आसमान में काले बादल घिर आए थे, मानो किसी भी पल एक भयंकर तूफ़ान सब कुछ तबाह कर देगा। और ठीक वैसा ही तूफ़ान माहिरा की ज़िंदगी में आ चुका था—एक ऐसा तूफ़ान, जिसने उसकी दुनिया को पूरी तरह बिखेर दिया था। एक ही क्षण में उसने सब कुछ खो दिया था—अपनों प... आसमान में काले बादल घिर आए थे, मानो किसी भी पल एक भयंकर तूफ़ान सब कुछ तबाह कर देगा। और ठीक वैसा ही तूफ़ान माहिरा की ज़िंदगी में आ चुका था—एक ऐसा तूफ़ान, जिसने उसकी दुनिया को पूरी तरह बिखेर दिया था। एक ही क्षण में उसने सब कुछ खो दिया था—अपनों पर से विश्वास, दिल से जुड़ा प्यार… और शायद अपनी ज़िंदगी भी। जिससे वो बेइंतहा मोहब्बत करती थी, अभिषेक… उसी ने उसकी सबसे अच्छी दोस्त के साथ मिलकर उसे धोखा दिया। उस एक विश्वासघात ने माहिरा की रूह तक को झकझोर दिया था। अब वो एक अस्पताल के बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी, आंखें भारी थीं, सांसें धीमी। और तभी सामने खड़ा था एक अजनबी—या शायद अब इतना भी अजनबी नहीं। मुंबई का बेताज बादशाह… रणविजय रावत। जिसकी आंखों में सन्नाटा था, चेहरे पर वही सख्ती, लेकिन उसकी निगाहें माहिरा पर जमी थीं—कुछ कहती हुई, कुछ छुपाती हुई। माहिरा उसे देखकर हक्की-बक्की रह गई। रणविजय? यहाँ? क्यों? माहिरा के कांपते होंठों से एक अनकहा सवाल निकल ही आया— क्या मैं अब भी ज़िंदा हूं? क्या ये मेरी नई ज़िंदगी की शुरुआत है… या किसी और बड़ी साज़िश की पहली परत? रणविजय यहाँ क्यों है? क्या वो मेरा रक्षक है… या कोई नया खिलाड़ी इस खेल का?
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मुंबई — सपनों की वह ज़मीन, जो हर दिल को अपना बना लेती है।
यह शहर सिर्फ़ इमारतों और ट्रैफिक से नहीं बनता, यह बनता है यहाँ की रफ़्तार से, यहाँ की जिद से, और उन अनगिनत कहानियों से जो हर गली, हर लोकल ट्रेन, और हर समंदर की लहर में बसी हैं।
मुंबई वो शहर है जहाँ दिन सूरज के साथ नहीं, लोगों की भागती ज़िंदगियों के साथ शुरू होता है। जहाँ अमीरी और गरीबी एक ही फुटपाथ पर चलती हैं, और जहाँ हर शख़्स अपने हिस्से के आसमान की तलाश में दिन-रात एक कर देता है।
यहाँ हर कोना कुछ कहता है — कहीं दिल टूटते हैं तो कहीं नए रिश्ते बनते हैं। कहीं कोई मायानगरी की चकाचौंध में गुम हो जाता है, तो कहीं कोई उसी रोशनी में खुद को ढूँढ़ लेता है।
आज उसी मायानगरी की चकाचौंध भरी रात में, जब आसमान काले बादलों से लदा हुआ था और समंदर की लहरें बेचैनी से किनारों से टकरा रही थीं, शहर के बीचों-बीच एक काली चमचमाती गाड़ी तेज़ रफ्तार से होटल ब्लू डायमंड की ओर बढ़ रही थी। हवा में घुली नमी और रहस्यमयी खामोशी मानो किसी अनहोनी की दस्तक दे रही थी।
गाड़ी के अंदर, पीछे की सीट पर बैठी थी बॉलीवुड की चमकती सितारा — माहिरा खन्ना। उसके चेहरे पर गुस्से और घबराहट की लकीरें साफ़ झलक रही थीं। उसके बगल में बैठी थी जैस्मिन — उसकी असिस्टेंट मैनेजर, पर उससे बढ़कर उसकी सबसे करीबी दोस्त।
"ड्राइवर, ज़रा तेज़ चलाओ! हमें देर हो रही है," माहिरा ने बेचैनी से कहा।
जैस्मिन ने उसका हाथ थामते हुए नरमी से कहा, "चिंता मत कर माही, सब ठीक होगा। हम वक्त पर पहुँच जाएंगे।"
माहिरा ने गहरी सांस ली, फिर धीमे स्वर में बोली, "मैं जानती हूं जैस्मिन... पर तुम अभिषेक को जानती हो। उसे देर एक पल के लिए भी बर्दाश्त नहीं होती। और आज... आज मेरा बर्थडे है।"
जैस्मिन ने उसकी आँखों में देखते हुए हल्की मुस्कान दी, लेकिन कुछ नहीं बोली। वह समझ सकती थी कि माहिरा के दिल में कितना दबाव और डर था — एक परफेक्ट इमेज बनाए रखने का डर, एक परफेक्ट गर्लफ्रेंड बनने का डर।
करीब 15 मिनट के सफर के बाद गाड़ी होटल ब्लू डायमंड के सामने आकर रुकी।
"मैम, हम पहुँच गए," ड्राइवर ने कहा।
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि माहिरा दरवाज़ा खोलकर तेज़ी से बाहर निकल गई, जैसे हर सेकंड अब उसके लिए कीमती हो।
"माही! इतनी जल्दी क्या है? कम से कम मास्क तो लगा लो," जैस्मिन ने पीछे से पुकारा, "मीडिया वाले कहीं तस्वीर न खींच लें।"
जैस्मिन भी जल्दी से बाहर आई और बैग से मास्क निकाल कर माहिरा को थमाया। माहिरा ने झुंझलाते हुए मास्क चेहरे पर लगाया और सिर झुकाते हुए होटल की ओर बढ़ने लगी।
दोनों ने ड्राइवर को जाने का इशारा किया और काले शीशों वाले दरवाज़े से होटल ब्लू डायमंड के भीतर दाखिल हो गईं—बिना ये जाने कि इस रात उनके इंतज़ार में सिर्फ केक या गिफ्ट नहीं, बल्कि कुछ ऐसा था जो उनकी ज़िंदगी बदल सकता था...
होटल ब्लू डायमंड के भीतर माहौल पूरी तरह से बदला हुआ था। लॉबी हल्की नीली और सुनहरी रौशनी से जगमगा रही थी। हर कोना रॉयलिटी की चमक में डूबा हुआ लग रहा था—कहीं फूलों की सजावट, कहीं मखमली पर्दे, और कहीं धीमा बजता वायलिन, जो माहौल को और भी रहस्यमय बना रहा था।
जैसे ही माहिरा और जैस्मिन अंदर दाखिल हुईं, रिसेप्शन डेस्क पर खड़ा स्टाफ उन्हें पहचानते ही मुस्कुराया और तुरंत सम्मान से झुक गया।
"मैम, मिस्टर अभिषेक मेहरा आपकी राह देख रहे हैं। प्लीज़ इस तरफ़..."
लेकिन माहिरा ने बिना कुछ कहे बस हल्का सा सिर हिलाया और तेज़ कदमों से उस प्राइवेट हॉल की ओर बढ़ गई।
...हॉल के दरवाज़े पर पहुँचते ही दो भारी-भरकम बाउंसरों ने दरवाज़ा खोला, और माहिरा का स्वागत हल्की सी झुकी हुई सलामी से किया।
भीतर कदम रखते ही माहिरा का चेहरा अचानक कठोर हो गया।
हॉल रोशनी से नहाया हुआ था, सैकड़ों महंगे बल्ब और झूमर उस पार्टी को सितारों जैसा बना रहे थे। लेकिन माहिरा की नज़रें भीड़ में किसी को ढूंढ रही थीं — अभिषेक मेहरा को।
वो दिखा... बिल्कुल सामने, मंच के पास। काले सूट में, बालों को सलीके से पीछे की ओर सेट किए, उसके हाथ में वाइन का गिलास था। लेकिन उसकी आँखों में न तो कोई मुस्कान थी, न ही अपने प्यार के लिए कोई बेसब्री।
माहिरा के कदम ठिठक गए। जैस्मिन धीरे से उसके पास आई और फुसफुसाई, "जाओ... सब देख रहे हैं। आज तुम्हारा दिन है।"
माहिरा ने एक गहरी साँस ली, और मुस्कान ओढ़ ली — वैसी मुस्कान जैसी एक स्टार को अपने चेहरे पर हर हाल में रखनी पड़ती है।
"हैप्पी बर्थडे, माहिरा!"
"यू लुक अमेज़िंग!"
"हमेशा की तरह स्टनिंग!"
चारों तरफ से तारीफें गूंजने लगीं, लेकिन माहिरा का ध्यान अब भी अभिषेक पर ही था।
वो उसके पास पहुँची और धीमे से बोली, “सॉरी... लेट हो गई।”
अभिषेक ने बस एक हल्की सी नज़र उस पर डाली और गिलास अपने होठों से लगाते हुए बोला, “टाइम पर आना भी एक आर्ट होता है... जो तुम्हें शायद कभी नहीं आएगा।”
उसकी ये बात माहिरा को अंदर तक चुभी, लेकिन वो मुस्कराई — क्योंकि कैमरे अब भी क्लिक कर रहे थे।
“कम से कम हैप्पी बर्थडे तो बोल दो,” माहिरा ने धीमे से कहा।
अभिषेक ने उसकी आँखों में झाँका, फिर एक बनावटी मुस्कान के साथ बोला, “हैप्पी बर्थडे, मिस परफेक्ट।”
फिर उसने मंच की ओर इशारा किया, "चलो, केक कटिंग का टाइम हो गया है।"
माहिरा ने जबरन मुस्कराते हुए उसका हाथ थामा और स्टेज की ओर बढ़ गई।
जैस्मिन कुछ दूरी पर खड़ी सब कुछ देख रही थी —उसकी आंखों में कुछ अजीब सा दिखाई दे रहा था क्या कुछ समझ नहीं आ रहा था।
कुछ देर बाद केक कटिंग का सिलसिला पूरा हुआ। माहिरा और अभिषेक ने एक-दूसरे को केक खिलाया, कैमरों की चमक के बीच दोनों की मुस्कुराहटें जैसे परफेक्ट जोड़ी का भ्रम रच रही थीं।
केक खाने के बाद माहिरा ने हल्का सा झुककर कुछ कहने की कोशिश की, पर उससे पहले ही अभिषेक ने सामने रखी ट्रे से एक गिलास उठाया और उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा—
"लो... तुम्हारा फेवरेट जूस।"
माहिरा के होंठों पर रुके हुए शब्द वहीं थम गए। उसने कुछ नहीं कहा, बस अभिषेक की आंखों में झाँका और हल्की मुस्कान के साथ वो गिलास थाम लिया।
जैसे ही उसने एक ही सांस में पूरा जूस गले से नीचे उतारा, अभिषेक के होंठों पर एक धीमी पर गहरी शैतानी मुस्कान फैल गई। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी — जैसे उसने कोई बहुत बड़ा खेल खेल लिया हो।
उधर, हॉल के एक कोने में खड़ी जैस्मिन भी यह सब देख रही थी। उसकी नज़रें माहिरा पर टिकी थीं और उसके चेहरे पर भी वही शैतानी मुस्कान धीरे-धीरे उभरने लगी थी — जैसे वो इस खेल की राजदार हो।
उस मुस्कान में न दोस्ती थी, न फिक्र... बस एक गहरी चाल, एक ऐसा राज़ जो शायद माहिरा को अभी पता नहीं था — लेकिन उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदलने वाला था।
माहिरा ने जैसे ही गिलास खाली किया, उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा और उसका सिर चक्कराने लगा।
वो थोड़ा लड़खड़ाई, लेकिन तुरंत खुद को संभाल लिया।
कैमरे अब भी चमक रहे थे, लोग अब भी उसकी तारीफ़ों में मग्न थे, पर माहिरा के कानों में सब कुछ धीमा पड़ने लगा था। जैसे कोई दूर से पुकार रहा हो… और वो आवाज़ें अब धुंधली होती जा रही थीं।
"माही, तुम ठीक हो?" जैस्मिन ने पास आकर पूछा, उसके बाद में टेंशन नहीं बल्कि एक्साइटमेंट नजर आ रही थी।
"हाँ... बस… चक्कर आ रहा है…" माहिरा ने माथा पकड़ते हुए जवाब दिया।
उसने चारों तरफ देखा, सब घूमता नज़र आ रहा था। अभिषेक अब भी वहीं खड़ा था, लेकिन उसकी मुस्कान और आंखों की बेरुखी किसी अजनबी की तरह लग रही थी। माहिरा का दिल डूबने लगा।
"चलो, थोड़ा आराम कर लो," जैस्मिन ने कहा और उसका हाथ थामकर उसे पार्टी हॉल से बाहर ले गई। अभिषेक ने पीछे से कोई आवाज़ नहीं लगाई, न कोई फिक्र दिखाई।
लिफ्ट में चढ़ते ही माहिरा की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं।
"जैस्मिन… क्या… क्या हो रहा है मुझे?" उसकी आवाज़ डूबती सी लग रही थी।
जैस्मिन ने बस इतना कहा, "बस थोड़ी देर और माही… फिर सब ठीक हो जाएगा।”
"कहाँ ले जा रही हो जैस्मिन?" माहिरा ने घबराई हुई आवाज़ में पूछा।
लेकिन जैस्मिन ने कोई जवाब नहीं दिया। बस तेज़ी से चलते हुए एक प्राइवेट कॉरिडोर में दाखिल हुई और फिर एक भारी-भरकम लकड़ी के दरवाज़े के सामने रुक गई।
दरवाज़ा खोला गया, और माहिरा को अंदर धकेलते हुए जैस्मिन ने सिर्फ इतना कहा,"अब वक्त आ गया है, माही… जो मैंने कहा था और जो अभिषेक ने तय किया है, वो सब शुरू होने वाला है।"
माहिरा का चेहरा सन्न पड़ गया।
"क्या मतलब है तुम्हारा?" उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
अंदर कमरे में हल्की रोशनी थी। दीवारों पर महंगे परदे, एक साइड में सिगार की हल्की गंध, और बीच में एक ऊँची कुर्सी पर बैठा था एक अधेड़ उम्र का आदमी — लगभग 50 साल का, चांदी सी चमक लिए बाल, आँखों में शिकारी जैसी ठंडक, और चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान।
जैसे ही उसकी नज़र माहिरा पर पड़ी, उसका चेहरा खिल उठा।
उसने अपने सूखे होंठों को जीभ से धीरे-धीरे तर किया और गहरी आवाज़ में कहा,"अरे वाह... असली हीरा तो अब आया है। बिल्कुल वैसी जैसी चाही थी।"
माहिरा एक कदम पीछे हट गई।
"जैस्मिन, ये कौन है? ये सब क्या हो रहा है?"
जैस्मिन ने उसकी ओर देखा, लेकिन इस बार उसकी आँखों में दोस्ती नहीं, महज़ एक सौदा पूरा करने की संतुष्टि थी।
"ये वही हैं जिनके लिए हम महीनों से तैयारी कर रहे थे। तुम्हारी 'परफेक्ट इमेज'... अब इनके लिए काम आने वाली है।"
"तुम पागल हो गई हो क्या? मैं यहां से जा रही हूँ!" माहिरा ने पलटने की कोशिश की, लेकिन तभी दरवाज़ा पीछे से बंद कर दिया गया।
अंदर बैठे आदमी ने wine का गिलास पिया और फिर धीरे से बोला,"तुम कहीं नहीं जा सकती, मिस माहिरा खन्ना। यहाँ से जाना अब तुम्हारे हाथ में नहीं है... और जो कुछ भी आगे होगा, वो तुम्हारी 'भलाई' के लिए ही है।”
माहिरा ने चारों ओर देखा — कोई रास्ता नहीं, कोई मदद नहीं। वो अपने आपको संभाले हुई थी।
लेकिन एक अजीब सा एहसास …
वो समझ चुकी थी कि उसकी पूरी ज़िंदगी अब एक अंधे कुएँ में जाने वाली हैं।
और जैस्मिन... वो तो अब तक दरवाज़े से बाहर जा चुकी थी — जैसे उसकी भूमिका पूरी हो चुकी हो।
कमरे में सन्नाटा था। इतनी गहराई का सन्नाटा कि माहिरा को अपने दिल की धड़कनें कानों में गूंजती हुई महसूस हो रही थीं। वो लड़खड़ाते क़दमों से पीछे हटी और दीवार से जा टकराई। आँखें उस अधेड़ उम्र के आदमी पर टिकी थीं, जो अब कुर्सी से उठ चुका था। उसकी आँखों में एक गंदी चमक थी।
"डरने की ज़रूरत नहीं है," उसकी आवाज़ में रेंगता हुआ सन्नाटा था, "मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा... जब तक तुम मेरी बात मानती रहोगी।"
माहिरा ने अपने होंठों पर जीभ फिराई। गला सूख रहा था। शरीर थका हुआ था, और सिर भारी। ड्रग धीरे-धीरे असर दिखा रहा था। लेकिन आँखों में अब भी चिंगारी थी।
"तुम क्या सोचते हो?" उसकी आवाज़ में कंपन था, लेकिन शब्दों में ज़हर, "कि मैं तुम्हारा गंदा खेल चुपचाप सह लूंगी?"
आदमी मुस्कराया, उसके होंठों पर एक कुटिल संतोष था। "तुम जितनी गुस्सैल हो, उतनी ही खूबसूरत भी लगती हो।"
वो उसके पास आने लगा। लेकिन उसी पल, माहिरा ने बाईं ओर की टेबल से कांपते हाथों से एक कांच का भारी शोपीस उठाया और पूरी ताक़त से उसकी ओर फेंका।
"मुझसे दूर रहो!" वह चीखी।
शोपीस सीधा उसके कंधे से टकराया। आदमी चौंक गया, कुछ सेकंड को झटका खा गया, फिर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
"कुतिया!" उसने दाँत पीसते हुए कहा, "तुम नहीं समझती कि तुम अब मेरी अमानत हो। अभिषेक ने तुम्हें मेरे हवाले किया है—एक सौदे के बदले। जैस्मिन सिर्फ एक पुल थी... असली सौदा तो बहुत पहले हो गया था।"
"झूठ!" माहिरा चीखी और दरवाज़े की ओर दौड़ी।
हाथों में ताकत कम थी, पर उम्मीद अब भी ज़िंदा थी। उसने हैंडल पकड़कर खींचा, झिंझोड़ा, लेकिन दरवाज़ा अंदर से लॉक था। वो पूरी ताकत से दरवाज़ा पीटने लगी।
"कोई है? प्लीज़! Help!" उसकी आवाज़ में हताशा नहीं, लड़ने की आग थी।
आदमी ने एक बटन दबाया। कमरे के कोने में एक स्क्रीन पर जैस्मिन की तस्वीर आई — वो बाहर खड़ी मुस्करा रही थी, जैसे ये सब पहले से तय था।
"वो तुम्हें नहीं बचाएगी। और तुम्हें यहाँ से जाने की इजाज़त... सिर्फ मैं दे सकता हूँ।"
माहिरा धीरे-धीरे दरवाज़े से हट गई। उसका शरीर थक चुका था, लेकिन उसका दिमाग़ अब भी दौड़ रहा था। ड्रग का असर तेज़ हो रहा था — उसकी दृष्टि धुंधली होने लगी, लेकिन उसकी सोच पहले से ज्यादा तेज़ हो चुकी थी।
उसने दीवार पकड़कर खुद को सीधा किया और आँखें उस आदमी में घोंप दीं।
"ठीक है..." उसने धीमे लेकिन स्पष्ट शब्दों में कहा, "बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?"
आदमी मुस्कराया।
"बस... थोड़ा साथ। थोड़ा वक्त। और... थोड़ी 'वफादारी'।"
माहिरा के होंठों पर हल्की मुस्कान आई। आँखों में एक सन्न कर देने वाला सन्नाटा था।
"तो सुनो..." वह बोली, "तुमने जिसे मोहरा समझा है, वो खुद खेल बदलना जानती है। और मैं वो चाल चलूंगी, जो तुम्हारे वजूद को हिला देगी।"
उसने दीवार के सहारे चलते हुए धीरे-धीरे मेज़ पर रखा पानी उठाया — और अगली ही पल, पानी का गिलास उस आदमी के चेहरे पर दे मारा।
"तुमने मुझे ड्रग दिया ना?" वह फुसफुसाई, "अब देख, नशा किस पर चढ़ता है।"
कमरे में पानी का छींटा पड़ते ही वो आदमी पीछे हट गया। माहिरा ने बिना एक पल गंवाए, टेबल से एक और भारी चीज़ उठाकर उसकी ओर फेंकी और भागकर खिड़की की ओर दौड़ी।
खिड़की छोटी थी, लेकिन खुली थी। उसके नीचे कोई सीढ़ी नहीं थी—सीधा पहला मंज़िल और नीचे पथरीला ज़मीन। लेकिन माहिरा के पास अब कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
"अब या कभी नहीं..." उसने खुद से कहा।
एक गहरी सांस लेते हुए, वो खिड़की से नीचे कूदी। गिरते ही एक जोरदार थक की आवाज़ हुई। उसकी पीठ और सिर ज़मीन से टकराए। आंखों के आगे अंधेरा छा गया, और शरीर सुन्न पड़ने लगा।
उसका सिर ज़मीन से टकराया था, और खून धीरे-धीरे बहने लगा।
माहिरा की आँखें अब खुली हुई थीं, लेकिन उनमें अब जीवन कम और पीड़ा ज़्यादा थी। उसको आंखें के आने अंधेरा छा रहा था।
उसे दो धुंधले चेहरे दिखे… दो जाने-पहचाने चेहरे दिखे...
जैस्मिन... सफेद ड्रेस में खड़ी, मुस्कराती हुई।
अभिषेक... उसके पीछे, धुएं में छिपा-सा, लेकिन नज़रों में कोई पश्चाताप नहीं।
"तुम्हें क्या लगा था माहिरा..." जैस्मिन की आवाज़ जैसे हवा में गूंज रही थी, "ये खेल तुम्हारे काबू का है?"
"हमने तो तुम्हें सिर्फ इस्तेमाल किया... और तुम दिल लगा बैठी?" अभिषेक की आँखें नीची नहीं हुईं, वो अब भी उसी ठंडी नज़रों से देख रहा था।
माहिरा का हाथ ऊपर उठा... जैसे वो कुछ कहना चाह रही हो। होंठ कांपते हुए धीरे-धीरे खुले...
"तुम्हें... माफ़ नहीं करूँगी... कभी नहीं..."
और फिर... उसकी पलकों ने आखिरी बार झपकी ली।
मुंबई के एक प्राइवेट अस्पताल का साइलेंट वार्ड...
कमरे में हल्की सी antiseptic की महक थी। मॉनिटर की बीप बीप करती आवाज़ के बीच, एक लड़की धीरे-धीरे होश में आ रही थी। उसकी कलाई पर मोटी पट्टी बंधी थी—खून के हल्के दाग़ अब भी उसमें झलक रहे थे।
उसने आंखें झपकाईं, रोशनी तेज़ थी। वो कुछ समझने की कोशिश कर रही थी—खुद को, अपनी जगह को, और उस भारीपन को जो उसके सीने में था।
तभी...
कमरे का दरवाज़ा धड़ाक से खुला।
एक लंबा, चौड़ा, और खतरनाक कद-काठी वाला आदमी अंदर आया। उसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। आँखों में जुनून नहीं, आग थी। महंगे सूट में, माथे पर हल्की चोट का निशान... और चाल में ऐसा दबदबा, मानो पूरे शहर को अपनी मुट्ठी में रखता हो।
लड़की की धड़कन एक पल को थम गई।
वो उसकी ओर तेज़ी से बढ़ा और बिना कुछ कहे उसका गला कस कर पकड़ लिया।
"तुम्हें क्या लगता है?" उसकी आवाज़ गूंजती हुई आई, "अपनी कलाई काट लोगी तो मैं तुम्हारी बात मान लूंगा?"
लड़की तड़पने लगी, उसका दम घुट रहा था... पर उसकी आँखें अब भी उसी शख्स को देख रही थीं — पहचानने की कोशिश करती हुई।
फिर अचानक, जैसे उसे एहसास हुआ हो, आदमी ने उसका गला छोड़ दिया और पीछे हट गया।
"आइंदा अगर ऐसा किया, तो अगली बार मैं तुम्हारी धड़कन बंद कर दूँगा।"
इतना कहकर वो मुड़ा और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गया।
बेड पर बैठी लड़की अब गहरी सांस ले रही थी। गला सुन्न था, आँखें फटी की फटी रह गईं।
"ये?" उसके होंठ बमुश्किल हिले।
नर्स के आने पर ही पता चला...
"वो... रणविजय रावत हैं। मुंबई के बेताज बादशाह। और आप... आप उनकी पत्नी.…"
लड़की के चेहरे पर एक और झटका आया।
"पत्नी?" उसने धीरे से दोहराया।
वो लड़की सोच में पड़ गई क्योंकि उसने तो सुना था कि रणविजय रावत की अभी शादी नहीं हुई तो फिर अचानक से उसकी पत्नी कहां से आ गई?
पत्नी तो आई ही आई ..वह आदमी उसका गला क्यों पकड़ रहा था? वह तो उसकी पत्नी नहीं थी ना…
वो तो माहिरा खन्ना…
“1 मिनट… मैं यहाँ अस्पताल में क्या कर रही हूँ? मुझे तो होटल ब्लू डायमंड में होना चाहिए था ना?"
वह बिस्तर से धीरे-धीरे उठने की कोशिश करती है, पर उसके शरीर में कुछ खास ताकत नहीं थी। उसकी कलाई पर बंधी पट्टी उसे याद दिलाती है कि जो भी हुआ है, वह बहुत गंभीर था। उसकी यादों का घेरा और भी घना हो रहा था।
"होटल... ब्लू डायमंड..." वह बुदबुदाती है, उसकी जुबान जैसे कांप रही हो, "वहाँ क्या हुआ था?"
एक हलकी सी दर्द की लहर उसके सिर से होते हुए पूरी बॉडी में फैल गई, और फिर अचानक वह उसे याद आता है—होटल के कमरे में एक अजनबी आदमी के साथ वह थी, और फिर वो असहनीय दर्द और डर... उसे याद आ रहा था कि उसने कुछ पिलाया था, और फिर... सब कुछ धुंधला सा हो गया था।
"क्या मैं मर गई थी?" वह खुद से पूछती है।
आसपास के कमरे की खामोशी उसे डराने लगी थी, और फिर उसकी आँखों के सामने वह आदमी आ खड़ा हुआ था—रणविजय रावत। वह आदमी जो हमेशा से सिर्फ शहर की कहानियों में ही था। उसका कद, उसकी आँखें, और उसकी आवाज़ सब कुछ अजीब था।
अब तक, वह मान चुकी थी कि उसे कुछ अजीब और खौ़फनाक होने जा रहा था, लेकिन उसके सामने वह आदमी जो उसकी गर्दन पकड़कर उसे धमकी दे चुका था, वह उसका पति कैसे बन गया?
"ये क्या हो रहा है?" उसने खुद से फिर से पूछा, "मैं रणविजय रावत की पत्नी कैसे बन सकती हूँ?”
माहिरा अभी इसी उलझन में थी कि उसे एक प्यारी सी मीठी सी आवाज सुनाई दी…
“कंचन..”
माहिरा ने आवाज की तरफ देखा तो सामने 20 से 22 साल के बीच एक लड़की खड़ी हुई थी। जिसमें रेड कलर की टॉप और ब्लैक कलर की जींस पहनी हुई थी।
वह लड़की माहिरा के पास आई और उसे गले से लगाते हुए बोली,”यह क्या किया तुमने कंचन.. तुमने उस मीरा की वजह से खुद की कलाई काट ली.. बल्कि तुम्हें तो उसे मीरा की कलाई काटनी चाहिए थी..”
अपने सामने मौजूद लड़की को तो पहले ही माहिरा नहीं पहचान पा रही थी और अब एक और नया नाम मीरा …और तो और उसे कंचन का कर पुकारा जा रहा था…
कंचन को चुप देखकर वह लड़की बोली,” क्या हुआ? तुम इतनी शांत क्यों हो गई हो? कहीं तुम उस मीरा के चक्कर में मुझसे तो बात करना बंद नहीं कर दोगी। मैं एक बात बता रही हूं भाभी नन्द का रिश्ता बाद में …लेकिन उससे पहले हमारा दोस्ती का रिश्ता है.. खबरदार जो भाई की किए की सजा मुझे दी तुमने..”
यह कोई और नहीं बल्कि रणविजय रावत की छोटी बहन अग्नि रावत थी…
अग्नि को यूँ बेचैन और टूटा हुआ देखकर कंचन से रहा नहीं गया। उसने धीरे से अग्नि का हाथ थामते हुए कहा, “घबराओ मत! जो गलती पहले हो चुकी है, अब वो दोबारा नहीं होगी।”
कंचन के चेहरे पर इस वक़्त जो आत्मविश्वास था, वो अग्नि ने पहले कभी नहीं देखा था। पल भर के लिए वह हैरान रह गई।
अग्नि ने कंचन का माथा छूते हुए चिंतित स्वर में कहा, “तुम ठीक तो हो ना? ये कैसी अजीब बातें कर रही हो? अचानक तुम्हारे अंदर इतना कॉन्फिडेंस कहाँ से आ गया?”
कंचन ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “क्या है ना, तुम्हारे भाई के चक्कर में सब कुछ मुझे ही संभालना पड़ता है। अब देखो, गलती से अपनी कलाई तक काट ली... लेकिन उससे कुछ फर्क पड़ा क्या? तुम्हारा भाई तो अब भी वैसा ही है। तो मैंने सोचा, जब वो नहीं बदलेगा, तो क्यों न मैं ही बदल जाऊं — और वो भी पूरी तरह से!”
कंचन की बातें सुनकर अग्नि एक फीकी मुस्कान के साथ बोली, “बहुत अच्छा सोचा तुमने। मैने पहले ही कहा था कि मेरे भाई से शादी मत करो। लेकिन तुम हो कि परिवार की वजह से शादी कर ली और अब देखो, शादी के बाद मिला क्या? वो हर वक्त तुम्हारी सौतेली बहन अंजलि के साथ नजर आता है।”
अग्नि की बातों का असर कंचन के चेहरे पर साफ झलकने लगा। कुछ देर तक वह चुप रही, फिर हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, “चलो... अब घर चलते हैं।”
इतना कहकर कंचन धीरे-धीरे हॉस्पिटल के कमरे से उठी और बाथरूम की ओर बढ़ गई। वह सीधे शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई। जब माहिरा ने शीशे में उसका चेहरा देखा, तो उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं।
"ये... ये तो कंचन सिंघानिया है... डी-लिस्ट ऐक्ट्रेस! इसकी शादी तो रणविजय रावत से हुई थी…"
कंचन सिंघानिया—सिंघानिया ग्रुप इंडस्ट्री के अध्यक्ष की बेटी। लेकिन ये रिश्ता सिर्फ कागज़ों पर था। सच तो ये था कि आज तक कंचन को अपने ‘अपने’ कहे जाने वाले परिवार से वह प्यार, वह अपनापन कभी नहीं मिला जिसकी वह हकदार थी।
माहिरा को कंचन के बारे में पहले से काफी कुछ पता था। एक बार किसी शूट के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी। वहीं से शुरू हुई बातचीत में माहिरा को कंचन के बीते दिनों की कई परतें खुलकर सामने आई थीं।
कंचन का बचपन किसी राजकुमारी की तरह नहीं, बल्कि एक गाँव की मिट्टी में बीता था। जन्म के कुछ ही समय बाद, एक अस्पताल की भूल ने उसे एक गरीब परिवार की झोली में डाल दिया था। वह परिवार भले ही गरीब था, पर उन्होंने कंचन को अपनी जान से भी ज्यादा चाहा।
फिर पंद्रह साल की उम्र में, सिंघानिया परिवार को अपनी असली बेटी के बारे में सच्चाई पता चली। वे गाँव पहुंचे और कंचन को वहाँ से ले आए।
पर जिस परिवार ने उसे जन्म दिया था, वही उसके लिए पराया बन गया। एक तरफ वो गाँव वाला परिवार था, जिसने उसे स्नेह और संस्कार दिए, और दूसरी तरफ उसका असली खून, जिसने उसे कभी अपना समझा ही नहीं।
सबसे बड़ी विडंबना तब हुई जब सिंघानिया परिवार ने अपनी गोद ली हुई बेटी की बातों में आकर कंचन पर ज़ुल्म करना शुरू कर दिया। उसकी बातों पर आंख मूंद कर भरोसा किया गया और कंचन को बार-बार नीचा दिखाया गया।
लेकिन फिर एक दिन अचानक ही उसकी शादी रणविजय रावत से कर दी गई—मुंबई के प्रभावशाली रावत खानदान के वारिस से। शादी तो हुई, लेकिन न कोई शोर, न कोई मीडिया रिपोर्ट, न ही किसी तरह का जश्न। ये रिश्ता एक रहस्य बनकर रह गया।
माहिरा के मन में सवालों की बाढ़ थी—आख़िर क्या मजबूरी थी जो कंचन को रावत परिवार से चुपचाप बाँध दिया गया? क्या ये रिश्ता कंचन की मर्ज़ी से हुआ था या फिर यह भी उसी परिवार का एक और फैसला था, जो उसकी इच्छा के विरुद्ध लिया गया?
सच क्या था? ये अब भी परदे के पीछे छिपा था।
कुछ देर बाद कंचन वॉशरूम से बाहर आई तो उसकी नजर कमरे में बैठी अग्नि पर पड़ी, जो गंभीरता से टीवी पर कोई न्यूज़ देख रही थी। कंचन ने भी अनजाने में स्क्रीन की ओर देखा… और उसका चेहरा एक पल को सफेद पड़ गया।
"ब्रेकिंग न्यूज़!"
"इंडस्ट्री की टॉप ऐक्ट्रेस माहिरा खन्ना ने कल रात hotel Blue diamond की बिल्डिंग से कूद कर आत्महत्या कर ली!"
न्यूज़ एंकर की आवाज़ और स्क्रीन पर चमकती तस्वीर—वह चेहरा कोई और नहीं, बल्कि खुद कंचन उर्फ माहिरा का था!
कंचन की आंखें हैरानी से फटी की फटी रह गईं। गुस्से और आक्रोश से उसका चेहरा तमतमा उठा। मुट्ठियाँ कस गईं और होठों के कोनों पर सख्ती आ गई।
वह मन ही मन बड़बड़ाई, "सुसाइड? क्या इन्हें लगता है कि झूठ फैलाकर ये लोग बच निकलेंगे? नहीं... बिल्कुल नहीं।"
"अभिषेक मेहरा… जैस्मिन… तुम लोगों ने मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने की जो साज़िश रची है, उसकी सज़ा तुम्हें मिलेगी—ऐसी सज़ा कि तुम उसे ताउम्र नहीं भूल पाओगे!"
अभी उसके भीतर का तूफ़ान शांत भी नहीं हुआ था कि तभी अग्नि की नजर उस पर पड़ी। वह तुरंत उठ खड़ी हुई और बोली, "ओह, तुम आ गई! चलो, घर चलते हैं... दादाजी तुम्हारा बड़ी देर से इंतज़ार कर रहे हैं।"
अग्नि की आवाज़ ने कंचन को उसकी सोचों की गहराई से बाहर खींचा। उसने धीरे से सिर उठाया और धीमे स्वर में पूछा, "अग्नि, एक बात पूछूँ?"
"क्या?" अग्नि ने उत्सुकता से उसकी ओर देखा।
“इस वक्त अंजलि कहां पर है?”
“मुझे तो लगा था तुम कुछ नया सवाल पूछोगी लेकिन उसे मनहूस के बारे में पूछ रही हो..क्यों?” अग्नि नाराज होकर बोली।
“बताओ ना कहां पर है ?”
अग्नि मुंह बनाकर बोली,“ पास के रूम में है.. उसने भाई से कहा है कि तुमने उस पर हाथ उठाया और जानबूझकर खुद को बचाने के लिए तुमने अपनी कलाई काट ली..”
“चलो मेरी प्यारी सी बहन से मिलकर आते हैं उसके बाद घर चलेंगे!” कंचन ने मुस्कुरा कर कहा।
अग्नि बोली ,“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना? तुम उसके पास मिलने जाओगी..अगर तुम गई तो वो मीरा फिर से कुछ तो कुछ साजिश करेंगी…और तुम्हारा नाम आ जाएगा.. और भाई ना जाने उसकी हर बात पर क्यों विश्वास कर लेते हैं? और वह फिर से तुम्हारे इंसल्ट करेंगे मुझे बिल्कुल सहन नहीं होता..”
“ऐसा कुछ नहीं होगा... चलो।” कंचन ने अग्नि को विश्वास दिलाया और उसका हाथ थामकर पास वाले वार्ड रूम की ओर बढ़ गई।
दरवाज़ा खोलते ही जो दृश्य कंचन ने देखा, उसने उसके अंदर की आग को और भड़का दिया। कमरे के अंदर रणविजय अंजलि के बेहद करीब बैठा था। अंजलि की आँखों से ऐसे आँसू बह रहे थे मानो कंचन ने उसे बेरहमी से पीट दिया हो।
अंजलि ने रणविजय का हाथ पकड़ रखा था और उसका सिर उसके कंधे पर टिका हुआ था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर कंचन पर पड़ी, उसके चेहरे पर एक चालाक, शैतानी मुस्कान उभर आई।
रणविजय ने कंचन को देखा और गुस्से से भड़क उठा, “तुम यहां क्या कर रही हो?”
कंचन की मौजूदगी ने अंजलि को जैसे झटका दे दिया। वह झटपट रणविजय से अलग हो गई और चेहरे पर मासूमियत ओढ़कर बोली,“सॉरी दीदी… प्लीज़, प्लीज़ हमें गलत मत समझिएगा। रणविजय बस मेरी मदद कर रहे थे, और कुछ नहीं…”
अंजलि की पल भर में बदलती भावनाओं को देखकर कंचन के अंदर की वो ‘नई कंचन’ मुस्कराई।
वह मन ही मन बोली, “वाह! कितनी बड़ी ड्रामा क्वीन है ये… एक पल में आँसू, अगले ही पल मासूम बन गई। शायद इसीलिए पुरानी कंचन इससे हार जाती थी… लेकिन अब नहीं। अब मैं हूँ — वो जो तुम्हारा हर नकाब उतारेगी। कंचन का जिस्म मिला है मुझे, और अब जिसने भी कंचन के साथ ज़रा भी गलत किया है — वो चाहे उसके अपने माँ-बाप हों, वो नाम का पति हो, या सबसे बढ़कर ये उसकी प्यारी बहना अंजलि सिंघानिया — सबको सज़ा मिलेगी… सख़्त सज़ा।”
फिर कंचन ने एक लंबी साँस ली और बेहद शांत लेकिन करारी आवाज़ में बोली,“मुझे कोई गलतफहमी नहीं है अंजलि। मैं तो बस सोच रही थी कि जब तुम दोनों इतने करीब हो… हर जगह साथ-साथ दिखते हो… मीडिया भी तुम्हें ‘परफेक्ट कपल’ कहता है — मानो खुद स्वर्ग से भेजा गया हो ये रिश्ता — तो फिर क्यों न इस अफ़वाह को सच बना ही दो? शादी कर लो। मुझे बेवजह इस रिश्ते में घसीटने की ज़रूरत क्या है?”
कंचन की बात सुनकर रणविजय, अग्नि और अंजलि — तीनों के चेहरों का रंग उड़ गया।
कि कंचन ऐसा कुछ कहेगी कंचन यहां पर ही नहीं रुक उसने आगे कहा
रणविजय या अंजलि कुछ कह पाते, उससे पहले ही कमरे में एक गूंजती हुई, गुस्से से भरी तेज आवाज ने सबको चौंका दिया,“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये सब कहने की?!”
कंचन ने धीरे से सिर घुमाया। दरवाज़े पर मिस्टर अजय सिंघानिया, मिसेज शारदा सिंघानिया और उनके साथ खड़ी थीं घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग — दादी।
तीनों के चेहरों पर गुस्से की तनी हुई लकीरें साफ़ नजर आ रही थीं। आंखों में जैसे आग सुलग रही हो।
अजय सिंघानिया तेजी से आगे बढ़े और कंचन के सामने आकर गरजे —
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसे बोलने की? तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ा है कि हमारे खानदान में कभी तलाक जैसी शर्मनाक चीज़ नहीं हुई! और तुम… तुम रणविजय जैसे लड़के से तलाक की बात कर रही हो? दिया लेकर भी ढूंढोगी तो भी ऐसा पति नहीं मिलेगा तुम्हें!”
लेकिन कंचन वहीं शांत खड़ी रही। उसकी आंखों में कोई डर, कोई झिझक नहीं थी। वो अजय सिंघानिया को ऐसे देख रही थी मानो सामने कोई पराया व्यक्ति खड़ा हो। उसकी इस बेरुखी को देखकर शारदा सिंघानिया का गुस्सा और बढ़ गया।
“कंचन! तुम्हें हो क्या गया है? तुम्हारे पापा तुमसे बात कर रहे हैं और तुम उनकी तरफ देख भी नहीं रही? ये कैसा व्यवहार है?”
लेकिन इस बार कंचन की मुस्कान ने सबको चौंका दिया। उसने धीमे लेकिन तीखे लहजे में कहा —
“पापा? किसके पापा? आप लोग तो मेरे वो रिश्तेदार हैं जिन्होंने सिर्फ मुझे अपने नाम से जोड़ा, पर कभी अपना नहीं समझा। मेरे असली माता-पिता वो हैं जिन्होंने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया… न कि आप, जिन्होंने मुझे सिर्फ इस खानदान की ‘मर्यादा’ निभाने का ज़रिया बनाया।”
उसकी आवाज़ अब ठंडी आग की तरह सुलग रही थी—“मैं जान चुकी हूँ इस नाम के रिश्ते की सच्चाई। एक दिखावे की शादी… जहां मैं सिर्फ आपकी छवि को बचाने का एक मोहरा थी। आपने मेरी खुशी, मेरी पहचान… सब छीन लिया, सिर्फ इसलिए कि आपकी ‘परफेक्ट फैमिली इमेज’ बनी रहे।”
कंचन ने अब अंजलि की ओर देखा, फिर सबकी आंखों में आंखें डालकर बोली ,“अगर आपकी प्यारी बेटी अंजलि को मिस्ट्रेस बनने का इतना ही शौक है, तो उसे खुलकर वो दर्जा दे दीजिए। मुझे उस गंदे खेल में हिस्सा नहीं बनना। आपकी खुशी के लिए मैंने शादी कर ली… लेकिन बदले में क्या मिला? मीडिया में मेरी शादी तक छुपा दी गई, और जो सबके सामने है… उसे पत्नी का दर्जा दे रहे हैं आप लोग?”
फिर एक अंतिम तीखी मुस्कान के साथ बोली,“जिसका जिक्र दुनिया में हो, पत्नी भी वही बने तो बेहतर होगा।”
कमरे में अब सन्नाटा छा गया था। न रणविजय कुछ बोल सका, न अंजलि… और न ही सिंघानिया परिवार।
कंचन की तीखी बातों ने जैसे कमरे में मौजूद हर इंसान की जुबान सिल दी थी। पर मिस्टर अजय सिंघानिया का गुस्सा अब उनके बस से बाहर था। उन्होंने गुस्से से कांपते हुए अपना हाथ उठाया और कंचन को तमाचा मारने के लिए आगे बढ़े।
मगर इससे पहले कि उनका हाथ कंचन के चेहरे तक पहुंचता, कंचन ने बिजली जैसी तेजी से उनका हाथ बीच में ही पकड़ लिया।
उसकी आंखों में अब डर नहीं, बल्कि आंच थी—
"मिस्टर सिंघानिया, एक बार आपने हाथ उठाया, सह लिया… लेकिन दोबारा अगर मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की, तो याद रखिएगा… मेरे संस्कार मुझे पलट कर वार करना नहीं सिखाते, पर आपकी बेटी अंजलि को तो मैं जरूर उसका जवाब दे सकती हूं।"
यह कहते हुए वो सीधा अंजलि के पास पहुंची, जो एक कोने में सहमी बैठी थी।
कंचन ने बिना एक पल गँवाए, उसकी ओर देखा और पूरा हाथ घुमा कर एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर दे मारा।
चटाक!
उस आवाज़ ने जैसे कमरे की हवा चीर दी हो। सबके चेहरे फटी आंखों से कंचन को देख रहे थे।
शारदा गुस्से से बोली,"कंचन! तुम्हारी इतनी हिम्मत? सबके सामने अंजलि पर हाथ उठा रही हो? तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आई?"
कंचन ने उसकी ओर देखा, चेहरे पर एक कटाक्षभरी मुस्कान के साथ बोली,"मिसेज सिंघानिया, अगर मुझे दर्द होता तो चुप रहती… पर अब तक जो मेरी बहन ने मुझ पर इल्ज़ाम लगाया कि मैंने उस पर हाथ उठाया है, तो क्यों न अब सच में एक बार हाथ उठाकर उसे एहसास करवा दूं कि झूठ और सच में क्या फर्क होता है?"
फिर एक गहरी सांस लेकर उसने आगे कहा,"और हाँ, अगले आधे घंटे में मेरा वकील आपके पास तलाक के कागजात लेकर पहुंच जाएगा। कृपया शांति से दस्तखत कर दीजिएगा और मुझे इस झूठे, नाम के रिश्ते से आज़ाद कर दीजिए।"
इतना कहकर कंचन ने किसी की ओर मुड़कर नहीं देखा और आत्मविश्वास से कमरे से बाहर निकल गई।
पीछे रह गए सभी लोग… सन्न, चुप और हैरान।
अंजलि ने सबकी नजरों से बचने के लिए सिर झुका लिया। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी — वो मुस्कान जो अंदर के डर को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
कुछ पल बाद, वो घुटी हुई आवाज़ में बोली —
"माँ… पापा… मुझे माफ कर दीजिए। जो कुछ भी हुआ, उसकी जिम्मेदार सिर्फ मैं हूं। मुझे उस दिन ही यह घर छोड़ देना चाहिए था, जिस दिन दीदी इस घर में वापस आई थीं… शायद मुझे इतने सालों तक यहां रुकना ही नहीं चाहिए था।”
👉 क्या रणविजय तलाक देगा कंचन को?
👉 कैसे बदला लेगी मेरा अभिषेक और जैस्मिन से?
जैसे ही कंचन कमरे से बाहर निकली, अग्नि भी तुरंत उसके पीछे आ गई। कंचन का इतना साहसी और बेबाक रूप देखकर अग्नि पूरी तरह से हैरान रह गई थी।
उसने कंचन के कंधे पर हल्का सा हाथ रखकर मुस्कुराते हुए कहा,"शाबाश कंचन! यही बात तो चाहिए थी। बहुत ही सही फैसला लिया है तुमने… लेकिन अब आगे क्या करने वाली हो?"
कंचन ने आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में जवाब दिया,
"सबसे पहले तो वकील को कॉल करूंगी तलाक की प्रक्रिया शुरू करवाने के लिए। और हाँ, मैंने सुना है कि आज एक ऑडिशन है… तो सोच रही हूँ वहाँ चली जाऊँ। वैसे भी, इन लोगों की वजह से मैं अपने करियर को क्यों बर्बाद करूं?"
अग्नि ने थोड़ा संदेह भरे अंदाज़ में पूछा,"क्या तुम सच में ऑडिशन देने जा रही हो?"
कंचन मुस्कुरा उठी और आत्मविश्वास से कहा,
"100% श्योर हूँ।"
इतना कहकर वह तेज़ी से वहाँ से निकल गई।
जैसे ही कंचन अस्पताल से बाहर निकली, उसने अपना फोन निकाला और एक नंबर डायल किया। कुछ देर तक उसने उस नंबर पर बातचीत की, फिर अपने लिए एक टैक्सी बुक कर ली। लगभग पाँच मिनट बाद उसके सामने टैक्सी आकर रुक गई।
कंचन टैक्सी में बैठी और ड्राइवर से कहा,"कृपया मुझे पास की कॉफी शॉप तक छोड़ दीजिए।"
अस्पताल के अंदर कुछ ही देर बाद रणविजय कमरे से बाहर आया और वहाँ अग्नि को अकेले खड़ा देखकर तेज़ी से उसकी ओर बढ़ा।
"कंचन कहाँ गई?" रणविजय ने पूछा।
अग्नि ने ठंडी नज़र से उसकी ओर देखा और व्यंग्य भरे लहजे में कहा,"अब आपको फुर्सत मिल गई उसके बारे में पूछने की?"
रणविजय ने गुस्से को ज़ब्त करते हुए कहा,"मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ अग्नि। बेवजह की बातें मत बनाओ और साफ़-साफ़ बताओ कि कंचन कहाँ है और उसे क्या हुआ? अचानक उसने तलाक लेने का फैसला कैसे कर लिया? पहले तो गलती खुद करते हो, ऊपर से ये सब..."
अग्नि ने दो क़दम आगे बढ़ते हुए गहरी सांस ली और तल्ख़ी से बोली,"भाई, सच कहूँ तो मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आप जैसे लोग खुद को इंसान कैसे कह लेते हैं। एक तरफ कहते हो कि कंचन से बेइंतहा मोहब्बत करते हो, और दूसरी तरफ, जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी उसे आपके विश्वास की… तब आप पूरी तरह से फेल हो गए।"
वो रुकी नहीं, उसकी आवाज़ और तीखी हो गई—
"अंजलि ने बस एक बात कह दी कि कंचन ने उस पर हाथ उठाया, और आपने बिना एक पल भी सोचे, बिना सच्चाई जाने, आंख मूंदकर उस पर शक कर लिया! क्या यही प्यार है? मोहब्बत की पहली नींव होती है— विश्वास। और जब आप उस पर ही खरे नहीं उतर सकते, तो फिर ये ‘बेइंतहा मोहब्बत’ का दावा किस मुँह से करते हैं?"
"कंचन ने जो किया, सही किया। देर से किया, लेकिन बिल्कुल सही किया। अब वह खुद के लिए जीना चाहती है— और किसी का भरोसा न होने से बेहतर है, अकेले खड़ा होना।"
"तुम क्या बकवास कर रही हो, अग्नि? तलाक कोई बच्चों का खेल नहीं होता। शादी हुई है हमारी—ऐसे कैसे वो तलाक की बात कर सकती है?"
रणविजय की आवाज़ में ग़ुस्सा साफ़ झलक रहा था।
"दोहरा रिश्ता है तुम्हारा कंचन के साथ—एक तरफ़ दोस्त हो, दूसरी तरफ़ नंनद। तुम्हें तो उसे समझाना चाहिए था। और तुम उल्टा मुझे ही दोष दे रही हो?"
अग्नि ने शांत लेकिन तीखे लहज़े में जवाब दिया,
"तो फिर बताइए रणविजय भाई, करें तो क्या करें? आपने हालात ही ऐसे बना दिए कि उसे मजबूरी में आपसे शादी करनी पड़ी। लेकिन शादी के बाद मिला क्या? सिर्फ़ ताने, अपमान और शक।"
"आख़िर उसने आपसे शादी कर के ऐसी कौन-सी बड़ी गुनाह कर दी थी?"
"वो तो खुद इस शादी के लिए तैयार नहीं थी। अपने ही दादाजी से कहकर सिंघानिया परिवार को राज़ी किया था, ताकि आपकी और उसकी शादी हो सके। लेकिन शादी होते ही आपने अपनी नज़रें उसकी बहन अंजलि पर जमा लीं।"
"जिससे आप बेइंतहा मोहब्बत करने का दावा करते थे, उसी से सबसे ज़्यादा दूरी बना ली। और अब जब उसने अपने आत्मसम्मान के लिए आवाज़ उठाई है, तो आप उसे ही ग़लत ठहरा रहे हैं!"
अग्नि की आँखें अब भीगने लगी थीं, लेकिन वो रुकी नहीं,"हाँ, मैं मानती हूँ कि पहले मैं आप दोनों को मिलाने की कोशिश करती थी। लेकिन शायद वही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। अब मैं कोई गलती नहीं दोहराने वाली। अब जो भी फ़ैसला लेना है, वो सिर्फ़ कंचन का होगा—मैं उसमें दखल नहीं दूँगी।"
"और एक बात… अगर कभी अंजलि से फुर्सत मिले तो दादाजी से मिल लेना। वह काफी याद कर रहे हैं आपको ..” यह कहकर अग्नि वहाँ से चली गई।
रणविजय वहीं खड़ा रह गया—स्तब्ध, अकेला और गहराई में डूबा हुआ।
कुछ देर बाद मिस्टर और मिसेज सिंघानिया बाहर आए। रणविजय की हालत देख, मिस्टर सिंघानिया ने उसके कंधे पर हाथ रखा और गंभीर स्वर में कहा,"आप परेशान मत होइए मिस्टर रावत। मैं खुद कंचन से बात करूँगा। वो आपसे तलाक नहीं लेगी।"
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तो वहीं दूसरी तरफ, कॉफी शॉप में…
कॉफी शॉप की बड़ी कांच की खिड़की के पास एक कोने में बैठी थी कंचन। हल्की धूप उस पारदर्शी कांच से छनकर उसकी चेहरे पर गिर रही थी, जिससे उसका चेहरा और भी शांत लेकिन दृढ़ नज़र आ रहा था। उसका चेहरा हल्के मेकअप में था, बालों को एक सलीके से बांधा गया था, और उसने एक सिंपल लेकिन एलीगेंट व्हाइट कुर्ता और ब्लू डेनिम पहन रखा था। उसके पास एक स्लिंग बैग रखा हुआ था, और सामने मेज़ पर उसकी कॉफी कप से उठती भाप ठंडी हवा में घुल रही थी।
कॉफी शॉप में हल्का जैज़ म्यूज़िक बज रहा था, वेटर धीमी चाल से इधर-उधर घूम रहे थे और कुछ युवा लड़के-लड़कियाँ अपनी लैपटॉप स्क्रीन में खोए हुए थे। लेकिन इन सबके बीच, कंचन की निगाहें बार-बार अपने मोबाइल की स्क्रीन पर टिक रही थीं। कभी नोटिफिकेशन खंगालती, कभी वॉलपेपर घूरती। उसकी आंखों में बेचैनी थी—लेकिन उस बेचैनी में डर नहीं, बल्कि एक नया आत्मविश्वास था। एक फैसला, एक बदलाव, जिसे वो पूरी तरह स्वीकार चुकी थी।
उसने धीरे से कॉफी की एक चुस्की ली, जब—
"ट्रिंग..."
कॉफी शॉप का दरवाज़ा खुला।
भीतर तेज़ चाल से एक लड़की दाखिल हुई। उसने नी-लेंथ ब्लैक स्कर्ट के साथ पेस्टल पिंक शर्ट पहन रखी थी और कंधे पर एक बड़ा सा लैदर बैग टांगा हुआ था। उसकी आँखों पर स्टाइलिश ब्लैक गॉगल्स थे और बाल खुले हुए, लेकिन ज़रा भी बिखरे नहीं। वो इधर-उधर कुछ पल देखती रही—फिर जैसे ही उसकी नज़र कंचन पर पड़ी, वो सीधी उसी की तरफ बढ़ गई।
कंचन की टेबल के पास पहुंचकर उसने बिना कुछ कहे गॉगल्स धीरे से उतारे और कंचन की आंखों में आंखें डालते हुए बोली,"अचानक से तुमने मुझे क्यों याद किया?"
"हाय ना हेलो, सीधा सवाल…" कंचन मुस्कुराई और बोली।
सामने बैठी लड़की ने थोड़ा झुंझलाकर कहा, "देखो कंचन, जो भी कहना है साफ-साफ कहो। मेरे पास और भी काम हैं।"
कंचन ने बिना किसी भाव के कहा, "माहिरा के सुसाइड की खबर सुनकर दुख हो रहा है?"
यह सुनते ही सामने बैठी लड़की चौंक गई। उसने कंचन की ओर देखा, लेकिन कंचन का चेहरा बिल्कुल भावहीन था — न दुख, न अफसोस, बस एक सन्नाटा।
लड़की ने गहरी सांस ली और पूछा, "आख़िर तुमने मुझे बुलाया ही क्यों है?"
कंचन की आवाज़ में पहली बार हल्का कंपन था, "मुझे पता है, माहिरा तुम्हारे लिए क्या थी। लेकिन शायद उसने किसी और की बातों पर यक़ीन कर तुम्हें खुद से दूर कर दिया। इसी लिए… मैं माफ़ी मांगना चाहती हूं।"
लड़की की आंखें भर आईं, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, कंचन। हालात और वक्त ही ऐसे थे… कि माही ने वो सब किया।”
यह कहकर उस लड़की ने कंचन की ओर गहरी नजरों से देखा और बोली,"वो सब छोड़ो कंचन… बस ये बताओ कि अचानक मुझे बुलाने की वजह क्या है? जहां तक मुझे याद है, हमारी पहली और आखिरी मुलाकात माहिरा के साथ ही हुई थी। उसके बाद तो हमने एक-दूसरे को देखा तक नहीं। और फिर… तुम्हारे पास मेरा पर्सनल नंबर आया कहां से?"
कंचन ने बिना इधर-उधर की बात किए सीधे कहा,
"प्रिया, मैं चाहती हूं कि तुम मेरी मैनेजर बनो।"
प्रिया अचानक चौंकी। उसने सीधा सिर हिलाते हुए मना कर दिया, "नहीं कंचन, मैं ये काम नहीं कर सकती।"
कंचन थोड़ी देर खामोश रही, फिर धीरे से बोली,
"मैं जानती हूं प्रिया… जब माहिरा ने तुम्हें खुद से दूर कर दिया था, उसी दिन तुमने एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया था। लेकिन आज… वही माहिरा तुम्हें फिर से पुकार रही है… तुम्हारी मदद चाहती है। प्लीज़, कोको… हेल्प मी।"
'कोको' — यह नाम सुनते ही प्रिया जैसे जम सी गई।
यह वही नाम था, जो केवल माहिरा लिया करती थी। उस नाम को सुनते ही उसकी आंखें भर आईं।
वह चौंककर कंचन की ओर देखने लगी… जैसे उसके अंदर कोई तूफान उठ खड़ा हुआ हो।
“मेरा निक नेम…कौन हो तुम?” प्रिया ने शक बड़ी नजरों से कंचन की तरफ देखा और सवाल किया।
क्या कंचन प्रिया को बता देगी सच?
क्या प्रिया कंचन की मैनेजर बनने के लिए राजी हो जाएगी?
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प्रिया चुपचाप कॉफी की चुस्कियाँ लेते हुए कंचन की बातें सुन रही थी। लेकिन जैसे ही कंचन के आख़िरी शब्द उसके कानों में पड़े, कॉफी जैसे गले में ही अटक गई। वह जोर-जोर से खांसने लगी।
कंचन तुरंत घबराकर उठी और उसकी पीठ सहलाते हुए बोली,“ठीक हो ना?”
प्रिया ने धीरे से सिर हिलाया और उसका हाथ पकड़कर उसे वापस उसकी जगह बैठा दिया। फिर हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोली,
“तो... इसका मतलब तुमने सुसाइड नहीं किया था? बल्कि खुद को बचाने के लिए खिड़की से कूद गई थी? और ये सब... ये सब अभिषेक और जैस्मिन की वजह से हुआ?”
यह कहते हुए प्रिया की आंखों में गुस्सा और चेहरे पर नफ़रत साफ़ झलक रही थी।
“मुझे तो इस बात पर और भी ज़्यादा हैरानी हो रही है कि तुम्हारा पुनर्जन्म हुआ है... और वो भी किसी आम लड़की के रूप में नहीं, बल्कि कंचन सिंघानिया के रूप में! सिंघानिया परिवार की सबसे बड़ी बेटी... और सबसे चौंकाने वाली बात ये कि कंचन सिंघानिया की शादी हो चुकी है... वो भी रणविजय रावत से! आई कैन’ट बिलीव दिस! और अब तुम तलाक की बात कर रही हो? ये सब क्या हो रहा है कंचन?”
प्रिया सच में उलझन में थी, जैसे उसका दिमाग कुछ भी समझने से इंकार कर रहा हो।
कंचन ने उसकी आंखों में देखते हुए उसे शांत किया,“पहले तुम रिलैक्स करो प्रिया। लंबी गहरी सांस लो... फिर मेरी बात ध्यान से सुनो।”
प्रिया ने आंखें बंद कर लंबी सांस ली और फिर कंचन की ओर देखा।
कंचन ने अपनी बात आगे बढ़ाई,“जैसा कि मैंने कहा... मैं मिस्टर रणविजय रावत को तलाक देने जा रही हूं — ये मैंने सिर्फ गुस्से में कहा था। सच तो ये है कि मेरा उन्हें तलाक देने का कोई इरादा नहीं है। मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली।”
प्रिया ने तुरंत सवाल किया,“अगर तुम्हारा तलाक देने का कोई इरादा ही नहीं था, तो फिर धमकी देने का क्या मतलब था?”
कंचन ने अपने बालों को पीछे झटकते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा,“तुम तो जानती हो मुझे... कैसी हूं मैं। उस वक्त गुस्सा बहुत था... जो मन में आया, बोल दिया।”
प्रिया ने अपने माथे पर हल्के-हल्के थपकी मारते हुए कहा,"पागल लड़की! गुस्सा आया और जो मन में आया, तुमने बोल दिया? कम से कम ये तो देख लेती कि सामने सुनने वाला कौन है!"
कंचन ने शरारती मुस्कान के साथ प्रिया की तरफ देखा और फिर तुरंत टॉपिक बदलते हुए मासूमियत से बोली,"वो सब बाद में संभाल लेंगे... पहले ये बताओ, क्या तुम बनोगी मेरी मैनेजर?"
उसकी आंखों में मासूम सी उम्मीद थी, जैसे प्रिया से 'हां' सुनने के लिए दिल से तैयार बैठी हो।
प्रिया ने अपनी कॉफी उठाई, एक सिप ली और फिर मुस्कुराते हुए कहा,"वैसे तो मैं पहले मना करने वाली थी, लेकिन तुम्हारे लिए... मैं कुछ भी कर सकती हूं। बस एक शर्त है—इस बार तुम वही गलती नहीं करोगी जो पिछली बार की थी।"
कंचन की आंखों में गंभीरता उभर आई। उसने कॉन्फिडेंस में कहा,”नहीं, इस बार नहीं। इस बार मैं इंटरनेट इंडस्ट्री में कदम रख रही हूं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए। उन सबको उनकी औकात दिखाने के लिए, जिन्होंने कंचन को तकलीफ दी थी। चाहे वो पूरा सिंघानिया परिवार हो, उसकी सौतेली बहन अंजलि सिंघानिया... या फिर कंचन का सीक्रेट हस्बैंड—रणविजय रावत।"
प्रिया उसकी बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान में अफसोस भी था और सुकून भी।
उसे अब भी माहिरा की याद सताती थी... लेकिन एक सुकून इस बात का था कि भले ही माही अब इस दुनिया में नहीं थी, पर उसके लिए वह आज भी ज़िंदा थी—कंचन के रूप में।
दोनों कॉफी शॉप में टेबल के पास बैठकर बातें कर ही रहे थे कि अचानक बगल में रखा कंचन का फोन बजने लगा। कंचन ने एक नजर स्क्रीन पर डाली — "मिस्टर रावत" नाम चमक रहा था।
यह नाम देखते ही उसके चेहरे पर एक पल के लिए भी कोई भाव नहीं बदला। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के फोन उठाया और शांत आवाज में कहा,“हेलो।”
दूसरी तरफ से एक गूंजती हुई कड़क आवाज आई,
“कहां हो तुम?”
कंचन ने बिना एक पल गंवाए सीधा जवाब दिया,
“जैसे आपकी कुछ दोस्त हैं, वैसे मेरे भी हो सकते हैं ना? तो अपने दोस्तों से मिलने आई हूं। और कुछ जानना है आपको?”
उसके आवाज में न तो डर था, न ही कोई घबराहट। शब्दों में सीधी चोट थी।
रणविजय एकदम सन्न रह गया। ये वही कंचन थी? जिसे वह जानता था — जो हमेशा चुपचाप, डरी-सहमी उसकी बातों को सिर झुकाकर सुनती थी? लेकिन अब उसके सामने एक बिल्कुल अलग कंचन थी — निडर, तीखी और आत्मविश्वास से भरी हुई। इतनी अलग कि उसने तो अब उससे तलाक तक लेने का फैसला कर लिया था।
रणविजय कुछ कह पाता, उससे पहले ही कंचन ने फोन काट दिया। फिर बेपरवाही से फोन साइड टेबल पर रखा और प्रिया की ओर मुड़कर मुस्कराते हुए बोली,“मैंने सुना है आज एक ऑडिशन है।”
प्रिया ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
“हां, ऑडिशन तो है... लेकिन अभी उसमें करीब दो घंटे का वक्त है। तुम तब तक थोड़ा रेस्ट कर लो। मैं ऑडिशन डिपार्टमेंट के हेड से संपर्क करके स्क्रिप्ट मंगवाती हूं।”
यह कहकर प्रिया ने अपना बैग उठाया और वहां से निकल गई।
करीब 30 मिनट बाद एक काली रंग की गाड़ी RR विला के सामने रुक गई।
RR विला मानो किसी सपने जैसा लगता था। ऊँची-ऊँची दीवारों के पीछे फैला यह विला दूर से ही अपनी शान और शौकत बिखेर रहा था। पूरे विला की बाहरी दीवारें सफेद संगमरमर से बनी थीं, जिन पर हल्की सुनहरी नक्काशी की गई थी, जो सूरज की पहली किरणों में चमक रही थी।
मुख्य द्वार पर भारी लकड़ी का दरवाज़ा लगा था, जिस पर हाथों से बनी नाजुक कलाकारी इसे एक शाही और भव्य लुक दे रही थी। दरवाज़े के दोनों ओर दो बड़े झूमर जैसे लैंप्स लगे थे, जो शाम के वक्त इस विला को किसी महल की तरह जगमगाते होंगे।
विला के सामने एक हरा-भरा लॉन था, जिसमें बड़े ही खूबसूरती से कटे हुए पेड़-पौधे, रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। बीच में एक संगमरमर का फव्वारा था, जो लगातार पानी की ठंडी-ठंडी बूंदें हवा में फैलाता रहता था, जैसे यह आगंतुकों का स्वागत कर रहा हो।
विला की बालकनी में लटकती हुई बेलें, बड़ी-बड़ी शीशे की खिड़कियाँ और ऊँची-ऊँची छतें इस जगह की भव्यता को और भी बढ़ा रही थीं। यह कोई साधारण मकान नहीं था, बल्कि एक एहसास था — शाही, शांत और रहस्यमयी।
गाड़ी के अंदर से कंचन बाहर निकली और विला को देखते ही उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं।
“अरे! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पुनर्जन्म के बाद मुझे ऐसे घर में रहना पड़ेगा। वैसे कुछ भी कहो, रणविजय रावत का घर है, तो वाकई बड़ा और शानदार है।”
इतना कहकर कंचन विला के अंदर चली गई।
यह विला जितना बाहर से खूबसूरत लग रहा था, अंदर से भी उतना ही भव्य और शानदार था।
सामने एक बड़ा सा मेहराबदार हॉल नजर आया। फर्श पर सफेद संगमरमर बिछा हुआ था, जिसमें सुनहरी बॉर्डर की नक्काशी की गई थी। छत से एक विशाल क्रिस्टल झूमर लटक रहा था, जिसकी चमक पूरे हॉल को जगमगा रही थी और दीवारों पर नर्म सुनहरी परछाइयाँ बिखेर रही थी।
हॉल के एक कोने में एक आलीशान सीढ़ी थी, जो ऊपर के कमरों की ओर जाती थी। इसकी रेलिंग जर्मन डिज़ाइन की थी, जिसमें लोहे और कांच का सुंदर मेल था, जो इस पूरे माहौल में एक अनोखी शाही छवि जोड़ रहा था।
कंचन धीरे-धीरे सोफे पर बैठ गई। अभी वह पूरी तरह से आराम से बैठ भी नहीं पाई थी कि एक नौकरानी उसके पास आई और धीरे से बोली,
"मैडम, आपके लिए काफी लेकर आऊं?"
कंचन ने जवाब देने की कोशिश की, लेकिन पीछे से अचानक एक कड़क आवाज गूंजी,”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, उससे इतनी आसानी से काफी के बारे में पूछने की?"
कंचन मुड़कर देखी तो सामने एक और नौकरानी खड़ी थी। शायद वही इस पूरे घर की हेड नौकरानी थी। उसके चेहरे पर साफ गुस्सा झलक रहा था।
वह कंचन के पास आई और गुस्से से बोली,"इतने वक्त तक कहां थीं तुम? तुम्हें पता भी है यहां का सारा काम बाकी है? वह काम कौन करेगा?"
“क्या?” कंचन पूरी तरह से हैरान रह गई।
"क्या-क्या मतलब? काम कौन करेगा? क्या तुम भूल गई हो कि इस घर में तुम सिर्फ हमारी बदौलत ही रह रही हो? अगर कभी हमने मालिक से शिकायत कर दी, तो तुम्हारा यहां से बाहर जाना तय है," हेड नौकरानी पुष्पा ने सख्ती से कहा।
माही पूरी तरह से हैरान रह गई। उसे लगता था कि कंचन के परिवार वाले ही उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं, लेकिन नौकरानियों का यह रवैया उसके लिए आश्चर्य से कम नहीं था।
कंचन ने मजबूती से कहा,"मिस पुष्पा सिंह, यही नाम है न आपका? अगर आपको अपने मालिक को बताना है, तो बेझिझक जाकर बताइए, लेकिन उससे पहले मुझे मेरी कॉफी चाहिए।"
इतना कहकर वह बिना किसी जवाब के फिर से सोफे पर बैठ गई।
पुष्पा का गुस्सा बढ़ गया, उसका चेहरा लाल-पीला हो चुका था। कंचन का यह बदलाव उसे बिल्कुल भी नागवार गुज़र रहा था।
उसने कंचन का हाथ पकड़कर जोर से खींचा और कहा,"तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई इस महंगे सोफे पर बैठने की? क्या तुम सच में खुद को इस घर की मालकिन समझती हो? रणविजय सर की पत्नी समझती हो? सुनो, रणविजय सर तुमसे नफरत करते हैं, और इस घर की असली मालकिन अंजली मैडम है। इसलिए अपनी जगह जानकर बोलो!"
कंचन ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा,"सच में अंजली इस घर की मालकिन है?"
इतनी बात कहते ही उस शांत माहौल में अचानक एक तेज धमाका हुआ। पूरे घर में हड़कंप मच गया। वहां मौजूद नौकर-नौकरानियां स्तब्ध रह गईं, उनके चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान फैल गई, जैसे वे इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
पुष्पा अपने गाल पर हाथ रखे खड़ी थी, उसकी आंखों में हल्की सी आंसू भी थीं। उसने गुस्से में कहा,"तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने की! मैं अभी अंजली मैडम के पास जाकर तुम्हारी शिकायत करती हूं। और हां, तुम इस विला से अभी चली जाओगी।"
यह कहकर पुष्पा गुस्से से पैर पटकती हुई वहां से चली गई।
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पुष्पा के वहां से जाते ही कंचन वापस सोफे पर बैठ गई। उसने उस नौकरानी की ओर देखा, जो कुछ देर पहले उससे कॉफी के बारे में पूछ रही थी।
"अब तो कॉफी ले आओ, या तुम्हारे सवालों की लिस्ट अभी बाकी है?"
नौकरानी बिना कुछ बोले सिर झुकाए किचन की ओर चली गई।
उधर, दूसरी तरफ पुष्पा...
अपने सर्वेंट रूम में आई और बेड पर रखा अपना फोन उठाया। एक नंबर डायल करते ही कुछ रिंग गईं और फिर दूसरी ओर से कॉल रिसीव किया गया।
"हेलो मैडम..." आवाज में कुछ घबराहट थी।
इसी बीच, कंचन के पास उसकी कॉफी आ चुकी थी। वह आराम से सिप लेते हुए कॉफी का मजा लेने लगी। करीब पंद्रह मिनट बाद उसके फोन पर एक मैसेज आया। उसने फोन उठाया और स्क्रीन पर नजर डाली। ये मैसेज प्रिया की तरफ से था:
“मैंने तुम्हें स्क्रिप्ट मेल कर दी है, एक बार देख लो और फिर फौरन ऑडिशन लोकेशन पर पहुंचो... वक्त बिल्कुल नहीं है हमारे पास।”
मैसेज पढ़ते ही कंचन फुर्ती से खड़ी हो गई और निकलने को हुई। अभी उसने दो ही कदम आगे बढ़ाए थे कि एक जानी-पहचानी तीखी आवाज़ ने उसे रोक लिया।
"अब कहां जा रही हो तुम?"
कंचन ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, "लगता है अभी जो थप्पड़ पड़ा था, वो काफी नहीं था, तभी फिर से सवाल करने की हिम्मत कर रही हो।"
फिर वह रुकते बिना आगे बढ़ गई। पीछे खड़ी पुष्पा गुस्से से अपने हाथ भींचती रह गई, उसकी आँखों में आग साफ़ झलक रही थी।
12:55 PM …
लोकेशन: गोरेगांव फिल्म सिटी, स्टूडियो नंबर 5
धूप तेज़ थी, हवा में गर्माहट और चारों तरफ कलाकारों की भीड़ थी। जून के महीने की चिलचिलाती गर्मी में स्टूडियो के बाहर रंगीन छाते लगे हुए थे और हर कोने में कुछ ना कुछ शूट की तैयारियाँ चल रही थीं।
एक ब्लैक कार स्टूडियो गेट पर आकर रुकी।
ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला। कंचन बाहर निकली—हल्की सफेद शर्ट, ब्लू डेनिम, और बालों को ढीला खुला छोड़ा हुआ। चेहरा बिना मेकअप के भी निखरा हुआ था।
जैसे ही वह वॉक करती हुई स्टूडियो नंबर 5 की ओर बढ़ी, चारों तरफ़ निगाहें उस पर टिक गईं।
पहली आवाज़ आई—
"अरे… ये तो कंचन सिंघानिया है ना?"
दूसरी लड़की ने तुरंत जवाब दिया—
"हां वही! जो कभी बड़े ब्रांड्स के लिए फोटोशूट करवाती थी… अब यहां लाइन में?"
तीसरी ने ज़ोर से कहा—
"उसे तो एक्टिंग बिल्कुल नहीं आती! एक शो में ली थी… दो हफ्तों में बाहर!"
और तभी एक और ज़हर से भरी मुस्कान उभरी—
" चाहे एक्टिंग ना आती हो, लेकिन बड़े बाप की बेटी है... पैसा सबका मुंह बंद कर देता है!"
फिर भी कोई बोली—
"OTT का जमाना है यार... अब तो जिसे देखो वही हीरोइन बनने आ जाता है!"
कंचन ये सब सुन रही थी। एक-एक शब्द सीधा दिल में चुभ रहा था। लेकिन चेहरा बिल्कुल शांत। ना किसी से आंख मिलाई, ना कोई सफाई दी। वो बस स्टूडियो गेट के सामने आकर एक किनारे खड़ी हो गई, जैसे खुद को हवा से बचा रही हो, या दुनिया से।
तभी… एक मुलायम सा अहसास उसके कंधे पर हुआ।
कंचन ने चौंक कर पीछे देखा।
"प्रिया!"
सामने वही प्रिया खड़ी थी—मुस्कुराती हुई, आंखों में भरोसा लिए।
प्रिया ने उसके कंधे को दबाते हुए कहा,"उन लोगों की बातों पर ध्यान ना दो… उन्हें क्या पता कि तुम कौन हो। आखिरकार… माहिरा खन्ना फिर से मैदान में उतरी है।"
कंचन की आंखों में पहली बार हल्की चमक आई।
"माहिरा खन्ना कभी हार नहीं मानती। और ये सिर्फ़ एक ऑडिशन नहीं... ये वापसी है।" कंचन मुस्करा कर बोली।
प्रिया मुस्कुराई, फिर बोली,"तो चलो, दिखा दो इन्हें कि तुम सिर्फ नाम नहीं, मुकाम हो।"
कंचन ने लंबी सांस ली, और दोनों स्टूडियो की तरफ़ बढ़ गईं। कैमरे, लाइट्स, तानों और शक के उस माहौल में… अब एक आग उतर रही थी—माहिरा खन्ना की वापसी की आग…जिसका रीबर्थ हुआ था कंचन सिंघानिया के बॉडी में…
स्टूडियो नंबर 3,
कमरा भरा हुआ था—डायरेक्टर, राइटर, प्रोड्यूसर और कुछ क्रू मेंबर्स आराम से बैठे थे, लेकिन चेहरों पर तिरस्कार साफ़ झलक रहा था।
"कंचन सिंघानिया?" प्रोड्यूसर ने नाम सुनते ही भौंहें चढ़ा दीं।
"ये वही नहीं जो हर बार शो से ड्रॉप होती है?"
"हाँ सर, वही D-लिस्ट वानाबी एक्ट्रेस…" राइटर ने ठंडी हँसी के साथ कहा।
डायरेक्टर ने बिना देखे कहा, "चलो, जल्दी निपटाओ। टाइम वेस्ट न हो।"
कंचन अंदर आई। चेहरे पर वही शांति, वही आत्मविश्वास… लेकिन कमरा जैसे पहले से ही जजमेंट में डूबा था।
"एक ही टेक मिलेगा," डायरेक्टर ने सख्त लहजे में कहा। "तुम्हारी पसंद का सीन है—जैसे तुम अपनी मां को खो चुकी हो, और अब सबकुछ खत्म हो गया है… लेकिन फिर भी तुम्हें लड़ना है। Ready?"
कंचन ने बस एक बार आंखें बंद कीं।
और फिर… माहौल बदल गया।
उसकी आंखों से आँसू ऐसे गिरे जैसे वो कोई स्क्रिप्ट नहीं, अपना सच जी रही हो।
उसकी आवाज़ काँपती नहीं थी, थरथराती थी—हर शब्द में एक टूटा हुआ रिश्ता, एक बिखरा हुआ सपना, और एक जिंदा जज़्बा महसूस होता।
"तुम लोग सोचते हो मैं हार चुकी हूं? लेकिन मैं जानती हूं—मां ने मुझे कभी हारना सिखाया ही नहीं था। मैं टूट सकती हूं… पर मिट नहीं सकती। क्योंकि मेरा नाम सिर्फ़ माहिरा नहीं… मैं वही आग हूं जिसे तुम सबने कभी जला कर देखा था—माहिरा खन्ना की आग।"
कमरे में सन्नाटा था।
डायरेक्टर का पेन हाथ से गिर गया। राइटर का चेहरा सफेद हो गया। प्रोड्यूसर की आंखें फटी रह गईं।
एक क्रू मेंबर ने धीरे से कहा, "ये… ये तो वही अहसास है जो हमें माहिरा खन्ना से मिलता था…"
राइटर ने फुसफुसाते हुए पूछा, "पर माहिरा तो…"
तभी डायरेक्टर उठ खड़ा हुआ और स्पष्ट आवाज़ में बोला, "कट! परफेक्ट!"
वह अपनी कुर्सी छोड़कर कंचन के पास पहुंचा और आँखों में हैरानी और सम्मान के साथ बोला,
"आई कैन’ट बिलीव, मिस सिंघानिया। आपकी एक्टिंग के बारे में तो सुना था कि ठीक-ठाक ही है, लेकिन आज जब आपको देखा, तो ऐसा लगा जैसे माहिरा खन्ना मेरे सामने खड़ी हो।"
कंचन कुछ कहने ही वाली थी कि उसी वक्त प्रिया अंदर आई। वह डायरेक्टर की ओर देखते हुए बड़ी सहजता से बोली, "सॉरी सर, मैं बीच में ही रोकती हूँ… माहिरा और कंचन दोनों अलग-अलग इंसान हैं। कृपया इन्हें एक समान न समझें।"
डायरेक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा,"सही कह रही हो मिस प्रिया, लेकिन एक बात तय है—मिस सिंघानिया, इस ऑडिशन को पास कर गई हो। इस फिल्म की नायिका तुम ही हो।”
स्टूडियो की चकाचौंध में, कैमरों की रोशनी के बीच… एक नई शुरुआत हो चुकी थी।
माहिरा खन्ना की विरासत अब एक नए नाम में ज़िंदा थी—कंचन।
तो वहीं दूसरी तरफ रावत इंडस्ट्री के भव्य ऑफिस में…
रणविजय अपने किंग साइज ऑफिस चेयर पर शाही अंदाज में बैठे थे। उनकी नजरें तीखी और गुस्से से भरी हुई थीं। सामने उनका असिस्टेंट मिहिर खड़ा था, जो इस वक्त रणविजय के क्रोध की चपेट में था।
रणविजय ने एक फाइल को गुस्से में जमीन पर पटकते हुए कहा,"यह काम तुम लोग कैसे कर देते हो? क्या तुमने इसके बारे में पूरी तरह जांच की थी? बिना जानकारी ये कॉन्ट्रैक्ट कैसे मेरे टेबल पर आ गया?"
रणविजय के चेहरे पर उमड़ते इस क्रोध को देखकर मिहिर समझ चुका था कि असली गुस्सा इस कॉन्ट्रैक्ट के कारण नहीं, बल्कि कहीं और छुपा हुआ है। मगर मिहिर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सीधे रणविजय से सवाल कर सके।
इतने में, रणविजय कुछ कह पाते उससे पहले ही ऑफिस का दरवाजा धीरे-धीरे खुला। अंदर एक ऐसा चेहरा नजर आया जिसे देखकर मिहिर का दिल थम गया था। मिहिर रणविजय के गुस्से से डरा हुआ था, लेकिन उस व्यक्ति को जैसे रणविजय के गुस्से से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह निडर होकर ऑफिस में कदम रखा और रणविजय के सामने वाली बड़ी कुर्सी पर आराम से बैठ गया।
उसने एक-एक नजर रणविजय के ऑफिस के हर कोने पर डाली। ऑफिस भले ही बेहद खूबसूरत और आलीशान था, लेकिन उसमें बैठा यह व्यक्ति अपनी मौजूदगी से माहौल को पूरी तरह बदल रहा था।
“गुड afternoon.. प्रेम सर..” मिहिर ने हल्की झिझक के साथ कहा।
प्रेम रावत रणविजय रावत का छोटा भाई जो की अभी कुछ घंटे पहले ही मुंबई आया है।
कहने का तो दोनों सगे भाई हैं लेकिन फर्क जमीन आसमान का है...
रणविजय रावत जो कि एक शैतान का रुप हैं ..
तो दूसरा प्रेम रावत, जो मासूमियत का प्रतीक है लेकिन चालाकियां और नटखट सवाल तो जैसे उसके दिल में बसा हुआ है।
“हेलो भाई.. आई रियली मिस यू..” प्रेम मुस्कुरा कर बोला।
रणविजय ने कोई जवाब नहीं दिया। उसका पूरा फोकस अपने फोन पर था।
जब रणविजय ने कुछ नहीं कहा तो प्रेम ने मुड़कर मिहिर की तरफ देखा और इशारा किया… मानो पूछना चाह रहा हो कि क्या बात है?
मिहिर को कुछ पता होता.. तब तो बताता ..उसने प्रेम का इशारा समझ लिया था पर उसे कुछ पता तो था नहीं इसलिए उसने भी कंधे उचका दिए!
प्रेम सोच में पड़ गया लेकिन कुछ सेकेंड के बाद ही उसके दिमाग की बत्ती जली और उसने तुरंत अपना फोन निकाला और एक नंबर पर मैसेज कर दिया..
कुछ सेकेंड के बाद जैसे ही उस नंबर से वापस रिप्लाई आया प्रेम हैरान होकर कुर्सी से कूद पड़ा…
किस किया था प्रेम ने मैसेज और क्या आया है रिप्लाई?
क्या रिएक्शन होगा रणविजय का जब उसे पता चलेगा कंचन के ऑडिशन पास होने की खबर के बारे में?
जानने के लिए इंतजार कीजिए कहानी के अगले भाग का…
"तलाक…"प्रेम ने हैरानी से रणविजय की ओर देखा।
मिहिर की आंखों में भी वैसे ही भाव थे — हैरानी और चिंता। आखिर मिहिर को तो रणविजय और कंचन की शादी की सच्चाई का पता था।
पर प्रेम? वो तो उन लोगों में से नहीं था जो चुपचाप बैठ जाए।
वो अपनी जगह से उठकर सीधा रणविजय के सामने जा खड़ा हुआ। उसका चेहरा सवालों से भरा था और आवाज़ में तीखापन था।
"आपने ऐसा क्या कर दिया, भला? जो मेरी नई-नवेली भाभी आपको तलाक देने को तैयार हो गई?"
रणविजय ने एक पल के लिए प्रेम की तरफ देखा, फिर तुरंत ही अपनी नजरें फेर लीं। पर प्रेम कहां मानने वाला था। रणविजय की नजर जिस दिशा में गई, प्रेम घूमकर वहीं आ गया, फिर से उसकी आंखों के सामने खड़ा हो गया।
मिहिर भीतर ही भीतर घबराया जा रहा था। मन ही मन भगवान से प्रेम की रक्षा की प्रार्थना कर रहा था।
लेकिन प्रेम महाशय?
उन्हें तो जैसे डर नाम की कोई चीज़ छूकर भी नहीं गई थी। वह तो सीना तानकर अपने बड़े भाई के सामने खड़ा था, एक बार फिर सवाल दागते हुए बोला।
"मैंने आपसे पूछा है ना? बताइए… ऐसा क्या किया आपने?"
रणविजय का चेहरा एकदम शांत था। उसकी आंखों में न शर्म थी, न पछतावा। ठंडे लहजे में उसने कहा,"जिसने तुम्हें तलाक की बात बताई है, वही वजह भी बता सकती है। उससे पूछ लो।"
प्रेम को जैसे एक और वजह मिल गई हो। वो गुस्से में बोला,"ठीक है… अब तो मुझे अग्नि से ही पूछना होगा कि आखिर ऐसा क्या किया आपने! अभी तो मैंने अपनी भाभी को ठीक से देखा भी नहीं, और आप उन्हें तलाक देने पर उतर आए! कितनी खराब किस्मत है मेरी… इकलौती भाभी को देखने से पहले ही वो इस घर को छोड़कर जा रही हैं!”
प्रेम ने एक बार फिर अग्नि को मैसेज भेजा ही था कि अगले ही पल उसका फोन अचानक बज उठा। कॉल स्क्रीन पर अग्नि का नाम देख उसने बिना समय गंवाए कॉल रिसीव कर ली।
"हेलो भाई!" दूसरी ओर से अग्नि की तीखी और चुभती हुई आवाज़ आई। "बड़ी जल्दी नहीं आ गए आप फॉरेन से? कुछ साल और रुक जाते… जब तक बड़े भैया और उस चुड़ैल अंजलि के बच्चे हो जाते!"
प्रेम का चेहरा एकदम सख्त हो गया।
"अंजलि? ये अंजलि कौन है? भाभी का नाम तो कंचन है, तो ये अंजलि बीच में कहां से आ गई?"
फिर जैसे उसके दिमाग में कुछ कौंधा और वह फौरन पूछ बैठा, "और तूने उसे चुड़ैल क्यों कहा? क्या सच में अंजलि पर किसी चुड़ैल का साया है?"
उस वक्त प्रेम को इस बात की भी कोई परवाह नहीं थी कि रणविजय ठीक उसके सामने बैठा है। वो तो बिना किसी डर या हिचकिचाहट के खुलेआम अंजलि को "चुड़ैल" कह रहा था।
मिहिर, जो अब तक चुपचाप सब देख-सुन रहा था, प्रेम के इस आत्मविश्वास और बेखौफ तेवर को देखकर चकित रह गया।
उधर अग्नि का गुस्सा साफ झलक रहा था। उसने तीखी आवाज़ में कहा,"आप जानना चाहते हैं ना कि भाभी तलाक क्यों ले रही हैं? तो एक सलाह दूंगी – जाकर सोशल मीडिया चेक कर लो। वहां A to Z सब मिल जाएगा… तलाक की असली वजह के साथ!"
इतना कहकर अग्नि ने बिना और कुछ सुने फोन काट दिया।
प्रेम कुछ पल के लिए स्थिर रह गया। फिर उसने धीरे से फोन की स्क्रीन देखी… और एक निगाह अपने बड़े भाई रणविजय पर डाली, जो अब भी खामोशी से बैठा था।
फिर अगले ही पल, बिना एक शब्द कहे, प्रेम ने झटपट सोशल मीडिया ओपन कर दिया।
जैसे ही प्रेम ने सोशल मीडिया पर अपने भाई रणविजय की प्रोफ़ाइल ओपन की, उसकी नज़र एक पोस्ट पर जाकर ठहर गई। तलाक की असली वजह अब उसके सामने थी — कड़वी, चुभती हुई सच्चाई।
धीरे-धीरे उसके चेहरे का रंग उड़ने लगा… आंखों में हैरानी थी, गुस्सा था, और दिल में ठेस। उसकी नजरें अब सीधे रणविजय पर टिक गई थीं, जो वहीं पास बैठा था — मगर उसके चेहरे पर मानो कोई भाव ही नहीं था। न शर्म, न पछतावा।
प्रेम ने अपने हाथ से फोन टेबल पर रखा, और फिर ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजाते हुए कड़वाहट से बोला,"कांग्रेचुलेशन्स, भाई! सच में… मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप ये हद भी पार कर जाएंगे। मैंने आप दोनों — आपको और कंचन भाभी को मिलाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेले। और आपने क्या किया? मेरी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया… और वो भी अंजलि के लिए!"
उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था।
"बिलकुल सही नाम दिया है अग्नि ने उसे — चुड़ैल!"
प्रेम की तीखी बातें सुनकर रणविजय भी अब चुप नहीं रह सका। वो अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और प्रेम की ओर देखते हुए बोला,"ये क्या तरीका है तुम्हारा बात करने का, प्रेम? अग्नि को तो पहले से ही अंजलि से नफरत है, अब तुम भी वही राग अलापने लगे?"
रणविजय ने पहली बार सीधे प्रेम की आंखों में देखा। उसकी आवाज़ शांत थी, पर उसके शब्दों में भारीपन था,"अग्नि ने तुम्हें ये तो बता दिया कि कंचन मुझे तलाक दे रही है अंजलि की वजह से… पर ये नहीं बताया कि कंचन ने अंजलि के साथ क्या किया है?"
एक पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया।
प्रेम और रणविजय दोनों एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे… और अब सवालों का रुख पलटने लगा था।
रणविजय की तीखी और घूरती हुई नज़रों का असर कोई और झेलता तो शायद डर के मारे कांपने लगता, लेकिन सामने खड़ा था प्रेम — जिसे डर का मतलब तक नहीं पता था।
प्रेम ने गहरी सांस ली और गंभीर लहज़े में कहा,"भाई, एक सवाल पूछना है… और जवाब सिर्फ हाँ या ना में दीजिएगा। इससे ज़्यादा कुछ जानने की इच्छा नहीं है।"
रणविजय ने उसकी आँखों में झांका, फिर ठंडे स्वर में कहा,"पूछो…"
प्रेम ने बिना झिझक पूछा,"आप किसके पति हैं — अंजलि के या कंचन के?"
रणविजय थोड़ा चौंका, मगर फिर बोला,"ये कैसा सवाल है?"
"बिल्कुल नॉर्मल सवाल है…" प्रेम ने उसी गंभीरता से जवाब दिया।
रणविजय ने सीधा जवाब दिया,"कंचन का पति हूं ,मैं।"
प्रेम मुस्कुराया, मगर उसकी मुस्कान कुछ ही पल में गुस्से में तब्दील हो गई।
"थैंक्यू… कम से कम आपको ये तो याद है कि आप कंचन के पति हैं। लेकिन इसके बावजूद आप अंजलि सिंघानिया के साथ मीडिया में नजर आ रहे हैं… और मज़े की बात ये है कि मीडिया आपको 'परफेक्ट जोड़ी' बता रही है। चलिए, वो भी ठीक है… मीडिया का काम ही है मसाला बनाना। लेकिन आप तो कम से कम अपनी पत्नी की भावनाओं का ख्याल रखते!"
"कोई भी पत्नी जब अपने पति को किसी और औरत के साथ इस तरह देखेगी, तो क्या वो चुप रहेगी?"
रणविजय ने पलटकर कहा,"तो उसे मुझसे आकर बात करनी चाहिए थी… यूँ सीधे जाकर अंजलि से बहस करने का क्या मतलब?"
कमरे में तनाव फैल चुका था। रिश्तों की उलझनों में सवाल भी थे, जवाब भी… मगर सच क्या था, यह अभी सामने आना बाकी था।
"भाई, अब भी वक्त है… संभल जाइए।"
प्रेम की आवाज़ में दर्द भी था और गुस्सा भी।
"हम सबने देखा है अंजलि का असली चेहरा, लेकिन न जाने क्यों, आपको वो नजर नहीं आता। क्यों लगता है आपको कि जो कुछ भी हो रहा है, उसमें अंजलि का कोई हाथ नहीं है?"
"अगर भाभी ने जाकर अंजलि से कुछ सवाल कर लिए, तो कौन-सी आफ़त आ गई? जवाब देना चाहिए था अंजलि को… शायद जवाब नहीं दिया होगा या फिर कुछ ऐसा कह दिया होगा, जो उन्हें पूरी तरह तोड़ गया।"
"भाई, हो सकता है अंजलि ने आपके और अपने रिश्ते को लेकर कुछ ऐसा कह दिया हो कि भाभी की नज़रों में आपकी जो थोड़ी-बहुत इज़्ज़त थी, वो भी चली गई। और इसी वजह से… उन्होंने तलाक का फैसला कर लिया।"
प्रेम अपने जज्बातों में बह रहा था कि तभी मिहिर ने बीच में आकर चौंकते हुए कहा,"यह… यह क्या हो रहा है?"
प्रेम ने पलटकर उसे घूरते हुए कहा,"क्यों? तुझे किस कीड़े ने काट लिया?"
मिहिर ने हिचकिचाते हुए मोबाइल की स्क्रीन दिखाते हुए कहा,"बॉस… मैडम न्यूज़ में हैं…"
"न्यूज़?" रणविजय और प्रेम दोनों ने एकसाथ दोहराया, चेहरे पर एक जैसे हैरानी के भाव।
तीनों की नजरें अब स्क्रीन पर थीं।
मोबाइल स्क्रीन पर कंचन की एक फोटो फ्लैश हो रही थी। वह लाइव नहीं थीं, लेकिन स्क्रीन के नीचे चल रही ब्रेकिंग हेडलाइन सबका ध्यान खींच रही थी:
"कंचन सिंघानिया, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की D-लिस्ट एक्ट्रेस को मिला मेन फीमेल लीड का रोल!"
प्रेम ने धीरे से कहा,"भाभी… एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में?"
रणविजय ने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया,"हां…"
"कब से?" प्रेम ने चौंकते हुए पूछा।
"पिछले एक-डेढ़ साल से," रणविजय ने बेहद सूखे लहज़े में कहा।
प्रेम का चेहरा अब और गंभीर हो गया।
"ज़रूर ये फैसला उन्होंने आपकी वजह से ही लिया होगा… वरना उन्हें कभी इस इंडस्ट्री में जाने का कोई शौक नहीं था। शायद आपकी और उस चुड़ैल अंजलि की नज़दीकियों ने उन्हें इस रास्ते पर धकेल दिया…"
इतना कहकर प्रेम तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया।
रणविजय ने एक पल को खुद को अकेला महसूस किया। वह धीरे से जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया, और एकटक सामने देखते हुए खुद से सवाल करने लगा:
"कंचन को तो इस दुनिया में आना ही नहीं था… फिर आखिर वो इस लाइन में आई ही क्यों?"
कमरे में सन्नाटा था… और रणविजय के दिल में सवालों का तूफान।
शाम के ठीक चार बजे का वक्त था।
प्रिया को उसके घर छोड़ने के बाद, कंचन विला लौट चुकी थी। जैसे ही उसने मुख्य दरवाज़ा खोला और भीतर कदम रखा, एक तीखी और गुस्से से भरी आवाज़ ने उसका स्वागत किया—
"वक़्त मिल गया आपको आने का?"
कंचन की नज़र सामने गई—सोफे पर आराम से बैठी, पैर चढ़ाए, हाथ में कॉफी का कप थामे, वही घमंडी अंदाज़, वही तेज़ निगाहें… अंजलि।
एक रानी की तरह बैठी थी वह, जैसे इस विला की असली मालकिन वही हो। और कंचन? बस एक अदना-सी नौकरानी, जिसे अपनी हद में रहना चाहिए।
लेकिन कंचन ने कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप सिर झुकाए सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी।
"मैंने तुमसे कुछ पूछा है!" अंजलि की आवाज़ और ऊंची हो गई।
उसने झट से कंचन का हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा,"कहां गई थी तुम? कितनी बार कहा है रणविजय से दूर रहो, लेकिन तुम तो अपनी ही मनमानी करती हो! क्या पिछली बार की सज़ा कम थी जो अब फिर से तमाशा शुरू कर दिया?"
अंजलि अब और भी भड़की,"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पुष्पा पर हाथ उठाने की?!"
जैसे ही अंजलि ने ‘पुष्पा’ का नाम लिया, कंचन सब समझ गई। थप्पड़ पड़ने के बाद पुष्पा सीधे अंजलि के पास ही गई थी, और सारी कहानी बता दी थी।
कंचन ने धीरे से अपनी नज़र अपने हाथ पर डाली, जिसे अंजलि ने ज़ोर से जकड़ रखा था। उसकी उंगलियां अब दर्द देने लगी थीं। लेकिन कंचन का चेहरा शांत था।
"मेरा हाथ छोड़ दो…" कंचन ने बेहद ठंडे, मगर नियंत्रित आवाज़ में कहा।
लेकिन अंजलि का अहंकार इतना आसान कहाँ था।
उसने हाथ छोड़ने के बजाय और कसकर पकड़ लिया—जैसे उसे कंचन की तकलीफ देख कर संतोष मिल रहा हो।
वो कंचन के चेहरे पर दर्द देखना चाहती थी।
मगर अगले ही पल…
कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
कंचन ने एक हाथ उठाकर जोरदार तमाचा अंजलि के चेहरे पर जड़ दिया। अगले ही पल, उसने अपना दूसरा हाथ घुमाया जिसे अंजलि ने पकड़ रखा था। कंचन ने झटके से अंजलि को घुमाया और उसकी पीठ अपनी ओर कर ली।
फिर पीछे से उसे कसकर पकड़ते हुए ठंडी आवाज़ में कहा,"मुझे उस पुरानी कंचन समझने की गलती मत करना, जो तुम्हारी हर बात चुपचाप मान लेती थी।"
कहते ही कंचन ने उसे जोर से धक्का दिया। अंजलि गिर ही जाती, लेकिन वक्त रहते पुष्पा ने उसे थाम लिया।
अंजलि ने गुस्से में कांपते हुए कंचन को घूरा और तीखी आवाज़ में बोली,"सच में, अब तो मैं पूरे दिल से चाहती हूं कि तुम जल्दी से रणविजय से तलाक ले लो!"
अंजलि की यह बचकानी बात सुनकर कंचन के होठों पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। उसे मुस्कुराता देख अंजलि और भड़क गई,"क्या बात है, हंस क्यों रही हो?"
कंचन ने एक कदम उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा,
"Miss Anjali Singhania, क्या तुम्हें सच में लगता है कि मैं रणविजय से तलाक लेने वाली हूं? गुस्से में मैंने उसे तलाक देने की बात की, और तुम तो जैसे इसी मौके का इंतज़ार कर रही थी—उसे मुझसे दूर करने के लिए!" फिर तीखे आवाज में पूछा,"वैसे तुम यहां कर क्या रही हो? तुम्हें आने की इजाज़त किसने दी?"
अंजलि ने गर्दन ऊंची करके जवाब दिया,"यहां आने से मुझे कोई नहीं रोक सकता, यहां तक कि तुम भी नहीं।"
कंचन एक पल को चुप रही, फिर धीमे और सधे हुए लहजे में बोली,"अच्छा... मैं भूल कैसे गई कि इस घर में तुम्हें लेकर आई भी तो मैं ही थी। तो बाहर निकालने का हक भी मेरा ही बनता है, है ना?"
अंजलि उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गई। कुछ कहने के लिए होंठ हिले ही थे कि तभी कंचन ने उसकी कलाई कसकर पकड़ ली और ज़ोर से खींचते हुए उसे विला के दरवाज़े की ओर घसीटने लगी।
अंजलि ने खुद को छुड़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन कंचन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह चाहकर भी खुद को आज़ाद नहीं कर पा रही थी। उसके चेहरे पर हैरानी साफ झलक रही थी—यह वही कंचन थी, जो कल तक एक शब्द बोलने से पहले सौ बार सोचती थी?
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक पल में सब कुछ बदल सकता है।
कंचन, जो शादी के बाद इस विला में एकदम अकेली थी, कभी-कभी अपनी उदासी बांटने के लिए अंजलि से दो बातें कर लिया करती थी।
उसी अकेलेपन का फायदा उठाते हुए एक दिन अंजलि ने ही उसके मन में यह बात डाल दी थी कि अगर उसे इस घर में अकेलापन महसूस होता है, तो वह चाहें तो उसके साथ यहीं रह सकती है।
कंचन को लगा था कि उसकी बहन, उसकी परवाह करती है। उसे लगा था कि अंजलि उसे अकेला नहीं देखना चाहती।
पर हकीकत कुछ और ही थी।
अंजलि की नीयत में मिठास नहीं, चालाकी थी।
उसने यह सब इसलिए किया था ताकि कंचन और रणविजय के बीच गलतफहमियों की दीवार खड़ी हो जाए।
और अफ़सोस... उसने अपना मकसद पूरा कर लिया था।
आज जो कुछ भी कंचन और रणविजय के बीच दरार की शक्ल में खड़ा था, उसके हर पत्थर की जड़ में अंजलि का ही हाथ था।
एक खूबसूरत, सच्चे प्यार से भरा रिश्ता…
अब गलतफहमियों के तूफान में डगमगाने लगा था।
एक रिश्ता… टूटने की कगार पर था।
कंचन ने अंजलि को घसीटते हुए विला के दरवाज़े तक लाया और बिना किसी रहम के उसे दहलीज़ के बाहर धकेल दिया।
फिर उसकी ओर उंगली तानते हुए कड़क आवाज़ में बोली,
"आगे से इस घर की चौखट लांघने से पहले मेरी इजाज़त लेनी होगी, मिस अंजलि सिंघानिया! शायद मेरी सबसे बड़ी गलती यही थी कि पिछली बार तुम्हें इस घर में आने दिया। अगर उस दिन तुम्हें अंदर न बुलाया होता, तो आज मेरा घर… मेरा रिश्ता… सब कुछ यूं बिखरने की नौबत नहीं आती!"
अंजलि सन्न खड़ी रह गई, लेकिन कंचन की आंखों में अब कोई नरमी बाकी नहीं थी।
कंचन ने एक कदम और आगे बढ़ाया और तीखी मुस्कान के साथ कहा, "बहुत शौक है न तुम्हें मीडिया में आने का? तो लो… अब ऐसा नाम कमाओगी कि चाह कर भी कोई तुम्हें मीडिया से बाहर नहीं कर पाएगा!"
यह कहकर कंचन ने अपने फोन की जेब से झट से निकाला और एक नंबर डायल कर दिया।
जैसे ही कॉल रिसीव हुआ, कंचन ने बिना किसी भूमिका के कहा,"मैंने जो कुछ करने को कहा था, अब उसका वक्त आ गया है। सब कुछ ऑनलाइन पोस्ट कर दो… अभी के अभी!"
दूसरी तरफ से आवाज आई,”अभी..”
"बिल्कुल… क्योंकि कुछ लोग जब तक खुद पर न आए, तब तक सुधरते नहीं।" कंचन बोलो।
कंचन की आंखों में ठंडा गुस्सा तैर रहा था। उसने अंजलि की तरफ देखकर, उसी के सामने कहा,
"पहले सोचा था, बहन हो—माफ कर दूं। लेकिन जब बहन को ही बहन की परवाह नहीं, तो मैं क्यों रिश्तों की लाज रखूं? जब तुम्हें मेरा घर तोड़ने में मज़ा आता है, तो फिर मुझे क्यों तुम्हारी इज्ज़त बचानी चाहिए? अब लोगों को भी तो पता चलना चाहिए सिंघानिया परिवार की असली बेटी की असलियत… जिस पर यह पूरा खानदान आंख मूंदकर भरोसा करता है।"
कंचन के ये शब्द अंजलि के ज़ेहन में हथौड़े की तरह गिर रहे थे। वो स्तब्ध थी, हैरान थी… उसके चेहरे से हवाइयां उड़ चुकी थीं।
"क्या पोस्ट करना चाहती है ये...? क्या राज़ खोलने वाली है ये...?" ये सवाल अंजलि के मन में गूंज रहे थे, क्योंकि जो कुछ भी उसने अब तक किया था—वो सब तो आज तक दुनिया से छुपा था।
लेकिन अब... सब कुछ उजागर होने वाला था।
अपनी बात खत्म करते ही कंचन ने फोन जेब में रखा और धीरे-धीरे पुष्पा की ओर मुड़ी। उसकी आंखों में अब न तो डर था, न ही झिझक—बस आत्मविश्वास और आक्रोश की परछाईं थी।
"पुष्पा सिंह!" कंचन ने उसका नाम कुछ इस तरह पुकारा जैसे कोई मालिक अपने नौकर को झिड़कता है, "आप इस घर में अब भी कर क्या रही हैं? जब आपकी 'मालकिन'—अंजलि जी—खुद इस घर से जा चुकी हैं, तो फिर आप यहां किसकी सेवा में डेरा डाले बैठी हैं?"
पुष्पा की आंखों में आग भड़क उठी। उसने कड़ा स्वर अपनाया,"मैं इस घर को यूं ही छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली, समझीं आप? ये घर रणविजय सर का है—तुम्हारा नहीं! और जहां तक मेरा सवाल है, मैं सिर्फ अंजलि मैडम को अपना मानती हूं। आज तुमने उन्हें इस घर से बेइज़्ज़त करके निकाला है, तो रणविजय सर का गुस्सा भी देख लेना… कितना भयानक होता है!"
कंचन के होंठों पर एक तिरछी मुस्कान उभरी। वो धीरे-धीरे चलकर पुष्पा के करीब आई, और उसके कंधे पर बड़े स्नेह से हाथ रखते हुए बोली,"प्यारी पुष्पा… तुम वाकई कुछ नहीं जानती।"
उसने एक बार अंजलि की ओर देखा, फिर पुष्पा की आंखों में आंखें डालकर बोली,"तुम इस लड़की की बातों में फंस गई हो। मीडिया में जो दिखाया गया, उस पर आंख मूंदकर यकीन कर लिया कि रणविजय उससे प्यार करते हैं, उससे शादी करेंगे। कभी अपने आप से पूछा कि अगर वो उससे इतना ही प्यार करते, तो क्या उन्हें कोई रोक सकता था? मैं भी नहीं। लेकिन सच्चाई ये है कि वो प्यार सिर्फ दिखावा था सिर्फ और सिर्फ इस अंजली मैडम की तरफ से तुम्हारे रणविजय सर की तरफ से तो कुछ था ही नहीं… और तुम, बस एक मोहरा बनकर रह गईं!"
इतना कहकर कंचन ने एक झटके से पीछे मुड़कर तेज आवाज़ में पुकारा,”सिक्योरिटी!"
दो काले कपड़ों में हठीले जवान तुरंत सामने आए।
कंचन ने उंगली से इशारा किया—"इन्हें बाहर निकालो। अभी!"
पुष्पा चौंकी,"नहीं! तुम ऐसा नहीं कर सकती… मुझे मत निकालो…!"
लेकिन उसकी पुकार किसी को सुनाई नहीं दी। सिक्योरिटी गार्डों ने उसे दोनों बाजुओं से पकड़कर जबरन खींचते हुए बाहर ले जाना शुरू कर दिया।
वो चिल्लाती रही, रोती रही, लेकिन कोई नहीं रुका।
क्योंकि जिसकी वह सुनती थी… आज उसी की हालत भी तो बदलने वाली थी।
अंजलि अब तक स्तब्ध थी। वो जो सोचकर यहां आई थी—डराने, धमकाने… वही आज खुद बेबस और अपमानित खड़ी थी।
गुस्से में कांपते हुए उसने कंचन की ओर उंगली उठाकर कहा, "आज जो तुमने मुझे इस घर से यूं बेइज्ज़त करके निकाला है न कंचन, इसकी कीमत तुम्हें चुकानी पड़ेगी। बहुत शौक है न तुम्हें रणविजय का प्यार पाने का? तो याद रखना—अगर उसके मन में तुम्हारे लिए थोड़ी भी सहानुभूति बची है, तो उसे भी मैं खत्म करके रहूंगी। अगर मैं तुम्हें पूरी तरह से बर्बाद ना कर दिया तो मेरा नाम भी अंजलि सिंघानिया नहीं।”
कंचन मुस्कराई। उसकी मुस्कान में तंज और रहस्य दोनों थे।
"सिंघानिया?" कंचन ने दो कदम आगे बढ़ते हुए कहा,"तुम कब से सिंघानिया हो गईं, मिस… खुराना?"
यह सुनते ही अंजलि के चेहरे का रंग उड़ गया। उसके कदम ठिठक गए।
वो हकलाते हुए बोली,"त…तुम्हें मेरे असली माता-पिता के बारे में कैसे पता?"
कंचन उसकी आंखों में झांकते हुए बोली,"ओह मिस खुराना… यही तो तुम्हारा असली सरनेम है न? अब छुपाने का क्या फायदा?"
अंजलि की आंखें हैरानी से फैल गईं। वो झल्लाकर कंचन की ओर बढ़ी और गुस्से में हाथ उठाया ताकि उसे एक थप्पड़ जड़ सके—
लेकिन तभी किसी ने उसका हाथ हवा में ही थाम लिया।
कौन था वो…?
तो वहीं दूसरी तरफ, सिंघानिया सदन में...
मिस्टर सिंघानिया हॉल में अपने पसंदीदा सोफे पर बैठे हुए थे, जब श्रीमती सिंघानिया उनके पास चाय का कप लेकर आईं। उन्होंने चाय थमाते हुए चिंता में कहा,"आपने अंजलि को कॉल किया क्या? ना जाने किस हालत में चली गई। बहुत घबराई हुई लग रही थी... जल्दी-जल्दी में निकल गई है।"
मिस्टर सिंघानिया भी चिंतित हो उठे। उन्होंने फौरन पूछा,"घबराई हुई? तुमने कुछ पूछा नहीं उससे?"
"मैं पूछने ही वाली थी," श्रीमती सिंघानिया ने हल्के से सिर हिलाते हुए कहा, "लेकिन उससे पहले ही वो निकल गई। एक पल भी नहीं रुकी।"
"डोंट वरी... मैं अभी राहुल से कांटेक्ट करता हूँ। उससे पूछता हूँ कि अंजलि कहाँ गई है," कहकर मिस्टर सिंघानिया ने अपना फोन उठाया ही था कि सामने दरवाजे से अंजलि अंदर आती दिखाई दी।
उसे देखते ही दोनों के चेहरे की चिंता और बढ़ गई। अंजलि की हालत बेहद खराब थी—बाल बिखरे हुए, कपड़े अस्त-व्यस्त और गाल पर एक ताजा थप्पड़ का लाल निशान।
अपनी लाडली बेटी को इस हाल में देखकर मिस्टर सिंघानिया का खून खौल उठा।
वह गुस्से से खड़े हो गए और ऊंची आवाज में बोले,
"आखिर किसकी हिम्मत हुई मेरी बेटी पर हाथ उठाने की? बताओ अंजलि, किसने किया ये सब? मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा!"
"पापा..." बस इतना कह पाई अंजलि और दौड़कर मिस्टर सिंघानिया से लिपट गई। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।
अपनी बेटी की यह दशा देखकर श्रीमती सिंघानिया का दिल भी बैठ गया। वह कांपती आवाज़ में बोलीं,
"बेटा... बताओ तो सही, हुआ क्या है? तुम्हारी ये हालत कैसे हो गई?"
अंजलि ने सिसकते हुए कहा,"पापा... मुझे मेरे असली माता-पिता के बारे में सच पता चल गया है। और आपको पता है... मैं अभी कहाँ से आ रही हूँ?"
मिस्टर सिंघानिया ने हैरान होकर अंजलि की तरफ देखा। वह उनसे थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गई और कांपती आवाज़ में बोली, "मेरे असली माता-पिता बहुत ही घटिया लोग हैं। उन्होंने पैसों के लिए मुझे बेच दिया था... मैं उसी जगह से बचकर आ रही हूँ। और आपको पता है... उन्हें मेरे बारे में बताया किसने?"
"किसने?" श्रीमती सिंघानिया की आवाज़ कांप गई।
"कंचन दीदी ने..." यह कहते ही अंजलि ज़मीन पर बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी।
wait for the next chapter...
अंजलि की हालत बेहद ख़राब नज़र आ रही थी।
मिस्टर सिंघानिया तुरंत आगे बढ़े, अंजलि को सहारा देते हुए धीरे से सोफ़े तक ले गए और उसे वहाँ बैठा दिया।
मैसेज़ सिंघानिया घबराई हुई थीं, वह जल्दी से पानी लेकर आईं और कांपते हाथों से अंजलि को पिलाया। फिर बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, जैसे हर ज़ख़्म को अपने स्पर्श से भर देना चाहती हों।
उसी क्षण, मिस्टर सिंघानिया का चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया। वह सीधा खड़े हुए और गहरी सांस लेते हुए बोले,
"बहुत हो गया। हमने सोचा था कि उसे थोड़ा बहुत समय लगेगा इस घर और रिश्तों को समझने में... लेकिन इस बार तो उसने सारी हदें पार कर दीं। अंजलि को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत...!"
उनकी आवाज़ कांप रही थी — ग़ुस्से से नहीं, बल्कि किसी ने उनके सब्र को तोड़ दिया था।
"पिछली बार तो सिर्फ़ हाथ उठाया था, तब भी माफ़ कर दिया... पर इस बार नहीं। इस बार तो मैं उसे बिल्कुल भी माफ़ नहीं करूंगा!"
यह कहते हुए वह तेज़ी से घर से बाहर निकल गए।
मैसेज़ सिंघानिया भी उनके पीछे जाना चाहती थीं, पर जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर अंजलि को देखा — उसकी टूटी हुई मुस्कान, सूजी हुई आंखें और कांपता बदन — उनके कदम वही रुक गए।
वो दौड़कर अंजलि को गले से लगा लिया, जैसे उसका दर्द अब उनका हो गया हो।
और अंजलि...?
उसके चेहरे पर मिस्टर सिंघानिया को जाते हुए एक अलग ही मुस्कान थी।
दूसरी ओर, RR विला में…
कंचन और प्रिया आपस में बातचीत कर रही थीं।
प्रिया ने थोड़ा झुंझलाकर पूछा,"अचानक से तुमने अपना फैसला क्यों बदल लिया, कंचन?"
कंचन ने ठंडे अंदाज में जवाब दिया,"अभी अंजलि का सच सामने लाने का वक़्त नहीं आया है। फिलहाल तो मैं देखना चाहती हूं कि वो और कितना ड्रामा करती है।"
प्रिया को अंजलि के बारे में ज़्यादा बात करना अच्छा नहीं लगा। उसने बातों का रुख बदलते हुए कहा,"मूवी की शूटिंग में अभी वक़्त है... तो मैंने तुम्हारे लिए एक कॉम्पटीशन में नाम सबमिट करवा दिया है।"
कंचन मुस्कराई, पर वो समझ चुकी थी कि प्रिया टॉपिक बदलना चाहती है, इसलिए उसने भी ज़्यादा सवाल करना ठीक नहीं समझा।
"कॉम्पटीशन? किसके बारे में बात कर रही हो?" उसने हल्के उत्साह से पूछा।
प्रिया ने रहस्यभरे अंदाज़ में कहा,"द फेमस गोल्डन स्टार!"
इतना सुनते ही कंचन के चेहरे पर एक चमकदार मुस्कान फैल गई।
"सच में! मैं तो इसके बारे में पूरी तरह से भूल ही गई थी। आखिरकार, डिजाइनर इंडस्ट्री में मेरा असली नाम तो यही है।"
वो थोड़ी देर ठहरी, फिर धीरे से बोली,"अभी तक किसी ने मेरा असली चेहरा नहीं देखा। अब मैं उनके सामने माहिरा खन्ना बनकर जाती या फिर अब कंचन सिंघानिया बनकर जाऊं। नाम चाहे जो भी हो, काम तो मेरे हाथों का है... और उसे कोई रोक नहीं सकता!”
"और हां," प्रिया ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा,
"मैंने सुना है कि हाल ही में अभिषेक मेहरा की कंपनी भी इस कॉम्पटीशन में हिस्सा ले रही है। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि वो सीधे ‘द फेमस गोल्डन स्टार’ से संपर्क करना चाहता है।”
प्रिया की बात सुनते ही कंचन चौक गई।
"तुम्हें ये किसने बताया?" उसने तेज़ी से पूछा।
प्रिया ने कंधे उचकाते हुए कहा,"बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी... तुम्हारी पुरानी ईमेल आईडी पर एक मैसेज आया था। वहीं से पता चला कि वो तुम्हें ढूंढ रहा है।"
कंचन कुछ पल के लिए चुप हो गई।
"पुरानी ईमेल आईडी..." वह बुदबुदाई, जैसे किसी भूली हुई बात को याद करने की कोशिश कर रही हो।
अचानक उसकी आंखों में कुछ चमका और उसने कहा,"याद आया! पिछले छह महीनों से तो उसे उस ईमेल आईडी की कोई परवाह नहीं थी... फिर अब अचानक उसे यह आईडी कैसे याद आ गई?"
प्रिया बोली,"तुम अकेली-अकेली क्या बात कर रही है? मुझे भी तो बता!"
कंचन ने गहरी सांस लेते हुए कहा,"कुछ खास नहीं... छह महीने पहले मैंने अभिषेक को यही आईडी दी थी, यह कहकर कि ये फेमस डिजाइनर गोल्डन स्टार की आईडी है। अगर तुम्हें कभी मदद की ज़रूरत हो तो यहां संपर्क कर सकते हो।"
प्रिय हैरान रह गई।
कंचन ने आगे कहा,"मैं सीधे-सीधे उसकी मदद नहीं करना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि उसे ऐसा लगे कि मैं उस पर एहसान कर रही हूं। उसके आत्म-सम्मान को ठेस न पहुंचे — बस यही वजह थी कि मैंने उसे कभी नहीं बताया कि मैं ही गोल्डन स्टार हूं।"
प्रिया मुस्कराई,"बहुत अच्छा किया जो नहीं बताया। वैसे भी, अभिषेक को तुम्हारी एक ही पहचान पता है — माहिरा खन्ना की। और यही सही है..."
कंचन ने घड़ी की तरफ देखा और कहा, "मुझे बहुत भूख लग रही है... चलो, पहले कुछ खा लूं। बाद में बात करती हूं।"
यह कहते हुए उसने कॉल काट दिया, फोन साइड टेबल पर रखा और फ्रेश होने के लिए वॉशरूम की तरफ बढ़ गई।
अगले दिन — मेहरा क्रिएशन्स का ऑफिस
अभिषेक मेहरा अपने केबिन में बैठा लैपटॉप पर उसी ईमेल आईडी को देख रहा था।
[email protected]
उसकी आंखों में उलझन भी थी और बेचैनी भी।
"छह महीने पहले मिली ये आईडी... तब लगा था कोई शरारत है। लेकिन अब जब वही डिजाइन इस कॉम्पटीशन में हिस्सा लेने आ रहा है, तो... क्या वाकई इस मेल के पीछे वही है?"
वो स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए बैठा रहा, मानो ईमेल से कोई जवाब निकलकर सामने आ जाएगा।
तभी उसका असिस्टेंट केबिन में आया,"सर, उस नए फैशन कॉम्पटीशन की फाइनल लिस्ट आ चुकी है... और 'गोल्डन स्टार' भी उसमें शॉर्टलिस्ट है।"
अभिषेक का चेहरा तनिक सा सख्त हो गया, पर आंखों में हल्की चमक भी थी।"मुझे उस डिज़ाइनर से मिलना है... किसी भी कीमत पर!" उसने धीमे पर ठोस लहजे में कहा।
“लेकिन सर हमें तो यह भी नहीं पता कि गोल्डन स्टार लड़का है या फिर लड़की?”असिस्टेंट ने कहा।
“लड़का हो या लड़की यह सब उसे कंपटीशन लोकेशन पर जाकर पता चल ही जाएगा।” अभिषेक ने कंप्यूटर स्क्रीन पर नजर फेरते हुए कहा।
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उधर, कंचन अपने ड्रेसिंग रूम में तैयार हो रही थी। सामने शीशे में खुद को देखती हुई मुस्कराई। आज उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की एक अलग ही चमक थी।
"अब वक्त आ गया है..." उसने खुद से कहा,
"अभिषेक मेहरा से फिर से आमना-सामना करने का। मगर इस बार न कंचन सिंघानिया के रूप में... और न ही माहिरा खन्ना बनकर... इस बार सामने होगी सिर्फ और सिर्फ — 'द फेमस गोल्डन स्टार'।”
ज्वेलरी की दुनिया में उसका हुनर एक बार फिर रंग बिखेरने वाला था।
क्या अभिषेक पहचान पाएगा कि गोल्डन स्टार कोई और नहीं बल्कि वही है जिसे उसने धोखा दिया था?
उसी समय ड्रेसिंग रूम में प्रिया आई। उसने कंचन की ओर देखते हुए कहा,"सॉरी, मुझे इस कंपटीशन में तुम्हारा नाम इतनी जल्दबाजी में नहीं देना चाहिए था, लेकिन इतनी जल्दी में भूल हो गई। तुमने जो मेहनत की है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। रात भर में तुम्हारा जो डिजाइन तैयार हुआ है, उसे देखकर साफ दिख रहा है कि तुमने कितना पसीना बहाया है। पर तुम्हारे चेहरे पर जो थकावट है, उसे देख मैं थोड़ा परेशान हूँ।"
कंचन ने प्रिया के कंधे पर अपना हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा,"डोंट वरी, कभी न कभी तो ऐसा होना ही था। वैसे भी, घर पर आराम से बैठकर कुछ करना क्या मज़ेदार होता? अब तो चलो, बाहर चलकर अपने दुश्मनों से भी मुलाकात कर लेते हैं, देखते हैं कि वहां क्या चल रहा है।"
प्रिया ने भी कंचन की बात सुनकर मुस्कुरा दिया।
दूसरी तरफ..
मुंबई के सबसे बड़े और आलीशान एक्ज़िबिशन हॉल में डिजाइनिंग कंपटीशन का भव्य आयोजन हो रहा था। दीवारों पर चमकती हुई रोशनी, मंच के पीछे बड़ी-बड़ी LED स्क्रीन पर प्रतियोगी डिजाइनर्स के नाम और उनके डिजाइनों की झलकियां चल रही थीं।
हॉल की सीटें लगभग भर चुकी थीं, फैशन और ज्वेलरी इंडस्ट्री के दिग्गज, पत्रकार, आम दर्शक और डिजाइनर्स की भीड़ थी। हर कोई उत्साह से भरा हुआ था।
मंच के चारों ओर खूबसूरत फूलों और सजावट से कंपटीशन का माहौल एकदम परफेक्ट लग रहा था।
प्रतियोगिता के आयोजन में कोई कमी नहीं थी — हर जगह खूबसूरती और परिष्कार था।
साउंड सिस्टम से उम्दा संगीत बज रहा था, और हर प्रस्तुति के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गुंजायमान हो जाता था।
मंच पर पहले कुछ प्रतिभागी आए।
पहला डिजाइनर एक नवोदित युवक था, जिसके डिजाइनों में आधुनिकता और पारंपरिकता का खूबसूरत मेल था। उसने साड़ी की ज्वेलरी सेट दिखाई, जिसमें चमकीले नीलम और मोती का अद्भुत इस्तेमाल था। दर्शक प्रभावित हुए।
दूसरा डिजाइनर एक महिला थी, जो पारंपरिक राजस्थानी ज्वेलरी की डिजाइनिंग कर रही थी। उसके गहनों में सोने की महीन कढ़ाई और रंगीन रत्नों का शानदार संगम था। जजों ने उसकी तारीफ की।
तीसरे नंबर पर एक अंतरराष्ट्रीय डिजाइनर की प्रस्तुति थी, जिसने हीरे-जवाहरात को एकदम नए अंदाज में पेश किया था। उसकी रचनाओं को देखकर दर्शकों ने बहुत सराहा।
अचानक मंच की रोशनी धीमी पड़ गई और पर्दा धीरे-धीरे नीचे गिर गया। बड़ी स्क्रीन पर चमकदार अक्षरों में लिखा दिखाई दिया—“ गोल्डन स्टार”।
उसके बाद गोल्डन स्टार के डिजाइन की एक छोटी वीडियो क्लिप चलने लगी, जिसमें उनकी ज्वेलरी के खूबसूरत सेट, हार, कंगन और अंगूठियाँ बड़े ही आकर्षक अंदाज़ में दिखाई दे रहे थे।
फिर पर्दा उठ गया और मंच पर एक महिला प्रकट हुई—चेहरे पर एक सुंदर मास्क पहने हुए।
उसका पोशाक बेहद स्टाइलिश और आधुनिक था, एक काले रंग का सिल्क गाउन जो उसके हर कदम के साथ बेजोड़ चमक बिखेर रहा था। गले में सोने और हीरों से जड़ी एक भव्य नेकलेस उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था।
ऑडियंस में उत्सुकता के साथ-साथ थोड़ी-बहुत हैरानी भी दिख रही थी। लोग धीरे-धीरे आपस में चर्चा करने लगे—“हम तो सोचते थे कि गोल्डन स्टार के पीछे कोई लड़का होगा, लेकिन आज पता चला कि यह एक लड़की है।”
“और इसका डिजाइन वाकई दिल छू लेने वाला है।”
जजों की कुर्सी पर बैठे रणविजय रावत ने उस महिला को ध्यान से देखा। गोल्डन स्टार के चेहरे पर लगे मास्क के पीछे उसकी आँखें कुछ अजीब सी जानी-पहचानी लग रही थीं।
रणविजय के मन में एक सवाल कौंधा,"ये आँखें मुझे इतनी क्यों परिचित लग रही हैं? ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि..."
अचानक उसके दिमाग में एक नाम आया और उसने धीरे से कहा,"कंचन..."
लेकिन अगले ही पल रणविजय ने उस नाम को मन ही मन झटक दिया,"नहीं, कंचन कैसे हो सकती है? उसे डिजाइनिंग के बारे में कुछ पता भी नहीं। और गोल्डन स्टार तो पिछले दो सालों से डिजाइनिंग इंडस्ट्री में है। कंचन तो खुशी खुशी भी पेंसिल पकड़ना नहीं जानती, तो फिर वो डिजाइनिंग कैसे कर सकती है?"
रणविजय ने अपना ध्यान फिर से कंपटीशन की तरफ कर दिया।
इसी बीच, दर्शकों की एक ओर अभिषेक मेहरा अपने असिस्टेंट के साथ बैठा था। उसके चेहरे पर गहरी चिंता थी।
उसने धीरे से कहा, “कंपटीशन खत्म होते ही गोल्डन स्टार से मेरी मुलाकात तय करो। हमारी कंपनी को बड़ी मदद चाहिए और वो एकमात्र उम्मीद है। किसी भी हालत में आज मिलना होगा।”
स्टेज पर खड़ी गोल्डन स्टार ने एक गहरी सांस ली और अपनी डिजाइन के बारे में बताना शुरू किया—“मेरा यह डिजाइन ‘अमर प्रेम’ है, जो प्रेम की अनंत और सशक्त ऊर्जा का प्रतीक है। इसमें सोने और हीरे के बीच एक नाजुक संतुलन है, जैसे दो आत्माएं एक-दूसरे में विलीन हो जाएं। इस ज्वेलरी में हर एक आभूषण को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि वो पहनने वाले के व्यक्तित्व को निखारे, उसकी कहानी बयां करे।”
उसकी आवाज़ में एक भावनात्मक गहराई थी, जो दर्शकों को बांध रही थी।“यह सिर्फ गहने नहीं, बल्कि एक एहसास हैं, जो प्यार के अमर होने की प्रेरणा देते हैं। ‘अमर प्रेम’ का हर डिजाइन इस भावना को संजोए हुए है, जो समय के साथ और भी गहरा होता जाता है।”
कंपटीशन के अंत में, मंच पर सभी डिजाइनर्स के नामों के साथ विजेता का ऐलान होना था।
रणविजय रावत और अन्य जजों ने कड़ी बहस के बाद फैसला किया— “इस वर्ष का विजेता है... गोल्डन स्टार!”
मंच पर खुशी की लहर दौड़ गई।
अपना अवार्ड लेने के बाद गोल्डन स्टार यानी कि कंचन स्टेज से नीचे उतर गई और प्रिया के पास पहुंच गई, जो कोने में छुपकर खड़ी हुई थी क्योंकि प्रिया किसी भी हाल में अभिषेक के सामने नहीं आना चाहती थी।
इसी बीच, बैकस्टेज पर अभिषेक अपने असिस्टेंट के साथ इंतजार कर रहा था।
जैसे ही प्रिया और कंचन अपने चेहरे पर मास्क लगाए हुए वहां से जाने लगी। अचानक से अभिषेक ने उनका रास्ता रोक लिया।
“मिस गोल्डन स्टार.. मुझे आपसे कुछ बात करनी है!”
प्रिया और कंचन ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर कंचन ने ठंडा लहेजे में जवाब दिया,“आपको जो कुछ भी बात करनी है मेरी मैनेजर से बात कीजिएगा मेरे पास वक्त नहीं है!”
इतना बोलकर कंचन वहां से चली गई और रह गई वहां पर अकेली प्रिया…
प्रिया ने अपने चेहरे से मास्क उतार दिया क्योंकि कंचन ने उसे कहा था कि आखिर वह कब तक अभिषेक से छुपकर रह सकती है.. क्योंकि किसी न किसी दिन अभिषेक को प्रिया के बारे में तो पता चल ही जाएगा हालांकि वह कंचन को ना पहचान सके क्योंकि कंचन और अभिषेक का तो कभी आमना सामना हुआ ही नहीं था.. लेकिन प्रिया को अभिषेक अच्छे से जानता था क्योंकि प्रिया माहिरा से जुड़ी हुई थी आखिर अभिषेक ने हीं तो साजिश रचकर उसे माहिरा से दूर किया था।
क्या रणविजय कभी यह जान पाएगा कि गोल्डन स्टार के पीछे असल में कंचन है?
क्या फिर से अभिषेक प्रिया को देखकर नई साजिश करेगा?
जानने के लिए इंतजार कीजिए कहानी के अगलेभाग का...
प्रिया को सामने देख अभिषेक एक पल को सन्न रह गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह प्रिया को दोबारा अपनी ज़िंदगी में देखेगा—वो भी इस तरह से, इतने सालों बाद।
हैरानी और झिझक के साथ उसने धीरे से पूछा, “तुम यहाँ? क्या तुम गोल्डन स्टार की डिज़ाइनर टीम में काम करती हो?”
प्रिया ने हल्की मुस्कान 😊 के साथ जवाब दिया, “तुम्हें क्या लगता है?”
अभिषेक पूरी तरह से गड़बड़ा गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करे और कैसे करे, लेकिन बात करनी तो थी ही। वह धीरे से बोला, “मुझे गोल्डन स्टार की मदद की ज़रूरत है। आने वाले एक बड़े कॉम्पिटिशन में मैं चाहता हूँ कि गोल्डन स्टार हमारी कंपनी की तरफ़ से पार्टिसिपेट करे। हमारी कंपनी इस वक़्त दिवालियेपन 😞 की कगार पर है... और अगर कुछ बेहतरीन डिज़ाइन्स मिल जाएँ, तो शायद हम संभल जाएँ। हम उनका मुफ्त ❌ में इस्तेमाल नहीं करेंगे, तुम जो कीमत कहो वो देंगे।”
अभिषेक ने जैसे-तैसे अपनी बात पूरी की, लेकिन प्रिया के चेहरे पर एक अनजानी, तीखी मुस्कान 😏 उभर आई थी।
उसने धीरे से अपने चश्मे 🕶️ को आँखों पर चढ़ाया और बोली, “तुम्हें क्या लगता है, माहिरा मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी… और उसके मरने के पीछे जो असली वजह थी, वो मैं नहीं जानती? क्या तुम्हारी इतनी औकात है कि तुम मेरी आँखों में देख कर मुझसे मदद 🙏 की भीख माँगो?”
प्रिया की बात पूरी होते ही अभिषेक के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं। उसका चेहरा स्याह 😨 पड़ गया। वह कुछ कहने ही वाला था कि प्रिया फिर बोल पड़ी —
“पूरी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को यही लगता है कि माहिरा ने आत्महत्या की थी… सबको यही बताया गया कि वो खुद ही खिड़की से कूदी थी।
लेकिन उस रात क्या हुआ था, उसकी सच्चाई अब मेरे सामने है।”
प्रिया की आँखों में आंसू नहीं थे, पर उन आँखों की ठंडक ❄️ अभिषेक को अंदर तक जमा गई।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी की हुई गलती का जवाब कैसे दे। उसकी जुबान सूख गई थी, और अपराधबोध 😔 की भारी चुप्पी में वह बस खड़ा रह गया—बेबस, लाचार।
अपनी बात पूरी करने के बाद प्रिया वहां से चली गई, और अभिषेक को छोड़ गई इस उलझन में…
अभिषेक को बिना कुछ बोले हुए इस तरह से खड़ा देखकर उसका असिस्टेंट जो कुछ दूरी पर खड़ा हुआ था, अचानक उसके पास आया और बोला,
“बॉस... आपने बात की या नहीं?” 🫢
अभिषेक ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप वहाँ से चला गया।
कंचन अपनी गाड़ी में बैठी हुई थी। इस वक़्त उसके चेहरे पर कोई मास्क नहीं था। कुछ ही देर में प्रिया भी वहाँ पहुँच गई। प्रिया के चेहरे पर गुस्से की लकीरें साफ़ झलक रही थीं। उसे देखकर कंचन हल्की-सी मुस्कान के साथ बोली,"हे भगवान! इतना गुस्सा क्यों? क्या हुआ, कुछ बताओगी भी?"
प्रिया झल्लाते हुए बोली,"क्या कंचन! तुम तो खुद निकल आईं, लेकिन मुझे उस बेवकूफ इंसान के साथ फंसा दिया।"
कंचन ने शांत स्वर में कहा,"मैंने ऐसा इसलिए किया। अगर मैं कुछ कहती या वहाँ रुकती तो तुम्हें पता है ना, ज़रा सा शक भी मेरी पहचान को सामने ला सकता था। और मेरा वहाँ से जल्दी निकलना ज़रूरी था, क्योंकि मिस्टर रावत को शायद मुझ पर शक हो गया था, वो मेरा पीछा कर रहे थे। इसलिए मैं कुछ बताए बिना ही निकल आई। मुझे लगा तुम संभाल लोगी। वैसे, कुछ खास बात हुई? क्या कहा अभिषेक ने?"
प्रिया ने गहरी सांस लेते हुए कहा,"कहने की क्या बात है... उसकी कंपनी बैंकक्रप्ट होने वाली है। और उसे बचाने के लिए वो चाहता है कि तुम उनकी कंपनी की ओर से आने वाले डिज़ाइनिंग कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट करो। अगर तुम ऐसा नहीं कर सकतीं, तो कम से कम कुछ डिज़ाइन्स बनाकर दे दो, ताकि वो उन्हें अपने नाम से पेश करके अपनी कंपनी को बचा सके।"
कंचन ने आंखें गोल-गोल घुमाते हुए पूछा,"अच्छा? कौन सा कॉम्पिटिशन होने वाला है?"
प्रिया ने जवाब दिया,"एक हफ्ते बाद है कॉम्पिटिशन। उसकी विनिंग अमाउंट पाँच मिलियन है। इसलिए अभिषेक को उम्मीद है कि अगर उनका डिज़ाइन जीत गया, तो इस इनाम से उसकी कंपनी दिवालिया होने से बच सकती है।"
कंचन ने उत्सुकता से पूछा,"तो फिर तुमने क्या कहा?"
प्रिया मुस्कुराई और बोली,"तुम्हें क्या लगता है, मैं क्या कह कर आई होऊँगी?"
कंचन हँसते हुए बोली,"मुझे तो पूरा यकीन है कि तुमने साफ़-साफ़ कह दिया होगा कि तुम उसकी कोई मदद नहीं कर सकतीं। सही कहा ना मैंने?"
"हाँ, कहकर तो यही आई हूँ," प्रिया बोली, फिर थोड़ी देर चुप रही और सोच में डूबते हुए पूछा,
"लेकिन तुम्हें क्या लगता है... क्या वो फिर से हमसे संपर्क करने की कोशिश करेगा?"
कंचन ने अपने चेहरे पर मास्क वापस पहनते हुए आत्मविश्वास से कहा,"बिलकुल करेगा। क्योंकि इस वक़्त अगर कोई उसकी मदद कर सकता है, तो वो सिर्फ मैं हूँ... और कोई नहीं।"
इतना कहकर कंचन ने ड्राइवर की ओर इशारा किया। अगले ही पल गाड़ी सड़क पर हवा से बातें करती निकल पड़ी।
उधर दूसरी ओर, सिटी हॉस्पिटल के गायनाकोलॉजी विभाग में....
एक लड़की आराम से डॉक्टर के सामने बैठी हुई थी। उसकी पीठ हल्की सी कुर्सी से टिकी थी और दोनों हाथ उसने गोद में रखे हुए थे। चेहरा शांत था, लेकिन नज़रें डॉक्टर पर टिकी थीं — पूरी तरह ध्यान देती हुई।
डॉक्टर उसे नर्मी से कुछ ज़रूरी बातें समझा रही थीं — खानपान, आराम और शुरुआती सावधानियाँ। लड़की उनकी हर बात बहुत ध्यान से सुन रही थी, और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान भी थी… शायद इस नए अनुभव की शुरुआत उसे भीतर से सुकून दे रही थी।
तभी दरवाज़ा हल्के से खुला और एक युवक तेज़ क़दमों से अंदर आया। वह सीधा लड़की के पास पहुँचा और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए डॉक्टर से थोड़ी चिंता के साथ पूछा,
"डॉक्टर, सब कुछ ठीक है ना? कोई घबराने की बात तो नहीं है?"
डॉक्टर ने स्नेह से मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
"नहीं मिस्टर मेहरा, सब बिल्कुल ठीक है। शुरुआती स्टेज है, मगर सब सामान्य है। आपकी पत्नी और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।"
जी हाँ — डॉक्टर के सामने बैठी लड़की जैस्मिन थी, और जो शख्स अब उसके पास खड़ा था, वह था अभिषेक मेहरा।
*क्या अभिषेक सच में फिर से कांटेक्ट करेगा गोल्डन स्टार से?
*कंचन और प्रिया की असली योजना क्या हो सकती है? क्या वे सिर्फ बदला लेना चाहती हैं या कुछ और बड़ा चल रहा है?
जानने के लिए इंतजार कीजिए कहानी के अगले भाग का और कमेंट करना बिल्कुल न भूलिए
अभिषेक और जैस्मिन दोनों गायनाकोलॉजी डिपार्टमेंट से बाहर निकले। जैस्मिन के चेहरे पर खुशी ✨ की चमक साफ नज़र आ रही थी, जबकि अभिषेक की आंखों में गहरी चिंता 😟 झलक रही थी। उसका चेहरा उतरा हुआ था, मानो कोई बड़ा बोझ 🧱 उसके दिल पर हो।
जैस्मिन ने उसकी तरफ देखा और हल्के स्वर में पूछा,"क्या हुआ, सब ठीक है ना? ऐसे क्यों परेशान 🤔 लग रहे हो?"
अभिषेक कुछ कहता उससे पहले ही जैस्मिन की आंखों में एक चमक 🌟 दौड़ गई।
"अरे हां! आज तो तुम ज्वेलरी कंपटीशन 💍 में गए थे ना, फेमस डिज़ाइनर गोल्डन स्टार ✨ से मिलने! क्या हुआ, मिले उनसे?"
गोल्डन स्टार का नाम सुनते ही अभिषेक का चेहरा और ज्यादा गंभीर 😐 हो गया। उसने धीरे से सिर हिलाया और गहरी सांस लेते हुए बोला,"मिलने का मौका तो मिला... लेकिन तुम जानती हो, वहां मुझे कौन मिला?"
"कौन?" जैस्मिन ने उत्सुकता 😯 से पूछा।
अभिषेक ने उसकी आंखों में देखा और गंभीर लहजे में कहा,"प्रिया... प्रिया मिली मुझे वहां। और उसने जो कुछ बताया ना, जैस्मिन... मुझे बहुत डर 😨 लग रहा है। अगर हमारा सच 🕳️ सामने आ गया तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।"
जैस्मिन का चेहरा सख्त 😠 हो गया। उसकी मुस्कान 😊 एक पल में गायब हो गई।
"प्रिया को क्या पता चल गया? और वो वहां, उस कंपटीशन की लोकेशन पर कैसे पहुंच गई?" उसने घबराते 😰 हुए पूछा।
अभिषेक की आंखों में डर और बेचैनी 😣 साफ नजर आ रही थी, लेकिन उसके होंठ अब भी उस राज़ 🔐 को खोलने से हिचक रहे थे...
फिर भी अभिषेक ने धीरे से कहा,"वो... वो प्रिया गोल्डन स्टार की टीम में है। जब मैंने डिज़ाइनर से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने साफ कहा कि मुझे प्रिया से ही बात करनी होगी। और जब मैं प्रिया से मिला, तो उसने सीधा कहा कि उसे सब पता है। उसे ये भी मालूम है कि माहिरा ने सुसाइड 💔 किया था... लेकिन इससे भी ज्यादा, उसे ये पता है कि क्यों किया था और किस वजह से वो ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर हुई।"
अभिषेक का चेहरा फक 😨 पड़ गया था, जैसे किसी ने उसकी नसें काट दी हों। उसकी आंखों में डर 👀 साफ़ झलक रहा था।
जैस्मिन ने हल्की सी मुस्कान 😊 के साथ कहा,
"तुम बेवजह परेशान 😒 हो रहे हो अभिषेक। अगर प्रिया को वाकई में कुछ पता होता, तो वो तुम्हारे पास आकर बातें नहीं करती, बल्कि सीधा पुलिस 👮♀️ को रिपोर्ट कर देती। और अगर ये बात मीडिया 📰 तक पहुंच जाती, तो अब तक तूफान मच चुका होता। तुम्हें तो मालूम है, माहिरा की फैन फॉलोइंग 💫 कितनी बड़ी थी। अगर किसी एक को भी ज़रा सी भनक लग जाती, तो आज तुम यहां यूं चैन से बैठे नहीं होते।"
अभिषेक ने कुछ कहने की कोशिश की,"तो तुम्हारा कहने का मतलब है कि—"
लेकिन जैस्मिन ने बात बीच में ही काट दी,"बिल्कुल! मेरा कहने का वही मतलब है। प्रिया सिर्फ तुम्हें डराने 😈 की कोशिश कर रही है ताकि तुम डर के मारे वो सच उगल दो 🗣️, जो हम नहीं चाहते। वैसे भी, हमारे ऊपर सिर्फ कंपनी 🏢 को बचाने की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि मिस्टर रोहित के दो करोड़ रुपये 💰 भी सिर पर मंडरा रहे हैं। वो आदमी तो जैसे हमारी जान का दुश्मन बन गया है। हर वक़्त कुंडली मार के बैठा रहता है हमारे पीछे।"
अभिषेक ने गहरी सांस ली और सिर हिलाते हुए कहा,"सही कह रही हो। कंपनी को तो किसी तरह से बचा लेंगे, लेकिन अगर रोहित रॉय को दो करोड़ नहीं मिले, तो वो हमारी सच्चाई 🌪️ दुनिया के सामने ला देगा। भले ही खुद सामने ना आए, लेकिन सच को उजागर करने के उसके अपने तरीके हैं।"
जैस्मिन की आंखों में अब गंभीरता 🧠 झलक रही थी। उसने दृढ़ता ✊ से कहा,"इसलिए अब तुम्हें हर हाल में डिज़ाइनर गोल्डन स्टार से मदद लेनी होगी। सिर्फ वही है जो हमें इस मुसीबत 🕳️ से निकाल सकता है। और कोई नहीं। हमें बहुत मुश्किल 😓 से उसकी मेल आईडी 📧 मिली है। वरना अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहती, तो तुम तो उसे उसी दिन कचरा 🗑️ समझ कर फेंक देने वाले थे। शुक्र है मैं समझदार थी जो उसे संभाल कर रख लिया।"
अभिषेक अब चुप 🤐 था, लेकिन उसकी आंखों में उम्मीद की हल्की सी किरण 🌅 दिखाई देने लगी थी…
जैस्मिन से बात करने के बाद अभिषेक की सारी चिंता जैसे हवा में उड़ गई। वह दोनों अब हल्के कदमों से हँसते हुए आगे बढ़ने लगे थे। लेकिन अभी उन्होंने मुश्किल से कुछ ही कदम बढ़ाए थे कि अचानक—
धप्प!
अभिषेक किसी से ज़ोर से टकरा गया।
"अंधे हो क्या?" एक तीखी, गुस्से से भरी आवाज़ ने उसकी सोच की लहर को एकदम से काट दिया।
अभिषेक खुद तो लड़खड़ा गया था, लेकिन सबसे पहले उसने जैस्मिन को संभाला जो उसकी बगल में खड़ी थी। फिर उसकी नजर उस लड़की पर पड़ी जिससे वह टकराया था… और अगले ही पल, उसकी सांसें थम गईं।
वो लड़की… मानो चाँद धरा पर उतर आया हो🌙।
उसकी त्वचा इतनी मुलायम और निखरी हुई थी कि जैसे चाँदी पर दूध छिड़क दिया हो✨। बड़ी-बड़ी बादामी आँखें👀, जिनमें नज़ाकत और तेज़ दोनों एक साथ चमक रहे थे। हल्के गुलाबी होंठ💋 जो बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ बोल रहे थे, और माथे पर बिखरे हुए कुछ भूरे-बाल— जो उस लम्हे को किसी स्लो-मोशन सीन की तरह बना रहे थे🎬।
उसने सादा लेकिन बॉडी-हगिंग व्हाइट शर्ट और ब्लू हाई-वेस्ट जीन्स👖 पहनी थी, जिससे उसकी कर्वी कमर और पतली गर्दन साफ झलक रही थी। उसकी चाल में एक अजीब-सी नज़ाकत और आत्मविश्वास था, जैसे उसे पता हो कि हर आंख उसी पर टिकी है👁️🗨️।
अभिषेक की आँखें उसके चेहरे से फिसल कर उसकी गर्दन पर रुकीं, फिर वहाँ से नीचे…
उसके जिस्म का हर हिस्सा जैसे किसी कलाकार की महीन कल्पना से तराशा गया हो🎨।
उस पल के लिए, अभिषेक सब कुछ भूल चुका था… जैस्मिन, प्रिया, कंपनी, यहां तक कि खुद को भी❌।
उसकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी—जैसे किसी प्यासे रेगिस्तान में अचानक कोई नखलिस्तान दिख गया हो🏜️💧।
उसने खुद को संभालने की बहुत कोशिश की… पर उस लड़की के हुस्न की लपटें उसके संयम की दीवारों को जला रही थीं🔥।
वो लड़की उसे एक घूरती नज़र से देखती हुई बोली,"आंखें खोली रखो, सड़क पर कोई तुम्हारी जायदाद नहीं है।"
अभिषेक बस खड़ा रहा… कुछ कहने की हालत में नहीं था। वो लड़की उसे हल्के धक्के से साइड करते हुए आगे बढ़ गई।
लेकिन अभिषेक की नज़र… अब भी पीछे ही थी🔙। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान🙂 थी—और आँखों में एक खतरनाक, मगर छुपी हुई भूख👀
–––
कौन है वह लड़की जो टकराई है अभिषेक से?
क्या डिज़ाइनर गोल्डन स्टार करेगी मदद अभिषेक की?
जानने के लिए कीजिए इंतजार कहानी के अगले भाग का..
जैस्मिन की आंखें उस लड़की को देखते ही आग🔥 की तरह भड़क उठीं। वह धीरे से अभिषेक के कंधे पर हाथ मारते हुए बोली, "तुम उसे लड़की को क्यों देख रहे हो?"
अभिषेक, जो खूबसूरत लड़कियों को निहारने के लिए मशहूर था😉, जैस्मिन की तीखी नज़रों से जैसे ही अपनी असली दुनिया में लौट आया, उसने झिझकते हुए कहा, "बिल्कुल नहीं, बेबी❤️। तुम नहीं समझती कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ। तुम्हारे सामने मैं माहिरा को भी कुछ नहीं समझता। और वह तो बस एक मामूली बात है।"
फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा😊, "और तुम्हें ऐसी टेंशन क्यों लेनी चाहिए? तुम प्रेग्नेंट🤰 हो, और ऐसी हालत में तो टेंशन लेने की बजाय खुश रहना चाहिए।"
अभिषेक ने प्यार से जैस्मिन को गाड़ी🚗 तक पहुँचाया और सावधानी से उसे गाड़ी में बिठाया। फिर अपनी गाड़ी के आगे बैठी ड्राइवर से कहा, "मैडम को घर🏠 लेकर जाओ।"
अभिषेक को अपने साथ आता देख जैस्मिन ने पूछा, "तुम कहाँ जा रहे हो? तुम घर🏠 नहीं आ रहे मेरे साथ?"
अभिषेक ने कहा, "मैं कंपनी🏢 वापस जा रहा हूँ।"
लेकिन जैस्मिन ने हल्की उदास आवाज़😔 में कहा, "कुछ दिन तो मेरे साथ रहो ना। पहले तो माहिरा की वजह से हम आमने-सामने नहीं आ पाए थे, लेकिन अब हमारे बीच कोई नहीं है ना? अब हम एक साथ रह सकते हैं, एक ही घर🏠 में। तो फिर क्यों नहीं?"
अभिषेक ने उसके गालों पर हाथ रखते हुए प्यार से कहा🥰, "मैं जानता हूँ, बेबी, लेकिन मुझे कंपनी🏢 में बहुत से काम📊 हैं हैंडल करने हैं। और तुम्हें पता है, मुझे किसी भी हालत में डिज़ाइनर गोल्डन स्टार⭐ से मिलना है।"
जैस्मिन जानती थी कि कंपनी🏢 की हालत इस वक्त बहुत खराब है और रोहित रॉय को 2 करोड़ रुपए💸 भी देने हैं।
इसलिए उसने ज्यादा परेशान नहीं किया और मुस्कुराकर🙂 कहा, "ठीक है, मैं तुम्हारी मजबूरी समझती हूँ। लेकिन प्लीज, घर🏠 आने का वक्त🕒 निकालना। मैं तुम्हारे साथ काफी दिनों से समय नहीं बिताई हूँ, अकेले में कुछ वक्त बिताना चाहती हूँ।"
अभिषेक ने प्यार से जैस्मिन के वहाँ से जाने का इशारा किया👋।
जैसे ही जैस्मिन की गाड़ी🚗 वहां से चली गई, अभिषेक फिर से अस्पताल🏥 के अंदर चला गया। वह उस लड़की को ढूंढने में लग गया, जिससे कुछ देर पहले उसकी टक्कर हुई थी। अभिषेक उसे लड़की की खूबसूरती✨ को देखकर इतना ज्यादा कायल हो चुका था कि वह किसी भी हाल में उसे लड़की से मिलना चाहता था। शायद यह जैस्मिन की बुरी किस्मत😞 थी या फिर खुद अभिषेक खुशकिस्मत🍀 पर कुछ वक्त⏳ जिद्दू ज़हद करने के बाद आखिरकार उसे वह लड़की मिल ही गई।
वह लड़की उस समय अस्पताल🏥 की एक नर्स👩⚕️ से कुछ बातें कर रही थी। जैसे ही वह लड़की नर्स👩⚕️ से बात खत्म कर वापस जाने लगी, अभिषेक तुरंत उसके पास जाकर खड़ा हो गया।
लेकिन लड़की ने उसे पहचाना तक नहीं और बिना देखे नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ने लगी।
अभिषेक ने तुरंत माफी मांगते हुए कहा, "सॉरी मैडम, मेरा ध्यान नहीं था, इसलिए टकरा गया।"
लड़की ने उसकी ओर देखा, पर उसकी आंखों में एक हल्की मुस्कान🙂 थी, जैसे वह पहले ही जानती हो कि बात कहां जाएगी।
अभिषेक ने थोड़ा झुककर धीरे से कहा, "वैसे, तुम बहुत खूबसूरत✨ हो... ऐसे कोई आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकता।"
लड़की की मुस्कान🙂 गहरी हो गई, और उसकी आवाज़ में एक खिंचाव आ गया, "तो ये माफी🤔 नहीं, फ्लर्टिंग😉 है, सही?"
अभिषेक ने बिना झिझक के उसकी तरफ देखा, "अगर फ्लर्टिंग😉 है तो क्या हुआ? तुमसे बात करना अच्छा लगा।"
लड़की ने ठंडे अंदाज़ में कहा, "अच्छा, बताओ—तुम्हारी तो पत्नी🤰 है ना? और वो प्रेग्नेंट भी... तुम्हें ऐसा करना ठीक लगता है?"
अभिषेक की आंखें कुछ देर के लिए झुकीं, लेकिन लड़की के तेवर देखकर वह चुप हो गया।
"खैर," लड़की ने कहा, "मैं यहाँ ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहती। ध्यान⚠️ रखना।"
इतना कहकर वह मुस्कुराई🙂 और अपने कदम बढ़ा लिए, छोड़ते हुए अभिषेक को सोचते हुए कि उसकी नीयत❗ पकड़ी गई है।
जैसे ही वह लड़की आगे बढ़ी, अभिषेक ने अचानक उसका हाथ✋ पकड़ लिया और धीरे से अपनी तरफ खींचा। कॉरिडोर🌫️ सुनसान था, वहाँ कोई नहीं था। दोनों की नज़रों🔥 में एक अलग ही आग जल रही थी।
लड़की ने एक पल के लिए अभिषेक की आँखों👀 में देखा, जहाँ हवस😈 की चमक साफ झलक रही थी, लेकिन वह बिल्कुल भी घबराई नहीं थी। उसके चेहरे पर नशे🥴 सी झलक थी, जैसे वह भी उस पल को चाहती हो।
अभिषेक ने धीरे से कहा, "तुम भी जानती हो कि मैं क्या चाहता हूँ।”
फिर उसने लड़की को दीवार🧱 की ओर धीरे-धीरे धकेल दिया, उसकी साँसें💨 तेज़ हो गईं। वह उसके बिलकुल करीब आ गया, उसकी आवाज़🗣️ अब कान के पास आ गई—गर्म और कशमकश से भरी, "और अगर तुम मना करोगी तो... तुम जानते हो ना..तुम पछताओगी⚠️.."
लड़की ने उसकी नज़रों🔥 में छुपी चाहत और दबाव को पढ़ लिया। न तो वह घबराई, न ही हार मानी—उसकी मुस्कान😉 में कुछ शरारत😏 और चुनौती🧨 थी।
अभिषेक की सांसें💨 हल्की तेज़ हो गईं, उसकी आँखों👀 में एक अजीब सी चमक✨ थी। वह लड़की की नज़रों🔥 में छिपी शरारत को पढ़ चुका था, और यह जानता था कि वो भी उससे कम नहीं।
"तुम्हारी हिम्मत💪 तो काबिले तारीफ है," अभिषेक ने धीरे से कहा, "लेकिन ये खेल🎭 मेरे लिए नया नहीं।"
लड़की ने भी अपना सिर थोड़ा झुका कर अभिषेक की नज़रों🔥 से सामना किया, "तो दिखाओ👁️ मुझे, तुम्हें क्या आता है।"
कॉरिडोर🌫️ की खामोशी🤫 के बीच उनकी धड़कनों❤️🔥 की आवाज़🗣️ जैसे और तेज़ हो गई। अभिषेक ने धीरे से लड़की के बालों💇♀️ को अपनी उंगली👉 से सहलाया, और फिर उसके चेहरे🌸 को अपने हाथों✋ में लेकर करीब खींचा।
"तुम्हें पता है, मैं तुम्हें सिर्फ माफी🙏 मांगने नहीं आया," उसने कंधे🧍♂️ पर धीरे से सांस💨 छोड़ते हुए कहा, "मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी हो।"
लड़की ने पलभर के लिए अपना चेहरा🌸 पीछे खींचा, फिर झट से अभिषेक की बाँह💪 पकड़कर कहा, "शायद तुम्हें भी पता है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ कम नहीं। लेकिन याद रखना, ये खेल🎭 बराबर का होना चाहिए।"
अभिषेक ने मुस्कुराते😊 हुए उसे और करीब खींचा, "तो फिर चलो, ये खेल🎭 शुरू करते हैं।"
उनके बीच खिंची हुई दूरियाँ↔️ अब मिटने लगी थीं, और उस सुनसान कॉरिडोर🌫️ में सिर्फ उनकी सांसों💨 की आहट👂 गूंज रही थी।
जैसे ही अभिषेक ने लड़की को अपनी तरफ और करीब खींचा, उनकी सांसें💨 एक-दूसरे में मिलने लगीं। उसकी उंगलियाँ👉 धीरे-धीरे उसके चेहरे🌸 के किनारे पर तैर रही थीं, और उसकी निगाहें👁️ उस लड़की की आँखों👀 में डूबी थीं—जहाँ चाहत❤️ की लपटें धधक रही थीं।
फिर, बिना कोई वक्त गवाए, अभिषेक ने अपने होंठ👄 उसके होंठों👄 से मिला लिए। वो किस💋 था—इतना पैशनेट🔥, इतना गहरा🌊, जैसे उनके बीच की सारी दीवारें🧱 टूट गई हों। उस एक पल में, सब कुछ थम गया—सांसें💨, वक्त⏳, दुनिया🌍। बस वो और अभिषेक।
लेकिन जैसे ही अभिषेक ने कुछ और आगे बढ़ने की कोशिश की, लड़की ने हल्की सी तनी हुई आवाज़🎙️ में कहा, "रुको..."
अभिषेक ने अपनी आँखें👀 खोलीं, और हौले से पूछा, "क्या हुआ? क्या तुम्हें बस इतना ही चाहिए?"
लड़की ने धीरे से जवाब दिया, "नहीं... मैं ज्यादा➕ चाहती हूँ। बहुत ज्यादा➕। लेकिन... अभी नहीं। यहाँ अस्पताल🏥 में हैं। अगर कोई देख लिया तो?"
अभिषेक ने एक शरारती मुस्कान😏 के साथ कहा, "अगर मुझे डर😅 नहीं है, तो तुम्हें किस बात का डर?"
लड़की ने अपनी पलकों👁️🗨️ को झुका कर फुसफुसाते हुए कहा, "डर मुझे नहीं है। मुझे लगता है कि तुम छुपाकर अपनी पत्नी💍 से आए हो अगर तुम्हारी पत्नी यह हमें देख लिया तो क्या होगा?”
अभिषेक ने उसकी बात को समझते हुए अपनी बाँहें💪 कस दीं और धीरे-धीरे उसके कान👂 के पास फुसफुसाया, "छुपा लेंगे हम... पर ये वक्त⏳, ये पल🕰️, हमारा है। मैं इंतज़ार⌛ नहीं कर सकता तुम्हारे लिए।”
उस लड़की ने मुस्कुरा😊 कर अभिषेक से दूरी बना ली और उसके हाथ✋ में एक कार्ड🪪 थमाते हुए कहा, “hotel Sunshine🏨 room number 105... मैं इंतजार⌛ करूंगी... शाम🌆 6:00 बजे।”
इतना बोलकर लड़की वहाँ से चली गई।
दूसरी ओर, उसी अस्पताल के एक वार्ड रूम में…
एक व्यक्ति स्ट्रेचर पर लेटा हुआ था। उसके दोनों हाथ और एक पैर प्लास्टर में जकड़े हुए थे, और माथे पर गहरी पट्टी बंधी हुई थी, जिससे अब भी हल्का-हल्का खून रिस रहा था। चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था 😣, लेकिन उससे भी ज़्यादा झलक रहा था गुस्सा—उसकी आंखों में 😡, आवाज़ में 🔥, और उसके हर शब्द में।
उसके पास एक कोने में उसकी पत्नी बैठी थी, जो लगातार उसकी हथेली थामे हुई थी 🤝, और आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे 😢। पास में ही उनकी जवान बेटी बैठी थी, जो अपने पिता की हालत देखकर बार-बार सिसक रही थी 😭। दोनों की आंखें रो-रोकर सूज चुकी थीं, लाल हो चुकी थीं 👁️🗨️।
वह व्यक्ति अचानक गुस्से से चिल्लाया, "वो नासमझ लड़की अभी तक नहीं आई? 😠 क्या उसे खबर नहीं मिली कि उसके पिता किस हालत में हैं? मैं यहां ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा हूं ⚖️ और उसे फर्क ही नहीं पड़ता? क्या हाल में हूं मैं, ये देखने की भी फुर्सत नहीं उसे?"
उसकी आवाज़ में नाराज़गी साफ थी 😤।
क्या जैस्मिन को पता चलेगी अभिषेक के धोखे की सच्चाई?
कौन है अस्पताल के स्ट्रक्चर पर लेटा हुआ आदमी?
कॉम्पटिशन खत्म करने के बाद कंचन सीधा घर पहुँची। जैसे ही उसने घर के अंदर कदम रखा, सामने एक व्यक्ति की तीखी नजरों से उसका सामना हुआ। वो कोई और नहीं, बल्कि रणविजय था — अपनी शाही ठसक में एक राजा की तरह बैठा हुआ। लेकिन कंचन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
उसने सीधी आवाज़ लगाई, "शांति!"
शांति दौड़ी हुई आई, "जी मैडम?"
"मेरे लिए कॉफी लेकर आओ। मेरा मूड अच्छा है, मैं इसे खराब नहीं करना चाहती," कंचन ने कहा और वहीं सोफे पर बैठकर अपना फोन स्क्रॉल करने लगी।
रणविजय चुपचाप उसे नोटिस कर रहा था। पहले की कंचन होती, तो अब तक न जाने कितनी बार उससे बात कर चुकी होती, मनाने की कोशिश कर चुकी होती। लेकिन अब... इस कंचन ने तो उसे देखना तक जरूरी नहीं समझा, ना कोई 'हाय', ना 'हैलो', बस खामोशी से फोन में व्यस्त।
ना चाहते हुए भी रणविजय ने खुद ही बात शुरू की, "क्या तुम हॉस्पिटल गई थी?"
उसकी आवाज़ सुनकर कंचन की उंगलियां वहीं रुक गईं। उसने सिर उठाया और रणविजय की ओर देखा, जो उसी को देख रहा था। कंचन ने तिरछी नजरों से देखा और कहा, "क्या आप मुझसे बात कर रहे हैं?"
कंचन के इस बर्ताव से रणविजय की आँखें फटी की फटी रह गईं। ये लड़की खुद को क्या समझ रही थी? लिविंग रूम में उनके अलावा कोई और नहीं था। अब जब उसने सवाल किया था, तो साफ था कि वो कंचन से ही बात कर रहा था। लेकिन कंचन मैडम को शायद उससे बात करने का मूड नहीं था।
फिर भी रणविजय ने अपने गुस्से को काबू में रखा और दोबारा कहा, "मैंने पूछा, क्या तुम हॉस्पिटल गई थी?"
कंचन ने शांत भाव से जवाब दिया, "नहीं। मुझे हॉस्पिटल क्यों जाना है? मैं एकदम ठीक हूं। बेवजह हॉस्पिटल के चक्कर क्यों काटूं?"
कंचन का जवाब सुनकर रणविजय का चेहरा सख्त हो गया। उसकी आंखों में गुस्सा साफ झलकने लगा। उसने अपने गहरे स्वर में कहा, "क्या तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे फादर इस वक्त अस्पताल में एडमिट हैं? एक बेटी होने के नाते तुम्हें कम से कम जाकर उनका हाल-चाल तो पूछना चाहिए था!"
कंचन ने बिना कुछ कहे अपना फोन धीरे से टेबल पर रखा। उसने रणविजय की आंखों में देखा और बहुत ही शांत लेकिन सीधा जवाब दिया,"फादर? मिस्टर रावत? आपने कब देखा उन्हें मेरे फादर की तरह पेश आते हुए?"
रणविजय थोड़ा चौंका, लेकिन कंचन रुकी नहीं। उसकी आवाज़ में कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन हर शब्द किसी चुभते तीर की तरह सीधा दिल में उतरता जा रहा था।
"वो कभी आपके सामने तो मेरा साइड नहीं लेते तो क्या आपके पीछे से उन्होंने मुझे अपनी बेटी माना होगा? उनकी नजरों में मैं बस एक जिम्मेदारी हूं, एक बोझ — बेटी नहीं।आप सोच रहे हैं कि मैं एक बेटी की तरह क्यों नहीं पेश आई? तो जवाब साफ है... जब उन्होंने कभी मुझे अपनी बेटी समझा ही नहीं, तो मैं क्यों उन्हें अपने पिता मानूं? होगी ना उनकी असली बेटी... जिन पर वो जान छिड़कते हैं।
मैं क्यों जाऊं उनकी चिंता करने? उन्हें देखने का हक शायद उसी का है, मेरा नहीं।"
वो चुप हो गई। कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी। कंचन की आंखों में आंसू नहीं थे, लेकिन उसकी बातों में एक ऐसा दर्द था जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल था।
कुछ ही देर में शांति कॉफी लेकर आ गई। कंचन बिना कुछ कहे कप उठाई और धीरे-धीरे कदमों से अपने कमरे की ओर बढ़ गई। दरवाज़ा बंद होने की हल्की सी आवाज़ के साथ रणविजय अब लिविंग रूम में अकेला रह गया।
वो वहीं बैठा रहा, लेकिन उसका मन बेचैन था। कंचन की कही हर एक बात उसके ज़हन में गूंज रही थी। अब से कुछ वक्त पहले जब कंचन और मिस्टर सिंघानिया का झगड़ा हुआ था, तब रणविजय को लगा था कि कंचन बस नाराज़ है — कुछ वक्त लगेगा, फिर सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन आज... आज जो कुछ उसने देखा और सुना, उसने सब कुछ बदल दिया।
कंचन की आवाज़ में जो ठंडापन था, उसकी आँखों में जो तीखी नफ़रत झलक रही थी — वो किसी नाराज़ बेटी की शिकायत नहीं थी। वो एक टूट चुके रिश्ते की अंतिम घोषणा थी।
रणविजय अब ये समझ चुका था कि कंचन ने अपना फैसला कर लिया है — अब उसका अपने पिता, मिस्टर सिंघानिया से कोई रिश्ता नहीं है।
ना भावना, ना जिम्मेदारी... बस एक खामोश अंत।
रणविजय सोच में ही डूबा हुआ था कि तभी उसका फोन बज उठा। उसने फोन की स्क्रीन पर नज़र डाली—कॉल अंजलि की थी। बिना देरी किए उसने कॉल रिसीव की...
मुंबई, शाम 5:00 बजे | PR सोसाइटी का एक आलीशान अपार्टमेंट
जैस्मिन लिविंग रूम में काफी देर से बैठी अभिषेक का इंतज़ार कर रही थी। घड़ी की ओर निगाह गई—शाम के ठीक पांच बज रहे थे। उसने धीरे से टेबल से अपना फोन उठाया और अभिषेक को कॉल लगा दी।
कॉल कुछ सेकंड ही बजी थी कि दूसरी ओर से अभिषेक ने फोन उठा लिया। आवाज़ में झुंझलाहट साफ झलक रही थी—
"क्या हुआ जैस्मिन? तुम्हें पता है ना, मैं इस वक्त कितना बिज़ी हूं? क्यों बार-बार कॉल कर रही हो? जैसे ही मुझे थोड़ा वक्त मिलेगा, मैं खुद आ जाऊंगा। अगर तुम इसी तरह कॉल करती रहोगी, तो मैं अपना काम कैसे खत्म करूंगा? तुम्हें तो पता है, हमारे आने वाले बच्चे के लिए मैं कितना मेहनत कर रहा हूं। मैं नहीं चाहता कि उसे किसी भी चीज़ की कमी महसूस हो!"
अभिषेक की बातों में जिम्मेदारी तो थी, लेकिन एक अजीब सी दूरी भी महसूस हो रही थी। फिर भी जैस्मिन उसकी मेहनत और चिंता को देखकर मुस्कुरा दी। उसने धीमे स्वर में कहा—
"सॉरी, मुझे तुम्हें इस तरह परेशान नहीं करना चाहिए था। कोई बात नहीं, तुम अपना काम पूरा करो। मैं अब तुम्हें कॉल नहीं करूंगी।"
कहकर जैस्मिन ने फोन काट दिया।
वहीं, ऑफिस में बैठा अभिषेक कुछ देर मोबाइल स्क्रीन को घूरता रहा। फिर उसने फोन मेज़ पर रखा और घड़ी की ओर देखा। उसने तुरंत इंटरकॉम पर अपने असिस्टेंट को बुलाया।
"राहुल!"
"जी सर!" — राहुल दौड़ते हुए उसके कैबिन में आया।
"एक अच्छा-सा गुलाबों का बुके ऑर्डर कर दो। और हाँ, मैं आज अपने एक खास दोस्त से मिलने जा रहा हूं। अगर जैस्मिन का कॉल आए या वो मेरे बारे में कुछ पूछे, तो बस इतना बता देना कि मैं काम में बहुत बिज़ी हूं और अभी बात नहीं कर सकता।"
अभिषेक ने बिना रुके एक ही सांस में सब कह डाला।
राहुल थोड़ा हैरान हो गया—"लेकिन सर, आज तो हमारी कोई मीटिंग नहीं है, ना ही कोई ज़रूरी काम।"
अभिषेक की आंखों में गुस्से की चिंगारी चमकी—"तुम्हें अपनी पेमेंट चाहिए या नहीं?"
राहुल ने तुरंत सिर हिलाया—"बिल्कुल चाहिए, सर।"
"तो फिर जैसा कहा है, वैसा ही करो। मुझसे सवाल मत किया करो।" — अभिषेक की कड़कती आवाज़ सुनकर राहुल समझ गया कि अब चुप ही रहना बेहतर है।
उसने झटपट सिर हिलाया और कैबिन से निकल गया।
अभिषेक अपने ऑफिस से निकलते वक्त दरवाज़े पर एक पल के लिए रुका। उसने जेब से परफ्यूम निकाल कर खुद पर छिड़का, बालों को स्टाइल किया और अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लाकर बाहर निकल गया।
कार में बैठते ही उसने ड्राइवर से कहा— "सीधा hotel Sunshine चलो…”
ड्राइवर ने चुपचाप सिर हिला दिया। अभिषेक ने एक छोटा-सा गिफ्ट बॉक्स और गुलाबों का बुके अपनी गोद में रखा, और कार आगे बढ़ गई।
वहीं दूसरी ओर...
जैस्मिन अब बालकनी में अकेली बैठी थी। हवा हल्की-हल्की चल रही थी, पर उसके मन में हलचल थी। एक ओर उसे अभिषेक की बातें सच्ची लग रही थीं, लेकिन कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में शक भी घर कर गया था।
उसने मन ही मन सोचा"पहले तो ऐसा नहीं था... हर छोटी-छोटी बात मुझसे शेयर करता था। अब क्या बदल गया है? क्या सच में वो मेरे और बच्चे के लिए इतना बिज़ी है, या फिर कुछ और..."
वो उठी, और अलमारी से एक पुराना एल्बम निकाल कर देखने लगी। उनकी पुरानी तस्वीरें, मुस्कुराते चेहरे, समुद्र किनारे की शामें, सब कुछ आज किसी धुंधली याद की तरह लग रही थीं।
इसी बीच...
रणविजय ने जैसे ही फोन उठाया, दूसरी तरफ़ से अंजलि की घबराई हुई आवाज़ सुनाई दी,"रणविजय... क्या दीदी हॉस्पिटल आने के लिए तैयार हो गईं?"
कुछ पल तक रणविजय चुप रहा। उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। उसकी खामोशी ने ही बहुत कुछ कह दिया था।
लेकिन अंजलि ने फिर से वही सवाल दोहराया, इस बार और भी अधिक बेचैनी के साथ,"रणविजय, प्लीज़ बताओ ना... क्या दीदी तैयार हैं?"
रणविजय ने गहरी सांस लेते हुए सीधा और ठंडा जवाब दिया,"नहीं..."
और इसके बाद बिना कुछ कहे, कॉल काट दी।
उसने फोन वापस अपनी जेब में रखा और धीरे-धीरे सीढ़ियों की ओर बढ़ गया।
दूसरी मंज़िल...
यह मंज़िल उसके और कंचन के रिश्ते की तरह थी—दूरी से भरी, अलग-थलग। शादी को बीत गए थे, लेकिन दोनों का साथ कभी एक ही मंज़िल पर नहीं रहा। रणविजय का कमरा पहली मंज़िल पर था, जबकि कंचन का ऊपर। दोनों साथ रहते हुए भी एक-दूसरे से कोसों दूर थे।
लेकिन आज कुछ अलग था।
कंचन के व्यवहार में आई अचानक सख्ती और खामोशी ने रणविजय को बेचैन कर दिया था। कुछ तो था, जो सामान्य नहीं था।
वो कंचन के कमरे के दरवाज़े तक पहुंचा। दरवाज़ा खुला था। उसने धीरे से अंदर कदम रखा। कमरे में हल्का-हल्का अंधेरा था। खिड़की की हल्की रोशनी से बस इतना दिखाई दे रहा था कि कंचन बिस्तर पर चुपचाप लेटी हुई थी—गहरी नींद में।
रणविजय कुछ पल वहीं खड़ा रहा। फिर न जाने किस भावना से खिंचता हुआ वो कंचन के पास गया।
कांच की खिड़की से आती धीमी रोशनी कमरे में फैल रही थी। कंचन अब भी गहरी नींद में थी। रणविजय उसके पास जमीन पर बैठ गया, उसकी ओर एकटक देखता हुआ।
उसके चेहरे की मासूमियत... उसकी पलकों की हलचल... और उसके होंठों की थरथराहट में जैसे कोई अनकही कहानी छुपी थी।
रणविजय के भीतर कुछ हलचल होने लगी थी।
कुछ कहने की ज़रूरत नहीं थी... सब कुछ सिर्फ नज़रों और एहसासों से महसूस हो रहा था।
रणविजय थोड़ा और करीब हुआ। धीरे से उसने कंचन की झुकी लट को उसकी आंखों से हटाया। कंचन हल्का-सा सिहर उठी, पर नींद में थी।
फिर वह बिना कुछ सोचे उसके चेहरे के और पास गया... उसकी साँसों की गर्माहट अब रणविजय की साँसों से टकराने लगी थी।
आहिस्ता से उसने कंचन के माथे पर अपने होंठ रख दिए— एक लंबा, सुकूनभरा स्पर्श।
जैसे ही उसने पीछे हटने की कोशिश की, कंचन अचानक हल्की सी करवट लेकर दूसरी ओर मुड़ गई।
उसका हाथ रणविजय के हाथ पर आकर टिक गया… और अगले ही पल उसने वही हाथ अपने सिर के नीचे रख लिया… जैसे वही उसकी सबसे प्यारी तकिया हो।
रणविजय एक पल को जड़ हो गया। वो कुछ बोल भी नहीं सकता था, और अब अपना हाथ खींच भी नहीं सकता था…
अगर खींचता, तो कंचन की नींद टूट सकती थी… और शायद इस शांत से पल की जादूभरी हवा बिखर जाती।
उसने एक गहरी साँस ली, और वहीं बिस्तर के किनारे उसके पास लेट गया… उसका हाथ अब भी कंचन के सिर के नीचे था… और उसका दिल, कंचन के करीब आकर किसी अनकहे सुख में डूब रहा था।
कमरे में न कोई आवाज़ थी, न कोई हलचल…
सिर्फ एक अनजानी सी नजदीकी थी… जो दोनों के बीच धीरे-धीरे पिघल रही थी…
बिना कहे… बिना छुए… बस एहसासों की नर्मी के साथ।
तो वहीं दूसरी तरफ..
होटल सनशाइन
शाम की धुंधली रौशनी होटल की दीवारों पर गिर रही थी। बाहर खामोशी थी, लेकिन अभिषेक के दिल में हलचल थी।
कमरा नंबर 105 के दरवाज़े के सामने खड़ा अभिषेक, एक बार अपने बालों को पीछे करता है, कॉलर ठीक करता है और फिर एक हल्की सी मुस्कान के साथ दरवाज़े पर टॉक-टॉक की आवाज़ करता है।
कुछ ही सेकंड के बाद दरवाज़ा खुलता है…
सामने वही लड़की खड़ी थी— वही जिसे उसने हॉस्पिटल में पहली बार देखा था।
उसके खुले बाल, नीली ड्रेस और आँखों की चमक ने अभिषेक को एक पल के लिए रोक दिया।
मुस्कराते हुए उसने अपने पीछे छुपाया गुलाबों का खूबसूरत बुके निकाला और उसे सामने करते हुए एक हल्की शरारत के साथ बोला:
"ये गुलाब एक ऐसे गुलाब के लिए… जो कांटे भी हो… तो भी खूबसूरत लगती है।"
लड़की की आँखों में शरारत और होंठों पर एक धीमी मुस्कान तैर गई।
उसने बिना कुछ कहे गुलाब का बुके ले लिया और हल्के से मुस्कराते हुए साइड में हटकर बोली:
"अंदर आओ, मिस्टर लाइनमार गुलाब वाले…"
अभिषेक हल्के से हँसते हुए अंदर दाख़िल हो गया।
जैसे ही वो दोनों अंदर गए, दरवाज़ा धीरे से 'क्लिक' की आवाज़ के साथ बंद हो गया।
और वहीं से कुछ दूरी पर, होटल की उसी कॉरिडोर के दीवाल के पीछे, एक व्यक्ति खड़ा था—
काले कपड़े, सिर पर काली टोपी, और उसके हाथ में एक हाई-रिज़ोल्यूशन कैमरा।
वो लगातार कमरे की तरफ कैमरा ज़ूम करके देख रहा था।
उसकी आँखों में अजीब चमक थी और होंठों पर एक ऐसी मुस्कान थी… जो मासूमियत से बहुत दूर थी।
"तो खेल शुरू हो गया…" उसने धीरे से फुसफुसाया, और क्लिक करके कुछ तस्वीरें लीं।
फिर एक आखिरी नज़र कमरे के बंद दरवाज़े पर डालते हुए, वह शातिर मुस्कान के साथ वहां से पलट गया।
आखिर कौन है यह अनजान व्यक्ति जिसने खींची है अभिषेक की दूसरी लड़की के साथ तस्वीरें?
क्या रिएक्शन होगा कंचन का जब वह सुबह देखेगी रणविजय को अपने कमरे में?
कमरा 105 की हवा में महक थी—लाइट्स धीमी थीं, पर्दे हल्के झूल रहे थे, और एक कोने में टेबल पर दो क्रिस्टल ग्लास के पास कुछ ड्रिंक्स की बोतलें करीने से सजी थीं।
अभिषेक जैसे ही अंदर आया, उसकी आंखों में हल्का सा चमक उभरी।
"वाह... तुम्हारा टेस्ट तो कमाल का है," उसने मुस्कुराते हुए कहा।
सामने वह लड़की अब एक अजीब कशिश के साथ उसके करीब आई, उसके बहुत करीब… इतनी कि उसके परफ्यूम की खुशबू ने अभिषेक की धड़कनों को थोड़ा तेज कर दिया।
"आइए मिस्टर… पहले थोड़ा मूड बनाया जाए," उसने धीमे से कहा, और ड्रिंक्स की तरफ इशारा किया।
अभिषेक ने उसकी आंखों में झांकते हुए एक कदम और आगे बढ़ाया।
"मूड तो बस तुम्हें देखकर ही बन गया है..." वह धीरे से उसके चेहरे के और करीब हुआ, और अपनी उंगलियों से उसके होंठों की नरम सरहद को छूने ही वाला था कि…
अचानक लड़की ने उसका हाथ पकड़कर नीचे कर दिया।
"क़रीब आने का शौक़ तो बहुत है जनाब को…"
उसकी आवाज़ अब रेशम जैसी धीमी और तीखी थी।
"लेकिन क्या आपको पता है मैं हूं कौन?"
अभिषेक थोड़ा रुक गया, उसकी आँखों में अब दिलचस्पी और बढ़ चुकी थी।
लड़की उसके और करीब आकर उसकी गर्दन के पास फुसफुसाई:
"मेरा नाम नहीं जानते, मेरी कहानी नहीं जानते… फिर भी इस कदर बेक़रार हैं मेरे करीब आने के लिए? क्या आप हर अनजान चीज़ से ऐसे ही खेलते हैं... या मैं कुछ ख़ास हूं?"
उसके होंठ अभिषेक के कान के पास से बस छूते हुए गुजरे, और फिर वह धीरे से पीछे हट गई… एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ।
अभिषेक के होंठों पर अब एक धीमी सी हँसी थी…
"शायद अब जानने का वक्त आ गया है... कि तुम हो कौन..."
कमरे की हवा अब और भी भारी हो गई थी… और खेल अब बस शुरू होने वाला था।
वो लड़की धीरे-धीरे अभिषेक के और करीब आई। उसकी आंखों में एक चमक थी, जिसमें चाहत और चालाकी दोनों छुपी हुई थीं। उसने धीरे से अभिषेक का हाथ थामा, और नर्म मुस्कान के साथ उसे टेबल की ओर ले गई। उसकी उंगलियों का स्पर्श जैसे बिजली सी दौड़ गया अभिषेक के पूरे वजूद में।
टेबल के पास पहुंचकर, कशिश ने अपनी पतली, नाज़ुक उंगली अभिषेक के गाल पर फेरते हुए कहा,“मेरा नाम... कशिश है।”
उसकी आवाज़ रेशमी धीमी थी, और सांसों में नशा घुला हुआ।
कशिश ने टेबल से एक महंगी शराब की बोतल उठाई, उसकी गर्दन को बड़ी इत्मीनान से सहलाया, और फिर एक ट्रांसपेरेंट क्रिस्टल ग्लास में उसका सुनहरा जादू उड़ेल दिया।
बोतल से शराब गिरते वक्त उसकी आंखें अभिषेक की आंखों में थीं — तेज़, खेलती हुई, और बेहद हसीन।
शराब का गिलास भरकर उसने बड़ी नजाकत से उसे अभिषेक के हाथों में थमाया। उंगलियों की छुअन थोड़ी देर के लिए ठहर गई… और फिर एक धीमी सी मुस्कान के साथ उसने अपनी पलकों को झपकाया।
अभिषेक अब तक खुद को रोक नहीं पा रहा था।
उसने कशिश को देख कर गहरा सांस लिया और कहा ,“बिल्कुल… जैसे नाम है, वैसी ही हो तुम। तुम्हारे अंदर एक ऐसी कशिश है… जिसे महसूस करके कोई भी अपनी हदें, अपनी होश, सब कुछ भूल जाए।”
फिर उसने एक पल भी गंवाए बिना उस शराब से भरे गिलास को अपने होंठों से लगाया… और एक ही घूंट में पूरी शराब को गले से नीचे उतार गया… जैसे उसका नशा अब शराब से नहीं, बल्कि कशिश से हो।
गिलास खाली करते ही उसकी आंखें अब और गहरी हो चुकी थीं… और कशिश… वो बस मुस्कुरा रही थी —
जैसे खेल की पहली चाल उसी ने चली हो।
अभिषेक ने गिलास खाली करने के बाद गहरी सांस ली और कशिश की तरफ देखा — उसकी आंखों में अब कशिश की परछाई उतर चुकी थी।
कशिश ने मुस्कुराकर झुकते हुए अभिषेक के हाथ से वो खाली गिलास ले लिया, और अपनी उंगलियों से उसकी हथेली पर कुछ इस अंदाज़ में लहर चलाई जैसे कोई पर्दा हवा में बहता हो।
फिर वो धीरे-धीरे उसके बेहद क़रीब आई, इतना क़रीब कि अभिषेक उसकी सांसों की नमी अपने गले पर महसूस कर सका।
कशिश के होंठ… अभिषेक के कान के पास आकर फुसफुसाए ,"नशा सिर्फ़ शराब में नहीं होता... कुछ लोग भी ऐसे होते हैं जो पीते नहीं, बस छूते हैं… और सामने वाला बहकने लगता है..."
अभिषेक के होंठों पर एक शरारती मुस्कान आ गई।
"तो फिर बहकने दो मुझे..." — उसने धीमे से कहा।
कशिश पीछे हटी, उसकी आंखें एक चैलेंज की तरह चमकीं। उसकी हर हरकत, हर अंदाज़ में ऐसा नज़ाकतभरा जादू था, जो इच्छाओं को इबादत में बदलने लगा।
अगले ही पल कशिश ने उसकी शर्ट की कॉलर थामी, उसकी ओर झुककर उसे इतना पास कर लिया कि अब उनके बीच सिर्फ धड़कनें थीं। उसकी साँसों की गर्माहट अभिषेक के चेहरे को छू रही थी।
अभिषेक की नज़रें कशिश की आँखों में डूबी थीं — जैसे हर जवाब वही छुपा हो।
फिर एक पल…
कशिश की आँखें बंद हुईं, और अभिषेक ने झुककर उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया — बेहद धीमे, बेहद नर्म। एक झिझक, एक चाहत, और फिर… जैसे सब थम गया।
यह कोई जल्दबाज़ी नहीं थी — यह एक लंबा, गहरा एहसास था। उनकी साँसें एक-दूसरे में घुल गईं, और उनका पहला किस एक वादा बन गया — करीब आने का, टूट जाने तक छूते रहने का।
कशिश ने अपनी उंगलियाँ उसकी गर्दन पर कस दीं, और अभिषेक ने उसकी कमर थाम ली। उस पल में कोई शब्द नहीं था, सिर्फ वो लम्हा था… जहाँ दो दिल एक एहसास में खो गए।
कशिश की उंगलियाँ अब भी उसकी गर्दन के पीछे उलझी थीं, और अभिषेक का चेहरा उसके बेहद करीब। उनकी धड़कनें तेज़ थीं, मगर कदम धीमे… जैसे हर पल को महसूस करना चाहते हों।
अभिषेक ने दोबारा उसकी तरफ झुकते हुए उसकी नाक की नोक को अपने होठों से छुआ — एक धीमा, नर्म अहसास। कशिश की पलकों में हल्की सी थरथराहट दौड़ गई। उसने खुद को अभिषेक के और करीब कर लिया, जैसे वह उसकी बाहों में पूरी तरह सिमटना चाहती हो।
अभिषेक ने अपने अंगूठे से उसके गाल को छुआ, उसकी गर्म त्वचा को महसूस किया, फिर उसकी ठुड्डी उठाकर उसके होंठों पर दोबारा झुका। इस बार उनका किस और भी गहरा था — धीमा, मगर इतना पैशनेट कि कमरे की हवा तक थम गई हो।
कशिश ने जवाब में अपनी उंगलियाँ उसके बालों में फंसा दीं, जैसे वह उसे और करीब खींचना चाहती हो। वह एक पल को भी उससे अलग नहीं होना चाहती थी।
उनकी साँसों की गर्मी, एक-दूसरे की त्वचा की नरमी, और दिलों की बेसब्र धड़कनें — सब कुछ उस सन्नाटे में बोल रहा था।
धीरे-धीरे अभिषेक ने उसे अपनी बाँहों में उठाया। कशिश की आँखें बंद थीं, मगर चेहरे पर एक संतोष था। वो खुद को पूरी तरह से उस पल में समर्पित कर चुकी थी।
बेड की ओर बढ़ते हुए… दोनों एक-दूसरे की बाँहों में खो गए — जहां कोई जल्दबाज़ी नहीं थी, बस एक लम्हा… जो हमेशा के लिए उनका बन गया।
वहीं दूसरी ओर, अपने अपार्टमेंट की खामोशी में बैठी जैस्मिन के भीतर जैसे कोई तूफान उठ रहा था। उसका दिल बुरी तरह से बेचैन था — जैसे कुछ टूटकर बिखर गया हो।
उसने एक बार फिर से घबराते हुए अभिषेक को कॉल लगाया, लेकिन इस बार भी स्क्रीन पर वही जवाब था — "स्विच ऑफ"।
ना चाहते हुए भी, जैस्मिन ने अभिषेक के असिस्टेंट राहुल को कॉल कर डाला। कुछ देर की घंटी के बाद राहुल ने कॉल रिसीव किया।
बिना किसी औपचारिकता के जैस्मिन ने सीधे सवाल किया,"अभिषेक कहां है?"
राहुल पहचान गया कि दूसरी तरफ कौन है — ये वही कॉल थी जिसका इंतज़ार उसे था। उसने बिल्कुल वैसा ही जवाब दिया जैसा अभिषेक ने पहले से तय करके रखा था।
"मैडम, सर इस वक्त मीटिंग में हैं।"
"मीटिंग..." जैस्मिन ने बुदबुदाते हुए दोहराया और फिर कुछ पल चुप रही।
थोड़ी देर बाद, आवाज़ को थोड़ा संभालते हुए उसने पूछा,"कितना वक्त लगेगा मीटिंग खत्म होने में?"
राहुल ने शांत आवाज़ में जवाब दिया,"इसके बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है मैडम… हो सकता है मीटिंग सुबह तक चले।"
"ठीक है..." जैस्मिन ने धीमे से कहा और बिना कोई और बात किए कॉल काट दिया।