यह कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसने अपने परिवार के दबाव में आकर एक लड़की से शादी तो कर ली, लेकिन दिल से कभी उसे अपनाया नहीं। उसके लिए यह रिश्ता बस एक मजबूरी था — एक समझौता। पर वक्त के साथ जब उसने उस लड़की के सच्चे दिल, उसकी मासूमियत और उसके प्यार को मह... यह कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसने अपने परिवार के दबाव में आकर एक लड़की से शादी तो कर ली, लेकिन दिल से कभी उसे अपनाया नहीं। उसके लिए यह रिश्ता बस एक मजबूरी था — एक समझौता। पर वक्त के साथ जब उसने उस लड़की के सच्चे दिल, उसकी मासूमियत और उसके प्यार को महसूस किया, तो धीरे-धीरे वही मजबूरी उसकी ज़रूरत बन गई। जिस लड़की को उसने कभी अपना नहीं माना था, वही उसकी ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत हकीकत बन गई। यह कहानी है मजबूरी से मोहब्बत तक की, नफरत से इकरार तक की — जहाँ एक अनचाहा रिश्ता सच्चे प्यार की सबसे गहरी मिसाल बन जाता है।
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✨ पहला अध्याय – पहली टक्कर
दिल्ली की सुबह हमेशा की तरह भागती-दौड़ती थी। ट्रैफिक, हॉर्न और लोगों की जल्दी — सबकुछ जैसे किसी रेस का हिस्सा हो।
लेकिन उसी भीड़ में आज दो ज़िंदगियाँ टकराने वाली थीं — अर्जुन मेहता और काव्या शर्मा।
अर्जुन — एक हैंडसम, स्मार्ट और बेहद कॉन्फिडेंट बिज़नेसमैन। उम्र बस 29, लेकिन शहर का नामी entrepreneur।
सूट-बूट में सधा हुआ चेहरा, नाप-तौल कर बोले गए शब्द, और आँखों में एक अजीब-सी ठंडक।
लोग कहते थे, “अर्जुन को मुस्कुराते देखा है तो समझो चमत्कार हुआ है।”
वहीं दूसरी तरफ, काव्या — एक चुलबुली, बेबाक और ज़िंदादिल लड़की। कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी करते हुए भी वो खुद को कभी बोर नहीं होने देती थी।
हँसना, बातों में तंज कसना और हर चीज़ में अपनी राय रखना — यही उसकी पहचान थी।
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उस दिन, काव्या जल्दी में थी। कॉलेज की मीटिंग के लिए देर हो चुकी थी। उसने फोन कान में दबाया हुआ था और हाथ में कॉफ़ी का कप —
“हाँ मम्मी, बस पाँच मिनट में पहुँच रही हूँ…”
इतना कहते हुए वो तेज़ी से मुड़ी और — ठप!
कॉफ़ी किसी की महँगी शर्ट पर जा गिरी।
“ओह माई गॉड! सॉरी सॉरी सॉरी!” — उसने जल्दी से रूमाल निकाला।
लेकिन सामने जो था, वो कोई साधारण आदमी नहीं था — वही अर्जुन मेहता।
भौंहें चढ़ी हुईं, गुस्से से भरा चेहरा, और आवाज़… ठंडी लेकिन तीखी।
“क्या आपको सड़कों पर चलना नहीं आता? या ये आपकी रोज़ की आदत है?”
काव्या ने भी बिना झिझके जवाब दिया —
“Excuse me, गलती तो हो जाती है इंसान से, और वैसे भी कॉफ़ी है, एसिड नहीं।”
अर्जुन ने घड़ी पर नज़र डाली, फिर कहा —
“लोगों को सिखाया नहीं गया कि दूसरों का टाइम भी कीमती होता है शायद।”
काव्या मुस्कुराई, वो मुस्कुराहट थोड़ी शरारती थी —
“टाइम तो कीमती होता है, लेकिन attitude दिखाने से वो वापस नहीं आएगा।”
अर्जुन एक पल को रुक गया — किसी ने उससे इस टोन में बात करने की हिम्मत नहीं की थी।
वो बस इतना बोला —
“Unbelievable.”
और चला गया।
काव्या पीछे से बोली —
“हाँ हाँ, मैं भी खुद पर यकीन नहीं कर पा रही कि इतनी महँगी शर्ट बच गई!”
दोनों अलग दिशाओं में निकल गए, पर दोनों के दिमाग़ में वही टक्कर घूम रही थी।
कभी एक चुलबुली मुस्कान के रूप में, तो कभी एक ठंडी निगाह के रूप में।
उन्हें क्या पता था — यही टक्कर आगे चलकर उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी की शुरुआत बनेगी।
✨ दूसरा अध्याय – वो नज़र जो ठहर गई
शाम के साढ़े आठ बजे का वक्त था। शहर के सबसे प्रीमियम रेस्टोरेंट “द मिराज” की रोशनी हमेशा की तरह चमक रही थी — पर आज उस चमक में डर घुलने वाला था।
अर्जुन मेहता — वही ठंडे स्वभाव वाला, रौबदार और बेहद सफल बिज़नेसमैन — रेस्टोरेंट में कदम रखते ही माहौल बदल गया।
दो बॉडीगार्ड्स उसके साथ थे।
जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा, मैनेजर दौड़ता हुआ आया।
“सॉर, बाकी गेस्ट्स को हम बाहर भेज रहे हैं…”
अर्जुन ने बस सिर हिलाया, और कुछ ही मिनटों में पूरा रेस्टोरेंट खाली हो गया।
पर एक बात किसी ने नोटिस नहीं की —
काव्या washroom में थी।
वो अपनी सफ़ेद सूट की दुपट्टे को ठीक कर रही थी — बालों की एक लट कान के पीछे करते हुए मुस्कुराई, “ज़िंदगी कितनी फिल्मी होती जा रही है…”
उसे क्या पता था — अगला सीन असल में फिल्म से भी आगे होने वाला था।
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वो जैसे ही washroom से बाहर आई, अचानक तेज़ आवाज़ गूंजी —
“धायं!!”
एक गोली चली थी।
उसने डर से पलकें झपकाईं, और सामने का नज़ारा देखकर सन्न रह गई।
अर्जुन — काले कोट में, ठंडी आँखों से किसी आदमी को देख रहा था जो ज़मीन पर गिरा पड़ा था।
उसके हाथ में बंदूक थी…
सन्नाटा इतना गहरा कि साँसों की आवाज़ तक सुनाई दे रही थी।
काव्या की आँखों ने जो देखा, उसने उसके कदम जड़ कर दिए।
“ये… आपने… गोली चलाई?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
अर्जुन धीरे से उसकी तरफ मुड़ा — उसकी नज़र पहली बार किसी डरती हुई, पर फिर भी खूबसूरत आँखों पर अटक गई।
वो सफेद सूट में थी, बालों की कुछ लटें चेहरे पर बिखरी हुईं, और उन आँखों में ऐसा तेज़ — जैसे किसी ने चाँद को पास से देख लिया हो।
एक पल को अर्जुन सब भूल गया — बंदूक, गार्ड्स, गिरा हुआ आदमी — सब धुंधला पड़ गया।
बस वो आँखें…
पर अगले ही पल वो खुद को संभालता है।
“यह तुम्हारा काम नहीं है। बाहर जाओ।”
काव्या ने गुस्से से कहा —
“काम? किसी को गोली मारना आपका ‘काम’ है?”
अर्जुन ने ठंडी हँसी हँसी —
“कभी-कभी कुछ लोगों को याद दिलाना पड़ता है कि लाइन कहाँ खत्म होती है।”
“और कभी-कभी इंसानियत को भी याद दिलाना पड़ता है कि गोली का मतलब मौत होती है, सबक नहीं।”
उसका जवाब तेज़ था, निडर था — जैसे डर से ऊपर उठी कोई सच्चाई।
दोनों कुछ पल एक-दूसरे को देखते रहे।
वक़्त जैसे थम गया।
फिर अर्जुन ने गार्ड्स की ओर इशारा किया —
“उसे बाहर निकालो।”
काव्या ने झटके से दुपट्टा ठीक किया, और सीधी आँखों में देखकर बोली —
“आपके जैसे लोग कभी नहीं समझ पाएँगे कि ताकत इंसानियत में होती है, ट्रिगर में नहीं।”
और वह वहाँ से निकल गई — कदम तेज़, पर दिल धड़कता हुआ।
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अर्जुन वहीं खड़ा रह गया।
गोली की गूंज अब भी कानों में थी,
पर दिमाग़ में बस वो आँखें।
वो आँखें जो डरी भी थीं, पर झुकी नहीं।
वो सफ़ेद सूट में लिपटी शख्सियत जो पलभर में उसकी पूरी दुनिया को हिला गई थी।
वो मुस्कुराया — हल्के से, जैसे खुद से कह रहा हो,
“कौन थी वो… और क्यों अब सिर्फ वही आँखें नज़र आ रही हैं?”
रेस्टोरेंट के शीशों में उसका चेहरा दिखा —
ठंडा, पर अब बेचैन।
क्योंकि उस रात पहली बार अर्जुन मेहता के दिल में किसी ने जगह बना ली थी — अनजाने में, बिना इजाज़त।
✨ तीसरा अध्याय – वो सपने जो सुकून नहीं देते
रात गहरी हो चुकी थी।
काव्या अपने कमरे में अकेली थी। बाहर से आती हल्की हवा पर्दों को हिला रही थी, और घड़ी की टिक-टिक जैसे नींद के बीच कोई अनकहा सवाल दोहरा रही थी।
वो बार-बार करवट बदल रही थी — पर आँखें बंद करते ही वही चेहरा सामने आ जाता था।
अर्जुन मेहता।
वही ठंडी नज़रों वाला आदमी, जिसने गोली चलाई थी…
पर अब, उसकी यादों में वो चेहरा डर नहीं, कुछ और जगाता था — एक अनजाना खिंचाव, एक बेचैन कर देने वाला एहसास।
धीरे-धीरे उसकी पलकों पर नींद हावी हुई — और वो सपनों की दुनिया में खो गई।
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सपना:
काव्या एक सुनसान सड़क पर खड़ी थी — सफ़ेद धुंध चारों तरफ़।
अचानक पीछे से एक गर्माहट महसूस हुई।
वो पलटी — और देखा, अर्जुन उसके ठीक पीछे खड़ा था।
काली शर्ट में, आँखों में वही रहस्यमयी गहराई…
धीरे-धीरे वो आगे बढ़ा, और बिना कुछ बोले उसे अपनी बाँहों में भर लिया।
काव्या की साँसें थम सी गईं।
वो कुछ कहना चाहती थी, पर शब्द जैसे कहीं खो गए थे।
अर्जुन के हाथ उसके बालों में सरक गए — और उसकी आँखें तेज़-तेज़ झपकने लगीं।
हर झपक के साथ धड़कन तेज़ होती गई।
और जब अर्जुन उसके चेहरे के पास झुका —
बस कुछ इंच की दूरी…
उसकी साँसें उसकी साँसों से टकराईं…
वो पल बस थम गया —
और तभी —
काव्या चीखकर उठ गई!
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उसका माथा पसीने से भीगा हुआ था।
दिल जोरों से धड़क रहा था।
वो खुद को संभालने की कोशिश में बिस्तर पर बैठी रही — साँसें तेज़, आँखों में डर और उलझन दोनों।
“क्यों… बार-बार वही चेहरा?” उसने खुद से कहा।
“जिससे नफ़रत करनी चाहिए, उसी को क्यों सोच रही हूँ मैं…”
उसने पानी का गिलास उठाया, लेकिन हाथ काँप रहे थे।
नींद तो टूट चुकी थी — पर सपना अब भी ज़िंदा था।
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दूसरी तरफ़, उसी रात —
अर्जुन मेहता अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा था।
सिगरेट उसके हाथ में थी, पर बुझ चुकी थी।
उसकी नज़रें खाली थीं — पर ज़हन में सिर्फ एक चीज़ थी:
वो आँखें।
वो आँखें जो डर में भी बहादुर थीं, जो बोलती नहीं थीं, पर हर झपक में कहानी कहती थीं।
हर बार जब वो उन्हें याद करता, उसकी नींद उड़ जाती।
वो हँसना चाहता, पर होंठों पर बस एक अधूरी मुस्कान रह जाती।
उसने खुद से कहा,
“क्यों उसकी आँखें मुझे सुकून नहीं लेने देतीं?”
वो आँखें उसकी दुनिया की सबसे खूबसूरत उलझन बन चुकी थीं।
हर बार बंद आँखें करता — तो वही नज़र, वही चमक, वही सफ़ेद सूट… और वही एहसास जैसे वो अब भी पास हो।
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रात ने दोनों को जगाए रखा —
एक को डर के साथ, दूसरे को तड़प के साथ।
पर दोनों को सता रही थी एक ही चीज़ —
वो नज़रें जो बात करती थीं, पर कभी कुछ कहती नहीं थीं।
✨ चौथा अध्याय – अनकही मुलाक़ात
सुबह की हल्की धूप कॉलेज के गेट पर पड़ रही थी। हर तरफ़ तैयारियाँ चल रही थीं — बैनर लग रहे थे, चेयरें सज रही थीं।
आज कॉलेज की वार्षिक बिज़नेस सेमिनार थी, और सबके बीच एक ही चर्चा थी —
“आज हमारे चीफ़ गेस्ट कोई बहुत बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट हैं…”
काव्या, जो कॉलेज में लेक्चरर थी, खुद इस आयोजन की टीम में थी।
वो कॉफ़ी पीते हुए मुस्कुरा रही थी,
“पता नहीं कौन से ‘बड़े साहब’ हैं जो कॉलेज को इतना इम्पोर्टेंट लग रहे…”
वो हँसी, पर उसके दिल में कहीं एक अजीब बेचैनी थी।
पिछली रात के सपने ने उसे अब भी हिला रखा था —
वही सपना… वही आलिंगन… वही चेहरे का साया।
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घड़ी ने जब ग्यारह बजाए, तो कॉलेज के गेट पर लंबी कारों का काफ़िला रुका।
ब्लैक सूट, डार्क गॉगल्स, और सिक्योरिटी से घिरा एक शख़्स कार से उतरा —
अर्जुन मेहता।
कॉलेज में सन्नाटा छा गया, सबने तालियाँ बजाईं।
लेकिन भीड़ के बीच खड़ी काव्या का चेहरा जैसे सफ़ेद पड़ गया।
उसके हाथ से फाइल गिर गई —
“ये… ये यहाँ क्या कर रहा है?”
दिल की धड़कन अचानक तेज़ हो गई।
पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए हों।
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मंच पर जब अर्जुन को बुलाया गया, वो माइक्रोफोन के पास आया, और अपनी गहरी आवाज़ में बोला —
“Knowledge is the real power… business सिर्फ़ mind से नहीं, दिल से भी चलाया जाता है।”
काव्या उस आवाज़ को सुनते ही जैसे ठहर गई।
वो हर शब्द के साथ उसके चेहरे की ओर देखती रही,
और अर्जुन…
उसकी निगाहें भीड़ में उसे तलाश रही थीं।
और जब उसकी नज़र आखिरकार उस पर पड़ी —
दोनों की नज़रें मिलीं।
काव्या का दिल काँपा, और अर्जुन की साँसें थम गईं।
वो वही सफ़ेद सूट में नहीं थी, पर आँखें वही थीं —
जो बात करती थीं, पर कुछ कहती नहीं थीं।
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सेमिनार खत्म होने के बाद जब भीड़ बिखरी,
काव्या कॉरिडोर में चल रही थी, तभी पीछे से वही आवाज़ —
“मिस काव्या…।”
वो पलटी — अर्जुन ठीक पीछे था,
कुछ कदम की दूरी पर।
उसका चेहरा उतना ही सधा हुआ, पर आँखों में अजीब-सी कोमलता।
“लगता है किस्मत को हमारा मिलना पसंद है,”
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा।
काव्या ने सीधा जवाब दिया —
“या शायद किस्मत मेरी परीक्षा लेना चाहती है।”
“परीक्षा?” अर्जुन थोड़ा करीब आया,
“या डर?”
वो उसकी आँखों में देखती रही,
“डर भी है, और सवाल भी… पर जवाब आपसे नहीं चाहिए।”
वो मुड़ी और चली गई।
अर्जुन बस उसे जाता देखता रह गया —
हर कदम जैसे उसके दिल पर दस्तक दे रहा था।
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रात...
काव्या बिस्तर पर लेटी थी,
पर आँखें बंद करते ही फिर वही सपना शुरू हुआ…
धुंध, वही सड़क, वही गर्माहट…
अर्जुन फिर पास आया…
उसे गले लगाया, उसकी आँखें तेज़-तेज़ झपकने लगीं…
उसकी साँसें उसके चेहरे के पास,
और जैसे ही उसने उसे kiss करने को झुका —
वो फिर से झटके से उठ गई।
पसीने से भीगी हुई, डर और उलझन में काँपती हुई।
“क्यों हर बार वही सपना…?”
उसका दिल कह रहा था कुछ, दिमाग कुछ और।
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दूसरी तरफ़,
अर्जुन अपने ऑफिस के कमरे में बैठा था — खिड़की से बाहर देखता हुआ।
उसकी आँखों में वही झलक, वही बेचैनी।
उसने अपने राइट हैंड चिराग को बुलाया।
“चिराग,” उसने गहरी आवाज़ में कहा,
“उस लड़की के बारे में सब पता करो… नाम, पता, परिवार, सबकुछ।”
चिराग थोड़ा हिचका,
“सर… कोई परेशानी—”
अर्जुन ने बात काट दी,
“बस पता करो। आज रात तक।”
फिर वो खामोश हो गया।
उसकी नज़रें अब भी हवा में तैर रही थीं —
जहाँ उसे सिर्फ़ वो आँखें दिख रही थीं…
जो डर में भी खूबसूरत थीं, और अब उसकी नींदों की कैदी बन चुकी थीं।
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उस रात दोनों नहीं सो पाए —
एक अपने डर से,
दूसरा अपने दिल से।
पर दोनों के बीच अब एक अटूट रिश्ता बन चुका था —
सपनों और यादों का…
✨ पाँचवाँ अध्याय – मजबूरी और टूटती रस्में
अर्जुन कुछ दिनों के लिए अपने लंदन ऑफिस के काम के सिलसिले में विदेश चला गया। बड़े प्रोजेक्ट्स, निवेशकों की मीटिंग्स, और योजनाओं के बीच उसने खुद को व्यस्त रखा। पर शहर में खबरें तेजी से फैल रही थीं।
इसी बीच, काव्या के पिता की तबियत अचानक बिगड़ गई। अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया, और डॉक्टरों ने गंभीर स्थिति की जानकारी दी। साथ ही, पिछले लंबे समय से चल रहे बैंक लोन का दबाव भी परिवार पर भारी पड़ रहा था।
पिता की नाज़ुक स्थिति देखकर काव्या का दिल टूट गया।
रात में, पिता ने उसे धीरे से कहा,
“बेटी… मेरी आख़िरी इच्छा है कि तुम्हारी शादी अच्छे इंसान से हो… मैं नहीं रहूँ, तो तुम्हारी ज़िंदगी सुरक्षित रहे।”
काव्या की आँखों में आँसू थे। उसने खुद को संभाला और पिता की तकलीफ़ को देखते हुए हाँ कह दी। यह हाँ प्यार से नहीं, मजबूरी और फ़र्ज़ से थी।
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अगले ही हफ्ते, कॉलेज में काव्या की सगाई तय कर दी गई।
एक सम्मानित प्रोफ़ेसर — शालीन और आदर्शवादी — को उसका जीवनसाथी बनाया गया। परिवार और कॉलेज प्रशासन ने सब कुछ जल्दी में अंजाम दिया। काव्या के लिए यह खुशियाँ नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों का बंधन था।
इंगेजमेंट की तैयारियाँ चल रही थीं। हॉल सजाया गया, फूलों की खुशबू चारों ओर फैली, और सभी लोग उत्साहित थे। काव्या की आँखों में हल्की घबराहट थी — उसने चाहकर भी इस सगाई को रोका नहीं।
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इसी बीच, लंदन से लौटे अरजुन को चिराग ने सूचित किया कि काव्या की सगाई तय हो गई है।
कहा गया: “सर, वह मजबूरी में राज़ी हो गई है। पिता की तबियत और लोन के चलते उन्होंने हाँ कह दी।”
अरजुन के भीतर एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। उसने कोई नाम नहीं पूछा, न किसी को दोषी ठहराया — पर वह जानता था कि वह वही लड़की है, जिसकी आँखों ने उसे बीते दिनों से बेचैन किया था।
उसने तय किया कि वह इंगेजमेंट वाले दिन लौटेगा। किसी को पता नहीं चला कि कौन आया, बस कि समय और परिस्थितियों ने इसे मुमकिन कर दिया।
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इंगेजमेंट का दिन आया। हॉल में रंग-बिरंगी सजावट, मेहमानों की हलचल, और मुस्कुराती काव्या।
लेकिन अचानक, कुछ चुपचाप और दबे कदमों के साथ वह व्यक्ति वहाँ था। कोई नाम नहीं लिया गया। किसी ने उसे देखा या पहचानने की कोशिश नहीं की — बस वातावरण बदल गया।
सन्नाटा, हल्की-सी ठंडी हवा, और काव्या के दिल में हलचल।
रिवाज़ और औपचारिकताओं के बीच, सगाई बिना किसी विवाद या शोर-शराबे के टूट गई।
काव्या के चेहरे पर राहत थी, पर भीतर खालीपन और उलझन भी थी।
किसी ने देखा, किसी ने नहीं — लेकिन वातावरण में यही समझा गया कि रिश्ता आगे नहीं बढ़ेगा।
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घर पर, अरजुन के दादा-दादी लगातार उससे शादी करने के लिए कह रहे थे।
“हम चाहते हैं कि तुम्हारा जीवन संवर जाए… तुम्हारे माता-पिता नहीं रहे, और अब यह परिवार तुम्हारा सहारा है।”
अरजुन ने उन्हें सुना, पर अपने मन में तय कर लिया कि वह अभी किसी भी रिश्ते में नहीं बंधेगा। प्यार हो सकता है, पर शादी नहीं।
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काव्या के लिए भी कहानी पूरी नहीं हुई थी। पिता का लोन अब भी दबाव डाल रहा था, पर इंगेजमेंट टूटने के बाद वह एक तरह की राहत महसूस कर रही थी।
उसे अब यह समझ आया कि शादी सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है, और इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए उसने हाँ तो कह दी थी, लेकिन अब रास्ते खुल गए थे।
अरजुन भी उन आँखों को याद करता रहा —
सफेद सूट में चमकती आँखें, डर और मजबूरी के बावजूद अद्वितीय।
वह केवल उस स्मृति में जीता — और तय कर चुका था कि शादी अभी उसके लिए नहीं, पर उस याद को अपने दिल में हमेशा संजोकर रखेगा।
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✨ Chapter 6 – टूटती रस्में और अनकहा एहसास
काव्या आईने के सामने खड़ी थी। सोने के रंग का लेहंगा उसके रूप को और निखार रहा था, हल्का मेकअप उसके चेहरे पर चमक ला रहा था। वह हर अदा में खूबसूरत लग रही थी।
लेकिन उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी। चेहरे पर मुस्कान थी, पर वह केवल दिखावा—एक फेक स्माइल।
आज उसका इंगेजमेंट था। परिवार की उम्मीदें, पिता की तबियत, और अपने भीतर का डर—सब उसके कंधों पर भारी थे।
वह धीरे-धीरे मंच की तरफ बढ़ी। सजावट की सुनहरी रोशनी और फूलों की खुशबू के बीच उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
पर हर कदम में उसका मन भीतर से टूटता जा रहा था।
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राघव देर से आया। काव्या की आँखों में हल्की उम्मीद झलकी, पर डर और बेचैनी भी थी।
“सॉरी, ट्रैफिक में फंस गया था।” राघव ने मुस्कुराया।
काव्या ने मुस्कान बनाई, लेकिन भीतर उसका दिल कांप रहा था।
राघव ने गंभीर स्वर में कहा,
“मैं इस इंगेजमेंट के लिए तैयार नहीं हूँ। मैं ऐसे घर में शादी नहीं कर सकता जहाँ बहुत बड़ा लोन है।”
काव्या के होंठ हिल गए। फेक मुस्कान अब टूटती हुई लग रही थी।
उसके दिल ने जोर से कहा कि यह रिश्ता अब केवल मजबूरी का नतीजा था।
और हॉल में बैठा हर कोई समझ गया कि यह रस्म बस औपचारिकता भर रह गई थी।
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फ्लैशबैक – अनजानी ताकत
काव्या को याद आया—इंगेजमेंट अचानक क्यों टूटी।
किसी ने नहीं देखा, किसी ने नहीं जाना, पर राघव ने अचानक ऐसा फैसला लिया।
काव्या के लिए यह सिर्फ़ एक अजीब घटना का हिस्सा था।
उसने सोचा, “शायद राघव ने खुद फैसला किया होगा… शायद वह तैयार नहीं था।”
काव्या को यह नहीं पता था कि उस दिन कोई अनजानी ताकत थी जिसने सबकुछ रोक दिया।
किसी ने उसे, किसी ने राघव को सही समय पर रोक दिया—पर काव्या को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
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सपनों में वही एहसास
रात को काव्या बिस्तर पर लेटी। आँखें बंद की, लेकिन नींद नहीं आई।
फिर वही सपना आया —
वह सुनसान सड़क, हल्की धुंध, और पीछे से आती गर्माहट।
वह पलटी — और देखा कोई खड़ा था।
सफेद सूट में, आँखों में तेज़-तेज़ झपकती चमक, और दिल पर असर छोड़ती उपस्थिति।
वह उसे गले लगाता, उसकी साँसें उसके चेहरे के पास।
और जैसे ही उसने उसे kiss करने को झुका — काव्या झटके से जाग गई।
माथे पर पसीना, डर और बेचैनी, आँखों में वही अनकहा एहसास।
काव्या जानती थी कि इंगेजमेंट टूट गया, पर यह नहीं समझ पाई कि कौन था जिसने इसे रोका।
फिर भी, सपना बार-बार आता रहा — और आँखों का वही एहसास, डर और खिंचाव उसके दिल में हमेशा के लिए बस गया।
✨ Chapter 7 – दबाव, गुस्सा और अनजाना मोड़
अरजुन अपने कमरे में बैठा था।
दादा-दादी उसके सामने बैठे थे, उनके शब्द हर बार एक अनकहा दबाव की तरह लग रहे थे।
“अब समय आ गया है। तुम्हारी शादी होनी चाहिए।”
“तुम देर क्यों कर रहे हो? सब तैयार हैं। अब तुम्हें कदम उठाना ही होगा।”
अरजुन ने सिर झुकाया, पर भीतर उसका मन उथल-पुथल में था।
दिल के किसी कोने में एक आवाज़ बार-बार कह रही थी कि यह सब आसान नहीं होगा, और जो कुछ भी आने वाला है, वह उसकी और किसी की जिंदगी बदल देगा।
वह जानता था कि परिवार की उम्मीदें बड़ी थीं। दबाव इतना था कि वह हर बार खुद से पूछता,
“क्या मैं अभी तैयार हूँ? क्या मैं वही कर रहा हूँ जो सही है?”
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वहीं दूसरी ओर, काव्या अपने कमरे में थी।
उसकी यादों में वही दिन बार-बार लौट रहा था — सुनहरा लेहंगा, हल्का मेकअप, मंच पर उसकी फेक मुस्कान।
लेकिन अब उसे पता चल चुका था कि इंगेजमेंट टूटने में अरजुन का हाथ था।
उसके दिल में अब सिर्फ़ गुस्सा और नफरत थी।
“कैसे…? कैसे उसने मेरी जिंदगी में इतनी छुपी ताकत से हस्तक्षेप किया?”
सपनों में बार-बार वही सफेद सूट, वही तेज़ झपकती आँखें और वही अनकहा एहसास उसकी नींद उड़ा रहे थे।
काव्या का गुस्सा और अरजुन की खामोश ताकत — दोनों अब अलग-अलग दिशाओं में उभर रहे थे।
लेकिन नियति का अगला कदम अनिश्चित था।
दोनों की ज़िंदगियों में नया मोड़ आ चुका था।
अरजुन पर परिवार का दबाव।
काव्या में गुस्सा और अरजुन के प्रति नफरत।
और भविष्य की राहें, जो अब पूरी तरह अज्ञात और सस्पेंसफुल बन गई थीं।
कौन किसके पास जाएगा?
क्या नियति उन्हें फिर से एक-दूसरे के करीब ले आएगी, या यह दूरी हमेशा बनी रहेगी?
सस्पेंस हवा में घुल गया।
अब बस नियति का फैसला ही तय करेगा कि आगे क्या होगा।
✨ Chapter 8 – अचानक मुलाकात और गुस्से का असर
दो महीने बाद, काव्या रेस्टोरेंट में अपने दोस्तों के साथ बैठी थी।
वह ब्लैक कलर की अनारकली में बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसकी बड़ी-बड़ी, डार्क और डीप आँखें, हर किसी को अपनी ओर खींच रही थीं।
तभी उसकी नज़र पड़ी — अरजुन।
सफेद शर्ट, ब्लैक तीन-पीस सूट में, वह इतने डैशिंग और हैंडसम लग रहा था कि काव्या की धड़कनें अचानक तेज़ हो गईं।
और जैसे ही उसकी आँखें अरजुन पर पड़ीं, काव्या की यादों में अपनी इंगेजमेंट का टूटना ताज़ा हो गया।
गुस्से और सवालों से भरकर, काव्या ने झट से अरजुन का कॉलर पकड़ लिया।
“तुम्हारे कारण… मेरी जिंदगी… मेरी इंगेजमेंट… क्यों?” उसकी आवाज़ कांप रही थी।
लेकिन अरजुन ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में गुस्से की लाल चमक थी।
फिर अचानक, उसके बॉडीगार्ड्स ने रेस्टोरेंट को खाली करवा दिया।
हर कोई बाहर निकल गया, और अब हॉल में सिर्फ़ अरजुन और काव्या थे।
अरजुन का गुस्सा अब खुलकर सामने आ गया।
“तुमने मेरी हिम्मत कैसे की… मुझे पकड़ने की?” उसकी आवाज़ सख्त और घुटन भरी थी।
वह काव्या की तरफ़ झुकता है, और मजबूर कर उसे अपनी ओर खींचता है।
काव्या की आँखों में डर और आश्चर्य दोनों थे।
अरजुन ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और अचानक, काव्या के होंठों पर एक Kiss करके अपना गुस्सा शांत किया।
काव्या चौंक गई, उसके होंठ हिले, और उसकी आँखों में आँसू भर आए।
वह रो रही थी, डर और बेचैनी से कांप रही थी।
अरजुन ने धीरे-धीरे उसे छोड़ दिया, लेकिन उस पल काव्या का डर और भीतरी बेचैनी और बढ़ गई थी।
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सपनों का असर
रात को काव्या बिस्तर पर लेटी।
उसकी आँखें बंद थीं, पर नींद कहीं दूर थी।
वही सपना फिर आया —
सफेद सूट, तेज़ झपकती लाल आँखें, और वही गहरी पकड़।
सपने में अरजुन ने फिर वही जोर और पास खींचना किया, वही लिप्स का स्पर्श, वही गुस्सा और नियंत्रण।
काव्या का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और वह डर और बेचैनी में पूरी तरह डूबी हुई थी।
अरजुन भी वही दृश्य याद कर रहा था — काव्या की आँखें, उसके होंठ, और उस Kiss का एहसास।
दोनों की नींदें पूरी तरह उड़ चुकी थीं।
✨ Chapter 9 – छुपा सच और उलझी नियति
अरजुन ऑफिस में अपनी फाइलों के बीच व्यस्त था।
लेकिन उसके दिमाग में एक खालीपन था — वही बेचैनी, वही अजीब खलिश जो काव्या की याद दिलाती थी।
वहीं उसका राइट हैंड, चिराग, दादा के पास गया।
चिराग ने धीरे-धीरे काव्या के बारे में सारी जानकारी दी।
दादा ने आँखें चौड़ी कर लीं।
“तो यह वही लड़की है, जो अरजुन के लिए…?” उन्होंने खुद से कहा।
“हमें अब सही समय पर कदम उठाना होगा,” दादा ने गंभीर स्वर में कहा।
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चिराग की चिंता
चिराग के मन में डर बैठ गया था।
“अगर अरजुन को पता चला कि मैंने दादा को काव्या के बारे में बताया, तो पता नहीं वह क्या करेगा।”
उसकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं।
वह जानता था कि अरजुन का गुस्सा और ताकत असाधारण और भयभीत करने वाली है।
चिराग खुद को रोकने की कोशिश करता रहा, लेकिन भीतर डर और बेचैनी के साथ वह सोच रहा था कि अब क्या होगा।
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काव्या की दिशा
वहीं दूसरी ओर, काव्या अब अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी।
वह राघव के लिए शादी की तैयारी कर रही थी, ताकि उसका जीवन सुरक्षित और स्थिर हो।
लेकिन उसकी यादों में अरजुन के लाल-झपकती आँखें और वह Kiss का एहसास लगातार घुल रहे थे।
काव्या खुद को समझा रही थी कि अब वह अतीत को पीछे छोड़कर आगे बढ़े, लेकिन उसके दिल की धड़कनें बार-बार अरजुन की याद दिला रही थीं।
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सस्पेंस और नए मोड़
अब दोनों की जिंदगी में नया मोड़ आने वाला था:
दादा और अरजुन के घर वाले अरजुन और काव्या की शादी की योजना बनाने लगे।
काव्या राघव के लिए शादी की तैयारी कर रही थी।
चिराग डर रहा था कि अगर अरजुन को पता चला कि उसने काव्या के बारे में जानकारी दी, तो अरजुन क्या कदम उठाएगा।
अरजुन और काव्या अभी तक एक-दूसरे की असली स्थिति से अनजान थे।
नियति धीरे-धीरे उनके रास्तों को मोड़ने वाली थी।
क्या अरजुन और काव्या फिर से टकराएंगे?
या काव्या राघव के साथ अपने फैसले को पूरा करेगी?
और अगर टकराहट हुई, तो क्या अरजुन का गुस्सा और उनकी पुरानी यादें दोनों की जिंदगी बदल देंगी?
सस्पेंस हवा में फैल गया।
दोनों के जीवन में अब अनजाने खतरे और भावनाओं का तूफ़ान आने वाला था।
✨ Chapter 10 – दिल की तैयारी और छुपा हुआ खेल
अरजुन ऑफिस में अपने बिज़नेस के काम में पूरी तरह डूबा हुआ था।
कॉल्स, मीटिंग्स और महत्वपूर्ण फ़ाइलें उसके चारों ओर थीं, लेकिन उसके दिमाग के किसी कोने में वही काव्या की आँखें और उनका गहरा एहसास बार-बार उभर रहा था।
वहीं शहर के दूसरे कोने में, दादा ने अपनी नई योजना बना ली थी।
“चलो बेटा, अब थोड़ा ड्रामा किया जाए!” दादा ने चिराग से कहा।
चिराग ने हिचकिचाते हुए पूछा,
“साहब… आप फिर से…?”
दादा ने बड़े गंभीर, पर नाटकिय अंदाज़ में कहा,
“हाँ! अब देखो कैसे अरजुन को शादी के लिए तैयार किया जाए। एकदम इमोशनल ब्लैकमेल!”
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कॉमिक मोमेंट – दादा और चिराग
दादा ने जोर-जोर से अपने छाती पर हाथ रखकर नाटक करना शुरू किया।
“अरे… लगता है, हार्ट अटैक आने वाला है! जल्दी बुलाओ डॉक्टर!”
चिराग ने फुसफुसाकर कहा,
“साहब, अब तो बस सच में अस्पताल ले जाना पड़ेगा…”
दादा ने मजाक में कहा,
“तो फिर तुझे भी साथ ले चलेंगे!”
दोनों की बेवजह की बातें और मज़ाक कमरे में हल्की हँसी पैदा कर रहे थे, पर अरजुन को इस पूरे ड्रामे का कुछ भी पता नहीं था।
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हॉस्पिटल का सीन – अरजुन का टेंशन
कुछ घंटों बाद, दादा सचमुच हॉस्पिटल में भर्ती हो गए।
अरजुन को तुरंत खबर मिली।
“दादा… क्या हुआ?” उसने फोन पर चिंता से पूछा।
दादा ने नाटकीय स्वर में कहा,
“बेटा, दिल… थोड़ा ज्यादा जोर से धड़क गया… अब डॉक्टर के पास हूँ।”
अरजुन दौड़ते हुए हॉस्पिटल पहुँचा।
वह दादा के बेड के पास खड़ा हुआ, आँखों में डर और बेचैनी थी।
दादा ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,
“बेटा… अब तू शादी के लिए तैयार हो जा। और हाँ, मैं तुम्हारे बिना नहीं रहूँगा।”
अरजुन ने बिना सोचे-समझे सिर हिलाया।
दादा और दादी के अलावा उसका कोई नहीं था।
और वह शादी के लिए हाँ कर देता है।
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काव्या और राघव – शादी की तैयारी
वहीं काव्या अब पूरी तरह सोच चुकी थी कि वह अरजुन को भूलकर आगे बढ़े।
वह राघव के लिए शादी की तैयारी में व्यस्त थी।
शादी की तारीख तय हो गई — सिर्फ चार दिन दूर।
काव्या के मन में हल्की बेचैनी थी, लेकिन वह खुद को समझा रही थी कि यह सही निर्णय है।
वह सज-धजकर अपने दोस्तों के साथ शादी की तैयारी कर रही थी।
“बस, अब मुझे अपने दिल को संभालना होगा। अरजुन को पूरी तरह भूल जाना होगा। यह सिर्फ़ मेरा और राघव का भविष्य है।”
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अरजुन की यादें – दिल में गहराई
लेकिन बिज़नेस की व्यस्तता के बावजूद, अरजुन की काव्या की आँखों की यादें लगातार उसके दिल और दिमाग में उभर रही थीं।
उसकी लाल-झपकती आँखें, उसकी मासूम मुस्कान, और वह Kiss का एहसास — यह सब उसे बार-बार घेर रहा था।
अरजुन खुद से कहता,
“बस, एक आखिरी बार याद करना… और फिर काम पर ध्यान देना।”
लेकिन दिल का भरोसा किसी पर नहीं होता।
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फिर से कॉमिक मोमेंट – दादा और चिराग
हॉस्पिटल के कमरे में दादा और चिराग अपनी मज़ाकिया बातें कर रहे थे।
“देखा बेटा, हमारी योजना काम कर रही है!” दादा ने हँसते हुए कहा।
चिराग ने फुसफुसाया,
“साहब, लेकिन अब मैं डर रहा हूँ कि अगर अरजुन को पता चला कि मैंने यह सब बताया…”
दादा ने हँसते हुए कहा,
“तो फिर तुझे भी शादी करवा देंगे!”
दोनों की बेवजह की बातें माहौल को हल्का कर रही थीं, लेकिन अब कहानी में सस्पेंस और भावनाओं का तूफ़ान आने वाला था।
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सस्पेंस – आगे का खेल
अरजुन अब शादी के लिए तैयार था, लेकिन काव्या की शादी की तैयारी और नियति से अभी अनजान।
काव्या पूरी कोशिश कर रही थी कि वह अरजुन को भूल जाए।
दादा और चिराग अब शादी की योजना में पूरी तरह लगे हुए थे।
लेकिन दोनों के दिल अब भी अनजाने तरीके से जुड़े हुए थे।
सस्पेंस हवा में फैल गया था —
कौन किसके करीब आएगा?
क्या अरजुन और काव्या फिर से टकराएंगे?
या राघव और अरजुन की जिंदगी में नए मोड़ आने वाले हैं?
✨ Chapter 11 – दादा की नजर और अरजुन का प्लान
दादा अब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गए थे, और उनका पहला कदम कॉलेज की तरफ़ बढ़ा। वैसे तो उनकी सेहत अब ठीक थी, लेकिन उनका दिमाग हमेशा नई योजनाओं और शादियों की तरफ़ ही घूमता रहता था। कॉलेज पहुँचते ही उनका सामना काव्या से हो गया।
काव्या बेहद खूबसूरत लग रही थी, और दादा की नजरें देखते ही चकाचौंध हो गईं। “अरे वाह! यह लड़की तो हमारी घर की बहू बननी चाहिए!” दादा ने खुद से कहा, और उनके चेहरे पर वही मज़ाकिया, साजिश भरी मुस्कान फैल गई।
वहीं दूसरी ओर, अरजुन अपने ऑफिस में मीटिंग्स, कॉल्स और नए प्रोजेक्ट्स में व्यस्त था। उसकी दुनिया बस बिज़नेस और काम के इर्द-गिर्द घूम रही थी। उसे अभी तक काव्या और राघव की शादी के बारे में कोई खबर नहीं थी, और दिल की हल्की बेचैनी के बावजूद वह अपने काम में पूरी तरह डूबा हुआ था।
अरजुन ने अपने भरोसेमंद राइट हैंड चिराग को बुलाया।
“चिराग, मुझे पूरी जानकारी चाहिए — काव्या के पिता का, उनकी फैमिली का, सबकुछ,” उसने गंभीरता से कहा।
चिराग हिचकिचाया और फुसफुसाया,
… अभी तक अरजुन को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं कुछ जानता हूँ।”
अरजुन ने उसकी ओर सख्ती से देखा, और चिराग ने तुरंत फाइलें जुटानी शुरू कर दीं।
वो फाइलें संभालते-संभालते हिचकिचा भी रहे थे, और दिमाग में घबराहट थी कि अगर अरजुन को पता चला कि उसने दादा को जानकारी दी तो…
इस बीच दादा कॉलेज में अपनी मज़ाकिया चालों और हल्की नाटकीयता के साथ काव्या के पीछे-पीछे घूम रहे थे।
“अरे चिराग, यह लड़की हमारी घर की बहू बनेगी,” दादा ने मुस्कुराते हुए कहा।
चिराग ने फिर से फुसफुसाया,
“साहब… अरजुन को यह पता चला तो?”
दादा ने हँसते हुए कहा,
“तो फिर वही होगा जो होना चाहिए — शादी तय!”
अरजुन को अभी इस सबका कोई अंदाज़ा नहीं था, लेकिन उसके दिल में अब भी काव्या की आँखों की यादें बार-बार उभरती थीं।
उसकी लाल झपकती आँखें, मासूम मुस्कान, और वही Kiss का एहसास उसे काम से ध्यान हटाकर बार-बार सोचने पर मजबूर कर रहे थे।
लेकिन अब सवाल यह था —
जब अरजुन को पता चलेगा कि काव्या की शादी सिर्फ़ चार दिन में राघव से होने वाली है, तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
क्या वह शांत रह पाएगा, या फिर उसका गुस्सा, प्यार और पुरानी यादें उसे एक बड़ा और अप्रत्याशित कदम उठाने पर मजबूर कर देंगी?
और दादा और चिराग की मज़ाकिया योजनाएं इस पूरी उलझन में कैसे रंग लाएँगी?
सस्पेंस और भावनाओं का तूफ़ान अब धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी में पूरी तरह दस्तक देने वाला था।
✨ Chapter 12 – उलझी नियति और आने वाला तूफ़ान
काव्या अब पूरी तरह खुश थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी और उसकी आँखों में चमक, क्योंकि वह अपनी शादी की तैयारियों में व्यस्त थी। घर के हर कोने में गुलदस्ते, सजावट और शादी की योजनाओं की हलचल थी। वह अपने दोस्तों और परिवार के बीच, रंग-बिरंगी साड़ियों और हल्के मेकअप के साथ हर पल का आनंद ले रही थी, लेकिन उसके सपनों में फिर भी कभी-कभी वही पुरानी यादें — अरजुन की लाल-झपकती आँखें, उसका Kiss का एहसास — अचानक लौट आती थीं। रात में वह अपने कमरे में लेटी, नींद में सपनों की दुनिया में खोई हुई, अचानक डरावना सपना देखने लगी। सपने में अरजुन उसकी ओर आता है, उसकी आँखों की गहराई और वही कशिश उसे बेचैन कर रही थी।
वहीं दूसरी ओर, अरजुन अपने बड़े ऑफिस में मीटिंग्स और नए प्रोजेक्ट्स के बीच व्यस्त था। फोन और ईमेल की घंटियाँ, पार्टनर्स के कॉल्स, और रणनीति की प्लानिंग — सब कुछ उसके चारों तरफ़ था। लेकिन दिल और दिमाग कहीं और थे। वह अपनी बालकनी के पास खड़ा था, शहर की हलचल को देख रहा था, लेकिन उसका मन काव्या की आँखों और उसके मासूम चेहरे के ख्याल में उलझा हुआ था। हाथ में चाय का कप था, लेकिन उसका ध्यान पूरी तरह खोया हुआ था।
इसी बीच चिराग दादा के आदेश पर अरजुन के पास आया और काव्या के पिता और उनके परिवार की पूरी जानकारी सौंप दी। अरजुन ने फाइलें लेते हुए अपनी नज़रें कड़ी कर दीं। चिराग ने डरते-डरते कहा,
“साहब… कल काव्या की शादी है… राघव से। चार दिन दूर नहीं, बस कल ही।”
अरजुन के कानों में यह बात गूंजते ही उसका शरीर सिहर उठा। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं और आँखों में गहराई से गुस्सा और बेचैनी दोनों झलकने लगी। वह खिड़की के पास खड़ा हो गया, शहर की रोशनी और हलचल को देखते हुए, पर उसके मन में अब एक तूफ़ान सा उठ चुका था। उसने खुद से कहा,
“यह कैसे हो सकता है… बस कल… और मैं अब भी कुछ कर सकता हूँ।”
चिराग ने पीछे खड़े होकर देखा कि अरजुन की आँखों में गुस्सा, यादें और अचानक उठी बेचैनी एक साथ उभर रही थीं। उसकी सांसें थम सी गई थीं।
दादा और चिराग अब अपनी योजनाओं में व्यस्त थे, लेकिन यह नाटक अब अरजुन की भावनाओं और भविष्य की जटिलताओं की ओर मोड़ने वाला था।
काव्या अब पूरी तरह अपने भविष्य की तैयारियों में व्यस्त थी, लेकिन उसके सपनों में अब भी अरजुन की झलकें थीं। अरजुन को अब पता चल चुका था कि काव्या की शादी कल राघव से होने वाली है, और वह अपने दिल में उठ रहे भावनाओं और गुस्से को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था।
सस्पेंस अब हवा में फैल चुका था —
क्या अरजुन काव्या की शादी रोकने की कोशिश करेगा, या फिर खुद को नियंत्रित कर अपनी भावनाओं को दबा देगा?
और काव्या, जो अपने सपनों और भावनाओं के बीच उलझी थी, इस नए तूफ़ान का सामना कैसे करेगी?
दोनों की जिंदगी अब बेहद उलझन और भावनाओं के तूफ़ान में फंसने वाली थी, और नियति धीरे-धीरे दोनों को एक नए, अप्रत्याशित मोड़ की ओर ले जा रही थी।
✨ Chapter 13 – उलझन, Kidnap और नियति का खेल
काव्या अब अपने कमरे में चैन की नींद सो रही थी। उसका मन पूरी तरह खुश था, क्योंकि कल उसकी शादी राघव से होने वाली थी। फूलों की खुशबू और शादी की तैयारियों के बीच वह सपनों में खोई हुई थी। लेकिन तभी उसके सीक्रेट लवर वरुण ने अचानक उसका रास्ता रोक लिया। अचानक की गई हरकत में उसने काव्या को अपने साथ उठा लिया। काव्या की नींद में हल्की बेचैनी थी, लेकिन वह पूरी तरह सपनों और खुशी में डूबी थी, और उसे कुछ भी अंदाज़ा नहीं था कि अब उसके जीवन में नया तूफ़ान आने वाला था।
वहीं दूसरी तरफ, अरजुन को जैसे ही पता चला कि काव्या की शादी बस कल है, उसने एक बार फिर राघव को धमकी दी। उसकी आवाज़ में ठंडक और गंभीरता दोनों थी। “तुम इस शादी के लिए हिम्मत मत दिखाना। अगर तुमने उसे छुआ, तो मैं जानता हूँ कि क्या करना है।” अरजुन की यह धमकी सुनकर राघव की नींद उड़ गई, और उसके दिल में डर बैठ गया।
चिराग और दादा अब पूरी तरह बेचैन थे। उनकी सारी प्लानिंग फेल हो चुकी थी, क्योंकि काव्या की शादी बस कल होने वाली थी, और अरजुन अभी तक इस पूरे खेल से अनजान था। दादा ने झट से माथा पकड़ लिया और चिराग से कहा,
अब हमारी योजना काम नहीं कर रही। भगवान की मदद ही चाहिए।”
चिराग ने हिचकिचाते हुए कहा,
“भाई, अगर भगवान हमें सुन लें और कोई जादू हो जाए… तो शायद यह शादी रुक जाए।”
दादा ने नाटकिय अंदाज़ में हाथ जोड़ लिए और जोर से प्रार्थना करने लगे।
“हे भगवान, हमारी दुआ सुनो… कोई जादू कर दो, और यह शादी रुक जाए!”
दोनों की यह मजाकिया, पर इमोशनल प्रार्थना कमरे में हल्की हँसी पैदा कर रही थी, लेकिन भीतर उनके दिल में डर और बेचैनी भी थी।
वहीं अरजुन, काव्या की यादों से पूरी तरह बेचैन और restless था।
वह अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा, बाहर की रोशनी और शहर की हलचल को देख रहा था, लेकिन उसके मन में अब सिर्फ़ एक ही सवाल था — काव्या की शादी कैसे रोकी जाए, और उसे सुरक्षित वापस कैसे लाया जाए।
काव्या, वरुण के कब्ज़े में, पूरी तरह बेखबर थी। उसकी नींद में खुशी और सपनों का मिश्रण था, लेकिन अब उसका जीवन एक नए और अप्रत्याशित मोड़ की ओर बढ़ रहा था।
दादा और चिराग की जादू की प्रार्थनाएं, अरजुन की बेचैनी, और काव्या का Kidnap — सब मिलकर कहानी में अत्यधिक सस्पेंस और रोमांच का तूफ़ान ला रहे थे।
सस्पेंस अब पूरी तरह हवा में फैल चुका था —
क्या अरजुन समय रहते काव्या को बचा पाएगा?
क्या दादा और चिराग की प्रार्थनाओं का कोई असर होगा?
और वरुण का इरादा आखिर क्या है — प्यार या खेल?
नियति अब धीरे-धीरे काव्या, अरजुन और राघव की जिंदगी में सबसे बड़ा मोड़ लाने वाली थी।
✨ Chapter 14 – Kidnap और भावनाओं का तूफ़ान
सुबह की हल्की रोशनी कमरे में फैल रही थी, लेकिन काव्या की आंखें अचानक खुलीं और वह खुद को कहीं और अजनबी जगह पर पाई। उसके चारों ओर अनजान दीवारें, कमरा और अजीब माहौल था। अचानक उसे समझ आया कि वह अपने कमरे में नहीं है। डर ने उसके दिल पर कब्ज़ कर लिया। उसने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया, उसकी छोटी-छोटी आवाज़ें कमरे में गूंज रही थीं। “कहाँ हूँ मैं? क्यों यहाँ लाया गया?” उसके होंठ काँप रहे थे, और आँखों में आंसू छलक रहे थे।
वहीं दूसरी तरफ, अरजुन अब भी अपने ऑफिस में व्यस्त था। मीटिंग्स, कॉल्स और नए प्रोजेक्ट्स के बीच उसका दिमाग कहीं और उलझा हुआ था। उसे अभी तक यह पता नहीं था कि काव्या को Kidnap कर लिया गया है। उसके दिल में काव्या की यादें बार-बार उभर रही थीं, लाल-झपकती आँखों की याद और वो Kiss का एहसास उसे चैन से बैठने नहीं दे रहा था।
दादा और चिराग अब पूरी तरह बेचैन थे। हॉस्पिटल की घटना और अरजुन की शादी की योजना सब उनके हाथ से फिसल रही थी। दादा झुककर हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे, , भगवान! कोई चमत्कार हो जाए, और यह लड़की सुरक्षित वापस आ जाए।”
चिराग भी अपने अंदाज़ में फुसफुसा रहा था,
“भाई… अगर अरजुन को पता चल गया तो? वह क्या करेगा?”
लेकिन दोनों अब बस चमत्कार की उम्मीद में बैठे थे, और समय हर पल उनके लिए घातक बनता जा रहा था।
वहीं राघव भी डर और उत्साह के मिश्रण में अपनी शादी की तैयारी कर रहा था। वह अपने शेरवानी पहन रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की घबराहट थी। मन ही मन वह सोच रहा था,
“काव्या, कल मेरी होने वाली है… लेकिन मैं क्यों इतना बेचैन हूँ?”
उसकी चिंता और डर उसकी खुशी को पूरी तरह ढक नहीं पा रहे थे।
और तभी वरुण, जो काव्या को अपने कब्ज़े में ले गया था, सामने आया। उसने देखा कि काव्या जाग गई है और डर से रो रही है। उसकी आँखों में डर और बेचैनी थी, लेकिन वरुण ने अपनी सच्ची भावनाएँ प्रकट करने का निर्णय लिया।
“काव्या… मैं जानता हूँ कि मैं गलत तरीका अपनाया, लेकिन मैं तुमसे प्यार करता हूँ। अब मेरे साथ शादी कर लो। अभी, इसी पल।”
काव्या के दिल में डर, गुस्सा और उलझन का तूफ़ान उठ गया। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि वरुण की बातें प्यार हैं या केवल उसका नियंत्रण पाने का तरीका। उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन साथ ही डर और गुस्से की झलक भी थी।
सस्पेंस अब चरम पर था —
क्या काव्या वरुण की शादी को स्वीकार करेगी, या कोई रास्ता ढूँढकर भागने की कोशिश करेगी?
और अरजुन, जो अभी भी काव्या के Kidnap और खतरे से अनजान है, जब इस सच को जानेगा तो क्या कदम उठाएगा?
राघव, जो अपनी शादी के लिए तैयार है, कब और कैसे इस अप्रत्याशित घटना का सामना करेगा?
और दादा-चिराग, जो अब बस चमत्कार की उम्मीद में बैठे हैं, उनकी योजनाएँ और मज़ाक भी अब अचानक गंभीर मोड़ ले रहे थे।
कहानी अब एक बड़े, रोमांचक और भावनाओं से भरे तूफ़ान की ओर बढ़ रही थी, और अगले पल में सबकी जिंदगी बदलने वाली थी।
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