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काशी-विश्वनाथ

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यह कहानी है काशी और विश्वनाथ की.. विश्वनाथ रघुवंशी जिसका एक ही मकसद है। अपने दुश्मन किशोरा अवस्थी की बर्बादी। पर किशोर अवस्थी सालों से विदेश में छुपा हुआ है। एक दिन विश्व को पता चलता है कि किशोर की बेटी टिया के बारे में। और विश्व प्लानिंग करता है, टि...

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विश्वनाथ रघुवंशी

Hero

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काशी

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Total Chapters (133)

Page 1 of 7

  • 1. Meet Vishwanath Raghuvanshi ( devil)

    Words: 1114

    Estimated Reading Time: 7 min

    पुणे के घने और खूंखार जंगल के बीचो-बीच एक आदमी कुर्सी पर राजा की तरह बैठा हुआ था। उसकी उम्र लगभग 30 साल की होगी, 6 फीट हाइट, मस्कुलर बॉडी, बाइसेप्स पर महादेव का टैटू और एक कान में डायमंड का स्टड था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और आँखों में तबाही का मंज़र साफ़ झलकता था। इस शख्स का नाम विश्वनाथ रघुवंशी था, जिसे दुनिया वाले डेविल के नाम से जानती थी।

    उसके आस-पास कुछ काले कपड़ों में हथियार लिए आदमी मौजूद थे। कुर्सी पर बैठे आदमी की नीली आँखें उस समय गुस्से से लाल हो गई थीं और उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था। उसने सफ़ेद रंग की शर्ट पहनी हुई थी जिसके ऊपर के तीन बटन खुले हुए थे, जिससे उसके गले में पहना हुआ रुद्राक्ष साफ़ दिखाई दे रहा था।

    वह अपनी गुस्से से लाल आँखों से सामने मौजूद उस शख्स को देख रहा था जो घुटनों के बल बैठा हुआ था और जिसके चेहरे पर हताशा साफ़ दिखाई दे रही थी। मौत का मंज़र उसे अपने आस-पास महसूस हो रहा था। उसने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए उस आदमी को देखकर कहा,

    “डेविल मुझे माफ़ कर दो, डेविल मैं सच में बहुत शर्मिंदा हूँ। मैंने इतने समय से कोशिश की लेकिन मैं कामयाब नहीं हो पाया। पर मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं जल्दी उसका पता ढूँढ निकालूँगा और तुम्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना होगा। बस मुझे एक मौका और दे दो। बस यह आखिरी मो…”

    उस आदमी के मौके के शब्द वहीं पर अधूरे रह गए क्योंकि कुर्सी पर बैठे डेविल ने उस आदमी के सीने पर गोली मार दी थी, जिससे वह वहीं पर मर गया।

    डेविल अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और डेविल के खड़े होते ही उसके आस-पास मौजूद सभी आदमी अपना चेहरा नीचे झुका लिए, क्योंकि डेविल को मंज़ूर नहीं था कि कोई उसके सामने सिर उठाकर बात करे।

    वह अपने हाथ में पड़ी हुई बंदूक को एक नज़र देखता है और फिर उस आदमी को देखकर गुस्से में दांत पीसते हुए कहता है,

    “डेविल की दुनिया में दूसरा मौका नहीं होता है।”

    उसके बाद डेविल अपने आदमियों को देखकर कहता है,

    “जंगल के अंदर फेंक दो इसे, यह हमारे किसी काम नहीं आया, कम से कम जानवरों की भूख मिटाने के काम तो आएगा।”

    दो आदमी आगे आते हैं और उस मरे हुए आदमी को खींचते हुए जंगल के अंदर ले जाते हैं। डेविल वहाँ से बाहर निकला। बाहर उसकी गाड़ी खड़ी थी।

    डेविल अपनी गाड़ी चला रहा था। उसने गार्ड्स को अपने साथ नहीं लाया था क्योंकि उसका सिर गुस्से में फट रहा था और उसकी आँखें बहुत ज़्यादा लाल हो गई थीं।

    डेविल की गाड़ी पूरी रफ़्तार में चल रही थी और फिर अचानक से हाईवे पर आकर उसने गुस्से में अपनी गाड़ी पर ब्रेक लगा दिया। उसकी साँसें गुस्से में तूफ़ान मार रही थीं और उसकी लाल आँखें किसी राक्षस की तरह प्रतीत हो रही थीं।

    उसने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं और स्टीयरिंग व्हील पर दो-तीन बार हाथ मारा और गुस्से में चिल्लाकर कहने लगा,

    “नहीं नहीं तुम हर बार मेरे हाथों से बच नहीं सकते हो, देखना एक दिन जब तुम मेरे शिकंजे में होंगे तो तुम्हें ऐसी मौत दूँगा कि तुम मुझसे मौत की भीख मांगोगे पर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी मौत से भी बदतर कर दूँगा।”

    वह अपने बालों को दोनों मुट्ठियों में कस के पकड़ कर नोचता है और गुस्से में जोर से चिल्लाता है। तभी गाड़ी के डैशबोर्ड पर रखा उसका फ़ोन बजता है। वह फ़ोन उठाकर स्पीकर पर रखता है और कहता है,

    “हाँ समीर बोल।”

    सामने से समीर कहता है,

    “विश्व तू कहाँ है? तुझे पता है यहाँ पर हंगामा हो गया है, गुड़िया ने सारा घर सर पर उठा रखा है, वह किसी के काबू में नहीं आ रही है, तू जल्दी आ।”

    वह एक गहरी साँस छोड़ता है और कहता है,

    “ठीक है मैं बस थोड़ी देर में पहुँच रहा हूँ, तू तब तक गुड़िया का ख्याल रख।”

    समीर “ठीक है” बोलकर फ़ोन रख देता है। समीर उसका बचपन का दोस्त है, जितने अच्छे तरीके से समीर उसे जानता है उतना शायद ही दुनिया में कोई जानता होगा।

    विश्व सबसे पहले खुद को शांत करने की कोशिश करता है। वह डैशबोर्ड से अपनी सिगरेट की डिब्बी निकालता है और उसमें से एक सिगरेट को मुँह में लगाते हुए, उसके धुएँ को हवा में उड़ाते हुए खुद को कंट्रोल करने की कोशिश करता है। उसकी नज़र घड़ी पर जा रही थी, जैसे कि वह किसी समय का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही घड़ी के काँटे 3 बजते हैं, वह अपनी गाड़ी में लगा हुआ म्यूज़िक सिस्टम ऑन कर देता है और एक एफएम चैनल लगा देता है।

    जैसे ही रेडियो स्टेशन से उसका एफएम चैनल कनेक्ट होता है, उसके कानों में एक आरजे की आवाज़ आती है।

    “(दुनिया में हर कोई किसी न किसी की तलाश में भटक रहा है, कोई मंज़िल की तलाश में भटक रहा है तो कोई रास्ते की तलाश में। मेरे चाहने वालों, मेरे दोस्तों, जो रास्ते की तलाश में हैं, मैं दुआ करूँगी कि उन्हें उनकी मंज़िल मिल जाए और जो मंज़िल की तलाश में हैं, उनका यह सफ़र मेरे साथ चलते-चलते हसीन हो जाएगा। शाम की क्वेश्चन माला में मैं आप सबका हमारे इस रेडियो स्टेशन में स्वागत करती हूँ। मेरे प्यारे दोस्तों, मैं हूँ आपकी RJ एंजेल। तो चलिए शुरुआत करते हैं आज की इस खूबसूरत शाम की हमारी सबसे पहले कॉलर के साथ।)”

    वह आरजे अपने किसी कॉलर से बात करने लगी और दूसरी तरफ विश्व उसकी आवाज़ को सुनता हुआ गाड़ी चला रहा था। न जाने कब उसका रास्ता उस आरजे के प्रोग्राम के साथ-साथ चलता रहा और कब वह मुंबई पहुँच गया उसे पता ही नहीं चला।

    आरजे एंजेल की आवाज़ सुनते-सुनते विश्व का गुस्सा भी कम हो गया था और अब वह बिल्कुल नॉर्मल तरीके से गाड़ी चलाते हुए अपने घर की तरफ़ जा रहा था।

    तभी आरजे एंजेल की आवाज़ फिर से आती है,

    “वेल दोस्तों, हमारा यह खूबसूरत कारवा आज बस यहीं तक है। उम्मीद करूँगी कि आपको आज का एपिसोड पसंद आया होगा। तो अपनी इस मामूली सी आरजे को इज़ाज़त दीजिये, मैं कल फिर आऊँगी आपके साथ इस खूबसूरत एहसास को लेकर। तब तक के लिए…”

    लेकिन इससे पहले कि आरजे अपना आगे का सेंटेंस पूरा कर पाती, विश्व ने झटके से गाड़ी रोकी और घूरते हुए उस म्यूज़िक सिस्टम को देखने लगा। उसने म्यूज़िक सिस्टम देखते हुए कहा,

    “नहीं..नहीं..नहीं एंजेल बिना गाना गाए आप नहीं जा सकती हैं। आपको पता है मैं सिर्फ़ आपके प्रोग्राम के लिए और सिर्फ़ आपके गाने के लिए पूरे 24 घंटे इंतज़ार करता हूँ, तो आप अपनी आवाज़ में बिना गाना सुनाए तो यहाँ से नहीं जा सकती हैं।”

  • 2. Banaras

    Words: 1167

    Estimated Reading Time: 8 min

    विशालाक्षी मंदिर, बनारस

    पूरब से जब सूरज निकला, सिंदूरी घन छाए। पवन के पग में नूपुर बाजे, मयूर मन मेरा गाए। मन मेरा गाए, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय॥

    (मंदिर के माइक पर एक खूबसूरत सी आवाज पूरे प्रांगण को महका रही थी। मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं की सबकी नज़रें मंच पर बैठी उस लड़की पर थीं। जिसने लाल बनारसी साड़ी पहनी हुई थी और उसके बाल हवा में लहरा रहे थे। आँखों में तिरछा करके काजल लगाया हुआ था और होठों पर हल्की सी मुस्कान थी।)

    पुष्प की माला थाल सजाऊँ, गंगाजल भर कलश मैं लाऊँ। नव ज्योति के दीप जलाऊँ, चरणों में नित शीश झुकाऊँ। भाव विभोर होके भक्ति में, रोम-रोम रम जाये, मन मेरा गाए, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय॥

    (उस प्यारे से भजन को सुनते हुए वहाँ पर आए सभी श्रद्धालु महादेव और माता पार्वती के दर्शन के बाद, अगर किसी को देख रहे थे, तो वह थी मंच पर बैठी उस लड़की को।)

    अभयंकर शंकर अविनाशी, मैं तेरे दर्शन की अभिलाषी। जन्मों की पूजा की प्यासी, मुझ पर करना कृपा जरा सी। तेरे सिवा मेरे प्राणों को, और कोई ना भाए, मन मेरा गाए, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय॥

    पंडित जी भी आरती करते हुए उस लड़की को देखकर कहते हैं, "जब तक बिटिया की आवाज़ नहीं आती है, लगता ही नहीं कि संध्या आरती हुई है। पर यह आवाज़ रोज सुनने को नहीं मिलती है। अगर यह रोज सुनने को मिले, तो कितना अच्छा होना।"

    पूरब से जब सूरज निकला, सिंदूरी घन छाए। पवन के पग में नूपुर बाजे, मयूर मन मेरा गाए। मन मेरा गाए, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय॥

    संध्या आरती खत्म हो चुकी थी। महादेव के विश्राम के लिए द्वार लगा दिए गए थे। सारे श्रद्धालु एक-एक करके मंदिर से निकल चुके थे। लेकिन पंडित जी महादेव का द्वार लगाने के बाद सीधे वहाँ आते हैं, जहाँ पर लोग बैठकर शाम की भजन गा रहे थे।

    पर जब वे देखते हैं, तो वहाँ से सारे लोग जा चुके थे। पंडित जी जल्दी से बाहर निकल कर आते हैं, लेकिन वहाँ पर कोई नहीं दिखता है।

    तभी वे देखते हैं कि सीढ़ियों से उतरते हुए वह लड़की नीचे गाड़ी के पास आती है और उसमें बैठकर चली जाती है।

    उसे ऐसा जाता हुआ देखकर पंडित जी मंदिर की तरफ मुँह करते हैं और अपने हाथ जोड़ते हुए कहते हैं, "इस बच्ची की ज़िन्दगी में और कितने कष्ट लिखे हैं महादेव। आप ही का रूप है, किसी रूप में आप ही आ जाइए, इसी की मदद करने के लिए।"

    मुंबई..

    रघुवंशी मेंशन…

    विश्व की जीप जैसे ही मेंशन के सामने आकर रुकी, वह जल्दी से जीप से बाहर निकला और दौड़ते हुए मेंशन के अंदर गया।

    दरवाज़े पर ही उसे एक औरत, जिसने काले रंग का सूट पहना हुआ था और अपने दुपट्टे को सिर पर रखा था, दिखी।

    विश्व को देखकर वह कहती है, "अरे विश्व तुम आ गए। देखो गुड़िया ने क्या किया है।"

    विश्व जब सामने देखा, तो दो नौकर थे, जिनके सिर फूटे हुए थे और उनके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी।

    विश्व अपनी आँखें बंद कर लेता है और औरत से कहता है, "काकी मैं कुछ घंटे के लिए घर से बाहर क्या चल गया, आप लोगों से गुड़िया को संभाल नहीं गया क्या?"

    काकी कहती है, "संभालने को तो हम खूब संभाल लेते, लेकिन तुम्हारी लाडली बहन किसी के संभालने से समझे तब ना। पता नहीं अंग्रेजी में किसी चीज़ का नाम ले रही है, मुझे तो समझ में भी नहीं आ रहा है। लेकिन बस एक ही चीज़ की रट लगाए हुए है कि उसे 'v' चाहिए। कहाँ से लेकर आए। समीर को भेजा है उससे बात करने के लिए, पर वह भी दरवाज़े से अंदर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है।"

    विश्व एक गहरी साँस छोड़ता है और फिर वहाँ से सीधे सीढ़ियों के पास एक कमरे की तरफ़ चला जाता है। उस कमरे के दरवाज़े पर बहुत सारे बार्बी डॉल और BTS मेंबर के फोटोज़ लगे हुए थे।

    उसके ठीक सामने एक लड़का, जिसने डेनिम की जींस और सिंपल शर्ट पहनी हुई थी, वह खड़ा था।

    उसने जब विश्व को देखा, तो जल्दी से उसको देखकर कहता है, "अरे अच्छा हुआ तू आ गया। गुड़िया दरवाज़ा नहीं खोल रही है।"

    विश्व ने कंधे से समीर को पकड़कर पीछे किया और सख्ती से कहा, "तुम लोगों के बस की कुछ भी नहीं है।"

    वह ड्रॉअर में से एक डुप्लीकेट चाबी निकालता है और दरवाज़े में लगा देता है। उसने दरवाज़ा खोला और धीरे से अंदर कदम बढ़ाए, पर जैसे ही वह अंदर पहला कदम रखता है,

    एक उड़ती हुई गेंद उसकी तरफ़ आती है। विश्व फुर्ती दिखाते हुए जल्दी से उस गेंद को पकड़ लेता है और सामने देखता है, तो उसे जो नज़र आता है, उसे देखकर विश्व, जो दुनिया के सामने एक डेविल है, उसकी काया पूरी तरह से पलट जाती है।

    उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी और आँखों में एक चमक। वह मुस्कुराते हुए उस गेंद को हवा में उछालता है और कमरे में कदम बढ़ाता है।

    दीवार के साथ लगकर एक 24 साल की लड़की खड़ी थी। जिसने दो चोटी बना रखी थी और उसके ऊपर बार्बी के क्लिप भी लगे हुए थे। उसने जो कपड़े पहने हुए थे, वे भी पिंक कलर की फ्रॉक थे, लेकिन उसका चेहरा गुस्से में भड़क रहा था।

    विश्व को देखकर वह और गुस्से में आ जाती है और अपने आस-पास देखने लगती है। उसे दूसरी तरफ़ एक यूनिकॉर्न टेडी बियर नज़र आता है। उसने उस टेडी बियर को उठाया और सीधे विश्व की तरफ़ फेंक दिया।

    विश्व उसे कैच कर के बेड पर फेंक देता है और हँसते हुए कहता है, "क्या बात है, आज मेरी छोटी सी गुड़िया ज्वालामुखी क्यों बनी हुई है? क्या चाहिए आपको?"

    "मुझे 'v' चाहिए।" उस लड़की ने अजीब तरीके से साउंड निकालते हुए कहा।

    वह दिखने में तो 24 साल की थी, लेकिन उसके बात करने का अंदाज़ एक छोटी सी बच्ची की तरह था। वह निचला होठ बाहर निकाल कर बात कर रही थी और उसकी आँखें बार-बार टिमटिमा रही थीं।

    उसके बच्चों जैसी आवाज़ सुनकर विश्व हँसते हुए कहता है, "क्या तुम्हें 'v' चाहिए? यह कैसी ज़िद है, तुम जानती हो ना, 'v' यहाँ नहीं है, साउथ कोरिया में है।"

    "हाँ तो आप साउथ कोरिया को यहाँ लेकर आइए, लेकिन मुझे मेरा 'v' लाकर दीजिए।" गुड़िया ज़िद्दी बच्चे की तरह कहती है।

    अपने भाई से BTS मेंबर 'v' की डिमांड कर रही थी। और उसकी इस फ़रमाइश को सुनते हुए, विश्व को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह अपनी बहन को कैसे समझाए?

    सामने मौजूद यह लड़की कोई और नहीं, बल्कि विश्व की बहन जीविका है। जिसे सारा परिवार प्यार से गुड़िया कहकर बुलाता है, क्योंकि वह सच में ही एक गुड़िया है।

  • 3. काशी की किडनैपिंग - Chapter 3

    Words: 1469

    Estimated Reading Time: 9 min

    मुंबई।

    रेडियो स्टेशन के बाहर एक ऑटो रूका। उसमें से एक लड़की, गुलाबी सूट-सलवार में, बाहर निकली। वह ऑटो वाले को पैसे दे ही रही थी कि दूसरी लड़की ने उसका हाथ खींच लिया।

    "अरे जल्दी चल, शो शुरू होने वाला है, और तू लेट हो गई है," दूसरी लड़की ने कहा, उसे जल्दी से अपने साथ रेडियो स्टेशन के अंदर ले जाते हुए।

    ऑटो वाला अपने पैसे के लिए चिल्लाता रहा। तभी एक बॉडीगार्ड उसके पास आया और उसे उसके पैसे दे दिए।

    उसने सूट-सलवार पहनी लड़की को रेडियो स्टेशन के अंदर एक कांच के कमरे में ले जाकर बैठा दिया। वह उसके कानों में हेडफोन लगाती है और उसे माइक की तरफ देखने का इशारा करती है।

    लड़की ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। एक लाल बटन ऑन करते हुए, उसने मुस्कुराते हुए माइक में कहा, "हेलो मुंबई, मैं हूँ आपकी अपनी RJ एंजेल।"


    एक हफ़्ते बाद…

    रघुवंशी इंडस्ट्रीज़।

    विश्व अपने केबिन में बैठा था। उसके हाथों में एक जलती हुई सिगरेट थी, और आँखें स्क्रीन पर टिकी हुई थीं। वह किसी की तस्वीर देख रहा था, लेकिन जितना वह उसे देख रहा था, उतना ही उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

    एक्सप्रेस सिगरेट से पूरा एशट्रे भरा हुआ था, लेकिन गुस्सा कम नहीं हो रहा था।

    उसने अपने हाथ में जलती हुई सिगरेट की नोक लैपटॉप स्क्रीन पर रख दी। स्क्रीन पर जिस शख्स का चेहरा था, वह जलने लगा।

    वैसे तो लैपटॉप की स्क्रीन चल रही थी, लेकिन विश्व को लग रहा था कि उसका चेहरा जल रहा है। वह जलते हुए निगाहों से उस आदमी को देखकर गुस्से में बोला, "तुम छुप सकते हो, लेकिन मर नहीं सकते हो, किशोर अवस्थी।"

    "क्योंकि तुम्हारी मौत सिर्फ़ विश्वनाथ रघुवंशी के हाथों लिखी हुई है। 24 साल से तुम्हें ढूँढ रहा हूँ। और मुझे यकीन है कि मेरी तलाश जब खत्म होगी, तब मैं तुम्हें 24 घंटे की ज़िन्दगी भी नहीं दूँगा। तुम्हारी वजह से जितना मैं और मेरी बहन तड़पे हैं, उससे कहीं ज़्यादा तड़प तुम्हें होगी।"

    विश्व अपने गुस्से में, स्क्रीन पर जलते हुए आदमी के चेहरे को देखते हुए, यह कह रहा था। उसके चेहरे पर इतना गुस्सा था जो साफ़ दिख रहा था।

    उसकी नफ़रत इस बात से साबित हो रही थी कि जिस सिगरेट की आग से वह लैपटॉप की स्क्रीन जला रहा था, वह उसकी उंगलियों को भी जला रही थी। पर शायद गुस्से में उसे यह दर्द महसूस नहीं हो रहा था।

    तभी टेबल पर रखा उसका फ़ोन बजा। वह अपना फ़ोन उठाता है और देखता है कि जर्मनी से जो जासूस उसने किशोर अवस्थी को ढूँढने के लिए मंगवाए थे, उनका फ़ोन है।

    उसने फ़ोन कान पर लगाते हुए गुस्से में कहा, "अगर अपनी नाकामयाबी के बारे में बताने के लिए फ़ोन किया है, तो तुम्हें मेरे आदमी बता देंगे कि पिछले जितने भी जासूस इस केस में नाकामयाब हुए हैं, उन्हें क्या इनाम दिया गया है?"

    सामने से एक जासूस बोला, "वो और होंगे सर जिन्होंने आपसे पैसे लिए होंगे, लेकिन काम पूरा नहीं किया था। मेरी बात अलग है। मैं जर्मनी से यहां पर सिर्फ़ आपके इस एक केस को हैंडल करने के लिए आया हूँ। मेरे बारे में एक बात फ़ेमस है कि मैं किसी भी छोटे-मोटे लोगों का केस नहीं लेता हूँ। इसीलिए जब आपका केस मेरे पास आया, तो मैंने इसे तुरंत सॉल्व करने के लिए हाँ कर दी है।"

    "मैं जर्मनी का सबसे फ़ेमस जासूस हूँ, इसलिए नहीं क्योंकि मेरी फ़ीस ज़्यादा है, इसलिए क्योंकि मेरे काम में कमी नहीं होती है। आपको किशोर अवस्थी के बारे में पता करना था। मुझे अभी तक किशोर अवस्थी के बारे में कुछ पता नहीं चला है।"

    विश्व ने गुस्से में टेबल पर रखा पेपरवेट उठाया और उसे दीवार पर मारते हुए कहा, "जब तुम्हें किशोर अवस्थी के बारे में पता नहीं चला है, तो मुझे क्या चुटकुले सुनाने के लिए फ़ोन कर रहे हो?"

    सामने से जासूस बोला, "नहीं सर, अपना गुस्सा शांत कीजिए। मुझे भले ही किशोर अवस्थी के बारे में पता नहीं चला है, लेकिन उससे जुड़ी हुई एक खबर है मेरे पास।"

    विश्व गुस्से में, लेकिन ध्यान से उस जासूस की बात सुन रहा था।

    जासूस ने आगे कहा, "किशोर अवस्थी की एक बेटी है, जिसका नाम टिया है। वह मुंबई सांताक्रूज़ कॉलेज में पढ़ती है और एक रेडियो स्टेशन पर RJ है।"

    यह सुनते ही विश्व का चेहरा गुस्से में भड़क गया। उसकी आँखों के सामने कुछ दृश्य चलने लगे, लेकिन उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ कसी हुई थीं।

    वह गुस्से में बोला, "तुम्हारा काम हो गया है, तुम्हें तुम्हारे पैसे मिल जाएँगे।"

    विश्व ने फ़ोन काट दिया और किशोर अवस्थी की आधी जली हुई स्क्रीन पर तस्वीर को देखते हुए कहा, "तुमने 24 साल मुझे और मेरी बहन को जिस दर्द में रखा है किशोर अवस्थी, अब वक़्त आ गया है कि वही दर्द तुम्हें मिले, जब पता चले कि जब कोई अपना तकलीफ़ में होता है, तो कैसा लगता है।"

    "मैंने अपनी गुड़िया को इतने सालों तक तड़पते हुए देखा है। पर अब बारी है, उसकी हर तड़प का हिसाब लेने की और तुम्हारे तड़पने की।"


    मुंबई की भरी सड़कों के बीच एक गाड़ी तेज़ी से जा रही थी। गाड़ी की बैक सीट पर दो लड़कियाँ बैठी हुई थीं।

    एक लड़की ने जीन्स और क्रॉप टॉप पहना हुआ था, और दूसरी ने प्लाज़ो सूट-सलवार।

    दोनों के कानों में हेडफ़ोन लगा हुआ था और सामने मोबाइल पर कोई फिल्म चल रही थी। वह दोनों लड़कियाँ उसे देखकर हँस रही थीं, तभी ट्रैफ़िक में गाड़ी रूकी।

    जीन्स पहनी लड़की ने दोनों के कानों से हेडफ़ोन निकालते हुए कहा, "यार काशी, तू बिलकुल सही है, किसी से कुछ कहने की टेंशन ही नहीं।"

    बगल में बैठी काशी ने अपनी दोस्त टिया को घूर कर देखा। टिया हँसने लगी।

    उसके बाद उसने अपना पर्स निकाला और कहा, "अच्छा 1 मिनट रुक, मैं तुझे कुछ दिखाती हूँ।"

    लेकिन तभी उसने अपने बैग में अपना पर्स ढूँढने की कोशिश की, तो सिर पर हाथ मारते हुए बोली, "अरे यार! मैं तो अपना पर्स घर ही भूल गई हूँ…"

    काशी की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। वह हैरानी से टिया को देखने लगी। टिया जल्दी से ड्राइवर से बोली, "शंभू, गाड़ी यहीं साइड पर लगाओ।"

    "जी मैम साहब," कहते हुए शंभू ने गाड़ी साइड पर लगा दी।

    काशी हैरानी से टिया को देख रही थी। टिया ने उससे कहा, "काशी, मैं अपना पर्स घर भूल गई हूँ और उसमें मेरा ATM और क्रेडिट कार्ड दोनों हैं। मैं एक काम करती हूँ, यहाँ से टैक्सी लेकर घर वापस जाती हूँ और तू सीधे मॉल पहुँच। मैं पर्स लेकर सीधे मॉल ही पहुँचूँगी।"

    काशी की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। उसने सिर ना में हिलाया। वह टिया के हाथों को पकड़कर उसे रोकना चाहती थी, लेकिन टिया तब तक गाड़ी से नीचे उतर गई थी। उसने दरवाज़ा भी बंद कर दिया।

    अंदर से काशी शीशे पर हाथ मारते हुए अपना सिर ना में हिला रही थी, लेकिन तभी रेड लाइट ऑन हुई और शंभू गाड़ी स्टार्ट कर देता है।

    टिया टैक्सी लेकर वापस घर चली गई और काशी ड्राइवर के साथ मॉल के एंट्रेंस पर पहुँच गई।

    शंभू ने काशी से कहा, "मैडम, आपको यहीं उतरना होगा, मुझे गाड़ी पार्किंग में लगानी होगी।"

    काशी ने सिर हाँ में हिलाया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई।

    जैसे ही वह बाहर आई, उसके सामने वह बड़ा सा मॉल दिखाई दिया। वह घबरा रही थी। उसने शंभू को आगे जाने का इशारा किया, तो शंभू गाड़ी को पार्किंग की तरफ़ ले गया।

    काशी धीरे-धीरे मॉल की तरफ़ अपने कदम बढ़ा रही थी, इस बात से अनजान कि मॉल के दोनों तरफ़ दो ब्लैक स्कॉर्पियो उसकी तरफ़ नज़र रखे हुए थे।

    एक की ड्राइविंग सीट पर विश्व बैठा हुआ था और दूसरे पर उसका खास आदमी टोनी।

    टोनी ने ब्लूटूथ को विश्व से कनेक्ट करते हुए कहा, "मालिक, यही है वह। उस जासूस ने जो मुझे गाड़ी नंबर दिया था, ये लड़की उसी में से बाहर निकली है।"

    सामने से गुज़रती हुई काशी को देखकर विश्व के हाथ उसके स्टेरिंग व्हील पर कस गए। उसने ब्लूटूथ कनेक्ट करते हुए टोनी से कहा, "काम पर लग जाओ, आधे घंटे में मुझे ये लड़की कारखाने में चाहिए।"

  • 4. काशी विश्वनाथ की शादी - Chapter 4

    Words: 1515

    Estimated Reading Time: 10 min

    समीर अपने ऑफिस के केबिन में बैठा था। तभी उसके फ़ोन पर एक अननोन नंबर आया। वह उस नंबर को देखकर हैरान हो गया, क्योंकि यह वही जासूस था जिसे उसने विश्व के लिए हायर किया था।


    समीर ने फ़ोन उठाकर कान पर लगाया। सामने से जासूस ने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर समीर एकदम हैरान हो गया।


    वह अपनी जगह से उठकर एकदम खड़ा हो गया और भागते हुए अपनी गाड़ी पर पहुँचा। उसने जल्दी से विश्व को कॉल किया, लेकिन विश्व कॉल नहीं उठा रहा था।


    समीर ने जल्दी से टोनी को फ़ोन किया और उससे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन टोनी का फ़ोन बज रहा था, पर वह भी अपना फ़ोन नहीं उठा रहा था।


    विश्व का कारखाना पुरानी बस्ती के पास था। बस्ती और कारखाने के बीच की थोड़ी सी जगह पर एक मंदिर बनाया गया था, जिसका उद्घाटन आज हो रहा था।


    शिव पार्वती के इस मंदिर में आज बस्ती के सारे लोग मौजूद थे। यह मंदिर उनके आस्था और प्रेम का प्रतीक था। क्योंकि बस्ती में एक भी मंदिर नहीं था, इसीलिए विश्व ने उनके आस्था को देखते हुए पास की जमीन पर एक मंदिर बनाने का आदेश दिया था। जिसका सारा खर्चा विश्व ने खुद उठाया था।


    जहाँ एक तरफ़ मंदिर उद्घाटन की तैयारी और समारोह चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ कारखाने में अलग ही माहौल था।


    विश्व ने एक ब्लैक पैंट और व्हाइट शर्ट पहनी हुई थी। हमेशा की तरह उसकी शर्ट के तीन बटन खुले हुए थे और गले में पहना रुद्राक्ष उसके चेहरे के तेज की तरह चमक रहा था। वह कुर्सी पर बैठा था, लेकिन उसकी आँखों में क्रोध और ज्वालामुखी देखा जा सकता था।


    विश्व की आँखें सिर्फ़ गोदाम के दरवाज़े पर थीं, जहाँ वह किसी के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।


    तभी दरवाज़ा खुला और टोनी अपने साथ एक आदमी को लेकर आया। उस आदमी ने एक लड़की को पकड़ा हुआ था, जिसके हाथ पीछे की तरफ़ बाँधे हुए थे और चेहरे पर काला कपड़ा रखा हुआ था।


    टोनी के साथ उस लड़की को देखकर विश्व का चेहरा गुस्से में आग की तरह लाल हो गया।


    वह अपनी जगह पर गुस्से में खड़ा हुआ और अपनी कमर पर लगी हुई गन निकाल ली।


    उसने गन को अनलॉक किया और तेज कदमों से उस लड़की के पास आया और सीधे उसके कनपटी पर बंदूक रख दी। वह गुस्से में उस काले कपड़े को घूर रहा था।


    रस्सियों से बंधी काशी को समझ ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह तो मॉल के एग्जिट में जा रही थी कि तभी किसी ने उसके नाक पर कपड़ा रखकर उसे बेहोश कर दिया। जब उसे होश आया, तो वह खुद को किसी गाड़ी के अंदर पाती है। उसके दोनों हाथ बाँधे हुए थे और मुँह पर कपड़ा रखा गया था।


    "मन तो करता है, तुम्हें अभी इसी वक़्त जान से मार दूँ। लेकिन सोच रहा हूँ, जहाँ इतना इंतज़ार किया है, वहाँ पर तुम्हारे बाप को तड़पता हुआ देखने के लिए कुछ घड़ी और इंतज़ार कर लूँ।"


    काशी को अपने कानों में बस यही आवाज़ सुनाई दे रही थी। वह घबरा गई और डर से कंपनी लगती थी। उसे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। उसके चेहरे पर कपड़ा था, लेकिन जो आवाज़ उसने अभी-अभी सुनी थी, उसमें उसे अपने लिए मौत साफ़ महसूस हो रही थी।


    वह घबरा गई। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे, लेकिन उसने अपने ऊपर एक खिंचाव महसूस किया। ऐसा लग रहा था, कोई उसकी बाज़ू को खींचता हुआ उसे कहीं लेकर जा रहा है और अगले ही पल वह खुद को किसी कुर्सी पर बैठा हुआ महसूस करती है।


    इसी के साथ उसके चेहरे के ऊपर से वह कपड़ा हटाया गया। उसकी आँखें अचानक से बंद हो गईं। इतनी देर अंधेरे कपड़े की वजह से, रोशनी मिलने के बाद उसकी आँखों में चमक आ गई थी।


    वह अपनी पलकें बार-बार झपकाते हुए देखने की कोशिश कर रही थी। उसने डरते हुए देखा, यह एक पुराना सा कारखाना था, लेकिन हर तरफ़ हथियार लिए हुए लोग खड़े थे। और जब उसने अपने दायें तरफ़ देखा, तो वह एकदम हैरान हो गई।


    एक लंबा चौड़ा पहाड़ जैसा आदमी उसके सिर पर बंदूक रखे हुए खड़ा था।


    जिसे देखकर उसकी आँखें हैरत से ऐसी बड़ी हो गईं कि वह कुर्सी के दोनों सिरों को अपने हाथ में पकड़ लेती है। वह डरते हुए उस आदमी को देखने लगी। उसे अपनी आँखों में दहशत और उस आदमी की आँखों में मौत साफ़ नज़र आ रही थी।


    विश्व जब उसे डरता हुआ ऐसा देखता है, तो उसके चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई और वह उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "मुझे पता नहीं था, कि तुम्हारे बाप ने तुम्हें इतना डरपोक बनाया है।"


    काशी की कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। विश्व का वह रौद्र जैसा रूप और गुस्से से भरी आँखें देखकर उसकी हिम्मत ही नहीं थी कि वह उसे कुछ समझ सके या कुछ बता सके।


    वह अपनी जगह पर ऐसे काँप रही थी, जैसे कि पेड़ से टूटा हुआ कोई पत्ता है।


    विश्व दो कदम पीछे हुआ और अपनी बंदूक की नोक को ठीक काशी के माथे के बीचों-बीच रखते हुए कहा, "क्या होगा अगर मैं तुम्हें अभी इसी वक़्त जान से मार दूँ तो? क्या तुम्हारा बाप तुम्हारे मरने का शौक मनाएगा?"


    पीछे से टोनी ने भी विश्व का साथ देते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता है, कि इसका बाप इसके मरने का शौक मनाएगा। जहाँ तक मुझे पता चला है, इसके बाप ने तो इसे छोड़ दिया है और यह दर-दर भटक-भटक कर अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीती है। सालों से ही अपने बाप के साथ नहीं रहती है। ऐसे में इसका बाप इसके मरने का शौक क्यों मनाएगा? बल्कि उसे तो खुशी होगी, कि चलो बला टली।"


    टोनी के ऐसा कहने पर वहाँ मौजूद सभी आदमी हँसने लगे।


    काशी हैरानी से सबको देखने लगी। यहाँ तक कि विश्व के चेहरे पर भी एक हँसी आ गई, पर वह हँसी कोई मामूली हँसी नहीं थी। बल्कि खतरनाक और गुस्से भरी हँसी थी।


    वह हँसते हुए काशी को देखकर कहता है, "अच्छा तो तुम्हारे बाप ने तुम्हें छोड़ दिया है। वैसे अच्छा ही है, वह शख्स बाप कहलाने के लायक भी नहीं है, लेकिन चाहे जो भी हो, वह तुम्हारा बाप ही ना...और तुम्हारे बाप से मुझे सालों पुराना एक हिसाब चुकता करना है। बहुत तड़पाया है उसने मुझे, पर अब बारी उसके तड़पने की है। चलो तुम्हें मारकर तुम्हारे बाप के तड़पने का काम शुरू करते हैं।"


    काशी का चेहरा दंग रह गया और वह बड़ी-बड़ी आँखों से घबराते हुए बस विश्व को ही देख रही थी। विश्व ने अपनी गन को सीधे काशी के माथे पर रखा और ट्रिगर दबाने ही वाला था, कि टोनी ने उससे कहा, "मालिक आप इसको मार देंगे, तो आपका बदला तो 1 मिनट में ही पूरा हो जाएगा।"


    विश्व हैरानी से टोनी को देखता है, तो टोनी उसे कहता है, "आप इसके बाप को सालों से ढूँढ रहे हैं, ताकि उससे अपना बदला ले सकें। उसे तड़पा सकें। उसे वह दर्द महसूस करवा सकें जो आपने और छोटी मालकिन ने बर्दाश्त किया है। लेकिन इसको मारकर आप उसके बाप तक कैसे पहुँचेंगे? जिस इंसान ने अपनी बेटी को ही छोड़ दिया है, उसके मरने पर वह दुःख क्यों मनाएगा...?"


    विश्व यह सोचने लगा। टोनी की बातों में दम तो था।


    वह हैरानी से काशी को देखकर कहता है, "तुम्हारे बाप ने तुम्हें छोड़ दिया है। तुम्हें लगता है, कि तुम्हारी तकलीफ़ से उसे तकलीफ़ होगी।"


    काशी डरते हुए विश्व को देखती है, लेकिन उसके सवाल का कोई जवाब नहीं देती है। वह बिलकुल पत्थर की तरह कुर्सी पर बैठी हुई थी।


    तभी कारखाने का दरवाज़ा खुला और सबका ध्यान उस तरफ़ गया।


    वहाँ से एक पंडित अंदर आया, लेकिन जब उसने अंदर का नज़ारा देखा, तो एकदम से डर गया। अब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। उसने वह देख लिया था, जो उसे नहीं देखना चाहिए था। क्योंकि कारखाने का दरवाज़ा बंद हो गया था।


    विश्व ने घूरकर पंडित को देखा, तो पंडित जी अपनी धोती संभालते हुए कहते हैं, "जजमान बस्ती वाले कह रहे हैं, कि आपने मंदिर बनवाया है, इसीलिए शिव पार्वती के मंदिर के उद्घाटन के लिए आपको ही होना चाहिए। मैं तो यहाँ पर बस आपको बुलाने के लिए आया था, लेकिन लगता है आप किसी दूसरे काम में बिज़ी हैं। कोई बात नहीं, मैं मंदिर के उद्घाटन का समारोह खुद संभाल लूँगा।"


    यह कहते हुए पंडित जी अपनी धोती संभालते हैं और दरवाज़े की तरफ़ जाने के लिए मुड़ते ही हैं, कि विश्व की आवाज़ ने उनके कदमों को रोक दिया।


    विश्व कहता है, "रुक जाइए पंडित जी, अभी आप यहाँ से नहीं जा सकते हैं, अभी आपको मेरी शादी करवानी है।"

  • 5. एक ऐसी दुल्हन जिसे शादी के मंडप पर छोड़ दिया है - Chapter 5

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    "अभी तो आपको मेरी शादी करवानी है।" विश्व ने यह कहा, तो वहाँ हर किसी की आँखें हैरत से बड़ी हो गईं।

    काशी डरती हुई नज़रों से विश्व को देख रही थी। टोनी को समझ नहीं आया कि अचानक विश्व ने ऐसा क्यों कहा कि उसे शादी करनी है?

    वह हैरानी से बोला, "मालिक, यह आप क्या कह रहे हैं? आप शादी करना चाहते हैं, लेकिन किससे..?"

    विश्व मुस्कुराते हुए टोनी की तरफ़ देखा और फिर उसकी नज़र सीधे काशी की तरफ़ गई। काशी अपनी जगह पर कांप गई। उसकी आँखें हैरत से बड़ी हो गई थीं। डर तो पहले से ही उसके ऊपर हावी था। ऊपर से उसे समझ नहीं आ रहा था कि विश्व कोई नॉर्मल इंसान है या सच में कोई साइको है।

    विश्व ने एक डेविल स्माइल के साथ काशी को देखा और उसकी तरफ़ कदम बढ़ाते हुए टोनी से कहा, "सही कहा तुमने टोनी, अगर मैंने इस लड़की को एक बार में मार दिया, तो इसके बाप को ना तो सबक मिलेगा और ना ही उसे इस बात की परवाह होगी कि उसने क्या खोया है।"

    "इसलिए मैं इसके बाप को हर वो दर्द का एहसास करवाना चाहता हूँ, जिससे मैं और गुड़िया गुज़रे हैं। जो उसके बाप ने किया है, उसकी सज़ा उसकी बेटी को भुगतनी होगी। और अगर बेटी दर्द में तड़पेगी, तो बाप अपने आप सामने आ जाएगा। भले ही उसने अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ दिया है, लेकिन दर्द में औलाद को देखकर बाप का दिल तो बेचैन हो ही उठता है ना।"

    विश्व सीधे काशी के सामने आकर खड़ा हो गया था और उसकी आँखों में देखकर यह कह रहा था। विश्व की आँखों में जुनून और नफ़रत थी, तो काशी की आँखों में दर्द और डर। वह अपनी जगह पर कांप रही थी।

    उसके बाद विश्व ने पंडित जी की तरफ़ देखते हुए कहा, "पंडित जी, शादी के लिए जो ज़रूरी सामान है, टोनी को बता दीजिए। वह अगले 10 मिनट में सब अरेंज करवा देगा।"

    पंडित जी ने यह सुनकर अपनी घबराहट बढ़ा ली। पहले से ही वह विश्व के हाथों में बंदूक देखकर कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

    पर इस तरीके से विश्व के सवाल पर पंडित जी हैरानी से उसे देखते हुए बोले, "जजमान, शादी के सामान की परेशानी नहीं है, वह तो मंदिर में मिल जाएगा। परेशानी तो इस बात की है कि इस तरीके से आप किसी लड़की के साथ जबरदस्ती शादी नहीं कर सकते हैं। अगर उस लड़की की रज़ामंदी नहीं है, तो यह शादी नहीं, पाप होगा। आप एक बार कन्या से पूछ लीजिए, अगर वह राजी हो गई, तो मुझे विवाह करवाने में कोई परेशानी नहीं है।"

    विश्व के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई। उसने अपना चेहरा झुककर काशी को देखा, जिसका चेहरा डर से पीला पड़ा हुआ था।

    उसने अपनी बंदूक की नोक को काशी के माथे पर रख दिया और उसके ऊपर झुकते हुए कहा, "तो बताओ क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"

    वह डरते हुए विश्व को देख रही थी। उसकी एक नज़र अपने माथे पर लगी बंदूक पर गई, जिसे देखकर उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। विश्व ने अपनी बंदूक को उसके माथे से इस तरीके से चिपका रखा था कि उसकी हिम्मत भी नहीं हो रही थी, अपनी गर्दन को हिलाकर हाँ या ना में जवाब देने की।

    विश्व के चेहरे पर जो डेविल स्माइल थी, उसी के साथ काशी की आँखों में देखते हुए उसने कहा, "अपने मुँह से पंडित जी को बोलकर बताओ कि क्या तुम मुझसे शादी करना चाहती हो..?"

    काशी के होंठ कांप रहे थे, पर वहाँ शब्द नहीं थे। वह डरते हुए अभी भी विश्व को देख रही थी। दो मिनट तक काशी ने जब कोई जवाब नहीं दिया, तो विश्व ने उसके माथे से बंदूक हटा ली।

    विश्व ने पंडित जी की तरफ़ देखते हुए कहा, "पंडित जी, लड़की कुछ नहीं बोल रही है, इसका मतलब वह राजी है। अब आप राजी हैं या नहीं, यह बताइए?"

    विश्व ने अपनी बंदूक की नोक पंडित जी की तरफ़ कर दी। पंडित जी की धोती तो पहले से ही ढीली पड़ गई थी, ऊपर से विश्व की बंदूक की नोक को देखकर उनका डर उनकी आँखों में नज़र आने लगा।

    उन्होंने जल्दी से अपना सिर हाँ में हिलाते हुए कहा, "मैं बिलकुल तैयार हूँ, बताइए शादी कहाँ करवानी है?"

    काशी के हाथ-पैर कांप रहे थे, पर विश्व के इरादे टस से मस नहीं हुए। अगले 20 मिनट में ही कारखाने में, जहाँ अब तक सिर्फ़ लोहे के पुराने और टूटे-फूटे सामान रखे हुए थे, वहीं पर बीचों-बीच शादी का मंडप लग चुका था।

    एक तरफ़ दो आसन लगे हुए थे, जहाँ एक पर काशी को बिठाया गया था और दूसरे पर विश्व बैठा हुआ था। सामने शादी का सारा सामान रखा गया था, जो मंदिर से मिल सकता था। उन सबको लेकर टोनी वहाँ पहुँच गया था।

    उसके मालिक शादी करने जा रहे थे और अपनी मालिक की शादी की तैयारी में वह कमी नहीं होने दे सकता था। लेकिन फिर भी वहाँ पर कुछ कमी नज़र आ रही थी।

    विश्व अभी-अभी आसन पर बैठा था। उसने टोनी को देखते हुए कहा, "क्या बात है टोनी, तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? तुम्हारे मालिक की शादी हो रही है, तुम खुश नहीं हो क्या?"

    टोनी ने डरते हुए कहा, "ऐसी बात नहीं है मालिक, लेकिन बहुत अरमान थे कि आपकी शादी में नागिन डांस करूँगा। लेकिन लगता है वह अरमान अरमान ही बनकर रह जाएँगे।"

    विश्व के चेहरे पर खतरनाक हँसी आ गई और वह हँसते हुए बोला, "बस इतना ही, इसमें कौन सी बड़ी बात है? तुम्हें डांस ही करना है ना? यह लो, अभी कर लो।"

    ऐसा कहते हुए उसने एक बॉडीगार्ड की तरफ़ इशारा किया, जिसने अपने फ़ोन से बारात में बजने वाला गाना बजा दिया और टोनी उसे देखकर हैरान हो गया।

    विश्व ने उसे इशारा किया, तो टोनी और उसके साथ कुछ और लोग सामने ही डांस करने लग गए।

    एक तरफ़ शिव पार्वती के मंदिर का उद्घाटन हो रहा था, जहाँ उनका भव्य मंत्रोच्चारण के साथ आरती की जा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ़ कारखाने के अंदर विश्व और काशी शादी के बंधन में बंध रहे थे।

    आसन पर बैठते ही काशी का पूरा शरीर सुन्न पड़ गया था। उसे महसूस नहीं हो रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है? अभी कुछ घंटे पहले तक तो सब कुछ ठीक था। उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन अब अचानक से उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से पलट चुकी थी। वह एक ऐसे शख्स के साथ शादी कर रही थी, जिसके बारे में वह कुछ भी नहीं जानती थी।

    पंडित जी शादी की रस्म में आगे बढ़े। उन्होंने मंत्रों को पढ़ने के बाद विश्व की तरफ़ देखा और उससे कहा, "अब आप दोनों फेरों के लिए खड़े हो जाइए।"

    विश्व फेरों के लिए खड़ा हुआ, लेकिन काशी अपनी जगह पर अभी भी डर से कांप रही थी। विश्व ने उसकी कलाई पकड़ी और उसे खींचकर खड़ा कर दिया। काशी लड़खड़ा गई, लेकिन उसके कदम आगे नहीं बढ़े।

    वह अभी भी अपनी आँखों में आँसू लिए हुए विश्व को देख रही थी। विश्व ने अगले ही पल जब काशी को आगे ना बढ़ता हुआ पाया, तो उसने तुरंत आगे बढ़कर उसे अपनी गोद में उठा लिया।

    काशी संभल नहीं पाई। उसके हाथ सीधे विश्व के गले पर लिपट गए और विश्व उसे उसी तरीके से अपनी गोद में उठाते हुए फेरे पूरे करता है।

    उन दोनों की निगाहें एक-दूसरे पर थीं, लेकिन दोनों की आँखों में कुछ भी नहीं था। सात फेरे पूरे हुए।

    विश्व दोबारा से काशी को आसन पर बिठाता है और खुद बैठते हुए उसका हाथ खींचकर उसे भी बैठा लेता है।

    पंडित जी सिंदूरदान के मंत्र पढ़ते हैं और मंत्र पढ़ने के बाद विश्व से कहते हैं कि वह कन्या की मांग में सिंदूर भरे। विश्व ने अपने हाथों में पूरा सिंदूर मुट्ठी में भर लिया और सीधे ले जाकर काशी के नाक से लेकर उसके माथे तक भर दिया। उसका पूरा माथा और सिर सिंदूर से लाल रंग से लिपट चुका था।

    उसकी नाक सिंदूर से भर चुकी थी। उसके होठों पर सिर्फ़ सिसकियाँ थीं और आँखों में बेहिसाब आँसू।

    पंडित जी ने कहा, "आप दोनों का विवाह संपन्न हुआ, आज से आप दोनों पति-पत्नी हैं।"

    विश्व के चेहरे पर एक डेविल स्माइल थी। वह अपनी जगह पर खड़ा होता है और वह कपड़ा, जिससे उसने अभी-अभी फेरों के लिए गले में डाला था, उसे उतारकर अग्नि में डाल देता है।

    वह अग्नि जलती हुई ज्वाला की तरह भड़क उठती है और विश्व गुस्से में काशी को देखते हुए कहता है, "नाम की शादी मुबारक हो मिसेज़ विश्वनाथ रघुवंशी।"

    "तुम एक ऐसी लड़की हो, जिसे शादी के तुरंत बाद उसके पति ने शादी के मंडप पर ही छोड़ दिया है। ना तो वह तुम्हें अपना रहा है और ना ही तुम्हें अपना नाम दे रहा है। तुम सारी ज़िन्दगी एक ऐसे बंधन में बंधी हो, जिसे ना तो तुम तोड़ सकती हो और ना ही उसे छोड़ सकती हो। और यह है तुम्हारे बाप को मेरा पहला सबक।"

    "विश्व, यह वह लड़की नहीं है..."

  • 6. ये वो लड़की नहीं है - Chapter 6

    Words: 1054

    Estimated Reading Time: 7 min

    "विश्व, ये वो लड़की नहीं है..." कारखाने के दरवाज़े पर खड़े समीर ने जोर से चिल्लाया।


    सबका ध्यान दरवाज़े की ओर गया और सब लोग हैरानी से समीर को देखने लगे। विश्व की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और वह गुस्से में उसकी ओर देखने लगा।


    समीर बदहवासी की हालत में दौड़ता हुआ विश्व के पास आया। उसने देखा तो वहाँ पर तबाही पहले ही हो चुकी थी।


    काशी मंडप पर बैठी हुई थी और उसकी आँखों में असंख्य आँसू थे।


    समीर ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना सिर पीट लिया। वह गुस्से में विश्व की ओर देखते हुए बोला, "तू पागल हो गया है क्या? अपनी नफ़रत की आग में तू इतना अंधा हो गया कि सही-गलत तुझे कुछ भी नज़र नहीं आया। तेरी नफ़रत ने तुझे इस हद तक बर्बाद कर दिया कि तूने बिना सोचे-समझे इस लड़की को बर्बाद कर दिया है।"


    "बिना सच जाने, बिना किसी पुख्ता सबूत के तू ऐसा कैसे कर सकता है? अगर किसी को पता चल गया ना, कि तूने क्या किया है, तो तबाही हो जाएगी।"


    विश्व गुस्से में बौखलाया हुआ था। समीर की आवाज़ पर उसने उसके कंधे को पकड़ा और उसे जोर से हिलाते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है? क्या कहना चाहता है? तू क्या...?"


    समीर ने उसे कंधे से धक्का दिया और दूर करते हुए कहा, "क*** तू गलत लड़की को उठा लाया है। ये वो लड़की नहीं है। ये किशोर अवस्थी की बेटी नहीं है। उस जासूस ने मुझे पूरी डिटेल सेंड की है। वो सारी डिटेल्स तुझे सेंड करने के लिए कब से तुझसे कांटेक्ट करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन तू अपने गुस्से और नफ़रत में इतना अंधा हो गया था कि किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रहा था।"


    विश्व के क़दम लड़खड़ा गए। जब उसने सुना कि मंडप पर बैठी लड़की किशोर अवस्थी की बेटी नहीं है, तो वह गुस्से में काशी की ओर देखने लगा।


    तेज़ क़दमों से वह काशी के पास पहुँचा और उसकी बाजू को पकड़कर उसे झटके से खड़ा कर दिया। काशी का पूरा शरीर डर से काँप गया था और वह डरते हुए विश्व को देख रही थी।


    उसकी आँखों में भयंकर मंज़र था और चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था। वह गुस्से में काशी को देखते हुए बोला, "तुम किशोर अवस्थी की बेटी नहीं हो।"


    काशी कुछ बोल नहीं रही थी। उसका चेहरा इस तरह से डर से भर गया था कि उसकी आँखों के अलावा और कुछ भी हिल नहीं रहा था। उसके होंठ काँप रहे थे, लेकिन वहाँ पर सिर्फ़ हवा थी।


    विश्व ने उसकी ओर देखकर गुस्से से कहा, "चुप क्यों हो? बोल क्यों नहीं रही हो? क्या तुम किशोर अवस्थी की बेटी नहीं हो?"


    काशी के आँसू और तेज़ हो गए। उसे इस तरह से बेबस देखकर समीर जल्दी से विश्व के पास आया और उसे काशी से अलग करके पीछे किया।


    वह गुस्से में विश्व को धकेलते हुए बोला, "दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या तेरा? क्या कर रहा है? अपनी नफ़रत और गुस्से में तू इस तरह से किसी की ज़िन्दगी बर्बाद नहीं कर सकता विश्व।"


    "ये लड़की किशोर अवस्थी की बेटी नहीं है। किशोर अवस्थी की बेटी का नाम टिया है। टिया जब 17 साल की थी, तब उसे अपने पिता के इलीगल वर्क के बारे में पता चला था। इसीलिए उसने अपने पिता को छोड़ दिया और बनारस के एक बहुत बड़े गायक के यहाँ पर उसने म्यूज़िक की ट्रेनिंग ली। वह भी कुछ ही महीने पहले मुंबई आई है और यहाँ के एक रेडियो स्टेशन पर काम करती है।"


    समीर अपना फ़ोन निकाला और उस वीडियो को विश्व के सामने किया, जो उसे जासूस ने सबूत इकट्ठा करके भेजे थे।


    विश्व गुस्से में समीर के हाथों से फ़ोन छीन लिया। उस वीडियो को देखकर उसके हाथों की मुट्ठियाँ कस गई थीं। यह वही मंदिर था जहाँ पर आरती के सुर गूँज रहे थे और उस आरती को गा रही कोई और नहीं, बल्कि टिया ही थी, जो इस वक़्त ओम नमः शिवाय की बहुत सुरीली आरती गा रही थी।


    वही एक और वीडियो था जिसमें टिया रेडियो स्टेशन पर बैठी हुई थी और उसका शो रेडियो पर लाइव टेलीकास्ट हो रहा था। विश्व गुस्से में समीर को देखने लगा।


    तो समीर उसे देखकर बोला, "ये लड़की जिसे तू वीडियो में देख रहा है, इसका नाम है टिया अवस्थी और ये किशोर अवस्थी की बेटी है। और ये लड़की, जिसे तू उठाकर लाया है, ये टिया की केयरटेकर है।"


    विश्व गुस्से में काँप रहा था। उसकी आँखें भयंकर लाल हो गई थीं। वह गुस्से में काशी को देखता है और वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ काशी के पास आया।


    उसने काशी की बाजू को पकड़ा और उसे पास के पिलर से लगा दिया। काशी दर्द से तड़प रही थी। उसकी आँखों से आँसू और चेहरे पर डर इतना था कि वह विश्व से नज़र तक नहीं मिला रही थी।


    विश्व उसके ऊपर चिल्लाते हुए बोला, "जब तुम्हें यहाँ उठाकर लाया गया था, तब से लेकर जब तुमसे शादी करने के लिए पूछा था, तब तक तुमने एक शब्द भी नहीं कहा। क्यों नहीं कहा तुमने कुछ? तुम बोल सकती थी ना, कि तुम वो लड़की नहीं हो। तो फिर तुमने कुछ बोला क्यों नहीं? बताओ मुझे, जवाब दो, तुम जवाब क्यों नहीं दे रही हो? तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो?"


    "क्योंकि वो बेजुबान है।"


    विश्व के हाथ ढीले हो गए और एक झटके से उसने काशी को छोड़ दिया। काशी संभल नहीं पाई और पिलर से ही नीचे बैठ गई। विश्व दो क़दम पीछे हो गया और हैरानी से काशी को देखने लगा।


    वह हैरानी भरी नज़र से समीर की ओर देखता है, तो समीर उसे देखकर बोला, "ये लड़की, इसका नाम काशी है और ये टिया की केयरटेकर है, लेकिन ये बोल नहीं सकती। एक बेजुबान है।"


    "काशी टिया के ड्राइवर की बेटी है। इसके पिता के मरने के बाद टिया ने इसे अपनी केयरटेकर और दोस्त की तरह अपने साथ रखा हुआ है।"

  • 7. सर्वगुण संपन्न काशी - Chapter 7

    Words: 1537

    Estimated Reading Time: 10 min

    विश्व की हैरानी भरी निगाहें काशी पर टिकी थीं। माथे और मांग में भरा लाल सिंदूर और आँखों में हताशा के आँसू; उसकी निगाहें काशी से हटी ही नहींं।

    अब तक वह काशी को नफ़रत और गुस्से की आग में देख रहा था, लेकिन अब, जब उसने काशी का छोटा-सा चेहरा देखा, तब उसे एहसास हुआ कि उस लड़की की आभा बाकी लड़कियों से कितनी अलग है।

    विश्व के हाथ काँप रहे थे। उसने आज तक बहुतों की जान ली थी, बहुतों को सज़ा दी थी; लेकिन उसके उसूलों में कभी किसी बेगुनाह को सज़ा देना शामिल नहीं था। लेकिन आज उसके हाथों से एक गुनाह हुआ था। अपनी नफ़रत के चलते, उसने सही-गलत सोचना बंद कर दिया था और उसके हाथों से एक ऐसा पाप हो गया था, जिसे महसूस करते हुए उसकी आत्मा काँप रही थी।

    विश्व कुछ सोच पाता या समझ पाता, इससे पहले ही समीर का फ़ोन बज उठा।

    समीर ने फ़ोन उठाकर देखा तो काकी का कॉल आ रहा था।

    समीर ने फ़ोन उठाकर विश्व को देते हुए कहा, "काकी फ़ोन कर रही हैं, शायद तुझसे बात करना चाहती होंगी। तेरा फ़ोन नहीं लग रहा है।"

    विश्व ने फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा, "जी काकी, बताइए..."

    सामने से काकी ने कुछ कहा, जिसे सुनकर विश्व की आँखें एकदम बड़ी हो गईं और वह चिल्लाते हुए बोला, "ठीक है, डॉक्टर को फ़ोन कीजिए, हम अभी आते हैं!"

    काशी उस कारखाने में अकेली खड़ी थी। कुछ देर पहले वहाँ इतने सारे लोग मौजूद थे - बॉडीगार्ड काले कपड़ों में, शादी का मंडप, और हर चीज़। लेकिन अब वहाँ कोई नहीं था। जहाँ थोड़ी देर पहले इतने सारे लोग थे, वहाँ अब सन्नाटा छाया हुआ था।

    यहाँ तक कि विश्व और समीर भी नहीं। समीर के फ़ोन पर काकी का फ़ोन आया और उसके तुरंत बाद विश्व समीर से बोला, "गुड़िया को कुछ हो गया है! उसने कुछ गलत खा लिया है।"

    इतना सुनते ही वे दोनों साथ-साथ दरवाज़े की ओर भागने लगे, जैसे उन्हें जल्द से जल्द कहीं पहुँचना था।

    काशी उन्हें जाते हुए देखकर हैरान रह गई और उनके पीछे-पीछे सारे बॉडीगार्ड भी चले गए। काशी वहाँ अकेली खड़ी रह गई। उसके हाथों में वह शादी का कपड़ा था, जिसे पहनकर विश्व ने उसके साथ फेरे लिए थे, लेकिन अब उसके हाथों में सिर्फ़ वही कपड़ा रह गया था।

    क्या करे वह इस कपड़े का? क्योंकि जो उसके साथ हुआ है, उसके बाद तो वह इस कपड़े का इस्तेमाल फाँसी लगाने के लिए भी कर सकती है।

    उसने हैरानी से इधर-उधर देखा। पूरे कारखाने में सिर्फ़ पुरानी मशीनें और खिड़कियाँ-दरवाज़े ही थे। वहाँ एक इंसान भी नहीं था। ऐसे में काशी अब क्या करती?

    उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। वह वहीं जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी।

    अपनी ज़िन्दगी के उन दिनों को याद करते हुए, जब उसने संघर्ष करना सीखा था। 10 साल की उम्र में उसके माता-पिता गुज़र गए थे। इस दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं था, जिसे वह अपना कह सके। रिश्तेदारों ने धोखे से उसकी सारी प्रॉपर्टी हथिया ली और फिर उसे एक चलती हुई रेलगाड़ी में बैठा दिया।

    बेजुबान और मासूम काशी सोच नहीं पाई कि उसके साथ क्या हो रहा है? जब वह नींद से जागी, तब उसे एहसास हुआ कि ना तो वह अपने घर पर है और ना ही उस जगह पर जहाँ वह रहा करती थी। वह तो एक अलग ही दुनिया में आ गई थी। किस्मत काशी को बनारस ले आई।

    महालक्ष्मी मंदिर के अध्यक्ष ने काशी को अपनी बेटी बना लिया और आश्रम के सारे कार्यभार सिखाए। उस आश्रम में बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाया जाता था। काशी को सिंगिंग बहुत अच्छी लगती थी, लेकिन वह जानती थी कि वह सब कुछ कर सकती है, पर जिंदगी में कभी भी वह गाना नहीं गा पाएगी।

    इसलिए उसने क्लासिकल डांस में भरतनाट्यम और कथक में महारत हासिल की। लेकिन जब टिया बनारस के आश्रम में संगीत सीखने आई, तो उसकी मुलाकात मासूम सी काशी से हुई और वे दोनों एक अच्छा बॉन्ड शेयर करने लगीं।

    टिया और काशी में दोस्ती हो गई। टिया को पता चला कि काशी का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए उसने काशी को अपने साथ चलने के लिए कहा। उसे मुंबई में एक रेडियो स्टेशन पर नौकरी मिल गई थी।

    टिया काशी को लेकर मुंबई जैसे शहर में आ गई। यहाँ आकर दोनों ने अपनी ज़िन्दगी नए तरीके से शुरू की थी, जहाँ टिया रेडियो स्टेशन पर काम करती थी और काशी उसकी देखभाल करती थी।

    कहने के लिए उन दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन एक तरह से देखा जाए तो ये दोनों सगी बहनों से कम नहीं थीं। काशी ने अपने जीवन के साथ समझौता कर लिया था।

    उसने सोच लिया था कि उसकी ज़िन्दगी इसी तरीके से चलेगी, लेकिन टिया के रूप में उसे एक नई उम्मीद मिली, जहाँ वह दुनिया को एक नए नज़रिए से देख सकती थी। अपने अंदर इतनी बड़ी कमी होने के बावजूद भी काशी सब काम कर सकती थी, जो एक नॉर्मल लड़की कर सकती है।

    अगर उसके आवाज़ को माध्यम ना बनाया जाए, तो एक तरह से काशी सर्वगुण संपन्न थी। लेकिन अपने सभी गुणों में माहिर काशी आज अपनी बेजुबान होने की कमी के कारण विश्व को यह नहीं बता पाई कि वह एक गलत लड़की है और उसके साथ एक ऐसे बंधन में बंध गई जिसमें ना तो वह बंधना चाहती थी और ना ही विश्वास करना।

    लेकिन अब काशी शादी के मंडप पर छोड़ दी गई थी। एक ऐसी दुल्हन जो यह तक नहीं जानती थी कि वह आदमी कौन है, जो आँधी की तरह आया और तूफ़ान की तरह उसका सब कुछ बर्बाद करके चला गया।

    उसे इतना तो पता चल गया था कि ये लोग टिया को उठाने की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन गलती से टिया की जगह काशी का अपहरण कर लिया गया। पर अब काशी क्या करेगी? वह कहाँ जाएगी?

    हताश कदमों से काशी अपनी जगह पर खड़ी हुई और धीरे-धीरे कदमों से वह कारखाने के बाहर आई। बाहर आते ही उसने देखा, सामने एक छोटी सी बस्ती है, जहाँ ढोल बजाकर बच्चे नाच रहे थे, क्योंकि आज यहाँ बस्ती के पहले मंदिर का उद्घाटन हुआ था।

    जहाँ एक तरफ़ मंदिर का उद्घाटन हो रहा था और शिव-पार्वती की आरती की जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ़ काशी और विश्व की शादी के मंत्र पढ़े जा रहे थे।

    काशी हारे हुए कदमों के साथ उस मंदिर की तरफ़ गई, जिसका कपाट अभी-अभी खुला था।

    अपने चेहरे पर निराशा लेकर काशी मंदिर के सामने पहुँची, जहाँ पंडित जी पूजा करके सबको प्रसाद बाँट रहे थे।

    पंडित जी काशी के पास आए और उसके आँसुओं से भरे, निराशा में लिपटे हुए चेहरे को देखकर बोले, "क्या बात है बिटिया, तुम रो क्यों रही हो? आज तो इतनी खुशी का दिन है। महादेव और पार्वती जी हमारे सामने विराजमान हैं, क्या तुम्हें इस बात की खुशी नहीं हुई है...?"

    काशी आँसू भरी आँखों से पंडित जी को देखती है और अपने हाथों के इशारों से उन्हें कुछ कहती है। पंडित जी समझ गए कि काशी बोल नहीं सकती।

    इसलिए वे निराशा से बोले, "कोई बात नहीं बिटिया, मुझे माफ़ कर दो। मुझे नहीं पता था कि तुम बोल नहीं सकती हो। तुम्हें जो भी परेशानी है, अपने मन की बात महादेव के सामने रख दो। वे तुम्हारी बात ज़रूर सुनेंगे। तुम यहाँ बैठ जाओ, जब तक चाहो यहीं बैठ सकती हो। मैं तुम्हारे लिए प्रसाद लेकर आता हूँ।"

    काशी दीवार के सहारे टिककर नीचे जमीन पर बैठ गई और उसकी आँखों में निराशा साफ़ झलक रही थी। उसकी निगाहें महादेव और पार्वती जी की प्रतिमा से हटी ही नहीं रही थीं।

    ऐसा लग रहा था कि अपने जीवन के सारे सवालों का जवाब वह भगवान से माँग रही थी, पर जैसे आज काशी बेजुबान होकर अपने मन की बात नहीं कह पाई। ऐसा लग रहा था कि भगवान भी काशी से कुछ नहीं कहना चाहते थे।

    वहीं दूसरी तरफ़...

    विश्व और समीर दोनों तेज़ी से दौड़ते हुए मेंशन के अंदर पहुँचे, जहाँ सारे नौकर डर से एक तरफ़ खड़े थे।

    विश्व और समीर तेज़ी से भागते हुए सीढ़ियों की तरफ़ गए, जहाँ काकी खड़ी थीं।

    विश्व घबराते हुए सीढ़ियों पर चढ़ते हुए काकी से बोला, "डॉक्टर को बुलाया?"

    काकी भी डरते हुए हाँ में अपना सिर हिलाकर बोली, "हाँ मालिक, डॉक्टर को फ़ोन कर दिया है। डॉक्टर और नर्स अभी गुड़िया के कमरे में ही हैं।"

    विश्व जैसे ही कमरे में दाखिल हुआ, तो देखा कि नर्स ने गुड़िया को पीछे से पकड़ रखा है और डॉक्टर ने एक बाल्टी लेकर उसके सिरहाने पर रखी हुई है और गुड़िया उसमें उल्टी कर रही है।

  • 8. साथ नहीं था, ना नीति न नियति.  - Chapter 8

    Words: 1036

    Estimated Reading Time: 7 min

    पूरी रात मंदिर में बैठने के बाद, आखिरकार काशी हार कर अपनी जगह पर खड़ी हो गई। उसके मन में बहुत सारे सवाल थे और उसने सारी रात आँखों में जागकर महादेव से वही सवाल किए थे, लेकिन उसे अपने किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिला।

    आज कोई भी उसके साथ नहीं था, न नीति, न नियति।

    आखिरकार काशी मंदिर से बाहर निकली और पैदल ही घर की तरफ चल पड़ी। उसका घर कहे, या फिर टिया का घर... लेकिन वह उस घर में टिया के साथ रहती थी। उसके पास इसके अलावा और कोई सहारा भी नहीं था।

    न जाने कितनी देर तक चलते-चलते आखिरकार वह घर के सामने पहुँची, लेकिन जब उसकी नज़र दरवाज़े पर पड़ी, तो वह एकदम से हैरान हो गई। यह एक छोटा सा मकान था, जो उसने और टिया ने रेंट पर लिया था।

    लेकिन अब दरवाज़े पर ताला था। ताले को देखकर काशी हैरानी से इधर-उधर देखने लगी। तभी उसकी नज़र मकान मालकिन पर पड़ी, जो थोड़ी ही दूर पर अपने दूसरे मकान में रहा करती थी।

    काशी को देखकर मकान मालकिन हैरानी से कहती है, "अरे काशी तुम यहां क्या कर रही हो? मुझे तो लगा, कि तुम भी उसके साथ चली गई हो।"

    काशी हैरानी से अपने हाथों के इशारे से मकान मालकिन से पूछती है, "टिया कहाँ है? और घर पर ताला क्यों लगा हुआ है?"

    मकान मालकिन यह तो नहीं समझ पाई कि वह क्या कह रही है, लेकिन उसके हाथों के इशारों से इतना समझ गई थी कि वह घर के बारे में बात कर रही है।

    उन्होंने काशी से कहा, "कल टिया जब दोपहर में घर वापस आई थी ना, तो अचानक से घर के सामने दो-चार गाड़ियाँ आकर रुक गईं। उनमें से कुछ लोग बाहर आए और वो लोग टिया को अपने साथ ले गए। उन्होंने तो टिया को पैकिंग करने का भी टाइम नहीं दिया।"

    "एक आदमी मेरे पास आया और मेरे हाथों में नोटों का पैकेट रखते हुए कहा, कि घर का रेंट है। अब से टिया यहां नहीं रहेगी। वो अपने घर वापस जा रही है। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया, लेकिन जिस तरीके से टिया बिना किसी बहस के चुपचाप उनके साथ चली गई, मुझे यही लगा कि शायद वो उन लोगों को जानती है।"

    "और उसके बाद जब मुझे तुम्हारा ख्याल आया, तब मुझे लगा, कि शायद तुम भी उसके साथ चली गई हो। लेकिन तुम तो यहीं पर हो..."

    काशी परेशान हो गई। उसके पास और कोई जगह भी नहीं थी रहने के लिए। उसने अपने हाथ के इशारे से मकान मालकिन से पूछा कि क्या वह यहाँ रह सकती है? उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है!

    मकान मालकिन उसकी बातों को कुछ-कुछ समझ गई थी और उन्होंने कहा, "देखो अगर टिया साथ में होती, तब तो मैं तुम्हें यहाँ रहने की परमिशन दे सकती थी। क्योंकि इस घर का रेंट टिया ही पे करती थी।"

    "लेकिन अब जबकि वो यहाँ नहीं है, तो क्या तुम उसका रेंट दे सकती हो? वैसे भी मैंने नए किरायेदारों से बात कर ली है। वो लोग आजकल में शिफ्ट हो जाएँगे। क्या तुम्हारे पास पैसे हैं किराये के लिए?"

    काशी परेशानी से ना में सिर हिलाती है।

    उसके ना में सिर हिलाने के बाद मकान मालकिन ने कहा, "देखो काशी मुझे तुम्हारे लिए बुरा लग रहा है, लेकिन मैं इसके अलावा कुछ नहीं कर सकती हूँ। अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं, तो फिर मैं तुम्हें यहाँ रहने की इजाजत नहीं दे सकती हूँ।"

    "और उसके बाद उन्होंने अपने पल्लू में से 500 का नोट निकालकर काशी के हाथ में रखते हुए कहा, "फ़िलहाल मैं तुम्हारे लिए बस इतना ही कर सकती हूँ! इसके आगे मुझे माफ़ करो..!"

    काशी अपनी मजबूरी और हालात जानती थी। एक साथ मुसीबत ने उसे घेर लिया था। वह हाँ में अपना सिर हिलाती है और अपने आँसू साफ़ करते हुए मकान मालकिन को उस पैसे के लिए धन्यवाद कहती है।

    वह इनकार नहीं कर सकती थी। उसे सच में इस वक़्त पैसों की ज़रूरत थी। एक बार उस बंद घर को देखकर काशी चुपचाप अपने कदम वहाँ से दूसरी तरफ़ ले जाती है। अब उसे अपने लिए एक रहने की जगह देखनी थी, लेकिन वह रहेगी कहाँ? उसके पास तो कोई जगह भी नहीं थी और न ही वह किसी को जानती थी।

    टिया के अलावा उसका यहाँ पर कोई भी नहीं था। और उसकी बेजुबान होने की वजह से कोई उससे बात भी नहीं करता था। इसीलिए ज़्यादा लोगों से उसकी जान पहचान नहीं बनी...

    रघुवंशी पैलेस...

    कल रात गुड़िया ने मशरूम खा लिया था, जिसकी वजह से उसे एलर्जी हो गई थी और डाइजेशन सिस्टम खराब हो गया था। वह उल्टी पर उल्टी किए जा रही थी। जल्दबाजी में डॉक्टर को बुलाना पड़ा, लेकिन अब गुड़िया ठीक है। वह पूरी रात दवाइयों के प्रभाव से सोती रही।

    लेकिन पूरी रात में एक पल भी ऐसा नहीं था, जब विश्व ने हल्की सी झपकी भी ली हो। वह पूरी रात गुड़िया के बगल में ही बैठा था और उसने एक मिनट के लिए भी गुड़िया का हाथ नहीं छोड़ा था।

    समीर भी सोफ़े पर ही बैठा हुआ था। उसकी नज़र विश्व और गुड़िया पर थी। वह जानता था, कि विश्व पूरी दुनिया में सिर्फ़ गुड़िया से ही प्यार करता है। गुड़िया के आगे ना तो उसे कुछ समझ में आता है और ना ही कुछ दिखाई देता है।

    काकी भी दरवाज़े के पास खड़ी थी। बचपन से उन्होंने ही तो विश्व और गुड़िया की देखभाल की थी। इसीलिए जहाँ विश्व को गुड़िया की फ़िक्र थी, तो वहीं पर काकी को गुड़िया और विश्व दोनों की फ़िक्र थी।

    काकी विश्व के पास आती है और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती है, "अब वो ठीक है! देखो उसके चेहरे से रैशेज भी हट गए हैं। इसका मतलब वो सुकून से सो रही है, तुम भी जाकर फ़्रेश हो जाओ और थोड़ा सा आराम कर लो। उसके बाद तुम्हें ऑफ़िस भी तो जाना है।"

    "नहीं काकी मैं गुड़िया को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। ऑफ़िस का काम समीर हैंडल कर लेगा।" विश्व ने गुड़िया के हाथों को कसकर थामते हुए कहा।

  • 9. रात गई बात गई। वो शादी एक धोखा थी, - Chapter 9

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    समीर ने विश्व को देखते हुए कहा, "ऑफिस का काम तो मैं हैंडल कर लूँगा, लेकिन तुझे हैंडल करना मेरे बस की बात नहीं है! काकी सही कह रही है, गुड़िया ठीक है और आराम से सो रही है। तू चल, चलकर फ्रेश हो जा। मुझे तुझसे कुछ बात करनी है। मैं कमरे में इंतज़ार कर रहा हूँ, जल्दी आना।"

    समीर वहाँ से विश्व के कमरे में चला गया। काकी के समझाने के बाद, विश्व ने धीरे से गुड़िया का हाथ कम्बल के अन्दर रखकर उसे ठीक से कम्बल ओढ़ाया और फिर गुड़िया के माथे को चूमकर कमरे से बाहर निकल गया। काकी गुड़िया के पास ही थी।

    विश्व जब कमरे में गया, तो समीर पहले ही वहाँ बैठा हुआ था। विश्व को आता देख, वह खड़ा हो गया। विश्व ने एक नज़र समीर को देखा और फिर अपने क्लासमेट की ओर चला गया। वह अपने कपड़े निकालने लगा। उसने घर के ही कपड़े निकाले थे, क्योंकि आज ऑफिस जाने का उसका कोई इरादा नहीं था। वह गुड़िया को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला था।

    समीर ने उसे गुस्से में घूरते हुए कहा, "सोचा है क्या करना है?"

    "किस बारे में?" विश्व ने सवाल किया।

    समीर की आँखें छोटी हो गईं। वह इतने सामान्य कैसे बात कर सकता है? इतना बड़ा कांड करने के बाद उसके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। समीर एकदम हैरान हो गया। वह बेफ़िक्र कैसे हो सकता है? वह भी उस कांड के बाद...

    उसने गुस्से में विश्व से कहा, "तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? कल जो तूने किया है, उसके बाद तू ऐसे कैसे बात कर रहा है जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं है? अब करना क्या है?"

    "समीर, तू पागल हो गया है क्या? सुबह-सुबह क्या बकवास किए जा रहा है? किसकी बात कर रहा है? किसका क्या करना है?" विश्व ने एकदम सामान्य रहते हुए समीर से सवाल किया।

    समीर ने हैरानी से कहा, "अरे, उस लड़की का क्या करना है?"

    "किस लड़की का? कौन सी लड़की?" विश्व ने कहा। उसकी बात सुनकर समीर को हैरानी नहीं, बल्कि सदमा सा लग रहा था। विश्व इतने आराम से कैसे इस बात को भूल गया? यह कोई बहुत पुरानी बात थोड़ी ना थी, अभी कल की ही तो बात है।

    वह गुस्से में विश्व के पास आया और कहा, "तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? कल उस लड़की से शादी करने के बाद, तू ऐसे कैसे रिएक्ट कर रहा है, जैसे तूने कुछ किया ही नहीं?"

    "क्या किया है मैंने? तू किसके बारे में बात कर रहा है? पागल हो गया है क्या? और अगर हो गया है, तो जाकर पागलखाने में अपना इलाज करवा। मुझसे ऐसे फ़ालतू सवाल करके मेरा दिमाग खराब करने की ज़रूरत नहीं है। ना तो मेरी कोई शादी हुई है और ना ही मैं किसी लड़की को जानता हूँ।"

    समीर को एक धक्का सा लगा। उसने हैरानी से कहा, "क्या मतलब है तेरे कहने का? कल जो तूने किया है, वो..."

    विश्व उसकी ओर देखकर बोला, "क्या किया है मैंने? जो बात तू अपनी ज़ुबान से कहने की कोशिश कर रहा है, उस ज़ुबान के अन्दर ही रख, तो ही बेहतर है। यह बात कल के कल ही खत्म हो गई है। रात गई बात गई। वह शादी एक धोखा थी, एक दिखावा था और शादी का मेरी ज़िन्दगी में कोई अस्तित्व नहीं है और उस लड़की को मैं जानता तक नहीं हूँ। वह सब एक गलतफ़हमी थी, जो कल ही खत्म हो गई है।"

    "मैं उसे किशोर अवस्थी की बेटी समझकर उठाकर लाया था और शादी के बाद उसे मंडप पर ही छोड़ दिया है। अगर वह किशोर अवस्थी की बेटी होती, तो यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात होती, कि मैं उसकी बेटी को मंडप पर ही छोड़ दिया है। लेकिन वह लड़की वह किशोर अवस्थी की बेटी नहीं है। इसीलिए मेरा उससे अब कोई लेना-देना नहीं है।"

    "उसके साथ जो कुछ भी हुआ है, वह अनजाने में हुआ है और एक गलती को मैं अपने गले में नहीं बाँध सकता हूँ। चाहे वह अवस्थी की बेटी हो या ना हो, पर मैंने उसे मंडप पर ही छोड़ दिया है। इसलिए इस बात को यहीं खत्म कर। आज के बाद ना तो तू इस बारे में कभी कुछ कहेगा और ना ही किसी को इस बारे में पता चलना चाहिए।"

    समीर गुस्से से उसकी ओर देखकर बोला, "विश्व, तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? तू ऐसा कैसे कर सकता है? वह लड़की बेज़ुबान है।"

    "हाँ, तो मैं थोड़ी ना किया है उसे बेज़ुबान!" विश्व एकदम चिल्लाते हुए कहता है।

    समीर अपनी जगह पर ही जम गया। वह गुस्से में विश्व को देख रहा था, लेकिन विश्व की आँखें भी लाल हो रखी थीं। वह समीर के पास आया। उसके हाथ में इस वक़्त पहनने के लिए कपड़े थे।

    उन कपड़ों को पोटली सी बनाकर उसने साइड के सोफ़े पर जोर से फेंकते हुए कहा, "एक बात याद रखना समीर, मेरे लिए सिर्फ़ मेरा मकसद सबसे पहले आता है और वह है किशोर अवस्थी की बर्बादी... जब तक मैं उसे जान से मार नहीं देता हूँ, तब तक मुझे सुकून नहीं मिलेगा।"

    "उस लड़की का ना तो मुझे कोई लेना-देना है और ना ही मेरे बदले से... वह बस अनजाने में मेरे रास्ते में आ गई थी और अनजाने में की गई गलती को, मैं अपने गले में बाँधकर नहीं रख सकता हूँ।"

    "यह शादी सिर्फ़ एक धोखा थी। एक झूठ थी! एक दिखावा थी! जिसे मैंने कल ही खत्म कर दिया था! मैं इस बात को कल रात ही भूल चुका था, तू भी भूल जाए, तो बेहतर है और हाँ, यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए।"

    विश्व यह कहता है और फिर गुस्से में वहाँ से बाथरूम की ओर चला गया।

    बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने पर समीर हैरान रह गया। उसका दोस्त अपने गुस्से और नफ़रत में इतना ज़्यादा अन्धा हो गया था, कि वह सही-गलत की पहचान भी नहीं कर पा रहा था! एक बेज़ुबान लड़की, जिसका इन सब से कोई लेना-देना भी नहीं था, विश्व उसकी ज़िन्दगी के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ कर चुका था और यह करने के बाद भी, उसके चेहरे पर कोई सिकन नहीं था।

  • 10. काशी-विश्वनाथ - Chapter 10

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 11. ये वाला कलर जो भाई की फिंगर पर लगा हुआ है..!" - Chapter 11

    Words: 899

    Estimated Reading Time: 6 min

    विश्व अपनी बात पूरी करके वहाँ से चला गया, और समीर हैरानी से उसे जाता हुआ देखता रह गया। उसे लगा ही नहीं था कि विश्व कभी इस तरीके की बात भी कर सकता है।

    उसे अपने दोस्त पर पूरा भरोसा था, लेकिन आज विश्व की बात सुनकर समीर को बहुत बुरा लगा। पता नहीं क्यों, लेकिन उसे काशी के लिए बुरा लग रहा था।

    लेकिन तभी समीर को याद आया कि गुड़िया की खबर मिलने के बाद वे लोग इतनी जल्दबाजी में कारखाने से निकले थे कि काशी का ख्याल भी उन्हें नहीं आया। अब काशी कहाँ होगी? यह सोचकर समीर परेशान हो गया।

    उसने जल्दी से बस्ती में मौजूद अपने एक आदमी को फ़ोन किया और उससे कारखाने में जाकर देखने के लिए कहा। लेकिन समीर के आदमी ने उसे बताया कि वह कारखाने में ही है, लेकिन वहाँ पर कोई भी नहीं है।

    यह सुनकर समीर और ज्यादा परेशान हो गया। विश्व फ्रेश होकर नीचे आ गया। गुड़िया की तबीयत पूरी तरह से ठीक थी। वह जाग चुकी थी और सोफ़े पर बैठकर टॉम एंड जेरी देख रही थी।

    उसके हाथ में उसकी फ़ेवरेट डॉल थी। उसने बेबी पिंक कलर की फ्रॉक पहनी हुई थी और दोनों बालों की चोटी बनाई हुई थी।

    काकी ने उसकी चोटी में छोटे-छोटे से पिंक कलर के क्लिप भी लगा रखे थे और वह किसी गुड़िया की तरह लग रही थी। अपनी डॉल के साथ खेलते हुए वह मज़े से सोफ़े पर उछल रही थी। उसने पूरे सोफ़े पर खाने-पीने की चीज़ें बिखेर दी थीं। लेकिन काकी या फिर घर में किसी को भी इस बात से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि किसी ने भी अगर गुड़िया की शरारत पर उसे डाँटा, तो उसे इंसान की शामत आई समझो।

    विश्व को बिल्कुल पसंद नहीं था कि कोई उसकी बहन के साथ ऊँची आवाज़ में बात करे। गुड़िया को घर में सब करने की आजादी थी। उसने कितनी बार महँगे स्टैचू और फ़र्नीचर ख़राब कर दिए, कई बार दीवारों पर अलग-अलग पेंटिंग बनाकर दीवारों को ख़राब कर दिया था। बाहर से कभी भी आवारा जानवर को घर पर ले आई और उन्हें सोफ़े पर बिठाकर उनके साथ खेलती।

    गुड़िया दिमागी रूप से अनस्टेबल थी। काकी गुड़िया के पीछे प्लेट लेकर खड़ी थी, क्योंकि गुड़िया कभी भी एक जगह टिककर खाना नहीं खाती थी, उसके पीछे भाग-भाग कर उसे खाना खिलाना पड़ता था।

    कल ही उसने मशरूम खा लिया था, जिसकी वजह से उसे एलर्जी हो गई थी, इसीलिए काकी उसके पीछे खिचड़ी लेकर खड़ी थी और उसे खिचड़ी खिलाने की कोशिश कर रही थी।

    विश्व और समीर डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। उनके कानों में टॉम एंड जेरी के कार्टून की आवाज़ और साथ ही गुड़िया के नटखटपन में नखरे दिखाने की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। पर यह उनके लिए रोज़ की बात थी।

    "कुछ पता चला? कहाँ है अवस्थी की बेटी का?" विश्व अपना नाश्ता करते हुए समीर से कहता है।

    "हाँ, मैंने उस जासूस को कहा था कि अवस्थी की बेटी के बारे में पता लगाए, लेकिन उसने जो बताया वो सुनकर मैं थोड़ा हैरान रह गया। दरअसल, किशोर अवस्थी को पता चल गया था कि उसकी बेटी का किडनैप होने वाला है।" समीर भी अपना नाश्ता करते हुए बोला।

    "इसीलिए उसने अपनी बेटी को और मौके पर ही अपने पास बुला लिया है। वो जगह जहाँ पर किशोर की बेटी टिया काशी के साथ रहती थी, वहाँ पर अब कोई नहीं रहता है।"

    काशी का नाम सुनकर विश्व के हाथ प्लेट पर रुक जाते हैं और उसके दोनों हाथों की मुट्ठियाँ कस जाती हैं। वह घूरते हुए समीर को देखने लगता है, जो नॉर्मल तरीके से अपना खाना खाते हुए यह बात कर रहा था। वह चाहता तो इस बात को सीधे तरीके से भी बता सकता था, लेकिन उसने जानबूझकर काशी के नाम को बीच में घुसाया।

    विश्व अपने गुस्से पर काबू करता है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए उसने समीर से कहा, "पता करो किशोर अवस्थी तक यह बात कैसे पहुँची कि हम उसकी बेटी का किडनैप करने वाले हैं? जाहिर सी बात है किसी बाहर वाले ने तो बताई नहीं होगी, यह कोई अपना ही आदमी है जिसने हमारे बीच में रहकर गद्दारी की है।"

    "ठीक है, मैं पता करता हूँ।" समीर ने हाँ में सिर हिलाते हुए बोला।

    "भैया, मेरे को भी कलर चाहिए।" गुड़िया सीधे विश्व के बगल में कूदकर बैठ जाती है। विश्व के हाथ में जो खाना था वह प्लेट में छिटक कर गिर जाता है और कुछ खाना उसके कपड़ों पर भी गिर जाता है। लेकिन गुड़िया के सामने ना तो उसने कभी नाराज़गी दिखाई है और ना ही कभी उसके सामने गुस्से में बात किया है।

    वह आराम से गुड़िया की तरफ़ देखते हुए बोला, "कौन सा कलर चाहिए? बता दो समीर भैया को, वह ला देंगे।"

    "हाँ गुड़िया, मुझे बताओ तुम्हें कौन सा कलर चाहिए?" समीर भी कहता है।

    गुड़िया मासूमियत के साथ अपने एक हाथ में अपनी फ़ेवरेट डॉल को पकड़ती है और दूसरे हाथ से विश्व के हाथों को पकड़ते हुए उसे सामने करके कहती है, "ये वाला कलर जो भाई की फ़िंगर पर लगा हुआ है।!"

    विश्व, समीर और काकी, तीनों का ध्यान विश्व के हाथ पर जाता है। उसकी उंगलियों में लाल रंग की आभा झलक रही थी। उसकी पाँचों उंगलियाँ हल्के-हल्के लाल रंग में लिपटी हुई थीं।

  • 12. मुसीबत में काशी - Chapter 12

    Words: 1092

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपने हाथों को देखकर विश्व की आँखों के सामने वह मंज़र आ गया, जब उसने इसी हाथ से काशी की मांग भरी थी और उसके बाद वह सिंदूर का रंग इतना लाल हो गया था कि साफ़ करने के बाद भी विश्व के हाथ से पूरी तरह से नहीं हटा था।


    काकी ने हैरानी से विश्व से पूछा, "विश्व, ये तुम्हारे हाथ में लाल रंग कैसा है? मुझे तो ये सिंदूर के रंग के जैसा लग रहा है।"


    विश्व अपनी जगह पर खड़ा हुआ और काकी को घूरकर देखते हुए कहा, "गुड़िया तो बच्ची है, वह तो कुछ भी कह देगी। कम से कम आपको तो उसके सामने ये सब नहीं कहना चाहिए ना। सिंदूर कहाँ से आएगा मेरे हाथ में? रंग है, कहीं से लग गया होगा। मैं अभी साफ़ करके आता हूँ।"


    वह वहाँ से सीधे बाथरूम की तरफ़ चला गया और साबुन से अपने पूरे हाथ को खसखस कर उसमें से वह सिंदूर का लाल रंग मिटाने लगा।


    उसका चेहरा इस समय गुस्से से भरा हुआ था। खुद से की गई गलती का कोई भी अंश वह अपने सामने नहीं रखना चाहता था। एक बार पूरे हाथ को साफ़ करने के बाद विश्व अपने ही हाथ को देखने लगा।


    पूरा हाथ तो साफ़ हो गया था, लेकिन नाखून के आसपास जो हल्के-हल्के लाल रंग नज़र आ रहे थे, उस पर विश्व की आँखें छोटी हो गईं और वह गुस्से में अपने मन में कहा, "ये सिर्फ़ एक गलती है, इसका मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई वजूद है और ना मैं इसे याद रखना चाहता हूँ।"


    वहीं दूसरी तरफ़ काशी...


    उसकी मकान मालकिन ने जब उसे ₹500 दिए थे, तो उसे कुछ राहत महसूस हुई, कि इन पैसों से वह टिया से बात कर सकती है। उसने कई बार मोबाइल से टिया का नंबर डायल किया और मोबाइल वाले से उसे बात करने के लिए कहा। लेकिन PCO वाला आदमी जब भी फ़ोन करता, तो वह नंबर नॉट रीचेबल ही बताता था। काशी को बता दिया गया कि वह जो नंबर कह रही है, उस नंबर पर फ़ोन नहीं लग रहा है।


    काशी परेशान हो गई। अब उसके पास और कोई चारा नहीं था, इसीलिए उसने एक गहरी साँस छोड़ी और बस स्टैंड की तरफ़ जाने की सोची। उसने सोचा कि वहाँ से वह रेलवे स्टेशन चली जाएगी और रेलवे स्टेशन पहुँचकर वह बनारस के लिए कोई ट्रेन ले लेगी।


    बनारस के अलावा उसका कहीं और ठिकाना भी तो नहीं है। कम से कम आश्रम में काशी को सिर छुपाने की जगह तो मिल जाएगी। यही सोचते हुए काशी बस स्टैंड की तरफ़ चल दी।


    लेकिन शाम हो चुकी थी और आस-पास का सुनसान इलाका था और रात की वजह से वहाँ पर अंधेरा भी गहरा होता जा रहा था। काशी डरते हुए तेज-तेज कदमों से आगे की तरफ़ बढ़ रही थी। उसका पूरा चेहरा डर से भरा हुआ था। उसे आस-पास से आई हुई अजीब-अजीब आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।


    वह तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, पर तभी एक जगह पर जाकर उसके कदम रुक गए। सामने की तरफ़ तीन लड़के थे, जो सड़क के किनारे, एक बाइक के पास खड़े होकर स्मोकिंग कर रहे थे।


    काशी उन्हें देखकर डर गई और वह घबराते हुए अपने कदम पीछे लेने लगी, लेकिन पीछे की तरफ़ भी तो लम्बी सड़क थी और अंधेरा था। काशी ने अपने दुपट्टे से अपने आप को पूरा ढँक लिया था। उसने हिम्मत बांधी और महादेव का नाम लिया।


    उसके बाद वह सीधे अपना चेहरा नीचे करती है और तेज़ी से आगे बढ़ने लगी। उन तीनों लड़कों ने काशी को अपने सामने से गुज़रते हुए देखा; वे तीनों वैसे ही पिए हुए थे और नशे में थे।


    एक लड़के ने काशी की तरफ़ इशारा किया, तो बाकी दोनों भी हाँ में सिर हिलाते हैं। वे तीनों अपनी बाइक वहीं पर छोड़ देते हैं और काशी के पीछे-पीछे जाने लगते हैं। काशी उनके कदमों की आहट अपने पीछे महसूस कर सकती थी, इसीलिए उसने अपने कदमों की रफ़्तार बढ़ा दी।


    वह तेज़ी से आगे की तरफ़ भागने लगी। उसके कदम चल नहीं रहे थे, बल्कि भागने के अंदाज़ में आ गए थे और उन लड़कों ने भी अपने कदमों की स्पीड बढ़ा दी थी। काशी महसूस करने लगी कि वे लड़के तेज़ी से उसका पीछा कर रहे हैं; वह इतनी डर गई, घबराहट के मारे उसने तेज चलना छोड़कर भागना ही ज़रूरी समझा।


    वह भागने लगी और उन लड़कों ने जब काशी को भागते हुए देखा, तो वे भी उसके पीछे-पीछे भागने लगे। काशी जानती थी कि वह लड़कों से तेज़ नहीं भाग सकती है, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और तेज़ी से भागने लगी।


    पर उन तीनों लड़कों की रफ़्तार काशी से ज़्यादा थी। उन तीनों लड़कों ने सड़क पर अलग-अलग डायरेक्शन में भागना शुरू कर दिया। दो लड़के जंगल की तरफ़ तेज़ी से भाग रहे थे और एक काशी के पीछे जा रहा था। उन दोनों ने आगे से जाकर काशी को घेर लिया और एक पीछे की तरफ़ से काशी को घेरे हुए खड़ा था।


    जैसे ही वे दोनों लड़के काशी के सामने आ जाते हैं, काशी डरते हुए अपने कदम पीछे लेने लगती है, पर जब उसने देखा कि एक लड़का पीछे खड़ा है, तब उसे महसूस होता है कि लड़कों ने उसे तीनों जगह से घेर लिया है।


    उसके पास निकलने का कोई रास्ता नहीं है। वह डरते हुए उन तीनों को देखती है, पर उन तीनों के चेहरे पर मक्कारी और घिनौनापन साफ़ नज़र आ रहा था। वे काशी की तरफ़ अपने कदम बढ़ा रहे थे और काशी डरते हुए अपने लिए इधर-उधर छुपने की जगह देख रही थी।


    एक लड़का हँसते हुए कहता है, "अरे यार, ये लड़की तो शादीशुदा है, दिख नहीं रहा इसकी मांग सिंदूर से भरी हुई है।"


    दूसरा लड़का काशी को देखकर हँसते हुए बोलता है, "अरे हाँ, इस चीज़ पर तो हमने ध्यान ही नहीं दिया है, लेकिन अगर ये शादीशुदा है, तो इतनी रात को अकेले क्या कर रही है? इसे तो अपने पति के साथ होना चाहिए। या तो पति से छोड़कर चली गई है या फिर ये अपने पति को छोड़कर आ गई है।"


    अपने दोस्त की बात सुनकर वे दोनों लड़के हँसने लगते हैं।


    तीसरा हँसते हुए काशी को देखकर कहता है, "लगता है इसका पति इसे खुश नहीं रखता है, इसीलिए ये उसे छोड़कर जा रही थी। कोई बात नहीं, अब हम तीनों हैं ना... हम इसकी सारी शिकायतें दूर कर देंगे। बताओ क्या चाहिए तुम्हें? हम तुम्हें देंगे।"

  • 13. शिकार शेर का होता है,कुत्तों का नहीं - Chapter 13

    Words: 1357

    Estimated Reading Time: 9 min

    आसमान में बादल गरज रहे थे और आसपास का मौसम ठंडा हो गया था। लगता था, बारिश होने वाली है, क्योंकि बादल बेमौसम ही घिर आए थे। आसमान में चांद नहीं था। सिर्फ़ काले बादल थे, जिसकी वजह से अंधेरा और गहरा होता जा रहा था। और सुनसान सड़क पर बेचारी काशी उन लड़कों के बीच बेबस खड़ी थी।

    वो तीनों लड़के एक-एक करके काशी की तरफ कदम बढ़ा रहे थे और काशी डरते हुए अपने कदम पीछे ले रही थी। काशी एक दिशा में जाने के लिए तेजी से आगे बढ़ी, लेकिन वहाँ पर खड़ा लड़का उसे पकड़ लिया। काशी ने देखा कि उस लड़के ने उसकी बाजू पकड़ ली है। काशी ने अपने आप को खींचने की कोशिश की। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे और वह डरते हुए खुद को खींचने लगी।

    तभी दोनों लड़के भी उसके पास आ गए और दूसरे लड़के ने भी काशी को दूसरी बाजू से पकड़ लिया। काशी डरते हुए और रोते हुए अपना चेहरा ना में हिलाई। वह अपने एक्सप्रेशन से उनसे यह कहने की कोशिश कर रही थी कि उसे छोड़ दें, लेकिन वो तीनों लड़के हँसने लगे।

    जो लड़का सामने खड़ा था, जिसने काशी को नहीं पकड़ा था, उसने कहा, "अरे यार ये लड़की तो कुछ बोल ही नहीं रही है! देखो कितनी अच्छी लड़की है। हमारे साथ जाने के लिए अपने आप राजी हो गई, वरना अब तक तो लड़कियाँ शोर मचाना शुरू कर देती हैं।"

    अपने दोस्त की बात सुनकर बाकी दोनों भी हँसने लगे। वो तीनों लड़के किसी शैतान की तरह हँस रहे थे और काशी उन्हें देखकर घबराते हुए अपने आप को उनसे आजाद करवाने की कोशिश कर रही थी। तभी वहाँ पर जोरों से बारिश शुरू हो गई। अचानक से बादल गरजने लगे और एकाएक रिमझिम बारिश शुरू हो गई।

    वो लड़के काशी को झाड़ियों की तरफ खींचने लगे, लेकिन काशी अपनी पूरी हिम्मत से उनकी कैद से आजाद होने की कोशिश करने लगी। उसने सबसे पहले उस लड़के की कलाई काट ली, जिसने उसकी कलाई अपने हाथों से पकड़ी हुई थी। वह उसके हाथ को अपने दांतों के पास लाई और जोर से काट लिया।

    काशी ने इतनी जोर से काटा था कि उसके हाथों से खून निकलने लगा था। वो लड़का अपना हाथ झटकते हुए काशी का हाथ छोड़ देता है और उसे देखकर काशी ने दूसरे लड़के के पैरों के बीचोबीच अपनी लात मार दी। दूसरा लड़का अपने पैरों को पकड़े हुए दर्द से करहाने लगा था। तीसरा लड़का जो उनसे दो कदम की दूरी पर खड़ा था, वह गुस्से में काशी को देख रहा था।

    लेकिन काशी दूसरी दिशा में भाग गई। वह सड़क पर भाग रही थी और वो तीनों लड़के भी भाग रहे थे। भले ही उन दोनों को दर्द हो रहा था, लेकिन फिर भी वे काशी को जाने नहीं दे सकते थे। काशी तेजी से आगे सड़क पर भाग रही थी और वो तीनों भी उसके पीछे तेजी से भाग रहे थे, तभी अचानक से काशी के सामने एक गाड़ी आकर रुक जाती है। जिसकी हेडलाइट के सामने काशी बिल्कुल फ्रिज होकर खड़ी हो गई।

    बाहर बारिश झमाझम हो रही थी और हेडलाइट की रोशनी सीधे काशी के चेहरे पर पड़ रही थी। काशी ने अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया था। किसी गाड़ी को बीच सड़क पर खड़ा देखकर, वो तीनों लड़के भी रुक गए और उस तरफ देखने लगे।

    गाड़ी का दरवाजा खुला और उसके अंदर से विश्व निकला। सारी दुनिया एक तरफ और विश्व के लिए अपनी बहन की फ़रमाइश एक तरफ़। गुड़िया ने उसे कलर की डिमांड की थी, इसीलिए वह उसके लिए कलर लेने के लिए इतनी रात को घर से निकला था। अगर वह शहर के रास्ते से जाता, तो बारिश की वजह से ट्रैफिक में फँस सकता था, इसीलिए उसने जंगल का रास्ता चुना। लेकिन जब उसने किसी लड़की को अपनी गाड़ी के सामने आता हुआ देखा, तो उसने एक झटके से ब्रेक लगा दिए।

    विश्व वहाँ से चलता हुआ काशी के सामने आ गया। काशी का हाथ अभी भी अपने चेहरे पर ही था। उसने धीरे-धीरे अपने चेहरे से अपने दोनों हाथ हटाए। बारिश की बूँदें उन दोनों के ऊपर गिर रही थीं और गाड़ी की हेडलाइट वहाँ के अंधेरे में रोशनी की तरह चमक रही थी। धीरे-धीरे काशी का चेहरा उस रोशनी में सामने आ गया और काशी को अपने सामने देखकर विश्व थोड़ा हैरान हुआ, लेकिन उसने अपने चेहरे पर अपने एक्सप्रेशन को नहीं आने दिए। वह एक्सप्रेशनलेस होता हुआ काशी को देख रहा था।

    रात के अंधेरे में रिमझिम बारिश और उसके नीचे भीगते काशी और विश्व! उन दोनों की नज़रें एक-दूसरे से मिली थीं! शायद यह पहली बार था, जब दोनों ने एक-दूसरे को ढंग से देखा था! काशी का किडनैप करके, जब विश्व के पास लाया गया, तो विश्व इतने गुस्से में था कि ना तो उसने काशी के चेहरे पर ध्यान दिया और ना ही उसकी मासूमियत पर। लेकिन इस वक़्त ना तो उसके चेहरे पर गुस्सा सवार था और ना ही वह किसी बदले की आग में जल रहा था।

    काशी का छोटा सा चेहरा डर से लाल हो रहा था और उसकी भीगी हुई पलकें उसके आँसुओं को छुपा नहीं पा रही थीं। हल्के गुलाबी होंठ जो ठंड की वजह से काँप रहे थे और आँखों में डर, विश्व को साफ़ नज़र आ रहा था। काशी के साथ-साथ विश्व भी उसे अपने सामने देखकर हैरान हो गया था। काशी का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसने सोचा नहीं था कि किस्मत उसे विश्व से एक बार फिर आमना-सामना करवा देगी।

    "रुको!!" पीछे से उन तीनों में से एक लड़के ने चिल्लाते हुए कहा। तो काशी डर गई। वह डरते हुए पीछे देखती है और अब विश्व की भी नज़र पीछे जाती है, जहाँ पर वो तीनों लड़के काशी का पीछा करते हुए आए थे।

    काशी तेज कदमों से विश्व की तरफ भागी और अगले ही पल वह विश्व की बाजू पकड़कर उसके पीछे खड़ी हो गई। जैसे ही काशी ने उसकी बाजू को अपने हाथों में पकड़ा, विश्व की धड़कनें अचानक तेज हो गईं।

    हल्का सा अपना चेहरा झुका कर डरती हुई काशी को देखता है, जो उसके पीछे डरते हुए छुप रही थी। अपना छोटा सा चेहरा वह विश्व के शोल्डर के पास से निकालती है और उन लोगों को डरते हुए देखती है। वो तीनों लड़के विश्व की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं और उनमें से एक गुस्से में उसे देखकर कहता है, "छोड़ दे लड़की को। वो हमारा शिकार है।"

    लड़कों की बात सुनकर विश्व के हाथों की मुट्ठियाँ कस गई थीं। जलती हुई आँखों से उसने जब उन लड़कों को देखा, तो उनके कदम अपनी जगह पर ही रुक गए। कुछ तो था उसकी नज़रों में जिसे देखकर उन लड़कों की हड्डियाँ काँपने लगीं और डर उनके चेहरे पर आ गया।

    लेकिन फिर भी इतनी आसानी से काशी को अपने हाथ से कैसे जाने देते? उनमें से एक ने हिम्मत करते हुए कहा, "देखो हम तुमसे लड़ना नहीं चाहते हैं। चुपचाप लड़की को हमारे हवाले कर दो, हमने उसे पहले देखा है... इसीलिए वो हमारा शि..."

    "😳😳😳…" उन तीनों की आँखें एकदम से बाहर आ गईं और मुँह खुला का खुला रह गया। डर के मारे उन तीनों की पैंट गीली हो गई थी, क्योंकि विश्व ने अपनी कमर पर लगी हुई गन निकाली और अगले ही पल उन तीनों की तरफ़ कर दी। अपने सामने विश्व को गन लेकर खड़ा देखकर उन तीनों की आत्मा तो इस समय परमात्मा के पास पहुँच गई थी।

    विश्व ने गुस्से में उन तीनों को देखते हुए कहा, "कुत्ते सिर्फ़ छीनना जानते हैं, शिकार करना नहीं। शिकार शेरों का काम होता है। और तुम्हें याद रखना चाहिए, शेरों की दुनिया में कुत्तों की दुम नहीं हिलती, शेरों की दहाड़ से कुत्तों की जुबान नहीं चलती! और इस वक़्त मैं शेर हूँ और मेरा शिकार तीन कुत्ते हैं।"

  • 14. तुम्हारे पास घर नहीं है! - Chapter 14

    Words: 1779

    Estimated Reading Time: 11 min

    उन तीनों की हालत तो विश्व के दमदार डायलॉग से ही खराब हो गई थी। वे तीनों अपने कदम पीछे लेने लगे। "एक लड़की के चलते अपनी जान थोड़ी ना देंगे?" यही सोचते हुए वे तीनों एक-दूसरे को इशारा करते हैं और फिर वहाँ से उलटे कदम भाग गए।

    देखते ही देखते वे तीनों अंधेरे में कहीं गायब हो गए। उनके जाने के बाद विश्व अपनी गन को वापस अपनी कमर पर लगाता है और पीछे पलट कर देखता है। वह पाता है कि काशी भी अपनी जगह पर बिल्कुल स्तब्ध खड़ी थी। जब विश्व ने अपनी गन निकालकर उन तीनों की तरफ कर दी थी, तभी से काशी शॉक में अपनी जगह पर ही खड़ी थी।

    उसने सोचा नहीं था कि विश्व अपने साथ गन लेकर घूमता होगा। लेकिन जब वे लड़के भाग गए और विश्व ने काशी की तरफ देखा, तब कहीं जाकर काशी होश में आई।

    उसने अभी भी विश्व की बाजू को पकड़ा हुआ था। जब विश्व ने अपनी बाजू की तरफ देखा, तो काशी ने जल्दी से उसके शर्ट की बाजू को छोड़ दिया और एक कदम पीछे हटकर खड़ी हो गई।

    उसका चेहरा झुका हुआ था, लेकिन डर और घबराहट अभी भी उसके चेहरे पर थी।

    विश्व और काशी एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे, लेकिन दोनों ही एक-दूसरे से नज़रें चुरा रहे थे।

    काशी का चेहरा झुका हुआ था और पलकें जमीन को घूर रही थीं। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी अपनी नज़रें उठाकर विश्व को देखने की। लेकिन जब वह मुसीबत में थी और अपने सामने उसने विश्व को देखा, तो न जाने क्यों उसकी आँखों में एक विश्वास आ गया।

    उसे सुकून मिल गया और ऐसा लग रहा था जैसे कि विश्व को देखकर वह खुद को महफूज महसूस कर रही है। पता नहीं क्यों, लेकिन वह अपने कदम विश्व की तरफ बढ़ाने से खुद को रोक नहीं पाई। और विश्व भी खुद को एक अजीब सी सिचुएशन में पाता है। जिस रिश्ते को वह अपनाने से इनकार कर रहा था, आज वही रिश्ता उसके सामने खड़ा था।

    हालांकि वह अभी भी इसे अपनाने से इनकार कर रहा था और यही मानता था कि यह सब एक धोखा है, एक गलती है। चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी गलती को कभी एक्सेप्ट नहीं करेगा।

    अपने गले को साफ करते हुए विश्व अपना चेहरा दूसरी तरफ करता है और काशी से कहता है, "मैंने जो कुछ भी किया है, वह बस हमदर्दी के नाते किया है। तुम्हारी जगह और कोई भी यहां पर होता, तो शायद उसके लिए भी मैं यही करता। इसलिए इन सब को किसी और से जोड़ने की कोशिश भी मत करना।"

    बारिश की बूँदें तो कम हो गई थीं, लेकिन अभी भी रिमझिम बारिश बरस रही थी और इस बारिश की बूँदों में काशी के आँसू कहीं छुप गए थे।

    विश्व धीरे से साँस छोड़ते हुए आगे अपनी बात जारी रखते हुए बोला, "देखो मुझे नहीं पता कि तुम इस वक्त क्या सोच रही हो? लेकिन मैं इस वक्त सिर्फ यह सोच रहा हूँ कि जो कुछ भी हुआ है, उसके बारे में मैं तुम्हें एक्सप्लेन कर दूँ। वह सब सिर्फ एक गलतफहमी की वजह से हुआ है। अगर उसे अपनी ज़िंदगी से जोड़कर रखोगी, तो तुम्हें ही परेशानी का सामना करना होगा।

    "इसीलिए बेहतर यही है कि तुम इन सब को भूल जाओ! वह शादी, मतलब जो भी था, वह बस मैंने उस वक्त गुस्से में किया था। ना तो मैं उस शादी को शादी मानता हूँ और ना ही तुम्हें कुछ मानता हूँ।"

    काशी का दिल जोरों से धड़क रहा था और विश्व की बातें उसे कितनी तकलीफ दे रही थीं, यह बात उसकी आँखों से बहते हुए आँसू बता रहे थे। उसने बहुत मुश्किल से अपने होठों को दबाकर अपने जज्बातों को अंदर ही अंदर काबू किया। यह सब शायद विश्व के लिए मज़ाक हो सकता है, पर किसी भी लड़की के लिए यह ना तो मज़ाक होता है और ना ही भूलने वाली बात होती है।

    पर विश्व ने कितनी आसानी से कह दिया कि वह शादी उसके लिए एक मायने नहीं रखती है, लेकिन काशी का क्या? उसके लिए भले ही वह शादी एक धोखा थी, लेकिन वह इससे इनकार नहीं कर सकती थी कि जो कुछ भी हुआ था, वह विधियों और मंत्रों के साथ हुआ था।

    विश्व एक नज़र काशी को देखता है, जिसका चेहरा झुका हुआ था और पलकें नीचे की तरफ थीं। उसे काशी की आँखें नज़र नहीं आ रही थीं। जब आँखें ही नहीं नज़र आ रही हैं, तो उसका दर्द कहाँ से नज़र आएगा?

    उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया। उसने काशी से कहा, "तुम आजाद हो अपनी लाइफ में। जहाँ चाहे जा सकती हो। और यह मत सोचना कि मैंने आज जो तुम्हारी मदद की है, वह उस वजह से की है। यह बस मैंने इंसानियत के नाते की है। अब मैं यहाँ से जा रहा हूँ। तुम भी अपने रास्ते जाओ।"

    विश्व अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ जाता है और गाड़ी के अंदर बैठ जाता है। उसने हेडलाइट को सड़क की तरफ कर दिया, लेकिन हल्की सी परछाई में उसे काशी नज़र आ रही थी।

    गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज़ से ही काशी की धड़कनें बढ़ गई थीं। इस दुनिया में वह अकेली थी। उसका कोई भी नहीं था। विश्व के साथ उसके तार किस्मत ने जोड़े थे और वह उसके अलावा और किसी को नहीं जानती थी।

    हालांकि सही तरीके से तो वह विश्व को भी नहीं जानती थी, पर इस वक्त विश्व के अलावा उसके पास और कोई भी नहीं। अंधेरा जंगल, सुनसान रास्ता, ऊपर से बारिश...

    काशी डरते हुए काँपने लगी। विश्व ने एक नज़र काशी को देखा और फिर अपनी गाड़ी स्टार्ट कर दी। उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी और काशी के कदम लड़खड़ा गए। वह विश्व की गाड़ी को हैरानी से जाता हुआ देख रही थी। उसने तेज़ी से विश्व की गाड़ी का पीछा करना शुरू कर दिया।

    थोड़ा आगे जाने के बाद विश्व ने जब साइड मिरर से काशी को देखा, तो उसने एक झटके से अपनी गाड़ी रोक दी। गाड़ी के रुकते ही काशी के कदम भी रुक गए और वह अपनी जगह पर खड़े-खड़े डरते हुए, उस रुकी हुई गाड़ी को देख रही थी।

    गाड़ी का दरवाज़ा खुलता है और विश्व उसमें से बाहर निकलता है।

    वह गुस्से में काशी को देखते हुए बोला, "मेरा पीछा क्यों कर रही हो तुम? मैंने तुम्हें कहा ना, मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है। तो फिर तुम मेरे पीछे क्यों आ रही हो? तुम्हें जहाँ जाना है, तुम जा सकती हो, लेकिन मेरे पीछे आने की ज़रूरत नहीं है। चाहे तो मैं तुम्हें पैसे दे सकता हूँ।"

    विश्व अपने पर्स में हाथ डालता है। वह अपने घर से इतनी जल्दबाजी में निकला था कि पैसे लाना ही भूल गया था, लेकिन जब उसने पर्स में देखा, तो उसके पर्स में 500 का एक नोट था।

    उसने उस 500 के नोट को काशी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "ये पैसे रखो और तुम्हें जहाँ जाना है जाओ।"

    काशी ने अपनी आँखों में दर्द लिए विश्व के हाथों में पकड़े हुए उस 500 के नोट को देखा और उसके बाद उसने धीरे से अपने दुपट्टे को खोलकर उसके सामने भी 500 का नोट रख दिया।

    वह विश्व को दिखाना चाहती थी कि उसके पास पैसे हैं। उसे उसके पैसों की ज़रूरत नहीं है।

    काशी के हाथ में पैसे देखकर विश्व ने अपने पैसे वापस अपने पर्स में रखे और पर्स को अपनी जेब में रखते हुए काशी से कहा, "अगर तुम्हारे पास पैसे हैं, तो फिर मेरा पीछा क्यों कर रही हो?"

    काशी धीरे से अपना चेहरा नीचे कर लेती है।

    विश्व कसकर अपनी आँखें बंद करता है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहता है, "ठीक है अब मैं जा रहा हूँ। अब मेरे पीछे मत आना, अगर आई तो अंजाम अच्छा नहीं होगा, मेरा गुस्सा बहुत भयानक है, तुम मेरा गुस्सा बर्दाश्त नहीं कर पाओगी।"

    विश्व थोड़ी सख्ती में ऐसा कहता है और वापस जाकर अपनी गाड़ी में बैठ जाता है। वह ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठता है और अगले ही पल गाड़ी स्टार्ट कर देता है।

    उसने गाड़ी सड़क पर भगा दी, लेकिन इस बार उसने स्पीड ज़्यादा नहीं रखी थी। उसने स्पीड नॉर्मल रखी थी और साइड मिरर से वह काशी को ही देख रहा था।

    एक बार फिर से गाड़ी को चलता हुआ देख, काशी घबरा जाती है और वह तेज़-तेज़ कदमों से उसकी गाड़ी का पीछा करने लगती है। जैसे-जैसे विश्व की गाड़ी आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे काशी उसकी गाड़ी के पीछे भागते हुए आ रही थी।

    विश्व ने देखा कि उसने करीब एक से डेढ़ मीटर तक का सफ़र विश्व की गाड़ी के पीछे भागते हुए ही कर लिया था।

    "यह लड़की चाहती क्या है? ना पैसे ले रही है, ना कहीं जा रही है, बस मेरे पीछे पड़ी हुई है।" झुंझलाते हुए विश्व अपने आप से ऐसा कहता है और गाड़ी को रोक देता है।

    अचानक से ब्रेक लग गई और काशी डरते हुए अपनी जगह पर फिर से खड़ी हो जाती है।

    एक बार फिर से गाड़ी से बाहर निकलकर विश्व उसके पास आता है और गुस्से में उसे देखकर कहता है, "प्रॉब्लम क्या है तुम्हारी? जब मैं कह रहा हूँ कि मेरे पीछे मत आओ, तो फिर क्यों मेरा पीछा कर रही हो?"

    अब काशी ने अपनी पलकें उठाकर विश्व को देखा और विश्व उसकी लाल आँखों को देख सकता था। उसने महसूस किया कि काशी रो रही थी और उसकी आँखें बुरी तरीके से सूजी हुई थीं और लाल भी थीं। उसके गुलाबी होंठ काँप रहे थे। वह माथा, जहाँ पर उसने सिंदूर से भरकर लाल कर दिया था, वहाँ का सिंदूर तो बारिश की वजह से धुल गया था, लेकिन हल्की-हल्की निशानी उसके माथे पर अभी भी निखार का काम कर रही थी।

    विश्व हैरानी से काशी को देखता है। काशी उसके सामने रोते हुए हिचकियाँ लेने लगती है। उसने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर एक मंदिर के आकार का घर बनाया और अपने सिर पर रखा, जैसे कि वह अपने सिर पर घर दिखाना चाहती है और उसके बाद ना में सिर हिला दिया।

    काशी इशारे से विश्व को बताना चाहती थी कि उसके पास घर नहीं है।

    विश्व को एहसास था कि काशी बोल नहीं सकती है। इसीलिए उसकी बातों को समझना मुश्किल हो सकता है, पर उसने इतनी बड़ी बात दो इशारों में इतनी अच्छी तरीके से समझा दिया कि विश्व उसके पहले इशारे में ही समझ गया था कि वह क्या कहना चाहती है।

    "तुम्हारे पास घर नहीं है!" विश्व ने जब यह कहा, तो काशी तेज़-तेज़ रोने लगती है और जल्दी से हाँ में अपना सिर हिलाती है।

  • 15. ग्रह प्रवेश - Chapter 15

    Words: 1535

    Estimated Reading Time: 10 min

    विश्व रघुवंशी मेंशन के सामने खड़ा हुआ और उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। उसने एक गहरी साँस छोड़ी और अपने बगल की सीट पर देखा, जहाँ डरी हुई काशी बैठी हुई थी।

    वह अपने सामने की हवेली जैसे घर को देखकर और ज़्यादा घबरा रही थी। डरती हुई नज़रों से उसने विश्व को देखा। विश्व उसे घूर कर देख रहा था।

    विश्व की तीखी नज़रों को देखते ही काशी अपनी नज़रें जल्दी से दूसरी तरफ फेर लेती है; वह उसकी नज़रों से नहीं मिल पा रही थी।

    विश्व ने अपने हाथों की मुट्ठियाँ कस लीं और स्टीयरिंग व्हील पर हाथ कसते हुए, मन ही मन खुद को कोसते हुए कहा, "क्या ज़रूरत थी इसे अपने साथ लाने की? थोड़े पैसे देकर कहीं जाने को कह देता, लेकिन नहीं, तू तो इसे अपने साथ उठा लाया। इतनी भी क्या हमदर्दी है?"

    "ऐसे भी रात काफी हो गई है, इसलिए रात में कहाँ भेजता? अभी-अभी एक मुसीबत से बची है, कहीं पता चला दूसरी मुसीबत में फँस जाए। अभी के लिए छोड़ देता हूँ, सुबह इसे इसके किसी रिश्तेदार के पास छोड़ दूँगा..."

    विश्व अपने मन में सोचता रहा और फिर काशी को देखकर कहा, "देखो लड़की..."

    काशी जल्दी से घबराते हुए विश्व की तरफ देखती है। उसने अपने दोनों हाथों की उंगलियों से कुछ डिजाइन बना रही थी।

    विश्व को कुछ समझ नहीं आया। वह हैरानी से काशी की तरफ देखते हुए कहता है, "हाथों से डांस क्यों कर रही हो?"

    काशी अपना सिर ना में हिलाती है और फिर जल्दी से कुछ कहने की कोशिश करती है। विश्व को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या कहना चाहती है।

    इसलिए उसने अपना फोन का नोटपैड निकाला और काशी की तरफ करते हुए कहा, "क्या कह रही हो? इसमें लिखकर बताओ..."

    काशी उसका नोटपैड लेती है और फिर धीरे से उसमें अपना नाम लिखकर विश्व की तरफ बढ़ाती है।

    विश्व ने जब उसका नाम पढ़ा, तो उसे देखते हुए कहा, "तुम अपना नाम बता रही थी?"

    उसने हाँ में सिर हिलाया। विश्व ने अपना चेहरा फ्रस्ट्रेटेड करते हुए एक गहरी साँस छोड़ी और कहा, "ठीक है काशी। अब मेरी बात ध्यान से सुनो, यह मेरा घर है। मैं तुम्हें अपने घर लेकर आया हूँ।"

    काशी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है। उसे मुस्कुराता देख विश्व और ज़्यादा चिढ़ जाता है। वह सख्ती से कहता है, "खुश होने की ज़रूरत नहीं है। मैं बस तुम्हें आज रात के लिए घर लेकर आया हूँ, क्योंकि रात काफी हो गई है और तुम्हारे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है।"

    "कल सुबह तुम जहाँ चाहो वहाँ जा सकती हो। आज रात मैं तुम्हें अपने घर में ठहरने की जगह दे रहा हूँ। इसका मतलब यह नहीं है कि तुम इस बात को किसी और चीज़ से जोड़ो। रात काफी हो गई है। घर के सब लोग सो गए होंगे। किसी को डिस्टर्ब करने की ज़रूरत नहीं है। समझ में आई बात?"

    काशी मासूमियत से हाँ में अपना सिर हिला देती है। विश्व गाड़ी से बाहर निकला और दूसरी तरफ से काशी भी बाहर निकली।

    विश्व काशी को लेकर घर के अंदर आया। इस समय रात काफी हो रही थी। सिर्फ़ इमरजेंसी गार्ड और सिक्योरिटी मौजूद थे और वे विश्व के साथ किसी लड़की को देखकर हैरान हो गए थे।

    (कोई तो बात है इंडियन ब्यूटी में, शादी होने के बाद अचानक से लड़कियों के चेहरे पर एक बदलाव सा आ जाता है, कुँवारी होते हुए जिस लड़की का चेहरा सामान्य नज़र आता था, अचानक से सिंदूर लगने के बाद उसके चेहरे पर एक अलग सा ही निखार नज़र आता है, और वही निखार इस समय काशी के चेहरे पर भी नज़र आ रहा है)

    भले ही उसके माँग का सिंदूर धुल गया है, लेकिन हल्की-हल्की लाली जो उसके माथे पर फैली हुई है, उसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा दिए हैं।

    जो भी सर्वेंट रात में मौजूद थे और जो सिक्योरिटी विश्व के साथ किसी लड़की को देख रहे थे, उन सबका मुँह खुला का खुला रह जाता है। विश्व काशी को लेकर घर के अंदर आया।

    हॉल में मौजूद दो सर्वेंट थीं, वे दोनों एक साथ काशी को देखती हैं और दोनों की आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं, क्योंकि काशी का चेहरा किसी नई नवेली दुल्हन की तरह चमक रहा था।

    गुड़िया की एक आदत थी। वह खेलते-खेलते अपनी रंग और खिलौने कहीं भी छोड़ दिया करती थी। इस समय दरवाजे के कॉर्नर पर गुड़िया के रंग की एक शीशी थी।

    काशी ने जब चौखट पर कदम रखा, तो उसकी नज़र अंदर उस भव्य महल को देखकर हैरानी से बड़ी हो जाती है और वह मुँह खुले हुए बस उसे देखने लगती है।

    वह एक कदम के लिए लड़खड़ा गई। जिसकी वजह से उसका पैर चौखट पर लड़खड़ा जाता है, गुड़िया के रंग की शीशी चौखट के बिल्कुल पास में ही रखी थी और काशी के लड़खड़ाने की वजह से वह सारा रंग दरवाजे पर फैल जाता है।

    काश इतनी डरी हुई थी कि उसने इस चीज़ पर ध्यान ही नहीं दिया। काशी को दरवाजे पर खड़ा देख विश्व इरिटेट हो जाता है।

    वह गुस्से में काशी की कलाई पकड़ लेता है और उसे खींचता हुआ घर के अंदर लेकर आ जाता है। काशी के कदम लड़खड़ाते हुए उस रंग पर पड़ जाते हैं और अगले ही पल वह अपने पैरों से लाल निशान लेते हुए घर के अंदर दाखिल हो जाती है।

    काशी के पैरों के निशान पूरे घर में लाल छाप के साथ प्रवेश कर रहे थे। और इसी तरीके से काशी का गृह प्रवेश रघुवंशी मेंशन में हो जाता है।

    विश्व काशी को लेकर उन दोनों मेड के पास आता है और उनसे कहता है, "इस बारे में किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है, आप लोग जाकर अपना काम कीजिए।"

    वे दोनों मेड डर जाती हैं और जल्दी से हाँ में सिर हिलाते हुए अगले ही पल वहाँ से गायब हो जाती हैं। काशी यह देखकर हैरान हो जाती है कि विश्व की एक आवाज़ में इतनी पावर है कि कोई उसके सामने नज़र उठाने तक की हिम्मत नहीं करता है।

    विश्व काशी को लेकर सीधे गेस्ट रूम की तरफ आता है। उसने गेस्ट रूम का दरवाज़ा खोला और अंदर काशी को छोड़ते हुए कहा, "यह मेहमानों वाला कमरा है। आज रात तुम यहीं पर रुक जाओ। कल सुबह होने से पहले ही यहाँ से चली जाना। बाहर मैं ड्राइवर को कह दूँगा, तुम्हें जहाँ जाना है, वह छोड़ देगा। रात काफी हो गई है, आराम कर लो..."

    विश्व वहाँ से जाने के लिए मुड़ा ही था कि काशी ने दो बार ताली बजाकर विश्व को रोकने का इशारा किया।

    विश्व के कदम अपनी जगह पर रुक जाते हैं और वह हैरानी से पलट कर पीछे देखता है। काशी घबराई और परेशान नज़रों से उसे देख रही थी।

    विश्व ने उसे डरते हुए देखा, तो खुद को शांत रखने की कोशिश करते हुए कहा, "क्या बात है...?"

    काशी ने अपने एक हाथ से उंगलियों को इकट्ठा करके निवाला बनाया और अपने मुँह की तरफ कर लिया। वह इशारे में बताने की कोशिश कर रही थी कि उसे भूख लग रही है।

    उसके इशारे को समझते हुए विश्व की उंगलियाँ काँप जाती हैं और वह काशी के चेहरे को देखने लगता है, जो मायूसी से उसे देख रही थी।

    विश्व ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया।

    अपने गले को साफ करते हुए, उसने काशी से कहा, "मैं तो यह बात भूल ही गया, रात काफी हो गई है, तुम्हें भूख भी तो लगी होगी। मैं किसी को कहता हूँ, तुम्हारे लिए कुछ खाने के लिए लेकर आएँ। खाना खाना और सुबह होने से पहले ही चली जाना। मैं नहीं चाहता तुम्हारे बारे में किसी को यहाँ कुछ पता चले।"

    काशी कमरे में आती है और वह पूरे कमरे को देख रही थी। विश्व उसे कमरे में छोड़कर चला गया था, लेकिन काशी हैरानी से पूरे कमरे में इधर-उधर नज़र दौड़ा रही थी। यह मेहमानों वाला कमरा था, इसीलिए यहाँ की सजावट बाकी कमरों से अलग थी। काशी कमरा देख ही रही थी कि तभी दरवाज़े पर उसे आहट सुनाई देती है।

    वह पलट कर देखती है तो सामने एक मेड खड़ी थी। यह वही मेड है जिसे बाहर काशी ने देखा था, विश्व ने जिसे डाँट कर भगाया था। यह उन दोनों में से एक थी, जिसके हाथों में खाने की थाली थी। वह खाना लेकर अंदर आती है और टेबल पर रखते हुए कहती है, "मैडम आपका खाना।"

    काशी मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाती है। मेड खाना रखती है और एक नज़र काशी को देखकर वहाँ से चली जाती है।

    काशी आराम से आकर सोफे पर बैठ जाती है और सामने रखी उस ढकी हुई थाली को देखती है। जब उसने थाली हटाई तो उसमें खाने का सामान देखकर वह हैरान हो गई। उसमें रोटी, सब्ज़ी, चावल और दो सूखी सब्ज़ी के साथ तरी वाली सब्ज़ी थी। इसके अलावा उसमें तीन तरह की अलग-अलग मिठाइयाँ भी थीं।

  • 16. विश्व की बेचैनी - Chapter 16

    Words: 1124

    Estimated Reading Time: 7 min

    काशी को इतना मीठा पसंद नहीं था। उसने चुपचाप वही खाया जो उसे आज के लिए पर्याप्त लगा—दो रोटी और थोड़ा सा चावल। खाने से पहले उसने हाथ जोड़कर महादेव को धन्यवाद कहा कि आज उन्होंने काशी को भूखा नहीं रखा। खाना खाते वक्त काशी ये सोच रही थी कि उसकी ज़िंदगी में कितने सारे उतार-चढ़ाव आए थे, जिसे उसने महादेव की कृपा से पार कर लिया था।

    पर इस हालात का वो क्या करे? क्योंकि इस बार काशी की परेशानी का कारण स्वयं महादेव के रौद्र रूप का अंश है। और उनका तो नाम भी महादेव के ऊपर है। काशी को ना जाने क्यों विश्व को देखकर एक अजीब सी घबराहट हो जाती थी।

    अपना खाना खत्म करके काशी ने देखा कि मिठाई की कटोरी अभी भी वैसे ही रखी हुई है। उसका मीठा खाने का मन नहीं था, इसलिए उसने मिठाई एक तरफ रख दी।

    और झूठी प्लेट को किचन में रखने का सोचा। इस तरीके से किसी के घर में झूठी प्लेट छोड़ना अच्छी बात नहीं है। वो प्लेट उठाई और उसे लेकर कमरे से बाहर आई।

    लेकिन इतनी बड़ी हवेली में वो किचन कहाँ ढूँढे? उसे तो पता ही नहीं चल रहा था। वो इधर-उधर झाँकते हुए किचन देखने की कोशिश कर रही थी।

    तभी वही मेड उसके सामने आ गई जो काशी के कमरे में खाना छोड़ने गई थी। उसने काशी को देखते हुए कहा, "मैडम, ये आप मुझे दे दीजिए, मैं इसे रख दूँगी।"

    काशी ने ना में सर हिलाया। तो वो मेड काशी के हाथ से प्लेट लेते हुए कहती है, "कोई बात नहीं मैडम। ये मेरा काम है।"

    काशी ने देखा वो मेड प्लेट लेकर एक तरफ गई है और शायद वो जहाँ गई है वही किचन है। ये सोचते हुए काशी वापस अपने कमरे की तरफ आ गई।

    वहीं विश्व भी अपने कमरे में बेचैनी से इधर-उधर टहल रहा था। क्या ज़रूरत थी उसे काशी को यहाँ लाने की? जब वो खुद ही इस शादी को नहीं मानता है तो काशी को घर पर क्यों लेकर आया? वो टेंशन में था। अगर किसी ने काशी को देख लिया तो वो क्या जवाब देगा? चाहे कुछ भी हो जाए, वो इस तरीके से काशी को सबके सामने नहीं आने दे सकता है।

    इसलिए उसे जल्द से जल्द काशी को यहाँ से भेजना होगा। सुबह होते ही वो उसे यहाँ से जाने के लिए कह देगा ताकि किसी को उसके बारे में पता ना चले।

    विश्व बेड पर लेट गया और इन्हीं सब बारे में सोचने लगा। उसके ज़हन में सिर्फ़ काशी की बात चल रही थी। वो बोल नहीं सकती है। बेसहारा है। बेघर है। और इसके अलावा विश्व ने जो किया है उसका काशी की ज़िंदगी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विश्व अपने ही ख्यालों को झँझोड़ते हुए कहता है, "ये मैं क्या सोच रहा हूँ? मुझे क्या फ़र्क पड़ता है? वो कुछ सोचे या ना सोचे, वैसे भी मैंने उसे कह दिया है कि मैं इस शादी को नहीं मानता हूँ। बाकी उसकी मर्ज़ी है। मैंने उसकी मदद सिर्फ़ इंसानियत के नाते की है। उसे थोड़े से पैसे देकर यहाँ से सुबह रवाना कर दूँगा।"

    विश्व अपने मन में ये सब सोचते हुए अपनी आँखें बंद कर लेता है और सो जाता है। वहीं दूसरी तरफ काशी जब कमरे में आती है तो वो जाकर बेड के किनारे पर बैठ जाती है। बेड नरम और गद्देदार था, लेकिन काशी बस इन्हीं सब विचारों में थी कि अचानक से उसकी ज़िंदगी दो दिन के अंदर कैसे बदल गई, उसे पता ही नहीं चला।

    उसकी ज़िंदगी में तो सब कुछ ठीक चल रहा था। टिया के केयरटेकर की ज़िम्मेदारी वो बखूबी निभा रही थी। फिर एक दिन आँधी चली और उसकी सारी दुनिया पलट गई।

    अपने विचारों में खोई हुई काशी की नज़र सामने टेबल पर थी, जहाँ पर मिठाई की कटोरी रखी हुई थी। तभी उसे कुछ एहसास होता है, जिसे देखकर वो एकदम से डर जाती है। उसे लगा टेबल के नीचे से कोई हाथ आया और कटोरी में से मिठाई लेकर वापस टेबल के नीचे चला गया।

    उसने हैरान होते हुए देखा, कहीं उसे छलावा तो नहीं हुआ है? उसकी आँखों का धोखा है या फिर कुछ और?

    काशी थोड़ी डर जाती है। ऐसी चीज़ उसने पहले कभी नहीं देखी थी। टिया के साथ उसने एक-दो हॉरर मूवी ज़रूर देखी थीं, लेकिन उसमें जब कोई डरावना सीन आता था, तो वो अपनी आँखें बंद कर लेती थी।

    आज वो ऐसा कुछ अनुभव कर रही थी। वो डरते हुए अपनी जगह पर खड़ी होती है और धीरे-धीरे टेबल के पास आने लगती है। लेकिन तभी वो हाथ फिर से टेबल के ऊपर आता है और कटोरी में से एक और बर्फी का टुकड़ा उठाकर टेबल के नीचे दुबक जाता है।

    काशी पहले तो डर जाती है और वो वहाँ से भागना चाहती थी, बाहर किसी से मदद लेना चाहती थी। लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि ये किसी इंसान का हाथ है। ये कोई इंसान है जो टेबल के नीचे छुपा हुआ है और कटोरी में से मिठाई चुरा रहा है। काशी हैरान हो जाती है और धीरे-धीरे टेबल के दूसरी तरफ़ जाती है और पीछे से नीचे की तरफ़ झाँकने लगती है। तब जाकर उसे नीचे एक आकृति नज़र आती है।

    ये कोई लड़की थी जिसने फ़्रॉक पहनी हुई थी। उसके बालों की दो चोटी थीं और वो दोनों चोटी नीचे ज़मीन पर लगी हुई थीं क्योंकि वो आधी ज़मीन पर लेटकर फिर से कटोरी में से मिठाई निकालने की कोशिश कर रही थी।

    काशी ने जब ये देखा तो वो हैरान हो गई। एक लड़की टेबल के नीचे से कटोरी में से मिठाई निकाल रही है! काशी ने अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करते हुए जोर से दो-तीन बार ताली बजाई। उसकी ताली की आवाज़ सुनकर गुड़िया, जो टेबल के नीचे से आखिरी मिठाई का टुकड़ा चुराने की कोशिश कर रही थी, वो डर जाती है और टेबल से बाहर निकलने के चक्कर में उसके सर पर टेबल का कोना लग जाता है। वो चिल्लाते हुए टेबल से बाहर निकलने लगती है।

    विश्व कितनी गहरी नींद में क्यों नहीं सो रहा हो, लेकिन अपनी बहन के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर उसकी सारी नींद हवा हो गई। वो बेड से हड़बड़ाकर उठता है और यहाँ-वहाँ देखने लगता है। गुड़िया ने अभी-अभी चिल्लाया है, इसका मतलब उसे कोई परेशानी है।

    विश्व जल्दी से बेड से नीचे उतरता है और कमरे से बाहर चला जाता है। वो जैसे ही गुड़िया के कमरे में जाता है वो देखता है कि गुड़िया का बेड खाली है और उसके सारे खिलौने भी फैले हुए हैं। लेकिन गुड़िया अपने कमरे में नहीं है। ये देखकर विश्व डर गया।

  • 17. गुड़िया और उसका पांडा - Chapter 17

    Words: 1515

    Estimated Reading Time: 10 min

    गुड़िया की नींद रात में किसी आवाज से खुल जाती है दरअसल गुड़िया की नींद बहुत कच्ची है वो रात में कभी भी किसी भी पल उठ कर बैठ जाती थी, और उस के साथ ही उसे भूख लग जाती है..



    उस के कमरे में फ्रूट्स नमकीन चॉकलेट और तरह-तरह के खाने पीने के पैकेट रखे हुए हैं. लेकिन इस वक्त उस का मन कुछ भी स्नैक्स खाने का नहीं कर रहा था, अचानक से रात में उठने की वजह से उसे कुछ और खाने की क्रेविंग हो रही थी।



    वो बेड के नीचे हाथ डालती हैं और वहां से अपने बिस्किट का पूरा टोकरा बाहर निकालती है उस टोकरे में तरह-तरह के बिस्किट थे उन सारे बिस्किट को उठा कर गुड़िया पूरे बेड पर फैला देती है और गुस्सा होते हुए बोली “मुझे बिस्किट नहीं खाना है मुझे कुछ और खाना है.. काकी ने मेरे कमरे में बिस्कुट और नमकीन क्यों रखे हुए हैं. मुझे कुछ स्वीट सा खाना है.. लगता है मुझे किचन में जा कर खुद ही लेना पड़ेगा इस घर में किसी को मेरी परवाह ही नहीं है मुझे अपना काम खुद ही करना पड़ता है भाई को बोल कर इन सब को डांट लगवाऊंगी..”



    गुड़िया अपना फेवरेट टेडी बियर जो की एक छोटा सा पांडा है. उसे अपने हाथ में लेती है और बेड से नीचे उतर जाती है उस ने अपने पैरों में बन्नी खरगोश की स्लीपर डाली हुई थी.. और वो किसी खरगोश की तरह कूदते उछलते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाती है. उस की दो चोटी हवा में इधर-उधर झूल रही थी, और चेहरे पर उस ने दुनिया भर की मासूमियत सजा रखी थी।



    उस की नजर एक बार के लिए तो विश्व के कमरे के दरवाजे पर भी जाती है और वो टिमटिमाती हुई नजरों से उस कमरे को देखती है उस का मन किया कि जा कर विश्वास से कहे कि उसे कुछ और खाने का मन कर रहा है लेकिन तभी उसे बाहर से कुछ आहट सुनाई देती है वो जल्दी से बाहर की तरफ भागी और जैसे ही उस ने हॉल में झांक कर देखा एक मेड अपने हाथों में खाने की थाली ले कर गेस्ट रूम की तरफ जा रही थी।



    गुड़िया की नजर उस थाली पर नहीं बल्कि उस थाली में रखी कटोरी पर गई जिस में मिठाई रखी हुई थी और उसे देख कर उस की आंखों में चमक और मुंह में पानी आ जाता है वो जल्दी से एक स्टैचू के पीछे छुप जाती है.. और देखती हैं कि वो मेड कहां जा रही है वो कमरे में जाती है और सीधे गेस्ट रूम के अंदर चली जाती है गुड़िया हैरानी से दरवाजे को देखते हुए कहती है..



    “आंटी ने इस कमरे में खाना क्यों रखा है..”



    2 मिनट बाद वो मेड कमरे से निकल कर वापस चली जाती है और उस के बाद गुड़िया कमरे के अंदर झांकने लगती हैं उस ने सोफे पर बैठी हुई काशी को देखा जो चुपचाप से बैठ कर खाना खा रही थी। गुड़िया उसे टिमटिमाती हुई नजरों से देख रही थी और हैरान हो रही थी, उस ने अपनी एक उंगली को अपने दांतों तले दबाया और अपने मन में कहने लगी “ये कौन है… और हमारे घर में क्या कर रही है और ये खाना क्यों खा रही है.. लगता है इसे भी रात में मेरी तरह भूख लगती है।”



    गुड़िया दरवाजे के झरोखे से झांकते हुए काशी को देख रही थी, जब तक काशी ने सारा खाना नहीं खत्म कर लिया लेकिन लास्ट में गुड़िया ने देखा कि उस ने मिठाई की कटोरी साइड में रख दी उस कटोरी को देख कर गुड़िया की आंखें एकदम से बड़ी हो जाती है और वो अपने मन में कहती है “ओ इस ने तो मीठा खाया ही नहीं लगता है इसे मीठा पसंद नहीं है पर ये इस फेंकेगी तो नहीं ना.. फेंकना होता तो फेंक दिया होता लगता है ये इसे बाद में खाएगी..”



    तभी गुड़िया की नजर काशी पर जाती है जो थाली ले कर कमरे से बाहर आ रही थी.. उसे बाहर आता देख गुड़िया जल्दी से पर्दे के पीछे छुप जाती है और जैसे ही काशी हॉल की तरफ जाती है गुड़िया धीरे-धीरे कदमों से अंदर कमरे में चली जाती है.



    और उस मिठाई की कटोरी को देखते ही उस ने खुश होते हुए अपने पांडा से कहा.. “ मिस्टर पांडा मुझे लगता है. वो लड़की इस मिठाई को बाद में खाएगी इस से पहले कि वो इसे ले ले चलो हम इसे ले कर अपने कमरे में चलते हैं।”



    गुड़िया पांडा के साथ मिठाई को उठाने के लिए झुक ही रही थी कि तभी उस ने दरवाजे पर फिर से आहट सुनी उसे लगा काशी वापस आ गई है इसीलिए वो जल्दी से टेबल के नीचे छुप जाती है.. और धीरे-धीरे अपना हाथ बाहर निकाल कर मिठाई लेने की कोशिश करती है.. लेकिन जब काशी ने उसे पकड़ लिया तो टेबल से निकलने के चक्कर में उस के सर पर टेबल का कोना लग जाता है और उस की चीख निकल जाती है।



    विश्व की आंख उस के चीख से खुल गई थी और वो घबराते हुए गुड़िया को तलाश कर रहा था.. गुड़िया अपने कमरे में नहीं थी, ये देख कर विश्व और ज्यादा डर गया वो जल्दी से नीचे आता है और इधर-उधर देखने लगता है तभी उसे गेस्ट रूम का खुला हुआ दरवाजा दिखता है और कुछ सोचते हुए ना जाने क्यों वो गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गया, उस के दिल में घबराहट थी की कहीं गुड़िया और काशी का आमना सामना तो नहीं हो गया..



    लेकिन जो उस ने अपनी आंखों के सामने देखा उसे देख कर उस का चेहरा गुस्से में भड़क उठता है दरअसल गुड़िया के हाथ में जो मिठाई थी काशी उसे उस के हाथ से छीन लेती है.. उस ने वो मिठाई छीनी और दूर फेंक दी.. गुड़िया की आंखों से आंसू बह निकलते हैं और वो अपने मुंह से आवाज निकालते हुए रोने लगती है 😫😫😫😫😫😫...



    विश्व के हाथों की मुट्ठियां कश गई थी वो तेज कदमों से कमरे में आता है और अगले ही पल उस ने गुड़िया को अपने गले से लगा लिया वो गुड़िया के छोटे से सर को अपने सीने से लगाता हैं और उसे सहलाते हुए कहता है “गुड़िया रोने की जरूरत नहीं है मैं आ गया हूं ना देखो,.भाई यहां पर है आप को रोने की जरूरत नहीं है....”



    लेकिन जब विश्व की नजर काशी पर पड़ती है तो वो अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर सका और उस ने चिल्लाते हुए काशी से कहा “हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मेरी बहन के हाथों से लड्डू छीनने की..”



    काशी के हाथ कांप गए थे वो जल्दी से अपना चेहरा ना में हिलाती है और अपने दोनों हाथों को भी सामने करते हुए ना में हिलाती है वो कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, लेकिन विश्व ने उस की बात पर ना तो ध्यान दिया और ना ही उस के इशारों को समझने की कोशिश की।



    वो गुस्से में काशी पर चिल्लाते हुए कहता है.. “एक रात तुम्हें सहारा देने के लिए अपने घर क्या ले आया तुमने तो इस घर पर अपना हक जताना शुरू कर दिया है एक बात याद रखना लड़की.. विश्व रघुवंशी हर उस इंसान को ख़ाख में मिला देगा जो उस की बहन के आंखों की आंसूओ की वजह बनेगा..”



    विश्व का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उस की बहन की आँखों में आँसू देख कर वो खुद पर काबू नहीं रख सका। उस ने काशी की ओर इशारा करते हुए कठोर स्वर में कहा, "तुम्हें अपने घर पर रखा, सिर्फ इस उम्मीद में कि शायद मेरी मदद की वजह से तुम्हें थोड़ा सहारा मिले। लेकिन बदले में तुमने मेरी बहन को रुला दिया!"



    काशी, जो कुछ भी कहने या समझाने में असमर्थ थी, बस घबराई हुई आँखों से उसे देखे जा रही थी। उस की बेबसी उस के निगाहों में साफ झलक रही थी कि वो किसी भी तरह की गलतफहमी दूर करना चाहती है, पर उस की बेजुबानी उसे और भी कमजोर बना रही थी। उस ने अपने हाथों को आगे बढ़ा कर कुछ इशारे करने की कोशिश की, लेकिन विश्व का गुस्सा उस के इशारों को देख ही नहीं रहा था।



    "एक बात कान खोलकर सुन लो, काशी," उस ने तीखे शब्दों में कहा। "अगर मेरी बहन के चेहरे पर फिर से आँसू आए तो मैं ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूंगा। तुमने यहां आ कर अपना हक जताना शुरू कर दिया है, लेकिन याद रखना, मेरे घर में मेरी बहन की खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं।"



    काशी का दिल इस भरी दुनिया में भी अकेलेपन से भरा था। वो चाहकर भी अपनी सफाई नहीं दे पा रही थी। उस की आँखों में उमड़ते आँसू, उस की बेबस चीखें, सब उस के दिल में कहीं दब कर रह गए। वो चाहती थी कि विश्व समझे, लेकिन उस की बेजुबानी ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। आँसूओं से धुंधलाई आँखों के साथ वो धीरे-धीरे पीछे हटने लगी, उस की आँखों में दर्द और अपमान का साया झलक रहा था।



    विश्व अपनी बहन की ओर मुड़ गया, लेकिन उस के मन में भी कहीं एक हल्की सी बेचैनी उठी—क्या उस ने सही किया?

  • 18. काशी यहा नहीं रह सकती - Chapter 18

    Words: 1599

    Estimated Reading Time: 10 min

    विश्व गुड़िया को लेकर वहाँ से चला गया था। उसने यह समझ लिया था कि गुड़िया कोई सामान्य लड़की नहीं है। जितनी देर उसने गुड़िया को देखा, उसके व्यवहार से काशी की मानसिक स्थिति का अंदाज़ा उसे हो गया था।


    कमरे में अकेली खड़ी काशी हताश होकर दीवारों को देख रही थी। अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे आगे क्या करना चाहिए। विश्व उससे नाराज़ था और उसने सिर्फ आज रात के लिए ही उसे अपने घर पर रहने की जगह दी थी। ऐसे में क्या वह यहाँ से अभी चली जाए या फिर सुबह जाना बेहतर होगा, यह सोचते-सोचते वह उथल-पुथल में थी।


    लेकिन विश्व के आखिरी शब्द ने उसकी उथल-पुथल को शांत कर दिया था। "काशी, तुम्हारा इस घर में कोई हक नहीं है।" उसने कहा था। ज़ाहिर है, विश्व ना तो शादी को मानता था और ना ही काशी को।


    आँखों में आंसू लिए, वह धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकली और दरवाजे को देखने लगी। जब उसकी नज़र दरवाजे पर पड़ी, तो निराशा ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। उसने एक गहरी साँस ली और अपने हाथों की मुट्ठियाँ बनाते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी।


    लेकिन जैसे ही वह दरवाजे के पास पहुँची, उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। ठीक उसके सामने काकी आकर खड़ी हो गई। काकी ने उसे घूरते हुए कहा, "तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो? तुम अंदर कैसे आई और तुम रो क्यों रही हो?"


    काशी थोड़ी घबराहट में काकी को देख रही थी, लेकिन उसके मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था। वह हैरानी से काकी की ओर देखती रही, जबकि काकी ने भी उसे चुपचाप देखा।


    वहीं दूसरी तरफ, विश्व गुड़िया को लेकर कमरे में आया। उसने गुड़िया को अपने सामने बिठाया और उसके आँसू पोछते हुए कहा, "गुड़िया, तुम्हें रोने की ज़रूरत नहीं है। बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है। मैं यहाँ हूँ। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए? और तुम उस कमरे में क्यों गई?"


    गुड़िया ने सबसे पहले अपने पांडा को साइड में रखा और फिर अपने आँसुओं को अपने हाथों से रगड़कर साफ करते हुए कहा, "भाई, मुझे वह लड्डू चाहिए था। लेकिन उस लड़की ने मेरे हाथों से लड्डू फेंक दिया। वह कौन है, और हमारे घर पर क्या कर रही है? उसने मेरे हाथों से लड्डू क्यों लेकर फेंका? मैं तो उसे खाने वाली थी!"


    विश्व ने गुड़िया की बात सुनकर एक गहरी साँस ली। उसने धीरे से कहा, "देखो, गुड़िया, वह लड़की बस एक मेहमान है।"


    "तो क्या वो हमेशा हमारे घर पर रहेगी? और लड्डू के लिए मुझे उससे लड़ना होगा?" गुड़िया ने आँखें चौड़ी करते हुए पूछा।


    विश्व ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, वो हमेशा नहीं रहेगी। तुम्हें किसी से भी लड़ने की ज़रूरत नहीं है। बस तुम यहाँ रहो और मैं तुम्हारे लिए लड्डू लाऊँगा।"


    "लेकिन छुपा कर लाना नहीं तो वह उसे फिर से छीन लेगी।" गुड़िया ने थोड़ा शांत होते हुए कहा।


    विश्व की बात पर मुस्कुरा देता है और हाँ में कर हिलता है। वह अपनी जगह से खड़ा ही हो रहा था कि गुड़िया उससे कहती है, "भाई लड्डुओं को फेंकना नहीं मेरे हाथ में रखना।"


    इस पर विश्व ने हँसते हुए कहा, "बिल्कुल सही कहा तुमने। अब चलो, चलकर तुम्हारे लिए लड्डू लेते हैं!"


    विश्व कमरे से बाहर आ जाता है और उसके पीछे-पीछे गुड़िया भी आ जाती है। गुड़िया ने अपने हाथ में फिर से अपना पांडा उठा लिया था और वह कूदते हुए विश्व के पीछे-पीछे आ रही थी।


    विश्व जब हाल में पहुँचता है, तो उसे देखकर एकदम हैरान रह जाता है क्योंकि सामने काशी और काकी खड़ी हैं। विश्व के मन में सवाल उठता है, "ये दोनों कब आमने-सामने आ गए?" उसे याद था कि उसने काशी को कमरे में छोड़ा था, तो वह बाहर क्यों निकली?


    विश्व ने गुड़िया को अपनी तरफ खींचते हुए कहा, "गुड़िया, तुम यहाँ रहो।" फिर उसने काशी की तरफ देखा और कहा, "तुम यहाँ कैसे आई?"


    "वो लड्डू वाली लड़की है, भाई! उसने मेरे लड्डू को फेंक दिया! यह लड्डू चोर है!" गुड़िया ने पांडा को हवा में लहराते हुए कहा।


    विश्व ने गुड़िया की बात सुनकर एक हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी नज़रें काशी पर टिकी रहीं।


    काकी एक कदम बढ़ाकर विश्व के पास आती है और उससे पूछती है, "विश्व, यह लड़की कौन है और हमारे घर में क्या कर रही है? मैंने इसे मेहमानों वाले कमरे से निकलते हुए देखा था। और यह गुड़िया क्या कह रही है?"


    विश्व ने काकी की चिंता को समझते हुए कहा, "गुड़िया की बातें छोड़ो। वो सिर्फ़ लड्डू के बारे में सोच रही है। लेकिन जहाँ तक बात रही इस लड़की की, तो यह सिर्फ़ यहाँ पर मेहमान है। मैंने आज रात इस घर में ठहरने की जगह दी है, और सुबह होते ही यहाँ से चली जाएगी।"


    काशी ने अपने दोनों हाथों को उठाकर इशारे से विश्व को कुछ कहने की कोशिश की। उसने घर की ओर इशारा करते हुए बाहर जाने का रास्ता बनाया और हाथों के इशारे से यह समझाना चाहा कि उसे किसी पर एहसान जताने की ज़रूरत नहीं है। वह अपने रास्ते खुद देख लेगी।


    हालाँकि, किसी को उसकी बात समझ में आई या नहीं, गुड़िया को उसकी बात अच्छे से समझ में आ गई। उसने विश्व के बाजू को पकड़ते हुए कहा, "भाई, यह यहाँ से जाने की बात कर रही है। लेकिन जाने से पहले इसे लड्डू दे देना। बेचारी भूखी होगी तभी तो मेरा लड्डू छीन लिया!"


    गुड़िया की बात सुनकर विश्व घूरती हुई नज़रों से काशी को दिखा। लेकिन काकी पूरी तरह से स्तब्ध रह गई थी। उसे समझ में नहीं आया कि काशी इस तरीके से उंगलियाँ हिलाते हुए क्यों बात कर रही है।


    थोड़ा दिमाग लगाने पर उसने काशी की तरफ देखा और हैरानी से कहा, "यह बोल नहीं सकती है?"


    काशी ने सिर झुकाया और हाथों से इशारा करते हुए ना में सर हिलाया।


    काकी उसकी बात सुनकर पूरी तरह से शॉक्ड हो गई थी और फिर उन्होंने काशी को देखकर कहा, "तो तुम इशारों से बात कर सकती हो?"


    काशी ने हल्का सा चेहरा अपना हाँ में हिलाया और उसकी बात सुनकर गुड़िया ठहाके लगाकर हँसने लगी। उसने अपने दोनों हाथों से ताली बजाई और काशी को देखकर मज़ाक के अंदाज़ में बोली, "मतलब तुम भी मेरे जैसी हो.. मेरी बातें भी किसी को समझ में नहीं आती है.."


    गुड़िया विश्व से कहती है, "भाई इसी यहाँ रख लो ना.. आप दोनों सारा दिन मुझे बातें सुनते रहते हो कोई तो जिसे मैं कुछ बोलूँ और वह मुझे जवाब ना दे.."


    विश्व ने काशी को देखते हुए कुछ भी नहीं कहा, न ही किसी प्रकार का समर्थन दिया। वह बस काशी को घूरते हुए देखता रहा, जिसकी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं।


    गुड़िया, खुश होते हुए काशी के पास आती है और कहती है, "तुम यहाँ रहोगी, ना? तुम हमारे साथ रहो! हम सब एक साथ रहेंगे, और मैं तुम्हें अपने लड्डू भी दूँगी!"


    लेकिन तभी विश्व ने कहा, "गुड़िया, पीछे आओ। वह हमारे साथ नहीं रह सकती है।" यह कहते हुए उसने गुड़िया की कलाई पकड़ ली और उसे अपने करीब खींच लिया।


    गुड़िया की बात सुनकर उसका चेहरा मायूस हो गया। "क्यों? क्यों नहीं?" उसने निराशा से पूछा।


    विश्व ने थोड़ी देर चुप रहकर गुड़िया की आँखों में देखा, फिर धीरे से कहा, "यहाँ कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हमें समझना होगा। काशी का यहाँ रहना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।"


    गुड़िया ने थोड़ी आहत होकर कहा, "लेकिन वह मुझे पसंद है।"


    विश्व ने गुड़िया के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "गुड़िया, कभी-कभी हमें कुछ फैसले लेने पड़ते हैं जो आसान नहीं होते।"


    गुड़िया ने मायूसी के साथ विश्व को देखते हुए कहा, "क्यों, भाई, इसे रहने दीजिए ना। मेरे पास बार्बी डॉल, बनी डॉल, हनी डॉल सब हैं। तो आप इस साइलेंट डॉल को भी मेरे पास रहने दीजिए। आई प्रॉमिस, मैं आज के बाद कभी भी मिट्टी लगे हुए लड्डू नहीं खाऊँगी।"


    गुड़िया की बात सुनकर विश्व हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा। उसने पूछा, "मिट्टी लगी हुई लड्डू? तुमने कब खाए?"


    गुड़िया मायूसी से अपना सिर झुकाते हुए बोली, "कमरे में जब मैंने कटोरी में से लड्डू चुराए थे, तो वह मेरे हाथ से छूटकर गमले में गिर गए थे। जिसकी वजह से उसमें मिट्टी लग गई। और मैं उसे खाने वाली थी, लेकिन इसने मेरे लड्डू छीनकर फेंक दिए थे।"


    विश्व ने थोड़ी देर सोचा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "तो तुम उन लड्डुओं को खा रही थीं जो गमले में गिर गए थे?!"


    गुड़िया ने झुंझलाते हुए कहा, "क्या करूँ, भाई! मुझे लड्डू बहुत पसंद हैं, और जब मुझे भूख लगती है!"


    विश्व को सब समझ में आ गया था कि क्यों काशी ने गुड़िया के हाथों से लड्डू छीने थे। दरअसल, वो लड्डू मिट्टी लगे हुए थे, इसीलिए उसने गुड़िया के हाथों से उसे छीनकर फेंक दिया था। वरना, गुड़िया तो उसे खा ही लेती।


    विश्व हैरानी से काशी की तरफ देख रहा था, जो अभी भी अपनी जगह पर चुपचाप खड़ी थी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने बेमतलब में ही काशी को डाँट दिया।


    एक नकली खराश के साथ, उसने गुड़िया को देखा और फिर काशी से कहा, "गुड़िया चाहती है कि तुम यहाँ पर रहो।"


    काशी ने सिर झुकाया और कुछ नहीं कहा, लेकिन विश्व ने देखा कि उसकी आँखों में निराशा थी।


    "तुम्हें पता है," उसने कहा, "यह मुमकिन नहीं है। मैं सिर्फ़ अपनी बहन की खुशी के लिए तुम्हें एक दिन के लिए यहाँ रहने दे रहा हूँ। उसके बाद तुम मुझे बता देना, तुम्हें कहाँ जाना है, मैं तुम्हें वहाँ छोड़ दूँगा।"


    गुड़िया ने तुरंत पूछा, "क्यों? क्या मैं यहाँ नहीं रह सकती?"

  • 19. साइलेंट डॉल - Chapter 19

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

    विश्व ने काशी को काशी को केवल एक दिन के लिए वहाँ रहने की अनुमति दी थी। काशी बस इतने में ही खुश थी कि कम से कम उसे एक दिन के लिए तो विश्व ने वहाँ रहने की इजाज़त दी थी। वरना इतनी रात को वह यहाँ से कहाँ जाती, यही सोच रही थी। गुड़िया एक लम्बी सी मुस्कान के साथ काशी के पास आई और उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर लाते हुए कहा, "जल्दी आओ, अंदर आ जाओ साइलेंट डॉल। वरना मेरे भाई के इरादों का पता नहीं अगले पल बदल जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगी।"


    गुड़िया विश्व के सामने काशी को घर के अंदर वापस ले आई और ठीक विश्व के सामने लाकर खड़ा कर दिया। विश्व और काशी एक-दूसरे के सामने खड़े थे और एक-दूसरे को ही देख रहे थे, लेकिन काशी के चेहरे पर घबराहट थी। उसने जल्दी से अपनी पलकें झुका लीं। काकी पास आई और कहा, "अच्छा, ठीक है। अब अगर तुमने इसे एक दिन के लिए यहाँ रोका भी है तो इसका मतलब यह नहीं है कि रात भर खड़ा ही रखोगे। रात काफी हो गई है। सब अपने-अपने कमरे में जाकर आराम करो और काशी, बेटा तुम भी मेहमानों वाले कमरे में जाकर आराम कर लो।"


    "मेरे लड्डू..." गुड़िया ने मासूमियत से कहा। तो काकी मुस्कुराते हुए बोलीं, "बेटा, वो आखिरी लड्डू थे। अब रसोई में लड्डू नहीं हैं। तुम अभी जाकर आराम कर लो। मैं वादा करती हूँ, कल सुबह उठकर तुम्हारे लिए बेसन के लड्डू ज़रूर बनाऊँगी..."


    "बादाम डालकर..." गुड़िया उछलते हुए बोली। तो काकी मुस्कुराते हुए बोलीं, "हाँ हाँ, बादाम डालकर ही बनाऊँगी। अभी तुम भी जाकर आराम करो और बाकी सब को भी आराम करने दो।"


    विश्व ने एक नज़र काशी को देखा और फिर गुड़िया का हाथ पकड़कर बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। काशी अभी भी अपनी जगह पर ही खड़ी थी। विश्व के जाने के बाद काकी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "तुम्हारे बारे में सुनकर अफ़सोस हुआ कि तुम बोल नहीं सकती हो। लेकिन फ़िक्र मत करो, हमारे यहाँ पर मेहमानों का अनादर नहीं होता है। और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मेहमान खुद गुड़िया के द्वारा घर में लाए गए हों। पहले शायद विश्व तुम्हें यहाँ लेकर आया था, लेकिन अब गुड़िया तुम्हें इस घर में ले आई है, इसका मतलब यह है कि तुम इस घर की स्पेशल मेहमान हो।"


    काकी ने काशी को कमरे में जाने को कहा और खुद भी अपने कमरे में जाकर आराम करने लगी। काशी कमरे में तो चली गई, लेकिन उसके मन में जो इस समय विचार चल रहे थे, वो यही चल रहे थे कि विश्व ने उसे यहाँ रहने की इजाज़त क्या सिर्फ़ गुड़िया के लिए दी है? क्या वह सच में नहीं चाहता था कि काशी यहाँ रहे? और वैसे भी वह ऐसा क्यों चाहेगा? उसने तो पहली बार में ही कह दिया था कि काशी के साथ उसकी शादी सिर्फ़ एक धोखा है।


    इसी उथल-पुथल के बीच काशी की आँख लग गई और सुबह हमेशा की आदत की तरह वह पहली किरण के साथ उठ गई।


    काशी को अब यह समझ नहीं आ रहा था कि वह किससे मदद मांगे, क्योंकि उसके पास कपड़े नहीं थे। ऐसे में सबसे पहले वह यह सोच सकती थी कि क्या घर में कोई महिला या करीबी है जिससे वह संकेतों के माध्यम से मदद मांग सकती है।


    तभी उसे काकी का ख्याल आया। शायद काकी उसकी मदद कर सकती थी इस मामले में। इसीलिए वह जल्दी से अपने सूट के दुपट्टे को सही करते हुए कमरे से बाहर निकली। उसने देखा कल रात हाल में जहाँ अंधेरा था और सिर्फ़ फर्नीचर और सामान रखे हुए थे,


    आज वहाँ पर 10 से 15 नौकर थे और हर नौकर कहीं न कहीं की सफ़ाई कर रहा था। इतने सारे नौकरों को देखकर काशी हैरान हो गई, लेकिन उसे याद आया कि किचन का रास्ता कहाँ है, इसलिए वह जल्दी से किचन के रास्ते की तरफ़ बढ़ गई।


    वह सारे नौकर एक-एक करके काशी को देख रहे थे और हैरान हो रहे थे। काशी उनके बीच से निकली और सीधे किचन की तरफ़ चली गई। उसकी सोच के अनुसार काकी उसे किचन में ही मिल गई थी और वह काफी परेशान गैस के पास खड़ी थी। उनके सामने वह सर्वेंट थी जिसने कल रात काशी के कमरे में खाना रखा था।


    काशी को किचन में देखकर काकी और दूसरी मेड दोनों हैरान हो गईं और काशी को देखने लगीं। जब काशी ने उनके चेहरे पर चिंता देखी, तो उसने इशारे से पूछा कि वे इतनी परेशान क्यों हैं।


    काकी चिंता भरे स्वर में बोलीं, "अरे काशी बेटा, तुम आ गई। चलो, अच्छी बात है कि इस घर में तुम मेरे बाद जल्दी उठी हो। वरना इस घर में तो लोगों की सुबह ही 10:00 बजे होती है। और तुम्हें क्या बताऊँ, मेरी चिंता का कारण क्या है? मुझे गुड़िया के लिए लड्डू बनाने हैं, पर परेशानी यह है कि सुबह-सुबह मेरे हाथों में गरम दूध गिर गया है, जिसकी वजह से मेरे हाथों में छाले पड़ गए हैं। मैं तो लड्डू बना ही नहीं पा रही हूँ, और मुझे गुड़िया के लिए लड्डू बनाने हैं, वरना वह तो पूरा घर सिर पर उठा लेगी।"


    काकी के हाथों को देखकर काशी के चेहरे पर अफ़सोस की भावना आ गई। वह जल्दी से उनके हाथों की तरफ़ देखती है और फिर इशारे में कुछ कहती है। काकी ने उसके इशारे को नहीं समझते हुए कहा, "तुम उंगलियों से हाथ हिलाकर क्या कह रही हो? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"


    काशी समझ गई कि काकी उसके इशारों को ठीक से नहीं समझ पा रही हैं। वह सोचती है कि कैसे काकी को अपनी बात समझाए। काशी तुरंत पास में रखी एक कागज़ और पेंसिल उठाती है और उस पर कुछ लिखना शुरू करती है। वह लिखती है:


    "काकी, क्या मैं आपकी मदद कर सकती हूँ? मुझे लड्डू बनाने आते हैं। मैं गुड़िया के लिए लड्डू बना सकती हूँ। क्या आपके पास बेसन, चीनी, और घी हैं?"

  • 20. मेरे सर पर रख दो।" - Chapter 20

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    कागज़ पर यह लिखकर काशी ने काकी की ओर बढ़ाया। काकी ने यह पढ़कर मुस्कुराया और राहत महसूस की। वो काशी की ओर देखकर प्यार से बोलीं, "अरे बेटा, तुम तो मेरी सारी चिंता ही दूर कर दोगी। लेकिन घर में घी और बेसन खत्म हो गया है। अगर हम यह सामग्री ले आएँ, तो क्या तुम लड्डू बना सकोगी?"

    काशी ने सिर हिलाकर "हाँ" का इशारा किया। काकी खुश होकर घर के किसी सदस्य को बाजार से सामग्री लाने के लिए कहती हैं, और फिर काशी से कहती हैं, "तुम्हारी मदद से अब गुड़िया के लड्डू जरूर बन जाएँगे।"

    लेकिन काशी के चेहरे पर अभी भी परेशानी थी। उसने फिर से एक कागज़ पर लिखकर काकी को दिखाया, जिसमें लिखा था, "मैं अभी तक नहाई नहीं हूँ और न ही मेरे पास पहनने के लिए कोई कपड़े हैं। ऐसे में मैं रसोई में काम कैसे कर सकती हूँ?"

    काशी की परेशानी को देखकर काकी कुछ सोचती हैं और फिर कहती हैं, "बस इतनी सी बात है? तुम दो मिनट रुको, मैं अभी तुम्हारे लिए कपड़ों का इंतज़ाम करती हूँ।" ऐसा कहते हुए वह अपनी मेड, जिसका नाम सोनी था, को लेकर अपने कमरे में चली गईं।

    कुछ देर बाद, वे एक पैकेट लेकर आईं। वह पैकेट काशी की तरफ बढ़ाते हुए बोलीं, "बेटा, फिलहाल मेरे पास यही है। तुम अभी के लिए इसे पहन लो। जब तक तुम नहा कर तैयार हो जाओगी, तब तक के लिए सामान भी आ जाएगा।"

    काशी ने वह पैकेट लिया और मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। अपने कमरे में जाकर जब उसने पैकेट खोला, तो वह हैरान रह गई। उसमें एक सूट था, और यह सूट काफी सुंदर लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि यह कोई डिजाइनर सूट है, क्योंकि इसके ऊपर बहुत सुंदर फूल और कारीगरी की गई थी। काशी ने देखा कि यह सूट उसके हिसाब से साइज में थोड़ा सा बड़ा था, लेकिन फिलहाल उसके पास इसके अलावा और कोई विकल्प भी तो नहीं था।

    नहाने के बाद, काशी ने खुद को आईने के सामने देखा। उसका पूरा चेहरा सादा था और उसकी मांग पूरी तरह खाली थी। उसे आज अपना खुद का चेहरा अधूरा सा महसूस हो रहा था। उस मांग में, कल तक जहाँ सिंदूर की हल्की लाली थी, आज वहाँ कुछ भी नहीं था। न जाने क्यों, उसका खाली मांग उसे खुद से बहुत खल रहा था। अपने अंदर उठ रहे जज़्बातों को उसने काबू किया और एक गहरी साँस छोड़ते हुए कमरे से बाहर निकल गई।

    रसोई में जाकर उसने देखा कि लड्डू बनाने का सामान आ चुका था। काशी मुस्कुराते हुए काकी के पास गई और उनसे लड्डू बनाने के लिए इशारा किया। काकी ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "बेटा, मुझे तुम्हारी उंगलियों की भाषा समझ में नहीं आती है। तुम्हें जो करना है, करो।"

    काशी मुस्कुराते हुए गैस के पास चली गई। उसने लड्डू बनाने का सामान एक तरफ रखा और फिर सबसे पहले चूल्हे को हाथ लगाकर प्रणाम किया। काकी और मेड सोनी दोनों हैरानी से काशी को देख रही थीं। आज तक इस घर में ऐसा कभी किसी ने नहीं किया था। ऐसा लग रहा था जैसे काशी अपनी पहली रसोई के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रही हो।

    इनडायरेक्टली देखा जाए तो यह काशी की पहली रसोई ही तो थी। जिसके बारे में खुद काशी को भी एहसास नहीं हो रहा था।

    सोनी ने सारा नाश्ता बना लिया था और काशी ने सिर्फ़ लड्डू बनाए थे। सारा नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लग चुका था और अब तक विश्व भी जिम से वापस आ चुका था। वह फ्रेश होकर ऑफिस के कपड़ों में नीचे आ रहा था, और उसके ठीक पीछे कूदते हुए, अपने पंडा को हाथों में नचाते हुए, गुड़िया भी आ रही थी। गुड़िया ने आज पीले रंग की फ्रॉक पहनी हुई थी और हमेशा की तरह उसकी दो चोटी में प्यारे-प्यारे से रिबन लगे हुए थे।

    गुड़िया आकर अपनी बार्बी डॉल वाली कुर्सी पर बैठ गई और विश्व अपनी कुर्सी पर बैठ गया। सोनी और काकी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा रही थीं, लेकिन जैसे ही विश्व की नज़र काशी पर पड़ी, उसका हाथ न्यूज़पेपर पर रुक गया और वह हैरानी से काशी को देखने लगा। नारंगी रंग के सूट में काशी बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके चेहरे की मासूमियत और चमक सुबह की किरण के साथ और भी ज़्यादा दमक रही थी। ऐसा पहली बार था जब उसने काशी को इतनी सादगी के साथ गौर से देखा था।

    "बस करो भाई, आँखों से खा जाओगे क्या?" गुड़िया ने चुटकी लेते हुए कहा। यह सुनकर विश्व अपने होश में आता है और जल्दी से अपना ध्यान अपनी प्लेट की तरफ करता है। वह अपनी प्लेट को सीधा करते हुए काकी से कहता है, "काकी, मेरी ब्लैक कॉफी।"

    "हाँ बेटा, अभी लाई," काकी ने ब्लैक कॉफी कप में डाला और सीधे काशी के हाथ में रख दिया। काशी हैरानी से काकी को देख रही थी, तो काकी ने कहा, "बेटा, मेरे हाथों में छाले पड़े हुए हैं, तुम जाकर विश्व को कॉफी दे दो।"

    काशी हैरानी से काकी को देखती रही, फिर उसकी नज़र विश्व पर गई, जो ध्यान से सिर्फ़ न्यूज़पेपर पढ़ रहा था। थूक को निगलते हुए, काशी डरते हुए कदमों के साथ विश्व के करीब गई और उसके पास कॉफी का कप लेकर खड़ी हो गई। दो मिनट तक जब विश्व ने देखा कि वह कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रही है, तब जाकर उसने अपना चेहरा उठाकर काशी को देखा। काशी डरती हुई निगाहों से कॉफी को देखते हुए उसे आगे कर देती है।

    "क्या कर रही हो?" विश्व ने घूरती हुई नज़रों से काशी को देखकर पूछा। काशी ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि कॉफी कप उसे विश्व के सामने कर दिया। "क्या कर रही हो?" विश्व ने फिर से पूछा, क्योंकि वह काशी के तरीके को समझ नहीं पा रहा था। इसके ऐसा करने पर गुड़िया हँसने लगी और कहने लगी, "भाई, वह आपसे पूछ रही है कि कॉफी कहाँ रखें।"

    विश्व गुस्से में बोला, "मेरे सर पर रख दो।"