वेदांश ठाकुर जो इंसान की शक्ल में शैतान है, वह गुस्से में आकर बदला लेने के लिए कर लेता है एक मासूम लड़की अंबिका को कैद अपनी दुनिया में अपने साथ हमेशा के लिए क्योंकि उसका भाई करता था उसकी बहन से प्यार, उस लड़के के मिडिल क्लास होने की वजह से वेदांश है... वेदांश ठाकुर जो इंसान की शक्ल में शैतान है, वह गुस्से में आकर बदला लेने के लिए कर लेता है एक मासूम लड़की अंबिका को कैद अपनी दुनिया में अपने साथ हमेशा के लिए क्योंकि उसका भाई करता था उसकी बहन से प्यार, उस लड़के के मिडिल क्लास होने की वजह से वेदांश है उन दोनों के रिश्ते के खिलाफ वह अपनी बहन की शादी अपने दोस्त और बिजनेस पार्टनर से तय कर देता है उसकी बहन की शादी वाले दिन होता है कुछ ऐसा, जिसकी वजह से शादी नहीं हो पाती और वेदांश उस बात का इल्जाम लगा देता है अंबिका पर और उसे कर लेता है अपने कमरे की चार दीवारी में कैद। जहां पर अंबिका है बिल्कुल बेबस, वह कुछ भी नहीं कर पाती वहां से निकलने के लिए और वेदांश के रहते उसके लिए वहां से निकल पाना भी ना मुमकिन है तो ऐसे में क्या करेगी वह? कैसे निकलेगी उस डेविल की कैद से क्या वेदांश इतनी आसानी से उसकी बात पर यकीन करेगा और उसे जाने देगा या फिर यह शुरुआत है एक नई कहानी की? जानने के लिए पढ़िए "Caged in Devil's Love"
वेदांश ठाकुर
Hero
अंबिका जोशी
Heroine
अक्षय जोशी
Side Hero
मिशिका ठाकुर
Heroine
देविका जोशी
Heroine
कार्तिक
Side Hero
तृषा खन्ना
Villain
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एक बहुत ही अंधेरा सा कमरा, जहां पर नाइट लाइट्स को छोड़कर सारी लाइट एक बुझी हुई थी और कमरे का इंटीरियर कलर का था इस वजह से इतनी कम लाइट ऑन होने की वजह से भी एकदम अंधेरा सा लग रहा था।
बेड के पास जलती हुई नाइट लैंप की रोशनी बेड के पास ही जमीन पर बैठी हुई एक लड़की के चेहरे पर पड़ रही थी।
वह लड़की काफी बुरी तरह से रो रही थी क्योंकि उसकी आंखें एकदम सूज चुकी थी और आंखें बहुत ही लाल थी अभी भी उसकी आंखों से लगातार आंसू निकालकर उसके गाल पर बह रहे थे।
उस लड़की के पास ही एक बहुत ही हैंडसम सा आदमी खड़ा हुआ था।
उसके चेहरे पर एकदम सख्त एक्सप्रेशन थे और वह थोड़ा सा इरिटेट लग रहा था शायद लड़की के इस तरह रोने की वजह से,
हल्की सी रोशनी उस आदमी के भी चेहरे के एक साइड पर पड़ रही थी और उसकी एक आईब्रो ऊपर उठी हुई थी।
उस आदमी ने एकदम सख्त लहजे में कहा, "तुम्हारा रोना धोना हो गया हो तो... चलो भी अब बिस्तर पर मुझे ज्यादा इंतजार करना पसंद नहीं है!"
जमीन पर बैठी उसे रोती हुई लड़की ने अपने आंसू पूछे और वह उठकर खड़ी हुई उसने इस वक्त कपड़ों के नाम पर सिर्फ एक वाइट शर्ट पहनी हुई थी उसके भी ऊपर के दो-तीन बटन खुले हुए थे वह दिखने में बहुत ही ज्यादा सेक्सी लग रही थी और लड़के की नजरे उस लड़की के बदन पर ही टिकी हुई थी और वह बहुत ही हवस भरी नज़रों से उसके बदन को ऊपर से नीचे तक देख रहा था।
उस लड़की के बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर कोई मेकअप भी नहीं था लेकिन फिर भी वह इस वक्त बला की खूबसूरत लग रही थी, उसके तीखे नैन नक्श, गुलाबी होंठ और खूबसूरत गोल चेहरा, यहां तक की लंबे काले घने बाल और बदन का एक-एक अंग सब कुछ उस आदमी को उस लड़की की तरफ और भी ज्यादा अट्रैक्ट कर रहे थे जबकि असल में उसकी हालात बिल्कुल भी ठीक नहीं थी क्योंकि काफी देर से वह लगातार रोती जा रही थी और उसकी सिसकी बंध चुकी थी।
"बस बहुत हुआ तुम्हारा ड्रामा..." - इतना बोलकर उस आदमी ने झुक कर उस लड़की को अपनी बाहों में उठाया और उसे लेकर सीधा बेड की तरफ ही बढ़ गया लेकिन उस लड़की के आंसू रुक ही नहीं रहे थे और वह लगातार रोती जा रही थी इसलिए उस आदमी ने उसे बेड पर बिठाया और उसके एक गाल पर अपने हाथ पर टच करते हुए उसने एक झटके से उस लड़की का चेहरा ऊपर किया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला, "बस भी करो जानेमन! वैसे अभी तो ऐसा कुछ किया भी नहीं है मैंने जो इतनी ज्यादा आंसू बहा रही हो, इन्हें बचा कर रखो अभी कुछ देर बाद काम आएंगे।"
उसकी ऐसी बात सुनकर उस लड़की एकदम अंदर तक सहम गई, उसे समझ आ रहा था कि वह किस बारे में बात कर रहा था और उस लड़की ने शायद खुद को उस दर्द के लिए तैयार भी कर लिया था।
उस लड़की ने अपना चेहरा फिर से नीचे झुका लिया तो उस आदमी जैसे अपनी जीत की खुशी में मुस्कुराया।
उसने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखकर उसे धकेलते हुए बेड पर लेटा दिया और फिर वहीं बैठ के किनारे पर बैठकर अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा।
और उसे ऐसे शर्ट के बटन खोलते हुए देखकर उस लड़की को पता नहीं क्यों अपने दिल में हलचल सी महसूस हुई जबकि उसे अंदर ही अंदर बहुत डर भी लग रहा था लेकिन फिर भी ना चाहते हो उसकी नजर उस आदमी की बॉडी पर जाने लगे उसकी बॉडी एकदम बसी हुई थी और बहुत ही ज्यादा अट्रैक्टिव उसके वेल बिल्ड मसल्स और चेस्ट एकदम साफ नजर आ रहे थे शर्ट के कुछ बटन खुलते ही।
उस लड़की ने शायद आज पहली बार ही किसी आदमी की बॉडी को इतने नजदीक से देखा था इसलिए शायद वह ऐसा फील कर रही थी, लेकिन फिर भी उसे आदमी की हेज़ल ग्रीन आइज उसे लड़की को सबसे ज्यादा उसकी तरफ अट्रैक्ट कर रही थी ना चाहते हुए भी इसीलिए वह लड़की उसकी आंखों में देखना अवॉयड कर रही थी।
जैसे ही उस आदमी ने नोटिस किया कि वह उसकी तरफ देख रही है तो उसके चेहरे की वो मुस्कुराहट और भी ज्यादा बड़ी हो गई और उसने कहा, "ऐसे नजरे चुरा कर नहीं सीधा भी देख सकती हो तुम और चाहो तो टच भी कर सकती हो I don't mind babe क्योंकि हम तो वैसे भी इससे कहीं ज्यादा आगे बढ़ाने वाले हैं।"
उस आदमी ने अपनी शर्ट उतार कर वही साइड में फेंक दी और उस की यह बात सुनते ही उस लड़की को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने तुरंत ही अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ कर ली क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उस आदमी भी ऐसा सोचे कि वह उसमें इंटरेस्टेड है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था।
हां, वो थोड़ा बहुत अलग सा महसूस कर रही थी जैसा उसने कभी नहीं किया लेकिन यह कैसी फीलिंग थी कि उसे समझ नहीं आ रही थी क्योंकि अभी तक तो बहुत जितना हेल्पलेस फील कर रही थी और उसका सिर्फ रोने और वहां से भाग जाने का मन कर रहा था पर अभी ये फीलिंग उसे भी पता नहीं क्यों लेकिन उसकी बेचैनी और दर्द को थोड़ा तो आराम दे रही थी, साथ ही उसके दिल को भी जो आज पहली बार ही अपनी धड़कन महसूस कर रहा था!
उस लड़की ने उसकी तरफ से नज़रें फेर ली तो पता नहीं क्यों उस आदमी को भी अच्छा नहीं लगा जबकि अभी तक वह उस लड़की के इस तरह से देखने को अच्छी तरह एंजॉय कर रहा था और उसे खुद पर काफी प्राउड भी फील हो रहा था लेकिन जैसे ही उस लड़की ने नज़र दूसरी तरफ कर ली तो उस आदमी तुरंत ही उसके सामने आकर बैठा।
हल्का सा झुककर उस लड़की के ऊपर आते हुए उस आदमी ने अपने दोनों हाथ उस लड़की के साइड में रख लिए और ऐसा करते हुए उसका चेहरा उस लड़की के चेहरे के एकदम सामने आ गया और उस लड़की का दिल काफी तेजी से धड़कने लगा कि वह हिम्मत भी नहीं कर पाई उस आदमी की तरफ देखने की जबकि उसे महसूस हो रहा था कि वह इस वक्त उसके कितने करीब था।
उस आदमी ने इस बार एक झटके से उसके चेहरे पर हाथ रखा और उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने करते हुए उसकी आंखों में देखकर बोला, "क्या देख रही हो उधर अब याद है ना तुम्हें तुम खुद ही मेरे साथ इंटिमेट होने के लिए राजी हुई हो इसलिए अगर तुमने अब कोई नखरे दिखाए तो फिर याद है ना, मैं क्या कर सकता हूं?"
यह बात बोलते हुए उस आदमी ने अपनी एक उंगली उस लड़की के माथे से लेकर उसके गाल पर फिर आई और उसे अपनी उंगली को नीचे उसकी गर्दन तक लेकर आने लगा।
उसके ऐसा करने पर उस लड़की को पता नहीं क्यों लेकिन अपनी सांसे रूकती हुई सी महसूस हुई उसे समझ आ रहा था कि वो आदमी उसे सेड्यूस करने की कोशिश कर रहा है और कहीं ना कहीं उसकी ऐसी हरकतें उस लड़की पर असर भी कर रही थी लेकिन बस वह इस चीज को अपने चेहरे पर दिखाना नहीं चाहती थी।
लेकिन जैसे ही उसने उस आदमी की ऐसी धमकी भरी बातें सुनी तो उसने तुरंत ही अपनी गर्दन मोड़ कर उसके चेहरे की तरफ देखा और थोड़े से गुस्से में बोली, "और क्या चाहते हो अब हां? हूं तो मैं यहां तुम्हारे सामने, तुम्हारे बिस्तर पर जो करना चाहते हो कर लो मेरे साथ, कर लो अपनी मर्जी पूरी। निकाल लो अपना गुस्सा और भड़ास मुझ पर, शायद इसी से तुम्हारा ईगो सेटिस्फाई हो जाए।"
उसके इस तरह से बोलने पर उस आदमी के चेहरे पर इतनी अच्छी मुस्कुराहट आई और उसने उस लड़की के चेहरे को अपने एक हाथ से एकदम कसकर पकड़ लिया और उसके दोनों गालों को दबाते हुए अपना चेहरा उसके चेहरे के एकदम नजदीक लाकर बोला, "ऐसे कैसे कर लूं, पहले भी बोल चुका हूं, मैं जबरदस्ती करने में भरोसा नहीं रखता क्योंकि अगर फोर्स ही करना होता तो इतना भी टाइम नहीं लगता मुझे।"
आंसू भरी बेबस निगाहों से उस आदमी की तरफ देखते हुए लड़की ने कहा, "तुम मुझे फोर्स ही कर रहे हो डायरेक्टली नहीं तो इनडायरेक्ट मजबूर करके..."
लड़की के लिप्स को अपने लिप्स से टच करते हुए उसे आदमी ने कहा,"अब बेवजह के इल्जाम मत लगाओ ऐसा तो कुछ भी नहीं किया मैंने अभी तक और मैं तो ये चाहता हूं कि तुम भी उतना ही इंजॉय करो जितना कि मैं.."
उस लड़की ने जलती हुई निगाहों से उसकी तरफ देखते हुए गुस्से में जवाब दिया, "एंजॉय? ऐसा कुछ नहीं होने वाला क्योंकि तुम ना तो मेरे हस्बैंड हो, ना मेरे लवर और ना ही मेरे क्रश तुम मेरे लिए सिर्फ एक बेरहम इंसान हो जिसे बस लोगों को मजबूर करके उनका फायदा उठाना आता है और इस वक्त भी तुम यही कर रहे हो। भले ही तुम जबरदस्ती नहीं कर रहे हो लेकिन तुमने मुझे मजबूर किया है और मुझे मजबूर करके तुम मेरा फायदा उठा रहे हो इसलिए मैं इस वक्त यहां पर.."
उस लड़की ने गुस्से में यह सब कुछ बोलना शुरू किया तो उस आदमी काफी ज्यादा इरिटेट हो गया और इरिटेट होकर उसने अपने होंठ उसके होठों से जोड़ दिए जिससे कि उस लड़की के बाकी शब्द उसके मुंह में रह गए और वह आगे कुछ बोल नहीं पाई लेकिन एकदम अचानक से उसे कुछ महसूस हुआ उस आदमी के इस तरह से किस करने पर और ना चाहते हुए भी उसकी आंखें एकदम हल्के से बंद हो गई और उस आदमी उसे ठीक उसी तरह किस करने लगा।
वह उसके होठों को सक करते हुए बहुत ही ज्यादा पैशनेट होकर उसे किस कर रहा था और पिछली बार की तरह इस बार भी उसने उस लड़की के निचले होंठों को हल्के से बाइट कर लिया, जिसकी वजह से उस लड़की के मुंह से एक हल्की सी मीठी सिसकारी निकल गई।
"आह्!!"
इसके बाद वह आदमी बिल्कुल भी नहीं रुका और एक ही झटके में उसने लड़की की शर्ट को निकाल कर साइड में फेंक दिया और उस लड़की के पूरे बदन पर उस आदमी के हाथ हरकत कर रहे थे।
लड़की भी अब उसके उन टचेस को काफी हद तक इंजॉय करने लगी थी लेकिन फिर वो पूरी तरह से उसका साथ नहीं दे रही थी।
उस लड़की ने बेड पर बिछी हुई चादर को अपने हाथ की मुट्ठी में एकदम कस कर पकड़ लिया था और लड़की की पीठ बिस्तर से थोड़ा ऊपर हवा में उठी हुई थी और उसकी आंखें एकदम कसकर बंद थी।
उसने अपने होंठ उस लड़की की गर्दन पर रखे और धीरे-धीरे उसे किस करते हुए नीचे की तरफ बढ़ने लगा।
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उस लड़की ने बेड पर बिछी हुई चादर को अपने हाथ की मुट्ठी में एकदम कस कर पकड़ लिया था और लड़की की पीठ बिस्तर से थोड़ा ऊपर हवा में उठी हुई थी और उसकी दोनों आंखें एकदम कसकर बंद थी।
उस आदमी ने अपने होंठ उस लड़की की गर्दन पर रखे और धीरे-धीरे उसे किस करते हुए नीचे की तरफ बढ़ने लगा।
उस लड़की ने अपनी आंखें बंद कर लीं और ना चाहते हुए भी उसके हाथ उस आदमी के बालों में आकर उलझ गए। उसने बहुत ही कसकर उसके बालों को पकड़ा हुआ था।
कुछ देर बाद, अब दोनों की बॉडी पर कोई कपड़े नहीं थे।
वो उस लड़की की बॉडी को देखकर बोला, "Your Body Is So Soft and smooth! और जब भी इसे छूता हूं, तो ऐसा लगता है कि इस पर मेरे हाथों के भी निशान बन जाएंगे।"
वो आदमी धीरे-धीरे अपने होठों की छाप उसके बदन पर छोड़ रहा था और उस लड़की की मदहोशी भरी आवाज़ें वहां गूंज रही थीं। लेकिन वो अपनी आवाज को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी।
तभी उस आदमी ने उस लड़की के दोनों हाथों को पकड़कर खुद को उसके अंदर पुश किया, तो उस लड़की के लाख बर्दाश्त करने के बाद भी यह तेरी चीख निकल गई और उसकी एक आंख से आंसू भी निकलने लगा क्योंकि उसके लिए यह सब पहली बार था।
उस लड़की की एक तेज चीख उस कमरे में गूंज गई, उस आदमी ने लड़की का ध्यान बंटाने के लिए, दोनों के होठों को आपस में जोड़ दिया और उसे एकदम पैशनेटली किस करने लगा और साथ ही वो धीरे से उसके होठों को भी बाइट कर रहा था
लड़की थोड़ा सा कंफर्टेबल हुई और उसे किस बैक करने लगी फिर उस आदमी ने दोबारा से खुद को खुश किया और धीरे-धीरे पुश करने के बाद फिर उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी और फिर वह कमरा उन दोनों की तेज़ चलती सांसों और सिसकियों की आवाज से गूंज उठा, उस पल मैं वह दोनों पूरी तरह से एक दूसरे में समा चुके थे।
कुछ घंटों बाद, वह आदमी बेड से उठा और एकदम से अपनी पैंट पहन कर वहां से बाहर निकल गया उस लड़की को इसी तरह दर्द में अकेला बिस्तर पर छोड़कर लड़की ने भी एक नज़र उठाकर उस आदमी की तरफ नहीं देखा और चुपचाप कंबल में खुद को पूरी तरह से छिपा लिया शायद वह इस वक्त खुद से भी नज़रें नहीं मिल पा रही थी।
उस आदमी के कमरे से बाहर निकल जाने के कुछ देर के बाद, बेड के सामने लगे उस बड़े से शीशे में अपनी हालत देखते हुए उस लड़की ने अपने आप से कहा, "पता नहीं क्यों, क्यों मैं उस दिन यहां पर आई थी? शायद इस डेविल के पिंजरे में कैद होने के लिए और अब मैं इतनी बुरी तरह यहां पर फंस चुकी हूं शायद मैं अब यहां से कभी निकल नहीं पाऊंगी। शायद अब यही मेरी किस्मत है यह कमरा जो अब मेरी किस्मत बन चुका है यह चार दिवारी जहां पर शायद मैं हमेशा के लिए कैद होकर रह जाऊंगी।"
उस लड़की की गर्दन और पूरे बदन पर लव बाइट के निशान नजर आ रहे थे, उसने उठने की कोशिश की लेकिन उसके शरीर के निचले हिस्से में काफी ज्यादा दर्द हो रहा था जिसकी वजह से वह अपनी जगह से हिल भी नहीं पाई और काफी देर तक इस तरह वहीं बिस्तर पर लेटी रही, 1 महीने पहले जब से यह सब कुछ शुरू हुआ उन सारी बातों को याद करते हुए...
(फ्लैशबैक स्टार्ट....)
1 महीने पहले,
मुंबई शहर के वीआईपी इलाके में स्थित एक विशाल, सफ़ेद बंगले के सामने एक छोटी सी पीली ऑटो रुकी। बंगले का Main entrance ऊँचा और शानदार बना हुआ था, दूर से ही चमक रहा था। इसकी डिजाइन बेहद खूबसूरत थी। गेट के अंदर एक बहुत ही बड़ा, हरा-भरा बगीचा था, जिसके आगे एक शानदार, आलीशान बंगला बना हुआ था। इसकी Modern डिजाइन देखते ही बनती थी। बंगला इतना बड़ा था कि इसमें कम से कम दो-चार सौ लोग आसानी से आ जा सकते थे; शायद पचास से ज़्यादा कमरे भी होंगे। कम से कम बाहर से तो यही लग रहा था।
ऑटो रुकते ही, एक खूबसूरत लड़की, लाइट पिंक और व्हाइट कलर के सिम्पल से सूट में, ऑटो से उतरी। उसकी आँखें लाइट ब्राउन रंग की थीं और लंबे, काले बाल कमर तक आते थे। हाथ में एक बड़ा पर्स था। वह बंगले के Main entrance के सामने खड़ी हो गई।
इसी दौरान, एक average height का, गुड लुकिंग लड़का भी उसी ऑटो से बाहर निकला। उसने जेब से अपना वॉलेट निकालकर ऑटो वाले को पैसे दिए। ऑटो वाले के जाने के बाद वह लड़की के बगल में आकर खड़ा हो गया।
To Be Continued
हां तो कैसा लगा आपको पहला एपिसोड, बहुत ही ज्यादा रोमांटिक, इंटरेस्टिंग और सस्पेंस फुल लगा होगा ना? आप लोगों को आगे बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाली है यह स्टोरी, फ्लैशबैक यहां से स्टार्ट होकर आगे जाकर 18 या 20 एपिसोड तक चलेगा तो वहां पर हम प्रजेंट टाइम लिख देंगे उससे आप लोग समझ लेना, या फिर ऐसी सेम सिचुएशन आएगी तब भी आप लोग समझ जाओगे लेकिन अगर आप लोगों ने डिस्क्रिप्शन पढ़ा है तो थोड़ी बहुत ही स्टोरी समझ आई होगी आपको वैसे यह स्टोरी काफी इंटरेस्टिंग और डिफरेंट होने वाली है आप लोगों को ज़रूर पसंद आएगी।
बंगले के एंट्रेंस गेट के सामने खड़ी लड़की उस बंगले को देखकर कई तरह के ख्यालों में खोई हुई थी। आगे बढ़ने से पहले उसे घबराहट हो रही थी, जो उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
बगल में खड़े लड़के ने यह नोटिस करते हुए कहा,
"क्या हुआ दी, यहाँ क्यों रुक गई? चलो ना अंदर चलते हैं। वैसे भी, आज कितने दिनों के बाद तुम यहाँ आने के लिए राज़ी हुई हो और अभी भी इतना सोच रही हो?"
अपने भाई की बात सुनकर, अंबिका ने हैरानी से कहा,
"अक्षय! तू मुझे सही जगह पर तो लेकर आया है ना? यह इतना बड़ा महल जैसा घर है! मुझे तो लग रहा है हमें अंदर जाने भी नहीं देंगे। इतने सारे सिक्योरिटी गार्ड बैठे हैं।"
अक्षय ने जवाब दिया,
"अरे हाँ दी, मुझे अच्छे से पता है। मैं उसे कितनी बार यहाँ तक छोड़ने आया था जब हम कॉलेज में थे, और उसके बाद भी। यह उसका घर है, या यूँ कहें, उसके भाई का। एक बार अंदर चलो ना, कोई नहीं रोकेगा हमें। मीशा से बात हो गई है। उसने पहले ही अपने घर पर इन्फॉर्म कर दिया होगा। सबको पता है हमारे आने के बारे में।"
इतना कहकर अक्षय आगे बढ़ा, और अंबिका, चाहे कितनी भी घबराई हुई क्यों न हो, उसके पीछे-पीछे चलने लगी। उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वह अपने भाई अक्षय से बहुत प्यार करती थी। भले ही वह उससे सिर्फ़ दो साल बड़ी थी, लेकिन बड़ी बहन होने की ज़िम्मेदारी वह बखूबी निभाती थी।
अपने भाई की खुशी के लिए, उसे यह करना ही था। वे दोनों गेट के पास पहुँचे। वहाँ बैठे सिक्योरिटी गार्ड्स ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर अक्षय से कुछ कहा। अक्षय ने जवाब दिया, और गार्ड ने दरवाज़ा खोल दिया। वे दोनों अंदर आ गए।
अंबिका थोड़ी पीछे थी, इसलिए वह बातचीत नहीं सुन पाई। लेकिन गेट से बंगले तक का रास्ता काफी लंबा था। दोनों तरफ़ खूबसूरत बगीचा था, जहाँ तरह-तरह के पेड़-पौधे और सुंदरता से काटी हुई झाड़ियाँ थीं। छोटी-छोटी फूलों की क्यारियाँ भी लगी हुई थीं। घर बेहद खूबसूरत लग रहा था। अंबिका ने कभी इतने खूबसूरत घर की कल्पना भी नहीं की थी। यहाँ आने का मौका ही उसके लिए बहुत बड़ी बात थी।
अक्षय उतना हैरान नहीं लग रहा था, भले ही वह भी पहली बार घर के अंदर आया हो। लेकिन वह पहले बाहर तक आ चुका था और सब कुछ देख चुका था। उसे पता था कि उसकी गर्लफ्रेंड बहुत अमीर परिवार से है। उसने यह बात अपनी बहन को भी बताई थी, और कई दिनों से उसे मना रहा था। आज, अपने भाई और उसकी गर्लफ्रेंड के रिश्ते की बात करने, अंबिका यहाँ आई हुई थी। लेकिन उसे यकीन नहीं था कि इतने अमीर परिवार वाले उसके भाई के साथ रिश्ते के लिए मानेंगे। फिर भी, अपने भाई की खुशी के लिए वह यहाँ तक आ गई थी।
वे दोनों घर के अंदर जाने वाले दरवाज़े के सामने पहुँचे। अक्षय ने दरवाज़े पर हाथ रखा, और वह अपने आप खुल गया। उसे समझ आ गया कि यह ऑटोमेटिक गेट था।
वहाँ का सिक्योरिटी सिस्टम बेहतरीन था। चारों तरफ़ कैमरे लगे हुए थे, और गेट पर भी सिक्योरिटी सिस्टम था। लेकिन शायद पहले से ही ओपन था। दरवाज़ा खुलते ही, अक्षय ने पीछे देखा क्योंकि अंबिका उससे कुछ क़दम पीछे थी।
अक्षय ने इशारे से अंबिका को अपने साथ आने के लिए कहा, और फिर वे दोनों साथ में अंदर आ गए। वे कुछ ही क़दम अंदर आए होंगे कि एक बहुत ही खूबसूरत लड़की, पिंक कलर की शॉर्ट ड्रेस में, भागती हुई अक्षय के पास आई और उसके गले लग गई। उसके बाल कंधे तक आते हुए, ब्राउन कलर के कर्ल थे, और चेहरे पर पिंक ड्रेस से मैचिंग मेकअप था। उसने पिंक हील्स भी पहनी हुई थीं, लेकिन वह बिल्कुल भी अनकम्फ़र्टेबल नहीं लग रही थी।
लड़की एकदम से खुश होते हुए बोली,
"हाय बेबी! I missed you so much... कब से तुम्हारा ही वेट कर रही थी, चलो फाइनली तुम आ गए।"
अक्षय को देखकर वह लड़की बेहद खुश और एक्साइटेड लग रही थी। उसने अक्षय के दाएँ तरफ़ खड़ी अंबिका पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया।
अक्षय ने मुस्कुराते हुए उसकी पीठ पर हाथ रखा और आस-पास देखते हुए बोला,
"आने का वादा किया था, तो फिर कैसे नहीं आता। तुम्हें भी पता है ना मैं अपना वादा निभाता हूँ, चाहे कुछ भी हो जाए।"
अक्षय की बात पर उस लड़की ने सिर हिलाया और फिर साइड में देखकर अंबिका को देखकर बोली,
"आप अंबिका दी हैं ना?"
अंबिका ने उसकी बात के जवाब में बस हाँ में अपना सिर हिलाया।
वह लड़की कुछ ज्यादा ही स्माइल करती हुई बोली,
"थैंक यू सो मच दी, यहाँ आने के लिए! और आपको पता है अक्षय आपकी बहुत बातें करता है। वह आपको बहुत मानता है और आप उसके लिए सबसे इम्पॉर्टेन्ट हो।"
अंबिका ने भी इस बार हल्का सा मुस्कुरा कर कहा,
"हाँ, मुझे पता है। और वह भी मेरे लिए उतना ही इम्पॉर्टेन्ट है। इसीलिए तो मैं यहाँ आई हूँ, सिर्फ़ उसके लिए, तुम्हारे और अक्षय के रिश्ते की बात करने। लेकिन बात किससे करूँ? तुम्हारे अलावा तो और कोई नज़र ही नहीं आ रहा।"
एक लाइट ब्लू साड़ी पहनी हुई, लगभग 50 साल की औरत साइड से आते हुए बोली,
"सॉरी आप लोगों को इंतज़ार करवाने के लिए। और मिशिका, इस तरह मेहमानों को दरवाज़े पर कौन खड़ा रखता है? अंदर बुलाओ इन्हें।"
यह मिशिका की माँ थीं। उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उनकी बात सुनकर मिशिका ने अक्षय और अंबिका को अंदर बुलाया। लिविंग एरिया में एक बड़ा, मखमली सोफ़ा सेट था। मिशिका ने उन दोनों को बीच वाले सोफ़े पर बैठने के लिए कहा। वे दोनों ही बैठने वाले थे कि तभी एक भारी मर्दाना आवाज़ आई,
"लगता है मेरे बिना ही मीटिंग शुरू हो गई है।"
मिशिका ने उस तरफ़ आते हुए आदमी की ओर देखकर कहा,
"अरे नहीं भाई, आपके बिना कहाँ कुछ भी शुरू हो सकता है।"
मिशिका, उसकी माँ, अंबिका और अक्षय की नज़रें उस आदमी पर गईं।
नेवी ब्लू सूट में एक बेहद हैंडसम आदमी, हैज़ल ग्रीन आँखों और छह फ़ीट से ज़्यादा हाइट का, हल्की सी सेट बियर्ड और अच्छे से सेट बालों वाला। लेकिन चेहरे पर एकदम सीरियस एक्सप्रेशन था।
एक पॉकेट में हाथ डालकर सीधा चलता हुआ वह आदमी वहाँ आया जहाँ पहले से ही सब मौजूद थे।
मिशिका, उसकी माँ और अंबिका के साथ अक्षय की निगाहें भी उसी तरफ़ गईं जहाँ एक नेवी ब्लू सूट में एक बेहद हैंडसम दिखने वाला आदमी खड़ा था। उसकी हैज़ल ग्रीन आँखें थीं, कद 6 फ़ीट से ज़्यादा और हल्की-सी सेट बियर्ड थी। बाल भी अच्छे से सेट थे, लेकिन चेहरे पर एकदम सीरियस एक्सप्रेशन था। जेब में हाथ डालकर सीधा चलता हुआ वह आदमी वहाँ आया जहाँ पहले से ही सब थे।
उनकी तरफ़ आते हुए उस लड़के का आभा एकदम डार्क था और वह देखने में ही काफी खतरनाक लग रहा था।
उसे देखकर अंबिका को पता नहीं क्यों घबराहट सी होने लगी थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ा वहाँ पर होने वाला है। इसलिए बैठने से पहले वह उसकी तरफ़ देखते हुए अपनी जगह पर ही रुक गई थी, जबकि अक्षय सोफ़े पर बैठ चुका था। उसने अंबिका का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"दीदी, बैठो ना। ये मिशिका के बड़े भाई हैं, मिस्टर वेदांश ठाकुर।"
सामने से उन लोगों की तरफ़ आते हुए वेदांश की तरफ़ इशारा करते हुए अक्षय ने अंबिका को बताया। धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाते हुए अंबिका भी अक्षय के बगल में बैठ गई। जैसे ही वेदांश ने नज़र उठाकर अंबिका की तरफ़ देखा और उनकी नज़रें मिलीं, तो अंबिका को जैसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ और वह तुरंत ही नज़रें चुराती हुई इधर-उधर देखने लगी।
अंबिका को ऐसे घबराते देख वेदांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, लेकिन अपनी मुस्कान को छुपाते हुए उसने फिर से एकदम सीरियस चेहरा बना दिया और वहाँ पर जाकर सबके बीच में खड़ा हो गया। उसने एक नज़र सबकी तरफ़ देखी, लेकिन कुछ नहीं बोला।
फिर थोड़ा आगे चलकर वहाँ बीच वाले सोफ़े के सामने रखे हुए सिंगल सोफ़े पर बैठ गया। वह सोफ़ा काफी बड़ा और ऊँचा बना हुआ था; वह सोफ़ा सेट से भी मैच नहीं कर रहा था। डार्क रेड कलर का, वह एकदम किसी राजसिंहासन की तरह शानदार लग रहा था और वेदांश भी उस सोफ़े पर एकदम किसी राजा की तरह, लेग क्रॉस करके बैठ गया।
वेदांश की माँ और मिशिका दोनों ही दहशत भरी नज़रों से उसकी तरफ़ देख रही थीं। वहीं अक्षय और अंबिका के चेहरे पर मिले-जुले भाव थे। उन्हें ज़्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन वेदांश को देखकर मिशिका और उसकी माँ दोनों ही घबरा रही थीं; इतना तो वे दोनों समझ चुके थे।
वेदांश को अक्षय के बारे में पता था क्योंकि मिशिका पहले ही उसे अक्षय के बारे में बता चुकी थी, लेकिन इस वक़्त वेदांश की नज़रें अक्षय पर नहीं, बल्कि उसके बगल में बैठी हुई अंबिका पर टिकी हुई थीं। पता नहीं क्यों, लेकिन जब से वह यहाँ आया था, अंबिका पर से अपनी नज़रें हटा नहीं पा रहा था।
कुछ तो ऐसा था अंबिका में जो उसे अपनी तरफ़ आकर्षित कर रहा था और वेदांश भी उसे इस तरह देख रहा था जैसे कि उसमें पता नहीं क्या ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा हो।
अंबिका को भी उसकी नज़रें खुद पर महसूस हो रही थीं, इसलिए उसने एक बार भी सामने की तरफ़ नज़र उठाकर सीधे वेदांश की तरफ़ नहीं देखा था और वह उसे इग्नोर कर रही थी, जैसे कि वह उसे नज़र ही नहीं आ रहा हो। अंबिका को खुद समझ नहीं आ रहा था कि जिस इंसान से अपने भाई के रिश्ते की बात करने वह आई है, वह उससे ही नज़र क्यों नहीं मिल पा रही। आखिर ऐसा क्या खास है उसमें?
वेदांश के बैठते ही मिशिका ने उठकर उसकी तरफ़ आते हुए कहा,
"भाई, वो... ये अक्षय और उसकी दीदी, मैंने आपको बताया..."
मिशिका अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही वेदांश ने हाथ से इशारा करके उसे चुप रहने को कहा और अक्षय और अंबिका की तरफ़ गौर से देखते हुए बोला,
"हाँ, तुमने बताया तो था, लेकिन पूरी बात नहीं बताई थी मुझे।"
वेदांश की यह बात सुनकर मिशिका कन्फ़्यूज़ हो गई। उसे पहले ही काफी डर लग रहा था। ऊपर से वेदांश की ऐसी बातें सुनकर वह और घबरा रही थी। उसने अक्षय की तरफ़ देखा जो पहले से ही उसकी तरफ़ देख रहा था।
अक्षय कुछ बोल पाता, उससे पहले ही वेदांश अपनी जगह से उठा और अक्षय के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,
"अच्छा, तो तुम झोपड़पट्टी से सीधा महल में आने के सपने देख रहे हो? मेरी बहन से शादी करने के बारे में? तुम ऐसा सोच भी सकते हो? तुम्हारे जैसे इतने गरीब लोगों को इतने महँगे सपने भी नहीं देखने चाहिए। इतने बड़े सपने देखने का भी हक़ नहीं होता तुम जैसे लोगों को, लेकिन तुम शायद अपनी औक़ात भूल गए हो। कोई बात नहीं, मैं अच्छे से याद दिला दूँगा।"
वेदांश की ये बातें सुनते ही अंबिका और अक्षय दोनों एकदम ठिठक गए। अक्षय उसकी बात के जवाब में कुछ बोलने वाला था कि उससे पहले मिशिका वहाँ आगे आते हुए बोली,
"भाई! आप ये सब क्या बोल रहे हैं? मैंने आपको बताया था ना कि हम दोनों एक-दूसरे से कितना प्यार करते हैं और आप फिर भी ये सब बोल रहे हैं। अक्षय बिल्कुल भी ऐसा लड़का नहीं है और वो..."
मिशिका बोल ही रही थी कि अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही वेदांश ने गुस्से में घूरकर उसकी तरफ़ देखा और दाँत पीसते हुए बोला,
"चुप रहो तुम! मैं बात कर रहा हूँ ना, तुम्हें अभी तक बीच में बोलने को नहीं कहा है मैंने, जो इस तरह से बीच में बोल रही हो। तुम्हें पता है ना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कोई मेरी बात के बीच में बोले।"
वेदांश के इस तरह से देखने पर मिशिका एकदम चुप हो गई क्योंकि वह अपने भाई के गुस्से से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ़ थी और वह उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी। लेकिन साथ ही उसे अपने भाई के ऐसे बर्ताव की भी उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह इस वक़्त थोड़ी सी सदमे में थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसका भाई करना क्या चाहता था!
वह तुरंत ही साइड में आकर अपनी माँ के बगल में उनका हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और धीमी आवाज़ में बोली,
"माँ! ये भाई क्या कर रहे हैं? आप उन्हें रोको।"
मिशिका ने एकदम रिक्वेस्ट करते हुए अपनी माँ से कहा तो उसकी माँ ने बहुत ही बेबसी से अपनी बेटी की तरफ़ देखा और उसके हाथ पर धीरे से हाथ फेरते हुए कहा,
"मिशु! तुझे भी पता है वेदांश अपने आगे किसी की बात नहीं सुनता और मेरी तो बिल्कुल भी नहीं, लेकिन फिर भी मैं बात करके देखती हूँ एक बार।"
To Be Continued
कैसा रिएक्शन होगा अंबिका और अक्षय का? वेदांश की ऐसी बातों पर क्या वह लोग उसे मुँह तोड़ जवाब देंगे या फिर मिशिका की वजह से अक्षय खामोश रह जाएगा? और क्या हो पाएगा उन दोनों का रिश्ता ऐसी सिचुएशन में? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट सेक्शन में। वैसे अगला एपिसोड भी काफी इंटरेस्टिंग है।
मिशिका की माँ ने इतना बोलकर उसे समझाया। वह कुछ बोलने ही वाली थी कि उससे पहले ही वेदांश ने अक्षय की तरफ़ देखकर दोबारा कहा, "मैंने तुमसे कुछ कहाँ है? सुनाई दे रहा है तुम्हें या फिर नहीं? और तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरी बहन के सिर्फ़ एक बार बुलाने पर तुम यहाँ तक आ गए। कम से कम अंदर आने से पहले हमारे घर का साइज़ ही देख लेते। तुम्हारा पूरा मोहल्ला भी इतना बड़ा नहीं होगा जहाँ से तुम बिलॉन्ग करते हो और फिर भी तुम अंदर आ गए और इतनी हिम्मत कि यहाँ पर आकर मेरे सामने बैठ गए, मुझसे बात करने। वो भी इस उम्मीद में कि मैं तुम दोनों के रिश्ते के लिए मान जाऊँगा। ऐसा कभी नहीं होने वाला।"
वेदांश की बातें सुनता जा रहा था अक्षय। अब अक्षय भी बर्दाश्त नहीं कर पाया। इसलिए उसने एकदम से कहा, "देखिए सर! आप मीशा के बड़े भाई हैं इसलिए मैं आपकी रिस्पेक्ट कर रहा हूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मुझे कुछ भी बातें सुनाते जाएँगे और मैं चुपचाप सुन लूँगा। भले ही हमारा घर आपके जितना बड़ा नहीं है और हम लोग आपके जितने पैसे वाले नहीं हैं लेकिन हम भी रिस्पेक्टेड लोग हैं। हमारी अपनी इज़्ज़त है और हम यहाँ पर अपनी बेइज़्ज़ती करवाने नहीं आए हैं। मैं मीशा से प्यार करता हूँ इसलिए मैं यहाँ पर आया हूँ और अभी तक यहाँ पर बैठा हूँ सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके लिए क्योंकि मेरे लिए वह बहुत इम्पॉर्टेन्ट है।"
मीशा की तरफ़ देखते हुए अक्षय ने यह सब बोला। मीशा की आँखों में आँसू आ गए थे। लेकिन अक्षय ने यह सब बोल दिया। उसे बहुत अच्छा लगा। और इसीलिए वह उसे इतना प्यार करती थी क्योंकि उसे पता था अक्षय बहुत ही अच्छा इंसान है और वह उसे कभी भी धोखा नहीं देगा, और ना ही कभी उसे छोड़ेगा।
अक्षय ने बहुत ही मज़बूती से यह सारी बातें कही। तो वेदांश ने अपनी एक आईब्रो उठाकर उसकी तरफ़ देखा और बोला, "दो दिन नहीं चलता है तुम्हारे जैसे लोगों का यह प्यार। सब पता है मुझे... शादी के चार दिनों के बाद सारा प्यार हवा हो जाएगा।"
इतना बोलने के बाद उसने अंबिका की तरफ़ देखकर कहा, "वैसे तुम तो समझदार लगती हो, कुछ समझती क्यों नहीं अपने इस भाई को? क्या तुम्हें लगता है उसका और मेरी बहन का कोई मेल है? हमारे परिवारों के बीच कोई रिश्ता हो सकता है?"
इतनी देर से वेदांश की बातें सुनकर अंबिका भी किसी तरह अपने गुस्से को कण्ट्रोल कर रही थी क्योंकि वह कुछ भी बोलकर बात को और बिगाड़ना नहीं चाहती थी। लेकिन इस बार वेदांश ने जब सीधे उसके सामने आकर यह बात कही तो फिर उसे रहा नहीं गया।
अंबिका ने भी एकदम से ही उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "उन दोनों का मेल हो या नहीं लेकिन आप जैसे इंसान से हमारे परिवार का कोई रिश्ता तो कभी नहीं जुड़ सकता क्योंकि आप इस लायक ही नहीं हैं। पैसों की चमक-धमक और बड़े घर की रोशनी में आप अंधे हो चुके हैं कि आपको दो प्यार करने वाले लोग भी नहीं दिख रहे हैं और ना दिखाई दे रहा है अपनी बहन का रोता हुआ चेहरा। और मिस्टर वेदांश ठाकुर, मैं यहाँ पर आई तो थी अपने भाई के रिश्ते की बात करने लेकिन लगता नहीं आप बात करने के लायक भी हैं।"
अंबिका की बातें सुनकर वेदांश ने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा, "तुम्हारी इतनी हिम्मत! मेरे सामने कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं करता है और तुम हो कि मुझे आँख मिलाकर मेरी ही इन्सल्ट कर रही हो। तुम्हें पता है ना मैं कौन हूँ? मैं यहीं पर बैठे-बैठे तुम दोनों की पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर सकता हूँ।"
वेदांश ने गुस्से से उन दोनों की तरफ़ देखते हुए कहा। एकदम ही भड़कते हुए देखकर उसकी माँ ने बीच में आते हुए कहा, "वेदांश! बस बहुत हो गया। चुप करो। पहले तुमने ही ऐसी बातें बोलना शुरू की अब कोई भी होगा तो जवाब तो देगा ही ना। तुम्हें सुनने की आदत नहीं है तो क्या हुआ? बाकी सब चुप रहने वाले नहीं होते।"
अपनी माँ की बात सुनकर वेदांश ने गुस्से में उनकी तरफ़ देखा और कहा, "हाँ लेकिन आपको चुप रहने की आदत है ना तो आप चुप ही रहिए। आपको बोलने की ज़रूरत नहीं है। मैं बात कर रहा हूँ ना?"
वेदांश की यह बात सुनते ही मिशिका ने फिर से बीच में बोलते हुए कहा, "नहीं भाई! आप बात नहीं, इन्सल्ट कर रहे हैं मेरे सामने ही अक्षय और उसकी बहन की। मैं यह सब बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूँगी।"
वेदांश ने काफी लापरवाही से कहा, "हाँ तो ठीक है। तुम यहाँ से अपने रूम में चली जाओ। अभी वैसे भी इसके साथ तुम्हारी कोई शादी नहीं होने वाली और तुम इस लड़के को भूल जाओ। यह तुम्हारे लायक नहीं है।"
अक्षय तुरंत ही अपनी जगह से उठकर खड़ा होता हुआ बोला, "आप इस बात का फैसला नहीं कर सकते।"
उसके खड़े होते ही अंबिका भी उठकर खड़ी हो गई और उसने अक्षय के कंधे पर हाथ रखकर उसे शांत करने की कोशिश की।
गुस्से भरी लाल निगाहों से अक्षय को घूरते हुए वेदांश बोला, "मैं कर सकता हूँ क्योंकि वह मेरी बहन है, उसका अच्छा-बुरा मैं देखता हूँ और तुम उसके लायक बिल्कुल भी नहीं हो सकते। इसलिए अगर यह बात समझ आ गई हो तो दरवाज़ा उधर है।"
मिशिका ने दोबारा से बीच में बोलना चाहा, "भाई आप यह सब..."
वेदांश ने तेज आवाज में चिल्लाकर कहा,
"I said Just go to your room!"
वेदांश ने तेज आवाज में चिल्लाकर यह बात कही तो मिशिका काफी सहम गई। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और वह रोते हुए सीधा ही अपने कमरे की तरफ़ भाग गई। उसे रोते देखा उसकी माँ भी तुरंत ही उसके पीछे चली गई।
उसे इस तरह रोते हुए देखकर अक्षय और अंबिका दोनों ही उसी तरफ़ देखने लगे। उसके भाई का ऐसा बर्ताव देखकर अक्षय को मिशिका के लिए बहुत ही बुरा भी लगा लेकिन फ़िलहाल वह कुछ कर नहीं पाया।
वेदांश ने जब नोटिस किया कि अंबिका और अक्षय दोनों अभी भी वहाँ पर खड़े थे तो उसने काफी एटीट्यूड से कहा, "लगता है शायद कुछ और भी बातें सुनना चाहते हैं या फिर शायद इन्सल्ट अभी फ़ील नहीं हो रही है तुम लोगों को। वैसे तुम छोटे लोगों की यही दिक्कत है, बेइज़्ज़ती सहने की आदत होती है ना शायद इसीलिए..."
वेदांश की यह बात सुनकर अंबिका ने अक्षय का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ खींचते हुए कहा, "अक्षय चल यहाँ से..."
वह उसे खींचकर दरवाज़े की तरफ़ ले जा रही थी लेकिन तभी अक्षय ने मिशिका के कमरे की तरफ़ उंगली से इशारा करते हुए कहा, "दी लेकिन वो मीशा।"
अंबिका ने वेदांश की तरफ़ गुस्से से देखते हुए कहा, "उसका ख्याल रखने के लिए लोग हैं यहाँ पर और खासकर उसका यह भाई! हमें यहाँ उसके लिए रुकने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि और बेइज़्ज़ती नहीं सह सकती मैं। हम दोनों की, हमारी भी कोई इज़्ज़त है।"
अंबिका की इस बात पर वेदांश उन दोनों की तरफ़ देखकर इस तरह से मुस्कुराने लगा जैसे कि उनका मज़ाक उड़ा रहा हो। उसे ऐसे मुस्कुराते देखकर अंबिका का गुस्सा और भी बढ़ गया लेकिन उसने फ़िलहाल कुछ भी नहीं कहा। वह बस अक्षय का हाथ पकड़कर उसे वहाँ से अपने साथ बाहर लेकर चली गई।
उन लोगों के जाने के बाद वेदांश भी वापस ऊपर जाने वाली सीढ़ियों की तरफ़ ही बढ़ गया जहाँ से वह उतरकर आया था।
To Be Continued
क्या यहीं से ख़त्म हो जाएगा मिशिका और अक्षय का रिश्ता? और अब अगला कदम क्या उठाएगी वेदांश? क्या मिशिका मानेगी उसकी बात और भूल जाएगी अक्षय को? और अक्षय क्या चुप बैठेगा? इतना सब होने के बाद क्या करेगी अब अंबिका? जानने के लिए वेट करिए एपिसोड नंबर 4 का, जो कि कल आएगा। जब तक, दोनों एपिसोड पढ़कर कमेंट ज़रूर करिएगा।
4
अगले दिन शाम का वक्त,
एक बहुत ही बड़े अपार्टमेंट बिल्डिंग में 3 बीएचके फ्लैट और उस फ्लैट के अंदर अक्षय बहुत ही उदास सा बैठा हुआ था और उसके सामने अंबिका भी बैठी हुई थी।
अंबिका के हाथ में चाय का एक कप था, और दूसरा कप अक्षय के सामने भी रखा हुआ था, लेकिन अक्षय ने अब तक एक घूंट भी चाय नहीं पी थी। अंबिका ने जैसे ही यह नोटिस किया तो उसने कहा, "अक्षय, कम से कम चाय तो पी ले। वैसे भी तू ने कल से कुछ खाया नहीं है। ऐसा कब तक चलेगा?"
अंबिका की बात सुनकर अक्षय ने एक नजर उठाकर उसकी तरफ देखते हुए कहा, "दी, आपको पता है मिशिका ने भी कुछ नहीं खाया होगा। वह बहुत ही उदास होगी। मुझे बिल्कुल भी पता नहीं था कि उसका भाई ऐसा है। हां, वह बताती थी कि उसके भाई स्ट्रिक्ट हैं, कंट्रोलिंग हैं, और सब लोग उनसे डरते हैं, लेकिन वो ऐसे होंगे यह मैंने कभी नहीं सोचा था।"
अक्षय ने जैसे ही वेदांश के बारे में बात की, अंबिका भी एकदम गुस्से से बोली, "इतनी इज्जत देने की जरूरत नहीं है उस आदमी को जिसने हमारी इतनी बेइज्जती की। पता नहीं क्या समझता है वह वेदांश ठाकुर अपने आप को! अमीर है तो अपने लिए है, कौन सा हमें दे देगा जो ऐसे अकड़ दिखा रहा था और हमारी इतनी इंसल्ट की। फिर भी तू अभी भी उसकी बहन के बारे में सोच रहा है। अक्षय, भूल जा। तेरा और मिशिका का कुछ नहीं हो सकता, उसका भाई कभी भी नहीं मानेगा।"
अंबिका की बात सुनकर अक्षय ने तुरंत ही कहा, "नहीं दी। आप ऐसे कैसे बोल सकती हो, मैं नहीं भूल सकता मिशिका को। मैं उससे प्यार करता हूं, आपको पता है। हम दोनों 3 साल से साथ हैं और उसने कभी भी हमारे बीच के डिफरेंस को हमारे प्यार के बीच नहीं आने दिया। हमारे स्टेटस में चाहे जितना भी फर्क हो, लेकिन वह लड़की हमेशा मेरे साथ छोटी-छोटी चीजों में भी खुश रही दी। मैं वह सब नहीं भूल सकता और मिशिका को तो कभी भी नहीं।"
अक्षय की बात सुनकर अंबिका एकदम गुस्से से उठकर खड़ी होती हुई बोली, "हां! हां, सही है, उसको मत भूलना। लेकिन उसके भाई ने जो हम दोनों की बेइज्जती की, वह जरूर भूल जाना और चले जाना दोबारा से अपनी इंसल्ट करवाने। लेकिन अक्षय, मैं तुझे बता दे रही हूं। इस बार मैं इसमें तेरा साथ बिल्कुल नहीं देने वाली। मैं तेरे साथ उस घर में कभी नहीं जाऊंगी लेकिन अगर मिशिका तेरी पत्नी बनकर इस घर में आ गई तो उस बात से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं उसे पूरे दिल से एक्सेप्ट करूंगी, लेकिन बस उसका वो भाई मुझे उसकी शक्ल तक नहीं देखनी है। डैविल कहीं का, पता नहीं क्या समझता है खुद को? एक नंबर का शैतान लगा मुझे वह। यहां तक कि उसकी मां भी उससे डर रही थी। उसे अपनी मां तक से बात करने की तमीज नहीं है।"
वेदांश के बारे में सोचते हुए अंबिका एकदम ही गुस्से में आग बबूला हुई जा रही थी। तभी अक्षय ने उसे समझाते हुए कहा, "दी, आप प्लीज थोड़ा शांत हो जाओ। अमीर लोगों में इतना घमंड होता है। हर कोई मेरी मिशिका की तरह डाउन टू अर्थ नहीं हो सकता। आपको पता है दी, वह इतनी महंगी कार से आती थी, लेकिन फिर भी हमेशा मेरे साथ मेरी बाइक पर बैठना उसे पसंद था।"
अक्षय की ऐसी शायराना बातें सुनकर अंबिका ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "सच में, लोग प्यार में पागल हो जाते हैं। अब तक मैंने सुना था, लेकिन अब मैं देख रही हूं। मेरा भाई एकदम मजनू बन गया है मिशिका के प्यार में। लेकिन उसका भाई जो विलन बनकर बैठा है तुम दोनों के बीच, मुझे नहीं लगता वो रास्ते से हटेगा।"
अक्षय ने पूरे कॉन्फिडेंस से कहा, "हां दी, लेकिन अब तो मैं और ज्यादा दिनों तक मिशिका को वहां पर नहीं रहने दे सकता। अब जब मैंने उसके भाई का असली चेहरा देख लिया है तो उसके बाद तो बिल्कुल भी नहीं। मैं उसे वहां से निकाल कर रहूंगा और आपको पता है, मेरी मिशिका से बात हुई दी। उसके भाई ने उसे कमरे में बंद करके रखा है और उसे कहीं भी आने-जाने नहीं दे रहे हैं।"
अंबिका को ना तो अपने भाई की बातें समझ आ रही थी और ना ही जो कुछ वहां पर हुआ इसलिए इन सारी बातों को इग्नोर करते हुए वह अपनी जगह से उठकर खड़ी होते हुए बोली, "और क्या उम्मीद कर सकते हैं उस जैसे आदमी से? चल, छोड़। अब तू चाय पी ले, मैं जा रही हूं खाना बनाने। तू पापा को दवाई दे देना ध्यान से।"
इतना बोल कर अंबिका वहां से किचन में चली गई।
उसके जाने के बाद अक्षय ने अपने सामने पड़ा हुआ कप उठाया और एकदम ठंडी हो गई चाय को एक साथ ही पी गया और फिर अपने आप से बोला, "नहीं मिशिका, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं यार! हम दोनों साथ होंगे चाहे कुछ भी हो जाए, इसके लिए मुझे कोई भी कीमत चुकानी पड़े।"
यह बात बोलते हुए अक्षय की आंखों में एक अलग ही कॉन्फिडेंस नजर आ रहा था।
वहीं दूसरी तरफ, वेदांश का बंगला;
वेदांश किसी से फोन पर बात कर रहा था और जैसे ही उसने फोन पर बात करके कॉल डिस्कनेक्ट किया, मोबाइल फोन अपनी पॉकेट में रख रहा था कि तभी पीछे से उसकी मां ने आते हुए कहा, "वेद तू ये बिल्कुल भी ठीक नहीं कर रहा है। तुझे कोई हक नहीं बनता इस तरह से मिशिका की लाइफ का फैसला लेने का। वह अपनी लाइफ का डिसीजन खुद ले सकती है।"
अपनी मां की यह बात सुनते ही वेदांश ने गुस्से भरी नजरों से दूर कर अपनी मां की तरफ देखा और बोला, "हां, वह तो मैंने देखा ही था। कल उस लड़के की औकात देखकर। आपको पता भी है, मम्मी? वह और उसकी बहन ऑटो से यहां पर आए थे। उन लोगों के पास अपनी गाड़ी तक नहीं है। आपको क्या लगता है? ऐसे लोगों के साथ में अपनी बहन को भेज दूंगा? मेरी बहन को भी और आपको अपने घर लेकर जाते समय सीरियसली, आप लोगों को कभी याद भी है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आखिरी बार कब सफर किया था? और मिशिका, उसे तो ऐसी कार के अलावा और किसी चीज में बैठने की आदत भी नहीं है। उसे रैश हो जाती है, वह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाती है गर्मी और धूल मिट्टी। फिर कैसे वह ऐसे मिडिल क्लास लड़के के सपने देख सकती है? वह सब कुछ भूल सकती है, लेकिन मैं नहीं। मुझे अपना स्टेटस और अपनी पावर पोजीशन सब कुछ बहुत अच्छे से याद है और मैं मिशिका और उसके सो कॉल्ड प्यार के लिए यह सब कुछ दांव पर नहीं लग सकता।"
To Be Continued
कहानी में अब आगे क्या होने वाला है आगे क्या वेदांश अपनी मां की बात सुनेगा और क्या अपनी बहन के लिए वो बदलेगा और दूसरी तरफ क्या चल रहा है अक्षय के दिमाग में आखिर क्या करने वाला है वह और क्या अंबिका इन सब में उसका साथ देगी क्या लगता है आप लोगों को बताइए कमेंट में 👇🥰
वेदांश की ऐसी बातें सुनकर उसकी माँ ने कहा, "बेटा, प्यार इन सारी चीजों से बहुत बड़ा होता है। तुम्हें यह सारी चीजें नहीं पता। लेकिन मिशिका को सच्चा प्यार मिल चुका है और मुझे वह लड़का बहुत अच्छा लगा। मिशिका का वह हमेशा बहुत ध्यान रखेगा। और अगर मिशिका भी यही चाहती है, तो फिर क्यों नहीं एक बार तुम...?"
उसकी माँ अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही वेदांश ने उन्हें हाथ दिखाते हुए कहा,
"बात खत्म! बहुत हुआ। मुझे अभी इस बारे में कोई भी बहस नहीं करनी है। मैंने पहले ही मिशिका की शादी कहीं और करने का सोच लिया है। बस उन लोगों से बात करने की देर है। मुझे पता है कि वे लोग बिल्कुल भी मुझे मना नहीं करेंगे। इनफेक्ट, पूरे शहर में जितना भी अमीर बिजनेसमैन हो, कोई भी वेदांश ठाकुर को मना नहीं कर सकता है।"
वेदांश ने जैसे ही यह बात कही, उसकी माँ ने कहा,
"नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगी। मैं अपनी बेटी के साथ हूँ। तुम उसकी लाइफ ऐसे बर्बाद नहीं कर सकते वेद।"
वेदांश ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा,
"मैं ऐसा कर सकता हूँ और मैं ऐसा ही करूँगा। मुझे कोई भी नहीं रोक सकता, आप तो बिल्कुल भी नहीं।"
इतना बोलकर वेदांश घर से बाहर चला गया। उसके जाते ही वेदांश की माँ ने मिशिका के कमरे का लॉक खोला और उसके कमरे के अंदर आई। उन्होंने तुरंत मिशिका को अपना मोबाइल फोन देते हुए कहा,
"यह लो मेरा फोन और कॉल करके बुलाओ अक्षय को। तुम उसके साथ चली जाओ, यहाँ से बहुत दूर। मैं तुम्हें पैसे दे दूँगी और अपने कार्ड भी। क्योंकि अगर तुम यहाँ पर रहोगी तो वेदांश तुम्हारी शादी कहीं और करवा देगा। और मुझे पता है तुम अक्षय के अलावा किसी और लड़के के साथ खुश नहीं रह पाओगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, नहीं होने देना चाहती जो मेरे साथ हुआ।"
मिशिका की माँ ने यह सारी बातें कहीं। उनकी माँ की बात सुनकर मिशिका की आँखें हैरानी से खुल गईं। उसकी आँखें रोने की वजह से पहले ही सूजी हुई थीं और उसकी हालत भी काफी खराब लग रही थी, क्योंकि जब से वेदांश ने उसे कमरे में बंद किया था, मिशिका ने कुछ भी खाया-पिया नहीं था और लगातार रो रही थी। वेदांश ने रात को उसका फोन भी उससे वापस ले लिया था, जब उसे अक्षय से बात करते सुना था। तब से मिशिका का फोन भी उसके पास नहीं था और वेदांश की माँ को यह बात पता थी। इसीलिए उन्होंने मिशिका से यह सब कहा।
अपनी माँ की बात सुनते ही मिशिका तुरंत उनके गले लग गई और बोली,
"भाई मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? वह मेरे भाई हैं या फिर दुश्मन? मम्मी, वह मेरे सगे भाई तो हैं ना?"
मिशिका ने अपनी माँ की तरफ देखकर पूछा। उसकी माँ ने कहा,
"हाँ, सच कहूँ तो कभी-कभी मुझे भी यकीन नहीं होता कि वह मेरा ही बेटा है, लेकिन वह बिल्कुल अपने पापा की तरह है। अपने अलावा और किसी के बारे में नहीं सोचता और झूठी शान-शौकत के पीछे भागता रहता है जिसमें उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा। लेकिन यह बात उसे अभी समझ नहीं आएगी, कहीं बहुत देर ना हो जाए।"
मिशिका की माँ ने एक गहरी साँस ली। तभी मिशिका ने कहा,
"मम्मी, मैं किसी और से शादी नहीं करूँगी। मैं सिर्फ अक्षय से शादी करूँगी।"
इतना बोलते हुए मिशिका लगातार अपना सिर हिला रही थी। उसकी माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
"हाँ बेटा, मुझे पता है। तुम और अक्षय, तुम दोनों एक साथ बहुत अच्छे लगते हो और एक दूसरे के लिए बने हो। मैं तुम्हारी ज़िंदगी खराब नहीं होने दूँगी। इसलिए मैं तुमसे बोल रही हूँ, यह लो और अक्षय को फोन करो।"
अपनी माँ की बात सुनकर मिशिका ने उनके हाथ से फोन ले लिया। घबराकर अक्षय का नंबर डायल करने ही वाली थी कि तभी उसे एकदम से कुछ याद आया और उसने कहा,
"नहीं, मुझे नहीं लगता कि जो कुछ भी भाई ने उसके साथ किया, उसके बाद अक्षय यहाँ पर वापस आएगा। और मैं नहीं चाहती कि वह वापस आए क्योंकि अगर भाई को कुछ भी पता चला, तो आप जानती हैं, वह उसके साथ कितना बुरा कर सकता है और मैं नहीं चाहती कि अक्षय के साथ कुछ भी गलत हो। उसकी अपनी फैमिली प्रॉब्लम्स हैं और वह उनसे बहुत प्यार करता है। मैं उन लोगों की लाइफ खराब होते नहीं देख सकती।"
इतना बोलते हुए मिशिका ने अपनी माँ को उनका फोन वापस कर दिया और दूसरी तरफ चेहरा फेर लिया। उसकी माँ ने कहा,
"नहीं बेटा, वह तुमसे भी बहुत प्यार करता है और तुम्हारे लिए ज़रूर यहाँ पर आएगा। तुम बस एक बार उससे बात करके देखो। इस तरह से हिम्मत मत हारो, नहीं तो मुझे नहीं पता वेदांश किसके साथ तुम्हारी शादी तय करने वाला है।"
मिशिका ने एक बार फिर से अपनी माँ की तरफ देखा। मिशिका की माँ ने उसे यह सारी बातें फिर से दोहराईं, जिससे कि मिशिका के अंदर थोड़ी हिम्मत आई। मिशिका यह सब सुनकर थोड़ा सा सोच में पड़ गई।
उसने अपनी माँ का मोबाइल लिया और अक्षय का नंबर डायल कर दिया।
दूसरी तरफ से अक्षय ने कॉल रिसीव की और बोला,
"हेलो कौन?"
क्योंकि मिशिका की माँ का नंबर उसके पास नहीं था।
अक्षय की आवाज सुनते ही मिशिका की आँखों में भरे हुए आँसू निकल कर उसकी आँखों से बाहर लुढ़कने लगे। उसकी माँ ने, उसे इतना इमोशनल देखकर, उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए बोली,
"बोलो बेटा, यही वक्त है। नहीं तो अगर वेदांश वापस आ गया ना और उसे पता चला तो फिर जानती हो तुम उसे..."
अपनी माँ की बात सुनकर मिशिका ने धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया और फिर वह कॉल पर बोली,
"अक्षय! भाई मेरी शादी कहीं और करवाने वाले हैं। प्लीज मुझे जाकर यहाँ से ले जाओ। उन्होंने मुझे कमरे में बंद करके रखा है उसी दिन से, प्लीज आ जाओ यहाँ पर। नहीं तो मैं मर जाऊँगी!"
इतना बोलते हुए वह जोर-जोर से रोने लगी।
वहीं दूसरी तरफ;
वेदांश के ऑफिस का मीटिंग रूम। वेदांश के अलावा सिर्फ दो और लोग ही वहाँ पर थे। लगभग वेदांश की ही उम्र का एक लड़का उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठा हुआ था और दूसरा लड़का, जिसकी उम्र वेदांश से कुछ कम होगी, वह उसके पीछे खड़ा हुआ था।
वेदांश ने अपने सामने बैठे लड़के की तरफ देखकर कहा,
"देखो इस डील में हम दोनों का फायदा है और वैसे भी मेरी बहन इतनी सुन्दर है, तुम उसके लायक तो नहीं हो लेकिन फिलहाल के लिए ठीक है। कम से कम उस लड़के से तो बेहतर हो जिसके पीछे वह पागल हुई जा रही है।"
वेदांश की बात सुनते ही उसके सामने बैठे लड़के ने कहा,
"यह तुम मेरी तारीफ कर रहे हो या फिर इन्सल्ट?"
वेदांश ने काफी एटीट्यूड में कहा,
"तुम्हें जो लगे तुम वह समझ लो क्योंकि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस सीधी बात करता हूँ। अब तुम बताओ अगर इस बात के लिए राजी हो तो मैं तुम्हारा प्रोजेक्ट को भी मंज़ूरी दे दूँगा और इसी में हम दोनों का फायदा है।"
उसके सामने बैठे लड़के ने कहा,
"चलो ठीक है फिर, डील डन करते हैं!"
इतना बोलकर उस लड़के ने वेदांश के सामने अपना हाथ बढ़ाया। खुश होकर वेदांश ने भी उसे अपना हाथ मिलाया और बोला,
"हाँ, मुझे पता था तुषार, तुम काफी स्मार्ट हो इसलिए सबसे पहले यह ऑफर मैंने तुम्हें ही दिया।"
अपनी तारीफ सुनकर तुषार भी खुश हो गया और उसने कहा,
"चलो ऐसा है तो फिर गले लगो। वैसे भी अब हम बिज़नेस पार्टनर के साथ रिश्तेदार भी बनने वाले हैं।"
इतना बोलकर वह दोनों ही अपनी जगह से खड़े हुए। तुषार आगे आकर वेदांश के गले लगा। वेदांश का बिल्कुल भी मन नहीं था और वह एकदम बेमन से उसके गले लगा और उसका मुँह बन गया, लेकिन फिर भी वह तुषार को कुछ बोल नहीं पाया।
To Be Continued
कैसा लगा आज का एपिसोड? क्या अक्षय मिशिका को निकालने आएगा उसके घर से और देगा उसका साथ उसके भाई और अपनी बहन के खिलाफ जाकर? और क्या होगा इसका अंजाम? और दूसरी तरफ वेदांश कामयाब हो पाएगा क्या अपने इरादों में? जानने के लिए पढ़िए मेरी यह स्टोरी।
उसी दिन शाम को जब वेदांश अपने घर वापस आया, उसके पीछे चल रहे बॉडीगार्ड के हाथ में तीन-चार बड़े बैग थे। जैसे ही वे घर के अंदर आए, वेदांश ने इशारे से उन्हें वह सारे बैग टेबल पर रखने को कहा। लिविंग एरिया में रखी बड़ी कांच की टेबल पर उन्होंने बैग रख दिए और थोड़ा पीछे हटकर चुपचाप खड़े हो गए।
वेदांश ने एक बैग खोला, उसमें से एक बॉक्स निकाला, और उसे हाथ में लेकर घर के अंदर की ओर जाते हुए बोला,
"मॉम! मिशिका... कहाँ हैं आप दोनों? जल्दी बाहर आइए! आप लोगों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। सुनेंगे तो आप दोनों, मुझे भी ज़्यादा खुश हो जाएँगी।"
वेदांश की आवाज सुनकर उसकी माँ अपने कमरे से निकली। वह बिल्कुल खुश नहीं लग रही थी, जबकि वेदांश बहुत खुश था। वेदांश को इतना खुश देखकर उसकी माँ ने कहा,
"तुम्हारी खुशियों की वजह हमारे लिए हमेशा दुख का कारण बनती है, वेदांश। ऐसा कैसे सोच सकते हो कि तुम कभी अपने अलावा किसी और को खुश कर सकते हो?"
अपनी माँ की बात सुनकर वेदांश ने आँखें घुमाते हुए कहा,
"क्या, मॉम! आप भी! अच्छा-खासा मूड खराब करना तो कोई आपसे सीखे। कोई मौका नहीं छोड़ती हैं आप। हटिए, मेरे रास्ते से। मैं अपनी बहन को जाकर गुड न्यूज़ सुनाता हूँ। वह ज़रूर खुश हो जाएगी। वैसे, मुँह तो आप भी मीठा कर लीजिए।"
इतना बोलते हुए उसने हाथ में पड़ा गोल्डन कलर का बॉक्स खोला। वह बहुत ही प्रीमियम मिठाई का डिब्बा था, जिसमें सोने का वर्क लगी मिठाई थी। उसने एक मिठाई निकालकर अपनी माँ की ओर बढ़ाई। उन्हें खिलाने ही वाला था कि उसकी माँ ने मिठाई अपने हाथ में ले ली और बोली,
"मैं खुद खा लूँगी, लेकिन पहले वजह बताओ जिसकी वजह से मिठाई खिला रहे हो।"
वेदांश ने मिशिका के कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा,
"चलिए, आइए दोनों को साथ में बताता हूँ।"
वेदांश को उसके कमरे की ओर जाते देख, वेदांश की माँ तुरंत उसके पीछे आई और दरवाजे के पास पहुँचकर उसका रास्ता रोकते हुए बोली,
"रुक जा, वेदांश! मिशिका की तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं है। पिछले दो दिनों से उसने कुछ भी खाया-पिया नहीं है और सुबह वह बेहोश भी हो गई थी।"
अपनी माँ के इस तरह रास्ते में आने पर वेदांश ने गुस्से में अपने दाँत पीसकर उनकी ओर देखा और कहा,
"क्या नाटक है यह सब! मैंने आपसे बोला था ना, उसे खाना खिला दीजिएगा। तो फिर क्यों नहीं खिलाया? आप बिल्कुल प्यार नहीं करती अपनी बेटी से। वैसे करती तो मुझे भी नहीं। लेकिन मुझे लगा था शायद मिशिका मुझे ज़्यादा चाहती होगी, लेकिन आप तो..."
इतना बोलते हुए वेदांश ने निराश होकर अपनी माँ की ओर देखा। लेकिन उसकी माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। उनके लिए तो यह रोज़ की बात थी। वे वेदांश के ऐसे कड़वे शब्द अक्सर सुनती थीं, और अब तक उन्हें आदत भी पड़ गई थी।
वेदांश उन्हें आगे से हटाकर दरवाज़ा खोलते हुए मिशिका के कमरे में गया। उसने देखा कि मिशिका अपने बेड पर तकिया लगाकर लेटी हुई थी और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। सूखे हुए आँसुओं के निशान उसके गालों पर भी नज़र आ रहे थे।
उसे ऐसे देखकर वेदांश ने बेबसी से अपना सिर हिलाया और फिर बेड के एक किनारे बैठते हुए कहा,
"मिशिका, उठो! यह क्या नाटक लगा रखा है तुमने? इस तरह से रोने-धोने का कोई फायदा नहीं है। भूल जाओ अपने उस सो कॉल्ड बॉयफ्रेंड को, क्योंकि मैंने तुम्हारी शादी अपने दोस्त और बिज़नेस पार्टनर, तुषार के साथ तय कर दी है।"
यह बात सुनते ही सामने खड़ी मिशिका की माँ एकदम हैरान रह गई और उन्होंने थोड़ी तेज आवाज़ में लगभग चिल्लाते हुए कहा,
"तुम ऐसे कैसे किसी और की लाइफ का फैसला ले सकते हो? वह भी बिना उसकी मर्ज़ी के?"
उन दोनों की बातें सुनकर मिशिका किसी तरह अपनी जगह पर उठकर बैठी। उसे बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी क्योंकि उसने पिछले दो दिनों में बहुत कम खाया था। उसका कुछ भी खाने-पीने का मन नहीं हो रहा था।
अपनी माँ की बात का जवाब देते हुए वेदांश बोला,
"किसी और की लाइफ का नहीं, अपनी बहन की शादी का फैसला लिया है मैंने। वह भी बहुत सोच-समझकर। तुषार वाधवा इंडस्ट्रीज़ का इकलौता वारिस है। उसके डैड के बाद सब कुछ उसका होगा। और वैसे भी, अभी कंपनी वही संभाल रहा है। मेरा बहुत अच्छा दोस्त भी है। मैं उसे इतने समय से जानता हूँ। हमारे स्टेटस का भी है। हाँ, पैसों और पावर में हमसे बराबर नहीं है, तो हमसे बहुत कम भी नहीं है।"
वेदांश की बात सुनते ही मिशिका ने गुस्से में हाथ में पड़े मिठाई के डिब्बे को ज़ोर से गिराते हुए कहा,
"मैं यह शादी नहीं करूँगी! मैं अक्षय के अलावा और किसी से भी शादी नहीं करूँगी, सुना आपने?"
मिशिका के इस जवाब पर वेदांश अपनी जगह पर उठकर खड़ा हो गया और उसने गुस्से से मिशिका की ओर देखते हुए कहा,
"अच्छी तरह से पता है तुम्हें! मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई मेरे फैसले के खिलाफ़ जाए। और वेदांश ठाकुर को ना सुनने की आदत नहीं है। इसलिए चुपचाप से तैयार हो जाना। इस संडे को तुम्हारी शादी है, तीन दिनों बाद। और अगर तैयार नहीं हुई ना, तो फिर मेरे पास और भी बहुत तरीके हैं।"
इतना बोलते हुए वेदांश गुस्से में वहाँ से बाहर चला गया और उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके जाते ही मिशिका की माँ उसके सामने आकर बैठी और मिशिका तुरंत ही अपनी माँ के गले लगकर रोने लगी।
अपनी माँ के गले लगकर रोती हुई मिशिका बोली,
"माँ, भैया क्यों... क्यों ऐसा कर रहे हैं मेरे साथ? मैं मर जाऊँगी, लेकिन मैं अक्षय के अलावा और किसी से भी शादी नहीं करूँगी। चाहे कुछ भी हो जाए। भैया को सिर्फ़ दूसरों की लाइफ़ कंट्रोल करनी आती है और उन्होंने अपने अलावा कभी किसी और के बारे में नहीं सोचा।"
मिशिका की आँखों से निकलते आँसू पोंछते हुए उसकी माँ ने कहा,
"हाँ, मुझे पता है बेटा। वह सिर्फ़ अपने बारे में सोचता है और अभी भी वह अपने बारे में ही सोच रहा है - अपना पैसा, पावर, रेपुटेशन और खोखली शान-शौकत, दिखावे की ज़िन्दगी। बस यही सब आता है उसे, और कुछ नहीं। लोगों के इमोशन, प्यार, रिश्ते कभी वेदांश के लिए इम्पॉर्टेन्ट नहीं रहे। लेकिन मैं तुम्हारे साथ गलत नहीं होने दूँगी बेटा। मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम बस रोना बंद करो और प्लीज़, यह करने की बातें मत करना। मैं अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती।"
अपनी माँ की बात सुनकर मिशिका ने एक पल के लिए अपनी आँखें कसकर बंद कीं। आँखें बंद करते हुए मन ही मन उसने कहा,
"अक्षय, प्लीज़ आओ और मुझे यहाँ से ले जाओ। मैं अब यहाँ नहीं रहना चाहती। मुझे तुम्हारे साथ रहना है। अक्षय, प्लीज़, कहाँ हो तुम? कब आओगे?"
To Be Continued
ओके, तो जिन लोगों ने मेरी बाकी स्टोरी पढ़ी है, उन्हें समझ में आ रहा होगा कि हमने पहली बार ही कुछ अलग ट्राई किया है। क्योंकि हमारी स्टोरी में हीरो ऐसे नहीं होते, जैसा वेदांश है। लेकिन उसके पीछे भी रीज़न है, जो आप लोगों को आगे पता चलेगा। और कैसा लगा आज का एपिसोड? आज रात तक अगला एपिसोड भी आ जाएगा, क्योंकि कल नहीं दिया था तो आज दो एपिसोड देना तो बनता ही है। वैसे, शायद आप लोगों को लग रहा होगा कि हो सकता है अक्षय हीरो है, लेकिन ऐसा नहीं है। वेदांश ही मेन हीरो है। हाँ, बस अभी उसकी लव स्टोरी शुरू नहीं हुई है ना इसलिए 🫣🤭 एक्चुअली में यह दोनों एक-दूसरे से कनेक्ट ही अक्षय और मिशिका की वजह से होंगे। तो अभी शुरुआत में इन दोनों को थोड़ा इम्पॉर्टेंस देना तो बनता ही है।
अपनी माँ की बात सुनकर मिशिका ने एक पल के लिए अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। जिससे उसकी आँखों में भरे आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए। आँखें बंद करते हुए मन ही मन उसने कहा, "अक्षय प्लीज़ आओ और मुझे यहाँ से ले जाओ। मैं अब और इस कैद में नहीं रहना चाहती। मुझे तुम्हारे साथ रहना है अक्षय, प्लीज़ कहाँ हो तुम? कब आओगे?"
वहीं दूसरी तरफ;
अक्षय अपने अपार्टमेंट में था। शाम के वक्त वह ऑफिस से घर वापस आया और उसे तुरंत ही हिचकियाँ आने लगीं। उसने बैग टेबल पर रखा और साइड में बैठ गया। लेकिन उसकी हिचकियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। एक पल के लिए उसने अपनी आँखें बंद कीं और बोला, "मीशा! मुझे पता है तुम ही मुझे याद कर रही होगी। मैंने इतनी बार तुम्हारा नंबर डायल किया, लेकिन तुम्हारा नंबर हर बार स्विच ऑफ आ रहा है। कैसे कांटेक्ट करूँ मैं तुमसे? तुम्हारी मॉम के नंबर पर भी तुमने फोन करने से मना किया था। आई होप कि तुम ठीक हो और तुम्हारे उस शैतान भाई ने कुछ गलत नहीं किया हो।"
अक्षय की हिचकियाँ अभी भी बंद नहीं हुई थीं। वह आँखें बंद करके बैठा था और खुद को शांत करने की कोशिश कर रहा था। तभी अंबिका वहाँ आई और पानी का गिलास उसके सामने रखते हुए बोली, "पानी पी ले, हिचकी बंद हो जाएगी। वैसे, कोई याद कर रहा है शायद तुझे।"
इतना बोलकर मुस्कुराते हुए अंबिका उसके सामने बैठ गई। अक्षय ने अपनी आँखें खोलीं और अंबिका के हाथ से पानी का गिलास लेकर पानी पीया। गिलास सामने रखते हुए बोला, "मेरी मीशा ही याद कर रही होगी मुझे। और कौन याद करेगा भला!"
अक्षय की यह बात सुनते ही अंबिका के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई। उसने कहा, "वह तो इतना याद नहीं करती होगी तुझे, जितना तू उसके नाम की रट लगाए रहता है।"
इतना बोलते हुए वह गुस्से में वहाँ से उठकर जाने लगी। अक्षय ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "दी, प्लीज़ कम से कम आप तो ऐसे मत बोलो। और वैसे भी, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि कुछ तो बड़ा होने वाला है, या फिर शायद ऐसा कुछ हुआ है। मेरी मीशा बिल्कुल भी ठीक नहीं है। मुझे बहुत ही बेचैनी हो रही है उसे याद करके। उसे देखने का मन कर रहा है, उससे मिलने का। बस एक बार तसल्ली कर लूँ कि वह ठीक है।"
अक्षय की बातें सुनकर अंबिका ने उसे ताना मारते हुए कहा, "हाँ, तो ठीक है, जा ना उसके घर फिर से अपनी बेइज्जती करवाने। वैसे मुझे तो लगता नहीं उसका भाई तुझे उसकी एक झलक भी देखने देगा। लेकिन फिर भी जा, एक बार ट्राई करके पता कर ले, बेइज्जती में जो कमी रह गई हो वह फिर से हो जाए।"
अंबिका की ऐसी ताने भरी बातें सुनकर अक्षय ने उसका हाथ छोड़ दिया और मुँह बनाते हुए बोला, "दी, प्लीज़ आप तो उसके भाई के जैसा बर्ताव मत करो। उसकी कमी आप यहाँ पर ही पूरी कर रहे हो। एक तो मुझे पता नहीं मीशा किस हाल में होगी, और आप मुझे ही ताना मार रही हो। बातें सुन रही हो। वैसे भी, मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ। इतना हेल्पलेस फील हो रहा है।"
अंबिका ने अपने भाई को समझने की कोशिश करते हुए कहा, "हाँ, तो करना क्या चाहते हो तुम? आखिर पहले यह क्लियर कर लो। क्योंकि मुझे तो नहीं लगता उसके भाई के रहते कुछ भी कर पाओगे। वह इतना अमीर है। देखा है ना तुमने उसका बंगला कितना बड़ा है? कितने सारे सिक्योरिटी गार्ड उसके लिए काम करते हैं? कितना पावरफुल आदमी है वह! एक मिनट नहीं लगेगा उसे हमारा नाम निशान मिटाने में। क्यों बेवजह उससे दुश्मनी लेना? वह भी एक लड़की की वजह से? भूल जा अक्षय, उसे। इसी में तेरी और हम सब की भलाई है।"
अंबिका की बातें सुनकर अक्षय का चेहरा लटक गया। उसने एक गहरी साँस ली और आगे कुछ भी नहीं बोला। वह चुपचाप वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला गया। अंबिका भी वहाँ से वापस किचन में चली आई क्योंकि वह सबके लिए खाना बना रही थी।
अंबिका एक प्राइवेट बैंक में जॉब करती थी और पाँच बजे तक घर वापस आ जाती थी। जबकि अक्षय एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था और वह रात के आठ बजे घर आता था। उनके घर पर उनके अलावा फिलहाल उनके पापा ही थे। दोनों छोटे भाई-बहन बाहर कॉलेज में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। बहन इसी शहर के कॉलेज में पढ़ती थी, लेकिन कॉलेज दूर होने की वजह से हॉस्टल में रहती थी। और भाई दूसरी सिटी में पढ़ने गया हुआ था।
वह लोग कुल मिलाकर तीन भाई-बहन थे। जिनका खर्चा पहले अंबिका के ऊपर था। लेकिन पिछले दो-तीन सालों से पढ़ाई कंप्लीट होने के बाद से अक्षय भी नौकरी कर रहा था। पहले भी वह पार्ट टाइम जॉब करके जितना हो पाता था, अंबिका को सपोर्ट करने की कोशिश करता था। वह बहुत ही जिम्मेदार था और यह सब कुछ उसने अंबिका से ही सीखा था। इसीलिए वह अपनी बहन को बहुत मानता था। अंबिका भी अपने भाई-बहनों को बहुत प्यार करती थी, लेकिन अभी वह अक्षय की इस बात में पूरी तरह उसका साथ नहीं दे पा रही थी। खासकर, वहाँ पर मिशिका के घर पर जो कुछ भी हुआ, उसके बाद वह समझ गई थी कि वेदांश किसी भी कीमत पर इन दोनों की शादी नहीं होने देगा। और इसीलिए वह बस अपने भाई को कोई झूठी उम्मीद नहीं देना चाहती थी।
लेकिन अक्षय पिछले तीन सालों से मिशिका से प्यार करता था, इसलिए वह इतनी आसानी से चाहकर भी उसे भूल नहीं पा रहा था। और उसे लगता था कि कैसे भी करके वह मिशिका को पा लेगा, क्योंकि उन दोनों का प्यार सच्चा है। और उसने सुना था सच्चा प्यार करने वालों की कभी हार नहीं होती। बस इसी उम्मीद पर वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था।
वेदांश अपने रूम में आया। कुछ देर बाद ही उसका मोबाइल फोन रिंग हुआ। उसने स्क्रीन पर देखा तो मिशिका की माँ का फोन कॉल आ रहा था। उनके नंबर से था, लेकिन अक्षय को पता था कि ज़रूर मिशिका ही फोन कर रही होगी। इसलिए उसने तुरंत ही कॉल रिसीव कर ली और फोन अपने कान से लगाते हुए बोला, "हैलो मीशा! कैसी हो? मैं बस तुम्हें ही याद कर रहा था। अभी क्या? हर वक्त मैं बस तुम्हें ही याद करता रहता हूँ। आई मिस यू सो मच। तुम ठीक तो हो ना?"
कॉल रिसीव करते ही, दूसरी तरफ से आवाज़ सुने बिना ही, अक्षय एक साथ इतना कुछ बोल गया। क्योंकि सच में वह इस वक्त मिशिका से बात करने के लिए बहुत ही ज़्यादा डेसपरेट हो रहा था। और उसका कॉल आना जैसे उसके लिए मनचाही बात हो गई, भले ही वह उसकी माँ के नंबर से हो। क्योंकि उसे पता था मिशिका का मोबाइल फोन उसके भाई ने छीन लिया था। पिछली बार जब उसकी मिशिका से बात हुई थी, तब मिशिका ने खुद ही उसे यह बात बताई थी।
To Be Continued
क्या बात होने वाली है मिशिका और अक्षय के बीच? क्या वेदांश की नज़रों से बचकर वह दोनों मिल पाएँगे? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में। और कैसी जा रही है अब तक की स्टोरी?
देर रात, 10:00 बजे,
अंबिका अपने घर के लिविंग एरिया में बेचैनी से इधर-उधर टहल रही थी। अक्षय अब तक घर नहीं आया था। आज शुक्रवार था। उसकी बहन इस शहर के एक कॉलेज में पढ़ाई करती थी, लेकिन कॉलेज उनके घर से काफी दूर था। इस वजह से वह हॉस्टल में रहती थी और वीकेंड पर घर आ जाती थी। आज शुक्रवार था, इसलिए कॉलेज खत्म होते ही वह घर आ गई थी और संडे तक यहाँ रहने वाली थी।
अंबिका भी अपने टाइम से घर आ गई थी, लेकिन अक्षय अब तक वापस नहीं आया था। वह उसका इंतजार कर रही थी और बार-बार दरवाजे की तरफ देख रही थी।
अंबिका की छोटी बहन, देविका, पानी पीने के लिए अपने कमरे से बाहर निकली। उसने देखा उसकी बहन अभी भी लिविंग एरिया में इधर-उधर चक्कर काट रही थी।
अंबिका को ऐसा करते देखा, वह पानी लेने किचन में नहीं गई। उसकी तरफ आते हुए बोली,
"दी, बैठ जाओ। ऐसे आपके परेड करने से भैया जल्दी तो नहीं आ जाएंगे। आराम से बैठकर उन्हें फोन करके पूछ लो ना, किसी वजह से देर हुई है।"
अपनी छोटी बहन की बात सुनकर अंबिका ने नजर उठाकर उसकी तरफ देखा। अंबिका की बहन उससे 4 साल छोटी थी और अभी 20 साल की थी। वह ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में थी। वह भी दिखने में अंबिका की तरह ही खूबसूरत थी। उसने इस वक्त पटियाला सलवार और टी-शर्ट पहनी हुई थी, एक तरह से नाइट सूट, क्योंकि वह खाना खा चुकी थी।
हॉस्टल में रहते हुए वह घर का खाना बहुत मिस करती थी। अपने पापा के साथ उसने खाना खा लिया था क्योंकि उसके पापा को दवाइयाँ भी देनी होती थीं। लेकिन अक्षय के इंतजार में अंबिका ने अभी तक कुछ भी नहीं खाया था।
देविका की बात का जवाब देते हुए अंबिका बोली,
"इतनी बार तो फोन ट्राई कर चुकी हूँ मैं, लेकिन वह फोन रिसीव ही नहीं कर रहा है। और पता नहीं कहाँ रह गया। इतनी टेंशन हो रही है मुझे। मौसम भी इतना खराब है।"
बाहर आसमान में बादल छाए हुए थे और काफी तेज हवा भी चल रही थी। देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी भी वक्त बारिश होने वाली थी। जुलाई के महीने में तो बारिशों का वैसे भी कोई ठिकाना नहीं होता। मुंबई में कभी भी बारिश होने लगती थी। इसके अलावा, टाइम भी काफी ज्यादा हो गया था और अक्षय कभी भी इतना लेट नहीं होता था। बस इसीलिए अंबिका परेशान हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि अक्षय कहीं मिशिका के घर ना चला गया हो। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से वह उसे लेकर काफी परेशान था। और अंबिका भी यह बात जानती थी कि वह उससे प्यार करता है और इतनी आसानी से वह उसे नहीं भूलने वाला। लेकिन वह नहीं चाहती थी उसका भाई एक लड़की की वजह से किसी मुसीबत में पड़े। और फिर उसके भाई का रौब-घमंड देखने के बाद वह बिल्कुल ही अक्षय को उस लड़की से दूर रखना चाहती थी, लेकिन वह ऐसा कर नहीं पा रही थी।
देविका भी आकर अंबिका के पास ही खड़ी हो गई और बोली,
"अच्छा, तो उनके ऑफिस फोन करके पूछ लो ना। आपके पास तो नंबर होगा। पता चल जाएगा वह ऑफिस से निकले हैं या फिर नहीं?"
देविका ने जैसे ही यह आईडिया दिया, तो अंबिका तुरंत ही उसके ऑफिस का नंबर डायल करने लगी। वह नंबर डायल कर ही रही थी कि तभी एकदम से उनके अपार्टमेंट का दरवाजा खुला और अक्षय अंदर आया।
उसे सामने से आते देखकर दोनों बहनों के चेहरे पर खुशी की चमक नजर आने लगी। अंबिका, जो कि नंबर डायल ही करने वाली थी, वह रुक गई और उसके सामने की तरफ देखा। दरवाजे पर उसका भाई खड़ा हुआ था। उसके पूरे कपड़ों पर धूल-मिट्टी लगी हुई थी और वह थोड़ा सा परेशान भी लग रहा था।
अंबिका तुरंत ही आगे आई और परेशान होते हुए पूछने लगी,
"यह क्या हुआ तुझे? यह कपड़े इतने गंदे कैसे हो गए? तो ठीक तो है ना? कहीं किसी ने तुझ पर हमला तो नहीं किया ना?"
अंबिका की बात सुनते ही अक्षय ने नजर उठाकर उसकी तरफ देखा। देविका भी तब तक आगे आ गई थी। एक नजर अक्षय ने उसकी तरफ देखी और फिर अंबिका की बात का जवाब देते हुए कहा,
"क्या दी आप भी! टीवी सीरियल देखना थोड़ा कम कर दो। मुझ पर भला कौन हमला करेगा? वह तो मैं... यही बिल्डिंग के पार्क में कुछ बच्चे खेल रहे थे। उनका गलती से धक्का लग गया और मैं वहाँ पर ही गिर गया। वहीं से यह कपड़े खराब हो गए।"
देविका ने अपने भाई की बात सुनकर हँसते हुए कहा,
"भैया! अच्छा हुआ आप आ गए। नहीं तो दीदी इतनी ज्यादा परेशान थी। सच में, सीरियल नहीं, मुझे तो लगता है सावधान इंडिया देखने लगी हैं ये..."
देविका की बात सुनते ही अंबिका ने उसकी तरफ डाँटकर देखा। उसकी बात पर अक्षय भी हँसने लगा था। फिर अंबिका ने कहा,
"क्या यहाँ पर खड़ी हुई दांत दिखा रही है? जा, जाकर पानी लेकर आ भैया के लिए..."
अंबिका से डाँट पड़ते ही देविका तुरंत वहाँ से किचन की तरफ भाग गई, अक्षय के लिए पानी लेने। अपने कपड़ों पर लगी सारी धूल-मिट्टी झाड़कर साफ कर लेने के बाद अक्षय भी घर के अंदर आया। अंबिका भी उसके साथ लिविंग एरिया में आई। अक्षय को सही-सलामत घर वापस आते देखकर अंबिका ने भी राहत की साँस ली।
वहीं दूसरी तरफ;
पूरे ठाकुर बंगले को बहुत ही अच्छी तरह से सजाया जा रहा था। मिशिका की शादी की तैयारी वहाँ पर बहुत ही जोर-शोर से चल रही थी। पूरे बंगले को बहुत ही खूबसूरती से सजाया जा रहा था। वहाँ पर न जाने कितने लोग इस वक्त काम पर लगे हुए थे, शायद उनकी गिनती करना भी आसान नहीं था।
वेदांश ने अपने विश्वासपात्र लोगों को वहाँ पर काम पर लगा रखा था, जिससे कि उसे खुद ज्यादा कुछ काम ना देखना पड़े और सब कुछ अच्छे से हो जाए। उसने अपने असिस्टेंट मैनेजर सबको घर पर ही भेज दिया था, फिलहाल के लिए। क्योंकि वह अपनी बहन की शादी बहुत ही धूमधाम से करना चाहता था और घर को इतने अच्छे से सजाना चाहता था जिससे कि सब बहुत दिनों बाद तक भी याद रखें कि वेदांश ठाकुर ने शादी में किस तरह का इंतज़ाम किया था।
वह जब घर वापस आया तो लगभग सारा काम खत्म हो चुका था। क्योंकि बस एक दिन के बाद ही शादी थी। आज शुक्रवार था। शनिवार के बाद रविवार को ही मिशिका और तुषार की शादी तय हो चुकी थी। और वह दोनों अब तक एक-दूसरे से मिले भी नहीं थे। तुषार ने पहले से ही मिशिका को देखा हुआ था, तो उसे ऐसी कोई ज़रूरत महसूस नहीं हुई। और मिशिका तो बिल्कुल भी इन सब में इंटरेस्टेड नहीं थी। इसलिए वह किसी भी चीज़ में बिल्कुल शामिल नहीं हो रही थी। यहाँ तक उसने शादी से रिलेटेड सारे फंक्शन तक अटेंड करने के लिए मना कर दिया था।
इसलिए वेदांश ने कोई भी फंक्शन नहीं रखे और बस सीधे शादी की तैयारी में ही लग गया। और उसे पता था कि कैसे भी करके वह उसे शादी के मंडप तक तो ले आएगा। और फिर एक बार तुषार से शादी हो गई, तो मिशिका अक्षय को भूल ही जाएगी। कम से कम वेदांश को तो यही लगता था।
To Be Continued
कैसा लगा आज का एपिसोड? अगले एपिसोड में कुछ धमाकेदार होने वाला है, क्योंकि अभी यह सारी चीज़ें भी इम्पोर्टेन्ट हैं। अभी स्टोरी शुरू हुई है, तो धीरे-धीरे वह रफ्तार पकड़ेगी। जब तक के लिए, स्टोरी पढ़कर कमेंट ज़रूर करिए।
शादी से एक रात पहले, वेदांश का बंगला रात के 10:00 बजे भी जगमगा रहा था। उसमें इतनी सारी लाइटें लगी हुई थीं कि अगले दिन की शादी से पहले, आज रात टेस्टिंग के लिए सभी लाइटें चालू कर दी गई थीं। इससे कोई समस्या हो तो उसे आज रात ही ठीक किया जा सके। एक पूरी टीम वहाँ पर अभी भी रुकी हुई थी।
उनमें से जो भी वेदांश के लिए पहले काम कर चुके थे, वे उसके गुस्से से अच्छी तरह वाकिफ थे। इसलिए वे जानते थे कि वेदांश के लिए किए जा रहे काम में किसी तरह की गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। वेदांश ठाकुर कोई भी छोटी-सी छोटी गलती माफ़ नहीं करता था।
वेदांश के डर की वजह से ही सारा काम बहुत अच्छे से हुआ था। इसीलिए लाइटों और फूलों-पर्दों से सजा हुआ घर इस वक्त बहुत ही सुंदर लग रहा था। लेकिन उस घर के अंदर रौनक बिल्कुल भी नहीं थी। हाँ, थोड़े-बहुत मेहमान आ चुके थे, लेकिन उस तरह का शादी वाला हँसी-खुशी का माहौल नहीं था घर के अंदर।
वेदांश जब घर के अंदर आया, तो वह इधर-उधर देख रहा था। उसे अपनी माँ नज़र नहीं आई। वह उनसे मिशिका के बारे में पूछने वाला था। उसने शादी का जोड़ा ऑर्डर किया था, जो सुबह ही आ गया था। उसने मिशिका से वह ट्राई करने के लिए कहा था और अगर कोई प्रॉब्लम हो तो रात तक बताने के लिए भी बोला था। लेकिन अभी तक उसे किसी ने कुछ भी नहीं बताया था। इसीलिए वेदांश अपनी माँ को ढूँढ रहा था।
उसकी माँ तो नहीं, लेकिन वेदांश को घर के अंदर आते देख उसकी सरिता बुआ ज़रूर भागती हुई वहाँ पर आ गईं। वे बहुत ज़्यादा परेशान लग रही थीं।
वेदांश के सामने आकर खड़े होते हुए उसकी बुआ ने एकदम हड़बड़ाते हुए कहा,
"अरे बेटा, अच्छा हुआ तू आ गया। बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो गई है।"
वेदांश ने अपनी एक आईब्रो उठाते हुए बुआ की तरफ देखा और बोला,
"सुबह जब मैं घर से निकला तब तक तो सब ठीक था। अब मेरी पीठ पीछे ऐसी भी क्या आफत आ गई?"
वेदांश की बात सुनकर बुआ ने उसे बताया,
"अरे बेटा, तेरे जाने के बाद ही तो कांड हो गया यहाँ पर। मिशिका अपने कमरे में नहीं है। कमरे में क्या, वह तो पूरे घर में भी कहीं पर नहीं है। और उसके पास फ़ोन भी नहीं था जिससे हम लोग फ़ोन कर लें। पता नहीं, कहाँ चली गई वो लड़की। शाम से ही हम सब उसे ढूँढ रहे हैं।"
बुआ की यह बात सुनते हुए वेदांश का चेहरा एकदम सख्त हो गया और उसकी आँखें एकदम लाल हो गईं। उसने गुस्से में एकदम तेज आवाज में चिल्लाया,
"मॉम!! मॉम! कहाँ हैं आप?"
इतना बोलते हुए इधर-उधर देखते हुए वह आगे बढ़ने लगा। तभी उसकी माँ वहाँ पर आई और उसके सामने खड़े होते हुए बोली,
"क्या है? इस तरह से क्यों चिल्ला रहे हो, वेदांश!"
अपनी माँ की बात सुनकर वेदांश ने कहा,
"हाँ तो जो कुछ हुआ है, उसके बाद क्या मैं आपके कान में आकर पूछूँ कि मिशिका कहाँ गई है? और प्लीज़ आप मुझसे झूठ बोलने की तो हिम्मत करिएगा नहीं..."
वेदांश से नज़र चुराते हुए उसकी माँ ने कहा,
"मुझे क्या पता कहाँ गई है? तुम तो मुझसे ऐसे पूछ रहे हो जैसे कि वह मुझे बताकर जाएगी। और वैसे भी, तुम उसे कहीं जाने कहाँ देते हो? तुमने तो बस फ़ैसला सुना दिया उसकी शादी करने का, फिर चाहे उसकी मर्ज़ी हो या नहीं। तो फिर अगर उसने अपनी मर्ज़ी कर ली तो अब तुम्हें क्यों इतना बुरा लग रहा है।"
यह सारी बातें बोलते हुए उन्होंने एक बार भी वेदांश की तरफ़ नज़र उठाकर नहीं देखा। क्योंकि वह उसकी गुस्से भरी लाल आँखों का सामना नहीं करना चाहती थी। उन्हें समझ आ गया था कि इस वक्त वेदांश बहुत गुस्से में था। इसीलिए वह इस तरह की बातें कर रही थी।
अपनी तरफ़ से तो वह फ़िलहाल बात को ख़त्म करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जाने-अनजाने उन्होंने वेदांश का गुस्सा और बढ़ा दिया। वेदांश उसी तरह गुस्से में बोला,
"अपनी मर्ज़ी? हाँ, यहाँ मेरे घर में रहने के बाद कोई भी अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकता। यहाँ पर जो कुछ भी होता है, वेदांश ठाकुर की मर्ज़ी से होता है और आगे भी वेदांश ठाकुर की मर्ज़ी से ही होगा। इसलिए आप भूल जाइए कि आपकी बेटी अपनी मर्ज़ी से कुछ कर सकती है मेरे रहते। और कहीं भी गई हो वह, मैं उसे कल सुबह से पहले ढूँढकर वापस घर लाऊँगा और उसकी शादी तो तुषार से ही होगी।"
वेदांश ने एकदम गुस्से में तेज आवाज में कहा और फिर गुस्से में घर से बाहर निकल गया। उसकी बात सुनकर सभी जैसे एकदम अपनी जगह पर जम गए।
बुआ की बेटी आन्या ने अपनी माँ के पीछे आकर खड़े होते हुए कहा,
"इतना गुस्सा और इतने कंट्रोलिंग हैं वेदांश भाई! अच्छा है कि वह मेरे सगे भाई नहीं हैं। शायद इसीलिए मिशिका भाग गई। जबरदस्ती उसकी शादी करवा रहे हैं, वह बहुत रो रही थी।"
अपनी बेटी का हाथ पकड़ कर कसकर दबाते हुए सरिता बुआ ने कहा,
"चुप कर जा आन्या! अगर वेदांश को पता चल गया ना कि तूने ही मिशिका के कमरे का दरवाज़ा खोला था और तभी उसे भागने का मौका मिल पाया, तो वह तुझे भी बहुत बुरी सज़ा देगा। और यह अपनी बहन से हमदर्दी दिखाने का वक्त नहीं है। हम सब उसकी शादी में शामिल होने के लिए आए हैं, तो चुपचाप शादी के फ़ंक्शन इन्जॉय कर।"
अपनी माँ की बातें सुनकर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा। आन्या ने अपनी आइज़ रोल करते हुए कहा,
"हाँ, बड़े फ़ंक्शन ही हो रहे हैं यहाँ पर। हल्दी, मेहंदी, संगीत कुछ भी तो नहीं हुआ। बस सीधा शादी। वह भी दुल्हन भाग गई शादी से एक रात पहले। और मैं तो कह रही हूँ, अच्छा ही हुआ ऐसे..."
वह अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही उसकी माँ ने गुस्से में घूरकर उसकी तरफ़ देखा। तो आन्या एकदम चुप हो गई।
वेदांश के वहाँ से जाने के बाद उसकी माँ वापस अपने कमरे में आ गई और मन ही मन अपनी बेटी की सलामती के लिए दुआ करने लगी। उन्होंने अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा,
"हे भगवान्! मेरी बच्ची को इस शैतान से बचाना। अब सब कुछ आपके हाथ में है। बस कल रात तक वेदांश उसे ना ढूँढ पाए।"
वेदांश की माँ की आँखों में आँसू थे और वह बस मिशिका के भले के बारे में ही सोच रही थी। लेकिन उन्हें नहीं पता था आगे क्या होने वाला था।
वहीं दूसरी तरफ़;
सड़क पर तेज रफ़्तार से दौड़ती हुई एक बाइक। उस पर हेलमेट लगाकर बैठा हुआ एक लड़का और उसके पीछे ही, उस लड़के की कमर को कसकर पकड़कर बैठी हुई लड़की। जिसके गले में एक डार्क पिंक और ब्लैक कलर का स्कार्फ़ था, जिससे उसका आधा चेहरा भी ढका हुआ था।
उस लड़की ने ब्लैक जींस और ऑफ़ व्हाइट कलर का टॉप पहना हुआ था। और वही लड़के ने नॉर्मल जींस और शर्ट पहनी हुई थी। उसकी बाइक भी मिड रेंज की थोड़ी पुरानी बाइक थी, लेकिन वह काफ़ी अच्छी पोजीशन में थी और सड़क पर तेज रफ़्तार से दौड़ रही थी।
उस लड़की ने अपने चेहरे से वह स्कार्फ़ हटाया। वह और कोई नहीं, मिशिका थी। अपने दोनों बाहें फैला कर बहुत ही ज़्यादा खुश होते हुए बोली,
"थैंक यू सो मच अक्षय! मुझे इस नर्क से बाहर निकालने के लिए। आई एम रियली हैप्पी। मैं अब बहुत ही अच्छा रिफ़्रेश फ़ील कर रही हूँ। और मुझे पता था तुम मुझे इतनी आसानी से भुला नहीं सकते। आई लव यू सो मच!"
इतना बोलते हुए मिशिका ने दोबारा से उसकी कमर को कसकर पकड़ते हुए अपना चेहरा उसकी पीठ से टिका लिया।
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कैसा लगा आज का एपिसोड? एकदम मस्त था ना? वैसे क्या होगा? वेदांश अपनी कही हुई बात पूरी कर पाएगा या फिर मिशिका सच में अक्षय के साथ भागने में कामयाब हो पाएगी? और कहाँ जा रहे हैं वे दोनों? क्या अक्षय के घरवालों को इस बारे में पता चल चुका है? अंबिका उसे इस बाद में सपोर्ट कर रही होगी या फिर नहीं? और क्या वेदांश उन दोनों को ढूँढ पाएगा शादी के टाइम से पहले? बताइए कमेंट में 👇👇
उस लड़की ने अपने चेहरे से स्कार्फ हटाया। वह और कोई नहीं, मिशिका थी। दोनों बाहें फैलाकर, वह बहुत खुश होती हुई बोली, "थैंक यू सो मच अक्षय! मुझे नर्क से बाहर निकालने के लिए। आई एम रियली हैप्पी! मैं अब बहुत अच्छा रिफ्रेश फील कर रही हूँ। और मुझे पता था तुम मुझे इतनी आसानी से नहीं भुला सकते। आई लव यू सो मच!"
मिशिका ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली और अपना चेहरा उसकी पीठ से टिका लिया।
मिशिका की बात सुनकर, अक्षय खुश होते हुए बोला, "तुम्हें भूलना तो दूर की बात है मीशा! मैं तो तुम्हें भूलने के बारे में सोच भी नहीं सकता।"
उसकी बात सुनकर मिशिका बहुत खुश हो गई। उसे पता था अक्षय उसे वहाँ से निकलने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेगा। अपनी माँ की मदद से उसे आज वह मौका मिल गया था, और वह तुरंत अपने घर से भाग आई थी अक्षय के साथ। अब अक्षय उसे अपने घर ले जा रहा था। वह दोनों रास्ते में बाइक पर एक साथ थे।
थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि सामने से एक कार आई और अक्षय की बाइक के सामने सड़क पर रुक गई। अक्षय को एकदम से ब्रेक लगाने पड़े। अचानक ब्रेक लगने से उसकी बाइक थोड़ी डिसबैलेंस हो गई, लेकिन मिशिका ने अक्षय की कमर कसकर पकड़ ली थी। वह गिरने से बच गई।
अक्षय को ब्लैक कलर की कार के सड़क के बीचो-बीच रुकने का मतलब समझ नहीं आया। लेकिन तभी, उसके पीछे उसे चार-पाँच और कारें आती हुई दिखाई दीं।
मीशा संभलकर बाइक पर बैठी और बोली, "क्या हुआ अक्षय? तुमने यहाँ पर बाइक क्यों रोकी? ऐसे एकदम से ब्रेक लगाया, मैं अभी गिर..."
इसके आगे वह ज्यादा कुछ नहीं बोल पाई। सामने खड़ी कार उसे भी नज़र आ गई। जैसे ही उसका दरवाज़ा खुला और उसमें से शख्स बाहर निकला, अक्षय और मीशा दोनों बुरी तरह घबरा गए। मीशा के माथे पर पसीने की बूंदें नज़र आने लगीं। अक्षय का हेलमेट लगा हुआ था, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ़ दिख रहा था।
उन दोनों के सामने खड़ा शख्स वेदांश ठाकुर था, मिशिका का बड़ा भाई। उन दोनों के बारे में पता लगाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। घर पर जब उसे मीशा के न होने के बारे में पता चला, तब भी उसने ज़्यादा टेंशन नहीं ली। दो घंटे में ही उसे उन दोनों के बारे में और सही लोकेशन पता चल गई थी। वह अब उन दोनों के सामने खड़ा था।
वेदांश की नज़रें उन दोनों पर थीं। अक्षय ने तुरंत अपनी बाइक स्टार्ट की और पीछे की तरफ मोड़ने लगा। लेकिन जैसे ही उसने बाइक पीछे मोड़ी, देखा कि पीछे भी वैसी ही ब्लैक कलर की चार कारें खड़ी थीं। पूरा रास्ता ब्लॉक हो गया था। उन दोनों के निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था।
अक्षय की बाइक स्टार्ट थी, लेकिन वह उसे आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। तभी वेदांश एकदम आगे आया और उनकी बाइक के सामने आकर खड़ा हो गया। वह बोला, "क्या लगा था तुम दोनों को? इतना आसान है वेदांश ठाकुर से बचकर निकल जाना?"
वेदांश को वहाँ देखकर अक्षय और मिशिका दोनों की हालत खराब हो गई थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। मिशिका ने अक्षय का हाथ कसकर पकड़ लिया। वेदांश ने उनके हाथों की तरफ़ घूर कर देखा।
वह दोनों बाइक पर बैठे हुए थे। अक्षय ने हिम्मत करके वेदांश की तरफ़ देखते हुए कहा, "सबसे मुश्किल काम किसी को पूरे दिल से चाहना होता है। और जब मैंने वह कर लिया, तो उसके आगे बाकी सारे काम आसान लगते हैं। अब..."
अक्षय ने अपना हेलमेट उतारकर बाइक के हैंडल में फँसा दिया और मिशिका के हाथों की उंगलियों में अपनी उंगलियाँ फँसाते हुए उसका हाथ पकड़ लिया।
अक्षय की बात सुनते ही वेदांश ने गुस्से में उसकी तरफ़ घूर कर देखा और बोला, "हाथ छोड़ मेरी बहन का! तू इसके लायक नहीं है, और न ही सात जन्म में कभी हो सकता है।"
वेदांश की बातें सुनकर मिशिका की आँखों में आँसू आ गए। उसने लगभग रिक्वेस्ट करते हुए कहा, "भैया प्लीज! प्लीज मुझे अक्षय के साथ जाने दो। मैं किसी और से शादी नहीं करूँगी। कभी भी नहीं..."
वेदांश ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा, "जाने दूँ तुम्हें? वह भी इसके साथ? जो हमारे साथ खड़े होने के लायक नहीं है। खड़ा होना तो दूर, हमारे घर के नौकर भी इससे ज़्यादा अमीर होंगे! और तुम ऐसे लड़के के साथ जाना चाहती हो? वह भी हमारे परिवार की इज़्ज़त दांव पर लगाकर? कल तुम्हारी शादी है मिशिका, तुम आज रात किसी और लड़के के साथ। तुम इस बारे में सोच भी कैसे सकती हो? किसी को पता चल गया, तो तुम्हें पता है कितनी बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाएगी।"
वह मिशिका का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ खींचते हुए ले जाने लगा। लेकिन मिशिका ने दूसरे हाथ से अक्षय का हाथ कसकर पकड़ रखा था, जिसे वह छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी।
अक्षय ने भी उसका हाथ कसकर पकड़ रखा था। मिशिका ज्यादा आगे नहीं आ पाई क्योंकि अक्षय अपनी जगह से ज़रा सा भी नहीं हिला था।
वेदांश चाहे तो एक झटके में उन दोनों को अपने साथ खींच सकता था। लेकिन वह अक्षय और मिशिका के हाथों को अलग करना चाहता था। इसलिए उसने पीछे मुड़कर अक्षय की तरफ़ देखा और कहा, "मुझे कुछ भी गलत करने पर मजबूर मत करो। मैं पहली और आखिरी वार्निंग दे रहा हूँ तुम्हें, हाथ छोड़ो मेरी बहन का।"
वेदांश की बात सुनकर अक्षय उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए बोला, "हम मिडिल क्लास लोग भले ही तुम्हारी बराबरी में खड़े रहने के लायक न हों, लेकिन एक बार अगर किसी का हाथ पकड़ लेते हैं ना, तो इतनी आसानी से नहीं छोड़ते। कोशिश करके देख लो मिस्टर वेदांश ठाकुर! आई लव मीशा, आई लव हर सो मच।"
अक्षय को खुद नहीं पता था कि उसके अंदर कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई थी। वह वेदांश की धमकी भरी बातों का जवाब मुस्कुराते हुए दे रहा था।
लेकिन मिशिका को अपने भाई का गुस्सा देखकर समझ आ रहा था कि वह इस वक़्त अक्षय और उसके साथ कुछ भी कर सकता है। वह नहीं चाहती थी कि अक्षय वेदांश को और ज़्यादा उकसाए। इसलिए उसने अक्षय का हाथ कसकर दबाया और उसकी तरफ़ देखकर बोली, "अक्षय प्लीज़! शांत रहो तुम..."
मिशिका की बात सुनकर अक्षय उसे समझाते हुए बोला, "नहीं मीशा! बस बहुत हुआ। कितना डरकर भागेंगे हम इस आदमी से? और जितना तुम डरोगी ना, इसका डर उतना ही बढ़ता जाएगा। इसलिए यही वक़्त है इसका सामना करने का।"
वेदांश उन दोनों की बातें सुनकर काफी इरिटेट हो चुका था। उसने अक्षय की तरफ़ देखकर कहा, "बस बहुत हुआ तुम दोनों का! मिशिका, अगर तुम इसे ज़िंदा देखना चाहती हो, तो इसका हाथ छोड़ दो! क्योंकि डर नहीं, दहशत होती है लोगों में वेदांश ठाकुर की।"
वेदांश ने जैसे ही यह बात बोली, मिशिका की आँखों में भरे हुए आँसू लुढ़क कर उसके गालों पर गिरने लगे। उसने तुरंत अपने हाथों की उंगलियाँ पूरी खोल दीं। लेकिन अक्षय का हाथ उसके हाथ से नहीं छूटा। अक्षय ने अभी भी कसकर उसका हाथ पकड़ रखा था। यह देखते हुए वेदांश ने तुरंत अपने लोगों को इशारा किया। उनमें से एक ने पीछे जाकर अक्षय के सिर पर वार किया। अक्षय एकदम चकरा गया। उसे इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। उसने एक हाथ अपने सिर पर रखा। उसके सिर के पीछे के हिस्से से खून निकलने लगा था। यह देखकर मिशिका जोर से चीखी, "अक्षय!"
इतना बोलते हुए वह वेदांश का हाथ छुड़ाकर अक्षय की तरफ़ भागने लगी। लेकिन वेदांश ने उसके हाथ को और कसकर पकड़ लिया और उसे खींचते हुए अपनी कार की तरफ़ ले आया। वहीं उसके लोगों ने अक्षय को घेर लिया था और उसे बुरी तरह पीट रहे थे।
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क्या लगता है आप लोगों को? अक्षय बचेगा या फिर क्या होने वाला है उसके साथ? क्या मिशिका की शादी हो जाएगी तुषार से? और अंबिका को पता चलेगा? इन सब चीज़ों के बारे में क्या? क्या उसे पता था अक्षय मिशिका को घर लाने वाला है? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में 👇👇
वेदांश मिशिका को अपने साथ लगभग खींचते हुए कार तक ले आया। मिशिका लगातार उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। अक्षय की हालत देखकर वह उसके लिए बहुत ही ज्यादा परेशान थी। उसने पूरी कोशिश की, लेकिन वेदांश की पकड़ इतनी मजबूत थी कि मिशिका उसकी एक उंगली भी अपनी कलाई पर से नहीं हटा पाई। वेदांश ने उसे लगभग कार के अंदर धक्का दे दिया और फिर एक झटके से कार का दरवाजा बंद कर दिया, और लॉक भी कर दिया।
मिशिका समझ चुकी थी कि वह अब वापस वेदांश की पकड़ से छूटकर अक्षय के पास नहीं भाग सकती। इसलिए उसने भी सारी उम्मीद छोड़ दी। लेकिन वह अक्षय को अपनी आंखों के सामने ऐसे मारता हुआ नहीं देख सकती थी। इसलिए उसने अपने भाई के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा,
"भैया प्लीज, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ। आपको जो करना है मेरे साथ करो, प्लीज। मैंने उसे बोला था भागने के लिए, वह इस बात के खिलाफ था। वह मुझे कहीं भी नहीं ले जाना चाहता था। प्लीज आप उसे छोड़ दो। अपने लोगों को बोलो उसे मारना बंद कर दें। क्या मिलेगा आपको किसी निर्दोष की जान लेकर? प्लीज उसे छोड़ दो, मेरे अक्षय को छोड़ दो।"
मिशिका बहुत ही ज्यादा गिड़गिड़ाते हुए अपने भाई के सामने रिक्वेस्ट कर रही थी। लेकिन उसकी रिक्वेस्ट सुनकर वेदांश पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ रहा था। वह इस तरह एकदम इमोशनलेस चेहरे के साथ उसके सामने खड़ा हुआ था और उसने कुछ भी नहीं कहा। वह खुद भी दूसरी साइड से आकर बैक सीट पर बैठ गया क्योंकि ड्राइवर उसकी कार ड्राइव कर रहा था, इसलिए वह आगे की पैसेंजर सीट पर नहीं बैठा।
ड्राइवर के साथ बैठना उसकी शान के खिलाफ था। जैसे ही वह पीछे आकर बैठा, मिशिका तुरंत ही उसकी तरफ घूम गई और बोली,
"भैया प्लीज, प्लीज रोक दो उन लोगों को, वह मर जाएगा।"
वेदांश ने चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट के साथ कहा,
"और जिंदा रहकर करेगा भी क्या वो? फिर से मेरे खिलाफ जाने की कोशिश, फिर से तुम्हारे साथ रहने के सपने देखेगा। इससे तो अच्छा है कि मर जाए, कम तकलीफ होगी बेचारे को।"
मिशिका ने जैसे ही यह बात सुनी, वह एकदम ही सहम गई। वह इस बारे में सोच भी नहीं सकती थी कि अक्षय को कुछ हो जाए। इसलिए उसने अपने भाई के पैर पकड़ लिए और बोली,
"भैया प्लीज, मैं आपके पैर पकड़ती हूँ। आप जो कहोगे मैं वह करूंगी। जिससे शादी करने को बोलोगे, करूंगी। अक्षय का नाम तक नहीं लूंगी, लेकिन प्लीज उसे छोड़ दो, उसे उसके घर वापस जाने दो।"
मिशिका की यह बात सुनते ही वेदांश अपने कान में पहने हुए ईयरपीस पर बोला,
"रुक जाओ!"
जैसे ही उसने यह बोला, कार के सामने रोड पर उसके जो लोग अक्षय को बुरी तरह से पीट रहे थे, वे एकदम ही रुक गए। अक्षय अब तक अधमरा हो चुका था, लेकिन वह होश में था और वह भी उठकर खड़े होने की कोशिश करने लगा। उसे देखकर मिशिका की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे और वह खुद को बहुत ही बेबस महसूस कर रही थी। अपने भाई के आगे आज तक वह हमेशा ही खुद को ऐसा ही महसूस करती आई थी। उसके भाई ने कभी उसे अपनी मर्जी से कुछ भी करने को नहीं दिया था; लाइफ पार्टनर चुनना तो बहुत दूर की बात थी।
मिशिका को अब खुद पर गुस्सा आ रहा था। वह सोच रही थी कि क्यों उसने अक्षय को अपनी लाइफ में आने दिया। उसकी वजह से आज उसकी यह हालत थी।
यह सब कुछ सोचते हुए मिशिका ने एकदम कसकर अपनी आंखें बंद कीं और तभी वेदांश ने कहा,
"बातों-बातों में बहुत ही अच्छा आईडिया दिया है तुमने मुझे। यह तुम्हारी कमजोरी है, तो अब यह मेरे पास रहेगा। तुम्हारी शादी और विदाई हो जाने तक, अगर तुमने कुछ भी ऐसा-वैसा करने की सोची तो फिर समझ लेना तुम्हारा यह आशिक जिंदा नहीं बचेगा।"
वेदांश की यह बात सुनते ही मिशिका एकदम ही घबराते हुए बोली,
"नहीं नहीं भैया प्लीज ऐसा मत करो। छोड़ दो उसे, उसे यहां से जाने दो। उसके घर पर सब उसका इंतजार कर रहे होंगे। और मैंने कहा है ना मैं आपकी बात मानूंगी। प्लीज अक्षय को आपके पास रखने की क्या जरूरत है? उसे जाने दो, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ प्लीज।"
उसे नहीं पता था वेदांश के मन में क्या चल रहा है और वह क्यों अक्षय को अपने साथ रखना चाहता है। शायद मिशिका ने अभी जो कुछ भी बोला, उसके बाद वह समझ चुका था कि मिशिका के लिए अक्षय उसकी कमजोर नस है, जिस पर हाथ रखकर वह मिशिका से वह कुछ भी करवा सकता था। और इसीलिए उसके दिमाग में यह खूराफाती प्लान आया और उसने तुरंत ही अपने आदमियों को आर्डर देते हुए कहा,
"उसे भी साथ ले चलो।"
इतना बोलते ही मिशिका ने अपने सामने देखा तो चार लोगों ने उठकर अक्षय को एक कार के अंदर डाल दिया। वह कार उसकी कार से पहले ही वहाँ से आगे निकल गई। और उसके बाद तुरंत ही वेदांश ने भी अपने ड्राइवर को कार स्टार्ट करने के लिए कहा और फिर उनकी कार भी स्टार्ट हो गई। लेकिन मिशिका की आंखें उस कार पर ही जमी हुई थीं जिसमें उन लोगों ने आधे बेहोश हो चुके अक्षय को उठाकर रखा था।
मिशिका ने अपने गले में पहने हुए लॉकेट पर हाथ रखते हुए कहा,
"आई एम सॉरी अक्षय! आई एम सो सॉरी। मेरी वजह से आज तुम्हारी यह हालत है। इन सब की जिम्मेदार मैं हूँ, सिर्फ मैं। लेकिन अपने किए की सजा मैं तुम्हें भुगतने नहीं दूंगी, चाहे जो भी हो जाए।"
अपने मन में यह सब सोचते हुए उसने अपने भाई की तरफ देखा और कुछ भी नहीं बोली। तभी वेदांश ने कहा,
"आँखें नीचे रखो अपनी, कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है तुमने घर से भागकर। हम सब का सर नीचा करने वाला काम किया है और खुद ऐसे नज़र उठाकर मेरी तरफ देखने की हिम्मत कर रही हो। शुक्र मनाओ कि मेरी बहन हो, इसलिए उसे लड़के जैसा हाल तुम्हारा नहीं हुआ।"
मिशिका बिना डरे एकदम तेज आवाज में बोली,
"हाँ तो मार दीजिए ना जान से! जो आप कर रहे हैं मेरे साथ, उसके बाद कौन सा मैं जिंदा रहने लायक बचूंगी ही? ऐसे अपने फ़ायदे के लिए और अपनी इज़्ज़त के नाम पर इस्तेमाल करने से तो अच्छा है कि इस इज़्ज़त के नाम पर मार दीजिए मुझे। कम से कम इन सब चीज़ों से तो छुटकारा मिलेगा।"
मिशिका के इस तरह से चिल्लाने पर वेदांश उसे सीधे ही धमकी देते हुए बोला,
"नज़र उठाकर देखने के साथ आवाज़ भी ऊँची हो रही है। ठीक है, कोई बात नहीं। जितनी तेज आवाज़ तुम्हारी मेरे सामने निकलेगी ना, उतनी ही तेज चीख तुम्हारे उस आशिक की निकलेगी ना। यकीन हो तो आज रात को सुन लेना। घर के बेसमेंट में ही रहेगा वह भी।"
इतना बोलने के बाद वेदांश ने अपनी नज़र दूसरी तरफ घुमा ली और मिशिका एकदम ही चुप हो गई। उसने अपना सिर भी नीचे झुका लिया क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि वह जोश में आकर वेदांश से ऐसा कुछ बोले जिससे कि वह ट्रिगर हो और फिर उसका कामयाब अक्षय को भुगतना पड़े। इसलिए वह एकदम ही खामोश हो गई और कुछ देर के बाद उनकी कार घर पहुँच गई।
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कैसा लगा आज का एपिसोड? आप लोगों का इतना कम रिस्पांस देखकर जल्दी एपिसोड देने का भी मन नहीं होता यार। एक-दो लोग तो कमेंट कर दिया करो। कोई भी कमेंट नहीं कर रहा है। अब तो ऐसा नहीं कैसे चलेगा।
अगली सुबह, जमीन पर कुछ गिरने की आवाज़ से अंबिका की नींद खुली। वह अपने घर के लिविंग एरिया में सोफ़े पर बैठी-बैठी सो रही थी। आँख खुलते ही उसने इधर-उधर देखा। उसकी नज़र अपने पापा के कमरे की ओर गई और वह तुरंत वहाँ भागी। उसने देखा कि उसकी बहन देविका पहले से ही वहाँ थी, और उसके पापा शायद पानी पीने की कोशिश कर रहे थे। ग्लास उनके हाथ से छूटकर गिर गया था। देविका ने उठाकर वह गिलास साफ़ किया और अपने पापा को पानी पिलाया।
अंबिका ने उन दोनों को देखकर कहा,
"क्या हुआ देविका? सब ठीक तो है ना? पापा, आप ठीक हैं?"
पैरालिसिस अटैक की वजह से अंबिका के पापा ज़्यादा बोल नहीं पाते थे। इसलिए उन्होंने बस धीरे से अपना सिर हिलाया। देविका ने अपने पापा को पानी पिलाने के बाद अंबिका की ओर आई और धीमी आवाज़ में बोली,
"दीदी, वो अक्षय भैया, वो अभी तक नहीं आए हैं। और आप भी बाहर ही सो गईं। मैं भी अपने रूम में सो गई थी। अभी थोड़ी देर पहले मेरी भी आँख खुली।"
देविका की बात सुनकर अंबिका मुस्कुराई और उसका हाथ पकड़कर उसे कमरे से बाहर ले गई। वह अपने पापा के सामने इस बारे में बात नहीं करना चाहती थी।
उसके पापा अपनी जगह पर लेट चुके थे। अंबिका देविका का हाथ पकड़कर उसे कमरे से बाहर ले आई। देविका ने कहा,
"दीदी, मुझे बहुत टेंशन हो रही है भैया की। पता नहीं क्यों, बहुत अजीब सा लग रहा है। कहाँ रह गए वो? वो तो कभी रात भर घर से बाहर नहीं रहते ना? आप ही कहती हो, वो हमेशा टाइम से घर आ जाते हैं।"
देविका के दोबारा सवाल पूछने पर अंबिका के चेहरे पर भी चिंता की लकीर साफ़ नज़र आने लगी। उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा,
"हाँ, आ तो जाता है। लेकिन कल जब उसने फ़ोन करके मुझे कहा कि ऑफ़िस से वो कहीं और जा रहा है, अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने, तब ही मुझे बिलकुल अच्छी फ़ीलिंग नहीं आ रही थी। पता नहीं क्यों, कुछ तो अजीब सा लग रहा था। लेकिन फिर भी मैंने सोचा, आखिर कैसे मैं उसे रोक सकती हूँ? उसकी अपनी भी तो लाइफ़ है। बस इसीलिए मैंने उसे जाने दिया। लेकिन अक्षय पूरी रात घर वापस ना आया हो, ऐसा तो कभी नहीं हुआ। यह जितनी भी देर में आता, आ ही जाता था।"
कल रात से वह दोनों अपने भाई का इंतज़ार कर रही थीं। अक्षय उन दोनों को झूठ बोलकर मीशा से मिलने गया था।
दोनों बहनों को इस बारे में कोई खबर नहीं थी, इसीलिए वे काफी परेशान हो गई थीं।
अंबिका ने अपनी तरह से अक्षय के बारे में पता लगाने की कोशिश की। उसने एक-एक करके उसके सारे दोस्तों को फ़ोन कॉल करने लगी, क्योंकि फिलहाल उसके पास और कोई ऑप्शन नहीं था। उसे अपने भाई की बहुत चिंता हो रही थी।
वहीं दूसरी तरफ़, ठाकुर बंगला, मिशिका की शादी का दिन था।
सुबह से ही वहाँ अफ़रा-तफ़री मची हुई थी। वेदांश खुद सारा काम देख रहा था। सब कुछ काफी अच्छे से हो गया था। सारी तैयारियाँ, डेकोरेशन और मंडप भी बंगले के लिविंग एरिया में सजा हुआ था। बाकी सारे सामान को हटा दिया गया था, और बंगले का लिविंग एरिया एक बहुत ही बड़े हॉल में कन्वर्ट हो चुका था।
वह बंगला पहले ही बहुत बड़ा था, और उसका हॉल कम से कम पाँच सौ लोगों के आने के लिए पर्याप्त था। लेकिन उतने लोगों को वेदांश ने इनवाइट भी नहीं किया था। इतनी जल्दबाजी में शादी हो रही थी, तो उसे पता था कि सब लोग शादी में नहीं आ पाएँगे। इसलिए उसने कुछ करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों को ही इनवाइट किया था। जिनमें से ज़्यादा उसके बिज़नेस पार्टनर और बिज़नेस फ़्रेंड्स थे। क्योंकि शादी भी एक बिज़नेस पार्टनर फ़्रेंड से हो रही थी, तो ज़्यादातर उन दोनों के कॉमन फ़्रेंड थे।
कुछ घंटे बाद, शाम के वक़्त, एकदम टाइम पर ही बारात आ गई। वेदांश इस बीच लगातार यहां से वहाँ चक्कर काट रहा था। जब वह तुषार और उसकी फैमिली का वेलकम करने के बाद मिशिका को लेने उसके कमरे में पहुँचा, तो काफी देर तक मिशिका के कमरे का दरवाज़ा नहीं खुला। वह बहुत ज़्यादा परेशान हो गया।
वेदांश ने अपने आप में बड़बड़ाते हुए कहा,
"क्या हो गया अब फिर से? इस लड़की के तो नाटक ख़त्म नहीं होते।"
इतना बोलते हुए, हाथों की कसकर मुट्ठी बांधते हुए, गुस्से में वेदांश ने अपने दाँत पीस लिए और जोर-जोर से उसके कमरे के दरवाज़े को पीटने लगा। लेकिन कोई रिस्पांस नहीं आया। गुस्से में उसने अपनी माँ का नाम लेकर कहा,
"मॉम! मॉम! यहाँ पर आइए जल्दी! कहाँ हैं आप?"
उसके चिल्लाने पर उसकी माँ भागती हुई वहाँ आ गई। उन्होंने वेदांश की तरफ़ देखते हुए कहा,
"क्या है अब तुम्हें? शादी हो तो रही है, फिर भी सुकून नहीं है? इस तरह से क्यों चिल्ला रहे हो? कोई सुनेगा तो क्या समझेगा?"
अपनी साड़ी ठीक करते हुए, वेदांश की माँ ने बेरुखी से कहा। वेदांश ने गुस्से से कहा,
"मुझे भी ऐसे चिल्लाने का कोई शौक नहीं है। लेकिन आपकी यह बेटी कोई मौका नहीं छोड़ती मुझे परेशान करने का। क्या हो गया है अब? यह दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रही? तैयार हुई है या फिर नहीं? कम से कम आपको यह सब तो देखना ही चाहिए। मैंने तो सुबह से नहीं देखा उस लड़की को। कहीं आपने फिर से उसे भगा तो नहीं दिया।"
वेदांश की माँ ने जवाब दिया,
"बेकार की बातें मत करो। अभी तक वह अपने कमरे में ही थी। थोड़ी देर पहले तक मैं उसे सारा सामान देकर गई थी। और ब्यूटीशियन भी अभी आधे घंटे पहले ही उसके कमरे से निकलकर बाहर गई है। वह रेडी हो गई होगी। वैसे भी, कोई और ऑप्शन कहाँ छोड़ा है तुमने उसके पास?"
वेदांश आत्मविश्वास से बोला,
"ऑप्शन होना भी नहीं चाहिए ऐसे लोगों की लाइफ़ में, जो अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करने पर तुले रहते हैं। उन्हें बस वही करना चाहिए जो उनके लिए बेहतर हो। और मैंने तय किया है।"
वेदांश की बात पर उसकी माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। आगे आते हुए वह भी दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश करने लगी। लेकिन अंदर से कोई रिस्पांस नहीं आया। फिर वेदांश ने कहा,
"हटिए! मैं यह दरवाज़ा तोड़ देता हूँ, क्योंकि मुझे नहीं लगता खुद से दरवाज़ा खोलकर यह लड़की बाहर आएगी।"
वेदांश बहुत ज़्यादा फ्रस्ट्रेटेड हो चुका था। एक ही झटके में उसने जोर लगाकर अपने कंधे से दरवाज़े पर हिट किया, और तुरंत ही दरवाज़ा खुल गया।
और जैसे ही उसके कमरे का दरवाज़ा खुला, उसे सामने जो नज़र आया, उसे देखकर सब हैरान रह गए। वेदांश के मुँह से निकला,
"क्या है यह सब? और तुम यहाँ क्या कर रही हो? मेरी बहन कहाँ है?"
वेदांश के साथ ही कमरे के अंदर आई उसकी माँ और बुआ भी सामने का नज़ारा देखकर हैरान रह गईं। लेकिन उन्हें मिशिका वहाँ कहीं भी नज़र नहीं आई।
क्रमशः
क्या लगता है आप लोगों को? ऐसा क्या हुआ है वहाँ पर कमरे में? कौन है मिशिका की जगह पर वहाँ? और मिशिका कहाँ गई? क्या उसे अक्षय के पास पहुँचने का कोई मौका मिल गया होगा? और क्या मिशिका और तुषार की यह शादी हो पाएगी? क्या लगता है आपको? बताइए कमेंट सेक्शन में 👇 🥰
13 वेदांश वहां कमरे के अंदर आया और सामने खड़ी एक लड़की जिसने स्टाफ की ड्रेस पहनी हुई थी और चेहरे पर मास्क लगाया हुआ था, उसे देखकर वेदांश एकदम गुस्से में बोला, "कौन हो तुम और यहां पर मेरी बहन के कमरे के अंदर क्या कर रही हो और मेरी बहन कहां पर है, बताओ मुझे तुम यहां पर कैसे आई? दरवाजा तो अंदर से बंद था! क्या तुमने ही दरवाजा अंदर से बंद किया हुआ था?" इतना बोलते हुए वेदांश ने उस पूरे कमरे में एक नजर दौड़ाई लेकिन उसे मिशिका कहीं भी नजर नहीं आई और आगे आकर उसने उस लड़की की वहां एकदम कसकर पकड़ ली और उस लड़की को अपने हाथ पर तेज़ दर्द महसूस हुआ तो एकदम से उसके मुंह से निकल गई और वह बोली, "आह्! हाथ छोड़िए मेरा... मुझे. . मुझे कुछ भी पता नहीं है मैं मैं तो बस यहां पर काम कर रही थी वह मैडम ने मुझे मदद के लिए बुलाया था।" इतना बोलते हुए वह इधर-उधर देखने लगी और उसके इस तरह से नज़र न मिलने पर वेदांश समझ गया कि वह झूठ बोल रही थी, इसलिए वेदांश ने अपनी आंखें कसकर बांध के और उसकी पकड़ उस लड़की के हाथों पर और भी मजबूत हो गए उसने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा, "चुपचाप से मुझे सच बताओ और तुम्हारी आवाज मुझे इतनी जानी पहचानी क्यों लग रही है जैसे कि मैंने पहले भी सुनी हो अपने चेहरे पर से मास्क हटाओ।" वेदांश ने जैसे ही यह बात बोली उस लड़की की आंखें हैरानी से एकदम ही चौड़ी हो गई और उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करें और क्या नहीं लेकिन तभी एक तरफ से उसकी मां के चीखने की आवाज आई, वेदांश इधर आओ। वह आवाज बाथरूम की तरफ से आई थी क्योंकि उनके साथ में अंदर आते ही उसकी मां और बुआ भी मिशिका को इधर-उधर ढूंढने लगी थी लेकिन वेदांश उस लड़की से यह सब पूछ रहा था। एक झटके से उस लड़की का हाथ छोड़ते हुए वेदांश तुरंत कमरे के वॉशरूम की तरफ भागा तो जैसे ही वह वहां पर पहुंचा उसने देखा की शादी का लहंगा पहने हुए उसकी बहन वहां जमीन पर बेहोश पड़ी हुई थी और उसके मुंह से झाग निकल रहा था। उसकी मां वहीं पर साइड में बैठकर रोने लगी और वहां जमीन पर एक छोटी सी कांच की सीसी भी पड़ी थी, वेदांश की मां के इस तरह से चीखने पर वह मास्क वाली लड़की भी वेदांश के पीछे-पीछे वहां पर वॉशरूम में आई और तभी उसका पर किसी चीज पर पड़ा उसने नीचे देखा तो वह एक छोटी सी कांच की शीशी थी और उस लड़की ने झुक कर वह शीशे अपने हाथ में उठा ली और वेदांश की मां ने कहा डॉक्टर बुलाओ जल्दी नहीं तो वह बचेगी नहीं। वेदांश की आंखें भी हैरानी से एकदम बड़ी हो गई थी उसने ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि मिशिका सच में सुसाइड अटेम्प्ट कर लेगी और उसने जहर खा लिया था वह डॉक्टर का नंबर डायल करने के लिए अपना मोबाइल फोन निकलने लगा उसके चेहरे पर अभी भी कोई एक्सप्रेशन नहीं थे वह थोड़ा सा घबराया हुआ था लेकिन अपने चेहरे पर दिख नहीं रहा था। मोबाइल फोन निकलते हुए वह डॉक्टर का नंबर डायल करने ही वाला था कि तभी पीछे खड़ी उस लड़की के हाथ पर उसकी नज़र पड़ी जिसके हाथ में वह छोटी सी कांच की शीशी थी। उसे देखते ही वेदांश का गुस्सा एकदम ही बढ़ गया और उसने उस लड़की की तरफ देख कर गुस्से में अपने दांत पीसते हुए कहा, "तुम! तुमने ही यह सब किया है ना? तुम्हीं ने मेरी बहन को जहर देकर मारने की कोशिश की है। कौन हो तुम?" इतना बोलते हुए वेदांश ने पहले डॉक्टर का नंबर भी डायल नहीं किया और वह लड़की अपनी सफाई में कुछ बोल पाती उससे पहले ही वेदांश ने अपने हाथ से उस लड़की के चेहरे का मास्क हटा दिया। वेदांश के ऐसा करने पर वह लड़की एकदम ही हड़बड़ा गई। उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया लेकिन वेदांश उसका चेहरा देखकर एकदम हैरान रह गया और बोला, "तुम तो उस लड़के की बहन हो ना? ज़रूर तुमने ही यह सब किया है अपने भाई का बदला लेने के लिए लेकिन मैंने तुम्हारे भाई की जान नहीं ली है सिर्फ उसे अपने पास बंद करके रखा हुआ है लेकिन तुमने तो मेरी बहन को जान से मारने की कोशिश की, हाउ डेयर यू?" वेदांश के इल्ज़ाम सुनकर अंबिका तुरंत ही सफाई देती हुई बोली, "नहीं, नहीं मैं.. मैं भला ऐसा क्यों करूंगी मैं.. मैं तो बस अक्षय को ढूंढने के लिए और तुमने.. तुमने उसे कहां बंद करके रखा है? बताओ मुझे कहां है मेरा भाई?" वहां जमीन पर बेहोश बड़ी मिशिका को देखकर अंबिका को बहुत ही बुरा लग रहा था लेकिन साथ ही उसे अक्षय की भी फिक्र हो रही थी इसलिए वेदांश की ऐसी बातें सुनते ही उसने तुरंत अक्षय के बारे में पूछा और उन दोनों की बातें सुनकर वहीं पर मिशिका के बेजान शरीर के पास बैठी हुई वेदांश की मां ने चिल्लाते हुए कहा, "क्या बातें कर रहे हो तुम दोनों? डॉक्टर को बुलाओ वेदांश, तुम्हें समझ में काम आता है क्या? मैं तुम्हारी वजह से अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है वेदांश सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी वजह से इसका एग्जाम तुम किसी और पर नहीं लगा सकते तुमने मेरी बच्ची को ऐसा करने पर मजबूर किया सिर्फ तुमने।" अपनी मां की बात सुनकर वेदांश को बहुत ही गुस्सा तो आया लेकिन वह फिलहाल उन्हें कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि सिचुएशन ही ऐसी नहीं थी उसने तुरंत डॉक्टर को फोन किया और कुछ ही मिनट में एंबुलेंस वहां पर आ गई और वह मिशिका को अपनी गोद में उठाकर वहां से बाहर निकाला और उसने अपने बॉडीगार्ड से अंबिका को भी साथ लेकर आने के लिए कहा क्योंकि उसे अंबिका पर ही शक था इसलिए वह उसे कहीं भी जाने नहीं देना चाहता था। अंबिका उनके साथ नहीं जाना चाहती थी भले ही उसे मिशिका की फिक्र थी लेकिन वह वहां पर रख कर अक्षय को ढूंढना चाहती थी। वह अक्षय को ढूंढने के लिए ही वहां पर आई थी जैसे ही उसे अक्षय के एक दोस्त से इस बारे में पता चला था कि कल रात को अक्षय मीशा से मिलने के लिए जा रहा था तभी अंबिका यहां पर आ गई थी और सबसे बचने के लिए उसने एक स्टाफ की ड्रेस पहन ली थी जिससे कि कोई उसे पहचान ना पाए लेकिन वह यहां पर मिशिका के कमरे में आई और उससे मिल पाती उससे पहले ही वेदांश वहां पर आ गया था। अंबिका बस मिशिका से मिलकर अक्षय के बारे में उससे पूछना चाहती थी उसे इस बारे में कोई भी अंदाजा नहीं था कि मिशिका सुसाइड करने वाली है उसने अब तक वॉशरूम में चेक भी नहीं किया था और उससे पहले ही वेदांश ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और मिशिका की ऐसी हालत का जिम्मेदार भी वह अब उसे ही ठहरा रहा था इन सब में अंबी को बहुत ही ज्यादा परेशान हो चुकी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह काफी बुरी तरह से उस सिचुएशन में फंस गई थी। वेदांश के कहने पर उसके बॉडीगार्ड ने आगे आते हुए अंबिका का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ खींचकर ले जाने लगा तो अंबिका ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? मेरा हाथ छोड़ो तुम, मुझे कहीं नहीं जाना! मुझे अपने भाई को ढूंढना है, बताओ कहां है वो? इतना बोलते हुए अंबिका उस बॉडीगार्ड के हाथ पर अपने पतले नाजुक हाथों से वार करने लगी तो उस हट्टे कट्टे बॉडीगार्ड पर कोई भी असर नहीं पड़ा और वो उसी तरह अंबिका को अपने साथ खींचकर घर से बाहर लेकर आने लगा। वेदांश भी उसी तरह गोद में उठाकर मिशिका को घर से बाहर निकाला तो तुषार और उसकी फैमिली वाले भी उसके पीछे आने लगे। वेदांश ने एक नजर मुड़कर उन सब की तरफ देखा और कहा, "मिशिका की तबीयत थोड़ी खराब हो गई है। मैं उसे अस्पताल लेकर जा रहा हूं।" वेदांश ने उन लोगों को पूरी बात नहीं बताई और मिशिका को वहां से लेकर चला गया क्योंकि वेदांश से कोई और सवाल करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था इसलिए तुषार ने भी धीरे से अपना सिर हिलाया और अपनी फैमिली के साथ वहां पर रख कर उनके वापस आने का ही वेट करने लगा उसे नहीं पता था कि मिशिका को क्या हुआ है और ना ही उसने इस बारे में पूछने की हिम्मत की क्योंकि सब बहुत ही परेशान लग रहे थे और मिशिका इस वक्त बेहोश थी वेदांश की गोद में और वह उसे लेकर एंबुलेंस की तरफ ही बढ़ गया। To Be Continued ओके, तो कमेंट में जिसको भी टेंशन हो रही थी मिशिका और तुषार की शादी तो नहीं हुई लेकिन कुछ और बड़ा हो गया वैसे क्या लगता था आप लोगों को, कि मिशिका ऐसा कदम उठाएगी शायद वेदांश ने उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं छोड़ा था और कहां है अक्षय क्या अंबिका उसे ढूंढ पाएगी या फिर अब वह खुद ही फंस जाएगी वेदांश के जाल में? क्या लगता है आप लोगों को सभी सवालों के जवाब आगे मिलेंगे इसलिए रेगुलर इस कहानी को पढ़ते रहिए और कमेंट भी करिए। आज का एपिसोड भी काफी बड़ा है तो हमें भी ज्यादा कमेंट चाहिए।
वेदांश की माँ और वेदांश, उसके सारे बॉडीगार्ड और अंबिका, ये सभी अस्पताल में थे। पहले वेदांश के कुछ रिश्तेदार और तुषार भी आए थे, लेकिन वेदांश ने समझा-बुझाकर उन्हें वापस भेज दिया था। उसके रिश्तेदार उल्टी-सीधी बातें कर रहे थे; कुछ मिशिका को गलत बोल रहे थे, कुछ वेदांश को। वेदांश का मन कर रहा था कि उन लोगों को जान से मार दे, लेकिन वह अस्पताल में कोई तमाशा नहीं करना चाहता था। इसलिए वह बस खून का घूंट पीकर रह गया।
अंबिका बहुत परेशान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और वेदांश उसे अपने साथ क्यों लाया था। उसे अक्षय को भी ढूँढना था, लेकिन वह उसे भी नहीं ढूँढ पा रही थी। उसे अक्षय के बारे में कुछ पता नहीं चला था। उसने सोचा था कि वह मिशिका से उसके बारे में पूछेगी, लेकिन मिशिका से उसकी बात नहीं हो पाई। अब वह इस हालत में थी, अंबिका को उसकी भी बहुत चिंता हो रही थी।
वेदांश के दो बॉडीगार्ड अंबिका को घेर कर खड़े थे और उसे हिलने भी नहीं दे रहे थे। इस बात से अंबिका काफी इरिटेट हो गई थी, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
वेदांश की माँ वहीं एक तरफ बैठकर रो रही थी। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि जो कुछ हुआ है उसमें किसकी ज़्यादा गलती है, किस पर इल्ज़ाम लगाएँ और कैसे यह सब सही करें। वे बस अपनी बेटी को सही-सलामत होश में आते देखना चाहती थीं।
वेदांश वहीं सामने खड़ा होकर डॉक्टर से बात कर रहा था क्योंकि मिशिका की हालत बिल्कुल ठीक नहीं थी। उसकी कंडीशन और खराब होती जा रही थी क्योंकि उसने काफी देर पहले ज़हर पिया था और वह उसकी पूरी बॉडी में फैल चुका था। शायद वह जीना भी नहीं चाहती थी, इसलिए वह ट्रीटमेंट मिलने के बाद भी रिस्पॉन्स नहीं कर रही थी।
यह सारी बातें सुनने के बाद वेदांश ने डॉक्टर से कहा,
"मुझे यह सब कुछ नहीं पता है डॉक्टर, कैसे भी करिए, कुछ भी, बस मेरी बहन को बचा लीजिये। मुझे और कुछ नहीं सुनना है।"
वेदांश ने डॉक्टर की बात समझने की कोशिश बिल्कुल नहीं की और एक तरह से उन्हें आर्डर देते हुए बोला। वह अस्पताल वेदांश का ही था और वहाँ का पूरा स्टाफ़ और सारे डॉक्टर, हर कोई वेदांश के स्वभाव और उसके गुस्से से वाकिफ़ था। इसलिए डॉक्टर ने आगे कुछ और बोलने की हिम्मत नहीं की। वह बस धीरे से अपना सिर हिलाकर वापस रूम के अंदर चले गए।
अंबिका ने उनकी तरफ़ जाने की कोशिश की, लेकिन बॉडीगार्ड्स ने उसे नहीं जाने दिया। उसने चिल्लाकर कहा,
"हटो! मेरा रास्ता छोड़ो! जाने दो मुझे! पता नहीं क्यों मुझे यहाँ पकड़ कर रखा है।"
उसके चिल्लाने पर वहाँ मौजूद बाकी लोगों का ध्यान उसकी तरफ़ गया। वेदांश ने भी अपने बॉडीगार्ड की तरफ़ गुस्से से देखा। वह हट्टे-कट्टे बॉडीगार्ड भी उसकी एक नज़र से घबरा गए और तुरंत अंबिका की तरफ़ देखकर बोले,
"चुप रहिए आप! नहीं तो आपकी वजह से हमारी जान पर बन आएगी।"
उस बॉडीगार्ड ने काफी डरी हुई आवाज़ में अंबिका से कहा। अंबिका ने उसके पीछे एक नज़र डाली तो वेदांश उनकी तरफ़ आ रहा था।
उसे गुस्से में अपनी तरफ़ आते देखकर अंबिका घबरा गई और चुप हो गई। उसके मुँह से एक भी आवाज़ नहीं निकली। तभी वेदांश वहाँ आते हुए बोला,
"एक लड़की नहीं संभाली जाती तुम लोगों से! बस देखने के लिए रखा है क्या मैं तुम लोगों को? जाओ यहाँ से! मुझे ऐसे लोगों को संभालना बहुत अच्छे से आता है।"
वेदांश की बात सुनते ही वे दोनों बॉडीगार्ड तुरंत सिर झुकाकर वहाँ से चले गए।
वेदांश गुस्से भरी निगाहों से अंबिका की तरफ़ देख रहा था। लेकिन वह कुछ बोल पाता, उससे पहले ही अंबिका ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा,
"क्यों लेकर आए हो मुझे यहाँ पर? जाने दो मुझे! मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? क्या बिगाड़ा है मेरे भाई ने तुम्हारा? क्यों हमारी ज़िन्दगी बर्बाद करने पर तुले हो?"
यह सब बोलते-बोलते अंबिका की आँखों में आँसू आ गए। उसे नहीं पता था कि उसका भाई इस वक्त कहाँ और किस हाल में होगा। उसे पता था कि वेदांश चाहे जितनी बार पूछे, वह उसे सीधे इस बारे में नहीं बताने वाला। इसलिए फिलहाल वह बस खुद कैसे भी वहाँ से निकलना चाहती थी।
अंबिका के इतना कहते ही वेदांश ने उसकी कलाई कसकर पकड़ ली और बहुत गुस्से से उसकी आँखों में घूरते हुए बोला,
"तुमने मेरी बहन की जान लेने की कोशिश की है! तुम ही सिर्फ़! तुम ही वहाँ उसके कमरे में थी। अगर यह बात मैं पुलिस को बता दूँ, तो कोई भी तुम्हें जेल से बाहर नहीं निकाल पाएगा।"
वेदांश के इल्ज़ाम सुनकर अंबिका घबरा गई और तुरंत सिर हिलाते हुए बोली,
"नहीं! मैं... मैं क्यों ऐसा करूँगी? तुम क्यों मुझ पर झूठा इल्ज़ाम लगा रहे हो? मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है! मैं तो तुम्हारे बाद वॉशरूम में गई थी।"
वेदांश ने अपने दाँत पीसते हुए कहा,
"लेकिन उसके कमरे में तो तुम ही थी ना! तुम्हारे अलावा और किसी के पास कोई वजह नहीं थी मिशिका को मारने की।"
उसके गुस्से भरी निगाहों से देखने पर अंबिका की आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। वह थोड़ा अटकते हुए बोली,
"मैं... मैं क्यों ऐसा करूँगी? तुम कुछ भी बोल रहे हो?"
उसके कंधे को कसकर दबाते हुए वेदांश ने कहा,
"चुप रहो! एकदम चुप! अब अगर एक शब्द भी मुँह से निकला ना, तो तुम्हारे भाई का भी यही हाल होगा। उसे तो शायद अस्पताल आने का मौका भी ना मिले।"
उसके कसकर पकड़ने पर अंबिका को अपने कंधे पर तेज दर्द हुआ। लेकिन जैसे ही उसने अक्षय को लेकर धमकी दी, अंबिका चुप हो गई। उसने कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं की क्योंकि वह किसी भी कीमत पर अपने भाई को नहीं खोना चाहती थी। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब साफ़ समझ आ रहा था कि मिशिका ने आत्महत्या करने की कोशिश की है, तो फिर वेदांश उस पर इल्ज़ाम क्यों लगा रहा था।
अंबिका की आँखों में आँसू भरे हुए थे। वह खुद को बहुत बेबस महसूस कर रही थी क्योंकि उसका मोबाइल फ़ोन पहले ही वेदांश के बॉडीगार्ड ने ले लिया था जब वे उसे अस्पताल ला रहे थे। अब वेदांश का इस तरह गुस्सा करना अंबिका को बहुत परेशान कर रहा था। वेदांश वहीं खड़ा था, उसका हाथ कसकर पकड़े हुए, जिसकी वजह से वह इधर-उधर नहीं जा पा रही थी।
क्रमशः
क्या करने वाला है अब वेदांश अंबिका के साथ? और वह ऐसा क्यों कर रहा है? वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है या फिर सच में उसे ऐसा लगता है कि मिशिका को अंबिका ने जान से मारने की कोशिश की? वैसे आप लोगों को क्या लगता है? क्या मिशिका होश में आएगी और वेदांश को सच पता चलेगा?
वेदांश, अंबिका और उसकी माँ अस्पताल में शाम आठ बजे से रात दो बजे तक रहे। किसी की भी आँखों में नींद नहीं थी; सबके पास परेशान होने के अपने-अपने कारण थे।
अंबिका अपने भाई अक्षय और मिशिका के लिए परेशान थी। मिशिका की माँ सिर्फ़ अपनी बेटी के लिए चिंतित थी और उसे होश में आता देखना चाहती थी।
उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनकी बेटी ने इतना बड़ा कदम उठा लिया था, उनके रहते हुए, और वे कुछ नहीं कर पाए थे। उनकी बेटी उस वक्त ऑपरेशन थिएटर में ज़िंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी, और यह सब उनके ही बेटे और उसके सगे भाई की वजह से हुआ था। दोनों ही उनके बच्चे थे; वह खुद को बहुत बेबस महसूस कर रही थी।
वह बस रोते हुए, आँसू भरी आँखों से, मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह उनकी बेटी ठीक हो जाए और उसे कुछ न हो।
वहीं दूसरी ओर, वेदांश इस बात को लेकर परेशान था कि मिशिका की वजह से उसकी बहुत बेइज़्ज़ती होगी। तुषार और उसके घरवाले बार-बार उसे फ़ोन कर रहे थे और मिशिका के बारे में पूछ रहे थे, लेकिन उसने किसी को भी अस्पताल का पता नहीं बताया था। वह नहीं चाहता था कि वे लोग यहाँ आएँ और उन्हें मिशिका के आत्महत्या करने का सच पता चले। इसलिए वह उनसे बहाने बना रहा था। शादी तो वैसे भी कैंसिल हो चुकी थी, लेकिन अब उसे यह नहीं पता था कि मीडिया की नज़रें इस शादी पर थीं; वह उन लोगों को क्या जवाब देगा।
भले ही उसकी अपनी बहन ने आत्महत्या करने की कोशिश की हो, लेकिन उसकी जान से ज़्यादा इस वक्त उसे अपनी प्रतिष्ठा और बिज़नेस की फ़िक्र थी। इसके अलावा, उसे अक्षय और अंबिका पर भी गुस्सा आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि सब कुछ उन दोनों भाई-बहनों की वजह से हुआ था। फिलहाल, अक्षय पहले से ही उसकी कैद में था, और अभी सिर्फ़ अंबिका उसके सामने थी। अपना सारा गुस्सा वह उस पर ही निकाल रहा था।
अंबिका, वेदांश और उसकी माँ को देख रही थी, लेकिन किसी से भी कुछ बोलने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में वह क्या बोले।
कुछ घंटे बाद, सुबह पाँच बजे, वेदांश अंबिका के साथ ऑपरेशन थिएटर के सामने वाले कॉरिडोर में खड़ा था। अंबिका को पहले ही धमकी दी गई थी कि अगर उसने भागने की कोशिश की या वहाँ से कहीं गई, तो वह अक्षय को भी ज़िंदा नहीं छोड़ेगा। इसलिए अंबिका ने वहाँ से कहीं जाने की हिम्मत नहीं की।
वहीं, उसकी माँ अब तक बेंच पर बैठी थी और रो रही थी।
तभी डॉक्टर वहाँ आए और वेदांश की तरफ़ देखकर बोले,
"सॉरी, मिस्टर वेदांश! हमने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की, लेकिन वो आपकी बहन..."
डॉक्टर अपनी बात पूरी कर पाते, उससे पहले ही वेदांश की माँ चिल्ला उठी,
"नहीं, डॉक्टर! आप ये क्या बोल रहे हैं? मेरी बेटी को कुछ नहीं हो सकता। प्लीज़, उसे बचा लीजिए, कैसे भी! आप ऐसा कैसे बोल सकते हैं एक माँ के सामने, कि उसकी बेटी को कुछ..."
इतना बोलते हुए, वह अपने मुँह पर हाथ रखकर फूट-फूट कर रोने लगी। उसने डॉक्टर को अपनी बात पूरी नहीं करने दी। वहाँ खड़ी अंबिका उनके पीछे आकर खड़ी हो गई और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली,
"आंटी, प्लीज़! आप चुप हो जाइए। कुछ नहीं हुआ होगा मिशिका को। डॉक्टर की पूरी बात तो सुन लीजिए।"
वेदांश की माँ ने डॉक्टर को बात पूरी नहीं करने दी। उन्हें रोता देखकर, वेदांश ने डॉक्टर से कहा,
"डॉक्टर, आप बताइए, क्या बात है? और मिशिका, वो ठीक तो है ना? उसे कब तक होश आएगा?"
डॉक्टर ने काफी सीरियस होते हुए कहा,
"नहीं, मिस्टर ठाकुर। मैं आपको यही बताने वाला था कि हमने बहुत ट्राई किया। कैसे भी करके हमने पेशेंट की जान तो बचा ली है, लेकिन ज़हर उसकी पूरी बॉडी में फैल चुका था। उसकी वजह से वो कोमा में चली गई है। अब हमें नहीं पता उसे कब होश आएगा, और हम अभी भी उसे इलाज कर रहे हैं।"
डॉक्टर की यह बात सुनकर वेदांश ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं और एक गहरी साँस ली। उसके बाद उसने अपनी आँखें खोलीं और सामने खड़े डॉक्टर की तरफ़ देखते हुए कहा,
"पूरी कोशिश करिए। और जल्द से जल्द मेरी बहन कोमा से बाहर आनी चाहिए।"
यह बात सुनकर डॉक्टर ने कोई बहस नहीं की। उन्हें पता था कि वह चाहे कुछ भी कर ले, कोमा में जाने के बाद पेशेंट के बाहर आने का कोई निश्चित समय नहीं होता, और न ही डॉक्टर्स इस बारे में कुछ कर सकते थे। लेकिन वेदांश को यह सब अपनी जान के साथ खेलने जैसा लगा। इसलिए वह चुपचाप अपना सिर हिलाकर वहाँ से चला गया।
वहीं, वेदांश के पीछे खड़ी अंबिका और उसकी माँ दोनों ही शॉक्ड रह गई थीं डॉक्टर की बात सुनकर। उसकी माँ फिर से रोने लगी। अंबिका ने अपनी माँ की तरफ़ देखते हुए कहा,
"बस भी करिए अब माँ, रोना बंद करिए। ज़िंदा है वो, और आप तो इस तरह से रो रही हैं जैसे कि वो मर..."
वह अपनी बात पूरी कर पाता, उससे पहले उसके चेहरे पर एक जोरदार चाँटा पड़ा। वेदांश ने आँखें बंद करके गुस्से में अपने दाँत पीस लिए और फिर सामने खड़ी अंबिका के बाल पकड़ते हुए बोला,
"तुम्हारी इतनी हिम्मत... तुमने वेदांश ठाकुर पर हाथ उठाया?"
अंबिका दर्द से चीखती हुई बोली,
"सच में इंसान नहीं, शैतान हो तुम! आह्... बाल छोड़ो मेरे, मुझे दर्द हो रहा है। और तुमने अपनी सगी बहन के बारे में ऐसा कैसे बोला? भाई हो तुम? उसे यहाँ तक पहुँचाने के ज़िम्मेदार भी तुम ही हो, और अब ऐसा बोल रहे हो कि वो मरी नहीं।"
उसकी आँखों में वेदांश के लिए गुस्सा और नफ़रत साफ़ नज़र आ रही थी। वह उसकी बात सुनकर बर्दाश्त नहीं कर पाई, क्योंकि उसे समझ आ रहा था कि उसकी माँ को कितनी तकलीफ़ हो रही होगी। लेकिन वेदांश ने बिना सोचे-समझे यह बात बोल दी थी।
उसे नहीं पता था कि इसका अंजाम क्या होने वाला है। उसने वेदांश को गुस्सा दिला दिया था। वेदांश गुस्से भरी लाल आँखों से उसके चेहरे की तरफ़ देख रहा था और अंबिका की बातें सुनकर बोला,
"लगता है तुम्हें अपनी और अपने भाई की जान प्यारी नहीं है, और न ही अपनी फैमिली से प्यार है। इसीलिए तुमने वेदांश ठाकुर पर हाथ उठाने की हिम्मत की, वो भी यहाँ सबके सामने।"
वह लोग वहाँ एक प्राइवेट वार्ड में खड़े थे, जहाँ उन तीनों के अलावा एक-दो स्टाफ़ के लोग भी थे। लेकिन वे अपने काम में बिज़ी थे और वहाँ जो ड्रामा चल रहा था, उसे उन्होंने रुककर देखने की हिम्मत नहीं की। वे सब वेदांश को बहुत अच्छे से जानते थे। इसलिए इस पूरे ड्रामा को उन्होंने इस तरह इग्नोर किया जैसे कि वे देख ही नहीं रहे हों।
वेदांश की माँ ने उन दोनों के बीच आने की कोशिश करते हुए कहा,
"वेदांश! ये क्या कर रहा है तू? छोड़ दे उसे?"
अपना एक हाथ दिखाकर अपनी माँ को रोकते हुए वेदांश ने गुस्से से कहा,
"माँ, आप इन सब से दूर रहिए। नहीं तो मैं आपको दोबारा यहाँ अस्पताल आने भी नहीं दूँगा, और मिशिका के होश में आने के बाद भी उससे मिलने नहीं दूँगा। इसलिए चुप रहिए बस।"
उसकी ऐसी धमकी भरी बातें सुनकर उसकी माँ अपनी जगह पर जम गई और उसने एक कदम भी आगे आने की हिम्मत नहीं की।
अंबिका को उनसे मदद की उम्मीद भी नहीं थी, क्योंकि उसे पता था वेदांश के सामने उसकी नहीं चलती थी। यह उसने उस दिन ही देख लिया था जब वह अक्षय के साथ मिशिका का रिश्ता लेकर आई थी।
तभी अचानक वेदांश ने अंबिका के बाल छोड़ दिए और उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। इतनी कसकर कि अंबिका की कलाई पर उसके हाथ की उंगलियों के निशान पड़ गए थे, और अंबिका को बहुत तेज दर्द होने लगा था।
अंबिका ने दर्द से कराहते हुए कहा,
"क्या कर रहे हो? हाथ छोड़ो मेरा, मुझे दर्द हो रहा है।"
लेकिन उसने अंबिका की एक बात को पूरी तरह से इग्नोर किया और शैतानी मुस्कराहट के साथ उसकी तरफ़ देखते हुए बोला,
"दर्द तो अब होगा!"
इतना बोलकर वह उसे खींचते हुए अस्पताल की लिफ़्ट की तरफ़ ले गया। लिफ़्ट के अंदर वह उसे पार्किंग एरिया में लेकर आया। उसके इस तरह मुस्कराने पर अंबिका बहुत घबरा गई थी। इस बीच अंबिका ने उसके हाथ पर मारते हुए अपना हाथ छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वेदांश पर कोई असर नहीं हुआ। वह उसे लेकर अस्पताल की पार्किंग एरिया में खड़ी अपनी कार के पास आ गया।
क्रमशः
वैसे आज का एपिसोड तो काफी बड़ा भी है। वैसे क्या लगता है, अंबिका ने कर दी है अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती? और कैसे कीमत चुकानी पड़ेगी उसे? और क्या करने वाला है वेदांश उसके साथ? बताइए कमेंट सेक्शन में 👇👇🥰
वेदांश अंबिका को अपनी कार के पास लगभग खींच लाया। अंबिका उसके साथ बिल्कुल नहीं आना चाहती थी। उसके इस बर्ताव से वह काफी घबरा गई थी और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। गुस्से में उसका ऐसा बर्ताव देखकर वह और भी घबरा गई थी।
अपने दूसरे हाथ से वेदांश का हाथ पकड़कर, अंबिका ने अपनी कलाई घुमाते हुए अपना हाथ छुड़ाने की भरपूर कोशिश की। दर्द भरी आवाज में बोली, "आह्! छोड़ो मुझे, क्या कर रहे हो तुम?"
अंबिका की बात सुनते ही वेदांश ने झटके से उसका हाथ हटा दिया। फिर उसकी तरफ देखते हुए, चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट लाते हुए बोला, "अभी कहाँ कुछ कर रहा हूँ? अभी करूँगा, बस थोड़ा सा सब्र रखो।"
इतना बोलते हुए वेदांश ने कार का दरवाजा खोला और अंबिका को लगभग बैक सीट पर धक्का देकर बिठा दिया। अंबिका कार में आना नहीं चाहती थी, लेकिन अब तक समझ गई थी कि वेदांश के आगे उसका जोर नहीं चलने वाला। उसे कुछ और सोचना पड़ेगा।
उसे बैक सीट पर बिठाकर, वेदांश ने कार का दरवाजा लॉक किया और खुद आगे जाकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी चलाने लगा।
वेदांश ने जैसे ही कार स्टार्ट की और हॉस्पिटल की पार्किंग से बाहर निकाला, अंबिका ने तुरंत सवाल करना शुरू कर दिए।
"कहाँ लेकर जा रहे हो तुम मुझे? प्लीज, अक्षय के पास लेकर चलो। मुझे एक बार उससे मिलना है। क्या किया है तुमने उसके साथ? कहाँ रखा है मेरे भाई को? क्यों कर रहे हो तुम यह सब?"
उसके सवाल सुनकर वेदांश बहुत इरिटेट हो गया। उसने स्टीयरिंग पर अपने दोनों हाथ कस लिए और पीछे मुड़कर देखे बिना, गुस्से से दांत पीसते हुए बोला, "चुप करो! मैंने तुमसे पहले भी कहा है, अगर तुम्हारे मुँह से एक शब्द भी निकला, तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिए। और तुम्हारा भाई मेरे कब्ज़े में है। मैं सच में उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा अगर तुम्हारे मुँह से एक शब्द भी निकला। और मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ।"
उसकी बात सुनकर अंबिका एकदम चुप हो गई। उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया क्योंकि वह गलती से भी कुछ नहीं बोलना चाहती थी। वेदांश इस वक्त बहुत गुस्से में लग रहा था और अंबिका उसका गुस्सा और नहीं बढ़ाना चाहती थी। उसे पता था कि वह अक्षय से कितनी नफ़रत करता था और उसके साथ कुछ भी कर सकता था।
अंबिका चुपचाप सीट पर बैठ गई, लेकिन साथ ही इधर-उधर देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे उसके चुंगल से बचकर निकले। वह बुरी तरह फँसी हुई महसूस कर रही थी।
अंबिका की आँखों में आँसू थे और चेहरे पर घबराहट साफ़ नज़र आ रही थी।
लगभग दस-पन्द्रह मिनट ड्राइव करने के बाद वेदांश का घर आ गया। उसने जिस तरह अंबिका को जबरदस्ती कार में बिठाया था, ठीक उसी तरह खींचकर उसे कार से बाहर निकाला और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ घर के अंदर ले आया। इस वक्त उसके घर में कई मेहमान थे। हाँ, लड़के वाले वापस जा चुके थे, लेकिन उसकी तरफ़ के कुछ रिश्तेदार अभी भी घर में रुके हुए थे; उसकी बुआ, उनके बच्चे, मामा- मामी जी और मासी। सब मिशिका की शादी के लिए आए हुए थे। जो करीब थे, वे अपने घर वापस जा चुके थे; जो दूसरी सिटी से आए थे, वे अभी भी वहाँ थे।
वेदांश इस तरह एक लड़की को अपने साथ खींचकर वहाँ ले आया। लड़की ने स्टाफ़ की ड्रेस पहनी थी; वह उनमें से ही एक लग रही थी। किसी को नहीं पता था वह कौन है, लेकिन वेदांश से किसी ने पूछने की हिम्मत भी नहीं की। सब चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखते रहे। वेदांश उसे अपने साथ ऊपर अपने कमरे की तरफ़ ले गया।
वेदांश ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और अंबिका को लगभग धक्का देकर अंदर धकेल दिया। खुद भी कमरे में आते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
अंबिका ने उसकी तरफ़ नज़र उठाई। वेदांश उसकी तरफ़ आ रहा था, तो अंबिका पीछे हटने लगी। कमरा काफी बड़ा था। बीस-तीस कदम चलने के बाद पीछे की दीवार से अंबिका की पीठ लगी। वह समझ गई कि अब पीछे बिल्कुल जगह नहीं बची। उसने दीवार पर हाथ रख लिया और कसकर आँखें बंद कर ली।
उसे नहीं पता था वेदांश उसके साथ क्या करने वाला है और वह उसे क्यों वहाँ ले आया था, लेकिन डर और घबराहट की वजह से अंबिका का दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने आखिर क्या किया है कि वेदांश उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा था?
अंबिका की आँखें बंद थीं, लेकिन उसे अपने कंधे पर वेदांश का हाथ कसता हुआ महसूस हुआ। तभी उसे अपने चेहरे पर उसकी गर्म साँसें भी महसूस हुईं। उसने आँखें खोलीं और सामने देखकर उसकी साँस अटक गई।
वेदांश का चेहरा उसके चेहरे के एकदम सामने था। अंबिका का दिल और भी तेज़ी से धड़कने लगा। उसे बहुत घबराहट हो रही थी। उसे लग रहा था कि डर की वजह से उसका दिल अभी बाहर निकल आएगा।
अंबिका के आँखें खोलते ही वेदांश उसकी आँखों में देखकर बोला, "इतनी हिम्मत कहाँ से आती है तुम्हारे अंदर? सबसे पहले तो तुम मेरे घर में आ गईं। तुमने मेरी बहन को जान से मारने की कोशिश की और फिर सबके सामने तुमने मुझ पर, वेदांश ठाकुर पर, हाथ उठाया।"
अंबिका घबराते हुए बोली, "सॉरी, सॉरी! आई एम रियली सॉरी! मुझे जाने दो, प्लीज़!"
उसकी बात सुनकर वेदांश ने एकदम उसे छोड़ दिया और कुछ कदम पीछे हट गया। फिर बहुत जोर-जोर से हँसने लगा!
उसके हँसने पर अंबिका बहुत कंफ़्यूज़ होकर उसकी तरफ़ देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अभी वह इतने गुस्से में था, अब अचानक उसे क्या हो गया कि वह इस तरह पागलों की तरह हँस रहा था।
उसके हँसने पर भी अंबिका बस उसकी तरफ़ देख रही थी। वह कुछ नहीं बोल पाई क्योंकि उसे पता था अगर वह कुछ बोलेगी तो वेदांश फिर से उस पर गुस्सा करेगा।
वेदांश हँसते हुए अंबिका की तरफ़ देखकर बोला, "तुम्हें क्या लगता है इतनी आसानी से निकल पाओगी वेदांश ठाकुर के कैद से? भूल जाओ अब तुम। तुमने जो किया है ना उसकी सज़ा तुम्हें मिलेगी। अब तुम यहाँ रहोगी, सिर्फ़ इस कमरे में। इसके अलावा तुम कहीं नहीं जाओगी।"
उसकी बात सुनकर अंबिका घबराते हुए बोली, "क्यों? प्लीज़ मुझे जाने दो। घर पर मेरे पापा, मेरे भाई-बहन अकेले हैं। और तुमने अक्षय को भी कैद करके रखा है। क्या मिलता है तुम्हें यह सब करके? मैं वादा करती हूँ हम लोग कभी तुम्हारी लाइफ़ में इंटरफ़ेयर नहीं करेंगे। प्लीज़, मैं अक्षय को समझाऊँगी। वह मिशिका को भूल जाएगा। उससे हमेशा के लिए दूर चला जाएगा। लेकिन प्लीज़ हमें छोड़ दो। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। कहोगे तो पैर भी छू लूँगी।"
अंबिका की बातें सुनकर वेदांश के दिमाग में पता नहीं क्या आया, वह एकदम बोला, "यह सब करने की ज़रूरत नहीं है, जस्ट किस मी!"
उसकी बात सुनकर अंबिका एकदम हैरान रह गई। उसे लगा जैसे उसने कुछ गलत सुन लिया है। सदमे से बोली, "क्या?"
अंबिका के इस तरह पूछने का वेदांश पर कोई असर नहीं पड़ा। वह अपने बेड पर लेग क्रॉस करके आराम से बैठते हुए बोला, "सुनाई नहीं दिया क्या? या फिर नाटक कर रही हो? मैंने कहा मुझे किस करो। अगर तुमने खुद से यहाँ आकर मुझे किस किया, तो मैं तुम्हारे भाई अक्षय को छोड़ दूँगा और घर जाने दूँगा उसे।"
अंबिका ने उसकी बात सुनते ही साँस अटक गई। बड़ी मुश्किल से थूक निगलकर उसने नज़र उठाकर वेदांश की तरफ़ देखा। लेकिन वेदांश ने अभी-अभी जो अक्षय को छोड़ने वाली बात कही थी, वह सुनकर अंबिका थोड़ा सोच में पड़ गई।
क्रमशः
हाँ, तो क्या लगता है आप लोगों को? अंबिका करेगी वेदांश को किस? और वेदांश क्यों बोल रहा है उसे किस करने को, जब वह उसे सज़ा देने के लिए वहाँ गया था? वैसे अंबिका के लिए तो यह सज़ा ही होगी। वेदांश जैसे किसी इंसान को किस करना, उसने तो शायद कभी सोचा भी नहीं होगा, अपने सपने में भी नहीं, मेरा मतलब है, वर्स्ट नाइटमेयर में भी नहीं! बताइए अपने ओपिनियन कमेंट सेक्शन में।
अंबिका की बातें सुनकर वेदांश के दिमाग में पता नहीं क्या आया, वह एकदम से बोला, "यह सब करने की ज़रूरत नहीं है, just kiss me!"
उसकी बात सुनकर अंबिका एकदम हैरान रह गई और उसे ऐसा लगा जैसे उसने कुछ गलत सुन लिया है। इसलिए वह एकदम सदमे से बोली, "क्या?"
अंबिका के इस तरह से हैरान होकर पूछने का वेदांश पर कोई असर नहीं पड़ा। वह अपने बेड पर लेग क्रॉस करके एकदम आराम से बैठता हुआ बोला, "सुनाई नहीं दिया क्या? या फिर नाटक कर रही हो। मैंने कहा मुझे किस करो। अगर तुमने खुद से यहां पर आकर मुझे किस किया, तो फिर मैं तुम्हारे भाई अक्षय को छोड़ दूंगा और घर जाने दूंगा उसे।"
अंबिका ने जैसे ही उसकी यह बात सुनी, उसके तो जैसे सांस गले में अटक गई। बड़ी मुश्किल से थूक निगल कर अपना गला गीला करते हुए उसने नज़र उठाकर वेदांश की तरफ देखा। लेकिन वेदांश ने अभी-अभी जो उसे अक्षय को छोड़ने वाली बात कही थी, वह सुनकर अंबिका थोड़ा सा सोच में पड़ गई।
उसके दिमाग में जैसे ही यह ख्याल आया कि वह उसकी बात मान ले, वैसे ही उसने सामने बैठे उस शख्स को देखा। जिसकी शक्ल से ही अंबिका को नफरत हो रही थी और ऊपर से उसकी ऐसी बातें सुनकर अंबिका को उससे घिन आ रही थी क्योंकि ऐसी बातों के बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी।
इसलिए उसने बहुत ही हिम्मत करके बोला, "क्या बोल रहे हो तुम? मैं तुम... मैं तुम्हें किस... किस कैसे कर सकती हूं? हम दोनों एक दूसरे को ठीक से जानते तक नहीं और ना ही हमारे दिल में एक दूसरे के लिए कोई फीलिंग है। तो ऐसे में कैसे तुम मुझे बोल सकते हो? क्या तुम ऐसे ही हर लड़की को...?"
वेदांश नाक भौं सिकोड़ते हुए बोला, "ओ हो! कितनी बेवकूफ हो तुम! मैं तो बस तुम्हें एक ऑफर दे रहा था। मुझे लगा था शायद तुम्हें अपने भाई की जान प्यारी होगी। लेकिन अगर नहीं है, तो कोई बात नहीं क्योंकि मेरे पास बहुत सी लड़कियां हैं जो मेरे इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो सकती हैं। और रही बात जानने की, तो सच में तुम वेदांश ठाकुर को जानती नहीं हो! नहीं तो हाथ तो क्या, नज़र उठाने की भी हिम्मत नहीं करती मेरे सामने।"
आखिरी बात बोलते हुए वेदांश काफी गुस्से में आ गया था क्योंकि उसे अंबिका का थप्पड़ याद आ गया था।
वेदांश को गुस्से में देखकर अंबिका ने बहुत ही नरमी से कहा, "उसी बात के लिए मैं तुमसे माफी मांग तो रही हूं। आई एम रियली सॉरी। उस वक्त तुमने ऐसी बात बोली, तुम्हारी माँ इतना रो रही थी और इसलिए मैंने... लेकिन बताओ क्या करूँ मैं अब? कैसे माफ करोगे तुम मुझे?"
वेदांश ने एक नज़र उठाकर उसकी तरफ देखते हुए सवाल किया, "तुम्हारे लिए मेरी माफी ज्यादा इम्पॉर्टेन्ट है या फिर तुम्हारे भाई को रिहा कर दूँ अपनी कैद से, वो?"
एकदम सीरियस अंदाज़ में वेदांश ने यह सवाल किया तो अंबिका फिर से सोच में पड़ गई और अपने मन में बोली, "क्या करूंगी मैं इसकी माफी का? ये मुझे माफ करें या नहीं, बस अक्षय को जाने दे। फिर मैं तो कैसे भी यहां से निकल जाऊंगी! अक्षय की वजह से ही यह बार-बार मुझे ब्लैकमेल कर पा रहा है।"
अपने आप से बात करते हुए अंबिका ने धीरे से अपना सिर हिलाया और बोली, "हाँ, अक्षय मेरे लिए ज्यादा इम्पॉर्टेन्ट है।"
उसने काफी धीमी आवाज में यह बात बोली तो सामने थोड़ी दूर बेड पर बैठा हुआ वेदांश उसकी बात नहीं सुन पाया। उसने कहा, "थोड़ी तेज आवाज में बोलो, मैंने कुछ भी सुना नहीं..."
अंबिका एकदम से चौंकते हुए बोली, "हाँ, अक्षय को छोड़ दो, प्लीज़! उसके लिए तुम जो कहोगे मैं वो करूंगी।"
इस तरह हल्की मुस्कुराहट के साथ अंबिका की तरफ देखते हुए वेदांश ने अपनी गोद की तरफ इशारा करते हुए कहा, "ठीक है, फिर वेट किस बात का कर रही हो? इधर आओ और यहां पर बैठकर खुद से मुझे किस करो और बस मैं तुम्हारे भाई को छोड़ दूंगा।"
वेदांश ने जैसे ही फिर से उसे किस करने के लिए बोला, तो अंबिका घबराकर मना करती हुई बोली, "क्या? किस? नहीं, नहीं! मैं तुम्हें किस नहीं कर सकती। कैसे? मैं ऐसे ही किसी को किस नहीं कर सकती। प्लीज़, और कुछ भी तुम बोलोगे मैं वह करने को तैयार हूँ, लेकिन यह नहीं। यह मेरे उसूलों के खिलाफ़ है। मैं ऐसे ही किसी को किस कैसे कर सकती हूँ? मुझे सच में बहुत डिस्गस्टिंग फील होगा और तुम्हें भी..."
यह बात बोलते हुए वह अभी भी दीवार से एकदम चिपकी हुई खड़ी थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि एक भी कदम आगे बढ़कर वह वेदांश की तरफ आए। लेकिन अब तक वेदांश काफी इरिटेट हो गया था। वह एकदम अपनी जगह से उठकर उसकी तरफ आया और गुस्से में उसके बाल पकड़कर पीछे को खींचते हुए बोला, "डिस्गस्टिंग लगता हूँ ना मैं तुम्हें? अभी दिखाता हूँ डिस्गस्टिंग कैसे फील होता है?"
इतना बोलते हुए वेदांश ने उसके बालों से पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर उठाया और तुरंत ही अपने होठों को अंबिका के मुलायम गुलाबी, नाजुक होठों पर रख दिया और उसके होठों को एकदम रफली किस करने लगा और किस करते हुए वह उसके लोअर लिप्स को चूसने लगा।
अंबिका एकदम ही जैसे अपनी जगह पर जम गई। उसने आज तक कभी किसी को भी किस नहीं किया था। करना तो दूर, किसी लड़के के इतना नज़दीक भी नहीं गई थी जितना नज़दीक इस वक्त वेदांश खड़ा हुआ था।
उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे और क्या नहीं। इसलिए वह अपने होठों को कसकर प्रेस करते हुए मुँह बंद करने की कोशिश करने लगी जिससे कि वेदांश उसे किस न कर पाए। और उसके ऐसा करने पर वेदांश को और भी गुस्सा आ गया और वेदांश ने उसके होंठों पर बाइट कर ली। जिसकी वजह से अंबिका को दर्द महसूस हुआ और उसके मुँह से दर्द भरी आवाज़ निकल गई और उसका मुँह भी हल्का सा खुल गया। और वेदांश को इसी वक्त मौका मिला और उसने दोबारा उसके होठों को पूरी तरह अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया।
वेदांश के इस तरह से किस करने पर अंबिका की आँखों से आँसू निकल आए क्योंकि उसे सच में बहुत दर्द महसूस हो रहा था। उसकी पूरी बॉडी एकदम जड़ गई थी और वेदांश ने अभी उसके बाल छोड़े थे और एक हाथ उसके गाल पर रखा हुआ था। लेकिन अंबिका को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह उससे दूर होने की कोशिश कर रही थी लेकिन वेदांश ने अपना दूसरा हाथ अंबिका की कमर पर रखकर उसे अपने एकदम करीब करके खड़ा किया था और अंबिका के पीछे दीवार थी तो उसके पास वेदांश से दूर होने की बिल्कुल भी जगह नहीं थी।
दूसरी तरफ वेदांश अंबिका को किस करते हुए जैसे एकदम ही पैशनेट हो गया था और उसके होठों पर छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था।
वेदांश को पहली बार ऐसा कुछ फील हुआ, जबकि यह उसके लिए पहली बार नहीं था। इसलिए अपनी बॉडी को अंबिका की बॉडी के एकदम करीब लेकर आया और उन दोनों की बॉडी भी एक दूसरे से टच हो रही थी। तभी अंबिका को साँस लेने में प्रॉब्लम होने लगी और उसने वेदांश की चेस्ट पर हाथ रखकर अपनी पूरी ताकत से उसे पीछे पुश करने लगी। ऐसा करते हुए वह बहुत गहरी साँसें ले रही थी।
अंबिका की चढ़ी हुई साँसों की तेज आवाज सुनकर वेदांश भी जैसे होश में आया। उसने एक पल के लिए अंबिका के होठों को छोड़ा तो अंबिका ने तुरंत ही पूरा जोर लगाकर उसे खुद से दूर धक्का दिया और बोली, "इंसान नहीं हैवान हो तुम! क्या कर रहे हो? ऐसे कौन किस करता है? तुमने क्या किया मेरे साथ ये? और क्या मिला तुम्हें यह करके? तुम तो मुझे पसंद भी नहीं करते हो और मैं भी तुमसे नफरत करती हूँ, फिर क्यों?"
इतना बोलते हुए अंबिका की आँखों में आँसू आ गए और वह अपने होठों को अपने हाथ से रगड़कर पोंछने लगी क्योंकि वह उसके होठों का एहसास अपने होठों पर से मिटा देना चाहती थी। ऐसा करते हुए उसे वेदांश की बाइट की हुई जगह पर दर्द महसूस हुआ। लेकिन उससे ज़्यादा दर्द उसे वेदांश के ऐसे बर्ताव से हो रहा था। इसलिए वह रोते-रोते वहीं जमीन पर बैठ गई।
अंबिका को ऐसे देखकर वेदांश ने माथे पर आए हुए अपने बालों में हाथ डालकर बालों को पीछे किया और एक नज़र अंबिका की तरफ देखा और फिर बिना कुछ बोले वह वहाँ उस कमरे से बाहर चला गया। लेकिन जाने से पहले उसने कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक कर दिया।
To Be Continued
पहली बार हमने इस तरह का कुछ लिखने का ट्राई किया है। नहीं तो जो लोग भी मेरे रेगुलर रीडर हैं उन्हें पता होगा कि हम इस टाइप के हीरो नहीं लिखते हैं। लेकिन फिर भी हम अपनी तरह से लिखने की कोशिश कर रहे हैं। तो कैसा लगा आपको हमारे अंबिका और वेदांश का पहला किस? वजह से अंबिका को तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, लेकिन वेदांश के बारे में क्या कहना है? आप लोगों का बताइए कमेंट में 👇👇
अंबिका रोते-रोते वहीं जमीन पर बैठकर सो गई थी। उसे पता नहीं चला कि कब उसकी आँख लग गई, लेकिन वह वहीं जमीन पर एक कोने में, अपने आप में सिमटी हुई बैठी थी। तभी दरवाज़े के खुलने की आहट से उसकी आँख खुल गई। वह बहुत गहरी नींद में नहीं सोई थी; एकदम हल्की नींद में थी, शायद अभी कुछ देर पहले ही उसकी आँख लगी थी।
दरवाज़े के खुलने से उस अंधेरे कमरे में हल्की सी रोशनी आई। अंबिका ने अपनी आँखें खोलकर उस ओर देखा तो उसे एक काली परछाई सी नज़र आई। अंबिका समझ गई कि वह और कोई नहीं, वेदांश था।
वेदांश को वहाँ आते देखकर अंबिका और भी ज़्यादा सिमट कर बैठ गई। वह बहुत घबरा रही थी, वेदांश को फिर से अपने सामने देखकर। उसकी आँखों में आँसू भर आए, अभी कुछ देर पहले वेदांश ने उसके साथ जो कुछ किया था, उसे याद करके।
उसे नहीं पता था कि वह अब उसके साथ क्या करने वाला है, लेकिन वह बहुत डरी हुई थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी नज़र उठाकर वेदांश की तरफ देखने की। तभी उसके कानों में वेदांश की कड़क आवाज़ पड़ी।
"तुम्हारा रोना-धोना खत्म हो गया हो तो बताओ, अब क्या सोचा है तुमने?"
अंबिका ने गिड़गिड़ाते हुए कहा,
"मुझे यहाँ से जाने दो, प्लीज़ प्लीज़! मैं तुमसे रिक्वेस्ट करती हूँ। मुझसे गलती हो गई, बहुत बड़ी गलती! मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था, और ना ही तुम्हें थप्पड़ मारना चाहिए था। प्लीज़ मुझे जाने दो, और मेरे भाई को भी। हम कभी तुम्हारे सामने नहीं आएंगे।"
वेदांश शैतान की तरह हँसते हुए बोला,
"जाने दो? हा हा हा... ऐसा तो तुम सपने में भी मत सोचना! क्योंकि तुम्हें तो मैं कभी यहाँ से नहीं जाने दूँगा। लेकिन अगर तुम मेरी सारी बातें मानोगी और मेरे साथ को-ऑपरेट करोगी, तो मैं तुम्हारे भाई को छोड़ सकता हूँ।"
यह बात सुनते ही अंबिका तुरंत बोली,
"हाँ, उसे छोड़ दो! वैसे भी तुमने मुझे किस कर तो लिया है, अब और क्या करना चाहते हो? छोड़ दो प्लीज़ अक्षय को! मेरे पापा और मेरी बहन घर पर अकेले हैं। मेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती, उनका ध्यान रखने के लिए कोई नहीं है। प्लीज़ अक्षय को जाने दो, वह ठीक तो है ना? मुझे एक बार उससे बात करनी है।"
वेदांश ने मना करते हुए कहा,
"नहीं, जब तक तुम यहाँ पर हो, तुम्हारी किसी से भी बात नहीं हो सकती। लेकिन हाँ, मैं तुम्हें उनकी एक झलक दिखा सकता हूँ, और अक्षय को छोड़ भी दूँगा, लेकिन उसके लिए तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी।"
अपने आँसू पोंछते हुए, अंबिका ने बहुत हिम्मत करके बोली,
"मैं तुम्हारी सारी शर्तें मानने के लिए तैयार हूँ, प्लीज़ अक्षय को छोड़ दो! उसने कुछ भी नहीं किया है। मीशा ने खुद उसे कॉल करके बुलाया था यहाँ से ले जाने के लिए, और मैं तो उसे आने भी नहीं दे रही थी, लेकिन तुम्हारी बहन बहुत रो रही थी, और तुम वैसे भी..."
अंबिका वेदांश के खिलाफ़ कुछ बोलने वाली थी कि तभी वेदांश ने गुस्से से घूरकर उसकी तरफ़ देखा। वह एकदम चुप हो गई और उसने अपनी बात पूरी नहीं की। वह नहीं चाहती थी कि गलती से ही सही, वह ऐसा कुछ बोल दे जिससे वेदांश का मूड और खराब हो जाए, और उनके बीच बनती हुई बात बिगड़ जाए।
वेदांश ने अंबिका की तरफ़ देखते हुए, जैसे अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा,
"मुझे उस बारे में कोई बात नहीं करनी। मैं बस यह चाहता हूँ कि तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी, और ना ही यहाँ से जाने का नाम लोगी। जब तक मैं नहीं चाहूँगा, तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा। यही कमरा तुम्हारी दुनिया होगी, और कुछ नहीं। अगर तुम इन सारी शर्तों पर राज़ी हो, तो ही मैं तुम्हारे भाई को छोड़ूँगा, नहीं तो भूल जाना कि तुम्हारा कोई भाई भी था!"
इतना बोलते हुए, अपना फ़ैसला सुनाकर वेदांश ने चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया। लेकिन अंबिका की आँखें एकदम खुली रह गईं। उसे समझ नहीं आया कि वेदांश ने अभी क्या बोला, आखिर वह क्यों कर रहा है यह सब, और क्यों रखना चाहता है वह उसे यहाँ पर बंद करके?
यह सब अंबिका की समझ से परे था। इसलिए उसने बहुत हिम्मत करते हुए यह सवाल किया,
"क्यों? क्यों रहूँ मैं यहाँ पर? क्यों रखना चाहते हो तुम मुझे यहाँ पर? आखिर क्यों परेशान कर रहे हो मुझे? क्यों मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने पर तुले हो? अभी तुमने मुझे जिस तरह किस किया, उतना काफ़ी नहीं था क्या?"
अंबिका यह सारे सवाल कर ही रही थी कि तभी वेदांश ने अपने हाथ से उसके दोनों गालों को एकदम कसकर पकड़ते हुए दबाया और गुस्से में दाँत पीसते हुए बोला,
"बहुत बोल रही हो तुम! और तुम्हारी यह बोलती बंद करना मुझे बहुत अच्छे से आता है। इसलिए अगर नहीं चाहती हो कि मैं अपना तरीका अपनाऊँ, तो बंद ही रखो अपना मुँह! मुझे पता है तुमने ही मिशिका को मारने की कोशिश की है। नहीं तो मेरी बहन के पास वह शहर कहाँ से आ सकता है, जब वह घर से बाहर ही कहीं नहीं गई? तो फिर यह बात सिर्फ़ तब ही साबित हो सकती है जब मिशिका होश में आएगी और मुझे पूरा सच बताएगी। इसलिए उसके कोमा से बाहर आने तक तुम्हें यहाँ पर रहना होगा। और अगर तुम नहीं रहोगी, तो फिर मैं तुम्हारे पूरे परिवार को बंदी बनाकर रखूँगा।"
वेदांश के सारे इल्ज़ाम और बेतुकी बातें सुनकर अंबिका से रहा नहीं गया और उसने कहा,
"मैंने मिशिका के साथ कुछ नहीं किया! मैं सिर्फ़ उससे बात करने आई थी। और मेरा परिवार... मेरे परिवार ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मेरे परिवार की तरफ़ आँख उठाकर भी मत देखना, नहीं तो मैं तुम्हें..."
अंबिका ने गुस्से में आते हुए इतनी बात बोली तो वेदांश ने उसकी कलाई को एकदम कसकर पकड़ते हुए उसका हाथ पीछे की तरफ़ मोड़ दिया और जलती हुई निगाहों से उसकी तरफ़ देखते हुए बोला,
"नहीं तो क्या कर लोगी तुम? हाँ, क्या बिगाड़ लोगी मेरा? कुछ भी नहीं कर सकती हो! बस अपना ही नुकसान करोगी तुम इस तरह से मुझे गुस्सा दिलाकर। बिल्कुल बेवकूफ़ लड़की हो तुम! अभी तक यह समझ नहीं आया कि जहाँ पर तुम इतनी बेबस, लाचार हो, वहाँ पर अपनी आवाज़ और अपने सारे शब्द अपने मुँह के अंदर ही रखते हैं। इसलिए मेरे सामने जितना चुप रहोगी और मेरी बात मानोगी, उतना फ़ायदे में रहोगी।"
वेदांश के इस तरह से हाथ मोड़ने पर अंबिका को बहुत दर्द महसूस हो रहा था, और उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। लेकिन वेदांश को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। फिर एक झटके से उसने अंबिका का हाथ झटक कर छोड़ दिया और बोला,
"आह्! फिर से यह रोना-धोना! बस भी करो, और बोलो, वही बोलना जो मैं सुनना चाहता हूँ, उसके अलावा और कुछ नहीं निकलना चाहिए तुम्हारे मुँह से।"
अंबिका दर्द भरी आवाज़ में बोली,
"ठीक... ठीक है, लेकिन मुझे इस बात का सबूत चाहिए कि तुमने अक्षय को घर जाने दिया है।"
वेदांश तुरंत ही उसकी बात काटते हुए तेज आवाज़ में बोला,
"तुम मेरे सामने शर्त नहीं रख सकती।"
अंबिका ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा,
"हाँ हाँ, मुझे पता है, लेकिन मैं तुम पर कैसे यकीन करूँगी?"
वेदांश एटीट्यूड में बोला,
"वह मेरी प्रॉब्लम नहीं है।"
अंबिका ने दबी हुई आवाज़ में बोला,
"इसका मतलब तुम अक्षय को भी जाने नहीं दोगे? उसे भी मेरी तरह यहाँ रखोगे? क्या मिलता है तुमको यह सब करके? प्लीज़ छोड़ दो मेरे भाई को! मैं हमेशा के लिए यहाँ रहने को तैयार हूँ, लेकिन प्लीज़ अक्षय को जाने दो।"
इतना बोलते हुए अंबिका रोने लगी। तो वेदांश ने एक पल के लिए अपनी आँखें एकदम कसकर बंद कीं, और फिर आँख खोलते हुए बोला,
"ठीक है, कल सुबह तक तुम्हें उसके घर पर होने का सबूत मिल जाएगा।"
पता नहीं, लेकिन क्यों अंबिका के रोने पर वेदांश को बहुत ही अजीब सा लग रहा था। इसलिए वह वहाँ पर रुक नहीं पाया, और इतना बोलते हुए वह दोबारा वहाँ से चला गया। अंबिका भी वापस उसी जगह पर बैठ गई जहाँ से वह उठकर खड़ी हुई थी।
अंबिका की आँखों से आँसू बह रहे थे, और उसने अपने मन में कहा,
"हे भगवान्! यह किस गलती की सज़ा मिल रही है? आखिर ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया मैंने जो इस वेदांश ठाकुर को भेज दिया आपने मेरी ज़िंदगी में?"
To Be Continued
क्या भगवान सुनेंगे अंबिका की पुकार और भेजेंगे किसी को अंबिका के लिए? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में। कैसे निकलेगी अंबिका वहाँ से? और वेदांश क्यों रखना चाहता है उसे अपने पास, अपने साथ? क्या सच में मिशिका की वजह से या फिर कोई और वजह है इसके पीछे? सब पता चलेगा आगे की कहानी में।
वेदांश जैसे ही अपने कमरे से बाहर आया, उसके मन में बहुत सी बातें चल रही थीं। उसने अपने आप से कहा, "यह क्या कर रहा हूँ मैं ये सब? क्यों उसे जाने नहीं दे रहा? मुझे पता है वह लड़की मेरी पहुँच से दूर कहीं भी नहीं भाग सकती, चाहे जहाँ भी चली जाएँ, मैं उसे वापस ला सकता हूँ। और अगर उसने सच में मिशिका की जान लेने की कोशिश की है, तो वह मुझे बच नहीं पाएगी। तो फिर क्यों मैं उसे अपने से दूर जाने नहीं देना चाहता? क्यों कर रहा हूँ मैं, क्यों?"
बहुत ही परेशान, अपने आप से ये सारे सवाल करता हुआ वेदांश सीढ़ियाँ उतर ही रहा था कि उसने देखा, वहाँ बंगले के हॉल एरिया में काफी सारे लोग जमा थे। सब वेदांश की तरफ ही देख रहे थे। वेदांश को बिल्कुल भी आदत नहीं है कि वह इस तरह किसी की नज़रें खुद पर महसूस करेगा, फिर लोगों का जवाब दे। इसीलिए उसे बहुत अजीब लगा और वह भीड़ में से निकलकर आगे जाने लगा। लेकिन तभी पीछे से एक आवाज़ आई,
"वेदांश बेटा, रुको!"
वेदांश बस इसी आवाज़ को इग्नोर करके वहाँ से बाहर निकल जाना चाहता था। लेकिन जब किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा, तो उसे रुकना पड़ा। लेकिन बहुत ही फ्रस्ट्रेटेड चेहरे के साथ वेदांश ने पीछे मुड़कर देखा और बोला,
"क्या है मामा जी?"
वेदांश के मामा जी ने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा,
"बेटा, वह लड़की कौन है जिसे तुमने कमरे में बंद करके रखा है? और ताला क्यों लगाकर जाते हो अपने कमरे में? वह भी एक इंसान है।"
अपने मामा जी की यह बात सुनते ही वेदांश ने गुस्से से भरी नज़र उनकी तरफ देखी और कहा,
"आप कोई नहीं होते मुझसे यह सवाल करने वाले। और वैसे भी कोई शादी-वादी तो होनी नहीं। अब मिशिका हॉस्पिटल में है, कोमा में, तो आप लोग अब तक यहाँ क्या कर रहे हैं? ओह, शायद मैं आप लोगों की रिटर्न टिकट करवाना भूल गया हूँ। ना कोई बात नहीं, मैं अभी बुक करवा देता हूँ।"
इतना बोलते हुए, उन लोगों के सामने ही वेदांश ने अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर अपने असिस्टेंट धीरज को फ़ोन किया और उसे अपने सारे रिश्तेदारों के लिए फ़्लाइट और ट्रेन टिकट बुक करने के लिए बोल दिया।
उसने जानबूझकर उन सारे लोगों के सामने ही यह बात बोली क्योंकि वेदांश नहीं चाहता था कि अब कोई भी रिश्तेदार ज़्यादा दिनों तक उनके घर में रहे या फिर उससे कोई भी सवाल-जवाब करें। क्योंकि वेदांश को सवाल सुनने और जवाब देने की आदत बिल्कुल भी नहीं थी। वह किसी को किसी भी बात का जवाब नहीं देता। वह जो भी करता है, सब कुछ अपनी मनमर्ज़ी से करता था।
वेदांश के ऐसे बोलने पर वहाँ पर खड़े ज़्यादातर रिश्तेदारों को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। और तभी वेदांश के मामा जी ने कहा,
"नहीं बेटा, कोई ज़रूरत नहीं है। हम वैसे भी आज निकलने ही वाले थे। लेकिन तुम बस इतना याद रखना, अगर तुम किसी के साथ गलत करते हो ना, तो तुम्हारे साथ भी ज़रूर गलत होगा, और उससे कहीं ज़्यादा।"
अपने मामा जी की बात सुनकर वेदांश बोला,
"आपको शायद पता नहीं है मामा जी, लेकिन वह जो गलत सबके साथ होता है ना, वह गलत ही मैं हूँ, तो भला मेरे साथ क्या गलत होगा?"
वेदांश की यह बात सुनकर उसके मामा जी साइड में खड़ी हुई अपनी पत्नी से बोले,
"चलो सारा सामान पैक करो। मैं जब तक दीदी से मिलकर आता हूँ हॉस्पिटल से वापस, फिर हम यहाँ से वापस चलेंगे।"
उनकी बात सुनकर वेदांश ने धीरे से अपना सिर हिलाया और वहाँ से बाहर निकल गया। बाकी सारे मेहमान भी अपने-अपने कमरों में चले गए।
वेदांश वहाँ से सीधा अपने फार्म हाउस आया, जो कि वहाँ शहर से काफी दूर था, रिहायशी इलाके से भी काफी दूर। फार्म के चारों तरफ़ काफी बड़े-बड़े बागान और गार्डन थे। काफी सारे पेड़-पौधे भी थे और उसके पीछे काफी बड़ा घना जंगल नज़र आ रहा था। वेदांश वहाँ पर आया तो सिक्योरिटी गार्ड ने उसकी कार देखते ही दरवाज़ा खोल दिया। और काफी सारे लोग वहाँ पर थे जो वेदांश के लिए काम करते थे।
फार्म हाउस के एकदम गेट के सामने उसकी कार रुकी। वेदांश अपनी साइड का दरवाज़ा खोलकर गाड़ी से बाहर निकला और सीधा चलता हुआ वह फार्म हाउस के अंदर आ गया। फिर वहाँ से आगे बढ़ते हुए वह एक साइड पर आया जहाँ पर जमीन से उसने कारपेट हटाई और उसके नीचे बना हुआ एक दरवाज़े जैसा हिस्सा खोला। और फिर नीचे जाने वाली सीढ़ियों से फार्म हाउस के बेसमेंट में आ गया।
वहाँ पर काफी ज़्यादा अंधेरा था। सिर्फ़ एकदम बीच में एक बल्ब जल रहा था। और वहाँ पर कुर्सी पर एक आदमी बैठा हुआ था, जिसका मुँह काले कपड़े से ढका हुआ था। उसके हाथ कुर्सी में पीछे करके बंधे हुए थे और वह शायद बेहोश था, क्योंकि बिल्कुल भी हिल-डुल नहीं रहा था। और उसके चारों तरफ़, कोने में चार आदमी खड़े हुए थे।
वेदांश जैसे ही सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आया, उनमें से एक आदमी भागते हुए उसके पास आया और बोला,
"सर! आप आप यहाँ.."
वेदांश ने अपने सामने खड़े आदमी को ऑर्डर देते हुए कहा,
"हाँ, इस लड़के को सही-सलामत इसके घर पहुँचा दो।"
वेदांश की बात सुनकर उस आदमी को जैसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। इसलिए उसने जैसे कन्फर्म करने के लिए दोबारा से पूछा,
"क्या सर?"
वेदांश एकदम सीरियस भरी आवाज़ में बोला,
"सुनाई नहीं दिया या फिर सुना नहीं चाहते हो? मेरे पास दोबारा बोलने का फ़ालतू टाइम नहीं है। जैसा मैंने कहा वैसा करो, नहीं तो तुम्हें रिप्लेस करने वाले भी बहुत हैं।"
इतना बोलते हुए वेदांश अपनी जगह से चलते हुए आगे आया और आगे आकर उसने कुर्सी पर बैठे हुए उस लड़के के मुँह से वह काला कपड़ा हटा दिया। और सामने अक्षय का चेहरा नज़र आया, क्योंकि वह अक्षय ही था जिसे वेदांश ने इतने दिनों से किडनैप करके रखा हुआ था।
उसकी हालत बहुत ही खराब लग रही थी और वह इस वक़्त बेहोश था। उसके हाथ-पैर पर बंधी हुई रस्सियों से निशान पड़ चुके थे। चेहरे पर भी कुछ काले पड़े हुए निशान थे। लेकिन वेदांश को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसने उसके चेहरे से हटाया हुआ कपड़ा वहीँ साइड में फेंका और सीडीओ से वह उसे बेसमेंट से बाहर आ गया।
वह अभी अपने फार्म हाउस से बाहर निकल ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल फ़ोन रिंग हुआ। और अपने असिस्टेंट धीरज का नंबर देखकर वेदांश ने तुरंत ही फ़ोन कॉल रिसीव कर ली और बोला,
"हाँ धीरज! क्या हुआ बताओ?"
दूसरी तरफ़ से धीरज की बहुत ही घबराई हुई आवाज़ आई,
"सर, बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो गई है। वह मिस्टर तुषार ने अपने सारे शेयर कंपनी से वापस ले लिए हैं। वह हमारे साथ कोई बिज़नेस रिलेशन रखना नहीं चाहता। इसके अलावा वह मार्केट में हमारी कंपनी का नाम भी खराब कर रहे हैं, यह बोलकर कि आप अपनी जुबान के पक्के नहीं हैं और भी बहुत कुछ अफ़वाहें उन्होंने हमारे खिलाफ़ फैलाई हैं।"
वेदांश ने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा,
"क्या उस तुषार की इतनी हिम्मत? तुम अभी के अभी बोर्ड मेंबर्स की मीटिंग बुलाओ और हो सके तो पहले एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस अरेंज करो। मुझे मीडिया के सामने कुछ बोलना है। उस तुषार को तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूँगा। बहुत ही गलत पंगा लिया है उसने।"
इतना बोलते हुए वेदांश तुरंत ही अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से सीधा अपने ऑफ़िस के लिए निकल गया। क्योंकि इस बीच मिशिका की शादी और उसके बाद मिशिका के अस्पताल में होने की वजह से वह इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दे पाया था। और पिछले दो-तीन दिनों से उसने बिज़नेस न्यूज़ पर भी ध्यान नहीं दिया था। इसलिए उसे इन सब चीजों के बारे में पता नहीं चल पाया था, नहीं तो वह सब चीजों पर अपनी पैनी नज़र रखता था।
वहीं दूसरी तरफ़, मिशिका की माँ अभी भी अस्पताल में थी और वह बस एक बार ही घर आई थी। इसलिए जाने से पहले सारे रिश्तेदार, खासकर उनके मायके तरफ़ के लोग, उनके भाई-बहन उनसे मिलने के लिए आए। और मिशिका के लिए उन लोगों को बुरा भी लग रहा था कि वेदांश की वजह से वह ऐसी हालत में पहुँच गई थी। लेकिन फ़िलहाल वेदांश के खिलाफ़ ना तो कोई कुछ कर सकता था और ना ही उसे कोई कुछ बोल सकता था। इसलिए जाने से पहले उनके भाई-बहन बस उनसे मिलने आए थे और मिशिका की माँ ने भी अस्पताल से ही उन सबको विदा कर दिया। और उन्हीं लोगों से उन्हें इस बारे में भी पता चल गया कि वेदांश ने अंबिका को घर में कैद करके रखा हुआ था।
To Be Continued
क्या वेदांश की माँ कुछ करेंगी अंबिका को उसकी कैद से छुड़ाने के लिए? क्या वह घर जाएँगी? और तुषार क्यों जा रहा है वेदांश के खिलाफ़? क्या वह शादी में हुई बेइज़्ज़ती का बदला ले रहा है? क्या उसे अब तक पता नहीं चला है मिशिका के सुसाइड का सच? क्या लगता है आप लोगों को? आगे पता चलेगा।
टीवी पर एक न्यूज़ चल रही थी। जिसे देखकर सामने बैठा लड़का गुस्से में आग बबूला हो गया। जब उसे देखा नहीं गया, तो उसने अपने सामने रखा टीवी का रिमोट उठाकर टीवी की स्क्रीन पर दे मारा। बड़ी एलईडी टीवी की स्क्रीन पर एक बहुत बड़ा क्रैक आ गया और उस पर चल रही स्क्रीन इधर-उधर हिलने लगी। अब उसमें कुछ भी साफ नज़र नहीं आ रहा था।
उस लड़के ने गुस्से में तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा,
"नहीं, मैं हर बार उस वेदांश ठाकुर को जीतने नहीं दे सकता। इस बार भी उसने सबको अपनी तरफ कर लिया और पूरी सिचुएशन का फायदा उठाकर सबकी सिम्पैथी ले रहा है। नहीं, यह नहीं हो सकता! मेरा प्लान कैसे फेल हो सकता है?"
वह लड़का वेदांश का दोस्त और बिजनेस पार्टनर तुषार वोहरा था। वेदांश ने अपनी बहन की शादी तुषार से तय की थी, पर शादी नहीं हुई। इससे तुषार और उसके परिवार को बहुत इंसल्ट हुई थी।
तुषार पहले से ही यह शादी नहीं करना चाहता था। सिर्फ़ वेदांश के डर से उसने शादी के लिए हां किया था। लेकिन जब शादी वाले दिन पूरी तैयारी के बाद भी शादी नहीं हुई, तो उसने वेदांश को बर्बाद करने का प्लान बनाया था। उसे लगा था कि इससे वेदांश को नुकसान होगा और उसकी कंपनी के शेयर में गिरावट आएगी। लेकिन वेदांश ने इतनी इंटेलिजेंटली सारी सिचुएशन संभाली कि पासा उल्टा पड़ गया। वेदांश के बयान की वजह से उसे लोगों की सिम्पैथी और सपोर्ट मिल रहा था और तुषार सबकी नज़रों में विलेन बन गया था।
तुषार यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। तभी उसके पापा, मिस्टर अरविंद वोहरा, वहाँ आए और उन्होंने तुषार के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
"मैंने तुम्हें पहले भी अलर्ट किया था बेटा! वेदांश ठाकुर से दुश्मनी लेना आग से खेलने के बराबर है, और वह कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं है। उसने यह सब कुछ बहुत देखा होगा अपनी लाइफ़ में। पिछले आठ सालों से वह इस इंडस्ट्री में है और सिंगल हैंडली अपना पूरा बिजनेस और कंपनी मैनेज कर रहा है। उसने अपनी कंपनी को टॉप थ्री पोजीशन में पहुँचाया है अपनी मेहनत से।"
अपने पापा की यह बात सुनकर तुषार का गुस्सा और बढ़ गया। उसने गुस्से में अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा,
"आप मेरे पापा हैं या फिर वेदांश ठाकुर के? जो मेरे सामने उसकी तारीफ़ों के पुल बाँध रहे हैं। ऐसे टाइम में आपको कुछ ऐसा बोलना चाहिए जिससे मैं थोड़ा अच्छा फील कर सकूँ, लेकिन नहीं! आपको तो उस वेदांश ठाकुर की तारीफ़ करनी है जी भरकर।"
तुषार के पापा ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा,
"तुषार बेटा! देखो, तुम मेरी बात समझ नहीं रहे हो। मैं कोई उसकी तारीफ़ नहीं कर रहा हूँ। मेरे लिए भी वह उतना ही गलत है जितना कि तुम्हारे लिए। लेकिन मैं बस तुम्हें सच बता रहा हूँ। जब तक हमें अपने दुश्मन की ताकत का अंदाज़ा नहीं होगा, तब तक हम हमेशा ऐसे ही मात खाते रहेंगे। एक्सपीरियंस से बोल रहा हूँ।"
अपने पापा की यह बात सुनकर तुषार एक पल के लिए सोच में पड़ गया। फिर अपना दिमाग ठंडा करने की कोशिश करते हुए वह भी इन सब बातों के बारे में सोचने लगा। आगे उसने और कुछ नहीं कहा।
वहीं दूसरी तरफ, वीटी कॉरपोरेशन बिल्डिंग के कॉन्फ्रेंस हॉल में, मीडिया के सामने वेदांश की प्रेस कॉन्फ्रेंस और इंटरव्यू चल रहा था।
वह एकदम बेचारा बनाकर और आँखों में आँसू लेकर कैमरे के सामने बैठा हुआ था। उसने एक रिपोर्टर की बात का जवाब देते हुए कहा,
"बुरा वक़्त तो सबका आता है। बस यही समझ लीजिए, अभी मेरा भी चल रहा है। ऐसे में तो सब साथ छोड़ जाते हैं। तो क्या हुआ अगर मेरे एक दोस्त ने भी साथ छोड़ दिया? लेकिन मेरे मन में उसके लिए कोई शिकायत नहीं है। उसे जो ठीक लगा उसने किया। अब मुझे जो ठीक लगेगा अपनी कंपनी के लिए, मैं वही करूँगा। लेकिन पहले मुझे अपनी फैमिली की चिंता है। मेरी बहन हॉस्पिटल में है। उसकी तबीयत बिल्कुल भी ठीक नहीं है। उसे किसी ने जान से मारने की कोशिश की थी शादी वाले दिन। शायद वह भी मेरा ही कोई दुश्मन होगा। लेकिन पता नहीं क्यों मेरे बुरे कर्मों का फल मेरे परिवार को क्यों भुगतना पड़ रहा है? इससे अच्छा तो भगवान मुझे कोई सज़ा दे देता।"
वेदांश का यही इंटरव्यू कुछ देर पहले तुषार ने अपनी टीवी पर देखा था। जिसे देखने के बाद वह बहुत ज़्यादा गुस्सा हो गया था। उसकी बातें सुनकर वहाँ मौजूद सारे लोग उसे सिम्पैथी देने लगे और तुषार को बुरा-भला बोल रहे थे। क्योंकि ऐसे टाइम में उसने वेदांश का साथ छोड़ दिया था। वेदांश ने सबको यही बताया था और अपनी बहन के अस्पताल में होने की बात को लेकर भी वह सिम्पैथी बटोर रहा था, जो कि सच भी था। लेकिन उसकी बहन ने उसकी वजह से सुसाइड करने की कोशिश की थी, यह बात उसने बाहर नहीं आने दी थी।
एक रिपोर्टर ने अपना माइक आगे करते हुए यह सवाल किया,
"लेकिन मिस्टर ठाकुर, हमने सुना है आपकी बहन तुषार से नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करती थी। उस बारे में आपका क्या कहना है?"
यह सवाल सुनते ही वेदांश के चेहरे के एक्सप्रेशन बदल गए। उसने तुरंत साइड में खड़े अपने मैनेजर और असिस्टेंट को इशारा किया और इंटरव्यू रोकने के लिए बोला। वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया।
तभी उसका असिस्टेंट धीरज उसके सामने आकर खड़ा हुआ और बोला,
"बस बहुत हुआ अब। सर की तबीयत भी ठीक नहीं है। ऐसा ना हो कहीं आप लोगों की वजह से उन्हें भी हॉस्पिटल जाना पड़े। इसलिए आज का इंटरव्यू यहीं खत्म करते हैं। थैंक यू सो मच। आप लोग इतने शॉर्ट नोटिस पर यहां आए।"
इतना बोलते हुए धीरज ने सभी लोगों से कैमरे ऑफ करने के लिए कहा। एक-एक कर सारे मीडिया रिपोर्टर वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद वेदांश ने अपने नकली आँसू पोंछते हुए कहा,
"इन सारे लोगों को बेवकूफ बनाना कुछ ज़्यादा ही आसान है। लेकिन वह तुषार तो अब पछता रहा होगा अपनी बेवकूफी पर..."
इतना बोलते हुए वेदांश के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गई। वहाँ पर उसके साथ धीरज के अलावा और कोई नहीं था।
धीरज ने कुछ नहीं बोला। उसने बस हामी भरते हुए धीरे से अपना सिर हिलाया। तभी वेदांश के मन में वह रिपोर्टर की बात आई, जो आखिर में सवाल किया था। वह बात याद आते ही वेदांश का चेहरा सीरियस हो गया। उसने धीरज से कहा,
"पता लगाओ कि यह बात बाहर कैसे आई। और वह रिपोर्टर, जो भी था, उसकी यह क्लिप डिलीट करवा देना और उसको वार्निंग भी देना कि दोबारा कभी इस बात को लेकर अपना मुँह खोलने की हिम्मत ना करे।"
धीरज ने कहा,
"सर, वह बस अंदाज़ा लगा रहे होंगे और कुछ नहीं..."
धीरज की बात सुनकर वेदांश एकदम गहरी आवाज में बोला,
"हाँ, लेकिन मैं अंदाज़ा नहीं लगाता। मुझे पूरी बात पता करनी है और तुम मुझे पता लगाकर बताओगे। और उस रिपोर्टर के बारे में भी!"
धीरज ने उसकी बात मानते हुए कहा,
"हाँ सर, मैं समझ गया कि क्या करना है?"
चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट के साथ धीरज की तरफ देखते हुए वेदांश बोला,
"इतने स्मार्ट हो, इसीलिए तो पिछले दो साल से मेरे असिस्टेंट हो तुम।"
धीरज की तारीफ़ करते हुए वेदांश ने कहा। वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हुआ और अपना मोबाइल फोन टेबल से उठाकर अपनी पॉकेट में रखा और वहाँ से बाहर निकल गया।
अपनी ऑफिस बिल्डिंग से निकलकर वह सीधे हॉस्पिटल आया। वहाँ उसकी माँ उसकी बहन के प्राइवेट वार्ड में बैठी हुई थी। वह उसके होश में आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी उनके कानों में वेदांश की आवाज पड़ी,
"घर चली जाइए। कब तक यहाँ बैठी रहेगी अपनी बेटी की वजह से, जिसने अपनी जान देने से पहले आपके बारे में एक बार भी नहीं सोचा।"
वेदांश की बात सुनते ही उसकी माँ ने उसे डाँटते हुए कहा,
"चुप करो वेदांश! मैं अपनी बेटी के बारे में कुछ भी नहीं सुनूँगी। और मुझे पता है वह ऐसा कभी नहीं करती, अगर तुम उसे इस हद तक मजबूर ना करते।"
वेदांश ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा,
"हाँ, इसमें भी मेरी ही गलती है। आप लोगों की लाइफ़ में जो भी गलत होता है, सब कुछ मैंने ही किया होता है।"
वेदांश की माँ ने बहुत कॉन्फिडेंस से कहा,
"हाँ, तुम हमेशा ही गलत करते हो। अभी भी तुम गलत कर रहे हो।"
वेदांश ने लापरवाही से पूछा,
"अब ऐसा क्या गलत कर दिया मैंने?"
वेदांश की माँ ने कहा,
"अंबिका के साथ बहुत गलत कर रहे हो तुम। क्यों तुमने उसे घर में, अपने कमरे में बंद करके रखा है? क्या चाहते हो तुम उससे?"
अपनी माँ की यह बात सुनते ही वेदांश हैरान रह गया। उसे बिल्कुल भी आईडिया नहीं था कि उसकी माँ को अंबिका के बारे में पता चल गया होगा। उस दिन जब वह अंबिका को लेकर गया था, उसके बाद वह आज ही हॉस्पिटल आया था और उसने अंबिका का कोई जिक्र भी नहीं किया था अपनी माँ के सामने। इसलिए वह समझ नहीं पाया कि आखिर उसकी माँ को अंबिका के घर पर बंद होने के बारे में कैसे पता चला?
To Be Continued
कैसे पता चला वेदांश की माँ को अंबिका के बारे में? और वेदांश अब क्या सफ़ाई देगा? क्या वह अपनी माँ के सामने झूठ बोलेगा या फिर सच? और वह ऐसा क्यों कर रहा है? इसका जवाब तो अभी उसके पास भी नहीं है, तो क्या बताएगा वह अपनी माँ को? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में 👇