता देखते हैं, हम दोनों में से कौन अधिक भैंसों को परास्त करता है। विक्रमादित्य( मुस्कुराते हुए) ठीक है अमर, चलो चलते हैं। फिर विक्रमादित्य और अमर सिंह अपने सैनिकों के साथ जंगल की तरफ चल देते हैं। जंगल में राजकुमारी अपनी सखियों में सबसे आगे है वह वनदेवी के मंदिर पहुंचती है और मां वनदेवी का आशीर्वाद लेती है और वहां पास के पेड से एक पुष्प तोडकर उन्हें चढाती है। और उसे पुष्प को लेकर वापस घोडे पर सवार होकर वापस लौट जाती हैं। परंतु जब वह वापस लौट रही थी तब उनके घोडे के पैर में एक शूल घुस जाता हैं, जिसकी वजह से घोडे के पैर में घाव हो जाता है और घोडा बहुत तेज हीन हिना ने लगता है। घोडे की हिन हिनाने की वजह से जंगली भैंसे सतर्क हो जाते हैं और, राजकुमारी के ऊपर आक्रमण कर देते हैं। घोडा जंगली भैंसों आता देख तुरंत दौड लगा देता है की जिसकी वजह से राजकुमारी घोडे से उतर ही नहीं पाती और घोडे की घाव को भी नहीं देख पाती। उन तीन जंगली भैंसो में से एक भैंसा अत्यंत क्रोध में था वह राजकुमारी के ऊपर तुरंत ही कूद जाता है। किसी तरह से राजकुमारी अपनी मयान में से तलवार निकालती है और जंगली भैंसे के ऊपर घातक प्रहार करती है। जिसके कारण जंगली भैंसा गिर जाता है और करहाने लगता है। उनमें से अभी भी दो भैंसे राजकुमारी का पीछा कर रहे थे फिर एक भैंसा राजकुमारी के ऊपर छलांग मारता है पर राजकुमारी सम्भलती उससे पहले ही एक तीर राजकुमारी के पीछे से आकर जंगली भैंसे की श्वास नली में लग जाता है। जिस कारण जंगली भैंसा उसी समय देह त्याग देता है। लेकिन जब तीर चल रहा था तब राजकुमारी का मुहावर और पगडी तीर के छूने की वजह घिर जाते हे। राजकुमारी के केश बिखर जाते हैं। राजकुमारी को जब यह आभास होता है कि किसने तीर चलकर भैंसे को मार दिया है तो वह इतना सटीक निशाना लगाने वाले को अपने पीछे देखती हैं। जैसे ही राजकुमार राजकुमारी को देखते हैं तो उनकी चंद्रमा जैसी चमकती आंखों में खो जाते हैं वही राजकुमारी भी राजकुमार की काली गहरी आंखों में खो जाती है। अमर सिंह तीसरे भैंसे को भी परास्त कर देते हैं और वह जैसे ही राजकुमार कुछ कहने वाले होते हैं तो वह रूक जाते हैं। क्योंकि राजकुमार और राजकुमारी अपने ख्यालों में खोए हुए थे और एक दूसरे को लगातार देखे जा रहे थे। अमर सिंह सोचते है की अभी बोलने का सही समय नहीं है।
चलिए देखते हैं क्या विक्रमादित्य चंद्राक्षी की पहचान का भेद जान पाएंगे? क्या चंद्राक्षी राजकुमार विक्रमादित्य को पहचान पाएगी? क्या राजकुमारी के बिना बताए आने से राजकुमारी को सजा मिलेगी? जानने के लिए सुनते रहिए हमारी नोवेल" विक्रमसंहिता" pocket FM पर।
चलिए देखते हैं क्या विक्रमादित्य चंद्राक्षी की पहचान का भेद जान पाएंगे? क्या चंद्राक्षी राजकुमार विक्रमादित्य को पहचान पाएगी? क्या राजकुमारी के बिना बताए आने से राजकुमारी को सजा मिलेगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " "स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने ही किया है।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य और अमर सिंह जोधाणा पहुंच चुके हैं और उन्हें वहां पता चलता है कि जंगली भैंसो ने गांव वालों को परेशान कर रखा है। तो वे दोनों उन जंगली भैंसो को सबक सिखाने जंगल की ओर निकल जाते हैं। वही चंद्राक्षी, अश्वारोहण कि प्रतियोगिता के लिए अपनी सखियों के साथ जंगल में आती, तभी अचानक चंद्राक्षी के ऊपर जंगली भैंसे हमला कर देते हैं, और चंद्राक्षी इस हालत में नहीं थी कि वह सारे जंगली भैंसो से अपनी सुरक्षा कर सके, तभी विक्रमादित्य सटीक निशाना लगाकर उस जंगली भैंसे को मृत्यु तक पहुंचा देते हैं जो चंद्राक्षी को घायल करने ही वाला था।
अब आगे
जंगल
कुछ समय बादअमर सिंह हल्का सा खांसते हैं जिसकी वजह से राजकुमार राजकुमारी अपने विचारों से बाहर आते हैं।
राजकुमार विक्रमादित्य: चंद्राक्षी को देखते हुए) देवी आप ठीक तो है ना।
राजकुमारी: विक्रमादित्य को देखते हुए) जी हम ठीक हैं और आपका धन्यवाद।
इतने में ही राजकुमारी की सखियां वहां पर आ जाती है और वह कहती है की- राजकुमारी हमें अब चलना चाहिए क्योंकि अब तक महल में किसी ना किसी को पता चल गया होगा कि आप वहां पर नहीं है।
फिर मधु, पास में जंगली भैंसो को मृत देखकर- राजकुमारी से कहती है कि आप ठीक तो है राजकुमारी?
राजकुमारी: हम ठीक है मधु।
मधु( राजकुमार और अमर सिंह की तरफ देखते हुए) यह दोनों कौन है?
अमर सिंह( राजकुमार की और संकेत करते हुए) यह इंद्रप्रस्थ के राजकुमार विक्रमादित्य है और हम इंद्रप्रस्थ के उप सेनापति और इनके परम मित्र अमर सिंह है।
अमर सिंह( राजकुमारी की ओर देखते हुए) मधु से कहते हैं- वैसे देवी ये कौन हे और आप कौन हैं?
मधु- यह जोधाणा की राजकुमारी चंद्राक्षी है और हम इनकी सखी मधुमाला हैं। फिर राजकुमारी अपनी सखियों के साथ राजमहल चली जाती हे।
अमर सिंह कुछ सोचने की मुद्रा में है राजकुमार: क्या हुआ अमर क्या सोच रहे हो।
राजकुमार हम सोच रहे है की राजकुमारी चंद्राक्षी को हम राजकुमारी बुलाए या फिर भाभी श्री। राजकुमार( मुस्कुराते हुए) आप भी कैसी- कैसी बातें करते हैं, अमर।
अमर सोचते हुए- आप देखिएगा हमारी भाभी श्री तो राजकुमारी चंद्राक्षी ही बनेगी।
राजमहल
राजकुमारी और उनकी सखियां अपने वस्त्र बदलती हैं फिर राजकुमारी के कक्ष में एक सेविका आती है और वह कहती कि- राजकुमारी, महाराज ने आपको बुलाया है।
राजकुमारी महाराज के कक्ष में जाती है। राजकुमारी- बाबा सा आपने हमें बुलाया?
महाराज: हाँ, राजकुमारी हमने आपको बुलाया है, हम आपसे कहना चाहते हैं कि अब आपके स्वयंवर में केवल एक सप्ताह शेष रह गया है। इसलिए आप कहीं महल के बाहर ना जाए, भले ही आप मंदिर के दर्शन के लिए जा सकती हैं पर मंदिर और महल के अलावा आप कहीं नहीं जाएगी। आपके ननिहाल से आपके मामासा और मामीसा भी आ चुके हैं आप उनसे जाकर मिल ले।
राजकुमारी: जी बाबासा। फिर राजकुमारी अपने मामासा और मामीसा के कक्ष में जाकर उन्हें प्रणाम करती है, उनसे आशीर्वाद लेती है और उनके हाल- चाल पूछती हैं।
राजकुमारों का महल
फिर राजकुमार और अमर सिंह जंगल से वापस महल लौट आते हैं। अमर सिंह अपने एक दूत को राजकुमारी के पीछे लगा देते हैं ताकि वह राजकुमार और राजकुमारी को वापस मिलवा सके।
विक्रमादित्य: अमर, हम सोच रहे थे की अचानक जंगली भैंसे इतना आतंक कैसे मचा सकते हैं, हमें लगता है कि जरूर कोई चीज उन्हें परेशान कर रही है, क्योंकि कोई पशु अकारण किसी के ऊपर आक्रमण नहीं करते और किसी की हानि नहीं करते।
अमर सिंह सोचते हुए- यह देखो इन्हें अभी भी इनको उन जंगली भैंसो की पडी है, इन्हें राजकुमारी को देखने के बाद भी उनका विचार नहीं आ रहा। यह अभी भी अपना वहीं कार्यभार संभाल रहे हैं।
अमर सिंह( अपने भाव को छुपाते हुए) हां राजकुमार हम अभी अपने सैनिकों को इस कारण का पता लगाने भेजते हैं। इतने में भी वह दूत( जिसे अमर सिंह ने राजकुमारी का पीछा करने के लिए भेजा था) वह दूर से ही अमर सिंह को आने का संकेत करता है अमर सिंह तुरंत ही उसका संकेत समझ जाते हैं और राजकुमार को विश्राम के लिए कह कर बाहर निकल जाते हैं।
दूत: उप सेनापति हमें पता चला है की राजकुमारी हर बुधवार को जोधाणा की सबसे प्रमुख और प्राचीन मंदिर में प्रातः दर्शन के लिए जाती है और कल भी वह मंदिर जाएंगी।
अमर सिंह खुश होते हुए- यह बहुत अच्छा काम किया तुमने हम तुम्हें इंद्रप्रस्थ पहुंचते ही पुरस्कृत करेंगे।
राजमहल
श्याम को राजकुमारी अपने कक्ष में बैठी हुई है राजकुमारी: अंततः हम आपसे मिल ही गए राजकुमार विक्रमादित्य वास्तव में आप सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है क्योंकि इतनी आसानी से इतना सटीक निशाना हर कोई नहीं लगा सकता। तभी उनकी सहेली मधुमाला वहां आती है।
मधुमाला: राजकुमारी आप किसके विचारों में खोई हुई हैं कहीं उनके तो नहीं जो जंगल में मिले थे।
राजकुमारी झेपते हुए- ऐसा कुछ नहीं है मधु।
मधु- हम सब जानते हैं वैसे अब तो आपने राजकुमार को परख लिया ना।
राजकुमारी- हां वे धनुर्विद्या में श्रेष्ठ है पर हम स्वयंवर में उनकी बुद्धि को भी परखेंगे। मधुमाला: राजकुमारी आप देखना स्वयंवर में वही जीतेंगे।
प्रातः काल
राजकुमारी अपनी सखियों के साथ जोधाणा के प्राचीन भोले नाथ के मंदिर में जाती है और वहां पर अपनी वीणा बजाती हैं। उसी समय अमर सिंह भी राजकुमार को इस मंदिर में किसी तरह ले आते हैं।
राजकुमार के कानों पर जैसे ही वीणा की मधुर ध्वनि पडती है तो वह उस ओर देखते हैं जिस ओर से ध्वनी आ रही है थी, फिर उस ओर राजकुमारी को देखते ही मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
राजकुमारी ने सफेद रंग का लहंगा और सफेद रंग की ही ओढनी ओढ रखी है, इन वस्त्रों में सोने के तारों से अद्भुत कलाकृति की गई है इस रूप में चंद्राक्षी साक्षात मां सरस्वती का रूप लग रही हैं।
अमर सिंह यह देखते हुए की उनका काम हो चुका है तो वह कुछ देर के लिए वहां से चले जाते हैं और राजकुमार को अकेला छोड देते हैं।
इसी बीच राजकुमार को भान ही नहीं रहता की कोई उन्हें बहुत देर से घूर रहा है।
कौन है जो राजकुमार को घूर रहा है?
क्या राजकुमार स्वमवर में अपना बुद्धि कौशल दिखा पाएंगे?
जानने के लिए जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " "स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन भी( edit) Divya verma ने।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य और अमर सिंह चंद्राक्षी को उन जंगली भैंसो से बचा लेते हैं, और इस तरह से विक्रमादित्य और चंद्राक्षी की प्रथम भेंट होती है। फिर उनकी दूसरी भेंट जोधाणा के प्राचीन और भव्य मंदिर में होती है। मंदिर में चंद्राक्षी वीणा वादन कर रही है, और विक्रमादित्य उन्हें इस रूप में देखते ही रह जाते है।
अब आगे
इतनी देर से कुंवर परीक्षित राजकुमार को घूर रहे थे।
कुंवर परीक्षित( थोडा गुस्सा दिखाते हुएं) आप हमारी बुआसा को क्यों घूर रहे हैं?
पर राजकुमार तो किसी और ही विचार में खोए हुए थे। उन्हें कुंवर परीक्षित की आवाज ही नहीं सुनाई देती।
कुंवर परीक्षित ने उनका हाथ खींच लिया तब जाकर राजकुमार को होश आता है।
कुंवर परीक्षित दोबारा( थोडा गुस्सा दिखाते हुएं) आप हमारी बुआसा को क्यों घूर रहे हैं?
राजकुमार से कुछ जवाब देते ही नहीं बना।
राजकुमार: वो. हम. हम. वो!
तभी अमर सिंह वापस लौट आते हैं और तब वह देखते हैं कि एक छोटा बालक राजकुमार से बाते कर रहा है वह सोचते हैं कि अब तो बालक भी हमारी योजना के दुश्मन बने हुए हैं।
राजकुमार के पास जाते हैं और छोटे बालक से कहते हैं कि- आप कौन हैं और आपका नाम क्या है?
कुंवर परीक्षित- हम आपको क्यों बताएं कि हमारा नाम कुंवर परीक्षित है।
राजकुमार यह सुनकर सोचते हैं कि यह बालक थोडा बुद्धिमान भी है और थोडा नादान भी।
कुंवर परीक्षित राजकुमार से- अभी तक आपने बताया नहीं कि आप हमारी बुआसा को क्यों घूर रहे थे?
अमर सिंह सुनते हैं कि राजकुमारी जी इस बालक की बुआसा हैं तो वह उनसे कुछ राजकुमारी के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।
अमर- कुंवर परीक्षित, आपकी बुआसा को भोजन मे क्या प्रिय है?
कुंवर परिषद: हम क्यों बताएं कि हमारी बुआसा को भोजन में क्या प्रिय है? आप होते कौन है यह पूछने वाले?
अमर सिंह सोचते हुए अच्छा बच्चू हम से चालाकी अभी हम बताते हैं कि हम कौन हैं।
अमर सिंह( कुंवर का ध्यान भटकाने के लिए) अभी हम रास्ते में देखकर आ रहे हैं कि बगीचे में आम बहुत लगे हुए हैं और अब तो कुछ ही शेष बचे है क्योंकि बहुत से बालक वहां पर पहले से ही आम खा रहे हैं। कुंवर परीक्षित आप हमारे साथ चलना चाहेंगे?
कुंवर परीक्षित( मुंह में पानी लाते हुए) क्या सच में आप हमें लेकर जाएंगे?
अमर सिंह: हां हां क्यों नहीं अगर आप चाहेंगे तो हम आपको लेकर जाएंगे।
फिर कुंवर परीक्षित अमर सिंह के साथ चले जाते हैं
परंतु जब राजकुमार उनके जाने के बाद राजकुमारी को वापस देखते हैं तो राजकुमारी उन्हें कहीं दिखाई नहीं देती उसी समय कोई उन्हें पीछे से पुकारता है।
सुनिए
वह पीछे मुडते तो देखते हैं की राजकुमारी उनके पीछे ही खडी है।
चंद्राक्षी- प्रसाद।
विक्रमादित्य प्रसाद लेने के लिए हाथ आगे करते हुए कहते हैं- वैसे आप वीणा बहुत ही मधुर बजाती है।
चंद्राक्षी( थोडा शरमाते हुए) हाँ, हमने शिक्षा ग्रहण करते समय वीणा वादन का अध्ययन भी किया था और अब यह हमारे प्रिय कार्यों में से एक बन चुका है।
राजकुमार( सोच ते हुए) अभी हमें आगे कितने रूप देखने बाकी है राजकुमारी।
राजकुमारी सोचते हुए आप स्वयंवर में जीत जाए हमारी यही कामना है।
राजकुमारी और राजकुमार एक दूसरे को देखते हुए उन्हें ऐसा देखते देखते आधा घंटा बीत जाता है, फिर राजकुमारी की सखियों के आने की ध्वनि से उनका ध्यान भंग होता है।
राजकुमारी की सखियाँ आती है और उनसे कहती है की- राजकुमारी हमें कुंवर परीक्षित कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
उसी समय अमर सिंह कुंवर परीक्षित को लेकर आते हैं।
कुंवर परीक्षित( राजकुमार को झुकने के लिए बोलते हैं) उनके कान में कहते हैं कि- आप ही हमारे फूफासा बनेंगे हम आपको इसमें पूरा सहयोग देंगे।
राजकुमार( आश्चर्य से सोचते हैं) कि- इन्हें क्या हो गया इन्होंने अपना रंग बडा जल्दी बदल लिया। वह अमर सिंह की तरफ देखते हैं अमर उन्हें नकली हंसी दिखा देते हैं।
फिर राजकुमारी अपनी सखियों और कुंवर परीक्षित के साथ राजमहल चली जाती है।
राजकुमार: अमर आपने ऐसा क्या कह दिया कुंवर परीक्षित को कि वह हमारे साथ हो गए?
अमर सिंह( नकली हंसी हंसते हुए) नहीं. नहीं हमने तो कुछ ही नहीं किया।
मन में सोचते हुए- हमें लगा ही था की कुंवर परीक्षित केवल रोज आम खाने से ही मानेंगे।
ऐसे ही दिन बीत जाते हैं अब लगभग सभी राज्यों के राजकुमार स्वयंवर के लिए पधार चुके हैं और राजकुमारी मातारानी से ही प्रार्थना करती है कि- हमें वर के रुप में राजकुमार विक्रमादित्य ही मिले।
जब विक्रमादित्य ने राजकुमारी चंद्राक्षी को पहली बार देखा था, तब वे किसी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा जैसी प्रतीत हो रही थीं। उनके लंबे, घुंघराले केश जैसे काली घटाएं धरती पर उतर आई हों। उनका मुखमंडल चंद्रमा की तरह चमकदार और सौम्य था, और उनकी आंखें ऐसी कि जो भी देखे, उसमें डूब जाए। उनकी चाल में गरिमा थी, और वाणी में मिठास। विक्रमादित्य को लगा जैसे समय ठहर गया हो और संसार में केवल वही दो प्राणी शेष रह गए हों – वे और राजकुमारी चंद्राक्षी।
अब राजकुमार विक्रमादित्य दिन- रात उन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं। हर रात जब आकाश के तारे टिमटिमाते हैं, तो उन्हें लगता है कि राजकुमारी चंद्राक्षीकी आंखें उन्हें निहार रही हैं।
उधर, राजकुमारी चंद्राक्षी के मन में भी विक्रमादित्य के प्रति कोमल भाव जाग चुके थे। पहली ही भेंट में वे उनके तेज, विनम्रता और साहस से प्रभावित हो गई थीं। उन्होंने मन ही मन ईश्वर से यही प्रार्थना की थी कि यदि उनका भाव सत्य है, तो विक्रमादित्य ही उनके वर बनें।
किन्तु राजकुमारी का स्वयंवर कोई साधारण आयोजन नहीं था। इस स्वयंवर की शर्तें असाधारण और अत्यंत कठिन थीं। कहा जाता है कि उस परीक्षा को वही पार कर सकता है जिसमें धैर्य की गहराई, बुद्धि की तीव्रता और शौर्य की ऊँचाई हो।
क्या राजकुमारी की मनोकामना पूरी हो पाएगी? क्या राजकुमार विक्रमादित्य स्वयंवर को जीत पाएंगे? क्या होगी स्वयंवर की चुनौती?
जानने के लिए सुनते रहिए हमारी नोवेल" विक्रमसंहिता" केवल पॉकेट नोवल्स पर। विक्रमसंहिता। विक्रमसंहिता।
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य और चंद्राक्षी की दूसरी मुलाकात मंदिर में होती है, और कुंवर परिषत थोडे भाव दिखाने के बाद अब विक्रमादित्य को फूफासा मान चुके हैं।
स्वयंवर का दिन
स्वयंवर में सभी राजकुमारों का बहुत ही भव्य स्वागत किया गया।
स्वयंवर के परिसर में महाराज सिंहासन पर विराजमान है उनके बाई ओर महामंत्री हरदेव सिंह और उनके दाएं ओर सूर्यभान और कुलगुरु विराजमान है।
राजा सूर्यभान के पास ही कुंवर परीक्षित विराजमान है।
पूर्व की ओर स्वयंवर में आए राजकुमार बैठे हुए हैं और पश्चिम की ओर मुख्य मेहमान( महाराज महारानी की ओर से) दक्षिण की ओर कुछ नगर वासी भी उपस्थित हैं।
महाराज: हम आप सभी का सहृदय से स्वागत करते हैं आप सब एक से बढकर एक योद्धा हैं। हमारे इस स्वमर में आप सब से तीन प्रश्न पूछे जाएंगे जो भी इन तीनों प्रश्नों के सही उत्तर देगा वही स्वयंमर का विजेता होगा।
तभी ढोल नगाडे बजने लगते हैं।
वक्ता: राजकुमारी चंद्राक्षी पधार रही हैं।
फिर राजकुमारी अपनी सखियों के साथ राजमहल की ऊपरी मंजिल के झरोखे में आती है जहां महारानी और उनकी भाभी सा विराजमान थी। आज राजकुमारी किसी स्वर्ग की देवी से कम नहीं लग रही थी। सभी राजकुमार उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं परंतु राजकुमारी तो केवल राजकुमार विक्रमादित्य को देखने के लिए बेचैन थी।
जब उन्हें राजकुमार विक्रमादित्य दिख जाते हैं तो वह सामान्य हो जाती है। इधर राजकुमार भी उन्हें देखकर खुश हो जाते हैं।
फिर ढोल नगाडे बजाकर स्वयंवर का शुभारंभ किया जाता है।
राजकुमारी प्रश्न पूछना आरंभ करती है:
पहला प्रश्न: नभसि स्थितोऽपि भुवि चरति।
वह आकाश में रहकर भी धरती पर चलते हैं।
सभी को पंद्रह मिनिट का समय दिया जाता हे।
फिर उनमें से एक राजकुमार खडे हो जाते हे।
वक्ता: ये सातवाहन राज्य के राजकुमार दिग्विजय सिंह।
राजकुमार दिग्विजय सिंह: इसका उत्तर हे पवन( हवा)
राजकुमारी अपना sir ना में हिला देती हैं।
फिर दूसरे राजकुमार उठते हैं
वक्ता: बिंदुसार राज्य के राजकुमार दाहिरसेन।
राजकुमार दाहिर सेन: इसका उत्तर हे वर्षा।
फिर राजकुमारी अपना sir ना में हिला देती हैं।
फिर तीसरे राजकुमार खडे होते हे
वक्ता: ये विजयनगर राज्य के राजकुमार अजतशत्रु।
राजकुमार अजतशत्रु: इसका उत्तर पक्षी हैं
फिर राजकुमारी अपना sir ना में हिला देती हैं।
ऐसे कई राजकुमार इस प्रश्न का सही उत्तर नही दे पाते।
महाराज ये देखकर थोडा चिंतित हो जाते।
राजकुमारी भी गंभीर हो जाती हे
लेकिन राजकुमार विक्रमादित्य तो ये सब देखकर खुश हो रहे थे क्योंकि उन्हें को सताने में बडा आनंद मिल रहा था। राजकुमारी के प्रश्न पूछते ही राजकुमार विक्रमादित्य के मस्तिष्क में सही उत्तर आ गया था।
लेकिन तभी एक राजकुमार सही उत्तर दे देते है
वक्ता: ये राजकुमार समर सींह हैं वर्धमान राज्य से।
राजकुमार समर सिंह: इसका उत्तर हैं* सूर्य"
सही उत्तर सुनके राजकुमारी बेचैन हो जाती है।
इधर राजकुमार विक्रमादित्य भी चिंतित हो जाते हे।
लेकिन राजकुमारी अपने आप सामान्य करके दूसरा प्रश्न पूछती हैं:
दूसरा प्रश्न- मुखे विना वाचा वदति।
वह मुख से बिना शब्द बोले बोलता है"
पर फिर ऐसा होता है कि राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी की जान में जान आती।
समर सिंह दूसरे प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे पाते।
समर सिंह के राजकुमार विक्रमादित्य तुरत ही खडे हो जाते हे।
राजकुमार विक्रमादित्य: इसका उत्तर हे प्रतिध्वनि यानी गूंज।
राजकुमारी ये देखकर खुश हो जाती हैं फिर वो अपना सिर हां मे में हिलाती हैं।
राजकुमारी तीसरा प्रश्न पूछती हे
त्रिभिर्नित्यम त्रिभिर्न च"
तीन से सदा है, तीन से नहीं है)
राजकुमार विक्रमादित्य: इसका उत्तर है, समय भूत, वर्तमान, भविष्य तीनों से मिलकर ही समय बनता है।
राजकुमारी सही उत्तर सुनके प्रफ्फुलित हो जाती हे।
स्वयंवर में राजकुमार विक्रमादित्य के जितने की घोषणा हो जाती हे। इतना सुनते ही अमर सिंह राजकुमार के गले लग जाते हैं और बधाई देते हैं।
फिर राजकुमारी अपनी सखियों, मासा और भाभी सा के साथ राजकुमार विक्रमादित्य के पास जाती फिर उन्हें वरमाला पहनाती।
स्वयंवर समाप्त हो जाता है फिर महाराज भवानी सिंह इंद्रप्रस्थ अपने तीव्र दूत के वाले पत्र भिजवाते हैं जिसमें राजकुमार विक्रमादित्य के जीतने का शुभ समाचार लिखा हुआ था और विवाह में महाराज अमरेंद्र सिंह के यहां से किसी के आने राजकुमार विक्रमादित्य राजकुमारी चंद्राकसी के विवाह में उपस्थित होने का आग्रह किया जाता है।
फिर राजमहल में एक भव्य मंडप सजाया जाता है।
इंद्रप्रस्थ
केवल एक ही दिन बाद दूत पत्र लेकर इंद्रप्रस्थ पहुंच चुका होता है और महाराज भवानी सिंह पत्र सुनते ही बडे खुश हो जाते हैं महारानी भी बहुत ही खुश हो जाती हैं।
महेंद्र सिंह जी को भी अपने पुत्र पर गर्व होता है।
राजकुमार वीरेंद्र भी खुश हो जाते हैं।
महाराज अमरेंद्र सिंह राजकुमार वीरेंद्र और महेंद्र सिंह जी को राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमार चंद्राक्षी के विवाह में सम्मिलित होने का प्रस्ताव देते हैं जिसे महेंद्र सिंह जी और राजकुमार वीरेंद्र स्वीकार कर लेते हैं और जो जाने के लिए प्रस्थान करते हैं।
जोधाणा
जोधाणा मैं बाकी सभी अतिथियों को बुलाया जाता है और विवाह की अच्छे से तैयारी की जाती है।
फिर दो दिन बाद महेंद्र सिंह जी और राजकुमार वीरेंद्र जोधाणा पहुंच जाते हैं और उनका भव्य स्वागत किया जाता है। राजकुमार विक्रमादित्य महेंद्र सिंह को देखते हैं उनके चरण स्पर्श करते हैं और राजकुमार वीरेंद्र राजकुमार विक्रमादित्य को बधाइयाँ देते हैं।
राजकुमारी चंद्राक्षी और राजकुमार विक्रमादित्य का विवाह बहुत ही धूमधाम से संपन्न होता है। राजकुमार और राजकुमारी सभी बडों का आशीर्वाद लेते हैं
विदाई
राजकुमारी चंद्राक्षी की विदाई की रस्म होती है। सबसे पहले राजकुमारी महाराज से विदा लेती है महाराज भी भावुक हो जाते हैं और राजकुमार को गले लगाकर कहते हैं कि- आज से आपका कर्तव्य आपके ससुराल वालों के लिए होगा।
फिर राजकुमारी अपनी मासा, भाभीसा ननिहाल पक्ष से मिलती है।
फिर वह अपने बडे भाई से गले लगते हैं उनके भाई सभी बडे भावुक हो जाते हैं।
राजकुमार चंद्रभान भी अपनी जीजी सा के गले मिलते हैं।
राजकुमार चंद्रभान अपनी जीजी सा को इस समय भी हंसने की कोशिश करते हुए कहते हैं
राजकुमार चंद्रभान: जीजी सा अगर जीजा सा ने अपने आपको परेशान किया तो हम तुरंत ही समझ जाएंगे और तुरंत जीजा सा को समझा देंगे। आप वहां पर भी हमेशा हस्ती खेलते रहना।
फिर दोनों भाई बहन आंखों में आंसू लिए हंसते हैं।
कुंवर परीक्षित राजकुमार विक्रमादित्य को नीचे झुकने के लिए कहते हैं, राजकुमार उन्हें अपनी गोद में उठा लेते हैं फिर परीक्षित कहते हैं कि- अब से बुआसा हमसे मिलने तो आएगी ना।
राजकुमार विक्रमादित्य: क्यों नहीं कुंवर आप जब कहेंगे हम आपकी बुआ सा को आपके पास ले आएंगे और आपका जब मन चाहे इंद्रप्रस्थ आ सकते हैं।
राजकुमारी कुंवर परीक्षित को भी अपनी गोद में लेकर उनके लाड करती है।
कुछ समय बाद फिर राजकुमार और राजकुमारी, अमर सिंह, महेंद्र सिंह जी, वीरेंद्र सिंह और उनके सैनिक सबसे विदा लेते हैं।
इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान कर लेते हैं।
कहानी मे तो सब सामान्य है किंतु भविष्य के गर्भ मे क्या छुपा है ये कोई नही जानता। इस कहानी मे आगे क्या होगा जानने के लिए जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " "स्टोरी मेनिया पर। जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने।
अब तक हमने देखा कि विक्रमादित्य स्वयंवर जीत चुके हैं, वीरेंद्र और महेंद्र सिंह जी भी जोधाणा पहुंच जाते हैं। फिर धूमधाम से विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का विवाह संपन्न होता है। विवाह के बाद चंद्राक्षी कि विदाई होती हैं विक्रमादित्य, चंद्राक्षी, महेंद्र सिंह जी और वीरेंद्र इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।
अब आगे
इंद्रप्रस्थ
महाराज अमरेंद्र सिंह सभी सेवक और सेविकाओं को आदेश देते हैं कि- हमारे पुत्र विक्रमादित्य और पुत्रवधू चंद्राक्षी का बहुत ही धूमधाम से स्वागत किया जाए। उनके स्वागत में कोई भी कमी नहीं रहनी चाहिए।
इधर महारानी भी सभी सेविकाओं को कहती है कि- आप सब राजकुमारी चंद्राक्षी की आवश्यकता अनुसार सभी वस्तुओं को अच्छे से, राजकुमार विक्रमादित्य के कक्ष में रख दें।
महारानी राजकुमारी चंद्राक्षी के लिए एक से बढकर एक उपहार तैयार करती है। महल में मंगल गीत गाए जाते हैं और महल को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है। पूरे राज्य में बहुत ही खुशी का वातावरण है सभी राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी चंद्राक्षी के विवाह से बहुत ही प्रसन्न है और उनकी एक झलक पाने को आतुर है। लगभग दो दिन बाद राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी चंद्राक्षी इंद्रप्रस्थ पहुंचते हैं। उनके इंद्रप्रस्थ पहुँचते ही उनका भव्य स्वागत किया जाता है ढोल नगाडे बजाए जाते हैं। आकाश से फूल बरसाए जाते हैं। फिर महारानी, राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी चंद्राक्षी की आरती उतारती है। राजकुमारी चंद्राक्षी और राजकुमार विक्रमादित्य महारानी के चरण छूते हैं। महारानी राजकुमार और राजकुमारी को आशीर्वाद देती है कि सदा सुखी रहो। फिर वह दोनों महाराज से भी आशीर्वाद लेते हैं।
महाराज दोनों के सिर पर हाथ रखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि" सदा सुखी भव! राजकुमारी और राजकुमार को कुल देवी के दर्शन करवाए जाते हैं। फिर सभी भोजन करते हैं। राजकुमार और राजकुमारी को कक्ष में आराम करने के लिए भेजा जाता है और बाकी की रस्में बाद में कराई जाती है।
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का कक्ष
कक्ष में पहुँचते ही राजकुमार अपनी माताश्री के चित्र के आगे खडे हो जाते हैं फिर राजकुमारी से उनका भी आशीर्वाद लेने के लिए कहते हैं। राजकुमारी को आभास होता है कि राजकुमार की माताश्री अब जीवित नहीं हैं। राजकुमार विक्रमादित्य: माता श्री के चित्र की ओर देखते हुए) हमारी माताश्री जब हम दस वर्ष के थे तभी हमें छोड कर चली गई थी। राजकुमार ये कहते हुए भावुक हो जाते हैं और राजकुमारी भी उनको देखकर भावुक हो जाती हैं।
राजकुमारी मन में सोचती है कि- राजकुमार आप बहुत ही सहनशील है आपको देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि आपकी मासा नहीं है। हम धन्य हैं की हमें आपके जैसा वर प्राप्त हुआ। फिर राजकुमारी, राजकुमार को सांत्वना देती है।
प्रातःकाल
राजकुमारी चंद्राक्षी की पहली रसोई की रस्म कराई जाती है। और राजकुमारी की हाथों से बना हुआ भोजन सभी को परोसा जाता है। महाराज अमरेंद्र सिंह भोजन खाते ही बहुत ही आनंदित हो जाते हैं।
महाराज: खुश होते हुए) पुत्री हमने आज तक इतना स्वादिष्ट भोजन कभी नही खाया। आज आप जो भी मांगेगी हम आपको वही देंगे।
राजकुमारी: ज्येष्ठ पिताश्री हम, आगे समय आने पर आपसे मांग लेंगे।
महारानी: राजकुमारी की बलाईया लेती हैं और उन्हें कुछ उपहार देती हैं।
अमर सिंह भी उनके साथ ही भोजन कर रहे थे। अमर सिंह( खुश होते हुए) आपके हाथ में जादू है भाभी श्री! फिर ऐसा करकर विक्रमादित्य को कोहनी मार देते हैं।
विक्रमादित्य भी उनके समीप ही बैठे थे, अमर सिंह के ऐसा करने से, वो उनकी की ओर देखते हैं।
अमर सिंह थोडा धीरे से- आप भी भाभी श्री की प्रशंसा करें।
विक्रमादित्य: चंद्राक्षी की और देखते हैं, किंतु वो बस मुस्कुरा देते हैं।
अमर सिंह: अपने माथे पर हाथ रखते हुए) हैं भगवान! इनको तो प्रशंसा करना भी नहीं आता।
फिर बाकी सभी भोजन की प्रशंसा करते हैं
कुछ समय बाद
महारानी राजकुमारी को अपने कक्ष में लेकर जाती हैं और उन्हें कुछ वंशानुगत( खानदानी) आभूषण देती हैं। महारानी: ये हमारे पैत्रिक आभूषण हैं और ये केवल बडी पुत्रवधू को ही दिए जाते हैं।
राजकुमारी( आभूषणों को लेते हुए) आप का धन्यवाद बडी मां। फिर महारानी राजकुमारी को कुछ ओर आभूषण, और मुल्यवान वस्तुएं देती हैं।
राजकुमारी( आश्चर्य से) ये Kiss लिए बडी मा?
महारानी: भावुक होते हुए) ये आपकी छोटी मां ने आपके लिए रखे थे किंतु वो आपको नहीं दे पाई।
राजकुमारी( भावुक होते हुए) हम इन अमूल्य धरोहरो को सदैव संजो कर रखेंगे।
जोधाणा
महाराज भवानी सिंह का कक्ष महाराज( भावुक होते हुए) राजकुमारी के जाने से जैसे आंगन खाली सा हो गया।
महारानी अमरावती: जी महाराज। हमें भी राजकुमारी की बहुत ही याद आ रही। अब हमें कौन सताएगा, अब हमें वीणा कौन सुनाएगा? महारानी दुर्गावती और महारानी अंबा का भी यही हाल है।
दूसरी ओर
राजकुमार चंद्रभान भी अपनी जीजीसा को याद कर रहे हैं राजकुमार चंद्रभान- अब हम किसको सताएंगे जीजीसा? फिर भावुक होते हुए) हमें आपकी बहुत याद आ रही हैं।
तभी राजा सूर्यभान चंद्रभान की ओर आते हैं, उनके कंधे पर हाथ रखते हैं।
सूर्यभान: चंद्रभान अपने आप को संभालिए।
चंद्रभान सामान्य होकर- धन्यवाद भाई सा।
महाराज का कक्ष
फिर सूर्यभान महाराज के कक्ष में जाते हैं, और उन सबको सांत्वना देते हैं।
सूर्यभान: आप सब इतना भावुक मत होइए चंद्राक्षी वहां पर बहुत खुश हैं, उसे बहुत ही योग्य ससुराल मिला है।
महाराज: अपने आप को सामान्य करते हुए) आप ठीक कह रहे हैं सूर्यभान।
सूर्य भान: बाबासा अब हम चलते हैं।
तभी महारानी अमरावती: आप कुछ दिन ओर रुक जाते।
सूर्य भान: नहीं मा सा, अब ओर रुकना ठीक नहीं है। सुजानगढ जाकर हमें बहुत से शेष कार्य भी करने हैं।
महाराज( थोडा गंभीर होते हुए) आप सुजानगढ जाकर अपना कार्य संभाले।
सूर्यभान: ठीक है बाबासा।
कुछ समय बाद रानी अनुसूया और कुंवर परिषत भी सब का आशीर्वाद लेकर सूर्यभान के साथ सुजानगढ के लिए प्रस्थान कर लेते हैं।
क्या राजकुमारी चंद्राक्षी सब के हृदय मे अपने लिए स्थान बना पाएंगी?
क्या राजकुमार विक्रमादित्य को राजकुमारी की उनके प्रति भावनाओं का पता चलेगा?
भविष्य के गर्भ मे क्या छिपा है जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
अब तक हमने देखा कि राजकुमारी चंद्राक्षी को महारानी सुनैना अपनी अमूल्य धरोहर सौंपती हैं, और महाराज भी उन्हें वर मांगने को कहते हैं, किंतु चंद्राक्षी विनम्रता से कहती हैं —“ जब समय आएगा, तब हम अपना वर मांगेंगे। उधर, जोधाणा की प्रजा और उनके प्रियजन उनकी अनुपस्थिति से व्यथित हैं।
अब आगे —
इंद्रप्रस्थ के महल में, राजकुमारी चंद्राक्षी, स्मृतियों में डूबी हुई, बाह्यावकाश( बाल्कनी) के समीप खडी थीं। उसी क्षण राजकुमार विक्रमादित्य पीछे से आते हैं। वे चंद्राक्षी को देख शांत भाव से उन्हें आलिंगन में ले लेते हैं और अपना मस्तक उनके कंधे पर टिका देते हैं।
विक्रमादित्य कहते हैं) –“ आप ठीक हैं?
चंद्राक्षी कहती हैं) –“ हम्म्म्म, किंतु आपने ऐसा क्यों पूछा?
विक्रमादित्य उत्तर देते हैं) –“ आप इतने समय से शांत हैं, हमें आपकी चिंता होने लगी थी।
चंद्राक्षी पहले तो उनके इस स्नेह पर मुस्कुराती हैं, परंतु शीघ्र ही उन्हें विक्रमादित्य के भावार्थ का भान होता है। वे स्वयं को उनके आलिंगन से मुक्त करती हैं और प्रश्नवाचक दृष्टि से कहती हैं:
चंद्राक्षी कहती हैं) –“ शांत थे तो चिंता होने लगी. इसका क्या तात्पर्य है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि हम वाचाल हैं?
विक्रमादित्य चकित होकर कहते हैं) –“ नहीं नहीं! हमारा वो तात्पर्य नहीं था।
चंद्राक्षी थोडे क्रोध में कहती हैं) –“ तो फिर क्या था तात्पर्य आपका?
विक्रमादित्य अब समझ जाते हैं कि चंद्राक्षी थोडे शीघ्र रुष्ठ हो जाती हैं, किंतु वे बात को बदलते हुए मुस्कराते हैं और कहते हैं:
विक्रमादित्य कहते हैं) –“ वो सब छोडिए. आप हमें यह बताइए कि आपको यहाँ कैसा लग रहा है?
उनकी यह युक्ति सफल होती है। चंद्राक्षी का मुख खिल उठता है। प्रश्न हो जाती है।
प्रसन्न होकर कहती हैं) –“ सब बहुत अच्छे हैं। ज्येष्ठ पिताश्री और पिताश्री हमें बाबासा की याद ही नहीं आने देते। ज्येष्ठ माताश्री हमें जैसे तीनों मासा का स्नेह देती हैं। भ्राता वीरेंद्र और अमर हमें चंद्रभान की अनुपस्थिति का एहसास नहीं होने देते।
विक्रमादित्य इन शब्दों में मग्न थे, परंतु जब उन्होंने स्वयं का नाम न सुना, तो मन ही मन थोडे आहत होते हैं।
विक्रमादित्य धीरे से पूछते हैं) –“ और हम?
चंद्राक्षी उन्हें थोडी आश्चर्यचकित दृष्टि से देखती हैं।
चंद्राक्षी पूछती हैं) –“ तात्पर्य?
विक्रमादित्य कोमल स्वर में कहते हैं) –“ तात्पर्य यह कि आपको हम कैसे लगते हैं. यह तो आपने कहा ही नहीं।
चंद्राक्षी थोडी लज्जित हो जाती हैं।
चंद्राक्षी मुस्कराकर कहती हैं) –“ आप भी बहुत अच्छे हैं. आर्य।
विक्रमादित्य मुस्कराकर कहते हैं) –“ बस अच्छे?
अब चंद्राक्षी अपनी दृष्टि नीची कर लेती हैं। विक्रमादित्य को उनके मुख पर फैली लज्जा की लाली अत्यंत मनोहारी प्रतीत होती है। वे उनके मुख को अपने हाथों से उठाकर उनके नयनों में झांकने का प्रयास करते हैं, और सफल भी हो जाते हैं।
विक्रमादित्य प्रेमपूर्वक कहते हैं) –“ आप तो हमारे हृदय में उसी क्षण बस गई थीं, जब हमने आपको वन में देखा था। हमें तो विश्वास ही नहीं होता कि वही राजकुमारी जिनके स्वयंवर में हम सम्मिलित हुए, वे आप थीं। सबसे अधिक हमारे मन को आपकी चंद्रमा- समान आँखों ने मोहा है। जब- जब इन्हें देखते हैं, तब- तब और कुछ देखने का मन नहीं करता।
चंद्राक्षी उनकी बातों में डूब जाती हैं।
चंद्राक्षी भावविभोर होकर कहती हैं) –“ हमें भी आप वन में ही भा गए थे। आपकी कीर्ति हम पहले ही सुन चुके थे। हम चाहते थे कि आप ही हमारे स्वयंवर में विजयी हों। किंतु जब आप पहले प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए, तब हमें भय हुआ था।
अब तक विक्रमादित्य चंद्राक्षी की कमर को थामे हुए थे और उनकी वाणी सुन रहे थे।
विक्रमादित्य मुस्कराते हुए कहते हैं) –“ हमें उस प्रश्न का उत्तर ज्ञात था. किंतु आपको थोडा व्याकुल देख कर हमें थोडी सी शरारत का आनंद आया।
इतना सुनते ही चंद्राक्षी रुष्ठ हो जाती हैं।
चंद्राक्षी नाराज होकर कहती हैं) –“ हम इतने चिंतित थे और आपको उसमें भी आनंद आ रहा था?
विक्रमादित्य को पश्चाताप होता है।
विक्रमादित्य सफाई देते हैं) –“ नहीं! हम उत्तर देने ही वाले थे, तभी राजकुमार समर सिंह ने पहले उत्तर दे दिया।
चंद्राक्षी का मुख कुछ कठोर बना रहता है। विक्रमादित्य उन्हें मनाने का प्रयास करते हैं।
विक्रमादित्य स्नेह से कहते हैं) –“ अक्षी. सुनिए न। हम आपके लिए उपहार लाए हैं।
चंद्राक्षी जिज्ञासु होकर कहती हैं) –“ उपहार? क्यों?
विक्रमादित्य मुस्कराकर उत्तर देते हैं) –“ पहला विवाह की पहली रात्रि के अवसर पर. और दूसरा, पहली रसोई के शगुन के रूप में।
चंद्राक्षी उत्साहित होकर कहती हैं) –“ तो फिर हमें दो उपहार मिलने चाहिए! बताइए, कहाँ हैं हमारे उपहार?
विक्रमादित्य उन्हें अपनी पकड से मुक्त कर एक सेवक को संकेत देते हैं। दो सेवक एक विशाल वस्तु कपडे से ढककर लाते हैं।
विक्रमादित्य कहते हैं) –“ इसे स्वयं हटाइए, अक्षी।
जब चंद्राक्षी वह कपडा हटाती हैं, तो सामने होती है — एक श्वेत रंग की, अति सुंदर वीणा।
चंद्राक्षी प्रसन्न होकर कहती हैं) –“ यह. यह तो अद्भुत है, आर्य!
विक्रमादित्य सेवकों को कक्ष के बाहर जाने का संकेत देते हैं। सेवकों के जाते ही चंद्राक्षी विक्रमादित्य के आलिंगन में आ जाती हैं।
चंद्राक्षी हर्षित होकर कहती हैं) –“ आप बहुत बहुत बहुत अच्छे हैं. आर्य।
विक्रमादित्य प्रसन्नता से कहते हैं) –“ आपने तो अभी दूसरा उपहार देखा ही नहीं। आइए, आपको दिखाते हैं।
वे चंद्राक्षी को उपवन में लाते हैं और उनकी आँखों पर हाथ रखकर एक विशेष स्थान पर ले जाते हैं। जब वे हाथ हटाते हैं, तो चंद्राक्षी की आँखें आर्द्र हो उठती हैं।
उनके सामने होते हैं — वे सभी प्रिय पशु- पक्षी, जिन्हें वे जोधाणा में छोड आई थीं, यह सोचकर कि उनसे पुनः भेंट संभव नहीं होगी।
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का यह दिन प्रेम और प्रसन्नता से बीतता है। चंद्राक्षी और विक्रमादित्य तो एक दूसरे के प्रेम मे पड चुके है और साथ प्रसन्नभी हैं
किन्तु. क्या उनके इस प्रेममय संसार पर कोई कुदृष्टि पडने वाली है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " नोवेल बिट्स पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
कहानी में आगे क्या होगा जानने के लिए Stay Tuned.
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अब तक की कथा:
विक्रमादित्य, चंद्राक्षी को अनोखे उपहार देते हैं – एक श्वेत रंग की वीणा और उनके प्रिय पशु। ये उपहार पाकर चंद्राक्षी अत्यंत प्रसन्न होती हैं।
अब आगे.
प्रातःकाल, इन्द्रप्रस्थ की राजसभा।
सभा में सभी दरबारी, सेनापति और मंत्रीगण उपस्थित हैं। तभी कुछ नगरवासी व्याकुल अवस्था में राजदरबार में प्रवेश करते हैं।
महाराज( नगरवासियों की ओर देखकर गंभीर स्वर में कहते हैं)
आप सब इतने व्यथित क्यों प्रतीत हो रहे हैं? कहिए, क्या समस्या आन पडी है?
नगरवासी( विनीत और दुखी स्वर में)
महाराज! अनायास ही दैनिक जीवन की सभी आवश्यक वस्तुओं के मूल्य बहुत अधिक बढ गए हैं। हम सामान्य जन अत्यंत कष्ट में हैं।
महाराज( आश्चर्यचकित होकर कहते हैं)
यह कैसे संभव है? हमने तो किसी भी वस्तु पर कोई नया कर नहीं लगाया। तो फिर यह मूल्यवृद्धि कैसे हुई?
महाराज, महामंत्री की ओर देखकर आदेश देते हैं:
आप इस असमान्य मूल्यवृद्धि का कारण शीघ्रातिशीघ्र ज्ञात कीजिए।
फिर वे नगरवासियों की ओर देखकर दृढ स्वर में कहते हैं:
आप सभी निश्चिंत रहें। यह हमारा वचन है – हम शीघ्र ही इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करेंगे।
सभा आगे अन्य विषयों पर विचार करती है और कुछ समय पश्चात सभा स्थगित हो जाती है।
यह समाचार जब राजकुमार विक्रमादित्य तक पहुंचता है, वे अति विस्मित होते हैं और चिंतन में डूब जाते हैं।
विक्रमादित्य मन में सोचते हैं:
यह कैसे संभव है? बिना किसी नीति परिवर्तन के वस्तुएं इतनी महंगी कैसे हो गईं? क्या कोई छुपा हुआ कारण है?
दूसरी ओर.
राजकुमारी चंद्राक्षी अपने प्रिय पशु- पक्षियों के संग क्रीडा कर रही होती हैं। तभी उन्हें राजकुमार विक्रमादित्य के प्रिय अश्व ‘अंबर’ का स्मरण होता है। वे उसे देखने अश्वशाला की ओर चल पडती हैं।
चंद्राक्षी( अंबर को देखकर मन में विचार करती हैं)
यह अश्व अत्यंत विलक्षण प्रतीत होता है। इसकी भंगिमा, इसकी चाल – सब कुछ अद्वितीय है। क्या ही अच्छा हो यदि मैं इस पर सवार होकर नगर का भ्रमण करूं।
उसी समय राजकुमार विक्रमादित्य, विचारों में खोए हुए, आंगन में प्रवेश करते हैं।
चंद्राक्षी( मुस्कुराकर पूछती हैं)
आर्य, आप Kiss सोच में लीन हैं?
विक्रमादित्य( हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं)
नहीं अक्षी, ऐसा कुछ नहीं। आप बताइए – हमारा अंबर आपको कैसा लगा?
चंद्राक्षी( उत्साहित होकर कहती हैं)
आर्य, यह तो अत्यंत सुंदर और विलक्षण जाति का अश्व है। क्या आप मुझे इसकी सवारी कराएंगे?
विक्रमादित्य( हर्षपूर्वक कहते हैं)
क्यों नहीं, अक्षी!
चंद्राक्षी( हँसते हुए कहती हैं)
तो फिर चलिए न, अभी!
विक्रमादित्य( मन में सोचते हैं)
अक्षी अब हमारी नववधु हैं। उन्हें राजमहल से बाहर ले जाना उचित तो नहीं, परंतु उनकी प्रसन्नता भी आवश्यक है।
चंद्राक्षी( उत्सुक दृष्टि स कहती हैं)
तो बताइए न आर्य, हम कहां जा रहे हैं?
विक्रमादित्य( मौन क्षण के बाद, मुस्कुराकर)
अक्षी, आप अपने कक्ष में जाइए और भ्रमण के लिए तैयार हो जाइए।
इसी समय.
महाराज का कक्ष – महाराज और महारानी एकत्रित हैं।
महाराज( विचारपूर्ण स्वर म कहते है)
महारानी, मुझे प्रतीत होता है अब हमें कुंतल प्रदेश में पत्र भेजकर राजकुमार वीरेंद्र और राजकुमारी सुकन्या के विवाह हेतु वार्ता आरंभ कर देनी चाहिए।
महारानी( सहमति में सिर हिलाकर कहती हैं)
हां महाराज, साथ ही हमें राजकुमार की जन्मकुंडली भी भेजनी चाहिए जिससे वे शुभ मुहूर्त देखकर हमें सूचित कर सकें।
महाराज( संकल्पबद्ध स्वर में कहते हैं)
तो यही उचित रहेगा। आज ही संदेश भेजा जाए।
उधर.
विक्रमादित्य( विचार करते हुए कहते हैं)
मैं चंद्राक्षी को मेरे प्रिय स्थल उत्कर्षिनी ले जाऊंगा। यह स्थान नगर के उस छोर पर है जहां कोई आता- जाता नहीं।
वह गुप्त मार्ग से चंद्राक्षी को अश्व पर बैठाकर नगर के बाहर ले जाते हैं।
चंद्राक्षी( प्रश्नवाचक स्वर में कहते हैं)
आर्य, हम कहां जा रहे हैं?
विक्रमादित्य( स्नेहपूर्वक मुस्कुराकर कहते हैं)
हम अपनी अर्धांगिनी को अपने हृदय के निकटतम स्थान पर लेकर जा रहे हैं।
चंद्राक्षी यह सुनकर अत्यंत आनंदित हो जाती हैं।
कुछ ही समय में वे एक सुरम्य स्थल पर पहुंचते हैं – जहां एक झील थी, जिसे ‘उत्कर्षिनी’ कहा जाता है। श्वेत कमल, हरियाली, कोयल की मधुर ध्वनि – यह दृश्य चंद्राक्षी को मंत्रमुग्ध कर देता है।
विक्रमादित्य( चंद्राक्षी को दिखाते हुए कहते हैं)
अक्षी, जब भी हमारा मन अशांत होता है, हम यहीं आकर उसे शांत करते हैं। इस झील का निर्माण हमने स्वयं करवाया है।
चंद्राक्षी( मुग्ध होकर कहती हैं)
आर्य, यह स्थान अतुलनीय है! मैं इस सौंदर्य में खो गई हूं।
विक्रमादित्य( एक झूला दिखाते हुए)
देखिए अक्षी, यह झूला – इसे हमने आपके स्वागत हेतु सजवाया है। रंग- बिरंगे पुष्पों से अलंकृत यह झूला आपका ही प्रतीक है।
चंद्राक्षी झूले पर बैठती हैं। विक्रमादित्य झूला झुलाते हैं।
चंद्राक्षी( हर्ष से)
आर्य, मैंने ऐसा मनोहारी दृश्य पहले कभी नहीं देखा। मुझे यहां लाने हेतु आपका आभार।
विक्रमादित्य( कोमल स्वर में)
अक्षी, आप पहली हैं जिन्हें हम यहां लाए हैं। यह स्थान अब और भी प्रिय हो गया है क्योंकि इसमें आपकी स्मृति जुड गई है।
तभी कुछ सुंदर खरगोश झील के पास आ जाते हैं। चंद्राक्षी एक को गोद में उठाकर स्नेहपूर्वक सहलाती हैं।
विक्रमादित्य( मन में सोचते हैं)
अक्षी, आप कितनी निर्मल और करुणामयी हैं – पशु- पक्षियों से भी आपका स्नेह उतना ही गहन है जितना मनुष्यों से।
एक खरगोश विक्रमादित्य की ओर आता है। वे उसे भी गोद में उठाकर स्नेह से सहलाते हैं।
चंद्राक्षी( निवेदन करती हैं)
आर्य, क्या हम यहां श्याम तक रुक सकते हैं?
विक्रमादित्य( हँसते हुए)
अक्षी, आप निश्चिंत रहें – हम तो यहां रात तक रुकेंगे। और हर पखवाडे में आपको यहां लाते रहेंगे।
चंद्राक्षी यह सुनकर अत्यंत हर्षित हो जाती हैं।
रात्रि होने पर वे दोनों राजमहल की ओर गुप्त मार्ग से लौट जाते हैं।
किन्तु अब प्रश्न उठता है.
क्या कारण है इतनी महंगाई का?
क्या इन्द्रप्रस्थ में कोई छुपा हुआ संकट उत्पन्न हो चुका है?
क्या महामंत्री इस समस्या की जड तक पहुंच पाएंगे?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है। । । ।। । । । । । । । । । । ।। । । । । । । । ।। । । ।
अब तक हमने देखा कि सभा में नगर वासी अपनी समस्या बताते हुए महाराज से कहते हैं कि अचानक दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं के दाम बढ चुके हैं। वहीं दूसरी ओर विक्रमादित्य, चंद्राक्षी को अपने प्रिय स्थान पर लेकर जाते हैं, जहां पर जाकर चंद्राक्षी बहुत खुश होती हैं।
अब आगे
प्रातःकाल
राजसभा सभा में सभी उपस्थित हैं।
महाराज( महामंत्री की ओर देखते हुए) महामंत्री अचानक महंगाई बढने का कारण पता चला?
महामंत्री: जी महाराज हमने कुछ व्यापारियों को सभा में बुलाया है जोकि आपके सामने इस समस्या का कारण बताएंगे। महाराज, महामंत्री व्यापारियों को बुलाने का संकेत करते हैं। कुछ समय बाद व्यापारी सभा मे महाराज के सम्मुख खडे होते हैं।
व्यापारी( महाराज कि ओर देखते हुए) महाराज हमारे राज्य में जो कच्चा माल( चावल, लोहा, कोयला इत्यादी) पूर्व दिशा स्थित राज्यों से लाया जाता है किंतु बीच मार्ग मे पाटलिपुत्र के सैनिक अब हमसे अधिक कर वसूलने लगें है। इस कारण हमें बहुत ही भारी क्षति उठानी पड रही है।
महामंत्री( महाराज की ओर देखते हुए) महाराज इसी कारण से हमारे राज्य में दैनिक जीवन में काम आने वाली सभी वस्तुओं का मूल्य बढ चुका हैं।
महाराज( थोडा क्रोधित होते हुए) इसका अर्थ है पाटलिपुत्र के राजा अश्वत्थ सिंह ने हमसे शत्रुता निकालने का अब यह मार्ग ढूंढ निकाला है"
पाटलिपुत्र की इंद्रप्रस्थ से कई दशकों से शत्रुता है और यह शत्रुता तब से ऐसे ही निभाई जा रही है) महाराज व्यापारियों को जाने के लिए कह देते हैं और उनसे कहते हैं कि- आप सब निश्चित रहिए हम इस समस्या का शीघ्र ही समाधान निकाल लेंगे।
महाराज( महामंत्री की ओर देखते हुए) महामंत्री आप शीघ्र ही पाटलिपुत्र एक पत्र भिजवाये जिसमें कर घटाने की बात कही गई हो।
महामंत्री( महाराज कि ओर देखते हुए) जो आज्ञा महाराज। राजकुमार विक्रमादित्य सोचते हैं कि पाटलिपुत्र के राजा अश्वत्थ सिंह केवल पत्र से नहीं मानेंगे। लेकिन वह फिर भी पत्र के उत्तर के आने की प्रतीक्षा करते हैं। फिर राज सभा स्थगित हो जाती है। और पाटलिपुत्र पत्र भिजवा दिया जाता है।
दूसरी ओर
चंद्राक्षी: राजमहल की आंगन में टहल रही है। तभी राजकुमार वीरेंद्र उन्हें पुकारते हैं राजकुमार वीरेंद्र( चंद्राक्षी के ओर आते हुए) भाभी श्री आप कैसी हैं?
चंद्राक्षी- हम कुशल हैं भ्राता श्री।
वीरेंद्र: हमने सुना है कि भाभी श्री आपको अस्त्र- शस्त्रों का बहुत ही अच्छा ज्ञान है और जिसमें से आपको असिक्रीडा( तलवारबाजी) सबसे प्रिय है।
चंद्राक्षी- हां भ्राता श्री।
वीरेंद्र: तो भाभी श्री हम आप के साथ असिक्रीडा की एक प्रतियोगिता करना चाहते हैं।
चंद्राक्षी: क्यों नहीं भ्राता श्री, इसी बहाने हमारा भी मनोरंजन हो जाएगा। फिर चंद्राक्षी और वीरेंद्र असिक्रीडा के मैदान में जाते हैं। और प्रतियोगिता आरंभ करते हैं। वीरेंद्र अपना पूरा प्रयास नहीं कर रहे थे क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि चंद्राक्षी को कोई हानि पहुंचे। लेकिन कुछ समय बाद चंद्राक्षी उन पर भारी पडने लगती है।
चंद्राक्षी यह देखकर कहती है कि- भ्राता श्री आप इस समय हमें अपना प्रतिद्वंद्वी ही समझिए। हम हमारा बचाव कर सकते हैं।
किंतु इससे पूर्व की कोई विजयी हो पाता एक सेविका वहां आती है। सेविका- राजकुमारी आपको महारानी ने याद किया है।
चंद्राक्षी: भ्राता श्री अब हमें आज्ञा दीजिए हमें आपके साथ असिक्रीडा में बहुत ही आनंद आया।
वीरेंद्र: भाभी श्री हमें भी बहुत ही अच्छा लगा आप बहुत ही उत्तम खड्ग चला लेती है। फिर चंद्राक्षी वीरेंद्र का धन्यवाद कर महारानी के कक्ष में चली जाती है
महारानी का कक्ष
महारानी( चंद्राक्षी कि ओर देखते हुए) आओ पुत्री हमें आपकी ही प्रतीक्षा थी।
चंद्राक्षी( मुस्कुराते हुए) प्रणीपात बडी मां, आपने हमें बुलाया।
महारानी: सदा सुहागन रहो पुत्री, हमने आपसे यह कहने के लिए बुलाया है की आज से ठीक एक सप्ताह बाद कृष्ण पक्ष की नवमी को राजकुमार विक्रमादित्य का जन्मदिन है।
चंद्राक्षी( खुश होते हुए) बडी मां यह तो बहुत ही खुशी की बात है।
महारानी: थोडा चिंतित होते हुए) किंतु पुत्री राजकुमार विक्रमादित्य ने अपनी मां के जाने के बाद कभी भी अपना जन्मदिन नहीं मनाया है। हम उन्हें हर वर्ष उन का जन्मदिन मनाने के लिए कहते हैं पर वह जन्मोत्सव के लिए मना कर देते हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि आप उन्हें उनके जन्मोत्सव के लिए मनाए"
चंद्राक्षी( शरारती भाव लिए) आप चिंता मत करिए हम उन्हें मना ही लेंगे।
रात हो चुकी हैं
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य का कक्ष
चंद्राक्षी: विक्रमादित्य को देखते हुए) आर्य! आज बडी मां ने हमें बताया कि, आपका एक सप्ताह बाद जन्मदिन है।
विक्रमादित्य( दुखी होते हुए) अक्षी हमें इस विषय पर कोई बात नहीं करनी"
अक्षी: किंतु आर्य! आप अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाते हैं ऐसी क्या बात है?
विक्रमादित्य( थोडा नाराज होते हुए) अक्षी हमने एक बार मना कर दिया ना कि हमें इस विषय पर कोई बात नहीं करनी तो कृपया आप अब विश्राम कर ले। रात बहुत हो चुकी है।
चंद्राक्षी, विक्रमादित्य के इस प्रकार उनसे रुष्ठ होने का कारण समझ नही पाती और सोचते हुए- ऐसी क्या बात है की जन्मदिन के बारे में सुनते ही ये उदास हो गए और इतने सालों से अपने जन्मोत्सव से वंचित रहे, हमें पता लगाना होगा। इस बार तो आर्य हम आपका जन्मदिन मना कर ही रहेंगे।
जब भी चंद्राक्षी विक्रमादित्य से उनके जन्मदिन के बारे में बात करती तो वह बात पलट देते। ऐसे ही दो दिन बीत गए।
राज सभा
महाराज: महामंत्री हम जानना चाहते हैं कि पाटलिपुत्र से कोई प्रतिउत्तर आया, वो कर घटाने की सहमति में है या नहीं?
महामंत्री( महाराज कि ओर देखते हुए) नहीं महाराज पाटलिपुत्र से कोई प्रति उत्तर नहीं आया और हमने पता लगवाया है कि उन्होंने कर भी नहीं घटाया है।
महाराज( क्रोधित होते हुए) यह तो उन्होंने हमारा अपमान किया है।
विक्रमादित्य- महाराज हमारे पास इस समस्या के लिए एक समाधान है इससे पाटलिपुत्र के राजा अश्वत सिंह स्वयं ही कर घटा देंगे।
क्या योजना है विक्रमादित्य के पास?
क्या ये योजना सफल हो जाएगी?
पाटलिपुत्र और इंद्रप्रस्थ की शत्रुता का कारण क्या है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है। । ।
अब तक. हमने देखा कि.
राजकुमार विक्रमादित्य. चंद्राक्षी को भ्रमण के लिए ले जाते हैं.
वहीं दूसरी ओर.
राज्य में दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं के दाम. अचानक बढ जाते हैं.
हल्का पार्श्व स्वर — दरबार का शोर)
राज दरबार में
महाराज( गंभीर स्वर में)
कहिए राजकुमार. आपकी क्या योजना है?
विक्रमादित्य( दृढता से)
महाराज. यदि पाटलिपुत्र हमारे आयात और निर्यात के समानों पर कर बढा सकता है.
तो हम भी तो वैसा ही कर सकते हैं।
पाटलिपुत्र में जडीबूटियां. टेराकोटा के बर्तन. और तांबा.
हमारे आस- पास के राज्य से इंद्रप्रस्थ होकर ही जाता है।
तो हम इन वस्तुओं पर कर बढा सकते हैं. ताकि पाटलिपुत्र स्वयं पीछे हट जाए।
और जब वे पीछे हट जाएँगे. तब हम भी अपने कर सामान्य कर देंगे।
महाराज( प्रसन्नता से)
यह तो आपने बहुत ही सटीक सुझाव दिया है।
महाराज महामंत्री की ओर देखते हैं)
महाराज:
महामंत्री! जैसा राजकुमार ने कहा है. वैसा ही किया जाए।
आज ही. हमारे मार्ग से पाटलिपुत्र जाने वाली वस्तुओं पर कर बढा दिए जाएँ।
महामंत्री( विनम्रता से)
जो आज्ञा महाराज।
दरबार का स्वर मंद होता है. और राजसभा स्थगित हो जाती है)
दृश्य परिवर्तन — मधुर संगीत)
दूसरी ओर. चंद्राक्षी. अमर सिंह को बुलावा भेजती हैं।
कुछ समय बाद अमर सिंह वहां आ जाते हैं. जहां चंद्राक्षी ने उन्हें बुलाया था।
अमर सिंह( चिंता से)
प्रणाम भाभी श्री. क्या हुआ. आप इतनी चिंतित क्यों हैं?
चंद्राक्षी( व्यथित स्वर में)
प्रणाम भ्राता श्री. हम आर्य के लिए चिंतित हैं।
एक सप्ताह पश्चात उनका जन्मदिन है.
किंतु जब भी हम उनसे उनके जन्मदिन की बात करते हैं.
तो वे हमसे रुष्ट हो जाते हैं।
ऐसा क्या हुआ था. जिसके कारण वे अपना जन्मोत्सव नहीं मनाते?
अमर सिंह( धीमे और भावुक स्वर में)
यह बहुत दुख भरी कहानी है भाभी श्री.
चंद्राक्षी( कृपा और जिज्ञासा से)
तो सुनाइए. हम सुनने को तैयार हैं.
हम भी जानना चाहते हैं कि ऐसा क्या हुआ था।
अमर सिंह( कहानी आरंभ करते हुए)
जब राजकुमार की माता. जीवित थीं.
तब वे राजकुमार के हर जन्मदिन पर.
पूरे राज्य के बालकों को वस्त्र और भोजन का दान करती थीं।
उस दिन. विक्रमादित्य. अपना पूरा दिन अपनी माता के साथ बिताते थे।
किंतु जब उनका दसवां जन्मदिन था.
तब माता उन बालकों को भोजन करवा रही थीं.
तभी उन्हें चक्कर आते हैं. और वे वहीं मूर्छित होकर गिर जाती हैं।
फिर वैद्य आते हैं. और कहते हैं कि वे अब अधिक समय जीवित नहीं रहेंगी।
यह सब. वहीं खडे विक्रमादित्य भी सुनते हैं।
तभी से. जब भी वे जन्मदिन को याद करते हैं.
तो उन्हें माताश्री का उन्हें छोडकर जाना याद आ जाता है।
संगीत भावुक होता है)
चंद्राक्षी की आंखों में आंसू आ जाते हैं.
और वे बिना कुछ कहे. वहां से चली जाती हैं.
दृश्य परिवर्तन — महाराज का कक्ष)
महाराज:
महारानी! कुंतल प्रदेश से पत्र आ चुका है।
महारानी( उत्साहित स्वर में)
महाराज. यह तो बहुत अच्छी बात है।
उन्होंने पत्र में क्या लिखकर भेजा है?
महाराज:
महारानी. वे चाहते हैं कि आज से ठीक एक माह पश्चात.
वसंत पंचमी को. राजकुमार वीरेंद्र और राजकुमारी सुकन्या का विवाह हो जाए।
उस दिन से शुभ अवसर और कोई नहीं।
महारानी( हर्ष से)
यह तो बहुत ही खुशी की बात है महाराज.
हम जल्द ही विवाह की तैयारी आरंभ कर लेते हैं।
महाराज:
तो महारानी. हमें अब राजकुमार वीरेंद्र को यह बात बता देनी चाहिए.
कि उनका एक माह पश्चात विवाह होने वाला है।
महारानी:
हाँ महाराज. अभी हम उन्हें बुलावा भेजते हैं।
दृश्य परिवर्तन — विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का कक्ष)
चंद्राक्षी( रोते हुए)
हमें क्षमा कर दीजिए आर्य. हमने आपके दुखों को कुरेद दिया।
विक्रमादित्य उन्हें शीघ्र आलिंगन में लेते हैं, sir पर हाथ फेरते हुए)
आप रो क्यों रही हैं अक्षी?
चंद्राक्षी( सुबकते हुए)
हमें क्षमा कर दीजिए आर्य. हमें क्षमा कर दीजिए आर्य.
विक्रमादित्य( मुस्कान के साथ)
आप पहले शांत हो जाइए. और हमें बताइए.
आपके रोने का कारण क्या है।
वैसे भी. आप रोते हुए बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगतीं।
चंद्राक्षी:
हमें नहीं ज्ञात था कि आपके जन्मदिन के दिन ही.
आपको यह पता चला था. कि माताश्री आपको छोडकर जाने वाली हैं।
विक्रमादित्य( धैर्यपूर्वक)
तो आप रो क्यों रही हैं. यह तो आपसे अनजाने में हुआ है.
इसमें आपका कोई दोष नहीं है।
वे उन्हें पानी पिलाते हैं और बैठाकर सांत्वना देते हैं)
विक्रमादित्य:
हमें क्षमा कीजिएगा अक्षी. हमने आपको रुला दिया।
चंद्राक्षी( मासूमियत से)
आर्य. आप यह कैसी बातें कर रहे हैं.
आपने हमें कब रुलाया. वह तो हम स्वयं ही रोते हुए आए थे।
विक्रमादित्य:
नहीं अक्षी. हम ही आपके अश्रुओं का कारण हैं।
चंद्राक्षी:
आर्य! आप ऐसा मत कहिए।
विक्रमादित्य:
तो अक्षी. आप हमें वचन दीजिए.
कि आज के पश्चात आप कभी भी छोटी- छोटी बातों पर अश्रु नहीं बहाएंगी।
चंद्राक्षी:
ठीक है आर्य! परंतु क्या आप हमारी एक विनती स्वीकार करेंगे?
विक्रमादित्य:
हाँ, हाँ अक्षी. आप कहकर तो देखिए. आप जो कहेंगी हम वही करेंगे।
चंद्राक्षी:
जैसा कि माताश्री आपके जन्मदिन के दिन.
पूरे राज्य के बालकों को वस्त्र और भोजन दान करती थीं.
तो हम भी इस बार आपके जन्मदिन पर यही करेंगे।
विक्रमादित्य( मुस्कुराकर)
ठीक है अक्षी. जैसा आप चाहें. हम इसके लिए तैयार हैं।
वैसे अक्षी. आप रोते हुए बिल्कुल किसी छोटे मासूम खरगोश जैसे लगती हैं।
चंद्राक्षी खिलखिलाकर हँसने लगती हैं क्योंकि उन्हें खरगोश बहुत प्रिय हैं)
विक्रमादित्य( मन ही मन सोचते हुए)
वास्तव में. हम बहुत भाग्यशाली हैं. जो आप हमारे जीवन में आईं।
दृश्य परिवर्तन — महाराज का कक्ष)
राजकुमार वीरेंद्र आते हैं
वीरेंद्र:
प्रणिपात माता श्री. आपने हमें बुलाया।
महारानी:
हाँ पुत्र. हमें आपको यह बताना था.
कि आपका विवाह एक माह पश्चात निश्चित किया गया है।
क्या आप इसके लिए सहमत हैं?
वीरेंद्र यह सुनकर चौंक जाते हैं)
सस्पेंस संगीत)
वाचक( उत्सुकता से)
तो.
वीरेंद्र तो अपने विवाह के विषय में जानते थे.
तो वे चौंक क्यों गए?
और क्या.
विक्रमादित्य की योजना सफल हो पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है। । । । । । । । । एम
अब हमने देखा कि चंद्राक्षी को विक्रमादित्य के जन्मोत्सव न मनाने के कारण पता चलता है, और विक्रमादित्य महाराज को राजसभा में अपनी योजना बताते हैं।
अब आगे
महाराज का कक्ष
वीरेंद्र अपने विवाह की बात सुनकर इसलिए चौक जाते हैं कि क्योंकि अभी तो उनके भ्राता श्री का विवाह हुआ ही है और केवल एक माह पश्चात ही उनका विवाह निश्चित हो चुका है।
महारानी: क्या हुआ पुत्र आप यह बात सुनकर चकित क्यों हो गए।
वीरेंद्र अपने भाव को छुपाते हुए- ऐसी कोई बात नहीं, माता श्री हमें इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं है हमारा विवाह आपके कहे अनुसार एक माह पश्चात ही होगा।
महारानी- हमें आपसे यही आशा थी पुत्र अब हम निश्चिंत होकर आपके विवाह की तैयारी कर सकते हैं। आप भी अब आपके विवाह की तैयारी में लग जाइए।
वीरेंद्र: जो आज्ञा माता श्री। फिर वीरेंद्र अपनी माता श्री को प्रणाम करके उनके कक्ष बाहर निकल जाते हैं। फिर महारानी राजकुमारी चंद्राक्षी को बुलावा भेजती है।
दूसरी ओर
वीरेंद्र उदास से और खोए हुए से बगीचे में जाकर बैठ जाते हैं। उन्हें ऐसा बैठे देख विक्रमादित्य उनकी तरफ अपनी दिशा बदल लेते हैं। विक्रमादित्य वीरेंद्र के पास आते हुए- क्या हुआ वीरेंद्र आप कहीं खोए हुए से और उदास क्यों है?
वीरेंद्र- बात यह है, भ्राता श्री माता श्री ने हमारा विवाह एक माह बाद वसंत पंचमी को तय किया है।
यह सुनते ही विक्रमादित्य वीरेंद्र को गले लगा लेते हैं- बधाई हो वीरेंद्र हमें बहुत खुशी है कि आपका विवाह शीघ्र ही होने वाला है। लेकिन आप इस बात से उदास क्यों है?
वीरेंद्र- भ्राता श्री हम चाहते थे कि हमारा विवाह तब हो जब हम पूरे पच्चीस वर्ष के हो जाए।
विक्रमादित्य वीरेंद्र को समझाते हुए- वीरेंद्र वैसे भी आपको विवाह तो करना ही है चाहे अभी करो या फिर पच्चीस के होने के बाद।
वीरेंद्र- भ्राता श्री आप ठीक कह रहे हैं इसी लिए तो हमने माता श्री से विवाह के लिए मना नहीं किया।
विक्रमादित्य- यह आपने ठीक किया वीरेंद्र।
महारानी का कक्ष
चंद्राक्षी- प्रणाम बडी मां। आपने हमें बुलाया।
महारानी- खुश रहो पुत्री, आओ हमारे समीप आकर बैठो। हमने आपको ये बताने के लिए बुलाया है की आज से ठीक एक माह पश्चात राजकुमार वीरेंद्र का विवाह तय किया गया है।
चंद्राक्षी मन में सोचते हुए अचानक भ्राता श्री का विवाह कैसे हो सकता है उन्होंने तो ना ही किसी स्वयंवर में भाग लिया है। चंद्राक्षी अपने भावों को छुपाते हुए- यह तो बहुत ही खुशी की बात है बडी मां हम आज से ही विवाह की तैयारी करना आरंभ कर देते हैं। वैसे बडी माँ भ्राता श्री का विवाह हो किससे हो रहा है?
महारानी: कुंतल प्रदेश की राजकुमारी सुकन्या के साथ। राजकुमार विक्रमादित्य के जन्मदिन के पश्चात हम सब कुंतल प्रदेश के लिए प्रस्थान करेंगे वहां जाकर ही सारी रस्में पूरी होगी और राजकुमार वीरेंद्र और राजकुमारी सुकन्या का विवाह होगा।
चंद्राक्षी: जी बडी मां।
महारानी: आप राजकुमार वीरेंद्र के विवाह का निमंत्रण पत्र आपके पीहर भिजवा दिजिए।
चंद्राक्षी- जी बडी मां, हम आज ही जोधाणा, भ्राता श्री के विवाह का निमंत्र भिजवा देंगे। फिर राजकुमारी महारानी को दोबारा प्रणाम करके उनके कक्ष से बाहर निकल जाती है। और विक्रमादित्य के जन्मदिन की तैयारियों को देखने चली जाती है।
दो दिन बाद पाटलिपुत्र( पाटलिपुत्र के राजा अश्वत्थ सिंह की आयु अभी चालीस वर्ष है और उनकी रानी का नाम चंद्रकांता है, उनके पुत्र हैं जो कि अभी पंद्रह वर्ष के हैं जिनका नाम अंशुमान सिंह है) राजसभा में सब एकत्रित है महामंत्री: महाराज जैसा आपको ज्ञात होगा है कि सिंध राज्य से जो हमारे यहां जडी बूटियां कोयला और टेराकोटा की मिट्टी लाई जाती हैं, उस मार्ग पर इंद्रप्रस्थ पडता है तो अब वहां हमसे ज्यादा कर मांगा जा रहा हैं जिस कारण से हमें बडी हानि हो रही है।
अश्वत्थ सिंह क्रोधित होते हुए- अच्छा अब वह हमारी चाल हम ही पर चल रहे हैं।
महामंत्री- हां महाराज आपने सही समझा।
महाराज- यदि ऐसी बात है तो जो भी हमारा सामान सिंध राज्य से आयात किया जाता है वह अब किसी दूसरे मार्ग से लाया जाए जहां पर इंद्रप्रस्थ नहीं पडता क्योंकि चाहे जो हो जाए हम इंद्रप्रस्थ के आगे नहीं झुकेंगे।
महामंत्री: जो आज्ञा महाराज।
इंद्रप्रस्थ
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का कक्ष
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य चतुरंग( शतरंज) का आनंद ले रहे हैं तभी चंद्राक्षी विक्रमादित्य की तरफ देखती है चंद्राक्षी- आर्य हमें एक उलझन है"
विक्रमादित्य: कैसी उलझन अक्षी?
चंद्राक्षी- आर्य हम जानना चाहते हैं कि अचानक भ्राता श्री वीरेंद्र का विवाह कैसे तय हो गया वह तो ना ही किसी के स्वयंवर में गए हैं और ना ही किसी का उनके लिए रिश्ता आया है?
विक्रमादित्य: हम आपको बताते हैं कि अचानक वीरेंद्र का विवाह कैसे तय हो गया? बात ये है की कुंतल प्रदेश की महारानी रुद्रमादेवी बडी मां की सखी है। जब वीरेंद्र छोटे थे तब बडी मां और उनकी सखी महारानी रुद्रमादेवी ने बचपन में ही वीरेंद्र और राजकुमारी सुकन्या का विवाह तय कर दिया था। और अब तक उनका विवाह इसलिए नहीं हुआ था क्योंकि हम वीरेंद्र से बडे हैं तो परंपरागत रूप से हमारा विवाह पहले होना चाहिए। इसलिए जब तक हमारा विवाह नहीं हो गया तब तक बडी मां ने वीरेंद्र के विवाह की बात नहीं छेडी थी और अब हमारा विवाह हो चुका है तो वह जल्द से जल्द ही वीरेंद्र का विवाह करवाना चाहती है।
चंद्राक्षी- आर्य किंतु भ्राता श्री वीरेंद्र राजकुमारी सुकन्या के साथ विवाह तो करना चाहते हैं ना?
विक्रमादित्य- उनसे पूछने के बाद ही बडी मां ने विवाह की तैयारी आरंभ की है। पहले तो वह भी विवाह के लिए तैयार नहीं थे तो फिर हमने उन को समझा दिया है कि आज नहीं तो कल उन्हें विवाह करना ही है इसलिए वह अब इस विवाह से सहमत हैं।
विक्रमादित्य फिर चंद्राक्षी का ध्यान खेल की और खींचते हुए: अक्षी अब आप इस खेल में हार चुकी हैं।
चंद्राक्षी चौंकते हुए- यह नहीं हो सकता आर्य, हम किसी और बात में उलझे हुए थे, तो आप ने हमारी इस भूल का लाभ उठाया है। हम नहीं मानते कि आप हमसे जीत चुके हैं।
विक्रमादित्य- तो ठीक है, अक्षी अब हम दोबारा खेलते हैं और आप अब अपना ध्यान नहीं भटकाएगी।
चंद्राक्षी सहमति जताते हुए- ठीक है आर्य, एक बार और खेलते हैं और इस बार तो हम ही विजयी होंगे।
कुंतल प्रदेश
महारानी रुद्रमादेवी( ये कुंतलप्रदेश की बडी रानी हे और राजकुमारी सुकन्या और राजकुमार मलयकेतु की माता श्री) सभी सेविकाओं को समझा रही है कि उन्हें कैसे विवाह की तैयारी करनी है। महारानी सभी सेविकाओं को देखते हुए: हम आप सबको कह देना चाहते हैं कि हमारी पुत्री के विवाह में किसी प्रकार की कमी नहीं रहनी चाहिए। फिर उन सब में काम बांट देती है। तभी महारानी आम्रपाली उनकी तरफ आती है।
महारानी आम्रपाली( ये कुंतलप्रदेश की छोटी रानी हैं और इनकी एक पुत्री है जिनका नाम हिमाद्री है) महारानी आम्रपाली- जीजी आप परेशान मत होइए सब धीरे- धीरे अच्छी तरह से हो जाएगा।
रुद्रमादेवी- कैसी बात कर रही हे आप छोटी हम लडकी वाले हैं हमारी तरफ से कोई भी कमी नहीं रहनी चाहिए।
आम्रपाली- हम समझते हैं जीजी परंतु आप इतनी चिंतित ना होइए। हम भी तो आपकी मदद करने को है ही ना।
रुद्रमादेवी उनकी बातों से कुछ शांत होती हैं और मुस्कुराते हुए- हां आप ठीक कह रही हैं छोटी।
दूसरी ओर
राजकुमारी सुकन्या सोचते हुए राजकुमार वीरेंद्र आप हमें याद तो करते हैं ना। हमें आज तक आपका कोई पत्र नहीं मिला इस कारण हम आपसे बहुत रुष्ठ हैं।
तभी उनकी छोटी बहन हिमाद्रि उनके के पास आती है। हिमाद्री खुशी से आके उनके गले लगते हुए- हम बहुत प्रसन्न हैं जीजी कि अंततः आपका विवाह होने जा रहा है।
सुकन्या कुछ उदास होते हुए- हिमाद्री हमें तो लगता है कि राजकुमार वीरेंद्र हमसे विवाह करना चाहते ही नहीं है क्योंकि उनको आज तक हमारी याद नहीं आई है। ना ही कभी उन्होंने हमें कोई पत्र लिखा।
हिमाद्री- जीजी आप चिंता मत करिए हो सकता है वह भी आपके पत्र की प्रतीक्षा कर रहे हो। इसलिए वह भी रुष्ठ हों।
सुकन्या थोडा शांत होते हुए- आप ठीक कह रही है हिमाद्री। हो सकता यही सत्य हो। हिमाद्री- चलिए जीजी हम आपके विवाह के लिए वस्त्र चुनते हैं।
सुकन्या मुस्कुराते हुए- हां ठीक है।
पाटलिपुत्र
पांच दिन पश्चात
राज्यसभा
कुछ व्यापारी आते हैं और महाराज से कहते हैं व्यापारी: महाराज पहले हमें सिंध राज्य से सामान लाने में दो दिन लगते थे लेकिन जब से हमने दूसरे मार्ग आना आरंभ किया है तब से हमें अब पांच दिन लगने लगे हैं। जिस कारण हमें भारी क्षति उठानी पड रही है। और इतना तो हमें लाभ ही नहीं होता जितनी हमें हानि हो जाती हैं।
महाराज सोचते हुए यह तो इंद्रप्रस्थ ने हमें बुरा फसाया है। अगर हम कर कम कर लेते हैं तो हम उनके आगे झुक जाएंगे और नहीं करते तो हमें ही नुकसान होगा। जो षड्यंत्र हमने उनके लिए सोचा था लगता वह हमारे ऊपर ही भारी पड रहा है।
महाराज खींझ खाते हुए व्यापारियों से- आप अबसे दोबारा उसी मार्ग से आए जिस मार्ग से आप पहले आते थे और अब से आपको वहीं सामान्य कर देना होगा।
फिर सारे व्यापारी राजसभा से चले जाते हैं। महाराज महामंत्री की ओर देखते हुए- आप इंद्रप्रस्थ एक पत्र भिजवाइए जिसमें समझौते की बात की गई हो।
महामंत्री: जो आज्ञा महाराज।
इंद्रप्रस्थ
प्रातःकाल
आज कृष्ण पक्ष की नवमी है। और विक्रमादित्य का जन्मदिन है। चंद्राक्षी विक्रमादित्य से पहले उठ जाती है। और तैयार हो जाती है। और वह विक्रमादित्य को उठाते हुए कहती है- आर्य! आपको जन्मदिन की बधाई हो"
विक्रमादित्य उनकी सुरीली आवाज सुनकर कहते हैं: धन्यवाद अक्षी"
चंद्राक्षी- आर्य अब आप शीघ्रता से तैयार हो जाइए क्योंकि हमें बहुत ही शुभ कार्य करने जाना है।
विक्रमादित्य चंद्राक्षी को परेशान करने के लिए वो अनजान बनते हुए- कौन सा शुभ कार्य अक्षी?
चंद्राक्षी- इसका अर्थ है आप हमारे बीच में जो बात हुई थी वो भूल चुके हैं।
विक्रमादित्य- कौन सी बात चंद्राक्षी? और यह कहते हुए वह वापस सो जाते हैं। चंद्राक्षी यह सुनकर बहुत ही क्रोधित हो जाती है और पास में रखा जल का पात्र उठाकर विक्रमादित्य के ऊपर उडेल देती है। विक्रमादित्य चौंक कर उठ जाते हैं और अपना मुह पोंछते हुए कहते हैं- अक्षी आपने यह क्या किया?
चंद्राक्षी: हमें लगता है आर्य अब आपको सब कुछ याद आ चुका होगा।
विक्रमादित्य बिस्तर से उठते हुए कहते हैं- हां, और हमें क्या याद आया अब हम आपको बताते हैं"
फिर चंद्राक्षी को पकडने के लिए भागते हैं उससे पहले चंद्राक्षी कक्ष से बाहर दौड लगा लेती है और कह जाती हैं की- आप तैयार हो जाइए हमें शीघ्र ही चलना है"
फिर विक्रमादित्य हसते हुए तैयार होने के लिए चले जाते हैं और सोचते हैं अक्षी आपसे तो कोई ठिठोली भी नहीं कर सकता जिसने भी आपसे ठिठोली करने का प्रयास किया है वह उसके ऊपर भारी ही पडा है। और( शरारती भाव से) आप रुकिए हम आपसे इस चीज का प्रतिशोध अवश्य लेंगे।
पाटलिपुत्र
महाराज का कक्ष
अश्वत्थ सिंह घृणा के भाव से- इस बार तो हम पीछे हट रहे हैं राजा अमरेंद्र सिंह लेकिन अबकी बार हम ऐसा षड्यंत्र रचेंगे जिससे आप चाहकर भी बाहर नहीं निकल पाएंगे"
तभी उनकी रानी चंद्रकांता उनके कक्ष में आती हैं। महाराज अपने भावों को सामान्य करने का प्रयास करते हुए: आइए रानी चंद्रकांता"
चंद्रकांता महाराज को समझाते हुए- महाराज हम जानते हैं कि इंद्रप्रस्थ से हमारी पुरानी शत्रुता है लेकिन जब इंद्रप्रस्थ आगे होकर हमारा कुछ नहीं बिगाड रहा तो आप क्यों उनके विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं"
महाराज रानी चंद्रकांता की बात सुनकर आग बबूला हुए जा रहे थे और अपने क्रोध से भरी स्वर मे ही कहते हैं- महारानी ठीक यही होगा की आप हमारे और इंद्रप्रस्थ की शत्रुता के बीच में ना आए" यह कहकर अश्वत्थ सिंह क्रोध मे कक्ष से बाहर निकल जाते है।
चंद्रकांता मन में सोचते हुए महाराज आप कब मानेंगे की शत्रुता और षडयंत्रों से कभी किसी का कल्याण नहीं हुआ है। और लगता है की आपने अपना विनाश करने का स्वयं ही निश्चित ही कर लिया है।
इंद्रप्रस्थ
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य का कक्ष
विक्रमादित्य अपनी माता श्री के चित्र के आगे नमन करते हैं और कहते हैं की माँ आज हम पूरे छब्बीस के हो चुके हैं कृपया हमें आशीर्वाद दीजिए। फिर राजकुमार महाराज के कक्ष की ओर प्रस्थान कर लेते हैं।
महाराज का कक्ष
महाराज- महारानी आज हम बहुत ही प्रसन्न है।
महारानी महाराज की ओर देखते हुए- ऐसी क्या बात है महाराज हमें भी बताइए"
महाराज- क्योंकि आज विक्रमादित्य का जन्मदिन है वह आज पूरे छब्बीस वर्ष के हो चुके हैं। कहां जब वह छोटे थे तब हम उन्हें अपने ऊपर बैठ कर उन्हें अश्वारोहण करवाते थे।
महारानी- हां महाराज हम भी बहुत प्रसन्न हैं। हमें भी पता ही नहीं चला कब हमारे पुत्र इतने बडे हो गए। हम अभी भी उनमें वही बचपन की छवि देखते हैं।
तभी विक्रमादित्य उनसे कक्ष में आने की आज्ञा लेते हैं, आज्ञा मिलने पर भीतर आकर उन दोनों के चरण स्पर्श करते हैं। महाराज और महारानी दोनों उनको देखकर बहुत ही प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद देते हैं कि- दीर्घायु भव"
महाराज- विक्रमादित्य आपको क्या उपहार चाहिए?
विक्रमादित्य: ज्येष्ठ पिताश्री हमारे लिए तो आपका आशीर्वाद ही सबसे अमूल्य उपहार है। महाराज उनके सिर पर हाथ फेरते हैं और मन में सोचते हैं कि आप जैसा पुत्र भगवान सबको दे। फिर राजकुमार उनका आशीर्वाद प्राप्त कर कक्ष से बाहर निकल जाते हैं।
तभी अचानक अमर सिंह दौडते हुए उनके पास आते हैं और कहते हैं- राजकुमार हमें आपसे बहुत ही महत्वपूर्ण बात करनी है"
क्या कारण है अमर सिंह के इस प्रकार हडबडी मे आने का?
चंद्राक्षी Kiss शुभ कार्य की बात कर रही थी?
और विक्रमादित्य क्या करने वाले है चंद्राक्षी के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
कहानी में आगे क्या होगा जानने के लिए Stay Tuned.
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हमारी कहानी के विषय में अपने विचार Comment किजिए।
अब तक हमने देखा की चंद्राक्षी, विक्रमादित्य के जन्मदिन पर शुभ कार्य करना चाहती है जिसकी अनुमति वह महारानी से लेती हैं। और पाटलिपुत्र में राजा अश्वत्थ सिंह अब नया षड्यंत्र रचने की सोच रहे हैं। इंद्रप्रस्थ में अचानक अमर सिंह विक्रमादित्य के पास कोई सूचना लेकर आए हैं।
अब आगे
अमर सिंह: राजकुमार पाटलिपुत्र से पत्र आया है।
विक्रमादित्य यह सुनते ही गंभीर हो जाते हैं और अमर सिंह के साथ, पाटलिपुत्र से आए दूत के पास तुरंत राजसभा में चले जाते हैं।
राजसभा
महाराज पाटलिपुत्र के दूत से पत्र पढने का संकेत करते हैं
दूत पत्र पढते हुए-
महाराज अमरेंद्र सिंह,
हम, राजा अश्वत्थ सिंह, चाहते हैं कि हम एक समझौता कर ले। जिसके अनुसार हम आपके आयात से लिया जाने वाला कर सामान्य कर देंगे और आप भी हमारे आयतों पर कर सामान्य कर दीजिएगा। हम आशा करते हैं की आप हमारे इस प्रस्ताव का मान रखेंगे।
धन्यवाद
महाराज मुस्कुराते हुए- अंततः अश्वत्थ सिंह ने हार मान ही ली। फिर वह राजकुमार विक्रमादित्य को देखते हुए कहते हैं" हम आपके सुझाव से बहुत प्रसन्न है राजकुमार विक्रमादित्य। आपने जैसा कहा था आपकी युक्ति सफल रही"
विक्रमादित्य- धन्यवाद महाराज, महाराज अब प्रस्ताव की स्वीकृति मे हमें भी पाटलिपुत्र पत्र भिजवा देना चाहिए।
महाराज सहमति देते हुए- अवश्य राजकुमार।
फिर महाराज महामंत्री की ओर देखते हुए- महामंत्री पाटलिपुत्र इस समझौते की सहमति में एक सहमति पत्र भिजवा दिया जाए"
महामंत्री- जो आज्ञा महाराज।
फिर कुछ दैनिक विषय पर विचार विमर्श होते हैं और सभा स्थगित हो जाती हैं।
सभा से बाहर आते हुए अमर सिंह राजकुमार विक्रमादित्य से कहते हैं- राजकुमार हमें तो ज्ञात ही था कि आपकी योजना अवश्य सफल रहेगी।
विक्रमादित्य- धन्यवाद अमर। कूटनीति कहती है की शत्रु की रणनिति से उसे ही पराभूत कर दो।
अमर सिंह- आप ठीक कह रहे हैं राजकुमार।
फिर वहाँ से चंद्राक्षी के साथ मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
मंदिर परिसर में
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य मंदिर में जाते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। चंद्राक्षी मन में सोचते हुए और प्रार्थना करते हुए हे प्रभु, आर्य पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखना। विक्रमादित्य प्रार्थना करते हुए हम चाहते हैं कि हमारी अर्धांगिनी यानी अक्षी सदैव हमारे साथ प्रसन्न रहें। फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य यज्ञ करते हैं।
यज्ञ अनुष्ठान सम्पन्न करने के पश्चात चंद्राक्षी और विक्रमादित्य, बालकों को भोजन परोसते हैं तभी उस समय एक बालक उठ जाता है। चंद्राक्षी यह देखकर चकित हो जाती है और वो उस बालक के पास जाती है। चंद्राक्षी के बालक के समक्ष आने पर वह बालक तेजी से दौड लगा लेता है।
चंद्राक्षी उस बालक को पुकारते हुए कहती है- रुको बालक रुको, कहां भाग रहे हो अपना भोजन तो करते जाओ।
फिर बालक कुछ दूरी पर जाकर खडा हो जाता है। चंद्राक्षी उसको देखते हुए फिर उसके पास जाती है फिर वह बालक वहां से दौड लगा लेता है। ऐसे ही वह बालक चंद्राक्षी को पूरे मंदिर परिसर का भ्रमण करा देता है। चंद्राक्षी थककर बैठ जाती है।
फिर वह बालक विक्रमादित्य के पास जाता है तो विक्रमादित्य उसे बैठने को कहते हैं और वह बालक वापस भोजन करने बैठ जाता है। यह देखकर चंद्राक्षी को सब समझ में आ जाता है की विक्रमादित्य ने उसकी सुबह की चपलता का प्रतिशोध लिया हैं। विक्रमादित्य चंद्राक्षी के समीप आते हैं। और उनके सामने घुटनों के बल बैठते हैं।
विक्रमादित्य: अक्षी आपको क्या लगा की सुबह जो हुआ वह हमें इतनी जल्दी विस्मरण हो जाएगा।
चंद्राक्षी रुष्ठ होते हुए अपना मुख दूसरी ओर कर कहती है- किंतु आर्य आप कोई और मार्ग भी तो निकाल सकते थे ना हमसे प्रतिशोध लेने का आपको नहीं पता हम कितने थक चुके हैं"
विक्रमादित्य, चंद्राक्षी कि इस मनमोहक अदा को देख मुस्कुराते हुए- हमें क्षमा कीजिएगा अक्षी परंतु इतनी शीघ्र हमें यही उपाय सही लगा। अब आप यहां पर विश्राम कीजिए बाकी का काम हम कर लेंगे।
विक्रमादित्य के बालकों को भोजन कराने जाने के पश्चात फिर वह बालक चंद्राक्षी के पास आता है।
बालक: हमें क्षमा कीजिएगा राजकुमारी कि हमने आपको परेशान किया।
चंद्राक्षी उस बालक के सिर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर कहती है- आप क्यों क्षमा मांग रहे हैं आपसे जैसा आर्य ने कहा था आपने वैसा ही किया लेकिन हमें आपके पीछे दौडकर बहुत ही आनंद आया। हमें हमारे बालपन की याद आ गई।
फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य सभी बालकों को भोजन और वस्त्र देने के बाद राजमहल में लौट जाते हैं।
उनके कक्ष मे पहुँच चंद्राक्षी को कुछ सूझता है तो वह विक्रमादित्य से कहती है- आर्य हम आपसे पूछना चाहते थे कि ज्येष्ठ पिताश्री, भ्राता श्री वीरेंद्र और पिताश्री का नाम इंद्र से समाप्त होता है और यह ठीक भी है क्योंकि इस राज्य और आपके वंश को इसी नाम से जाना जाता है किंतु आपका नाम विक्रमादित्य क्यों है?
विक्रमादित्य चंद्राक्षी के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए- अक्षी हमारे नामकरण संस्कार में हमारा नाम शैलेंद्र रखा गया था। किंतु प्यार से माता श्री हमें विक्रमादित्य बुलाती थी। फिर माता श्री के जाने के बाद हमने हमारा नाम विक्रमादित्य रख लिया। और तब से सभी हमें विक्रमादित्य के नाम से पुकारते हैं।
चंद्राक्षी मन में सोचते हुए आर्य आप धन्य है क्योंकि आपने अपनी माता श्री के आगे अपने वंश को भी नहीं आने दिया। आपने यह भी नहीं सोचा कि आपको सबसे अलग समझा जाएगा।
राजमहल
अमर सिंह राजकुमार को खोजते हुए आते हैं और उन्हें गलियारे मे विक्रमादित्य दिख जाते हैं तो वह दूर से ही उनकी तरफ दौडते हुए आते हैं।
अमर सिंह विक्रमादित्य को कसके गले लगाते हुए- बधाई हो राजकुमार, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो आपको।
विक्रमादित्य कसमसाते हुए- छोडिए हमें अमर, क्या आज ही हमें सम्पूर्ण जीवन की बधाइयां दे देंगे।
अमर सिंह- हम बहुत खुश हैं की आज इतने वर्षों के पश्चात आपने अपना जन्मदिन मनाया है। और हमें सब कुछ सामान्य और शांत लग रहा है।
विक्रमादित्य अमर के कंधों पर अपना हाथ रखते हुए उन्हें अपने साथ लेकर चलते हुए कहते हैं- चलिए हम बताते हैं कि आपको सब कुछ शांत क्यों लग रहा है?
फिर विक्रमादित्य अमर सिंह को उद्यान मे टहलते हुए उनसे बातें करने लगते हैं।
विक्रमादित्य अमर सिंह के मजे लेते हुए कहते हैं- क्योंकि इंदुमती यहां पर नहीं है"
इंदुमती सेनापति भीमसेन की पुत्री है और वह बालपन से ही अमर सिंह और राजकुमार विक्रमादित्य के साथ खेलते हुए बडी हुई है और इंदुमती से अमर सिंह की जन्म जन्मांतर की शत्रुता है)
अमर सिंह चिढते हुए- क्या राजकुमार आपको भी उस छिपकली का नाम लेना था हमारा तो उसका नाम सुनते ही पूरा प्रसन्नता का नाश हो गया।
विक्रमादित्य हंसते हुए- अरे हमें तो लगा था की उनका नाम लेते ही आपकी प्रसन्नता ओर बढ जाएगी। और आप के भावों को देखकर लगता है कि आपको उनकी बहुत ही याद आ रही है।
अमर सिंह थोडा घबराते हुए- हमें अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह जल्दी ही अपने ननिहाल से आने वाली है हमें तो अभी से घबराहट होने लगी है।
विक्रमादित्य- ऐसा भी मत कहिए उनके बारे में वह इतनी भी बुरी नहीं है।
अमर सिंह तंज कसते हुए- राजकुमार आपको तो सभी अच्छे लगते हैं। हमें तो याद नहीं कभी आपने किसी की बुराई भी की हो। और ये कह आगे जाने को होते है इतने मे विक्रमादित्य कहते हैं।
विक्रमादित्य- अरे हम आप से जो बात करने आए थे वह तो भूल ही गए।
अमर सिंह- कोनसी बात राजकुमार?
विक्रमादित्य- आने वाली वसंत पंचमी को वीरेंद्र का विवाह होने वाला है।
अमर सिंह खुश होते हैं- यह तो बहुत ही शुभ समाचार है राजकुमार।
विक्रमादित्य- और इसके लिए दो दिनों के पश्चात हमें कुंतल प्रदेश प्रस्थान करना होगा।
अमर सिंह- जैसा आप कहे राजकुमार।
विक्रमादित्य: ठीक है अमर अब हम चलते हैं हमें राजकुमार की विवाह की तैयारी करनी है।
अमर सिंह- जी राजकुमार अब हमें भी हमारा कार्य समाप्त करना है।
फिर दोनों एक दूसरे से विदा ले लेते हैं और अपने- अपने काम की ओर चल देते हैं।
कुंतल प्रदेश
वन में
वन का वातावरण भयंकर रूप धारण किए हुए हैं सारे पक्षी जंगल में आवाज कर रहे हैं। क्योंकि कुछ लोग जंगल में शिकार करने आए हैं।
उनमें से एक व्यक्ति कहता है राजकुमार लगता है आपके भय से सभी पशु पक्षी छुप चुके हैं।
राजकुमार मलयकेतु( डरावनी हंसी हंसते हुए) हां तुमने सही कहा। ये कुंतल प्रदेश के राजकुमार मलयकेतु और राजकुमारी सुकन्या के बडे भाई हैं। इनका स्वभाव निर्दयी और अहंकार से भरा हुआ है। यह बहुत ही चतुर है और अपनी बहनों से बहुत ही स्नेह करते हैं यहां तक को उनके लिए यह भगवान से भी लड सकते हैं। तभी एक सैनिक जंगल में आता है।
सैनिक- राजकुमार आपको महारानी नहीं याद किया है।
महारानी रुद्रमा देवी के कक्ष मे
महारानी व्यापारी को देखते हुए: हमने आपसे जो विवाह के लिए विशेष प्रकार के आभूषणों को तैयार करने के लिए कहा था उसकी तैयारी अपने कर ली। फिर दूसरे व्यापारी की और मुडते हुए- और आपको परिधान के लिए वस्त्र आयात करने के लिए कहा था वो किया? ऐसे ही कईं प्रश्न करती हैं।
दोनों व्यापारी: जी महारानी आप निश्चित रहिए। आपने जैसा कहा था हमने वैसा ही किया है।
महारानी संतुष्ट होते हुए व्यापारियों से- अच्छा ठीक है अब आप जाइए और बाकी की तैयारी देखिए।
फिर व्यापारी महारानी वहाँ से चले जाते है।
तभी मलयकेतु कक्ष में प्रवेश करते हैं
मलयकेतु: प्रणाम माता श्री।
महारानी: शतायु भवः पुत्र। हमने आपसे कल कहा था ना कि अब राजकुमारी सुकन्या के विवाह मे अधिक समय शेष नही रह गया है इसलिए जब तक विवाह ना हो जाए तब तक आप महल से बाहर नहीं निकलेंगे।
मलयकेतु- क्षमा कीजिएगा माताश्री परंतु हमने सुकन्या के विवाह की सारी तैयारी लगभग कर ली है। फिर भी जब तक सुकन्या का विवाह नहीं हो जाता तब तक हम महल में ही रहेंगे।
महारानी मलयकेतु के उत्तर से संतुष्ट होते हुए- आपको ज्ञात तो है ना आज से एक दिन पश्चात इंद्रप्रस्थ से हमारे प्रमुख पाहुन( अतिथि) आने वाले हैं।
मलयकेतु: जी माता श्री हमें ज्ञात है और हमने उनके ठहरने की सारी व्यवस्थाएँ करवा दी है।
महारानी- अब आप जाइए और सारी व्यवस्थाएँ पुनः देख लीजियेगा।
मलयकेतु- जैसी आपकी आज्ञा माता श्री।
इंद्रप्रस्थ
चंद्राक्षी विक्रमादित्य को भोजन करने के लिए कहती है।
विक्रमादित्य भोजन को देखते हुए पूछते हैं- अक्षी! आज का भोजन आपने स्वयं बनाया है?
चंद्राक्षी उसका प्रश्न सुन उत्सुकता से कहती है: हाँ आर्य, हमने विशेष कर यह आपके लिए बनाया है। यह जोधाणा का सबसे लोकप्रिय व्यंजन है।
विक्रमादित्य( खुश होते हुए) धन्यवाद अक्षी।
फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य भोजन कर लेते हैं। और अपने कक्ष में चले जाते हैं।
कक्ष मे जाते ही विक्रमादित्य को सामने एक मेज पर लाल वस्त्र से ढका हुआ एक थाल दिखता है।
विक्रमादित्य- अक्षी यह क्या है?
चंद्राक्षी मुस्कुराते हुए- आर्य यह आपके जन्मदिन का उपहार है। आप वो लाल वस्त्र हटाइये।
विक्रमादित्य जैसे ही वो लाल वस्त्र हटाते हैं। तो उस उपहार को देखकर प्रफुल्लित हो जाते हैं।
उपहार मे एक अद्भुत धनुष था जिसे चंद्राक्षी ने विशेषकर विक्रमादित्य के लिए बनवाया है। यह सुनहरे रंग का धनुष है जिसे एक विशेष प्रकार की लकडी से बनाया गया है और इसकी लंबाई साढे पांच फुट है। इस पर एक सो आठ ॐ की कलाकृति उकेरी गई है, इसका वजन सात किलो है। ये देखने मे अर्जुन के गांडीव धनुष जितना ही दिव्य है)
जिस प्रकार एक स्त्री के लिए उसके आभूषण होते हैं उसी प्रकार एक योद्धा के लिए उसके अस्त्र और शस्त्र होते हैं।
चंद्राक्षी धनुष को देखते हुए- आर्य इस धनुष का नाम तरक्षण है। इसके बनने के पश्चात हमने इसकी भगवान शिव के मंदिर में पूजा की है और उनके चरणों में रख इसे उनका आशीर्वाद दिलवाया है।
विक्रमादित्य- धन्यवाद अक्षी, ये धनुष अब तक का सबसे अच्छा उपहार है।
चंद्राक्षी यह सुनकर खुश हो जाती है।
प्रातःकाल
पक्षी चह चहा रहें हैं और आंगन में चंद्राक्षी रंगोली बना रही है। तभी वीरेंद्र वहां आते हैं
वीरेंद्र- प्रणाम भाभी श्री।
चंद्राक्षी वीरेंद्र की ओर देखते हुए- प्रणाम भ्राता श्री।
वीरेंद्र आश्चर्य से- भाभी श्री आप रंगोली क्यों बना रही है?
चंद्राक्षी- क्योंकि आपका विवाह होने जा रहा है इस शुभ अवसर पर हम यह रंगोली बना रहे हैं।
वीरेंद्र- अच्छा" कहकर जहाँ जा रहे थे उस कार्य को करने चले जाते हैं।
वीरेंद्र के जाने के बाद अचानक ही अमर सिंह दौडते हुए आते हैं और चंद्राक्षी की रंगोली के ऊपर चढ जाते हैं।
यह देखना ही था चंद्राक्षी लावा की तरह खोलती हुई खडी हो जाती है। अमर सिंह के पीछे विक्रमादित्य भाग रहे थे राजकुमारी को इतने क्रोध मे देखकर वह भी स्तब्ध रह जाते हैं। और अमर सिंह की तो श्वास ही गले में अटक जाती है।
अमर सिंह भय के कारण अटकते हुए कहते हैं- ह. हम्. हमें क्षमा कीजिएगा रा. राज. राजकुमारी। ह. हम से यह भ. भूल से हुआ है हम ये क. कर. करना नही चाहते थे।
चंद्राक्षी अपने आप को शांत करते हुए- कोई बात नही भ्राता श्री, हम पुनः बना लेंगे। और क्रोध में तीखी नजरो से विक्रमादित्य की तरफ देखते है।
विक्रमादित्य मन में सोचते हुए- इनकी रंगोली खराब अमर सिंह ने की और यह क्रोध में हमें क्यों घूर रही है।
अमर सिंह उन्हें शांत होता देख उनका भी जो भय से रक्तचाप बढ गया था वो सामान्य हो जाता है और वे खेद प्रकट करते हुए कहते हैं- हमें क्षमा कीजिएगा राजकुमारी हम यह रंगोली तो नहीं बना सकते किंतु आप और कुछ कार्य हमसे करना चाहती तो आप करवा सकती हैं।
चंद्राक्षी- कोई बात नहीं भ्राता श्री। हम स्वयं कर लेंगे।
तभी एक सेवक वहां आता है और विक्रमादित्य से कहता है
सेवक: राजकुमार की जय हो! जोधाणा से आपके लिए एक पत्र आया है।
चंद्राक्षी विक्रमादित्य को क्रोध से क्यों देख रही थी? और क्या पत्र आया है जोधाणा से? राजा अश्वत्थ सिंह अब क्या प्रपंच रचेंगे इंद्रप्रस्थ के विरुद्ध?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
कहानी में आगे क्या होगा जानने के लिए Stay Tuned.
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हमारी कहानी के विषय में अपने विचार Comment किजिए।
अब तक हमने देखा कि चंद्राक्षी, विक्रमादित्य के जन्मदिन पर एक भव्य यज्ञ आयोजन और दान पुण्य का कार्य करती है और उन्हें एक बेहतरीन उपहार देती है जो की एक दिव्य धनुष है। वहीं कुंतल प्रदेश में विवाह की तैयारी चरण सीमा पर है। और जोधाणा से एक पत्र आया था।
अब आगे:
इंद्रप्रस्थ
राजकुमार विक्रमादित्य दूत के पास जाते हैं और उनसे पत्र लेकर उनको आराम करने के लिए भेज देते हैं।
पत्र में लिखा था
प्रिय पुत्री,
हम आशा करते हैं आप और वहाँ सब कुशल होंगे। और हम आपसे क्षमा चाहते है पुत्री कि हम राजकुमार वीरेंद्र के विवाह में सम्मिलित नहीं हो पाएंगे क्योंकि कुछ दिनों से हमारा स्वास्थ्य कुछ ठीक नही है। किंतु आप हमारी चिंता ना करें और विवाह की तैयारियां अच्छे से कीजिए। और अपना और अपने परिजनों का ध्यान रखिये।
आपके पिता
भवानी सिंह
विक्रमादित्य पत्र पढकर गंभीर हो जाते हैं और महाराज के कक्ष में चले जाते हैं।
महाराज का कक्ष
महाराज( विक्रमादित्य को देखते हुए) आओ पुत्र।
विक्रमादित्य- प्रणाम ज्येष्ठ पिताश्री।
महाराज- दीर्घायुष्यमान भवः पुत्र! क्या बात है पुत्र आप थोडे चिंतित लग रहे हैं।
विक्रमादित्य- ज्येष्ठ पिताश्री, अभी जोधाणा से एक दूत पत्र लेकर आया था पत्र में लिखा है कि महाराज भवानी सिंह का स्वास्थ्य सही नहीं है इसलिए वह वीरेंद्र के विवाह में सम्मिलित नहीं हो सकते।
महाराज( चिंतित होते हुए) हम्म्म्म. यह तो ठीक नहीं हुआ पुत्र।
विक्रमादित्य- ज्येष्ठ पिताश्री, हम चाहते हैं कि हम और चंद्राक्षी आज ही जोधाणा के लिए प्रस्थान करें और वहाँ बाबासा से मिलके फिर कुंतल प्रदेश पहुंचे।
महाराज- हां यह उत्तम रहेगा पुत्र वैसे भी जब तक पुत्री चंद्राक्षी उनके पिता से नहीं मिल लेती तब तक वह चिंतित रहेगी और उनका मन राजकुमार वीरेंद्र के विवाह में नहीं लगेगा। आप आज ही जोधाणा के लिए प्रस्थान करें।
विक्रमादित्य- जो आज्ञा पिताश्री।
फिर विक्रमादित्य महाराज के कक्ष से चले जाते हैं। फिर विक्रमादित्य अपने पिता श्री और ज्येष्ठ माता श्री से जोधाणा जाने की आज्ञा ले लेते हैं।
जोधाणा
महाराज भवानी सिंह राजसी बिस्तर पर लेटे हुए हैं और राज वैद्य उनका उपचार कर रहें हैं उनके पास ही में उनकी तीनों रानियां और राजकुमार चंद्रभान बैठे हुए है। महारानी अमरावती महाराज को संबोधित करते हुए- महाराज आपसे कितनी बार कहा है कि आप आपके स्वास्थ्य का ध्यान रखा करें।
महाराज हल्का हंसते हुए- खम्मा घणी( क्षमा करे) महारानी किंतु स्वास्थ्य तो किसी का भी खराब हो सकता है।
महारानी दुर्गावती- महाराज आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और आपको अभी भी ठिठोली सूझ रही है।
वैद्यराज- आप चिंता ना करें महारानी महाराज कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाएंगे।
महाराज थोडा चिंतित होते हुए- हमें खेद तो इस बात का है कि राजकुमार वीरेंद्र के विवाह के बहाने हम राजकुमारी चंद्राक्षी से मिल पाते, किंतु अब यह संभव नहीं है।
चंद्रभान: आप चिंता ना करें बाबा सा जब राजकुमार वीरेंद्र का विवाह समाप्त हो जाएगा तब हम जीजीसा को यहीं ले आएंगे। बस आप तो शीघ्र ही स्वस्थ हो जाइए। महाराज और तीनों महारानियाँ सहमति जताते है।
इंद्रप्रस्थ
चंद्राक्षी कुंतल प्रदेश जाने की तैयारियाँ कर रही थी तभी विक्रमादित्य उनके पास आते हैं। विक्रमादित्य- अक्षी, आप तैयार हो जाइए हम जोधाणा के लिए प्रस्थान करने वाले हैं।
चंद्राक्षी उसकी बातों से चकित होते हुए तुरंत कहती हैं- किंतु आर्य हम तो कुंतल प्रदेश जाने वाले थे ना और( फिर याद करते हुए) पत्र में क्या लिखा था?
विक्रमादित्य सोचते हुए आपको कैसे बताएं अक्षी कि आपके बाबासा की स्वास्थ्य ठीक नहीं है किंतु आपको बताना तो पडेगा। विक्रमादित्य हिम्मत जुटाते हुए: बाबासा का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। इस कारण हम जोधाणा के लिए प्रस्थान कर रहे हैं और इसके लिए हमने ज्येष्ठ पिताश्री, ज्येष्ठ माताश्री और पिताश्री से अनुमति ले ली है।
चंद्राक्षी ये सुनकर चिंतित और भावुक हो जाती है, और जोधाणा जाने के लिए तत्काल तैयार हो जाती है।
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी इंद्रप्रस्थ से जोधाणा के लिए प्रस्थान करने वाले ही थे कि उन्हें बीच रास्ते में अमर सिंह मिल जाते हैं। अमर सिंह- राजकुमार आप कहीं जा रहे हैं।
विक्रमादित्य- हाँ अमर हमें शीघ्राति शीघ्र जोधाणा गमन करना है।
अमर सिंह- किंतु हम तो कल कुंतल प्रदेश के लिए प्रस्थान करने वाले थे।
विक्रमादित्य- अमर, महाराज भवानी सिंह का स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए हम उनसे मिलने जा रहे हैं।
अमर सिंह चिंतित होते हुए- राजकुमार आप शीघ्र ही जाइए और यहां की चिंता ना करें। हम उनके मंगल की कामना करेंगे। चंद्राक्षी, विक्रमादित्य, कुछ दासियाँ और कुछ सैनिक जोधाणा के लिए प्रस्थान करते हैं।
जोधाणा
जैसे ही राजा सूर्यभान को यह खबर मिलती है कि उनके बाबा सा का स्वास्थ्य सही नहीं है तो वह तुरंत ही जोधाणा पहुंच जाते हैं।
महाराज भवानी सिंह का कक्ष
सूर्यभान चिंतित स्वर में पूछते हैं: अब आपका स्वास्थ्य कैसा है बाबासा?
महाराज- अब हमें ठीक लग रहा है पुत्र। आपने व्यर्थ यहां पर आने का कष्ट किया।
सूर्यभान- यह कैसी बातें कर रहे हैं आप बाबासा हमें तो आना ही था। हम आपके पुत्र आपके लिए कुछ भी करना हमारा धर्म है। फिर महाराज और सूर्यभान के मध्य कुछ और वार्तालाप होती हैं।
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी की यात्रा
चंद्राक्षी अपने बाबासा की स्वास्थ्य की ठीक ना होने से दुखी हो जाती है इसलिए वह आधे रास्ते तो विक्रमादित्य से बात भी नहीं करती है। जैसे विक्रमादित्य चंद्राक्षी को दुखी देखते हैं तो वह उनका ध्यान भटाकने के लिए। विक्रमादित्य: चंद्राक्षी का ध्यान भटाकने के लिए) वैसे अक्षी आप हमें प्रातःकाल घूर क्यों रही थी? आपकी रंगोली तो अमर के कारण खराब हुई थी।
और विक्रमादित्य इसमें सफल भी हो जाते हैं। चंद्राक्षी थोडा याद करते हुए- क्योंकि कल रात हमने आपसे कहा था कि हम आज भ्राता वीरेंद्र के विवाह के शुभ अवसर पर आंगन में रंगोली बनाने वाले हैं। फिर भी अपने भ्राता अमर को आंगन में दौडने से नहीं रोका।
विक्रमादित्य चंद्राक्षी को समझाते हुए- अक्षी हम उनके पीछे इसलिए ही तो आ रहे थे कि वह आंगन में न जाए। दूसरी तरफ मुंह करते हुए) लेकिन अमर और आप तो एक जैसे ही हैं हमारी बात सुनते कहां है?
चंद्राक्षी जैसे ही विक्रमादित्य की अंतिम पंक्ति सुनी तो क्रोधित होते हुए- क्या कहा आपने हम आपकी बात नहीं सुनते।
विक्रमादित्य उनके क्रोध से थोडा घबराते हुए मासूम चेहरा बनाते हुए: क्या हमने ऐसा कहा क्षमा कीजिएगा, हमें भान ही नहीं रहा कि हम बातों ही बातों में क्या कह गए।
चंद्राक्षी थोडा शांत होते हुए: यह आपने अब सही कहा। फिर करीब दो दिन पश्चात चंद्राक्षी और विक्रमादित्य जोधाणा पहुंच जाते हैं।
इसी बीच इंद्रप्रस्थ से महाराज अमरेंद्र सिंह महारानी सुनैना वीरेंद्र, अमर सिंह और कुछ सैनिक कुंतल प्रदेश के लिए प्रस्थान कर लेते हैं।
कुंतल प्रदेश
महारानी रुद्रमादेवी- रसोइयों को निर्देश देते हुए आपने सारा भोजन तो तैयार कर लिया है ना कुछ समय में हमारे प्रमुख पाहून आते ही होंगे।
फिर कुछ समय बाद सेवकों को आदेश देते हुए- आप सबने हमारे पाहुन के लिए कक्ष व्यवस्थित कर दिए हैं ना। इसी बीच में मलयकेतु उनके पास आते हैं।
मलय केतु- प्रणाम माता श्री।
महारानी- जीते रहो पुत्र, आपने सारी तैयारी देख ली है ना सब कुछ सुव्यवस्थित तो है ना। मलय केतु- हमने सब परख लिया है माताश्री। और अब आप चिंता ना करें। महारानी सहमति भरती हैं।
जोधाणा
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य जोधाणा पहुंचते हैं सेवक महारानियों को ये सूचना पहुंचाते हैं l इतना सुन तीनों महारानियाँ तत्क्षण उनके स्वागत की तैयारियां करवाती हैं और आरती की थाल ले उनके स्वागत के लिए पहुँच जाती हैं। उनकी आरती कर वे उनसे कुछ पूछ पाती उससे पूर्व ही चंद्राक्षी महाराज के कक्ष में चली जाती हैं।
चंद्राक्षी अपने बाबासा को देख भावुक होते हुए कहती है- प्रणाम बाबासा, आप कैसे हैं?
महाराज आश्चर्य से- पुत्री आप यहां पर कैसे? आपको तो अभी कुंतल प्रदेश में होना चाहिए था।
चंद्राक्षी- बाबासा कैसी बात कर रहे हैं क्या हम आपको इतने कठोर लगते हैं कि हमारे बाबासा का स्वास्थ्य खराब है और हम आपसे एक बार भी मिलने ना आए।
महाराज- हमारे कहने का वो तात्पर्य नहीं था पुत्री हम चाहते थे कि राजकुमार वीरेंद्र के विवाह के बाद आप हमसे मिलने आए।
इतने में विक्रमादित्य कक्ष में प्रवेश कर महाराज के चरण छूते है। विक्रमादित्य- बाबासा अभी राजकुमार वीरेंद्र के विवाह में कुछ दिन शेष है तो हमने यहां पर आना उचित समझा। वैसे भी आप चिंता ना करें हम इंद्रप्रस्थ की ओर से सारी तैयारियाँ कर चुके हैं।
महाराज राजकुमार को आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं- किंतु जमाई सा।
चंद्राक्षी: किंतु विंतु कुछ नहीं बाबासा अब आप विश्राम करें। और जल्दी से ठीक हो जाए।
महाराज मुस्कुराते हुए- अच्छा ठीक है पुत्री आप दोनों भी जाइए यात्रा के कारण थक चुके होंगे, विश्राम कर लीजिए।
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य- ठीक है बाबा सा। फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य महाराज के कक्ष से चले जाते हैं।
कुंतल प्रदेश
इंद्रप्रस्थ से महाराज, महारानी, वीरेंद्र और अमर सिंह कुंतल प्रदेश पहुंच जाते हैं। उनके कुंतल प्रदेश पहुंचते ही उनका भव्य स्वागत किया जाता है। महारानी रुद्रमादेवी राजकुमार वीरेंद्र की बलाइयां लेती है। दोनों पक्षों के बीच मिलन मिलाव होता है।
महाराज वीर केतु( कुंतल प्रदेश के महाराज) महाराज अमरेंद्र सिंह से पूछते हुए: महाराज आपके ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य नहीं आए?
महाराज अमरेंद्र सिंह- जोधाणा के महाराज भवानी सिंह का स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमारी चंद्राक्षी उनके स्वास्थ्य की खैर लेने जोधाणा गए हैं वह कुछ दिनों में कुंतल प्रदेश पहुंच जाएंगे। महाराज वीर केतु हामी भरते हैं। फिर पाहुन को भोजन कराया जाता है और उन्हें उनके कक्ष में विश्राम करने के लिए भेज दिया जाता है।
जोधाणा
चंद्रभान चंद्राक्षी की गले लगते हैं और कहते हैं कि- जीजी सा हमें आपकी बहुत याद आई।
चंद्राक्षी- चंद्रभान, हमें भी आपकी बहुत याद आई। फिर चंद्रभान विक्रमादित्य के चरण छूते हैं और उन्हें कहते हैं- प्रणाम जीजा सा।
विक्रमादित्य उन्हें गले लगा कहते हैं- खुश रहो चंद्रभान।
चंद्रभान फिर विक्रमादित्य को चिढाते हुए चंद्राक्षी को कुछ संकेत कर कहते हैं- अच्छा जीजी सा आपको जीजा सा ने परेशान तो नहीं किया ना।
चंद्राक्षी विक्रमादित्य की मजे लेते हुए: हाँ परेशान तो. इतने में हीं विक्रमादित्य ना समझी से चंद्राक्षी की तरफ देखते हैं।
चंद्राक्षी- नहीं नहीं चंद्रभान हमें आर्य बिल्कुल भी परेशान नहीं करते( फिर हंसते हुए) अपितु हम इन्हें परेशान करते हैं।
चंद्रभान यह बात सुनकर हंसने लग जाते हैं और कहते हैं- आखिर जीजी सा किसकी है। विक्रमादित्य चंद्रभान और चंद्राक्षी कुछ और बातें करते हैं। वार्तालाप करके चंद्रभान करके कक्ष से बाहर चले जाते हैं। फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य सूर्यभान से मिलने जाते हैं और उनका हाल- चाल पूछते हैं और इसी प्रकार अपनी तीनों माताओं से मिलकर अपने कक्ष में वापस आ जाते हैं।
इतने में ही चंद्राक्षी विक्रमादित्य से कहती है कि- आर्य हम आपको हमारे यहां की लोकप्रिय मिठाई" घेवर" खिलाते हैं।
विक्रमादित्य उत्साहित होते हैं- हां अवश्य यह मिष्ठान तो हम गत प्रवास के समय नही खा पाए थे। चंद्राक्षी एक सेवक को घेवर लाने का आदेश देती है।
कुंतलप्रदेश
मलयकेतु राजकुमार वीरेंद्र को पूरे महल का भ्रमण करवाते हैं। दिन का चौथा पहर चल रहा है वीरेंद्र- हमें आपके साथ भ्रमण करके बहुत ही आनंद आया भ्राता मल्यकेतु।
मलयकेतु- राजकुमार हमें भी आपके साथ भ्रमण करके बहुत ही आनंद आया, हमें आपका साथ बहुत ही अच्छा लगा और अब हमें लगता है कि आपके साथ हमारी बहन सदैव प्रसन्न रहेगी। चलिए अब हम चौसर का खेल खेलते हैं।
वीरेंद्र: हां क्यों नहीं भ्राता श्री। फिर वीरेंद्र और मलय केतु चौसर का एक- एक खेल खेलते हैं।
दूसरी ओर
राजकुमारी सुकन्या अपने कक्ष में श्रृंगार कर रही है तभी उनकी छोटी बहन हिमाद्री वहां पर आती है हिमाद्री उसे श्रृंगार करते देख छेडते हुए कहती है- जीजी कहीं आप जीजा सा की याद में श्रृंगार तो नहीं कर रही। अगर आप उनसे मिलना चाहती है तो हमें बता सकती है हम आपका यह काम कर देंगे।
सुकन्या मुंह दूसरी ओर करते हुए नाटकीयता से कहती हैं- हम क्यों मिले उनसे अगर उनको मिलना होगा तो वह खुद ही हमसे आकर मिल लेंगे। ऐसे ही दोनों हंसी ठिठोली करती हैं।
इंद्रप्रस्थ
सेनापति भीमसेन के पास एक मुखावरण धारण किया गुप्तचर कुछ सूचना लेकर आता हैसेनापति कक्ष के द्वार बंद कर गंभीर स्वर मे कहते हैं- कहो गुप्तचर, क्या समाचार लाए हो?
गुप्तचर- अंग मिले कल की बात, पाटल के राजा से खास। भेद भेद ही रह गया, अब आज्ञा मांगे दास।
सेनापति- अनुमति है, तुम जा सकते हो।
जोधाणा
चंद्राक्षी और विक्रमादित्य सूर्यभान और चंद्रभान से आग्रह करते हैं कि वह उनके साथ कुंतलप्रदेश चले किंतु वह मना कर देते हैं। फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य सबका आशीर्वाद लेकर जोधाणा से विदा लेते हैं। रास्ते में विक्रमादित्य घोडे पर सवार हैं और चंद्राक्षी पालकी में बैठी है, उनके साथ सैनिकों की एक टुकडी चल रही है। अचानक विक्रमादित्य को आभास होता है कि कोई उन पर दृष्टि रखे हुए हैं। विक्रमादित्य अपने सैनिकों को संकेत करते हैं जिसे समझ सभी सैनिक सतर्क हो जाते हैं। फिर अचानक एक तीर आकर विक्रमादित्य की दिशा में आता है लेकिन इससे पहले वह विक्रमादित्य को छू पाता विक्रमादित्य उसे बीच में ही पकड लेते हैं।
क्या अर्थ है सबका जो उस गुप्तचर ने कहा?
क्या अब इंद्रप्रस्थ पर कोई नई समस्या आने वाली है?
कौन विक्रमादित्य पर दृष्टि रख रहा है?
किसने चलाया ये तीर?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
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अब तक हमने देखा कि चंद्राक्षी और विक्रमादित्य जोधाणा महाराज भवानी सिंह से मिल के कुंतल प्रदेश के लिए प्रस्थान कर चुके हैं और वहीं दूसरी ओर हमने देखा कि महाराज अमरेंद्र सिंह, महारानी, वीरेंद्र और अमर सिंह कुंतल प्रदेश पहुंच चुके हैं। वहीं इंद्रप्रस्थ मे सेनापति के पास गुप्तचर कोई समाचार लेकर आता है। और जब विक्रमादित्य और चंद्राक्षी रास्ते में ही थे तो तब उनके ऊपर कोई हमला कर देता है।
अब आगे
विक्रमादित्य, चंद्राक्षी और सैनिकों पर तीरों की बरसात होने लगती है राजकुमार अपनी तलवार की सहायता से तीरों से अपना और राजकुमारी का बचाव करते हैं वहीं सैनिक भी तीरों से बचाव कर रहे हैं। फिर कुछ समय के लिए तीरों की बरसात रुक जाती है उसी क्षण विक्रमादित्य अपना धनुष निकाल कर जिस दिशा से उनके ऊपर तीर बरसाए थे उस दिशा में तीरों की बरसात करना आरंभ कर देते हैं और सैनिकों को भी ऐसा ही करने का आदेश देते हैं। फिर उस दिशा से करहाने ने की आवाज आने लगते हैं।
जब सब कुछ शांत हो जाता है तो राजकुमार कुछ ऊँचे स्वर मे कहते हैं कि- आप कौन हैं और हमारे ऊपर आक्रमण क्यों कर रहे हैं?
तभी उस दिशा से कुछ घायल कबीले वाले विक्रमादित्य के पास आते हैं और उनसे कहते हैं कि- आप यहां पर शिकार करने आए हैं। अर्थात आप हमें क्षति पहुंचाने आए हैं।
विक्रमादित्य कबिले वालों की तरफ देखते हुए- आपके समझने मे भूल हुई है। हम इंद्रप्रस्थ के राजकुमार हैं और अभी हम यात्रा कर रहे हैं और शिकार के लिए नहीं आए हैं।
जितनी देर में विक्रमादित्य और कबीले वाले बात करते हैं उतनी देर में ही वहां पर कबीले के सरदार आ जाते हैं। सरदार विक्रमादित्य की ओर देखते हैं तो उन्हें इंद्रप्रस्थ की शाही मोहर उनके अश्वों पर लगे ध्वजों पर दिखती है। और आते हुए उनकी बात भी सुन ली थी।
सरदार- हमें क्षमा कीजिएगा राजकुमार हमसे बहुत बडी भूल हो गई।
विक्रमादित्य अपने घायल सैनिकों की ओर देखते हुए- सरदार किंतु आपकी भूल के कारण हमारे कईं सैनिक घायल हो चुके हैं।
सरदार- हमें क्षमा कीजिएगा किंतु आप चिंता ना करें आप हमारे कबीले की ओर चले हम आपके सैनिकों का उपचार कर देंगे।
विक्रमादित्य को यह उचित लगता है कि वह कबीले के सरदार के साथ जाए क्योंकि उनके सैनिकों के घाव से लगातार रक्त बह रहा था। फिर वह कबीले वालों के साथ चंद्राक्षी, दासियों और सैनिकों के साथ चले जाते हैं।
कुंतल प्रदेश
वीरेंद्र और सुकन्या की सगाई को अब दो दिन शेष रह गये है। और दोनों पक्षों के सारे रिश्तेदार कुंतल प्रदेश पहुंच चुके हैं।
महाराज अमरेंद्र सिंह और महारानी सुनैना का कक्ष
महारानी चिंतित होते हुए- महाराज अभी तक विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का यहां पहुँचने का कोई संदेश नहीं आया है।
महाराज- आप चिंता ना करें महारानी हो सकता है जल्दी में वह संदेश भिजवाना भूल गए हो।
महारानी- आप ठीक कह रहे हैं महाराज हमें कल तक की प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। अच्छा महाराज इंद्रप्रस्थ से महामंत्री शिवराज सिंह का कोई पत्र आया।
महाराज- हां महारानी इंद्रप्रस्थ में सब कुशल हैं।
महारानी- देवी माँ ऐसे ही हमारे राज्य पर अपनी कृपा बनाऐ रखे।
वहीं दूसरी ओर
अमर सिंह कुंतल प्रदेश के राजमहल में टहल रहे हैं।
अमर सिंह बडबडाते हुए- हमें तो राजकुमार विक्रमादित्य के साथ ही जोधाणा चले जाना चाहिए था यहां तो हमारा मन ही नहीं लग रहा। फिर विक्रमादित्य को याद करते हुए- कहां है आप राजकुमार, शीघ्र आईए।
वन में
रात हो चुकी है
सरदार कबीले वालों को आदेश देते हैं कि- आप इन सभी सैनिकों और दासियों का उपचार कीजिए। और इन्हें किसी भी चीज की आवश्यकता है तो वह भी उपलब्ध कराया जाए।
चंद्राक्षी को भी कबीले की सरदारनी और कुछ महिलाएं अपने साथ ले जाने लगती है तो सहमति के लिए चंद्राक्षी विक्रमादित्य की ओर देखती है तो विक्रमादित्य उन्हें जाने का संकेत कर देते हैं। सरदार और विक्रमादित्य आसन पर बैठ जाते हैं
सरदार विक्रमादित्य की ओर देखते हुए- कृपया आप सब आज रात्रि यही विश्राम करें और हमें हमारी भूल का पश्चाताप करने का एक अवसर प्रदान करें।
विक्रमादित्य मन में सोच ते हुए वैसे भी हमें कहीं ना कहीं आज रात्रि विश्राम तो करना ही होगा तो हम यही कर लेते हैं।
विक्रमादित्य- हमें आपका प्रस्ताव स्वीकार है सरदार। फिर आगे बोलते हुए हम आपको एक सुझाव देना चाहते हैं जिस कारण आगे आप कबीले वालों को कोई संचार मे त्रुटि( गलतफहमी) ना हो।
सरदार हामी भरते हुए- कृपया करके आप हमें अपना सुझाव बताएं हम प्रयास करेंगे उसे लागू करने का।
विक्रमादित्य: जहां से आपके वन की धरोहर, पशुओं, कीसीमा शुरू होती है। उस सीमा पर आप लकडी के सपाट बिछाकर उनके ऊपर चिपचिपा पदार्थ डाल दें और इस तरह से करें ताकि यह सरलता से किसी को ना दिखे।
अगर कोई भी आपकी इच्छा के बिना आप कि सीमा के अंदर प्रवेश करेगा तो वह उस पदार्थ के कारण लकडी से चिपक जाएगा। और ध्यान रहे कि वह पदार्थ लगभग दस इंच भरा हो।
फिर आप अपने गुप्तचरों से संदेश पाकर और वहां जा कर यह पुष्टि कर लेना कि वह आपको हानि पहुंचाने आए हैं या नहीं। इससे आपके तीरों का भी नुकसान नहीं होगा और यदि वे कोई साधारण व्यक्ति हुए तो उनको कोई हानि नहीं होगी।
सरदार खुश होते हुए- अति उत्तम राजकुमार हमें आपका प्रस्ताव पसंद आया हम कल से ही इसकी तैयारी करेंगे। किंतु फिर इस पदार्थ को हटाया कैसे जाएगा राजकुमार।
विक्रमादित्य- इसके लिए उपचार यह है की आप उस पदार्थ को हटाने की बूटी बनाकर रख सकते हैं।
सरदार हम आपके सोचने की तीव्रता से बहुत ही प्रसन्न है। और हमने आपका युद्ध कौशल तो देख ही लिया। फिर ऐसा कहते हुए सरदार राजकुमार की ओर मित्रता का हाथ बढाते हैं।
विक्रमादित्य कुछ देर सोचते हैं वैसे तो सरदार एक अच्छे इंसान हैं इन्होंने हमारी सहायता भी की है।
विक्रमादित्य भी अपने मित्रता का हाथ बढा देते हैं।
सरदार- कृपया करके राजकुमार अब आप विश्राम करें, आप लंबी यात्रा पर निकले हैं।
विक्रमादित्य- जी सरदार हम चलते हैं।
कुंतल प्रदेश
सुकन्या महारानी सुनैना से मिलने के लिए उनके कक्ष में जाती है।
महारानी के कक्ष में
महारानी सुकन्या को देखते हुए लिए- आईए पुत्री।
सुकन्या शरमाते हुए आती है और महारानी के चरण स्पर्श करती है।
महारानी सुकन्या के सिर पर हाथ फेरते हुए- सदा सुखी रहो पुत्री। हमने जैसा सुशील आपको बचपन में देखा था आज भी आप वैसे ही है देवी माँ सदैव आपको ऐसे ही बनाए रखें।
फिर महारानी सुकन्या को कुछ आभूषण देती है
महारानी- यह आभूषण आप अपने विवाह के दिन पहनेगी तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी।
सुकन्या हाँ करते हुए- जी माता श्री, आपका धन्यवाद हम इन आभूषणों को अवश्य पहनेगे।
फिर महारानी और सुकन्या के बीच कुछ और वार्तालाप होती है और सुकन्या कुछ समय बाद वहां से अपने कक्ष मे चली जाती है।
इतने में हिमाद्री दौडती हुई सुकन्या के पास आती है और तेज तेज श्वास लेते हुए कहती है- जीजी हमने अभी जीजासा को उद्यान में अकेले भ्रमण करते हुए देखा है यही सही अवसर है आप उनसे मिल सकती है।
सुकन्या थोडा शरमाते और सकुचाते हुए- हिमाद्री क्या अभी उनसे मिलना ठीक रहेगा।
हिमाद्री- आप चिंता ना करें जीजी वह हम संभाल लेंगे आप केवल हमारे साथ चलिए।
फिर हिमाद्री सुकन्या को उद्यान में लेकर जाती है।
वन में
विक्रमादित्य जैसे ही चंद्राक्षी के पास जाते हैं।
चंद्राक्षी विक्रमादित्य को देखते हुए- आर्य हमें अपना हाथ दीजिए।
विक्रमादित्य थोडा आश्चर्य से अपना हाथ राजकुमारी के हाथों में रख देते हैं।
चंद्राक्षी विक्रमादित्य के हाथ की चोट देखते हुए- आर्य आप अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते आपको यह भी भान नहीं कि आपको चोट लगी है।
विक्रमादित्य थोडा मुस्कुराते हुए- हम क्यों चिंता करें भला वैसे भी अब आप है ना हमारी चिंता करने के लिए।
चंद्राक्षी- हम आ गए हैं तो आप अपना संरक्षण न करें, ये कोई तर्क ही नहीं है आर्य।
विक्रमादित्य- अच्छा, आगे से हम इस बात का ध्यान रखेंगे।
कुंतल प्रदेश
उद्यान में
वीरेंद्र भ्रमण कर रहे हैं तभी वहां पर सुकन्या आ जाती है। सुकन्या उन्हें देखकर शांत हो जाती हैं। किंतु वीरेंद्र सुकन्या को नहीं देख पाए क्योंकि बीच में ही महारानी रुद्रमादेवी सुकन्या को देख लेती है और उन्हें ले जाती है।
महारानी सुकन्या को देखते हुए- हमने आपसे कहा था ना राजकुमारी, आपके वाग्दान से पूर्व आप राजकुमार से ना मिले।
सुकन्या जो उनको देख ही भयभीत हो गयी थी वो धीरे से कहती हैं- हमे क्षमा कीजिएगा माता श्री हम आगे से ध्यान रखेंगे।
फिर महारानी हिमाद्री को सुकन्या को ले जाने के लिए कहती है।
वहीं दूसरी वह अमर सिंह वीरेंद्र के पास आते हैं
वीरेंद्र अमर सिंह को देखते हुए- अमर सिंह क्या आपको भ्राता श्री की कोई सूचना प्राप्त हुई।
अमर सिंह- नहीं राजकुमार हमें तो कोई सूचना नहीं है किंतु हमें लगता है कि कल वह कुंतल प्रदेश पहुँच जाएंगे।
वीरेंद्र हामी भरते है- आप ठीक कह रहे हैं अमर सिंह।
इतने में ही वहां मलयकेतु आ जाते है।
मलय केतु को देखकर अमर सिंह को अच्छा नहीं लगता और वह उद्यान से राजकुमार वीरेंद्र से विदा लेकर चले जाते हैं।
मलय केतु: हम आपको कब से ढूंढ रहे हैं लेकिन आप तो यहां उद्यान में हैं।
वीरेंद्र- भ्राता श्री आप हमें क्यों ढूंढ रहे थे?
मलय केतु- हम आपको कुछ उपहार देना चाहते हैं हमारे यहां पर रस्म है कि दूल्हे को सगाई के एक दिन पहले उपहार दिया जाता है।
फिर वीरेंद्र मलिक केतु के साथ उनके कक्ष में चले जाते हैं।
प्रातःकाल
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी कबीले वालों से विदा लेते हैं
सरदार विक्रमादित्य के गले लगाते हुए- हम आशा करते हैं कि हमारा मिलन दोबारा हो और हम कभी आपके काम आ सके।
विक्रमादित्य- हम भी आपके जैसा मित्र पाकर हर्षित हैं।
फिर कबीले की सरदारनी चंद्राक्षी को कुछ उपहार देती हैं और कहती है कि- आप बडी भाग्यशाली हैं जो आपको राजकुमार जैसे शील वर मिले भगवान आपकी जोडी सदैव बनाए रखे।
फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य कुंतल प्रदेश के लिए अपनी यात्रा पुनः आरंभ करते हैं।
कुछ प्रहर पश्चात
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी कुंतल प्रदेश पहुंच जाते हैं।
उनके कुंतल प्रदेश पहुंचते ही सबसे पहले अमर सिंह दौडते हुए आते हैं और राजकुमार के गले लग जाते हैं।
अमर सिंह- हमें आपकी बहुत याद आई राजकुमार अब आगे से किसी यात्रा पर जाए तो हमें साथ में जरूर लेकर जाएं।
विक्रमादित्य मुस्कुराते हुए- अमर आपको देखकर ऐसा लगता है कि हमें कई वर्ष हो चुके हैं मिले।
अमर सिंह- राजकुमार आपके बिना तो हमें दिन भी वर्षों के समान लगते हैं।
फिर अमर सिंह चंद्राक्षी से कहते हैं- राजकुमारी आपके बाबासा का स्वास्थ्य कैसा है?
चंद्राक्षी- भ्राता श्री, वे कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाएंगे।
अमर सिंह हामी भरते है
फिर महारानी रुद्रमा देवी विक्रमादित्य और चंद्राक्षी का स्वागत करती है।
विक्रमादित्य और चंद्राक्षी महारानी के चरण छूते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं फिर वह महाराज अमरेंद्र सिंह और महारानी सुनैना के कक्ष में जाते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
महाराज: राजकुमार अब महाराज भवानी सिंह का स्वास्थ्य कैसा है?
विक्रमादित्य: ज्येष्ठ पिताश्री अब वे पहले से स्वस्थ है और कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाएंगे।
फिर महारानी विक्रमादित्य और चंद्राक्षी को विश्राम करने के लिए कहती है। चंद्राक्षी और विक्रमादित्य महाराज के कक्ष से चले जाते हैं फिर वहां महेंद्र जी के कक्ष में जाते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। फिर वहाँ से अपने कक्ष में चले जाते हैं।
दूसरी ओर
मलय केतु वीरेंद्र को कुछ समझ रहे थे तभी एक सेवक वहां पर आता है और वीरेंद्र से कहता है।
सेवक- राजकुमार वीरेंद्र की जय हो! आपके भ्राता श्री आ चुके हैं।
यह सुनकर ही वीरेंद्र में लेकर उसे कहते हैं कि- भ्राता श्री, अब आप हमें आज्ञा दें। हमें हमारे भ्राता श्री से मिलना है।
मलय केतु थोडा खींच खाते हुए- ठीक है राजकुमार।
वीरेंद्र उनके भावों पर अधिक ध्यान न देते हुए वहाँ से विक्रमादित्य और चंद्राक्षी के कक्ष में चले जाते हैं।
उस समय विक्रमादित्य और चंद्राक्षी भोजन कर रहे थे।
वीरेंद्र विक्रमादित्य को देखते हुए- प्रणाम भ्राता श्री।
विक्रमादित्य- आईए वीरेंद्र विराजिये और भोजन ग्रहण कीजिए।
वीरेंद्र- नहीं भ्राता श्री हमने हमारा भोजन कर लिया है।
फिर वह चंद्राक्षी से- प्रणाम भाभी श्री।
चंद्राक्षी- प्रणाम भ्राता श्री।
वीरेंद्र विक्रमादित्य की ओर देखते हुए- आपकी यात्रा कैसी रही भ्राता श्री? और अब महाराज कैसे हैं?
विक्रमादित्य- हमारी यात्रा सुखद रही और महाराज भी अब पहले से स्वस्थ हैं। फिर वीरेंद्र को चढाते हुए- हमसे बाद में प्रश्न पूछीयेगा पहले आप हमें यह बताइए कि आपका अब तक का कुंतल प्रदेश का भ्रमण कैसा रहा और क्या आपकी राजकुमारी सुकन्या से भेंट हुई?
वीरेंद्र थोडा हकलाते हुए- नहीं भ्राता श्री हमारी राजकुमार सुकन्या से कोई भेंट नहीं हुई और हमारा अब तक का कुंतल प्रदेश का भ्रमण ठीक रहा।
विक्रमादित्य- वैसे यह ठीक नहीं हुआ वीरेंद्र।
वीरेंद्र- क्या ठीक नहीं हुआ भ्राता श्री l"
विक्रमादित्य- यही कि आपके कुंतल प्रदेश जल्दी आने का कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि आप अभी तक राजकुमारी सुकन्या से नहीं मिल पाए।
फिर विक्रमादित्य इससे पहले कुछ बोलते उसे पहले चंद्राक्षी चुप रहने का संकेत करती है।
वीरेंद्र- यह कोई बडी बात नहीं है भ्राता श्री हम कल उनसे मिलेंगे और अब आपको विश्राम कर लेना चाहिए अब हम आज्ञा चाहते हैं।
वीरेंद्र विक्रमादित्य और चंद्राक्षी के कक्ष से बाहर निकल जाते हैं
चंद्राक्षी विक्रमादित्य को देखते हुए- आपने नहीं देखा कि भ्राता श्री कैसे उदास हो गए थे। आप उनसे कैसी बातें कर रहे थे आर्य।
विक्रमादित्य मुस्कुराते हुए- अक्षी आप चिंता ना करें वीरेंद्र बालपन से ही ऐसे हैं। उन्हें ठिठोली कुछ अधिक पसंद नहीं है।
फिर चंद्राक्षी और विक्रमादित्य सो जाते हैं।
प्रातः काल
हिमाद्री अपनी सखियों के साथ वीरेंद्र सुकन्या की सगाई की तैयारियाँ कर रही थी। तभी उन्हें किसी अनजान पुरुष की किसी से वार्तालाप करते हुए मधुर आवाज आती है। जैसे ही हिमाद्रि उसे ओर देखती है जिस ओर से उस व्यक्ति का स्वर आया था वह उस पर मोहित हो जाती है।
तो किसे देखा हिमाद्रि ने? किसका स्वर था वो? और अमर सिंह को मलय केतु क्यों पसंद नहीं हैं?
जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी नोवेल" इंद्रवंशी " स्टोरी मेनिया पर । जिसे लिखा है A R writer ने और सम्पादन ( edit) Divya verma ने ही किया है।
कहानी में आगे क्या होगा जानने के लिए Stay Tuned.
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