हर दिल के पीछे एक रहस्य छुपा होता है… कभी डरावना, कभी दिल तोड़ने वाला, और कभी इतना गहरा कि जान लेना जान गंवाने से ज़्यादा खतरनाक हो। Story Mania पर मेरी कहानियाँ आपको रोमांच, डर, मोहब्बत, बदला और सस्पेंस की ऐसी दुनिया में ले जाएंगी जहाँ हर मोड़ पर... हर दिल के पीछे एक रहस्य छुपा होता है… कभी डरावना, कभी दिल तोड़ने वाला, और कभी इतना गहरा कि जान लेना जान गंवाने से ज़्यादा खतरनाक हो। Story Mania पर मेरी कहानियाँ आपको रोमांच, डर, मोहब्बत, बदला और सस्पेंस की ऐसी दुनिया में ले जाएंगी जहाँ हर मोड़ पर एक नया सच आपका इंतज़ार कर रहा होगा। कभी कोई किरदार आपको प्यार करना सिखाएगा, तो कभी कोई रूह तक हिला देगा। ये कहानियाँ सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए हैं। अगर आप तैयार हैं रूह कांप देने वाले twists और दिल छू लेने वाले moments के लिए, तो आइए... मेरी कहानियों की इस अनकही दुनिया में कदम रखें।
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शीर्षक – मृत्यु का साया
चंदेरी नाम का गाँव.... जिसे अब लोग "शापित गाँव" के नाम से जानते थे। सूरज ढलने के साथ ही लोग दरवाज़े बंद कर लेते थे... और खिड़कियों को मोटे पर्दों से ढक देते थे। इस गाँव में एक समय खुशहाली थी... लेकिन पिछले तीन सालों में यहाँ अजीब मौतों का सिलसिला शुरू हो चुका था। कोई भी नहीं जानता था कि कौन अगला शिकार होगा... लेकिन एक बात तय थी... की मौत अंधेरे के साथ आती थी।
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तीन साल बाद... राघव अपने गाँव लौटा। वो शहर में पढ़ाई करने गया था... लेकिन माँ की अचानक मौत की खबर सुनकर वो दौड़ा दौड़ा वापस आ गया । राघव की माँ सविता देवी... गाँव की इकलौती महिला थीं जो हमेशा मंदिर में रहती थीं और कहा करती थीं की, "मृत्यु का साया इस गाँव में तभी आया जब हमने पुराने मंदिर की जमीन पर निर्माण शुरू किया।"
अचानक हुई अपनी माँ की मौत पर राघव विश्वास नहीं कर पा रहा था। उसने पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी कराई... पर उस में मौत का कारण “अज्ञात” बताया गया था।
राघव को अपने बचपन के दोस्त बल्लू से पता चला कि सविता देवी की मौत रात के तीन बजे हुई थी... ठीक उसी समय जब गाँव में हर बार कोई न कोई मरता था। लोगों का मानना था कि वो समय "मृत्यु बेला" बन चुका है।
बल्लू ने राघव को बताया की, “तेरी माँ की आंखें खुली रह गई थीं, जैसे उन्होंने कुछ देखा हो.... शायद कुछ बहुत डरावना सा... और उनके चेहरे पर डर जैसे जम गया था।
राघव को पूरा यकीन था कि यह कोई साधारण मौत नहीं थी... इसलिए उसने जांच पड़ताल करनी शुरू की।
रात के समय राघव अपनी माँ के पुराने कमरे में गया। वहाँ एक संदूक में उसे एक पुरानी किताब मिली... जिस पर लिखा था... “शापित देवता की गाथा”। किताब संस्कृत और पुरानी हिंदी में थी। राघव ने जैसे तैसे पढ़ना शरू किया। उसमें लिखा था कि कई वर्षों पहले एक तांत्रिक को गाँव के लोगों ने झूठे आरोप में मार डाला था। मरने से पहले उसने गाँव को श्राप दिया था की, “हर तीसरे साल की अमावस्या से शुरू होकर तीन महीनों तक, मेरी आत्मा इस गाँव पर मृत्यु का साया बनकर छाई रहेगी।”
राघव की तो रूह काँप गई। इस साल फिर तीसरा साल था... और वही तीन महीने चल रहे थे।
राघव ने ठान लिया था कि वो अपनी माँ की मौत का बदला लेगा। वह गाँव के पुराने पुजारी पंडित शिवानंद के पास गया... जो अब जंगल के किनारे एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।
पंडित जी ने उसे बताया की , “जिस तांत्रिक को मारा गया था... उसका नाम निरंजन था... वो बुरा नहीं था... लेकिन गाँव के ज़मींदार ने अपनी बेटी के अपहरण का इल्ज़ाम उस पर डाल दिया। भीड़ में रहे लोगो ने बिना सोचे समझे निरंजन को मंदिर में ही जिंदा जला दिया था।”
पंडित जी की बात सुन राघव को यकीन हो गया था कि यह आत्मा निरंजन की ही है और यह केवल बदले के लिए लौटती है।
अगली रात राघव ने एक योजना बनाई। वह पुराने मंदिर में गया... जहाँ अब खंडहर बन चुके थे। उसने सविता देवी की किताब से एक विशेष मंत्र पढ़ा और दिया जलाकर बैठ गया। घड़ी ने जैसे ही तीन बजाए... तो हवा का बहाव तेज़ हो गया और मंदिर में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया।
अचानक एक काली परछाई दीये के सामने आई... उसकी आंखें आग जैसी चमक रही थीं।
“तू क्यों आया है, इंसान?” वह साया गुर्राया।
उसके ऐसे बोलने पर भी राघव डरा नहीं। उसने कहा, “मैं आपकी पीड़ा अच्छी तरह समझता हूँ लेकिन आपने मेरी माँ को क्यों मारा?”
वो साया गूंजती आवाज़ में बोला, “क्यों की, वो मेरे सामने खड़ी हो गई थी... मुझे बाँधने की कोशिश की थी। वह एक साध्वी थी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। इस गाँव के लोगो ने मुझे मार दिया... अब सबको वही पीड़ा सहनी होगी जो बरसो पहले मेने सही थी।”
राघव ने सविता जी की किताब उठाई और कहा, “में आपके नाम की पूजा करूँगा... गांव वालों को उनकी गलती का एहसास दिलाऊंगा, आपको मुक्ति भी मिलेगी... लेकिन आप मासूमों को मारना बंद कर दे। मेरी माँ ने मुझे यही सिखाया था... की पीड़ा का बदला पीड़ा नहीं, शांति से होता है।”
राघव की बात सुन वो साया कुछ देर तक मौन रहा... फिर एक तेज़ चीख के साथ मंदिर हिलने लगा... दीया बुझ गया और सबकुछ शांत हो गया।
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अगली सुबह गाँव में सूरज चमक रहा था... पहली बार तीन सालों में। गांव के लोग हैरान थे कि रात को कोई नहीं मरा। राघव ने मंदिर में एक छोटा सा चबूतरा बनवाया और वहाँ “निरंजन बाबा” के नाम की एक दीपशिखा जलती रहने दी। गाँव वालों ने पहली बार यह जाना कि उन्होंने अतीत में एक निर्दोष को मारा था।
और फिर धीरे धीरे गाँव की रातें फिर से सामान्य होने लगीं।
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राघव अब गाँव में ही रहने लगा। उसने गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और एक पुस्तकालय खोला जिसमें उसकी माँ सविता देवी की वो पुरानी किताब भी रखी। चंदेरी अब ‘शापित गाँव’ नहीं रहा, बल्कि एक उदाहरण बन गया... कि अतीत की सच्चाई को पहचानो... तभी भविष्य उज्जवल होगा।
लेकिन... मंदिर के पीछे उस पुरानी दीवार पर आज भी कभी कभी एक काली परछाईं देखी जाती है। शायद मृत्यु का साया पूरी तरह गया नहीं... वो बस अब शांत हो गया है।
एक दिन जब राघव मंदिर में दीप जलाने गया... तो उसे वही परछाई एक बार फिर महसूस हुई... पर अबकी बार वह डरावनी नहीं थी, बस... उदास थी।
राघव ने मंदिर के बाहर एक पत्थर पर बैठकर गहरी सांस ली और बुदबुदाया, “मैं जानता हूँ कि आपको अभी भी शांति नहीं मिली... लेकिन में आपको मुक्ति दिलाने की कोशिश करता रहूंगा।”
उसी रात राघव ने गाँव की पंचायत को बुलाया और कहा - “हमें एक बड़ा यज्ञ करना होगा और सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करना होगा कि हमारे पूर्वजों ने एक निर्दोष पर अन्याय किया। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है और आत्मा को तभी शांति मिलेगी जब हम उसे सम्मान के साथ स्वीकार करें।”
उसकी बात सुन शुरू शुरू में तो लोग हिचकिचाए क्यों की डर का साया अब भी उनके दिलों में बसा था... लेकिन धीरे धीरे राघव की दृढ़ता और समर्पण को देख सब उसकी बातों से सहमत हो गए।
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अगले पूर्णिमा को गाँव में बड़ा आयोजन हुआ। पूरे गाँव ने मिलकर मंदिर को साफ किया, वहाँ रंगोली बनाई, फूल चढ़ाए और राघव के नेतृत्व में हवन किया गया। पंडित शिवानंद खुद गाँव लौटे और उन्होंने निरंजन बाबा के नाम से पहली बार सार्वजनिक प्रार्थना करवाई।
यज्ञ की अग्नि में जैसे ही अंतिम आहुति डाली गई... हवा में एक मीठी सी खुशबू फैल गई। उस रात पहली बार गाँव में न कोई परछाई दिखी और न कोई चीख सुनाई दी। लोग खुले आंगन में सोए... सालों बाद।
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समाप्त।