Nikah With The Devil ✨ "कभी सोचा है… अगर तुम्हारी मासूम सी ज़िन्दगी में अचानक कोई ऐसा शख्स दाखिल हो जाए, जो तुम्हारे नाम से ज़्यादा, तुम्हारी रूह पर हक जताए?" वो Ayta, एक नेक, शर्मीली, माँ-बाप की लाड़ली लड़की, जिसकी दुनिया सिर्फ इबादत... Nikah With The Devil ✨ "कभी सोचा है… अगर तुम्हारी मासूम सी ज़िन्दगी में अचानक कोई ऐसा शख्स दाखिल हो जाए, जो तुम्हारे नाम से ज़्यादा, तुम्हारी रूह पर हक जताए?" वो Ayta, एक नेक, शर्मीली, माँ-बाप की लाड़ली लड़की, जिसकी दुनिया सिर्फ इबादत और मोहब्बत के सपनों तक सिमटी थी… और वो Hamza, उसका खालू का बेटा… यानी उसका कज़िन… एक जालिम, ख़तरनाक, संगदिल, और बेहिस Devil, जिसे न रिवाज़ों की परवाह है, न रिश्तों की… और न खुदा की। Hamza की मां सालों से कोमा में है और सिर्फ वो जानता है कि क्यों... वो एक ऐसा राज़ छुपाए बैठा है, जो खुला तो सिर्फ खून बहेगा। जब Ayta के लिए किसी और का रिश्ता आता है, Hamza की आँखों में आग जल उठती है "तुम मेरी हो Sweetheart… और ये मैं तय करूंगा, खुदा नहीं।" वो जबरन उसका निकाह माँग लेता है... नहीं छीन लेता है। अब सवाल ये है: क्या Ayta इस जबरदस्ती के रिश्ते में खुद को बचा पाएगी? क्या वो उस शख्स से मोहब्बत कर सकती है, जो उसकी रूह को भी कैद कर चुका है? और जब वो जानेगी कि Hamza की माँ कोमा में क्यों है... क्या Ayta तब भी ज़िन्दा रह पाएगी? "Nikah With The Devil" एक ऐसी कहानी, जहाँ मोहब्बत इबादत नहीं, कुर्बानी है… और निकाह, सिर्फ नाम नहीं… एक खौफनाक कसम है। तैयार हो जाओ… इस रिश्ते में ना वक़्त बचेगा, ना रहम… बस एक चीज़ बचेगी जुनून।
hamza malik uff devil Apne ratse khud banne wala
Hero
Ayta masum aur sab ki ladki beti
Heroine
Page 1 of 1
घर की दीवारें खिलखिलाहटों से गूंज रही थीं।
दोपहर की धूप खिड़कियों से छनकर आयी और पुराने लकड़ी के फर्श पर सुनहरी लकीरें बना रही थी।
सीढ़ियों से नीचे आती एक लड़की की हँसी पूरे घर में बह रही थी वो कोई और नहीं, आयता थी।
उसके सिर से दुपट्टा सरक चुका था, बाल उलझे हुए थे, पायल की छनक उसके नंगे पाँवों की तेज़ी का सबूत दे रही थी।
“अम्मी देख लेंगी तो बहुत डाँटेंगी!” उसके पीछे-पीछे दौड़ते हुए उसका छोटा कज़िन चिल्लाया।
“पहले पकड़ के तो दिखाओ!” आयता हँसते हुए मुड़ी और दौड़ती हुई सीधे हॉल की ओर भाग गई।
सीढ़ियाँ उतरते हुए, उसका दुपट्टा एक कोने में अटक गया और गिर गया लेकिन उसकी रफ्तार नहीं रुकी।
हँसी अब भी उसके चेहरे पर थी, मासूम सी, बेफिक्र सी।
और तभी…
ठक!
वो किसी से टकरा गई।
साँस रुक गई उसकी। दिल धड़कना भूल गया जैसे।
सामने एक लम्बा, चौड़ी छाती वाला शख्स खड़ा था आँखों में ठंडा सा सुकून और चेहरे पर वो खामोश आंधी जो सब कुछ बर्बाद कर सकती थी।
वो अपनी जेब में हाथ डाले, गहराई से आयता को देख रहा था।
आयता की आँखें फैल गईं जैसे कोई सपना अचानक हकीकत बन गया हो।
उसके होंठों से बमुश्किल एक नाम निकला
"हमज़ा..."
शांत… ठंडी… बहुत जानी-पहचानी सी वो आवाज़ गूंजी
“Sweetheart, दुपट्टा कहाँ है तुम्हारा?”
आयता ने घबरा कर खुद को देखा, वो सच में बिना दुपट्टे के उसके सामने खड़ी थी।
हमज़ा का चेहरा जैसे पत्थर हो कोई मुस्कान नहीं, कोई हैरानी नहीं… बस एक टिकी हुई नज़र, जैसे वो उसे सालों से देखता आया हो… हर ज़रा से ज़रा बदलाव के साथ।
“और ये क्या हाल बना रखा है तुमने? तुम किसी शादी में आई हो या गली में भाग रही हो?”
उसका लहजा तंज से भरा नहीं था, मगर काबू करने वाला था।
आयता को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो बोलें तो क्या बोलें। सामने वो लड़का खड़ा था जिसे उसने बचपन में देखा, जिससे कभी खुलकर बात नहीं की, लेकिन जिसके नाम से अब उसकी धड़कनें तेज़ हो गई थीं।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने धीरे से पूछा।
हमज़ा उसकी बात अनसुनी कर, थोड़ा और पास आ गया।
“तुम्हारे इस सवाल से ज़्यादा मुझे ये जानना है कि… क्या तुम अब भी उतनी ही मासूम हो, जितनी पहले थी?”
“या अब समझदार हो चुकी हो, sweetheart?”
उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई जो मोहब्बत की नहीं थी, बल्कि एक दावे की, एक इरादे की, एक आग की।
उस शाम, पूरे घर में एक अजीब खामोशी थी।
हमज़ा बहुत सालों बाद लौटकर आया था। सब हैरान थे, लेकिन आयता सबसे ज़्यादा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अचानक वापसी… और वो भी इस नज़रों से देखने वाला लड़का… आखिर कह क्या रहा है?
रात को जब सब खाने की मेज़ पर बैठे, तब हमज़ा की नज़रें फिर से उसी पर थीं।
“ये बड़ा हो गया है...” मामी ने मुस्कुराकर कहा।
हमज़ा ने बिना किसी भाव के जवाब दिया
“बड़ा नहीं... खतरनाक।”
और उसकी ये बात सीधी आयता की रूह में उतर गई।
खाने के बाद सब बाहर बैठे थे, हमज़ा तब भी चुपचाप था। आयता की नज़रें उस पर बार-बार जा रहीं थीं, और हर बार वो उससे नज़रें चुरा लेती थी।
तभी अचानक वो उठा, और सीधा आयता के पास आ गया।
“Walk पे चलोगी, sweetheart?”
“क..क्या?” आयता बुरी तरह चौंकी।
“तुम अब भी डरती हो मुझसे?”
“नहीं, मैं…” वो जवाब ढूँढ़ ही रही थी, कि हमज़ा झुक कर उसके कान में बोला—
“तो चलो। अब हर चीज़ से डरना बंद करो… क्योंकि अब मैं तुम्हारी ज़िंदगी में लौट आया हूँ। और इस बार… मैं खुद को नहीं जाने दूँगा।”
Ayta का दिल काँप गया।
उसे समझ नहीं आ रहा था ये कौन-सी कहानी शुरू होने वाली थी।
लेकिन एक बात अब तय थी
उसका “Nikah with the Devil”… शुरू हो चुका था।
चाँदनी बहुत धीमी थी उस रात और हवाओं में एक अजीब-सी सरसराहट।
Ayta के कदम खुद-ब-खुद हमज़ा के पीछे चल पड़े। हर कदम के साथ उसका दिल जैसे चीख रहा था “रुक जाओ… वापस लौट जाओ।”
पर उसकी जुबान खामोश थी।
बाहर बगीचे में जब वो दोनों पहुँचे, हल्की चाँदनी उनके चेहरों पर पड़ी। हमज़ा ने जेब में हाथ डाले, सिर झुकाया, जैसे कुछ सोच रहा हो।
फिर एकदम उसकी तरफ मुड़ा।
"Sweetheart," उसकी आवाज़ में अब softness नहीं थी वो हुकूमत से भरी थी।
"क्यों डरी हुई हो?"
Ayta ने कुछ नहीं कहा।
हमज़ा एक क़दम और पास आया।
"मैंने पूछा डर किससे है? मुझसे? या उस अंधेरे से जो मैं तुम्हारी ज़िंदगी में लेकर आया हूँ?"
Ayta ने काँपती आवाज़ में कहा,
"तुम अचानक... इतने सालों बाद... और अब ये सब? क्या चाहते हो?"
हमज़ा की आँखें ठंडी पड़ गईं।
"तुम्हें। हमेशा से। अब पूरी तरह।"
Ayta का दिल बैठ गया।
वो पीछे हटने लगी, लेकिन तभी हमज़ा ने उसका हाथ थाम लिया।
"इतने साल पहले जब तुमने मुझसे आँखें चुराई थीं, तब भी तुम मेरी थीं। और आज भी हो। फर्क सिर्फ इतना है, sweetheart..."
"...अब मैं तुम्हें किसी के लिए छोड़ूंगा नहीं।"
Ayta ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की,
"ये जबरदस्ती है!"
हमज़ा ने ठंडी हँसी में कहा
"Love is always a little cruel, sweetheart. और जो Devil से निकाह करता है, उसे गुलाब नहीं, आग मिलती है।"
"तुम्हारा और मेरा रिश्ता तय हो चुका है मेरी माँ ने किया था।"
Ayta चौंक गई,
"क्या?"
"हाँ," उसने उसकी आँखों में देखा, "तुम्हें याद नहीं, बचपन में मेरी माँ तुम्हें कितना चाहती थीं? वो चाहती थीं कि उनकी बहू तुम बनो... और अब जब वो बिस्तर पर है बेहोश, दुनिया से कटकर तब भी एक वादा जो उन्होंने लिया था, मैं उसे निभाने आया हूँ।"
Ayta की आँखों से आँसू बहने लगे।
"तुम... ये सब emotional drama से मुझे control नहीं कर सकते!"
Hamza ने धीमे से उसके गाल पर हाथ रखा ठंडे हाथ, मगर सुलगते इरादे।
"Control नहीं कर रहा। तुम्हें तुम्हारी असली जगह दिखा रहा हूँ मेरी ज़िंदगी में, मेरी दुनिया में, मेरे पास।"
"और एक बात याद रखो..."
वो उसके और करीब आया,
"...अगर किसी और का नाम भी आया तुम्हारे साथ, मैं उसकी साँसें गिनना भूल जाऊँगा।"
अगली सुबह
Ayta की मामी चाय लेकर कमरे में आईं लेकिन Ayta खिड़की के पास बैठी थी, पूरी रात जागने की थकावट उसके चेहरे पर थी।
"बेटा, तुम ठीक हो?"
Ayta ने चुपचाप सिर हिलाया।
मामी ने उसके सिर पर हाथ रखा,
"Hamza अब यहाँ कुछ दिन रहेगा। तुम्हारे अब्बू की तरफ से भी हाँ हो चुकी है... वो पुरानी वसीयत की बात भी की उसने।"
Ayta उठ खड़ी हुई,
"मतलब सब पहले से तय था? सबको पता था... सिवाय मेरे?"
मामी चुप हो गईं।
शाम को
Ayta नीचे आई तो Hamza हॉल में बैठा था काले कुर्ते में, बाल थोड़े गीले, और हाथ में कॉफ़ी।
उसे देखते ही उसने सीधा कहा,
"Sweetheart, तुम अब मुझसे दूर नहीं रह सकती।"
"क्योंकि आज रात... निकाह की तारीख़ तय कर दी गई है।"
Ayta के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"Hamza..." उसकी आवाज़ काँप रही थी।
Hamza उसकी तरफ चला आया, उसके बहुत क़रीब...
"तैयार हो जाओ, sweetheart. अब तुम्हारी हर सुबह मेरी होगी... और हर रात भी।"
Ayta को अब समझ आ गया था
ये कोई मोहब्बत की कहानी नहीं थी... ये इश्क़ का क़ैदखाना था।
और उसके दरवाज़े पर दस्तक देने वाला शख़्स...
...शैतान था।
Ayta की साँसें रुक-सी गईं थीं।
“निकाह की तारीख तय कर दी गई है…”
Hamza की आँखों में एक अजीब सुकून था जैसे उसे सब हासिल हो गया हो।
लेकिन Ayta का दिल… जैसे किसी ने उसकी छाती में जोर से मुट्ठी मारी हो।
वो धीरे-धीरे पीछे हटी।
“तुम्हें किसने हक़ दिया मेरे लिए इतना बड़ा फैसला करने का?”
उसकी आवाज़ में कंपकंपी थी, पर कमजोरी नहीं वो डर नहीं रही थी, बस टूट रही थी।
Hamza ने ठंडे लहजे में कहा
“तुम मेरी हो। और मैं किसी और को तुम्हें सोचने तक नहीं दूँगा।”
“Hamza… Devil…” वो थक चुकी थी, “Please… मेरी बात सुनो। मैं निकाह से नहीं भाग रही। लेकिन… मेरी एक बात मान लो।”
Hamza की भौंहें हल्की उठीं उसके चेहरे पर अब थोड़ी दिलचस्पी आई।
“बोलो।”
Ayta ने धीमे से कहा
“मेरा आखिरी साल है… पढ़ाई का। मैंने स्कॉलरशिप से एडमिशन लिया है। अगर ये अधूरी रह गई… तो मेरा सब खत्म हो जाएगा। प्लीज़… मुझे अपने ख्वाब पूरे करने दो। पढ़ाई पूरी करने दो… फिर तुम जो कहोगे, मैं करूँगी।”
Hamza की आँखें सिकुड़ गईं। उसने Ayta को ऐसे देखा जैसे उसके शब्दों में छुपे झूठ को टटोल रहा हो।
“तुम्हें वक़्त चाहिए मुझसे दूर रहने का?”
“नहीं…” Ayta ने सीधे उसकी आँखों में देखा, “मुझे खुद के साथ वक़्त चाहिए। कुछ सपने हैं, जो अधूरे रह गए तो हमेशा पछतावा रहेगा। क्या तुम नहीं चाहते कि मैं एक मुकम्मल औरत बनूं? सिर्फ़ तुम्हारी ‘मालिकियत’ नहीं… कुछ अपनी पहचान भी रखूं?”
Hamza चुप रहा।
कमरे की खामोशी अचानक भारी हो गई।
फिर उसके कदम धीरे-धीरे Ayta की तरफ बढ़े।
वो उसके बेहद क़रीब आकर रुका, इतना कि उसकी साँसें Ayta के चेहरे को छूने लगीं।
“तुम चाहती हो मैं इंतज़ार करूं?”
“हाँ।” उसकी आवाज़ कांपी, लेकिन वो रुकी नहीं।
Hamza ने उसकी ठोड़ी उठाई, धीरे से, लेकिन उसकी पकड़ में दम था।
“तुम ये बात किसी और मर्द से कहती… तो वो तुम्हारी हिम्मत की तारीफ करता।”
“लेकिन मैं?”
“मैं वो हूँ जिसे अगर कोई चीज़ चाहिए… तो उसे हासिल करने में देर नहीं करता।”
Ayta की आँखों में आँसू आ गए।
“लेकिन क्या जबरदस्ती से हासिल किया गया रिश्ता, रिश्ता होता है?”
Hamza कुछ पल उसे देखता रहा जैसे उसे पढ़ रहा हो।
फिर एक गहरी साँस लेकर पीछे हटा।
“ठीक है। पढ़ाई पूरी करो।”
Ayta की आँखों में उम्मीद की चमक आई।
“लेकिन…” Hamza की आवाज़ फिर ठंडी हो गई
“तुम्हें हर हफ्ते मुझसे मिलने आना होगा। मेरे सवालों का जवाब देना होगा। और किसी भी लड़के से बात करने की कोशिश की… तो तुम भूल जाओगी कि आज़ादी कैसी लगती है।”
Ayta समझ गई यह आज़ादी नहीं थी, यह ‘निगरानी में मोहलत’ थी।
लेकिन वो मुस्कुराई क्योंकि उसे एक मौका मिला था।
“थैंक यू…” वो बमुश्किल बोली।
Hamza ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा
“मेरे लिए शुक्रिया मत कहो, sweetheart.
अब से हर सांस जो लोगी… मैं गिन रहा हूँ।
हर कदम जो उठाओगी… मेरी निगाह होगी।
और जिस दिन तुम्हारी किताबों से ज्यादा मेरी कमी खलने लगे उस दिन, बिना बोले, खुद चलकर मेरे पास आना।”
तीन दिन बाद –
Ayta अपने कॉलेज हॉस्टल लौट चुकी थी।
लेकिन अब वो लड़की नहीं थी जो हँसती थी, भागती थी, सपनों में खो जाती थी।
अब वो हर रोज़ हमज़ा की भेजी गई कार में कॉलेज आती, शाम तक पढ़ाई करती, और हर हफ्ते किसी होटल या café में हमज़ा से मिलती।
हमज़ा हर बार नए सवाल करता।
“तुम्हारी क्लास में कोई लड़का पास तो नहीं बैठता?”
“तुम्हारे प्रोफेसर कैसे हैं? कहीं ज़्यादा soft तो नहीं तुम्हारे साथ?”
“तुमने उस दिन उस लड़के से क्यों बात की? वो तुम्हारी टीम में क्या कर रहा था?”
Ayta का दिमाग अब किताबों में कम, हमज़ा के शक में उलझा रहने लगा।
एक दिन…
Ayta कैंपस में थी, तभी उसे एक अनजान नंबर से कॉल आया।
“Hello?”
“Ayta… तुम्हें कोई देख रहा है।”
एक गहरी आवाज़ आई।
“क्या?”
“Hamza तुमसे जो कह रहा है… वो सब सच नहीं है। उसकी ज़िंदगी में कोई और राज छुपा है।”
Ayta सन्न रह गई।
“तुम कौन हो?”
“सच का चेहरा।” कहकर कॉल कट हो गई।
उसी रात
Hamza ने उसे मिलने बुलाया।
जब वो पहुँची, तो पहली बार उसने देखा Hamza के साथ एक लड़की बैठी थी।
सुंदर, confident, और वो Hamza के बहुत क़रीब बैठी थी।
Hamza ने मुस्कुराकर कहा
“Ayta, मिलो... ये Arina है मेरी पुरानी दोस्त।”
Ayta के दिल में जैसे किसी ने पत्थर मार दिया हो।
Hamza ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा
“तुम्हारे पास वक़्त है, तो मैंने भी अपना वक़्त किसी के साथ बाँट लिया। कोई ऐतराज़?”
Ayta कुछ बोल नहीं पाई।
अब कहानी सिर्फ पढ़ाई की नहीं रही
अब इसमें शक, जलन और खेल की महक आ गई थी।
Hamza मुस्कुरा रहा था…
लेकिन उसकी आँखें कह रही थीं
“Game शुरू हो चुका है… sweetheart.”
रात बहुत गहरी हो चुकी थी।
Ayta उस बेंच पर अकेली बैठी थी… वही पुराना सा पत्थर का बेंच, जहाँ कभी उसने खिलखिलाकर हँसी थी और अब जहाँ उसकी साँसें तक भारी लग रही थीं।
आसमान में चाँद था, लेकिन उसका उजाला भी कुछ नहीं कह रहा था।
बस हवाओं की सरसराहट थी, जो पत्तों को काँपाते हुए Ayta के दिल की तरह थरथरा रही थी।
उसकी आँखें सूनी थीं… जैसे कुछ खो गया हो।
"Hamza ऐसा क्यों करता है?"
ये सवाल उसके भीतर बार-बार गूंज रहा था।
कभी वो उसकी आँखों में नरमी ले आता, तो कभी वही आँखें पत्थर सी बन जातीं।
"क्या वो मुझसे प्यार करता है... या बस मुझे क़ैद?"
Ayta को खुद से जवाब चाहिए था, लेकिन कोई जवाब नहीं था।
उसने सामने देखा बग़ीचे के कोने में कुछ हलचल हुई।
उसने तुरंत निगाहें घुमाईं, पर वहाँ कोई नहीं था।
शायद हवा थी। या… शायद कोई था।
**
तभी
उसका फ़ोन टिमटिमाया।
Unknown Number.
दिल एक पल को जैसे थम गया।
थोड़ी देर तक वो स्क्रीन को देखती रही फिर काँपते हाथों से कॉल उठाया।
“Hello…?” उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
दूसरी तरफ से कोई हल्की साँस लेता हुआ बोला
“तुम सोचती हो कि वो तुम्हें सिर्फ चाहता है…?”
नहीं sweetheart, वो तुम्हारे हर एहसास को कंट्रोल करना चाहता है। हर धड़कन को… हर साँस को…”
Ayta की आँखें फटी की फटी रह गईं।
"तुम कौन हो?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए पूछा।
“वो मत पूछो जो मैं हूँ... जानना शुरू करोगी, तो खुद से डर जाओगी।”
“Arina क्यों आई है... तुम समझ रही हो न?”
“उसकी माँ coma में क्यों है, कभी सोचा... कि वो कैसे गिरी थी?”
Ayta का गला सूख गया।
"क...क्या मतलब?"
“Hamza को भी नहीं पता... कि उस दिन जब उसकी माँ गिरी, तो कोई और भी था वहाँ। कोई जिसे आज तक छुपाया गया है।”
“अब सोचो, Ayta... अगर ये बात सामने आ जाए, तो क्या Hamza फिर भी वैसा ही रहेगा जैसा तुम जानती हो?”
कॉल कट।
Ayta ने काँपते हुए फ़ोन नीचे रख दिया।
कुछ पल तक वो वहीं बैठी रही लेकिन अब वो डर में नहीं थी।
अब उसकी आँखों में कुछ और था।
एक आग।
Next Morning
Villa में हल्की खामोशी थी।
Hamza usual black shirt में, sleeves चढ़ाए खिड़की के पास whiskey का ग्लास लिए खड़ा था।
नीचे लॉन में Ayta बैठी थी उसके पास किताबें थीं, लेकिन उसकी आँखें उसमें नहीं थीं।
तभी पीछे से Arina आई।
लाल satin गाउन में, चाल में ठहराव लेकिन आँखों में शिकार की चमक।
“तुम फिर वहीं देख रहे हो…” उसने मुस्कुराकर कहा।
Hamza ने नज़रें हटाईं, एक सिप लिया और बोला,
“वो मुझसे दूर नहीं जा सकती।”
Arina पास आई। “क्यों?”
Hamza की आँखें कुछ सोच रही थीं, कुछ छिपा रही थीं।
“क्योंकि जब हम बच्चे थे, उसने मेरी माँ की कसम खाई थी… अब वो कसम पूरी करनी ही होगी।”
Study Room Ayta
Ayta फर्श पर बैठी थी। किताबें फैली थीं लेकिन उसके अंदर तूफान था।
Hamza आया
धीरे से दरवाज़ा खोला, सीधा उसके सामने आकर बैठ गया।
“Sweetheart… इतने चुप क्यों हो आज?”
उसका लहजा धीमा था, मगर आँखें वही ठंडी सी थीं।
Ayta ने उसकी तरफ देखा इस बार कुछ थामे हुए।
“Hamza, मुझे मेरी पढ़ाई पूरी करने दो। ये मेरा सपना है… मेरा आखिरी साल है… मुझे मेरी आज़ादी चाहिए।”
Hamza कुछ पल चुप रहा।
फिर झुककर, उसकी आँखों में देखता हुआ बोला
“Final year की किताबों में तुम्हें सुकून मिलेगा… या मेरी बाँहों में?”
Ayta ने मुँह फेर लिया।
“मैं अब तुमसे नहीं डरती… लेकिन मैं किसी की possession नहीं हूँ।”
Hamza ने उसकी ठोड़ी पकड़कर कहा
“Possession नहीं… obsession हो तुम मेरी, sweetheart… और मैं चाहता हूँ तुम्हारा हर पन्ना, हर किस्सा, मेरा लिखा हुआ हो।”
Ayta ने उसकी पकड़ हटाई।
इस बार उसके चेहरे पर डर नहीं था।
उसके चेहरे पर हिम्मत थी।
night Garden
Ayta फिर से उसी बेंच पर बैठी थी।
उसके मन में सवाल थे, और दिल में एक धड़कता हुआ रहस्य।
फिर वही हलचल।
बिलकुल वही साया… लेकिन अब भी कोई चेहरा नहीं।
“कौन है?” उसने सख्ती से पूछा।
एक धीमी आवाज़ उभरी, वही जो फ़ोन पर आई थी
“मैं तुम्हें बचाने आया हूँ… इससे पहले कि वो तुम्हारी रूह को भी कैद कर ले।”
“तुम इस खेल में अकेली नहीं हो, Ayta।”
“बस अभी चेहरा मत देखो… सच्चाई तुम्हारे पास आ रही है… और जब आएगी, तो पूरा ज़मीन-आसमान हिल जाएगा।”
Ayta कुछ कहने ही वाली थी कि साया हवा में घुल गया।
To be continued...
रात की हवाओं में एक अजीब बेचैनी घुली हुई थी। Hamza के विला की हर दीवार जैसे कोई राज़ छुपा रही थी… और उन ही दीवारों के बीच, Ayta एक अजनबी सी महसूस कर रही थी।
उसने खुद को शीशे में देखा आँखें थकी हुई, चेहरा बुझा-बुझा, और अंदर एक ऐसा सूनापन जो वो समझ नहीं पा रही थी।
वो धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरकर हॉल की ओर आई। हर कोना चमक रहा था, महंगे पर्दे, झूमर, पर सब कुछ उसे सुना लग रहा था… जैसे कुछ ग़लत है, जो वो पकड़ नहीं पा रही।
उसी वक्त Arina की हँसी की आवाज़ आई। Ayta की नजरें उस तरफ मुड़ीं Arina, wine glass लिए, silk gown में आराम से बैठी थी, और Hamza उसके सामने खड़ा था। उनकी आँखों के बीच की ख़ामोशियाँ Ayta के दिल में काँटे जैसी चुभीं।
Hamza ने भी उसे देखा, हल्की सी मुस्कान के साथ… पर वो मुस्कान कुछ और कह रही थी।
“Sweetheart,” उसने कहा, "Dinner join करोगी?”
Ayta ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप बैठ गई, लेकिन नजरें Arina पर ही टिकी थीं।
Arina ने उसे देखकर मुस्कुरा कर कहा, "Tum waise hi cute ho jaise Hamza describe करता था… थोड़ी naïve, थोड़ी strong..."
Ayta के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। Hamza ने Arina की तरफ देखा, जैसे कोई इशारा किया हो कि बस अब।
Flashback 5 दिन पहले
Ayta को जब होश आया था, वो इसी विला में थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यहाँ कैसे आई।
जब उसने पूछा था “मेरे मामा-मामी कहाँ हैं?” तो नौकरों ने नजरें चुरा ली थीं। किसी ने जवाब नहीं दिया।
तब Hamza ने पहली बार सीधा जवाब दिया था
“उन्होंने तुम्हें बेच दिया, Ayta.”
उस वक़्त Ayta की आँखें छलक आई थीं। उसने यकीन नहीं किया था। पर अब... वो धीरे-धीरे सब समझ रही थी।
Present
रात के खाने के बाद Ayta अपने कमरे में लौट आई। उसने खुद को बिस्तर पर फेंक दिया। कमरे की खामोशी चीखने लगी थी।
तभी उसे ड्रेसिंग टेबल के दराज में कुछ चमकता दिखा। उसने खोला एक छोटी डायरी थी।
और उस डायरी में एक कागज़ था पुराने लिफाफे में, जिस पर मामी की लिखावट थी।
"Ayta बेटा, अगर तुम ये पढ़ रही हो तो शायद हम तुम्हारे पास नहीं हैं।
हम मजबूर थे। हमें लगा Hamza तुम्हारी हिफाज़त कर पाएगा। हमें माफ़ कर देना। ये सौदा नहीं था, बस एक रास्ता... जो तुम्हें उस आग से बचा सकता था।
मामी"
Ayta की आँखें भर आईं।
“तो क्या उन्होंने मुझे बेचा नहीं…?” उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।
लेकिन फिर सवाल उठा “तो वो आग कौन थी… जिससे बचाने के लिए Hamza के हवाले किया मुझे?”
तभी, दरवाज़ा खुला। Hamza आया। आँखें सीधी उसकी आँखों में।
“तुम्हारी मामी ने जो किया, वो उनके डर की वजह से था।”
Ayta ने पूछा, “किस डर से?”
Hamza कुछ पल चुप रहा, फिर बोला “जिसका नाम लेना भी तुम्हारे घर में मना था… अब वो लौट आया है।”
Ayta की रूह काँप गई। “कौन…?”
Hamza की आँखों में अब गुस्सा नहीं, डर था।
“Zaydaan.”
To be continued...
ek request 🙏
ap log padh ke chlge jate ho na koi rating deta hai na comment karta hai aj agar comment nahi aye toh mein ye novel ka chapter nahi dugi please thodi si daya khao aur comment aur Rating detw jao itna toh kar hi sakte ho mein apke liye itni mahent karti hu aur ap itna kar do please request
apki pyari aur cute writer 😁
Hamza की आँखें सीधी Ayta की आँखों में थीं।
"Zaydaan..." उसने फिर से दोहराया। आवाज़ में वही आदमी नहीं था जो हुक्म देता था बल्कि एक ऐसा बेटा जो किसी छुपे डर से काँप रहा था।
Ayta ने पहली बार उसके चेहरे पर डर देखा।
"वो कौन है, Hamza?" उसकी आवाज़ थरथरा गई।
Hamza कुछ पल चुप रहा। फिर बस एक धीमी सी फुसफुसाहट आई
"तुम्हें नहीं जानना चाहिए… अभी नहीं।"
वो मुड़ा और कमरे से चला गया।
Ayta की साँसें तेज हो चुकी थीं। वो अकेली रह गई उस खामोश कमरे में… लेकिन उसके अंदर अब सवालों की आँधी उठ चुकी थी।
Next Morning
विला में हलचल थी।
Hamza तैयार हो रहा था। उसके हाथ में ब्लैक शर्ट थी, चेहरा सख्त और आँखों में जल्दी पहुँचने की बेचैनी। Rohail उसका पर्सनल गार्ड बाहर गाड़ी तैयार करवा रहा था।
"Sir, main office gate pe wait kar raha hoon," Rohail ने कहा।
Hamza ने कुछ नहीं कहा। बस coat पहना और sunglasses चढ़ा लिए।
वो ऑफिस नहीं जा रहा था।
दूसरी ओर Ayta
Ayta उस वक्त कमरे की खिड़की से सब कुछ देख रही थी। Hamza के रात वाले लहज़े ने उसके दिल को बेचैन कर दिया था।
"Zaydaan कौन है?"
"किस आग से बचाने के लिए मामा-मामी ने मुझे यहाँ भेजा?"
"और… क्या सच में उन्होंने मुझे बेचा था या कुछ और छुपाया गया?"
इन सवालों ने Ayta को इतना restless कर दिया कि उसने वो कर डाला, जो उसने कभी नहीं सोचा था।
Hamza जैसे ही अपने विला से बाहर निकला… Ayta दौड़ती हुई लॉन के पीछे की तरफ गई, और Hamza की गाड़ी की डिक्की में छुप गई।
साँस रोके, दिल धड़काते हुए, उसने खुद को अंधेरे में समेट लिया।
Car Ride
Hamza गाड़ी में बैठा, Rohail ड्राइव कर रहा था।
"Clinic में सब clear है न?" Hamza ने पूछा।
"Yes sir. Doctor ने कहा है वो still coma में हैं, पर stable हैं… कोई नया complication नहीं," Rohail ने जवाब दिया।
Ayta ने ये सब डिक्की में से सुना। Clinic? Coma? उसका दिमाग घूम गया।
"क्या Hamza अपनी माँ से मिलने जा रहा है?"
"पर उसने तो कहा था कि माँ दिया गया… या फिर गिराया गया…"
"तो फिर वो कहाँ है… और किस हाल में?"
30 Minutes बाड
Outskirts of the City
गाड़ी एक सुनसान इलाके में पहुँची। चारों ओर खाली सड़कें थीं। एक पुराना सा, काले गेट वाला बंगला आया।
गाड़ी अन्दर रुकी।
Hamza और Rohail उतर गए।
Ayta ने धीरे से डिक्की का लॉक खोला, और जैसे ही मौका मिला वो जल्दी से पास के झाड़ियों में छुप गई।
उसे ये सब किसी फिल्म जैसा लग रहा था।
उसके सामने एक इमारत थी दिखने में जैसे पुरानी हवेली हो… लेकिन दरवाज़ों पर modern security locks थे।
Hamza अंदर गया। Rohail बाहर ही रह गया।
Ayta दबे पाँव उस दरवाज़े तक पहुँची और पीछे की खिड़की से अंदर झाँका।
Inside the Secret Clinic
कमरे में सिर्फ दो लोग थे एक डॉक्टर और Hamza।
बीच में एक बिस्तर था जहाँ एक औरत नींद में डूबी पड़ी थी।
Hamza ने अपनी माँ का हाथ पकड़ा, और एक टूटे हुए बेटे की तरह धीरे से बोला
"माँ… मैंने अब तक तुम्हारा सच किसी को नहीं बताया।"
"सबको यही लगता है तुम ज़हर से मरी हो… लेकिन तुम खुद गिर गई थीं उस रात।"
"क्यों भाग रही थीं माँ? क्या तुम्हें डर था किसी से?"
Hamza की आँखें भर आईं।
डॉक्टर ने कुछ कहना चाहा, लेकिन Hamza ने इशारे से उसे चुप कराया।
“मैं Zaydaan से नहीं डरता… लेकिन अब वो लौट आया है। और इस बार… वो Ayta को भी नहीं छोड़ेगा।”
Ayta के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"Zaydaan… मेरी वजह से?"
"माँ इस हालत में क्यों हैं… और आखिर वो रात को हुआ क्या था?"
Hamza कुछ देर बाद बाहर आया, लेकिन Ayta तब तक वापस उसी डिक्की में छुप चुकी थी।
गाड़ी फिर उसी route पर लौट पड़ी लेकिन अब Ayta वही मासूम लड़की नहीं थी।
अब उसके पास सच्चाई के टुकड़े थे।
पर एक टुकड़ा अब भी अधूरा था Zaydaan कौन था… और क्या उसके मामा-मामी भी उसी डर में थे?
To be continued...
ek request 🙏
ap log padh ke chlge jate ho na koi rating deta hai na comment karta hai aj agar comment nahi aye toh mein ye novel ka chapter nahi dugi please thodi si daya khao aur comment aur Rating detw jao itna toh kar hi sakte ho mein apke liye itni mahent karti hu aur ap itna kar do please request
apki pyari aur cute writer 😁