इप्शिता और अभिमन्यु दो ऐसे लोग जो की राजस्थान के बहुत ही बड़े राजघराने से बिलॉन्ग करते हैं और उन दोनों की मर्जी के बिना, उनके घर वाले अरेंज कर देते हैं उन दोनों का रिश्ता और वह दोनों ही शादी नहीं करना चाहते थे लेकिन अपने घर परिवार की इज्जत और रेपुटेश... इप्शिता और अभिमन्यु दो ऐसे लोग जो की राजस्थान के बहुत ही बड़े राजघराने से बिलॉन्ग करते हैं और उन दोनों की मर्जी के बिना, उनके घर वाले अरेंज कर देते हैं उन दोनों का रिश्ता और वह दोनों ही शादी नहीं करना चाहते थे लेकिन अपने घर परिवार की इज्जत और रेपुटेशन के लिए उन्हें यह शादी करनी पड़ती है लेकिन शादी तक पहुंचने से पहले क्या इनका यह अरेंज रिश्ता बदल पाएगा प्यार के रिश्ते में? क्या चेंज आएंगे इन दोनों में जब यह एक दूसरे को जानेंगे और क्या इनकी अरेंज शादी बदल पाएगी लव मैरिज में, जानने के लिए पढ़िए Our Arranged Love...
इप्शिता सूर्यवंशी
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अभिमन्यु राजवंश
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उदयवीर सूर्यवंशी
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नंदिनी
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राजकुमारी अर्पिता
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समर्थ
Side Hero
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राजस्थान, उदयपुर शहर।
सुबह का समय था और उदयपुर का सबसे बड़ा पुश्तैनी राजमहल, जिसे उदयपुर का हर व्यक्ति अच्छी तरह जानता था, क्योंकि इस महल में राजवंशी परिवार रहता था।
यह राजमहल दिखने में अत्यंत खूबसूरत था। महल के बाहर एक बड़ा बगीचा था, जहाँ खूबसूरत फूलों के साथ प्यारी चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती थी। महल के ठीक सामने एक बड़ा तलाब था, जिसमें कई छोटी-छोटी मछलियाँ थीं।
महल जितना बड़ा और सुंदर था, उसकी बाहरी दीवारों पर उतनी ही अच्छी नक्काशी की गई थी। कुल मिलाकर, वह महल काफी पुराना लग रहा था।
महल के अंदर आते ही, सारी चीजें बाहरी दुनिया से काफी अलग लग रही थीं। जितना महल बाहर से पुराना लग रहा था, अंदर से उतना ही शाही लुक दे रहा था।
राजमहल की सारी चीजें एक से बढ़कर एक थीं। पूरा महल साफ-सुथरा था। डाइनिंग एरिया का इंटीरियर काफी शाही अंदाज़ का लग रहा था, मानो वह राजा-महाराजाओं के समय से बना हो। लिविंग एरिया में लगा बड़ा झूमर महल को परफेक्ट शाही लुक दे रहा था। लिविंग एरिया के सामने बड़ी घुमावदार सीढ़ियाँ थीं जो ऊपर बने कमरों तक जाती थीं। सब कुछ अत्यंत सुंदर लग रहा था।
आज उस महल में उत्सव जैसा माहौल था क्योंकि वहाँ के सभी लोग बहुत खुश थे। उनके कुंवर साहब ने शादी के लिए हाँ कह दिया था। ना जाने कब से मोहिनी देवी उनके पीछे पड़ी हुई थीं, क्योंकि उनके पति राजा साहब की अचानक मृत्यु के बाद किसी को तो उनकी जगह लेनी थी। शादी न होने तक यह नहीं हो सकता था; यह राजवंश परिवार का एक बहुत पुराना नियम था।
लिविंग एरिया में एक अधेड़ उम्र की महिला ऑफ व्हाइट रंग की बनारसी साड़ी, गले में पर्ल नेकलेस, बालों का जूड़ा, चेहरे पर हल्का मेकअप और माथे पर छोटी सी काली बिंदी लगाकर पूरे रौब के साथ बैठी थी। वह महिला बहुत खुश लग रही थी, लेकिन अपनी खुशी को उसने चेहरे पर जाहिर नहीं किया।
उसके आस-पास खड़े लोग हाथ बांधे खड़े थे। वह महिला महल की महारानी लग रही थी।
उस महिला ने टेबल पर रखी कई लड़कियों की तस्वीरें बड़े गौर से देखीं।
उसने उनमें से एक लड़की की तस्वीर उठाई और सामने खड़े एक आदमी, जिसने शॉर्ट कुर्ता-पजामा और मोटा चश्मा पहन रखा था (वह महल में काम करने वाला कोई आदमी लग रहा था), की ओर बढ़ाते हुए कहा,
"मुनीम जी! इन सारी तस्वीरों में से हमें सिर्फ यह एक लड़की पसंद आई है। हमें इनके बारे में सारी जानकारी बताइए। यह हमारे बेटे के लिए बिल्कुल परफेक्ट लग रही हैं।"
उस आदमी ने तस्वीर लेते हुए कहा,
"रानी साहबा, यह सूर्यवंशी परिवार की इकलौती बेटी है, बहुत ही खानदानी और खूबसूरत। और वह परिवार भी हमारी तरह राजघराने का वंशज है।"
सामने बैठी महिला ने एक पैर दूसरे पैर पर चढ़ाया, हाथ घुटनों पर रखे और धीमी आवाज़ में कहा,
"यह तो बहुत अच्छी बात है। फिर तो हमने तय कर लिया है कि हमारे अभिमन्यु की दुल्हन यही होगी।"
सामने खड़े मुनीम जी ने टेबल पर रखी बाकी तस्वीरें उठाकर अपने बैग में रखते हुए कहा,
"ठीक है रानी साहबा, मैं आपकी बात समझ गया। मैं जल्द से जल्द मिस्टर सूर्यवंशी से इस बारे में बात करके आपकी मीटिंग उनके साथ तय करवाता हूँ।"
मुनीम जी जाने वाले ही थे कि रानी साहबा ने उन्हें रोकते हुए कहा,
"एक मिनट मुनीम जी, रुकिए और हमें हमारी होने वाली बहू की तस्वीर देकर जाइए!"
मुनीम जी ने मुस्कुराते हुए उस लड़की की तस्वीर रानी साहबा के हाथ में दे दी और वहाँ से बाहर निकल गए। तभी सामने की सीढ़ियों से छह फुट का एक नौजवान लड़का, जिसने थ्री पीस सूट पहन रखा था, उतर रहा था। वह बहुत ही हैंडसम था; उसके एक हाथ में फ़ोन और दूसरा हाथ पैंट की जेब में था।
वह काफी सीरियस लग रहा था; तीखी नाक, चेहरे पर हल्की-सी सेट की हुई दाढ़ी और गहरे काले रंग की आँखें बड़ी ही आकर्षक लग रही थीं। वह दूर से जितना हैंडसम लग रहा था, पास से देखने में और भी आकर्षक लग रहा था।
उसका गठीला बदन, गेरुआ रंग का सूट और चेहरे पर सीरियस भाव उसे एक गुस्सैल जवान आदमी जैसा बना रहे थे। जैसे ही वह लड़का सीढ़ियों से उतरकर लिविंग हॉल में आया,
उसने सामने की शाही आराम कुर्सी पर रानी साहबा को बैठा देखा। वह उनके करीब आते हुए बोला,
"गुड मॉर्निंग मां साहबा..!"
रानी साहबा ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा,
"आज ऑफिस जाने के लिए आप इतनी जल्दी तैयार हो गए? कोई महत्वपूर्ण मीटिंग है क्या आपकी, अभिमन्यु?"
सामने खड़े लड़के ने सिर हिलाते हुए कहा,
"जी मां साहबा, काफी महत्वपूर्ण काम है, इसलिए हम जल्दी निकल रहे हैं।"
रानी साहबा उठकर खड़ी हुईं और अभिमन्यु के पास आकर बोलीं,
"अभिमन्यु, हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि आपके बाबा साहब के जाने के बाद आप काफी परिपक्व और जिम्मेदार हो गए हैं। और आपके छब्बीसवें जन्मदिन से पहले हमें आपकी शादी करवानी होगी। आप बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि यह हमारे राजवंशी परिवार के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इसीलिए हमने आपके जीवन का सबसे बड़ा फैसला ले लिया है। हमने आपके लिए एक लड़की चुन ली है। आप उसकी तस्वीर देखना चाहेंगे?"
अभिमन्यु ने सिर हिलाते हुए कहा,
"मां साहबा, अब हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है, और हमें आपके किसी फैसले से कोई एतराज नहीं है। और वैसे भी, अगर आपने उन्हें हमारे जीवनसाथी के रूप में चुना है, तो वह अच्छी ही होंगी। हमें आपके फैसले पर पूरा विश्वास है और हमें किसी की तस्वीर नहीं देखनी है। हमें अभी ऑफिस के लिए निकलना है। बाकी बातें हम आपसे बाद में करेंगे। अभी हम चलते हैं।"
रानी साहबा ने अभिमन्यु को नहीं रोका और वह सीधे राजमहल से बाहर निकल गया।
तीन दिन बाद,
सूर्यवंशी परिवार की बड़ी-सी हवेली, जो बाहर से काफी पुरानी लग रही थी, अंदर से काफी आधुनिक थी। लिविंग एरिया में आधुनिक सोफा सेट, डाइनिंग टेबल; पूरा इंटीरियर स्काई ब्लू रंग के शेड में बना हुआ था। सब कुछ दिखने में बहुत खूबसूरत था।
रात के समय, डाइनिंग टेबल पर हेड चेयर पर एक 45 वर्षीय पुरुष और उनकी बगल वाली चेयर पर 42 वर्षीय महिला बैठी थी। उस अधेड़ उम्र के पुरुष ने कुर्ता-पजामा पहना हुआ था। उनके बगल में बैठी महिला ने शिफॉन की खुले पल्लू वाली साड़ी पहनी हुई थी। उन दोनों के सामने एक 25 वर्षीय नौजवान लड़का बैठा था, जिसने टी-शर्ट और जींस पहनी हुई थी।
सामने के कमरे से एक बहुत खूबसूरत लड़की निकली। उसके सीधे बाल घने थे और कमर तक आ रहे थे। उसकी आँखें हल्के भूरे रंग की थीं। उस लड़की ने गुलाबी रंग का प्यारा किटी प्रिंट वाला नाइट ड्रेस पहन रखा था।
वह मुस्कुराते हुए अपने कमरे से बाहर निकली और डाइनिंग टेबल पर रखे व्यंजनों को देखकर बोली,
"अरे वाह मम्मी! आज आपने सब कुछ मेरी पसंद का बनवाया है क्या?"
हेड चेयर पर बैठे अधेड़ उम्र के पुरुष ने मुस्कुराते हुए कहा,
"हाँ बेटा, आपकी माँ आपके इतने दिनों बाद घर आने से बहुत खुश हो गई है। आज का पूरा डिनर आपकी पसंद का ही है।"
उस लड़की ने अपनी माँ की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा,
"थैंक यू सो मच मम्मी! आपको पता है हमने हॉस्टल में घर का खाना बहुत मिस किया।"
सामने बैठे लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा,
"इप्शिता! आपने सिर्फ घर के खाने को मिस किया, हमें नहीं?"
इस पर इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा,
"नहीं उदय भाई! कैसी बात कर रहे हैं आप? हम तो आप सबको डेली मिस करते थे। इसीलिए तो मिड सेमेस्टर एग्जाम खत्म होते ही हम सीधे आपके पास आ गए हैं।"
हेड चेयर पर बैठे पुरुष ने सीरियस होते हुए कहा,
"चलिए, अच्छी बातें बाद में होती रहेंगी। पहले खाना शुरू करिए।"
पास में खड़े नौकरों ने सबकी प्लेट में खाना परोसना शुरू कर दिया।
इप्शिता खाना खा ही रही थी कि उसकी नज़र अपने माता-पिता पर गई और उसने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा,
"मम्मी-पापा, क्या बात है? आप लोग हमसे कुछ कहना चाहते हैं क्या?"
इप्शिता की माँ अपने पिता की तरफ देखने लगी और फिर इप्शिता के पिता ने कहा,
"हाँ बेटा, हमें आपसे बहुत महत्वपूर्ण बात करनी थी।"
इप्शिता ने सामान्य रूप से खाना खाते हुए कहा,
"हाँ पापा, बोलिए ना क्या बात है?"
क्रमशः
उदय अपने माता-पिता की ओर हैरानी से देख रहा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे मानो उसके माता-पिता जो बात बोलने वाले हैं, शायद वह बात उसे पता है, लेकिन उसने उन दोनों के बीच बोलना सही नहीं समझा और वह चुपचाप अपना खाना खा रहा था। तभी इप्शिता के पिता ने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा, "सुहासिनी जी! बताइए इप्शिता को?"
"बेटा," इप्शिता की माँ ने कहा, "हम आपसे यह बोल रहे थे कि अब आपकी पढ़ाई खत्म हो चुकी है और आप बहुत अच्छे समय पर घर भी वापस आए हैं। वास्तव में, आपके लिए बहुत अच्छा और खानदानी रिश्ता आया है। राजस्थान के सबसे बड़े राजवंशी परिवार के बेटे के लिए। राजवंशी परिवार की रानी साहबा ने आपको अपने महल की बहू बनाने के लिए चुना है।"
इप्शिता खाना खाते-खाते रुक गई। अपनी माँ के मुँह से शादी की बात सुनकर उसे इस वक्त ऐसी कोई खबर मिलने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।
इप्शिता के पिता ने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा, "सुहासिनी जी! बताइए इप्शिता को?"
"बेटा," इप्शिता की माँ ने कहा, "हम आपसे यह बोल रहे थे कि अब आपकी पढ़ाई खत्म हो चुकी है और आप बहुत अच्छे समय पर घर भी वापस आए हैं। वास्तव में, आपके लिए बहुत अच्छा और खानदानी रिश्ता आया है। राजस्थान के सबसे बड़े राजवंशी परिवार के बेटे के लिए। राजवंशी परिवार की रानी साहबा ने आपको अपनी बहू बनाने के लिए चुना है।"
इप्शिता खाना खाते-खाते रुक गई। अपनी माँ के मुँह से शादी की बात सुनकर उसे इस वक्त ऐसी कोई खबर मिलने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।
इप्शिता काफी सदमे में थी, इसलिए वह कुछ बोल ही नहीं पाई। लेकिन उसकी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपको पता है, जब आप पैदा हुई थीं, तब से ही हमें यह बात बहुत अच्छी तरह से पता थी कि आप बहुत किस्मत वाली हैं। और देखिए, आज यह बात साबित भी हो गई! हमने आपकी शादी उदयपुर के सबसे बड़े राजपरिवार में तय कर दी है। आप वहाँ बहुत खुश रहेंगी।"
"हाँ बेटा," इप्शिता के पिता ने हामी भरते हुए कहा, "आपकी माँ बिल्कुल ठीक कह रही हैं। हमने हमेशा आपकी खुशी चाही है और आप वहाँ जाकर बहुत खुश रहेंगी।"
इप्शिता ने अपने माता-पिता की ओर देखा। वह दोनों ही काफी ज्यादा खुश लग रहे थे। इप्शिता ने थोड़ा कन्फ़्यूज़ होते हुए कहा, "लेकिन मम्मी, शादी की इतनी भी जल्दी क्या है और...!"
इप्शिता बोल ही रही थी कि उसकी माँ ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा, "कोई जल्दी नहीं है, हम सारी चीज़ें बहुत आराम से करेंगे बेटा। आप बिल्कुल परेशान मत होइए। आपको पता है, कुंवर अभिमन्यु राजवंशी बहुत अच्छे इंसान हैं। सोचो, तुम्हें उनकी पत्नी बनने का सुख मिलने वाला है। हमें तो अभी से ही सारी बातें सोचकर बहुत खुशी हो रही है।"
"लेकिन मम्मी," इप्शिता ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "कौन हैं ये कुंवर अभिमन्यु राजवंशी? हम तो इन्हें जानते भी नहीं, तो फिर...!"
इप्शिता की माँ ने उसकी बात पूरी होने ही नहीं दी और मुस्कुराते हुए कहा, "जानती नहीं हो तो जान लेना। वैसे भी, कल शाम को आपकी कुंवर साहब के साथ मुलाकात है। शायद वे भी आपसे मिलना चाहते हैं, इसलिए आराम से मिलकर जान लीजिएगा आप दोनों एक-दूसरे को।"
"कल?" इप्शिता ने बिल्कुल शॉक्ड होते हुए कहा।
"हाँ," इप्शिता के पिता ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "कल आपको कुंवर साहब से मिलना है। इसी बहाने आप दोनों एक-दूसरे को थोड़ा जान लेंगे।"
इप्शिता अपनी माँ और पिता को इतना खुश देखकर कुछ भी नहीं बोल पाई और उसने बस हाँ में अपना सिर हिला दिया। अब उसके गले से एक निवाला भी नीचे नहीं उतर रहा था।
उदय ने इप्शिता के चेहरे के भाव को नोटिस किया और उसने धीरे से हाँ में अपना सिर हिला दिया।
इप्शिता के माता-पिता वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठकर इस बारे में ही काफी बातें कर रहे थे और इप्शिता चुपचाप उनकी बातें सुनती जा रही थी।
थोड़ी देर में इप्शिता डाइनिंग टेबल से उठकर जाने लगी। तभी उसकी माँ ने उसे रोकते हुए कहा, "कहाँ जा रही हैं आप? आपने मीठा तो खाया ही नहीं।"
"नहीं मम्मी," इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हमारा पेट भर गया है। हमें मीठा खाने का कोई मन नहीं है, इसलिए हम अपने कमरे में जा रहे हैं।"
इतना बोलकर इप्शिता सीधे अपने कमरे में चली गई। उदय ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और उसने अपने मन में कहा, "मैं समझ रहा हूँ, इशि को अपनी शादी की बात सुनकर जरा भी खुशी नहीं हो रही है। वह शादी का नाम सुनते ही कितनी अपसेट हो गई! क्या माँ-बाप को यह नहीं दिख रहा? मुझे इशि से बात करनी ही होगी।"
इतना बोलकर वह सीधे इप्शिता के कमरे में गया।
इप्शिता अपने कमरे की खिड़की के पास गुमसुम बैठी थी। उसने बाहर आसमान में निकले चाँद को देखा और एकटक उसे ही देखती रही।
उदय इप्शिता के कमरे में आया और इप्शिता के सामने खड़े होते हुए बोला, "इशि! आप इतनी आसानी से शादी के लिए कैसे मान गईं? क्या आप सच में इस शादी को लेकर खुश हैं?"
"उदय भाई," इप्शिता ने बेमन से मुस्कुराते हुए कहा, "क्या आपको ऐसा लगता है कि हमारे पास इस शादी को न करने का कोई विकल्प है? क्या आपको लगता है हम इस शादी के लिए मना कर सकते हैं?"
"इशि," उदय ने उसे समझाते हुए कहा, "मेरी बात ध्यान से सुनो। यह तुम्हारी शादी की बात हो रही है, एक-दो दिन नहीं, तुम्हारी पूरी ज़िंदगी का सवाल है। तुम ऐसे कैसे शादी के लिए हाँ कर सकती हो?"
"उदय भाई," इप्शिता ने उदय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मैं चाहकर भी शादी के लिए मना नहीं कर पाऊँगी, क्योंकि आपने नहीं देखा माँ-बाप शादी को लेकर कितने खुश हैं। उन्होंने बचपन से हमें एक आलीशान जीवन दिया है। हम कुछ भी सोचते थे, अगले दिन वह हमारे सामने आ जाता था। जब उन्होंने हमारी खुशियों के लिए इतने बड़े-बड़े त्याग किए हैं, तो क्या हम उनकी खुशी के लिए एक चीज़ नहीं कर सकते?"
"इशि," उदय ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "आपके चेहरे के भाव हमें बता रहे हैं कि आप कुंवर साहब से शादी नहीं करना चाहतीं। हम आपको यही सलाह देंगे कि आपको जबरदस्ती माँ-बाप के किसी भी फैसले को अपने ऊपर थोपने नहीं देना है।"
"नहीं भाई," इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "ऐसा मत बोलिए। माँ-बाप जो भी करेंगे, हमारी भलाई के लिए ही करेंगे।"
उदय ने एक गहरी साँस ली और ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हम कैसे समझाएँ इशि आपको।"
इप्शिता अब उदय से इस बारे में और कोई बात नहीं करना चाहती थी। वह पहले ही काफी ज्यादा परेशान हो गई थी। वह चुपचाप अपने बिस्तर पर गई और उसने कंबल से अपना मुँह ढक लिया।
उदय ने जब इप्शिता को इस तरह बिस्तर पर लेटे देखा, वह चुपचाप उसके कमरे से बाहर निकल गया।
इप्शिता के मन में काफी बातें चल रही थीं, लेकिन उसने अपने भाई से इस समय कोई भी बात शेयर करना ठीक नहीं समझा।
"यह तो बिल्कुल भी नहीं सोचा था हमने। अगर माँ-बाप इतनी जल्दी हमारी शादी कर देंगे, तो हमारे अपने सपनों का क्या होगा? राजघराने में तो और जाने कितने प्रतिबंध होते होंगे, हमारे घर से भी ज़्यादा! वहाँ की बहू बन गई, एक बार तो शायद घर से बाहर निकलने को भी ना मिले।" - इप्शिता अपने भविष्य के बारे में सोचते-सोचते सो गई।
अगले दिन सुबह इप्शिता का फ़ोन बजा और फ़ोन की रिंगटोन सुनकर ही उसकी नींद खुली। इप्शिता ने कॉल रिसीव करते हुए कहा, "हेलो नंदिनी, इतनी सुबह-सुबह हमें फ़ोन क्यों किया?"
"सुबह-सुबह तुम्हें सुबह की हुई है!" नंदिनी ने कहा, "और मैं तो कल रात से तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन तुमने मेरे किसी भी मैसेज का जवाब नहीं दिया। आपने माँ-बाप के घर पहुँचते ही अपनी बेस्ट फ्रेंड को भूल गईं। हाउ सेल्फिश यू आर!"
इप्शिता आँख मलते हुए उठकर बैठी और उसने बिस्तर का सहारा लेते हुए कहा, "कैसी बात कर रही हो? हम भला तुम्हें कैसे भूल सकते हैं?"
नंदिनी ने इप्शिता की आवाज़ सुनकर कहा, "क्या बात है? तुम बहुत अजीब लग रही हो। सब ठीक तो है ना?"
"क्या बताएँ तुम्हें नंदिनी?" इप्शिता ने धीमी आवाज़ में कहा, "यहाँ पहुँचते ही माँ-बाप ने तो हमारे लिए एक अलग ही सरप्राइज़ गिफ्ट रेडी करके रखा था। हमें किसी भयानक झटके की तरह लगा है।"
"क्या मतलब है? तुम्हारी कोई समस्या हुई है क्या?" नंदिनी शॉक्ड होते हुए बोली।
"अब पता नहीं इसे समस्या कहेंगे या नहीं," इप्शिता ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "लेकिन माँ-बाप ने कल रात डिनर के समय हमें बताया कि उन्होंने हमारी शादी राजस्थान के सबसे बड़े राजघराने में तय कर दी है।"
जैसे ही नंदिनी ने यह बात सुनी, वह शॉक्ड होते हुए बोली, "क्या? शादी? लेकिन यार, तेरे माँ-बाप इतनी जल्दी ऐसी कैसे शादी तय कर सकते हैं? तूने क्या बोला उन्हें? तू साफ़-साफ़ शादी के लिए मना कर देती ना?"
क्रमशः
जैसे ही नंदिनी ने इप्शिता की शादी तय होने की बात सुनी, वह स्तब्ध होकर बोली, "क्या? क्या कहा तूने? शादी? लेकिन यार, तेरे मम्मी-पापा इतनी जल्दी ऐसी कैसे शादी तय कर सकते हैं? तूने क्या बोला उन्हें? साफ-साफ शादी के लिए मना कर देती ना?"
इप्शिता ने एक ठंडी साँस भरते हुए कहा, "क्या कह रही हो तुम? हम भला मम्मी-पापा की बात को मना करेंगे? तुम जानती हो ना हम अपने मम्मी-पापा का दिल नहीं दुखा सकते। हमारे पास शादी न करने का या फिर मना करने का कोई विकल्प ही नहीं है।"
नंदिनी ने हड़बड़ाते हुए कहा, "What do you mean तुम्हारे पास विकल्प नहीं है? तुम ऐसे कैसे किसी से भी शादी करने के लिए तैयार हो सकती हो?"
इप्शिता ने धीमी आवाज में कहा, "आज नहीं तो कल, और किसी न किसी से तो शादी होनी ही है। इसलिए अपने मम्मी-पापा के खातिर हम यह शादी कर लेंगे।"
नंदिनी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "पागल हो गई हो तुम! और तुमने मेरे साथ मिलकर अपने भविष्य की जो योजना बनाई है उसका क्या? और सबसे बड़ी बात इप्शिता, तुम्हारा सपना? तुम ऐसे कैसे अपना इतना बड़ा सपना छोड़ सकती हो?"
इप्शिता नंदिनी की बात सुनकर कुछ नहीं बोली, बस उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं।
फोन की दूसरी तरफ से आवाज आई, "मतलब तुम अपने मम्मी-पापा के खातिर अपने सपनों का गला घोंट दोगी?"
इप्शिता ने कहा, "नंदिनी! तुम नहीं जानती, एक शाही परिवार में होना इतना आसान नहीं होता है। तुम्हें अपने साथ-साथ अपनी फैमिली और अपने पूरे राजपरिवार को ध्यान में रखना होता है। और हम शायद कुछ दिनों के लिए यह बात भूल गए थे कि हम एक राजघराने की बेटियाँ हैं।"
नंदिनी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "मतलब तूने अपने सारे सपनों की कुर्बानी देने का फैसला कर लिया है? That's not right यार! मैं तो अभी भी तुझे यही सुझाव दूँगी कि तुम अपने मम्मी-पापा से बात कर लो और अभी फिलहाल के लिए शादी से मना कर दो।"
इप्शिता ने निराश होते हुए कहा, "एक ही बात को बार-बार बोलना बंद करो, नंदिनी! हम ऐसा नहीं कर सकते। तुम नहीं जानती मेरे मम्मी-पापा ने हमारे लिए क्या-क्या नहीं किया है? बचपन से लेकर आज तक उन्होंने हमें एक असली राजकुमारी की तरह रखा है और हमें इतनी आलीशान ज़िन्दगी दी है। हमारे मुँह से कोई बात निकल नहीं पाती थी और हमारी सारी चीज़ें, सारी ज़रूरतें एक सेकंड में पूरी हो जाती थीं। उन्होंने आज तक कभी भी हमें किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। यहाँ तक कि उन्होंने हमें उदयपुर से बाहर दूसरे शहर पढ़ने के लिए भी भेजा, जबकि यहाँ की लड़कियों को घर से इतनी दूर जाकर रहने की इजाज़त नहीं होती। लेकिन हमारे मम्मी-पापा ने हमारी यह ज़िद भी पूरी की। अब तुम ही समझ जाओ कि वे दोनों हमें कितना प्यार करते हैं, यह सिर्फ़ हम ही जानते हैं और हम उनके खिलाफ़ नहीं जा सकते।"
नंदिनी ने उसे समझाते हुए कहा, "अरे तो मैं भी तुम्हें कहाँ उनके खिलाफ़ जाने के लिए बोल रही हूँ? मैं तो बस तुम्हें अपनी बात रखने के लिए...."
नंदिनी बोल ही रही थी कि इप्शिता ने उसे चुप कराते हुए कहा, "रहने दो नंदिनी! हमें इस बारे में कोई बात नहीं करनी। हम तुमसे बाद में बात करेंगे। अभी हम सो कर उठे हैं और हमें बिल्कुल भी अच्छा महसूस नहीं हो रहा। हम फ्रेश होने जा रहे हैं, बाय।"
इतना बोलकर इप्शिता ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया और सीधे बाथरूम की तरफ चली गई।
वहीं नीचे, नाश्ते की मेज़ पर मिस्टर और मिसेज़ सूर्यवंशी आपस में बातें कर रहे थे। इप्शिता के पिता ने कहा, "सुहासिनी जी! आपकी रानी सा से बात हो गई ना?"
इप्शिता की माँ ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "जी हाँ, हमने उनसे बात कर ली है और उन्होंने शाम को इप्शिता और कुंवर सा की मुलाकात तय कर दी है। वह भी अपने ही होटल में। और मैंने तो उनसे साफ-साफ कह दिया कि हम अपनी इप्शिता को अकेले नहीं भेजेंगे। इप्शिता के साथ उसका बॉडीगार्ड संजय ज़रूर जाएगा। और उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नहीं है। वे तो बस चाहती हैं कि बच्चे एक-दूसरे के साथ आराम से बात कर सकें और एक-दूसरे को थोड़ा जान सकें।"
इप्शिता के पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, चलो अच्छी बात है। जितनी जल्दी वे दोनों एक-दूसरे को समझ लेंगे, तो आगे सब उतना ही अच्छी तरह से होगा।"
इप्शिता अपने कमरे से बाहर निकल आई थी और उसने जैसे ही अपने माँ-बाप को यह सारी बातें करते हुए सुना, वह वहीं सीढ़ियों के पास ही रुक गई। तभी सुहासिनी जी ने इप्शिता की तरफ देखकर कहा, "अरे इप्शिता बेटा, इधर आइए। आप वहाँ क्यों खड़ी हैं? आइए हमारे साथ नाश्ता करिए।"
इप्शिता थोड़ा असहज महसूस कर रही थी, लेकिन तभी उसने हाँ में अपना सिर हिलाया और वह चुपचाप डाइनिंग टेबल के पास आई और कुर्सी खिसकाकर वहाँ बैठ गई। उसने भी माँ से मुस्कुराते हुए कहा, "मम्मी, भैया कहाँ है?"
इप्शिता के पिता ने सुहासिनी जी के जवाब देने से पहले ही कहा, "उदय ऑफिस चला गया है। आज हमारी एक बहुत महत्वपूर्ण मीटिंग थी, लेकिन हमें उठने में थोड़ी देर हो गई, इसलिए हमने उदय को जल्दी ऑफिस भेज दिया। बस हम भी निकलने ही वाले हैं। आप अपनी मम्मी के साथ बैठकर बातें करिए।"
इतना बोलकर इप्शिता के पिता भी ऑफिस के लिए निकल गए। इप्शिता धीरे-धीरे नाश्ता कर रही थी और तभी सुहासिनी जी ने कहा, "बेटा, हमें आपसे यह बात स्पष्ट करनी थी।"
इप्शिता अपनी माँ की बात सुनकर कहते-कहते रुक गई और उसने धीमी आवाज में कहा, "जी मम्मी, बोलिए क्या बात करनी है आपको हमसे?"
इप्शिता की माँ ने उठकर उसके बगल में आकर बैठते हुए कहा, "इप्शिता, आप हमारे इस फैसले से खुश तो हैं ना?"
इप्शिता को समझ नहीं आया, वह सच बोले या फिर झूठ? यह सोचकर उसने अपनी माँ के उम्मीद भरे चेहरे की तरफ देखा।
जिसे देखकर इप्शिता ने बस धीरे से हाँ में अपना सिर हिला दिया। तभी इप्शिता की माँ काफी ज़्यादा खुश हुई और उन्होंने उसे बगल से गले लगाते हुए कहा, "हमें आपसे यही उम्मीद थी। हम जानते थे कि हमारी बेटी को हमारे फैसले से कभी ऐतराज़ हो ही नहीं सकता। अब आप जल्दी से नाश्ता करके तैयार हो जाइए, आपको कुंवर सा से मिलने जाना है।"
इप्शिता ने जैसे ही यह बात सुनी, उसे खांसी आने लगी और उसने अपने मुँह पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या! क्या बोल रही हैं आप मम्मी? आज?"
सुहासिनी जी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, आज ही तुम्हें लंच पर कुंवर अभिमन्यु राजवंशी से मिलना है। इसलिए जल्दी से नाश्ता करो और अपने कमरे में जाकर तैयार हो जाओ।"
इप्शिता अपनी माँ की बात सुनकर सोच में डूब गई और उसे उसके चेहरे को देखकर ही लग रहा था कि जैसे वह कुछ सोच रही है।
इप्शिता की माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या सोच रही हैं आप बेटा?"
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाया और वह चुपचाप नाश्ता करने लगी। और तभी सुहासिनी जी ने कहा, "और हाँ, आप सूर्यवंशी परिवार की इकलौती बेटी हैं, इसलिए सबसे बेहतरीन ड्रेस पहनकर कुंवर सा से मिलने जाइएगा।"
इप्शिता ने अपने कपड़ों की तरफ़ देखा। इस समय उसने साधारण जींस और टॉप पहना हुआ था।
इप्शिता ने असमंजस में कहा, "लेकिन मम्मी, हमारे इन कपड़ों में क्या बुराई है?"
सुहासिनी जी ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "हे भगवान! आप समझ क्यों नहीं रही हैं कि आप एक राजघराने की बेटी हैं और राजघराने की लड़कियाँ ऐसे कपड़े पहनकर अपने होने वाले पति के सामने नहीं जाती हैं।"
इप्शिता ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने अपने हाथों की कसकर मुट्ठी बांध ली और चुपचाप नाश्ता करने लगी। और तभी सुहासिनी जी उठकर खड़ी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू को बड़े ही स्टाइल के साथ अपने हाथ में पकड़ा और वहाँ से वे सीधे अपने कमरे में चली गईं।
बार-बार राजघराने और कुंवर की बात सुनकर इप्शिता अब तक काफी चिढ़ चुकी थी। इसलिए अपनी माँ के वहाँ से जाते ही इप्शिता ने खुद से बात करते हुए चिढ़कर कहा, "पता नहीं कौन है यह कुंवर सा अभिमन्यु राजवंशी? हमने तो इनका नाम भी नहीं सुना है, पता नहीं हम उनसे मिलकर क्या बात करेंगे?"
इप्शिता नाश्ता करने के बाद सीधे अपने कमरे में गई और अपने बड़े से अलमारी को खोलकर खड़ी हो गई। उसने अपनी सारी जींस, टॉप और वन-पीस ड्रेस को देखते हुए कहा, "अब हम इनमें से ऐसा क्या पहनें जो हमें शाही रूप दे? मम्मी भी ना, हमें छोटी-छोटी सी बातों पर टेंशन दे देती हैं।"
इप्शिता ने एक गुलाबी रंग की वन-पीस लॉन्ग फ्रॉक ड्रेस निकाली और उसे पहनकर कमरे में आई और बड़े से आईने के सामने खड़े होते हुए बोली, "आई होप! यह ड्रेस मम्मी को मेरे ऊपर ठीक लगे।"
इप्शिता इतना ही बोली थी कि तभी उसके पीछे से आवाज आई, "नहीं, बिल्कुल भी नहीं। हम आपको यह ड्रेस पहनकर कुंवर सा के सामने कभी नहीं जाने देंगे। बदल लीजिए इसे बेटा।"
इप्शिता ने जैसे ही अपनी माँ की आवाज सुनी, वह पीछे घूमकर अपनी ड्रेस की तरफ देखते हुए बोली, "लेकिन क्यों मम्मी? हमारे इस ड्रेस में क्या बुराई है?"
इप्शिता की माँ के पीछे एक नौकर खड़ा था, जो उनके पीछे-पीछे चलकर इप्शिता के कमरे के अंदर आया। इप्शिता ने उस नौकर के हाथ में तीन-चार शॉपिंग बैग देखे। सुहासिनी जी ने उस नौकर की तरफ देखकर उन बैग्स को इप्शिता के सामने रखने का इशारा किया और वह नौकर अपना सिर झुकाकर वहाँ से चला गया।
क्रमशः...
सुहासिनी जी इप्शिता के पास गईं और उसके चेहरे को बड़े प्यार से छूते हुए बोलीं, "बेटा, आज तुम्हारी कुंवर साहब से पहली मुलाक़ात है, और तुम जानती हो ना, पहला प्रभाव अंतिम प्रभाव होता है। हम चाहते हैं कि तुम कुंवर साहब की नज़रों में बस जाओ, इसलिए हमने तुम्हारे लिए यह ड्रेस मँगवाया है। तुम इसे पहनकर कुंवर साहब से मिलने जाओगी।"
इप्शिता ने उस बैग की ओर देखा। सुहासिनी जी ने बैग में रखे गाउन को निकाला और उसे इप्शिता के शरीर पर लगाते हुए कहा, "परफेक्ट! यह तुम्हारे ऊपर बहुत प्यारा लगेगा। देखो खुद को आईने में।"
इप्शिता ने अपनी नज़रें उठाकर आईने में देखा। वह सुनहरे रंग का, बहुत भारी गाउन था। इप्शिता उस गाउन को देखकर बोली, "मम्मी, क्या आप गंभीर हैं? इतना भारी गाउन पहनकर पहली बार मिस्टर अभिमन्यु से मिलना ठीक होगा?"
सुहासिनी जी ने तुरंत सिर हिलाते हुए कहा, "बस बेटा, यह तुम्हारे ऊपर बहुत अच्छा लग रहा है, और इसके साथ हमने इसकी मैचिंग ज्वेलरी और नई हील्स भी मँगवाई हैं। अब तुम फटाफट तैयार हो जाओ। तुम्हारी कार तैयार है और तुम्हारे साथ तुम्हारे बॉडीगार्ड संजय भी जाएँगे।"
इप्शिता ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने धीमी आवाज़ में कहा, "बॉडीगार्ड मेरे साथ जाएगा? क्या मैं किसी अपराधी से मिलने वाली हूँ?"
सुहासिनी जी ने इप्शिता की बात सुनी और उन्होंने अपना गला साफ़ करते हुए कहा, "अहम्… अहम्… इस तरह की बातें नहीं बोलते बेटा! वह कुंवर साहब हैं और जल्द ही उदयपुर के राजमहल के होने वाले राजा साहब भी हैं। चलिए, जल्दी से तैयार होकर नीचे आइए, हम आपका नीचे ही इंतज़ार कर रहे हैं।"
इप्शिता उस भारी गाउन को देख रही थी और उसके चेहरे पर अजीबोगरीब भाव थे। इसे नोटिस करते हुए सुहासिनी जी एक मिनट के लिए रुकीं और उन्होंने पूछा, "अगर तुम्हें तैयार होने में कोई परेशानी हो रही है, तो क्या हम मेड को अंदर भेजें?"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं मम्मी, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। हम बस दस मिनट में तैयार होकर आते हैं।"
सुहासिनी जी ने कहा, "दस मिनट में नहीं, तुम आराम से और अच्छे से तैयार हो जाओ। हम चाहते हैं कि कुंवर साहब तुम्हें देखें और देखते ही रह जाएँ।"
इतना बोलकर सुहासिनी जी ने बड़े ही प्यार से इप्शिता के माथे को चूमा और उसके कमरे से बाहर चली गईं। इप्शिता ने गहरी साँस ली और उस गाउन को पहनने के लिए चेंजिंग रूम की ओर बढ़ी।
आधे घंटे बाद इप्शिता तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकली। जैसे ही इप्शिता सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी, सुहासिनी जी, जो संजय को इप्शिता की सुरक्षा के लिए निर्देश दे रही थीं, बोलीं, "संजय, तुम हमारे सबसे भरोसेमंद आदमी हो, इसीलिए हम तुम्हें इप्शिता का बॉडीगार्ड बनाकर भेज रहे हैं। याद रखना, इप्शिता और कुंवर साहब की मुलाक़ात होटल के प्राइवेट रूम में होने वाली है, और तुम उस रूम के बाहर रहोगे। हम नहीं चाहते कि उनकी मुलाक़ात के बीच कोई भी व्यवधान आए। तुम्हें इप्शिता की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना है। आप हमारी बात समझ रहे हैं ना?"
संजय, जो बॉडीगार्ड की वर्दी में था, उसने अपना हाथ आगे बांधकर सिर झुकाते हुए कहा, "हाँ मैडम, मैं आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूँगा। बेबी जी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मेरी है।"
सुहासिनी जी ने सिर हिलाया। तभी संजय की नज़र इप्शिता पर पड़ी, जो अपने गाउन को संभालते हुए, हाई हील्स और हीरे का हार पहनकर, खुले बालों में, हल्के मेकअप में थी। लेकिन वह सुनहरा गाउन इप्शिता पर बहुत जंच रहा था।
संजय ने सिर झुकाते हुए कहा, "मैडम, बेबी जी आ गई हैं।"
सुहासिनी जी संजय की बात सुनकर पीछे घूमीं। जैसे ही उन्होंने अपनी नज़रें उठाकर इप्शिता को देखा, उनके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान आ गई। वह अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए आगे बढ़ीं और इप्शिता का हाथ पकड़कर, उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोलीं, "वाह! बहुत खूबसूरत! अब तुम बिलकुल मेरी बेटी जैसी लग रही हो! तुम्हारे ऊपर यह गाउन बहुत जंच रहा है। कुंवर साहब तो तुम्हें देखते ही रह जाएँगे।"
इप्शिता सुहासिनी की बात पर कुछ नहीं बोली। तभी सुहासिनी ने अपनी उंगली को आँखों के किनारे लगाया और इप्शिता की गर्दन पर अपनी उंगली छुआते हुए कहा, "कहीं तुम्हें हमारी ही नज़र न लग जाए! जाओ, कुंवर साहब से मिलो। और हाँ, हमारी बात याद रखना इप्शिता, कुछ भी हो जाए, तुम उन्हें नाराज़ नहीं करोगी। आज सूर्यवंशी राजपरिवार की इज़्ज़त की ज़िम्मेदारी तुम्हारे सिर पर है। सो बिहेव लाइक ए प्रिंसेस, ओके।"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "ओके मम्मी, मैं कोशिश करूँगी कि मैं आपको निराश न करूँ।"
सुहासिनी जी ने इप्शिता की बात को वहीं रोकते हुए कहा, "मुझे नहीं, तुम्हें यह बात याद रखनी है कि तुम कुंवर साहब को निराश न करो। अच्छे से उनसे बातचीत करना।"
इप्शिता ने सिर हिलाया और वह हवेली से बाहर निकलने लगी। संजय ने कार का दरवाज़ा खोला और इप्शिता चुपचाप कार में बैठ गई।
थोड़ी ही देर में कार रुकी और इप्शिता ने खिड़की से बाहर की ओर देखा, जहाँ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था:
एम एस रॉयल ग्रैंड…
यह एक सात सितारा होटल था, जो तीस मंज़िल ऊँचा बना था। दिखने में बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत था।
इप्शिता ने उस होटल की ओर देखते हुए कहा, "यह तो सात सितारा होटल है। इसका मैंने काफी नाम सुना है।"
संजय ने आकर कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा, "बेबी जी, यह कुंवर अभिमन्यु राजवंशी के पिताजी के नाम पर रखा गया है। उनका सबसे बड़ा सात सितारा होटल है और उन्होंने यहीं पर आपको मिलने के लिए बुलाया है। बाहर आइए।"
इप्शिता संजय की बात सुनकर चुपचाप कार से बाहर निकली और संजय ने कार पार्क करने के लिए सामने खड़े एक गेटकीपर को चाबी दी और वह सीधे इप्शिता के साथ होटल के अंदर गया।
उसने अपना कार्ड गेटकीपर को दिखाया और उसने इप्शिता के सामने झुककर सलाम किया। इप्शिता ने उसे कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि इप्शिता को इन सब चीजों की आदत थी।
वह चुपचाप होटल के अंदर गई और वहाँ अंदर जाते ही जितने भी लोग थे, उन सब की नज़रें इप्शिता पर ही टिक गईं। संजय उस होटल के मैनेजर के पास गया और उसने जैसे ही उसे अपना कार्ड दिखाया, उसने कहा, "जी, कुंवर साहब की इप्शिता से मुलाक़ात है।"
वह मैनेजर इप्शिता के सामने आकर बोला, "वेलकम मैम, प्लीज़ कम दिस वे।"
इप्शिता उस मैनेजर के साथ जा रही थी और वहीं संजय इप्शिता के पीछे-पीछे चल रहा था।
मैनेजर इप्शिता और संजय लिफ़्ट के सामने जाकर खड़े हुए और जैसे ही लिफ़्ट खुली, वह मैनेजर उन दोनों के साथ लिफ़्ट के अंदर गया और उसने पन्द्रहवें माले का बटन दबाया।
इप्शिता की घबराहट बढ़ रही थी और उसके दिमाग में कई सारे सवाल एक साथ आ रहे थे कि पता नहीं वह अभिमन्यु के साथ कैसे व्यवहार करेगी? अभिमन्यु उसे देखकर किस तरह से प्रतिक्रिया करेगा? वह उससे क्या पूछेगी? और भी कई सारे सवाल थे।
यह सब सोचते-सोचते वे लोग पन्द्रहवें माले पर आ गए। वह मैनेजर लिफ़्ट से बाहर निकलते ही सामने की ओर बढ़ा और एक बड़े से सुनहरे रंग के दरवाज़े के बाहर रुका।
उसने उस दरवाज़े को अपने आईडी कार्ड से खोला और इप्शिता की ओर देखते हुए कहा, "मैम, प्लीज़! आप अंदर चलकर थोड़ी देर इंतज़ार करिए, कुंवर साहब बस आते ही होंगे।"
इप्शिता ने मैनेजर की बात सुनकर अपने मन में कहा, "आते ही होंगे, इसका मतलब मिस्टर अभिमन्यु अभी तक नहीं आए हैं। समय की कोई कद्र नहीं है।"
इप्शिता को ऐसे सोचते देखकर संजय ने कहा, "बेबी जी, क्या सोच रही हैं आप?"
इप्शिता ने सिर हिलाया और वह चुपचाप उस कमरे के अंदर चली गई और संजय वहीं कमरे के बाहर खड़ा हो गया।
जैसे ही इप्शिता उस कमरे के अंदर गई, उस कमरे की सारी चीजें सुनहरे रंग की थीं। एक बड़ा सा लिविंग एरिया जिसमें बड़े-बड़े सोफ़े और आठ लोगों के बैठने के लिए डाइनिंग टेबल था।
सब कुछ दिखने में काफी ज़्यादा शाही लग रहा था। हर तरफ़ कोने में बड़े-बड़े कैंडल स्टैंड, जो बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत थे, और टेबल के बीचों-बीच ताज़े गुलाब के फूलों से भरा हुआ एक बड़ा सा फूलदान रखा हुआ था।
इप्शिता अंदर उस कमरे में आई और उसने चारों तरफ़ घूरते हुए उस कमरे को देखा। कमरे में उसके अलावा और कोई भी नहीं था। इप्शिता ने एक गहरी साँस ली और आराम से बीच में रखे हुए सिंगल सोफ़े पर बैठ गई।
क्रमशः
इप्शिता ने अपना मोबाइल फोन निकाला और कल रात के कुछ संदेश देखे। उसने जैसे ही वे संदेश खोले, पाया कि वे सभी नंदिनी ने भेजे थे। सिर हिलाते हुए उसने कहा, "यह मेरी बेस्ट फ्रेंड भी मेरी कितनी फिक्र करती है! और मैंने उससे ठीक से बात भी नहीं की और बेकार में ही उसे डाँटकर कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। क्या करूँ? अभी फ्री हूँ, उससे बात करूँ क्या?"
इतना सोचकर इप्शिता नंदिनी का नंबर डायल करने ही वाली थी कि उसने अपना हाथ रोकते हुए कहा, "नहीं। अगर मैंने नंदिनी को कॉल किया तो पता नहीं वह कितनी देर तक मुझसे बात करती रहेगी। और अगर मिस्टर अभिमन्यु आ गए तो फिर कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए। और मैं मम्मी को निराश नहीं करना चाहती। इसलिए घर पहुँचकर उसे पूरी बात बता दूँगी।"
इप्शिता अपने मोबाइल फोन की तरफ देख ही रही थी कि कमरे का दरवाज़ा खुला और ब्राउन कलर के थ्री पीस सूट, आँखों में गॉगल्स और हाथ में Tiffany & Co. ब्रांड की डायमंड वॉच पहने हुए एक आदमी पूरे स्टाइल से कमरे में आया।
इप्शिता ने जैसे ही किसी के आने की आहट सुनी, उसने अपना फोन साइड टेबल पर रख दिया और अभिमन्यु की तरफ देखने लगी। अभिमन्यु दिखने में काफी हैंडसम लग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी।
वह जैसे ही अंदर आया, इप्शिता ने मन में कहा, "ओह! तो यही हैं मिस्टर अभिमन्यु?"
इप्शिता उसे घूरते हुए देख रही थी। वह इप्शिता के सामने आकर रुका और बड़े स्टाइल से अपना चश्मा उतारकर इप्शिता की तरफ देखा। इप्शिता के चेहरे पर हल्का मेकअप और उसकी लाइट ब्राउन आँखें उसे बहुत ही डिसेंट लुक दे रही थीं। इप्शिता एक बहुत ही खूबसूरत, नाजुक सी बार्बी डॉल लग रही थी और एकटक अभिमन्यु की तरफ देख रही थी क्योंकि वह भी बहुत हैंडसम लग रहा था! इतना हैंडसम कोई लड़का इप्शिता ने शायद कभी अपनी लाइफ में इतने करीब से नहीं देखा था। वह उन सब से अलग था।
इप्शिता ने बैठने से पहले ध्यान नहीं दिया, लेकिन जिस जगह पर वह बैठी थी, उसके सामने एक गोल मेज रखी हुई थी जिस पर दो वाइन गिलास और फूलदान बहुत ही सलीके से सजा था। दूसरी तरफ भी ठीक उसी तरह का सिंगल सोफा रखा हुआ था जिस पर वह बैठी थी। इसलिए अभिमन्यु उस दूसरे सिंगल सोफे पर उसके सामने बैठ गया।
इप्शिता उसे कमरे में आता देख अपनी जगह से उठकर खड़ी होने वाली थी, लेकिन अभिमन्यु के बैठने के बाद उसने ऐसा करने की ज़रूरत नहीं समझी।
उसने इप्शिता की तरफ एक नज़र देखा और बोला, "हाय! सो यू आर इप्शिता सूर्यवंशी, राइट? और हमारे पेरेंट्स से यह सेटअप किया है, तो आप भी हमारा नाम जानती ही होंगी।"
इतना बोलते हुए अभिमन्यु की नज़र इप्शिता के चेहरे से हटकर उसके परफेक्ट सीधे, लंबे बालों पर गई जो उसकी कमर तक आ रहे थे। हैवी गाउन में भी वह काफी सुंदर लग रही थी। मैचिंग ज्वैलरी और मेकअप से उसका लुक और भी एलिगेंट लग रहा था, लेकिन वह इस वक्त काफी जजिंग फेस बनाकर अभिमन्यु की तरफ देख रही थी।
उसकी तरफ देखते हुए इप्शिता ने मन में कहा, "समझता क्या है ये खुद को? इतना कैज़ुअली हैलो बोल रहा है जैसे पता नहीं कब से जानता है हमें! और लेट आने के लिए एक सॉरी तक नहीं बोला। लेकिन जो भी कहो, बंदा है तो हॉट और हैंडसम के साथ-साथ अट्रैक्टिव भी। शायद इसी बात का घमंड होगा, ऊपर से राजघराने का वारिस।"
इप्शिता ने अभी तक उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया था और उसी तरह उसकी तरफ देख रही थी। अभिमन्यु भी कुछ नहीं बोला और उसे लगा कि शायद इप्शिता उससे बात करने में इंटरेस्टेड ही नहीं है।
इसलिए उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और उसमें स्क्रोल करने लगा।
उसे इस तरह मोबाइल फोन चलाते देखा इप्शिता को गुस्सा आ गया क्योंकि वह सामने पागल बनकर बैठी हुई थी। उसने एकदम से कहा, "आप यहाँ पर मोबाइल यूज़ करने के लिए आए हैं?"
इप्शिता ने यह बात ज़्यादा तेज आवाज़ में नहीं बोली और अभिमन्यु का ध्यान बिल्कुल भी उसकी तरफ नहीं था। इसीलिए वह ठीक से सुन नहीं पाया और उसने पूछा, "सॉरी! कुछ कहा क्या आपने?"
उसके इस तरह से पूछने पर इप्शिता को और भी बुरा लगा यह सोचकर कि उसका ध्यान बिल्कुल भी उसकी तरफ नहीं था। लेकिन फिर भी, अपनी माँ की बातों और उन्होंने जो कुछ भी यहाँ पर आने से पहले उसे समझाया था, वह सब याद करते हुए इप्शिता ने किसी तरह से खुद को शांत किया और उसकी बात का जवाब देते हुए बोली, "यस, मिस्टर अभिमन्यु! हम यह बोल रहे थे कि अगर आपको इतना ही ज़रूरी काम है अपने मोबाइल फोन में, तो आप पहले वह खत्म कर लीजिये। उसके बाद हम बात कर लेंगे। वैसे भी, हमारी बात कौन सी इतनी ज़रूरी है? हमारे पेरेंट्स में तो सारी बातें हो ही गई हैं। हम तो बस फ़ॉर्मेलिटी के लिए ही यहाँ पर मिलने आए हैं।"
अभिमन्यु ने उसकी बात पर सहमति जताते हुए बोला, "यस, यू आर कंप्लीटली राइट! हम भी यहाँ पर अपनी माँ के कहने पर ही आए हैं, नहीं तो हमें भी यह शादी नहीं करनी है।"
इतना बोलकर उसने अपना मोबाइल फोन वापस जेब में रख लिया। उसकी बात सुनकर इप्शिता ने तुरंत ही पूछा, "क्यों? हमारा मतलब है, अगर आपको हमसे शादी नहीं करनी तो आप मना कर सकते हैं!"
अभिमन्यु ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, हम मना नहीं कर सकते क्योंकि हमारी माँ की इच्छा है और यह ज़रूरी भी है।"
इप्शिता ने हताश होते हुए कहा, "अच्छा! तो आपकी हालत भी हमारी जैसी ही है! तो क्या ही फायदा हुआ आपके कुंवर सा होने का?"
अभिमन्यु ने अपनी भौहें चढ़ाते हुए कहा, "क्या मतलब है आपकी इस बात का?"
इप्शिता ने अपनी बात को छिपाते हुए कहा, "नहीं, कुछ नहीं। हमें बस यह लगा था कि शायद आपको सिर्फ़ हमसे शादी नहीं करनी, किसी और से करनी है।"
अभिमन्यु ने जवाब दिया, "नहीं, असल में हमें शादी किसी से भी नहीं करनी, लेकिन अब अगर करनी पड़ रही है तो माँ की पसंद से ही करेंगे।"
इप्शिता ने धीमी आवाज़ में कहा, "हाँ, हम भी अपने माँ-बाप की वजह से ही यहाँ पर बैठे हुए हैं।"
अभिमन्यु ने काफी एटीट्यूड से कहा, "डोंट टेल मी, बाकी लड़कियों की तरह आपको हमारे राजघराने की रानी बनने में कोई इंटरेस्ट नहीं है और ना ही इस शादी में?"
इप्शिता ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "आपके कहने का क्या मतलब है? हम आपके नाम और रुतबे की वजह से आपसे शादी कर रहे हैं?"
अभिमन्यु ने सीधा जवाब दिया, "हाँ, बिल्कुल! और क्या वजह हो सकती है?"
इप्शिता ने चिढ़ते हुए कहा, "और भी कई सारी वजहें हो सकती हैं, लेकिन फ़िलहाल हमारे पास सबसे बड़ी वजह जो है वह है हमारे माँ-बाप, जिनकी बात हम टाल नहीं सकते। और इसीलिए हम आपको बर्दाश्त कर रहे हैं। आपकी हिम्मत कैसे हुई हम पर ऐसे इल्ज़ाम लगाने की?"
इतना बोलकर इप्शिता गुस्से में अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई। एक तो वैसे ही उसका यहाँ पर आने का मन नहीं था, ऊपर से अभिमन्यु का ऐसा रूखा व्यवहार उसे और भी ज़्यादा गुस्सा दिला रहा था।
काफी देर से वह खुद को कंट्रोल कर रही थी, जबकि अभिमन्यु एकदम शांत भाव से ऐसी बातें बोल रहा था। अब इप्शिता से रहा नहीं गया।
अभिमन्यु ने उसे धमकी भरे अंदाज़ में कहा, "आपको नहीं लगता आपके ऐसे व्यवहार की वजह से हम इस शादी से इनकार कर सकते हैं?"
इप्शिता बिना किसी हिचकिचाहट के बोली, "नहीं, आप नहीं कर सकते क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले आपने ही कहा था। और अगर मना कर भी देते हैं तो यह हमारे लिए ही अच्छा होगा। हम चलते हैं। हमें नहीं लगता यहाँ पर और ज़्यादा देर रुकने का कोई मतलब है।"
इतना बोलकर वह वहाँ से बाहर निकल गई। अभिमन्यु ने उसकी तरफ देखा और मन में सोचा, "इतना गुस्सा! हमने आखिर ऐसा भी क्या कहा? लेकिन मानना पड़ेगा माँ की पसंद को। राजकुमारी इप्शिता सुंदर तो बहुत थी। हमने सामने तारीफ़ नहीं की तो क्या हुआ? लेकिन ये आँखें तो अब कभी भूल नहीं सकता।"
इतना सोचकर इप्शिता की खूबसूरत आँखें याद करके अभिमन्यु एक पल के लिए मुस्कुराया, लेकिन फिर तुरंत ही वह एकदम सीरियस होकर खुद से बोला, "हमने उसकी आँखें नोटिस कीं, सीरियसली! वह भी पहली ही मुलाकात में! ऐसा तो कभी नहीं हुआ किसी से भी। स्ट्रेंज!"
अभिमन्यु को खुद भी यकीन नहीं हुआ जो कुछ उसने अभी बोला, लेकिन फिर इस ख्याल को वह दिमाग से झटकता हुआ अपनी जगह से उठा और वह भी वहाँ से निकल गया।
क्रमशः
इप्शिता होटल से निकलकर सीधे कार में बैठ गई। संजय ने कार चलाना शुरू किया और थोड़ी देर में वे हवेली पहुँच गए। इप्शिता की कार हवेली के बाहर रुकती देख सुहासिनी जी बाहर देखने लगीं। इप्शिता अपने गाउन को संभालते हुए चुपचाप हवेली के अंदर आ गई। वह अपने कमरे की ओर जा ही रही थी कि सुहासिनी जी ने उसे रोकते हुए कहा, "एक मिनट रुकिए इप्शिता! कहाँ जा रही हैं आप? हमारे पास आइए।"
इप्शिता सुहासिनी जी के पास आकर बैठी और बोली, "हाँ मम्मी, क्या हुआ?"
सुहासिनी जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "यह तो हमें आपसे पूछना चाहिए। आपकी कुंवर साहब से मुलाकात कैसी रही? कुंवर साहब ने क्या कहा और क्या वे आपको पसंद आए? आप लोगों ने एक-दूसरे से अच्छे से बातें की ना?"
इप्शिता ने मन ही मन कहा, "वह पसंद आए भी हों या ना आए हों, उससे क्या फर्क पड़ता है? जब सब कुछ पहले से ही तय है तो फिर कुछ कहने का क्या फायदा?"
इप्शिता यह सोच ही रही थी कि सुहासिनी जी ने इप्शिता के चेहरे के सामने हाथ हिलाते हुए कहा, "क्या हुआ? हम आपसे कुछ पूछ रहे हैं, बताइए हमें कैसी थी आपकी और कुंवर साहब की मुलाकात?"
इप्शिता बेमन से मुस्कुराते हुए बोली, "सब ठीक था मम्मी, और हम थोड़ी थक गई हैं इसलिए अपने कमरे में जा रही हूँ।"
सुहासिनी जी ने इप्शिता का चेहरा अपने हाथ में भरकर उसके माथे को चूमा और बोलीं, "हमें आपसे यही उम्मीद थी। जाइए, आराम से जाकर फ्रेश हो जाइए। और अगर आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो हमें बताइएगा।"
इप्शिता ने हाँ में सिर हिलाया और चुपचाप अपने कमरे में चली गई। उसने अपनी नाइट ड्रेस निकाली और उस भारी गाउन को बदलने के लिए बाथरूम चली गई।
थोड़ी देर में इप्शिता कपड़े बदलकर अपने बिस्तर पर आराम से लेट गई और गहरी साँस लेते हुए बोली, "अब कितना रिलैक्स महसूस हो रहा है।"
इप्शिता बिस्तर पर लेटकर अपना फ़ोन हाथ में लिया और देखा कि नंदिनी के कई सारे मैसेज थे। इप्शिता ने जल्दी से मोबाइल उठाकर सारे मैसेज चेक करने लगी।
सारे मैसेज पढ़कर इप्शिता बोली, "इन इतने सारे मैसेज का जवाब देने से अच्छा है नंदिनी को कॉल कर लूँ।"
इतना बोलकर उसने तुरंत नंदिनी का नंबर डायल किया। नंदिनी ने पहले ही रिंग में कॉल रिसीव करते हुए कहा, "कहाँ थी तुम? मैं तुम्हें कब से मैसेज कर रही थी! इतने सारे मैसेज किए मैंने, लेकिन तुमने किसी का भी जवाब नहीं दिया। कहीं तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारी शादी तो नहीं करवा दी, अर्जेंट में?"
नंदिनी इतना बोलकर हँसने लगी।
उसके मज़ाक में हँसने की आवाज़ सुनकर इप्शिता ने उसे डाँटते हुए कहा, "शट अप नंदिनी! कैसी बातें कर रही हो? मेरे माँ-बाप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, इतनी जल्दबाज़ी में वे कुछ नहीं करेंगे। और सबसे बड़ी बात, मैं इस तरह के मज़ाक करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूँ। पहले ही काफी थक गई हूँ।"
नंदिनी हड़बड़ाते हुए बोली, "क्यों? आज तुम्हें अपने पूरे महल की सफ़ाई पर लगा दिया गया था क्या? जो तुम इतनी थक गई।"
इप्शिता चिड़चिड़ाहट से बोली, "तुम्हें मुझसे बात करनी है या इसी तरह की अपनी बकवास बातें करनी हैं? अगर तुम्हें सिर्फ़ मेरा मज़ाक उड़ाना है तो रखो फ़ोन, नहीं बात करनी मुझे तुमसे।"
नंदिनी हँसते हुए बोली, "अच्छा बाबा, ठीक है। कोई हँसी-ठिठोली नहीं करूँगी। अच्छा बताओ, क्या हुआ? क्यों थक गई मेरी बेस्टी?"
इप्शिता ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "वो... आज मेरी मिस्टर अभिमन्यु से मुलाक़ात थी। माँ-बाप ने मुझे उससे मिलने के लिए भेजा था।"
नंदिनी कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "अभिमन्यु! अब यह कौन है?"
इप्शिता चिड़चिड़ाहट से बोली, "जिससे माँ-बाप ने हमारी शादी तय की है। कल ही तो बताया था, भूल गई क्या?"
नंदिनी कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "हाँ, वो तो बताया था तुमने, लेकिन नाम नहीं बताया था। मतलब मेरे होने वाले जीजू का नाम अभिमन्यु है?"
इप्शिता ने हाँ में सिर हिलाया, "हाँ, कुंवर अभिमन्यु राजवंशी।"
नंदिनी बहुत उत्साहित होकर बोली, "मतलब तू आज अपने होने वाले पति से मिली थी! इतनी जल्दी मुलाक़ात भी हो गई! वाह यार! मुझे एक-एक बात डिटेल में बताओ। कैसे दिखते हैं हमारे जीजू? तुमने उनके साथ क्या-क्या बात की? और पिक्चर्स तो क्लिक की होंगी ना?"
इप्शिता गुस्से से बोली, "पिक्चर्स क्या खाक क्लिक करते? वह तो हमसे ठीक से बोले भी नहीं, बहुत घमंडी हैं।"
इप्शिता की बात सुनते ही नंदिनी बोली, "वैसे तुमने तो मुझसे कहा था कि वह बहुत बड़े राजघराने से हैं। एक बार फिर से तुम मुझे उनका पूरा नाम बताओ, मैं सर्च करके देखूँ अपने जीजू को। वैसे नाम तो यह काफी जाना-पहचाना लग रहा है। एक मिनट, मैं अभी सर्च करके देखती हूँ...लेकिन अभी तो मैं तुमसे बात कर रही हूँ। चलो, कोई बात नहीं, मैं बाद में सर्च कर लूँगी। अभी तो मुझे और बताओ, तुमने उनसे कुछ पूछा? उनकी पसंदीदा चीज़ें क्या हैं? उन्हें क्या पसंद है, क्या नहीं? और तुमने उन्हें अपने सपनों के बारे में बताया कि तुम अपनी ज़िंदगी में क्या चाहती हो?"
इप्शिता ने ना में सिर हिलाया, "कुछ भी नहीं पता मुझे! मैंने ठीक से बात तक नहीं की। जैसे ही वह मेरे सामने आकर बैठे, पहले तो कुछ बोले ही नहीं, फिर हमें इग्नोर करके अपने फ़ोन में लग गए। ऊपर से बातें ऐसी की सुनकर ही हमारा मूड खराब हो गया और हम भी गुस्से में कुछ उल्टी-सीधी बातें बोलकर वापस आ गई।"
नंदिनी सिर पीटते हुए बोली, "ओह मेरी झाँसी की रानी! फ़र्स्ट मीटिंग थी, थोड़ा तो विनम्र होकर बात करती।"
इप्शिता झट से बोली, "क्यों? सिर्फ़ हम ही क्यों विनम्र होते? जब उन्हें ही हमसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी तो हम क्यों वहाँ बैठकर अपनी बेइज़्ज़ती करवाते? इसलिए नहीं रुकी मैं वहाँ ज़्यादा देर।"
नंदिनी ने इप्शिता को गुस्से में देखकर कहा, "अच्छा बाबा, ठीक है। अब तुम मुझ पर क्यों गुस्सा उतार रही हो? ठीक है, चलो हम कुछ और बात करते हैं।"
इप्शिता बोली, "और क्या बात करेंगे? मेरा तो मूड ही खराब है।"
नंदिनी उसे समझाते हुए बोली, "अरे बाबा, तुम्हारा मूड कैसे ठीक करूँ मैं? वैसे एक बात बताओ, अगर तुम आज उनसे मिलने गई थीं तो थोड़ा बहुत तो जान लेतीं। शादी होने वाली है तुम्हारी और तुम्हें उसके बारे में कुछ पता ही नहीं है। शादी से पहले कुछ तो पता होना चाहिए ना।"
नंदिनी की बात सुनकर इप्शिता ने मन ही मन कहा, "वैसे एक तरह से देखा जाए तो नंदिनी बिलकुल सही कह रही है। मुझे मिस्टर अभिमन्यु के बारे में कुछ न कुछ तो पता करना ही होगा। ऐसे कैसे मैं किसी ऐसे इंसान से शादी कर लूँ जिसके बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं।"
इप्शिता ये सारी बातें मन में सोच ही रही थी कि नंदिनी ने कहा, "हेलो इशि, तुम मेरी बात सुन रही हो ना?"
इप्शिता ने हाँ में सिर हिलाया, "सुन रही हूँ। हम तुमसे बाद में बात करती हूँ, अभी मुझे कुछ ज़रूरी काम याद आ गया है।"
नंदिनी बोली, "ठीक है। तब तक मैं भी थोड़ा अपने जीजू के बारे में गूगल सर्च करके देखती हूँ। तुम भी थोड़ा उनके बारे में पता करने की कोशिश करना।"
इप्शिता ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, ठीक है। देखती हूँ।"
जैसे ही इप्शिता ने नंदिनी का फ़ोन रखा, उसने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल करने लगी। जैसे ही कॉल रिसीव हुआ, इप्शिता ने कहा, "हेलो संजय अंकल, मैं इप्शिता बात कर रही हूँ।"
फ़ोन के दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, "हाँ बेबी जी, बोलिए क्या बात है?"
इप्शिता ने कहा, "मैं आज मिस्टर अभिमन्यु जी से मिलने गई थी।"
संजय ने कहा, "हाँ बेबी जी!"
इप्शिता ने कहा, "एक्चुअली मुझे उनके बारे में कुछ जानकारी चाहिए।"
संजय कन्फ़्यूज़ होकर बोला, "कैसी जानकारी बेबी जी?"
इप्शिता ने कहा, "संजय अंकल, मम्मी ने मुझे सिर्फ़ इतना बताया कि वह राजघराने से हैं और उनसे मेरी जल्दी शादी होने वाली है। इसके अलावा उन्होंने मुझे ज़्यादा कुछ बताया ही नहीं। और मैं मम्मी से यह बात बोलने में थोड़ा घबरा रही थी। पता नहीं अगर मैंने मम्मी से यह बात बोली तो वे किस तरह से रिएक्ट करेंगे, और फिर शायद मुझे अच्छा भी ना लगे। इसलिए क्या आप मेरी थोड़ी सी मदद कर सकते हैं? प्लीज़ आप मम्मी को मत बताइएगा। आप मेरे लिए मिस्टर अभिमन्यु की जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं।"
संजय थोड़ा कन्फ़्यूज़ होकर बोला, "लेकिन बेबी जी, आप मुझे मालकिन से यह बात छुपाने के लिए क्यों कह रही हैं? हम उनसे बोलकर सब कुछ पता कर लेंगे। आप परेशान मत होइए।"
इप्शिता ने कहा, "नहीं संजय अंकल, अगर आप मम्मी से बात करेंगे तो फिर रहने दीजिए। मुझे कोई जानकारी नहीं चाहिए।"
संजय धीमी आवाज़ में बोला, "ठीक है बेबी जी, आप नाराज़ मत होइए। हम सारी जानकारी आपको जल्द से जल्द इकट्ठा करके दे देंगे।"
इप्शिता खुश होकर बोली, "थैंक यू सो मच संजय अंकल। मुझे पता था आप मेरी मदद ज़रूर करेंगे। और यह हम दोनों के बीच सीक्रेट होगा।"
संजय ने हाँ में सिर हिलाया, "ठीक है बेबी जी, जैसा आप कहें।"
संजय की बात सुनकर इप्शिता ने भी "ओके" बोलकर अपना फ़ोन साइड में रख दिया। लेकिन उसके दिमाग में अभी भी अभिमन्यु चल रहा था। यह सोचकर कि आखिर वह सच में ऐसा ही है क्या? पहला प्रभाव जमाने के लिए इस तरह का बर्ताव कर रहा था?
उसे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उसे अभिमन्यु की पर्सनैलिटी काफी रहस्यमयी लगी और इसीलिए वह काफी उत्सुक थी उसके बारे में जानने के लिए। और उसे नहीं पता था कि कल संजय उसे क्या जानकारी देने वाला है उसकी ज़िंदगी के बारे में। लेकिन जो भी हो, इप्शिता ऐसे ही बिना कुछ जाने उससे शादी नहीं करने वाली थी। इसलिए उसने संजय को इस काम पर लगाया। उसे पता था संजय के लिए यह काम उतना मुश्किल नहीं होगा।
यह सब सोचते हुए इप्शिता अपने बिस्तर पर लेटी रही और कुछ देर बाद उसे नींद आ गई।
क्रमशः
राजवंश महल में शाम का समय था। अभिमन्यु इप्शिता से मिलकर महल लौट आया था। अभिमन्यु के चाचा नरेंद्र राजवंशी अपने कमरे में पहुँचे जहाँ उनकी पत्नी पल्लवी गुस्से से मुँह फुलाकर बैठी थी। जैसे ही नरेंद्र ने पल्लवी को गुस्से में देखा, वह अपना कोट उतारते हुए बोले, “क्या बात है पल्लवी? आप इतने गुस्से में क्यों बैठी हैं?”
पल्लवी ने नरेंद्र की बात का कोई जवाब नहीं दिया। नरेंद्र ने पानी पीकर आराम से सोफे पर बैठते हुए कहा, “आज तो हम बहुत थक गए। पता है तुम्हें, आज ऑफिस में कितना काम था? और ऑफिस में दोनों मीटिंग हमें ही अटेंड करनी पड़ीं। पता नहीं अभिमन्यु कहाँ चला गया था।”
पल्लवी ने जैसे ही नरेंद्र के मुँह से यह बात सुनी, वह गुस्से से तिलमिला उठी। उसने कमरे का दरवाज़ा पटककर बंद किया और नरेंद्र के सामने आकर चिल्लाते हुए बोली, “आप बस इसी तरह ऑफिस की मीटिंग ही करते रह जाएँगे और आपका वह भतीजा महाराज की गद्दी पर बैठ जाएगा, वह भी बहुत जल्द।”
“पागल हो गई है आप? कैसी बातें कर रही हैं? वह भला क्यों महाराज की गद्दी पर बैठेगा?” नरेंद्र ने पल्लवी की बात सुनकर उसे गुस्से से घूरते हुए कहा।
“क्योंकि बहुत जल्द आपका भतीजा शादी करने वाला है और उसके छब्बीसवें जन्मदिन से पहले अगर उसने शादी कर ली तो मिल चुकी फिर आपको राजगद्दी।” पल्लवी ने कहा।
“चुप रहो और ऐसी अशुभ बातें अपने मुँह से निकालना भी मत! तुम्हें नहीं पता हम उस राजगद्दी को पाने के लिए कब से इंतज़ार कर रहे हैं और वह राजगद्दी हमारी है! हमारे होते हुए अभिमन्यु राजगद्दी पर कभी नहीं बैठ सकता, जानती नहीं हो तुम? हमने कितने पापड़ बेले हैं अभी तक! और जब तक हमें वह राजगद्दी नहीं मिल जाती, हम चैन से नहीं बैठेंगे।” नरेंद्र ने पल्लवी को डाँटते हुए कहा।
“आप बस सोचते रह जाएँगे और आपका भतीजा पूरे राजमहल पर अपना कब्ज़ा कर लेगा। आप जानते नहीं आपकी भाभी सा किस-किस तरह की प्लानिंग-प्लॉटिंग में लगी हैं? उन्होंने अभिमन्यु को किसी लड़की से मिलने भेजा था आज। इसीलिए अभिमन्यु ऑफिस नहीं पहुँचा। आपको बस ऑफिस के कामों में फँसाकर यही सब किया जा रहा है और आपको इस बात की भनक भी नहीं है! यह तो हमने आज सुबह भाभी सा को फ़ोन पर बात करते हुए सुन लिया था, तो हमें भी यह बात पता चल गई। वरना आपकी भाभी सा तो यह सब बताने से रही।” पल्लवी ने गुस्से से कहा।
“अच्छा, तो इसका मतलब मेरी पीठ पीछे यह सब चल रहा है! पल्लवी, पता करो ज़रा कौन है वह लड़की जो अभिमन्यु की दुल्हन बनने वाली है। हम अपने इतने सालों की मेहनत इस तरह पानी में जाते हुए नहीं देख सकते हैं।” नरेंद्र ने गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहा।
“देखिए, हम कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें लगता नहीं कि भाभी सा हमें कुछ भी अपने मुँह से बताने वाली हैं। इसलिए हमें इधर-उधर से ही जुगाड़ करके सारी चीज पता करनी होगी। आप भी अब थोड़ा अपनी आँखें और कान खुले रखिएगा ऑफिस में। देखिए अभिमन्यु कहाँ जाता है, किससे मिलता है।” पल्लवी नरेंद्र के बगल में बैठते हुए बोली।
“हाँ, वह तो मैं पता करवा ही लूँगा।” नरेंद्र ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा।
वहीं दूसरी ओर,
अभिमन्यु अपने कमरे में सोफे पर बैठे लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। जैसे ही अभिमन्यु ने लैपटॉप बंद किया, उसने अंगड़ाई लेते हुए कहा, “चलो, आज की मीटिंग भी अच्छे से हो गई और मैंने इस डील को भी डन कर लिया।”
अभिमन्यु ने अंगड़ाई ली और सोफे से टेक लगा लिया और अपनी आँखें बंद कर लीं। जैसे ही अभिमन्यु ने अपनी आँखें बंद कीं, एकदम उसके सामने इप्शिता का चेहरा आया।
इप्शिता का चेहरा सामने आते ही अभिमन्यु ने झट से अपनी आँखें खोलते हुए कहा, “ये क्या था? हमें इप्शिता का चेहरा क्यों नज़र आया?”
“ऐसा कैसे हो सकता है? एक ही मीटिंग में वह लड़की हमारे दिमाग में कैसे बस सकती है? नहीं-नहीं, हम यह सब क्या सोच रहे हैं? ऐसा कुछ भी नहीं है। वह भला हमारे दिमाग में क्यों बसेंगी और हम क्यों उनके बारे में सोच रहे हैं? हम तो किसी के बारे में सोच ही नहीं सकते।” अभिमन्यु ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
अभिमन्यु ने ना में अपना सिर हिलाया और अपनी जगह से उठकर वह सीधे वॉशरूम में गया। पानी की छींटे अपने मुँह पर मारते हुए अभिमन्यु ने अपना चेहरा आईने में देखा और इप्शिता के बारे में ही सोचने लगा।
अभिमन्यु को सारी रात ठीक से नींद नहीं आई। बार-बार उनकी आँखों के सामने इप्शिता का चेहरा आ रहा था। अभिमन्यु समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
“ऐसा क्यों हो रहा है हमारे साथ? हम आज से पहले न जाने कितनी लड़कियों से मिले हैं लेकिन हमें कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्यों हम बार-बार राजकुमारी इप्शिता के बारे में सोच रहे हैं?” अभिमन्यु ने अपने मन में कहा।
बड़ी ही मुश्किल से अभिमन्यु को नींद आई। वहीं इप्शिता बिलकुल सामान्य थी। बस कहीं न कहीं उसके मन में अभिमन्यु के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ रही थी।
अगले दिन सुबह, सूर्यवंशी हवेली में,
इप्शिता आराम से अपने कमरे में सो रही थी कि तभी उसका मोबाइल फ़ोन बजा। इप्शिता नींद में थी और उसने हाथ बढ़ाकर फ़ोन की आवाज़ बंद करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया और मोबाइल की रिंगटोन बंद हो गई।
लेकिन थोड़ी ही देर बाद फिर से इप्शिता का फ़ोन बजने लगा। इप्शिता ने आँख मलते हुए अपना मोबाइल फ़ोन उठाकर देखा तो उसकी दोस्त नंदिनी का इनकमिंग कॉल था।
इप्शिता ने कॉल रिसीव करते हुए कहा, “क्या बात है नंदिनी? तुम हमें ठीक से सोने भी नहीं दे रही। कल भी तुमने हमें ऐसे ही उठाया था और आज भी...”
“ओ माय डियर प्रिंसेस, उठ जा यार! अपनी आँखें खोल! यहाँ मेरी नींद उड़ गई है और तू आराम से वहाँ सो रही है!” नंदिनी ओवर एक्साइटेड होते हुए बोली।
“क्यों? अब क्या हो गया वहाँ पर जो तुम्हारी नींद उड़ गई?” इप्शिता ने उबासी लेते हुए कहा।
“तुझे पता है कल रात में मैंने तेरे होने वाले हस्बैंड और अपने होने वाले जीजू का नाम गूगल पर सर्च किया। तुझे पता है उनकी जितनी भी इनफ़ॉर्मेशन निकलकर आई, उसे पढ़कर तो मेरी नींद ही उड़ गई! तुझे पता है मैं ठीक से रात में सो भी नहीं पाई यार! मैं तो अब कुंवर सा से मिलने के लिए बहुत ज़्यादा एक्साइटेड हो रही हूँ। बता, कब मिलवाएगी तू मुझे उनसे?” नंदिनी ने कहा।
इप्शिता नंदिनी की बातें सुनकर चौंक गई। अभी तक जो नींद में थी उसकी सारी नींद उड़ गई और उसने कन्फ़्यूज़्ड होते हुए कहा, “तुम क्या कह रही हो नंदिनी? हमें तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।”
“ठीक है, मैं तुझे पूरी बात समझाती हूँ। देख, तूने मुझे बताया था ना कि तेरे होने वाले हस्बैंड का नाम अभिमन्यु राजवंशी है। मैंने जैसे ही विकिपीडिया पर अभिमन्यु राजवंशी नाम सर्च किया, वहाँ अपने जीजू की हॉटनेस देखकर मैं तो उन पर फ़िदा ही हो गई और तू है कि उनसे लड़कर चली आई! इतनी स्टुपिड कैसे हो सकती है तू? तुझे पता है राजस्थान का सबसे बड़ा राजघराना तेरा ससुराल होने वाला है और अभिमन्यु राजवंशी को कुंवर सा कहा जाता है। और सोच, जैसे ही तेरी उनसे शादी होगी, उनका राज्याभिषेक होगा और वह उस राजमहल के महाराज बन जाएँगे और तू उनकी रानी! यार, सच में क्या किस्मत पाई है तूने!” नंदिनी ने उसे बताते हुए कहा।
“तुमने हमें यह सब बताने के लिए हमारी नींद से जगा दिया! हम यह सब तो पहले से ही जानते हैं, डफ़र।” इप्शिता ने इरिटेट होते हुए कहा।
“हाँ, वह तो ठीक है लेकिन मिस्टर अभिमन्यु की इंटरनेट पर जो फ़ोटो है, उनमें तो वो इतनी ज़्यादा हॉट और हैंडसम लग रहे थे! अरे, मेरा मतलब है जीजू वाली नज़र से ही देखा मैंने और इसीलिए मैं तो कह रही हूँ तू छोड़ अपने सपने को और जल्दी से जल्दी शादी कर ले, क्योंकि उस राजमहल की रानी बनते ही तेरे सारे सपने तो ऑटोमेटिक पूरे हो जाएँगे। कोई भी चीज तेरे एक इशारे पर तुझे मिल जाएगी। तुझे तो किसी चीज की परेशानी ही नहीं होगी यार! तेरी किस्मत कितनी अच्छी है जो तू एक रॉयल फैमिली से है!” नंदिनी ने फिर से इस तरह एक्साइटेड होकर कहा।
“जस्ट शट अप नंदिनी! ये रॉयल फैमिली दूर से दिखने और सुनने में जितनी अच्छी होती हैं, इसकी रियलिटी उतनी ही ज़्यादा हार्श होती है। तुम नहीं जानती हमें यहाँ पर क्या-क्या झेलना पड़ता है। यहाँ पर मिलने वाली लग्ज़री लाइफ़ और सारी फैसिलिटीज़ के साथ-साथ हमारे सपने, हमारे ओपिनियन और हमारा फ़्रीडम, सब कुछ छीन जाता है। तुम्हें हमारे सेक्रिफ़ाइसेज़ के बारे में कुछ भी नहीं पता, इसीलिए यह सब कुछ तुम्हें बहुत अच्छा और कूल लगता है।” इप्शिता ने फ्रस्ट्रेटेड होकर चिल्लाते हुए कहा।
“डॉन्ट ओवर रिएक्ट यार! इसी में तो बस इतना बोल रही थी कि एक तरह से अच्छा ही है और फिर वह दिखने में अच्छा है, हो सकता है दिल का भी अच्छा हो तो तेरे सपने में भी तुझे सपोर्ट कर सकता है जो तू करना चाहती है।” नंदिनी ने भी अब थोड़ा इरिटेट होते हुए कहा।
“काश! तुम हमारी जगह होतीं तो तुम्हें पता चला कि हम इस राजघराने की बंद चार दीवारियों में कितनी घुटन महसूस करते हैं। पर तुम हमारी वह घुटन कभी महसूस नहीं कर सकतीं। बट चलो, फ़ोन रखो, हम फ़्रेश होने जा रहे हैं।” इप्शिता ने एक ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा।
इप्शिता की ऐसी आवाज़ सुनकर नंदिनी समझ गई कि वह कॉल डिस्कनेक्ट करने वाली है। इसीलिए वह उसे रोकते हुए बोली, “अरे यार, रुक तो! तू तो नाराज़ हो गई और मैं तो बस यह बोल रही थी कि एक तरह से अच्छा ही है और फिर वह दिखने में अच्छा है, हो सकता है दिल का भी अच्छा हो तो तेरे सपने में भी तुझे सपोर्ट कर सकता है जो तू करना चाहती है।”
“नहीं यार! मैं नाराज़ नहीं हूँ क्योंकि मुझे पता है हम दोनों की लाइफ़स्टाइल एकदम अलग है, इसलिए तू कभी यह सब नहीं समझ सकती और मैं तो यह सोचती हूँ कि काश मैं किसी नॉर्मल फैमिली से होती और इतनी जल्दी मेरे घर वाले मेरी शादी के पीछे नहीं पड़ते। मेरे पास भी थोड़ा टाइम होता तो फिर मैं भी वह सब कर पाती जो मैं करना चाहती हूँ। लेकिन अभी तो शायद इन सब चीजों के बारे में सोचने का भी कोई मतलब नहीं है। और रही बात उनके सपोर्ट करने की तो मुझे ऐसी कोई भी उम्मीद नहीं है क्योंकि मैं समझ सकती हूँ वहाँ पर कितने ज़्यादा नियम-कायदे और कानून होंगे और बहू के लिए तो कुछ ज़्यादा ही। इसलिए मुझे ऐसी कोई भी एक्सपेक्टेशन नहीं है किसी से भी...” इप्शिता ने बहुत ही समझदारी से उसे जवाब देते हुए कहा।
इप्शिता की यह सारी बातें सुनकर नंदिनी कुछ भी नहीं बोल पाई। फिर कुछ देर नॉर्मल बातें करने के बाद इप्शिता ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी और वह फ़्रेश होने के लिए चली गई।
क्रमशः
राजवंश महल, सुबह का समय था।
अभिमन्यु अपने कमरे में सो रहा था। तभी उसने अपने कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनी। उसकी माँ कमरे में आईं।
अभिमन्यु ने अपनी माँ को देखते ही बिस्तर से उतरते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग मां सा। आप इतनी सुबह-सुबह हमारे कमरे में आईं? क्या कोई काम था आपको? आप हमें बुला लेतीं।”
माँ सा मुस्कुराईं और अभिमन्यु के सामने खड़ी होकर बोलीं, “काम तो बहुत जरूरी था, पर हमने सोचा हम खुद ही आपसे मिल लेते हैं।”
अभिमन्यु ने बिस्तर पर थोड़ा साइड हटते हुए कहा, “बैठिए मां सा! क्या बात है, बताइए।”
माँ सा आराम से बैठ गईं और बोलीं, “अभिमन्यु! हम कल शाम से आपसे बात करने का मौका ढूँढ रहे थे। दरअसल, हमें आपसे यह पूछना था कि कल आप इप्शिता से मिलकर आए थे। अगर वह आपको पसंद आई है, तो हम शगुन की थाल सूर्यवंशी परिवार में भेज दें।”
अभिमन्यु ने धीमी आवाज़ में कहा, “मां सा, इसमें हमसे पूछने वाली क्या बात है? आपको जो ठीक लगे, आप वही करिए। हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है।”
माँ सा ने अभिमन्यु के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “हमें आपसे भी तो पूछना था कि आप क्या चाहते हैं।”
अभिमन्यु ने मां सा का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, “हम वही चाहते हैं जो हमारी मां सा चाहती हैं। इसलिए आपको जो ठीक लगे, आप वही करिए।”
माँ सा मुस्कुराईं और बोलीं, “हमें आपसे यही उम्मीद थी अभिमन्यु; आप हमेशा हमारी उम्मीद पर खरे उतरते हैं।”
अभिमन्यु मां सा की बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराया। तभी मां सा बोलीं, “अभिमन्यु, हमने दो दिन बाद सगाई का दिन तय किया है, ठीक है ना?”
अभिमन्यु ने सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया। माँ सा खुश होकर बोलीं, “तो फिर ठीक है। हम आज ही शगुन सूर्यवंशी परिवार में भेज देंगे और उनसे बात करके दो दिन बाद सगाई का सबसे अच्छा मुहूर्त, यह भी उन्हें बता देंगे।”
अभिमन्यु ने फिर से सिर हिलाया। मां सा ने अभिमन्यु के गाल पर हाथ फेरकर कमरे से बाहर चली गईं।
माँ सा के बाहर जाते ही अभिमन्यु ने एक ठंडी साँस ली और अपने मन में कहा, “माँ सा तो कुछ ज्यादा ही जल्दी में लग रही हैं। लेकिन आज नहीं तो कल, यह तो होना ही था। आखिर और कितने दिन टाल सकते थे हम इन बातों को? वैसे भी कुंवर होने के नाते यह हमारा फर्ज़ है और जिम्मेदारी भी। आज नहीं तो कल पूरी करनी ही होगी, तो फिर अभी ही ठीक है।”
इतना कहकर वह भी अपने बिस्तर से उठ गया।
सूर्यवंश हवेली में, इप्शिता तैयार होकर कमरे से बाहर निकली और नीचे उतरी। उसने देखा कि उसके माँ-बाप किसी से फ़ोन पर बात कर रहे थे और उसका भाई उदय अकेला नाश्ता कर रहा था।
इप्शिता उदय के बगल में बैठकर बोली, “गुड मॉर्निंग भाई।”
उदय मुस्कुराते हुए बोला, “गुड मॉर्निंग।”
इप्शिता ने पूछा, “वैसे भाई, मॉम-डैड इतने एक्साइटेड होकर किससे बात कर रहे हैं? ऑफिस की कोई मीटिंग है क्या?”
उदय ने सिर हिलाकर ना कहा, “नहीं, वह तो तुम्हारी होने वाली सासू माँ का फ़ोन है। उनसे ही बात हो रही है। आजकल कुछ ज़्यादा ही बातें होती हैं दोनों परिवारों में।”
इप्शिता ने यह बात सुनते ही चेहरे से मुस्कान गायब कर ली और चुपचाप नाश्ता करने लगी।
उदय ने इप्शिता के चेहरे के भाव देखे और कुछ बोलने ही जा रहा था कि उससे पहले ही इप्शिता के माँ-बाप एकदम एक्साइटेड होकर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए।
इप्शिता के पिता ने गंभीर आवाज़ में कहा, “पता है इप्शिता बेटा, राजवंश महल से रानी सा का फ़ोन आया था। उन्होंने दो दिन बाद तुम्हारी और कुंवर सा की सगाई फ़िक्स कर दी है।”
इप्शिता और उदय दोनों हैरान रह गए। इप्शिता बोली, “लेकिन मम्मी-पापा, दो दिन बाद? इतनी जल्दी क्यों?”
इप्शिता की माँ खुश होकर बोली, “हाँ बेटा, हमें भी यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन सच में यह बहुत खुशी की बात है। और हमें तो समझ ही नहीं आ रहा हम इन दो दिनों में इतनी सारी तैयारी कैसे करेंगे।”
इप्शिता के पिता आराम से बोले, “सुहासिनी जी, आप क्यों परेशान हो रही हैं? रानी सा ने पहले ही हमारी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी है। उन्होंने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा है कि वह यह सगाई सिर्फ़ घरवालों के बीच करवाएँगी। ज़्यादा मेहमान नहीं होंगे, हमारा परिवार और कुंवर सा का परिवार, बस। सब कुछ बहुत आराम से हो जाएगा। आप बिल्कुल फ़िक्र मत करिए।”
सुहासिनी जी परेशान होकर बोलीं, “वह सब तो ठीक है, लेकिन फिर भी हम अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। और हमें तो आज ही शॉपिंग पर भी जाना पड़ेगा। इप्शिता, तुम भी हमारे साथ चलना।”
इप्शिता ने अपनी माँ-बाप की बात सुनकर कुछ नहीं कहा। वह गहरे विचारों में डूबी हुई थी।
लेकिन उदय ने अपने माँ-बाप की बात बीच में ही काटते हुए कहा, “मम्मी-पापा, मुझे नहीं लगता इतनी जल्दबाजी में इप्शिता की सगाई करना ठीक होगा। आखिर इतनी भी क्या जल्दबाजी है कुंवर सा के घरवालों को, जो वे इतनी हड़बड़ी में सगाई कर रहे हैं।”
उदय की बात सुनते ही इप्शिता के पिता ने उसे डाँटते हुए कहा, “कोई जल्दबाजी नहीं हो रही है और शुभ कामों में देरी करना ठीक नहीं होता। इसलिए नाश्ता करो और तुम सीधे ऑफिस के लिए निकलो। मैं शायद आज ऑफिस ना आ पाऊँ।”
इप्शिता की माँ ने इप्शिता को इस तरह सोच में डूबा देखकर पूछा, “क्या बात है इप्शिता? आप क्या सोच रही हैं?”
इप्शिता ने सोचते हुए कहा, “कुछ नहीं मम्मी! बस हम यह पूछना चाहती हैं कि क्या हम अपनी सगाई में अपनी बेस्ट फ़्रेंड को बुला सकते हैं?”
इप्शिता की माँ हँसते हुए बोली, “यह भी कोई पूछने वाली बात है भला? बुला लो, आखिर तुम्हारी दोस्त तो बनती है कोई।”
“ओके, थैंक्स मम्मी!” – जबरदस्ती की मुस्कान के साथ इतना बोलकर इप्शिता चुप हो गई। दो मिनट बाद एक सुरक्षा गार्ड भागता हुआ हवेली के अंदर आकर बोला, “बड़े मालिक! राजघराने के कुछ लोग आए हैं, बेबी जी का शगुन लेकर।”
सुहासिनी जी ने इप्शिता के पिता की तरफ़ देखते हुए कहा, “रानी सा ने इतनी जल्दी शगुन भी भेज दिया।”
इप्शिता के पिता ने कहा, “हाँ सुहासिनी जी, अभी रानी सा ने मुझे कहा था कि वह शगुन भेज चुकी हैं।”
सुहासिनी ने सामने खड़े सुरक्षा गार्ड की तरफ़ देखते हुए कहा, “जाओ, जल्दी जाओ, उन लोगों को अंदर भेजो।”
इप्शिता और उदय गेट की तरफ़ देखने लगे। देखते ही देखते दस-बारह लोग एक साथ हवेली के अंदर आए। उन सब ने एक जैसे कपड़े पहन रखे थे। उन सभी के हाथ में बड़ी-बड़ी पीतल की थालें थीं।
उन सभी थालों में कपड़े, जेवर, फल, मिठाइयाँ थीं। तभी मुख्य द्वार से मुनीम जी अंदर आए और उनके पीछे उनका एक खास आदमी चल रहा था। जिसके हाथ में एक चाँदी की बड़ी सी थाल थी और उस पर पर्पल कलर का एक लहँगा रखा हुआ था। मुनीम जी को देखते ही इप्शिता के पिता आगे बढ़े और उन्होंने मुनीम जी से हाथ मिलाते हुए कहा, “मुनीम जी, कैसे हैं आप?”
मुनीम जी मुस्कुराते हुए बोले, “बहुत अच्छा हूँ! रानी सा ने इप्शिता बिटिया के लिए यह शगुन भेजा है और यह रहा इप्शिता बिटिया का सगाई का जोड़ा।”
जैसे ही सुहासिनी जी ने उस चाँदी की बड़ी सी थाल में इप्शिता का सगाई का जोड़ा देखा, वह खुश होकर बोलीं, “बहुत ही खूबसूरत लहँगा है। मैं तो इप्शिता को भी अपने साथ शॉपिंग पर ले जाने वाली थी, लेकिन शायद रानी सा चाहती हैं कि उनकी होने वाली बहू उनकी पसंद का लहँगा पहने।”
मुनीम जी मुस्कुराते हुए बोले, “जी हाँ, बिलकुल सही कहा आपने। आखिर इप्शिता बिटिया सूर्यवंशी परिवार की नहीं, बल्कि राजवंशी परिवार की बहू बनने वाली है, तो सब कुछ रानी सा के मुताबिक ही करना होगा। वैसे हमारी इप्शिता बिटिया है तो बड़ी ही किस्मत वाली।”
मुनीम जी यह सारी बातें कर ही रहे थे कि इप्शिता ने उस पर्पल कलर के लहंगे की तरफ़ देखा और सीधे अपने कमरे में चली गई। उसे इस तरह जाते देखकर मुनीम जी मुस्कुराते हुए बोले, “बिटिया, शायद शर्मा गई है।”
इप्शिता को इस तरह जाते देखकर वहाँ मौजूद सभी लोग मुस्कुराने लगे। तभी इप्शिता के पिता ने कहा, “आइए मुनीम जी, बैठिए।”
मुनीम जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “नहीं, अब मैं चलने की इज़ाजत चाहूँगा। रानी सा का हुक्म था इसलिए मैं खुद शगुन लेकर आया, लेकिन अब मैं इज़ाजत चाहूँगा। और आप लोगों को भी तो सगाई की तैयारी करनी होगी। मैं अपनी औपचारिकता में आप लोगों को बिज़ी नहीं करना चाहता।”
मुनीम जी की बात सुनकर इप्शिता के माँ-बाप भी कुछ नहीं बोले और मुनीम जी वहाँ मौजूद सभी लोगों के साथ वापस चले गए।
सुहासिनी जी आए हुए शगुन को देखकर थोड़ा सोचते हुए बोलीं, “अमर! रानी सा ने इतने कम समय में इतना अच्छा शगुन भेजा है। अब तो हमें और भी ज़्यादा अच्छी तैयारी करनी होगी। हम भी कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।”
इप्शिता के पिता ने सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया, “यह भी कोई कहने की बात है? चलिए, काफी सारी तैयारियाँ करनी हैं।”
उदय अपने माँ-बाप को इस तरह सगाई की तैयारी में लगते देखकर अपने मन में बोला, “इन्हें तो अपने बच्चों की खुशी की पड़ी ही नहीं है। इन्हें तो बस हर तरफ़ से अपना फायदा चाहिए। और दिखावा ऐसे रहे हैं जैसे कि हमारे लिए सब कुछ करते हों और यह सब कुछ हमारी खुशी के लिए कर रहे हों। लेकिन क्या इन लोगों को नज़र नहीं आ रहा कि इप्शिता इन सबसे जरा भी खुश नहीं है?”
इतना बोलकर उदय ऑफिस के लिए निकल गया। वहाँ इप्शिता ने नंदिनी को मैसेज किया:
“दो दिनों में हमारी सगाई होने वाली है। क्या तुम उदयपुर आ सकती हो?”
इप्शिता काफी ज़्यादा परेशान थी, इसलिए उसने सबसे पहले नंदिनी को बुलाने के बारे में सोचा। इप्शिता ने खुद से बात करते हुए कहा, “मैंने बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि सब कुछ इतनी जल्दी होगा।”
इप्शिता यह सोच ही रही थी कि तभी उसका फ़ोन बजा। उसने देखा नंदिनी का कॉल आ रहा था। उसने कॉल रिसीव करते ही नंदिनी हड़बड़ाते हुए बोली, “यह क्या बोल रही हो तुम? दो दिनों में तुम्हारी सगाई? लेकिन इतनी जल्दी कैसे? मैं तो तेरा मैसेज देखकर ही बिल्कुल शॉक हो गई। मैं इतनी जल्दी वहाँ कैसे आ पाऊँगी?”
इप्शिता ने परेशान होकर कहा, “पहले ही हम यहाँ पर एकदम अकेले हैं और एक तुम ही तो हमारी बेस्ट फ़्रेंड हो। अगर तुम भी इस वक़्त हमारे साथ नहीं होगी तो कौन होगा?”
क्रमशः
इप्शिता ने अपनी सहेली नंदिनी को अपनी सगाई के लिए आमंत्रित करने हेतु फ़ोन किया। जैसे ही उसने दो दिन बाद होने वाली सगाई की खबर दी, नंदिनी अत्यधिक आश्चर्यचकित हो गई।
नंदिनी ने हैरानी से कहा, “लेकिन इतनी जल्दी? मैंने सोचा था तेरी सगाई और शादी से पहले मैं अच्छे से खरीदारी करूँगी और सारी तैयारी कर लूँगी। मैचिंग इयररिंग्स, ज्वैलरी, हील्स, सब कुछ खरीद लूँगी और तब आऊँगी। पर तूने तो मुझे बोतल से निकला हुआ जिन समझ लिया है!”
इप्शिता ने थोड़ी खीझते हुए कहा, “हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं। और वैसे भी, दो-तीन घंटे की ही तो फ़्लाइट है, मुंबई से जयपुर की। फ़टाफ़ट फ़्लाइट बुक करो और कल तक यहाँ आ जाओ। मम्मी-पापा पहले ही सारी तैयारी में लग गए हैं।”
नंदिनी उत्साह से बोली, “यार, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा! लगता है हमारे प्यारे जीजा जी को तो कुछ ज़्यादा ही पसंद आ गई हो, इसीलिए इतनी जल्दी सगाई कर रहे हैं।”
इप्शिता ने मन ही मन कहा, “वह तो सब अपनी माँ सा की मर्ज़ी से कर रहे हैं।”
इप्शिता को चुप देखकर नंदिनी ने कहा, “हेलो, तुम सुन रही हो ना मेरी बात? या जीजा जी के ख़्यालों में खो गई हो?”
इप्शिता ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा, “कुछ भी मत बोला करो नंदिनी। और तुम यह बताओ, हमारी सगाई तक यहाँ पहुँच पाओगी या नहीं?”
नंदिनी ने उत्तर दिया, “हाँ, बिल्कुल! मैं अभी सारी फ़्लाइट की उपलब्धता और समय जाँचती हूँ और तुरंत पैकिंग करना शुरू करती हूँ। तुम बिल्कुल टेंशन मत लो, मैं ज़रूर आऊँगी। आखिर मेरी प्रिंसेस बेस्ट फ्रेंड की सगाई है।”
इप्शिता ने गंभीर होते हुए कहा, “तुम यहाँ पहुँचकर हमें एक कॉल कर देना। हम तुम्हें एयरपोर्ट से पिकअप करवा लेंगे।”
नंदिनी ने खुशी से कहा, “ओके, डन।”
इप्शिता के दिमाग में कई बातें चल रही थीं। उसने मन ही मन कहा, “मिस्टर अभिमन्यु ने तो बोला था कि वह यह शादी सिर्फ़ अपनी माँ सा के कहने की वजह से कर रहे हैं, नहीं तो वह हमसे, या किसी से भी, शादी नहीं करते। आखिर क्यों बोला था उन्होंने ऐसा? और संजय अंकल भी पता नहीं उनके बारे में सब पता कर पाए या नहीं।”
इप्शिता अपने कमरे से बाहर निकली। उसने देखा उसके माँ-बाप जा चुके थे और शगुन का सारा सामान हटवा दिया गया था। लेकिन इप्शिता का सगाई का जोड़ा अभी भी उस चाँदी की थाली में उसी टेबल पर रखा था। इप्शिता नीचे उतरकर हॉल में आई और वहाँ सोफ़े पर बैठकर सामने रखे उस पर्पल रंग के खूबसूरत लहंगे की ओर देखा। इप्शिता हाथ बढ़ाकर लहंगा छूने ही वाली थी कि पीछे से एक आवाज़ आई, “बेबी जी।”
इप्शिता ने आवाज़ सुनकर पीछे मुड़कर देखा। संजय मुख्य द्वार से अंदर आ रहा था।
इप्शिता उठकर खड़ी हो गई। संजय उसके सामने आकर हाथ जोड़ते हुए बोले, “बेबी जी, आपने मुझे कुंवर सा की जानकारी इकट्ठा करने के लिए कहा था ना? मैंने उनके बारे में सब कुछ पता कर लिया है।”
इप्शिता ने कहा, “क्या पता चला आपको?”
संजय ने अपने हाथ में पकड़े हुए आईपैड को इप्शिता के हाथ में देते हुए कहा, “यह रही उनकी कुछ जानकारी, जितना हमें पता चल पाया।”
इप्शिता ने आईपैड पर दिख रही अभिमन्यु की बड़ी सी तस्वीर देखी, जिसमें वह बहुत हैंडसम लग रहा था। उसने ब्लैक कलर की टर्टल नेक टी-शर्ट और उस पर स्काई ब्लू कलर का ब्लेज़र पहना हुआ था, जो उस पर बहुत जँच रहा था।
इप्शिता ने उसकी तस्वीरें स्क्रॉल की और सामने लिखी जानकारी पढ़ने लगी। तभी संजय ने कहा, “बेबी जी, कुंवर सा माँ सा के इकलौते बेटे और राजवंश परिवार के इकलौते वारिस हैं। कुंवर सा की एक छोटी बहन है, जिनका नाम अर्पिता राणावत है और उनकी शादी राणावत परिवार के बड़े बेटे जयराज राणावत से हुई है। और बाकी सारी जानकारी आपको इसमें मिल जाएगी।”
इप्शिता ने वह सारी जानकारी पढ़ी और संजय की ओर देखते हुए कहा, “इसके अलावा आपको और कुछ पता नहीं चला क्या?”
संजय ने सिर झुकाते हुए कहा, “बेबी जी! लगभग एक साल पहले कुंवर सा की एक गर्लफ्रेंड थी, जिसने कुंवर सा को किसी दूसरे लड़के की वजह से छोड़ दिया था। जिसके बाद कुंवर सा का प्यार पर से भरोसा उठ गया। उसके बाद उन्होंने दोबारा कभी किसी को डेट नहीं किया।”
यह सुनकर इप्शिता ने मन ही मन कहा, “अच्छा, तो इसका मतलब यही वजह थी कि मिस्टर अभिमन्यु को मुझसे शादी करने में कोई रूचि नहीं थी।”
इप्शिता को इस तरह सोचते देख संजय ने पूछा, “बेबी जी, आपको कुछ और काम था क्या मुझे?”
इप्शिता ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं, थैंक यू सो मच संजय अंकल। और प्लीज़, यह बात आप किसी को मत बताइएगा कि मैंने आपसे यह सारी जानकारी निकलवाई है।”
संजय ने हाँ में सिर हिलाया और चुपचाप बाहर चला गया। इप्शिता ने अपने हाथ में पकड़े आईपैड में अभिमन्यु की तस्वीर देखनी शुरू कर दी।
इप्शिता सोफ़े पर बैठे हुए बोली, “अभिमन्यु जैसे इतने हैंडसम, अमीर और राजघराने के लड़के को भी कोई लड़की छोड़ सकती है? ऐसा कैसे हो सकता है? How is it Possible?”
इप्शिता यह सोच ही रही थी कि उसने अभिमन्यु की उस तस्वीर को स्क्रॉल किया और नेट पर और भी तस्वीरें सर्च करने लगी। उसे अभिमन्यु की एक भी मुस्कुराती हुई तस्वीर नहीं मिली। इप्शिता ने कहा, “शायद मिस्टर अभिमन्यु का प्यार पर से भरोसा उठ चुका है, इसीलिए वह हर किसी से इतना रूखा व्यवहार करते हैं।” इप्शिता को अभिमन्यु के लिए कुछ बुरा लग रहा था।
इप्शिता हॉल में बैठी ही थी कि उसने देखा कई लोग हवेली के अंदर आए, साथ में उनके हवेली के मैनेजर भी थे। इप्शिता उठकर खड़ी हो गई।
मैनेजर ने सबको निर्देश देते हुए कहा, “हमारे पास सिर्फ़ आज का ही समय है। हमें जल्दी से जल्दी पूरी हवेली को सजाना होगा। पूरी सजावट सिर्फ़ ताज़ा गुलाब के फूलों से होगी और साथ ही लाइटिंग का भी हमें अच्छा ध्यान रखना होगा। सुहासिनी मैम ने बताया है कि स्टेज पर हमें गोल्डन और डार्क ब्लू शेड में सजावट करनी है। फ़टाफ़ट सब लोग अपने काम में लग जाओ।”
सभी लोग सगाई की तैयारी में लग गए। इप्शिता को यह सब देखकर बिल्कुल खुशी नहीं हो रही थी। वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई। सगाई की तैयारी सूर्यवंशी हवेली में जोरों-शोरों से चल रही थी।
सुहासिनी जी खरीदारी करके वापस आ चुकी थीं। उनके पीछे चल रहे मैनेजर ने कहा, “मैम, सजावट लगभग पूरी हो गई है। एक बार आप चेक कर लीजिए। और खाने की सारी तैयारियाँ हो गई हैं।”
सुहासिनी जी ने कहा, “हमें और भी बहुत सारे काम हैं। यह सारी चीज़ें आप खुद ही चेक कर लीजिए। और अगर कोई परेशानी हो तो हमें बता दीजिएगा।”
इतना कहकर सुहासिनी जी अपने कमरे में चली गईं। पूरा दिन सजावट में लग गया।
वहीं राजवंश महल में,
नरेंद्र और पल्लवी को जैसे ही पता चला कि रानी सा ने अभिमन्यु की सगाई का शगुन भेज दिया है और दो दिनों के अंदर सगाई है, वे दोनों निराश हो गए।
पल्लवी ने नरेंद्र पर गुस्सा करते हुए कहा, “देख लिया ना आपने? मैं तो आपसे पहले ही कह रही थी कि मोहिनी भाभी के दिमाग में अलग ही खुराफात चल रही है। वह अभिमन्यु के छब्बीसवें जन्मदिन से पहले देखिएगा, उसकी शादी करवा कर ही मानेगी और हम यूँ ही हाथ मलते रह जाएँगे।”
नरेंद्र ने गुस्से से अपना हाथ मेज़ पर पटकते हुए कहा, “नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगा।”
पल्लवी ने यह सुनते ही हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो क्या कर लेंगे आप? भाभी के सामने तो आपसे कुछ बोला नहीं जाता और अभिमन्यु के आगे आपकी कुछ चलती नहीं है। जितनी जल्दी भाभी सगाई कर रही है, देखिएगा उससे भी जल्दी वह अभिमन्यु की शादी कर देगी और हमें इसी तरह बेमन से अभिमन्यु की शादी में शामिल भी होना पड़ेगा, क्योंकि हमारे पास तो और कोई विकल्प भी नहीं है।”
नरेंद्र ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं कुछ सोचता हूँ!”
पल्लवी ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा, “इतने दिन से तो सुन रही हूँ मैं कि आप कुछ करेंगे, लेकिन हमें ऐसा कुछ नहीं लग रहा कि आपसे कुछ होगा।”
नरेंद्र गुस्से से चिल्लाया, “तुम मुझे चुनौती दे रही हो?”
पल्लवी ने उन्हें उकसाते हुए कहा, “जी नहीं, बिल्कुल नहीं। हम आपको सच बता रहे हैं।”
नरेंद्र और पल्लवी बात ही कर रहे थे कि कमरे पर किसी ने खटखटाया। दोनों चुप हो गए। पल्लवी ने तेज आवाज़ में कहा, “अंदर आ जाओ।”
महल का एक नौकर अंदर आया और सिर झुकाकर धीमी आवाज़ में कहा, “रानी सा ने डिनर के लिए आप दोनों को बुलाया है।”
पल्लवी ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, “इतनी जल्दी डिनर?” नरेंद्र ने कंधे उचका दिए।
पल्लवी ने नौकर से कहा, “ठीक है, तुम चलो। हम दो मिनट में आते हैं।”
वह नौकर चला गया। पल्लवी ने कहा, “क्यों बुलाया होगा भाभी सा ने हमें?”
नरेंद्र ने कहा, “वह तो अब हमें वहाँ चलकर ही पता चलेगा। चलो।”
वहीं दूसरी ओर;
इप्शिता डिनर के बाद अपने कमरे में बैठी थी कि नंदिनी का मैसेज आया।
“ईशु, तुम बिल्कुल परेशान मत हो। मुझे फ़्लाइट मिल गई है। मैं कल सुबह नौ से दस बजे तक उदयपुर पहुँच जाऊँगी।”
इप्शिता थोड़ी खुश हुई और चुपचाप अपने बिस्तर पर कई मैगज़ीन लेकर बैठ गई। उन्हें पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आ गई। अगले दिन सुबह इप्शिता की आँखें नंदिनी के फ़ोन कॉल से खुलीं।
“ईशु, मेरा प्लेन तीस मिनट में लैंड होने वाला है।”
इप्शिता हड़बड़ा कर उठी और बोली, “ठीक है, हम अभी संजय अंकल को तुम्हें लेने के लिए एयरपोर्ट भेज देते हैं।”
एक घंटे बाद इप्शिता तैयार होकर नंदिनी को कॉल करने लगी, लेकिन नंदिनी ने कॉल रिसीव नहीं किया। इप्शिता ने अपने मोबाइल की ओर देखते हुए कहा, “पता नहीं नंदिनी को संजय अंकल मिले होंगे या नहीं? और यह लड़की मेरा कॉल भी रिसीव नहीं कर रही है।”
नंदिनी का कॉल न लगने से इप्शिता थोड़ी परेशान हो गई।
क्रमशः
क्या नंदिनी समय पर आएगी उसकी सगाई के लिए? और जो कुछ भी इप्शिता को अभिमन्यु के जीवन के बारे में पता चला है, क्या वह सब सच है? क्या वह अभिमन्यु से इस बारे में कुछ पूछेगी? उनकी सगाई में अभिमन्यु के चाचा-चाची क्या प्लान कर रहे हैं? क्या अभिमन्यु और उसकी माँ को इस बारे में कोई भनक है? सब कुछ पता चलेगा आने वाले एपिसोड में। बस आप लोग पढ़कर कमेंट करते रहिए।
इप्शिता अपनी बेस्ट फ्रेंड नंदिनी से फोन पर बात न हो पाने की वजह से परेशान थी। उधर, उसका भाई उदय नाश्ता करके हवेली से बाहर निकल रहा था। तभी सामने से एक लड़की आई। उस लड़की ने क्रॉप टॉप, सफ़ेद जीन्स और सफ़ेद स्नीकर्स पहने हुए थे।
उसके बाल खुले हुए थे और चेहरे पर पूरा मेकअप था। वह काफी प्यारी लग रही थी। हवेली से निकलते ही उदय रुक गया और उस लड़की को एकटक देखने लगा। लड़की के हाथ में एक ट्रॉली बैग और एक प्यारा सा टेडी बियर शेप का मिनी पर्स था, जिसे उसने क्रॉसबैग की तरह कंधे पर लटका रखा था।
उदय ने मन ही मन सोचा, "कौन है ये लड़की और इतनी सुबह-सुबह हमारे घर के पास क्या कर रही है? क्यों आ रही है वह इस तरफ?"
उदय हवेली से बाहर ही निकला था कि उसका फ़ोन बज गया।
उदय ने फ़ोन रिसीव करते हुए कहा, "हेलो, हम बस दस मिनट में ऑफिस पहुँच रहे हैं। आप मीटिंग शुरू कर दीजिये।"
फ़ोन पर बात करते हुए उदय तेज़ कदमों से बाहर निकलने लगा। हवेली के बाहर निकलते ही वह उस लड़की से टकरा गया।
लड़की के हाथ में एक बड़ा ट्रॉली बैग था जो जमीन पर गिर गया। लड़की लड़खड़ाकर गिरने ही वाली थी कि उदय ने एक हाथ से उसका हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से उसकी कमर थामकर उसे गिरने से बचा लिया। लड़की संभलने की कोशिश कर रही थी। उसने एक हाथ उदय के कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से उदय के कोट को मज़बूती से पकड़ लिया।
उदय ने लड़की के लहराते बालों को देखा जो उसके चेहरे पर आ गए थे। जब उसने अपना चेहरा उदय की ओर घुमाया, तो उदय उसकी ग्रे आँखों में खो गया। वह उसकी ओर से नज़रें ही नहीं हटा पा रहा था।
उदय ने मन ही मन कहा, "इतनी खूबसूरत लड़की यहाँ! पास से तो और भी ज़्यादा सुंदर लग रही है। आखिर कौन है ये?"
उदय इस समय ऑफिस के लिए जल्दी में था, लेकिन उस लड़की को अपनी बाहों में देखकर वह सब कुछ भूल गया। उदय की बाहों में मौजूद लड़की ने मन ही मन सोचा, "वाह! क्या वेलकम हुआ है! मस्त गिरते-पड़ते आई हूँ। और ये कौन है? दिखने में तो बहुत हैंडसम लग रहा है, लेकिन ये मुझे इस तरह क्यों देख रहा है? क्या मेरे चेहरे पर कुछ लगा है?"
उदय बस एकटक लड़की को देखे जा रहा था। उसी वक़्त इप्शिता कमरे से निकली और उसने उदय की बाहों में उस लड़की को देखा। वह तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरकर उनके सामने आई और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। गला साफ़ करते हुए बोली, "अहम्... अहम्... उदय भाई! क्या हम जान सकते हैं कि आप दोनों ये क्या कर रहे हैं?"
इप्शिता की आवाज़ सुनते ही उदय ने उसकी ओर देखा और लड़की को खड़ा करने में मदद करने लगा। इप्शिता की आवाज़ सुनकर लड़की भागती हुई इप्शिता के पास आई और उसे गले लगाते हुए बोली, "इशु मेरी जान! तुझे गले लगाने के लिए मैं कितनी एक्साइटेड हो रही थी!"
इप्शिता ने उदय की ओर देखा; वह नंदिनी को ही देख रहा था। इप्शिता मुस्कुराते हुए बोली, "अरे बस करो! क्या कर रही हो? छोड़ो हमें नंदिनी, हम गिर जाएँगे।"
उदय इप्शिता और नंदिनी को एक साथ बातें करते देखकर समझ गया कि वह इप्शिता की बेस्ट फ्रेंड है।
इप्शिता ने नंदिनी का हाथ पकड़ा और उदय के सामने आकर खड़ी होकर बोली, "उदय भाई, इस से मिलिए। हमारी सबसे अच्छी दोस्त नंदिनी। और नंदिनी, यह मेरा भाई है!"
नंदिनी ने जैसे ही इप्शिता की बात सुनी, झट से बोली, "अच्छा, तो ये आपके भाई हैं? इन्होंने अभी मुझे गिरने से बचाया। थैंक यू सो मच भैया!"
उदय ने नंदिनी की बात सुनकर कुछ नहीं कहा। उसने इप्शिता की ओर देखते हुए कहा, "हम ऑफिस जा रहे हैं। हमें देर हो रही है।"
उदय के नंदिनी को नज़रअंदाज़ करने पर नंदिनी ने मन ही मन सोचा, "इप्शिता जितनी अच्छी है, उसका भाई उतना ही ज़्यादा रूखा है। मैंने उसे थैंक यू कहा और उसने मुझे नज़रअंदाज़ कर दिया।"
नंदिनी उदय को जाते हुए देख रही थी। इप्शिता ने नंदिनी से पूछा, "क्या बात है? तुम मेरे भाई को ऐसे क्यों देख रही हो?"
नंदिनी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "तुम्हारे भाई सबके साथ ऐसे ही रूखा व्यवहार करते हैं क्या?"
इप्शिता ने नंदिनी के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, "ओ शट अप! नंदिनी, ऐसा कुछ नहीं है। वह बस जल्दी में था। दरअसल, पापा ऑफिस नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए भाई को सारे काम देखने पड़ रहे हैं। वरना उदय भाई दुनिया का सबसे अच्छा भाई है।"
नंदिनी ने इप्शिता के मुँह से अपने भाई की तारीफ़ सुनकर आँखें घुमाते हुए कहा, "हाँ हाँ, तुम तो अपने भाई की ही तरफ़दारी करोगी ना! खैर, कांग्रेचुलेशन्स! इंगेजमेंट हो रही है मैडम की!"
इप्शिता ने हाँ में सिर हिलाया। तभी घर के नौकर नंदिनी के लिए पानी का गिलास लेकर आए। इप्शिता ने उसे सोफ़े पर बिठाते हुए कहा, "बैठो तुम, खड़ी क्यों हो? और पानी पियो। और ये बताओ, तुम्हें आने में कोई ज़्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई ना?"
नंदिनी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, बिल्कुल भी नहीं। कोई तकलीफ़ नहीं हुई। वैसे, तैयारी तो बड़े जोरों से चल रही है। पहली बार मैं किसी राजघराने की इंगेजमेंट देखूंगी। मैं बहुत एक्साइटेड हूँ।"
नंदिनी को इतना एक्साइटेड देखकर इप्शिता हल्का सा मुस्कुराई।
नंदिनी ने पानी का गिलास उठाकर एक घूँट लिया और बोली, "वैसे, क्या पहनने वाली हो कल तू? और अगर तुझे शॉपिंग पर चलना है तो बता, मैं फटाफट कपड़े बदल लेती हूँ और हम साथ में शॉपिंग चलेंगे।"
इप्शिता ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है यार शॉपिंग की। अभिमन्यु की माँ ने सब कुछ पहले से ही भेज दिया है। उन्होंने बताया है कि मुझे कल इंगेजमेंट में कौन से कपड़े और कौन सी ज्वेलरी पहननी है।"
नंदिनी ने जैसे ही ये बात सुनी, हैरानी से पूछा, "क्या मतलब है? तू अपनी इंगेजमेंट में अपनी पसंद के कपड़े नहीं पहन रही?"
इप्शिता ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं। और वैसे भी क्या फर्क पड़ता है? कोई भी कपड़े पहन लूंगी मैं!"
इप्शिता चुप हो गई।
नंदिनी ने हैरानी से कहा, "कैसी बात कर रही है यार? तेरी इंगेजमेंट है, और कोई छोटा-मोटा फंक्शन नहीं जो कुछ भी पहन लिया जाए। मैं तो कहती हूँ, तुझे अपनी पसंद का कुछ पहनना चाहिए।"
इप्शिता ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "ऐसा नहीं होता है यार! ये राजघराने की परंपरा है। कपड़े तो लड़के वाले ही भेजते हैं। और वैसे भी, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। तू बेकार में परेशान हो रही है। वैसे ये बता, तू अपने लिए कपड़े लाई है ना? या फिर यहीं से शॉपिंग करने जाएगी?"
नंदिनी ने अपने साथ लाये हुए बड़े ट्रॉली बैग की ओर इशारा करते हुए कहा, "इतना टाइम नहीं था, लेकिन फिर भी मैं जल्दी-जल्दी में शॉपिंग करके आई हूँ। देख, इतना बड़ा बैग लाई हूँ!"
नंदिनी और इप्शिता बात ही कर रही थीं कि पीछे से इप्शिता की माँ अपने साथ कुछ लोगों से बात करते हुए अंदर आईं। इप्शिता और नंदिनी को साथ बैठे देखकर वह वहीं रुक गईं। इप्शिता ने जैसे ही अपनी माँ को देखा, उनके पास जाकर बोली, "मम्मी, ये हमारी बेस्ट फ्रेंड है, नंदिनी। और नंदिनी, ये हमारी मम्मी हैं।"
नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हेलो आंटी, कैसी हैं आप?"
सुहासिनी ने नंदिनी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "हम अच्छे हैं बेटा! थैंक यू सो मच कि आप इप्शिता की इंगेजमेंट में शामिल होने के लिए इतनी दूर से आई हैं। अब इप्शिता को इंगेजमेंट में अकेला महसूस नहीं होगा।"
नंदिनी ने इप्शिता के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "यस ऑफ़कोर्स आंटी! मैं हूँ ना, मैं इशु का पूरा ध्यान रखूंगी।"
इप्शिता की माँ ने नंदिनी और इप्शिता की ओर देखते हुए कहा, “इप्शिता, अपनी सहेली को अपने कमरे में ले जाओ। यहाँ बहुत सारी तैयारियाँ चल रही हैं। आप लोग अपने कमरे में आराम से बैठकर बातें करिएगा। और हाँ, नंदिनी बेटा, अपनी दोस्त को अपनी तरह थोड़ा मेकअप करना सिखा देना। उसकी शादी के बाद काम आएगा।”
नंदिनी ने यह बात सुनते ही मन ही मन कहा, “क्या इप्शिता की माँ मुझे ताना मार रही है? मेरे फुल मेकअप को देखकर? हो भी सकता है। लेकिन उन्हें क्या पता, मैं तो हमेशा ही ऐसे मेकअप करती हूँ। मुझे मेकअप करना इतना पसंद है। कोई बात नहीं, अभी उन्हें भी यह बात पता चल जाएगी।”
नंदिनी मुस्कुराते हुए बोली, “आप बिल्कुल फिक्र मत करिए आंटी! अब मैं यहाँ आ गई हूँ तो इशू के मेकअप से लेकर उसे पूरा तैयार करने की ज़िम्मेदारी मेरी है।”
सुहासिनी जी ने यह बात सुनते ही अपना हाथ दिखाकर नंदिनी को चुप कराते हुए कहा, “नहीं, वह आपका काम नहीं है बेटा। उसके लिए हम मेकअप आर्टिस्ट बुला देंगे।”
नंदिनी ने सुहासिनी की बात बीच में ही काटते हुए कहा, “अरे आंटी, कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं मेकअप आर्टिस्ट हूँ! मेरे कोर्स का फाइनल ईयर है। उसके बाद मैं भी एक प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट ही बनने वाली हूँ। कोई ज़रूरत नहीं है आपको कोई मेकअप आर्टिस्ट बुलाने की।”
इतना बोलकर नंदिनी सुहासिनी जी की बात सुनने के लिए नहीं रुकी और इप्शिता का हाथ पकड़कर वहाँ से जाने लगी।
सुहासिनी जी ने नंदिनी की ओर देखकर थोड़ा हैरान होते हुए खुद से कहा, “बड़ी ही मुँहफट है इप्शिता की दोस्त। अभी तो हमें बाकी तैयारियों पर ध्यान देना है।”
इतना बोलकर सुहासिनी जी बाकी कामों में लग गईं। वहीं दूसरी ओर, उदयवीर कार में बैठा था और उसने मन ही मन कहा, “मुझे इशू की दोस्त काफी क्यूट लगी। इशू ने हमें आज से पहले कभी उसके बारे में क्यों नहीं बताया? उसकी आँखें कितनी प्यारी थीं! लेकिन उसने मुझे भैया क्यों कहा? हम उसके भैया तो हैं भी नहीं, हम तो सिर्फ़ इशू के भैया हैं।”
उदय नंदिनी के चेहरे के हर एक फीचर के बारे में सोचकर मुस्कुरा रहा था। तभी उदय ने धीमी आवाज़ में कहा, “हम उसके बारे में क्यों सोच रहे हैं? हमारी मीटिंग है अभी। हमें उस पर फोकस करना चाहिए।”
वहीं दूसरी ओर;
राजवंश महल में रात के समय, डाइनिंग टेबल पर हेड चेयर पर मोहिनी राजवंशी बैठी थीं। उनके बगल वाली चेयर पर अभिमन्यु और दूसरी ओर नरेंद्र बैठे थे। नरेंद्र के बगल में उनकी पत्नी और उनकी दोनों बेटियाँ बैठी थीं।
मोहिनी जी ने डाइनिंग टेबल पर बैठे बाकी सभी लोगों की ओर देखते हुए कहा, “कल अभिमन्यु की सगाई के लिए हमें जल्दी महल से निकलना होगा। अर्पिता और जयराज सुबह-सुबह राजमहल पहुँच जाएँगे। हम किसी से कोई गलती नहीं चाहते। नरेंद्र, आपने सब कुछ देख लिया है ना?”
नरेंद्र ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “जी हाँ, भाभी साहबा। सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। आप बिल्कुल परेशान मत होइए।”
मोहिनी जी ने अभिमन्यु की ओर देखते हुए कहा, “अभिमन्यु, हमने आपसे जो काम बोले थे, आपने वे सारे काम कर दिए ना?”
अभिमन्यु ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “जी माँ साहबा, हमने वे सारे काम कर दिए हैं जो आपने हमसे करने के लिए कहे थे।”
माँ साहबा बाकी सारी तैयारियों के बारे में बात कीं और सब एक साथ डिनर करने के बाद अपने-अपने कमरों में चले गए।
अगले दिन सुबह;
सूर्यवंश हवेली में सगाई की सारी तैयारियाँ लगभग हो चुकी थीं।
वहीं राजवंश महल में सब लोग सगाई के लिए तैयार हो रहे थे। माँ साहबा ने लाइट ग्रीन कलर की साड़ी पहनी हुई थी और वे सारी तैयारियों के बारे में अपने मैनेजर से बातें कर रही थीं। तभी एक नौकर दौड़ते हुए माँ साहबा के सामने आकर रुका और उसने अपना सिर झुकाते हुए कहा, “रानी साहबा, राजकुमारी अर्पिता और जमाई साहब महल आ चुके हैं।”
मोहिनी जी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है। अर्पिता और जमाई साहब को हमसे मिलने के लिए भेजो।”
वह नौकर भागता हुआ अर्पिता और जयराज के सामने आकर बोला, “जमाई साहब, राजकुमारी, माँ साहबा ने आप दोनों को बुलाया है।”
अर्पिता ने पिंक कलर की हैवी साड़ी के साथ डायमंड ज्वेलरी पहन रखी थी और वह उसमें काफी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। लेकिन जयराज ने क्रीम कलर का थ्री पीस सूट पहना हुआ था और उसके चेहरे पर ज़रा सी भी मुस्कान नहीं थी। और वह अर्पिता से काफी दूर-दूर होकर चल रहा था।
अर्पिता और जयराज जैसे ही माँ साहबा के सामने पहुँचे, माँ साहबा अर्पिता को देखकर खुश हो गईं और वे आगे बढ़कर अर्पिता की ओर आने लगीं। अर्पिता ने जल्दी से माँ साहबा को गले लगाते हुए कहा, “माँ साहबा, कैसी हैं आप? और इतनी जल्दी भाई की सगाई!”
जयराज माँ साहबा के सामने आकर उनके पैर छूते हुए बोला, “माँ साहबा, आप हमें थोड़ा पहले अगर सगाई के बारे में बता देतीं तो मम्मी-पापा भी सगाई में शामिल हो जाते। लेकिन उन्होंने सगाई में शामिल न होने के लिए आपसे माफ़ी माँगी है।”
माँ साहबा ने जयराज की ओर देखकर ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “जमाई साहब, सब कुछ काफी जल्दी हुआ है, हम यह बात जानते हैं। लेकिन यह बहुत अच्छा रिश्ता था और हम इसे अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। वैसे भी, हमें नहीं लगता सब कुछ जल्दबाज़ी में करने के बावजूद किसी चीज़ की कोई कमी है।”
अर्पिता ने माँ साहबा का हाथ पकड़ते हुए कहा, “माँ साहबा, अभिमन्यु भाई साहब कहाँ हैं? मुझे उनसे मिलना है।”
माँ साहबा ने अर्पिता का गाल छूते हुए कहा, “अभिमन्यु अपने कमरे में है। आप उनसे जाकर मिल लीजिए।”
अर्पिता सीधे अभिमन्यु से मिलने के लिए उसके कमरे में गई। अभिमन्यु पर्पल कलर की शेरवानी के नीचे व्हाइट चूड़ीदार पजामा पहनकर बैठा हुआ था और अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। अर्पिता चुपचाप अभिमन्यु के कमरे में आई और अभिमन्यु को इस तरह लैपटॉप पर काम करते देखकर अर्पिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “अभिमन्यु भाई, आज आपकी इंगेजमेंट है और आज भी आप काम में बिज़ी हैं और अभी तक तैयार नहीं हुए।”
अभिमन्यु ने जैसे ही अर्पिता की आवाज़ सुनी, वह अपना सिर उठाकर अर्पिता की ओर देखने लगा। उसका चेहरा, जो अभी तक एक्सप्रेशनलेस था, अब मुस्कुराते हुए बोला, “अर्पिता!”
अर्पिता अभिमन्यु के सामने आकर खड़ी हुई और अभिमन्यु ने अर्पिता को गले लगाते हुए कहा, “अभी-अभी आई और आते ही हमें डाँटना भी शुरू कर दिया।”
अर्पिता ने गुस्से से अभिमन्यु को देखते हुए कहा, “आप डाँट खाने वाला ही तो कम कर रहे हैं, अभिमन्यु भाई साहब! जल्दी से तैयार हो जाइए। माँ साहबा ने पहले ही बोल दिया है कि वे लेट नहीं होना चाहतीं। हम आपको फटाफट तैयार कर देते हैं।”
इतना बोलकर अर्पिता ने अभिमन्यु के कंधे पर हाथ रखा और उसे कमरे में लगे बड़े से आईने के सामने बिठा दिया।
उसने वहीं थाल में रखे बड़े से मोतियों की एक माला उठाई और उसे अभिमन्यु को पहनाते हुए बोली, “अभिमन्यु भाई साहब, आप इस सगाई से खुश तो हैं ना?”
अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए हाँ में अपना सिर हिला दिया। वहीं अर्पिता ने अभिमन्यु के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “भाई साहब, आप भाभी साहबा से मिले ना? वे आपको पसंद आईं?”
अर्पिता की बात सुनते ही अभिमन्यु की आँखों के सामने इप्शिता का चेहरा आ गया और वह इप्शिता के बारे में सोचने लगा। अर्पिता ने अभिमन्यु को इस तरह सोचते देखकर पूछा, “हमें हमारा जवाब मिल गया। हमने आपको कभी भी इस तरह से किसी बात का जवाब सोचते हुए नहीं देखा। इसका मतलब हमारे भाई साहब को भाभी साहबा पसंद आ गई हैं। हम आपके लिए बहुत खुश हैं भाई साहब।”
अर्पिता को खुश देखकर अभिमन्यु कुछ नहीं बोला और उसने मन ही मन कहा, “हम खुश होने का दिखावा करने के अलावा और कुछ कर भी नहीं सकते। हमारे ऊपर पूरे राजवंशी परिवार की ज़िम्मेदारियाँ हैं। हमारे लिए यह सगाई और यह शादी दोनों ही बहुत ज़रूरी हैं।”
अभिमन्यु यह सारी बातें सोच रहा था और तभी अर्पिता ने अभिमन्यु के बालों को अपने हाथों से ठीक करते हुए कहा, “हो गए हमारे भाई साहब बिल्कुल रेडी! और आप तो सच में इतने हैंडसम लग रहे हैं कि भाभी साहबा तो बस आपको देखते ही रह जाएंगी।”
क्रमशः
अर्पिता को खुश देखकर अभिमन्यु कुछ नहीं बोला। उसने अपने मन में कहा, “हम खुश होने का दिखावा करने के अलावा और कुछ कर भी नहीं सकते। हमारे ऊपर पूरे राजवंशी परिवार की जिम्मेदारियाँ हैं; हमारे लिए यह सगाई और यह शादी दोनों ही बहुत ज़रूरी हैं।”
अभिमन्यु यह सारी बातें सोच ही रहा था कि अर्पिता ने अभिमन्यु के बालों को अपने हाथों से ठीक करते हुए कहा, “हो गए हमारे भाई साहब बिल्कुल रेडी! और आप तो सच में इतने हैंडसम लग रहे हैं कि भाभी साहबा तो बस आपको देखते ही रह जाएंगी।”
अर्पिता इतना बोलकर मुस्कुराने लगी। अभिमन्यु भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। वे दोनों एक साथ कमरे से बाहर निकल आए। माँ साहब ने जैसे ही अभिमन्यु को देखा, उन्होंने पाँच सौ के नोटों की एक गड्डी उठाई और उसे अभिमन्यु के सिर के चारों ओर घुमाते हुए कहा, “हमारे बेटे को किसी की बुरी नज़र न लगे।”
इतना बोलकर उन्होंने वह पाँच सौ के नोटों की गड्डी सामने खड़े एक नौकर को देते हुए कहा, “यह गरीबों में बँटवा देना। और सारी गाड़ियाँ तैयार हैं ना?”
उस नौकर ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “जी रानी साहबा, सब कुछ बिल्कुल तैयार है।”
रानी साहब ने हुक्म देते हुए कहा, “तो फिर ठीक है, चलिए चलते हैं।”
राजमहल में मौजूद सभी लोग वहाँ से निकलने के लिए तैयार हो गए। उसी समय इप्शिता के पिता अपनी पत्नी के पास आकर बोले, “सुहासिनी जी, रानी साहबा कुँवर साहब के साथ राजमहल से निकल चुकी हैं। वे लोग बस किसी भी वक़्त यहाँ पहुँचने वाले हैं। आप जाकर देखिए इप्शिता तैयार हुई है या नहीं?”
इप्शिता अपने कमरे में थी। उसने बाथरोब पहना हुआ था और चुपचाप आराम से चेयर पर बैठी थी। नंदिनी उसका मेकअप कर रही थी।
सुहासिनी जी जैसे ही इप्शिता के कमरे में आईं, उन्होंने हड़बड़ाते हुए कहा, “इप्शिता! आप अभी तक रेडी नहीं हुई हैं! किसी भी समय राजमहल के सब लोग यहाँ पहुँच सकते हैं, और आप... नंदिनी! आपने तो कहा था कि आप इप्शिता को रेडी कर लेंगी, और अभी तक आपने इप्शिता का मेकअप ही फ़िनिश नहीं किया है!”
सुहासिनी जी खुद काले रंग की सुंदर सी नेट साड़ी पहनकर रेडी हो चुकी थीं, और इप्शिता का चेहरा उन्होंने अभी तक नहीं देखा था। नंदिनी बिल्कुल रिलैक्स्ड होते हुए बोली, “चिल आंटी! ऑलमोस्ट इप्शिता का पूरा मेकअप हो चुका है, बस उसे लहँगा और ज्वेलरी ही पहननी है। और मुझे क्या? मुझे तो रेडी होने में आधा घंटा भी नहीं लगेगा। मैं फटाफट रेडी हो जाऊँगी, आप बिल्कुल टेंशन मत लीजिए।”
सुहासिनी जी ने नंदिनी की बात सुनकर ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “आप नहीं जानतीं, हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता है। और रानी साहबा को तो किसी भी चीज़ में लेट होना पसंद नहीं है। और नंदिनी, आप अभी तक इप्शिता को रेडी नहीं करवा पाई हैं। इसीलिए हमने कहा था कि हम मेकअप आर्टिस्ट को बुला लेते हैं, लेकिन आपने मना कर दिया। और देखिए, अब कितना लेट हो रहा है।”
सुहासिनी जी अपनी बात बोल ही रही थीं कि तभी इप्शिता अपनी जगह पर से उठकर खड़ी हुई। जैसे ही उसने अपना चेहरा सुहासिनी जी की तरफ़ घुमाया, सुहासिनी जी उसे देखती ही रह गईं। इप्शिता सुहासिनी जी के सामने खड़े होते हुए बोली, “मम्मी, आप इतना परेशान क्यों हो रही हैं? हमने आपसे कहा ना, हम लेट नहीं होंगे। और वैसे भी हमारा पूरा मेकअप हो गया है।”
सुहासिनी जी इप्शिता के चेहरे की तरफ़ देखकर अपने मन में बोलीं, “वैसे नंदिनी, आपने इप्शिता का मेकअप बहुत अच्छा किया है।”
सुहासिनी जी नंदिनी की तरफ़ देखने लगीं। नंदिनी ने अपने मन में कहा, “यह इप्शिता की माँ मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या इन्हें मेरा किया हुआ मेकअप पसंद नहीं आया?”
नंदिनी मन ही मन यह बात सोच रही थी। तभी सुहासिनी जी ने काफी स्ट्रिक्टली कहा, “इप्शिता! नंदिनी! आप दोनों के पास ज़्यादा टाइम नहीं है, इसलिए जल्द से जल्द रेडी हो जाइए।”
नंदिनी ने हाँ में अपना सिर हिलाया। सुहासिनी जी के जाते ही उसने दरवाज़ा अंदर से लॉक करते हुए कहा, “इप्शिता! मैं चेंज करने जा रही हूँ, तुम भी अपना ड्रेस चेंज कर लो। उसके बाद मैं तुम्हें ज्वेलरी पहना दूँगी।”
इतना बोलकर नंदिनी ने अपना बैकलेस गाउन लिया और उसे लेकर चेंज करने के लिए चली गई। इप्शिता भी अपने उस हैवी से लहँगे की तरफ़ देखते हुए बोली, “ओ गॉड! मैं इस लहँगे को कैसे कैरी करूँगी? यह तो काफ़ी ज़्यादा हैवी लग रहा है।”
इतना बोलकर इप्शिता ने उस लहँगे को उठाया; उसका वज़न काफ़ी ज़्यादा था। इप्शिता ने अपना बाथरोब उतारा और उसने लहँगे के नीचे नीले रंग की डेनिम जीन्स पहनी और उसके ऊपर लहँगा पहन लिया। उसने लहँगे का ब्लाउज़ बंद करने की कोशिश की, पर उस ब्लाउज़ का हुक बंद नहीं हो रहा था।
इप्शिता ने बाथरूम की तरफ़ देखकर आवाज़ लगाते हुए कहा, “नंदिनी, प्लीज़ जल्दी बाहर आओ, आई नीड योर हेल्प!”
नंदिनी ने वॉशरूम के अंदर से ही आवाज़ लगाते हुए कहा, “बस दो मिनट रुक जाओ, मैं आ रही हूँ!”
इप्शिता उस हैवी लहँगे और चोली को बंद किए बिना ही वहीं बेड पर बैठ गई। उसने अपने मन में कहा, “पता नहीं मिस्टर अभिमन्यु की माँ को इतना हैवी लहँगा भेजवाने की क्या ज़रूरत थी। इसे तो मैं ठीक से संभाल भी नहीं पा रही, चलूँगी कैसे।”
इप्शिता यह सोच ही रही थी कि नंदिनी अपना रॉयल ब्लू कलर का बैकलेस गाउन पहनकर वॉशरूम से बाहर निकली। उसे देखकर इप्शिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “वाह! नंदिनी, यह गाउन तो तुम पर काफ़ी ज़्यादा सूट कर रहा है।”
नंदिनी ने अपने गाउन की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारी दोस्त है ही इतनी हॉट और सेक्सी कि उसके ऊपर तो सब कुछ अच्छा लगता है। वैसे मुझे यह बता, तूने मुझे आवाज़ लगाकर क्यों बुलाया था? क्या हेल्प चाहिए थी तुझे?”
इप्शिता उठकर खड़ी हुई और उसने कहा, “पता नहीं क्यों, इस ब्लाउज़ का हुक मुझे लग ही नहीं रहा है। प्लीज़ इसे लगाने में मेरी हेल्प कर दे।”
नंदिनी ने इप्शिता के लहँगे के ब्लाउज़ की तरफ़ देखते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मैं आराम से इसे लगा देती हूँ।”
नंदिनी ने इप्शिता के ब्लाउज़ का हुक लगाकर कहा, “हो गया। अब तुम यहीं पर आराम से बैठो, जब तक मैं भी अपना फटाफट से मेकअप कर लेती हूँ, वरना मैं ऐसे ही भूत बनकर अपने जीजू के सामने चली जाऊँगी।”
इप्शिता मुस्कुराते हुए बोली, “इस लहँगे का दुपट्टा कैसे कैरी करना है?”
नंदिनी ने कहा, “मैं कर दूँगी, लेकिन अभी तुम शांत रहो और मुझे डिस्टर्ब मत करना।”
इतना बोलकर नंदिनी अपना मेकअप करने में बिज़ी हो गई। इप्शिता उठकर अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई।
नंदिनी ने इप्शिता को खिड़की से बाहर झाँकते देखकर उसकी टांग खींचते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता तुझे वहाँ से जीजू दिखने वाले हैं। और वैसे भी अभी उन्हें आने में थोड़ा टाइम है, थोड़ा तो वेट कर ले।”
इप्शिता ने उसे घूरते हुए कहा, “जस्ट शट अप! हम किसी का वेट नहीं कर रहे हैं।”
नंदिनी इप्शिता की बात सुनकर हँसने लगी और उसने जल्दी-जल्दी अपना मेकअप करना कंटिन्यू किया।
नंदिनी का मेकअप जैसे ही हुआ, उसने खुद को शीशे में देखते हुए कहा, “वाह! मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मैंने अपना मेकअप तुमसे भी अच्छा कर लिया है। कहीं जीजू को तुम्हारी जगह पर मैं ही न पसंद आ जाऊँ!”
इप्शिता उसकी बात सुनकर ना में अपना सिर हिलाते हुए बोली, “बिल्कुल पागल हो तुम!”
नंदिनी ने अपने बालों को कर्ल करते हुए कहा, “वैसे ईशु, मैं पहली बार जीजू से मिलूँगी, तो क्या मुझे उन्हें कोई गिफ़्ट देना चाहिए? क्योंकि मैं जल्दबाज़ी में तो यहाँ आई थी, इसलिए उनके लिए कोई गिफ़्ट तो ले नहीं पाई।”
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “कोई ज़रूरत नहीं है तुझे किसी को कुछ गिफ़्ट देने की।”
नंदिनी ने इप्शिता को घूरते हुए कहा, “क्यों? क्यों नहीं दे सकती मैं उन्हें गिफ़्ट?”
इप्शिता ने नंदिनी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी इप्शिता ने अपनी पीठ के पीछे हाथ लगाते हुए कहा, “यार नंदिनी! यह ठीक तो लग रहा है ना? और अभी दुपट्टा भी पिन कर दो।”
नंदिनी ने उसके लहँगे का दुपट्टा ठीक से लगाते हुए कहा, “यह हो गया। देख, कितना सुंदर लग रहा है! और अब ठीक है ना?”
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाया और वह थोड़ा कसमसाते हुए बोली, “पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे यह कम्फ़र्टेबल नहीं लग रहा, बहुत ज़्यादा हैवी है।”
नंदिनी ने उसके पूरे लुक को ध्यान से देखते हुए कहा, “रॉयल फैमिली का भेजा हुआ लहँगा इतना हैवी तो होगा ही। सब कुछ ठीक है, बस तू कुछ ज़्यादा ही नर्वस हो रही है।”
नंदिनी की बात सुनकर फिर इप्शिता ने भी कुछ नहीं कहा। अब वह पूरी तरह रेडी होकर अपने फ़ाइनल लुक को शीशे में देख रही थी। वह उस पर्पल कलर के गोल्डन वर्क वाले हैवी लहँगे में बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। नंदिनी ने उसका मेकअप भी एकदम परफ़ेक्ट किया था। नंदिनी अब उसे शीशे के सामने बिठाकर एक-एक करके वह सारी ज्वेलरी पहनाने लगी। वह सारी ज्वेलरी भी इप्शिता के होने वाले ससुराल से ही आई थी, जो कि बहुत ही ज़्यादा महँगी और खानदानी ज्वेलरी थी, जो कि आज तक इप्शिता और नंदिनी दोनों ने ही पहले कभी नहीं देखी थी।
क्रमशः
अपने राजमहल से कुंवर अभिमन्यु, माँ के साथ महल से निकल चुके थे। राजमहल से एक के बाद एक गाड़ियाँ आगे-पीछे निकलीं और लगभग 45 मिनट बाद वे लोग सीधे सूर्यवंशी हवेली पहुँचे। हवेली बाहर फूलों और लाइट्स से बहुत अच्छी तरह सजी हुई थी। देखने में ऐसा लग रहा था मानो किसी की शादी होने वाली है। जैसे ही राजवंशी परिवार की गाड़ियाँ हवेली के बाहर आकर रुकीं, एक नौकर भागता हुआ इप्शिता के पिता के पास आकर बोला,
"मालिक, इप्शिता बिटिया के ससुराल वाले आ गए हैं।"
यह आवाज सुनते ही इप्शिता के पिता ने सुहासिनी जी और उदय को आवाज लगाते हुए कहा,
"उदयवीर! सुहासिनी जी, जल्दी चलिए! रानी साहब और कुंवर साहब के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए! आप दोनों हमारे साथ चलिए।"
जैसे ही इप्शिता के पिता ने बात कही, उदय और सुहासिनी जी तुरंत उनके साथ हवेली से बाहर निकले। जैसे ही वे तीनों बाहर पहुँचे, उन्होंने देखा माँ साहब और कुंवर साहब दोनों एक गाड़ी से बाहर निकले। वहीं दूसरी गाड़ी से अभिमन्यु के चाचा-चाची और तीसरी गाड़ी से अभिमन्यु की बहन और जीजा निकले। चौथी गाड़ी में शगुन का सामान और इंगेजमेंट रिंग थी। वह सारा सामान लेकर राजपरिवार के नौकर बाहर आए और सीधे हवेली की ओर बढ़ने लगे।
इप्शिता के पिता तेज कदमों से अभिमन्यु के सामने गए और उन्होंने अभिमन्यु को अपने गले लगाते हुए कहा,
"वेलकम कुंवर साहब!"
वहीं इप्शिता की माँ ने रानी साहब को गले लगाते हुए कहा,
"आपको अपने सामने देखकर हम बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है हमारा जीवन धन्य हो गया। रानी साहब, आपसे मिलने की मुझे बड़ी ख्वाहिश थी!"
रानी साहब ने इप्शिता की माँ को मुस्कुरा कर जवाब देते हुए कहा,
"कैसी बात कर रही हैं आप सुहासिनी जी? अब तो हम सम्धी हैं और शुक्रगुजार तो हमें आपका होना चाहिए कि आप हमें अपनी इतनी प्यारी बेटी दे रहे हैं।"
उदयवीर वहीं चुपचाप खड़ा था। सुहासिनी जी ने अर्पिता और जयराज की तरफ देखा और माँ साहब ने उन दोनों को परिचय देते हुए कहा,
"यह हमारी बेटी अर्पिता और यह हमारे दामाद हैं!"
सुहासिनी जी ने उन दोनों की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा,
"आइए बेटा और आप सब बाहर क्यों खड़े हैं? चलिए हम अंदर चलते हैं!"
इतना बोलकर सुहासिनी जी और उदयवीर सबको लेकर एक साथ हवेली के अंदर पहुँचे।
हॉल में बने हुए स्टेज पर एक बड़ा सा शाही सोफ़ा रखा था। इप्शिता के पिता ने उस पर अभिमन्यु को बिठाते हुए कहा,
"कुंवर साहब! आप यहाँ बैठिए।"
अभिमन्यु बिना कुछ बोले चुपचाप उस सोफ़े पर बैठ गया। लेकिन उसे बहुत ही अजीब लग रहा था इस तरह से बीच में बैठते हुए। वहाँ पर ज्यादा लोग तो नहीं थे, लेकिन जितने भी थे, उन सबकी निगाहें उसे खुद पर ही जमी हुई लग रही थीं।
अभिमन्यु को स्टेज पर बिठाकर इप्शिता के माता-पिता अभिमन्यु के बाकी पूरे परिवार की आवभगत में लग गए। वहीं इप्शिता पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी। वह अपने कमरे में बैठी थी कि तभी नंदिनी को यह बात पता चली और उसने जल्दी-जल्दी अपने बालों को ठीक किया। अपना मेकअप पूरा करते ही वह आईने में खुद को देखते हुए बोली,
"वाह! मैं तो तुमसे भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हूँ! कहीं जीजू तेरी जगह पर मुझे ही ना पसंद कर लें?"
इप्शिता नंदिनी की बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराई, लेकिन उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उसे पता था नंदिनी ऐसी ही है; वह हमेशा खुद की बहुत तारीफ करती है।
नंदिनी कमरे से बाहर निकलकर नीचे हॉल में झाँकने लगी। उसने देखा वहाँ हॉल में सब लोग बैठे हुए थे और अभिमन्यु बैंगनी रंग की शेरवानी और ऑफ व्हाइट रंग का चूड़ीदार पहनकर स्टेज पर बैठा था।
नंदिनी ने जैसे ही अभिमन्यु को देखा, वह उसे देखते ही रह गई क्योंकि अभिमन्यु पर वह बैंगनी रंग की शेरवानी बहुत जँच रही थी। वह उसे देखकर काफी ज्यादा उत्साहित हो गई और भागते हुए कमरे के अंदर आई। उसने इप्शिता के दोनों हाथ पकड़ते हुए कहा,
"यार, सच में जीजू तो बहुत ही ज्यादा हैंडसम हैं! अभी मैंने देखा, उन्होंने तेरे लहंगे से मैचिंग शेरवानी पहन रखी है। तू जितनी प्यारी लग रही है, वह भी उतने ही ज्यादा हैंडसम लग रहे हैं। और उनकी आँखें यार, कमाल की हैं! उनके चेहरे पर तो पूरा राजसी लुक नज़र आ रहा है। उनके चेहरे पर जरा सी भी मुस्कान नहीं है, बिल्कुल राजा सा वाली वाइब दे रहे हैं।"
नंदिनी को इतना ज्यादा उत्साहित होते देखकर इप्शिता ने उसे चुप करते हुए कहा,
"बस कर! तू जरा-जरा सी बातों पर इतनी ज्यादा ओवर एक्साइटेड क्यों हो जाती है?"
नंदिनी ने कहा,
"ओवर एक्साइटेड नहीं हो रही, मैं एक्साइटेड होने वाली तो बात है! तुझे नहीं पता, राजवंशी परिवार को तो मैं अब तक बस नाम का ही राजघराना समझती थी, लेकिन आज अपनी आँखों से देख भी लिया यार! और तेरे सास-ससुर, वह भी कितने ज्यादा खूबसूरत हैं! तू उनसे मिली है?"
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा,
"नहीं, हम उनसे नहीं मिले।"
नंदिनी ने इप्शिता का अधूरा मेकअप जल्दी-जल्दी ठीक किया और उसे आखिरी स्पर्श देते हुए कहा,
"तू बिल्कुल तैयार हो गई है। अब मैं भी नीचे जाकर देखती हूँ, वरना आंटी को लगेगा मैं काम चोरी कर रही हूँ और तेरे साथ यहाँ टाइम पास…!"
इतना बोलकर नंदिनी जाने लगी तो इप्शिता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
"रहने दे, मत जाओ। तुम वैसे भी मम्मी और पापा हैं ना, उन्होंने सब देख लिया होगा। तुम यहीं हमारे साथ रहो।"
नंदिनी इप्शिता के मुँह से बात सुनकर उसके बगल में बैठी और उसे छेड़ते हुए बोली,
"क्या बात है? इतना ज्यादा क्यों डर रही हो तुम? वैसे भी सिर्फ़ सगाई ही तो है। और वैसे भी मैं अभी आ जाऊँगी। एक बार मुझे भी तो नीचे जाने दे, मैं भी देखना चाहती हूँ, शायद कोई मुझे पसंद आ जाए तो मैं भी किसी अच्छे से राजघराने के ही किसी लड़के को पटा लूँगी यार! मेरी भी लाइफ़ सेट हो जाएगी।"
इप्शिता ने नंदिनी के कंधे पर मारते हुए कहा,
"जस्ट शट अप नंदिनी! कैसी बातें करती हो तुम? अच्छा लगता है क्या?"
नंदिनी ने अपने दोनों कंधे उचकाते हुए कहा,
"हाँ, मुझे तो अच्छा लगता है।"
इप्शिता ने अपना सिर पीट लिया और तभी नंदिनी ने हँसते हुए कहा,
"अच्छा बाबा, ठीक है! कुछ उल्टा-सीधा नहीं करूँगी मैं। तुम आराम से यहीं पर बैठो, मैं बस थोड़ी देर में आती हूँ।"
इतना बोलकर नंदिनी कमरे से बाहर चली गई और इप्शिता वहीं कमरे में अकेली बैठी थी। उसने अपने बालों को ठीक किया और इप्शिता अपने आप से बात करते हुए बोली,
"अभी नंदिनी ने कहा कि अभिमन्यु अभी भी काफी उदास है। इसका मतलब वह अभी भी अपनी किसी गर्लफ्रेंड के बारे में सोच रहे हैं। भला कोई लड़की अभिमन्यु जैसे इतने बड़े राजघराने के लड़के को कैसे धोखा दे सकती है? हमें तो अभी तक यह बात समझ में नहीं आ रही। शायद इसी वजह से उस दिन अभिमन्यु ने हमें भी वैसे ही समझ लिया होगा और हमने बेकार में ही उन्हें गलत समझ लिया और उन पर चिल्ला भी दिया। हमें इतनी जल्दी उन्हें जज नहीं करना चाहिए था।"
इप्शिता यह बात सोच रही थी और उसके दिल में कहीं न कहीं अभिमन्यु के लिए सहानुभूति आ रही थी। वहीं दूसरी तरफ अभिमन्यु के दिमाग में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था। वह बड़ी ही शांति से बैठा था। अभिमन्यु ने अपने मन में कहा,
"उस दिन शायद राजकुमारी इप्शिता को हम लेकर कोई गलतफ़हमी हो गई थी और शायद उन्होंने हमें गलत समझ लिया था। अगर आज हमें उनसे बात करने का मौका मिला तो हम उनसे यह बात क्लियर कर लेंगे कि हम उन्हें दुःख नहीं पहुँचाना चाहते थे।"
वहाँ मौजूद बाकी सभी लोग अभिमन्यु को ही देख रहे थे और तभी इप्शिता के पिता ने उदयवीर को अभिमन्यु के साथ जाकर बैठने और बात करने के लिए कहा।
उदयवीर अभिमन्यु के बगल में जाकर बैठते हुए बोले,
"कुंवर साहब, आप कुछ लेंगे?"
अभिमन्यु ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा,
"नो थैंक्स।"
अभिमन्यु को इतना शांत बैठे देखकर उदय के दिमाग में काफी सारे सवाल आ रहे थे और उसने बिना किसी झिझक के अभिमन्यु से पूछ भी लिया,
"क्या बात है कुंवर साहब? आप किसी बात को लेकर परेशान हैं क्या?"
अभिमन्यु ने अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा,
"नहीं, हम बिल्कुल ठीक हैं।"
उदय अभिमन्यु से कुछ बोलने जा ही रहा था कि सुहासिनी जी ने उदय को इशारे से अपने पास बुलाया।
उदयवीर ने अभिमन्यु की तरफ देखते हुए कहा,
"हमें माँ बुला रही हैं, हम अभी थोड़ी देर में आते हैं।"
अभिमन्यु ने हाँ में अपना सिर हिलाया और उदय वहाँ से उठकर चला गया।
वहाँ नंदिनी कमरे से बाहर निकलकर आई और वह चारों तरफ अपनी निगाहें घुमाकर वहाँ मौजूद सभी लोगों को देख रही थी।
नंदिनी सीधे सीढ़ियों से उतरकर नीचे हॉल में आई और इप्शिता की माँ के पास जाकर नंदिनी ने कहा,
"आंटी, मैंने इशू को तैयार कर दिया है। वह बिल्कुल तैयार है। क्या मैं उसे लेकर आऊँ?"
सुहासिनी जी ने नंदिनी को मना करते हुए कहा,
"नहीं, अभी नहीं। जब सगाई के लिए उसे बुलाया जाएगा तब हम उसे नीचे लेकर आएंगे।"
नंदिनी ने "ओके" बोला और उसने कहा,
"आंटी, और कोई काम है? या आपको मेरी कोई मदद चाहिए तो बताइए, मैं थोड़ी आपकी मदद कर दूँ।"
सुहासिनी जी ने बिना किसी झिझक के कहा,
"हाँ, अभी जब तक इप्शिता को नीचे नहीं लाना है, तब तक तुम यह कुछ गिफ्ट हैं, इन्हें उधर सीढ़ियों के नीचे वाले कमरे में जाकर रख दो।"
क्रमशः
इतना बोलकर सुहासिनी जी ने अपने हाथ में पकड़े तीन-चार गिफ्ट के बॉक्स नंदिनी के हाथ में थमा दिए। नंदिनी हैरानी से उनकी तरफ देखती रह गई।
उसने मन ही मन कहा, "शिट! मुझे तो लग रहा था आंटी मना कर देंगी, पर इन्होंने तो मुझे सच में काम पकड़ा दिया! वह भी इतने सारे बॉक्सेस! और मैं तो जानती भी नहीं इन्हें किस कमरे में रखना है। ऊपर से मेरा यह इतना भारी गाउन और हील्स के साथ में इतने सारे बॉक्सेस को लेकर कैसे जाऊँगी?"
इतना बोलकर नंदिनी खुद ही अपने कहे पर पछताने लगी। उसने किसी तरह अपने गाउन को एक हाथ से संभाला और बड़बड़ाते हुए सीढ़ियों की ओर जाने लगी। जैसे ही वह सीढ़ियों के नीचे पहुँची, वहाँ पर उसकी मदद के लिए कोई नज़र नहीं आ रहा था।
नंदिनी का गाउन बार-बार उसके पैरों में आ रहा था। जैसे ही वह उस कमरे के बाहर पहुँची, उसने कमरे का गेट खोलने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन गिफ्ट बॉक्सेस उसके चेहरे के सामने होने की वजह से वह दरवाज़ा नहीं खोल पा रही थी।
उसी समय नंदिनी ने गेट खोलने के लिए ज़ोर लगाया। उसके हाथ में जितने भी गिफ्ट बॉक्सेस थे, वे सब जमीन पर गिरने ही वाले थे कि नंदिनी ने उन्हें संभालने की कोशिश की। तभी उसका गाउन उसकी हील्स में फँस गया और बॉक्सेस को बचाने के चक्कर में वह खुद ही जमीन पर गिरने वाली थी कि तभी दो मज़बूत हाथों ने पीछे से आकर उसकी बाज़ुओं को पकड़ लिया और उसकी कमर पर हाथ रखते हुए उसे गिरने से बचा लिया। नंदिनी के हाथ में जितने भी गिफ्ट बॉक्स थे, वे सब जमीन पर गिर गए। नंदिनी ने उन गिरे हुए बॉक्स की तरफ देखते हुए खुद से कहा, "क्या यार नंदिनी! तुझसे एक काम भी ठीक से नहीं होता क्या? और कितनी लापरवाह है तू? आंटी ने एक काम बोला था, वह भी मैंने ठीक से नहीं किया।"
नंदिनी यह बात बड़बड़ा रही थी, तभी उसके कान में एक गहरी आवाज़ गूँजी।
"सामान गिर गया तो कोई बात नहीं, वह तो उठ जाएगा। लेकिन अभी अगर आप गिर जातीं तो आपको चोट लग जाती। यह तो कहिए, हम इधर से गुज़र रहे थे, इसलिए हमने आपको संभाल लिया, वरना…!"
नंदिनी ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाया। वह उदय की बाहों में थी। उसने उदय की तरफ देखते हुए कहा,
"आप?"
उदय ने हाँ में अपना सिर हिलाया और वह नंदिनी की आँखों में आँखें डालकर देख रहा था। इस समय नंदिनी ने नीले रंग के लेंस लगा रखे थे, जो उस पर काफी जँच रहे थे। साथ ही उसने अपनी ड्रेस से मेल खाता अच्छा मेकअप भी किया था। उदय उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराया। तभी नंदिनी ठीक से खड़े होते हुए बोली,
"आपने फिर से मुझे गिरने से बचा लिया। थैंक यू सो मच, उदय भाई।"
उदय ने जैसे ही नंदिनी के मुँह से यह बात सुनी, उसने जल्दी से नंदिनी की कमर और हाथ पर से अपना हाथ हटा लिया और दो कदम पीछे हटकर खड़ा हो गया।
नंदिनी जल्दी-जल्दी उन बॉक्सेस को उठाने लगी। उदय ने दरवाज़ा खोलकर उसकी मदद की और बिना कुछ बोले चुपचाप वहाँ से चला गया।
नंदिनी वापस हाल में आई। उसने देखा इप्शिता की माँ-बाप अभिमन्यु की माँ से बात कर रहे थे। तभी माँ सा ने कहा,
"सुहासिनी जी, हमें आए हुए काफी समय हो गया है। मुझे लगता है कि अब हमें सगाई शुरू करनी चाहिए। आप हमारी होने वाली बहू को लेकर आइए। कहाँ है वह? तैयार हुई या नहीं? क्या हम चले उन्हें बुलाने?"
सुहासिनी जी ने मना करते हुए कहा,
"अरे नहीं, रानी सा! कैसी बात कर रही हैं आप? इप्शिता बिलकुल तैयार है। बस हम अभी उसे लेकर आते हैं।"
इतना बोलकर सुहासिनी जी नंदिनी की तरफ़ देखने लगीं। नंदिनी जल्दी से आगे आई। सुहासिनी जी ने कहा,
"आप हमारे साथ चलिए, बेटा।"
नंदिनी ने हाँ में अपना सिर हिलाया और वह सीधे बिना कुछ बोले सुहासिनी जी के साथ इप्शिता के कमरे में गई। जैसे ही इप्शिता ने अपनी माँ और नंदिनी को आते देखा, वह आगे बढ़कर नंदिनी का हाथ पकड़ते हुए बोली,
"तुम्हारा फ़ोन कहाँ है? मैं तुम्हें कॉल कर रही थी। तुम्हें मेरा कॉल पिकअप क्यों नहीं किया?"
नंदिनी ने धीमी आवाज़ में कहा,
"मैंने तुझे कहा था ना, मैं नीचे जा रही हूँ। और वहीं काम में थोड़ी बिजी हो गई थी। क्या हुआ?"
इप्शिता और नंदिनी आपस में धीमे-धीमे आवाज़ में बातें कर रही थीं। तभी सुहासिनी जी ने धीमी आवाज़ में कहा,
"अब आप लोगों को जो भी बात करनी है, फंक्शन के बाद करिएगा। अभी हमें नीचे चलना है।"
इप्शिता ने कहा,
"एक मिनट, मम्मी।"
इतना बोलकर वह नंदिनी के पास जाकर बोली,
"तुम मेरे साथ चलो। मैं थोड़ी सी असहज हो रही हूँ।"
इतना बोलकर इप्शिता नंदिनी को लेकर चेंजिंग रूम की तरफ़ जा ही रही थी कि सुहासिनी जी ने इप्शिता का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"नहीं, बेटा! आप बहुत प्यारी लग रही हो। कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। चलिए हमारे साथ चलिए। आप रानी सा और कुंवर सा, बाकी सब आपसे मिलने के लिए बहुत देर से इंतज़ार कर रहे हैं। और रिंग सेरेमनी में भी तो समय लगेगा ना! बाकी सारी बातें बाद में।"
इप्शिता ने अपनी माँ की तरफ़ देखते हुए कहा,
"लेकिन मम्मी, एक मिनट! हमारी बात तो सुनिए! वह यह..."
सुहासिनी जी ने इप्शिता का माँग टीका ठीक करते हुए कहा,
"ये वो कुछ नहीं। अब बात करने का समय नहीं है, बेटा। आप हमारी बात समझ रही हैं ना? सब बहुत देर से आपका इंतज़ार कर रहे हैं। चलिए हमारे साथ।"
नंदिनी इप्शिता की तरफ़ हैरानी से देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इप्शिता क्यों इतनी असहज हो रही है और वह उससे क्या कहना चाह रही है। लेकिन उसकी माँ के सामने नंदिनी भी कुछ नहीं बोल पाई और उन दोनों को सुहासिनी जी के साथ कमरे से बाहर आना पड़ा।
सुहासिनी जी ने इप्शिता का हाथ कसकर पकड़ा। नंदिनी इप्शिता के लहंगे को संभालते हुए बोली,
"तुम अपने भारी लहंगे की वजह से असहज हो रही हो क्या?"
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाया और वह कुछ बोलने जा ही रही थी कि तभी सुहासिनी जी ने कहा,
"बेटा इप्शिता, हमारी बात ध्यान से सुनिए। जितनी बात आपसे पूछी जाए, सिर्फ़ आप उतनी ही बात का जवाब दीजिएगा। आपको कुछ भी अपनी तरफ़ से बोलने की ज़रूरत नहीं है। हम नहीं चाहते कि रानी सा किसी भी बात को लेकर आपसे नाराज़ हों। आप समझ रही हैं ना? आप राजवंशी राजपरिवार की बहू बनने वाली हैं और सूर्यवंशी राजपरिवार की पूरी इज़्ज़त आपके हाथ में है!"
इप्शिता अपनी माँ की बात सुनकर कुछ नहीं बोली। बस उसने हाँ में अपना सिर हिलाया। नंदिनी सुहासिनी जी की बात सुनकर थोड़ी सी असहज हो गई। उसने इप्शिता का लहंगा ठीक किया और उसका हाथ पकड़कर उसे सीढ़ियों से नीचे लाने में मदद करने लगी।
इप्शिता जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी, तभी अचानक से पूरे हाल में अंधेरा हो गया और इप्शिता अपनी माँ और नंदिनी के साथ वहीं सीढ़ियों पर ही रुक गई।
क्रमशः
इप्शिता सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तभी अचानक पूरे हॉल में अंधेरा छा गया। इप्शिता अपनी मम्मी और नंदिनी के साथ सीढ़ियों पर ही रुक गई।
पूरे हॉल में अंधेरा था; केवल एक फोकस लाइट इप्शिता पर पड़ रही थी। हॉल में मौजूद सभी की निगाहें इप्शिता पर टिक गईं। फोकस लाइट पड़ते ही इप्शिता ने अपना हाथ चेहरे के सामने कर लिया। उसे इस फोकस लाइटिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यह सबकी निगाहें सिर्फ़ खुद पर महसूस करके उसे थोड़ा अजीब लगा।
वहाँ की डेकोरेशन और लाइटिंग बहुत अच्छे से सजाई गई थी। सारी लाइट इप्शिता पर केंद्रित थी, और उसके खूबसूरत चेहरे पर पड़ते ही सभी उसकी खूबसूरती की चर्चा करने लगे।
रानी सा मुस्कुराते हुए इप्शिता की तरफ देख रही थीं। अर्पिता अपनी माँ के बगल में आकर खड़ी हुई और बोली,
"वैसे मां, आपने तो बहुत अच्छी भाभी चुनी है अभिमन्यु भाई के लिए। बिल्कुल परफेक्ट लगेंगी ये हमारे भाई के साथ। इनकी जोड़ी खूब जंचेगी।"
माँ सा मुस्कुराकर सिर हिलाईं। अभिमन्यु की नज़र इप्शिता पर पड़ते ही वह अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और उसने इप्शिता को पैरों से लेकर सिर तक देखा।
वह उन्हीं कपड़ों में थी जो अभिमन्यु की माँ ने भेजे थे। उस पोशाक में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। एक पल के लिए अभिमन्यु इप्शिता की खूबसूरती में खो गया। सुहासिनी और नंदिनी इप्शिता को नीचे ले आईं।
दोबारा से पूरे हॉल में लाइटें जल उठीं। माँ सा आगे बढ़ीं और उन्होंने इप्शिता के चेहरे को छुआ। उन्होंने पाँच सौ रुपये की एक गड्डी निकालकर, उसे इप्शिता के सिर के ऊपर से घुमाते हुए, पीछे खड़े मैनेजर के हाथ में दे दी। फिर उन्होंने इप्शिता की ठोड़ी पर हाथ रखकर, उसका चेहरा थोड़ा ऊपर उठाते हुए कहा,
"बहुत खूबसूरत हैं आप, इप्शिता। हमें अपनी पसंद पर गर्व है। हमने आपको राजवंशी राजपरिवार की बहू चुनकर कोई गलती नहीं की है।"
नंदिनी इप्शिता के बगल में खड़ी थी। माँ सा ने नंदिनी और सुहासिनी की ओर देखते हुए कहा,
"सुहासिनी जी, आज से आपकी बेटी हमारी अमानत हुई। अभिमन्यु, इधर आइए।"
माँ सा के मुँह से अपना नाम सुनते ही अभिमन्यु तुरंत स्टेज से नीचे उतरा और माँ सा के बगल में आकर खड़ा हो गया।
इप्शिता अभी भी नज़रें झुकाए खड़ी थी। उसने अभी तक अभिमन्यु को नहीं देखा था।
माँ सा ने अभिमन्यु को आदेश दिया,
"इप्शिता का हाथ पकड़िए और उन्हें स्टेज पर ले जाइए।"
अभिमन्यु ने सिर हिलाकर इप्शिता के सामने अपना हाथ बढ़ाया। इप्शिता अभी भी नंदिनी का हाथ पकड़े हुए थी। नंदिनी ने धीरे से उसका हाथ छोड़ते हुए कहा,
"छोड़ो मेरा हाथ और आगे बढ़ो।"
इप्शिता के दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं। सुहासिनी जी नंदिनी के साथ पीछे हट गईं। इप्शिता ने धीरे से अपना हाथ उठाकर अभिमन्यु के हाथ पर रखा। अभिमन्यु ने उसका हाथ पकड़ा और उसे स्टेज पर ले जाने लगा। लेकिन इप्शिता का लहँगा बहुत भारी था। तभी अर्पिता इप्शिता के बगल में आई और उसके लहँगे को संभालते हुए बोली,
"बहुत प्यारी लग रही हैं भाभी। आइए, हम आपकी थोड़ी मदद कर देते हैं।"
इतना कहकर अर्पिता ने इप्शिता के लहँगे को पकड़ा और इप्शिता अभिमन्यु का हाथ पकड़कर स्टेज पर चढ़ गई। जैसे ही इप्शिता स्टेज पर चढ़ी, उसकी नज़र अभिमन्यु के चेहरे पर गई। अभिमन्यु भी आज बहुत हैंडसम लग रहा था। जैसे ही उनकी नज़रें मिलीं, वे दोनों एक-दूसरे में खो गए। अर्पिता ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा,
"हाँ हाँ, हम जानते हैं आप दोनों आज बहुत प्यारे लग रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहाँ सबके सामने ही आप दोनों एक-दूसरे की आँखों में खो जाएँगे। थोड़े दिन की ही तो बात है, कुछ दिनों बाद एक-दूसरे के साथ ही रहना है, इसलिए अभी थोड़ा सब्र रखिए।"
इतना कहकर अर्पिता मुस्कुराई। इप्शिता ने तुरंत अपनी नज़रें झुका लीं और अभिमन्यु का हाथ छोड़ दिया।
इप्शिता का हाथ छोड़ते देख अभिमन्यु को अच्छा नहीं लगा। उसने मन ही मन कहा,
"शायद इप्शिता अभी भी मुझसे नाराज़ हैं, इसीलिए वह मुझसे नज़रें नहीं मिला रही हैं। क्या मैंने सच में उस दिन उन्हें ज़्यादा परेशान कर दिया था?"
अभिमन्यु ये बातें सोच ही रहा था कि उसकी नज़र इप्शिता के कंधे पर गई। वह थोड़ी असहज लग रही थी, लेकिन अभिमन्यु ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
वे दोनों स्टेज पर ही खड़े थे कि माँ सा ने तेज आवाज़ में कहा,
"सुहासिनी जी, रिंग सेरेमनी शुरू करें?"
इप्शिता के माता-पिता और उदयवीर इप्शिता के पीछे आकर खड़े हो गए। माँ सा और अर्पिता अभिमन्यु के बगल में खड़े थे। अभिमन्यु के चाचा इस सगाई से बिलकुल खुश नहीं थे, और यह बात उनके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी।
माँ सा ने अभिमन्यु के हाथ में इप्शिता की अंगूठी पकड़ाई। अंगूठी बहुत खूबसूरत थी; बीच में लाल रंग का रूबी लगा था और उसके चारों तरफ़ हीरे इस तरह जड़े थे कि वह एक बहुत ही सुन्दर लाल और सफ़ेद फूल लग रही थी।
इप्शिता के लिए अभिमन्यु की अंगूठी थोड़ी साधारण थी, लेकिन उसका लुक बहुत ही संयमी था। रानी सा ने इप्शिता की ओर देखते हुए कहा,
"बेटा, अपना हाथ आगे बढ़ाइए और अभिमन्यु को अंगूठी पहनाइए।"
इप्शिता ने नंदिनी की ओर देखा। नंदिनी ने उसे अभिमन्यु को अंगूठी पहनाने का इशारा किया। तभी सुहासिनी जी इप्शिता के कान में आकर बोलीं,
"इप्शिता बेटा, आप उधर क्यों देख रही हैं? आगे बढ़िए, कुँवर सा को अंगूठी पहनाइए।"
इप्शिता ने अपनी माँ की बात सुनते ही आगे बढ़ी और अभिमन्यु ने अपना हाथ आगे कर दिया।
इप्शिता ने अभिमन्यु की तीसरी उंगली में अंगूठी पहना दी। सब लोग जोर से तालियाँ बजाने लगे। अभिमन्यु और इप्शिता पर गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरने लगीं। तभी इप्शिता को ऐसा लगा जैसे उसके ब्लाउज़ का हुक उसे चुभ रहा है। वह इससे बहुत असहज हो रही थी। उसने मन ही मन कहा,
"यह क्या हो रहा है? यह हुक मुझे क्यों चुभ रहा है? मैंने नंदिनी से कहा था इसे ठीक से लगाओ, लेकिन इस लड़की ने मेरी बात ही नहीं सुनी।"
माँ सा ने अभिमन्यु को इप्शिता के हाथ में अंगूठी पहनाने का इशारा किया। अभिमन्यु ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। इप्शिता अपने ही ख्यालों में डूबी हुई थी; उसे अपने ब्लाउज़ की बहुत चिंता हो रही थी। तभी सुहासिनी जी ने इप्शिता का हाथ धीरे से आगे बढ़ाया। इप्शिता ने अपना हाथ अभिमन्यु के हाथ पर रखा। जैसे ही अभिमन्यु ने इप्शिता को अंगूठी पहनाई, इप्शिता ने कसकर अभिमन्यु का हाथ पकड़ लिया। सब लोग जोर से तालियाँ बजा रहे थे। अभिमन्यु हैरानी से इप्शिता की ओर देखने लगा और उसने मन ही मन कहा,
"राजकुमारी इप्शिता को क्या हुआ? उन्होंने मेरा हाथ इतनी कसकर क्यों पकड़ रखा है?"
इप्शिता के चेहरे पर एक अलग ही डर साफ़ दिख रहा था। इप्शिता ने मन ही मन कहा,
"ओह गॉड! मेरे ब्लाउज़ का हुक खुल गया है। अगर किसी ने देख लिया तो बहुत बेइज़्ज़ती होगी, और मम्मी तो मुझे पता नहीं क्या-क्या बोलेंगी।"
इप्शिता के चेहरे पर घबराहट साफ़ थी। उसने अभिमन्यु के हाथ को कसकर दबा दिया। अभिमन्यु के हाथ में इप्शिता का नाखून गड़ गया, लेकिन अभिमन्यु ने ज़रा भी शिकन नहीं दिखाई। उसने उस दर्द को सह लिया। इप्शिता खड़े होने से डर रही थी। तभी अभिमन्यु ने उसका हाथ पकड़कर उसे वहीं बैठाते हुए कहा,
"Are you all right?"
इप्शिता ने अभिमन्यु की बात सुनते ही कुछ नहीं कहा। वह बस अभिमन्यु की आँखों में देख रही थी। अभिमन्यु की नज़रें इप्शिता की नज़रों से टकराईं, और वह इप्शिता के चेहरे पर आए डर को समझ पा रहा था। वह चुपचाप इप्शिता के बगल में बैठकर धीमी आवाज़ में बोला,
"क्या बात है राजकुमारी? आप ठीक हैं ना?"
अभिमन्यु ने दोबारा पूछा, लेकिन इप्शिता कुछ नहीं बोली।
क्रमशः
वह चुपचाप इप्शिता के बगल में बैठकर धीमी आवाज में बोला, “क्या बात है? आप ठीक हैं ना?”
इप्शिता अभी भी कुछ नहीं बोली। उसने अपनी पीठ के पीछे हाथ लगाया। उसे समझ आ गया कि उसके ब्लाउज का हुक खुल गया था। इप्शिता ने अपने मन में कहा, “ओह गॉड! यह हुक तो खुल गया। अगर इस पर किसी की नजर पड़ गई तो मम्मी हमें पता नहीं क्या-क्या सुनाएंगी! अब क्या करें हम?”
इप्शिता यह सोचते हुए अपनी पीठ के पीछे हाथ लगाया। वह एक हाथ से सबसे नज़रें बचाते हुए उस हुक को बंद करने की कोशिश कर रही थी।
अभिमन्यु ने उसे ऐसा करते हुए देखा। तभी सुहासिनी जी, जो इप्शिता को इस तरह अभिमन्यु के बगल में बैठकर हिलता-डुलता देख रही थीं, ने इप्शिता को आँखें दिखाकर शांति से बैठे रहने का इशारा किया।
इप्शिता ने अपनी माँ की बात मान ली और चुपचाप अपना हाथ आगे करके बैठ गई। उसने इधर-उधर नज़र डाली। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को ढूँढ रही है।
इप्शिता ने अपने मन में कहा, “यह नंदिनी कहाँ चली गई?”
अभिमन्यु की नज़र इप्शिता की पीठ पर गई। उसने देखा कि इप्शिता के ब्लाउज का हुक खुल गया था। अभिमन्यु ने अपने मन में कहा, “अच्छा, तो इस वजह से इप्शिता अनकंफरटेबल हो रही हैं।”
अभिमन्यु ने इप्शिता की तरफ़ देखते हुए कहा, “इप्शिता!”
अभिमन्यु ने धीरे से इप्शिता को बुलाया। लेकिन इप्शिता ने उसकी बात सुनी ही नहीं क्योंकि उसका पूरा ध्यान नंदिनी को ढूँढने में लगा हुआ था। लेकिन उसे नंदिनी कहीं पर भी नज़र नहीं आ रही थी।
अभिमन्यु ने फिर से उसका नाम लेते हुए कहा, “इप्शिता!”
अभिमन्यु की आवाज सुनकर इप्शिता ने उसकी तरफ़ देखा। अभिमन्यु कुछ बोलने जा ही रहा था कि अर्पिता इप्शिता के बगल में आकर खड़े होते हुए बोली, “भाभी सा, हम आपके लिए एक छोटा सा गिफ्ट लेकर आए हैं।”
अभिमन्यु ने इप्शिता की तरफ़ देखा। वह अर्पिता से भी कंफरटेबल बात नहीं कर पा रही थी।
तभी अभिमन्यु ने उसे इंट्रोड्यूस करते हुए कहा, “इप्शिता! यह हमारी बहन अर्पिता है।”
इप्शिता ने हाँ में अपना सिर हिलाकर अर्पिता की तरफ़ देखा। अर्पिता के बगल में जयराज खड़ा था। उसने इप्शिता की तरफ़ देखकर धीमी आवाज में कहा, “वैसे मानना पड़ेगा, साले साहब की किस्मत तो बड़ी ही अच्छी है! इतनी खूबसूरत बीवी जो मिल रही है उन्हें, काश! हमारी किस्मत भी इतनी अच्छी होती।”
जयराज इप्शिता को घूरते हुए देख रहा था। तभी अर्पिता ने जयराज के हाथ में पकड़े हुए एक बॉक्स को लेते हुए कहा, “भाभी! हमारे और जयराज जी की तरफ़ से आपके लिए ये छोटा सा गिफ्ट!”
इप्शिता ने बॉक्स की तरफ़ देखकर जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, “इसकी क्या ज़रूरत थी?”
अर्पिता ने मना करते हुए कहा, “ज़रूरत थी, भाभी सा! आप हमारी भाई सा की धर्मपत्नी बनने वाली हैं तो आपके लिए एक गिफ्ट तो बनता ही है।”
इप्शिता, अर्पिता की बात सुनकर कुछ नहीं बोली और वह इस तरह चुपचाप वहीं बैठ गई।
अभिमन्यु ने इप्शिता की तरफ़ देखकर अपने मन में कहा, “अर्पिता से हम बात करें क्या? शायद अर्पिता इप्शिता की कोई हेल्प कर दे।”
अभिमन्यु यह सोच ही रहा था कि तभी नंदिनी वहीं स्टेज के पास आई। इप्शिता और अभिमन्यु की फ़ोटो क्लिक करते हुए बोली, “जीजू, मुझे आप दोनों की एक फ़ोटो क्लिक करनी है, क्या मैं फ़ोटो क्लिक कर सकती हूँ?”
अभिमन्यु ने हाँ में अपना सिर हिलाया। अर्पिता और जयराज स्टेज से नीचे उतर आए।
वहीं माँ सुहासिनी जी से बात करते हुए बोलीं, “सुहासिनी जी, यह लड़की कौन है? यह अभिमन्यु के जीजू क्यों बोल रही है?”
सुहासिनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वह इप्शिता की बेस्ट फ़्रेंड है।”
माँ नंदिनी की तरफ़ देखने लगीं। वहीं जयराज की नज़र नंदिनी पर गई। जैसे ही उसने सुहासिनी जी के मुँह से यह बात सुनी कि नंदिनी इप्शिता की फ़्रेंड है, वह उसे देखकर अजीब तरह से मुस्कुराने लगा।
अर्पिता की नज़र जैसे ही अपने पति पर गई, उसने जयराज की तरफ़ घूमते हुए कहा, “क्या देख रहे हैं आप जयराज जी?”
जयराज ने अर्पिता की यह बात सुनकर नंदिनी की तरफ़ से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा, “नहीं, कहीं नहीं!”
अर्पिता ने उसकी इस बात पर ज़रा भी भरोसा नहीं किया और वह उसे घूरते हुए ही देख रही थी कि तभी जयराज ने अर्पिता का हाथ पकड़ते हुए कहा, “आप हमें घूर कर क्यों देख रही हैं?”
अर्पिता ने धीमी आवाज में कहा, “आपके झूठ बोलने के अंदाज़ को देख रही हूँ मैं। किस तरह से आप हमसे सफ़ेद झूठ बोल देते हैं! आपको एक बार भी हमसे झूठ बोलने में झिझक नहीं होती, है ना!”
अर्पिता की यह बात सुनकर जयराज ने गुस्से से उसका हाथ कसकर दबा दिया। जिससे अर्पिता की चूड़ी टूट कर उसके हाथ में लग गई। जयराज ने उसके कान के पास जाकर धीमी आवाज में कहा, “कोई झूठ नहीं बोला है हमने आपसे। और झूठ उनसे बोला जाता है जिनसे किसी चीज का डर हो, और हम आपसे नहीं डरते हैं। यह बात अपने दिमाग में रखिएगा आप। और हमसे किसी भी तरह की चालाकी करने की ज़रूरत नहीं है, वरना आप जानती हैं हम आपके साथ क्या कर सकते हैं?”
इतना बोलकर जयराज ने गुस्से से अर्पिता का हाथ झटक दिया और वहाँ से साइड में चला गया। वहाँ इतने सारे लोग थे, लेकिन सब अपनी-अपनी बातों में बिज़ी थे। किसी ने भी जयराज को अर्पिता के साथ इतना बुरा बर्ताव करते हुए नोटिस नहीं किया।
वहीं नंदिनी एक साथ अभिमन्यु और इप्शिता की फ़ोटो क्लिक कर रही थी। तभी नंदिनी अभिमन्यु की तरफ़ देखते हुए बोली, “जीजू, आप इतना क्यों शर्मा रहे हैं? वैसे भी अब तो इप्शिता आपकी होने वाली वाइफ़ है।”
नंदिनी के इतना बोलते ही अभिमन्यु इप्शिता की तरफ़ देखने लगा। इप्शिता ने नंदिनी को आँख दिखाई। तभी नंदिनी स्टेज पर चढ़ी और उसने अभिमन्यु का हाथ पकड़कर इप्शिता के कंधे पर रख दिया और उन दोनों के साथ सेल्फ़ी लेने लगी। तभी इप्शिता ने नंदिनी का हाथ पकड़ते हुए कहा, “नंदिनी! हमारी बात सुनो।”
नंदिनी ने इप्शिता की तरफ़ देखते हुए कहा, “हाँ, बोलो क्या हुआ?”
इप्शिता नंदिनी का हाथ पकड़कर उसे अपने करीब लाई और नंदिनी के कान में कुछ बोलने जा ही रही थी कि तभी सुहासिनी जी ने नंदिनी को बुलाते हुए कहा, “नंदिनी बेटा! एक मिनट इधर आइए, हमें आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”
नंदिनी इप्शिता की तरफ़ देखकर बोली, “मैं एक मिनट में आती हूँ!”
नंदिनी को वहाँ से जाते देखकर इप्शिता ने उसे रोकते हुए कहा, “एक मिनट नंदिनी! हमारी बात तो सुनो!”
लेकिन नंदिनी ने उसकी बात सुनी ही नहीं और सुहासिनी जी के पास चली गई। अभिमन्यु इप्शिता को नोटिस कर रहा था।
वह काफी ज़्यादा घबराई हुई लग रही थी। अभिमन्यु को प्रॉब्लम पता चल गई थी, इसलिए वह इप्शिता से कुछ पूछ भी नहीं रहा था।
उसने अपने मन में कहा, “इप्शिता तो हमें बताएँगी भी नहीं, और ऐसे उठकर तो वो यहाँ से जा भी नहीं सकती, इसलिए हमें ही कुछ करना होगा, लेकिन कैसे मदद करें हम इप्शिता की?”
अभिमन्यु यह सोच रहा था। वहीं सुहासिनी जी ने नंदिनी को समझाते हुए कहा, “नंदिनी बेटा, हमारी बात ध्यान से सुनिए! ये अभिमन्यु के फैमिली मेंबर्स हैं, उनके चाचा-चाची और अभिमन्यु की बहन और उनके जीजा साहब हैं। आप यहीं रुक जाइए और उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए! हम अभी आते हैं।”
नंदिनी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “ओके आंटी! आप बिल्कुल बेफ़िक्र रहिए, मैं देख लूँगी।”
इतना बोलकर नंदिनी ने वेटर को बुलाया और वह शरबत का ग्लास उठाकर अपने हाथों से अभिमन्यु के चाचा-चाची और बाकी सब लोगों को सर्व करने लगी।
वहीं जयराज नंदिनी को घूरते हुए देख रहा था। नंदिनी का बैकलेस गाउन देखकर वह उसकी पीठ को एकटक घूरता ही जा रहा था।
अर्पिता यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा फ़ील नहीं कर रही थी। वहीं नंदिनी को इन सारी बातों की खबर ही नहीं थी। वह सबको ड्रिंक सर्व कर रही थी। वह वैसे ही नॉर्मली अर्पिता को ड्रिंक देकर जयराज के सामने गई। उन्हें भी ड्रिंक देने के लिए नंदिनी ने जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ाया, जयराज ने नंदिनी के पूरे हाथ को छूते हुए उसके हाथ से ग्लास लिया।
नंदिनी को जयराज का यह टच बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, लेकिन नंदिनी ने इस बात को ज़्यादा तूल नहीं दिया और ना ही इस बारे में सोचा, क्योंकि उसे लगा कि शायद गलती से हाथ टच हो गया होगा। इसलिए वह वहाँ से आगे बढ़ गई। लेकिन जयराज बार-बार पलट-पलट कर नंदिनी को ही देख रहा था।
वहीं अभिमन्यु और इप्शिता के साथ एक-एक करके सब लोग फ़ोटो क्लिक करवाने आ रहे थे। वहीं इप्शिता स्टेज पर बने काउच पर अपना बैक टिकाकर बैठी हुई थी और किसी तरह से खुद को कंफ़रटेबल दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। लेकिन उसके चेहरे की घबराहट बता रही थी कि वह कितनी ज़्यादा नर्वस और अनकंफ़रटेबल है।
क्रमशः
वही अभिमन्यु और इप्शिता के साथ एक-एक करके सब लोग पिक्चर क्लिक करवाने आ रहे थे। इप्शिता स्टेज पर बने काउच पर बैठी थी, उसकी पीठ काउच के सहारे टिकी हुई थी। वह किसी तरह खुद को सहज दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, लेकिन उसके चेहरे की घबराहट उसकी असहजता को जाहिर कर रही थी।
अभिमन्यु उसकी समस्या समझ गया था। वह किसी भी तरह उसकी मदद करना चाहता था क्योंकि उसे पता था कि इप्शिता बिल्कुल भी सहज नहीं थी।
यह सब अपने मन में सोचते हुए अभिमन्यु ने मां सा की ओर देखा। मां सा उठकर स्टेज पर आईं और उन्होंने अभिमन्यु और इप्शिता की ओर देखते हुए कहा, “क्या बात है? अभिमन्यु, हम आपको बहुत देर से देख रहे हैं। आप हमसे कुछ कहना चाहते हैं क्या?”
अभिमन्यु उठकर खड़ा हुआ और मां सा के पास जाकर धीमी आवाज में कहा, “मां सा, क्या हम इप्शिता से कुछ बात कर सकते हैं, अकेले में?”
इप्शिता ने जैसे ही अभिमन्यु के मुँह से बात सुनी, उसका गला सूख गया। उसने अपने मन में कहा, “अब इस अभिमन्यु को क्या हो गया? इन्हें हमसे अब क्या बात करनी है, वह भी इतनी गलत टाइमिंग पर! कैसे जाएँगी हम यहाँ से सबके सामने से? और ऊपर से हमारा ब्लाउज!”
मां सा ने जैसे ही अभिमन्यु की बात सुनी, उन्होंने धीमी आवाज में पूछा, “क्या बात है अभिमन्यु? आपको क्या परेशानी है? और किस बारे में बात करनी है आपको?”
इप्शिता ने अभिमन्यु की माँ की बात सुनी और उसने अपने मन में कहा, “प्लीज गॉड! यह मुझे अभिमन्यु जी के साथ बात करने से मना कर दें!”
सुहासिनी जी, जो मां सा के पीछे ही खड़ी थीं, उन्होंने अभिमन्यु की बात सुन ली थी। वे स्टेज पर आकर मां सा की ओर देखते हुए बोलीं, “अगर कुंवर सा इप्शिता से बात करना चाहते हैं तो हमें कोई परेशानी नहीं है, रानी सा!”
इप्शिता ने जैसे ही अपनी माँ की बात सुनी, उसने अपने मन में कहा, “क्या कर रही हैं मम्मी आप? हम इस हाल में नहीं जा सकतीं अभिमन्यु के साथ बात करने। आप क्यों ऐसा बोल रही हैं? प्लीज, कोई तो मना कर दे!”
इप्शिता यह सोच ही रही थी कि तभी मां सा ने कहा, “ठीक है अभिमन्यु! आपको बात करनी है तो आप इप्शिता से बात कर सकते हैं।”
अभिमन्यु ने सुहासिनी जी और मां सा की ओर देखते हुए कहा, “Thank you so much!”
इतना बोलकर अभिमन्यु इप्शिता के पास गया और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, “इप्शिता, प्लीज हमारे साथ चलिए।”
सुहासिनी जी इप्शिता के पास आईं और उन्होंने इप्शिता को उसकी जगह से उठाते हुए कहा, “जाइए इप्शिता! कुंवर सा को आपसे कुछ बात करनी है। उन्हें सामने वाले कमरे में ले जाइए क्योंकि आप इतने भारी लहंगे के साथ अपने कमरे में नहीं जा पाओगी।”
इप्शिता उठकर खड़ी ही हुई थी कि अभिमन्यु ने कहा, “इट्स ओके आंटी! हम हैं ना, हम उनकी मदद कर देंगे।”
इप्शिता जैसे ही उठकर खड़ी हुई, अभिमन्यु ने तुरंत इप्शिता की पीठ के पीछे अपना हाथ लगाया और इप्शिता का हाथ पकड़कर संभालते हुए उसे स्टेज से उतार लिया। इप्शिता का हाथ पकड़े हुए वह उसे सबसे दूर ले जाते हुए बोला, “हम जानते हैं आपके ड्रेस में कोई समस्या हो गई है। हम आपको कमरे में लेकर चलते हैं। आप उसे ठीक कर लीजिएगा।”
इप्शिता ने जैसे ही यह बात सुनी, वह एक झटके से अपना चेहरा मोड़कर बहुत ही हैरानी से अभिमन्यु की ओर देखने लगी। अभिमन्यु ने अपने हाथ से इप्शिता की पीठ को पूरी तरह से ढँक लिया था। इप्शिता अभिमन्यु के मुँह से यह बात सुनकर काफी ज्यादा हैरान हो गई थी और उसने अपनी धीमी आवाज में कहा, “आपको…”
अभी इप्शिता बोल ही रही थी कि अभिमन्यु ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा, “जी हाँ! हमें पता है। प्लीज, आप कमरे के अंदर चलिए।”
इप्शिता को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि अभिमन्यु को इस बारे में पता चल गया होगा। लेकिन जैसे ही उसने यह बात सुनी, उसे अपने दिल में कुछ महसूस हुआ, शायद अभिमन्यु के लिए सम्मान। लेकिन फिर वह चुपचाप सामने की ओर बने कमरे की तरफ बढ़ गई। अभिमन्यु के साथ चलते हुए इप्शिता उसकी ओर ही देख रही थी। चलते हुए वे कमरे में आये। दोनों एक साथ कमरे के अंदर आए और जैसे ही अभिमन्यु उसे कमरे के अंदर ले गया, उसने इप्शिता की पीठ के पीछे से अपना हाथ हटा लिया और इप्शिता से अपना मुँह दूसरी ओर घुमाते हुए कहा, “हमें आपसे ऐसी कोई बात नहीं करनी है। हम बस आपको वहाँ स्टेज पर असहज देख रहे थे, इसीलिए हम आपको यहाँ पर लेकर आए हैं। अब आप अपनी ड्रेस ठीक कर सकती हैं। हम आपकी ओर नहीं देख रहे।”
इतना बोलकर अभिमन्यु ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। इप्शिता हैरानी से अभिमन्यु की ओर ही देखती रही और उसने अपने मन में कहा, “ये क्या देख रही हूँ मैं! और क्या सुन रही हूँ मिस्टर अभिमन्यु के मुँह से! मुझे तो अपनी आँखों और कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा।”
इप्शिता के मन में कई सारे सवाल चल रहे थे और उसने अपने ब्लाउज को बंद करने की कोशिश की। लेकिन इतनी भारी ज्वेलरी और इतने भारी दुपट्टे के साथ उसका हाथ पीछे की तरफ जा ही नहीं रहा था, इसलिए वह उसे बंद नहीं कर पा रही थी।
कुछ देर बाद अभिमन्यु ने इप्शिता की ओर अपनी निगाहें घुमाईं। इप्शिता अभी भी अपना हुक बंद करने में संघर्ष कर रही थी। इप्शिता इतनी अच्छी तरह से तैयार हुई थी और इतनी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी, लेकिन अब उसके चेहरे पर इतनी घबराहट और उसे इतना परेशान होते देखकर अभिमन्यु को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
अभिमन्यु कहीं न कहीं इप्शिता की आँखों और उसके चेहरे की खूबसूरती में खो गया था। इप्शिता ने जैसे ही अभिमन्यु को अपनी ओर घूमते हुए देखा, उसने अपना हाथ नीचे करते हुए कहा, “अभिमन्यु! क्या? आप हमारी एक और मदद कर सकते हैं? प्लीज, आप हमारी फ्रेंड नंदिनी को बुला दीजिए। एक्चुअली, हमसे यह हुक नहीं लग रहा।”
अभिमन्यु ने जैसे ही इप्शिता की बात सुनी, उसने हाँ में अपना सिर हिलाया और दरवाजा खोलकर इधर-उधर देखने लगा। लेकिन उसे नंदिनी कहीं पर भी नज़र नहीं आ रही थी। उसने दोबारा दरवाजा बंद करते हुए कहा, “हमें आपकी फ्रेंड कहीं नज़र नहीं आ रही। अगर आपको कोई परेशानी ना हो तो हम आपकी मदद कर सकते हैं।”
इप्शिता ने अभिमन्यु की बात सुनी और वह उसे घूरते हुए देखने लगी। तभी अभिमन्यु ने सफाई देते हुए कहा, “नहीं, आप हमें गलत मत समझिएगा। हम सिर्फ आपका हुक लगाएँगे, और वह भी दूसरी ओर देखते हुए। हम आपकी तरफ़ अपनी नज़र भी नहीं घुमाएँगे। Don't worry!”
इप्शिता, अभिमन्यु की बात सुनकर उसे घूरते हुए देखने लगी। वह कुछ सोच ही रही थी कि तभी अभिमन्यु ने कहा, “क्योंकि अगर हम ज़्यादा देर कमरे में रहेंगे तो भी बाहर खड़े लोगों को शक होने लगेगा और वे अलग-अलग तरह की बातें करेंगे। हम नहीं चाहते कि आपके बारे में इस तरह की कोई भी बातें बनें।”
इप्शिता ने धीमी आवाज में कहा, “वैसे बात तो सही है, और अभी हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं है।”
इप्शिता ने एक आखिरी बार खुद से ही वह हुक लगाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं लगा। आखिरकार हार मानते हुए उसने अपने हाथ नीचे कर लिए। वह काफी ज्यादा थक गई थी।
इप्शिता को ना चाहते हुए भी अभिमन्यु की मदद लेनी पड़ी। अभिमन्यु ने इप्शिता के करीब आकर उसके बालों को धीरे से आगे की ओर किया। जैसे ही इप्शिता ने अपनी पीठ पर अभिमन्यु का हाथ महसूस किया, उसकी दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उसने शीशे में अभिमन्यु की ओर देखा। अभिमन्यु ने जैसा बोला था, वह उसकी ओर नहीं देख रहा था, बल्कि उसने अपनी निगाहें दूसरी ओर कर रखी थीं।
इप्शिता ने जैसे ही अभिमन्यु को शीशे में देखा, इप्शिता के मन में अभिमन्यु के लिए इज्जत बढ़ गई। जैसे ही इप्शिता का वह हुक लग गया, अभिमन्यु दो कदम पीछे हटते हुए बोला, “हो गया!”
इप्शिता ने अपनी पीठ के पीछे हाथ लगाते हुए देखा और अभिमन्यु ने बहुत अच्छी तरह से उसका हुक लगा दिया था। इप्शिता जल्दी से अपने दुपट्टे और बाल को ठीक करके अभिमन्यु के बगल में आकर खड़ी हो गई।
अभिमन्यु ने गेट खोला और वह इप्शिता की ओर देखने लगा। इप्शिता अभिमन्यु के बगल में आकर खड़ी हुई और उसने धीमी आवाज में कहा, “थैंक यू सो मच मिस्टर अभिमन्यु!”
अभिमन्यु इप्शिता की बात का जवाब दिए बिना ही वहाँ से आगे बढ़ गया। वहीँ नंदिनी इस समय एक वेटर से बात करके उसे सब समझा रही थी और बाकी के आए हुए मेहमानों को स्नैक्स सर्व करने के लिए बता रही थी। तभी पीछे से किसी का हाथ नंदिनी के कंधे पर आया। नंदिनी ने पीछे मुड़कर देखा और अपने पीछे खड़े शख्स को देखकर वह चौंकते हुए बोली, “मिस्टर राणावत! आप यहाँ!”
जयराज ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “जी हाँ, हम आपको वहाँ देख रहे थे, लेकिन आप हमें वहाँ नज़र नहीं आईं तो हम आपको ढूँढते हुए यहाँ आ गए।”
नंदिनी ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मिस्टर राणावत! आपको कुछ चाहिए था क्या?”
जयराज ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए नंदिनी को सिर से लेकर पाँव तक देखा। तभी नंदिनी ने अपने हाथ में पकड़े हुए फ्रूट्स चाट की प्लेट को आगे बढ़ाते हुए कहा, “फ्रूट्स लेंगे आप!”
जयराज ने नंदिनी के हाथ में पकड़े हुए उस प्लेट को अपने हाथ में लिया और नंदिनी का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, “फ्रूट्स तो हम हमेशा ही खाते हैं, लेकिन आपके जैसी खूबसूरत लड़की के हाथों से हमने कभी फ्रूट्स नहीं खाए। अगर आप हमें अपने हाथों से फ्रूट्स खिला देंगी तो हमें ज़्यादा अच्छा लगेगा।”
क्रमशः
नंदिनी ने जैसे ही यह बात सुनी, उसे काफी असहज महसूस हुआ। उसने जयराज के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, "मिस्टर रणावत, मेरा हाथ छोड़िए।"
नंदिनी को काफी असहज महसूस हो रहा था। उसने अपना हाथ जयराज के हाथों से छुड़ाने की कोशिश की। तभी वहाँ रखा हुआ सॉफ्ट ड्रिंक का ग्लास जमीन पर गिर गया। ग्लास के गिरते ही कांच के टुकड़े पूरे फर्श पर फैल गए। नंदिनी ने उन टूटे हुए कांच के टुकड़ों की ओर देखा। कांच के गिरकर टूटने से एक तेज आवाज हुई और ज्यादातर लोगों का ध्यान उसकी ओर गया। इसलिए जयराज ने भी दोबारा उसका हाथ पकड़ने की कोशिश नहीं की। वह इधर-उधर देखते हुए अपनी जगह से कुछ कदम पीछे हट गया। लेकिन नंदिनी घबराकर तुरंत ही वहाँ से दूसरी तरफ भाग गई।
नंदिनी को लग रहा था कि कहीं जयराज फिर से उसके पीछे तो नहीं आ रहा है। इसलिए वह आगे चलते हुए बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी। इसी वजह से वह सामने से आ रहे उदय से टकरा गई। उदय ने नंदिनी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "आराम से नंदिनी! आप इस तरह भागती हुई कहाँ जा रही हैं? क्या कोई आपके पीछे आ रहा है?"
इतना बोलते हुए उदय ने नंदिनी के पीछे झाँककर देखा, तो उसे वहाँ पर कोई भी नज़र नहीं आया।
नंदिनी ने जैसे ही उदय को देखा, उसने अपने आप को संभाला और अपने माथे पर आए पसीने को पोछते हुए कहा, "आई एम सॉरी! कुछ नहीं, मैं बस थोड़ी जल्दबाजी में थी। शायद मैंने आपको आते हुए नहीं देखा। आई एम सॉरी!"
उदय ने नंदिनी की घबराहट को महसूस किया और उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "इट्स ओके! रिलैक्स। आप इतनी घबराई हुई क्यों हो? आपको देखकर ऐसा लग रहा है जैसे आप किसी से बचकर भाग रही हैं।"
नंदिनी ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने तुरंत ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं है। हम तो बस उधर जा रहे थे!"
इतना बोलकर नंदिनी ने एक बार फिर से पीछे मुड़कर देखा और अपने सामने की तरफ उंगली से इशारा करते हुए, उसी तरह तेज कदमों से वहाँ से आगे चली गई।
उदय को नंदिनी पर कुछ शक हुआ और वह पीछे की तरफ देखने लगा, जहाँ से नंदिनी भागती हुई आ रही थी। वहाँ पर उसे जयराज के अलावा और कोई नज़र नहीं आया। उदय ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "यह मिस्टर राणावत यहाँ पर क्या कर रहे हैं?"
उदय ने खुद से सवाल करते हुए जयराज की तरफ देखा, लेकिन उससे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया क्योंकि जयराज इस वक़्त दूसरी तरफ देख रहा था।
इंगेजमेंट का फंक्शन भी अब लगभग खत्म हो चुका था और राजवंश परिवार के सभी लोग वापस जा चुके थे। वहीं इप्शिता, कपड़े चेंज करने के बाद अपने कमरे में बैठी थी। उसने अपने मन में कहा, "आज जिस तरह से अभिमन्यु ने हमारी मदद की और जिस तरह से हमें सहज महसूस करवा रहे थे... यह सब देखने के बाद मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद हम उन्हें गलत समझ रहे थे। वह एक बहुत अच्छे इंसान हैं और देखो, हमने तो उन्हें थैंक यू तक नहीं बोला। उन्होंने हमारी इतनी मदद की, कम से कम हमें उन्हें थैंक्स तो बोलना ही चाहिए था।"
इप्शिता कहीं न कहीं अभिमन्यु की मदद से काफी प्रभावित हो गई थी। वह अभिमन्यु के ख्यालों में ही खोई हुई थी कि तभी नंदिनी, कपड़े चेंज करके वॉशरूम से बाहर निकली। उसने अपना मुँह पोंछते हुए कहा, "इशु, मैं सोच रही थी कि इसी शहर में थोड़ी दूर पर मेरी मौसी और मौसा जी रहते हैं। तो मैं उनसे जाकर कल मिल लेती हूँ! ठीक रहेगा ना?"
नंदिनी यह सारी बातें बोल रही थी, लेकिन इप्शिता ने उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसका पूरा ध्यान तो अभिमन्यु में ही लगा हुआ था।
इप्शिता को इस तरह सोच में डूबा देखकर, नंदिनी उसके बगल में आकर बैठी और उसके चेहरे के सामने अपना हाथ हिलाते हुए बोली, "क्या बात है? मैडम, क्या सोच रही हो?"
इप्शिता ने जैसे ही नंदिनी की आवाज सुनी, तो हड़बड़ाते हुए बोली, "हाँ, नहीं... कुछ नहीं!"
नंदिनी ने इप्शिता के सामने बैठे हुए कहा, "कुछ नहीं, सीरियसली? अच्छा, तो तुम मुझे यह बताओ, अगर तुम कुछ नहीं सोच रही थीं, तो फिर मैंने अभी तुम्हें क्या कहा?"
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हमारा ध्यान कहीं और था, इसलिए हमने सुना ही नहीं कि तुम क्या कह रही थीं। अब बताओ, तुमने क्या कहा?"
नंदिनी ने इप्शिता का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "हाँ हाँ, भला तू मेरी बातों पर क्यों ध्यान देगी? तुझे तो मेरे जीजू के बारे में सोचने से ही फुरसत नहीं मिल रही है ना!"
इप्शिता ने नंदिनी की बात सुनकर उसके कंधे पर मारते हुए कहा, "चुप करो तुम! और कुछ भी मत बोला करो।"
इतना बोलकर इप्शिता शरमाने लगी और उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमा लीं। तभी नंदिनी ने इप्शिता के चेहरे पर हाथ रखा और उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए कहा, "अच्छा, अगर तू जीजू के बारे में नहीं सोच रही थी, तो फिर मेरी इस बात पर इतना शरमा क्यों रही है?"
इप्शिता ने नंदिनी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "यार नंदिनी, सच बताऊँ तो अब मुझे लग रहा है कि उस दिन शायद हमने अभिमन्यु को कुछ गलत समझ लिया था। वह काफी अच्छे हैं।"
नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, बिल्कुल, वह तो हैं ही। तूने नहीं देखा, जब मैं उनकी फ़ोटो खींच रही थी। वह कितने हैंडसम लग रहे थे! यार इप्शिता, तू पता करना, जीजू का कोई छोटा-बड़ा भाई हो तो मुझे भी चल जाएगा, या फिर कोई ऐसे ही राजघराने टाइप का।"
इप्शिता नंदिनी के हाथ पर मारते हुए बोली, "कुछ भी मत बोला कर तू! और मेरी बात ध्यान से सुन, पता है आज अभिमन्यु ने हमारी बहुत मदद की।"
नंदिनी ने इप्शिता की यह बात सुनकर उससे तुरंत पूछा, "मदद की? लेकिन कैसे?"
नंदिनी ने जैसे ही यह सवाल किया, तो इप्शिता ने उसे छेड़ते हुए कहा, "तुम तो बिजी हो गई थीं इधर-उधर और मेरे पास आकर एक बार भी तुमने नहीं पूछा कि मुझे क्या प्रॉब्लम हुई है? तुम्हें पता है, अगर अभिमन्यु मदद ना करते, तो मेरी कितनी बेइज़्ज़ती होती सबके सामने।"
नंदिनी ने कन्फ्यूज़ होते हुए कहा, "कैसी बेइज़्ज़ती? और किस बारे में बात कर रही हो तुम? मुझे सब कुछ क्लियर बताओ।"
इप्शिता ने उसे पूरी बात समझाते हुए कहा, "मेरे ब्लाउज़ का हुक खुल गया था और अभिमन्यु को पता नहीं यह बात कैसे पता चली और उन्होंने हमारी मदद की। वह वहाँ सबके सामने से हमें लेकर कमरे में आए और उन्होंने हमारी बेइज़्ज़ती होने से बचा लिया।"
इप्शिता की पूरी बात सुनते ही नंदिनी ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "ओह शिट! इतनी बड़ी प्रॉब्लम हो गई थी और तूने मुझे बताया ही नहीं।"
इप्शिता ने नंदिनी को घूरते हुए कहा, "इतनी बार तो हम तुम्हें इशारे से सारी बातें बताने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तुम अपने ख़यालों से बाहर निकलो, तब ना!"
नंदिनी ने इप्शिता से माफ़ी माँगते हुए कहा, "आई एम सो सॉरी यार! मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी प्रॉब्लम में हो।"
इप्शिता ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "अच्छा, चलो छोड़ो अब ये सब। और यह तो कहो, अच्छा हुआ अभिमन्यु ने हमारी इज़्ज़त बचा ली।"
इप्शिता बोल ही रही थी कि तभी नंदिनी ने कहा, "वैसे, तूने जीजू को थैंक यू बोला या नहीं?"
इप्शिता ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने तुरंत ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं! हमें टाइम ही नहीं मिल पाया और सब लोगों के सामने कैसे बोलते? हमें थोड़ा असहज लगता।"
नंदिनी ने अपना सिर पीटते हुए कहा, "ओह गॉड! उन्होंने तुम्हारी इतनी मदद की और तुमने उन्हें एक थैंक्यू तक नहीं बोला। हाउ रूड यू आर!"
इप्शिता ने नंदिनी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "हम भी यही सोच रहे थे कि हम अभिमन्यु को थैंक्स कैसे बोलें!"
नंदिनी ने उसका मोबाइल फ़ोन उठाते हुए कहा, "तेरे पास उनका नंबर है, तो अभी उन्हें कॉल कर और थैंक यू बोल दे।"
इप्शिता ने नंदिनी को घूरते हुए कहा, "कैसी बात कर रही हो तुम? हमारे पास भला उनका नंबर कैसे होगा?"
नंदिनी ने काफी हैरानी से अपनी आँखें बड़ी करते हुए कहा, "क्या मतलब? कौन सी 18वीं सदी में हैं हम लोग, कि जिससे शादी हो रही है, अपने होने वाले पति का नंबर तक नहीं है तेरे पास?"
नंदिनी को इतना हैरान और परेशान देखकर, इप्शिता ने बड़े ही आराम से उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "अरे यार! यहाँ पर ऐसे ही होता है और वैसे भी यह एक अरेंज मैरिज है और हम कल उनसे दोबारा ही मिले थे, तो ऐसे में नंबर कैसे हो सकता है हमारे पास उनका..."
इप्शिता ने यह बात ऐसे बोली जैसे कि उसके लिए यह बहुत ही सामान्य बात हो, जबकि शहर में नंदिनी जहाँ से संबंध रखती है वहाँ पर तो मुलाक़ात के बाद एक-दूसरे के सोशल मीडिया आईडी और नंबर पहले ही मिल जाते हैं।
नंदिनी ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "अच्छा, ठीक है। अब नहीं है वह नंबर, तो क्या कर सकते हैं। लेकिन तू फिर एक काम कर, जीजू को सरप्राइज़ दे और कल उनसे जाकर मिल और उन्हें लंच पर लेकर जाकर थैंक्स बोल।"
इप्शिता ने जैसे ही नंदिनी का यह आइडिया सुना, उसने थोड़ा झिझकते हुए कहा, "लेकिन क्या ऐसा करना ठीक होगा?"
नंदिनी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, बिल्कुल ठीक रहेगा। और वैसे भी, तू किसी दूसरे इंसान से मिलने थोड़ी ना जा रही है। अब तो वह तेरे मंगेतर हो गए हैं और अपने मंगेतर से मिलने में क्या बुराई? अगर तू उनसे मिलने जाएगी, तो उन्हें भी ऐसा लगेगा कि तू भी कुछ प्रयास कर रही है, तो हो सकता है वह भी खुलकर सामने आए और तुझे अपनी लाइफ़ के बारे में भी कुछ बताएँ।"
नंदिनी की यह बात सुनकर इप्शिता कुछ सोचने लगी और तभी नंदिनी ने कहा, "सोचने का टाइम नहीं है, जल्दी डिसाइड करो जो भी डिसाइड करना है।"
इप्शिता ने थोड़ा सोचकर कहा, "आई थिंक तुम ठीक कह रही हो, लेकिन हम उनसे मिलने उनके घर तो नहीं जा सकते, तो फिर?"
इप्शिता की यह बात सुनकर नंदिनी ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "तुम्हें उनका ऑफिस पता है।"
इप्शिता ने कहा, "हाँ, हमें संजय अंकल ने बताया था। उन्हें पता होगा अभिमन्यु के ऑफिस का एड्रेस और हाँ, यह ठीक रहेगा, हम उनके ऑफिस जाते हैं।"
नंदिनी खुश होते हुए बोली, "ग्रेट! तो फिर प्रॉब्लम सॉल्व! तुम कल दोपहर में ऑफिस जाओ, उन्हें सरप्राइज़ दो और उन्हें अपने साथ लंच पर लेकर जाओ और वहीं पर उन्हें थैंक यू भी बोल देना। और तुम दोनों एक-दूसरे से अकेले में मिलोगी, बात करोगी, तो तुम्हारे बीच कंपैटिबिलिटी बढ़ेगी।"
नंदिनी की यह सलाह सुनकर इप्शिता ने भी धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया और अपने मन ही मन यह सोचने लगी कि वह अभिमन्यु से मिलने जाने के लिए अपने घरवालों से परमिशन कैसे लेगी, वह भी अपनी सगाई के अगले ही दिन...
क्रमशः
नंदिनी की यह सलाह सुनकर इप्शिता ने भी धीरे से सिर हिलाया और मन ही मन सोचने लगी कि वह अभिमन्यु से मिलने जाने के लिए घरवालों से परमिशन कैसे लेगी, वह भी सगाई के अगले ही दिन।
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "लेकिन हम वहां अकेले कैसे जाएँगे? तुम भी हमारे साथ चलना।"
नंदिनी ने सिर हिलाते हुए कहा, "अरे नहीं! मैं वहां तुम दोनों कपल्स के बीच में कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती, तुम अकेले ही जाओ।"
इप्शिता ने ज़िद करते हुए कहा, "कैसी बात कर रही हो तुम? और वैसे भी, तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो, और मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ रहो। इसी बहाने तुम भी अभिमन्यु से मिल लोगी।"
नंदिनी ने सीधे मना करते हुए कहा, "जीजू से तो मैं बाद में भी मिल लूँगी। लेकिन कल तुम अकेले ही वहाँ जाओ। और वैसे भी, मैं अपनी मौसी से मिलने जा रही हूँ! वो यहीं पर रहती हैं। अब जब मैं यहाँ आ ही गई हूँ तो उनसे मिल लेती हूँ। और वैसे भी, जब हमारे एग्जाम शुरू हो जाएँगे तो फिर कहीं आने-जाने का समय नहीं मिलेगा।"
नंदिनी की बात सुनकर इप्शिता कुछ सोचने लगी और उसकी बात मानते हुए कहा, "ठीक है, फिर मैं अकेले ही चली जाऊँगी।"
नंदिनी ने इप्शिता की बात सुनते ही उसे गले लगाते हुए कहा, "यह हुई ना बात! वहाँ जाकर जीजू से सारी बातें करना और वहाँ पर जो कुछ भी हुआ हो, मुझे सब कुछ डिटेल में बताना। तुम दोनों ने वहाँ पर क्या-क्या बातें कीं, क्या खाया-पिया, मुझे सब कुछ जानना है, ओके!"
नंदिनी उसके बगल में लेटते हुए बोली, "और अब आराम से सो जा, वरना सुबह फ्रेश महसूस नहीं करोगी।"
इप्शिता नंदिनी की बातें सुनकर कुछ नहीं बोली। उसने धीरे से अपनी आँखें बंद कर लीं। आँखें बंद करते ही, पता नहीं क्यों, उसकी आँखों के सामने अभिमन्यु का चेहरा आया और वह अनजाने ही अभिमन्यु के बारे में सोचने लगी।
इप्शिता ने मन ही मन कहा, "क्या मेरा कल उनसे मिलने जाना ठीक रहेगा? उन्हें उनके ऑफिस जाकर सरप्राइज़ देना, यह कहीं ज़्यादा तो नहीं हो रहा? लेकिन उन्होंने मेरी इतनी बड़ी मदद की है, तो उसके लिए इतना तो बनता ही है। और वैसे भी, सही कह रही है नंदिनी, आज नहीं तो कल हमारी शादी होने वाली है, तो फिर मिलने में क्या बुराई है? मुझे नहीं लगता अभिमन्यु को इससे कोई परेशानी होगी।"
यह सारी बातें सोचते-सोचते इप्शिता को पता नहीं कब नींद आ गई और सगाई की थकान के कारण वह गहरी नींद में सो गई।
अगले दिन सुबह, इप्शिता की आँख नहीं खुल रही थी। नंदिनी ने उसे उठाते हुए कहा, "उठ जा ईशु! कितनी देर तक सोती रहेगी?"
इप्शिता ने नंदिनी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और दूसरी तरफ़ करवट लेकर फिर सो गई।
नंदिनी ने उसका कम्बल खींचते हुए कहा, "कम ऑन ईशु! उठ जा! वरना हम लेट हो जाएँगे। याद है ना तुझे जीजू के साथ लंच पर जाना है?"
जैसे ही नंदिनी ने यह बात कही, इप्शिता उठकर हड़बड़ाते हुए बैठ गई। उसे इस तरह उठते देखकर नंदिनी ने अपनी कमर पर हाथ रखते हुए कहा, "इतनी देर से मैं तुझे उठा रही थी, लेकिन तू नहीं उठ रही थी। और जैसे ही मैंने अभिमन्यु जीजू का नाम लिया, देख कैसे तेरी आँखों से नींद उड़ गई।"
नंदिनी की बात सुनकर इप्शिता ने घड़ी में समय देखा; सुबह के 12:30 बज रहे थे।
उसने नंदिनी की तरफ़ देखकर कहा, "तुमने मुझे क्यों नहीं उठाया?"
नंदिनी ने जवाब देते हुए कहा, "कल की थकान की वजह से शायद हम दोनों ही इतनी देर तक सोते रहे। मैं भी अभी उठी हूँ! थोड़ी देर हो गई है। आंटी जी ने हम दोनों का नाश्ता हमारे कमरे में ही भेजवा दिया था, और वह ठंडा भी हो गया है। अब जल्दी से उठो, तुम तैयार हो जाओ।"
इप्शिता ने नंदिनी की बात सुनी और वह वॉशरूम की तरफ़ भागते हुए चली गई। थोड़ी देर में वह एक पीले रंग की लॉन्ग फ्रॉक पहनकर बाहर निकली और जल्दी-जल्दी तैयार होने लगी।
नंदिनी उसे तैयार होते देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "लगता है बहुत जल्दी है तुझे अभिमन्यु जीजू से मिलने की, है ना!"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। तू बेकार की बातें मत किया कर।"
नंदिनी ने उसे छेड़ते हुए कहा, "चाहे तू दूसरों से कितना भी झूठ बोले ईशु, मुझसे झूठ नहीं बोल सकती।"
नंदिनी इतना बोलकर मुस्कुराने लगी। तभी इप्शिता ने कहा, "नंदिनी! हमने यह तो सोचा ही नहीं कि हम मम्मी-पापा को क्या बताकर जाएँगे।"
नंदिनी ने थोड़ा सोचते हुए कहा, "आइडिया! मैं अपनी मौसी के यहाँ तो जा ही रही हूँ। एक काम कर, तू भी मेरे साथ चल और आंटी से बोल देना कि तू मेरी मौसी से मिलने जा रही है। मैं भी आंटी से रिक्वेस्ट कर दूँगी। फिर हम एक साथ ही यहाँ से निकल लेंगे।"
इप्शिता ने जल्दी से नंदिनी को गले लगाते हुए कहा, "अरे वाह! यार, तू कैसे हमारी सारी समस्याओं का फटाफट समाधान निकाल लेती है।"
नंदिनी इप्शिता को देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "मैं तो तुझे हमेशा कहती रहती हूँ कि मैं तुमसे ज़्यादा बुद्धिमान हूँ!"
इप्शिता नंदिनी की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ हाँ, बिल्कुल, तू तो मुझसे बहुत ज़्यादा स्मार्ट और बुद्धिमान है!"
इतना बोलकर इप्शिता ने अपना मोबाइल फोन उठाया और संजय को कॉल करते हुए बोली, "हेलो संजय अंकल! कार रेडी करिए, हम बाहर चल रहे हैं।"
इतना बोलकर इप्शिता ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
थोड़ी देर बाद नंदिनी और इप्शिता फटाफट तैयार होकर कमरे से बाहर निकलीं। उन्हें बाहर निकलते देख सुहासिनी जी, जो हॉल में बैठकर किसी से बात कर रही थीं, इप्शिता और नंदिनी को एक साथ सीढ़ियों से उतरते देख फोन पर बात करते हुए बोलीं, "ठीक है, बाकी की सारी बातें डिस्कस करके हमें बता दीजिएगा, हम आपसे बाद में बात करते हैं।"
इप्शिता और नंदिनी को देखकर सुहासिनी जी ने तेज आवाज़ में कहा, "क्या बात है? कहाँ जाने की तैयारी हो रही है तुम दोनों की?"
इप्शिता ने अपनी माँ की तरफ़ देखते हुए कहा, "हाँ मॉम, नंदिनी की मौसी यहीं पास में ही रहती हैं, तो नंदिनी उनसे मिलने जा रही थी, तो उसने मुझसे कहा कि मैं भी उसके साथ चलूँ और उसकी मौसी से मिल लूँ।"
इप्शिता की माँ ने उसे मना करते हुए कहा, "लेकिन बेटा, आपका इस तरह से घर से बाहर जाना ठीक नहीं है। आपकी मंगनी हो चुकी है और वैसे भी, कल के फंक्शन की वजह से आप काफी थकी होगी। आज ही जाने की क्या ज़रूरत थी?"
नंदिनी ने सुहासिनी की तरफ़ देखते हुए कहा, "अरे आंटी! मेरी मौसी का घर ज़्यादा दूर नहीं है, हम जल्दी वापस आ जाएँगे। प्लीज़ ईशु को मेरे साथ जाने दीजिये।"
नंदिनी के इतनी रिक्वेस्ट करने पर सुहासिनी जी ने कुछ सोचकर कहा, "ठीक है, जाइए इप्शिता, आप नंदिनी के साथ, लेकिन ज़्यादा देर मत करिएगा और हमारे फोन का तुरंत जवाब दीजिएगा।"
इप्शिता ने अपनी माँ की बात सुनते ही उसे जल्दी से गले लगाते हुए कहा, "ओके मॉम! थैंक यू सो मच! चलते हैं।"
नंदिनी और इप्शिता वहाँ से जा ही रही थीं कि सुहासिनी जी ने इप्शिता को रोकते हुए कहा, "एक मिनट इप्शिता, रुकिए और हमें यह बताइए कि आप संजय को अपने साथ ले जा रही हैं?"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "यस मॉम! हम उसे अपने साथ ले जा रहे हैं। ओके, बाय, टेक केयर।"
नंदिनी ने इप्शिता का हाथ पकड़ा और वह दोनों तेज़ी से हवेली से बाहर निकल आईं। संजय पहले ही कार गेट के सामने लाकर खड़ी कर चुका था। उसने इप्शिता और नंदिनी को आते ही कार का गेट खोला और वह दोनों कार में बैठ गईं।
इप्शिता ने कार में बैठते ही कहा, "संजय अंकल! नंदिनी को उसकी मौसी के घर छोड़ दीजिए, और उसके बाद हमें कहीं और जाना है।"
संजय इप्शिता की बात सुनकर कुछ नहीं बोला और उसने चुपचाप कार स्टार्ट की और इप्शिता और नंदिनी को लेकर नंदिनी की मौसी के घर की तरफ़ चलने लगा।
नंदिनी ने समय देखते हुए कहा, "यार ईशु! अगर तू मुझे मेरी मौसी के घर तक छोड़ेगी, तो तू और लेट हो जाएगी, और वहाँ पहुँचते-पहुँचते लंच का समय निकल जाएगा। एक काम कर, मुझे यहीं पास में छोड़ दे, उसके बाद मैं खुद चली जाऊँगी।"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "अरे नहीं, हम तुम्हें ऐसे रास्ते में नहीं छोड़ने वाले।"
नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्यों? मैं कोई छोटी बच्ची थोड़ी हूँ जो गुम हो जाऊँगी? तुम जाओ। संजय अंकल, आप साइड में गाड़ी रोक दीजिये।"
संजय ने नंदिनी की बात सुनकर कार रोक दी। नंदिनी कार से बाहर निकलते हुए बोली, "ऑल द बेस्ट! और कोई गड़बड़ मत करना।"
क्रमशः
नंदिनी की सारी बातें सुनकर इप्शिता ने सिर हिलाया। नंदिनी टैक्सी में बैठकर चली गई। संजय ने इप्शिता से पूछा, "बेबी जी! अब हमें कहाँ चलना है?"
इप्शिता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, "संजय अंकल! हम अभिमन्यु के ऑफिस चलेंगे।"
संजय ने बात सुनकर हैरान होते हुए कहा, "क्या कहा आपने? कुंवर साहब के ऑफिस? लेकिन क्यों? और आपने बड़ी मालकिन से वहाँ जाने के लिए इजाज़त ली या नहीं?"
इप्शिता ने संजय को समझाते हुए कहा, "संजय अंकल! मैंने मम्मी-डैडी से परमिशन नहीं ली है। मैं वहाँ अभिमन्यु को सरप्राइज़ देने जा रही हूँ। और आप भी यह बात किसी को मत बताइएगा। चलिए अब, वरना हमारा सरप्राइज़ खराब हो जाएगा।"
संजय इप्शिता की बात सुनकर सोच में पड़ गया। तभी इप्शिता ने कहा, "संजय अंकल! आप परेशान मत होइए। हमें बस अभिमन्यु को थैंक यू बोलना है, इसीलिए हम उनके ऑफिस जा रहे हैं। हम कोई प्रॉब्लम क्रिएट नहीं करेंगे, आप फ़िक्र मत करिए।"
संजय ने सिर हिलाया और चुपचाप कार चलाते हुए सीधे अभिमन्यु के ऑफिस पहुँचे।
इप्शिता ऑफिस के अंदर जाने लगी। संजय तुरंत उसके पीछे-पीछे गया, बिल्कुल बॉडीगार्ड की तरह।
ऑफिस में मौजूद सभी लोग इप्शिता को बार-बार देख रहे थे। इप्शिता बहुत खूबसूरत लग रही थी, और उसकी खूबसूरती से कोई भी नज़रें नहीं हटा पा रहा था।
लेकिन जैसे ही उनकी नज़र पीछे से आ रहे संजय पर पड़ी, वे सब अपने काम में लग गए। इप्शिता रिसेप्शनिस्ट के पास जाकर खड़ी हुई और रिसेप्शन पर बैठी लड़की से बोली, "एक्सक्यूज़ मी! हमें मिस्टर अभिमन्यु से मिलना है।"
रिसेप्शनिस्ट ने इप्शिता की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "गुड आफ्टरनून मैम! क्या आपने सर से मिलने का अपॉइंटमेंट लिया है?"
इप्शिता ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, हम उनसे कोई मीटिंग करने नहीं आए हैं, बस उनसे मिलना है।"
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "आई एम सो सॉरी मैम! आप उनसे मीटिंग करें या नहीं, आपको सर से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना ही पड़ेगा।"
इप्शिता मुस्कुराते हुए बोली, "नहीं, हमें लगता है शायद आपको कोई गलतफ़हमी हुई है। हम अभिमन्यु की फ़िआंसे हैं, इसलिए उनसे मिलना चाहते हैं।"
उस लड़की ने इप्शिता को सिर से पाँव तक देखा और माफ़ी माँगते हुए कहा, "आई एम सो सॉरी मैम! एक मिनट रुकिए। मैं अभी सर से बात कर लेती हूँ!"
उस रिसेप्शनिस्ट ने अभिमन्यु को कॉल किया और कॉल स्पीकर पर डाल दी।
अभिमन्यु ने कॉल उठाते हुए कहा, "व्हाट हैपन्ड मानसी?"
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "सर, आपसे मिलने कोई आया है और वह आपको अपनी फ़िआंसे बता रही हैं।"
अभिमन्यु काम में व्यस्त था और उसने लापरवाही से कहा, "व्हाट नॉनसेंस? हमारी कोई फ़िआंसे नहीं है। फ़ोन रखिए, हम बिज़ी हैं।"
संजय और इप्शिता ने अभिमन्यु की बात सुनकर आश्चर्य से आँखें चौड़ी कर लीं। इप्शिता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, और वह गुस्से से फ़ोन की ओर देखने लगी।
अभिमन्यु का जवाब सुनकर रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "आई एम सॉरी मैम! मुझे आशा है आपने सर की बात सुन ली होगी। इसलिए मैं आपको सर से मिलने की परमिशन नहीं दे सकती।"
इससे पहले कि संजय कुछ बोल पाता, इप्शिता गुस्से से तिलमिला उठी। उसने संजय की ओर देखा और बोली, "उसकी इतनी हिम्मत? समझता क्या है वह खुद को?"
संजय इप्शिता के पास जाकर बोला, "बेबी जी! हमें लगता है कुंवर साहब को कोई मिसअंडरस्टैंडिंग हुई है।"
इप्शिता ने संजय की बात पर ध्यान नहीं दिया और तेज़ कदमों से आगे बढ़कर सीधे अभिमन्यु के केबिन में चली गई।
केबिन में पहुँचते ही इप्शिता ने तेज आवाज में कहा, "मिस्टर अभिमन्यु, आर यू श्योर? आपकी कोई फ़िआंसे नहीं है?"
इप्शिता बहुत गुस्से में थी। अभिमन्यु अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और हैरान होते हुए बोला, "इप्शिता, आप यहाँ?"
इप्शिता ने अपनी अंगूठी दिखाते हुए अभिमन्यु को ताना मारते हुए कहा, "अगर आपकी कोई फ़िआंसे नहीं है, तो फिर हम कौन हैं? और यह आपके घर की पुश्तैनी अंगूठी हमारे हाथों में क्या कर रही है? बोलिए मिस्टर अभिमन्यु! है आपके पास कोई जवाब मेरे इस सवाल का?"
अभिमन्यु ने सफाई देते हुए कहा, "हम... हम वो... हमने बिल्कुल नहीं सोचा था कि आप ऐसे यहाँ हमारे ऑफिस आ सकती हैं।"
अभिमन्यु बोल ही रहा था कि इप्शिता ने उसे गुस्से से घूरते हुए कहा, "हाँ, हम तो आपको सरप्राइज़ देना चाहते थे, लेकिन आपने तो हमें ही यह सरप्राइज़ दे दिया कि आपकी कोई फ़िआंसे नहीं है। अगर हम आपकी फ़िआंसे नहीं हैं, तो फिर कल जो कुछ भी हुआ वह क्या था?"
अभिमन्यु ने शांति से कहा, "इप्शिता! एक मिनट, आप हमारी बात सुनिए। हम काम में थोड़े बिज़ी थे और हम कल की एंगेजमेंट वाली बात बिल्कुल भूल गए।"
इप्शिता का गुस्सा और बढ़ गया। वह गुस्से से चिल्लाते हुए बोली, "बस बहुत करवा ली हमने अपनी बेइज़्ज़ती। अब और नहीं! अगर आपकी कोई फ़िआंसे नहीं हैं, तो फिर हम यह अंगूठी पहनकर क्यों घूम रहे हैं? ये लीजिए, पकड़िए अपनी यह अंगूठी..."
इप्शिता अंगूठी उतारने लगी। अभिमन्यु ने सिर हिलाते हुए कहा, "एक मिनट इप्शिता! रुकिए, क्या कर रही हैं आप?"
इप्शिता गुस्से में अंगूठी उतारकर अभिमन्यु की टेबल पर रखकर जाने लगी।
अभिमन्यु ने उसका हाथ पकड़कर रोका, "इप्शिता! आपको बहुत बड़ी मिसअंडरस्टैंडिंग हो रही है। एक मिनट, आप हमारी बात सुनिए। हम इसे क्लियर कर देते हैं।"
इप्शिता ने अपना हाथ छुड़ाया और उसे जोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा, "हम तो यहाँ आपको थैंक यू बोलने के लिए आए थे। हमने सोचा था कि हम कल आपको थैंक्यू नहीं बोल पाए, तो आज आपसे लंच पर मिलेंगे और आपको थैंक यू बोलेंगे कि हमने आपको गलत समझा। और अब हमें सब कुछ क्लियर हो गया है। तो जब हम ना ही आपकी फ़िआंसे हैं और ना ही हमारी कोई एंगेजमेंट हुई है, तो दोबारा हमारा हाथ पकड़ने की कोशिश भी मत करिएगा।"
इप्शिता वहाँ से जाने लगी। अभिमन्यु अपने गाल पर हाथ रखे हुए बोला, "इप्शिता! आप जानती हैं ना हमारी फैमिली ने इस रिश्ते को जोड़ा है। आप इसे ऐसे नहीं तोड़ सकतीं।"
इप्शिता रुक गई और पीछे मुड़कर बोली, "पहले हमें भी ऐसा ही कुछ लगता था, लेकिन अब हम बिल्कुल क्लियर हैं। हम ऐसे इंसान के साथ शादी नहीं कर सकते जो हमें पब्लिकली अपनी फ़िआंसे भी एक्सेप्ट नहीं कर सकता। ढूँढ लीजिएगा आप किसी दूसरी लड़की का हाथ इस अंगूठी के लिए।"
इप्शिता की आँखों में आँसू आ गए। अभिमन्यु ने इप्शिता के आँसुओं को देखा, और उसके दिल में दर्द हुआ। उसने कुछ नहीं कहा।
इप्शिता अपने आँसू पोंछकर केबिन से बाहर निकल गई। संजय ने इप्शिता को भागते हुए देखा। वह गाड़ी में आकर बैठ गई। संजय पीछे मुड़कर कुछ पूछने ही जा रहा था कि इप्शिता बोली, "घर चलिए संजय अंकल।"
इप्शिता खिड़की से बाहर देखने लगी। संजय ने कार स्टार्ट कर दी।
अभिमन्यु अपने केबिन में बैठा था। उसने टेबल पर रखी इप्शिता की अंगूठी देखी और मन ही मन बोला, "क्या सच में, हमने इतनी बड़ी गलती कर दी है? अगर माँ साहब को यह बात पता चली कि राजकुमारी इप्शिता ने यह सगाई तोड़ दी, तो पता नहीं वो क्या करेंगी? मुझे कुछ ना कुछ करके इप्शिता से बात करनी ही होगी। इस एक छोटी सी गलतफ़हमी की वजह से हम यह सगाई नहीं तोड़ सकते।"
अभिमन्यु ने इप्शिता की अंगूठी उठाई और अपनी जेब में रख ली।
इप्शिता थोड़ी देर में घर पहुँच गई। अभिमन्यु से हुई बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं—उसने अभिमन्यु को कैसे थप्पड़ मारा था, और अंगूठी देकर कैसे वापस आई थी।
वह सब सोच-सोचकर इप्शिता का दिमाग खराब हो रहा था। इप्शिता अपने कमरे में गई, दरवाज़ा अंदर से बंद किया, और बेड पर बैठकर अपने हाथ को देखा। हाथ बिल्कुल सूना लग रहा था।
इप्शिता ने आँसू पोंछते हुए कहा, "हमने सही किया है ना? कहीं हमारा यह डिसीजन मम्मी-पापा को निराश ना कर दे।"
इप्शिता खड़ी हुई और बोली, "लेकिन हम ऐसे इंसान के साथ अपनी पूरी ज़िन्दगी नहीं गुजार सकते जो हमें सबके सामने एक्सेप्ट ही ना कर सके। हमने कुछ गलत नहीं किया, हम मम्मी-पापा को समझा लेंगे।"
इप्शिता आँसू पोंछते हुए उठी और वॉशरूम चली गई। थोड़ी देर बाद वह बाहर निकली। उसका मूड खराब था, वह थोड़ी परेशान भी लग रही थी। वह चुपचाप बेड पर लेट गई। अभिमन्यु ने जिस तरह से फ़ोन पर कहा था कि उसकी कोई फ़िआंसे नहीं है, यह बात सोचकर इप्शिता को बहुत रोना आ रहा था। उसके आँसू बंद नहीं हो रहे थे।