ध्रुव सिंघानिया, राजस्थान के एक ज्वैलरी हाउस का मालिक है। शादी के दिन उसकी दुल्हन बदल जाती है। वह अपनी गर्लफ्रेंड ग्रीष्मा से शादी करने जा रहा था लेकिन शादी के दिन घुंघट के पीछे ग्रीष्मा के बजाय कोई और लड़की थी। ध्रुव की शादी अनजाने में ग्रीष्मा के ब... ध्रुव सिंघानिया, राजस्थान के एक ज्वैलरी हाउस का मालिक है। शादी के दिन उसकी दुल्हन बदल जाती है। वह अपनी गर्लफ्रेंड ग्रीष्मा से शादी करने जा रहा था लेकिन शादी के दिन घुंघट के पीछे ग्रीष्मा के बजाय कोई और लड़की थी। ध्रुव की शादी अनजाने में ग्रीष्मा के बजाय तारा से हो जाती है। क्या शादी से ग्रीष्मा का गायब होना किसी साजिश के तहत था या इसके पीछे तारा का हाथ था। ध्रुव तारा के साथ शादी को निभाएगा या उसे उसके किए की सजा देगा?
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जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में एक शादी चल रही थी। पूरे पैलेस को काफी खूबसूरती से सजाया गया था, लेकिन वहाँ ज्यादा मेहमान नहीं थे। इससे एक बात साफ़ थी, वह शादी आम लोगों की नहीं थी, और न ही वहाँ हर किसी को आने की इजाज़त थी। पैलेस के मेन हॉल के बीचों-बीच शादी का मंडप लगा था। यह शादी सिंघानिया फैमिली के बड़े बेटे, ध्रुव सिंघानिया की थी, जो इंडिया की सबसे बड़ी डिज़ाइनिंग कंपनी का मालिक था। ध्रुव सिंघानिया, उम्र 27 साल, ऊँचाई 6 फ़ीट 3 इंच, फ़िट मस्क्युलर बॉडी और गहरी काली आँखें। ध्रुव सिंघानिया जैसे हैंडसम बिज़नेसमैन की शादी इस तरह प्राइवेट फ़ंक्शन में हो रही थी, यह बात किसी को पता नहीं थी। वहीं, उसके पास में दुल्हन के जोड़े में सजी एक लड़की बैठी थी। सुर्ख लाल जोड़ा, जिस पर असली सोने और चाँदी से काम किया हुआ था; हैवी रियल ज्वैलरी में वह बिल्कुल किसी महारानी की तरह लग रही थी। लेकिन उसके चेहरे के आगे घूँघट था, जिसकी वजह से उसका खूबसूरत चेहरा अभी भी कोई नहीं देख पा रहा था। शादी के बीच में एक औरत ने मुस्कुराकर कहा, “ग्रीष्मा, इतनी मॉडर्न होने के बावजूद हमारे खानदान की रस्मों का मान रख रही है। इसी से पता चलता है, वह हमारे घर को जोड़कर रखेगी।” वह रत्ना सिंघानिया थीं, ध्रुव की माँ। उन्होंने लाइट पिंक साड़ी पहनी थी, जिसकी एक तरफ़ व्हाइट कलर का लंबा शॉल था, और उसके साथ रियल पर्ल ज्वैलरी। रत्ना जिनसे बात कर रही थीं, वह ध्रुव की सास, सरिता जी थीं। उन्होंने बिना कुछ बोले, मुस्कुराकर हामी भरी। इस शादी में सभी खुश नज़र आ रहे थे, लेकिन घूँघट के पीछे दुल्हन के चेहरे पर पसीने की बूँदें थीं। वह मन ही मन बड़बड़ा कर बोली, “कहाँ हो तुम? आज यहाँ फेरों में मुझे नहीं, तुम्हें होना चाहिए था। अगर इन्हें पता चल गया कि दुल्हन के जोड़े में तुम्हारे बजाय मैं यहाँ पर बैठी हूँ, तो हंगामा मच जाएगा। तुमने तो कहा था कि फेरे होने तक तुम आ जाओगी, पर तुम अब तक आई क्यों नहीं...” दुल्हन के जोड़े में ग्रीष्मा के बजाय कोई और थी। घूँघट में होने की वजह से सबको यही लग रहा था कि ध्रुव की शादी उसकी मंगेतर, ग्रीष्मा मेहता के साथ हो रही है। वह लड़की अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी, तभी पंडित जी ने कहा, “अब आप कन्या का घूँघट उठाकर उसे सिंदूर दान कीजिए। उससे पहले भगवान के सामने अपनी खुशी और मंगल जीवन की प्रार्थना कीजिए।” ध्रुव ने हाथ जोड़े और आँखें बंद करके प्रार्थना करने लगा। उसकी आँखें खोलने पर रत्ना जी ने उसे सिंदूर की डिब्बी पकड़ाई। इसी के साथ उस लड़की की दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, जैसे उसका दिल फटकर बाहर आ जाएगा। उसने मन ही मन कहा, “सिंदूर लगाने के लिए ध्रुव मेरा घूँघट उठाएगा, तब सबको पता चल ही जाएगा कि यहाँ ग्रीष्मा के बजाय मैं मौजूद हूँ। हे भगवान, अब क्या करूँ मैं?” जैसे ही ध्रुव सिंदूर लगाने से पहले तारा का घूँघट उठाने लगा, उसकी दादी, गायत्री जी बोलीं, “अरे ध्रुव, दुल्हन का चेहरा नहीं देखना। घूँघट के अंदर से ही सिंदूर लगा दो।” उनकी बात मानते हुए ध्रुव ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसकी माँग में सिंदूर लगा दिया। उसके बाद उसने मंगलसूत्र पहनाया। “आज से आप दोनों पति-पत्नी हैं।” जैसे ही पंडित जी ने कहा, ध्रुव का ध्यान टूटा। ध्रुव ने दुल्हन की तरफ़ देखा, जिसे वह ग्रीष्मा समझ रहा था, और अपने मन में कहा, “थैंक गॉड, सब कुछ बिना किसी खतरे के हो गया। अब मैं तुम्हें उस इंसान से सेफ़ रख पाऊँगा और अपनी फैमिली को भी।” अनजाने में ध्रुव की शादी किसी और लड़की से हो चुकी थी। उस लड़की के साथ क्या हो रहा था? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। ध्रुव की माँ, रत्ना जी उसे एक कमरे में लेकर गईं, जो ध्रुव और उसके लिए सजाया गया था। “मेरे ध्रुव को अब मैं तुम्हारे हाथों में सौंपती हूँ। उसे हमेशा प्यार करना। भले ही सामने से सब पर चिल्ला देता होगा, लेकिन दिल का बहुत अच्छा है।” रत्ना जी ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा। इसके बाद वह वहाँ से चली गईं। ध्रुव अभी तक अंदर नहीं आया था। आने वाले पल के बारे में सोचकर उसकी आँखों में आँसू थे। वह डर से काँप रही थी। “मैं कैसे इन सब का सामना कर पाऊँगी? इतने कम वक़्त में इन्होंने मुझे इतना अपनापन दिया, और मैंने इनके साथ धोखा किया। तुम क्यों नहीं आ पाईं, ग्रीष्मा? तुम्हारी वजह से आज मैं इन सब की नज़रों में गिर जाऊँगी...” उसके चेहरे पर उदासी थी। उसे ज़्यादा सोचने का मौका नहीं मिला, तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। उसने देखा, ध्रुव अंदर आया था। उसके चेहरे पर खुशी थी। अंदर आते ही उसने सबसे पहले कमरे का दरवाज़ा बंद किया और उसके पास आकर बैठ गया। उसके चेहरे पर लंबा घूँघट था, लेकिन अगले ही पल उसकी सच्चाई सामने आने वाली थी। सच से अनजान ध्रुव कमरे में आया, तो उसे देखकर वह अंदर ही अंदर सिमटने लगी। अगले ही पल क्या होने वाला था, यह सोचकर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। ध्रुव उसके पास आकर बगल में बैठा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट थी। ध्रुव को लगा ग्रीष्मा अभी भी घूँघट में है। उसे कम्फ़र्टेबल फील कराने के लिए उसने कहा, “मुझे नहीं पता था तुम इन रीति-रिवाजों को इतना सीरियसली लेती हो। अब तो यहाँ कोई नहीं है, और माँ ने कहा था शादी के बाद मैं तुम्हें देख सकता हूँ। फिर हमारे बीच यह पर्दा क्यों?” उस लड़की ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में आँसू थे। “पता नहीं मैं इनका सामना कैसे कर पाऊँगी? कि आज यहाँ ग्रीष्मा के बजाय मैं यहाँ पर क्यों बैठी हूँ? इस बात की सफ़ाई कैसे दे पाऊँगी।” उसने अपने मन में कहा। “कहीं इस रूम में कोई छुपा हुआ तो नहीं है?” ध्रुव ने पूछा और इधर-उधर देखने लगा। जब उसे तसल्ली हो गई कि कमरे में कोई नहीं है, तब वह उसके नज़दीक खिसका और हल्के से उसका घूँघट उठाया। उसने देखा, सामने ग्रीष्मा के बजाय कोई और लड़की थी, जिसने डर के मारे अपनी आँखें कसकर बंद कर रखी थीं। उसे देखते ही ध्रुव के शब्द उसके गले में अटक गए। वह जैसे-तैसे बोलने की कोशिश कर रहा था। “न... नहीं... यह नहीं हो सकता। घूँघट के पीछे तुम... तुम नहीं हो सकती। मैं... मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता।” अगले ही पल ध्रुव ने गुस्से में उस लड़की के दोनों कंधों को पकड़ा और जोर से चिल्लाकर कहा, “हाउ डेयर यू, तारा! तुम... तुम मेरी लाइफ़ को बर्बाद नहीं कर सकती हो।” ध्रुव को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़की से वह कुछ दिनों पहले मिला था, जिसे वह सख्त नापसंद करता था, वह उससे शादी कैसे कर सकता है। °°°°°°°°°°°°°°°°
ध्रुव सिंघानिया की शादी अनजाने में किसी और के साथ हो चुकी थी, जिसे वह कुछ दिनों पहले ही मिला था। उसका नाम तारा था। तारा को देखते ही वह उस लम्हे को कोस रहा था, जब पहली बार उससे मिला था। साथ ही तारा का भी हाल कुछ वैसा ही था। वह भी यही सोच रही थी कि काश वह कभी राजस्थान आई ही ना होती, तो उसके साथ यह एक्सीडेंटल मैरिज का हादसा नहीं होता। ______________ कुछ दिनों पहले... (फ्लैशबैक सीन) जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस को विजिटर्स के लिए बंद कर दिया गया था। उसके बावजूद वहाँ का पूरा स्टाफ़ किसी एक ख़ास के आने की तैयारी में जी जान से जुटा था। शाम के लगभग 5:00 बज रहे थे, और होटल के मैनेजर, मिस्टर राम सिंह सिसोदिया ने पूरी तैयारियों का जायजा लेने के लिए होटल स्टाफ़ को लाइन में लगा रखा था। वह काफी प्रोफ़ेशनल तरीके से सबको इंस्ट्रक्शन्स दे रहे थे। “वैसे तो उम्मेद भवन पैलेस की भव्यता के प्रदर्शन के लिए किसी एक्स्ट्रा तैयारी की ज़रूरत नहीं, लेकिन बहुत कम मौके ऐसे होते हैं, जब किसी को इम्प्रेस करने के लिए हम अलग से तैयारियाँ करते हैं।” राम सिंह ने उन सब लोगों को संबोधित करके कहा। “यस सर... एवरीथिंग इज़ डन।” एक लड़के ने जवाब दिया। “स्वर्ण घर के मालिक, मिस्टर ध्रुव सिंघानिया कुछ देर में पहुँचते ही होंगे। अगर उम्मेद भवन अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है, तो ‘स्वर्ण घर’ में बने गहने भी हमारे राजस्थान की शान हैं, जो पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।” मिस्टर सिसोदिया ने कहा, और तभी उनकी नज़र सामने की तरफ़ गई। उनके चेहरे पर विनम्रता आ गई, और उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, “मिस्टर सिंघानिया आ गए हैं। मैं उन्हें वेलकम करने के लिए जा रहा हूँ। बाकी सब तुम देख लेना।” उस लड़के ने उनकी बात पर हामी भरी। मिस्टर सिसोदिया मुस्कुराते हुए सामने की तरफ़ बढ़े। सामने से ध्रुव सिंघानिया आ रहा था, जिसके पीछे उसके चार हट्टे-कट्टे बॉडीगार्ड चल रहे थे। ध्रुव सिंघानिया का ज्वेलरी का बिज़नेस राजस्थान में ही नहीं, उसके बाहर भी काफी फ़ेमस था। वह जयपुर के ‘स्वर्ण घर’ नामक ज्वेलरी हाउस का मालिक था। हल्का गोरा रंग, लंबा क़द, हल्की काली आँखें और उस पर अच्छी खासी जिम में मेहनत करके बनाई हुई बॉडी। दिखने में वह भी बिल्कुल किसी राजकुमार की तरह दिखता था। ब्राण्डेड ब्लैक सूट, आँखों पर महँगे ग्लासेस उसके लुक को और भी क्लासी बना रहे थे। “घणी खम्मा मिस्टर सिंघानिया।” मिस्टर सिसोदिया ने अपने दोनों हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा। “खम्मा घणी।” ध्रुव ने मुस्कुराकर दोनों हाथ जोड़कर जवाब दिया। मिस्टर सिसोदिया ने ध्रुव के गले में माला पहनाई, और फिर उसका पारम्परिक राजस्थानी तरीके से स्वागत हुआ। उसके बाद मिस्टर सिसोदिया बोले, “चलिए मैं आपको सारी तैयारियाँ दिखा देता हूँ। वेन्यू से लेकर वेडिंग प्लानर तक का सारा अरेंजमेंट हो गया है। पारम्परिक राजस्थानी तरीके से शादी की पूरी तैयारियाँ हो गई हैं।” “वेट अ सेकेंड... मैंने सिर्फ़ शादी के लिए हॉल बुक किया है। वेडिंग प्लानर मैंने हायर कर लिया है, और शादी राजस्थानी तरीके से होने के साथ-साथ गुजराती तरीके से भी की जाएगी।” ध्रुव ने जवाब दिया। “मुझे लगा आप पारम्परिक राजस्थानी तरीके से शादी करना पसंद करेंगे। ‘स्वर्ण घर’ अपनी परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है, तो हमें लगा कि आपके खानदान में भी परम्पराओं को देखकर कड़ाई बरती जाती होगी।” मिस्टर सिसोदिया ने हैरानी से कहा। “आपका कहना भी ग़लत नहीं है मिस्टर सिसोदिया... लेकिन मैं जिस लड़की से शादी करने जा रहा हूँ, वह राजस्थान से नहीं, गुजरात से हैं। अब हम किसी के कल्चर को अंडरएस्टीमेट तो नहीं कर सकते, ना?” ध्रुव ने नरमी से कहा। मिस्टर सिसोदिया ने मुस्कुराकर हामी भरी और उसे पूरा पैलेस दिखाने लगे। ध्रुव साथ-साथ में उन्हें अपनी रिक्वायरमेंट्स भी बता रहा था, जो उसे अपनी शादी के लिए चाहिए थीं। मिस्टर सिसोदिया उसके स्वभाव से बहुत प्रभावित हुए। हर शब्द बिल्कुल सलीके से बोलना, सादगी और कम उम्र में इतना अनुभव देखकर मिस्टर सिसोदिया, बाकियों की तरह, ध्रुव के एटीट्यूड से बहुत इम्प्रेस हुए। “अगर कहीं कोई कमी लगे तो बता दीजिए। हमने अपनी तरफ़ से सब कुछ अच्छा करने की पूरी कोशिश की है।” मिस्टर सिसोदिया ने कहा। “एवरीथिंग इज़ रियली वेरी नाइस मिस्टर सिसोदिया। मुझे ज़्यादा कुछ चेंज नहीं चाहिए... लेकिन मैं चाहता हूँ कि एक बार मेरी मंगेतर, ग्रीष्मा यह सब देख ले। अगर उसे कुछ बदलाव चाहिए होंगे, तो आप उस हिसाब से कर दीजिएगा।” ध्रुव ने सधे हुए लहज़े में जवाब दिया। मिस्टर सिसोदिया ने हल्का मुस्कुराकर कहा, “जी ज़रूर... अब आपको सब कुछ पसंद आ गया है, तो उन्हें भी आ ही जाएगा। सर, इसके बाद आपके लिए एक छोटी सी डिनर पार्टी का इंतज़ाम किया गया है।” पैलेस घुमाने के बाद ध्रुव के लिए एक डिनर का इंतज़ाम किया गया था। “थैंक्स फ़ॉर दिस। ग्रीष्मा भी अभी आती ही होगी। हम लोगों ने रात को यहीं होटल में स्टे करने का डिसीज़न लिया है। आप दो रूम बुक करवा दीजिएगा।” ध्रुव बोला। शादी से पहले ग्रीष्मा और ध्रुव के वहाँ एक साथ रुकने की बात सुनकर एक बार के लिए मिस्टर सिसोदिया चौंक गए थे, लेकिन फिर जब उसने दो रूम बुक करवाने का कहा, तो उन्होंने बोला, “जानकर अच्छा लगा कि आप अभी भी अपने परम्पराओं और संस्कारों की लाज रखते हैं।” ध्रुव ने उनकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया और मुस्कुराकर रह गया। “खाने के लिए चलें?” मिस्टर सिसोदिया ने पूछा। “ग्रीष्मा, बस आती ही होगी। आपको बुरा नहीं लगे तो हम उसका इंतज़ार कर सकते हैं।” ध्रुव ने कहा। वह बाहर वालों से काफी कम और सलीके से बात करता था। अपनी आदत के मुताबिक़ ध्रुव मिस्टर सिसोदिया से गिने-चुने शब्दों में जवाब दे रहा था। “जी ज़रूर...” मिस्टर सिसोदिया ने कहा। “मैं बाहर गार्डन में जा रहा हूँ। ग्रीष्मा आएगी तो मैं आपको कॉल कर दूँगा।” कहकर ध्रुव पैलेस के गार्डन में आ गया। वह ग्रीष्मा का इंतज़ार करते हुए इधर-उधर चहलकदमी कर रहा था। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद भी वह नहीं आई, तो उसने उसे कॉल मिलाया। “कहाँ रह गई हो, ग्रीष्मा? मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।” ध्रुव ने ग्रीष्मा का कॉल उठाते ही कहा। “सॉरी बेबी, बस अब पहुँची ही हूँ। तुम्हारे लिए कुछ सरप्राइज़ प्लान किया था। इसी चक्कर में लेट हो गई।” ग्रीष्मा ने जवाब दिया। “वैसे सरप्राइज़ तो मैंने भी रेडी किया है... लेकिन तुम यहाँ पहुँचोगी तब ना। प्लीज़ जल्दी आओ, मैं अकेला बोर हो रहा हूँ।” ध्रुव ने बोरियत भरे लहज़े में कहा। “बस 10 मिनट में आ रही हूँ।” ग्रीष्मा ने कहा और कॉल कट कर दिया। ध्रुव उससे बात करके अपना फ़ोन रख ही रहा था कि तभी उसके पास एक कॉल आया। “लेकिन इतनी रात को? मैंने उसे कल आने का बोला था ना।” ध्रुव की बातों से नाराज़गी झलक रही थी। “हाँ सर, लेकिन गुजरात और राजस्थान का रास्ता काफ़ी दूर है। चली तो वह दिन में ही थी, लेकिन पहुँचते-पहुँचते रात हो गई। फिर आप के सेक्रेटरी से पता चला कि आप उम्मेद भवन पैलेस आए हुए हैं, तो मैंने उसे भी वहीं जाने का बोल दिया।” सामने कॉल पर किसी लड़की की आवाज़ आई। “अच्छा ठीक है। मैं देख लूँगा। लेकिन आपने उसे उसका काम समझा तो दिया है ना?” ध्रुव थोड़ा इरिटेट होकर बोला। “जी सर... वह 24 घंटे आपके साथ रहेगी। शादी में आपकी शॉपिंग से लेकर हर एक चीज़ का ध्यान रखेगी।” लड़की ने कहा। ध्रुव ने उसकी बात पर हामी भरी और कॉल कट कर दिया। ध्रुव अभी भी ग्रीष्मा का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, लेकिन साथ ही उस कॉल की वजह से वह थोड़ा परेशान भी हो गया था। ध्रुव वहाँ से बाहर जाने के लिए निकला, कि तभी जल्दबाज़ी में किसी से टकरा गया। उसने देखा, सामने एक लड़की खड़ी थी, जिसने ब्लू जीन्स पर लंबा सफ़ेद कुर्ता पहना था और गले में कलरफ़ुल स्कार्फ़ डाल रखा था। उसके कानों में लंबे झुमके थे, जो किसी मेले से खरीदे हुए लग रहे थे। लड़की दिखने में गोरी, लगभग 5 फ़ीट 4 इंच लंबी और पतली थी। वह लगभग 23 साल के आसपास थी। उसके हल्के घुँघराले बाल कमर तक छू रहे थे। बिना मेकअप और नॉर्मल सी ड्रेस में भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। हड़बड़ाहट में हुई इस गलती की ध्रुव माफ़ी माँग पाता, उससे पहले लड़की ने उसका सिर पकड़ा और अपने सिर से एक बार फिर से जोर से भिड़ा दिया। °°°°°°°°°°°°°°°°
उम्मेद भवन पैलेस के आगे खड़ा ध्रुव अपनी मंगेतर, ग्रीष्मा के आने का इंतज़ार कर रहा था। हड़बड़ाहट में वह वहाँ से बाहर निकला और एक लड़की से टकरा गया। ध्रुव कुछ बोलता, उससे पहले लड़की ने अपने सिर को उसके सिर से फिर से टकरा दिया। उसकी इस हरकत से ध्रुव ने गुस्से में कहा, “आर यू मैड? व्हाट द हेल हैव यू डन...?” ध्रुव को आसानी से गुस्सा नहीं आता था, पर उस लड़की की हरकत ही कुछ ऐसी थी। “एक साथ इतनी सारी अंग्रेज़ी? इतनी तो हमें क्लास में भी नहीं सिखाई जाती होगी। आप प्लीज़ हिंदी में बात करेंगे? या थोड़ा धीरे-धीरे बोलिए ना, ताकि मैं आपकी बात को समझ सकूँ।” लड़की ने सिर पकड़कर जवाब दिया। “तुमने फिर से मेरा सिर अपने सिर से क्यों टकराया?” ध्रुव ने चिढ़कर कहा। “ओह... वह तो इसलिए क्योंकि बचपन में सुना था कि एक बार आपका सिर किसी से टकरा जाए, तो उसे फिर से उसके सिर से भिड़ाना चाहिए।” उस लड़की ने हल्का हँसते हुए कहा। “और ऐसा करने का लॉजिक?” ध्रुव ने हैरानी से पूछा। “अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो सिर पर सींग निकल आते हैं। मैं तो फिर भी दुपट्टा लगाकर काम निकाल लूँगी, लेकिन आप सींगों के साथ अच्छे नहीं लगेंगे।” लड़की ने जवाब दिया। उसकी बात सुनकर ध्रुव हैरान था, और उसके चेहरे पर गुस्सा था। “पता नहीं तुम कौन से स्कूल में पढ़ी हो, जहाँ तुम्हें यह सब सिखाया गया होगा। मेरा ध्यान सामने की तरफ़ नहीं था, लेकिन तुम तो देखकर चल सकती थी ना? दिखता नहीं तुम्हें?” ध्रुव अपनी गलती मानने के बजाय अभी भी उस लड़की पर चिल्ला रहा था। उसकी बात सुनकर लड़की की आँखें बड़ी हो गईं, और उसने अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर कहा, “अरे वाह... यह सही है। खुद की गलती मत मानो और सामने वाले पर ही चिल्ला दो। तुम्हारे इस तरह टकराने की वजह से मेरी याददाश्त चली जाती, तो?” “मेरे एक बार टकराने की वजह से तुम्हारी याददाश्त जाए या ना जाए, लेकिन दूसरी बार टकराने की वजह से ज़रूर चली जाती। लगता है तुम किसी से एक बार टकराने के बाद दूसरी बार टकराना भूल गई होगी, तभी तुम्हारे सिर पर सींग निकल आए हैं, लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं दे रहे हैं।” ध्रुव ने चिल्लाकर कहा। थोड़ी देर पहले जो ध्रुव इतनी सादगी और सलीके से बात कर रहा था, अब उसके चेहरे पर गुस्सा था। उस लड़की ने पहली ही मुलाक़ात में उसे बुरी तरह इरिटेट कर दिया था। “खुद को ज़्यादा ओवरस्मार्ट मत समझो। मैं सब समझती हूँ।” लड़की ने पूरे एटीट्यूड से जवाब दिया। दोनों वहाँ खड़े होकर आपस में बहस कर रहे थे। तभी वहाँ एक बड़ी सी काली गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी में से एक लड़की बाहर निकलकर आई। वह भी दिखने में गोरी, एवरेज हाइट की, वेल-मेंटेंड 25 साल की लड़की थी। वह बिल्कुल किसी मॉडल की तरह लग रही थी। उसने रेड कलर का वन-शोल्डर ड्रेस पहना था। साथ में मैचिंग हील्स, ब्राण्डेड बैग और डायमंड एक्सेसरीज़ के साथ वह अच्छी लग रही थी। “क्या चल रहा है यहाँ?” उसने उन दोनों के पास जाकर पूछा। उस लड़की को देखकर ध्रुव ने राहत की साँस ली और कहा, “थैंक गॉड, बेबी, तुम आ गई। वरना इस पागल लड़की के साथ अगर मैं 5 मिनट और रुकता, तो खुद पागल हो जाता।” ध्रुव ने अपनी बात ख़त्म करके उसे गले से लगा लिया। वह ग्रीष्मा थी, जिससे ध्रुव की शादी होने वाली थी। ग्रीष्मा ने ध्रुव से अलग होकर कहा, “लेकिन यह लड़की है कौन?” “मैं नहीं जानता इसे। तुम्हारा वेट करते हुए मैं बाहर की तरफ़ आ रहा था, तो यह मुझसे टकरा गई, और तब से ना जाने क्या-क्या बकवास बोले जा रही है।” ध्रुव ने इरिटेट होकर कहा। ग्रीष्मा ने उसकी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा, तो लड़की ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपना परिचय देते हुए कहा, “हेलो... मेरा नाम तारा है।” “तुम क्या यहाँ के स्टाफ़ से बिलॉन्ग करती हो?” ग्रीष्मा ने पूछा। “जानती हो ना, जिसके साथ बहस कर रही हो, वह कौन है?” ग्रीष्मा के कहते ही ध्रुव के चेहरे पर भी एक गर्व भरी मुस्कान थी। लेकिन अगले ही पल तारा ने मासूमियत से जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं जानती कि यह कौन हैं?” तारा के जवाब ने ध्रुव को और भी गुस्सा दिला दिया। “तुम... तुम मुझे नहीं जानती?” ध्रुव ने हैरानी से पूछा। उसे ऐसा पहले सुनने को नहीं मिला था। “तुम्हें कम दिखाई देने के साथ-साथ सुनाई भी कम देता है क्या? बोला ना कि नहीं जानती तुम कौन हो?” तारा ने काफ़ी बेरुखी से जवाब दिया। “इस वक़्त तुम इंडिया के सबसे बड़े ज्वेलरी हाउस के मालिक, ध्रुव सिंघानिया के सामने खड़ी हो।” जैसे ही ध्रुव ने अपना परिचय दिया, तारा ने एक बड़ी सी मुस्कराहट दी और कहा, “अच्छा, तो आप ध्रुव सिंघानिया हैं। आपसे मिलने के लिए तो मैं अहमदाबाद से राजस्थान तक पूरे 8 घंटे 30 मिनट का सफ़र तय करके आई हूँ। काश मैं यह कह पाती कि मुझे आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई।” “ध्रुव, यह लड़की कौन है और तुमसे मिलने क्यों आई है?” ग्रीष्मा ने हैरानी से पूछा। ध्रुव कोई जवाब दे पाता, उससे पहले तारा ने ग्रीष्मा की बात का जवाब देते हुए कहा, “आपको नहीं पता, इन्होंने अपनी होने वाली बीवी को सरप्राइज़ देने के लिए अहमदाबाद से वेडिंग प्लानर हायर किया है। मैं वहीं से, ‘ड्रीम वेडिंग इवेंट्स’ से यहाँ आई हूँ।” “लो, कर दिया मेरे सरप्राइज़ का सत्यानाश। पता नहीं इस लड़की को यहाँ किसने भेजा होगा। अगर यह यहाँ मेरी शादी में रही, तो हर एक चीज़ को रूइन कर देगी।” ध्रुव सिर पकड़कर धीरे से बड़बड़ाया। “ओह, तो तुम इस सरप्राइज़ की बात कर रहे थे। बेबी, आई एम सो हैप्पी फ़ॉर दिस... मॉम-डैड को पता चलेगा, तो वह भी बहुत खुश होंगे।” तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा के चेहरे पर मुस्कान थी, और उसने झट से ध्रुव को गले लगा लिया। उन्हें एक-दूसरे के करीब आता देखकर तारा ने अपने दोनों हाथों से आँखों को बंद कर लिया। ध्रुव उसकी तरफ़ गुस्से से घूर रहा था। जिस सरप्राइज़ की वह पिछले 1 महीने से तैयारी कर रहा था, तारा ने एक झटके में उससे ख़राब कर दिया था। कुछ देर गले लगे रहने के बाद ग्रीष्मा ध्रुव से अलग हुई और तारा की तरफ़ देखकर कहा, “देखो, अब जब तुम आ गई हो, तो हर एक चीज़ का अच्छे से ख़्याल रखना। मेरे ध्रुव का सरप्राइज़ ख़राब नहीं होना चाहिए।” “जी जी मैडम, ज़रूर। अब से 24 घंटे मैं इनके साथ रहूँगी।” तारा ने जवाब दिया। “पिछले 24 मिनट से इसे झेल रहा हूँ, वह कम है क्या, जो मैं 24/7 इसके साथ रहूँ। काफ़ी रात हो गई है। सुबह उठते ही सबसे पहले तुम्हारा पिकअप होगा, मिस तारा।” ध्रुव ने तारा की तरफ़ देखकर गुस्से से अपने मन में कहा। “अब अंदर चलते हैं। ग्रीष्मा, हम आज रात को यहीं पर रुकेंगे। फ़िलहाल मिस्टर सिसोदिया ने हमारे लिए डिनर का इंतज़ाम किया है। तारा, तुम चाहो तो हमें ज्वाइन...” ध्रुव ने अपनी बात ख़त्म भी नहीं की थी कि तारा ने झट से कहा, “हाँ हाँ, क्यों नहीं। पिछले साढ़े 8 घंटे में ट्रैवल करके मैं सच में बहुत थक गई हूँ। जब आप दोनों यहाँ पर रुक रहे हैं, तो मेरे लिए भी एक कमरे का इंतज़ाम करवा दीजिए। वैसे यह महल काफ़ी ख़ूबसूरत है।” तारा अपनी बात ख़त्म करके उन दोनों से पहले ही आगे की तरफ़ बढ़ने लगी। “शी इज़ सो क्यूट ना...” ग्रीष्मा ने तारा को जाते हुए देखकर कहा। ध्रुव ने मुँह बनाते हुए उसकी बात पर हामी भरी। तारा पूरे पैलेस को देखते हुए चल रही थी। उसके पीछे-पीछे ध्रुव और ग्रीष्मा बातें करते हुए आ रहे थे। ध्रुव का ध्यान अभी भी तारा में ही लगा था। “सब कुछ कितना अच्छे से प्लान किया था, लेकिन इस लड़की ने सब बर्बाद कर दिया। पहले मेरा सरप्राइज़ और फिर ग्रीष्मा के साथ टाइम स्पेंड करने का प्लान।” ध्रुव ने सोचा। अचानक ग्रीष्मा ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “ध्यान कहाँ है तुम्हारा? मैं कब से तुमसे पूछ रही हूँ कि तुमने यह सब कब और कैसे प्लान किया।” “इन सब के बारे में बाद में बताऊँगा।” ध्रुव ने ख़राब मूड होने की वजह से रूडली जवाब दिया। “मैं समझ सकती हूँ, तारा के इस तरह बताने की वजह से तुम्हारा मूड ऑफ़ हो गया है। बट स्टिल, मुझे इस बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा कि तुमने मेरे बारे में सोचा और उसके अकॉर्डिंग शादी प्लान की। अब अपना गुस्सा छोड़ो और मूड सही करो।” ग्रीष्मा ने हल्का मुस्कुराकर कहा। ग्रीष्मा की बात सुनकर ध्रुव ने छोटी सी मुस्कान दी। तारा उन दोनों की आँखों से ओझल हो चुकी थी। वह आगे गई, तो उसे मिस्टर सिसोदिया मिले। उन्होंने तारा को देखकर पूछा, “आप मिस्टर ध्रुव सिंघानिया के साथ हैं?” “हाँ, वह भी आ ही रहे हैं।” तारा ने कहा और वहाँ सामने लगे राजघराने के फैमिली पोर्ट्रेट को देखने चली गई। “काफ़ी अच्छी पसंद है मिस्टर सिंघानिया की। यह उनकी मंगेतर है... उनका अच्छे से ख़्याल रखना।” मिस्टर सिसोदिया ने अपने असिस्टेंट से कहा। उन्होंने तारा को ध्रुव की मंगेतर समझ लिया था। °°°°°°°°°°°°°°°°
पैलेस के अंदर आने के बाद तारा इधर-उधर घूमकर उसे देखने लगी। वहीं, मिस्टर सिसोदिया और उनके साथ मौजूद उनके असिस्टेंट को लगा कि तारा ध्रुव की फ़िआंसे है। “खाने की सारी तैयारियाँ हो गई हैं ना, जीवन?” मिस्टर सिसोदिया ने फुसफुसाकर पूछा। “हाँ सर..... मैडम तो आ गई है, लेकिन मिस्टर सिंघानिया अभी तक बाहर हैं।” जीवन ने जवाब दिया। मिस्टर सिसोदिया ने कहा, “वह भी आ जाएँगे। तब तक तुम ऐसा करो, इन्हें खाने की टेबल तक ले जाओ, मैं मिस्टर ध्रुव सिंघानिया का इंतज़ार कर लेता हूँ।” मिस्टर सिसोदिया की बात मानकर उनका असिस्टेंट, जीवन, तारा के पास गया। “मैडम, जब तक सर नहीं आ जाते, तब तक आप मेरे साथ चलिए।” वह उसके पास जाकर बोला। “सच में काफ़ी ख़ूबसूरत है यह राज-महल।” तारा ने इधर-उधर देखकर कहा। “वैसे आप मुझे कहाँ चलने को बोल रहे थे?” “जी ऊपर, डिनर के लिए।” जीवन ने जवाब दिया। तारा ने उसकी बात पर हामी भरी और जीवन के साथ सेकंड फ़्लोर पर गई। पैलेस के डाइनिंग हॉल में उनके डिनर की व्यवस्था की गई थी। “मैम, खाने में ट्रेडिशनल राजस्थानी और गुजराती डिशेज़ सर्व की गई हैं। आई होप कि आपको सभी अरेंजमेंट्स पसंद आई होंगी।” जीवन ने किसी प्रोफ़ेशनल की तरह कहा। “अरे वाह.....” तारा ने एक्साइटेड होकर कहा, “बिल्कुल सही सुना था, राजस्थान में ख़ातिरदारी की कमी नहीं रखी जाती। लगता है आपको पहले से पता था कि गुजरात से कोई ख़ास मेहमान आने वाला है।” “यस मैम..... ध्रुव सर ने पहले ही बता दिया था कि उनकी मंगेतर गुजरात से है। सर आपको बहुत चाहते हैं। कब से आपके इंतज़ार में गार्डन में इधर से उधर चहलकदमी कर रहे थे।” जीवन तारा को सब बता रहा था। उसकी बात सुनकर तारा समझ गई थी कि वह लोग उसे ग़लत समझ रहे हैं। उसके चेहरे की मुस्कान एक पल में उड़ गई, और उसने जवाब में कहा, “आई थिंक आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है। मैं वह लड़की नहीं हूँ, जिससे मिस्टर ध्रुव सिंघानिया की शादी होने वाली है। वह तो उनके साथ नीचे हैं।” “फ़िर आप कौन हैं?” जीवन ने हैरानी से पूछा। “मैं तारा हूँ। मुझे यहाँ शादी के अरेंजमेंट्स के लिए वेडिंग प्लानर ने भेजा है।” तारा ने अपना पूरा परिचय दिया। “माफ़ कीजिएगा, हमने आपको ग़लत समझ लिया। यहाँ से चलते हैं और नीचे जाकर सर को सारी बात बताते हैं, कहीं वह ध्रुव सर के सामने कुछ ना कह दें।” जीवन ने घबराकर कहा। तारा ने उसकी बात पर हामी भरी और उसके साथ चलने लगी। तभी उसने सोचा, “मैंने नीचे ध्रुव सिंघानिया का सरप्राइज़ ख़राब कर दिया था। उनके चेहरे से साफ़ नज़र आ रहा था कि उन्हें कितना बुरा लग रहा था।” जीवन ने देखा कि तारा उसके साथ जाने के बजाय वहीं पर रुकी हुई थी। वह उसकी तरफ़ मुड़ा और कहा, “क्या हुआ मैम?” “क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?” तारा ने हिचकिचाते हुए पूछा। “मैं कुछ समझा नहीं।” जीवन ने हैरानी से कहा। तारा ने उसे सब समझाते हुए कहा, “मैं जानती हूँ कि पैलेस बहुत ख़ूबसूरत है। इसका हर एक कोना अपने आप में ख़ास है, लेकिन मैंने ध्रुव सर की फ़िआंसे को देखा था। वह काफ़ी मॉडर्न है। क्या हम इन अरेंजमेंट्स को थोड़ा बदल सकते हैं? मुझे नहीं लगता उन्हें यह सब कुछ ख़ास पसंद आएगा।” उसकी बात सुनकर जीवन ने कुछ पल सोचा और फिर पूछा, “क्या आपको लगता है कि यह सच में काम करेगा?” तारा ने उसकी बात पर हामी भरी। मिस्टर सिसोदिया ने भी उसे यही इंस्ट्रक्शन दिए थे कि ध्रुव सिंघानिया की ख़ातिरदारी में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, इसलिए उसने ज़्यादा सोचे-समझे बिना तुरंत हामी भर दी। “हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। आप इतने वक़्त में कैसे?” जीवन ने पूछा। “आप उसकी फ़िक्र मत कीजिए। आप अभी तारा को जानते नहीं हैं।” तारा ने कहा। उसने इधर-उधर देखा, वहाँ सजावट के लिए चारों तरफ़ कैंडल स्टिक लगाए हुए थे। “अगर हम यहाँ लगी सारी मोमबत्तियों को जला दें, तो इस हॉल की ख़ूबसूरती और भी बढ़ सकती है। लेकिन इसमें तो बहुत टाइम लगेगा ना.....” तारा ने कहा। “नो मैम, यह सब इलेक्ट्रॉनिक्स हैं, एक बटन के साथ सब की सब एक साथ जल जाएँगी।” जीवन ने जवाब दिया। जीवन की बात सुनकर तारा के चेहरे पर चमक आ गई। फिर उसने ऊपर की तरफ़ देखा, तो एक बड़ा सा झूमर लगा हुआ था। “ऐसा करो, बाकी की लाइट बंद कर दो और उन सभी कैंडल्स को जला दो..... और हाँ, साथ ही यह झूमर भी जलना चाहिए।” तारा जीवन को इंस्ट्रक्शन्स दे रही थी। इवेंट कंपनी में काम करते हुए वह काफ़ी कुछ सीख गई थी। जीवन ने उसकी बात पर हामी भरी और कॉल करके वहाँ की लाइटिंग को सेटल करवाया। हॉल अब दिखने में और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत लग रहा था। तारा ने जीवन की मदद से टेबल को झूमर के नीचे रखा। “थैंक यू सो मच मैम..... सर अक्सर हर चीज़ को पारम्परिक तरीके से करने को ही बोलते हैं।” जीवन ने कहा। तारा ने सब कुछ एक बार फिर देखते हुए कहा, “बाकी सब तो ठीक है, लेकिन किचन में जाकर कुछ और डिशेज़ बनवा दीजिए, जो अलग हों। अब ध्रुव सर अपने घर में रोज़ राजस्थानी खाना खाते होंगे और मैडम रोज़ गुजराती। आप कुछ और बनवा दीजिए, जो जल्दी बन सकें।” जीवन वहाँ से दौड़कर किचन स्टाफ़ में गया और तारा के बताए हुए काम में लग गया। उसके जाने के बाद तारा बाकी की चीज़ों को और भी बेहतर बनाने में लग गई। __________ ध्रुव और ग्रीष्मा अभी तक नीचे ही थे। ध्रुव का मूड ऑफ़ होने की वजह से वह वहीं रुक गया। ग्रीष्मा उसका मूड सही करने की कोशिश कर रही थी। “बस मुझे तुम्हारी यही बात नहीं पसंद आती। ज़रूरी नहीं ना कि चीज़ें हर बात हमारे प्लान के हिसाब से हों।” ग्रीष्मा ने उसके हाथ को सहलाकर कहा। “लेकिन मैंने बहुत मेहनत से सब कुछ अरेंज करवाया था, और उसने एक पल में..... छोड़ो..... सबसे पहले मिस गुप्ता को कॉल करके दूसरी असिस्टेंट भेजने को कहूँगा।” ध्रुव ने बुझे मन से कहा। “हे..... उससे जो भी गलती हुई, वह अनजाने में हुई। उसके लिए तुम उसे इतनी बड़ी सज़ा नहीं दे सकते। क्या पता बेचारी को इसके लिए उसके काम से भी निकाला जा सकता है।” ग्रीष्मा ने उसे समझाने की कोशिश की। “ठीक है, मैं उन्हें बोल दूँगा कि उसे काम से ना निकाले, लेकिन मैं उस लड़की को अपने आसपास 1 मिनट भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।” ध्रुव ने सख़्ती से जवाब दिया। उसका मूड अभी भी उखड़ा हुआ था। ग्रीष्मा उसे समझाने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन ध्रुव का मूड इतनी आसानी से ठीक नहीं होता था। ध्रुव अंदर नहीं गया। इस वजह से मिस्टर सिसोदिया उसे बुलाने के लिए बाहर आ गए। ध्रुव के साथ ग्रीष्मा को देखकर उन्होंने हैरानी से पूछा, “यह कौन है?” “यह कौन है से आपका मतलब मिस्टर सिसोदिया? मैंने आपको बताया तो था कि मेरी फ़िआंसे यहाँ आने वाली है। यह ग्रीष्मा है।” ध्रुव ने रूखे तरीके से जवाब दिया। “अगर यह आपकी मंगेतर है, तो वह लड़की कौन थी, जो थोड़ी देर पहले ऊपर गई थी?” मिस्टर राम सिंह सिसोदिया अभी भी हैरान थे। “शायद यह तारा की बात कर रहे हैं। वह भी हमारे साथ है।” ग्रीष्मा ने जवाब दिया। “अच्छा अच्छा, आप ही के साथ है। चलिए फ़िर चलते हैं। रात का खाना समय पर खा लेना चाहिए।” मिस्टर सिसोदिया बोले। ध्रुव मिस्टर सिसोदिया को ना कहने वाला था, लेकिन ग्रीष्मा ने पहले ही स्थिति को भाँप लिया, और उसने ध्रुव के बोलने से पहले ही जवाब में कहा, “जी आप चलिए, हम दोनों भी आपके पीछे-पीछे आते हैं।” मिस्टर सिसोदिया वहाँ से अंदर जाने लगे। उनके जाते ही ध्रुव तुरंत बोला, “तुम जानती हो ना, एक बार मेरा मूड ख़राब होने के बाद जल्दी से ठीक नहीं होता। मेरा अंदर जाने का बिल्कुल मन नहीं है। हम यहाँ से वापस चलते हैं।” “बिल्कुल नहीं, मिस्टर ध्रुव सिंघानिया.....” बोलते हुए उसने ध्रुव की नाक को हल्का सा खींचा, “आपका मूड ख़राब होगा, लेकिन मुझे बहुत भूख लगी है।” ध्रुव की बात का इंतज़ार किए बिना ग्रीष्मा अंदर जाने लगी। मजबूरन ध्रुव को भी उसके पीछे-पीछे आना पड़ा। मिस्टर राम सिंह सिसोदिया ने उन्हें एक साथ ऊपर के फ़्लोर पर भेजा। उन्हें आने में थोड़ा टाइम लग गया था, इस बीच जीवन और तारा ने ऊपर अच्छी-खासी तैयारियाँ कर ली थीं। सीढ़ियों पर किसी के आने की आहट सुनकर जीवन ने कहा, “तारा जी, लगता है वह आ गए।” “चलिए फ़िर जल्दी से बाहर चलते हैं।” तारा ने कहा और जीवन के साथ हॉल से बाहर आ गई। तारा जीवन के साथ पूरा पैलेस घूमने चली गई। पीछे से ध्रुव और ग्रीष्मा जब हॉल में गए, तो वहाँ की अरेंजमेंट देखकर दोनों काफ़ी इम्प्रेस हुए। “इसे देखने के बाद काफ़ी बेहतर महसूस हो रहा है। वरना उस लड़की ने चीज़ें ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।” ध्रुव ने अंदर आते ही कहा। “अब उसे भूल जाओ। अभी जो मोमेंट मिला है, हमें उसे एन्जॉय करना चाहिए। यह बिल्कुल किसी सपने की तरह है।” ग्रीष्मा ने खोई हुई आवाज़ में कहा। दोनों टेबल पर देख चुके थे। वहाँ लगे खाने ने भी दोनों को काफ़ी इम्प्रेस किया। “सच कहूँ तो मैंने बिल्कुल नहीं सोचा था कि मिस्टर सिसोदिया इतनी अच्छी अरेंजमेंट कर सकते हैं। मुझे पहले पता होता, तो मैं वेडिंग प्लानर बिल्कुल हायर नहीं करता।” ध्रुव ने कहा। “हाँ, यहाँ इस हॉल में हर एक चीज़ परफ़ेक्ट देखकर तो यही लग रहा है।” ग्रीष्मा भी उसे देखकर काफ़ी इम्प्रेस हुई। खाना खाने के बाद दोनों ने हल्की-फुल्की बातें कीं। साथ वक़्त बिताने की वजह से ध्रुव का मूड अब थोड़ा बेहतर हो चुका था। “रात बहुत हो गई है, ध्रुव, अब हमें सोने जाना चाहिए।” ग्रीष्मा ने अपने मोबाइल स्क्रीन में टाइम देखा, तो रात के 11:00 बज रहे थे। “हाँ, ठीक है। मैंने यहाँ पर हम दोनों के रुकने का अरेंजमेंट करवा दिया था। सुबह मिलते हैं।” ध्रुव ने ग्रीष्मा के माथे पर हल्के से किस किया। “डोंट वरी, मैं तुम्हारे लिए और भी सरप्राइज़ इस तरह तैयार कर लूँगा, और उन्हें ख़राब करने वाला कोई नहीं होगा।” “मुझे इंतज़ार रहेगा।” ग्रीष्मा ने मुस्कुराकर कहा। एक-दूसरे को गुड नाइट बोलने के बाद दोनों सोने जा चुके थे। अपने कमरे में आते ही ध्रुव ने वेडिंग प्लानर को कॉल किया। “हेलो मिस गुप्ता..... मुझे आपकी भेजी हुई असिस्टेंट बिल्कुल पसंद नहीं आई। मैं नहीं चाहता कि आप उसे नौकरी से निकाले, लेकिन वह लड़की मेरे साथ बिल्कुल नहीं रहेगी। आप उसे वापस बुलवा लीजिए।” अपनी बात कहकर ध्रुव ने कॉल कट कर दिया। “अच्छा हुआ, जो तुमसे पीछा छूट गया। आई विश कि अब कभी तुम्हारा चेहरा देखने को ना मिले।” ध्रुव ने खुद से कहा और लाइट बंद करके सोने चला गया। °°°°°°°°°°°°°°°°
मिस्टर सिसोदिया ने तारा के रुकने का इंतज़ाम भी करवा दिया था। पैलेस घूमने के बाद उसने जीवन के साथ डिनर किया, और उसके बाद सोने जा चुकी थी। अगली सुबह ध्रुव, ग्रीष्मा के साथ मिस्टर सिसोदिया से मिलने गया। जीवन भी वहीं उनके साथ मौजूद था। “उम्मीद है सर, आपको और आपकी मंगेतर को यहाँ सब कुछ पसंद आ गया होगा।” मिस्टर सिसोदिया ने फ़ॉर्मली कहा। “रात को देर हो जाने की वजह से बात करने का मौक़ा ही नहीं मिला। आपने हॉल को काफ़ी अच्छे से डेकोरेट करवाया था, जबकि इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी।” ध्रुव ने कहा। उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए ग्रीष्मा भी बोली, “और अगर खाने की बात करूँ, तो वह सच में लाजवाब था।” “जी, आप तो जानते हैं कि हम लोग अपनी परम्पराओं को कितना महत्त्व देते हैं। बस उसी के हिसाब से मैंने तैयारियाँ करवाई थीं। बाक़ी अगर लोगों को नहीं पसंद आता है, तो उनकी खुशी के लिए बदलाव भी करवा देते हैं।” मिस्टर सिसोदिया ने बताया। ध्रुव की तरफ़ से पॉज़िटिव रिस्पांस देखकर वह बहुत खुश थे। “वैसे तो ध्रुव ने शादी के लिए वेडिंग प्लानर हायर कर लिया है, लेकिन रात की अरेंजमेंट्स देखकर मैं सच में बहुत इम्प्रेस हूँ। मैं चाहती हूँ कि शादी के मेन फ़ंक्शन्स का काम आप ही संभालें।” ग्रीष्मा ने खुश होकर कहा। मिस्टर सिसोदिया को अभी तक इस बात का पता नहीं था कि तारा और जीवन ने वहाँ सब कुछ बदल दिया था। जीवन सब कुछ समझ गया था। वहाँ तारीफ़ मिस्टर सिसोदिया द्वारा की गई अरेंजमेंट्स की नहीं, बल्कि तारा की मेहनत की हो रही थी। “जी शुक्रिया.....” जीवन ने बीच में बोलते हुए कहा, “लेकिन आप जिन अरेंजमेंट्स की बात कर रहे हैं, वह हमने नहीं करवाई थीं।” उसकी बात सुनकर मिस्टर सिसोदिया के साथ-साथ ध्रुव और ग्रीष्मा भी चौंक गए। तभी तारा भी वहाँ पर आ गई। जीवन ने तारा की तरफ़ इशारा करके कहा, “हमारी अरेंजमेंट्स काफ़ी सिम्पल थीं, जबकि तारा जी चाहती थीं कि आपका डिनर थोड़ा स्पेशल हो, इसलिए उन्होंने खुद वह सब तैयारियाँ की थीं।” जीवन ने बताया। “आपको पसंद आया?” तारा ने खुश होकर पूछा। “हाँ, तारा, सब कुछ बहुत ब्यूटीफ़ुल था। अब मुझे समझ में आया कि ध्रुव की चॉइस बिल्कुल परफ़ेक्ट थी। तुमने सब कुछ बहुत अच्छे से किया।” ग्रीष्मा ने जवाब में कहा। “हाँ, कल रात मेरी वजह से आपका सरप्राइज़ ख़राब हो गया। मैंने देखा कैसे इनकी शक्ल पर बारह बज रहे थे। जानती हूँ, मेरी गलती है, लेकिन मैंने जानबूझकर नहीं किया था। मेरी वजह से आप दोनों का मूड ख़राब हुआ, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों ना मैं ही कुछ ऐसा करूँ, जिसकी वजह से आप दोनों का मूड अच्छा हो जाए।” तारा ने जल्दी-जल्दी बोलते हुए कहा। उसकी तरफ़ देखते हुए मिस्टर सिसोदिया के चेहरे पर हल्की स्माइल आ गई। “एक शुक्रिया हम भी आपको कहना चाहेंगे। आप हमारे पैलेस के लिए काम नहीं करतीं, उसके बावजूद आपने यहाँ के काम को बेहतर बनाने का सोचा।” मिस्टर सिसोदिया ने तारा से कहा। “कोशिश काफ़ी अच्छी थी, मिस तारा, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता। कल रात को मेरी शक्ल पर बारह बज रहे थे, लेकिन लगता है अब वही बारह आपकी शक्ल पर बजने वाले हैं।” ध्रुव ने सख़्त आवाज़ में कहा। उसे तारा का इतना फ़्रेंडली होना अच्छा नहीं लग रहा था। तारा उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाई। वह कुछ पूछ पाती, उससे पहले उसके पास वेडिंग प्लानर का कॉल आया। “तारा..... तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। तुम जहाँ भी जाती हो, बस गड़बड़ ही करती हो। मैंने तुम्हें जाने से पहले भी वार्निंग दी थी कि यह तुम्हारा लास्ट चांस है। अगर यहाँ से भी तुम्हारी शिकायत आई, तो मैं तुम्हें काम से निकाल दूँगी।” सामने से तारा की बॉस, मिस गुप्ता बोल रही थी। उसकी बात सुनकर तारा का मुँह उतर गया। उसने ध्रुव की तरफ़ घूरकर देखा। “लगता है बारह बज गए हैं।” ध्रुव ने तारा की तरफ़ देखकर भौंहें उठाकर कहा। “यह तुमने क्या किया, ध्रुव..... मैंने तुम्हें मना किया था ना.....” ग्रीष्मा ने सिर हिलाकर कहा। मिस्टर राम सिंह सिसोदिया और जीवन एक-दूसरे की तरफ़ देख रहे थे। उन्हें ध्रुव से इस तरह के बर्ताव की उम्मीद नहीं थी। तारा के हाथ से इतना बड़ा काम चला गया था, तो दुख से उसकी आँखें नम होने लगी थीं। उसने धीरे से कहा, “ठीक है मैम, मैं आ जाऊँगी।” “तुम आओ या ना आओ, मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अब तुम मेरी एजेंसी में काम नहीं कर सकती। आकर अपनी सैलरी ले जाना।” इतना कहकर मिस गुप्ता ने कॉल कट कर दिया था। तारा ने गुस्से में ध्रुव की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। उन सब लोगों को तारा की शक्ल देखकर लगा कि वह अभी गुस्से में सब पर चिल्ला देगी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और ऊपर अपना बैग लाने चली गई। “ध्रुव, दिस वाज़ टोटली अनएक्सपेक्टेड, स्पेशली फ़्रॉम यू.....” ग्रीष्मा ने अपनी नाराज़गी जताई। “बाद में बात करते हैं, मिस्टर सिंघानिया..... जीवन, तुम मेरे साथ आओ।” मिस्टर राम सिंह सिसोदिया ने उन दोनों के बीच में बोलना ज़रूरी नहीं समझा। वह जीवन को लेकर वहाँ से चले गए। “मिस्टर सिंघानिया से मुझे यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। माना कि छोरी से गलती हो गई होगी, लेकिन काम से निकलवाना? किसी की रोज़ी-रोटी छीनना भला काम ना होवे है।” वहाँ से हटने के बाद मिस्टर सिसोदिया ने कहा। वह उससे टिपिकल राजस्थानी भाषा में बात कर रहे थे। “बुरा तो मुझे भी बहुत लग रहा है सर..... मुझे नहीं पता इन दोनों के बीच क्या हुआ होगा, लेकिन रात को तारा बिना अपना फ़ायदा-नुक़सान सोचे मिस्टर सिंघानिया का मूड सही करने के लिए इतनी मेहनत कर रही थी। वह हमारे पैलेस की मेहमान थी। चाहती तो यहाँ काम करने वाले लोगों को भी सब कुछ समझा सकती थी। पर उसने सब कुछ अपने हाथों से किया। इससे साफ़ पता चलता है कि लड़की कितनी मेहनती है।” जीवन ने रात की सारी बात मिस्टर सिसोदिया के सामने रख दी। रात को उसे उनसे बात करने का मौक़ा नहीं मिला। कुछ ही समय में उसने तारा को अच्छे से समझ लिया था। “मैं देखता हूँ, कुछ किया जा सके तो.....” बोलते हुए अचानक मिस्टर सिसोदिया रुक गए। उन्होंने देखा, तारा अपने सामान के साथ वहाँ से गुज़र रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे। जाते वक़्त वह जीवन और मिस्टर सिसोदिया के पास आई। “आपका राज-महल देखने में वाक़ई बहुत सुन्दर है। आज से पहले मैंने इतनी ख़ूबसूरत जगह नहीं देखी। आपने जो ख़ातिरदारी की, उसके लिए आपका धन्यवाद। चलती हूँ..... नमस्ते।” तारा ने अपने दोनों हाथ जोड़कर भारी आवाज़ में कहा और अपना सामान लेकर वहाँ से जाने लगी। “सुनो.....” मिस्टर सिसोदिया ने उसे पीछे से आवाज़ लगाई। “अगर तुम्हारे घर वाले तुम्हें यहाँ रुकने की इजाज़त दें, तो तुम यहाँ काम कर सकती हो।” उनकी बात सुनकर तारा उनकी तरफ़ मुड़ी। उसने मुस्कुराकर कहा, “आपके मान-सम्मान के लिए शुक्रिया..... लेकिन मैं अपने लायक काम ढूँढ दूँगी।” अपनी बात कहकर तारा वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद मिस्टर सिसोदिया ने कहा, “घणी खुद्दार लड़की है। खूब आगे तक जाएगी।” “मैं उसे बाय बोलकर आता हूँ।” जीवन ने कहा और तारा के पीछे जाने लगा। बाहर ग्रीष्मा और ध्रुव खड़े थे। ध्रुव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, जबकि ग्रीष्मा के चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था कि वह ध्रुव की इस हरकत पर खुश नहीं हैं। ग्रीष्मा तारा के पास आकर दबी आवाज़ में बोली, “डोंट वरी, मैं ध्रुव को मना लूँगी। तुम वापस गुजरात मत जाना।” “अब उसका कोई फ़ायदा नहीं है, मैम। उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया है।” तारा ने जवाब में कहा। “उन्होंने निकाल दिया है, तो क्या हुआ? तुम्हारी अरेंजमेंट्स बहुत अच्छी थीं। मुझे तुम भी अच्छी लगी। तुम एक काम करो, जोधपुर घूमो, यहाँ की राज कचोरी और दाल-बाटी-चूरमा खाओ। मैं तुम्हें शाम को यहीं पैलेस में मिलती हूँ।” ग्रीष्मा ने आई-विंक करके कहा। “लेकिन ध्रुव सर तो.....” तारा हैरानी से बोली। ग्रीष्मा ने उसकी बात बीच में काटकर कहा, “मैं अच्छे से जानती हूँ, ध्रुव को कैसे मनाना है। अभी के लिए यहाँ से जाओ।” तारा को ग्रीष्मा की बात समझ नहीं आ रही थी। फिर भी उसने हामी भरी और वहाँ से चली गई। “अगर तुम्हारा इस लड़की से बात करना हो गया हो, तो यहाँ से वापस चलें?” ध्रुव ने पूछा। “नहीं, ध्रुव..... मैं आज पहली बार जोधपुर आई हूँ, और तुम मुझे सीधे ही यहाँ से लेकर जा रहे हो। मैं कुछ नहीं जानती, मुझे पूरा जोधपुर घूमना है।” ग्रीष्मा ने जवाब दिया। “थोड़ी देर पहले तो तुम मुझसे नाराज़ थी। मुझे लगा था कि तुम उस लड़की के लिए मुझसे झगड़ा करोगी।” ध्रुव ने चौंकते हुए पूछा। “ऐसा कुछ नहीं है..... और उसके बाद में हम बाद में आराम से बात करेंगे।” ग्रीष्मा ने बात को टाल दिया। ध्रुव को उसका बदला हुआ बर्ताव समझ नहीं आ रहा था। उसने ज़्यादा कुछ नहीं पूछा और उसके बाद पर सहमति जताते हुए उसे घुमाने के लिए ले जाने लगा। जबकि ग्रीष्मा मन ही मन तारा को वापस लाने के बारे में प्लान बना रही थी। °°°°°°°°°°°°°°°°
ध्रुव ने तारा को उसकी नौकरी से निकलवा दिया था। ध्रुव का यह बर्ताव ग्रीष्मा को पसंद नहीं आया। उसने तारा को एक दिन और जोधपुर रुकने के लिए मना लिया। “तुम लड़कियां सच में बहुत अजीब होती हो! दस मिनट पहले तुम मुझ पर गुस्सा हो रही थीं कि मैंने उसे नौकरी से निकलवा दिया, और अब…”, ध्रुव ने कार ड्राइव करते हुए कहा। ग्रीष्मा उसके पास वाली सीट पर बैठी थी। उसने जवाब में बोला, “क्या बात है, बेबी? मुझसे ज़्यादा याद तो तुम्हें उसकी आ रही है… वैसे, लड़की सच में बहुत अच्छी थी, और मुझे उसके प्रयास भी काफी पसंद आए।” उसकी बात सुनकर ध्रुव ने अपनी आँखें घुमाईं। “अच्छा हुआ जो चली गई, वरना मुझे शादी तक उसकी किटकिट झेलनी पड़ती।” “चलो, वह नहीं तो कोई और सही… वेडिंग प्लानर तुम्हारे लिए कोई दूसरी असिस्टेंट अरेंज कर देगी। अच्छा, ध्रुव, तुम्हारे लिए तो नई असिस्टेंट आ जाएगी, लेकिन तुमने मेरा तो सोचा ही नहीं।” ग्रीष्मा ने बात घुमाते हुए कहा। ध्रुव ने एक नज़र उसकी तरफ़ देखा और फिर जवाब दिया, “तुम्हें सच में इन सब के लिए असिस्टेंट की ज़रूरत है? तुम्हारे पास ऑलरेडी मेरी ओर तुम्हारी मॉम है, जो दिन-रात तुम्हारी हर एक चीज़ का ख्याल रखती है।” “हाँ, लेकिन मुझे भी स्पेशल ट्रीटमेंट चाहिए। ऐसा करती हूँ, मैं भी अपने लिए किसी को हायर कर लेती हूँ।” ग्रीष्मा ने कंधे उचकाकर जवाब दिया। “जैसा तुम्हें ठीक लगे।” ध्रुव ने मुस्कुरा कर कहा। वह गाड़ी चलाने में व्यस्त था, जबकि ग्रीष्मा तारा के बारे में सोच रही थी। “तुम ध्रुव की ना सही, लेकिन मेरी असिस्टेंट बनकर रह सकती हो, तारा… आई नो, ध्रुव मेरे इस डिसीजन से थोड़ा इरिटेट होगा, लेकिन इसी बहाने मेरे मन में यह गिल्ट तो नहीं रहेगा कि ध्रुव की वजह से तुम्हारी जॉब चली गई।” ध्रुव को बिना बताए ग्रीष्मा ने तारा को अपने असिस्टेंट के तौर पर हायर कर लिया था। उसने अभी के लिए ध्रुव को कुछ ना बताने का निश्चय किया। __________ ध्रुव और ग्रीष्मा पूरे दिन साथ में घूमते रहे। रात को डिनर के लिए ग्रीष्मा ने वापस पैलेस चलने की ज़िद की। “तुम आज सच में बहुत अजीब हरकतें कर रही हो। जोधपुर में और भी अच्छी जगहें हैं। यहाँ का टेस्ट तो हम पहले भी ट्राई कर चुके हैं, कहीं और चलते हैं ना…”, ध्रुव ने गाड़ी रोकने से पहले पूछा। “मैंने कहा ना, मुझे यहीं का खाना खाना है। दूसरी बात, मेरे यहाँ आने की एक और वजह है।” ग्रीष्मा बोली। “कौन सी वजह?” ध्रुव ने हैरानी से पूछा। “बेबी, मैं तुम्हें यहाँ किसी से मिलाने के लिए लाई हूँ। अब चुपचाप मेरे साथ चलो, और हाँ, अपने गुस्से को अपनी पॉकेट में रखना।” ग्रीष्मा ने गाड़ी से उतरकर कहा। “इसने कभी मुझे बताया नहीं कि जोधपुर में इसके जान-पहचान वाला भी कोई है।” ध्रुव उसके पीछे बड़बड़ाता हुआ आ रहा था। इस बार वे दोनों पैलेस में जाने के बजाय पैलेस के होटल में गए। तारा पहले से वहीं पर आई हुई थी और उन दोनों के आने का इंतज़ार कर रही थी। ग्रीष्मा अंदर पहुँची। उसके साथ ध्रुव भी था। उसकी नज़रें तारा को ढूँढ रही थीं। तारा ने जब ग्रीष्मा को देखा तो वह अपनी जगह से खड़ी हुई और उसकी तरफ़ हाथ हिलाकर जोर से बोली, “ग्रीष्मा मैम… मैं यहाँ हूँ।” जैसे ही ध्रुव ने तारा को देखा, उसके चेहरे पर गुस्सा था। उसने ग्रीष्मा की तरफ़ घूरकर देखा। “क्या तुम मुझे यहाँ इस लड़की से मिलाने के लिए लाई हो?” उसने गुस्से में पूछा। “मैं तुम्हें यहाँ अपनी नई असिस्टेंट से मिलवाने के लिए लाई हूँ। बाकी तुम किसकी बात कर रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।” ग्रीष्मा ने लापरवाही से जवाब दिया। ध्रुव उसकी बात का कोई जवाब देता, उससे पहले ग्रीष्मा वहाँ से तारा की टेबल के पास चली गई। मजबूरन ध्रुव को भी उसके पीछे आना पड़ा। “तुम अभी तक गई नहीं यहाँ से?” ध्रुव ने चेयर पर बैठते हुए कहा। “ओह, हेलो… भले ही मैं यहाँ आपके काम के लिए आई थी, लेकिन जोधपुर आपके पापा जी का तो है नहीं, जो आपने कहा और चली जाऊँ।” तारा ने आँखें तरेरकर जवाब दिया। “जोधपुर मेरे पापा जी का नहीं है, लेकिन अभी तुम जिससे मिलने आई हो, वह मेरी होने वाली वाइफ है।” ध्रुव चिढ़कर बोला। “अब तुम दोनों बहस करना बंद करोगे? ध्रुव, मैंने तारा को अपनी असिस्टेंट के तौर पर हायर किया है।” ग्रीष्मा उन दोनों की बहस को बंद कराते हुए बीच में बोली। “अगर हायर कर लिया है तो वापस निकाल दो। मुझे यह लड़की अपने आसपास नहीं चाहिए।” ध्रुव ने गुस्से में कहा। “मैं इस बार आपके कहने पर चली जाने वाली नहीं। आपको मुझे काम पर नहीं रखना तो मत रखिए ना… क्या कहा आपने, मैं आपके आसपास नहीं होनी चाहिए… यकीन मानिए, मिस्टर ध्रुव सिंघानिया, मुझे आपके आसपास रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं तो चाहती हूँ कि आप मुझसे दूर रहें… दूर से भी दूर… इतना दूर जितना कि…” बोलते हुए तारा रुक गई और कुछ सोचने लगी। ध्रुव और ग्रीष्मा उसकी तरफ़ देख रहे थे। अचानक तारा ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, “जितना कि ध्रुव-तारा है।” उसकी बात सुनकर ग्रीष्मा के चेहरे पर मुस्कान थी, जबकि ध्रुव गुस्से से उसे घूर रहा था। “ध्रुव, तुम्हें यह पसंद आई हो या ना आई हो, लेकिन मुझे यह बहुत अच्छी लगी। अभी-अभी इसकी सेंटेंस से पता चला कि तुम दोनों का नाम भी एक साथ लिया जाता है… ध्रुव-तारा…” ग्रीष्मा ने कहा। “मेरा नाम कभी इसके साथ नहीं जुड़ सकता।” उसकी बात सुनकर ध्रुव ने गुस्से में जवाब दिया और वहाँ से उठकर चला गया। “लगता है यह आपसे भी नाराज़ हो गए। मेरे आने के एक ही दिन में आप दोनों के बीच इतना कुछ हो गया। मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए। आप किसी और को हायर कर लीजिएगा।” तारा उठकर जाने लगी। ग्रीष्मा ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोका। “तुम उसकी फ़िक्र मत करो। कभी-कभी वह बहुत ज़्यादा इरिटेट हो जाता है। तुम बैठो यहाँ।” ग्रीष्मा ने कहा। “आपने मुझे काम पर रखा, इस वजह से वह बेवजह आपसे झगड़ा करेंगे। कहीं ना कहीं मैं आप दोनों के बीच में आ गई हूँ।” तारा ने वहाँ बैठते हुए जवाब दिया। ग्रीष्मा ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कहा, “हम दोनों के बीच में कोई नहीं आ सकता। रही बात झगड़ा करने की तो ध्रुव मुझसे कभी नाराज़ हो ही नहीं सकता, और तुम मेरे लिए काम कर रही हो। ध्रुव को मैं समझा लूँगी, लेकिन तुम अब पीछे मत हटना।” तारा ग्रीष्मा के लिए काम नहीं करना चाहती थी, लेकिन ग्रीष्मा ने जैसे-तैसे करके उसे मना ही लिया था। “आप गुजरात से हैं ना? क्या मुझे आपके साथ वापस गुजरात चलना होगा?” काम के लिए हाँ कहने के बाद तारा ने पूछा। “भले ही मैं गुजरात से हूँ, लेकिन ध्रुव की फैमिली जयपुर से है। शादी की तैयारियाँ अच्छे से हो जाएँ, इसलिए दोनों फैमिली एक साथ ध्रुव के घर पर रुकी है। तुम भी हमारे साथ वहीं पर चलना।” ग्रीष्मा ने बताया। “आपका सही है… मतलब शादी से पहले ही ससुराल वालों को अच्छे से देख-परख लो। दोनों में बहुत प्यार होगा ना… तभी दोनों की लव मैरिज हो रही है।” तारा झट से बोली। तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा हल्की सी हँसी और फिर जवाब में कहा, “जो हम दोनों से पहली बार मिलता है, उसे पहली बार में यही लगता है। तारा, हम दोनों की लव मैरिज नहीं, अरेंज मैरिज हो रही है। ध्रुव के पापा और मेरे पापा बरसों पुराने दोस्त हैं और साथ में बिज़नेस पार्टनर्स भी… उन्होंने अपनी दोस्ती रिश्तेदारी में बदलना तय किया और हम दोनों की शादी फ़िक्स कर दी।” “तब तो आप दोनों एक-दूसरे को काफी अच्छे से जानते होंगे।” तारा काफी एक्साइटेड होकर सब पूछ रही थी। “अब मैं यह भी नहीं कह सकती। हम दोनों एक-दूसरे से पहले भी मिल चुके हैं, लेकिन मैं पिछले कई सालों से न्यूयॉर्क में स्टडी कर रही थी। इस बीच ध्रुव से मिलना नहीं हुआ। मैं अभी तीन महीने पहले ही वापस लौटी हूँ, तब ही मुझे इस सगाई के बारे में पता चला।” ग्रीष्मा ने अपने और ध्रुव के बारे में तारा को सब कुछ बता दिया था। वह उन दोनों की कहानी बहुत गौर से सुन रही थी। “क्या आपको इस शादी से कोई एतराज नहीं है?” तारा ने हैरानी से पूछा। “मुझे क्यों एतराज होगा? ध्रुव अच्छा लड़का है और साथ ही मेरे मॉम-डैड को पसंद है। चलो, अब इन सब के बारे में छोड़ो और तुम खाना ऑर्डर करो। मैं ध्रुव को लेकर आती हूँ।” ग्रीष्मा ने कहा और वहाँ से ध्रुव को बुलाने के लिए बाहर आई। ध्रुव अपनी गाड़ी के पास खड़ा, ऊपर आसमान की तरफ़ तारों को देख रहा था। ग्रीष्मा उसके पास जाकर दोनों कान पकड़कर खड़ी हो गई। “आई नो, मैंने तुमसे बिना पूछे उसे काम पर रख लिया, लेकिन जिस तरह से तुमने उसे काम से निकाला था, मेरे मन में गिल्ट था कि हमारी वजह से उसकी नौकरी चली गई।” “तुम बहुत अच्छी हो, ग्रीष्मा, लेकिन ज़रूरी नहीं दुनिया में लोग इतने ही अच्छे हों।” बोलते हुए ध्रुव ने ग्रीष्मा को गले लगा लिया। “मुझे पता था तुम मुझसे नाराज़ रहोगे नहीं। वैसे भी, सिर्फ़ पन्द्रह दिन की ही तो बात है। पन्द्रह दिन बाद जब हमारी शादी हो जाएगी तो वह लड़की यहाँ से वापस चली जाएगी।” ग्रीष्मा ने उसे मनाते हुए कहा। “ठीक है… लेकिन उसे समझा देना कि वह मुझसे दूर रहे।” ध्रुव ने ग्रीष्मा से अलग होकर कहा। “ओके… अब गुस्सा छोड़ो। चलो ना, अंदर चलते हैं। मुझे बहुत भूख लगी है।” ग्रीष्मा ने ध्रुव के जवाब का इंतज़ार किए बिना ही उसे खींचकर अंदर ले जाने लगी। अंदर तारा ने खाना ऑर्डर कर लिया था और वह उन दोनों के आने का इंतज़ार कर रही थी। ग्रीष्मा के साथ ध्रुव को देखकर तारा समझ गई थी कि उसने उसे मना लिया होगा। तीनों ने साथ में डिनर किया। खाना खाते वक़्त ध्रुव ने एक शब्द भी नहीं बोला और वह चुपचाप तारा की तरफ़ घूरकर देख रहा था। उसे ग्रीष्मा का डिसीजन अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसकी ज़िद के आगे वह कुछ नहीं कह सका। खाना खाने के बाद वे तीनों साथ में जयपुर के लिए रवाना हो चुके थे। °°°°°°°°°°°°°°°°
तारा, ग्रीष्मा और ध्रुव के साथ जयपुर जा रही थी। गाड़ी की फ्रंट सीट पर ध्रुव और ग्रीष्मा बैठे थे, जबकि तारा बैक सीट पर थी। तारा के साथ होने की वजह से ध्रुव को झुंझलाहट हो रही थी। वह बिना कुछ बोले, चुपचाप गाड़ी चला रहा था। गाड़ी में बैठने के कुछ देर बाद ही तारा को नींद आ गई, और वह खर्राटे ले कर मजे से सो रही थी। “मेरी नींद हराम करके कितने बजे से खर्राटे लेकर सो रही है यह लड़की…”, ध्रुव बड़बड़ाकर बोला। “तारा की परेशानी दूर हो गई, इसलिए वह आराम से सो रही है।” ग्रीष्मा ने जवाब में कहा। “हाँ, सुन रहा हूँ मैं कि तुम्हारी तारा कितने आराम से सो रही है।” ध्रुव मुँह बनाकर बोला। ध्रुव को चिढ़ते देख ग्रीष्मा के चेहरे पर स्माइल आ गई। वह बोली, “तुम अभी तक इससे नाराज़ हो? देखो ना, कितनी स्वीट है यह।” बोलते हुए ग्रीष्मा ने पीछे की सीट पर तारा को देखा। ध्रुव ने ग्रीष्मा की बात का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप गाड़ी चलाने लगा। उसे तारा के खर्राटों की आवाज़ इरिटेट कर रही थी। “मेरे होते हुए मैं तुम्हें चैन की नींद तो बिल्कुल नहीं सोने दूँगा, तारा…”, ध्रुव ने सोचा और अपना हाथ म्यूज़िक सिस्टम की ओर बढ़ाया। उसने म्यूज़िक ऑन किया और उसका साउंड लाउड कर लिया। “यह तुम क्या कर रहे हो, ध्रुव? तारा सो रही है। शोर सुनेगी तो उठ जाएगी।” ग्रीष्मा ने म्यूज़िक की आवाज़ कम की। “इसके खर्राटों की आवाज़ सुनकर मुझे इरिटेशन हो रही है। मैं ड्राइव कर रहा हूँ, ग्रीष्मा, मुझे फ़ोकस करने की ज़रूरत है।” ध्रुव ने बहाना बनाया। “लेकिन यह जाग जाएगी।” ग्रीष्मा ने सख्ती से कहा। “जिस हिसाब से यह खर्राटे ले रही है, यहाँ पर बम ब्लास्ट भी हो जाएगा, तब भी यह नहीं उठेगी।” ध्रुव ने मुँह बनाकर कहा और फिर से म्यूज़िक लाउड कर दिया। ध्रुव ने तेज म्यूज़िक इसलिए किया था ताकि तारा सो ना सके। लेकिन वह अभी भी मजे से सो रही थी। उसे तेज म्यूज़िक का कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। ध्रुव को इससे और भी चिढ़ हो रही थी। __________ सुबह के लगभग चार बजे वे तीनों जयपुर पहुँचे। ध्रुव काफी थक चुका था। ग्रीष्मा भी गाड़ी में सोई हुई थी। “अब इन दोनों को एक साथ अंदर कैसे लेकर जाऊँ?” ध्रुव ने खुद से कहा और एक नज़र अपने घर की तरफ़ देखी। घर की लाइट्स बंद थीं। सिक्योरिटी गार्ड ने ध्रुव की गाड़ी आती देखी, तो मेन डोर खोला। उनका घर बिल्कुल किसी महल की तरह था। जल्द ही ध्रुव और ग्रीष्मा की शादी होने वाली थी, इस वजह से ग्रीष्मा की फैमिली भी वहीं पर आई हुई थी। ध्रुव गाड़ी से उतरा और अपनी कार के पीछे का दरवाज़ा खोलकर तारा को जगाने की कोशिश करने लगा। “हे तारा… चलो उठो, घर आ गया है।” वह बार-बार तारा को उठाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन तारा आराम से सो रही थी। “इसका नाम तारा नहीं, बल्कि मुसीबत होना चाहिए था। जब से मिली है, कोई न कोई नई प्रॉब्लम खड़ी कर रही है।” ध्रुव ने आँखें घुमाकर कहा। उसने पानी की बोतल निकाली और तारा के मुँह पर उड़ेल दी। “बारिश हो रही है… कोई…”, तारा आँख मलती हुई उठी, तो उसने सामने ध्रुव को पाया। “क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी? अब क्या चैन से सोने भी नहीं दोगे?” “तुम्हारी? माइंड योर लैंग्वेज, मिस तारा।” ध्रुव ने भौंहें उठाकर कहा। “तो क्या गलत कह दिया? अब मैं आपके लिए काम नहीं करती, तो आपको जो चाहे कहूँ। चलिए, अब साइड हटिए और मुझे मेरे रुकने की जगह बता दीजिए।” बोलते हुए तारा गाड़ी से बाहर आई। ध्रुव ने ग्रीष्मा को जगाना सही नहीं समझा और उसे अपनी गोद में उठाकर अंदर ले जाने लगा। तारा उसके पीछे-पीछे आ रही थी। “यह सही है इसका, अपनी गर्लफ्रेंड को नहीं जगाया और मेरे ऊपर सीधा पानी डाल दिया। किसी दिन इससे इस बात का बदला ज़रूर लूँगी।” तारा खुद से बातें करते हुए अंदर आ रही थी। उसने देखा ध्रुव का घर भी काफी बड़ा और बिल्कुल किसी महल की तरह था। उसके घर को देखने के बाद तारा ने सोचा, “तभी मैं कहूँ कि इसमें इतना घमंड क्यों है? अब महल जैसे घर में रहता है, तो एटीट्यूड तो होगा ही… सही है इनका… बड़े-बड़े लोग, बड़े-बड़े घर और उससे भी बड़ा एटीट्यूड…” तारा खोए हुए अंदाज़ में अंदर चल रही थी। अंदर आते ही ध्रुव ने लाइट ऑन की। “उधर गेस्ट रूम है, तो वहाँ जाकर सो जाओ।” ध्रुव ने उसे एक कमरे की तरफ़ इशारा करके कहा। “और ग्रीष्मा मैम? आप इन्हें कहाँ लेकर जाओगे?” तारा ने सिर हिलाकर पूछा। “फ़ॉर योर इनफ़ॉर्मेशन, यह मेरी होने वाली वाइफ़ है, तो मुझे तुमसे ज़्यादा इसकी फ़िक्र है। अपने काम से मतलब रखो।” ध्रुव ने उसे रूखे तरीके से जवाब दिया और ग्रीष्मा को लेकर सीढ़ियों से ऊपर जाने लगा। तारा ने उसके पीछे से मुँह बनाया और उसके बताए हुए कमरे में चली गई। उसे ध्रुव के बर्ताव की वजह से उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था। “समझता क्या है यह अपने आप को? एक बार इन दोनों की शादी हो जाए, उसके बाद इस आदिमानव की शक्ल तक नहीं देखूँगी।” तारा गुस्से में बड़बड़ाई और लाइट ऑफ़ करके सो गई। ________ अगली सुबह तारा देर तक सो रही थी, लेकिन ध्रुव और ग्रीष्मा बाकी परिवार के साथ मौजूद थे। ध्रुव की माँ, रत्ना जी और ग्रीष्मा की माँ, सरिता जी, दोनों ध्रुव की दादी के पास बैठकर शादी की प्लानिंग कर रहे थे। ध्रुव, ग्रीष्मा के डैड, भावेश जी के पास बैठकर लैपटॉप में कुछ ज्वेलरी की डिज़ाइन्स देख रहा था। “आजकल कुंदन की ज्वेलरी काफी ट्रेंड में है, तो सोचा इस बार ज्वेलरी डिज़ाइन करते वक़्त इनका भी यूज़ किया जाए।” ध्रुव उन्हें डिज़ाइन दिखाते हुए बता रहा था। “तुम्हारी बिज़नेस की परख बहुत अच्छी है। आज तुम्हारे पापा होते, तो उन्हें तुम पर बहुत गर्व महसूस होता।” भावेश जी उसके बनाई डिज़ाइन्स देखकर काफी इम्प्रेस हुए। “साथ ही उन्हें इस बात की भी उतनी ही खुशी होती, कि उनका किया वादा निभाने के लिए ध्रुव हमारी ग्रीष्मा से शादी कर रहा है।” ग्रीष्मा की माँ, सरिता जी बोलते हुए उनके पास आई। सब आपस में हल्की-फुल्की बातें कर रहे थे और काफी खुश थे। लेकिन उनसे दूर एक लड़का और लड़की बैठे थे, जो कि मुँह बनाकर उन सब की बातें सुन रहे थे। “तुझे नहीं लगता, डब्बू, आजकल हमारे भैया बड़े होने से पहले ही बूढ़े हो गए हैं।” लड़के ने अपने पास बैठी लड़की से कहा। लड़के ने डेनिम कैप्री और टीशर्ट पहन रखा था। साथ में कैप लगा रखा था। डब्बू ने उसका कैप उतारकर अपने सर पर लगा लिया। उसके पूरे बाल चोटियों के रूप में गुँथे हुए थे। “सही कह रहे हो तुम, चिंटू, ऊपर से इनकी तो शादी भी हो रही है। भाई, कितने संस्कारी हैं! यह हमारे बड़ों के बीच में बैठकर बातें करते हैं, जबकि मुझे तो इनकी बातें ठीक से समझ तक नहीं आती।” डब्बू ने जवाब दिया। दोनों अपनी ही धुन में लगे थे कि तभी ध्रुव की दादी, गायत्री जी ने उन दोनों को आवाज़ लगाई। “डब्बू… चिंटू, तुम दोनों वहाँ पर बैठकर क्या कर रहे हो? तुम दोनों भी हमारे पास आकर कुछ बातें करो।” “रहने दीजिए, माँ, इन्हें हमारी बातें बोरिंग लगती होंगी।” रत्ना जी ने जवाब दिया। उनकी बात सुनकर सब मुस्कुरा दिए, जबकि डब्बू और चिंटू के मुँह बन गए। ग्रीष्मा भी वहीं पर मौजूद थी और टेबलेट में कुछ मैसेज देख रही थी। तभी अचानक उसे तारा का ख्याल आया, तो उसने ध्रुव को आवाज़ लगाकर कहा, “ध्रुव, हम उसके बारे में तो भूल ही गए थे। कहाँ है वह?” “तुम्हें क्या लगता है, ग्रीष्मा, कहाँ जा सकती है? मैडम अभी तक मजे से गेस्ट रूम में खर्राटे लेकर सो रही होगी। वह मुसीबत इतनी आसानी से हमारे सिर से नहीं हटने वाली।” ध्रुव ने इरिटेट होकर जवाब दिया। “तुम दोनों किसकी बातें कर रहे हो?” ध्रुव की माँ, रत्ना जी ने पूछा। “माँ, है एक मुसीबत, जिसे जबरदस्ती ग्रीष्मा ने अपने और मेरे गले बाँध दिया। ग्रीष्मा ने शादी की तैयारियों के लिए अपने लिए एक असिस्टेंट हायर की है, वह गेस्ट रूम में सो रही है। तारा नाम है उसका।” ध्रुव ने बताया। ध्रुव के मुँह से तारा के बारे में जानकर डब्बू और चिंटू एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। उन दोनों के चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी। “भाई के लिए मुसीबत, इसका मतलब हमारे लिए फ़रिश्ता…” डब्बू ने आँख मारकर कहा। “अब तो इस मुसीबत से मिलना पड़ेगा।” चिंटू ने जवाब में कहा। वे दोनों दबे पाँव वहाँ से गेस्ट रूम में जाने लगे। किसी का उन दोनों की तरफ़ ध्यान नहीं गया। “ग्रीष्मा, क्या ज़रूरत है तुम्हें असिस्टेंट हायर करने की? हम सब लोग हैं तो सही, तुम्हारी मदद के लिए?” सरिता जी ने कहा। “आई नो, मॉम… आप लोग हैं… लेकिन अब वह भी आ गई है। तारा एनी टाइम मेरे साथ रहेगी, तो मेरी हेल्प हो जाएगी।” ग्रीष्मा ने जवाब दिया। “हेल्प-वेल्प कुछ नहीं होने वाली। देखना, वह तुम्हारे काम बढ़ा देगी। तुम उससे हेल्प की उम्मीद कर रही हो, जो अब तक उठी तक नहीं…” ध्रुव ने कहा। “सही ही तो कह रहा है, ध्रुव। दस बज गए हैं। सब लोग नाश्ता करके अपने-अपने काम में लग चुके हैं, लेकिन वह लड़की अभी तक नींद से नहीं उठी। वह तुम्हारी क्या खाक मदद करेगी।” गायत्री जी ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई। ग्रीष्मा का असिस्टेंट रखना किसी को भी पसंद नहीं आ रहा था। उसने उस वक़्त किसी से कुछ नहीं कहा और तारा को जगाने के लिए उसके कमरे में जाने लगी। तभी ध्रुव ने उसे रोकते हुए कहा, “कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें उसे उठाने जाने की, वह तुम्हारी असिस्टेंट है, ना कि तुम उसकी। उसे अब जितना सोना है, जी भर के सोने दो। उसे कैसे सबक सिखाना है, मैं अच्छे से जानता हूँ।” ध्रुव के कहने पर ग्रीष्मा को वहीं पर रुकना पड़ा। वह तारा को कॉल करके उठाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह अभी तक आराम से सो रही थी। °°°°°°°°°°°°°°°°
तारा, ग्रीष्मा और ध्रुव के साथ जयपुर आ चुकी थी। अगले दिन, सब उठकर अपने-अपने दिनचर्या में लग गए थे, जबकि तारा देर तक सो रही थी। ध्रुव के छोटे भाई-बहन, डब्बू और चिंटू, तारा से मिलने के लिए गेस्ट रूम में आए। तारा के मोबाइल में ग्रीष्मा का कॉल आ रहा था; उसके बावजूद वह आराम से सो रही थी। डब्बू ने तारा का मोबाइल उठाया और कॉल साइलेंट करके कहा, “लगता है यह हमारी टाइप की है। इनसे अच्छी जमेगी।” “सही कहा, डब्बू… चलो, कोई तो हमारे जैसा मिला। इसका प्लस पॉइंट यह है कि इसे ध्रुव भैया बिल्कुल पसंद नहीं करते।” चिंटू ने सीरियस टोन में कहा। “लेकिन माइनस पॉइंट यह है कि यह ग्रीष्मा को पसंद है। फिर भी, यहाँ तक आ ही गए हैं, इनसे दोस्ती भी कर लेते हैं। क्या पता यह हमारे काम आए… रुको, मैं इसे उठाती हूँ।” डब्बू ने कहा और इधर-उधर देखा। बेड साइड पर पानी का गिलास रखा हुआ था। उसने पूरा का पूरा गिलास तारा के मुँह पर उड़ेल दिया। पानी गिरने पर तारा हड़बड़ाकर उठी। उसने सामने डब्बू और चिंटू को देखा, जो उसकी तरफ़ मुस्कुराकर देख रहे थे। “इस घर के लोगों की प्रॉब्लम क्या है? ठीक से जगाना नहीं आता क्या? ऐसे सोते हुए इंसान के ऊपर कौन पानी डालता है?” तारा ने मुँह बनाकर कहा। “अरे, आप तो नाराज़ हो गईं।” डब्बू ने उसके पास बैठकर कहा। “अब तुम दोनों ने हरकत ही ऐसी की है। चलो, बताओ तुम दोनों कौन हैं?” तारा ने पूछा। चिंटू ने उन दोनों का परिचय देते हुए कहा, “मैं साहित्य और यह मेरी बहन, साक्षी…” “और मैं तारा…” उनके बाद तारा ने अपना नाम बताया। “वैसे, सब हमें प्यार से डब्बू और चिंटू बुलाते हैं। हम ध्रुव भैया के छोटे भाई-बहन हैं।” डब्बू ने बताया। तारा ने उन दोनों की तरफ़ घूरकर देखा और फिर कहा, “तुम दोनों को मेरी जासूसी करने के लिए यहाँ तुम्हारे भैया ने भेजा है ना?” “अरे, नहीं-नहीं, आप हमें गलत समझ रही हैं। हम तो आपसे दोस्ती करने आए हैं।” डब्बू ने कहा। “मुझसे दोस्ती? और वह क्यों?” तारा ने हैरानी से पूछा। चिंटू भी डब्बू के पास बैठ गया और धीमी आवाज़ में कहा, “दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। हमने सुना आपकी और ध्रुव भैया के बीच ज़्यादा बनती नहीं, तो सोचा आपसे दोस्ती कर लें। हमारी भी आजकल उनसे कुछ ख़ास नहीं बन रही।” डब्बू ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई। तारा ने उन दोनों को मुस्कुराते हुए थम्सअप किया। “हाँ, फिर तुम दोनों मेरी टीम में शामिल हो सकते हो।” “येप्स…” डब्बू ने कहा, और तीनों ने एक साथ हाई-फाई की। “वैसे, मैं तुम लोगों को तुम्हारे रियल नाम से ही बुलाऊँगी। डब्बू और चिंटू… यह कुछ बच्चों जैसे नाम लगते हैं, और तुम दोनों की बातें देखकर लगता है कि अब तुम दोनों बच्चे नहीं रहे।” तारा ने ड्रामेटिक तरीके से कहा। “चलो, किसी को तो समझ आया कि अब हम बच्चे नहीं रहे। वरना घरवाले तो हमें हर काम से दूर रखते हैं। उनके हिसाब से तो हम अभी तक किंडरगार्टन में पढ़ते हैं।” साक्षी (डब्बू) ने मुँह बनाकर कहा। “हम दोनों इतने बड़े हो गए, उसके बावजूद हमें कार ड्राइव करने को नहीं देते। हमारे साथ ड्राइवर को भेजते हैं। शॉपिंग करने जाते हैं, तो क्रेडिट कार्ड नहीं मिलता।” साहित्य (चिंटू) ने उसकी बात को आगे बढ़ाया। तारा ने उनकी बात पर सहमति जताई और फिर चेहरे के भाव को गंभीर करते हुए कहा, “फिर तो तुम दोनों के साथ बहुत नाइंसाफी हो रही है। और मैं अच्छे से जानती हूँ, इन सब के पीछे उस ध्रुव सिंघानिया का ही हाथ होगा।” “हाथ… नहीं, तारा दीदी, उनका हाथ, पैर, दिमाग सब इस काम में लगा हुआ है।” साक्षी ने कहा। “डोंट वरी, साक्षी, अब मैं यहाँ आ गई हूँ। ज़्यादा कुछ नहीं कर पाई, तो तुम दोनों को तो इंसाफ़ दिला ही दूँगी।” तारा ने उसकी पीठ सहलाकर कहा। साक्षी और साहित्य तारा से मिलकर बहुत खुश थे। कुछ ही देर की बातों में उन दोनों की उसके साथ अच्छी जमने लगी। तीनों साथ में बैठकर ध्रुव की बुराइयाँ करने में लगे थे। “सच कहूँ, तो मुझे तुम्हारा वह भाई बहुत अजीब लगा। इतना एटीट्यूड… और बेवजह दूसरों पर चिल्लाना। मेरी इतनी सी… इतनी सी मतलब नाखून से भी छोटी गलती थी, फिर भी मुझे काम से निकलवा दिया। शुतुरमुर्ग कहीं का…” तारा मुँह बनाकर बोली। जैसे ही तारा ने ध्रुव को शुतुरमुर्ग कहा, साक्षी और साहित्य जोर से हँस पड़े। “बिल्कुल सही नाम दिया है।” साक्षी ने कहा। “हमें लगा था, हमारी भाभी अच्छी आएगी, तो हमें थोड़ी फ़्रीडम मिलेगी, लेकिन नहीं… वह ग्रीष्मा… शी इज़ वेरी सेल्फ़िश… वह तो हमसे ठीक से बात तक नहीं करती।” साहित्य ने बताया। “मुझे तो ग्रीष्मा मैम बहुत अच्छी लगी, लेकिन संगत का थोड़ा बहुत असर तो आ ही जाता है। वैसे, तुम लोगों को बता दूँ, उन्होंने ही तो मुझे जॉब पर रखा है, वरना तुम्हारे उस खड़ूस भाई का बस चलता, तो आज मैं जयपुर में नहीं, बल्कि वापस अहमदाबाद में होती।” तारा बोली। तारा की बात सुनकर साक्षी और साहित्य एक-दूसरे की तरफ़ हैरानी से देखने लगे। “मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप सच कह रही हैं। उस लड़की को आए हुए दो महीने हो गए, लेकिन उसने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसके लिए भाई मना कर दे… भाई के काम से निकालने के बाद वह आपको यहाँ पर लेकर आई है, इसका मतलब ज़रूर उसका कोई मक़सद होगा।” साक्षी ने कहा। “हाँ, कोई बड़ा मक़सद…” साहित्य ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई। इन दोनों की बातें सुनकर तारा हँस पड़ी। “मक़सद? उन्होंने मुझे अपने असिस्टेंट के तौर पर हायर किया है।” “हाँ, तो यह भी एक तरह का मक़सद ही हुआ ना… ख़ैर, छोड़िए, हमें उसके बारे में बात नहीं करनी। अब आप हमारे साथ बाहर चलिए।” साक्षी ने कहा। “हाँ, तारा दीदी, साक्षी सही कह रही है। आप इतनी अच्छी हैं, उसके बावजूद ध्रुव भैया घरवालों के सामने आकर गलत इमेज बनाने में लगे हैं।” साहित्य ने कहा। “उसकी इतनी मजाल…” तारा जल्दी से बिस्तर से खड़ी हुई और बाहर जाने लगी। उसके उठते ही साहित्य और साक्षी दौड़कर दरवाज़े के आगे खड़े हो गए। “क्या? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम दोनों कह रहे थे कि तुम्हारा भाई मेरी नेगेटिव इमेज बना रहा है, और अब मुझे बाहर जाने से रोक रहे हो?” तारा ने हैरानी से पूछा। “वह इसलिए, क्योंकि अगर आप बिना नहाए बाहर गईं, तो भाई अपने काम में सक्सेसफ़ुल हो जाएँगे। आप नहाकर बाहर जाना।” साक्षी ने कहा। तारा ने उनकी बात पर हामी भरी और जल्दी से अपने लिए ड्रेस निकाली। उसके बाद वह नहाने जा चुकी थी, जबकि साक्षी और साहित्य बाहर बैठकर उसका इंतज़ार कर रहे थे। कुछ देर बाद तारा तैयार हो गई, तो वे दोनों उसे बाहर लेकर गए। ध्रुव, ग्रीष्मा के पापा, भावेश जी के साथ वहाँ से जा चुका था। बाकी की फैमिली बाहर ही मौजूद थी। ध्रुव की दादी, गायत्री जी की नज़र तारा पर पड़ी। उन्होंने अपना चश्मा सही किया और उसे घूरकर देखा। “ओह तो, यह है वह छोरी, जिसके बारे में ध्रुव बात कर रहा था।” उनकी बात सुनकर रत्ना और सरिता जी ने तारा की तरफ़ देखा। तारा जल्दी से उनके पास गई और उन सब के पैर छूने लगी। “अच्छा-अच्छा, खुश रहो। हमारे यहाँ छोरियाँ पैर नहीं छूती हैं।” रत्ना ने आशीर्वाद देकर कहा। “लड़की तो ठीक-ठाक ही लग रही है, फिर ध्रुव इसकी बुराई क्यों कर रहा था? नाम क्या है, थारा?” ध्रुव की दादी ने पूछा। “जी, तारा…” तारा ने बिल्कुल धीमी आवाज़ में जवाब दिया। “कल से टाइम पर उठ जाना। चलो, अब कुछ खा लो। ग्रीष्मा कब से तुम्हारी राह देख रही है। वह ऊपर अपने कमरे में है।” ग्रीष्मा की माँ, सरिता जी ने कहा। तारा ने बिना कुछ बोले, हाँ में सिर हिलाकर उनकी बात पर सहमति जताई। उसके बाद वे नाश्ता करने बैठ गए। साक्षी और साहित्य भी उसी के पास में थे। “मान गए, तारा दीदी… हमने जैसे आपको बताया था, आपने बिल्कुल वैसे ही एक्ट किया।” साहित्य ने बिल्कुल धीमी आवाज़ में कहा। “बस तुम दोनों मेरी ऐसे ही हेल्प करते रहना। हम तीनों मिलकर ध्रुव सिंघानिया से निपट लेंगे। बहुत हो गए उसके अत्याचार, अब हम उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँगे।” तारा ने खाते हुए कहा। “हाँ, लेकिन ग्रीष्मा से भी बचकर रहना। जितनी सीधी वह बनती है, उतनी है नहीं…!” साक्षी ने कहा। तारा ने उसकी बात पर हामी भरी। नाश्ता करने के बाद वह ऊपर ग्रीष्मा के कमरे में गई। “यहाँ सब कुछ अच्छे से हो रहा है। मैंने तारा को अपना असिस्टेंट हायर कर लिया है, हालाँकि ध्रुव को वह लड़की बिल्कुल पसंद नहीं है, लेकिन मुझे…” ग्रीष्मा किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। जैसे ही उसने तारा को देखा, उसने जल्दी से अपना फ़ोन बंद कर दिया। “क्या हुआ? आप तो मुझे देखकर ऐसे घबरा रही हैं, जैसे आपने कोई भूत देख लिया हो।” तारा ने अंदर आते हुए कहा। “नहीं… मुझे लगा ध्रुव की फैमिली में से कोई है। उन्हें अभी तक इस बात का पता नहीं है कि मैंने ध्रुव के मना करने के बाद तुम्हें जॉब पर रखा है। मैं अपनी फ़्रेंड से बात करके उसे सब कुछ बता रही थी। प्लीज़, तुम भी उन्हें इस बारे में कुछ मत बताना।” ग्रीष्मा ने सफ़ाई दी। तारा ने उसकी बात पर हामी भरी। “आप मुझे बता दीजिए कि क्या काम करना है?” तारा ने पूछा। “हाँ… हम दोनों यहाँ से बुटीक जाएँगे। वहाँ तुम मेरी ड्रेस और मेकअप, ज्वेलरी, इन सब में हेल्प करना। मुझे हर एक फ़ंक्शन के लिए ड्रेस फ़ाइनल करनी है।” ग्रीष्मा ने बताया। “ठीक है… लेकिन आप जानती हैं ना, आजकल ड्रेसेस थीम के अकॉर्डिंग होती हैं। ब्राइड और ग्रूम दोनों कलर मैच करके ड्रेस सेलेक्ट करते हैं।” तारा ने कहा। “हाँ, तो क्या हुआ? ध्रुव भी तो हमारे साथ चल रहा है।” ग्रीष्मा ने बताया। “फिर मेरी क्या ज़रूरत है?” तारा ने झट से कहा। “क्योंकि तुम मेरी असिस्टेंट हो। अब सारी चीज़ें मैं अकेले ही हैंडल कर सकती, तो तुम्हें क्यों हायर करती? कोशिश करना कि ध्रुव और तुम्हारे बीच में दोस्ती हो सके। ध्रुव अभी कुछ देर में आता ही होगा। मैं चेंज करके आती हूँ।” ग्रीष्मा ने कहा और चेंज करने के लिए बाथरूम में चली गई। “दोस्ती और उस अकड़ू से… कभी भी नहीं। दोस्त तो छोड़ो, इस बंदर को तो मैं अपना दुश्मन भी ना बनाऊँ।” तारा ने मुँह बनाकर कहा। उसने खिड़की से नीचे देखा, तो ध्रुव की गाड़ी आ चुकी थी। “आ गया चमगादड़… अब एक और पूरा दिन इसे झेलो…” तारा ने मुँह बनाया और वहाँ पर बैठकर ग्रीष्मा के आने का इंतज़ार करने लगी। °°°°°°°°°°°°°°°°
तारा और ग्रीष्मा शॉपिंग के लिए बाहर जाने वाले थे। वे ध्रुव के आने का इंतज़ार कर रही थीं। वहीं, ध्रुव घर पर आते ही सबसे पहले ग्रीष्मा के कमरे में आया। ग्रीष्मा अंदर बाथरूम में थी, और कमरे में तारा मौजूद थी। ग्रीष्मा की जगह उसे वहाँ देखकर ध्रुव का मुँह बन गया। “नाउ, डोंट टेल मी कि तुम हम दोनों के साथ चल रही हो?” ध्रुव ने इरिटेट होकर पूछा। “अब मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती।” तारा ने कंधे उचकाकर जवाब दिया। “इसका मतलब तुम हम दोनों के साथ चल रही हो?” ध्रुव ने दोहराते हुए कहा। “इसका कोई और भी मतलब निकल रहा है, तो आप मुझे समझा दीजिए, मिस्टर सिंघानिया…” तारा ने हल्का मुस्कुराकर कहा। “मैंने ग्रीष्मा के साथ टाइम स्पेंड करने का सोचा था, लेकिन तुम हर बार हम दोनों के बीच में आ जाती हो।” ध्रुव ने सीधे-सीधे तारा को कहा। “पन्द्रह दिन की बात है, मिस्टर सिंघानिया, फिर आप दोनों के बीच में कोई नहीं आएगा। और वैसे भी, मैंने आपको उनके साथ टाइम स्पेंड करने के लिए मना नहीं किया है। शॉपिंग होने के बाद आप दोनों साथ में रह सकते हैं। मैं अपना देख लूँगी।” तारा ने भी एटीट्यूड से जवाब दिया। ध्रुव ने उसकी तरफ़ देखकर सिर हिलाया और फिर कहा, “प्रॉब्लम तो यही है ना कि तुम हर जगह हमारे साथ रहोगी। मैं कैसे भूल सकता हूँ, मिस तारा, कि आपके रहते हुए कोई भी चीज़ सही कैसे हो सकती है?” “तो ठीक है, मिस्टर सिंघानिया, आप यही बात ग्रीष्मा मैम को समझा दीजिए। मैं नहीं आऊँगी आप दोनों के साथ। वैसे भी, मैंने उन्हें पहले ही मना कर दिया था।” तारा ने धीरे से कहा। वे दोनों आपस में बहस कर रहे थे, तभी ग्रीष्मा बाथरूम से बाहर आई। उसे देखते ही तारा ने कहा, “मैम, प्लीज़, इन्हें समझा दीजिए कि मेरे होते हुए उनकी प्राइवेसी में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। मैं आपके साथ जाने के लिए पहले ही मना कर चुकी हूँ, लेकिन आपने…” तारा एक साँस में बोले जा रही थी, तभी ग्रीष्मा ने उसे चुप कराते हुए कहा, “अब बस भी करो, तुम दोनों। मैं चाहती थी कि तुम दोनों के बीच गहरी ना सही, लेकिन नॉर्मल फ़्रेंडशिप हो जाए, ताकि मेरे लिए चीज़ें आसान हों।” “यह तो इस जन्म में बिल्कुल पॉसिबल नहीं है।” ध्रुव ने कहा। “चलो, पहली बार ही सही, लेकिन हम किस बात पर एग्री तो करते हैं। सही कह रहे हैं यह, एक बार के लिए टॉम एंड जेरी की दोस्ती हो सकती है, नोबिता और जियान दोस्त बन सकते हैं… सूरज पूरब के बजाय पश्चिम में निकल सकता है, लेकिन हम दोनों की दोस्ती… हम दोनों की दोस्ती कभी नहीं हो सकती।” तारा ने ध्रुव की तरफ़ देखकर कहा। “अच्छा-अच्छा, अब एग्ज़ांपल्स देना बंद करो। दोस्त नहीं बन सकते, लेकिन बहस तो मत किया करो। एंड, ध्रुव, तुम, मैं जहाँ भी जाऊँगी, तारा मेरे साथ रहेगी। एटलीस्ट शादी तक तो हर जगह…” ग्रीष्मा ने कहा। “थैंक यू सो मच, मैम, आपने आसान शब्दों में समझा दिया। वरना, इन्हें तो मेरी बात समझ ही नहीं आती।” तारा ने कहा। “हाँ, वह तो ठीक है, लेकिन तुम मुझे मैम मत बुलाया करो। ध्रुव और तुम्हारी दोस्ती नहीं हो सकती, तो क्या हुआ? हम दोनों तो फ़्रेंड बन ही सकते हैं ना… तुम मुझे मेरे नाम से बुलाया करो।” ग्रीष्मा ने मुस्कुराकर कहा। तारा ने भी उसकी बात पर हामी भरी। उसने एक नज़र ध्रुव की तरफ़ देखा, जिसके चेहरे से गुस्सा साफ़ झलक रहा था। उसे देखकर तारा ने अपने मन में सोचा, “पता नहीं इस शैतान को यह राजकुमारी कहाँ से मिल गई? इसके लिए तो भगवान को अलग से टाइम निकालकर एक दुष्ट आत्मा को बनाना चाहिए था। नरक की सबसे ख़तरनाक डायन और चुड़ैल के कॉम्बो से बनी लड़की ही इसे हैंडल कर सकती है।” “ठीक है, तुम दोनों आ जाओ। मैं माँ को बता देता हूँ।” ध्रुव ने कहा और वहाँ से नीचे चला गया। उसके जाने के बाद ग्रीष्मा ने कहा, “तुम ध्रुव को गलत मत समझना, तारा, वह दिल का बहुत अच्छा है। लेकिन हाँ, जल्दी से किसी पर विश्वास नहीं कर पाता।” “विश्वास ना करें, लेकिन सामने वाले से ठीक से बात तो कर ही सकते हैं। इनके एटीट्यूड को देखकर मुझे लगता नहीं कि इनका कोई दोस्त भी होगा।” तारा ने सिर हिलाकर कहा। ग्रीष्मा ने हाँ में सिर हिलाकर कहा, “सही कहा तुमने, ध्रुव का कोई दोस्त नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि बहुत कम उम्र में इसके ऊपर सारे बिज़नेस की ज़िम्मेदारी आ गई थी। ध्रुव के डैड की डेथ होने के बाद उसी ने सारा बिज़नेस संभाला था।” “सुनकर बुरा लगा, लेकिन इंसान को इतना भी सख्त नहीं होना चाहिए कि वह अपनी ज़िंदगी जीना ही भूल जाए। यह तो मुझसे ऐसे पेश आते हैं, जैसे मैंने इनका ख़ज़ाना लूट लिया हो।” तारा ने जवाब दिया। तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा खिलखिलाकर हँस पड़ी। “तुम सच में बहुत क्यूट हो। चलो, अब जल्दी से नीचे चलते हैं, वरना ध्रुव फिर से गुस्सा हो जाएगा।” वह बोली। तारा ने उसकी बात पर हाँ में सिर हिलाया। दोनों नीचे आईं। ध्रुव उन्हीं का इंतज़ार कर रहा था। वे तीनों वहाँ से निकल रहे थे, तभी साक्षी और साहित्य ने इशारों से तारा को अपने पास आने के लिए कहा। “मैं दो मिनट में आती हूँ।” तारा ने कहा। “अब कहाँ जाना है तुम्हें? मैं अपना काम छोड़कर यहाँ आया हूँ, और तुम…” ध्रुव गुस्से में बोला। “अब क्या मैं वॉशरूम भी नहीं जा सकती?” तारा ने मासूम चेहरा बनाकर ग्रीष्मा की तरफ़ देखा। “ठीक है, जाओ, लेकिन जल्दी आना।” ध्रुव ने कहा और ग्रीष्मा के साथ बाहर जाने लगा। “यह लड़की सच में मेरा दिमाग़ ख़राब कर देगी। थैंक गॉड… थैंक गॉड, मैंने इसे काम से निकाल दिया, वरना यह तो मुझे शादी से पहले पागल कर देती।” ध्रुव ग्रीष्मा से बोला। जवाब में ग्रीष्मा मुस्कुराकर रह गई। दूसरी तरफ़, तारा दौड़कर साहित्य और साक्षी के पास गई। “जो भी कहना है, जल्दी कहो। तुम्हारा वह खड़ूस भाई मुझ पर चिल्ला रहा है।” भागने की वजह से तारा थोड़ा हाँफ रही थी। “यही कि उन दोनों से बचकर रहना। दो शैतान एक साथ होते हैं, तो वे अच्छे लोगों पर हावी होने की कोशिश करते हैं।” साक्षी ने कहा। उसकी बात सुनकर तारा ने आँखें तरेरकर उन दोनों को देखा और कहा, “यह बात कहने के लिए तुम दोनों ने मुझे यहाँ पर बुलाया है?” उन दोनों ने हाँ में सिर हिलाया। तारा ने जवाब में कहा, “अभी तुम लोग तारा को नहीं जानते हो। वह अच्छे-अच्छे शैतान और चुड़ैलों से निपट लेती है। फिर तुम्हारे भाई की क्या औक़ात है? वह तो अभी शैतानों की दुनिया में नया-नया एंटर हुआ है। अरे, मैं तो वहाँ की क्वीन हूँ।” “लेकिन आप तो हमें एंजेल लगती हैं। ओके, एजेंट तारा, आपका पहला मिशन यह होगा कि आप हम दोनों को भी शॉपिंग पर जाने के लिए परमिशन दिला सकें। अगर घरवालों के साथ गए, तो इनके हिसाब से कपड़े लेने होंगे।” साहित्य ने कहा। “डोंट वरी, पार्टनर्स… मैं सब देख लूँगी।” तारा ने उन दोनों की तरफ़ आँख मारते हुए थम्सअप किया और बाय बोलकर बाहर आ गई। बाहर ध्रुव और ग्रीष्मा तारा का इंतज़ार कर रहे थे। उसके आते ही जल्दी से दोनों गाड़ी में बैठे और वहाँ से जयपुर के सबसे फ़ेमस बुटीक में गए। ____________ एक लगभग अट्ठाईस साल का आदमी एक बड़े से हॉल के अंदर मौजूद था। उसने चेहरे पर मास्क लगा रखा था और फ़ॉर्मल कपड़े पहने हुए थे। उस हॉल की दीवारों पर चारों तरफ़ ध्रुव सिंघानिया की फ़ोटो लगी हुई थीं। उन सभी तस्वीरों पर काले रंग से क्रॉस का निशान बना हुआ था। ध्रुव के साथ-साथ वहाँ उन सभी लोगों की तस्वीरें मौजूद थीं, जो किसी न किसी तरीके से उससे जुड़ा हुआ था। उस आदमी के हाथ में तारा की एक बड़ी सी तस्वीर थी, और उसने उसे ध्रुव के परिवार के बाकी लोगों की तस्वीरों के पास लगा दिया। फ़ोटो लगाने के बाद उसने तस्वीर पर बड़ा सा क्रॉस का निशान लगा दिया। “ध्रुव सिंघानिया, मैं तुमसे जुड़े हर इंसान को बर्बाद कर दूँगा। फिर तुम भी मेरी तरह अकेले हो जाओगे… बिल्कुल अकेले…” उस आदमी की आवाज़ से ध्रुव के लिए नफ़रत झलक रही थी। उसने एक नज़र तारा की तरफ़ देखा और फिर कहा, “मैं नहीं जानता तुम कौन हो, लेकिन तुम्हें ध्रुव सिंघानिया से नहीं जुड़ना चाहिए था। वह इंसान अपने साथ-साथ खुद से जुड़े हर इंसान की बर्बादी का कारण बनेगा।” अपनी बात ख़त्म करके वह जोर से चिल्लाया। उसकी आँखों में आँसू थे। “क्यों, ध्रुव सिंघानिया, क्यों? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो तुम… तुमने हम सबको बर्बाद कर दिया। तुम्हारी वजह से मेरे अपने ख़ून के आँसू रोए हैं। वे अपने हालातों से इतने मजबूर हो गए कि उन्होंने खुद अपने हाथों से अपनी जान ले ली। इतना ही मजबूर मैं तुम्हें कर दूँगा। एक-एक करके तुम्हारे अपने तुम्हारी आँखों के सामने मर जाएँगे। फिर तुम्हारे पास भी खुद को मार डालने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहेगा।” वह शख़्स, जो भी था, इतना साफ़ था कि वह ध्रुव से बहुत नफ़रत करता था। काफ़ी देर तक वहाँ रोने के बाद उस इंसान ने हॉल की लाइट्स बंद की और वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद वह उसी बुटीक के आगे खड़ा था, जहाँ ध्रुव, तारा और ग्रीष्मा गए थे। उसने अपने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथ में चाकू लेकर उसे छुपा लिया। उसके क़दम तेज़ी से बुटीक के अंदर बढ़ रहे थे। °°°°°°°°°°°°°°°°
ध्रुव, तारा और ग्रीष्मा जयपुर के फ़ेमस बुटीक में मौजूद थे। ग्रीष्मा वहाँ अलग-अलग ड्रेसेस को ट्राई करके देख रही थी। ध्रुव भी उसकी ड्रेस से मैच करते कपड़े लेकर उन्हें पहनकर देख रहा था। तारा उन दोनों की हेल्प कर रही थी। “तारा, मैं ग्रीन ड्रेस में कैसी लग रही हूँ? मेहँदी वाले दिन मैं यही ड्रेस पहनने वाली हूँ।” ग्रीष्मा ने खुद को सामने लगे आईने में देखा। वह एक लाइट ग्रीन लहँगा था। ध्रुव भी उसी तरह की ग्रीन ड्रेस पहनकर आया। वह उसके पास आकर खड़ा हो गया। “हम दोनों साथ में कितना परफेक्ट लग रहे हैं।” ध्रुव ने आईने में देखकर कहा। “ग्रीष्मा, आपके ऊपर तो यह ड्रेस बहुत अच्छी लग रही है, लेकिन ध्रुव सर के ऊपर यह कलर थोड़ा सेट नहीं हो रहा।” तारा ने ध्रुव को परेशान करने के लिए कहा। “व्हाट डू यू मीन बाय सेट नहीं हो रहा? क्या ख़राबी है इस ड्रेस में… इतना अच्छा कलर तो है।” ध्रुव ने सिर हिलाकर पूछा। “मिस्टर सिंघानिया, ख़राबी कलर और ड्रेस में नहीं, आप में है। आपके कलर कॉम्प्लेक्शन के हिसाब से अगर आप थोड़ा डार्क कलर लेंगे, तो ज़्यादा अच्छा लगेगा।” तारा ने बताया। “ओह, रियली? अब तो मैं यही कलर लूँगा।” ध्रुव ने मुँह बनाकर कहा और फिर वहाँ काम करने वाली एक लड़की को आवाज़ लगाई। “एक्सक्यूज़ मी, मिस… आप मेहँदी के लिए हम दोनों के लिए यह ड्रेस फ़ाइनल कर दीजिए।” “जी, ज़रूर सर, यह कलर आप दोनों के ऊपर ही बहुत अच्छा लग रहा है।” उस लड़की ने जवाब दिया। “देखा, क्या कहा उसने? यह कलर हम दोनों के ऊपर ही बहुत अच्छा लग रहा है।” ध्रुव ने तारा की तरफ़ देखकर कहा। तारा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। ध्रुव वहाँ से चेंज करने के लिए चला गया। उसके जाते ही ग्रीष्मा ने तारा से कहा, “तुम वह सब ध्रुव को परेशान करने के लिए बोल रही थी ना?” तारा ने हँसते हुए हामी भरी। “लगता है आपके होने वाले पति को अपनी गलतियाँ सुनना पसंद नहीं है।” “हाँ, और वह इसलिए क्योंकि ध्रुव हर एक काम परफेक्टली करता है। हम दोनों के लिए ये ड्रेसेज़ भी उसी ने फ़ाइनल की थीं।” ग्रीष्मा ने बताया। “आपकी कोई खुद की चॉइस नहीं है क्या? आप सारे काम उनके हिसाब से ही क्यों करती हैं?” तारा ने हैरानी से पूछा। “ध्रुव को हर एक काम अपने हिसाब से चाहिए। देखा नहीं तुमने, जब मैंने उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर तुम्हें जॉब पर रखा था, तो वह कितना नाराज़ हो गया था। तुम तो अंदर थीं। तुम्हें नहीं पता, मुझे उससे मनाने के लिए कितनी मिन्नतें करनी पड़ीं। तारा, मैं नहीं चाहती कि ध्रुव मुझसे नाराज़ हो, इसलिए मैं वह सब करती हूँ, जो उसे पसंद हो। अब तुम यहीं रुको, मैं दूसरी ड्रेस ट्राई करके आती हूँ। ध्रुव ने सेलेक्ट कर ली होगी।” ग्रीष्मा ने मुस्कुराकर कहा और वहाँ से ध्रुव के पास चली गई। तारा ने देखा, ध्रुव डिज़ाइनर के पास खड़ा था और उसने उन दोनों के लिए काफ़ी सारी ड्रेसेज़ सेलेक्ट कर रखी थीं। “यह ऐसे लड़के से शादी क्यों कर रही है, जो इसे इसकी पसंद के कपड़े तक नहीं पहनने दे रहा। यह तो इतनी पढ़ी-लिखी है। फैमिली भी अच्छी-खासी रिच है। फिर शादी के लिए मना क्यों नहीं कर देती।” तारा ने अपने मन में सोचा। ग्रीष्मा की बातों ने उसे परेशान कर दिया था। उसके बाद ध्रुव और ग्रीष्मा एक-एक करके कई सारे कपड़े ट्राई किए, लेकिन तारा ने कोई ख़ास रिस्पॉन्स नहीं दिया। वह अभी भी ग्रीष्मा की बातों में खोई हुई थी। तारा को खोया हुआ देखकर ध्रुव ने सोचा, “इसे अचानक क्या हो गया? थोड़ी देर पहले तो हर एक चीज़ में एक्साइटेड होकर इंवॉल्व हो रही थी, और अचानक… अचानक से इतनी परेशान हो गई।” ध्रुव ग्रीष्मा को लेकर दूसरी तरफ़ गया। तारा के चेहरे की चुप्पी उसे परेशान कर रही थी। “क्या हुआ, ध्रुव? तुम इस तरह मुझे साइड में लेकर क्यों आए हो? तारा वहाँ अकेली है।” ग्रीष्मा ने पूछा। “उसे क्या हुआ? अचानक से वह इतनी परेशान क्यों हो गई? उसे बोलो, अगर उसे भी ड्रेस लेने का मन कर रहा है, तो वह ले सकती है। मैं पे कर दूँगा।” ध्रुव ने धीमी आवाज़ में कहा। ध्रुव की बात सुनकर ग्रीष्मा मुस्कुराई और उसके गाल पर प्यार से हाथ फेरकर कहा, “बाहर से तुम कितना भी स्ट्रिक्ट हो जाओ, लेकिन अंदर से… तुम्हारा दिल बहुत अच्छा है, ध्रुव, और तुम इसे चाहकर भी नहीं बदल सकते। तुम उस लड़की की केयर कर रहे हो, जो तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी। यह देखकर मुझे अच्छा लगा।” ध्रुव ने ग्रीष्मा की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से दूसरी तरफ़ चला गया। ऐसे बहुत कम मौके होते थे, जहाँ वह अपने जज़्बात ज़ाहिर करता था। ग्रीष्मा तारा के पास गई और कहा, “अच्छा, तारा, तुम मेरे और ध्रुव की तरफ़ से कोई भी अच्छी सी दो ड्रेस सेलेक्ट कर लो।” “नहीं, मैम, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।” तारा ने हल्का मुस्कुराते हुए मना कर दिया। “मैंने कहा ना तुम्हें, तुम मुझे मैम नहीं, मेरे नाम से बुलाओगी।” ग्रीष्मा ने उसे डाँटते हुए कहा, “बहुत हो गया। मैं तुम्हारी एक नहीं सुनने वाली। चलो, चुपचाप कोई भी दो ड्रेसेज़ सेलेक्ट कर लो।” “मैंने कहा ना, ग्रीष्मा, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे पास हर एक फ़ंक्शन की ड्रेस अवेलेबल है। अच्छा, आप लोग शॉपिंग कीजिए, मैं रेस्टरूम करके आती हूँ।” तारा ने बहाना बनाकर बात को टाला और वहाँ से चली गई। “मैं अच्छे से जानती हूँ, तुम यहाँ से क्यों गई हो? लगता है तुम्हारे लिए भी मुझे ही ड्रेस सेलेक्ट करनी पड़ेगी।” ग्रीष्मा ने खुद से कहा और तारा के लिए कपड़े सेलेक्ट करने लगी। __________ उन लोगों को शॉपिंग करते हुए सुबह से शाम हो गई थी। लगभग सभी फ़ंक्शन के हिसाब से कपड़े लेने के बाद वे लोग वहाँ से बाहर निकल रहे थे। ध्रुव, ग्रीष्मा और तारा तीनों एक साथ लिफ़्ट में थे। बीच में लिफ़्ट किसी फ़्लोर पर रुकी, और वह आदमी अंदर आया, जो ध्रुव को बर्बाद करने की बात कर रहा था। उसने एक नफ़रत भरी नज़र ध्रुव पर डाली और फिर तारा और ग्रीष्मा की तरफ़ देखा। ध्रुव अपने मोबाइल में लगा था, जबकि तारा और ग्रीष्मा आपस में बात कर रही थीं। अचानक उस आदमी ने तारा को ध्रुव की तरफ़ धकेला और ग्रीष्मा की गर्दन पर चाकू रख दिया। अचानक हुए इस हमले की वजह से वे तीनों घबरा गए। “कौन हो तुम? देखो, तुम्हें पैसे, ज्वेलरी, जो भी चाहिए, वह तुम ले सकते हो… लेकिन उसे छोड़ दो।” ध्रुव ने हल्की काँपती आवाज़ में कहा। “तुम्हें क्या लगता है कि सब कुछ पैसे, ज्वेलरी ही होते हैं, ध्रुव सिंघानिया? कुछ चीज़ें पैसों से नहीं खरीदी जा सकतीं।” उस आदमी ने जवाब दिया। “ध्रुव, प्लीज़, मुझे बचाओ।” ग्रीष्मा चिल्लाकर बोली। वह उस आदमी की पकड़ से छूटने के लिए हाथ-पैर मार रही थी, लेकिन उसने उसे कस के पकड़ रखा था। “अरे, हिलना बंद कर… तेरे हिलने की वजह से अगर तेरी गर्दन थोड़ी सी भी कटी, तो उसकी ज़िम्मेदार तू खुद होगी।” वह आदमी बोला। “प्लीज़… प्लीज़, उसे कुछ मत करना। तुम बताओ मुझे… तुम्हें क्या चाहिए। मैं वह सब देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन उसे एक ख़रोच भी नहीं आनी चाहिए।” ध्रुव ने कहा। ग्रीष्मा को उसकी पकड़ में देखकर वह घबरा गया था; ऊपर से वे लोग लिफ़्ट में बंद थे, जहाँ वह मदद के लिए किसी को बुला भी नहीं सकता था। “अच्छा, तो तुम मुझे कुछ भी देने के लिए तैयार हो। ठीक है, फिर मैं इस लड़की को छोड़ दूँगा। बदले में मुझे वह दूसरी वाली लड़की दे दो।” उसका इशारा तारा की तरफ़ था। “कौन हो तुम, और हमें नुकसान क्यों पहुँचाना चाहते हो? हम तो तुम्हें जानते तक नहीं हैं।” ध्रुव ने हैरानी से पूछा। उसका नेचर काफ़ी डिसेंट था, तो उसका आज कोई दुश्मन नहीं था। ध्रुव के पूछने पर उस आदमी ने जवाब में कहा, “अच्छा, जानते नहीं हो? थोड़ा याददाश्त पर ज़ोर दो और सोचो, ध्रुव सिंघानिया, कोई अनजान इंसान तुम्हें नुकसान पहुँचाने के बारे में क्यों सोचेगा? यह तुम्हारे ही कर्मों का फल है, जो घूम-फिरकर तुम्हारे पास आया है।” उस आदमी की बात सुनकर ध्रुव चौंक गया। तारा ने उसकी तरफ़ देखा। “देखो, भाई साहब, आप जो भी हो, आपकी दुश्मनी इस आदमी से है, तो इसे लेकर जाओ ना? हमें क्यों नुकसान पहुँचा रहे हो?” बोलते हुए तारा ने अपने दोनों हाथों से ध्रुव को पकड़कर उस आदमी के आगे कर दिया। “यह क्या कर रही हो? तुम पागल तो नहीं हो गई हो।” ध्रुव गुस्से में चिल्लाया। “हाँ, तो क्या करूँ? गलती आपकी है, और सज़ा ग्रीष्मा को मिल रही है। नहीं, आप बताइए, गुंडे भाई साहब, गलती किसकी है?” बोलते हुए तारा उस आदमी के पास आ गई। “ध्रुव सिंघानिया की।” उस आदमी ने जवाब में कहा। “एग्ज़ैक्टली, गलती इस ध्रुव सिंघानिया की है, तो इसी को सज़ा मिलनी चाहिए।” तारा ने कहा। “तारा, यह तुम कैसी बातें कर रही हो? ध्रुव किसी का बुरा नहीं सोच सकता, उसने कुछ नहीं किया है।” ग्रीष्मा ने घबराई आवाज़ में कहा। “हाँ, कोई समझाओ इस पागल लड़की को, जो बेवजह मेरे पीछे पड़ी है। देखो, तुम जो भी हो, मैं तुम्हें मुँह माँगी कीमत देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन इस लड़की को मेरी नज़रों के सामने से लेकर जाओ। यह मुझे पागल बना देगी।” ध्रुव ने गुस्से में कहा। तारा की हरकतों से वह इरिटेट हो गया था। “तुम पहले से ही पागल हो। तुम्हें और पागल बनाने की क्या ज़रूरत है?” तारा बोली। “रियली? हाँ, सही कहा तुमने। मैं पागल हूँ, जो तुम जैसी लड़की को झेल रहा हूँ।” ध्रुव ने चिल्लाकर कहा। “अरे, आपने झेला ही कहाँ? आपने तो मुझे नौकरी से निकलवा दिया। यह तो ग्रीष्मा थी, जिसने मुझे काम पर रखा।” तारा ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए कहा। ध्रुव और तारा आपस में बहस करने लगे। उन दोनों की आवाज़ से झुंझलाकर वह आदमी जोर से चिल्लाया, और उसने ग्रीष्मा की गर्दन पर रखा चाकू उसके बिल्कुल करीब ले आया। उसके ऐसा करने से ग्रीष्मा की गर्दन पर ख़ून निकल रहा था। °°°°°°°°°°°°°°°°
ध्रुव, ग्रीष्मा, और तारा शॉपिंग के लिए गए थे। वहाँ, लिफ्ट में, उन तीनों पर एक गुंडे ने हमला कर दिया। वह ध्रुव का पुराना दुश्मन था। उस आदमी ने चाकू ग्रीष्मा की गर्दन पर रख दिया था। चाकू से ग्रीष्मा को चोट लगी और वहाँ से खून निकलने लगा। ग्रीष्मा दर्द से चिल्ला रही थी; उसकी आँखों में आँसू थे। उसे तकलीफ में देखकर, ध्रुव उस आदमी पर गुस्से में जोर से चिल्लाया। “तुम जो भी हो, मैं तुम्हें नहीं जानता। तुमने जो भी किया है, उसकी तुम्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अब तक तो मैंने तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया होगा, लेकिन इन सब के बाद तुम्हारे साथ जो भी होगा, उसके जिम्मेदार तुम खुद होंगे।” ध्रुव गुस्से में उसकी ओर बढ़ रहा था। उस आदमी ने जवाब में ग्रीष्मा पर अपनी पकड़ और भी कस ली। “अगर तुमने एक भी कदम आगे बढ़ाया, तो इस लड़की की लाश मैं यहीं गिरा दूँगा।” उस आदमी की धमकी से ध्रुव के कदम वहीं रुक गए। वह ग्रीष्मा की ओर लाचारी से देख रहा था। ध्रुव के चेहरे पर लाचारी के भाव देखकर, उस आदमी के होठों पर मुस्कराहट फैल गई। “घबराओ मत, ध्रुव सिंघानिया। मैं इस बंद लिफ्ट में तुम तीनों के साथ कुछ नहीं करूँगा। मैंने सुना है कि जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में दस दिन बाद तुम्हारी शादी है। तुम्हारी शादी के दिन ही, आज से ठीक दस दिन बाद, इस लड़की और तुम्हारे पूरे परिवार के साथ जो भी होगा, वह तुम अपनी आँखों से देखोगे… और तब भी तुम इसी तरह लाचार खड़े रहोगे। तुम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाओगे, ध्रुव सिंघानिया।” वह आदमी पूरी सख्ती से बोला। “देखो, मैं तुम्हें नहीं जानता। जब तक तुम मुझे नहीं बताओगे, मुझे कैसे पता चलेगा कि आखिर मैंने क्या किया है?” ध्रुव ने बेबसी से पूछा। “बताऊँगा, ज़रूर बताऊँगा, लेकिन उस दिन… जिस दिन तुम्हारी शादी होगी, आज से ठीक दस दिन बाद… जब तुम्हारी आँखों के सामने इन सब की लाशें गिरी होंगी, तब मैं तुम्हारे किए के गुनाह तुम्हारे सामने रखूँगा। आज तुम्हारी आँखों में जो लाचारी है, वह देखकर बहुत सुकून मिल रहा है। इन दस दिनों में याद करने की कोशिश करो कि तुमने अपनी ज़िन्दगी में कौन-कौन से पाप किए हैं।” अचानक लिफ्ट रुकी और वे लोग ग्राउंड फ्लोर पर पहुँच चुके थे। दरवाज़ा खुलते ही उस आदमी ने ग्रीष्मा को ध्रुव की ओर धक्का दिया और वहाँ से भाग गया। ध्रुव ग्रीष्मा को संभालने में लगा था, जबकि तारा जल्दी से दौड़कर उसके पीछे गई। “तारा, रुको…” ध्रुव ने पीछे से चिल्लाकर कहा, लेकिन तारा ने उसकी बात अनसुनी कर दी और वह उस आदमी के पीछे जाने लगी। “ध्रुव, प्लीज़, तुम अभी के लिए उसे छोड़ दो। मुझे बहुत दर्द हो रहा है। प्लीज़, मुझे हॉस्पिटल ले चलो।” ग्रीष्मा ने रोते हुए कहा। उसके गर्दन पर लगे घाव से खून बह रहा था। “लेकिन तारा… ग्रीष्मा हमारे शहर में नई है और हमारे घर का रास्ता भी ठीक से नहीं जानती होगी।” “ध्रुव, उसे लेने के लिए हम ड्राइवर को भेज देंगे… मुझे बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज़…” ध्रुव ने उसकी बात मान ली और उसे उठाकर गाड़ी में ले गया। ग्रीष्मा के चोट लगने की वजह से ध्रुव को तारा को वहीं छोड़कर जाना पड़ा। वह आदमी वहाँ से भागते हुए जा रहा था। तारा उसके पीछे-पीछे दौड़ रही थी। “मैं भी देखती हूँ तुम भागकर कहाँ जाओगे। तुम जानते नहीं हो, अभी मुझे… तुम्हें तो मैं पकड़कर ही दम लूँगी।” तारा पीछे से चिल्लाकर बोली। अगले ही पल एक गाड़ी सामने आई और वह आदमी भागकर उसमें बैठ गया। उसने गाड़ी में बैठने के बाद गाड़ी का शीशा नीचे किया और मुस्कुराते हुए तारा की ओर हाथ हिलाया। “भाग गया…” तारा अपने पैर पटककर बोली। “अरे, तुझ जैसे सस्ती धमकी देने वाले मैंने बहुत देखे हैं। तेरे पास गाड़ी थी, इसलिए बचकर निकल गया। वरना अपने जूते से तेरी ऐसी धुलाई करती कि जिन्दगी भर किसी को धमकी नहीं देता। यह बदला लेगा… हुह… एक लड़की से डरकर भाग गया।” तारा काफी देर तक गुस्से में वहाँ बड़बड़ाती रही। आस-पास के लोग वहाँ रुककर उसे देख रहे थे। उसने उन लोगों की ओर देखा और उन पर चिल्लाकर बोली, “यहाँ कोई कठपुतली का खेल चल रहा है क्या, जो रुककर देख रहे हो मुझे? जब मदद करनी होती है, तब तो कोई आता नहीं…” “लगता है यह लड़की पागल हो गई है।” एक औरत ने पास वाली औरत से कहा। “हाँ, हाँ, सही कहा। चलो, चलते हैं यहाँ से…” दूसरी औरत तारा की ओर मुँह बनाकर बोली और फिर वहाँ से चली गई। “हाँ, तो जाओ ना… यहाँ से किसने कहा है, रुककर यहाँ मेरी बात सुनो।” तारा ने पीछे से चिल्लाकर जवाब दिया। “गुस्से में मैं भूल ही गई थी कि ग्रीष्मा को चोट लगी थी। ध्रुव सर और ग्रीष्मा मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। मुझे जाना चाहिए।” तारा ने खुद से कहा और अपने कदम वापस बुटीक की ओर मोड़ लिए। वहाँ जाकर उसने इधर-उधर देखा, तो उसे ध्रुव और ग्रीष्मा वहाँ दिखाई नहीं दिए। रिसेप्शनिस्ट से उसे पता चला कि वे दोनों वहाँ से जा चुके थे। “अकेले छोड़कर चले गए मुझे… अरे, वो कोई मेरा पर्स चुराकर तो भागा नहीं था, जो मैं उसके पीछे दौड़कर गई थी। उन्हीं का फ़ायदा देखकर गई थी ताकि उस आदमी का पता लगा सकूँ। लेकिन ये दोनों तो मुझे ही यहीं छोड़कर चले गए। ज़रूर उस ध्रुव सिंघानिया ने ही मुझे यहाँ छोड़ा है। ग्रीष्मा ने तो ज़िद की होगी, लेकिन उस खड़ूस ने उसकी एक नहीं सुनी होगी।” तारा गुस्से में बड़बड़ा रही थी। उसने अपना मोबाइल निकाला और साहित्य को कॉल किया। “हेलो, तारा दीदी… साहित्य रिपोर्टिंग! वहाँ सब कुछ ठीक तो है ना? खड़ूस भाई ने आपको परेशान तो नहीं किया।” कॉल उठाते ही साहित्य बोला। साक्षी भी उसी के पास में थी। “अगर उन्होंने आपको परेशान किया है, तो आप मुझे बताइए। हम तीनों मिलकर उन्हें ठीक कर देंगे।” साक्षी बोली। “ऐसा कुछ नहीं हुआ है, साहित्य और साक्षी… मैं अभी तुम लोगों को ज़्यादा कुछ नहीं बता सकती, लेकिन तुम्हारा खड़ूस भाई मुझे बुटीक पर अकेला छोड़कर चला गया। ग्रीष्मा भी उन्हीं के साथ है। अब मैं अकेले घर कैसे आऊँ? मुझे तो पता भी नहीं है।” तारा ने परेशान होकर कहा। “डोंट वरी, तारा दीदी, आपको हमारे होते हुए टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है। हम अभी बुटीक पहुँचते हैं।” साहित्य ने कहा और कॉल काट दिया। “ज़रूर उस ग्रीष्मा का किया धरा है यह सब, वह ज़बरदस्ती भाई को ले गई होगी।” साक्षी ने कहा। “यह सब बातें बाद में करेंगे, चलो पहले तारा दीदी को लेने चलते हैं।” साहित्य ने कहा और साक्षी के साथ बाहर आया। बाहर उनकी माँ, रत्ना जी, उन्हीं की कंपनी की ज्वेलरी डिज़ाइनर के साथ बैठी कुछ ज्वैलरीज़ देख रही थीं। साहित्य और साक्षी उनकी नज़रों से छुपकर दबे पाँव बाहर जा रहे थे, लेकिन उन्होंने उन्हें देख लिया। “डब्बू… चिंटू…” उन्होंने उन दोनों को आवाज़ लगाई। “ऐसे चोरों की तरह छुपकर तुम दोनों कहाँ जा रहे हो?” “मम्मी, वो तारा दीदी बुटीक में अकेली है। ध्रुव भैया और ग्रीष्मा… आई मीन ग्रीष्मा भाभी उन्हें छोड़कर कहीं चले गए हैं।” साक्षी ने बताया। “ध्रुव इतना लापरवाह तो नहीं हो सकता कि किसी लड़की को बीच रास्ते में छोड़कर चला जाए। कहीं तुम दोनों झूठ तो नहीं बोल रहे?” रत्ना जी ने आँखें दिखाकर कहा। “नहीं मम्मी, माता रानी की कसम… हम झूठ नहीं बोल रहे। तारा दीदी सच में बहुत परेशान है। अब प्लीज़ हमें जाने दीजिए। हम ड्राइवर को लेकर जाएँगे।” साहित्य बोला। रत्ना जी ने उन दोनों को वहाँ से जाने का इशारा किया। दोनों वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद रत्ना जी ने ज्वेलरी डिज़ाइनर को भी वहाँ से भेज दिया। “ध्रुव ऐसे कैसे कर सकता है? ज़रूर वो लड़की झूठ बोल रही होगी… ध्रुव इतना लापरवाह तो नहीं कि ग्रीष्मा के साथ वक़्त बिताने के लिए उसे लड़की को ऐसे ही वहीं पर छोड़कर निकल जाए।” वो परेशान होकर इधर-उधर चहलकदमी करने लगी। उन्होंने ध्रुव को कॉल किया, लेकिन वह उनका फ़ोन नहीं उठा रहा था। इस बात ने उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया। साहित्य और साक्षी गाड़ी लेकर तारा के पास पहुँचे। वह उन दोनों के आने का इंतज़ार कर रही थी। तारा के मन में ध्रुव के लिए गुस्सा था। उन दोनों को देखकर तारा जल्दी से उनके पास गई। “अच्छा हुआ जो तुम दोनों आ गए। वरना मुझे लगा कि यहाँ से सीधे अहमदाबाद की टिकट लेनी होगी।” “आप क्या ऐसे बीच रास्ते हमें छोड़कर चली जाएँगी, तारा दीदी? आप ही तो हमारा आखिरी सहारा है।” साक्षी ने मुँह बनाकर कहा। “बीच रास्ते में तो छोड़कर तुम्हारा भाई मुझे निकल गया… मिलने दो उसे… मैं बताती हूँ उसे, एक नंबर का सेल्फ़िश इंसान है वह…” “लगता है मामला काफ़ी बिगड़ा हुआ है। फ़िलहाल के लिए घर चलते हैं, तारा दीदी। मम्मी इस बारे में सब जानती है, और आप हमारी मम्मी को जानते नहीं, अगर हम लोगों को छींक भी आ जाए तो वो परेशान हो जाती है। मतलब उन्हें हर छोटी बात पर बड़ी टेंशन लेने की आदत है।” साहित्य ने बताया। तारा ने उनकी बात मान ली और उनके साथ घर आ गई। वहीं, ग्रीष्मा और ध्रुव भी घर पहुँच चुके थे। रत्ना जी ने अपनी परेशानी में सबको एक साथ इकट्ठा कर लिया था। जैसे ही सरिता जी ने ग्रीष्मा के गले की चोट देखी, वो घबराकर उसके पास गई। “क्या हुआ? ध्रुव, ग्रीष्मा को यह चोट कहाँ से लगी? तुम दोनों तो साथ ही गए थे ना?” “जवाब दो, ध्रुव, बुटीक से तारा का भी कॉल आया था कि तुम उसे अकेले छोड़कर कहीं चले गए हो।” रत्ना जी ने कहा। “हाँ, हाँ, अब जवाब दो इन सब को कि मुझे छोड़कर कहाँ चले गए थे।” तारा ने गुस्से में ध्रुव की ओर देखा। ध्रुव का उन सब की बातों की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं था। उसका मन उस आदमी की ओर लगा हुआ था जिसने उसे धमकी दी थी। वह लगातार उसके बारे में सोचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे कुछ याद नहीं आ रहा था कि वह कौन था। “जवाब दो, ध्रुव… सब कोई तुम्हारे से पूछ रहे हैं। ध्यान कहाँ है तुम्हारा?” गायत्री जी ने कड़क आवाज़ में कहा। उनकी आवाज़ सुनकर ध्रुव का ध्यान टूटा। उसने खोई हुई आवाज़ में कहा, “मैं चाहता हूँ कि मेरी और ग्रीष्मा की शादी आने वाले तीन दिनों में हो।” जैसे ही ध्रुव ने यह कहा, सब एक-दूसरे की ओर हैरानी से देखने लगे। ★★★★
ध्रुव ग्रीष्मा को लेकर घर आ चुका था। उसके गले पर लगी चोट को देखकर सब परेशान हो गए, और वे ध्रुव से इसका कारण पूछ रहे थे। अचानक, जब उन्होंने ध्रुव के मुँह से शादी जल्दी करने की बात सुनी, तो सब चौंक गए। “ये कैसी बातें कर रहे हो तुम? जो शादी १५ दिन बाद होने वाली है, वो अगले ३ दिन में कैसे होगी?” रत्ना जी ने पूछा। “कुछ हुआ है क्या ध्रुव? जब से तुम आए हो, कुछ नहीं बोल रहे? इधर ग्रीष्मा को भी चोट लगी है। क्या कुछ ऐसा है जो तुम हम सब से छुपा रहे हो?” भावेश जी ने उसके पास आकर पूछा। “नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है।” ध्रुव ग्रीष्मा के पापा को पापा कह कर ही बुलाता था। “मैं नहीं चाहता कि शादी में अब और देरी हो। ग्रीष्मा भी मेरे इस डिसीजन से एग्री करती है। है ना, ग्रीष्मा?” ध्रुव ने ग्रीष्मा की तरफ देखकर पूछा। ग्रीष्मा ने पलकें झपकाईं कर अपनी हामी भरी। हालाँकि वो भी ध्रुव के इस अचानक लिए फैसले से काफी चौंक गई थी, लेकिन उसने चेहरे से ये जाहिर नहीं होने दिया। उसके हामी भरने पर तारा ने अपने मन में सोचा, “आखिर अपनी मनमानी करोगे तुम ध्रुव सिंघानिया? बेचारी ग्रीष्मा अपने मम्मी-पापा की वजह से तुम्हारे साथ फँस गई है। वो तो तुमसे शादी भी नहीं करना चाहती, और तुम जबरदस्ती शादी को प्रीपोन कर रहे हो, वो भी उसका नाम लेकर.....” “लेकिन बेटा, इतनी जल्दी तैयारियाँ कैसे हो पाएंगी? अभी तक तो कुछ नहीं हुआ। रिश्तेदारों को क्या कहेंगे?” रत्ना जी परेशान होकर बोलीं। “डोंट वरी माँ, हम सब मिलकर कर लेंगे। मैं वेडिंग प्लानर को यहाँ आने का बोल देता हूँ। एक और प्लानर हायर कर लेंगे, और तारा भी तो है।” ध्रुव ने उन्हें समझाया। “मुझे तो आपकी जल्दबाजी का कारण बिल्कुल समझ नहीं आ रहा बेटा, जहाँ हम पिछले इतने सालों से रुके हुए हैं, वहाँ १५ दिन और रुक जाएँगे तो क्या हो जाएगा?” सरिता ने कहा। वे सब ध्रुव के इस डिसीजन का कारण नहीं समझ पा रहे थे। वे लोग परेशान न हों, इसलिए ध्रुव ने भी उन्हें कुछ नहीं बताया। सब लोग उससे बहस कर रहे थे, और कोई भी इस फैसले से खुश नहीं था। ध्रुव उनको समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन कोई भी उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। “अच्छा अच्छा, अब बस भी करो।” गायत्री जी ने तेज आवाज में कहा, “जब छोरा-छोरी राजी है, हमें शादी से कोई दिक्कत नहीं है, तो शादी ३ दिन बाद हो या १५ दिन बाद, क्या फर्क पड़ता है।” गायत्री जी के बीच में बोलने की वजह से उन लोगों को ध्रुव के डिसीजन पर हामी भरनी पड़ी। “ठीक है, हम देख लेंगे। आप लोग पैकिंग कीजिए। हम कल सुबह जल्दी ही उम्मेद भवन के लिए निकलते हैं।” भावेश जी ने कहा। ध्रुव के शादी जल्दी करने की बात सुनकर उन सब लोगों का ध्यान ग्रीष्मा की चोट से हट गया था। वह चुपचाप, उदास खड़ी, उन सब लोगों की बातें सुन रही थी। तारा का ध्यान भी ग्रीष्मा में लगा था। उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि शादी जल्दी होने की वजह से ग्रीष्मा बिल्कुल खुश नहीं थी। सब लोग वहाँ से जाने को हुए, तभी साहित्य ने पूछा, “वैसे भैया, आपने बताया नहीं कि होने वाली भाभी को चोट कैसे लगी? और तारा दीदी वाला जवाब भी अभी अधूरा है।” उसके अचानक पूछने पर सबका ध्यान वापस ग्रीष्मा पर चला गया। ध्रुव ने उसकी तरफ घूर कर देखा। साहित्य ने अपने मुँह पर अंगुली लगाते हुए कहा, “मैं तो बस पूछ रहा था।” “हाँ ध्रुव, तुमने बताया नहीं कि तारा को तुम लोग अकेले छोड़कर कहाँ चले गए थे? और ग्रीष्मा, उसे चोट कैसे लगी?” ध्रुव ने ग्रीष्मा की तरफ देखा और कहा, “एक ड्रेस ट्राई करते वक़्त, उसमें लगे मैटेलिक डिज़ाइन से ग्रीष्मा को चोट लग गई। तारा बाहर थी, इस वजह से उसे बताने का मौका नहीं मिला। ग्रीष्मा के चोट लगने की वजह से मैं इतना घबरा गया था कि मुझे कुछ और सूझा ही नहीं, और मैं उसे सीधा हॉस्पिटल लेकर चला गया।” जैसे ही ध्रुव ने अपनी बात खत्म की, तारा उसकी तरफ आँखें बड़ी करके देखने लगी। “झूठा कहीं का.....” उसने धीरे से कहा। “अब आप लोगों की कचहरी लगना हो गया हो तो रिश्तेदारों को फ़ोन करके बता देते हैं। सिंघानिया परिवार के सबसे बड़े बेटे की शादी है, ऐसे ही ४ लोगों के बीच थोड़े ना होगी। अरे, धूमधाम से शादी करेंगे, और सबको बुलाएँगे।” गायत्री देवी ने कहा। ध्रुव ने कुछ सोचा और फिर खोए हुए स्वर में कहा, “नहीं दादी..... ये शादी एक प्राइवेट अफ़ेयर होगी, जहाँ पर हमारे घरवालों के अलावा और कोई मौजूद नहीं होगा। हम शादी के बाद एक रिसेप्शन थ्रो कर लेंगे, जिसमें सब आ जाएँगे, और वही आप ग्रीष्मा की मुँह-दिखाई कर दीजिएगा।” “हो क्या गया है तुझे? आज एक के बाद एक झटके दिए जा रहा है। कभी शादी जल्दी करनी है, तो कभी रिश्तेदारों को नहीं बुलाना। अरे, क्या जवाब देंगे हम उन्हें?” रत्ना जी गुस्से में बोलीं। “आप देख लीजिएगा कि आपको क्या जवाब देना है, लेकिन इस शादी में हमारी और ग्रीष्मा की फैमिली के अलावा और कोई मौजूद नहीं होगा, यहाँ तक कि तारा भी नहीं... आपको मेरा डिसीजन मंज़ूर है, तो कहिए, वरना मैं अभी ग्रीष्मा को अपने साथ कोर्ट ले जाता हूँ। हम दोनों वहीं शादी कर लेंगे।” सब लोग ध्रुव की तरफ हैरानी से देख रहे थे। अब तक वह हर एक बात शांति से बता रहा था, लेकिन इस बार उसने गुस्से में अपना फैसला सुनाया। सब के पास उसे मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। ना चाहते हुए भी सब ने हामी भरी, और वहाँ से अपने-अपने कमरे को चले गए। ________ ग्रीष्मा अपने कमरे में आराम कर रही थी। चोट लगे होने की वजह से तारा उसकी पैकिंग कर रही थी। शादी जल्दी करने के डिसीजन से ग्रीष्मा बिल्कुल भी खुश नहीं थी। वह चुपचाप चेयर पर बैठी, वहाँ लगे एक शोपीस को देख रही थी। “मैं जानती हूँ आप इस शादी से खुश नहीं हैं, ग्रीष्मा।” तारा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा। “नहीं तारा..... मैं इस शादी से खुश हूँ, लेकिन मैं जल्दी शादी करने के डिसीजन से बिल्कुल खुश नहीं हूँ। ऊपर से ध्रुव ने ये भी कह दिया कि घरवालों के अलावा और कोई शादी में नहीं आ सकता। तुम नहीं जानती, मेरे सारे फ्रेंड्स इस शादी को अटेंड करने के लिए एक्साइटिड हो रहे थे। कुछ तो न्यूयॉर्क से भी आने वाले थे।” “उन्होंने तो मुझे भी शादी अटेंड करने से मना कर दिया।” तारा ने मायूस होकर कहा। “तुम उसकी फ़िक्र मत करो। मैं तुम्हारे लिए ध्रुव को मना लूँगी।” ग्रीष्मा ने मुस्कुरा कर कहा। जवाब में तारा भी मुस्कुरा दी। “हमें मिले अभी सिर्फ़ दो ही दिन हुए हैं, फिर भी ऐसा लगता है जैसे कितने वक़्त से एक-दूसरे को जानते हैं। आप बहुत अच्छी हैं, ग्रीष्मा..... आप ध्रुव सिंघानिया से कुछ कहें या न कहें, लेकिन मैं उनसे बात करके रहूँगी।” “उसका कोई फ़ायदा नहीं है तारा.....वो नहीं मानने वाला। उल्टा तुम दोनों की एक और लड़ाई हो जाएगी।” “जब इतनी लड़ाइयाँ हुई हैं, वहाँ एक और सही। बात तो मैं उनसे करके रहूँगी। उन्हें सब लोगों को बता देना चाहिए था कि बुटीक में क्या हुआ था।” तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा ने जवाब में कहा, “इस बात से तो मैं भी हैरान हूँ कि ध्रुव ने सबसे सच क्यों छुपाया। वह मुझे सीधा यहाँ ले आया, जबकि हमें तो पुलिस स्टेशन जाना चाहिए था।” “उस आदमी के बारे में उन्होंने कुछ बताया, जो हमें लिफ़्ट में मिला था?” ग्रीष्मा ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “उसने कहा उसे कुछ याद नहीं है।” “ठीक है, मैंने आप की पैकिंग कर दी है। अब मैं चलती हूँ, आप आराम कर लीजिएगा।” ग्रीष्मा को गुड नाईट बोलकर तारा अपने कमरे में जाने लगी। उसने देखा गार्डन में ध्रुव किसी से कॉल पर बात कर रहा था, वह उससे बात करने के लिए गार्डन में गई। “मैं कुछ नहीं जानता। मुझे उस आदमी के बारे में हर एक डिटेल चाहिए।” फ़ोन पर बात करते हुए ध्रुव दूसरी तरफ़ मुड़ा, तो उसे तारा दिखाई दी। “मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ।” कहकर ध्रुव ने कॉल कट कर दिया। “क्या मैं जान सकता हूँ तुम इस वक़्त मेरे पीछे क्या कर रही थी?” उसने पूछा। “जी ज़रूर..... बिल्कुल जान सकते हैं। मैं यहाँ आपसे बात करने के लिए आई थी। आपने घरवालों को झूठ क्यों बोला?” “मेरे मैटर्स में टांग अड़ाना बंद करो। मैं अपने घरवालों से झूठ बोलूँ या सच.....इट्स नन ऑफ़ योर बिज़नेस..... इट वुड बी बेटर फ़ॉर यू कि तुम जिस काम के लिए आई हो, वह करो और यहाँ से अपने पैसे लेकर चली जाओ।” ध्रुव ने तीखे शब्दों में जवाब दिया। “सही कह रहा था वह लिफ़्ट वाला आदमी..... आप हर एक चीज़ पैसों से तोलते हैं। आपके लिए इमोशंस की कोई वैल्यू नहीं है। क्या आपने एक बार भी ग्रीष्मा से पूछना ज़रूरी समझा कि वह आप के इस फैसले से खुश भी है या नहीं?” “ग्रीष्मा मेरे हर एक फैसले से खुश है।” “वह आपके फैसले से खुश नहीं है। आप जबरदस्ती अपनी बात उन पर थोपते हैं। जैसे कि उनके घरवालों और आप ने मिलकर यह शादी जबरदस्ती उन पर थोपी है।” तारा एक साँस में सब कुछ बोल रही थी। “ये क्या बकवास कर रही हो तुम?” ध्रुव ने आँखें दिखाकर कहा। “ये जो आपकी दो बड़ी-बड़ी बटन जैसी आँखें हैं, मैं इनसे डरती नहीं हूँ। अभी आप नहीं जानते तारा को, वह हर एक सिचुएशन से निपटना जानती है। अरे, आप जैसे लाखों लोग मिलते हैं मुझे दिन में.....” “लाखों लोग?” ध्रुव ने हल्का हँसते हुए कहा। “तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। अब मेरा रास्ता छोड़ो और मुझे जाने दो। लोगों को तुम्हारी तरह बात करने के अलावा और भी काम होते हैं।” ध्रुव ने उसे साइड किया और वहाँ से जाने लगा। तारा उसके पीछे से चिल्लाई, “हाँ हाँ, चले जाओ ध्रुव सिंघानिया..... मैं ग्रीष्मा की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ तुम्हारी शादी उससे बिल्कुल नहीं होने दूँगी। मैं उसके साथ अन्याय नहीं होने दूँगी।” “लगता है यह लड़की पागल हो गई है, जो कुछ भी बकवास किए जा रही है।” ध्रुव ने खुद से कहा और वहाँ से सोने के लिए चला गया। उसके जाने के बाद तारा भी वहाँ से अपने कमरे में चली गई। वह अपने कमरे में आई, तो साहित्य और साक्षी वहाँ उसका इंतज़ार कर रहे थे। “थैंक गॉड पार्टनर, आप यहाँ आ गई। हमें आपसे बहुत ज़रूरी बात करनी थी।” साक्षी ने कहा। “बात तो मुझे भी तुम दोनों से करनी थी, और वह तुम्हारे भाई से जुड़ी हुई है। अच्छा, पहले तुम बताओ, तुम्हें क्या बात करनी थी?” तारा ने पूछा। “हमारी बात ग्रीष्मा से जुड़ी हुई है, और वह भी बहुत ज़रूरी... ग्रीष्मा... वह ग्रीष्मा भाई को धोखा दे रही है।” जैसे ही साहित्य ने बताया, तारा उसकी तरफ़ आँखें बड़ी करके देखने लगी। अब तक वह ध्रुव को ग़लत समझती थी, जबकि साहित्य और साक्षी उसे ग्रीष्मा के बारे कुछ अलग ही बता रहे थे। ★★★★ हैलो रीडर्स.... पार्ट कैसा लगा? समीक्षा में ज़रूर लिखिएगा। अच्छा, आपको कहानी में अब तक कौन-सा कैरेक्टर अच्छा लगा, यह भी ज़रूर बताइएगा। कीप सपोर्टिंग ऑलवेज
साहित्य और साक्षी तारा के कमरे में बैठे थे। उन्होंने तारा को ग्रीष्मा के धोखा देने की बात बताई, जिसे सुनकर पहले तो तारा चौंक गई, फिर जोर-जोर से हँसने लगी। “क्या हुआ, पार्टनर?” साक्षी ने हैरानी से पूछा। “तुम दोनों के जोक को सुनकर हँसी आ रही है।” तारा ने अपनी हँसी दबाकर कहा और फिर से खिल-खिलाकर हँस पड़ी। “हम कोई जोक नहीं सुना रहे। ग्रीष्मा सच में भाई को धोखा दे रही है।” साहित्य ने बताया। “हम जब अभी आपके कमरे में आ रहे थे, तो हमने उन्हें किसी से फ़ोन पर बात करते सुना। उन्होंने बोला कि ध्रुव ने शादी प्रीपोन कर दी है। उन्हें अपना प्लान बदलना पड़ेगा। उनके पास अब ज़्यादा टाइम नहीं है।” साक्षी ने कहा। साहित्य ने भी उसकी बात पर सहमति जताई। उनकी बात सुनकर तारा सोचने लगी। “शायद वो अपने किसी फ़्रेंड से बात कर रही हो। एक्चुअली, जब मैं उनके कमरे में थी, तब उन्होंने मुझे बताया था कि ध्रुव सर ने शादी में बाहर के लोगों को आने से मना कर दिया, इस वजह से उन्हें बहुत दुख हुआ। उनके दोस्त इस शादी में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अब वो इस शादी में नहीं आ पाएँगे। शायद वो अपने किसी दोस्त से इस बारे में बात कर रही हो।” तारा ने उन दोनों को समझाया। उसे अभी भी ग्रीष्मा पर बहुत विश्वास था। “हो सकता है, लेकिन प्लान? वो किस प्लान की बात कर रही थी?” साक्षी ने कहा। “मैं बताती हूँ कि मैं किस प्लान के बारे में बात कर रही थी।” यह ग्रीष्मा की आवाज़ थी। वो तारा के कमरे में आ रही थी। उसने उन लोगों की सारी बातें सुन ली थीं। ग्रीष्मा को वहाँ देखकर साहित्य और साक्षी थोड़े असहज हो गए। वो उनके पास आकर बैठी और बोली, “घबराओ मत, मैं तुम्हारे भैया से कुछ नहीं कहूँगी। तारा बिल्कुल ठीक कह रही है। मैं अपने किसी फ़्रेंड से बात कर रही थी। एक्चुअली, हम सब लोगों ने शादी से पहले बहुत कुछ प्लान्स किए थे, लेकिन ध्रुव के डिसीजन ने सब कुछ बदल कर रख दिया। एक तो शादी का प्रीपोन होना, ऊपर से शादी में बाहर से किसी को भी ना आने देना। इन दो वजह से मेरे सारे प्लान्स पर पानी फिर गया।” “आपने कौन से प्लान्स बनाए थे?” साक्षी ने उसे घूर कर देखा। “मेरे फ़्रेंड्स ने शादी से पहले मेरे लिए एक पार्टी थ्रो करने का सोचा था। साथ ही वो लोग गिफ़्ट में मेरा और ध्रुव का प्री-वेडिंग शूट करवाना चाहते थे, लेकिन अब कुछ नहीं हो पाएगा।” ग्रीष्मा ने उदास होकर कहा। “देखा, मैं कह रही थी ना कि इनके दोस्तों से जुड़े हुए उनके प्लान्स थे। शादी जल्दबाज़ी में होने की वजह से ये दोनों भी बिल्कुल खुश नहीं हैं।” “तुम कवर मत करो, तारा, मैं अच्छे से जानती हूँ ये दोनों मुझे पसंद नहीं करते। इसका कारण भी मुझे पता है।” ग्रीष्मा ने कहा। तारा को ग्रीष्मा की बात समझ नहीं आई। “और क्या कारण है इसका?” “कुछ दिन पहले की बात है, दोनों ट्रिप पर जाना चाहते थे, लेकिन ध्रुव ने मना कर दिया। मैंने ही उसे ऐसा करने के लिए कहा था।” ग्रीष्मा ने बताया। “पहले ध्रुव भैया हमें लेकर इतने स्ट्रिक्ट नहीं थे, लेकिन जब से आप आई हैं, वो हमें हर काम के लिए रोकते रहते हैं।” साक्षी ने कहा। “मैं उसका कारण भी तुम लोगों को समझा सकती हूँ। तारा, हमें जो आदमी आज मिला था, उसके पहले भी धमकी भरे फ़ोन आते रहते थे। ध्रुव इन दोनों को लेकर बहुत इनसिक्योर रहता है। हम सब तो फिर भी बड़े हैं, लेकिन ये दोनों बच्चे हैं, इसलिए वो इन दोनों को कहीं अकेले नहीं भेजना चाहता था। प्लीज़, तुम दोनों मुझे गलत मत समझो। मैंने और ध्रुव ने वो डिसीजन तुम्हारी सेफ़्टी के लिए ही लिया था।” ग्रीष्मा उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन साक्षी और साहित्य ने उसकी एक नहीं सुनी और उसकी बात को अनसुना करके वहाँ से बाहर जाने लगे। जाते वक्त साहित्य ने तारा से कहा,“तारा दीदी, हम आपसे सुबह बात करते हैं।” तारा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन दोनों वहाँ से चले गए। उनके इस बर्ताव की वजह से ग्रीष्मा के चेहरे पर उदासी थी। “मैं पिछले दो महीनों से इनके साथ हूँ, उसके बावजूद ये दोनों मुझसे ठीक से बात तक नहीं करते। जबकि तुम्हें आए तो सिर्फ़ दो ही दिन हुए हैं। इतने कम वक़्त में तुमने इनसे दोस्ती कर ली।” ग्रीष्मा ने कहा। “आप उदास मत होइए, ग्रीष्मा। मैं इन दोनों को समझा दूँगी। दोनों बच्चे हैं, समझ भी जाएँगे।” तारा ने उसके हाथ पर हाथ रखकर कहा। “तुम बहुत कम समय में किसी को भी अपना बना लेती हो।” ग्रीष्मा ने मुस्कुराकर कहा। “हाँ, शायद… अच्छा, इन सब को छोड़िए। आप इस वक़्त मेरे कमरे में कैसे आईं? कुछ काम था तो कॉल कर देतीं।” “मैं ध्रुव से मिलकर आई थी। सोचा तुमसे भी पूछ लूँ, तुम दोनों की क्या बात हुई थी, लेकिन आते वक़्त साहित्य और साक्षी की बात सुनी। सच कहूँ तो मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन साथ ही इस बात का अच्छा भी लगा कि तुमने उन्हें कोई गलत एडवाइस देने के बजाय उन्हें सही बात समझाई।” “मैं भले ही बहुत कम वक़्त से आपके साथ हूँ, लेकिन इतना तो जान गई कि आप बहुत अच्छी हैं। आपके बारे में कोई गलत कहे तो मैं कैसे सुन सकती हूँ।” तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा मुस्कुराई। उसे सोने का बोलकर वो अपने कमरे में चली गई। उसके जाने के बाद तारा भी सोने जा चुकी थी। __________ अगली सुबह जल्दी ही सिंघानिया परिवार जोधपुर के लिए रवाना हो चुका था। ध्रुव ने पहले ही मिस्टर सिसोदिया को सब कुछ समझा दिया था। उन्होंने सिक्योरिटी का पुख्ता इंतज़ाम करवा दिया था। सिंघानिया परिवार के साथ जब जीवन ने तारा को भी देखा तो उसे अच्छा लगा। “तो आपने अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट और जॉब फिर से हासिल कर ही ली।” जीवन ने मुस्कुराकर तारा से कहा। “जी, बिल्कुल… जॉब तो एक बार के लिए फिर भी जाने दे सकती हूँ, लेकिन सेल्फ रिस्पेक्ट बिल्कुल नहीं…” एक छोटी सी मुलाक़ात के बाद तारा अंदर चली गई। कुछ देर आराम करने के बाद शाम को ध्रुव और ग्रीष्मा के हल्दी का फ़ंक्शन रखा गया। वेडिंग प्लानर्स ने अरेंजमेंट काफ़ी अच्छे से किए थे। पूरे उम्मेद भवन पैलेस को मिस्टर सिसोदिया ने डेकोरेट करवा दिया था। हल्दी के फ़ंक्शन में जब रत्ना जी ने चंद लोगों को देखा तो उनके चेहरे पर मायूसी थी। “सोचा था ध्रुव की शादी में हर एक फ़ंक्शन धूमधाम से करूँगी। लेकिन यहाँ तो हम गिने-चुने लोगों के अलावा और कोई मौजूद नहीं है।” रत्ना ने सरिता जी से कहा। “परेशान मत होइए। मैंने ध्रुव से कहा था। उसने कुछ रिश्तेदारों को बुलाने के लिए हाँ करवा दिया है। ज़्यादा तो नहीं, लेकिन शाम तक आपके मायके वाले और मेरे मायके वाले शादी में सम्मिलित होने के लिए आ जाएँगे।” सरिता की बात सुनकर रत्ना के चेहरे पर राहत के भाव थे। “चलो, कुछ तो अच्छा सुनने को मिला। चलिए, हल्दी की रस्म को खुशी-खुशी पूरा करते हैं।” सरिता ने रत्ना की बात पर हामी भरी। दोनों ध्रुव और ग्रीष्मा के पास पहुँचीं। ध्रुव उस आदमी की वजह से परेशान था, तो वहीं शादी जल्दी होने की वजह से ग्रीष्मा के चेहरे पर भी वो खुशी दिखाई नहीं दे रही थी। “मानती हूँ कि सब कुछ बहुत जल्दी में हो रहा है, लेकिन अगर आप लोग ऐसे ही मुँह बनाकर रखोगे तो शादी की फ़ोटो में बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगोगे।” तारा ने कहा। “हाँ, ये छोरी बिल्कुल सही कह रही है। चलो, अब जल्दी से दोनों मुस्कुराओ।” गायत्री जी ने कहा। उनकी बात सुनकर ग्रीष्मा और ध्रुव ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। ध्रुव ने उसे मुस्कुराने का इशारा किया। ग्रीष्मा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी, जिसे देखकर ध्रुव को भी अच्छा लग रहा था। “इन लोगों ने हमारी पार्टनर को भी अपने पाले में ले लिया। अब तो ये शादी रोकने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।” साक्षी ने कहा। वो साहित्य के साथ उनसे थोड़ी दूरी पर खड़ी थी। “आई विश कि कोई मैजिक हो जाए, जहाँ ये शादी कैंसिल हो सके।” साहित्य ने जवाब दिया। दोनों आपस में फुसफुसाकर धीमी आवाज़ में बातें कर रहे थे। उन दोनों को अपने पास ना देखकर रत्ना ने उन्हें आवाज़ लगाकर बुलाया। “डब्बू, चिंटू, चलो जल्दी से यहाँ आओ। तुम दोनों भी अपनी होने वाली भाभी और भाई को हल्दी लगा दो।” रत्ना जी की आवाज़ लगाने पर डब्बू और चिंटू मुँह बनाकर उनके पास आए। “कम से कम यहाँ तो आप हम दोनों को हमारे नाम से बुला सकती हैं। माना रिश्तेदार मौजूद नहीं हैं, लेकिन यहाँ का स्टाफ़ तो है। देखो, सब कितनी अजीब नज़रों से हम लोगों की तरफ़ घूरकर देख रहे हैं।” साक्षी मुँह बनाकर बोली। “कुछ नहीं होता। चलो, जो बोला है वो करो।” रत्ना जी ने हल्दी की थाली साक्षी की तरफ़ बढ़ाई। हल्दी लगाते वक़्त वो तारा के पास आई और धीमी आवाज़ में बोली,“वेरी बैड पार्टनर, आपने टीम बदल दी।” “बिल्कुल नहीं, मैं अभी भी तुम दोनों की टीम में ही हूँ।” तारा ने फुसफुसाकर जवाब दिया। कुछ ही देर में उनकी हल्दी की रस्म ख़त्म हो चुकी थी। रस्म पूरी होने के बाद वो लोग फ़ोटोशूट करवा रहे थे। तारा दूर से खड़ी उन लोगों की तरफ़ देख रही थी। उसकी आँखों में नमी थी। “कितने खुश हैं ये लोग, और साथ में लकी भी… इनका अपना परिवार है… जिनसे ये अपना हर सुख-दुख बाँट सकते हैं। शिकायतें कर सकते हैं, रूठ सकते हैं, उन्हें मना सकते हैं… मैं बिल्कुल अपने नाम की तरह हूँ, जो आसमान में हज़ारों तारों की तरह मौजूद हूँ। कहने को हज़ारों हैं, लेकिन अपने आप में सब अकेले…” सोचते हुए तारा की आँखों से आँसू छलक पड़े। ग्रीष्मा ने उसे इशारे से अपने पास बुलाया। तारा ने जल्दी से अपने आँसू पोछे और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए उनके पास जाने लगी। ★★★★ हेलो, डियर रीडर्स… क्या आपको भी साक्षी और साहित्य की तरह लगता है कि ग्रीष्मा में कोई गड़बड़ी है? ग्रीष्मा का करैक्टर आपको कैसा लगता है? कमेंट में ज़रूर बताइएगा। कीप सपोर्टिंग ऑलवेज़
ध्रुव और ग्रीष्मा की शादी की हल्दी की रस्म पूरी हो चुकी थी। रस्म के बाद सभी लोग फ़ोटोशूट करवा रहे थे। उन सब को एक साथ खुश देखकर तारा अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचकर भावुक हो गई। “तारा…,” ग्रीष्मा ने आवाज़ लगाई। “तुम भी आओ ना हमारे साथ…” तारा ने सबकी नज़रों से छुपकर अपने आँसू पोछे और मुस्कुराते हुए उनकी तरफ़ बढ़ी। उसने भी उन लोगों के साथ में फ़ोटो क्लिक करवाईं। “क्या हुआ? तुम परेशान क्यों हो?” तारा को उदास देखकर ग्रीष्मा ने पूछा। “अरे कुछ नहीं, मैं जब भी किसी की शादी होते देखती हूँ, तो थोड़ा इमोशनल हो जाती हूँ।” “तुम दूसरों की शादी देखकर इतनी इमोशनल हो जाती हो, तो जब खुद की शादी होगी तब क्या करोगी?” ग्रीष्मा ने हल्का हँसते हुए कहा। “पता नहीं… मेरी ज़िंदगी में वो वक़्त आएगा भी या नहीं…” तारा ने अपने मन में सोचा। तारा सबके बीच रहकर अपने ग़मों को छिपाने की कोशिश कर रही थी। उसका मन भारी हो रहा था और रोने का मन कर रहा था, तो वो बहाना बनाकर वहाँ से ऊपर चली गई। तारा की आँखों में आँसू थे, जिसे वो चाहकर भी नहीं रोक पा रही थी। “आपने क्या मेरे लिए स्पेशल टाइम निकालकर मेरी किस्मत लिखी थी?” तारा ने ऊपर आसमान की तरफ़ देखकर कहा। “सब को सब कुछ मिलता है। सब कुछ ना मिले, लेकिन… लेकिन फ़ैमिली सब के पास मौजूद होती है। मम्मा ना हो, तो पापा होते हैं। पापा ना हो तो माँ, भाई या बहन, दादा या दादी, कोई ना कोई तो होता है सबके पास… लेकिन हम… हमारे पास कहने के लिए कोई भी अपना नहीं है।” तारा आसमान में देखकर भगवान से शिकायत कर रही थी। तभी उसके फ़ोन पर किसी का कॉल आया। उसने जल्दी से अपने आँसू पोछे और खुद को सामान्य किया। “चलो शुक्र है, तुम्हें मेरी याद तो आई।” तारा ने हँसने का दिखावा किया। “हाँ बोल तो ऐसे रही है जैसे जाने के बाद तूने मुझे 50 कॉल कर दिए हों। शिकायतें बाद में कर लेना, अच्छा पहले बता, क्यों रो रही थी?” सामने से एक लड़की की आवाज़ आई। उसके प्यार भरे शब्द सुनकर तारा के मुँह से सिसकी निकली। अब तक वो अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी, अगले ही पल उसके आँसू उसकी आँखों की कैद से बाहर थे। उसने भारी आवाज़ में जवाब दिया, “कुछ नहीं तनीषा, हर बार की तरह उस ऊपर वाले से वही सवाल पूछ रही थी।” “तू ना पागल है… लोगों के तो गिने-चुने एक या दो भाई-बहन होते हैं, सोच हमारे आश्रम में तो हमारे कितने सारे भाई-बहन हैं। समीधा आंटी बिल्कुल हमारी माँ की तरह हमें प्यार करती हैं। रामधन काका और शिवा भैया को कैसे भूल सकती हो तुम? वो सिर्फ़ आश्रम की ही नहीं, हम सब की भी अच्छे से चौकीदारी करते हैं। उनके होते हुए तुम्हें अपनों की कमी खल भी कैसे सकती है?” “हाँ सही कह रही है तू, मैं भी पागल हूँ, जो उन लोगों को याद कर रो रही हूँ, जिन्होंने पैदा होने के एक दिन तक भी मुझे अपने पास नहीं रखा और वही हॉस्पिटल में छोड़कर चले गए।” तारा ने सख़्त आवाज़ में जवाब दिया। “ये हुई ना बात… शुक्र है हम उनके साथ नहीं रहते, जो अपने ही बच्चों को छोड़कर भगोड़ों की तरह भाग जाते हैं। हम उन लोगों के साथ रहते हैं, जो हज़ारों अनाथों को अपना बच्चा समझकर पालते हैं।” तनीषा की बातों ने तारा को बहुत हिम्मत दी। तनीषा और वो बचपन से अहमदाबाद के एक अनाथ आश्रम में साथ पली-बढ़ी थीं। उन दोनों के वहाँ पर और भी दोस्त थे, लेकिन तनीषा और तारा दोनों सगी बहनों से भी बढ़कर एक-दूसरे से प्यार करती थीं। “चल अब इन सब बकवास को छोड़ते हैं। अच्छा बता तुमने क्यों कॉल किया था?” तारा ने पूछा। “तेरी उस मिस मेहता ने कॉल करके मुझे बुलाया था। उसने तुझे जॉब से निकाल दिया और तूने मुझे बताया तक नहीं? जब तुम उसके लिए काम ही नहीं कर रही तो फिर राजस्थान में कर क्या रही हो?” “बहुत लंबी कहानी है यार…” तारा ने गहरी साँस ले कर छोड़ी। “तो शॉर्ट में सुना दे।” “मुझे नौकरी से मिस मेहता ने नहीं निकाला था, बल्कि मैं जहाँ काम करने आई थी, उसने मुझे काम से निकलवाया था। सोचा था यहाँ से वापस अहमदाबाद आ जाऊँगी, लेकिन उस लड़के की होने वाली पत्नी बहुत अच्छी है। उसने मुझे काम पर रख लिया। पहले तो इनकी शादी 15 दिन बाद होने वाली थी। अब तीन-चार दिनों में निपट जाएगी तो अहमदाबाद भी आ जाऊँगी।” तारा ने एक साँस में उसे पूरी कहानी सुना दी। “ठीक है मुझे इंतज़ार रहेगा। सुन, आते वक़्त मेरे लिए राजस्थान के दुपट्टे और दाल-बाटी-चूरमा लेकर आना मत भूलना।” तनीषा ने कहा। “दाल-बाटी-चूरमा लेकर नहीं आऊँगी, बल्कि उसकी रेसिपी सीखकर आ जाऊँगी, ताकि तुम सबको बनाकर खिला सकूँ। रही बात राजस्थान के दुपट्टे लाने की, जिस दिन तू दुपट्टा लगाना शुरू कर देगी, उस दिन दुपट्टे भी लाकर दे दूँगी। चल अब रखती हूँ, बहुत काम है।” तनीषा ने हामी भरी और कॉल कट कर दिया। उससे बात करके तारा का मूड काफ़ी अच्छा हो गया था। वो रोते हुए ऊपर आई थी, लेकिन अब वो मुस्कुराते हुए बिना किसी शिकायत के नीचे जा रही थी। ____________ तारा नीचे पहुँची, तब ध्रुव और ग्रीष्मा के ननिहाल साइड से कुछ रिश्तेदार आए हुए थे। सब ग्रीष्मा को घेरकर बैठे थे। “आ छोरी कौन है?” उनमें से एक औरत ने पूछा। “मामी, वो मेरी असिस्टेंट है। शादी में मेरी हेल्प करने के लिए आई है।” ग्रीष्मा ने जवाब दिया। “मुझे तो लगा तेरी दोस्त है। पर ये तो तेरा काम करने के लिए आई है।” उस औरत ने तारा की तरफ़ देखकर मुँह बनाया। “मेरी दोस्त ही है मामी।” ग्रीष्मा ने कहा। उसकी बात सुनकर उस औरत का मुँह बन गया। वो तारा को अजीब नज़रों से घूर रही थी। “ये आंटी मुझे ऐसे घूरकर क्यों देख रही है, जैसे अगले ही पल खा जाएगी?” तारा ने साक्षी से फुसफुसाकर पूछा। “तारा दीदी, वो हमारी मामी है। वो सिर्फ़ अपने इक्वल स्टेटस वालों को ही प्यार से देखती हैं। उसके अलावा सबको ऐसे ही आँखें फाड़कर घूरकर देखती रहती हैं।” साहित्य ने जवाब में कहा। तारा साक्षी और साहित्य के पास खड़ी थी। “तब तो इन्हें सबक़ सिखाना पड़ेगा।” तारा ने मामी की तरफ़ घूरकर देखा। “इस काम में तो डेफ़िनेटली हम आपके साथ हैं पार्टनर।” साक्षी और साहित्य एक साथ बोले। “ग्रीष्मा का तो समझ में आता है, लेकिन मामी? उनके ख़िलाफ़ तुम दोनों मेरा साथ क्यों दोगे?” “इसलिए तारा दीदी क्योंकि हमारा एक-एक रिश्तेदार हमारे लिए दुश्मन बराबर है। कोई ये नहीं कहता कि इन दोनों को आगे बढ़ने के लिए सपोर्ट करो। इन्हें तो हमेशा मेरी शादी की लगी रहती है।” साक्षी ने जवाब दिया। “हाँ और मैं भी फ़ैमिली बिज़नेस ज्वाइन नहीं करना चाहता। इनका बस चलता तो पैदा होते ही मुझे ऑफ़िस में बिठा देते। मुझे ज्वेलरी डिज़ाइनर नहीं बनना, मैं एक फ़ोटोग्राफ़र बनना चाहता हूँ।” साहित्य ने कहा। “और मैं इस वर्ल्ड को एक्सप्लोर करना चाहती हूँ। मैं दुनिया के हर एक कोने में जाकर वहाँ के कल्चर को देखना और उसे सीखना चाहती हूँ।” साक्षी और साहित्य ने बारी-बारी से अपने सपने बता दिए, जिसे सुनकर तारा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। “कभी दुनिया की नहीं सुनना और वही करना जो तुम्हारे दिल में है। जब कुछ बन जाओगे, तब यही दुनिया तुम्हारे पीछे-पीछे घूमेगी।” तारा की बात सुनकर साक्षी ने कहा, “बस यही वजह है तारा दीदी कि हम आपको इतना पसंद करते हैं।” “आप हमारी हीरो हो… आप किसी से नहीं डरती। ध्रुव भैया से भी कुछ भी कह देती हैं।” साहित्य ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई। “हाँ क्योंकि मैंने कभी डरना नहीं सीखा। कभी डर के कदम पीछे भी लिए हैं या अकेले भी महसूस किया है, तो मेरी फ़्रेंड तनु ने मुझे पीछे से धक्का देकर आगे किया है।” वो तीनों आपस में बात कर रहे थे, तभी रत्ना जी वहाँ पर आईं। “तारा, तुम मेरे साथ चलो। मुझे कुछ काम है। मेरी मदद कर दो।” रत्ना जी ने तारा से कहा। तारा ने उनकी बात पर हामी भरी और रत्ना जी के साथ ऊपर कमरे में गई। ऊपर कमरे में ध्रुव और ग्रीष्मा मौजूद थे। तारा को समझ नहीं आया कि रत्ना जी उसे ऊपर लेकर क्यों आई हैं? “क्या हुआ आंटी? आप मुझे यहाँ क्यों लेकर आई हैं?” उसने पूछा। “पिछले दिनों में मैंने नोटिस किया है कि तुम ग्रीष्मा के बहुत क्लोज़ हो गई हो। मैं चाहती हूँ कि तुम इन दोनों को समझाओ।” “ग्रीष्मा को तो मैं समझा दूँगी, लेकिन ध्रुव सर को समझाना मतलब भैंस के आगे बीन बजाने के बराबर है।” तारा के कहते ही ध्रुव उसकी तरफ़ घूरकर देखने लगा। “मेरे कहने का मतलब है ध्रुव सर पहले से इतने समझदार हैं, उन्हें कुछ समझाने की क्या ज़रूरत? वैसे समझाना क्या है आंटी?” तारा ने पूछा। “हमारे फ़ैमिली ट्रेडिशन के हिसाब से लड़की फ़ेरों में लंबा घूँघट डालकर बैठती है और लड़का चेहरे पर सेहरा लगाकर… ताकि उसे वहाँ मौजूद लोगों की बुरी नज़र ना लगे। दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे का चेहरा शादी के बाद अपनी पहली रात के वक़्त देखते हैं।” “काफ़ी अजीब रिवाज़ है। लेकिन दिक्कत क्या है?” “दिक्कत ये है कि ये दोनों ही इस रिवाज़ को नहीं मानना चाहते।” रत्ना जी ने बताया। “हम क्या ग़लत कह रहे हैं माँ? आप खुद बताइए कि हम इतने मॉडर्न हो चुके हैं। पर्दा प्रथा जैसी प्रथा पुराने ज़माने में होती थी और ये एक तरह की कुप्रथा मानी जाती है। हमारे देश के सोशल वर्कर्स ने इन सब को हटाने में इतनी मेहनत की है और आप हैं कि रिवाज़ के नाम पर इन्हें फ़ॉलो करना चाहती हैं।” ध्रुव ने अपना तर्क रखा। “मैं उम्र भर ग्रीष्मा को पर्दे में रहने के लिए नहीं कह रही। तुम अच्छे से जानते हो हमारे घर में बहुओं को भी उतनी ही आज़ादी है, जितनी इस घर की बेटियों को… मैंने और माँ सा ने कभी इस बात की ज़िद नहीं की कि ग्रीष्मा शादी के बाद हमारे हिसाब से रहेगी।” “तो अब आप दोनों ज़िद क्यों कर रही हैं? ये क्या मतलब हुआ? मैं अपनी शादी में अपनी दुल्हन को देख तक नहीं पाऊँगा और ना ही वो मुझे?” “तो क्या हुआ बेटा? शादी के बाद देख लेना। ग्रीष्मा तुम्हारी है और अब उम्र भर इसे ही देखना है।“ रत्ना जी बोलीं। ध्रुव और रत्ना जी की बहस बढ़ने लगी। वो बार-बार ध्रुव को इस रस्म को मानने के लिए कह रही थी, जबकि ध्रुव उनके सामने अलग-अलग तर्क रख रहा था। उन दोनों की बहस में तारा और ग्रीष्मा चुपचाप खड़ी थीं। “तारा अब तुम ही समझाओ इन दोनों को…” रत्ना जी तारा की तरफ़ देखकर बोलीं। “मुझे कहते हुए बहुत दुख हो रहा है, लेकिन पहली बार मैं ध्रुव सर की बात से इत्तेफ़ाक़ रखती हूँ। आंटी, यहाँ जो भी मौजूद है, वो सब हमारे अपने ही हैं और अपनों की कैसे बुरी नज़र लगना? वो यहाँ आशीर्वाद देने आए हैं।” तारा की बात सुनकर ध्रुव झट से बोला, “चलो शुक्र है।” रत्ना जी की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं। वो ध्रुव की ज़िद के आगे घुटने टेकने ही वाली थीं कि तभी ग्रीष्मा ने कहा, “लेकिन मैं मम्मी जी की बात से सहमत हूँ। मुझे ये रिवाज़ करने में कोई दिक्कत नहीं है।” ग्रीष्मा की बात सुनकर रत्ना जी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, तो वहीं ध्रुव और तारा दोनों ही उसकी तरफ़ हैरानी से देख रहे थे। ★★★★ हेलो रीडर्स… पाठ पढ़ने के बाद समीक्षा ज़रूर करिएगा। आपको तारा की थिंकिंग कैसे लगती है? कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइएगा। क्या आपके यहाँ भी घूँघट रखने जैसी चीज़ अभी भी रिवाज़ के नाम पर मानी जाती है? कीप सपोर्टिंग ऑलवेज़…
रत्ना जी ध्रुव और ग्रीष्मा को फेरों में पर्दा करने से जुड़ी रस्म करने के लिए मना रही थीं। ध्रुव ने उसे करने के लिए साफ मना कर दिया था। रत्ना जी उसकी बात मानने ही वाली थीं, तभी ग्रीष्मा ने उस रस्म करने के लिए अपनी हामी भर दी थी। “ये कैसी बातें कर रही हो तुम, ग्रीष्मा? यहां तारा तक समझ गई है और तुम हो… आई नेवर एक्सपेक्टेड सच थिंग फ्रॉम यू…” ध्रुव ने नाराज होकर कहा। “मैं जानती हूँ, ध्रुव, कि ये सब दकियानूसी बातें हैं, लेकिन कहीं ना कहीं मैं भी थोड़ी बहुत सुपरस्टिशस हूँ और इन सब नजर लगने वगैरह में बिलीव करती हूँ।” ग्रीष्मा ने अपनी बात रखी। “लेकिन मैं ये सब नहीं करने वाला…” ध्रुव अभी तक अपनी जिद पर अड़ा था। “अब तो ग्रीष्मा भी मान गई है। फिर तुम्हें क्या दिक्कत है?” रत्ना जी ने कहा। “मुझे जो गलत लगेगा, उसे मैं गलत ही कहूँगा। ज़रूरी नहीं कि ग्रीष्मा और मेरी थिंकिंग की सब जगह पर मैच हो। आई रिस्पेक्ट योर वैल्यूज़, पर मैं ये नहीं करने वाला…” ध्रुव ने उस रिवाज को मानने से साफ इंकार कर दिया था। तारा को भी ध्रुव की बात सही लग रही थी, इसलिए उसने बीच में बोलना सही नहीं समझा। “क्या तुम मेरी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकते, ध्रुव?” ग्रीष्मा ने एक आखिरी कोशिश की। “तुम्हारी खुशी के लिए मैं इतना कर सकता हूँ कि अगर तुम इस रस्म को फॉलो करना चाहती हो, तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। लेकिन मैं ये नहीं करने वाला।” ध्रुव ने प्यार से कहा और वहाँ से चला गया। उसे समझाने की उन सब की कोशिशें बेकार हो चुकी थीं, लेकिन साथ ही ग्रीष्मा के रस्म करने को हां कहने की वजह से रत्ना जी खुश थीं। “मैं माँ सा को बता कर आती हूँ कि तुमने इस रिवाज को करने के लिए हां कह दी है।” रत्ना जी ने मुस्कुरा कर कहा और वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही तारा ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और ग्रीष्मा के पास आई। “आपके पास अच्छा मौका था इस रस्म को करने से मना करने के लिए… ध्रुव सर आपके साथ थे। फिर आपने हां क्यों कहा?” तारा ने हैरानी से पूछा। “तुम नहीं समझोगी, तारा, एक लड़की की शादी सिर्फ़ लड़के से नहीं, उसके पूरे परिवार से होती है, जहाँ उसे सबके साथ बनाकर रखना होता है। मैं भी इन सब में नहीं मानती, लेकिन मम्मी जी की खुशी के लिए मैंने हां कर दिया।” “लेकिन ये तो गलत है ना, ग्रीष्मा… जिस काम को करने के लिए आपका दिल ही नहीं माने, उसके लिए आपको ज़बरदस्ती हां नहीं करनी चाहिए थी।” “कुछ काम अपनी खुशी के लिए नहीं, अपनों की खुशी के लिए किए जाते हैं। इन सब को छोड़ो, मैं ध्रुव से बात करके आती हूँ और उसे मनाने की कोशिश करती हूँ। मेरे हां कहने की वजह से वो भी मुझसे नाराज़ हो गया होगा।” ग्रीष्मा वहाँ से ध्रुव के पास चली गई। तारा को ग्रीष्मा का बर्ताव बहुत ही अजीब लग रहा था, लेकिन उसने ज़्यादा कुछ कहना सही नहीं समझा। रात के 11:00 बज रहे थे। ध्रुव उम्मेद भवन पैलेस के गार्डन में बैठा लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। उसके पास कॉफ़ी का मग पड़ा था, जिससे बीच-बीच में वो एक-दो सिप ले रहा था। ग्रीष्मा उसे मनाने के लिए उसके पास आई। उसने ध्रुव के पास कुर्सी खिसका कर उस पर बैठ गई। “गुस्सा हो?” ग्रीष्मा ने पूछा। “तुम्हें क्या लगता है, मुझे गुस्सा होना चाहिए या नहीं?” उसके सवाल के बदले ध्रुव ने अपना सवाल रखा। “मैं जानती हूँ, मुझे हां नहीं कहनी चाहिए थी, लेकिन मम्मी जी बहुत प्यार से हमें वो रस्म करने के लिए कह रही थीं।” “कल को वो प्यार से तुम्हें मुझसे अलग होने के लिए कहेगी, तो क्या तुम उनकी बात मान जाओगी?” ध्रुव की बात सुनकर ग्रीष्मा चुप हो गई और उसने अपनी नज़रें झुका लीं। “तुम्हारी चुप्पी में मुझे अपना जवाब मिल गया, ग्रीष्मा। ये अच्छी बात है कि तुमने उनकी खुशी के लिए हां कह दी, लेकिन आगे से ऐसे किसी काम के लिए हां मत करना, जिसे करने के लिए तुम्हारा दिल ही हां ना करे।” ध्रुव ने सख्त आवाज़ में कहा। “ध्रुव, मैं चाहती हूँ कि तुम भी इस रस्म को करने के लिए हां कह दो।” ग्रीष्मा ने बिल्कुल धीमी आवाज़ में जवाब दिया। “मतलब मेरे इतने लंबे-चौड़े भाषण का तुम पर कोई असर नहीं पड़ा। तुम लड़कियाँ इतनी जिद्दी क्यों होती हो? अब तक मैं तारा को बेवकूफ़ समझता था, जो बिना सोचे-समझे कुछ भी कर देती थी, लेकिन एट लिस्ट उस लड़की में इतनी समझ तो है कि वो गलत को गलत कहने की हिम्मत रखती है, चाहे सामने कोई भी क्यों ना हो।” “लगता है तुम्हें तारा पसंद आने लगी है।” ग्रीष्मा ने हल्की मुस्कुराहट के साथ पूछा। “मैं उसे पिछले 3 दिन से जानता हूँ, तुम अच्छे से जानती हो कि इन 3 दिनों में हम कितनी बार बहस कर चुके होंगे। उसके बावजूद तुम ये सवाल पूछ रही हो?” “सवाल नहीं पूछ रही, बस जो फील हुआ वही बता रही थी। क्या हुआ जो उसका फ़र्स्ट इंप्रेशन अच्छा नहीं था, लेकिन लड़की तो अच्छी है ना…” ग्रीष्मा ने कहा। “हाँ, लड़की अच्छी है।” बोलते हुए ध्रुव का ध्यान सामने खिड़की की तरफ़ गया। उसने देखा तारा वहाँ पर थी और उन दोनों की तरफ़ ही देख रही थी। “अच्छा, तारा की बात छोड़ो, मैं चाहती हूँ कि तुम मम्मी जी की खुशी के लिए इस रस्म के लिए हां कह दो। प्लीज़ अब बहस मत करना। तुमने रिश्तेदारों को शादी में आने से मना कर दिया, इस वजह से वो पहले से ही नाराज़ हैं। अब उन्हें और नाराज़ मत करो। मेरे लिए ना सही, उनकी खुशी के लिए हां कह दो।” ग्रीष्मा ध्रुव को मनाने की हर संभव कोशिश कर रही थी। उसकी बात सुनकर ध्रुव ने थोड़ी देर तक सोचा और फिर मुस्कुराते हुए जवाब में कहा, “लगता है अच्छी बहू होने पर माँ की तरफ़ से तुम्हें फ़ुल पॉइंट्स मिलने वाले हैं।” “मतलब तुम मम्मी जी की बात मानने वाले हो?” ग्रीष्मा ने उत्साहित होकर पूछा। ध्रुव ने उसकी बात पर हाँ में पलकें झपकाईं, तो खुश होकर ग्रीष्मा ने उसे गले लगा लिया। “आववव… थैंक यू सो मच, बेबी… तुम नहीं जानते जब मैं मम्मी जी को ये बात बताऊँगी, तो वो कितना खुश होंगी।” ध्रुव ने ग्रीष्मा को खुद से अलग किया और कहा, “अच्छा, ठीक है बाबा, चलो अब जाकर उन्हें बता दो, ताकि उन्हें भी खुशी मिल जाए।” “मैं अभी आती हूँ।” ग्रीष्मा ने खुश होकर कहा और वहाँ से चली गई। ध्रुव मुस्कुराते हुए वापस अपने काम लग गया। तारा उन दोनों को ऊपर से देख रही थी। जिस तरह से ग्रीष्मा ने खुश होकर ध्रुव को गले लगाया था, उससे वो समझ गई थी कि उसने ध्रुव को मना लिया था। “आखिर ग्रीष्मा ने इस खड़ूस को मना ही लिया। इसी बहाने पहली बार इसे मुस्कुराते हुए देख रही हूँ। कितना अच्छा तो लगता है मुस्कुराते हुए, फिर पता नहीं क्यों टिंडे जैसी शक्ल बनाकर रखता है।” “तारा दीदी, ध्रुव भैया को टिंडे बिल्कुल पसंद नहीं हैं।” उसके पास खड़े साहित्य ने कहा। “फिर भी टिंडे की तरह मुँह फुला कर रखता है।” “आपको अभी भी कोई झोल नहीं लगा ग्रीष्मा में?” साक्षी ने पूछा। “हाँ, कई बार उनकी हरकतें मुझे अजीब ज़रूर लगती हैं, लेकिन फिर वो जिस हिसाब से चीज़ें समझाती है और अपना लॉजिक रखती है, तो उन पर विश्वास हो जाता है।” तारा ने जवाब दिया। “लेकिन मुझे वो बहुत अजीब लगती हैं। आपको कुछ कहती हैं, भाई को कुछ कहती हैं और मम्मी को कुछ और…” साक्षी ने कहा। “हाँ, इस बार मुझे भी अजीब लगा। वो विदेश में पढ़ी-लिखी है। पहली बार मैंने उन्हें देखा था, तब उन्होंने बहुत छोटे कपड़े पहन रखे थे और अब घूँघट वाली रस्म के लिए हाँ कहना, ये थोड़ा अजीब है। रत्ना आंटी के सामने उन्होंने कहा था कि वो भी थोड़ी-बहुत अंधविश्वासी है, इस वजह से ये रस्म करना चाहती है। मुझे कहती है कि वो ये रस्म मम्मी जी की खुशी के लिए करना चाहती है और अब पता नहीं ध्रुव सर को जाकर क्या बोलकर आई होंगी।” तारा हर एक बात को मिलाकर देख रही थी। “तभी वो हमें अच्छी नहीं लगतीं। वो हर अलग इंसान से अलग-अलग तरह की बातें करती हैं।” साहित्य ने कहा। “आप भी अच्छी हो, आपका बिहेवियर रियल लगता है। पर लेकिन पता नहीं क्यों, वो हमें फ़ेक लगती है। वो मीठी-मीठी बातें करके हमें मैनिपुलेट करने की कोशिश करती है।” साक्षी ने अपनी बात रखी। “लेकिन अब तो कुछ नहीं हो सकता ना… परसों उन दोनों की शादी होने वाली है और उसके अगले दिन मैं भी यहाँ से चली जाऊँगी। तुम लोग उन्हें एक्सेप्ट करने की कोशिश करो। क्या पता फिर वो तुम लोगों को समझ आने लगें।” तारा ने उन दोनों को समझाने की कोशिश की। साक्षी और साहित्य दोनों ने ही उसकी बात पर ना में सिर हिलाया। वो चाहकर भी ग्रीष्मा पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। “मैं ज़्यादा कुछ तो नहीं कर पाऊँगी, लेकिन जाते वक़्त रत्ना आंटी से बात करके ज़रूर जाऊँगी कि वो तुम दोनों को अच्छी पढ़ाई के लिए बाहर भेज दें।” “क्या सच में?” साहित्य ने पूछा। “आपके इस फ़ेवर के लिए थैंक यू सो मच, दीदी, लेकिन आप मम्मा से नहीं, ध्रुव भैया से बात कीजिएगा। हमारे घर में उन्हीं की चलती है। अगर उन्होंने हाँ कह दी, तो बाकी लोगों को अपने आप हाँ कहने ही पड़ेंगे।” साक्षी बोली। “हाँ, तारा दीदी, डब्बू सही कह रही है। अगर हम बाहर पढ़ने चले गए, तो इसी बहाने ग्रीष्मा का चेहरा भी नहीं देखना पड़ेगा।” उनकी बात सुनकर तारा हँसी और उन दोनों के सर पर हल्की चपत लगाकर बोली, “पागल हो तुम दोनों… इतने कम एज में ये जासूस वाला दिमाग कहाँ से लेकर आए?” “जहाँ से आप लेकर आईं। आप भी तो ज़्यादा बड़ी नहीं हुईं। उसके बावजूद आप कितनी अच्छी हो। सबकी बात अच्छे से समझती हो और बहुत बहादुर हो।” साक्षी ने कहा। “मुझे अपना ये राजस्थान का घी लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ऐसे ही तुम दोनों का काम कर दूँगी।” तारा की बात सुनकर साहित्य और साक्षी हँसे। उसके बाद गुड नाईट बोलकर वो अपने-अपने कमरे में चले गए। उनके जाने के बाद तारा भी सोने जा चुकी थी। अगला पूरा दिन ध्रुव और ग्रीष्मा की शादी की बाकी की रस्में निपटाने में गया, जहाँ हल्दी की रस्म के बाद संगीत की रस्म थी। ग्रीष्मा को बहू के रूप में पाकर रत्ना जी बहुत खुश थीं। वहीँ उनका पूरा परिवार भी उसे पसंद करता था। तारा के समझाने पर साक्षी और साहित्य भी इस शादी में अच्छे से शरीक हो रहे थे। संगीत की रस्म पूरी होने पर देर रात ध्रुव और ग्रीष्मा एक-दूसरे से पैलेस की छत पर मिले। उनकी ये डेट सबसे छुपकर तारा ने ही अरेंज की थी। तारा वहीं पर खड़ी आने-जाने वाले लोगों का ध्यान रख रही थी, ताकि कोई वहाँ पर ना आ जाए। उसने उस जगह को उन दोनों के लिए बहुत अच्छे से डेकोरेट भी करवा दिया था। “लगा नहीं था कि शादी से पहले मिल पाएँगे। तारा ने सच में इस बार अच्छा काम किया है।” ध्रुव ने पीछे से ग्रीष्मा को गले लगाकर कहा। “हाँ, वो बहुत अच्छी है। देखो ना हमारे लिए कितनी अच्छी अरेंजमेंट्स की है।” ग्रीष्मा ने वहाँ की डेकोरेशन देखकर कहा, “ध्रुव, प्लीज़ तुम उसे शादी में आने की परमिशन दे दो ना… इतने कम वक़्त में वो हमारी फैमिली की तरह बन गई है।” “नहीं, ग्रीष्मा, जानता हूँ तारा ट्रस्टवर्दी है, लेकिन मैंने उसे आने की इजाज़त दी, तो मामी और बाकी फैमिली का राग अलापना शुरू हो जाएगा। वो यही कहेंगे बाकी के रिश्तेदारों को बुलाया नहीं और एक अनजान लड़की को शादी में शामिल होने की इजाज़त दे दी।” “ठीक है।” ग्रीष्मा ने मायूस होकर कहा। “तुम्हारे मुँह पर ये उदासी अच्छी नहीं लगती। चलो अब एक प्यारी सी स्माइल दो… कल के बाद हम दोनों के बीच सारी दूरियाँ मिट जाएँगी और हम एक हो जाएँगे।” बोलते हुए ध्रुव के होंठ ग्रीष्मा के गाल के बिल्कुल पास थे। ध्रुव ने हल्के से ग्रीष्मा के गाल पर किस किया। ग्रीष्मा ने शर्मा कर अपनी आँखें बंद कर लीं। उन दोनों को एक साथ इतने करीब देखकर तारा ने अपना मुँह फेर लिया। “दोनों साथ में कितने अच्छे लग रहे हैं। भगवान जी इनके साथ यूँ ही बनाए रखिएगा।” उसने आसमान की तरफ़ देखकर कहा। पहली बार आसमान की तरफ़ देखकर वो शिकायतें करने के बजाय किसी और के लिए दुआ माँग रही थी। ★★★★ हे रीडर्स...! शादी का पल नज़दीक आ रहा है। देखते हैं यहाँ कौन सा नया धमाका होता है। जानने के लिए बने रहिए। और समीक्षा भी कीजिएगा।
अगले दिन शाम के वक्त, उम्मेद भवन पैलेस में रौनक छाई हुई थी। उसे बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था। कुछ ही देर में ध्रुव और ग्रीष्मा की शादी होने वाली थी। सिक्योरिटी के चलते, ध्रुव ने शादी में ज़्यादा लोगों को आने की परमिशन नहीं दी थी। ग्रीष्मा के बार-बार ज़िद करने के बावजूद, उसने तारा को भी आने की इजाज़त नहीं दी थी। घर के सभी लोग शादी की रस्मों की भागदौड़ में लगे हुए थे। ध्रुव अपने कमरे में तैयार हो रहा था। उसके साथ साक्षी और साहित्य भी मौजूद थे। साक्षी, बहन होने के नाते, कुछ रस्में निभा रही थी। उन दोनों के बने मुँह देखकर ध्रुव बोला, “मैं कब से नोटिस कर रहा हूँ कि तुम दोनों शादी के किसी भी फंक्शन में ठीक से इंवॉल्व नहीं हो रहे? आई नो, मैंने तुम दोनों के फ्रेंड्स को आने की इजाज़त नहीं दी, लेकिन तुम उन्हें रिसेप्शन पार्टी में बुला सकते हो। चलो अब बताओ, शादी के गिफ्ट में क्या चाहिए?” “बोल तो ऐसे रहे हो जैसे हम मांगेंगे और आप हमें झट से दे देंगे?” साक्षी मुँह बनाकर बोली। “हाँ, हर बार की तरह। करना तो इन्हें ना ही है। फिर हम कुछ मांगकर क्यों अपनी इंसल्ट करवाएँ?” साहित्य ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई। “तुम दोनों इतने बड़े कब से हो गए जो मेरे ना कहने पर तुम्हारी इंसल्ट हो जाएगी? अच्छा, डब्बू, बताओ तुम्हें कौन से कॉलेज में एडमिशन चाहिए… और चिंटू तुम, पिछली बार मैंने तुमसे तुम्हारा कैमरा छीन लिया था, लेकिन इस बार मैंने तुम्हारे लिए एक बेस्ट कैमरा और अच्छे-अच्छे लैंसेज़ ऑर्डर किए हैं।” “कहीं हम कोई सपना तो नहीं देख रहे?” साहित्य ने साक्षी से पूछा, “आज हमारे खडूस बड़े भैया ना केवल हमसे अच्छे से बात कर रहे हैं, बल्कि हमारी डिमांड्स भी पूरी करने का बोल रहे हैं।” “ज़रूर, ये सपना ही होगा।” साक्षी ने जवाब दिया। उनकी बात सुनकर ध्रुव हल्का सा मुस्कुराया और साहित्य के सिर पर हल्के से मारकर बोला, “मैं पिछले 2 महीने से बिज़ी था, इस वजह से तुम दोनों से बात नहीं कर पाया। इतनी सी बात के लिए तुम दोनों मुँह फुलाकर बैठ गए।” “मुँह फुलाकर नहीं बैठे हैं भाई…” साक्षी ने जवाब में कहा, “पिछले 2 महीने में आप जितनी रिस्ट्रिक्शन्स हमारे ऊपर लगा सकते थे, वो आपने लगाई। आपकी होने वाली प्यारी वाइफ की वजह से हमें ठीक से शॉपिंग करने तक को नहीं मिली।” “अच्छा बाबा, ठीक है। मैं तुम दोनों की नाराज़गी समझता हूँ, लेकिन एक बार शादी हो जाने दो, फिर मैं तुम दोनों की सारी शिकायतें मिटा दूँगा।” ध्रुव ने साक्षी को गले लगाकर कहा। साहित्य और साक्षी उससे उम्र में काफी छोटे थे, इस वजह से वह उनकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता था। “हाँ, वो भी पता चल जाएगा। देखते हैं, शादी के बाद आप कितना टाइम ग्रीष्मा भाभी के साथ बिताते हैं और कितना हमारे साथ…” साहित्य ने जवाब दिया। ध्रुव ने मुस्कुराकर उन दोनों की बात पर हामी भरी। उससे बात करके उन दोनों के चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। वहीं दूसरी तरफ़, तारा ग्रीष्मा के साथ मौजूद थी। ग्रीष्मा लाल जोड़े में सजकर, दुल्हन के रूप में तैयार हो चुकी थी और बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। “आई एम सो सॉरी तारा, मैं ध्रुव को नहीं मना पाई। मैं चाहती थी कि तुम मेरी शादी अटेंड करो, लेकिन ध्रुव की ज़िद के आगे…” बोलते हुए ग्रीष्मा चुप हो गई। वह उदास लग रही थी। “आप मेरी वजह से क्यों परेशान हो रही हैं? डोंट वरी, मैं जीवन के साथ बाहर जोधपुर घूमने चली जाऊँगी।” “कौन जीवन?” “वो यहीं पैलेस में काम करता है। पिछली बार हम दोनों ने मिलकर आपके लिए डेट अरेंज की थी और इस बार भी छत पर डेट अरेंज करने में उसने मेरी मदद की थी।” तारा ने बताया। “ठीक है।” इतना कहकर ग्रीष्मा चुप हो गई। तारा ने देखा कि ग्रीष्मा काफी परेशान लग रही थी और वह बार-बार अपना मेकअप सही कर रही थी। तारा उससे कुछ पूछ पाती, उससे पहले ग्रीष्मा के पास किसी का कॉल आया और वह उठकर दूसरी तरफ़ चली गई। “इसे अचानक से क्या हुआ? शादी के दिन हर लड़की खुश होती है और इसकी शक्ल उतरी हुई लग रही है। हाँ, वैसे परेशान होना तो बनता है, अब पूरी ज़िंदगी उस खडूस के साथ जो बितानी पड़ेगी।” तारा बड़बड़ाकर बोली। उसे लगा ग्रीष्मा बात करके तुरंत आ जाएगी, लेकिन ग्रीष्मा लगभग आधे घंटे बाद बात करके उसके पास आई। उसकी आँखों में आँसू थे। तारा उसके आँसू पोछते हुए बोली, “मैं जानती हूँ आज का दिन आपके लिए काफी इम्पॉर्टेन्ट है। आज के बाद आप अपने माँ-बाप से अलग एक नई ज़िंदगी शुरू करेंगी, इस दिन एक लड़की का इमोशनल होना जाहिर सी बात है, लेकिन प्लीज़ रोइए तो मत…” तारा की बात सुनकर ग्रीष्मा और ज़ोर से रोने लगी और उसके गले लग गई। “मैं आपकी मम्मी को बुलाकर लाती हूँ। उनसे बात करके आपको अच्छा लगेगा।” तारा उससे अलग होकर बोली और वहाँ से सरिता जी को बुलाने के लिए जाने लगी। ग्रीष्मा तेज कदमों से चलकर उसके पास गई और उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा, “नहीं तारा… मेरे रोने की वजह मेरे मम्मी-पापा से अलग होना नहीं है।” “तो क्या हुआ?” तारा ने हैरानी से पूछा। “तारा, मेरा भाई… मेरा छोटा भाई… पहले उसने शादी में आने से मना कर दिया था, लेकिन अब वह हम सब को सरप्राइज़ देने के लिए लंदन से यहाँ आ रहा था। अभी-अभी मेरे पास एक कॉल आया। उसके ज़रिए मुझे पता चला कि एक रोड एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई।” कहकर ग्रीष्मा फिर से रोने लगी। उसकी बात सुनकर तारा को एक सदमा सा लगा। वह एकदम से बेड पर बैठ गई। “ये तो सच में बहुत बुरा हुआ। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे। पता नहीं सरिता आंटी और भावेश अंकल इस सदमे को कैसे सह पाएँगे।” “मेरे लिए तो उम्र भर यही गिल्ट रह जाएगा कि मेरी शादी में आने की वजह से मेरे भाई की जान चली गई। मैं तो इस लायक भी नहीं कि आखिरी वक्त जाकर उसको देख सकूँ।” “आप ध्रुव सर से बात कीजिए। वह ज़रूर समझेंगे।” तारा ने कहा। “मैं ध्रुव से बात नहीं कर पाऊँगी। ना ही वह मुझे इस बात की इजाज़त देगा। तारा, मुझे बस एक आखिरी बार अपने भाई का चेहरा देखना है।” “आई विश कि मैं आपकी कोई मदद कर पाती ग्रीष्मा…” ग्रीष्मा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहीं चेयर पर बैठकर रो रही थी। तारा उसे समझाने की बहुत कोशिश कर रही थी, लेकिन वह बार-बार अपने भाई से मिलने की बात कर रही थी। “तारा, तुम चाहो तो मेरी हेल्प कर सकती हो।” ग्रीष्मा अचानक से बोली। “लेकिन मैं आपकी क्या हेल्प कर सकती हूँ?” “मैं जानती हूँ मुझे तुम्हें ये नहीं कहना चाहिए, लेकिन… तारा, मैं अपने भाई से मिलना चाहती हूँ। हम दोनों का पूरा बचपन एक साथ बिता है। आज मैं नई ज़िंदगी शुरू करने जा रही हूँ, तो वही मेरे भाई ने अपनी ज़िंदगी से अलविदा कह दिया। मुझे आखिरी बार उसका चेहरा देखना है। तारा, तुम मेरे कपड़े पहनकर, दुल्हन के रूप में तैयार होकर यहाँ बैठ जाना…” ग्रीष्मा ने अपनी बात खत्म भी नहीं की थी कि तारा उसकी बात काटते हुए बीच में बोली, “ये आप कैसी बात कर रही हैं ग्रीष्मा? मैं आपकी जगह कैसे बैठ सकती हूँ? आपकी और ध्रुव सर की शादी होने वाली है। आपके घरवालों की आपकी शादी से कितनी ख्वाहिशें जुड़ी हुई हैं। आप ऐसा करने को कह भी कैसे सकती हैं?” वह गुस्से में ग्रीष्मा पर बिफर पड़ी। “तारा… तारा, पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो।” ग्रीष्मा उसे चुप कराते हुए बोली, “मैं तुम्हें ध्रुव से शादी करने के लिए नहीं कह रही। बस यहाँ पर दुल्हन के तौर पर बैठने को कह रही हूँ। शादी का मुहूर्त शुरू होने में अभी 2 से ढाई घंटे का टाइम है, मैं तब तक जाकर वापस भी आ जाऊँगी। तुम… तुम यहाँ घूँघट निकालकर बैठ जाना। कोई तुम्हारा घूँघट हटाकर नहीं देखेगा। शादी शुरू होने से पहले मैं आ जाऊँगी।” “मुझे आपके साथ पूरी हमदर्दी है ग्रीष्मा मैम, लेकिन मैं ये नहीं कर पाऊँगी।” कहकर तारा वहाँ से जाने लगी। “तारा, आज मेरी जगह तुम्हारी खुद की बहन होती या तुम्हारे खुद के भाई की मौत हो जाती, तो क्या तुम उसे भी ऐसे ही हाल में छोड़ देती?” ग्रीष्मा ने पीछे से आवाज़ लगाकर कहा। उसकी बात सुनकर तारा के क़दम वहीं रुक गए। वह उसकी तरफ़ मुड़ी और बोली, “मुझे आपके लिए बहुत बुरा लग रहा है ग्रीष्मा मैम, लेकिन आप जो करने को कह रही हैं, वह सही नहीं है। कल को आपको आने में देर हो गई, तो मैं बाकी लोगों को क्या जवाब दूँगी कि आप कहाँ गई हैं? अचानक से आपके मम्मी-पापा को आपके भाई की मौत की न्यूज़ मिलेगी, तो वह कैसे रिएक्ट करेंगे?” “तारा, मैं शादी शुरू होने से पहले आ जाऊँगी। फिर भी अगर मुझे आने में पाँच-दस मिनट इधर-उधर हो जाए, तो तुम फेरों के लिए चले जाना। आई प्रॉमिस, मैं शादी नहीं होने दूँगी। मैं बीच में आकर रुकवा दूँगी और सबको सब कुछ समझा भी दूँगी।” “भगवान करे उसकी नौबत ना आए ग्रीष्मा। अब आप जल्दी चाहिए, और जल्दी से वापस आ जाइए।” ग्रीष्मा ने उसकी बात पर हामी भरी और वहाँ के पिछले दरवाज़े से बाहर चली गई। तारा ने ग्रीष्मा की जगह बैठने के लिए हाँ तो कह दी थी, लेकिन घबराहट के मारे उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। तो, फ़ाइनली, प्रोमो सीन आने वाला है। आपको क्या लगता है कि तारा की शादी ध्रुव से हो जाएगी या ग्रीष्मा टाइम पर आकर उसे रोक लेगी? समीक्षा में ज़रूर बताइएगा। कीप सपोर्टिंग ऑलवेज़
उम्मीद भवन पैलेस में ध्रुव और ग्रीष्मा की शादी हो रही थी। ग्रीष्मा को अचानक अपने छोटे भाई की मौत की खबर मिली; तो वह तारा को अपनी जगह बिठाकर वहाँ से चली गई। ग्रीष्मा को गए लगभग आधे घंटे हो चुके थे। तारा उसकी जगह बैठ तो गई थी, लेकिन घबराहट के मारे उसकी हालत खराब थी। “अब तक तो कमरे में कोई नहीं आया, लेकिन अभी तो मुझे डेढ़ घंटे और बिताने हैं। प्लीज भगवान जी, कुछ गड़बड़ मत होने देना और ग्रीष्मा को जल्दी से यहां भेज देना।” घबराहट में तारा जल्दी-जल्दी इधर-उधर चहल-कदमी कर रही थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो तारा जल्दी से जाकर कुर्सी पर बैठ गई और उसने अपने चेहरे पर लंबा सा घूंघट ले लिया। “अरे, हम भी तो देखें हमारी होने वाली बहू रानी कैसी लग रही है?” यह ध्रुव की मामी की आवाज थी, जो कि उसकी माँ रत्ना के साथ वहाँ आई थी। “बिल्कुल नहीं, भाभी। अब तो ग्रीष्मा का चेहरा सबसे पहले ध्रुव ही देखेगा…वह भी शादी की रात पर…” रत्ना ने मुस्कुराकर जवाब दिया। दोनों कमरे में दाखिल हो चुकी थीं। अंदर आते ही ध्रुव की माँ ने ग्रीष्मा समझकर तारा की नज़र उतारी। “माता रानी, तुम दोनों को हर एक बला से दूर रखें।” उन्होंने तारा के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। “अच्छा, जीजी। अब आशीर्वाद बाद में दीजिएगा। पंडित जी फेरों के लिए दुल्हन का इंतज़ार कर रहे हैं। ध्रुव की रस्में तो हो चुकी हैं, अब दुल्हन का आना बाकी है।” मामी के कहते ही रत्ना जी हँसकर बोलीं, “हाँ, मैं तो भूल ही गई थी। ग्रीष्मा, बेटा। पंडित जी ने बोला है कि 2:30 घंटे बाद वाले मुहूर्त से ज़्यादा अच्छा यह वाला मुहूर्त है, तो हमने सोचा शादी इसी मुहूर्त में करवा देते हैं।” उनकी बात सुनकर तारा वहीं पर जड़ हो गई। “हे भगवान, ग्रीष्मा तो 2 घंटे बाद आने वाली थी। मुझे कैसे भी करके इन्हें रोकना होगा।” तारा ने अपने मन में कहा। तारा उन्हें रोकने के लिए कुछ कह पाती, उससे पहले रत्ना जी और मामी ने उसे कुर्सी से उठाया और बाहर ले जाने लगीं। हड़बड़ाहट में तारा को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला। वह बहुत घबरा गई थी। उसने घूंघट के अंदर से ग्रीष्मा को कॉल लगाया, तो उसका फोन आउट ऑफ़ रीच आ रहा था। “अब मैं ग्रीष्मा को कैसे बताऊँ? मुझे…मुझे कैसे भी करके उसे यहाँ बुलाना होगा।” तारा ने सोचा। उसने रत्ना को रोककर इशारे से बाथरूम जाने को कहा। “अच्छा, ठीक है, लेकिन जल्दी आना। मैं साक्षी को तुम्हारे पास भेजती हूँ।” रत्ना जी ने कहा और मामी को लेकर वहाँ से चली गईं। उन्होंने साक्षी को ग्रीष्मा के पास जाने के लिए कहा। कमरे में वापस आते ही तारा ने अपना घूंघट हटाया। साक्षी ने घूंघट के पीछे ग्रीष्मा के बजाय तारा को देखा, तो वह चौंक गई। “तारा दीदी, आप? आप ग्रीष्मा की ड्रेस में क्या कर रही हैं? और वह कहाँ है?” साक्षी ने उसके सामने सवालों की झड़ी लगा दी थी। “अभी यह सब बताने का टाइम नहीं है, साक्षी। ग्रीष्मा किसी वजह से बाहर गई है और उसने मुझे अपनी जगह बैठने को कहा है। मुझे नहीं पता था कि शादी के फेरों का मुहूर्त भी प्रीपोन हो जाएगा। मैं ज़्यादा देर यहाँ नहीं रुक सकती। तुम ग्रीष्मा को कॉल करके बोलो कि वह अभी के अभी वापस आ जाए।” “क्या ज़रूरत है उसके वापस आने की? मैं तो कहती हूँ आप ही ध्रुव भैया से शादी कर लीजिए।” “यह मज़ाक करने का टाइम नहीं है, साक्षी…” तारा गुस्से में बोली, “ग्रीष्मा का फोन नहीं लग रहा। मैं एक बार और ट्राई करके देखती हूँ, अगर उसका कॉल लग जाए तो अच्छी बात है, वरना तुम उसे कॉल करने की ट्राई करती रहना। फेरों से पहले तक अगर ग्रीष्मा ना आई तो तुम सबको बता देना कि घूंघट के पीछे ग्रीष्मा नहीं, मैं हूँ।” “लेकिन अचानक सब को पता चला तो सब आपसे गुस्सा हो जाएँगे।” “गुस्सा हो जाएँगे तो हो जाने दो। मैं अभी उन्हें सब बता देती, लेकिन ग्रीष्मा जिस काम से गई, उसका पता उनके माँ-बाप को चला तो वे टूट जाएँगे। अभी के लिए मैं उसकी जगह बैठ जाऊँगी…लेकिन बस आधे घंटे के लिए…” तारा ने गुस्से में कहा। वह बार-बार ग्रीष्मा को कॉल करने की कोशिश कर रही थी। “तारा दीदी…प्लीज यह सब मत कीजिए। घरवाले शादी के बाद कुछ नहीं कर पाएँगे…लेकिन बीच में उन्हें सब पता चला तो वे सच में बहुत गुस्सा करेंगे।” साक्षी ने कहा। “उनके गुस्से के डर से मैं ध्रुव सिंघानिया से शादी तो नहीं कर सकती। मुझे ग्रीष्मा को मदद करने के लिए हाँ कहनी ही नहीं चाहिए थी।” ग्रीष्मा के ना आने की वजह से तारा बुरी तरह घबरा गई थी। उसने एक बार फिर उसे कॉल लगाया और इस बार किस्मत से ग्रीष्मा ने फोन उठा लिया था। “क्या हुआ, तारा? वहाँ सब ठीक तो है ना?” उसने फोन उठाते ही पूछा। “कुछ ठीक नहीं है, ग्रीष्मा। आप जहाँ भी हैं, वहाँ से अभी इसी वक्त वापस आ जाइए। मुझे नहीं पता यह सब कैसे हुआ, लेकिन इन्होंने पंडित जी से बात करके शादी के मुहूर्त को पहले करवा लिया है। यहाँ शादी की रस्में शुरू हो चुकी हैं।” तारा ने घबराई आवाज़ में कहा। “अच्छा, ठीक है, घबराओ मत…तुम फेरों के लिए चली जाओ, मैं तब तक आ जाऊँगी और आकर शादी रोक दूँगी। अगले मुहूर्त में मेरी और ध्रुव की शादी हो जाएगी। डोंट वरी, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। मैं सबको सारी बात समझा दूँगी।” ग्रीष्मा ने तारा को समझाया। तारा ने उसकी बात पर हामी भरी और फिर से घूंघट पहनकर साक्षी के साथ नीचे गई। मंडप में पहले से ही ध्रुव मौजूद था। उसके चेहरे पर सेहरा लगाया हुआ था, जबकि तारा लंबे घूंघट में थी। वह उसके पास जाकर बैठ गई। उसके बैठते ही शादी की बाकी की रस्में शुरू हो गईं। ग्रीष्मा को कॉल किए लगभग 1 घंटे हो गए थे, लेकिन फिर भी वह अब तक नहीं आई थी। तारा बार-बार उसे फोन मिला रही थी, लेकिन अब उसका फोन बंद आ रहा था। “तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती। तुम्हें यहाँ आकर सब कुछ सच बताना होगा। आज इस मंडप में मेरी जगह तुम्हें होना चाहिए था। मैं इतने लोगों को धोखा नहीं दे सकती। साक्षी…साक्षी, प्लीज शादी होने से पहले सब कुछ सच बता दो।” तारा अपने मन में सोच रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे। दूसरी तरफ साक्षी को सब कुछ पता होने के बावजूद उसने किसी को कुछ नहीं बताया। “मैं जानती हूँ, तारा दीदी, कि आप ध्रुव भैया से शादी नहीं करना चाहतीं, लेकिन ध्रुव भैया के लिए आप एक बेस्ट लाइफ पार्टनर साबित होंगी। हमने आपको पहले ही समझाया था कि ग्रीष्मा पर विश्वास मत करो। वह सबको धोखा दे रही है। अच्छा हुआ जो वक्त रहते यहाँ से चली गई। अब ध्रुव भैया की शादी सच में एक अच्छी लड़की से हो रही है।” साक्षी ने सोचा। उसने चुप रहने का फैसला किया और किसी को कुछ नहीं बताया। साक्षी के बीच में ना आने पर तारा ने खुद ही शादी से खड़े होने का डिसीज़न लिया। वह उठने ही वाली थी, तभी पंडित जी ने कहा, “अब वर और वधू फेरों के लिए खड़े हो जाइए।” तारा कुछ कर पाती, उससे पहले सरिता जी उसके पास आईं और उन्होंने उसे हाथ पकड़कर खड़ा किया। बीतते हर पल के साथ चीज़ें उसके हाथ से निकल रही थीं। ध्रुव और उसके फेरे भी हो चुके थे। पंडित जी ने एक मंत्र पढ़ा और फिर ध्रुव से कहा, “अब आप कन्या का घूंघट उठाकर उसे सिंदूर दान कीजिए। उससे पहले भगवान के सामने अपनी खुशी और मंगल जीवन की प्रार्थना कीजिए।” ध्रुव ने हाथ जोड़े और आँख बंद करके भगवान से प्रार्थना करने लगा। रत्ना जी ने उसे सिंदूर की डिब्बी पकड़ाई। “सिंदूर लगाने के लिए ध्रुव मेरा घूंघट उठाएगा, तब सबको पता चल ही जाएगा कि यहाँ ग्रीष्मा के बजाय मैं मौजूद हूँ। इसी बहाने हम दोनों की शादी भी रुक जाएगी।” तारा के उदास चेहरे पर एक उम्मीद की किरण थी। जैसे ही ध्रुव सिंदूर लगाने से पहले तारा का घूंघट उठाने लगा, उसकी दादी गायत्री जी बोलीं, “अरे, ध्रुव, दुल्हन का चेहरा नहीं देखना। घूंघट के अंदर से ही सिंदूर लगा दो।” तारा कुछ कह पाती, उससे पहले ध्रुव ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसकी मांग में सिंदूर लगा दिया था। उसके बाद उसने मंगलसूत्र पहनाया। ग्रीष्मा अभी तक वहाँ नहीं पहुँची थी। ना चाहते हुए भी ध्रुव और तारा की शादी हो चुकी थी। “यह क्या किया तुमने, साक्षी? मैंने तुम्हें कहा था कि सब कुछ सच बता देना, फिर भी तुम कुछ नहीं बोली। अब सबको सच पता चलेगा तो सब मुझे ही गलत समझेंगे। ग्रीष्मा यहाँ आएगी तो…उसे यही लगेगा कि मैंने जानबूझकर ध्रुव से शादी कर ली।” तारा ने सोचा। उसके साथ क्या हो रहा था, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। घूंघट के अंदर ही तारा और ध्रुव के शादी के बाद की बाकी की रस्में करवाई गईं। उसके बाद रत्ना जी तारा को एक कमरे में लेकर गईं, जो ध्रुव और उसके लिए सजाया गया था। “मेरे ध्रुव को अब मैं तुम्हारे हाथों में सौंपती हूँ। उसे हमेशा प्यार करना। भले ही सामने से सब पर चिल्ला देता होगा, लेकिन दिल का बहुत अच्छा है।” रत्ना जी ने तारा के सिर पर हाथ फेरकर कहा। इसके बाद वह वहाँ से जा चुकी थीं। ध्रुव अभी तक अंदर नहीं आया था। आने वाले पल के बारे में सोचकर तारा की आँखों में आँसू थे। “मैं कैसे इन सब का सामना कर पाऊँगी? इतने कम वक्त में इन्होंने मुझे इतना अपनापन दिया और मैंने इनके साथ धोखा किया। तुम क्यों नहीं आ पाईं, ग्रीष्मा? तुम्हारी वजह से आज मैं इन सब की नज़रों में गिर जाऊँगी…” तारा के चेहरे पर उदासी थी। “मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। इन सब के सवालों के जवाब अब तुम खुद दोगी।” तारा ने सख्त आवाज़ में कहा और अपना फोन उठाकर ग्रीष्मा को कॉल करने लगी। “आप जिस नंबर पर ट्राई कर रहे हैं, वह अवैध है, कृपया कॉल करने से पहले एक बार नंबर जाँच कर लें।” जैसे ही तारा ने सुना, उसके हाथ से फ़ोन नीचे गिर गया। ग्रीष्मा का फ़ोन नहीं लग रहा था। तारा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी दरवाज़े पर किसी के बात करने की आवाज़ आ रही थी। तारा ने जल्दी से अपना घूंघट वापस पहन लिया। “नहीं…नहीं, भाई। इतने सस्ते में हम आपको अंदर नहीं जाने देंगे। वैसे भी आपने शादी जल्दी करके आधी-अधूरी रस्में की हैं। इस चक्कर में हमें कोई नेक नहीं मिला। अब हम कुछ नहीं जानते। हमें पूरे पैसे चाहिए, हम कम्परोमाइज़ नहीं करने वाले।” यह साहित्य की आवाज़ थी। “अच्छा जी…तुम दोनों ने कम्परोमाइज़ किया है? मैंने तुम दोनों को किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया।” ध्रुव ने कहा और अपना वॉलेट निकालकर साहित्य के हाथ में रख दिया। “और भाई, मेरा नेक?” साक्षी ने कहा। “अच्छा, अब तुम बाकी रह गई क्या? पूरे दिन तो दोनों साथ घूमते रहते हो? दोनों आधे-आधे बाँट लेना। चलो, अब जाओ यहाँ से…” ध्रुव ने कहा। “आपने यह मेरे साथ अच्छा नहीं किया, भाई। आपको पाप लगेगा।” साक्षी ने मुँह बनाकर कहा और साहित्य के साथ वहाँ से चली गई। उन लोगों की आवाज़ें सुनकर तारा को समझ आ गया था कि ध्रुव अंदर आने वाला है। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। उसने देखा ध्रुव अंदर आया था। उसके चेहरे पर खुशी थी। अंदर आते ही उसने सबसे पहले कमरे का दरवाज़ा बंद किया और तारा के पास आकर बैठ गया। तारा के चेहरे पर लंबा घूंघट था, लेकिन अगले ही पल उसकी सच्चाई सामने आने वाली थी। ★★★★ हेलो रीडर्स… आज का सुपर एक्साइटिंग पार्ट आपको कैसा लगा? समीक्षा में ज़रूर बताइएगा। हाँ, तो आपको क्या लगता है सच्चाई जानने के बाद ध्रुव का क्या रिएक्शन होगा? क्या वह तारा की बात पर विश्वास करेगा कि ग्रीष्मा ने उसे खुद अपनी जगह वहाँ पर बिठाया था…या नहीं? या ग्रीष्मा अब वापस आएगी? ग्रीष्मा ने यह सब जानबूझकर किया या यह सब अनजाने में हुआ…? जानने के लिए बने रहें अगले भाग तक… कीप सपोर्टिंग ऑलवेज़
ग्रीष्मा के अचानक शादी से चले जाने से, घुंघट की आड़ में तारा की शादी ध्रुव से हो चुकी थी। सच से अनजान, ध्रुव कमरे में आया तो उसे देखकर तारा अंदर ही अंदर सिमटने लगी। अगले ही पल क्या होने वाला था, यह सोचकर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। ध्रुव तारा के पास आकर बगल में बैठा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। ध्रुव ने देखा, ग्रीष्मा अभी भी घुंघट में थी। उसे कम्फ़र्टेबल फील कराने के लिए उसने कहा, “मुझे नहीं पता था तुम इन रीति-रिवाजों को इतना सीरियसली लेती हो। अब तो यहां कोई नहीं है, और मां ने कहा था शादी के बाद मैं तुम्हें देख सकता हूं। फिर हमारे बीच यह पर्दा क्यों?” तारा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में आँसू थे। “पता नहीं मैं इनका सामना कैसे कर पाऊँगी... कि आज यहां ग्रीष्मा के बजाय मैं यहां पर क्यों बैठी हूँ? इस बात की सफाई कैसे दे पाऊँगी?” तारा ने अपने मन में कहा। “कहीं इस रूम में कोई छुपा हुआ तो नहीं है?” ध्रुव ने पूछा और इधर-उधर देखने लगा। जब उसे तसल्ली हो गई कि कमरे में कोई नहीं है, तब वह तारा के नज़दीक खिसक सका और हल्के से उसका घूंघट उठाया। उसने देखा, सामने ग्रीष्मा के बजाय तारा थी, जिसने डर के मारे अपनी आँखें कसकर बंद कर रखी थीं। उसे वहाँ देखकर ध्रुव ने मुस्कुराकर कहा, “ज़रूर यह साक्षी और साहित्य ने किया होगा। सॉरी तारा, तुम्हें यहाँ ग्रीष्मा की जगह बैठना पड़ा। मैं अभी उनकी ख़बर लेता हूँ। मस्ती-मज़ाक की भी एक लिमिट होती है।” ध्रुव को अभी तक यह सब रस्म का हिस्सा लग रही थी, जहाँ अक्सर दुल्हन के बजाय किसी और को बिठा दिया जाता था। “ग्रीष्मा कहाँ है?” उसने पूछा। “ज़रूर वह भी कमरे में यहीं कहीं छिपी होगी और हम दोनों को यहाँ देखकर हँस रही होगी। अच्छा बेवकूफ बनाया है तुम लोगों ने आज मुझे.....” ध्रुव वहाँ से उठा और ग्रीष्मा को इधर-उधर देखने लगा। कमरे में उन दोनों के अलावा और कोई मौजूद नहीं था। तारा डर के मारे चुपचाप बैठी थी। उसे नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या बोले। ध्रुव को ग्रीष्मा कहीं भी नहीं मिली तो उसने पूछा, “ग्रीष्मा दूसरे कमरे में है क्या?” तारा ने ना में सिर हिलाया। उसका कुछ ना कहना ध्रुव को गुस्सा दिला रहा था। “तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही? तुम तो मुझसे ऐसे डर रही हो जैसे मैं कोई भूत हूँ और अभी तुम्हें खा जाऊँगा। अभी तक तो मेरा मूड बिल्कुल सही है, लेकिन तुमने कोई जवाब नहीं दिया तो सच में मुझे गुस्सा आ जाएगा। चलो अब जल्दी से यहाँ से उठो और ग्रीष्मा को बोलो यहाँ आए। मैंने पूरे दिन से उसे नहीं देखा।” ध्रुव ने अपने गुस्से को काबू में करके कहा। तारा ने जैसे-तैसे हिम्मत करके धीमी आवाज़ में कहा, “मुझे नहीं पता ग्रीष्मा कहाँ है।” “व्हाट डू यू मीन? तुम्हें नहीं पता? तुम्हें यहाँ किसने बिठाया है? तुमने ग्रीष्मा के कपड़े, ज्वेलरी सब पहन रखे हैं और तुम्हें नहीं पता वह कहाँ है? आर यू सीरियस?” ध्रुव ने हल्का चिल्लाकर कहा। “मुझे आपको कुछ बताना है।” “हाँ तारा, तुम्हें मुझे यह बताना है कि ग्रीष्मा कहाँ है। अब प्लीज़ मुझे इरिटेट मत करो और जल्दी बताओ कि ग्रीष्मा कहाँ है? तुम छोड़ो..... मैं खुद ही पता लगा लूँगा।” कहकर ध्रुव ने अपना मोबाइल निकाला और ग्रीष्मा के नंबर पर कॉल करने लगा। ग्रीष्मा का नंबर अवैध बता रहा था। ध्रुव हैरानी से तारा की तरफ़ देख रहा था। “ग्रीष्मा कहाँ है तारा? अभी दो घंटे पहले हमारी शादी हुई थी, इतनी देर में उसका फ़ोन? तुम सब मेरे साथ मज़ाक कर रहे हो ना?” ग्रीष्मा का नंबर गलत बताने पर ध्रुव को घबराहट होने लगी। “ग्रीष्मा का नंबर गलत बताने पर आपको जितनी हैरानी हो रही है, उससे ज़्यादा मुझे हुई थी। मुझे नहीं पता पिछले पाँच घंटों से वह कहाँ है।” “देखो तारा, डोंट टेस्ट माय पेशेंस..... तुम्हें पिछले पाँच घंटों से ग्रीष्मा का नहीं पता तो फिर मेरे साथ मंडप में.....” बोलते हुए ध्रुव की नज़र तारा की तरफ़ गई, जिसकी मांग में सिंदूर भरा था। उसके गले में वही मंगलसूत्र था, जो शादी के वक़्त उसने ग्रीष्मा को पहनाया था। उसे देखते ही ध्रुव के शब्द उसके गले में अटक गए। वह जैसे-तैसे बोलने की कोशिश कर रहा था। “न.....हीं..... यह नहीं हो सकता। घूंघट के पीछे तुम.....” तारा ने उसकी बात पर हाँ में सिर हिलाया। उसकी आँखों में आँसू थे। ध्रुव को अभी भी इन सब पर यकीन नहीं हो रहा था। “तुम लोग मेरे साथ मज़ाक कर रहे हो ना?” ध्रुव ने बिल्कुल धीमी आवाज़ में पूछा। “काश यह सब एक मज़ाक होता, तो आज मेरी ज़िंदगी बर्बाद नहीं होती।” “ज़िंदगी तुम्हारी नहीं मेरी बर्बाद हुई है। तुम लोगों ने खेल लगा रखा है क्या, जो घूंघट के पीछे कोई भी बैठ जाएगा और किसी से भी शादी हो जाएगी। कहीं तुमने ग्रीष्मा को किडनैप करके..... तुमने उसके साथ कुछ गलत तो नहीं किया ना.....” ध्रुव को ग्रीष्मा की परवाह हो रही थी इसलिए उसके मन में बुरे-बुरे ख़्याल आने लगे। “प्लीज़ मुझे पूरी बात बताओ।” “ग्रीष्मा के पास एक कॉल आया था। कॉल पर किसी ने उससे कहा कि उसके भाई की डेथ हो गई है। वह उसे शादी में सरप्राइज़ देने के लिए न्यूयॉर्क से आ रहा था। रास्ते में उसका एक्सीडेंट होने की वजह से डेथ हो गई। ग्रीष्मा आखिरी बार उनसे मिलना चाहती थी, बस इसीलिए वह घूंघट में मुझे बिठाकर चली गई। उन्होंने कहा था कि वह आ जाएगी, लेकिन वह नहीं आ पाई। मैंने उन्हें कॉल किया तो उनका नंबर गलत बता रहा था।” तारा ने रोते हुए सारी बात शुरू से लेकर आखिर तक बता दी थी। वह सारी बातें ध्रुव के सामने रखकर निश्चिंत थी। “यकीन मानिए, इन सब में मेरी कोई गलती नहीं है।” “तुम झूठ बोल रही हो तारा, ग्रीष्मा का कोई भाई नहीं है। अरे उसका कोई कज़िन भी न्यूयॉर्क में नहीं रहता। ग्रीष्मा के कज़िन ब्रदर्स इतने छोटे हैं कि वे अभी स्कूल में हैं। बताओ तुमने कहाँ रखा है ग्रीष्मा को?” ध्रुव की बात सुनकर तारा को विश्वास नहीं हुआ। रह-रहकर उसे साक्षी और साहित्य की कही बातें याद आने लगीं, जहाँ वे दोनों ग्रीष्मा पर यकीन ना करने की बात कहते थे। “मेरा यकीन मानिए मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। हो सकता है कि आप ग्रीष्मा की पूरी फैमिली से नहीं मिले होंगे। आप उनके मम्मी-पापा से बात कीजिए, वे आपको सारा सच बता देंगे।” “तुम्हें क्या लगता है मैं बाहर जाकर सबको यह बताऊँगा कि मंडप में घूंघट के पीछे ग्रीष्मा के बजाय तुम मौजूद थीं, तो वे तुम्हें आसानी से जाने देंगे?” ध्रुव ने सिर पकड़कर कहा। “मैं कुछ नहीं जानती। इन सब में मेरी कोई गलती नहीं है, मुझे ग्रीष्मा ने झूठ बोला। उसने मुझे बेवकूफ बनाकर शादी के मंडप में बिठा दिया। अब मैं नहीं जानती कि आप अपनी फैमिली से कैसे निपटेंगे। मैं वापस अहमदाबाद जा रही हूँ।” कहकर तारा कमरे से बाहर जाने लगी। ध्रुव जल्दी से उसकी तरफ़ बढ़ा और उसका हाथ पकड़कर उसे दीवार से लगा दिया। वह तारा के बिल्कुल करीब था। उसने तारा को दोनों बाजुओं से पकड़कर उसे दीवार से लगा रखा था। “तुम मुझे अकेले इस सिचुएशन में छोड़कर नहीं जा सकती। मुझे नहीं पता तुम सच बोल रही हो या झूठ, लेकिन फ़िलहाल के लिए ग्रीष्मा मिसिंग है और सारा शक तुम पर जाता है। आखिरी बार तुम ही उसके साथ थीं। क्या पता तुमने उसका किडनैप करवाकर मुझसे शादी कर ली हो।” “और मैं आपसे शादी क्यों करना चाहूँगी?” तारा ने गुस्से में कहा। “पैसों के लिए.....” ध्रुव की बात सुनकर तारा जोर से हँसी। “तुम अपनी पूरी जायदाद भी मेरे नाम कर दोगे, फिर भी मैं तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहूँगी, मिस्टर ध्रुव सिंघानिया..... तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो जाकर साक्षी से पूछो। मैंने आखिरी बार ग्रीष्मा से बात की थी, तब वह मेरे साथ मौजूद थी। ग्रीष्मा ने मुझे वापिस लौटने को कहा था और यह भी बोला था कि वह इस शादी को रोक देगी। मैंने साक्षी से भी कहा था कि अगर ग्रीष्मा ना आ पाए तो वह इस शादी को रुकवा दे। ना ग्रीष्मा वापिस आई और ना ही साक्षी शादी रुकवाने के लिए आगे आई।” “तुम्हारी इस मनगढ़ंत कहानी पर यकीन कौन करेगा? साक्षी बच्ची है..... कोई उसकी बात नहीं मानेगा। ग्रीष्मा के मम्मी-पापा तो बिल्कुल नहीं..... सबको यही लगेगा कि तुमने ग्रीष्मा को नुकसान पहुँचाकर मुझसे शादी की है।” “लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। मैं सच बोल रही हूँ।” “हो सकता है तुम सच बोल रही होंगी, लेकिन जब तक ग्रीष्मा खुद अपने मुँह से आकर इस बात को स्वीकार नहीं कर लेती, तब तक तुम यहाँ से नहीं जा सकती।” तारा ने ध्रुव को खुद से दूर किया। वह जाकर बिस्तर पर बैठ गई। अब तक उसे ध्रुव का सामना करने में डर लग रहा था, लेकिन अब उसे ध्रुव पर गुस्सा आ रहा था। उसे अपनी तरफ़ घूरता देखकर ध्रुव ने कहा, “मेरी तरफ़ ऐसे मत देखो। मुझे तुम पर बिल्कुल भी यकीन नहीं है। जब से तुम आई हो, कुछ न कुछ गड़बड़ कर रही हो। मुझे इस तरह देखने के बजाय यह सोचो कि बाकी फैमिली को तुम क्या जवाब दोगी।” “मैं उन्हें वही कहूँगी, जो मैंने आपसे कहा और जो सच है। कोई मेरे बारे में कुछ भी सोचे, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैंने किसी को धोखा नहीं दिया।” तारा ने जवाब दिया। “धोखा ही तो दिया है तुमने..... अगर ग्रीष्मा के सो-कॉल्ड भाई का एक्सीडेंट हुआ होता तो वह आकर मुझे बताती..... मैं खुद शादी रोककर उसे उससे मिलवाने के लिए लेकर जाता। लेकिन ऐसा तो तब होता ना, जब ग्रीष्मा का कोई भाई होता।” तारा ने चिल्लाकर जवाब दिया, “अच्छी बात है..... तुमने शादी करने से पहले एक बार भी ग्रीष्मा के बारे में पता लगाने के बारे में नहीं सोचा। तुमने तो उससे यह भी नहीं पूछा होगा कि वह इस शादी से खुश है भी या नहीं।” “रियली? तुम्हें मुझसे मिले सिर्फ़ तीन दिन हुए हैं। तुम कुछ नहीं जानती हो। किस बेसिस पर कह सकती हो कि मैंने ग्रीष्मा से पूछा नहीं?” “हो सकता है पूछा होगा, लेकिन ग्रीष्मा ने मुझे नहीं बताया। अब पता नहीं आपकी उस झूठ की मूर्ति ने मुझसे क्या-क्या झूठ बोले होंगे।” तारा ने गुस्से में जवाब दिया। ग्रीष्मा की कही बातें सोचकर उसका खून खौल रहा था। तारा के ग्रीष्मा को भला-बुरा कहने की वजह से ध्रुव गुस्सा हो गया। “माइंड योर लैंग्वेज..... एक तो तुमने मेरी होने वाली वाइफ़ को किडनैप करके उसे कहीं छुपा दिया है, ऊपर से सारा ब्लेम उस पर डाल रही हो।” तारा बेड से उठी और ध्रुव के पास आकर बोली, “तुम अच्छे से जानते हो ध्रुव सिंघानिया, मैं झूठ नहीं बोल रही। तुम्हें अभी भी ग्रीष्मा के धोखे पर यकीन नहीं हो रहा..... इसलिए तुम मुझ पर उल्टे-सीधे इल्ज़ाम लगा रहे हो।” “मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा। ग्रीष्मा मुझे धोखा दे ही नहीं सकती। कौन सच बोल रहा है कौन झूठ, इसका फ़ैसला तो कल सुबह पुलिस ही करेगी।” ध्रुव के मुँह से पुलिस की बात सुनकर तारा घबरा गई। उसने सोचा, “हे भगवान..... अब क्या होगा। कहीं यह सच में पुलिस के पास चला गया तो मेरे पास अपनी सच्चाई साबित करने का कोई प्रूफ़ भी नहीं है। मेरी तो कोई फैमिली भी नहीं है, जो मुझे इन सब चक्करों से बाहर निकाल सकें।” ध्रुव ने देखा तारा के चेहरे पर परेशानी के भाव थे। “क्या हुआ? पुलिस का नाम सुनकर घबरा गई? अभी भी टाइम है, जो भी सच है बता दो, वरना..... मुझे बताने की ज़रूरत नहीं होगी कि पुलिस किस तरह तुम जैसे क्रिमिनल से सच उगलवाती है।” “मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ। मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आप मेरी बात पर यकीन क्यों नहीं कर रहे?” तारा ने हल्की-भारी आवाज़ में कहा। “मुझे यकीन दिलाने के अभी दो ही तरीके हैं..... या तो मुझे बता दो ग्रीष्मा कहाँ है या उसे यहाँ लेकर आओ। सच जो भी है वह खुद एक्सेप्ट करेगी, तभी मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर लूँगा।” बोलते हुए ध्रुव ने घड़ी की तरफ़ देखा और कहा, “तुम्हारे पास एक्ज़ैक्टली तीन घंटे का टाइम है। सोच लो तुम्हें मेरे और ग्रीष्मा के घरवालों से क्या कहना है। और हाँ..... जब तक ग्रीष्मा आकर खुद तुम्हारी सच्चाई साबित नहीं करने देगी, तब तक मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा।” अपनी बात कहकर ध्रुव बेड पर लेट गया। भले ही वह तारा के सामने स्ट्राँग होने का दिखावा कर रहा था, लेकिन ग्रीष्मा के वहाँ ना होने की वजह से वह काफ़ी परेशान था। उसकी आँखों में आँसू थे, जो सच सामने होते हुए भी ग्रीष्मा के बजाय तारा को क़सूरवार समझ रहे थे। ★★★★
ध्रुव के सामने यह सच्चाई आ चुकी थी कि उसकी शादी ग्रीष्मा से नहीं, बल्कि तारा से हुई थी। वह इन सब का कसूरवार तारा को समझ रहा था। बंद कमरे में तारा वहाँ लगे काउच पर लेटी थी, तो वहीं ध्रुव बेड पर सो रहा था। जो भी हुआ था, उससे दोनों की आँखों से नींद कोसों दूर थी। ध्रुव ग्रीष्मा के बारे में सोच रहा था। “कहाँ कमी रह गई थी मेरे प्यार में, जो तुम मेरे साथ ऐसा करके चली गई? दिल तो चाहता है कि तारा की सारी बातें झूठी निकलें। तुम जहाँ भी हो, सही-सलामत हो… लेकिन दिमाग चाहकर भी तुम पर यकीन नहीं कर पा रहा। आज पहली बार तुम्हारे बजाय किसी अनजान लड़की पर यकीन कर रहा हूँ।” ध्रुव की आँखें नम थीं। तारा ने एक नज़र ध्रुव की तरफ़ देखा जो बेड पर करवटें ले रहा था। “अब तक मैं तुम्हारे बारे में गलत समझती रही। तुम्हें गलत मानती रही। हो सकता है कि तुम एक घमंडी, पैसे वाला बिज़नेसमैन हो, लेकिन फिर भी तुम्हारे साथ अच्छा नहीं हुआ। अब ग्रीष्मा ने यह किसी मजबूरी की वजह से किया है या शादी होने से पहले उसे यह रियलाइज़ हो गया कि वह तुम्हारे साथ अपनी पूरी लाइफ़ नहीं बिता सकती… यह सब तो वही बता सकती है। शायद यही सोचकर शादी से चली गई हो। मैं उसे गलत नहीं कहती… जब उसे तुमसे प्यार ही नहीं था, तो वह तुम्हारे साथ कैसे पूरी ज़िंदगी बिता सकती थी? तुम जैसे इंसान के साथ तो बिलकुल नहीं… जो हर एक चीज़… हर एक इंसान को अपने हिसाब से चलाना चाहता है। जो भी हो, उसने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। वह डायरेक्ट शादी से भी मना कर सकती थी। उससे मुझे तुम्हारे साथ फँसा दिया।” तारा के चेहरे पर गुस्से के भाव थे। वह ध्रुव को एकटक देख रही थी। वह काफी बेचैन था। अचानक ध्रुव की नज़र तारा पर पड़ी जो उसकी तरफ़ देख रही थी। वह बेड से उठकर बैठ गया। “तुम्हें मेरे लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। तुम अपनी फ़िक्र करो… रात बीतने में अब कुछ ही समय बाकी है और कल… कल का दिन तुम्हारे लिए भारी होने वाला है।” “क्या तुम मेरा साथ नहीं दोगे?” तारा ने पूछा। “और मैं तुम्हारा साथ क्यों दूँ?” “क्योंकि हमारी शादी हुई है और तुमने मुझे वादा किया था कि हर परिस्थिति में मेरा साथ दोगे।” तारा भी उठकर बैठ गई। “तुम किस शादी की बात कर रही हो? तुमसे यह शादी धोखे से हुई है, तारा… इस बात के लिए मेरी फ़ैमिली का पता नहीं, लेकिन मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा।” “लेकिन आप अच्छे से जानते हैं मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। कल आप साक्षी से बात लीजिएगा… वह आपको मेरी बात पर यकीन दिला देगी।” उसकी बात सुनकर ध्रुव ने गहरी साँस लेकर छोड़ी। “अगर साक्षी तुम्हारी बात पर यकीन दिला भी देगी तो क्या फ़ायदा? साक्षी पूरे टाइम तुम्हारे साथ नहीं थी। हो सकता है तुमने पहले उसे किडनैप करवा लिया हो… और वह तो बच्ची है। कोई भी आसानी से उसके सामने इमोशनल ड्रामा करके उसे मैनिपुलेट कर सकता है।” “हद हो गई… आप बार-बार मुझ पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं। आपको ग्रीष्मा की गलती दिखाई नहीं देती। आप देखना ही नहीं चाहती कि उसने आपको धोखा दिया है।” तारा ने सख्त आवाज़ में कहा। ध्रुव ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसे चुप देखकर तारा फिर बोली, “कल मैं आपकी फ़ैमिली वालों को सब कुछ सच-सच बता दूँगी। बाकी आप जानें और आपकी फ़ैमिली… मुझे आप लोगों से कोई लेना-देना नहीं है। मैं कल ही यहाँ से वापस चली जाऊँगी।” “तुम्हें सच में यह लगता है मैं तुम्हें ग्रीष्मा का पता बताए बिना यहाँ से जाने दूँगा?” ध्रुव की बात सुनकर तारा झुँझला गई। वह चिढ़कर बोली, “मैंने कह दिया ना मुझे उसका नहीं पता। मैं कल आपके घरवालों से बात करके उन्हें सब कुछ समझा दूँगी। आपको मेरी कोई भी मदद की ज़रूरत पड़े, तो मुझे कॉल कर लीजिएगा।” “किस गलतफ़हमी में जी रही हो तुम? जब तक ग्रीष्मा का पता नहीं चल जाता, वापस अहमदाबाद जाना तो दूर की बात है, राजस्थान से एक कदम बाहर नहीं रखने दूँगा।” ध्रुव ने गुस्से में कहा। “आप कुछ नहीं कर पाएँगे, मिस्टर ध्रुव सिंघानिया… आपको मुझे यहाँ रोकने का कोई हक़ नहीं है।” “हक़ की बात तो अब तुम मत ही करो। हम दोनों हस्बैंड-वाइफ़ हैं… याद है या भूल गई? घूँघट के पीछे तुम ही थीं, ना कि ग्रीष्मा।” “घूँघट के पीछे कोई भी हो, किसी को क्या पता चलता है? आपके पास कोई प्रूफ़ नहीं है कि मैं आपकी वाइफ़ हूँ। आप मुझे नहीं रोक पाएँगे, मिस्टर सिंघानिया…” “तुम मुझे चैलेंज मत करो, तारा, वरना बहुत भारी पड़ेगा।” ध्रुव ने गुस्से में कहा, “मैंने तुम्हें ज़्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन ग्रीष्मा के मॉम-डैड… मेरी फ़ैमिली और बाकी रिश्तेदार… वह तुम्हारा जीना हराम कर देंगे। सही-सही कसर पुलिस पूरी कर देगी। ग्रीष्मा का पता तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा।” तारा ने ध्रुव की बात का कोई जवाब नहीं दिया और करवट पलटकर सो गई। ध्रुव भी उसकी तरफ़ पीठ करके लेट चुका था। दोनों एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे। दिन निकलने में अभी थोड़ा ही टाइम बचा था। बाकी लोगों के बारे में सोचकर तारा को काफी घबराहट हो रही थी, जबकि ध्रुव बार-बार ग्रीष्मा को कॉल लगा रहा था। _________ अगली सुबह सिंघानिया परिवार शादी के बाकी रस्मों की तैयारी कर रहा था। ध्रुव और तारा अभी तक अंदर थे। रत्ना जी और सरिता जी साथ मिलकर देव पूजा की तैयारी कर रही थीं। साक्षी भी वहीं पर मौजूद थी। सच पता होने की वजह से वह खोई हुई सी वहाँ बैठी थी। अचानक रत्ना जी का ध्यान उसकी तरफ़ गया। उन्होंने उसका हाथ पकड़कर कहा, “ध्यान कहाँ है, डब्बू तुम्हारा? यह देखो, नीचे सिंदूर गिरा दिया। तुम आजकल के बच्चे कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाते।” उन्होंने साक्षी को डाँटा। “जाने दीजिए ना, बहन जी… बच्ची है।” सरिता जी ने उन्हें चुप करवाने की कोशिश की। “क्या बच्ची है… अब इतनी भी बच्ची नहीं रही कि कोई काम ठीक से ना कर पाए। कितने दिनों से मुँह बनाकर घूम रही है। शादी की किसी भी रस्म में उसने ठीक से हिस्सा नहीं लिया। अभी नहीं समझेगी तो कब समझेगी?” रत्ना जी ने कहा। साक्षी उनकी तरफ़ चुपचाप देख रही थी। वह तारा के लिए परेशान थी, इसलिए उसने कुछ नहीं कहा और वहाँ से उठकर चली गई। उसके वहाँ से उठकर जाने की वजह से रत्ना जी और नाराज़ हो गईं। “देखो… इन्हें बस कुछ मत कहो। थोड़ा सा डाँट दिया तो नाराज़ होकर चली गई।” ध्रुव की दादी, गायत्री देवी वहाँ पर मौजूद थीं। उन्होंने रत्ना को चुप कराते हुए कहा, “तुम्हारी छोटी-छोटी बातों पर टेंशन लेने की आदत जाएगी नहीं, रत्ना बहू… कुछ बताओगी, क्या हुआ है?” “कुछ नहीं, माँ… पता नहीं, सुबह से घबराहट हो रही है। अंदर ही अंदर एक डर लग रहा है कि कुछ गलत होने वाला है।” रत्ना ने परेशान स्वर में कहा। “अब तो शादी हो गई है। फिर किस बात की घबराहट? चिंता मत करो, सब सही होगा।” गायत्री ने उसे आश्वासन दिया और काम में ध्यान देने को कहा। उनसे कुछ दूरी पर मौजूद साक्षी ने उनकी सारी बातें सुन ली थीं। “यह मम्मी के पास कोई सुपर पावर है क्या, जो उन्हें पहले ही इंट्यूशन्स हो जाते हैं कि कुछ गलत होने वाला है? अब तक तो ध्रुव भैया को पता चल गया होगा कि ग्रीष्मा के बजाय उनकी शादी तारा दीदी, आई मीन तारा भाभी से हो गई है। वह इतने शांत क्यों हैं? अब तक तो उन्हें यहाँ हंगामा मचा देना चाहिए था। भाभी भी मुझ पर गुस्सा करेंगी कि मैंने शादी क्यों नहीं रुकवाई। घरवाले अलग से उन पर नाराज़ होंगे… प्लीज़, भगवान जी, संभाल लीजिएगा। इन सब का गुस्सा मुझ पर ही आना है।” साक्षी परेशान होकर इधर-उधर चहलकदमी कर रही थी। रत्ना की नज़र उस पर पड़ी, तो उसने आवाज़ लगाकर कहा, “साक्षी, कुछ और नहीं कर सकती तो कम से कम अपने भैया और भाभी को उठने को बोल सकती हो।” “मुझे भी हैरानी हो रही है कि अभी तक ग्रीष्मा उठी क्यों नहीं। उसे तो सुबह जल्दी उठने की आदत है।” ग्रीष्मा की माँ, सरिता जी ने कहा। “आज की सुबह हमेशा की तरह नहीं है, सरिता… अब तक ग्रीष्मा अकेली थी, अब उसके साथ ध्रुव है।” गायत्री देवी ने कहा। फिर उन्होंने साक्षी को आवाज़ लगाई, “साक्षी, कोई ज़रूरत नहीं है उन्हें उठाने की… देव पूजा में अभी वक़्त है। तू जा, जाकर तेरे काम कर ले।” साक्षी उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराई और मन ही मन कहा, “थैंक गॉड, दादी ने बचा लिया। लेकिन कब तक… मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा है। ऐसे लग रहा है कि अभी ब्लास्ट हो जाएगा। ऐसा करती हूँ, साहित्य को सब कुछ बता देती हूँ। शायद वह मेरी कुछ हेल्प कर पाए।” साक्षी जल्दी से साहित्य के पास गई। वह अभी तक सो रहा था। साक्षी ने उसे जगाने के लिए उसके मुँह पर पानी के छींटे मारे। अचानक मुँह पर पानी गिरने से साहित्य झुँझलाकर उठा। “क्या कर रही हो, साक्षी… घरवाले कम हैं जल्दी उठाने के लिए, जो अब तुम भी आ गई।” “अभी सोने का नहीं, जागने का टाइम है। मुझे तुमसे बहुत इम्पॉर्टेन्ट बात शेयर करनी है।” साहित्य बेमन से उठकर बैठा। “अब कौन सी इम्पॉर्टेन्ट बात रह गई? हमारा मिशन तो वैसे भी फ़्लॉप हो गया, ग्रीष्मा और भाई की शादी हो गई। तारा दीदी वापस जा रही है क्या?” साहित्य ने अंदाज़ा लगाया। “नहीं, साहित्य… मुझसे एक बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई। इस वजह से मुझसे सारे घरवाले, यहाँ तक कि तारा दीदी भी नाराज़ हो जाएँगी।” “ऐसा क्या कर दिया तुमने?” “वह एक्चुअली, मेरी वजह से ध्रुव भैया और तारा दीदी की शादी हो गई। हमारी भाभी ग्रीष्मा नहीं, तारा दीदी हैं।” जैसे ही साक्षी ने कहा, साहित्य एक झटके में खड़ा हुआ। उसने आँखें बड़ी करके कहा, “देख, साक्षी… ऐसे भी मज़ाक मत किया कर कि सामने वाले को हार्ट अटैक आ जाए। सुबह-सुबह तुझे बेवकूफ़ बनाने के लिए मैं ही मिला?” “मैं झूठ नहीं बोल रही… कल रात शादी से पहले ग्रीष्मा किसी काम से बाहर चली गई थी और उसने अपने पीछे तारा दीदी को बिठा दिया था। उसने प्रॉमिस किया था कि वह शादी होने से पहले आ जाएगी, लेकिन वह नहीं आई। तारा दीदी ने मुझे कहा था कि अगर ग्रीष्मा टाइम पर नहीं आए तो मैं सबको सच बता दूँ और इस शादी को रुकवा दूँ। पर ना जाने क्यों मेरा शादी रुकवाने का मन ही नहीं हुआ और…” “और तूने अपने हाथों अपनी लंका लगवा ली।” साहित्य सिर पकड़कर बोला, “तू कौन है… मैं तुझे नहीं जानता। आज से तेरा मेरा कोई रिश्ता नहीं है, बहन… चल, निकल यहाँ से…” साहित्य साक्षी को पकड़कर कमरे से बाहर निकालने लगा। “प्लीज़, यार, साहित्य, ड्रामा मत कर। इस वक़्त मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी ज़रूरत है।” साक्षी उसे दूर धकेलकर बोली। “तूने यह कांड करने से पहले मुझसे पूछा था… इस बारे में कुछ-कुछ बताया था? अब जब सब गड़बड़ हो गया, तब तुझे मैं याद आ रहा हूँ। घरवाले हमारी जान लें या ना लें, उससे पहले ध्रुव भैया हमें ज़िंदा निगल लेंगे।” “यही तो मुझे समझ नहीं आ रहा कि सच जानने के बाद भी ध्रुव भैया ने अभी तक कुछ कहा क्यों नहीं? कहीं… कहीं ग्रीष्मा वापस तो नहीं आ गई, साहित्य।” “देखो, जो हो गया सो हो गया, लेकिन अब शुभ-शुभ तो बोलो। मुझे तारा दीदी के लिए फ़िक्र हो रही है। घरवाले उन्हें गलत समझेंगे। हमने उन्हें समझाया था कि ग्रीष्मा पर यकीन ना करे, लेकिन…” “हाँ, सही कहा। अब हमें ही तारा दीदी के लिए कुछ करना होगा। जानते हैं हम छोटे हैं, इसलिए घरवाले हमारी बात नहीं सुनेंगे, लेकिन फ़िलहाल के लिए तारा दीदी का सच प्रूफ़ करने के लिए हमें ही कुछ करना होगा। उनके पास और कोई सबूत नहीं है।” “डोंट वरी, साक्षी, हम सब संभाल लेंगे। मैं बाहर जाकर बोलूँगा कि मुझे भी इस बारे में सब पता था।” साहित्य ने हल्का मुस्कुराकर कहा। “क्या सच में?” उसकी बात सुनकर साक्षी के चेहरे पर चमक आ गई और उसने उसे जल्दी से गले लगा लिया। “यू आर द बेस्ट भाई… देखना… हम तारा दीदी को इस मुसीबत से बाहर निकाल लेंगे और फिर घरवाले भी उन्हें आराम से एक्सेप्ट कर लेंगे।” साहित्य ने उसकी बात पर हामी भरी। दोनों ने ध्रुव और तारा से बात करके उन्हें सब समझाने का सोचा। साक्षी और साहित्य ध्रुव और तारा से बात करने के लिए उनके कमरे के आगे खड़े थे। ★★★★
साक्षी ने तारा की शादी ध्रुव से हो जाने की बात साहित्य को बता दी। पूरी बात जानने के बाद साहित्य ने साक्षी का साथ देने का फैसला किया। दोनों इस बारे में बात करने के लिए ध्रुव और तारा के कमरे के आगे थे। कमरे का दरवाजा देर तक बंद देखकर साहित्य ने कहा, “तुम्हें क्या लगता है, डब्बू, इन दोनों के बीच सुलह हो गई होगी?” साक्षी ने उसकी बात का जवाब देने के बजाय घड़ी में टाइम देखा और कहा, “8:00 बजने वाले हैं, अब तक कोई हंगामा नहीं हुआ। लग तो यही रहा है कि दोनों के बीच सब ठीक है। आई विश कि दोनों के बीच सुलह हो जाए।” “दोनों साथ में कितने अच्छे लगते हैं ना? मैं तो सोचकर ही एक्साइटेड हो रहा हूँ… ध्रुव एंड तारा… ध्रुव तारा। तुम्हें कभी नोटिस किया कि ध्रुव भैया और तारा भाभी का नाम एक साथ लिया जाता है?” “हाँ, और भगवान करे दोनों हमेशा एक साथ रहें। इनका तो कोई हैशटैग बनाने की भी ज़रूरत नहीं है। ध्रुव तारा… एक दूसरे के साथ और एक दूसरे के लिए।” साक्षी ने खुश होकर कहा। कमरे के दूसरी तरफ ध्रुव और तारा खड़े थे। उन दोनों ने साहित्य और साक्षी की सारी बातें सुन ली थीं। दोनों एक दूसरे की तरफ घूर कर देख रहे थे। “मतलब तुमने मेरे भाई और बहन को भी अपनी साइड कर लिया?” ध्रुव ने गुस्से में, लेकिन दबी आवाज़ में कहा। “आपने सुना ना? साक्षी और साहित्य क्या बातें कर रहे हैं? इन दोनों को हमारी शादी के बारे में पता है। देखा, मैं सच बोल रही थी। मैंने आपसे जानबूझकर शादी नहीं की। आपकी उस ग्रीष्मा ने मुझे बेवकूफ बनाकर अपनी जगह मंडप में बैठा दिया।” “उसने बेवकूफ बनाया और तुम बन गईं? ऐसे तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती थीं। मैं तारा हूँ… मैं ये कर दूँगी… वो कर लूँगी… मैं सब कर सकती हूँ। तब तुम्हारी इंटेलिजेंस कहाँ गई थी?” ध्रुव ने धीमी आवाज़ में कहा। दोनों एक दूसरे से धीमी आवाज़ में बहस कर रहे थे। ध्रुव की बात सुनकर तारा ने कहा, “जो हो गया, सो हो गया… उसे छोड़िए। अब तो आपको मेरी बात पर यकीन हो गया ना? अब मुझे यहाँ से जाने दीजिए।” “मैंने कहा ना, जब तक ग्रीष्मा खुद आकर मुझे सब सच नहीं बता देती, तब तक तुम कहीं नहीं जा सकती। अभी तो तुम्हें मेरी और ग्रीष्मा की फैमिली का भी सामना करना है।” ध्रुव की बात सुनकर तारा और भी गुस्सा हो गई। वो उसे कुछ जवाब दे पाती, तभी साक्षी और साहित्य ने बाहर से दरवाज़ा खटखटाया। “भाभी… भैया आप दोनों जाग गए हैं क्या? हमें ऐसा क्यों लग रहा है कि आप दूसरी तरफ खड़े होकर बातें कर रहे हैं?” साहित्य ने धीमी आवाज़ में कहा। ध्रुव ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और कमरे का दरवाज़ा खोला। वो साक्षी की तरफ गुस्से में देख रहा था। उसे देखकर साक्षी ने नज़रें नीची कर लीं। “जो भी कहना है, अंदर आकर कहो।” ध्रुव के कहते ही दोनों अंदर आ गए। ध्रुव ने फिर से दरवाज़ा बंद कर लिया। “तारा भाभी…” साक्षी ने तारा की तरफ देखा। वो आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले तारा गुस्से में उस पर बिफर पड़ी। “तुम मुझसे बात ना ही करो तो बेहतर होगा। साक्षी, मैंने तुम्हें कहा था ना, अगर ग्रीष्मा ना आए तो शादी रुकवा देना। फिर तुम आगे क्यों नहीं आई? आज तुम्हारी वजह से मैं कितनी बड़ी प्रॉब्लम में फंस गई हूँ। मेरी शादी इस राक्षस से हो गई और अब ये मुझे यहाँ से जाने नहीं दे रहा।” “हाँ, साक्षी… आज तुम्हारी वजह से मुझे इस पागल लड़की के साथ रहना पड़ रहा है।” ध्रुव ने गुस्से में जवाब दिया। “आपने मुझे पागल कहा?” तारा गुस्से में बोली। “और तुमने कुछ देर पहले मुझे राक्षस कहा, उसका क्या? अगर मैं बुरा इंसान होता तो आज तुम्हारे यहाँ खड़े रहकर बातें नहीं कर रहा होता… सीधा पकड़कर तुम्हें पुलिस स्टेशन लेकर जाता। मैं तुम्हारा साथ दे रहा हूँ, ये बड़ी बात नहीं है?” ध्रुव ने जवाब दिया। “आप मेरा साथ दे रहे हैं क्योंकि आप अच्छे से जानते हैं कि मैं झूठ नहीं बोल रही। जो झूठा है, वो आज यहाँ पर मौजूद नहीं है।” उन दोनों को आपस में बहस करता देख साक्षी बीच में बोली, “भाई, भाभी आप लोग आपस में बहस क्यों कर रहे हैं? आप दोनों आपस में ही झगड़ा करते रहोगे तो घरवालों से बात कैसे करोगे? बाहर सभी शादी के बाद होने वाली देव पूजा के लिए आपका वेट कर रहे हैं। आपको उनका भी तो सामना करना है।” “मैं क्यों उनका सामना करूँ? मेरी कोई गलती नहीं है।” ध्रुव ने कंधे उचकाकर कहा। “तो क्या मेरी गलती है? सारी गलती उस झूठी ग्रीष्मा की है। पता नहीं कहाँ भाग गई। एक बार मिलने दो, उसे मैं उसका सर फोड़ दूँगी।” ग्रीष्मा के बारे में सोचकर तारा को रह-रहकर गुस्सा आ रहा था। “उसकी कोई गलती नहीं है। मुझे तो डर लग रहा है कहीं वो किसी मुसीबत में ना हो। याद है हमें लिफ्ट में वो आदमी मिला था और उसने मुझे धमकी दी थी कि वो मेरी और ग्रीष्मा की शादी नहीं होने देगा।” ध्रुव ने परेशान होकर कहा। उसकी बात सुनकर तारा, साहित्य और साक्षी भी परेशान हो गए। अब तक वो ग्रीष्मा को गलत समझ रहे थे, लेकिन अब उन्हें उसकी फ़िक्र होने लगी। तारा ने ध्रुव को आश्वासन देते हुए कहा, “ग्रीष्मा जहाँ भी होगी, वो ठीक होगी। वो अपनी मर्ज़ी से गई है।” “नहीं तारा, वो अपनी मर्ज़ी से नहीं, तुम्हारी बेवकूफी की वजह से गई है। अगर वो मुझे बताने की कंडीशन में नहीं थी तो तुम तो आकर बता सकती थीं? क्या ज़रूरी था ये टीवी सीरियल की ड्रामा खेलकर घूंघट में बैठने का? माना बड़ों के डर से तुमने कुछ नहीं कहा और कमरे में बैठी रहीं, लेकिन तुमने शादी तक कर ली? सॉरी टू से, लेकिन तुम भी कहीं से भी सही नहीं हो।” ध्रुव का सारा गुस्सा तारा पर निकल रहा था। उसने अपनी बात कही और कमरे से बाहर चला गया। ध्रुव के वहाँ से जाते ही तारा ने साक्षी की तरफ देखकर कहा, “ये तुमने अपने बचपन में क्या कर दिया, साक्षी? तुम लोगों को ग्रीष्मा पसंद नहीं थी, लेकिन ध्रुव उससे प्यार करता था।” “भाई भले ही उससे प्यार करते होंगे, लेकिन वो नहीं करती थी। अगर वो उनसे प्यार करती तो उन्हें चीट करके आपको वहाँ बैठाकर नहीं जाती, तारा भाभी।” साहित्य ने जवाब दिया। “और क्या हो जो ध्रुव सच बोल रहा हो? पहले तो मुझे भी ग्रीष्मा गलत लग रही थी, लेकिन अब लिफ्ट वाले आदमी के बारे में सोचकर मुझे उसके लिए डर लग रहा है। कहीं सच में वो कोई मुसीबत में तो नहीं…” “कौन सा लिफ्ट वाला आदमी?” साक्षी ने हैरानी से पूछा। “हम लोग शॉपिंग करके बुटीक से वापस आ रहे थे, तब हमें लिफ्ट में एक आदमी मिला था। वो ध्रुव सर का पुराना दुश्मन था। उसने धमकी दी थी कि वो ध्रुव सर और ग्रीष्मा की शादी नहीं होने देगा। ज़रूर ये उसका किया धरा है। हो सकता है ग्रीष्मा यहाँ वापस आ रही होगी और उसने रास्ते में उसे किडनैप कर लिया हो।” साहित्य और साक्षी तारा की बात का कोई जवाब देते, इससे पहले उन्हें वहाँ किसी के आने की आहट हुई। तारा ने जल्दी से अपना घूंघट पहन लिया। उन्होंने देखा रत्ना जी कमरे में आ रही थीं। उन्होंने साक्षी और साहित्य को वहाँ देखा तो कहा, “लो, मैं इन दोनों को पूरे घर में ढूँढ रही हूँ और ये यहाँ अपनी नई भाभी के साथ खड़े हैं।” बोलते हुए रत्ना जी ने इधर-उधर देखा, उन्हें ध्रुव कहीं दिखाई नहीं दिया। “ध्रुव उठ गया है क्या? मैंने तो उसे नहीं देखा?” “वो भाई… मम्मी… अभी कुछ देर पहले ही उठे हैं।” साक्षी ने अटकते हुए जवाब दिया। रत्ना जी ने जवाब में सिर हिलाया। तभी उनकी नज़र तारा पर पड़ी, जिसने लंबा घूंघट पहन रखा था। उसे देखकर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो उसके पास जाकर बोली, “ये घूंघट वाली रस्म सिर्फ़ फेरों के लिए थी। तुम्हें घूंघट पहन के रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। चलो, हटाओ इसे…” रत्ना जी तारा का घूंघट हटाने लगीं, तभी साक्षी ने उनका हाथ पकड़ लिया। “मम्मी, वो भाभी अभी तक नहीं नहाई है ना, इसलिए हमें भी अपना चेहरा नहीं दिखा रही। आप नीचे चलिए, मैं इन्हें देव पूजा के लिए लेकर आती हूँ।” साक्षी ने बहाना बनाया। “तुम बच्चे भी ना… कुछ ज़्यादा ही अजीब हरकतें नहीं कर रहे? और साक्षी तुम… पहले मैंने तुम्हें ध्रुव और ग्रीष्मा को जगाने का बोला, तब तुमने मुँह बना लिया और अब यहीं पर मौजूद हो। अब मैं तुम लोगों के कोई बहाने नहीं सुनूँगी। जल्दी से ग्रीष्मा को तैयार करके नीचे ले आओ। बेटा, मुहूर्त में देर हो रही है। ध्रुव को भी देखना है, पता नहीं सुबह-सुबह कहाँ चला गया।” बोलते हुए रत्ना जी वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही उन तीनों ने राहत की साँस ली। “मुझे बहुत डर लग रहा है।” तारा ने अपना घूंघट हटाकर कहा। “ये लोग मेरा यकीन तो कर लेंगे ना?” “कुछ कह नहीं सकते… कोई आपका साथ दे या ना दे, लेकिन हम आपके साथ हैं, तारा भाभी…” साहित्य ने मुस्कुराकर कहा। उन दोनों के साथ होने पर तारा को काफ़ी राहत महसूस हो रही थी। उसने दोनों को गले लगाया और कहा, “हालाँकि मैं तुमसे बहुत नाराज़ हूँ, साक्षी, लेकिन तुम ही मुझे इस मुसीबत से बाहर निकाल सकती हो। बस इन्हें मेरी बात पर यकीन हो जाए। फिर मैं यहाँ से वापस चली जाऊँगी।” तारा की बात सुनकर साहित्य और साक्षी ने एक दूसरे की तरफ देखा। तारा के वापस जाने के बाद उन्हें कुछ हज़म नहीं हुआ। वो दोनों ध्रुव और तारा को साथ देखना चाहते थे। वो दोनों तारा से अलग हुए। साक्षी ने उससे कहा, “भाभी, कुछ देर बाद देव पूजा होने वाली है। उसके लिए आपको नीचे जाना होगा। प्लीज़ आप तैयार हो जाइए।” “नहीं, साक्षी… ये सब पूजा, प्यार और अपनापन… इस पर मेरा नहीं, ग्रीष्मा का हक़ है। घरवालों को ये सच्चाई बतानी ही होगी… आई डोंट वांट की ग्रीष्मा किसी मुसीबत में हो और हम उस तक पहुँचें, तब तक बहुत देर हो जाए।” तारा ने हल्की भारी आवाज़ में कहा। पहली बार उसे इतना अपनापन मिल रहा था, लेकिन वो अच्छे से जानती थी कि इन सब पर उसका नहीं, किसी और का हक़ था। “तारा भाभी, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। घरवालों को सब बताने के लिए हमें नीचे जाना होगा ना… प्लीज़ आप नहाकर ड्रेस चेंज कर दीजिए। हम चलते हैं नीचे…” साक्षी ने उसे समझाने की कोशिश की। “नहीं… मैं अभी नीचे जा रही हूँ। मैं तुम्हारे घरवालों को और धोखे में नहीं रख सकती।” तारा ने जवाब दिया और वहाँ से नीचे जाने लगी। साक्षी और साहित्य उसको रोकने के लिए उसके पीछे जा रहे थे। चलते हुए साहित्य ने कहा, “हमें ही कुछ करना होगा… ध्रुव भैया भी नीचे नहीं है।” “जो भी सोचना है, जल्दी सोचो। याद है ना तारा भाभी ने क्या कहा था? घरवालों के सामने अपनी सच्चाई प्रूफ करने के बाद वो यहाँ से चली जाएगी।” साक्षी ने जवाब दिया। उसकी बात सुनकर साहित्य वहीं पर रुक गया। उसे वहीं रुका हुआ देखकर साक्षी को गुस्सा आया। “पागल हो गए हो क्या? तारा भाभी हमारी बात नहीं सुन रही, ऊपर से तुम भी यहाँ मूर्ति बनकर खड़े हो गए। हमें उनकी हेल्प करनी होगी, वरना घरवाले उन्हें गलत समझेंगे।” साक्षी उसका हाथ पकड़कर उसे ले जाने लगी। “नहीं, साक्षी, रुको…” साहित्य ने साक्षी को रोकते हुए कहा, “सच्चाई साबित होने पर तारा दीदी यहाँ से चली जाएगी।” साहित्य की बात सुनकर साक्षी के भी क़दम वहीं रुक गए। उन दोनों ने नीचे की तरफ ध्यान करके देखा तो तारा नीचे हॉल में पहुँचने ही वाली थी, जहाँ घर के बाकी लोग मौजूद थे। साक्षी समझ गई कि साहित्य क्या कहना चाह रहा था। उसने उसकी बात पर हामी भरते हुए पलकें झपकाईं। ★★★★