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अनकही ख्वाहिश

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rimjhim Sharma

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मन में दबी कुछ ख्वाइशे इस उफान पर होती हैं कि सब कुछ सोच समझ कर करना हमारे बस में नहीं होता हैं पर शायद यह सब कुछ इतना आसान कहां होता है अपनी ख्वाइश किसी और को दे देना क्या इतना आसान होता हैं बिल्कुल नहीं । हर पल में तड़प होती हैं हर पल मौत की ख्वाहि...

Total Chapters (12)

Page 1 of 1

  • 1. अनकही ख्वाहिश - Chapter 1 मनाली की सुबह

    Words: 1795

    Estimated Reading Time: 11 min

    मनाली की सुबह छः बजे

    सड़को पर फैली धूंध में वह लगातार ग्रे ट्रेकसूट पहने दौड़ रही थी गुस्से में उसके सिर की नसें फूली जा रही थी ।

    कुछ देर बाद जब उसका गुस्सा शांत हो गया तो वह उदासी से उस पहाड़ी की चोटी पर बैठकर दूर तक फैली धूंध को निहारने लगी ।

    तभी वहां एक आवाज सुनायी देती हैं - मैं जानती थी तुम मुझे यही मिलोगी ।

    वह लड़की उसके बगल में आकर बैठ जाती हैं - तुम्हें इस तरह नाराज होकर नहीं आना चाहिए था । वो एक मां हैं इसलिए उनका सोचना भी सही हैं नताशा । तुम नहीं जानती हो कितनी परेशान रहती है वो तुम्हारे लिये । तुम उनकी दोस्त की आखिरी निशानी हो और जब तक वो तुम्हें सही हाथों में नहीं देख लेगी  वो चैन से नहीं बैठेगी ।

    नताशा उदासी से - तो क्या खुश रहने का पैमाना शादी ही हैं । ना तुम समझ रही हो ना आंटी । अगर उन की सोच के विपरित मुझे एक अच्छा हमसफ़र नहीं मिला तो ... क्या होगा जानती हो ना । जो अभी थोड़ी बहुत खुश रहने की कोशिश कर रही हूं ना वो भी आसान नहीं होगा । शादी जैसा रिश्ता अपने साथ बहुत सी जिम्मेदारीयां लाता हैं और उन जिम्मेदारीयो को निभाना मेरे लिए नामुनकिन हैं जिसने कभी रिश्तों को दूर से भी नहीं देखा वो उनमें कैसे एडजस्ट करेगा ।  तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहने की कोशिश कर रही हूं । लोगों के बीच घूटन होती हैं मुझे , सांस लेना मुश्किल हो जाता हैं । हर वक्त डर के साये में जीना , मेरे लिए मौत के बराबर होगा और यह सब कुछ आंटी को समझाना मेरे लिए मुश्किल हैं ।

    वह लड़की - तुम अपनी आंटी को सीधे से बोल दो जो तुम्हारे मन में हैं ।

    नताशा उदासी से - लेकिन किसी के सामने मुझे इस तरह अपनी बात रखना नही आता हैं और अगर तुम्हारी बात मानकर , मैं उनके सामने अपने मन की व्यथा रख भी दूं पर अगर मेरी किसी बात से उनके मन को ठेस पहुंची तो , मैं यह सहन नहीं कर पाउंगी । इस पूरी दुनिया की भीड़ में मेरे पास एक ही तो रिश्ता हैं जो जन्म से बीना किसी स्वार्थ के मुझसे जुड़ा हैं ऐसे में उन्हें अपने से दूर होते नहीं देख पाउंगी , इससे अच्छा है कि दूर ही भागती रहूं उनके इन सवालों से ।

    वो लड़की - ठीक हैं । वैसे तुझे किसी से प्यार हो गया तो भी तेरा यही सवाल होगा ।

    नताशा - प्यार बहुत ही अनमोल अहसास होता हैं , सानवी  । प्यार में उम्मीदे होती हैं , ख्वाहिशे होती हैं , खुशी होती हैं , चाहत होती हैं और ऐसे इमोशंस मुझे महसूस ही नहीं होते हैं । ना तो मैं किसी की उम्मीदों को पूरी कर सकती हूं ना किसी को खुश रख सकती हूं और मुझसे किसी को चाहत हो नहीं सकती हैं ।

    वो लड़की जिसका नाम सानवी था । वो और सानवी बचपन की दोस्त थी जिसके सामने नताशा बिना हिचकिचाए कुछ भी बोल सकती हैं ।

    सानवी गुस्से से खड़ी होते हुए - तुम्हें समझाना बहुत मुश्किल हैं नताशा । तुमने अपनी लाइफ का हर पल सेड्यूल कर रखा हैं ‌। तुम तो सांस भी टाइम से लेती हो । तुम कुछ भी समझना नहीं चाहती हो , बस अपनी गोल गोल बातों में मुझे आसानी से फंसा लेती हो ।

    सानवी जैसे ही जाने के लिए मुड़ती हैं नताशा उसका हाथ पकड़कर - तुम नाराज़ होकर जा रही हो ।

    सानवी - तुमसे नाराज़ रहना ... यह मुझसे नहीं होता हैं और यह सब तुम अच्छी तरिके से  जानती  हो ।

    अभी मुझे कुछ काम करना हैं इसलिए जा रही हूं । टाइम से पहुंच जाना घर , मां ने तुम्हें लाने के लिए कहां हैं मुझे ।

    इसलिए यही के नजारे में मत खो जाना ।

    इतना कहकर सानवी वहां से चली जाती हैं और नताशा घूटनो में मुंह छुपाये उदासी से बैठी रहती हैं ।

    दिल्ली ...

    यार स्वेता इस बार छुट्टियों में कहीं घूमने चले ।

    क्या यार स्वीटी तुम नहीं जानती क्या ? या फिर भूल गयी । छुट्टीयों से पहले हमें उस खडूस प्रोफेसर गोयंका को प्रोजेक्ट सबमिट करना हैं ।

    वह पांच लड़कियों का एक ग्रुप था जो अभी दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में राउंड चेयर के चारों तरफ बैठी बातें करते हुए अपना लंच एन्जाॅय कर रही थी ।

    रिमिशा , इस थर्ड क्लास प्रोजेक्ट के चक्कर में हम अपनी वेकेशन्स तो स्पाॅइल नहीं कर सकते हैं ।

    रुचिता इज राइट गाइस , वेकेशन्स को स्पाॅइल नहीं कर सकते हैं ।

    पर सनम , पहले प्रोजेक्ट पर डिस्कस करे क्योंकि अभी हम प्रोजेक्ट पर डिस्कस करने आये हैं - रिमिशा ने कहां ।

    स्वीटी - पहले वेकेशन्स में घूमने के लिये जगह चूज कर लें फिर प्रोजेक्ट पर बात करेगे ।

    रूचिता - वेटर

    वेटर वहां आते हुए  - जी मैम

    रुचिता सब की घूरती नजरों को इग्नोर करते हुए - एक पिज्जा वीथ एकस्ट्रा चीज ।

    वेटर - जी मैम अभी लाता हूं ।

    वेटर के जाने के बाद रिमिशा तंज कहते हुए - तुम तो डाइटींग कर रही हों ना ।

    रुचिता जबरदस्ती हंसते हुए - जानती हो पांच घंटे में मुझे एहसास हो गया कि डाइट जैसा वर्ड फाॅलो करना मेरे बस के बाहर हैं इसलिए अभी के लिए इसे साइड में रखना ज्यादा बैटर रहेगा ।

    स्वेता जो अब तक उन सब की बातें खामोशी से सुन रही थी मुस्कराते हुए - अब यह सब बातें बंद करो । शाम को मेरे घर आ जाना । हम सब रात को ही यह प्रोजेक्ट कम्पलीट करेंगे ।

    सनम - और वेकेशन्स

    स्वेता - इस बार मनाली चले ।

    रुचिता - डन

    रिमिशा , स्वीटी एक साथ - डन

    स्वेता खड़े होते हुए - फिर तय रहा , हम सब इस वेकेशन्स मनाली चल रहे हैं वो भी पूरे एक महिने के लिये और प्रोफेसर गोयंका के प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए हम सब शाम 6 बजे मेरे घर मिल रहे हैं ।

    जयपुर

    सिंघानिया सदन

    एक बहुत बड़ा बंगला जो इन लोगों की रहिसी को साफ जाहिर कर रहा था ।

    सिंघानिया सदन में संयुक्त परिवार रहता था साफ दिल के लोग लेकिन अपने उसूलों के पक्के । घर में इतने लोग लेकिन क्लेश लेश मात्र भी नहीं ।

    तो चलते हैं अभी क्या हो रहा हैं अन्दर

    आदर्श सिंघानिया जो कि कर्ण सिंघानिया के पिता हैं परेशानी से फोन पर किसी से बात कर रहे थे और परिवार के सभी लोग टकटकी लगाये उन्हें फोन पर बात करते देख रहे थे ।

    कुछ देर बाद आदर्श जी फोन रखते हुए निराशा से गर्दन ना में हिला देता है और सभी के चेहरे पर उदासी छा जाती है ।

    कर्ण की मां नमिता जी मुस्कराते हुए -आप सब उदास मत होइए सुजाता उसे मना ही लेगी ।

    कर्ण की दादी सुमित्रा जी - अब तो आखिरी ख्वाहिश हैं कि वो ही मेरी पोताबहू बने ।

    कर्ण के दादा , रंजन जी मुस्कराते हुए - टेंशन क्यो लेती हो सुमित्रा , देखना हमारे कर्ण की पत्नी तो वही बनेगी चाहे हमें कितना भी इंतजार करना पडे ।

    कर्ण के चाचा , सर्वेश जी - अगर कर्ण को किसी और से प्यार हो गया तो ।

    नमिता जी - ऐसा कभी नहीं होगा । चाहे कुछ भी हो जाये कर्ण की शादी तो मेरी रचना की बेटी से ही होगी ।

    दादी भी - नमिता सही कह रही हैं । बड़ी जिम्मेदार बच्ची हैं । हमारे बाद वह इस घर को सहेज कर रखेगी । सबसे प्यार से बात करती हैं । ऊपर से कठोर जरूर दिखाती हैं खुदको पर अन्दर से नरमदिल हैं । सब को साथ लेकर चलने वाली , सबकी खुशियों में खुश रहने वाली , सबके दर्द को दिल से महसूस करने वाली , अनजानों की भी फिक्र करने वाली , किसी के लिए मन में कोई मेल नहीं , ऐसी ही तो लड़की चाहिए थी हमें अपने घर के बड़े बेटे कर्ण के लिए ।

    कर्ण की चाची  श्रुति जी - सही कह रही हैं आप मां , ऐसी लड़की हमें कहीं नहीं मिलेगी अपने कर्ण के लिए । सोचों अगर वह हमारे घर हमारे कर्ण की पत्नी बनकर आयेगी तो हमारा घर महक उठेगा उसकी अच्छाइयों से ।

    नमिता जी - इसलिए तय रहा कि हम इंतजार कर लेंगे लेकिन हमारे घर की बहू तो वही बनेगी ।

    सर्वेश और श्रुति के बच्चे - अन्वित और अयंक खुशी से - हमें भी यही भाभी चाहिए ।

    कर्ण , बिज़नस सूट में नीचे उतरते हुए - क्या बात हो रही है जो आप सभी के चेहरे खुशी से चमक रहे हैं ।

    अयंक खुशी से - आपकी शादी के बारे में बात कर रहे हैं ।

    अन्वित - भाई , आपको किस तरह की वाइफ चाहिए । उसके इस सवाल पर सभी लोग कर्ण को ही देखने लगे थे ।

    कर्ण कुछ देर तो खामोश रहता है फिर मुस्कराते हुए - जो मेरे परिवार के सभी लोगों को पंसद हो वही मेरी पसंद रहेगी ।

    नमिता जी खुशी से सोफे पर से खड़े होकर कर्ण को गले लगाते हुए - मेरा कर्ण तो हिरा हैं और मैं मेरे बेटे के लिए कोहिनूर लाउंगी ।

    राजस्थान , दिल्ली और मनाली तीन अलग जगह और तीन अलग किरदार नताशा - जो है अपने में ही गुम , हमेशा खामोश रहने वाली अपने जज्बात किसी से कहना तो इसे आता ही नहीं । भावनाओं को शब्दों में पिरौना जिसके लिए नामुमकिन है ।

    स्वेता - जिसकी जिंदगी में बस दो ही चीजें हैं पहला - उसके दोस्त और दूसरा फन और केवल फन । जिम्मेदारीयो से दूर मस्ती में चूर । हमेशा मुस्कराते रहने वाली , अपनी जिंदगी खुलकर जीने वाली ।

    और तीसरा कर्ण - सब के लिए दिल में स्नेह , बस अपने परिवार के लिए जीना और इसकी तो दूनिया ही अपने परिवार में सिमटी हैं । अपनी मां की हर बात सिर झुका कर मान लेना ।

    तो अब देखना यह हैं कि किस्मत किस तरह इनके दिल के तार जोड़ती हैं ? कैसा होगा अब इनकी अनकही ख्वाहिशों का सफर ? रहेगी किसकी ख्वाहिश अधूरी ?  पर सफर होगा मोहब्बत भरा , जहां मोहब्बत होगी बेहिसाब ,  शब्दो से परे , दिल में कैद एक खुबसूरत तस्वीर, मोहब्बत , प्यार , इश्क , चाहत के अलग मायने होगे  । किसी की मोहब्बत पूरी होकर भी अधूरी रह जायेगी और किसी की अधूरी होकर भी पूरी होगी  ।

    रोना , हंसना , दर्द , नफ़रत , प्यार , तड़प , बैचेनी , सब सोच से परे और तकदीर के हिस्से होगा ।

    जारी हैं .....

    तो कहानी का पहला पार्ट आ चुका हैं और पढ़कर बताइए कि आपको कहानी कैसी लगी और अपनी  रेटिंग्स और समीक्षाएं जरुर दिजिए कि आपको यह कहानी कैसी लग रही हैं ।

  • 2. अनकही ख्वाहिश - Chapter 2 नताशा की कशमकश

    Words: 1651

    Estimated Reading Time: 10 min

    वह सोफे पर सिर झुकाए बैठी थी और सामने सुजाता जी बैठी लगातार उसे ही देखें जा रही थी और वह बस उनसे नज़रें चुराने का काम कर रही थी ।

    अब आप मुझे इस तरह तो मत देखिए ।

    .. । देख रही हूं कि नजरे चुराना भी सीख गयी हो ... वैसे जब तुम  सानवी को सब बता रही थी तब , मैं काॅल पर ही थी और मैंने सब कुछ सुना । सच बताऊं तो मुझे तुम्हारी हर बात सही लगी ।

    वैसे तुम जानती हो , मैं , नमिता , सुषमा बचपन के दोस्त थे । हमने ग्रेजुएशन भी एक ही काॅलेज से किया । जब तुम हुई तो नमिता बहुत खुश थी और उसने सुषमा से वादा किया कि वह अपने बेटे की शादी तुझसे ही करेगी ।

    तुम सब से ज्यादा उसी की लाडली थी । नमिता के ससुराल वाले बहुत आमिर थे लेकिन दोलत का घमंड नहीं था उनमें । सुषमा अनाथ थी इसलिए नमिता की सास उससे बेटी जैसा ही प्यार करती थी । उस समय मैं और सुषमा भी अपने परिवार के साथ खुशी खुशी जयपुर में ही रहते थे । जब तुम दो साल की हुई तो तुम्हारे पापा और मनोहर जी की पोस्टींग , अहमदाबाद हो गयी । नमिता नहीं चाहती थी कि हम तीनों दूर हो लेकिन हम दोनों को अपने परिवार के साथ अहमदाबाद आना पड़ा । नमिता को अपने दोस्तों से ज्यादा तुमसे बिछड़ने का दुःख था । वह तुम्हें खुद से दूर होते नहीं देखना चाहती थी ।

    लेकिन भाग्य का खेल अजब ही निकला । हमेशा साथ रहने का वादा करने वाले तुम्हारे मां और पापा 3 महिने बाद ही एक एक्सीडेंट में तुम्हें और हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गये और तुम्हानी जिम्मेदारी मुझे और मनोहर को दे गये ।

    हम उस दुःख से  संभल भी नहीं पाये थे कि अचानक ही मनोहर जी की पोंस्टीग मनाली हो गयी । उस वक्त कुछ समझना हमारे बस में नहीं था । ना कभी जयपुर जाने का मौका मिला और ना ही नमिता से कोई कोन्टेक्ट हुआ । जब भी काॅल करती तो उसका फोन ही बंद आता शायद उसने अपना कांटेक्ट नम्बर चेंज कर लिया था ।

    एक महिने पहले ही वो अपनी फैमिली के साथ मनाली घूमने आयी थी और मार्केट से लौटते वक्त मैं , उससे टकरा गयी । हमेशा खुश रहने वाली नमिता बहुत रोयी थी उस दिन मेरे गले लगकर ।

    वह सुषमा और तुमसे मिलना चाहती हैं और मैंने ,उसे घर आने के लिए कह दिया । तुम दिल्ली में थी इसलिए तुम्हें पता नहीं था ।

    पूरा परिवार आया था उसका क्योंकि सब तुमसे मिलने के लिए उत्सुक थे । मैंने , उसे सब कुछ बताया , जो सुषमा और अखिलेश जी के साथ हुआ ।

    वो तो तुम्हें तब ही अपने घर की बहू बनाना चाहती थी लेकिन मैं बिना तुम्हारी मर्जी के तुम्हारी शादी नहीं करना चाहती थी ।

    वो लोग  तुमसे बहुत प्यार करते हैं हमेशा तुम्हें खुश रखेंगे । तुम्हारी एक आह पर पूरा परिवार तुम्हारा हाथ थामे , तुम्हारे पास खड़ा होगा । तुम्हें खुश रखने की हर एक कोशिश करेंगे ।

    इतनी खुशियां मिलेगी की समेटते समेटते थक जाओगी । जिस प्रेम और परिवार के लिए हमेशा से तरसती आयी हो वो सब मिलेगा तुम्हे ।

    मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं वो परिवार तुम्हारे लिए परफेक्ट हैं ।

    और रही बात लड़के की तो जो लड़का अपने परिवार की खुशियों के लिए कुछ भी कर सकता हैं । अपने परिवार के हर इंसान से बहुत सम्मान और विनम्रता से बात करता है । वो तुम्हारे मान सम्मान को कोई आंच नहीं आने देगा और तुमसे बेहद प्यार भी करेगा ।

    बस इस रिश्ते के लिए मान जाओ नताशा । मैं बस तुम्हें खुश देखना चाहती हूं । मेरी दोस्त के आखरी वक्त में वादा किया था मैंने उससे कि मैं तुम्हें खुश रखूं और तुम शादी नहीं करना चाहती हों । ना तो मैं तुम पर दबाव डालना चाहती हूं और ना ही अपनी दोस्त की आखिरी इच्छा अधूरी रख सकती हूं । एक वक्त के बाद हम सब तुम्हारा साथ छोड़ देंगे । अकेले जिंदगी नहीं जी जाती है नताशा । अकेलापन काटने को दौड़ता हैं । सब कुछ होते हुए भी जिंदगी में एक खालीपन होता है जो हर पल रूह को कचौटता हैं । हर पल जर्रा जर्रा मरते हैं  और अंत में मौत भी सुकून नहीं पहुंचा पाती हैं । जिंदगी की रेस में दौड़ते दौड़ते इतना आगे निकल जाते हैं कि जब होश आता हैं तो हम बहुत आगे निकल चुके होते हैं फिर बीते वक्त में लिये गये फेसलो पर अफसोस जाहिर करने के अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं होता है । सब रिश्ते वक्त के साथ पीछे छूट जाते हैं लेकिन एक हमसफ़र , हम-कदम बनकर हमेशा हमारे हर सफर में हमारा हमराही बनकर हमारे साथ होता हैं ‌। वो एक एकलौता होता है जिसके साथ हम बीना हिचकिचाहट के अपने दर्द , तड़प , डर, बैचेनी हर इमोशन को आसानी से बांट लेते हैं ।

    इतनी देर से वह खामोशी से सिर्फ सुजाता जी की बाते ध्यान से सुन रही थी ।

    .... मैं शादी के लिए तैयार हूं आंटी ।

    सुजाता जी खुशी से - क्या कहां तुमने

    ... सानवी जो दरवाजे पर खड़ी सब कुछ ध्यान से सुन रही थी खुशी से अन्दर आते हुए - यही कि इस घर में जल्द ही शादी की शहनाई बजने वाली हैं ।

    सुजाता जी खुशी से खड़े होकर अपने कमरे हुए - में अभी नमिता को यह खुशखबरी सुनाती हूं ।

    उनके जाते देख पीछे से टोकते हुए  नताशा - आंटी , मैं पहले लड़के से मिलना चाहती है हूं ।

    सुजाता जी - ठीक हैं मैं अभी आती हूं ।

    उनके जाने के बाद सानवी नताशा को गले लगाते हुए - आइ एम वेरी हैप्पी फाॅर यू ।

    नताशा भी उसके गले लगते हुए - थैंक्यू , बहुत जरुरत महसूस हो रही थी तुम्हारे हग की .... अभी मुझे जाना होगा कुछ जरूरी डाक्यूमेंट्स मेल करने हैं मुझे ।

    इतना कहकर वह अपने घर में चली जिसे उसने अपनी मेहनत से खरीदा था । जो की सुजाता जी के घर के बगल में ही था ।

    दिल्ली

    सभी लड़किया आज बेहद खुश थी क्योंकि उन्होंने कड़ी मेहनत से अपना प्रोजेक्ट प्रोफेसर गोयंका को सबमिट कर दिया था और उन्होंने उसे सलेक्ट भी कर लाया और इसी खुशी में वो कैंटीन में बैठी पार्टी कर रही थी ।

    स्वेता जोर से चिल्लाते हुए - गाइज अब शांत भी हो जाओ । मुझे तुम सब से जरूरी बात करनी हैं । एक्चुअली , एक सरप्राइज हैं । गेस करो क्या हो सकता हैं ?

    रुचिता झट से - तुमने हमारे लिए एक और पिज्जा आॅर्डर किया हैं ।

    सनम - तुमने , मेरे बर्थडे पर कैमरा गिफ्ट करने का सोचा हैं ।

    रिमिशा - तुमने प्रियांश का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया ।

    स्वीटी - तुमने हमें डिनर के लिये अपने घर इन्वाइट किया हैं ।

    तुम सब जो यह कयास लगा रहे हो सारे गलत हैं । सरप्राइज यह है कि मैंने मनाली जाने के लिए हमारी ट्रेन की टिकट बुक कर दी हैं और परसों हम सब एक महिने के लिए मनाली जा रहे हैं ।

    सभी एक साथ खुशी से - सच में ....

    यस और इसलिए कल हम सब शाॅपिग के लिए माॅल जा रहे हैं और सब पैकिंग करते वक्त एक्स्ट्रा स्वेटर भी रख लेना ।  इस वक्त वहां बहुत ठंड हैं ना इसलिए ....

    जयपुर

    सिंघानिया सदन

    कर्ण - पापा , जाना जरूरी है क्या ?

    आदर्श के साथ वहां पुरा परिवार था ।

    नमिता जी - नताशा एक बार तुझसे मिलना चाहती ।

    आदर्श जी - तुम्हारी मां के साथ हम सब भी चाहते हैं कि तुम दोनों एक बार मिल लो । एक दुसरे को जानने पहचानने की कोशिश करो । ताकि आगे इस शादी को निभाने में दोनों को आसानी होगी ।

    सर्वेश जी - मैंने और भैया ने मनाली में एक हाॅटेल बनवाने का कान्टेक्ट लिया हैं । अगर यह हाॅटेल सही बन जाता हैं तो हम मनाली में भी अपनी एक परमानेंट ब्रांच खोल सकते हैं । तुम इस काम को भी संभाल लेना और नताशा के साथ टाइम भी स्पेंड करना और उसे समझने की कोशिश भी करना ।

    श्रुति जी - एक बाॅक्स में बेसन के लड्डू लाते हुए - सुजाता दीदी से पूछकर मैंने नताशा के लिए बेसन के लड्डू बनवाये हैं तो प्लीज यह डिब्बा नताशा को दे देना ।

    अन्वित और अयंक एक कार्ड दिखाते - हम दोनों ने भाभी के लिए यह कार्ड बनाया हैं पूरे दो घंटों की मेहनत से ।

    दादी एक गुलाबी और ब्लैक काॅम्बीनेशन का स्वेटर दिखाते हुए - मैंने यह नताशा के लिए बनाया हैं , उसे याद से दे देना ।

    दादा जी - मेरी तरफ से यह चश्मा जो मैंने स्पेशल उसके लिए बनवाया हैं ।

    नमिता जी - एक चेन कर्ण को देते हुए जिसमें कान्हा जी का लाॅकेट था , यह मेरी तरफ से नताशा के लिए ।

    आदर्श जी और सर्वेश जी - एक चाॅदी की छोटी सी कान्हा जी की मूर्ती देते हुए , यह हम दोनों की तरफ से नताशा के लिए ।

    कर्ण हंसते हुए - आप सब का प्यार देखकर , मुझे ऐसा लग रहा हैं। कि नताशा के आगे मुझे आप सब भूलने वाले हैं ।

    दादी - तुम याद से हम सभी के गिफ्ट उसे दे देना और हम सब की विडियोकाॅल पर उससे बात भी करवाना ।

    कर्ण - जैसा आप सब चाहे .. वैसे पापा मेरी फ्लाइट कब की हैं ।

    आदर्श जी -तीन दिन बाद की हैं ।

    कर्ण - ओके , तो अभी मैं आॅफिस जाता हूं ।

    जारी हैं .....

    स्वेता और कर्ण आने वाले हैं नताशा के शहर मनाली ...

    तो किस तरह टकरायेंगे यह तीनों ... यह तो वक्त ही बताएगा ।

    वैल कहानी को पढ़कर अपनी प्यारी प्यारी समीक्षाएं और रेटिंग्स देना ना भूले कि आपको कहानी कैसी लग रही है ....

  • 3. अनकही ख्वाहिश - Chapter 3 स्वेता का मनाली आना

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    आगे .....

    दिल्ली

    वह कल ही दिल्ली आयी थी किसी काम से इसलिए वह अभी अपने फ्लैट में बैठी कुछ सोच रही थी

    आज का दिन सबके लिए अच्छा हो या ना हो लेकिन नताशा आज बहुत उदास थी वो अपने मां पापा की तस्वीर को हाथ में लिए खामोशी से खिड़की के बाहर फैले घनघोर अंधेरे को निहार रही थी । यह अंधेरा उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका था जिससे अब वह खुद
    भी आजाद नहीं होना चाहती हैं । आज तक उसने अपने जज्बात, अपनी तकलीफ , अपनी इच्छाएं , पंसद , नापसंद किसी के सामने जाहिर नहीं होने दी ।  ऐसे में अपने स्वभाव के विपरित इतने बड़े परिवार में लोगों से घुलना मिलना आसान होगा । शायद वह अपनी भावनाओं को कभी उनके सामने जाहिर होने देंगी । अगर उसकी जिंदगी में वही इंसान हमसफ़र बनकर आयेगा तो वह पूरी कोशिश करेगी कि वहां अपनी हर जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाना । वह कभी ऐसा कोई काम नहीं करेंगी जिसकी वजह से उन्हें कभी भी शर्मींदगी महसूस करनी पड़े । वह नहीं चाहती हैं कि उसकी वजह से किसी को भी तकलीफ हो और शायद इसलिए उसने इच्छा नहीं होने पर भी सुजाता जी के कहने पर इस रिश्ते के लिए हां कर दी ।
    गहरी सांस लेते हुए वह उस तस्वीर को साइड टेबल पर रख देती हैं और खड़ी होकर किचन में चली जाती हैं।
    कितना सोचती हो तुम नताशा , अगर ऐसे ही सोचती रही ना तो बहुत मुश्किल होगा तुम्हारे लिए अपनी जिंदगी में होने वाले बदलावों को एक्सेप्ट करना ।
    वैल , अभी के लिए क्या बनाऊं । ऐसा करती हूं कि आलू पूरी बना लेती हूं ।
    यही तो नताशा थी जिसे सिर्फ खुदसे बातें करना पसंद था वह सिर्फ खुद में गुम रहती थी । उसे पसंद नहीं था दुसरो से बातें करना ।

    मनाली रेलवे स्टेशन
    चारों तरफ भीड़ भाड़ और शोर शराबे के बीच वो पांचों अपने अपने लगेज के साथ स्टेशन पर खड़ी टैक्सी का इंतजार कर रही थी ।
    रिमिशा परेशानी से - तुमने टैक्सी बुक तो करी थी ना रूचिता या फिर खाने के चक्कर में भूल गयी ।
    रुचिता - तुम्हारी नज़र हमेशा मेरे खाने पर ही होती हैं लेकिन मैंने टेक्सी बुक की थी और वह टेक्सी वाला दस मीनट लेट ही पहुंचेगा । वैसे भी थोड़ी देर उस ठेले पर चलते हैं । कुछ तो खा ही लेंगे । बहुत भुख लग रही हैं ।
    इतना कहकर वह जैसे ही सब की तरफ देखती हैं तो सब उसे गुस्से से ही घूर रही थी ।
    स्वीटी - वैसे हमे जाना कहां हैं ।
    स्वेता - मैंने अपनी कजन की दोस्त से बात कर ली हैं और उसने मुझे खुद का एड्रैस सेंड कर दिया हैं इसलिए हम सब एक महिने के लिए वही रूक रहे हैं ।
    रिमिशा - ठीक हैं ।
    वो सब इसी तरह बातों में व्यस्त हो गयी तब तक
    तब तक टैक्सी वाला आ चुका था और टैक्सी में बैठकर निकल चुकी थी वो अपनी मंजिल की तरफ ।

    सिंघानिया एंटरप्राइजेज

    कर्ण इस वक्त किसी मीटिंग में बीजी था इसलिए अन्वित और अयंक उसके केबिन में बैठे उसका इंतजार कर रहे थे ।
    अन्वित - यह भाई कब तक आने वाले हैं ।
    अयंक - उनकी सैकेटरी ने बताया तो कि अभी भी आंधे घंटे तक मीटिंग चलने वाली हैं ।
    अन्वित - इतनी देर मुझसे इंतजार नहीं होगा ।
    अयंक - अगर शाॅपिग के लिए उनका कार्ड चाहिए तो इंतजार करना ही पड़ेगा । वैसे भी हम दोनों को इतने पैसे सिर्फ , भाई दे सकते हैं और कोई भी नहीं ।
    अन्वित -बात तो सही हैं । पापा कभी नहीं देंगे हम दोनों को इतने पैसे ....
    अयंक - तो इंतजार करते हैं भाभी मां को सरप्राइज भी तो देना हैं ।
    अन्वित - भाभी मां बहुत अच्छी हैं ना अयंक । वो सबकी इतनी मदद करती हैं देखना वो हम दोनों से बहुत प्यार करेंगी ।
    अयंक - और हम दोनों भी हमेशा उनके बेटे बनकर उनके साथ खड़े होंगे ।
    अन्वित - हम्म .... वैसे तुम्हें याद है ना क्या करना हैं ‌।
    अयंक चहकते हुए ‌- अच्छी तरह से ....
    कुछ तो ऐसा चल रहा था उनके दिमाग में जिससे सब बेखबर थे ।

    शर्मा निवास के अंदर

    मां अब मान भी जाओ ना .... वैसे भी हमारे घर का ऊपर वाले माले पर कोई नहीं रहता हैं ......और वो लोग रेंट भी तो देने वाली हैं ।
    देखो बेटा , मुझे रेंट पर देने से कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन तुम्हारी उस ओवरप्रोटेक्टीव दोस्त को तो जानती हो ना वो उन्हें यहां रहने ही नहीं देगी और पिछली बार का तुम अच्छी तरिके से जानती हो ना फिर भी ....
    जानती हूं मां । सब कुछ जानती हूं ..... लेकिन मेरी फ्रेंड ने रिक्वेस्ट करी थी और मैं उसे मना नहीं कर सकी । आप तो बात को समझने की कोशिश करो। अपनी मां के चेहरे पर असमंजस के भाव देखकर - अच्छा ... अच्छा ... आप तो हां कीजिए ... उससे बात करने की जिम्मेदारी मेरी होगी और मैं उसे मना लूंगी। भरोसा तो कीजिए मेरा और वो लोग बस आने ही वाली होगी ।
    प्लीज मां .......
    अपनी बच्ची के चेहरे पर उदासी के भाव देखकर एक मां का दिल पिघल ही जाता हैं - अच्छा ठीक हैं पर उससे तुम्हीं बात करोगी ।

    थैंक्यु मां , आप बहुत अच्छी हैं ।
    लेकिन उन्हें अपने घर के रुल्स तो बता दिए हैं ना

    यस मम्मा , मैंने रितु को सब समझा दिया हैं और आई एम श्योर उसने उन्हें सब कुछ समझा दिया होगा ।

    ठीक हैं । इतना कहकर वह किचन में चली जाती हैं और वो अपने रुम में ।
      कुछ देर बाद शर्मा निवास के सामने एक टैक्सी आकर रुकती हैं और उसमें से स्वेता, स्वीटी , रूचिता , सनम और रिमिशा निकलती हैं अपने अपने लगेज के साथ ।
    स्वेता , यहां तो सारे घर एक जैसे ही दिखते हैं पता नहीं कौनसे घर में जाना हैं - रिमिशा ने कहां ।
    रिमिशा , यह एक काॅलोनी हैं ना इसलिए सारे घर एक जैसे हैं - स्वेता ने कहां ।
    रूचिता एक जगह देखते हुए - सारे घर नहीं .... वो देखों एक घर अलग दिख रहा हैं ।


    जारी हैं ......

  • 4. अनकही ख्वाहिश - Chapter 4 नताशा दिल्ली में ‌हैं

    Words: 2222

    Estimated Reading Time: 14 min

    रिमिशा , यह एक काॅलोनी हैं और इसके सारे घर एक जैसे हैं ।
    रूचिता एक जगह देखते हुए _ सारे घर नहीं वो देखो एक घर अलग दिख रहा हैं ।

    आगे .....
    स्वेता अपने फोन में एड्रेस देखते हुए एक तरफ इशारा करते हुए - हमें उस घर में जाना हैं। इतना कहकर वह अपना लगेज उठाये ,उस अलग से दिखने वाले घर के बगल वाले घर की डोरबेल बजा देती है।
    उस घर की नेम प्लेट पर शर्मा निवास लिखा था । शर्मा निवास के अन्दर
    तुमने उसे बता दिया हैं ना कि हमने घर के ऊपर वाले फ्लोर को रेंट पर दिया हैं ।
    वह लड़की उदासी से - नहीं मां , मैं उसे बताने ही वाली थी लेकिन वह तो कल शाम को ही दिल्ली के लिए निकल गयी थी । फोन पर बताना सही नहीं होगा वरना वह अपना सारा काम छोड़कर यहां मनाली आ जायेगी इसलिए उसके आने के बाद बताती हूं ।

    लेकिन बेटा ....
    जानती हूं मां , गुस्सा करेगी ... लेकिन मैं उसे मना भी लूंगी ।
    तभी डोरबेल की आवाज से दोनों का ध्यान दरवाजे की तरफ जाता हैं ।
    मां लगता हैं वो लोग आ गयी हैं । मैं दरवाजा खोलती हूं आप तब तक सभी के लिए पानी लाइए ।
    इतना कहकर वो दरवाजा खोलने चली जाती हैं ।
    दरवाजा खुलते ही उसे अपने सामने पांच लड़कियों का एक ग्रुप दिखता हैं जो अपने अपने लगेज के साथ खड़ी थी ।
    उनमें से एक लड़की आगे आते हुए - हाय , आई एम स्वेता , रितु ने बताया होगा ।

    वो , उससे हाथ मिलाते हुए - हाय , आई एम सानवी शर्मा । आई नाॅ यूं । रितु ने मुझे सब कुछ बता दिया हैं । बातें बाद में करेंगे अभी आप सभी अन्दर आ जाइए ।

    इतना कहते ही सभी लड़कियां हंसते हुए अपने लगेज के साथ अन्दर आ जाती हैं और सानवी मुस्कराते हुए दरवाजा बंद करते हुए उनके पीछे पीछे लिविंग रूम में आ जाती हैं ।
    वो सभी घर को अपनी नजरों से स्कैन कर रही थी ।
    रिमिशा चारों तरफ देखते हुए - घर तो काफी खुबसुरत हैं ।
    स्वीटी - हां , सही में यह सोफों का कवर कितना यूनिक हैं ना ।
    रूचिता - मुझे तो ना समोसों की खुशबू आ रही हैं ।
    रिमिशा गुस्से - खाने के अलावा और कुछ सोच नही सकती हैं ।
    स्वीटी - रिमिशा , आज तो बख्श दे बिचारी को , क्यों उसके खाने के पीछे पड़ी रहती हैं ।
    रूचिता खुशी से - मुझे तो बस स्वीटी ही समझती हैं बाकी तुम तो बस टोंट कसती हो ।
    सनम जो उस घर की फोटो खींच रही थी वो हंसते हुए - अगर रिमिशा , तुम पर टोंट ना कसे ना तो अब तक तुम्हारा शरीर फूल कर गुब्बारा हो गया होता ।
    रुचिता पैर पटकते हुए - सनम की बच्ची ....
    रिमिशा हैरानी से - सनम तुमने बताया नहीं कहा हैं तुम्हारी बच्ची ....
    रूचिता गुस्से से - रिमिशा ....
    स्वीटी - रिलेक्स रूचिता ... वो बस तुम्हें चिढ़ा रही हैं । इसलिए ज्यादा हाइपर मत हो ।
    सनम हंसते हुए - स्वीटी .... यह बस तुम्हारी बात ही समझती हैं बाकी हम दोनों पर घोड़े की तरह सवार रहती हैं ।

    अब तक उनके पीछे आ रही , सानवी जो उनकी बाते बड़े ध्यान से सुन रही थी वो मुश्किल से अपनी हंसीं कंट्रोल करते हुए - आप सब सोफों पर बैठ सकती हैं।
    उसकी बात सुनकर स्वीटी - ओ ... यस ... इतना कहकर वह चारों बैठ जाती हैं लेकिन स्वेता , जिसका ध्यान अचानक ही किसी जगह जाता हैं वो उस तरफ चल देती हैं जिससे सबका ध्यान उस तरफ चला जाता हैं।

    शर्मा निवास के लिविंग रूम में एक साइड खुबसूरत सा कान्हा जी का मंदिर था बीना कान्हा जी भोग लगे , शर्मा निवास के किचन में खाने की और कोई चीज नहीं बनती थी ।
    स्वेता ने जब देखा कि कान्हा जी के आगे रखा दिया बूझ रहा हैं तो वह बस उसे जलाने के लिए उस तरफ चल देती हैं और यही बात किचन से पानी लाती सुजाता जी ने देखी थी ।
    उन सब का भी ध्यान , स्वेता के इस एक्शन पर था । जहां चारों लड़किया मुस्करा रही थी । वही सानवी  हैरान थी कि दिल्ली जैसे शहर की इतनी माॅर्डन लड़की भी इस तरह भगवान में विश्वास करती हैं कि उसे घर के अन्दर बने उस छोटे से मंदिर के अन्दर बुझा हुआ दिपक भी दिख गया हैं।

    जैसे ही स्वेता दिया जलाकर पीछे पलटती हैं सभी को खासकर सानवी को अपनी तरफ हैरानी से देखते देख वो मुस्कराते हुए - वो मां कहती हैं कभी भी मंदिर का दिया बुझना नहीं चाहिए । इसलिए मैंने .... आई एम सॉरी... वो ...

    सुजाता जी पानी लाते हुए - अरे कोई बात नहीं बेटा ... तुमने कोई ग़लत काम थोड़ी किया हैं .... साॅरी मत बोलों .... वैसे भी ईश्वर के आगे सब एक समान हैं और हम किसी को भी उनके मंदिर में जाने से नहीं रोक सकते हैं और दिया जलाना इम्पोर्टेन्ट था । किसने जलाया ... यह नहीं ।
    सानवी मुस्कराते हुए - मां सही कह रही हैं स्वेता । इसके लिए तुम्हें अनकम्फर्टेबल फील करने की जरूरत नहीं हैं।
    स्वेता भी और ज्यादा ना सोचते हुए आकर सोफे पर बैठ जाती हैं ।
    सुजाता जी सबको पानी देते हुए वही एक सोफे पर बैठ जाती हैं।
    सानवी सोफे पर बैठते हुए - तो सभी का एक छोटा सा इन्टरो हो जाये ।
    स्वीटी मुस्कराते हुए क्यों नहीं -मेरा नाम स्वीटी हैं और सनम बीच में ही - मैं सनम हूं ।
    रिमिशा हंसते हुए - मैं रिमिशा और अपने बगल में बैठी लड़की की तरफ इशारा करते हुए - यह रूचिता जो अभी पानी पी रही थी ।
    स्वेता मुस्कराते हुए - आई एम स्वेता और हम सब अपनी वेकेशन पर मनाली घूमने आये हैं। अभी हम सब पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं।
    स्वेता मुस्कराते हुए आगे - हम सब के पेरेंट्स अच्छे दोस्त हैं और हम सब भी एक दूसरे के अच्छे दोस्त हैं।

    सानवी मुस्कराते हुए - मेरा नाम सानवी शर्मा और फिर सुजाता जी के कंधे पर हाथ रखते हुए यह मेरी मां सुजाता शर्मा एंड मेरे पापा मनोहर शर्मा अभी उन्हें दो महिने के लिए उदयपुर जाना पड़ा हैं इसलिए हम दोनों अभी अकेले ही रहते हैं।
    रिमिशा मुस्कराते हुए - कोई बात नहीं , हम सब भी तो हैं।
    सुजाता जी - रितु ने वैसे तो तुम्हें सब बता दिया ही होगा फिर भी तुम सब एक महिने के लिए यहां हो वो भी हमारी जिम्मेदारी पर , इसलिए अगर यहां रहना हैं तो कुछ रूल्स फॉलो करने होंगे ।
    स्वेता अपने मन में - रितु ने तो ऐसा कुछ नहीं बताया लेकिन जगह अच्छी हैं एक महिने यहां रह सकते हैं इसलिए थोड़ा एडजस्ट तो करना ही पड़ेगा ।.... ठीक हैं आंटी ।
    तुम सब को यह शहर सानवी घूमा देगी लेकिन ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर तुम सब हमारे साथ करोगी ।
    रात को 8 बजे बाद बाहर घूमना अलाव नहीं हैं ।
    खाना बनाने में मेरी हेल्प करनी होगी ।
    घर में हाई वाॅल्यूम में गाने नहीं बजेंगे ।
    घर को साफ सुथरा रखना होगा ।
    मार्केट से सब्जियां और राशन का सारा सामान तुम्हें ही खरीदना होगा ।
    नाॅनवेज घर में लाना अलाव नहीं हैं।
    स्वेता मुस्कराते हुए - ठीक हैं आंटी ।
    सुजाता जी - अब तुम्हें सारी शर्तें मंजूर हैं तो मैं किचन से तुम सब के लिए नाश्ता लाती हूं।

    उनके जाने के बाद , सानवी - देखो मैंने मां को बहुत मुश्किल से मनाया हैं तो प्लीज अब जब तक यहां हो शांति से रहना । बाहर तुम चाहें कैसे भी रहो लेकिन घर के अन्दर मां के एकार्डिंग ही रहना होगा गा । वो अपने रूल्स के लिए बहुत डेडिकेट हैं।
    स्वेता मुस्कराते हुए - हमें इन सब से कोई प्रोब्लम नहीं हैं । ओके गाइस ।
    सभी एक साथ - यस

    सानवी मुस्कराते हुए - तो ठीक हैं नाश्ते के बाद मैं , तुम्हें तुम्हारा रहने का ठिकाना बता दूंगी।

    दिल्ली
    एक सरकारी आवास में बैठी , वह किसी के आने का इंतजार कर रही थी और बैचेनी से लगातार अपने हाथ की रिस्ट वाॅच देख रही थी । उसने अभी ब्लैक शर्ट और ब्लैक जींस पहन रखी थी और ऊपर ब्लैक लेदर जैकेट पहने वह गजब की खूबसूरत लग रही थी ।
    कुछ समय बाद एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति वहां आते हुए - सोचा नहीं था इतनी जल्दी मुलाकात होगी तुमसे एसीपी नताशा मिश्रा । वैसे पहले से बहुत बदल गयी हो ।

    आप भी तो बदल गये हैं कमिश्नर साहब ?
    मुझे उम्मीद नहीं थी तुम , मुझसे मिलने आओगी ।
    नताशा एट्यिट्यूड से - आप से नहीं आन्टी से मिलने आये हैं।
    लेकिन ऐसा तो नहीं लग रहा कुछ ....

    एक औरत जिसने बनारसी साड़ी पहन रखी थी वो हंसते हुए वहां आकर - आप भी बातों में व्यस्त हो गये और राठौड़ साहब , आप मेरी बच्ची को इस तरह परेशान नहीं कर सकते हैं।
    बात तो सही हैं आपकी साहिबा जी , लेकिन कभी आप अपनी इस खुखार बेटी को भी समझा दीजिए कि मुझे इस तरह एट्यिट्यूड ना दिखाए आखिर सिनियर आॅफिसर की इज्जत करना कर्तव्य हैं इसका ...
    वो सब छोड़िए , इतना कहकर वह नताशा को गले लगाते हुए - तुम मेरे लिए मेरी बेटी हो और तुम्हारे जाने के बाद मैं , तुम्हें बहुत मिस करने वाली हूं।
    मैं भी आपको बहुत मिस करुंगी आंटी ।

    अच्छा इन्हें आंटी और मुझे कमीशनर साहब ।
    नताशा मुस्कराते हुए - आपको पता तो हैं मैं शुरू से ही आपको कमिश्नर साहब ही कहती हूं।
    तो यह हैं मि. विजेन्द्र राठौड़ और उनकी वाइफ महिमा राठौड़ जिन्हें विजेन्द्र जी साहिबा जी बुलाते हैं।
    विजेन्द्र जी की नताशा से पहली मुलाकात उसकी ट्रेनिंग के दौरान ही हुई थी और वह उन्हें जिंदगी से नाराज़ और खामोश सी लगी । शुरू में उन्होंने बोहोत कोशिश की लेकिन वह किसी से बात करती ही नहीं थी और धिरे धिरे बहुत कोशिश के बाद वो उनसे बातें करने ही लगी और उन्होंने अपने आप से वादा किया कि वो उसके अकेलेपन को अपने प्यार से भरने की कोशिश करेंगे और उनकी साहिबा जी ने भी इसमें उनकी बहुत मदद की और आज चार साल बाद उनका रिश्ता नाॅर्मल था । सबके सामने खामोश रहने वाली नताशा , उनसे बहुत खुल कर बात करने लगी थी लेकिन एक राज था जो नताशा को भी पता नहीं था । कमीश्नर साहब , उसमें अपनी बहन देखते थे जिसे उन्होंने बहुत कम उम्र में ही खो दिया ।
    महिमा जी , डायनिंग टेबल पर खाना लगाते हुए - अगर आप दोनों की नोंक झोंक खत्म हो गयी हो तो आप जाइए । आज मैंने खास डिनर बनाया हैं एसीपी साहिबा के लिए ।
    नताशा वही से चिल्लाते हुए - आप मुझे नताशा ही कहिये आंटी ।
    महिमा जी - ठीक हैं नताशा मेरी बच्ची ।
    नताशा मुस्कराते हुए - कमीश्नर साहब , लगता हैं जैसे बहुत कुछ पीछे छोड़कर जा रही हूं । आप सब से इतना प्यार मिला हैं जितना पूरी जिंदगी में भी नहीं मिला होगा । सही बताउ तो आप सब को बहुत मिस करने वाली हूं।
    विजेन्द्र जी - पहले डिनर करें फिर बात करेंगे ।
    नताशा - जैसा आपको ठीक लगे ।
    कुछ देर बाद
    सब डायनिंग टेबल पर बैठे थे ।
    नताशा सभी तरफ देखते हुए - आंटी डाॅ. साहब कहां हैं ... क्या घर पर नहीं हैं ।
    महिमा जी - तुमसे मिलने के लिए आज की खास छुट्टी ली थी उसने लेकिन पता नहीं ठोड़ी देर पहले बहुत जल्दबाजी में निकला हैं यहां से। कह रहा था कि थोड़ी देर में आ रहा हूं लेकिन अभी .....
    तभी एक अठाईस साल का लड़का वहां आते हुए - नताशा की आंखों पर हाथ रख देता हैं। उन हाथों के स्पर्श से ही नताशा के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती हैं-- भाई
    नताशा खड़े होते हुए - उसके गले लग जाती हैं। आई मिस यू सो मच ।
    वो लड़का जिसका नाम अभिनव राठौड़ था वो मुस्कराते हुए - मिस यू टू ।
    महिमा जी - अब गले मिलना हो गया हो तो डिनर कर लेते हैं ‌।
    सब डिनर करने लगते हैं। यह क्या माॅम आपने सब कुछ इतना आॅयली बनाया हैं जानते हैं ना इससे कितना काॅलेस्ट्रोल बढ़ता हैं। आप दोनों इसमें से कुछ नहीं खायेंगे । मैं अभी कुक से कहकर आपके लिए हल्का डिनर बनवाता हूं ।

    विजेन्द्र जी अपने बगल में बैठी नताशा के कान में - लो भ‌ई हो गयी इसकी डाॅक्टरगिरी शुरु ...अब तुम तो बचा लो हम दोनों हसबैंड वाइफ इतने अच्छे खाने को छोड़कर वो बेस्वादा सूप नहीं पिना चाहते हैं । तुम कुछ करो ...
    नताशा - ठीक हैं मैं कुछ करती हूं ... भाई आज तो खाने दीजिए ना ... पता नहीं कब ... हम सब साथ बैठकर इतना अच्छा डिनर करेंगे।
    अभिनव - सिर्फ तुम्हारे लिए ।
    नताशा- थैंक्यू भाई

    इसके बाद सब शान्ति से डिनर करने लगते हैं।
    डिनर के बाद वो सभी बैठकर बातें करने लगते हैं। इन सब में रात के 10 बज जाते हैं।
    महिमा जी नींद आने लगती हैं तो वो सोने चली जाती हैं अभिनव को उसकी होने वाली वाइफ का काॅल आ जाता हैं तो वो उससे बात करने अपने रुम में चला जाता हैं । अब वहां विजेन्द्र जी और नताशा ही बचे थे ।

    जारी हैं .....

  • 5. अनकही ख्वाहिश - Chapter 5 अभिनव और नताशा की बाॅन्डिग

    Words: 1091

    Estimated Reading Time: 7 min

    आगे .........

    अब वहां विजेन्द्र जी और नताशा ही बचे थे । दोनों तरफ खामोशी थी ।

    विजेन्द्र जी उस खामोशी को तोड़ते हुए - टेरिस पर चले कुछ जरूरी बात करनी हैं।

    इसके बाद वह उनके साथ टेरिस पर चली जाती हैं।

    चारों तरफ अंधेरा फैला था जिसमें बस कुछ कीड़ों की आवाजें आ रही थी । आसमान में चांद आज कुछ ज्यादा ही चमक रहा था और वे दोनों बाउंड्री पर खड़े , रात के अंधेरे में दूर तक फैली उन जगमगाती लाइट को निहार रहे थे जो अंधेरे में जुगनू की भांति चमक रही थी ।

    विजेन्द्र जी खामोशी तोड़ते हुए - कितने वक्त के लिए मनाली में पोस्टींग हैं ।

    नताशा गहरी सांस लेते हुए - शायद दो महिने , मेरा काम ख़त्म होते ही मुझे अगली पोस्टीग बेंगलुरु मिल जायेगी ।

    विजेंद्र जी - पता नहीं कब , तुम हमारी फैमिली का अटूट हिस्सा बन गयी । इतना दर्द तो तो कभी अभिनव को मुम्बई भेजने पर भी महसूस नहीं हुआ । ऐसा लग रहा हैं एक अहम हिस्सा शरीर का साथ छोड़ रहा हैं।

    तुम्हारा काम भी ऐसा हैं इसलिए जाने से नहीं रोक सकता हूं पर .... प्लीज साहिबा जी से दिन में एक बार जरूर बात कर लेना वो बहुत अटेच हैं तुमसे ... शायद मुझसे भी ज्यादा ... और कुछ चीजें वक्त पर छोड़ दो ...इतनी टेंशन मत लिया करो । मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उस गद्दार का असली चेहरा जरूर बेनकाब करोगी ।

    नताशा - पता नहीं इस बार मैं कामयाबी कैसे हासिल करुंगी लेकिन हजारों बच्चों के फ्यूचर को संवारना हैं तो‌ उसे बेनकाब करना ही होगा ।

    विजेंद्र जी - उससे पहले तुम्हें उस केएस के चेहरे को बेनकाब करना होगा ।

    नताशा - वो तो मैं कर ही लूंगी आखिर मनाली से आतंक खत्म करना हैं मुझे .. इसके लिए आवश्यक हैं कि मैं खुद उस दलदल में उतर जाऊं ....

    विजेंद्र जी - तुम कुछ और प्लान नहीं कर सकती हो । यह बहुत रिस्की हैं । मतलब इस तरह तो तुम्हारी छवि भी खराब होगी ।

    नताशा - इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन गुनेहगारो को सजा मिलनी ही चाहिए ।

    विजेंद्र जी गहरी सांस लेते हुए - तो तुम नहीं मानोगी । चलो कोई बात नहीं .... यह सब तो चलता ही रहेगा । वैसे क्या तुम हमेशा ऐसे ही रहने वाली हो ।

    नताशा अपने आपको देखते हुए असमंजस से - मतलब ...

    विजेंद्र जी - मतलब ... यह कि .. हमेशा यूं अकेले , तन्हा ।

    नताशा उदासी से - अकेलापन मेरी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा हैं और रही बात किसी को जिंदगी में शामिल करने की तो ... कभी लगेगा कि कोई नताशा मिश्रा का हमसफर बनने लायक हैं तो उसे अपनी जिंदगी में शामिल करने में मैं एक पल की भी देरी नहीं करुंगी और सबसे पहले आपको ही बताउंगी ।

    विजेन्द्र जी - प्राॅमिस।

    नताशा - पक्का प्राॅमिस।

    विजेंद्र जी - तुमसे एक बात पूछूं ... तुम मुझे कमीश्नर साहब क्यों बुलाती हो ?

    नताशा कुछ बोलती , तभी पीछे से आवाज़ आती हैं ... क्योंकि वो आप में अपना एक अच्छा दोस्त देखती हैं जिससे वो कुछ भी शेयर कर सकतीं हैं। अपने मन की हर उलझन कह सकती हैं। आपके साथ अपना दर्द बेझिझक बांट सकती हैं। आपके सामने बोलने से पहले उसे कभी हिचक महसूस नहीं होती हैं। आपसे बात करते वक्त उसे अपने शब्दों में तालमेल बिठाने की जरूरत नहीं होती हैं क्योंकि वह जानती हैं । आप उसे हमेशा समझेगे ।

    वो दोनों पीछे मुड़कर देखते हैं तो वहां अभिनव अपनी मनमोहक मुस्कराहट के साथ  हाथ में एक ट्रे लिए खड़ा था जिसमें तीन कप काॅफी के रखे थे ।

    विजेन्द्र जी - और तुम उसके चेहरे का हाल देखकर उसके दिल के जज्बात पता लगा लेते हों ।

    अभिनव मुस्कराते हुए उनके पास आकर काॅफी पकड़ाते हुए - आखिर बहन हैं मेरी ? एक नन्ही सी गुड़िया जिसे उदास देखना मेरे लिए बहुत मुश्किल है ।

    नताशा उसके गले लग जाती हैं ।

    कुछ देर बाद वो लोग टेरिस पर टिन शेड के नीचे रखें एक गद्दे पर बैठे काॅफी पी रहे थे । विजेंद्र जी बीच में बैठे थे और नताशा और अभिनव उनके बगल में उनके कंधों पर सिर रखे बैठे थे ।

    सिंघानिया सदन

    लगभग रात के 10 बजे थे । सब लोग शांति से सो रहे थे लेकिन कर्ण बैचेनी से करवट बदल रहा था ।

    अन्वित और अयंक के कमरे की लाइट अब भी जल रही थी । उन दोनों ने कर्ण से उसका क्रेडिट कार्ड तो ले लिया था लेकिन उन्हें कल क्या क्या करना हैं इनकी लिस्ट बनानी थी और इसलिए वो अभी तक जाग कर अपने काम कर रहे थे ।

    कर्ण को बहुत बैचेनी हो रही थी इसलिए खड़े होकर वो बालकनी में  चला जाता हैं।

    कुछ देर शांत रहने के बाद वह गहरी सांसें लेने लगता हैं। पता नहीं यह हो क्या रहा हैं। शायद मनाली जाने के नाम  पर ..... अब तक किसी लड़की से बात तक नहीं की थी उसने ऐसे में उसके घरवाले उसे एक महिने के लिए किसी लड़की से  मिलने और समझने के लिए कह रहे थे । फाॅर्मली उसने बिजनेस के सिलसिले में बहुत सी लड़कियों से बात की थी लेकिन वो सिर्फ बिज़नस तक ही सीमित था । कोई फिमेल आज तक उसके फ्रेंड सर्कल में भी नहीं थी तो ऐसे में हिचकिचाहट के साथ उसे घबराहट और बैचेनी दोनों हो रही थी । कुछ देर तक कोशिश करने और खुद को तर्क वितर्क देने के बाद उसका दिमाग कुछ हद तक शांत था और गहराती रात के साथ उसे नींद भी आने लगी थी । इसलिए वो कमरे में आकर सीधे बेड़ पर गिर गया ।

    सुबह का सूरज मनाली में एक नयी कहानी का आगाज हो चुका था ।

    जहां स्वेता ने अपने फ्रेंड्स के साथ शर्मा निवास के ऊपर वाले फ्लोर पर सब कुछ सेट कर लिया था । वही सानवी का घबराहट से बुरा हाल था । डर तो सुजाता जी को भी था लेकिन वो किसी तरह खुद को शांत करें बैठी थी । कर्ण , मनाली के लिए निकल चुका था और नताशा को दिल्ली कमीश्नर ऑफिस में कुछ डाॅक्यूमेंटस जमा करवाने थे और इसलिए वह अगले दिन मनाली के लिए निकलने वाली थी ।

    अब क्या रंग लायेगा । यह सफर ?

    क‌ई दिल जुड़ेंगे तो यह भी तय हैं कि क‌ई दिल टूटेंगे । कहीं यह सफर रुलाएगा तो कभी मुस्कराने का भी मौका मिलेगा ।

    जानने के लिए कहानी को आगे पढ़ते रहिये

    कहानी पढ़कर अपनी रेटिंग्स और समीक्षाएं देना ना भूले ।

    जारी ....

  • 6. अनकही ख्वाहिश - Chapter 6 कर्ण की फैमिली

    Words: 1196

    Estimated Reading Time: 8 min

    आगे .......

    कर्ण अभी जयपुर एयरपोर्ट पर खड़ा था । सारा परिवार उसको छोड़ने आया था ।

    श्रुति जी - कर्ण , उसे मेरे बनाये लड्डू खिलाना ओर जरूर बताना कि उसकी चाची सास  ने बनाये ।

    हमारी कान्हा जी की मूर्ति देना मत भूलना ।

    मेरा स्वेटर

    मेरी चैन

    मेरा चश्मा

    वो सब लोग उसे बस अपनी बताने पर ही तुले थे । कर्ण जो पिछले आधे घंटे से उनकी सब बातें सुन रहा था परेशानी से - कितनी बार रिपीट करेंगे आप सब लोग .... पिछले तीन दिन से यहीं सब सुन रहा हूं । ऐसा लग रहा हैं कि वो आपकी बेटी हैं और मैं दामाद , जिसे बस आप ढेर सारी हिदायतें दे रहे हैं जिससे आपकी बेटी की तकलीफ ना हो और मां आप भी इनके साथ ....

    नमिता जी - लेकिन.....

    कर्ण शांति से गहरी सांस लेकर - अब आप सब कुछ नहीं बोलेंगे .... मैं आप सब की सारी चीजें उन्हें दे दूंगा तो बस अब आप सब शांत रहिये ।

    भाई हमें भी भाभी सा से मिलना हैं तो क्या हम आपके साथ चल सकते हैं।

    कर्ण गुस्से से उन्हें घूरता हैं तो वो दोनों डर से दादी के पीछे छिप जाते हैं ।

    वह गुस्से से अपना लगेज  लिए एंट्री के लिए अंदर  चला जाता हैं।

    सभी लोग,उसे इतने गुस्से में देख हैरान थे । दादा जी हैरानी से, यह इतना गुस्सा कब से करने लगा ।

    तब एक लड़का हाथ में बैग लिए भागता हुआ आया और सबसे साॅरी कहने लगा ।

    जिस पर दादी हंसते हुए , हमसे नहीं बरखुरदार माफी अपने दोस्त से मांगिए क्योंकि मौसम के मिजाज आज बदलें हैं।

    आदर्श जी टोंट कसते हुए , इस तरह दोस्ती निभायी जाती हैं। हम सब को तो लगा की आपका आगमन तब होगा जब फ्लाइट मनाली लैंड हो जायेगी ।

    तो अब इन बरखुरदार का परिचय करवाते हैं ।

    यह हैं सरस मित्तल उम्र में लगभग करण जितना ही हैं।असल में सरस के पिता ,गिरिश मित्तल और आदर्श जी बचपन के दोस्त थे और उनकी दोस्ती को आगे बढ़ाया करण और सरस ने , दोनों जान से बढ़कर एक दुसरे को मानते थे और हर जगह साथ ही नजर आते थे । दोनों का विश्वास एक दुसरे पर इतना था कि इन दोनों के पास एक दुसरे के सारे राज होंगे ।

    खैर यही बात आदर्श जी और गिरिश जी को खटकती थी क्योंकि उनकी दोस्ती , हमेशा ही करण और सरस की दोस्ती के आगे फीकी पड़ जाती थी ।

    असल में ऐसा कुछ नहीं था पर उन्हें ऐसा लगता था तो यहीं कारण था हर वक्त वो उन पर टोंट कसते रहते थे और सेल्फ सेटिस्फेक्शन नाम की भी कोई चीज होती है।

    साॅरी अंकल , मैं आपकी शिकायते फिर कभी सुनुगा इतना कहते हुए सरस अपना लगेज उठाये एयरपोर्ट के अंदर चला जाता हैं।

    अयंक और अन्वित तो आदर्श जी के बिगड़े हुए मुंह को देख मुंह दबाये हंस रहे थे ।

    हंसी तो दादा और दादी को भी आ रही थी लेकिन अपने बेटे के मुंह पर नहीं हंस सकते थे ‌।

    नमिता जी , आदर्श जी का हाथ पकड़ते हुए , वो बस आपको चिढ़ा कर गया हैं । इसमें इतनी बड़ी बात तो नहीं हैं ।

    जिस पर आदर्श जी गहरी सांस लेकर सिर हिला देते हैं ।

    श्रुति जी तपाक से , जीजी , हम सब भी मनाली चले । मुझे नताशा को देखना हैं । हम लोग एक बार भी उससे नहीं मिले ।

    जिस पर दादी कड़क आवाज में , अभी घर के फैसले हम लेते हैं बहूं तो तुम अभी से सास बनने की प्रेक्टिस मत करो । वो क्या हैं ना नताशा अभी तक आयी नहीं हैं तो अपने अरमानों पर काबू रखो ।

    वैसे तो श्रुति जी चंचल स्वभाव की और हर किसी से भीड़ने के लिए तैयार रहती थी , ऐसा मान‌ सकते हैं कि वो‌ किसी से नहीं डरती थी लेकिन अपनी सास ( सुमित्रा जी ) के सामने वो हमेशा ही भीगी बिल्ली बन जाती थी ।

    इसी कारण दादी ( सुमित्रा ) जी उसे हमेशा डराती रहती थी और यह उनका फेवरेट काम था ।

    अब थोड़ा दिल्ली के हाल‌पर‌भी नजर डाल लेते हैं ।

    दिल्ली

    दिल्ली में आज‌ की सुबह अलग सी थी ।‌

    विजेन्द्र जी , अभिमान और नताशा आड़े तिरछे सो रहे थे और उन तीनों पर ही कंबल पड़े थे । सुबह का सुरज चारों तरफ अपनी लालिमा बिखेर चुका था लेकिन वो तीनों ही बेसुध से पड़े थे ।

    महिमा जी हाथों में चाय की ट्रे लिये ऊपर ही आ गयी थी ।

    उनकी गुस्से भरी एक आवाज पर वो सभी कुनमुनाते हुए बैठ गये ।

    विजेन्द्र जी घबराते हुए , क्या हुआ साहिबा जी , आप इतनी तेज क्यों चिल्लायी ।

    अभिमान ने भी उनके साथ गर्दन हिलाते हुए , मां इतनी तेज चिल्लाना आपके लिए सही नहीं हैं लेकिन नताशा वो तो महिमा जी के चेहरे पर गुस्से की लाली देख साइड में रखे जग को उठाये वही छत के दूसरे हिस्से में जाकर मुंह धोने लगती हैं ।जिस पानी भरे जग को महिमा जी आंधे घंटे पहले उन्हें जगाकर , मुंह धोने के लिए रखकर गयी थी लेकिन वो तीनों तो वापिस सो चुके थे ।

    महिमा जी उन दोनों  को अभी भी कुनमुनाते देख गुस्से से चाय की ट्रे को साइड में  रखी ग्लास टेबल पर पटकते हुए , आप लोग आराम से चाय पीकर बारह बजे तक नीचे आ जाना ।

    बारह बजे का नाम सुनकर तो विजेन्द्र जी और अभिमान की नींद बिल्कुल उड़ चुकी थी ।

    वो एक दुसरे को इस तरह देखते कि क्या सच में बारह बज गये ?

    महिमा जी नीचे जा चुकी थी और नताशा उन दोनों को इस तरह हैरान देख हंसते हुए , कमिश्नर साहब , आंटी अच्छी तरह जानती हैं कि आपको किस तरह उठाना हैं । वैसे आप टेंशन मत लिजिए अभी सिर्फ साढ़े आठ बजे हैं .... लेकिन अब भी उन दोनों की बनीं हुई शक्ल देख नताशा जोर से हंसने लगी थी जिस पर उसके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल साफ दिख रहे थे ..... विजेन्द्र जी और अभिमान तो उसकी हंसी में ही खो गये ।

    लेकिन विजेन्द्र जी का दिमाग तो कहीं और भी खो गया । उन्हें पूरानी यादें सताने लगी ।

    इधर मनाली  🥀

    शर्मा निवास में आज एक अलग ही हल्ला मचा था । सुजाता जी के साथ अन्दर किचन में स्वेता और रिमिशा  खाना बनाने में हेल्प कर रही थी ।  सनम उनका विडियो रिकॉर्ड कर रही थी ।

    रुचिता और स्वीटी ऊपर अपने एक महिने के लिए बने नये आशियाने की साफ सफाई में लगी थी जो अब ऑलमोस्ट कम्पलीट ही होने वाली थी ।

    रुचिता सोफे पर पसरते हुए ,अब बस मुझे अच्छा सा खाना मिल जाये ।

    स्वीटी दूसरे सोफे को झाड़ते हुए , उसके लिए पहले सफाई करनी होगी ।

    रुचिता शर्मा निवास के साइड में बने उस दो मंजिला घर को देखते हुए , यह घर कितना खूबसूरत और अलग हैं ना ...स्वीटी ।

    स्वीटी भी सामने देखते हुए , अलग तो हैं लेकिन लगता हैं यहां कोई नहीं रहता हैं ‌। कल से कोई दिखा ही नहीं ....

    रुचिता भी गर्दन हिलाते‌ हुए ... हम्म बात तो एकदम सही हैं ।

    जारी हैं .......

  • 7. अनकही ख्वाहिश - Chapter 7 कर्ण मनाली के लिए निकल गया

    Words: 1225

    Estimated Reading Time: 8 min

    करण एयरपोर्ट के अंदर बैठा खुद में ही बड़बड़ा रहा था तभी सरस उसके बगल में आकर बैठ गया ।

    और उसे इस तरह खुद से बडबडाते देखा हैरानी से , तुझे क्या हो गया ?

    करण को जब एहसास होता है कि सरस उसके बगल में बैठा है तो वह खुद को संभालते हुए , नहीं कुछ भी तो नहीं ।

    सरस जिसे करण का हडबडाता दिख गया था । वह करण की तरफ देखते हुए , कुछ तो बात जरूर है वरना हमेशा शांत रहने वाला मेरा यार आज इस कदर बेचैन ना होता ।

    उसके इतना जोर देने पर करण समझ जाता है कि वह उससे अब कुछ भी , ज्यादा देर तक नहीं छुपा सकता है

    इसलिए वह शांति से गहरी सांस लेकर , तुम तो जानते हो ना हम मनाली क्यों जा रहे हो ? पता नहीं यह कैसी फीलिंग है बट मैं अंदर से बहुत बेचैन फील कर रहा हूं .... कुछ भी समझ ही नहीं आ रहा दिमाग कह रहा है कि इट्स नॉट ए बिग डील .... पर दिल.... इसे कैसे समझाऊं ? मेरे लिए हमेशा से फैमिली सबसे ऊपर रही । मैंने आज तक किसी लड़की से बात ही नहीं की तो यह सोचकर दिल अशांत है कि मैं कैसे बात करूंगा... क्या वह मेरे साथ कंफर्टेबल फील कर पाएगी.... मैं खुद कंफर्टेबल फील नहीं कर पा रहा हूं यह बात सोच कर.... कि मैं शादी के लिए किसी लड़की से मिलने जा रहा हूं....

    सरस जो इतनी देर से उसकी बातें सुन रहा था अब खुद को शांत नहीं रख पाया.... वह कुछ सोचते हुए.. क्या तुम यह शादी नहीं करना चाहते हो ।

    जिस पर करण .... मैंने ऐसा तो नहीं कहा.....

    सरस झट से.... मतलब तुम शादी के लिए तैयार हो....

    जिस पर करण हडबडा़ते हुए... मैंने.... फिर खुद को संभाल कर... मतलब लड़की....सबको पसंद हैं .... एंड अभी जस्ट एयरपोर्ट के बाहर उन सब का उनके लिए प्यार देखकर लग रहा था कि वह उनकी बेटी और मैं उनका दामाद हूं ... और फिर जब सभी लोग उन्हें इतना पसंद करते हैं और उन्हें लगता है कि वह हमारी फैमिली के लिए परफेक्ट तो मेरे पास न करने का सवाल ही नहीं उठता है।

    सरस गंभीरता से , मतलब तुम फैमिली के लिए शादी करने को रेडी हुए हो । वरना तुम्हारी मर्जी शामिल नहीं है ।

    उसकी इस तरह कहने पर करण झुंझलाते हुए , तुम मेरी हर बात का मतलब गलत ही क्यों निकाल रहे हो.... मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि मेरी मर्जी शामिल नहीं है .... मतलब मुझे लगता है कि जो लड़की मेरी फैमिली को इतनी पसंद है तो .... कुछ तो बात होगी उसमें वरना दादी को तो तुम जानते हो ना ..... उन्हें कोई भी चीज हो या इंसान आसानी से पसंद नहीं आते हैं ।

    सरस फिर, फिर इतना सोच क्यों रहे हो ? जब तुम्हारी मर्जी शामिल है और तुम खुद मिलकर बात करना चाहते हो तो फील कंफरटेबल और फिर मैं तो हूं ही ना तुम्हारे साथ.... तुम बस रिलैक्स रहो जो होना होगा वह हो ही जाएगा ...... वैसे तुम इतनी देर लड़की ...लड़की ....कर रहे हो .... मेरी होने वाली भाभी जी का कोई तो नाम होगा ।

    जिस पर करण के मुंह से झट से  निकला , नताशा जी....

    सरस हंसते हुए , अभी से इतनी इज्जत ... सही जा रहे हो भाई.....

    जिस पर करण कुछ नहीं कहता ... क्योंकि उसका दिमाग तो अलग ही परेशानी में उलझा था ।

    कुछ देर मैं फ्लाइट टेक ऑफ की अनाउंसमेंट होने लगी तो वह दोनों लगेज उठाएं मनाली के सफर के लिए निकल पड़े ।

    ********

    दिल्लीमें🥀

    अभिमान और विजेंद्र जी शांति से डाइनिंग टेबल पर बैठे लंच कर रहे थे । नताशा भी उनके सामने बैठी अपना लंच कर रही थी ।

    और महिमा जी नाश्ता करते हुए नताशा से बातें कर रही थी और साथ ही उनका ,  अभिमान और विजेंद्र जी को  घूरना भी जारी था ।

    महिमा जी नताशा से , तो तुम कल मनाली के लिए निकल रही हो ।

    विजेंद्र जी बीच में ही तपाक से , आप भी ना साहिबा जी एक ही सवाल कितनी बार पूछेगी ।

    जिस पर महिमा जी उन्हें गुस्से से घूर कर देखती है तो विजेन्द्र जी की बोलती बंद हो जाती हैं और उनकी शक्ल देखकर अभिमान की हंसी छूट जाती है ।

    जिस पर विजेंद्र जी अभिमान के कान में , हंस लो बेटा हंस लो अपने बाप पर .... पर यह मत भूलना कि मेरा भी वक्त आएगा .... अगर समायरा को तुम्हारे खिलाफ भड़काया नहीं तो मेरा नाम भी विजेंद्र राठौर नहीं।

    उनकी बात सुनकर अभिमान को ठसका लगा और उसका खाना गले में अटक गया ।

    जिस पर विजेंद्र जी अभियान को पानी पिलाते हुए उसकी पीठ सहलाने लगते हैं और कहते हैं ....बेटा अगर बाप से पंगा ले तो ऐसा ही होता है ।

    नताशा तो सब समझ रही थी और मन ही मन हंस भी रही थी लेकिन महिमा जी का पूरा ध्यान तो नताशा पर था इसलिए उन्हें बाप बेटे की बातचीत का पता ही नहीं चला ।

    कुछ देर बाद नताशा खड़े होते हुए , मेरा हो गया आंटी । मुझे अभी कुछ काम हैं । मैं आपसे शाम को मिलती हूं ।

    अभिमान और विजेंद्र जी भी खड़े होते हुए हमारा भी हो गया हम भी अपने काम के लिए निकलते हैं ।

    जिस पर महिमा जी गर्दनन् हां में हिला देती है । वैसे भी नताशा के मनाली जाने की बात सुनकर ही उनका मन उदास हो गया था और वह कुछ देर अकेले रहना चाहती थी इसलिए उन्होंने भी कुछ नहीं कहा ।

    अभियान अपने हॉस्पिटल के लिए निकल चुका था और नताशा कमिश्नर साहब की गाड़ी में ही बैठकर उनके ऑफिस के लिए निकल चुकी थी । जहां उसे कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट सबमिट करने थे ।

    मनाली 🥀

    सभी लड़कियां डाइनिंग टेबल पर बैठी थी और सुजाता जी उन्हें खाना परोस रही थी ।

    कुछ देर में ही जिद करके स्वेता ने उन्हें भी अपने साथ ही बिठा लिया ।

    और अब सब लोग हंसते हुए लंच कर रहे थे ।

    रुचिता अपने पूरे मुंह को खाने से भर ते हुए , आप बहुत टेस्टी खाना बनाती हो आंटी । मेरा तो पेट भर गया लेकिन मन अब तक भी नहीं भरा ।

    जिस पर रिमिशा चिढ़ते हुए , तुम्हें खाने के अलावा भी कुछ सुझता है ।

    जिस पर रुचिता हंसते हुए , सुझता है ना .... सोना ...

    उसकी इस बात पर सानवी और सुजाता जी हंस पड़ती है ।

    सनम खाते हुए  इन खुबसूरत पलों को अपने फोन के कैमरे में रिकार्ड कर रही थी ।

    स्वीटी , किसी तरह रुचिता और रिमिशा को शांत कर रही थी और स्वेता उन सब को देखकर मुस्करा रही थी ।

    सच में स्वेता के दोस्त , उसकी जान थे ।

    हमेशा शांत रहने वाला घर आज उन सभी की आवाजों से चहक रहा था ।

    सुजाता जी तो बस अपनी आंखों में नमी रोक रही थी क्योंकि अपने घर में इस तरह की चहल-पहल तो उन्होंने कभी ख्वाबों में भी नहीं सोची थी ।

    जारी हैं .....

    करण मनाली के लिए निकल चुका है ? 

    कैसी होगी करण स्वेता और नताशा की मुलाकात .... कैसा होगा इनका आगे का सफर ‌? किसके इश्क को मिलेगी मंजिल ? जानने के लिए पढ़ते रहिए अनकही ख्वाहिश

    और अपनी प्यारी प्यारी समीक्षाएं देना ना भूलें । 🌺🌺🌺🌺🌺

  • 8. अनकही ख्वाहिश - Chapter 8 नताशा का मिशन

    Words: 1360

    Estimated Reading Time: 9 min

    आगे 🥀🥀🥀

    नताशा ,  कमीश्नर साहब के सामने बैठी थी और कुछ कागजों को बहुत बारीकी से पढ़ रही थी ।

    कमीश्नर साहब उसके सामने बैठे लगातार उसे ही देख रहे थे ।

    तुम्हें क्या लगता हैं केएस को बेनकाब करना इतना आसान होगा ।

    आसान तो कोई काम नहीं होता कमीश्नर साहब , उसे आसान बनाना पड़ता हैं ।

    हम्म बात तो सही हैं तुम्हारी ... फिर एसीपी साहिबा , शुरुआत कहां से कर रही हैं ।

    शुरुआत से‌ पहले मनाली को‌ समझना पड़ेगा । कुछ दिन शांत रहने के बाद ही कोई कदम उठाना होगा । वैसे आप अपने उन दो होनहार ऑफिसर्स से कब मिलवाने वाले हैं । आपने कहां था कि वो लोग हैंकिग में मेरी मदद कर सकते हैं ।

    कमीश्नर साहब , वो दोनों तुमसे मनाली में ही मिलेंगे कुछ दिन बाद ।

    नताशा , अच्छा , वैसे अभी के लिए मुझे अपने आॅफिस जाना होगा । नये एसीपी को सारा काम हैंड‌ओवर करना हैं । फिर उसके बाद घर से सारे कपड़ों और जरुरी सामानों की पैकिंग करनी हैं , उसके बाद आपसे और आंटी से मिलुगी ।

    कमीश्नर साहब उदासी से , पता नहीं अब कब मुलाकात होगी । दो महिने बाद में ‌भी रिटायर हो जाउंगा ।

    नताशा ,उनकी उदासी भांपते हुए , चिंता मत कीजिए जल्द ही आपसे मुलाकात होगी ....... और मैं आपको कभी नहीं भूल सकती हूं । आप मेरी लाइफ के कुछ चुनिंदा लोगों में से एक हैं ‌।

    इतना कहकर वह अपने हाथ‌ में पकड़े डाक्यूमेंट्स पर एक सरसरी नजर डालते हुए कमीश्नर साहब को सौंप देती हैं और फिर खड़े होते हुए , अच्छा तो अब मुझे निकलना होगा ।

    इस पर कमीश्नर साहब सहमती में सिर हिला देते हैं । नताशा के केबिन से निकलने के बाद कमीश्नर साहब अपनी दांयी आंख से निकली आंसु की एक बूंद को सांप करते हुए मन में , पता नहीं तुम्हारी जिंदगी तुम्हें कहां ले जायेगी । बस भगवान से प्रार्थना हैं कि तुम्हें एक सच्चा हमसफ़र मिले जो तुम्हें दुनिया की हर तकलीफ से दूर रखें । अब तक इतना कुछ झेल चुकी हो कि आगे अब कोई दर्द तुम्हारे हिस्से ना आये ।

    मनाली 🥀 🥀

    स्वेता और उसके सभी दोस्त , सानवी के साथ सोलंग वैली घूमने आये थे । रुचिता के पास एक एक्सट्रा बैग था जिसमें उसने खाने के लिए चिप्स के पैकिट के साथ बहुत सी खाने की चीजें रख रखी थी और जब वे लोग वहां पहुंचे तो वहां कि खुबसूरती देख उन सब की आंखें फटी ही रह गयी । चारों तरफ धूंध फैली थी । सर्दियों का मौसम जाने को था लेकिन फिर भी इतनी ठंड थी कि उन सब के गाल ठंड से लाल पड़ गये थे । वह लोग हाथों को मसलते हुए सामने की तरफ फैले उन मैदानों को देख रहे थे जो बर्फ से ढके सबका मन मोह रहे थे ।  सनम तो चारों तरफ घूमते हुए सबकी और उस सुन्दर नजारे की फोटोज क्लिक करने में लगी थी । रिमिशा , स्वेता के कन्धे पर सिर रखे सब कुछ देख रही थी तो सानवी , वही पास ही खड़े एक आदमी से बात कर रही थी । स्वीटी और रुचिता हंसते हुए बस चिप्स के लिए लड़ रही थी ।

    ( मनाली की फेमस जगह सोलंग वैली की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना आसान नहीं है। यह जगह बर्फ से ढकी पहाड़ियों, हरे-भरे पेड़ों, और खुले नीले आसमान के बीच बसती है। सोलंग वैली में ठंडी बयार और हिमालय की शांत सुंदरता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

    यहां हर मौसम में अलग-अलग नजारे देखने को मिलते हैं—सर्दियों में पूरी घाटी बर्फ से सफेद चादर ओढ़ लेती है, जबकि गर्मियों में यहां के हरे-भरे मैदान पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

    इस घाटी में आप पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग और ज़ॉर्बिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का भी आनंद ले सकते हैं। ब्यास नदी की कल-कल करती आवाज़ और सूरज की सुनहरी किरणें सोलंग वैली की प्राकृतिक खूबसूरती को और निखार देती हैं। यह जगह किसी पोस्टकार्ड के दृश्य जैसी लगती है, जो आपको अपनी दुनिया की सारी चिंताओं से दूर ले जाती है। )

    ........

    कर्ण और सरस मनाली एयरपोर्ट पर खड़े थे । सरस , अब आगे कैसे जाना हैं और रहने का क्या प्लान हैं ?

    कर्ण , डैड ने कहां हैं कि यहां के ब्रांच मैनेजर हमें पिक‌अप कर लेंगे और हम दोनों अपने फ्लैट में रहने वाले हैं ।

    सरस , और वो फ्लैट कहां पर हैं ।

    कर्ण , जहां नताशा जी रहती हैं । उसी काॅलोनी में उनके घर के सामने वाला घर हैं ।

    सरस सारी बातें समझते हुए गर्दन हिलाकर , मतलब अंकल ने सारा इंतजाम कर रखा हैं । मुझे लगता हैं कि वो जल्द ही तुम्हें , घोड़ी चढ़ाकर ही दम लेंगे ।

    कर्ण , लगता तो वही हैं ।

    इतना कहकर वह लगेज उठाये बाहर की तरफ चलने लगता हैं ।

    सरस , अपना छोटा सा सुट्केस लेकर बाहर की तरफ उसके साथ चलते हुए , उसके लगेज को देखकर , वैसे तुम्हारा हमेशा मनाली बसने का प्लान तो नहीं हैं ।

    उसकी बात पर कर्ण , उसे‌ सवालिया निगाहों से देखने लगता हैं ।

    जिस पर सरस मुंह बनाते हुए हंसते हुए , वो तुम इतना लगेज लेकर आये हो ना तो मुझे लगा कि .......

    जिस पर कर्ण भी गुस्से से मुंह बनाते हुए , यह सब नताशा जी को देने के लिए हैं । माॅम , डैड , दादू , दादी , चाचा , चाची और अयंक , अन्वित ने भेजे हैं ।

    जिस पर सरस हंसते हुए , तुम सही थे शादी से पहले ही तुम , दामाद और वह बेटी बन चुकी हैं । सही हैं भाई , शादी के बाद तुम्हारा पता नहीं क्या होने वाला है ।

    कर्ण , इस पर गुस्से से मुंह फैलते हुए , अब तुम भी मेरा मजाक बना रहे हो ।

    सरस , उसको गुस्से में देखकर खुदकी हंसी कंट्रोल करते हुए , अच्छा साॅरी वैसे भाभी जी करती क्या हैं ।

    कर्ण , मुझे नहीं पता हैं और मैंने माॅम , डैड से पूछा भी नहीं ।

    ............

    इधर नताशा , अपने आॅफिस के अन्दर बैठी थी ।

    एक इंस्पेक्टर अंदर आते हुए , मैम वो नये एसीपी बस थोड़ी  देर में आ रहे हैं ‌।

    इस पर नताशा , आप बाहर चलिए शिंदे जी और उनके स्वागत की तैयारी करवाईए । मैं आ रही हूं ।

    कुछ देर बाद नताशा बाहर आती है और सारी तैयारीयों को देखने लगती हैं ।

    जिस पर शिंदे जी , सब कुछ कैसा हैं मैम ?

    नताशा , सब कुछ परफैक्ट हैं शिंदे जी । आप लोगों ने बहुत अच्छा काम किया हैं ।

    शिंदे जी के साथ सभी आॅफिसर्स , थैंक्यू मैम

    इसके कुछ पल बाद बहुत सी गाडियां वहां पर आकर रुकती हैं । एक गाड़ी से  , अठाईस के लगभग का नोजवान बाहर निकलते हुए पुलिस स्टेशन पर नजर मारता हैं । जहां नताशा के साथ ही सभी आफिसर्स हाथों में माला लिए खड़े थे ।

    नताशा उनके पास पहुंची और औपचारिकता के साथ बोली, स्वागत है, एसीपी साहब। उम्मीद है, सफर आरामदायक रहा होगा।

    राजीव ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, बहुत अच्छा सफर था। और यहां का माहौल देखकर अच्छा लग रहा है।

    इसके बाद नताशा ने उन्हें केबिन में बुलाया और स्टेशन के कामकाज, पेंडिंग केस, और यहां की चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। राजीव हर बात ध्यान से सुन रहे थे और बीच-बीच में सवाल पूछते जा रहे थे।

    काम खत्म होने के बाद नताशा ने कहा, "यहां काम करना आसान नहीं है, लेकिन मुझे यकीन है कि आप इसे अच्छे से संभाल लेंगे। मेरा मनाली ट्रांसफर हो गया है, लेकिन अगर कभी मदद की जरूरत हो, तो मुझे कॉल कर सकते हैं।"

    राजीव ने सिर हिलाते हुए कहा, "आपका काम और आपकी मेहनत काफी सराहनीय है। मैं कोशिश करूंगा कि इस स्तर को बनाए रखूं।"

    नताशा ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "अब मुझे निकलना होगा। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।"

    जैसे ही नताशा बाहर निकली, पूरा स्टाफ उनके सम्मान में खड़ा हो गया। उनकी आंखों में हल्की नमी थी, लेकिन चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। वह मनाली में अपनी नई शुरुआत के लिए पूरी तरह तैयार थीं।

    जारी हैं.........

  • 9. अनकही ख्वाहिश - Chapter 9 नताशा , कर्ण और स्वेता एक साथ

    Words: 1645

    Estimated Reading Time: 10 min

    आगे ********

    करण अपना सामान शिफ्ट कर चुका था और सरस भी उसके साथ ही रहने वाला था लेकिन उनकी मुलाकात सुजाता जी से नहीं हुई थी क्योंकि वो सामान शिफ्ट करने के तुरंत बाद सरस के साथ आॅफिस के लिए निकल चुका था ।

    इधर सुजाता जी को मैसेज तो मिला था कर्ण के आने का लेकिन अपने घर में होती चहल पहल और नताशा की टेंशन में वो वह उसके आने की बात भूल चुकी थी ।

    आज का दिन मनाली के लिए खास होने वाला था क्योंकि आज नताशा बस यहां  पहुंचने ही वाली थी लेकिन वह एक नाॅर्मल सिविलियन बनके आयी थी । अपनी कार में बैठी नताशा‌ की आंखों में अब भी आंसु थे । महिमा जी और विजेन्द्र जी को छोड़कर आना उसे अन्दर तक दुःखी कर गया था लेकिन अब इस सफर पर उसे अकेले ही खुद को संभालना था ।

    कर्ण और सरस सारी रात आॅफिस में ही थे और अब अपने नये बसेरे की तरफ लौट रहे थे और इधर सानवी आज अपने आॅफिस गयी थी इसलिए स्नेहा और उसकी टीम कैब से ही मनाली की कुछ फेमस जगहो पर घूमने वाली थी ।

    मनाली की सड़कों पर आज कुछ ज्यादा ही शांति थी और सभी तरफ ट्रेफिक लगा हुआ था क्योंकि पिछले मुख्यमंत्री  कमलनाथ शिरोमल इधर से गुजरने वाला था ।

    मनाली की अभी हल्की धूप में ठंडी हवा को‌ महसूस करते हुए नताशा की आंखें हल्की सर्द थी । वह खामोशी से गाड़ी बंद किये ट्रैफिक हटने का वेट कर रही थी लेकिन अब आधा घंटा हो चुका था ।

    इधर सरस और कर्ण दोनों ही झूंझला चुके थे ।

    स्नेहा भी परेशानी से‌, " ऐसा कौन आने वाला हैं जो यह ट्रैफिक जाम लगा हैं । लोगों ने सड़क को अपनी जागीर समझ कर रखा हैं । "

    स्नेहा का चेहरा इस वक्त गुस्से से लाल हो रखा था और उसकी गुस्से भरी निगाहों को देख फिल्हाल के रुचि , सनम और रिमिशा शांति से मुंह पर उंगली रखे बैठी थी ।

    इधर कर्ण और सरस भी उसी ट्रेफिक सिग्नल पर अपनी कार में बैठे थे तो ट्रैफिक जाम कुछ इस तरह का द्रश्य था कि आमने सामने की लाइन नताशा और कर्ण की कार खड़ी थी और कर्ण के बगल में ही स्नेहा की कैब खड़ी थी लेकिन कर्ण की कार के शीशे ब्लैक होने के कारण वो आपस में एक दुसरे को नहीं देख सकते थे ।

    खैर कुछ देर मैं ही चारों तरफ एक लम्बा जाम लग चुका था और हर तरफ से सिर्फ हाॅर्न की ही आवाज आ रही थी । कुछ देर में ही वहां एक एम्बुलेंस के हाॅर्न की आवाज सुनाई दी । उसके अंदर शायद कोई प्रेग्नेंट लेडी थी और उसका हसबैंड ट्रैफिक पुलिस वालों से  रिक्वेस्ट कर रहा था कि वो एम्बुलेंस को निकलने दे लेकिन शायद ट्रैफिक पुलिस वाले उसकी बात सुनने को  रेडी नहीं थे । जिससे एक और बखेड़ा खड़ा हो चुका था ।

    हर तरफ का शोर लगातार नताशा के गुस्से को हवा दे रहा था । वो खुद से ही बड़बड़ाते हुए , " पूरा सिस्टम खराब कर रखा हैं । सच में पब्लिक को भूल चुके हैं ये लोग पाॅलिटाशियन्स के आगे । अब मुझे ही कुछ करना होगा । " इसके बाद वह गुस्से से बाहर निकली और ट्रैफिक पुलिस वालों को तरफ बढ़ गयी जो सडक के बीच चौराहे पर खड़े थे और इधर कर्ण और स्नेहा भी गुस्से से बाहर निकल गये थे और उस तरह बढ़ गये ।

    वो निकले तब तक नताशा उस ट्रैफिक पुलिस वालों के सामने खड़ी थी जहां पर वह आदमी उनके सामने गिड़गिड़ा कर बोल रहा था , " सर प्लीज , मेरी वाइफ को बहुत लेबर पेन हो रहा हैं और उसका हाॅस्पीटल पहुंचना बहुत जरुरी हैं । प्लीज सर आप एम्बुलेंस को बाहर निकलने दीजिए वरना मेरी वाइफ को कुछ भी हो सकता हैं । "

    जिस पर ट्रैफिक पुलिस वाला , " देखो मिस्टर , हमारे पूर्व चीफ मिनिस्टर निकलने वाले हैं और उनकी सिक्योरिटी बहुत जरूरी हैं और इसके लिए हमें यह ट्रैफिक जाम लगवाना पड़ा हैं और इतनी सी देर में तुम्हारी वाइफ मर तो नहीं जायेगी और ज्यादा रोना धोना मत करो हमें हमारा काम करने दो ।"

    ट्रैफिक पुलिस वाले की बातें सुनकर उस आदमी की आंखों में आंसु आ चुके थे लेकिन नताशा की गुस्से से मुठ्ठीया कस चुकी थी ।

    नताशा गुस्से से ट्रैफिक पुलिस वाले की तरफ बढ़ी और सीधे उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली, "काम? तुम इसे अपना काम कह रहे हो? लोगों की जान से ज्यादा तुम्हारे लिए एक पॉलिटिशियन की सिक्योरिटी जरूरी है? तुम्हें नहीं लगता तुम कुछ ज्यादा ही एरोगेंट नहीं बन रहे हो । "

    ट्रैफिक पुलिस वाला पहले तो उसके तेवर देखकर थोड़ा चौंका, लेकिन फिर अकड़कर बोला, "देखिए मैडम, हमें ऑर्डर मिला है कि रास्ता क्लियर नहीं करना है जब तक पूर्व मुख्यमंत्री का काफिला न निकल जाए। आप ज्यादा समझाने की कोशिश मत करिए और ज्यादा अकड़कर बात करने की जरुरत नहीं हैं । आप कोई मेरी सीनियर नहीं जो आपके आॅर्डर फाॅलो करुं । "

    नताशा एक कदम और आगे बढ़ी और ठंडे स्वर में बोली, "और अगर मैं ज़बरदस्ती एम्बुलेंस को निकलवाने की कोशिश करूं तो? "

    पुलिस वाले ने उसे सिर से पैर तक देखा और हंसते हुए बोला, "देखिए, ये कोई मूवी सीन नहीं चल रहा और आप कोई हिरोइन नहीं हो । जाइए, अपनी कार में बैठिए और शांत रहिए । क्यों किसी और के लिए अपना खून जला रही हो । "

    लेकिन नताशा इतनी आसानी से रुकने वालों में से नहीं थी।

    कर्ण और स्नेहा भी कुछ दूर वहीं खड़े थे और यह सारा तमाशा देख रहे थे दोनों के चेहरे गुस्से से तमतमा रहे थे।

    नताशा कुछ करने से पहले पीछे मुड़ी तो उसे कर्ण कुछ दूरी पर ही खड़ा दिखा । कर्ण को देख नताशा को हल्का अजीब सा महसूस हुआ, जैसे वह उसे कहीं देख चुकी हो, लेकिन अभी इस बारे में सोचने का समय नहीं था।

    उसने एक पल की भी देरी किए बिना झटके से पुलिस वाले की कॉलर पकड़ ली और गुस्से से बोली, "सिक्योरिटी का मतलब ये नहीं होता कि किसी मासूम की जान दांव पर लगा दी जाए! अगर एक मिनट के अंदर एम्बुलेंस को रास्ता नहीं मिला, तो मैं खुद रास्ता साफ करवाऊंगी, चाहे इसके लिए तुम्हारे सामने ही तुम्हारी वर्दी उतरवानी पड़े! " फिर इसके बाद वह ट्रैफिक पुलिस वाले से धीरे-धीरे बोली , " सोशल मीडिया का नाम तो सुना ही होगा । अभी के अभी तुम सब का ऐसा विडियो पोस्ट करुंगी कि हाथ में रेजिग्नेशन लेटर लिये घर बैठे नजर आओगे इसलिए शांति से चुपचाप वो करो जो मैं कह रही हूं । "

    खैर नताशा चाहती तो अपनी आइडेंटिटी दिखाकर अभी के अभी सब कुछ साॅल्व कर सकती थी लेकिन वो ऐसा नहीं चाहती थी । अपनी आइडेंटिटी इस तरह पब्लिक करके अट्रेक्शन गेन करना उसे कभी पसंद नहीं था ।

    अब तक वहां भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी, लोग इस तमाशे को देखकर फुसफुसा रहे थे। स्नेहा भी तुरंत आगे  बढ़ गयी और नताशा के बगल में खड़े होकर , पुलिस वाले को घूरते हुए बोली, "अगर तुम्हारी फैमिली में कोई होता तो क्या तब भी तुम यही कहते कि 'इतनी सी देर में नहीं मरेगा'? तब भी तुम इसी तरह धौंस जमा रहे होते "

    कर्ण इन सब से दूर ही खड़ा था। लेकिन उसकी नजरें नताशा पर ही टिकी थी । वह उसका काॅम्फीडेंट , हाजिर जवाबी और पर्सनालिटी, बोलने का तरीका उसे कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया था । वह खुद से , " काश आप भी ऐसी ही हो "

    तभी सरस उसके बगल में खड़े होते हुए , " तुम अपनी पाॅवर का यूज कर सब कुछ साॅल्व कर सकते हो ।‌ क्या तुम ऐसा नहीं कर सकते हो ? "

    कर्ण ने गहरी सांस ली और बिना कुछ कहे अपने फोन पर किसी को कॉल लगाया। कुछ ही सेकंड में ट्रैफिक पुलिस का सीनियर अफसर वहां पहुंचा और जब उसने हालात देखे तो तुरंत अपने जवानों को इशारा किया, "एम्बुलेंस को जाने दो!"

    जैसे ही रास्ता खुला, एम्बुलेंस तेजी से हॉस्पिटल की तरफ निकल गई। उस महिला का पति लगातार नताशा और बाकी सभी को धन्यवाद कह रहा था, लेकिन नताशा की नजर अब भी पुलिस वालों पर थी, जो सर झुकाए खड़े थे।

    वह ठंडी आवाज में बोली, "याद रखना, वर्दी तुम्हें पावर देती है, लेकिन अगर तुम उसका गलत इस्तेमाल करोगे, तो ये जनता ही तुम्हें सड़क पर ला सकती है । अपनी इज्जत अपने हाथों में होती हैं और हमेशा याद रखो की तुम्हारा काम क्या हैं ? "

    कर्ण ने नताशा की बातों को गौर से सुना और हल्की मुस्कान के साथ मन ही मन सोचा, "ये लड़की इतनी अलग क्यों लग रही है? इतनी बैखोफ आंखें मैंने कभी नहीं देखी । कोई ऐसा जो बड़ी निडरता से ग़लत को ग़लत कहना जानता हैं । "

    इधर स्नेहा गुस्से में बड़बड़ा रही थी, "पता नहीं ये लोग पॉलिटिशियन्स को भगवान क्यों समझते हैं! आम लोगों की कोई वैल्यू ही नहीं!"

    नताशा ने एक गहरी सांस ली और अपनी कार की तरफ बढ़ने लगी लेकिन फिर रुककर स्नेहा की तरफ देख , " तुम्हारा नाम क्या हैं । " इसके साथ ही उसने अपना हाथ आगे बढाया था ।

    स्नेहा भी मुस्कराते हुए उससे हाथ मिला , " स्नेहा " और तुम ?

    नताशा ने भी अपने ही अंदाज में कहां , " नताशा "

    स्नेहा ने मुस्कराते हुए कहां , " तुम बहुत ब्रेव हो "

    नताशा मुस्कराते हुए , " और तुम भी "

    इसके बाद नताशा। अपने कार की तरफ बढ़ गयी और छोड़ गयी पीछे कर्ण को जो सिर्फ उसके बारे में सोच रहा था ।

    कार में बैठते हुए भी उसके अंदर  गुस्सा उबल रहा था पर  मनाली आने का असली मकसद वह भूल नहीं सकती थी, लेकिन इस तरह के सिस्टम को देखकर उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी।

    जारी हैं ........

  • 10. अनकही ख्वाहिश - Chapter 10 बचपन की फ्रेंडशिप

    Words: 1695

    Estimated Reading Time: 11 min

    आगे .....

    सरस और करण, दोनों ही सुजाता जी की आँखों में आई नमी को देख चुप हो गए। जो उन्हें अपनी , नमिता और नताशा कि मां की दोस्ती के बारे में बताते हुए आयी थी । माहौल में एक पल के लिए शांति छा गई।

    सरस ने माहौल को हल्का करने के लिए मजाकिया लहज़े में कहा, "आंटी, अब जब इतने सालों बाद फिर से ये रिश्ता जुड़ने वाला है, तो आप इतनी इमोशनल क्यों हो रही हैं? आपकी दोस्ती तो रिश्तेदारी में बदलने वाली हैं ना ..."

    सुजाता जी हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, "बस बेटा, कुछ रिश्ते वक्त के साथ फीके पड़ जाते हैं, लेकिन जब फिर से वही अपनापन महसूस होता है, तो दिल पुराने दिनों में चला जाता है।"

    इस वक्त वो दोनों सुजाता जी के पास बैठे थे क्योंकि सरस पहले अपनी भाभी से जो मिलना चाहता था । सानवी घर पर नहीं थी और सभी लड़किया ऊपर अपने कमरे में आराम कर रही थी । इसलिए नीचे सिर्फ सुजाता जी ही थी ।

    खैर सुजाता जी किचन की तरफ जाते हुए, मैं तुम्हारे लिए चाय , नाश्ता लाती हूं तब तक यही बैठो और कंफर्टेबल रहना यह भी तुम्हारा ही घर हैं ।

    इधर नताशा का दिमाग बहुत गर्म हो चुका था और इसलिए वह गुस्से से ड्राइविंग करते हुए उसी काॅलोनी में अपने घर के सामने कार रोकती हैं और कार अन्दर पार्क करते‌ हुए अन्दर अपने कमरे में चली जाती हैं जो दूसरी मंजिल पर बना हुआ था ।

    खैर अब देखना यह हैं कि कर्ण और नताशा की मुलाकात कैसे होती हैं । वैसे दिलचस्प होने वाली हैं ।

    इधर नताशा ने अगले दिन सुबह आने के बारे में बताया था इसलिए सुजाता जी और सानवी को अगले दिन का ही पता था ।

    वह रुम में जाकर जल्दी से शाॅवर लेने चली जाती हैं ।

    इधर सुजाता जी

    किचन से समोसे और चाय लेने चली जाती हैं और सरस , कर्ण से , " यार यह सब‌ क्या हो रहा हैं । हम यहां जिससे मिलने आये हैं वही गायब हैं । यहां  तो वह दिख ही नहीं रही । लगता हैं ऑफिस गयी होगी । वैसे तुम्हें पता‌ हैं कि मेरी होने वाली भाभी जी क्या काम करती हैं । "

    जिस पर करण गहरी सांस लेते हुए , " मुझे नहीं पता हैं क्योंकि किसी ने कुछ नहीं बताया । बस सिधे कह दिया कि जब मिलने ही जा रहे हो तो सब कुछ हमारी बहु से ही जान लेना । "

    सरस , " फिर तो तुमने फोटो भी नहीं देखी होगी "

    करण चिढ़ते हुए , " फोटो भी नहीं और क्या तबसे अपना भाभी पुराण लगा रखा हैं दोस्त की भी चिंता कर लें । "

    नताशा का रुम

    नताशा शावर लेकर बाथरोब में  बाहर आ चुकी थी और अब वो रिलेक्स भी फिल कर रही थी इसलिए ड्रायर से बाल सुखाते हुए वह खिड़की खोल देती हैं जहां अलग अलग फुलों की महक फैला रही थी ।

    नताशा के घर की ऊपर वाली मंजिल पर दो रुम और एक किचन था और छत का बाकी एरीया बस कांच से ढका था । उस खुले एरीया को भी ऊपर से उसने कांच की छत ही ढकवा रखा था और वहां लगे थे खुबसूरत फुल और नीचे फ्लोर एरीया पर उसने ग्रास कार्पेट बिछवा रखा था । खैर फुलों की खुशबू लेते‌ हुए वह गुनगुनाने लगती हैं ।

    इधर कर्ण और सरस की बातचित बढ़ती तब तक सुजाता जी बाहर आ जाती हैं और उनके सामने गर्मागर्म समोसे और चाय रख देती हैं ।

    सरस और कर्ण चाय के साथ समोसे खाने लगते हैं और सुजाता जी से बात भी करने लगते हैं ।

    सरस समोसे खाते हुए , " आंटी क्या‌ हम मेरी होने वाली भाभी से मिल सकते हैं । "

    जिस पर सुजाता जी , " मिल तो सकते हो लेकिन अभी नहीं कल‌ सुबह ....वो क्या हैं ना वो दिल्ली गयी हुई हैं काम के सिलसिले  में ..."

    सरस निराशा से ओके कहते‌ हुए , " वैसे आंटी आप समोसे बहुत अच्छे बनती हैं । "

    जिस पर सुजाता जी , " वैसे तुम्हारी होने वाली भाभी और भी अच्छा खाना बनती है । "

    फिर करण की तरफ देखते हुए , " करण बेटा तुम इतने चुप चुप क्यों हो । "

    जिस पर कर्ण मुस्कराते  हुए , " पता नहीं आंटी समझ ही नहीं आ रहा क्या‌ बोलु । "

    जिस पर सुजाता जी कुछ बोलती तब तक सरस , " आप इसे छोड़िए आंटी , यह हमेशा चुप ही रहता हैं। वैसे बड़ा शांत स्वभाव का हैं और गुस्सा तो इसे‌आता ही नहीं ।‌हमारा दुल्ह गाय हैं गाय ...."

    वो आगे कुछ बोलता तब तक कर्ण उसके कान में फुसफुसाते हुए , " अब ज्यादा नाटक किया ना तो यहां से निकलने के बाद गाय की तरह‌ सींग भी मार सकता हूं । "

    जिस पर अब सरस की बोलती बंद हो गयी और कुछ देर बातचित के बाद वो लोग बाहर आ गये । "

    इधर बाहर आने के‌ बाद  ,

    कर्ण , सरस से , " क्या बोल रहा था वहां ....."

    सरस अनजान  बनते‌ हुए , " क्या बोल रहा था कुछ भी नहीं ।

    जिस पर कर्ण , उसे अपनी घूरती आंखों से देखते हुए " सच में ...."

    सरस ने कर्ण की तरफ देखते हुए लंबी सांस भरी और सिर हिलाते हुए कहा, "भाई, तुझे देखकर तो लग रहा था जैसे तू इंटरव्यू देने आया हो, शादी तय करवाने नहीं!"

    कर्ण ने उसे घूरते हुए कहा, "अच्छा? और तू तो जैसे जज बनकर बैठा था, हाँ? इतना एक्साइटेड क्यों था? जैसे तुम्हारी खुद की शादी की बात चल रही हो । "

    सरस हंसते हुए बोला, "अबे, एक्साइटेड क्यों ना होऊं? मेरा दोस्त दूल्हा बनने जा रहा है! वैसे भी, घरवाले तुझे सीधे शादी के मंडप में बैठाने वाले हैं, मैंने सोचा थोड़ा बैकग्राउंड चेक कर लूं भाभी जी का!"

    कर्ण ने उसकी बात अनसुनी करते हुए गाड़ी की चाबी निकाली और बोला, "चल, ज्यादा ड्रामा मत कर, चुपचाप बैठ।"

    सरस ने कार की ओर बढ़ते हुए उसे फिर छेड़ा, "वैसे, तुझे कुछ आइडिया तो होगा ना कि भाभी कैसी हैं?"

    कर्ण ने आंखें घुमाते हुए कहा, "नहीं, मैंने ना फोटो देखी, ना कोई डिटेल्स पता। बस ये सुना है कि 'हमारी बहू से खुद ही जान लेना'।"

    सरस ने ड्रामाई अंदाज में माथे पर हाथ रखा, "ओह भाई! तेरा तो पूरा अरेंज मैरिज वाला पैकेज मिल रहा है! सस्पेंस, थ्रिल, और सरप्राइज—all in one!"

    कर्ण झुंझलाते हुए बोला, "अगर तूने और बकवास की ना, तो तेरा ये फ्री का कॉमेडी शो बंद कर दूंगा।"

    सरस मुस्कराते हुए कार में बैठ गया, "अरे बाबा, मैं तो बस तेरी मदद कर रहा था, तुझे शादी के लिए मेंटली प्रिपेयर कर रहा था।"

    कर्ण ने कार स्टार्टिंग की और ठंडी सांस लेते हुए कहा, "बस कर यार, ये शादी नहीं, कोई जंग लग रही है मुझे।"

    जिस पर सरस , " क्या हम हाॅटेल चल रहे हैं । "

    कर्ण , " और कोई आॅप्शन हैं । ".

    सरस परेशानी से , " पर तुझे बाहर के खाने से प्राॅब्लम हैं ना ..... अगर बिमार‌ पड़ गये तो ...."

    कर्ण , " कल तक काम चलाना पड़ेगा फिर आगे देखते हैं । "

    इतना कहकर वो निकलने वाले होते हैं कि कर्ण की नजर एक कार पर पड़ती हैं और वह उसे देखते हुए मन में , " पता नहीं क्यों पर ऐसा लग रहा हैं कि इस कार को‌ कही तो देखा हैं । "

    इसके बाद वो दोनों वहां से निकल चुके थे ।

    इधर नताशा अपने बाल ही सुखा रही थी । तब तक उसके पास किसी का काॅल आने लगता हैं ।

    जैसे ही उसका ध्यान भटका ....वह काॅल उठाते हुए खुद से ," डिएसपी सर , मुझे क्यों काॅल कर रहे हैं । "

    फिर काॅल उठाकर , " जय हिंद सर "

    जिस पर सामने से डिएसपी सर हंसते हुए , " जय हिंद आफिसर, कैसी हैं आप "

    जिस पर नताशा , " आई एम फाइन , बताइए सर क्या आदेश हैं । "

    डिएसपी सर ," यस ऑफिसर, काम बहुत जरुरी हैं और इसके लिए आपके अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं । कल सुबह बारह बजे तक ड्रग्स का एक कंटेनर , मनाली के रास्ते जम्मू ले जाया जायेगा । जिसकी डिल मनाली में ही हुई हैं । आपको किसी तरह वह कंटेनर जब्त करना हैं और उस कंटेनर की डिटेल्स हमें , कुछ खुफिया आफिसर से मिली हैं और एक बात हमारे डिपार्टमेंट के कुछ आफिसर उन लोगों से मिले हैं इसलिए किसी भी तरह या गलती से यह बात आपके डिपार्टमेंट को भी पता नहीं चलना चाहिए ।‌आगे आपको‌पता ही हैं उस कंटेनर का क्या करना हैं ......"

    जिस पर नताशा शातिर मुस्कान लिए , " यस सर ....."

    फोन रखते ही खुद से , " ओह ! नो , आंटी को तो बताना ही भूल गये कि हम मनाली पहुंच गये । "

    इसके बाद वह जल्दी से उन्हें काॅल मिला देती हैं लेकिन सामने से काॅल कट जाता हैं ।‌

    जिस पर नताशा फोन सिर पर मारते हुए , " लगता हैं नाराज़ हो गयी हैं । "

    तीन से चार बार काॅल करने पर सामने से काॅल उठाते हुए महिमा जी नाराजगी भरे स्वर में , " क्या‌ हैं क्यों परेशान कर रही हों । "

    जिस पर नताशा , " साॅरी आंटी , वो जल्दी में ‌बताना भूल गये । अच्छा माफ कर दीजिए । " इस वक्त उसकी आवाज शहद से भी मीठी लग रही थी और महिमा जी तो उसके बात करने के तरीके से ही पिघल गयी थी वो प्यार से , " अच्छा माफ किया‌ । वैसे तुमने‌ खाना का लिया । "

    जिस पर नताशा , " जी आंटी  बस खाने ही वाले हैं । "

    इन सब में शाम के छः बज गये थे वह महिमा जी से कुछ देर बात कर , अभिमान और विजेन्द्र जी को अपने‌ सही सलामत पहुंचने का मैसेज करती हैं । इसके‌बाद वह अपनी वर्दी पहनकर और पिस्टल और कैंप लेकर बाहर निकल गयी और जल्दी ही उसकी कार धूल उड़ाती हुई मनाली के उस रास्ते पर चल देती हैं जहां उसकी रात गुजरने वाली थी ।

    जारी हैं .......

  • 11. अनकही ख्वाहिश - Chapter 11

    Words: 1286

    Estimated Reading Time: 8 min

    नताशा वर्दी पहने , उस जगह पर थी जहां से कंटेनर गुजरने वाला था । इस वक्त‌, उसने चेहरे‌ पर‌ मास्क‌ लगा‌‌ रखा था ताकि कोई और उसे , पहचान ना पाये लेकिन वह हर किसी पर नजर रख पाये । ऐसे तो उसने थाने काॅल करके , कुछ पुलिसकर्मीयों की ड्यूटी वहां लगा दी थी लेकिन ‌फिर भी खुद कार में बैठकर भी नजर रख रही थी क्योंकि वह किसी पर विश्वास नहीं ‌कर सकती थी ।

    वह खुद से - मुझे नहीं लगता कि अब कोई कंटेनर आयेगा लेकिन अब क्या करुं .. कुछ समझ नहीं आ रहा हैं ।

    वह यह सोच ही रही थी कि उसके पास किसी का काॅल आया । वह काॅल उठाते हुए ‌- हां बोल छोटू , क्या खबर हैं ?

    छोटू , नताशा का खास खबरी था और अभी उसने नताशा को बताया कि डिएसपी सर तक फेक न्यूज पहुंचायी गयी थी ताकि पुलिस का ध्यान उस डिल से हट जाये जो मनाली के ही एक हाॅटेल में हो रही हैं ।‌

    छोटू ने नताशा को एड्रेस सेंड कर दिया था और साथ ही हिदायत भी दी कि वह वहां सिविल ड्रेस में ही जाये।

    उसकी बात सुनकर काॅल कट करते हुए , उसने कार में ही अपने कपड़े चेंज किये और निकल पड़ी , उस हाॅटेल की तरफ जिसका एड्रेस छोटू ने भेजा था ।

    इधर सानवी को छोड़कर सभी लड़किया कैब में बैठी थी । रिमिशा परेशानी से स्वेता से पूछ रही थी कि वो लोग रात में कैब में बैठकर कहां जा रहे हैं ।‌

    स्वेता - सुबह मुड़ खराब होने की वजह से हम लोग कही जा‌‌ नहीं पाये इसलिए हाॅटेल में खाना खाने जा रहे हैं ... गाइस तो अब सब शांत रहो ।

    .....🥀🥀

    कर्ण और सरस हाॅटेल के रेस्टोरेंट एरीया में बैठे थे । कैब से नीचे उतरते हुए , सनम - अब कहां जाना हैं ?

    जिस पर स्वेता ने अपने कपड़े सही करते हुए सभी को रेस्टोरेंट एरीया में चलने को कहां ।

    नताशा ने कार से नीचे उतरते हुए पहले अपने बाल खोले , रिवाल्वर पेंट के नीचे छूपाते हुए , उसने सिर पर कैप लगायी और फिर मुंह पर मास्क लगाते‌ हुए ब्लुटूथ पर - कहां ‌मिलेगा वह छोटू ..

    छोटू फोने के दूसरी तरफ से - मैम , वो अभी रेस्टोरेंट एरीया में हैं ।

    ओके ! इतना‌ कहकर नताशा उस तरह ही निकल गयी ।

    कुछ देर बाद ..🥀🥀

    कर्ण , नताशा , स्वेता तीनों ही एक ही हाॅटेल में थे और पास पास की चेयर्स पर बैठकर डिनर कर रहे थे ।

    तभी स्वेता की नजर कर्ण पर गयी और वह उसे देखती ही रह गयी । उसे अपने दिल की एक बीट मिस होती महसूस हुई और वो टेबल पर हाथ रखकर , उसपे टेक लगाये दिलकश मुस्कान के साथ उसे देखने लगी ।

    तभी सनम की नजर स्वेता पर गयी तो वह हैरानी से कुछ ‌पल‌ तो उसे देखती रही फिर उसकी नज़रों का पीछा करते‌ हुए , जब उसे , स्वेता की नजरें सामने बैठे एक लड़के पर महसूस हुई तो उसने सबको इशारे से स्वेता की नजरों का पीछा करने का इशारा किया ।‌

    जब उन्हें सारा मामला समझ आया तो रिमिशा शैतानी मुस्कराहट के साथ- बेटा ! यह नजरे जहां टिकी हैं ना सब समझ आ रहा हैं ।

    स्वेता , अपना फोन निकाल उसका फोटो खिंचते हुए - जब समझ आ रहा हैं तो घूर क्यों रही हो ?

    सनम , स्वेता को देखते हुए - वाॅट यू इम्परेस्ड फ्राॅम हीम

    जिस पर स्वेता, कर्ण को देखते हुए - सुपर इम्प्रेस्ड

    रुचिता - पर मुझे यह बंदा , तेरे टाइप का नहीं लगता हैं ।

    जिस पर स्वेता हंसते हुए - गाइस ! तुम लोग भी सिरियस हो गये ।‌ ही इज हैंडसम... तो बस जब तक मनाली हैं ... इसके साथ घूमना .. एंड यू नो , आई डोंट लाइक सिरियस रिलेशनशिप्स । आई एम नाॅट बिलिव्ड इन मैरिज एंड एक्स्ट्रा तो बस कुछ दिन फिर वो उसके रास्ते और मैं अपने रास्ते !

    रिमिशा - यार रुचिता ! तुम जानती तो हो कि मैडम को कभी‌ शादी नहीं करनी तो क्यों बहस कर रही हैं ।

    जिस पर रुचिता परेशानी से - बट मुझे यह प्लेबाॅय टाइप का नहीं सिरियस बंदा लगता हैं ।

    स्वेता हंसते हुए - कोई मर्द , एक लड़की पर नहीं टिक सकता हैं ‌?

    सनम गुस्से से - स्ट‌अप गाइस , अब इस बारे में बात नहीं होगी । फिर वो लोग शांति से डिनर करने लगे लेकिन स्वेता की निगाहें अभी तक भी कर्ण पर टिकी थी ।

    नताशा , अपनी टेबल पर बैठी थी और उसने इस वक्त अपने चेहरे को मेनयू से ढक रखा था और वह कान में ब्लूटूथ पर छोटू की आवाज सुन रही थी - मैम , ठीक आपके पीछे जो आदमी बैठा हैं ना उसके पास‌ ही सारी डिटेल्स हैं ।

    जिस पर नताशा की नजरे पीछे गयी तो वहां दो टेबल्स थी । जिसमें से दोनों पर ही सेम कलर के कपड़े पहने दो आदमी बैठे थे लेकिन उनमें से एक गुंडा और एक कर्ण था .... सरस के पास उसके पापा का काॅल आया था तो वह बस उनसे बात करने गया था और कर्ण खाना खा चुका था लेकिन मीठे का वेट कर रहा था क्योंकि उसे खाने के बाद मीठा खाने की आदत थी ।

    नताशा की नजर , उन दोनों पर ही गयी लेकिन नताशा कि तरफ उनकी पीठ होने के कारण , वो उनका चेहरा नहीं देख पायी लेकिन उसने ब्लूटूथ पर - ओके छोटू ! आगे का काम मैं संभाल लुंगी । तुम बस कनेक्ट रहना ताकि प्राॅब्लम होने पर मेरी मदद कर सको ।

    इतना‌कहकर , वो उठते हुए उस आदमी के पीछे चली‌ गयी , जो‌ इस वॉशरूम की तरफ गया था । वह लगातार उसका पीछा कर रही थी जैसे ही वह वॉशरूम में गया तो वह बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगी ।

    स्वेता परेशान थी क्योंकि वो जैसे ही मुड़ी।उसे सामने की टेबल पर कोई नहीं दिखा ।

    इधर नताशा ने उस आदमी को दबोचकर एक रुम में खिंच लिया और गुस्से से - माल कहां पर हैं ।‌

    लेकिन वो आदमी बड़ा ही डरा हुआ था । वह घबराते हुए - तुम कौन हो और इस तरह मुझे खिंचा क्यों ?

    उसके सामने हाथ में गन पकड़े एक लड़की खड़ी थी । जिसके चेहरे पर‌ ब्लैक मास्क लगा था और सिर पर कैप लेकिन उसकी आंखें - वो उसे जानी पहचानी सी लगी लेखा फिर डरते हुए - देखो , मैं चिल्ला दूंगा । आप इस तरह मेरे साथ बदतमीजी नहीं कर सकती हो ।

    नताशा गुस्से से - मेरे पास ज्यादा शानपट्टी नहीं करने का ..

    बस जितना पूछा हैं उतना‌ बता कि माल कहां ‌पर हैं वरना सारी की सारी गोलियां तेरे भेजे में घुसा दूंगी । नताशा की आंखें घूस्से से जल रही थी और साथ ही उसकी पकड़ गन‌ के ट्रिगर पर कस रही थी ।‌

    सामने खड़ा वह शख्स , जिसने आजतक गन नहीं देखी थी वह डर के कांप रहा था । इधर नताशा हैरानी‌- यह बंदा , जिस तरह कांप रहा‌ हैं लगता नहीं कि इतने बुरे काम करता होगा लेकिन....उसने गन , डाइरेक्ट उसके माथे पर‌टिका दी और गुस्से से - आखिरी बार पूछ रही हूं ‌कि माल कहां पर हैं ।‌

    वह शख्स डरते डरते - मुझे नहीं मालुम , एक बार बताया तो और आप कौनसे माल की बात कर रहे हैं ।‌

    नताशा की आंखें गुस्से से लाल हो गयी , वो आगे कुछ करती तब तक , छोटू - नो मैम , आपने गलत बंदे को पकड़ लिया

    वो ड्रग डिलर का आदमी तो यहां बाहर हैं ।

    उसके इतना कहते ही नताशा की आंखें अफसोस से मिंच गयी । उसने सामने देखा तो


    जारी हैं .........

  • 12. अनकही ख्वाहिश - Chapter 12

    Words: 68

    Estimated Reading Time: 1 min

    आगे ...........

    उसने सामने देखा तो - सामने वह लड़का आंखें भींचे खड़ा था और डर से कांप रहा था ।
    नताशा अकड़ से - साॅरी मि. , गलती से तुम्हें पकड़ लिया ।
    उसकी बात पर कर्ण मुंह खोले - वाॅट और इस तरह गुंडागर्दी करने का क्या मतलब हैं ?
    नताशा बीना कुछ कहें भागते हुए बाहर निकल गयी और कर्ण गहरी सांस लेते हुए -