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Twisted Desire - A dark and deadly love story

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Dhwani Rathore

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Description

"कुछ जाल इतने खूबसूरत होते हैं कि इंसान चाहकर भी खुद को फँसने से रोक नहीं पाता..." जब ईरांशी मल्होत्रा अपने पिता की जगह एक बिज़नेस मीटिंग में गई,तो उसे नहीं पता था कि उसका सामना विधान रायजादा से होगा—एक खतरनाक, जुनूनी और बेरहम शख्स से,जिसके लिए दुश्म...

Characters

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Vidhan Raijayda

Villain

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Iranshi Malhotra

Heroine

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Rudra Sehgal

Hero

Total Chapters (20)

Page 1 of 1

  • 1. Chapter 1

    Words: 1517

    Estimated Reading Time: 10 min

    ---

    मुंबई के एक आलीशान और हाई-एंड लग्ज़री होटल ‘द ग्रैंड रॉयल’ के प्राइवेट कॉन्फ्रेंस रूम में उस समय एक हाई-प्रोफाइल मीटिंग चल रही थी। कमरे की हर चीज़—ग्लास वॉल्स, साउंडप्रूफ इंटीरियर्स, और मेज़ पर सलीके से रखे प्रीमियम डॉक्यूमेंट्स—क्लास, कंट्रोल और पावर का एहसास दिला रहे थे। टेबल के चारों ओर बैठे वेल-सूटेड मेंबर्स एक बेहद कॉन्फिडेंशियल प्रोजेक्ट पर पूरी संजीदगी से चर्चा में लगे थे।

     माहौल में गहराई, फोकस और एक अनकही टेंशन साफ महसूस की जा सकती थी।

    तभी, एक अधेड़ उम्र के, अनुभवी शख्स ने  गहरी और असरदार आवाज़ में कहा, "Miss..., as you know, this is extremely critical for us. Every decision from here onward will define our next move."

    (“मिस..., जैसा कि आप जानती हैं, यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बेहद अहम है। यहां लिया गया हर फैसला हमारे अगले कदम की दिशा तय करेगा।”)

    उसके शब्दों से केवल उनका अनुभव ही नहीं, बल्कि उस प्रोजेक्ट की गंभीरता भी साफ झलक रही थी। और ठीक उसी वक्त…

    मीटिंग टेबल की हेड चेयर पर बैठी वो लड़की मुश्किल से 23 साल की रही होगी, लेकिन उसकी मौजूदगी में एक ऐसा असर और रुतबा था, जो उम्र से कहीं ज़्याद और पावर का एहसास दिला रहा था।

    दूध-सा निखरा रंग, शार्प ब्लू आइज़—जिन्हें एक बार देखो तो नज़र हटाना आसान न हो—गुलाबी होंठों पर ठहरी हुई खामोशी, परफेक्ट जॉ लाइन, और बेतरतीबी से कंधों पर बिखरे काले वेवी बाल… वो किसी फेयरीटेल से निकली किरदार जैसी लग रही थी। उसके बाएं हाथ में बंधी पुरानी लेकिन बेहद कीमती घड़ी बताना चाहिए रही थी, कि वक़्त को भी उसकी कलाई से होकर गुज़रना होगा। बिज़नेस ब्लैक सूट में वो किसी हाई-फैशन मैगज़ीन के कवर पर छपी आइकॉनिक फीमेल लीड लग रही थी, और YSL की ब्लैक हील्स उसके ओवरऑल लुक को एक परफेक्ट और पावरफुल टच दे रही थीं।

    वो सिर्फ खूबसूरत नहीं थी — बल्कि कमांडिंग भी थी। उसकी नीली आंखों में एक अजीब-सा ठहराव और धार थी, जिसे महसूस करते ही सामने वाले को कुछ पल के लिए खुद होश में नहीं रह पाता। 

    ये लड़की कोई और नहीं, मल्होत्रा फैमिली की इकलौती वारिस — ईरांशी मल्होत्रा थी। इतनी कम उम्र में उसने बिजनेस वर्ल्ड में वो मुकाम हासिल कर लिया था,  जिसका  कई लोग उम्र भर की मेहनत के बाद भी सिर्फ सपना ही देख पाते हैं...

    इरा ने ठंडे लेकिन तीखे लहज़े में कहा,

    "इट्स अल्सो इंपॉर्टेंट फॉर मी मिस्टर गोयल।"

    मिस्टर गोयल हल्के से मुस्कुरा दिए, मानो उसकी गंभीरता को समझने की कोशिश कर रहे हों। 

    "आई नो, मिस मल्होत्रा… हम सभी को आपसे बहुत उम्मीदें हैं।" 

    उसी वक़्त, एक महिला मेंबर ने धीरे से पूछा, "वैसे, मिस्टर मेहरा कहाँ हैं? वो अब तक नहीं आए?"

    मेहरा के मैनेजर ने तुरंत जवाब दिया, "सर को एक इमरजेंसी काम आ गया था, इसलिए उन्हें जाना पड़ा।"

    मिस्टर गोयल, जो इस प्रोजेक्ट के चीफ़ डायरेक्टर थे, झुंझला गए।

    “इटस टोटली डिस्गस्टिंग!” उन्होंने गुस्से में कहा।

     इरा ने एक शब्द भी नहीं कहा — बस अपनी नीली आँखें सीधी मैनेजर पर टिका दी।  इरा की निगाहें खुद पर महसूस करते ही मैनेजर का सिर अपने-आप झुक गया।

    "मेहरा सर की तबीयत को लेकर मेरी चिंता अपनी जगह है," इरा की आवाज़ में न सख़्ती थी, न नरमी — बस एक बर्फ जैसी ठंडी क्लियरिटी, "लेकिन इस लेवल की मीटिंग में उनकी मौजूदगी नैसेसरी है। अगली बार अगर वो नज़र नहीं आए, तो इस डील से हाथ धो बैंठेंगे। एंड आई मीन इट।"

    कमरे में एक भारी खामोशी पसर गई। हर चेहरा समझ गया कि उम्र चाहे कम हो, लेकिन इरा की सोच, उसका कंट्रोल और कमांड... सब कुछ बाकियों से कहीं आगे था। 

    उसने अपनी फाइल धीमे से टेबल पर रखी और बेहद प्रोफेशनल टोन में कहा, “अब हम डील के फाइनेंशियल्स पर फोकस करेंगे। मिस रोशनी, प्लीज़ प्रेजेंटेशन शुरू कीजिए।”

    एक ग्रेसफुल महिला खड़ी हुई, और प्रोजेक्टर ऑन करते ही स्क्रीन पर बड़े-बड़े बोल्ड अक्षरों में टाइटल उभरा—

    "प्रोजेक्ट स्काईलाइन – द फ्यूचर बिगिंस"

    इरा की नज़रें स्क्रीन पर थीं, लेकिन उसका ध्यान वहाँ नहीं था। उसके चेहरे पर गंभीरता की परत थी... और कहीं गहराई में एक थकावट, जिसे शायद सिर्फ वही समझ सकती थी.. कोई और नहीं जानता था। इस प्रोजेक्ट के अलावा भी उसके ज़हन में कुछ और चल रहा था — कुछ ऐसा जो उससे पीछा नहीं छोड़ रहा था।

    मीटिंग के दौरान प्रोजेक्ट के कुछ इंपॉर्टेंट टॉपिक्स पर एक डीप डिस्कशन स्टार्ट हुआ जो ना जाने और कितनी देर तक चलता लेकिन दो घंटे बाद आखिरकार मीटिंग खत्म हो ही गई। 

    इरा धीरे-धीरे ठहरे कदमों से मीटिंग रूम से बाहर निकली। रात गहराने लगी थी और उसकी थकावट अब उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी।

    उसने साथ चलते हुए अपने मैनेजर सिद्धांत से कहा, "सिद्धांत, इसी होटल में दो रूम बुक कर लो... आज हम यहीं रुकेंगे।"

    उसने ये शब्द अभी पूरे भी नहीं किए थे कि उसके फोन की स्क्रीन पर एक अननोन नंबर फ्लैश होने लगा...

    "एक्सक्यूज मी," कहकर इरा फोन उठाया।

    "हेलो, इरा दिस साइड.. हू इस दिस?"

    कुछ सेकंड्स तक खामोशी छाई रही... न कोई आवाज़, न कोई हलचल। और फिर—कॉल कट गया।

    इरा की भौंहें तन गई उसने स्क्रीन को घूरते हुए कहा, "व्हाट द हेल?" 

    अभी वो कुछ सोच ही रही थी कि फोन फिर से बजने लगा। इस बार स्क्रीन पर नाम चमका, — सिद्धांत कॉलिंग…

    " मैम ," सिद्धांत की घबराई हुई आवाज़ सुनाई दी, "एक प्रॉब्लम हो गई है..."

    "ओके . तुम रूम में आओ, मैं आती हूं," 

    इरा ने अपनी बात कहकर कॉल कट कर दिया। फोन खत्म करने के बाद उसे एहसास हुआ कि वो बात करते-करते होटल के कॉरिडोर से थोड़ी दूर निकल आई थी।

    चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था... हल्की पीली रोशनी, शांत दीवारें, और गूंजती सी खामोशी।

    टिंक!

    और तभी उसके पैरों के पास कुछ गिरने की आवाज़ हुई। इरा ने झट से नीचे देखा तो — एक पुराना चमकता हुआ सिक्का उसके पैरों के पास लुढ़क रहा था। इरा ने धीरे से सिक्के को उठाया। वह सिक्का काफी भारी और ठंडा था। उस पर कोई अजीब सा सिंबल भी उकेरा हुआ था.. 

     — 

    एक पल के लिए उसकी उंगलियां रुक गई। और फिर उसने चारों तरफ देखा और बिना एक शब्द बोले,  सिक्के को अपनी कोट की जेब में डाल लिया। इरा ने तुरंत अपने कदम तेज़ी से वापस मोड़ लिये।  

    वो कुछ कदम और बढ़ी थी कि अचानक उसे किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। पहले तो इरा को लगा कि यह उसका वहम होगा, लेकिन उसे फिर वही दर्दनाक चीख दोबारा सुनाई दी। इस बार वो चीख और भी तेज़ और दर्दनाक थी।

    "यह मेरा वहम नहीं हो सकता," इरा बड़बड़ाई।

    वह आवाज़ का पीछा करते हुए गलियारे में काफ़ी आगे बढ़ गई। लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। हर तरफ़ खामोशी छाई हुई  थी। इरा थोड़ा घबरा गई, लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके आगे बढ़ी तभी उसकी नज़र एक दरवाज़े पर पड़ी, जो आधा खुला हुआ था। 

    वो दरवाज़े के पास गई और उसने बिना ज़्यादा सोचे समझे दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ा दिया।

    तभी अचानक से एक सवाल उसके ज़ेहन में आया, "यह अचानक मुझे इतनी बेचैनी क्यों हो रही है?" 

    लेकिन उसने अपने अंदर उठती घबराहट को नज़रअंदाज़ करते हुए, दरवाज़ा खोल दिया।

    दरवाज़ा खुलते ही सामने का नज़ारा देखकर इरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक इंसान ज़मीन पर पड़ा था —उसके सीने में तीन गोलियाँ  और कांच धंसा हुआ था। वो मंजर इतना बेरहम और खौफ़नाक था कि इरा को समझ नहीं आया कि कोई किसी को इतनी दरिंदगी से कैसे मार सकता था। 

    इरा डरते हुए अंदर गई और लाश को देखकर हल्के से बड़बड़ाई, "म... मैं मेहरा?"

    उसके चेहरे पर डर, सदमा और बेचैनी की मिली-जुली भावनाएं साफ झलक रही थीं। वो अब भी कुछ पल के लिए वहीं ठिठकी रही—जैसे उसकी सोचने-समझने की काबिलियत कहीं गायब हो गई हो। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसने जो देखा, वो हकीकत था।

    धड़ाक!

    अचानक से दरवाज़ा बंद हो गया। इस तेज आवाज से इरा का ध्यान टूटा। 

    वो चौंककर पीछे मुड़ी तो उसने देखा कि कोई इंसान दरवाज़े के पास अपनी पीठ उसकी ओर मोड़े हुए सिरहाना लगाकर खड़ा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज में कुछ तो अजीब था— कुछ ऐसा कि इरा की नज़रें खुद-ब-खुद वहीं टिक गईं।

     उसकी सिर्फ पीठ नजर आ रही थी, लेकिन फिर भी कुछ तो था उसमें —एक अजीब-सा आकर्षण, एक ख़तरनाक सुकून।

     इरा के चेहरे पर एक अनजाना डर तैर गया। उसने खुद को संभालते हुए बोलने की कोशिश की,

    "तुम क...?"

    लेकिन जैसे ही उसकी नज़र उस इंसान के चेहरे की एक हल्की झलक पकड़ी उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसकी सांसें रुकने लगी। 

    ------

    वो शख्स कौन था जिसकी मौजूदगी ने इरा की रूह तक हिला दी? क्या मेहरा की मौत एक वार्निंग थी… या बस शुरुआत?

    हेलो रीडर्स यह मेरी पहली कहानी है — उम्मीद है आपको पसंद आई होगी। आपकी राय मेरे लिए बेहद खास है, तो प्लीज़ कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं कि आपको कैसी लगी। और हाँ, रिव्यू देना भी मत भूलिएगा — आपका एक छोटा सा रिव्यू भी मेरे लिए बहुत खास होगा। बाय बाय... मिलते हैं अगले चैप्टर में, एक नए मोड़ और नई कहानी के साथ!" ✨✨

  • 2. Chapter 2

    Words: 1750

    Estimated Reading Time: 11 min

    Precap :-

    इरा के चेहरे पर एक अनजाना डर तैर गया। उसने खुद को संभालते हुए बोलने की कोशिश की, "तुम क...?" 

    लेकिन जैसे ही उसकी नज़र ने उस इंसान के चेहरे की एक हल्की झलक पकड़ी उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसकी सांसें रुकने लगी।  

     अब आगे :

    सामने खड़ा इंसान ब्लैक ट्राउजर और ऑक्सफोर्ड व्हाइट शर्ट में था। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए और उसकी व्हाइट शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जिससे उसके परफेक्ट 

    बॉडी स्ट्रक्चर की हर एक डिटेल साफ नजर आ रहा था। उसके बाएं हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वॉच चमक रही थी और पैरों में क्लासिक ब्लैक शू थे। 

    उसकी शार्प जॉलाइन, हंटर ग्रे आइज़, स्लिम लिप्स, हल्की बीयर्ड और हाथों में उभरी हुई वेन्स — सब कुछ बेहद अट्रैक्टिव लग रहा था। माथे पर बिखरे हुए बाल उसकी पर्सनैलिटी को और भी ज़्यादा इंटेंस बना रहे थे। ओवरऑल, वो बंदा किसी ग्रीक गॉड से कम नहीं लग रहा था। 

    ईरा का दिल कुछ सेकंड के लिए रुक सा गया। उसने कांपते हुए होठों से कहा , “व... वि... विधान... रायज़ादा?” 

    हाँ, सामने खड़ा इंसान कोई और नहीं, बल्कि विधान रायज़ादा था — वो शख्स जिसे लोग मौत और डर का दूसरा नाम कहते थे। एक बेरहम बिजनेस टायकून, जिसकी क्रुएलिटी की कहानियाँ इरा ने सिर्फ सुनी ही नहीं थीं, बल्कि उनके बारे में सोचकर ही काँप जाती थी। कहा जाता था कि वो बिना एक पल गवाएं , लोगों को मिटा देता था — बिना किसी पछतावे के और आज... वही इंसान उसके सामने खड़ा था। 

    इरा के पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई हो। उसकी बॉडी ने अपने आप रिएक्ट किया और उसके कदम अनजाने में पीछे हटने लगे। सालों बाद उसने दोबारा इस डर को महसूस किया, जिससे वो बरसों से भागती आ रही थी। वो डर... अब उसकी आंखों के सामने था। 

    विधान ने बेहद शांत और कंट्रोल्ड अंदाज़ में, दोनों हाथ पॉकेट्स में डाले और अपने कैलकुलेटिव कदम इरा की ओर बढ़ा दिए और कुछ दूरी पर रुककर, उसने ठंडी आवाज़ में कहा, "इतने सालों बाद मिलकर बहुत बुरा लगा, मिस मल्होत्रा।" 

    उसने उसका नाम कुछ इस अंदाज़ में खींचा, जैसे किसी पुराने ज़ख्म को दोबारा महसूस करना चाह रहा हो।

    इरा को घबराहट तो हो रही थी, लेकिन उसने अपने डर को होशियारी से छिपाते हुए तंज भरे लहजे में कहा,  "अफसोस की बात है, सालों पहले भी तुम्हारे हाथ खून से सने थे... और आज भी... " 

    उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विधान ने बात बीच में ही काटकर कहा,  "जबान संभालकर, मिस मल्होत्रा..." फिर थोड़ा आगे झुककर फुसफुसाते हुए,  कहीं ऐसा न हो कि ये ज़ुबान... हमेशा के लिए बाहर आ जाए। " 

    इरा ने हल्की, लेकिन जानबूझकर उकसाने वाली मुस्कान के साथ नज़रें फेर लीं। 

    " आई थिंक ऑल दिस इज योर मैटर... तो मुझे इससे दूर ही रहना चाहिए। वैसे भी, तुम इन बकवास चीज़ों को मैनेज करने में एक्सपर्ट हो। " 

    ये कहते हुए वो पलटकर जाने लगी। 

    तभी पीछे से आवाज़ आई, "ऐसे कैसे, मिस... " 

    इरा ने झट से पलटकर जवाब दिया, "तो अब जबरदस्ती करोगे? भौंहे सिकोड़ते हुए कहा, “ओह राइट ... ये तो तुम्हारी फितरत है , है ना?" 

    विधान की आँखों में चमक आ गई। उसने सर्कस्टिकली स्माइल की और कहा ,  " Hmm... स्मार्ट। " 

    कुछ सेकेंड चुप रहने के बाद विधान बोला,  "तुमने तो सब देख ही लिया है... राइट? " 

    इरा ने एकदम बेपरवाह लहज़े में कहा, 

    "सो व्हाट? मारोगे? " 

    विधान ने बिल्कुल ठंडे लहजे में, बिना पलक झपकाए जवाब दिया, "हाँ। " 

    उसके इस जवाब ने एक पल के लिए इरा को झटका दिया, लेकिन अगले ही पल वह गुस्से से भरकर बोली,  "मैं पूछ भी किससे रही हूँ..." इरा बड़बड़ाई, "जिसे किसी के दर्द से फर्क ही नहीं पड़ता, उससे जवाब की उम्मीद भी क्या..."

    वह एक कदम आगे बढ़ी और उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोली, "यू नो वॉट? ये तुम्हारी गलती नहीं है... ये तो तुम्हारे खून में ही होगा — जैसा बाप..." 

    उसके लफ्ज़ पूरे भी नहीं हुए थे कि अचानक, विधान ने उसकी ठोड़ी कसकर पकड़ ली और उसे जोर से दीवार से सटा दिया। 

    इरा की पीठ दीवार से जा टकराई और उसके मुंह से हल्की, मगर दर्द भरी सिसकी निकल गई। 

    विधान की आँखें अब सुर्ख लाल हो चुकी थीं। वह बेहद सर्द और कंट्रोल्ड आवाज़ में बोला, "चूस योर वर्ड्स केयरफुली, मिस मल्होत्रा... नहीं तो —" 

    इरा को विधान के इस एक्शन की उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब वह भी पीछे हटने वाली नहीं थी। 

    गुस्से में कांपती हुई आवाज़ में इरा ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा, 

    " दर्द हो रहा है... और जो तुमने — " 

    लेकिन उससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाती, विधान ने उसकी ठोड़ी को और कसकर दबा दिया। इतना जोर से कि इरा की स्किन तक लाल पड़ गई। 

    विधान ने सर्द और बेहद ठंडी आवाज़ में कहा,  "आई डोन्ट लाइक... जब कोई मेरी बात काटे। सो, डोन्ट डेयर डू इट अगेन। " 

    इरा ने झटके से अपना चेहरा छुड़ाया, लेकिन अब उसकी आँखों में डर नहीं था — अब वहां एक अलग ही तूफान उमड़ रहा था। 

    " अब मुकाबला बराबरी का होगा, मिस्टर रायज़ादा ," इरा ने तीखे , लेकिन शांत शब्दों में कहा। उसकी आवाज़ में एक ठहराव था ... और साथ ही एक चुनौती भी। 

    विधान ने एक सर्कास्टिक हंसी के साथ जवाब दिया,  " Exactly... तो ज़ख्म और दर्द भी बराबरी से मिलना चाहिए... क्यों, मिस मल्होत्रा? " 

    इरा कुछ पल के लिए रुकी। उसकी आँखों में उलझन थी, जैसे वह समझ नहीं पा रही थी कि विधान के शब्दों का असली मतलब क्या था। उस एक पल में, दोनों की आँखें आपस में टकराईं। 

    विधान की आँखों में अचानक एक दर्द झलका। और फिर, पूरी ताकत से चिल्लाते हुए वह बोला, "GET LOST!! 

    इससे पहले कि मेरे हाथ... तुम्हारे गंदे खून से रंग जाएं। दफा हो जाओ!" 

    यह सुनते ही इरा का गुस्सा फट पड़ा। उसने दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए पीछे पलटकर तीखी नज़र डाली और पूरे गुस्से से दरवाज़ा जोर से पटका। विधान के चिल्लाने की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, जब वह कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा सख्त था, लेकिन अंदर एक तूफान मचल रहा था। 

    --- 

    वहीं दूसरी तरफ, 

     इरा के जाने के बाद, विधान ने दीवार पर जोर से मुक्का मारा। इरा ने अनजाने में ही सही , मगर विधान की सबसे कमजोर कड़ी पर वार किया था — जो शायद उसे नहीं करना चाहिए था। अभी भी गुस्से में , विधान की आँखें लावा उगल रही थीं।

    "तुमने अच्छा नहीं किया, मिस मल्होत्रा," 

    उसने बड़बड़ाते हुए कहा, " आई वोंट स्पेयर यू। "

    कहते हुए, उसने एक नज़र पीछे फर्श पर पड़ी लाश पर डाली... 

    और अचानक उसके चेहरे पर एक अजीब, सुकून भरी मुस्कान आ गई। 

    [फ्लैशबैक ] 

    सामने बड़े से सोफे पर एक शख्स बैठा था। उसके हाथों में सुलगती हुई सिगरेट थी। जिससे वो हर कुछ सेकेंड्स में एक लंबा कश ले रहा था। फिर उसने सिगरेट को ऐशट्रे में बुझाया। 

    वो शख्स कोई और नहीं , बल्कि विधान था— किसी राजा की तरह इत्मीनान से बैठा हुआ , लेकिन उसकी ग्रे आईज़ कुछ और ही बयां कर रही थीं — जैसे किसी तूफान से ठीक पहले की खामोशी। 

    उसके सामने खड़ा आदमी लगभग 40-45 साल का था , लेकिन देखने में वो अपनी उम्र से कम का दिखाई दे रहा था। वह शख्स कोई और नहीं मिस्टर मेहरा थे। उनके चेहरे से बेचैनी साफ झलक रही थी। उनका चेहरा भी पसीने से भीगा हुआ था और आंखों में एक अनकहा डर बैठ चुका था। 

    विधान ने अपनी नज़रें उठाईं और शांत आवाज़ में कहा ,  " लाइक आई सैड , आई डोनट लाइक तो रिपीट माई वर्ड्स। सो डू इट नाउ। " 

    मेहरा ने घबराते हुए दोनों हाथ जोड़ लिए, लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला , "एम सो ... सारी , सर ... आई प्रोमिस , ऐसा दोबारा नहीं होगा। " 

    तब तक विधान का गुस्सा अपनी हद पार कर चुका था। उसने अपने वेस्ट से गन निकाली और बेहद कोल्ड एक्सप्रेशन के साथ उसे लोड करने लगा। 

    तभी  मेहरा ने घबराए हुए स्वर में कहा, "ये ... क्या कर रहे हो तुम ? पागल वागल तो नहीं हो गए हो।" 

    विधान ने एक हल्की सी नजर मेहरा पर डाली , फिर अपनी गन को हथेली में आराम से घुमाया — जैसे किसी खिलौने से खेल रहा हो। 

    अचानक मेहरा ने टेबल पर रखा फ्लावर पॉट उठाया और उसे विधान की ओर फेंक मारा। लेकिन विधान की नजरें और हाथ दोनों तैयार थे — उसने झटके से मेहरा का हाथ पकड़ लिया और उसी फ्लावर पॉट को दीवार पर दे मारा। कांच बिखरा और एक तीखा टुकड़ा उठाकर उसने सीधे मेहरा के सीने में गाड़ दिया। 

    मेहरा दर्द में तड़पने लगा, जैसे कोई मछली हो जो पानी से बाहर तड़प रही हो। उसकी साँसें हांफने लगीं  चेहरा सफेद पड़ गया। 

    कांपते हुए , मेहरा ने टूटती आवाज़ में कहा, " तू ... तुम ये अच्छा नहीं किया रायजादा .... तुम्हे इसका हिसाब .... " 

    वो बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उसी पल विधान ने बिना एक पल गंवाए — उसके सीने में तीन गोलियाँ चला दी। 

    धाँय! धाँय! धाँय! 

    गोलियों की गूंज कमरे की दीवारों से टकरा कर लौट रही थी और माहौल में एक डरवाना सन्नाटा भर गया। 

    अब मेहरा निढाल हो चुका था। उसकी आँखें खुली थीं लेकिन उनमें ज़िंदगी बाकी नहीं थी। 

    विधान मेहरा की लाश के पास धीरे से झुक गया। 

    उसने ठंडे हाथों से मेहरा के सीने में धंसे कांच के टुकड़े को पकड़ा और उसे धीरे-धीरे घुमाते हुए  कहा, "कौन किसका हिसाब करेगा ... यह तो वक्त ही बताएगा। " 

    [फ्लैशबैक एंड ] 

    उस लाश को एकटक घूरते हुए, विधान कुछ देर के लिए खामोश हो गया। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, बस एक गहरी सोच... जैसे वो किसी पुराने दर्द या अधूरी कहानी में खो गया हो। 

    मगर अगले ही पल , उसका चेहरा सख्त हो गया। बिना एक शब्द बोले वो तेजी से मुड़ा और होटल के बाहर निकल गया। 

    अपनी गाड़ी के पास पहुंचते ही उसने दरवाज़ा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा  और बिना वक्त गंवाए इंजन स्टार्ट कर दिया। 

    और फिर... टायरों की चीख के साथ, गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे रास्ते पर दौड़ पड़ी — जैसे उसका अगला शिकार इंतज़ार कर रहा हो।

    *****

    ईरा और विधान एक-दूसरे को कैसे जानते थे? क्या उनके बीच कभी कोई रिश्ता था? और क्या ये मुलाक़ात महज़ एक इत्तेफ़ाक थी... या किसी खतरनाक प्लान का हिस्सा?

  • 3. Chapter 3

    Words: 1641

    Estimated Reading Time: 10 min

    Precap :-

    मगर अगले ही पल , उसका चेहरा सख्त हो गया। बिना एक शब्द बोले वो तेजी से मुड़ा और होटल के बाहर निकल गया। 

    अपनी गाड़ी के पास पहुंचते ही उसने दरवाज़ा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा  और बिना वक्त गंवाए इंजन स्टार्ट कर दिया। 

    और फिर... टायरों की चीख के साथ, गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे रास्ते पर दौड़ पड़ी — जैसे उसका अगला शिकार इंतज़ार कर रहा हो।

    अब आगे:

    गहरी रात की ख़ामोशी को चीरती हुई, विधान की गाड़ी तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी। अंदर बैठे इंसान का चेहरा बिल्कुल इमोशनलेस था। वह बेहद रैश ड्राइविंग कर रहा था — अगर गलती से कोई उसकी गाड़ी के सामने आ जाए, तो आज उसका ऊपर जाना तय था। 

    तेज़ रफ्तार में गाड़ी दौड़ाते हुए, विधान ने किसी को कॉल किया। एक रिंग के बाद कॉल कनेक्ट हुआ, और दूसरी तरफ से एक आवाज़ आई, 

    "यस, प्रेसिडेंट?" 

    विधान ने बिना किसी भाव के कोल्ड आवाज़ में, "जॉन, डिटेल्स मैंने तुम्हें भेज दी और हाँ, मैस भी क्लियर करवा देना," इतना कहकर उसने फोन डिस्कनेक्ट कर  दिया।

    ---

    वही दूसरी तरफ,

    "जॉन के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान उभरी। उसने धीमी आवाज़ में बड़बड़ाया,

    "किसकी शामत आई होगी आज?" फिर वो हल्के से हंसा — जैसे जवाब पहले से ही जानता हो।

    "यह तो वहाँ जाकर ही पता चलेगा, जॉन। बेचारे के पास तो अफ़सोस करने का टाइम भी नहीं बचा होगा।"

    उसके चेहरे पर एक मिस्टीरियस मुस्कान आ गई और फिर वह अपने काम पर निकल पड़ा। 

    ---

    विधान की चिल्लाती हुई आवाज़ अब भी इरा के कानों में गूंज रही थी , जब वो कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा भले ही एक्सप्रेशन लेस था, लेकिन अंदर जैसे एक तूफान मच रहा था। 

    वो सीधे अपने रूम में गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बिना कुछ सोचे-समझे, उसके कदम बाथरूम की ओर बढ़ गए। उसने शॉवर ऑन किया और ठीक पानी के नीचे खड़ी हो गई। 

    पानी की बूँदें उसके चेहरे पर गिरती जा रही थीं... और उन्हीं बूँदों के साथ बह रहे थे वो आँसू, जो उसने अंदर ही अंदर रोक रखे थे।

    कुछ ही देर में इरा टूटकर ज़मीन पर बैठ गई। उसने खुद को अपनी बाँहों में समेट लिया, जैसे अपनी ही तसल्ली से खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो। उस वक़्त वो बिल्कुल एक छोटे बच्चे जैसी लग रही थी... मासूम, डरी हुई, और बिलकुल अकेली।

    "क...क... क्यों..." उसकी आवाज़ बमुश्किल बाहर निकली।

    "क्यों वापस आए हो तुम? जो किया था... उस सबको फिर...  क्यों.. क्यों आए हो वापस?"

    उसके होंठ कँपकँपा रहे थे। इतना कहते ही उसका रोना फूट पड़ा।

    कुछ मिनट पहले वाली इरा और अब जो पूरी तरह टूट चुकी थी, उनमें ज़मीन-आसमान का फर्क था। जैसे वक़्त ने उसे किसी और इंसान में बदल दिया हो।  वो काफी देर तक वहीं बैठी रही... अपने दर्द को सीने से लगाए हुए, जैसे अब वही उसकी सच्चाई हो।

    करीब दो घंटे बाद, जब ठंड से उसका शरीर काँपने लगा और आँसू भी पूरी तरह सूख गए, तब कहीं जाकर वो धीरे-धीरे उठी। अब उसे थोड़ा बेहतर तो लग रहा था, लेकिन अंदर एक अजीब सा खालीपन था... जैसे सब कुछ होते हुए भी कुछ मिसिंग हो।

    वो  सीधा क्लोसेट तक गई और चुपचाप कपड़े चेंज कर लिए। पानी में इतना टाइम बैठने की वजह से उसे ठंड लग गई थी, और ऊपर से इतना रोने की वजह से सिर में भी तेज़ दर्द हो रहा था।

    उसने पेन किलर तो ले लिया था, लेकिन नींद जैसे कहीं खो सी गई थी। जितनी बार वो आंखें बंद करती, बस वही सीन रिपीट होता — वो और विधान... आज जो हुआ, वो दिल-दिमाग से हट ही नहीं रहा था।

    रातभर वो बस करवटें बदलती रही। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसने खुद से पूछा — “क्या मैं ठीक कर रही हूँ?” लेकिन जवाब देने वाला कोई था ही नहीं।

    कब नींद आई... या आई भी नहीं, ये तो बस इरा ही जानती 

    ----

    वहीं दूसरी तरफ,

    सामने एक शानदार मेंशन था — रॉयल ब्लू और एमराल्ड ग्रीन रंगों में रंगा हुआ, जैसे कोई जादुई महल हो। मेंशन के बीचो-बीच एक खूबसूरत फाउंटेन था, जिसके चारों ओर घनी हरियाली फैली हुई थी, जैसे पूरी जगह में शांति का वातावरण पसरा हो।

    यह मेंशन मॉडर्न और क्लासी का एक बेहतरीन संगम था — हर कोना, हर दीवार, जैसे किसी ख्वाब की तरह सजा हुआ था। अंदर की खूबसूरती और शांति को शब्दों में बयां करना मुश्किल था।

    लेकिन जैसे ही आप अंदर कदम रखते, उसकी खूबसूरती में एक अजीब सा आकर्षण और खामोशी थी, जो दिल को छू जाती थी। ऐसा लगता था जैसे इस जगह में हर चीज़ अपने आप में एक कहानी बयां करती हो, जो सिर्फ समझने वालों के लिए होती है।

    गेट के पास लगी नेम प्लेट पर बड़े और स्टाइलिश अक्षरों में लिखा था — "V. R. Mansion"।

    तभी एक कार, जो विधान की थी, हवेली के अंदर दाखिल हुई। 

    विधान सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ा। कमरे में कदम रखते ही, उसने शर्ट उतारी, घड़ी को मेज़ पर रखा और फिर बिना देर किए शॉवर के नीचे खड़ा हो गया। 

    बाथरूम की दीवारों से टकराता पानी का शोर बाथरूम में गूंज रहा था। शॉवर का ठंडा पानी उसके गरम जिस्म पर लगातार गिर रहा था, लेकिन अंदर का ताप मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी आंखें बंद थीं, जबड़े भींचे हुए, जैसे वो अपने अंदर उठते तूफान को ज़बर्दस्ती रोकने की कोशिश कर रहा हो।

    उसके माथे से पानी की बूंदें बहती हुई उसकी गर्दन और सीने से फिसल रही थीं, लेकिन उसके भीतर का गुस्सा, बेचैनी और वो अजीब सी बेचैन खामोशी अब भी ज़िंदा थी। कुछ मिनटों तक बस पानी गिरता रहा — और वो उसी तरह खड़ा रहा, जैसे खुद से लड़ रहा हो।

    काफ़ी देर बाद उसने शॉवर बंद किया। आईने में खुद को देखा, उसकी आंखों में वही कशमकश थी — ठंडी, मगर चुभती हुई।

    वो बाथरूम से बाहर आया, और सीधा क्लोसेट की तरफ गया। बिना ज़्यादा सोचे उसने एक ब्लैक लूज़ लोअर निकाला और पहन लिया। बालों से अब भी पानी टपक रहा था, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

    उसके लूज़ ब्लैक लोअर और गीले बालों ने उसकी पर्सनालिटी में एक अजीब सी रॉ अट्रैक्शन जोड़ दी थी — कोई देखता तो शायद नज़रें हटा ही नहीं पाता।

    कमरे में हल्की सी मंद रोशनी थी — सब कुछ शांत था, लेकिन उस शांति में भी एक गहराई थी... जैसे तूफ़ान बस आने वाला हो।

    उसने धीमे क़दमों से वार्डरोब खोला और अंदर से एक छोटी सी तस्वीर निकाली। एक पल को उसकी आंखें उस तस्वीर पर टिक गईं — और जैसे ही उसने उसे छुआ, उसकी ठंडी आंखों में हल्का-सा कंपन आ गया। एक अजीब-सी चुप्पी उसके चेहरे पर उतर आई थी, मानो उस एक तस्वीर ने उसके अंदर दबी हर याद को झकझोर दिया हो।

    उसकी उंगलियां तस्वीर के कोनों को छू रही थीं, बहुत धीमे से — जैसे वो उस पल को दोबारा महसूस कर रहा हो, जो कभी उसके लिए सब कुछ था। लेकिन फिर, अगले ही पल... उसकी आंखों में वापस वही ठंडापन लौट आया। चेहरा फिर से पत्थर-सा हो गया — ऐसा चेहरा, जिसमें न कोई इमोशन था, न कोई जुड़ाव।

    उसने तस्वीर को देखा, एक आख़िरी बार — और फिर वार्डरोब के सबसे अंदर के हिस्से में वापस रख दिया।

    तस्वीर को वापस वार्डरोब में रखते ही वो बालकनी की तरफ बढ़ा। बाहर रखे काउच पर जाकर वो शर्टलेस ही लेट गया। चांद की हल्की सी रोशनी और तेज़ ठंडी हवा उसके बदन से टकरा रही थी — जैसे रात भी उसकी बेचैनी को महसूस कर रही हो।

    उसका बदन चांदनी में किसी हीरे की तरह चमक रहा था, लेकिन उसकी आँखें... वो तो बस आसमान में कहीं खोई हुई थीं।

    विधान चुपचाप लेटा था, एकटक उस काले आसमान को घूरते हुए। तभी उसके चेहरे के एक्सप्रेशंस धीरे-धीरे सख्त होने लगे। मिस्टर मेहरा की कही बातें अब भी उसके कानों में गूंज रही थीं... एक-एक लफ्ज़ जैसे आज भी ज़ख्म दे रहा हो।

    ---

    [फ्लैशबैक]

    विधान अपने रूम में लैपटॉप पर काम कर रहा था। चेहरा एकदम शांत और हमेशा के तरह एक्सप्रेशन लेस था। तभी दरवाज़ा खुला और मिस्टर मेहरा अंदर आए।

    "हेलो, मिस्टर रायज़ादा... आपने बुलाया था? कुछ काम था क्या?" मेहरा ने पूछा।

    "हां, था," विधान ने बिना ऊपर देखे कहा। "वैसे, उस प्रोजेक्ट का क्या अपडेट है?"

    "सर, सब कुछ कंट्रोल में है। एवरीथिंग इस गोइंग स्मूद," मेहरा ने कॉन्फिडेंस से कहा।

    "Hmm..." विधान ने हल्का सा सिर हिलाया, फिर थोड़ा रुक कर बोला —

    "शायद अब नहीं..."

    "मतलब?" मेहरा ने थोड़ा घबराकर पूछा।

    "मतलब..." विधान अब धीरे-धीरे उसके चारों तरफ चक्कर काटते हुए बोला,

    "जब कंट्रोल करने वाला ही ना रहे... तो कंट्रोल कैसा?"

    मेहरा की साँसें जैसे अटक सी गईं। वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी—

     विधान ने अपनी बंदूक उसकी कनपटी पर टिका दी।

    "अब सीधे-सीधे बता..." उसकी आवाज़ एकदम ठंडी हो चुकी थी,

    "कौन था जिसके कहने पे तूने ये किया?"

    मगर मेहरा ने कुछ नहीं बोला। विधान ने एक कदम पीछे लिया और सोफे पर जाकर बैठ गया।

    "चल, छोड़ दिया मैने तुझे," विधान ने कहा, उसकी आवाज़ में कोई हलचल नहीं थी।

    मेहरा के चेहरे पर शोक और खुशी दोनों के भाव थे, लेकिन सिर्फ कुछ सेकंड्स के लिए।

    फिर, अचानक विधान ने कहा, "तेरी मर्जी है, या तो खुद को मार, या फिर मेरे हाथों मर, जो अच्छा तो बिल्कुल नहीं होगा।" ये कहते हुए उसने बंदूक मेहरा की तरफ फेंकी।

    मगर मेहरा वैसे ही खड़ा रहा, उसने कोई जवाब नहीं दिया।

    तभी विधान ने उसकी ओर नज़रे उठाते हुए कहा,

    "लाइक आई सैड, आई डोन्ट लाइक तो रिपीट माय वर्ड्स... सो इट नाउ!"

    [फ्लैशबैक एंड]

    *******

    उस तस्वीर में ऐसा क्या था, जो विधान की सख़्त आंखों में भी अचानक नरमी उतर आई? क्या मेहरा की कहानी वाकई यहीं खत्म हुई... या वो भी कोई राज़ पीछे छोड़ गया है?

  • 4. Chapter 4

    Words: 1605

    Estimated Reading Time: 10 min

    Precap:-

    मगर मेहरा वैसे ही खड़ा रहा, उसने कोई जवाब नहीं दिया।

    तभी विधान ने उसकी ओर नज़रे उठाते हुए कहा,

    "लाइक आई सैड, आई डोन्ट लाइक तो रिपीट माय वर्ड्स... सो इट नाउ!"

    [फ्लैशबैक एंड]

    अब आगे:

    वो सब याद करते हुए उसके अंदर गुस्सा धीरे-धीरे खौलने लगा। इतना सब होने के बाद भी उसे अब तक ये नहीं पता चल पाया था कि मेहरा ने ये सब किसके कहने पर किया था। यही अधूरापन उसे सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा था और शायद कुछ और भी।

    जब कुछ देर ठंडी हवा में बैठने के बावजूद भी नींद नहीं आई, तो वो उठकर वापस कमरे में चला गया। उसने लैपटॉप को खोला और काम में खुद को बिज़ी करने की कोशिश करने लगा — जैसे वो अपने अंदर के तूफ़ान को साइलेंस मोड पर डालना चाहता हो।

    काम खत्म करने के बाद उसने एक नींद की गोली ली और बेड पर जाकर लेट गया। अंधेरे कमरे में बस एक हल्की नीली लाइट जल रही थी... और उसके चेहरे पर अब भी वो बेचैनी तैर रही थी।

    ---

    (जर्मनी, बर्लिन)

    एक आलीशान विला... बाहर से जितना रॉयल और परफेक्ट, अंदर उतना ही शांत, ठहरा हुआ सन्नाटा। ऐसा सन्नाटा जो कुछ कहता नहीं, लेकिन हर चीज़ को महसूस करवा जाता था।

    उस खामोशी के बीच था एक कमरा — ऐसा जैसे किसी पुराने म्यूज़ियम का हिस्सा हो। दीवारें यादों से भरी तस्वीरों से ढकी हुई थीं। हर शेल्फ पर कोई न कोई कहानी सजी थी, जैसे वक्त को वहीं थामकर रख दिया गया हो।

    दरवाज़ा धीरे से खुला।

    एक शख़्स अंदर दाखिल हुआ — चाल में ठहराव था, और आँखों में एक अजीब सी गहराई। वो इंसान दिखने में किसी कयामत से कम नहीं लग रहा था। उसकी नज़रें कमरे में रखी हर चीज़ पर जा रही थीं, जैसे वो हर चीज़ को पहचानने की कोशिश कर रहा हो, किसी भूली हुई कहानी को फिर से जोड़ रहा हो।

    वो एक जगह रुक गया। सामने एक पुराना स्कार्फ रखा था। उसने धीरे से उसे उठाया, नाक के पास लाया... एक लंबी साँस ली, और आँखें बंद कर लीं।

    “आज भी... वही खुशबू,” वह धीमे से बुदबुदाया।

    कुछ सेकंड तक वो बस यूँ ही खामोश रहा, जैसे उस खुशबू ने उसे कहीं बहुत पीछे, किसी अधूरी याद में लौटा दिया हो।

    उसने स्कार्फ को इस तरह रखा, जैसे कोई शीशे की नाज़ुक चीज़ हो। फिर उसकी नज़र एक कोने में रखी नई तस्वीर पर रुकी — शायद हाल ही में खींची गई थी। बाकी तस्वीरों से अलग, यह कुछ ज़्यादा ही संभाल कर रखी गई थी।

    उसने तस्वीर को धीरे से छुआ और फिर दिलकश मुस्कान के साथ बुदबुदाया ....

    "अब तो फूलों में भी वो ख़ुशबू कहा... जो तेरे होने पर थी। तू चली गई, पर सज़ा यहीं छोड़ गई। तुझे क्या लगा? तू तस्वीर बन जाएगी और मैं भूल जाऊँगा?

    फिर एक पल रुककर एक डरावनी हसी हंसते हुए , "नहीं… मैं तुझे उसी दिन से क़ैद कर चुका था, जिस दिन तूने मुस्कुराकर मेरी दुनिया तबाह की थी। अब ये मोहब्बत नहीं… ये वो आग होगी, जिसमें या तो तू जलेगी — या मैं।"

    इतना कहकर वो मुस्कुराया — पर वो मुस्कान... किसी टूटे हुए दिल की नहीं, बल्कि किसी जुनूनी की थी। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई, जैसे दर्द ने मोहब्बत को पागलपन में बदल दिया हो। तभी अचानक उसका चेहरा एकदम कठोर हो गया। उसकी नज़रें दीवार पर लगी एक लड़की की तस्वीर पर ठहर गई— उस तस्वीर में एक बेहद खूबसूरत चेहरा था, मासूम सी मुस्कान के साथ। और फिर, उसकी नज़रें जैसे तस्वीर को चीर कर दिल तक उतरने लगी हों।

    "वो दिन दूर नहीं... जब तुम मेरी बाहों में होगी, मेरी जान..." वो धीमे से, जैसे खुद से बात करता हुआ बड़बड़ाया।

    ---

    {V.R Mansion}

    सुबह की पहली किरण अब कमरे में दस्तक दे चुकी थी, लेकिन विधान के कमरे में अब भी सिर्फ हल्की सी रोशनी थी। लेकिन वह पहले से ही उठ चुका था, जैसा कि वह हमेशा करता था। बिना किसी हड़बड़ी के उसने अपने रोज़ के रूटीन को फॉलो किया और फिर बाथ लेने चला गया। शॉवर के बाद, वह क्लोसेट में गया, जहाँ उसने एक ब्लैक कलर का टैक्सिडो सूट और हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वॉच पहन ली।

    आज वह पहले से कहीं ज्यादा शार्प लग रहा था, लेकिन उसकी आँखों में जो ठंडक थी, जो कुछ अलग थी। जैसे वह किसी खतरनाक खेल का हिस्सा बनने जा रहा हो। उसका अगला कदम क्या होगा ये किसी को नहीं पता था।उसकी मुस्कान गायब थी, और चेहरे पर सिर्फ एक सख्त और कोल्ड एक्सप्रेशन था।

    विधान ब्रेकफास्ट के लिए नीचे जाने ही वाला था, तभी उसके फोन पर जॉन का कॉल आया।

    विधान ने बिना किसी एक्सप्रेशन के कॉल पिक किया।

    "प्रेज़िडेंट, इट्स अर्जेंट," जॉन की आवाज़ सुनाई दी।

    इस वक्त विधान का चेहरा एकदम ब्लैंक था । कुछ ही सेकंड में बिना उसने कुछ कहे फोन काट दिया। जॉन उसका सबसे भरोसेमंद आदमी था, और विधान जानता था कि अगर जॉन ने ऐसा कहा, तो सिचुएशन सच में क्रिटिकल होगी।

    और असल बात क्या थी, ये भी विधान समझ चुका था। बिना वक्त गवाए, वह मुंबई एयरपोर्ट से अपने प्राइवेट जेट के ज़रिए कैलिफोर्निया के लिए रवाना हो गया।

    जेट के अंदर, वह अपनी सीट पर बैठा, और उसकी उंगलियाँ लैपटॉप पर लगातार चल रही थीं — जैसे कोई ज़रूरी और डिटेल्ड काम कर रहा हो। कई घंटों की मेहनत के बाद, उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभरी। पास खड़े उसके बॉडीगार्ड्स ने वो मुस्कान देखी, और बिना एक शब्द बोले एक-दूसरे की ओर देखा।

    विधान ने कुछ मिनट और काम किया, फिर लैपटॉप बंद किया और सीट के हेडरेस्ट पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं। वह क्या सोच रहा था, ये तो सिर्फ वही जानता था।

    ---

    वहीं दूसरी तरफ , नींद की गोलियां ज़्यादा लेने की वजह से इरा की आंखें देर से खुलीं। जैसे ही वह उठी, उसके सिर में तेज़ दर्द हो रहा था — जैसे कुछ अंदर से फटने वाला हो।

    "ओह गॉड, मेरा सिर आज फटेगा क्या?" उसने कराहते हुए कहा और दोनों हाथों से सिर थाम लिया।

    टाइम देखने के लिए उसने फोन उठाया, लेकिन फोन स्विच ऑफ था। इरा ने चिढ़ कर बड़बड़ाया, "डैम इट… अब ही बंद होना था? हाऊ केयरलेस आर यू, इरा?"

    इतना कहकर इरा फ्रेश होने चली गई। करीब आधे घंटे बाद वो तैयार होकर बाहर आई — हमेशा की तरह खूबसूरत और एलिगेंट।

    उसने फोन उठाया और पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गई। कार में बैठी और ड्राइव शुरू की। उसका प्लान ऑफिस जाने का था, लेकिन रास्ते में उसने अचानक गाड़ी मल्होत्रा मेंशन की तरफ मोड़ ली।

    ---

    एक बड़े से हाल में करीब 60 साल की एक लेडी सोफे पर बैठी थी। उन्होंने सिंपल सूट और प्लाज़ो पहना हुआ था। देखने में वो अपनी उम्र से काफी कम की लग रही थीं — और उतनी ही खूबसूरत भी।

    वो कोई और नहीं, इरावती मल्होत्रा थीं — इरा की दादी। उन्होंने खुद को इतने अच्छे से मेंटेन कर रखा था कि पहली नज़र में लोग उन्हें इरा की मां समझ बैठते थे, दादी नहीं।

    इरावती सामने बैठे शख्स को देखते हुए तेज़ आवाज़ में बोलीं,

    "तुझे कितनी बार समझाया… मेरी बच्ची को अपने कामों से दूर रखा कर। पर तुझमें अक़्ल होनी चाहिए ना, तब ही तो समझ आए।"

    सामने बैठा शख्स अभिनव मल्होत्रा था — करीब 45 साल का। देखने में वो अपनी उम्र से थोड़े कम के लग रहे थे।

    उसके चेहरे पर थोड़ी टेंशन की लकीर साफ़ दिखाई दे रही थी, लेकिन कैजुअल टी-शर्ट और लोअर में भी वो अब भी उतने ही हैंडसम लग रहे थे। शायद अपने टाइम में एक क्लासिक हैंडसम हंक रहे होंगे।

    थोड़ा झिझकते हुए उन्होंने कहा,

    "मां…, मुझे भी उसकी टेंशन रहती है। अगर लास्ट मिनट पर मुझे जाना न पड़ता, तो मीटिंग मैं खुद अटेंड करता।"

    इरावती ने बिना देर किए टोन स्ट्रिक्ट करते हुए कहा,

    "बस, चुप कर। मेरी बच्ची को कुछ हुआ न... तो सीधा तू जिम्मेदार होगा।"

    मिस्टर मल्होत्रा ने कहा,

    "मां… बच्ची नहीं है अपनी अरु। बहुत समझदार है वो। ज़रूर कोई काम आ गया होगा, तभी लेट हो गई होगी।"

    बोलते वक्त उसने इरावती को तो जैसे समझा लिया था,

    मगर अंदर ही अंदर उसे खुद भी अजीब सी बेचैनी हो रही थी — एक अनकहा सा डर। तभी मल्होत्रा मेंशन के गेट से एक कार अंदर दाखिल हुई — इरा की कार।

    इरा जैसे ही गाड़ी से उतरी, सामने का नज़ारा कुछ पल के लिए थमा सा लगा।

    उसके सामने एक भव्य मेंशन था — कुछ ऐसा जैसा पुराने ज़माने में राजाओं के महल हुआ करते थे। सफ़ेद और गोल्डन कलर में नहाया हुआ, एकदम रॉयल लुक।

    एक पल को लगा जैसे ये कोई रॉयल पैलेस हो।

    इरा ने अंदर की ओर कदम बढ़ाए। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रही थी, अंदर का हर कोना बाहर से भी ज़्यादा एलिगेंट और ग्रेसफुल लग रहा था।

    अभिनव की नज़र जैसे ही बाहर की तरफ पड़ी, उन्होंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा,

    "लो, आ गई आपकी बच्ची।"

    वो उठे और इरा की तरफ बढ़ते हुए मज़ाकिया लहजे में बोले,

    "बेटा, आज तुम्हारी दादी ने तो मुझे फुल सूली पे लटकाने का प्लान बना रखा था। अच्छा हुआ टाइम पर आ गई, बचा लिया तूने।"

    इरावती ने बिना देर किए, उसी टोन में पलटकर कहा,

    "मैं अब भी वो प्लान कैंसिल नहीं कर रही, समझा?"

    *********

    क्या विधान की बेचैनी की असली वजह सिर्फ मेहरा से सच्चाई जानना है या कुछ और भी? और बर्लिन वाले विला में वो शख्स कौन था — और क्या उसकी मोहब्बत वाकई मोहब्बत थी, या जुनून में डूबा हुआ कोई पागलपन? आगे जानने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में .... राधे राधे 🙏🏻🙏🏻

  • 5. Chapter 5

    Words: 1436

    Estimated Reading Time: 9 min

    Precap:

    वो उठे और इरा की तरफ बढ़ते हुए मज़ाकिया लहजे में बोले,

    "बेटा, आज तुम्हारी दादी ने तो मुझे फुल सूली पे लटकाने का प्लान बना रखा था। अच्छा हुआ टाइम पर आ गई, बचा लिया तूने।"

    इरावती ने बिना देर किए, उसी टोन में पलटकर कहा,

    "मैं अब भी वो प्लान कैंसिल नहीं कर रही, समझा?"

    अब आगे :

    वो कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी उनकी नज़र इरा के चेहरे पर पड़ी जहां थकावट उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। जैसे रातभर की नींद कहीं पीछे छूट गई हो। उन्होंने एक पल खुद को रोका और बस हल्के से सिर हिला दिया।

    वो चुपचाप मुड़ने लगी थीं कि तभी इरा पीछे से आई और उन्हें बच्चों की तरह हल्के से गले लगा लिया।

    "सॉरी दादी माँ..." इरा की आवाज़ धीमी थी। "पक्का इस बार ऐसा नहीं होगा।"

    उसने उनका चेहरा अपने हाथों में लिया और मासूमियत से कहा,

    "काफ़ी लेट हो गया था... होटल में रुकना पड़ा। फिर फोन भी स्विच ऑफ था। ना अलार्म बजा... ना आपसे बात कर पाई।"

    इतना सब कुछ एक ही सांस में बोलते हुए, इरा ने हल्के से कान पकड़ लिए।

    इरावती का चेहरा अब भी थोड़ा सख्त था, लेकिन उनकी आँखों में नर्मी लौट आई थी। उन्होंने बस इरा के माथे पर हाथ फेरा और कहा,

    "चल, अब अंदर चल... पहले कुछ खा ले। डांटना बाद में भी हो जाएगा।"

    इरा ने पप्पी फेस बनाते हुए कहा, "सॉरी दादी माँ।"

    वहीं मिस्टर मल्होत्रा के चेहरे से जैसे सारी चिंता और परेशानी उड़ गई हो। इरावती जी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई थी, लेकिन अगले ही पल उन्होंने झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा,

    "बस अरु, ये तेरा हमेशा का है... लेकिन अब मैं तेरे मीठे-मीठे शब्दों में नहीं आने वाली।"

    इरा ने एक नजर अभिनव जी की तरफ डाली, जैसे नज़रों ही नज़रों में कह रही हो—“कुछ तो कीजिए डैड, प्लीज़!”

    मगर मिस्टर मल्होत्रा ने सिर्फ कंधे उचका दिए, जैसे कह रहे हों—“अब खुद ही संभालो।”

    इरा ने उन्हें कुछ सेकंड घूरा, फिर धीरे से दादी माँ को सोफे पर बिठाया और खुद उनके पास बैठते हुए बोली,

    " भला हम दोनों क्यों लड़ रहे हैं, दादी माँ? असली गुनहगार तो आपका बेटा हैं... इन्होंने ही मुझे वहाँ भेजा था। और अब..."

    वो अचानक चुप हो गई, जैसे कुछ और कहने जा रही थी लेकिन रुक गई। तभी अभिनव जी ने हल्की हँसी में कहा,

    "वाह बेटा, अब मेरी माँ को ही मेरे खिलाफ भड़काया जा रहा है?"

    इरावती ने झट से अभिनव जी के कंधे पर हल्का सा थप्पड़ मारते हुए कहा,

    "ओए खोटिया, चुप कर। मेरी अरु एकदम सही कह रही है। सारी मुसीबत दी जड़ तू ही है।"

    इरा भी मस्ती में बोली,

    "हाँ दादी माँ, बिल्कुल सही फरमाया आपने।"

    अभिनव जी थोड़ा नाराज़ होकर कुर्सी पर जा बैठे। इरा उनके पास आई, फिर दादी की ओर देखकर बोल पड़ी,

    "दादी, आज आपको कुछ मिसिंग नहीं लग रहा?"

    फिर खुद ही एक्टिंग करते हुए कहा,

    "हम्म... कुछ याद आ रहा है... ओह हाँ! पनीर के पराठे।"

    दादी भी हँस पड़ीं,

    "हाँ हाँ, पनीर के पराठे!"

    इरा मुस्कुराई,

    "दादी माँ, ज़्यादा मत बनाना। हम दोनों ही हैं खाने वाले। बाकियों से तो नाराज़गी चल रही है... वो लोग अपना खुद बना लें।"

    तभी मिस्टर मल्होत्रा ने तुरंत टोका,

    "ये क्या बात हुई, अरु? मैंने भी तो अभी तक कुछ नहीं खाया है। जो तुम खाओगी, वही मैं भी खाऊँगा।"

    इरा ने भौंहें उचकाईं,

    "मगर कोई तो डाइट पर था... याद है न?"

    मिस्टर मल्होत्रा ने शरारत से मुस्कराते हुए कहा,

    "अरे, वो डाइट वाला तो आज छुट्टी पर है।"

    इतना कहते ही दोनों ज़ोर से हँस पड़े, और इरावती जी के चेहरे पर भी एक सुकून भरी मुस्कान आ गई।

    कुछ ही देर में इरा ने सबको फ्रेश होने को कहा और खुद भी अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।

    फ्रेश होकर जब इरा डाइनिंग एरिया में पहुँची, तो देखा कि मिस्टर मल्होत्रा और दादी माँ पहले से वहाँ मौजूद थे — बस अब उसी का इंतज़ार हो रहा था।

    इरा ने मुस्कुराते हुए टेबल पर दोनों को जॉइन किया। जैसे ही तीनों ने खाना शुरू किया, वहाँ एकदम शांति छा गई।

    इरावती जी भले ही हमेशा हँसी-मज़ाक के मूड में रहती थी, लेकिन जब बात नियमों की आती, तो किसी समझौते की गुंजाइश नहीं छोड़ती थीं। उनका एक खास नियम था — "खाते वक़्त कोई बात नही करेगा।" और इस नियम को घर में हर कोई बिना कोई बहस किए मानता आया था।

    नाश्ता चुपचाप हो गया। इसके बाद मिस्टर मल्होत्रा ऑफिस के लिए निकल गए।

    इरावती जी तैयार होने लगीं — उन्हें अपनी किसी पुरानी दोस्त के फंक्शन में जाना था। जाते-जाते उन्होंने इरा से पूछा,

    "अरु, तू भी चल न। घर पर रहेगी तो फिर लैपटॉप खोले बैठी रहेगी।"

    इरा ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया,

    "सॉरी दादी मा, आज नहीं आ पाऊँगी। लेकिन आई प्रोमिस, आज ज्यादा काम नहीं करूँगी।"

    इरावती जी ने ज्यादा ज़िद नहीं की, सिर हिलाया और प्यार से इरा के बालों पर हाथ फेरते हुए बाहर निकल गईं।

    अब इरा घर पर अकेली थी।

    वो सीधा अपने कमरे में गई, थोड़ी देर लैपटॉप पर काम किया — कुछ मेल्स चेक कीं, प्रेजेंटेशन के कुछ पॉइंट्स एडिट किए, और फिर थककर बेड पर लेट गई।

    कहने को तो दिन अभी शुरू ही हुआ था, लेकिन इरा के लिए यह एक लंबी रात और भारी सुबह साबित हुई थी।

    उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं और कुछ ही पलों में...वो नींद की आगोश में चली गई।

    ----

    {कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका }

    रात की रौशनी धुंधली पड़ चुकी थी। कैलिफ़ोर्निया की सड़कों पर ठंडी हवाओं की सरसराहट थी, लेकिन लॉस एंजेलिस एयरपोर्ट के एक प्राइवेट रनवे पर माहौल कुछ और ही कह रहा था।

    एक काले रंग का प्राइवेट जेट धीरे-धीरे रनवे पर उतरा। उसकी बॉडी पर लगी हल्की गोल्डन लाइन उसकी शानो-शौकत की गवाही दे रही थी।

    विधान रायजादा — अपने ठहराव भरे अंदाज़ में जेट से नीचे उतरा। काले ट्रेंच कोट के नीचे ब्लैक शर्ट और मैचिंग स्लैक्स में उसका रौब और भी अट्रैक्टिव लग रहा था। आँखों में वही पुरानी ठंडक और चेहरे पर वही बेजान-सी गंभीरता।

    जैसे ही उसने रनवे पर कदम रखा, उसके इर्द-गिर्द चार गाड़ियाँ आगे, चार पीछे और बीच में उसकी ब्लैक बुलेटप्रूफ Maybach — पूरी एक काफ़िला उसकी सुरक्षा के लिए तैयार खड़ा था।

    विधान कार में बैठते ही लैपटॉप ऑन करता है। उंगलियाँ कीबोर्ड पर किसी ट्रेंड शूटर जैसी चल रही थी।

    उसकी नज़रें स्क्रीन पर टिक थीं, जैसे दुनिया का हर अगला कदम वो यहीं से कंट्रोल करता हो।

    शहर की चमकती रौशनी से दूर, उसका काफ़िला तेज़ी से उसके प्राइवेट विला की ओर बढ़ रहा था।

    ----

    मुंबई, इंडिया [ मल्होत्रा मेंशन ]

    इरा प्रोजेक्ट से रिलेटिड कुछ काम करने के बाद सोने के लिए चली गई थी। अचानक इरा एक डरावने सपने से उठ गई। उसका सिर बहुत तेज़ दर्द कर रहा था।

    वैसे तो उसे ऐसे नाइटमेयर्स अक्सर आते थे, लेकिन ज़्यादातर रात में ही। और इसी वजह से इरा ने रात में सोना भी कम कर दिया था।

    मगर अब तो शाम के वक़्त भी यह डर पीछा नहीं छोड़ रहा था।

    उसने धीरे से आँखें खोली, लेकिन नींद अब भी पूरी तरह से टूटी नहीं थी। शरीर थका हुआ सा लग रहा था, लेकिन वो किसी तरह उठी, फ्रेश हुई और नीचे जाने लगी। तब उसे एहसास हुआ कि सोते-सोते शाम हो चुकी थी। नीचे पूरे मेंशन में एकदम शांति थी—कहीं कोई नहीं दिख रहा था।

    उसका शरीर बहुत थका हुआ था और इस वक्त उसे कॉफी की बहुत जरूरत महसूस हों रही थी और इसलिए वो किचन की तरफ बढ़ गई।

    तभी सामने से इरावती जी आती दिखीं, उनके हाथ में दो कॉफी मग थे।

    उन्हें देखते ही इरा खुश हो गई और हल्की सी स्माइल के साथ बोली —

    "थैंक यू, दादी मा।"

    इरावती जी बस हल्के से मुस्कुरा दीं।

    उन्होंने कॉफी मग टेबल पर रखे और इरा से कहा, “आ जा, बैठ मेरे पास।”

    इरा उनके पास बैठ गई और कॉफी का एक सिप लेकर बोली,

    "इट्स ओसम, दादी मा… यू आर फेबल्स"

    इरावती जी ने भी एक सिप लिया, लेकिन उनकी आँखों में सीरियसनेस उतर आई।

    वो थोड़ा रुककर बोलीं,

    "कल कहाँ थी तुम, इरा?"

    *******

    आगे जाने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में.... राधे राधे🙏🏻🙏🏻

    हेलो प्यारे रीडर्स,

    आप सब कहानी पढ़ तो लेते हो, मगर बिना कुछ कहे चुपचाप निकल जाते हो! 😅

    अगर आप यहां तक पढ़कर पहुंचे हो, तो एक छोटा सा कमेंट ज़रूर छोड़ दिया करो, ताकि मुझे भी पता चले कि आपको ये कहानी कैसी लगी। आपके रिव्यू, ओपिनियन और सपोर्ट बहुत मायने रखते हैं। ... तो प्लीज़, बिना कोई रेटिंग या कमेंट किए मत जाया करो। 🙏

  • 6. Chapter 6

    Words: 1296

    Estimated Reading Time: 8 min

    Precap:

    इरा उनके पास बैठ गई और कॉफी का एक सिप लेकर बोली,

    "इट्स ओसम, दादी मा… यू आर फेबल्स"

    इरावती जी ने भी एक सिप लिया, लेकिन उनकी आँखों में सीरियसनेस उतर आई।

    वो थोड़ा रुककर बोलीं, "कल कहाँ थी तुम, इरा?"

    अब आगे:

    इरा, जो अब तक कॉफी में मग्न थी, एक पल के लिए रुक गई। उसने उनकी तरफ देखा और फिर नॉर्मल लेकिन शांत शब्दों में कहा, "बताया तो था दादी मा…"

    लेकिन इस बार इरावती जी ने टोन सख़्त करते हुए कहा,

    "मुझे सच सुनना है, अरु।"

    इरा ने बिना किसी भाव के , "यही सच है दादी मा, जो मैंने आपको बताया।"

    इरावती जी को एहसास हुआ कि शायद वो थोड़ा सख़्त हो गई थीं। उन्होंने इरा के हाथ को हल्के से सहलाते हुए कहा, "मेरा बच्ची, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। बस मैं ये जानना चाहती हु कि कोई प्रॉब्लम तो नहीं है, न? मैं जानती हूं, मेरा बच्ची सब संभाल लेगी लेकिन..."

    तभी इरा ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "यही सच है दादी मा, आपको ट्रस्ट नहीं क्या अपने अरु पर?"

    इरावती जी थोड़ी देर के लिए मुस्कुराईं, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी कुछ सवाल थे, वो पूरी तरह से सेटिस्फाई नहीं हुईं थीं। फिर दोनों के बीच हल्की-फुल्की बातें होती रही और इसी तरह से शाम भी धीरे-धीरे कट गई।

    कभी इरा ने दादी को अपने कॉलेज के पुराने किस्से सुनाए, तो कभी दादी ने अपने ज़माने के ताने-बाने। बातों-बातों में वक़्त कैसे गुज़र गया, पता ही नहीं चला। कॉफी कब खत्म हुई और शाम कब रात में बदलने लगी, दोनों ने महसूस ही नहीं किया।

    लेकिन जैसे ही इरा अकेले अपने कमरे की तरफ बढ़ी... उसके चेहरे से वो मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी। दरवाज़ा बंद करते ही उसने एक पल खामोशी से खिड़की की तरफ देखा। बाहर सड़क पर अंधेरा और भी गहराता जा रहा था। ठंडी हवा में पेड़ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रहे हों। और तभी... उसका फोन वाइब्रेट करने लगा।

    स्क्रीन पर सिर्फ एक मैसेज चमक रहा था —

    "मिस यू सो मच, मेरी जान..."

    ये पढ़ते ही इरा की आँखों में एक अलग ही चमक और होंठों पर एक सुकून भरी मुस्कान उभर आई।

    उसने झट से रिप्लाई किया —

    "आई एल्सो..."

    कुछ ही सेकंड बाद फिर से नोटिफिकेशन की हल्की सी बीप हुई।

    "आई हैव अ सप्राइज फॉर यू... लेकिन ये तो कल पता चलेगा"

    इरा कुछ पल रुकी, फिर हल्के से मुस्कुराई, और सिर्फ एक छोटा सा जवाब भेजा —

    "ओके..."

    वहीं दूसरी तरफ...

    एक बहुत ही खूबसूरत और आलीशान मेंशन के मेन एंट्रेंस पर एक ब्लैक रोल्स – रॉयस phantom आकर रुकी। जैसे ही गाड़ी रुकी, एक बॉडीगार्ड दौड़ता हुआ आया और पीछे वाली सीट का दरवाज़ा खोला।

    गाड़ी के अंदर से विधान निकला, उसके चेहरे पर हमेशा की तरह बिल्कुल ब्लैंक एक्सप्रेशन थे। अपने कैलकुलेटेड कदमों से वो मेंशन की तरफ बढ़ने लगा।

    मेंशन जितना बाहर से खूबसूरत और शाही दिखता था, अंदर का नज़ारा उससे भी कहीं ज़्यादा शानदार और भव्य था—जैसे हर कोना अपनी एक अलग कहानी कह रहा हो।

    वहां रखी हर चीज एक एंटीक, यूनिक पीस थी। वही हॉल जिसमें जॉन इधर-उधर घूम रहा था, उसके चेहरे पर चिंता और परेशानी साफ नजर आ रही थी।

    उसे ये एहसास तक नहीं हुआ कि विधान, जो ठीक उसके पीछे था, सोफे पर बड़े अदब से पैरों को टेबल पर क्रॉस किए हुए बैठा था। पिछले तीन मिनट से वह बिना एक शब्द कहे, जॉन को घूर रहा था।

    तभी जॉन के कानों में एक कर्कश आवाज़ गूंजी —

    "मुझे वक्त बर्बाद करने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं, मिस्टर जॉन वाटसन।"

    यह शब्द सुनते ही मानो जॉन की साँसें थम गई हों। वो झट से पीछे मुड़ा, लेकिन विधान के चेहरे के एक्सप्रेशन को देखकर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई।

    विधान बिना कुछ कहे खड़ा हुआ और अपने कदम स्टडी रूम की ओर बढ़ा दिए।

    जॉन भी धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे स्टडी रूम की ओर बढ़ गया।

    करीब आधे घंटे बाद, जॉन कमरे से निकलकर सीधे बाहर चला गया। वहीं अंदर, विधान चुपचाप बालकनी के सामने लगी एक चेयर पर बैठा था। उसकी बाज़ू की स्लीव्स फोल्ड की हुई थीं, और एक हाथ में रेड वाइन का ग्लास था, जिसे वो धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा रहा था।

    उसकी आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थीं, और चेहरे पर इस वक़्त बेहिसाब गुस्सा साफ झलक रहा था। अचानक उसने हाथ में पकड़ा हुआ वाइन का ग्लास जोर से दीवार पर दे मारा।

    ग्लास के टुकड़े फर्श पर बिखर गए और साथ ही उसकी गूंजती हुई आवाज़ कमरे में गूंज उठी —

    "नोट अगेन… आई… कांट टू…"

    आगे के शब्द उसने अधूरे छोड़ दिए। जैसे लफ़्ज़ गले में ही अटक गए हों, या फिर शायद वो कहना ही नहीं चाहता था।

    {मुंबई , इंडिया}

    देर रात तक जागने के बावजूद, इरा सुबह पांच बजे ही उठ गई थी। पूरे माहौल में एक गहरी शांति थी। सूरज की हल्की-हल्की लालिमा धीरे-धीरे आसमान में फैल रही थी। खिड़की से आती ठंडी हवा और दूर कहीं चिड़ियों की हल्की चहचहाहट, मौसम को और भी सुकूनभरा बना रही थी।

    इरा ने अपनी आँखें मलते हुए एक लंबी सांस ली और फिर अपने डेली रूटीन में लग गई।

    इरा हमेशा की तरह एलिगेंट लग रही थी। तैयार होकर जब वो नीचे हॉल में आई, तो वहां दादी मा की आरती और घंटियों की मधुर आवाज़ पूरे माहौल में गूंज रही थी।

    इस साउंड और वाइब ने जैसे इरा के चेहरे पर एक जेनुइन स्माइल ला दी। वो धीरे-धीरे चलते हुए दादी मा के पास चली गई।

    आरती अब समाप्त हो चुकी थी। दादी मा ने इरा को प्यार से प्रसाद दिया और फिर ब्रेकफास्ट के लिए डाइनिंग एरिया की तरफ बढ़ गए।

    डाइनिंग एरिया में मिस्टर मल्होत्रा पहले से ही मौजूद थे और चुपचाप नाश्ता कर रहे थे। दादी मा ने अपने लिए हमेशा की तरह सिंपल सा डेली खाना लिया, जबकि इरा ने सिर्फ एक बाउल हेल्दी सलाद उठाया।

    दादी मा की नजर दोनों की प्लेट्स पर गई, फिर उन्होंने हल्के से सिर हिलाया — जैसे कहना चाह रही हों, “कभी नॉर्मल खाना भी खा लिया करो।”

    नाश्ते के बाद मिस्टर मल्होत्रा ऑफिस के लिए निकल गए। इरा ने भी जल्दी से अपने रूम में जाकर कुछ इंपॉर्टेंट फाइल्स लीं और फिर वो भी ऑफिस के लिए रवाना हो गई।

    इरा की गाड़ी एक भव्य और हाई-राइज़ बिल्डिंग के सामने आकर रुकी। सामने एक 50-मंज़िला इमारत खड़ी थी — ऊँचाई में उतनी ही दमदार, जितनी इसकी पहचान। ग्लास फ्रंट पर बड़े-बड़े अक्षरों में चमक रहा था:

    "मल्होत्रा एम्पायर ग्रुप"

    इरा ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और पूरे एटीट्यूड के साथ उतरी — उसका कॉन्फिडेंस उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।

    बिना किसी से कुछ कहे, वो सीधा अपनी पर्सनल लिफ्ट की तरफ बढ़ी और कुछ ही सेकंड्स में ऑफिस फ्लोर की ओर चली गई।

    शहर की चहल-पहल से बहुत दूर… एक ऐसी जगह जहां सन्नाटा खुद अपनी साँसे गिनता हो।

    चारों तरफ सिर्फ वीरानी थी — टूटे हुए रास्ते, जंग लगी हुई लोहे की चादरें और कंटीली झाड़ियों से घिरी एक पुरानी सी बिल्डिंग। ये जगह देखकर समझ आता था कि यहाँ कोई सालों से नहीं आया। ये कोई फैक्ट्री थी या कभी किसी का गैरेज, कहना मुश्किल था… लेकिन अब वो बस एक खंडहर बन चुका था।

    छत के आधे हिस्से टूट चुके थे, दीवारों पर सिर्फ दरारें थीं और हर कोना धूल और अंधेरे से भरा था।

    लेकिन इस वीरान जगह के बीचों-बीच, एक भारी-भरकम दरवाज़ा अब भी मजबूती से अपनी जगह टिका हुआ था… मानो अंदर कुछ ऐसा था, जो दुनिया से छुपा कर रखा गया हो।

    तभी...

    (क्रमशः)

    *****

    Thoda late ho gaya chapter guys par dil se sorry. Aapke pyaar aur support ke bina ye kahani adhuri hai to pls comment kreye. aur Jaldi milte hain, naye twists ke saath — tab tak apna khayal rakhna!" ❤️🙏

  • 7. Chapter 7

    Words: 1369

    Estimated Reading Time: 9 min

    Precap :

    छत के आधे हिस्से टूट चुके थे, दीवारों पर सिर्फ दरारें थीं और हर कोना धूल और अंधेरे से भरा था।

    लेकिन इस वीरान जगह के बीचों-बीच, एक भारी-भरकम दरवाज़ा अब भी मजबूती से अपनी जगह टिका हुआ था… मानो अंदर कुछ ऐसा था, जो दुनिया से छुपा कर रखा गया हो।

    तभी...

    अब आगे :

    एक Lamborghini सन्नाटे को चीरती हुई उस वीरान खंडहर के सामने आकर रूकी।

    गाड़ी का दरवाज़ा खुला और उसमें से एक हैंडसम शख़्स निकला। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति और रौब था, जैसे खामोश रहकर भी सब कुछ कह देना जानता हो।

    वो उस खंडहर के सामने कुछ पल खड़ा रहा, फिर अपनी घड़ी का एक बटन प्रेस किया। उसकी आंखें स्कैन हुई — और कुछ ही सेकंड बाद, वो जंग लगा हुआ भारी भरकम दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुलने लगा। अचानक सब कुछ बदल गया।

    खंडहर के उस दरवाज़े के पीछे एक और रास्ता था।सामने एक छोटा-सा गेट, फिर नीचे जाने वाली सीढ़ियाँ।वो शख़्स धीरे-धीरे नीचे उतरा — जैसे उसे हर मोड़ की आदत हो। सीढ़ियाँ पार करने के बाद एक और दरवाज़ा दिखाई दिया। उस शख्स ने अपनी जेब से एक छोटा-सा डिवाइस निकाला… और कुछ टाइप किया।

    बीप...

    दरवाज़ा एक धीमी, मैटेलिक आवाज़ के साथ खुला। जो नज़ारा सामने था — वो उम्मीद से कहीं ज़्यादा शौकिंग था।

    बाहर से जो जगह टूटी दीवारों, जंग लगे गेट और सूखी झाड़ियों से भरी पड़ी थी… अंदर से वो किसी और ही दुनिया जैसी लग रही थी। अंदर एक पूरा हाई-टेक यूनिवर्स छुपा हुआ था — चारों तरफ बड़ी-बड़ी LED स्क्रीनें, शेल्फ पर कई लैपटॉप्स सजी हुई थीं, और दीवारों पर लगे मॉनिटर जिनमें लाइव कैमरा फीड चल रही थी। सिस्टम की धीमी बीपिंग और स्क्रीन की नीली रोशनी माहौल को एक फ्यूचरिस्टिक एहसास दे रही थी।

    यह सब देखकर कोई भी एक पल के लिए सोचने लगता — ‘क्या मैं सच में उसी पुराने खंडहर के अंदर हूँ?’”

    वो शख़्स सीधे एक टेबल की तरफ बढ़ा, जहाँ एक लड़की बैठी थी — काले कपड़ों में, बाल थोड़े बिखरे हुए,

    आँखें स्क्रीन पर टिकीं, चेहरा शांत लेकिन पूरी तरह फोकस्ड।

    तभी वो शख़्स उस लड़की के पास गया और सीधा पूछा —

    "कुछ पता चला?"

    उस लड़की की नज़र अब भी स्क्रीन पर जमी थी। उसने बिना पलके झपकाए ठंडी आवाज़ में —

    "नहीं।"

    लड़के के चेहरे के हाव-भाव साफ़ जाहिर कर रहे थे कि वो कुछ ज़्यादा ही उम्मीद लेकर आया था। पर उस लड़की का ध्यान अब भी स्क्रीन पर था… एक टक…।

    वो बिना कुछ बोले मुड़ा और तेज़ी से उस दूसरी तरफ गया, जहां एक लड़का बैठा था।

    "डोंट टेल मी, जैक... कि तुम्हें भी कुछ नहीं मिला," उस शख्स ने लगभग सरकास्टिक टोन में कहा।

    जैक ने गर्दन घुमाई और हाथ उठाते हुए बोला —

    "ट्रस्ट मी जॉन, मैं कब से ट्राय कर रहा हूँ… बट ईट्स डूइंग द सेम डैम थिंग एवरीटाइम!"

    उसने फ्रस्ट्रेशन के साथ स्क्रीन की ओर इशारा किया —

    "लुक… ईट्स डूइंग इट अगेन!"

    जॉन ने स्क्रीन की तरफ एक नज़र डाली। फिर कुछ सेकंड शांत रहा। फिर धीमी लेकिन कॉन्फिडेंट आवाज़ में — "लाओ... एक बार मुझे ट्राय करने दो।"

    वो उसकी सीट पर बैठ गया और कीबोर्ड पर तेज़ी से टाइप करने लगा। कमरे की नीली रौशनी स्क्रीन में घुलने लगी थी, माहौल एकदम सन्नाटे जैसा।

    तभी अचानक—

    ---

    ईरा ने गाड़ी का दरवाजा खोला और पूरे एटिट्यूड के साथ उतरी — उसका कॉन्फिडेंस उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।

    बिना किसी से कुछ कहे वो सीधा अपने पर्सनल लिफ्ट की तरफ बढ़ी और कुछ सेकंड में अपने ऑफिस फ्लोर पर चली गई।

    उसका केबिन बाकी केबिन्स से काफी अलग था। ग्रे और व्हाइट कॉम्बिनेशन में बना ये केबिन साफ-सुथरा और स्टाइलिश था। इटालियन मार्बल टाइल्स की फ्लोरिंग, कांच की मेज, जिस पर कुछ फाइल्स और लैपटॉप रखा था। साइड में ग्लास वॉल लगी थी, जिससे पूरे ऑफिस का व्यू आराम से देखा जा सकता था। हर चीज़ बड़े सलीके से रखी हुई थी, जो उसके प्रोफेशनल और परफेक्शनिस्ट नेचर को बयां करती थी।

    ईरा अपने ऑफिस में पूरी डेडिकेशन से काम कर रही थी, तभी दरवाज़े पर एक नॉक हुआ।

    एक नरम आवाज़ आई —

    "मे आई कमिंग, मैम?"

    ईरा ने बिना नज़र उठाए जवाब दिया —

    "यस।"

    दरवाज़ा खुला और एक लड़की अंदर आई — उम्र करीब 23-24 साल, शार्प फीचर, परफेक्ट फिगर और एलिगेंट ऑफिस ड्रेस में वो बहुत प्रोफेशनल लग रही थी।

    वो लड़की हल्की मुस्कान के साथ फाइल्स आगे बढ़ाते हुए बोली...

    "Ma’am, मिस्टर गोयल ने ये फाइल्स भेजी हैं। उन्हें कुछ ज़रूरी काम था इसलिए वो नहीं आ पाए। और मिस्टर सिद्धांत ने ये फाइल्स आपको पर्सनली देने को कहा था।"

    ईरा ने सिर हल्का-सा हिलाते हुए कहा, "ओके।"

    वो लड़की मुड़ ही रही थी कि अचानक ईरा ने पीछे से आवाज़ लगाई —

    "सृष्टि, मिस्टर सिद्धांत को मेरे केबिन में आने के लिए कहो।"

    लड़की कुछ पल के लिए ठिठकी, फिर पलटकर बोली —

    "Ma'am, सर फिलहाल एक हफ्ते की छुट्टी पर हैं।"

    ईरा ने एक सेकंड के लिए कुछ नहीं कहा, फिर धीरे से कहा —

    "ठीक है, तुम जाओ।"

    सृष्टि ने बिना और कुछ कहे वहाँ से निकल गई। ईरा ने धीरे-से अपनी आँखें बंद कीं, और सिर कुर्सी के हेडरेस्ट पर टिका दिया।ईरा ने एक बार फिर उन फाइल्स को उठाया, कुछ सेकंड तक देखा… और फिर गहरी साँस छोड़कर खुद को वापस काम में झोंक दिया।

    काफी देर तक स्क्रीन पर आंखें टिकाए हुए वो काम करती रही — टाइम कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला। घड़ी की टिक-टिक के साथ जब उसने नजर उठाई, तो दो बज चुके थे। उसे याद आया — पाँच बजे एक मीटिंग भी है।

    ईरा ने सामने रखी फाइल्स में से एक उठाई, अपनी कुर्सी से उठी, और बिना किसी देरी के मीटिंग रूम की ओर बढ़ गई। मीटिंग रूम में पहले से ही कंपनी के कुछ कोर मेंबर्स मौजूद थे — और उन सबके बीच बैठे थे वही शख़्स जो अब इन कंपनी के नॉमिनल बॉस थे।

    कुछ साल पहले जब कंपनी ने बैक टू बैक लॉस लॉसेज झेले थे, तो मजबूरी में आधे से ज़्यादा शेयर उन्हें मल्होत्रा ग्रुप को बेचने पड़े । सीधी भाषा में कहें तो — अब ये कंपनी मल्होत्रा ग्रुप के अंडर थी।

    मीटिंग की शुरुआत फॉर्मल ग्रीटिंग से हुई और फिर डिस्कशन सीधे मुद्दों पर आ गया —

    प्रोजेक्ट टाइमलाइनस, बजट प्लानिंग, प्रॉफिट लॉस चार्ट्स, और प्रोडक्शन हर्डल्स जैसे हर कोर टॉपिक डिस्कस किया गया।

    असल में, ये मीटिंग इसलिए रखी गई थी ताकि हर क्रिटिकल प्वाइंट को एक बार में साफ कर दिया जाए — ताकि बाद में किसी भी तरह की कन्फ्यूजन या डिले ना हो।

    ईरा ने एक नज़र पूरे रूम पर डाली, फिर कॉन्फिडेंट लेकिन ठंडे लहजे में कहा —

    "आई होप आपके डाउंट्स क्लियर हो गए होंगे... और जिनके नहीं हुए, वेल — दैटस नोट माई प्रॉब्लम।आपको अभी और एक्सपीरियंस की ज़रूरत है। लेकिन मुझे यकीन है, मेरी बातें आपको याद रहेंगी। गोट इट?"

    इतना कहकर वो अपनी चेयर से उठी और बिना किसी को दूसरा मौका दिए, सीधे मीटिंग रूम से बाहर निकल गई। मीटिंग लगभग दो घंटे चली थी।

    वो सीधा अपने केबिन में गई, खुद के लिए कॉफी बनाई और फिर वापस अपने काम में डूब गई। सारा काम निपटाने के बाद, उसकी नजर एक फाइल पर पड़ी —

    जो मिस्टर गोयल द्वारा दी गई फाइल्स के साथ ही रखी गई थी।

    ईरा को याद आया, कॉन्ट्रैक्ट वाली फाइल तो उसने मीटिंग रूम में सृष्टि को हैंडओवर कर दी थी... फिर ये फाइल यहां कैसे रह गई?

    ईरा ने फाइल को उठाया और बड़बड़ाई, “ये फाइल गलती से तो नहीं आ गई।”इतना कहकर उसने फाइल खोली।

    अंदर प्रोजेक्ट से जुड़ी कुछ डिटेल्स थीं — कुछ खास नहीं, सिर्फ फॉर्मल डॉक्युमेंटेशन।

    उसे सरसरी निगाह से देखकर ईरा ने फाइल वापस रख दी और मन में सोचा — "इसे बाद में देख लूंगी..."

    काम खत्म होते ही वो अपनी गाड़ी में बैठी और ऑफिस से निकल पड़ी। मौसम थोड़ा ठंडा था, हवा हल्की चल रही थी। वो रास्ते में थी ही कि उसके फोन पर एक मैसेज फ्लैश हुआ —

    "आई एम कमिंग।"

    (क्रमशः)

    ****

    चलो मिले हैं अब next चैप्टर में...

    अब दिल भी खोल दो यार, कमेंट करके बताओ कैसा लगा! 😌

    वरना मैं भी "I am coming" लिख दूंगी — आपके ड्रीम्स में! 😈

  • 8. Chapter 8

    Words: 1353

    Estimated Reading Time: 9 min

    precap :

    ईरा काम खत्म होते ही वो अपनी गाड़ी में बैठी और ऑफिस से निकल पड़ी। मौसम थोड़ा ठंडा था, हवा हल्की चल रही थी। वो रास्ते में थी ही कि उसके फोन पर एक मैसेज फ्लैश हुआ —

    "आई एम कमिंग।"

    अब आगे :

    मैसेज पढ़ते ही ईरा के होंठों पर एक हल्की मुस्कान तैर गई... और बिना एक पल सोचे, उसने गाड़ी का रास्ता घर से मोड़कर सीधा एयरपोर्ट की ओर ले लिया।

    करीब आधे घंटे में वो एयरपोर्ट पहुंच गई। अंदर आते ही उसकी नज़र बार-बार अपनी वॉच पर जाती, फिर एयरपोर्ट के उस बड़ी सी स्क्रीन पर टिकती — जिस पर फ्लाइट्स की लैंडिंग और डिपार्चर की सारी डीटेल्स चल रही थीं।

    वो वहीं खड़ी कभी स्क्रीन को देखती, कभी अपने फोन की स्क्रीन को।

    ईरा थोड़ा चिढ़ते हुए खुद से बड़बड़ाई,

    "कमाल है यार, मैसेज ऐसे किया जैसे अभी एयरपोर्ट के बाहर खड़ी हो... और यहाँ तो अभी तक फ्लाइट की लैंडिंग भी नहीं हुई!"

    इतना बोलकर वो सीधा VIP एरिया की तरफ बढ़ गई और एक कोने में बैठकर मोबाइल पर काम करने लगी। उसकी उंगलियां स्क्रीन पर तेजी से चल रही थीं, लेकिन उसका ध्यान बार-बार घड़ी पर जा रहा था... फिर उस स्क्रीन पर, जहां हर सेकंड अपडेट हो रही फ्लाइट्स की डीटेल्स चल रही थीं।

    उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था कि वो बुरी तरह इरिटेट हो चुकी है।

    वो बस उठने ही वाली थी कि तभी स्पीकर से अनाउंसमेंट हुई । ईरा ने फौरन पीछे मुड़कर देखा। जहां गेट से लोग धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।

    उसकी नज़रें उन्हें गौर से देखने लगीं —जैसे किसी खास चेहरे को ढूंढ रही हो। और तभी... उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल गई।

    ----

    जॉन ने स्क्रीन की तरफ एक नज़र डाली। फिर कुछ सेकंड शांत रहा। फिर धीमी लेकिन कॉन्फिडेंट आवाज़ में — "लाओ... एक बार मुझे ट्राय करने दो।"

    वो उसकी सीट पर बैठ गया और कीबोर्ड पर तेज़ी से टाइप करने लगा। कमरे की नीली रौशनी स्क्रीन में घुलने लगी थी, माहौल एकदम सन्नाटे जैसा।

    तभी अचानक—

    "व्हाट द हेल!"

    जॉन ने चौंक कर कहा।

    "ओह शीट …" उसने टेबल पर जोर से हाथ मारते हुए कहा, "हमारा सिस्टम हैक हो गया ।"

    जैक ने स्क्रीन को घूरते हुए कहा,

    "जो भी कर रहा है… सामने वाला सच में काबिल-ए-तारीफ़ है, जॉन… है ना?"

    उसकी आवाज़ में थोड़ी हैरानी, थोड़ी हँसी थी, लेकिन जैन ने उस पर तिरछी, ठंडी नज़रें डालते हुए उसे तुरंत चुप करा दिया।

    जैक एक पल के लिए चुप हो गया, जैसे उस घूरती नज़र में छुपी चेतावनी को समझ गया हो।

    उसी वक़्त, कोने में बैठी उस लड़की की आवाज़ गूंजी — "यस ड्यूड इट्स डन!"

    उसकी आँखें स्क्रीन पर जमी थीं, और होठों पर एक टेढ़ी सी मुस्कान … जैसे उसने किसी दिवार को तोड़ दिया हो।

    वो दोनों तेजी से उस दिशा में बढ़े।

    जैक ने क्यूरोसिटी भरे लहजे में पूछा, "व्हाट्स द मैटर, एना?"

    एना ने बिना कुछ बोले स्क्रीन की तरफ इशारा किया — जहाँ कुछ लोड हो रहा था… एक ब्लैक स्क्रीन पर सफ़ेद लकीर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।

    कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी। सभी की नज़रें बस उसी स्क्रीन पर टिकी थीं।

    ...98%...99%...100%...

    लोडिंग खत्म हुई — और जो सामने आया, उसे देखकर सबके चेहरे का रंग उड़ गया।

    वहीं दूसरी तरफ…

    विधान पूरी रात से अपने लैपटॉप में डूबा हुआ था।

    उसकी शर्ट पर सिलवटें, बिखरे हुए बाल… और शायद इसी बिखरेपन में एक अजीब सी ख़ूबसूरती छुपी थी।

    उसकी चेयर थोड़ी सी पीछे झुकी हुई और होठों पर हल्की, मगर अजीब सी मुस्कान उभर आई। उसकी ग्रे आईज बिना पलक झपकाए स्क्रीन पर टिकी हुई थी। फिर अचानक, उसके चेहरे के भाव बदले। कुछ ऐसा देखा जो अनसुलझा था। लेकिन बस अगले ही पल…

    उसका शांत और हैंडसम चेहरा बेहिसाब गुस्से से भर गया। जबड़े भींच गए, मुट्ठियाँ कस गईं… और उसकी आंखों में एक कड़वी चिंगारी जल उठी। कुछ तो था जो उस स्क्रीन पर लिखा था — जो उसे पसंद नहीं आया। या शायद… जिसे देखना वो कभी नहीं चाहता था।

    विधान ने लैपटॉप बंद किया और शॉवर लेने चला गया।।कुछ देर बाद, वो एकदम फ्रेश और तैयार होकर बाहर आया — चारकोल ग्रे अरमानी सूट, परफेक्टली टेलरेड, जैसे उसकी पर्सनेलिटी को डिफाइन करता हो।

    नीचे जाकर वो सीधे लिविंग रूम के सोफे पर बैठ गया।उसी वक़्त, मेन गेट से जैन अंदर आया — हाथ में टैब और चेहरे पर परेशानी की हल्की लकीर लिए। तभी एक सर्वेंट ने चुपचाप स्टीम्ड ब्लैक काफी विधान को दी।

    विधान ने कॉफी का एक शिप लेते हुए। बिना जॉन की तरफ देखे पूछा,

    "क्या पता चला?"

    जॉन ने टैब उसकी तरफ बढ़ा दिया। विधान ने टैब पर एक नज़र डाली… और उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक दौड़ गई।

    एक हल्की, मगर खतरनाक मुस्कान उसके चेहरे पर फैल गई — ऐसी मुस्कान जो किसी प्लान के पूरी तरह सेट हो जाने के बाद आती थी।

    जॉन कुछ सेकंड तक उसे देखता रहा — और फिर जैसे कुछ समझ गया, उसके चेहरे पर भी एक हल्की सी स्माइल आ गई।

    विधान ने अपनी ठंडी, तेज़ आवाज़ में कहा,

    "और कुछ?"

    जॉन ने सिर हिलाते हुए कहा,

    "नहीं सर… लेकिन जल्द ही सब पता चल जाएगा।"

    विधान ने उसकी तरफ देखा और सख़्त आवाज में, "आई डोंट वांट ए डैम ट्राई, मिस्टर वाटसन …आई वांट ओनली रिजल्ट्स।"

    इतना कहकर वो उठ खड़ा हुआ, अपना ब्लेजर सीधा किया और तेज़ी से ऑफिस की लिए निकल गया।

    जॉन बस उसे जाते हुए देखता रहा… और उसके मन में एक ही ख्याल था —

    [FLASHBACK]

    लोडिंग खत्म हुई — और जो सामने आया, उसे देखकर सबके चेहरे का रंग उड़ गया। जैन और जैक ने कन्फ्यूजन से एक-दूसरे को देखा, जैसे दोनों के दिमाग में एक ही सवाल गूंज रहा हो —

    "इसका क्या मतलब हो सकता है?"

    उसी पल जैक बोल पड़ा,

    "गाइस… इस लेंटर और इस सिंबल का मतलब समझने की कोशिश करो। इट्स नोट रैंडम।"

    असल में, एना की स्क्रीन पर लोडिंग खत्म होने के बाद एक लैटर डिस्प्ले हुआ — एक ऐसा खत, जो स्पेनिश भाषा में लिखा हुआ था। शब्द स्पेनिश में जरूर थे , पर उनकी वाइब यूनिवर्सल थी — जैसे किसी ट्विस्टेड खेल की शुरुआत हो।

    (लैटर डिस्प्ले के अंदर)

    "Puedes buscarme en cada rincón de tu alma, pero solo me encontrarás cuando yo lo decida. No soy un secreto, soy la elección del silencio."

    "El que busca la verdad, corre el riesgo de encontrarla."

    ("तुम चाहे अपनी रूह के हर कोने में मुझे खोज लो, पर मैं तभी मिलूंगा जब मैं खुद चाहूं। मैं कोई रहस्य नहीं, बल्कि खामोशी की एक परत हूँ।"

    "जो सच की तलाश करता है, उसे उसको पाने का खतरा उठाना ही पड़ता है।" (यह स्पेनिश की एक प्रसिद्ध कहावत है।)

    और उस लैटर के ठीक नीचे एक सिंबल था जो स्क्रीन पर उभरा। वो एक उलटी आंख थी। पुतली के ठीक बीच में एक उल्टा क्रॉस, और आंख के नीचे एक बूंद…आंख के चारों ओर एक गोल घेरे में (pseudo-script): अजीब सी लिपि लिखी हुई थी। ये लिपि असल में पढ़ी नहीं जा सकती थी लेकिन ध्यान से देखने पर वहां कुछ शब्द जरूर देख रहे थे। फिर अचानक… स्क्रीन पर ये शब्द जलते हुए आने लगे।

    जॉन – व्हाट.... द हेल वास दैट?”

    एना – (धीरे से) “यह सिर्फ एक खत नहीं ...”

    सिंबल ब्लरी था, क्लैरिटी नहीं थी, लेकिन एना, जॉन और जैक — तीनों जैसे फ्रिज हो गए उसे देखकर।

    उनकी आँखों में एक साथ शौक और जाने पहचाने भाव थे —

    जैसे वो सिंबल कोई आम निशान नहीं … बल्कि किसी पुरानी, दबाई हुई सच्चाई की पहचान थी।

    जॉन कुछ बोलने ही वाला था कि...फिर अचानक....

    (क्रमशः)

    क्या लैटर का सच सामने आएगा या एक और राज़ सामने दरवाज़ा खोल देगा? जानने के लिए मिलते हैं अगले चैप्टर में… तब तक जुड़े रहिए, क्योंकि असली खेल तो अब शुरू होगा! 🔥

    हेलो रीडर्स! एक छोटा-सा कन्फ्यूजन है — क्या आप लोगों को भी चैप्टर में कुछ लाइनें बार-बार रिपीट होती दिख रही हैं?अगर हाँ, तो प्लीज़ कॉमेंट में बताइएगा... क्योंकि मेरे पास तो हो रही हैं या फिर ये सिर्फ मेरा फोन ही लूप में फँस गया है? 🙄🙄 बताना ज़रूर!

  • 9. Chapter 9

    Words: 1541

    Estimated Reading Time: 10 min

    precap:

    जॉन – व्हाट.... द हेल वास दैट?”

    एना – (धीरे से) “यह सिर्फ एक खत नहीं ...”

    सिंबल ब्लरी था, क्लैरिटी नहीं थी, लेकिन एना, जॉन और जैक — तीनों जैसे फ्रिज हो गए उसे देखकर।

    उनकी आँखों में एक साथ शौक और जाने पहचाने भाव थे ।

    जैसे वो सिंबल कोई आम निशान नहीं … बल्कि किसी पुरानी, दबाई हुई सच्चाई की पहचान थी।

    जॉन कुछ बोलने ही वाला था कि...फिर अचानक....

    अब आगे :

    एना की स्क्रीन ग्लिच करने लगी — सारे सिस्टम ने अजीब सी बीपिंग शुरू कर दी और स्क्रीन पर एक के बाद एक कोड्स फ्लैश होने लगे।

    जॉन गुस्से से चीख पड़ा,

    "व्हाट द रबिश थिंग इस दिस!"

    लेकिन सबको हैरानी तब हुई… जब एना इन सब को देखकर…मुस्कुरा दी।

    उसके होंठों पर एक हल्की, खतरनाक सी स्माइल थी —जैसे उसे ये सब पहले से पता था… या शायद, वो इसी का इंतज़ार कर रही थी।

    जॉन की आँखों में गुस्सा अब बेचैनी में बदल गया।

    "एना,व्हाट द हेल इस गोइंग ऑन?" — उसने लगभग चिल्लाते हुए पूछा।

    लेकिन एना ने कोई जवाब नहीं दिया। वो बस उसी सिंबल को घूरती रही… जैसे उस सिंबल में कुछ छुपा हो।तभी एक पल के लिए कमरे में खामोशी छा जाती है।

    एना ने जॉन की तरफ देखा और शांति लेकिन कॉन्फिडेंट टोन में कहा,

    "आई थिंक … ये बात आपको प्रेसिडेंट को बतानी चाहिए, मिस्टर वॉटसन।"

    फिर उसने जैक की तरफ नज़र घुमाई —

    "राइट, जैक?"

    जैक ने हल्के से सिर हिलाया,

    "Yeah, शी इस राइट…"

    जिन ने कुछ सेकंड तक दोनों को देखा और वो बिना कुछ कहे मुड़ा और तेज़ कदमों से मेंशन की तरफ निकल गया।

    ---

    [FLASHBACK ENDS]

    एक तेज़ रिंग की आवाज़ ने जॉन की सोच को तोड़ा। उसने जेब से फोन निकाला और कुछ ही सेकंड किसी से बात की। फोन कटते ही… उसके चेहरे पर एक सैर्कास्टिक स्माइल फैल गई। जैसे किसी सवाल का जवाब मिल चुका हो… या शायद कोई नया सवाल। वो गहरी सांस लेकर सीधा उठा — और बिना किसी देरी के ऑफिस की लिए निकल गया।

    ----

    वो बस उठने ही वाली थी कि तभी स्पीकर से अनाउंसमेंट हुई । ईरा ने फौरन पीछे मुड़कर देखा। जहां गेट से लोग धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।

    उसकी नज़रें उन्हें गौर से देखने लगीं —जैसे किसी खास चेहरे को ढूंढ रही हो। और तभी... उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल गई।

    कैजुअल लुक में, ऊपर क्रॉप टॉप और नीचे हाई-वेस्ट डेनिम जींस। बाल हाफ पोनीटेल में बंधे थे, बाकी खुले हुए... जो चलते-चलते उसके चेहरे पर बड़ी खूबसूरती से बिखर रहे थे।

    ब्राउन आईज़, फेयर स्किन, स्लिम फिगर और चेरी-पिंक लिप्स — जैसे किसी डॉल जैसा फेस। एक हाथ में ब्राउन लॉन्ग कोट था और दूसरे में ट्रॉली बैग जिसे वो बड़ी स्टाइल में खींचती चली आ रही थी।

    ईरा की निगाहें उसी पर टिकी थीं… और उसकी मुस्कान धीरे-धीरे और बड़ी होती जा रही थी।जैसे ही वो लड़की पास आई, उसने बिना कुछ बोले झट से ईरा को कस के हग कर लिया। दोनों इतनी देर तक एक-दूसरे से लिपटी रहीं कि एक पल को ईरा का बैलेंस भी बिगड़ने लगा।

    वो लड़की थी — मायरा बत्रा, ईरा की सबसे क्लोज़ और साथ ही बेस्ट फ्रेंड। दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते है।

    "ओए संभल के!" ईरा हँसते हुए बोली, "गिरा ही देगी मुझे, मायरु!"

    मायरा उसकी बाहों में ही चहकते हुए बोली, "तो क्या हुआ मेरी जान, मैं भी तेरे साथ गिर जाऊंगी।"

    ईरा ने आंखें तरेरीं, "मतलब गिरना ज़रूरी है क्या?"

    मायरा ने ईरा के गाल पर एक प्यारी-सी किस रखते हुए कहा, "हां जी, बिल्कुल!"

    एक सेकंड दोनों की नजरें मिलीं... और फिर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं।

    अगले ही पल मायरा ने झट से ईरा के हाथ में अपना बैग थमाया और बोली, "चल यार, बहुत लेट हो गया है!"

    ईरा कुछ कहने ही वाली थी कि मायरा पहले ही आगे निकल चुकी थी।ईरा ने पीछे से सिर हिलाया और हल्की सी मुस्कान के साथ खुद से बोली,

    "कुछ नहीं हो सकता इस लड़की का… कोई देखे तो माने ही नहीं कि ये वर्ल्ड की बेस्ट सर्जन है!"

    जैसे ही वो एयरपोर्ट से बाहर आई, उसने देखा — मायरा बाहर खड़ी चारों तरफ नज़रें घुमा रही थी। मैडम गाड़ी ढूंढने में पूरी तरह बिज़ी थीं।

    ईरा हँसते हुए ज़ोर से चिल्लाई, "मायरु! इधर... ये रही गाड़ी!"

    मायरा ने एकदम से घूम कर देखा, और फिर दोनों पार्किंग की ओर बढ़ गईं। ईरा ने उसका सामान डिग्गी में रखा और फिर दोनों कार में बैठकर घर की ओर निकल पड़ीं।

    जैसे ही मायरा कार में बैठी, उसने फुल एक्साइटमेंट के साथ कहा,

    "मेरी जान! मेरे को तुझसे ढेर सारी बातें करनी हैं... इतना कुछ शेयर करना है!"

    ईरा मुस्कराई और गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोली,

    "ओके मिस मायरा... पहले घर चलते हैं, फिर बातें करेंगे, hmm?"

    मायरा ने थोड़ा मुँह बनाते हुए कहा,

    "यार तू बहुत बोरिंग हो गई है!"

    ईरा हँसते हुए बोली,

    "थैंक्यू!"

    इतना कहकर ईरा ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और सामने के रास्ते पर फोकस कर लिया — लेकिन चेहरे पर वो मुस्कान अब भी थी, जो सिर्फ मायरा के लिए थी।मायरा चुपचाप खिड़की की तरफ देखने लगी। बाहर रात के 11 बज चुके थे। मौसम में हल्की ठंडक घुली हुई थी, सड़कें लगभग खाली थीं, और रेडियो पर कोई पुराना सा रोमांटिक गाना धीमे सुरों में बज रहा था।

    वो पल… जैसे ठंडी हवा के साथ बहता जा रहा था — शांत, धीमा, और सुकून से भरा। थोड़ी ही देर में ईरा और मायरा घर पहुंच गए। जैसे ही दरवाज़ा खुला, मायरा पूरे जोश के साथ अंदर दाखिल हुई — चेहरे पर वही एक्साइटमेंट, वही एनर्जी। लेकिन ड्रॉइंग रूम में घुसते ही उसके कदम जैसे रुक गए। पूरे हॉल में एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी।

    मायरा का चेहरा उतर गया। उसने इधर-उधर देखा और थोड़े हैरान अंदाज़ में बोली,

    "Seriously? कोई नहीं है? Welcome back तो छोड़ो, एक आवाज़ भी नहीं?"

    ईरा ने हँसते हुए अपने हाउसहेल्पर की तरफ देखा और कहा,

    "ये सारा सामान मेरे रूम के बगल वाले कमरे में रखवा दो।"

    फिर मायरा की तरफ मुड़ते हुए बोली,

    "मैडम, ज़रा घड़ी देखो — रात के 12 बज चुके हैं। अब तू चाहती है कि यहां तेरे लिए कोई बैंड-बाजा लेकर खड़ा हो?"

    मायरा ने हल्का सा मुंह फुला लिया।

    ईरा हँसते हुए बोली,

    "सीरियसली, अब टाइम बहुत हो गया है। चल, सो जा। बाकी ड्रामा सुबह करना, ओके?"

    मायरा ने आँखें तरेरते हुए कहा,

    "ओ हेलो! आज मैं तेरे पास ही सोऊंगी, क्लियर?"

    ईरा ने बिना किसी एक्सप्रेशन के सख्त लहज़े में जवाब दिया, "नहीं।"

    मायरा ने तुरंत ड्रामा मोड ऑन किया और एक्स्ट्रा फीलिंग्स के साथ बोली,

    "आई नो, बेब … यू अरे सो अनरोमांटिक ! बट नो वरी… आई कैन हैंडल यू मेरी जान!"

    इतना कहते हुए उसने स्टाइलिश मूव में बालों को झटका दिया और बिना ईरा की सुने सीधे उसके रूम की तरफ चल दी।

    ईरा ने सिर पकड़ते हुए गहरी सांस ली और बड़बड़ाई,

    "हे भगवान…"

    वो भी उसके पीछे-पीछे चल दी। रूम में पहुंचते ही सीन देख ईरा के होश उड़ गए — मायरा पूरे बेड पर फैल कर ऐसे लेटी थी जैसे यह रूम उसी की हो!

    ईरा ने उसके माथे पर हल्की सी चपत मारी, "फ्रेश हो कर आ पहले, मैडम!"

    मायरा ने मुंह बनाते हुए कहा, "बोल कर भी कह सकती थी, हाथ उठाने की क्या ज़रूरत थी!"

    इतना कहते हुए वो बाथरूम की तरफ चली गई। उधर ईरा भी दूसरे रूम में गई, जल्दी से बाथ लेकर वापस अपने कमरे में लौट आई। जब वो लौटी, मायरा फ्रेश होकर बेड पर बैठी थी, अब थोड़ी शांत।

    ईरा ने पूछा,

    "कुछ खाएगी?"

    मायरा ने हल्के से सिर हिलाकर मना किया,

    "नहीं यार… मूड नहीं है।"

    अब दोनों बेड पर लेटी थीं। एक लंबा दिन बीत चुका था, और कमरे में एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी।

    दोनों अपनी-अपनी सोचों में कहीं खोई हुई थीं — पास होकर भी जैसे दूर। कुछ देर बाद ईरा चुपचाप उठी और साइड टेबल से स्लीपिंग पिल्स निकाल ली।

    मायरा ने उसका हाथ पकड़ लिया। आवाज़ अब हल्की सीरियस हो गई थी, "तू अभी भी स्लीपिंग पिल्स लेती है, अरु?"

    ईरा ने बिना उसकी तरफ देखे, करवट बदलते हुए बस इतना कहा, "हाँ... और फिर गोद सेक मायरु, अब सोने दे। खुद भी सो जा।"

    मायरा ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,

    "ओके मेरी जान..."

    कुछ ही पलों में दोनों को नींद आ गई।

    (जारी )

    ******

    आगे जानने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में .....🙏🏻🙏🏻

    Dear Silent Readers...

    Na rating dete ho, na comment karte ho... Bas chupke se padho, scroll karo aur nikal jao... 😶‍🌫️Yaar thoda toh insaaniyat dikha do.Writer bhi insaan hota hai... दिल होता है उसका भी। 💔 Ek chhota sa “Nice”, “Loved it”, ya sirf ek ❤️ daalna duniya ka time nahi लेता। Par writer ke liye वो ek word sirf word nhi hota। Pata hai? Raaton ki नींद, dimag ke fuse, aur emotions ka rollercoaster — sab jhonk dete hain hum ek kahaani ke liye। Aur app log? Bas silent read karke... vanish. Seriously? 😭 Soch lo... Universe sab dekh raha है... 🌌 Karma likhne waalon ka होता है, lekin silent readers pe bhi lagta है kabhi-kभी 😏 Toh abhi भी वक्त है...

    Ek comment karke writer ka दिल राजी कर दो यार... नहीं तो पाप लगेगा, आप सबको देख लो अब!😒

  • 10. Chapter 10

    Words: 1582

    Estimated Reading Time: 10 min

    Precap :

    ईरा ने बिना उसकी तरफ देखे, करवट बदलते हुए बस इतना कहा, "हाँ... और फॉर गॉड सेक मायरु, अब सोने दे। खुद भी सो जा।"

    मायरा ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,

    "ओके मेरी जान..."

    कुछ ही पलों में दोनों को नींद आ गई।

    अब आगे :

    अगली सुबह, किसी के लिए नई शुरुआत लेकर आई…

    और किसी के लिए पुराने डर और भी गहरे कर गई।

    ईरा हमेशा की तरह अपने डेली रूटीन में एकदम टाइम पर उठ गई — वर्कआउट किया, शॉवर लिया और अब ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर तैयार हो रही थी। वो आज भी उतनी ही खूबसूरत लग रही थी — क्लासी, एलिगेंट और एकदम पर्फेक्ट।

    वहीं दूसरी तरफ मायरा, अभी तक अपने आरामदायक बिस्तर पर फैली हुई थी। बाल बिखरे हुए, आंखें आधी खुली, और एक कॉफी तक के मूड में नहीं। वो बस ईरा को चुपचाप देखे जा रही थी।

    ईरा ने आइने में खुद को आखिरी बार चेक किया और बिना उसकी तरफ देखे कहा,

    "अगर तेरा मुझे निहारना पूरा हो गया हो… तो ज़रा खुद को भी देख ले।"

    फिर घूमते हुए मायरा की तरफ देखा और बोली,

    "क्या हाल बना रखा है यार... जैसे किसी जंग से लौट कर आई हो!"

    मायरा ने ईरा की बात को पूरी तरह इग्नोर कर दिया — वैसे ही जैसे हम क्लास में टीचर का लेक्चर इग्नोर करते हैं। फिर प्यार से उसे घूरते हुए बोली,

    "वैसे सोचने वाली बात है… जब मैं एक लड़की होकर तेरे लुक्स पे फिदा हूँ…तो सोच लड़कों का क्या हाल होता होगा!"

    ईरा ने आईज़ रोल करते हुए जवाब दिया,

    "व्हाटवर… !"

    मायरा ने उसका चेहरा थोड़ा गौर से देखा, फिर अचानक से अजीब सा मुंह बनाते हुए उठ खड़ी हुई,

    "एक्सक्यूज़ मि! मैं नहा के आती हूँ… तेरे इस ब्यूटी प्रेशर से निकलने के लिए!"

    ईरा हँसते हुए अपने पर्स की तरफ बढ़ी,

    "गुड लुक !"

    कुछ मिनट बाद, ईरा नीचे डाइनिंग टेबल पर आई, जहाँ पहले से ही दादी और मिस्टर मल्होत्रा बैठे हुए थे।

    दादी ने हल्की सी नाराज़गी के साथ कहा,

    "अरु, ये क्या बात है? मायरा आ रही थी और तूने हमें बताया भी नहीं?"

    ईरा कुछ कहने ही वाली थी कि तभी पीछे से सीढ़ियों पर से आवाज़ आई।

    "दादी, आपकी अरु तो दिन पर दिन और बेकार होती जा रही है... सीरियसली!"

    मायरा नीचे उतरते हुए बोली।

    वो आते ही दादी के पास वाली चेयर पर बैठ गई और चहकते हुए बोली,

    "नमस्ते मेरी कूलू दादी!"

    फिर उसने मिस्टर मल्होत्रा की तरफ देखा और जल्दी से बोली,

    "नमस्ते अंक..."

    फिर अचानक रुक गई, जैसे खुद को पकड़ लिया हो,

    "Umm... सॉरी… पापा!"

    मिस्टर मल्होत्रा हल्के से मुस्करा दिए।

    "तो, कैसा रहा तुम्हारा वो केस?"

    मायरा ने फट से जवाब दिया,

    "पापा, ऐसा कोई काम हो ही नहीं सकता जो मैं ना कर पाऊं!"

    दादी ने मायरा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा,

    " बिल्कुल। अरे भई… हमारे घर की रौनक आ गई। और बात रही अरु की तो कोई बात नहीं बेटा, तू है न, तू ही इसे सुधार दियो!"

    मायरा ने ईरा की तरफ देखा और आंखें मटकाईं। ईरा ने उसे घूर कर देखा ।

    मायरा फिर से ड्रामा करते हुए,

    "दादी! ये मुझे आंख दिखा रही है और धमकी भी दे रही है!"

    ईरा झल्ला कर बोली,

    "ओह झूठी! चुप कर, ड्रामा क्वीन कहीं की!"

    दादी ने हँसते हुए दोनों को देखा और बोलीं,

    "तुम दोनों बिल्कुल बच्चों जैसी लड़ती हो अब भी!"

    माहौल में हल्की हँसी और सुकून की गर्माहट फैल गई। कुछ पल ऐसे होते हैं जो सब कुछ नॉर्मल दिखाते हैं… लेकिन किसी के अंदर क्या तूफान चल रहा होता है — वो सिर्फ वही जानता है।

    कुछ ही देर में सुबह का नाश्ता आया। सबने बड़े आराम से नाश्ता किया… सिवाय मायरा के — जो हर बाइट के साथ कुछ ना कुछ ड्रामा करती जा रही थी। नाश्ता खत्म हुआ और सब लोग हॉल में आकर बैठ गए। मिस्टर मल्होत्रा ऑफिस के लिए निकल गए। ईरा भी उठने ही वाली थी कि दादी ने उसे रोक दिया।

    दादी:

    "अरु, तू ज़रा रुक जा। मायरा को शॉपिंग के लिए ले जा आज।"

    ईरा ने जैसे ही अपना बैग उठाया, तुरंत पलट कर बोली —

    "पक्का दादी, मैं बाद में ले जाऊंगी न मायरा को। अभी तो प्लीज़ ऑफिस जाने दीजिए।"

    मायरा बीच में कूद पड़ी —

    "दादी! ये झूठ बोल रही है। देखो ना, बहाना बना रही है!"

    ईरा ने उसे घूरते हुए कहा —

    "तू चुप रह मायरु, वरना—"

    दादी ने ईरा की आंखें देखकर तुरंत टोका —

    "हाँ हाँ, वरना क्या? हम्म? मुझे भी बता दे ज़रा! और तू अरु, ज़्यादा आंखें मत दिखा मेरी बच्ची को!"

    ईरा ने हार मानते हुए कहा —

    "तो आप क्या चाहती हैं दादी? मैं मैडम जी को लेकर पूरा दिन घूमा करूँ? मुझे भी कुछ काम होता है!"

    दादी ने प्यार से हँसते हुए कहा —

    "तेरा काम तो चलता रहेगा, लेकिन ये टाइम बाद आई है... थोड़ा टाइम तो दे दे इसे!"

    मायरा तुरंत दादी से चिपक गई —

    "दादी, आप ही तो हो जो मेरी साइड लेती हो!"

    ईरा ने आंखें मूंदी, खुद को कंट्रोल किया और गहरी सांस लेते हुए कहा —

    "ठीक है… शाम को चलेंगे। हैप्पी नाउ?"

    मायरा ने ड्रामा जारी रखते हुए मायूस मुस्कान दी —

    "नहीं!"

    दादी थोड़ा चिढ़ते हुए बोलीं —

    "अगर आज छुट्टी ले लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा तेरा, अरु?

    ईरा ( फ्रस्ट्रेटिड टोन में):

    "सीरियसली दादी?!"

    (फिर थोड़ी देर चुप रही, और मायरा के पास जाकर थोड़ा ड्रामेटिक टोन में ) —

    "ओह मेरी मां... चल अब, वरना क्या पता फिर से कोई नया ड्रामा शुरू हो जाए !"

    मायरा (दादी की तरफ देखते हुए):

    "दादी देखो न, कैसे बोल रही है मुझसे!"

    ईरा (आंखें छोटी करते हुए वार्निंग टोन में):

    "मायरा..."

    दादी (बीच में टोकते हुए सख्ती के साथ):

    "बस! बात फाइनल है, तू मायरा को शॉपिंग करवाने लेकर जाएगी।"

    ईरा (थोड़ा झुंझलाकर):

    "मैंने कब मना किया? मैं तो वैसे भी बाहर जा रही थी… अब इसे भी साथ भेज दो, इस नौटंकी को।"

    इतना कहकर ईरा बाहर निकल गई।

    मायरा ने पीछे से दादी को प्यारी सी मुस्कान दी और जल्दी से ईरा के पीछे चल पड़ी।

    (कुछ देर बाद — कार में)

    ईरा कार ड्राइव कर रही थी। कुछ मिनट बाद उसने अचानक एक तेज़ टर्न लिया।

    मायरा (हैरानी से).....

    ओह हेलो शॉपिंग मॉल जाना है न? वो बोरिंग वाला मॉल नहीं?"

    ईरा (हल्की स्माइल के साथ, नजरें सड़क पर टिकाए):

    "नोट दैट मॉल, मैडम... पहले तेरे उस बोरिंग मॉल में जाएंगे, फिर जहां तू कहे।

    एंड दैटस फाइनल।"

    मायरा (गुस्से में):

    "क्यों बता रही है मुझे? करने तो तुझे आखिर अपने मन की है!"

    ईरा: ( परेशान करते हुए )

    "थैंक यू!"

    (थोड़ी देर बाद)

    गाड़ी मल्होत्रा एंटरप्राइज़ के सामने रुकी।

    मायरा चुपचाप बैठी रही।

    उसे अच्छे से पता था — इस ‘हिटलर’ वाली ईरा से बहस करना मतलब बस टाइम वेस्ट करना।

    ईरा बिना कुछ बोले सीधे अपने ऑफिस की तरफ चली गई, और मायरा मुँह लटकाए, बोरियत के आलम में, उसके पीछे-पीछे चल पड़ी।

    अब दोनों ईरा के कैबिन में थे।

    ईरा लैपटॉप खोलकर अपने काम में लगी थी, जबकि मायरा आस-पास के सामान से खेलती, बोर होती, और पता नहीं क्या-क्या कर रही थी।

    तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ।

    ईरा ने लैपटॉप में देखते हुए , "अंदर आ जाओ।"

    सृष्टि अंदर आई —

    "मैम, आज का प्रजेंटेशन—"

    (जैसे ही अंदर कदम रखा, उसकी नजर केबिन के हालात पर पड़ी)

    सृष्टि (जैसे किसी भूकंप के बाद मंजर देख रही हो) —

    केबिन में रैपर, चिप्स के खाली पैकेट्स, आधा खाया पिज़्ज़ा और टिशूज़ बिखरे पड़े थे।

    ईरा, जो अब तक शांत थी, सृष्टि की आँखों की तरफ देखकर खुद भी चारों तरफ देखने लगी।

    फिर एक ठंडी सांस लेकर बोली:

    "तुम जाओ, सृष्टि। मैं प्रेजेंटेशन देख लूंगी।"

    सृष्टि (मुश्किल से हँसी रोकते हुए):

    "ओके मैम…"

    और वो चुपचाप निकल गई।

    ईरा (कमर पर हाथ रखकर मायरा की तरफ बढ़ती हुई):

    "मायरा, ये सब क्या है?

    मायरा (हैरानी और मासूमियत में):

    "रैपर्स…?"

    ईरा:

    "यार मायू! तूने मेरा ऑफिस का कैबिन नहीं, प्ले ज़ोन बना दिया है।"

    मायरा (थोड़ा ड्रामा करते हुए):

    "एक्सक्यूज मि! तू भी तो था इसमें। आधे स्नैक्स तो तूने ही खाए हैं!"

    ईरा ( बेफिक्र लहजे में ):

    "हाँ, पर mess ज़्यादा तूने किया है।"

    मायरा (हँसते हुए):

    "चिल यार! मेरे पास सॉल्यूशन है — अभी किसी को बुला के साफ करवा देती हूँ।"

    ईरा (सख्त लहजे में):

    "नहीं! अब किसी को मत बुलाना। सोचो, लोग क्या कहेंगे — एक बच्चा भी हमसे बैटर खाता है, और हमने ये क्या तमाशा कर दिया?"

    मायरा (ज़ोर से हँसते हुए):

    "एग्जेक्टली दो बॉस लेवल औरतें, और एक कैबिन — एंड रिजल्ट टोटल डिजास्टर!"

    ईरा (मुस्कुराते हुए):

    "चल, अब साफ कर!"

    मायरा ने पिज़्ज़ा की तरफ प्यार से देखा और बोली —

    "उफ्फ़... मेरी जान! फाइन… लेकिन ये पिज़्ज़ा तो बचा है न?"

    वो जैसे ही पिज़्ज़ा उठाने लगी, ईरा ने झट से हाथ मारकर उसे खुद उठा लिया।

    ईरा (थोड़ा तंज भरे मज़ाक में):

    "नहीं, पहले सफाई… फिर जो खाना है, खा लेना!"

    मायरा ने बस मुंह बनाया और बोली —

    "हद है यार...मुझे शक है तू मेरी दोस्त है भी या कोई फिटनेस फ्रीक जेलर..."

    फिर थोड़ा एक्टिंग में बोली —

    "इतनी सफाई करवाएगी तो मेरी आत्मा भी पूछेगी— 'बेटी, तू वाकई ज़िंदा तो है न ?'"

    ईरा रैपर्स उठते हुए ओय ड्रामा मत कर, चुपचाप काम कर मेरे साथ।”

    मायरा मज़ाक में:

    “यार, क्या दिन आ गए, मिस ईरांशी मल्होत्रा कचरा उठा रही है।”

    ईरा हँसते हुए:

    “रुक जा, बच्चू, तुझे मैं बताती हूँ।”

    फिर दोनों हँसते हुए एक-दूसरे के पीछे दौड़ने लगे।

    (जारी)

  • 11. Chapter 11

    Words: 1631

    Estimated Reading Time: 10 min

    precap :

    ईरा रैपर्स उठते हुए ओय ड्रामा मत कर, चुपचाप काम कर मेरे साथ।”

    मायरा मज़ाक में:

    “यार, क्या दिन आ गए, मिस ईरांशी मल्होत्रा कचरा उठा रही है।”

    ईरा हँसते हुए:

    “रुक जा, बच्चू, तुझे मैं बताती हूँ।”

    फिर दोनों हँसते हुए एक-दूसरे के पीछे दौड़ने लगे।

    अब आगे :

    (केबिन की सफाई के बाद)

    दोनों ने मिलकर जैसे-तैसे पूरा कैबिन चमका दिया। अब दोनों सोफे पर बुरी तरह थक कर धप्प से बैठ गईं। हँसी अभी भी थमी नहीं थी, लेकिन तभी...

    ईरा की नज़र डेस्क पर रखे उसके फोन पर पड़ी — स्क्रीन पर एक अननोन नंबर से मिस्ड कॉल आई।

    वो थोड़ी देर तक देखती रही। आँखें थोड़ी सिकुड़ गईं।

    मायरा: "क्या हुआ? किसका था?"

    ईरा (संभलती हुई): "कुछ नहीं… शायद गलत नंबर होगा।"

    लेकिन वो जानती थी — ये वही नंबर है… जो तीन साल से डिलीट हो चुका था, फिर भी याद रह गया था।

    तभी मायरा (साँस छोड़ते हुए):

    "हाय! कितना मेहनत वाला काम है ये…यार एकदम पुराने हॉस्टल वाले दिन याद आ गए मेरी जान।"

    ईरा (थकी हँसी के साथ):

    "सच में… वो कमरा, तू, और तेरा फैला हुआ सामान… और हमेशा मुझे ही क्लीनिंग करनी पड़ती थी।"

    मायरा (शरारती अंदाज़ में):

    "Excuse me! उस वक्त भी टीमवर्क था और आज भी है — फिफ्टी फिफ्टी!"

    ईरा (तंज कसते हुए):

    "हाँ-हाँ… तेरे फिफ्टी का मतलब सेवंती फाइव होता है।"

    (दोनों हँसने लगती हैं)

    मायरा (सीरियस होते हुए उठती है):

    "चल अब उठ, मैडम सारे काम खत्म कर ले, फिर मुझे शॉपिंग भी करनी है!"

    ईरा:

    "हाँ भई, कर रही हूँ… पेशेंस प्लीज़!"

    इतना कहकर ईरा वापस अपने लैपटॉप में डूब गई।

    और हमारी मैडम मायरा? वो पूरे ऑफिस को जैसे मिनी टूर पर ले गई — कभी पैंट्री, कभी कॉन्फ्रेंस रूम, कभी स्टाफ से हाय-हैलो… और बीच-बीच में सबको इंट्रोड्यूस भी करवा रही थी —

    "हाय आई एम मायरा बत्रा — वर्ल्ड क्लास सर्जन, एंड करेंटली अनएम्प्लॉयड

    स्टाफ हँसते हुए ईरा को देखते हुए:

    "मैम, आपकी दोस्त तो आपसे भी ज्यादा इंटरेस्टिंग निकली!" ईरा बस सिर पकड़कर रह जाती है।

    शाम करीब 5 बजे,

    ईरा ने आखिरी फाइल बंद करते हुए अंगड़ाई ली और बोली — डन अब फाइनली, काम कंप्लीट हुआ।

    मायरा (उछलते हुए): "येय! चलो जल्दी, वरना मेरीफैशन स्पिरिट एक्सपायर हो जाएगी!"

    ईरा: "तेरा ड्रामा आज भी कम नहीं हुआ…"

    मायरा: "और तेरा एटिट्यूड तो आज भी वही पुराना है!"

    ईरा उसकी बात का कोई जवाब दिए बिना सीधा केबिन से निकलकर पार्किंग की तरफ बढ़ गई। मायरा भी चुपचाप उसके पीछे चल दी और दोनों कार में बैठ गए।

    करीब डेढ़ घंटे बाद गाड़ी एक भव्य मॉल के सामने आकर रुकी — “The Grand Arcadia”, मुंबई का सबसे बड़ा और स्टनिंग मॉल। मॉल की भव्यता और रौनक देखने लायक थी। जब दोनों अंदर गए और लिफ्ट के पास पहुंचे , तभी लिफ्ट के शीशे में ईरा खुद को देखती है, लेकिन...पीछे की परछाई कोई और होती है। वो मुड़ती है — कोई नहीं।

    Yaar, इन लाइट्स की reflection भी डरा देती है कभी-कभी," मायरा ने हँसते हुए कहा,

    और फिर उसकी तरफ़ मुड़ गई और ईरा चुपचाप उसे देखती है। उसकी मुस्कान फीकी हो गई है।

    ऊपर फ्लोर पर पहुँचते ही दोनों ने जम कर शॉपिंग की।जूतों से लेकर जैकेट्स, ड्रेसेज़ से लेकर डिज़ाइनर पर्फ्यूम्स तक — जो पसंद आया, वो टोकरी में चला गया।

    एक घंटा कब निकल गया, पता ही नहीं चला।

    फाइनली, दोनों की शॉपिंग खत्म हो गई थी।काफी देर मॉल में घूमने और शॉपिंग के बाद दोनों थक चुकी थीं।

    मायरा ने हँसते हुए कहा,

    “आज तो सारा बजट उड़ गया!”

    ईरा हल्का सा मुस्कराई,लेकिन वो थोड़ी खोई-सी लग रही थी।उसे फिर वही अजीब-सा एहसास हुआ… जैसे कोई देख रहा हो।उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा — मॉल के एक कोने की ओर… पर वहां कोई नहीं था।

    “शायद मेरा वहम होगा,” उसने मन में सोचा।

    फिर भी, मन के किसी कोने में हलचल सी थी।

    तभी मायरा की आवाज़ आई,

    “चलें?”

    ईरा ने हल्के से सिर हिला दिया।और फिर दोनों गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गईं…

    जैसे ही ईरा और मायरा की गाड़ी पार्किंग से निकली —

    मॉल के गेट के ठीक पीछे खड़ा एक साया अपनी जगह से हिला।पूरे शरीर को काले ओवरकोट और हुडी से कवर किए हुए,चेहरा पूरी तरह अंधेरे में छिपा हुआ —

    वही परछाई... जो ईरा ने लिफ्ट के शीशे में देखी थी।

    धीरे से उसने एक गाड़ी का दरवाज़ा खोला,

    अंदर बैठा —और अगले ही पल, वो गाड़ी सिटी की भीड़ में कहीं गुम हो गई।उसके जाने से पहले, एक आखिरी चीज़ दिखी —उसके हाथ में एक चमकता हुआ मैटेलिक ऑब्जेक्ट था… शायद कोई पेंडेंट … या कोई चाबी …

    जो सिर्फ एक पल को रौशनी में चमका — और फिर अंधेरे में गुम हो गया।

    और यही दूसरी तरफ इस बार गाड़ी मायरा जी चला रही थी। रास्ते में ईरा और मायरा मस्ती में बातें कर रही थीं, और बीच-बीच में गाने भी गा रही थीं। माहौल एकदम फुल ऑन चिल और मस्ती वाला था।

    तभी अचानक…

    धड़ाम!!

    एक गाड़ी सीधा आकर उनकी कार से टकरा गई।

    मायरा (ब्रेक मारते हुए, शॉक में):

    "ओह मै गॉड!"

    ईरा (घूरते हुए, चिढ़कर):

    "ओ ड्राइव मैडम, गाड़ी चलानी है… स्टंट नहीं मारना?"

    मायरा (हड़बड़ाकर):

    "हेययय! मैं सही चला रही थी ओके ? सामने वाले की गलती है!"

    वो खिड़की से बाहर देखती है, फिर झल्लाकर हॉर्न दबाती है और हाथ से इशारा करती है —

    "ओय मिस्टर, अपनी गाड़ी पीछे करो ज़रा!"

    पर सामने बैठा बंदा…

    जैसे मूर्ति हो — ना कोई मूवमेंट, ना कोई रिएक्शन।

    ईरा (भौंहें सिकोड़ते हुए, धीरे से बड़बड़ाई):

    "कितना अजीब इंसान है यार… इतने हॉर्न दिए, फिर भी कोई रिस्पॉन्स नहीं !"

    मायरा ने एक नजर ईरा की तरफ डाली और तुरंत बोली:

    "यार प्लीज, तू ही देख ले… मैं नहीं जा रही उससे बहस करने!"

    ईरा वैसे भी पहले से इरिटेट थी —

    ऊपर से सामने वाला रोड ब्लॉक किए बैठा था, और पीछे से हॉर्न ऐसे बज रहे थे जैसे कोई पागल ट्रैफिक में फँस गया हो।

    उसने झट से सीट बेल्ट खोली और बिना एक सेकंड सोचे गाड़ी से बाहर निकल गई।

    मायरा (धीरे से, खिड़की से झांकते हुए):

    "ये यहां… कोई सीरियल वाला ट्विस्ट चल रहा है क्या?"

    ईरा तेज़ कदमों से सामने वाली कार की तरफ बढ़ी —

    और तभी…

    उस गाड़ी का दरवाज़ा खुला।

    तभी अचानक…

    और जो शख्स बाहर निकला, वो किसी आम इंसान जैसा तो बिल्कुल नहीं था।

    ब्लैक टी-शर्ट, डार्क डेनिम्स, परफेक्ट जॉलाइन...

    आंखों पे ब्लैक शेड्स और चेहरे पे ब्लैक मास्क।

    अगर सोचो कि , ये क्या सोच रहा होगा, समझना बड़ा मुश्किल था।

    फिर उसने धीरे-धीरे ब्लैक शेड्स हटाए,

    ईरा की तरफ देखा, और फिर... वो हल्के से मुस्कराया।

    "आर यू ओके?" उस ब्लैक मास्क वाले इंसान ने कहा।

    ईरा कुछ सेकंड्स के लिए उसे बस देखती रही। उसे ऐसा लगा जैसे ये आंखे और आवाज कहीं देखी सी लग रही है ... बहुत पहले... लेकिन याद नहीं आ रहा।

    वो कुछ कहने ही वाली थी कि तभी मायरा वहां आ गई —

    उसने भी उस शख्स को देखा, जिसने ब्लैक मास्क पहना हुए था।

    मायरा (थोड़ी चिढ़ी हुई): "चल न ईरा लेट हो रहा है... मुझे अभी बहुत काम करना है!"

    ईरा ने अनमने से ढंग में ‘हम्म’ कहा और एक आखिरी बार उस शख्स की तरफ देखा —

    कुछ था उस नजर में… कुछ जाना-पहचाना

    फिर वो दोनों वापस गाड़ी में बैठ गईं।

    ईरा ने गाड़ी स्टार्ट की, एक यू-टर्न लिया… और दोनों वहां से निकल गईं।

    पर...

    पीछे खड़ा वो शख्स अब भी वहीं था।

    उसने गाड़ी की छत पर हाथ टिकाया, गहरी सांस ली, और बुदबुदाया—

    "फाइनली… आई फाउंड यू पिक्सी।"

    इतना कहते ही उसके चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान खिल उठी।फिर उसने गॉगल्स वापस पहने, अपनी कार में बैठा, और इंजन तेज़ी से स्टार्ट किया। इस बार, उसका इरादा किस्मत को पकड़ने का था।

    वही दूसरे तरफ अब कार ईरा ड्राइव कर रही थी—क्योंकि हमारी प्यारी मायरा जो ठोकर मार चुकी थी, उसके बाद ईरा किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

    वो अब भी उसी आदमी के बारे में सोच रही थी।

    असल में, ईरा ने उसका चेहरा तो देखा था… लेकिन मास्क और चश्मे की वजह से उसे ठीक से पहचानना मुश्किल हो गया था।

    फिर भी, उसकी आंखें… और वो आवाज़—कुछ तो जाना-पहचाना सा लग रहा था।

    ईरा अब भी सोचों में खोई हुई थी, तभी मायरा बोल पड़ी,

    "ओये, तुझे नहीं लगता वो लड़का कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था?"

    ईरा ने हल्की सांस छोड़ते हुए कहा,

    "हां, सही कह रही है तू... और न ही कोई कोविड था, न ही कोई वायरस... फिर भी उसने मास्क लगा रखा था!"

    मायरा फौरन बोली,

    "तो पूछ लेती न! कौन था, क्यों था!"

    ईरा ने एक स्माइल दबाते हुए कहा,

    "मैडम जी, आपको ही तो लेट हो रहा था..."

    मायरा ने मुंह बनाया,

    "अब नींद नहीं आएगी यार... कुछ तो कर!"

    ईरा ने हल्का सा हंसते हुए जवाब दिया,

    "जो किया तूने किया... अब तू ही संभाल!"

    फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद ईरा बोली,

    "एक आइडिया है... या तो हमें उसे ढूंढना होगा, या फिर इंतज़ार करना होगा कि वो खुद हमारे पास आए।"

    मायरा ने आंखें घुमाते हुए कहा,

    "हां, क्यों नहीं! Sherlock Holmes बन ही जाओ अब!"

    (जिसको नहीं पता वैसे Sherlock Holmes एक फेमस फिक्शनल डिटेक्टिव है, जो छोटी-छोटी क्लूज़ से भी सबसे बड़ी मिस्ट्री सॉल्व कर लेता था।)

    उनकी बातें चल ही रही थीं, कि तभी मल्होत्रा विला भी आ गया। दोनों ने साथ में डिनर किया, और फिर सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए।आज भी मायरा ईरा के कमरे में सोने की जिद कर रही थी,लेकिन ईरा ने इस बार स्ट्रिक्टली मना कर दिया।तो आखिरकार, ईरा और मायरा दोनों अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

    (जारी)

    *****

    आगे जानने के लिए मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में...

    और हां, अगर आपके आसपास कोई गॉगल्स पहनकर मुस्कराए —

    तो समझ जाइए, कहानी अब आपके पीछे है! 😎📖

  • 12. Chapter 12

    Words: 1155

    Estimated Reading Time: 7 min

    precap :

    उसने गाड़ी की छत पर हाथ टिकाया, गहरी सांस ली, और बुदबुदाया—

    "फाइनली… आई फाउंड यू पिक्सी।"

    इतना कहते ही उसके चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान खिल उठी।फिर उसने गॉगल्स वापस पहने, अपनी कार में बैठा, और इंजन तेज़ी से स्टार्ट किया। इस बार, उसका इरादा किस्मत को पकड़ने का था।

    अब आगे :

    वही एक बड़े से बंगले के एक कमरे में, एक आदमी बाथरूम में शॉवर ले रहा था। ठंडी पानी की बूंदें उसकी बॉडी पर गिर रही थीं, जिससे उसका अट्रैक्टिव साइड और भी निखर रहा था। उसने शॉवर बंद किया, और एक वाइट टॉवल लेकर बाहर निकला। बेड के पास आकर दोनों हाथ बेड पर फेरते हुए वो कुछ यादों में खो गया।फिर चुपचाप उठा, ड्रेसिंग एरिया में गया, और एक लोवर और लूज शर्ट पहन ली। उसके बाद वो बालकनी की ओर बढ़ा, और बाहर खड़ी गाड़ी को देखने लगा। लेकिन जैसे ही उसने गाड़ी के सामने कुछ देखा, उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं।

    रुद्र तेज़ क़दमों से पार्किंग की तरफ बढ़ा।

    नीचे गाड़ी के पास उसका गार्ड एक मैकेनिक को डांट रहा था,

    "अगर अपनी जान प्यारी है तो जल्दी से गाड़ी ठीक कर! एक भी स्क्रैच नहीं आना चाहिए… नहीं तो रुद्र सर जान से मार देंगे!"

    मेकैनिक डर के मारे कांप उठा।

    "स-सर... बिल्कुल ठीक कर दूंगा… एक भी स्क्रैच नहीं रहेगा, वादा है।"

    लेकिन तभी रुद्र वहाँ पहुँच गया।

    एक पल तो वो कुछ नहीं बोला… बस उसकी आंखें उस स्क्रैच पर जाकर अटक गईं।

    और फिर अचानक, जैसे उसके अंदर का हैवान जाग गया हो — उसने झपट कर उस मैकेनिक का गला पकड़ लिया।

    "तेरी हिम्मत कैसे हुई इसे छूने की?" रुद्र की आवाज़ में आग थी।

    "उसके छोड़े हर निशान पर... हर चीज़ पर... सिर्फ मेरा हक़ है! समझा "

    और इतना कहते ही—उसने बिना झिझक, उसके सिर में गोली मार दी।

    पल भर में सब कुछ शांत हो गया… सिर्फ गूंजती रही वो आवाज़, जो अब किसी को सुनाई नहीं दे रही थी।

    रुद्र ने गाड़ी की तरफ देखा… जहां बस एक हल्का-सा स्क्रैच था, इतना मामूली कि ठीक से दिख भी नहीं रहा था।

    लेकिन उसके चेहरे पर रिएक्शन ऐसा था जैसे किसी ने उससे सब कुछ छीन लिया हो।

    वो कुछ सेकंड तक वहीं खड़ा रहा और उसके आँखें गाड़ी पर टिकी थीं।

    फिर फिर रुद्र ने गुस्से में मुट्ठी भींची। वो गाड़ी को ऐसे देख रहा था जैसे उसके अंदर कोई आग जल रही हो। उसकी आँखों में पागलपन साफ़ दिख रहा था… और चेहरे पर वो खतरनाक सी स्माइल आ गई।

    उसने गार्ड को एक इशारा किया, गार्ड भागते हुए पेट्रोल कैन लेकर आया। रुद्र ने बिना कुछ कहे, कैन उठाया… और पूरा पेट्रोल गाड़ी पर उड़ेल दिया। फिर लाइटर निकाला… और फेंक दिया।

    जैसे ही आग की लपटें उठीं, उसके चेहरे उस आग की रोशनी में बेहद डरावना लग रहा था।

    फिर वो बोला —"तुम सिर्फ मेरी हो… सिर्फ मेरी।"

    फिर एक पल के लिए रुका, उसकी आँखों में वो जुनून साफ़ दिख रहा था।

    उसने एक आखिरी नज़र उस जलती हुई गाड़ी पर डाली,

    फिर खुद से बड़बड़ाया —

    "मैं कैसे छोड़ दूं उसे… जिसने मेरी चीज़ को छूने की भी सोची?"

    और इतना कह के…

    वो अपनी गाड़ी में बैठा...... और वहाँ से निकल गया।

    रुद्र का वो रूप देख कर ज़्यादातर बॉडीगार्ड एक पल को कांप उठे। सिवाय उन दो-तीन के, जो इस तूफ़ान से पहले भी टकरा चुके थे। कईयों ने सुना था कि रुद्र सहगल अपनी चीज़ छूने वालों को कभी माफ़ नहीं करता... लेकिन ये सिर्फ़ अफ़वाह नहीं थी — आज उन्होंने उसकी आँखों में वो आग देख भी ली थी। और यहां तो बात किसी आम चीज़ की नहीं थी बल्कि उसकी "पिक्सी" की थी। जिसे कोई भी रुद्र की दुनिया से छीनने की हिम्मत नहीं कर सकता था... बिना खुद को तबाह किए।

    अगली सुबह मल्होत्रा मेंशन में कुछ अलग ही चहल-पहल थी। ईरा और अभिनव मल्होत्रा तो सुबह-सुबह ही कंपनी के लिए निकल गए थे। हॉल में दादी जी बैठी थीं और पूरे स्टाफ को एक-एक करके इंस्ट्रक्शन दे रही थीं — "हाँ, फूल वाले से बात हो गई? और केक टाइम पे पहुँचना चाहिए, समझे!"

    उधर ऊपर से मायरा जी अभी-अभी उठकर, फ्रेश होकर सीढ़ियों से नीचे उतर रही थीं।

    उसने नीचे का माहौल देखा — सब लोग भागदौड़ में लगे थे, कोई डेकोरेशन कर रहा था, कोई फोन पर बात कर रहा था।

    मायरा थोड़ी हैरानी से सोचने लगी, "सुबह-सुबह ये सब क्यों चल रहा है?"

    वो धीरे-धीरे नीचे आई और सीधा दादी के पास पहुँची, जो अब भी किसी को सजावट के लिए कुछ समझा रही थीं।मायरा सीधा दादी के पास पहुँची और हल्के से मुस्कुराते हुए बोली,

    "दादी, ये इतनी तैयारियाँ किस लिए हो रही हैं?"

    दादी ने उसे देखा, एक प्यारी सी मुस्कान दी और बोलीं,

    "जन्मदिन मुबारक हो मेरे बच्चे।"

    मायरा एक पल को ठिठकी... फिर जैसे याद आ गया — "अरे! आज तो मेरा बर्थडे है!"

    वो झट से दादी को कस के गले लगा लेती है,

    "थैंक यू सो मच दादी!"

    दादी ने उसके आँखों में आए आँसू देखकर प्यार से उन्हें पोछा और बोलीं,

    "अबे ओ मेरी बदमाश बदरिया, रोते नहीं!"

    मायरा थोड़ा इमोशनल होकर फिर बोली,

    "थैंक यू दादी... सच में, इतना प्यार देने के लिए।"

    दादी ने तुरंत हल्का सा नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा,

    "खबरदार! दोबारा ऐसा इमोशनल डायलॉग मारा तो! वैसे भी तू इस पार्टी की जान है — और पार्टी की जान ऐसे मुरझाए हुए चेहरे के साथ नहीं घूमती।"

    फिर मुँह बना कर बोलीं — "ऐसे!" और एक आँख भी मारी।

    मायरा हँस पड़ी और फिर से दादी से लिपट गई।शाम तक पूरा मेंशन किसी डिज़्नी प्रिंसेस के महल जैसा लग रहा था… या शायद उससे भी ज़्यादा ख़ूबसूरत। हर कोना चमक रहा था — गार्डन में फेयरी लाइट्स की झालरें, फूलों की महक और हवा में बर्थडे सॉन्ग की धीमी-धीमी धुन... सब कुछ एक जादू जैसा।

    पाँच बजे तक मेहमानों का आना-जाना शुरू हो चुका था।

    कुछ गेस्ट गार्डन एरिया में चाय-कॉफी के साथ बातों में लगे थे, कुछ फोटो क्लिक करवा रहे थे, और अंदर स्टाफ आख़िरी टच-अप्स में लगा था।

    मिस्टर मल्होत्रा ऑफिस से जल्दी निकल आए थे और अब हॉल में गेस्ट्स को वेलकम कर रहे थे।

    ईरा को थोड़ा ऑफिस का काम अटक गया था, तो वो थोड़ी देर में आने वाली थी — लेकिन उसने कॉल करके सब कुछ चेक कर लिया था।मायरा बार-बार अपने फोन की स्क्रीन देख रही थी।

    मानो किसी ख़ास मैसेज का इंतज़ार हो।

    थोड़ी देर बाद उसने खुद से ही बड़बड़ाया —

    "क्यों सोचती है तू ... उनके पास तेरे लिए टाइम नहीं है मायरा। जितनी जल्दी ये बात समझ आ जाए , उतना ही अच्छा होगा तेरे लिए।"

    उसकी आँखों में हल्की नमी थी, लेकिन चेहरे पर ज़िद साफ़ झलक रही थी।

    तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।

    (जारी)

    *******

    आगे जानने के लिए...मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में! और हां — तब तक किसी की गाड़ी में स्क्रैच मत मारना, शायद सामने वाला आपका भी दीवाना निकले! 🤯😆

  • 13. Chapter 13

    Words: 1717

    Estimated Reading Time: 11 min

    precap:

    थोड़ी देर बाद उसने खुद से ही बड़बड़ाया —

    "क्यों सोचती है तू ... उनके पास तेरे लिए टाइम नहीं है मायरा। जितनी जल्दी ये बात समझ ले, उतना ही अच्छा होगा तेरे लिए।"

    उसकी आँखों में हल्की नमी थी, लेकिन चेहरे पर ज़िद साफ़ झलक रही थी।

    तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।

    अब आगे :

    इस बार सामने दादी खड़ी थीं। मायरा ने थोड़ा चौंककर दरवाज़ा खोला।

    दादी अंदर आईं और प्यार से बोलीं,

    "बेटा... तू अब तक तैयार क्यों नहीं हुई?"

    मायरा कुछ बोलती उससे पहले ही दादी ने उसके माथे पर हाथ फेरा और मुस्कुराकर कहा —

    "चलो उठो अब। हो जा तैयार मेरे बच्चे... अरु आ ही रही है।"

    मायरा ने दादी की आँखों में देखा — वहाँ सच्चा प्यार भी था और एक छोटा सा इशारा भी... जैसे उन्हें सब पता हो।

    मायरा ने धीमे से कहा:

    "मन नहीं कर रहा, दादी..."

    दादी प्यार से मुस्कुराईं, फिर थोड़ा सख्ती से बोलीं:

    "अच्छा जी! मन नहीं कर रहा तो क्या पूरी पार्टी कैंसिल कर दें? चल बैठ इधर।"

    उन्होंने मायरा को टेबल के सामने बैठाया और उसकी ट्रॉली में से एक ड्रेस निकाली — ओशन ब्लू कलर की फ्लॉर्ड गाउन, जो देखते ही मन को सुकून दे।

    दादी ने प्यार से कहा:

    "देख! कितना प्यारा है चल तैयार तो हो जा... जब तक तू रेडी होगी, वो भी आ जाएगी। कभी-कभी अपने लिए भी तैयार होना जाना चाहिए... कम से कम अपनी दादी के लिए ही सही?"

    मायरा ने चुपचाप उनकी तरफ देखा, फिर हल्के से मुस्कुराई।

    दादी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और कहा:

    "ऐसा नहीं है मेरे प्यारी दादी... और सॉर—"

    लेकिन दादी ने तुरंत आँखें तरेरते हुए कहा:

    "दोबारा ‘सॉरी’ कहा ना, तो कान खींच दूंगी!"

    मायरा झट से बोली:

    " ओके ओके ! रेडी हो रही हूँ बस!"

    दादी हँस पड़ीं और प्यार से उसके माथे को चूम लिया। दादी ने मायरा को एक प्यार भरी नजर दी और फिर मुस्कुराते हुए उठीं।

    "चल बेटा, मैं मेहमानों का स्वागत करती हूँ।"

    मायरा ने सिर हिलाया और खिड़की से बाहर झांका।

    शाम के रंग में रंगा मेंशन बाहर से भी ज़्यादा शानदार लग रहा था।

    मेहमानों का आना जाना लग चुका था — मुंबई के नामी बिजनेस मैन, जिनके चेहरे पर अनुभव और पावर की छाप थी। और साथ ही, पार्टी में कई खूबसूरत चेहरे भी थे, जो माहौल को और भी रौनक दे रहे थे।

    मल्होत्रा परिवार तो वाकई में दुनिया के टॉप 5 रिचेस्ट फैमिलीज़ में से एक था। उनका नाम बिजनेस वर्ल्ड में किसी पहचान का मोहताज नहीं था।

    हर कोई दादी से हाथ मिलाकर आशीर्वाद ले रहा था, और दादी भी अपनी खास बातों और प्यारे अंदाज़ में मेहमानों का दिल जीत रही थीं।

    मायरा पूरी तरह तैयार हो चुकी थी। उसने ओशन ब्लू रंग की फ्लॉर्ड गाउन पहना था, ऐसा लग रहा था जैसे कोई परी असलियत दुनिया में आ गई हो। वो सच में आज बहुत खूबसूरत लग रही थी — न सिर्फ उसकी ड्रेस, बल्कि उसकी आँखों में छुपी मासूमियत और थोड़ा सा सुकून भी।

    ईरा अपना काम खत्म करके घर की तरफ निकल पड़ी।

    रास्ते में उसने मायरा के लिए एक छोटा सा गिफ्ट लिया — आखिर दोस्त जो नाराज़ थी।

    वो बैकडोर से चुपचाप मेंशन में दाखिल हुई और सीधा मायरा के कमरे की ओर बढ़ गई।

    जैसे ही ईरा अंदर आई, मायरा का गुस्सा फट पड़ा।

    "तुझे पता भी है कितनी देर से वेट कर रही हूँ? एक कॉल तक नहीं किया—"

    थकी हुई ईरा पहले ही दिनभर की टेंशन में थी, ऊपर से ये सब सुनकर चिढ़ गई।

    उसने हल्के गुस्से में कहा —

    "इनफ!"

    कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया। मायरा और मेकअप आर्टिस्ट दोनों चुप।

    ईरा ने गहरी साँस ली, खुद को शांत किया, फिर मायरा की तरफ देखा जो लगभग रोने वाले थी —

    "सॉरी मायरा"।

    फिर दोनों हाथ जोड़कर, बच्चों की तरह बोली —

    "आई एम सौ सौ सौरी मेरी जान!"

    उसने मायरा को गले लगाकर कहा —

    "हैप्पी बर्थडे! एंड गॉड गिव्स यू अ लॉट ऑफ ब्लेसिंग्स!"

    और प्यार से उसके आँसू पोंछ दिए।

    मायरा ने होंठ सिकोड़ते हुए कहा,

    "यार तू कितनी देर लगा दी!"

    ईरा मुस्कुराई,

    "अब आ तो गई ना..."

    फिर मायरा ने एक नज़रे ऊपर से नीचे ईरा पर डाली,

    "हाँ, दिख तो ठीक-ठाक रही है, लेकिन चल, अब तू भी तैयार हो जा!"

    ईरा का मन तो नहीं था करने का, लेकिन मायरा की ज़िद के आगे आखिरकार उसे तैयार होना ही पड़ा।

    "यार ब्लू पहन ले न, थीम भी रॉयल ब्लू और ब्लैक है!"

    मायरा ने ट्रॉली में से एक खूबसूरत ब्लू गाउन निकालते हुए कहा।

    ईरा ने ड्रेस ट्रॉली को देखा जहां उसमें से एक ब्लैक कलर के बॉल गाउन को निकाला जो बेहद सिंपल लेकिन रॉयल।

    उसे देखते ही मायरा ने झट से कहा,

    "नहीं! तू ये नहीं पहनेगी!"

    ईरा ने बिना कुछ बोले ड्रेस को देखते हुए कहा,

    "अब तो पक्का यही पहनूंगी।"

    मायरा ने आँखें तरेरी,

    "ईरा!"

    ईरा मुस्कुरा दी,

    "टु लेट, मेरी जान। नाउ ब्लैक इस फाइनल।"

    मायरा ने सिर पकड़ लिया — "तेरे कुछ नहीं हो सकता!"

    फिर थोड़ी ही देर में ईरा तैयार हो चुकी थी। नेचुरली खूबसूरत होने की वजह से मेकअप आर्टिस्ट को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। लेकिन जब ईरा तैयार होकर शीशे के सामने खड़ी हुई —

    तो एक पल को रूम में सन्नाटा सा छा गया।

    मेकअप आर्टिस्ट खुद भी हैरान थी —

    "मैंने इतनी खूबसूरत लड़की आज तक नहीं देखी..."

    उसके मुँह से खुद-ब-खुद निकल गया।

    ईरा ने ब्लैक बॉल गाउन पहना था — ऑफ-शोल्डर ड्रेस, जिससे उसके कॉलरबोन बड़ी खूबसूरती से नज़र आ रहे थे। कमर पर सिल्वर बेल्ट उसकी फिगर को और निखार रही थी। बाल हल्के वेवी, और आंखों में वही तीखी सी चमक।और सबसे खूबसूरत उसकी वो ब्लू आईज।

    मायरा ने उसे देखा और एक पल को रुक गई — "यार तू तो सच में अप्सरा लग रही है। धरती पे क्यों आई तू?"

    ईरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुझे कंट्रोल करने।"

    मायरा भी आज किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। लेकिन अगर कोई कमरे में सेंटर ऑफ अट्रैक्शन था। तो वो थी — ईरांशी मल्होत्रा।

    ईरा आज सच में बेहद खूबसूरत लग रही थी।

    "यार तुझे देख के डर लग रहा है कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए," मायरा ने हँसते हुए कहा और तुरंत ही अपने और ईरा के सिर के ऊपर से नजर उतारी। दोनों खिलखिलाते हुए उस मासूम से पल में खो गए, जैसे कुछ देर के लिए हर चिंता दूर हो गई हो।

    वही नीचे पार्टी में.....

    हॉल में पार्टी अपने पूरे जोरो शोरों पर थी। भीड़ ज़्यादा नहीं थी, लेकिन जितने लोग थे — सब नामी-गिरामी। रौनक पूरे माहौल में घुल चुकी थी।

    उसी हॉल के एक कोने में, बार के पास एक लड़का बैठा था। उम्र लगभग 27 साल, गहरी आँखें, ठहराव भरा अंदाज़ ब्लैक टैक्सीडो सूट में खड़ा वो शख़्स...गजब ही लग रहा था लाइक आ चार्मिंग प्रिंस। उसके हाथ में एक ड्रिंक थी, जिसे वो बड़े इत्मीनान से सिप कर रहा था — लेकिन उसकी नज़रें बार-बार सीढ़ियों की ओर उठ जाती थीं।

    उसे शायद इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि वो वहाँ मौजूद कई लड़कियों की नजरों का केंद्र बन चुका है। उसकी पर्फेक्ट पर्सनैलिटी, मिस्टीरियस लुक्स और वो ठंडी खामोशी — सबको अपनी तरफ खींच रही थी।

    पर कोई उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। उसके सामने खड़े दो बॉडीगार्ड्स दीवार की तरह रास्ता रोके खड़े थे। मगर वो लड़का — न तो लोगों को देख रहा था, न ही उनके रिएक्शन को महसूस कर रहा था। उसकी नज़रें अब भी सीढ़ियों पर जमी थीं… जैसे किसी एक शख्स का बेसब्री से इंतज़ार हो।

    तभी एक गार्ड आया और उस लड़के के पास झुककर कुछ कहा।

    उसने बस हल्का सा सिर हिलाया… और उसके चेहरे पर एक धीमी सी स्माइल आ गई।

    वहीं थोड़ी दूरी पर, तीन लड़कियों का एक ग्रुप खड़ा था। देखने से लग रहा था कि किसी हाई-सोसाइटी से बिलोंग करती हैं — क्लासी आउटफिट्स , महंगे हिल्सस, और हाथ में ड्रिंक्स।

    उनमें से एक लड़की ने अचानक बार की तरफ देखते हुए कहा,

    "यार ये लड़का तो बहुत हैंडसम है… क्या नाम है इसका?"

    दूसरी ने बिना पलटे जवाब दिया —

    "रुद्र सहगल।"

    पहली लड़की थोड़ा चौंकी —

    "यार... जितना बढ़िया नाम, उतना ही बढ़िया बंदा!"

    तभी तीसरी लड़की, जो रेड वाइन का ग्लास पकड़े हुए थी, मुस्कराकर बोली —

    "फिर तो तुम विधान रायजादा को देखकर बेहोश ही हो जाओगी।"

    दूसरी लड़की ने भौंहें चढ़ा लीं —

    "बट उसे तो बहुत कम लोगों ने देखा है। उसके तो सोशल मीडिया पे भी कोई फोटो नहीं है। तू कैसे कह सकती है?"

    पहली लड़की ने उसकी बात में हामी भर दी —

    "हाँ, सच में… उस बन्दे की तो बस कहानियाँ सुनी हैं!"

    तीसरी लड़की ने वाइन की एक चुस्की ली, फिर थोड़ा रहस्यमयी अंदाज़ में बोली —

    "बहुत लंबी कहानी है… फुर्सत में बताऊँगी।"

    और इतना कहकर वो मुस्कराई, और वहाँ से आगे बढ़ गई — जैसे उसके पीछे कोई और राज़ भी छुपा हो।

    दूसरी लड़की ने सिर हिलाते हुए कहा,

    "यार, एना को कभी सीधे तरीके से बात करनी आती है क्या?"

    वो लड़की एना किफर थी। ब्लू कलर की बॉडीकॉन ड्रेस पहने हुए वो सच में उस ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही थी।

    तभी एना बार के सेंटर तक गई, वाइन अपने ग्लास में डलवाई और सीधा रुद्र के पास आई।

    "कैसे हो मिस्टर रुद्र सहगल ?" — वो हँसते हुए बोली।

    रुद्र ने उसकी तरफ देखा, थोड़ा हैरानी से पूछा —

    "तुम ये क्या कह रही हो?"

    एना ने अपने बाल पीछे झटके और उसी टोन में बोली —

    "यही सवाल मैं भी तुमसे पूछ सकती हूँ।"

    रुद्र के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।

    "मुझे इनवाइट मिला था।"

    एना ने भी मुस्कुरा कर कहा —

    "मुझे भी।"

    रुद्र अब पूरी तरह उसकी तरफ मुड़ गया, और एक आइब्रो उठाते हुए जैसे पूछ रहा हो —

    "रियली?"

    एना ने सीधा बोला —

    "लड़ाई कभी और दिन करेंगे ह्म्म, रुद्र। अब ये बताओ… तुम्हारी आँखें किसी को ढूंढ रही हैं ना?"

    रुद्र ने कुछ नहीं कहा। बस हल्की सी स्माइल दी, और दोनों चुपचाप अपनी वाइन सिप लेने लगे।

    कुछ सेकंड ऐसे ही गुजर गए… तभी एना का फोन बजा।

    उसने स्क्रीन की तरफ देखा, फिर बोली —

    "एक्सक्यूज मि," और फिर वहाँ से चली गई।

    (जारी)

    ****

    आगे जानने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में .....

  • 14. Chapter 14

    Words: 1468

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक:

    मायरा की बर्थडे पार्टी में रुद्र भी पहुंचा, जहां उसकी मुलाक़ात एना से हुई। वहीं पता चलता है कि दोनों पहले से एक-दूसरे को जानते थे। एना रुद्र से कुछ पूछती है लेकिन रुद्र ने कोई जवाब नहीं दिया। दोनों ऐसे ही शांत माहौल में खड़े होकर अपनी अपनी वाइन पीने लगे। कुछ मिनट बाद एना के फोन पर एक कॉल आई —

    अब आगे :

    एना ने कॉल देखकर कहा, “एक्सक्यूज मी,” और थोड़ा दूर जाकर फोन उठा लिया।

    “हेलो... हेलो...” उसने धीरे से कहा।

    एना को फोन के दूसरे तरफ शख्स की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी क्योंकि बैकग्राउंड में म्यूजिक और शोर बहुत तेज़ था। वो सीधे पार्किंग की ओर चली गई, लेकिन तब तक कॉल कट चुका था। एना ने फिर से कॉल लगाई, और इस बार कॉल कनेक्ट हो गया। कुछ मिनट बात करने के बाद, उसने फोन काट दिया। जैसे ही वो पीछे मुड़ी, उसके सामने अचानक एक शख्स आ गया।

    एना थोड़ी देर के लिए घबरा गई, लेकिन फिर उसने बिना हिचकिचाहट से उसे धक्का देते हुए गुस्से में कहा,

    “आर यू मैड? ऐसे कौन सामने आता है, जैक?”

    जैक हँसते हुए बोला, “ओह, तुम तो डरती भी हो।”

    एना स्माइर्क करते हुए दोनों हाथ फोल्ड किए हुए , “जब सामने वाला अपनी चिम्पांज़ी वाली शक्ल लेकर एकदम सामने आ जाए,तो ऐसा रिएक्शन नॉर्मल है।”

    जैक जो हंस रहा था लेकिन एना के बात सुनकर चुप हो गया और बोला, “सीरियसली... चिम्पांज़ी और मैं... पता भी है तुम्हें, कितनी लड़कियाँ मरती हैं मुझ पर ।”

    एना उसके बातें इग्नोर करते हुए आगे बढ़ते हुए,

    “गलतफहमी बहुत अच्छी है।”

    जैक उसके पीछे-पीछे आता हुआ बोला,

    “ओय... रुक जा!”

    लेकिन तब तक एना अंदर जा चुकी थी, और जैक वहीं बाहर खड़ा रहा। तभी उसके फोन पर एक कॉल आई। उसने फोन उठाकर कुछ देर बात की और फिर अपनी गाड़ी में बैठकर चला गया।

    अंदर पार्टी में सबको बर्थडे गर्ल मायरा का इंतज़ार था, साथ ही ईरांशी मल्होत्रा का भी, क्योंकि वो ऐसी पार्टियों में बहुत कम ही आया करती थी और सोशल एक्टिविटी भी उसकी ज़्यादा नहीं थी।

    तभी सीढ़ियों पर स्पॉटलाइट पड़ी, जहां से मायरा धीरे-धीरे उतर रही थी। सबकी नजरें बस उसी पर टिकी थीं। ऊपर से उसकी ब्लू ड्रेस और स्पॉटलाइट उसके लुक में चार चाँद लगा रही थी।

    इसी बीच, वहीं खड़ा एक लड़का बोला,

    “वो देख यार, क्या खूबसूरती है।”

    फिर से सीढ़ियों पर फ्लैशलाइट पड़ी और ईरांशी अपने बॉल गाउन को संभालते हुए नीचे आ रही थी। उसने ये बॉल गाउन पहली बार पहना था, नहीं तो वो फ्लैट्स या बॉडीकॉन ड्रेसज ही पहनती थी।

    ईरांशी अब इरिटेट हो चुकी थी और ऊपर से उसके चेहरे पर पड़ती स्पॉटलाइट जिसकी वजह से उससे ना चाह कर भी मुस्कुराना पड़ रहा था। न्यूज़ रिपोर्टर्स और पपराज़ी उसकी हर एक मूवमेंट को बेताबी से कैप्चर कर रहे थे।

    जब वो नीचे पहुंची, तब भी लोगों की नजरें उससे हटने का नाम नहीं ले रही थीं। एक तो उसने ब्लैक ड्रेस पहनी थी, ऊपर से उसकी खूबसूरती ही ऐसी थी कि लोग चाह कर भी उसे अनदेखा नहीं कर पा रहे थे।

    तभी मायरा ईरा के कान में बोली, “यार, देख सब तुझे कैसे देख रहे हैं, जैसे बस चले तो खा जाए तुझे।"

    ईरा ने नज़रें इधर-उधर घुमाईं, सच में लोग उसे ही देख रहे थे। ईरा को इन सब की आदत थी, इसलिए उसे इन सबसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। फिर उसने वेटर को रोका और सॉफ्ट ड्रिंक लाने को कहा।

    पार्टी में सभी लोग एंजॉय कर रहे थे तभी मिस्टर अभिनव मल्होत्रा ने हाथ में वाइन ग्लास उठाया, और स्पून से हल्के-से बजाते हुए बोले,

    “Attention everyone, attention please!”

    (हल्की सी मुस्कान के साथ चारों तरफ देखते हैं)

    “जैसा आप सब जानते हैं... या अब तक अंदाज़ा तो लगा ही लिया होगा कि ये हसीन सी पार्टी क्यों रखी गई है।”

    (फिर थोड़ा रुकते हैं, और मज़ाकिया लहज़े में कहते हैं)

    “और जो अब तक नहीं समझे... उनके लिए क्लियर कर देना चाहता हूँ।”

    (वो मायरा की तरफ देखते हैं और उसे पास आने का इशारा करते हैं। मायरा मुस्कुराते हुए उनके पास आती है।)

    “जैसा कि आप सब जानते हैं… आज मेरी बेटी मायरा का बर्थडे है। और ये पार्टी उसी खुशी में रखी गई है।”

    (थोड़ा रुककर, नज़र मायरा पर जाती है… आँखों में गर्व उभरता है)

    “लेकिन सिर्फ इतनी सी बात नहीं है… अब ये वर्ल्डस बेस्ट सर्जन भी बन चुकी है। यस यू ऑल हेयर्ड दैट राइट।"

    (फिर हल्की शरारती हंसी के साथ )

    “और हाँ बॉयज… थोड़ा दूर रहना, ये सर्जन है तो दिल निकालना इसके लिए बाएं हाथ का खेल है!”

    ( ऐसा बोलकर उन्होंने ग्लास को फिर से स्पून से बजाया … और भीड़ में हँसी और तालियों की गूंज उठती है)

    मिस्टर मल्होत्रा अपने बिज़नेस पार्टनर्स और रुद्र के साथ बातचीत में बिजी होते हैं, लेकिन रुद्र... जब से ईरा नीचे आई थी, तब से उसकी नज़रें उससे एक पल के लिए भी नहीं हटीं।

    मिस्टर मल्होत्रा (हँसते हुए, ग्लास उठाकर कहा ):

    "अब तो हम बिज़नेस पार्टनर्स बन चुके हैं मिस्टर सहगल, तो मिलना-जुलना तो चलता रहेगा। कभी डिनर पर जरूर आइएगा हमारे घर।"

    रुद्र, जो अब तक ईरा को देख रहा था, आखिरकार नज़रें हटाई और हल्की मुस्कान के साथ कहा—

    "ज़रूर, मिस्टर मल्होत्रा।"

    लेकिन तभी एना सबका ध्यान अपने और खींचते हुए हाथों में माइक लिए स्टेज पर गई —

    "गाइज सीरियसली ? ये कोई बर्थडे पार्टी है? पार्टी तो दूर की बात लग रही है, ऐसा लग रहा है जैसे किसी की शोक सभा चल रही हो!"

    ( उसके ऐसा बोलते ही सब लोग हँसने लगे, माहौल थोड़ा हल्का हो गया।)

    एना फिर से माइक पर अपनी बात कंटिन्यू करते हुए—

    " गाइज बिना डांस के कोई भी पार्टी अधूरी होती है... और वैसे भी डांस और दोस्त तो हर पार्टी की जान होते है। सो बॉयज एंड गर्लस टेक योर पार्टनर्स।"

    "एंड.... yeah— एज यू ऑल नो फेस मास्क आर आ पार्ट ऑफ टुनाइटस थीम ... सो जिन्होंने अब तक नहीं पहना, काइंडली ग्रैब योर मास्क नाउ!"

    पार्टी में ज़्यादातर लोग मास्क पहन चुके थे। जिन लोगों ने अभी तक मास्क नहीं पहना था, उन्होंने भी जल्दी से अपना अपना मास्क लगा लिया।

    एजेड पर्सन और बाकी लोग दूसरी तरफ चले गए। अब तक लड़के - लड़कियां अपने अपने पार्टनर्स भी चुन चुके थे।

    रुद्र ईरा के साथ डांस करना चाहता था, लेकिन ईरा हर किसी को मना कर देती।

    तभी एक लड़का आया, जिसने काफी जेंटल तरीके से ईरा से डांस के लिए पूछा। ईरा मना करने वाली ही थी तभी मायरा बोली,

    “यार, क्यों नहीं? इतना प्यार से पूछ रहा है।”

    फिर ईरा ने बिना कुछ कहे हां कह दिया और उस लड़के के साथ स्टेज की तरफ चली गई जहाँ पहले से ही और भी लोग डांस कर रहे थे। लाइट्स की चमक और रोमांटिक म्यूजिक माहौल बहुत ही प्यारा बना रहा था।

    वही रुद्र ये सब देखकर अंदर ही अंदर जलकर खाक हो चुका था। अगर उसका बस चलता, तो उस लड़के के हाथ के चटनी बना देता—खासकर उसी हाथ की, जिससे उसने ईरा का हाथ पकड़ा था।

    उसके हाथ में जो ग्लास था, वो बस टूटने ही वाला था कि एना ने फुर्ती से वो ग्लास छीन लिया और वेटर को थमा दिया।

    ईरा ने अब तक रुद्र की तरफ देखा तक नहीं था। शुरू में वो बिज़नेस मैन के ग्रुप में था, जहां ईरा गई ही नहीं। और अब जब रुद्र आया, तो उसने फेस मास्क पहन लिया था जिसकी वजह से उसका चेहरा भी दिख रहा था।

    एना ने उसे देखा और शरारती मुस्कान के साथ बोली,

    “ओह रुद्र सहगल… जलन हो रही है क्या? नोट बैड...”

    रुद्र ने उसे घूर कर ऐसा देखा जैसे अभी वहीं चीर देगा।

    लेकिन एना तो एना थी। वो माइक उठाकर स्टेज की तरफ बढ़ी और बोली:

    “गाइस थोड़ा बोरिंग हो रहा है राइट? आई हैव अन इडिया।"

    (लाइट्स थोड़ा झिलमिलाती हैं, सबकी नज़र एना पर टिकी हुईं थी।)

    "लेट्स प्ले आ डांस गेम!”

    “हर कपल को एक गाना मिलेगा… फिर हर कुछ सेकेंड में पार्टनर भी बदलेगा और सॉन्ग की स्पीड भी तेज़ होती जाएगी—स्टेप तो स्टेप , बीट तो बिट! और जो भी गलत स्टेप करे या बीच में रुका—ही ओर शी इस आउट!”

    तभी वही लड़का, जो ईरा के साथ खड़ा था, मुस्कुरा कर बोला —

    “ओके... लेकिन विनर्स को मिलेगा क्या?”

    दूर एक कोने में खड़ा रुद्र, जिसे अब तक ईरा के हर मूवमेंट की पूरी रिपोर्ट आंखों से मिल रही थी, उसे घूरते हुए मन में बुदबुदाया —

    “जितने का तो पता नहीं... लेकिन हाँ, मौत ज़रूर मिलेगी तुझे—वो भी आज ही!”

    (उसकी आँखों में जलन इतनी तेज़ थी कि अगर नज़रों से कोई मरता, तो लड़का अब तक राख बन चुका होता।)

    तभी एना स्टेज के सेंटर में आई, माइक हाथ में लेते हुए मुस्कुराई —

    (क्रमशः)

    *****

    आगे जानने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में.....

  • 15. Chapter 15

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे:

    तभी एना स्टेज के सेंटर में आई और माइक हाथ में लेते हुए मुस्कुराई — “गाइस… गाइस… रिलैक्स!"

    (लाइट्स हल्की धीमी हुई, और सबकी नज़रें उसी पर टिक गई।)

    एना ने माइक में एनर्जी के साथ कहा ,“जो भी कपल ये गेम जीतेगा… उन्हें मिलेगा एक स्पेशल रिवॉर्ड…”

    (थोड़ा रुककर, स्टेज पर घूमते हुए…)

    “...एक सेपरेट, सोलो डांस टाइम — बस तुम और तुम्हारा पार्टनर। लाइट ऑफ, स्पॉटलाइट ऑन— जस्ट यू टू"

    फिर हल्की शरारती हँसी के साथ आँख मारते हुए—

    “एंड आई थिंक… दैटस मोर दैन इनफ, राइट?”

    एना ने स्टेज के सेंटर में खड़े होकर फिर माइक उठाया और पूरे जोश में बोली — “तो चलो गाइज! लेट्स स्टार्ट द गेम।"

    (तालियाँ गूंजी और म्यूजिक शुरू हुआ।)

    इतना कहकर, एना ने भीड़ से निकलकर सीधे रुद्र की तरफ अपने कदम बढ़ाए, जो एक कोने में खड़ा मास्क पहने हुए था।

    वो उसके सामने आकर मुस्कुराई और कहा—

    वुल्ड यू लाइक टू डांस विद मि मिस्टर. मिस्ट्री?”

    रुद्र ने एना को देखा और फिर कुछ सोचकर कहा, “....चलो।”

    दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और डांस फ्लोर की तरफ बढ़ गए।

    ---

    कंपटीशन शुरू होता है। पहला राउंड में सब अच्छे से डांस कर रहे थे फिर कपल चेंज हुए। दूसरा राउंड – एक कपल आउट। म्यूजिक हर राउंड के साथ तेज़ होता जा रहा था। बीट्स शार्प होती और पार्टनर चेंज के साथ रफ्तार भी। तीसरे राउंड तक आते-आते चेहरे से पसीना बहने लगा था लेकिन माहौल का जोश थमता नहीं।

    अब बारी थी आखिरी राउंड की…

    लाइट्स थोड़ी डिम होती हैं। स्पॉटलाइट अब दो कपल्स पर थी — ईरा और… अब उसका नया पार्टनर — मास्क पहना हुआ रुद्र। एना और प्रेम (वो लड़का जो पहले ईरा के साथ था)। म्यूजिक शुरू हुआ।

    ईरा और रुद्र — दो परछाइयाँ एक साथ में घूमी। उनका तालमेल… बेमिसाल है। ईरा को ये आंखे जाननी पहचानी लग रही थी और ऊपर से सामने वाला उसे लगातार एक तक लगाए देखा जा रहा था।

    और तभी…

    एना एक स्टेप पर जानबूझकर रुकी।

    “ओहहह नो....” — भीड़ में से आवाज़ें उठी।

    और तभी अनाउंस हुआ।

    “एंड द विनर्स आर… द लास्ट स्टैंडिंग कपल— मास्कद मैन एंड द लेडी इन ब्लैक!”

    लाइट्स फ्लैश हुई और स्पॉटलाइट ईरा और रुद्र पर आ गईं।

    भीड़ सीटियाँ और तालियाँ बजा रही थी… ईरा को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि जो लड़का उसके साथ आखिरी राउंड में डांस कर रहा था… वो और कोई नहीं, रुद्र सहगल है।

    उसने डांस खत्म होने के बाद चारों तरफ देखा — सब क्लैप कर रहे थे, कोई सीटियाँ मार रहा था, कोई फोटो खींच रहा था। मगर ईरा अभी भी इस बात से अनजान बस अपनी साँसें सँभाल रही थी।

    और फिर… ईरा ने धीरे से अपना फेस मास्क हटाया, और फिर बगल में खड़े इंसान की तरफ देखा… जिसका मास्क अब भी लगा हुआ था।

    लड़कियों की नज़रें उसपर अटक चुकी थीं —

    “कौन है ये मिस्ट्री मैन?” ये वाइबस हर तरफ फैल चुकी थी।

    और फिर...

    जैसे ही उसने अपना मास्क उतारा — ईरा का चेहरा एकदम फिक्का पड़ गया।

    उसके मुंह से सिर्फ दो शब्द निकले —

    “रुद्र सहगल…”

    हाँ, यही नाम।

    और जैसे ही रुद्र ने अपना नाम ईरा के मुँह से सुना — उस बंदे को जो सुकून मिला ना, उसकी तुलना सिर्फ इसी से की जा सकती है।

    जैसे हम राइटर्स को तब मिलती है जब रीडर्स कमेंट कर दें… पर करते कहाँ हैं!

    (खैर, कहानी पे वापस आते हैं!)

    एक सेकंड के लिए दोनों की नज़रें टकराईं —

    ईरा की आँखों में गुस्सा और इरीटेशन साफ देखा जा सकता था वहीं रुद्र की आँखों में वही पुराना ऑब्सेशन… जो किसी भी हद तक जा सकता था।

    ईरा लगभग चिढ़ते हुए बड़बड़ाई," व्हाट द हेल आर यू डूइंग हेयर?"

    और रुद्र की नज़रें? का तो क्या कहना उसने भी उससे उसी टोन में कहा ,“आई नेवर लेफ्ट स्वीटहार्ट।”

    (हाँ, उस स्वीटहार्ट में जो ताना छुपा था ना… वही सब कुछ कह गया।)

    और तभी पीछे खड़ी मायरा का भी चेहरा देखने लायक था — उसकी आँखें चौड़ी, मुँह खुला — बस एक ही शब्द निकला: “रुद्र?”

    ईरा जाने के लिए जैसे ही मुड़ी। रुद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    “हेय मिस…” — उसकी आवाज़ थोड़ी तेज़ थी, और बहुत ज़्यादा कॉन्फिडेंट —

    “आप ऐसे बिना डांस किए नहीं जा सकतीं।”

    ईरा पलटी। उसकी आंखों में चिढ़ साफ झलक रही थी। कुछ बोलने ही वाली थी कि मायरा ने दूर से हल्का सा सिर हिला कर उसे चुप रहने का इशारा किया।

    ईरा ने गहरी सांस ली…

    और मजबूरी में, मगर पूरे एटिट्यूड के साथ उसके साथ डांस के लिए तैयार हो गई। अब दोनों डांस फ्लोर पर थे।

    रुद्र का एक हाथ ईरा की कमर पर… दूसरे से उसका हाथ थामे हुए। ईरा ने फौरन अपना दूसरा हाथ उसके कंधे पर रखा — लेकिन डिस्टेंस अच्छे से मेंटेन करना नहीं भूली। दोनों के बीच इतना गैप था कि उसमें एक पूरा एगो समा सकता था।

    रुद्र ने वो गैप देखा और हल्के से मुस्कराया।

    और तभी… उसने तेज़ आवाज़ में कहा —

    " डीजे प्ले द बतमीज़ दिल’…”

    म्यूजिक शुरू होने से पहले ही, रुद्र ने अचानक ईरा को अपने करीब खींच लिया।

    ईरा के चेहरे पर शॉक और गुस्से का कॉम्बो साफ दिख रहा था, पर रुद्र? वो बस उसकी आँखों में देखता रहा। फिर उसने धीरे से कहा— “कर तो लोगी न?”

    ईरा ने आइब्रो उठाकर जैसे पूछ लिया हो— “व्हाट डू यू मीन?”

    रुद्र कुछ बोलता तभी गाना शुरू हुआ, ईरा ने रुद्र के पैर पर हिल जोर से मारी,

    जिससे रुद्र के मुंह से हल्की सिसकी निकल गई,

    और ईरा धक्का देकर चारों तरफ घूमते हुए हँसते हुए लिपसिंक करने लगी—

    🎶🎶

    “बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल,

    माने ना…”

    🎶🎶

    पान में पुदीना देखा, नाक का नगीना देखा,

    चिकनी चमेली देखा, चिकना कमीना देखा,

    चाँद ने चीटर होके चीट किया तो,

    सारे तारे बोले गिल्ली गिल्ली अखा,

    पा परा परा…”

    रुद्र बस उसे देखता रहा, उसकी हर एक अदा को वो बड़े गौर से देख रहा था। फिर दोनों साथ-साथ थिरकने लगे—

    “मेरी बात, तेरी बात…

    ज्यादा बातें, बुरी बात…

    थाली में कटोरा लेके, आलू भात, मुरी भात…”

    ईरा ने मज़ाकिया अंदाज़ में मुक्का बनाकर कहा—

    “मेरे पीछे किसी ने रिपीट किया तो,

    साला मैंने तेरे मुंह पे मारा मुक्का।”

    रुद्र हँस पड़ा, उसके मुक्के को पकड़कर अपने पास खींच लिया—

    “इसपे भूत कोई चढ़ा है,

    ठहरना जाना ना,

    अब तो क्या बुरा क्या भला है,

    फ़रक पहचाने ना,

    ज़िद्द पकड़ के खड़ा है कमबख्त,

    छोड़ना जाने ना।”

    ईरा ने थोड़ा पीछे हटते हुए उसकी तरफ देखा, फिर दोनों फिर से आगे-पीछे स्टेप करने लगे—

    “बदतमीज़ दिल… बदतमीज़ दिल…

    बदतमीज़ दिल… माने ना… माने ना…”

    रुद्र ने दिल पर हाथ रखते हुए मुस्कुराया और आगे के स्टेप्स जारी रखे—

    “ये जो हाल है, सवाल है, कमाल है,

    जाने ना जाने ना,

    बदतमीज़ दिल… बदतमीज़ दिल…

    बदतमीज़ दिल… माने ना।”

    ईरा फुल एनर्जी के साथ हस्ते हुए —

    “हवा में हवा ना देखा, धिमका फलाना देखा,

    सींग का सिंघारा खाके, शेर का गुर्राना देखा,

    पूरी दुनिया का गोल गोल चक्कर लेके,

    मैंने दुनिया को मारा धक्का,

    पा पारा पारा…”

    रुद्र उसे गोल घूमाते हुए मुस्कुराया, फिर दोनों ने मस्ती में ताल से ताल मिलाई—

    “हे बॉलीवुड हॉलीवुड, वेरी वेरी जॉली गुड,

    राई के पहाड़ पर तीन फुट लिलिपुट,

    मेरे पीछे किसी ने रिपीट किया तो,

    साला मैंने तेरे मुंह पे मारा मुक्का।”

    ईरा सच में रुद्र की पीठ पर हल्का मुक्का मारती है, वो उसे घूरता रहा, फिर बिना कुछ कहे अपने पास खींच लिया—

    “अयाशी के वन वे से,

    खुदको मोड़ना जाने ना,

    कंबल बेवजह शर्म का,

    ओढ़ना जाने ना,

    ज़िद्द पकड़ के खड़ा है कमबख्त,

    छोड़ना जाने ना।”

    फिर दोनों साथ में जोर से गाने लगे—

    “बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल,

    माने ना… माने ना,

    बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल,

    माने ना… माने ना।”

    सबको ईरा और रुद्र का डांस बहुत पसंद आ रहा था।

    उनकी केमिस्ट्री ने सच पर स्टेज पर आग लगा दी थी।

    सीटियाँ, तालियाँ... और सबकी नजर बस उन्हीं पर टिकी थी। ईरा भी... सब कुछ भूलकर अपने स्टेप्स करती जा रही थी —

    🎶

    “आज सारे, चाँद तारे,

    बन गए हैं डिस्को लाइट्स...

    जल के, बुझा के हमको बुला के,

    कह रहे हैं, पार्टी आल नाइट्स।”

    🎶

    ईरा और रुद्र बिना रुके, फुल एनर्जी के साथ डांस करते रहे—

    “नाता बेतुकी दिल्लगी से,

    तोड़ना जाने ना,

    आने वाले कल की फ़िक्र से,

    जुड़ना जाने ना,

    ज़िद्द पकड़ के खड़ा है कमबख्त,

    छोड़ना जाने ना… हा हा।”

    फिर अंत में जोर-जोर से गाने लगे—

    “बदतमीज़ दिल, बदतमीज़ दिल,

    बदतमीज़ दिल, माने ना… माने ना।”

    जैसे ही दोनों का डांस खत्म हुआ, पूरे महफ़िल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी।

    "ब्रो, दैट वोज इनसेन!"

    "शी इस ऑन फायर!"

    किसी ने जोर से चिल्लाया।

    ईरा के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान आ गई। पार्टी में आए हर गेस्ट की निगाहें अब बस उन्हीं पर थीं — और हर कोई उनकी परफॉर्मेंस की तारीफ कर रहा था।

    ईरा मायरा के पास चली गई, वहीं रुद्र के पास कुछ बिज़नेस मैन आ गए थे, जिनमें वो अब पूरी तरह बिज़ी हो गया।

    तभी मिस्टर मल्होत्रा ने बीच में खड़े होकर अनाउंस किया,

    "ओके एवरीवन! बहुत मस्ती हो गई, सो नाउ इट्स केक कटिंग टाइम!"

    मायरा ने मुस्कुराते हुए केक काटा। पहला टुकड़ा दादी को, फिर मिस्टर मल्होत्रा को, और फिर ईरा को दिया।

    पार्टी धीरे-धीरे खत्म होने लगी।

    (क्रमशः)

    *****

    आई होप आप सभी को ये चैप्टर पसंद आएगा 😊। मैंने ये पहली बार लिखा है ✍️, तो अगर कहीं कोई गलती हो गई हो तो प्लीज माफ़ करना 🙏।

  • 16. Chapter 16

    Words: 1585

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे :

    पार्टी धीरे-धीरे खत्म होने लगी। अब सिर्फ रुद्र, मिस्टर मल्होत्रा और कुछ बिजनेस पार्टनर्स ही बचे थे। ईरा अब तक चेंज कर चुकी थी जो इस वक्त आराम से सोफे पे बैठकर सबकी बातें सुन रही थी।

    तभी मिस्टर मल्होत्रा उठते हुए बोले, "आई होप आप इस बारे में जरूर सोचेंगे, मिस्टर सहगल।"

    रुद्र (धीमे से): "ज़रूर, मिस्टर मल्होत्रा।"

    फिर घड़ी देखते हुए — "अब काफी रात हो गई है, मुझे निकलना चाहिए।"

    मिस्टर मल्होत्रा: "आप यहीं रुक जाइए न, सुबह चले जाइएगा।"

    रुद्र (हल्की मुस्कान): "थैंक्स... बट नहीं।"

    फिर एक नज़र ईरा की ओर डाली — "इफ यू डोंट माइंड, क्या आप मुझे पार्किंग तक छोड़ सकती हैं?"

    ईरा (कंधा उचका कर): "आप छोटे बच्चे तो नहीं हैं।"

    मिस्टर मल्होत्रा जबरदस्ती की हसी के साथ बोले — "ज़रूर, ईरा। छोड़ दो।"

    ईरा ने अपने डैड को नाराज़गी से देखा… फिर बिना कुछ कहे उठ गई। रुद्र सबसे अलविदा लेकर ईरा के साथ निकल गया।

    ईरा चुपचाप चल रही थी, तभी—

    रुद्र ने अचानक उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींच लिया।

    ईरा (गुस्से से): "लीव, मिस्टर सहगल !"

    रुद्र (धीरे से, आँखों में अजीब सी जिद): "इतने पास आने के बाद… छोड़ कैसे दूं, पिक्सी"

    ईरा (आवाज़ ऊँची करते हुए): "आई सेड, लीव !"

    रुद्र: "नेवर, पी—"

    …पर उसकी बात अधूरी रह गई, क्योंकि उसी पल ईरा उसे एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

    ईरा (आँखों में आग लिए): "आई वार्नेड यू। स्टे अवे फ्रॉम मि। आज सिर्फ थप्पड़ मारा है, अगली बार अगर फिर ऐसी हरकत की — तो तुम्हारी लाश भी नहीं मिलेगी।"

    इतना कहकर वो गुस्से में वहाँ से चली गई और ऊपर जाकर अपने कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया।

    नीचे खड़ा रुद्र… उस गाल पर हाथ रखे मुस्कुरा रहा था, जिस पर ईरा ने थप्पड़ मारा था। और फिर, एक नज़र ईरा को जाते देखा… और वो भी वहाँ से निकल गया।

    ईरा अब भी गुस्से में कमरे में इधर-उधर टहल रही थी। रुद्र की हरकतें अभी भी उसके दिमाग़ में घूम रही थीं, और हर बार सोचकर उसका पारा और चढ़ रहा था। फिर उसने घड़ी की ओर देखा — काफी देर हो चुकी थी।

    गुस्से को काबू में लाने के लिए उसने शॉवर लेना बेहतर समझा। ठंडे पानी की बूंदें उसके चेहरे से बहती रहीं… और उस पल उसे थोड़ा सुकून महसूस हुआ। थोड़ी देर बाद वो चुपचाप बाहर आई, एक स्लीपिंग पिल ली… और बेड पर लेट गई और थोड़ी देर में वो नींद के आगोश में चली गई।

    उधर मायरा और दादी भी पार्टी की थकावट से चूर थीं।

    पार्टी खत्म होते ही दोनों अपने-अपने कमरों में जाकर सो चुकी थीं।

    रुद्र भी अपने विला पहुंच चुका था। मिरर के सामने बैठा वो अपने गाल पर बर्फ रखे हुए था।

    "पिक्सी ने कुछ ज़्यादा ही जोर से मारा यार… शी इस क्रेजी बट आई लाइक इट"

    हौले से मुस्कुराते हुए वो खुद से बड़बड़ाया।

    थोड़ी देर बाद, जब दर्द थोड़ा कम हुआ, वो भी अपने कमरे की लाइट बंद करके सोने चला गया।

    कैलिफोर्निया, अमेरिका

    एक लक्ज़री केबिन ग्रे और ब्लैक थीम में सजा हुआ, जो अपने आप में प्रेस्टिज़ का एहसास देता था।

    तभी दरवाज़े पर अचानक नॉक हुआ।

    “कम इन,” एक सर्द और गंभीर आवाज़ सुनाई दी।

    दरवाज़ा खुला और अंदर कदम रखते ही जॉन बोला,“सर, मैम की लास्ट लोकेशन इंडिया में मिली है।”

    विधान, जो अब तक सिर्फ़ लैपटॉप के सामने बैठा था,उसने एक भौहें उठाकर पूछा,“आर यू श्योर?”

    जॉन ने पूरी कॉन्फिडेंस के साथ जवाब दिया, “यस, मैं पूरी तरह श्योर हूँ। उनकी आखिरी लोकेशन दिल्ली में मिली है।”

    विधान ने कहा, “ओके, देन यूं कैन गो।”

    विधान, जो अब तक बिल्कुल शांत बैठा था, अचानक अपने सिर को हेडरेस्ट से टिका कर आंखें बंद कर लीं। धीरे से — जैसे खुद से कह रहा हो, या शायद उस किसी से जिसे वो खो चुका था —

    "तुम कहाँ हो...? बस एक बार... एक बार मुझसे मिल जाओ। एंड ट्रस्ट मि — मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा।"

    उसकी आवाज़ में एक दर्द था जो सिर्फ टूटे हुए दिल में होता है। और उसकी आँख के कोने से... एक आंसू बेआवाज़ लुढ़क गया। लेकिन कुछ ही पलों में उसकी आँखों का वो दर्द गायब हो गया, और उसका चेहरा ठंडा, सख्त हो गया —

    “बस एक बार पता चल जाए कि वो कौन हैं, जो तुम्हारे साथ ये सब कर रहे हैं…एंड आई प्रॉमिस उस दिन उनका आखिरी दिन होगा।"

    ऐसा बोलकर वो उठा और मेंशन के लिए निकल गया।

    मेंशन पहुंचने के बाद विधान ने शॉवर लिया और फिर वापस काम में लग गया। उसकी नज़रें लगातार लैपटॉप पर टिकी थीं ।

    लगभग सुबह के तीन बजे उसने लैपटॉप बंद किया, एक गहरी सांस ली और सोफे पर लेट गया। कुछ देर बाद वो उठा, फ्रेश हुआ और तैयार होने लगा।

    सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उसने शांत लहजे में कहा,

    “सारी तैयारी हो गई, जॉन?”

    जॉन ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, “यस सर।”

    फिर दोनों कार में बैठे और एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए — जहाँ उनके इंतज़ार में खड़ा था उनका पर्सनल जेट। कुछ ही मिनटों में वो दिल्ली के लिए उड़ान भर चुके थे।

    इंडिया, मुंबई

    मल्होत्रा मेंशन में सुबह की हलचल शुरू हो चुकी थी।

    ईरा तैयार होकर ऑफिस निकल गई थी, मिस्टर मल्होत्रा भी अपने शेड्यूल में व्यस्त हो गए थे। मायरा ने भी अपने हॉस्पिटल — जो उसका खुद का था — ज्वॉइन कर लिया।

    ईरा अपने काम में डूबी रही, कब शाम के सात बज गए, उसे पता ही नहीं चला। उसने जल्दी से बचे हुए सारे डॉक्यूमेंट्स निपटाए — क्योंकि उसे एक जरूरी मीटिंग के लिए होटल द ग्रैंड रॉयल निकलना था।

    जब ईरा मीटिंग रूम में पहुँची, ज़्यादातर लोग अपनी जगह ले चुके थे। बस दो-चार कुर्सियाँ अब भी खाली थीं।

    उसने एक नज़र पूरे रूम पर डाली — और फिर उसकी नज़र ठिठक गई।

    रुद्र।

    वो एक कोने की कुर्सी पर बैठा था, नीची निगाहों में एक फाइल के पन्नों में डूबा हुआ।

    ईरा ने अपनी कुर्सी खींचते हुए कहा,

    “लगभग सभी आ चुके हैं... अब हम प्रोजेक्ट पर डिस्कशन शुरू करें।”

    मिस्टर गोयल ने हल्के से मुस्कुराते हुए टोका,

    “मिस मल्होत्रा, क्यों न प्रेसिडेंट साहब का थोड़ा इंतज़ार कर लें? उनके इनपुट ज़रूरी होंगे।”

    ईरा ने घड़ी की ओर देखा, फिर गोयल की ओर नज़र टिकाई —

    “एक घंटा हो गया, मिस्टर गोयल। अब और इंतज़ार नहीं होगा।”

    गोयल ने सिर हिलाकर हामी भरी और मीटिंग आगे बढ़ी।

    प्रोजेक्ट को लेकर डीप डिक्शन हुआ और मीटिंग जल्दी खत्म हो गई।

    सभी लोग अपनी फाइलें समेटते रहे थे तभी उनमें से एक ने कैजुअली पूछा —

    “बाय द वे, ये प्रेसिडेंट... और मिस्टर अग्निहोत्री हैं कौन?”

    कुछ पल के लिए रूम में हल्की खामोशी छा गई। तभी रुद्र, जो अब तक शांत था, एक नज़र ईरा पर डालता है — न वो मुस्कुराया, न कुछ बोला... बस अपनी फाइल उठाई और बाहर निकल गया। ईरा वही टेबल पर बैठी थी, बाकी सब जा चुके थे।

    उसके कानों में अभी भी वही सवाल गूंज रहा था — "ये प्रेसिडेंट... और मिस्टर अग्निहोत्री हैं कौन?"

    ईरा ने एक गहरी साँस ली और फिर बोली —

    “मिस्टर गोयल, मुझे आपसे अकेले में बात करनी है।”

    अब मीटिंग रूम में कोई और नहीं था। ईरा सीधा बोल पड़ी — “मैं ये प्रोजेक्ट छोड़ना चाहती हूँ।”

    गोयल थोड़े हैरान हुए, “कोई खास बात, मिस ईरा?”

    ईरा शांत स्वर में बोली, “मैंने कहा, मैं सिर्फ इस प्रोजेक्ट की पोजिशन से हटना चाहती हूँ। आप चाहें तो हमारी कंपनी से किसी और को असाइन कर सकते हैं। हमारी टीम में बहुत टैलेंटेड लोग हैं।”

    गोयल ने थोड़ा गंभीर होकर कहा —

    “आपकी बात सही है मिस ईरा… लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते।

    आप पहले ही कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर चुकी हैं।

    और अगर कोई बदलाव पॉसिबल है तो… सिर्फ प्रेसिडेंट या मिस्टर अग्निहोत्री ही कर सकते हैं।”

    ईरा ने एक गहरी सांस ली — “मतलब… ये पॉसिबल नहीं है।”

    गोयल ने विनम्रता से कहा —

    “कुछ प्रोजेक्ट्स के अपने प्रोटोकॉल होते हैं, मिस ईरा। जिन्हें फॉलो करना पड़ता है।।और ये बात आप अच्छी तरह से जानती है।”

    इतना कहकर दोनों उठे और मीटिंग रूम से बाहर निकल गए।

    ईरा कार ड्राइव करते हुए बड़बड़ाई —

    “Oh damn it... अब इनकी शक्ल देखने की आदत डाल ले ईरा। बस इस प्रोजेक्ट तक, एंड कंट्रोल योरसेल्फ!”

    और थोड़ी ही देर में, वो घर भी पहुंच चुकी थी। जहां डाइनिंग टेबल पर सब डिनर के लिए बैठे थे, लेकिन ईरा ने हल्के से मना कर दिया —

    "मुझे भूख नहीं है..." बस इतना कहकर वो सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।

    वो चुपचाप नहाकर आई, एक स्लीपिंग पिल ली… और बिना कुछ बोले सीधे अपने कमरे में चली गई।

    दिल्ली एयरपोर्ट, दोपहर लगभग 12 बजे।

    विधान का प्राइवेट जेट जैसे ही लैंड हुआ, वो बिना वक्त गंवाए अपनी कार में बैठा और लैपटॉप पर उस लोकेशन को ट्रैक करने लगा।

    "फास्ट, डैम इट!" — उसका गुस्सैल अंदाज़ ड्राइवर को सहमा गया।

    गाड़ी हवा से बातें करती हुई उस लोकेशन की ओर भागी जा रही थी।

    कुछ ही देर में, विधान तेज़ कदमों से उस पुराने से गेट के अंदर दाखिल हुआ… और फिर —

    जो सामने था… वो उसकी सोच से परे था। वो पल… जैसे किसी तूफान से पहले की खामोशी हो।

    (जारी)

    **********************************

    कौन है वो लड़की, जिसके लिए विधान इतना बेचैन है? और ये अग्निहोत्री, ये शख्स आखिर है कौन? आगे जाने के लिए मिलते है नेक्स्ट चैप्टर में......

    आप लोग पढ़ लेते हो कमेंट तो करो यार, थोड़ी हमे भी हिम्मत मिले! 😅🙏

    आपके फीडबैक से ही कहानी में जान आती है, तो ज़रूर बताना कैसा लगा! 😊✨

  • 17. Chapter 17

    Words: 1375

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब आगे :

    सामने ज़मीन पर एक लड़की की लाश पड़ी थी... बिल्कुल बेजान। देखने से लग रहा था कि उसे मरे हुए शायद दो-तीन दिन हो गए हो। उसके जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था... और शायद एक भी ऐसी जगह नहीं बची थी जहां ज़ख़्म ना हो। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके साथ हद से ज़्यादा बेरहमी की हो...इंसानियत से परे।

    विधान के कदम वहीं रुक गए। एक पल को उसका शरीर भी सुन्न पड़ गया। पीछे से जॉन ने बिना कुछ कहे अपना कोट उतारा... और धीरे से उस लड़की के ऊपर डाल दिया। विधान बहुत धीरे-धीरे उसके पास गया...

    और घुटनों के बल ज़मीन पर बैठ गया। उसका चेहरा एकटक उस लड़की की तरफ था...जैसे उसकी आंखें ये मानने को तैयार ही नहीं थीं कि जो सामने है, वो सच है।

    वो धीरे से आगे झुका...और कांपते हुए, हल्के से उसके गालों को छुआ…उसके हाथों पर चोट के हल्के निशान थे। और उसी पल… उसकी आंखें नम हो गई।

    तभी अचानक विधान बिना कोई रिएक्शन दिए... अपना वही ब्लैंक सा चेहरा लेकर उठा और सीधा जाकर गाड़ी में बैठ गया।

    जैक तुरंत उसके पीछे भागा —

    "सर, अब क्या करना है?"

    विधान ने बिना उसकी तरफ देखे, बस इतना कहा —

    "पोस्टमॉर्टेम करवाओ।"

    ये बोलकर उसने गाड़ी स्टार्ट की और वहां से निकल गया… एकदम शांत… लेकिन अंदर कुछ उथल-पुथल सी। वहीं पीछे, जॉन चुपचाप अपने काम में लग गया।

    उसी वक्त, विधान अपने प्राइवेट जेट से मुंबई के लिए रवाना हो गया।

    उसकी आंखों में कुछ नहीं था... बस एक अजीब सी खालीपन। उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा कि उससे कुछ अच्छा क्यों नहीं लग रहा। शायद इसलिए कि वो अपना वादा पूरा नहीं कर पाया... या फिर इसलिए कि कहीं अंदर ही अंदर कुछ टूट चुका था — हमेशा के लिए।

    {फ्लैशबैक}

    "प्लीज..."

    उसकी आवाज़ काँप रही थी, जैसे गले में कोई डर फँस गया हो।

    "मत जाओ... प्लीज़... वो लोग... वो मुझे मार देंगे..."

    उसके हाथ काँप रहे थे। चेहरे पर पसीना था, जैसे उसका बदन बुखार में तप रहा हो। वो अचानक पीछे हट गई — दीवार से टिक गई, जैसे खुद को किसी अनदेखे खतरे से बचा रही हो। उसकी आँखें में बहुत डर दिख रहा था।

    "विधान..."

    वो हौले से आगे आई — काँपती साँसों के साथ,और अगले ही पल सीधा उसके सीने से लिपट गई। उसकी उंगलियाँ उसकी शर्ट को कसकर थाम चुकी थीं, जैसे अगर उसने पकड़ छोड़ी — तो वो खुद भी बिखर जाएगी।

    "मुझसे अब और नहीं सहा जाएगा..."उसकी आवाज़ टूट रही थी,"प्लीज़... मुझे बचा लो..."

    विधान कुछ सेकंड तक एकदम सन्न था।उसकी साँस गहरी थी, और आंखों में… वो ख़ामोश गुस्सा, जो लावा बनकर भीतर उबल रहा था।

    उसने धीरे से उसे खुद से अलग किया,दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा —उसकी उंगलियाँ थरथरा रहीं थीं, लेकिन पकड़ अब भी मजबूत थी।

    "जब तक मेरी सांसें चल रही हैं..."वो बहुत धीमे पर पूरे यकीन से बोला,"कोई तुम्हे छू भी नहीं सकता।"

    फिर उसने थोड़ा झुककर उसकी आँखों में देखा —

    "तुममें जान बस्ती है मेरी... और मैं अपनी जान को यूँ टूटने नहीं दूँगा।"

    वो लड़की, काँपती हुई आवाज़ में फुसफुसाई —

    "अगर कुछ हो गया तो?"

    विधान का जबड़ा भींच गया, और उसकी मुठ्ठियाँ खुद-ब-खुद कस गईं।उसकी आवाज़ अब और गहरी हो गई थी —

    "तो उससे पहले उसे मुझसे टकराना होगा...

    और मैं — मर भी जाऊँगा फिर भी तुममें कुछ नहीं होने दूंगा।

    अगले ही पल —उसने उसे कसकर अपने सीने से लगा लिया। उसकी हथेलियाँ उसके बालों में थीं, और बाँहों की पकड़ में वो हिम्मत थी… जो टूटे हुए इंसान को भी खड़ा कर दे।

    उसने फुसफुसाकर कहा —"मैं हूँ न... अब कुछ नहीं होगा। और हा यहाँ जॉन भी है। तुम अकेली नहीं है हो"

    वो लड़की रोते हुए उसके सीने में मुँह छुपा गई।उसकी सिसकियाँ धीमी थीं,लेकिन उनमें वो सब कुछ था —जो उसने अब तक सहा था।

    विधान ने उसे और करीब खींचते हुए उसके गिले पलकों को चूमा फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे बहुत सॉफ्टली किस करने लगा।

    {फ्लैशबैक एंड}

    विधान ने एक झटके में अपना सिर हिलाया… जैसे खुद को उस सोच से बाहर निकाल रहा हो — और फिर वापस अपने काम में लग गया।सिर्फ एक घंटे में फ्लाइट मुंबई पहुंच गई। जैसे ही प्लेन लैंड हुआ, वो बिना टाइम वेस्ट किए सीधे अपने मुंबई वाले फार्महाउस की तरफ निकल गया।

    ---

    सहगल मेंशन, मुंबई

    रुद्र तेज़ी से कमरे में टहल रहा था, फोन उसके कान से लगा हुआ था।

    "कुछ पता चला?" उसकी आवाज़ सख़्त थी।

    फोन के दूसरी तरफ से जवाब आया —

    "नहीं सर… अब तक कुछ नहीं।"

    रुद्र ने गहरी सांस ली, फिर गुस्से में—

    "कुछ नहीं होगा तुमसे! लगता है सब खुद ही करना पड़ेगा!"

    उसने गुस्से में कॉल काट दी।

    अगले ही पल उसने अपने मैनेजर विक्रम को बुलाया।

    "सुनो, मेरी अबसेंस में पूरा काम तुम देखोगे। कोई अर्जेंट काम हो तो कॉल करना, वरना नहीं। समझे?"

    विक्रम ने तुरंत सिर हिलाया, "यस सर।"

    रुद्र ने उसकी तरफ देखा, ठंडे अंदाज़ में बस इतना कहा —"गुड।"

    और अगले ही दिन…रुद्र सहगल अमेरिका के लिए रवाना हो गया।

    ---

    एक हफ्ता बीत चुका था…हर किसी की ज़िंदगी अपनी-अपनी दिशा में बह रही थी…लेकिन कुछ था, जो अंदर ही अंदर उबल रहा था — इंतज़ार कर रहा था, फूट पड़ने का।

    ईरा अपने केबिन में बैठी लैपटॉप पर डेटा रिव्यू कर रही थी। उसकी निगाहें स्क्रीन पर थीं, तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ।

    "कम इन," ईरा ने नज़रें हटाए बिना कहा।

    सृष्टि अंदर आई, हाथ में एक फाइल लिए।

    ईरा ने उसकी ओर देखा — "जो काम दिया था, कम्प्लीट हुआ? और मिस्टर बत्रा कब आएंगे?"

    सृष्टि ने फाइल टेबल पर रखते हुए कहा — "Yes ma'am, हो गया है। और मिस्टर बत्रा आपको डायरेक्ट मीटिंग में जॉइन करेंगे।"

    ईरा ने हल्के में सिर हिलाया, "ओके, यू कैन गो।"

    सृष्टि ने दरवाज़ा बंद किया और बाहर निकल गई।

    ईरा वापस अपने काम में डूब गई। ऑफिस का बाकी काम निपटाकर वो मीटिंग के लिए निकल पड़ी — लेकिन आज की मीटिंग किसी बोर्डरूम में नहीं, विधान के फार्महाउस में थी।

    लोकेशन पर पहुंचकर वो कार से उतरी और चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई।

    "चलो... कहीं तो अच्छी जगह आई इन बुरे दिनों में," उसने खुद से कहा और धीमे क़दमों से अंदर की ओर बढ़ गई।

    जगह वाकई बेहद खूबसूरत थी — हर चीज़ में एक एलिगेंस था। सामने फैला गार्डन, दूर तक हरियाली और बीच में बना मॉडर्न ग्लास-वर्क वाला फार्महाउस। ईरा ने इधर-उधर देखा, उसकी आँखों में एक हल्का सा इंप्रेशन झलक गया।

    "नॉट बैड," वो मुस्कराई।

    पीछे से आवाज़ आई, "हे ईरा!"

    वो मुड़ी। प्रोफेशनल ड्रेस में एक लड़का उसकी ओर आ रहा था — दिखने में वो भी कम नहीं लग रहा था।

    "तुम टाइम से आ गईं? कमाल है," उसने हँसते हुए कहा।

    ईरा भी मुस्कराई, "मैं हमेशा टाइम पर होती हूं मिस्टर सिद्धांत, आपकी तरह नहीं।"

    और फिर दोनों साथ अंदर चले गए।

    अंदर मीटिंग रूम में लगभग सभी लोग आ चुके थे — प्रोजेक्ट हेड्स, इन्वेस्टमेंट टीम, और कुछ इंडस्ट्री एग्जिक्यूटिव्स। सबका ध्यान टेबल पर बिखरी रिपोर्ट्स और स्क्रीन पर चल रहे प्रेज़ेंटेशन पर था।

    लेकिन तीन कुर्सियाँ अब भी खाली थीं —रुद्र जो अब तक नहीं पहुंचा था। प्रेसिडेंट भी नहीं और अग्निहोत्री सर की सीट भी खाली थी।

    ईरा ने अपना लैपटॉप खोला, एक नज़र नोट्स पर डाली… लेकिन उसकी निगाह बार-बार उस सेंटर वाली कुर्सी पर जा रही थी — प्रेसिडेंट की सीट।

    "काफ़ी सीक्रेटिव है ये नया प्रेसिडेंट…" उसने मन ही मन सोचा।

    अब तक न कोई फेस-टू-फेस मीटिंग, न कोई नाम।

    सिर्फ मेल्स, इंस्ट्रक्शन्स… और डील्स।

    ईरा की उंगलियाँ की-बोर्ड पर रुक गईं।

    "कौन है ये इंसान... जो सब कुछ कंट्रोल कर रहा है, और दिखता तक नहीं?"

    रूम में जितने लोग थे — सबके दिमाग़ में एक ही सवाल घूम रहा था: ये प्रेसिडेंट है कौन?

    थोड़ी ही देर में रुद्र भी आ गया।

    उसने एक पल ईरा को देखा, फिर बिना कुछ कहे चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गया।

    ईरा को वेट करना बिल्कुल पसंद नहीं था।

    वो जैसे ही उठने लगी, तभी मीटिंग रूम का दरवाज़ा खुला — और विधान अंदर आया।

    (क्रमशः)

    *****

    मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में...

    जहां सच्चाइयाँ और गहरी होंगी, और रिश्तों की परतें और खुलेंगी। तैयार रहना — क्योंकि कहानी अब रुकने वाली नहीं है।😉💥

  • 18. Chapter 18

    Words: 1888

    Estimated Reading Time: 12 min

    अब आगे :

    उसकी मौजूदगी में एक अजीब सी खामोशी फैल गई — और सब अपने आप खड़े हो गए।

    सिवाय रुद्र के।

    वो अब भी अपनी सीट पर रिलैक्स अंदाज़ में बैठा था, लेकिन उसकी नज़रें ईरा और विधान दोनों पर थीं।

    विधान की नज़र सीधी रुद्र पर गई और फिर एक पल के लिए उन तीनों के बीच हवा में कुछ जम सा गया। कोई शब्द नहीं बोले गए, फिर भी बहुत कुछ कहा जा चुका था।

    रुद्र की आँखों में गुस्सा था। विधान की आँखों में साफ़-साफ़ नफरत।और ईरा की आँखों मे चिढ़।

    विधान को देखकर ईरा के ज़ेहन में वही होटल वाला पल किसी रील की तरह चलने लगा। और उसी के साथ उसके जहन में ये सवाल आया — "ये आदमी यहाँ कर क्या रहा है?"

    विधान ने फिर ईरा की तरफ देखकर कहा, “बी पेशेंस, मिस मल्होत्रा।”

    ईरा कुछ कहे बिना अपनी सीट पर वापस बैठ गई।

    विधान मेन हेड चेयर पर बैठ चुका था, और उसके बराबर वाली कुर्सी पर थी ईरा।

    विधान ने चारों तरफ नज़र घुमाई और कहा,

    "सब आ चुके हैं, राइट?"

    तभी मिस्टर गोयल बोले —

    "लेकिन प्रेसिडेंट... मिस्टर अग्निहोत्री अब तक नहीं आए हैं।"

    जैसे ही सबके मुंह से 'प्रेसिडेंट' शब्द निकला, ईरा समेत बाकी लोग एक पल के लिए सन्न रह गए। सिवाय रुद्र और सिद्धार्थ के। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि विधान रायज़ादा ही प्रेसिडेंट है। नाम तो सबने सुना था… लेकिन चेहरा पहली बार सामने आया था।

    तभी अग्निहोत्री सर का सेक्रेटरी बोला —"सर आज आने वाले थे, लेकिन उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई, इसलिए वो मीटिंग अटेंड नहीं कर पाए।"

    ईरा ने बात झट से पकड़ ली और हल्की मुस्कान के साथ कहा,"वैसे मिस्टर मेहरा भी काफ़ी टाइम से गायब हैं..."

    इतना कहकर उसने सीधा विधान की ओर देखा।

    विधान ने एक पल उसकी बात सुनी, फिर तेज़ आवाज़ में कहा —

    "मीटिंग पर फोकस करें, मिस मल्होत्रा। जिस काम के लिए आप लोग आए हैं, बात वहीं तक रखी जाए।"

    विधान की आवाज़ अब और ज़्यादा गंभीर हो गई थी —

    "एज यू ऑल नो ये प्रोजेक्ट करोड़ों का है। और इतना बड़ा प्रोजेक्ट हर कंपनी अकेले नहीं संभाल सकती — इसलिए इसे तीन हिस्सों में बाँटा गया है।"

    "तीनों फेज़ अलग-अलग लोकेशन से ऑपरेट होंगे — अमेरिका, सिंगापुर और इंडिया।"

    उसने स्क्रीन की तरफ इशारा किया जहाँ एक चार्ट दिख रहा था।

    फर्स्ट फेज— शेयर और इन्वेस्टमेंट बेस्ड।जितना ज़्यादा पैसा लगाओगे, उतना ही ज़्यादा प्रॉफिट होगा।लेकिन याद रहे — रिस्क भी उतना ही बड़ा होगा।" सेकंड फेज — प्रोडक्ट लॉन्च और स्केलिंग। हर कंपनी को अपने-अपने प्रोडक्ट्स मार्केट में लाने होंगे। जितना ज़्यादा स्टॉक, उतनी ही ग्रोथ।" थर्ड फेज — लक्ज़री और इंफ्रास्ट्रक्चर।बिल्डिंग्स, फैक्ट्रियाँ, हाई-एंड प्रोजेक्ट्स।

    लेकिन यहाँ हम सिर्फ एक लोकेशन चुनेंगे — जहाँ इन्वेस्टमेंट सबसे ज़्यादा प्रॉफिट देगा।" फिर उसने एक पल सबकी तरफ देखा — "आप सबको अपने-अपने प्रेजेंटेशन तैयार करना शुरू करो। एंड आई वांट ओनली रिजल्ट्स नो एक्सक्यूजीस।"

    इतना कहकर वह अपनी सीट से उठा और उसके साथ बाकी सभी लोग भी खड़े हो गए।

    "आई होप एवरीथिंग इस क्लियर।"

    लेकिन इस दौरान पूरे वक़्त सिद्धांत की नज़र सिर्फ विधान पर टिकी थी — और ये बात विधान ने भी साफ़ महसूस की।

    फिर भी, उसने एक पल के लिए भी रुकना ज़रूरी नहीं समझा। बस जाते-जाते एक ठंडी आवाज़ में बोला —

    "मीटिंग इज़ ओवर।"

    और फिर… बिना किसी की ओर देखे, बिना कोई जवाब सुने — वहाँ से चला गया। पूरी मीटिंग के दौरान एक अजीब सी खामोशी छाई रही। तीनों का आमना-सामना हो चुका था — और उस कमरे की हवा अब हल्की नहीं रही थी।

    ईरा के लिए ये सब बर्दाश्त करना आसान नहीं था। उन दोनों के साथ एक ही टेबल पर बैठना ही काफी भारी लग रहा था — और अब तो साथ काम भी करना था।

    वहीं दूसरी तरफ, विधान बालकनी में खड़ा था। हाथ में सिगरेट थी। वो गहराई से एक कश लेते हुए चुपचाप रुद्र को जाते हुए देख रहा था — जो बिना एक शब्द बोले मीटिंग रूम से बाहर निकल गया।

    ईरा अपने ऑफिस लौट गई थी। आज वो घर नहीं जाना चाहती थी। काम में खुद को डुबो देना ही शायद इस वक़्त उसका सबसे सेफ ऑप्शन था।

    ईरा अपने ऑफिस में अकेली बैठी थी। रात हो चुकी थी, मगर उसका लैपटॉप अब भी ऑन था। उसकी आँखें स्क्रीन पर थीं, लेकिन दिमाग कहीं और।

    वो एक रिपोर्ट सेव कर ही रही थी कि अचानक एक पॉप-अप मेल नोटिफिकेशन आया।

    सेंडर: अननोन

    सब्जेक्ट:यू स्टिल रिमेंबर राइट?

    ईरा का कर्सर कुछ सेकंड्स तक स्क्रीन पर रुका रहा।

    फिर जैसे ही उसने मेल ओपन किया, बस एक लाइन दिखाई दी —

    इट वोज नेवर अबाउट बिजनेस... एंड यू नो दैट।"

    वो पल… जैसे वक्त थम गया हो। उसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर जमी रह गईं। और ठीक उसी पल —उसके ज़ेहन में वो रात चलने लगी…

    एक पुरानी लॉबी… कुछ अधूरी बातें… और एक नज़र — जो आज भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। उसने धीरे से लैपटॉप बंद किया। ईरा ने सर टेबल पर रख दिया और आंखें बंद कर ली।

    "तुम चाहो या ना चाहो, ईरा… सच तुम्हें ढूंढ ही लेता है।" वो आवाज़ अब भी कानों में जिंदा थी।

    विधान के पास एक कॉल आई। कुछ देर बात करने के बाद वो चुपचाप अपनी कार में बैठा और निकल गया।

    उधर रुद्र अपने काम से फुर्सत पाकर शहर के सबसे हाई-प्रोफाइल बार में पहुँचा — वो जगह जहाँ सिर्फ वही आते हैं जिनके पास ताक़त, पैसा और पागलपन हो।

    वो अपने प्राइवेट सेक्शन में बैठा था, हाथ में ग्लास, आंखें बाहर के डांस फ्लोर पर टिकी हुईं — जैसे कोई शोर को भी चुपचाप सुन रहा हो।

    तभी केबिन का दरवाज़ा खुला।

    तभी केबिन का दरवाजा खुला और एक लड़की रुद्र के करीब आई,उस लड़की ने काफी रिवीलिंग ड्रेस पहन रखी थी उसने रुद्र के शर्ट के बटन खोलते हुए सिड्यूसिंग टोन में — "बेबी... लेट्स हैव सम फ़न टुनाइट..."

    रुद्र ने एक नज़र उसे देखा, फिर उसकी कमर पकड़कर उसे सोफे पर गिराया। "ऑफकोर्स गर्ल..." ...ऐसा कहते हुए उसने उसकी गर्दन पर होठ रखे — और उसी वक्त अपनी बंदूक उसकी कनपटी पर टिका दी।

    वो लड़की चौंकी, लेकिन फिर भी मुस्कुरा कर बोली — "यू आर सो रूड..." ...और उसे दोबारा अपनी ओर खींच लिया।

    रुद्र धीमे से फुसफुसाया — "Ah-ha... तुमने मुझे छूने की कोशिश की... जबकि मैं 'पिक्सी' का हूँ।"

    लड़की हँसते हुए बोली — "हे... फॉरगेट अबाउट हर। शी इज़ नॉट मोर हॉट देन मी..."

    रुद्र ने उसकी ठोड़ी पकड़कर कहा — "Yeah... शी इज़ नॉट लाइक यू..." ...और अपनी बंदूक उसके चेहरे पर घुमाने लगा।

    लड़की की आँखों में एक अजीब सी सनक झलक रही थी, वो और करीब आकर बोली — "शी इज़ जस्ट अ स---"

    'धांय!' a

    एक गोली उसके सिर के आर-पार हो गई। वो लड़की वहीं ढेर हो गई। रुद्र शांत स्वर में बोला — "नो... शी इस नोट।"

    वो अपनी बंदूक घुमाते हुए उठा, कोट पहनकर बाहर निकल गया।

    जैसे ही रुद्र अपने केबिन से बाहर निकला, कुछ ही मिनट बाद अंदर काले कपड़े पहने हुए दो बॉडीगार्ड दाखिल हुए।

    वो बिना किसी घबराहट के लड़की की लाश उठाकर बाहर ले गए। न कोई सवाल, न कोई हड़बड़ी — जैसे ये सब पहले से तय था।

    उसी वक्त, शहर से कुछ दूर खड़ी एक ब्लैक SUV में विधान आराम से बैठा था। उसके सामने लैपटॉप खुला हुआ था — और स्क्रीन पर वही फुटेज चल रही थी।

    वो सिगार का एक कश लेते हुए हल्के से मुस्कुराया… फिर अपने सामने रखे व्हिस्की ग्लास को उठाकर फुसफुसाया —

    "प्यादा मिल गया बस… अब बारी वज़ीर की है।"

    फिर उसने लैपटॉप बंद किया, और गाड़ी स्टार्ट करके वहां से निकल गया।

    विधान कार में बैठा लगातार गाड़ी चला रहा था। उसका चेहरा शांत था, लेकिन उसके भीतर क्या चल रहा था — ये सिर्फ वो ही जानता था।

    शहर की चमकती लाइट्स बहुत पीछे छूट चुकी थीं। अब बस वीरान रास्ता था और सन्नाटा। शायद वो मुंबई से दूर किसी ओर जगह जा रहा था।

    कई घंटे बीत गए। फिर उसने गाड़ी रोकी। चारों तरफ सिर्फ सूखी रेत थी और बंजर ज़मीन। थोड़ी ही दूर पर एक मेंशन था — ब्लैक और गोल्डन शेड में बना हुआ, जितना खूबसूरत, उतना ही मिस्टीरियस।

    वो मेंशन के अंदर गया, गार्ड्स ने झुककर सलाम किया। फिर वो गार्डन की उस जगह पहुँचा जहाँ रास्ता खत्म हो जाता था। वही ज़मीन अचानक एक तरफ सरक गई... और एक सीक्रेट दरवाज़ा खुला।

    नीचे उतरते ही एक बेसमेंट नज़र आया। वो एक कमरे में दाखिल हुआ — हल्की रौशनी, सर्द दीवारें और बीच में एक शख्स... जंजीरों में जकड़ा हुआ।

    वो आदमी अधमरा था। उसके जिस्म पर कोड़े के निशान थे, कपड़े लहूलुहान। उसकी आँखों में दर्द था, लेकिन जुबान पर अब भी हिम्मत बाकी थी।

    वो ज़रा सा हिला, और दर्द से कराहते हुए बोला —

    "मार क्यों नहीं देते... रायज़ादा?"

    "तू मुझसे कुछ नहीं उगलवा सकता, रायज़ादा..." फिर वो बमुश्किल हँस पाया।

    विधान मुस्कुराया। उसने सिर हिलाया और इशारा किया। एक आदमी ने एक छोटा मेटल बॉक्स लाकर सामने रखा।

    विधान ने उस बॉक्स को खोला — और उसमें से वो टूल निकाला जो नाखून उखाड़ने के लिए इस्तेमाल होता है।

    वो शांति से उसके पास गया, और झुकते हुए बोला —

    "तो... क्या कहा था तुमने?"

    एक झटके में पहला नाखून उखाड़ दिया।

    "आआआह!"

    दर्द से उसकी चीख पूरे कमरे में गूंज गई।

    "तू कुछ नहीं कर सकता... तू—"

    फिर दूसरा नाखून भी निकल दिया।

    उस आदमी की चीख पूरे बेसमेंट में गूंज उठी, लेकिन विधान की आँखें शांत थीं।

    फिर तीसरा, फिर चौथा... धीरे-धीरे दोनों हाथों के सारे नाखून निकल चुके थे।

    वो शख्स तड़पता रहा, चीखता रहा — मगर विधान शांत रहा। जैसे उसके लिए ये सब नॉर्मल था। और इस बात में कोई शक भी नहीं।

    उसने अपने पैर से उसकी हाथों की उंगलियों को कुचल दिया। फिर उसके गले को पकड़ते हुए नीचे झुककर कहा —

    "जानवरों को काबू ने रखना... और इंसानों से सच्चाई निकलवाना। मुझे दोनों में मजा आता है।"

    उसने पीछे मुड़कर कहा — "ले जाओ इसे... शेरों के पास।"

    बॉडीगार्ड्स ने उसे घसीटते हुए उस पिंजरे में फेंका — जहाँ अंदर पंद्रह दिनों से भूखे शेर घूम रहे थे।

    वो शख्स चिल्लाया — "रुको! बताता हूँ सब! प्लीज़! मत—"

    लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

    विधान ने अपने खून से सने हाथ पोंछे और मुस्कराकर कहा — "अब आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है..."

    अगले ही पल उसकी चीखें बेसमेंट में गूंजने लगीं। कमरे की दीवारें हिलने लगीं, और विधान बस शांत खड़ा देखता रहा — चेहरे पर वही डेविलिश सुकून।

    कुछ देर बाद, उसने कहा — "निकालो इसे बाहर।"

    आदेश मिलते ही गार्ड्स उसे खींचकर बाहर लाए। उसके हाथ-पैर से मांस लटक रहा था, शरीर की हालत पहचानने लायक नहीं थी। उसकी हालत इतनी बुरी थी कि ज़िंदा और मुर्दा के बीच की लकीर धुंधली लगने लगी थी।फिर उस पर लाल चींटियाँ डाल दी गईं — ताकि जो ज़ख्म बचे थे, वो उनमें मरहम लगा दे। इन विधान लैंग्वेज।

    विधान उस शख्स की आखिरी चीख तक वहीं खड़ा रहा —आंखें बंद किए, हर चीख को महसूस करते हुए... जैसे वो हर दर्द उसके लिए सुकून जैसा हो। थोड़ी देर बाद,जब चीखे बंद हुई। उसने जैकेट पहनी... और सीधा मेंशन के बाहर निकल गया।

    to be continued....

    *****

    मिलते हैं… अगले चैप्टर में —

    जहाँ कुछ जवाब मिलेंगे, और कुछ सवाल और गहरे हो जाएंगे। क्योंकि कहानी अभी खत्म नहीं हुई है… बस चालें बदल रही हैं।

    😈✨

  • 19. Chapter 19

    Words: 1442

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब आगे :

    ईरांशी जो अपने केबिन में ही सो गई थी, उसके चेहरे पर सूरज की हल्की रोशनी पड़ रही थी और उस पल वो बेहद प्यारी और खूबसूरत लग रही थी। उसने धीरे-धीरे अपनी पलकें खोलीं, और चेयर के हेडरेस्ट पर सिर टिकाकर दोबारा आंखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद, वो उठी और केबिन से लगे अपने पर्सनल रूम में चली गई। फ्रेश होकर और तैयार हो कर वापस आई और अपने काम पर लग गई।

    ईरांशी आज अपना सारा काम जल्दी निपटा कर घर के लिए निकल गई थी। जब वो घर पहुंची, तो देखा मायरा पहले से वहां मौजूद थी।

    ( जिनको क्लियर नहीं मै उनको क्लियर कर दू ईरांशी उर्फ ईरा है। अगर मैं ईरा या ईरांशी लिख दूं तो कन्फ्यूज मत होना।)

    ईरांशी सोफे पर बैठते हुए बोली, "तू इतनी जल्दी कैसे आ गई?"

    मायरा ने कंधे उचकाते हुए कहा, "जल्दी नहीं, अभी आई हूं। आज कोई सर्जरी नहीं थी तो निकल गई जल्दी।"

    ईरांशी इधर-उधर देखते हुए बोली, "और दादी?"

    मायरा फिर कंधे उचकाकर बोली, "पता नहीं।"

    तभी एक मेड उनके पास आई और सिर झुकाते हुए बोली, "मैम, मिसेज़ मल्होत्रा हॉस्पिटल में है।"

    अभी तक दोनों आराम से बैठे थे, लेकिन ये सुनते ही ईरांशी और मायरा एक साथ बोले, "व्हाट?"

    ईरांशी गुस्से में उठी, "ये बात आप अब बता रहे हो? और कौन से हॉस्पिटल में ले गए हैं दादी को?"

    मेड थोड़ी घबराई, "सॉरी मैम, वही हॉस्पिटल जहां मायरा मैम जाती हैं..."

    मायरा एकदम शॉक में रह गई।

    ईरांशी ने सख्त लहजे में कहा, "इट्स टू लेट। आप अब जा सकती हैं।"

    मायरा और ईरांशी हॉस्पिटल के लिए निकल गईं। रास्ते में दोनों चुप थीं, लेकिन बेचैनी साफ़ दिख रही थी।

    हॉस्पिटल पहुंचते ही मायरा सीधा रिसेप्शन की तरफ गई —

    "Mrs. मल्होत्रा कहाँ एडमिट हैं?"

    रिसेप्शनिस्ट ने स्क्रीन देखकर कहा — "मैम, फ्लोर नंबर 07 पर।"

    "ओके, थैक्स," मायरा ने जल्दी से कहा और दोनों एलिवेटर की तरफ बढ़ गईं।

    सातवें फ्लोर पर पहुंचकर जैसे ही दादी के रूम के पास आईं… तो अंदर का नज़ारा देखकर दोनों एक सेकंड के लिए रुक गईं।

    Mrs. मल्होत्रा आराम से स्ट्रेचर पर लेटी थीं… और सामने खड़ा एक यंग डॉक्टर (या कह लो बेचारा) उनसे गप्पों में उलझा हुआ था।

    दादी, पूरे फॉर्म में —

    "अरे तुम तो अच्छे-खासे दिखते हो… जवान हो… काम भी बढ़िया करते हो… शादी क्यों नहीं की अब तक?"

    डॉक्टर हल्का मुस्कुराते हुए कुछ बोलने ही वाला था कि दादी फिर शुरू —

    "वैसे मेरी भी दो बेटियां हैं, पोतियां भी हैं… एक से बढ़कर एक। तुम देख लो, पसंद आ जाएगी। लेकिन एक बात…"

    ईरांशी कमरे में दाखिल होते ही बोली —

    "कौन-सी बात दादी?"

    ईरांशी कुछ कहने ही वाली थीं, लेकिन जैसे ही उनकी नजर सामने खड़े लड़के आई मीन उस लड़के पर गईं वो चुप हो गई।

    ईरांशी ने उसी डॉक्टर की तरफ देखते हुए पूछा,

    "इनको क्या हुआ था, डॉक्टर?"

    डॉक्टर हल्की मुस्कान के साथ बोला —

    "फिक्र की कोई बात नहीं। आपकी दादी ठीक हैं। बस एक छोटा-सा हार्ट अटैक था। अब बिल्कुल स्टेबल हैं।"

    फिर हल्का सिर हिलाकर बोला, "अब मुझे जाना चाहिए।"

    ईरांशी ने धीरे से हामी भरी और एक गहरी सांस ली… ।लेकिन एक के तो जैसे सांस ही रुक गई थी — मायरा।

    वो जो अब तक ईरा के साथ थी, जैसे ही उस लड़के पर उसकी नजर पड़ी उसके कदम वहीं जम गए। वो बस दरवाज़े पर खड़ी रह गई उसके आँखें उस चेहरे पर टिकी थीं… और उसके होंठों से बस दो शब्द निकले —

    "व्योम खड़कर..."

    व्योम दरवाज़े पर रुककर मायरा के कान के पास आया और हल्की सी मुस्कान के साथ बोला —

    "यस बेबी, आई एम हेयर।"

    और फिर बिना पीछे देखे वहाँ से निकल गया।

    मायरा जैसे वहीं फ्रीज़ हो गई थी… उसकी आँखें उस दरवाज़े को देख रही थीं, जहाँ से वो गया था।

    उधर ईरा, जो दादी को डांट रही थी, एक पल के लिए रुकी और मायरा की तरफ देखा —

    "ओ मैडम, क्या इंविटेशन कार्ड छपवा दूं अब अंदर आने के लिए?"

    मायरा उसकी बात सुनकर हड़बड़ा गई —

    "हा… नहीं… मैं बस… वो…"

    कुछ बोल नहीं पाई, तो बस आँखें बंद करके गहरी सांस ली… फिर खुद को संभालते हुए दादी के पास जाकर बोली —

    " ऐसे हर किसी से बातें नहीं किया करते, और आप मुझे इनफॉर्म भी कर सकती थीं, दादी!"

    दादी बहुत कूल अंदाज़ में —

    "अगर कोई बात होती, तो करती न।"

    ईरा झुंझलाते हुए —

    "ये कोई छोटी बात थी, दादी? आपको हार्ट अटैक आया था! और आप जानती हैं..."

    दादी ने बात बीच में ही काट दी, वो भी अपने पूरे ठंडे, बिंदास अंदाज़ में —

    "हाँ हाँ, सब पता है मुझे… खतरनाक है, सीरियस है… लेकिन इतना समझ लो, ये बुढ़िया इतनी जल्दी मरने वाली नहीं है।

    तुम दोनों की शादी देखे बिना नहीं जाएगी ये जान…!"

    कमरे में एक सेकंड के लिए सन्नाटा छा गया… फिर ईरा और मायरा दोनों एक-दूसरे को देखने लगीं — जैसे सोच रही हों, “अब इस दादी को कौन समझाए यार!” 😅

    मायरा और ईरांशी हल्का सा हँस पड़ीं।

    ईरा ने दादी को गले लगाते हुए कहा —

    "नहीं… आप कहीं नहीं जाओगी, दादी।"

    मायरा ने छेड़ते हुए कहा —

    "और क्या… आपको अरु के बच्चे भी तो देखने हैं!"

    ईरा ने उसकी ओर देखते हुए धीरे से मारा —

    "चुप कर, पागल!"

    मायरा, मुस्कराते हुए दादी की तरफ देखने लगी —

    "देखो दादी, आपकी अरु शर्मा रही है!"

    दादी ने झट से जवाब दिया —

    "तेरे भी तो होंगे बच्चे!"

    मायरा चौंक गई — "कुछ भी दादी!"

    ईरा ने आंखें घुमाते हुए कहा —

    "और क्या… Just imagine…"

    मायरा – "Just shut up!" 😒

    दोनों फिर हँसते-लड़ते बातें करने लगीं… और वक्त बीतता गया।

    थोड़ी देर बाद नर्स आई और दादी को दवाई दे गई। दवा का असर होते ही दादी को नींद आ गई।

    ईरा अब सोफे पर चुपचाप बैठी थी, आंखें किसी सोच में डूबी हुईं।

    मायरा भी शांत थी… लेकिन उसके ज़ेहन में सिर्फ एक नाम घूम रहा था — व्योम।

    वक्त कब बीत गया… पता ही नहीं चला।धीरे-धीरे दोनों वहीं बैठे-बैठे सो गईं।

    शाम ढल चुकी थी।

    दादी ने धीरे-से आंखें खोलीं… और सामने देखा —

    मायरा और ईरांशी, दोनों एक ही सोफे पर सिर टिकाए बैठी-बैठी ही नींद में चली गई थीं।

    दादी ने उन्हें देख कर हल्की सी मुस्कान दी… और मन ही मन बोलीं —

    "हे भोलेनाथ… मेरी इन दोनों बेटियों को एक ऐसा जीवनसाथी दे दो… जो इनके दर्द को पढ़ सके, इनके चेहरे की हर खामोशी समझ सके…बस और कुछ नहीं चाहिए मुझे…"

    कुछ वक्त बाद…

    ईरा और मायरा दोनों अचानक तेज़ आवाज़ से उठ गईं।

    "मैम, ये दवाई जरूरी है… आपको लेनी ही होगी," — नर्स ने कहा।

    "एक बार कहा न, मैं नहीं लूंगी!"

    दादी की आवाज़ इस बार पूरी सख्ती में थी।

    ईरा ने चौंककर पूछा —

    "ये सब क्या हो रहा है?"

    नर्स ने हकलाते हुए कहा —

    "मैम दवाई नहीं ले रहीं…"

    ईरा तुरंत दादी की ओर मुड़ी —

    "दादी, आप दवाई क्यों नहीं ले रही हो?"

    दादी बिल्कुल बच्चों की तरह बोलीं —

    "क्योंकि बेटा जी… मेरा मन नहीं है!"

    मायरा ने टोन बदलते हुए कहा —

    "यहां आपकी मनमर्ज़ी नहीं चलेगी, दादी। आप ये दवाई लोगी… वरना मैं अपने तरीके से दूँगी!"

    दादी ज़िद पर अड़ी रहीं —

    "कहा न… मैं नहीं लूंगी!"

    ईरा ने गहरी सांस लेते हुए नर्स से दवाई ली —

    "ठीक है, आप जाइए… मैं देख लूंगी।"

    फिर ईरा ने दादी की ओर देखा —

    "अब बताओ, आप ये लोगी… या पापा को कॉल करूं?"

    दादी का चेहरा पल भर में बिगड़ गया।

    ईरा ने आंखें दिखाते हुए जोड़ा —

    "पापा को बुलाया तो वो इतनी दूर से आएंगे, और फिर आपको ये दवाई दिन में तीन बार और उनकी बातें चौबीसों घंटे सुननी पड़ेंगी।

    सोच लो…"

    दादी ने लंबी सांस ली, हार मानते हुए बोलीं —

    "ठीक है… ले रही हूँ।

    लेकिन उससे मत कहना… वरना मेरे आगे-पीछे चौबीसों घंटे ये सफेद और नीले इंसान (डॉक्टर-नर्स) घूमते रहेंगे!"

    और मुस्कुराते हुए दवाई ले ली।

    ईरा और मायरा एक-दूसरे को देख कर हँस पड़ीं। 😄

    दादी फिर हल्के अंदाज़ में बोलीं —

    "और अब तुम दोनों का क्या प्लान है? यहीं बैठी रहोगी पूरी रात?

    थोड़ा बाहर घूम आओ… अच्छा लगेगा।"

    दोनों ने एक साथ मना कर दिया।

    ईरांशी — "आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।"

    मायरा ने भी सिर हिलाकर हामी भर दी।

    दादी हँस पड़ीं —

    "अरे मैं कहां भाग रही हूँ… यहीं मिल जाऊंगी। अब चलो, थोड़ी हवा बदलो तुम लोग।"

    काफी मनाने पर ईरा और मायरा आखिरकार मानीं।

    दोनों घर जाकर कपड़े बदले… और क्लब की ओर निकल

    गईं।

    ---

    वो कोई शोर-शराबे वाली जगह नहीं थी, बल्कि एक...

    To be continued.....

    ******

    मिलते हैं अगले चैप्टर में। 😉

  • 20. Chapter 20

    Words: 1389

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब आगे:

    वो कोई शोर-शराबे वाली जगह नहीं थी, बल्कि एक बेहद शांत और सुकून भरी लोकेशन थी। क्लब के एक कोने में लोग लाउड म्यूज़िक पर डांस कर रहे थे… लेकिन ईरा और मायरा वहां नहीं थी।

    वो दोनों तो एक ओपन रूफ एरिया में जा बैठीं — जहां चारों ओर पहाड़ी पत्थरों से बना एक खूबसूरत आर्टिफिशियल वॉटरफॉल था… जिसका पानी एक साफ़ से तालाब में गिरता था। उस पानी में चाँद का पूरा अक्स साफ-साफ झिलमिलाता हुआ दिखाई दे रहा था — जैसे चाँद खुद उतर आया हो उस पानी में। जगह… सच में किसी पहाड़ी जन्नत से कम नहीं लग रही थी। दोनों दोस्त एक साथ टेबल पर बैठीं… और चुपचाप उस चाँद को देखने लगीं।

    मायरा ने चाँद को देखते हुए कहा —

    "ज़िंदगी बहुत बेदर्द है… ये हमेशा गलत वक्त पर सही जख्म देती है।"

    ईरांशी बस हल्के से — "हम्म…"

    एक पल चुप्पी रही। फिर मायरा ने मुस्कुरा कर ईरांशी की ओर देखा — "चल यार… डांस करते हैं।"

    ईरा पहले थोड़ा सोचती है… फिर खुद से बोली — "चलो… जो भी है, सोच के क्या होगा!"

    दोनों उठीं… और क्लब के उस सेक्शन में चली गईं जहां म्यूज़िक लाउड था और डिस्को लाइट्स हर तरफ चमक रही थीं। जैसे ही दोनों ने अंदर कदम रखा — सारा माहौल जैसे कुछ पल के लिए ठहर गया।

    ईरांशी इस वक्त एक सॉफ्ट सिल्क व्हाइट शॉर्ट ड्रेस में थी।एलिगेंट और बोल्ड लुक में। जबकि मायरा की डार्क ग्रीन फ्रॉक उसे बिल्कुल प्लेफुल बना रही थी। दोनों में एक ऐसा कॉन्फिडेंस था जो नज़रें खींच लाता है… और खिंच भी रही थीं।

    क्लब के एक कोने में खड़े दो लड़के धीरे से बोले —

    "भाई… ये ईरांशी मल्होत्रा है ना?"

    "हॉटनेस की भी कोई लिमिट होती है?"

    दूसरे ने मुस्कुराकर कहा —

    "सही पकड़े हो… लेकिन जो साथ है ना, वो भी कम नहीं। दोनों में आग है यार!"

    ---

    विधान उस आदमी को "ऊपर की टिकट" दिलवाने के बाद... पूरी रात कहां रहा, ये कोई नहीं जानता।

    सुबह ठीक 5 बजे उसकी गाड़ी मेंशन के गेट से अंदर दाखिल हुई। करीब दो घंटे उसने वर्कआउट करने के बाद पूरी एनर्जी, पसीना उसके चेहरे पर हीरे की तरह चमक रहा था। उसने शावर लिया और ऑफिस वर्क उसने घर से ही हैंडल किया।

    इसी बीच…

    उसके फोन की स्क्रीन अचानक ब्लिंक हुई। एक अननोन नंबर से सिर्फ दो शब्दों का मैसेज था —

    “इट्स रेडी।”

    उसने मैसेज देखा और फिर अपने काम निपटा कर विधान खुद ड्राइव करता हुआ मेंशन से निकला। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ब्लैंक था। करीब एक घंटे बाद, उसकी गाड़ी एक हाई-प्रोटेक्टेड बिल्डिंग के सामने रुकी।

    बिल्डिंग का नाम था —

    "Synapse X Research Facility."

    यह कोई आम जगह नहीं थी — यहाँ हाई-प्रोफाइल मेडिकल रिसर्च, जेनेटिक टेस्टिंग, और कुछ ऐसे एक्सपेरिमेंट होते थे जिनके बारे में बाहर की दुनिया को ज़रा भी खबर नहीं होती।

    विधान ने अपनी पहचान स्कैन करवाई — बायोमेट्रिक लॉक खुला… और वो अंदर दाखिल हो गया। उसके साथ कोई नहीं था — लेकिन वहां का सिक्योरिटी सिस्टम, निगरानी कैमरे और चारों ओर फैला सन्नाटा… बता रहा था कि ये जगह जितनी शांत है, उतनी ही खतरनाक भी।

    विधान लिफ्ट की ओर बढ़ा — "टिंग!" के आवाज के साथ लिफ्ट का दरवाज़ा सीधा 10वें फ्लोर पर खुला।

    जैसे ही वो अंदर आया — वहाँ एक शख्स पहले से खड़ा था… सफेद कोट, ग्लव्स पहने हुए, आंखों पर वाइट लैब गॉगल्स।

    "क्या पता चला?" — विधान ने पूछा

    वो शख्स हल्की मुस्कान के साथ बोला — "तू सही था… ये इशिता नहीं है।"

    विधान बिना कुछ कहे उसके पास गया… और लाश के सामने आकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर एक गहरी, लेकिन बेहद खतरनाक मुस्कान उभरी — "खैर... आइडिया बुरा नहीं था।"

    वो सफेद कोट वाला शख्स अब उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला — "मगर कामयाब नहीं हो सका… मेरे यार।"

    तभी दरवाज़ा खुला। जॉन अंदर आया।

    "प्रेसिडेंट..." — उसकी आवाज़ धीमी थी,

    "इस लड़की का नाम 'रिद्धि' है। नॉर्मल बैकग्राउंड से है। बाकी सब कुछ क्लियर है... लेकिन जॉब के बारे में आसपास किसी को कुछ नहीं पता।"

    जॉन ने एक फाइल बढ़ाई। विधान ने बिना कुछ कहे वो रिपोर्ट हाथ में ली — और उसकी नज़र अब भी लाश पर टिकी हुई थी…

    तभी वो सफेद कोट वाला लड़का अचानक बोल पड़ा —

    "ओह मिस्टर जॉन, इस जोन से बाहर निकल… अभी दोस्त है तो दोस्त वाला बिहेव कर यार, न कि विधान की बीवी की तरह!"

    फिर ओवरएक्टिंग करते हुए बोला,

    "यस प्रेसिडेंट… नो प्रेसिडेंट… आपकी हर बात सर आंखों पर प्रेसिडेंट…"

    उसका ये मजाक चलता ही जा रहा था… तभी उसने महसूस किया —

    किसी की घूरती हुई नज़रों का वज़न उसके चेहरे पर पड़ रहा है। धीरे-धीरे वो चुप हो गया। विधान अब तक बिना पलक झपकाए उसकी तरफ देख रहा था।

    उसकी आवाज़ बेहद ठंडी थी —

    "अपनी ज़ुबान को थोड़ा संभालकर चलाया करो, व्योम।

    और तुम…" — वो अब जॉन की तरफ मुड़ा — "मैंने कहा था काम के वक्त सिंसियर रहो… हर वक्त नहीं।"

    जॉन ने वैसे ही "हाँ" में सिर हिलाया… जैसे क्लास में सबसे सीधा बच्चा हेडमास्टर के सामने करता है।

    खैर… अब तक आप समझ ही गए होंगे कि ये सफेद कोट वाला शख्स, व्योम खटकर है। उम्र — 29 साल। प्रोफेशन — सक्सेसफुल सर्जन। और, हाँ… विधान रायज़ादा का क्राइम पार्टनर भी। बाकी बातें? वो धीरे-धीरे खुद ही सामने आएँगी।

    कहानी पर लौटते है।

    विधान इस वक्त एक सोफे पर आराम से… बैठा था, तभी व्योम ने तपाक से कहा,

    "बहुत दिन हो गए यार… चलो मस्ती करते हैं।"

    फिर एक पल के लिए दोनों को देखकर — "आई मीन, मेरे संत पुजारी 'विधान बाबा' सिर्फ शॉट लगाते हैं, बाकी का काम तो हमारे जिम्मे है... है न जॉन?" और जॉन को कोहनी मारी।

    विधान अपनी वॉच उतारते हुए बोला — "तुम जाओ… मैं नहीं आ रहा।"

    व्योम, आँखें मटकाते हुए — "तू चुपचाप चल… नहीं तो…"

    विधान ने आइब्रो उठाते हुए देखा — "नहीं तो?"

    व्योम (हंसते हुए) — "मुझे नहीं पता यार… बस तू चल!"

    जॉन भी अब बोल पड़ा — "चल न विधान, काफी टाइम हो गया… और इतने सालों बाद इंडिया आए हैं, थोड़ा एंजॉय कर लेंगे।"

    विधान (हल्की सांस छोड़ते हुए) — "ठीक है।"

    व्योम और जॉन ने ताली मारी जैसे कोई मैच जीत लिया हो।

    विधान, जाते-जाते हुए बोला— "ज़्यादा दिमाग दौड़ाने की ज़रूरत नहीं है… जो तुम्हारे पास है ही नहीं।"

    फिर तीनों अपने-अपने कपड़े बदल कर निकल पड़े। मुंबई का वो लक्ज़री बार रोशनी, म्यूज़िक और मदहोशी से भरा हुआ था। हर तरफ शोर था, मगर जैसे ही हमारे तीनों लड़के अंदर दाखिल हुए — पूरा माहौल पलट गया।

    विधान, व्योम और जॉन — तीनों अपने अलग-अलग स्टाइल में अंदर आए, और हर लड़की की नज़र बस उन्हीं पर टिक गई। किसी को उनका कॉन्फिडेंस पसंद आया, किसी को उनकी स्टाइल, और किसी को उनकी "no-f***s-given" वाली एनर्जी।

    व्योम हमेशा की तरह ब्लैक जैकेट और डीप ब्लू जीन्स में था। जॉन, सिंपल व्हाइट शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र में।
    और विधान… ने ग्रे निटेड स्वेटर, ब्लैक ट्राउज़र्स, व्हाइट स्नीकर्स पहने थे — आँखों पर ब्लैक शेड्स और कलाई पर एक स्लीक वॉच, जो उसकी पर्सनैलिटी पर बिल्कुल फिट बैठ रहे थे। तीनों सीधा अपने प्राइवेट सेक्शन में पहुंचे।

    विधान सोफे पर आराम से बैठ गया, उसकी नज़रें बार के क्राउड में नहीं थी बल्कि वो कुछ और हे सोच रहा था।

    "कुछ पता चला उसके बारे में?" — उसने बिना इधर-उधर देखे पूछा।

    व्योम, वाइन का एक सिप लेते हुए, पीछे सोफे से टिक गया — "मिल गई मेरे भाई… वो मुझे।"

    चेहरे पर वही पुराना, शरारती सी मुस्कान थी… लेकिन आंखों में शायद कुछ और।

    जैक खुश होते हुए आगे झुका — "कब?"

    विधान के चेहरे पर हल्की सी स्माइल आ गई, मगर वो चुप रहा।

    जैक, थोड़ा छेड़ते हुए — "अगर फिर से वो तुझे उसी रास्ते पर ले गई तो…?"

    व्योम आंखें बंद कर मुस्कराया — "इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा।"

    लेकिन ठीक उसी पल… उसकी नजर बार के एंट्रेंस की तरफ गई — और वहाँ… ईरांशी और मायरा खड़ी थीं।

    व्योम का चेहरा एक पल को थम गया। शायद किस्मत फिर वही रास्ता दिखाने वाली थी… जिसका दावा वो अभी-अभी ठुकरा चुका था।

    To be continued…

    ****

    तब तक पढ़िए, इस चैप्टर की परतों को महसूस कीजिए — और अगर अच्छा लगा हो, तो सपोर्ट ज़रूर करें।

    क्योंकि अगली कहानी… और भी इंटेंस, और भी गहरी होगी। ✨📖