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My cruel Obsessed Hubby

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आस्था एक बड़ी ही प्यारी खूबसूरत और चुलबुली सी लड़की, जो गांव से शहर अपने मामा की बेटी की शादी अटेंड करने के लिए गई थी, लेकिन हुआ कुछ ऐसा की बदकिस्मती से वह बन गई बराती से उस शादी की दुल्हन और आ गई अरमान सिंघानिया जैसे हार्टलेस इंसान की जिंदगी में! अ...

Total Chapters (334)

Page 1 of 17

  • 1. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 1

    Words: 2193

    Estimated Reading Time: 14 min

    बंगलौर शहर के सबसे बड़े होटल, स्टार लाइट में, अरमान सिंघानिया की शादी का फंक्शन आयोजित किया गया था। शहर भर के, दुनिया भर के सभी VIP लोग उस शादी में मौजूद थे! और अरमान सिंघानिया, शादी के कपड़ों में मंडप में बैठा हुआ, अपनी दुल्हन के इंतज़ार करने के बजाय, अपने ऑफिस का काम कर रहा था; उसके एक हाथ में लैपटॉप, दूसरे हाथ में उसका फोन था! साथ ही, उसके कुछ आदमी उसके आस-पास खड़े हुए थे! उस शादी में आए सभी लोग अरमान सिंघानिया को देखकर समझ रहे थे कि अपनी शादी के दिन भी इस बंदे को काम से फुर्सत नहीं है। आखिरकार, सिंघानिया इंडस्ट्रीज का इकलौता वारिस तो यही है। और उसके ऊपर अनेक ज़िम्मेदारियाँ हैं। वहीं, शादी में आए कुछ लोग इस बात पर गॉसिप कर रहे थे कि समझ में नहीं आ रहा था कि अरमान सिंघानिया ने एक मिडिल-क्लास लड़की को अपनी पत्नी बनाने का फैसला क्यों लिया है? जबकि वह चाहे तो, शहर भर की अनेक अमीर लड़कियाँ उससे शादी करने को तैयार थीं। क्योंकि उसके जितना अमीर और dashing, smart, और handsome पूरे शहर में कोई नहीं था। तभी पंडित जी की आवाज गूँजी! "जल्द से जल्द दुल्हन को बुलाया जाए।" यह सुनकर सामने खड़ी एक औरत दो-तीन लड़कियों को लेकर दुल्हन के कमरे की ओर जाने लगी! ताकि वह वहाँ से दुल्हन को लेकर आ सके! लेकिन जैसे ही वह दुल्हन वाले कमरे की ओर बढ़ी, दुल्हन के पिता तुरंत उनका रास्ता रोक लिया। और कहा, "अरे आप लोग चलिए, मैं अपनी बेटी को लेकर आता हूँ। बस थोड़ी सी तैयारी अभी बाकी है।" ऐसा कहकर उन्होंने उन्हें टाल दिया! और वापस उन्हें नीचे शादी के मंडप की ओर भेज दिया। उन सब लोगों से कुछ दूरी पर खड़ा एक इंसान, बड़ी हैरानी से ये सब कुछ देख रहा था। वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि अरमान सिंघानिया के दादाजी, आलोक सिंघानिया थे। जिनके कहने पर ही अरमान सिंघानिया यह शादी कर रहा था। और क्योंकि उनकी आखिरी ख्वाहिश यही थी कि वह अपने पोते की शादी अपनी आँखों से देख सकें, दादाजी आलोक सिंघानिया ने अरमान की शादी तय कर दी थी! और शादी के लिए उन्होंने अपने ही ऑफिस में काम करने वाले, एक क्लर्क, मिस्टर मनोज मल्होत्रा की बेटी को चुना था! मिस्टर मनोज मल्होत्रा की बेटी का नाम प्रियंका था। प्रियंका को अरमान से मिलाया गया था और उसे बताया गया था कि अरमान की शादी प्रियंका से ही होगी!... प्रियंका कम खूबसूरत लड़की थी, लेकिन वह किसी और से प्यार करती थी! साथ ही, उसके ज़िन्दगी में अपने कुछ सपने थे, वह ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, लेकिन जितना उसने अरमान के कारनामों के बारे में सुना था... उसके बाद... उसे अरमान से काफी ज़्यादा डर लगने लगा था। क्योंकि अरमान का अहंकारी अंदाज़ और बर्ताव पूरे शहर से छुपा नहीं था। अरमान जब चाहे, जिसे चाहे बर्बाद करने की हिम्मत और ताकत दोनों ही रखता था... इतना ही नहीं, अरमान सिंघानिया से पंगा लेने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। एक बार एक मॉडल ने अरमान सिंघानिया को भारी महफ़िल में प्रपोज़ किया था, और अरमान ने बिना किसी की परवाह किए! उसका पूरा करियर, उसकी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी! अरमान को लड़कियों से एक तरह से बहुत ज़्यादा चिढ़ थी। और यह चिढ़ क्यों थी, इसके उसके अपने ख़ास कारण थे!... क्योंकि पास्ट में उसके साथ कुछ ऐसा हुआ था, जिसके बाद से उसका भरोसा हर चीज़ पर से उठ चुका था, इसलिए प्यार से, विश्वास से, हर चीज़ से उसका भरोसा उठ चुका था। जिसके कारण अब उसकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाना सबसे ज़रूरी बन चुका था... और उसी के कारण आज सिंघानिया इंडस्ट्रीज ना केवल शहर भर की, बल्कि पूरे देश की नंबर वन इंडस्ट्रीज़ थी। वेल, अब जैसे ही बिना दुल्हन के वह औरतें वापस आईं, आलोक जी को इस बात का एहसास हुआ! कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है! तो वह बिना किसी को भनक लगे उस कमरे की ओर जाने लगे, जहाँ प्रियंका, यानी कि दुल्हन मौजूद थीं! और जैसे ही वह वहाँ गए, उन्होंने सुना कि उस कमरे में किसी के रोने की आवाज़ आ रही थी, अब आलोक जी काफी हद तक हैरान-परेशान हो उठे, और बिना किसी दरवाज़े पर दस्तक दिए वह तुरंत अंदर चले गए, और जैसे ही वह अंदर गए! उन्होंने देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत और प्यारी सी लड़की का हाथ मनोज जी ने, यानी कि प्रियंका के पिता ने, पकड़ रखा था...... और साथ ही साथ प्रियंका की माँ उसे मार रही थी। अब जैसे ही आलोक जी ने यह देखा तो उनकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था, और वह बोले, "ये सब क्या हो रहा है यहाँ पर?" अब जैसे ही आलोक जी की रोबदार आवाज़ वहाँ गूँजी, सभी हैरानी से आलोक जी को देखने लगे, और वह लड़की, जिसके हाथ मनोज जी ने पकड़ रखा था, वह बुरी तरह से रो रही थी। तभी आलोक जी ने कहा, "यह लड़की कौन है? और इसको आप इस तरह से क्यों मार रहे हैं? और प्रियंका कहाँ है? और क्या आप लोगों को सुनाई नहीं दिया, पंडित जी दुल्हन को मंडप में बुला रहे हैं?... बोलिए, जवाब दीजिए? प्रियंका कहाँ है?" अब मनोज जी और साथ ही साथ मनोज जी की पत्नी, सीमा जी, दोनों सर झुका कर खड़े हो गए! और बोले, "हमें माफ़ कीजिएगा सर, प्रियंका यहाँ मौजूद नहीं है।" अब मनोज जी ने जैसे ही हाथ जोड़कर आलोक जी से माफ़ी माँगी,.... उनका गुस्सा काफी बढ़ चुका था। और वह बोले, "ये क्या बकवास कर रहे हो मनोज तुम? शायद भूल रहे हो तुम, हमारे ऑफिस में काम करने वाले एक मामूली से आदमी हो, तो तुम इस तरह से हमारी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ कैसे कर सकते हो! क्या तुम भूल गए हो, इस वक़्त इस शादी में शहर भर के सभी बड़े लोग, सभी हमारे बिज़नेसमैन मौजूद हैं। और तुम हमें कह रहे हो कि तुम्हारी बेटी यहाँ नहीं है। सच-सच बताओ क्या बात है?" अब जैसे ही आलोक जी ने यह कहा, मनोज की पत्नी, सीमा आगे आई और बोली! "मैं बताती हूँ सर क्या बात है, हम तो आपके इतने बड़े घर में हमारी बेटी की शादी हो रही है, इस बात को लेकर काफी ज़्यादा खुश थे।" "और इसीलिए हमने गाँव से हमारी यह नन्द की बेटी को भी बुला लिया था। बहुत समय पहले एक एक्सीडेंट में इसके माता-पिता मारे गए थे, क्योंकि यह गाँव में अपनी नानी, यानी कि मेरी सास के साथ रहती है, तो हमने सोचा कि यह शादी में आएगी तो शादी के कुछ फंक्शन में हाथ बटाएगी तो सही रहेगा, और इसने काम भी किए! हल्दी, मेहँदी, हर एक फंक्शन में इसने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, और घर के सारे काम किए, लेकिन आज, जब हमने प्रियंका को लेने के लिए भेजा तो इसने हमें आकर बताया कि प्रियंका तो यहाँ है ही नहीं, वह तो भाग गई है! हमें पूरा यकीन है कि इसी लड़की ने प्रियंका को भगाया है," ऐसा कहकर मनोज और साथ ही साथ उसकी पत्नी सीमा, आस्था पर इल्ज़ाम लगाने लगीं, आस्था रो रही थी, चीख रही थी, और कह रही थी, "इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है मामी! आपको गलतफ़हमी हुई है! मैं कब से आपको यही बात समझाने की कोशिश कर रही हूँ!" "जब मैं प्रियंका दीदी को लेने के लिए यहाँ इस कमरे में आई, प्रियंका दीदी उस वक़्त कमरे में मौजूद नहीं थीं। आखिरकार आप मेरी बात क्यों नहीं मान रहे हैं?" ऐसा कहकर आस्था रोने लगी। रोने की वजह से उसकी खूबसूरत सी नाक एकदम टमाटर के जैसे लाल हो गई थी, जिसमें वह रोती हुई और भी ज़्यादा खूबसूरत और प्यारी लग रही थी, आलोक जी, मनोज और सीमा पर गुस्सा होते हुए बोले, "हमें ये सब कुछ नहीं सुनना चाहते हैं। हमें अभी इसी वक़्त किसी और लड़की का इंतज़ाम करके दो! हम आज के आज ही यह शादी ज़रूर करेंगे! अगर आज यह शादी नहीं हुई तो, पूरा का पूरा सिंघानिया एम्पायर बर्बाद हो जाएगा, और तुम अच्छी तरह से जानते हो कि उसके बाद अरमान तुम्हारी क्या हालत करेगा! क्योंकि वह सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन अपनी बिज़नेस पर, अपनी फैमिली पर, वह किसी तरह की कोई भी बेइज़्ज़ती या परेशानी या किसी भी तरह की कोई भी बात या कोई भी दाग वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है।" अब मनोज और सीमा दोनों एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे थे, तभी अचानक सीमा आगे आई, आस्था का हाथ पकड़कर उसने तुरंत आलोक जी के सामने उसे पटक दिया, कहने लगी, "हमें पूरा यकीन है सर, इसी ने कुछ ना कुछ गड़बड़ की है, और इसके भरपाई ये ही चुकाएंगी अब, अगर आप कहें तो हम अभी और इसी वक़्त इस लड़की को शादी का जोड़ा पहनाकर मंडप में बिठा देते हैं।" अब जैसे ही अचानक सीमा जी ने यह कहा, आस्था की हालत ख़राब हो गई, और वह बहुत बुरी तरह से रोने लगी, और कहने लगी, "मामी जी आप यह कैसी बातें कर रही हैं। आप भला मेरी शादी ऐसे कैसे करवा सकती हैं? अभी मेरे सपने हैं, मेरा करियर है, मैं डॉक्टर बनना चाहती हूँ, मुझे अभी ज़िन्दगी में बहुत कुछ करना है। आप ऐसे कैसे इस तरह की बातें करके मेरी शादी करवा सकती हैं। मैंने आपसे कहा ना, मैंने कुछ नहीं किया है, और मैं गाँव से शहर सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रियंका दीदी की शादी अटेंड करने के लिए ही आई हूँ! मैं उनकी शादी में उन्हें शादी से भगाने के लिए थोड़े ही आई हूँ! आपको गलतफ़हमी हुई है।" ऐसा कहकर आस्था बड़ी बुरी तरह से रोने लगी! और तब आलोक जी बड़े ही ध्यान से आस्था की ओर देख रहे थे। असल में तो आस्था उन्हें पहली नज़र में ही भा गई थी, और अब आस्था की इस तरह की बातें सुनकर वह काफी हद तक थोड़ा सा परेशान भी हो गए! क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे, अरमान को लड़कियों का जॉब करना, या फिर किसी भी औरत का घर से बाहर जाकर काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है... तो वह किसी भी कीमत पर यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी पत्नी डॉक्टर बनना चाहे या ना चाहे। जबकि आस्था डॉक्टर बनना चाहती थी। क्योंकि उसके गाँव में दूर-दूर तक कोई डॉक्टर नहीं था। इनफैक्ट, जब उसके माता-पिता का एक्सीडेंट हुआ था, उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल पाया, जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। तब से आस्था ने कसम खा ली थी। अपनी ज़िन्दगी का इकलौता मकसद बना लिया था कि वह डॉक्टर बनकर रहेगी और अपने गाँव में ही अपना एक छोटा सा अस्पताल खोलेगी, या फिर छोटा सा क्लीनिक खोलकर लोगों की सेवा करेगी, और जिस तरह से उसके माता-पिता की मौत हुई है, वह किसी और की मौत नहीं होने देगी। तो, डॉक्टरी करना उसके नस-नस में बस चुका था। लेकिन अब अचानक से शादी की बात सुनकर उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह ऐसे कैसे अचानक से शादी कर सकती थी? उसके ज़िन्दगी का एक ही मकसद था, केवल डॉक्टर बनना ही उसका इकलौता और मात्र सपना था। उसकी मामी अचानक से आ गई और एक और चाँटा उसने आस्था के मुँह पर दे मारा, और बोली, "ऐ लड़की, अपने फ़ालतू की बकवास बंद कर! अगर तूने आज यह शादी नहीं की तो जानती है हम लोग कितनी बुरी तरह से बर्बाद हो जाएँगे! इतना ही नहीं, अरमान सिंघानिया के आदमी हमारी जान ले लेंगे,... वह तेरे मामा को गोली मार देंगे, गोली!" "अब तू देख ले तुझे क्या करना है! अगर तू हमारी लाश देखना चाहती है तो बेशक यह शादी मत कर!" ऐसा कहकर वह बड़ी ही बुरी तरह से आस्था को मजबूर करने लगी,... वहीं आस्था के आँसू काफी ज़्यादा बह निकले। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो करे क्या? लेकिन तभी आलोक जी ने मनोज जी से कहा, "इस लड़की को शादी के जोड़े में तैयार कर, फटाफट से शादी के मंडप में बिठाओ।" जैसे ही आलोक जी यह आदेश देकर वहाँ से चले गए...... , और अब आस्था घुटनों के बल बैठकर बुरी तरह से रोने लगी! तभी अचानक उसके मामा अपने दोनों हाथ जोड़कर आस्था के पास बैठ गए, और बोले, "आस्था बेटे, अपने मामा की जान और इज़्ज़त दोनों ही बचा लो, प्लीज़!" "अगर तूने आज यह शादी नहीं की तो अरमान सिंघानिया हम सब की जान ले लेगा, तुम नहीं जानती कि वो गुस्से में कितना ज़्यादा तेज है!... उसके लिए जान लेना बहुत मामूली सी बात है,, बेटी, हमारी बात मान लो, और शादी के लिए हाँ कह दो।" ऐसा कहकर वह बड़ी ही बुरी तरह से रोने लगे, दोस्तों, प्लीज़ मेरी यह नई स्टोरी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप लोग इसे बहुत ज़्यादा प्यार देंगे और लाइक, शेयर और कमेंट ज़रूर करें.... और ज़रूर बताएँ कि आपको इसका पहला चैप्टर कैसा लगा...

  • 2. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 2

    Words: 2003

    Estimated Reading Time: 13 min

    "अगर तूने आज यह शादी नहीं की, तो अरमान सिंघानिया हम सब की जान ले लेगा। तुम नहीं जानती कि वह गुस्से में कितना ज़्यादा तेज है! उसके लिए जान लेना बहुत मामूली सी बात है। बेटी, हमारी बात मान लो, और शादी के लिए हाँ कह दो।" ऐसा कहकर वह बड़ी ही बुरी तरह से रोने लगे। तब आस्था ने एक और कोशिश की और कहा, "लेकिन मेरी नानी का क्या होगा? मेरी नानी मेरे बगैर नहीं रह पाएगी!" तभी मनोज जी ने कहा, "बेटा, शायद तुम भूल रही हो, तुम्हारी नानी मेरी माँ भी है। तुम्हारा ध्यान रखने के लिए हमने उन्हें उस गाँव में तुम्हारे पास छोड़ रखा था। लेकिन अब मैं उन्हें हमेशा वहाँ से ले आऊँगा, बेटा। बस तुम शादी के लिए हाँ कह दो, मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं तुम्हारी नानी को गाँव से यहाँ अपने साथ में ही रखूँगा, और उनकी दिन-रात सेवा करूँगा। वैसे भी वह मेरी माँ है, और मैं उनकी दिन-रात सेवा करूँगा। अपनी नानी को लेकर परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, मेरे बच्चे। अभी के लिए बस तुम शादी के लिए हाँ कह दो, उसके बाद हम कुछ ना कुछ करके तुम्हें अरमान की ज़िन्दगी से निकाल लेंगे! बस कुछ दिनों की बात है, कुछ दिनों तक इस शादी के रिश्ते को निभा लो, प्लीज़ बेटा, प्लीज़!" ऐसा कहकर वह उसकी ख़ुशामद करने लगे। आस्था अब पूरी तरह से मजबूर हो चुकी थी। आस्था, जो कि अपने मामा के एक फ़ोन कॉल पर पूरे गाँव में उछलने लगी थी, क्योंकि उसके मामा ने पहली बार उसे अपनी बेटी की शादी में शिरकत करने के लिए बुलाया था। साथ ही साथ, हालाँकि आस्था की नानी ने, यानी कि मनोज की माँ ने, उसे मना भी किया था, "बेटी, तुम इस शादी में मत चलो! अपनी बेटी और दामाद की मौत के बाद, आस्था ही उनका इकलौता सहारा थी।" और उसकी दादी ने उसे कहा था, "कि मनोज अच्छा नहीं है, भले ही वह मेरा ख़ून हो, मेरा बेटा हो! लेकिन तूने देखा नहीं, शहर में जाकर वह इस तरह से बस गया है कि उसने एक बार भी अपनी बूढ़ी माँ की खैर-ख़बर नहीं ली, बस हर महीने के तौर पर घर ख़र्च के लिए पैसे भिजवा देता है और अपनी सारी ज़िम्मेदारी से आजाद हो जाता है।" लेकिन आस्था काफी ज़्यादा एक्साइटेड हो गई थी क्योंकि वह काफी समय से गाँव में रह रही थी। उसने शहर की दुनिया, शहर का माहौल, वहाँ के कोई फ़ंक्शन नहीं देखे थे। तब आस्था ने अपनी दादी को समझाया, "कम से कम मनोज मामा ने हमें बुलाया तो है ना!" और वैसे भी उनकी इकलौती पोती प्रियंका की शादी थी। तो उन्हें ज़रूर जाना चाहिए। जब आस्था ने अपनी नानी को काफी ज़्यादा समझाया, तब वह दोनों दादी-पोती शादी में जाने के लिए तैयार हो गईं! और वह दोनों प्रियंका की हल्दी से दो दिन पहले शहर में पहुँच चुकी थीं। शहर को देखकर आस्था काफी ज़्यादा खुश हो रही थी, हालाँकि उसे डॉक्टर की पढ़ाई करने के लिए भी शहर में ही आना था। तो इसीलिए आस्था ने सोचा कि वह शादी में जाएगी, साथ ही साथ शहर के रंग-रूप, ढंग, शहर का माहौल देख लेगी! और किस तरह से उसे शहर में सर्वाइव करना है, उस बारे में कहीं ना कहीं यह सोचते हुए, आस्था शहर में आई थी! और पूरे दो दिन उसने अपनी मामी के साथ उनके बाज़ार का सारा काम, घर का खाना बनाया था। इतना ही नहीं, उसकी मामी ने पूरी तरह से सारी ज़िम्मेदारी आस्था के कंधों पर ही दे दी थी। साग-सब्ज़ी लाना, घर में मेहमानों की देख-रेख, खाना-पीना, झाड़ू-पोछा, बर्तन... हालाँकि नौकर भी उन्होंने घर में काम करने के लिए लगाए हुए थे! लेकिन सब कुछ आस्था अपनी निगरानी में ही करवा रही थी। और बड़े ही जोरों-शोरों से प्रियंका की हल्दी का फ़ंक्शन भी हुआ था, और मेहँदी का फ़ंक्शन भी हुआ था! और फ़ंक्शन के बाद रात के 2:00 बजे के वक़्त, जब अचानक आस्था की आँख खुली, उसने देखा कि प्रियंका किसी से रो-रोकर बात कर रही थीं, तब आस्था को उस पर कुछ शक भी हुआ था! लेकिन उसे अपनी दादी की कही हुई बात याद थी, कि उसे किसी के भी मामले में नहीं घुसना है, और ना ही किसी के बारे में ज़्यादा सोचना है। तो यही सोचकर आस्था चुप हो गई थी, और उसने किसी से कुछ नहीं कहा। लेकिन प्रियंका यूँ इस तरह से शादी के वाले दिन, शादी का मंडप छोड़कर भाग जाएगी, इसके बारे में तो आस्था ने दूर-दूर तक कुछ नहीं सोचा था। उसके मुँह से सिर्फ़ और सिर्फ़ इतना ही निकला था कि उसने प्रियंका दीदी को किसी से बात करते हुए सुना था, और इसी बात की गलतफ़हमी में उसके मामा और मामी दोनों ने यह समझ लिया कि आस्था ने ही प्रियंका को भगाया है। अब आस्था के पास कोई और रास्ता नहीं था। और जल्दी ही उसे एक शादी का जोड़ा पहनाया गया था और उसके सर पर लंबा सा घूँघट डाल दिया गया। अरमान को इस बात के बारे में दूर-दूर तक कोई एहसास नहीं था कि उसकी शादी प्रियंका से नहीं, बल्कि आस्था से होने वाली है। आस्था को तो उसने आज तक देखा भी नहीं था। अब जल्दी ही आस्था को दुल्हन बनाकर अरमान के ठीक बराबर में बिठा दिया गया, और अरमान सिंघानिया ने एक बार भी अपने बराबर में बैठी हुई दुल्हन की ओर नहीं देखा। उसका पूरा ध्यान उस वक़्त अगर किसी चीज़ पर था तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने लैपटॉप और फ़ोन की स्क्रीन पर। वह एक भी मूवमेंट, एक भी पल अपना काम बर्बाद नहीं करना चाहता था। सिर्फ़ और सिर्फ़ उसे पूरे मंडप में आलोक सिंघानिया के अलावा किसी और को इस बात के बारे में दूर-दूर तक एहसास नहीं था कि जिसकी शादी इस वक़्त अरमान सिंघानिया से हो रही है, असल में वह लड़की है ही नहीं, जिस लड़की को उन्होंने अरमान के लिए दुल्हन चुना है। दुल्हन बदल चुकी थी। वेल, जल्दी ही अरमान सिंघानिया ने पूरी फ़ॉर्मेलिटी पूरी करते हुए सातों फ़ेरे कंप्लीट कर लिए, और साथ ही साथ आस्था के माँग में सिंदूर भर दिया, और मंगलसूत्र भी पहना दिया। आस्था का दिल काफी ज़्यादा रो रहा था। अरमान सिंघानिया ने एक बार भी यह जानने या देखने की कोशिश नहीं की कि उसकी बीवी कैसी दिख रही है, दुल्हन बनकर यहाँ क्या हो रहा था, क्या नहीं! वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पूरी तरह से अपने काम में खोया हुआ था। और जब वह आस्था को मंगलसूत्र पहना रहा था, तब आस्था के आँसुओं की कुछ बूँदें उसके हाथ पर गिरीं, तब जाकर अरमान को थोड़ा सा अजीब लगा, और उसने एक पल शादी के जोड़े में सज़ी हुई अपनी दुल्हन की ओर देखा, लेकिन लंबा घूँघट होने की वजह से वह उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था। वह यह केवल कुछ ही पल के लिए रुका, और उसके बाद अरमान फिर से अपने फ़ोन और काम में पूरी तरह से खो चुका था। आलोक जी ने जल्दी ही आस्था की पूरी जन्म-कुंडली अपने हाथों में मँगवा ली थी क्योंकि वह जिस लड़की को अपनी बहू बनाने जा रहे थे, उसके बारे में सारी चीज़ें उन्हें अच्छी तरह से जाननी थीं। और जैसे ही आलोक जी की नज़र आस्था के माँ-बाप पर, डिटेल्स पर पड़ी, जो कि एक्सीडेंट में मारे गए थे, तब आलोक जी के चेहरे पर कुछ अलग ही तरह के भाव आ गए थे। तब आलोक जी मन ही मन में सोचने लगे, "मैंने तो सोचा था कि आज अपने ख़ानदान की इज़्ज़त बचाने के लिए शादी करवा लूँगा और उसके बाद इस लड़की को दो-तीन दिन के बाद तलाक़ देकर आज़ाद करवा दूँगा! लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब इस लड़की को ज़िन्दगी भर मेरे पोते, अरमान सिंघानिया की पत्नी बनकर ही रहना होगा।" कहीं ना कहीं यह सोचते हुए आलोक जी कहीं खो गए! जल्दी ही पूरे रीति-रिवाज के साथ शादी के फ़ंक्शन कंप्लीट हो चुके थे। और एक जगह चार लोग अपनी नज़र झुकाए खड़े हुए थे। वह उस शादी के हाल में अरमान सिंघानिया के बाद, उस शादी का सबसे हैंडसम चेहरा कोई था, तो वह चार लोग ही थे। और चार लोगों में से एक अरमान सिंघानिया का भाई, कज़िन ब्रदर और दोस्त थे। साथ ही साथ वह तीन बचपन के चाइल्डहुड फ़्रेंड्स थे, जो कि बहुत बड़ी-बड़ी पोस्ट पर थे। उनमें से एक फ़ेमस डॉक्टर था, जो कि अरमान सिंघानिया का दोस्त था, और स्पेशली उसके साथ शादी अटेंड करने के लिए वह वहाँ आया था। लेकिन चारों का उस वक़्त मूड काफी ज़्यादा ख़राब था। सब के सब शेरवानी पहने हुए थे! और एक से बढ़कर एक हैंडसम और चार्मिंग लग रहे थे। जितनी भी शादी हाल में लड़कियाँ आई हुई थीं, सबकी नज़रें बार-बार जाकर उन पर ही ठहर रही थीं। क्योंकि अरमान सिंघानिया को अब देखने का उनका कोई फ़ायदा नहीं था, अरमान सिंघानिया की शादी हो चुकी थी। तो इस वक़्त वह चारों स्मार्ट लड़के सभी लड़कियों के क्रश बने हुए थे, लेकिन उन चारों का मुँह पूरी तरह से लटका हुआ था। उन चारों को बहुत ही ज़्यादा बुरा लग रहा था। तभी दादाजी उनके पास जाकर खड़े हो गए और कहा, "क्या बात है? तुम चारों इस तरह से मुँह लटकाकर यहाँ क्यों खड़े हुए हो? शादी में आए हो या किसी के मातम में आए हो? तुम्हारे चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे अपने दोस्त या भाई की शादी में नहीं, बल्कि किसी की शोक-सभा अटेंड करने के लिए तुम लोग यहाँ आए हो।" अब जैसे ही दादाजी ने यह कहा, आकाश मुँह पिचकाकर बोला, "क्या दादा जी? भाई की शादी तो आपने करा दी! मेरा इकलौता दोस्त था, मैंने क्या कुछ नहीं सोचा था उसकी शादी के लिए, लेकिन आपने हमें इतनी सी भी मस्ती करने नहीं दी! इसलिए अब हम आपसे बात भी नहीं करेंगे!" ऐसा कहकर आकाश ने फिर मुँह बना लिया। अब तक आलोक जी समझ चुके थे कि इन चारों को मौज-मस्ती करने का मौका नहीं मिला है। इसी वजह से शायद ये सब मुँह लटकाकर खड़े हुए हैं। तभी दादाजी ने कहा, "अच्छा-अच्छा, अपना मूड सभी के सभी बिल्कुल ठीक करो! और घर जाकर जो तुम लोगों को मौज-मस्ती करनी है वह करते रहना, मैं तुम लोगों को नहीं रोकूँगा।" अब जैसे ही दादाजी ने यह कहा, तब सुमित ने कहा, "क्या वाकई दादा जी? क्या आप हमें बिल्कुल भी पार्टी करने से नहीं रोकेंगे? पूरी रात हम लोग मज़े करेंगे। अब वादा कीजिए! कि आप हमें नहीं डाँटेंगे।" अब जैसे ही सुमित, जो कि उस शहर की अच्छी-खासी कंपनी का बड़ी पोस्ट का सीईओ था, ने इस तरह की बात की, उसके दादा आलोक जी उसकी ओर देखकर कहने लगे, "तुम्हें देखकर कोई नहीं कह सकता है कि तुम्हारे नीचे कम से कम 600 लोग काम करते हैं। हाँ, बिल्कुल बच्चों जैसे हरकतें हैं तुम सबकी। ना जाने कब बड़े होंगे तुम लोग। अब अरमान की तो शादी हो गई है। अब धीरे-धीरे तुम चारों की शादी भी करवा दूँगा, उसके बाद देखूँगा कि तुम लोग कैसे और किस तरह से पार्टी करोगे?" अब जैसे ही दादाजी ने उन चारों की टाँग खींची, वह चारों बुरी तरह से मुँह बनाने लगे, और तभी उनमें से ध्रुव आगे आया और कहा, "दादाजी, प्लीज़ अभी शादी-वादी की बात हमसे मत कीजिए! यह हमारे हँसने, खेलने, कूदने के दिन हैं! और शादी के चक्कर में हम अपनी ज़िन्दगी बिल्कुल भी बर्बाद नहीं होने देंगे..." "और वैसे भी अभी मेरी उम्र ही क्या है! अभी मैं सिर्फ़ 26 साल का हूँ, क्या इस उम्र में कोई शादी करता है भला? और वैसे भी दादाजी, आपने अरमान ब्रो की जो शादी करवाई है, अब वह बेचारे देखो, अपनी बीवी को एक नज़र उठाकर भी नहीं देख रहे हैं! देखो ज़रा, अपनी बीवी से ज़्यादा प्यार तो उन्हें अपने फ़ोन और लैपटॉप से है। आपको दिख नहीं रहा है क्या? आपको पूरी शादी में सबके आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं!" ऐसा कहकर ध्रुव दादाजी को अरमान की ओर दिखाने की कोशिश करने लगा। तब उसके दादा ने कहा, "अपने फ़ालतू की बकवास बंद करो!"

  • 3. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 3

    Words: 1884

    Estimated Reading Time: 12 min

    "अपनी बकवास बंद करो। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम लोग क्या हो, क्या नहीं।" सुमित ने कहा, "हाँ यार, आकाश, दादाजी से बहस करना बिल्कुल बेकार है। कहीं ऐसा ना हो कि उन्होंने जो अभी हमें रात को पार्टी करने की परमिशन दी है, उसे भी वह कैंसल ना कर दें!" आहान ने कहा, "अच्छा-अच्छा, ठीक है दादाजी। अभी इस बात पर ध्यान देते हैं। हमने शादी में यहाँ मौज-मस्ती नहीं की, अब हमें रात को मौज-मस्ती करने देंगे!" बस इतना कहकर आहान ने दादाजी को मना लिया। दादा ने एक लंबी, गहरी साँस ली और वहाँ से चले गए! दादाजी के जाने के बाद सुमित ने कहा, "ना ढोल, ना नाचना, ना गाना-बजाना, क्या यार, यह कितनी बोरिंग शादी हो गई अरमान ब्रो की! कहने के लिए तो यह इस शहर का सबसे बड़ा रईस और हैंडसम मुंडा है, लेकिन यहाँ पर इतनी सी भी मौज-मस्ती नहीं हो रही है। सब कुछ बड़ा ही फ़ीका-फ़ीका सा लग रहा है।" ऐसा कहकर सुमित ने फिर से अपना मुँह बिचका लिया... ध्रुव ने कहा, "हाँ यार, लेकिन आप अपना मूड इस वक़्त ठीक करो! और देखो, शादी ऑलरेडी हो चुकी है। अभी फ़िलहाल आप सब एक काम करो, घर जाकर भाभी के आने का वेलकम की तैयारी करो। हमारे घर में तो कोई लेडीज़ वगैरह भी नहीं हैं, जो भाभी के वेलकम की तैयारी करें, हम लोगों को ही सब कुछ करना होगा..." आकाश ने कहा, "यार, शायद तुम लोग भूल रहे हो, पूरे के पूरे घर में लेडीज़ अगर कोई है तो भाभी ही होंगी! और उनको हम लोगों के बीच ऑकवर्ड ना फील हो, तो हमें इस तरह का कुछ मैनेजमेंट लेकर चलना होगा। और वैसे भी अरमान को तो देखकर लग रहा है कि वह जितना ध्यान अपने फ़ोन और लैपटॉप पर देने वाला है, वह भाभी पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देने वाला। और वैसे भी उसने यह शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ दादा के लिए की है, तो यह बात हमें याद रखनी चाहिए।" वे आकाश की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले, "शायद तुम ठीक कह रहे हो यार, हमें अपनी पार्टी से ज़्यादा भाभी का ध्यान रखना होगा।" ऐसा कहकर चारों ने अपने-अपने प्लान्स बनाना शुरू कर दिया, और उनमें से दो जल्दी वहाँ से विदा लेकर सिंघानिया मेंशन की ओर रवाना हो गए, क्योंकि वहाँ जाकर उन्हें आस्था के वेलकम की तैयारी भी करनी थी। आस्था और अरमान की शादी पूरी होने के बाद जल्दी ही विदाई का समय आ गया था। इस बीच, भले ही अरमान की शादी आस्था से हो गई हो, लेकिन उसने एक बार भी उसकी ओर देखना ज़रूरी नहीं समझा। उसका ध्यान अगर कहीं था तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पूरी तरह से अपने काम पर। यहाँ आस्था ने भी अरमान की शक्ल नहीं देखी थी। उसे तो पता ही नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ है। उसकी नज़र अपनी नानी को ढूँढ रही थी। उसे इस वक़्त इमोशनल सपोर्ट की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी। आस्था ना तो वह शहर में रहती थी, और ना ही शहर के बारे में उसे ज़्यादा कुछ ख़ास नॉलेज थी। उसे खुद कोई आईडिया नहीं था कि आखिरकार उसकी शादी कितने बड़े मॉन्स्टर से हुई है। वेल, जल्दी ही विदाई का समय आ गया था, और आस्था जल्दी से दौड़कर अपनी नानी के पास आई और उसे गले से लगा लिया और बुरी तरह से रोने लगी। आस्था ने जैसे ही उन्हें नानी कहकर बुलाया, गले लगाकर रो पड़ी! उन्हें अब इस बात का पता चल चुका था कि असल में जिसकी शादी आज यहाँ हुई है, वह उनकी लाडली आस्था की हुई है! तो उनकी आँखों से आँसू निकलने शुरू हो गए थे! उन्हें समझ नहीं आ रहा था, वे क्या कहें? क्या करें? उनकी आस्था की शादी इस तरह से कैसे हो गई? क्योंकि उन्होंने आस्था के बगैर रहने के बारे में अब तक सोचा तक नहीं था। उन दोनों को रोते हुए देख, दादाजी अब थोड़ा सा परेशान हो गए थे। कहीं ना कहीं वह समझ चुके थे कि आस्था और उसकी नानी इसी तरह से रोती रहीं तो, भरी महफ़िल में अरमान को इस बात का पता चल सकता है कि उसकी शादी जिससे हुई है वह प्रियंका नहीं है, बल्कि आस्था हुई है। और अगर ऐसा हुआ तो यह उनके परिवार की इज़्ज़त के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होगा! पूरी दुनिया के सामने उनकी फैमिली मज़ाक बनकर रह जाएगी... और अरमान सच्चाई जान गया तो, उसके कहर से कोई नहीं बच पाएगा, और फिर आस्था को अरमान किसी भी कीमत पर अपने साथ घर लेकर नहीं जाएगा। वे अपने पोते के गुस्से को अच्छी तरह जानते थे। इसीलिए उन्होंने मनोज को कुछ इशारा किया कि वह अपनी माँ को अभी और इसी वक़्त यहाँ से लेकर जाए! क्योंकि अगर वह अंदर अपनी माँ को लेकर नहीं गया तो, उसकी माँ रो-रोकर सबके सामने इस बात का बयान कर देगी कि उनकी पोती की नहीं, बल्कि यह उनकी नाती आस्था है, जिसकी शादी धोके से अरमान से हुई है। कहीं वे सवाल-जवाब ना करने लगें। आहान और ध्रुव दोनों नानी को इतनी बुरी तरह से आस्था से लिपटकर रोते हुए देख रहे थे। वे दोनों आपस में बात करने लगे। आहान ने कहा, "भाई, यह सब क्या हो रहा है यहाँ पर? कहीं नानी को हमारे भाई के बारे में पता तो नहीं चल गया ना, कि हमारा भाई कितना ज़्यादा ख़तरनाक मॉन्स्टर है, इसीलिए तो यह भाभी से इस तरह से चिपककर फूट-फूटकर रो रही है।" ध्रुव ने कहा, "यार, चाहे कुछ भी कहो, मुझे तो बेचारी ग्रैंड नैनी के लिए काफी ज़्यादा बुरा लग रहा है।" आहान ने कहा, "तुम इस तरह से बोल रहे हो! भाभी की नहीं, बल्कि तुम्हारी ही दादी है।" ध्रुव ने कहा, "वह सब तो ठीक है यार, पर तूने देखा किस तरह से रोना-धोना चल रहा है? वैसे भी आज के ज़माने में इस तरह से कोई इतना रोता है क्या? ऐसा लग रहा है कि भाभी को हम सबके सामने से किडनैप करके ले जा रहे हैं..." आहान ने अपनी कोहनी ध्रुव को मारी और उसे घूरकर कहा, "यार, तू अपनी बकवास बंद कर! जब देखो तेरे दिमाग में यह किडनैपिंग, अगवा, या कोई ना कोई क्रिमिनल ख़्याल आते-जाते रहते हैं! कितनी बार कहा है तुझे कि यह क्रिमिनल वेब सीरीज़ थोड़े से कम देखा कर!" ऐसा कहकर आहान ध्रुव की बातों से इरिटेट होने लगा। ध्रुव ने कहा, "तुम देखना, एक दिन मेरे ये सारे थॉट तुम लोगों के बहुत काम आएंगे।" ऐसा कहकर उसने अपना कॉलर ऊँचा किया। आहान ने कहा, "फ़ालतू की बकवास छोड़ो! फ़टाफ़ट से चलो! कहीं ऐसा ना हो कि भाई हमें यहीं छोड़कर चले जाएँ। तुम तो जानते हो ना भाई को, गुस्सा..." वेल, जल्दी ही आहान और ध्रुव चुपचाप फिर से सर झुकाकर अरमान के ठीक पीछे जाकर खड़े हो गए। अब आलोक जी ने मनोज के द्वारा उसकी माँ को अंदर भिजवा दिया था। सभी मेहमानों को विदा करने के बाद, वह आस्था को लेकर चलने का इशारा करने लगे, लेकिन आस्था के क़दम वहीं के वहीं रुक गए। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह अरमान के साथ एक भी क़दम आगे बढ़ा सके! और फिर जैसे-तैसे धीरे-धीरे मनोज जी की पत्नी, यानी कि आस्था की मामी, उसे खींचते-खींचते थोड़ा सा आगे लेकर जाने लगी, लेकिन आस्था बड़ी ही धीमी-धीमी रो-रोकर, सिसक-सिसक कर चल रही थी। वहीं अरमान को उसके दादाजी ने सख़्त इंस्ट्रक्शन दिए थे कि उसे दुल्हन के साथ-साथ ही चलना है। लेकिन आस्था के इस तरह से धीरे-धीरे चलने पर अरमान बहुत ही ज़्यादा चिढ़ गया, और अब उसके बर्दाश्त के बाहर हो गया। तभी अचानक अरमान रुका और उसने आगे बढ़कर आस्था को गोद में उठा लिया। जैसे ही उसने आस्था को इस तरह से अपने गोद में उठाया, वहाँ मौजूद सभी लोगों ने ज़ोरों से तालियाँ बजानी शुरू कर दीं। अरमान ने गुस्से से सबको घूरना शुरू कर दिया। सबको तो यही लग रहा था कि अरमान एकदम से रोमांटिक हो गया है, उसने अपनी नई-नवेली दुल्हन को गोद में जो उठा लिया था। लेकिन अरमान ने उसे गोद में इसलिए उठाया था क्योंकि आस्था बड़े ही धीमे-धीमे क़दमों से चल रही थी, और अरमान को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया, क्योंकि उसे जल्द से जल्द अपने घर पहुँचकर अपना काम कंटिन्यू करना था। तो इसीलिए उसने दुल्हन को गोद में उठा लिया था। ध्रुव और आहान हैरानी से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। ध्रुव तो जैसे पत्थर के जैसा जम सा गया था। वह आहान से कहने लगा, "यार, मुझे पिंच करके तो देख, क्या मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा हूँ?" आहान ने जोरों से उसकी कमर में नोच ली, और वह चीख पड़ा। दर्द से करहाते हुए कहने लगा, "बेवकूफ़, तुझे पिंच करने के लिए बोला था, इस तरह से बिल्ली की तरह नोचने के लिए नहीं!" आहान ने कहा, "यार, मुझे भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। मेरे अरमान भाई, जिन्होंने आज तक अपने आस-पास लड़कियों को फ़टकने तक नहीं दिया, उन्होंने आज भाभी को पहले ही दिन गोद में उठा लिया। कहीं हमारी भाभी ने आने से पहले ही हमारे भाई के दिल पर कब्ज़ा नहीं जमा लिया?" ऐसा कहकर वह मुस्कुराने लगा। ध्रुव ने अपना क्रिमिनल वाला दिमाग चलाते हुए कहा, "तू गलत समझ रहा है। तुझे क्या, अरमान ब्रो के बारे में पता नहीं है? ज़रूर उसके पीछे भी उनका कोई ना कोई मक़सद रहा होगा!" "अब चल फ़टाफ़ट! अगर हम यहीं खड़े रहे बकवास करते रहे तो वह हमें छोड़कर चले जाएँगे!" जल्दी ही अरमान ने आस्था को ले जाकर गाड़ी में बिठा दिया। आस्था अब और भी ज़्यादा डर गई और सँकुच कर बैठ गई। अरमान ने पहली बार किसी लड़की को इस तरह से अपनी गोद में उठाया था, तो उसके लिए कुछ अलग ही तरह का एहसास था। उसे उसकी बीवी एकदम हल्की-फुल्की सी लगी थी। आलोक जी हल्का सा मुस्कुराते हुए अपनी कार में जा बैठे थे। अरमान आस्था के ठीक बराबर आकर बैठ गया, और अरमान ने एक बार फिर से अपना काम करना शुरू कर दिया! आस्था बेचारी घूँघट में से कार की खिड़की से झाँक रही थी कि उसे आख़िरी बार उसकी नानी का चेहरा देखने को मिल जाए, लेकिन वहाँ उसे कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। अब तो उसकी आँखों से आँसू भी नहीं निकल रहे थे, क्योंकि ऑलरेडी वह शादी के वक़्त इतना रो चुकी थी कि उसकी आँखों के आँसू भी सूख चुके थे। जल्दी ही गाड़ी सिंघानिया मेंशन की ओर रवाना हो गई थी। वहीं दूसरी ओर, आकाश और सुमित आस्था के गृह प्रवेश के लिए जो कुछ भी उनसे बन पड़ा था, वह सारी तैयारियाँ कर रहे थे। वह सारी तैयारियाँ उन्होंने टीवी में या यूट्यूब वीडियो सर्च करके की थी, क्योंकि उन्हें रस्मों-रिवाजों का कोई ख़ास नॉलेज नहीं था कि आखिरकार नई-नवेली बहू का स्वागत किस तरह से किया जाता है। और इसीलिए उन्होंने जैसे-तैसे आरती की थाली तो तैयार कर ली,... लेकिन अब कलश में क्या-क्या भरकर रखें, और किस तरह से कलश भरें! थोड़ा-बहुत उन्होंने यूट्यूब से सर्च करके जो भी सामान रेडी किया था। और अब खुश होकर दुल्हा-दुल्हन का इंतज़ार करने लगे।

  • 4. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 4

    Words: 1296

    Estimated Reading Time: 8 min

    जल्दी ही उनकी कार मेंशन पर आकर रुकी। अरमान एक बार फिर सिंघानिया मेंशन में प्रवेश कर चुका था। आस्था की मामी ने उसे घूँघट उठाने से सख्त मना किया था; वह किसी भी कीमत पर घूँघट नहीं उठाएगी जब तक कि वह अपने ससुराल नहीं पहुँच जाती। कहीं ना कहीं उसकी मामी को इस बात का डर था कि अगर अरमान सिंघानिया को दुल्हन बदलने वाली बात का पता चला, तो अरमान सिंघानिया उन सब को गोलियों से उड़ा देगा! क्योंकि अरमान सिंघानिया के बारे में काफी हद तक नकारात्मक बातें ही पूरे शहर में फैली हुई थीं; अरमान सिंघानिया को धोखा देने वाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं थे! और अरमान अपने गुस्से में किसी की भी जान ले सकता था... एक तरह से, मौत का दूसरा नाम था Arman Singhania. वेल, आस्था को कार से उतारने वाला वहाँ कोई नहीं था। तब एक नौकर ने आस्था के लिए गेट का दरवाज़ा खोल दिया। आस्था नीचे उतर गई! लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब उसे किस ओर जाना है क्योंकि उसने घूँघट ओढ़ रखा था; इसलिए उसे रास्ता समझने में मुश्किल हो रही थी। फ़िलहाल, आस्था अपनी जगह खड़ी हो गई थी। अब आस्था को समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस ओर जाए। हालाँकि उसने कोशिश की, हल्का सा घूँघट उठाकर इधर-उधर, ना-समझी में देखने की कोशिश की, लेकिन उसे सिर्फ़ मार्बल का फ़र्श ही दिखाई दे रहा था; उसके अलावा उसे कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था। तब अचानक दादाजी रुके। उन्होंने देखा कि आस्था पीछे रह गई थी! और अरमान लंबे-लंबे कदमों से चलता हुआ मेंशन की ओर जा रहा था। दादाजी ने आवाज़ लगाई, "अरमान, ठहरो! तुम इस तरह से बिना दुल्हन लिए मेंशन में प्रवेश कर सकते हो? जाओ, दुल्हन को भी अपने साथ अंदर लेकर आओ!" अब जैसे ही दादाजी ने यह कहा, अरमान चिढ़ गया। अरमान ने अपने दादा को घूरकर देखा, लेकिन उस वक़्त वह मजबूर था क्योंकि अरमान ने खुद ही अपने दादा को वादा किया था कि उसके दादा जो कुछ भी कहेंगे वह वही करेगा! इसलिए वह चिढ़ता हुआ सीधा आस्था के पास जाकर खड़ा हो गया... और आस्था की ओर गुस्से से देखकर कहने लगा, "क्या थोड़ा सा तेज़ नहीं चल सकती, या तुम्हें चलना ही नहीं आता है?" ऐसा कहकर उसने आस्था का हाथ कसकर पकड़ लिया, और उसका हाथ कसकर पकड़कर वह उसे लगभग घसीटते हुए सिंघानिया मेंशन के अंदर लेकर जाने लगा। अब आस्था की हालत काफी ज़्यादा ख़राब हो चुकी थी। एक तो उसने कोहनियों तक लाल रंग का चूड़ा पहना हुआ था, ऊपर से अरमान ने उसका हाथ काफी तेज़ी से पकड़ा था! जिससे उसे काफी ज़्यादा दर्द हो रहा था। हल्की सी चीख उसके होठों से निकल गई, लेकिन अरमान ने उसकी चीख को अनसुना कर दिया और लगभग उसे घसीटते हुए सिंघानिया मेंशन के गेट पर पहुँचा। और जैसे ही वह उसे लेकर अंदर की ओर जाने लगा, तुरंत आकाश, सुमित, ध्रुव और आहान, चारों ने एक साथ खड़े होकर चिल्लाया, "रुको भाई!" अब जैसे ही अरमान ने सुना, उसने आइब्रो उठाकर उन चारों की ओर देखा। एक पल के लिए चारों उसकी आँखों को देखकर डर गए! लेकिन उन सब ने थोड़ी सी हिम्मत करते हुए कहा, "ब्रो, आप इस तरह से अंदर नहीं जा सकते! अरे! हमने बहुत सारी मूवीज़ और फ़िल्मों में देखा है कि जब भी कोई नई बहू आती है तो उसका अच्छी तरह से स्वागत किया जाता है। तो क्या हुआ अगर हमारे घर में लेडीज़ नहीं हैं तो, लेकिन हम लोग तो हैं। हम तो भाभी का वेलकम अच्छी तरह से कर सकते हैं ना।" अब जैसे ही आहान ने यह कहा, अरमान गुस्से से उसकी ओर देखकर कहा, "लगता है कुछ ज़्यादा ही छूट दे दी है मैंने तुम्हें। तुमने बहुत कॉलेज का बहाना बना लिया। कल से तुम मेरे साथ ऑफ़िस आओगे!" अब जैसे अचानक से अरमान ने यह कहा, आहान की हालत ख़राब हो गई, और वह कहने लगा, "नहीं-नहीं भाई, आप कैसी बातें कर रहे हैं! मतलब मैं ऑफ़िस जाकर क्या करूँगा? और इस बात का ऑफ़िस से क्या लेना-देना? और कल से तो मेरा बहुत इम्पॉर्टेन्ट असाइनमेंट स्टार्ट होने वाले हैं! भाई, आप नहीं जानते, कितना सारा कॉलेज का काम करना मुझे!" और तभी सुमित कहने लगा, "देखो अरमान, तुम इस तरह से बात को घुमा नहीं सकते हो। ठीक है! और अभी हम लोग तुम दोनों की पहले आरती वगैरह उतारेंगे, और उसके बाद भाभी अपने दाएँ पैर से यह कलश गिराएंगी, और फिर तुम दोनों अंदर आओगे।" जैसे ही सुमित ने यह कहा, अरमान का सब्र अब पूरी तरह से जवाब दे गया! क्योंकि उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं बची कि वह अब उन सबके इस तरह के रीति-रिवाज और कर सके! और तभी अरमान ने गुस्से से कहा, "इन सब काम-धाम की कोई ज़रूरत नहीं है! ये सब कुछ हटाओ यहाँ से, और तुम सब हटो मेरे रास्ते से!" ऐसा कहकर अरमान गुस्से से आगे बढ़ने लगा। तभी दादाजी कहने लगे, "अरे बेटा, अगर बच्चे जिद्दी कर रहे हैं तो करने दो उन्हें भी अपने मन की! अगर वे अपनी भाभी का स्वागत करना चाहते हैं तो करने दो! क्यों उन्हें रोक-टोक रहे हो?" तब अरमान गुस्से से दादाजी की ओर देखकर कहने लगा, "दादाजी, आपकी और मेरी शर्त सिर्फ़ शादी तक ही थी। शादी तक ही आपने जो कुछ कहा, मैंने वही सब किया, लेकिन अब क्योंकि शादी हो चुकी है और आपकी सो-कॉल्ड बहू घर में आ चुकी है, तो अब मैं आपकी किसी तरह की कोई भी फ़रमाइश मानने का या सुनने का मेरा कोई इरादा नहीं है।" ऐसा कहकर अरमान जल्दी ही आस्था का हाथ वहीं दरवाज़े पर छोड़कर, खुद लंबे-लंबे कदमों से बढ़ता हुआ सीधा अपने कमरे में चला गया, और अब चारों के चारों अफ़सोस से उसे जाते हुए देख रहे थे, और सभी को रह-रहकर अपनी भाभी, जो नई-नवेली दुल्हन थी, उसे देखकर उन्हें काफी ज़्यादा तरस आ रहा था। जो दरवाज़े पर अब अकेली खड़ी थी। अब आलोक जी भी चुप हो गए, क्योंकि वह अपने अकड़ू पोते को अच्छी तरह से जानते थे कि उनका पोता कितना ज़्यादा अकड़ू और जिद्दी है। और कितने मुश्किल से उन्होंने अपनी बीमारी के चलते जैसे-तैसे अरमान से शादी का वादा लिया था और उसकी शादी करवा दी थी! लेकिन अब वह समझ चुके थे कि अब उनका पोता उनकी कोई भी बात मानने वाला नहीं है। इसलिए वह अब सीधा अपने कमरे की ओर चले गए! लेकिन जाने से पहले वह उन चारों से कहना नहीं भूले, "बहू को गृह-प्रवेश के बाद आराम से ले जाकर अरमान के कमरे तक छोड़ आओ!" दादाजी के जाने के बाद, अब चारों को इजाज़त मिल चुकी थी आस्था के गृह-प्रवेश करने की। आस्था दरवाज़े पर खड़ी हुई अपनी उंगलियों को मरोड़ने लगी, क्योंकि उसे तो समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार हो क्या रहा है! उसके कानों में तो सिर्फ़ सभी की बातें सुनाई दे रही थीं! और अरमान का गुस्से से इस तरह से जवाब देना सुनकर कहीं ना कहीं वह समझ चुकी थी कि अरमान कितना बड़ा घमंडी और जिद्दी इंसान है। कहीं ना कहीं अरमान को बिना देखे ही, बिना जाने ही, बिना सोचे-समझे उसके बारे में आस्था ने एक जिद्दी, गुस्सैल और अकड़ू की अलग ही छवि अपने मन में बना ली थी। वेल, तभी आकाश ध्रुव की ओर देखकर कहने लगा, "अरे यार, अब क्या करें! अरमान तो ऐसे कैसे चला गया। अब भाभी का क्या? बेचारी ऐसे ही खड़ी रहेंगी?" तभी वह चारों थोड़ा सा आगे आए और कहने लगे, "भाभी, देखो अब यहाँ पर कोई नहीं है, ना तो यहाँ आपका पति है, और नहीं आपके दादा-ससुर हैं। तो अब आप अपना यह लंबा सा घूँघट हटा सकती हैं।"

  • 5. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 5

    Words: 1743

    Estimated Reading Time: 11 min

    आकाश ने जल्दी से कहा, "भाभी, आप अपने आप को इस भारी-भरकम घूंघट से आजाद कर सकती हैं।" आस्था हैरान हो गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग क्या कह रहे हैं। उसकी मामी ने उसे घूंघट उठाने से मना किया था, फिर ये लड़के उसे क्यों कह रहे थे? वह जिस गाँव से थी, वहाँ लड़कियों का किसी लड़के से बात करना बड़ा जुर्म माना जाता था। आस्था ऐसे माहौल में पली-बढ़ी थी। और यहाँ चार-चार मुँछ वाले उसकी आँखों के सामने खड़े थे, जो उसे अपना घूंघट उठाने के लिए कह रहे थे! आस्था की हालत और भी ख़राब हो गई। अचानक आहान आगे बढ़ा और बोला, "भाभी, देखिए, यह घूंघट उठाने की रस्म भैया को करनी चाहिए... लेकिन भैया तो यहाँ नहीं हैं। अगर आप इजाज़त दें तो क्या यह काम हम कर दें?" ध्रुव आगे आया और बोला, "यह क्या बेशर्मी वाली बातें भाभी से कर रहा है? यह हक़ सिर्फ़ भाई का है, और यह हम भाइयों से नहीं छीन सकते। समझा तू? और पगले, थोड़ा सोच-समझ ले। वह हमारी भाभी है! तू इस तरह से भाभी के बारे में इस तरह की बकवास नहीं कर सकता।" ध्रुव के कहने पर आह्वान झेंप गया और बोला, "यार, तू भाभी के सामने मेरा कचरा क्यों कर रहा है? उन्हें क्या लगेगा कि उनका देवर एक नंबर का लड़कीबाज़ है, छिछोरा है? तुझे मेरे बारे में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।" ध्रुव बोला, "अरे पागल, मैं ऐसी बातें नहीं कर रहा हूँ, मैं तुझे समझा रहा हूँ कि तुझे इस तरह की बात नहीं बोलनी चाहिए। घूंघट उठाने का हक़ सिर्फ़ भाई का है। और दादाजी ने हमें क्या कहा है कि हमें भाभी को भाई के कमरे तक पहुँचाना है। अब मेरी प्यारी भाभी, आप एक काम कीजिए, दाएँ पैर से इस कलश को गिरा दीजिए और अंदर आ जाइए।" आस्था ने हल्का सा घूंघट हटाया, तो उसे कलश दिखाई दिया। वह सोचती रही कि वह उनकी बात माने या ना माने, लेकिन वह पूरी रात घर के बाहर खड़ी नहीं रह सकती थी। उसने अपने दाएँ पैर के अंगूठे से कलश गिरा दिया। वह जल्द से जल्द इस सिचुएशन से निकलना चाहती थी। यह शादी का जोड़ा इतना भारी था कि उसे साँस लेने में भी परेशानी होने लगी थी... वह खुद को इस शादी के जोड़े से आजाद करवाना चाहती थी। लेकिन आस्था की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। चारों तरफ़ सिर्फ़ आदमी ही आदमी थे। कोई औरत नहीं थी। कोई नौकरानी भी मौजूद नहीं थी। उसे अजीब और डर भी लगने लगा था। उसे ऐसा लगने लगा था मानो वह एक अलग ही तरह की दुनिया में आ गई हो। आस्था के कलश गिराते ही, चारों ने तालियाँ बजाईं। ध्रुव सीटी मारते हुए बोला, "रे, वह भाभी! आपने तो एक कमाल ही कर दिया! बिल्कुल परफ़ेक्टली आपने गिराया है! ऐसे ही हमने टीवी में भी देखा था।" ध्रुव के कहने पर आस्था के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई। सुमित और आकाश आगे आए और बोले, "भाभी, आप इन दोनों की बकवास छोड़िए। आप आइए, हम आपको भाई के कमरे तक लेकर चलते हैं।" उन दोनों के कहने पर आस्था का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने अभी तक अरमान को नहीं देखा था। अरमान ने उसके साथ रूखा सा व्यवहार किया था। अरमान की बातों से साफ़ था कि वह शादी से खुश नहीं है। आस्था उस कमरे में जाना नहीं चाहती थी, लेकिन फ़िलहाल वह इन लोगों को क्या कहती? ये लोग अजनबी थे। आस्था ने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी। आस्था के अरमान के कमरे में जाने के लिए हाँ कहने पर, चारों अलग-अलग तरह की शक्ल बनाते हुए बोले, "हमारी भाभी तो कुछ ज़्यादा ही एडवाँस निकली! और हम क्या समझ रहे थे कि हमारी भाभी काफ़ी शर्मीली किस्म की है! भाभी तो भाई के कमरे में जाने के लिए बेचैन हो रही है! देखा आपने किस तरह से भाभी ने हाँ कह दिया है!" आस्था झेंप गई और सोची, "ये कैसे लोग हैं? अपना आप ही तो ये उसे वहाँ उस कमरे में जाने के लिए कह रहे हैं, और अपने आप उसके बारे में ऐसी बातें कर रहे हैं!" आस्था के मुँह से निकला, "नहीं! नहीं! आप लोग गलत समझ रहे हैं!" आस्था के कहने पर वे चारों जोरों से एक-दूसरे के हाथ-पैर मारकर हँसने लगे और बोले, "अरे भाभी, प्लीज़! प्लीज़! आप बुरा मत मानिए! हम तो सिर्फ़ आपकी थोड़ी सी टाँग खींच रहे थे। अच्छा, आप आइए। वैसे भी, आपके लिए इतने दिनों से शादी वगैरह की तैयारी, फ़ंक्शन चल रहे होंगे, तो आप काफ़ी थक गई होंगी। आप चलिए और जाकर आराम कीजिए।" वे उसे लेकर जाने लगे। आस्था ने हिम्मत करके बोला, "क्या आप लोग मुझे किसी दूसरे कमरे में नहीं छोड़ सकते हैं?" आस्था की थोड़ी सी भोली शक्ल देखकर वे चारों एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे और सुमित बोला, "भाभी, आपकी शादी अरमान सिंघानिया से हुई है। अगर आप इस तरह से दूसरे कमरे में जाने की बात करेंगी, तो वह हम चारों को गोली से उड़ा देगा... और अभी हमारा इरादा बिल्कुल भी मरने का नहीं है। हम छोटे-से बच्चे हैं, और अभी हमने शादी भी नहीं की, फ़र्स्ट किस भी नहीं किया, कुछ भी नहीं किया ज़िन्दगी में। और अभी हमारा मरने का कोई इरादा नहीं है।" सुमित के कहने पर आस्था खिल-खिलाकर हँस पड़ी। आस्था को हँसते हुए देखकर वे चारों मुस्कुराने लगे। आस्था की हँसी बहुत ख़ूबसूरत थी। आह्वान बोला, "तेरे वह भाभी! आपकी हँसी तो बड़ी प्यारी है! पता नहीं आप अपना यह लंबा सा घूंघट कब हटाएँगी और हम आपको कब देखेंगे? वैसे भी, जब भाई आपको देखने के लिए गए थे, वह तो हमें साथ भी लेकर नहीं गए थे..." "...और बस अब सीधा शादी में हमें लेकर गए हैं। हमने तो, हमने तो, हमने तो आज तक आपको देखा ही नहीं है।" आकाश बोला, "अरे-अरे! बहुत देर हो गई! अब तुम भाभी को सताना छोड़ो! और शायद तुम भूल रहे हो, अगर इसी तरह से तुम लोग भाभी के साथ टाइम पास करते रहे, तो भाई और भाभी की पहली रात का क्या होगा...? और हम लोगों को जो पार्टी करनी है उसका क्या? दादाजी ने पहली बार हमें पार्टी करने की परमिशन दी है, भूलो मत! इस तरह से टाइम वेस्ट करके खुद का नुकसान होगा।" आकाश के कहने पर उन सभी को अपनी पार्टी और अपने भाई-भाभी की पहली रात की याद आ गई और उन्होंने कहा, "और चलो-चलो! ठीक है! भाभी को छोड़कर आते हैं।" वे लोग आस्था को अरमान के कमरे तक ले आए। कमरे का दरवाज़ा खोला, लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। ध्रुव बोला, "लगता है भाई सो गए होंगे। वैसे भी, काफ़ी थक गए हैं। अपनी शादी में भी उन्होंने काम ही काम किया है।" ध्रुव के कहने पर आकाश ने अंदर झाँककर देखा और बोला, "लेकिन अंदर तो कोई है ही नहीं! लगता है भाई स्टडी रूम में होंगे..." सुमित ने अपने माथे पर हाथ मार लिया और बोला, "भाई, आज के दिन भी काम ही काम कर रहे हैं! एक दिन कभी अपने काम से ब्रेक नहीं ले पाए! और अब अपने आप को पूरी तरह से काम में डुबो लिया! अभी भी अपना काम ख़त्म करने के लिए स्टडी रूम में चले गए! हद होती है यार! किसी को इतना ज़्यादा भी वर्कहॉलिक नहीं होना चाहिए..." चारों बोले, "चलो कोई नहीं! अब भाभी आ गई है, सब सुधर देगी।" वे चारों मुस्कुरा कर घूंघट में खड़ी हुई आस्था को देखने लगे। आस्था को अपने ऊपर चारों की नज़रें महसूस हुईं, वह और भी असहज हो गई। ध्रुव ने आस्था की सिचुएशन समझ ली और तीनों को डाँटते हुए बोला, "अरे यार! अब अपनी फ़ालतू की बकवास बंद करो! अगर भाई स्टडी रूम में ही है..." "...तो भाभी को तो कम से कम अंदर कमरे में जाने दो! वह तो आराम कर लेगी।" ध्रुव बोला, "भाभी, आपकी ज़रूरत के सारे कपड़े हमने ऑलरेडी भाई के क्लोज़ेट में सेट करवा दिए हैं। तो आपको किसी भी चीज़ की कोई परेशानी हो, तो आप बेल बजा दीजिएगा। कोई ना कोई उसी वक़्त आपकी सेवा में हाज़िर हो जाएगा।" ध्रुव, सुमित, आकाश और आह्वान ने आस्था को अरमान के कमरे में छोड़ दिया। आज के लिए इतना ही। पढ़ते रहिए दोस्तों! obbsession ऑफ cruel hubby

  • 6. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 6

    Words: 1162

    Estimated Reading Time: 7 min

    जैसे ही आस्था कमरे में गई और खुद को अकेला पाया, उसने राहत की साँस ली और कमरे को अंदर से लॉक कर दिया। लॉक करने के बाद, उसने सबसे पहले अपना घूंघट हटाया और लंबी-लंबी गहरी साँसें लीं। तभी उसकी नज़र उस बेडरूम पर पड़ी जिसमें वह खड़ी थी। उसने चारों तरफ़ देखा। बेडरूम ब्लैक और व्हाइट रंग का कॉम्बिनेशन था, और वहाँ की सभी चीज़ें बेहद महँगी और इम्पॉर्टेंट थीं। बीचों-बीच एक किंग साइज़ का बड़ा सा बेड था! इतनी महँगी चीज़ें देखकर आस्था हैरान रह गई। जल्दी ही बेड के सामने उसे एक मिरर दिखाई दिया। आस्था डरते-डरते मिरर के सामने जाकर खड़ी हो गई। जैसे ही उसने मिरर में खुद को देखा, वह देखते ही रह गई! उसे ऐसा लग रहा था मानो वह खुद को नहीं, बल्कि किसी और को देख रही है। रोने की वजह से उसकी आँखें पूरी तरह से सूजी हुई थीं, और उसका नाक टमाटर की तरह लाल हो गया था। हालाँकि, आस्था खूबसूरत लग रही थी। कितनी देर तक वह खुद को मिरर में निहारती रही। फिर उसे एहसास हुआ कि वह किसी के कमरे में अकेली है और इस तरह बेवकूफ़ होकर एक जगह खड़ी नहीं रह सकती। उसने देवरों की बात याद की कि क्लोज़ेट में उसके कपड़े रखे हुए हैं। जैसे ही उसने कपड़े खोले, वह हैरान हो गई। वहाँ कपड़े रखे हुए थे, लेकिन सभी बेहद महँगे और ब्रांडेड थे। एक से एक इम्पॉर्टेंट साड़ियाँ थीं, जैसी साड़ियाँ आस्था ने कभी पहनी ही नहीं थीं। वह हमेशा सिम्पल सा लेगिन्स सूट और दुपट्टा पहना करती थी। लेकिन इस तरह की फ़ैंसी साड़ियाँ देखकर आस्था का गला सूखने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या पहने। आस्था पूरी तरह से मायूस हो गई और फिर उसने लहंगे का घूंघट वापस पहन लिया। घूंघट पहनकर वह एक सिरे पर बैठ गई और कब उसकी आँख लग गई, उसे खुद पता ही नहीं चला। वहीं अरमान आधी रात तक काम करता रहा। करीब 2:00 बजे अपना काम ख़त्म करने के बाद, जब वह अपने कमरे में सोने के लिए गया और उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला, तो उसने देखा कि उसका कमरा अंदर से लॉक था! अरमान का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि उसका कमरा लॉक मिला। फिर उसने अपने फ़िंगरप्रिंट लॉक का इस्तेमाल करते हुए अपना रूम खोल लिया। अरमान का पूरा घर उसके अंडर कंट्रोल में था। वह जब चाहे, किसी भी जगह पर बिना किसी की परमिशन के जा सकता था। और यह तो उसका कमरा था, जो उसने खुद अपने मुताबिक़ डिजाइन करवाया था। जैसे ही वह अपने कमरे में गया, उसने देखा कि बेड के एक कोने पर आस्था गद्दी से लिपटी हुई लेटी हुई थी। उसका चेहरा पूरी तरह से ढँका हुआ था। अरमान ने नफ़रत से उसकी ओर देखा और अपना मुँह मोड़ लिया। वह सोचने लगा कि दादाजी को इसे मेरे कमरे में भेजने की क्या ज़रूरत थी? मैंने यह शादी सिर्फ़ नाम के लिए की है, अपनी खुशी से नहीं। जो यह लड़की मुँह उठाकर मेरे कमरे में आ गई... अरमान का दिल किया कि अभी इस लड़की को उठाकर वहाँ से बाहर फेंक दे! लेकिन फ़िलहाल, क्योंकि आस्था सोई हुई थी, वह उसे उठा नहीं पाया। लेकिन उसके साथ एक बेड पर सोना उसके लिए पॉसिबल नहीं था। और अपने कमरे के अलावा अरमान को कहीं और नींद भी नहीं आती थी। अरमान पूरी तरह से कशमकश का शिकार हो गया। इसलिए उसने आस्था को जगाने के लिए जानबूझकर थोड़ा सा खांसना शुरू कर दिया। लेकिन आस्था बहुत ज़्यादा थकी हुई थी और गहरी नींद में थी। अरमान के खांसने की आवाज़ उसके कानों तक पहुँच नहीं रही थी। अरमान ने एक-दो बार खांसा, फिर थोड़ा सा तेज़ खांसा, लेकिन आस्था ने उसकी कोई आवाज़ नहीं सुनी। अरमान चिढ़ गया क्योंकि उसे भी नींद आ रही थी। अपने बेड पर आस्था को देखकर, अरमान चिढ़कर बोला, "सारी नींद यहीं आकर पूरी करेगी क्या? इसे मेरा खांसने की भी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है।" अरमान आस्था के पास पहुँच गया और टेबल पर रखे हुए काँच के गिलास पर उसने जोरों से अपना हाथ मार दिया। गिलास जमीन पर गिरकर चकनाचूर हो गया। गिलास गिरने से तेज़ शोर हुआ, लेकिन फिर भी आस्था की आँख नहीं खुली! अरमान ने गुस्से से अपने माथे पर हाथ मार लिया। लेकिन अरमान को इस तरह किसी को झेलने की आदत नहीं थी। अरमान सोचने लगा, "ये मैं क्या कर रहा हूँ? मैं इस लड़की को इतनी आसानी से क्यों नहीं उठा पा रहा हूँ?" तभी अरमान ने अपने पॉकेट में हाथ डाला और एक गन निकाली। गुस्से में उसने उस बंदूक से आस्था के बेड से थोड़ी दूरी पर रखे एक वॉज़ पर फ़ायर कर दिया। जैसे ही वॉज़ में फ़ायर हुआ, आस्था तुरंत उठकर बैठ गई और जोरों से चीख़ मार दी! वह बहुत डर गई थी। गन चलने की आवाज़ सुनकर सुमित, आहान, ध्रुव, आकाश, जो आपस में पार्टी कर रहे थे, घबरा गए। दादाजी, जो सो चुके थे, उनकी आँखें खुल गईं, और सभी दौड़ते हुए अरमान के कमरे में आए और कमरे का दरवाज़ा जोर-जोर से खटखटाने लगे! अरमान, जो आस्था को डाँटना चाहता था कि वह कब से उसे उठाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वह नहीं उठ रही है, वह कुछ कहता, उसी वक़्त बाहर दादाजी दरवाज़े पर जोरों से खटखटाने लगे, अरमान को पुकारने लगे! दादाजी को कहीं ना कहीं यह लगा कि अरमान ने आस्था का चेहरा देख लिया हो, और गुस्से में उसने प्रियंका की जगह आस्था को देखकर आस्था को गोली मार दी हो। यह सब सोचकर उन्हें डर लग रहा था। इस डर से उन्होंने दरवाज़ा जोरों से पीटना शुरू कर दिया।

  • 7. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 7

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहीं न कहीं उन्हें डर भी लग रहा था। उन्हें अपने पोते के हर हरकतों का अच्छी तरह पता था। वहीं, उन चारों दोस्तों का रंग भी पूरी तरह उड़ गया था। और सभी अंदर क्या हो रहा है, इस बात को लेकर चिंतित थे। जल्दी ही अरमान ने दरवाज़ा खोल दिया। और जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, सबसे पहले दादाजी अंदर गए। और अरमान की ओर देखकर बोले, "क्या हो रहा है यहाँ? यह शॉट की आवाज़ कैसे आई? आखिर तूने ऐसा क्या किया है?" वह चारों भी अंदर आ गए। और अंदर जाकर उन्होंने इधर-उधर, चारों तरफ़ अच्छी तरह से देखना शुरू किया। लेकिन आस्था बेड पर नहीं थी। अब तो दादाजी और बाकी सबके दिल जोरों से धड़कने लगे। कहीं न कहीं उन्हें लगने लगा कि ज़रूर अरमान ने आस्था को ही गोली मार दी है। धीरे-धीरे, जैसे ही वे लोग कुछ कदम आगे बढ़े, तो उन सबके कानों में रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी। उस आवाज़ को सुनकर सबने राहत की साँस ली। क्योंकि आस्था काफ़ी डर गई थी। और वह हिचकियाँ लेकर रो रही थी। अरमान की मौजूदगी की वजह से वह काफ़ी डरी हुई थी। इसीलिए उसने खुद को दुपट्टे से ढँक रखा था। जिस वजह से उसका चेहरा अभी तक किसी ने नहीं देखा था। जल्दी ही दादाजी उसकी ओर गए और आस्था को उठाने लगे। आस्था ने जैसे ही अपने पास दादाजी के हाथ पाया, तो उसने राहत की साँस ली। वह खुद को शांत करने लगी, लेकिन उसका पूरा जिस्म इस वक़्त पूरी तरह से काँप रहा था, जो कि घूंघट और उसके भारी-भरकम लहंगे में भी दिखाई दे रहा था। दादाजी जी गुस्से से अरमान की ओर देखकर बोले, "यह क्या बदतमीज़ी अरमान? यह क्या किया तूने? तूने बहू को क्यों धमकाया?" अरमान ने कहा, "दादाजी, आपके कहने से मैंने यह शादी की है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं इस रिश्ते को निभाऊँगा। आखिर क्यों आपने इस लड़की को मेरे कमरे में भेजा? आपको इसे इस तरह से मेरे कमरे में नहीं भेजना चाहिए था। आप शुक्र मनाइए कि मैंने गोली इसके सर में नहीं चलाई।" अरमान ने बड़े ही रूडे तरीके से यह सब कहा। तभी सुमित आ गया और बोला, "यह गलत बात है! अरमान ब्रो, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।" अरमान गुस्से से सुमित की ओर देखकर बोला, "सुमित, मुझे लगता है कल से तुम्हें अपने ऑफ़िस चले जाना चाहिए! काफ़ी समय हो गया तुम्हें अपनी ऑफ़िस के दर्शन किए हुए!" अरमान ने सीधे सुमित की बेइज़्ज़ती की। सुमित ने मुँह बना लिया और पैर पटकता हुआ वहाँ से चला गया। आकाश ने एक और कोशिश की और बोला, "लेकिन सुमित ने ऐसा क्या कहा? अरमान, तुम्हें इस तरह की हरकत भाभी के साथ नहीं करनी चाहिए थी।" अरमान को और ज़्यादा गुस्सा आ गया। वह बोला, "तुम अपनी बकवास बंद करो आकाश, और किसने कहा कि यह लड़की तुम्हारी भाभी है! कोई ज़रूरत नहीं है इसे भाभी वगैरह कुछ भी कहने की, समझे तुम लोग? जाओ जाकर अपना-अपना काम करो! पार्टी कर रहे थे ना तुम सब, जाकर अपनी पार्टी एन्जॉय करो!" ध्रुव हैरानी से सोचने लगा कि यह तो पार्टी में था भी नहीं, तो फिर इसे कैसे पता चला कि हम सब पार्टी कर रहे थे? ध्रुव ने आकाश और आहान से कहा, "अब हमें यहाँ से चलना चाहिए!" दादाजी जी आस्था को लेकर वहाँ से जाने लगे और अरमान की ओर देखकर बोले, "मैं तुमसे इस बारे में बाद में बात करूँगा!" ऐसा कहकर वे आस्था को जल्दी ही बाहर ले गए और उसे एक गेस्ट रूम में ले गए। आस्था को दिलासा देने लगे। अब तक आस्था काफ़ी ज़्यादा नॉर्मल हो गई थी। दादाजी ने आस्था की ओर देखकर कहा, "बेटा, माफ़ करना, मैं जानता हूँ कि तुम्हारे साथ बहुत ना-इंसाफ़ी हुई है। लेकिन उस वक़्त हमारी भी मजबूरी थी। और कोई रास्ता नहीं था इस सिचुएशन से निकलने का, इसीलिए हमने तुम्हें मजबूर करके अरमान से शादी करवाई। क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं करते, तो हमारे घर की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती, बेटा। और तब अरमान तो पूरी तरह से गुस्से में पागल हो उठता! और वह तुम्हारी पूरी फैमिली को जान से मार देता। तुम नहीं जानती कि उसका गुस्सा कितना ज़्यादा ख़तरनाक है। अब तक तुम्हें इस बात का अंदाज़ा तो अच्छी तरह से हो ही गया होगा कि तुम्हारे सिर्फ़ बेड पर लेटने की वजह से उसने तुम पर गोली चलाई। अब तुम सोच सकती हो कि बात जब उस इंसान की इज़्ज़त पर आ जाती है, तो वह किस हद तक गुस्से से पागल हो जाता है। इसीलिए सबकी भलाई के लिए हमने यह फैसला लिया। हम जानते हैं हमारे पोते का बर्ताव कैसा है और शायद पूरी तरह से गलत भी है। लेकिन हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हम उस वजह को जानते हैं जिस वजह से हमारा पोता ऐसा बन गया है। अब हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमसे ही उम्मीद है कि तुम उसकी हमसफ़र बनकर सब कुछ ठीक कर दोगी। एक औरत अपने प्यार से सब कुछ ठीक कर सकती है। हम चाहते हैं कि तुम अरमान को पूरी तरह से बदल दो! हम वादा करते हैं, यह आलोक सिंघानिया का वादा है। अगर तुम हमारे पोते में बदलाव ला देती हो और उसे अपने परिवार में रहना, हँसना-बोलना, अपने साथ खुश रहना सिखा देती हो, तो हम तुमसे वादा करते हैं कि हम तुम्हारे डॉक्टर बनने की पढ़ाई पूरी करवाएँगे! और अरमान के ख़िलाफ़ जाकर तुम्हारी हेल्प करेंगे!" जैसे ही आस्था ने यह सुना, एक बार फिर उसकी आँखों में उम्मीद की चमक नज़र आ गई। क्योंकि जब उसकी अरमान से शादी हुई थी, तब वह पूरी तरह से टूट चुकी थी। उसके सारे सपने कहीं न कहीं चकनाचूर हो चुके थे। आज के लिए इतना ही दोस्तों! आपको आज का चैप्टर कैसा लगा? प्लीज़ ज़रूर बताएँ! अपने कीमती रिव्यू देना बिल्कुल ना भूलें!

  • 8. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 8

    Words: 2157

    Estimated Reading Time: 13 min

    लेकिन जैसे ही दादाजी ने यह कहा कि वे उसके डॉक्टर बनने में मदद करेंगे, आस्था को अच्छा लगा और उसने राहत की साँस ली। वह कहने लगी, "ये आप क्या कह रहे हैं? आपको लगता है कि आप मेरी मदद कर पाएँगे? और आप मुझे वह काम दे रहे हैं दादाजी, जो करना मेरे लिए नामुमकिन है। जिस पोते को आप सुधार नहीं पाए, और थोड़ा-बहुत बदलाव आप भी उसमें नहीं ला पाए, भला उसे मैं ऐसे कैसे सुधार सकती हूँ!" दादाजी हल्की मुस्कराहट के साथ आस्था के करीब गए और उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "हम अच्छी तरह से जानते हैं बेटी, कि तुम्हारे कहने का मतलब क्या है। और शायद जो कुछ तुम कह रही हो, बिल्कुल ठीक भी है। लेकिन हमारी मजबूरी है कि हम अपने पोते को ज़्यादा कुछ नहीं कह सकते। और वैसे भी उसने हमारी बीमारी के चलते शादी करने का वादा किया था! उसने वह वादा आज पूरा कर दिया है। शादी के बाद उसने साफ़-साफ़ कह दिया कि उसके बाद वह हमारी कोई बात नहीं सुनेगा। इसीलिए अब हम उसे और ज़्यादा रोक-टोक नहीं सकते। लेकिन हमें इस बात की उम्मीद है कि तुम चाहो तो सब कुछ ठीक कर सकती हो!" दादाजी के ये शब्द सुनकर, आस्था फिर हैरान हो गई! उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर दादाजी कहना क्या चाहते हैं? वह कैसे सब कुछ ठीक कर सकती है? उसे तो ज़िन्दगी की ज़्यादा कुछ समझ भी नहीं थी। अभी भी उसमें काफ़ी ज़्यादा बचपन था। इस अचानक से हुई शादी से उसके सर पर मुश्किलें आन पड़ी थीं। ऐसे कैसे वह इस स्थिति को संभालेगी? दादाजी ने उसे कहा, "बेटे, अब हम कल आपसे बात करेंगे! हम चाहते हैं कि पहले आप अभी आराम करें! आप काफ़ी ज़्यादा थक गई होंगी। और हाँ, हमें पता चला कि आपके क्लोज़ेट में केवल साड़ियाँ वगैरह ही रखी हैं, तो शायद आप उनमें कम्फ़र्टेबल फ़ील ना करें! लेकिन हम जल्दी ही अपने डिज़ाइनर से कहकर आपके मुताबिक़, आपके लिए नए कपड़ों का इंतज़ाम करा देंगे! फ़िलहाल, विदाई के वक़्त आपकी नानी माँ और मामा जी ने आपके लिए कुछ कपड़े और आपका कुछ ज़रूरी सामान हमारे घर भिजवा दिए थे, जो हमने इस कमरे में रखवा दिए हैं! अब आप देख लीजिए! जो कुछ आपको समझ में आए, वैसे ही अपना सामान एडजस्ट कर लीजिए।" दादाजी के कहने पर, आस्था ने कुछ सुकून भरी साँस ली! दादाजी उसे आराम करने को कहकर खुद बाहर निकल गए। जाने से पहले उन्होंने कहा, "बेटा, तुम हमारी बातों के बारे में सोच-विचार ज़रूर करना... अगर तुम्हें हमारा प्रपोज़ल पसंद आ जाता है, तो हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे! और जो कुछ तुम कहोगी, हम सिर्फ़ और सिर्फ़ वही करेंगे।" ऐसा कहकर दादाजी उस कमरे से बाहर निकल गए! आस्था थोड़ी देर वहीं बैठी रही, फिर कुछ सोचकर उस कोने में रखे हुए एक थैला देखा, जो कि उसे जाना-पहचाना सा लगा। आस्था ने जल्दी से थैला खोल लिया। उसमें बहुत सारे नए कपड़े थे। *फ़्लैशबैक* जब से आस्था ने अपने मामा की बेटी की शादी के बारे में सुना था, तब उसने अपनी नानी से ज़िद करके अपने लिए तीन-चार नए कपड़े मँगवा लिए थे। आस्था को आज भी वह दिन याद है जब वह खुशी-खुशी सारे नए कपड़े मनोरमा आंटी के पास लेकर गई थी। मनोरमा आंटी ने उसे चहकते हुए देखकर कहा था, "ये सारे रंग तो तुम पर बहुत जंचेंगे! बड़े ही प्यारे कपड़े हैं..." तब आस्था शर्मा गई थी। मनोरमा आंटी, जो कि सिलाई मशीन का काम किया करती थी, ने अपने हुनर का इस्तेमाल करते हुए आस्था के लिए बड़े ही प्यारे-प्यारे फ़्रॉक, लेगिंस वगैरह सिल दिए थे। आस्था बहुत ही ज़्यादा खुश हो गई थी, उन सारे कपड़ों को देखकर... फ़्लैशबैक एंड आस्था की आँखें फिर भर आईं, और वह रोने लगी। जल्दी ही आस्था बाथरूम में घुस गई थी। फ़्रेश होने के बाद, उसने अपनी नानी ने भेजे हुए कपड़े पहने। उसे अपने कपड़े पहनकर काफ़ी ज़्यादा कम्फ़र्टेबल लग रहा था। लेकिन आईने में देखते हुए आस्था का ध्यान अपने गले में पड़े मंगलसूत्र और माँग में लगे सिंदूर पर गया। आस्था का दिल चाहा कि वह अभी और इसी वक़्त से मंगलसूत्र को निकालकर फेंक दें और सिंदूर को मिटा डालें। लेकिन ना जाने कौन से एहसास थे कि वह चाहकर भी उस मंगलसूत्र और सिंदूर को अपने सर से पोंछ नहीं पा रही थी। आस्था ज़्यादा ना सोचते हुए एक गहरी नींद में सो गई। दूसरी ओर, चारों मुँछ वाले, यानी कि चारों दोस्त अपने कमरे में मुँह फुलाए बैठे हुए थे। आहान उन्हें चिल आउट करने के लिए कहने लगा, "यार, तुम लोगों को तो अरमान ब्रो की आदत के बारे में पता ही है। तो तुम लोगों को इस तरह से उनकी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। तुम सब तो शुक्र मनाओ कि उन्होंने भाभी के सर में गोली नहीं मारी, उन्होंने उनके बराबर में रखे हुए वॉज़ पर गोली मारी है..." आकाश, जो कि पहले से ही चिढ़ा हुआ था, बोला, "हम अच्छी तरह से जानते हैं यार, इसीलिए तो हम सब अरमान को समझाते हैं कि उसे ज़िन्दगी में प्रैक्टिकल होना चाहिए! ऐसे गुस्से से ज़िन्दगी नहीं चलती है। तुम लोग बचपन से उसे जानते हो, तो क्या तुम लोगों को अभी तक उसकी आदत के बारे में पता नहीं चला?" सुमित ने कहा, "हम लोग यहाँ केवल दो-चार दिनों के लिए हैं। और वैसे भी तू तो अच्छी तरह से जानता है। हमारे काम ऐसे हैं कि हमें एक पल के लिए भी फ़ुर्सत नहीं मिलती है। वह तो तूने जब अरमान भाई की शादी के बारे में बताया, तब हम खुद को रोक नहीं पाए! और अपने काम से 15 दिन की छुट्टी लेकर यहाँ आ टपके। और अब शायद तू भूल रहा है, हमारे वह 15 दिन भी अब पूरे होने वाले हैं। पहले हफ़्ते तो हम सबने शॉपिंग वगैरह में ही निकाल दिया। दूसरा हफ़्ता हमारा पार्टी वगैरह और शादी में निकल गया! अब केवल तीन दिन बाकी हैं। तीन दिनों के बाद हम वापस अपने-अपने मेंशन और फ़्लैट्स में शिफ़्ट हो जाएँगे। और हम यहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ इसीलिए आए हुए हैं क्योंकि दादाजी हमें उतना ही प्यार करते हैं जितना तुझे और अरमान को करते हैं। समझा? उनके लिए हम सब उनके पोतों से कम नहीं हैं।" अचानक दादाजी की आवाज़ वहाँ गूँजी, "हो गया तुम लोगों का?" जैसे ही दादाजी की आवाज़ सबने सुनी, सब शरीफ़ बच्चों की तरह वहाँ सर झुकाकर खड़े हो गए, आँखों ही आँखों में एक-दूसरे को इशारे करने लगे! पता नहीं अब दादाजी कौन-सी बात पर डाँट लगाने वाले हैं। आस्था को आराम करने का कहने के बाद, दादाजी सीधे उन चारों के पास आ गए, क्योंकि वह जानते थे कि अरमान ने उन चारों की भी अच्छी खासी बैंड बजाई है! और उन्हें भी काफ़ी हद तक खरी-खोटी सुनाई है। इसीलिए सभी के सभी इस वक़्त उदास होंगे। जैसे ही दादाजी वहाँ आए, उन्होंने उन सबकी ओर देखते हुए कहा, "तुम सबको अच्छी तरह से पता है ना अपने उस ख़डूस भाई के बारे में? अब मेरी बात ध्यान से सुनो! अब तुम चारों को बहू की मदद करनी होगी, ताकि वह और अरमान एक हो सकें! ताकि वे दोनों एक-दूसरे की ज़िन्दगी में खुशियाँ ही खुशियाँ भर सकें।" दादाजी के शब्द सुनकर, उन चारों का मुँह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया। ध्रुव आगे आया और कहने लगा, "दादाजी, आप चाहे मुझे दुनिया का कितना ही ज़्यादा संजीदा केस क्यों ना दे दें, या चाहे बड़ी से बड़ी बीमारी क्यों ना हो, मैं उसका इलाज कर दूँगा। लेकिन आप जो यह काम मुझसे कह रहे हैं, यह मुझसे तो क्या किसी से भी नहीं हो पाएगा। बिल्कुल नहीं होगा!" सुमित ने भी हाथ खड़े कर लिए और बोला, "दादाजी, भले ही मैं कितने ही लोगों को अपनी उँगलियों पर नाचाता हूँ, लेकिन आप अपने पोते को अच्छी तरह से जानते हैं। अगर उसे हमारे बारे में ज़रा सी भी भनक लग गई, तो वह हमारा क्या हाल करेगा, यह सोचकर ही मुझे पसीने आ रहे हैं।" आकाश ने कहा, "दादाजी, आप तो जानते हैं कि मेरे होटल में हर रोज़ हज़ारों लोग खाना खाते आते हैं? और एक से बढ़कर एक VIP आते हैं। मैं उन सबको अच्छी तरह से हैंडल कर सकता हूँ, सब-कुछ मैनेज कर सकता हूँ! लेकिन मैं आपके पोते के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।" जैसे ही उन चारों ने अपने अलग-अलग बहाने देकर हाथ खड़े कर दिए, दादाजी गुस्से से उन सबको घूरते हुए कहने लगे, "नालायकों! मुझे तुम लोगों से ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी। कहने को तो तुम सब अरमान के दोस्त हो! तो क्यों तुम सब इस तरह से उससे डरते हो? हाँ, क्या तुम सबको अपने दोस्त की फ़िक्र नहीं है? हमने तुम लोगों से कोई सवाल-जवाब नहीं किया है। हमने तुम सबको सिर्फ़ हुक्म दिया है कि तुम लोगों को हमारी बात माननी ही होगी! और हाँ, अब तुम चारों को कल से बहू की हर काम में मदद करनी होगी! और इस घर में उसका मन लगा रहे, इस बात का ज़्यादा ख़्याल रखना होगा, उसे अच्छी तरह से बेहतर फ़ील करवाना होगा! याद रखना, अगर मेरी बहू की आँखों में आँसू आए, तो मैं तुम चारों की ख़ाटिया खड़ी कर दूँगा।" ऐसा कहकर दादाजी वहाँ से निकल गए। अब तो वे चारों बेबसी से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। ध्रुव कहने लगा, "यार, यह क्या बात हुई? बीवी अरमान भाई की है और खुश हम सब रखें? ऐसे थोड़ी ना होता है यार! और वैसे भी अगर हम सब भाभी का ज़्यादा ख़्याल रखेंगे, तो अरमान भाई को गुस्सा आ गया तो? और अपने गुस्से में उसने हमें उठाकर घर से बाहर फेंक दिया तो, हम सब तो बेघर हो जाएँगे ना यार!" ऐसा कहकर चारों एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे! आहान ने कहा, "भाई, सुबह होने में केवल 2 घंटे बाकी हैं। मुझे लग रहा है कि हमें फ़टाफ़ट से जाकर थोड़ी देर आराम कर लेना चाहिए! वरना दादाजी हमें सुबह-सुबह जल्दी उठा देंगे! और उसके बाद उनके रूल-रेगुलेशन हमें फ़ॉलो करने होंगे! वरना आप सबको तो पता है ना, दादाजी को देर से उठने वाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं।" आहान की बात याद दिलाते ही, सुमित जल्दी से अपने मुँह पर उबासी लेते हुए कहने लगा, "अरे यार, यह तो मैं भूल ही गया! अच्छा हुआ तूने याद दिला दिया। और वैसे भी अगर मेरी नींद पूरी नहीं हुई, तो मुझसे सुबह बिल्कुल नहीं उठ जाएगा! और दादाजी की इस बार की कोई भी पनिशमेंट मैं नहीं झेल पाऊँगा!" (असल में जब भी कोई देर से उठता था, तो दादाजी उन्हें ख़ास तरह की पनिशमेंट देते थे। या तो उसे पूरे दिन घर-घर का खाना बनाने की ज़िम्मेदारी देते थे, या पूरा दिन साफ़-सफ़ाई की ज़िम्मेदारी उसकी होती थी। दादाजी सबको ऐसे काम देते थे जिसकी वजह से कोई भी अगली बार देरी से जगने के बारे में सोच भी नहीं सकता।) चारों जल्दी उल्टा-सीधा दौड़ते-भागते कमरे में पहुँच चुके थे! वे चारों ख़ासकर एक ही कमरे में रहा करते थे। अरमान उनसे हमेशा अलग रहा करता था। चारों एक ही जगह, अलग-अलग बेड लगाकर सोया करते थे और खूब देर तक मौज-मस्ती करते हुए सोया करते थे। उन चारों को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे चारों अपने ही फ़ील्ड के सबसे ज़्यादा कामयाब नौजवान थे। जल्दी ही वे लोग भी एक-दूसरे से घुँघरते हुए गहरी नींद में सो चुके थे। वहीं दूसरी ओर, अरमान आस्था के अपने कमरे से जाने के बाद अपने बेड पर लेट चुका था। थोड़ी देर से आस्था ऑलरेडी बेड पर लेटी हुई थी। जिसकी वजह से उसकी खुशबू पूरी तरह से उस कमरे में महक रही थी। अरमान अब इस खुशबू से इरिटेट हो गया। जल्दी ही उसने बेडशीट उठाकर नीचे फेंक दी और जल्दी से नौकर को अपने कमरे की बेडशीट चेंज करने के लिए कहा। अरमान के घर पर 24 घंटे, दिन और रात नौकर अवेलेबल रहते थे। लेकिन कोई फ़ीमेल स्टाफ़ नहीं था, सारे कुल मिलाकर मेल स्टाफ़ ही हुआ करते थे! क्योंकि अरमान को फ़ीमेल यानी कि लेडिज़ से बहुत ही ज़्यादा नफ़रत थी। एक यही वजह थी कि वह कभी भी किसी से शादी नहीं करना चाहता था। लेकिन जिस दिन दादाजी ने अपने सीरियस बीमारी के बारे में बताया और साथ ही साथ अपनी आख़िरी ख़्वाहिश के बारे में अरमान से कहा, तो उस वक़्त चाहकर भी अरमान मना नहीं कर पाया। लेकिन अब अरमान फिर इरिटेट हो चुका था। क्योंकि आस्था से शादी करने के बाद उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी। उसे खुद कुछ नहीं पता कि आखिरकार उसके साथ क्या हो रहा है। जल्दी ही उसके कमरे की बेडशीट चेंज कर दी गई! उसे थोड़ा सा बेहतर फ़ील हुआ, और जल्दी ही वह गहरी नींद में सो चुका था।

  • 9. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 9

    Words: 1496

    Estimated Reading Time: 9 min

    सभी लगभग 4:00 बजे सो गए थे। पर आस्था बहुत जल्दी, 1 से 2 घंटे की नींद के बाद ही उठ गई थी। और जैसे ही वह उठी, उसने आईने में अपने आपको देखा। कुछ पल आस्था अपने आपको देखती रही। एक ही दिन ने उसकी पूरी ज़िंदगी, उसके सारे सपने, सब कुछ बदलकर रख दिया था। आस्था की आँखों के किनारे फिर भीग गए थे। और वह सोचने लगी कि उसकी ज़िंदगी किसी मोड़ पर आ गई है। चुलबुली आस्था, जो हमेशा मुस्कराती रहती थी, आज शीशे में खुद को देखकर मुस्कराने की कोशिश कर रही थी। पर आज उसकी मुस्कराहट उसके होठों तक नहीं पहुँची! वह खुद से शीशे में देखते हुए बोली, "नहीं आस्था! तू इस तरह से नहीं टूट सकती। तूने इससे भी बुरा दिन देखा है, तो ऐसे कैसे टूट सकती है? तुझे हौसला रखना होगा! और सिर्फ़ यह सोचना है कि तू इस कैद से कैसे निकलेगी? यह बंदूक वाले राक्षस, अरमान सिंघानिया नाम का फंदा तेरे गले में अटक गया है, तू उससे कैसे निकलेगी? कुछ ना कुछ सोच आस्था! तू इस तरह से हार नहीं मान सकती।" कहीं ना कहीं आस्था शीशे में खुद को देखते हुए खुद से ही सवाल-जवाब कर रही थी और हिम्मत देने की कोशिश कर रही थी। तभी उसे कल रात दादाजी की बातें याद आने लगीं। और वह सोचने लगी कि अगर अरमान सिंघानिया बदल जाता है, थोड़े-बहुत बदलाव आ जाते हैं, तब आसानी से दादाजी उसे अरमान सिंघानिया के नाम से आजाद कर सकते हैं। साथ ही डॉक्टर बनने में उसकी मदद भी कर सकते हैं। "आस्था! तू इस तरह से हार नहीं मान सकती! तेरी ज़िंदगी ने तुझे सिर्फ़ चुनौतियाँ ही दी हैं! इस शादी को भी चुनौती की तरह स्वीकार कर!" कुछ सोचकर आस्था ने गहरी साँस ली। और फिर जल्दी ही वह सबके सामने जाने के लिए तैयार होने लगी। आस्था ने शुरू से ही हार मानना नहीं सीखा था। बहुत कम उम्र में ही उसने ज़िंदगी को उस नज़रिये से देखना शुरू कर दिया था, जो नज़र शायद किसी को काफ़ी उम्रदराज़ होने पर आती है। सबसे पहले ताज़ा होकर उसने एक नया जोड़ा पहना। लेकिन अब आस्था को समझ नहीं आ रहा था कि उसे कैसे तैयार होना है, क्योंकि अब उसकी शादी हो चुकी थी। सब कुछ बदल चुका था। आस्था को यह नहीं पता था कि शादीशुदा लड़की कैसे तैयार होती है, लेकिन उसे इतना पता था कि वह इस तरह से सामान्य नहीं रह सकती! क्योंकि मनोरमा आंटी की बहू शादी के बाद किस तरह से सजती-संवरती थी, ये सारी बातें आस्था को याद थीं। एक पल के लिए आस्था ने मन ही मन फैसला किया कि उसकी ज़िंदगी का मक़सद डॉक्टर बनना है। लेकिन अभी उसने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा। आस्था को समझ नहीं आ रहा था कि दादाजी उससे आज क्या बात करने वाले हैं। लेकिन अभी उसने खुद को थोड़ा-बहुत तैयार करने के बारे में सोच लिया था। उसने अपने सामान में पायल देखी। उसकी नानी ने उसके लिए नई पायल भेजी थी, जो उन्होंने बहुत पहले बनवाई थी। लेकिन आस्था ने कभी वह पायल नहीं पहनी थी! लेकिन आज उसने वह पायल पहन ली! और कुछ चूड़ियाँ भी थीं, जो उसने शादी में पहनने के लिए लाई थी। फिर आस्था ने अपने हाथों में चूड़ियाँ पहनीं, हल्का सा मेकअप किया, और माँग में लगे सिंदूर को बालों से छुपा लिया, क्योंकि उसे शर्म सी महसूस हो रही थी। उसके लिए यह सब नया था और वह इस तरह से सिंदूर और मंगलसूत्र के साथ वहाँ से बाहर नहीं जा सकती थी। उसने मंगलसूत्र को अपने दुपट्टे में अच्छी तरह से ढँक लिया और सिंदूर को बालों से छुपा लिया। जल्दी ही आस्था दरवाज़ा खोलकर सीढ़ियों की ओर जाने लगी। सुबह 6:00 बजे दादाजी ने उन चारों को उठा दिया था। चारों के जॉगिंग करने के बाद दादाजी उन्हें हाल में बैठे हुए थे! उन चारों के चेहरे पर मायूसी थी। नींद पूरी ना होने की, पार्टी की वजह से पूरी रात सो नहीं पाए! और शादी की तैयारियों की थकावट, उनके चेहरे उतरे हुए थे। ध्रुव तो गुस्से से दादाजी को घूर ही रहा था। तब सुमित ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "इस तरह से उन्हें मत घूर! कहीं ऐसा ना हो कि आज दादाजी तुझे ही सज़ा दें!" चिढ़कर ध्रुव ने सुमित को देखा, आँखों में गुस्सा लिए उसने सुमित को अपनी आँखों से वार्न किया। फिर उसने अपनी आँखें नीचे कर लीं और मुस्कुराने लगा। क्योंकि चारों एक-दूसरे को परेशान करने का मौका नहीं छोड़ते थे। तब दादाजी ने कहा, "तुम चारों के चारों नालायक हो! अगर सुबह जल्दी, समय से नहीं उठोगे, तो कैसे मालदार बनोगे? कैसे बुद्धिमान और स्वस्थ बनोगे? इसीलिए मैं तुम लोगों को सुबह जल्दी उठाता हूँ। क्योंकि स्वस्थ रहना बहुत ज़रूरी है। अब जब जॉगिंग कर आए हो, फ़टाफ़ट एक-एक करके अपने कमरे में जाओ! नहा-धोकर ठीक 20 मिनट के बाद मुझे डाइनिंग टेबल पर मिलो! और यहाँ आकर सीधा नाश्ता करो, और उसके बाद अपने-अपने काम पर जाओ, और समय से सबको घर पर आना है। अगर तुम लोग इधर-उधर मौज-मस्ती करने निकल गए, तो तुम लोगों की खैर नहीं!" और चारों मासूम बच्चों की तरह शक्ल बनाकर बैठ गए! तभी अचानक उन चारों के कानों में चूड़ियों और पायल की आवाज़ आई, और चारों को यह आवाज़ मीठी और प्यारी लगी। क्योंकि इतने सालों में उन्हें पहली बार सिंघानिया मेंशन में इस तरह से पायल की आवाज़ सुनाई दी थी। और चारों गौर से सीढ़ियों की ओर देखने लगे। आस्था ने आज कोई घूंघट नहीं लिया था। वह सामान्य रूप से डरी-सहमी हुई नीचे आ रही थी। जैसे ही उन चारों की नज़र आस्था के चेहरे पर पड़ी, तो वह चारों अपनी पलकें झपकना भूल गए। और जहाँ वे बैठे हुए थे, चारों वहाँ से खड़े होकर बेख़याली से आस्था की ओर देखने लगे। लेकिन कोई भी आस्था के चेहरे से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था। जल्दी ही आस्था उन सबके सामने आ गई, और चारों को अपनी ओर देखते पाकर वह थोड़ी घबरा गई। उसे थोड़ा असहज भी लगने लगा। जल्दी ही आस्था ने अपने सर पर दुपट्टा ले लिया और दादाजी के पैर छू लिए। दादाजी ने उसे सौभाग्यवती, सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद दिया। दादाजी का आशीर्वाद सुनने के बाद आस्था के गाल थोड़े से लाल हो गए। तभी ध्रुव ने सुमित को कोहनी मारी, और सुमित ने आकाश को, आकाश ने आहान को, चारों दूसरों को कोहनी से मार रहे थे! और तभी दादाजी उन चारों की ओर देखते हुए बोले, "अब ऐसे ही खड़े होकर अपनी भाभी को देखते रहोगे, या कुछ बोलोगे भी? चलो, चारों के चारों अपनी भाभी के पाँव छूकर आशीर्वाद ले लो!" चारों हैरानी से मुँह खोलकर दादाजी की ओर देखने लगे। तब आहान ने कहा, "क्या दादाजी, आप अभी भी पुराने जमाने की बात कर रहे हैं? आशीर्वाद लो! हम तो इस तरह से विश करेंगे।" ऐसा कहकर आहान ने आस्था को साइड हग करके उसे गुड मॉर्निंग विश किया! आस्था इस तरह से छूने पर पूरी तरह से सहम उठी, क्योंकि उसके लिए यह बहुत अजीब स्थिति थी। वह जिस माहौल में पली-बढ़ी है, वहाँ यह सब कुछ बहुत ही गलत समझा जाता था। लेकिन ये सब लोग केज़ुअल तरीके से आस्था से बात कर रहे थे और आस्था के साथ अच्छा बर्ताव कर रहे थे। तभी सुमित आगे आया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर कहा, "गुड मॉर्निंग ब्यूटीफुल भाभी!" जैसे ही आस्था ने सुमित की बातें सुनी, तो वह थोड़ी शर्मा गई, फिर उसने भी हाथ मिला लिया। तब आकाश आस्था के सामने आया और एक प्यारा सा सफ़ेद फूल आस्था को देते हुए बोला, "आई विश यू वेरी हैप्पी एंड हेल्थी मॉर्निंग भाभी।" सभी ने अलग-अलग तरीके से आस्था को गुड मॉर्निंग विश किया! आस्था के चेहरे की खुशी देखकर दादाजी ने राहत की साँस ली! आज के लिए इतना ही दोस्तों! पढ़ते रहिए obbbsessd cruel Hubby... और दोस्तों, लाइक, शेयर, रिव्यू ज़रूर दें! मैं वेट कर रहा हूँ दोस्तों!

  • 10. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 10

    Words: 1636

    Estimated Reading Time: 10 min

    उन सब में से आस्था की नज़र ध्रुव पर पड़ी। ध्रुव को देखते ही आस्था एक झटके में उसे पहचान गई, और वह खुद को रोक नहीं पाई। वह सीधा ध्रुव के सामने जाकर खड़ी हुई और कहने लगी, "आप ध्रुव हैं ना, ध्रुव सक्सेना—फेमस हार्ट सर्जन!" आस्था की बातें सुनकर ध्रुव मुस्कुराया और कहा, "जी भाभी! आपने बिल्कुल ठीक पहचाना। मेरा नाम ध्रुव सक्सेना है, और मैं फेमस हार्ट सर्जन भी हूँ! लेकिन, मुझे खुशी हुई, भाभी, कि आप मुझे जानती हैं।" बाकी तीनों जलन से ध्रुव की ओर देखने लगे, मन ही मन सोचने लगे, 'लगता है भाभी ध्रुव से काफ़ी इम्प्रेस हैं। क्योंकि वह ध्रुव को जानती भी है, हो सकता है ध्रुव और भाभी की दोस्ती जल्दी ही हो जाए!' दादाजी आगे आए, और आस्था के सर पर हाथ रखकर कहा, "बेटी, क्या तुम जानती हो इस नालायक को?" दादाजी की बात सुनकर आस्था हैरानी से दादाजी की ओर देखने लगी! और कहने लगी, "आप कैसी बातें कर रहे हैं, दादाजी? यह तो बहुत बड़े डॉक्टर हैं! और बहुत फेमस हार्ट सर्जन हैं! इनसे मिलना तो मेरा ड्रीम था, मैं तो इनकी बहुत बड़ी फैन हूँ। मैंने सोचा भी नहीं था कि ये मुझे यहाँ देखने को मिल जाएँगे।" ऐसा कहकर आस्था ध्रुव की ओर मुस्कुरा कर देखने लगी! दादाजी ध्रुव की ओर गर्व भरी नज़रों से देखते हुए बोले, "हमें तो आज पता चला कि ये नालायक कितना कामयाब और फेमस है। वरना हम तो इसे छोटा-मोटा डॉक्टर ही समझते थे।" ध्रुव ने अपने शर्ट के कॉलर खड़े किए और कहा, "दादाजी, आपने तो मुझे शुरू से ही हल्के में लिया है। भाभी नहीं, ना जाने कितने ही सारे यंगस्टर्स हैं जो मेरी एक झलक पाने के लिए तरसते हैं, पता है आपको? और आप हैं कि मुझे, जब देखो घर का सारा काम करवाते रहते हैं!" ध्रुव ने बेचारा सा मुँह बना लिया। तीनों आगे आए। आहान बेचारा सा मुँह बनाकर कहने लगा, "अगर मुझे पता होता कि भाभी को डॉक्टर इतने ज्यादा पसंद हैं तो मैं कॉलेज जाने के बजाय डॉक्टर ही बन जाता।" सुमित और आकाश ने कहा, "हाँ, अगर हमें पता होता तो मैं बिज़नेसमैन बनने के बजाय, मैं भी कोई ना कोई छोटा-मोटा डॉक्टर ही बन जाता।" आकाश बोला, "अगर ऐसी बात थी तो मैं भी सेवन स्टार होटल खड़ा करने के बजाय कोई डॉक्टर या नर्स का ही काम कर लेता।" तीनों अलग-अलग तरीके से इस तरह की बातें करने लगे थे। आस्था उन सब की शक्लें, उनका बेचारा सा मुँह और बेतुकी बातें देखकर खिलखिला कर हँस पड़ी। आस्था को हँसता हुआ देखकर, वे चारों भी मुस्कुराने लगे। कल रात अरमान पर गोली चलाई जाने पर आस्था बुरी तरह से डर गई थी, और उन सबको आस्था के लिए काफ़ी चिंता हो रही थी। लेकिन अब आस्था का सूरत और सीरत देखने के बाद, उन सब को इस बात का यकीन हो चुका था कि उनके ख़डूस और राक्षसी भाई की ज़िंदगी में आस्था जैसी ही लड़की आनी चाहिए थी, जो शायद अरमान के लिए ही बनी थी। क्योंकि अगर अरमान आग है तो आस्था पानी की तरह एकदम शीतल थी। आलोक जी बोले, "आस्था बेटा, मैं तुम्हें इस परिवार से मिलाता हूँ। अब तक तुम्हें इस बात का अंदाज़ा तो हो ही गया होगा कि इस घर में कोई और महिला नहीं है। और मैं अरमान के साथ-साथ अब तुम्हारा भी दादा हूँ, ये तो तुम्हें पता ही है। अब तुम्हारे सामने जो ये चार बेवकूफ़ खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं, मैं इनके बारे में तुम्हें बता देता हूँ। सच बताऊँ तो ये सब मेरी फैमिली का एक इम्पॉर्टेन्ट हिस्सा हैं। ना केवल मेरी फैमिली का, बल्कि ये चारों मेरे दिल के भी बेहद करीब हैं। जितना प्यार मैं अरमान से करता हूँ, उससे कहीं ज़्यादा शायद मैं इन चारों से करता हूँ।" दादाजी की बात सुनकर वे चारों मुँह खोले एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। ध्रुव ने सुमित से कहा, "यार, क्या तूने भी वही सुना जो दादाजी ने हमारे बारे में कहा?" सुमित ने कहा, "हाँ यार, मैंने भी वही सुना।" आकाश बोला, "कहीं हमने कल रात कुछ ज़्यादा ही तो नहीं पी ली थी, जिसकी वजह से मैं सही से सुन नहीं पा रहा हूँ।" आहान बोला, "दादाजी ठीक तो कह रहे हैं। अरमान भाई से आज तक दादाजी ने कोई काम करवाया है क्या? एक भी काम नहीं करवाया अरमान भाई से। अगर कभी दादा जी को कोई काम कराना होता है तो वो हम चारों को ही तो बोलते हैं। अरमान भाई से तो उन्होंने आज तक कोई काम नहीं बोला! तो इसका मतलब साफ़ है, दादाजी वाकई हमें बहुत प्यार करते हैं।" आहान के स्पष्टीकरण पर बाकी तीनों लोग घूर कर आहान को देखने लगे! ध्रुव ने गुस्से से दाँत पीसते हुए आहान से कहा, "बेवकूफ़ इंसान! प्यार का काम से क्या लेना-देना?" दादाजी ने आगे कहा, "आस्था बेटा, ये आहान है। ये अरमान का कज़िन ब्रदर है, और मेरा छोटा पोता। ये हमारे साथ यहीं सिंघानिया मेंशन में रहता है। ये अभी अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर रहा है।" आहान का परिचय देने पर आस्था ने मुस्कुरा कर आहान की ओर देखा। दादाजी आकाश की ओर देखते हुए बोले, "बेटा, ये जो तुम्हारे सामने खड़ा है, इसका नाम आकाश मल्होत्रा है। और ये यहाँ के बहुत फेमस सेवन स्टार होटल का मालिक है, और हमारे पास वाली जो विला है, वो इसी का है। इसे इसने ही खरीदा है। ये उसी में रहता है, लेकिन हमारे कहने से ये अपने विला में कम, सिंघानिया मेंशन में ज़्यादा रहता है। यहाँ आस-पास घर होने की वजह से सुबह का नाश्ता, खाना, डिनर यहीं करता है।" दादाजी ने आकाश की ओर मुस्कुरा कर देखा! आकाश बोला, "दादाजी, आप तो जानते ही हैं ना, और मेरा दिल आपके पास थोड़ा ज़्यादा लगता है। और आप भी मुझे विला में अकेले रहने नहीं देते हैं। और वैसे भी मेरे पापा विदेश में रहते हैं! और वो मुझसे कभी-कभार मिलने आते हैं।" (आकाश की माँ की मृत्यु बहुत पहले ही विदेश में एक कार दुर्घटना में हो गई थी। उसके बाद आकाश हमेशा के लिए भारत में शिफ्ट हो गया क्योंकि विदेश में रहना उसके लिए अब नामुमकिन सा हो गया था, जहाँ पर उसकी माँ की यादें थीं।) दादाजी आकाश की ओर देखकर बोले, "अरे बच्चा, हम तो सिर्फ़ आस्था बेटी को आपके बारे में बता रहे हैं। ये तुम्हारा अपना घर है। तुम जब मर्ज़ी तब यहाँ आओ और यहाँ रहो। वैसे भी सिंघानिया मेंशन इतना बड़ा इसलिए बनाया है ताकि आप सब बच्चों को रहने में कोई दिक्कत ना हो, और चाहकर भी कोई हमसे दूर ना जा सके! तुम सारे बच्चे घर में रहते हो तो खुशहाली रहती है, वरना पूरा घर काट खाने को दौड़ता है। और हमने तो तुम्हें कितनी बार मना किया है, तुम अपने विला में जाते ही क्यों हो? परमानेंटली यहाँ शिफ्ट क्यों नहीं हो जाते?" आकाश ने कहा, "दादाजी, आप तो जानते हैं कि मेरा काम कैसा है! मुझे कभी भी किसी भी समय काम से जाना पड़ता है, जिसकी वजह से मुझे विला में आना-जाना पड़ता है।" दादाजी बोले, "ठीक है बच्चा, जैसे तुम्हारी मर्ज़ी, जो तुम्हारे दिल में आए तुम वो करो।" दादाजी सुमित की ओर देखकर बोले, "बेटा, जो तुम्हारे सामने खड़ा है, सुमित अग्रवाल है। ये इस शहर के मशहूर बिज़नेसमैन हैं। आप यकीन जानिए, कम से कम 600-700 लोग इनके हाथ के नीचे काम करते हैं। लेकिन मज़ाल है जो इनमें इतना सा भी घमंड हो!" दादाजी ने सुमित का गर्व से परिचय दिया। सुमित अपने बंगले में रहते हैं जो यहाँ से केवल दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर ही है। वहाँ पर ये अपने पेरेंट्स के साथ रहते हैं। अभी फ़िलहाल अरमान की शादी की वजह से कुछ दिनों के लिए यहाँ शिफ्ट हुए हैं। और इसे आप जानती ही हैं, ये ध्रुव सक्सेना यहाँ का बेस्ट सर्जन है! अपनी मेहनत के बलबूते पर इतनी कम उम्र में हार्ट सर्जन बन गए हैं। उन्होंने वो मुकाम हासिल किया है जिसे हासिल करने के लिए लोगों को अपनी आधी से ज़्यादा ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है। लेकिन केवल 26 साल की उम्र में ये इस शहर के ही नहीं, बल्कि इस देश के बेस्ट हार्ट सर्जनों में से एक हैं। (दोस्तों, नॉर्मली किसी को फेमस हार्ट सर्जन बनने के लिए काफ़ी स्ट्रगल करना पड़ता है रियल लाइफ़ में और उसकी उम्र कम से कम 30-35 साल के आसपास होती है। बट ये एक काल्पनिक बेस्ड नॉवेल है तो आई होप आप लोग इसे उसी तरह से लेंगे।) वाकई इन्होंने काफ़ी अच्छा काम किया है और बहुत ही मेहनती हैं। बड़े-बड़े लोग इनसे मिलने के लिए आज भी तरसते हैं। आस्था मुस्कुराते हुए कहने लगी, "दादाजी, मैंने इनके बारे में काफ़ी चीज़ें पढ़ी हैं। मैं इन्हें अच्छी तरह से जानती हूँ। सच बताऊँ तो ये मेरे रोल मॉडल हैं।" आस्था ध्रुव की ओर देखकर मुस्कुराने लगी थी। दादाजी ने आगे कहा, "बेटा, ये हमारा एक छोटा-सा परिवार है। और आज हम तुम्हें ये बताना चाहते हैं कि आप इस परिवार का सबसे ख़ास हिस्सा हो, क्योंकि आप इस घर की बड़ी बहू और अरमान की बीवी हो।" दादाजी की बात सुनकर आस्था का चेहरा एकदम से मुरझा गया! जो कुछ भी कल रात उसके साथ हुआ था, उसकी आँखों के सामने फिर से वही यादें नज़र आने लगीं, और उसके हाथों में रोएँ खड़े हो गए थे। आस्था की नई फैमिली का इंट्रोडक्शन कैसा लगा दोस्तों? ज़रूर बताइएगा। आज के लिए इतना ही। सुनते रहिए दोस्तो my obbbsessd billionaire hubby।

  • 11. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 11

    Words: 1720

    Estimated Reading Time: 11 min

    दादाजी की बात सुनकर आस्था का चेहरा एकदम मुरझा गया। कल रात के घटनाक्रम की यादें उसकी आँखों के सामने फिर से घूमने लगीं, और उसके हाथों में रोएँ खड़े हो गए। उन चारों ने आस्था के डर को पहचान लिया था। दादाजी ने आगे कहा, "बेटा, हमें पूरी उम्मीद है कि तुम दिल से इस परिवार को अपनाओगी।" दादाजी की बात सुनकर आस्था ने उन चारों से नज़रें हटाकर पूरे घर को देखना शुरू कर दिया। कहने को तो पूरा घर महल जैसा था, लेकिन पूरी तरह से काले और गहरे रंगों में बना था। यह दिखने में थोड़ा डरावना, किसी भूत बंगले जैसा लग रहा था। आस्था के चेहरे पर उभरते सवालों को दादाजी ने देख लिया। वह जिस तरह घर के कोने-कोने को देख रही थी और हल्का-हल्का डर रही थी, उसे दादाजी ने समझ लिया। दादाजी ने कहा, "हम अच्छी तरह जानते हैं कि घर की गहरी थीम तुम्हें पसंद नहीं आ रही होगी। और तुम्हें एक भूतिया सा एहसास हो रहा होगा। लेकिन हम क्या करें? इस घर में अगर किसी का राज चलता है, तो वह तुम्हारे पति, मिस्टर अरमान सिंघानिया का चलता है। और हम चाहते हैं कि तुम उस अरमान सिंघानिया पर राज करो।" क्या? आस्था पूरी तरह हैरान हो गई। कल रात की घटनाएँ—अरमान द्वारा उस पर चलाई गई गोली—उसे फिर याद आ गईं। वह आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी, और उसके हाथ हल्के से काँपने लगे। एक बार फिर उसके हाथों के रोएँ खड़े हो गए। ध्रुव ने आस्था को डरते हुए देखा और उसे शांत करने के लिए कहा, "भाभी भाभी प्लीज़! आप इस तरह से अरमान भाई से मत डरिए। मेरी बात ध्यान से सुनिए। उन्हें गुस्सा थोड़ा जल्दी आ जाता है। हमें पूरी उम्मीद है कि वह आपको कोई परेशानी नहीं होने देंगे, आपका ख्याल भी रखेंगे। हाँ, हम जानते हैं कि भाई थोड़े सख्त मिज़ाज़ के हैं। और उन्हें लड़कियों से कुछ ज़्यादा ही नफ़रत है! लेकिन हमें पूरी उम्मीद है कि आप उनकी यह सोच बदल दोगे... और हम सब आपके साथ हैं। हम सब मिलकर आपको और अरमान भाई मिलाकर रखेंगे। इसलिए ज़्यादा फ़िक्र मत करो! हम सब सम्भाल लेंगे।" अरमान के मिज़ाज़ और लड़कियों से नफ़रत के बारे में सुनकर आस्था को काफ़ी डर लगा। वह मन ही मन सोचने लगी कि अरमान लड़कियों से नफ़रत क्यों करता है? इतनी ज़्यादा नफ़रत कि बंगले में कोई कामवाली तक नहीं है। शायद इसीलिए उसने उसे अपने कमरे में देखकर गोली चलाई थी, यह सोचकर आस्था का गला सूखने लगा। दादाजी ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा, "चुप करो नालायकों! इस तरह से बहू को डराकर कैसे अरमान के बारे में सोचेगी और कैसे अपनी गृहस्थी आगे बढ़ाएगी? बेवकूफ़! इसे हौसला देना है, ना कि डराना है। और रही बात हमारी तो हम आज हैं कल नहीं! लेकिन हम चाहते हैं कि जाने से पहले अपने पोते और आस्था को इस घर में सुकून से ज़िंदगी जीते हुए देख सकें। शायद तब हमारा गिल्ट कुछ कम हो जाए।" दादाजी थोड़े उदास हो गए। दादाजी के गिल्ट की बात सुनकर आहान हैरानी से बोला, "क्या बात है दादा जी? आप किस गिल्ट की बात कर रहे हैं? और आप इतने उदास क्यों हैं? मुझे ऐसा लग रहा है कि आप हम सब से कुछ छुपा रहे हैं?" सुमित, आकाश, और ध्रुव भी दादाजी की उदासी भरी बातों से कंफ़्यूज़्ड थे। सुमित आगे आया और बोला, "ट्रस्ट मी, दादाजी! यकीन करें! अरमान ने कल रात हमसे रूडली बात की, इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। और वैसे भी, वह हमारा बचपन का दोस्त है। और हमें उसकी आदतों के बारे में अच्छी तरह से पता है। तो फिर दादाजी आप क्यों गिल्ट की बात कर रहे हैं? आपकी आँखें कुछ और कह रही हैं। बताइए ना दादाजी, आखिर क्या बात है? और आप किस गिल्ट की बात कर रहे हैं?" आस्था ने अपना सर झुकाकर एक तरफ़ खड़ी हो गई। वह समझ गई थी कि दादाजी किस गिल्ट के बारे में बात कर रहे हैं। दादाजी आगे आए और आस्था के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। उन चारों का मुँह हैरानी से खुला रह गया। उनके दादाजी उनकी भाभी के सामने हाथ जोड़कर क्यों खड़े थे? ध्रुव आगे आया और दादाजी के हाथों को पकड़कर बोला, "आखिर बात क्या है दादाजी? आप इस तरह से भाभी के सामने हाथ क्यों जोड़ रहे हैं? प्लीज़ हम सबको बताइए ना, आखिरकार बात क्या है?" दादाजी ने उन चारों की ओर देखकर कहा, "तुम चारों ये बात अच्छी तरह से जानते हो कि हम चाहकर भी तुमसे कुछ नहीं छुपा सकते। और हमें इस बात का गिल्ट है कि हमने आस्था बेटी को अरमान से शादी करने के लिए मजबूर किया।" क्या? यह सुनकर उन चारों का मुँह हैरानी से खुला रह गया। वे चारों हैरानी से आगे आए और बोले, "दादाजी, ये आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप तो खुद अरमान भाई को लड़की दिखाने के लिए लेकर गए थे ना, तो फिर आप इस तरह की बातें क्यों कर रहे हो? और आस्था के सामने हाथ क्यों जोड़कर खड़े हुए हो?" यह सुनकर आस्था के दिल में कुछ चुभन हुई और उसकी आँखों में भावनाएँ उमड़ आईं। दादाजी ने आगे कहा, "हम तुम लोगों को यही बात बताना चाहते हैं कि यह प्रियंका नहीं, आस्था है। प्रियंका तो शादी के दिन मंडप से भाग गई थी। तब हमें मजबूरन प्रियंका की जगह उसकी कज़िन आस्था को मंडप में बैठाना पड़ा। वरना हमारे खानदान की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती।" दादाजी की बातें सुनकर वे चारों पूरी तरह से हैरान हो गए। उनके माथे से पसीना निकलने लगा। वे कहने लगे, "आप अच्छी तरह से जानते हैं दादाजी, अगर अरमान को इस बात का पता चलेगा, तो वह कितना ज़्यादा गुस्से में हो जाएगा। अपने गुस्से में वह क्या कुछ कर सकता है। आप जानते हैं ना, उसे धोखा देने वाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं।" दादाजी ने कहा, "हम अच्छी तरह से जानते हैं कि अरमान को शायद यह बात पसंद ना आए, लेकिन हम क्या करते? उस वक़्त हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था। इसीलिए आज हम तुम लोगों को यह बात बता रहे हैं ताकि अरमान कोई गलत क़दम ना उठा पाए।" आहान ने कहा, "ये आप क्या कह रहे हैं दादा जी? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि अरमान ब्रो को जब इस सच का पता चलेगा तो वह किसी को नहीं छोड़ेंगे और सबको गोली से उड़ा देंगे।" यह सुनकर आस्था के गले में कुछ अटक गया। वह जोरों से खांसने लगी और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। सभी जल्दी से आस्था को सोफ़े पर बैठाकर पानी पिलाने लगे। थोड़ा शांत होकर आस्था ने कहा, "दादा जी, आपने मुझसे वादा किया था कि अगर मैं यह शादी कर लेती हूँ तो मेरे परिवार पर किसी तरह की कोई आंच नहीं आएगी। आहान भाई क्या कह रहे हैं? क्या आपके पोते मिस्टर अरमान सिंघानिया वाकई मेरे परिवार का क़त्ल कर देंगे...?" दादाजी ने आकाश, सुमित, आहान और ध्रुव की ओर इशारा किया। वे जल्दी से दादाजी की बात समझते हुए बोले, "अरे! भाभी, आप ये कैसे बातें कर रही हैं? आहान तो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था। आप ये सब छोड़िए और बिल्कुल चिल कीजिए! आपको यहाँ पर किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। और ना ही हम सब अरमान भाई को आपको हर्ट करने देंगे! डोंट वरी! आपके चार-चार देवर यहाँ मौजूद हैं जो आपका ख्याल रखेंगे!" आस्था ने मासूम सी शक्ल बनाकर कहा, "लेकिन अभी तो आप लोगों ने कहा कि आप सब अलग-अलग रहते हो! केवल आहान जी ही यहाँ रहते हैं।" "आहान जी" सुनकर आहान का मुँह खुला रह गया। वह जल्दी से आगे आया और हाथ जोड़कर आस्था के सामने खड़ा हो गया और बोला, "भाभी, एक बार फिर से 'आहान जी' कहिए। आप नहीं जानते हैं भाभी, आज तक मैंने अपने लिए कामचोर, गधा, नालायक, ऐसे ही शब्द सुने हैं। लेकिन आज पहली बार किसी ने मुझे इतनी इज़्ज़त दी है। मैं तो धन्य हो गया भाभी। आपके चरण कहाँ हैं?" आहान आस्था के सामने झुक गया। आस्था दो क़दम पीछे हट गई और उसकी हरकत पर हल्का सा मुस्कुरा उठी। दादाजी ने आस्था की ओर देखते हुए कहा, "बेटा, भले ही ये सब यहाँ ना रहते हों, लेकिन यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं रहते! आसपास रहते हैं। हमने तुम्हारे लिए नया फ़ोन खरीदा है। ये लीजिए। इसमें हमने तुम्हारे इन चारों नालायक देवरों के नंबर सेव भी कर दिए हैं। जब भी तुम्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़े, या तुम किसी भी तरह की कोई परेशानी हो तो तुम्हें सिर्फ़ इन्हें बताना होगा! और हमें पूरी उम्मीद है कि ये सब तुम्हारी हर परेशानी दूर कर देंगे।" यह सुनकर आस्था ने राहत की साँस ली। दादाजी कुछ कहने लगे...?

  • 12. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 12

    Words: 1378

    Estimated Reading Time: 9 min

    पहली रसोई की रस्म और सासू माँ की गैरमौजूदगी? -------------- दादाजी ने कहा, "अरे! हम तो बातों ही बातों में भूल ही गए। हमारी बेटी का आज ससुराल में पहला दिन है! अगर इस घर में कोई महिलाएँ होतीं, तो वे आपको बतातीं कि घर में नई बहू को पहले दिन क्या ख़ास रस्में करनी पड़ती हैं।" आस्था ने हैरानी से दादाजी की ओर देखते हुए कहा, "मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है दादा जी, आप क्या कहना चाहते हैं?" दादाजी ने आस्था से कहा, "मेरा कहने का मतलब यह है बेटा कि अगर आज तुम्हारी दादी सास ज़िंदा होतीं, तो वे इस वक़्त तुम्हें घर में नई बहू की पहली रसोई की रस्म ज़रूर करवातीं।" आस्था ने बेचारा सा मुँह बनाकर कहा, "कोई बात नहीं दादाजी। दादी सास ना सही, लेकिन मेरी सासू माँ तो यहाँ होगी ही। लेकिन अरमान जी की माँ कहाँ हैं? वे नज़र नहीं आ रही हैं।" अचानक आस्था के इस कथन से सभी के चेहरे का रंग उड़ गया। सभी इधर-उधर देखने लगे! ध्रुव मन ही मन सोचने लगा, "यार, भाभी को कोई तो रोको! गलती से भी अगर उस अरमान ने अपनी माँ का नाम सुन लिया, तो सिंघानिया मेंशन में एक तूफ़ान आ जाएगा।" दादाजी ने बात बदलते हुए कहा, "अरे बेटा, ये रस्म-वस्म तो बाद की बात है। अभी तुम यहाँ पर नई-नई आयी हो। अभी तुम्हें किसी तरह की कोई भी रस्म करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम चाहते हैं कि तुम पहले अच्छी तरह से सब चीज़ों को समझ लो, अपने इस नए घर को अच्छी तरह से देखो, उसके बाद तुम्हारा दिल करे तो कुछ बना लेना! वरना मत बनाना।" दादाजी ने बात टाल दी। आस्था थोड़ी सी हैरान हो गई कि दादाजी ने उसकी बात का जवाब क्यों नहीं दिया। लेकिन फ़िलहाल उसने किसी से ज़्यादा कुछ सवाल नहीं पूछा। और वैसे भी उसका दिल अजीब सा बेचैन हो रहा था। दादाजी ने आहान की ओर देखते हुए कहा, "आहान, यह अरमान अभी तक नीचे क्यों नहीं आया? जाकर देखकर आओ, अरमान कहाँ रह गया है। क्या उसे आज नाश्ता नहीं करना है? या ऑफ़िस नहीं जाना है?" अरमान का नाम सुनकर आस्था के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, और उसे अरमान की कही हुई एक-एक बात, और साथ ही साथ अरमान का उस पर गोली चलाना, सब याद आने लगा। आस्था ने तुरंत, किसी और के कुछ कहने से पहले, घबराकर कहा, "दादा जी, मैं अपने कमरे में चली जाती हूँ!" आस्था वहाँ से जाने लगी। आहान समझ गया कि आस्था वहाँ से क्यों जा रही है। आहान ने जल्दी से कहा, "भाभी, प्लीज़! रुकिए! आप मेरी बात तो सुन लीजिए। मैं यही बताने वाला था कि भाई तो आज घर पर हैं नहीं। सुबह-सुबह ही जब हम सब जॉगिंग पर जा रहे थे, उस वक़्त मैंने भाई को बाहर निकलते हुए देखा था। मैंने भाई को आवाज़ भी लगाई थी, लेकिन भाई ने मेरी कोई बात नहीं सुनी। मैंने देव को फ़ोन किया—देव भाई का बॉडीगार्ड और पर्सनल असिस्टेंट दोनों ही है। मैंने देव से पूछा कि भाई कहाँ जा रहे हैं? तब देव ने बताया कि भाई अपनी एक इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग के लिए दो दिनों के लिए पेरिस जा रहे हैं।" आस्था अपने कमरे की ओर जा रही थी। आस्था ने यह सब सुनकर, तुरंत अपने क़दम रोक लिए और राहत की साँस ली। सभी लोग समझ गए कि आस्था अभी इस वक़्त अरमान को फ़ेस नहीं करना चाहती है! आखिरकार करती भी क्यों? जिस लड़की पर शादी के पहले दिन ही उसके पति ने गोली चलाई, तो भला वह लड़की उसका सामना कैसे कर सकती थी? आस्था के दिल में जो डर था वह थोड़ा सा कम हुआ, और वह दादाजी की ओर देखकर बोली, "दादाजी, भले ही यहाँ पर कोई महिलाएँ ना हों, लेकिन अगर पहली रसोई की रस्म होती है तो मैं वह रस्म ज़रूर पूरी करूँगी।" आस्था ने दादाजी से आशीर्वाद लिया और रसोई की तरफ़ जाने लगी। रसोई में जाकर आस्था ने देखा कि वहाँ पर नौकरों की फ़ौज लगी हुई थी। सभी सर झुकाकर एक तरफ़ खड़े हो गए थे! "मैडम, आप बस हमें हुक्म दे दीजिए कि क्या बनाना है? हम सब मिलकर रेडी कर देंगे!" आस्था ने उन सबकी ओर मुस्कुराते हुए कहा, "आप लोगों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप सभी लोगों की आज छुट्टी है। आज का सारा नाश्ता मैं खुद-ब-खुद बना लूँगी।" आस्था ने अपने अकॉर्डिंग, अपने अंदाज़ में नाश्ता बनाना शुरू कर दिया। वह अब तक अरमान को फ़ेस करने से डर रही थी। लेकिन जैसे ही उसने यह सुना कि अरमान दो दिनों के लिए पेरिस गया है, तो उसने राहत की साँस ली, और बिना घबराए, बेझिझक होकर सबके लिए नाश्ता बनाने लगी। Flashback... (क्योंकि आस्था जहाँ रहती थी, वहाँ पर हमेशा उसने नॉर्मल इंडियन खाना ही खाया था। किसी तरह का कोई फ़ास्ट फ़ूड वगैरह उसने कभी नहीं खाया था! ना ही उसकी नानी उसे खाने देती थी। और जब भी आस्था का दिल कभी मोमोस वगैरह या चाउमीन वगैरह खाने का होता था, तो उसकी नानी उसे डाँट दिया करती थी। "इस तरह के उल्टी-सीधी चीज़ खाकर क्या तुझे पेट ख़राब करना है?" तब आस्था अपनी नानी के डर से खुद को रोक लेती थीं। कुछ भी नहीं खा पाती थीं।) Flashback End... आज उसने सभी के लिए देसी नाश्ता तैयार किया था। आस्था के बने हुए आलू के पराठे की खुशबू बाहर बैठे हुए सभी लोगों की भूख बढ़ा रही थी, और ध्रुव खुद को रोक नहीं पाया और बोला, "भाभी, क्या बना रही हैं आप? खाने की खुशबू यहाँ तक आ रही है। मुझे खाने की स्मेल से ही इतनी तेज भूख लगी है कि मेरे पेट के अंदर के जो चूहे हैं, वो पूरी तरह से कबड्डी खेल रहे हैं। अब जल्दी से खाने के कुछ ला दीजिए!" आस्था उन सबकी बात सुनकर मुस्कुरा रही थी। जल्दी ही आस्था ने अपने बनाए हुए आलू के पराठे, साथ में दही, और थोड़ा सा बटर सर्व करके सबके सामने रख दिया। सबकी आँखों में हैरानी थी क्योंकि उनके घर में कोई महिलाएँ खाना नहीं बनाती थीं। ज्यादातर खाना तो नौकर बनाया करते थे या फिर खाना बाहर रेस्टोरेंट से आया करता था। लेकिन आज आस्था के बनाए हुए नाश्ते को इस तरह से देखकर वे सब इमोशनल होकर एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। आस्था ने सबको इस तरह से ख़ामोश देखकर कहा, "क्या हुआ? मैंने कुछ गलती कर दी? या नाश्ते में कोई कमी रह गई है? वो एक्चुअली मुझे मेरी नानी ने बताया भी था कि जब भी किसी लड़की की नई-नई शादी होती है तब उसे मीठे में कुछ बनाना होता है। तो इसीलिए मैंने मीठे के तौर पर थोड़ा सा हलवा बनाया है! साथ मैंने नाश्ते में आलू के पराठे बना दिए। आप सब नाश्ते को इस तरह से देखकर ख़ामोश हैं। मुझे नहीं पता था कि आप लोगों को इस तरह से हैवी खाना वगैरह खाने की आदत नहीं है।" आस्था की आँखों में उदासी आ गई। आकाश ने तुरंत कहा, "नहीं भाभी! ये आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप नहीं जानते कि हमने कितने दिनों के बाद इस तरह का कोई खाना देखा है। सच पूछे तो आपके पराठे देखते ही मेरे मुँह में पानी आ रहा है। गरमा-गरम लच्छे वाले पराठे और दही, ऊपर से इस पर बटर, मज़ा ही आ गया। मुझे तो पंजाब वाली फ़ीलिंग आ रही है। मानो कि मैं कहीं पंजाब के किसी गाँव में बैठा हूँ और इस तरह से खाना खा रहा हूँ!" आकाश ने बिना किसी की परवाह किए जल्दी एक पूरा पराठा और दही में डुबोकर खाना शुरू कर दिया। आस्था उसकी हरकत पर मुस्कुरा दी! जल्दी ही आकाश को देखकर बाकी सब भी पराठा लेकर खाने लगे, और दादाजी मुस्कुराकर सबको देख रहे थे। आस्था ने सभी को थोड़ा-थोड़ा हलवा, जो उसने बनाया था, सर्व किया। 👍🏻✍🏻 दोस्तों, रिव्यू दीजिए प्लीज़ और ज़्यादा से ज़्यादा कमेंट करिए...

  • 13. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 13

    Words: 1369

    Estimated Reading Time: 9 min

    Astha Ke Gifts.. My obbbsessd Hubby सभी आस्था के हाथ का बनाया हुआ खाना खाकर उसकी तारीफ़ों के पुल बाँध रहे थे! आस्था ने दो-दो पराठे करके सबके लिए बनाए थे, और एक ही झटके में वे सारे पराठे ख़त्म हो चुके थे। लास्ट में सिर्फ़ एक पराठा बच गया, जिस पर ध्रुव की नज़र थी। जल्दी-जल्दी ध्रुव अपना पहला पराठा ख़त्म कर रहा था कि कहीं उस पराठे को कोई और ना ले ले! ध्रुव के साथ-साथ बाकी चारों की नज़रें भी उस पराठे पर थीं। जैसे ही सबने अपने हाथ का पराठा ख़त्म किया— सब एक झटके से उस पराठे पर झपट पड़े! ध्रुव कहने लगा, "देखो भाई! मैंने कम खाया है। मुझे खाने दो! बहुत स्वाद है। मुझे खाना है ये पराठा।" ऐसा कहकर ध्रुव पराठा खाना चाहता था। लेकिन आकाश ने भी पराठा पकड़ रखा था! साथ ही साथ सुमित और आहान भी उनके दोनों हाथों पर छपटे पड़े कि हमें भी ये पराठा खाना है। अचानक दादाजी सख़्त आवाज़ में बोले, "ये क्या बच्चों की तरह झगड़ रहे हो? तुम लोगों को देखकर कोई नहीं कहेगा कि यहाँ पर इतना बड़ा बिज़नेसमैन, और इतना बड़ा डॉक्टर, और इतना बड़ा होटल का मालिक मौजूद है जो ऐसे बच्चों की तरह एक पराठे के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे हैं।" ऐसा कहकर दादाजी ने उन्हें आँखें दिखाकर वो पराठा वापस एक प्लेट में रखवा दिया। सब के सब सर झुकाकर अपनी चेयर पर बैठ गए। दादाजी ने मौक़ा देखकर उस पराठे को उठा लिया और खुद खाना शुरू कर दिया। अब दादाजी को इस तरह की हरकत करते हुए देखकर वे सभी हैरानी से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे! और दादाजी ने पराठा खाने के बाद एक लंबी डकार ली और जोरों से हँसने लगे। दादाजी को हँसते हुए देखकर बाकी सब भी हँसने लगे! आस्था भी मुस्कुराने लगी। फिर दादाजी बोले, "वाह! वाकई बच्चा! तुम्हारे हाथ का खाना खाकर वाकई बहुत मज़ा आ गया। ऐसा लग रहा है कि आज हमारे अंदर से आत्मा भी तृप्त हो गई, वरना हम तो घर के खाने का स्वाद पूरी तरह से भूल चुके थे।" ऐसा कहकर दादाजी ने जल्दी ही अपने हाथ में पड़े हुए एक छोटे से गिफ्ट बॉक्स को आस्था की तरफ़ बढ़ा दिया। आस्था सोच रही थी कि वो अब क्या करें! दादाजी बोले, "बेटा, रख लो। ये तुम्हारा शगुन है। और शगुन के लिए मना नहीं करते।" जैसे ही दादाजी ने ये कहा, आस्था ने उनसे वो गिफ्ट बॉक्स ले लिया था। "अरे भाभी! बॉक्स खोलकर देखो ना! आखिर दादाजी ने आपको क्या गिफ्ट दिया है?" ध्रुव आस्था को वो बॉक्स खोलने के लिए कहने लगा। आस्था ने उन सबके रिक्वेस्ट करने पर जल्दी बॉक्स खोल दिया, और जैसे ही उसने देखा कि उसमें एक बड़ा ही खूबसूरत सा ब्लू रंग का डायमंड ब्रेसलेट था, जिसे देखकर उसकी कीमत का अंदाज़ा लगाना काफ़ी मुश्किल था। उसे देखकर लग रहा था कि ये काफ़ी एक्सपेंसिव है। तब आस्था बोली, "लेकिन दादाजी, मैं इसे कैसे ले सकती हूँ? ये तो काफ़ी महँगा लग रहा है।" दादाजी मुस्कुराकर आस्था के पास आए, उसके सर पर हाथ रखकर बोले, "हाँ बेटा, ये महँगा होगा, लेकिन हमारी बहू से ज़्यादा कीमती नहीं है।" ऐसा कहकर दादाजी उसे आशीर्वाद देते हुए वहाँ से निकल गए। ध्रुव, सुमित, और आकाश, साथ ही आहान भी बेचारा सा मुँह लेकर आस्था के सामने आए और बोले, "सॉरी भाभी, हम तो आपके लिए कोई गिफ्ट ही नहीं लाए। एक्चुअली हमें पता ही नहीं था कि इस तरह से कोई शगुन देने की रस्म होती है! और उसमें भाभी पहली बार खाना बनाती है तो उन्हें कोई गिफ्ट देते हैं! लेकिन वादा रहा कि मैं आपको बहुत जल्द आपका गिफ्ट दे दूँगा!" ऐसा कहकर सब अलग-अलग तरीके से आस्था से वादा करने लगे। आस्था मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा-अच्छा, ठीक है। लेकिन आप सबने मुझे ऑलरेडी पहले ही अपना गिफ्ट दे चुके हैं। तो मुझे अब किसी और गिफ्ट की कोई ज़रूरत नहीं है।" जैसे ही आस्था ने ये कहा, तो चारों हैरानी से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे और बोले, "गिफ्ट? लेकिन भाभी, हमने तो आपको कुछ दिया ही नहीं है। तो आप कैसे कह सकती हैं कि हमने आपको गिफ्ट दे दिया है!" आस्था मुस्कुराते हुए आहान के पास गई और बोली, "आहान जी में मुझे छोटा भाई मिला है! तो क्या ये गिफ्ट से कम है? और आकाश जी और सुमित जी के रूप में मुझे बड़े भाई और दोस्त मिले हैं! और ध्रुव जी, वो तो मेरे आइडियल हैं, मेरे गुरु हैं। सही मायने में कहा जाए तो बिना माँगे आप सबने ऑलरेडी मुझे गिफ्ट दे चुके हैं।" जैसे ही आस्था ने ये कहा, वे सभी एक-दूसरे को देखने लगे, और हल्की सी उन सभी की आँखें नम हो गईं, क्योंकि पहली बार किसी ने इतने प्यार और अपनापन उन्हें दिखाया था। अचानक ध्रुव को कुछ याद आया, "ये सब चक्कर में तो भूल ही गया। मेरी आज एक बहुत ही ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट सर्जरी है। मुझे अब निकलना होगा।" ऐसा कहकर ध्रुव ने आस्था और बाकी सब से विदा लेता हुआ वहाँ से निकल गया था। आहान, सुमित और आकाश भी बोले, "हाँ भाभी, एक्चुअली मुझे भी होटल जाना होगा। मुझे वहाँ आज क्लाइंट से मिलना है!" ऐसा कहकर सुमित और आकाश भी वहाँ से निकल गए। सुमित भी अपने किसी बिज़नेस डील का कहकर वहाँ से जाने लगा। कहीं ना कहीं वे सब लोग वहाँ से इसलिए निकलकर जाना चाहते थे क्योंकि आस्था के लिए वाकई वे सब किस गिफ्ट लेकर आना चाहते थे। आहान ने कहा कि उसे एक इम्पॉर्टेन्ट असाइनमेंट पूरा करना है और वो वादा करता है कि वो शाम को जल्दी आ जाएगा, उसके बाद आकर वो आस्था के साथ ढेर सारे गप्पे मारेगा। ऐसा कहकर वह भी वहाँ से निकल चुका था। अब आस्था पूरे हॉल में अकेले खड़ी रह गई, और हल्के से मुस्कुराकर वह भी अपने कमरे में आ गई! आस्था अपने कमरे में अकेले जाकर बैठ गई। और सोचने लगी, आखिरकार उसकी ज़िंदगी में हुआ क्या? कुछ पलों में उसकी ज़िंदगी पूरी तरह से पलट गई। उसे इस शादी से नए रिश्ते मिले, अनजाने दोस्त और भाई मिले, लेकिन उसका क्या? जिसकी वजह से उसे ये सब रिश्ते मिले हैं, उसका तो कहीं कुछ अता-पता ही नहीं है। कहीं ना कहीं अरमान के बारे में सोचकर आस्था खुद-ब-खुद ही डरने लगी और सोचने लगी कि अरमान जब प्रियंका दीदी का सच जानेगा तो क्या वाकई उसे गोली मार देगा? आस्था को ये डर सता रहा था। आस्था की नींद रात भर पूरी नहीं हुई थी। अब थोड़ी देर जैसे ही वह बेड पर लेटी तो उसकी आँख लग गई। नींद से जागने के बाद जैसे ही आस्था उठी, तो फटाफट से उसने खुद को देखा, और फिर उसने सोचा कि उसे कपड़े चेंज कर लेने चाहिए! क्योंकि उसने आज सुबह जल्दबाज़ी में नाश्ता बनाया था जिसकी वजह से उसके कपड़ों पर थोड़े-थोड़े तेल के छींटे, साथ ही साथ कुछ आटा वगैरह लगा हुआ था। तब उसने ज़्यादा ध्यान ही नहीं दिया था। लेकिन अब उसने सोचा कि अगर इस तरह से यहाँ रहेगी तो सब लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे? वैसे भी अब सुमित, आकाश भाई सब आते ही होंगे, और फिर उसे शाम के लिए खाने की भी तैयारी करनी होगी ना? तो यही सब सोचते हुए आस्था ने अपने नानी के दिए हुए कपड़े चेक किए, और उनमें से उसने एक बड़ा ही खूबसूरत सा पिंक कलर का सूट निकाल लिया। और आस्था ने फ़्रेश होकर वो सूट पहन लिया, और हल्का सा लाइट मेकअप किया। और एक बार फिर उसने अपने मंगलसूत्र और सिंदूर को छुपा लिया। क्योंकि आस्था की शादी भले ही ज़बरदस्ती हुई हो, लेकिन आस्था मंगलसूत्र और सिंदूर की कीमत और उसके महत्व को अच्छी तरह से समझती थी... वेल, आस्था जैसे ही थोड़ी सी फ़्रेश होकर बाहर निकली तो— आस्था को शाम का वक़्त बड़ा ही खूबसूरत और सुहावना सा लग रहा था। चारों तरफ़ एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी, और तभी आस्था ने नोटिस किया कि...? पूरे गार्डन में इस वक़्त सिर्फ़ एक ही आदमी खड़ा हुआ था..... 👍🏻✍🏻👍🏻👍🏻...... कौन था गार्डन में? आखिर कैसी होगी अरमान और आस्था की पहली मुलाक़ात? जानने के लिए बने रहिए दोस्तों!!!!!!!!!!!!!!!!!!?????????????????????

  • 14. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 14

    Words: 1827

    Estimated Reading Time: 11 min

    Face to Face आस्था को शाम का वक़्त बड़ा ही खूबसूरत और सुहाना सा लग रहा था। चारों तरफ एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। आस्था ने नोटिस किया कि गार्डन से बड़ी ही ठंडी-ठंडी हवाएँ उसके चेहरे को छू रही थीं। आस्था का दिल किया कि वह थोड़ी देर के लिए गार्डन में चली जाए और वहाँ पर थोड़ा सा टहले, क्योंकि उसे गार्डन की ठंडी हवाएँ अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। इसलिए आस्था बिना कुछ सोचे-समझे जल्दी ही गार्डन की ओर जाने लगी। गार्डन में, एक शख्स बिल्कुल फॉर्मल कपड़ों में अपने हाथ में कुछ दवाई लिए पौधों में दवाई छिड़क रहा था। आस्था जैसे ही गार्डन में गई और उसने इस तरह से एक शख्स को पौधों में कुछ दवाई छिड़कते हुए देखा, तो वह हैरान हो गई। वह सोचने लगी कि यह आदमी कौन है? और इस तरह से यह पौधे के साथ क्या छेड़खानी क्यों कर रहा है? और कहीं यह सारे पौधे तो काटने वाला नहीं है? वह आदमी हाथ में कैंची लेकर पौधे काट रहा था। जैसे ही आस्था ने यह देखा, वह घबरा गई और जल्दी से आगे बढ़कर उस शख्स का हाथ पकड़ लिया। वह शख्स हैरानी से आस्था की ओर अपनी गहरी काली आँखों से देखने लगा! आस्था भी उसकी आँखों में देख रही थी! एक पल को आस्था थोड़ी सी डर भी गई थी क्योंकि उसके सामने एक लंबा-चौड़ा, मजबूत मर्द खड़ा हुआ था। लेकिन पौधों को कैंची से बड़ी आसानी से काटता हुआ देखकर आस्था को अजीब लगा, इसलिए उसने उसका हाथ पकड़ लिया था। और गुस्से से उसकी ओर देखकर बोली, "ये क्या कर रहे हो? तुम इस तरह से पौधे काटकर उन्हें खत्म नहीं कर सकते हो! यह गलत है।" आस्था के कहने पर उस आदमी के चेहरे पर बल पड़ गए। आस्था ने कहा, "मुझे इस तरह से गुस्से से क्यों घूर रहे हो? तुम जानते हो, इस घर में एक बंदूक वाला मॉन्स्टर रहता है जो बात-बात पर बंदूक चला देता है। अगर उसने तुम्हें इस तरह से उसके गार्डन के फूलों को काटते हुए देख लिया तो वह मार-मार कर तुम्हारा कीमा बना देगा। समझे तुम!" अरमान ने अपने सामने खड़ी हुई दुबली-पतली सी लड़की की बातें सुनीं, वह हैरान हो गया! और सोचने लगा कि उसी के घर में उससे ऊँची आवाज़ में इस तरह से बात करने वाली लड़की आखिरकार है कौन? फ्लैश बैक: अरमान जैसे ही अपनी मीटिंग के लिए पेरिस जाने के लिए निकला, मौसम खराब होने की वजह से उसके प्राइवेट जेट को वापस लैंड करना पड़ा! अरमान ने अपनी मीटिंग पोस्टपोन कर ली थी! और पूरे एक हफ़्ते बाद अपनी मीटिंग रखी थी। ऑफिस का सारा काम खत्म करने के बाद, अरमान जल्दी ही ऑफिस से घर आ गया। घर आते ही, उसकी नज़र अपने एक सूखे पौधे पर पड़ी। अरमान का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही शौक़ था—पौधे लगाने का, साथ ही साथ उन पौधों की छोटी-छोटी केयर करने का काफ़ी ज़्यादा शौक़ था। इसलिए वह अपने पौधों पर इतना सा भी सूखापन बर्दाश्त नहीं कर सकता था। अरमान के घर के गार्डन में दुनिया के सबसे महँगे-महँगे पौधे मौजूद थे जिनकी देखभाल ख़ुद अरमान किया करता था! और अभी भी अरमान बड़े ही प्यार से पौधों की छटाई कर रहा था। जिन्हें आस्था ने गलत समझ लिया। उसने सोचा कि शायद यह कोई घर में काम करने वाला नौकर है? या माली है? जो इस तरह से पौधों को काट रहा है। आस्था को इस बात का ख्याल ही नहीं आया कि वह पौधों को नुकसान नहीं पहुँचा रहा था, बल्कि वह सूखे पौधों की छटाई कर रहा था... अचानक आस्था को इस तरह से अपने सामने चटर-पटर करता हुआ देखकर अरमान अपनी गहरी काली आँखों से उसे घूरने लगा था! तब आस्था उसकी ओर देखकर बोली, "हद है यार! एक तो मैं तुम्हें उस बंदूक वाले मॉन्स्टर से बचाने की कोशिश कर रही हूँ, और एक तुम हो कि मुझे ही घूर कर देख रहे हो?" "अभी भी मौक़ा है! वह मॉन्स्टर दो दिनों के लिए पेरिस गया हुआ है! तुम्हारे पास मौक़ा है! अगर तुम्हें अपनी जान प्यारी है तो अब अपना बोरिया-बिस्तर समेटो और भाग जाओ यहाँ से, वैसे भी आस्था बहुत कम लोगों को ही सलाह देती है। अब तुम्हें मेरी सलाह लेनी है लो, वरना मत लो—तुम्हारी मर्ज़ी।" ऐसा कहकर आस्था जैसे ही वहाँ से जाने के लिए पलटी, अचानक अरमान ने अपने हाथ से उस बड़ी सी कैंची (Pruning knife) को फेंक दिया था। और सीधा आस्था का हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया था। आस्था उस वक़्त अरमान के बेहद क़रीब थी और उसके सीने से लगी हुई थी। एक पल को अरमान भी उसकी ख़ूबसूरती में खो सा गया था। लेकिन आस्था अरमान की हरक़त से पूरी तरह से हैरान हो गई और बोली, "ये क्या बदतमीज़ी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से मेरा हाथ पकड़कर खींचने की? हाँ, एक मामूली सा नौकर हो तुम—नौकर ही बनकर रहो, समझे तुम? एक तो मैं यहाँ तुम्हें बचाने की कोशिश कर रही हूँ, और एक तुम मेरे साथ ही ऐसी हरकत कर रहे हो!" आस्था के कहने पर अरमान उसकी ओर गुस्से से आग बरसाते हुए बोला, "How dare you! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मुझे इस तरह से बात करने की? आज तक मुझसे इस तरह से किसी ने भी बात नहीं की है, और तुम हो कि मेरी आँखों में आँखें डालकर मुझसे बात कर रही हो।" अब तो आस्था की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। गुस्से में उसने जल्दी अरमान से अपना हाथ छुड़ा लिया और थोड़ा सा पीछे खड़ी होकर बोली, "अरे वाह! भलाई का तो जमाना ही नहीं है। एक तो मैं यहाँ तुम्हें उस बंदूक वाले मॉन्स्टर से बचाने की कोशिश कर रही हूँ, और एक तुम हो जो मुझे ही तड़ी दिखा रहे हो।" अरमान आस्था की बात सुनकर confused हो गया और बोला, "तड़ी? ये तड़ी क्या होता है?" तब आस्था ने अपना एक हाथ सर पर मार लिया और सोचने लगी, लगता है उस ख़तरनाक बंदूक वाले मॉन्स्टर ने घर में नौकर भी अपने जैसे ही रखे हैं। तो वह बोली, "तुम्हें तड़ी नहीं पता? तड़ी क्या होता है? देखो, तड़ी का मतलब होता है कि मैं तुम्हें बचाने की कोशिश कर रही हूँ, और तुम मुझे ही आँखें दिखा रहे हो! मेरे सामने ही टशन झाड़ रहे हो!" आस्था ने अरमान को बड़े ही खुले शब्दों में तड़ी का मतलब समझाया, अरमान अपनी आँखें छोटी करके उसे घूरकर देखने लगा। तभी अचानक आहान, जो कि आज कॉलेज से जल्दी लौट आया था, आस्था के साथ टाइम बिताने के लिए जल्दी ही घर आ गया था। और जैसे ही उसकी नज़र आस्था और अरमान पर पड़ी, तो उसकी सिट्टी-पिट्टी पूरी तरह से गुल हो चुकी थी। जल्दी से दौड़कर वह वहाँ आ गया और उन दोनों के पास खड़े होकर लंबी-लंबी गहरी साँस लेने लगा। आस्था आहान को देखकर बोली, "अरे! आहान जी, आप आ गए इतनी जल्दी! आपने तो बोला था कि आप रात को 8:00 बजे के बाद आयेंगे।" आहान एक नज़र कभी अरमान को देख रहा था और फिर दूसरी नज़र से अपने सामने खड़ी हुई आस्था को देख रहा था। और मन ही मन में सोच रहा था! कल रात तो भाभी इतनी ज़्यादा डरी हुई थी कि डर के मारे थर-थर काँप रही थी। इतना ही नहीं, जब आज सुबह अरमान भाई की बातें हो रही थीं, तब भी वह भाई के नाम से भी काँप रही थी। लेकिन अब तो यहाँ पर भाई की आँखों के सामने बिलकुल शेरनी बनकर खड़ी हुई है। लगता है दादाजी ठीक ही सोच रहे थे कि अरमान भाई को अगर कोई सुधार सकता है तो सिर्फ़ आस्था भाभी ही यह काम कर सकती है। अरमान गुस्से से घूरकर आहान को देखने लगा, और बोला, "कौन है यह लड़की? तुम जानते हो इसे? और यह यहाँ क्या कर रही है?" आहान के जवाब देने से पहले, आस्था तुरंत आहान के सामने जाकर खड़ी हो गई। और अरमान की ओर देखकर बोली, "अरे वाह! यह किस तरह से बातें कर रहे हो तुम अपने मालिक से?? क्या तुम्हें तुम्हारे घरवालों ने इतनी सी भी तमीज़ नहीं सिखाई है कि किस तरह से बात करते हैं! किस तरह से नहीं? और वह तुम्हारे मालिक हैं। क्या तुम अपने मालिक से इस तरह से बातें करोगे?" आहान ने आस्था की बातें सुनीं, तो उसने अपना हाथ अपने सर पर मार लिया, और वह सारा माज़रा समझ गया कि आस्था को ज़रूर कोई न कोई गलतफ़हमी हो गई है और वह अरमान को कोई मामूली सा नौकर समझ रही है। आहान मन ही मन में आस्था के लिए दुआ करने लगा, आज उसकी प्यारी भाभी का इस घर में आखिरी दिन है। भले ही रात में भाभी गोली से बच गई हो, लेकिन अब तो अरमान भाई अपनी बंदूक की सारी गोलियाँ भाभी के भेजे में उतार देंगे। क्योंकि अरमान के सामने तो आज तक कोई भी खड़ा होकर ठीक से बात तक नहीं कर सकता। लेकिन यहाँ तो आस्था भाभी सीधे-सीधे उसके भाई की आँखों में देखकर बात कर रही है। आहान आस्था को कहने लगा, "आप मेरी बात सुनिए, मुझे लगता है कि आपको इस वक़्त अंदर जाना चाहिए! मैं अभी थोड़ी देर में आकर आपको सारी बातें समझाता हूँ।" ऐसा कहकर उसने आस्था को वहाँ से अंदर जाने का इशारा किया। वह अरमान के सामने जानबूझकर आस्था को भाभी नहीं कह रहा था! क्योंकि उसे दादाजी की बातें याद थीं कि अरमान को इस बात के बारे में नहीं पता है कि उसकी शादी प्रियंका से नहीं, बल्कि आस्था से हुई है। अरमान गुस्से से आहान की ओर घूरकर देखने लगा, ऐसा लगने लगा था कि अरमान अपने गुस्से से अभी इसी वक़्त आहान को जलाकर राख कर डालेगा। आस्था आहान की ओर देखकर बोली, "लेकिन आप मुझे अंदर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं? अरे मैं तो यहाँ पर इस पागल नौकर को यह समझा रही थी कि इस तरह से पौधे तोड़कर ना फेंके! उन पौधों को ना काटे, क्योंकि अगर तुम्हारे उस बंदूक वाले मॉन्स्टर भाई ने यह देख लिया तो पक्का इसकी जान ले लेगा। मैं तो यहाँ इसको बचाने के लिए आई थी। ऊपर से यह मुझे ही तड़ी पर तड़ी दिखाए जा रहा है। उल्टी-सीधी बातें सुनाए जा रहा है। इतना ही नहीं, इसने मेरा हाथ भी पकड़ा था।" आस्था ने अपने भोलेपन में ये सारी बातें आहान से कहीं। आज के लिए इतना ही दोस्तों। दोस्तों, आस्था और अरमान की पहली मुलाक़ात आपको कैसी लगी? प्लीज़ ज़रूर बताएँ, साथ ही साथ अपने कीमती रिव्यू दें और कमेंट करना बिलकुल ना भूलें। धन्यवाद दोस्तों।

  • 15. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 15

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    आस्था आहान की ओर देखकर बोली, "लेकिन आप मुझे अंदर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं? अरे मैं तो यहां पर इस पागल नौकर को यह समझा रही थी कि इस तरह से पौधे तोड़कर ना फेंके! उन पौधों को ना काटे, क्योंकि अगर तुम्हारे उस बंदूक वाले मॉन्स्टर भाई ने यह देख लिया तो पक्का इसकी जान ले लेगा। मैं तो यहां इसको बचाने के लिए आई थी। ऊपर से यह मुझे ही तड़ी पर तड़ी दिखाए जा रहा है। उल्टी-सीधी बातें सुनाए जा रहा है। इतना ही नहीं, इसने मेरा हाथ भी पकड़ा था।" क्योंकि अगर तुम्हारे उस बंदूक वाले monster भाई ने यह देख लिया तो पक्का इसकी जान ले लेगा। मैं तो यहां इसको बचाने के लिए आई थी। ऊपर से यह मुझे ही तड़ी पर तड़ी दिखाए जा रहा है। उल्टी-सीधी बातें सुनाए जा रहा है। इतना ही नहीं, इसने मेरा हाथ भी पकड़ा था। आस्था के भोलेपन में कही गई इन बातों पर आहान ने अपने दांतों तले उंगली दबा ली। मन ही मन वो सोचने लगा, "भाभी, वाकई आपके साथ जो हमने थोड़ा सा टाइम बिताया, बहुत ही ज्यादा कीमती था।" क्योंकि मुझे पूरी उम्मीद है, अरमान भाई को उन्हीं के सामने बंदूक वाला मॉन्स्टर कहने पर वो आप की जान ले ही लेंगे। "आई मिस यू भाभी, मिस यू सो मच।" वो आस्था को बड़ी ही प्यार भरी नज़रों से देखने लगा। आहान मन ही मन बड़बड़ा रहा था। अचानक अरमान का गुस्सा हद से ज़्यादा बढ़ गया! उसने गुस्से से आस्था का हाथ कसकर पकड़ लिया, और लगभग उसे घसीटते हुए गार्डन से सीधा हाल में ले आया। आहान पीछे से चिल्लाता रहा! "भाई सुनो! भाई सुनो! छोड़ दो उन्हें! भाई! भाई! हेलो! भाई! प्लीज! प्लीज! मेरी बात सुनो भाई! छोड़ो!" वह पीछे-पीछे दौड़ने लगा! साथ ही साथ उसने आकाश, सुमित और ध्रुव को ग्रुप में मैसेज कर दिया! "सब जल्द से जल्द घर आ जाएं, कि घर पर एक तूफान आने वाला है?" आहान की आवाज सुनकर दादाजी भी वहां आ गए! दादाजी ने अरमान का हाथ आस्था के हाथों में देखा तो वो भी थोड़ा सा डर गए! वे जल्दी से उनकी ओर आए, और बोले, "अरमान! यह सब क्या हो रहा है यहां पर?" दादाजी की थोड़ी सी तेज आवाज, "अरमान! यह क्या हो रहा है?" सुनकर आस्था की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई! वो हैरानी से अरमान की ओर देखने लगी, उसे थोड़ी देर पहले कही गई बातें याद आने लगी! आस्था के हाथों की कंपकपी छूटने लगी। उसकी टांगें पूरी तरह से कांपने लगी थीं। अरमान का नाम ही उसे डराने के लिए काफी था। लेकिन यहां तो साक्षात अरमान उसकी आंखों के सामने खड़ा हुआ था, आस्था बहुत ही ज्यादा डर गई थी। डर के मारे वो बेहोश होकर अरमान की बाहों में झूल गई! किसी को पता ही नहीं चला। आस्था को इस तरह से बेहोश होता हुआ देखकर आहान चिल्ला उठा। दादाजी भी परेशान हो उठे! ध्रुव, आकाश और सुमित, जो आलरेडी वहां आने के लिए निकल चुके थे, सिंघानिया मेंशन पहुंच गए। वो सब इस तरह से आस्था को बेहोश होता हुआ देखकर पूरी तरह से परेशान हो चुके थे! जल्द ही आस्था को हाल में बने हुए सोफे पर लेटाया गया, और सभी अब गुस्से से अरमान को देखने लगे। आहान बोला, "मैं आपसे कह रहा था ना भाई! रुक जाइए! रुक जाइए! लेकिन आप हैं कि मेरी कोई बात नहीं सुनते! देखिए वो बेहोश हो गई है।।।" आकाश ने कहा, "अरमान! तुम्हें इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए था!" ध्रुव बोला, "अरे! कम से कम एक बार बात तो सुन लेते! वह वैसे इतनी मासूम है! वो इतना ज्यादा डरी हुई है तुम्हें देखकर! तो तुम्हें क्या जरूरत थी उनका हाथ घसीट कर इस तरह से हाल में लेकर आने की?" दादाजी बोले, "अरमान! और कितनी गलतियां करोगे तुम? आज तो तुमने हद ही पार कर दी!" सभी अलग-अलग तरीके से अरमान को डांट लगा रहे थे। अरमान बुरी तरह से चिढ़ चुका था! हैरान था कि अचानक से इन सब लोगों को हुआ क्या है? अरमान के सामने इन सब लोगों की जुबान नहीं खुलती थी। लेकिन ये सभी एक अनजान लड़की के लिए उसे इस तरह से बातें क्यों सुना रहे हैं? अरमान जोरों से चिल्लाया! "बस कीजिए आप लोग! आप लोगों की हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह से बात करने की? और ये लड़की है कौन? क्यों आप सब लोग को इसकी इतनी ज्यादा फिक्र हो रही है?" अरमान के सवाल ने सबको चौंका दिया। वे एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे, फिर चारों ने दादाजी की ओर इशारा किया। दादाजी समझ चुके थे कि वो सब उनसे क्या कहना चाहते हैं। उन सबका इशारा समझते हुए, दादाजी अरमान के सामने जाकर खड़े हो गए और बोले, "ये आस्था है। आस्था अरमान सिंघानिया।" यह सुनकर अरमान के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उसने अपनी दो उंगली उठाकर अपने माथे पर रख दी और गुस्से से अपने माथे पर टेप करने लगा। चारों सूखे पत्ते की तरह कांपने लगे थे। वो समझ चुके थे कि अरमान का गुस्सा जब हद से ज़्यादा बढ़ जाता है, तब वह इसी तरह की हरकत करता है। दादाजी ने अरमान के बढ़ते गुस्से को देखा। वे अरमान के ठीक सामने जाकर खड़े हो गए! और बोले, "हम अच्छी तरह से जानते हैं कि ये सारी बातें जानने के बाद तुम्हें काफी गुस्सा आ रहा होगा! और अजीब भी लग रहा होगा, हम मानते हैं कि हमने तुम्हारी शादी प्रियंका से तय की थी। लेकिन हुआ यह कि शादी वाले दिन ही प्रियंका शादी से पहले ही मंडप से भाग गई! तब हमने मजबूरी में प्रियंका की ही कजिन आस्था को शादी करने पर मजबूर किया। और अपने खानदान की इज्जत बचाने के लिए उसे मंडप में बैठा दिया।" अरमान गुस्से से लाल-सुर्ख आंखों से अपने दादाजी को घूरने लगा! दादाजी फिर बोले, "हम अच्छी तरह से जानते हैं कि तुम्हें इस वक्त काफी ज्यादा गुस्सा आ रहा है। लेकिन हमने जो कुछ भी किया, उस वक्त खानदान की इज्जत को बचाने के लिए किया। तुम एक बार ठंडे दिमाग से सोचो अरमान, इस तरह गुस्सा करने से सिचुएशन बदल नहीं जाएगी।" अरमान अपने सर पर दो से तीन बार टेप करते हुए बोला। "आपने गलती कर दी दादाजी! आपने बहुत बड़ी गलती कर दी। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। दादाजी! कम से कम ऐसा कुछ करने से पहले आपको मुझे इस बारे में बताना चाहिए था। आपने गलती कर दी! दादाजी! गलती कर दी!" यह कहकर अरमान सोफे पर लेटी हुई बेहोश आस्था को गुस्से भरी नज़रों से देखता हुआ सीधा अपने कमरे में चला गया। अरमान के कमरे में से सामान के टूटने-फूटने की आवाज़ आनी शुरू हो गई! चारों हैरानी से दादाजी की ओर देखने लगे, और बोले, "दादाजी, अब क्या किया जाए? अरमान भाई का गुस्सा तो आउट ऑफ कंट्रोल हो गया है। और आप अच्छी तरह से जानते हैं। जब उनका गुस्सा हद से ज़्यादा बढ़ जाता है तो वो बेजान चीजों को तोड़-फोड़ कर उनका नक्शा बिगाड़ देते हैं। अभी पिछले महीने ही तो उनका कमरा रिनोवेट किया गया था। सारी चीजें इंपॉर्टेंट विदेश से मंगाई गई थीं। और अब इतनी जल्दी सारा सामान तोड़ा जा रहा है। तो मतलब एक बार फिर से हमें रिनोवेशन टीम को बुलाना होगा?" आकाश के कहने पर, दादाजी उसकी ओर देखकर बोले, "अपनी फालतू की बकवास बंद कर नालायक!" और ध्रुव की ओर देखकर बोले, "वाकई डॉक्टर है या नहीं? तुझे क्या दिखाई नहीं दे रहा है? बहू कब से बेहोश पड़ी हुई है। जाकर उसका इलाज क्यों नहीं कर रहा है?" ध्रुव जल्दी से आगे आया। और बोला, "सॉरी! सॉरी! दादाजी! वो अरमान भाई को गुस्से में देखकर मेरा तो दिमाग ही फ़्रीज हो गया। भाभी की ओर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया।" वह जल्दी ही आस्था को चेक करने लगा। ध्रुव ने जल्दी ही आस्था को चेक करके एक इंजेक्शन दे दिया। और दादाजी की ओर देखकर बोला, "दादाजी! घबराने वाली कोई बात नहीं है। भाभी केवल डर की वजह से बेहोश हुई है। अभी थोड़ी देर में होश भी आ जाएगी।" ध्रुव के कहने पर दादाजी ने राहत की सांस ली!! अचानक अरमान के कमरे से बंदूक के फायर करने की आवाज़ सुनाई दी। आज के लिए इतना ही। आगे की story जानने के लिए सुनते रहिये obbbsessd billionaire hubby...

  • 16. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 16

    Words: 2032

    Estimated Reading Time: 13 min

    ध्रुव ने शीघ्र ही आस्था को जांचकर एक इंजेक्शन दिया। और दादाजी की ओर देखकर बोला, "दादाजी, घबराने वाली कोई बात नहीं है। भाभी केवल डर के कारण बेहोश हुई हैं। थोड़ी देर में होश आ जाएगा।" ध्रुव के यह कहते ही दादाजी ने राहत की साँस ली। अचानक अरमान के कमरे से बंदूक चलने की आवाज़ आई। दादाजी और चारों ने अरमान के कमरे से बंदूक की आवाज़ सुनकर घबरा गए! आहान तो मानो पत्थर की मूर्ति बन गया था। वे सब अरमान के कमरे की ओर दौड़े। दादाजी पसीने से तर-बतर हो गए थे; उनके शरीर में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वे दौड़कर जल्दी अरमान के कमरे में पहुँच पाते! फिर भी, एक नज़र आस्था की ओर देखते हुए, वे शीघ्र ही अरमान के कमरे में पहुँच गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि अरमान का शानदार मास्टर बेडरूम कबाड़खाने में तब्दील हो चुका था। उन सब के बीच में अरमान घुटनों के बल बैठा था, एकटक उस दिशा में देख रहा था जहाँ उसने लगातार तीन फायर किए थे! दादाजी धीरे-धीरे वहाँ तक गए। यह सब देखकर उन्हें राहत मिली! कम से कम अरमान को कुछ नहीं हुआ था! लेकिन अरमान के हाथ से खून निकल रहा था। यह बात किसी से छिपी नहीं रही! दादाजी, जो मुश्किल से वहाँ तक पहुँचे थे, बुरी तरह साँस लेने लगे थे। आकाश, सुमित, ध्रुव जल्दी से दादाजी को संभालने लगे, जबकि आहान पत्थर सा जमा रहा। उसे ऐसा लगा मानो उसने अपने अरमान भाई को हमेशा के लिए खो दिया हो! अरमान शुरू से ही आहान का बहुत ख्याल रखता था। आहान अरमान का कज़िन था! लेकिन बचपन से ही वह अरमान के साथ रहा था। अपने माँ-बाप से ज़्यादा अगर उसे किसी से प्यार था तो वह सिर्फ़ अरमान से था, इसलिए अरमान की यह हालत देखकर उसका शरीर पत्थर सा जम गया था! दादाजी के साँस लेने में तकलीफ़ देखकर तीनों की घबराई हुई आवाज़ें अरमान के कानों तक पहुँचीं! आकाश ने थोड़ी तेज आवाज़ में अरमान से कहा, "यह किया है तूने? अरमान! देखो दादाजी को क्या हो रहा है? अरमान! होश में आओ! यहाँ देखो!" तीनों के थोड़ा चिल्लाने पर अरमान होश में आया। और दादाजी को साँस लेने में तकलीफ़ देखकर डर से उसकी हालत खराब होने लगी। उसने जल्दी से ध्रुव से कहा— "ध्रुव! जल्दी करो! गाड़ी निकालो! हमें अभी हॉस्पिटल जाना है।" वो तीनों अरमान को देख रहे थे। उन्हें अरमान पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उन्हें लग रहा था कि दादाजी और आहान की यह हालत अरमान की वजह से है। दादाजी को अस्पताल ले जाते वक़्त, अरमान की नज़र आहान पर पड़ी, तो वह थोड़ी देर के लिए रुका, और तुरंत उसके पास जाकर उसे गले लगा लिया। अरमान का साथ पाकर आहान फूट-फूट कर रोया, कुछ पल। सभी थोड़ी देर के लिए भावुक हो गए, लेकिन दादाजी की बढ़ती हुई साँसों का एहसास होते ही सबका ध्यान फिर से दादाजी पर चला गया। और सभी जल्दी ही अस्पताल जाने के लिए रवाना हो गए। अरमान और बाकी सब, जब दादाजी को सीढ़ियों से नीचे ला रहे थे, एक-एक करके सबकी नज़र आस्था पर पड़ रही थी। आस्था अभी भी बेहोशी में सोफे पर लेटी हुई थी। सबसे आखिर में अरमान की नज़र आस्था पर पड़ी, उसने बड़े ही गुस्से और नफ़रत से आस्था की ओर देखा। वह दादाजी की हालत का जिम्मेदार सिर्फ़ आस्था को मान रहा था। आकाश ने समझदारी दिखाते हुए देव को सिंघानिया मेंशन में रुकने के लिए कहा था। क्योंकि किसी भी पल आस्था को होश आ सकता था! और अगर आस्था को होश आता है तो घर में सबको ना पाकर वह परेशान हो सकती थी! इसलिए उन्होंने देव को समझा दिया कि आस्था के होश में आने पर वह उसे बता दे कि सब ठीक है। सिर्फ़ दादाजी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है इसलिए उन्हें अस्पताल ले गए हैं। ऐसा कहकर वे लोग वहाँ से निकल गए थे। अरमान उन चारों समेत दादाजी को लेकर अस्पताल की ओर रवाना हो गया था। अरमान सिंघानिया की गाड़ी के आगे-पीछे कम से कम 4 से 5 गाड़ियाँ और चल रही थीं। उन सभी में उनके सुरक्षा गार्ड थे। अरमान सिंघानिया की सुरक्षा बहुत सख्त थी। जिसकी वजह से कोई भी आम आदमी उस तक नहीं पहुँच पाता। वे सब जल्दी ही शहर के मशहूर अस्पताल में पहुँच गए थे। और दादाजी को इमरजेंसी रूम में इलाज के लिए ले जाया गया। दूसरी ओर, उनके जाने के कुछ देर बाद आस्था को होश आने लगा। आस्था की आँखें खुलते ही, वह हड़बड़ाकर उठकर बैठ गई! उसकी आँखों के सामने बार-बार अरमान का गुस्से वाला चेहरा दिखाई दे रहा था। आस्था का सिर बहुत दर्द कर रहा था। उसे अपने आस-पास सन्नाटा महसूस हुआ! आस्था ने अपने चारों तरफ़ देखा! उसे एहसास हुआ कि वह इस बड़े हाल में अकेली है। आस्था ने अपने चारों तरफ़ देखा! लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसने हल्के से आवाज़ लगाई, "दादाजी!" दादाजी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर आस्था ने आहान जी, आकाश जी, ध्रुव भैया, सभी को आवाज़ लगाना शुरू कर दिया। लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि उस वक़्त कोई भी वहाँ मौजूद नहीं था। आस्था उन्हें ढूँढते हुए दरवाज़े से बाहर जाने लगी! अचानक देव ने उसका रास्ता रोक लिया!! आस्था उस अनजान लड़के को देखकर हैरान हो गई, क्योंकि वह दिखने में बहुत ही आकर्षक और स्मार्ट था। और उसने बहुत ही अच्छे ढंग से कपड़े पहन रखे थे। जो इस बात की गवाही दे रहे थे कि वह कोई ख़ास आदमी था। तब आस्था ने उसकी ओर देखकर कहा, "जी, आप कौन हैं?" जिस तरह से उसने अनजाने में अरमान के साथ बदतमीज़ी की थी, इस बार आस्था थोड़ी सावधानी बरत रही थी। इसलिए वह किसी के साथ भी इस तरह से बदतमीज़ी नहीं करना चाहती थी। इसलिए वह देव से सीधे-सीधे पूछने लगी थी कि आखिरकार आप कौन हैं? और आप इस तरह से मेरा रास्ता क्यों रोक रहे हैं? देव ने एक नज़र आस्था की ओर देखा, फिर विनम्रता से अपना सर झुका दिया। आखिरकार उसकी लेडी बॉस उसके सामने थी! फिर वह आस्था की ओर देखकर बोला, "मेम, इस वक़्त घर पर कोई भी नहीं है। और आप इस तरह से बाहर नहीं जा सकती हैं।" देव के यह बताते ही, आस्था हैरान हो गई! और बोली, "घर पर कोई नहीं है? मतलब? अभी थोड़ी देर पहले तो दादाजी, आकाश जी, और सुमित भैया, ध्रुव जी, और साथ ही साथ आहान भी यहाँ मौजूद थे। तो फिर कहाँ गए सब के सब?" जानबूझकर आस्था ने अरमान का नाम नहीं लिया। देव मन ही मन में सोचने लगा कि मैडम ने सबके नाम तो ले लिए लेकिन बॉस का नाम क्यों नहीं लिया? लेकिन उसने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा। और बोला, "जी, वह एक्चुअली मैडम, दादाजी की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी तो इसीलिए उन्हें हॉस्पिटल ले गए हैं। और सभी उन्हीं के साथ गए हैं।" यह सुनकर आस्था पूरी तरह से घबरा गई! और बोली, "यह आप क्या कह रहे हैं? क्या हुआ है दादाजी को? कौन से हॉस्पिटल ले गए? मुझे अभी हॉस्पिटल जाना है।" आस्था के यह कहते ही, देव ने उसे मनाते हुए कहा, "सॉरी मैडम, लेकिन अरमान सर ने सख्त निर्देश दिए हैं कि आप घर से बाहर नहीं जा सकती हैं।" तब आस्था ने गुस्से से कहा, "नहीं-नहीं! आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते हैं। मैंने कहा ना आपसे कि मुझे अभी हॉस्पिटल जाना है! दादाजी को देखने के लिए, मतलब मुझे हॉस्पिटल जाना है।" अगर किसी को किसी तरह की कोई मदद की ज़रूरत होती थी तो वह बिना सोचे-समझे आगे बढ़कर सबकी मदद किया करती थी। लेकिन यहाँ तो उसके दादा ससुर की बात थी। तो भला वो कैसे पीछे रह सकती थीं। क्योंकि जब से उसे घर में आई थी, केवल दादाजी ही थे जिन्होंने सबसे ज़्यादा प्यार और विश्वास आस्था पर दिखाया था। इस तरह से दादाजी की तबीयत के बारे में सुनकर आस्था काफ़ी ज़्यादा बेचैन हो गई थी। इसलिए आस्था ने जल्दी से देव से कहा, "देखिए अगर आप मुझे हॉस्पिटल लेकर नहीं जाना चाहते हैं तो मैं अकेले चली जाऊँगी!" ऐसा कहकर आस्था ने देव का हाथ हटाते हुए आगे बढ़ने लगी। देव पूरी तरह से मजबूर हो गया। लेकिन वह इस तरह से आस्था को अकेले नहीं जाने दे सकता था। इसलिए देव ने आस्था से कहा, "रुकिए मैडम! आप इस तरह से अकेले बाहर नहीं जा सकती हैं। अगर आप हॉस्पिटल ही जाना चाहती हैं तो मैं आपको लेकर चलता हूँ।" यह सुनते ही आस्था ने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी, और देव के साथ जल्दी ही आस्था भी अस्पताल की ओर रवाना हो गई थी। दूसरी ओर दादाजी को एक बार फिर दिल का दौरा पड़ा था। डॉक्टर ने यह बात सबको बता दी थी। जैसे ही अरमान ने दादाजी के दूसरे दिल के दौरे के बारे में सुना, तो वह बहुत परेशान हो गया था। और वह इसका जिम्मेदार पूरी तरह से आस्था को मान रहा था। ना तो आस्था को वहाँ इस तरह से देखता! और ना ही वो गुस्से से अपना कंट्रोल खोता, ना दादाजी अरमान की ऐसी हालत देखकर एक बार फिर सदमे में जाते? इतना सब सोचकर अरमान का गुस्सा आस्था पर और भी ज़्यादा बढ़ गया था। ध्रुव, जो उस वक़्त दादाजी के साथ मौजूद था, वह नम आँखों के साथ बाहर आया। और अरमान की ओर देखकर बोला, "दादाजी की हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं है। अरमान ब्रो, मैंने आपसे पहले ही कहा था। दादाजी को जब पहले दिल का दौरा पड़ा था, उसी वक़्त हमें दादाजी का ख्याल रखना चाहिए था। दादाजी को हर वक़्त परेशानी और तनाव से दूर रखना होगा, तभी उनकी तबीयत में सुधार हो सकता है। लेकिन आज फिर से दादाजी को दूसरा दिल का दौरा पड़ा है। और मुझे बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अगर दादाजी को एक बार फिर दिल का दौरा पड़ा तो मुझे नहीं लगता कि इस बार हम उन्हें बचा पाएँगे!" यह सब सुनकर अरमान ने अपना आपा खो दिया, और तुरंत ध्रुव का गिरेबान पकड़ लिया और बोला, "क्या तू पागल हो गया है तू? हमारे दादाजी के बारे में बात कर रहा है, तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की! चाहे कुछ भी हो जाए, दादाजी को कुछ नहीं होना चाहिए! कुछ भी नहीं। ध्रुव, यह बात अपने दिमाग़ में अच्छी तरह से बैठा लो। समझे तुम?" आकाश, सुमित आगे आए, दोनों ने मिलकर अरमान से ध्रुव का गिरेबान छुड़ाया। ध्रुव भी थोड़ा भावुक हो गया। और बोला, "हर बार दादाजी की तबीयत सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी वजह से खराब होती है अरमान भाई, आप चाहे मानें या ना मानें???" 👍🏻👍🏻✍🏻💗 लाइक, रिव्यू, और फ़ॉलो करें प्लीज़!!!!!!

  • 17. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 17

    Words: 1576

    Estimated Reading Time: 10 min

    आकाश और सुमित आगे आए। दोनों ने मिलकर अरमान से ध्रुव का गिरेबान छुड़ाने का प्रयास किया।

    ध्रुव थोड़ा भावुक हो गया।

    "हर बार दादाजी की तबीयत सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी वजह से ख़राब होती है, अरमान भाई। आप चाहे मानें या ना मानें?"

    ध्रुव के यह कहने पर, अरमान ने तुरंत उसका कॉलर छोड़ दिया। वह उस कमरे से निकलकर हॉस्पिटल के कॉरिडोर में एक शांत जगह पर जाकर खड़ा हो गया। वह उस वक़्त थोड़ा टूटा हुआ था।

    आकाश और सुमित बोले, "ध्रुव, तुम्हें अरमान से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि वह कितना ज़्यादा इमोशनल है।"

    उनकी नज़र आहान पर पड़ी, जो सदमे की वजह से कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। वे तीनों जानते थे कि आहान उन सब में सबसे कमज़ोर है; किसी की ज़रा सी चोट और दुख से उसकी हालत काफ़ी ख़राब हो जाती है।

    आकाश और सुमित आहान को लेकर बाहर चले गए और उसे समझाने लगे कि उसे छोटी-छोटी बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। अगर वह दादाजी के सामने गुमसुम रहेगा, तो दादाजी को भी बुरा लग सकता है।

    "तो, तुम्हें थोड़ी-बहुत हिम्मत से काम लेना चाहिए।"

    वे दोनों आहान को दिलासा देते हुए समझाते रहे।

    ध्रुव दादाजी के साथ रुका था। अरमान आँखें बंद करके दादाजी के पहले हार्ट अटैक के बारे में सोचने लगा।

    दादाजी का पहला हार्ट अटैक आया था, तब अरमान बहुत डर गया था। वह अपने दादाजी को किसी भी कीमत पर नहीं खो सकता था। उसकी ज़िंदगी में कोई और रिश्तेदार नहीं थे; केवल उसके दोस्त और दादाजी, यही उसकी फैमिली थी।

    तब दादाजी ने उससे शादी करने के लिए कहा था। अरमान दादाजी को जल्द से जल्द ठीक होते हुए देखना चाहता था, इसलिए उसने शादी के लिए हाँ कह दिया था।

    लेकिन उसने एक शर्त रखी थी कि वे चाहें तो किसी भी लड़की से उसकी शादी करवा सकते हैं, उसे कोई मतलब नहीं है; लेकिन वह लड़की बिल्कुल भी ख़ूबसूरत नहीं होनी चाहिए।

    दादाजी उसकी शर्त सुनकर हैरान हुए, लेकिन उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनके पोते ने शादी के लिए हाँ कह दिया है। उन्होंने अपने ऑफ़िस में काम करने वाले मनोज की बेटी, प्रियंका को अरमान के लिए चुना था।

    प्रियंका ज़्यादा ख़ूबसूरत नहीं थी; हल्के से साँवले रंग की थी। इसलिए अरमान ने उससे शादी करने के लिए हाँ कह दिया था।

    लेकिन जब अरमान को पता चला कि उसकी शादी प्रियंका से नहीं, बल्कि आस्था से हुई है, तो उसका गुस्सा बढ़ गया। आस्था की ख़ूबसूरती उसकी आँखों में चुभने लगी थी।

    वह यह सब सोच ही रहा था कि अचानक उसे आस्था दिखाई दे गई। पहले तो अरमान को लगा कि शायद वह आस्था के बारे में सोच रहा है, इसलिए आस्था उसे दिखाई दे रही है।

    लेकिन जब उसने आस्था के पीछे देव को आते हुए देखा, तो उसे यकीन हो गया कि यह उसका वहम नहीं है, और वाकई आस्था वहाँ आ रही है। अरमान ने गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ कसकर बंद कर लीं; वह आस्था को वहाँ नहीं देखना चाहता था।

    लेकिन आस्था उस वक़्त दादाजी की फ़िक्र में दौड़ती चली आ रही थी। उसे किसी चीज़ का होश नहीं था। अरमान तुरंत उसके सामने जाकर खड़ा हो गया।

    आस्था, जो तेज़ी से दादाजी के कमरे की तरफ़ जा रही थी, अचानक किसी से टकरा गई। उसे लगा मानो उसका सर किसी पत्थर से टकरा गया हो। आँखें खोलकर सामने खड़े अरमान को देखकर उसके होंठ काँपने लगे।

    अरमान गुस्से से लाल आँखों के साथ आस्था को घूर रहा था। दाँत पीसते हुए बोला, "तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? दादाजी की ऐसी हालत करने के बाद भी क्या तुम्हें चैन नहीं मिला?"

    अरमान के यह कहने पर, आस्था के हाथ-पैर काँपने लगे। वह सोचने लगी कि आखिर उसने क्या किया है? दादाजी की हालत उसकी वजह से कैसे बिगड़ सकती है? आस्था ने खुद को शांत किया और अरमान से कहने लगी, "मुझे दादाजी से मिलना है! प्लीज़ मेरे रास्ते से हट जाइए।"

    आस्था अरमान के बराबर साइड से जाने लगी—

    अरमान ने झट से उसका हाथ पकड़ लिया, उसे खींचता हुआ उस जगह ले आया जहाँ थोड़ी देर पहले वह खुद खड़ा हुआ था। आस्था को दीवार के सहारे लगाकर, वह उसे आँखों में आँखें डालकर कहने लगा, "डोंट यू डेयर, दादाजी के करीब जाने के बारे में सोचना भी मत! और मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर तुम्हें लगता है कि तुम अपनी ख़ूबसूरती का जाल मुझ पर और मेरे दादाजी या मेरे परिवार पर चला सकती हो, तो यह तुम्हारी बहुत बड़ी गलतफ़हमी है! तुम्हारी यह ख़ूबसूरती मुझे कभी भी रिझा नहीं पाएगी! समझी तुम!!"

    अरमान की बात सुनकर आस्था की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसके पास शब्द ख़त्म हो गए थे। वह अपने सामने खड़े हुए इंसान को क्या कहे? अरमान गुस्से से उसे सुनाए जा रहा था। अरमान का ऐसा बर्ताव देखकर आस्था का पूरा शरीर काँप रहा था। आस्था की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अरमान की आँखों में देख सके।

    अरमान आस्था को गुस्से में कुछ और सुनाता, इससे पहले उसे पीछे से देव की आवाज़ सुनाई दी।

    देव की आवाज़ सुनकर अरमान आस्था को घूरते हुए बोला, "यस?"

    देव ने कहा, "बाॅस, दादाजी को होश आ गया है! और वे आपको बुला रहे हैं।"

    यह सुनते ही अरमान ने आस्था को छोड़ दिया और तुरंत दादाजी के कमरे की ओर जाने लगा।

    देव ने अफ़सोस भरी नज़रों से आस्था की ओर देखा, और मन ही मन में सोचने लगा, ना जाने इस बेचारी लड़की का जन्म किस अशुभ घड़ी में हुआ था। जो इस जन्म में अरमान जैसे मॉन्स्टर की बीवी बन गई!

    फिर खुद को डाँटने लगा कि उसे बॉस के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए। यह सोचते हुए देव वहाँ से खिसक गया।

    अरमान जल्दी से अपने दादाजी के पास गया। उनका हाथ पकड़कर उन्हें देखने लगा, और इस वक़्त अरमान के चेहरे पर कोई इमोशन दिखाई नहीं दे रहा था, वह केवल अपने दादा का हाथ पकड़े हुए सपाट चेहरे के साथ दादाजी को देख रहा था।

    दादाजी अरमान की ओर देखकर बोले, "अरमान, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि हमने जो कुछ भी डिसीज़न लिया है, वह शायद तुम्हें कुछ ख़ास पसंद नहीं आया है! लेकिन उस वक़्त हमारी मजबूरी थी! बेटा, और अब हम दिल से आस्था बेटी को अपनी बहू मान चुके हैं! तो हम चाहते हैं कि तुम आस्था बेटी को अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लो।"

    दादाजी के आस्था के बारे में बातें करने पर, अरमान ने फ़ौरन अपना हाथ हटा लिया। घूरकर उनकी ओर देखने लगा। तुरंत वहाँ से खड़ा हो गया, और बोला,

    "आप मुझे उस लड़की को अपनी ज़िंदगी में शामिल करने के लिए कैसे कह सकते हैं? लेकिन मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ दादाजी, वह लड़की कभी भी मेरी ज़िंदगी में शामिल नहीं हो पाएगी! वह मुझसे ही नहीं, मेरे पूरे परिवार से दूर रहेगी। भले ही वह इस वक़्त यहाँ हॉस्पिटल में मौजूद है! लेकिन मैं उसे आपको बिल्कुल देखने नहीं दूँगा।"

    आकाश और सुमित ने सुना कि आस्था यहाँ हॉस्पिटल में है, दोनों अरमान से बोले, "यह कैसी बातें कर रहे हो तुम? भाभी यहाँ आयी है! और तूने भाभी को बाहर रोककर रखा हुआ है! यह क्या किया तूने? भाभी क्या सोच रही होगी तेरे बारे में??"

    अरमान दोनों की बातें सुनकर घूरकर उनकी ओर देखने लगा, और बोला, "कोई मेरे बारे में क्या सोचता है और क्या नहीं, इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। तुम लोगों ने यह क्या 'भाभी-भाभी' लगा रखा है! मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो सब, वह लड़की तुम्हारी कुछ नहीं लगती है। समझे तुम लोग!!"

    तभी...?

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    👍🏻👍🏻👍🏻✍🏻

  • 18. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 18

    Words: 1310

    Estimated Reading Time: 8 min

    ध्रुव ने अचानक दादाजी की ओर देखा, फिर अरमान के पास जाकर कहा, "अरमान भाई, यह क्या कर रहे हैं आप! दादाजी के सामने इस तरह की बातें कैसे कर सकते हैं? आप जानते ही हैं कि वे कितने बीमार हैं!"

    दादाजी गुस्से से अरमान को घूरने लगे। "अगर अभी इसी वक्त हमारी बहू को हमारे पास नहीं लाए, तो हम तुम्हें हमारी चिता को अग्नि देने का अधिकार भी छीन लेंगे।"

    अरमान के पैर जैसे बर्फ हो गए थे, दादा की बातें सुनकर।

    आहान, जो पहले से ही दादाजी की तबीयत को लेकर चिंतित था, चेहरा उड़ गया बातें सुनकर। वह दौड़कर दादाजी के पैरों पर गिर पड़ा और बुरी तरह रोने लगा। कुछ पल के लिए सभी की आँखों में आँसू आ गए थे। सभी भावुक हो गए थे; सभी की आँखों में आँसू थे।

    सिवाय अरमान के, जो गुस्से से लाल आँखों से कभी दादा को, कभी अपने दोस्तों और बेवकूफ़ कज़िन को घूर रहा था। अरमान ने दो उंगलियों से अपने माथे पर टैप करना शुरू कर दिया।

    सब समझ गए थे कि अरमान अपना गुस्सा नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। वह गुस्सा नियंत्रित करने के लिए हमेशा अपने माथे पर रगड़ता था।

    ध्रुव ने अरमान का हाथ पकड़ लिया और उसे एक कोने में ले जाकर कहा, "अरमान भाई, दिमाग से काम लीजिए! दादाजी आस्था भाभी से भावनात्मक रूप से जुड़ गए हैं! अगर आप उन्हें आस्था भाभी से दूर रखेंगे, तो दादाजी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है, जान को खतरा हो सकता है।

    अगर आप वाकई दादाजी की जान बचाना चाहते हैं, तो आस्था भाभी को उनके आसपास रखना होगा! चाहे आप दिल से आस्था भाभी को कबूल करें या ना करें! लेकिन दादाजी के स्वास्थ्य के लिए, उन्हें खुश रखने के लिए, आप उनके सामने आस्था भाभी के साथ थोड़ा अच्छा व्यवहार कर सकते हैं ना।"

    अरमान गुस्से से भर गया। "ये कैसी बातें कर रहा है तू? मुझे उस लड़की के लिए एक्टिंग करने को कह रहा है? मैं ऐसा नहीं करूँगा।"

    ध्रुव ने चिड़चिड़ाहट में माथे पर हाथ मारा और दाँत पीसते हुए कहा, "मैं आपको भाभी के लिए एक्टिंग करने को नहीं कह रहा हूँ! अरमान भाई, मैं आपको आपके दादाजी के लिए कह रहा हूँ।

    इस वक्त दादाजी का स्वास्थ्य ज़्यादा ज़रूरी है! हम दादाजी के स्वास्थ्य को लेकर कोई जोखिम नहीं ले सकते। और दादाजी की बीमारी की वजह से ही तो आपने शादी की थी। आप यह कैसे भूल सकते हैं।

    मुझे पता है शादी की सच्चाई जानकर आपको बुरा लगा होगा, एक बड़ा सदमा लगा होगा! लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप अपनी नफ़रत और गुस्से में दादाजी को हमेशा के लिए खोने का जोखिम लें?"

    ध्रुव के सीधे शब्दों ने अरमान को सोचने पर मजबूर कर दिया। वह सोचने लगा, अगर वह लड़की दादाजी की जान बचा सकती है, तो वह उसका उपयोग ज़रूर करेगा!

    उस लड़की को कैसे हैंडल करना है, यह मैं अपने हिसाब से कर लूँगा! यह सोचते हुए अरमान लंबे कदमों से आस्था के पास जाने लगा!

    आस्था, अरमान के बर्ताव से काफ़ी डरी हुई थी, दीवार से लगी खड़ी थी। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

    अचानक अरमान उसके पास आया और उसकी बाजू पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा! आस्था अपनी काली आँखों से अरमान को देखने लगी! आस्था का चेहरा एक मासूम बच्चे जैसा प्यारा और क्यूट लग रहा था।

    एक पल के लिए आस्था के आँसुओं ने अरमान के दिल को छुआ! लेकिन उसने खुद को शांत किया और आस्था को देखकर कहा,

    "वाकई तुम मेरी सोच से भी ज़्यादा स्मार्ट निकलीं। तुमने आते ही मेरे दादाजी पर अपना कब्ज़ा जमा लिया! अब मेरे दादाजी मुझसे ज़्यादा तुम्हारी फ़िक्र कर रहे हैं! वे तुम्हें देखना चाहते हैं। वाकई काफ़ी स्मार्ट हो तुम, इतने बड़े खानदान में आकर सबसे पहले तुमने उस इंसान को अपना निशाना बना लिया जो आसानी से तुम्हारे बहकावे में आ सकता था।

    लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो! भले ही तुमने छल-कपट से मुझसे शादी कर ली हो, लेकिन मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी कोई हैसियत नहीं है। और ना ही तुम कभी अरमान सिंघानिया की बीवी बन पाओगी,.....!!!!!!!!!!!!

    अरमान सिंघानिया की ज़िंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है। समझी तुम, भले ही तुमने अपने मासूम चेहरे का इस्तेमाल करके मेरे दादाजी को फँसा लिया हो,

    लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, आज के बाद तुम्हारी आँखों के आँसू सिर्फ़ मेरे सामने रहेंगे! अगर भूलकर एक भी आँसू मेरे दादाजी के सामने आया, तो मैं तुम्हारे पूरे खानदान को मिटा डालूँगा! मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा, और तुम्हारी जान ले लूँगा! लेकिन,

    दादाजी के सामने तुम कभी भी इस बात का पता नहीं लगने दोगी कि अरमान सिंघानिया का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है! कल शादी हुई है ना मेरी तुम्हारी और आज ही मैं तुम्हें तलाक भी दे दूँगा! बहुत जल्दी मैं तलाक के पेपर्स रेडी करवा लूँगा, और जैसे ही दादाजी ठीक होंगे! मैं उन्हें इस तलाक के बारे में भी बता दूँगा।"

    आस्था की रूह काँप गई। वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी। शादी को 24 घंटे ही हुए थे और उसका पति तलाक की बात कर रहा है।

    और उसे दादाजी और दोस्तों के सामने खुश रहने के लिए एक्टिंग करने को कह रहा है! आस्था की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    अरमान के प्रभावशाली आभा और आँखों को देखकर, उसे इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अरमान से एक सवाल भी कर सके, "तुम यह क्या कर रहे हो? तुम्हारी अभी तो मुझसे शादी हुई है, तुम मुझे ऐसी बातें कैसे कर सकते हो?" वह अरमान से कोई सवाल नहीं कर सकी! वह अपनी हिरनी जैसी आँखों से उसे घूर रही थी और

    कहीं ना कहीं अरमान भी आस्था के घूरने से चिढ़ रहा था। "अपना यह हुलिया ठीक करो! तुम्हें अभी दादाजी से मिलने जाना है।"

    आस्था ने बच्चे की तरह सिर हिलाया। अपने आँसुओं को पोंछकर वह अरमान के पीछे-पीछे चलने लगी!

    ......!!!! ;!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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    👍🏻✍🏻💗

  • 19. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 19

    Words: 1233

    Estimated Reading Time: 8 min

    आस्था जल्दी अरमान के ठीक पीछे-पीछे उस कमरे में गई। उसके क़दम जैसे ही कमरे के अंदर पड़े, एक पल के लिए थमे गए! उसकी आँखों के सामने दादाजी ऑक्सीजन मास्क लगाए लेटे हुए थे। दादाजी को देखकर आस्था की आँखें नम हो गईं, पर उसने तुरंत अपने आँसू पोंछ लिए।

    अरमान ने आस्था की यह हरकत देखी, पर वह चुपचाप खड़ा रहा। दादाजी ने बड़े प्यार से आस्था को अपने पास बुलाया और अपने पास बिठाकर उसका हाथ थाम लिया।

    आस्था दादाजी की हालत देखकर बहुत भावुक हो रही थी। पर उसने जैसे-तैसे अपने आँसुओं को रोक लिया था।

    अरमान गुस्से से आस्था और दादाजी के हाथों को घूर रहा था। वह सोच रहा था, "थोड़ी देर पहले मैंने दादाजी का हाथ पकड़ा था, तो उन्होंने मेरा हाथ झटक दिया था, लेकिन इस लड़की का हाथ देखो कैसे पकड़े हुए हैं! कल आई हुई लड़की ने कुछ घंटों में ऐसा क्या जादू कर दिया कि मेरे दादाजी मेरे नहीं रहे!"

    "वह मुझसे ही बगावत करने पर उतर आए, इसको तो मैं बाद में देख लूँगा!" यह सब सोचते हुए अरमान आस्था की ओर घूर रहा था।

    आस्था अब काफ़ी घबरा गई थी क्योंकि अरमान की नज़रें सिर्फ़ उस पर ही थीं। आस्था को बहुत असहज लग रहा था। वह हल्की सी मुस्कराहट के साथ दादाजी से बातें कर रही थी।

    आकाश आगे आया और आस्था से पूछा,
    "भाभी, अब आपकी तबीयत कैसी है? आप तो बेहोश हो गई थीं ना? अब आप ठीक हैं ना?"

    आकाश के प्यार से पूछने पर,

    अरमान गुस्से से आकाश की ओर घूरने लगा। वह सोचने लगा कि इन सबको क्या हो गया है? कैसे प्यार से बात कर रहे हैं, कितनी मीठी जुबान हो गई है, जैसे शहद खाकर आए हों! मेरे सामने तो इनकी जुबान तक नहीं खुलती।

    ध्रुव आकाश के पास आकर बोला,
    "क्या तुम्हें अभी भी मेरे इलाज पर शक है? अरे! ध्रुव, द ग्रेट ने भाभी का इलाज किया है! भाभी बिल्कुल ठीक है, उन्हें कुछ नहीं हुआ है!"
    ध्रुव मुस्कुरा दिया।

    आस्था भी मुस्कुराई,
    "आकाश भैया, ध्रुव जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, मैं बिल्कुल ठीक हूँ! और वाकई में ध्रुव जी एक बेस्ट डॉक्टर हैं। उन्होंने मुझे कितनी जल्दी ठीक कर दिया। ध्रुव जी, अब मेरी आपसे रिक्वेस्ट है कि आप भी जल्द से जल्द दादाजी को ठीक कर दीजिए! ताकि हम इन्हें जल्द से जल्द घर ले जाएँ।"

    ध्रुव बोला,
    "अरे! भाभी जी, आप अब क्यों परेशान हो रही हैं! दादाजी का इलाज चल रहा है। उनकी तबीयत अब काफ़ी ठीक है! और डोंट वरी, 1 से 2 घंटे में उनकी रिपोर्ट्स आ जाएँगी, उसके बाद मैं दादाजी को खुद घर लेकर आऊँगा! तब तक आप अरमान भाई के साथ घर चली जाइए! और जाकर आराम कीजिए, क्योंकि इस वक़्त आपकी तबीयत भी ठीक नहीं है! अस्पताल की रिपोर्ट्स आने में भी दो से तीन घंटे लगेंगे! फ़ॉर्मेलिटी वगैरह में देरी हो जाएगी!"

    ध्रुव के कहने पर, आस्था के होंठ फड़फड़ाने लगे। वह ध्रुव को कहना चाहती थी कि वह इस मॉन्स्टर के साथ अकेले नहीं जाना चाहती। वह यहीं अस्पताल में रुकना चाहती थी! वह मन ही मन खुद से बातें कर रही थी।

    अरमान, जो तिरछी नज़रों से आस्था के रिएक्शन देख रहा था, तुरंत बोला,
    "ध्रुव ठीक कह रहा है! तुम मेरे साथ घर चलो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है ना, दादाजी दो-तीन घंटे में घर आ जाएँगे! तब तक तुम चलो, तुम भी आराम कर लो। अगर तुम बीमार रहोगी तो दादाजी का ख्याल कौन रखेगा?"

    अरमान की बात सुनकर, चारों का मुँह हैरत से खुला रह गया!

    दादाजी मुस्कुराकर यह सब देख रहे थे। वे यही चाहते थे कि अरमान अपनी पत्नी से अच्छी तरह से पेश आए, उससे प्यार से बात करे! उनके दिल को सुकून मिल चुका था।

    आहान तुरंत सुमित के पास गया और अपनी कोहनी मारकर बोला,
    "था क्या? तूने भी वही सुना जो मैंने सुना है?"

    सुमित आकाश को कोहनी मारकर बोला,
    "क्या तूने भी वही सुना जो मैंने सुना है?"

    आकाश ध्रुव को कोहनी मारकर बोला,
    "था क्या? तुम्हारे कान भी ठीक काम कर रहे हैं? क्या तुमने भी वही सुना जो हमने सुना है?"

    वे चारों बोखलाहट से एक-दूसरे को कोहनी मार रहे थे।

    ध्रुव ने अरमान को कोहनी मार दी और बोला,
    "था क्या? तुमने भी वही सुना जो हम लोगों ने सुना है?"

    अरमान कन्फ़्यूज़न से ध्रुव को देखने लगा।

    ध्रुव को तुरंत एहसास हुआ कि उसने फ़्लो में अरमान को कोहनी मार दी थी...

    वे चारों इधर-उधर देखने लगे, मानो उन्होंने कुछ किया ही नहीं हो।

    अरमान ने आस्था की ओर देखकर कहा,
    "अब क्या तुम यहीं खड़ी रहोगी! चलो, चलना नहीं है।"

    अरमान जल्दी आस्था के सामने से उसे वार्ड से बाहर निकल गया।

    आस्था निराश होकर कभी दादाजी को, कभी उन चारों को देख रही थी। वह अपनी आँखों से उनसे रिक्वेस्ट कर रही थी कि कोई उसे उस मॉन्स्टर के साथ जाने से रोके!

    लेकिन वे चारों कुछ और ही सोच रहे थे। उन्होंने सोचा कि शायद भाभी की ख़ूबसूरती ने अरमान को बदल दिया है। और इसीलिए अरमान अपनी ख़ूबसूरत पत्नी के साथ अकेले में कुछ समय बिताना चाहता है! वे सब यही सोच रहे थे और मन ही मन खुश हो रहे थे।

    देव आस्था के पास आया और बोला,
    "मैडम, सर गाड़ी में इंतज़ार कर रहे हैं!"

    ध्रुव और आकाश आगे आए और बोले,
    "हाँ-हाँ भाभी, अब आप जाइए! हम आपको बस 3 घंटे बाद घर पर ही मिलेंगे! अगर आप दोनों को कुछ प्राइवेट बात करनी है तो आप हमें फ़ोन या मैसेज कर देना! हम थोड़ा लेट भी आ जाएँगे, कोई मसला नहीं है!"

    वे चारों आस्था को छेड़ने लगे थे!

    लेकिन उस वक़्त आस्था का दिल बुरी तरह से काँप रहा था। वह अरमान के साथ अकेले रहने के ख़्याल से डरने लगी थी। पर खुद को हिम्मत देती हुई देव के साथ जाने लगी!

    वह मन ही मन बोली जा रही थी,
    "आस्था, चल कुछ नहीं होगा! यह मॉन्स्टर तो तुझे तलाक़ देने का ही सोच रहा है। तो तू इस बारे में ज़्यादा मत सोच। अगर यह ज़्यादा तुझे कुछ कहेगा, तो तू भी इसके बारे में दादाजी को बता देना।"

    खुद से ही बातें करते हुए आस्था देव के पीछे-पीछे जाने लगी।

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  • 20. Obsessed Billionaire Hubby - Chapter 20

    Words: 1658

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही आस्था हॉस्पिटल के गेट से बाहर निकली, उसने देखा कि एक बड़ी, काली Mercedes उसके ठीक सामने खड़ी थी।

    देव आगे बढ़कर पीछे वाली सीट का दरवाज़ा आस्था के लिए खोल दिया। आस्था ने एक नज़र अस्पताल की ओर देखा और हिम्मत जमाते हुए गाड़ी में बैठ गई। लेकिन जैसे ही वह गाड़ी में बैठी,

    उसकी नज़र बगल में लैपटॉप पर काम करते हुए अरमान पर गई। आस्था बहुत घबरा गई। उसने सोचा था कि शायद अरमान उसके साथ जाना पसंद नहीं करेगा और दूसरी गाड़ी में जाएगा; आस्था को अकेले जाना होगा। लेकिन अरमान को अपनी बगल वाली सीट पर देखकर आस्था हैरान रह गई।

    लेकिन अब वह बैठ चुकी थी। वह मन ही मन प्रार्थना करने लगी, "हे कृष्ण भगवान जी, बस इस बार संभाल लेना! इस बार बंदूक वाले मॉन्स्टर से बचा लेना! मैं इस बार आपसे पक्का वादा करती हूँ! कि मैं इस बार आपको पूरे 101 नारियल चढ़ाऊँगी, बस आप इस मॉन्स्टर से बचा लेना।" यह सोचते हुए आस्था मन ही मन प्रार्थना करती रही।

    उसके बाद उसने एक बार भी अरमान की ओर नहीं देखा। उसका ध्यान सिर्फ़ खिड़की के बाहर दौड़ते-भागते शहर पर था। उस वक़्त शहर की खूबसूरती में आस्था पूरी तरह खो गई।

    क्योंकि जब अरमान और आस्था अस्पताल से निकले थे, शाम के छह बज चुके थे। शाम की चमक-धमक, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों की खूबसूरती देखते हुए वह मुस्कुरा रही थी। उसके चेहरे पर बड़े-बड़े डिंपल पड़ रहे थे। वह खुशी से उस नज़ारे का आनंद ले रही थी।

    यह देखकर अरमान को उससे चिढ़ होने लगी। आस्था का इस तरह मुस्कुराना उसे पसंद नहीं आया। उसने गुस्से में तेज़ी से अपना लैपटॉप बंद कर दिया।

    लेकिन आस्था का ध्यान अरमान की ओर बिल्कुल नहीं गया। क्योंकि वह बाहर की खूबसूरती में खोई हुई थी।

    अब अरमान का सब्र जवाब दे गया, क्योंकि वह आस्था को इस तरह मुस्कुराते हुए बिल्कुल नहीं देख सकता था। उसने अचानक आस्था के बाजू को कसकर पकड़ लिया और उसे अपनी ओर खींच लिया।

    आस्था के बाजू में तेज़ी से दर्द हुआ और उसके मुँह से हल्की सी चीख निकल गई।

    वहीं आगे फ्रंट सीट पर बैठे देव को जैसे ही आस्था की चीख सुनाई दी,

    उसने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। लेकिन जैसे ही उसने देखा कि आस्था, यानी उसकी मैडम, अरमान के सीने से लगी हुई है,

    तो उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। उसने तुरंत अपना मुँह आगे कर ड्राइविंग पर ध्यान दिया। बार-बार देव अपनी आँखें मसल रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसने कोई आठवाँ अजूबा देख लिया हो।

    क्योंकि इस तरह से अरमान सिंघानिया के आसपास किसी लड़की को देख पाना किसी आठवें अजूबे से कम नहीं था। जल्दी ही देव ने अरमान की परमिशन लिए बिना गाड़ी का पार्टिशन ऑन कर दिया।

    आस्था, जो उस वक़्त शहर की खूबसूरती में पूरी तरह खोई हुई थी, अरमान के इस बर्ताव से बहुत डर गई। उसके हाथ-पैर बुरी तरह काँपने लगे। अरमान ने भी उसके काँपते शरीर को महसूस किया।

    तभी आस्था एक झटके से अरमान से अलग होकर बैठ गई और डर और कन्फ़्यूज़न से उसकी ओर देखने लगी।

    अरमान गुस्से भरी लाल आँखों से उसे घूरते हुए बोला, "मैंने तुम्हें कहा था ना कि तुम्हें मेरे सामने मुस्कुराने का भी हक़ नहीं है! तो तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? इस तरह से मेरे सामने मुस्कुराने की? तुम्हें सिर्फ़ मेरे दादाजी, मेरे दोस्त और भाई के सामने मुस्कुराने की एक्टिंग करनी है। मेरे सामने नहीं, समझी तुम? आगे से मैं तुम्हें खुश ना देखूँ, क्योंकि मैं तुम्हारी इतनी सी भी खुशी बर्दाश्त नहीं कर सकता हूँ!" फिर से उसने उसे घूरना शुरू कर दिया।

    अरमान की बातें सुनकर आस्था बहुत हैरान और परेशान हो गई थी। उसे समझ में ही नहीं आया कि आखिरकार अरमान कहना क्या चाह रहा है। वह तो बस शहर की खूबसूरती देखकर थोड़ा सा मुस्कुरा रही थी, और अगर थोड़ी बहुत वह खुश भी हो रही थी,

    तो क्या उसकी खुशी अरमान की आँखों में चुभ रही थी? यह बात आस्था के दिल में एक दर्द सा दे गई। और अभी थोड़ी देर पहले जो आस्था मुस्कुरा रही थी, अचानक उसकी आँखों से एक-दो आँसू निकल कर उसके गालों पर आ गए।

    अरमान ने जैसे ही आस्था की आँखों में आँसू देखे, उसने सुकून की साँस ली और एक बार फिर अपना लैपटॉप ऑन करके काम करने लगा।

    वहीं आस्था अपनी आँखें बंद किए हुए अपनी किस्मत को रोने लगी और आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोचने लगी।

    कार जल्दी ही सिंघानिया मेंशन पहुँच गई। देव ने बड़े ही विनम्रता से अरमान से कहा, "सर, हम घर पहुँच गए हैं।" अरमान ने कहा, "घर पहुँच गए तो अब मुँह क्या देख रहा है! फटाफट दरवाज़े खोलो!" उसने देव को आदेश दिया।

    देव ने जल्दी ही अरमान के लिए कार का दरवाज़ा खोल दिया। अरमान बिना आस्था की ओर देखे, फटाफट लंबे-लंबे कदम लेते हुए सिंघानिया मेंशन के अंदर चला गया।

    देव ने जैसे ही आस्था के लिए दरवाज़ा खोला, आस्था ने जल्दी से अपने आँसुओं को साफ़ करके उसकी ओर देखकर उसे धन्यवाद दिया और कहा, "देव भैया, क्या आप मुझे बता सकते हैं? बाकी सब कब तक अस्पताल से वापस आएंगे?"

    जैसे ही देव ने आस्था के मुँह से "देव भैया" सुना, वह एक पल के लिए खो गया। उसे आस्था से बहुत अपनापन सा महसूस होने लगा; उसे ऐसा लगने लगा मानों आस्था के रूप में उसकी छोटी बहन उसके सामने खड़ी है।

    देव ने जल्दी से कहा, "जी मैडम, तीन घंटे तो उन्होंने आपसे बोला ही था ना! उस वक़्त मैं भी वहाँ मौजूद था। और कितना टाइम लगेगा, बस अभी थोड़ी देर में मैं आपको फ़ोन पर पता करके बता देता हूँ।

    लेकिन आप फ़िक्र मत कीजिए, मैं यहीं पर हूँ! और अगर आपको कुछ भी चाहिए होगा तो आप मुझे बता सकती हैं।" देव समझ चुका था कि आस्था इस वक़्त बाकी सब के लिए क्यों पूछ रही थी।

    क्योंकि उसे अरमान के साथ अकेले रहने में डर लग रहा था।

    देव मन ही मन सोचने लगा, "आप तो फिर भी एक लड़की हैं। लेकिन यहाँ तो बड़े-बड़े VIP भी अरमान सिंघानिया के साथ अकेले रहने या मीटिंग करने में कितना डरते हैं, इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है!!"

    आस्था ने थोड़ी हिम्मत करते हुए अपना पहला कदम रखा और सिंघानिया मेंशन की ओर बढ़ने लगी। जैसे ही वह वहाँ गई, उसने देखा कि पूरा हॉल खाली था और सभी नौकर शाम के खाने की तैयारी में लगे हुए थे। एक नौकर जल्दी से आस्था के पास आया और कहने लगा, "मैडम जी, साहब आपको ऊपर कमरे में बुला रहे हैं!"

    यह सुनकर आस्था का शरीर फिर से काँपने लगा। उसने सोचा था कि घर आने के बाद सीधा अपने कमरे में चली जाएगी, जो कमरा दादाजी ने उसे रहने के लिए दिया था।

    लेकिन जैसे ही नौकर ने कहा कि बॉस उसे ऊपर बुला रहे हैं, आस्था का गला सूखने लगा। उसने जल्दी से आगे बढ़कर डाइनिंग टेबल पर रखा पानी का गिलास उठा लिया और एक साथ पूरा गिलास पानी पी लिया।

    और खुद को अरमान के कमरे में जाने के लिए तैयार करने लगी। क्योंकि यह वही कमरा था जहाँ आस्था पर गोली चली थी। वह उस कमरे को कैसे भूल सकती थी! उसे एक अनजान सा डर सता रहा था, और वह उस कमरे में नहीं जाना चाहती थी। लेकिन उसके पास वहाँ जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

    क्योंकि अरमान के बारे में जानकर वह इतना समझ चुकी थी कि अगर उसने सीधे तरीके से अरमान की बातें नहीं मानी, तो अरमान एक पल नहीं लगाएगा उसके पूरे परिवार को मिटाने में। वैसे भी परिवार के नाम पर उसका अगर कोई था, तो मामा, मामी और उसकी नानी, लेकिन उसे अपने मामा-मामी की कुछ खास चिंता नहीं थी।

    लेकिन उसे अपनी नानी की बहुत चिंता थी। अपनी जान से भी ज्यादा वह अपनी नानी को प्यार करती थी। वह अपनी वजह से अपनी नानी पर किसी तरह की कोई आँच नहीं आने देना चाहती थी।

    इसलिए आस्था ने गहरी लंबी साँस ली और जल्दी ही मन ही मन में अपने कान्हा जी से प्रार्थना करती हुई अरमान सिंघानिया के कमरे की ओर बढ़ने लगी। वह मन ही मन बोल रही थी, "कृष्ण भगवान जी, आपने गाड़ी में तो मेरी बात नहीं मानी, गाड़ी में तो आपने उस मॉन्स्टर से नहीं बचाया। लेकिन इस बार आप मुझे बचा लीजिए!

    मैं वादा करती हूँ इस बार मैं एक नारियल और बढ़ा देती हूँ। पक्का मैं इस बार आपको 102 नारियल चढ़ाऊँगी! पर प्लीज़ इस बार आप मुझे बचा लीजिएगा, प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़।" सोचते हुए आस्था जल्दी ही अरमान सिंघानिया के कमरे के बाहर पहुँच गई।

    और जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, अचानक से वह दरवाज़ा अपने आप ही खुल गया। अब तो आस्था और ज़्यादा हैरान हो गई। वह सोचने लगी, "मैंने दरवाज़ा खोला भी नहीं और यह अपने आप ही खुल गया।" तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी। अब तो आस्था की जान हलक तक आ गई थी।

    ✍🏻👌🏻👍🏻